वर्ष-1 | अंक-29 | 3 - 9 जुलाई 2017
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597
sulabhswachhbharat.com
13 सुलभ
‘ज्ञान का स्वर्ग है सुलभ’ अब अरुणाचल के सभी घरों में हाइजैनिक टॉयलेट
युवा राष्ट्र का
युवा संत स्वामी विवेकानंद यानी एक युवा और आधुनिक भारतीय संत जिनकी ख्याति उनके समय में तो पूरी दुनिया में फैली ही थी, आज भी उनको लेकर विश्व समाज में खासी दिलचस्पी है
27 आदिवासी
संवारता भविष्य
एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय एक मिसाल
28 जेंडर
बिजली जैसा हौसला
पुरुषों के कार्यक्षेत्र में महिलाएं बनीं रोल मॉडल
02 आवरण कथा
3 - 9 जुलाई 2017
औसत अंक पाने वाले छात्र
जिस व्यक्ति की विद्वता और अंग्रेजी भाषा का कौशल ‘शिकागो धर्म संसद’ में सिर्फ अमेरिकियों को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को अपना कायल बनाने के लिए काफी थे, उसे इस विषय में अंक बहुत कम मिले थे
स्वा
भा
प्रेम प्रकाश
रत कृषि और ऋषि की परंपरा का देश रहा है। एक तरफ यहां श्रम और उद्यम की सांस्कृतिक प्रतिष्ठा रही है, तो दूसरी तरफ धर्म और अध्यात्म ने सामाजिक चेतना की सांस्कृतिक परंपरा की मजबूत नींव रखी है। बात करें खास तौर पर आज के भारत की तो आज भारत की तरुणाई की दुनिया भर चर्चा है। ऐसे में देश की आध्यात्मिक-सांस्कृतिक यात्रा से गुजरते हुए जो संत सबसे पहले याद आते हैं, वे हैं स्वामी विवेकानंद, यानी एक युवा और आधुनिक भारतीय संत जिनकी ख्याति उनके समय में तो पूरी दुनिया में फैली ही थी, आज भी उनको लेकर विश्व समाज में खासी दिलचस्पी है। दरअसल, युवा और संत, यह साझा ही अपने आप में काफी विलक्षण है। स्वामी विवेकानंद इसी विलक्षणता का नाम हैं। स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था, ‘मैं जो देकर जा रहा हूं, वह एक हजार साल की खुराक है।’ लेकिन जब आप उनके बारे में और उनके साहित्य का अध्ययन करते हैं तो ऐसा लगता है कि यह खुराक सिर्फ एक हजार साल का नहीं बल्कि कई युगों की है। महज 39 वर्ष 5 महीने और 24 दिन का छोटा सा जीवन। लेकिन इस छोटे से जीवनकाल
एक नजर
महज 39 वर्ष 5 महीने और 24 दिन तक जीवित रहे
युवाओं को रोज दौड़ने और फुटबाॅल खेलने की प्रेरणा वैश्विक युवा विकास सूचकांक में भारत 133वें स्थान पर
में ही उन्होंने विश्व को वेदांत के मर्म से परिचित कराया। विवेकानंद ने राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना। युवाओं को रोज दौड़ने और फुटबाल खेलने की प्रेरणा देने वाले इस आधुनिक युवा संत ने युवाओं का इस बात के लिए आह्वान किया था कि वे रूढ़िवादी जड़ताओं से निकलकर नए भारत के निर्माण का अगुआ बनें।
राष्ट्रीय युवा दिवस
12 जनवरी स्वामी विवेकानंद का जन्मदिवस है। इस प्रेरक दिन को 1985 से भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि
स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आह्वान करते हुए कठोपनिषद के एक मंत्र का उल्लेख किया था-‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।’ अर्थात उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक ध्येय की प्राप्ति न हो जाए
थे। वे लिखते हैं, उन्होंने मी विवेकानंद विश्वविद्यालय की तीन महान दार्शनिक परीक्षाएं दीं- एंट्रेंस और वक्ता जरूर हुए पर एग्जाम, फर्स्ट आर्ट्स वे अपने छात्र जीवन में स्टैंडर्ड और बैचलर बहुत मेधावी नहीं थे। इस ऑफ आर्ट्स। एंट्रेस दिलचस्प तथ्य का खुलासा एग्जाम में अंग्रेजी भाषा उन पर लिखी गई एक नई में उन्हें 47 प्रतिशत अंक किताब में किया गया है। मिले थे, एफएएस में 46 'द मॉडर्न मोंक : व्हाट प्रतिशत और बीए में 56 विवेकानंद मीन्स टू अस प्रतिशत अंक। गणित टुडे' के लेखक हिंडल और संस्कृत जैसे विषयों सेनगुप्ता कहते हैं कि में भी उनके अंक औसत विवेकानंद की आधुनिकता ही है, जो हमें आज भी ही रहे। लिहाजा, जो युवा आकर्षित करती है। हम स्कूल-कॉलेज या जिन भी संतों को जानते प्रतियोगी परीक्षाओं हैं, वे उन सबसे अलग हैं। हम जिन भी संतों को न तो इतिहास उन्हें बांध जानते हैं, स्वामी विवेकानंद के दबाव में खुद को पाया और न ही कोई लगातार निराशा की उन सबसे अलग हैं। न तो तरफ धकेले जा रहे कर्मकांड। वह अपने इतिहास उन्हें बांध पाया हैं, उन्हें यह समझना आसपास की हर चीज पर और खुद पर भी लगातार और न ही कोई कर्मकांड। चाहिए कि जीवन का सवाल उठाते रहते थे। वह अपने आसपास की हर लक्ष्य अगर बड़ा है तो फिर उसे प्राप्त करने से सेनगुप्ता के मुताबिक, चीज पर और खुद पर हमें वे विफलताएं भी जिस व्यक्ति की विद्वता भी लगातार सवाल उठाते नहीं रोक सकतीं, जो और अंग्रेजी भाषा का जीवन की तात्कालिक कौशल ‘शिकागो धर्म रहते थे स्थितियों में बहुत बड़ी संसद’ में सिर्फ अमेरिकियों लगती हैं। इसकी सबसे को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को अपना कायल बनाने के लिए काफी बड़ी मिसाल के रूप में हमारे सामने स्वामी थे, उसे इस विषय में अंक बहुत कम मिले विवेकानंद का जीवन है। संयुक्त राष्ट्र ने 1985 को ‘अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष’ घोषित किया था। उसी साल भारत सरकार ने स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस को प्रतिवर्ष ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी। इस दिन के चुनाव को लेकर सरकार का विचार था कि स्वामी विवेकानंद का दर्शन एवं उनका जीवन भारतीय युवकों के लिए प्रेरणा का बहुत बड़ा स्रोत हो सकता है।
देश की युवा ऊर्जा
आज जबकि भारत में करीब 60 करोड़ लोग 25 से 30 वर्ष के बीच हैं और यह स्थिति वर्ष 2045 तक बनी रहने वाली है, तो यह देखना दिलचस्प है कि देश की तरुणाई में क्या उतनी ही ऊर्जा और तेज है, जिसकी कामना स्वामी विवेकानंद ने की थी। निस्संदेह बीते दो-ढाई दशकों में भारतीय युवाओं ने सूचना तकनीक जैसे उद्यम के नए क्षेत्रों में बड़ी कामयाबी हासिल की है। पर इस कामयाबी से अलग एक दूसरी तस्वीर भी है, जो खासी चिंताजनक है। भारतीय सांख्यिकी विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के
3 - 9 जुलाई 2017
दिल को छूने वाली आवाज स्वामी विवेकानंद ने अपनी जादुई भाषण शैली, रूहानी आवाज और क्रांतिकारी विचारों से अमेरिका के आध्यात्मिक विकास पर गहरी छाप छोड़ी
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लकत्ता के शिमला पल्ली में 12 जनवरी 1863 में एक संभ्रांत परिवार में जन्मे विवेकानंद का बचपन का नाम नरेंद्रनाथ था। अध्यात्म के प्रति उनका झुकाव बचपन से ही था और छात्र जीवन में उन्होंने पूर्वी और पश्चिमी देशों की धर्म तथा दर्शन से जुड़ी पद्धतियों का गहराई से अध्ययन किया। स्वामी अदीश्वरानंद ने 1893 में शिकागो में हुई ‘धर्म संसद’ में स्वामी विवेकानंद के प्रेरक उद्बोधन के बारे में लिखा है कि उन्होंने अपने विचारों से अमेरिकी लोगों के दिल को छुआ। उन्होंने अपनी जादुई भाषण शैली, रूहानी आवाज और क्रांतिकारी
विचारों से अमेरिका के आध्यात्मिक विकास पर गहरी छाप छोड़ी। विवेकानंद ने अमेरिका और इंग्लैंड जैसी महाशक्तियों को भारतीय अध्यात्म के प्रति प्रेरित किया। दिलचस्प है कि विवेकानंद जिस समय शिकागो गए थे, उस वक्त अमेरिका गृहयुद्ध जैसी स्थिति से जूझ रहा था और तथाकथित वैज्ञानिक प्रगति ने धार्मिक मान्यताओं की जड़ों को हिला दिया था। ऐसे में अमेरिकी लोग एक ऐसे दर्शन की प्रतीक्षा में थे जो उन्हें इस संकट से मुक्ति दिलाए। विवेकानंद ने अपने विचारों से उनकी इच्छा की पूर्ति के लिए आशा की किरण दिखाई।
संयुक्त राष्ट्र ने 1985 को अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया था। उसी साल भारत सरकार ने स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी अनुसार देश में बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ रही है। देश में बेरोजगारों की संख्या 11.3 करोड़ अधिक हो जाएगी। वर्ष 2001 की जनगणना में जहां 23 प्रतिशत लोग बेरोजगार थे, वह 2011 की जनगणना में इनकी संख्या बढ़कर 28 प्रतिशत हो गई। बेरोजगारी युवाओं को लगातार हताशा के अंधेरे की तरफ ले जा रही है। देश में युवाओं की इस त्रासद स्थिति की पुष्टि वैश्विक युवा विकास सूचकांक-2016 से होती है, जिसमें भारत 133वें स्थान पर है। यह सूचकांक राष्ट्रमंडल सचिवालय रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, नागरिक और राजनीतिक क्षेत्र में युवाओं के लिए अवसर की संभावना के आधार पर तैयार करता है।
कठोपनिषद का मंत्र
स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आह्वान करते हुए कठोपनिषद का एक मंत्र कहा था-‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।’ अर्थात उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक कि ध्येय की प्राप्ति न हो जाए। विकास और सफलता से जुड़ी कई तरह की आपाधापी के बीच फंसी देश की तरुणाई के आगे आज सबसे बड़ा संकट आत्मबोध का है। लक्ष्य और सफलता को लेकर युवा आज अक्सर जल्दबाजी से काम लेते हैं। उनके आगे लक्ष्य के नाम पर भौतिक कामनाएं भर हैं। यही कारण है कि वे सुचिंतित तरीके से न कोई निर्णय लेते हैं और न ही धैर्य के साथ जीवन में किसी बड़े लक्ष्य की तरफ बढ़ने का साहस दिखा पाते हैं। जीवन और सफलता को लेकर ऐसी
सोच-समझ न सिर्फ भ्रामक है, बल्कि यह एक तरह की हिंसा भी है, खुद के प्रति और अपने देशकाल के प्रति। इन स्थितियों से बाहर निकलने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है आत्मबोध, जिसके लिए स्वामी जी कहते हैं कि खुद को समझाएं, दूसरों को समझाएं। सोई हुई आत्मा को आवाज दें और देखें कि यह कैसे जागृत होती है। सोई हुई आत्मा के जागृत होने पर ताकत, उन्नति, अच्छाई, सबकुछ आ जाएगा। बोध की इसी सकारात्मकता को स्वामी विवेकानंद ने भारतीयों के गौरवबोध से भी जोड़ा और बताया कि हम अपने मार्ग और आदर्श से अगर डिगें नहीं तो फिर भविष्य का सारा उजास हमारे लिए है।
आवरण कथा
03
विवेकानंद के परमहंस
रामकृष्ण परमहंस का नाम एक महान संत एवं विचारक के रूप में तो है ही, उनका एक बड़ा परिचय उनका स्वामी विवेकानंद का गुरु होना भी है
सफलता और स्वामी की सीख
आज युवाओं को रातोंरात सफलता के मंत्र सिखाने वाले मोटिवेटर हर जगह अपनी दुकान सजाए मिल जाएंगे। सफलता के इस मंत्र के लिए कोई क्रैश कोर्स करवा रहा है तो कोई इसके लिए इंस्टेंट फार्मूले को बेस्टसेलर बताकर किताब के रूप में बेच रहा है। व्यक्तित्व निर्माण और सफलता के ये सारे प्रस्ताव जितने आकर्षक हैं, उतने ही भ्रामक और खतरनाक भी। सफलता के लिए विवेकानंद बताते हैं कि इसके लिए जो तीन बातें जरूरी हैं, वे हैं शुद्धता, धैर्य और दृढ़ता। इसके आगे वह एक और दरकार पर जोर देते हैं। यह दरकार है प्रेम। वे कहते भी हैं कि मैं सिर्फ और सिर्फ प्रेम की शिक्षा देता हूं मेरी सारी शिक्षा वेदों के उन महान सत्यों पर आधारित है जो हमें समानता और आत्मा की सर्वत्रता का ज्ञान देती है।
चरित्र गढ़ने वाली शिक्षा
बात युवाओं की शिक्षा की करें तो इसे आज जिस तरह सिर्फ रोजगार और आय से जोड़ दिया गया है, वह सही नहीं है। इस बारे में विवेकानंद की स्पष्ट धारणा है कि शिक्षा ऐसी हो, जिससे चरित्र निर्माण हो, मानसिक शक्ति का विकास हो, ज्ञान का विस्तार हो और जिससे हम अपने पैरों पर खड़े होने में सक्षम बन जाएं। उनकी प्रसिद्ध उक्ति है, अगर आपको तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं पर भरोसा है लेकिन खुद पर नहीं तो आप को मुक्ति नहीं मिल सकती। खुद पर भरोसा रखें, अडिग रहें और मजबूत बनें। हमें इसकी ही जरूरत है। सरकार की युवा नीति कैसी हो और वह किस तरह के कार्यक्रमों को हाथ में ले, इसके लिए वे कहते हैं कि यदि युवाओं को कोई उपयुक्त कार्य नहीं दिया गया, तो मानव संसाधनों का भारी राष्ट्रीय क्षय होगा।
आखिरी समय
विवेकानंद ने अपने जीवन के आखिरी दिन बेलूर स्थित रामकृष्ण मठ में बिताए। लगातार यात्राओं से उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया और वे शारीरिक रूप से लगातार कमजोर होते गए। बताया जाता है कि उन्होंने अपने निर्वाण से पहले यह कह दिया था कि वह 4० वर्ष की उम्र तक जिंदा नहीं रह पाएंगे। उनकी भविष्यवाणी सच साबित हुई। इस महान आध्यात्मिक गुरु ने अपने विचारों से विश्व को प्रकाशित करने के बाद 4 जुलाई 1902 को दुनिया को अलविदा कह दिया।
वि
श्व इतिहास में एक महान संत एवं विचारक के रूप में रामकृष्ण परमहंस का नाम है तो उनकी कृति का एक बड़ा कारण उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद भी रहे। गुरु और शिष्य के बीच एेसी अनन्यता के उदाहरण शायद ही कहीं देखने को मिले। स्वामी विवेकानंद के महान गुरु ने 18 फरवरी 1836 को जन्म लेकर दुनिया को ईश्वर के बारे में बताया। हालांकि उन्होंने 15 अगस्त 1886 को दुनिया को 50 साल की उम्र में ही इस दुनिया को अलविदा भी कह दिया। रामकृष्ण परमहंस जी बचपन से ही मां काली के भक्त थे। जब भी वह मां काली का ध्यान लगाते थे अचानक से झूमने नाचने लगते थे। वे लंबे समय तक उनकी साधना में लीन भी रहते थे। उन्होंने ईश्वर के बारे में कहा है कि जैसे खराब आईने में सूर्य की छवि नहीं दिखाई पड़ती है, वैसे ही कभी खराब मन में भगवान की मूर्ति नहीं बन सकती। रामकृष्ण को बचपन से ही विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं। इसके लिए उन्होंने कठोर साधना और भक्ति का जीवन बिताया। उनका दावा था कि उन्होंने ईश्वर को देखा है और सभी लोग देख सकते हैं। वे सभी धर्मों को एक समान मानते थे। उनका कहना था कि सभी धर्म समान हैं, वे सभी ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता दिखाते हैं। जीवन को लेकर भी उनके विचार काफी अलग थे। उनके मुताबिक, अगर मार्ग में कोई दुविधा न आए तो समझ लेना कि रास्ता गलत है। विषय के ज्ञान को लेकर उनका कहना था कि विषयक ज्ञान मनुष्य की बुद्धि को सीमा में बांध देता है। इतना ही नहीं उन्हें अभिमानी भी बना देता है।
04 नमन
3 - 9 जुलाई 2017
शंकर के स्वामी स्वामी विवेकानंद स्मृति विशेष
'विवेकानंद : जीवन के अनजाने सच’ पुस्तक में शंकर ने विवेकानंद के जीवन के कई प्रसंगों को प्रस्तुत किया है
शं
एसएसबी ब्यूरो
कर बांग्ला के चर्चित साहित्यकार हैं। उनकी कृतियों का बांग्लाभाषी प्रबुद्ध समाज में तो काफी आदर है ही, वे देश की दूसरी भाषाओं में भी समान रूप से समादृत हैं। उनकी कुछ कृतियों का विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। उन्होंने स्वामी विवेकानंद को लेकर एक महत्वपूर्ण किताब
एक नजर
बांग्ला साहित्यकार शंकर की कृति है‘विवेकानंद : जीवन के अनजाने सच’ इस किताब की बांग्ला में एक लाख से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं हिंदी में भी इस कृति का अनुवाद काफी पठनीय और चर्चित है
लिखी है, जो खासी चर्चित भी रही। किताब का नाम है – ‘विवेकानंद : जीवन के अनजाने सच’। यह किताब मूल रूप से बांग्ला में लिखी गई है, पर हिंदी में भी इसका अनुवाद पुस्तक रूप में उपलब्ध है। इस किताब की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अकेले बांग्ला में इसकी एक लाख से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं। दरअसल, स्वामी विवेकानंद के जीवन के कई आयाम अब तक अनुद्घाटित हैं। उनके प्रकाशित पत्रों और सैकड़ों पुस्तकों से उनके दर्शन व जीवन को समझने में सहूलियत तो मिलती है, फिर भी उनके जीवन के कई कोने ऐसे हैं जिन पर रोशनी नहीं पड़ी है और जिनके उजागर होने से उनको देखने -समझने के हमारे नजरिए में परिवर्तन होता है। बांग्ला साहित्यकार शंकर ने उन पर लंबे अरसे तक शोध करने और लगभग दो सौ पुस्तकों से अपनी बात को पुष्ट करने का प्रमाण जुटाने के बाद ‘विवेकानंद : जीवन के अनजाने सच’ पुस्तक लिखी है। इसमें उन्होंने विवेकानंद को जिस रूप में पेश किया है, वह उन्हें बहुत करीब से समझने में हमारी मदद करता है। विवेकानंद के व्यक्तित्व के उस ताने-बाने को उन्होंने परखने की कोशिश की है जिनसे उनका व्यक्तित्व न सिर्फ बनता है बल्कि निखरता है। इस पुस्तक में उन्होंने उन्हें एक महामानव के जीवन संघर्ष की उन स्थितियों को ही नहीं उजागर किया है जो उनके विकास में सहायक हुआ है, बल्कि उन विसंगतियों की भी चर्चा की है जो उनके संन्यासी जीवन के विकास में बाधक बनती दिखाई देती हैं। ‘विवेकानंद : जीवन के अनजाने सच’ पुस्तक में शंकर ने विवेकानंद के जीवन के ऐसे प्रसंगों को प्रस्तुत किया है जिनकी या तो चर्चा बहुत कम हुई है या फिर हुई भी है तो उसके पूरे मर्म को समझने में वह अपर्याप्त रही। यह अनायास नहीं है कि उन्होंने इस पुस्तक का नाम ही ‘जीवन के अनजाने सच' इसीलिए रखा क्योंकि उन्होंने उन्हीं प्रसंगों पर अधिक जोर दिया है और उस विषय पर उन्होंने गहन अध्ययन प्रस्तुत किया है, जिनके आधार पर विवेकानंद की बहुमुखी प्रतिभा पर भी प्रकाश पड़ा है। इस पुस्तक के बिना यह जानना मुश्किल था कि उन्होंने जितना वेदों का प्रचार किया, उससे कम प्रचार भारतीय व्यंजनों का नहीं किया। 'सम्राट-संन्यासी सूपकार' अध्याय में शंकर ने लिखा है कि वे न सिर्फ तरह-तरह के व्यंजनों को खाने के बेहद शौकीन थे, बल्कि पाक कला में भी उन्हें विशेष महारत हासिल थी। विदेशों में भी कई बार अपने करीबी लोगों को घर जाकर खुद
संगदिल नहीं होते संन्यासी
‘लोग जानना चाहते थे कि आम आदमी के रूप में स्वामी विवेकानंद कैसे थे, उनका रहन-सहन कैसा था, अपनी निजी जिंदगी में वे अपने परिवार वालों और निकट के लोगों से कैसा संबंध रखते थे। इसीलिए मैंने सोचा कि विवेकानंद के ऐसे जीवन संदर्भों को प्रमाणपूर्वक रोचक तरीके से लिखा जाए’ शंकर प्रसिद्ध बांग्ला साहित्यकार और चर्चित पुस्तक ‘विवेकानंद : जीवन के अनजाने सच’ के रचयिता
अ
पने देश और खासकर बांग्ला में विवेकानंद से परिचित होना असहज नहीं है। वह अपने जीवन में ही देश के बाहर पहुंच चुके थे। जहां तक मेरी बात है, मैं बचपन में हावड़ा के विवेकानंद इंस्टीट्यूट में मैंने उनके जीवन पर बहुत शोध पढ़ता था। वहां जो मेरे हेडमास्टर श्री किए। उनके जीवन से संबंधित तथ्यों सुधांशु शेखर भट्टाचार्य थे, वे हम से परिचित होने के बाद मैंने इनकी बच्चों के बीच विवेकानंद की चर्चा एक तालिका बनाई। उन चीजों के किया करते थे। फिर मेरा विद्यालय बारे में लिखना चाहता था, जिसे बेलूर मठ के पास ही था। इस जानने के लिए आम लोगों के मन कारण मैं काफी पहले विवेकानंद से में बहुत उत्सुकता रहती थी, जिज्ञासा परिचित हो चुका था और उनसे तभी रहती थी। स्वामी जी की प्रखरता के से एक लगाव भी बन चुका था। आलोक में उनके सामान्य मनुष्य की जब मैं बड़ा हुआ, उस दौरान छवि अदृश्य-सी हो गई थी। लोग मेरी मुलाकात श्री शंकरी प्रसाद बसु जानना चाहते थे कि आम आदमी से हुई। उन्होंने विवेकानंद पर किताब के रूप में स्वामी विवेकानंद कैसे थे। लिखी है। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक हैउनका रहन-सहन कैसा था, अपनी ‘विवेकानंद और समकालीन भारत’। निजी जिंदगी में वे अपने परिवार इसके अलावा भी उनकी कई पुस्तकें हैं। उन्होंने विवेकानंद की विलायती एक बार विवेकानंद अपने किसी प्रिय जन की मृत्यु का वालों और निकट के लोगों से कैसा शिष्या भगिनी निवेदिता पर पुस्तक समाचार पाकर आकुल-व्याकुल हो रो पड़े थे। उसी संबंध रखते थे ? इसीलिए मैंने सोचा कि अगर विवेकानंद के ऐसे जीवन‘लोक माता निवेदिता’ लिखी है। दो समय किसी ने उन्हें समझाया कि सं न ्यासी होकर संदर्भों को प्रमाणपूर्वक रोचक तरीके खंडों में निवेदिता के पत्रों का संग्रह से लिखा जाए तो लोगों को उनके किया है। जिस समय शंकरी बाबू से किसी की मृत्यु पर रोना उचित नहीं है। इस पर जीवन के किंचित अज्ञात-अल्प ज्ञात भेंट हुई, वह विवेकानंद पर लिख विवे क ानं द ने कहा था कि सं न ्यासी बनने के लिए पहलुओं के बारे में जानने का मौका रहे थे। जिसका नाम बताया वही मिलेगा। हृदय का विसर्जन कर देना आवश्यक है क्या? कालजयी किताब। उसने मुझे अनेक विवेकानंद के व्यक्तित्व में कई जानकारियां दीं। लेकिन उससे बातें काफी दिलचस्प हैं। मसलन, विवेकानंद के बारे में मेरी जिज्ञासा एक बार विवेकानंद अपने किसी और बढ़ गई। जब मेरी जिज्ञासा लगा तो इस किताब को लिखने में मुझे आनंद बहुत बढ़ गई, तब मैंने विवेकानंद पर लिखना शुरू आने लगा। उनका विदेश भ्रमण और वेदांत का प्रिय जन की मृत्यु का समाचार पाकर आकुलकिया। छिटपुट छोटे-छोटे लेख। यह काफी पहले प्रचार करना हर किसी के लिए हमेशा प्रेरणार्थक व्याकुल हो रो पड़े थे। उसी समय किसी ने उन्हें समझाया कि संन्यासी होकर किसी की मृत्यु पर की बात है- कोई आज की कथा नहीं है। रहा है। इन सब सूत्रों से मुझे भी उनके जीवन की विवेकानंद में जो भाव, जो प्यार अपनी मां बातों में और गहराई तक जाने की प्रेरणा मिली रोना उचित नहीं है। इस पर विवेकानंद ने कहा था कि संन्यासी बनने के लिए हृदय का विसर्जन के लिए था, उसमें मेरी खासी रुचि थी। इस और मैंने उस पर काम करना शुरू कर दिया। वैसे कर देना आवश्यक है क्या? संन्यासी का हृदय किताब का पहला अध्याय इसी से संबंधित हैविवेकानंद के प्रति मेरे आकर्षित होने का एक और तो आम लोगों के मुकाबले और कोमल होना संन्यासी गर्भधारिणी जननी। मैं जब यह अध्याय लिखने लगा तो प्रारंभ में यूं ही सहज भाव से कारण था, जो सुनने में बड़ा ही हास्यास्पद लगेगा। चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि संन्यासी हो या शुरू किया था, पर लिखते-लिखते मेरी जिज्ञासा मैंने सुना था कि वे खाने के बड़े शौकीन थे और कोई कुछ और, सभी सबसे पहले मनुष्य हैं। इसके अत्यंत प्रबल हो गई। मौत के एक दिन पहले तक मैं भी हूं। यह भी एक कारण था, जिससे मेरे मन साथ ही उन्होंने जो बात कही, वह उनकी विवेकानंद ने अपनी मां के दुखों को दूर करने में यह जिज्ञासा जगी कि वे क्या-क्या खाना पसंद प्रखर दृष्टि का स्पष्ट प्रमाण है। उन्होंने कहा के लिए भरसक प्रयास किए थे। विवेकानंद का करते थे। अपनी किताब में मैंने इसका विस्तार से कि जो संन्यास हृदय को पत्थर बना लेने की बात कहता है, उसे मैं संन्यास नहीं मानता। यह संन्यासी होने पर भी मां से जैसा लगाव बना रहा, जिक्र किया है। दरअसल, मेरे ऊपर हमेशा से विवेकानंद का स्वयं विवेकानंद का कथन है। इसमें कोई दुविधा वह आदि शंकराचार्य की कथा याद दिलाता है। जब मैं विवेकानंद के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने बहुत ज्यादा प्रभाव था। इसी प्रभाव की प्रेरणा से दिखती है कहीं ?
3 - 9 जुलाई 2017
नमन
05
'विवेकानंद: जीवन के अनजाने सच’ पुस्तक में शंकर ने विवेकानंद के जीवन के प्रसंगों को प्रस्तुत किया है जिनकी या तो चर्चा बहुत कम हुई है या फिर हुई भी है तो उसके पूरे मर्म को समझने में वह अपर्याप्त रही। यह अनायास नहीं है कि उन्होंने इस पुस्तक का नाम ही 'जीवन के अनजाने सच' इसीलिए रखा खाना बनाकर खिलाया। भोजन प्रसंग में विवेकानंद के चाय व आइसक्रीम के प्रति लगाव की विशेष चर्चा है। शंकर कहते हैं- 'स्वामी जी जिनके भी घर में मेहमान बनते थे, उन लोगों को अपना भी एकाध व्यंजन पकाकर खिलाने को उत्सुक रहते थे।' शंकर इस अध्याय में कहते हैं- 'उत्तरी कैलिफोर्निया के रसोईघर में शेफ यानी रसोइया विवेकानंद। बेहद अद्भुत दृश्य होता था। खाना पकाते-पकाते स्वामी जी दर्शन पर बातें करते रहते थे। गीता के अठारहवें अध्याय से उद्धरण देते रहते थे।' विवेकानंद के लिए वेद-उपनिषद का प्रचार प्रसार, मानवता के कल्याण की बातें और व्यंजनों की रेसिपी में कोई फर्क नहीं था। यहां यह भी गौरतलब है कि उनका खान-पान शाकाहार तक ही सीमित नहीं था। इस पुस्तक में जो प्रमुख स्वर उभरा है वह है अपनी मां के प्रति उनका अगाध प्रेम। मां से उनका संबंध अंत तक बना रहा। वे इस बात के प्रति भी चिंतित रहे कि उनकी मौत के बाद उनकी मां की देखभाल और भरण-पोषण ठीक से हो। इस पुस्तक में उनकी पैतृक संपत्ति के लेकर चलने वाले लंबे मुकदमे का भी विस्तार से जिक्र है जिसके कारण उनके परिवार को गरीबी के दिन देखने पड़े, जिन्हें सुलझाने का उन्होंने भरसक किया। अदालत से मुकदमे का समाधान न होते देख उन्होंने छह हजार रुपए देकर अपनी चाची से पैतृक घर का हिस्सा खरीद लिया जिसके लिए उन्हें मठ के फंड से पांच हजार रुपए उधार लेने पड़े। खेतड़ी महाराज से वे पत्र में गुजारिश करते हैं- 'मेरी मां के लिए आप जो हर महीने सौ रुपए भेजते हैं, हो सके तो उसे स्थायी रखें। मेरी मौत के बाद भी यह मदद उन तक पहुंचती रहे।' शंकर ने विवेकानंद की उन तमाम बीमारियों का जिक्र किया है जिनसे वे लगातार घिरे रहे। वे अनिद्रा के भी शिकार थे। यह देखकर हैरत होती है कि जिस व्यक्ति को इतनी सारी बीमारियां थीं उसने कैसे दर्शन के क्षेत्र में महती योगदान दिया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी धाक बनाई। खेतड़ी के राजा अजीत सिंह की चर्चा जिस तरह से शंकर ने की है उससे स्पष्ट है कि विवेकानंद को विदेश भेजने का इंतजाम उन्होंने ही किया था। विवेकानंद ने इसे खुलेआम स्वीकार किया था कि अगर खेतड़ी के राजा से परिचय न होता तो जो कुछ मामूली सा मैं भारत की उन्नति के लिए कर पाया हूं, वह मेरे लिए असंभव था।
06 नमन
3 - 9 जुलाई 2017
युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद स्मृति विशेष
स्वामी विवेकानंद के संदेश
स्वामी विवेकानंद आधुनिक संत हैं और अपने जीवन में उन्होंने सबसे ज्यादा युवाओं के साथ संवाद किया है। वे युवाओं में असीम ऊर्जा तो देखते ही हैं, उनके भरोसे ही वे भविष्य के सबल और श्रेष्ठ भारत की रचना की कामना भी करते हैं
एक नजर
युवाओं की मौजूदा चुनौतियां हल करने में मदद करने वाले विचार
अध्यात्म और व्यवहार की दृष्टि से दी गई सीख आज भी प्रासंगिक सफलता के लिए लगन और संकल्प पर सबसे ज्यादा जोर
अच्छा कर पाएंगे, उसका परिणाम भी अच्छा ही होगा। कोई भी परिस्थिति हो, हमेशा अच्छा सोचें क्योंकि जो लोग विपरीत परिस्थिति में भी अच्छा सोचते हैं, वही सफलता प्राप्त कर पाते हैं।
सारी शक्तियां हमारे भीतर
उ
एसएसबी ब्यूरो
ठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए, स्वामी विवेकानंद ने ऐसा कहते हुए न सिर्फ अपने समय में, बल्कि आज युवाओं को भी सफलता का संदेश दे रहे हैं। वे आधुनिक संत हैं और अपने जीवन में उन्होंने सबसे ज्यादा युवाओं के साथ संवाद किया है। वे युवाओं में असीम ऊर्जा तो देखते ही हैं, उनके भरोसे वे भविष्य के सबल और श्रेष्ठ भारत की रचना की कामना भी करते हैं। आज भारत दुनिया का सबसे युवा देश है, ऐसे में स्वामी विवेकानंद के वे विचार जो युवाओं को मौजूदा दौर की चुनौतियां हल करने और जीवन में बड़े लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करते हैं, उनके बारे में निश्चित रूप से विचार करना चाहिए।
जैसा सोचेंगे, वैसा बनेंगे
स्वामी विवेकानंद का अनमोल वचन है- ‘आप जैसा विचार करेंगे, वैसे ही आप हो जाएंगे। यदि आप स्वयं को निर्बल मानेंगे तो आप निर्बल बन जाएंगे। यदि आप स्वयं को समर्थ मानेंगे तो आप समर्थ बन जाएंगे।’ उनकी कही यह बात हमारे सोच-विचार के तरीके और स्तर से जुड़ी है। हम जैसा सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं। जैसे विचार हमने अपने अतीत में रखे थे, वैसे ही हम आज हैं। जैसे विचार हमारे आज हैं,
वैसा ही हमारा भविष्य होगा। सम्मोहन का सिद्धांत भी यही कहता है कि जिस प्रकार की दुनिया हमारे विचारों की होगी, वैसी ही हमारी वास्तविक दुनिया भी होगी, क्योंकि हम जैसा सोचेंगे, वैसी ही चीजें हमारी ओर आकर्षित होंगी। हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही करते हैं और जैसा करते हैं, वैसा ही हमें परिणाम प्राप्त होता है। जाहिर है यदि बुरा सोचेंगे तो बुरा ही करेंगे और जब बुरा करेंगे तो परिणाम भी बुरा ही निकलेगा। अतः अच्छा सोचने की आदत डालें, तभी कुछ
यदि स्वामी जी की दृष्टि में आपको सफलता प्राप्त करनी है तो अपना एक स्पष्ट लक्ष्य तय करना होगा। इसके बाद केवल यही विचार अपने मन में रखें कि कैसे भी हो, मुझे अपना लक्ष्य जरूर प्राप्त करना है और उसे प्राप्त करने के लिए कार्य शुरू कर दें
स्वामी जी का काफी प्रसिद्ध कथन है, ‘ब्रह्मांड की सारी शक्तियां हमारे ही भीतर हैं। वह हम ही तो हैं जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं। फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है। हमारे मस्तिष्क की शक्तियां सूर्य की किरणों के समान हैं। जब वे केन्द्रित होती हैं तो चमक उठती हैं।’ इस कथन के पीछे उनका आशय यह है कि इस संसार की सभी बुरी और अच्छी शक्तियां हमारे ही अंदर मौजूद हैं। जरूरत तो केवल उन अच्छी शक्तियों को पहचानने की है, जिनके द्वारा हम कोई भी बड़ी सफलता प्राप्त कर सकते हैं। कुछ लोग ऐसे हैं जो अपने अंदर की शक्तियों की पहचान ही नहीं कर पाते और हमेशा अपने भाग्य को दोष देते रहते हैं। ये वही लोग हैं, जो अपनी आंखों को अपने ही हाथों से बंद कर लेते हैं और कहते हैं कि यह संसार अंधकार से भरा हुआ है। ऐसे लोग कभी भी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते। यदि हम अपनी सभी अच्छी शक्तियों को अपने लक्ष्य पर केंद्रित कर देते हैं तो सफलता की तेज रोशनी से हमारा पूरा जीवन चमक उठता है। अतः जो लोग अपने अंदर की सभी अच्छी शक्तियों को पहचान लेते हैं और इन सभी शक्तियों को सफलता प्राप्त करने में लगा देते हैं, सफलता उनके कदम चूमती है।
कभी हार न मानें
एक बार किसी व्यक्ति ने स्वामी विवेकानंद से पूछा, ‘सब कुछ खोने से ज्यादा बुरा क्या है?’ स्वामी जी ने
3 - 9 जुलाई 2017 उत्तर दिया, ‘उस उम्मीद को खो देना, जिसके सहारे हम सबकुछ वापस प्राप्त कर सकते हैं।’ दरअसल, वे यहां आशा की किरण की बात करते हैं। हम आमतौर पर लोगों को यह कहते सुनते हैं कि यह पूरी दुनिया उम्मीद पर ही टिकी हुई है। उम्मीद ही वह आग है, जो तब भी रोशनी देती है जब
असफलता का अंधेरा हमारे जीवन को घेर लेता है। यह सत्य है कि यदि कोई व्यक्ति अपना सबकुछ खो दे, लोग उसकी बिल्कुल भी सहायता न करें, वह बिल्कुल अकेला हो जाए, उसे हर जगह अंधकार ही अंधकार दिखने लगे, तब भी यदि उस व्यक्ति के मन में एक भी उम्मीद की किरण बाकी हो तो वह उस उम्मीद की किरण की मदद से सब कुछ दोबारा प्राप्त कर सकता है। अतः जीवन में सब कुछ खो देना इतना बुरा नहीं है जितना उस उम्मीद को खो देना जिसके बल पर सबकुछ फिर से प्राप्त किया जा सकता है।
स्पष्ट लक्ष्य
स्वामी विवेकानंद का प्रेरणादायक कथन है, ‘एक विचार लो। उस विचार को अपना लक्ष्य बना लो। उसके बारे में सोचो, उसके सपने देखो, उस विचार को जिओ, अपने दिमाग, मांसपेशियों, नसों और शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो तथा बाकी सभी विचारों को किनारे रख दो। यही सफल होने का तरीका है।’ स्वामी जी की दृष्टि में यदि आपको सफलता प्राप्त करनी है तो अपना एक स्पष्ट लक्ष्य तय करना होगा। इसके बाद केवल यही विचार अपने मन में रखें कि कैसे भी हो, मुझे अपना लक्ष्य जरूर प्राप्त करना है और उसे प्राप्त करने के लिए कार्य शुरू कर दें। स्वामी जी की नजर में लक्ष्य और उसके लिए पूरी लगन जरूरी है। लक्ष्य और उसे हासिल करने का विचार अगर हर समय हमारे साथ है, हमारा अंग-अंग उस लक्ष्य को प्राप्त करने के रोमांच से भरा है तो फिर सफलता हमसे कतई दूर नहीं जा सकती। कहने का तात्पर्य यह कि आपका लक्ष्य आपकी जिंदगी बन जाए। ऐसा हो जाए कि लक्ष्य को प्राप्त करने में हम इतना डूब जाएं कि बाकी कोई और विचार दिमाग में घर ही न कर सके। फिर हमें सफलता प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता।
आप स्वयं ही भाग्यनिर्माता
स्वामी जी की एक मशहूर प्रेरक उक्ति है- ‘खुद से दिन में कम से कम एक बार बात जरूर करें, अन्यथा आप दुनिया के एक अनूठे व्यक्ति के साथ बात करने का मौका खो दोगे। मनुष्य स्वयं अपने भाग्य का निर्माता है।’ स्वामी विवेकानंद ने यहां बताया है कि दिन में थोड़ा-सा समय ऐसा भी निकालो, जिस समय आप हों और आपके साथ आपके विचार हों। यह वह समय होगा, जब आप खुद से बातें करेंगे। यह वह समय होगा, जब आप स्वयं के साथ बैठकी करेंगे, संगत करेंगे। इस समय आप स्वयं से कुछ सवाल पूछें। सवाल पूछने वाले भी आप होंगे और उत्तर देने वाले भी आप ही होंगे। इस समय आप जो भी प्रश्न खुद से पूछेंगे, उनका सही उत्तर आपके अलावा कोई और नहीं दे सकता, क्योंकि आपके बारे में आपसे ज्यादा कोई और नहीं जानता। आप ही वह अनूठे व्यक्ति हैं, जो खुद के प्रश्नों के एकदम सही उत्तर दे सकते हैं।
नमन
07
स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से बहुत कुछ सीखा। वे एक जगह बताते हैं, ‘श्री रामकृष्ण परमहंस जी मुझसे कहा करते थे-जब तक मैं जीवित हूं, तब तक िसखा सकता हूं। वह व्यक्ति या वह समाज जिसके पास सीखने को कुछ नहीं है, वह पहले से ही मौत के मुंह में है’ खुद अपने साथ की गई आपकी यह वार्ता आपके भविष्य को निर्धारित करेगी। इस बैठक में आप जो भी तय करेंगे वही भविष्य में आपका भाग्य गोगा। इस प्रकार आप खुद ही अपने भाग्य निर्माता हैं।
पवित्र विचारों के बीच रहें
स्वामी विवेकानंद का प्रेरणादायक संदेश है‘लगातार पवित्र विचार करते रहें। बुरे विचारों और संस्कारों को दबाने के लिए यही एकमात्र साधन हैं।’ वे यहां नकारात्मक और सकारात्मक सोच के बारे में एक गूढ़ बात बता रहे हैं। यदि आपको नकारात्मक सोच ने घेर लिया है तो इसे दूर करने के लिए आपको केवल सकारात्मक सोच को अपने जीवन में अपनाना है। बहुत से व्यक्ति अपने अंदर के नकारात्मक विचार को हटाने के लिए तरह-तरह के प्रयास करते हैं, लेकिन सफल नहीं हो पाते, क्योंकि वे अपने बुरे विचारों को हटाने के लिए उन्हीं बुरे विचारों पर अपने दिमाग को केंद्रित करते हैं। दरअसल, हम अपने दिमाग को जिस चीज पर केंद्रित करते हैं, वह चीज हमारे जीवन में बार-बार आती है। इसीलिए स्वामी जी कहते हैं कि नकारात्मक विचार को दूर करने का सबसे अच्छा तरीका है कि सकारात्मक विचार की तरफ बढ़ चलो, उसका ध्यान करो। जब सकारात्मक विचार आपके दिमाग में जगह बनाएंगे तो नकारात्मक विचार खुद ही अपना वजूद खो देंगे।
संभव-असंभव
स्वामी विवेकानंद का प्रसिद्ध उद्धरण है, ‘संभव की सीमा जानने का केवल एक ही तरीका है, वह यह है कि असंभव से भी आगे निकल जाओ।’ स्वामी विवेकानंद हमें बताते हैं कि इस दुनिया में आपके लिए क्या-क्या संभव है। इसे जानने का सबसे सरल तरीका है कि असंभव से आगे निकल जाओ और वहां पहुंच जाओ, जहां कुछ भी असंभव नहीं है। असंभव से आगे निकलते ही आपके लिए सबकुछ संभव हो जाएगा। आपके अंदर वे सभी शक्तियां मौजूद हैं, जिनके बल पर आप कह सकते हैं कि आपके लिए इस दुनिया में सबकुछ संभव है, अर्थात इस दुनिया में आपके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। जब आप असंभव से आगे निकल जाएंगे तब यह जान जाएंगे कि जीवन में अपार संभावनाएं मौजूद हैं। अतः खुद को इतना योग्य बना लें कि आपके लिए कुछ भी कठिन न लगे, आप के लिए सबकुछ सरल हो जाए।
दोष किसका
स्वामी विवेकानंद अपनी कई बातों से चमत्कृत करते हैं। खासतौर पर युवाओं को वे सामान्य सी बात कहकर भी कई बार गूढ़ संदेश दे जाते हैं। उनकी उक्ति है, ‘जो अग्नि हमें गर्मी प्रदान करती है, वह हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं है।’ यहां वे हमें किसी भी चीज का उपयोग कैसे करें, इस बारे में बताते हैं। उन्होंने अग्नि का उदाहरण देते हुए बताया कि अग्नि हमारे लिए बहुत उपयोगी है। जब तक हम अग्नि को उन कार्यों में
लगाते हैं, जिनका परिणाम अच्छा होता है, तब तक अग्नि हमारे लिए वरदान है, लेकिन जब हम अग्नि का उपयोग गलत तरीके से करने लगते हैं तो वह किसी भी चीज को नष्ट कर सकती है और बुरे परिणाम आ सकते हैं। अर्थात अग्नि का काम गर्मी देना है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम उसका उपयोग खाना बनाने में करते हैं या अपना घर जलाने में। अगर आपका घर जलता है तो यह अग्नि का दोष नहीं है, क्योंकि यह आपके ऊपर है कि आप अग्नि का उपयोग कैसे करते हैं।
जीवन भर सीखें
स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से बहुत कुछ सीखा। वे एक जगह बताते हैं, ‘श्री रामकृष्ण परमहंस जी मुझसे कहा करते थे-जब तक मैं जीवित हूं, तब तक सीख दे सकता हूं। वह व्यक्ति या वह समाज जिसके पास सीखने को कुछ नहीं है, वह पहले से ही मौत के मुंह में है।’ यहां स्वामी विवेकानंद अपने गुरु के कहे हुए शब्दों को याद करते हुए बताते हैं कि जब तक कोई व्यक्ति जीवित रहता है तब तक उसके अंदर कुछ भी सीखने की संभावनाएं रहती हैं। किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व निर्माण एक सतत प्रक्रिया है। जब तक व्यक्ति के अंदर कुछ नया सीखने की इच्छा रहती है, उसका विकास होता रहता है। जब उसके अंदर से कुछ नया सीखने की इच्छा समाप्त हो जाती है, तब उस व्यक्ति को एक चलती-फिरती लाश के समान माना जा सकता है। दरअसल, यह बात व्यक्ति ही नहीं, बल्कि किसी भी समाज पर लागू होती है। कोई भी समाज कुछ नया सीखता हुआ समय के अनुसार खुद को ढालता चला जाता है, उस समाज का अस्तित्व हमेशा बना रहता है। जो कुछ नया नहीं सीखता, वह समाज अनेक परेशानियों के चलते पतन की ओर चलता जाता है। अतः हमेशा कुछ नया सीखते रहना चाहिए।
सत्य का प्रकटीकरण
स्वामी विवेकानंद सत्य को लेकर एक गूढ़ बात बताते हैं, ‘किसी भी सत्य को हजारों तरीकों से बताया जा सकता है। फिर भी हर तरीका सत्य ही बताएगा।’ यहां वे हमें बताते हैं कि किसी भी मंजिल तक पहुंचने के हजारों रास्ते हो सकते हैं। हम उस मंजिल तक पहुंचने के लिए कोई सा भी रास्ता अपना सकते हैं, क्योंकि हमारे द्वारा अपनाया गया कोई भी रास्ता हमें मंजिल तक पहुंचा देगा। दरअसल, इस दुनिया में अरबों लोग हैं। सभी सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो यह संभव है कि सफलता तक पहुंचने के भी अरबों रास्ते मौजूद हों। यदि सभी व्यक्ति अलग-अलग रास्ता अपनाएं तो एक दिन सभी को पहुंचना केवल एक ही मंजिल पर है। इसी प्रकार किसी भी सत्य को कितने भी तरीकों से बता दिया जाए, लेकिन बताया गया हर तरीका सत्य के बारे में बताएगा। अतः एक लक्ष्य तय कर लें। कोई भी एक अच्छा रास्ता चुन लो और दौड़ लगा दो, तब तक मत रुको जब तक आपका लक्ष्य न मिल जाए।
08 नमन
3 - 9 जुलाई 2017
प्रथम विदेश यात्रा ने रचा इतिहास स्वामी विवेकानंद स्मृति विशेष
स्वा
देशाटन करते हुए स्वामी विवेकानंद को शिकागो में होने वाले ‘सर्व धर्म संसद’ की जानकारी मिली। उन्होंने तय कर लिया कि वहां पहुंचकर उन्हें दुनिया के सामने हिंदू धर्म के झंडे को ऊंचा करना है
एसएसबी ब्यूरो
मी विवेकानंद संपूर्ण देश का भ्रमण करके और यहां के छोटे- बड़े सैकड़ों प्रसिद्ध व्यक्तियों से वार्ता करके इस निश्चय पर पहुंचे कि एक बार देश से बाहर जाकर हिंदू धर्म के उच्च सिद्धांतों का प्रचार किया जाए, जिससे एक ओर तो विदेशों के अध्यात्म प्रेमी व्यक्ति भारत की तरफ आकर्षित हों और दूसरी ओर जो हमारे शिक्षित देश- बंधु विदेशी सभ्यता की चकाचौंध से प्रभावित होकर अपनी प्राचीन संस्कृति से विमुख हो जाते हैं, उनकी भी आंखें खुलें। इसी अवसर पर मद्रास में उनको यह सूचना मिली कि अमेरिका के शिकागो नगर में एक ‘सर्व धर्म संसद’ होने वाली है और उसमें अभी तक सनातन हिंदू धर्म की ओर से कोई प्रतिनिधि नहीं गया। स्वामीजी को अपनी अंतरात्मा से यह प्रेरणा हुई कि इस अवसर पर उनको अन्य धर्म वालों के समक्ष हिंदू धर्म के झंडे को ऊंचा करना चाहिए। उनके सभी मित्रों और शुभचिंतकों ने भी इस मत का समर्थन किया और 31 मई 1893 को विदेश जाने का निश्चय हो गया।
खेतड़ी नरेश ने दिया नया नाम
जिस समय स्वामी जी यात्रा के लिए धन की व्यवस्था पर विचार कर रहे थे, उसी समय खेतड़ी के दीवान जगमोहनलाल उनकी सेवा में उपस्थित हुए। उन्होंने कहा, ‘आपने दो वर्ष पहले राजा साहब को पुत्र होने का आशीर्वाद दिया था, वह सफल हो गया है और उस आनंदोत्सव में महाराज ने आपसे पधारने की प्रार्थना की है।’ स्वामीजी खेतड़ी पहुंचे और नवजात शिशु को आशीर्वाद देकर चल दिए। खेतड़ी नरेश ने अपने दीवान को भी उनके साथ भेजा और यात्रा का पूरा प्रबंध और मार्ग व्यय आदि की व्यवस्था करने की ताकीद कर दी। खेतड़ी नरेश स्वामी जी को विदा करने जयपुर स्टेशन तक आए। चलते- चलते उन्होंने पूछा‘आप अमेरिका पहुंचकर किस नाम से प्रचार कार्य करेंगे?’ स्वामी जी ने उत्तर दिया- ‘अभी तक तो मैंने कोई पक्का नाम रखा नहीं है। कभी सच्चिदानंद, कभी अन्य कोई नाम रखकर फिरता रहा हूं।’ उसी समय राजा साहब ने कहा- ‘स्वामी जी! आपको
एक नजर
‘विवेकानंद’ नाम कैसा लगता है?’ उस दिन से ही परमहंस देव के शिष्य ‘नरेंद्र’ स्वामी विवेकानंद के ही नाम से प्रसिद्ध हुए। जयपुर से बंबई जाते हुए आबू रोड स्टेशन पर स्वामीजी की भेंट अचानक अपने एक गुरुभाई तुरीयानंद से हो गई। उनसे बातें करते हुए स्वामी जी ने कहा- ‘हरिभाई, मैं तुम्हारे धर्म- कर्म को अधिक नहीं समझता, पर मेरा हृदय अब बहुत विशाल हो गया है और मुझे सामान्य लोगों के दुखों का बड़ा अनुभव होने लगा है। मैं सत्य कहता हूं कि लोगों को कष्ट पाते देखकर मेरा हृदय बड़ा व्याकुल होता है।’ यह कहते-कहते स्वामीजी की आंखों से आंसू गिरने लगे। स्वामी तुरीयानंद ने इस प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा है- ‘क्या यह भावना और शब्द बुद्धदेव
स्वामी जी की दृष्टि में यदि आपको सफलता प्राप्त करना है तो अपना एक स्पष्ट लक्ष्य तय करना होगा। इसके बाद केवल यही विचार अपने मन में रखें कि कैसे भी हो, मुझे अपना लक्ष्य जरूर प्राप्त करना है और उसे प्राप्त करने के लिए कार्य शुरू कर दें
के से नहीं है? मैं दीपक के प्रकाश की तरह स्पष्ट देख रहा था कि देशवासियों के दुखों से स्वामीजी का हृदय धधक रहा था और वे इस दुर्व्यवस्था का सुधार करने के लिए किसी रामबाण रसायन की खोज कर रहे थे?’
बंबई से अमेरिका रवाना
31 मई 1893 को स्वामीजी बंबई के बंदरगाह पर अमेरिका जाने वाले जहाज में सवार हो गए। उस समय भगवा रंग का रेशमी लबादा, माथे पर उसी रंग का फेंटा बांधकर किसी राजा के समान शोभा देने लगे। इन सबकी व्यवस्था खेतड़ी के दीवान जगमोहनलाल ने ही की थी। जगमोहनलाल और मद्रास के एक भक्त अलसिंह पेरुमल उन्हें जहाज के दरवाजे तक पहुंचाने को आए। थोड़ी देर बाद जहाज के छूटने का घंटा बजा। दोनों भक्तों ने स्वामी जी के पैर पकड़कर आंसू भरे नेत्रों से विदा ली और जहाज चल दिया। कोलंबो, पिनांग, सिंगापुर, हांगकांग, नागासाकी, ओसाका, टोकियो आदि बड़े नगरों को देखते हुए स्वामी जी अमेरिका के वैंकूवर बंदरगाह पर उतरे। वहां से रेल द्वारा शिकागो पहुंच गए।
31 मई 1893 को किया विदेश जाने का निश्चय
खेतड़ी नरेश ने की उनकी पहली विदेश यात्रा की व्यवस्था विवेकानंद नाम भी उन्हें खेतड़ी नरेश ने ही दिया
शिकागो में स्वामी
स्वामी जी जुलाई, 1893 के आरंभ में अमेरिका पहुंच गए थे। वहां उनको मालूम हुआ कि सभा सितंबर में होने वाली है। इतने समय तक शिकागो जैसे खर्चीले शहर में होटल में रहने लायक धन स्वामी जी के पास न था। यह भी कहा गया कि किसी प्रसिद्ध संस्था के प्रमाण- पत्र के बिना यह धर्म सभा के प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार नहीं किए जा सकते। वे कुछ दिन बाद कम खर्च की निगाह से बोल्टन चले गए। रास्ते में एक भद्र महिला से परिचय हो गया, जिसने आग्रहपूर्वक उनको अपने घर ठहरा लिया। पर उस शहर में अपनी पोशाक के कारण उन्हें असुविधा होने लगी। विचित्र ढंग का गेरुआ लबादा और फेंटा देखकर मार्ग में अनेक व्यक्ति और लड़के एक
3 - 9 जुलाई 2017
विश्व मंच पर भारत गौरव
स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक बेहद चर्चित भाषण दिया था। जब भी जिक्र आता है तो उनके इस भाषण की चर्चा जरूर होती है। पढ़ें उनका यह ऐतिहासिक भाषण
अमेरिका के बहनो और भाइयो!
आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे गर्व है कि मैं ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्रायलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अब भी उन्हें पाल-पोस रहा है। भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना तमाशा समझकर उनके पीछे लग जाते और ‘हुर्रेहुर्रे’ का शोर मचाने लगते। इस दिक्कत से बचने के लिए उस महिला ने उनको सलाह दी कि सामान्यत: आप यहीं की पोशाक पहना कीजिए।
अमेिरकी पोशाक
स्वामी जी संन्यासी होने पर भी रूढ़ियों के गुलाम नहीं थे और उद्देश्य की सिद्धि के लिए इस प्रकार के बाह्य परिवर्तन में उनको कुछ भी एतराज न था। पर कठिनाई यह थी कि अब उनके पास अधिक रुपया नहीं बचा था। इससे वे धैर्यपूर्वक कठिनाइयों
चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है : जिस तरह अलग-अलग स्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं। वर्तमान सम्मेलन आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, ये गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है। जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं। सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इनके भयानक वंशज हठधर्मिता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं। अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा। को सहन करके दिन बिताने लगे। इतने में स्त्रियों की एक संस्था ने उनको अपने यहां व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया। उस भाषण से जो आय हुई, उनसे स्वामी जी के लिए अमेिरकी पोशाक बन गई। तब से उन्होंने गेरुआ वस्त्रों को केवल भाषण के समय के लिए रख दिया। फिर भी उनकी कठिनाइयों का अंत न हुआ और शिकागो वापस आने पर एक दिन उनको स्टेशन के बाहर पड़ी खाली पेटी के भीतर सारी रात काटनी पड़ी। फिर भी उनका धैर्य सहायक बना रहा और सब तरह की बाधाओं को पार करके वे ‘धर्म सभा’ के अधिवेशन में प्रतिनिधि रूप में सम्मिलित होने में सफल हो गए।
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09
ईश्वर की खोज
(स्वामी विवेकानंद ने कई कविताएं लिखी हैं। इन कविताओं में अध्यात्म और ईश्वर को लेकर उनकी रागात्मक समझ का ज्ञान होता है। यही नहीं, कविताओं से स्वामी की विलक्षण कवित्व शक्ति का भी पता चलता है। प्रस्तुत है उनकी मूल अंग्रेजी काव्य रचना ‘क्वेस्ट फॉर गॉड’ का मंजुला सक्सेना द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद) पहाड़ों, घाटियों और पर्वत शिखरों पर मंदिर, गिरिजाघर और मस्जिद में वेदों में, बाइबिल में, कुरआन में खोजा मैंने तुमको व्यर्थ। शिशु सा दुर्गम जंगल में भटकता रोया सिसका अकेला मैं। ‘कहां हो तुम मेरे प्रभु, प्रेम मेरे?’ प्रतिध्वनि बोली- ‘चला गया’ फिर दिन और रात, वर्षों बीते मस्तिष्क में व्याप्त एक ज्वाला न जान सका कि कब दिन बदले रात में हृदय था जैसे आबद्ध द्वंद्वों में। मैंने पसार दिया स्वयं को गंगा-तट पर पडा धूप और वर्षां में स्वछंद उफनते अश्रुओं से जमाई धूल बिलख जल की लहरों के साथ। जपे सारे पवित्र नाम हर देश और धर्म के। ‘राह दिखाओ, दया कर, हे ! महात्माओं जो पाए गंतव्य।’
वर्षों बीते यूं रोते-रोते, प्रति पल जैसे हो एक युग एक दिन रोते-बिलखते में लगा कि कोई रहा बुला। एक कोमल और मधुर स्वर जिसने कहा 'मेरे शिशु' 'मेरे शिशु' जैसे झंकृत थे दिग-दिगंत मेरी आत्मा के अंग-अंग। मैं हुआ खड़ा और ढूंढ रहा वह दिशा जहां से आया स्वर खोजा.. खोजा.. और मुड़ा आगे फिर पीछे.. बार-बार जैसे कहता था दिव्य स्वर मुझ से कुछ। आनंदित आत्मा थी निःशब्द मुग्ध, मधुर आनंद मग्न। एक ज्योति जगी अंतर में खिलता जैसे फिर-फिर हृदय। अहा हर्ष, कैसा आनंद, क्या मिला मुझे! मेरे प्रिय! मेरे प्रिय ! तुम हो यह! तुम हो यह मेरे प्रिय मेरे सर्वस्व! खोज रहा था तुमको मैंतुम तो थे अनंत काल ही से अपनी ऐश्वर्यमयी सत्ता में! उस दिन से ही, मैं गया जहां, पाया वह था ज्यों साथ सदा
पर्वत पर,घाटी में, शिखरों पर,वादी में दूर-दूर तक.. और ऊंचे पर। चंद्रमा की मधुर ज्योति, झिलमिलाते तारे दिवस का प्रखर प्रकाश वह तेज निहित इनमें, उसकी सुन्दरताशक्तिसबमें उसका दिव्य प्रकाश। प्रभात का वैभव, द्रवित होती सांझ असीम उमड़ता सागर प्रकृति के सौंदर्य में, पक्षियों के कलरव में मैं देख रहा सब में यह ही है वह। जब दारुण संकट छाते हैं, मन होता है दुर्बल, विक्षिप्त सारी सृष्टि लगती बोझिल सिद्धांत जटिल जो अपरिवर्तनीय। लगता है मैं सुनता हूं प्रस्फुटन मधुर मेरे प्रिय, ‘मैं हूं पास, मैं हूं पास।’ मेरा उर पाए पुष्टि तुम संग मेरे प्रिय हों मृत्यु हजारों, भय नहीं। मां की लोरी में हो तुम तुम देते शिशु को नींद जब भोले शिशु हंस कर खेले मैं पाऊं तुमको साथ। जब पावन हाथ थामते हैं वह होता है मध्यस्थ वह भरता है अमृत मां के चुंबन में और शिशु की मधुमय माता में। तुम थे मेरे प्रभु संग दूतों के सब धर्म उगे हैं तुम से ही वेद, बाइबिल और कुरआन समवेत स्वरों में करते तेरा गान। ‘तुम हो’ ,‘तुम हो’ आत्मा सब की जीवन की बहती नदिया में ‘ ऊं तत्सत ऊं’ तुम हो मेरे प्रभु मेरे प्रिय, में तेरा हूं, मैं तेरा हूं।
10 नमन
3 - 9 जुलाई 2017
हाजिर-जवाबी की दुनिया कायल
स्वामी विवेकानंद स्मृति विशेष
स्वामी विवेकानंद की खासियत यह थी कि वह सिर्फ अपने भाषणों और उपदेशों से ही लोगों को प्रभावित नहीं करते थे, बल्कि वे बात-बात में भारत की संस्कृति और अध्यात्म को लेकर बड़ी सीख दे जाते थे
चरित्र से बनती संस्कृति
एक बार जब स्वामी विवेकानंद विदेश गए, तो उनका भगवा वस्त्र और पगड़ी देख कर लोगों ने पूछा - आपका बाकी सामान कहां है ? स्वामी जी बोले, ‘बस यही सामान है।’ इस पर कुछ लोगों ने व्यंग्य किया, ‘अरे! यह कैसी संस्कृति है आपकी ? तन पर केवल एक भगवा चादर लपेट रखी है। कोट- पतलून जैसा कुछ भी पहनावा नहीं है?’ यह सुनकर स्वामी जी मुस्कुराए और बोले, ‘हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से भिन्न है। आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते हैं, जबकि हमारी संस्कृति का निर्माण हमारा चरित्र करता है।’
सीख का निशाना
स्वामी विवेकानंद अमेरिका में भ्रमण कर रहे थे
। एक जगह से गुजरते हुए उन्होंने पुल पर खड़े कुछ लड़कों को नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर बंदूक से निशाना लगाते देखा। किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था। यह देखकर उन्होंने एक लड़के से बंदूक ली और खुद निशाना लगाने लगे। उन्होंने पहला निशाना लगाया और वो बिलकुल सही लगा। फिर एक के बाद एक उन्होंने कुल 12 निशाने लगाए और सभी बिलकुल सटीक लगे। ये देख लड़के दंग रह गए और उनसे पूछा, ‘भला आप ये कैसे कर लेते हैं?’ स्वामी जी बोले, ‘तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उसी एक
मां से बढ़कर कोई नहीं
एक बार भ्रमण एवं भाषणों से थके हुए स्वामी काम में लगाओ। अगर तुम निशाना लगा रहे हो तो तम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए। ऐसा करने पर तुम कभी नहीं चूकोगे। अगर तुम अपना पाठ पढ़ रहे हो तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचो। मेरे देश में बच्चों को यही करना सिखाया जाता है।’
मां जैसी भाषा
स्वामी विवेकानंद से एक जिज्ञासु युवक ने
प्रश्न किया, ‘मां की महिमा संसार में किस कारण से गाई जाती है?’ प्रश्न सुनकर स्वामी जी मुस्कराए और उस युवक से बोले कि पांच सेर वजन का एक पत्थर ले आओ। जब व्यक्ति पत्थर ले आया तो स्वामी जी ने उससे कहा कि अब इस पत्थर को किसी कपड़े में लपेटकर अपने पेट पर बांध लो और चौबीस घंटे बाद मेरे पास आओ तो मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा। स्वामी जी के आदेशानुसार उस युवक ने पत्थर को अपने पेट पर बांध लिया और चला गया। पत्थर बंधे हुए दिनभर वे अपना काम करता रहा, किंतु हर क्षण उसे परेशानी और थकान महसूस हुई। शाम होते-होते पत्थर का बोझ संभाले हुए चलना-फिरना उसके लिए असह्य हो उठा। थका-मांदा वह स्वामी जी के पास पहुंचा और बोला मैं इस पत्थर को अब और अधिक देर तक बांधे नहीं रख सकूंगा। युवक की बातें सुनकर स्वामी जी मुस्कुराते हुए बोले, ‘पेट पर इस पत्थर का बोझ तुमसे कुछ घंटे भी नहीं उठाया गया। मां अपने गर्भ में पलने वाले शिशु को पूरे नौ माह तक ढोती है और गृहस्थी का सारा काम भी करती है। संसार में मां के सिवा कोई इतना धैर्यवान और सहनशील नहीं है इसीलिए मां से बढ़कर इस संसार में कोई और नहीं।’
देने का आनंद
गंगा हमारी मां है
एक बार स्वामी विवेकानंद अमेरिका में एक सम्मेलन में भाग ले रहे थे। सम्मेलन के बाद एक पत्रकार ने पूछा, ‘स्वामी जी! आप के देश में किस नदी का जल सबसे अच्छा है?’ स्वामी जी बोले, ‘यमुना का जल सभी नदियों के जल से अच्छा है।’ पत्रकार ने फिर पूछा, ‘स्वामी जी! आप के देशवासी तो बोलते है कि गंगा का जल सबसे अच्छा है।’ स्वामी जी ने उत्तर दिया, ‘कौन कहता है कि गंगा नदी है। गंगा हमारी मां है और उस का नीर जल नहीं, अमृत है।’ यह सुनकर वहां बैठे सभी लोग स्तब्ध रह गए और सभी स्वामी जी के सामने निरुत्तर हो गए।
एक बार स्वामी विवेकानंद विदेश गए, जहां उनके स्वागत के लिए कई लोग आए हुए थे। उन लोगों ने स्वामी जी की तरफ हाथ मिलाने के लिए हाथ बढाया और इंग्लिश में ‘हैलो’ कहा, जिसके जवाब में स्वामी जी ने दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते कहा। उन लोगों को लगा की शायद स्वामी जी को अंग्रेजी नहीं आती है तो उन लोगो में से एक ने हिंदी में पूछा ‘आप कैसे हैं?’ स्वामी जी ने कहा, ‘आई एम फाइन। थैंक यू।’ उन लोगों को बड़ा ही आश्चर्य हुआ। उन्होंने स्वामी जी से पूछा कि जब हमने आपसे इंग्लिश में बात की तो आपने हिंदी में उत्तर दिया और जब हमने हिंदी में पूछा तो आपने इंग्लिश में कहा, इसका क्या कारण है? स्वामी जी ने कहा, ‘जब आप अपनी मां का सम्मान कर रहे थे, तो मैं अपनी मां का सम्मान कर रहा था और जब आपने मेरी मां का सम्मान किया, तब मैंने आपकी मां का सम्मान किया।’
विवेकानंद अपने निवास स्थान पर लौटे। उन दिनों वे अमेरिका में एक महिला के यहां ठहरे हुए थे। वे अपने हाथों से भोजन बनाते थे। एक दिन वे भोजन की तैयारी कर रहे थे कि कुछ बच्चे पास आकर खड़े हो गए। उनके पास वैसे भी बच्चों का आना-जाना लगा ही रहता था। जो बच्चे उनके पास आए, वे भूखे थे। स्वामीजी ने अपनी सारी रोटियां एक-एक कर बच्चों में बांट दी। महिला वहीं बैठी सब देख रही थी। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। आखिर उससे रहा नहीं गया। उसने स्वामी जी से पूछ ही लिया- 'आपने सारी रोटियां उन बच्चों को दे डाली। अब आप क्या खाएंगे?' स्वामीजी के अधरों पर मुस्कान दौड़ गई। उन्होंने प्रसन्न होकर कहा- 'मां! रोटी तो पेट की ज्वाला शांत करने वाली वस्तु है। इस पेट में न सही, उस पेट में ही सही।'
चरणों में गिर गई महिला एक विदेशी महिला
स्वामी विवेकानंद के समीप आकर बोली, ‘मैं आपसे शादी करना चाहती हूं।’ विवेकानंद बोले, ‘क्यों? मुझसे क्यों? क्या आप जानती नहीं कि मैं एक संन्यासी हूं?’ औरत बोली, ‘मैं आपके जैसा ही गौरवशाली, सुशील और तेजोमय पुत्र चाहती हूं और वो वह तब ही संभव होगा जब आप मुझसे विवाह करेंगे।’ विवेकानंद बोले, ‘हमारी शादी तो संभव नहीं है। परंतु हां, एक उपाय है।’ औरत के मुंह से सहसा निकला, ‘क्या?’ इस पर विवेकानंद बोले, ‘आज से मैं ही आपका पुत्र बन जाता हूं। आज से आप मेरी मां बन जाओ। आपको मेरे रूप में मेरे जैसा बेटा मिल जाएगा।’ फिर क्या था, यह सुनकर औरत विवेकानंद के चरणों में गिर गई और बोली कि आप साक्षात ईश्वर के रूप हैं।
3 - 9 जुलाई 2017
प्रसंग जो आज भी देते हैं प्रेरणा
नमन
11
स्वामी विवेकानंद साधारण काम भी कुछ इस तरह करते थे कि सामने वाला उनके व्यक्तित्व से चमत्कृत रह जाता था
दोष को छिपाएं नहीं
स्वामी विवेकानंद प्रारंभ से ही मेधावी छात्र थे
लोग उनके व्यक्तित्व और वाणी से प्रभावित रहते थे। जब वो अपने साथी छात्रों को कुछ बताते तो सब मंत्रमुग्ध होकर उन्हें सुनते थे। एक दिन कक्षा में वे कुछ मित्रों को कहानी सुना रहे थे। सभी उनकी बातें सुनने में इतने मग्न थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब मास्टर जी कक्षा में आए और पढ़ाना शुरू कर दिया। मास्टर जी ने अभी पढ़ाना शुरू ही किया था कि उन्हें कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी। उन्होंने तेज आवाज में पूछा कि कौन बात कर रहा है? सभी छात्रों ने स्वामी जी और उनके साथ बैठे छात्रों की तरफ इशारा कर दिया। मास्टर जी क्रोधित हो गए। उन्होंने तुरंत उन छात्रों को बुलाया और पाठ से संबधित प्रश्न पूछने लगे। जब कोई भी उत्तर नहीं दे पाया, तो अंत में मास्टर जी ने स्वामी जी से भी वही प्रश्न किया, स्वामी जी तो मानो सब कुछ पहले से ही जानते हों। उन्होंने आसानी से उस प्रश्न का उत्तर दे दिया। यह देख मास्टर जी को यकीन हो गया कि स्वामी जी पाठ पर ध्यान दे रहे थे और बाकी छात्र बातचीत में लगे हुए थे। फिर क्या था। मास्टर जी ने स्वामी जी को छोड़ सभी को बेंच पर खड़े होने की सजा दे दी। सभी छात्र एक-एक कर बेंच पर खड़े होने लगे, स्वामी जी ने भी यही किया। मास्टर जी बोले– ‘नरेंद्र तुम बैठ जाओ!’ नरेंद्र ने कहा, ‘नहीं सर, मुझे भी खड़ा होना होगा, क्योंकि वह मैं ही था जो इन छात्रों से बात कर रहा था।’ सभी उनकी सच बोलने की हिम्मत देख बहुत प्रभावित हुए।
अभ्यास की शक्ति
यह बात उन दिनों की है जब स्वामी विवेकानंद
देश भ्रमण कर थे। साथ में उनके एक गुरु भाई भी थे। स्वाध्याय, सत्संग एवं कठोर तप का अविराम सिलसिला चल रहा था। जहां कहीं अच्छे ग्रंथ मिलते, वे उनको पढ़ना नहीं भूलते थे। किसी नई जगह जाने पर उनकी सब से पहली तलाश किसी अच्छे पुस्तकालय की रहती। एक जगह एक पुस्तकालय ने उन्हें बहुत आकर्षित किया। उन्होंने सोचा, क्यों न यहां थोड़े दिनों तक डेरा जमाया जाए। उनके गुरुभाई उन्हें पुस्तकालय से संस्कृत और अंग्रेजी की नयी-नयी किताबें लाकर देते थे। स्वामीजी उन्हें पढ़कर अगले दिन वापस कर देते। रोज नई किताबें, वह भी पर्याप्त पृष्ठों वाली इस तरह से देते एवं वापस लेते हुए उस पुस्तकालय का अधीक्षक बड़ा हैरान हो गया। उसने स्वामी जी के गुरु भाई से कहा, ‘क्या आप इतनी सारी नई-नई किताबें केवल देखने के लिए ले जाते हैं? यदि इन्हें देखना ही है, तो मैं यों ही यहां पर दिखा देता हूं। रोज इतना वजन उठाने
मृत्यु के समक्ष
एक बार एक अंग्रेज मित्र मूलर के साथ स्वामीजी
मैदान में टहल रहे थे। उसी समय एक पागल सांड तेजी से उनकी ओर बढ़ने लगा। अंग्रेज सज्जन भाग कर पहाड़ी के दूसरी छोर पर जा
की क्या जरूरत है?’ लाइब्रेरियन की इस बात पर स्वामी जी के गुरु भाई ने गंभीरतापूर्वक कहा, ‘जैसा आप समझ रहे हैं वैसा कुछ भी नहीं है। हमारे गुरु भाई इन सब पुस्तकों को पूरी गंभीरता से पढ़ते हैं, फिर वापस करते हैं।’ इस उत्तर से आश्चर्यचकित होते हुए लाइब्रेरियन ने कहा, ‘यदि ऐसा है तो मैं उनसे जरूर मिलना चाहूंगा।’ अगले दिन स्वामी जी उससे मिले और कहा, ‘महाशय, आप हैरान न हों। मैंने न केवल उन किताबों को पढ़ा है, बल्कि उनको याद भी कर लिया है। इतना कहते हुए उन्होंने वापस की गई कुछ किताबें उसे थमाईं और उनके कई महत्वपूर्ण अंशों को शब्दश: सुना दिया।’ लाइब्रेरियन चकित रह गया। उसने उनकी याददाश्त का रहस्य पूछा। स्वामी जी बोले, ‘अगर पूरी तरह एकाग्र होकर पढ़ा जाए, तो चीजें दिमाग में अंकित हो जाती हैं। पर इसके लिए आवश्यक है कि मन की धारणशक्ति अधिक से अधिक हो और वह शक्ति अभ्यास से आती है।’ खड़े हुए। मूलर भी जितना हो सका दौड़े और घबराकर गिर पड़े। स्वामीजी ने उन्हें सहायता पहुंचाने का कोई और उपाय न देख खुद सांड के सामने खड़े हो गए और सोचने लगे, चलो, अंत आ ही पहुंचा। बाद में उन्होंने बताया था कि उस समय उनका मन हिसाब करने में लगा हुआ था कि सांड उन्हें कितनी दूर फेंकेगा। लेकिन कुछ देर बाद वह ठहर गया और पीछे हटने लगा। अपने कायरतापूर्ण पलायन पर मूलर बड़ी लज्जित हुईं। बाद में मूलर ने उनसे पूछा कि वे ऐसी खतरनाक स्थिति से सामना करने का साहस कैसे जुटा सके? स्वामीजी ने पत्थर के दो टुकड़े उठाकर उन्हें आपस में टकराते हुए कहा, ‘खतरे और मृत्यु के समक्ष मैं स्वयं को चकमक पत्थर के समान सबल महसूस करता हूं, क्योंकि मैंने ईश्वर के चरण स्पर्श किए हैं।’
निडरता की सीख
स्वामी विवेकानंद बचपन से ही निडर
थे। जब वह आठ साल के थे तभी से एक मित्र के यहां खेलने जाया करते थे। उसके घर में एक चंपक पेड़ था। एक दिन वह उस पेड़ को पकड़ कर झूल रहे थे। मित्र के दादाजी पहुंचे। उन्हें डर था कि कहीं नरेंद्र गिर न जाएं, इसीलिए उन्होंने समझाते हुआ कहा, नरेंद्र, तुम इस पेड़ से दूर रहो, क्योंकि इस पेड़ पर एक दैत्य रहता है। नरेंद्र को अचरज हुआ। उसने दादाजी से दैत्य के बारे में और भी कुछ बताने का आग्रह किया। दादाजी बोले, वह पेड़ पर चढ़ने वालों की गर्दन तोड़ देता है। नरेंद्र बिना कुछ कहे आगे बढ़ गए। दादाजी भी मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गए। उन्हें लगा कि बच्चा डर गया है। पर जैसे ही वे कुछ आगे बढ़े, नरेंद्र पुन: पेड़ पर चढ़ गए और डाल पर झूलने लगे। मित्र जोर से चीखा, ‘तुमने दादाजी की बात नहीं सुनी।’ नरेंद्र जोर से हंसे और बोले, ‘मित्र डरो मत! तुम भी कितने भोले हो! सिर्फ इसीलिए कि किसी ने तुमसे कुछ कहा है उस पर यकीन मत करो। खुद सोचो, अगर यह बात सच होती तो मेरी गर्दन कब की टूट चुकी होती।’
12 नमन
3 - 9 जुलाई 2017
स्वामी का भारत भ्रमण स्वामी विवेकानंद स्मृति विशेष
आदि शंकराचार्य की तरह विवेकानंद ने कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कामाख्या तक यात्रा की और एक के बाद एक महत्वपूर्ण घटनाएं इस यात्रा के साथ जुड़ती गईं
विष्णु पंड्या
स्वा
मी विवेकानंद अपरनी प्रवृत्ति से ही परिव्राजक थे। कुछ लोगों ने इसी कारण उन्हें आदिगुरु शंकराचार्य के अवतारवादी विस्तार के तौर पर देखा है। दिलचस्प है कि जहां स्वामी जी ने अपने भारत भ्रमण के दौरान लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा और उनके बीच आधुनिक बोध के साथ भारतीय आध्यात्म और दर्शन में दिलचस्पी पैदा की, वहीं वे इस दौरान अपने खुद के ज्ञान वैभव को भी समृद्ध करते रहे। प्रसिद्ध गुजराती साहित्यकार विष्णु पंड्या सोमनाथ सहित उन सभी स्थानों की यात्रा कर चुके हैं, जहां स्वामी विवेकानंद भारत-भ्रमण के क्रम में गए थे। खासतौर पर सोमनाथ पहुंचने पर स्वामी विवेकाननंद के प्रति उनको जो अनुभूति हुई, उन्होंने इस बारे में रुचिपूर्वक लिखा है। यहां प्रस्तुत है इसी लेख का संपादित अंश-
‘भारत की खोज’
रामकृष्ण परमहंस की महासमाधि के बाद वे ‘भारत की खोज’ के लिए निकल पड़े थे। वे नगरों में गए, गांवों में पहुंचे, भिक्षाटन किया, रेलवे स्टेशन के प्लेटफाॅर्म पर सोए, देवालयों के दर्शन किए, पर्वतों और नदियों का भ्रमण किया। मन में बस एक ही कामना थी कि कैसे भारतवर्ष की सुषुप्त आत्मा को जाग्रत किया जाए। ऐसा लगता है कि स्वामी जी एक सामूहिक पुरुषार्थ का सांस्कृतिक रास्ता ढूंढ रहे थे। किसी एक संप्रदाय विशेष का प्रचार-प्रसार करके इतिश्री करना उन्हें स्वीकार्य नहीं था। पराधीन, दरिद्र, कुंठित और निष्क्रिय भारत को जगाने का युग कार्य उन्हें करना था।
साधुओं की कैद में स्वामी
सौराष्ट्र की इस बार की यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद का परिभ्रमण बार-बार याद आता रहा। कन्याकुमारी जाने से पहले वे गुजरात भ्रमण पर भी आए थे। कुछ दिन अहमदाबाद में रहे फिर वहां
कन्याकुमारी में विवेकानंद रॉक मेमोरियल
से बढ़वाण गए और फिर लींबड़ी। लींबड़ी में कुछ तांत्रिक साधुओं ने छल से उन्हें अपने आश्रम में कैद कर लिया था। बड़ी मुश्किल से वे उनके चंगुल से निकल पाए थे। वे भावनगर और सिहोर भी गए और वहां से जूनागढ़। बाद में पोरबंदर, भुज और सोमनाथ भी गए। स्वामी जी की यह यात्रा दो महत्वपूर्ण घटनाओं से संबंध रखती है, किंतु आश्चर्य है कि इन दोनों घटनाओं का उल्लेख आमतौर पर नहीं मिलता। एक कार्यक्रम के लिए महाराष्ट्र के सोलापुर नगर की ‘ज्ञानप्रबोधिनी’ संस्था की ओर से डाॅ. स्वर्णलता भिशीकर का बुलावा आया था। अवसर था स्वामी विवेकानंद की स्मृति में आयोजित वर्षभर के कार्यक्रमों के समापन का। ‘स्वामी जी और सामयिक समस्याओं’ पर बोलना था, तो निर्णय किया कि चलो, 112 वर्ष पूर्व सौराष्ट्र की जिस भूमि पर स्वामी विवेकानंद के चरण पड़े, वहां की यात्रा कर लें। इसी यात्रा के दौरान स्वामी जी के जीवन की दो महान किन्तु अज्ञात घटनाओं के बारे में जानकारी मिली। आज तक अंधेरे कमरे में बंद पड़ी इन घटनाओं का तथ्यान्वेषण होना चाहिए।
स्टेशन मास्टर की सलाह
भारत-भ्रमण को निकले स्वामी विवेकानंद से विदेशयात्रा और विश्व धर्म संसद में जाने की बात सबसे पहली बार किसने कही थी? जेतलसर जंक्शन पर जैसे ही हमारी गाड़ी रुकी, मुझे उस घटना का स्मरण हो आया। स्वामी जी जूनागढ़ से निकले, तो पोरबंदरभावनगर जाने के रास्ते में यहां (जेतलसर) ठहरे थे। जेतलसर के स्टेशन मास्टर ने उनका आतिथ्य किया था और अपने घर ले गए। वह स्टेशन मास्टर रातभर स्वामी जी की बातें सुनता रहा। दूसरे दिन जब स्वामी
जी निकलने वाले थे तब स्टेशन मास्टर ने कहा, ‘स्वामी जी, मेरी एक बात मानेंगे?’ फिर धीरे से कहा, ‘आप महापुरुष हैं। इस धरती पर आप जैसे लोग बहुत कम होते हैं। आपकी विद्वता, निष्ठा और त्याग इस देश को बदल सकते हैं, लेकिन...' ‘लेकिन क्या?' स्वामी जी हंस पड़े। दोनों हाथ जोड़कर स्टेशन मास्टर ने कहा, ‘लेकिन इस देश में इधर-उधर परिभ्रमण से कुछ परिणाम नहीं निकलेगा। एक बार आपको अमेरिका जाना चाहिए, फिर इंग्लैंड और फ्रांस। वहां का समाज आपका सम्मान करेगा, अनुसरण करने लगेगा तब इन भारतवासियों को आपकी सही पहचान होगी।’ इस घटना का उल्लेख सुप्रसिद्ध गुजराती साहित्यकार गुणवंतराय आचार्य ने किया भी था। स्वामी जी की जीवनी और अन्य पुस्तकों में पोरबंदर के शंकर पांडुरंग पण्डित का जिक्र तो है, लेकिन इसके पूर्व जेतलसर के इस स्टेशन मास्टर ने स्वामी जी को प्रेरित किया ऐसा उल्लेख कहीं नहीं मिलता।
भारतमाता का दर्शन
दूसरी घटना भी ऐसी ही महत्वपूर्ण है। क्या कन्याकुमारी में शिलास्थान पर भारतमाता के दर्शन और दिव्यानुभूति से पहले स्वामी विवेकानंद को ऐसा ही अनुभव पश्चिमी सागरतट पर सोमनाथ के दिव्यभव्य खंडहरों में भी हुआ था? 1888 से स्वामी जी का प्रथम भारत भ्रमण शुरू हुआ था। 1892 के अंत तक यह चला। बीसवीं सदी दस्तक दे रही थी और 19वीं सदी अंतिम चरण में थी। आदि शंकराचार्य की तरह विवेकानंद ने कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कामाख्या तक यात्रा की और एक के बाद एक महत्वपूर्ण घटनाएं इस यात्रा के साथ जुड़ती गईं। ऐसी एक घटना तो विश्वविख्यात है। वह है
भारत में दरिद्रता और अज्ञान को समाप्त करने की शक्ति और समर्पण का रास्ता स्वामी जी ने कन्याकुमारी की अनुभूति के बाद आगे बढ़ाया
एक नजर
रामकृष्ण परमहंस की महासमाधि के बाद यात्रा पर निकले
सोमनाथ और कन्याकुमारी तट की यात्रा काफी महत्वपूर्ण अहमदाबाद में कुछ दिनों तक भिक्षाटन भी किया
कन्याकुमारी के तट पर स्वामी जी को भारतमाता का दर्शन। वहीं उन्होंने मन ही मन सोच लिया था कि मैं विदेशों में जाऊंगा। पश्चिमी सभ्यता की भीड़ के बीच जाकर चौराहे पर खड़ा होकर भारत की महान संस्कृति के बारे में सभी को सही जानकारी दूंगा और फिर वापस आकर भारत के नवजागरण का उदघोष करूंगा। भारतवर्ष में दरिद्रता और अज्ञान को समाप्त करने की शक्ति और समर्पण का रास्ता स्वामी जी ने कन्याकुमारी की अनुभूति के बाद आगे बढ़ाया। क्या ऐसी ही अनुभूति इसके कुछ ही समय पहले पश्चिमी समुद्र तट पर, भगवान सोमनाथ के भग्नावशेषों के बीच भी हुई थी? यह शोध का एक रोचक अध्याय है। इसके लिए हमें स्वामी जी की सौराष्ट्र यात्रा का वृत्तांत भी देखना होगा।
अहमदाबाद में भिक्षाटन
1891 की गर्मी के दिनों में स्वामी जी जयपुर के बाद अजमेर होकर आबू पहुंचे थे। वहां से खेतड़ी गए। खेतड़ी के महाराजा उनके शिष्य हो गए। खेतड़ी से स्वामी विवेकानंद अहमदाबाद आए। अहमदाबाद में उन्होंने कुछ दिनों के लिए भिक्षाटन किया। बाद में लाल शंकर त्रिवेदी के निवास पर रहे। अहमदाबाद से लींबड़ी, फिर भावनगर, सिहोर और बाद में जूनागढ़ पहुंचे। जूनागढ़ का दुर्ग, गिरनार पर्वत की छाया में समृद्ध हुआ है। वे कुछ दिनों के लिए गिरनार की एकांतिक कंदराओं में गए और साधना की।
सोमनाथ यात्रा
स्वामी जी की सबसे महत्वपूर्ण और रोचक यात्रा सोमनाथ की रही। कच्छ से वापस जाने के बाद स्वामी जी जूनागढ़ होकर प्रभासपाटण पहुंचे। वेरावल बंदरगाह के निकट प्रभासपाटण में ही पश्चिमी समुद्रतट पर आज भगवान सोमनाथ का भव्य देवालय खड़ा है। जब स्वामी विवेकानंद सोमनाथ गए थे तब वहां आज की तरह भव्य देवालय नहीं था। अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित देवालय था और आस-पास थे भग्नावशेष। 1891 के अंतिम दिनों में स्वामी जी सोमनाथ आए थे। स्वामी विवेकानंद की जीवनी के अनुसार उन्होंने सोमनाथ, कृष्ण के देहोत्सर्ग-स्थान और अन्य स्थानों के दर्शन भी किए थे। स्वामी जी सोमनाथ के करुण इतिहास से भलीभांति परिचित थे। सोमनाथ के भग्न खंडहरों के बीच स्वामी जी पत्थरों के ढेर पर बैठ गए और सोमनाथ के भव्य अतीत का स्मरण करते-करते ध्यानमग्न हो गए। ध्यानावस्था में स्वामी जी ने बहुत-कुछ पाया था। सामने था इतिहास की गाथा सुनाता पश्चिमी विशाल समुद्र। विध्वंस और निर्माण की इस ऐतिहासिक भूमि पर स्वामी जी कई घण्टे तक तपते सूरज की साक्षी में, नीले आकाश तले, समुद्री लहरों का अनुभव करते हुए ध्यानमग्न रहे।
3 - 9 जुलाई 2017
सुलभ
‘ज्ञान का स्वर्ग है सुलभ’: फेलिक्स
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सुलभ अरुणाचल प्रदेश
सुलभ इंटरनेशनल ने राज्य के सभी घरों में ‘हाइजैनिक टॉयलेट की अपनी महत्त्वाकांक्षी परियोजना के लिए अरुणाचल प्रदेश सरकार’ के साथ सहयोग पर सहमति जताई
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एक नजर
एसएसबी ब्यूरो
रुणाचल प्रदेश के सूचना और जनसंपर्क एवं स्वच्छता मंत्री बमांग फेलिक्स ने सुलभ के प्रयासों की तारीफ करते हुए कहा कि ‘सुलभ समझदारी की अनोखी दुनिया है।’ यह सुलभ परिवार के लिए खुशी की बात है कि अरुणाचल प्रदेश जैसे धुर पूर्वी भारतीय राज्य की ओर से माननीय बमांग फेलिक्स द्वारा सुलभ परिवार की प्रशंसा की गयी है। इस राज्य ने शेष कार्यों के साथ स्वच्छता अभियान का भी बेहतर संचालन किया। उनके साथ आईपीएस अधिकारी रोबिन हिबो और उनकी पत्नी डॉ. गाम्पी हिबो भी थीं। दल ने बायो गैस संयंत्र, पेयजल एटीएम, स्वास्थ्य केंद्र, बायो गैस चालित रसोई, सुलभ ‘टू पिट पोर फ्लश’, टॉयलेट संग्रहालय और सुलभ पब्लिक स्कूल को भी देखा। इसके बाद, स्वागत के लिए जुटे जन समूह ने उन्हें गुलदस्ता प्रदान करने के साथ शाॅल सहित कुछ उपहार और मधुबनी पेंटिंग भी भेंट की। अरुणाचल प्रदेश के मंत्री ने अपने संक्षिप्त संबोधन में कहा कि सुलभ ज्ञान का स्वर्ग है। इसके बाद डॉ. पाठक और बमांग फेलिक्स ने राज्य में सफाई की जरूरत पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने 2018 तक खुले में शौच मुक्त राज्य बनाने केलिए मिलकर काम करने की घोषणा की। सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने अरुणाचल प्रदेश के लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर स्वच्छ टॉयलेट निर्माण में रुचि के लिए राज्य सरकार की तारीफ की। उन्होंने कहा, ‘गैरसरकारी संगठन ‘हेल्पिंग हैंड्स’ की मदद से सुलभ इंटरनेशनल की टीम ने जिरो में होंग गांव में व्यापक सर्वेक्षण किया। इसे एशिया के सबसे बड़े गांव के रूप में जाना
सीएसआर स्कीम के तहत सुलभ ग्रामीणों के लिए टॉयलेट बनवाएगा खुले में शौच मुक्त राज्य बनाने के लिए सुलभ के साथ होगा काम होंग गांव से शुरू होगा सुलभ का स्वच्छता अभियान
जाता है। यह जगह प्रदेश की सबसे गंदी जगहों में से एक माना जाती है। इसीलिए यहां स्वच्छता अभियान चलाया गया।’ डॉ. पाठक ने बताया, ‘यह सर्वेक्षण अंतिम चरण में है। इसके बाद हम विश्व मानक वाले शौचालयों के निर्माण के हिस्सा बंटाकर अपनी स्वच्छता की मुहिम शुरू करेंगे।’ इस मौके पर अपने विचार व्यक्त करते हुए बमांग फेलिक्स ने सुलभ इंटरनेशनल द्वारा होंग गांव को अपने स्वच्छता अभियान के लिए चुनने पर कृतज्ञता
व्यक्त की। यह राज्य में इनकी पहली अभिनव पहल है। बमांग फेलिक्स ने सुलभ इंटरनेशनल के साथ अरुणाचल के ग्रामीण क्षेत्रों में सफाई की मौजूद सभी स्कीमों में सहयोग का आश्वासन दिया। उन्होंने सुलभ से आग्रह किया कि वह राज्य के गांवों की गंदगी को दूर करने के लिए सीएसआर स्कीमों के तहत सुलभ पहल के रूप में गरीब ग्रामीणों के लिए बेहतरीन टॉयलेट बनवाए। इस पुनीत कार्य से दूर-दूर के गरीब ग्रामीणों तक कार्यक्रम को ले जाने में मदद
‘मुझे विश्वास है कि होंग गांव की तस्वीर बदलेगी और यह राज्य के सबसे साफ-सुथरा गांव बनेगा।’ -बमांग फेलिक्स
मिलेगी। बमांग फेलिक्स ने राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के अधिकाररियों से यदा-कदा प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने के लिए अपनी सेवाएं मुहैया कराने की जरूरत भी बताई, जिससे अरुणाचल को खुले में शौच मुक्त बनाने में उनके अनुभवों के बेहतर लाभ मिल सके। उन्होंने कहा, ‘मुझे विश्वास है कि सुलभ इंटरनेशनल होंग को सबसे स्वच्छ बनाकर इसकी मौजूदा तस्वीर में बदलाव लाकर भविष्य में अपनी कोशिशों का विस्तार करके टॉयलेट स्वच्छता के कार्य में मानक स्थापित करेगा।’ प्रदेश सरकार के मंत्री बमांग फेलिक्स ने कहा, ‘सुलभ इंटरनेशनल के सहयोग से ‘स्वच्छ होंग गांव परियोजना’ में गैरसरकारी संगठन हेल्पिंग हैंड्स के प्रयासों की तारीफ की और कहा कि इस पहल को अरुणाचल प्रदेश की जनता लंबे समय तक याद रखेगी।’ बमांन फेलिक्स ने अरुणाचल को खुले में शौच मुक्त बनाने में संगठन का समर्थन भी मांगा। उन्होंने कहा, ‘मुझे विश्वास है कि होंग गांव की तस्वीर बदलेगी और यह राज्य के सबसे साफ-सुथरा गांव बनेगा।’
14 स्वच्छता
3 - 9 जुलाई 2017
स्वच्छता उत्तर प्रदेश
िबना सरकारी मदद के बनवाया शौचालय
उत्तर प्रदेश के एक गांव के लोगों ने अपने पैसे से शौचालय बनवाया और सरकारी मदद लेने से इंकार कर दिया
तहत देश में स्वच्छता स्वच्छको लेभारतकर लोगोंमिशनमेंकेजागरुकता बढ़ती जा रही
है। अपनी तरफ से जो भी बन पाता है लोग अपनाअपना सहयोग कर देश को स्वच्छ और खुले मे शौच से मुक्ति दिलाने की कोशिश कर रहे हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जो बिना किसी सरकारी मदद के अपना काम कर नई मिसालें कायम कर रहे हैं। ऐसी ही एक मिसाल उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के गांव मुबारकपुर काला के लोगों ने कायम की है। मुबारकपुर काला बिजनौर का एक मुस्लिम बहुल गांव है। गांव के लोगों ने आपस में पैसा इकट्ठा कर सार्वजनिक शौचालय बनवाए हैं। दिलचस्प यह है कि इस काम के लिए गांव वालों ने 17.75 लाख रुपए की सरकारी मदद लेने से भी इंकार कर दिया। सिर्फ इतना ही नहीं गांव वालों की मेहनत रंग लाई और मुबारकपुर काला गांव को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया गया है। राज्य सलाहकार स्वच्छ भारत मिशन उत्तर प्रदेश के राज्य सलाहकार संजय चौहान बताते हैं, ‘मुझे बहुत खुशी हुई ये जानकार की ग्रामीण शौचालय के लिए जागरूक हो रहे हैं। सरकार से बिना किसी मदद के शौचालय बनाने के लिए आगे बढ़ रहे हैं।
बिजनौर जिले के एक गांव मुबारकपुर काला में शौचालय के लिए सरकार की तरफ से भेजी गई चेक वापस आ गई है। ग्रामीणों ने शौचालय बनवाने के लिए सरकारी मदद वापस कर दी और अपने पैसे से शौचालय का निर्माण करवाया ।’ 3,500 लोगों की जनसंख्या वाले इस गांव में सिर्फ 146 घरों में शौचालय थे। ज्यादातर लोग खुले में ही शौच के लिए जाते थे, लेकिन अब इस गांव की सूरत बदल चुकी है। गांव की प्रधान किश्वर जहां के नेतृत्व में लोगों ने गांव को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने का बीड़ा उठाया। किश्वर जहां बताती हैं,, ‘गांव को खुले में शौच मुक्त बनाने के लिए प्रशासन को प्रपोजल भेजा था, प्रशासन द्वारा 17.5 लाख रुपए संयुक्त बैंक खाते में डाले गए। लेकिन ग्रामीणों ने शौचालय के लिए सरकारी धन लेने से मना कर दिया।" ग्रामीण फारुख आलम का कहना है, अच्छे कामों के लिए मदद नहीं ली जाती।" वहीं खबर के मुताबिक सीडीओ ने खुशी जाहिर करते हुए कहा है कि यह राज्य का पहला गांव होगा जिसने पैसे लेने से इंकार किया और खुद शौचालय बनवाने का काम किया। गांव की प्रधान किश्वर ने बताया, "गाँव की महिलाओं समेत सभी लोगों ने अपने पैसे से शौचालय बनवाने का बीड़ा उठाया था। वहीं गांव के लोगों ने न सिर्फ पैसे से, बल्कि मजदूरी करके भी शौचालय बनवाने में मदद की। (भाषा)
स्वच्छता उत्तर प्रदेश
शौचालय में पैसे न लगाए तो एफआईआर
गड्ढा खोदने से पहले लाभार्थी को चार हजार रुपए कैश मिलेगा और इसका उपयोग नहीं करने पर नगर निगम मुकदमा दर्ज कराएगा
को खुले में शौच से के लिए ओडीएफ मेयोजनारठमुक्तमेंकोकरनेबदलाव किया गया है। पहले गढ्डा खोदने के बाद वित्तीय मदद मिलती थी, लेकिन अब गढ्डा खोदने से पहले ही वित्तीय मदद मिल जाएगी, जो 4 हजार रुपए की होगी। लेकिन रुपए लेकर गढ्डा नहीं खुदवाना महंगा पड़ जाएगा। ऐसा किया तो संबंधित व्यक्ति के खिलाफ पुलिस केस होगा। एफआईआर दर्ज कराई जाएगी।
घर- घर हो रहा सर्वे
नगर निगम के पास शौचालय निर्माण के लिए साढ़े बारह हजार आवेदन आए हैं। इन आवेदनों की जांच नगर निगम के अधिकारी घर- घर जाकर कर रहे हैं। सर्वे के बाद ही लोगों को पैसा दिया जाएगा। फार्म भरने वाले आदमी के यहां शौचालय है या नहीं।
न बनवाने पर एफआईआर
शौचालय निर्माण के पहले पैसे बाद में गड्ढा खोदना का नियम आने के बाद शासन ने यह भी निर्देश दिए हैं कि जो भी पैसा लेने के बाद यदि शौचालय का निर्माण नहीं कराता है, तो उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जाए।
लोगों को मिला नोटिस
नगर निगम ने शौचालय निर्माण के लिए मना
स्वच्छता कोटद्वार
मैं ससुराल नहीं जाउंगी...
कोटद्वार जिले में एक नवविवाहिता अपने पति से यह कह कर मायके चली गई कि ससुराल में जब तक शौचालय नहीं बनता, तब तक वह ससुराल नहीं आएगी
को
टद्वार जिले की ग्राम पंचायत लोकमणीपुर के शीतलपुर गांव निवासी एक नवविवाहिता ने घर में शौचालय न होने से रूठ कर मायके चली गई। नवविवाहिता अपने पति से यह कह कर मायके चली गई कि ससुराल में जब शौचालय बन जाएगा, तब तक वह लौटकर नहीं आएगी। नवविवाहिता ने अपने पति को भी साफ शब्दों कहा कि जब तक घर में शौचालय न बने, तब तक उसे लेने के लिए वे मायके न पहुंचे। दुल्हन की इस शर्त से ससुराल के
लोग परेशान हो उठे हैं। देश भर में जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष अभियान स्वच्छ भारत मिशन के तहत घर-घर में शौचालय बनवाने पर जोर दिया जा रहा है, वहीं भाबर की लोकमणीपुर ग्राम पंचायत के शीतलपुर समेत कई गांव आज भी इसमें फिसड्डी हैं। इस ग्राम पंचायत की एक नवविवाहिता ने शौचालय न होने पर बगावत की ठान ली। ग्रामीणों के अनुसार शीतलपुर गांव निवासी हरीश सिंह की गत अप्रैल माह में शादी
हुई थी। बीपीएल श्रेणी के हरीश की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि शौचालय बनाने के लिए उसके पास धेला तक नहीं है। डेढ़ महीने पहले उसकी शादी शहदपुरी, बिजनौर निवासी सोनिया से हुई। ससुराल में आने के बाद उसकी पत्नी सोनिया को जब पता चला कि उसके पति के घर में शौचालय नहीं है तो उसने पति से शौचालय बनवाने की जिद की।
करने पर 800 लोगों को नोटिस जारी किया था। पांच हजार रुपए जुर्माना लगाने की चेतावनी दी थी। इसके बाद लोगों ने शौचालय निर्माण कराने के लिए हां कर दी है।
2018 तक ओडीएफ मुक्त होगा शहर
नगर निगम के नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ कुंवर सेन कहते हैं कि केंद्र सरकार की ओर से शहरों को खुले में शौचमुक्त करने के लिए 2019 तक का लक्ष्य रखा है। वहीं दूसरी ओर प्रदेश सरकार की ओर से इसी लक्ष्य को 2018 तक रखा है। लिहाजा नगर निगम ने इस काम काम तेजी लानी शुरू कर दी है। शासन ने नियम में थोड़ा परिवर्तन किया है। अब गड्ढा खोदने से पहले पहली किश्त दी जाएगी। शौचालय निर्माण शुरू होने पर दूसरी किश्त दे दी जाएगी। अभी जितने भी फार्म आएं हैं, उनका सर्वे चल रहा है। (भाषा) जब पति ने खराब आर्थिक स्थिति का हवाला दिया तो वह आठ जून को रूठकर मायके चली गई। जाते हुए सोनिया ने अपने पति से कहा कि वह जब तक घर में शौचालय नहीं बनेगा, तब तक ससुराल नहीं लौटेगी। हरीश ने बताया कि उसने ग्राम प्रधान से शौचालय बनवाने का आग्रह किया था। ग्राम प्रधान पूनम मेहरा की ओर से हरीश को आश्वासन दिया गया कि यदि वह भूमि उपलब्ध करवाता है तो उसके घर के पास सार्वजनिक शौचालय बनवाया जा सकता है। हरीश ने भूमि भी उपलब्ध करवा दी। धनावंटन की प्रत्याशा में शौचालय के लिए गड्ढा खोदकर पिट भी तैयार कर दिया गया है। उम्मीद है जल्द ही शौचालय का काम पूरा हो जाएगा और मायके से दुल्हन जल्द ही ससुराल लौट आएगी। (भाषा)
3 - 9 जुलाई 2017
स्वच्छता मुंबई
गीले कचरे पर स ेिमनार
स्वच्छता अभियान को गति देने के लिए सलमान खान को स्वच्छ मुंबई अभियान का ब्रांड अंबेसडर बनाया गया है
भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई स्वच्छता की राजधानी भी बने, इसके लिए मनपा सभी प्रशासनिक वार्डों के बीच स्वच्छता प्रतियोगिता कराने की योजना बना रही है
पि
छले वर्षों से सबक लेकर मुंबई महानगरपालिका (मनपा) ने सुनिश्चित किया है कि वह राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित स्वच्छता प्रतियोगिता में इस शहर को सर्वश्रेष्ठ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। मनपा में कुल 227 वार्ड हैं, जिसे प्रशासनिक दृष्टि से 24 वार्डों में विभाजित किया गया है। मुंबई को साफ-सुथरा और दुरुस्त रखने में सभी दलों की आम सहमति है। सभी चाहते हैं कि भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई स्वच्छता के मामले माले में टॉप पर
स्वच्छता पिथौरागढ़
मलान गांव में शत-प्रतिशत शौचालय बन गए
केंद्रीय जल संसाधन और स्वच्छता मंत्री नरेंद्र तोमर ने जिले के छह ग्राम प्रधानों को खुले में शौच की प्रथा बंद करने के लिए सम्मानित किया
पि
थौरागढ़ के विकासखंड के मलान गांव में शतप्रतिशत शौचालय बन गए हैं। गांव में टायल्स वाले रास्ते, सोलर लाइट और धारे का पुनर्निर्माण भी किया गया है। ब्लॉक प्रमुख अंजू लुंठी ने मलान, पाली, उखड़ीसेरी और सुवालेख गांवों के भ्रमण के दौरान गांवों में चल रहे विकास कार्यों की जानकारी ली। उन्होंने कहा कि मलान गांव को निर्मल ग्राम पुरस्कार दिलाने के लिए प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा। इस दौरान उन्होंने ग्राम प्रधान और क्षेत्र पंचायत सदस्य को सम्मानित भी किया। ब्लॉक प्रमुख ने कहा कि गांवों के विकास की दिशा में लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। कुछ प्रधान इसमें रुचि ले रहे हैं। स्वच्छता के प्रति लोगों में जागरूकता लाया जाना बेहद जरूरी है। कहा
कि अब खुले में शौच की प्रथा को पूरी तरह समाप्त किया जाना जरूरी है। खंड विकास अधिकारी श्याम चंद ने लोगों से कहा कि अपने वृद्धावस्था पेंशन के खातों को आधार कार्ड से जोड़ लें। ब्लॉक प्रमुख ने गांव को पांच सोलर लाइटें दी। भगवती मंदिर में धर्मशाला बनाने के लिए धनराशि स्वीकृत की। उखड़ीसेरी में घराट की मरम्मत के लिए भी धनराशि देने की घोषणा की।
जिले के छह प्रधानों का सम्मान
देहरादून में आयोजित हुए एक कार्यक्रम में केंद्रीय जल संसाधन और स्वच्छता मंत्री नरेंद्र तोमर ने जिले के छह ग्राम प्रधानों को खुले में शौच की प्रथा बंद करने के लिए सम्मानित किया। इन गांवों में शतप्रतिशत शौचालय बन गए हैं। (भाषा)
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स्वच्छता मुंबई
स्वच्छता में मुंबई को टॉप पर लाने की कवायद
दिखाई दे। इसके लिए मनपा सभी प्रशासनिक वार्डों के बीच स्वच्छता प्रतियोगिता कराने की योजना बना रही है। हालांकि यह प्रतियोगिता राष्ट्रीय स्तर पर भी होती है और उसके परिणाम भी घोषित किए जाते हैं। इस बार मुंबई की कोशिश है कि वह सर्वश्रेष्ठ अंक प्राप्त के अपनी छवि को चमकाए। इसमें प्रशासन अपनी पूरी ताकत लगा रहा है। गुट नेताओं की बैठक में नगरसेवकों के सुझाव के बाद ही प्रशासनिक वार्डों में स्वच्छता प्रतियोगिता की योजना बनाई गयी। मनपा आयुक्त अजय मेहता खुद निगरानी के साथ-साथ दिशा-निर्देश भी दे रहे हैं। नगरसेवकों का कहना है कि इस प्रतियोगिता के कारण सारे अधिकारी अपने-अपने वार्ड को नंबर वन बनाने की होड़ में शामिल होंगे। इसका फायदा राष्ट्रीय प्रतियोगिता में मिलेगा। संभव है मुंबई पूरे देश में टॉप पर आ जाए। (मुंबई ब्यूरो)
स्वच्छता
खुले में शौच मुक्त करने और मुबईस्वच्छ ं को रखने और कचरा प्रबंधन के
अभियान को तेज किया जा रहा है। हालांकि एक बड़ी आबादी वाले इस शहर में इस लक्ष्य को पाने में अनेक दिक्कतें आ रही हैं, लेकिन प्रशासन को उम्मीद है कि अगर लोगों ने सहयोग दिया तो स्वच्छ भारत रैंकिंग मुंबई के स्तर में सुधार होगा। प्रशासन का कहना है कि नियमों के मुताबिक, पांच सौ मीटर के दायरे में टॉयलेट होने पर शहर को खुले में शौच से मुक्त किया जा सकता है। इस दिशा में नए टॉयलेट के साथसाथ मोबाइल टॉयलेट और कम्युनिटी टॉयलेट उपलब्ध कराए जा रहे हैं। वैसे हर 30 व्यक्ति पर एक टॉयलेट होना चाहिए, लेकिन अभी 200 लोगों पर एक टॉयलेट है। प्रशासन इस बात से परेशान है कि कुछ लोग सहयोग नहीं कर रहे हैं। उन्हें यह समझाया जा रहा है कि अपने शहर को स्वच्छ रखने में मदद करें, क्योंकि मुंबई का दुनिया भर में नाम है। बाहर से जो पर्यटक आते हैं उनके मन में मुंबई की छवि गलत नहीं बने। इसी कोशिश
में फिल्म अभिनेता सलमान खान को स्वच्छ मुंबई अभियान का ब्रांड अंबेसडर बनाया गया है। लोग उनकी बात सुनते हैं। सलमान भी हर संभव सहयोग कर रहे हैं। मुंबई में डंपिंग ग्राउंड की भारी समस्या पैदा होती जा रही है। प्रशासन ने इस दिशा में भी कदम उठाए हैं। इस समस्या के मूल में वह कचरे का वर्गीकरण नहीं होना माना जा रहा हैं। इसीलिए शहर भर में दो कचरे के डिब्बे रखे जा रहे हैं, ताकि लोग गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग रख सकें। इसके साथ ही होटलों और हाउसिंग सोसाइटियों से कहा गया है कि वे वर्गीकरण की व्यवस्था खुद करें। वे चाहें तो गीले कचरे की कम्पोस्टिंग और बायो गैस प्लांट भी शुरू कर सकते हैं। प्रशासन एक सेिमनार आयोजित कर रहा है। इसमें कंपनियों, हाउसिंग सोसाइटियों और होटल वालों को बुलाया जाएगा। इसमें ख़ास तौर पर विशेषज्ञ भी शामिल होंगे। उन्हें यहां पूरी प्रक्रिया की जानकारी दी जाएगी। इसके साथ ही उनसे कहा जाएगा कि वे अपना उपाय खुद करें। ऐसा नहीं करने पर जुर्माना भरने के लिए तैयार रहना होगा या उनके परिसर से कचरे को उठाया ही नहीं जाएगा। माना जा रहा है कि अगर ये लोग गीले कचरे का प्रबंधन कर लेते हैं, तो चालीस प्रतिशत कचरा डंपिंग ग्राउंड पर जाने से रुक जाएगा। (मुंबई ब्यूरो)
स्वच्छता बिहार
कि
डीएम ने लिया शौचालय निर्माण कार्य का जायजा
शनगंज जिले के गलगलिया थाना के अन्तर्गत भातगांव पंचायत में जिलाधिकारी पंकज दीक्षित हर घर शौचालय निर्माण एवं स्वक्ष भारत अभियान के तहत पंचायत के दौरे पर पहुंचे। भातगांव पंचायत भवन में बैठक कर पंचायत के वार्ड सदस्य सहित पंचायत के मुखिया से शौचालय निर्माण को लेकर दिशा निर्देश दिया। पंकज दीक्षित ने उपस्थित वार्ड सदस्यों से शौचालय निर्माण के विषय में जानकारी ली एवं इस कार्य में तेजी लाने कहा। वहीं इस
बैठक में प्रत्येक वार्ड के सदस्यों से उनके वार्ड में किए गए शौचालय निर्माण की जानकारी ली। (भाषा)
16 खुला मंच
3 - 9 जुलाई 2017
शशांक गौतम
‘जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना भी चाहिए, नहीं तो लोगों का विश्वास उठ जाता है’
लेखक विधिक एवं सामाजिक मामलों के जानकार हैं और एक दशक से विभिन्न सामाजिक संस्थाअों से संबंद्ध हैं
...तो ऐसे याद आएंगे प्रणब मुखर्जी
-स्वामी विवेकानंद
वित्तीय इतिहास का बड़ा दिन
भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़े टैक्स सुधार की शुरुआत दुनिया के वित्तीय इतिहास में एक बड़ी घटना हैं
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स जून की आधी रात के बाद से जीएसटी के कारण देश के वित्तीय इतिहास में बहुत कुछ बदल गया है। यह दिन स्वाधीन देश की सात दशक की यात्रा का भी अहम दिन है, क्योंकि देश के संसदीय इतिहास में चौथी बार आधी रात को केंद्रीय कक्ष में विशेष संसद सत्र का आयोजन किया गया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा संसद के केंद्रीय कक्ष में जीएसटी के लागू होने की घोषणा के साथ ही भारत जहां एक देश, एक कर व्यवस्था वाला देश और दुनिया का सबसे बड़ा साझा बाजार बन गया, वहीं इसके प्रतीकात्मक महत्व भी काफी अहम हैं। इससे पहले संसद की ऐसी विशेष बैठक 14 अगस्त, 1947 की आधी रात को हुई थी। इसी रात संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अगुआई में संसद का विशेष सत्र बुलाया गया था, तब ब्रिटिश झंडा और हमारी परतंत्रता का प्रतीक यूनियन जैक नीचे लाया गया और शानदार ढंग से तिरंगा फहराया गया था। इसी तरह स्वतंत्रता की 25वीं और 50वीं वर्षगांठ के मौके पर आधी रात को संसद के केंद्रीय कक्ष में भव्य आयोजन हुआ। इन आयोजनों के बाद अब जिस कारण संसद का विशेष सत्र बुलाया गया, वह आजादी के आगे देश के विकास की राह पर आगे निकलने का ऐतिहासिक उद्घोष का अवसर है। दो खरब डॉलर की भारतीय इकॉनमी में बड़े टैक्स सुधार की शुरुआत को दुनिया के वित्तीय इतिहास में भी एक बड़ी घटना माना जा रहा है। ऐसा इसीलिए क्योंकि इससे पहले ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्टार्ट अप इंडिया’ से लेकर ‘डिजिटल इंडिया’ तक देश ने वित्तीय विकास और प्रोत्साहन के कदम उठाए हैं। बीते तीन सालों में अगर देश की वित्तीय ताकत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इस तरह योजनागत समर्थन से आगे बढ़ी है, निस्संदेह इस बात का श्रेय देश के करोड़ों उद्यमियों को भी जाता है।
जी एस टी
टॉवर
(उत्तर प्रदेश)
राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल कभी किसी विवाद से नहीं घिरा और उन्होंने जब-तब देश के हालात को देखते हुए अपनी बात भी रखी
दे
श अपना 14वां राष्ट्रपति चुनने जा रहा है। इसके साथ ही जो एक बात और जुड़ी है, वह यह कि प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति के रूप में अब हमारी स्मृतियों में चले जाएंगे। राष्ट्रपति के रूप में उनकी पारी बेदाग तो रही ही, कई मामलों में काफी प्रभावशाली भी रही। राष्ट्रपति बनने से पहले प्रणब मुखर्जी करीब पांच दशक लंबा सार्वजनिक जीवन जी चुके थे। उनकी गिनती हर दौर में देश के एक गंभीर और विचारशील राजनेता के तौर पर होती रही। लिहाजा, जब उन्होंने देश के प्रथम नागरिक के तौर पर राष्ट्रपति भवन में प्रवेश किया तो यह एक कुशल और प्रतिभा संपन्न राजनेता का देश का संवैधानिक प्रमुख का पद संभालना था। राष्ट्रपति के रूप में उनके पांच साल के कार्यकाल पर गौर करें तो एक तरफ तो वे कभी किसी विवाद से नहीं घिरे, दूसरे उन्होंने जब-तब देश के हालात को देखते हुए अपनी बात भी रखी। इसमें सबसे अहम रहे राष्ट्र के नाम उनके संबोधन। ऐसा ही एक विशिष्ट संबोधन है देशवासियों के लिए 65वें गणतंत्र दिवस की पूर्व-संध्या पर दिया गया उनका भाषण। पिछले कम से कम दो दशक के इतिहास में यह ऐसा अवसर था जब देश और समाज के मन में कई सवाल थे। ये सवाल भी कोई रातोंरात पैदा हुए हों, ऐसा नहीं था। अलबत्ता यह जरूर है कि राष्ट्रपति ने गणतंत्र दिवस की पूर्व-संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में जिस तरह कुछ मुद्दों और खतरों को रेखांकित किया, उनसे ये सवाल एकदम से सतह पर आ गए। दरअसल, इस स्थिति को समझने के लिए हमें बीते कुछ सालों के घटनाक्रमों को देखना होगा। देश का नागरिक समाज जनता को साथ लेकर इस दौरान एक नए तरह के लोकमत के निर्माण में लगा रहा। लोकमत निर्माण की यह प्रक्रिया प्रतिक्रियावादी और सुधारवादी दोनों रही। प्रतिक्रियावादी इस लिहाज से कि इसमें इस बात की खीझ थी कि सत्ता और जनता का साझा आचरण बदल गया है। केंद्र से लेकर राज्यों की सरकारें 'जनता का शासन’ चलाने की बजाय 'जनता पर शासन’ कर रही हैं। नतीजतन सरकारी सोच और काम की प्राथमिक शर्त न तो लोक कल्याणकारी रह गई और न ही पारदर्शी। इसी स्थिति पर देश के प्रथम नागरिक ने भी टिप्पणी की। दिलचस्प है कि उनकी कही बातों का असर कहें या देश के नागरिकों में जगा विवेक कि बीते तीन बरसों में जहां एक
तरफ सरकारों का चेहरा बदला है, वहीं एक नई राजनीतिक विचारधारा और उसके नेतृत्व को लेकर व्यापक स्वीकृति पैदा हो रही है। प्रणब मुखर्जी ने तब कहा था, 'यदि भारत की जनता गुस्से में है, तो इसका कारण है कि उन्हें भ्रष्टाचार तथा राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी दिखाई दे रही है।’ देश के नागरिक समाज ने इस स्थिति को बदलने के लिए कुछ लोकतांत्रिक दरकारों और सरोकारों को बार-बार रेखांकित किया है। इसमें सबसे अहम मुद्दा है प्रातिनिधिक लोकतंत्र के ढांचे को संभव स्तर तक प्रतिभागी बनाना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा इस लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। कई बरसों बाद देश अपने नेतृत्व से ऐसा आह्वान सुन रहा है कि विकास और समृद्धि के बड़े और दूरगामी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए पूरे देश को एक टीम के तौर पर काम करना होगा। टीम में केंद्र के साथ राज्य सरकारों का सम्मिलित बल तो हो ही, नागरिकों का भी पूरा सहभाग हो। 21वीं सदी के आरंभ के साथ देश में भ्रष्टाचार को लेकर भड़के आंदोलनों के प्रकटीकरण के पीछे के कारणों को अगर समझें तो साफ होता है कि जनता अपने लिए सुविधा ही नहीं, नीति और विधि निर्माण के लिए भी सड़क पर उतर सकती है। महज इतना ही नहीं, सरकार के आगे जनता इस बात का भी लोकतांत्रिक दबाव बना सकती है कि वह महज उसके लिए नहीं, बल्कि उसके साथ बैठकर जरूरी फैसले करे।
‘मैं निराशावादी नहीं हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि लोकतंत्र में खुद में सुधार करने की विलक्षण योग्यता है। यह ऐसा चिकित्सक है जो खुद के घावों को भर सकता है’
दिलचस्प है कि इस तरह की सुधारवादी कोशिश ने अब राजनीतिक विकल्प की भी शक्ल ले ली है। पर एक बड़ी कोशिश के ठोस विकल्प बनने की प्रक्रिया सघन और सुचिंतित होनी चाहिए। केंद्र में सत्ता में आने के बाद कई राज्यों में सत्ता संभाल रही भाजपा देश में एक नई कार्य संस्कृति लेकर आई है। ‘जनधन’ से लेकर ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना तक सरकार के कार्यक्रम से ज्यादा आज देश और समाज के भीतर पैदा हुई एक जागरूकता का नाम है। बात आंदोलन की करें तो प्रधानमंत्री ने स्वच्छता के मुद्दे को देशव्यापी आंदोलन बनाने में सफलता पाई है। क्या बच्चे और क्या बूढ़े, स्त्री-पुरुष और गांव-शहर, हर जगह स्वच्छता की अलख जगी है। कोई बच्चा अपने गुल्लक के पैसे से शौचालय बनाने की प्रेरणा से सामने आ रहा है तो कोई लड़की इस बात पर शादी से इनकार कर रही है कि उसकी होने वाले ससुराल में महिलाओं को खुले में शौच जाना पड़ता है। हम राष्ट्रपति के जिस संबोधन की चर्चा कर रहे हैं, उसमें उनकी एक और टिप्पणी गौरतलब है। उनके ही शब्दों में, 'चुनाव किसी व्यक्ति को भ्रांतिपूर्ण अवधारणाओं को आजमाने की अनुमति नहीं देते हैं। जो लोग मतदाताओं का भरोसा चाहते हैं, उन्हें केवल वही वादा करना चाहिए जो संभव है। सरकार कोई परोपकारी निकाय नहीं है। लोकलुभावन अराजकता, शासन का विकल्प नहीं हो सकती।’ दरअसल, हम जब देश की मौजूदा स्थिति और राजनीतिक स्तर पर बदलाव की कमज्यादा संभावनाओं के बीच देश के प्रथम नागरिक की टिप्पणियों और चिंताओं पर विचार करते हैं तो इससे काफी हद तक समाधान मिलता है। समाधान की बात यह है कि जैसा कि महामहिम खुद कहते हैं, 'मैं निराशावादी नहीं हूं क्योंकि मैं जानता हूं कि लोकतंत्र में खुद में सुधार करने की विलक्षण योग्यता है। यह ऐसा चिकित्सक है जो खुद के घावों को भर सकता है और पिछले कुछ वर्षों की खंडित तथा विवादास्पद राजनीति के बाद 2014 को घावों के भरने का वर्ष होना चाहिए।’ गौरतलब है कि 2014 में ही नरेंद्र मोदी की सरकार देश में आई। एक ऐसी सरकार जिसके प्रधानमंत्री ने खुद को देश का प्रथम सेवक कहलाना ज्यादा गौरव की बात माना। संसद में प्रवेश किया तो पहले उसके आगे शीश नवाए। देश-दुनिया को लगा कि भारतीय लोकतंत्र की ही यह ताकत है कि वह निराशा के बीच इस तरह सूर्य उगा सकता है। अगर बात नए दौर में नए सिरे से देश के नवनिर्माण की करें, तो यह तो समझना होगा कि कोई क्रांति कम से कम शून्य से तो नहीं पैदा हो सकती। हरित और दुग्ध से लेकर आईटी क्रांति तक अगर देश पहुंचा तो इसीलिए, क्योंकि इसके लिए अनुकूलता की उर्वर जमीन पहले से तैयार थी। इसे तैयार करने में सरकारों की भूमिका की बारी तो बाद में आती है। सबसे पहले तो इसके लिए संबंधित लोगों का समाज चेतना संपन्न बना। आज देश कई क्षेत्रों में एक साथ कदम उठा रहा है तो इसलिए कि आशा के अनुरूप देश का नेतृत्व भी काफी महत्वाकांक्षी है, उद्यमी तेजी से उभरे हैं।
राजीव रंजन गिरि
3 - 9 जुलाई 2017
खुला मंच
लेखक गांधीवादी लेखक-विचारक और दिल्ली विश्वविद्यालय में व्याख्याता हैं
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सौ साल की लीक और गांधी की सीख का
गांधी का काल बीता नहीं है, बल्कि आज भी है। और हमें उनसे अलग से याद करने के बजाय सीधे-सीधे जुड़ने की जरूरत है
ल और समय दो अलग चीजें हैं। गांधीवादी विद्वान और प्रखर वक्ता विमला ठक्कर समझाती रही हैं कि समय की पाबंदी तो अच्छी बात है और पश्चिमी संस्कृति दुनिया की अनुपम देन भी है। पर जहां तक बात काल की है तो भारतीय परंपरा, संस्कृति और दर्शन में काल की चर्चा खूब होती है। काल में समय जैसी तात्कालिकता नहीं, यह समाज और परिवेश के साथ समय की एक साझी अवधारणा है। इसमें हम विकास और संस्कृति की दिशा को ज्यादा गहराई से समझ सकते हैं। फिर इस समझ के लिहाज से अपनी भूमिका और उपयोगिता के बारे सार्थक विचार कर सकते हैं। गांधी अपने विचारों और कार्यक्रमों को लेकर सौ साल बाद फिर से पूरी दुनिया में याद किए जा रहे हैं। एक तरह से यह पूरी दुनिया के लिए गांधी को सामने रखकर अपनी स्थिति और भविष्य की दिशा का मूल्यांकन करने और इसके साथ ही उस काल निर्णय का भी अवसर है, जिसमें हमारी आज की तकनीक, समझ और विकास के साथ जीवन की संगति-विसंगति पर आत्मावलोकन किया जा सके। गांधी के चंपारण सत्याग्रह को सौ साल बाद भले भारत में गांधी के प्रथम सत्याग्रह या किसान संघर्ष के रूप में याद किया जाए, पर असल संदेश इसका यह है कि बगैर किसी से शत्रुता मोल लिए या बगैर किसी के घोषित विरोध के भी हम अपने हित की बात को दुनिया के सामने रख सकते हैं। इसी तरह गांधी के साबरमती आश्रम के भी सौ साल पूरे हो गए हैं। सौ साल पहले महात्मा गांधी अपने साथियों के साथ कोचरब से साबरमती आश्रम
स्थानांतरित हुए थे। साबरमती आश्रम गुजरात के अहमदाबाद के नजदीक साबरमती नदी के किनारे स्थित है। बापू जब अपने 25 साथियों के साथ दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे तो 1917 में अहमदाबाद में कोचरब स्थान पर ‘सत्याग्रह आश्रम’ की स्थापना की। उसी साल यह आश्रम साबरमती नदी के किनारे वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित हुआ और तब से ‘साबरमती आश्रम’ कहलाने लगा। यहां जो बात गौर करने की है वह यह कि 1930 में जब वे यहां से दांडी यात्रा के लिए निकले तो लौटकर फिर यहां नहीं आए। कह सकते हैं कि दांडी यात्रा उनकी साबरमती आश्रम से विदाई यात्रा भी थी। दरअसल, गांधी ने लौटकर साबरमती न आने का फैसला इसीलिए किया, क्योंकि तब तक भारत के गांवों, वहां रहने वाले लोगों, उनके जीवन और आजीविका को लेकर उनकी समझ काफी गहरी हो चुकी थी। उन्हें लगा कि भारत के लिए स्वाधीनता का सही मतलब ग्राम स्वराज है। उनकी नजरों में गांवों
‘
एक प्रासंगिक अखबार
सुलभ स्वच्छ भारत’ का नया अंक बेहतर है। जिस तरह आपका समाचार पत्र पर्यावरण, स्वच्छता, जल और स्वास्थ्य संबंधी विषयों को प्रकाशित कर रहा है वह प्रशंसनीय है। पूरे देश में जिस तरह से स्वच्छता को लेकर लोगों को जागरूक करने की छोटी-छोटी छोटी पहल हो रही है वह काफी प्रेरणादायक है। भारत को स्वच्छ देश बनाने के लिए शौचालयों का निर्माण समय की मांग है। अब वक्त आ गया है कि देश के लोग यह जानें कि सिर्फ गंदगी की वजह से देश को करीब सात लाख करोड़ का नुकसान हर साल उठाना पड़ रहा है। गंदगी की वजह से पूरी दुनिया को होने वाले नुकसान
के स्वावलंबन के बिना भविष्य के भारत का चित्र बन ही नहीं सकता। यही वजह है कि दांडी यात्रा के बाद गांधी ने महाराष्ट्र के निकट एक और आश्रम बनाया, जिसे हम ‘सेवाग्राम आश्रम’ के नाम से जानते हैं। यह आश्रम और यहां उपयोग होने वाले साधनों को लेकर गांधी जी इस कदर सतर्क रहे कि आप कुछ भी यहां ऐसा नहीं देख सकते, जो फिजूल हो या बहुत महंगा या विलासिता से जुड़ा हो। गांधी का सौ साल बाद अलग-अलग संदर्भों और प्रसंगों में स्मरण दो सीख दुनिया को सबसे पहले देती है। सबसे पहले तो हिंसा के रहते हम मानवीय विकास यात्रा को आगे नहीं ले जा सकते। फिर आज तो मनुष्यों के बीच होने वाली हिंसा का प्रसार प्रकृति को भी खतरनाक तरीके से प्रतिक्रियावादी बनने पर विवश कर रहा है। इस तरह हिंसा के त्याग के लिए हमारे दौर को गांधी का सौ साल पुराना आह्वान सबसे पहले सुनना होगा। इसी तरह गांव और ग्रामीणों की उपेक्षा करके विकास की हर दौड़ में हमारी हार तय है। अच्छी बात यह है कि आज यह बात न सिर्फ दुनिया भर की सरकारें समझ रही हैं, बल्कि विश्व बैंक जैसी संस्था भी समन्वित विकास की नसीहत हर बात में दे रही है। गौर करें तो गांधी अपने दौर में जिन चुनौतियों से निपट रहे थे और उसके लिए उनके पास जो समाधान का रास्ता था, वह आज भी प्रासंगिक है। गांधी का काल बीता नहीं है, बल्कि आज भी है। हमें उन्हें अलग से याद करने के बजाय सीधे-सीधे जुड़ने की जरूरत है। क्योंकि गांधी विगत दौर के नहीं, बल्कि हमारे लिए समकालीन हैं।
का यह करीब आधा है। अगर लोग स्वच्छता को अपनी आदत में शामिल कर लें तो देश के विकास की रफ्तार दुनिया में सबसे तेज हो जाएगी। इसीलिए मुझे खुशी होती है कि देश को स्वच्छ बनाने की दिशा में आपकी सक्रिय भूमिका है। अंक में प्रकाशित आलेख रोचक व खोजपरक हैं। स्वास्थ्य संबंधी खबरें लोगों के लिए फायदेमंद रहती हैं। ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ में ‘कानपुर की सोलर दीदी’ वाला आलेख विशेष रूप से बेहतर है। उम्मीद है कि आगे भी ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ इस तरह की सामग्री उपलब्ध कराता रहेगा। संजीव तिवारी, गोंडा, उत्तर प्रदेश
18 फोटो फीचर
3 - 9 जुलाई 2017
राहत की फुहार
जेठ की धूल-धूल धरती और फिर उमस की मार, पसीने से हर कोई तर-बतर। शीतल जल की तलाश हर किसी को है। पशु-पक्षी से लेकर मनुष्य तक देर तक पानी में भींगने को बेकरार। जहां भी और जिसे भी बहता हुआ पानी दिखा, वहीं वह सराबोर हो गया। पानी में भींगने का उल्लास िकसी उत्सव से कम नहीं होता...
फोटाेः प्रभात पांडे
जब प्यास जगती है, जब देह थकता है तो पानी और छाया की जरूरत हर कोई महसूस करता है। जब उम्र कच्ची हो तो पानी राहत ही नहीं देता, मस्ती और उल्लास से सराबोर भी कर देता है
फोटो फीचर
मौसम गर्मी का हो तो पानी के साथ छपाछप खेलना किशोरों को सबसे ज्यादा भाता है। वैसे पानी के साथ एक जरूरी बात यह है किउसकी तलब न रंग देखती है और न उम्र। पानी की स्वच्छता पर ही सभी की नजर होती है
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20 साइंस टेक्नोलाॅजी
3 - 9 जुलाई 2017
स्वच्छ ऊर्जा की जरुरतों को पूरा करेगा भारी जल रिएक्टर विज्ञान परमाणु ऊर्जा
अब भारत परमाणु ऊर्जा क्षमता के क्षेत्र में त्वरित संवृद्धि हासिल करने के लिए पूरी तरह से तैयार है, जो स्वच्छ ऊर्जा की मांग की पूर्ति के लिए आवश्यक है
एक नजर
परमाणु रिएक्टर आरएपीएस-5 ने 765 दिनों तक की ऊर्जा आपूर्ति
पीएचडब्ल्यूआर की 220 मेगावॉट की पहली दो इकाइयां नरोरा में
भारत परमाणु ऊर्जा क्षमता के क्षेत्र में आगे बढ़ने को तैयार
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एसएसबी ब्यूरो
00 मेगावॉट क्षमता के 10 दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (पीएचडव्ल्यूआर) के निर्माण की सरकार की घोषणा स्वदेशी पीएचडब्ल्यूआर तकनीक में विकास को बढ़ावा देगी, जिसक निर्माण विगत चार दशकों के दौरान किया गया है। मौजूदा छह स्वदेशी पीएचडब्ल्यूआर की कार्यक्षमता विगत पांच सालों में औसतन 80 फीसद तक रही है। राजस्थान परमाणु रिएक्टर आरएपीएस-5 ने बाद की बढ़ी हुई अवधि में सबसे लंबे समय 765 दिनों तक अबाधित ऊर्जा आपूर्ति की है, जो विश्व में दूसरा मामला है। यह औसत बिजली दरों की तुलना में
भारी जल रिएक्टर (पीएचडव्ल्यूआर) के निर्माण की सरकार की घोषणा स्वदेशी पीएचडब्ल्यूआर तकनीक में विकास को बढ़ावा देगी जलविद्युत ऊर्जा के बाद काफी सस्ती है। सबसे बढ़कर वास्तविकता यह है कि इसके सौ फीसद कल-पुर्जे देश में ही बनाए जाते हैं। पीएचडब्ल्यूआर के उद्भव और उसके उत्क्रमित सुरक्षा इंतजामों के बारे में अमेरिकन सोसाइटी ऑफ मैकेनिकल इंजीनियर्स की तरफ प्रकाशित जर्नल के अप्रैल 2017 के ‘न्यूक्लियर इंजीनियरिंग एंड रेडियन साइंस’ पर केंद्रित विशेष अंक में धारावाहिक प्रकाशित किया गया है।
भारत में पीएचडब्ल्यूआर प्रौद्योगिकी की शुरुआत 1960 के उत्तरार्ध में राजस्थान एटॉमिक पॉवर स्टेशन (आरएपीएस-1) हुई थी। इसकी आधारशिला संयुक्त भारत-कनाडा न्यूक्लियर साझेदारी के तहत रखी गई थी और इसकी डिजाइन (रूपरेखा) भी कनाडा में स्थापित डगलस प्वाइंट रिएक्टर जैसी बनाई गई थी। ऐसी पहली इकाई के लिए कनाडा ने संयंत्र के सभी प्रमुख उपकरण मुहैया कराए थे, जबकि निर्माण, स्थापना और कार्य प्रणालियों के सुचारु
करने की जिम्मेदारी भारत की थी। दूसरी इकाई (आरएपीएस-2) की स्थापना में आयातित उपकरणों की मात्रा उल्लेखनीय रूप से कम हो गई और उपकरणों के बड़े कल-पुर्जे में भारतीय भागीदारी जोर पकड़ती गई। पोखरण में 1974 में किए गए पहले परमाणु परीक्षण के बाद तो कनाडा ने भारत पूरी तरह से हाथ खींच लिया और भारतीय इंजीनियरों ने अपने बूते ही निर्माण का काम पूरा किया और स्वदेशी उपकरणों से बने को इन संयंत्रों को चालू किया। पीएचडब्ल्यूआर की तीसरी इकाई (मद्रास एटॉमिक पॉवर स्टेशन, एमएपीएस-1) के बाद से तो डिजाइन का विकास और इसका भारतीयकरण इस क्षेत्र में दुनिया भर में हो रहे बदलावों व सुरक्षा के उनके नये मानकों के अनुरूप किया जाने लगा। इकाई की स्थापना में लगने वाले समय व लागत में कटौती जैसे सुधार किए गए और बेहतर क्षमता के सृजन के लिए कार्यसंचालन की विश्वसनीयता बढ़ाई गई। स्वदेशी मानकों पर विकसित पीएचडब्ल्यूआर की 220 मेगावॉट की पहली दो इकाइयां नरोरा एटॉमिक पॉवर स्टेशन में स्थापित की गई थीं। इस मानकीकृत और अनुकूल डिजाइन में कई नई सुरक्षा पद्धतियां शामिल थीं, जिन्हें 2 गुना 220 मेगावॉट की क्षमता की सात पांच और युगल-इकाइयों में शामिल किया गया था, जो काकरापर, कैगा और रावटभाटा में स्थापित हुई थीं। आर्थिक मापमान को देखते हुए पीएचडब्ल्यूआर की 540 मेगावाट्स की डिजाइन का विकास किया गया और ऐसी दो इकाइयां तारापुर में स्थापित की गई। इसके आगे, अतिरिक्त ऊर्जा बचत का उपयोग करते और लागत सुधारते हुए और एनपीसीआईएल ने 540 मेगावॉट के पीएचडब्ल्यूआर की डिजाइन में
3 - 9 जुलाई 2017 बिना किसी भारी बदलाव के उसे 700 मेगावॉट का किया गया। इस डिजाइन की चार इकाइयां फिलहाल रावतभाटा और कर्करापार में स्थापित की जा रही हैं। जहां तक निरापद सुरक्षा की चिंता का वाजिब सवाल है तो पीएचडब्ल्यूआर प्रौद्योगिकी अपने में निहित कई सारे सुरक्षा विशेषताओं के चलते बिल्कुल उपयुक्त है। पीएचडब्ल्यूआर डिजाइन की सबसे बड़ी खासियत इसमें मोटी भीत्ति वाले प्रेशर ट्यूब का इस्तेमाल किया जाना है, जबकि बड़े दाब वाले रिएक्टर्स में बड़े पात्र का उपयोग किया जाता है। यह दाब के घेराव को बड़ी संख्या में छोटे डायमीटर के प्रेशर ट्यूब में कर देता है। परिणामस्वरूप, ऐसी डिजाइन में दाब के घेराव का दुर्घटनावश तोड़फोड़ प्रेशर वेजल टाइप रिएक्टर की तुलना में बहुत कम नुकसानदायक होगा। पीएचडब्ल्यूआर का मुख्य हिस्सा सिलिंडरों यानी बड़े सिलिंडर के आकार के पात्र और उसके मेहराब में चारों तरफ बड़ी मात्रा में कम तापमान और कम दाब के पानी का घिराव होता है। संयंत्र को ठंडा रखने का यह अन्वेषित उपाय किसी आकस्मिकता की प्रक्रिया को विलंबित कर देता है और इस प्रकार, ऑपरेर्ट्स को हस्तक्षेप करने तथा सुरक्षा के इंतजाम करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। ये अंतरर्निहित ताप संचालक (ताप के संचालन और प्रसारण के लिए बनाया गया धातु का संचालक यानी कंडक्टर) की केवल तभी जरूरत पड़ती है, जब अनेक गंभीर दुर्घटना वाले परिदृश्यों में वाष्प उत्पादक के जरिए प्रारम्भिक ताप संचालनया शीत पण्राली बंद होकर अनुपलब्ध हो जाती है। इसके अलावा, 700 मेगावॉट पीएसडब्ल्यूआर डिजाइन ने मुस्तैद पैसिव डिके हीट रिमूवल सिस्टम के जरिए सुरक्षा बढ़ा दी है, जिसकी क्षमता बिना किसी ऑपरेटर्स की सहायता के नष्ट ताप को हटाने की है। इसी तरह की प्रौद्योगिकी फुकुशिमा के जैसे हादसे रोकने के लिए तीसरी और इसके आगे की पीढ़ी के संयंत्रों में अपनाई गई है। 700 मेगावॉट की भारतीय पीएचडब्ल्यूआर डिजाइन में रिएक्टर से रिसाव को रोकने के लिए स्टील लाइन्ड नियंत्रक बनाये गए हैं। और शीतलक के नुकसान होने की स्थिति में होने वाली दुर्घटना और डिजाइन की हद से ज्यादा होने वाले रेडियोधर्मी न्यूक्लाइड को रगड़ कर साफ कर दाब को घटाने के लिए नियंत्रण छिड़काव प्रणाली काम में लाई जाती है। 1960 के दशक में पहले चरण के भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में पीएचडब्ल्यूआर का चयन करने के मुख्य कारण प्राकृतिक यूरेनियम ऑक्साइड का ईधन के रूप में इस्तेमाल, ऊर्जा उत्पादन में खनिज यूरेनियम का बेहतर उपयोग और पूरी तरह आत्मनिर्भर प्रौद्योगिकी की स्थापना की संभावना तलाशना रहे हैं। भाभा परमाणु अनुंसधान केंद्र में चार दशकों के अथक अनुसंधान, डिजाइन व विकास कार्यक्रमों के बाद और परमाणु ऊर्जा सहयोग तथा उनके उद्यम में समान सहयोगी कुछ साझेदारों ने विर्निर्माण और संरचनागत कामों को करने का बीड़ा उठाया, जिसने भारत को प्रौद्योगिकी की स्थापना में पूर्ण रूप से सक्षम-समर्थ बनाया। खनिज पदाथरे, खनन, प्रसंस्करण और ईधन का निर्माण व संरचनागत पदार्थ, उपयोग किए गए परमाणु ईधन का पुनर्ससाधन और रेडियोसक्रिय पदार्थ का स्थिरीकरण यानी समूचे ईधन-चक्र में अर्जित निपुणता ने भारत को परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में एक खास मुकाम दे दिया है। देश में यूरेनियम के सीमित भंडार की बाध्यता के चलते पहले दौर में परमाणु ऊर्जा में त्वरित संवृद्धि बाधित होती रही थी, अब देश में ही संवर्धित यूरेनियम
भारत 900 मेगावॉट के दाबानुकूलित जल रिएक्टर (पीडब्ल्यूआर) का खुद डिजाइन करने की दहलीज पर है के उत्पादन होने और कई देशों के साथ असैनिक परमाणु सहयोग संधि के अंतर्गत निर्यातित यूरेनियम की आपूर्ति से वह वृद्धि सुगम हो गई है। विगत वित्तीय वर्ष के दौरान, न्यूक्लीयर फ्यूल कॉम्पलेक्स ने 1500 टन से भी ज्यादा परमाणु ईधन का रिकार्ड उत्पादन किया था और एटॉमिक मिनरल डिविजन फॉर एक्सपलोरेशन ने नये यूरेनियम का भंडार पाया था। खोज और अनुसंधान ने भारत में यूरेनियम का कुल भंडारण 200000 टन तक पहुंचा दिया है। अब भारत परमाणु ऊर्जा क्षमता के क्षेत्र में त्वरित संवृद्धि हासिल करने के लिए पूरी तरह से तैयार है, जो स्वच्छ ऊर्जा की मांग की पूर्ति के लिए आवश्यक है। स्पष्ट है कि हमारे लोगों के जीवन स्तर को और बेहतर करने के लिए वैकल्पिक गैर कार्बन बिजली उत्पादन को बढ़ावा देने की जरूरत है। सौर ऊर्जा और वायु ऊर्जा के क्षेत्र में प्रभावकारी संवृद्धि ने अन्य क्षेत्रों में उपलब्ध बिजली के उपयोग पर दर्शनीय प्रभाव डाला है। हालांकि इस पर जोर देने की आवश्यकता है कि सौर और वायु जैसे वितरित और अनिरंतर ऊर्जा के स्रोत बेस लोड की मांग की सक्षमता से आपूर्ति नहीं कर सकते। परमाणु ऊर्जा का स्रोत संकेंद्रित, लगातार और विश्वसनीय है। इसीलिए यह सौर और वायु ऊर्जा की समपूरकता के साथ व्यावहारिक तौर पर कॉर्बन का कोई निशान छोड़े, बिजली की समस्त मांगों की पूर्ति कर सकता है। अब जबकि बड़े शहरों से बिजली की भारी मांग आ रही है और औद्योगिक परिसर अबाधित और संकेंद्रित ऊर्जा के प्रकार की मांग करते हैं। बिल्कुल इसी तरह वितरित ऊर्जा की भारी मांग हमारे ग्रामीण क्षेत्रों की भी है। इसलिए ऊर्जा के योजनाकार इन तरह-तरह की ऊर्जा आवश्यकताओं को आपस में मिलाकर एक अपेक्षित समाधान पाने का प्रयास कर रहे हैं। दूसरा मसला, जिस पर हमें विचार करने की आवश्यकता है कि किस तरह हम तेजी के साथ परमाणु ऊर्जा क्षमता को हासिल कर सकते हैं। इस संदर्भ में कोई भी नौवें दशक के फ्रांस व अमेरिका
के अनुभवों और हाल के वर्षो में चीन को मिले तजुर्बे का लाभ उठा सकता है। इन सभी देशों ने कुछ मानकीकृत डिजाइन वाले पथरक्षा या सिलसिलेवार तरीके से की गई परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना के जरिए बड़ा ही प्रभावकारी विकास हासिल किया है। ऐसी कार्यनीति में, उद्योग अत्याधुनिक परमाणु पुर्जे के प्रतिबद्ध उत्पादन में सक्षम हो सकते हैं और निर्माण कंपनियां अपनी मानव शक्ति और उसके कौशल को प्रभावी तरीके से नियोजित कर सकती हैं। 700 मेगावाट के 10 पीएचडब्ल्यूआर को निकट भविष्य में स्थापित करने का फैसला उद्योग क्षेत्र को परमाणु ऊर्जा के सिलसिलेवार पुर्जे के उत्पादन की चुनौतियों को मंजूर करने के लिए उत्साह से लबरेज कर देगा। परमाणु ऊर्जा उत्पादन की गतिविधियों में फैलाव न केवल आपूर्ति क्षेत्र को व्यापक करेगा, बल्कि इसमें सहभागी उद्योगों को भी गुणवत्ता के प्रति जागरूक भी करेगा। इस तरह वे परमाणु पुर्जों के निर्यातक भी बन सकते हैं। परमाणु संयंत्र के निर्माण-पूर्व अवधि में कटौती का बिजली की दरों पर जबर्दस्त प्रभाव पड़ेगा। जैसा कि डॉ. श्रीनिवासन द्वारा उल्लेख किया जाता रहा है कि भारत 900 मेगावॉट के दाबानुकूलित जल रिएक्टर (पीडब्ल्यूआर) का खुद डिजाइन करने की दहलीज पर है। बड़े आकार का दाबानुकूल पात्र बनाने की क्षमता अब अपने देश में ही उपलब्ध है और हमारा खुद का समस्थानिक संवर्धन संयंत्र संवर्धित यूरेनियम ईंधन की मांग के एक भाग को एक दशक के भीतर ही आपूर्ति करने में सक्षम हो जाएगा। यह रूस, फ्रांस और अमेरिका से निर्यातित होने वाले पीडब्ल्यूआर के अतिरिक्त होगा, जिसका लक्ष्य देश में परमाणु ऊर्जा के विकास को विस्तार देना है। संचालन में सहुलियत और औसत उच्च क्षमता के कारक ने पीडब्ल्यूआर को परमाणु ऊर्जा तापघरों के बाद दुनिया में सबसे लोकप्रिय बना दिया है कि सभी तरह के पॉवर रिएक्टरों का 85 फीसद पीडब्ल्यूआर की तरह के हैं। भारत में पीडब्ल्यूआर और पीएचडब्ल्यूआर को
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मिला कर संचालित करने के विशेष फायदे होंगे, क्योंकि पहले वाले संयंत्र में इस्तेमाल किये गए ईंधन, जो यूरेनियम-235 का एक प्रतिशत से अधिक हिस्सा उपभोग करता है, उसको पुनर्संशोधित किया जा सकता है और उसका पीएचडब्ल्यूआर में ईंधन के रूप में क्रमबद्धता में उपयोग किया जा सकता है। यह विकासमान ऊर्जा चक्र आखिरकार पहले चरण की ऊर्जा पीढ़ी से तीसरे चरण के जगजाहिर कार्यक्रम तक चलता चला आया है। भारत ने परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के प्रारंभ में जिस संवृत्त ईंधन चक्र की योग्यता को अंगीकार किया, उसने न केवल ईधन संसाधन को बहुआयामी किया, बल्कि देश में परमाणु कचरे के रूप में रेडियो-सक्रिय बोझ को नाटकीय तरीके से घटा दिया। इस प्रसंग में परमाणु कचरे से छोटे अक्टेनिड को अलग करने के सफल विकास, इसको पायलट प्लांट में इस्तेमाल करने के भारत के प्रयासों ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। पीएचडब्ल्यूआर के संचालन में व्यवहृत ईंधन को पुनर्संशोधित करने में मिले प्लूटोनिम को यूरेनियम से मिलाकर प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (पीएफबीआर) के कोर के लिए ऑक्साइड ईंधन तैयार किया जाता रहा है, जिसने संयंत्र का संचालन प्रारंभ करने के पहले उसकी तैयारी की गतिविधियों की शुरुआती पहल की है। भारत के दूसरे चरण के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में प्रवेश के साथ, जिसमें फास्ट ब्रीडर रिएक्टर्स न केवल स्थापित परमाणु संयंत्रों की क्षमता बढ़ाएंगे, बल्कि आणविक पदार्थों को उत्पन्न करेंगे, उर्वर समस्थानिक के जरिए प्लूटोनिम-239 और यूरेनियम-233 को और क्रमश: यूरेनियम-238 और थोरियम-232 को उत्पन्न करेंगे। विस्तरित कार्य क्षेत्र और पहले चरण के कार्यक्रम का द्रुत क्रियान्वयन देश की ऊर्जा आत्मनिर्भरता के लक्ष्यों पर दूरगामी प्रभाव डालेंगे। यूरेनियम-प्लूटोनिम ईंधन चक्र में बहुआयामी पुनर्चक्रण विखंडनीय सामग्री की आपूर्ति क्षमता में फैक्टर 60 के जरिए और बढ़ोतरी का अनुमान है। थोरियम के बड़े भंडारण, जो मौजूदा आकलन के मुताबिक यूरेनियम से चार गुना ज्यादा है, के उपयोग से तो भारत स्वच्छ परमाणु ऊर्जा की आपूर्ति कई सदियों तक कर सकता है।
22 कृषि
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किसान कल्याण
किसानों की कमाई बढ़ाने की कोशिश उत्पादक किसानों को मंडियों से सीधे जोड़ने की योजना पर प्रभावी तरीके से काम हो रहा है। मंडियों से किसानों को जोड़ने का काम पूरा होते ही खेती को आकर्षक व्यवसाय में तब्दील कर दिया जाएगा
एक नजर
कृषि पर लागत कम करने का किया जा रहा है प्रयास नई तकनीक से किसानों की उत्पादकता बढ़ाने पर जोर उत्पाद के लिए उचित बाजार उपलब्ध कराने की कोशिश
प्र
एसएसबी ब्यूरो
धानमंत्री नरेंद्र मोदी का लक्ष्य 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करना है। इसके लिए सिंचाई से लेकर ऋण, बीज और खाद की उपलब्धता के लिए सरकार ने चरणबद्ध तरीके अपनाए हैं। पहला चरण कृषि पर लागत कम करने का है। दूसरा नई तकनीक को खेतों तक पहुंचाकर उत्पादकता में वृद्धि लाना है। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण चरण उत्पाद के लिए उचित बाजार उपलब्ध कराना है। इसके लिए किसानों को बिचौलियों के चंगुल से मुक्त कराना जरुरी है। मध्य प्रदेश के मंदसौर से लेकर महाराष्ट्र तक फैले मौजूदा किसान आंदोलन के पीछे उपज की उचित कीमत नहीं मिल पाने की समस्या है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह कहते हैं कि उत्पादक किसानों को मंडियों से सीधे जोड़ने की योजना पर प्रभावी तरीके से काम हो रहा है। मंडियों से किसानों को जोड़ने का काम पूरा होते ही खेती को आकर्षक व्यवसाय में तब्दील कर दिया जाएगा। योजनाओं पर सरकार अपने तरीके से इस पर काम कर रही है। सरकारी तंत्र की खामियों को ठीक करने में वक्त तो लग रहा है। इस लिहाज से किसानों पर मौसम की मेहरबानी के बेहतरीन नतीजे मिलने लगे हैं। पिछले साल बारिश मौसम विभाग के अनुमान के आसपास हुई। इस साल भी विभाग
ने सामान्य मॉनसून का अनुमान जताया है। इससे किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को हासिल करने की कोशिश को हौसला मिला है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह का कहना है कि हमारा उद्देश्य किसानों का सशक्तिकरण करना है। हम कृषि उत्पादन में बढ़ोत्तरी और गोदामों की मरम्मत करना चाहते हैं। हम उन योजनाओं में निवेश कर रहे हैं, जिनका उद्देश्य किसानों की आय बढ़ाना है। यह उस प्रक्रिया का हिस्सा है जिसके दूरगामी परिणाम आने हैं। कृषि मंत्रालय के अधिकारी मानते हैं कि निरंतर कोशिशों के नतीजे आ रहे हैं। सुधार के उपायों का असर उपज पर दिखने लगा है। देश में इस साल कुल खाद्यान्न उत्पादन लगभग 27.338 करोड़ टन अनुमानित है, जो वर्ष 2015-16 की तुलना में 8.67 फीसदी अधिक होगा। दलहनों का कुल उत्पादन 2.240 करोड़ टन अनुमानित है, जो अब तक का रिकॉर्ड उत्पादन होगा। यह पिछले वर्ष की तुलना में 37 फीसदी अधिक है। कृषि मंत्रालय की योजना के मुताबिक अगले तीन वर्षो में सभी किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड मिल जाएगा। इसके अलावा गांवों में छोटी प्रयोगशालाओं का विकास करने तथा मिट्टी की स्वास्थ्य की जांच के लिए छोटे उपकरण प्रदान करने की योजना पर काम चल रहा है। कृषि को प्रधानता देने की झलक केंद्रीय बजट में निरंतर मिल रही है। यूपीए सरकार के दौरान
‘हमारा उद्देश्य किसानों का सशक्तिकरण करना है। हम कृषि उत्पादन में बढ़ोत्तरी और गोदामों की मरम्मत करना चाहते हैं। हम उन योजनाओं में निवेश कर रहे हैं, जिनका उद्देश्य किसानों की आय बढ़ाना है। यह उस प्रक्रिया का हिस्सा है जिसके दूरगामी परिणाम आने हैं’ -राधा मोहन सिंह
मंत्रालय द्वारा किया जाने वाला खर्च अधिकतर बजटीय प्रावधानों से कम रहता था। उदाहरण के लिए वर्ष 2013-14 में बजटीय प्रावधान 30,224 करोड़ रुपए था। तीन साल पुरानी राजग सरकार ने 45,035 करोड़ रुपए का आवंटन किया, जिसे बाद में बढ़ाकर 57,503 करोड़ रुपए कर दिया गया। खेती को आकर्षक बनाने के लिए कृषि मंत्रालय की पहल जारी है। बीते 16 जून को बीज कंपनियों ने कपास को छोड़ खरीफ सीजन की बाकी सभी फसलों के हाइब्रिड बीज के मूल्य में दस फीसदी कटौती करने पर राजी हो गई है। इसके तहत किसानों को मक्का, धान, बाजरा, सरसों और सब्जियों का हाइब्रिड बीज एमआरपी से कम कीमत पर उपलब्ध होगा। हाइब्रिड बीज फसल के दो प्रजातियों को मिलाकर एक उन्नत किस्म की प्रजाति का पौधा या फसल तैयार करता है। इससे बेहतरीन गुणवत्ता वाले फसल तैयार होते हैं। सरकारी कोशिश और उत्पादन के क्षेत्र से मिल रहे उछाल भरे आंकड़ो के बीच मौजूदा दौर किसान आंदोलनों का है। खेती के प्रति निरंतर मोह घटता जा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक कई किसान खेती छोड़कर मजदूरी के लिए शहर का रुख कर रहे हैं। देश में 77 प्रतिशत किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम जमीन हैं। मात्र 45 प्रतिशत जमीन को ही सिंचित किया जा सका है। 55 प्रतिशत जमीन पर आज भी मॉनसून के भरोसे ही खेती हो पा रही है। सरकार के तीन साल की उपलब्धियां गिनाते हुए प्रधानमंत्री ने साफ कहा कि ऋण माफ करने से किसानों की समस्याएं खत्म नहीं होंगी। इसीलिए सरकार का ध्यान कृषि वस्तुओं की कीमतें कम करने तथा किसानों को सुविधाएं प्रदान करने पर है। उत्तर प्रदेश द्वारा छोटे तथा सीमांत किसानों के एक लाख रुपए तक के ऋण माफ करने के बाद सभी प्रदेशों से किसानों के ऋण माफ करने की मांग उठने लगी है। इस सब के बीच केंद्र सरकार ने सारंगी समिति की सिफारिशों को लागू करने का मन बनाया है। सिफारिशें लागू हुईं तो तीन लाख रुपए से ज्यादा कर्ज लेने वाले किसानों का ब्याज में रियायतें नहीं दी सकेंगी। इसके तहत बड़े किसानों को बैंकों से रियायती ऋण नहीं मिल पाएगा।
3 - 9 जुलाई 2017
हिंदी सेवियों का सम्मान
सम्मान
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सम्मान केंद्रीय हिंदी संस्थान
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने वरिष्ठ पत्रकार बलदेव भाई शर्मा और राहुल देव सहित 26 हिंदी-सेवियों को सम्मानित किया 1
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डॉ. अशोक कुमार ज्याेति
ष्ट्रपति भवन में माननीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने केंद्रीय हिंदी संस्थान, मानव संसाधन विकास मंत्रालय-भारत सरकार की ओर से 26 हिंदी सेवियों को 2015 के लिए सम्मानित किया। इस अवसर पर माननीय केंद्रीय मानव विकास संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडे़कर, केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ. कमल किशोर गोयनका एवं संस्थान के निदेशक डॉ. नंदकिशोर पांडेय सहित अनेक गणमान्य जन उपस्थित थे। इस मौके पर हिंदी के प्रचार-प्रसार और हिंदीप्रशिक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए प्रो. एस. शेषारत्नम्, डॉ. एम. गोविंदराजन, प्रो. हरमहेंद्र सिंह बेदी और प्रो. एच. सुवदनी देवी को ‘गंगाशरण सिंह पुरस्कार’ दिया गया। हिंदी पत्रकारिता तथा जनसंचार के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए बलदेव भाई शर्मा और राहुल देव को ‘गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार’, विज्ञान, चिकित्सा-विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों के लिए डॉ. गिरीश चंद्र सक्सेना और डॉ. फणिभूषण दास को ‘आत्माराम पुरस्कार’, सावर्जनात्मक एवं आलोचनात्मक क्षेत्र में लेखन के लिए प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित और चंद्रकांता को ‘सुब्रह्मण्य भारती पुरस्कार’ दिया गया। हिंदी माध्यम से ज्ञान के विविध क्षेत्र, पर्यटन एवं पर्यावरण से संबद्ध किसी भी क्षेत्र में
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मौलिक अनुसंधान के लिए चित्रा मुद्गल और डॉ. जयप्रकाश कर्दम को ‘महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार’, विदेशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार एवं लेखन में उल्लेखनीय कार्य के लिए प्रो. फुजिइ ताकेशी (जापान) और विदेशी विद्वानों-प्रो गब्रिएला निक इलिएवा (अमेरिका) को ‘डॉ. जॉर्ज ग्रियर्सन पुरस्कार’, विदेशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार एवं लेखन में उल्लेखनीय कार्य के लिए दो अप्रवासी भारतीय- डॉ. पुष्पिता अवस्थी (नीदरलैंड) और पद्मेश गुप्त (लंदन) को ‘पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार’, कृषि-विज्ञान एवं राष्ट्रीय एकता के क्षेत्र में उल्लेखनीय लेखन कार्य के लिए
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डॉ. बी.आर. छीपा और श्री दयाप्रकाश सिन्हा को ‘सरदार वल्लभ भाई पटेल पुरस्कार’, मानविकी, कला, संस्कृति एवं विचार की भारतीय चिंतनपरंपरा के क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य के लिए डॉ. महेश चंद्र शर्मा और डॉ. राकेश सिन्हा को ‘दीनदयाल उपाध्याय पुरस्कार’, भारतीय विद्या के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए श्री श्रीधर गोविंद पराड़कर और आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव (पटना) को ‘स्वामी विवेकानंद पुरस्कार’, शिक्षाशास्त्र एवं प्रबंधन में हिंदी-माध्यम से लेखन-कार्य के लिए प्रो. नित्यानंद पांडेय और प्रो. जे.पी. सिंघल को ‘पंडित मदन मोहन मालवीय पुरस्कार’, विधि एवं
1. राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी और श्री प्रकाश जावडे़कर के साथ सम्मानित विद्वान 2. राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी से सम्मान प्राप्त करतीं वरिष्ठ लेखिका चंद्रकांता 3. राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी से सम्मान प्राप्त करते वरिष्ठ पत्रकार बलदेव भाई शर्मा
लोक प्रशासन के क्षेत्रों में हिंदी भाषा में उल्लेखनीय कार्य के लिए प्रो. शिवदत्त शर्मा और प्रो. अशोक कुमार शर्मा को ‘राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन पुरस्कार’ दिया गया। पुरस्कृत विद्वानों को केंद्रीय हिंदी संस्थान की ओर से राष्ट्रपति द्वारा पांच लाख रुपए, शॉल तथा प्रशस्ति पत्र प्रदान किए गए। केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा हिंदी सेवी सम्मान योजना की शुरुआत 1989 में हुई थी। 2014 तक 7 अलग-अलग पुरस्कारश्रेणियों के अंतर्गत प्रतिवर्ष 14 हिंदी सेवियों को सम्मानित किया जाता था। 2015 से 12 पुरस्कारश्रेणियां बनाई गईं। 1989 से 2014 तक ‘गंगाशरण सिंह पुरस्कार’ से 119, ‘गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार’ से 59, ‘आत्माराम पुरस्कार’ से 57, ‘सुब्रह्मण्य भारती पुरस्कार’ से 60, ‘महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार’ से 44, ‘डॉ. जॉर्ज ग्रियर्सन पुरस्कार’ से 22 तथा ‘पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार’ से 13 विद्वानों को सम्मानित किया जा चुका है। इस प्रकार अब तक विभिन्न श्रेणियों में कुल 374 विद्वान् पुरस्कृत किए जा चुके हैं।
24 स्वच्छता
3 - 9 जुलाई 2017
स्वच्छता झारखंड
सरकारी कर्मियों को दिखाना होगा शौचालय का प्रमाण पत्र
झारखंड में सरकारी कर्मियों, पेंशनधारियों और सरकारी विभाग में मानदेय पर काम करने वाले कर्मियों को अपने घर में शौचालय होने का प्रमाण पत्र देना होगा, तभी उन्हें वेतन मिलेगा
मिशन के तहत झारखंड में स्व च्छसरकारीभारत कर्मियों , पेंशनधारियों और
सरकारी विभाग में मानदेय पर काम करने वाले कर्मियों को अपने घर में शौचालय होने का प्रमाण पत्र देना होगा, तभी उन्हें वेतन मिलेगा। सभी को शौचालय का फोटो अपलोड कर ट्रेजरी को देना होगा। ऐसा नहीं करने पर ना वेतन मिलेगा और ना ही पेंशन और मानदेय। यह जानकारी पेयजल स्वच्छता विभाग के प्रधान सचिव अमरेंद्र प्रताप सिंह ने दी। विभाग के प्रधान सचिव ने को शहरी ग्रामीण जलापूर्ति योजना स्वच्छ भारत मिशन के शौचालय निर्माण की समीक्षा की। जिला परिषद सभागार में आयोजित इस समीक्षा बैठक में प्रधान सचिव ने बताया कि जिले के कुमारडुंगी, तांतनगर, झींकपानी और चाईबासा ओडीएफ हो गया है, लेकिन इसका क्लीयरेंस नहीं मिला है। बेसलाइन सर्वे के बाद ही इन प्रखंडों को ओडीएफ का क्लीयरेंस मिल पाएगा। हालांकि स्लीप बैक शौचालय इसकी श्रेणी में नहीं आता है। उन्होंने कहा कि शौचालय निर्माण में गड़बड़ी हुई है। लिहाजा अब शौचालय बनाने का काम लाभुक खुद कराएंगे। इस काम की देखभाल विभाग के अधिकारी संबंधित प्रखंड बीडीओ और सुपरवाइजर करेंगे। उन्होंने कहा कि शौचालय निर्माण के लिए व्यापक रूप से गांवों में प्रचार प्रसार का अभियान चलाया जाएगा। साथ ही मुंडा सम्मेलन भरी कराया जाएगा। विभाग के पदाधिकारी खुद क्षेत्र में जाकर शौचालय निर्माण का जांच करेंगे। उन्होंने बताया कि दो माह में पूरे जिले को ओडीएफ करने का निर्देश दिया गया है।
ओवरब्रिज के पास होगी जैक पुशिंग
उन्होंने विभाग के कार्यपालक अभियंता सुनील कुमार को शहरी जलापूर्ति योजना के काम में तेजी लाने का
निर्देश दिया। साथ ही रेलवे ओवरब्रिज के उस पार जलापूर्ति करने के लिए जैक पुशिंग का काम कराने को कहा। इसके लिए रेलवे ट्रैक की दोनों ओर 1515 फीट का गड्ढा खोदना होगा। इसके बाद ही जैक लगाकर पाइप को पुश करना होगा। उपायुक्त अरवा राजकमल ने कहा कि ग्रामीण जलापूर्ति योजना के तहत 181 योजनाओं में गड़बड़ी की बात सामने आई है। इसकी जांच भी कराई गई थी। उन्होंने कहा कि जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई की जाएगी।
संवेदक की लापरवाही से समय पर पूरा नहीं हुआ काम
शहरीजलापूर्ति योजना के संवेदक की लापरवाही के कारण यह योजना एक साल से लंबित है। राज्य में अब इस संवेदक को काम नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा कि चाईबासा में दशहरे के पहले एक वाटर टावर काम करने लगेगा। वहीं दिसंबर तक दूसरा वाटर टावर भी पूर्ण करा लिया जाएगा। शौचालयों का निर्माण अब डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड से कराया जाएगा। इस फंड से हर प्रखंड में शौचालय प्याऊ बनाया जाएगा। इसकी देखरेख विभाग के कार्यपालक अभियंता करेंगे। उन्होंने कहा कि लोग खुद शौचालय बनाएं। (भाषा)
स्वच्छता झारखंड
किसी ने कर्ज तो किसी ने जेवर बेचकर बनाया शौचालय धनबाद के चार परिवारों के शौचालय बनाने की कहानी अब पूरे राज्य के लोगों को बताने की तैयारी
रैंकिंग में देश में निचले पायदान स्व च्छता पर रहने वाला धनबाद स्वच्छता में अब
झारखंड को राह दिखा रहा है। यहां के चार परिवारों के शौचालय बनाने की कहानी अब पूरे राज्य को बताई जाएगी। इनमें किसी ने जेवर बेचकर तो किसी ने ब्याज पर कर्ज लेकर शौचालय बनवाया है। झारखंड में स्वच्छता अभियान के प्रचारप्रसार के लिए अब इन परिवारों को प्रेरक के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा। झारखंड सरकार के नगर विकास विभाग ने राज्य के नौ परिवरों का चयन किया है, जिन्होंने सरकारी सहायता के साथ-साथ खुद के पैसे लगाकर बेहतर शौचालय का निर्माण कराया। इनकी कहानी को पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया गया है।
कर्ज लेकर मीना देवी ने बनाया शौचालय
धनबाद के वार्ड नंबर 28 की मल्लिक बस्ती में रहने वाली मीना देवी का परिवार दूसरे की जमीन पर जाकर खुले में शौच करता था। शौचालय नहीं होने की वजह से घर में मेहमान नहीं आना चाहते थे। एक दिन मीना देवी को शौचालय निर्माण की सरकारी योजना की जानकारी मिली। उन्होंने आवेदन देकर सरकार से मिलने वाल राशि ली, लेकिन इससे बेहतर शौचालय बनाना संभव नहीं था। मीना देवी ने बताया कि उन्होंने अपने परिचतों से ब्याज पर पैसे उधार लिए और शौचालय निर्माण पूरा किया। बहू-बेटी को अब शौच के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता है और न ही अंधेरा होने का इंतजार करना पड़ता।
स्वच्छता महाराष्ट्र
लातूर जिला लक्ष्य प्राप्ति की ओर खु
31 मार्च, 2018 तक 90 हजार शौचालयों के निर्माण का कार्य पूरा किया जाएगा
ले में शौच मुक्त करने की कोशिश में लगा लातूर जिला प्रशासन स्वच्छ भारत अभियान को शत-प्रतिशत सफल करने की कोशिश में जुट गया है। उसने तय किया है कि 31 मार्च, 2018 तक अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा। इस अवधि तक 90 हजार शौचालयों के निर्माण का कार्य पूरा कर लिया जाएगा। प्रशासन ने लोगों के बीच जागृति लाने के
हर संभव उपाय कर रहा है। बड़ी संख्या में लोक और नाट्य कलाकार गांव-गांव घूमकर अपने कलाकर्मों के माध्यम से लोगों को स्वच्छता का संदेश दे रहे हैं। उन्हें समझाया जा रहा है कि खुले में शौच जाने से क्या-क्या नुकसान होता है। शौचालय से कैसे आरोग्य रहा जा सकता है। उन्हें गली-मोहल्ले को साफ-सुथरा रखने की जिम्मेदारी का भी भान
कराया जा रहा है। जो लोग इस सबके बावजूद शौच के लिए बाहर जाने की जिद में रहते हैं, उन्हें गांव
शादी में मिली बाली बेच बनाया शौचालय
धनबाद की ही चिरकुंडा नगर पंचायत में रहने वाली सुलोचना बाउरी के घर भी शौचालय नहीं था। वह दूसरे के घरों में काम करती है। आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं कि वह शौचालय बनवा सके। नगर पंचायत से शौचालय बनाने की सूचना मिलने पर उसने आवेदन दिया। लेकिन सरकार से मिलने वाली अनुदान की राशि के अतिरिक्त पैसों की जरूरत थी। ऐसे में अपनी शादी में मिली कान की बाली बेच दी और शौचालय का निर्माण कराया। (भाषा)
के जागरूक लोग गुड मॉर्निंग कहकर पहले रोकते और समझाते हैं और फिर गुलदस्ता देकर मनाते हैं। इसका असर भी हो रहा है। जिला परिषद् के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. माणिक गुरसल को विश्वास है कि आज नहीं तो कल लोग स्वच्छता अभियान के महत्व को समझेंगे। लातूर जिले में 783 ग्राम पंचायत हैं, जिनमें से 390 पंचायतों में अभी तक शौचालयों के निर्माण का काम पूरा हो चुका है। बाकी में काम तेजी से चल रहा है। स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत प्रशासन की तरफ से शौचालय बनाने के लिए बारह हजार रुपए की सहायता दी जा रही है। (मुंबई ब्यूरो)
3 - 9 जुलाई 2017
एचआरटीसी के तय ढाबों में अगर यात्रियों को शौचालय और स्वच्छ पानी की सुविधा नहीं मिलेगी तो संबंधित ढाबों का लाइसेंस होगा रद्द
प्रदेश के हमीरपुर में हिमाचल एचआरटीसी के तय ढाबों में अगर
यात्रियों को शौचालय और स्वच्छ पानी की सुविधा नहीं मिलेगी तो निगम प्रबंधन संबंधित ढाबों को ब्लैकलिस्ट कर इनका लाइसेंस रद्द कर देगा। खाने के मनमाने दाम वसूलने वालों पर भी निगम प्रबंधन कार्रवाई करेगा। यात्रियों की शिकायतों के चलते प्रबंधन ने संबंधित ढाबा मालिकों को नोटिस भेजने का निर्णय लिया है। शिकायतों के चलते निगम प्रबंधन ने राजीव थाली योजना शुरू की है। राजीव थाली योजना 12 जगहों पर शुरू की गई है। यहां 25 रुपए में यात्रियों को खाना परोसा जा रहा है। इससे प्रदेश में मनमानी करने वाले ढाबा मालिकों पर शिकंजा तो कस गया है, लेकिन निगम के तय ढाबों में अभी भी यात्रियों से खाने के मनमाने दाम वसूले जा रहे हैं। यात्रियों को शौचालय और स्वच्छ पानी की सुविधा नहीं मिल रही है। यात्रियों की शिकायतों पर निगम प्रबंधन ने उन सभी ढाबों का लाइसेंस रद्द कर ब्लैकलिस्ट करने का निर्णय लिया है, जो यात्रियों से खाने के मनमाने दाम वसूल रहे हैं। साथ ही यात्रियों के लिए शौचालय और स्वच्छ पानी की सुविधा उपलब्ध नहीं करवा रहे हैं। परिवहन मंत्री जीएस बाली का कहना है कि बिना शौचालय और स्वच्छ पानी उपलब्ध न करवाने वाले ढाबा मालिकों के लाइसेंस जल्द ही रद्द होंगे। खाने के मनमाने दाम वसूलने वालों पर भी जांच के आधार पर कार्रवाई होगी। (भाषा)
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स्वच्छता जागरुकता
स्वच्छता हिमाचल
ढाबों में शौचालय नहीं तो रद्द होगा लाइसेंस
स्वच्छता
स्वच्छता के बारे में जागरुकता फैलाएगी
मिस इंडिया वर्ल्ड
मिस इंडिया वर्ल्ड का खिताब जीतने वाली मानुषी छिल्लर मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता को लेकर महिलाओं में जागरुकता फैलाना चाहती हैं
मि
स इंडिया वर्ल्ड का खिताब जीतने वाली और चिकित्सा विज्ञान में अध्ययनरत 20 वर्षीय मानुषी छिल्लर का पूरा ध्यान अब भारत के लिए मिस वर्ल्ड खिताब जीतने पर है, लेकिन अपने निजी जीवन के उद्देश्य के बारे में छिल्लर का कहना है कि वह अपनी ‘शक्ति परियोजना’ के जरिए मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता को लेकर महिलाओं में जागरुकता फैलाना चाहती हैं। मानुषी ने इस खिताब के साथ आने वाली सामाजिक जिम्मेदारी के बारे में बात करते हुए बताया, ‘एक व्यक्ति के तौर पर मुझे हमेशा से अपने देश और शेष दुनिया में मासिक धर्म को लेकर लचर देखरेख परेशान करता रहा है। यह एक ऐसा काम है, जिसे मैं आगे बढ़ाना चाहूंगी।’ उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है कि इस संबंध में हर महिला को जागरूक बनाना आधारभूत तौर पर जरूरी है। मैंने ‘शक्ति परियोजना’ नाम से एक कार्यक्रम शुरू किया है, जिसके जरिए मैं मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में महिलाओं को जागरूक कर रही हूं, क्योंकि इस मुद्दे को मैं बेहद जरूरी समझती हूं।’ मानुषी को मुंबई के यशराज स्टूडियो में आयोजित 54वें फेमिना मिस इंडिया-2017 की विजेता घोषित किया गया। जम्मू-कश्मीर की सना दुआ दूसरे और बिहार की प्रियंका कुमारी तीसरे स्थान पर रहीं। मानुषी के मुताबिक, ‘मैं खुशकिस्मत हूं क्योंकि
कभी भी मुझे बैठकर अपने माता-पिता को बताना नहीं पड़ा कि मैं क्या करना चाहती हूं। वे बस मेरी प्रतिभा पर नजर रखते थे। वे जानते थे कि मैं क्या चाहती हूं।’ बचपन से ही वे मुझसे कहते थे, ‘कुछ भी करने की कोई सीमा नहीं होती, अपने सपनों को पूरा करने के लिए साहसी बनो। मेरे साथ बस ऐसा ही हुआ, मुझे कभी भी नहीं लगा कि मैं ऐसा नहीं कर सकती। इसीलिए यह सोच मेरे लिए अच्छी साबित हुई।’
मॉडलिंग की दुनिया उनके परिवार के लिए नई है। उन्होंने बताया कि वह ऐसे परिवार से आती हैं। जहां लोग शिक्षा में भरोसा करते हैं और वे मनोरंजन उद्योग या सौंदर्य प्रतियोगिता में कदम नहीं रखते। अपने परिवार और दोस्तों में मॉडलिंग की दुनिया में आने वाली वह पहली शख्स हैं। मानुषी जहां चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई कर रही हैं, वहीं उनकी बहन कानून की पढ़ाई कर रही हैं और उनका छोटा भाई अभी स्कूल में है। (एजेंसी)
झारखंड विकास
मयुराक्षी नदी पर बनेगा झारखंड का सबसे लंबा पुल
पुल के बन जाने से जिले की एक बड़ी आबादी दुमका शहर के 14-15 किलोमीटर नजदीक आ जाएगी
झा
रखंड में रघुवरदास सरकार बेहतर परिवहन व्यवस्था के लिए कई पहल कर रही है।
इसके तहत राज्य की उप राजधानी दुमका में मयुराक्षी नदी पर अब सूबे का सबसे लंबा पुल बनेगा। शहर से सटे दुमका एयरपोर्ट-चकलता पथ पर मुड़ाबहाल से आगे कुमड़ाबाद तथा मसलिया के सीतपहाड़ी मोड़ में सिंगरी-हरको पथ को जोड़ने वाला यह पुल मसलिया के मकरमपुर को जोड़ेगा। इस उच्च स्तरीय पुल के बन जाने से जिले की एक बड़ी आबादी दुमका शहर के 14-15 किलोमीटर नजदीक आ जाएगी। फिलवक्त मकरमपुर से दुमका जिला मुख्यालय की दूरी 30 किलोमीटर से भी अधिक है। अभी दुमका शहर आने के लिए
मकरमपुर के आसपास के दर्जनों पंचायतों के ग्रामीणों को कुमड़ाबाद के रास्ते आसनसोलचकलता रोड से एयरपोर्ट होते हुए आना पड़ता है, पर पुल बन जाने से ऐसे लोग सीधे मकरमपुर से कुमड़ाबाद होते हुए दुमका आसानी से पहुंच पाएंगे। झारखंड सरकार की योजना प्राधिकृत समिति ने गुरुवार को रांची में इस योजना को मंजूरी दे दी है। विकास आयुक्त अमित खरे की अध्यक्षता में हुई उक्त बैठक में इस प्रोजेक्ट के लिए 208.11 करोड़ रुपए की मंजूरी दी गई है। पहुंच पथ सहित 2.800 किलोमीटर लंबे इस पुल की चौड़ाई 16 मीटर होगी। (भाषा)
26 गुड न्यूज
3 - 9 जुलाई 2017
महाराष्ट्र मिसाल
70 साल की साइकिल सवार
बुलढाणा जिले की सत्तर वर्षीय महिला रेखा जोगेलकर साइकिल से पिछले दो साल में चार हजार किलोमीटर की दूरी तय कर चुकी हैं
आ
दमी में अगर जूनून हो तो उम्र कभी आड़े नहीं आती है। यह साबित किया महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के खामगांव की एक सत्तर वर्षीय महिला रेखा जोगेलकर ने। वह साइकिल पर सवार
होकर देश की यात्रा कर रही हैं। पिछले दो साल में इन्होंने चार हजार किलोमीटर का सफर तय किया है। वैष्णोदेवी के बाद इस साल केदारनाथ के दर्शन करना चाहती हैं। एमए. बीएड. तक की पढ़ाई
रेखा जोगेलकर आज नई कर चुकी रेखा जोगेलकर ने तीस साल तक जिला परिषद की लड़कियों के लिए आज सुनीता की दरभंगा उम्र की सेवा की। वहां से रिटायर प्रेरणा बन गयी हैं। यह साबित होने के बाद उन्हें लगा कि कुछ में 'नारी शक्ति' के रूप कर रही हैं कि अगर मन में ऐसा करना चाहिए जो जीवन में पहचान होने लगी जिद और साहस हो तो कुछ भर याद रहे और कुछ मिसाल है। कई महिला मजदूर भी किया जा सकता है। अब भी कायम कर सके। उनके साथ काम कर उनकी यात्रा की तीसरा साल उनके मन में भारत यात्रा राज मिस्त्री का काम शुरू हो रहा है। उनका कहना करने का विचार आया। वह है कि जब तक शरीर साथ चाहती तो ट्रेन और हवाई सीख रही हैं देगा, वह इसी तरह घूमती जहाज या कार से भी जा रहेंगी। दो साल की यात्रा सकती थीं, लेकिन उन्होंने पूरी कर जब वह पिछले दिनों साइकिल को चुना। इसके पीछे यह सोच बनी कि अपने गां व पहुंची तो स्थानीय लोगों ने समारोह इससे हर दिन देश को नजदीक से जानने-समझने का मौका मिलेगा। इसके साथ ही लोगों से संवाद के साथ स्वागत किया। इससे वह काफी स्थापित कर पाएंगी। इसमें वह सफल हुईं और उत्साहित हैं। उन्होंने सभी को बताया कि देश दर्शन उन्होंने कई प्रदेशों की रास्ता तय किया। जहां रात कितना जरुरी है। हर जगह की बोल-चाल, भाषा, हुई, वहीं अपना ठिकाना बना लिया। हर जगह संस्कृति, खान-पान का आनंद तो मिला ही, गांवलोगों ने सहयोग दिया। अगर कहीं दिक्कत भी हुई समाज को देखने-परखने-समझने का मौका भी तो उसे भी इंज्वाई किया। मिला। (मुंबई ब्यूरो)
स्वास्थ्य अध्ययन
दफ्तरी तनाव से लगती है ज्यादा भूख रात में अच्छी नींद आपको कार्यस्थल के तनाव और शाम को अस्वस्थ करने वाले भोजन से बचा सकती है
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र्यस्थल पर होने वाले तनाव का व्यक्ति के स्वास्थ्य पर तो कई तरह का फर्क पड़ता ही है, इससे उसकी पसंद-नापसंद भी काफी बदल जाती है। आप अपने कार्यस्थल पर तनाव में रहते हैं, तो यह आपको रात में ज्यादा खाने या जंक फूड लेने के लिए प्रेरित कर सकता है। यह स्थिति आपकी सेहत के लिए घातक हो सकती है। एक नया शोध बताता है कि रात में अच्छी नींद आपको कार्यस्थल के तनाव और शाम को अस्वस्थ करने वाले भोजन से बचा सकती है। अमेरिका में मिशीगन राज्य विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर और इस अध्ययन की सह लेखिका चू-सीयांग चांग ने कहा, ‘हमने पाया है कि जिन कर्मचारियों का कार्यस्थल का दिन तनावभरा रहता है, वे कार्यस्थल की अपनी नकारात्मक भावनाओं को खाने की मेज पर लाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि वे सामान्य से ज्यादा भोजन करते हैं और स्वस्थ्य भोजन की बजाय जंक फूड लेना ज्यादा पसंद करते हैं।’शोध का निष्कर्ष
जर्नल ऑफ एप्लाइड साइकोलॉजी में ऑनलाइन प्रकाशित हुआ है। इसके लिए चीन में 235 कर्मियों के दो अलग-अलग अध्ययन हुए हैं। एक अध्ययन सूचना प्रौद्योगिकी से संबंध कर्मचारियों का है, जिनका रोजाना उच्चस्तर के भारी काम से सामना होता है और जो महसूस करते हैं कि उनके पास कार्यस्थल में कभी पर्याप्त समय नहीं रहता है। दूसरा शोध कॉल सेंटरों के कर्मचारियों से संबंधित है, जो तरह-तरह के ग्राहकों से बातचीत करते-करते अक्सर तनाव में आ जाते हैं। अमेरिका में इलिनोइस विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर और शोध रिपोर्ट के सह लेखक इहाओ लिउ ने कहा, ‘दोनों ही मामलों में, कार्यस्थल पर तनाव नौकरी के दौरान कर्मचारियों के नकारात्मक व्यवहार से जुड़ा हुआ है और शाम को अस्वास्थ्यकर भोजन में रुचि से जुड़ा है।’ लिउ ने कहा, ‘समय-समय पर भोजन लेना किसी व्यक्ति के नकारात्मक व्यवहार को शांत और नियंत्रित करने की गतिविधि के रूप में कार्य करता है, क्योंकि व्यक्ति प्रतिकूल भावनाओं से बचने का
प्रयास करते हैं और इच्छित भावनाओं को स्वीकार करना पसंद करते हैं।’ लिउ के मुताबिक, ‘अस्वास्थ्यकर भोजन आत्मविश्वास के कम होने का एक कारण हो सकता है। जब भारी काम के कारण तनावपूर्ण भावनाएं आती हैं, तब व्यक्ति सामान्य रूप से अपनी बुद्धि और व्यवहारों में प्रभावी नियंत्रण नहीं रख पाते, जोकि व्यक्ति के लक्ष्यों और सामाजिक मूल्यों से जुड़े होते हैं।’ चांग ने इस बात को
रेखांकित किया कि भरपूर नींद लेना अस्वास्थ्यकर भोजन करने, जो कि कार्यस्थल के तनाव के कारण होता है, से बचाने में मदद करता है। यह ये भी बताता है कि कैसे इससे स्वस्थ व्यवहार जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा, ‘रात में अच्छी नींद कर्मियों को दोबारा तरोताजा बनाती है, जो उन्हें अगले दिन कार्यस्थल पर तनाव से निपटने में मदद करती है और वे अस्वास्थ्यकर भोजन करने से बचाती है।’ (आईएएनएस)
3 - 9 जुलाई 2017
शिक्षा
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वंचित बच्चों का संवारता भविष्य आदिवासी शिक्षा
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अनुसूचित जनजाति के छात्रों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए केंद्र सरकार की योजना एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय एक मिसाल बन गई है
दिवासियों को देश की मुख्यधारा जोड़ना और उन्हें शिक्षित करना सरकारों के लिए हमेशा से बड़ी चुनौती रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 10.02 करोड़ से अधिक आबादी यानी देश की जनसंख्या का 8.6 फीसदी हिस्सा अनुसूचित जनजातियों का है। लेकिन साक्षरता की दृष्टि से यह तबका देश की प्रगति के साथ कदमताल नहीं कर पा रहा है। आजादी के इतने सालों बाद भी देश में शिक्षा के स्तर में सुधार के लिए उठाए गए कारगर कदमों के बावजूद सामान्य आबादी की तुलना में सामाजिक रूप से वंचित जनजातीय समुदायों के बीच शिक्षा के स्तर में बहुत अधिक अंतर बना हुआ है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजाति का साक्षरता प्रतिशत 47.10 था, जो वर्ष 2011 की जनगणना में बढ़कर 58.96 हो गया। इसके बावजूद यह देश की औसत साक्षरता दर 72.99 प्रतिशत से काफी पीछे है। सरकार, शिक्षा और विभिन्न प्रयासों के माध्यम से इस अंतर को पाटने का प्रयास कर रही है। अनुसूचित जनजाति के छात्रों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए केंद्र सरकार की योजना एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय (ईएमआर स्कूल) एक मिसाल बन गई है। इन विद्यालयों के छात्र और छात्राएं न केवल प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफल हो रहे हैं, बल्कि छात्राएं अभिजात्य मानी जाने वाली सौंदर्य प्रतियोगिताएं भी जीत रही हैं। अनुसूचित जनजाति के बच्चों को बेहतर शिक्षा मुहैया कराने के लिए ईएमआर स्कूलों के दिशा निर्देश 1997-98 में जारी किए गए थे और पहला स्कूल वर्ष 2000 में महाराष्ट्र में खुला था। विगत 17 वर्षों में कुल 259 स्कूलों की स्वीकृति जारी हुई है, जिसमें से 72 स्कूल विगत तीन सालों में स्वीकृत किए गए हैं। विद्यालयों की स्वीकृति के बावजूद भी जमीन आवंटन, भवन निर्माण व अन्य कार्यों के लंबित होने से इन विघालयों में पढाई शुरू नहीं हो पा रही थी। लेकिन मौजूदा सरकार ने सक्रियता दिखाते हुए महज तीन सालों में 50 से अधिक विद्यालयों में अध्ययन शुरू करवाया है। वर्ष 2013 14 में क्रियाशील ईएमआर की संख्या 110 थी, जो अब बढ़कर 161 हो गई है। इन विद्यालयों में लगभग 52 हजार बच्चों का नामांकन कराया गया था। यानी प्रत्येक स्कूल में लगभग 322 बच्चे। महज तीन वर्षों में ईएमआर स्कूलों को क्रियाशील करने की दिशा में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखा जा रहा है। यही नहीं, इन स्कूलों के परीक्षा परिणाम भी राज्यों में चल रहे दूसरे सरकारी स्कूलों की तुलना में अच्छे आए हैं। इन स्कूलों से पास होने वाले विद्यार्थियों की संख्या 90 फीसदी से अधिक रही है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान सरकार ने साक्षरता तथा शिक्षा के स्तर में सुधार लाने के लिए कई कदम उठाए हैं। उनमें कुछ में तो काफी प्रगति भी देखी गई है, लेकिन वंचित समुदाय और जनजातीय समुदायों की शिक्षा में अपेक्षित प्रगति नहीं होना देश के विकास में बाधा बनी हुई है। ऐसे में, केंद्र सरकार द्वारा चलाई
एक नजर
महाराष्ट्र में 17 वर्षों में कुल 259 स्कूलों की मिली स्वीकृति
महज तीन साल में शुरू हुए 50 से ज्यादा स्कूल
इन स्कूलों के 90 प्रतिशत छात्र हो रहे हैं परीक्षा में सफल
जा रही एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय योजना वंचित समुदाय के विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में अहम भूमिका निभा रही है। खेलकूद से लेकर इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा तक में इन विद्यालयों के विद्यार्थी अव्वल होते देखे जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल रायपुर में फरवरी 2017 को घोषित हाई स्कूल सर्टिफिकेट परीक्षा परिणाम में एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय (पार्रीनाला) राजनांदगांव के विद्यार्थियों का परिणाम शत प्रतिशत रहा। छत्तीसगढ़ नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में गिना जाता है और यहां शिक्षा का स्तर काफी पीछे है। जनजातीय इलाकों में विद्यालयों की दूरी, घर में सुविधाओं एवं पैसों का अभाव जैसे कई कारणों के चलते बच्चे या तो विद्यालय नहीं जाते या फिर प्राथमिक शिक्षा के बाद पढाई छोड देते हैं। ऐसी परिस्थितियों में लक्षित समूह तक शिक्षा को पहुंचाने के लिए एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय योजना वरदान साबित हो रही है। एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय योजना ने बालिकाओं की शिक्षा के लिए भी नए आयाम खोले हैं। पिछले दिनों एक आदिवासी युवती रिंकी चक्मा, एफबीबी कलर्स फेमिना मिस इंडिया त्रिपुरा 2017 चुनी गयीं। रिंकी एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय की छात्रा रही हैं। फिलहाल रिंकी इग्नू से समाजशास्त्र में स्नातक पाठयक्रम कर रही हैं। गैंगटोक के एक ईएमआरएस स्कूल से बास्केटबॉल खेलने वाली लड़कियों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी धमक जमाकर पूरे देश को चौंका दिया है। ये सभी
लड़कियां दिहाड़ी मजदूरों की बेटियां हैं। वर्ष 2010 और 2013 में इन लडकियों ने राष्ट्रीय स्तर के दो टूर्नामेंट भी जीते हैं। इन लड़कियों ने कहा कि अगर हमारा भाग्य हमें ईएमआरएस नहीं लाता तो हम या तो कहीं दिहाड़ी मजदूर होते या फिर हमारी जल्दी शादी कर दी गई होती। सरकार आदिवासी विद्यार्थियों को बेहतरीन शिक्षा देने के लिए वचनबद्ध है। इसी के तहत सरकार ने अनुच्छेद 275(1) के तहत इन विद्यार्थियों के लिए एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय योजना शुरू की। इएमआरएस के लिए जारी किए गए दिशा निर्देशों के अनुसार कम से कम एक इएमआरएस इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवेल्पमेंट एजेंसी और इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवेल्पमेंट प्रोजेक्ट के अंतर्गत सह विद्यालय खोला जाना आवश्यक कर दिया गया है। यानी जिस क्षेत्र की कम से कम 50 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति हो, उस क्षेत्र में यह स्कूल खोलना अनिवार्य कर दिया गया है। 15 एकड़ भूमि में विकसित होने वाले इन विद्यालयों के भवन से लेकर, छात्रावास और स्टाफ क्वार्टर तक बनाने का खर्च लगभग 12 करोड़ आंका गया है। जबकि यह राशि दूरदराज के क्षेत्रों के लिए लगभग 16 करोड़ रुपए रखी गयी है। पहले साल में प्रति विद्यार्थी खर्च 42 हजार रूपए आंका गया है, जबकि दूसरे साल से महंगाई दर को ध्यान में रखकर इसे 10 फीसदी प्रतिवर्ष की दर से बढाने का प्रावधान रखा गया है। सभी बच्चों पर शिक्षक बराबर ध्यान रख सकें, इसीलिए यह नियम बनाया गया है कि हर सेक्शन में सिर्फ 30 बच्चे ही
महज तीन वर्षों में ईएमआर स्कूलों को क्रियाशील करने की दिशा में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखा जा रहा है। यही नहीं, इन स्कूलों के परीक्षा परिणाम भी राज्यों में चल रहे दूसरे सरकारी स्कूलों की तुलना में अच्छे आए हैं
रखे जाएं। कक्षा छह से नौ तक प्रत्येक कक्षा में दो सेक्शन होंगे। वहीं 10 से 12 वीं तक की कक्षाओं को तीन सेक्शनों में विभाजित किया जाएगा। इन विघालयों में शिक्षकों और कर्मचारियों की बहाली राज्य सरकार द्वारा किये जाने का प्रावधान है। इन विद्यालयों में स्कूल भवन के साथ छात्रावास, स्टाफ क्वार्टर, बच्चों के खेलने के लिए मैदान समेत हर आधुनिक सुख सुविधा मुहैया कराए जाने का प्रावधान है। इस पूरी योजना का मुख्य उददेश्य छात्रों को उनकी रूचि का वातावरण उपलब्ध कराना है। इन स्कूलों में विद्यार्थियों की शिक्षा, खान पान के साथ साथ कंप्यूटर की शिक्षा भी मुफ्त प्रदान की जाती है। देश के आदिवासी बच्चों तक बेहतरीन शिक्षा पहुंचाने के लिए आने वाले पांच सालों में सरकार की ऐसे सभी 672 उपखंडों में ईएमआरएस की सुविधा उपलब्ध कराने की योजना है, जहां अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 50 फीसदी से अधिक है। अभी भी 585 नए ईएमआरएस की जरूरत है। हालांकि जिस गति से केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय राज्य सरकार को ईएमआरएस खोलने की स्वीकृति जारी कर रहा है, उस गति से राज्य सरकारें उन विद्यालयों को जल्द से जल्द क्रियाशील बनाने में सक्रियता नहीं दिखा रही है। इसी कारण, आंध्रप्रदेश में 14 विद्यालयों की स्वीकृति के बावजूद केवल चार विघालय क्रियाशील हैं। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में 25 के मुकाबले 13, झारखंड में 19 के मुकाबले केवल चार और उड़़ीसा में 27 के मुकाबले महज 13 विद्यालय क्रियाशील हैं। दूसरी ओर, कुछ राज्यों की प्रगति बेहतरीन है। महाराष्ट्र में सभी 16 स्वीकृत विद्यालय क्रियाशील हैं। मध्य प्रदेश में 29 में से 25 और राजस्थान में 17 में से 15 विद्यालय क्रियाशील है। सरकार की योजना है कि आने वाले दो वर्षों में इन विद्यालयों को क्रियाशील करने में आ रही समस्त बाधाओं को दूर कर सभी स्वीकृत विद्यालयों को क्रियाशील बनाया जाए और साथ ही अगले पांच साल के 672 ईएमआरएस के लक्ष्य को समय पर पूरा किया जाए। इसके लिए केन्द्र का जनजाति मामलों का मंत्रालय राज्यों के साथ निरन्तर मंथन एवं चिंतन कर रहा है, ताकि नए विद्यालायों को धरातल पर उतारने में कोई विलंब न हो और जनजाति क्षेत्रों के बच्चों को बेहतरीन शिक्षा का विकल्प अपने निकटतम स्थल पर मिल सके।
28 जेंडर
3 - 9 जुलाई 2017
बिजली जैसी हौसले वाली प्रेमवती महिला आत्मविश्वास
महिला बिजली मिस्त्री सुनने में थोड़ा हैरान तो करता है, लेकिन लखनऊ की प्रेमवती सोनकर ये काम पिछले चार दशक से कर रही हैं
एक नजर
पति के सहयोग से आया नए क्षेत्र में काम करने का हौसला 300 लोगों को सिखा चुकी हैं बिजली के काम
लड़कियों के लिए बिजली ट्रेनिंग सेंटर खोलने की चाह
पति का सहयोग
प्रेमवती को बचपन से बिजली के झालर और उपकरण आकर्षित करते थे। उनकी भी इच्छा थी कि काश, वो ये काम सीख पातीं। नैनीताल की रहने वाली प्रेमवती की शादी हुई लखनऊ के प्यारेलाल से, जिन्हें बिजली के काम की अच्छी-खासी जानकारी थी। प्यारेलाल लखनऊ में ही जल संस्थान में कर्मचारी थे। शादी के बाद प्रेमवती दिन भर घर पर खाली बैठी रहती थीं। घर के आर्थिक हालात भी ठीक नहीं थे। ऐसे में प्रेमवती ने अपने पति को बिजली के उपकरणों की मरम्मत का सुझाव दिया। दुकान पर एक महिला का बैठना किसी को भी पसंद नहीं आया, लेकिन पति के सहयोग से धीरे-धीरे सब ठीक हो गया। प्यारेलाल ने अलग से एक दुकान खोल ली और प्रेमवती खाली समय में उनका हाथ बंटाने लगीं। पति के हौसले से प्रेमवती के बचपन का शौक कब हुनर की चमक बिखेर गया इसका एहसास उन्हें खुद भी न हुआ। रोटी बेलने वाले हाथ जल्दी ही मोटर की वाइंडिंग और बिजली के दूसरे साजो-सामान बनाने लगे। अब तो उन्हें बिजली के करंट का झटका और रोटी बेलते वक्त हाथ का जलना एक ही जैसा लगता है।
दे
प्रियंका तिवारी
श में महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक तरफ जहां सरकारी-असरकारी स्तर पर प्रयास तेज हुए हैं, वहीं इस दौरान कई महिलाएं रोल मॉडल बनकर उभरी हैं। इन महिलाओं में सबसे दिलचस्प हैं, वैसी महिलाओं की जिंदगी और अनुभव जो ग्रामीण अंचलों में रहती हैं। इनमें से कई तो ऐसी हैं, जिन्होंने उस क्षेत्र में अपना दमखम दिखाया है, जिस क्षेत्र में अब तक सिर्फ पुरुष का ही दबदबा रहा है। यही नहीं, समाज में यह धारणा भी व्याप्त रही कि कामकाज के कुछ क्षेत्र ऐसे हैं,
आसान नहीं था फैसला जिसमें सिर्फ पुरुष ही सफल हो सकते हैं, पर कुछ उत्साही महिलाओं ने इस पूर्वाग्रह को तोड़ा है। ऐसा ही क्षेत्र है बिजली से जुड़े कामकाज का। आमतौर पर जब भी हमारे घरों में किसी बिजली के उपकरण में कोई गड़बड़ी आती है, तो हम इलेक्ट्रीशियन यानी किसी पुरुष बिजली मिस्त्री को बुलाते हैं। यहां हम आपको बताते हैं एक महिला बिजली मिस्त्री के बारे में। महिला बिजली मिस्त्री सुनने में थोड़ा हैरान तो करता है, लेकिन लखनऊ की प्रेमवती सोनकर ये काम पिछले चार दशक से कर रही हैं। सत्तर की उम्र के करीब पहुंचकर भी यह काम वह काफी कुशलता से करती हैं।
प्रेमवती के इस हौसले और बिजली का काम करने की कुशलता देखकर लगता है कि वह पढ़ी-लिखी होंगी, पर वह बिल्कुल भी नहीं हैं। वैसे प्रेमवती के
रोटी बेलने वाले हाथ जल्दी ही मोटर की वाइंडिंग और बिजली के दूसरे साजो-सामान बनाने लगे। अब तो प्रेमवती को बिजली के करंट का झटका और रोटी बेलते वक्त हाथ का जलना एक लगता है
मर्दों के काम वाली मिस्त्री सुनीता दरभंगा की सुनीता मर्दों की बराबरी कर भवन निर्माण क्षेत्र में बतौर राजमिस्त्री का काम कर तीन बच्चों की परवरिश कर रही हैं
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हार ऐसा सूबा है, जहां ग्रामीण महिलाओं की स्थिति आज भी अच्छी नहीं है। अच्छी बात यह है कि अब वहां महिलाएं खुद आगे आ रही हैं उन्होंने अपने उद्यम से महिला सशक्तिकरण की कुंजी खोल रखी हैं। ऐसी ही एक महिला है सुनीता। दरभंगा जिले के ग्रामीण क्षेत्र में नारी शक्ति के रूप में पहचान बना चुकी सुनीता तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद नारी शक्ति का परिचय देते हुए महिलाओं को राह दिखा रही हैं। अपने बच्चों का पालन-पोषण करने के लिए 33 वर्षीया सुनीता न केवल पुरुष वर्चस्व वाले भवन निर्माण क्षेत्र में बतौर राजमिस्त्री काम करती हैं, बल्कि दो बच्चे की मां होने के बावजूद दरभंगा रेलवे स्टेशन पर मिली एक लावारिस बच्ची का भी पिछले पांच वर्षों से लालनपालन कर रही हैं। सुनीता को उसके पति ने छोड़ दिया है।
13 वर्ष की आयु में विवाह
बिहार के सीतामढ़ी जिले के पकटोला गांव में देवनारायण मुखिया के घर जन्मी सुनीता का विवाह मात्र 13 वर्ष की आयु में हो गया था। विवाह के बाद सुनीता के दो बच्चे भी हुए, परंतु विवाह के 12 वर्ष बाद उसके जीवन में दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। सुनीता के पति और कुम्हरा विशुनपुर निवासी शिवजी दिल्ली
3 - 9 जुलाई 2017
आज सुनीता की दरभंगा में 'नारी शक्ति' के रूप में पहचान होने लगी है। कई महिला मजदूर उनके साथ काम कर राजमिस्त्री का काम सीख रही हैं रोजगार की तलाश में गया। दो-चार महीने तक तो दोनों की बात हुई, परंतु उसके बाद शिवजी ने सुनीता से नाता तोड़ लिया। अपने ही पति द्वारा मुंह मोड़ लेने के बाद सुनीता पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, परंतु वह विचलित नहीं हुई।
पहले मजदूर, फिर राजमिस्त्री
2004 में अपने दो छोटे बच्चों और खुद का पेट भरने के लिए रोजी-रोजगार की तलाश में दरभंगा शहर पहुंच गई और यहां आकर उसने मजदूरी करना शुरू किया। मजदूरी करने के दौरान ही उसे महसूस हुआ कि इसमें कम पैसे मिलते हैं, जबकि एक राजमिस्त्री को ज्यादा मजदूरी मिलती है। इसके बाद उसने राज मिस्त्री बनने को ठान ली। शुरु में इस क्षेत्र में पुरुषों का वर्चस्व होने के कारण उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा, परंतु अपने बुलंद इरादे और मंजिल पाने की चाह के कारण सुनीता विचलित नहीं हुई। आज सुनीता शहर के छपकी, मिर्जापुर, रहमगंज, लक्ष्मीसागर सहित विभिन्न क्षेत्रों में हो रहे निर्माण कार्यो में राजमिस्त्री का काम कर रही हैं। आज कई महिला मजदूर उनके साथ काम कर राजमिस्त्री का काम सीख रही हैं। सुनीता बताती हैं कि उसके बच्चे बड़े हो रहे हैं, जिस कारण उनके पढ़ाई का खर्च भी बढ़ रहा है। सुनीता की पुत्री दसवीं कक्षा, जबकि पुत्र नौवीं कक्षा का विद्यार्थी है।
अनाथ बच्ची को लिया गोद
सुनीता कहती हैं, ‘मैं अपनी बेटी को खूब पढ़ाना चाहती हूं। जिंदगी में अगर उसे मेरे जैसी स्थिति से गुजरना पड़े तो उसे परेशानी का सामना न करना पड़े।’ दिलचस्प है कि सुनीता एक अनाथ बच्ची का भी लालनपालन कर रही हैं। सुनीता बताती है कि दरभंगा रेलवे स्टेशन के पास पांच वर्ष पूर्व एक अनाथ बच्ची लावारिस हालत में मिली थी। स्थानीय लोग लड़की होने के कारण उसे गोद लेना नहीं चाह रहे थे। सुनीता उस बच्ची को अपने घर ले आई और उसका पालनपोषण करना शुरू कर दिया। सुनीता बताती हैं कि आज यह लड़की भी मेरी बेटी की तरह हो गई है। सुनीता के पास न तो अपना घर है और न ही उसे सरकार द्वारा किसी योजना का लाभ मिल रहा है, परंतु सुनीता के पास अपने बच्चों को कुछ बनाने की चाह उसे हर दिन नई राह दिखाती है।
‘पुरुषों की खिल्ली बंद करानी थी’
जेंडर
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जब शिवकलिया देवी ने हाथों में औजार और हथौड़े उठाए तो लोग हंसते और कहते थे नल बनाना इनके बस का नहीं
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श्रवण शुक्ला/ लखनऊ
रुषों की कार्य विशेषज्ञता वाले क्षेत्र में महिलाओं का दखल लगातार बढ़ता जा रहा है। तारीफ की बात है कि अब इनमें वे क्षेत्र भी शामिल हो गए हैं, जो हैं तो साधारण पर अब तक महिलाएं को इन क्षेत्र में स्वीकृति न के बराबर है। इसी तरह का एक काम है नल मरम्मत करने का। आमतौर पर जब हम नल मैकेनिक का नाम सुनते हैं तो हमारे जेहन में तस्वीर एक पुरुष की उभर कर आती हैं, क्योंकि औजार हथौड़े चलाना पुरुषों का काम माना जाता है। इस धारणा को तोड़ते हुए उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले की शिवकलिया देवी ने आज से 20 वर्ष पहले जब औजार और हथौड़े उठाए तो लोग हंसते और कहते थे, नल बनाना इनके बस का नहीं। इस धारणा को तोड़ते हुए शिवकलिया आज रामनगर क्षेत्र में हजारों नल बनाने वाली पहली मैकेनिक महिला बन गई हैं। पुरुषों का काम महिलाएं भी कर सकती हैं। ये मौका उन्हें महिला समाख्या द्वारा मिला है। चित्रकूट जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर मानिकपुर प्रखंड के रैपुरा गांव की रहने वाली शिवकलिया देवी जेठ की दोपहर और गर्मी नहीं देखती। जब भी आसपास क्षेत्र में किसी गांव में कोई नल खराब होता, हर कोई शिवकलिया को ही ले जाता है। गर्मियों के दिनों में कंधे पर बैग लेकर जाने वाली शिवकलिया की नल की मरम्मत के बाद जो आमदनी होती है, उसी से पति के देहांत के 17 वर्षों बाद भी घर का खर्चा चल रहा है। लिए जिंदगी में इस तरह आगे बढ़ना इतना आसान भी नहीं रहा। उनसे इस बारे में जब कोई बातचीत करता है, तो वह भावुक हो जाती हैं। वह बताती हैं, ‘दुकान पर महिला का बैठना आसान नहीं था। यह लोगों के लिए तो आश्चर्यजनक था ही, खुद उनके लिए बड़ा फैसला था, पर उनके पति ने उनका पूरा सहयोग किया। देखते-देखते सबकुछ ठीक हो गया।’ प्रेमवती आज हौसले से कहती हैं। ‘मेरा हाथ मेरा भगवान है, महिलाओं को अगर आगे आना है तो उन्हें अपनी मदद खुद करनी होगी। अगर समाज के सभी लोगों के पास कुछ न कुछ हुनर रहेगा तो देश में होने वाले अपराध अपने आप कम हो जाएंगे।’ ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ प्रेमवती का दर्शन भर है। वह लगभग तीन सौ लोगों को ये काम सिखा भी चुकी हैं। खास बात यह है कि इसके लिए उन्होंने किसी तरह का कोई शुल्क भी नहीं लिया।
गर्मी में कमाई ज्यादा
प्रेमवती बताती हैं, ‘जाड़े में कमाई कम होती है, लेकिन गर्मियों में काम ज्यादा आता है और औसतन
शिवकलिया बताती हैं, ‘अब तो जमाना बहुत बदल गया है। आज से 20 साल पहले स्थिति बहुत खराब थी, महिलाओं का घर से निकलना ही मना था। उस समय नल मैकेनिक बनना पुरुषों को लगता था कि हमने उनके मुंह पर तमाचा मार दिया है।’ वे आगे बताती हैं, ‘सब यही कहते कि अब इन्हें कोई और काम नहीं बचा है जो नल मैकेनिक बनाने चल दी हैं, लेकिन महिला समाख्या से जुड़कर हमने ठान लिया था। चाहे कुछ हो जाए पुरुषों की हंसी तो एक दिन बंद करानी ही है, आज वही लोग नल ठीक करने के लिए हमें ही याद करते हैं।’ चित्रकूट में महिला समाख्या की शुरुआत 1990 में हुई थी। जिले में महिला समाख्या की जिला समन्वयक किरण लता का कहना है,
‘नल मैकेनिक का काम ग्रामीण महिलाओं के लिए मिसाल की तरह साबित हुआ है, क्योंकि समाज में मान्यता बनी हुई है जो मेहनत का काम है उसे पुरुष ही कर सकते हैं। इस तरह के काम महिलाओं के बस का नहीं हैं, पर महिलाओं ने नल मैकेनिक बनकर साबित कर दिया है कि अगर उन्हें मौका मिले तो वो कोई भी काम कर सकती हैं।’ किरण आगे बताती हैं, ‘महिला समाख्या ऐसी प्रतिभाशाली महिलाओं को एक मंच प्रदान करने का काम करती है जिससे समाज में पुरुष और महिलाओं के बीच जो बेड़ियां बनी हुई हैं वो टूटे और महिलाओं को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने का मौका मिल सके।’ शिवकलिया की शादी 12 बरस में हो गई थी, 15 वर्ष में ससुराल गौना हो गया। आज से 17 साल पहले पति का देहांत हो गया था, दो बेटे और तीन बेटियां हैं इनकी। पति के देहांत के बाद परिवार का खर्चा चलना बहुत मुश्किल हो गया था। उस समय शिवकलिया के कंधों पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी थी। वह बताती हैं, ‘कई जिलों में जाकर मैंने ट्रेनिंग ली। इसके बाद अपना काम शुरू किया। जब नल बनाने का पूरा काम हम सीख गए तो कई महिलाओं को कई जिलों में जाकर महिलाओं को नल मैकेनिक बनाने की ट्रेनिग भी दी, एक नल बनाने में 300 रुपए मिल जाते हैं। गर्मियों में काम ज्यादा मिलता है। कई बार एक दिन में तीन से चार नल भी ठीक करने को मिल जाता है। गर्मियों में ज्यादा कमाई होती है, इसी से पूरे परिवार का खर्चा चलता है।’ हैं। भवानी बताते हैं, ‘प्रेमवती की दुकान पर बिजली के उपकरण बेहद वाजिब कीमत में हैं।’ दिलचस्प है कि इतने साल गुजर जाने के बाद भी प्रेमवती की दुकान पर कोई बोर्ड नहीं लगा है। इस पर प्रेमवती कहती हैं, ‘इतने पैसे कभी बचे नहीं कि बोर्ड बनवा सकें, लेकिन उनका काम ही उनकी पब्लिसिटी कर देता है।’
ट्रेनिंग सेंटर खोलने की चाह
तीन से चार हजार रुपए की कमाई हो जाती है।’ कुछ साल पहले पति की मौत के बाद भी उन्होंने अपना हौसला नहीं खोया और अपने काम को बदस्तूर जारी रखा। चार बेटों और चार बेटियों की मां प्रेमवती ने अपने सारे बच्चों को ये हुनर सिखा रखा है। बिजली के कई उपकरण दक्षता से ठीक कर लेती हैं प्रेमवती। लखनऊ की पुलिस लाइन में काम करने वाले भवानी प्रसाद पिछले दो साल से अपने बिजली के सामान की मरम्मत उनसे ही करा रहे
जीवन को संघर्ष मानने वाली प्रेमवती को उत्तर प्रदेश सरकार से बहुत उम्मीदें हैं। आने वाले वक्त में वह लड़कियों के लिए एक बिजली ट्रेनिंग सेंटर खोलना चाहती हैं। उनका कहना है कि पैसे आते ही वो ये काम सबसे पहले करेंगी। प्रेमवती की जिंदगी और उनका हौसला देखकर कहना पड़ता है कि इंसान चाह ले तो वाकई कुछ भी मुश्किल नहीं। लैंगिक असमानता नाम की कोई चीज नहीं। हां, यह समाज में व्याप्त पूर्वाग्रह जरूर है, से आगे बढ़कर तोड़ने की जरूरत उसी तरह है, जैसा प्रेमवती ने हौसला दिखाते हुए कर दिखाया।
30 मुहिम
3 - 9 जुलाई 2017
प्रेरक पहल
आदिवासी बच्चों के विकास की चिंता य
ठाणे से लेकर पालघर-दहाणु तक के आदिवासियों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए भारत विकास परिषद सतत सक्रिय है
आनंद भारती
ह शायद बहुत कम लोगों को पता है कि बिहार की मधुबनी पेंटिंग, आंध्र की कलमकारी, राजस्थान की फड़ की तरह दहाणु की वारली चित्रकला भी कलाओं में अपना स्थान रखती है। इस चित्रकला ने भी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इसी कारण यह क्षेत्र पर्यटन के नक्शे पर आ गया है, लेकिन इस तालुका के गांवों की तरफ जाने के बाद मालूम होता है कि भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई से मात्र 110 किलोमीटर की दूरी पर होने के बावजूद यह क्षेत्र कितना पिछड़ा हुआ है। यह पालघर जिले में है, जहां आदिवासी बहुतायत में हैं। सबसे दुखद स्थिति यह है कि यह आदिवासी बहुल इलाका आज भी बुनियादी सुविधाओं से दूर है जबकि इसकी गिनती औद्योगिक क्षेत्र के रूप में होती है। हालांकि सरकार की योजनाओं और निजी संस्थाओं की कोशिशों के अच्छे परिणाम भी निकल रहे हैं। नारियल, चीकू और मिर्ची के उत्पादन के बाद भी यहां के आदिवासियों की गरीबी चिंतित करने वाली है। आज भी वे झोपड़ियों में रहते हैं। खेतीबारी करते हैं, लेकिन कमाई उतनी नहीं होती कि वे अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में दाखिला करा सकें। पिछले दिनों महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े जब दहाणु के आचार्य भिसे नामक शिक्षण संस्था के एक समारोह में पहुंचे तो उन्होंने कहा कि बच्चों को ऐसी शिक्षा दी जाए जिससे उन्हें तुरंत नौकरी या रोजगार हासिल हो सके। आचार्य भिसे शिक्षण संस्था पिछले 35 वर्षों से आदिवासी और गरीब बच्चों को शिक्षित कर रहा है। यहां ईसाई मिशनरी भी सक्रिय हैं। लेकिन इस बीच एक सार्थक पहल भारत विकास परिषद ने की है। परिषद की मीरा रोड शाखा ने दहाणु और पालघर को अपने हाथों में लेकर स्कूलों को संवारने, बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित करने और खासकर ईंट भट्ठा मजदूरों के बच्चों के लिए छात्रावास का निर्माण करने की योजना को अमलीजामा पहनाने की शुरुआत कर दी है। इस दिशा में परिषद के अध्यक्ष हर्षद जोशी, पूर्व अध्यक्ष संतोष शर्मा और श्री चतुर्वेदी की कोशिश उल्लेखनीय है। हर्षद जोशी का कहना है कि आदिवासी इलाकों में सबसे ज्यादा समस्या ईंट-भट्ठा मजदूरों के साथ है। उनके बच्चे भी मजदूरी करने के लिए मजबूर होते हैं। ये मजदूर किसी एक जगह पर नहीं रहते। उन्हें काम की तलाश में इधर-उधर जाना होता है। इस चक्कर में उनके रहने की ठिकाना भी बदलता रहता है। इनमें सबसे ज्यादा नुकसान उनके बच्चों का होता है। वे स्कूल नहीं जा पाते। भारत विकास परिषद ने सर्वे के बाद महसूस किया कि अगर उन बच्चों
एक नजर
दहाणु और पालघर के आदिवासी बच्चों की शिक्षा की चिंता आदिवासी बहुल इलाके में भारत विकास परिषद की सार्थक पहल
आदिवासी बच्चों के लिए छात्रावास का निर्माण कराया परिषद ने
को छात्रावास उपलब्ध करा दिया जाए तो उनकी पढ़ाई संभव हो सकती है। उनके माता-पिता कहीं भी रहें बच्चों की पढाई बाधित नहीं होगी। परिषद धानीवाडी गांव में पहला हॉस्टल बना रहा है, जहां एक सौ बच्चों के रहने की सुविधा होगी। उन्हें पास के जिला परिषद के स्कूलों में प्रवेश दिलाया जाएगा। फिलहाल अभी विकास परिषद आदिवासी परिवारों और बच्चों को यह समझाने में सफल हो रही है कि पढ़ाई कितनी जरूरी है। भारत विकास परिषद के लोग दहाणु और पालघर के ग्रामीण इलाकों में नियमित जाते हैं और वहां की स्थितियों का आकलन कर मदद की योजना क्रियान्वित करते हैं। पिछले दिनों पालघर के पांजडे गांव म्युनिसिपल स्कूल की जर्जर स्थिति को देखकर उसके नवीकरण का फैसला किया गया। मरम्मत के बाद उसकी पेंटिंग कराई गई। आज वह सुरक्षित स्कूल बन गया है। जिन स्कूलों की बिजली बिल न भरने के कारण काट दी गई है, परिषद लगातार अधिकारियों और बिजली विभाग के संपर्क में है ताकि बिजली बहाल हो सके, क्योंकि इसका नुकसान छात्रों को ही उठाना पड़ता है। कई उन स्कूलों में, जहां टॉयलेट की सुविधा नहीं थी, वह उपलब्ध कराई गई। पिछली सर्दियों में परिषद के सदस्यों ने दहाणु में अपने-अपने स्तर से लगभग पांच सौ कंबल और स्वेटर स्कूली बच्चों के बीच वितरित किए।
मीरा रोड भारत विकास परिषद सिर्फ उसी क्षेत्र में सक्रिय नहीं है, बल्कि एक और आदिवासी इलाका मीरा गांव के महाजनवाडी को भी अपने हाथ में लिया है। सबसे पहले वहां के उस स्कूल को संवारने का जिम्मा लिया जिसका लोकार्पण 1951 में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और मोरारजी देसाई ने किया था। तब उन्होंने स्कूल परिसर में एक पेड़ भी लगाया था, जो आज भी है। इस स्कूल का मुहूर्त आदिवासी सेवा मंडल ने 1946 में किया था। शुरू में इसे झोंपड़ी में चलाया गया था, बाद में इसे पक्का किया गया, लेकिन वह भी जर्जर हालत में पहुंच गया है। विकास परिषद ने न केवल स्कूल को नया रूप दिया, बल्कि डिजिटल क्लास रूम भी बनवाया। कम्प्यूटर और लैपटॉप भी उपलब्ध कराए। पिछले साल इसी स्कूल के बच्चों के बीच नोट बुक, किताबें, जूते आदि बांटे गए थे। परिषद की मान्यता है कि आदिवासी बच्चे इसलिए पीछे रह गए, क्योंकि समाज ने उनकी चिंता ठीक से नहीं की। लोग सरकार की तरफ देखने के चक्कर में अपनी जिम्मेदारी भूल गए। परिषद कुछ अन्य संस्थाओं से मिलकर हर साल आदिवासियों का सामूहिक विवाह करवा रही है। जोशी ने बताया कि इस समाज में जोड़े साथ तो रहते हैं, लेकिन किसी कारण से विधिवत शादी नहीं कर पाते। जोड़ी एक समय के बाद टूट जाती है। दोनों का जीवन बर्बाद हो जाता है। लेकिन अनुभव
विकास परिषद ने मीरा गांव के महाजनवाडी को भी अपने हाथ में लिया है। सबसे पहले वहां के उस स्कूल को संवारने का जिम्मा लिया जिसका लोकार्पण 1951 में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और मोरारजी देसाई ने किया था
बताता है कि अग्नि फेरे के बाद उनमें शादी के प्रति विश्वास बढ़ा है। एक-दूसरे के साथ स्थाई रूप से रहने का प्रचालन बढ़ा है। प्रति जोड़े की शादी का खर्च चार हजार रुपए तक जाता है। यह खर्च परिषद के सदस्य करते हैं। कोई-कोई सदस्य तो सामाजिक जिम्मेदारियों के तहत कई जोड़ियों की शादी का खर्च वहन करते हैं। परिषद की यह शाखा टीटवाला में उन बच्चों के सर्वे में भी सहयोग कर रही है, जो बच्चे घरों से भागकर आए हैं। वे या तो दिहाड़ी कर रहे हैं या गलत संगति में पड़ गए हैं। उन बच्चों की अपनी कोई व्यवस्था नहीं है। कोशिश हो रही है कि उनके परिवार वालों को खबर ली जाए और जिनका कोई अता-पता नहीं है, उनकी पढ़ाई का इंतजाम किया जाए। इसमें जीवन संवर्धक फाउंडेशन का सहयोग मिल रहा है। यह फाउंडेशन कई वर्षों से विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय है, जो ऐसे बच्चों को पनाह दे रहा है। परिषद की आगामी योजना किसी एक गांव को गोद लेने की है, जहां वह बिजली, पानी सहित हर सुविधा देगी। कौशल विकास की ट्रेनिंग देकर उन्हें इस लायक बनाएगी कि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें। मुंबई के आस पास ठाणे और पालघर जिलों में आदिवासियों की स्थिति को लेकर भारत विकास परिषद जागरूक है और इसकी सभी शाखाएं अपने अपने स्तर पर उनके विकास के लिए प्रयत्नशील हैं। आश्चर्य है कि प्रकृति, पर्यावरण, जैव विविधता और पारम्परिक ज्ञान के बावजूद वह समाज के पिछले पायदान पर है। उनकी स्वावलंबी अर्थव्यवस्था नष्ट होकर परावलम्बी हो गई है। वे जल, जंगल और जमीन से बेदखल होते जा रहे हैं। शिक्षा उन तक ठीक से नहीं पहुंच रही है। वे अनजाने में व्यसन की आदी हो रहे हैं। भारत विकास परिषद की सार्थक कोशिश से आदिवासी इलाकों में एक उम्मीद जगी है। ठाणे से लेकर पालघर-दहाणु तक के आदिवासियों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए सारे उपाय किए जा रहे हैं जो आवश्यक है। यह उल्लेखनीय है कि भारत विकास परिषद एक अनुसांगिक संगठन है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का।
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लोक कथा
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साहूकार और सौदागर
क समय की बात है-एक गांव में एक साहूकार रहता था। वो अपनी ईमानदारी के कारण पूरे गांव में जाना जाता था। उसी गांव में एक विष्णु नाम का एक सौदागर रहता था। एक बार जब सौदागर अपने व्यापार के सिलसिले में गांव से दूर गया हुआ था कि अचानक उस सौदागर की पत्नी को पैसों की जरूरत पड़ गई। उसकी पत्नी गांव के ईमानदार साहूकार के पास पैसे मांगने गई। उसने उस साहूकार से विनम्रतापूर्वक कुछ पैसे उधार मांगे कि उसके पति के लौटने पर वह उसे लौटा देगी। तरस खाकर साहूकार ने दो मोहरें सौदागर की पत्नी को दे दीं। समय बीतता गया। आखिरकार सौदागर व्यापर कर बहुत सारा धन कमा कर घर लौटा। सौदागर ने अपनी मोहरों वाली थैली को संभाल कर रख दिया और आराम करने लगा। साहूकार की पत्नी ने सोचा- क्यों ना उस साहूकार से किए हुए वायदे के मुताबिक उनकी मोहरें लौटा दी जाए और इसके बारे में वह पति को बाद में बता देगी। सौदागर की पत्नी जब मोहरें लेकर उस साहूकार की दुकान पर गई तो साहूकार वहां मौजूद नहीं था। साहूकार की पत्नी ने साहूकार को वहां ना देख कर दो मोहरें साहूकार की गद्दी के नीचे रख दी। यह
सोचकर के साहूकार इसे बाद में उठा लेगा। दूसरी तरफ जब साहूकार मंगल आराम कर उठा तो उसने पैसों की थैली को उठाया और बाजार में खरीदारी के लिए चला गया। सबसे पहले वह उस ईमानदार साहूकार के पास गया, परंतु उसके साथ सौदा नहीं बन पाया। इससे पहले ही सौदागर ने अपने पैसों की थैली साहूकार के हवाले कर दी थी। परंतु सौदा ना होने के कारण पैसों की थैली साहूकार से ले ली । लौटते समय उसने थैली से मोहरों को गिना तब उसमें दो मोहरें कम थीं। यह वही मोहरें थी यो सौदागर की पत्नी ने थैली से निकाली थी। थैली में दो मोहरें कम होने के कारण सौदागर को बहुत गुस्सा आया। उसने चिल्लाना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद काफी लोग इकट्ठा हो गए। उसने लोगों से कहा कि देखो, यह साहूकार अपने – आप को ईमानदार समझता है और इसने मेरी थैली से दो मोहरें चुरा लीं। दूसरी तरफ साहूकार अपने आप को बेकसूर मान रहा था। उसने कहा के मेरी दुकान की तलाशी की जाए और मोहरें गिनी जाएं। मुझे कोई एतराज नहीं होगा। मोहरें गिनी गईं, परन्तु उसमे अब भी दो मोहरें कम थीं। इसके बाद साहूकार की दुकान की तलाशी ली गई और
तीन ठगों की कहानी
साहूकार की गद्दी के नीचे से दो मोहरें मिलीं। यह सब देखकर असलियत से अनजान लोग साहूकार को बुरा–भला कहने लगे। इतने में सौदागर की पत्नी वहां पहुंची। जब उसने देखा के लोग साहूकार को बुरा – भला कह रहे हैं, तभी उसने सब के सामने सच्चाई बताई। सच्चाई सुनने
ए
के बाद सौदागर और वहां मौजूद सभी लोगों को अपनी गलती का एहसास हुआ और वे साहूकार से माफी मांगने लगे। इसीलिए दोस्तो! यह कहानी हमें यही शिक्षा देती है कि बिना सोचे – समझे किसी पर भी इल्जाम नहीं लगाना चाहिए।
क बार एक ब्राह्मण को उपहार में एक बकरी मिली। ब्राह्मण बकरी लेकर बहुत खुश था और वो सुनसान रास्ते से होकर गुजर रहा था। उसने बकरी को अपने कंधों पर लादा हुआ था। अचानक तीन ठगों ने ब्राह्मण और उसकी बकरी को देख लिया। काफी बड़ी और मोटी बकरी को देखते ही तीनों ठगों ने ब्राह्मण से उसकी बकरी हथियाने की योजना बनाई। उनमें से एक ठग ने ब्राह्मण को रोक कर पूछा- पंडित जी आप इतने बड़े कुत्ते को कंधे पर बैठाकर कहां लेकर जा रहे हो। एक पंडित होकर क्या आपको यह शोभा देता है? ब्राह्मण यह सुनते ही क्रोधित हो गया। उसने कहा-अंधा हो गया है जो इतनी बड़ी बकरी को कुत्ता बोल रहा है। कुत्ते को कुत्ता नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे? आप तो कमाल कर रहे हैं पंडित जी। चलो, मुझे क्या-यह कहकर ठग वहां से चला गया। थोड़ी देर के बाद ही दूसरा ठग ब्राह्मण के पास गया। उसने आते ही पंडित से कहा- पंडित जी आपको तो इस गधे से काम ही नहीं लेना आता। आपको इसे कंधे पर बिठाने की सिवाए इसके ऊपर सवार होकर जाना चाहिए। पंडित ने फिर उस ठग से क्रोधित होकर कहा, ‘अरे मूर्ख, तुम्हें यह बकरी गधा दिख रही है? जाओ, किसी चिकित्सक से अपना इलाज कराओ’, यह कहकर ब्राह्मण आगे बढ़ गया। कुछ देर चलने के बाद ब्राह्मण के पास तीसरा ठग भी पहुंच गया उसने ब्राह्मण से कहा-पंडित जी! आप टट्टू को कितने में खरीद कर लाए हैं? आप का टट्टू तो बहुत बड़ा है। आप इसे अपने कंधों पर लाद कर क्यों ले जा रहे हो ? यह सुनते ही ब्राह्मण चकरा गया। उसे लगा कि यह बकरी नहीं यह तो कोई मायावी शक्ति है जो समय समय पर अपना रूप बदल रही है। यह कहते हुए ब्राह्मण ने उस बकरी को वहीं छोड़ दिया और वहां से भाग गया। इसके बाद तीनों ठगों ने बकरी को पकड़ लिया और उसे वहां से लेेकर चले गए। इसीलिए कहते हैं लोगों की बातों में आकर अपना फैसला मत बदलो
32 अनाम हीरो
3 - 9 जुलाई 2017
अनाम हीरो पूर्वी जोशी
जैविक खेती की महिला रोल मॉडल
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सिडनी यूनिवर्सिटी से पर्यावरण प्रबंधन में स्नातक करने वाली पूर्वी व्यास आज जैविक खेती के क्षेत्र में महिला शक्ति को साबित करने वाली रोल मॉडल हैं
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रत में कृषि कार्यों से महिलाएं पारंपरिक तौर पर जुड़ी रही हैं। नए दौर में फर्क यह आया है कि अब इस क्षेत्र में उनके उद्यम को पहचान मिलने लगी है। महिला सशक्तीकरण के लिहाज से यह बड़ी बात है। ऐसी ही एक महिला हैं पूर्वी व्यास। ऑस्ट्रेलिया की वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी से पर्यावरण प्रबंधन में स्नातक करने वाली पूर्वी व्यास की जिंदगी उनके एक फैसले ने पूरी तरह बदल दी। अब वह पूरी तरह से जैविक किसान बन चुकी हैं। वह अगली पीढ़ी के किसानों और युवाओं को सिखा रही हैं कि किस तरह खेती करके भी अच्छी जिंदगी बिताई जा सकती है। 1999 में अपना पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद पूर्वी ऑस्ट्रेलिया से लौटकर भारत
कविता देवी
आ गईं। उन्होंने कुछ गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर स्थिरता और विकास के लिए काम करना शुरू कर दिया। 2002 में उन्हें प्रसिद्ध पर्यावरणविद् बीना अग्रवाल के साथ एक प्रोजेक्ट पर किसान समुदाय के लिए काम करने का पहला मौका मिला। इस रिसर्च के लिए वह दक्षिणी गुजरात के नेतरंग और देडियापाड़ा जैसे आदिवासी इलाकों में गईं। यहां रहते हुए उन्हें समझ में आया कि शहर में रहने वाले लोगों की पर्यावरण के प्रति गंभीरता की बातों और उनके रहन-सहन में पर्यावरण को शामिल करने के बीच कितनी गहरी खाई है। पूर्वी कहती हैं कि एक बार जब मैं सप्ताहांत पर अपने घर आई तो मां ने मुझसे कहा कि मैं उन्हें मतार तक छोड़ आऊं। वह
न्यूजमेकर
कुश्ती की साइकिल से देवी विश्व भ्रमण
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पहली भारतीय महिला रेसलर कविता देवी ने डब्ल्यूडब्ल्यूई में रचा इतिहास
विता देवी भारत की पूर्व पाॅवरलिफ्टर और दक्षिण एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक विजेता रही हैं। लेकिन आज कविता विश्व कुश्ती मनोरंजन (डब्ल्यूडब्ल्यूई) में हिस्सा लेने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बन गई हैं। उन्हें माई यंग क्लासिक में प्रतिस्पर्धा करने के लिए चुना गया है, जो महिलाओं के लिए पहली बार आयोजित किया गया डब्ल्यूडब्ल्यूई टूर्नामेंट है। कविता देवी हरियाणा की रहने वाली हैं। वे पंजाब स्थित कुश्ती पदोन्नति और प्रशिक्षण अकादमी में पूर्व डब्ल्यूडब्ल्यूई चैंपियन द ग्रेट खली से प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी हैं। इस साल अप्रैल में डब्ल्यूडब्ल्यूई दुबई में हिस्सा लेने के बाद से कविता चर्चा में आ गईं। कविता देवी दसवीं में निपुण कबड्डी खिलाड़ी थीं। 2016 में उन्होंने दक्षिण एशियाई खेलों में 75 किलो वजनी भारोत्तोलन डिवीजन में स्वर्ण जीता था। रिंग के अंदर देवी ने सिर-कैविंग राउंड हाउस किक का
उपयोग करके जीत हासिल की थी। हरियाणा से सशस्त्र सीमा बल कांस्टेबल के रूप में काम करने वाली कविता देवी को एक वायरल वीडियो के बाद काफी प्रसिद्धि मिली। वह सलवार कमीज में द ग्रेट खली के कॉन्टिनेंटल रेसलिंग एंटरटेनमेंट (सीडब्ल्यूई) में ‘बी बी बुल बुल’ नाम की एक महिला पहलवान को कुश्ती में हराया था। माई यंग क्लासिक एक एकल टूर्नामेंट होगा, जिसमें दुनिया भर से 32 शीर्ष महिला प्रतियोगी हिस्सा लेंगी। कविता देवी ने एक साक्षात्कार में कहा कि मैं डब्ल्यूडब्ल्यूई द्वारा आयोजित महिला टूर्नामेंट में प्रतिस्पर्धा करने वाली पहली भारतीय महिला होने पर गौरवान्वित महसूस कर रही हूं। मैं इस मंच का उपयोग अन्य भारतीय महिलाओं को प्रेरित करने और भारत का गौरव बढ़ाने के लिए करूंगी। यह टूर्नामेंट फ्लोरिडा के ऑरलैंडो में 13 और 14 जुलाई को होगा।
कहती हैं कि यही वह दिन था जिसने मेरी जिंदगी बदल दी। अहमदाबाद में जिस खुली और ताज़ी हवा के लिए पूर्वी तरसती थीं, मतार में उन्हें वही हवा अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। वह बताती हैं कि यही वह चीज थी जिसे मैं शहर में खोज रही थी। यहीं से उन्होंने निर्णय लिया कि वो अपनी नौकरी छोड़कर पूरी तरह से किसान बन जाएंगी। पूर्वी व्यास आज जैविक खेती करने वाली सफल किसान तो हैं ही, साथ ही उनके पास एक डेयरी फार्म भी है। आज जैविक खेती को लेकर सफल प्रयोगों के कारण पूर्वी का इतना नाम है कि इस बारे में वे बड़े-बड़े संस्थानों में व्याख्यान भी देने जा रही हैं।
ज्ञानेश्वर येवतकर
भारतीय समाज सेवी गांधी के विचारों को पूरे विश्व में प्रसारित करने के लिए साइकिल अभियान पर निकला
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साल का एक भारतीय समाज सेवी पूरे विश्व में शांति बहाली के लिए साइकिल यात्रा पर निकला है। इस समाजसेवी का मुख्य उद्देश्य दुनियाभर के कई स्कूलों के बच्चों के बीच महात्मा गांधी की शिक्षाओं को फैलाना है। बता दें कि महाराष्ट्र के वर्धा में सेवागढ़ आश्रम के रहने वाले ज्ञानेश्वर येवतकर ने कहा कि उन्होंने अब तक 8,642 किलोमीटर से 70,000 किलोमीटर की अपना वैश्विक साइकिल चालन अभियान पूरा कर लिया है। उन्होंने बताया कि 2 अक्टूबर, 2019 को गांधी जी की 150वीं जयंती पर उनका अभियान पाकिस्तान में पूरा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि मैंने पिछले आठ महीनों में भारत-चीन सीमा और आसियान क्षेत्र में कई जगहों की यात्रा की है। इन जगहों पर मुझे अच्छे लोग मिले, जिन्होंने मेरे विचारों और गांधी जी के उपदेशों के बारे में उनसे विचार साझा करने के अवसर प्रदान किए। अकेले साइकिल अभियान के दौरे पर जाना सबसे चुनौतीपूर्ण है, लेकिन ऐसे क्षण मुझे हमेशा पसंद रहे हैं, क्योंकि शिक्षकों ने मुझे स्कूलों या उनके
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 1, अंक - 29
घरों में रहने की जगह दी थी। येवतकर ने कहा कि मेरा यह मिशन थाईलैंड और मलेशिया के सिख गुरुद्वारों द्वारा भी आयोजित किया गया है। मैं उनके साथ गांधीजी का संदेश साझा कर रहा हूं, जो हमारे जैसे बहुत से लोगों को प्रेरित करता है। येवतकर ने कहा कि सेवाग्राम आश्रम ऐसी जगह है, जहां गांधी जी ने 1942 में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ 'भारत छोड़ो' अभियान शुरू किया था। येवतकर कहते हैं कि वह एक दिन में 120 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं और लगभग पांच स्कूलों में बच्चों को गांधी जी के विचारों के बारे में बताते हैं। वह अपनी मूल भाषा में लोगों से बात करने के लिए गूगल अनुवादक का उपयोग करते हैं। येवतकर ने कहा कि वह अगले हफ्ते सिंगापुर के बाद इंडोनेशिया जाने की तैयारी कर रहे हैं। इसके बाद वह ताइवान, चीन और जापान की यात्रा करेंगे। नवंबर में उनका जापान से अमेरिका जाने का कार्यक्रम है। उसके बाद उन्हें अफ्रीका और मध्य-पूर्व दिशा में यात्रा करनी है।