सुलभ स्वच्छ भारत (अंक - 25)

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पर्यावरण विशेष

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

वर्ष-1 | अंक-25 | 05 - 11 जून 2017

sulabhswachhbharat.com

13 मिसाल

23 गुड न्यूज

थार में जलधार

प्रदूषित नदी भी स्वच्छ! लखनऊ से कुछ दूरी पर गोमती का जल है निर्मल

एक व्यक्ति के प्रयास से थार का जल संकट हुआ दूर

28 कायाकल्प

‘हलमा’ से बुझी प्यास जल स्रोतों की रक्षा की अनूठी आदिवासी परंपरा

‘चिपको आंदोलन’ से 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए ‘राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन’ तक भारत में पर्यावरण सुरक्षा को लेकर हुई अहिंसक पहल की लंबी परंपरा है

एसएसबी ब्यूरो

हात्मा गांधी और पर्यावरण को लेकर विचार करने का कोई एक प्रस्थान बिंदु नहीं हो सकता है। वैसे गांधी जी के बाद देश में पर्यावरण चेतना और आंदोलन के इतिहास को देखें तो ‘चिपको आंदोलन’ का ध्यान सबसे पहले आता है। यह आंदोलन अप्रैल, 1973 में जंगल और पेड़ों की सुरक्षा के लिए अहिंसक प्रतिबद्धता के साथ शुरू हुआ था। ‘चिपको’ को लेकर छपे लेखों में एक प्रतिबद्ध पत्रकार ने एक बार लिखा था कि गांधी जी के विचारों ने हिमालय के वृक्षों को बचाया है। ‘चिपको आंदोलन’ से 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘राष्ट्रीय

स्वच्छता मिशन’ तक पर्यावरण सुरक्षा को लेकर हुई पहल की लंबी परंपरा है। इस परंपरा में कभी संस्थाओं ने तो कभी कुछ लोगों के समूह या फिर कभी अकेले किसी व्यक्ति ने जल संरक्षण से लेकर जैविक खेती और वृक्षों की रक्षा तक कई महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। प्रेरणा और ऐतिहासिक भूमिका की दृष्टि से जिन दो असाधारण गांधीवादी पर्यावरणविदों की चर्चा सबसे जरूरी है, वे हैं चंडी प्रसाद भट्ट और सुंदरलाल बहुगुणा। ‘चिपको’ को लेकर प्रसिद्धि पाने वाले भट्ट और बहुगुणा की कार्यशैली पर गौर करें तो कुछ और बातें साफ होती हैं। भट्ट और उनका संगठन शौली ग्राम स्वराज्य मंडल (डीजीएसएम) ने ‘चिपको’ के उद्भव में शुरुआती

भूमिका निभाई थी। इसकी तकनीकें स्वयं भट्ट ने मंडल के ग्रामवासियों को बताई थी। व्यावसायिक फैक्ट्रियों के विरुद्ध प्रदर्शन को समन्वित करने से लेकर डीजीएसएम ने पर्यावरणीय पुनरुद्धार पर अपना ध्यान केंद्रित किया। इसने हिमालय क्षेत्र में अलकनंदा के गांवों में वृक्षारोपण कार्य के लिए महिलाओं को संगठित करने में पहल की। चूंकि चंडी प्रसाद भट्ट की गिनती ‘चिपको’ के अगुआ के रूप में ज्यादा होती है, इसीलिए कई बार इसमें सुंदरलाल बहुगुणा के सामाजिक कार्यों के महत्व और ‘चिपको आंदोलन’ को उससे मिली ताकत के बारे में हम गहराई से नहीं समझ पाते हैं। दरअसल, बहुगुणा और उनकी पत्नी विमला सरला देवी कैथरीन मैरी हैलमैन द्वारा पहाड़ियों

एक नजर

‘चिपको आंदोलन’ के अगुवा थे चंडी प्रसाद भट्ट और सुंदरलाल बहुगुणा पर्यावरण के लिए गांधीवादी संघर्ष का अहिंसक उदाहरण है ‘चिपको’ पीएम मोदी को स्वच्छता मिशन की प्रेरणा राष्ट्रपिता से ही मिली

में प्रशिक्षित किए गए पहले सर्वोदय कार्यकर्ताओं के समूह में से थे। सरला देवी महात्मा गांधी की शिष्या थीं, जो 1940 के दशक में कुमाऊं की


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