आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597
अगस्त क्रांति के 75 वर्ष
वर्ष-1 | अंक-34 | 07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
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04 महात्मा गांधी
आंदोलन के सूत्रधार
अगस्त क्रांति की प्रेरणा थे गांधी जी
08 जयप्रकाश नारायण
क्रांति का युवा नायक भूमिगत रहकर संभाली अगस्त क्रांति की कमान
21 डॉ. विन्देश्वर पाठक
'सोशल िरफॉर्मर ऑफ द ईयर'
सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक को मुंबई में मिला यह सम्मान
अगस्त क्रांति का संकल्प
'भारत छोड़ो' आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ को गंदगी भारत छोड़ो, भ्रष्टाचार भारत छोड़ो, आतंकवाद भारत छोड़ो, जातिवाद भारत छोड़ो, संप्रदायवाद भारत छोड़ो के संकल्प के तौर पर मनाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देशवासियों से अपील
02 आवरण कथा
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
भारत छोड़ो आंदोलन
पृष्ठभूमि और प्रारंभ
l भारत छोड़ो आंदोलन का प्रारंभ 1934 के बाद के घटनाक्रम से ही शुरू हो गया था, लेकिन सार्वजनिक रूप से इसे 9 अगस्त 1942 को शुरू किया गया
l भारत छोड़ो आंदोलन की सार्वजनिक घोषणा के पूर्व एक अगस्त 1942 को इलाहबाद में तिलक दिवस मनाया गया। इस मौके पर जवाहरलाल नेहरू ने कहा, ‘हम आग से खेलने जा रहे हैं और ऐसी दोधारी तलवार का प्रयोग करने जा रहे हैं जिसकी उल्टी चोट हमारे ऊपर भी पड़ सकती है।’
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एसएसबी ब्यूरो
डियो पर प्रसारित अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नागरिकों से आह्वान किया है कि आने वाले 9 अगस्त से वे देश में संकल्प सिद्धि का एक महाभियान चलाएं। इसके लिए आने वाले 15 अगस्त को ‘संकल्प पर्व’ के रूप में मनाएं और पूरे पांच साल तक संकल्प सिद्धि में लग जाएं। जुलाई माह के आखिरी रविवार को प्रसारित ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कहा कि 1942 के आंदोलन से आजादी मिलने तक पांच साल के समय को स्वतंत्रता सेनानियों ने आजादी की संकल्प सिद्धि का निर्णायक काल बना दिया गया था। उसी तरह अब से 2022 तक के समय को हम ‘न्यू इंडिया’ की संकल्प सिद्धि के लिए निर्णायक कालखंड बना दें। इस तरह जब 2022 में देश की आजादी के 75 साल पूरे होंगे, तब हम न्यू इंडिया के अपने संकल्प की सिद्धि करने में सफल रहेंगे।
एक नजर
गंदगी और सामाजिक संकीर्णता के खिलाफ पीएम का आह्वान 2017-2022 तक के लिए सामने रखा देश का एजेंडा 2022 में देश की आजादी के 75 साल पूरे हो जाएंगे
75वीं वर्षगांठ
उन्होंने कहा कि अगस्त क्रांति का महीना है। इस दौरान भारत में आजादी की क्रांति हुई। इस महीने में कई घटनाएं आजादी से जुड़ी हैं। इस हम वर्ष ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की 75वीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं। इतिहास के पन्ने भारत की आजादी की प्रेरणा हैं। उन्होंने याद दिलाया कि ‘भारत छोड़ो’ का नारा डॉ. युसुफ मेहर अली ने दिया था। अगस्त क्रांति के बाद से अब तक देश ने संघर्ष स्वाधीनता
‘आज आवश्यकता ‘करेंगे या मरेंगे’ की नहीं, बल्कि नए भारत के संकल्प के साथ जुड़ने की है, जुटने की है, जी-जान से सफलता पाने के लिए पुरुषार्थ करने की है’ - नरेंद्र मोदी
l 7 अगस्त 1942 को मुंबई के ग्वालिया टैंक (अब अगस्त क्रांति मैदान)में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन की अध्यक्षता मौलाना अबुल कलाम आजाद ने की थी। इस अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरु ने भारत छोड़ो प्रस्ताव पेश किया जिसको थोड़े बहुत संशोधन के बाद 8 अगस्त 1942 को स्वीकार कर लिया गया। l
महात्मा गांधी द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन को प्रारंभ करने से पूर्व 8 अगस्त 1942 को ही मुंबई अधिवेशन में ‘करो या मरो’ का नारा दिया गया, जो काफी प्रसिद्ध हुआ। साथ ही गांधी जी ने कहा कि अब कांग्रेस पूर्ण स्वराज्य से कम के किसी भी सरकारी प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगी।
l कांग्रेस के ऐतिहासिक सम्मेलन में गांधी जी ने लगभग 70 मिनट तक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने कहा, ‘मैं आपको एक मंत्र देता हूं करो या मरो जिसका अर्थ था भारत की जनता देश की आजादी के लिए हर ढंग का प्रयत्न करें।’
l भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ करने से पहले 8 अगस्त की मध्यरात्रि के बाद ही अंग्रेज सरकार ने कांग्रेस के बड़े नेताओं को गिरफ्तार करने की योजना बनाई
गांधी जी के भाषण के बारे में डॉ. पट्टाभि सीतारमैया ने लिखा है, ‘वास्तव में गांधी जी उस दिन अवतार और पैगंबर की प्रेरक शक्ति से प्रेरित होकर भाषण दे रहे थे’
अगस्त क्रांति के 75 वर्ष
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
आवरण कथा
03
l ब्रिटिश सरकार ने 9 अगस्त 1942 की सुबह ऑपरेशन जीरो ऑवर के तहत कांग्रेस के सभी महत्वपूर्ण नेताओं को गिरफ्तार कर लिया
l महात्मा गांधी और कांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में जनता द्वारा जो आंदोलन चलाया गया, उसने भारत छोड़ो आंदोलन को राष्ट्रव्यापी विस्तार दिया
l कांग्रेस के तमाम शीर्षस्थ नेताओं को जेल में डाल दिए जाने के कारण भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व अरुणा आसफ अली, जयप्रकाश नारायण, डॉक्टर राम मनोहर लोहिया जैसे समाजवादी नेताओं द्वारा किया गया
l ब्रिटिश सरकार द्वारा गांधी जी को गिरफ्तार करके पुणे के आगा खां पैलेस में और कांग्रेस कार्यकारिणी के अन्य सदस्यों को अहमदनगर के दुर्ग में रखा गया
l सरोजिनी नायडू और कस्तूरबा गांधी को भी आगा खां पैलेस में रखा गया
l जवाहरलाल नेहरू को अल्मोड़ा जेल में, डॉ. राजेंद्र प्रसाद को बांकीपुर जेल (पटना) और मौलाना अबुल कलाम आजाद को बांकुड़ा जेल में रखा गया l कांग्रेस को अवैधानिक संस्था घोषित कर सरकार ने इसकी संपत्ति जप्त कर ली
l सरकार के इन कृत्यों से जनता भड़क उठी और नेतृत्व विहीन होकर तोड़फोड़ में जुट गई l परिणामस्वरूप इस आंदोलन में एक भूमिगत संगठनात्मक ढांचा भी तैयार हो गया था
l हजारीबाग के सेंट्रल जेल से भागने के बाद जयप्रकाश नारायण में भूमिगत होकर इस आंदोलन की बागडोर संभाली और आजाद दस्ता का गठन किया
l भारत छोड़ो आंदोलन राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्ष का प्रथम आंदोलन था, जो नेतृत्वहीनता की स्थिति में भी अपने उद्देश्यों को पूरा कर सका
l इस आंदोलन के दौरान जनता का आक्रोश कई स्तरों पर प्रकट हुआ। जगह-जगह पर रेल पटरियां उखाड़ी गईं और बड़े पैमाने पर अंग्रेजी सत्ता के केंद्रों को नुकसान पहुंचाया गया
l इस आंदोलन के दौरान कितनी ही जगह आंदोलनकारियों द्वारा समानांतर सरकार की स्थापना की गई, जैसे मिदनापुर (बंगाल) बलिया (उत्तर प्रदेश) बस्ती (बिहार) सतारा (महाराष्ट्र) में समानांतर सरकार बनाई गई और विकास की एक बड़ी यात्रा तय की है। इस दौरान देश में रोजगारी बढ़ाने, गरीबी हटाने के लिए प्रयास हुए। प्रधानमंत्री मोदी ने अपील की कि 2017 के 15 अगस्त को ‘संकल्प दिवस’ के रूप में मनाएं।
पीएम ने कहा कि सफलता पाने के लिए काम करने की जरूरत है कि देशवासी नए संकल्पों की सिद्धि का अभियान चलाएं। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे ‘न्यू इंडिया’ के लिए संकल्प लें और उसे पूरा करने में जुटें। नए आइडिया पर विचार करें और
राष्ट्र के नवनिर्माण में एक नागरिक के नाते अपना योगदान दें। 15 अगस्त स्वाधीन भारत के इतिहास का सबसे अहम दिन है। यह पूरे देश की उम्मीद और भरोसे को जाहिर करने वाला दिन भी है। इस बात को प्रधानमंत्री मोदी ने अपने अंदाज में यूं रखा कि 15 अगस्त को लाल किले से कोई व्यक्ति नहीं बोलता, देश की आवाज बोलती है। उन्होंने कहा कि मैं उसके लिए लोगों से सुझाव मांगता हूं। पीएम ने कहा कि पिछले तीन बार से मुझे शिकायत मिली कि मेरा भाषण लंबा होता है। इस बार मैं भाषण छोटा करने का प्रयास करूंगा।
नया ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के आगामी स्वाधीनता दिवस को लेकर देशवासियों से एक खास अपील की है। उन्होंने कहा है कि इस 15 अगस्त को देशवासी ये संकल्प करें कि वे गंदगी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, जातिवाद, और संप्रदायवाद के खिलाफ साझे तौर पर ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन छेड़ेंगे। उन्होंने ऐतिहासिक अगस्त क्रांति को नए भारत के संकल्प के साथ जोड़ने की बात कही और कहा कि इसके लिए इस 15 अगस्त को हर भारतवासी संकल्प करे, व्यक्ति के रूप में, नागरिक के रूप में कि वह अपने देश को उन सब समस्याओं से मुक्त कराएगा, जो भारत के नवनिर्माण के आगे बड़ी चुनौती हैं। उन्होंने देशवासियों से यह प्रेरक आह्वान करते हुए कहा कि इसके लिए हर देशवासी को पूरे मन से
संकल्पित होना होगा। ‘मैं देश के लिए इतना करके रहूंगा, परिवार के रूप में ये करूंगा, समाज के रूप में ये करूंगा, गांव और शहर के रूप में ये करूंगा, सरकारी विभाग के रूप में ये करूंगा, सरकार के नाते ये करूंगा’, जब तक यह भाव देश में हर तरफ नहीं दिखेगा, हम इस काम को सफलता के साथ पूरा नही कर सकते हैं। उन्होंने इसी मुद्दे पर आगे कहा, ‘आज आवश्यकता ‘करेंगे या मरेंगे’ की नहीं, बल्कि नए भारत के संकल्प के साथ जुड़ने की है, जुटने की है, जी-जान से सफलता पाने के लिए पुरुषार्थ करने की है।’
महाभियान में सभी जुटें
इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने प्रत्येक भारतवासियों, सामाजिक संस्थाओं, स्थानीय निकायों, स्कूल-कॉलेजों से ‘न्यू इंडिया’ के संकल्प के लिए कुछ न कुछ योगदान करने का आह्वान किया। इसके तहत उन्होंने युवा संगठनों, गैरसरकारी संगठनों से सामूहिक चर्चा का आयोजन करने, नए-नए आइडिया लेकर आने की भी अपील की। विशेष रूप से उन्होंने ऑनलाइन की दुनिया में सक्रिय युवाओं से भारत निर्माण में काम आने वाले ‘इनोवेटिव’ योगदान देने को कहा। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन के नए अध्याय को पूरा करने के लिए युवाओं से तकनीक का इस्तेमाल करते हुए वीडियो-पोस्ट-ब्लॉग के जरिए इस मुहिम को जन-आंदोलन में परिवर्तित करने की भी अपील की।
04 आवरण कथा
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
भारत छोड़ो आंदोलन के सूत्रधार महात्मा गांधी
इस साल देश एक तरफ जहां गांधी जी के चंपारण सत्याग्रह को सौ साल बाद याद कर रहा है, तो वहीं उनके नेतृत्व में शुरू हुए भारत छोड़ो आंदोलन के भी 75 साल पूरे हो रहे हैं
एक नजर
1934 में सक्रिय राजनीति से संन्यास की घोषणा कर चुके थे गांधी जी 10 फरवरी 1943 को जेल में रहते गांधी जी ने शुरू किया 21 दिन का उपवास
इस दौरान सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए प्राणपन से जुटे रहे महात्मा
ऐतिहासिक बैठक
भा
प्रेम प्रकाश
रत आज दुनिया का सबसे युवा लोकतंत्र भले है, पर स्वाधीनता उसके लिए महज युवा या नवीन अनुभव की बात नहीं है। स्वाधीनता के बाद देश ने सात दशक की यात्रा तय कर ली है। इस तरह सात दशक पूर्व की जिन घटनाओं को नए दौर में याद कर रहे हैं, उसमें हमारे लिए यह सबक शामिल है कि हमने काफी संघर्ष और बलिदान के बाद स्वाधीनता प्राप्त की है। इस साल देश एक तरफ जहां चंपारण सत्याग्रह को सौ साल बाद याद कर रहा है, तो वहीं भारत छोड़ो आंदोलन के भी 75 साल पूरे हो रहे हैं। भारतीय इतिहास के ये घटनाक्रम इस लिहाज से खासे महत्वपूर्ण हैं कि इससे हम इस बात की समझ मिलती है कि हमने महज अंग्रेजों की पराधीनता को समाप्त करने में सफलता नहीं
प्राप्त की, बल्कि इसके साथ औपनिवेशिक साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष का एक अहिंसक विकल्प दुनिया के सामने रखा। चंपारण सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन, दोनों के नायक और सूत्रधार महात्मा गांधी थे। दिलचस्प है कि जो महात्मा चंपारण की धरती पर किसानों को निलहे अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए सत्याग्रह की अहिंसक राह तो चुनते हैं, पर उनके साथ संघर्ष के किसी विकल्प पर विचार तक नहीं करना चाहते, वे अगले ढाई दशक में देश की स्वाधीनता की ललक को यहां तक पहुंचा देते हैं कि सीधे
‘करो या मरो’ का नारा देते हैं और अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करते हैं। गौरतलब है कि यह महात्मा गांधी के नेतृत्व का दमखम और जादुई तिलिस्म है, जिसने 1942 से करीब आठ साल पहले ही सक्रिय राजनीति से संन्यास की घोषणा कर दी थी, वह एक बार फिर राष्ट्रीय घटनाक्रम के केंद्र में आकर खड़ा हो गया। ऐतिहासिक रूप से गांधी जी की मन:स्थिति और राष्ट्रीय भूमिका, द्वितीय विश्व युद्ध ने उन्हें अपनी भूमिका और राष्ट्रीय एजेंडे को नए सिरे से तय करने के लिए मजबूर कर दिया था।
यह महात्मा गांधी के नेतृत्व का दमखम और जादुई तिलिस्म है, जिसने 1942 से करीब आठ साल पहले ही सक्रिय राजनीति से संन्यास की घोषणा कर दी थी, वह एक बार फिर राष्ट्रीय घटनाक्रम के केंद्र में आकर खड़ा हो गया
अंग्रेजों की विभाजनकारी मंशा और तत्कालीन वैश्विक स्थिति में भारतीय हित को देखते हुए गांधी जी ने 1942 'भारत छोड़ो' का नारा बुलंद किया । 7 अगस्त 1942 को बंबई में एक ऐतिहासिक बैठक हुई। बैठक में फैसला लिया गया कि यदि ब्रिटिश राज्य को भारत से तत्काल हटाया नहीं गया, तो गांधी जी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया जाएगा। गांधी जी किसी भी योजना पर कार्य करने से पहले एक बार वायसराय से मिलना चाहते थे। वायसराय ने गांधी जी से वार्ता करना उचित नहीं समझा। 9 अगस्त 1942 की सुबह कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। इन गिरफ्तारियों की खबर से पूरा देश जलने लगा। बंगाल, बिहार, बंबई आदि स्थलों पर जनता ने थाने, डाकघर, अदालतें, रेलवे स्टेशन आदि जला डाले। लॉर्ड लिनलिथगो ने जब अहिंसा में गांधी जी की आस्था और ईमानदारी में ही संदेह प्रकट कर दिया तो गांधी जी ने इसे अपनी अहिंसक आस्था पर चोट माना। इस आत्मिक कष्ट से उबरने के लिए उन्होंने 10 फरवरी 1943 से 21 दिन का उपवास आरंभ कर दिया।
बा का छूटा साथ
मुंबई के आगा खां पैलेस में कैद में गुजारे ये वक्त गांधी जी के लिए बड़े दुखदायी साबित हुए। गिरफ्तारी के छह दिन बाद उनके 24 वर्ष से सहयोगी रहे तथा सेक्रेटरी की भूमिका निभा रहे महादेव देसाई हार्ट फेल होने से चल बसे। इसी दौरान उनकी पत्नी कस्तूरबा गंभीर रूप से बीमार पड़ीं। उन्होंने भी इस दुनिया को अलविदा कह दिया। मानो गांधी जी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो। कस्तूरबा की मृत्यु के छह सप्ताह बाद मलेरिया ने गांधी जी को भी अपनी चपेट में ले लिया। तेज बुखार रहने लगा। सरकार के लिए उनकी रिहाई उनके जेल में मर जाने से कम परेशानी का कारण
अगस्त क्रांति के 75 वर्ष
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आवरण कथा
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सबसे बड़े संघर्ष की शुरुआत ‘हिंसात्मक यात्रा में तानाशाही की संभावनाएं ज्यादा होती हैं, जबकि अहिंसा में तानाशाही के लिए कोई जगह ही नहीं है’
लो
होती। उन्हें बिना शर्त के 6 मई को जेल से रिहा कर दिया गया। उन्होंने देश की दशा देखी। गांधी जी की इच्छा थी कि वे वाइसराय लॉर्ड वॉवेल से मिलें, लेकिन वॉवेल ने बातचीत करने से साफ मना कर दिया।
चर्चिल की हार
उधर, ब्रिटिश सरकार भारत की स्थिति को नियंत्रित नहीं कर पा रही थी। चारों ओर उसके खिलाफ भारतीयों ने मोर्चा खोल दिया था। 1945 में ब्रिटेन में हुए चुनावों में चर्चिल हार गए, लेबर सरकार सत्ता में आई। नया प्रधानमंत्री भारत को अपने हाथ से निकलना नहीं देना चाहता था। लॉर्ड वॉवेल को वापस भारत भेजा गया। वापस आने पर उसने एक नई योजना की घोषणा की, जिसके अनुसार नए संविधान की शुरुआत के रूप में प्रांतीय और केंद्रीय विधान सभाओं के चुनाव होने थे। इंग्लैंड से एक कैबिनेट मिशन आया। इस मिशन का उद्देश्य भारतीय नेताओं से बातचीत कर संयुक्त भारत के लिए संविधान बनाना था, लेकिन कांग्रेस और मुस्लिमों को एक साथ लेकर चलने में वे नाकाम रहे। 12 अगस्त 1946 को वायसराय ने वार्ता के लिए जवाहरलाल नेहरू को आमंत्रित किया।
जिन्ना की कार्रवाई
उधर, जिन्ना ने 'सीधी कार्रवाई' का एेलान कर दिया। बंगाल में काफी खून-खराबा हुआ। देश के कोनेकोने में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे। गांधी जी साफ तौर पर देख रहे थे कि देश का सांप्रदायिक सौहार्द खंडित हो रहा है और देश विभाजन की नौबत बनती जा रही है। इसी बीच, वे दिल्ली की भंगी बस्ती में रहने चले गए, जहां दिन-प्रतिदिन हिंसा के खिलाफ उनका स्वर जोर पकड़ता गया। तभी दिल को दहला कर रख देने वाला समाचार आया। पूर्वी बंगाल के नोआखली जिले में कई निर्दोष नागरिक सांप्रदायिक दंगे में मारे गए। अब गांधी जी के लिए शांत बैठे रहना असंभव था। उन्होंने निश्चय किया कि हिंदू-मुस्लिमों के बीच गहराती जा रही खाईं को वे अवश्य पाटेंगे, भले ही उसके लिए उन्हें अपने प्राणों का बलिदान देना पड़े।
नोआखली में महात्मा
नोआखली में 7 नवंबर 1946 से 2 मार्च 1947 तक गांधी जी रहे। इसके बाद वे बिहार चले गए। यहां भी
उन्होंने वही किया, जो नोआखली में किया था। गावों की पदयात्रा की। लोगों को उनकी गलती का एहसास कराने के साथ जिम्मेदारियों से भी परिचित कराया। नए वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने मई 1947 में गांधी जी को दिल्ली बुलाया। जहां कांग्रेसी नेताओं के साथ जिन्ना भी उपस्थित थे। जिन्ना मुस्लिमों के लिए अलग राष्ट्र की मांग पर अड़े थे। गांधी जी ने जिन्ना को समझाने का लाख प्रयास किया पर वह टस-से-मस नहीं हुए। आखिर वह दिन भी आ गया, जब भारत आजाद हुआ। 15 अगस्त 1947 को देश स्वतंत्र हुआ। गांधी जी ने इस दिन आयोजित किए गए समारोह में भाग न लेकर कलकत्ता जाना उचित समझा।
आहत करने वाली स्थितियां
इस तरह हम देख सकते हैं जिस महात्मा की केंद्रीय उपस्थिति और प्रेरणा के साथ भारतवासियों ने फिरंगी हुकूमत के खिलाफ अपना सबसे निर्णायक संघर्ष छेड़ा, अगले पांच सालों की परिस्थिितयों ने उन्हें काफी आहत किया। एक तरफ देश ने भारत छोड़ो आंदोलन के साथ स्वाधीनता की यात्रा पूरी की तो, वहीं देश में जिस तरह सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ा, उसकी नियति अंतत: देश विभाजन के तौर पर सामने आई। गांधी विचार और आस्था की समझ रखने वाले तमाम लोग अब भी इस बात को मानते हैं कि तब देश के कुछ बड़े नेताओं ने आवेगी और प्रतिक्रियावादी रुख न दिखाया होता, तो स्वाधीनता का हर्ष और विभाजन का शोक एक साथ भारत की नियति नहीं बनता।
दो सबक
आज जब हम भारत छोड़ो आंदोलन को स्वाधीन भारत के सात दशकीय अनुभव के बीच याद कर रहे हैं तो हमारे लिए दो सबक साफ हैं। पहला सबक तो यही कि राष्ट्रभक्ति का अखंड शपथ अगर देश मिलकर एक साथ दिखाए तो दुनिया की सबसे बड़ी साम्राज्यवादी सत्ता को भी झुकाया जा सकता है। दूसरा सबक यह कि देश की बहुलतावादी संस्कृति के बीच एकता और समन्वय के जो तार गुंथे हैं, उनका हमारे लिए काफी महत्व है। बहुलता के साथ एकता ही भारत की पहचान है। स्वाधीनता के साथ देश विभाजन का दंश सहने वाले देश में अपनी इस सामासिक संस्कृति को लेकर तो गौरव का बोध होना ही चाहिए, हमें इसे बनाए रखने की विवेकी तत्परता भी हमेशा दिखानी होगी।
ग मुझसे यह पूछते हैं कि क्या मैं वही इंसान हूं, जो मैं 1920 में हुआ करता था और क्या मुझमे कोई बदलाव आया है। ऐसा प्रश्न पूछने के लिए आप बिल्कुल सही हो। मैं जल्द ही आपको इस बात का आश्वासन दिलाऊंगा कि मैं वही मोहनदास गांधी हूं जैसा मैं 1920 में था। मैंने अपने आत्मसम्मान को नहीं बदला है। आज भी मैं हिंसा से उतनी ही नफरत करता हूं जितनी उस समय करता था, बल्कि मेरा बल तेजी से विकसित भी हो रहा है। मेरे वर्तमान प्रस्ताव और पहले के लेख और स्वभाव में कोई विरोधाभास नहीं है। हमारी कार्यकारी समिति का बनाया हुआ प्रस्ताव भी अहिंसा पर ही आधारित है और हमारे आंदोलन के सभी तत्व भी अहिंसा पर ही आधारित होंगे। यदि आपमें से किसी को भी अहिंसा पर भरोसा नहीं है, तो कृपया करके वो इस प्रस्ताव के लिए वोट ना करे। भगवान ने मुझे अहिंसा के रूप में एक मूल्यवान हथियार दिया है। मैं और मेरी अहिंसा ही आज हमारा रास्ता है। हमारी यात्रा ताकत पाने के लिए नहीं, बल्कि भारत की आजादी के लिए अहिंसात्मक लड़ाई के लिए है। हिंसात्मक यात्रा में तानाशाही की संभावनाएं ज्यादा होती हैं जबकि अहिंसा में तानाशाही के लिए कोई जगह ही नहीं है। एक अहिंसात्मक सैनिक खुद के लिए कोई लोभ नहीं करता, वह केवल देश की आजादी के लिए ही लड़ता है। कांग्रेस इस बात को लेकर बेफिक्र है कि आजादी के बाद कौन शासन करेगा। आजादी के बाद जो भी ताकत आएगी उसका संबंध भारत की जनता से होगा और भारत की जनता ही यह निश्चित करेगी कि उन्हें यह देश किसे सौंपना है। हो सकता है कि भारत की जनता अपने देश को पेरिस के हाथों सौंपे। कांग्रेस सभी समुदायों को एक करना चाहता है न कि उनमें फूट डालकर विभाजन करना चाहता है। आजादी के बाद भारत की जनता अपनी इच्छानुसार किसे भी अपने देश की कमान संभालने के लिए चुन सकती है और चुनने के बाद भारत की जनता को भी उसके अनुरूप ही चलना होगा। मेरा इस बात पर भरोसा है कि दुनिया के इतिहास में हमसे बढ़कर और किसी देश ने लोकतांत्रिक आजादी पाने के लिए संघर्ष किया होगा। जब मैं पेरिस में था तब मैंने कार्लाइल फ्रेंच प्रस्ताव पढ़ा था और पंडित जवाहरलाल नेहरु ने भी मुझे रशियन प्रस्ताव के बारे में थोड़ा बहुत बताया था, लेकिन मेरा इस बात पर पूरा विश्वास है कि जब हिंसा का उपयोग कर आजादी के
लिए संघर्ष किया जाएगा, तब लोग लोकतंत्र के महत्त्व को समझने में असफल होंगे। जिस लोकतंत्र का मैंने विचार कर रखा है, उस लोकतंत्र का निर्माण अहिंसा से होगा, जहां हर किसी के पास समान आजादी और अधिकार होंगे। जहां हर कोई खुद का शिक्षक होगा और इसी लोकतंत्र के निर्माण के लिए आज मैं आपको आमंत्रित करने आया हूं। एक बार यदि आपने इस बात को समझ लिया तब आप हिंदू और मुस्लिम के भेदभाव को भूल जाएंगे। तब आप एक भारतीय बनकर खुद का विचार करोगे और आजादी के संघर्ष में साथ देंगे। अब प्रश्न ब्रिटिशों के प्रति आपके रवैए का है। मैंने देखा है की कुछ लोगो में ब्रिटिशों के प्रति नफरत का रवैया है। कुछ लोगों का कहना है कि वे ब्रिटिशों के व्यवहार से चिढ़ चुके हैं। कुछ लोग ब्रिटिश साम्राज्यवाद और ब्रिटिश लोगों के बीच के अंतर को भूल चुके हैं। उन लोगों के लिए दोनों ही एक समान हैं। उनकी यह घृणा जापानियों की आमंत्रित कर रही है। यह काफी खतरनाक होगा। इसका मतलब वे एक गुलामी की दूसरी गुलामी से अदला बदली करेंगे। हमें इस भावना को अपने दिलोदिमाग से निकाल देना चाहिए। हमारा झगड़ा ब्रिटिश लोगो के साथ नहीं है, बल्कि हमें उनके साम्राज्यवाद से लड़ना है। ब्रिटिश शासन को खत्म करने का मेरा प्रस्ताव गुस्से से पूरा नहीं होने वाला। मैं जानता हूं कि ब्रिटिश सरकार हमसे हमारी आजादी नहीं छीन सकती, लेकिन इसके लिए हमें एकजुट होना होगा। इसके लिए हमें खुद को घृणा से दूर रखना चाहिए। खुद के लिए बोलते हुए मैं कहना चाहूंगा की मैंने कभी घृणा का अनुभव नहीं किया, बल्कि मैं समझता हूं कि मैं ब्रिटिशों के सबसे गहरे मित्रों में से एक हूं और यह मेरा कर्तव्य होगा कि मैं उन्हें आने वाले खतरे की चुनौती दूं। इस समय जहां मैं अपने जीवन के सबसे बड़े संघर्ष की शुरुआत कर रहा हूं, मैं नहीं चाहता कि किसी के भी मन में किसी के प्रति घृणा का निर्माण हो। (8 अगस्त 1942 को मुंबई के ग्वलिया टैंक मैदान में गांधी के दिए भाषण का संपादित अंश)
06 आवरण कथा
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
आंदोलन इतिहास
स्वाधीनता का निर्णायक संघर्ष भारत छोड़ो आंदोलन की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि स्वतंत्रता संघर्ष के एजेंडे में भारत को तुरंत आजादी दिए जाने की मांग को शामिल किया गया था
भा
एसएसबी ब्यूरो
रतीय स्वाधीनता संघर्ष के पूर्ववर्ती आंदोलनों की तुलना में भारत छोड़ो आंदोलन में स्वतः स्फूर्तता का तत्व काफी ज्यादा था। वैसे असहयोग आंदोलन तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन (दोनों चरण) में भी कांग्रेस ने स्वतःस्फूर्त तत्वों के विकास की संभावनाओं को अवसर प्रदान किया, लेकिन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में यह तत्व तुलनात्मक रूप से काफी अधिक था। वस्तुतः गांधी जी के नेतृत्व में शुरू हुए इस आंदोलन की रणनीति यह थी कि शीर्ष नेतृत्व कार्यक्रम की योजना बना देता था, फिर उसका कार्यान्वयन जनता तथा स्थानीय स्तर के कार्यकर्ताओं के हाथों में छोड़ दिया जाता था। यद्यपि नेतृत्व को आंदोलन छेड़ने का अवसर न मिल पाने के कारण
भारत छोड़ो आंदोलन की रूपरेखा स्पष्ट नहीं की गई थी, किंतु एक बार जब कांग्रेस नेतृत्व एवं गांधी जी ने आंदोलन को परिभाषित कर दिया, सभी लोग उत्प्रेरित होकर आंदोलन से जुड़ गए। इसके अतिरिक्त कांग्रेस भी सैद्धांतिक, राजनीतिक एवं संगठनात्मक तौर पर काफी लंबे समय से इस संघर्ष की तैयारी कर रही थी। भारत छोड़ो आंदोलन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि स्वतंत्रता संघर्ष के एजेंडे में भारत को तुरंत आजादी दिए जाने की मांग को सम्मिलित किया गया था। इस आंदोलन के पश्चात कांग्रेस का नेतृत्व तथा भारतीय, इस मांग के संदर्भ में कभी नरम नहीं पड़े। इस आंदोलन में जनसामान्य की भागीदारी अप्रत्याशित थी। लोगों ने अदम्य साहस एवं राष्ट्रभक्ति का परिचय दिया। यद्यपि उन्होंने जो प्रताड़ना सही वह अत्यंत बर्बर एवं अमानवीय थी तथा संघर्ष की परिस्थितियां भी उनके प्रतिकूल थीं,
9 अगस्त, 1942 को प्रातः ही सभी महत्वपूर्ण कांग्रेसी नेताओं को बंदी बना लिया गया तथा अज्ञात स्थानों पर ले जाया गया। इन शीर्षस्थ नेताओं की गिरफ्तारी से आंदोलन की बागडोर युवाओं के हाथों में आ गई
एक नजर
क्रिप्स मिशन के बाद गांधी जी ने रखा अंग्रेजों भारत छोड़ो का प्रस्ताव आंदोलन के दौरान देश में कई जगहों पर समानांतर सरकारों की स्थापना
आंदोलन के दौरान कम से कम दस हजार लोगों के शहीद होने का अनुमान
किंतु आंदोलन के हर मोर्चे पर जनता ने अत्यंत सराहनीय भूमिका निभाई तथा आंदोलनकारियों को पूर्ण समर्थन एवं सहयोग प्रदान किया।
आंदोलन की आधारभूमि और घोषणा
क्रिप्स मिशन के उपरांत गांधी जी ने एक प्रस्ताव तैयार किया जिसमें अंग्रेजों से तुरंत भारत छोड़ने तथा जापानी आक्रमण होने पर भारतीयों से अहिंसक असहयोग का आह्वान किया गया था। कांग्रेस
कार्यसमिति ने 4 जुलाई 1942 को वर्धा की अपनी बैठक में संघर्ष के गांधीवादी प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति दे दी। बाद में ग्वालिया टैंक मैदान, बंबई में 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का प्रस्ताव पारित किया गया। गांधी जी ने देश के विभिन्न वर्गों के लिए कुछ निर्देशों की घोषणा कांग्रेस की ग्वालिया टैंक बैठक में ही कर दी थी, लेकिन उस समय उन्हें सार्वजनिक नहीं किया गया। इस अवसर पर गांधी जी ने लोगों से कहा था, ‘एक मंत्र है, छोटा सा मंत्र, जो मैं आपको देता हूं। उसे आप अपने हृदय में अंकित कर सकते हैं और प्रत्येक सांस द्वारा व्यक्त कर सकते हैं। यह मंत्र है- ‘करो या मरो’ या तो हम भारत को आजाद कराएंगे या इस प्रयास में अपनी जान दे देंगे। अपनी गुलामी का स्थायित्व देखने के लिए हम जिंदा नहीं रहेंगे।’
आंदोलन का प्रसार
गांधी जी सविनय अवज्ञा आंदोलन, सांगठनिक कार्यों तथा लगातार प्रचार अभियान से आंदोलन का
अगस्त क्रांति के 75 वर्ष
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
आवरण कथा
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उषा मेहता ने तो बंबई में भूमिगत रेडियो स्टेशन ही स्थापित कर दिया था। भूमिगत गतिविधियों में संलग्न लोगों को व्यापक सहयोग मिल रहा था भूमिगत गतिविधियां
वातावरण निर्मित कर चुके थे, लेकिन सरकार न तो कांग्रेस से किसी तरह के समझौते के पक्ष में थी, न ही वह आंदोलन के औपचारिक शुभारंभ की प्रतीक्षा कर सकती थी। फलतः उसने गिरफ्तारी और दमन के निर्देश जारी कर दिए। 9 अगस्त को प्रातः ही सभी महत्वपूर्ण कांग्रेसी नेताओं को बंदी बना लिया गया तथा अज्ञात स्थानों पर ले जाया गया। इन शीर्षस्थ नेताओं की गिरफ्तारी से आंदोलन की बागडोर युवाओं के हाथों में आ गई।
इस दौरान जनता ने सरकारी सत्ता के प्रतीकों पर आक्रमण किया तथा सरकारी भवनों पर बलपूर्वक तिरंगा फहराया। सत्याग्रहियों ने गिरफ्तारियां दी, पुल उड़ा दिए गए, रेलों की पटरियां उखाड़ दी गईं तथा तार एवं टेलीफोन की लाइनें काट दी गईं। शिक्षण संस्थाओं में छात्रों ने हड़ताल कर दी, छात्रों द्वारा जुलूस निकाले गए। इसी तरह अहमदाबाद, बंबई, जमशेदपुर, अहमदनगर एवं पूना में मजदूरों ने हड़ताल कर दी।
भूमिगत गतिविधियों के संचालन का कार्य मुख्यतः समाजवादी, फारवर्ड ब्लाक के सदस्य, गांधी आश्रम के अनुयायी तथा युवा क्रांतिकारियों के हाथों में रहा। बंबई, पूना, सतारा, बड़ौदा तथा गुजरात के अन्य भाग, कर्नाटक, आंध्र, सयुंक्त प्रांत, बिहार एवं दिल्ली इन गतिविधियों के मुख्य केंद्र थे। राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, अरुणा आसफ अली, उषा मेहता, बीजू पटनायक, छोटू भाई पुराणिक, अच्युत पटवर्धन, सुचेता कृपलानी तथा आर.पी. गोयनका भूमिगत गतिविधियां संचालित करने वाले नेताओं में प्रमुख थे। उषा मेहता ने तो बंबई में भूमिगत रेडियो स्टेशन ही स्थापित कर दिया था। भूमिगत गतिविधियों में संलग्न लोगों को व्यापक सहयोग मिल रहा था।
समानांतर सरकारें
भारत छोड़ो आंदोलन की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी, देश के कई स्थानों में समानांतर सरकारों की स्थापना की गई। यह इस बात को भी स्पष्ट करता है कि भारत छोड़ो आंदोलन किस तरह एक जन आंदोलन था और इसने संगठित होने के साथ विकेंद्रित रूप में
फिरंगी सत्ता के सामने कैसे बड़ी चुनौती खड़ी की। बलिया (अगस्त 1942 में, केवल एक सप्ताह के लिए)- यहां चित्तू पांडेय के नेतृत्व में समांनातर सरकार की स्थापना की गई। उनकी सरकार ने स्थानीय जिलाधिकारी से शासन के सभी अधिकार छीन लिए तथा जेल में बंद सभी कांग्रेस नेताओं की रिहा कर दिया। तामलुक (मिदनापुर, दिसंबर 1942 से सितंबर 1944 तक)- यहां की जातीय सरकार ने तूफान पीड़ितों के लिए सहायता कार्यक्रम प्रारंभ किए, स्कूलों को अनुदान दिए, धनी लोगों का अतिरिक्त धन गरीबों में बांटा तथा एक सशस्त्र विद्युत वाहिनी का गठन किया। सतारा (1943 के मध्य से 1945 तक)- यह सबसे लंबे समय तक चलने वाली सरकार थी। यहां प्रति सरकार के नाम से समानांतर सरकार स्थापित की गई। सरकार की स्थापना में वाई.बी. चव्हाण तथा नाना पाटिल इत्यादि की प्रमुख भूमिका थी। सरकार के कार्यों में ग्रामीण पुस्तकालयों की स्थापना, न्यायदान मंडलों (जन अदालतों) का गठन, शराब बंदी अभियान तथा गांधी विवाहों का आयोजन जैसे कार्य सम्मिलित थे।
सरकारी दमन
आंदोलनकारियों के विरुद्ध सरकार ने दमन की नीति का सहारा लिया तथा वह आंदोलन को पूर्णरूपेण कुचल देने पर उतर आई। यद्यपि मार्शल लॉ नहीं लागू किया गया था, किंतु सरकार की दमनात्मक कार्रवाई अत्यंत गंभीर थी। प्रदर्शनकारियों पर निर्दयतापूर्वक लाठी चार्ज किया गया, आंसू गैस के गोले छोड़े गए तथा गोलियां बरसाई गईं। सरकार ने प्रेस पर हमला किया तथा कई समाचार-पत्रों पर पाबंदी लगा दी गई। सेना ने कई शहरों को अपने नियंत्रण में ले लिया तथा पुलिस एवं गुप्तचर सेवाओं का साम्राज्य कायम हो गया। विद्रोही गांवों पर भारी जुर्माने लगाए गए तथा लोगों को सार्वजनिक रूप से कोड़े लगाए गए। इस दमनात्मक कार्रवाई में अनुमानतः 10 हजार लोग शहीद हुए।
08 आवरण कथा
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
जयप्रकाश नारायण
अगस्त क्रांति का युवा नायक
जयप्रकाश नारायण भारतीय इतिहास के अकेले ऐसे नेता हैं, जिनको देश के तीन लोकप्रिय आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेने का अनोखा गौरव प्राप्त है
ज
एक नजर
एसएसबी ब्यूरो
यप्रकाश नारायण को ‘लोकनायक’ के तौर पर भले 1974 के संपूर्ण क्रांति आंदोलन के रूप में ख्याति मिली हो पर इससे पहले वे अगस्त क्रांति के युवा नायक के तौर पर पूरे देश में लोकप्रिय हो चुके थे। दरअसल, वे भारतीय इतिहास के अकेले ऐसे नेता हैं, जिनको देश के तीन लोकप्रिय आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेने का अनोखा गौरव प्राप्त है। उन्होंने न केवल अपने जीवन जोखिम में डालते हुए भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, बल्कि सत्तर के दशक में भ्रष्टाचार और अधिनायकवाद के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया और इसके पहले 50 और 60 के दशकों में लगभग दस वर्षों तक भूदान आंदोलन में भाग लेकर हृदय परिवर्तन के द्वारा बड़े पैमाने पर सामाजिक परिवर्तन लाने का कार्य भी किया। जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सारण जिले के सिताब दियारा गांव में हुआ था। 1920 में 18 वर्ष की उम्र में अपनी मैट्रिक परीक्षा पूरी करने के बाद वे पटना में काम करने लगे थे। उसी वर्ष उनका विवाह प्रभावती से हुआ। राष्ट्रवादी नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद द्वारा अंग्रेजी शिक्षा त्याग देने के आह्वान पर परीक्षा से मुश्किल से 20 दिन पहले उन्होंने पटना कॉलेज छोड़ दिया और डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा स्थापित बिहार विद्यापीठ से जुड़ गए। 1922 में अपनी पत्नी प्रभावती को महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम में छोड़कर जयप्रकाश नारायण कैलिफोर्निया के बर्कले विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए रवाना हुए। अमेरिका में अपनी उच्च शिक्षा के खर्चों के लिए उन्होंने खेतों, बूचड़खानों, कारखानों और खदानों आदि में छोटे मोटे कार्य किए। अपने काम और अध्ययन के चरण के दौरान उन्हें श्रमिक वर्ग की कठिनाइयों की करीबी जानकारी मिली। एम.एन. रॉय के लेखन से जयप्रकाश को तब यह यकीन था कि मानव समाज की मुख्य समस्या धन, संपत्ति, पद, संस्कृति और अवसरों में असमानता थी और समय बीतने से यह खत्म होने वाली नहीं थी। विदेश में अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद जब वह 1929 में भारत लौटे तो उनके विचारों और दृष्टिकोण में कार्ल मार्क्स का स्पष्ट प्रभाव था। भारत वापस आते वक्त लंदन में और भारत में उनकी मुलाकात कई कम्युनिस्ट नेताओं से हुई जिनके साथ उन्होंने भारत की स्वतंत्रता और क्रांति के मुद्दों पर काफी चर्चा की। हालांकि उन्होंने भारतीय भारतीय कम्युनिस्टों के विचारों का समर्थन नहीं किया जो
नेहरू के आमंत्रण पर 1929 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए
अगस्त क्रांति में राम मनोहर लोहिया और अरुणा आसफ अली के साथ कार्य 1999 में मरणोपरांत उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया
जनवरी 1945 में उन्हें लाहौर किले से आगरा जेल स्थानांतरित कर दिया गया। तब गांधी जी ने जोर देकर कहा कि वह केवल लोहिया और जयप्रकाश की बिना शर्त रिहाई के बाद ही ब्रिटिश शासकों के साथ बातचीत शुरू करेंगे राष्ट्रीय कांग्रेस की स्वतंत्रता की लड़ाई के विरुद्ध थे। जवाहर लाल नेहरू के आमंत्रण पर 1929 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए, उसके पश्चात उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
ब्रिटिश शासन के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने पर 1932 में उन्हें जेल में बंद कर दिया गया। 1932 में नासिक जेल में अपने कारावास के दौरान वे राम मनोहर लोहिया, अशोक मेहता, मीनू मसानी, अच्युत
पटवर्धन, सी.के. नारायणस्वामी और अन्य नेताओं के साथ घनिष्ठ संपर्क में आए। इस संपर्क ने उन्हें कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी (सीएसपी) में शामिल होने के लिए प्रेरित किया जो आचार्य नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में कांग्रेस पार्टी के भीतर वाम झुकाव का एक समूह था। दिसंबर 1939 में सीएसपी के महासचिव के रूप में, जयप्रकाश ने लोगों से आह्वान किया कि द्वितीय विश्व युद्ध का फायदा उठाते हुए भारत में ब्रिटिश शोषण को रोका जाए और और ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंका जाए। इस वजह से उन्हें 9 महीनों के लिए जेल में डाल दिया गया था। अपनी रिहाई के बाद उन्होंने महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस से मुलाकात की। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत करने के लिए उन्होंने दोनों नेताओं के बीच एक नजदीकी बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन उसमें वे सफल नहीं हो सके। अगस्त 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जयप्रकाश नारायण के अन्य उत्कृष्ट गुण सामने आए। जब सभी वरिष्ठ नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था, तब उन्होंने राम मनोहर लोहिया और अरुणा आसफ अली के साथ मिल कर चल रहे आंदोलन का प्रभार ले लिया था। वे उन दिनों भूमिगत होकर कार्य कर रहे थे। हालांकि वह भी लंबे समय तक जेल से बाहर नहीं रह पाए और जल्द ही उन्हें भारत रक्षा नियम, जो कि एक सुरक्षात्मक कारावास कानून था और जिसमें सुनवाई की जरूरत नहीं थी, के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें हजारीबाग सेंट्रल जेल में रखा गया था। जेपी ने अपने साथियों के साथ जेल से भागने की योजना बनानी शुरू कर दी। जल्द ही यह अवसर उन्हें नवंबर 1942 की दिवाली के दिन हाथ लगा, जब बड़ी संख्या में गार्ड त्योहार की वजह से छुट्टी पर थे। जेल की दीवार फांदकर बाहर निकलने का यह साहसी कृत्य ही था, जिसने जेपी को रातोंरात देश का लाडला नायक बना दिया। हजारीबाग जेल से उनके फरार की घटना को लेकर खासतौर पर पूरे बिहार में उत्साह का माहौल था। राष्ट्कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने उनके सम्मान में पटना के गांधी मैदान में हुई सभा में गाया भी-
अगस्त क्रांति के 75 वर्ष ‘है ‘जयप्रकाश’ वह नाम जिसे इतिहास समादर देता है। बढ़ कर जिसके पद-चिह्नों को उर पर अंकित कर लेता है।।’ इस अवधि में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए जेपी ने भूमिगत रूप में सक्रिय रूप से काम किया। ब्रिटिश शासन के अत्याचार से लड़ने के लिए नेपाल में उन्होंने एक आजाद दस्ता (स्वतंत्रता ब्रिगेड) बनाया। कुछ महीनों के बाद सितंबर 1943 में एक ट्रेन में यात्रा करते वक्त उन्हें पंजाब में गिरफ्तार कर लिया गया और स्वतंत्रता आंदोलन की महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा उनको यातनाएं भी दी गईं। जनवरी 1945 में उन्हें लाहौर किले से आगरा जेल स्थानांतरित कर दिया गया। जब गांधी जी ने जोर देकर कहा कि वह केवल लोहिया और जयप्रकाश की बिना शर्त रिहाई के बाद ही ब्रिटिश शासकों के साथ बातचीत शुरू करेंगे। गांधी जी के दबाव के बाद उन्हें अप्रैल 1946 को मुक्त कर दिया गया। भारत की आजादी के साथ ही जयप्रकाश को अपने राजनीतिक जीवन में शायद पहली बार सामाजिक परिवर्तन के लिए हिंसा की निरर्थकता का पूर्ण अहसास हुआ था। हालांकि, गरीबों के लिए उनकी प्रतिबद्धता कम नहीं हुई और इसी ने उन्हें
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आवरण कथा
डॉ. युसुफ अली का स्मरण
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डॉ. युसुफ अली ने दिए थे ‘भारत छोड़ो’ और ‘साईमन गो बैक’ के नारे
रत छोड़ो आंदोलन को नए दौर की प्रासंगिकता के साथ याद करते हुए प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात में खासतौर पर महान स्वाधीनता सेनानी डॉ. युसुफ मेहर अली (23 सितंबर, 1903 - 2 जुलाई, 1950) का स्मरण किया। डॉ. अली को न सिर्फ इस बात का श्रेय हासिल है कि उन्होंने ‘भारत छोड़ो’ का तारीखी नारा दिया, बल्कि भारतीय स्वाधीनता इतिहास में उन्हें इससे पहले ‘साईमन गो बैक’ के ऐतिहासिक आह्वान के लिए भी याद किया जाता है। डॉ. युसुफ मेहर अली भारत में
उन्हें ‘साईमन गो बैक’ के ऐतिहासिक आह्वान के लिए भी याद किया
समाजवादी विचारधारा के शुरुआती प्रमुख नेताओं का पंक्ति में शामिल रहे हैं। डॉ. अली एक
स्वतंत्रता सेनानी के साथ एक समाज सुधारक भी थे। 23 सितंबर, 1903 को जन्मे डॉ. अली राष्ट्रीय मीलीशिया, बंबई यूथ लीग और कांग्रेस सोशिलिस्ट पार्टी के संस्थापकों में थे। उन्होंने मजदूर और किसान संगठन को मजबूत करने में काफी योगदान दिए। उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आठ बार जेल में जाना पड़ा। वे 1942 में लाहौर जेल मे रहते हुए मुंबई के मेयर के रुप में चुने गए। उन्होंने महात्मा गांधी के साथ मिलकर ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन जैसे अन्य आंदोलनों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
आंदोलन की आकाशवाणी
हजारीबाग सेंट्रल जेल की दीवार फांदकर बाहर निकलने का साहसी कृत्य ही था, जिसने जेपी को रातोंरात देश का लाडला नायक बना दिया
1942 के आंदोलन में खुफिया रेडियो चलाने वाली उषा मेहता ने आजादी के बाद भी गांधी के रचनात्मक कार्यों से जुड़ी रहीं
विनोबा भावे के भूदान आंदोलन के करीब लाया। यह उनके जीवन का दूसरा महत्वपूर्ण चरण था। फिर सत्तर के दशक की शुरुआत में तीसरा चरण आया जब आम आदमी बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और महंगाई की विकृतियों से पीड़ित था। 1974 में गुजरात के छात्रों ने उनसे नव निर्माण आंदोलन के नेतृत्व का आग्रह किया। उसी वर्ष जून में उन्होंने पटना के गांधी मैदान में एक जनसभा से शांतिपूर्ण ‘संपूर्ण क्रांति’ का आह्वान किया। उन्होंने छात्रों से भ्रष्ट राजनीतिक संस्थाओं के खिलाफ खड़े होने का आह्वान किया और एक साल के लिए कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को बंद करने के लिए कहा, क्योंकि वह चाहते थे कि इस समय के दौरान छात्र अपने को राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए समर्पित करें। यह इतिहास का वह समय है जब उन्हें ‘जेपी’ बुलाया जाने लगा। 1975 में आपातकाल की घोषणा हुई और जो बाद में जनता पार्टी की जीत में तब्दील हुई तथा मार्च 1977 में केंद्र में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी। जनता पार्टी की छत्रछाया के तहत सभी गैर-कांग्रेसी दलों को एकत्रित करने का श्रेय उनको ही जाता है। हमारे देश के हर स्वतंत्रता प्रेमी व्यक्ति को जेपी हमेशा याद रहेंगे। एक श्रद्धांजलि के रूप में इस आधुनिक क्रांतिकारी को भारत सरकार ने 1999 में मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।
उषा की आवाज में हुआ था। यह रेडियो लगभग हर दिन अपनी जगह बदलता था, ताकि अंग्रेज अधिकारी उसे पकड़ न सकें। इस खुफिया रेडियो को डॉ. राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन सहित कई प्रमुख नेताओं ने सहयोग दिया। रेडियो पर महात्मा गांधी सहित देश के प्रमुख नेताओं के रिकॉर्ड किए गए संदेश बजाए जाते थे। तीन माह तक प्रसारण के बाद आखिरकार अंग्रेज सरकार ने उषा और उनके सहयोगियों को पकड़ लिया और उन्हें जेल में डाल दिया गया। सीक्रेट कांग्रेस रेडियो चलाने के कारण उन्हें चार साल की जेल हुई। जेल में उनका स्वास्थ्य बहुत खराब हो गया और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। बाद में उन्हें 1946 में रिहा किया गया। उषा एक जुझारू स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने आजादी के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। वह बचपन से ही गांधीवादी विचारों से प्रभावित
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रत छोड़ो आंदोलन के समय खुफिया ‘कांग्रेस रेडियो’ चलाने के कारण पूरे देश में विख्यात हुईं उषा मेहता ने आजादी के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और आजादी के बाद वह गांधीवादी दर्शन के अनुरूप महिलाओं के उत्थान के लिए प्रयासरत रहीं। उषा ने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अपने सहयोगियों के साथ 14 अगस्त, 1942 को सीक्रेट कांग्रेस रेडियो की शुरूआत की थी। इस रेडियो से पहला प्रसारण भी
थीं और उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए कई कार्यक्रमों में बेहद रूचि से कार्य किया। उषा मेहता आजीवन गांधीवादी विचारों को आगे बढ़ाने, विशेषकर महिलाओं से जुड़े कार्यक्रमों में काफी सक्रिय रहीं। उन्हें गांधी स्मारक निधि की अध्यक्ष चुना गया और वह गांधी शांति प्रतिष्ठान की सदस्य भी थीं। 25 मार्च, 1920 को सूरत के एक गांव में जन्मी उषा का महात्मा गांधी से परिचय मात्र पांच वर्ष की उम्र में ही हो गया था। कुछ समय बाद राष्ट्रपिता ने उनके गांव के समीप एक शिविर का आयोजन किया, जिससे उन्हें बापू को समझने का और मौका मिला। इसके बाद उन्होंने खादी पहनने और आजादी के आंदोलन में भाग लेने का प्रण किया। उन्होंने बंबई विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातक डिग्री ली और कानून की पढ़ाई के दौरान वह भारत छोड़ो आंदोलन में पूरी तरह से सामाजिक जीवन में उतर गईं। आजादी के बाद उन्होंने गांधी के सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों पर पीएचडी की और बंबई विश्वविद्यालय में अध्यापन शुरू किया। बाद में वह नागरिक शास्त्र एवं राजनीति विभाग की प्रमुख बनी। इसी के साथ वह विभिन्न गांधीवादी संस्थाओं से जुड़ी रहीं। भारत सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया। उनका निधन 11 अगस्त 2000 को हुआ।
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1942 की रानी झांसी अरुणा आसफ अली
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नौ अगस्त 1942 को मुंबई के गौलिया टैंक मैदान में राष्ट्रीय ध्वज फहराकर भारत छोड़ो आंदोलन के आगाज की देश-दुनिया को सूचना दी
एक नजर
एसएसबी ब्यूरो
रत में समाजवादी आंदोलन और स्वाधीनता के आखिरी व निर्णायक संघर्ष के बीच नजदीकी रिश्ता रहा है और इस रिश्ते को निभाने वाले तारीखी किरदारों में अरुणा आसफ अली का नाम शामिल है। डॉ. राम मनोहर लोहिया के साथ ‘इंकलाब’ नामक मासिक पत्रिका निकालने वालीं अरुणा को आजादी की लड़ाई और उसके बाद समाजवादी आंदोलन में सशक्त व सतत भूमिका निभाने के लिए याद किया जाता है। उन्हें 1997 में भारत सरकार ने अपने सर्वोच्च सम्मान भारत-रत्न से विभूषित किया था। अरुणा आसफ अली आजादी की लड़ाई में एक नायिका के रूप में उभर कर सामने आईं। उनकी पहचान 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से हुई। उन्होंने मुंबई के गौलिया टैंक मैदान में राष्ट्रीय ध्वज फहराकर भारत छोड़ो आंदोलन के आगाज की सूचना दी। ऐसा करके वो उन हजारों युवाओं के लिए एक मिसाल बन गईं, जो उनका अनुसरण कर देश की आजादी के लिए कुछ कर गुजरना चाहते थे। अरुणा आसफ अली का जन्म 16 जुलाई 1909 को कालका (हरियाणा) के एक रूढ़िवादी हिंदू बंगाली परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम अरुणा गांगुली था। उन्होंने लाहौर और नैनीताल के सेक्रेड हार्ट कान्वेंट में अपनी शिक्षा प्राप्त की। स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद अरुणा आसफ अली गोखले मेमोरियल स्कूल, कलकत्ता, में शिक्षक के तौर पर कार्य करने लगीं। इलाहबाद में उनकी मुलाकात उनके होने वाले पति आसफ अली से हुई जो प्रख्यात कांग्रेसी नेता थे और उम्र में उनसे 23 वर्ष बड़े थे। उन्होंने 1928 में अपने माता पिता के मर्जी के विरुद्ध जाकर शादी कर ली, जो उनके धर्म और आयु में इतने ज्यादा अंतर के विरुद्ध थे। वह भारत में आदर्श नारी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं। 1942 में विद्रोहात्मक आंदोलन में जिन महिलाओं के नाम उभर कर राष्ट्रीय ख्याति अर्जित करने में सफल हुए, उनमें सर्वप्रथम नाम अरुणा आसफ अली का ही लिया जाता है। अपने सशक्त भूमिगत आंदोलन के कारण उन्हें 1942 की ‘नायिका’ भी कहा गया है। वैसे इसके पहले 1930 में सामूहिक व 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी वे जेल गई थीं। पर तब तक वह अनेक में से एक ही थीं। राष्ट्रीय नेताओं की प्रथम पंक्ति में उनका नाम भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ही चमका था। छात्र-जीवन से ही महात्मा गांधी से प्रभावित अरुणा 1930 के नमक सत्याग्रह के समय एक अग्रणी नेत्री के रूप में सामने आ चुकी थीं। जुलूसों
छात्र जीवन से ही गांधी जी से प्रभावित थीं अरुणा आसफ अली
1930 में सामूहिक और 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह में जेल गईं गोवा-मुक्ति के लिए बनी ‘राष्ट्रीय संघर्ष समिति’ की अध्यक्षा रहीं
26 दिसंबर 1942 को उनकी दिल्ली की संपत्ति जब्त कर ली गई। उन्हें नोटिस दिया गया कि एक महीने के अंदर वे सामने आकर आत्मसमपर्ण कर दें तो उनकी संपत्ति उन्हें लौटा दी जाएगी। पर अरुणा आसफ अली सामने नहीं आईं का नेतृत्व व सभाओं को संबोधित करने जैसी गतिविधियां देखकर दिल्ली के चीफ कमिश्नर ने उन्हें चेतावनी दी। उनसे आगे के लिए अच्छे व्यवहार का लिखित आश्वासन देने तथा बांड भरने के लिए कहा। ऐसा करने से इंकार करने पर उन्हें एक वर्ष के लिए जेल भेज दिया। कुछ महीनों के बाद जब ‘गांधी-इरविन समझौते’ के समय सभी राजनीतिक
कैदी छोड़ दिए गए, अरुणा आसफ अली को तब भी नहीं छोड़ा जा रहा था। जब जेल की साथियों ने अरुणा आसफ अली की रिहाई के लिए स्वयं भी रिहा होने से इंकार कर दिया। उनकी रिहाई के लिए महात्मा गांधी ने भी हस्तक्षेप किया। उनके पक्ष में व्यापक जनमत देख, आखिरकार उन्हें रिहा कर दिया गया। 1932 में अरुणा आसफ अली फिर सत्याग्रह
करके जेल गईं और उन्हें दुबारा जुर्माने के साथ छह महीने की सजा मिली। जुर्माना अदा न करने पर पुलिस उनकी कीमती साड़ियां और गहनें उठा ले गई। दिल्ली जिला-जेल में कैदियों के साथ किए गए दुर्व्यवहार को देखकर अरुणा आसफ अली ने जेल में ही भूख-हड़ताल कर दी। तब उन्हें काफी कष्टों का सामना करना पड़ा था। अंत में अधिकारियों ने उनकी मांगे तो मान लीं, पर उन्हें वहां से हटा कर अंबाला जेल में भेज दिया । इस बार रिहाई के बाद उन्होंने एक साल स्वास्थ्य-सुधार में लगाया तथा स्वयं को सक्रियता से अलग रख, देश की उन स्थितियों में आजादी पाने के उपायों पर अपने ढंग से अध्ययन और चिंतन जारी रखा। 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह करके वह फिर जेल गई थीं, पर 1942 के आंदेालन में उन्होंने एक निर्णय ले लिया था कि वे इस बार जेल नहीं जाएंगी, भूमिगत रहकर काम करेंगी। आठ अगस्त 1942 के भारत छोड़ो प्रस्ताव के समय वह अपने पति के साथ कांग्रेस की कार्यकारिणी की बैठक में मुंबई में उपस्थित थीं। लगभग सभी बड़े नेताओं की गिरफ्तारी के बाद 9 अगस्त को उन्होंने सरकारी इमारतों पर झंडा फहराने के आंदोलन का श्रीगणेश करने वाली सभा की अध्यक्षता की थी। यह रस्म उस दिन मुंबई में होने वाली कांग्रेस की आम सभा के स्थान पर की गई थी। इस उत्सव को देखने के लिए अपार भीड़ जुटी थी, जिसे तितर-बितर करने के लिए लाठी चार्ज हुआ, फिर आंसू-गैस के गोले छोड़े गए। गोलियां भी चलाई गई। अनेक लोगों ने उस दिन वहां अपना खून बहाया। इसके तुरंत बाद ही अरुणा आसफ अली भूमिगत हो, देश की अग्रणी नेता बन गई। उन्होंने कहा, ‘सभी लोग जेल चले जाएंगे तो काम कौन करेगा?’ और इस तरह वह सफलतापूर्वक गिरफ्तारी से बचते हुए निरंतर भूमिगत रहकर अपनी गतिविधियां चलाती रहीं। 26 दिसम्बर 1942 को उनकी दिल्ली की संपत्ति जब्त कर ली गई। उन्हें नोटिस दिया गया कि एक महीने के अंदर वे
अगस्त क्रांति के 75 वर्ष
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
आवरण कथा
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29 जुलाई 1996 को अरुणा आसफ अली का देहांत हो गया। मरणोपरांत 1998 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। उनके सम्मान में भारतीय डाक सेवा द्वारा एक डाक टिकट भी जारी किया गया
आत्मसमर्पण कर दें तो उनकी संपत्ति उन्हें लौटा दी जाएगी। पर अरुणा आसफ अली सामने नहीं आईं। उनकी कार और उनका मकान नीलाम कर दिए गए। फिर भी वह नहीं झुकीं। दिल्ली, कोलकाता और मुंबई के सभी क्षेत्रों में गुप्त तरीकों से काम करती हुई आंदोलन को आगे बढ़ाती रहीं। गुप्त परचे छपते व बंटते रहे। डॉ. राम मनोहर लोहिया के साथ मिलकर उन्होंने ‘इंकलाब’ नामक मासिक पत्रिका का संचालन भी किया। मार्च 1944 में उन्होंने ‘इंकलाब’ में लिखा, ‘आजादी की लड़ाई के लिए हिंसा-अहिंसा की बहस में नहीं पड़ना चाहिए। क्रांति का यह समय बहस में खोने का नहीं है। मैं चाहती हूं, इस समय देश का हर नागरिक अपने ढंग से क्रांति का सिपाही बने।’ सरकारी कर्मचारी खुलकर भाग नहीं ले सकते थे। पर अरुणा आसफ अली की अपीलों ने उन्हें भी प्रभावित किया और कई लोग नौकरियां छोड़, आंदोलन में शामिल हो गए। आम जनता के दिलों में उन दिनों
अरुणा आसफ अली का ऐसा स्थान बन गया था कि सरकार चिंतित हो उठी। अरुणा का सुराग देने वाले के लिए पांच हजार के नकद पुरस्कार की घोषणा कर दी गई। पर उस समय के हिसाब से इतनी बड़ी धनराशि का प्रलोभन पाकर भी किसी ने अरुणा आसफ अली के साथ विश्वासघात नहीं किया। निरंतर छिपते, जगह-जगह भटकते और अपार कष्ट सहते हुए भी वे आंदोलन को सफलतापूर्वक भूमिगत नेतृत्व प्रदान करती रहीं। एक बार जब तकलीफें सहते-सहते उनका स्वास्थ्य बहुत गिर गया तो महात्मा गांधी ने उन्हें सलाह दी, ‘मैं नही चाहता कि तुम हड्डियों का ढांचा बनकर भी कष्ट सहती रहो और भूमिगत ही मर जाओ। इसी साहस व शौर्य का परिचय दे, बाहर आओ और आत्मसमर्पण करके पांच हजार रुपए का इनाम स्वयं जीतकर हरिजन फंड में दान कर दो।’ पर अपनी गिरती सेहत के बावजूद उन्होंने उनकी सलाह नहीं मानी और आत्मसमर्पण नहीं किया।
डॉ. सुशीला नैयर के शब्दों में, ‘नायलान की चटख साड़ी और ऊंची ऐड़ी की सैंडिल पहने, केश सज्जा व मेकअप में पूर्ण फैशनेबल आधुनिका के छद्म वेश में जब अरुणा आसफ अली, महात्मा गांधी से आकर मिली, तो कुछ देर के लिए मैं भी उन्हें पहचान नहीं पाई थी, पुलिस क्या पहचानती? पर बापू इन लोगों से गहरा मतभेद रखते हुए भी इन्हें आत्मसमर्पण करने और अंहिसक ढंग से लड़ने की सलाह ही दिया करते थे। स्वयं किसी को पकड़वाने का प्रयत्न उन्होंने कभी नहीं किया। मतभेद के बावजूद, बापू के मन में इन देशभक्तों के लिए स्नेहसम्मान की कमी न थी।’ 1944 में सभी नेता रिहा हो गए थे। पर भूमिगत अरुणा आसफ अली तभी बाहर आई, जब 26 जनवरी 1946 को उनके विरुद्ध गिरफ्तारी का वांरट वापस ले लिया गया। फरवरी 1946 में अरुणा आसफ अली ने सुझाव दिया कि शीघ्र आजादी के लिए भारत में भी ‘आजाद हिंद सेना’ का गठन किया जाए। पर तब तक ‘नौसेना विद्रोह’ व सत्ता-हस्तांतरण के पूर्व की वार्ताएं शुरु हो जाने से अगला घटनाक्रम स्पष्ट हो चला था। अतः इसकी जरूरत नहीं पड़ी। दैनिक ‘ट्रिब्यून’ ने अरुणा आसफ अली की साहसी भूमिगत मोर्चाबंदी के लिए उन्हें ‘1942 की रानी झांसी’ की संज्ञा दी थी। आजादी के बाद 1947 में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष और 1958 में नगर की पहली ‘महिला मेयर’ चुनकर राजधानी दिल्ली में उन्हें सम्मानित किया गया। पर उनका वास्तविक सम्मान तो जनता के दिलों में था। समाजवादी विचारधारा की समर्थक अरुणा आसफ अली तब से अंत तक कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक और सामाजिक संस्थाओं में सक्रिय थीं। इनमें से ‘नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमेन’, ‘भारत-सोवियत मैत्री संघ’, ‘एफ्रो-एशियन एकता समिति’, ‘आल इंडिया
लीग फॉर पीस एंड फ्रीडम’ जैसी संस्थाएं प्रमुख हैं। ‘लिंक’ और ‘पैट्रियट’ समाचार पत्र-पत्रिकाओं की संस्थापिका-व्यवस्थापिका के नाते भी अरुणा आसफ अली का योगदान उल्लेखनीय रहा। ‘महिला दशक’ की योजनाओं व अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भारतीय प्रतिनिधित्व के रूप में भी अरुणा आसफ अली को ‘लेनिन शांति पुरस्कार समिति’ में भी मनोनीत किया गया था। आजादी के बाद 1961 में गोवा-मुक्ति के लिए बनी ‘राष्ट्रीय संघर्ष समिति’ की अध्यक्षा के नाते एक बार फिर वे देश के शेष गुलाम हिस्से को आजाद कराने के लिए कटिबद्ध हो गई थीं। इस तरह व्यापक कार्य-संपर्कों और अनगिनत विश्वयात्राओं के कारण अरुणा आसफ अली अंतरराष्ट्रीय ख्याति की नेत्री बन गई थीं। पर एक अग्रणी सशक्त स्वतंत्रता-सेनानी के रूप में उन्होंने इतिहास में जो अपना स्थान बनाया, भारतीय जन-मन के बीच उनका वहीं स्थान आज भी सुरक्षित है। 1948 में अरुणा और समाजवादियों ने मिलकर सोशलिस्ट पार्टी बनाई। 1955 में यह समूह भारत की कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ गया और वह इसकी केंद्रीय समिति की सदस्य और ‘ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ की उपाध्यक्ष बन गईं। 1958 में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को छोड़ दिया और दिल्ली की प्रथम मेयर चुनी गईं। 1964 में वह कांग्रेस पार्टी से दोबारा जुड़ गईं पर सक्रिय रूप से भाग लेने से मना कर दिया। 1975 में उन्हें लेनिन शांति पुरस्कार और 1991 में अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान के लिए जवाहर लाल नेहरू पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। 29 जुलाई 1996 को अरुणा आसफ अली का देहांत हो गया। मरणोपरांत 1998 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से विभूषित किया गया। उनके सम्मान में भारतीय डाक सेवा द्वारा एक डाक टिकट भी जारी किया गया।
12 आवरण कथा
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
बलिया विद्रोह के सुलगते हर्फ चित्तू पांडेय
उत्तर प्रदेश के बलिया में क्रांतिकारी चित्तू पांडेय के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन इस तेजी से आगे बढ़ा कि इस पूरे क्षेत्र ने आजादी से पहले ही खुद को गणतंत्र घोषित कर दिया
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एक नजर
एसएसबी ब्यूरो
रत छोड़ो आंदोलन’ की विजयी परिणति में भले ही पांच साल लग गए हों, पर इस दौरान देश में स्वाधीनता की ललकार कैसे गूंजी, वह भारतीय स्वाधीनता संघर्ष का अन्यतम सर्ग है। इनमें सबसे अहम है फिरंगी सत्ता को धूल चटाने वाले और 1947 से पहले ही खुद को और अपने इलाके को मुक्त करने वाले क्रांतिवीरों की दिलचस्प दास्तान। गौरतलब है कि ऐसे कुछ क्रांतिवीरों ने जहां एक तरफ देश की आजादी के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया, वहीं अंग्रेजों ने भी उनके दमन में कोई कोरकसर नहीं छोड़ा। अब जबकि 1942 के 9 अगस्त को शुरू हुए ऐतिहासिक ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं, तो देश के लिए यह याद करना जरूरी है कि अंग्रेजी हुकूमत से हमें अगर 1947 में आजादी मिली, तो इसके पीछे संघर्ष और कुर्बानी की अनंत गाथाएं हैं। ऐसी ही एक गाथा है, क्रांतिकारी चित्तू पांडेय और उत्तर प्रदेश के बलिया की। बलिया देश के उन कुछ क्षेत्रों में शुमार रहा, जहां की जनता ने भारत छोड़ो आंदोलन के करो या मरो की शपथ को इस तरह पूरा किया कि उन्होंने फिरंगी दासता मुक्ति की घोषणा 1947 से पहले ही कर दी। अगस्त क्रांति की राष्ट्रीय चर्चा के दौरान बलिया संघर्ष को लेकर संक्षिप्त उल्लेख ही मिलता है, पर इस संघर्ष में भारतीय स्वाधीनता संघर्ष के वे पक्ष छिपे हैं, जिसमें एक तो आंदोलन का लोकपक्षीय स्वरूप उभरता है, वहीं इससे आंदोलित जनता की मनोभूमि की भी समझ बढ़ती है। प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने बलिया विद्रोह की तारीखी अहमियत के साथ इसकी बलिदानी खासियत को अपने शब्दों में बयां किया हैचित्तू पांडेय के नेतृत्व में बलिया का सार्वभौम गणतंत्र करीब सात दिनों तक, तब तक अस्तित्व में रहा जब तक अंग्रेजों के नेतृत्व में आई सेना ने फिर से अपना नियंत्रण कायम नहीं कर लिया और अत्याचार का ऐसा सिलसिला चलाया जिसे उन लोगों के वंशज अभी तक याद रखे हैं, जिनके पूर्वजों ने महिला उत्पीड़न, सामूहिक पिटाई, आगजनी और गोलीबारी के रूप में अंग्रेजी दमन का बहादुरी से सामना किया।
130 नेताओं को फांसी
फ्लेचर नाम के एक अधिकारी के आदेश पर स्थानीय स्वतंत्रता आंदोलन के करीब 130 नेताओं को फांसी चढ़ा दिया गया। जिन लोगों को फांसी नहीं दी गई उन्हें जबरन पेड़ पर चढ़ाया गया और संगीनों से मार दिया गया। पेड़ वाली सजा से बच गए लोगों को जेल ले जाया गया और उल्टा लटका दिया गया। उन्हें
सात दिनों तक बलिया का सार्वभौम गणतंत्र बना रहा करीब 130 स्थानीय स्वाधीनता सेनानियों को फांसी की सजा
बलिया विद्रोह ने कायम की हिंदूमुस्लिम एकता की मिसाल
बलिया औपनिवेशिक शासन की वास्तविकता से हमारी पहचान कराता है, जिसमें भारतीयों को गोरे शासकों के हाथों ऐसे दुख सहने पड़े जो कल्पना से बाहर हैं। इन यातनाओं में कुछ ऐसी थीं, जिसके परिणामस्वरूप मौत भी हो जाती थी भूखा मरने को छोड़ दिया गया। उलटा लटकने की सजा से बचे लोगों को जेल की फर्श पर एक साथ बिठाया गया और उन्हें ऐसी चपाती खिलाई गई कि वे पेचिश का शिकार हो गए।
यातना की हद
बलिया औपनिवेशिक शासन की वास्तविकता से हमारी पहचान कराता है, जिसमें भारतीयों को गोरे शासकों के हाथों ऐसे दुख सहने पड़े जो कल्पना से बाहर हैं। इन यातनाओं में कुछ ऐसी थीं जिनके परिणामस्वरूप मौत भी हो जाती थी, चाहे यह संगीन से चीर डालना हो या अंत में बर्फ की सिल्लियों पर घंटों लिटाने की यातना हो, ये सभी उनसे अलग नहीं थी जो नाजियों के हाथों यहूदियों ने सही। अंतर सिर्फ इतना है कि जर्मनी के आउसविज जैसे स्थानों पर
जो हुआ उन्हें दस्तावेजों में ठीक से दर्ज किया गया है और यातना शिविरों में जो कुछ हुआ उसके लिए जिम्मेदार लोगों को सजा दी गई। अगर मित्र-राष्ट्र (जर्मनी के खिलाफ लड़ने वाले राष्ट्र) या नाजियों के बाद का जर्मनी (हेग) के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में उन्हें सजा दिला नहीं पाए तो इजरायल के आधुनिक राष्ट्र ने इसे किया।
दस्तावेजी गवाही अधूरी
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेने वाली बलिया जैसी जगहों में किए गए अत्याचारों को दस्तावेजों में अभी तक पूरी तरह दर्ज नहीं किया जा सका है। आज तक कोई नहीं जानता कि कमिश्नर फ्लेचर के साथ क्या हुआ और क्या उसे कभी ढेर सारे निर्दोष नागरिकों की हत्या के लिए दोषी ठहराया
गया। इन दिनों कुछ इतिहासकारों के बीच यह बताने का फैशन है कि 200 सालों का औपनिवेशिक शासन उतना बुरा नहीं था और भारत ने जितना खोया उससे ज्यादा उसे मिला, पहले ईस्ट इंडिया कंपनी, जो तथाकथित भलेमानुस व्यापारियों के लिबास में ठगों का गिरोह था, के साथ मेलजोल और फिर ब्रिटिश सरकार से आमने-सामने होकर। व्यवहार में, कंपनी और सरकार की क्रूरता और शोषण में ज्यादा फर्क नहीं था। एक छोटा उदाहरण काफी है। ब्रिटिश सरकार का ही एक प्रतिनिधि था जिसने महाराजा रणजीत सिंह के बेटे और उत्तराधिकारी, दलीप सिंह को धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य किया। ये ब्रिटिश सरकार के ही अधिकारी थे, जिसमें लार्ड डलहौजी शामिल था, जिन्होंने लाहौर के खजाने की लूट का नेतृत्व किया और छोटी उम्र के दलीप सिंह पर दंतकथा बने कोहिनूर हीरे को महारानी विक्टोरिया को व्यक्तिगत रूप से भेंट करने के लिए दबाव डाला। आज यही कोहिनूर ब्रिटेन की रानी के ताज का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।
किसी को कोई हानि नहीं
गोरों के शासन के लाभ के मुद्दे पर लौटें। यह तर्क दिया जाता है कि आखिरकार अंग्रेज ही थे जिन्होंने भारतीयों की अंग्रेजी भाषा से पहचान कराई, देश में ढांचागत विकास किया, चाहे वह शहरों में नल का पानी, बिजली या नालियों की सुविधा हो या रेलवे और डाक-तार की नींव रखना हो। फिर यह अंग्रेज ही थे जिन्होंने महत्वपूर्ण धार्मिक तथा समाजिक सुधार किया, जैसे 1929 में सती तथा बाल विवाह का खात्मा और 1850 में विधवा विवाह का कानून लाना, लेकिन भारतीय सभ्य व्यक्तियों की तरह व्यवहार करने में सक्षम थे। इसके उलट एक सच्चाई यह भी है कि जब अठारहवीं सदी में व्यापार के नाम पर ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना नियंत्रण कम किया तो इसके अधिकारी किसानों से मिलने वाले टैक्स का तीन गुना वसूलते थे। ये टैक्स भयंकर अकाल के समय में भी बने रहते थे। स्थानीय शासकों के समय
अगस्त क्रांति के 75 वर्ष
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
बलिया का बागी
19 अगस्त को बलिया में राष्ट्रीय सरकार का विधिवत गठन किया गया, जिसके प्रधान चित्तू पांडेय बनाए गए। जिले के सारे सरकारी संस्थानों पर राष्ट्रीय सरकार का पहरा बैठा दिया गया
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मर शहीद चित्तू पांडेय का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के रत्तू-चक गांव में 1865 में हुआ था। उनका निधन 1946 में हुआ। आजादी की लड़ाई के दौरान चित्तू पांडेय अपने साथियों जगन्नाथ सिंह और परमात्मानंद सिंह के साथ गिरफ्तार कर लिए गए थे। इससे बलिया की जनता क्षुब्ध थी। इस बीच 9 अगस्त 1942 को गांधी और नेहरू के साथ-साथ कांग्रेस कार्य समिति के सभी सदस्य गिरफ्तार कर अज्ञात जगह भेज दिए गए। इससे जनता उत्तेजित हुई। 23 मई 1984 को बलिया में चित्तू पांडेय की प्रतिमा का अनावरण करते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था कि सारा देश बलिया को चित्तू पांडेय के कारण जानता है। इसी तरह स्वतंत्रता
संग्राम के दौरान जवाहर लाल नेहरू ने जेल से छूटने के बाद कहा था, ‘मैं पहले बलिया की स्वाधीन धरती पर जाऊंगा और चित्तू पांडेय से मिलूंगा।’ इतिहास के पन्नों से जो जानकारी मिलती है, उसके मुताबिक स्वतंत्रता सेनानियों के सामने 19 अगस्त 1942 को बलिया जिले के कलेक्टर ने आत्मसमर्पण कर दिया था। कलेक्टर को जन दबाव के कारण जेल में बंद चित्तू पांडेय और उनके साथियों को रिहा करना पड़ा। जेल से निकलने में थोड़ी देर हुई तो लोगों ने फाटक तोड़ दिया था। इसके बाद आंदोलनकारियों ने कलेक्टरी पर कब्जा कर लिया और चित्तू पांडेय को वहां का जिलाधिकारी घोषित कर दिया। इससे पूर्व 14 अगस्त को वाराणसी कैंट से
हिंदू-मुस्लिम एकता
आज तक कोई नहीं जानता कि कमिश्नर फ्लेचर के साथ क्या हुआ और क्या उसे कभी ढेर सारे निर्दोष नागरिकों की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया पहले एक दूसरे स्वयंसेवक ने राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीक को सहारा देने का बीड़ा उठाया। करीब 11 लोग, एक के बाद एक अंग्रेज सैनिकों द्वारा मारे गए।
13
विश्वविद्यालय के छात्रों की ‘आजाद ट्रेन’ बलिया दिया। इसी तरह इस दौरान सोलह रेलवे स्टेशन पहुंची। इससे जनता में जोश की लहर दौड़ गई। फूंके गए। सैकड़ों जगह रेल की पटरियां उखाड़ी 15 अगस्त को पांडेय पुर गांव में गुप्त बैठक हुई। गईं। अठारह पुलिस कर्मी मारे गए, उनके हथियार बैठक में यह तय हुआ कि 17 और 18 अगस्त छीने गए। 19 अगस्त को जनता जिला मुख्यालय तक तहसीलों तथा जिले के बलिया पहुंची। अपार जन प्रमुख स्थानों पर कब्जा कर समूह को आता देख कलेक्टर 19 अगस्त को बलिया पर घबरा गया। कलेक्टर ने चित्तू हमला किया जाएगा। 17 पांडेय और जगन्नाथ सिंह अगस्त की सुबह रसड़ा सहित 150 सत्याग्रहियों को बैरिया, गड़वार, सिकंदरपुर , रिहा कर दिया। हलधरपुर, नगरा, उभांव आदि 19 अगस्त को जिले में स्थानों पर जनता ने धावा बोल राष्ट्रीय सरकार का विधिवत दिया। बैरिया थाने पर जनता ने गठन किया गया, जिसके जब राष्ट्रीय झंडा फहराने की प्रधान चित्तू पांडेय बनाए गए। मांग की तो थानेदार राम सुंदर जिले के सारे सरकारी संस्थानों सिंह तुरंत तैयार हो गया। यही पर राष्ट्रीय सरकार का पहरा नहीं, उसने स्वयं गांधी बैठा दिया गया। सारे 23 मई 1984 को बलिया में चित्तू टोपी पहन ली। झंडा सरकारी कर्मचारी फहराने के बाद जब पांडेय की प्रतिमा का अनावरण पुलिस लाइन में बंद जनता ने हथियार मांगे दिए गए। हनुमान करते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कर तो थानेदार ने दूसरे दिन गंज कोठी में राष्ट्रीय देने की बात कह कर कहा था कि सारा देश बलिया को सरकार का मुख्यालय समस्या को टाल दिया। चित्तू पांडेय के कारण जानता है कायम किया गया। दूसरे दिन करीब लोगों ने नई सरकार को 40-50 हजार लोगों की भीड़ थाने पहुंची। थानेदार हजारों रुपए दान दिए। चित्तू पांडेय के आदेश से ने धोखा देकर करीब 19 स्वतंत्रता सेनानियों को हफ्तों बंद दुकानें खोल दी गईं। 22 अगस्त को मार डाला। गोली-बारूद खत्म हो जाने के बाद ढाई बजे रात में रेल गाड़ी से सेना की टुकड़ी थानेदार ने अपने सिपाहियों के साथ आत्मसमर्पण नीदर सोल के नेतृत्व में बलिया पहुंची। नीदर सोल कर दिया। पर जनता ने किसी पुलिसकर्मी पर ने मिस्टर वॉकर को नया जिलाधिकारी नियुक्त आक्रमण नहीं किया। बैरिया की तरह नृशंस किया। 23 अगस्त को 12 बजे दिन में नदी के कांड रसड़ा में गुलाब चंद के अहाते में भी हुआ। रास्ते सेना की दूसरी टुकड़ी पटना से बलिया पुलिसिया जुल्म में बीस लोगों की जानें गईं। इस पहुंची। इसके बाद अंग्रेजों ने लोगों पर खूब कहर तरह आंदोलनकारियों ने 18 अगस्त तक 15 थानों ढाए। इस तरह स्वाधीनता की एक बड़ी धधक पर हमला करके आठ थानों को पूरी तरह जला अंतत: फिरंगी दमन की भेंट चढ़ गई।
में यह कितना अलग था और विपदा के समय टैक्स माफ हो जाता था। यह जानने लायक बात है कि दो सौ साल बाद बलिया में आजादी के आंदोलन के नेताओं ने ब्रिटिश प्रशासन के साथ कैसा व्यवहार किया। अंग्रेज अधिकारियों को और उनके स्थानीय चापलूसों को इकट्ठा किया गया और शांतिपूर्वक शहर के सिविल तथा मिलिट्री क्षेत्र को अलग करने वाली रेल लाइन के पार ले जाकर छोड़ दिया गया। किसी को कोई हानि नहीं पहुंचाई गई। इससे भी ज्यादा प्रेरणादायक बात है इस दौरान हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पूरी एकता बनी हुई थी। निश्चित ही था, जब ब्रिटिश वापस आए तो उन्होंने हर तरह के अत्याचार किए। वे नहीं चाहते थे कि बलिया में राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाए। इसीलिए उन्होंने उन लोगों को गोली मार कर हत्या कर दी, जिन्होंने ऐसा करने की कोशिश की। शहर के धुंधलके से एक मुसलिम नौजवान आया और उसने एक झंडा लहराने की कोशिश की, जो यूनियन जैक नहीं था, तो उसे मार दिया गया। बलिया के लोग अभी भी इस पर गर्व करते हैं कि झंडे के जमीन पर गिरने के
आवरण कथा
उधर विश्वयुद्ध, इधर विद्रोह
महत्व की बात यह है कि बलिया के नागरिकों के विद्रोह के तेवर के बारे में ब्रिटिश मीडिया में कभी
कुछ प्रकाशित नहीं हुआ। यह द्वितीय विश्वयुद्ध के समय हुआ जब विंस्टन चर्चिल प्रधानमंत्री थे। युद्ध जैसे ही खत्म होने को आया, उन्होंने कहा कि ब्रिटेन कभी भी भारतीय साम्राज्य को नहीं छोड़ेगा। उनकी रिकार्ड की हुई टिप्पणी है, 'मैं भारतीयों से नफरत करता हूं। वे जानवर जैसे लोग हैं, जिनका धर्म जानवरों जैसा है।' महात्मा गांधी के बारे में भी उनकी इसी तरह की आहत करने वाली टिप्पणी थी, ‘यह देखना खतरनाक और उबकाई देने वाला है कि गांधी, एक राजद्रोही बैरिस्टर, जो वैसे फकीर का नाटक कर रहा है, जिसका रूप पूरब में काफी जाना-पहचाना है, सम्राट-राजा के प्रतिनिधि से बराबरी में बातचीत करने के लिए वायसराय के महल की सीढियों पर अधनंगा चढ़ रहा है, इसके बावजूद कि वह सिविल नाफरमानी का अभियान संगठित कर रहा है और चला रहा है।' कह सकते हैं कि चर्चिल भी यह अंदाजा नहीं लगा पाए कि बलिया ने ऐसी आग जलाई थी, जिसने पांच साल बाद अपनी चपेट में लेकर भारत तथा इसके बाहर ब्रिटिश राज को नष्ट कर दिया।
14 आवरण कथा
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
अगस्त क्रांति का बागी नायक डॉ. राममनोहर लोहिया
अगस्त क्रांति की घोषणा के साथ ही गांधी जी सहित कांग्रेस के सारे आला नेता बंदी बना लिए गए। ऐसे में डॉ. राममनोहर लोहिया ने भूमिगत रहकर आंदोलन की आंच कम नहीं होने दी
लो
एक नजर
एसएसबी ब्यूरो
हिया को भारतीय संस्कृति से न केवल अगाध प्रेम था, बल्कि देश की आत्मा को उन जैसा हृदयंगम करने वाला समकालीन शायद ही कोई दूसरा हो। समाजवाद की यूरोपीय सीमाओं और आध्यात्मिकता की राष्ट्रीय सीमाओं को तोड़कर उन्होंने एक विश्व-दृष्टि विकसित की। उनका विश्वास था कि पश्चिमी विज्ञान और भारतीय अध्यात्म का असली व सच्चा मेल तभी हो सकता है, जब दोनों को इस प्रकार संशोधित किया जाए कि वे एक-दूसरे के पूरक बनने में समर्थ हो सकें। भारतमाता से लोहिया की मांग थी-‘हे भारतमाता ! हमें शिव का मस्तिष्क और उन्मुक्त हृदय के साथसाथ जीवन की मर्यादा से रचो।’’ वास्तव में यह एक साथ एक विश्व-व्यक्तित्व की मांग है। इससे ही उनके मस्तिष्क और हृदय को टटोला जा सकता है। बात अगस्त क्रांति की करें तो इसकी घोषणा के साथ ही जहां गांधी जी सहित कांग्रेस के सारे आला नेता बंदी बना लिए गए, डॉ. राममनोहर लोहिया अंग्रेजों को चकमा देकर गिरफ्तारी से बच निकले। अपनी समाजवादी मित्र मंडली के साथ वे भूमिगत हो गए। भूमिगत रहते हुए भी उन्होंने बुलेटिनों, पुस्तिकाओं, विविध प्रचार सामग्रियों के अलावा समानांतर रेडियो 'कांग्रेस रेडियो' का संचालन करते हुए देशवासियों को अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए प्रेरित किया, लेकिन जब अगस्त क्रांति का जन उबाल ठंडा पड़ने लगा तब डॉ. लोहिया का ध्यान नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अगुआई में आजाद हिंद फौज द्वारा छेड़े गए सशस्त्र मुक्ति संग्राम की ओर गया। उस समय भारत के पूर्वोत्तर भाग में नेताजी का विजय अभियान जारी था। डॉ. लोहिया नेताजी से मिलने की योजना बना ही रहे थे कि अचानक 20 मई, 1944 को उन्हें मुंबई में गिरफ्तार कर लिया गया। दुर्भाग्य से अगस्त क्रांति के वीर सेनानी डॉ. लोहिया और आजाद हिंद फौज के सेनानायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस का मिलन न हो सका। वैसे अगस्त क्रांति के दौरान डॉ. लोहिया के कौशल और साहस से महात्मा गांधी अत्यंत प्रभावित हुए थे। इसके पहले बापू डॉ. लोहिया के कई विचारोत्तेजक लेख, बेबाक टिप्पणियां आदि अपने पत्र 'हरिजन' में प्रकाशित भी कर चुके थे। भारत में अंग्रेजी साम्राज्य का सूरज डूब रहा था। राष्ट्रीय नेताओं का यह मानना था कि अंग्रेजों के जाते ही पुर्तगाली भी गोवा से स्वयं कूच कर जाएंगे, इसीलिए वहां शक्ति झोंकने की जरूरत नहीं, लेकिन डॉ. लोहिया ने वहां जाकर आजादी की लड़ाई का बिगुल बजा ही दिया। उनका साथ महात्मा गांधी को छोड़कर और किसी बड़े नेता ने नहीं दिया। इससे भी
अगस्त क्रांति से लेकर आजादी के बाद तक गांधी जी के निकट सहयोगी गांधी जी ने ‘हरिजन’ में उनके कई लेख और टिप्पणियां प्रकाशित कीं
1944 में गिरफ्तारी के कारण सुभाष चंद्र बोस से मिलना न हो सका
आजादी के बाद जब देश सांप्रदायिकता के संकट में फंस गया तो शांति और सद्भाव कायम करने में डॉ. लोहिया ने गांधी का सहयोग किया। इस प्रकार वे बापू के बेहद करीब आ गए थे पता चलता है कि गांधी लोहिया का कितना सम्मान करते थे। दरअसल, डॉ. लोहिया का व्यक्तित्व और उनका स्वाधीनता संग्राम व उसके बाद के दिनों का संघर्ष उन्हें भारतीय इतिहास का एक ऐसा नायक बनाता है, जिसके दिल में देश के सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति तो अगाध आस्था तो थी ही, वे स्वतंत्र भारत में लोकतांत्रिक समाजवादी आंदोलन के पुरोधा और प्रखर चिंतक भी थे। यही वजह है कि डॉ. लोहिया को भारत आज भी एक अजेय योद्धा और महान विचारक के रूप में देखता है। देश की राजनीति में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और स्वतंत्रता के बाद ऐसे कई नेता हुए, जिन्होंने अपने दम पर शासन का रूख बदल दिया, जिनमें सर्वप्रमुख थे डॉ. राममनोहर लोहिया। अपनी प्रखर देशभक्ति और बेलौस तेजस्वीे समाजवादी विचारों के कारण अपने समर्थकों के साथ ही डॉ. लोहिया ने अपने विरोधियों के मध्य भी अपार सम्मान हासिल किया।
उनका का जन्म 23 मार्च 1910 को तमसा नदी के किनारे स्थित कस्बा अकबरपुर, फैजाबाद में हुआ था। उनके पिताजी श्री हीरालाल पेशे से अध्यापक व हृदय से सच्चे राष्ट्रभक्त थे। उनके पिताजी गांधी जी के अनुयायी थे। जब वे गांधी जी से मिलने जाते तो राम मनोहर को भी अपने साथ ले जाया करते थे। इसके कारण गांधी जी के विराट व्यक्तित्व का उन पर गहरा असर हुआ। वे अपने पिताजी के साथ 1918 में अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार शामिल हुए। आजादी के बाद जब देश सांप्रदायिकता के संकट में फंस गया तो शांति और सद्भाव कायम करने में डॉ. लोहिया ने गांधी का सहयोग किया। इस प्रकार वे बापू के बेहद करीब आ गए थे। इतने करीब की गांधी ने जब लोहिया से कहा कि जो चीज आम आदमी के लिए उपलब्ध नहीं है, उसका उपभोग तुम्हें भी नहीं करना चाहिए और सिगरेट त्याग देना चाहिए तो लोहिया ने तुरंत उनकी बात मान ली। 28 जनवरी, 1948 को गांधी ने लोहिया से कहा,
मुझे तुमसे कुछ विषयों पर विस्तार में बात करनी है, इसीलिए आज तुम मेरे शयनकक्ष में सो जाओ। सुबह तड़के हम लोग बातचीत करेंगे। लोहिया गांधी के बगल में सो गए। उन्होंने सोचा कि जब बापू जागेंगे, तब वे जगा लेंगे और बातचीत हो जाएगी, लेकिन जब लोहिया की आंख खुली तो गांधी जी बिस्तर पर नहीं थे। बाद में जब डॉ. लोहिया गांधी से मिले तब गांधी ने कहा, ‘तुम गहरी नींद में थे। मैंने तुम्हें जगाना ठीक नहीं समझा। खैर कोई बात नहीं। कल शाम तुम मुझसे मिलो। कल निश्चित रूप से मैं कांग्रेस और तुम्हारी पार्टी के बारे में बात करूंगा। कल आखिरी फैसला होगा।’ लोहिया 30 जनवरी, 1948 को गांधी से बातचीत करने के लिए टैक्सी से बिड़ला भवन की तरफ बढ़े ही थे कि तभी उन्हें गांधी की शहादत की खबर मिली। इस तरह भारत के नवनिर्माण की एक ठोस योजना की भ्रूण हत्या हो गई। दिलचस्प है कि बापू अपनी शहादत से पहले अपने आखिरी वसीयतनामे में कांग्रेस को भंग करने की अनिवार्यता सिद्ध कर चुके थे। उस समय उन्होंनें ऐसा स्पष्ट संकेत दिया था कि आजादी की लड़ाई के दौरान अनेकानेक उद्देश्यों के निमित्त गठित विविध रचनात्मक कार्य संस्थाओं को एकसूत्र में पिरोकर शीघ्र ही एक नया राष्ट्रव्यापी लोक संगठन खड़ा किया जाएगा। डॉ. लोहिया की उसमें विशेष भूमिका होती। इस प्रकार बनने वाले शक्तिपुंज से बापू आजादी की अधूरी जंग के निर्णायक बिन्दु तक पहुंचाना चाहते थे। आजादी के बाद के दो दशकों में डॉ. लोहिया ने देश में लोकतांत्रिक समाजवादी मूल्यों की न सिर्फ एक नई जमीन तैयार की, बल्कि देश में संसदीय लोकतंत्र की सार्थकता को लेकर एक वैकल्पिक दृष्टि भी दी। 12 अक्टूबर 1967 को उनका देहांत 57 वर्ष की आयु में हुआ। कश्मीर समस्या हो, गरीबी, असमानता अथवा आर्थिक मंदी, इन तमाम मुद्दों पर डॉ. लोहिया का चिंतन और सोच स्पष्ट थी। कई लोग उनको अपने समय का सबसे बड़ा राजनीतिज्ञ, धर्मगुरु, दार्शनिक और राजनीतिक कार्यकर्ता और प्रखर वक्ता मानते हैं।
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
विकास
योजना आवास
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हकीकत बनेगा अपने घर का सपना 2022 तक सबके लिए घर का सपना सरकार ने देखा और उसे पूरा करने में जुट गई
ऐ
सा कौन है जिसकी आंखों में अपने घर का सपना नहीं पलता हो, लेकिन आजादी के 70 साल बाद भी देश में आज करीब पांच करोड़ परिवार ऐसे हैं जिनके पास अपना घर नहीं। देश के शहरों में दो करोड़ और गांवों में करीब तीन करोड़ परिवार अपने घर का सपना पाले पाले बैठे थे, लेकिन कहीं कोई रास्ता ऐसा नहीं था, जिस पर चल कर इस सपने को वे पूरा कर सकें। एक बार चारदीवारी बन जाती है और उस पर छत आ जाती है, तो लोगों के सपने में भी जान आ जाती है। देश के प्रधानमंत्री ने इसी सोच के सहारे लोगों के सपने में जान डालने की कोशिश की। प्रधानमंत्री आवास योजना इसी सोच और समझ का प्रतिफल है। वर्ष 2022 तक देश के हर परिवार को घर देने का वादा इसीलिए सरकार ने देश से किया है। सरकार मिशन मोड में लोगों को दोतरफा मदद कर रही है। एक तरफवह लोगों के लिए घर बनवा रही है, तो दूसरी तरफ घर खरीदने में भी मदद कर रही है।
24 लाख घरों को मंजूरी
प्रधानमंत्री आवास योजना को लागू हुए दो साल हो गए। इस योजना के तहत शहरी क्षेत्रों में करीब 1.2 करोड़ आवास मंजूर किया जाना है। अब तक महज दो साल में ही 24 लाख किफायती घरों के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है और इसके लिए 111 हजार 412 करोड़ रुपए जारी भी कर दिए गए हैं। इतना ही नहीं पिछले दो सालों में ही करीब 2.99 लाख घर बन कर भी तैयार हो गए।
शहरी आवास निर्माण की दोगुनी रफ्तार
प्रधानमंत्री आवास योजना(शहरी) की खास बात
इसकी तेजी है। दरअसल, पूर्ववर्ती सरकारों के तहत इसी तरह की एक योजना थी, लेकिन इसकी जटिल प्रक्रियाओं के कारण इसकी धीमी गति से लोगों को लाभ नहीं मिल पा रहा था। इसीलिए पिछले दस सालों में इस योजना के तहत महज 12.4 लाख घरों की ही मंजूरी दी गई। इतना ही नहीं 2005-14 के दौरान इसके लिए महज 17.400 करोड़ रुपए ही दिए जा सके। जाहिर है प्रधानमंत्री आवास योजना की रफ्तार दोगुनी है।
37 हजार करोड़ खर्च करेगा केंद्र
शहरी क्षेत्र के लिए लागू प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पिछले दो सालों में 24 लाख प्रस्तावों को मंजूरी दे दी गई है। इसके लिए केंद्र सरकार 37.232 हजार करोड़ रुपए की सहायता देगी। आंध्र के 13.77 लाख घरों के मंजूरी दी गई है और 4.20 लाख घरों के बनाने के प्रस्ताव को जमा भी कर दिया गया है। वहीं तमिलनाडु ने 3.32 लाख और गुजरात के 1.38 लाख मध्य प्रदेश के 2.83 लाख घरों को मंजूरी दी है। त्रिपुरा ने 50 हजार का प्रस्ताव भेजा था और 45.901घरों को मंजूरी दे दी गई है। महाराष्ट्र, यूपी जैसे प्रदेशों में रफ्तार कम है, लेकिन वहां भी तेजी लाने के प्रयास जारी है।
इस वित्त वर्ष में बनेंगे 12 लाख घर
केंद्र सरकार ने मौजूदा वित्तो वर्ष में शहरों के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 12 लाख मकान
एक नजर
देश में करीब पांच करोड़ परिवार हैं बेघर शहरों में दो करोड़ को चाहिए अपना घर
ग्रामीण इलाकों में तीन करोड़ को है घर का इंतजार
बनाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। पीएमएवाई के तहत केंद्र का 2018-19 में 26 लाख, 2019-20 में 26 लाख, 2020-21 में 30 लाख और 2021-22 में 29.20 लाख मकान बनाने का लक्ष्य तय किया गया है। जमीन अधिग्रण की अड़चनों की वजह से योजना शुरू में रफ्तार नहीं पकड़ सकी थी, लेकिन अब 18.76 लाख मकानों के निर्माण के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है और 13.06 लाख मकानों के निर्माण के लिए धन भी जारी कर दिया गया है।
योजना से बढ़ा रोजगार
दो साल पहले शुरू की गयी प्रधानमंत्री आवास योजना ने अब तक 1.2 करोड़ लोगों को रोजगार प्रदान किया है। एक रिपोर्ट के अनुसार इस क्षेत्र में निवेश किए गए हर एक लाख रुपए पर 2.69 लोगों को रोजगार मिलता है। लगातार प्रयासों से यह
‘एक बार चारदीवारी बन जाती है और उस पर छत आ जाती है, तो लोगों के सपने में भी जान आ जाती है’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
आंकड़ा 4.06 तक पंहुचा जा सकता है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अब तक 1,10.753 करोड़ रुपए का निवेश किया जा चुका है। अनुमान है कि इस पूरी योजना के तहत लगभग 4.5 करोड़ लोगों को रोजगार मिल सकता है।
सस्ते मकान में तेजी
प्रधानमंत्री आवास योजना पीपीपी मोड के आधार पर चल रही है। ऐसा अनुमान है कि इस कारण सस्ते आवासीय क्षेत्र में जबरदस्त तेजी आने वाली है। कई हाउसिंग कंपनियों के अनुसार ग्राहकों का जबरदस्त आकर्षण दिख रहा है। पीएमएवाई के तहत केंद्र सरकार ने मध्यम आयवर्ग के लोगों के लिए दो नई योजनाएं शुरू की। इन योजनाओं के तहत 9 लाख रुपए तक के आवास ऋण पर ब्याज में 4 फीसदी और 12 लाख रुपए के आवास ऋण पर ब्याज में 3 फीसदी छूट दी गई है।
पीपीपी मोड से कंपनियों में आकर्षण
सस्ते मकानों के इन नए खरीदारों पर कई अन्य कंपनियों की भी नजरें टिकी हुई हैं और इससे सस्ते मकानों की मांग में अब तेजी दिखने लगी है। इसी साल मार्च में कर्म इंफ्रास्ट्रक्चर ने महाराष्ट्र के ठाणे जिले में 10 लाख रुपए से कम कीमत वाले 5120 फ्लैटों के साथ सस्ती आवासीय परियोजना शुरू की है। सिंगापुर ग्लोबल ने गुरुग्राम के सेक्टर 36 में 20 लाख रुपए से कम कीमत वाले 1244 मकानों के साथ अपनी परियोजना सेरेनाज को शुरू किया है। प्रॉपइक्विटी के आंकड़ो के अनुसार, मार्च 2017 में समाप्त पिछले छह महीने के दौरान 20 लाख रुपए से कम कीमत वाले मकान की श्रेणी में 13122 नए मकान बनाने के लिए परियोजनाएं शुरू की गई हैं।
16 खुला मंच
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
अरुण जेटली
‘अकर्मण्यता के जीवन से यशस्वी जीवन और यशस्वी मृत्यु श्रेष्ठ होती है’
लेखक केंद्रीय वित्त एवं रक्षा मंत्री तथा भाजपा संसदीय समिति के सदस्य हैं
सुपर पावर बनने की राह पर भारत
-चंद्रशेखर वेंकटरमन
कई दशकों से हमारे बच्चे ऐसे रोगों के कारण असमय मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे, जिन रोगों को रोका जा सकता था। बाल और शिशु मृत्यु को कम करने के लिए नए टीके शुरू किए गए हैं
अफवाह की चोटी
अफवाहें, किसी समाज की कुत्सितता और उसके पिछड़ेपन को मिलने वाला सनकी प्रोत्साहन भर हैं
अ
फवाहों को लेकर अब तक कई तरह के मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्रीय अध्ययन हुए हैं। इन अध्ययनों में ये बात सार रूप में सामने आई है कि अफवाहें, किसी समाज की कुत्सितता और उसके पिछड़ेपन को मिलने वाला सनकी प्रोत्साहन भर हैं। यह प्रोत्साहन कई बार जानबूझकर तो कई बार अनजाने ही दिया है। कभी यह अंधविश्वास के नाम पर तो कई बार धार्मिक-सांप्रदायिक आड़ में लोगों को अपना शिकार बनाती हैं। इसका असर मास हिस्टीरिया की तरह देखने को मिलता है और काफी विवेकशील व संतुलित मस्तिष्क का व्यक्ति भी इसकी चपेट में आ सकता है। बीते कुछ दिनों से ऐसी ही एक अफवाह ने देश के कम से कम पांच सूबों में लोगों की नींद हराम कर रखी है। इन राज्यों में अब तक करीब सौ ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें महिलाओं ने शिकायत की है कि किसी ने उन्हें बेहोश कर रहस्यमयी तरीके से उनकी चोटी काट दी। राज्यों की पुलिस इस घटना से पैदा हुई असुरक्षा की स्थिति से महिलाओं को बाहर निकालने में जुटी हैं। हरियाणा पुलिस ने जहां महिलाओं को इस तरह के अफवाहों से बचने और संतुलित विवेक से काम लेने की अपील की है तो वहीं, उत्तर प्रदेश पुलिस की तरफ से एडवायजरी जारी की गई है कि कि जो लोग भी इस तरह की अफवाह को फैलाने में लगे हैं, उनके बारे में पता कर उन पर कड़ी कार्रवाई की जाए। साथ ही महिलाएं खुद सामने आकर इन अफवाहों के खिलाफ जागरुकता का माहौल बनाने में मदद करें। जो राज्य अब तक इस अफवाह की जद में आ चुके हैं, वे हैं हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश। चिंताजनक यह भी है कि इस अफवाह के खिलाफ जिस सोशल मीडिया के जरिए तेजी से जागरुकता का माहौल बनाया जा सकता था, उसका इस्तेमाल इसे बढ़ाने के लिए हो रहा है। यहां यह बात समझनी होगी कि ऐसी स्थिति में सरकार या पुलिस महकमे से बड़ी भूमिका समाज और उससे जुड़े संगठनों की है। एक ऐसे दौर में जब हमारी कामयाबी मंगल ग्रह की ऊंचाई छू रही है, अगर हमारे आसपास ही इस तरह के अफवाहों-अंधविश्वासों को प्रश्रय मिल रहा है, तो हम लोगों को वेवजह भयाक्रांत तो कर ही रहे हैं, अपने समाज और देश की छवि पर भी बट्टा लगा रहे हैं।
टॉवर
(उत्तर प्रदेश)
क्या
‘सुपर पावर’ बनने की आकांक्षा रखने वाले किसी भी राष्ट्र को रक्षा उपकरणों के आयात पर निर्भर रहना चाहिए अथवा स्वदेश में रक्षा उत्पादन अथवा रक्षा क्षेत्र से जुड़े औद्योगिक आधार की अनदेखी करनी चाहिए? निश्चित तौर पर यह उचित नहीं है। स्वदेश में रक्षा उत्पादन अथवा रक्षा क्षेत्र से जुड़ा औद्योगिक आधार किसी भी देश के दीर्घकालिक सामरिक नियोजन का अभिन्न अवयव है। आयात पर अधिक निर्भरता न केवल सामरिक नीति एवं इस क्षेत्र की सुरक्षा में भारत द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका के नजरिए से अत्यंत नुकसानदेह है, बल्कि विकास एवं रोजगार सृजन की संभावनाओं के मद्देनजर भी चिंता का विषय है। वैसे तो शक्तिसे जुड़े तमाम स्वरूपों को हासिल करने पर ही कोई देश ‘सुपर पावर’ के रूप में उभर कर सामने आता है, लेकिन सही अर्थों में सैन्य शक्ति ही महान अथवा सुपर पावर के रूप में किसी भी राष्ट्र के उत्थान की कुंजी है। भारतीय रक्षा उद्योग 200 वर्षों से भी अधिक समय का गौरवमयी इतिहास अपने-आप में समेटे हुए है। प्रथम आयुध कारखाने की स्थापना 1801 में काशीपुर में हुई थी। आजादी से पहले कुल मिलाकर 18 कारखानों की स्थापना की गई थी। वर्तमान में भारत के रक्षा क्षेत्र से जुड़े औद्योगिक आधार में भौगोलिक दृष्टि से देश भर में फैले 41 आयुध कारखाने, 9 रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम, 200 से अधिक निजी क्षेत्र लाइसेंसधारक कंपनियां और बड़े निर्माताओं एवं रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों की जरूरतें पूरी करने वाले कुछ हजार छोटे, मझोले एवं सूक्ष्म उद्यम शामिल हैं। यही नहीं, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन की 50 से अधिक रक्षा प्रयोगशालाएं भी देश में रक्षा विनिर्माण की पूरी व्यवस्था का अहम हिस्सा है। 2000 के आसपास यह आलम था कि हमारे ज्यादातर प्रमुख रक्षा उपकरणों और हथियार प्रणालियों का या तो आयात किया जाता था या लाइसेंस प्राप्त उत्पादन के तहत आयुध कारखानों अथवा रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों द्वारा उन्हें भारत में ही तैयार किया जाता था। देश में एकमात्र रक्षा अनुसंधान एवं विकास एजेंसी होने के नाते डीआरडीओ ने प्रौद्योगिकी विकास में सक्रिय रूप से योगदान दिया और स्वदेशीकरण
के प्रयासों को काफी हद तक पूरक के तौर पर आगे बढ़ाया। अनुसंधान एवं विकास तथा विनिर्माण क्षेत्र में डीआरडीओ और डीपीएसयू के प्रयासों के परिणामस्वरूप देश अब एक ऐसे मुकाम पर पहुंच गया है, जहां हमने लगभग सभी प्रकार के रक्षा उपकरणों और प्रणालियों के निर्माण की क्षमताएं विकसित कर ली हैं। आज एक स्थल विश्लेषण के अनुसार, हमारी कुल रक्षा खरीद में से 40 प्रतिशत खरीदारी तो स्वदेशी उत्पादन की ही की जाती है। कुछ प्रमुख प्लेटफॉर्मों पर स्वदेशीकरण का एक बड़ा हिस्सा बाकायदा हासिल किया जा चुका है। उदाहरण के लिए, टी-90 टैंक में 74 प्रतिशत स्वदेशीकरण, पैदल सेना से जुड़े वाहन (बीएमपी-II) में 97 प्रतिशत स्वदेशीकरण, सुखोई 30 लड़ाकू विमान में 58 प्रतिशत स्वदेशीकरण और कॉनकुर्स मिसाइल में 90 प्रतिशत स्वदेशीकरण हासिल हो चुका है। लाइसेंस प्राप्त उत्पादन के तहत निर्मित किए जा रहे प्लेटफॉर्मों में हासिल व्यापक स्वदेशीकरण के अलावा हमने अपने स्वयं के अनुसंधान एवं विकास के जरिए कुछ प्रमुख प्रणालियों को स्वदेश में ही विकसित करने में भी सफलता पा ली है। इनमें आकाश मिसाइल प्रणाली, उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर, हल्के लड़ाकू विमान, पिनाक रॉकेट और विभिन्न प्रकार के रडार जैसे केंद्रीय अधिग्रहण रडार, हथियारों को ढूंढ निकालने में सक्षम रडार, युद्ध क्षेत्र की निगरानी करने वाले रडार इत्यादि शामिल हैं। इन प्रणालियों में भी 50 से 60 प्रतिशत से अधिक स्वदेशीकरण हासिल किया जा चुका है। सरकारी विनिर्माण कंपनियों और डीआरडीओ के जरिए हासिल की गई प्रगति को देखते हुए अब वह समय आ गया था कि भारतीय रक्षा उद्योग के दायरे में निजी क्षेत्र को शामिल कर रक्षा से जुड़े औद्योगिक आधार का समुचित विस्तार किया जाए। 2001 में सरकार ने 26 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ रक्षा निर्माण में निजी क्षेत्र
तीन साल पहले 2013-14 में कुल पूंजीगत खरीदारी का केवल 47.2 प्रतिशत हिस्सा ही भारतीय विक्रेताओं से खरीदा गया था, जबकि 2016-17 में यह बढ़कर 60.6 प्रतिशत हो गया है
के प्रवेश को बाकायदा अनुमति दी। हमने रक्षा क्षेत्र से जुड़े अपने औद्योगिक आधार का विनिर्माण करने और इस तरह अंततः आत्मनिर्भरता हासिल करने की यात्रा को अपनी मंजिल पर पहुंचाने के लिए देश में उपलब्ध विशेषज्ञता और उद्योग जगत के पूरे स्पेक्ट्रम की क्षमता का दोहन करने हेतु अथक प्रयास किए हैं। सामरिक प्लेटफॉर्मों जैसे लड़ाकू विमानों, हेलीकॉप्टरों, पनडुब्बियों एवं बख्तरबंद वाहनों के निर्माण को और ज्यादा बढ़ावा देने के लिए सरकार ने हाल ही में एक ऐसी सामरिक साझेदारी नीति की घोषणा की है, जिसके तहत चयनित भारतीय कंपनियां प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के जरिए भारत में इस तरह के प्लेटफॉर्मों का निर्माण करने के लिए विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं के साथ मिलकर संयुक्त उद्यमों की स्थापना या अन्य प्रकार की भागीदारियां स्थापित कर सकती हैं। पिछले 3 वर्षों में अपनाई गई नीतियों ने अपेक्षित परिणाम दिखाने शुरू कर दिए हैं। तीन साल पहले 2013-14 में कुल पूंजीगत खरीदारी का केवल 47.2 प्रतिशत हिस्सा ही भारतीय विक्रेताओं से खरीदा गया था, जबकि 2016-17 में यह बढ़कर 60.6 प्रतिशत हो गया है। डीपीएसयू की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने के लिए भी कई कदम उठाए गए हैं। सभी डीपीएसयू और आयुध कारखाना बोर्ड से कहा गया है कि वे एसएमई को अपनी आउटसोर्सिंग बढ़ाएं, ताकि देश के भीतर विनिर्माण की समुचित व्यवस्था विकसित हो सके। डीपीएसयू और ओएफबी को निर्यात के साथ-साथ लागत को कम करके एवं अक्षमताओं को दूर करके अपनी प्रक्रियाओं को और अधिक कुशल बनाने के भी लक्ष्य दिए गए हैं। हमारे रक्षा शिपयार्डों ने जहाज निर्माण में काफी हद तक स्वदेशीकरण हासिल कर लिया है। आज समस्त जहाजों और गश्ती जहाजों इत्यादि के लिए नौसेना और तटरक्षक द्वारा भारतीय शिपयार्डों को ऑर्डर दिए जा रहे हैं। धीरे-धीरे डीपीएसयू में विनिवेश पर विशेष जोर दिया जा रहा है, ताकि उन्हें और अधिक जवाबदेह बनाया जा सके तथा साथ ही उनमें परिचालन दक्षता भी सुनिश्चित की जा सके। पिछले तीन वर्षों में डीपीएसयू और ओएफबी के उत्पादन मूल्य में लगभग 28 प्रतिशत एवं उत्पादकता में 38 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जहां तक रक्षा उत्पादन का सवाल है, हम आत्मनिर्भरता की दिशा में निर्णायक और महत्वपूर्ण चरण में हैं। आजादी के बाद पहले तो हम मुख्यत: आयात पर ही अपना ध्यान केंद्रित कर रहे थे, लेकिन धीरे-धीरे हम सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशकों में लाइसेंस प्राप्त उत्पादन की ओर बढ़ने लगे थे और अब अपने देश में ही डिजाइन, विकास और विनिर्माण करने की तरफ अपने कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। ऑटोमोबाइल, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, भारी इंजीनियरिंग आदि जैसे अन्य क्षेत्रों की भांति ही मुझे उम्मीद है कि निरंतर नीतिगत पहलों, कुशल प्रशासनिक प्रक्रिया और आवश्यक मार्गदर्शन एवं सहायता की बदौलत भारतीय रक्षा उद्योग बेहतर प्रदर्शन करने लगेगा और इसके साथ ही हम निकट भविष्य में देश में ही प्रमुख रक्षा उपकरणों एवं प्लेटफॉर्मों की डिजाइनिंग, विकास और विनिर्माण शुरू होने के साक्षी बन सकते हैं। सुधारों की प्रक्रिया के साथ बिजनेस में सुगमता सुनिश्चित करना भी एक सतत प्रक्रिया है और इसके साथ ही सरकार एवं उद्योग जगत को आपस में मिलकर एक ऐसी सुव्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी, जो इस क्षेत्र के विकास एवं स्थिरता के लिए आवश्यक है।
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
राजीव रंजन गिरि
खुला मंच
लेखक गांधीवादी लेखक-विचारक और दिल्ली विश्वविद्यालय में व्याख्याता हैं
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आगा खान पैलेस में महात्मा
9 अगस्त 1942 की गिरफ्तारी के बाद गांधी जी को पुणे के आगा खान पैलेस में दो साल तक नजरबंद रखा गया था
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42 के भारत छोड़ो आंदोलन और महात्मा गांधी को एक साथ देखते हुए अक्सर राष्ट्रीय स्वाधीनता संघर्ष की आवेगी तीव्रता को लोग ज्यादा रेखांकित करते हैं। तथ्यगत रूप में ऐसा है भी, क्योंकि 9 अगस्त 1942 को कांग्रेस के तमाम राष्ट्रीय नेताओं की गिरफ्तारी के बाद पूरे देश में आक्रोश उभरा। स्वाधीनता को लेकर ‘करो या मरो’ का एेलान खुद गांधी जी ने पहले ही कर दिया था। ऐसे में एक तरफ जहां फिरंगी हुकूमत ने दमनात्मक कार्रवाइयों के जरिए लोगों के विद्रोह को कुचलने की बर्बर मंशा दिखाई, वहीं लोगों ने इस दमन के खिलाफ लोहा लेते हुए बलिदानी संघर्ष का प्रेरक इतिहास रचा। अंतत: अगले पांच सालों में यह नौबत आई कि अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा। पर गांधी जी के जीवन और विचार की दृष्टि से विचार करें तो ये साल उनके लिए सबसे कठिन साल थे। एक तरफ वे देश भर में भड़की हिंसा को लेकर खुश नहीं थे, वहीं उन्हें आंदोलन को भटकाने के नाम पर देश में अंग्रेजों की सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश पड़ कर रही थी। गांधी जी को इन बातों की वेदना के अलावा निजी तौर पर भी इस दौरान काफी कष्ट उठाना पड़ा। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी और कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के सभी सदस्यों को अंग्रेजों द्वारा मुंबई में 9 अगस्त 1942
वर्ष-1 | अंक-33 | 31
जुलाई - 06 अगस्त 2017
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harat.com
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06 सम्ान
प्रव्तभाएं सम्ावन्त
वबहार के प्रव्तभािाली छात्चों का सम्ान
20 आपदा
‘फलड रेडी’ बच्े
अस् ्ें बच्चों को बाढ़ से वनपटने का प्रविक्षण
28 न्न
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ववज्ान का ‘टवनिंग पवाइंट ववज्ान को काव्य की ्तरह देखने वाले वैज्ावनक
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सिक्त हो रही हैं ्वहलाए ी टी के साथ उनहें सवावलंब विक्षा और सुरक्षा की गारं वकए देि की आधी आबादी की ने कई अह् ्ुका् हावसल बनाने की वदिा ्ें सरकार
बात करें आगा खान पैलेस की तो यह पुणे के यरवदा इलाके मे स्थित एक ऐतिहासिक भवन है। इसे सुल्तान मुहम्मद शाह आगा खान द्वितीय ने 1892 में बनवाया था। कस्तूरबा गांधी की मृत्यु के बाद उनकी समाधि इसी भवन में बनाई गई। वर्तमान समय में इसे एक संग्रहालय के रूप में विकसित किया गया है। इस भवन से गांधी जी 'भारत छोड़ो आंदोलन' के संचालन की रणनीति बनाते थे। इस पैलेस में भारत कोकिला सरोजिनी नायडू को भी गांधी जी के साथ को गिरफ्तार कर लिया गया था। गिरफ्तारी के नजरबंद रखा गया था। संग्रहालय बाद गांधी जी को पुणे के आगा खान पैलेस में दो में बापू के जीवन से जुड़े चित्र को एक फोटो साल तक नजरबंद रखा गया। आगा खान पैलेस गैलरी में सजा कर रखा गया है। साथ ही उनके से बापू के जीवन के दो कड़वे अनुभव जुड़े हुए व्यक्तिगत उपयोग की वस्तुएं जैसे उनकी चप्पलें, हैं। इसी पैलेस में उनके 50 साल पुराने सचिव चरखा, बर्तन, किताबें, कुछ कपड़े और चश्मा महादेव देसाई का दिल का दौरा पड़ने से निधन यहां रखे गए हैं। इसी महल के बगीचे में बापूू के हुआ और यहीं 22 फरवरी 1944 को उनकी पत्नी सचिव महादेव देसाई की भी समाधि स्थल मौजूद कस्तूरबा गांधी ने अंतिम सांस ली। जिन लोगों है। आगा खान पैलेस पहुंच कर महसूस होता है ने भी तब गांधी जी से भेंट की और उनसे मिले, कि गांधी क्यों महात्मा कहे जाते हैं और स्वाधीनता उन्होंने बताया है कि बा और महादेव देसाई का के साथ राष्ट्रीय जीवन में उनका योगदान कितना जाना उन्हें अंदर तक तोड़ गया था। वे कहीं न बड़ा है। यही वजह है कि लोग आगा खान पैलेस कहीं अपने को अकेला महसूस करने लगे थे। पर को एक तीर्थ की तरह देखते हैं। एक ऐसा तीर्थ यह गांधी जी का ही जज्बा था कि इन बड़े दुखों जो हमें राष्ट्रीय स्वाधीनता संघर्ष के दौरान नेताओं पर विजय पाते हुए उन्होंने राष्ट्र हित को सर्वोपरि की कुर्बानी की याद दिलाता है और राष्ट्रप्रेम की माना और हमेशा उसी के बारे में सोचते रहे। भावना से भर जाता है।
बा
बाढ़ का सामना
ढ़ और सुखाड़ देश के कुछ हिस्सों में हर साल नई तबाही लेकर आती है। अभी मानसून के कारण नदियों के बढ़े जलस्तर और कई बैराजों से अचानक काफी पानी छोड़ने की घटनाओं से पूर्वोत्तर से लेकर मध्य भारत तक बाढ़ का भीषण प्रकोप देखने को मिल रहा है। हजारों गांव जलमग्न हो गए हैं। सेना के साथ एनडीआरएफ कई टोलियां बाढ़ पीड़ित लोगों की मदद में जीजान से जुटी हैं, पर इतने भर से हालात में सुधार नहीं हो सकता। इस साल चूंकि मानसून की वर्षा भी अच्छी हुई है, इसलिए भी बाढ़ का संकट बड़ा है और यह राजस्थान, गुजरात और दक्षिण भारत
के कुछ ऐसे हिस्सों को भी अपनी चपेट में ले चुका है, जहां आमतौर पर इतनी जलमग्नता देखने को नहीं मिलती। ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ के 33वें अंक असम में बाढ़ के संकट का सामना करने के लिए की जा रही एक दिलचस्प पहल के बारे में पढ़कर अच्छा लगा। अच्छी बात है कि प्रकृति या सरकार को कोसने के बजाय ऐसे क्षेत्रों के लोग जिन्हें हर साल बाढ़ की आपदा झेलनी पड़ती है, वे इस तरह के उपाय सीख रहे हैं, जिससे वे बाढ़ के दिनों में विचलित होने के बजाय उसका सामना करना सीखें। मैं ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ का पहले से पाठक हूं। न सिर्फ इस अंक में, बल्कि पहले के अंकों में भी मुझे इसमें कई प्रेरक खबरें और जानकारियां पढ़ने को मिलती हैं। अमोल दास, पटना
18 फोटो फीचर
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
बंगाल की विरासत
बंगाल के इतिहास ने जहां साम्राज्यवादी भूगोल के कई नक्शे देखे, वहीं राजवंशीय शासकों के भी कई दौर इसने देखे। मुगलिया शासन से लेकर जमींदारी राज तक बंगाल के अतीत के कई चिह्न आज भी हैं, जिसमें बंगाल के इतिहास की दिलचस्प झांकी देखने को मिलती है
फोटाेः शिप्रा दास
राजा काशीनाथ राय और उनके परिवार की निशानी अंदुल पैलेस की हालत बहुत अच्छी नहीं है, बावजूद इसे देखकर उस दौर की स्मृतियों में लौटा जा सकता है, जब यहां दिन-रात दुर्गा पूजा की सांस्कृतिक धूम रहती थी। कह सकते हैं कि अंदुल पैलेस बंगाल की सांस्कृतिक विरासत की एक अनमोल निशानी हैं
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
फोटो फीचर
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महिषादल राजबारी के साथ आप बंगाल के 500 साल पीछे के उस दौर में पहुंच सकते हैं, जब वहां राजवंशीय शासकों का साम्राज्य था। इतने साल बाद भी इसे जिस रूप में संरक्षित रखा गया है, वह प्रशंसनीय है। मोइनगढ़ किले के स्थापत्य की खास टेराकोटा शैली आज भी पर्यटकों का मन मोह लेती है
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07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
त्योहार रक्षा बंधन
ट्रंप विलेज की महिलाओं ने राष्ट्रपति ट्रंप को भेजीं राखियां
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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भले ही रक्षा बंधन के त्योहार के बारे में कुछ भी नहीं जानते हों, लेकिन हरियाणा के मुस्लिम बहुल गांव मरोरा की महिलाओं ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को 1,001 राखियां भेजी हैं एसएसबी ब्यूरो
क्षा बंधन भारत का पारंपरिक त्योहार है। बहनभाई के स्नेह के प्रतीक के तौर पर मनाए जाने वाले इस त्योहार की लोकप्रियता आज भी है। इस मौके पर बहनें अपने भाई की कलाई पर तो राखी बांधती ही हैं, साथ ही सीमा पर तैनात सैनिकों, पसंदीदा खिलाड़ी, फिल्मी सितारों और राजनेताओं को भी महिलाएं राखी बांधती या भेजती हैं। इस मौके पर देश के विभिन्न हिस्सों की महिलाएं सेना के जवानों को खासतौर पर राखी भेजती हैं। इस बार रक्षा बंधन का त्योहार दिलचस्प तरीके से अमेरिका के व्हाइट हाउस से भी जुड़ गया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भले ही रक्षा बंधन के त्योहार के बारे में कुछ भी नहीं जानते हों, लेकिन हरियाणा के एक मुस्लिम बहुल गांव की महिलाओं ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को 1,001 राखियां भेजी हैं। देश की अग्रणी स्वयंसेवी संस्था सुलभ ने इस गांव का नाम प्रतीकात्मक रूप से ट्रंप के नाम पर रखा है। गांव को गोद लेने वाले सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गेनाइजेशन ने
गांव के लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप को अपने गांव की यात्रा करने का निमंत्रण भी भेज रहे हैं। गांव की विधवा माताओं ने रक्षा बंधन पर राजधानी दिल्ली में पीएम मोदी के आवास पर उनसे मिलकर उन्हें राखी बांधने की इच्छा जाहिर की है
एक नजर
सुलभ इंटरनेशनल ने हाल में ही लिया है इस गांव को गोद
गांव को स्वच्छ, सुंदर और स्वावलंबी बनाने का सुलभ अभियान गांव की माताओं की पीएम मोदी को भी राखी बांधने की इच्छा
कहा कि पिछड़े मेवात क्षेत्र के मरोरा गांव के लोगों का यह कदम भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों के और मजबूत होने की भावना को व्यक्त करता है। हाल में ही सुलभ ने मरोरा गांव को प्रतीकात्मक ट्रंप विलेज का नाम दिया है। सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने मरोरा गांव को पूरी तरह से स्वच्छ, सुंदर और स्वावलंबी बनाने का बीड़ा उठाया है। इस गांव की आबादी 1,800 है और यह पुनहाना तहसील के अंतर्गत आता है। यह गुड़गांव से करीब 60 किलोमीटर दूर है। सुलभ सैनिटेशन मिशन फाउंडेशन की उपाध्यक्ष मोनिका जैन ने कहा कि गांव की छात्राओं ने ट्रंप की फोटो वाली 1001 राखियां बनाई हैं और नरेंद्र मोदी की तस्वीर वाली 501 राखियां बनाई हैं। गांव की महिलाएं एवं लड़कियां उन्हें अपने बड़े भाई के तौर पर मानती हैं। इन राखियों को त्योहार से पहले ही भेजा गया है, ताकि यह रक्षा बंधन के अवसर पर अमेरिकी राष्ट्रपति तक पहुंच सके। इसके अलावा गांव के लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप को अपने गांव की यात्रा करने का निमंत्रण भी भेज रहे हैं। गांव की विधवा माताओं ने रक्षा बंधन पर राजधानी दिल्ली में पीएम मोदी के आवास पर उनसे मिलकर उन्हें राखी बांधने की इच्छा जाहिर की है। गांव की 15 वर्षीय रेखा रानी ने कहा, 'मैंने तीन दिन में ट्रंप भैया के लिए 150 राखियां बनाई है। मैंने व्हाइट हाउस भेजने के लिए पत्र भी लिखा, जिसमें लिखा है कि इस गांव की लड़कियां चाहती हैं कि आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ यहां पधारें।'
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
सम्मान
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सम्मान
डॉ. पाठक को ‘इंिडयन अफेयर्स सोशल िरफॉर्मर ऑफ द ईयर-2017’ सम्मान सुलभ प्रणेता को मुंबई में आयोजित समारोह में सम्मानित किया गया
आयोजित एक समारोह में सुलभ प्रणेता मुबईडॉ.ं मेंविन्देश्वर पाठक को ‘इंिडयन अफेयर्स
सोशल िरफॉर्मर ऑफ द ईयर-2017’ सम्मान से विभूषित किया गया। उन्हें यह सम्मान मुंबई के कोलाबा से विधायक राज पुरोहित के कर कमलों
द्वारा प्रदान किया गया। यह पुरस्कार समारोह इंडिया लीडरशिप कॉन्क्लेव और इंडियन अफेयर्स लीडरशिप अवार्ड का एक हिस्सा है। इस समारोह का यह 8वां संस्करण था, जिसे नेटवर्क 7 मीडिया समूह द्वारा आयोजित किया गया था।
स्वच्छता गार्गी कॉलेज
डॉ. पाठक ने किया सुलभ शौचालय का उद्घाटन गार्गी कॉलेज में सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक ने छात्राओं को स्वच्छता के बारे में बताया और उन्हें अच्छे जीवन का मंत्र दिया
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प्रियंका तिवारी
क्सर देखा जाता है कि लोग वादा करके भूल जाते हैं, लेकिन सुलभ ने अपने वादे को पूरा किया है। इसके लिए पूरा महाविद्यालय परिवार डॉ. पाठक और सुलभ का अभारी है। यह बातें गार्गी कॉलेज की प्राचार्या प्रोमिला कुमार ने सुलभ शौचालय के उद्घाटन समारोह में कहीं। कॉलेज परिसर में नवनिर्मित सुलभ शौचालय का उदघाटन सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने किया। इस अवसर पर उन्होंने वृक्षारोपण भी किया। इसके पहले कॉलेज की प्राचार्या प्रोमिला कुमार ने पुष्पगुच्छ और शॉल देकर डॉ. पाठक का स्वागत किया। उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए डॉ. पाठक ने कहा कि जो भी व्यक्ति शौचालय की बात कहेगा वह महान हो जाएगा। उन्होंने कहा कि आज के दौर में शौचालय भोजन से ज्यादा
महत्वपूर्ण है। बिना खाए व्यक्ति जीवित रह सकता है लेकिन शौच किए बिना नहीं रह सकता है। पुराणों में भी कहा गया है कि घर के आस-पास शौच नहीं करना चाहिए। घर से दूर जाकर गड्ढा खोदकर उसमें शौच करना चाहिए और फिर उसे मिट्टी से ढक देना चाहिए। आज से पांच हजार साल पहले शौचालय नहीं थे, राजा-महाराजाओं के लिए उनके महल में एक कमरा बना दिया गया था, जहां वह शौच करते थे और अछूत लोग उसे साफ करते थे। मैला ढोने की प्रथा तभी से चली आ रही है। भारत में ब्रिटिश शासन आने के बाद सीवर सिस्टम की शुरुआत हुई। सुलभ ने शौचालय निर्माण के साथ ही साथ
स्कैवेंजर्स भाई-बहनों को भी मैला ढोने से मुक्ति दिलाई है। यदि सुलभ ने शौचालय का निर्माण नहीं किया होता तो देश से मैला ढोने की प्रथा कभी खत्म नहीं होती। सुलभ ने न सिर्फ उन्हें इस प्रथा से मुक्त कराया, बल्कि उन्हें ब्राह्मण बनाया है। आज वह उच्च वर्ग के लोगों के साथ बैठकर खाना खाते हैं, पूजा करते हैं और सम्मान के साथ जी रहे हैं। पहले वह लोग मैला ढो कर मात्र 1000, 2000 कमाते थे, लेकिन सुलभ के प्रयासों से आज वह पापड़, अचार, चटाई इत्यादि बनाते हैं और 10 हजार से 15 हजार कमा रहे हैं। डॉ. पाठक ने कॉलेज की छात्राओं से अनुरोध किया कि वह स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें और हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तत्पर रहें।
डॉ. पाठक ने कॉलेज की छात्राओं से अनुरोध किया कि वह स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें और हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तत्पर रहें
इसके अलावा डॉ. पाठक ने कॉलेज स्टॉफ के साथ चर्चा की और उन्हें सुलभ ग्राम के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने चर्चा के दौरान कहा कि हमें लोगों के साथ हमेशा अच्छा व्यवहार करना चाहिए, जब हम किसी की इज्जत करेंगे तभी वह हमारी भी इज्जत करेगा। उन्होंने कहा कि आप अपनी जिंदगी में जितना विनम्र रहेंगे लोग उतना ही आपको प्यार करेंगे। इस चर्चा के दौरान छात्राओं ने डॉ. पाठक को हाथ से बने हुए पेपर बैग भेंट किए। डॉ. पाठक ने कॉलेज की प्राचार्या प्रोमिला कुमार को प्रधानमंत्री मोदी के जीवन पर स्वलिखित पुस्तक ‘द मेकिंग ऑफ अ लीजेंड’ भेंट की। इस दौरान कॉलेज की स्ट्रीट प्ले सोसायटी ‘क्षितिज’ ने ‘शौचालय बना कर रामू बन गया हीरो’ की प्रस्तुति की। डॉ. पाठक ने इस प्रस्तुति की सराहना की और पूरी टीम को 17 सितंबर को सम्मानित करने की घोषणा भी की।
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07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज का 59 वां स्थापना दिवस समारोह
‘ज्ञान दान सबसे बड़ा दान है’ डॉ. पाठक
जी
प्रियंका तिवारी
वन में मां का स्थान सर्वोपरि होता है। ईश्वर ने ज्ञान, शक्ति और धन माताओं को ही दिया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां मातृशक्ति निहित है। आप लोग मातृशक्ति को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं, यह बहुत ही सराहनीय है। मुझे आप लोगों ने अपने स्थापना दिवस पर बुलाया इसके लिए मैं आप सबका आभारी हूं। यह बातें सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज के 59 वीं स्थापना दिवस समारोह में कहीं। इस अवसर पर डॉ. पाठक ने कहा कि मैं तो महात्मा गांधी का अनुयायी मात्र हूं, लेकिन इस कॉलेज के संस्थापक बृज कृष्ण चांदीवाला तो गांधी जी के साथ रहे हैं। उनके साथ काम किया है। वह एक गांधीवादी और समर्पित राष्ट्रवादी थे, जिन्होंने हमारे देश की आजादी के लिए संघर्ष में भी हिस्सा लिया था। आप हर मामले में हमसे आगे हैं। डॉ. पाठक ने कहा कि एक बार युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से पूछा कि दान में क्या देना चाहिए तो उन्होंने कहा किसी को खाना खिलाओगे और पानी पिलाओगे तो वह बार बार मांगने आएगा, इसीलिए उसे दान देना हो तो ज्ञान देना। मैं भी पहले अध्यापक था, जब मैं क्लास लेता था तो 2 से 3 घंटे निकल जाते थे और पता ही नहीं चलता था। एक बार तो हमें हेडमास्टर साहब ने भी टोक दिया था। डॉ. पाठक ने कहा कि मुझे ड्रामा सोसाइटी अनुभूति की प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी। हमें तो स्कैवेंजर्स भाई-बहनों की हालत देखकर 50 वर्षों
से आंसू आ रहे हैं, लेकिन इनकी प्रस्तुति ने यहां बैठे सभी लोगों को रुला दिया। गांधी जी ने कहा था कि जब तक यह लोग मैला ढोते रहेंगे,तब तक इनके साथ कोई भी खाना नहीं खाएगा। डॉ. भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि इस देश से छूआछूत पार्लियामेंट में सदस्यता मिल जाने से नहीं खत्म होगी। यह तब खत्म होगी, जब सब लोग एक साथ एक ही तालाब में स्नान करेंगे, मंदिर जाएंगे, एक साथ खाना खाएंगे, एक साथ एक ही कुएं से पानी भरेंगे। सुलभ ने राजस्थान के अलवर और टोंक में बाबा साहब की बात को पूर किया है। आज वहां के पूर्व स्कैवेंजर्स लोगों के साथ खाना खाते हैं, मंदिर जाते है और इतना ही नहीं उनके हाथ के बने अचार, पापड़ भी लेते हैं। डॉ. पाठक ने जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में 59 वीं स्थापना दिवस समारोह के अवसर पर इको जोन का उद्घाटन भी किया। इस मौके पर सांसद और भाजपा नेता मीनाक्षी लेखी, नई दिल्ली क्षेत्र के नगर पालिका पार्षद परमजीत सिंह राणा और जेडीएमसी की पूर्व अध्यक्ष कुसुम कृष्णा मौजूद थीं। इसके साथ ही कॉलेज की छात्राओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए। जेडीएमसी की और प्रधानाचार्या स्वाती पाल ने मुख्य अतिथियों को शॉल और पेड़ देकर सम्मानित किया। जेडीएमसी के स्थापना दिवस पर डॉ. पाठक ने कॉलेज के लेखापाल ईश्वरी दत्त को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। नई दिल्ली क्षेत्र से सांसद मीनाक्षी लेखी ने जेडीएमसी के स्थापना दिवस पर ओपेन जिम का
‘डॉ. पाठक मेरे आइडियल है। उन्होंने महिलाओं के हित के लिए बहुत ही सराहनीय कार्य किया है। हम सभी को देश और समाज के विकास के लिए अपना योगदान देना चाहिए’ -मीनाक्षी लेखी, सांसद
उपहार दिया। उन्होंने कहा कि डॉ. पाठक मेरे आइडियल है। उन्होंने महिलाओं के हित के लिए बहुत ही सराहनीय कार्य किया है। हम सभी को देश और समाज के विकास के लिए अपना योगदान देना चाहिए। वहीं नई दिल्ली क्षेत्र के नगर पालिका पार्षद परमजीत सिंह राणा ने कहा कि महिलाओं ने देश के महान विभूतियों को जन्म दिया है, इसीलिए महिलाओं की गरिमा और शक्ति पूजनीय है। हम
सबसे पहले जेडीएमसी को उसके स्थापना दिवस की हार्दिक बधाई देते हैं। आज महिलाएं देश का नाम विश्व पटल पर रोशन कर रही हैं। जेडीएमसी की प्रधानाचार्या स्वाित पाल ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि इस कॉलेज की स्थापना गांधीवादी माननीय बृज कृष्ण चांदीवाला ने अपनी मां स्वर्गीय जानकी देवी की स्मृति में 1959 में महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए की थी।
रोमा साहित्य का अनुवाद ब्रेल लिपि में प्रसिद्ध लेखक डॉ. श्याम सिंह शशि ने जेएल कौल द्वारा लिखी गई जीवनी का लोकार्पण किया
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किताबें लिखने वाले प्रसिद्ध लेखक डॉ. श्याम सिंह शशि ने एक ऑटोबॉयोग्राफी का लोकार्पण किया। दृष्टिहीन स्कॉलर और सामाजिक कार्यकर्ता जेएल कौल द्वारा लिखी गई इस जीवनी को 28 जुलाई 2017 को संविधान क्लब सभागार, नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में जारी किया गया। इस अवसर पर डॉ. शशि ने जेएल कौल की प्रशंसा की और उनके मिशनरी काम तथा ब्रेल लिपि में अनुवाद के लिए उन्हें रोमा साहित्य प्रदान किया। इस अवसर पर दृष्टिहीनों
के अखिल भारतीय सम्मेलन ने अपने 75 वें स्थापना दिवस का भी जश्न मनाया। समारोह के दौरान केंद्रीय मंत्री गििरराज सिंह और संसद सदस्य, विद्वान और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. उदित राज ने दिव्यांगों पर अपने विचार व्यक्त किए। इस दौरान सामाजिक कार्यकर्ता स्तुति कक्कर, ए के मित्तल, आयुक्त विकलांग विभाग, दिल्ली सरकार, टी डी धरियाल, डॉ.एच एस पाल, रमेश कुमार और विभिन्न संगठनों के दृष्टिहीन विद्वानों ने कार्यक्रम में हिस्सा लिया।
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
उत्तर प्रदेश में बनेगा मदर मिल्क बैंक
स्वास्थ्य
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शिशु पोषण
उत्तर प्रदेश में 10 में से 4 बच्चों को मिलता है मां का दूध, जो दूसरे राज्यों के मुकाबले काफी कम हैं
उ
त्तर प्रदेश में अब भी 10 में से 4 बच्चों को सबसे पहले मां का दूध नसीब नहीं होता है। जन्म के एक घंटे के अंदर मिलने वाला मां का दूध बच्चे को कई बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है, लेकिन प्रदेश में सिर्फ 25.2 फीसदी बच्चे ही यह दूध पी पाते हैं। यह आंकड़ा देश के औसत आंकड़े से काफी कम है। केंद्र सरकार के इन चिंताजनक आंकड़ो के बाद प्रदेश सरकार स्तनपान जागरुकता के लिए अभियान चलाने जा रही है और साथ ही मदर मिल्क बैंक की स्थापना करने की योजना भी बना रही है, प्रदेश के बच्चों को मां का दूध मिल सके। उत्तर प्रदेश में विश्व स्तनपान सप्ताह में कई जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने हैं। इसके लिए रष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और उसकी सहयोगी संस्थाओं का भी सहयोग लिया जा रहा है। आशा और एएनएम की मदद से गांव-गांव तक यह बात पहुंचाई जाएगी कि मां का दूध शिशु के लिए कितना जरूरी है। इसमें अच्छा काम करने वाली इकाइयों को सम्मानित किया जाएगा। माताओं को भी बताया जाएगा कि यह बच्चे और मां दोनों की सेहत के लिए अच्छा है। यूपी में मदर मिल्क बैंक बनेगा। इसके लिए प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। एनएचएम के जीएम अनिल कुमार वर्मा ने बताया कि इसके लिए फिलहाल दिल्ली के कलावती अस्पताल के मॉडल का अध्ययन किया जा रहा है। इसमें मां अपना दूध सुरक्षित रख सकेंगी और जरूरत पड़ने पर ले सकेंगी। इससे खासतौर से कामकाजी महिलाओं को राहत मिलेगी। इसके अलावा उन नवजातों को भी दूध मिल सकेगा, जिनकी मां प्रसव के बाद ब्रेस्ट फीडिंग की स्थिति में नहीं हैं। मदर मिल्क बैंक के लिए एसजीपीजीआई और केजीएमयू जैसे अस्पतालों ने रुचि दिखाई है। लखनऊ के अस्पतालों में रोज ऐसे मामले आते हैं, जिनमें मां के दूध से नवजात
मदर मिल्क बैंक नवजात को उचित पोषण देने के लिए कारगर साबित हो सकते हैं
वंचित हो रहे हैं। इन हालातों में मदर मिल्क बैंक नवजात को उचित पोषण देने के लिए कारगर साबित हो सकते हैं।
मदर मिल्क बैंक में इलेक्ट्रिक ब्रेस्ट पंप मशीन होती है। इसके माध्यम से डोनर से दूध लिया जाता है। इस दूध का माइक्रोबायलॉजिकल टेस्ट होता है।
रिपोर्ट में दूध की गुणवत्ता सही होने के बाद उसे कांच की बोतलों में 30-30 मिलीलीटर की यूनिट बनाकर -20 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर सुरक्षित रख दिया जाता है। बैंक में दूध 6 महीने तक सुरक्षित रहता है और जरूरत पड़ने पर यह नवजातों को दिया जाता है। राजस्थान के उदयपुर में मदर मिल्क बैंक का सफल संचालन हो रहा है। दिव्य मदर मिल्क बैंक के संचालक देवेंद्र अग्रवाल के मुताबिक वर्ष 2013 में इस बैंक के शुरू होने के बाद से अब तक 3317 माताओं ने 7968 बार में 80 हजार 386 लिटर दूध दान किया है। इससे एनआइसीयू में भर्ती 9099 नवजात शिशुओं को बचाया जा सका है। यूपी में 2015-16 में हुए सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे के अनुसार नवजातों की मृत्यु दर प्रति एक हजार पर 33 है, जबकि एक महीने से एक साल तक के बच्चों की मृत्यु दर प्रति एक हजार पर 47 है। जन्म के समय मां का दूध न मिलने पर बच्चों को डायरिया या निमोनिया होने का खतरा रहता है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ो के मुताबिक डायरिया और निमोनिया से भी हर साल हजारों बच्चों की मौत हो रही है।
24 गुड न्यूज
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
स्वास्थ्य याेजना
हेपेटाइटिस सी डे के मौके पर केंद्रीय स्वास्थ्य हेपेमंटत्ाइटिस रालय ने हेपेटाइटिस सी से जूझ रहे मरीजों को
के जन्मदिन पर सरकार इस एक्शन प्लान को देशभर में लागू करेगी। भारत में इसके करीब 60 मुफ्त में इलाज करने की घोषणा की है। आगामी 25 लाख मरीज हैं। लक्ष्य एक वर्ष में इस बीमारी को दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी खत्म करने का है। राष्ट्रीय कार्यक्रम लागू होने पर
शोध
हाल में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि कार में सफर करने वाले भी प्रदूषण के खतरों से मुक्त नहीं है
अ
भारत में हेपेटाइटिस के करीब 60 लाख मरीज हैं। सरकार का लक्ष्य एक वर्ष में इस बीमारी को खत्म करने का है केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जेपी नड्डा ने इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज में एक कार्यक्रम के दौरान की। नड्डा ने भारत में हेपेटाइटिस सी के करीब कहा कि रूपरेखा तैयार कर ली गई है और 25 60 लाख मरीज हैं दिसंबर को इसको लांच करेंगे। हेपेटाइटिस सी के मरीजों के इलाज पर भारत हेपेटाइटिस सी के खात्मे के लिए सरकार का करीब 8-10 हजार करोड़ रुपए का लांच होगा एक्शन प्लान खर्च आएगा। आईएलबीएस के डायरेटर डॉक्टर 25 दिसंबर को अटल बिहारी एसके सरीन ने कहा कि ये एक बड़ी पहल है। वाजपेयी के जन्मदिन पर होगा लांच अब तक टीबी और एड्स को लेकर तो कई कदम उठाए गए, लेकिन हेपेटाइटिस सी को लेकर यह पहला मौका है। देश के निजी अस्पतालों में हेपेटाइटिस सी की दवाएं मरीजों को मुफ्त मिलेंगी। हेपेटाइटिस सी का इलाज काफी महंगा है और ऐसे इसके लिए सरकार राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के में ये घोषणा ऐसे परिवारों के लिए मददगार बन जरिए बजट उपलब्ध कराएगी। इसकी घोषणा सकती है। (भाषा)
एक नजर
अंतरिक्ष यात्रा
प्रदूषण
कार के भीतर भी हो सकता है प्रदूषण का खतरा
गर आप यह सोचते हैं कि किसी भारी प्रदूषित सड़क पर अगर आप अपनी कार के अंदर हैं तो सुरक्षित हैं, तो यह आपकी भूल है। हाल ही में हुए एक नए अध्ययन के मुताबिक कार के केबिन
हेपेटाइटिस सी मुक्त होगा भारत
में कुछ हानिकारक कणों की मात्रा अत्यधिक उच्च स्तर की होती है, जितना पहले अनुमान लगाया गया था, तकरीबन उसकी दोगुनी तक ज्यादा होती है। इस अध्ययन के निष्कर्ष में कारों के अंदर प्रदूषण का पता चला है, जिसमें उन रसायनों की मात्रा दो गुनी पाई गई जो ऑक्सीडेटिव तनाव पैदा करते हैं, जिससे श्वसन और हृदय रोग, कैंसर और कुछ प्रकार की न्यूरो-डीजेनेरेटिव बीमारियों सहित कई रोग पैदा होते हैं। नॉर्थ कैरोलिना के ड्यूक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर माइकल बर्गिन ने कहा है कि हमने पाया है कि भीड़भाड़ के दौरान सफर करने से स्वास्थ्य का जोखिम बढ़ जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि यात्रियों को अपनी ड्राइविंग की आदतों पर गंभीरता से पुनर्विचार करना चाहिए। एटमोसफेरिक इनवायरमेंट (वायुमंडलीय पर्यावरण) पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन में बताया गया कि प्रदूषण के कारण हमारे शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं और डीनए पर विध्वंषक असर होता है। (एजेंसी)
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पहुंचे 3 अंतरिक्ष यात्री
इटली, रूस और अमेरिका के तीन अंतरिक्ष यात्रियों का एक समूह पांच माह के एक अभियान के लिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पहुंच गए
रू
स की अंतरिक्ष एजेंसी ‘रॉसकॉसमोस’ द्वारा जारी फुटेज में सोयूज यान नासा के अंतरिक्ष यात्री रेंडी ब्रेसनिक, रूसी अंतरिक्ष यात्री सर्गेई रियाजैस्की और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के पाओलो नेस्पोली को काजिकिस्तान के बैकॉनुर कॉस्मोड्रोम से धुंधले आसमान में ले
जाता दिख रहा है। अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ के अनुसार छह घंटे बाद पृथ्वी के चार चक्कर लगा कर सोयूज अंतरिक्ष स्टेशन पहुंचा। तीनों अंतरिक्ष यात्रियों के आगमन से अप्रैल के बाद आईएसएस में पहली बार छह लोग मौजूद हैं। (एजेंसी)
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गुड न्यूज
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डिजिटल भुगतान
डिजिटल पेमेंट के मामले में भारत अग्रणी देशों में
नोटबंदी के बाद डिजिटल भुगतान करने वालों की संख्या में हुई बढ़ोत्तरी के कारण भारत दुनिया के चुने हुए देशों में शामिल हो गया है
डि
जिटल पेमेंट के मामले में भारत दुनिया के सामने मजबूती से उभरा है और उसने इस मामले में भारी संभावनाएं दर्शाई है। डिजिटल इवोल्यूशन इंडेक्स 2017 के अनुसार भारत की गिनती उन 60 देशों की ब्रेक आउट श्रेणी में हुई है, जिसमें किसी देश का डिजिटल विकास का स्तर काफी नीचे होने के बावजूद विकास की व्यापक संभावनाएं हैं और इसके कारण निवेशकों के लिए वे आकर्षक बाजार बनकर उभरे हैं। अमेरिका की टुफ्ट्स यूनिवर्सिटी के फ्लेचर स्कूल ने मास्टर कार्ड के सहयोग से डिजिटल
इवोल्यूशन इंडेक्स 2017 तैयार किया है। इस इंडेक्स में तमाम देशों में डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए हुई प्रगति और आम लोगों को इससे जोड़ने के प्रयासों पर व्यापक अध्ययन किया गया है। मास्टर कार्ड के अनुसार भारत में नोटबंदी के फैसले के कारण बने माहौल ने डिजिटल पेमेंट की दिशा में खासी बढ़त के लिए आधार तैयार किया। आज भारत में ज्यादा से ज्यादा लोग दैनिक जीवन में डिजिटल पेमेंट को अपना रहे हैं। इसके कारण तेज प्रगति दर्ज की गई है। मास्टर कार्ड के कंट्री कॉरपोरेट ऑफिसर व
प्रेसीडेंट (साउथ एशिया) पौरुष सिंह ने कहा कि भारतीय बाजार में नई कंपनियां आ रही हैं और वैकल्पिक भुगतान के तमाम समाधान सामने आ रहे हैं। इससे तेज विकास के लिए माहौल बन रहा है। आज दुनिया में करीब आधी आबादी ऑनलाइन है, स्टडी में 60 देशों में अच्छी प्रगति दिखाई दी है। इन देशों में डिजिटल आर्थिक विकास के लिए प्रतिस्पर्धा का माहौल है और काफी संभावनाएं हैं। इंडेक्स में सप्लाई, उपभोक्ता मांग, संस्थागत माहौल और इनोवेशन पर देशों का आंकलन किया गया है। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा है कि डिजिटल पेमेंट का विस्तार होने के कारण अगले तीन साल में फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी सॉफ्टवेयर सर्विस मार्केट 14 अरब डॉलर (91000 करोड़ रुपए) का हो जाएगा। इस समय 600 से
स्वास्थ्य सुविधा
टेली-मेडिसिन से दौड़ेंगे सीएचसी-पीएचसी
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सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर मरीजों के बेहतर इलाज के लिए उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य विभाग टेली मेडिसिन की योजना बना रहा है
त्तर प्रदेश के सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी-पीएचसी) पर मरीजों के बेहतर इलाज के लिए स्वास्थ्य विभाग और नेशनल हेल्थ मिशन टेली-मेडिसिन की योजना बना रहा है। इसके तहत सीएचसी-पीएचसी पर तैनात डॉक्टर मरीजों के इलाज के लिए जिला अस्पतालों और अन्य उच्च चिकित्सा संस्थानों के विशेषज्ञों से सुझाव ले सकेंगे। इससे मरीजों को जिला अस्पताल या अन्य संस्थानों की दौड़ नहीं लगानी होगी। एनएचएम के जनरल मैनेजर (प्रॉक्योरमेंट) डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि प्रदेश में कुल 3600 पीएचसी और 800 सीएचसी हैं। यहां मरीजों की संख्या भी ज्यादा रहती है। डॉक्टरों की कमी के कारण इन मरीजों को बेहतर इलाज नहीं मिल पाता। स्वास्थ्य विभाग के डायरेक्टर (बजट ऐंड प्लानिंग) डॉ. ज्ञान प्रकाश के मुताबिक, सीएचसी-पीएचसी पर तैनात
एमबीबीएस और स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को जिला अस्पतालों में शिफ्ट करने की योजना बनाई जा रही है। इससे विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी दूर होगी। सीएचसी-पीएचसी में इनकी जगह आयुष डॉक्टरों को ट्रेनिंग देकर तैनात किया जाएगा। ये डॉक्टर टेली-मेडिसिन के जरिए विशेषज्ञ डॉक्टरों के सम्पर्क में रहेंगे। डॉ. वेद ने बताया कि प्रदेश में रेडियॉलजिस्ट की भी कमी है। सीएचसी में एक्स-रे मशीन लगी हैं, लेकिन हर जगह रेडियॉलजिस्ट न होने के कारण डॉक्टर ही एक्स-रे फिल्म देखते हैं। यह दिक्कत दूर करने के लिए टेली-रेडियॉलजी योजना पर विचार चल रहा है। इसके तहत सभी सीएचसी पर लगीं एक्स-रे मशीनों में डिजिटल डिवाइस लगाकर उन्हें एक सर्वर से कनेक्ट किया जाएगा। इसके साथ एक हब ऑफिस बनाकर वहां रेडियॉलजिस्ट तैनात किए जाएंगे तो एक्स-रे फिल्म आते ही रिपोर्ट बनाकर भेज देंगे। (भाषा)
ज्यादा स्टार्टअप्स कर्ज वितरण, भुगतान, बीमा और ट्रेडिंग में लगे हैं। इस समय इस सेक्टर का कुल बाजार करीब आठ अरब डॉलर का है। उन्होंने कहा कि नोटबंदी के बाद डिजिटल पेमेंट का तेजी से विकास हुआ है। वर्ष 2016-17 में डिजिटल पेमेंट बीते वर्ष के मुकाबले 55 फीसद बढ़ा है। पिछले पांच वर्षों में औसत विकास दर 28 फीसद रही। सीआइआइ के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि इस दौरान डेबिट कार्ड 104 फीसद, प्रीपेड इंस्ट्रूमेंट 163 फीसद और पीओएस यानी स्वाइप मशीनों का इस्तेमाल 83 फीसद बढ़ा है। उन्होंने कहा कि नकदी से लेनदेन काफी महंगा पड़ता है। भारतीय रिजर्व बैंक को हर साल करेंसी प्रचलन पर करीब 21000 करोड़ रुपये का खर्च करना होता है। (एजेंसी)
ईपीएफ सुविधा
ईपीएफ पेंशनधारकों को मिल सकती हैं मेडिकल सुविधाएं
केंद्र सरकार सभी पेंशनधारकों के लिए मेडिकल बेनिफिट की एक नई स्कीम लेकर आ रही है
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द्र की नरेंद्र मोदी सरकार सभी पेंशनधारकों के लिए मेडिकल बेनिफिट की एक स्कीम लेकर आ रही है, बशर्ते उन पेंशनधारकों का एंप्लॉई प्रोविडेंट फंड (ईपीएफ) का मेंबर होना जरूरी है। साथ ही सरकार एंप्लॉई पेंशन स्कीम (ईपीएस) में सुधार के लिए एक उच्च स्तरीय कमिटी भी बनाने की बात कर रही है। केंद्रीय मंत्री बंडारु दत्तात्रेय ने यह जानकारी देते हुए बताया, 'कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) के साथ मिलकर हम उन पेंशनधारकों के लिए एक मेडिकल बेनिफिट स्कीम ला रहे हैं, जो ईपीएफ के मेंबर हैं।' इसके
अलावा उन्होंने बताया कि यह एक अंशदायी चिकित्सा लाभ योजना है, इस पर विस्तार से काम किया जा रहा है। केंद्रीय मंत्री ने कहा, 'मैंने निर्देश दिया है कि ईपीएस 1995 का पूरा मूल्यांकन किया जाए, अगर कोई कमी है तो उसे दूर किया जाए।' (एजेंसी)
26 गुड न्यूज
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट
उपभोक्ता संरक्षण
उपभोक्ताओं के लिए आ रहा नया कानून
अमेरिकी फेडरल ट्रेड कमीशन की तरह प्रभावी तरीके से काम करने वाला नया कानून वर्गीय कार्रवाई की नई अवधारणा पेश करेगी
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रकार उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए बड़ा कदम उठाने की तैयारी में है। 1986 से लागू उपभोक्ता संरक्षण कानून जल्द ही बदलने जा रहा है। नए उपभोक्ता संरक्षण बिल को मॉनसून सत्र में लोकसभा में पेश किया जाना है। इस बिल का प्रारूप 2015 में तैयार किया गया था और पिछले साल लोकसभा में पेश किया गया। इसके बाद इसे खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों की स्टैंडिंग कमिटी के पास भेज दिया गया। यदि कैबिनेट से इसे मंजूरी मिल जाती है तो इसे मौजूदा सत्र में लोकसभा में पास कर दिया जाएगा। नया कानून उपभोक्ता अधिकारों में क्रांतिकारी बदलाव लेकर आएगा। नए बिल के तहत एक एग्जिक्युटिव एजेंसी और केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण की व्यवस्था होगी। अनैतिक व्यावसायिक कार्यों से उपभोक्ताओं के बचाव के लिए जरूरत महसूस होने पर एजेंसी दखल दे सकती है। ऑर्डर या प्रोडक्ट वापसी के अलावा कंपनी के खिलाफ वर्गीय कार्रवाई की जा सकती है। एजेंसी बेहद प्रभावी अमेरिकी फेडरल ट्रेड कमिशन की तरह काम करेगी। यह वर्गीय कार्रवाई की नई अवधारणा पेश करेगी, जिसका मतलब है कि मैन्युफैक्चरर्स और सर्विस प्रोवाइडर की जवाबदेही सभी उपभोक्ताओं के प्रति होगी, ना कि केवल एक उपभोक्ता या समूह तक सीमित होगी। वर्गीय कार्रवाई में सभी प्रभावित उपभोक्ताओं को लाभ मिलता है। मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, डिजाइन,
फॉर्मूला, टेस्टिंग, सर्विस, इंस्ट्रक्शन, पैकेजिंग आदि में कमी की वजह से उपभोक्ता के घायल, मृत्यु या और किसी प्रकार के नुकसान की स्थिति में उत्पादक और निर्माता जिम्मेदार होंगे। नए कानून से उपभोक्ता विवादों को सुलझाने के लिए मौजूद जिला, राज्य या राष्ट्रीय स्तर के ढांचे में बदलाव नहीं होगा, यह केवल इन्हें और शक्तिशाली बनाएगा। नए कानून में ई कॉमर्स भी शामिल होगा। मौजूदा वक्त में एक उपभोक्ता विक्रेता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई केवल लेनदेन वाले स्थान पर कर सकता है। नए कानून के बाद उपभोक्ता अपनी शिकायत ऑनलाइन या फिर अपने निवास के पास मौजूद उपभोक्ता अदालत में कर सकता है। नया कानून मैन्युफैक्चरर्स के अलावा उत्पाद का प्रचार करने वालों को भी जवाबदेह बनाएगा। झूठी शिकायतों पर लगाम लगाने के लिए 10,000 से लेकर 50,000 रुपए तक जुर्माने की व्यवस्था होगी। (एजेंसी)
स्वच्छता महाराष्ट्र
‘लोटा मुक्त’ हो रहे हैं गांव
महाराष्ट्र के गांवों में ‘लोटा मुक्त’ अभियान शुरू
स्व
च्छ भारत अभियान के तहत पूरे देश सहित महाराष्ट्र के गांव-गांव में शुरू हुआ ‘लोटा मुक्त’ अभियान धीरे-धीरे कामयाबी की तरफ बढ़ रहा है। इसमें हर तीसरे-चौथे दिन किसी न किसी गांव का नाम शामिल हो रहा है। इस कड़ी में ताजा नाम जुड़ा है, लिंबे जलगांव की टेम्भापुरी ग्राम पंचायत का। प्राप्त सूचना के तहत अभी तक इस पंचायत में 90 प्रतिशत घरों में शौचालय बनाने का काम पूरा हो चुका है। बाकी के 10 प्रतिशत घरों में काम प्रगति पर है। उम्मीद की जा रही है कि एक-दो महीने के अंदर इस लक्ष्य को भी पूरा कर लिया जाएगा। शुरू
में यहां भी दिक्कत हुई थी, लेकिन लोगों को स्वच्छता अभियान की जरुरत और मतलब बताया गया। गांव में बैठकों के साथसाथ ग्राम सभा से सहयोग की अपील की गयी। संपर्क अभियान को तेज कर ग्रामीणों को समझाने की कोशिश की गई। अंततः लोग राजी हुए। उन्हें यह भी बताया गया कि इसके लिए सरकार अनुदान भी दे रही है। इस गांव के कारण आस-पास के गांवों पर भी अच्छा असर पड़ा है।
स्तनपान नहीं कराने से देश को हजारों करोड़ की चपत
संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि स्तनपान नहीं कराने की वजह से भारत को 90 हजार का नुकसान होगा
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रत में हर साल करीब एक लाख बच्चे बीमारियों का शिकार होकर मौत की आगोश में सो जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट कहती है कि मांएं अगर अपने बच्चों को पर्याप्त मात्रा में स्तनपान करवाएं तो इन मौतों को रोका जा सकता है। इस रिपोर्ट में साफ-साफ कहा गया है कि अपर्याप्त स्तनपान की वजह से असामयिक मृत्यु और अन्य नुकसान से देश की अर्थव्यवस्था को 89,446 करोड़ रुपए का बड़ा झटका लग सकता है। ग्लोबल ब्रेस्टफीडिंग कलेक्टिव के सहयोग से यूएन चिल्ड्रेंस फंड (यूनिसेफ) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की तैयार नई रिपोर्ट ग्लोबल ब्रेस्टफीडिंग स्कोरकार्ड में कहा गया है कि स्तनपान से न केवल बच्चों की मौत के दो बड़े कारणों डायरिया और न्यूमोनिया से बचाने में मदद मिलती है, बल्कि महिलाओं की मौत के दो बड़े कारणों ओवरी और स्तन कैंसर से मांओं की भी रक्षा भी होती है। सिर्फ चीन, भारत, नाइजीरिया, मैक्सिको और इंडोनेशिया में ही अपर्याप्त स्तनपान की वजह से हर साल 2,36,000 बच्चों की मौत हो जाती है। इन मौतों एवं संबंधित नुकसान की वजह से इन पांच देशों को आनेवाले वक्त में हर साल 119 अरब डॉलर (करीब 7.59 लाख करोड़ रुपए) का आर्थिक नुकसान होने की आशंका है। रिपोर्ट कहती है कि छह महीने से कम उम्र के बच्चों में स्तनपान दर 55 प्रतिशत होने के बावजूद भारत की बड़ी आबादी हर साल असामयिक
मौत का शिकार हो रही है, जिनमें खासकर 5 साल से कम उम्र के बच्चे बड़ी तादाद में शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुमानतः हर साल 99,499 बच्चे डायरिया और न्यूमोनिया की वजह से मौत के मुंह में समा जाते हैं, जिन्हें पर्याप्त मात्रा में स्तनपान करवाकर बचाया जा सकता है। कम स्तनपान के कारण बच्चों के साथ-साथ कैंसर और टाइप-2 डायबिटीज की शिकार महिलाओं की मौत से देश की अर्थव्यवस्था को 7 अरब डॉलर (करीब 44,586 करोड़ रुपए) का झटका लगने का अनुमान है। साथ ही, इससे जुड़े 7 अरब डॉलर के नुकसान की वजह से भारत को अपनी जीडीपी का 0.70 प्रतिशत का घाटा हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर जनरल टेड्रोस ऐडनम गेब्रेयसस ने कहा, 'स्तनपान से बच्चों को जीवन की सर्वोत्तम संभावित शुरुआत मिलती है।' (एजेंसी)
पर्यावरण महाराष्ट्र
पेड़ों का हैप्पी बर्थ डे उत्सव
महाराष्ट्र में पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़ों का जन्म दिवस मना रहे हैं
प
आनंद भारती
र्यावरण की रक्षा में लगे लोग अब पेड़ों का जन्मदिवस मनाकर उत्सव का माहौल तैयार कर रहे हैं। इस वजह से लोग पेड़ों से ‘अपनों’ की तरह जुड़ रहे हैं। उन्हें समझ में आने लगा है कि पेड़-पौधे कैसे जीवन को सुरक्षा प्रदान करते हैं। उत्सव का यह माहौल औरंगाबाद के अयोध्या नगरी में देखने को मिला जहां पिछले वर्ष डेंस फारेस्ट में प्रकृति प्रेमियों ने 2100 पौधों का रोपण किया था। अब वे पौधे पेड़ का रूप ले चुके हैं। उन्हीं पेड़ों का इस बार पहला जन्मदिवस मनाया गया। लीला
संस चैरिटेबल ट्रस्ट और साकला लैंड स्केपिंग ने इस उत्सव को अंजाम दिया। उस समारोह में इस बात पर खुशी व्यक्त की गयी कि इन पेड़ों की देखभाल सबने अपनी-अपनी जिम्मेदारी से की। डेंस प्लांटेशन की यह योजना मुख्य रूप से जापान के प्रख्यात बोतनिक्स और प्रकृति प्रेमी डॉ. अकीरा मियाबाकी की है। उन्होंने खाद का उपयोग कर बहुत कम समय में जंगल बनाए हैं। मात्र एक वर्ष में ही वे पौधे पांच से छः फीट के पौधे बन चुके हैं। वहां घूमने आने वाले लोग पानी के हौद से पानी लेकर सिंचाई भी करते हैं।
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
पर्यावरण संरक्षण
पर्यावरण की रक्षा के लिए साइकिल
अकोला के विद्युतकर्मी साइकिल से ऑफिस जा कर करेंगे पर्यावरण की रक्षा
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कोला में विद्युत विभाग के कर्मचारियों ने पर्यावरण संरक्षण के लिए एक सार्थक पहल की। ज्यादातर कर्मचारियों ने पेट्रोल-डीजल से चलने वाली गाड़ियों को छोड़कर साइकिल से ऑफिस जाने का फैसला किया है। वे बढ़ते प्रदूषण को सीमित करने की कोशिश करेंगे। उनका मानना है कि ईंधन के कारण जिस तरह वातावरण प्रदूषित हो रहा है, उसे साइकिल से कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। इससे न केवल पर्यावरण की रक्षा होगी, बल्कि ईंधन की बचत के साथ-साथ स्वास्थ्य को भी लाभ मिलेगा। वे अभी सिर्फ माह के पहले दिन इसका प्रयोग करेंगे, लेकिन उनकी योजना इसे बढ़ाने की भी है। जो कर्मचारी दूर रह रहे हैं, उनके लिए यह योजना आसान नहीं है, फिर भी वे उत्साहित हैं कि साइकिल का इस्तेमाल करेंगे। उनका यह भी कहना
है कि इसकी देखा देखी और भी लोग अवश्य साइकिल का उपयोग करेंगे। साइकिल से चलने का आह्वान जिलाधिकारी आस्तिक कुमार पाण्डेय ने किया था जिसे विद्युत विभाग ने अमल में लाने की घोषणा की। पहले दिन यानी पहली अगस्त को साइकिल से आने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों से बातचीत करते हुए अधीक्षक अभियंता दिलीप दोडके ने कहा कि अगर इस योजना पर ईमानदारी से अमल हो तो न केवल वातावरण शुद्ध होगा, नीरोग रहने में भी मदद मिलेगी। उन्होंने साइकिल चलाने के महत्व पर भी विस्तार से चर्चा की। दिलीप दोडके ने विद्युत भवन से ग्रामीण इलाकों में ड्यूटी पर जाने वाले कर्मचारियों को हरी झंडी दिखाकर रवाना भी किया। जिलाधिकारी के आह्वान का बाकी विभाग और सामान्य नागरिक भी स्वागत कर रहे हैं। (मुंबई ब्यूरो)
प्लास्टिक कैंसर
प्राणियों के अस्तित्व पर खतरा है प्लास्टिक
प्लास्टिक के खतरों से आगाह करने के लिए महाराष्ट्र के जालान में सेमिनार का आयोजन
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स्टिक की थैलियों को छोड़ने की अपील छोटे-छोटे गांव-कस्बों तक पहुंचने लगी है। इसमें सरकार के साथ-साथ पर्यावरण विशेषज्ञ भी अपना महती योगदान दे रहे हैं। पिछले दिनों जालना जिलान्तर्गत घंसावंगी के रामदास महाविद्यालय में आयोजित एक सेमीनार में छात्र-छात्राओं ने अपील को गंभीरता से लिया। मुंबई के पर्यावरण विशेषज्ञ मिलिंद पगाड़े ने कहा कि प्लास्टिक के इस्तेमाल ने मानव के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। उसका विघटन नहीं हो पा रहा है, बल्कि उसका बार-बार इस्तेमाल हो रहा है। आज हर सामान प्लास्टिक के रैपर में ही मिल रहा है। लोगों को भी इसमें आसानी हो रही है, लेकिन हम अपने भविष्य के खतरे को देख नहीं पा रहे हैं। अगर प्लास्टिक के प्रचलन को रोका नहीं गया तो एक दिन सारी सृष्टि प्लास्टिकमय हो जाएगी जो प्राणियों के रहने लायक नहीं रह जाएगी। इसीलिए इसके इस्तेमाल पर हमें नए सिरे से विचार करना होगा। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक से विनाश होना तय है। यह एक रसायन है जो पर्यावरण के
लिए खतरनाक है। हर साल हजारों मवेशी प्लास्टिक खाकर मौत के मुंह में जा रहे हैं। प्लास्टिक कैंसर जैसी बीमारियों को भी आमंत्रण दे रहा है। इसीलिए अब अपने स्तर से ही इसे समाप्त करने की कोशिश करनी होगी। यह संदेश हमें गांव-गांव तक ले जाना होगा। ग्रामीणों को तो इसके दुष्परिणामों के बारे में और भी मालूम नहीं है। अगर स्कूल और कॉलेजों के छात्र संकल्प लें तो प्लास्टिक मुक्ति का अभियान सफल हो सकता है। (मुंबई ब्यूरो)
गुड न्यूज
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दिल्ली पार्क
दिल्ली में बनेगा सेवन वंडर पार्क
सात अजूबा पार्क को इस तरह से बनाया जाएगा कि कोई यह भी पहचान नहीं कर सकेगा कि एक साथ मौजूद सात अजूबे असली हैं या नकली
दु
सत्यम
निया के सात अजूबों के दीदार के लिए अब दिल्ली वालों को वीजा और पासपोर्ट की जरुरत नहीं पड़ेगी और न ही इसके लिए लंबी चौड़ी तैयारी और लाखों का खर्च करना होगा। सात अजूबों के दीदार के लिए कहीं जाने की भी जरूरत नहीं होगी, क्योंकि दक्षिण दिल्ली नगर निगम जल्द ही अपने क्षेत्र में एक ऐसा पार्क बनाने जा रहा है जिसमें लोगों को इन सातों अजूबों का अहसास एक ही जगह पर होगा। निगम की मानें तो लोगों को न केवल इन अजूबों से रूबरू होने का मौका मिलेगा, बल्कि इनके साथ फोटो खिंचवाने पर आपको इनकी मौजूदगी का अहसास भी होगा। दक्षिण दिल्ली निगम ने इस पार्क को बनाने की तैयारी भी शुरू कर दी है। साउथ एमसीडी के डायरेक्टर (प्रेस एंड पब्लिसिटी) मुकेश यादव ने बताया कि सराय काले खां स्थित मिलेनियम पार्क के पास 7 वंडर पार्क बनाया जाएगा। नगर निगम के अधिकारी कांसेप्ट प्रोजेक्ट रिपोर्ट (सीपीआर) तैयार कर रहे हैं। सीपीआर तैयार होने और सभी को पंसद आने के बाद इसकी डिटेल प्रोजेक्टर रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार कराई जाएगी। सब कुछ ठीक ठाक रहा तो दिल्ली में भी दुनिया के सात अजूबों वाला पार्क लोगों को जल्द देखने को मिलेगा। माना जा रहा है कि देश में पहले से मौजूद वंडर पार्कों को पीछे छोड़ने में दिल्ली का पार्क सक्षम होगा और यह दिल्ली का सबसे बड़ा सेल्फी प्वाइंट भी साबित होगा। उद्यान विभाग के निदेशक डॉ. आलोक कुमार ने बताया कि मिलेनियम पार्क के पास नगर निगम देश का सबसे बेहतरीन सात अजूबा पार्क बनाएगा जो राजस्थान के कोटा और पुणे में पहले से मौजूद 7 वंडर पार्क को भी अपनी बेहतर कारीगरी से पीछे छोड़ देगा। पार्क को इस तरह से विकसित किया जाएगा कि आने वाले पर्यटकों को एक ही जगह पर सात अजूबों के
होने का अहसास होगा। यहीं नहीं सात अजूबा पार्क को इस तरह से बनाया जाएगा कि कोई यह भी पहचान नहीं कर सकेगा कि एक साथ मौजूद सात अजूबे असली हैं या नकली। दक्षिण नगर निगम के कमिश्नर पुनीत कुमार गोयल ने बताया कि यह शानदार पार्क सराय काले खां और मिलेनियम पार्क के बीच में बनाया जाएगा। इस प्रोजेक्ट से जुड़े एक दूसरे सीनियर अफसर ने बताया कि 'बद्रीनाथ की दुल्हनिया' में जो पार्क दिखाया गया है, वह राजस्थान के कोटा में बना है। इस पार्क को देखने के लिए कुछ समय पहले साउथ एमसीडी की एक टीम भी वहां गई थी। टीम ने वहां पार्क को बनाने वाले विभागीय अधिकारियों से इसके बारे में तमाम तरह की जानकारियां जुटाईं। इसमें यह भी पता लगाया गया कि अगर लोगों को हम ये सात अजूबे दिल्ली में ही दिखाएं तो इसमें लगभग कितना खर्च आएगा। पता लगा कि कोटा वाले सेवन वंडर पार्क को बनाने के लिए करीब पांच करोड़ रुपए का खर्चा आया था। इस बजट में इस पार्क ने बॉलीवुड की एक मूवी में जगह पा ली। इसी मूवी से प्रेरणा लेते हुए साउथ एमसीडी ने भी अपने इलाके में इस तरह के पार्क को बनाने की सोची। इसमें ताजमहल, ऐफिल टावर, गीजा का पिरामिड, स्टेचू ऑफ लिबर्टी, पीसा की मीनार, कोसोलियम ऑफ रोम और रिडीमर द क्राइस्ट लोगों को दिल्ली में ही दिखाए जा सकेंगे। प्राइम लोकेशन की बात आई तो कई विकल्पों पर विचार हुआ। लेकिन अंत में सराय काले खां रेलवे स्टेशन से मिलेनियम पार्क के बीच की जगह फाइनल हुई। इसकी कई वजह रहीं। यह रिंग रोड से लगा हुआ है, जहां दिल्ली और बाहर से आने-जाने वाले लोगों को भी इस पार्क का नजारा रोमांचित करेगा। यहां रोड ट्रैफिक की भी समस्या नहीं होगी। इसी वजह से इस जगह को फाइनल कर लिया गया है। माना जा रहा है कि इसे बनाने में करीब सात करोड़ रुपए का खर्चा आएगा।
28 इतिहास
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
...तो एक भारतीय के नाम पर होता एवरेस्ट का नाम एवरेस्ट नामकरण
राधानाथ सिकदर ही वह शख्स थे, जिन्होंने विश्व की सबसे ऊंची चोटी की ऊंचाई सबसे पहले मापी थी
एक नजर
सिकदर का नाम प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञों की श्रृंखला में आता है सिकदर को स्फेरिक ट्रिग्नोमेट्री में कमाल की महारत हासिल थी
1831 में उन्हें एवरेस्ट की ऊंचाई मापने का कार्य सौंपा गया था
दु
एसएसबी ब्यूरो
निया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट के साथ मानवीय साहस के कई दिलचस्प दास्तान जुड़े हैं। एक समय एवरेस्ट तक पहुंचना मौत से खेलने के बराबर था, पर अब पर्वतारोहण के वैज्ञानिक प्रशिक्षण और बढ़े दुस्साहस के साथ एवरेस्ट विजय जहां सामान्य बात होता जा रहा है, वहीं इससे जुड़े नए-नए कारनामे लगातार दर्ज होते जा रहे हैं। तारीखी तौर पर देखें इस साल 29 मई को माउंट एवरेस्ट फतह के 64 साल पूरे हो गए। इसी दिन 1953 में एडमंड हिलेरी व तेंजिंग नॉर्गे ने पहली बार 8848 मीटर (29002 फीट) ऊंचे एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी। महालंगूर रेंज में स्थित इस चोटी को मापने से लेकर इसके नामकरण की कहानी बेहद रोचक है। इसकी तह तक जाएं तो पता चलता है कि अगर अंग्रेजों ने चालाकी नहीं की होती, तो आज एवरेस्ट का नाम बंगाल के राधानाथ सिकदर के नाम पर होता। राधानाथ सिकदर ही वह शख्स थे, जिन्होंने विश्व की सबसे ऊंची इस चोटी की ऊंचाई सबसे पहले मापी थी। 1813 में उत्तर कोलकाता के जोड़ासांको में जन्मे राधानाथ सिकदर प्रसिद्ध गणितज्ञ थे। 1831 में भारत के सर्वेयर जनरल जॉर्ज एवरेस्ट एक ऐसे व्यक्ति को तलाश रहे थे, जिसे स्फेरिक ट्रिग्नोमेट्री में महारत हासिल हो। यहां यह भी बता दें कि ग्रेट ट्रिग्नोमेट्रिकल सर्वे की शुरुआत 1802 में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा की गई थी। इसका काम भारतीय उपमहाद्वीप को वैज्ञानिक पद्धति से मापकर रिकॉर्ड तैयार करना था।
खैर, हिंदू कॉलेज के शिक्षक टाइटलर से जब उन्होंने यह बात बताई, तो टाइटलर ने अपने सबसे विश्वस्त व होनहार छात्र राधानाथ सिकदर का नाम सुझाया। राधानाथ सिकदर उस वक्त महज 19 वर्ष के थे। 1831 में ग्रेट ट्रिग्नोमेट्री सर्वे में वे 30 रुपए माहवार पर कंप्यूटर के पद पर नियुक्त हुए। उस जमाने में कंप्यूटर उसे कहा जाता था, जो कागजों पर डेटा कंप्यूटिंग का काम करता था। बहरहाल, उनके काम के जॉर्ज एवरेस्ट बहुत प्रभावित हुए और देहरादून में उनका ट्रांसफर कर दिया। वहां उन्होंने अपने काम को और निखारा। करीब दो दशक उन्होंने देहरादून में बिताए। उसी दौरान जॉर्ज एवरेस्ट ने सबसे ऊंचे पर्वत के बारे में पता लगाने काम उन्हें सौंपा। कुछ दिन बाद एवरेस्ट रिटायर हो गए और उनकी जगह कर्नल एंड्रू स्कॉट वॉ सर्वेयर जनरल बनकर आए। उन्होंने भी कई लोगों को यह काम सौंपा, लेकिन बड़ी कामयाबी अब भी दूर थी। लगभग चार वर्षों तक लगातार काम करने के बाद 1852 में राधानाथ सिकदर ने ट्रिग्नोमेट्रिक जोड़घटाव के बाद वॉ से कहा कि उन्होंने सबसे ऊंची चोटी का पता लगा लिया है। उन्होंने बताया कि सबसे ऊंची चोटी 29002 फीट है। इस जानकारी को कई वर्षों तक दबाए रखा गया, क्योंकि वॉ इस खोज को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हो जाना चाहते थे। अंततः 1856 में आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा की गई। बताया जाता है कि इस सर्वोच्च चोटी के नामकरण को लेकर पहले तय हुआ कि स्थानीय नामों के आधार पर इसका नाम रखा जाए, लेकिन
गुमनामी के अंधेरे में डूब गया। जॉर्ज एवरेस्ट का रोल बस इतना था कि उन्होंने राधानाथ सिकदर को सबसे ऊंची चोटी के बारे में पता लगाने का टास्क दिया था। राधानाथ ने उस समय मौजूद बेहतरीन तकनीक का इस्तेमाल कर एवरेस्ट की ऊंचाई मापी, लेकिन इसका श्रेय उन्हें नहीं मिला। राधानाथ सिकदर ने एवरेस्ट को मापने के साथ ही गणित के कई नये फॉर्मूले भी दिए, लेकिन इतिहास में उन्हें वो सम्मान नहीं दिया गया जिसके वह हकदार थे।
कीर्तिमानों का शिखर
जॉर्ज एवरेस्ट की भूमिका बस इतनी थी कि उन्होंने राधानाथ सिकदर को सबसे ऊंची चोटी के बारे में पता लगाने का टास्क दिया था बाद में वॉ ने अपने पूर्व सर्वेयर जनरल को श्रद्धांजलि देने के लिए इस पर्वत का नाम एवरेस्ट रख दिया। इस तरह चार साल तक लगातार चोटी नापने के लिए अथक परिश्रम करनेवाले राधानाथ सिकदर का नाम
दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वालों की संख्या की बात की जाए तो 2017 में अब तक कुल 445 पर्वतारोहियों ने माउंट एवरेस्ट को फतह किया। इनमें 190 विदेशी और 32 नेपाली पर्वतारोही के अलावा 223 गाइड शामिल रहे। नेपाल के पर्यटन विभाग का कहना है कि इस साल नेपाल की तरफ से चढ़ाई करने वाले एक भारतीय समेत पांच पर्वतारोहियों की मौत हो गई। पिछले साल यानी 2016 में 451 पर्वतारोहियों ने एवरेस्ट पर चढ़ाई की। 2015 में कोई भी पर्वतारोही एवरेस्ट पर नहीं चढ़ा, क्योंकि भूकंप व भूस्खलन में 19 पर्वतारोहियों की मृत्यु हो गई थी। माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वालों में सबसे अधिक संख्या नेपाल के पर्वतारोहियों की है, जबकि भारत सबसे ज्यादा विदेशी पर्वतारोहियों की सूची में पहले पांच में शामिल है। नेपाल पर्वतारोहरण संघ के अनुसार नेपाल के बाद अमेरिका, ब्रिटेन और भारत
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017 शीर्ष पर हैं। उल्लेंखनीय है कि 29 मई 1953 को पहली बार माउंट एवरेस्ट पर न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी और नेपाली मूल के भारतीय नागरिक तेनजिंग नोर्गे शेरपा चढ़े थे। उसके बाद से अब तक नेपाल की तरफ से कुल 5,324 पर्वतारोही एवरेस्ट पर चढ़ चुके हैं। नेपाल के अप्पा शेरपा ने 21 बार माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का रिकॉर्ड कायम किया। 2011 में हरियाणा की दंपति विकास कौशिक और उनकी पत्नी सुषमा कौशिक एवरेस्ट पर चढ़ने वाले सबसे युवा दंपति बने, जबकि 45 साल की प्रेमलता अग्रवाल ने सबसे उम्रदराज एवरेस्ट पर्वतारोही का रिकॉर्ड बनाया। वह 20 मई को कौशिक दंपति के साथ एवरेस्ट की चोटी पर पहुंची। अरुणाचल प्रदेश की अंशु जामसेंपा ने पांच बार माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई कर रिकार्ड कायम किया है। अरूणाचल की अंशु 16 मई 2017 को चौथी बार एवरेस्ट पर चढ़ीं। इसके पांच दिन बाद ही उन्होंने 21 मई को एक बार फिर एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया। उन्होंने पांच दिनों के भीतर दो बार माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई कर विश्व रिकॉर्ड बनाया। अंशु ने पहली बार मई 2011 में दो बार माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की। फ्लाइट लेफ्टिनेट निवेदिता चौधरी पहली महिला पायलट हैं, जिन्होंने एवरेस्ट की उंचाई पर जीत दर्ज की। उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर अंबेडकर नगर की अरुणिमा सिन्हा, एक पैर नकली होने के बावजूद, दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी को फतह करने
वाली विश्व की पहली महिला पर्वतारोही हैं। अरुणिमा परिस्थितियों को जीतकर उस मुकाम पर पहुंचीं, जहां उन्होंने खुद को नारी शक्ति के अद्वितीय उदाहरण के तौर पर पेश किया। भारत सरकार ने 2015 में उनकी शानदार उपलब्धियों के लिए पद्मश्री से नवाजा। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरुणिमा की जीवनी-'बॉर्न एगेन इन द माउंटेन' का लोकार्पण किया। अरुणिमा ने एवरेस्ट विजय से चार साल पहले एक रेल दुर्घटना में अपना सब कुछ खो दिया था, लेकिन अपनी इच्छाशक्ति के दम पर उसने खुद को संभाला और दिव्यांगता के बावजूद एवरेस्ट विजय का कीर्तिमान रच दिया। 52 दिनों की चढ़ाई के बाद माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराकर विश्व की पहली दिव्यांग महिला पर्वतारोही बनी अरुणिमा कहती हैं, 'विकलांगता व्यक्ति की सोच में होती है। हर किसी के जीवन में पहाड़ से ऊंची कठिनाइयां आती हैं, जिस दिन वह अपनी कमजोरियों को ताकत बनाना शुरू करेगा हर ऊंचाई बौनी हो जाएगी। मैं एवरेस्ट की चोटी पर चढ़कर खूब रोई थी, लेकिन मेरे आंसूओं के अधिकांश अंश खुशी के थे। दुख को मैंने पीछे छोड़ दिया था और दुनिया की सबसे ऊंची चोटी से जिंदगी को नए अंदाज से देख रही थी।'
स्टेट न्यूज
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असम डिजिटल
पांच महीने में पूरा पूर्वोत्तर होगा डिजिटल
असम में डिजिटल विस्तार को बढ़ावा देने के लिए अगले पांच साल में पूरे होने वाले डिजिटल-एनई (नार्थ-ईस्ट) विजन बनाया है
एक नजर
माजुली, नगांव और जोरहाट में तीन बीपीओ कॉल सेंटर खुलेंगे
असम के नौ अस्पतालों में ऑनलाइन बुकिंग की होगी शुरुआत छह करोड़ परिवारों के लिए राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता अभियान
राज कश्यप
केंद्रीय मंत्री के मुताबिक असम के नौ अस्पतालों को ऑनलाइन बुकिंग प्रक्रिया से जोड़ा रा देश डिजिटल तब होगा, जब पूर्वोत्तर जा रहा है। गुवाहाटी, नगांव, बरपेटा, तेजपुर, भारत पूरी तरह से डिजिटलीकृत हो डिब्रूगढ़, सिलचर और जोरहाट के अस्पताल इनमें जाएगा। इस अवधारणा के साथ केंद्र ने अगले पांच शामिल हैं। केंद्रीय मंत्री के मुताबिक यह काम ईसाल में पूरे होने वाले डिजिटल-एनई (नार्थ-ईस्ट) हॉस्पिटल परियोजना के तहत किया जाएगा। इससे विजन बनाया है। इसके तहत क्षेत्र के छह करोड़ मरीज ऑनलाइन यह जान सकेंगे कि उन्हें किस परिवारों को राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता अभियान के अस्पताल में विशेष पंजीकरण मिल सकता है और अधीन डिजिटल शिक्षा देकर आत्मनिर्भर बनाया वहां संबंधित अस्पताल में कौन-कौन चिकित्सक जाएगा। दस साल से अधिक पुराने आपराधिक उपलब्ध होंगे। मामलों की कानूनी समीक्षा की जाएगी। यह इसी तरह राज्य के युवाओं को रोजगार के जानकारी गुवाहाटी में केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी अवसर उपलब्ध कराने के लिए माजुली, नगांव और कानून व न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने दी। और जोरहाट में तीन बीपीओ कॉल सेंटर खोलने उन्होंने बताया कि इस सिलसिले में उन्होंने राज्य के का निर्णय लिया गया है। ये गुवाहाटी में पहले मुख्यमंत्री सोनोवाल के साथ दो घंटे तक मैराथन से ही संचालित कुल 710 सीट क्षमता वाले पांच बैठक की है। आईटी और कानून से जुड़े मुद्दों कॉल सेंटर्स के अलावा होंगे। पूरे पूर्वोत्तर में कुल को लेकर हुई इस बैठक में कई पांच हाजर के लगभग सीटें महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। इस योजना के तहत नियत असम के सभी ग्राम केंद्रीय मंत्री ने बताया कि पंचायतों में कॉमन सर्विस हैं। उनमें से लगभग दो हजार डिजिटल-एनई विजन के तहत अकेले असम के लिए होगी। असह के छह जिलों में इस सेंटर खोले जाएंगे। तीन प्रधानमंत्री मोदी के पूर्वोत्तर में साल के अंत तक एनआरसी माह के भीतर गुवाहाटी डिजिटल विजन का हवाला केंद्र खोले जाएंगे। पूछे जाने में एक स्टेट ऑफ आर्ट देते हुए उन्होंने बताया कि पर उन्होंने बताया कि नेटवर्क द्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स एंड श्रेणी का डेटा सेंटर केंआईटी नहीं मिलने जैसी समस्याएं मंत्रालय की ओर से खोला जाएगा केंद्र सरकार के संज्ञान में हैं। असम में कांप्रिहेंसिव मेगा मुख्यमंत्री से बात के बाद तय इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम खोला किया गया है कि राज्य के सभी ग्राम पंचायतों में जाएगा, ताकि राज्य में आईटी मैन्युफैक्चरिंग कॉमन सर्विस सेंटर खोले जाएं। तीन माह के भीतर उद्योगों को निवेश के लिए डेस्टिनेशन उपलब्ध गुवाहाटी में एक स्टेट ऑफ आर्ट श्रेणी का डेटा हो सके। सेंटर खोला जाएगा। असम और पूर्वोत्तर के अन्य प्रधानमंत्री की डिजिटल दृष्टि में पूर्वोत्तर की राज्यों में स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं को त्वरित करने प्राथमिकता को बताते हुए केंद्रीय मंत्री ने घोषणा की दिशा में भी केंद्र काफी गंभीर है। की कि भारत सरकार इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना
सा
प्रौद्योगिकी मंत्रालय आईटी और विनिर्माण क्षेत्र के लिए एक व्यापक मेगा इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम डिजाइन और विनिर्माण क्लस्टर स्थापित करेगी। असम में निवेश करने वाले उद्योग करीब 200 एकड़ में फैले विशाल परिसर में गुवाहाटी में स्थापित होगा, जिसके लिए असम सरकार द्वारा भूमि मुहैया कराई जाएगी। केंद्रीय मंत्री ने राज्य सरकार से इस संबंध में भारत सरकार को एक प्रस्ताव प्रस्तुत करने की अपील की। आईटी मंत्री ने यह भी घोषणा की कि सरकार की सेवाओं के डिजिटल डिलीवरी के आंदोलन को मजबूत करने के लिए भारत सरकार सामान्य अवसंरचना केंद्रों के नेटवर्क का विस्तार कर सभी गांव पंचायतों को इसके जरिए जोड़ेगी। वर्तमान में असम में 2735 सीएससी चल रहे हैं, जिसमें 200 डिजिटल सेवाएं और 1000 नए सीएससी को राज्य में आगामी छह महीनों में शुरू हो जाएंगे। देश के डिजिटल आंदोलन में पूर्वोत्तर के शामिल होने पर प्रशंसा करते हुए प्रसाद ने बताया कि आईटी मंत्रालय पूर्वोत्तर डिजिटल विजन -2022 को लांच करने की प्रक्रिया में है। इस दृष्टि के लिए एक रोडमैप मंत्रालय द्वारा राज्य सरकार और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श के जरिए तैयार किया जाएगा। केंद्रीय मंत्री ने राज्य में राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन के तहत डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम के कार्यान्वयन में तेजी लाने पर जोर दिया। रविशंकर प्रसाद ने बताया कि राज्य सरकार की साइबर सुरक्षा पहल को बढ़ावा देने के लिए आईटी मंत्रालय असम में मोबाइल फॉरेंसिक प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए तकनीकी सहायता का विस्तार करेगा और अगले कुछ महीनों में साइबर सुरक्षा पर एक हजार पुलिस कर्मियों को प्रशिक्षित करेगा।
30 लोक कथा
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
बाघिन का मंदिर
क
ई सौ साल पहले की बात है। एक युवा लड़का था- किम ह्योन। उन दिनों लोगों में एक अजीब विश्वास था। वे सोचते थे कि हर साल 8 से 15 फरवरी के बीच रात में, एक विशेष मंदिर हंगन्यून के अहाते में, पैगोडा की परिक्रमा करते हुए प्रार्थना करने से मन की बड़ी से बड़ी इच्छा पूरी हो सकती है। किम ह्योन के मन में भी एक इच्छा थी, इसीलिए एक रात वह भी मंदिर पहुंच गया और पैगोडा की परिक्रमा करने लगा। तभी उसे अपने पीछे से लड़की के कपड़ों के फड़फड़ाने की आवाज आई। उसने चांद की धुंधली-सी चांदनी में देखा कि एक बहुत ही सुंदर लड़की उसी की तरह परिक्रमा कर रही थी। लड़की शर्मीली नहीं थी। उसने किम ह्योन को बताया कि वह अकेली है और वहां अपनी एक इच्छा की पूर्ति के लिए आई है। किम ह्योन तो उसकी सुंदरता को देखता ही रह गया। उनमें दोस्ती ही गई। हर रात वे एक-दूसरे का हाथ पकड़ पैगोडा की परिक्रमा करने लगे। आखिर परिक्रमा की आखिरी शाम भी आ गई। अब उन्हें अलग होना था। किम ह्योन लड़की का हाथ पकड़ उसके घर तक गया। लड़की का घर उजाड़ जंगल में घास से बना हुआ था। वहां दूर-दूर तक मनुष्यों की बस्ती नहीं थी। घर में भी बस एक बूढ़ी औरत थी। वह लड़की की मां थी। उन्हें देखकर बूढ़ी औरत ने बेटी से कड़ककर पूछा, ‘कौन है यह दुस्साहसी लड़का? इसने यहां आने की हिम्मत कैसे की?’ लड़की ने सब कुछ सच बताने में ही भलाई समझी। अतः उसने मंदिर वाली सारी बात बता दी। बूढ़ी औरत ने बुरा-सा मुंह बनाकर कहा, ‘बहुत बुरी बात है।’ फिर थोड़ा नरम पड़ते ही बोली, ‘अब हो भी क्या सकता है। आओ, तुम्हारे तीनों भाइयों के आने से पहले इसे जल्दी से कहीं छिपा दें।’ अभी छिपाया ही था कि तीन बाघों की गरजतीदहलती आवाज सुनाई पड़ी। किम ह्योन तो कांपकर रह गया। घर में घुसते ही तीनों ने कहा, ‘ओह! बहुत
अच्छी गंध आ रही है। आदमी के मांस की।’ ‘क्या बेवकूफों की सी बात कर रहे हो! यहां घर में कहां से आएगा आदमी का मांस।’ बूढ़ी औरत ने क्रोध से डांटते हुए कहा। फिर आगे कहा, ‘आज एक भयानक घटना घटी है। एक भविष्यवक्ता स्वर्ग से उतरा और बोला कि तुमने कितने ही प्राणियों की जान ली है, इसीलिए तुम्हें तुरंत सजा मिलेगी।’ सुनते ही तीनों बाघ मारे डर के कांपने लगे और पीले पड़ गए। तब सुंदर लड़की बोली, ‘मेरे प्यारे बाघ भाइयों! आपने करुणामय बुद्ध भगवान के सामने वचन दिया था कि आप अब किसी प्राणी का बुरा नहीं करेंगे? लेकिन आपने बार-बार अपना वचन तोड़ा है। आप अपना क्रूर खेल खेलते ही रहे। आपने तो आपकी बुरी आदत छुड़ाने के लिए मंदिर में की मेरी प्रार्थना पर भी सावधानी नहीं बरती। अब पछताने के सिवा क्या बचा है! आपके पापों को मैं अपने सिर ले लूंगी और स्वर्ग की सजा को भुगतूंगी। जाओ-जाओ। जल्दी भाग जाओ, नहीं तो वे आपको मार डालेंगे।’ तीनों बाघ बहुत दुखी हुए। उनके चेहरे लटक गए। घबराहट में पूंछे नीची हो गईं। तब एक झटके में वे वहां से भाग गए। फिर उसने किम ह्योन को बेहोशी से जगाया। उससे कहा, ‘मैं तुम्हारे प्यार की कद्र करती हूं। लेकिन दुर्भाग्य से मैं मनुष्य नहीं हूं। तो भी मैं तुम्हें कभी नहीं भूलूंगी। मैंने अपने भाइयों के पाप अपने सिर ले लिए हैं। अब मैं जल्दी ही मर जाऊंगी। बाघों के द्वारा सताए गए प्राणियों के हाथों। मुझे खुशी होगी यदि मैं तुम्हारी तलवार से मरूं। शायद इस तरह मैं तुम्हारी दया का कुछ बदला उतार सकूं। तुम्हारे हाथों मरने की मैंने एक तरकीब सोची है। कल मैं लोगों की बस्ती के बाजार में जाऊंगी। वहां लोगों को अपनी बाघिन की आवाज से डराऊंगी। किसी में मुझसे लड़ने की हिम्मत न होगी। तब राजा मुझे मारने के लिए इनाम रखेगा। तब तुम बिना डरे मेरा जंगल तक पीछा करना। वहां मैं तुम्हारी तलवार की मार का इंतजार करूंगी। मेरी भी इच्छा पूरी हो जाएगी और तुम्हें भी इनाम और सम्मान मिल जाएगा।’
सुनकर किम ह्योन को बहुत ही शर्म आई। वह बोला, ‘यह कैसी बात कर रही हो। भले ही तुम मनुष्य नहीं हो, पर मैंने तुम्हें प्यार किया है। अपने प्यार को कोई कैसे मार सकता है। फिर प्राण भी तो दोनों में एक जैसे ही हैं न? नहीं, यह मुझसे नहीं होगा। मैं अपने प्यार को किसी इनाम या पदवी के लिए नहीं बेचूंगा।’ और उसने उसे प्यार से झिड़कते हुए यह भी कहा, ‘मैं ऐसा अमानवीय काम कभी नहीं करूंगा।’ ‘ऐसा मत कहो किम ह्योन, इस कम उम्र में ही मेरा मरना तो निश्चित है। यही भगवान की इच्छा है। और भगवान की इच्छा तुम्हारी खुशहाली, मेरे परिवार का आशीर्वाद और देश का आनंद भी है। इसीलिए तुम्हें मेरा कहा मानना होगा। मानोगे न? और सुनो! मेरे मरने के बाद यदि तुम एक मंदिर बनवाकर मेरी आत्मा के लिए प्रार्थना करोगे तो मेरा बहुत भला होगा,’ सुंदर लड़की ने कहा। किम ह्योन अब बेबस था। उसने सुंदर लड़की को बहुत प्यार किया। और आंखें में आंसू लिए विदा ली। अगले ही दिन बाजार में एक खतरनाक बाघिन दिखाई पड़ी। गरजती हुई। लोगों को घूरती हुई। डराती हुई। चारों ओर चीखें और चिल्लाहटें थीं। लोग ‘बाघ! बाघ!’ पुकारते हुए मारे डर के इधरउधर भाग रहे थे। सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया। खबर राजा तक पहुंची। राजा ने बाघ का शिकार करने का हुक्म दिया और घोषणा कराई कि जो कोई उसे मारेगा उसे इनाम और बड़ा पद मिलेगा, लेकिन वहां कोई ऐसा बहादुर न निकला जो अपनी जान जोखिम में डालता। राजा काफी निराश हुआ। तभी किम ह्योन प्रकट हुआ और राजा के सामने लोग को बाघ से मुक्ति दिलाने की शपथ ली। राजा बहुत खुश हुआ। उसने पद तो किम ह्योन को पहले ही दे दिया। किम ह्योन अपनी तलवार लिए जंगल में पहुंच गया, जहां सुंदर लड़की उसका इंतजार कर रही थी। उसने किम को देखा तो मारे खुशी के उससे मिलने दौड़ी। उसने किम ह्योन के हाथों को प्यार
से पकड़कर कहा, ‘मुझे कितनी खुशी है तुमसे मिलकर, यह तुम सोच भी नहीं सकते। अब मैं शांति से मर सकती हूं। मैं तुम्हारी खुशी और लंबी उम्र की दुआ करती हूं। बचाते-बचाते भी कुछ लोगों को मेरे नाखूनों की खरोंच आ गईं। मुझे माफ करना। हां, यदि वे अपने घावों पर हंगन्यून मंदिर की सोय सास, मंदिर की घंटी बजाते हुए लगाएंगे तो घाव भर जाएंगे।’ और यह कहते-कहते वह बिजली की तरह उसने अपने प्रेमी किम ह्योन के हाथ से तलवार छीनकर अपने गले में तेजी से घुसा ली और वहीं ढेर हो गई। किम ह्योन ठगा-सा रह गया। सामने खून से सना शरीर था। उसकी आंखें गीली थीं। उसने उन्हें मलकर देखा तो पाया कि वहां सुंदर लड़की नहीं थी। एक सुंदर बाघिन थी। तभी वहां एक भीड़ उमड़ आई। सभी जोर-जोर से बोल रहे थे, ‘किम ह्योन जिंदाबाद! किम ह्योन जिंदाबाद!’ वे उसे महल में ले आए। साथ ही बाघिन की खाल भी सिंहासन पर बिछाने के लिए राजा को उपहार में दी। राजा ने किम ह्योन को सोने-चांदी से लाद दिया। साथ ही उसके पद को बढ़ाते हुए राजकीय पद दे दिया। लेकिन किम ह्योन को इस सब की जरा सी खुशी न थी। उसने तो अपना प्यार खोया था, इसीलिए वह मन ही मन बड़ा उदास था। वह सुंदर लड़की को भूल ही नहीं पा रहा था। उसने लड़की की याद में, उसी की इच्छा की पूर्ति के लिए उसके मरने की जगह पर एक मंदिर बनवाया। और बुद्ध के सूत्र ‘पोमांग ग्योंग’ के अंशों का उच्चारण किया। मंदिर का नाम रखा-‘होवोन सा’ यानी बाघिन का मंदिर। वहां किम ह्योन ने घुटनों के बल बैठ, कितने ही दिन और कितनी ही रातें प्रार्थना की। लड़की की आत्मा की आवाज सुनने के लिए। बूढ़ा होने पर किम ह्योन ने मरने से कुछ ही पहले अपने इस विचित्र कहानी को लोगों को बताया। सुनकर लोग बहुत हैरान हुए। जहां दोनों का प्यार हुआ था उस जगह का नाम बाघिन जंगल रखा गया।
24 - 30 जुलाई 2017
sulabh sanitation
लोक कथा
Sulabh International Social Service Organisation, New Delhi is organizing a Written Quiz Competition that is open to all school and college students, including the foreign students. All those who wish to participate are required to submit their answers to the email address contact@sulabhinternational.org, or they can submit their entries online by taking up the questions below. Students are requested to mention their name and School/College along with the class in which he/she is studying and the contact number with complete address for communication
First Prize: One Lakh Rupees
PRIZE
Second Prize: Seventy Five Thousand Rupees Third Prize: Fifty Thousand Rupees Consolation Prize: Five Thousand Rupees (100 in number)
500-1000) ti on (W or d Li m it: ti pe m Co iz Qu en tt Qu es ti on s fo r W ri nounced? rt was ‘Swachh Bharat’ an Fo d be no open Re the m fro y da ich houses and there should the 1. On wh all in d cte ru nst co be by 2019, toilets should 2. Who announced that l. defecation? Discuss in detai Toilet? 3. Who invented Sulabh ovement? Cleanliness and Reform M 4. Who initiated Sulabh e features of Sulabh Toilet? ? 5. What are the distinctiv used in the Sulabh compost r ise til fer of ge nta rce pe d an 6. What are the benefits of the Sulabh Toilet? ’? 7. What are the benefits be addressed as ‘Brahmins to me ca g gin en av sc al nu discussing ople freed from ma If yes, then elaborate it by s? 8. In which town were pe ste ca r pe up of s me ho take tea and have food in the 9. Do these ‘Brahmins’ story of any such person. entions of Sulabh? 10. What are the other inv
Last
ritten Quiz Competition W of on si is bm su r fo te da
: September 30, 2017
For further details please contact Mrs. Aarti Arora, Hony. Vice President, +91 9899 855 344 Mrs. Tarun Sharma, Hony. Vice President, +91 97160 69 585 or feel free to email us at contact@sulabhinternational.org SULABH INTERNATIONAL SOCIAL SERVICE ORGANISATION In General Consultative Status with the United Nations Economic and Social Council Sulabh Gram, Mahavir Enclave, Palam Dabri Road, New Delhi - 110 045 Tel. Nos. : 91-11-25031518, 25031519; Fax Nos : 91-11-25034014, 91-11-25055952 E-mail: info@sulabhinternational.org, sulabhinfo@gmail.com Website: www.sulabhinternational.org, www.sulabhtoiletmuseum.org
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32 अनाम हीरो
डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19
07 अगस्त - 13 अगस्त 2017
अनाम हीरो अमित समर्थ व श्रीनिवास गोकुलनाथ
साइकिलिस्ट ने अमेरिका में रचा इतिहास
महाराष्ट्र के अमित समर्थ व श्रीनिवास गोकुलनाथ ने अमेरिका में ‘रेस अक्रॉस अमेरिका’ जीतकर रचा इतिहास
म
श्रीनिवास गोकुलनाथ
अमित समर्थ
हाराष्ट्र के दो साइकिलिस्ट ने ‘रेस अक्रॉस अमेरिका’ जीतकर इतिहास बना दिया है। नागपुर के साइकिलिस्ट अमित समर्थ ने 5,000 किमी इस लंबी साइकिल रेस को 11 दिन, 21 घंटों
और 11 मिनट में पूरा कर लिया। अमित ने यह सफलता सोलो कैटेगरी में हासिल की है। इसी रेस में नासिक के श्रीनिवास गोकुलनाथ ने 18-39 वर्ष के आयुवर्ग के तहत सोलो कैटेगरी में यह दूरी 11
न्यूजमेकर
दीक्षिता का ‘ब्रिक कूल स्टोर’ गुरुग्राम की स्कूली छात्रा दीक्षिता खुल्लर ने बिना बिजली से चलने वाला कोल्ड स्टोरेज बनाकर किया सबको दंग
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दीक्षिता खुल्लर
साल की दीक्षिता खुल्लर ने एक ऐसा कोल्ड स्टोरेज बनाया है, जो न केवल काफी सस्ता है, बल्कि उसके जरिए सब्जियां लंबे वक्त तक ताजी रहती हैं। दीक्षिता दिल्ली के वसंत विहार के जीडी गोयनका स्कूल की 12वीं कक्षा की छात्रा हैं। दीक्षिता ने इसके लिए उसने इंटरनेट की मदद ली और कई लोगों से इस बारे में बात की। दीक्षिता को पता चला कि अफ्रीका के एक देश नाइजीरिया में फल और सब्जियों को उसने इसे भारतीय परिस्थिति के अनुसार नया रूप दिया और इस तकनीक को नाम दिया ‘ब्रिक कूल
दिन, 12 घंटों और 45 मिनट में पूरी की। वैसे यह श्रीनिवास का दूसरा प्रयास था, जबकि अमित ने पहली ही बार में रेस पूरी कर सफलता दर्ज की। इस समय के साथ श्रीनिवास ने 7वां और अमित ने 8वां स्थान हासिल किया। 36 वर्षीय अमित समर्थ पेशे से एमबीबीएस डाक्टर हैं और उन्होंने पब्लिक हेल्थ में मास्टर डिग्री हासिल की है, वहीं श्रीनिवास भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल हैं। दोनों ही साइकिलिस्ट को विजेता बनने के लिए अमेरिका की यह रेस कुल 288 घंटों में
स्टोर’। इसमें ईंटों की दो दीवारें बनाई जाती हैं। जिनके बीच में जगह खाली छोड़ी जाती है और उस खाली जगह में बालू भरी होती है। दीवारों की ऊंचाई तीन से चार फीट की होती है। जबकि छत को बांस की खप्पचियों से ढंका जाता है। जिसके बाद दीवारों के बीच की खाली जगह में जहां पर बालू भरी होती है, वहां पर सब्जियों और फलों के कैरेट रखे जाते हैं। इस जगह 5 से 6 कैरेट तक रखे जा सकते हैं। कैरेट के में रखी करीब 125 किलो तक सब्जियां और फल एक हफ्ते तक सुरक्षित रखे जा सकते हैं।
पूरी करनी थी। इससे पहले अमित ने दिसंबर 2016 में आस्ट्रेलिया के पर्थ में बुसल्टन में ट्राइथ्लान भी पूरी की थी। अमित समर्थ ने अपनी सफलता पर कहा कि मेरे लिए यह गर्व की बात है कि इस सफलता को पूरा कर नागुपर शहर का पहला ‘आयरनमैन’ बना और देश का नाम रोशन किया।‘रेस अक्रॉस अमेरिका’ को विश्व की सबसे कठिन साइकिल रेस में गिना जाता है। पिछले 36 वर्षों से जारी इस रेस में साइकिलिस्ट की शारीरिक और मानसिक जीवटता का कड़ा परीक्षण हो जाता है।
हर दिन स्कूल आने का कीर्तिमान
सूरत के भार्गव मोदी ने सीिनयर केजी से लेकर 12वीं कक्षा तक लगातार 2906 दिनों तक स्कूल आने का रचा कीर्तिमान
आ
मतौर पर छोटे बच्चे स्कूल जाने में आनाकानी करते हैं। वे अक्सर स्कूल न जाने के लिए रोज कोई न कोई बहाना बनाते हैं, लेकिन सूरत के पीआर खाटीवाला में पढ़ने वाला एक बच्चा भार्गव मोदी ने सीिनयर केजी से लेकर 12वीं कक्षा तक एक भी छुट्टी न लेकर रिकॉर्ड बना दिया है। वह लगातार 2906 दिनों तक स्कूल में उपस्थित रहा है। पिछले 14 साल से भार्गव ने एक भी दिन स्कूल मिस नहीं किया है। इससे पहले यह रिकॉर्ड भार्गव के ही बड़े भाई वत्सल के नाम पर था, जो लगातार 2537 दिनों तक स्कूल गया था। दिलचस्प है कि एक बार उसकी स्कूल बस का एक्सीडेंट हो गया था। चेहरे पर चोटें आने के बावजूद डॉक्टर के पास जाने के बजाय भार्गव और उसका भाई सीधे स्कूल गए थे। बातचीत के दौरान
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 1, अंक - 34
भार्गव मोदी
भार्गव ने कहा, 'मुझे स्कूल जाना अच्छा लगता है। मुझे लगता है कि रविवार की छुट्टी काफी है। मुझे खुशी है कि मैंने ऐसे छात्रों के लिए एक उदाहरण पेश किया है, जो अब रोज स्कूल आने लगे हैं।' भार्गव ने बताया कि बुखार होने पर भी वह स्कूल जाता था। स्कूल का कहना है, 'भार्गव और वत्सल दोनों पर स्कूल को गर्व है। अन्य छात्रों ने भी उन्हें देखकर नियमित रूप से स्कूल आना शुरू कर दिया है।' गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स को भी इसकी जानकारी दी गई है। इसके अलावा यूनिक वर्ल्ड रिकॉर्ड, इंडिया स्टार बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने भी भार्गव की इस उपलब्धि पर ध्यान दिया है।