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विकास बिहार के सभी गांवों तक पहुंची बिजली
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प्रेरक
टूटी जिंदगी को दिया काव्यमय अर्थ
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कही अनकही
बाल साहित्य बंटी की आइसक्रीम
हरि काका बन गए संजीव
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बाघ संरक्षण की बड़ी पहल
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597
पीलीभीत टाइगर रिजर्व में यूपी का पहला टाइगर रेस्क्यू सेंटर स्थापित करने का निर्णय
वर्ष-2 | अंक-04 | 08 - 14 जनवरी 2018
उ
श्रवण शुक्ला
त्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पीलीभीत टाइगर रिजर्व में राज्य का पहला टाइगर रेस्क्यू सेंटर स्थापित करने का निर्णय लिया है, ताकि शिकारी जानवरों से मनुष्यों को होने वाली समस्याओं को खत्म किया जा सके। बता दें कि पिछले एक साल में पीलीभीत के लखीमपुर खीरी और बहराइच जिलों में बाघ और तेंदुए के हमलों से करीब आधा दर्जन लोगों की मौत हो चुकी है। बात करें पिछले चार महीनों की तो इस दौरान एेसे हमलों के एक दर्जन से ज्यादा मामले सामने आए हैं। इस बारे में मुख्य वन्यजीव संरक्षक एसके उपाध्याय ने बताया कि यह क्षेत्र तीन जिलों में 703 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। इसमें पीलीभीत बाघ अभ्यारण्य के नीचे आने वाले क्षेत्रों में एक बड़ी समस्या यह है कि यहां पैच हैं, जो 3 से 5 किमी चौड़ाई में हैं, यही भोजन की तलाश में भटकने वाले बाघों और तेंदुए को आदिम आबादी के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए मार्ग प्रदान करता है।
खास बातें रेस्क्यू सेंटर से इंसानों पर बाघतेंदुए के हमले पर लगेगी रोक बीते चार महीने में हमले की एक दर्जन घटनाएं हो चुकी हैं पीलीभीत का यह पूरी क्षेत्र गन्ने की खेती के लिए मशहूर
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आवरण कथा
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मंगलयान से कीमती दो बाघों की जान एसएसबी ब्यूरो
घों और मंगलयान की तुलना करना भले ही अजीब लगता हो, लेकिन एक नया जैव आर्थिक विश्लेषण बेहद दिलचस्प आंकड़े पेश करता है। इसके अनुसार, दो बाघों को बचाने से होने वाला लाभ मंगलयान प्रोजेक्ट पर आने वाली लागत की तुलना में कहीं ज्यादा है। भारतीय ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों के एक दल ने अनूठे विश्लेषण में एक दस्तावेज प्रकाशित किया है। इस दस्तावेज का शीर्षक 'मेकिंग द हिडन विजिबल: इकनॉमिक वैल्यूएशन ऑफ टाइगर रिजर्व्स इन इंडिया' है और यह 'इकोसिस्टम सर्विसेज' जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसमें कहा गया है कि दो बाघों को बचाने व उनकी देखभाल से होने वाला लाभ करीब 520 करोड़ रुपए है, जबकि इसरो की मंगल ग्रह पर मंगलयान भेजने की तैयारी की कुल लागत लगभग 450 करोड़ रुपए है। अंतिम अनुमान के अनुसार, भारत में वयस्क बाघों की संख्या 2,226 है, जिसका मतलब है कि कुल लाभ 5.7 लाख करोड़ रुपए होगा। यह राशि नोटबंदी के दौरान जमा की गई कुल रकम के एक तिहाई के बराबर है। यही वजह है कि संरक्षणवादी तर्क देते हैं कि बाघों को बचाना आर्थिक नजरिए से बेहतर है। यह स्थिति तब है जब समाज को पारिस्थितिकी संबंधी कई लाभ उन प्राकृतिक रिहायशों के संरक्षण से होते हैं जहां बाघ प्रमुख प्रजाति है, लेकिन इन लाभों को कोई आर्थिक महत्व नहीं दिया जा सकता। वह भी तब जब बाघों को बचाने से होने वाला लाभ अच्छा खासा है। वैज्ञानिकों ने छह टाइगर रिजर्व का अध्ययन किया और अनुमान लगाया कि उनका संरक्षण करना 230 अरब डाॅलर की राशि को सुरक्षित रखने के समान है। इस राशि को वैज्ञानिकों ने इन टाइगर रिजर्व के लिए 'स्टॉक बेनिफिट्स ' कहा है। ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों के 11 सदस्यीय दल का कहना है कि जैव विविधता से जुड़ी पारिस्थितिकी संबंधी सेवाओं का आथिर्क महत्व संरक्षण को अधिक प्रभावी बनाने में मदद कर सकता है और जैव विविधता से होने वाले लाभ नीति निर्माताओं का भी ध्यान आकृष्ट करेंगे। भोपाल स्थित भारतीय वन प्रबंधन संस्थान के प्रफेसर मधु वर्मा
एक रिपोर्ट के मुताबिक दो बाघों को बचाने से होने वाला लाभ करीब 520 करोड़ रुपए है, जबकि मंगलयान का कुल बजट 450 करोड़ रुपए है के नेतृत्व वाले इस वैज्ञानिक दल का कहना है कि भारत में टाइगर रिजर्व न केवल वैश्विक बाघ आबादी की आधी से अधिक संख्या को सहयोग देते हैं बल्कि यह जैव विविधता के संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह पारिस्थितिकी संबंधी सेवाओं के रूप में आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक लाभ भी मुहैया कराते हैं। वर्मा ने कहा 'इस महत्व को नजरअंदाज करने से निवेश एवं कोष आवंटन संबंधी फैसलों सहित जन नीतियों पर असर पड़ता है जिससे उनकी सुरक्षा पर असर पड़ सकता है और मानव कल्याण की राह में भी बाधा आ सकती है। भारत में छह टाइगर रिजर्व की पारिस्थितिकी संबंधी सेवाओं के आर्थिक मूल्यांकन के माध्यम से हम बताते हैं कि इन टाइगर रिजर्व्स में निवेश में वृद्धि आर्थिक रूप से तर्कसंगत हैं। वैज्ञानिक दल ने छह टाइगर रिजर्व्स से देश को होने वाले आर्थिक लाभों का विश्लेषण किया। इन छह टाइगर रिजर्व्स में से जिम कार्बेट टाइगर रिजर्व में 215 बाघ हैं, कान्हा टाइगर रिजर्व में 80 बाघ, काजीरंगा में 106 बाघ, पेरियार रिजर्व में 35 बाघ, रणथम्भौर में 46 और सुंदरबन टाइगर रिजर्व में 76 बाघ हैं। यह अनुमान वर्ष 2014 के आंकड़ों पर आधारित है, जब राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने अपनी अंतिम देशव्यापी गणना पेश की थी। इसे प्रत्येक बाघ के संरक्षण से सालाना हुए लाभ के ब्याज के तौर पर देखा जा सकता है। इन छह टाइगर रिजर्व्स के रख-रखाव पर सालाना खर्च केवल 23 करोड़ रुपए हुआ। आर्थिक विश्लेषण बताता है कि प्रत्येक बाघ को बचाने के लिए किए गए निवेश पर लाभ इसका 356 गुना अधिक है। कोई भी उद्योग या सेवा इस तरह का उच्च प्रतिफल नहीं दे सकता। प्रोजेक्ट टाइगर के पूर्व प्रमुख और नई दिल्ली स्थित ग्लोबल टाइगर
फोरम के वर्तमान महासचिव राजेश गोपाल कहते हैं, ‘परंपरागत अर्थशास्त्री हरित गणना के इस नए तरीके पर कभी कभार ही सोचते हैं।' भारत में पूरी दुनिया की बाघ आबादी का 60 फीसदी हिस्सा है और 50 टाइगर रिजर्व्स की स्थापना के जरिए वन में रहने वाले वयस्क बाघों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यह संख्या वर्ष 2006 में 1,411 थी जो वर्ष 2015 में बढ़ कर 2,226 हो गई है। बाघों की अगली देशव्यापी गणना इस वर्ष में होगी। गोपाल बाघों के संरक्षण के लिए निवेश बढ़ाने की वकालत करते हुए कहते हैं, ‘भारत ने बाघ संरक्षण के पिछले 35 साल में, सरकार ने करीब 1,200 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। छह टाइगर रिजर्व्स के विश्लेषण से पता चलता है कि इनसे 2305.6 करोड़ सालाना का लाभ हुआ'। ये आंकड़े आंखें खोलने वाले हैं। आज देश का 2.3 फीसदी भौगोलिक क्षेत्र टाइगर रिजर्व के तहत संरक्षित है और गोपाल आथर्कि लाभ की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि संरक्षित वनों से करीब 300 छोटी बडी नदियां निकलती हैं जिनके प्रवाह के लाभ अमूल्य हैं। गोपाल कहते हैं, ‘प्राकृतिक पारिस्थितिकी के मानव केंद्रित लाभों का अनुमाान
लगाना लगभग असंभव है क्योंकि इनमे से कई तो नजर नहीं आते।’ इसे विस्तार देते हुए वर्मा कहते हैं, ‘हमारे पास अब भी पारिस्थितिकी के बारे में, सभी प्रजातियों के बारे में और उन विभिन्न तरीकों के बारे में न तो पर्याप्त जानकारी है और न ही समझबूझ है जिनसे मानव कल्याण में वृद्धि होती है ताकि हम इनमें से प्रत्येक के महत्व का अनुमान लगा सकें।’ बाघ संरक्षण में लगे विशेषज्ञ बताते हैं कि पिछली सदी में देश को भुखमरी से बचाने वाली चावल की किस्म आईआर-8 थी। अत्यधिक उत्पादन वाली यह किस्म बाघ की उन रिहायशों से एकत्र धान की जंगली किस्म है जो अब छत्तीसगढ़ का हिस्सा है। गोपाल कहते हैं, 'बाघ एक मुख्य प्रजाति है और इसके साथ ही कई लाखों जीव-जंतुओं को बचाया जा रहा है।' उन्होंने कहा कि प्रोजेक्ट टाइगर की स्थापना करने का एक उद्देश्य प्राकृतिक विकासवाद संबंधी प्रक्रिया की निरंतरता सुनिश्चित करना है। अब हरित गणना बाघों के संरक्षण के लिए एक पूरी नई दिशा प्रदान कर रही है। गोपाल कहते हैं कि हरित नियोजन समय की मांग है।
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टाइगर रेस्क्यू सेंटर की खासियत
रेस्क्यू सेंटर खुलने से आबादी क्षेत्र में घुसने वाले बाघों को जंगल से निकलते ही कैप्चर कर लिया जाएगा। पीलीभीत टाइगर रिजर्व के इर्द-गिर्द रहने वाले लोगों के लिए यह राहत भरी खबर है। इसमें स्थानीय लोगों को बाघों के हमले से बचाने में मदद मिलेगी।
प्रशासन ने बताया कि यहां के आसपास के गांवों में अन्य लोगों की तुलना में जंगली जानवरों के हमले की संभावना अधिक देखी गई है। इस क्षेत्र के गांवों में अधिकांश हमले हुए हैं। चूंकि यह क्षेत्र गन्ने का बेल्ट है, इसीलिए जंगली जानवरों को इस बड़े क्षेत्रों में हमला करके फिर जंगल में गायब होने में आसानी होती है। इससे वन अधिकारियों को इन जानवरों को पकड़ना मुश्किल हो जाता है। हाल ही में वन अधिकारियों को खाली हाथ लौटना पड़ा, जब वे जंगली तेंदुए को पकड़ने के लिए एक महीने से अधिक समय तक जाल लगाए रहे और वह हाथ नहीं आया। जबकि उस दौरान तेंदुए ने दो व्यक्तियों की हत्या कर दी थी। पीलीभीत टाइगर रिजर्व के करीबी इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों ने जानवरों के साथ आए दिन होने वाले उनके मुठभेड़ों के बारे में बताया। गांव में रहने वाले किसान शैलेंद्र ने कहा कि जब हम घर के बाहर सोए हुए थे तब एक बाघ ने हमला किया। इससे पहले कि हम कुछ भी समझ पाते बाघ ने मेरे भाई के बेटे को निगल लिया। बाद में उसके अवशेष जंगल में हमें मिले। इस तरह आए दिन जंगली जानवरों के हमलों की घटनाओं में तेजी के बाद ग्रामीणों में एक
रेस्क्यू सेंटर में बाघों के खाने-पीने की विशेष व्यवस्था के साथ डॉक्टरों का एक पैनल भी होगा। सेंटर का डीपीआर बनने में वक्त लगेगा। फिर भी इस सेंटर को तत्काल शुरू करने के लिए शासन को 3.5 करोड़ रुपए की डिमांड भेजी गई है। इसमें 15-20 टाइगर रखने की व्यवस्था होगी। पीलीभीत का टाइगर रिजर्व 70 हजार हेक्टेयर (703 वर्ग किमी) में फैला है, लेकिन इसका थोड़ा हिस्सा 3 से 5 किलोमीटर ही चौड़ा है। इस हिस्से में जो भी टाइगर चौड़ाई की मनोवैज्ञानिक डर बढ़ गया है। गांव में रहने वाले लखविंदर कहते हैं कि हमने घर के बाहर सोना बंद कर दिया है। सूर्यास्त के बाद हमारे गांव में भयानक सन्नाटा छा जाता है और लोग घरों से बाहर नहीं निकलते हैं। लाख शिकायतों के बावजूद वन विभाग हमारे जीवन की सुरक्षा करने में अब तक विफल रहा है। मुख्य वन्यजीव संरक्षक ने कहा कि लगभग 100 किलोमीटर के क्षेत्र में सोलर फेंसिंग लगाने का काम पहले ही शुरू हो चुका है, लेकिन यह प्रभावी नहीं होगा, क्योंकि जानवर आसानी से बाड़ पर कूद सकता है। ऐसे में बाघ सोलर फेंसिंग लगाना रात में प्रभावी नहीं होगा साथ ही वे मानव निवास में प्रवेश करते हैं। मुख्य वन्यजीव संरक्षक ने दावा किया कि पीलीभीत टाइगर रिजर्व की असमान भौगोलिक सीमाओं को ध्यान में रखते हुए, बाघ बचाव केंद्र की स्थापना की गई है, जो जानवरों को मानव आबादी में प्रवेश करने के मामलों की जांच के लिए एकमात्र प्रभावी समाधान है। उन्होंने कहा कि विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) बनाने पर काम शुरू हो चुका है, लेकिन इस कार्य को पूरा होने में थोड़ा समय लगेगा। वहीं राज्य सरकार ने जल्द ही बाघ बचाव केंद्र की स्थापना के लिए 3.5 करोड़ रुपए मंजूर कर दिए हैं।
दिशा में इधर या उधर होता है, वो आबादी में पहुंच जाता है। जिससे इंसानों पर बाघ के हमले की घटनाएं होती रहती हैं। इसीलिए इन बाघों को आबादी में आने से रोकना बहुत जरूरी हो गया है।
राज्य सरकार ने यहां टाइगर सफारी भी बनाने का फैसला किया है। लेकिन सेंट्रल जू अथॉरिटी व सुप्रीम कोर्ट की अनुमति मिलने में देरी से सफारी बनाने में वक्त लगेगा। इसे देखते हुए तब तक के लिए वन विभाग ने 10 हेक्टेयर क्षेत्र में टाइगर रेस्क्यू सेंटर खोलने का फैसला किया है। बाघ को आबादी वाले इलाकों में बढ़ने से रोकने के लिए 100 किमी लंबी सोलर फेंसिंग करने का फैसला किया गया है। चालू वित्त वर्ष में इसमें से 25 किलोमीटर फेंसिंग पूरी करने का लक्ष्य है। राज्य सरकार ने पीलीभीत टाइगर रिजर्व को टाइगर सफारी में विकसित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट और सेंट्रल चिड़ियाघर प्राधिकरण से भी अनुमति मांगी है, लेकिन अभी तक अनुमोदन नहीं मिला है। राज्य सरकार ने 10 हेक्टेयर क्षेत्र में रेस्क्यू सेंटर स्थापित करने का निर्णय लिया है। मनुष्य-पशु संघर्ष बाघ बचाव केंद्र में एक समय में 15-20 बाघ रखने के लिए सभी सुविधाएं होंगी। इसमें वन्यजीव विशेषज्ञों, डॉक्टरों का एक दल, शांत बंदूकें से लैस गार्ड, एक मिनी अस्पताल, विश्राम गृह, कैंटीन, बाघ रखने के लिए शेड होंगे। यह पुनर्वास केंद्र के रूप में भी कार्य करेगा, जहां बाघ वन्यजीव विशेषज्ञों की निरंतर देखरेख में उनके व्यवहार में परिवर्तन करने के लिए कार्य करेगा। 2008 में जब पीलीभीत टाइगर रिजर्व अस्तित्व में आया तो जंगल में लगभग 28 बाघ थे। अब यह संख्या 50 से अधिक हो गई है। बचाव केंद्र की स्थापना के बाद हम अपनी आबादी को और बढ़ा सकते हैं। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) द्वारा किए गए एक अध्ययन का दावा है कि पीलीभीत टाइगर रिजर्व देश में बाघों के पारिस्थितिकी और व्यवहार के लिए सबसे उपयुक्त तेराई पर्यावरण व्यवस्था स्थापित करने वालों में से
पीलीभीत टाइगर रिजर्व में पर्यावरण व्यवस्था और जैव-विविधता खतरे में पड़ने वाले बंगाल टाइगर्स की जनसंख्या में वृद्धि के लिए सबसे अनुकूल प्राकृतिक परिवेश है
एक है। इसकी जैव विविधता के कारण ही यहां लुप्तप्राय बंगाल टाइगर की आबादी में वृद्धि की एक महान संभावना है। यहां 127 से ज़्यादा जानवरों और 326 पक्षी प्रजातियों के निवास के लिए एक घर है, जिसमें राजसी बंगाल टाइगर्स, लोपारड, बेगलफ्लोरिकन, लाल जंगल मुर्गी, हॉर्नबिल, मटर फोवल, ब्लैक फ्रैंकोलिन, ड्रोंगो, स्पॉटवेल उल्लू जंगल बैबलर, इंडियन गिल्फट आदि शामिल हैं। उपाध्याय ने कहा कि पीलीभीत टाइगर रिजर्व में पर्यावरण व्यवस्था और जैव-विविधता खतरे में पड़ने वाले बंगाल टाइगर्स की जनसंख्या में वृद्धि के लिए सबसे अनुकूल प्राकृतिक परिवेश है। थोड़ा अतिरिक्त प्रयासों के साथ, हम राजसी जानवर की संख्या में और वृद्धि कर सकते हैं। बचाव केंद्र इस दिशा में एक बड़ा कदम है। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के उत्तराखंड में शामिल हो जाने के बाद, राज्य सरकार हमेशा प्राकृतिक पर्यावरणीय व्यवस्था, दलदली घास के मैदानों, जल निकायों, खुली जगह और बंगाल टाइगर्स और तेंदुए के लिए भोजन की पर्याप्त उपलब्धता के कारण पीलीभीत टाइगर रिजर्व को बढ़ावा देने में उत्सुक रही है। 2014 में जहां पीलीभीत में 28 टाइगर थे, वहीं 2017 में इनकी संख्या बढ़कर 50 हो गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले दिनों में इनकी संख्या में और इजाफा होगा। इसीलिए इनकी देखभाल के लिए बेहतर इंतजाम जरूरी है। इस योजना में पीलीभीत टाइगर रिजर्व की सीमाओं को बढ़ाने के लिए शाहजहांपुर, किशनपुर अभयारण्य और पीलीभीत जिले के खता पर्वतमाला के नए इलाकों को शामिल किया गया है। रामनरेश ने कहा कि हम इस खबर से बहुत खुश हैं। हम आशा करते हैं कि टाइगर बचाव केंद्र हमारे क्षेत्रों में ग्रामीणों के साथ-साथ शिकारियों के जीवन की भी रक्षा करेगा। नरेश ने बताया कि ऐसे भी अवसर आए जब गुस्साए ग्रामीणों ने तेंदुए को मार डाला और गंभीर रूप से घायल हुए बाघों पर भी हमला किया। यह बचाव केंद्र पीलीभीत टाइगर रिजर्व में मानवपशु संघर्ष का अंत करेगा और उसकी आबादी को बढ़ाने में कितना सफल होगा यह तो केवल समय बताएगा। लेकिन वन विभाग के अधिकारी इसे तेजी से खोज रहे हैं। उम्मीद यही है कि यह रेस्क्यू सेंटर शिकारियों और जंगली जानवरों को रोकने के लिए एक मजबूत दीवार के रूप में कार्य करेगा।
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आवरण कथा
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बाघ संरक्षण हमारी प्राथमिकता
बाघ संरक्षण और प्रकृति संरक्षण विकास की राह में बाधा नहीं हैं। दोनों पूरक रूप में साथ-साथ चल सकते हैं
ह
नरेंद्र मोदी
म सभी जानते हैं कि पारिस्थितिकी पीरामिड तथा आहार श्रृंखला में बाघ सबसे बड़ा उपभोक्ता है। बाघ के लिए बड़ी मात्रा में आहार और वन आवश्यक है। इस तरह बाघ की सुरक्षा करके हम समूचे पारिस्थितिक प्रणाली तथा पारिस्थितिकी की रक्षा करते हैं। यह मानव जाति के कल्याण के लिए समान रूप से महत्त्वपूर्ण है। वास्तव में बाघ संरक्षण के लाभ अनेक हैं, लेकिन इनका पूरा लाभ उठाया नहीं जा सका है। हम आर्थिक संदर्भ में इसकी मात्रा निश्चित नहीं कर सकते। प्रकृति का मूल्य लगाना कठिन है। प्रकृति की तुलना धन से नहीं की जा सकती क्योंकि प्रकृति ने वन्य प्राणियों को आत्म रक्षा की शक्ति दी है। इसीलिए यह हमारा दायित्व है कि हम उनका संरक्षण करें। हमारे मिथकों में मां प्रकृति की प्रतीक मां दुर्गा को बाघ पर सवार दिखाया गया है। वास्तव में हमारे अधिकतर देवताओं व देवियां किसी न किसी प्राणी, वृक्ष या नदी से जुड़ी हैं। कभीकभी तो इन प्राणियों को देवता और देवियों के बराबर रखा जाता है। बाघ हमारा राष्ट्रीय प्राणी है। मुझे विश्वास है कि बाघ श्रृंखला से जुड़े देशों में भी बाघ से जुड़ी सांस्कृतिक गाथा और विरासत होगी। प्राणी साम्राज्य से जुड़ी प्रजातियां सामान्य तौर पर अपने अहित के लिए काम नहीं करती हैं। लेकिन मानव जाति अपवाद है। हमारी बाध्यता और इच्छाएं, हमारी आवश्यकताएं और लालच के कारण प्राकृतिक क्षेत्र में कमी आई है और पारिस्थितिकी प्रणाली का नुकसान हुआ है। यहां मैं आप सबको गौतम बुद्ध के शब्द याद दिलाना चाहूंगा। उन्होंने कहा था, ‘प्रकृति की असीमित कृपा है। यह सभी प्राणियों को सुरक्षा देती है और
कुल्हाड़ी चलाने वाले को भी अपनी छाया देती है।’ मैं बाघ श्रृंखला से जुड़े देशों द्वारा बाघ संरक्षण कार्य में किए गए प्रयासों की सराहना करता हूं। मैं 2010 में बाघ सम्मेलन आयोजित करने में ब्लादीमीर पुतिन के प्रयासों की चर्चा करना चाहूंगा। उनके प्रयासों के कारण विश्व बाघ पुन: प्राप्ति कार्यक्रम के रूप में परिणाम निकला। लेकिन मुझे जो बताया गया है उससे लगता है कि बाघ श्रृंखला देशों में बाघों का निवास क्षेत्र घटा है। बाघ के शरीर के अंगों की तस्करी से भी स्थिति गंभीर हुई है। भारत में भी हम अवैध शिकार की समस्या और उनकी पारिस्थिकी प्रणाली में आ रही कमी की चुनौती का सामना कर रहे हैं। हमारे पक्ष में अच्छी बात यह है कि हमारी अधिकतर आबादी पेड़ों, प्राणियों, वनों, नदियों तथा सूर्य और चंद्रमा जैसे प्राकृतिक तत्वों को आदर करती है। हम पृथ्वी को माता के रूप में मानते हैं। हमारे धर्मग्रंथ पूरे ब्रह्मांड को एक समझने की सीख देते हैं। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ तथा ‘लोकः समस्ताः सुखिनो भवन्तु’ हमारा दर्शन है। हम शांति तथा पर्यावरण प्रणाली सहित सभी की समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। वनों को वन्य जीवों से अलग नहीं किया जा सकता। दोनों एक दूसरे के स्वाभाविक पूरक हैं। एक को नष्ट करना दूसरे को नष्ट करना है। जलवायु परिवर्तन का यह एक महत्त्वपूर्ण कारण है जो कई प्रकार से हमारे ऊपर विपरीत प्रभाव डाल रहा है। यह वैश्विक समस्या है और इससे हम लड़ रहे हैं। हमने समाधान के रूप में इसमें कमी लाने की देश विशेष रणनीति की दिशा में काम करने का संकल्प लिया है। मेरे विचार से बाघ श्रृंखला
देशों के लिए विकास सक्षम बाघ आबादी निश्चित रूप से जलवायु परिवर्तन के लिए शमन रणनीति का प्रतीक है। इससे बाघ बहुल वनों के क्षेत्र बढ़ने से कार्बन का व्यापक क्षरण होगा। इस तरह बाघ संरक्षण से अपना तथा हमारी आने वाली पीढि़यों का अच्छा भविष्य सुनिश्चित होगा। भारत में बाघ संरक्षण का सफल ट्रैक रिकार्ड रहा है। हो गई। हमारे राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकार ने अनेक ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। इस संवेदनशील वन क्षेत्रों में अवैध शिकार के विरुद्ध निगरानी को प्रोत्साहन देने के लिए इंटेलीजेंट, इंफ्रारेड तथा थर्मल कैमरे 24x7 आधार पर लगाने सहित आधुनिक टेक्नोेलॉजी के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है। स्मार्ट पेट्रोलिंग तथा बाघ निगरानी के लिए अनेक प्रोटोकॉल विकसित किए गए हैं। बाघों की सुरक्षा निगरानी के लिए रेडियो टेलीमिट्री को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की सुरक्षा पर नजर रखने वाले कैमरों के फोटो का डाटाबेस भंडार तैयार किए जा रहा है। यह सब करने के लिए हमने बाघ संरक्षण के आवंटन को दोगुना कर दिया है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि बाघ संरक्षण और प्रकृति संरक्षण विकास की राह में बाधा नहीं हैं। दोनों पूरक रूप में साथ-साथ चल सकते हैं। हमारी आवश्यकता यह है कि हम उन क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति को नया रूप दें जिन क्षेत्रों का लक्ष्य बाघ संरक्षण नहीं है। यह कठिन कार्य है, लेकिन किया जा सकता है। हमारी प्रतिभा भू-प्रदेश स्तर पर विभिन्न अवसंरचनाओं में बाघ तथा वन्य, जीवन सुरक्षा को स्मार्ट तरीके से एकीकृत करने में है। इससे हम बहु प्रतीक्षित स्मार्ट हरित अवसंरचना की ओर बढ़ते हैं और भू प्रदेश का दृष्टिकोण अपनाते हैं। इससे हमें काॅरपोरेट सामाजिक दायित्वों के जरिए कारोबारी समूहों को बाघ संरक्षण की दिशा में चलाए जा रहे कार्यक्रमों में शामिल करने में मदद मिलेगी। हम भारतीय संदर्भ में इसे वन संरक्षण योजनाओं के जरिए
हमारे पक्ष में अच्छी बात यह है कि हमारी अधिकतर आबादी पेड़ों, प्राणियों, वनों, नदियों तथा सूर्य और चंद्रमा जैसे प्राकृतिक तत्वों का आदर करती है
हासिल करना चाहते हैं। बाघ संरक्षण क्षेत्रों की पारिस्थितकी प्रणाली पर विचार करते समय हमें इन क्षेत्रों को प्राकृतिक पूंजी मानना होगा। हमारी संस्थाओं की ओर से कुछ बाघ संरक्षित क्षेत्रों का आर्थिक मूल्यांकन किया गया है। इस अध्ययन से यह तथ्य उभरा है कि बाघ को संरक्षण प्रदान करने के अतिरिक्त संरक्षित क्षेत्र अनेक आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आध्यात्मिक लाभ प्रदान करते हैं। इन्हें पर्यावरण प्रणाली सेवाओं के रूप में जाना जाता है। इसीलिए संरक्षण को विकास में बाधा मानने के बजाय विकास के साधन के रूप में परिभाषित करने की जरूरत है। इसके लिए विकास और वृद्धि के आर्थिक गणित के तहत पर्यावरण प्रणाली के मूल्य को ध्यान में रखना होगा। वैश्विक बाघ आबादी का 70 प्रतिशत हमारे पास है। भारत अन्य बाघ श्रृंखला देशों की पहलों का संपूरक बनने के लिए संकल्पबद्ध है। चीन, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश के साथ हमारी द्विपक्षीय व्यवस्थाएं हैं। हम बाघ के लिए अपनी पारस्परिक चिंता के विषयों के हल का प्रयास जारी रखते हैं। बाघ को एक बड़ा खतरा उसके शरीर के अंगों की मांग और इस पर निर्भर उत्पादों की मांग है। वन और इसके वन्य जीव क्षेत्र एक मुक्त खजाना है जिसे बंद नहीं किया जा सकता। बाघ के अंगों की अवैध तस्करी के बारे में जानकर पीड़ा होती है। इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए हमें सरकार के शीर्ष स्तर पर काम करना होगा। भारत अन्य बाघ श्रृंखला देशों की तरह वैश्विक बाघ मंच का संस्थापक सदस्य है, जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। यह अपने किस्म का एक मात्र अंतर-सरकारी संगठन है। यह संगठन वैश्विक बाघ कार्यक्रम परिषद के साथ मिलकर काम कर रहा है। मेजबान देश के रूप में मैं पूरे समर्थन का आश्वासन देता हूं। हमें भारत के वन्य जीव संस्थान में वन्य जीव कर्मियों के क्षमता विकास में मदद देने में भी खुशी होगी। अंत में मैं यह कहना चाहूंगा कि बाघों का संरक्षण कोई चयन और पसंद का काम नहीं है। यह आवश्यक है। मैं यह भी कहना चाहूंगा कि वन्य जीव अपराधों का मुकाबला करने के लिए क्षेत्रीय सहयोग आवश्यक है। (बाघ संरक्षण पर नई दिल्ली में आयोजित तीसरे मंत्री स्तरीय सम्मेलन में पीएम नरेंद्र मोदी के संदेश का संपादित अंश)
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विकास
हर गांव हुआ रौशन
गांवों के बाद अब बसावट की दूसरी इकाई टोलों तक बिजली पहुंचाने पर बिहार सरकार का जोर
खास बातें
सूबे के प्रत्येक घर को 2018 के अंत तक मुफ्त बिजली कनेक्शन अप्रैल तक बचे हुए 21,890 टोलों तक बिजली पहुंचाने की योजना ऊर्जा की 3030.52 करोड़ रुपए की योजनाओं पर चल रहा कार्य
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एसएसबी ब्यूरो
हार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मुताबिक राज्य के सभी 39,073 गांवों में बिजली पहुंच चुकी है। राज्य के प्रत्येक घर को 2018 के अंत तक मुफ्त बिजली कनेक्शन दे दिया जाएगा। बिहार देश के उन राज्यों में शामिल था, जहां बिजली-पानी को लेकर सबसे ज्यादा समस्याएं रही है और ऐसा लंबे समय से रहा है। पर बीते कुछ सालों में इस पिछड़े सूबे की स्थिति सुधर रही है। यह राज्य जहां जीडीपी के आंकड़ो में लगातार अपनी स्थिति बेहतर बनाए हुए है, वहीं वहां सड़क और बिजली जैसी सुविधाएं सुदूर इलाकों तक पहुंच रही है। बिहार में बिजली आपूर्ति को लेकर जो योजना चल रही है उसके मुताबिक इस साल अप्रैल तक हर टोले और बसावटों तक बिजली पहुंचा दी जाएगी और दिसंबर 2018 तक हर घर में बिजली कनेक्शन दे दिया जाएगा। इसकी घोषणा बिहार पावर होल्डिंग कंपनी के समारोह खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कर चुके हैं। उन्होंने अधिकारियों के साफ निर्देश दिया
बिहार में बिजली की उपलब्धता बढ़ी है। चौसा व नवीनगर में काम शुरू हो गया है। कजरा और पीरपैंती में सोलर प्लांट से बिजली पहुंचाने की तैयारी चल रही है है कि अप्रैल तक बचे 21,890 टोलों में बिजली पहुंच जाए और दिसंबर तक हर इच्छुक व्यक्ति को बिजली का कनेक्शन दे दिया जाए। उन्होंने कहा कि वह किसी घोषणा को स्लोगन के तौर पर इस्तेमाल नहीं करते हैं। जो कहा है उसे करके दिखाया है। इसीलिए बसावटों तक बिजली पहुंचाने का काम हो या फिर हर घर तक बिजली पहुंचाने का, तय समय सीमा पर उसे पूरा कर लिया जाए। उन्होंने ऊर्जा क्षेत्र की 3030.52 करोड़ रुपए की योजनाओं का शिलान्यास, उद्घाटन और लोकार्पण भी किया है। बिहार के लोगों को उम्मीद नहीं थी कि छोटे शहरों और गांवों में बिजली आएगी। पटना समेत बड़े शहरों में तो 24 घंटा बिजली रहना एक सपना था, लेकिन लोगों के मन से अब सब कुछ मिट चुका है। प्रदेश में बिजली की उपलब्धता बढ़ी है। चौसा व नवीनगर में काम शुरू हो गया है। कजरा और पीरपैंती में सोलर प्लांट से बिजली पहुंचाने की
बिहार में बिजली आपूर्ति
39,073 पूर्ण रूप से विद्युतीकृत गांव : 28,075 पूर्ण रूप से विद्युतीकरण से वंचित गांव : 10,998 कुल टोला-बसावटों की संख्या : 1,06,249 पूर्ण रूप से विद्युतीकृत टोला-बसावट : 84,359 जिन टोला-बसावटों में पहुंचानी है बिजली : 21,890 कुल गांवों की संख्या :
तैयारी चल रही है। इससे बिजली उत्पादन के क्षेत्र में कोई समस्या नहीं रहेगी। राज्य सरकार एनटीपीसी के साथ-साथ निजी क्षेत्रों से बिजली खरीद रही है। इससे बिजली की चिंता किसी को नहीं करनी पड़ेगी। केंद्र सरकार ने बिजली आपूर्ति को लेकर महत्वाकांक्षी ‘सौभाग्य’ योजना शुरू की है और इसके लिए 1800 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत किया है। इससे राज्य सरकार का कुछ पैसा बच जाएगा, जो दूसरी जगह पर खर्च की जा सकती है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बताते हैं कि पावर ग्रिड और पावर सब स्टेशन से ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन की क्षमता बढ़ेगी। हर प्रखंड में एक पावर सब स्टेशन बनाने का निर्णय है, लेकिन कई प्रखंड में पांच-छह पंचायत तो कई में 30 से ज्यादा पंचायतें भी हैं। ऐसे में आबादी व जरूरत के हिसाब से पावर सब स्टेशन का निर्माण होना चाहिए। कहीं भी बिजली पहुंचाना बहुत ही कठिन काम है। इसके लिए पूरा नेटवर्क चाहिए। पावर सब स्टेशन बनने से बिजली की समस्या दूर होगी। बिहार सरकार बिजली कंपनियों के घाटे को भी कम करने में जुटी है। सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि बिजली कंपनी समय पर बिजली बिल उपलब्ध करा देगी और उसका भुगतान हो जाएगा तो खुद-बखुद घाटा कम हो जाएगा। इससे पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी घाटे की कंपनी नहीं, बल्कि लाभ की कंपनी हो जाएगी। इससे बिजली के क्षेत्र में और प्रगति होगी। बिजली बिल के बिलिंग की गड़बड़ी दूर होनी चाहिए। स्पॉट बिलिंग शुरू की गई है। उन्होंने कहा
कि लोक शिकायत निवारण अधिकार कानून में दो लाख से ज्यादा शिकायतों का निबटारा किया गया। इसमें करीब 15 हजार शिकायतें बिलिंग से संबंधित थी। एक बल्ब जलाने वाले का महीने का बिल 15 हजार आ जा रहा था. सभी का निबटारा किया गया। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार भारत ने पहली बार वर्ष 2016-17 ( फरवरी 2017 तक) के दौरान नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार को 579.8 करोड़ यूनिट बिजली निर्यात की, जो भूटान से आयात की जाने वाली करीब 558.5 करोड़ यूनिटों की तुलना में 21.3 करोड़ यूनिट अधिक है। 2016 में 400 केवी लाइन क्षमता (132 केवी क्षमता के साथ संचालित) मुजफ्फरपुर – धालखेबर (नेपाल) के चालू हो जाने के बाद नेपाल को बिजली निर्यात में करीब 145 मेगावाट की बढ़ोत्तरी हुई है। सरकार की नीतियों के चलते आज पारंपरिक और गैरपारंपरिक ऊर्जा का भी भरपूर उत्पादन होने लगा है। सबसे बड़ी बात भारत इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर ही नहीं बना है, सौर ऊर्जा के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा बाजार उभर कर सामने आया है। ऊर्जा क्षेत्र में इस कायापलट के पीछे उन योजनाओं के क्रियान्यवन में बेहतर तालमेल रहा है जिस पिछले तीन सालों में सरकार ने लागू किया है। ऊर्जा क्षेत्र की छोटी-छोटी समस्याओं को दूर करने के लिए लागू की गई इन योजनाओं से बहुत बड़े परिणाम सामने आए हैं। देश के हर घर को चौबीसों घंटे बिजली देने का लक्ष्य 2022 है, लेकिन जिस गति से काम चल रहा है उससे अब यह प्राप्त कर लेना आसान लगने लगा है। केंद्र सरकार ने अगले साल अक्टूबर तक देश के सभी गांवों में बिजली पहुंचा देने का वादा किया है। दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत जिस गति से ग्रामीण विद्युतीकरण का काम हो रहा है उससे यह असंभव सा लगने वाला काम संभव लग रहा है। अगर देश में लगातार बिजली उत्पादन में बढ़ोत्तरी हो रही है तो इसके पीछे दो बड़ी वजहें हैं। एक तरफ वितरण में होने वाला नुकसान कम हुआ है। दूसरी ओर सफल कोयला एवं उदय नीति से उत्पादन बढ़ा है।
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शराब परोसने वाली महिलाएं पिला रहीं चाय
महुआ शराब बनाने वाली आदिवासी महिलाओं को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए पुलिस की अनूठी पहल
बि
मनोज पाठक
हार में शराबबंदी के बाद पुलिस ने अवैध शराब कारोबारियों को पकड़ने के लिए कई तरीके इजाद किए, लेकिन मुंगेर पुलिस ने शराबबंदी के बाद अवैध रूप से महुआ शराब बनाने वाली आदिवासी महिलाओं को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए एक अनूठी पहल की है। पुलिस की इसी पहल का नतीजा है कि जो महिलाएं कल तक ‘मयखाने’ में शराब परोसती थीं, अब वे लोगों को चाय पिला रही हैं। पुलिस ने इन महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए चाय की दुकान खुलवाई तथा मुर्गी पालन के लिए प्रोत्साहित किया। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि बरियारपुर थाना के आदिवासी गांव की 15 महिलाएं पिछले दिनों झारखंड से देशी शराब बनाने के लिए महुआ लाने के क्रम में पुलिस द्वारा पकड़ी गई थीं। इन महिलाओं ने पुलिस को बताया कि आर्थिक तंगी के कारण और आदिवासी इलाकों में रोजगार के अभाव के कारण ये सभी शराब बनाने का कार्य कर रही हैं। यह सुनकर मुंगेर के पुलिस अधीक्षक आशीष भारती ने इन महिलाओं के लिए अनूठी पहल की। पुलिस अधीक्षक ने जिला प्रशासन के सहयोग से उनभीवनवर्षा गांव को ही गोद ले लिया। इन महिलाओं के रोजगार के लिए चाय दुकान
महिलाएं अब न केवल दुकान खोलकर लोगों को चाय पिला रही हैं बल्कि आर्थिक रूप से मजबूत भी हो रही हैं खोलने से लेकर मुर्गी पालन तक के लिए सामान और मुर्गियां मुहैया करवाईं। भारती का उद्देश्य इन महिलाओं को स्वावलंबी बनाना है, जिससे आर्थिक कमजोरी के कारण फिर से ये महिलाएं शराब बनाने का धंधा न अपना लें। भारती कहते हैं कि वर्तमान समय में गांव की
15 महिलाओं को स्वरोजगार के साधन उपलब्ध कराए गए हैं। उनकी योजना यहां की महिलाओं को स्वरोजगार के क्षेत्र में जैसे मोमबत्ती बनाने, अगरबत्ती, पापड़ बनाने के लिए प्रशिक्षण दिलवाने की है। उन्होंने बताया कि इसके लिए वे खुद कई संस्थाओं से बात कर रहे हैं। पुलिस ने इन महिलाओं
को सर्वाजनिक रूप से शराब व्यापार से 'तौबा' करने की शपथ भी दिलवाई। इधर, इस पहल से महिलाएं भी खुश हैं। यहां महिलाएं अब न केवल दुकान खोलकर लोगों को चाय पिला रही हैं, बल्कि आर्थिक रूप से मजबूत भी हो रही हैं। कमली देवी जिन्हें मुर्गी पालन के लिए प्रशासन द्वारा मुर्गियां दी गई हैं, ने बताया, ‘किसी को भी अवैध धंधा करना अच्छा नहीं लगता परंतु पेट के लिए सबकुछ करना पड़ता है।’ उन्होंने कहा कि अब वह कभी भी शराब के धंधे की ओर नहीं जाएंगी। वह कहती हैं, "मेहनत-मजदूरी कर खा लेंगे परंतु अवैध शराब का धंधा कभी नहीं करूंगी।’ पुलिस द्वारा गैस सिलेंडर, केतली जैसे सामान मुहैया कराए जाने पर चाय की दुकान चला रही कारी देवी के लिए तो अब पुलिस ही भगवान हैं। उसका कहना है कि पुलिस की इस पहल का प्रभाव अन्य गांवों में भी पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर बरियारपुर थाना के ऋषिकुंड पहाड़ की तराई में बसे उनभीवनवर्षा गांव की पहचान नक्सल प्रभावित गांव के रूप में है। नक्सल प्रभावित होने के कारण सरकार की कई योजनाएं भी यहां असफल ही रही हैं। इस कारण आज भी यह गांव न केवल विकास की बाट जोह रहा है, बल्कि यहां के लोगों के लिए रोजगार के साधन भी नहीं के बराबर हैं।
251 गरीब लड़कियों का किया कन्यादान
सूरत के हीरा व्यापारी महेश सावणी ने गुजरात की गरीब लड़कियों की शादी का जिम्मा उठाया है
सू
एसएसबी ब्यूरो
रत के हीरा व्यापारी महेश सावणी ने 251 गरीब लड़कियों की शादी का जिम्मा उठाया। इनमें से 5 मुस्लिम और 1 ईसाई जोड़ा भी शामिल था। दो ऐसी लडकियां भी थीं जो एचआईवी की बीमारी
से जूझ रही हैं। इन नए दंपतियों के पास गहने, घर का सामान या फर्नीचर में से एक विकल्प चुनने का मौका था। सूरत के मोटा वरच्छा इलाके में स्वामी चैतन्य विद्या संकुल में इस भव्य समारोह का आयोजन किया गया था। आज शादी करना मतलब लाखों रुपए के वारे न्यारे करना होता है। सुविधा
संपन्न लोगों के लिए शादी में पैसे बहाना काफी आसान होता है, लेकिन गरीबों के लिए ये किसी मुसीबत से कम नहीं होता। इसीलिए देश के कई इलाकों में समाजसेवियों के द्वारा सामूहिक शादियां करवाई जाती हैं। हाल ही में सूरत के एक हीरा व्यापारी महेश सावणी ने 251 गरीब लड़कियों की शादी का जिम्मा उठाया। इनमें से 5 मुस्लिम और एक ईसाई जोड़ा भी शामिल था। दो ऐसी लड़किंयां भी थीं जो एचआईवी की बीमारी से जूझ रही हैं। हीरे का व्यापार करने वाले महेश सावणी ने अपने खर्च पर यह समारोह आयोजित करवाया। उन्होंने कहा कि गरीबों की शादी करवाना भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने जैसा है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। सावणी 2012 से ही समय-समय पर गरीब लड़कियों की शादी का जिम्मा उठाते चले आ रहे हैं। वे लगभग 500 गरीब और अनाथ लड़कियों का पूरा खर्च उठाते हैं और बड़ी होने पर उनकी शादी भी करवाते हैं। इस मौके पर सावणी ने इन सभी लड़कियों के पिता का दायित्व निभाया और कन्यादान किया। सूरत शहर में एक भव्य माहौल में रंग बिरंगे कपड़ों में सजी दुल्हनों ने हजारों लोगों के सामने शादी के फेरे लिए और रस्में निभाई गईं। सूरत को डायमंड पॉलिशिंग
का हब माना जाता है। इसके पहले के आयोजनों में सावणी ने दुल्हनों को सोफा, बेड, गहने और 5 लाख रुपए नकद भी दिए थे, ताकि वे अपने नए जीवन की शुरुआत कर सकें। इन नए दंपतियों के पास गहने, घर का सामान या फर्नीचर में से एक विकल्प चुनने का मौका था। सूरत के मोटा वरच्छा इलाके में स्वामी चैतन्य विद्या संकुल में इस भव्य समारोह का आयोजन किया गया था। सावणी अब तक लगभग 900 लड़कियों की शादी कर चुके हैं उससे पहले उन्होंने 1,300 लड़कियों की शादी में मदद की थी। इस मौके पर समाजसेवियों और धार्मिक गुरुओं को भी आमंत्रित किया गया था। महेश सावणी अक्सर दूसरों की मदद करने के लिए सुर्खियों में रहते हैं। इससे पहले उन्होंने उड़ी हमले में शहीद सैनिकों के बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाने की घोषणा की थी। उन्होंने अपने गांव की कई लड़कियों को गोद ले रखा है और वे उनकी देखभाल करते रहते हैं। भारत में शादी एक काफी मंहगा खर्च माना जाता है जिसमें लाखों रुपयों के दहेज का लेन-देन भी होता है। ऐसे सामूहिक आयोजन दहेज विरोधी अभियान को भी चुनौती देते हैं।
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जेंडर
'ग्रीन लेडी ऑफ बिहार'
जया देवी आज अपने कार्यों की बदौलत न केवल दूसरों के लिए मिसाल बनी हैं बल्कि लोग आज उनको पर्यावरण का पहरेदार तक मानते हैं
खास बातें स्वयं सहायता समूह के जरिए महिलाओं का बनाया सशक्त शिक्षा के प्रसार के लिए गांव में साक्षरता अभियान भी चलाया रेन वटर हार्वेस्टिंग का प्रशिक्षण लेकर किसानों को किया लाभान्वित उन्होने अखबारों और प्रचार के दूसरे तरीकों के जरिए लोगों से बच्चों की पुरानी किताबें मांगी और उन किताबों को गांव के बच्चों के बीच बांटने का काम किया। इस दौरान उन्होंने गांवों में शिक्षा के प्रति जागरूकता लाया।
रेन वटर हार्वेस्टिंग
अ
मनोज पाठक
नहीं थी और समाज के लिए कुछ करना चाहती थीं।
गर किसी के अंदर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं है। यह केवल कहने-सुनने भर की बात नहीं, बल्कि ऐसा ही कुछ कर दिखाया है बिहार के नक्सल प्रभावित मुंगेर जिले के धरहरा प्रखंड के बंगलवा गांव की रहने वाली एक महिला जया ने। चौथी जमात तक पढ़ने वाली जया देवी आज अपने कामों की बदौलत न केवल दूसरों के लिए मिसाल बनी हैं, बल्कि लोग आज उनको पर्यावरण का पहरेदार तक मानते हैं। मुंगेर में उनकी पहचान आज ‘ग्रीन लेडी ऑफ बिहार’ की है।
स्वयं सहायता समूह
34 वर्षीय जया देवी को बचपन से ही पढ़ाई का शौक था, लेकिन तब उनके गांव में लड़कियों को ज्यादा पढाया नहीं जाता था और उनकी जल्द शादी भी कर दी जाती थी, ऐसा ही कुछ जया के साथ भी हुआ। जया बताती हैं कि उनकी शादी सरादि गांव के एक लड़के के साथ मात्र 12 वर्ष की आयु में हो गई थी और उसके बाद उनके पति मुंबई कमाने चले गए। जब उनके पिता का देहांत हो गया, तो वह भी अपने मायके चली आई। इस बीच उनका परिवार बढ़ता गया। उनका पारिवारिक जीवन तो जरूर खुश था, परंतु संपूर्ण तौर पर वे अपनी जिंदगी से खुश
कई महिलाएं जुड़ीं
कम उम्र में शादी
नक्सल प्रभावित इलाका रहने के कारण लोग किसी भी अन्याय के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाते थे। जया ने तब सोचा कि अगर आवाज नहीं उठाई गई तो लड़कियों और महिलाओं का इसी तरह शोषण होता रहेगा। जया देवी ने सबसे पहले स्वयं सहायता समूह के काम करने के तरीके के बारे में 15 दिन का प्रशिक्षण लिया और लोगों को बचत करना सिखाने लगी। प्रारंभ में उन्होंने महिलाओं को प्रतिदिन एक मुट्ठी अनाज बचाने के लिए जागरूक किया। उनका मानना था कि इस बचत के कारण लोगों को महाजन के दरवाजे नहीं जाना पड़ेगा। इस कार्य के बाद जया के साथ कई महिलाएं जुड़ती गई और फिर सप्ताह में पांच रुपये बचाने का निर्णय लिया गया। धीरे-धीरे जब उनके काम का विस्तार होता गया तब आसपास के दूसरे गांवों की महिलाएं भी उनसे जुड़ने लगी। जया बताती हैं, ‘शुरुआत में
जब मैं दूसरी महिलाओं को अपने काम के बारे में बताने जाती थीं तो वे अपने घर का दरवाजा भी नहीं खोलती थीं। तब मैं घंटों उनके घर के बाहर बैठी रहती थी। जब भी महिला घर से बाहर निकलतीं, तब ही उनको समझाती थी कि क्यों मैं तुम लोगों को स्वयं सहायता समूह में शामिल होने के लिए कह रही हूं।’
साहूकार से मुक्ति
वह बताती हैं कि स्वयं सहायता समूह में जब पैसे बचने लगे तब उन पैसों को बैंक में जमा कर दिया गया। स्वयं सहायता समूह बनने के बाद जो भी महिलाएं इसकी सदस्य बनीं, उनको अपने जरूरी खर्चों के लिए समूह से ही कम ब्याज पर पैसा मिलने लगा। इस कारण वे साहूकारों से मिलने वाले कर्ज के चंगुल में फंसने से बच गई।
साक्षरता अभियान
यही नहीं, जया ने गांव में शिक्षा का प्रसार करने के लिए साक्षरता अभियान भी चलाया। इसके लिए
प्रारंभ में जया ने महिलाओं को प्रतिदिन एक मुट्ठी अनाज बचाने के लिए जागरूक किया। उनका मानना था कि इस बचत के कारण लोगों को महाजन के दरवाजे नहीं जाना पड़ेगा
हर साल सूखे के कारण फसलों के बर्बाद होने से परेशान किसानों के लिए भी जया ने कई काम किए। जया बताती हैं कि एक दिन वह खुद एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी के गवर्निग सदस्य किशोर जायसवाल से मिली। उन्होंने बारिश के पानी को बचाने की सलाह दी तथा बंजर जमीन पर पेड़ लगाने के लिए कहा। इसके बाद जया ने रेन वटर हार्वेस्टिंग का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। वह बताती हैं, ‘क्षेत्र में 500 हेक्टेयर जमीन पर वाटरशेड बनने के बाद न केवल खेती सरल हुई बल्कि भूगर्भ पानी का स्तर भी बेहतर हुआ, जिससे स्थानीय किसानों को लाभ हुआ।’ जया देवी ने कई योजनाओं के तहत अन्य गांवों में भी बारिश का पानी बचाने के लिए तालाब, चेक डैम व पत्थरमिट्टी के अवरोध बांध वगैरह बनवाए। अपना अनुभव साझा करते हुए वह कहती हैं, ‘किशोर जायसवाल मेरे गुरु हैं, क्योंकि मैं तो एक मामूली औरत थी। उनके मार्गदर्शन से ही मैं पर्यावरण को संरक्षित करने का काम कर सकी।’
नेशनल लीडरशिप अवार्ड
‘ग्रीन लेडी’ के नाम से चर्चित मुंगेर की जया आज राष्ट्रीय स्तर चर्चित हैं। जया को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में वर्ष 2016-17 का नेशनल लीडरशिप अवार्ड दिया। जया को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय युवा पुरस्कार से भी नवाजा गया है और दक्षिण कोरिया में आयोजित युवा कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्यक्रम में उन्हें भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है।
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प्रदेश
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तेलंगाना के पुलिस थानों के होंगे सोशल मीडिया खाते सुरक्षित तेलंगाना का उद्देश्य पूरा करने के लिए इस वर्ष सभी पुलिस थानों के फेसबुक खाते और ट्विटर हैंडल होंगे
निरक्षर ने हजारों बच्चों के लिए खोले स्कूल
पानीपत में गरीब बच्चों के बीच अम्मा के नाम से प्रसिद्ध कमला आर्य निरक्षर होने के बावजूद कई राज्यों में स्कूल संचालित करती हैं
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रियाणा के पानीपत की अशिक्षित 60 वर्षीय महिला कमला आर्य ने देश में शिक्षा की ऐसी अलख जगाई कि देश के कई राज्यों में उनकी अलग पहचान बन गई है। उन्होंने चेतना परिवार के सहयोग से पानीपत, करनाल, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और यूपी में 136 स्कूल खुलवा दिए। इन 136 स्कूलों में से 105 स्कूलों में कूड़ा बीनने वाले बच्चों को निशुल्क शिक्षित किया जाता है। जबकि 23 स्कूलों में निर्धन परिवारों की बेटियां फ्री सिलाई प्रशिक्षण प्राप्त करती हैं। 6 स्कूलों में मजदूर महिलाओं को प्राथिमिक शिक्षा दी जाती है।
खुद निरक्षर हैं कमला
कमला आर्य ने बताया कि 2002 में उनके घर की साफ-सफाई करके कूड़ा बाहर रख दिया। थोड़ी देर बाद 8-10 बच्चों की टोली उस कबाड़ में से चीजें छांट रही थी। उनकी हालत देखकर उनसे नहीं रहा गया और उन्होंने बच्चों से पूछा कि वे कबाड़ की चीजों का क्या करेंगे? एक बच्चे ने बताया अम्मा, इसे बेचकर घर का खर्च चलाएंगे। उन्होंने बच्चों से पूछा कि वे स्कूल क्यों नहीं जाते तो उन्होंने बताया कि उनका मन तो करता है, लेकिन उनके मातापिता कूड़ा बीनने के लिए भेजते हैं। शाम को कबाड़ बेचकर जो रुपए मिलते हैं उससे पिता दारू पीते हैं।
ऐसे हुई शुरुआत
4 जनवरी 2003 में चेतना परिवार के नाम से पानीपत में जीटी रोड पर बंद पड़ी एक फैक्ट्री
में स्कूल खोला। बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी फैक्ट्री में रह रही राजमिस्त्री की शिक्षित पत्नी को सौंपी गई। इसके लिए उनका मानदेय तय किया गया। इस स्कूल की शुरुआत 10 बच्चों से हुई और कुछ ही दिनों में उनकी संख्या 27 हो गई। देखते ही देखते कूड़ा बीनने वाले बच्चों को शिक्षित करने के लिए पानीपत में निर्धन लोगों की बस्तीयों में चेतना स्कूल खुलते चले गए। इस समय पानीपत में 60 चेतना स्कूल संचालित हो रहे हैं।
जुड़े कई अधिकारी
अब उनके इस अभियान में कई आईएएस, आईपीएस और उद्योगपति भी जुड़ गए हैं। पानीपत में गरीबों की 'अम्मा' के नाम से मशहूर कमला आर्य मूलत: मेरठ से संबंध रखती हैं।
अ से अनार नहीं अमन
चेतना परिवार के स्कूलों में बच्चों को अक्षर ज्ञान के साथ बेहतर विचार और संस्कार भी दिए जाते हैं। इन स्कूलों में बच्चों को अ से अनार और ए से एड़ी के स्थान पर अ से अमन करेंगे हम, जग को चमन करेंगे हम, और ए से एक बनेंगे हम, बच्चे नेक बनेंगे हम, पढ़ाया जाता है। पानीपत के महिला स्कूलों में 80 वर्ष तक आयु की महिलाएं भी शिक्षित हो रही हैं। कक्षा 4 से आगे पढ़ने वाली बेटियों को 500 रुपए प्रति माह गृह लक्ष्मी छात्रवृति दी जाती है। (एजेंसी)
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लंगाना में इस वर्ष सभी पुलिस थानों के फेसबुक परियोजनाएं लॉन्च की गई हैं, जो राजधानी के शहर खाते और ट्विटर हैंडल होंगे, ताकि वे दैनिक को कवर करती हैं और इन्हें अब राज्य के अन्य आधार पर लोगों के साथ संपर्क में रह सकें। हिस्सों में भी लागू किया जाएगा। फ्रंटलाइन पुलिस पुलिस महानिदेशक एम. महेंद्र रेड्डी ने कहा कि अधिकारियों को सशक्त बनाने के लिए पुरस्कार सुरक्षित तेलंगाना का उद्देश्य पूरा करने के लिए विजेता मोबाइल एप हाइडकोप को पूरे राज्य में वे प्रौद्योगिकी का उपयोग करेंगे और जन अनुकूल विस्तारित किया जाएगा। यह एप वैश्विक मानकों पहलों को मिशन मोड में जमीन पर उतारेंगे। पर स्मार्ट पुलिस के लिए बनाया गया था। इस एप राज्य में करीब 800 पुलिस थाने हैं। डीजीपी को टीएससीओपी नाम से जाना जाएगा, जिसे एक ने कहा कि यह प्रौद्योगिकी पिछले कुछ सालों से सप्ताह के भीतर शुरू किया जाएगा। इसी तरह आम हैदराबाद में चलाई जा रही है, जिसे अब सभी जिलों आदमी को नागरिक पुलिस बनने के लिए एक और पुलिस बल की सभी इकाइयों तक विस्तारित मोबाइल एप हॉकआई भी राज्य भर में विस्तारित किया जाएगा। सभी पुलिस थानों में रिसेप्शन डेस्क, किया जाएगा। शिकायत निवारण और याचिका सामुदायिक सीसीटीवी प्रबंधन प्रणाली भी शामिल होगी। परियोजना हैदराबाद पुलिस को सामुदायिक सीसीटीवी अपराध की रोकथाम और पता लोगों की प्रतिक्रिया तीसरे पक्ष कॉल सेंटर के माध्यम से ली लगाने में मदद करेगी, जिसे 30 परियोजना हैदराबाद जाएगी और जिसके बाद इसी अन्य जिलों में भी लागू किया पुलिस को अपराध आधार पर प्रत्येक पुलिस थाने जाएगा। प्रत्येक जिला पुलिस की रोकथाम और पता मुख्यालय और आयुक्तालय में को नागरिक संतुष्टि रेटिंग दी लगाने में मदद करेगी, मिनी कमांड और कंट्रोल सेंटर जाएगी। इसे 30 अन्य जिलों में की स्थापना की जाएगी और इसे उन्होंने घोषणा की है कि 2018 प्रौद्योगिकी और नागरिक भी लागू किया जाएगा हैदराबाद में राज्य कमांड और अनुकूल पहल का साल रहने कंट्रोल सेंटर से जोड़ा जाएगा। वाला है। उन्होंने वर्ष के लिए डीजीपी ने कहा कि सोशल सालाना योजना जारी की, जिसमें आठ लक्ष्यों को मीडिया पर किए जाने वाले पोस्ट में कानून-व्यवस्था पाने के लिए प्रस्तावित पहल को दर्शाया गया है। और सांप्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ने की क्षमता होती इनमें सेवा वितरण में सुधार, मौजूदा और उभरते है, इसीलिए लोगों की भागीदारी के साथ सोशल अपराधों पर लगाम, संगठनों का निर्माण और मीडिया निगरानी प्रकोष्ठ का निर्माण किया जाएगा। परिवर्तन, कार्यबल प्रबंधन, प्रौद्योगिकी अपनाना, प्रत्येक जिले में एक सोशल मीडिया प्रयोगशाला भी समुदाय और डोमेन विशेषज्ञों के साथ साझेदारी, प्रस्तावित है। जैसा कि 2017 के दौरान राज्य में सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन और शहरों को साइबर अपराध दोगुने हो गए थे, इसी कारण पुलिस सुरक्षित बनाना शामिल हैं। ने इस क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि राजधानी हैदराबाद, साइबराबाद राज्य में पुलिस बल की सभी इकाइयों में साइबर और राचकोंडा के पुलिस आयुक्तों द्वारा कई अपराध प्रकोष्ठ का निर्माण किया जाएगा।
08 - 14 जनवरी 2018
टूटी जिंदगी को दिया काव्यमय अर्थ खेल के क्षेत्र में कॅरियर की उम्मीद धूमिल होने पर सती मंडल ने अपनी जिंदगी को नया आयाम देते हुए काव्य की ओर उन्मुख हुई
खास बातें
सती मंडल की उम्र अभी महज 23 वर्ष है सती 500 से ज्यादा कविताएं लिख चुकी है सौ से ज्यादा कविताएं पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं
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आईएएनएस- एफआईएफ
ठ साल पहले तक सती मंडल सामान्य व खुश रहनेवाली बालिका थी। वह खेलों में कुछ बेहतर करने के सपने बुन रही थी, लेकिन चिकित्सा में बरती गई एक लापरवाही ने उसके सपनों पर पानी फेर दिया। सती अब ठोस भोजन नहीं खा पा रही है। यही नहीं, वह मुंह से पानी भी पीने में असमर्थ है। घर से अस्पताल का चक्कर लगाना उसके लिए अत्यंत पीड़ादायक अनुभव है। लेकिन उसने अपनी पीड़ा को सहने का नया जरिया ढूंढ़ लिया है। वह अब ज्यादा समय काव्य रचना में तल्लीन रहती है, जिससे उसकी जिजीविषा बढ़ गई है। पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के एक अत्यंत निर्धन परिवार में पैदा हुई सती असह्य शारीरिक कष्ट के बावजूद अध्ययन करती रहती है। खेल के क्षेत्र में कॅरियर की उम्मीद धूमिल होने पर अपनी जिंदगी को नया आयाम देते हुए वह कविता की ओर उन्मुख हुई है। 23 साल की बंगाली युवती ने 500 से ज्यादा कविताओं की रचना बांग्ला भाषा में की है। इनकी सौ से ज्यादा कविताएं छोटी-बड़ी पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। निंदा और तारीफ के बीच सती को अब पूरे पश्चिम बंगाल से साहित्यिक सम्मेलनों के लिए आमंत्रण आने लगे हैं। प्रदेश के मशहूर कवियों के बीच उसके किस्से सुनने को मिलते हैं। अस्पताल में बिस्तर पर पड़ी सती ने बातचीत में कहा, ‘जब मैं काव्य रचना करती हूं या अपनी प्रकाशित कविताएं देखती हूं तो मैं अपनी सारी तकलीफें भूल जाती हूं। मुझे लगता है कि मैं सौ साल तक जीवित रहूंगी।’उसकी आखों में उम्मीद की चमक है और चेहरे पर तेज। उससे बात करके उसके आंतरिक शक्ति का पता चलता है। विषम परिस्थितियों में भी उसका उत्साह कम नहीं हुआ है।
सती की तकलीफें 2009 में आरंभ हुईं, जब उसकी आंत में संक्रमण हुआ था। कोलकाता से 55 किलोमीटर दूर नादिया जिला स्थित घोशपारा की रहनेवाली सती ने बताया, ‘एक गलत जांच के कारण मेरा आहार नाल फट गया। मुझे छह महीने अस्पताल में रहना पड़ा और उसके बाद तीन महीने तक घर में स्वास्थ्य लाभ करती रही। मैं मुंह से कुछ भी नहीं खा-पी सकती थी।’ खाने-पीने के लिए डॉक्टरों ने उसके पेट में रायल्स ट्यूब लगा दिया है और वह उसी के माध्यम से कुछ खाद्य-पदार्थ ग्रहण कर पा रही है। सती ने बताया कि वह तरल आहार पर ही जीवित है। पेट में कई साल से राॅयल ट्यूब लगे होने से उसे लगातार तकलीफें रहती हैं और कभी-कभी उसकी पीड़ा असहयनीय हो जाती है। अक्टूबर में ही उसको ट्यूब बदलवाने के लिए चार बार अस्पताल के चक्कर लगाने पड़े थे। सती ने कहा, ‘मैं अपनी पीड़ा को सहने के लिए कविता लिख रही हूं। मेरे जीवन में अब कविता के सिवा और कुछ नहीं रह गया है। कभी-कभी मुझे लगता है कि जिंदगी दूभर है और इसी के साथ मेरी कविताएं शुरू होती हैं। मेरी कविताएं ही हैं, जिनसे मुझे जिंदगी की जंग लड़ने की प्रेरणा मिलती है।’ सती के पिता रिक्शा चलाते थे। डेढ़ साल पहले उनका निधन हो गया। सती नोबेल पुरस्कार विजेता कवि रवींद्रनाथ टैगोर को अपना आदर्श मानती है। अग्रणी बांग्ला कवि नरेंद्रनाथ चक्रवर्ती और अरण्यक बसु भी उसके प्रिय कवि हैं। वह खुद को अरण्यक बसु की ऋणी मानती है। सती ने बताया, ‘उनको मेरी प्रतिभा की परख थी। अगर वह नहीं होते तो अब तक मुझे जो पहचान मिली है, वह कभी नहीं मिलती। वह मुझे अपनी बेटी मानते हैं। हर महीने वह मेरे घर आते हैं और एक हजार रुपए मेरे गुजारे के लिए मुझे देते हैं।’ सती की कविताएं 'कोलार्ज', 'खोला हौआ',
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प्रेरक
'उदास', 'लिखा दिए रेखापट', 'छायामन' और 'कृष्णचूड़ा' जैसी कई बांग्ला पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। कोलकाता और अन्य जिलों में 25 से ज्यादा साहित्यिक सम्मेलनों में उसे काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया जा चुका है। लेकिन अकादमी व ज्ञानपीठ से सम्मानित कवि शंखा घोष के कोलकाता स्थित निवास पर साहित्यक चर्चा में हिस्सा लेना सती के लिए सबसे ज्यादा रोमांचित करने वाला क्षण रहा। सती ने बताया, ‘वहां मुझे श्रीजातो जैसे अनेक महान कवियों से मिलने का मौका मिला। उन्होंने पूरी तन्मयता से मेरी कविताएं सुनीं। उन्होंने मुझे उनकी साहित्यिक बैठकों में नियमित रूप से हिस्सा लेने को कहा। स्वास्थ्य साथ दे तो मैं निश्चित रूप से हिस्सा लूंगी।’ सती की कविताओं में जीवन के विविध रंग व बिंब मिलते हैं, जिनसे भावुकता प्रकट होती है। वह कहती है कि मेरे स्वास्थ्य के कारण हो सकता है कि उनकी कुछ कविताओं में निराशावाद का भाव प्रकट होता है। कल्याणी महाविद्यालय से स्नातक दूसरे वर्ष की परीक्षा पास कर चुकी सती अर्थाभाव के कारण तीसरे वर्ष की परीक्षा में शामिल नहीं हो पाई और वह अब तक स्नातक की उपाधि नहीं हासिल कर पाई है। सती की मां माया घर-घर घूमकर साड़ी बेचती हैं, जिससे उनके परिवार का गुजारा होता है। वह बेटी के इलाज का भारी खर्च नहीं उठा पा रही हैं। माया ने कहा, ‘बेटी की बीमारी के कारण मैं उसे अकेले घर में छोड़कर बाहर नहीं जा सकती, जिससे मेरा व्यवसाय भी प्रभावित होता है।’ इस बीच दो सरकारी अस्पताल, एसएसकेएम और कोलकाता मेडिकल कॉलेज की ओर से कहा गया है कि सर्जरी करने से सती ठीक हो सकती है और वह पहले की तरह मुंह से भोजन व पानी ले सकती है, जिसके बाद उसे उम्मीद की नई किरण दिखाई देने लगी है और वह खुश है। वह अपने जीवन के अनुभवों पर एक उपन्यास लिखना चाहती है।
लोकलाज डिगा नहीं पाई 'पैडमैन' के हौसले
मुरुगनाथम की मेहनत से देश के 22 राज्यों में उनके द्वारा तैयार सस्ते पैड बनाने वाली मशीनें स्थापित की गईं रीतू तोमर
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वीं सदी में भी महिलाएं माहवारी पर खुलकर बात करने में हिचकती हैं। इस मुद्दे पर बात करना सभ्य समाज को सभ्य नहीं लगता, लेकिन इसी भीड़ में एक शख्स ऐसा भी है, जिसने 1990 के दशक में माहवारी पर लिपटे शर्म के चोले को उतार फेंकने से गुरेज नहीं किया। यह शख्स हैं केरल के अरुणाचलम मुरुगनाथम। अक्षय कुमार की फिल्म 'पैडमैन' इन्हीं के जीवन से प्रेरित है। लेकिन असल जिंदगी का यह पैडमैन काफी दुखों और दिक्कतों से गुजरते हुए बदलाव लाने में सफल रहा। महिलाओं के लिए हर महीने आने वाले मुश्किल भरे चंद दिनों की समस्या को समझने के लिए मुरुगनाथम को खुद कई दिनों तक सैनेटरी पैड लगाना पड़ा, जो यकीनन किसी पुरुष के लिए आसान नहीं रहा होगा। माहवारी के मुद्दे पर बातचीत में मुरुगनाथम ने कहा, ‘मुझे माहवारी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी, एक दिन अचानक ही अपनी पत्नी को बहुत ही गंदा कपड़ा छिपाकर ले जाते देखा, तो उससे पूछ बैठा कि ये क्या है और क्यों ले जा रही हो? पत्नी ने डांटकर चुप कर दिया, लेकिन उस दिन मैं समझ गया था कि उस गंदे कपड़े का क्या इस्तेमाल होने वाला है। कपड़ा इतना गंदा था कि मैं उससे अपनी साइकिल पोंछने की हिम्मत भी नहीं जुटा सकता था, लेकिन ठान लिया था कि महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी इस समस्या खातिर जरूर कुछ करना है।’ मुरुगनाथम आगे कहते हैं, ‘इस विषय पर जानकारी जुटानी शुरू की, लेकिन दिक्कत यह थी कि कोई बात करने को ही तैयार नहीं था। लोग इस कदर गुस्से में थे, जैसे मैं पता नहीं कोई पाप करने जा रहा हूं।’ इस बीच मुरुगनाथम ने कुछ ऐसा किया, जो किसी भी पुरुष के लिए आसान नहीं रहा होगा। उन्होंने महिलाओं की इस पीड़ा को खुद महसूस करने का फैसला किया और सैनिटरी पैड पहनना शुरू कर दिया। वह कहते हैं, ‘इस दौरान महिलाओं की मानसिक स्थिति को भांपना चाहता था। इसी इरादे से मैंने कई दिनों तक पैड पहना। पैड पर तरल पदार्थ डालकर उस गीलेपन को महसूस करना चाहता था, लेकिन मेरे द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पैड कॉटन के होते थे, जो कारगर नहीं थे, जबकि बड़ी-बड़ी कंपनियों के पैड सेल्यूलोज के होते हैं जो गरीब महिलाओं की पहुंच के बाहर हैं।’
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स्वच्छता
08 - 14 जनवरी 2018
आंध्र के मुख्यमंत्री करेंगे अनशन
स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत शौचालय निर्माण के प्रति गंभीर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने अपनी प्रतिबद्धता जताई
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च्छ भारत अभियान को बढ़ावा देने के लिए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने ऐलान किया है कि राज्य के हर घर में शौचालय का निर्माण 31 मार्च तक किया जाए। अगर तय सीमा में इस लक्ष्य को पूरा नहीं किया गया तो वो धरना एवं भूख हड़ताल पर बैठ जाएंगे। सीएम नायडू ने स्वच्छ शौचालय को मौलिक
एवं जन्मसिद्ध अधिकार बताते हुए कहा कि मैं मौन धरना पर बैठूंगा और एक दिन के लिए अनशन भी करूंगा। तभी आप लोग मुझपर थोड़ी तरस दिखाएंगे और शौचालय का निर्माण करेंगे। दरअसल सीएम का मकसद है कि आंध्र प्रदेश को पूर्ण रूप से खुले में शौच मुक्त बनाया जा सके। सीएम ने कहा कि मेरा लक्ष्य एक स्वच्छ, स्वस्थ आंध्र प्रदेश बनाना है। मैंने इस कार्य को साहसिक आंदोलन के तौर पर लिया है। आगे नायडू ने कहा कि अगर आप शौचालय का निर्माण नहीं कराते हैं और आपके अंदर स्वाभिमान नहीं है तो मैं आपके गांव आऊंगा। उन्होंने कहा कि मैं तब तक आपके घर का दौरा करूंगा और जब तक कि आप शौचालय का निर्माण नहीं करा लेते हैं और उसके बाद ही मैं राज्य की राजधानी अमरावती लौटूंगा। उन्होंने कहा कि राज्य की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है और आपका स्वास्थ्य भी, स्वच्छ शौचालय नहीं होने के कारण प्रभावित हो रहा है। आइए हम सभी स्वच्छ आंध्र प्रदेश के बारे में सोचें। (एजेंसी)
पेट्रोल पंप पर बने शौचालय का सार्वजनिक प्रयोग
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जस्थान के खैरथल नगरपालिका क्षेत्र स्थित पेट्रोल पंप पर निर्मित शौचालय का सार्वजनिक रूप से प्रयोग करने तथा स्वच्छता ऐप्प डाउनलोड कर कचरे की फोटो पोस्ट करने की योजना नगरपालिका प्रशासन ने प्रारंभ की है। नगरपालिका उपाध्यक्ष हरीश रोघा अधिशाषी अधिकारी राहुल अग्रवाल ने बताया कि खैरथल नगरपालिका क्षेत्र स्थित पेट्रोल पंप पर शौचालय निर्मित हैं। सक्षम स्तर पर प्राप्त निर्देशानुसार उक्त
शौचालयों का उपयोग सार्वजनिक और निशुल्क है। नगरपालिका खैरथल क्षेत्र स्थित पेट्रोल पंप पर स्थित शौचालय का उपयोग करने की इजाजत सक्षम स्तर पर प्रदान की गई है। उन्होंने बताया कि आमजन कस्बे में सफाई से संबंधित शिकायत के लिए अब अपने मोबाइल से स्वच्छता ऐप्प डाउनलोड कर सकता है और जहां भी कचरा दिखे फोटो लेकर पोस्ट कर सकता है। इस पर नगर पालिका खैरथल की ओर से तुरंत प्रभाव से कार्रवाई की जाएगी। (एजेंसी)
बिना शौचालय वाले स्कूल होंगे बंद आगरा जिला प्रशासन ने फैसला किया है कि जिन स्कूलों में शौचालय नहीं होंगे उन्हें बंद किया जाएगा
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ल में यदि शौचालय नहीं हैं तो शीघ्र ही बनवा लें। नहीं तो जिला प्रशासन एक शौचालय के लिए पूरे स्कूल को बंद कर देगा। ये चेतावनी ओडीएफ की बैठक में जिलाधिकारी ने दिए। उनका मानना है कि परिषदीय विद्यालय, आंगनबाड़ी और प्राइवेट
स्कूल बिना शौचालय के नहीं होने चाहिए। वहीं उन्होंने 26 जनवरी-2018 तक पूरे जनपद को ओडीएफ घोषित करने की बात कही है। उन्होंने ब्लॉक के आधार से बनने वालो शौचालय की समीक्षा की। साथ ही सभी एडीओ पंचायत को निर्देश दिए
कि वह 10 जनवरी से पहले गांव-गांव से आने वाली शेष डिमांड उपलब्ध करा दें। वहीं डीपीआरओ, बीडीओ व एडीओ से साफ शब्दों में कहा है कि 26 जनवरी 2018 तक सभी ग्राम पंचायतों को ओडीएफ घोषित कर दें। बैठक के दौरान उन्होंने एडीओ पंचायत को निर्देश दिए हैं कि परिषदीय स्कूल, आंगनबाड़ी बिना शौचालय के नहीं होना चाहिए। इस पर जिलाधिकारी ने कहा कि विद्यालय के मैनेजर से बात कर शौचालय बनवाएं। अन्यथा विद्यालय बंद करवा दें। लापरहवाही बरतने पर होगी कार्रवाई मुख्य विकास अधिकारी रविंद्र कुमार मादंड ने कहा कि जो लोग स्वयं से शौचालय बनवा रहे हैं। उन्हें सम्मानित किया जाएगा। उन्होंने सभी अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि शौचालय निर्माण समय से गुणवत्तापूर्ण होने चाहिए। (एजेंसी)
सामुदायिक शौचालय का उद्घाटन
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झारखंड के गिरिडीह शहर स्थित बस स्टैंड में सामुदाययिक शौचालय का उद्घाटन किया गया
रिडीह बस स्टैंड में निर्मित एवं संचालित सामुदाययिक शौचालय का उद्घाटन नगर अध्यक्ष दिनेश यादव एवं उपाध्यक्ष राकेश मोदी ने किया। दोनों ने कहा कि बस स्टैंड में बाहर से आने वाले लोगों को खासकर महिलाओं को शौचालय के लिए काफी परेशानी उठानी पड़ती थी। इसे ध्यान में रखकर नगर पर्षद ने शिवम आर्गेनाइजेशन को
जमीन उपलब्ध कराया था। जिस पर कंपनी ने शौचालय का निर्माण किया है। कंपनी ने शौचालय के इस्तेमाल एवं गर्म पानी से नहाने के लिए दस रुपया प्रति व्यक्ति राशि निर्धारित किया है। शौचालय में लोगों के समान रखने की भी व्यवस्था की जाएगी ताकि लोग चिंतामुक्त होकर अपना काम कर सकें। (एजेंसी)
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पहल
जीरो वेस्ट लाइफ का मंत्र
पौधे से जगमग होगा घर
वैज्ञानिकों ने एक ऐसा पौधा तैयार किया जिसका इस्तेमाल डेस्क लैंप की जगह किया जा सकता है
मीरा के जीने का अंदाज कुछ ऐसा है कि उनकी जिंदगी में कचरे का नामो-निशान नहीं है
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एसएसबी ब्यूरो
रो वेस्ट लाइफ को जीवन में लागू करने और पर्यावरण की रक्षा करने के लिए मीरा ने अपनी सोसाइटी में एक बायो कंपोस्ट सिस्टम भी स्थापित करवा दिया है, जिसमें सूखा और गीला कचरा अलग-अलग जगहों पर रखा जाता है। भारत में हर एक शहरी परिवार पूरे साल भर में औसतन 60 टन कचरा का उत्पादन करता है। इससे पर्यावरण से लेकर क्लाइमेट चेंज जैसी समस्याएं आ रही हैं। इसीलिए मीरा जैसे लोगों जैसी लाइफस्टाइल अपनाना बेहद जरूरी है।
साइकोथेरेपिस्ट हैं मीरा
मुंबई में रहने वाली 31 वर्षीय साइकोथेरेपिस्ट मीरा शाह तमाम लोगों के लिए मिसाल हैं। उनके जीने का अंदाज कुछ ऐसा है कि उनकी जिंदगी में कचरे का नामो निशान नहीं है। वह इसे एक सामाजिक उत्तरदायित्व की तरह लेती हैं और उन्होंने अपने परिवार को भी ऐसा करने के लिए मना लिया है। मीरा के लिए ऐसी जिंदगी जीना काफी आसान है। आप इस बात को ऐसे समझ सकते हैं कि उन्होंने पिछले दो सालों से कपड़े ही नहीं खरीदे
हैं। वह अपने घर में ऐसा कोई सामान नहीं लातीं, जिसकी उन्हें जरूरत नहीं होती है। वह अंग्रेजी के इन शब्दों में यकीन रखती हैं- रिफ्यूज, रिड्यूस, रीयूज, रीसाइकिल।
गैरजरूरी खरीददारी नहीं
मीरा की जिंदगी में यह परिवर्तन तब आया जब उन्होंने सॉलिड वेस्ट के बारे में एक स्टोरी पढ़ी। उन्होंने बताया, ‘मेरा कोई ऐसा उद्देश्य पहले नहीं था, लेकिन जब मुझे अहसास हुआ कि मेरी गैरजरूरी खरीददारी से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है तो मैंने इस पर ध्यान देना शुरू कर दिया। अब मैं ऐसी कोई भी चीज घर नहीं लाती जिसकी मुझे जरूरत नहीं होती।’ यह तो सिर्फ घर के भीतर की बात है। मीरा जब बाहर किसी रेस्त्रां में खाने भी जाती हैं तो वे वहां पर प्लास्टिक के सामानों का इस्तेमाल नहीं करतीं। वह खाना भी बर्बाद नहीं करतीं। मीरा हमेशा अपना एक बॉक्स लेकर खाने जाती हैं। वहां अगर कुछ खाना बचता है तो वे उसे वापस लेते आती हैं।
पति भी करते हैं फॉलो
सिर्फ मीरा ही नहीं, उनके बैंकर पति नीरव भी मीरा
मीरा ने पिछले दो सालों से कपड़े ही नहीं खरीदे। वह अपने घर में ऐसा कोई सामान नहीं लातीं, जिसकी उन्हें जरूरत नहीं होती है
पहली लड़की को मुफ्त शिक्षा बें
लड़की को कॉलेज में डिग्री स्तर तक की शिक्षा मुफ्त प्रदान की जाएगी ताकि लड़कियों को बोझ नहीं समझा जाए
गलुरू के किसी सरकारी अस्पताल में नए साल में जन्म लेने वाली पहली लड़की को स्नातक स्तर तक की शिक्षा मुफ्त प्रदान की जाएगी। बेंगलुरू के महापौर आर. संपत राज ने बताया, ‘नववर्ष पर शहर के किसी भी सरकारी अस्पताल
में समान्य प्रसव के जरिए जन्म लेने वाली पहली लड़की को कॉलेज में डिग्री स्तर तक की शिक्षा मुफ्त प्रदान की जाएगी, ताकि लड़कियों को बोझ नहीं समझा जाए।’ बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी)
मै
जीरो वेस्ट लाइफ को जीवन में लागू करने और पर्यावरण की रक्षा करने के लिए मीरा ने अपनी सोसाइटी में एक बायो कंपोस्ट सिस्टम भी स्थापित करवा दिया है जिसमें सूखा और गीला कचरा अलग-अलग जगहों पर रखा जाता है। उन्होंने लोगों को यह अहसास दिला दिया है कि यह कोई मुश्किल काम नहीं है और ऐसा करना हमारे लिए जरूरी है। बेंगलुरु में रहने वाली दुर्गेश नंदिनी और सहर मंसूर भी जीरो वेस्ट स्टार्टअप चला रहे हैं। वे कहते हैं कि भारत में हर एक शहरी परिवार पूरे साल भर में औसतन 60 टन कचरा का उत्पादन करता है। इससे पर्यावरण से लेकर क्लाइमेट चेंज जैसी समस्याएं आ रही हैं। इसीलिए मीरा जैसे लोगों जैसी लाइफस्टाइल अपनाना बेहद जरूरी है।
सचूसिट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा पौधा तैयार करने में सफलता हासिल की है जो धीमी रोशनी उत्पन्न करता है। विशेष नैनो कणों को अपने पत्तों में समाहित करके यह पौधा रोशनी बिखेरता है। रिसर्च में दावा किया गया है कि इस टेक्नॉलजी से पौधों का इस्तेमाल आने वाले समय में स्ट्रीट लाइट के रूप में भी किया जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि टीम को ऐसे पौधे तैयार करने में सफलता मिली है जिसका इस्तेमाल डेस्क लैंप के रूप में किया जा सकता है। इन पौधों को रोशनी के लिए बाहर से किसी ऊर्जा की जरूरत नहीं होगी। ये पौधे खुद की ऊर्जा से ही रोशनी पैदा कर सकेंगे। टीम का कहना है कि शुरू में यह पौधा 45 मिनट तक जगमगाता था, लेकिन कई तरह के प्रयोग के बाद अब यह पौधा 3.5 घंटे तक जगमगा सकता है। एमआईटी के प्रोफेसर मिशेल स्ट्रैनो का कहना है कि चमकदार पौधों को बनाने के लिए टीम ने लुसीफेरिस का इस्तेमाल किया जो एंजाइम को चमक में बदल देती है। लुसीफेरिन एक अणु पर काम करता है जिससे प्रकाश का उत्सर्जन होता है। दूसरा अणु जिसे कोएंजाइम कहा जाता है वह उस प्रक्रिया में मदद करता है जो कि लुइसफेरेस गतिविधि को रोक सकता है। (एजेंसी)
अपने आयुक्त और 2018 में जन्म लेने वाली पहली लड़की के संयुक्त बैंक खाते में पांच लाख रुपए जमा कराएगी और इस पर मिलने वाले ब्याज का इस्तेमाल लड़की की शिक्षा के लिए किया जाएगा। राज ने कहा, ‘प्रसव के लिए सरकारी अस्पतालों में जाने वाली गर्भवती महिलाएं गरीब परिवार की होती हैं और दुर्भाग्य से उन्हें लगता है कि लड़कियों को पालना एक भारी बोझ है।’ विजेता का पता लगाने के लिए सरकारी अस्पतालों के स्वास्थ्य अधिकारी जनवरी के पहले
घंटे या शुरुआती घंटों में पैदा होने वाली बच्चियों के जन्म के समय का रिकॉर्ड चेक करेंगे। राज ने कहा, ‘शल्य चिकित्सा के जरिए प्रसव कभी भी किया जा सकता है, इसीलिए सरकारी अस्पतालों के चिकित्सकों ने केवल प्राकृतिक प्रसव के माध्यम से जन्म लेने वाली बच्ची को ही यह पुरस्कार देने का निर्णय लिया है।’ शहर में करीब 32 स्वास्थ्य केंद्र नगर निकाय द्वारा संचालित किए जाते हैं जिनमें से 26 में मेटरनिटी वार्ड हैं। (एजेंसी)
को फॉलो करते हैं और ऐसा ही करते हैं। मीरा से प्रभावित होकर उनके सास-ससुर ने भी ऐसा करना शुरू कर दिया है। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, ‘मैंने सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल भी बंद कर दिया है और अब मेन्स्ट्रुअल कैप का इस्तेमाल करने लगी हूं। मैं उन्हें दस सालों तक इस्तेमाल कर सकती हूं। मैं तो यह भी सोचती हूं कि ऐसे सामान का उपयोग कम किया जाए जिसे रिसाइकिल भी किया जा सकता हो, क्योंकि उसमें भी काफी ऊर्जा की हानि होती है।’
बायो कंपोस्ट सिस्टम
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गुड न्यूज
08 - 14 जनवरी 2018
आंध्र फाइबर ग्रिड परियोजना का उद्घाटन प्रत्येक घर को 149 रुपए प्रतिमाह की दर से इंटरनेट, टीवी और फोन सेवाएं मुहैया कराई जाएगी
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ष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आंध्र प्रदेश फाइबर ग्रिड परियोजना का उद्घाटन किया है। इसके तहत प्रत्येक घर को 149 रुपए प्रतिमाह की दर से इंटरनेट, टेलीविजन और टेलीफोन सेवाएं मुहैया कराई जाएगी। राष्ट्रपति ने इस परियोजना को राष्ट्र को समर्पित किया, जिसके तहत कम से कम 149
रुपए की दर से तीन सेवाएं मुहैया कराई जाएंगी, जिसमें 5 जीबी डेटा 15 एमबीपीएस की गति से, 250 टेलीविजन चैनल और रेंटल-मुक्त टेलीफोन कनेक्शन शामिल हैं। आंध्र प्रदेश स्टेट फाइबरनेट लिमिटेड (एपीएसएफएल) इस परियोजना को लागू कर
इस परियोजना की शुरुआत में एक लाख घरों को हाई-स्पीड इंटरनेट ग्रिड कनेक्शन दिया जाएगा
अनाथों पर बरस रही कैथ्रेडल चर्च की ममता
रही है। वहीं दो अन्य- 399 रुपए और 599 रुपए प्रतिमाह प्लान भी घरेलू ग्राहकों के लिए है। वहीं, संस्थाओं के लिए 999 रुपए में 50 जीबी डेटा 100 एमबीपीएस की गति से तथा 2,499 रुपए में 250 जीबी डेटा का प्लान उपलब्ध है। राष्ट्रपति ने इस परियोजना का उद्घाटन गर्वनर ईएसएल नरसिम्हा, मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश एनवी रामन्ना, विधानसभा के अध्यक्ष कोडेला शिवप्रसाद राव और राज्य के आईटी मंत्री नारा लोकेश की मौजूदगी में किया। इस परियोजना की शुरुआत में एक लाख घरों को हाई-स्पीड इंटरनेट ग्रिड कनेक्शन दिया जाएगा। साथ ही कृष्णा और गुंटूर जिले के शत प्रतिशत घरों को यह कनेक्शन दिया जाएगा। इस साल अप्रैल तक सरकार का लक्ष्य फाइबर ग्रिड के तहत 30 लाख घरों को जोड़ने का है। यह परियोजना साल 2019 तक पूरी होगी और इसके दायरे में एक करोड़ से ज्यादा घरों, 50 हजार से ज्यादा स्कूलों और शैक्षणिक संस्थानों, सभी सरकारी कार्यालयों, 5,000 से ज्यादा सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों और सभी पंचायत कार्यालयों को लाया जाएगा। यह फाइबर ग्रिड वीडियो कांफ्रेंसिंग और मूवी ऑन डिमांड जैसी सेवाएं भी प्रदान करेगी। इस ग्रिड में जिला नियंत्रण कक्ष, सभी सार्वजनिक सीसीटीवी, आंध्र प्रदेश स्टेट वाइस एरिया नेटवर्क को समाहित किया जाएगा। (आईएएनएस)
सरफेस प्रो अब सबके लिए
सरफेस प्रो नोटबुक के एलटीई वर्जन को अब कोई भी खरीद सकता है
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इक्रोसॉफ्ट ने अपने सरफेस प्रो नोटबुक का लांग टर्म इवोल्यूशन (एलटीई) सुसज्जित वर्जन की बिक्री सभी के लिए शुरू कर दी है। पहले इस नोटबुक की बिक्री केवल व्यापारिक ग्राहकों को ही की जाती थी। उबेरगिजमो की रिपोर्ट में कहा गया है- ‘सरफेस प्रो विद एलटीई आम जनता के लिए अब तक उपलब्ध नहीं थी। लेकिन अब यह सबके लिए उपलब्ध है।’ सरफेस प्रो एलटीई एडवांस-दो वर्जन में उपलब्ध है। कम कीमत वाले वर्जन में 128 जीबी एसएसडी के साथ 4 जीबी रैम है और इसकी कीमत 1,150 डॉलर रखी गई है। इसका महंगा मॉडल 1,450 डॉलर में उपलब्ध है, जिसका स्टोरेज 256 जीबी और रैम 8 जीबी है। दोनों ही डिवाइसों में इंटेल का कोर आई-5 चिपसेट है, जिसकी बैटरी लाइफ 13.5 घंटे है। इसमें स्नैपड्रैगन का एक्स16 एलटीई मॉडेम लगा है, जिससे इसकी सेलुलर स्पीड गीगाबाइट तक सक्षम है, लेकिन माइक्रोसॉफ्ट ने इसे 450 एमबीपीएस पर कैप कर रखा है। (एजेंसी)
लखनऊ के सबसे पुराना कैथोलिक चर्च अनाथालय के बच्चों की देखभाल के अलावा और भी कई सेवा कार्यों में जुटा है
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विद्या शंकर राय
त्तर प्रदेश की राजधानी में स्थित कैथ्रेडल चर्च का इतिहास शहर के कैथोलिक गिरिजाघरों में सबसे पुराना है। यूं तो राजधानी में कई और चर्च भी हैं, लेकिन वर्ष 1860 में बना यह चर्च सबके के आकर्षण का केंद्र बना रहता है। खासतौर से क्रिसमस के दिन यहां पयर्टकों की भी काफी भीड़ दिखाई देती है। इस चर्च की सबसे रोचक बात यह है कि यह अनाथालयों में रह रहे लोगों की देखभाल भी सेवाभाव से करता है। जानने वाले बताते हैं कि ब्रिटिश हुकूमत के अधीन रहे आइरिस मूल के सैनिकों ने वर्ष 1860 में जब इस चर्च की आधारशिला रखी, तब पहली प्रार्थना सभा में मात्र दो सौ लोग शामिल हुए थे। चर्च के पहले पादरी के रूप में आइरिस मूल के
ग्लिसन की नियुक्ति की गई। इसके बाद चर्च के कई पादरी हुए और अब बिशप डॉ. जेराल्ड मथाइस के साथ फादर डॉ. डोनाल्ड डिसूजा चर्च की सेवा कर रहे हैं। यह चर्च शैक्षणिक और चिकित्सा कार्य में अपना योगदान तो दे ही रहा है, साथ ही अनाथालयों में रह रहे लोगों की देखभाल भी पूरी सेवाभाव से कर रहा है। पादरी डॉ. डोनाल्ड डिसूजा बताते हैं, ‘शहर में कैथोलिक समुदाय के कदम रखने के बाद पहला चर्च डालीगंज में बना। वहां जगह की कमी के चलते वर्ष 1860 में हजरतगंज में जमीन ली गई। तब यह
क्षेत्र शहर के बाहर का इलाका माना जाता था। यहीं पर छोटे से चर्च का निर्माण हुआ। इसके बाद उसी जगह पर वर्ष 1977 में वर्तमान चर्च कैथ्रेडल की बिल्डिंग खड़ी हुई।’ कैथ्रेडल चर्च ईसाई शैक्षणिक
शहर में सेंट फ्रांसिस और सेंट पॉल स्कूल जैसे बेहतर शैक्षणिक संस्थान हैं। यहां पढ़ने वाले गरीब बच्चों को फीस में छूट मिलती है - फादर डॉ. डोनाल्ड डिसूजा
संस्थान में पढ़ रहे गरीब परिवार के बच्चों की फीस माफ कराने के साथ-साथ अनाथालयों में भी अपनी सेवा देता आ रहा है। डिसूजा के मुताबिक, ‘शहर में सेंट फ्रांसिस और सेंट पॉल स्कूल जैसे बेहतर शैक्षणिक संस्थान हैं। यहां पढ़ने वाले गरीब बच्चों को फीस में छूट मिलती है। इसके साथ ही सप्रू मार्ग पर प्रेम निवास अनाथालय में रह रहे अनाथों की सुविधा का पूरा ख्याल रखा जाता है।
08 - 14 जनवरी 2018
गुड न्यूज
दिल के मरीज को मिला नया जीवन
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छह घंटे की सर्जरी के बाद मरीज की हालत में चमत्कारिक सुधार आया
लिडार से प्रदूषण की सटीक जानकारी दिल्ली में प्रदूषण की निगरानी के लिए लिडार के इस्तेमाल की संभावना
आईएएनएस
अपोलो हॉस्पीटल ने दिल में सुराख हो इंद्रप्रस्थ जाने से अचानक अपने दफ्तर में बेहोश हुए 55
साल के एक अकाउंटेंट को नया जीवन दिया है। चिकित्सकों का कहना है दिल के दौरे के साथ मरीज का हृदय फट गया था, शरीर के अंदर रक्तस्राव के कारण मरीज को बचाना बेहद मुश्किल था, लेकिन छह घंटे की सर्जरी के बाद मरीज की हालत में चमत्कारिक सुधार आया। चिकित्सकों का मानना है कि ऐसा सिर्फ 1-2 प्रतिशत मरीजों के मामले में ही होता है। एक कंपनी के अकाउंटेंट विनोद कुमार क्रिसमस के दिन अपने ऑफिस में जब बेहोश हो गए, तो उन्हें सरिता विहार स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पीटल लाया गया। इमरजेंसी में डॉक्टरों ने विनोद को तत्काल वेंटीलेटर सपोर्ट पर रखा और तुरंत सर्जरी कर उन्हें एक तरह से पुनर्जीवित किया। विनोद के परिवार ने चिकित्सकों को बताया कि कुछ दिनों से वह कमजोरी और बुखार जैसा महसूस कर रहे थे। मरीज विनोद ने बताया कि वह शराब नहीं पीते, कोई नशा नहीं करते, फिर भी उन्हें 55 साल की उम्र में ऐसा दुर्लभ रोग कैसे हो गया, यह सोचकर वह हैरान हैं। उनकी सर्जरी करने वाले चिकित्सकों ने कहा कि काम के बोझ के कारण तनाव और लगातार प्रदूषण झेलते रहने के कारण दिल के अंदर जख्म हो जाना संभव है। अस्पताल के सीनियर कंसल्टेंट व सर्जन (कार्डियो थोरैकिक और वैस्कुलर) डॉ. मुकेश गोयल ने कहा, ‘इकोकार्डियोग्राफी से पता चला कि उनके हृदय के आस-पास काफी गाढ़ा पदार्थ इकट्ठा हो गया था, जो दिल को दबा रहा था। मरीज की नाजुक स्थिति के कारण आपातस्थिति में ऑपरेशन की योजना बनाई गई, ताकि हृदय के आस-पास से तरल पदार्थ को तुरंत निकाला जाए। लेकिन सर्जरी के दौरान पस जैसे गाढ़े पदार्थ की
जगह खून के थक्के तेजी से बड़ी मात्रा में बाहर आए और फिर ताजा खून तेजी से बाहर आने लगा।’ डॉ. गोयल ने आगे कहा, ‘हमें यह समझ में आ गया कि उनके हृदय में कहीं कोई जख्म है। उन्हें तुरंत हार्ट-लंग मशीन पर रखा गया, जो हृदय और फेफड़े का काम संभालती है और उसी दौरान कार्डिएक सर्जरी संभव होती है।’ उन्होंने बताया कि हृदय का अच्छी तरह निरीक्षण किया गया और बाएं वेंट्रिकल के पीछे एक इंच लंबा जख्म पाया गया। यह अपने आप, अचानक हो गया था और हार्ट अटैक के 1-2 प्रतिशत मरीजों में ही ऐसा होता है। इसके बाद उनके हृदय को नियंत्रित करने के लिए पोटाशियम इंजेक्ट किया गया, जिससे जख्म ठीक हो गया। सीनियर कंसल्टेंट (कार्डियोलॉजी) डॉ. महेश चंद्र गर्ग ने कहा, ‘विनोद को हृदय की कोई बीमारी नहीं थी। यहां तक कि ईसीजी ने भी हार्ट अटैक की संभावना से इनकार किया। चूंकि उनका ब्लड प्रेशर कम होता जा रहा था, इसीलिए रक्तचाप को स्थिर करने के लिए दवाइयों की ऊंची खुराक देने की जरूरत हुई।’ डॉ. गोयल ने कहा कि इस घटना से कुछ महत्वपूर्ण बातों पर रोशनी पड़ती है, ‘हार्टअटैक कई तरह से हो सकता है और असामान्य स्थिति महसूस करने को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। खासकर, अगर आप 40 साल से ऊपर के हैं। जरूरी है कि आप सातों दिन, चौबीसों घंटे कार्डिएक इमर्जेसी चलाने वाले अस्पताल में जाएं, जहां अनुभवी कार्डियोलॉजिस्ट और हार्ट सर्जन हमेशा उपलब्ध हों।’ अस्पताल के प्रबंध निदेशक अशोक वाजपेयी ने कहा, ‘इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पीटल्स, दिल्ली की कार्डिएक टीम देश की सबसे अच्छी है और इस मामले में मैं उनके काम की तारीफ करता हूं। यह सर्जरी सही अर्थों में एक मील का पत्थर है, जिससे विनोद कुमार को नया जीवन मिला है।’
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द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने दिल्ली में प्रदूषण की निगरानी के लिए अत्याधुनिक लाइट डिटेक्शन एंड रेजिंग (लिडार) तकनीक का इस्तेमाल शुरू करने की संभावना व्यक्त की है। इस तकनीक से प्रदूषण के स्तर और हवा की गुणवत्ता का समानांतर परीक्षण किया जा सकता है। सीपीसीबी की वायु प्रयोगशाला के प्रमुख दीपांकर साहा ने बताया कि दिल्ली में बोर्ड फिलहाल धरती की सतह के आसपास वायु प्रदूषण के निगरानी तंत्र को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, लेकिन इसके बाद जल्द ही सतह से निश्चित ऊंचाई पर हवा की गुणवत्ता को मापने के निगरानी तंत्र को मजबूत किया जाएगा। साहा ने लेजर तकनीक आधारित लिडार प्रणाली से प्रदूषण मापने की कार्ययोजना के बारे में बताते हुए कहा कि इसके तहत आसमान में लेजर किरणों के माध्यम
से हवा में घुले दूषित तत्वों की मौजूदगी का सटीक अनुमान लगाया जाता है। लेकिन इस तकनीक से पड़ने वाले तात्कालिक आर्थिक बोझ के मद्देनजर सीपीसीबी ने जमीन की सतह पर प्रदूषण के निगरानी तंत्र को मजबूत करने को प्राथमिकता के साथ आगे बढ़ाया है। जमीन से ऊपर आसमान में हवा की गुणवत्ता को मापने के लिए लिडार प्रणाली को अगले चरण में लागू किया जाएगा। लिडार प्रणाली के जरिए कृषि, वन, मौसम और पर्यावरण पर प्रदूषण के पड़ने वाले असर का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है। इस प्रणाली के तहत वायु प्रदूषण पर निगरानी के लिए इलास्टिक बेक्सकेटर लिडार और रमन लिडार का प्रयोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के दौरान दिल्ली में सीपीसीबी और मौसम विभाग ने 3डी मॉडलिंग के माध्यम से मैच से पहले मौसम और प्रदूषण का पूर्वानुमान व्यक्त करने के लिए इलास्टिक बेक्सकेटर लिडार तकनीक का प्रयोग किया था।
मंदबुद्धि महिलाओं के लिए विशेष आश्रय स्थल उत्तर प्रदेश के 12 जिलों में पीपीपी मॉडल के तहत बनेंगे ये आश्रय स्थल
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त्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ समेत सूबे के 12 जनपदों में मानसिक मंदित और विक्षिप्त महिलाओं व युवतियों के लिए विशेष आश्रय स्थलों का निर्माण किया जाएगा। पीपीपी मॉडल पर बनने वाले इन आश्रय स्थलों के लिए योगी सरकार ने विज्ञापन देकर इच्छुक स्वयंसेवी संगठनों के प्रस्ताव आमंत्रित किए हैं। इस संबंध में उप निदेशक महिला कल्याण पुनीत कुमार मिश्र ने बताया कि केंद्र सरकार की समेकित बाल संरक्षण योजना के तहत महिला कल्याण निदेशालय मंद बुद्धि, मानसिक रूप से
विक्षिप्त बालिकाओं एवं महिलाओं के लिए 12 जिलों में विशेष आश्रय स्थल गृह खोलने जा रहा है। यह आश्रय स्थल लखनऊ, बरेली, वाराणसी, झांसी, आगरा, गोरखपुर, मिजार्पुर, गौतमबुद्ध नगर, सहारनपुर, पीलीभीत, कानपुर और इलाहाबाद में बनाए जाएंगे। उन्होंने बताया कि पीपीपी मॉडल पर बनने वाले इन आश्रय स्थलों के लिए निदेशालय स्तर पर गठित समिति के समक्ष संस्थाओं ने अपनी कार्ययोजना का प्रस्तुतीकरण किया है। जल्द ही इन 12 जिलों में चयनित विशेष आश्रय स्थल कार्य करने लगेंगे। (एजेंसी)
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शिक्षा
08 - 14 जनवरी 2018
तालीम का ‘रास्ता’
दिल्ली से लगी बस्ती खोड़ा में गरीब मुस्लिम बेटियों को तालीमी राह दिखाने में जुटा है ‘रास्ता’
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स साल पहले भरी दोपहरी में तीन महिलाएं शबनम के एक कमरे वाले मकान में पहुंचीं, जहां शबमन की छह साल की बेटी सना और दूसरी सात साल की बेटी शायमा घर में ही बैठी हुई थीं। दोनों को मजबूरन स्कूल छोड़ना पड़ा था, क्योंकि परिवार के पास उनकी स्कूल की वर्दी खरीदने के पैसे नहीं थे। दोनों अब मदरसे में जाया करती थीं। इन तीनों महिलाओं के घर आगमन से शबनम बिल्कुल अनजान थी, उसे नहीं पता था कि इन महिलाओं के आगमन से उसकी बेटियों की जिंदगी बदल जाएगी। तीनों महिलाएं एक नए बालिका विद्यालय की अध्यापिकाएं थीं, जो उनके घर के पड़ोस में ही खुला था। उनकी बस एक ही दरख्वास्त थी, ‘कृपया अपनी बेटियों को हमारे विद्यालय में भेजिए।’ यह एक ऐसी दरख्वास्त थी, जिसने उसके बाद से सैकड़ों मुस्लिम लड़कियों को शिक्षा की तरफ एक नया मोड़ दिया। दिल्ली के बाहर बसी 'बीमारी और अपराध के लिए कुख्यात' इस बस्ती (जैसा कि अक्सर स्थानीय
खास बातें पहले घर-गर जाकर अभिभावकों को समझाना पड़ा स्कूल में आज लगभग 600 बालिकाएं पढ़ती हैं इन बालिकाओं में 70 फीसदी मुस्लिम परिवारों से हैं
स्कूल में ऑनलाइन कक्षाओं के जरिए भी पढ़ाई कराई जाती है। यहां 10वीं कक्षा में विद्यार्थियों के पास होने का प्रतिशत 85 है मीडिया में दर्शाया जाता है) में बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी रहती है और यहां कोई बालिका विद्यालय नहीं है। विद्यालय के अध्यापक घर-घर जाकर अभिभावकों से अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के लिए समझा रहे थे। स्कूल की फीस 40 रुपए प्रति माह थी, जिसके साथ मुफ्त किताबें और स्कूल की वर्दी भी थी। सना और शायमा ने अपनी उम्र में अंतर होने के बावजूद एक ही कक्षा में दाखिला कराया। यह निर्णय कारगर साबित हुआ। खुश शबमन ने अपने मामूली से घर के बाहर आकर बताया, ‘अब वह बसों के नाम, सरकारी दस्तावेज पढ़ सकती हैं और मेरी बेटियां हमसे ज्यादा समझदार हो चुकी हैं।’ एक मामूली शुरुआत के बाद, स्कूल में आज लगभग 600 बालिकाएं पढ़ती हैं, जिसमें से 70 फीसदी मुसलमान हैं। इसके साथ ही स्कूल में ऑनलाइन कक्षाओं के जरिए भी पढ़ाई कराई जाती है और खास यह कि 10वीं कक्षा में विद्यार्थियों के पास होने का प्रतिशत 85 है। सर्दियों की सुबह में हल्की पीली और संतरी रंग से रंगी दीवारों वाले 'रास्ता' की 10वीं कक्षा में लकड़ी की बेंच पर बैठी 17 लड़कियों की 'यस मैम' और 'नो मैम' की आवाजें सुनाई देती हैं। एक दशक पहले स्कूल में दाखिला लेने वाली और सड़क किनारे बिरयानी बेचने वाले की बेटी सना अब 16 साल की हो चुकी है और अपनी अध्यापिका की सर्वक्षेष्ठ छात्रा है। सना, कुछ महीनों में 10वीं की परीक्षा देने वाली है। सना का सपना शिक्षक बनने का है। और वह कहती है शिक्षा ने उसे स्वतंत्र बनाने में मदद की है। उसकी बहन शायमा, ने डबल प्रमोशन हासिल कर पास के एक दूसरे स्कूल में चली गई और वह अब 11वीं में है। उसके बगल में बैठी 18 वर्षीय सैमा और 17 वर्षीय रुकिया, सभी अपने सपनों को लेकर स्पष्ट हैं। सैमा ने कहा, ‘मैं अब किसी से भी बात कर सकती हूं। मुझे अब कहीं भी जाने से डर नहीं लगता।’
वहीं रुकिया का कहना है कि उसके शिक्षित होने से अब उसके बच्चे भी उससे बेहतर होंगे। इन तीनों लड़कियों की तरह कई और लड़कियां हैं, जिनका स्कूल किसी कारणवश छूट गया था, और जिन्हें शिक्षा की तरफ दोबारा मोड़ने में रास्ता ने एक अहम भूमिका निभाई है। 600 छात्राओं के इस मशहूर स्कूल 'रास्ता' की कहानी की शुरुआत, जनवरी 2007 में कड़ाके की ठंड में दो पुराने दोस्तों के बीच चाय की चुस्की लेते हुए एक चुनौती से हुई। स्कूल के संस्थापक 58 वर्षीय केसी पंत ने रास्ता स्कूल के अपने कमरे में उस दोपहर को याद करते हुए कहा, ‘उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं मुस्लिम लड़कियों को एक चुनौती के रूप में पढ़ा सकता हूं, मैंने कहा- हां।’ शिक्षा क्षेत्र में करीब तीन दशक के अनुभवी पंत ने कहा, ‘खोड़ा स्पष्ट रूप में मेरी पहली पसंद था। स्कूल के लिए तेजी से काम किया गया। फरवरी के मध्य तक, खोड़ा में चार अलगअलग जगहों पर रास्ता स्कूल की शाखाएं खोली गईं, जहां 250 से अधिक छात्राओं को अनौपचारिक रूप से शिक्षा प्रदान करने की शुरुआत की गई। प्रत्येक स्कूल में दो-तीन कक्षाएं होती थीं।’ 2015 में उत्तर प्रदेश सरकार ने स्कूल को मान्यता प्रदान की और अब यह केवल एक इमारत में संचालित किया जाता है। पंत ने कहा कि शुरुआत के उन दिनों यह सब आसान नहीं था। शुरुआत में, वह और अन्य को मदरसा और मस्जिद जाना था और मौलानाओं को समझाना था कि वे बेटियों को स्कूल भेजें। वे अपनी बेटियों को स्कूल नहीं भेजा करते थे। वे अपने बेटों को तो भेज सकते थे, लेकिन बेटियों को नहीं। उन्होंने कहा, ‘इसके बाद से स्थानीय निवासियों के रवैये में एक बड़ा बदलाव आया।’ लड़कियां जानती थीं कि यह उनके लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा। स्कूल की 41 वर्षीय हिंदी शिक्षिका मंजू जोशी ने कहा कि कुछ छात्राओं ने स्कूल से निकलने के
बाद डिग्री हासिल कर ली है। चेहरे पर हल्की-सी मुस्कुराहट के साथ उन्होंने कहा, ‘उनमें से कुछ वापस स्कूल आती हैं और हमसे गले लगती हैं।’ स्कूल की प्रधानाचार्य विनिता सिंह ने कहा, ‘दो साल पहले एक लड़की ने अपनी शादी में देरी इसीलिए की, क्योंकि वह पढ़ना चाहती थी। एक गरीब मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखकर यह फैसला करना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है।’ शबनम नाम की एक और मुस्लिम महिला है। पूरा नाम है शबनम अंसारी (45)। इनकी भी दोनों बेटियां रास्ता में पढ़ रही हैं। उनके पास अपनी दोनों बेटियों को स्कूल भेजने की दूसरी वजह है। उन्होंने कहा, ‘इन दिनों दूल्हे भी पूछते हैं कि लड़की कितना पढ़ी है?’ उन्होंने कहा, ‘पिता कागजों पर अंगूठा लगाते हैं, मां भी कागजों पर अंगूठा लगाती है, क्या बच्चे भी यही करेंगे?’ उन्होंने पूछा, ‘हमारे साथ जो हुआ, वह उनके साथ नहीं होना चाहिए।’ पंत का मानना है कि अभी बहुत लंबा सफर तय करना बाकी है। सड़क पर बिरयानी बेचने वाले सना के पिता आरिफ ने कहा, ‘पढ़ने के बाद वह क्या करेगी? फिर भी, हम उसे नौकरी नहीं करने देंगे।’ उन्होंने कहा, ‘10वीं कक्षा काफी है, अब उसे घर के काम करने होंगे। फीस भी अब बढ़ चुकी है और 300 रुपए देने होते हैं और मेरे पास ज्यादा पैसे नहीं हैं।’ उन्होंने अपनी पत्नी शबनम से पूछा, ‘लोग क्या कहेंगे, जब हम उसे नौकरी करने के लिए भेजेंगे?" उन्होंने सना की शिकायत करते हुए कि वह धार्मिक गतिविधियों को छोड़ केवल स्कूल की गतिविधियां ही करती है। उनकी शिक्षा ने हालांकि लड़कियों की शिक्षा पर असर डाला है। सना ने कहा, ‘अगर मुक्त विद्यालय के जरिए बन पाया, तो मैं अपनी पढ़ाई जारी रखूंगी।’ उसने कहा, ‘मैं कॉलेज जाना चाहती हूं।’ शबनम ने हंसते हुए कहा, ‘अब वह यह भी कहती है कि वह नौकरी करना चाहती है।’
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शिक्षा
पहले शिक्षा फिर शादी
16 वर्षीय अंजलि ने स्कूल शिक्षक बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए हिम्मत दिखाई और जिले में इस प्रथा के खिलाफ खड़ी हुई
खास बातें बिहार में कम उम्र की 39.1 फीसदी लड़कियों की शादी हो रही है बिहार सरकार ने बाल विवाह के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया समग्र सेवा केंद्र नाम की संस्था भी इस अभियान से जुटी
बि
इमरान खान
हार के ग्रामीण इलाकों में आभिशाप बन चुके बाल विवाह के खिलाफ जागरुकता फैलाने की एक अनूठी पहल में शामिल दर्जनों लड़कियों में से एक 16 वर्षीय अंजलि कुमारी ने एक स्कूल शिक्षक बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए हिम्मत दिखाई और जिले में इस प्रथा के खिलाफ खड़ी हुई। बुमुआर के एक सरकारी स्कूल में 11वीं कक्षा की छात्रा अंजलि इन दिनों में अपनी हमउम्र लड़कियों के साथ अपने खपरैल घर के दो कमरों के बाहर सहज भाव में दिखाई दे रही है और 'लगन' (गर्मियों में शादी का मौसम) के दौरान शादी से इनकार करने की घटना को याद करती है। यह सब एक गरीब लोहार की बेटी के लिए इतना आसान नहीं था। अंजलि ने कहा, ‘जब मेरी मां ने मुझ पर दबाव डाला तब, मैंने अपनी मां को बताया कि जब तक मैं 12वीं कक्षा के बाद स्नातक पूरा नहीं कर लेती और एक शिक्षक बनने के अपने सपने को पूरा नहीं कर लेती, तब तक शादी का कोई सवाल ही नहीं है।’ उसने आगे बताया, ‘शादी के लिए मना करने और अपनी उच्च शिक्षा की मेरी इच्छा को लेकर अभिभावकों को राजी करने के बाद, अन्य ग्रामीणों ने भी मुझे समर्थन दिया।’ अंजलि पांच बच्चों में दूसरे स्थान पर है। इसमें से तीन बहनें और दो भाई हैं। फिलहाल सभी पढ़ाई कर
रहे हैं। बड़ा भाई पढ़ाई के बाद दिल्ली में कार्यरत है। यह बदलाव उस वक्त सामने आया, जब वह समग्र सेवा केंद्र (एसएसके) नाम के एक स्थानीय संगठन के संपर्क में आई। संगठन को एक अंतरराष्ट्रीय गैर लाभकारी संस्था का समर्थन प्राप्त है, जो बच्चों को बचाने के लिए कार्य करता है। संस्था का लक्ष्य न केवल बाल विवाह को लेकर जागरूकता फैलाना है, बल्कि इससे पड़ने वाले स्वास्थ्य, शिक्षा और सशक्तीकरण पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में भी जागरूक करना है। इसके साथ साथ यह संस्था लड़कियों को अपनी आवाज उठाने और एक रुख अख्तियार करने का अवसर प्रदान करती है। अंजलि ने कहा, ‘प्रशिक्षण, बातचीत और सामने लाने के लिए एसएसके का शुक्रिया, मेरी हमउम्र लड़कियां बाल विवाह के इस अभिशाप को लेकर पूरी तरह से जागरूक हो चुकी हैं। मैं अपने जैसी दूसरी लड़कियों को सिखाना चाहती हूं और बाल विवाह जैसे सामाजिक अभिशाप से पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों के बारे में पड़ोसी गांवों में जागरूकता का प्रसार करना चाहती हूं।’ अपना अनुभव साझा करते हुए अंजलि बताती है, ‘हमने कम उम्र में विवाह के खिलाफ अपनी क्षमताओं को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करने के मकसद से लड़कियों के लिए विशेष जानकारी शिविर लगाए। यह काफी फायदेमंद साबित रहा।’
बाल विवाह को इसीलिए बढ़ावा मिलता है, क्योंकि दहेज कम लगता है। बेटियों के बड़े हो जाने पर परिजनों को ज्यादा दहेज देना पड़ता है - श्यामल नासकर, परियोजना समन्वयक, एसएसके
एसएसके के अभियान की अगुआ बन चुकी अंजलि ने कहा, ‘2017 में मैंने एक पांच दिवसीय शिविर में हिस्सा लिया और पटना में हुए सम्मेलन में शिरकत की।’ अपनी चचेरी बहन शांति कुमारी (जिन्होंने इस साल स्नातक के बाद शादी की) का उदाहारण देते हुए अंजलि ने कहा, ‘एसएसके में प्रशिक्षक बनने से पहले वह भी मेरी तरह, एक मुखर नेता थीं।’ आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि बच्चों का बचपन बचाने के अभियान ने अंजलि और उसकी उम्र की दूसरी लड़कियों को बच्चों का चैंपियन बना दिया। उनकी मां गायत्री ने एसएसके को धन्यवाद दिया। वह भी बाल विवाह के नकरात्मक प्रभावों से रूबरू हो चुकी हैं। गायत्री ने बताया, ‘हम गरीब लोग हैं। हम चाहते थे कि उसकी शादी हो जाए, ताकि दो-तीन साल में दूसरी बेटी को शादी के लिए तैयार किया जा सके। अगर मेरी एक बेटी होती, तो मैं 24 से 25 साल की उम्र हो जाने तक भी उसकी शादी के बारे में नहीं सोचती। मेरी तीन बेटियां हैं। मुझे पछतावा है कि मैंने जल्दी शादी के दुष्प्रभावों को जाने बिना ही अंजलि पर शादी के लिए दबाव डाला। मुझे गर्व है कि उसने अपनी उच्च शिक्षा को पूरा करने के लिए जिद की।’ गायत्री अपना घर चलाने के लिए खेतों में मजदूरी करती हैं। उनके पति लोहा-लक्कड़ की एक छोटी सी दुकान चलाते हैं और रोजाना 100 से 150 रुपए तक कमाते हैं। गायत्री ने कहा, ‘हमने एक दो कमरे का मकान बनाया और एक स्थानीय आदमी से कर्ज लेकर घर के बाहर हैंडपम्प (चापाकल) लगवाया।’ एसएसके परियोजना समन्वयक श्यामल नासकर ने कहा कि बाल विवाह को इसीलिए बढ़ावा मिलता है, क्योंकि दहेज कम लगता है। बेटियों के बड़े हो
जाने पर परिजनों को ज्यादा दहेज देना पड़ता है। नासकर ने बातचीत में आगे बताया, ‘पहले, गांवों में लोग बाल विवाह के दुष्प्रभावों को लेकर जागरूक नहीं थे। अब लोग, खासकर नवयुवतियां इसके लेकर पूरी तरह से जगरूक हैं। इन दिनों लड़कियां बाल विवाह के खिलाफ अपनी आवाज उठा रही हैं, शादी के लिए मना कर रही हैं और अपने अधिकारों के लिए बात कर रही हैं।’ राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4, 2015-16) के मुताबिक, बिहार में अभी भी कम उम्र की 39.1 फीसदी लड़कियों की शादी हो रही है। हालांकि यह आंकड़ा 2005-06 के 69 प्रतिशत के मुकाबले 30 फीसदी बेहतर हुआ है।
उच्च शिक्षा के लिए नामांकन में वृद्धि उच्च शिक्षा में जीईआर 2016-17 में बढ़कर 25.2 प्रतिशत हो गया है
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रत में उच्च शिक्षा के लिए विद्यार्थियों के नामांकन में 2016-17 में मामूली 0.7 प्रतिशत वृद्धि देखी गई। यह जानकारी एक सरकारी सर्वेक्षण में सामने आई है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने यह सर्वेक्षण जारी किया है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) 201516 के 24.5 प्रतिशत से बढ़कर 2016-17 में 25.2 प्रतिशत हो गया है। देश ने वर्ष 2020 तक उच्च शिक्षा में 30 प्रतिशत जीईआर हासिल करने का आक्रामक लक्ष्य निर्धारित किया है। जीईआर 18-23 वर्ष आयु वर्ग की आबादी में उच्च शिक्षा में कुल नामांकन को जाहिर करता है। सर्वेक्षण के मुताबिक, वर्ष 2015-16 में देश के 799 विश्वविद्यालयों की तुलना में देश में विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़कर 864 हो गई। देश में सर्वोच्च जीईआर 46.9 प्रतिशत तमिलनाडु में रहा। जबकि उच्च शिक्षा के लिए 18 से 23 वर्ष आयु वर्ग के 14.9 प्रतिशत युवाओं के नामांकन के साथ बिहार सबसे निचले पायदान पर है। (एजेंसी)
16 खुला मंच
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भलाई करना कर्तव्य नहीं, आनंद है, क्योंकि वह तुम्हारे स्वास्थ्य और सुख की वृद्धि करता है - जरथुष्ट्र
बड़ी उम्मीदों का देश
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भारतीय अर्थव्यवस्था और विकास को लेकर कई आकलनों में जाहिर की गई बड़ी उम्मीदें
भावना और नेतृत्व जब एक साथ खड़े होते हैं तो विकास और उपलब्धियों का ग्राफ बहुत तेजी से चढ़ने लगता है। मैनेजमेंट के छात्रों को उनके शिक्षक यह सीख हमेशा याद रखने की सलाह देते हैं। भारत के साथ इन दिनों कुछ एेसी ही अनुकूलताएं दिख रही हैं। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिच की हालिया रिपोर्ट के अनुसार 6.7 फीसदी विकास दर से भारत अगले 5 वर्षों में चीन को पीछे छोड़ देगा। इसके साथ ही भारत सबसे तेजी से विकास करने वाला देश भी बन जाएगा। भारत ‘फिच रेटिंग ग्लोबल इकॉनोमिक आउटलुक’ में शामिल 10 सबसे बड़े उभरते बाजारों की सूची में शीर्ष पर है। इसी तरह सेंटर फॉर इकोनॉमिक्स एंड बिजनेस रिसर्च (सीईबीआर) की रिपोर्ट के अनुसार भारत 2018 में ब्रिटेन और फ्रांस को पछाड़कर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की तैयारी कर रहा है। सीईबीआर के डिप्टी चेयरमैन डोगलस मैकविलियम ने कहा है कि वर्तमान में अस्थायी असफलताओं के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था फ्रांस और ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के बराबर टक्कर दे रही है। अगर भारत की अर्थव्यवस्था इसी क्रम में बढ़ती रही तो भारत इस वर्ष फ्रांस और ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ देगा। इतना हीं नहीं, अगले साल भारत दोनों देशों को पछाड़कर दुनिया की शीर्ष पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। एक अमेरिकी टॉप थिंक-टैंक अलीसा एयर्स तो यहां तक कहती हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था उसे व्यापक वैश्विक महत्व और देश की सैन्य क्षमताओं के विस्तार तथा आधुनिकीकरण के लिए ऊर्जा दे रही है। फोर्ब्स में छपे आलेख में अलीसा कहती हैं, ‘पिछले वर्षों में भारत दुनिया भर में विदेशी और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक नीतियों के संदर्भ में एक बड़ा कारक बनकर उभरा है और अब वैश्विक मंच पर अब भारत ज्यादा मुखर दिखाई दे रहा है। दरअसल, भारत खुद को एक ‘प्रमुख शक्ति’ के रूप में देख रहा है।’ साफ है कि नीति और नेतृत्व के साथ बीते कुछ वर्षों में भारत ने अर्थ और विकास के क्षेत्र में अपने दमखम को इतना बढ़ा लिया है कि उसकी तरफ दुनिया भर की निगाह है।
टॉवर
(उत्तर प्रदेश)
विष्णु पंड्या
अभिमत
प्रसिद्ध गुजराती साहित्यकार
भारत की खोज का ‘विवेक’ भारत के आध्यात्मिक जागरण के लिए स्वामी विवेकानंद ने जो भी संदेश दिए, उससे पहले उन्होंने संपूर्ण भारत की यात्रा की
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स्वामी विवेकानंद जयंती और राष्ट्रीय युवा दिवस पर विशेष
पने गुरु रामकृष्ण परमहंस की महासमाधि के बाद विवेकानंद ‘भारत की खोज’ के लिए निकल पड़े थे। वे नगरों में गए, गांवों में पहुंचे, भिक्षाटन किया, रेलवे स्टेशन के प्लेटफाॅर्म पर सोए, देवालयों के दर्शन किए, पर्वतों और नदियों का भ्रमण किया। मन में बस एक ही कामना थी कि कैसे भारतवर्ष की सुषुप्त आत्मा को जाग्रत किया जाए। ऐसा लगता है कि स्वामी जी एक सामूहिक पुरुषार्थ का सांस्कृतिक रास्ता ढूंढ रहे थे। किसी एक संप्रदाय विशेष का प्रचार-प्रसार करके इतिश्री करना उन्हें स्वीकार्य नहीं था। पराधीन, दरिद्र, कुंठित और निष्क्रिय भारत को जगाने का युग कार्य उन्हें करना था। सौराष्ट्र की इस बार की यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद का परिभ्रमण बार-बार याद आता रहा। कन्याकुमारी जाने से पहले वे गुजरात भ्रमण पर भी आए थे। कुछ दिन अहमदाबाद में रहे फिर वहां से बढ़वाण गए और फिर लींबड़ी। लींबड़ी में कुछ तांत्रिक साधुओं ने छल से उन्हें अपने आश्रम में कैद कर लिया था। बड़ी मुश्किल से वे उनके चंगुल से निकल पाए थे। वे भावनगर और सिहोर भी गए और वहां से जूनागढ़। बाद में पोरबंदर, भुज और सोमनाथ भी गए। स्वामी जी की यह यात्रा दो महत्वपूर्ण घटनाओं से संबंध रखती है, किंतु आश्चर्य है कि इन दोनों घटनाओं का उल्लेख आमतौर पर नहीं मिलता। एक कार्यक्रम के लिए महाराष्ट्र के सोलापुर नगर की ‘ज्ञानप्रबोधिनी’ संस्था की ओर से डाॅ. स्वर्णलता भिशीकर का बुलावा आया था। अवसर था स्वामी विवेकानंद की स्मृति में आयोजित वर्षभर के कार्यक्रमों के समापन का। ‘स्वामी जी और सामयिक समस्याओं’ पर बोलना था, तो निर्णय किया
कि चलो, 112 वर्ष पूर्व सौराष्ट्र की जिस भूमि पर स्वामी विवेकानंद के चरण पड़े, वहां की यात्रा कर लें। इसी यात्रा के दौरान स्वामी जी के जीवन की दो महान किन्तु अज्ञात घटनाओं के बारे में जानकारी मिली। आज तक अंधेरे कमरे में बंद पड़ी इन घटनाओं का तथ्यान्वेषण होना चाहिए। भारत-भ्रमण को निकले स्वामी विवेकानंद से विदेश-यात्रा और विश्व धर्म संसद में जाने की बात सबसे पहली बार किसने कही थी? जेतलसर जंक्शन पर जैसे ही हमारी गाड़ी रुकी, मुझे उस घटना का स्मरण हो आया। स्वामी जी जूनागढ़ से निकले, तो पोरबंदर-भावनगर जाने के रास्ते में यहां (जेतलसर) ठहरे थे। जेतलसर के स्टेशन मास्टर ने उनका आतिथ्य किया था और अपने घर ले गए। वह स्टेशन मास्टर रातभर स्वामी जी की बातें सुनता रहा। दूसरे दिन जब स्वामी जी निकलने वाले थे तब स्टेशन मास्टर ने कहा, ‘स्वामी जी, मेरी एक बात मानेंगे?’ फिर धीरे से कहा, ‘आप महापुरुष हैं। इस धरती पर आप जैसे लोग बहुत कम होते हैं। आपकी विद्वता, निष्ठा और त्याग इस देश को बदल सकते हैं, लेकिन...' ‘लेकिन क्या?' स्वामी जी हंस पड़े। दोनों हाथ जोड़कर स्टेशन मास्टर ने कहा, ‘लेकिन इस देश में इधर-उधर परिभ्रमण से कुछ परिणाम नहीं निकलेगा। एक बार आपको अमेरिका जाना चाहिए, फिर इंग्लैंड और फ्रांस। वहां का समाज आपका सम्मान करेगा, अनुसरण करने लगेगा तब इन भारतवासियों को आपकी सही पहचान होगी।’ इस घटना का उल्लेख सुप्रसिद्ध गुजराती साहित्यकार गुणवंतराय आचार्य ने किया भी था। स्वामी जी की जीवनी और अन्य पुस्तकों में पोरबंदर के शंकर पांडुरंग पण्डित का जिक्र तो
स्वामी जी एक सामूहिक पुरुषार्थ का सांस्कृतिक रास्ता ढूंढ रहे थे। किसी एक संप्रदाय विशेष का प्रचार-प्रसार करके इतिश्री करना उन्हें स्वीकार्य नहीं था। पराधीन, दरिद्र, कुंठित और निष्क्रिय भारत को जगाने का युग कार्य उन्हें करना था
08 - 14 जनवरी 2018 है, लेकिन इसके पूर्व जेतलसर के इस स्टेशन मास्टर ने स्वामी जी को प्रेरित किया ऐसा उल्लेख कहीं नहीं मिलता। दूसरी घटना भी ऐसी ही महत्वपूर्ण है। क्या कन्याकुमारी में शिलास्थान पर भारतमाता के दर्शन और दिव्यानुभूति से पहले स्वामी विवेकानंद को ऐसा ही अनुभव पश्चिमी सागरतट पर सोमनाथ के दिव्यभव्य खंडहरों में भी हुआ था? 1888 से स्वामी जी का प्रथम भारत भ्रमण शुरू हुआ था। 1892 के अंत तक यह चला। बीसवीं सदी दस्तक दे रही थी और 19वीं सदी अंतिम चरण में थी। आदि शंकराचार्य की तरह विवेकानंद ने कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कामाख्या तक यात्रा की और एक के बाद एक महत्वपूर्ण घटनाएं इस यात्रा के साथ जुड़ती गईं। ऐसी एक घटना तो विश्वविख्यात है। वह है कन्याकुमारी के तट पर स्वामी जी को भारतमाता का दर्शन। वहीं उन्होंने मन ही मन सोच लिया था कि मैं विदेशों में जाऊंगा। पश्चिमी सभ्यता की भीड़ के बीच जाकर चौराहे पर खड़ा होकर भारत की महान संस्कृति के बारे में सभी को सही जानकारी दूंगा और फिर वापस आकर भारत के नवजागरण का उदघोष करूंगा। भारतवर्ष में दरिद्रता और अज्ञान को समाप्त करने की शक्ति और समर्पण का रास्ता स्वामी जी ने कन्याकुमारी की अनुभूति के बाद आगे बढ़ाया। क्या ऐसी ही अनुभूति इसके कुछ ही समय पहले पश्चिमी समुद्र तट पर, भगवान सोमनाथ के भग्नावशेषों के बीच भी हुई थी? यह शोध का एक रोचक अध्याय है। इसके लिए हमें स्वामी जी की सौराष्ट्र यात्रा का वृत्तांत भी देखना होगा। 1891 की गर्मी के दिनों में स्वामी जी जयपुर के बाद अजमेर होकर आबू पहुंचे थे। वहां से खेतड़ी गए। खेतड़ी के महाराजा उनके शिष्य हो गए। खेतड़ी से स्वामी विवेकानंद अहमदाबाद आए। अहमदाबाद में उन्होंने कुछ दिनों के लिए भिक्षाटन किया। बाद में लाल शंकर त्रिवेदी के निवास पर रहे। अहमदाबाद से लींबड़ी, फिर भावनगर, सिहोर और बाद में जूनागढ़ पहुंचे। स्वामी जी की सबसे महत्वपूर्ण और रोचक यात्रा सोमनाथ की रही। कच्छ से वापस जाने के बाद स्वामी जी जूनागढ़ होकर प्रभासपाटण पहुंचे। वेरावल बंदरगाह के निकट प्रभासपाटण में ही पश्चिमी समुद्रतट पर आज भगवान सोमनाथ का भव्य देवालय खड़ा है। जब स्वामी विवेकानंद सोमनाथ गए थे तब वहां आज की तरह भव्य देवालय नहीं था। अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित देवालय था और आस-पास थे भग्नावशेष। 1891 के अंतिम दिनों में स्वामी जी सोमनाथ आए थे। स्वामी विवेकानंद की जीवनी के अनुसार उन्होंने सोमनाथ, कृष्ण के देहोत्सर्ग-स्थान और अन्य स्थानों के दर्शन भी किए थे। स्वामी जी सोमनाथ के करुण इतिहास से भली-भांति परिचित थे। सोमनाथ के भग्न खंडहरों के बीच स्वामी जी पत्थरों के ढेर पर बैठ गए और सोमनाथ के भव्य अतीत का स्मरण करतेकरते ध्यानमग्न हो गए। ध्यानावस्था में स्वामी जी ने बहुत-कुछ पाया था। सामने था इतिहास की गाथा सुनाता पश्चिमी विशाल समुद्र। विध्वंस और निर्माण की इस ऐतिहासिक भूमि पर स्वामी जी कई घंटे तक तपते सूरज की साक्षी में, नीले आकाश तले, समुद्री लहरों का अनुभव करते हुए ध्यानमग्न रहे।
लीक से परे
प्रियंका तिवारी
खुला मंच
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लेखिका युवा पत्रकार हैं और देश-समाज से जुड़े मुद्दों पर प्रखरता से अपने विचार रखती हैं
सड़क पर सुरक्षा का सवाल
सड़कों का मौजदू ा दौर जहां काफी रफ्तार भरा है, वहीं यह कई खतरनाक चुनौतियों को लेकर भी सामने आया है
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द्योगिक विकास के दस्तक के पहले ही दुनिया ने आवागमन और उसके लिए सड़क और तेज वाहनों के महत्व को जान लिया था। इसीलिए भारत सहित दुनिया के कई मुल्कों में बड़े राजमार्गों का इतिहास सदियों पुराना है। सड़कों का मौजूदा दौर जहां काफी रफ्तार भरा है, वहीं यह कई खतरनाक चुनौतियों को लेकर भी सामने आया है। इसमें सबसे बड़ी चुनौती है सड़क हादसों में होने वाली मौतें। बात करें भारत की तो सड़क हादसों में हर साल मानव संसाधन का सर्वाधिक नुकसान यहां होता है। अंतरराष्ट्रीय सड़क संगठन (आईआरएफ) राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा सप्ताह (11-17 जनवरी) पर की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में 12.5 लाख लोगों की प्रति वर्ष सड़क हादसों में मौत होती स्तर पर शुरू की गई थी, जिसे साल 2005 में संयुक्त है। इसमें भारत की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से ज्यादा राष्ट्र ने भी मान्यता प्रदान की थी। इस कवायद का है। मकसद सड़क हादसों को कम करने में सरकारों जिनेवा स्थित आईआरएफ के मुताबिक भारत के अलावा जागरुकता के माध्यम से जनता की में साल 2016 में 1,50,785 लोग सड़क हादसों में भागीदारी सुनिश्चित करना है। मारे गये. यह किसी भी देश के मानव संसाधन का संयुक्त राष्ट्र ने इस मुहिम के माध्यम से साल सर्वाधिक नुकसान है। आईआरएफ की ओर से हर 2020 तक सड़क हादसों में 50 प्रतिशत तक की साल नवंबर के तीसरे सप्ताह में मनाए जाने वाले कमी लाने का लक्ष्य तय किया है। इसमें भारत की सड़क सुरक्षा सप्ताह के मौके पर यह जानकारी महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए आईआरएफ ने पिछले वर्ष दी गई थी। इसमें यह बताया गया कि भारत सरकार के साथ यातायात नियमों को दुरुस्त दुनिया भर में वाहनों की कुल संख्या का महज तीन कर इनका सख्ती से पालन सुनिश्चित करने में प्रतिशत हिस्सा भारत में है, लेकिन देश में होने वाले जनजागरुकता की पहल की है। भारत को सड़क सड़क हादसों और इनमें जान गंवाने वालों के मामले हादसों के कारण मानव संसाधन के साथ भारी मात्रा में भारत की हिस्सेदारी 12.06 प्रतिशत है। में आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है। आईआरएफ सड़क दुर्घटनाओं में बुरी तरह घायल हुए और के अध्ययन के मुताबिक भारत में सड़क हादसों में मौत के मुंह से वापस लौटे लोगों द्वारा सड़क सुरक्षा गंभीर रूप से घायल हुए पीड़ित को औसतन पांच सप्ताह मानने की कवायद साल 1993 में वैश्विक लाख रुपए के खर्च का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ता
नववर्ष विशेषांक
‘सुलभ स्वच्छ भारत’ का विगत कई महीनों से पाठक हूं। नववर्ष के अंक में आपने काफी सुरुचिपूर्ण सामग्री दी है। अखबार को पढ़कर लगता है कि यह वर्ष देश के लिए काफी उम्मीदों से भरा होगा। मुझे ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ पढ़कर ही इस बात की जानकारी हुई कि इस वर्ष इतनी सारी बायोपिक्स आने वाली हैं। सुपर30 के आनंद कुमार के बारे में परदे पर देखना तो खास तौर पर दिलचस्प होगा। पैडमैन और मणिकर्णिका का भी सब लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। मैं एक युवा हूं और यह देखकर काफी अच्छा लगता है कि देशभर के युवा समाज सेवा के क्षेत्र में बड़ा कार्य कर रहे हैं। इनमें कई युवाअों के नाम अनसुने हैं। इनके बारे में
है। इससे पीड़ित के अलावा समूचा परिवार प्रभावित होता है। साफ है कि भारत में सड़क हादसा गंभीर चुनौती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बारे में अपने रिपोर्ट में कुछ चौंकाने वाले तथ्य पेश किए हैं। इसके मुताबिक यहां इन हादसों में हर चार मिनट में एक शख्स की जान सड़क हादसे में जाती है। एक अनुमान के मुताबिक इस तरह भारत में हर साल डेढ़ लाख से ज्यादा लोग सड़क हादसों में मारे जाते हैं। यह आंकड़ा किसी भी महामारी और युद्ध से ज्यादा है। सड़क दुर्घटना में मरने विशेष वालों में सबसे ज्यादा 15-29 वर्ग के युवा शामिल है। देश में सबसे ज्यादा युवाओं में आकस्मिक मौत की सबसे बड़ी वजह भी सड़क दुर्घटना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक कम और मध्य आय वाले देश में सबसे ज्यादा सड़क हादसे होते हैं। इन देशों में सड़क हादसों की संख्या विकसित देशों की तुलना में दोगुनी है। ज्ञात हो कि सड़क दुर्घटना से गरीब देशों के जीडीपी का पांच प्रतिशत नुकसान होता है। 68 देशों में सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि हुई है वहीं 79 देशों में सड़क दुर्घटनाओं की प्रवृति में कमी देखी गई है। विकसित देशों में गाड़ियों में इलेक्ट्रानिक स्टेबलिटी कंट्रोल के इस्तेमाल को जरूरी बनाया गया है। भारत में भी इस दिशा में अब पहल शुरू हो गई है। सड़क दुर्घटना के पीछे शराब का सेवन कर गाड़ी चलाना, अप्रशिक्षित ड्राइवर, सड़कों के गुणवत्ता में खराबी और वाहनों की संख्या में तेजी से हो रही वृद्धि जिम्मेदार है। जाहिर है कि इसके बारे में सरकार के साथ समाज को भी जागरुकता दिखानी होगी। हमें आपका अखबार पढ़कर ही पता चला। आपके इस प्रयास के लिए आपको विशेष रूप से साधुवाद। सौरभ कुमार, नोएडा, उत्तर प्रदेश
परिवार का अखबार
मैं एक महिला हूं। ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ मेरे परिवार में सभी पढ़ते हैं। कह सकते हैं कि यह मेरे पूरे परिवार का अखबार है। अखबार में किए गए कुछ नए बदलाव काफी सुंदर हैं। इंद्रधनुष और साहित्य के पेज सबको भा रहे हैं। बच्चों की दिलचस्पी अखबार को लेकर अब और बढ़ गई है। नूतन वर्ष पर आपने ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ का काफी अच्छा अंक निकाला है। यह पठनीय के साथ संग्रहणीय भी है। ममता रावत, देहरादून, उत्तराखंड
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फोटो फीचर
08 - 14 जनवरी 2018
नववर्ष की शुभकामनाएं!
वर्ष 2018 का आगाज तो शानदार रहा ही है, उम्मीद यह भी है कि यह वर्ष सबके लिए उन्नति और सफलताअों से भरा होगा फोटो और फोटो रिसर्चः जयराम
08 - 14 जनवरी 2018
नववर्ष को लेकर जो उल्लास हर तरफ दिखा है, उससे लगता है कि 2018 में देश और समाज को अपने कई बड़े सपनों के पूरा होने की उम्मीद है
फोटो फीचर
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पर्यावरण
08 - 14 जनवरी 2018
कबाड़ मैदान को बनाया खूबसूरत उद्यान
विदिशा शहर की पहचान 'सावरकर बाल विहार उद्यान' प्रशासनिक उपेक्षा के चलते धूल धूसरित हो गया था पर अब कुछ युवकों ने इसे फिर से चमन बनाने का प्रण लिया
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संदीप पौराणिक
ध्य प्रदेश का विदिशा जिला वह स्थान है, जहां से देश की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज सांसद हैं। इस शहर से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भी करीबी नाता है, मगर इस शहर की पहचान 'सावरकर बाल विहार उद्यान' प्रशासनिक उपेक्षा के चलते धूल धूसरित हो चुका था। आखिरकार कुछ युवाओं ने मिलकर इस उद्यान की तस्वीर बदलने का अभियान चलाया, जो निरंतर जारी है। कचराघर में तब्दील हो चुका उद्यान अब अपने नए स्वरूप में नजर आने लगा है। शहर के बीचों-बीच स्थित सावरकर बाल विहार उद्यान अब से एक माह पहले तक पूरी तरह कचराघर नजर आता था। स्थानीय निवासी डॉ. अमित ठाकुर ने बताया कि इस उद्यान की हालत देखकर उन्हें ही नहीं, नगर के अन्य युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक को तकलीफ होती थी। इसके बाद उन लोगों ने फैसला लिया कि नियमित श्रमदान
कर पहले उद्यान को साफ करेंगे। इसकी शुरुआत बीते माह की गई। डॉ. सचिन कामले की मानें तो यह उद्यान असामाजिक तत्वों का अड्डा बन चुका था। यहां लोग घूमने आना चाहते थे, मगर उनकी यह इच्छा यहां की बदहाली के चलते पूरी नहीं हो पाती थी। यहां अतिक्रमण हटाने के अभियान में हटाए गए मलबे, गुमटी, पुरानी कार वगैरह को
रखकर इसे कबाड़खाने में बदल दिया गया था। युवक अभिषेक माहेश्वरी के अनुसार, ‘पहले उन लोगों ने उद्यान से कबाड़ हटाकर समतल करने का अभियान चलाया। बड़ी संख्या में लोगों का साथ मिला, धीरे-धीरे पूरा उद्यान साफ हो गया। इतना ही नहीं, मलबे और चीप आदि को बिछाकर पैदल चलने के लिए मार्ग (पाथवे) बनाया जा रहा है।’ श्रमदान में हिस्सेदारी निभाने वाले संजय ठाकुर और सुमित पटवा बताते हैं कि उनके लिए सबसे पहले यह चुनौती थी कि यहां जमा कबाड़ को कैसे ठिकाने लगाया जाए। लिहाजा, सभी ने तय किया कि इसी कबाड़ से पार्क की स्थिति को सुधारा जाए। नतीजा यह हुआ कि कबाड़ एक तरफ हटता गया, तो दूसरी तरफ उसका उपयोग होता गया।
हरित वसुंधरा बना एक अभियान
कचरा बीनने वाले होंगे सेहतमंद
हरित वसुंधरा अभियान के लिए महाराष्ट्र सरकार बनाएगी ग्रीन आर्मी, जो वन और वसुंधरा का रखेगी खयाल
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हाराष्ट्र में इन दिनों ‘हरित वसुंधरा’ का घोष जगह-जगह सुनाई दे रहा है। यह पर्यावरण, वन और धरती के संरक्षण की दिशा में उठाया गया एक ठोस कदम है। इसके लिए हरित सेना यानी ग्रीन आर्मी की सदस्यता का अभियान शुरू किया गया है। इस सदस्यता का पंजीकरण किया जा रहा है। एक अकेले औरंगाबाद विभाग में दिसंबर तक एक लाख सदस्य बनाए जाने का लक्ष्य तय किया गया है। इसी तरह की योजना पूरे प्रदेश में बनाई गई है। वन विभाग के अनुसार, राज्य का हर नागरिक हरित सेना का सदस्य हो सकता है। स्कूल तथा कॉलेजों के छात्र -छात्राओं के साथ-साथ सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं में कार्यरत लोग, रिटायर्ड जन, ज्येष्ठ नागरिक, अधिकारी और व्यवसायी आदि अपना नाम रजिस्टर्ड करा सकते हैं। हरित सेना वनों के संरक्षण, पौधारोपण, आग लगने पर मदद, वन्य जीवों की गणना आदि में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। वन दिवस, पृथ्वी दिवस,
पर्यावरण दिवस आदि के आयोजन को सफल बनाने, उसकी जागरूकता के लिए रैली, नुक्कड़ नाटक, प्रभात फेरी आदि में भी बढ़-चढ़ कर भाग ले सकते हैं। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार, राज्य का 33 प्रतिशत भौगौलिक क्षेत्र को वृक्षादित होना चाहिए। यह जिम्मेदारी राज्यों की होती है कि वे अपनी जिम्मेदारी का पालन करें। इसी को खयाल में रखकर महाराष्ट्र वन विभाग ने अपनी मुहिम चलायी हुई है। वृक्षारोपण का लक्ष्य भी तय किया है। अभी तक के आकलन के अनुसार, पचहत्तर से अस्सी प्रतिशत पौधे जीवित हैं। अगले साल मई महीने में फिर एक बार गिनती की जाएगी। अब इसमें हरित सेना का उपयोग किया जाएगा। सरकार ने यह तय किया है कि साल में एक बार हरित सेना के सदस्यों के योगदान की समीक्षा की जाएगी और स्वयंसेवकों को प्रमाण पत्र तथा पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। इन्हें विभिन्न वन क्षेत्र, अभ्यारण्य, व्याघ्र प्रकल्प में प्रवेश शुल्क में रियायत दी जाएगी। यह उम्मीद की जा रही है कि हरित सेना राज्य में वनों के विस्तार, संवर्धन, पशु संरक्षण में अपना अमूल्य योगदान देने में सफल होंगे। वनों के रूप में मिली प्राकृतिक संपत्ति को सुरक्षित रखना तथा इसे फिर खड़ा करना आज बहुत आवश्यक हो गया है। (मुंबई ब्यूरो)
उद्यान की हालत बदलने के अभियान में सक्रिय सुनील दांगी, सचिन ठाकुर और शुभम दांगी कहते हैं कि यह उद्यान पूरी तरह नगरपालिका के अधीन है। उसे रखरखाव पर ध्यान देना चाहिए, मगर ऐसा हो नहीं पा रहा है। नतीजतन, स्थानीय लोगों ने इसे सुधारने का अभियान चलाया। हाल यह है कि कबाड़खाने में तब्दील स्थान अब खुला मैदान, साफ -सुथरा, हरी घास और व्यवस्थित पेड़ों वाला बन गया है। मैदान में पाथ-वे भी नजर आने लगा है। सावरकर बाल विहार उद्यान की बदहाली और नागरिकों के सहयोग से इसकी सूरत बदलने के अभियान को लेकर नगरपालिका अध्यक्ष मुकेश टंडन से संपर्क का प्रयास किया गया, मगर वे उपलब्ध नहीं हुए। इस तरह स्थानीय जागरूक लोगों की कोशिश से बदसूरत हो चुका उद्यान खूबसूरत होने लगा है। यही कारण है कि सुबह और शाम को यहां लोग घूमने आने लगे हैं। अभी सुधार अभियान जारी है। यह सब कुछ श्रमदान से हो रहा है और वह भी वहां पड़े कबाड़ का उपयोग करके।
पनवेल महानगर पालिका कचरा बीनने वालों के स्वास्थ्य का खास खयाल रखने की तैयारी कर रही है
सटे प्राकृतिक और रमणीय स्थलों के मुबईलिए ं सेविख्यात पनवेल में एक अभिनव योजना
शुरू की जा रही है। महानगर पालिका ने शहर में घूम-घूम कर कचरा बीनने वालों के स्वास्थ्य की देखभाल करने का निश्चय किया है। इसके लिए ‘एक्स अभियान’ प्रारंभ किया गया है। मनपा पहले चरण में उन लोगों को चिन्हित कर रही है, जो शहर भर में घूमकर प्रतिदिन सैनेटरी नेपकिन और डायपर जैसे अत्यंत संक्रमित और दूषित कचरे को जमा करते हैं। इन कचरों को जमा करने वालों को घातक बीमारियों का शिकार होना पड़ता है। इन्हें खासकर स्टाफिलोकोकस, ई-कोलाई, साल्मोनेला, टाईफाइड, आंत्र रोग जैसी जानलेवा बीमारियों का भय बना रहता है। पनवेल एक पर्यटन स्थल है और यहां हर रोज काफी संख्या में यात्री घूमने आते हैं। इसीलिए मनपा की कोशिश है कि इस शहर को साफ-सुथरा रखने में कोई कोर-कसर छोड़ी नहीं जाए। बाहर से आने वालों को स्वस्थ माहौल मिले ताकि वे लौटकर दूसरों को भी आने के लिए प्रेरित करें। इससे शहर के राजस्व में बढ़ोत्तरी तो होगी
ही, अन्य स्थानीय लोगों को भी रोजगार उपलब्ध होंगे। इस खयाल से यह तय किया है कि मनपा उन लोगों को भी स्वच्छता का पाठ पढ़ाएगी जो सैनेटरी नेपकिन और डायपर जैसी चीजों को अपने दैनिक कचरों के साथ फेंकने में कोताही नहीं करते हैं। देखने में यह भी आया है कि इन कचरों को रहवासी कहीं भी अलग से भी जहांतहां फेंक देते हैं। वे या तो इसके घातक परिणामों से बेखबर हैं या जान-बूझकर लापरवाही करते हैं। उनलोगों को इससे पैदा होने वाली समस्याओं से आगाह किया जाएगा और समझाया जाएगा कि वे आस-पास को इन घातक कचरों से मुक्त रखें अन्यथा इसके दुष्परिणामों के प्रभाव में सभी आ जाएंगे। पनवेल मनपा की अधिकारी श्रीमति संध्या बावनकुले के अनुसार, इसके लिए शहरवासियों के बीच विशेष जनजागरूकता अभियान चलाने के साथ-साथ उन्हें प्रशिक्षित भी किया जाएगा। इस अभियान में महिलाओं और खासकर कॉलेज और स्कूली छात्राओं से संपर्क किया जा रहा है। (मुंबई ब्यूरो)
08 - 14 जनवरी 2018
बेघरों को कार्डबोर्ड टेंट बांटा गया ब्रसेल्स में सामान्य तंबू के इस्तेमाल की मनाही है, जिसका मतलब है कि बेघर लोगों को अक्सर पुलिस हटा देती है
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ल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में बेघर लोगों के सोने के लिए पोर्टेबल कार्डबोर्ड टेंट बड़ा सहारा बन रहे हैं। ओरिग-एमी परियोजना के रूप में पहचाने जाने वाले कार्डबोर्ड टेंट को आश्रय चाहने वाले अपनी पीठ पर उठाकर ले जा सकते हैं। ब्रसेल्स में सामान्य तंबू के इस्तेमाल की मनाही है, जिसका मतलब है कि बेघर लोगों को अक्सर पुलिस हटा देती है। इस परियोजना से जुड़े एक एनजीओ के अध्यक्ष जैवियर वैन देर स्तापेन ने बताया कि तथ्य यह है कि ‘2,600 लोग ब्रसेल्स की सड़कों पर रहते हैं, जो
(बेलिज्यम) दुनिया के सबसे ज्यादा सुविधासंपन्न, अरामदायक देशों में से एक माना जाता है और इस सच्चाई को स्वीकार करना मुश्किल है।’ सर्दियों के समय में बेल्जियम की राजधानी में कई शरणार्थी शिविर पहले से ही भरे पड़े हैं और कुछ बेघर लोग शरणार्थी शिविर में नहीं जाना चाहते हैं, क्योंकि वे अपने पालतू पशुओं से अलग हो जाएंगे। टेंट गदु नार्थ स्टेशन पर दिए गए। उनमें से 20 टेंट ब्रसेल्स में बेघर लोगों को वितरित किए गए। साथ ही एक अन्य एनजीओ 'ई एपल दु कोर' की सहायता से जरूरी चीजें भी दी गईं। (एजेंसी)
कबाड़ का आयात बैन चीन में 24 प्रकार की कबाड़ के प्रवेश पर रोक लग जाएगी
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न ने 24 प्रकार की कबाड़ के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है, जो एक जनवरी से प्रभावी हो गया। पर्यावरण से जुड़ा संगठन ग्रीनपीस ने कहा कि चीन की ओर से लगाया गया यह प्रतिबंध उन देशों के लिए सावधान का संकेत है, जो कबाड़ का निर्यात करता है। चीन ने इस कदम की घोषणा जुलाई में ही की थी। प्रतिबंध लागू होने के बाद अब चीन में 24 प्रकार की कबाड़ के प्रवेश पर रोक लग जाएगी। इसकी चार कोटियां हैं- घरेलू प्लास्टिक, अवर्गीकृत कागज, खदान के अपशिष्ट, कपड़ों की रद्दी। ग्रीनपीस के मुताबिक, इस प्रतिबंध से दुनियाभर में एक प्रकार की चेतावनी जाएगी कि कम रद्दी पैदा करने के तरीकों की तलाश की जाए और चीन की तरह देश में ही उसका समुचित उपचार किया हो पाए। ग्रीनपीस के आंकड़ो के मुताबिक 1980 से चीन दुनिया का सबसे बड़ा कबाड़ आयातक रहा है। 2012 में पूरी दुनिया की 56 फीसदी रद्दी का इस्तेमाल चीन में हुआ था। (एजेंसी)
पर्यावरण
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जलाशयों में जल संग्रहण में मामूली कमी
91 जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता 161.993 बीसीएम है, जो देश की अनुमानित कुल जल संग्रहण क्षमता 257.812 बीसीएम का लगभग 63 प्रतिशत है
के 91 प्रमुख जलाशयों में 28 देशदिसम्बर को समाप्त सप्ताह के
दौरान 87.663 बीसीएम (अरब घन मीटर) जल का संग्रहण आंका गया। यह इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 54 प्रतिशत है। 21 दिसंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान यह 56 प्रतिशत था। 28 दिसंबर का संग्रहण स्तर पिछले वर्ष की इसी अवधि के कुल संग्रहण का 95 प्रतिशत तथा पिछले 10 वर्षों के औसत जल संग्रहण का 94 प्रतिशत रहा। केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के अनुसार, इन 91 जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता 161.993 बीसीएम है, जो देश की अनुमानित कुल जल संग्रहण क्षमता 257.812 बीसीएम का लगभग 63 प्रतिशत है। इन 91 जलाशयों में से 37 जलाशय ऐसे हैं, जो 60 मेगावाट से अधिक की स्थापित क्षमता के साथ पनबिजली संबंधित लाभ देते हैं। उत्तरी क्षेत्र के हिमाचल प्रदेश, पंजाब तथा राजस्थान में 18.01 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले छह जलाशय हैं, और इनमें कुल संग्रहण 10.01 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 56 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 47 प्रतिशत थी। पूर्वी क्षेत्र के झारखंड, ओडिशा, पश्चिम
बंगाल एवं त्रिपुरा में 18.83 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 15 जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 13.83 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 73 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 79 प्रतिशत थी। इसी तरह पश्चिमी क्षेत्र के गुजरात तथा महाराष्ट्र में 31.26 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 27 जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 17.27 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 55 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 60 प्रतिशत थी। मध्य क्षेत्र के उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में 42.30 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता
वाले 12 जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 21.78 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 51 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 75 प्रतिशत थी। दक्षिणी क्षेत्र में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना (टीजी), एपी एवं टीजी (दोनों राज्यों में दो संयुक्त परियोजनाएं), कर्नाटक, केरल एवं तमिलनाडु में 51.59 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 31 जलाशयों में कुल उपलब्ध संग्रहण 24.77 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 48 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 36 प्रतिशत थी। पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में जिन राज्यों में जल संग्रहण बेहतर है, उनमें हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, एपी और टीजी (दोनों राज्यों में दो मिश्रित परियोजनाएं) आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु शामिल हैं। पिछले वर्ष की इसी अवधि के लिए पिछले साल की तुलना में कम संग्रहण करने वाले राज्यों में पंजाब, राजस्थान, झारखंड, ओडिशा, गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना शामिल हैं। (एजेंसी)
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साइंस एंड टेक्नोलॉजी
08 - 14 जनवरी 2018
भारत 31 उपग्रह लॉन्च करेगा
इनमें से 28 उपग्रह अमेरिका के और पांच अन्य देशों के होंगे
भा
रत 10 जनवरी को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित अपने अंतरिक्ष केंद्र से पृथ्वी अवलोकन उपग्रह काटरेसैट सहित 31 उपग्रहों का प्रक्षेपण करेगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के निदेशक देवी प्रसाद कार्णिक ने बताया, ‘हमने एक साथ काटरेसैट और अन्य उपग्रहों को ले जाने वाले रॉकेट को छोड़ने का समय सुबह 9.30 बजे निर्धारित किया है। इनमें से 28 उपग्रह अमेरिका के और पांच अन्य देशों के होंगे।’ 2018 के इस पहले अंतरिक्ष अभियान के तहत ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवीसी440) के जरिए 31 उपग्रह
2018 के इस पहले अंतरिक्ष अभियान के तहत ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी-सी440) के जरिए 31 उपग्रह छोड़े जाएंगे
छोड़े जाएंगे। इस अभियान से चार महीने पहले 31 अगस्त को इसी तरह का रॉकेट पृथ्वी की निचली कक्षा में भारत के आठवें नौवहन उपग्रह को पहुंचाने में विफल रहा था। उन्होंने कहा, ‘दूसरी श्रृंखला का छठा काटरेसैट और अन्य उपग्रहों को रॉकेट के साथ अंतरिक्ष केंद्र में एकीकृत कर दिया
गया है। मिशन लांच बोर्ड दो दिन पूर्व उल्टी-गिनती के तहत रॉकेट के प्रस्थान का समय तय करेंगे।’ इस मिशन में काटरेसैट 2 के अलावा भारत का एक नैनो उपग्रह और एक माइक्रो उपग्रह भी लॉन्च किया जाएगा। एक निगरानी उपग्रह के रूप में काटरेसैट शहरी व ग्रामीण नियोजन, तटीय भूमि उपयोग, सड़क नेटवर्क की निगरानी आदि के लिए महत्वपूर्ण आंकड़े उपलब्ध कराएंगे। काटरेसैट-2 श्रृंखला के पहले दो उपग्रहों को यहां से 90 किलोमीटर दूर चेन्नई से 15 फरवरी व 23 जून को लॉन्च किया गया था। अधिकारी के अनुसार, ‘हमने अगले साल के लिए पहली छमाही में पांच-छह उपग्रहों को लॉन्च करने की योजना बनाई है, जिनमें दो जीएसएटी6ए और जीएसएटी-29 उन्नत संचार उपग्रह भी शामिल हैं।’ इसके अलावा अंतरिक्ष एजेंसी की अपने दूसरे चंद्र मिशन (चंद्रयान-2) को भी लॉन्च करने की तैयारी है। (एजेंसी)
अल्फा सेंटोरी पर धरती जैसे छोटे ग्रह
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मारे ग्रह के सबसे करीबी तारा निकायअल्फा सेंटोरी पर धरती जैसे छोटी सी दुनिया बसी हो सकती है, जिसकी पहले अनदेखी की जाती रही है। एक नए अध्ययन में यह दावा किया गया है। अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी के खगोलविदों ने अल्फा सेंटोरी तारा निकाय पर नए सिरे से अध्ययन किया और वहां निवास करने योग्य ग्रहों की खोज को विस्तृत करने के नए तरीकों का पता लगाया। इस अध्ययन में इस तारा निकाय में बड़ी संख्या में बड़े ग्रहों की मौजूदगी से इनकार किया गया है, जिसका दावा इससे पहले के अध्ययनों में किया जाता रहा है। प्रोफेसर डेबरा फिशर ने बताया, 'ब्रह्मांड ने हमें बताया है कि ग्रहों के सबसे आम प्रकार छोटे ग्रह हैं और हमारा अध्ययन दिखाता है कि इसी तरह के ग्रह अल्फा सेंटोरी ए और बी के ईर्द-गिर्द घूम रहे हो सकते हैं। अनुसंधानकर्ताओं ने निश्चित किया कि अल्फा सेंटोरी ए में परिक्रमा कर रहे ग्रह धरती के द्रव्यमान से 50 गुणा कम द्रव्यमान वाले ग्रह हैं, जबकि अल्फा सेंटोरी बी के ईर्द गिर्द घूम रहे ग्रहों का द्रव्यमान धरती के द्रव्यमान से आठ गुणा कम है। यह अध्ययन ऐस्ट्रोनॉमिकल जर्नल पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। (एजेंसी)
यूट्यूब से करोड़ों कमाई करने वाला बच्चा रेयान नाम के इस बच्चे ने तीन साल की उम्र से खिलौनों का रिव्यू करना शुरू कर दिया था
रे
एसएसबी ब्यूरो
यान की उम्र महज 6 वर्ष है और वह यूट्यूब पर खिलौनों का रिव्यू करता है। अपने अनोखे अंदाज से वह दुनियाभर के बच्चों को अपना दीवाना बना बैठा है। लोकप्रियता के साथ ही रेयान कमाई में भी काफी अव्वल है। 2016-17 में रेयान को लगभग 11 मिलियन डॉलर यानी कि 77 करोड़ रुपए के आसपास की कमाई हुई है। रेयान यह काम तब से कर रहा है जब वह महज तीन साल का था। 2016 में रेयान के यूट्यूब चैनल पर 10 लाख फॉलोअर्स हो गए थे। उसके एक साल बाद यह संख्या बढ़कर 5 लाख हो गई। इन दिनों रेयान के 1 करोड़ सब्सक्राइबर हैं। उसे फोर्ब्स मैग्जीन में सबसे ज्यादा कमाने वाले यूट्यूबर्स में आठवां स्थान मिला है। हम सभी अपने बचपन में जाएं और सोचें कि उस दौर के चाइल्ड सेलिब्रिटीज कौन हुआ करते थे, तो हम पाते हैं कि फिल्मों में काम करने वाले बच्चे या किसी शो के लिए काम करने वाले बच्चे ही ऐसे थे जिन्हें नाम, शोहरत और पैसे सब कुछ
काफी कम उम्र में मिल जाता था। लेकिन आज का हाल काफी बदल चुका है। आज बच्चे हों या बड़े, कोई भी प्रसिद्ध होने के लिए टीवी और फिल्मों का मोहताज नहीं है। इंटरनेट ऐसा पिटारा है जहां पर सभी के लिए कुछ न कुछ होता ही है। आज के जमाने में बच्चों के लिए फिल्म और टीवी नहीं इंटरनेट भी काफी कुछ सीखने का विकल्प होता है। लेकिन सीखने के साथ ही कुछ बच्चे इंटरनेट पर सेलिब्रिटी बनकर जमकर प्रसिद्धि हासिल कर रहे हैं। ऐसे ही एक बच्चा है रेयान, जो सिर्फ 6 साल की उम्र में ही यूट्यूब स्टार बन गया है। रेयान के मम्मी पापा जब उसके लिए खिलौने लेकर आते थे तो वह खिलौनों को बॉक्स से निकालता था। इस दौरान वे उसका वीडियो भी बना लेते थे। बाद में ये वीडियो यूट्यूब पर अपलोड किए जाने लगे। उसके वीडियो को इतना पसंद किया
जाने लगा कि वह स्टार बन गया। अब एक कॉमेडी चैनल ने उसके साथ करार किया है और उसके वीडियो को टीवी पर भी दिखाया जाएगा। हालांकि शुरुआत में 2015 में जब रेयान ने पहला विडियो अपलोड किया था तो बहुत कम लोगों ने उसे देखा था। लेकिन धीरे-धीरे उसके वीडियो वायरल होते गए और वह एक सेलिब्रिटी बन गया।
यूट्यूब चैनल पर रेयान के 1 करोड़ सब्सक्राइबर हैं। उसे फोर्ब्स मैग्जीन में सबसे ज्यादा कमाने वाले यूट्यूबर्स में आठवां स्थान मिला है
सिर्फ छह महीने के बाद जनवरी, 2016 में रेयान के यूट्यूब चैनल पर 10 लाख फॉलोअर्स हो गए थे। उसके एक साल बाद यह संख्या बढ़कर 5 लाथ हो गई। अभी जब यह साल खत्म होने को है, तो रेयान के पास 1 करोड़ सब्सक्राइबर हैं। अगर देखा जाए तो रेयान का काम कितना दिलचस्प है। उसे खिलौने के बॉक्स खोलने और उसके साथ खेलने के पैसे मिल रहे हैं। इतना ही नहीं रेयान के जिन वीडियोज के व्यूज ज्यादा होते हैं, उस वीडियो में दिखाए गए खिलौने की डिमांड भी बढ़ जाती है।
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साइंस एंड टेक्नोलॉजी
इलेक्ट्रिक स्कूटर्स का रहेगा जलवा
प्रदूषण पूरी दुनिया की तरह भारत में भी एक बड़ा संकट है। नए साल में ऐसे कई इलेक्ट्रिक दुपहिया वाहन बाजार में आएंगे, जिससे प्रदूषण पर लगाम लगाया जा सकता है
रत में इलेक्ट्रिक कारों को लेकर सरकार काफी जोर लगा रही है। प्रदूषण को देखते हुए कहा जा सकता है कि इलेक्ट्रिक वाहनों का ही भविष्य है। ऐसे में इलेक्ट्रिक स्कूटर्स को लेकर भी बाजार में क्रेज बढ़ना शुरू हो गया है। यही वजह है कि ऑटो कंपनियां नए इलेक्ट्रिक स्कूटर्स के साथ भारत में कदम रख रही हैं।
जेनजी ई-स्कूटर
महिंद्रा एंड महिंद्रा की जेनजी रेंज के इलेक्ट्रिक स्कूटर्स और ई-बाइक्स भारत में 2018 के आखिर तक आने की उम्मीद है। बताते चलें कि जेनजी अमेरिका की दुपहिया निर्माता कंपनी है, जिसका स्वामित्व महिंद्रा के पास है। यह कंपनी अभी फिलहाल अमेरिकी बाजारों में ही अपने प्रॉडक्ट्स बेचती है। हालांकि, जेनजी ने यह साफ नहीं किया है कि कंपनी भारत में अपने कौन से प्रॉडक्ट्स लांच करेगी। जेनजी अभी 2.0 और 2.0 s इलेक्ट्रिक स्कूटर्स और ई-बाइक्स बेचती है, जो कि अमेरिकी बाजार में स्पॉर्ट और री-क्रिएशनल नाम से बिकते हैं।
हीरो डुएट-ई
हीरो ने पहली बार डुएट ई फुली इलेक्ट्रिक स्कूटर को 2016 ऑटो एक्सपो में बतौर
कांसेप्ट मॉडल पेश किया था। हीरो डुएट-ई हीरो के स्टैंडर्ड डुएट स्कूटर पर बेस्ड होगा और इसका डिजाइन, सस्पेंशन आदि लगभग सेम ही रहेगा। हीरो डुएट-ई को भारत में इस साल लांच किए जाने की उम्मीद है। इसमें लगा मोटर 6.7 हॉर्सपावर और 14 न्यूटन मीटर का टॉर्क जेनरेट कर सकता है। सिंगल इसमें ज्यूपिटर के स्टैंडर्ड मॉडल की तस्वीर लगी है। इलेक्ट्रिक मॉडल की तस्वीर अभी सार्वजनिक नहीं की गई है।
हीरो लीप
फुल चार्ज पर हीरो डुएट-ई 65 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकता है, ऐसा कंपनी का दावा है।
ज्यूपिटर-ई
टीवीएस मोटर कंपनी जल्द ही अपना नया इलेक्ट्रिक स्कूटर लांच करने की तैयारी में है। इस नए स्कूटर का नाम ज्यूपिटर-ई हो सकता है। टीवीएस 2018 में इस नए इलेक्ट्रिक स्कूटर को लांच कर सकती है। टीवीएस के इस नए स्कूटर को कई बार टेस्टिंग के दौरान स्पॉट किया जा चुका है। इसमें संभावित रूप से ज्यूपिटर स्कूटर का ही डिजाइन और सस्पेंशन रहेगा। इलेक्ट्रिक ज्यूपिटर की कीमत स्टैंडर्ड मॉडल से अधिक होने की उम्मीद है।
हीरो के खाते से यह दूसरा स्कूटर होगा, जो कि इलेक्ट्रिक होगा। दरअसल, यह पहला इलेक्ट्रिक हाइब्रिड स्कूटर होगा, जो कि किसी भारतीय कंपनी का होगा। 2012 ऑटो एक्सपो में पहली बार शोकेस किए गए इस स्कूटर के कांसेप्ट मॉडल के बाद से ही इसकी लांचिंग का इंतजार किया जा रहा था। इसमें लिथियम आयन बैटरीज होंगी, जो कि 8 किलोवाट की ताकत जेनरेट करेंगी। इसमें 124सीसी का इंजन भी दिया गया गया है।
हीरो लीप में अधिकतम तीन लीटर पेट्रोल भरा जा सकेगा और इसकी टॉप स्पीड 100 किलोमीटर प्रति घंटा होगी। इस इलेक्ट्रिक हाइब्रिड स्कूटर में हीरो ने एलईडी लैंप और ब्रेम्बो 2 पिस्टर 240 एमएम डिस्क ब्रेक भी देने की बात कही है।
अथर एस-340
बेंगलुरु स्थित भारतीय कंपनी अथर एनर्जी का यह नया इलेक्ट्रिक स्कूटर भारत में लांच किया जाएगा। कंपनी ने अथर एस-340 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस स्कूटर को सार्वजनिक किया थ। यह कंपनी का प्रीमियम प्रॉडक्ट होगा और इसकी कीमत होंडा ऐक्टिवा और पियाजियो वेस्पा स्कूटर के बीच की होगी। अथर एस-340 स्कूटर में इलेक्ट्रिक मोटर होगा और इसमें लिथियम आयन बैटरीज भी होंगी, जो कि इम्पोर्ट की जाएंगी। इसका इलेक्ट्रिक मोटर 6.7 हॉर्सपावर की ताकत और 14 न्यूटन मीटर का टॉर्क जेनरेट कर सकेगा। इसमें इकॉनमी और स्पॉर्ट राइडिंग मोड्स का भी ऑप्शन होगा। एल्युमिनियम चेसिस पर बने इस स्कूटर का वजन बिना ईंधन के तकरीबन 90 किलोग्राम होगा।
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अंतरराष्ट्रीय
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अभिभावकों को बच्चों के ई-संदेश पढ़ने का अधिकार स्पेनिश कोर्ट ने माता-पिता के अधिकारों को निजता कानून के ऊपर वरीयता दी
भारत को 10 लाख डॉलर की बचत
अमेरिका का संयुक्त राष्ट्र के बजट में पांच फीसदी कटौती का प्रस्ताव
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आईएएनएस
रत अगले साल संयुक्त राष्ट्र को किए जानेवाले अनिवार्य योगदान में से 10 लाख डॉलर की बचत कर सकता है, क्योंकि अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र के बजट में पांच फीसदी कटौती का प्रस्ताव किया है। वर्ष 2017 में संयुक्त राष्ट्र के बजट में भारत का योगदान कुल 2.04 करोड़ डॉलर था। इसमें पांच फीसदी की कटौती से लगभग 10.23 लाख डॉलर की बचत होगी। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक असामान्य बैठक में साल 2018 और 2019 के लिए 5.39 अरब के दो साल के नियमित बजट को मंजूरी दी थी। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने कहा कि यह साल 2016 और 2017 के बजट से पांच फीसदी या 28.6 करोड़ डॉलर कम है। उन्होंने कहा कि यह 2018 और 2019 के मूल बजट से 19.3 करोड़ डॉलर कम है, जिसका गुटेरेस ने भी प्रस्ताव किया था। संयुक्त राष्ट्र महासभा एक बार में दो साल का बजट पारित करती है, लेकिन साल 2020 से परीक्षण आधार पर सालाना बजट की प्रणाली लागू की जाएगी। वहीं, संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों के लिए अलग बजट पारित किया जाता है, जिसका आकलन विभिन्न समयावधि के लिए अलग-अलग किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के सामान्य बजट में विभिन्न देशों के योगदान का एक जटिल फार्मूला है, जिसमें प्रति व्यक्ति आय और सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर गणना की जाती है। भारत का संयुक्त राष्ट्र के बजट में योगदान फिलहाल 0.737 फीसदी
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है, लेकिन भविष्य में अर्थव्यवस्था में सुधार पर इस योगदान में बढ़ोत्तरी हो सकती है। संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की स्थाई प्रतिनिधि निक्की हेली ने बजट में कटौती को अमेरिका की सफलता करार देते हुए और इसका श्रेय लेते हुए कहा, ‘हमने संयुक्त राष्ट्र के प्रबंधन और समर्थन कार्यो को घटाया है और पूरे विश्व ने हमारा साथ दिया है और संयुक्त राष्ट्र की पूरी प्रणाली में अधिक अनुशासन और जवाबदेही डाली है।’ उन्होंने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र की अक्षमता और फिजूलखर्ची जगजाहिर है।’ संयुक्त राष्ट्र के बजट में अमेरिका की हिस्सेदारी सबसे अधिक 22 फीसदी है और साल 2017 में अमेरिका ने कुल 61.1 करोड़ डॉलर का योगदान किया था। हालांकि अमेरिकी राज्य की पूर्व गवर्नर के अनुभव के साथ हेली ने अपनी बजट विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए, वार्ता के दौरान कई अन्य देशों के साथ ही गुटेरेस के साथ भी कठिन सौदेबाजी की और बजट में कटौती के लिए राजी किया। संयुक्त राष्ट्र के सबसे बड़े योगदानकर्ता के रूप में इस कटौती का सबसे ज्यादा फायदा अमेरिका को होगा, लेकिन इसके अलावा सभी देशों को उनके मूल्यांकन दर के अनुपात में फायदा होगा। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह विदेश विभाग के बजट में कटौती करना चाहते हैं, जिससे संयुक्त राष्ट्र को भुगतान किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि बजट में कटौती का सभी क्षेत्रों पर असर होगा, जिसमें संविदात्मक सेवाओं, फर्नीचर व उपकरण, सलाहकारों और यात्रा में कटौती के साथ ही विशेष राजनीतिक अभियानों के लिए भी वित्तपोषण में कमी आएगी।
हार्वे राहत कोष में काफी इजाफा
अमेरिका के टेक्सास में आए तूफान हार्वे से काफी क्षति हुई थी
मेरिका के ह्यूस्टन शहर के बाढ़ प्रभावितों की मदद के लिए तूफान हार्वे राहत कोष में 2.76 करोड़ डॉलर और इकट्ठा हुए हैं। इस राशि के जुड़ने के बाद अब हार्वे राहत कोष के अंतर्गत प्रभावितों की सहायता के लिए कुल 6.44 करोड़ डॉलर जमा हो गए हैं। अमेरिका के टेक्सास में बीते
वर्ष 25 अगस्त को आया तूफान हार्वे से काफी क्षति हुई थी। यह गत 50 वर्षो में यहां आया अब तक का सबसे शक्तिशाली तूफान था। तूफान से यहां 480 किलोमीटर के क्षेत्र में हजारों लोग विस्थापित हुए और करीब 200,000 घर क्षतिग्रस्त हो गए थे। (एजेंसी)
की एक अदालत ने माता-पिता की स्पेनजिम्मेदारियों और अधिकारों को निजता
कानून के ऊपर वरीयता देते हुए आदेश दिया है कि माता-पिता या अभिभावक अपने बच्चों की सोशल मीडिया पर सारी गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं और व्हाट्स ऐप्प पर उनके संदेश भी पढ़ सकते हैं। इस आदेश से दो बच्चों के पिता, जो तलाकशुदा हैं, को अपने बच्चों के व्हाट्स ऐप्प संदेश पढ़ने का अधिकार पाने में सफलता मिली। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि मातापिता को अपने नाबालिग बच्चों की सोशल मीडिया गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए जिससे किसी अनचाहे खतरे से बचा जा सके। एक अज्ञात व्यक्ति पर उसकी पूर्व पत्नी ने मामला दर्ज कराया था कि
उसने अपनी बेटी के व्हाट्स ऐप्प संदेश पढ़कर उसके निजता के अधिकार का हनन किया है। रिपोर्ट के अनुसार स्पेन के पोन्टेवेंद्रा शहर की अदालत ने 26 दिसंबर को अपना आदेश सुनाते हुए कहा कि अभिभावकों को उनके नाबालिग बच्चों की इंटरनेट गतिविधियों की निगरानी करनी चाहिए। मामला दायर करने वाली मां ने कहा कि उनके दोनों बच्चों ने उन्हें बताया कि उनके पिता ने उन्हें कमरे में बंद करके उनकी लड़की के व्हाट्स ऐप्प संदेशों के बारे में पूछताछ की थी। इससे पहले एक निचली अदालत ने बच्चों की मां का समर्थन करते हुए कहा था कि यह निजता के अधिकार का हनन है और इसके लिए चार वर्ष तक के कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई जा सकती है। रिपोर्ट के अनुसार उच्च अदालत के न्यायाधीश ने कहा कि माता-पिता दोनों के पास उनके बच्चों की निगरानी करने का अधिकार है। (एजेंसी)
पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी बना राष्ट्रपति जॉर्ज विया 60 फीसदी मतों के साथ लाइबेरिया के नए राष्ट्रपति निर्वाचित हुए हैं
पू
र्व फुटबॉल खिलाड़ी जॉर्ज विया लाइबेरिया के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए हैं। हाल में संपन्न चुनाव के सभी वोटों की गिनती के बाद विया अपने प्रतिद्वंदी जोसेफ बोआकाई से 60 फीसदी से ज्यादा मतों से आगे रहे। जैसे ही विया की जीत की खबर सामने आई, उनके समर्थकों ने राजधानी मोनरोविया
में जश्न मनाना शुरू कर दिया। विया, एलेन जॉनसन सरलीफ की जगह लेंगे। चुनाव परिणाम की घोषणा होने के बाद विया ने ट्वीट किया, ‘मेरे साथी लाइबेरिया के नागरिकों, मैं समूचे देश की भावना को गहराई से महसूस कर रहा हूं।’ उन्होंने कहा, ‘मुझे जो जिम्मेदारी मिली है, मैं उसका महत्व समझता हूं।’ विया अफ्रीका के एकमात्र ऐसे फुटबॉलर हैं जो फीफा वर्ल्ड प्लेयर ऑफ द ईयर और प्रतिष्ठित बैलन डीऑर पुरस्कार के विजेता हैं। वर्ष 2002 में फुटबॉल से संन्यास लेने के बाद विया ने राजनीति में प्रवेश किया। (एजेंसी)
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शोध
8 ग्रहों वाला सोलर सिस्टम
नासा ने 2,545 प्रकाश वर्ष दूर एक ऐस सौर मंडल का पता लगाया है, जो हामरे सौर मंडल जैसा ही है
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मेरिकी स्पेस एजेंसी नासा को एक बड़ी सफलता मिली है। नासा के केपलर स्पेस टेलिस्कोप ने हमारे जितना बड़ा ही एक और सोलर सिस्टम ढूंढ निकाला है। दरअसल, यह स्टार सिस्टम पहले ही खोजा गया था, अब वहीं पर आठवें ग्रह की भी पहचान कर ली गई है। ऐसे में सूर्य या उस जैसे किसी स्टार की परिक्रमा करने के मामले में केपलर-90 सिस्टम की तुलना हमारे सौरमंडल से की जा सकती है। खास बात यह है कि इस खोज में गूगल की ओर से आर्टिफिशल इंटेलिजेंस की मदद ली गई, जो इंसानों के रहने योग्य ग्रहों की तलाश करने में काफी मदद करेगा। केपलर-90 सोलर सिस्टम के इस आठवें ग्रह का नाम केपलर 90 आई है। गूगल और नासा के इस प्रोजेक्ट
द्वारा हमारे जैसे ही सौर मंडल की खोज से इस बात की उम्मीद बढ़ी है कि ब्रह्मांड में किसी ग्रह पर ऐलियन मौजूद हो सकते हैं। दिलचस्प है कि केपलर-90 के ग्रहों की व्यवस्था हमारे सौर मंडल जैसी ही है। इसमें भी छोटे ग्रह अपने स्टार से नजदीक हैं और बड़े ग्रह उससे काफी दूर मौजूद हैं। नासा के अनुसार, इस खोज से पहली बार स्पष्ट होता है कि दूर कहीं स्टार सिस्टम में हमारे जैसे ही परिवार मौजूद हो सकते हैं। यह सौर मंडल हमसे करीब 2,545 प्रकाश वर्ष दूर है। टेक्सस यूनिवर्सिटी के नासा सगन पोस्टडॉक्टरल फेलो एवं खगोल विज्ञानी एंड्रयू
वांडबर्ग ने कहा, 'नया ग्रह पृथ्वी से करीब 30 फीसदी बड़ा माना जा रहा है। हालांकि यह ऐसी जगह नहीं है, जहां आप जाना चाहेंगे।' उन्होंने बताया कि यहां काफी चट्टानें हैं और वातावरण
भी घना नहीं है। सतह का तापमान काफी ज्यादा है और इससे लोग झुलस सकते हैं। वांडबर्ग के मुताबिक सतह का औसत तापमान करीब 800 डिग्री फारनहाइट हो सकता है। (एजेंसी)
सौर हवाओं के प्रभावों से सुरक्षित है मंगल
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सौर मंडल का खुला रहस्य
एक नए अध्ययन में पता चला है कि एक विशालकाय लंबे समय से मृत तारे के आसपास हवा के बुलबुले बनने से हमारा सौर मंडल बना
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भी तक यह रहस्य बना हुआ था कि हमारे सौर मंडल का जन्म कैसे हुआ। एक नए अध्ययन में पता चला है कि एक विशालकाय लंबे समय से मृत तारे के आसपास हवा के बुलबुले बनने से हमारा सौर मंडल बना। ब्रह्मांड के बारे में कई रोचक खोजें होने के बावजूद वैज्ञानिक अब भी इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि आखिरकार हमारे सौर मंडल के जन्म की कहानी क्या है। आम तौर पर यह कहा जाता है कि एक सुपरनोवा के समीप अरबों वर्ष पहले हमारा सौर मंडल बना। खगोलशास्त्र में सुपरनोवा किसी तारे के भयंकर विस्फोट को कहते हैं। नए अध्ययन के मुताबिक, सौरमंडल का जन्म वॉल्फ रायेट स्टार नाम के एक विशालकाय तारे
से शुरु होता है, जो सूर्य के आकार से 40 से 50 गुना अधिक बड़ा है। जैसे ही वॉल्फ रायेट तारे का आकार फैलता है तो इसके चारों ओर से गुजरने वाली तारकीय हवा एक गहरे खोल के साथ बुलबुले बनाती है। अमेरिका में शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर निकोलस डॉफास ने कहा, ‘ऐसे बुलबुले का खोल तारों को पैदा करने के लिए सही स्थान है, क्योंकि धूल और गैस इसके अंदर फंस जाते हैं जहां वे तारों में बदल सकते हैं।’ एस्ट्रोफिजिकल पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार ऐसी तारकीय नर्सरियों में सूरज के जैसे एक से 16 फीसदी तारे बन सकते हैं। अंतरिक्ष की बाहरी कक्षा में धूल और गैस के बादल को तारकीय नर्सरी कहते हैं जहां धूल और गैस के संपर्क में आने से तारे बनते हैं।
धरती की तरह दो चुंबकीय ध्रुवों की गैरमौजूदगी के वाबजूद मंगल ग्रह पर सौर हवाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता
गल ग्रह का वायुमंडल सौर हवाओं के प्रभावों से पूरी तरह सुरक्षित है। धरती की तरह दो चुंबकीय ध्रुवों की गैरमौजूदगी के वाबजूद इसपर सौर हवाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है। वर्तमान में मंगल ग्रह एक ठंडा और शुष्क ग्रह है, जिसकी सतह पर धरती के वायुमंडलीय दवाब से एक प्रतिशत कम दवाब है। हालांकि ग्रह की कई भूगर्भीय विशेषताएं यह दिखाती हैं कि यहां करीब तीन से चार अरब साल पहले एक हाइड्रोलॉजिकल चक्र सक्रिय था। उस वक्त एक सक्रिय हाइड्रोलॉजिकल चक्र को ज्यादा गर्म जलवायु और एक घने वायुमंडल की जरूरत रही होगी जो एक बेहद गहरा ग्रीनहाउस प्रभाव पैदा कर सकने में सक्षम हो। एक आम कल्पना में माना जाता है कि सौर हवाओं ने मंगल के वायुमंडल को धीरे-धीरे खत्म कर दिया और ग्रीनहाउस प्रभाव को बढ़ा दिया होगा जिससे अंतत: हाइड्रोलॉजिकल चक्र नष्ट हो गया
हो। डन की उमिया यूनिवर्सिटी के रॉबिन रैमस्टेड ने बताया कि मंगल पर धरती की तरह चुंबकीय ध्रुव नहीं होते, लेकिन सौर हवाएं ऊपरी वायुमंडल में तरंगे बनाती हैं जिससे कि यहां एक तरह का चुंबकीय क्षेत्र (इंड्यूस्ड मैग्नेटोस्फेयर) बन जाता है। उन्होंने बताया कि लंबे अर्से तक यह माना जाता रहा है कि स्वत: पैदा नहीं होने वाला यह चुंबकीय क्षेत्र मंगल के वायुमंडल को सुरक्षित रखने में पर्याप्त नहीं है। रैमस्टेड ने कहा कि हालांकि हमारे प्रमाण कुछ और दर्शाते हैं। पूर्व की अवधाराणाओं के उलट यह दर्शाते हैं कि यह चुंबकीय क्षेत्र भी मंगल के वायुमंडल को सौर हवाओं के प्रभाव से सुरक्षित रखता है। (एजेंसी)
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विविध
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बाहरी खेलों से बच्चों की दृष्टि अच्छी
अगर बच्चे नियमित सूरज की रोशनी में खेलते हैं, तो उनकी दृष्टि कमजोर होने से बच सकती हैं
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पके बच्चे अगर स्मार्टफोन पर घंटों समय बिताते हैं, गेम खेलते रहते हैं और कम्प्यूटर या टैबलेट पर अधिक समय काम करते हैं, तो उनकी आंखों की रोशनी कमजोर पड़ने की संभावना ज्यादा रहती है। मगर चिंता छोड़िए और उन्हें खेलने के लिए बाहर भेजिए। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर बच्चे हर रोज कम से कम दो घंटे बाहर सूरज की रोशनी में खेलते हैं, तो उनकी दृष्टि कमजोर होने से बच सकती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, इस परिस्थिति का कारण है आंखों के लिए प्राकृतिक रोशनी की कमी। लंदन में मूरफील्डस आई हॉस्पिटल में ओप्थाल्मोलॉजिस्ट की सलाहकार एनेग्रेट डाल्माननूर ने कहा, ‘इसमें मुख्य कारण सीधे तौर पर प्रत्यक्ष सूर्य के प्रकाश के संपर्क में कमी की संभावना है। जो बच्चे अधिक पढ़ते हैं, अधिक रूप से कम्प्यूटर, स्मार्टफोन और टैबलेट का इस्तेमाल करते हैं और जिन्हें बाहर खेलने-कूदने का कम अवसर मिलता है, उनमें यह कमी साफ नजर आती है।’ अभिभावकों के लिए बच्चों को इन उपकरणों के इस्तेमाल से रोकना बड़ा काम है। इसमें विशेषज्ञों
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गरीबों के बीच खुशियां बांटता बैंक हलद्वानी में गरीबों के बीच खशियां बांटने के लिए एक अनोखा बैंक खोला गया है
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का कहना है कि बच्चों को जितना हो सके, उतने अधिक समय के लिए बाहर खेलने के लिए लेकर जाएं। लंदन के किंग्स कॉलेज के प्रोफेसर क्रिस हेमंड ने कहा, ‘हमें पता है कि आज के समय में
निकटदृष्टि दोष (मायोपिया)
स रोग में पास की नजर कमजोर होती है। इसमें पास की चीजें धुंधली दिखाई देती हैं। इसमें रोशनी आंख द्वारा अपवर्तन के बाद रेटिना के पहले ही प्रतिबिंब बना देता है (न कि रेटिना पर)। इस कारण दूर की वस्तुओं का प्रतिबिंब स्पष्ट नहीं बनता (आउट ऑफ फोकस) और चींजें धुंधली दिखती हैं।
‘लाइफ लाइन एक्सप्रेस’ में सेहत की फिक्र
बच्चों के बीच निकटदृष्टि दोष की समस्या आम बात हो गई है।’ हेमंड ने आगे बताया, ‘निकटदृष्टि दोष को रोकने का सही तरीका बाहर अधिक से अधिक समय बिताना है। इसमें दो घंटे बाहर बिताने से बच्चों में इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है।’ इसके साथ ही बच्चों को ओमेगा-3 की डाइट देना जरूरी है। इसके साथ ही उन्हें विटामिन-ए, सी और ई की भी जरूरत होगी, जो उनकी आंखों के लिए अच्छी होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें बच्चों की नियमित रूप से आंखों की जांच भी मददगार साबित हो सकती है। (आईएएनएस)
त्तराखंड के हल्द्वानी जिले में एक अनोखा बैंक खुला है, लेकिन यहां रुपए और जेवरात नहीं, बल्कि गरीबों के लिए खुशियां जमा की जा रही हैं। इस वजह से इसका नाम है- खुशियों का बैंक। दरअसल हल्द्वानी जिले के निवासी प्रवीण भट्ट ने समाज में गरीबों के लिए एक अनोखा बैंक खोला है, जहां इस वर्ग के लिए पुराने ऊनी कपड़े जमा किए जा रहे हैं। यह वह वर्ग है जो सरकारी योजनाओं और विकास कार्यों के वंचित रह जाता है। इस बैंक में आप अपने पुराने और नए कपड़ों को दान कर सकते हैं, जिसके बाद यह कपड़े गरीबों के बीच बांट दिया जाता है। प्रवीण का यह आइडिया स्थानीय लोगों को काफी पसंद आ रहा है और सभी जमकर उन्हें इस काम में सपोर्ट कर रहे हैं। प्रवीण का कहना है कि इस बैंक को खोलने के पीछे का उद्देश्य मजदूरों के साथसाथ हमारे गरीब भाईयों को आरामदायक जिंदगी सुनिश्चित करना था। मुझे इस मुहिम में बड़ी संख्या में लोगों का समर्थन मिल रहा है। यहां तक कि मुझे देहरादून और दिल्ली से भी डोनेशन मिल रहा है। (एजेंसी)
उन्होंने कहा कि यह ट्रेन गरीबों और वंचितों का उत्तम इलाज करते बहुत लोकप्रियता पा चुकी है। इस ट्रेन में अब तक 10 लाख से अधिक रोगियों का इलाज 13 हजार रोगियों का सफल ऑपरेशन किया गया है। उन्होंने बताया कि अब तक यहां दो सौ कैंसर के मरीजों का पंजीकरण किया गया, जिसमें 108 महिलाएं भी हैं। उन्होंने बताया कि इस ट्रेन में अब तक 10 लाख से अधिक रोगियों का इलाज 13 हजार रोगियों का सफल ऑपरेशन किया गया है। रेल राज्यमंत्री ने कहा कि यह सुविधा बिड़ला समूह की ओर से रेल विभाग और इंपैक्ट इंडिया फाउंडेशन के माध्यम से यह चिकित्सा सुविधा गाजीपुर की जनता के लिए मुहैया कराई गई है।
उन्होंने कहा कि गाजीपुर में चिकित्सा सुविधा की स्थिति अच्छी नहीं है। इसीलिए जनवरी में दो सचल चिकित्सा वाहन जिलें के ग्रामीण क्षेत्रों में दौड़ने लगेगी। जिससे गरीबों को इलाज की अधिक सुविधा मिलने लगेगी। उन्होंने कहा कि वह लगातार प्रयास कर रहे है कि जिलें वालों को चिकित्सा की आधुनिक सुविधा प्राप्त हो। सिन्हा के पहुंचने पर यहां रेलवे सुरक्षा बल के जवानों की ओर से गार्ड ऑफ आर्नर देकर स्वागत किया गया। इस समारोह में बोलते गाजीपुर नगर पालिका की अध्यक्ष सरिता अग्रवाल ने कहा कि वह यहां की जनता की सुविधा के लिए हर प्रयास करने के लिए पूरी तरह तैयार है।
आम जनता को स्वास्थ्य सुविधा दिलाने का अनूठा प्रयास मानी जाने वाली ‘लाइफ लाइन एक्सप्रेस’ में चिकित्सा कार्य का उद्घाटन
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एसएसबी ब्यूरो
ल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा ने आम जनता को स्वास्थ्य सुविधा दिलाने का अनूठा प्रयास मानी जाने वाली ‘लाइफ लाइन एक्सप्रेस’ में चिकित्सा कार्य का उद्घाटन किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि इस ट्रेन ने जनता के बीच स्वास्थ्य के प्रति चेतना पैदा की है और अब तक जो लोग चिकित्सा सेवा से वंचित रहे हैं, उनके लिए यह अच्छा अवसर है। सिन्हा ने प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके आशीर्वाद से गाजीपुर के लोगों को लाइफ लाइन एक्सप्रेस दो साल बाद दूसरी बार जिले में आई है। पिछली बार आठ हजार मरीजों का इलाज इसके माध्यम से हुआ था। सिन्हा ने विशेष
ट्रेन में चिकित्सा कार्य का उद्घाटन करने के बाद कहा कि गरीबों और वंचितों के बीच किसी दूसरे प्रयास को इतनी सराहना नहीं मिली जितनी लाइफ लाइन एक्सप्रेस ने हासिल की है। इसने सामान्य जनता के बीच स्वास्थ्य के प्रति चेतना पैदा की है। लाइफ लाइन एक्सप्रेस अगली 18 जनवरी तक गाजीपुर में रहेगी। उसके बाद वह देश के अन्य हिस्सों में जाएगी। यहां इस ट्रेन में पिछले तीन दिन से मरीजों के पंजीयन का कार्य किया जा रहा है। रेल राज्यमंत्री ने कहा कि अब तक चिकित्सा सेवा से जो वंचित रहे हैं, उनके लिए यह रेलगाड़ी अच्छा अवसर है। यहां मिलने वाली सुविधाओं के बारे में लोगों को जागरूक किया जाए ताकि संचार साधनों से वंचित लोग भी इसका लाभ उठा सकें।
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हरि काका बन गए संजीव
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एसएसबी ब्यूरो
जीव कुमार का वास्तविक नाम हरिहर जेठालाल जरीवाला था। सूरत में जन्म लेकर आरंभिक सात वर्ष वहां गुजारने के बाद संजीव कुमार का परिवार मुंबई शिफ्ट हो गया। अभिनय का शौक जागने पर संजीव कुमार ने इप्टा के लिए स्टेज पर अभिनय करना शुरू किया इसके बाद वे इंडियन नेशनल थिएटर से जुड़े। ‘हम हिंदुस्तानी’ (1960) संजीव कुमार की पहली फिल्म थी। उन्होंने कई फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किए और धीरे-धीरे अपनी पहचान बनाई।
दिलीप कुमार हुए प्रभावित
1968 में रिलीज हुई 'राजा और रंक' की सफलता ने संजीव कुमार के पैर हिंदी फिल्मों में मजबूती से जमा दिए। संघर्ष (1968) में वे दिलीप कुमार के साथ छोटे-से रोल में नजर आए। छोटी सी भूमिका में उन्होंने बेहतरीन अभिनय कर अपनी छाप छोड़ी। दिलीप कुमार उनसे बेहद प्रभावित हुए।
जवानी में बूढ़े का रोल
संजीव कुमार उम्रदराज व्यक्ति की भूमिका निभाने में माहिर समझे जाते थे। 22 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने एक नाटक में बूढ़े का रोल अदा किया था। कई फिल्मों में उन्होंने अपनी उम्र से अधिक उम्र वाले व्यक्ति के किरदार निभाए और काफी पसंद किए गए।
गुलजार के साथ जोड़ी
1972 में गुलजार ने संजीव कुमार की फिल्म 'सुबहओ-शाम' देखी। संजीव से वे बेहद प्रभावित हुए। इसके बाद गुलजार और संजीव कुमार ने मिलकर ‘कोशिश’ (1973), ‘आंधी’ (1975), ‘मौसम’ (1975), ‘अंगूर’ (1980), ‘नमकीन’ (1982) जैसी बेहतरीन फिल्में दीं।
नूतन का थप्पड़
एक बार नूतन ने संजीव कुमार की गाल पर थप्पड़ रसीद दिया था। दरअसल नूतन और संजीव के बीच रोमांस की खबरें फैल रही थीं, जिससे नूतन के वैवाहिक जीवन में खलबली मच गई थी। नूतन को लगा कि संजीव इस तरह की बातें फैला रहे हैं, लिहाजा आमना-सामना होने पर उन्होंने संजीव को थप्पड़ जमा दिया।
फिल्म एक, किरदार नौ
‘नया दिन नई रात’ (1974) में संजीव कुमार ने नौ भूमिका अदा की और अपने अभिनय का लोहा मनवाया। संजीव कुमार ने अपने करियर में हर तरह की फिल्में की। वे सिर्फ हीरो ही नहीं बनना चाहते थे। उनका मानना था कि कलाकार किसी भी
भूमिका को अपने अभिनय से बेहतरीन बना सकता है और रोल की लंबाई कोई मायने नहीं रखती।
47 वर्ष ही जी पाए
संजीव कुमार के परिवार में कोई भी पुरुष 50 वर्ष से ज्यादा नहीं जी पाया। संजीव को भी हमेशा महसूस होता था कि वे ज्यादा नहीं जी पाएंगे। उनके छोटे भाई नकुल की मृत्यु संजीव के पहले हो गई। ठीक 6 महीने बाद बड़ा भाई किशोर भी चल बसा। संजीव कुमार ने भी 47 वर्ष की आयु में ही 6 नवंबर 1985 को इस दुनिया को अलविदा कहा।
इस तरह बने शोले के ‘ठाकुर’
फिल्म में ‘शोले’ ने संजीव कुमार ने ठाकुर का रोल निभाया था। यह रोल धर्मेंद्र करना चाहते थे। निर्देशक रमेश सिप्पी उलझन में पड़ गए। उस समय धर्मेंद्र हेमा मालिनी के दीवाने थे और संजीव कुमार भी। रमेश सिप्पी ने धर्मेंद्र से कहा कि तुमको वीरू का रोल निभाते हुए ज्यादा से ज्यादा हेमा के साथ रोमांस करने का मौका मिलेगा। यदि तुम ठाकुर बनोगे तो मैं संजीव कुमार को वीरू का रोल दे दूंगा। ट्रिक काम कर गई और धर्मेंद्र ने यह जिद छोड़ दी। ठाकुर के रोल के कारण संजीव कुमार को आज तक याद किया जाता है।
दोस्तों की तिकड़ी
शत्रुघ्न सिन्हा, सचिन और अमिताभ बच्चन से संजीव कुमार की बहुत अच्छी दोस्ती थी। उनके साथ अभिनय करने वाला ज्यादातर कलाकारों का मानना था कि वे सीन चुरा कर ले जाते हैं। कहा जाता है कि 'विधाता' में संजीव कुमार भारी न पड़ जाएं, इसीलिए दिलीप कुमार उनके साथ शॉट देने से बचते थे।
दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता
संजीव कुमार को दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। एक बार ‘दस्तक’ (1971) के लिए और दूसरी बार ‘कोशिश’ (1973) के लिए। 14 बार फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए संजीव कुमार नॉमिनेट हुए। दो बार उन्होंने बेस्ट एक्टर (‘आंधी’-1976 और ‘अर्जुन पंडित’-1977) का और एक बार बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर (शिकार-1969) का अवॉर्ड जीता।
देहांत के बाद भी फिल्में
सूरत में एक सड़क और एक स्कूल का नाम संजीव कुमार के नाम पर रखा गया। 2013 में एक डाक टिकट भी संजीव कुमार की याद में जारी किया गया। संजीव कुमार की मृत्यु के बाद उनकी दस से ज्यादा फिल्में प्रदर्शित हुईं। अधिकांश की शूटिंग बाकी रह गई थी। कहानी में फेरबदल कर इन्हें प्रदर्शित किया गया। 1993 में संजीव कुमार की अंतिम फिल्म 'प्रोफेसर की पड़ोसन' प्रदर्शित हुई।
कही अनकही
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दिलचस्प
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बिना ब्रश किए नहीं खाता यह बंदर
मगरमच्छ को खा जाता है यह पक्षी
स्वच्छता के मामले में बंदर भी इंसानों से कम नहीं हैं। मकाऊ प्रजाति के बंदर खाने से पहले उसे वैसे ही साफ करते हैं, जैसे हम
अ
गर आपको लगता है कि केवल मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो साफ-सफाई से रहता है तो आप गलत है। इस श्रेणी में एक जानवर ऐसा है जो हाइजीन (साफ-सफाई) के मामले में इंसानों से भी एक कदम आगे है। जी हां, ये बात एक नए अध्ययन में सामने आई है। आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि ये जानवर किस दर्जे तक हाइजीन रूल्स फॉलो करता है। जब आप इसके बारे में जानेंगे तो चौंक जाएंगे। लंबी-पूंछ वाले 'मकाऊ' प्रजाती के बंदर की इन आदतों को आप नहीं जानते होंगे। ये बंदर अपने अच्छे दांत रखने के लिए उनकी साफ सफाई करते
हैं। ये मकाऊ अपने दांतों को भी साफ करते देखे जाते हैं। इसके लिए वे घास के तिनकों, नारियल के धागों, पेड़ की पत्तियों के तिनकों और यहां तक कि अगर उपलब्ध हो जाए तो नायलॉन के तार से दांतों के बीच फंसे खाद्य को निकाल कर साफ करते हैं। कोयंबटूर के ओरिथोलॉजी और प्राकृतिक इतिहास के लिए सालीम अली केंद्र द्वारा किए गए शोध में ये हैरान कर देने वाली बात सामने आई है। अध्ययन में यह भी पता चला है कि वे अपने आहार के रूप में साफ भोजन खाना पसंद करते है। खाने से पहले मकाऊ अपने भोजन की जांच करते हैं। इसके लिए वे अपने बुद्धि का इस्तेमाल करते हैं। सख्त नारियल को कैसे खाना है ये बंदर अच्छी तरह से जानते हैं। सख्त नारियल को वे चट्टानों पर पटक छिलका हटा कर खाते देखे गए हैं। जिस प्रकार इंसान नारियल खाते हैं, वैसे ही मकाऊ भी नारियल खाना पसंद करते हैं। यही नहीं मकाऊ ज़्यादातर रेशों और कांटेदार खाना पसंद करते हैं। इनको खाने से पहले वे अच्छी तरह धोते हैं या फिर पत्तों में लपेट कर अच्छी तरह साफ करते हैं। इसके बाद ही वे उसे खाने योग्य समझते हैं। भारतीय आईलैंड ग्रेट निकोबार में पाए जाने मकाऊ को कीट खाना भी पसंद है और उन्हें भी वे बेहद होशियारी से तलाशते हैं। इसके लिए वे झाड़ियों को पीटते दिखाई पड़ते हैं और फिर उसमे से उड़ कर निकलने वाले या गिरने वाले कीट को उठा कर खा लेते हैं। (एजेंसी)
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जूते सी चोंच वाला शूबिल पक्षी सांप से लेकर मगरमच्छ तक को बड़े स्वाद से खाता है
क पक्षी है, जिसे पूर्वी अफ्रीका के दलदली और पानी वाले क्षेत्र में रहना भाता है। बता सकते हो, वह कौन सा पक्षी है? उसका नाम है 'शूबिल'। इसे व्हेलहेड या शूबिल्ड स्टॉर्क भी कहते हैं। इसका नाम शूबिल इसीलिए पड़ा, क्योंकि इसकी चोंच जूते जैसी दिखती है। यह सूडान से लेकर जांबिया में भी पाए जाते हैं। यह दिखता सारस जैसा है, लेकिन आकार में सारस को भी मात देता है। इसकी औसत लंबाई चार से पांच फूट होती है। इसके पंखों का रंग ब्लू, ग्रे, ब्राउन होता है। गर्दन बहुत मजबूत, पैर लंबे और पंख चौड़े होते हैं। यह अपने पंखों को एक मिनट में लगभग
150 बार फड़फड़ा सकता है और 230 से 260 सेंटीमीटर तक फैला सकता है। नर शूबिल का वजन लगभग 5.6 किलोग्राम और मादा का वजन 4.9 किलोग्राम होता है। इसके शरीर की सबसे बड़ी विशेषता उसकी चोंच होती है। यह काफी देर तक एक ही अवस्था में रह सकता है, इसीलिए इसे 'स्टैचू लाइक बर्ड' भी कहते हैं। मछली, चूहा, गिरगिट, सांप, मगरमच्छ के बच्चे आदि बड़े चाव से खाता है। यह 35 वर्षों तक जीवित रह सकता है। शिकार को देखते ही उसकी तरफ तेज रफ्तार से बढ़ता है और अपने नुकीले चोंच से उसे मार देता है। (एजेंसी)
एलियन समझ पकड़ लिया एक जीव
इंडोनेशिया के गांव में एक ऐसा विचित्र जानवर दिखा, जिसे लोगों ने एलियन समझ लिया, लेकिन वह और कोई नहीं भूख और प्यास का मारा भालू निकला
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लियन के बारे में आपने अब तक या तो किताबों में पढ़ा होगा या फिर फिल्मों में ही देखा होगा। इसके होने के बार-बार दावे किए जाते रहे हैं, लेकिन अंत में अधिकतर दावे अफवाह साबित होते हैं। इंडोनेशिया के एक गांव में एलियन मिलने की खबर ने जबरदस्त सनसनी फैला दी। यहां लोगों में बड़ी तेजी से दहशत फैली। दरअसल यहां गांव में एक अजीबोगरीब जीव घुस आया था। किसी ने ऐसा कोई जीव इससे पहले नहीं देखा था। हर कोई इसे एलियन कहने लगा। डर के मारे सभी गांव वालों ने इस पर डंडे बरसाने शुरू कर दिए। एक गांव वाले ने कहा कि, हम डर गए थे। ऐसा
हमने पहली बार देखा था, इसीलिए सभी इसे मारने लगे। लोग तब तक इसे मारते रहे जब तक कि वो बेहोश नहीं हो गया। लोगों की मार से घबराया यह जीव इधर-उधर भटकने लगा। जैसे ही उसे मौका मिला वह जंगल की तरफ दौड़ पड़ा, ताकि लोगों से बच सके। दरअसल, जिसे गांववाले एलियन समझ रहे थे वह कोई और नहीं, बल्कि एक भालू था। इसे 'सन बीयर' के नाम से जाना जाता है। कई महीनों से खाना न मिल पाने की वजह से इसकी ऐसी हालत हो गई थी। यह इतना कमजोर हो चुका था कि लोगों ने इसे एलियन समझने की भूल कर दी। इसके शरीर के सारे बाल झड़ चुके थे। (एजेंसी)
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दिलचस्प
लाल कानों वाला हाथी कभी देखा है जिम कार्बेट नेशनल पार्क में दिखा लाल कानों वाला हाथी
इस मछली के पास है वास्तुकला का वरदान
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ए साल की शुरुआत होने से पहले ही लंबे समय के बाद जंगली जानवरों में इस विशालकाय जीव की एक नई प्रजाति तलाश ली गई है। समझ तो गए ही होंगे हम किसकी बात कर रहे हैं। ये जानवर है हाथी। जी हां, लंबे समय बाद दुर्लभ प्रजाति का लाल कान वाला हाथी देखने को मिला है। यह लाल कान वाला एशियाई हाथी भारत में दिखाई दिया है। जीव विज्ञानियों का मानना है कि हर हाथी के कान लाल रंग के नहीं होते हैं। इसमें जगह और प्रकृति का भी बड़ा योगदान होता है। बताया जाता है कि जिम कार्बेट नेशनल पार्क में साल की शुरूआत में भी इसे देखा गया था। लेकिन,
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उस दौरान इसकी तस्वीरें सामने नहीं आई थी। इसे एक बैंक कर्मी ने अपनी यात्रा के दौरान देखा था। कहा जाता है कि केवल खास किस्मे के हाथियों के कान लाल होते हैं। दरसल, सभी हाथियों के कान लाल नहीं होते बल्किन प्राकृतिक रंजकता जिसे नेचुरल पिगमेंटेशन भी कहते हैं, की वजह से इनके कान लाल हो जाते हैं। एशियाई नर हाथी जिसे समूह से अलग हो कर अकेले घूमने की आदत होती है, कभी-कभी लाल कानों के साथ दिखते हैं क्यों कि हाथियों के कान स्वा भाविक रूप से लाल नहीं होते। लेकिन चिंता के बात ये है कि ये हाथी तेजी से विलुप्त हो रहे हैं। (एजेंसी)
पफर फिश अपने पंखो से अपने लिए ऐसा किला बनाते हैं जिसे देख आर्किटेक्ट भी दंग रह जाएं
फर फिश, हम में से ज्यादातर लोग इस मछली के बारे में नहीं जानते होंगे। दरअसल, इसकी भी एक वजह है। हम बिना किसी चीज को जाने बिना उसे बेहद मामूली जो समझ लेते हैं। 'फिश' शब्द जुड़ते ही अमूमन लोग चीजों को मामूली समझने की भूल कर बैठते हैं, लेकिन जिस मछली की बात हम कर रहे हैं, न तो वो कोई मामूली मछली है और न ही यह ढूंढने से आसानी से मिलती है। इसीलिए इसके बारे में जानकारी रखना आपके लिए बेहद जरूरी है। इस मछली की सबसे बड़ी खूबी के बारे में जब आप जानेंगे तो दंग रह जाएंगे। जी हां, क्योंकि इस मछली के पास एक ऐसी खास विधा है जो हम इंसानों को भी मात देती है। इस पर आपको भले ही यकीन न हो, मगर ये शत प्रतिशत सच है। दरअसल, पफर फिश के पास भगवान का दिया एक नायाब हुनर है। पफर फिश
को वास्तु कला का बेहतरीन ज्ञान है। इसकी मदद से यह मछली पानी के नीचे एक किला बनाकर रहती है। यदि आप इस मछली द्वारा तैयार किए गए इस अभेद्य किले को देख लें तो आपको हैरानी होगी। पफर फिश भले ही दिखने में एक छोटा सा जीव हो, लेकिन इसके द्वार किया गया हर काम अपने आप में अनोखा होता है। पफर फिश द्वारा बनाया गया डिजाइन समुद्र तल पर इतना सुंदर नजर आता है कि देखने वाला बस आखें जमाकर देखता ही रह जाए। पफर फिश में मेल पफर फिश फीमेल फीश को आकर्षित करने के लिए ऐसा करती है। कहते हैं कि पफर फिश ढूंढने पर भी आसानी से इसीलिए नहीं मिलती, क्योंकि यह समुद्र तल में बेहद गहराई में रहती है। यहां तक पहुंच पाना किसी गोताखोर के बस की ही बात है। (एजेंसी)
रात में खतरनाक हो जाता है यह जीव
कुछ हाएना नरभक्षी होते हैं और युवावस्था में एक दूसरे को ही मार कर खा जाते हैं
हा
एना यानी लकड़बग्घा सवाना (उष्णकटिबंधीय घास के मैदानों), उप-रेगिस्तान, अफ्रीका व एशिया के जंगलों में पाया जाता है। यह चार प्रकार का होता है, धब्बेदार, भूरा, धारीदार और कीटभक्षी। यह आकार के आधार पर भी भिन्न होता है। सबसे बड़ा हाएना करीब 35 इंच ऊंचा और वजन में 90 पाउंड का होता है। सबसे छोटा कीटभक्षी हाएना होता है, जो 20 इंच ऊंचा और वजन में 60 पाउंड का होता है। नर की तुलना में मादा अधिक लंबी और प्रभावशाली होती है। ये समूह में रहते हैं। इनमें कीटभक्षी लकड़बग्घा दीमक
खाता है। यह रात्रिचर होता है। एक-दूसरे के साथ बात करने के लिए विभिन्न ध्वनियों, मुद्राओं और संकेतों का उपयोग करता है। कुछ हाएना नरभक्षी होते हैं। युवावस्था में ये एकदूसरे को मारकर खा जाते हैं। मादा हाएना एक बार में दो से चार शावकों को जन्म देती है। वह करीब चार हफ्तों तक जन्म देने वाली जगह पर ही, उनकी देखभाल करती है। शावक पांच महीने के होते-होते मांस खाना शुरू कर देते हैं। जंगली हाएना का जीवनकाल 10 से 12 और पालतू का करीब 25 साल होता है। (एजेंसी)
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बाल साहित्य
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टी आज जब स्कूल से आया तो फिर उसने घर पर ताला देखा। घर की सीढ़ियों पर वह अपना बैग रख कर बैठ गया। उसे भूख लगी थी और वह थका हुआ भी था। वह सोचने लगा, काश मेरी मां भी राजू की मां की तरह ही घर पर ही होती। मैं स्कूल से आता तो मुझे स्कूल के हाल-चाल पूछती, मेरे लिए गरमगरम खाना बनाती और मुझे प्यार से खिलाती। सचमुच कितना खुशनसीब है राजू! इन्ही विचारों में खोए बंटी की न जाने कब आंख लग गई। वह वहीं बैठे-बैठे ऊंघने लगा। कुछ देर में मां दफ्तर से आई और बोली, ‘बंटी, उठो बेटे, चलो अंदर चलो।’ बंटी उकताए हुए स्वर में बोला, ‘ओफओ मां, तुमने कितनी देर लगा दी, मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं। तुम्हे मालूम है, मुझे कितनी जोरों की भूख लगी है। मेरे पेट में चूहे दौड़ रहे हैं।’
भारत को स्वच्छ बनाना है भारत को ऊंचा उठाना है हम सबको ही मिल करके संभव हर यत्न करके बीड़ा यही उठाना है भारत को स्वच्छ बनाना है भारत को ऊंचा उठाना है
08 - 14 जनवरी 2018
बंटी की आइसक्रीम मां बंटी को पुचकारते हुए बोली, ‘देखो, मैं अभी तुम्हारी थकावट दूर करती हूं। खाना गरम कर के अभी परोसती हूं।’ ऐसा कहते हुए मां ने ताला खोला, जल्दी से अपना पर्स सोफे पर फेंकत हुए मां किचन में जा घुसी। ‘बंटी, जल्दी से कपड़े बदलो, दो मिनट में खाना आ रहा है।’ बंटी सोफे पर फिर से ऊंघने लगा। मां ने आकर बंटी को उठाया और उसे बाथरूम में धकेला। बंटी ने हाथ-मुंह धोए और खाने की मेज पर जा बैठा। खाना खाते-खाते बंटी कुछ सोचने लगा। उसे वे दिन याद आने लगे जब पापा भी थे। घर खुशियों का फव्वारा बना रहता था। पापा की हंसी, पापा के चुटकुले सारे घर को रंगीन बना देते थे। पापा प्यार से उसे मिट्ठू बुलाते थे। बंटी की कोई भी परेशानी होती, पापा के पास सब के हल होते, मानो परेशानियां पापा के सामने जाने से डरती हों। कितने बहादुर थे पापा। एक बार उसे याद है जब पापा दफ्तर से आईस्क्रीम ले कर आए थे। तीनों की अलग-अलग फ्लेवर वाली आईस्क्रीम! घर तक आते-आते आईस्क्रीम पिघल चुकी थी और मां ने कहा था, ‘तुम भी बस...! क्या इतनी गर्मी में आईस्क्रीम यूं ही जमी रहेगी?’ ...और पापा ने तीनों आईस्क्रीमों को मिला कर नए फ्लेवर वाला मिल्क-शेक बनाया था। अचानक मां का कोमल हाथ उसके बालों को सहलाने लगा। वह मानो नींद से जाग उठा हो। मां ने कहा, ‘क्या बात है? आज तुम बड़े गुम-सुम से दिखाई दे रहे हो। कहीं आज फिर से तो अजय से झगड़ा नहीं हुआ, या फिर तुम्हारी टीम क्रिकेट के मैच में हार गई?’ बंटी ने कहा, ‘मां, पता नहीं क्यों आज मुझे पापा की
स्वच्छ भारत
हम सबको ही मिल करके हर बुराई को दूर करके आतंकवाद को भी मिटाना है भारत को स्वच्छ बनाना है भारत को ऊंचा उठाना है मानवता को दिल में रखके धर्म का सदा आचरण करके देश से कलह मिटाना है भारत को स्वच्छ बनाना है भारत को ऊंचा उठाना है
होगा जब ये भारत स्वच्छ सब जन होंगे तभी स्वस्थ सबको यही समझाना है भारत को स्वच्छ बनाना है भारत को ऊंचा उठाना है गंगा मां के जल को भी यमुना मां के जल को भी मोती सा फिर चमकाना है भारत को स्वच्छ बनाना है भारत को ऊंचा उठाना है
बड़ी याद आ रही है। पापा को भगवान ने अपने पास क्यों बुला लिया?’ इतना सुनते ही मां ने जोर से बंटी को गले से लगा लिया और उसकी आंखें आंसुओं से भर गई। मां की सिसकियां बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थीं। यह देख कर बंटी का उदास मन कुछ और उदास हो गया। उसे लगा जैसे इसी क्षण वह बहुत बड़ा हो गया है और मां का उत्तरदायित्व उसी के कंधे पर आ गिरा है। उसने ठान लिया कि वह अपने आंसुओं से मां को कमजोर नहीं होने देगा। कितनी मेहनती है मां! घर का, बाहर का सारा काम कर के वह उसे हमेशा खुश रखने की कोशिश करती है। अब वह कभी नहीं रोएगा। वह पापा की तरह बनेगा, हमेशा खुशियां बांटने वाला और तकलीफों पर पांव रख कर आगे बढ़ने वाला। वह मां को बहुत सुख देगा। उसे हमेशा खुश रखेगा। इतना सोचते-सोचते वह जल्दी-जल्दी खाना खाने लगा। अगले दिन उठ कर बंटी ने अपनी गुल्लक से पांच रुपए का नोट निकाला। मां से छिपाकर, जेब में डालते हुए वह स्कूल की ओर चल पड़ा। ये पैसे वह ऐरो-मॉडलिंग के लिए बचा रहा था। उसे नए-नए छोटे-छोटे लड़ाकू विमान बनाने का बहुत शौक था। पर आज यह पैसे किसी और मकसद के लिए थे। स्कूल से आ कर वह मां से बोला, ‘मां देखो तो मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूं! ये रही तुम्हारी फ्रूट एैंड नट आईस्क्रीम और मेरी चॉकलेट आईस्क्रीम। लिफाफा आगे बढ़ाया तो देखा, दोनो आईस्क्रीमें घुल कर एक हो गई थीं। मां ने कहा, ‘तुम भी बस... क्या इतनी गर्मी में...।’ ...बंटी ने वाक्य पूरा करते हुए कहा, ‘आईस्क्रीम यूं ही जमी रहेगी?’ दोनों ज़ोर से खिलखिलाकर हंस दिए।
आओ मिलकर करें संकल्प होना मन में कोई विकल्प गंदगी को दूर भगाना है भारत को स्वच्छ बनाना है भारत को ऊंचा उठाना है
देश को विकसित करने का जग में उन्नति बढ़ाने का नई नीति सदा बनाना है भारत को स्वच्छ बनाना है भारत को ऊंचा उठाना है
सत्य अहिंसा न्याय को लाकर सबके दिल में प्यार जगाकर स्वर्ग को धरा पर लाना है भारत को स्वच्छ बनाना है भारत को ऊंचा उठाना है - कंचन पांडेय
08 - 14 जनवरी 2018
आओ हंसें
मालकिन : मैं कहीं बाहर जा रही हूं। तुम घर की सफाई करके रहना। थोड़ी देर बाद मालकिन के घर लौटने पर। मालकिन: तुमने घर की तो कोई सफाई नहीं की है। नौकर: मैंने फ्रिज में जो कुछ भी रखा था, उसकी सफाई कर दी है। पत्नी: लगता है हमारी लड़की की किसी लड़के के साथ दोस्ती हो गई है! पति: वह कैसे? पत्नी: काफी दिनों से रीचार्ज के पैसे नहीं मांगे उसने!
सु
जीवन मंत्र
हमारे पास जो कुछ है। हम उसकी परवाह नहीं करते हैं। लेकिन जब उसे खो देते हैं तो दुख मनाते हैं
रंग भरो
सुडोकू-03 का हल
• 9 जनवरी प्रवासी भारतीय दिवस • 10 जनवरी विश्व हिंदी दिवस • 11 - 17 जनवरी राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा सप्ताह • 11 जनवरी लाल बहादुर शास्त्री स्मृति दिवस • 12 जनवरी स्वामी विवेकानंद जयंती, राष्ट्रीय युवा दिवस (भारत)
सुडोकू 03 के लकी विजते ा
भव्य दुआ रोहताश नगर, शाहदरा
बाएं से दाएं
वर्ग पहेली - 04
1. उर्दू कवि सम्मेलन (4) 3. आगे रहने वाला (3) 5. खाताबही या लेखा परीक्षण (4) 6. खुश (4) 7. सतू कातने का बड़ा सुआ (3) 10. खनू , लहू (2) 11. उपवास, अनाहार, अतिक्रमण (3) 12. पक्षाघात (3) 13. सर्प (2) 15. भोजन (3) 18. लोक में प्रचलित कथा (4) 19. मदिरालय (4) 21. प्रेमी, पति (3) 22. अविनाशी (4)
ऊपर से नीचे
1. मौलवी (2) 2. यदुकल ु से पुत्र, श्रीकषृ ्ण (5) 3. चावल, जो कभी खराब न हो (3) 4. वह अंक िजससे गुणा किया जाए (3) 5. दरू ी, भेद (3) 8. निरुत्तर (4) 9. कुल को आग लगाने वाला (4) 12. बचपना (5) 14. लहर, मौज (3) 16. सीढ़ी (3) 17. पुरस्कार (3) 20. दधू (2)
वर्ग पहेली-03 का हल
महत्वपूर्ण दिवस
डोकू -04
सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी विजते ा को 500 रुपए का नगद पुरस्कार दिया जाएगा। सुडोकू के हल के लिए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देख।ें
पति: हे भगवान, तू मुझे उठा क्यों नहीं लेता? पत्नी: हे भगवान, तू मुझे उठा क्यों नहीं लेता? पति: हे भगवान, मेरी नहीं कम से कम इसकी तो सुन लो! पत्नी: आप बाजार जा रहे हैं? क्या आप कुत्ते के खाने के लिए कुछ ले आएंगे? पति: जब मैं तुम्हारे हाथ का बना खाना खा सकता हूं। कुत्ता क्यों नहीं खा सकता?
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इंद्रधनुष
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सिनेमा
गरीब परिवार का बेटा 16 वर्षीय निसार दुनिया के सबसे तेज धावक उसेन बोल्ट के जमैका स्थित एकेडमी में ट्रेनिंग लेगा
दि
08 - 14 जनवरी 2018
अनाम हीरो
भारत का उसेन बोल्ट
निसार अहमद
ल्ली की झुग्गियों में रहने वाला 16 साल का निसार अहमद दुनिया के सबसे तेज धावक उसेन बोल्ट के रेसर्स क्लब किंग्स्टन, जमैका स्थित एकेडमी में ट्रेनिंग लेगा। आपको जानकार हैरानी होगी कि निसार के पिता आजादपुर में रिक्शा चलाकर घर का खर्चा चलाते हैं और मां दूसरों के घर बर्तन मांजनेखाना बनाने जाती है। निसार के माता-पिता हर महीने कुल मिलाकर 5 हजार रुपए कमा लेते हैं, लेकिन वह इन सबके बीच अपनी एक अलग पहचान बनाने जा रहा है। हालांकि ये सब निसार के लिए बिल्कुल भी आसान नहीं रहा है। उसको यहां तक पहुंचाने में गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया और स्पोर्ट्स मैनेजमेंट कंपनी एंग्लियन मैडल हंट का बड़ा योगदान रहा है। गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया और स्पोर्ट्स मैनेजमेंट कंपनी एंग्लियन मैडल हंट के तहत देश के 14 ही बच्चों को वहां जाने का मौका मिलेगा और निसार उनमें से एक है। बता दें कि निसार आजाद पुर स्थित बड़ा बाग की जिस झुग्गी में रहता है, वहां पास में रेलवे ट्रैक है और जब ट्रेन वहां से गुजरती है तो उसके घर की छत पर लगी टीन हिल्लने लगती है। निसार अहमद का नाम सुर्खियों में तब आया था जब उसने दिल्ली स्टेट्स एथलेटिक्स मीट प्रतियोगिता में 100 मीटर की दौड़ में रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन किया था। इसके बाद निसार ने अंडर-16 के राष्ट्रीय रिकॉर्ड को तोड़ा और 100 मीटर की रेस को 11 सेकंड से भी कम में तोड़ा। इसके अलावा उसने क्रमशः 200 मीटर के राष्ट्रीय रिकॉर्ड को भी तोड़ते हुए गोल्ड मेडल अपने नाम किया। अब निसार को उन्हें उसेन बोल्ट के कोच ग्लेन मिल्स चार हफ्ते की ट्रेनिंग देंगे।
डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19
न्यूजमेकर डॉ. एमएस सुनील
गरीबों के घर की फिक्र
जी
रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. एम.एस. सुनील गरीबों की सेवा के तहत पिछले 11 वर्षों में उन्होंने 78 गरीबों के लिए नए घर बनाए हैं
व विज्ञान की 57 वर्षीया रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. एम.एस सुनील समाज की भलाई के लिए एक अनूठा काम कर रही हैं। गरीबों की सेवा के तहत पिछले 11 वर्षों में उन्होंने 78 गरीबों के लिए नए घर बनाए हैं। यह उस इलाके में समाज सेवा का एक बेहतरीन उदाहरण है, जहां खाड़ी के देशों में काम करने वालों के पैसों से ग्रामीण इलाकों में आलीशान घर खड़े हैं। उनके इस परोपकारी काम की शुरुआत 2006 में उस समय हुई थी, जब उन्हें पता चला कि उनके कुछ गरीब छात्र टूटे-फूटे, असुरक्षित घर में रहते हैं। तब उन्होंने इसमें सुधार करने का फैसला किया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे पलटकर नहीं देखा। उन्होंने अपने गृह जिले पथानमथिट्टा में 77 घरों का निर्माण किया और एक घर पास के जिले कोल्लम में बनाया है, जहां विदेशों में काम कर रहे केरल के निवासी अधिकतर घरों के निर्माण में पैसा लगाते हैं। यह अचानक ही हुआ कि उन्होंने गरीबों के लिए आशियाना बसाने का काम शुरू किया। सुनील बताया, ‘साल 2006 में मुझे पता चला कि मेरा एक छात्र असुरक्षित घर में मुश्किल में जीवन व्यतीत कर रहा है। मैं उस समय राष्ट्रीय सेवा योजना से जुड़ी हुई थी। हमने छात्र के लिए एक घर बनाने का फैसला किया। हमने इसके लिए 60,000 रुपए जुटाए और और नया घर तैयार किया।’ इसके बाद उन्होंने फैसला किया कि वह सामूहिक अभियान से जुड़ी नहीं रह सकतीं क्योंकि यह थकाऊ था और उन्होंने एकल प्रायोजक की तलाश शुरू करने का फैसला किया। जल्द ही अमीर लोगों ने उनसे संपर्क करना शुरू कर दिया और उन्हें बेघरों के आश्रयों के निर्माण के लिए पैसे देने शुरू कर दिए। उन्होंने पिछले महीने 78वां घर बनाकर पूरा किया है।
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स्वच्छता का अरमान
पांचवी के छात्र अरमान ने अनूठी रिमोट क्लीनिंग मशीन बनाकर सबको किया दंग
रमान गुप्ता पांचवी कक्षा का छात्र है। पर वह एक मामूली स्कूली छात्र भर नहीं है। उसने कम उम्र में ही अपनी सोच औप उपलब्धि से काफी नाम और यश कमा लिया है। अरमान को स्वच्छता काफी पसंद है। वह इसके बारे में हमेशा कुछ न कुछ सोचता रहता है। मुंबई निवासी अरमान एक बार अरमान घर में बैठा जूस पी रहा था। तभी उसके हाथ से असावधानी के कारण जूस गिर गया। इससे गंदा हुए फर्श को देखकर उसे बहुत बुरा लगा। अरमान ने उस समय खुद ही गंदा हुए फर्श की सफाई करने का फैसला लिया। पर उस समय से ही वह सोचने लगा कि घर-परिवार में इस तरह की समस्या आए दिन आते रहती है, सो बेहतर हो कि इसका कोई बेहतर समाधान खोजा जाए। इस दिशा में सोचते हुए अरमान ने एक एेसी रिमोट क्लीनिंग मशीन बनाई, जो खुद से सफाई और पोछे का काम कर सकती है। इससे साफ किए गए फर्श को उसी समय पूरी तरह सुखाने में भी मदद मिलती है। अरमान अब अपने इस आविष्कार को आरआईआईडीएल द्वारा आयोजित मेकर मिला में प्रदर्शित करने वाला है। इस मेले में अरमान के इस आविष्कार को लोकप्रियता मिलने की बहुत उम्मीद है। जिस तरह का आविष्कार इस स्कूली छात्र ने किया है, उसकी जितनी सराहना की जाए कम है। साथ ही इससे यह भी साफ हो रहा है कि भारत में स्वच्छता मिशन न सिर्फ सफल हो रहा है, बल्कि इसने बच्चों तक की सोच को रचनात्मक रूप से काफी बदला है। अरमान गुप्ता इस बदलाव का बड़ा उदाहरण है।
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 4
न्यूजमेकर अरमान गुप्ता