वर्ष-1 | अंक-39 | 11 - 17 सितंबर 2017
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597
sulabhswachhbharat.com
08 केंद्रीय मंत्रिमंडल
टीम मोदी
लगन और प्रतिबद्धता को समर्पित टीम मोदी
14 बाल शिक्षा
आनंद की बाल चौपाल
13 वर्षीय आनंद कृष्ण सैकड़ों बच्चों को पढ़ा रहे हैं
20 हिंदी दिवस
हिंदी और मध्य वर्ग का विकास हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार अमृतलाल नागर के विचार
‘न्यू इंडिया’ विजन के साथ मोदी कैबिनेट का विस्तार
हाल में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कैबिनेट का नए सिरे से विस्तार किया तो माना गया कि प्रधानमंत्री ने जहां एक तरफ मंत्रियों के कार्य प्रदर्शन का ध्यान रखा है, वहीं उनकी नजर में ‘न्यू इंडिया’ विजन भी है
02 आवरण कथा
11 - 17 सितंबर 2017
एक नजर
मोदी कैबिनेट का तीसरी बार पुनर्गठन हुआ
मंत्रिमंडल में नौ नए चेहरों को शामिल किया गया
चार मंत्रियों को कैबिनेट रैंक में पदोन्नत किया गया
नामों का चयन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऊर्जा, दक्षता, पेशेवर तथा राजनीतिक कार्यकुशलता को ध्यान में रखकर किया है ताकि ‘न्यू इंडिया’ के विजन पर वे ज्यादा लगन के साथ काम कर सकें।
4-पी फॉर्मूला
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‘न्यू इंडिया’ विजन के साथ मोदी कैबिनेट का विस्तार
धानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के तीन साल से ज्यादा समय बीत चुका है। इस दौरान प्रधानमंत्री ने कुल तीन बार अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया है। पर हाल में जब उन्होंने तीसरी बार अपने कैबिनेट का नए सिरे से विस्तार किया तो
माना गया कि प्रधानमंत्री ने जहां एक तरफ मंत्रियों के कार्य प्रदर्शन का ध्यान रखा है, वहीं उनकी नजर में ‘न्यू इंडिया’ का वह विजन भी है, जिसमें वे 2019 में अपना कार्यकाल समाप्त होने से पहले रंग भरना चाहते हैं, ताकि प्रधानमंत्री के तौर पर उनका कार्य
और कार्यकाल दोनों ही ऐतिहासिक रूप से यशस्वी दिखे। लिहाजा, कैबिनेट के तीसरे विस्तार में ‘न्यू इंडिया’ विजन के साथ 9 नए चेहरों को शामिल किया गया और चार मंत्रियों को कैबिनेट रैंक में पदोन्नत किया गया है। केंद्रीय मंत्रिपरिषद में नए
प्रधानमंत्री ‘न्यू इंडिया’ के अपने विजन के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो विकास और सुशासन पर आधारित है। इस ‘न्यू इंडिया’ विजन में गरीबों, हाशिये के लोगों और समाज के वंचित तबके का विशेष ध्यान रखा जाएगा। मंत्रिमंडल विस्तार में भी प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी टीम के सदस्यों को उनके गुण और भविष्य की क्षमता के आधार पर चुना है। दरअसल मोदी मंत्रिमंडल में नए चेहरों को ‘4पी’ फार्मूले के आधार पर शामिल किया गया है। इस ‘4-पी’ का मतलब है- पैशन (जुनून), प्रोफिशिएंसी (निपुणता), प्रोफेशनल एक्यूमैन (पेशेवर कुशाग्रता) और पॉलिटिकल एक्यूमैन (राजनीतिक कुशाग्रता)। नए कैबिनेट विस्तार में धर्मेंद्र प्रधान, पीयूष गोयल, निर्मला सीतारमण और मुख्तार अब्बास नकवी को जहां पदोन्नत किया गया, वहीं राजकुमार सिंह, गजेंद्र सिंह शेखावत, अनंत कुमार हेगड़े, अश्विनी चौबे सहित सहित नौ लोगों को मोदी कैबिनेट में जगह मिली है। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी के काम करने के तरीके से एक बात साफ है कि वे किसी पार्टी और नाम से ज्यादा काम को तवज्जो देते हैं, जो उनके कैबिनेट विस्तार में दिख भी रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने उन चेहरों को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है, जिन पर उन्हें भरोसा है कि वे परफॉरमेंस देंगे और न्यू इंडिया के विजन को पूरा करने में पूरी तरह सक्षम होंगे।
नए मंत्रियों का परिचयनामा शिव प्रताप शुक्ला वित्त राज्य मंत्री
ग्रामीण विकास, शिक्षा और जेल सुधार को लेकर किए गए अपने कामों के लिए जाने जाते हैं
शिव प्रताप शुक्ला उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद हैं। वे संसदीय समिति (ग्रामीण विकास) के सदस्य भी हैं। शुक्ला 1989 से 1996 तक लगातार चार बार विधायक रहे और यूपी सरकार में आठ साल तक कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं। उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की और फिर 1970 के दशक में बतौर छात्र नेता राजनीति में कदम रखा। शिव प्रताप शुक्ला ग्रामीण विकास, शिक्षा और जेल सुधार को लेकर किए गए अपने कामों के लिए जाने जाते हैं।
‘घर-घर में हो शौचालय का निर्माण, तभी होगा लाडली बिटिया का कन्यादान’ नारा दिया
अश्विनी कुमार चौबे बिहार के बक्सर से लोकसभा सांसद हैं। वे केंद्रीय सिल्क बोर्ड के मेंबर भी हैं। चौबे संसदीय समिति (ऊर्जा) के सदस्य भी हैं। वे इससे पहले बिहार में लगातार 5 बार विधायक रहे और 8 साल तक राज्य में स्वास्थ्य, शहरी विकास और जनस्वास्थ्य, इंजीनियरिंग जैसे विभागों की जिम्मेदारी संभाली। अश्विनी चौबे पटना विश्वविद्यालय से प्राणि विज्ञान में स्नातक हैं। यहां वे छात्र संघ के अध्यक्ष रहे और जेपी आंदोलन के दौरान भी सक्रिय थे। अश्विनी कुमार चौबे ने ‘घर-घर में हो शौचालय का निर्माण, तभी होगा लाडली बिटिया का कन्यादान’ नारा दिया। उन्होंने महादलित परिवारों के लिए 11,000 शौचालयों का निर्माण करने में मदद की है।
11 - 17 सितंबर 2017 डॉ. वीरेंद्र 6 बार से लोकसभा सांसद हैं। वह श्रम मामलों पर संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। डॉ. वीरेंद्र कुमार लेबर एंड वेलफेयर और एससी-एसटी वेलफेयर कमिटी के सदस्य भी रहे हैं। डॉ. कुमार ने विद्यार्थियों की समस्याओं को हल करने के लिए एक आंदोलन शुरू किया था और उनकी सहायता के लिए एक पुस्तकालय खोला था। डॉ. वीरेंद्र कुमार भी जयप्रकाश आंदोलन में सक्रिय रहे और मीसा के दौरान 16 महीने जेल में बिताए।
अनंत कुमार हेगड़े
कौशल विकास एवं उद्यमिता राज्य मंत्री
आवरण कथा
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काडर के 1975 बैच के आईएएस अधिकारी हैं।
मौजूदा समय में वह परिवार कल्याण संसदीय समिति के मेंबर भी हैं। वे देश के गृह सचिव के पद पर भी रह चुके हैं। सांसद बनने से पहले वे डिफेंस प्रोडक्शन सेक्रेटरी, ज्वाइंट सेक्रेटरी (गृह मंत्रालय) और अन्य कई अहम पदों पर काम कर चुके हैं।
हरदीप सिंह पुरी
आवास एवं शहरी कार्य राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
डॉ. वीरेंद्र कुमार
हेगड़े पहली बार 28 साल की उम्र में विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा में महिला एवं बाल विकास और अल्पसंख्यक सांसद बने थे राज्य मंत्री
अश्विनी कुमार चौबे
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री
अनंत कुमार हेगड़े कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ से सांसद हैं। वे विदेश और मानव संसाधन मामलों पर बनी संसदीय समिति के सदस्य भी हैं। हेगड़े पहली बार 28 साल की उम्र में सांसद बने थे। लोकसभा सांसद के तौर पर यह उनका 5वां कार्यकाल है। अपने संसदीय कार्यकाल के दौरान हेगड़े वित्त, गृह, मानव संसाधन, वाणिज्य कृषि और विदेश विभाग से जुड़ी कई संसदीय समितियों में शामिल हैं।
राजकुमार सिंह
बिजली राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नवीन एवं
विद्यार्थियों की समस्याओं को हल नवीकरणीय ऊर्जा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) उनके अनुभव के लिए जाना जाता है करने के लिए आंदोलन शुरू किया देश के गृह सचिव के पद पर भी हरदीप सिंह पुरी रिसर्च एंड इंफोर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्रीज (आरआईएस) के प्रेसिडेंट हैं। वे था 1974 बैच के पूर्व आईएफएस ऑफिसर हैं। उन्हें रह चुके हैं डॉ. वीरेंद्र कुमार मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ से लोकसभा सांसद हैं। दलित समुदाय से आने वाले
बिहार के आरा से लोकसभा सांसद हैं। वे बिहार
विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा में उनके अनुभव के लिए जाना जाता है। वे इंटरनेशनल पीस इंस्टीट्यूट
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के वाइस प्रेसिडेंट भी रह चुके हैं। हरदीप सिंह पुरी संयुक्त राष्ट्र की कई अहम समितियों में भी अहम पद संभाल चुके हैं।
गजेंद्र सिंह शेखावत कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री
तकनीक-प्रेमी और प्रगतिशील किसान के रूप में ख्याति
गजेंद्र सिंह शेखावत राजस्थान के जोधपुर से लोकसभा सांसद हैं। वे वित्तीय मामलों पर बनी संसदीय समिति के प्रमुख भी हैं। उन्हें उनकी सिंपल लाइफ के लिए जाना जाता है। तकनीक-प्रेमी और प्रगतिशील किसान के रूप में वह ग्रामीण समाज के लिए एक आदर्श हैं। गजेंद्र सिंह शेखावत वित्त पर संसदीय स्थायी समिति के सदस्य और फैलोशिप कमेटी के अध्यक्ष हैं।
सत्यपाल सिंह
मानव संसाधन विकास और जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण राज्य मंत्री आंध्र प्रदेश के नक्सली इलाकों में उनके असाधारण
मुंबई, पुणे और नागपुर के पुलिस कमिश्नर भी रह चुके हैं
सत्यपाल सिंह मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश के बागपत से लोकसभा सांसद हैं। वे महाराष्ट्र काडर के 1980 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। उन्हें अपनी सर्विस के दौरान भारत सरकार की तरफ से आंतरिक सुरक्षा सेवक पदक से भी सम्मानित किया जा चुका है।
चार का दम
मंत्री के रूप में कार्य प्रदर्शन और छवि के आधार पर केंद्रीय मंत्रिमंडल के हालिया फेरबदल में चार मंत्रियों को प्रमोट किया गया है
काम के लिए भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। वे मुंबई, पुणे और नागपुर के पुलिस कमिश्नर भी रह चुके हैं।
अलफोंस कन्ननथनम
पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) एवं इलेक्ट्रॉनिक्स सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री
48 वर्ष
अल्पसंख्यक कार्य मंत्री
59 वर्ष
खासियत: विपक्ष के साथ रिश्तों को मैनेज करने के साथ-साथ राज्यसभा में सरकार का पक्ष मजबूती और सूझबूझ के साथ रखते रहे हैं।
निर्मला सीतारमण रक्षा मंत्री
58 वर्ष
निर्मला कर्नाटक से राज्यसभा सांसद हैं। उन्होंने चीन से व्यापारिक रिश्तों की बेहतरी के लिए काम किया। खासियत: साफगोई से बात करने वाली। उन्होंने जहां एमफिल और पीएचडी कर रखी है, वहीं उन्हें बीबीसी में काम करने का भी अनुभव रहा है। वह भाजपा की प्रवक्ता और राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य भी रही हैं।
अलफोंस केरल काडर के 1979 बैच के आईएएस ऑफिसर रह चुके हैं। वे डीडीए के किमश्नर भी रह चुके हैं। इस दौरान उन्होंने 15, 000 अवैध इमारतों का अतिक्रमण हटाया, जिसके बाद वे दिल्ली के ‘डिमॉलिशन मैन’ के रूप में प्रसिद्ध हो गए। ‘टाइम’ पत्रिका ने 1994 में अलफोंस कन्ननथनम का नाम ‘100 यंग ग्लोबल लीडर्स’ में शामिल किया था।
मोदी कैबिनेट में हुए हालिया फेरबदल में चार मंत्रियों को प्रमोट किया गया। इनमें पीयूष गोयल, धर्मेंद्र प्रधान, निर्मला सीतारमण और मुख्तार अब्बास नकवी शामिल हैं। इन चारों में से तीन राज्यसभा सदस्य हैं। इनमें अकेले धर्मेंद्र प्रधान ही ओडिशा की देवगढ़ सीट से लोकसभा सांसद हैं।
मुख्तार अब्बास नकवी मुख्तार अब्बास नकवी झारखंड से राज्यसभा सांसद हैं।
‘टाइम’ पत्रिका ने ‘100 यंग ग्लोबल लीडर्स’ में शामिल किया था
धर्मेंद्र प्रधान
53 वर्ष
पीयूष गोयल
रेल एवं कोयला मंत्री
पीयूष गोयल महाराष्ट्र से राज्यसभा सदस्य हैं। गोयल ने गांवों में बिजली पहुंचाने का काम तेजी से किया। 2014 में ऐसे गांवों की संख्या 18,000 थी, जो अब अब 4,000 रह गई है। गोयल के ऊर्जा मंत्री रहते हुए देश में सोलर एनर्जी के प्रोडक्शन में छह गुना बढ़ोत्तरी हुई है। बिजली कंपनियों को कर्ज से उबारा। इसके लिए उन्होंने उदय योजना चलाई।
खासियत: चार्टर्ड अकाउंटेंट और एक कामयाब बैंकर रहे हैं। एनर्जेटिक और हार्ड-वर्किंग मंत्री माने जाते हैं।
पेट्रोलियम एवं प्रकृति गैस एवं कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री
धर्मेंद्र प्रधान 2012 से बिहार से राज्यसभा सांसद हैं। एलपीजी पर मर्जी से सब्सिडी छोड़ने वाली स्कीम लाकर उन्होंने काफी सराहना पाई। प्रधानमंत्री मोदी की उज्ज्वला योजना को उन्होंने बेहतरीन ढंग से आगे बढ़ाया। इसके तहत देशभर में ढाई करोड़ से ज्यादा गरीब महिलाओं को फ्री एलपीजी कनेक्शन दिए गए। पेट्रोलियम मंत्रालय में लॉबी की शिकायत खत्म करने में भी सफलता पाई। प्रधान की ओडिशा की राजनीति में भी अच्छी पकड़ है। खासियत: व्यवहार कुशल, लो-प्रोफाइल, एनर्जेटिक। बीजेपी के महासचिव रहे हैं। 2011 में झारखंड के प्रभारी रहे। सांसद के रूप में वह कई अहम कमेटियों के मेंबर रह चुके हैं। संघ के साथ जुड़े रहे हैं।
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आवरण कथा
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06 आवरण कथा
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देश की पहली महिला पूर्णकालिक रक्षा मंत्री बनीं निर्मला सीतारमण निर्मला सीतारमण को मोदी सरकार के नए कैबिनेट विस्तार में नया रक्षामंत्री बनाया गया है। ऐसा दूसरी बार हुआ है कि जब किसी महिला को रक्षा मंत्रालय दिया गया है
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ल तक वाणिज्य मंत्रालय में स्वतंत्र प्रभार मंत्री निर्मला सीतारमण को मोदी सरकार के नए कैबिनेट विस्तार में नया रक्षामंत्री बनाया गया है। ऐसा दूसरी बार हुआ है कि जब किसी महिला को रक्षा मंत्रालय दिया गया है। ऐसा माना जाता है कि जेएनयू की छात्रा रहीं निर्मला सीतारमण के काम से पीएम मोदी खुश थे और उन्होंने वाणिज्य मंत्रालय में रहते हुए कई अहम समझौते किए हैं, जिससे वाणिज्य के क्षेत्र में केंद्र सरकार विकास और विस्तार के नए फैसले लेने में काफी सहूलियत मिली है।
निर्मला सीतारमण ने 1980 में सीतालक्ष्मी रामास्वामी कॉलेज, तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु से ग्रेजुएशन किया है। उसके बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से एम.फिल. किया है। उनको
अरुण जेटली की जगह रक्षा मंत्री बनाया गया है। कैबिनेट फेरबदल में सबसे चौंकाने वाले फैसले के रूप में निर्मला सीतारमण का नाम आया है। निर्मला इससे पहले वाणिज्य मंत्रालय संभाल रही थीं। उन्हें
निर्मला सीतारमण देश की पहली पूर्णकालिक महिला रक्षा मंत्री हैं। इससे पहले इंदिरा गांधी रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाल चुकी हैं। निर्मला सीतारमण को टीवी डिबेटों में अक्सर तार्किक तौर पर मजबूती के साथ भाजपा का पक्ष रखते देखा जाता रहा है
राज्यमंत्री से प्रमोशन कर कैबिनेट मंत्री की शपथ दिलाई गई है।
2006 से भाजपा में
2006 में भाजपा में शामिल हुई निर्मला सीतारमण देश की पहली पूर्णकालिक महिला रक्षा मंत्री हैं। इससे पहले इंदिरा गांधी रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाल चुकी हैं। निर्मला सीतारमण को टीवी डिबेटों में अकसर तार्किक तौर पर मजबूती के साथ भाजपा का पक्ष रखते देखा जाता रहा है। नितिन गडकरी जब भाजपा अध्यक्ष बनाए गए, तब निर्मला
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किन देशों में महिला रक्षा मंत्री न
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नार्वे की रक्षामंत्री एनएमई सोर्रडिया हैं। सोर्रडिया तीन साल से रक्षा मंत्री हैं
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एमडी कॉस्पेडल स्पेन की रक्षा मंत्री हैं। वह इस पद पर पिछले एक साल हैं
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दिग्गज ही रहे हैं रक्षा मंत्री
देश के इतिहास में रक्षा मंत्री हमेशा से पार्टी के दिग्गज नेता संभालते आए हैं। वाजपेयी सरकार के जमाने में जार्ज फार्नांडीस रक्षा मंत्री थे, वहीं यूपीए के समय एके एंटनी रक्षा मंत्री बने थे। इस लिहाज से देखा जाए तो निर्मला सीतारमण में जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भरोसा जताया है, उस फैसले के सभी कायल हैं। रक्षा मंत्री बनाए जाने पर निर्मला सीतारमण
मैरिस प्याने ऑस्ट्रेलिया की रक्षा मंत्री हैं ने प्रतिक्रिया जताते हुए कहा, ‘मैं पार्टी और प्रधानमंत्री को धन्यवाद देना चाहूंगी। दक्षिण भारत से आने वाले कार्यकर्तओं को भी आभार जिनका प्यार हमेशा बना रहा है।’
गहन मंथन के बाद निर्णय
मनोहर पर्रिकर को गोवा के मुख्यमंत्री बनने के बाद रक्षा मंत्री का अतिरिक्त प्रभार अरूण जेटली संभाल
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यूवी लेयन जर्मनी की रक्षा मंत्री हैं। वह 3 साल से रक्षा मंत्रालय संभाल रही हैं
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सीतारमण को पार्टी का प्रवक्ता बनाया गया था। धीरेधीरे उन्होंने पार्टी में अपनी पहचान बनाई। उनकी पहचान एक बौद्धिक छवि के महिला के रूप में रही है। निर्मला सीतारमण का ताल्लुक दक्षिण भारत के दो राज्यों से हैं। उनका जन्म तमिलनाडु में हुआ है लेकिन उनका ससुराल आंध्र प्रदेश में है, जबकि उन्होंने पढ़ाई जेएनयू से की है।
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आर स्रंकिस्का मक्डोनिया की रक्षा मंत्री हैं
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रॉबर्टा पिंटो इटली की रक्षामंत्री हैं। वह 3 सालों से इस मंत्रालय को संभाल रही हैं
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फ्लोरेंस पार्ली इस समय फ्रांस की रक्षा मंत्री हैं
एनएम नकुला दक्षिण अफ्रीका की रक्षा मंत्री हैं
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आर. ओमामो केन्या की रक्षा मंत्री हैं
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शेख हसीना इस समय रक्षा मंत्री हैं। वह देश की प्रधानमंत्री भी हैं
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एम कोढेली अल्बानिया की रक्षा मंत्री हैं। वह तीन साल से रक्षा मंत्री हैं
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जेएस प्लैसचार्ट नीदरलैंड की रक्षा मंत्री हैं। 2012 में उनको यह जिम्मेदारी दी गई थी
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र्मला सीतारमण को रक्षा मंत्री बनाए जाने के साथ ही भारत उन देशों की कतार में खड़ा हो गया है, जहां महिलाएं रक्षा मंत्रालय का कार्यभार संभाल रही हैं। देश में महिला सशक्तिकरण के साथ लोकतांत्रिक व्यवस्था में महिलाओं की बढ़ती हैसियत की यह पहचान है। गौरतलब है कि इस समय विदेश और रक्षा दोनों ही मंत्रालय भारत में महिलाअों के ही जिम्मे है और यह न सिर्फ महिलाओं के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए गौरव की बात है। भारत के अलावा जिन देशों में महिला रक्षा मंत्री हैं, उनमें दक्षिण अफ्रीका, नार्वे, जर्मनी, इटली, इटली और फ्रांस शामिल हैं।
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आवरण कथा
एंड्रेजी कैटिक स्लावेनिया की रक्षा मंत्री हैं रहे थे। रक्षा मंत्री के चयन को लेकर भाजपा में काफी दिनों से मंथन चल रहा था। नरेंद्र मोदी ने चार लोगों के जिम्मे रक्षा मंत्री चयन का जिम्मा सौंपा था। इनमें नितिन गडकरी, अरुण जेटली, राजनाथ सिंह व सुषमा स्वराज शामिल हैं, लेकिन देर रात बैठक के बाद भी नाम नहीं तय हो पाया था। इस बीच अचानक निर्मला सीतारमण का नाम रक्षा मंत्री के रूप में घोषणा करके प्रधानमंत्री ने सबको चौंका दिया।
08 आवरण कथा
11 - 17 सितंबर 2017
टीम मोदी लगन और प्रतिबद्धता को समर्पित टीम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल और विस्तार किया है। इस बीच उन्होंने कार्यानुभव और प्रदर्शन के आधार पर जहां कुछ नए चेहरों को मौका दिया है, वहीं कई मंत्रियों को कैबिनेट स्तर पर प्रमोट किया है। कुछ मंत्रियों के पुराने विभाग भी बदले हैं। मंत्रिमंडल के हालिया पुनर्गठन के बाद जहां प्रधानमंत्री ने अपनी टीम को हर लिहाज से संतुलित बनाने की भरसक कोशिश की है, वहीं इससे उनका यह इरादा भी साफ हुआ है कि वे अपने ‘न्यू इंडिया’ विजन को जल्द से जल्द सरजमीं पर उतरता देखना चाहते हैं। नए मंत्रिमंडलीय फेरबदल को लेकर जो हर तरफ से प्रतिक्रियाएं भी आईं, उसमें यह बात सामान्य तौर पर कही गई कि प्रधानमंत्री मोदी जहां अपने मंित्रमंडलीय साथियों के चुनाव में पूरा धैर्य और विवेक दिखाते हैं, वहीं उनके सामने यह भी साफ है कि उन्हें अपनी टीम में ऐसे साथियों का चुनाव करना है, जो उनके साथ पूरी ऊर्जा, लगन और प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर सकें। यही वजह है कि उन्होंने कई ऐसे लोगों को भी मंत्री बनाया है, जिनका राजनीतिक अनुभव भले कम हो प्रशासनिक अनुभव काफी लंबा रहा है।
कैबिनेट मंत्री
नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री
राजनाथ सिंह गृह मंत्री
सुषमा स्वराज विदेश मंत्री
अरुण जेटली वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री
नितिन जयराम गडकरी सड़क परिवहन एवं राजमार्ग, जहाजरानी, जल संसाधन और नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री
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आवरण कथा
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सुरेश प्रभु वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री
डी.वी. सदानंद गौडा सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्री
उमा भारती पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री
रामविलास पासवान उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री
मेनका संजय गांधी महिला एवं बाल विकास मंत्री
अनंत कुमार रसायन एवं उर्वरक और संसदीय कार्य मंत्री
रविशंकर प्रसाद कानून एवं न्याय तथा इलेक्ट्रॉनिक्स सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री
जगत प्रकाश नड्डा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री
अशोक गजपति राजू नागरिक विमानन मंत्री
अनंत गीते रसायन एवं उर्वरक और संसदीय कार्य मंत्री
हरसिमरत कौर बादल खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री
नरेन्द्र सिंह तोमर ग्रामीण विकास मंत्री, पंजायती राज मंत्री एवं खान मंत्री
चौधरी बीरेन्द्र सिंह इस्पात मंत्री
जुआल ओराम जनजातीय कार्य मंत्री
राधा मोहन सिंह कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री
थावर चंद गहलोत ग्रामीण विकास मंत्री, पंजायती राज एवं खान मंत्री
स्मृति जुबिन ईरानी कपड़ा और सूचना एवं प्रसारण मंत्री
डॉ. हर्षवर्धन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, भू-विज्ञान एवं पर्यावरण और वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री
पीयूष गोयल रेल एवं कोयला मंत्री
निर्मला सीतारमण रक्षा मंत्री
प्रकाश जावडेकर मानव संसाधन विकास मंत्री
मुख्तार अब्बास नक्वी अल्पसंख्यक कार्य मंत्री
धर्मंेद्र प्रधान पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस एवं कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री
10 आवरण कथा
11 - 17 सितंबर 2017
राव इंद्रजीत सिंह योजना (स्वतंत्र प्रभार) एवं रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री
कर्नल राज्यवर्द्धन सिंह राठौर युवा कार्य एवं खेल राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) एवं सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री
संतोष कुमार गंगवार श्रम एवं रोजगार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
राजकुमार सिंह बिजली राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
श्रीपद येसो नाईक डॉ. महेश शर्मा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) आयुर्वेद, संस्कृति मंत्रालय (स्वतंत्र प्रभार), योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री सिद्धा, होम्योपैथी (आयुष)
गिरिराज सिंह सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
मनोज सिन्हा संचार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) एवं रेल राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, जनशिकायत एवं पेंशन, परमाणु ऊर्जा एवं अंतरिक्ष विभाग में राज्य मंत्री
हरदीप सिंह पुरी अलफोंस कन्ननथनम आवास एवं शहरी कार्य पर्यटन (स्वतंत्र प्रभार) एवं इलेक्ट्रॉनिकस राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री
राज्य मंत्री
विजय गोयल संसदीय कार्य एवं सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन राज्य मंत्री
राधाकृष्णन पी वित्त एवं जहाजरानी राज्य मंत्री
एस.एस. आहुवालिया पेय जल एवं स्वच्छता राज्य मंत्री
रमेश चंदप्पा जिगाजिनागी पेय जल एवं स्वच्छता राज्य मंत्री
रामदास अठावले सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री
विष्णु देव साई इस्पात राज्य मंत्री
राम कृपाल यादव ग्रामीण विकास राज्य मंत्री
हंसराज गंगाराम अहीर गृह राज्य मंत्री
हिरभाई पार्थीभाई चौधरी खनन एवं कोयला राज्य मंत्री
राजेन गोहेन रेल राज्य मंत्री
जनरल वी.के. सिंह (सेवानिवृत) विदेश राज्य मंत्री
पुरुषोतम रुपाला कृषि एवं किसान कल्याण और पंचायती राज राज्य मंत्री
कृष्णपाल सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री
जसवंत सिंह सुमन भाई भाभोर जनजातीय राज्य मंत्री
शिव प्रताप शुक्ला वित्त राज्य मंत्री
11 - 17 सितंबर 2017
आवरण कथा
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अश्विनी कुमार चौबे स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री
सुदर्शन भगत जनजातीय मामलों के राज्य मंत्री
उपेन्द्र कुशवाहा मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री
किरेन रिजिजु गृह राज्य मंत्री
डॉ. वीरेंद्र कुमार महिला एवं बाल विकास और अल्पसंख्यक राज्य मंत्री
अनंत कुमार हेगड़े कौशल विकास एवं उद्यमिता राज्य मंत्री
एम जे अकबर विदेश राज्य मंत्री
साध्वी निरंजन ज्योति खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री
वाई एस चौधरी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और भू विज्ञान राज्य मंत्री
जयंत सिन्हा नागरिक विमानन राज्य मंत्री
बाबुल सुप्रियो भारी उद्योग एवं सार्वजनिक उद्यम राज्य मंत्री
विजय सांपला सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री
अर्जुन राम मेघवाल संसदीय मामले और जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण राज्य मंत्री
अजय टम्टा कपड़ा राज्य मंत्री
कृष्णा राज कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री
मनसुख एल मांडविया सड़क परिवहन एवं राजमार्ग, जहाजरानी और रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री
अनुप्रिया पटेल स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री
सी आर चौधरी कानून एवं न्याय और काॅरपोरेट राज्य मंत्री
पी पी चौधरी कानून एवं न्याय और कार्पोरेट राज्य मंत्री
डॉ. सत्यपाल सिंह मानव संसाधन विकास और जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण राज्य मंत्री
गजेंद्र सिंह शेखावत कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री
डॉ. सुभाष रामराव भामरे रक्षा राज्य मंत्री
12 जेंडर
11 - 17 सितंबर 2017
मिहला
सशिक्तकरण
स्वयं सहायता समूहों ने बढ़ाया महिलाओं का वित्तीय दमखम
मजदूरी और दूसरों के घरों में काम करने वाली हजारों महिलाओं ने कभी ये सोचा नहीं होगा कि उनके द्वारा स्वयं सहायता समूह में जमा की गई छोटी सी राशि कभी करोड़ों में हो जाएगी। आज यह बचत महिलाओं की वित्तीय और सामाजिक ताकत बन चुकी है
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एसएसबी ब्यूरो
ब वो दौर गया जब महिला उद्यम घरों से बाहर सार्वजनिक तौर पर जाहिर होने के उदाहरण आपवादिक हुआ करते थे। आज महिलाएं खेती-किसानी जुड़े कार्यों से लेकर फाइटर जेट विमान उड़ाने तक हर तरह का काम में अपने कौशल को साबित कर रही है। इन सबके साथ शुरू हुआ है, जब महिला सशक्तिकरण का सर्वथा नया अध्याय और इस अध्याय के पन्ने सबसे सुनहरे तब मालूम पड़ते हैं, जब यह पता चलता है कि ग्रामीण अंचलों में महिलाएं घरों से बाहर निकलकर अपनी उद्यमता दिखाते हुए अपने और अपने घर-परिवार को वित्तीय तौर पर स्वावलंबी बनाने में लगी हुई हैं।
ऐसी ही एक मिसाल कायम की है कानपुर से लगभग सात किलोमीटर दूर जाजमऊ छावनी कैंट के बदलीपुरवा गांव की महिलाओं ने। मजदूरी और दूसरों के घरों में काम करने वाली, झुग्गी-झोपड़ी और ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली हजारों महिलाओं ने कभी ये सोचा नहीं होगा कि उनके द्वारा स्वयं सहायता समूह में जमा की गई छोटी सी राशि कभी करोड़ों में हो जाएगी। कर्ज लेने के लिए
अब इन्हें महाजन के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता है, एक महिला जरूरत पड़ने पर अपने समूह से 50 हजार रुपए तक कम ब्याज पर कर्ज ले सकती है। बदलीपुरवा गांव में महिलाओं द्वारा 1997 में स्वयं सहायता समूह बनाए गए। इस गांव में 11 स्वयं सहायता समूह चलते हैं। हर समूह का अपना अलग नाम होता है। 15 से 20 महिलाएं हर समूह में होती हैं। इन महिलाओं ने 10 रुपए से जमा करना
उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन 2015 के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल 1,19,758 स्वयं सहायता समूह हैं, जिनसे लगभग 11,62,322 लोग जुड़े हैं। इनमें से 90,548 समूह बैंकों से जुड़े हैं
एक नजर
पहले महिलाएं ने 10 रुपए और अब 100 से 500 रुपए जमा करा रही हैं रोजगार के साथ शादी-विवाह में भी स्वयं सहायता समूह करती है सहायता
पैसे के हिसाब को लेकर महिलाओं के बीच नहीं होता कभी मन-मुटाव
शुरू किया था आज 100 से 200 रुपए तक जमा कर रही हैं। हर महिला की बचत 30 से 50 हजार रुपए तक है।
11 - 17 सितंबर 2017 281 समूह हैं, जिसमें 5232 महिलाएं जुड़ी हैं। इनके खाते में चार करोड़ रुपए जमा हैं।
सबकी अच्छी बचत
कानपुर में 1989 में महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वयं सहायता समूह की शुरुआत हुई। जिले में एक हजार से ज्यादा समूह बने हैं, जिसमें 15 हजार से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हैं खुद के रोजगार में मददगार
स्वयं सहायता समूह से जुड़ी 50 साल की कमला निषाद बताती हैं, ‘घर में कोई कमाने वाला था नहीं, दूसरों के यहां मजदूरी करके 20 साल पहले हर महीने 10 रुपए जमा करना शुरू किया, तभी समूह से 500 रुपए उधार लेकर सब्जी खरीद कर बेचना शुरू कर दिया, तबसे अभी तक सब्जी ही बेच रहे हैं।’ कमला की तीन लड़कियां और एक लड़का है, पांच साल पहले इनके पति नहीं रहे। वह बताती हैं, ‘बेटी की शादी में समूह के सुरक्षा कोष से हमे बर्तन दिए गए थे, पैसों से जुड़ी कोई भी मुसीबत आती है तो समूह ही हमारी ताकत है, जब जिस समय जितना चाहें निकाल सकते हैं, अब किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता है।’ कमला निषाद इस समूह की पहली महिला नहीं हैं, जिन्होंने 10 रुपए जमा करने शुरू किए हों और आज वो समूह से कर्ज लेकर अपना खुद का रोजगार कर रही हों, बल्कि इनकी तरह जिले की हजारों महिलाएं सशक्त होकर अपने जरूरी काम
समूह से कर्ज लेकर करती हैं।
सरकारी मंशा भी ऐसी ही
सरकार द्वारा चलाई जा रही योजना राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन का उद्देश्य भी गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को स्वयं सहायता समूहों के लिए प्रोत्साहित करना है। 2011-12 के आंकाड़ों के मुताबिक भारत में लगभग 61 लाख सहायता समूह हैं, जिनमें ज्यादातर महिलाओं के हैं। उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन 2015 के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल 11,9758 स्वयं सहायता समूह हैं, जिनसे लगभग 11,62322 लोग जुड़े हैं। इनमें से 90548 समूह बैंकों से जुड़े हैं। दिलचस्प है कि कानपुर जिले में एक गैर सरकारी संस्था श्रमिक भारती ने महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वयं सहायता समूह की शुरुआत 1989 में की। जिले में एक हजार से ज्यादा समूह बने हैं, जिसमें 15 हजार से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हैं। इनकी कुल बचत 13 करोड़ से ज्यादा है। केवल जाजमऊ ब्लॉक में
सीआईएसएफ ने बनाए स्वच्छता कार्यकर्ता
श्रमिक भारती के कार्यक्रम प्रबंधक विनोद दुबे बताते हैं, ‘अब इन महिलाओं को किसी महाजन के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता हैं, समूह की 90 प्रतिशत महिलाएं मजदूरी या दूसरों के घरों में काम करने वाली हैं, इनका रोज का कमाना और रोज का खाना है। ऐसे में हजारों रुपए की बचत करना इनके लिए संभव नहीं था। समूह में जुड़ने के बाद ये 50 हजार रुपए तक ले सकती हैं। हर महिला के समूह में उसकी बचत 30 से 50 हजार तक जमा हैं।’ वह आगे बताते हैं, ‘इन सभी समूहों के रजिस्टर्ड फेडरेशन हैं। ये समूह महिलाओं द्वारा बनाए गए हैं और उन्हीं के द्वारा संचालित भी किए जा रहे हैं। गरीब होने के बावजूद इनके पास एक मजबूत समूह है, जिसे ये अपना ताकत मानती हैं, पैसे के लेनदेन के साथ ही इनमें अपनी बात कहने की भी क्षमता बढ़ी है, ये कई मामलों में नेतृत्व की भूमिका में सामने आती हैं।’ इस समूह से जुड़ी मुन्नी निषाद (45 वर्ष) समूह से जुड़ा अपना अनुभव बताती हैं, ‘बिटिया की शादी में पचास हजार रुपए इसी समूह से उधार लिए थे, रिश्तेदारों के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ा था, छोटी-छोटी बचत से आज हमें इतना आराम हो गया है जब भी जिस काम में जितने पैसे की जरूरत पड़ती है अपने समूह से ले लेते हैं।’ वे आगे बताती हैं, ‘जमीन खरीदने में 50 हजार रुपए कम पड़े तो भी यहीं से लिए, धीरे-धीरे मजदूरी करके चुका देते हैं। हमारे ऊपर पैसा चुकाने में किसी का दबाव नहीं रहता है, रात-विरात कोई बीमार पड़ जाए तो तुरंत पैसे निकाल कर इलाज तो शुरू करा सकते हैं। जब समूह से नहीं जुड़े थे तो 10 लोगों से पहले पैसा मांगते थे और तब कहीं इलाज करवा पाते थे। अगर उधार पैसे नहीं मिले तो बड़े लोगों से पैसे मांगते थे। सालों मजदूरी करने के बाद भी पूरा पैसा नहीं चुका पाते थे।’
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लेनदेन का विवाद नहीं
बदलीपुरवा गांव में हर महीने समूह की बैठक करने वाली बुक राइटर उर्मिला निषाद कहना है, ‘हर महीने की 14 तारीख को इस गांव में 11 समूहों के साथ अलग-अलग बुक राइटर बैठक करती हैं। ये बैठक 11 बजे से एक बजे तक होती है। इस मीटिंग में किसी को बुलाना नहीं पड़ता है। सब अपना कामकाज निपटाकर एक जगह इकट्ठा हो जाती हैं। पैसे के लेनदेन के बाद अगर किसी को कोई समस्या होती है, उसकी भी चर्चा की जाती है और इसके बाद उस समस्या का निदान भी हो ऐसी कोशिश रहती है।’ ‘दूसरों के कंडा पाथकर जो पैसा मिलता है उसे समूह में जमा करते हैं, पढ़े लिखे तो हैं नहीं जो कहीं नौकरी लग जाएगी। अगर समूह से न जुड़े होते तो आज हमारे पास एक भी रुपए की बचत न होती, अभी तो 40 हजार रुपए तक बचत हो गई है।’ यह कहना है 60 वर्षीय फूलमती निषाद का। फूलमती की तरह हजारों महिलाओं ने अपने बुढ़ापे के लिए हजारों रुपए समूह में बचत कर लिए हैं, जिससे अब इन्हें अपने बुढ़ापे की चिंता करने की जरूरत नहीं है। वह कहती हैं, ‘अभी तो हमारे हाथ पैर चलते हैं तो दूसरों के कंडे पाथ लेते हैं, जब बुढ़ापे में हाथ-पैर नहीं चलेंगे तो कौन हमे रोटी देगा। जो हमे रोटी देगा उसे हम इस बचत के पैसे देंगे, अगर ये बचत के पैसे नहीं होते तो बुढ़ापा काटना मुश्किल हो जाता।’
संगठन की ताकत
ब्लॉक समन्यवक शहनाज परवीन बताती हैं, ‘इन समूहों में एक ‘सुरक्षा कोष’ होता है। एक हजार रुपए कर्ज लेने पर 10 रुपए कम दिए जाते हैं। ये रुपए इस सुरक्षा कोष में जमा होते हैं। समूह की किसी भी महिला के सामने जब कोई मुसीबत आती है तो इस कोष के पैसे से उसकी मदद कर दी जाती है।’ शहनाज आगे बताती हैं, ‘ये महिलाओं द्वारा बनाए गए समूह हैं, जिसे ग्रामीण क्षेत्र की पढ़ी-लिखीं महिलाएं ही संचालित कर रही हैं। पैसे की मजबूती के साथ-साथ इनका अपना खुद का मजबूत महिला संगठन है। कहीं भी आवाज उठाने के लिए ये संगठन हमेशा एकजुट रहता है।’
सीआईएसएफ ने स्कूलों में स्वच्छता अभियान चला कर पााच हजार बच्चों को स्वच्छता कार्यकर्ता बनाया
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द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल की देश भर में स्थित इकाइयों द्वारा चलाए,जा रहे सघन स्वच्छ भारत अभियान के अंर्तगत विगत माह में कई उल्लेखनीय कार्य किए गए। अगस्त माह में दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में स्कूली बच्चों अध्यापकों, स्कूल, कार्मियों में सफाई के प्रति जागरुकता पैदा करने हेतु सीआईएसएफ की नुक्कड़ टीम ने विभिन्न स्कूलों में 5,000 बच्चों में स्वच्छता संदेश का प्रचार
एवं प्रसार किया। इसमें बच्चों को स्वच्छ भारत शपथ भी दिलाई गई। स्वच्छ भारत अभियान के तहत, स्कूली बच्चों अध्यापकों, स्कूल, कार्मियों में सफाई/ स्वच्छता कार्यक्रमों को बढ़ावा देने वाले इस तरह के अभियान से प्रधानमंत्री द्वारा संकल्पित स्वच्छ भारत बनाने का सपना साकार करने में बहुत मदद
मिल रही हैं। सभी स्कूलों के प्रधानाचार्यों, अध्यापकों तथा स्कूल के स्टाफ ने सीआईएसएफ की टीम द्वारा किए गए इस अभियान की सराहना की । स्कूली बच्चों में इस अभियान से सफाई के प्रति एक नई
ऊर्जा का संचार हुआ है। इस अभियान से प्रेरित होकर बच्चों ने अपने स्कूल,घर तथा आसपास के इलाकों को स्वच्छ रखने का संकल्प लिया। हमने लगभग 5,000 बच्चों स्वच्छता के नए कार्यकर्ता के रूप में समाज को दिया है।
14 शिक्षा
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बाल शिक्षा
‘शहजादे अवध’ की बाल चौपाल 13 वर्षीय आनंद कृष्ण मिश्रा सैकड़ों बच्चों को स्कूल पहुंचाने के साथ ही 150 से ज्यादा गांवों में अपनी बाल चौपाल के जरिए हजारों बच्चों से रूबरू हो चुके हैं। वे बच्चों के लिए कई पुस्तकालय भी चला रहे हैं
एक नजर
आनंद खुद पढ़ाई कर रहे हैं और नौवीं कक्षा के छात्र हैं शिक्षा के प्रसार के लिए बेटे की लगन में मां-पिता भी सहयोगी
आनंद ने 2012 में शुरू की पहली बाल चौपाल
तो वो छोटा सा बच्चा मराठी और संस्कृत में पूरी आरती को लीड कर रहा था। जब हम बाहर निकले तो उस बच्चे को हमारे पिताजी ने कुछ पैसे दिए तो उसने ये कहकर मना कर दिया ये भीख है हम नहीं लेंगे,’ ये बताते हुए आनंद की आंख में आंसू भर जाते हैं। इस बारे में वे आगे बताते हैं, ‘बहुत कहने पर उसने पैसे नहीं लिए, उसने कहा उसे कुछ कॉपी-पेन खरीद कर दे दीजिए। उस बच्चे की इस बात से मैं बहुत प्रभावित हुआ, उसने मुझसे तब तक अपना हाथ हिलाया, जबतक की हम उसकी नजरों से ओझल नहीं हो गए।’
बाल चौपाल की शुरुआत
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एसएसबी ब्यूरो
तिभा और लगन में बच्चे किसी से कम नहीं होते। यही नहीं, समाज और देश की सेवा के लिए वे कई बार ऐसा कर जाते हैं, मिसाल बन जाते हैं। ऐसा ही एक बच्चा है 13 वर्षीय आनंद। आज आनंद जहां खुद अपनी पढ़ाई कर रहा है, वहीं वह ऐसे बच्चे स्कूल जाने से डरते हैं या जिनके माता-पिता उन्हें स्कूल नहीं भेजते हैं, ऐसे बच्चों को पढ़ाने और उन्हें स्कूल भेजने की जिम्मेदारी उठा रहे हैं। कमाल की बात यह भी है कि आनंद ऐसा हालफिलहाल से नहीं, बल्कि पिछले पांच वर्षों से कर रहे हैं। अब तक आनंद सैकड़ों बच्चों को स्कूल पहुंचाने के साथ ही 150 से ज्यादा गांव में अपनी बाल चौपाल के जरिए हजारों बच्चों से रूबरू हो चुके हैं। अपने अनुभव के बारे में आनंद बताते हैं, ‘मैं पहले गांव में खेल रहे बच्चों से दोस्ती करता
लखनऊ के आनंद कृष्ण मिश्रा कानपुर रोड स्थित सिटी मांटेसरी स्कूल में नौवीं के छात्र है। वह सिर्फ पांच घंटे ही सोते हैं। उनका पूरा समय पढ़ने और पढ़ाने में गुजरता है हूं। फिर उन्हें एक जगह इकट्ठा करके पढ़ाता हूं। पढ़ाने से ज्यादा उन्हें ये समझाने की कोशिश करता हूं कि पढ़ाई उनके लिए कितनी जरूरी है। अपनी पढ़ाई के बाद मेरे पास जितना भी समय बचता है, कोशिश करता हूं इन बस्तियों में जकर इन बच्चों को पढ़ा सकूं।’ ये बताते हुए नवीं के छात्र आनन्द कृष्ण मिश्रा के माथे पर परेशानियों की लकीरें आ जाती हैं। आनंद बताते भी हैं, ‘मैं हमेशा उन बच्चों को देखकर परेशान होता हूं, जो सड़क पर भिक्षा मांग रहे होते हैं या फिर होटलों पर काम कर रहे होते हैं। कोई भी बच्चा पढ़ाई से वंचित न रहे इसके लिए मैं हर संभव प्रयास करता हूं।’
एक घटना ने बदली सोच
लखनऊ के आलमबाग के समर बिहार पार्क के श्रीनगर कस्बे में रहने वाले आनंद कृष्ण मिश्रा कानपुर रोड स्थित सिटी मांटेसरी स्कूल में नवीं के छात्र है। वह सिर्फ पांच घंटे ही सोते हैं। उनका पूरा समय पढ़ने और पढ़ाने में गुजरता है। जब आनंद चौथी कक्षा में पढ़ते थे तब वो अपने माता-पिता के साथ साल 2011 में उज्जैन घूमने गए, एक छोटी सी घटना से आनंद के मन में बाल चौपाल शुरू करने का विचार आया। उस छोटी सी घटना का जिक्र करते हुए आनंद भावुक हो जाते हैं, ‘एक मंदिर में दर्शन के दौरान मंदिर के बाहर धीमी रोशनी में एक छोटा बच्चा पढ़ाई कर रहा था, जब आरती शुरू हुई
आनंद जब घूमकर वापस आए तो उनके जेहन से उस लड़के की छवि धूमिल नहीं हुई। आनंद उस समय लगभग नौ वर्ष के थे। 12 जनवरी साल 2012 को राष्ट्रीय युवा दिवस और विवेकानंद की जयंती पर पहली बार काकोरी ब्लॉक के भवानी खेड़ा गांव से बाल चौपाल की शुरुआत की। पहले दिन का अनुभव साझा करते हुए आनंद बताते हैं, ‘उस समय मै बहुत छोटा था। मम्मी-पापा के साथ गया था। कुछ बात करेंगे उनसे ये कहकर एक जगह खेल रहे बच्चों को मैंने इकट्ठा किया। कुछ देर में 20-25 बच्चे इकट्ठे हो गए। शुरुआत उस दिन उस गांव से की थी।’ उन्होंने आगे कहा, ‘उस दिन से अपने पड़ोस के बच्चों को इकट्ठा करके पढ़ाना शुरू कर दिया था, पहले दिन चार-पांच बच्चे ही थे। ये वे बच्चे थे जिनकी मांएं दूसरों के घरों में काम करती थी और पिता मजदूरी। कुछ तो सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते थे पर कुछ घर पर ही रहते थे, इन बच्चों को मेरे जैसी ही शिक्षा मिले इसके लिए मै रोज इन्हें पढ़ाता था।’
चाणक्य से प्रभावित
चाणक्य का जिक्र करते हुए आनंद बताते हैं, ‘मुझे उनकी यह बात हमेशा याद रहती है कि जब भी किसी से मिलो तो ऐसे मीलों जैसे जीवन के आखिरी क्षणों में मिल रहे हो। यही सोचकर मैं हर किसी
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बेटे की कीर्ति से अभिभूत मां-बाप
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नंद के माता-पिता यूपी पुलिस में नौकरी करते हैं पर अपने बेटे के इस कार्य में ये पूरा सहयोग करते हैं। आनंद के पिता अनूप मिश्रा घर की आलमारी में रखे अवार्ड की ओर देखते हुए बताते हैं, ‘इस छोटी सी उम्र में आनंद ने इतने सारे अवार्ड पाए हैं, एक पिता के लिए इससे ज्यादा गर्व की क्या बात हो सकती है, जब आनंद छोटा था, तब मैं या मेरी पत्नी अपनी ड्यूटी से लौटकर किसी एक गांव ले जाते थे पर पिछले
दो सालों से आनंद ने घर से दो किलोमीटर दूर कलिंदर खेड़ा गांव में साइकिल से पढ़ाने खुद चला जाता था।’ वे आगे बताते हैं, ‘आनंद को छोटी उम्र से ही किताबें पढ़ने का बहुत शौक है। वह हर हफ्ते कोई न कोई साहित्यिक किताब जरूर मंगाता है। पढ़ाई के अलावा लखनऊ महोत्सव में आनंद लगातर ‘शहजादे अवध’ का तीन बार खिताब जीत चुके हैं।’ आनंद की मां रीना मिश्रा खुश होकर बताती
हैं, ‘आनंद के इस काम से हम खुश हैं। इस काम की वजह से आनंद की पढ़ाई पर कोई असर न पड़े। इसके लिए मैं उसकी पढ़ाई में उसे बहुत सहयोग करती हूं। अभी तक 96 प्रतिशत से कम कभी भी उसका रिजल्ट नहीं आया है। उसके सवाल कई बार ऐसे होते हैं, जिनके जवाब हमारे पास नहीं होते हैं। इतनी कम उम्र में आनंद ने बहुत किताबें पढ़ ली हैं, इसीलिए उसे पास हर विषय की बहुत जानकारी है।’ बच्चों को एक घंटे पढ़ाने जाता हूं। अब ये बच्चे मेरे अच्छे दोस्त बन गए हैं। मुझे जितनी सुविधाएं पढ़ाई के लिए मिली हैं, ये उनसे वंचित हैं। इसीलिए मेरी कोशिश है कि मैं अपने ज्ञान को इनके बीच बांट सकूं जिससे इन्हें अपनी असुविधाओं का अहसास न हो।’
छोटी-छोटी लाइब्रेरी
से मिलता हूं, मैं अपना जन्मदिन नहीं मनाता हूं। जन्मदिन पर जो पैसे खर्च होते हैं, उन्हीं पैसों से मैं इन बच्चों को कॉपी-पेन, बैग खरीदकर देता हूं। नवरात्रि में रामनवमी को मां कन्याभोज कराती हैं। मैं गांव में उन कन्याओं को पढ़ने के लिए प्रेरित करता हूं और उनकी जरूरत का सामान उपलब्ध कराता हूं।’
आनंद अपनी बातचीत में बहुत ही कठिन और साहित्यिक शब्दों का प्रयोग करते हैं। उनसे बातचीत करते हुए ऐसा लगता नहीं है कि वे महज 13 वर्ष के हैं। आनंद हमेशा इस बात से परेशान रहते हैं कि शिक्षा पर इतना पैसा खर्च हो रहा है, पर गांव के बच्चों की शिक्षा में कोई सुधार नहीं हो रहा है। उनका कहना है, ‘मैं सप्ताह में तीन से चार दिन 70-80
गांव के अभावग्रस्त बच्चों के पास अच्छी किताबों का अभाव होता है। इसीलिए आनंद ने अपनी टीचर और कुछ दोस्तों की मदद से इन बच्चों के पुस्तकालय बनाया है। अब तक 10 छोटी-छोटी लाइब्रेरी ये उन गांवों में बना चुके हैं, जहां के बच्चों ने पढ़ने में दिलचस्पी दिखाई है। आनंद बताते हैं, ‘पढ़ाई के अलावा भी बच्चों को किताबें मिले, जिससे उनका सामान्य ज्ञान बढ़े, इसीलिए अपनी टीचर जो कि हमारे स्कूल की फाउंडर भारती गांधी मैम ने हमें बहुत सारी किताबें दीं। अपने दोस्तों से पुरानी और नई किताबें इकट्ठा करके इन बच्चों के लिए इनके ही गांव में किसी एक के घर में एक के घर लाइब्रेरी बनाई है।’ इस लाइब्रेरी से बच्चे ज्यादा से ज्यादा किताबें पढ़ सकें और हर
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गांव के अभावग्रस्त बच्चों के पास अच्छी किताबों का अभाव होता है। इसीलिए आनंद ने अपनी टीचर और कुछ दोस्तों की मदद से इन बच्चों के पुस्तकालय बनाया है। अब तक 10 छोटी-छोटी लाइब्रेरी ये गांवों में बना चुके हैं
गांव में लाइब्रेरी हो, इसके लिए ये सभी से किताबें देने की बात कहते हैं जिनके पास भी पुरानी किताबें हैं, वे उन्हें दे दें, जिससे लाइब्रेरी की संख्या बढाई जा सके आनंद ने ऐसी इच्छा जाहिर की है।
मां-पिता के साथ योजना पर विचार
आनंद अपने मम्मी-पापा के साथ खाली समय में कार्ययोजना बनाते हैं कि इस बाल चौपाल को आगे कैसे ले जाना है। इनके मम्मी-पापा सरकारी सर्विस में भले ही हैं, पर आनंद के इस विजन को पूरा करने में बहुत सहयोग कर रहे हैं। हर दिन इनकी बाल चौपाल में कुछ नया हो, ये इनकी कोशिश रहती है। आनंद अपने ड्रीम प्रोजेक्ट के बारे में बताते हैं, ‘मैं इंजीनियर बनना चाहता हूं और अपने देश में एक ऐसी कंपनी बनाना चाहता हूं, जिसमें उनको उनकी योग्यता के हिसाब से पूरा पैसा मिल सके, जिससे हमारे देश का कोई भी इंजीनियर विदेश न जाए, देश का ज्ञान देश के काम आए यही हमारा सपना है।’ वे आगे बताते हैं, मेरे बहुत सारे अवार्ड मेरे आगे बढ़ने की सीढ़ियां हैं, मैं अपनी बाल चौपाल कभी बंद नहीं करूंगा इसे और बेहतर ढंग से आगे ले जाऊंगा। मेरे बहुत सारे दोस्त मेरे इस काम में मदद कर रहे हैं, हम सभी अपनी पढ़ाई के बाद इन बच्चों को निशुल्क पढ़ाने में जुटे हुए हैं।’ आनंद अब जब ऊंची कक्षाओं में पहुंच रहे हैं और उनका कोर्स बढ़ रहा है तो उनके सपने को पूरा करने में उनके माता-पिता मदद करते हैं। खासतौर पर प्राथमिक विद्यालयों की शैक्षिणक व्यवस्था बेहतर हो इसके लिए उनके पिता स्कूलों में जाते हैं। उन समस्याओं को कैसे मिलकर सुलझाया जाए उस पर आपस में विचार विमर्श करते हैं। कुछ स्कूल उन्होंने अभी गोद भी लिए हैं, जिसकी वे पूरी देखरेख कर रहे हैं।
16 खुला मंच
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‘शासक को स्वयं योग्य बनकर योग्य प्रशासकों की सहायता से शासन करना चाहिए’ - चाणक्य
सू की और मोदी के साथ आने के मायने
दोनों नेताओं का रिश्ता लोकतंत्र के वैश्विक विस्तार और स्वीकृति की नजर से अहम है
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क समय भारत का राजनीतिक- सांस्कृतिक विस्तार म्यांमार तक फैला था, पर नए दौर में हम दो स्वतंत्र पड़ोसी देश हैं। भारत में लोकतंत्र के बीज काफी पुराने हैं और आजादी के बाद से लोकतांत्रिक व्यवस्था यहां सुचारु रूप से चल भी रही है। पर यही बात हम म्यांमार को लेकर नहीं कह सकते हैं। पिछले साल वहां नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के राष्ट्रपति तिन जॉ के नेतृत्व वाली नई सरकार, जिसकी कमान असल में आंग सान सू की के हाथ में है, सत्ता में आई। म्यांमार सरकार के सामने देश में और पड़ोसियों तथा अन्य प्रमुख शक्तियों के साथ विकसित होते संबंधों में कई बड़ी चुनौतियां हैं। म्यांमार के भीतर विभिन्न जातीय सशस्त्र समूहों के साथ शांति प्रक्रिया एवं सुलह को तेज करना प्रमुख मुद्दों में से है, जिससे जल्द से जल्द निपटना होगा। आंग सान सू की ने शांति एवं सुलह करने का जिम्मा अपने हाथ में लिया है और इस तरीके को वह 21वीं सदी का पांगलोंग सम्मेलन कहती हैं। गौरतलब है कि सू की के पिता और बर्मा के सम्मानित नेता जनरल आंग सान ने 1947 में पांगलोंग सम्मेलन आयोजित किया था। उसका उद्देश्य अंग्रेजों से आजादी प्राप्त करना और बर्मा में शामिल सभी संघीय इकाइयों को एक सीमा तक स्वांयत्तता प्रदान कर उसे राज्यों का संघ बनाए रखना था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स सम्मेलन से लौटते हुए म्यांमार पहुंचे और इस बात पर जोर दिया कि म्यांमार के विकास और वहां लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थिरता में उनकी स्वाभाविक रुचि है और इसके लिए पूर्व की भांति आगे भी भारत म्यांमार का सहयोग करता रहेगा। मोदी और सू की का एक साथ खड़ा होना, लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्ध दुनिया के दो बड़े नेताओं का खड़ा होना है। म्यांमार में लोकतंत्र की बहाली के लिए सू की ने लंबा संघर्ष किया है और इस दौरान भारत हमेशा उनका मददगार रहा है। लिहाजा दोनों देशों और उनके नेताओं का रिश्ता लोकतंत्र के वैश्विक विस्तार और स्वीकृति की नजर से भी अहम है। दुनिया भी इस अहमियत को समझ रही है।
टॉवर
(उत्तर प्रदेश)
अर्जुन राम मेघवाल
स्मरण
लेखक वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों के राज्य मंत्री हैं
देश में वित्तीय समावेशन ‘मेरा सपना एक ऐसे डिजिटल भारत को निर्मित करने का है जिसमें मोबाइल और ई-बैंकिंग से वित्तीय समावेशन सुनिश्चित होगा’ -प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
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त्तीय समावेशन’ एक ऐसा मार्ग है, जिस पर सरकारें आम आदमी को अर्थव्यवस्था के औपचारिक माध्यम में शामिल करके ले जाने का प्रयास करती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अंतिम छोर पर खड़ा व्यक्ति भी आर्थिक विकास के लाभों से वंचित न रहे। उसे अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में शामिल किया जाए और ऐसा करके गरीब आदमी को बचत करने, विभिन्न वित्तीय उत्पादों में सुरक्षित निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है तथा उधार लेने की आवश्यकता पड़ने पर वह उन्हीं औपचारिक माध्यमों से उधार भी ले सकता है। वित्तीय समावेशन का अभाव होना समाज एवं व्यिक्त के लिए हानिकारक है। जहां तक व्यक्ति का संबंध है, वित्तीय समावेशन के अभाव में, बैंकों की सुविधा से वंचित लोग अनौपचारिक बैंकिंग क्षेत्र से जुड़ने के लिए बाध्य हो जाते हैं, जहां ब्याज दरें अधिक होती हैं और प्राप्त होने वाली राशि काफी कम होती है। चूंकि अनौपचारिक बैंकिंग ढांचा कानून की परिधि से बाहर है, अत: उधार देने वालों और उधार लेने वालों के बीच किसी भी विवाद का कानून निपटान नहीं किया जा सकता। आम आदमी को अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में शामिल करने से अनेक अन्य लाभ भी हैं तथा इससे एक ओर जहां समाज में कमजोर तबके के लोगों को उनके भविष्य तथा कष्ट के दिनों के लिए धन की बचत करने, विभिन्न वित्तीय उत्पादों जैसे कि बैंकिंग सेवाओं, बीमा और पेंशन उत्पादों आदि में भाग लेकर देश के आर्थिक क्रियाकलापों से लाभ प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहन प्राप्त होता है, वहीं दूसरी ओर इससे देश को ‘पूंजी निर्माण’ की दर में वृद्धि करने में सहायता प्राप्त होती है और इसके फलस्वरूप देश के कोने-कोने से होकर धन के प्रवाह से अर्थव्यवस्था को गति मिलती है और आर्थिक क्रियाकलापों को भी संवर्धन प्राप्त होता है। देश के जो लोग वित्तीय दृष्टि से मुख्यधारा में शामिल नहीं हुए हैं, वे प्राय: अपनी बचत/अपना निवेश भूमि, भवन और
बुलियन आदि जैसी अनुत्पादक आस्तियों में लगाते हैं। जबकि वित्तीय दृष्टि से अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में शामिल हो चुके लोग ऋण सुविधाओं का आसानी से उपयोग कर सकते हैं, चाहें वे लोग संगठित क्षेत्र में काम कर रहे हों अथवा असंगठित क्षेत्र में, शहरी क्षेत्र में रहते हों अथवा ग्रामीण क्षेत्र में। सूक्ष्म वित्तीय संस्थाएं (एमएफआई) गरीब लोगों का आसान एवं सस्ते ब्याज दरों पर ऋण देने के सर्वाधिक सुलभ उदाहरण हैं और इस क्षेत्र में इन संस्थाओं ने अनेक सफलताएं प्राप्त की हैं। वित्तीय समावेशन से सरकार को सरकारी सब्सिडी तथा कल्याणकारी कार्यक्रमों में अंतराल एवं हेरा-फेरी पर भी रोक लगाने में भी मदद मिलती है क्योंकि इससे सरकार उत्पादों पर सब्सिडी देने के बजाय सब्सिडी की राशि सीधे लाभार्थी के खाते में अंतरित कर सकती है। वास्तव में, इससे सरकार को सब्सिडी के बिल में लगभग 57,000 करोड़ रुपए से भी अधिक की राशि की बचत हुई है और इससे सब्सिडी का लाभ सीधे वास्तविक लाभभोगी तक पहुंचना सुनिश्चित हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार अपने कार्यकाल की शुरुआत से ही देश के हर व्यक्ति के वित्तीय समावेशन पर विशेष बल देने के लिए प्रतिबद्ध है। इस सरकार द्वारा किए गए अनेक उपायों में जैम-जनधन, आधार और मोबाइल सुविधा उपलब्ध कराना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री जनधन योजना को 28 अगस्त, 2014 को औपचारिक रूप में शुरू किया गया। यह स्कीम बहुत सफल रही है और इसके अंतर्गत दिसंबर 2016 तक सर्वेक्षण किए गए 21.22 करोड़ परिवारों में से 99.99 प्रतिशत परिवारों को
सभी नागरिकों और विशेषकर गरीब और सुविधा रहित लोगों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना शुरू की है
11 - 17 सितंबर 2017 कवर किया गया है। 44 लाख से अधिक खातों को ओडी सुविधा मंजूर की गई है जिसमें से लगभग 300 करोड़ की राशि से 23 लाख से अधिक खाताधारकों ने इस सुविधा का उपयोग किया है। सभी नागरिकों और विशेषकर गरीब और सुविधा रहित लोगों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना शुरू की है। इस स्कीम के तहत 12 अप्रैल, 2017 तक, लगभग 3.10 करोड़ से अधिक व्यक्तियों का नामांकन किया गया है। अटल पेंशन योजना 2015 में 18 से 40 आयु वर्ग के सभी खाताधारकों के लिए शुरू की गई और वे पेंशन राशि के आधार पर भिन्न अंशदान चुन सकते हैं। 31 मार्च, 2017 तक लगभग 46.80 लाख अनुमोदनकर्ता इस योजना के साथ जुड़े। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना गैर-कॉरपोरेट लघु व्यापार क्षेत्र को औपचारिक वित्तीय सुविधा पहुंच प्रदान करने के लिए अप्रैल 2015 में शुरू की गई। इस स्कीम का मुख्य उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था के गैर वित्तपोषित क्षेत्र को प्रोत्साहित करना एवं बैंक वित्त पोषण सुनिश्चित करना है। मुद्रा योजना के तहत, इसके प्रारंभ से लेकर 13 अगस्त, 2017 तक कुल लगभग 8 करोड़ 70 लाख ऋण दिए गए जिसमें से लगभग 6 करोड़ 56 लाख महिलाएं थीं। अन्य स्कीम में जिनमें जीवन सुरक्षा बंधन योजना, सुकन्या समृद्धि योजना, किसान क्रेडिट कार्ड, सामान्य क्रेडिट कार्ड और भीम ऐप शामिल हैं। एटीएम और व्हाइट लेबल एटीएम की नीतियों का उदारीकरण किया गया है। एटीएम के नेटवर्क का विस्तार करने के लिए आरबीआई ने गैर-बैंक संस्थाओं को एटीएम (व्हाइट लेबल एटीएम) शुरू करने की अनुमति दी है। अभी तक देश में 64.50 करोड़ डेबिट कार्डों में से रुपे कार्ड ने बाजार हिस्से मंी 38 प्रतिशत (250 एमएम) की त्वरित वृद्धि की है। पीएमजेडीवाई (170 मिलियन) खाता धारकों को कार्ड प्रदान किए गए हैं। आधार और बैंक खातों की सहायता से प्रत्यक्ष लाभ अंतरण एक बहुत बड़ी घटना है जो जनता को नए खोले गए खातों के साथ सक्रिय और संपर्क में रखती है। एससी, एसटी महिला उद्यमियों द्वारा ग्रीनफील्ड उद्यमों के लिए 10 लाख रुपए से 1 करोड़ रुपए तक के बैंक ऋण और पारिवारिक सहायता प्रदान करने के लिए स्टैंड-अप इंडिया शुरू किया गया। अगस्त 2017 के मध्य तक 38,477 ऋण धारकों को लगभग 8,277 करोड़ रुपए के ऋण वितरित किए जा चुके हैं, जिसमें से लगभग 31 हजार महिलाओं को बांटी गई राशि 6,895 करोड़ रुपए थी। इसी तरह देश में वित्तीय समावेशन को और अधिक मजबूत करने के लिए सरकार ने बैंकों को ग्रामीण क्षेत्रों में माइक्रो एटीएम स्थापित करने की सलाह दी है, परिणामस्वरूप,- दिसंबर 2016 तक 1, 14, 518 माइक्रो एटीएम स्थापित किए गए। सरकार वित्तीय प्रणाली में प्रत्येक परिवार के समावेशन के लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्ध है ताकि जनता देश के विकास से प्राप्त विधिक लाभों को प्राप्त कर सके और साथ ही जनता से जुटाई गई निधियां जो पहले औपचारिक चैनल में नहीं थीं, इन्हें औपचारिक चैनल में लाया जा सके, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को संबल प्राप्त हो और विकास पथ प्रशस्त हो सके।
खुला मंच
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थावरचंद गहलोत
लेखक केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री हैं
...ताकि दिव्यांगों का हो कल्याण दिव्यांगजनों के कल्याण और सशक्तिकरण के लिए दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग को अलग विभाग बनाया गया
भा
रतीय संविधान दिव्यांगजनों सहित सभी नागरिकों को स्वतंत्रता, समानता और न्याय के संबंध में स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। पर दिव्यांग लोगों के साथ भेदभाव के कारण दिव्यांगता की मात्रा दोगुनी हो जाती है। दिव्यांगता के अर्थ को रहस्यपूर्ण नहीं रखने और दिव्यांगता के मिथकों और गलतफहमियों का मुकाबला करने के लिए हम सब ने स्वयं को शिक्षित करने में एक लंबी समयावधि ली है। हमें प्रतिदिन इन नवीन अवधारणाओं को क्रियाशील बनाए रखने की जरूरत है, ताकि वे पुराने नकारात्मक मनोभाव और अनुभूतियां प्रकट न हो सकें। नीतिगत मामलों और क्रिया-कलापों के सार्थक रुझानों पर ध्यान केंद्रित करने और दिव्यांगजनों के कल्याण और सशक्तिकरण के उद्देश्य से 12 मई, 2012 को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में से दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग को अलग विभाग बनाया गया। विभाग की कल्पना है- एक समस्त समावेशी समाज का निर्माण करना जिसमें दिव्यांगजनों की उन्नति और विकास के लिए समान अवसर उपलब्ध कराए जाते हैं, ताकि वे सृजनात्मक, सुरक्षित और प्रतिष्ठित जीवन जी सकें। निःशक्त व्यक्ति अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप दोहरे उद्देश्यों सहित, उसके सही कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए भी केंद्र सरकार ने दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 को अधिनियमित किया जो 19 अप्रैल, 2017 से
्वर्ष-1 | अंि-38 | 04 आरएनआई नंबर-DELHIN
- 10 कसतंबर 2017
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प्रभाव में आया है। यह अधिनियम समावेशी शिक्षा को बढ़ावा देने, पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा, रोजगार और पुनर्वास के माध्यम से दिव्यांगजन के पूर्ण और प्रभावी समावेश को सुनिश्चित करने के उपाय उपलब्ध कराता है। सहायक यंत्रों/उपकरणों की खरीद/फिटिंग के लिए दिव्यांगजनों को सहायता (एडिप) स्कीम के तहत पिछले तीन वर्ष के दौरान 5624 कैंपों के माध्यम से 7.60 लाख लाभार्थियों को लाभ पहुंचाने के लिए 465.85 करोड़ रुपए की अनुदान सहायता का उपयोग किया गया। योजना के अंतर्गत देशभर में सुपात्र दिव्यांगजनों को 3730 मोटरयुक्त तिपहिया साइकिलें वितरित की गई। 248 मेगा कैंपों का आयोजन किया गया, जिनमें
शु
ज्ञानवर्द्धक सामग्री
रुआत के कुछेक अंक छोड़कर मैं ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ का नियमित पाठक हूं। कई बार इसके मिलने में कठिनाई होती है, पर इसे पढ़ने का लोभ लगातार बना रहता है। अभी मेरे सामने ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ का 38वां अंक है। हर बार की तरह इस अंक में भी कई दिलचस्प जानकारियां हैं। पर यह पत्र मैं जिस विशेष कारण से लिख रहा हूं, वह है इस अंक में छपे दो विशिष्ट आलेख। पहला आलेख जो डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के संबंध में है, वह पढ़कर तो मैं अभिभूत हूं। उनकी जिंदगी कैसी रही और कैसे वे एक शिक्षक के रूप में विख्यात हुए। साथ ही कैसे उनका संबंध महात्मा गांधी और
एडिप योजना के अंतर्गत सहायक यंत्रों-उपकरणों के वितरण के लिए 27 राज्यों को कवर किया गया। इसी तरह बच्चों की श्रवण दिव्यांगता पर काबू करने के लिए कोकलियर इंप्लांट सर्जरियों के उद्देश्य से देशभर में 172 अस्पतालों को पैनलबद्ध किया गया। आज की तारीख में 839 कोकलियर इंप्लांट सर्जरियां सफलतापूर्वक पूरी की गई है और उनके पुनर्वास का सरकार ने भारतीय संकेत भाषा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र की दिल्ली में स्थापना की है। इस केंद्र का मुख्य उद्देश्य श्रवण बाधित व्यक्तियों के लाभ के लिए शिक्षण एवं भारतीय संकेत भाषा अनुसंधान कार्य के आयोजन के लिए श्रमशक्ति का विकास करना है। 6000 शब्दों का संकेत भाषा शब्दकोश तैयार करने का काम चल रहा है। विशिष्ट दिव्यांगजनों की आवश्यकताओं को पूरा करने के विषय में, भारत सरकार ने विभाग के तहत विशिष्ट दिव्यांगताओं में 7 राष्ट्रीय संस्थान (एनआई) स्थापित किए हैं। ये मानव संसाधन विकास में संलग्न हैं और दिव्यांगजनों के लिए पुनर्वास एवं अनुसंधान तथा विकास सेवाएं उपलब्ध करा रहे हैं। सरकार ने भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम (एलिम्को), कानपुर के आधुनिकीकरण के लिए आधुनिक सहायक उपकरणों के उत्पादन और निगम द्वारा देश भर में इस समय लाभान्वित किए जा रहे 1.57 लाख लाभान्वितों के विरुद्ध लगभग 6.00 लाख लाभान्वितों के लाभ के लिए कुल 286.00 करोड़ रुपए की लागत को मंजूरी दी है। रवींद्रनाथ ठाकुर के साथ रहा, इस बारे में मैं यह आलेख पढ़कर ही जान सका। डॉ. राधाकृष्णन का जीवन और कृतित्व वाकई काफी प्रेरक है और एक भारतीय होने के नाते हम उन पर नाज करते हैं। दूसरा लेख जो इस अंक में बरबस ध्यान खींचता है, वह है शहनाज हुसैन का। उनका बड़ा नाम है सौंदर्य प्रसाधन की दुनिया में। पर यह पढ़कर अच्छा लगा कि वे भी यही सलाह देती हैं कि लोग सौंदर्य के लिए वाह्य साधनों के बजाय योग और प्रणायम पर भरोसा करें। इससे आरोग्य और सौंदर्य दोनों ही प्राप्त होता है। फिर से एक बार इन दोनों आलेखों के प्रकाशन के लिए ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ की संपादकीय टीम का आभार। सुरश े रंजन, कानपुर, उत्तर प्रदेश
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11 - 17 सितंबर 2017
कुम्हार टोली की दुर्गा
उत्तरी कोलकाता के कुम्हार टोली का यह हर साल का नजारा है। सैकड़ों कलाकार और उनके बच्चे यहां बड़ी कलात्मकता के साथ मां दुर्गा की प्रतिमाओं को बनाते हैं। यहां से एक हजार से ज्यादा पूजा पंडालों के प्रतिमाएं जाती हैं
कुम्हार टोली के कलाकारों से मिलने और उनसे बात करने पर पता चलता है कि यहां दुर्गा पूजा से एक महीने पहले से प्रतिमाओं का निर्माण शुरू हो जाता है। कलाकारों के प्रतिमा निर्माण के अलगअलग शिविरों में जाएं तो हर जगह तकरीबन एक ही नजारा दिखाई पड़ता है। कहीं मां दुर्गा के सिर फर्श पर रखे हैं, तो कहीं उनके हाथ और अंगुलियां। यही नहीं, इन शिविरों में महिषासुर और उनकी चार संतानों की प्रतिमाएं भी बनाई जाती हैं। अलग-अलग शिविरों में वरिष्ठ शिल्पकार जहां प्रतिमाओं को आखिरी शक्ल देने का बारीक काम करते हैं, वहीं प्रशिक्षुओं को आम तौर पर प्रतिमाओं के बाल और दूसरे आभूषण ठीक करने का काम दिया जाता है
11 - 17 सितंबर 2017
फोटो फीचर
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प्रतिमा निर्माण के अलग-अलग शिविरों के मालिकों के बीच एक तरह की प्रतिस्पर्धा भी चलती रहती है। उन्हें भय रहता है कि कहीं उनकी प्रतिमा का मॉडल कोई कॉपी न कर ले। इसीलिए वे खासतौर मां दुर्गा की प्रतिमा को आखिरी समय में पूरा करते हैं। आखिरी चरण में जो काम शिल्पकारों को काफी तन्मयता से करना होता है, वह है कूचियों की मदद से बारीकी से प्रतिमा की आंख बनाना, जिसे आंख खोलना भी कहते हैं
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11 - 17 सितंबर 2017
हिंदी और मध्य वर्ग का विकास हिंदी दिवस (14 सितंबर) पर विशेष
अपनी संस्कृति की स्वतंत्र सत्ता पहचानने से हमारे नए मध्यम वर्ग के पुरखों को हमारी पुरानी भावनात्माक एकता की पहचान हुई
स
अमृतलाल नागर
मय निकल जाता है, पर बातें रह जाती हैं। वे बातें मानव पुरखों के पुराने अनुभव जीवन के नए-नए मोड़ों पर अक्सर बड़े काम की होती हैं। उदाहरण के लिए, भारत देश की समस्त राष्ट्रभाषाओं के इतिहास पर तनिक ध्यान दिया जाए। हमारी प्रायः सभी भाषाएं किसी न किसी एक राष्ट्रीयता के शासन-तंत्र से बंध कर उसकी भाषा के प्रभाव या आतंक में रही हैं। हजारों वर्ष पहले देववाणी संस्कृत ने ऊपर से नीचे तक, चारों खूंट भारत में अपनी दिग्विजय का झंडा गाड़ा था। फिर अभी हजार साल पहले उसकी बहन फारसी सिंहासन पर आई। फिर कुछ सौ बरसों बाद सात समुंद्र पार की अंग्रेजी रानी हमारे घर में अपने नाम के डंके बजवाने लगी। यही नहीं, संस्कृत के साथ कहीं-कहीं समर्थ, जनपदों की बोलियां भी दूसरी भाषाओं को अपने रौब में रखती थीं। प्राचीन गुजराती
भाषा पर ब्रजभाषा का भी गहरा प्रभाव था। बांग्ला भाषा उड़िया और असमिया पर रौब रखती थी। मलयालम कभी तमिल भाषा की दबोच में थी। यह सब भी चलता था। मैं समझता हूं कि शायद इसी की ऊब, आजादी की नई चेतना में, अब भारत के हर भाषा क्षेत्र के शिक्षित जनों और उनके प्रभाव से अर्थाभावग्रस्त चिड़चिड़े जनसाधारण में गहरी घुटनसी फूट रही है। भारत की हर भाषा, हर बोली अब अपनी स्वतंत्र स्थिति चाहती है। स्थिति यह है कि इस समय हर व्यक्ति बस 'स्वतंत्र' होना चाहता है, 'स्व' से 'तंत्र' का संबंध और उसका करतब समझे बिना ही। बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी से हमने देखा कि हर भाषा अपने क्षेत्रीय-जन की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक भूख को शांत करने में समर्थ होकर संस्कृत भाषा के अंकुश से उबरने लगी थी। ज्ञानेश्वर ने गीता रचने के लिए अपनी मातृभाषा मराठी की शरण ली। कृतिवास ने बांग्ला में, कंबन ने तमिल
अमृतलाल नागर (मूर्धन्य साहित्यकार)
में, तुलसी ने हिंदी की अवधी बोली में रामायण लिखी। इसी तरह रस-अलंकार आदि समान नियमों से शास्त्र बद्ध भारत की सभी भाषाओं के साहित्य में भी एकरसता थी; अब भी है। मजे की बात है कि भाषाएं अपनी रचना-शक्ति और कौशल दिखलाने में तो जरूर स्वतंत्र हो गईं, पर उनकी वस्तुएं एक ही रही। भाषाओं की ऐसी स्वतंत्र सत्ता हमें तनिक भी घातक नहीं मालूम होती। लल्लेश्वरी उर्फ लालदे कश्मीरी भाषा में अपने आराध्य का स्मरण करती हैं। आंडाल तमिल भाषा में अपने आराध्य को भजती हैं। मीरा ब्रजभाषा, राजस्थानी और गुजराती भाषाओं में अपने आराध्य को और जनाबाई मराठी में अपने आराध्य भाव को, लेकिन इन चारों के आराध्य भारत भर के आराध्य थे। भारत का जनमानस एक भाव में बहता था। चैतन्य, रामानंद, वल्लभाचार्य, कबीर, सूर, तुलसी, तुकाराम, नरसी, नानक आदि कोई व्यक्ति किसी भी भाषा-क्षेत्र का हो, सारे भारत का प्रतिनिधित्व करता था। इनके इष्ट देव अलग-अलग,
11 - 17 सितंबर 2017
लल्लेश्वरी उर्फ लालदे कश्मीरी भाषा में अपने आराध्य का स्मरण करती हैं। आंडाल तमिल भाषा में अपने आराध्य को भजती हैं। मीरा ब्रजभाषा, राजस्थानी और गुजराती भाषाओं में अपने आराध्य को और जनाबाई मराठी में अपने आराध्यभाव को, लेकिन इन चारों के आराध्य भारत भर के आराध्य थे सगुण या निर्गुण हो सकते हैं, पर ये सभी भक्तिमार्गी थे। ये अपने इष्ट देव की महिमा बढ़ाने के लिए दूसरों के इष्टदेवों पर घृणा के गोले नहीं दागते थे। इनका महाभाव किसी भी इष्ट देवी-देवता के उपासक को अपने ढंग से स्पर्श और आंदोलित करने की क्षमता रखता था। यही कारण है कि मुसलमान सूफी और भारतीय भक्त तक अपनी-अपनी आराधना पद्धतियों के जुदा होने पर भी यह पहचान सके कि दोनों के भजन-पूजन का आधार एक ही है। जहां यह भावनात्मक एकता हो, वहां चौदह भाषाएं अलग होकर भी दरअसल एक ही हैं। भक्तिमार्ग के अलावा ज्ञानमार्गी पद्धति भी भारत भर में व्याप्त। थी। पेशावर, कश्मीर, पंजाब, अवध, मगध, गुजरात, बंगाल या धुर दक्षिण, कहीं का भी निवासी विद्वान, शास्त्री , संन्यासी हो, समूचे देश में हर जगह अपनी विधा की छाप छोड़कर अपना सिक्का जमा सकता था। संस्कृत भाषा हिंदुस्तान भर में इनको कहीं भी परायापन अनुभव नहीं होने देती थी। इन दो मार्गों के अलावा एक और मार्ग भी था। भगवती बाबू के उपन्यास सामर्थ्य और सीमा में शिवानंद द्वारा एक नारा बखाना गया है - 'लूटो मेरे भाई।' चूंकि हिंदी की समझ हिंदुस्तान को अभी कम और अंग्रेजी की अधिक है; इसलिए 'बोलचाल' की, चांदनी चौक की भी भाषा में उस नारे को 'एल.एम.बी.' कहना हमने आरंभ कर दिया है। कहिए तो और नाम के अभाव में हम उसे फिलहाल अनंत काल तक 'एल.एम.बी. मार्ग' अर्थात 'लूटो मेरे भाई मार्ग' के नाम से पुकार लें। महानुभाव अपनी
अवतारी लीला पूरी करके चले जाते थे। एल.एम. बी. मार्गी उन के नाम पर पंथ चला कर अपना धर्म पालन करते थे। यह एल.एम.बी. ज्ञानमार्गी और भक्तिमार्गी अपने-अपने इष्ट देवों के अखाड़े बनाकर लड़ता भी था, घृणा भी फैलाता था; पर इसके लिए भी जिस तंत्र का वह उपयोग करता था, वह भारत भर में एक-सा ही था; पाप में भी वह मजबूरी इसीलिए थी कि भारतीय शिक्षा-पद्धति एक थी। सारे भारत में असंख्य ब्राह्मण, जैन या बौद्ध आचार्यों के गुरुकुल थे - अपने-अपने घरों में थे, वे अपनी शिष्य -मंडली को शिक्षा देते थे। संस्कृत साहित्य की शिक्षा के लिए बड़े-बड़े नगरों या उनके आस-पास की जगहों में विद्यापीठ कायम थे। नगरों और ग्रामों की पाठशालाएं अपनी-अपनी क्षेत्रीय भाषाओं और संस्कृत के व्यावहारिक ज्ञान के अलावा महाजनी हिसाब-किताब में अपने-अपने जन को कुशल बनाती थीं। राज्य और महाजनी निगम अथवा व्यक्तिगत दोनों और क्षेत्रीय जातीय पंचायती पैसे से भी यह शिक्षा अमीर-गरीब सबके लिए सुलभ थी। सुंदरलाल लिखित 'भारत में अंग्रेजी राज' के छत्तीसवें अध्याय में ये सारी कहानी संक्षेप में पढ़ने को मिल जाती है। इसी अध्यााय में उद्धृत सन 1832 ई. की ईस्ट इंडिया कंपनी की एक सरकारी रिपोर्ट में कहा गया है -'शिक्षा की दृष्टि से संसार के किसी भी अन्य देश में किसानों की अवस्था इतनी ऊंची नहीं है, जितनी ब्रिटिश भारत के अनेक भागों में।' तरीका यह था कि ऊंचे दर्जों के विद्यार्थी निचली कक्षाओं के विद्यार्थियों को पढ़ाते थे और साथ-साथ अपना ज्ञान भी पढ़ाते और बढ़ाते चलते थे। 'म्युचुअल ट्यूशन'
की इस भारतीय शिक्षा-पद्धति को इंग्लिस्तानी शिक्षापद्धति में जोड़ लिया गया और हिंदुस्तान में तोड़ दिया गया। मुसलमानी शासन-काल में अरबी, फारसी और उर्दू पढ़ाने के लिए बहुत से मकतब और मदरसे भी स्थापित थे, अंग्रेजी नीति ने उन्हें भी उजाड़ा। पंडित सुंदरलाल ने अपने इतिहास ग्रंथ में लिखा है - 'सन 1757 से लेकर पूरे सौ वर्ष तक लगातार बहस होती रही कि भारतवासियों को शिक्षा देना अंग्रेजों की सत्ता के लिए हितकर है या अहितकर।' सन 1833 में ब्रिटिश गवाही देते हुए श्री जे.सी. मार्शमैन ने पार्लियामेंट की सेलेक्ट कमेटी के सामने कहा था- 'भारत में अंग्रेजी राज कायम होने के बहुत दिनों बाद तक भारतवासियों को किसी प्रकार की भी शिक्षा देने का प्रबल विरोध होता रहा। ...कंपनी के एक डायरेक्टर ने कहा कि हम लोग अपनी इसी मूर्खता से अमेरिका से हाथ धो बैठे हैं, क्यों कि हम ने उस देश में स्कूल और काॅलेज कायम हो जाने दिए, अब भारत के विषय में हमारा उसी मूर्खता को दोहराना ठीक नहीं है।' अंग्रेज जानते थे कि भारतीय शिक्षा-पद्धति को तोड़ना भारत-भारती की तब तक सकुशल अखंड प्रतिमा को खंडित करना है। सैकड़ों सदियों से लगे सुव्यवस्थित ज्ञान-बगीचे को उन्हों ने अज्ञान का बीहड़ जंगल बना दिया। हमारी परंपराएं छिन्न-भिन्न करके उन्होंने हमें जंगली बना देने का भरसक प्रयत्न किया। यहां एक बात और भी ध्यान में रखने की है। भारत अनेक राष्ट्रीयताओं और जातियों-उपजातियों का देश है। इन में आपस में राजनीतिक स्वार्थवश सदा से फूट और बैर भाव भी रहा है। ज्ञानमार्ग हो या भक्तिमार्ग इनके आपस के मत-मतांतर जब जन समुदायों में अपनी ताजगी लेकर जाते हैं, तब तो उनमें महाभाव जगा कर एकता लाते हैं, उन्हें सभ्य बनाते हैं, पर जब वे रूढ़ होकर लौकिक स्वार्थों अर्थात एल.एम.बी. के प्रभाव में आ जाते हैं, तब अपनी असलियत खोकर बैर और फूट बढ़ाने के कारण भी बन जाते हैं। भारतीय शिक्षा-पद्धति, तीर्थ-यात्रा के आकर्षण से साधु-संन्याभसियों का
विशेष
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परिभ्रमण, पौराणिक कथाओं की एकसूत्रता इस फूट को बराबर जोड़ती भी रहती थी। जैसा कि मैं पहले लिख चुका हूं, भारत के किसी भी कोने में उत्पन्न होने वाले महापुरुष सारे भारत को प्रभावित करने की क्षमता रखते थे। अंग्रेजों ने हमारी शिक्षा-पद्धति को उजाड़कर हमारी एकता के उस सूक्ष्म तंतुजाल को काटना चाहा। लेकिन इस महादेश पर शासन करने के लिए उन्हें दफ्तरी कारिंदों की आवश्यकता भी थी। कहां से लाएं? राज-काज यहां की भाषाओं में चलाएं या अंग्रेजी भाषा में? मैकाले ने सन 1835 ई. में फतवा दिया कि ऊंची श्रेणी के भारतीयों को अंग्रेजी में शिक्षा देकर उनका एक ऐसा वर्ग बनाना चाहिए जो रंग और खून से तो हिंदुस्तानी हो पर जो रुचि, मतों, शब्दों और बुद्धि से अंग्रेज हो। हमारे देश में बहुत-से लोग यह समझने और मानने लगे हैं कि अंग्रेजी ही हमारी इस व्यापक राष्ट्रीय एकता का कारण है, लेकिन मेरी विनम्र समझ में उनका यह मत ठीक नहीं। नया ही सही पर अंग्रेजों की अशिक्षा प्रसार-नीति के बाद शिक्षा प्रसार का यह माध्यम पुरानी भारतीय सभ्यता को, हमारी भावात्मक एकता को पुनर्प्रतिष्ठित करने में तत्काल ही सहायक हो गया। अंग्रेजी पढ़कर भारत में एक नया काला अंग्रेज तैयार तो हुआ, पर ठीक-ठीक अंग्रेजी सरकार की धारणा के अनुसार सभी अंग्रेजी पढ़ने वाले ऐसे न बने। अंग्रेजी के अध्ययन ने उन्हें अपना पुराना और विदेशों का नया ज्ञान वैभव प्रदान कर के कट्टर भारत भक्त, स्वतंत्रता प्रिय, न्यायी और विवेक-शील बना दिया। ये भारतीय ही हमारे नए राष्ट्र निर्माता बने। हमारा आधुनिक मध्य-वर्ग इन्हीं अंग्रेजी पढ़ेलिखे, स्वस्थचेता भारतीयों और काले अंग्रेजों का है। स्वस्थचेता अंग्रेजी पढ़े-लिखे भारतीयों ने अपनीअपनी क्षेत्रीय भाषाओं को नए सिरे से उठाया, उसमें उन्होंने साहित्य-रचना करनी आरंभ की, सामाजिक वैचारिक आंदोलनों को मातृभाषा के माध्यम से जनमानस में आंदोलित किया। नई वैज्ञानिक शक्तियों का महत्व बखाना। हमारे हिंदी भाषा प्रदेशों में भी एक नया युग आरंभ हुआ। हिंदी के पुराने सुलेखक ज्ञानचंद जैन ने वर्षों पहले अपनी किसी प्रस्तावित थीसिस के लिए बड़े श्रम से बड़ा मसाला जुटाया था। उनके एक रजिस्टर में मुझे सन 1853 ई. में आगरा के मोती-कटरा मुहल्ले से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक समाचार पत्र ‘बुद्धि प्रकाश’ के कई उद्धरण टंके हुए मिले। पत्र के संपादक मुंशी सदासुखलाल थे। काशी की नागरी प्रचारिणी सभा में उक्त साप्ताहिक पत्र की कुछ फाइलें सुरक्षित हैं। गदर से चार वर्ष पहले की हिंदी की बानगी देखने के साथ ही नई चेतना के शुभागमन की सूचनाओं पर भी गौर करना उचित होगा। 20 अप्रैल, 1853 के अंक में 'लोहे की सड़क के समाचार' प्रकाशित हुए हैं। ‘रेल’ शब्द जो आज भारतीय जन साधारण में खूब प्रचलित है, उस समय अपरिचित था। समाचार की भाषा इस प्रकार है 'हिंदुस्तान के निवासियों को प्रकट हो कि एक लोहे की सड़क इस देश में भी बन गई और वर्तमान महीने को 4 तारीख से पंथियों का आवागमन भी उस पर होने लगा और ये लोहे की सड़क जो बंबई में बनी है हिंदुस्तान में सब से पहली है।' उस समय कोई 'हिंदी फोनेटिक' तो मौजूद न था। पर समाचारों की भाषा फिर भी हिंदी ही थी।
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17 अगस्त, 1853 ई. के अंक में लखनऊ के समाचार पढ़िए। वाजिद अली शाह की फिजूलखर्ची इस समाचार में बखानी गई है। लिखा है- 'पहले महीने के पिछले दिनों में अवध के बादशाह ने बड़ी जिवनार की। नगर के निवासियों को केवल इसीलिए बुलाया था कि श्रीयुत बादशाह सलामत कहते हैं कि आज देखें लोग जोगिए भेस में कैसे दृष्टि आते हैं। सो आज्ञा हुई कि जितने सेवक इस दरबार के हैं सब गेरुए वस्त्र पहनकर आएं। उनके अनुसार लोग वही भेस बना के इकट्ठे हुए और यह जमा परस्तान बाग में हुआ। तीन दिवस तक खान-पान, नाच-रंग होता रहा और प्रत्येक दिन एक लक्ष्य मनुष्य से अधिक इकट्ठे होते थे। क्यों न हों, राजाओं के योग्य यही बातें हैं। आशय यह कि जब धूमधाम हो चुकी साहिब रेजीडेंट बहादुर असिस्टेंट साहिब को साथ ले बादशाही दरबार में सिधारे। निश्चित होता है कि इस मूर्खता के विषय में कुछ कहने गए होंगे।' उसी वर्ष में 26 अगस्त के अंक में मुरादाबाद में मुहर्रम के अवसर पर शिया-सुन्नी झगड़े और दशहरे पर अलीगढ़ में हिंदू-मुस्लिम दंगे की खबरों के साथ ही बंगाल में होने वाली एक सामाजिक सभा के समाचार भी छपे हैं- ‘राजा राधाकांत बहादुर ने पिछले महीने की 26 तारीख मंगलवार को पंडितों की सभा इस निमित्त की कि विधवा स्त्रियों के पुनर्विवाह के विषय शास्त्रार्थ होने के पीछे जो कुछ निर्णय हो सो व्यवस्था की रीति पर लिखा जाए।’ एक सौ नौ वर्ष पहले की यह हिंदी भाषा क्या बनावटी है? कठिन है? नहीं, हमारे लिए नहीं, पर हिंदी की परंपरा को 'फैनेटिसिज्म' के नाम पर रद्दी मोल तोलने वालों को यह भी शायद कठिन और बनावटी लगे। राजर्षि टंडन के स्वर्गवास का समाचार रेडियो की प्रयोगवादी भाषा में यों प्रसारित किया गया था- '... चल बसे।' 'स्वर्गवास' शब्द दिल्ली के चांदनी चौक में प्रचलित नहीं, 'आधीन' शब्द भी चांदनी चौक में प्रचलित नहीं, वहां केवल 'मातहत' ही लोकप्रिय है। चांदनी चौक की हिंदी के नाम पर हाल ही में रेडियो मंत्रियों ने बड़े तूफान खड़े किए थे। मैं दिल्ली के चांदनी चौक की जनता से सीधा प्रश्न करता हूं, क्या
चांदनी चौक के निवासी स्वर्ग नहीं, केवल जन्नत ही जानते हैं? चांदनी चौक किसी भी शहर के चौक से बहुत अलग होकर भी एकदम निराला तो नहीं हो सकता। हम 'आधीन' तो बोलते ही हैं, 'मातहत' शब्दन बहुत कम और 'आधीन' बहुत अधिक प्रचलित है, रामाधीन, श्यामाधीन, शिवाधीन आदि नाम हम में से हर एक ने खूब सुने होंगे। फिल्लौर, जिला जालंधर, पंजाब के पंडित श्रद्धारामजी ने सन 1877 ई. में ‘भाग्यवती’ नाम का एक उपन्यास लिखा था। उस समय भी कोई 'हिंदी फैनेटिक' नहीं था। इसीलिए भाग्यवती की भूमिका गंभीरतापूर्वक ध्यान देने के योग्य है। फिल्लौरी जी लिखते हैं – ‘इस ग्रंथ में वह हिंदी भाषा लिखी है जो दिल्ली और आगरा, सहारनपुर, अंबाला के इर्द-गिर्द के हिंदू लोगों में बोली जाती और पंजाब के स्त्री-पुरुषों को भी समझनी कठिन नहीं है। इस ग्रंथ में जिस देश और जिस भांति के स्त्री -पुरुषों की बातचीत हुई है वह उसी की बोली और ढंग से लिखी है, अर्थात पूरबी पंजाबी पढ़ा-अनपढ़ा, स्त्री और पुरुष गौण और मुख्य जहां पर कोई जैसे बोला उसी की बोली भरी हुई है।’ श्रीयुत डॉ. गोपाल रेड्डी कृपा करके इस भाषा परंपरा पर ध्यान दें। आंध्र प्रदेश में हैदराबाद के निजामी प्रभाव से उर्दू का खास चलन चला। राघवेंद्र राव आदि कुछ तेलुगु भाषी हिंदुओं ने उर्दू काव्य साहित्य को अपनी प्रतिभा का दान भी उसी तरह से दिया है जिस तरह पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य भारत के हिंदू परंपरागत शब्द मिट गए? क्या वे जनसाधारण की बोल-बाल से भी उठ गए? सीताराम राजू की 'बोरो कथा' में 'ओ तेलुगु बिड्डला ओ वीर योधुड़ा' वाली उत्साहवर्धक पंक्तियां अगर 'तेलुगु फैनेटिसिज्म' की परिचायक हैं, 'कंबन पिरंद तमिलनाड' गीत गाने वाले अगर तमिल-फैनेटिक हैं, 'बांगालेर माटी' की महिमा गाने 'फैनेटिक' हैं तो हमें भी 'हिंदी-फैनेटिक' कहलाने में गर्व का ही बोध होगा। उन्नीसवीं सदी केवल हिंदी या हिंदी भाषाभाषियों के समाज ही में क्रांति नहीं लाई, बल्कि पूरे
देश की भाषाओं और उनके बोलने वालों के समाज में भारी परिवर्तन ला रही थी। बढ़ते हुए अंग्रेजी प्रभाव को देखकर सारे देश भर में यहां का पुराना निवासी एक साथ जागा था। कलकत्ता, मद्रास, बंबई, काशी, पूना, इलाहाबाद, पटना, लाहौर, करांची आदि नई मध्य वर्गीय चेतना के तीर्थ थे। नागरिक और हद से हद प्रादेशिक स्तर पर सारे साहित्यिक, सामाजिक, और जातीय आंदोलन हो रहे थे। वह हमारे नए जागरण का पहला दौर था। छापेखानों के प्रचार ने इसमें बड़ा योगदान दिया है। अंग्रेजी पढ़ना नौकरी पाने के लिए जरूरी था, पर ईसाइयों के स्कूलों में न पढ़ाना पड़े, इसीलिए भारतीयों द्वारा चंदे से स्कूल खोले जाने लगे। आरंभ में अंग्रेजी पढ़ने के संबंध में घरों में बिरादरी वालों से लेकर गांव के जमींदार तक में कुलीन नौजवान का विरोध भी हुआ है, पर जान पड़ता है कि अंग्रेजी पढ़ाने के लिए बड़ा जबरदस्त आकर्षण भी समाज में क्रमशः घर करता गया। एक बुजुर्ग से मैंने सुना था कि उनके बाबा अपने बाप से छिप कर अंग्रेजी पढ़ने के लिए गांव से गए थे। पिछ़वाड़े के द्वार से छिपकर अपनी मां से मिलने घर आया करते थे। पांच-छह वर्षों तक यों ही चलता रहा। फिर पिता भी राजी हो गए। पंडित मदनमोहन मालवीय, महाराज के चबूतरे पर स्थापित पाठशाला में पढ़ने वाला, दरिद्र किंतु सत्य निष्ठ कथावाचक का बेटा, पढ़ने के लिए ईसाइयों के स्कूल में तो भेजा जाता है, पर प्यास लगने पर वहां पानी नहीं पी सकता। प्यास बेकाबू होने पर और मौलवी साहब के छुट्टी न देने पर लड़का घर भाग जाता है। ताऊ सुन कर चांटा मारते हैं- ‘लड़का भाषा भले ही अंग्रेजी पढ़ रहा था, पर उसकी निष्ठा सदियों-दर-सदियों के तपे संस्कारों की ही थी। प्रातःस्मरणीय महामना अपने समय में एक नहीं थे। उस काल में भारत के हर प्रदेश में उत्पन्न होने वाले राजनीतिक,साहित्यिक, वैज्ञानिक महापुरुषों की जीवनियों में आपको यह निष्ठा तत्व किसी न किसी रूप में अवश्य मिलेगा। यही निष्ठा-तत्व तो भारत भर में फैलते-सिमटते सन
1884 ई. में राष्ट्रीय कांग्रेस बन गया।’ गदर के बाद वाले नए काल में जमाना दसदस, बीस-बीस बरस में बड़ी तेजी से बदला है। अवध में गदर का अंतिम युद्ध 14 जनवरी 1859 को बहरामघाट पर लड़ा गया। लगभग दो वर्षों तक अर्थात सब से ज्यादा दिनों तक जहां अंग्रेजों के प्रति सक्रिय विरोध रहा है, वहीं 1865-66 की सरकारी रिपोर्टों के अनुसार अंग्रेजी सरकार के तेरह सौ स्कूलों में पांच हजार लड़के अंग्रेजी भाषा पढ़ रहे थे। यह हमारे समाज की तीव्र प्रगति का प्रमाण है, कुछ अंग्रेजी की लैला पर मर-मिटने का नहीं। अंग्रेजी पढ़ने वालों में सरकारी, अफसर, वकील डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर सभी हुए। अफसर के पास सत्ता थी, लेकिन वकील, प्रोफेसर,और संपादक आदि पढ़े-लिखों के साथ जन-बल था। पुराने भारतवासियों के समाज में उसके स्वजातीय अफसरों के रौब ने जो सुधार आंदोलन लादा, उस से कहीं अधिक स्वस्थ और स्वच्छ धरातल पर बौद्धिक वर्ग ने सुधार किया। यह आज की दुश्मन सांप्रदायिकता भी कुर्सी वालों ही की देन है। फलां मुसल्टेश अफसर ने साहब की खुशामद करके इतने मुसलमानों को नौकरी दिला दी और अमुक हिंदू धोती प्रसाद ने सरकारी नौकरियों में इतने हिंदू घुसा दिए, इस तरह की चकल्लस से हमारे समाज के दूसरे अंग्रेजी पढ़े-लिखे बुद्धिवादी बुद्धिजीवी आरंभ में बिल्कुल अलग थे। मुहम्मद अली जिन्ना अनेक पढ़े लिखे मुसलमान कांग्रेस में शामिल थे। वे सब पढ़े-लिखे हिंदू-मुसलमान अधिकतर थे? नामी खानदानी, अमीर-उमरा के वंशज? नहीं। इनमें दरिद्र घरों में जन्म लेने वालों गोखले, मालवीय जैसे लोग ही अधिक थे। गांधी एक गुजराती ताल्लुकदार के दीवान के बेटे थे; अधिक-से-अधिक कह लीजिए, खाता-पीता, खुश-परिवार था। इन्हीं औसत खाते-पीते, भले या दरिद्र, किंतु कुलीनों के तेजस्वी नैनिहाल अंग्रेजी पढ़-लिखकर देशी-प्रेमी, स्व भाषाप्रेमी, संस्कृति-प्रेमी, उदार मानवीय दृष्टिकोण पाने
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भारत अनेक राष्ट्रीयताओं और जातियों-उपजातियों का देश है। इनमें आपस में राजनीतिक स्वार्थवश सदा से फूट और बैर भाव भी रहा है। ज्ञानमार्ग हो या भक्तिमार्ग इनके आपस के मत-मतांतर जब जन समुदायों में अपनी ताजगी लेकर जाते हैं, तब तो उनमें महाभाव जगा कर एकता लाते हैं, उन्हें सभ्य बनाते हैं वाले महापुरुष हुए। उन्होंने अंग्रेजी, संस्कृत और पाली आदि भाषाओं के अध्ययन से अपने देश की प्राचीन उपलब्धियों को फिर से उपलब्ध किया और अपनी-अपनी भाषाओं में प्रेम के द्वारा एक नई वैचारिक क्रांति उत्पन्न की। जो गीता, रामायण, पुराण, उपनिषद आदि प्राचीन साहित्य को धार्मिक ग्रंथ मात्र समझते हैं, उन्हें उस जमाने में भी यह देखकर बड़ा अचरज हुआ था कि गीता पढ़कर हमारे यहां लोग बमबाज क्रांतिकारी भी बने और तिलक, गांधी, अरविंद भी बने। शायद आज यह बात आश्चर्यजनक लगे, किंतु दिन के उजाले की तरह सच है कि राष्ट्रीय आंदोलन के दिनों में एक सीताराम बाबा ने तुलसीकृत रामयण की चौपाइयों से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बहुत से गांवों में क्रांति की चिलगारियां मूसलाधार बरसाई थीं। संध्या के एक नित्य पाठ वाले संकल्प के मंत्र में 'राज्यम् वैराज्यम् गण-राज्यम् साम्राज्यम्' आदि शब्दों पर ध्यान देकर इन की खोज में जुटते ही बैरिस्टर काशी प्रसाद जायसवाल को हमारे देश का वह अनूठा इतिहास मिला, जो ‘हिंदू पाॅलिटी’ नामक पुस्तक में उनकी तथा उनके देश की कीर्ति को सदा अमर रखेगा। उपनिषद-पुराणों का उद्देश्य एल.एम.बी. मार्गियों ने चाहे जैसे भी सिद्ध किया हो, लेकिन उससे यह तो सिद्ध नहीं होता कि वे भारतीय दर्शन और कला की उच्च तम सिद्धियां नहीं हैं या उन्हेंं पढ़ने से आदमी सांप्रदायिक बन जाता है? जब हम यह सत्य जान लेते हैं कि अपने ऊंचे संस्कारों वाले मन की इच्छाओं को ज्ञान-सधी बौद्धिक शक्ति और
शारीरिक स्वास्थ्य से सधी क्रिया-शक्ति रूपी पंखों के सहारे मनुष्य को हर दिशा और हर ऊंचाई पर उड़ने का अधिकार मिल जाता है। चाहे वह साहित्य में प्रवेश करे या राजनीति, दर्शन योग या शिक्षा आदि के क्षेत्रों में, तो धर्मों से जुड़कर भी हमें संस्कृति की स्वतंत्र सत्ता का पता लग जाता है। अपनी संस्कृति की स्वतंत्र सत्ता पहचानने से हमारे नए मध्य वर्ग के पुरखों को हमारी पुरानी भावनात्मक एकता की पहचान हुई। यही एकसूत्रता वे भाषा और लिपि के रूप में भी चाहते थे। राम, कृष्ण, बुद्ध और महावीर के कारण हिंदी की एक न एक बोली भी संस्कृत के साथ-साथ सारे भारत से जुड़ी रही और देवनागरी लिपि भी। इसीलिए संस्कृत भाषा वाली एकसूत्रता उन्हें देवनागरी लििप में लिखी जाने वाली संस्कृत छाप खड़ी बोली में भी मिल गई। खड़ी बोली की उर्दू शैली एक लििप के साथ मुसलमानी शासनकाल में भरसक फैलाई गई थी; पर उससे हिंदी-भाषी पुराने देशवासियों या अहिंदीभाषी पुरानी परंपरा के भारतीयों का काम नहीं चलता था। सन 1910 ई. में जस्टिस कृष्णस्वामी अय्यर ने कहा था – ‘अब जब उत्कृष्ट लेखक देशी भाषाओं के साहित्य की पूर्ति कर रहे हैं और उन सब देशी साहित्यों का उद्गम प्राचीन आर्य साहित्य है, तब क्या एक भाषा की संपत्ति को दूसरी के पास पहुंचाना आवश्यक नहीं? ...अब हम यदि किसी एक लिपी को ग्रहण करना चाहें तो... एक और अरबी लिपि है, जिसे यदि सब नहीं तो अधिकांश मुसलमान अपने संकीर्ण जातीय ममत्व के वशीभूत होकर अपनाए
हुए हैं। कुछ लोग रोमन अक्षरों को उपयुक्त बतलाते हैं। फिर देवनागरी लििप है जिसमें हिंदी और प्रायः समस्त भारतीय भाषाओं की जड़ संस्कृत लिखी जाती है। अरबी लिपि तो इस तिरस्कृत है कि वह अपूर्ण भी है और उसमें व्यर्थ के अक्षरों की भरती है। ...मुझे इस विषय के अच्छे ज्ञाता श्री सैयद अली बिलग्रामी का यह निश्चित मत सुनाया गया है कि अरबी लिपि भारतीय लिपि होने के योग्य नहीं। रोमन अक्षरों के विषय में इतना निश्चित है कि लोगों के जातीय भाव को धक्का लगेगा। ऐसी स्थिति में क्या मेरी यह प्रार्थना निष्फल होगी कि देश के हित के लिए नागरी अक्षरों का व्यवहार स्वीकार करें।’ जस्टिस कृष्ण स्वामी अय्यर या बाबू शारदाचरण मित्र या राजर्षि टंडन 'नागरी फैनेटिक' नहीं, बल्कि देश और अपनी संस्कृति के प्रेमी थे। उनके पुरखे सौ से भी अधिक वर्षों से राष्ट्रीय एकता के लिए हिंदी-नागरी को बढ़ावा दे रहे थे। राजा राममोहन राय देश के सुधार के लिए अखबार निकालने बैठे तो केवल अंग्रेजी भाषा और रोमन अक्षरों ही से उनका मन न भरा। हिंदी भाषा और नागरी अक्षरों को भी अपनाया। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय, दयानंद सरस्वती, लोकमान्य तिलक आदि भी अपनी भारतीय निष्ठा के कारण ही हिंदी-नागरी को बढ़ावा दे रहे थे। यही कारण है कि हिंदी का विकास कई दिशाओं से हो रहा था; और भारतेंदु को अपने हिंदी भाषा नामक ग्रंथ में संस्कृत, अंग्रेजी, फारसी शब्दों के न्यूनाधिक प्रयोग और उच्चारण विभेद से हिंदी के बारह भाग करने पड़े। अधखिला फूल की भूमिका में हरिऔध जी ने इसका हवाला देते हुए 'अधिक संस्कृत शब्द युक्त हिंदी', 'अल्प संस्कृत शब्द प्रयुक्त हिंदी', 'शुद्ध हिंदी', 'अधिक फारसी शब्द युक्त हिंदी', 'बंगालियों की हिंदी', 'अंग्रेजों की हिंदी', आदि विभाग गिनाए हैं। यह हिंदी और देवनागरी लिपि नए भारतीय मध्य वर्ग के प्रयत्न से पुराने भारतवासियों के समाज में वैचारिक क्रांति ला रही थी। विधवा-विवाह हो,
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बाल-विवाह न हो, धर्मांधता से मुक्ति मिले, अपनी भाषा और संस्कृति के लिए प्रेम बढ़े, राजनीतिक और आर्थिक क्रांति लाई जा सकें - इसलिए हिंदी को राष्ट्र भाषा के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा था, कुछ 'हिंदी फैनेटिसिज्म' बढ़ाने के लिए नहीं। जिस तरह से अहिंदी-भाषी बौद्धिकी लोग राष्ट्र की भावनात्मक एकसूत्रता के लिए हिंदी-नागरी की और बढ़ रहे थे, उसी तरह हिंदी-भाषी बुद्धिचेता जनता भी बांग्ला, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं के नए साहित्य की ओर शुरू ही से उन्मुख हो रही थी। उत्तर भारत का देशवासी अपनी परंपराओं के प्रति आस्था पाने के लिए ही भारत की दूसरी भाषाओं के साहित्य से बंध रहा था। उसके क्षेत्र में फलने-फूलने वाला, उसकी अपनी ही एक बोली की विदेशी शैली साहित्य यानी उर्दू से उसे वह आस्था नहीं मिलती थी। यही कारण था कि लखनऊ रानी कटरा के निवासी पंडित रतननाथ दर 'सरशार' के मुहल्ले वाले होकर भी पंडित रूपनारायण पांडेय हिंदी और बांग्ला भाषाओं के बीच की एक महान कड़ी बने; यही कारण है कि हिंदी साहित्य सम्मेलन के अधिवेशन देश के हर भाषा-क्षेत्र में सफलतापूर्वक संपन्न होते रहे, और यही कारण है कि दक्षिण में एक हिंदी प्रचार सभा ने पिछले चालीस-पैंतालीस वर्षों में अपनी सफलता का एक चमत्कारिक इतिहास बनाया है। यह हिंदी भला 'फैनेटिक' बना सकता? हां, यह हिंदी अटूट लगन वाले राष्ट्र-प्रेमी, मानवमात्र के सच्चे-प्रेमियों का सुदृढ़ आस्था वाला समाज अवश्य बना सकती है; और यदि 'अटूट लगन' और सुदृढ़ आस्था 'फैनेटिसिज्म' शब्द की व्याख्यान के अंतर्गत ही आते हों तो हम कुछ नेता बाबुओं के बांधे हुए हुल्लड़ के अनुसार अवश्य ही 'हिंदी फैनेटिक' हैं और इसी में अपना गौरव-बोध करते रहेंगे, हमारी भाषा और समाज का विकास भी इस ढंग पर निर्भयनिःशंक होता रहेगा। (1962 , ‘साहित्य और संस्कृति’ पुस्तक में संकलित)
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झारखंड
45 हजार घरों में बने शौचालय
‘मेरा गड्ढा, मेरा शौचालय’ अभियान झारखंड के सिमडेगा जिले में 65 हजार शौचालयों का निर्माण किया जाएगा
सि
मडेगा जिलें में ‘मेरा गड्ढा, मेरा शौचालय’ अभियान का शुभारंभ किया गया है। कार्यक्रम का उद्घाटन उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्री ने किया । नगर भवन सिमडेगा में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला को संबोधित करते हुए उपायुक्त ने कहा कि देश की आजादी के बाद खुले में शौच की गुलामी से आजाद होगा। जिस तरह एक सप्ताह के अंदर जिला प्रशासन, यूनिसेफ तथा जनप्रतिनिधियों के सकारात्मक सोच, इच्छा शक्ति तथा लगन के साथ जिले में गड्ढा खोदो अभियान के तहत 65000 हजार गड्ढा लाभुकों को प्रेरित कर खुदवाया गया, यह बड़ी बात है। उपायुक्त ने कहा कि ‘मेरा गड्ढा मेरा शौचालय’ अभियान के तहत जिले के सभी पंचायतों में बीडीओ की देखरेख में विशेष शिविर का आयोजन किया जाएगा। सभी प्रखंड विकास पदाधिकारी अपने-अपने कर्मचारी को शिविर कार्यक्रम में प्रतिनियुक्त कर प्रखंड के जो भी लाभुक स्वयं से शौचालय निर्माण करना चाहते है, उनका प्रपत्र भरेंगे तथा जिस दिन संबधि ं त लाभुक के द्वारा शौचालय निर्माण कार्य पूर्ण होगा, उसे उसी दिन 12000 हजार का प्रोत्साहन राशि आरटीजीएस के माध्यम से उनके खाते में हस्तांतरित कर कर दी जाएगी। स्वयं से बनाने वाले लाभुकों को सम्मानित भी किया जाएगा। उपायुक्त ने यह भी कहा कि जिलास्तरीय पदाधिकारी ग्राम, पंचायत को गोद लेंगे। जिला ग्राम पंचायत में लक्ष्य के अनुरूप शौचालय निर्माण पूर्ण नहीं होगा तो संबंधित पदाधिकारी के कार्यालय के शौचालय में ताला जड़ दिया जाएगा। (एजेंसी)
बिहार
बि
बिहार शरीफ जिले के 3262 वार्डों में से 1074 वार्डों में शौचालय निर्माण का कार्य जारी है
हार के बिहार शरीफ जिले को खुले में शौच से मुक्त बनाने के काम में यूनिसेफ का भी सहयोग मिल रहा है। हर घर में शौचालय निर्माण के साथ-साथ लोगों के व्यवहार परिवर्तन के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं। वर्षों से चली आ रही खुले में शौच करने की परंपरा को जड़ से मिटाने के लिए प्रत्येक दिन सुबह में ट्रिगरिंग, जागरुकता रैली , गोष्ठी, नुक्कड़ नाटक, दीवार लेखन, बैनर-पोस्टर, जागरुकता रथ, कठपुतली नाच सहित अन्य तमाम तरह के तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है। अधिकारी, जनप्रतिनिधि सहित आम नागरिक इस कार्य में पूरी ताकत से लगे हुए हैं। इससे सकारात्मक परिणाम अब देखने को मिल रहे हैं। व्यापक स्तर पर चल रहे जागरुकता कार्यक्रमों का ही यह परिणाम है कि अब कई लोग जिनके पास जमीन नहीं है, वे अपने घर के लिए उपलब्ध कम जमीन में ही शौचालय बनवा रहे हैं। नालंदा जिला के कुल 3262 वार्ड में से 1074 वार्ड में शौचालय निर्माण का कार्य जारी है। पूर्व में किए गए सर्वे के अनुसार जिला में ढाई लाख परिवारों के पास शौचालय नहीं थे। अबतक इनमें से 45000 परिवारों के शौचालय बन चुके हैं। पंद्रह हजार परिवारों के शौचालय बनाने का कार्य जारी है। चरणबद्ध तरीके से हर घर में शौचालय बनवाने का लक्ष्य है। ओडीएफ घोषित हो चुके वार्ड की संख्या 669 है। जिले के 36 पंचायत ओडीएफ घोषित हो चुके हैं। जो पंचायत खुले में शौचमुक्त घोषित हो रहे हैं, वहां लोगों में एक नई जागृति आ रही है। जिले के डीएम डॉ. त्यागराजन एसएम के नेतृत्व में चल रहे इस अभियान में बेहतर कार्य करने वाले अधिकारी व
जिनके द्वारा इस कार्य में लापरवाही बरती जा रही है, उनके विरुद्ध कार्रवाई भी की जा रही है। जिलाधिकारी ने सभी प्रखंड विकास पदाधिकारियों को निर्देश दिया हुआ है
स्वच्छता
किशोरियों की जिद पर बने 47 शौचालय
एटा जिले में किशोरियों की जिद पर तेजी से बन रहे हैं शौचालय
उ
जनप्रतिनिधि को निरंतर प्रोत्साहन भी मिल रहा है। जिनके द्वारा इस कार्य में लापरवाही बरती जा रही है, उनके विरुद्ध कार्रवाई भी की जा रही है। जिलाधिकारी ने सभी प्रखंड विकास पदाधिकारियों को निर्देश दिया हुआ है कि जैसे ही कोई वार्ड ओडीएफ घोषित होता है उस वार्ड में शौचालय का निर्माण कर चुके परिवारों के लाभुकों को सरकार द्वारा दिए जाने वाले अनुदान राशि का भुगतान एक सप्ताह के अंदर हर हालत में कर दिया जाए। उन्होंने इस भुगतान की प्रक्रिया का अनुश्रवण करने के लिए जिला स्तर के वरीय प्रभारी पदाधिकारियों को भी निर्देश दिया है। भुगतान प्रक्रिया की ऑनलाइन मॉनिटरिंग भी जिलास्तरीय वॉर रूम से की जा रही है। जिलाधिकारी ने घोषणा की है कि शौचालय के निर्माण के साथ साथ सभी लोगों के व्यवहार परिवर्तन के लिए चल रहे जागरुकता कार्यक्रम में जिन प्रखंड विकास पदाधिकारियों एवं अन्य संबधि ं त अधिकारियों द्वारा बेहतरीन कार्य किए जाएंगे, उन्हें एक विशेष समारोह में सम्मानित किया जाएगा। इस तरह का सम्मान इस कार्य में सहयोग करने वाले जनप्रतिनिधियों को भी मिलेगा। (एजेंसी)
उत्तर प्रदेश
त्तर प्रदेश के एटा जिले में 47 किशोरियों की जिद रंग लाई। स्वच्छ भारत मिशन को परवान चढ़ाने में जिले की किशोरियों ने अहम भूमिका अदा की। जिले में किशोरियों ने अपने घरों में शौचालय बनवाकर मिसाल पेश की। आलम यह है कि जिले में 400 किशोरियों ने योजना के तहत आवेदन किए थे। स्वतंत्रता दिवस पर जिला प्रशासन ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत ‘किशोरी की जिद’ अभियान की शुरुआत की थी। इसके तहत स्वच्छाग्राहियों ने गांव-गांव जाकर बालिका विद्यालयों में छात्राओं को जागरूक किया। उन्होंने किशोरियों को खुले में शौच से होने वाली हानियां बताईं। इसके बाद जिले में 400 किशोरियों ने कार्यक्रम के तहत आवेदन किया। आलम यह है कि जिले में अब तक 41 किशोरियों ने अभियान के तहत शौचालय बनवा लिए हैं। वहीं ब्लॉक क्षेत्रों में खंड प्रेरक अभियान को गति दे रहे हैं। इसके साथ ही आवेदनों को एकत्र कर प्रोत्साहन राशि की पात्र किशोरियों का चयन किया जा रहा है। ‘किशोरी की जिद’ कार्यक्रम जिले में रंग ला रहा है। किशोरियां अपने घरों में जिद करके शौचालय बनवा रही हैं। अभियान धीमा चलने वाले क्षेत्रों में खंड प्रेरकों को चेतावनी दी गई है। स्वच्छाग्राहियों से किशोरियों को समझाने के लिए कहा गया है। जिले में ‘किशोरी की जिद’ कार्यक्रम में अलीगंज और निधौलीकलां ब्लॉक का हाल बेहद खराब है। आलम यह है कि इन क्षेत्रों में अब तक एक भी ‘किशोरी की जिद’ रंग नहीं ला सकी है। इसे लेकर खंड प्रेरकों को सख्त हिदायत दी गई है। (एजेंसी)
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स्वच्छता
घर में शौचालय बनवा द जी, पिया...
बेटी-बहुओं की प्रतिष्ठा के लिए घर में शौचालय होना बेहद जरूरी
घ
र में शौचालय बनवा द जी, पिया आ जा न..... ये गीत आज बिहार की जीविका दीदियां गांव गांव घूम कर गा रही हैं। उद्देश्य शौचालय निर्माण को लेकर जागरुकता फैलाना है। बिहार को खुले में शौचमुक्त बनाने का कार्य जोरों पर चल रहा है। जिले से लेकर प्रखंड तक हर पदाधिकारी और जनप्रतिनिधि इसमें लगे हुए हैं। हाल ही में बिहार ग्रामीण जीविकोपार्जन समिति के तत्वावधान में स्वच्छ भारत मिशन व लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान के तहत खुले में शौच मुक्ति हेतु जागरुकता महासभा का आयोजन अनुग्रह उच्च विद्यालय, मदनपुर में किया गया। इस महासभा में लगभग पांच हजार जीविका दीदियों ने भाग लिया। सभी उपस्थित जीविका दीदियों को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि जिलाधिकारी कंवल तनुज ने कहा कि आज दुनिया तेजी से आगे बढ़ रही है। हर हाथ में मोबाइल हो गया है, लेकिन हर घर में शौचालय न होना हमारे लिए शर्म की बात है। मोबाइल से ज्यादा जरूरी शौचालय है। शौचालय घर के बेटी-बहुओं की इज्जत से जुड़ा हुआ है और एक मर्द का ये दायित्व होता है कि वे अपने घर की बेटीबहुओं को सम्मान दिलाएं। उनकी इज्जत का ख्याल
स्वच्छता
बिहार
रखें। आज हर घर में शौचालय नहीं है। बेटी-बहू शौच के लिए घर से बाहर जाती हैं। अगर किसी तरह की कोई घटना घट जाए तो उसका जिम्मेवार पुरुष होता है। जीविका दीदियों को जिलाधिकारी ने उत्साहित करते हुए कहा कि बिहार में शराबबंदी का श्रेय महिलाओं को है। जिस दिन महिलाएं चाहेंगी, उस दिन कोई काम अधूरा नहीं रहेगा। (एजेंसी)
स्वच्छता
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मध्य प्रदेश
शौचालय के लिए छात्रा ने त्यागा अन्न
बीना जिले की छठी कक्षा में पढ़ने वाली छात्रा तारा ने शौचालय बनवाने के लिए चार दिनों तक खाना पीना छोड़ दिया
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ध्य प्रदेश के बीना जिले की छात्रा तारा ने 4 दिनों तक सिर्फ इसीलिए खाना नहीं खाया, क्योंकि उसके घर में शौचालय नहीं था। उसे शौच के लिए बाहर जाना पड़ता था। परिवार गरीब है, इसीलिए पहले तो शौचालय निर्माण में खर्च से डरकर पिता महेश बंसल उसकी बात की अनदेखी करते रहे, लेकिन जब बेटी ने शौचालय बनने पर ही खाना खाने की जिद की तो परिवार ने आनन फानन में शौचालय का निर्माण शुरू करा दिया। तारा के बड़े भाई रामकुमार बंसल ने बताया कि तीन भाइयों के बीच तारा उनकी इकलौती बहन है। उसकी जिद को पूरा करने के लिए शौचालय निर्माण कार्य शुरू करा दिया है। तारा का कहना है कि घर में शौचालय नहीं है। बाहर खेतों में जाओ तो सुबह शाम लड़कों की घूरती हुई नजरें। एक सप्ताह पहले स्कूल में आए तरुण संस्कार केंद्र वालों ने बताया कि खुले में शौच जाने से ही बीमारियां होती हैं। इसके बाद मैंने ठान लिया कि अब पापा से कहूंगी कि घर में
भी शौचालय बनवा दो। जब उन्होंने मेरी बात नहीं मानी तो मैंने खाना पीना छोड़ दिया। 4 दिन तक कुछ नहीं खाया। मम्मी पापा तो शादी में बाहर गए थे, लेकिन तीनों भाइयों ने मेरी पीड़ा को समझा और पापा के आने से पहले ही शौचालय के गड्ढे का निर्माण कार्य शुरू कर दिया। पापा-मम्मी भी शौचालय निर्माण कराने के लिए मान गए हैं। अब मैं अपनी सहेलियों को भी घर में शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित करूंगी। (एजेंसी)
स्वच्छता राजस्थान
शौचालय बनवाया तो आई बिंदणी
बाड़मेर को खुले में शौच से मुक्त करने के लिए प्रशासन गांवों में टॉयलेट एक प्रेम कथा फिल्म दिखाएगी
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ड़मेर जिला प्रशासन ने अक्षय कुमार की सुपरहिट फिल्म टॉयलेट एक प्रेम कथा से प्रभावित होकर स्वच्छ भारत अभियान को प्रमोट करने के लिए एक नई टैगलाइन बनाया है, अगर आप अपनी पत्नी के साथ रहना चाहते है तो पहले घर में शौचालय बनाएं। बाड़मेर जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मदन लाल नेहरू ने कहा कि टॉयलेट एक प्रेम कथा एक वास्तविक कहानी पर आधारित फिल्म है, जिसमें एक औरत ने शादी के तुरंत बाद
ही ससुराल में शौचालय नहीं होने पर घर छोड़ दिया। फिल्म में खुले में शौच की आदत को खत्म करने और स्वच्छता के प्रति जागरूक किया गया है। फिल्म में इस बात को दिखाया गया है कि औरतों को खुले में शौच के लिए जाना पसंद नहीं है और उन्हें इस समस्या पर खुलकर बात करनी चाहिए। नेहरू ने कहा कि हाल ही में राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में एक परिवारिक अदालत ने एक महिला को तलाक लेने की मंजूरी दी थी। अदालत ने क्रूरता है। बाड़मेर जिला प्रशासन ने स्वच्छता के प्रति कहा कि घर में शौचालय न होना महिलाओं के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए इस फिल्म को गांव में
दिखाने की योजना बनाई है। जिला प्रशासन ने जिस पोस्टर को छपवाया है उसमें अक्षय को उनकी वधू भूमि पेडणेकर के साथ खड़े हुए दिखाया है। कुछ अन्य पोस्टर में “घर में शौचालय बनवाया तो बिंदणी आ गई” जैसे संदेश भी लिखवाए गए हैं। इसके साथ ही इसमें यह भी शामिल किया है कि 2 अक्टूबर 2019 तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को खुले में शौच मुक्त कराने का वादा किया है, लेकिन बाड़मेर जिले के प्रभारी मंत्री सुरेन्द्र गोयल ने एक कदम आगे बढ़ाकर ओडीएफ टैग प्राप्त करने के लिए 31 2017 की तारीख तय कर की है। (एजेंसी)
26 गुड न्यूज
11 - 17 सितंबर 2017
गरीब मरीजों को मिलेगा चार वर्ष में 167 मुफ्त भोजन पनबिजली परियोजनाएं विद्युत उत्पादन
लगभग 27,000 मेगावाट संभावित विद्युत उत्पादन क्षमता की परियोजनाओं को मंजूरी दी
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माचल प्रदेश ने लगभग 27,000 मेगावाट साथ ही बांध सुरक्षा और संचालन प्रक्रियाओं के संभावित विद्युत उत्पादन क्षमता के साथ लिए अनिवार्य प्रक्रियागत दिशानिर्देशों को लागू चार साल में 167 पनबिजली परियोजनाओं को किया गया है। मंजूरी दी है। राज्य सरकार ने एक बयान में कहा सरकार ने कहा कि दुर्घटनाओं से बचने के कि इस अवधि के दौरान 2,067 मेगावाट क्षमता लिए चालू परियोजनाओं के अनिवार्य निरीक्षण वाली 31 परियोजनाएं शुरू की गईं, जिसमें 800 सुनिश्चित किया गया है और बाढ़ सुरक्षा उपाय मेगावाट की कोल डैम, 412 मेगावाट की रामपुर, लागू किए गए हैं। परियोजनाओं की प्रगति की 130 मेगावाट की काशांग और 520 मेगावाट की निगरानी के लिए और परियोजना के निर्माणकर्ता परबती परियोजनाओं सहित अन्य परियोजनाएं द्वारा प्राप्त सफलताओं के आंकलन के लिए एक शामिल हैं। निगरानी इकाई भी स्थापित की गई है। हिमाचल में 27,000 मेगावाट बिजली पनबिजली क्षेत्र के धीमे प्रदर्शन की बात उत्पादन क्षमता में से अभी तक केवल 10,400 मेगावाट हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड का ही उत्पादन किया जा ने 300 मेगावाट क्षमता वाली करीब 22 सका है। हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड लिमिटेड ने 300 परियोजनाओं का क्रियान्वयन शुरू कर दिया है मेगावाट क्षमता वाली करीब 22 परियोजनाओं का क्रियान्वयन शुरू कर दिया स्वीकारते हुए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने इसके है। 18 मेगावाट की परियोजना को कुल्लू जिले लिए सरकार की नीति को बदलने की आवश्यकता के रैसान में प्रारंभिक आधार पर क्रियान्वित किया पर जोर दिया। मुख्यमंत्री ने यह बात एक सितंबर जाएगा, जिसके लिए विश्व बैंक वित्तीय मदद को हिमाचल प्रदेश जलविद्युत निगम लिमिटेड देगा। द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में कही थी। पनबिजली परियोजनाओं में सुरक्षा और इस संगोष्ठी में अतिरिक्त मुख्य सचिव तरुण गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिए राज्य श्रीधर ने कहा कि सरकार ने इस क्षेत्र को ने ऊर्जा निदेशालय के तहत एक सुरक्षा और पुनर्जीवित करने पर सुझाव मांगने के लिए एक गुणवत्ता नियंत्रण प्राधिकरण बनाया है। इसके समिति बनाई है। (आईएएनएस)
लंच बॉक्स योजना
ग
नागपुर में शुरू हुई दीनदयाल लंच बॉक्स योजना
रीब मरीजों के परिजनों के लिए नागपुर के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में दीनदयाल लंच बॉक्स परियोजना का शुभारंभ किया गया। दूर-दराज गांवों से अस्पतालों में इलाज के लिए आने वाली मरीजों को खाने-पीने की सुविधा तो अस्पतालों की ओर से हो जाती है, लेकिन सबसे ज्यादा संकट का सामना उनके परिजनों को होता है। उन्हें दवा आदि सहित अन्य सारी समस्याओं से मुकाबला करना पड़ता है। खास कर उनके सामने खाने और रहने की समस्या बनी रहती है। इसी परेशानी को ध्यान में रखकर दीनदयाल लंच बॉक्स परियोजना की शुरुआत की गई है। इस संस्था का कहना है कि किसी भी परिजन को अब भूखे नहीं सोना पड़ेगा। इसका आरंभ गौरक्षा सभा के अध्यक्ष श्रीपाद रिसालदार ने किया। इस मौके पर इंटरनेशनल ट्रॉपिकल न्यूरोलोजी के अध्यक्ष डॉ. चंद्रशेखर मेश्राम ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि गरीबों को खाने के लिए नहीं मिल रहा है
और अमीर अनाज की बर्बादी में जरा भी संकोच नहीं करते हैं। इस हालात में रियायती कीमत पर लंच परियोजना की शुरुआत एक अच्छा प्रयास है। इस कार्यक्रम में यह भी कहा गया कि गरीब मरीजों के परिजनों के लिए रहने की व्यवस्था भी होनी चाहिए। महापौर नंदा जिचकार ने संपन्न लोगों से अपील की कि वे कार्य के लिए आगे आएं तथा मदद करें। प्रतिष्ठान के अध्यक्ष संदीप जोशी ने जानकारी दी कि इस परियोजना की तारीफ मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने भी की है। (मुंबई ब्यूरो)
रायपुर में 'दर्शन-ए-गांधी' प्रदर्शनी
इस खास प्रदर्शनी में महात्मा गांधी से जुड़ी अनेक बहुमूल्य वस्तुओं जैसे मुद्रण नोट, डाक टिकट, मूर्तियां, चित्र आदि का प्रदर्शन
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त्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सिटी मॉल में एक प्रदर्शनी लगाई गई, जिसमें गांधी जी के जीवन का झरोखा पेश किया गया। इसमें महात्मा गांधी से जुड़ी अनेक बहुमूल्य वस्तुओं जैसे मुद्रण नोट, डाक टिकट, मूर्तियां, चित्र आदि को प्रदर्शित किया गया था। 30 अगस्त से 3 सितंबर तक चली इस प्रदर्शनी में फिल्मी सितारों प्राची देसाई, तैफुल खान के साथ रूसी कलाकार याना और विक्टोरिया ने आकर गांधी स्मृति प्रदर्शनी को स्मरणीय बना दिया। इस प्रदर्शनी में डॉ. भानु प्रताप द्वारा किए गए संग्रह को खूबसूरत अंदाज में पेश किया गया। हाल ही में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से मुद्राशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने वाले पेशे से डॉक्टर भानु प्रताप सिंह अपने संग्रह का प्रदर्शन करने के
साथ साथ, बच्चों की संग्रह के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए कक्षाओं का आयोजन भी करते हैं। उनका मानना है कि इस तरह हमारी संस्कृति को संजोए रखा जा सकता है और गांधी जी द्वारा देशहित में किए गए कार्यों से बच्चों को अवगत करा उनको देशभक्ति के लिए प्रेरित किया जा सकता है। (आईएएनएस)
11 - 17 सितंबर 2017
पुलिस
पोशाक
राज्य को प्रदूषण मुक्त करने का संकल्प
पुलिस के जवान अब खाकी वर्दी की जगह स्मार्ट यूनिफॉर्म में नजर आएंगे। देश के विभिन्ने हिस्सों में अलग-अलग मौसम की के हिसाब से इसे डिजायन किया गया है
अं
ग्रेजों के जमाने से खकी की वर्दी पहनने वाली देश की पुलिस के लिए नया यूनिफॅार्म तैयार किया गया है। मौजूदा खाकी वर्दी पर पांच साल तक शोध करने के बाद अहमदाबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजायन ने पुलिस के लिए स्मार्ट यूनिफॉर्म तैयार किया है। यह यूनिफार्म सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों और अर्द्धसैनिक बलों के लिए होगी। ब्यूरो ऑफ रीसर्च ऐंड डिवेलपमेंट के सहयोग से वर्दी के 9 नमूने तैयार किए गए हैं। इसमें शर्ट, ट्राउजर, बेल्ट, टोपी, जूते और जैकेट शामल हैं। इसके अलावा रेनकोट और हेडगियर के डिजाइन भी तैयार किए गए हैं। इसे सभी राज्यों की पुलिस के साथ साझा किया गया है, ताकि वे अपने हिसाब से चयन कर सकें। 9 राज्यों से मिले फीडबैक और पब्लिक शो के मुताबिक मौजूदा वर्दी में कई सारी दिक्कतें हैं। एक तो पूरे देश की पुलिस की वर्दी में कोई समानता नहीं है। दूसरा पुलिस की वर्दी बहुत मोटी है जो गर्मी के मौसम में दिक्कत करती है। इसके अलावा वर्दी में आधिकारिक सामग्री को रखने की भी पर्याप्त जगह नहीं है। पुलिसवालों की टोपी ऊन की होने की वजह
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स्वच्छता महाराष्ट्र
पुलिस के जवान पहनेंगे डिजायनर वर्दी एसएसबी ब्यूरो
गुड न्यूज
से गर्मियों में सिरदर्द की वजह बन जाती है। वहीं हेलमेट इतने भारी हैं कि आपात परिस्थिति में पहनना मुश्किल हो जाता है। बेल्ट इतनी मोटी है कि झुकने पर पेट में चुभने लगती है। दुनियाभर के दूसरे देशों की तरह बेल्ट में सेल फोन रखने की जगह और स्मार्ट कीज होनी जरूरी हैं। मौजूदा वर्दी वाले जूते भी पुलिसवालों के लिए समस्या की वजह हैं। लंबे समय के लिए चमड़े के भारी जूते पहनना आसान नहीं होता है। इस यूनिफॉर्म
की विजिबिलिटी भी धुंध में कम है। इसके अलावा खाकी रंग प्राइवेट एजेंसीज और अन्य विभागों के लोग भी प्रयोग करते हैं। ब्यूरो ऑफ रीसर्च ऐंड डिवेलपमेंट की निदेशक मीरा बोरवान्कर ने बताया, 'खाकी वर्दी की बहुत आलोचना होती है। इसमें बदलाव होना जरूरी है। मौजूदा वर्दी पुलिसवालों के लिए सभी मौसम में पहनने लायक नहीं है। इसका विकल्प लाना जरूरी है।' (एजेंसी)
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प्रदेश सरकार ने महाराष्ट्र को 2022 तक प्रदूषण मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया है
हाराष्ट्र सरकार ने पूरे प्रदेश को वर्ष 2022 तक प्रदूषण मुक्त करने का संकल्प दोहराया और कहा कि इसकी जिम्मेदारी अब नगरपालिका, महानगरपालिका तथा अन्य स्थानीय निकाय को भी दी जाएगी। सरकार का कहना है है कि प्रदूषण मुक्त अभियान में जब तक आम आदमी की हिस्सेदारी नहीं होगी, इस लक्ष्य को पाने में कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। पर्यावरण विभाग के राज्यमंत्री प्रवीण पोटे ने स्पष्ट कहा कि सरकार अपने इस संकल्प के साथ काम कर रही है कि लोगों को साफ़ हवा सांस लेने को मिले ताकि आने वाली पीढ़ी को बेहतर जीवन दिया जा सके। इसके लिए प्रदूषण नियंत्रण विभाग के तहत एक अभियान चलाकर प्रदूषण मुक्त महाराष्ट्र बनाने पर जोर दिया जाएगा। एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में 126 ऐसे शहर हैं जो बुरी तरह प्रदूषित हैं, उनमें 17 शहर अकेले महाराष्ट्र के हैं। इस रिपोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है और वह इस दाग को धोना चाहती है। इसके लिए सरकार हर संभव कोशिश में जुट गई है। सरकार विभिन्न योजनाओं के माध्यम से हवा-पानी को शुद्ध करने के लिए संकल्प ले चुकी है। इसीलिए भारत सरकार के स्वच्छता अभियान के तहत
स्वास्थ्य
राज्य के तमाम स्कूल-कॉलेजों सहित अन्य शिक्षा संस्थानों, औद्योगिक क्षेत्रों, रिहाइशी कॉलोनियों तथा आम नागरिकों को इस अभियान को सफल बनाने की जिम्मेदारी दी है। महानगरों से लेकर शहरों और गाँवों तक खुले में शौच से मुक्त करने के लिए शौचालय बनाए जा रहे हैं। सरकार ने यह तय किया है कि महानगरपालिका, नगरपालिका तथा स्थानीय निकाय अपने कुल बजट का चौथाई हिस्सा प्रदूषण मुक्ति तथा स्वच्छता के लिए खर्च करें। वे पैसे सही जगह पर खर्च हो रहे हैं या नहीं, इसकी निगरानी भी की जाएगी। (मुंबई ब्यूरो)
शोध
एवोकैडो खाएं, मेमोरी बढ़ाएं
रो
नए शोध से पता चला है कि ताजा एवोकैडो खाने से स्मरण शक्ति बढ़ती है
जाना एक ताजा एवोकैडो खाने से वयस्कों की मेमोरी और कार्य करने की क्षमता में वृद्धि होती है। ऐसा एक शोध में कहा गया है। शोध में 50 वर्ष से अधिक आयु वाले वयस्कों को छह महीने तक प्रति दिन एक ताजा एवोकैडो खिलाने से उनके मस्तिष्क और आंखों में ल्यूटेन के स्तर में 25 प्रतिशत वृद्धि हुई, जिससे उनकी मेमोरी और कार्य करने की क्षमता में काफी सुधार हुआ। ल्यूटेन एक तरह का पिगमेंट है, जो सामान्य तौर पर फलों और सब्जियों
में पाया जाता है और हमारे आंखों और मस्तिष्क के लिए एक एंटीऑक्सीडेंट की तरह कार्य करता है। टफट्स यूनिवर्सिटी मैसाचुसेट्स के प्रमुख शोधकर्ता एलिजाबेथ जॉनसन ने कहा कि एवोकैडो में वसा, फाइबर, बायोएक्टिव न्यूरल पाए जाते हैं, जो ल्यूटिन के स्तर को बढ़ाने में मदद करते हैं और यह ना सिर्फ हमारी आंखो बल्कि मस्तिष्क को भी स्वस्थ्य रखने में हमारी मदद करते हैं। एवोकैडो एक ऐसा संतुलित आहार है, जिसमें संज्ञानात्मक
स्वास्थ्य के लिए एक प्रभावी रणनीति पाई जाती है। वहीं टेक्सास विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं रियो ग्रांडे वैली ने बताया कि आम तौर पर एवोकैडो बीज के कणों में उपयोगी रासायनिक यौगिकों की अधिक मात्रा होती है। अध्ययन से पता चला है कि इन रासायनिक यौगिकों का उपयोग अंततः दुर्बल रोगों के साथ-साथ सौंदर्य प्रसाधन, इत्र और अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के आकर्षण को बढ़ाने के लिए किया जा सकता है।
28 गुड न्यूज
11 - 17 सितंबर 2017
कैंसर जागरुकता
पीएम का पत्र पाकर गदगद हुए युवराज
युवराज सिंह द्वारा समाज के लिए किए जा रहे कामों से प्रभावित होकर पीएम मोदी ने लिखा पत्र
सा
ल 2011 में कैंसर को मात देकर मैदान पर वापसी करने वाले भारत के सिक्सर किंग युवराज सिंह की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पत्र लिखकर प्रशंसा की है। दरअसल पीएम मोदी, युवराज सिंह के द्वारा समाज के लिए किए जा रहे कामों से बेहद प्रभावित हुए हैं और खत लिखकर अपनी खुशी जाहिर की है। युवराज सिंह ने ‘यू वी कैन’ नाम की एक फाउंडेशन शुरू की जो कैंसर पीड़ितों की मदद करती है। यू वी कैन संस्था लोगों को कैंसर से लड़ने और उसके बारे में जागरूकता फैलाने का काम करती है। युवराज सिंह ने 2012 में कैंसर मरीजों के लिए यू वी कैन की शुरुआत की थी, जो लगातार कैंसर मरीजों के उत्तम स्वास्थ के लिए काम कर रही है। युवराज सिंह ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर मोदी के साथ एक तस्वीर साझा करते हुए, प्रधानमंत्री का पत्र भी पोस्ट किया है। पीएम नरेंद्र मोदी ने युवराज सिंह को संबोधित करते हुए पत्र में लिखा है, ‘प्रिय युवराज, आपका खत पाकर बहुत खुशी हुई, मुझे सामाजिक कार्यों के प्रति आपके गहरे लगाव और सामाजिक कार्यों के लिए आपके फाउंडेशन द्वारा किए जा रहे कामों के बारे में जानकर खुशी हुई। एक बेहतरीन
क्रिकेटर और कैंसर को हराने वाले आपसे कई भारतीय प्रेरणा लेते हैं। आप ऐसे ही उत्साह और जज्बे के साथ समाज की सेवा करते रहें।’ पत्र को सोशल मीडिया नेटवर्किंग साइट इंस्टाग्राम शेयर करते हुए युवराज सिंह ने लिखा है, माननीय श्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रोत्साहित करने वाला लेटर मिलना हम सभी के लिए बहुत ही सम्मान की बात है। यूवीकैन में हमारा भरोसा है कि हम सब मिलकर दुनिया बदल सकते हैं। आपको जो मिला है और आप जो करते हैं उससे फर्क पैदा होता है। किसी और की जिंदगी को बेहतर बनाना और दुनिया में बदलाव लाने से बड़ा और कोई सम्मान नहीं है। (एजेंसी)
कैंसर को मात देने वालों का कैट वाक
चिकित्सा उपकरण
डॉक्टरों की मदद करेगा नया कैमरा
डॉक्टर इंसानी शरीर के अंदर देख सकते हैं, इसके लिए ब्रििटश वैज्ञानिकों ने एक कैमरे को विकसित किया है
वैज्ञानिकों ने एक ऐसे कैमरे ब्रि टेकोन मेंविकसित किया है, जिसके
जरिए डॉक्टर इंसानी शरीर के अंदर देख सकते हैं। बायोमेडिकल ऑप्टिक्स एक्सप्रेस के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, डॉक्टरों के चिकित्सा उपकरणों को ट्रैक करने में मदद करने के लिए बनाए गए इस डिवाइस को एंडोस्कोप नाम से जाना जाता है, जो कि आंतरिक स्थितियों की जांच करने के लिए उपयोग किया जाएगा। यह नया डिवाइस शरीर के प्रारंभिक परीक्षणों में प्रोटोटाइप डिवाइस अंदर प्रकाश के स्रोतों का पता लगा स्कता है। सामान्य प्रकाश की स्थिति में ऊतक के स्कॉटलैंड में एडिनबर्ग 20 सेंटीमीटर के माध्यम से बिंदु प्रकाश विश्वविद्यालय के प्रोफेसर केव स्रोत के स्थान को ट्रैक कर सकता है धालीवाल ने कहा, ‘यह एक बेहतर तकनीक है जो हमें मानव शरीर के अंदर देखने की अनुमति देती है। इसमें विभिन्न अनुप्रयोगों गया है जिसके जरिए प्रकाश के अलग-अलग कणों को करने के लिए विशाल क्षमता है।’ धालीवाल ने का पता लगाया जा सकता है, जिसे फोटोन कहा कहा कि एक्स-रे या अन्य महंगी विधियों का उपयोग जाता है। यह तकनीक इतनी संवेदनशील है कि किए बिना या फिर इसे बिना गाइड किए ट्रैक कर यह प्रकाश के छोटे निशान का भी पता लगा सकती पाना संभव ही नहीं है कि एंडोस्कोप शरीर में किस है, जो शरीर के ऊतकों के माध्यम से एंडोस्कोप से जगह स्थित है। रोशनी को एंडोस्कोप के जरिए शरीर गुजरती है। से गुजारा जाता है, लेकिन यह आमतौर पर सीधे जाने अध्ययन में पता चला है कि प्रारंभिक के बजाय ऊतक और अंगों से टकराते हुए या उनके परीक्षणों में प्रोटोटाइप डिवाइस सामान्य प्रकाश ऊपर से कूदते हुए निकल जाती है। इससे एंडोस्कोप की स्थिति में ऊतक के 20 सेंटीमीटर के माध्यम कहां है इसका स्पष्ट चित्र नहीं मिल पाता है। से बिंदु प्रकाश स्रोत के स्थान को ट्रैक कर नए कैमरे में उन्नत तकनीक का फायदा उठाया सकता है। (आईएएनएस)
मंत्री शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा कि देश में इस समय कैंसर को लेकर तमाम भ्रांतियां है। हौसला जैसे कार्यक्रमों उन भ्रांतियों को दूर करने में मदद मिलेगी और इससे कैंसर पीड़ितों का इलाज भी आसान होगा। उन्होंने सरकार से देशभर में शराबबंदी के साथ साथ तंबाकू सेवन पर भी प्रतिबंध लगाने की मांग की। कैंसर के खिलाफ जीएसएफ की मुहिम को पद्मविभूषण डॉ. सोनल मानसिंह ने भारत सरकार 23 वर्ष की युवती से लेकर 71 वर्ष तक की कैंसर सर्वाइवर्स महिलाओं के स्वच्छता अभियान से जोड़ते हुए कहा कि कैंसर हैं और सही तरीके से इलाज कराते हैं तो मौत को भी जैसी घातक बीमारियां के फैलाव में गंदगी और ने न केवल कैटवॉक किया, बल्कि यह भी बताया कि मात दी जा सकती है। फैशन शो के बाद मिस्टर और प्रदूषण बड़ा कारक है, लिहाजा हम अपने आसपास कैंसर का मतलब मौत नहीं है मिसेज हौसला के विनर घोषित किए गए। मिस्टर साफ-सफाई बरतकर इस तरह की बीमारियों से वन के 71 वसंत देख चुकी कैंसर सर्वाइवर चला रहे ग्रामीण स्नेह फाउंडश े न ने। इस मौके पर हौसला का खिताब जीता अभिनंदन शर्मा और मिसेज खुद का और अपने परिवार का बचाव कर सकते बुजुर्ग ने रैंप पर कैट वॉक किया। दिल्ली के 23 वर्ष की युवती से लेकर 71 वर्ष तक की कैंसर हौसला बनीं डॉ. हंसवाहिनी सिंह। हैं। जीएसएफ की अध्यक्ष स्नेहा राउत्रे ने देशभर में केदारनाथ साहनी ऑडिटोरियम में यह सब कुछ देखने सर्वाइवर्स महिलाओं ने न केवल कैटवॉक किया, कैंसर पीड़ितों की हौसला अफजाई और जीवन कैंसर के खिलाफ मुहिम चलाने का अपना संकल्प को मिला हौसला-2017 फाइट अगेंस्ट कैंसर के मंच बल्कि यह भी बताया कि कैंसर का मतलब मौत नहीं के प्रति उनका मनोबल बढ़ाने के लिए खासतौर पर दोहराया। इस मौके पर स्कूल के छात्र-छात्राओं ने पर जिसे आयोजित किया था कैंसर के खिलाफ मुहिम है, अगर आप सही समय डॉक्टर के संपर्क में आते पहुंचे भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए। (आईएएनएस)
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11 - 17 सितंबर 2017
पीड़ित
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सेवा
बाढ़ पीड़ितों की मसीहा
बाढ़ से त्रस्त पंचायत के लोगों की सेवा में दिन रात जुटी हैं मुखिया रितु जायसवाल
बि
हार के सीतामढ़ी जिले की सिंहवाहिनी पंचायत की महिला मुखिया इस पंचायत के लोगों की जिंदगी को एक बार फिर से पटरी पर लाने की जद्दोजहद में जुटी हैं। बिहार में सीतामढ़ी जिले की सिंहवाहिनी पंचायत में अधवारा और मरहा नदी में आए उफान से जब यहां के लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया, तब यहां के लोगों के लिए किसी मसीहा की तरह अपनों के बीच से चुनी गईं मुखिया रितु जायसवाल सामने आईं। रितु के पति आईएएस (अलायड) अधिकारी हैं और वर्तमान समय में दिल्ली में केंद्रीय सतर्कता आयोग में पदस्थापित हैं। बाढ़ का कहर थमने के बाद सिंहवाहिनी पंचायत के लोग अपने घरों को लौट रहे हैं, लेकिन जिंदगी
2016 में सिंहवाहिनी जीने की जद्दोजहद जारी है। इन बाढ़ पीड़ितों के सामने यह पंचायत से मुखिया पद के सवाल है कि इन्हें अपने घर की रोटी कब नसीब होगी? लिए रितु चुनाव लड़ीं और बाढ़ ने इन लोगों के आशियाने जीत गईं। इसके बाद वह ही नहीं छीने, बल्कि घर का लगातार यहां के विकास को तिनका-तिनका भी बहा ले लेकर काम कर रही हैं गई। मुखिया रितु जायसवाल कहती हैं, 'विनाशकारी बाढ़ अधवारा और मरहा नदी हम सिंहवाहिनी पंचायत के लोगों के जीवन में दुख, में आई बाढ़ ने स्थिति को पहले से भी बदतर कर दिया पीड़ा, हताशा छोड़ गई है। हम लोग पिछले एक साल है। हालांकि रितु ने हिम्मत नहीं हारी। वे आम लोगों में काफी तेजी से बढ़े थे। यहां पक्की सड़कें आ गई से लेकर सरकार और जनप्रतिनिधियों से लगातार थीं, बिजली से बल्ब जलने लगे थे, लेकिन शायद मदद की गुहार लगा रही हैं। उन्होंने बताया कि 16 प्रकृति को यह मंजूर नहीं था।' हजार की आबादी वाली इस पंचायत में 50 घर तो पूरी तरह बह गए और 100 घरों को आंशिक क्षति पहुंची है। पंचायत की बड़ी सिंहवाहिनी, करहरवा और खुटहां गांव की स्थिति एकदम भयावह है। रितु ने बताया कि बाढ़ किसी भी क्षेत्र के लिए एक त्रासदी है। बाढ़ के बाद किसी के पास कुछ नहीं बचता। कई बाढ़ पीड़ितों के पास अनाज खरीदने के लिए भी पैसे नहीं होते। ऐसे में एक जनप्रतिनिधि होने के नाते यह मेरा दायित्व ही नहीं कर्तव्य भी है कि इन्हें जीने के लिए सुविधा और खाने को अनाज मुहयै ा हो सके। वह कहती हैं, 'मैं पूरे राज्य के लिए तो बहुत कुछ नहीं कर सकती, लेकिन जिन्होंने मुझे मुखिया बनाया है, उनकी अच्छी जिंदगी और इस त्रासदी से उबरने के लिए उनके साथ तो हाथ बंटा ही सकती हूं।' वैसे रितु के मुखिया बनने की कहानी भी कम रोचक नहीं है। अपनी चमक-दमक की जिंदगी छोड़कर रितु ने इस पंचायत के विकास की जिम्मेदारी उठाई है। रितु ने बताया कि 1996 में उनकी शादी 1995 बैच के आईएएस (अलायड) अरुण कुमार से
हुई। उन्होंने बताया, 'शादी के 15 साल तक जहां पति की पोस्टिंग होती थी, मैं उनके साथ रहती थी। एक बार मैंने पति से कहा कि शादी के इतने साल हो गए हैं। आज तक ससुराल नहीं गई हूं। एक बार चलना चाहिए। मेरी बात सुन घर से सभी लोग नरकटिया गांव जाने को तैयार हो गए। गांव पहुंचने से कुछ दूर पहले ही कार कीचड़ में फंस गई। इसके बाद किसी तरह ससुराल पहुंचे।' इसके बाद ही रितु ने इस क्षेत्र की तस्वीर बदलने की ठान ली। रितु ने बताया कि वह यहीं रहने लगी। सबसे पहले उन्होंने गांव की लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया। 2015 में नरकटिया गांव की 12 लड़कियों ने पहली बार मैट्रिक की परीक्षा पास की। 2016 में सिंहवाहिनी पंचायत से मुखिया पद के लिए रितु चुनाव लड़ीं और जीत गईं। इसके बाद वह लगातार यहां के विकास को लेकर काम कर रही हैं। इस बाढ़ में जहां अधिकारी नहीं पहुंचे, वहां रितु नाव पर खुद गईं। रितू को इस साल का उच्च शिक्षित आदर्श युवा सरपंच, मुखिया पुरस्कार से भी नवाजा गया है। इधर, रितु के इन कार्यों से ग्रामीण भी खुश हैं। सिंहवाहिनी के ही रहने वाले महेश्वर कहते हैं कि देश के किसी भी जनप्रतिनिघि के लिए रितू आदर्श हैं। (आईएएनएस)
30 लोक कथा
11 - 17 सितंबर 2017
धरती पर ऐसे आई आग
चीनी लोककथा
चीन की प्राचीन पौराणिक कथाओं में ऐसे कई शूर-वीरों की कहानी सुनने को मिलती है, जिन्होंने अपनी बुद्धिमता, साहस और दृढ़ संकल्प का परिचय देकर लोगों की सेवा में अपना जीवन लगा दिया। स्वी रन की कहानी भी ऐसी पौराणिक कथाओं में से एक है
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दिम काल में मानव नहीं जानता था कि आग क्या चीज होती है और न ही आग का इस्तेमाल करना जानता था। उस दौर में रात के वक्त हर तरफ अंधेरा छाया रहता था। जंगली जानवरों की हुंकार सुनाई देती थी। लोग बड़े सहमे हुए सोते थे, रोशनी नहीं थी, ऐसे में रात बहुत ठंडी और डरावनी लगती थी। उस समय आग न होने के कारण मानव कच्चा खाना खाता था, बीमार भी बहुत पड़ता था और मानव की उम्र भी छोटी होती थी। स्वर्ग लोक में फ़ु शी नाम का देवता रहता था। जब उसने पृथ्वी पर लोगों का मुश्किल जीवन देखा, तो उसे बड़ा दुख हुआ। उसे मानव को आग का हितकारी काम दिखा कर सिखाने का उपाय सूझा, सो उसने अपनी दिव्य शक्ति का इस्तेमाल कर जंगल में भारी वर्षा के साथ बिजली गिराई, एक भारी गर्जन के साथ जंगल के पेड़ों पर बिजली गिरी और पेड़ आग से जल उठे। देखते ही देखते आग की लपटें धधकती हुई चारों फैल गयी, लोग बिजली के भंयकर गर्जन और धधकती हुई आग से भयभीत होकर इधरउधर भाग गए। कुछ समय के बाद बारिश थम गई और बिजली की गर्जन भी शांत हो गई। रात फिर आई, वर्षा के पानी से जमीन बहुत नम और ठंडी हो गई। इधर-उधर भागे हुए लोग फिर इकट्ठा हुए, वे डरते डरते पेड़ों पर जल रही आग देखते रहे, तभी एक नौजवान ने देखा कि पहले जब
रात होती थी, तो जंगली जानवर हुंकार करते सुनाई देते थे, अब ऐसा नहीं हो रहा, क्या जंगली जानवर पेड़ों पर जलती हुई इस प्रकार की रोशनीदार चीज से डरते हैं? इस नौजवान ने मन में सोचा। वह हिम्मत जुटाकर आग के पास चला आया, तो उसे महसूस हुआ कि उसका शरीर गर्म हो उठा है। बेहद आश्चर्य भरे स्वर में उसने लोगों को आवाज दी ‘आओ, देखो, यह जलती हुई चीज खतरनाक नहीं है, यह हमारे लिए रोशनी और गर्मी लाई है।’ फिर लोगों ने यह भी देखा कि आग में कुछ जानवर जलकर मरे हैं। उसका मांस भी इंसान ने खाया तो पाया कि उनका स्वाद बहुत अच्छा है। सभी लोग आग के पास जमा हो गए, आग में जले जानवरों का मांस खाया। उन्होंने पहले कभी इस तरह का मांस नहीं खाया था। मानव को तब मालूम हुआ था कि आग सचमुच काम आने वाली मूल्यवान चीज है, तब से उन्होंने पेड़ की टहनी और शाखाएं बटोरकर उन्हें आज से जलाया और सुरक्षित रखा। लोग रोज बारी-बारी से आग के पास रहते हुए उसे बुझने से बचाते रहे, लेकिन एक रात आग की रक्षा करने वाला व्यक्ति नींद से सो गया। पेड़ की शाखाएं पूरी तरह जल जाने के कारण आग बुझ गई। इस तरह लोग फिर अंधेरे और ठंड की हालत में वापस आ गए और मुश्किल भरा जीवन बिताने लगे। देवता फ़ु शी को जब यह बात पता चली, तो वह उस नौजवान व्यक्ति के सपने में आया, जिसमें उसने
युवक को बताया...‘दूर दराज पश्चिम में स्वी मिंग नाम का एक राज्य है, वहां आग का बीज मिलता है, तुम वहां जाकर आग के बीज वापस लाओ।’ सपने से जागकर नौजवान ने सोचा...‘सपने में देवता ने जो बात कही थी, मैं उसका पालन करूंगा।’ तब वह आग के बीज तलाशने के लिए रवाना हो गया। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों को लांघ, गहरी नदियों को पार कर और घने जंगलों से गुजरा। कई मुसीबतों को झेलकर वह अंत में स्वी मिंग राज्य पहुंचा। लेकिन यहां भी उसे न कोई रोशनी दिखी, और न ही आग, हर जगह अंधेरा ही अंधेरा था। नौजवान को बड़ी निराशा हुई, इस पर वह स्वी मू नाम के एक पेड़ के पास बैठकर विश्राम करने लगा। सहसा, नौजवान की आंखों के सामने चमक उठी। फिर चली, फिर एक चमक उठी फिर चली गई। इस तरह चारों ओर हल्की-हल्की रोशनी हो गयी। नौजवान तुरंत उठ खड़ा हुआ और चारों ओर नजर दौड़ते हुए रोशनी की जगह ढूंढ़ने लगा। उसे पता चला कि स्वी मू नाम के पेड़ पर कई पक्षी अपनी कड़ी चोंच को पेड़ पर मार-मार कर उसमें पड़े कीट निकाल रहे हैं। जब एक बार वे पेड़ पर चोंच मारते, तो पेड़ में से तेज चिनगारी उठती। यह देखकर नौजवान के दिमाग में यह विचार आया कि कहीं आग के बीज इस प्रकार के पेड़ में तो नहीं हैं? उसने तुरंत स्वी मू के पेड़ पर से एक टहनी तोड़ी
और उसे पेड़ पर रगड़ने की कोशिश की। सच में ही पेड़ की शाखा से चिनगारी निकली, पर आग नहीं जल पाई। नौजवान ने हार नहीं मानी, उसने विभिन्न तरह की पेड़ की शाखाएं ढूंढ़ कर धीरज के साथ पेड़ पर रगड़ते हुए आजमाइश की, अंत में उसकी कोशिश रंग लाई । पेड़ की शाखा पर धुआं निकला, फिर आग जल उठी। इस सफलता की खुशी में नौजवान की आंखों में आंसू आ गए। नौजवान अपने गृह राज्य वापस लौटा। वह लोगों के लिए आग के ऐसी बीज लाया, जो कभी खत्म नहीं हो सकते थे। आग के यह बीज हैं लकड़ी को रगड़ने से आग निकालने का तरीका। तभी से लोग आग के बारे में जानने लगे। उन्हें फिर सर्दी और घबराहट में जीवन नहीं गुजारना पड़ा। नौजवान की बुद्धिमता और बहादुरी मानकर लोगों ने उसे अपना मुखिया चुना और उसे स्वी रन यानी आग लाने वाला पुरुष कहते हुए सम्मानित किया। (‘लकड़ियों को आपस में रगड़ने से आग पैदा होने’ एक पौराणिक कहानी है, चीनी भाषा में इसे ‘ज़ुआन स्वी छ्यू हुओ’ कहते हैं। ‘ज़ुआन’ का अर्थ है ‘रगड़ना’, ‘स्वी’ का अर्थ है ‘लकड़ी’, ‘छ्यू’ का अर्थ है ‘लाना’और ‘हुओ’ का अर्थ है ‘आग’। कुल मिलाकर कहा जाए, तो इसका मतलब हुआ लकड़ी पर रगड़ने से आग पैदा होना।)
SULABH SANITATION
Sulabh International Social Service Organisation, New Delhi is organizing a Written Quiz Competition that is open to all school and college students, including the foreign students. All those who wish to participate are required to submit their answers to the email address contact@sulabhinternational.org, or they can submit their entries online by taking up the questions below. Students are requested to mention their name and School/College along with the class in which he/she is studying and the contact number with complete address for communication
First Prize: One Lakh Rupees
PRIZE
Second Prize: Seventy Five Thousand Rupees Third Prize: Fifty Thousand Rupees Consolation Prize: Five Thousand Rupees (100 in number)
500-1000) TI ON (W OR D LI M IT: TI PE M CO IZ QU EN TT QU ES TI ON S FO R W RI nounced? rt was ‘Swachh Bharat’ an Fo d be no open Re the m fro y da ich houses and there should the 1. On wh all in d cte ru nst co be by 2019, toilets should 2. Who announced that l. defecation? Discuss in detai Toilet? 3. Who invented Sulabh ovement? Cleanliness and Reform M 4. Who initiated Sulabh e features of Sulabh Toilet? ? 5. What are the distinctiv used in the Sulabh compost r ise til fer of ge nta rce pe d an 6. What are the benefits of the Sulabh Toilet? ’? 7. What are the benefits be addressed as ‘Brahmins to me ca g gin en av sc al nu discussing ople freed from ma If yes, then elaborate it by s? 8. In which town were pe ste ca r pe up of s me ho take tea and have food in the 9. Do these ‘Brahmins’ story of any such person. entions of Sulabh? 10. What are the other inv
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ritten Quiz Competition W of on si is bm su r fo te da
: September 30, 2017
For further details please contact Mrs. Aarti Arora, Hony. Vice President, +91 9899 855 344 Mrs. Tarun Sharma, Hony. Vice President, +91 97160 69 585 or feel free to email us at contact@sulabhinternational.org SULABH INTERNATIONAL SOCIAL SERVICE ORGANISATION In General Consultative Status with the United Nations Economic and Social Council Sulabh Gram, Mahavir Enclave, Palam Dabri Road, New Delhi - 110 045 Tel. Nos. : 91-11-25031518, 25031519; Fax Nos : 91-11-25034014, 91-11-25055952 E-mail: info@sulabhinternational.org, sulabhinfo@gmail.com Website: www.sulabhinternational.org, www.sulabhtoiletmuseum.org
32 अनाम हीरो
डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19
11 - 17 सितंबर 2017
अनाम हीरो योगेश्वर राम मिश्र
योगेश्वर का शिक्षा योग वा
वाराणसी के जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्र ने स्कूल को संवारने का उठाया जिम्मा
राणसी के जिस स्कूल परिसर में स्वामी विवेकानंद ने लगभग दो माह गुजारे थे, वह स्कूल कभी मॉडल स्कूल के रूप में चर्चित था, लेकिन वक्त के साथ अव्यवस्था का शिकार बन चुके इस ऐतिहासिक स्कूल को संवारने का संकल्प वाराणसी के जिलाधिकारी योगेश्वर राम मिश्र ने लिया है। वाराणसी के अर्दली बाजार स्थित एलटी कॉलेज परिसर में स्थापित परिषदीय विद्यालय में हर शनिवार को डीएम शिक्षक की भूमिका में होते हैं। इस सरकारी प्राथमिक विद्यालय को डीएम ने गोद लिया है और वे स्वयं प्रत्येक शनिवार दो घंटे यहां बच्चों को पढ़ाते हैं। तमाम प्रशासनिक व्यस्तताओं के बावजूद पिछले छह शनिवार से वे लगातार दो घंटे की क्लास लेने विद्यालय पहुंच रहे हैं। योगेश्वर राम मिश्र बच्चों को पहले भी पढ़ाते
रहे हैं। जब वे बाराबंकी के डीएम थे तो जांच के दौरान वे सीधे क्लास रूम में पहुंच जाते थे। बाराबंकी में उन्होंने मुहिम चलाकर अधिकारियों से शिक्षादान करवाया। वाराणसी में जिलाधिकारी की एकल कक्षा में आठ तक के 92 बच्चे होते हैं। शनिवार को हर बच्चा उपस्थित होता है, सबको टॉफी भी मिलती है। कक्षा पांच की छात्रा माहेश्वरी और कक्षा छह की सना अमीर कहती हैं कि जबसे डीएम अंकल आने लगे हैं, बहुत कुछ ठीक हो गया है। कक्षा छह की ही मोनिका, श्रद्धा व कविता बताती हैं कि बहुत गंदगी थी, पढ़ाई भी व्यवस्थित नहीं थी, मगर अब स्थिति सुधर गई है। योगेश्वर राम मिश्र कहते हैं कि विद्यालय का स्वर्णिम इतिहास रहा है। वक्त बदला, लेकिन हम इस धरोहर को संभाल नहीं पाए। हालांकि अब
दरियादिल आमिर
न्यूजमेकर
आमिर ने बिहार में बाढ़ राहत और पुनर्वास के लिए 25 लाख रुपये दान दिए
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आमिर खान
सब कुछ संवरने लगा है। इस विद्यालय में डीएम के पढ़ाने का असर यह हुआ है कि आसपास के स्कूलों में भी अब सुधार की झलक मिलती है। डीएम ने स्कूल को पुन: मॉडल स्कूल बनाने का जिम्मा अब शिक्षा विभाग को सौंपा है। प्रधानाध्यापक बाबूलाल यादव बताते हैं कि जिलाधिकारी द्वारा गोद लेने के बाद छात्रों की संख्या 53 से बढ़कर 92 हो गई है। स्कूल का
क बार फिर आमिर खान ने दरियादिली दिखाई है। आमिर ने बिहार में बाढ़ राहत और पुनर्वास के लिए 25 लाख रुपए दान किए। आमिर खान की प्रोडक्शन कंपनी ने डाक के जरिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री राहत कोष के लिए चेक भेजा। गौरतलब है कि बिहार के 19 जिले भीषण बाढ़ की मार झेल रहे हैं। नेपाल की तरफ से आई बाढ़ ने जबरदस्त तबाही मचाई है। बाढ़ की वजह से जानमाल का नुकसान हुआ और वहीं 500 सौ से अधिक लोग इसके शिकार हुए हैं। ऐसा पहली बार नहीं है जब आमिर ने राहत के लिए पैसे दिए हों। इससे पहले हाल ही में असम और गुजरात के लिए भी आमिर ने 25 लाख रुपए दिए थे। गौरतलब है कि आमिर खान की फिल्म ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ भी आने वाली है। 'सीक्रेट सुपरस्टार' में जायरा वसीम, मेहर विज और आमिर खान प्रमुख भूमिकाओं में हैं। आमिर और जायरा इससे पहले फिल्म 'दंगल' में काम कर चुके हैं। अद्वैत चंदन के निर्देशन में बनी फिल्म 'सीक्रेट सुपरस्टार' दिवाली के आसपास रिलीज होने की संभावना है।
मुख्यद्वार बन गया है। अब जिलाधिकारी वॉटर कूलर, बाउंड्री, टेबल-कुर्सी, खेल के सामान आदि की व्यवस्था करवा रहे हैं। स्कूल में शैक्षणिक गुणवत्ता बहुत खराब नहीं है। तय है कि स्कूल कुछ दिन बाद मॉडल रूप में दिखेगा। योगेश्वर का कहना है कि वे अब सभी अफसरों को दूसरे विद्यालयों में भेजने वाले हैं। वे सब एक-एक स्कूल को गोद लेकर काम करेंगे।
सिंगापुर के पिल्लई
भारतीय मूल के जे वाई पिल्लई बने सिंगापुर के कार्यवाहक राष्ट्रपति
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रतीय मूल के जानेमाने नौकरशाह जे वाई पिल्लई को सिंगापुर के कार्यवाहक राष्ट्रपति के तौर पर नियुक्त किया गया है। 83 वर्षीय पिल्लई ने टोनी टैन केंग याम की जगह लिया, जिनका राष्ट्रपति के तौर पर छह साल का कार्यकाल पूरा हो गया है। राष्ट्रपति सलाहकार परिषद के अध्यक्ष पिल्लई तब तक राष्ट्रपति पद पर बने रहेंगे, जब तक नामांकन वाले दिन या 23 सितंबर को चुनाव वाले दिन के बाद कोई उम्मीदवार निर्वाचित नहीं हो जाता। स्ट्रेट्स टाइम्स के अनुसार, राष्ट्रपति कार्यालय खाली होने पर संसद के सभापति के बाद राष्ट्रपति सलाहकार परिषद के अध्यक्ष को इसकी जिम्मेदारी सौंपी जाती है। कहा जा रहा है कि 1991 में जब से राष्ट्रपति चयन की प्रक्रिया शुरू हुई है, तब से यह पहली बार है जब कार्यालय खाली हुआ है। हालांकि पिल्लई को पहली बार यह जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई है। राष्ट्रपति के विदेश यात्रा पर जाने के दौरान हर बार वही कार्यवाहक राष्ट्रपति की जिम्मेदारी निभाते आ रहे हैं।
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 1, अंक - 39
जे वाई पिल्लई