वर्ष-1 | अंक-26 | 12 - 18 जून 2017
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597
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05 शिक्षा
शोध में बहार
शोध कार्यों को बढ़ावा देने के लिए हुए प्रयास
...अब कीर्तिमान की बात
सू
06 ऊर्जा
अब स्वच्छ ऊर्जा
देश में सौर ऊर्जा की क्षमता में जोरदार इजाफा
28 पर्यावरण
खतरे में धरोहर
तटीय क्षेत्र के मंदिरों पर प्रदूषण का खतरा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम ने प्रसारण की दृष्टि से तो लोकप्रियता हासिल की ही है, इससे आकाशवाणी को भी रिकार्ड व्यावसायिक फायदा हो रहा है प्रेम प्रकाश
चना के असंख्य स्रोत और अनंत प्रवाह के बीच जिस एक बात की चिंता लगातार गहराती जा रही है, वह यह कि सूचना क्रांति संवेदना और सामाजिक क्रांति के धरातल को उस तरह स्पर्श नहीं करती, जैसी मौजूदा दौर को दरकार है। अलबत्ता इस बीच सोशल मीडिया ने जरूर आगे आकर कई परिवर्तनकारी पहल को आगे बढ़ाया है। अरब स्प्रिंग से लेकर भारत में निर्भया मामले तक सोशल मीडिया की रचनात्मक भूमिका
को हम देख चुके हैं। इस बीच, सूचना और संचार के पुराने साधन रेडियो के भविष्य को लेकर भी कई आशंकाएं जताई गईं हैं। माना गया कि इंटरनेट, टीवी, कंप्यूटर-लैपटॉप और मोबाइल फोन के दौर में रेडियो के लिए अपनी प्रासंगिकता को बचाए रखना मुश्किल होगा। पर ऐसा हुआ नहीं। हालांकि रेडियो ने समय के मुताबिक अपनी प्रस्तुति और कॉन्टेंट को जरूर बदला।
सामाजिक परिवर्तन के सूत्रधार
बात करें भारत की तो बीते ढाई साल में यहां
आकाशवाणी सामाजिक परिवर्तन में बड़ी भूमिका निभा रहा है। दिलचस्प यह कि इस परिवर्तन के सूत्रधार खुद हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। तीन अक्टूबर, 2014 को पहली बार रेडियो पर उन्होंने अपने ‘मन की बात’ कही थी। तब से यह क्रम लगातार जारी है और इससे देश में संवाद और संवेदना का एक नया सांचा देखते ही देखते तैयार हो गया है। तारीफ करनी होगी प्रधानमंत्री मोदी की क्योंकि वे एक तरफ जहां ट्विटर पर किसी भी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मसले पर फौरी तौर पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करने वाले ग्लोबल राजनेताओं की
एक नजर
तीन अक्टूबर, 2014 को पहली बार प्रसारित हुआ ‘मन की बात’
इस कार्यक्रम के सबसे ज्यादा श्रोता बिहार में हैं 150 देशों में सुना जाता है प्रधानमंत्री का यह कार्यक्रम
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