वर्ष-1 | अंक-26 | 12 - 18 जून 2017
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597
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05 शिक्षा
शोध में बहार
शोध कार्यों को बढ़ावा देने के लिए हुए प्रयास
...अब कीर्तिमान की बात
सू
06 ऊर्जा
अब स्वच्छ ऊर्जा
देश में सौर ऊर्जा की क्षमता में जोरदार इजाफा
28 पर्यावरण
खतरे में धरोहर
तटीय क्षेत्र के मंदिरों पर प्रदूषण का खतरा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम ने प्रसारण की दृष्टि से तो लोकप्रियता हासिल की ही है, इससे आकाशवाणी को भी रिकार्ड व्यावसायिक फायदा हो रहा है प्रेम प्रकाश
चना के असंख्य स्रोत और अनंत प्रवाह के बीच जिस एक बात की चिंता लगातार गहराती जा रही है, वह यह कि सूचना क्रांति संवेदना और सामाजिक क्रांति के धरातल को उस तरह स्पर्श नहीं करती, जैसी मौजूदा दौर को दरकार है। अलबत्ता इस बीच सोशल मीडिया ने जरूर आगे आकर कई परिवर्तनकारी पहल को आगे बढ़ाया है। अरब स्प्रिंग से लेकर भारत में निर्भया मामले तक सोशल मीडिया की रचनात्मक भूमिका
को हम देख चुके हैं। इस बीच, सूचना और संचार के पुराने साधन रेडियो के भविष्य को लेकर भी कई आशंकाएं जताई गईं हैं। माना गया कि इंटरनेट, टीवी, कंप्यूटर-लैपटॉप और मोबाइल फोन के दौर में रेडियो के लिए अपनी प्रासंगिकता को बचाए रखना मुश्किल होगा। पर ऐसा हुआ नहीं। हालांकि रेडियो ने समय के मुताबिक अपनी प्रस्तुति और कॉन्टेंट को जरूर बदला।
सामाजिक परिवर्तन के सूत्रधार
बात करें भारत की तो बीते ढाई साल में यहां
आकाशवाणी सामाजिक परिवर्तन में बड़ी भूमिका निभा रहा है। दिलचस्प यह कि इस परिवर्तन के सूत्रधार खुद हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। तीन अक्टूबर, 2014 को पहली बार रेडियो पर उन्होंने अपने ‘मन की बात’ कही थी। तब से यह क्रम लगातार जारी है और इससे देश में संवाद और संवेदना का एक नया सांचा देखते ही देखते तैयार हो गया है। तारीफ करनी होगी प्रधानमंत्री मोदी की क्योंकि वे एक तरफ जहां ट्विटर पर किसी भी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मसले पर फौरी तौर पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करने वाले ग्लोबल राजनेताओं की
एक नजर
तीन अक्टूबर, 2014 को पहली बार प्रसारित हुआ ‘मन की बात’
इस कार्यक्रम के सबसे ज्यादा श्रोता बिहार में हैं 150 देशों में सुना जाता है प्रधानमंत्री का यह कार्यक्रम
...जारी पेज 3
02 आवरण कथा
12 - 18 जून 2017
अनूठे संवाद श्रृंखला पर कई किताबें
हा
‘मन की बात’ कार्यक्रम को लेकर अब तक कई किताबें आ चुकी हैं। इनमें दो किताबों का लोकार्पण हाल में राष्ट्रपति भवन में संपन्न हुआ
ल ही में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को 'मन की बात: रेडियो पर एक सामाजिक क्रांति' तथा 'एक अरब लोगों के साथ-मध्य अवधि में नरेंद्र मोदी की सरकार का विश्लेषण' दो पुस्तकों की प्रथम प्रति लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने भेंट की। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि किसी भी राजनेता के लिए प्रभावी संचार महत्वपूर्ण है। संवाद करने की क्षमता के बिना, एक नेता अपने विचारों और दृष्टिकोण से लोगों को प्रेरित नहीं कर सकता है। राजग सरकार के तीन साल पूरा होने पर एक पुस्तक लोकार्पण समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, 'निस्संदेह समसामयिक काल में प्रधानमंत्री अपनी बात बेहतरीन ढंग से कहने वालों में से एक हैं तथा संभवतया उनकी तुलना पूर्ववर्त्ती प्रधानमंत्रियों जैसे पंडित जवाहरलाल नेहरू एवं इंदिरा गांधी से की जा सकती है जो सरकार के संसदीय स्वरूप तथा विशेषतौर पर पंथनिरपेक्ष संवाद को स्वीकार करते हुए अपने सिद्धांतों एवं अपने विचारों को बेहतरीन ढंग से रख पाते थे।' उन्होंने कहा कि अच्छी तरह से संवाद करने की क्षमता के बिना किसी व्यक्ति से लाखों लोगों का नेतृत्व करने की उम्मीद नहीं की जा सकती। मुखर्जी ने कहा कि निस्संदेह आज की तारीख में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे प्रभावी संचारकों में से एक हैं। स्वतंत्र भारत में, प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने हमारे संविधान में सन्निहित धर्मनिरपेक्षता सहित मूल्यों को प्रभावी ढंग से प्रचारित किया। उनके द्वारा उठाए गए कई कदमों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ाया है। राष्ट्रपति ने दोनों पुस्तकों को प्रकाशित करने के लिए प्रकाशकों को बधाई दी तथा साथ ही आभार भी व्यक्त किया। इस अवसर पर उप-राष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी और केंद्रीय वित्त एवं रक्षा मंत्री अरुण जेटली भी मौजूद थे। इस मौके पर उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा कि आकाशवाणी से प्रसारित होने वाला 'मन की बात' एक लोकप्रिय कार्यक्रम है। अंसारी ने कहा कि 'मन की बात' कार्यक्रम रेडियो का एक पारंपरिक माध्यम है और यह संचार की संपूर्ण प्रौद्योगिकियों- टेलिविजन से लेकर इंटरनेट, सोशल मीडिया से लेकर मोबाइल फोन तक पर उपलब्ध है।
मन की बात और युवा
पुस्तक 'मन की बात: रेडियो पर एक सामाजिक क्रांति', बताती है कि कैसे 'मन की बात' के माध्यम से 'न्यू इंडिया' विशेष रूप से युवा जुड़ा है। 'मन की बात' के माध्यम से कैसे एक व्यापक आंदोलन खड़ा किया गया है, जिसके अंतर्गत स्वच्छ भारत अभियान, भारत की पर्यटन क्षमता को बढ़ावा, सुरक्षित सड़कें,
ड्रग्स रहित भारत इत्यादि को आगे बढ़ाने में प्रमुख भूमिका रही है। इस पुस्तक का संकलन राजेश जैन ने किया है। इसी तरह पुस्तक 'एक अरब लोगों के साथ-मध्य अवधि में नरेंद्र मोदी की सरकार का विश्लेषण', सरकार के परिवर्तन का विश्लेषण करती है। इसे उदय माहूरकर ने लिखा है।
ऐसे फाइनल हुआ नाम
तीन अक्टूबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार अपने ‘मन की बात’ लेकर रेडियो श्रोताओं से मुखातिब हुए थे। रेडियो पर शुरू हुए इस अनूठे संवाद कार्यक्रम को ढाई साल हो चुके हैं। प्रधानमंत्री के इस लोकप्रिय रेडियो शो के किस्से राजेश जैन की नई आई किताब में रोचक तरीके से वर्णित हैं। इसमें इस कार्यक्रम
पुस्तक लेखक/संकलनकर्ता • मन की बात: रेडियो पर एक सामाजिक क्रांति राजेश जैन • एक अरब लोगों के साथ उदय माहूरकर (मध्य अवधि में नरेंद्र मोदी की सरकार का विश्लेषण) • प्रधानमंत्री के मन की बात राजीव गुप्ता
‘मैं उस अंतर (नए और पुराने भारत) को जानता हूं, जो रेडियो कर सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसका बेहतरीन उपयोग किया। बहुत सारे लोगों ने मार्टिन लूथर किंग को सुना होगा। रेडियो पर बोलना मेरा सपना है। इसके जैसी बदलाव की शक्ति किसी और माध्यम में नहीं है’ – नरेंद्र मोदी के शुरू होने से लेकर इसके जन-जन तक पहुंचने तक की खूबसूरत यात्रा को दिलचस्प तरीके से बताया गया है। ‘मन की बात, रेडियो पर एक सामाजिक क्रांति’ के नाम से आई किताब में प्रधानमंत्री के रेडियो पर दिए गए भाषणों को भी संकलित किया गया है। इस किताब में बताया है कि जब प्रधानमंत्री के पास अधिकारी कार्यक्रम के नाम के लिए आए तो प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘अरे इसमें क्या
है। कहो कि हल्की -फुल्की बातें करुंगा।’ इसके बाद कार्यक्रम के लिए ‘पीएम के साथ रूबरू’, ‘वार्ता मोदी जी के साथ’, ‘मोदी-वाणी’ आदि कार्यक्रम के नाम सुझाए गए, लेकिन अंत में 'मन की बात' तय हुआ। यह किताब बताती है कि ‘मन की बात’ ने न केवल रेडियो पर क्रांति की, बल्कि पुराने और नए भारत के बीच की दूरी को भी नए सिरे से पाटा।
प्रस्तावना जापान के प्रधानमंत्री की
‘मन की बात, रेडियो पर एक सामाजिक क्रांति’ किताब की प्रस्तावना जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने लिखी है। उन्होंने लिखा है कि यह किताब प्रधानमंत्री मोदी के भारत के लोगों के साथ संवाद के जोश से भरी हुई है। मैं खासतौर पर युवाओं के साथ संवाद करने की मोदी की गहरी इच्छाशक्ति को महसूस करता हूं। ‘मन की बात’ किताब में इस कार्यक्रम का समीक्षात्मक विश्लेषण भी किया गया है, जिसमें खासतौर पर श्रोताओं से मिले फीडबैक की चर्चा की गई है। इस कार्यक्रम की लोकप्रियता इस बात से भी सिद्ध होती है कि हर महीने अलग-अलग मुद्दों पर संवाद करने वाले पीएम के पास हजारों चिट्ठियां हर महीने आती हैं। इनमें से सभी को मोदी नहीं पढ़ पाते हैं, लेकिन जिन्हें वे पढ़ते हैं, उनके बारे में गंभीरता से विचार भी करते हैं और अगर उस बाबत कुछ करने की जरूरत पड़ती है तो उस बारे में आदेश भी देते हैं।
रेडियो की ताकत
जहां तक इस अनूठे कार्यकम के लिए रेडियो के चयन की बात है तो इसकी बड़ी वजह रेडियो का आम लोगों के करीब होना है। रेडियो देश के कोने-कोने तक पहुंचता है। इस किताब में खुद नरेंद्र मोदी कहते हैं, ‘मैं उस अंतर (नए और पुराने भारत) को जानता हूं, जो रेडियो कर सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसका बेहतरीन उपयोग किया। बहुत सारे लोगों ने मार्टिन लूथर किंग को सुना होगा। रेडियो पर बोलना मेरा सपना है। इसके जैसी बदलाव की शक्ति किसी और माध्यम में नहीं है।’ इस किताब में माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स के भी विचार संकलित हैं। उनके शब्दों में ‘मन की बात इस बात का बेहतरीन उदाहरण है कि सकारात्मक बदलाव लाने के लिए मीडिया कैसे इस्तेमाल किया जाता है।’
सारी बातों का संकलन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात अब लोगों को एक किताब की शक्ल में पढ़ने के लिए मिल सकती है, क्योंकि लेखक राजीव गुप्ता ने उनके सभी भाषणों को 'प्रधानमंत्री के मन की बात' नामक एक पुस्तक में संग्रहित किया है। इसी साल जनवरी में देश की राजधानी में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में इस पुस्तक का विमोचन केंद्रीय जनजाति विकास मंत्री जुआल ओरम, वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय और राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष बलदेव भाई शर्मा ने किया था।
...अब कीर्तिमान की बात
12 - 18 जून 2017 ...जारी पेज 1
हर दूसरा भारतीय श्रोता
संवाद का तार और बेतार
आज आलम यह है कि न्यूयार्क के मेडिसन स्क्वायर से लेकर दिल्ली के लाल किले तक, हर जगह उन्हें सुनने के लिए लोगों की रिकार्ड भीड़ उमड़ती है। इसी तरह, जब वे महीने के आखिरी रविवार को अपने ‘मन की बात’ कहते हैं, तो गांव-घर से लेकर चाय-पान की बैठकियों तक देश के सबसे लोकप्रिय राजनेता को लोग गौर से सुनते हैं। यह भी कि जब रेडियो पर वे अपने ‘मन की बात’ करते हैं तो इसका स्वरूप पूरी तरह अनौपचारिक होता है और इस
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करीब 150 देशों में किए जा रहे इस प्रसारण पर खासतौर पर अफ्रीकी देशों से बड़ी संख्या में संदेश मिलते हैं, जहां गुजराती मूल के लोग बड़ी संख्या में हैं। इसके अलावा खाड़ी देशों, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा से भी लोग अपनी प्रतिक्रियाएं भेजते हैं
कहीं न कहीं सिर्फ मनोरंजन पर आकर टिक गई। ‘मन की बात’ के जरिए रेडियो और सामाजिक क्रांति का न सिर्फ साझा बना है, बल्कि इसका दायरा देश की सीमा से आगे निकल गया है। ‘मन की बात’ कार्यक्रम को देश में तो लोग गौर से सुनते ही हैं, विदेशों में बसे भारतीय मूल के लोगों की भी सराहना इसे मिलती है। करीब 150 देशों में किए जा रहे इस प्रसारण पर खासतौर पर अफ्रीकी देशों से बड़ी संख्या में संदेश मिलते हैं, जहां गुजराती मूल के लोग बड़ी संख्या में हैं। इसके अलावा खाड़ी देशों, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा से भी लोग अपनी प्रतिक्रिया भेजते हैं।
जमात में शामिल हैं, तो वहीं अनौपचारिक तौर पर सरकार और समाज के बीच एक अखिल भारतीय संवाद श्रृंखला शुरू करने के लिए उन्होंने रेडियो जैसे पुराने माध्यम पर भरोसा जताया। दिलचस्प है कि बीते ढाई साल में प्रधानमंत्री मोदी के कारण जहां देश में एक बार फिर से आकाशवाणी के पुराने रेडियो स्टेशनों की तरफ श्रोता लौटे हैं, तो वहीं इससे देश के ‘प्रधान सेवक’ की खुद की छवि की लोकप्रियता का भी विस्तार हुआ है।
आवरण कथा
दौरान वे तकरीबन इसी तरह बात करते हैं, जैसे देशवासियों से बतिया रहे हों। खूबी यह भी कि इसके जरिए वे स्वास्थ्य से लेकर स्वच्छता और बच्चों की पढ़ाई से लेकर उनके करियर तक कई बातों का जिक्र करते हैं। जो बात उनको कहनी होती है, उसके लिए वे या तो सरल-सहज शैली में घर-परिवार में पारंपरिक तौर पर होने वाली सामान्य बातों का सहारा लेते हैं, या फिर बड़े-बजुर्गों की कही किसी बात या लोकोक्तियों की मदद लेते हैं। संवाद का यह तरीका कारगर तो है ही, विश्वसनीय भी है, यह उन्होंने बीते ढाई साल में अच्छे तरीके से सिद्ध करके दिखा दिया है।
150 देशों तक पहुंची बात
जब तक रेडियो का प्रसारण सिर्फ सरकार के हाथ में था तो उस पर नियमित रूप से प्रेरक नाटक और वार्ताएं प्रसारित होती थीं। इससे समाज में रचनात्मक परिवर्तनों में काफी मदद मिलती रही। इस परंपरा का निर्वाह देश में तकरीबन आधी शती तक हुआ पर बाद में निजी स्पर्धा के कारण रेडियो की फ्रीक्वेंसी
‘ऑल इंडिया रेडियोज ऑडियंस रिसर्च विंग’ के सर्वे के मुताबिक 10 लोगों में हर दूसरा व्यक्ति प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ सुनता है। इसमें हर समाज के, हर तबके के लोग शामिल हैं। इस सर्वे को 600 लोगों की टीम ने जनवरी-मार्च के दौरान 30 राज्यों के 6000 लोगों पर किया। दिलचस्प है कि ऑल इंडिया रेडियो की पहुंच देश के 99 प्रतिशत हिस्से तक है।
सबसे ज्यादा श्रोता बिहार में
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रेडियो प्रोग्राम ‘मन की बात’ के सबसे ज्यादा श्रोता बिहार, गुजरात और मध्य प्रदेश से हैं। लेकिन इस प्रोग्राम को लेकर सबसे ज्यादा जागरूक मणिपुर, असम और राजस्थान के लोग हैं। ऑल इंडिया रेडियोज ऑडियंस रिसर्च विंग के सर्वे के मुताबिक इस प्रोग्राम को लेकर अरुणाचल प्रदेश के लोगों में भी जागरुकता आनी शुरू हो गई है।
सबके मन की बात
प्रधानमंत्री ‘मन की बात’ में उन मुद्दों को उठाते हैं, जिसे किसी परिवार के मुखिया या अभिभावक को उठाना चाहिए। माता-पिता का सम्मान, सामाजिक
असमानता, प्रदूषण, किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी, सामाजिक समरसता, परीक्षा, युवाओं की समस्याओं जैसे मुद्दों पर पीएम मोदी संवाद स्थापित करते हैं। इस पर प्रतिक्रियाएं मंगवाते हैं और उसका जवाब भी देते हैं। स्वच्छता अभियान, सेल्फी विद डॉटर, बोर्ड परीक्षा में अधिक नंबर लाने के लिए बच्चों पर दबाव न डालने जैसी बातें लोगों के दिलों में उतरती हैं और वे उन पर अमल भी करते हैं। साफ है कि ‘मन की बात’ के माध्यम से पीएम मोदी देश के अभिभावक की भूमिका निभाते हैं।
ई-पॉपुलरिटी
आकाशवाणी द्वारा जारी किए गए आंकड़े के मुताबिक ‘मन की बात’ को जुलाई, 2016 के बाद ऑस्ट्रेलिया से 753 ई-मेल, संयुक्त राज्य अमेरिका से 541,कनाडा से 507 ईमेल, कनाडा से 507 ई-मेल और बांग्लादेश से 608 ई-मेल से प्रतिक्रियाएं मिली हैं। इसी तरह इस दौरान व्हाट्सएेप पर संदेश भेजने वालों में पूर्वी अफ्रीकी देशों से 2,794 मैसेज और लीबिया सहित खाड़ी देशों से 1,296 प्रतिक्रियाएं मिली हैं। वहीं बांग्लादेश के श्रोताओं ने व्हाट्सएेप पर 811 और अमेरिका से 784 मैसेज भेजे हैं। फेसबुक और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर बांग्लादेश से 276 प्रतिक्रियाएं आईं है।
25 हजार से ज्यादा चिट्ठियां
‘मन की बात’ कार्यक्रम को लेकर आकाशवाणी के दफ्तर में करीब 10 हजार से ज्यादा चिट्ठियां आती हैं। पीएमओ में भी 10 हजार से ज्यादा चिट्ठियों के जरिये सुझाव आते हैं। कुल मिलाकर एक ‘मन की बात’ कार्यक्रम के लिए औसतन 25 हजार लोगों की चिट्ठियां आती हैं। इतना ही नहीं, सूत्रों के मुताबिक हर महीने 25 हजार लोग ‘मन की बात’ कार्यक्रम के लिए अपने सुझाव फोन करके रिकॉर्ड करवाते हैं। इसके अलावा नरेंद्र मोदी एेप पर औसतन 5 हजार लोगों के कमेंट आते हैं।
चैनलों पर भी प्रसारण
‘मन की बात’ का आकाशवाणी, दूरदर्शन और सभी एफ एम चैनलों पर प्रसारण होता है। जिसकी पहुंच सभी न्यूज चैनलों और अखबारों को मिलाकर भी देश में सबसे ज्यादा है। दूरदर्शन के रीजनल चैनलों पर भी इसका प्रसारण होता है। कार्यक्रम की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ‘मन की बात’ कार्यक्रम 30 भाषाओं और बोलियों में अनुवादित और प्रसारित होता है। सारे निजी चैनल
04 आवरण कथा
12 - 18 जून 2017
आकाशवाणी के आठ दशक - एफ. शहरयार महानिदेशक, आकाशवाणी
ऑल इंडिया रेडियो को बाद में हिंदी में आकाशवाणी नाम दिया गया। इसने अस्सी साल की अपनी यात्रा पिछले साल ही पूरी कर ली है
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मिस्ड कॉल से ‘मन की बात’
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मुनाफे की बात
240
• भारतीय भाषाओं में रेडियो स्टेशनों से कार्यक्रम का प्रसारण
4.80 2016
• करोड़ रुपए की कमाई वर्ष में आकाशवाणी को ‘मन की बात’ से
2.45 2015
• करोड़ रुपए की कमाई वर्ष में आकाशवाणी को ‘मन की बात’ से
100
• फीसद सालाना की दर से बढ़ रही है आकाशवाणी की कमर्शियल इनकम
भी ‘मन की बात’ कार्यक्रम का प्रसारण करते हैं। जिस दिन ‘मन की बात’ कार्यक्रम प्रसारित होता है, उस दिन टीवी चैनलों और अखबारों के लिए भी यह बड़ी खबर होती है।
एक आंकड़े के मुताबिक नरेंद्र मोदी एेप के जरिये औसतन 25 हजार लोग कार्यक्रम को सुनते हैं। लेकिन जो लोग ‘मन की बात’ लाइव सुन नहीं पाते, वो मिस्ड कॉल करके अपने मोबाइल पर सुनते हैं। अब तक 4.5 करोड़ से ज्यादा लोग इसे अपने मोबाइल पर सुन चुके हैं। इसके साथ ही ये तथ्य भी है कि जो लोग मिस्ड कॉल करके ‘मन की बात’ कार्यक्रम को सुनते हैं, वो औसतन 17 मिनट तक प्रधानमंत्री को सुनते हैं।
क्षेत्रीय भाषाओं में भी प्रसारण
आकाशवाणी के लिए उत्साहजनक यह है कि पीएम मोदी के प्रसारण के बाद क्षेत्रीय भाषाओं में उनके अनुवाद की भी काफी डिमांड है। अभी 14 भारतीय भाषाओं में 240 रेडियो स्टेशनों से भी इसका प्रसारण होता है। यह प्रसारण उसी दिन, लेकिन कुछ समय के बाद होता है। आकाशवाणी इन स्लॉट्स के लिए रीजनल विज्ञापनदाताओं पर फोकस कर रही है। इस रणनीति का भी काफी फायदा हुआ है। इसकी वजह से दूर-दराज के छोटे रेडियो स्टेशन भी सरकारी खजाने में फायदा भेजने लगे हैं।
आकाशवाणी की आमदनी बढ़ी
लगातार घाटे में चलने वाले आकाशवाणी ने ‘मन की बात’ स्लॉट की विज्ञापन दरें ज्यादा रखी हैं, जिससे आकाशवाणी की कमाई में भारी वृद्धि हुई है। आकाशवाणी की कमर्शियल इनकम प्रति वर्ष सौ प्रतिशत से ज्यादा की रफ्तार से बढ़ रही है। स्थिति यह है कि पीएम मोदी के ‘मन की बात’
‘मन की बात’ आकाशवाणी, दूरदर्शन और सभी एफ एम चैनलों पर प्रसारित होता है। जिसकी पहुंच सभी न्यूज चैनलों और अखबारों को मिलाकर भी देश में सबसे ज्यादा है। दूरदर्शन के क्षेत्रीय चैनलों पर भी इसका प्रसारण होता है
जून, 1936। तत्कालीन के अस्तित्व में आने से पहले इंडियन ब्रॉडकास्टिंग सर्विस संगीत की तमाम विधाएं राजेको तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत ने रजवाड़ों के आश्रय की मोहताज एक नाम दिया- ‘ऑल इंडिया हुआ करती थीं। ऑल इंडिया रेडियो’। तब से अब तक 80 रेडियो ने उन्हें बंधन से मुक्त वर्ष बीत गए। अपने नाम कराया। लोकसंगीत को समुदाय के अनुरूप संस्था ने अपनी विशेष और स्थान विशेष से लोकोन्मुखता को बनाए रखा निकालकर अखिल भारतीय है। आज यह समूचे भारत और प्रतिष्ठा प्रदान की। आज यह भारतीयता की पहचान है। समय संस्था भारतीय संगीत और बदलता है तो समाज की जरूरतें संस्कृति का दुनिया का सबसे भी बदलती हैं। संस्था अगर बड़ा संग्रहालय बन चुकी है। इन ‘ऑल इंडिया रेडियो’ जैसी हो 80 वर्षों के इतिहास में ‘ऑल तो समय की जरूरत के मुताबिक इंडिया रेडियो’ ने व्यवस्था और तकनीक भी बदलती है। तकनीक जनता के बीच एक संजीदा पुल कार्यक्रमों को जन-जन तक इन 80 वर्षों के की तरह काम किया। जिस पर पहुंचाती है। इसके कार्यक्रमों का जनभावनाएं जब चाहें टहलती हुई तथ्य किसानों को किसानी के नए इतिहास में ‘ऑल जाती हैं और सुप्त हुई सी व्यवस्था तरीकों से जोड़ता है। युवाओं को इंडिया रेडियो’ ने को जाग्रत कर जाती हैं। नई आशाओं और संभावनाओं से एक अद्भुत संस्था है ‘ऑल जोड़ता है। मजदूरों को उनके श्रम व्यवस्था और जनता इंडिया रेडियो’, जिसे बाद में की महत्ता बताता है तो महिलाओं के बीच एक संजीदा चलकर ‘आकाशवाणी’ नाम को उनके भीतर छिपी शक्तियों से दिया गया। बाढ़ हो या सूखा परिचित कराता है। बच्चों को नए पुल की तरह काम या फिर कोई अन्य प्राकृतिक बदलते संसार से परिचित कराते आपदा, इस भारतीय प्रसारण किया हुए उन्हेंे परिंदों की तरह उड़ने के माध्यम ने हमेशा सब के घावों लिए खुला आकाश प्रदान करता है। पर मरहम लगाने का काम किया है और आज ‘ऑल इंडिया रेडियो’ सामाजिक बदलाव भी कर रही है। अपनी विश्वसनीयता, अखिल का प्रभावी माध्यम रहा है। इस संस्था ने देश भारतीयता और संवदेनशीलता की इस बेमिसाल में हरित क्रांति और श्वेत क्रांति के लिए एक संस्था ने विश्व में अप्रतिम स्थान बनाया है। उत्प्रेरक का काम किया है। ‘ऑल इंडिया रेडियो’ इसका ध्येय वाक्य भले ही बहुजन हितायने लोकतांत्रिक मूल्योंे को बनाए रखने के लिए बहुजन सुखाय रहा हो, लेकिन इसका असल लगातार काम किया है, क्योंकि इसने भारत की उद्देश्य तो राष्ट्र सर्वोपरि ही रहा है। इस चुनाव प्रक्रिया में भाग लेकर जनता के प्रति अवसर पर हम अपने सभी श्रोताओं को बधाई जवाबदेही को सुनिश्चित करने का काम किया है। देते हैं, जिन्होंने बाजारीकरण के इस भयानक बात अधूरी ही रहेगी यदि रेडियो के साथ दौर में ऑल इंडिया रेडियो के प्रति अपना प्यार संगीत की बात न की जाए। ऑल इंडिया रेडियो और विश्वास बनाए रखा है।
कार्यक्रम से वर्ष 2015 में आकाशवाणी ने 2.45 करोड़ रुपए की कमाई की थी, जबकि वर्ष 2016 में इससे करीब 4.80 करोड़ रुपए की कमाई हुई है। दरअसल, मोदी के कार्यक्रम की लोकप्रियता को भांपकर आकाशवाणी ने इस स्लॉट में एड रेट्स बढ़ा दिए। इस समय यह दर पिछले वर्ल्ड कप में भारत-पाकिस्तान के क्रिकेट मैच की लाइव कमेंट्री से भी ज्यादा है। प्रधानमंत्री के बोलना शुरू करने से पहले ब्रेक में 10 सेकेंड के विज्ञापन के लिए 2 लाख रुपए से ज्यादा मिल रहे हैं, जबकि भारत के किसी क्रिकेट मैच के दौरान 10 से 15 हजार प्रति 10 सेकेंड की दर होती है। बाकी कार्यक्रमों के समय विज्ञापन की दरें तो और भी कम हैं। एफएम
चैनल अपने कार्यक्रमों में 10 सेकड ें के 500 रुपए से 1500 रुपए लेते हैं।
मार्केटिंग कंपनियों की पसंद
मार्केटिंग कंपनियों को रेडियो की ताकत का एहसास काफी पहले से है। देश के दूर-दराज ग्रामीण इलाकों में सिर्फ आकाशवाणी की पहुंच है। ये वो क्षेत्र हैं, जहां प्रिंट और टीवी विज्ञापनों की पहुंच लगभग न के बराबर है। चूंकि ‘मन की बात’ के बहाने महीने में रविवार के दिन श्रोताओं की संख्या लाखों और कभी-कभी करोड़ों में होती है, इसीलिए यह विज्ञापन देने के लिए भी बेहतरीन मौका होता है।
12 - 18 जून 2017
अबकी बार शोध में बहार
शिक्षा
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रिसर्च फैलोशिप
भारत का बनाओ, भारत में बनाओ और भारत का खरीदो, लेकिन इसके लिए उच्चस्तरीय गुणवत्तापूर्ण बहुआयामी शोध कार्य की जरूरत है। इसीलिए सरकार शोध कार्यों को बढ़ावा देने के लिए कई तरह के प्रयास कर रही है
कें
एसएसबी ब्यूरो
द्र की सत्ता संभलने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने कई चुनौतियां थीं। उनमें एक बड़ी चुनौती थी ब्रेन ड्रेन को रोकना और देश को आत्म निर्भर बनाना। तीन साल में सरकार ने इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किया है और इस दिशा में उसे पर्याप्त सफलता भी मिली है। ‘मेक इन इंडिया’ के के पीछे प्रधानमंत्री की यही सोच है कि भारत में बनाओ, भारत का खरीदो। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि देश में शोध को बढ़ावा मिले और हर क्षेत्र में विश्व स्तरीय शोध किए जाएं। कृषि से लेकर अंतरिक्ष तक हर क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देने के कई प्रयास इन तीन सालों में किए गए हैं। केंद्र सरकार का पूरा फोकस रिसर्च को बढ़ावा देने पर है। इसी का नतीजा यह है कि आज दुनिया भर में काम करने वाले करीब एक हजार भारतीय वैज्ञानिक भारतीय संस्थानों से जुड़ने की तैयारी कर रहे हैं। केंद्र सरकार आईआईटी में रिसर्च को बढ़ावा देने प्रधानमंत्री शोधवृत्ति शुरू करने जा रही है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस संदर्भ में में एक प्रस्ताव तैयार किया है जिसे आईआईटी काउंसिल से मंजूरी मिल चुकी है। उम्मीद है कि इस प्रस्ताव पर जल्द ही कैबिनेट की मुहर भी लग जाएगी। माना जा रहा है कि कैबिनेट की मंजूरी
मिलने के बाद जनवरी,2018 से इस योजना को लागू कर दिया जाएगा। इस योजना के तहत आईआईटी में चुने गए छात्रों को हर महीने 75,000 रुपए दिए जाएंगे। यह राशि उन छात्रों को दी जाएगी जो बीटेक के बाद सीधे पीएचडी पाठ्यक्रमों में दाखिला चाहते हैं। आईआईटी से बीटेक कर रहे छात्र अपना पाठ्यक्रम पूरा होने के तुरंत बाद पीएचडी के लिए रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। पहले बैच में 1000 छात्रों को चुने जाने की तैयारी है। शोध पूरा करने के बाद उन छात्रों को असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया जाएगा। अगर कोई छात्र बीच में ही अपना काम छोड़ता है तो उसे पूरी राशि लौटानी होगी। शोध को बढ़ावा देने के लिए इसके पहले भी कई योजनाएं शुरू की जा चुकी हैं। मैसूर में आयोजित भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अधिवेशन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को ‘टेक्नोलॉजी विजन 2035’ दिया। टेक्नोलॉजी विजन में प्रधानमंत्री ने 2035 तक देश को जिस तरह की तकनीक और वैज्ञानिक दक्षता की आवश्यकता होगी उसे प्राप्त करने की एक विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की। प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी ने 12 क्षेत्रों पर विशेष रूप से काम किये जाने पर जोर दिया। इन क्षेत्रों में - कृषि, जल, ऊर्जा, शिक्षा, खाद्य, चिकित्सा और स्वास्थ्य, पर्यावरण और यातायात प्रमुख हैं। टेक्नोलॉजी विजन 2035 को ध्यान में रख कर ही केंद्र सरकार कई योजनाओं और नीतियों को सरकार लागू कर रही है। देश में स्टार्टअप के तहत नवाचार के तंत्र को मजबूत करने के लिए खोज से लेकर उत्पाद को बाजार में लाने तक की पूरी प्रक्रिया में मदद करता है। इसके लिए 90 करोड़ रुपए की लागत से आईआईटी गांधीनगर में एक अनुसंधान पार्क की स्थापना की गई है। देश में अंतरराष्ट्रीय स्तर के सम्मानित फैकेल्टी को सहायक या वििजटिंग फैकेल्टी के रूप में भारतीय संस्थानों में छात्रों को गाइड करने की योजना है। ये साल में एक से तीन महीने के लिए हो सकता है। यह योजना इसी वर्ष जनवरी में शुरू की गई है। 2017-18 के लिए ऐसे 1000 फैकेल्टी को देश के संस्थानों से जोड़ने की तैयारी हो चुकी है। इस योजना को विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) ने शुरु किया है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के इस प्रस्ताव पर जल्द ही कैबिनेट की मुहर भी लग जाएगी। माना जा रहा है कि कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद जनवरी, 2018 से इस योजना को लागू किया जा सकता है
एक नजर
प्रधानमंत्री शोध वृत्ति शुरू करने की तैयारी में सरकार
आईआईटी छात्रों को दी जाएगी शोध वृत्ति छात्रों को हर महीने मिलेंगे पचहत्तर हजार रुपए
एसईआरबी ने देश के युवा शोध छात्रों को रिसर्च में प्रशिक्षण के लिए विदेशी संस्थान में भेजने के लिए यह योजना तैयार की है। इसके लिए छात्रों को एक साल की फेलोशिप देने की योजना है। देश में महिला वैज्ञानिकों को सही माहौल देने और उन्हें शोध में आगे बढ़ाने के लिए इस योजना की शुरुआत की गई। महिला वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों को आधारभूत या अप्लाइड साइंस में शोध करने के अवसर देने के लिए 227 परियोजनाओं का चुनाव किया गया है। इस योजना के तहत महिला वैज्ञानिकों को 29 परियोजनाओं में सहायता दी जा रही है। अप्रैल 2017 को मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने विश्व के सबसे बड़े 36 घंटों वाले हैकथान का आयोजन किया। इसके उद्घाटन सत्र में प्रधानमंत्री ने युवाओं से बातचीत की। इसमें 42,000 युवा प्रतियोगियों ने भाग लिया और विभिन्न मंत्रालयों की ऐसी 598 समस्याओं का डिजिटल समाधान दिया जिससे काम की गति के साथ-साथ गुणवत्ता में भी सुधार हो। इन सभी समाधानों के विकास का खर्च संबंधित मंत्रालयों को उठाना है। सीएसआईआर ने जेके अरोमा आरोग्य ग्राम परियोजना शुरू की है। इसके तहत किसानों को जड़ीबूटियों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। देश की उच्च शिक्षण संस्थाओं में गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए 2016 से एनआईआरएफ रैंकिग सिस्टम को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया गया है। इस रैकिंग सिस्टम में देश के सभी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता के निर्धारित मानदंडों के आधार पर रैंकिग की जाती है। ‘भारत रैंकिंग 2017’ में कुल 2,995 संस्थानों ने भाग लिया । इसके अंतर्गत 232 विश्वविद्यालय, 1024 प्रौद्योगिकी संस्थान, 546 प्रबंधन संस्थान, 318 फार्मेसी संस्थान तथा 637 सामान्य स्नातक महाविद्यालय शामिल हैं। सितंबर 2016 को केंद्रीय कैबिनट ने एचईएफए के स्थापना को मंजूरी दी। यह एजेंसी उच्च शिक्षण संस्थाओं में अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रयोगशालाओं एवं अन्य साधनों को उपलब्ध कराने के लिए धन की व्यवस्था करेगी। केनरा बैंक को सरकार ने इसका प्रमोटर बनाया है। इसमें सरकार की 1000 करोड़ रुपए कि हिस्सेदारी है। सभी उच्च शिक्षण संस्थान इससे लोन लेने के लिए योग्य होंगे।
06 ऊर्जा
12 - 18 जून 2017
स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में बढ़े कदम ऊर्जा क्षमता
सौर, पवन, छोटी पनबिजली और जैव-शक्ति सहित भारत की नवीकरणीय क्षमता की बात करें, तो इन क्षेत्रों में पिछले तीन वर्ष में दो-तिहाई की वृद्धि दर्ज की गई है, जो कि 35 गीगावॉट से बढ़कर 57 गीगावॉट पर पहुंच गई है
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एसएसबी ब्यूरो
छले तीन वर्षों के दौरान नवीकरणीय और परमाणु ऊर्जा कार्यक्रमों में व्यापक स्तर पर हुई वृद्धि भारत के ऊर्जा मिश्रण में स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को प्राथमिकता देने के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। भारत ने पहले ही नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। विशेष रूप से सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की तरक्की ने देश को दुनिया के ऊर्जा नक्शे पर विशेष पहचान दिलाई है। वर्तमान सरकार के तीन वर्ष पूरे हो चुके हैं, ऐसे में हाल ही में भारत की ऊर्जा क्षमता में परमाणु ऊर्जा के रूप में 7 गीगा वॉट (7000 मेगा वॉट) ऊर्जा क्षमता को शामिल किए जाने का निर्णय, जो कि एक ही बार में भारत के घरेलू परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम कि दिशा में सबसे बड़ी मंजूरी है, एक स्थायी रूप से कम कार्बन विकास रणनीति की दिशा में भारत की गंभीरता और प्रतिबद्धता को दर्शाता है। भारत की वर्तमान परमाणु ऊर्जा क्षमता 6.7 गीगा
वॉट (अथवा 6780 मेगा वॉट) है और 700 मेगावॉट प्रति रिएक्टर की क्षमता वाले 10 नए परमाणु रिएक्टरों को मंजूरी भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को व्यापक स्तर पर और मजबूत करेगा। 6.7 गीगा वॉट (6700 मेगा वॉट) की अन्य परमाणु ऊर्जा परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं और 2022 तक इनके परिचालन में आने की उम्मीद है। घरेलू कंपनियों को करीब 70,000 करोड़ रुपए के संभावित विनिर्माण का कार्य मिलने के साथ ही इस परियोजना से भारतीय परमाणु उद्योग में बड़े बदलाव के लिए मदद मिलने और प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से 33,400 से अधिक नौकरियां सृजित होने का अनुमान है। वर्ष 2014 में केंद्रीय विद्युत, नवीकरणीय ऊर्जा, कोयला एवं खान मंत्री पीयूष गोयल ने जब महत्वपूर्ण
ऊर्जा क्षेत्र की बागडोर संभाली, उस समय भारत में सौर ऊर्जा क्षमता केवल 2.65 गीगा वॉट (अथवा 2,650 मेगा वॉट) थी। नरेंद्र मोदी सरकार के तीन वर्ष पूरे करने पर, तीन वर्ष के भीतर ही भारत की सौर ऊर्जा क्षमता अभूतपूर्व तरीके से 4.5 गुणा बढ़कर 12.2 गीगा वॉट (अथवा 12,200 मेगा वॉट) पर पहुंच गई है। यहां एक अन्य महत्वपूर्ण बात, जिसका जिक्र किया जाना महत्वपूर्ण है, वह है सौर ऊर्जा की दरें। वर्ष 2014 में सौर ऊर्जा की दर 13 रुपए प्रति यूनिट से भी अधिक थी, जोकि वर्तमान में 500 मेगावॉट की क्षमता वाले राजस्थान के भाड़ला सौर पार्क की नीलामी में ऐतिहासिक रूप से कम होकर 2.44 रुपए प्रति यूनिट के निम्न स्तर पर पहुंच गई हैं। यह अब तक का रिकॉर्ड स्तर है। यह विश्व बैंक बिजली
सौर ऊर्जा आज भारत में ताप और कोयला आधारित ऊर्जा से भी सस्ती हो गई है, जबकि एक समय में ताप और कोयला ऊर्जा भारत के ऊर्जा क्षेत्र के आधार रहे हैं
एक नजर
देश में सौर ऊर्जा की दरों में रिकार्ड गिरावट
देश में सौर ऊर्जा की क्षमता में जोरदार इजाफा ताप और कोयला आधारित ऊर्जा से सस्ती हुई सौर ऊर्जा
सुगमता रैंकिंग में 2014 के 99वें स्थान से वर्तमान में 23वें स्थान पर पहुंचने वाले भारत के लिए किसी भी मानक के अनुसार सराहनीय उपलब्धि है। दिलचस्प बात यह है कि सौर ऊर्जा आज भारत में ताप और कोयला आधारित ऊर्जा से भी सस्ती हो गई है, जबकि एक समय में ताप और कोयला ऊर्जा भारत के ऊर्जा क्षेत्र के आधार रहे हैं। यहां तक कि भारत की सर्वाधिक ऊर्जा सृजन कंपनी-एनटीपीसी की ऊर्जा की
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ग्रामीण भारत में इस कैलेंडर वर्ष के अंत तक सभी गांवों में बिजली पहुंचाने का सरकार का कार्यक्रम तीव्र गति से चल रहा है औसत लागत, सौर ऊर्जा के मोर्चे पर हासिल किए की गई उपलब्धियों से अधिक है। उद्योग जगत और विशेषज्ञों के बीच उठे संदेहों को दूर रखते हुए, ऊर्जा की कम दरों की स्थिरता के बारे में केन्द्रीय विद्युत, नवीकरणीय ऊर्जा, कोयला एवं खान मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, ‘पिछले तीन वर्षों के दौरान हमने जब भी कम कीमतें तय की, हमने कीमतों के अनिश्चित स्तर के बारे में सुना। हमने इसके बारे में 12 से 10 होने पर सुना, 10 से 8 ,8 से 5 और आज जब हम 4 पर हैं, जब भी ये सुन रहे हैं।’ नवीकरणीय ऊर्जा की दरों में इस गिरावट से
उत्साहित, केंद्रीय मंत्री गोयल को विश्वास है कि जल्द ही भारत की स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता का 65-60 फीसदी हिस्सा हरित ऊर्जा का होगा। गोयल ने हाल ही में कहा, ‘हम जिन दरों पर पहुंचे हैं, उनसे मुझे पूरी उम्मीद है कि आगामी दिनों में भारत की स्थापित क्षमता का 65-60 फीसदी हिस्सा हरित ऊर्जा का होगा।’ यहां यह उल्लेख करना भी महत्वपूर्ण है कि वर्तमान में दुनिया के सबसे बड़े जमीन आधारित सौर संयंत्र और दुनिया के सबसे बड़े छत आधारित सौर संयंत्र, दोनों ही भारत में हैं। पवन ऊर्जा क्षमता के मोर्चे पर, भारत ने ब्रिटेन,
कनाडा और फ्रांस जैसे देशों को पीछे छोड़कर पवन ऊर्जा स्थापित क्षमता के मामले में चीन, अमरीका और जर्मनी के बाद चौथा स्थान हासिल कर लिया है। सभी को सस्ती हरित ऊर्जा सुनिश्चित कराने के लिए भारत ने वर्ष 17-2016 में रिकॉर्ड 3.46 रुपए प्रति यूनिट की दर से 5.5 गीगावॉट की अतिरिक्त उच्चतम पवन क्षमता में वृद्धि के लक्ष्य को हासिल किया है। सौर, पवन, छोटी पनबिजली और जैव-शक्ति सहित भारत की नवीकरणीय क्षमता की बात करें, तो इन क्षेत्रों में पिछले तीन वर्ष में दो तिहाई की वृद्धि दर्ज की गई है, जोकि 35 गीगावॉट से बढ़कर 57 गीगावॉट पर पहुंच गई है। सरकार वर्ष 2022 तक 100 गीगावॉट सौर और 60 गीगावॉट पवन ऊर्जा के लक्ष्य को हासिल करने पर ध्यान केन्द्रित कर रही है। वर्ष 2022 तक भारत में कुल 175 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा सृजन की परिकल्पना की गई है। वर्तमान सौर ऊर्जा क्षमता वर्ष 2014 में मौजूद सौर ऊर्जा क्षमता की तुलना 370 फीसदी की वृद्धि दर्शाती है। वर्ष 2014 में 2621 मेगावॉट से बढ़कर वर्तमान में मार्च 2017 तक भारत की सौर ऊर्जा क्षमता 12,277 मेगावॉट पर पहुंच गई है। इसी प्रकार, मार्च 2017 के अनुसार पवन ऊर्जा में भी 52 फीसदी की असामान्य वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2014 में 21,042 मेगावॉट पवन ऊर्जा की तुलना में मार्च 2017 में बढ़कर यह 32,304 मेगावॉट हो गई है। इसी अवधि के दौरान छोटे हाइड्रो पावर और जैव-ऊर्जा के क्षेत्र में प्रत्येक में 14 फीसदी वृद्धि हुई है।
ऊर्जा
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इस सिलसिले में नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में कुछ प्रमुख सुधारों का जिक्र जरूरी है। पवन क्षेत्र निश्चित टैरिफ व्यवस्था से प्रतिस्पर्धी बोली व्यवस्था की दिशा में आगे बढ़ चुका है, जिससे बिजली की लागत 20 फीसदी तक कम हो सकती है। सौर पार्कों के जरिए प्लग एंड प्लेय मॉडल का प्रयोग कर सौर ऊर्जा सस्ती हो चुकी है और इसकी दरें 75 फीसदी से भी अधिक कम हो गई हैं। और तीसरा अंतरराष्ट्रीय सौर ऊर्जा गठबंधन के गठन के जरिए दुनिया में सौर क्रांति का नेतृत्व कर भारत ने जगतगुरु का खिताब पुनः प्राप्त किया है। ग्रामीण भारत में इस कैलेंडर वर्ष के अंत (दिसंबर 2018 तक के अपने लक्ष्य को खारिज करते हुए) तक सभी गांवों में बिजली पहुंचाने का सरकार का कार्यक्रम तीव्र गति से चल रहा है। इस दिशा में सौर ऊर्जा के योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता, क्योंकि अब तक ग्रामीण इलाकों में बिजली की अनुपस्थिति में छात्रों को पढ़ाई करने में सक्षम बनाने के लिए इस कार्यक्रम के तहत करीब 10 लाख सौर लैंप छात्रों को वितरित किए जा चुके हैं। इसके अलावा, सौर पंप स्थापित करके किसानों को सस्ती बिजली उपलब्ध कराना, पिछले तीन वर्षों में इस सरकार की एक अन्य प्रमुख उपलब्धि है। जहां एक ओर मार्च 2014 तक करीब 11,000 सौर पंप स्थापित किए गए थे, वहीं अब इन सौर पंपों की संख्या 1.1 लाख पहुंच गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वर्तमान एनडीए सरकार ने इस क्षेत्र में स्वतंत्रता के बाद से करीब नौ गुणा अधिक संख्या में सौर पंप स्थापित करने के लक्ष्य को हासिल किया है।
‘स्वच्छता मिशन देश को जोड़ने का सबसे बड़ा अभियान’ परिसंपत्ति या संसाधन’ के रूप में ‘कचरे’ को लेकर हमारी धारणा में व्यापक बदलाव लाने की जरूरत है
मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने केंद्रीयराष्ट्रीयशहरीमूल्योंविकासकी बहाली के लिए फाउंडेशन
(एफआरएनवी) के 9वें स्थापना दिवस पर कहा कि आज भारत में स्वच्छता की कमी के साथ-साथ रहन-सहन की जो अस्वास्थ्यकर स्थिति देखने को मिल रही है वह तेजी से घट रहे मूल्यों और लुप्त होती संस्कृति को प्रतिबिंबित करती है। इस कार्यक्रम को दिल्ली मेट्रो रेल निगम (डीएमआरसी) द्वारा सह-प्रायोजित किया गया। ‘स्वच्छ भारत’ इस कार्यक्रम की थीम है। एम.वेंकैया नायडू ने स्थापना दिवस की थीम के रूप में ‘स्वच्छ भारत’ का चयन करने के लिए एफआरएनवी की सराहना की। उन्होंने कहा कि सड़कों पर कचरे के ढेर, सार्वजनिक स्थलों पर गंदगी के अंबार और जंगलों को नष्ट करने की प्रवृत्ति यह स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि यहां दूसरों के साथ-साथ बुनियादी मानव मूल्यों के लिए सम्मान का पूर्ण अभाव है। केन्द्रीय शहरी विकास मंत्री ने कहा कि कुछ चीजों को त्यागने के बजाय
‘परिसंपत्ति’ या ‘संसाधन’ के रूप में ‘कचरे’ को लेकर हमारी धारणा में व्यापक बदलाव लाने की जरूरत है। नायडू ने कहा कि अक्टूबर 2014 में लांच किया गया ‘स्वच्छ भारत मिशन’ हमारे देश को स्वच्छ रखने की खातिर देशवासियों को जोड़ने का अब तक का सबसे बड़ा अभियान है। उन्होंने कहा कि इस अभियान में महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
नायडू ने कहा कि इस मिशन ने पिछले तीन वर्षों में महत्वपूर्ण प्रगति की है। उन्होंने कहा कि अब तक 33,76,793 व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों और 1,28,946 सामुदायिक शौचालय सीटों का निर्माण किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि अब तक 688 शहरों एवं कस्बों को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया गया है। इनमें से 531 शहरों एवं कस्बों को स्वतंत्र रूप से सत्यापित किया
गया है और फिर ओडीएफ के रूप में प्रमाणित किया गया है। उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश और गुजरात ने सभी शहरों एवं कस्बों को ओडीएफ घोषित कर दिया है। नायडू ने यह भी कहा कि 81,015 शहरी वार्डों में से 43,200 वार्डों ने शत-प्रतिशत घरों में जाकर शहरी ठोस कचरे के संग्रह एवं ढुलाई का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है।
08 रेल
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एनएफ रेलवे का पहला ग्रीन कॉरिडोर भारतीय रेल
एनएफ रेलवे चापरमुख – सिलघाट टाउन सेक्शन को जून तक ग्रीन कॉरिडोर में परिवर्तित करने जा रहा है
एक नजर
चार और रेलमार्ग होंगे ग्रीन कॉरिडोर के रूप में विकसित
865 कोचों में 2,990 पर्यावरण अनुकूल
वर्ष 2019-20 तक सभी कोचों में बायो-टॉयलेट की होगी सुविधा
कराई जाएंगी। 50 ट्रेनों में सफाई, पानी, सुविधा, मरम्मत, बिजली की समस्याओं आदि पर यात्रियों से शिकायत प्राप्त करने की एक ऐप आधारित प्रणाली ‘कोच मित्र’ संतोषजनक ढंग से काम कर रही है। इससे यात्रियों की शिकायतों का तत्काल निपटान किया जाता है। ट्रेन, रेलवे स्टेशनों, रेलवे कॉलोनियों और कार्यालयों में सफाई के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिए जोरदार प्रयास किए जा रहे हैं। इस संबंध में विशेष कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता हैं। नुक्कड़ नाटकों का मंचन किया जाता है,
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एसएसबी ब्यूरो
नएफ रेलवे चापरमुख – सिलघाट टाउन सेक्शन को जून तक ग्रीन कॉरिडोर में परिवर्तित करने जा रहा है। रेलवे मंत्री के नेतृत्व में स्वच्छ भारत के लक्ष्य को पूरा करने के लिए नॉर्थईस्ट फ्रंटियर रेलवे द्वारा विभिन्न पहल किए जा रहे हैं और उन्हें कार्यान्वित किया जा रहा है।
चापरमुख – सिलघाट सेक्शन के अलावा चार और सेक्शन, रंगिया-मुर्कोंगसेलेक (नहरलागुन, देकारगांव और भालुकपोंग सहित 448 कि.मी.), बदरपुर-अगरतला (225 किमी), सिलचर-जिरिबम (50 किलोमीटर) और सिलचर-भैरवी (83 किमी) को भी चालू वित्त वर्ष के भीतर ग्रीन कॉरिडोर में परिवर्तित करने का प्रस्ताव है। इसके तहत 865 कोचों में 2990 पर्यावरण अनुकूल, बायो-टॉयलेट
लगाए गए हैं। वर्ष 20-2019 तक सभी कोचों में बायो-टॉयलेट फिट होने की उम्मीद है। गुवाहाटी, न्यू जलपाईगुडी और कटिहार स्टेशनों में स्वच्छ रेलवे स्टेशन (सीटीएस) लागू किया गया है, जहां मैकेनाइज्ड माध्यमों से डिब्बों को साफ किया जाता है। 50 ट्रेनों में डिब्बों की सफाई के लिए ऑन-बोर्ड हाउसकीपिंग सर्विसेज उपलब्ध कराई गई है। इस सुविधा के साथ अधिक ट्रेनें शीघ्र ही उपलब्ध
राजस्थान में ग्रीन कॉरिडोर के रूप में विकसित हुए दो रेलमार्ग
राजस्थान के बाड़मेर-मुनाबाव और पीपाड़ रोड-बिलाड़ा रेलमार्ग को भी ग्रीन कॉरिडोर के रूप में विकसित किया गया है
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रतीय रेल द्वारा पर्यावरण संरक्षण को लेकर किए जा रहे कई कार्यों के तहत उत्तर पश्चिम रेलवे पर भी पर्यावरण संरक्षण तथा हरित पर्यावरण के कार्यों को प्राथमिकता के साथ किया जा रहा है। ऐसे में भारतीय रेल के प्रत्येक जोन में कम से कम एक रेलमार्ग को 'ग्रीन कॉरिडोर' के रूप में विकसित किए जाने का प्रस्ताव है। उत्तर पश्चिम रेलवे के जोधपुर मंडल के बाड़मेर-मुनाबाव तथा पीपाड़ रोड-बिलाड़ा रेलमार्ग को ‘ग्रीन कोरीडोर’के रूप में विकसित किया गया है। उत्तर पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी
तरुण जैन ने बताया कि ‘ग्रीन कॉरिडोर’के अन्तर्गत बाड़मेर-मुनाबाव (119 किलोमीटर), पीपाड़ रोडबिलाड़ा (41 किलोमीटर) पर संचालित सभी रेलसेवाओं में बायो-टॉयलेट की सुविधा उपलब्ध करवाई गई है तथा यह सुनिश्चित किया जा रहा कि इन दोनों रेलमार्गों के ट्रैक पर ह्यूमन वेस्ट न के बराबर हो। इस तरह भारतीय रेल
के ग्रीन कॉरिडोर में आने वाले बाड़मेर-मुनाबाव तथा पीपाड रोड-बिलाड रेलमार्ग क्रमश: चौथे एवं पांचवे रेलमार्ग है, इससे पूर्व दक्षिण रेलवे के रामेश्वरम-मन्नामदुरैई, पश्चिम रेलवे के ओखाकानालास तथा पोरबंदरवानसजालिया रेलमार्ग को ग्रीन कॉरिडोर के रूप में विकसित किया गया है।
50 ट्रेनों में सफाई, पानी, सुविधा, मरम्मत, बिजली की समस्याओं आदि पर यात्रियों से शिकायत प्राप्त करने की एक ऐप आधारित प्रणाली ‘कोच मित्र’ संतोषजनक ढंग से काम कर रही है पोस्टर लगाए जाते हैं और स्टेशनों में पब्लिक एड्रेस सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि लोगों को साफ-सफाई के बारे में पता हो। रोटरी क्लब, संत निरंकारी चैरिटेबल फाउंडेशन, एनजीओ, स्काउट्स और गाइड्स जैसे विभिन्न संगठन रेलवे के जागरुकता बढ़ाने के प्रयासों से जुड़े हैं। इन सभी प्रयासों ने स्वच्छता पर समग्र परिदृश्य को सुधारने में बेहद मदद की है। स्वच्छता पर कुछ दिन पहले ही घोषित नवीनतम अखिल भारतीय सर्वेक्षण रिपोर्ट ने यह स्पष्ट किया है। रंगिया स्टेशन ने ‘ए’ श्रेणी के स्टेशन में 7 वां स्थान हासिल किया है जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 71 स्थान आगे है। इसी तरह, गुवाहाटी स्टेशन ने ‘ए 1’ श्रेणी के स्टेशन में 18 वें स्थान पर कब्जा जमाया है जो कि पिछले वर्ष से 55 स्थान आगे है। लमडिंग, न्यू कूचबिहार, अलीपुरद्वार जंक्शन जैसे अन्य महत्वपूर्ण स्टेशनों ने भी पिछले साल की तुलना में अपनी स्थिति में सुधार किया है।
12 - 18 जून 2017
संक्षेप में
दिल्ली जन स्वास्थ्य
करें बच्चों से बात एक्टिव होगा दिमाग अमेरिका के सिनसिनाटी चिल्ड्रेन हॉस्पिटल मेडिकल सेंटर में हुए अध्ययन का खुलासा
ने कहा है कि बच्चों के पढ़ने वैज्ञानिकों के दौरान उनसे बात करने से उनका
मस्तिष्क बेहतर रूप से सक्रिय हो सकता है। उन्होंने सुझाव दिया है कि किसी पुस्तक को सिर्फ जोर-जोर से पढ़ना ही करीब चार साल के बच्चे के ज्ञान संबंधी विकास को बेहतर करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता। ‘फंक्शनल मैग्नेटिक रिसोनेंस इमेजिंग’ (एफएमआरआई) ने उन चार साल के बच्चों का मस्तिष्क कहीं अधिक सक्रिय पाया, जिन्हें कहानी सुनाने के दौरान उनसे बातचीत की गई। यह अध्ययन अमेरिका के सिनसिनाटी चिल्ड्रेन हॉस्पिटल मेडिकल सेंटर में किया गया। यह बातचीत के साथ-साथ पढ़ाई करने पर जोर देता है, जहां बच्चों को सक्रियता से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। अस्पताल में बच्चों के विशेषज्ञ जॉन हुटन ने बताया, ‘यह मस्तिष्क की सक्रियता को बढ़ा सकता है या साक्षरता कौशल का विकास तेज कर सकता है, खास तौर पर बच्चों के स्कूल जाने से पहले की उम्र में।’ उन्होंने बताया कि इस अध्ययन में माता पिता के लिए यह निष्कर्ष है कि उन्हें अपने बच्चों के पढ़ने के दौरान उनसे बात करते रहना चाहिए, सवाल पूछने चाहिए, उन्हें पन्ने पलटने को कहना चाहिए और आपस में बात करनी चाहिए। हुटन इस अध्ययन दल के प्रमुख थे। यह अध्ययन पीएलओएस वन में प्रकाशित हुआ था। अध्ययन में चार साल की उम्र की 22 बच्चियों का फंक्शनल एमआरआई किया गया। हूटन ने बताया कि अध्ययन के नतीजों में बच्चों के पुस्तक पढ़ने के दौरान उनके और माता पिता के बीच संवाद की अहमियता का पता चला। (आईएएनएस)
डेंगू पर निगम के प्रयासों का अनुकूल प्रभाव
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सप्ताह भर में दक्षिणी निगम क्षेत्र में डेंगू और चिकनगुनिया का कोई मामला सामने नहीं आया
च्छर जनित बीमारियों पर नियंत्रण पर दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के प्रयासों का अनुकूल प्रभाव पड़ा है। सप्ताह भर में दक्षिणी निगम क्षेत्र में डेंगू और चिकनगुनिया को कोई मामला सामने नहीं आया। दक्षिणी निगम ने लार्वा का प्रजनन रोकने के लिए आरडब्ल्यूए की मदद से प्रचार तेज किए। 27 मई 2017 को सप्ताह में निगम के चारों जोन में डेंगू और चिकनगुनिया का कोई मामला सामने नहीं आया है। निगम के आयुक्त डॉ पुनीत कुमार गोयल के मुताबिक पिछले सप्ताह के अंत तक दक्षिणी निगम क्षेत्र में 7630 रक्त स्लाइड की जांच की गई। 76,467 घरों में स्प्रे किया गया और डीबीसी कमर्चारियों ने 53,24,108 बार घर-घर जाकर मच्छरों के प्रजनन की जांच की। इस दौरान 10,470 घरों में प्रजनन पाया गया। 12,638 मामलों में कानूनी नोटिस जारी किया गया और 674 मामलों में मुकदमों की शुरुआत की गई। इसके अलावा दक्षिणी निगम कॉलोनियों में इन रोगों से बचाव के लिए प्रभावी प्रचार कर रहा है। इस काम में आरडब्ल्यूए और अन्य सामाजिक संस्थाओें की मदद ली जा रही है।
आरडब्ल्यूए और सामाजिक संस्थाओं द्वारा आयोजित बैठकों में जन स्वास्थ्य अधिकारी मच्छर जनित बीमारियों के लिए जिम्मेदार मच्छरों की पहचान और उनके काटने से होने वाले तुरंत प्रभाव से होने वाली जानकारी दे रहे हैं। इन बैठकों में यह भी बताया जा रहा है कि घरों व उसके आस-पास मच्छरों का प्रजनन न होने दिया जाए। इसके लिए पानी नहीं जमा होने देने की एहतियात बताई जा रही है। लोगों को बताया जा रहा है कि वे डीबीसी कमर्चारियों को अपने घरों और कार्यस्थल पर प्रवेश करने दें, ताकि वे लार्वा के प्रजनन की जांच कर सकें। गोयल का कहना है कि उन्होंने दो बार परामर्श जारी कर निगम क्षेत्र में स्थित केंद्र और राज्य सरकार, निगम के कार्यालयों, शिक्षण संस्थाओं और अन्य कार्यालयों के प्रमुखों से आग्रह किया है कि वे अपने क्षेत्र में पानी जमा न होने दें। प्रमुखों को इस काम के लिए नोडल अधिकारी बनाने की सलाह दी गई है। यह भी कहा गया कि सप्ताह में एक दिन अपने घरों और कार्यालयों की सघन सफाई करें ताकि पानी जमा होने की संभावित स्थानों को साफ कर सुखा दिया जाए। (भाषा)
बिहार दिलचस्प
ये नदियां उगलती हैं सोना
बाढ़ के बाद जब पानी कम हो जाता है तो लोग नदियों द्वारा बहाकर लाई बालू और कणों को छानकर सोने के कण निकालते हैं
से राहत पाने और खेती के लिए पूरे भीषणदेश गर्मीको मॉनसू न का इंतजार रहता है, लेकिन
बिहार का एक ऐसा इलाका है जहां लोग मॉनसून का इंतजार सोना पाने के लिए करते हैं। बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के रामनगर इलाके के कुछ गांवों के लोगों के लिए मॉनसून हर साल सोना लेकर आता है। इसीलिए बरसात में यहां की नदियां सोना उगलती हैं। बलुई, कापन और सोनहा नदी हर साल अपने साथ सोना लेकर आती हैं। इनके पानी से सोना छानकर इन गांवों के लोग अपनी साल भर की रोजी-रोटी का जुगाड़ करते हैं। लेकिन नदी से सोना निकालना बहुत आसान नहीं है। बरसात के दिनों में ये नदियां खूब उफनती हैं। गांव के लोग पानी के उतरने का इंतजार करते हैं। पानी कम होते ही गांव के लोग कुछ खास तरह के उपकरणों से लैस नदी
में उतर जाते हैं और वह नदियों द्वारा बहाकर लाई बालू और कणों को छानकर सोने के कण निकालते हैं और फिर उसे बाजार में बेचते हैं। पिछले कई दशकों से यह काम इस इलाके में हो रहा है। यहां के आदिवासी कई पीढ़ियों से सोना निकाले का काम करते आ रहे हैं। कई बार ऐसा होता भी कि लोग दिन भर बालू और कणों को छानते रहते हैं, लेकिन हाथ कुछ भी नहीं लगता। (एजेंसी)
स्वास्थ्य
संक्षेप में
09
एंबुलेंस में मरीज पर नजर रखेगी नई तकनीक आईआईटी खड़गपुर ने विकसित की तकनीक, जिससे एंबुलेंस में मरीज पर रखी जा सकेगी नजर
आ
ईआईटी खड़गपुर ने ऐसी जीवन रक्षक प्रणाली विकसित की है, जिसकी मदद से चिकित्सक मरीज के अस्पताल पहुंचने से भी पहले एंबुलेंस में उनकी हालत पर नजर रख सकते हैं। आईआईटी खड़गपुर के प्रवक्ता ने बताया कि संस्थान के कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग विभाग (सीएसई) की स्वान प्रयोगशला में ‘एंबुसेंस’ नामक इस अपनी तरह की अलग प्रौद्योगिकी को विकसित किया गया है। एंबुसेंस ईसीजी, हृदय गति, तापमान और रक्तचाप समेत विभिन्न शारीरिक मापदंडों पर वायरलैस तरीके से नजर रखने में सक्षम है। यह प्रणाली मरीज के डेटा की गोपनीयता को संरक्षित रखने के लिए अनूठे यंत्र का इस्तेमाल करती है और साथ ही क्लाउड कम्प्यूटिंग की विश्लेषणात्मक और कम्प्यूटिंग क्षमता का भी इस्तेमाल करती है। प्रवक्ता ने कहा यह तकनीक टेली चिकित्सा से काफी आगे हैं। टेली चिकित्सा की मदद से चिकित्सक मरीज को देख तो सकते हैं लेकिन उनके स्वास्थ्य पर नजर नहीं रख सकतेे। एंबुसेंस का वेब इंटरफेस चिकित्सकों और पराचिकित्सकों के इस्तेमाल के लिए ईसीजी ग्राफ रेंडरिंग जैसे उपकरणों के डेटा विजुअलाइजेशन के साथ आसान ग्राफिकल इंटरफेस मुहयै ा कराता है। इस प्रणाली को विकसित करने वाले प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर प्रोफेसर सुदीप मिश्रा ने कहा, यह तकनीक उन मरीजों के लिए वरदान साबित होगी जिन्हें दूरदराज के इलाके में किसी अस्पताल से शहर के किसी अस्पताल में रेफर किए जाने के बाद वहां लाया जाता है। (आईएएनएस)
10 स्वच्छता
12 - 18 जून 2017
स्वच्छता छत्तीसगढ़
छ
14 हजार गांव खुले में शौच मुक्त
छत्तीसगढ़ में हजारांे गांव खुले में शौच मुक्त घोषित हुए
त्तीसगढ़ में 14 हजार से अधिक गांवों और पांच जिलों को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया गया है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत छत्तीसगढ़ में पांच जिले, 83 विकासखंड, 7984 ग्राम पंचायत और 14 हजार 64 गांव खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित किए जा चुके हैं। अधिकारियों ने कहा कि छत्तीसगढ़ में स्वच्छ भारत मिशन के तहत अब तक 26 लाख 10 हजार 225 शौचालयों का निर्माण कराया गया है। राज्य के पांच जिलों धमतरी, मुंगेली, राजनांदगांव, सरगुजा और दुर्ग को ओडीएफ घोषित गया है। उन्होंने बताया कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत पूरे
देश को दो अक्टूबर 2019 तक खुले में शौचमुक्त घोषित करने का लक्ष्य रखा गया है, जबकि मुख्यमंत्री रमन सिंह ने राज्य में इस मिशन को लगातार मिल रही उत्साहजनक सफलता को देखते हुए उम्मीद जताई है कि छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय लक्ष्य के एक वर्ष पहले ही दो अक्टूबर 2018 तक खुले में शौचमुक्त राज्य घोषित हो जाएगा। अधिकारियों ने बताया कि मुख्यमंत्री के इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए राज्य स्वच्छ भारत मिशन के तहत मैदानी स्तर पर सभी संबंधित विभागों के अधिकारी और कर्मचारी, पंच-सरपंचों और ग्रामीणों को साथ लेकर पूरी सक्रियता से काम कर रहे हैं। (भाषा)
स्वच्छता उत्तर प्रदेश
ओडीएफ के लिए रंगीन शौचालय का सहारा
उत्तर प्रदेश में अब शौचालों के प्रयोग के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए शौचालयों पर पेंटिंग कराई जा रही है
स्वच्छता उत्तर प्रदेश
मुंह दिखाई में दिया शौचालय
नई नवेली दुल्हन को मुंह दिखाई में गहने जेवर और दूसरे उपहार तो मिलते ही हैं, लेकिन गोंड में दुल्हन को मुंह दिखाई में शौचालय दिया गया
हा
ल में हुए स्वच्छता सर्वे में उत्तर प्रदेश के गोंडा का नाम सबसे गंदे शहरों की सूची में भले ही दर्ज हो, लेकिन इस जिले के ग्रामीण स्वच्छता को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। गोंडा जिले के गडरियनपुरवा गांव के एक ग्रामीण ने शौचालय बनवाने के बाद अपनी बहू को बुलाया और उसे मुंह दिखाई में शौचालय का उपहार दिया। दुल्लापुर तरहर में रहने वाले बंशीलाल को शौचालय बनवाने के लिए जब सरकारी मदद नहीं मिली तो उसने खुद मजदूरी की। करीब 25 परिवार वाले इस गांव में सिर्फ यही एक घर है जिसमें शौचालय की सुविधा है। बहू सुष्मिता भी अनोखा उपहार पाकर गदगद हैं। सास-ससुर से बहू को मिला अनोखा उपहार लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है। परसपुर ब्लॉक की ग्राम पंचायत दुल्लापुर तरहर के गडरियनपुरवा में रहने वाले बंशीलाल दिल्ली में प्राइवेट नौकरी कर आजीविका चलाते हैं। खेती के रूप में सिर्फ तीन बीघा जमीन है। उन्होंने बीएसएसी फाइनल वर्ष की परीक्षा दे चुके अपने बेटे बलबीर की शादी तय की । बंशीलाल ने कहा कि तीन कमरा किसी तरह बनवा लिया था, लेकिन घर में शौचालय नहीं था। पत्नी उर्मिला ने एक दिन कहा कि बहू के मायके में शौचालय की सुविधा है। जबकि हमारे यहां नहीं है। पढ़ी लिखी बहू घर में लाएंगे तो वह खुले में शौच के लिए
स्वच्छता उत्तर प्रदेश
करने के स्वच्छलिए भारतअब उत्तरमिशनप्रदेकोश केकामयाब स्कूलों में रंगीन
व कलाकृतियों वाले शौचालय का प्रयोग शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य बच्चों को शौचालय के प्रयोग के लिए प्रेरित करना है। प्रदेश के खतौली ब्लॉक के एक दर्जन से अधिक सरकारी विद्यालयों में शौचालयों की पेंटिंग का काम पूरा हो चुका है। खुले में शौच मुक्त करने के लिए सरकार ने घर-घर शौचालय बनाने का अभियान चलाया है। खतौली ब्लॉक के कर्मचारियों ने एक संस्था के साथ मिलकर गांवों में शौचालयविहीन परिवारों का सर्वे कर शौचालय बनाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा है। खतौली में अब तक 45 गांवों का सर्वे हो चुका है। इनमें करीब तीन हजार पात्रों के फार्म भरे जा चुके हैं। सरकार से शौचालय बनवाने के लिए 12 हजार रुपए दिए जा रहे हैं। अभियान को धता बताने में पुरुष व महिलाओं की संख्या बहुतायात में है पर खतौली ब्लॉक के कर्मियों ने प्राथमिक विद्यालय के बच्चों को शौचालय के प्रयोग के प्रति आकर्षित करने के लिए नया प्रयोग शुरू किया है। यह प्रयोग न सिर्फ शौचालय को नया लुक दे रहा है, बल्कि इस पर बनी पेंटिंग और लिखे स्लोगन शौचालय के प्रयोग के प्रति बच्चों के साथ बड़ों को भी इसके प्रयोग के लिए प्रेरित कर रहे हैं। स्कूल के पास से निकलने
वाले लोगों की नजर शौचालय पर पड़े बिना नहीं रहती। नए प्रयोग के तौर पर ब्लॉककर्मियों ने विद्यालय में बने नए व पुराने शौचालय पर रंगबिरंगी पेंटिंग कराकर उन पर शौचालय के प्रयोग से संबंधी स्लोगन लिखवाने का काम शुरू किया है। ये शौचालय जहां विद्यालय की सुंदरता को चार चांद लगा रहे हैं वहीं स्कूली बच्चे और आने वाले अभिभावकों के लिए भी आकर्षण के केंद्र बन रहे हैं। खतौली बीडीओ योगेंद्र लाल भारती ने बताया कि ग्राम विकास अधिकारी विजय शेखर और जयबीर सिंह ने अपने क्षेत्र के विद्यालयों से इसकी शुरुआत की है। अब तक खतौली ग्रामीण, अतरपुरा, मंसूरपुर, दौलतपुर, अभिपुरा, भलवा और प्राथमिक विद्यालय फहीमपुर खुर्द सहित के दर्जनों विद्यालयों में शौचालय पर रंगीन पेंटिंग व स्लोगन लिखवाकर उन्हें आकर्षक बनाया जा चुका है। (भाषा)
जाएगी। यह अच्छी बात नहीं है। यह सुनकर बंशीलाल ने कहा कि समय भी करीब है, शादी में खर्चा है। ऐसे में शौचालय कैसे बनवाया जाए। सरकारी पैसे के लिए उर्मिला ने प्रयास किया, लेकिन मदद नहीं मिली। इसके बाद भी परिवार ने अपना इरादा नहीं बदला। उधार सामग्री लाने के बाद एक राजगीर मिस्त्री रख लिया। लेबर का काम खुद बंशीलाल ने किया। बहू के आने से ठीक एक दिन पहले शौचालय बन गया। इसके बाद पानी के लिए एक छोटा हैंडपंप भी लगवाया गया। 22 मई को घर आई बहू सुष्मिता को मुंह दिखाई में तोहफा दिया गया तो वह खुशी से गदगद हो गई। सीडीओ दिव्या मित्तल ने बताया कि अपनी बहू को उपहार में शौचालय देने वाला परिवार बधाई का पात्र है। (भाषा)
शौचालय बनाने की प्रेरणा देने पर मिलेगा ईनाम
उत्तर प्रदेश में शौचालय निर्माण के लिए प्रोत्साहित करने और शौचालय का प्रयोग सुनिश्चित कराने वाले को सरकार कमीशन देगी
उ
त्तर प्रदेश में स्वच्छ भारत अभियान के तहत परियोजना को बढ़ावा देने के लिए अब चुने हुए युवाओं को 150 रुपए कमीशन दिया जाएगा। युवाओं को शौचालय निर्माण के लिए प्रेरणा देने और उसका उपयोग शुरू कराने की एवज में प्रति शौचालय 150 रुपए दिए जाएंगे। इसके अलावा पांच दिन के जागरुकता कार्यक्रम के आयोजन के लिए 200 रुपए भी प्रतिदिन अलग से दिए जाएंगे। प्रदेश में 2018 तक डेढ़ करोड़ शौचालयों का निर्माण किया जाना है। स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) योजना के तहत लखनऊ से युवाओं को जोड़ने का अभियान शुरू किया जाएगा। गांवों को खुले में शौच मुक्त करने के लिए स्वच्छाग्राहियों और स्वच्छता दूत के लिए युवक एवं युवतियों को रखा जाएगा। जिसमें योग्य और कर्मठ महिलाओं को वरीयता दी जाएगी।
चयनित कर्मचारियों के लिए जरूरी होगा कि वे आम जनता के समक्ष बोलने, गाने बजाने और उन्हे समझाने और उनसे संवाद स्थापित करने की क्षमता रखते हों। स्वच्छता के कार्यों के प्रति उनका जुड़ाव हो, जनता के साथ संवाद करते समय गतिविधियों को करने में कोई हिचक न हो। आवश्यकता पड़ने पर प्रतिभागियों को अपने ग्राम के अतिरिक्त अन्य ग्रामों में भी रूक कर कार्य करना पड़ेगा। चयनित अभ्यर्थियों को लाभार्थी को प्रेरित कर शौचालय निर्माण और उसके उपयोग के बाद प्रति शौचालय 150 रुपए की दर से धनराशि दी जाएगी। गांवों को खुले में शौच मुक्त कराने के लिए पांच दिवसीय प्रचार-प्रसार की गतिविधि करने पर प्रतिदिन रात्रि निवास करने पर 200 रुपए व रात्रि निवास न करने पर 150 रुपए प्रोत्साहन राशि के रूप में दिया जाएगा। (भाषा)
12 - 18 जून 2017
संक्षेप में
शौचालयों की कमी पर हाई कोर्ट हुआ सख्त
स्वच्छता छत्तीसगढ़
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पक्का मकान तोड़कर बनवाया शौचालय छत्तीसगढ़ के एक लोहार पर प्रधानमंत्री की स्वच्छता को लेकर अपील का इतना असर हुआ कि उसने अपना पक्का घर तोड़कर शौचालय बनवाया
एक नजर
प्रधानमंत्री की अपील के बाद शौचालय बनवाने का फैसला
शौचालय सुविधा न होने के मामले की सुनवाई करते हुए हिमाचल उच्च न्यायालय ने प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को दिए आदेश
पैसे की किल्लत के कारण तोड़ना पड़ा मकान पहले लोगों ने बनाया मजाक, पर अब सबके लिए आदर्श
के राष्ट्रीय व राज मार्गों के हिमाचल आसपास शौचालयों व अन्य मूलभूत
सुविधाओं की कमी के मुद्दे को लेकर चल रहे जनहित मामले में उच्च न्यायालय ने सभी जिलाधीशों को सड़कों के आसपास की सफार्ई से जुड़ी अथॉरिटीज के साथ बैठक करने के आदेश दिए हैं। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय करोल व न्यायाधीश संदीप शर्मा की खंडपीठ ने मुख्य सचिव को इस जनहित कार्य की प्रगति की जानकारी देने के भी आदेश दिए। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि प्रदेश में हर वर्ष तकरीबन डेढ़ करोड़ से अधिक पर्यटक आते हैं। पिछले साल पर्यटकों के लाखों वाहनों ने प्रदेश में प्रवेश किया था। इतने संख्या में आने के बाद भी लोगों की मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए सड़कों के किनारे पर्याप्त शौचालय तक नहीं हैं। इससे मजबूरन पर्यटकों व अन्य यात्रियों को खुले में शौच जाना पड़ता है। इससे जल स्त्रोत व पर्यावण को भारी नुकसान पहुंचता है। खुले में गंदगी करने से गंभीर बीमारियों के फैलने का खतरा भी पैदा हो जाएगा। आने वाले समय मे यह स्थिति भयावह रूप ले लेगी, जिससे निपटने के लिए अभी से तैयारी करनी होगी। मामले पर अगली सुनवाई 15 जून को होगी। (भाषा)
स्वच्छता
स्वच्छता अभियान शुरू करने का ही देशनहींमें, महज बल्कि उसे एक नए जनांदोलन की शक्ल
देने के पीछे सबसे बड़ी प्रेरणा का नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी है। प्रधानमंत्री बनते ही 2014 में उन्होंने देशवासियों से शौचालय बनवाने और साफ-सफाई पर ध्यान देने की अपील की थी। इसके बाद से प्रधानमंत्री मोदी न जाने कितनी बार अलग-अलग मंचों से लोगों को सफाई के लिए प्रेरित करते रहे हैं। उनकी इस अपील पर कई गरीब लोगों ने ऐसे काम किए जो किसी भी समाज के लिए मिसाल है। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के एक गांव में रहने वाले लोहार पर स्वच्छता अपील का इतना असर हुआ कि उसने अपना पक्का घर तोड़कर शौचालय बनवाया है। फिलहाल वह झोपड़ी में रहने को मजबूर है, लेकिन उसे इस बात की खुशी है कि उसके घर में अब शौचालय है। लोहार के इस फैसले की स्थानीय मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर सराहना हो रही है। स्वच्छता को लेकर उनके इस जज्बे को लेकर
स्वच्छता छत्तीसगढ़
लोग प्रेरक आदर्श के तौर पर देख रहे हैं।
प्रधानमंत्री की अपील से प्रभावित
धमतरी के नगरी ब्लॉक की ग्राम पंचायत सांकरा के आश्रित नवागांव में रामसुंदर लोहार रहते हैं। उनके परिवार का गुजारा गांव मजदूरी से चलता है। उसने जैसे-तैसे कई साल में पैसे जुटाकर पक्का मकान बनवाया था। कुछ महीने उन्होंने भारत सरकार के स्वच्छता अभियान के बारे में सुना। एक दिन उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र के अपील सुनी, जिसमें पीएम घर में शौचालय बनवाने की बात कह रहे थे। रामसुंदर लोहार के मन में यह बात बैठ गई। इस तरह कुछ ही दिनों के भीतर उन्होंने घर में शौचालय बनवाने की तैयारी शुरू कर दी।
पैसे कम पड़े तो तोड़ा घर
घर में शौचालय बन ही रहा था, तभी उसके सामने पैसों की किल्लत हो गई। घर में इतने पैसे नहीं थे कि
वह ईंट खरीद सके। आखिरकार उसने अपना पक्के मकान की दीवारें तोड़ दी। उन्हीं ईंटों से रामसुंदर लोहरा ने शौचालय बनवाया है। जब वह घर की दीवारें तोड़ रहा था तो गांव के लोग उसका मजाक बना रहे थे। उसके फैसले को गलत बता रहे थे। घर टूटने के बाद रामसुंदर और उसका परिवार कच्ची झोपड़ी में रह रहा है। हालांकि उसे संतोष है कि अब उसके घर की बहू-बेटियां शौच के लिए घर के बाहर नहीं जाती हैं।
फैसले की हर तरफ तारीफ
रामसुंदर का शौचालय जब बनकर तैयार हो गया तो इलाके में इस बात की चर्चा होने लगी, लोगे उनके इस फैसले की तारीफ कर रहे हैं। स्वच्छता अभियान से जुडे़ सरकारी कर्मचारी भी रामसुंदर की तारीफ कर चुके हैं। इलाके के लोगों का कहना है कि भारत सरकार स्वच्छता अभियान के प्रचार-प्रसार पर करोड़ों रुपए खर्च करती है। वहीं रामसुंदर भी इलाके के लोगों के सामने स्वच्छता अभियान की मिसाल बनकर उभरे हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो उन्हें लगता है कि सरकार को चाहिए कि वह रामसुंदर लोहार का घर दोबारा से पक्का बनवा दें। इस बारे में कई सार्वजिक अपील भी जारी की गई है। वैसे राम सुंदर लोहार अपने फैसले को लेकर तो खुश हैं ही, साथ ही इसके बदले उनकी और कोई महत्वाकांक्षा भी नहीं है। (भाषा)
शौचालय नहीं तो शादी नहीं
पंड्रा माली समाज के सम्मेलन में यह फैसला लिया गया है कि जिसके घर शौचालय नहीं हो, उसके घर कोई अपनी बहन या बेटी की शादी नहीं करेगा
समाज के लोगों ने निर्णय लिया है पबेटीकिं ड्राऔरमाली अब जिस घर में शौचालय नहीं होगा, वहां बहन की शादी नहीं की जाएगी। समाज
के प्रमुखों ने कहा कि शादी से पहले संबंधित के घर जाकर देखा जाएगा कि उसके घर में शौचालय है या नहीं। यदि उस लड़के के घर में शौचालय नहीं होगी तो वहां रिश्ता नहीं जोड़ा जाएगा। वहीं समाज के बीच आए इस प्रस्ताव का महासम्मेलन में
मौजूद करीब दस हजार लोगों ने समर्थन भी दिया। छत्तीसगढ़ पन्ड्रा माली समाज के प्रमुख नीलकंठ ने कहा कि शौचालय बनाकर समाज के लोग उसे उपयोग में लाए। वहीं शोभाचंद्र पात्र ने कहा कि इसके लिए सरकार भी अनुदान दे रही है, ऐसे में ग्रामीणों को आगे आकर शौचालय बनवाना चाहिए। दो दिनों तक चलने वाले महासम्मेलन में नवरंगपुर, कालाहांडी, खरियार से समाज के लोग शामिल होने
पहुंचे हैं। पानाबेड़ा से पहुंचे सभापति गौरहरी नायक ने कहा कि समाज को यदि आगे बढ़ाना है तो सबसे पहले एक स्वस्थ समाज की स्थापना करनी होगी। उन्होंने कहा कि इस महासम्मेलन में समाज के सभी लोग निर्णय ले कि मांस-मदिरा से पूरी तरह दूर रहेंगे। वहीं नीलकंठ और शोभाचंद्र पात्र ने कहा कि आज के समय में समाज को आगे ले जाने के लिए मुख्य रूप से शिक्षा में ध्यान देने की आवश्यकता है।
समाज के लोगों के बीच चर्चा करने के बाद निर्णय लिया गया है कि अब समाज के हर बालक-बालिका को कम से कम 12वीं तक शिक्षा ग्रहण करना होगा। वहीं सामाजिक कार्यक्रम में भी मांस-मदिरा के सेवन में पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया गया। (भाषा)
12 स्वच्छता
12 - 18 जून 2017
स्वच्छता राजस्थान
स्वच्छता राजस्थान
खुले में शौच से मुक्त होगा राजस्थान
स्वच्छता अभियान की मिसाल बनी टीम-9
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विजन के अनुरूप राजस्थान 2017 में ही खुले में शौच से मुक्त होगा
रा
जस्थान के ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री राजेन्द्र राठौड़ ने कहा है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विजन के अनुरूप राजस्थान को दिसम्बर 2017 तक ही खुले में शौच मुक्त बनाना है। पहले यह लक्ष्य अक्टूबर 2018 तक पूरा करना था, लेकिन अब मिशन मोड में काम करते हुए यह लक्ष्य इस वर्ष के अंत तक ही हासिल करना है। राठौड़ सचिवालय के कांफ्रेंस हॉल में जिला कलेक्टर एसपी कांफ्रेंस के तहत आयोजित ‘ओरिएंटेशन एंड सेंसिटाइजेशन’ विषय पर आयोजित कार्यशाला को संबोधित करते हुए ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री राजेन्द्र राठौड़ ने कहा कि पिछले दो वर्ष में राजस्थान शौचालय निर्माण में देशभर में अव्वल रहा है और राष्ट्रीय प्रतिशत 64 के मुकाबले हमने 70 प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त किया है। पंचायती राज मंत्री ने कहा कि केंद्र से योजना राशि की दूसरी किस्त प्राप्त करने के लिए अब तक हुए
कामों का वेरिफिकेशन, जियोटेगिंग, कार्य पूर्णता एवं उपयोगिता प्रमाण पत्रों की जानकारी अपलोड कराने सहित अन्य औपचारिकताएं पूरी करना सुनिश्चित करें। उन्होंने कहा कि वेरिफिकेशन के काम में तेजी लाएं, ताकि जहां शौचालय निर्माण का कार्य पूरा हो चुका है, उन पंचायतों तथा जिलों को शीघ्र ओडीएफ घोषित किया जा सके। उन्होंने जिला कलक्टर्स को सामुदायिक शौचालयों के प्रस्ताव भिजवाने के भी निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि अभियान की कामयाबी के लिए जिला स्वच्छता भारत प्रेरकों का पूरा सहयोग लें। उन्होंने अभियान में कमजोर प्रदर्शन वाले जिलों को विशेष प्रयास करने को कहा। ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के संयुक्त सचिव अरुण बारोका ने कहा कि जो भी जिला खुले में शौच मुक्त होगा, संबंधित जिला कलक्टर को इसका स्वहस्ताक्षरित प्रमाण पत्र निर्धारित वेबसाइट पर अपलोड करना होगा। उन्होंने मिशन की सफलता के लिए आईईसी गतिविधियों पर विशेष जोर देने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि शौचालय का उपयोग सुनिश्चित करने के लिए ओडीएफ हो चुके गांवों को पाइप वाटर स्कीम से जोड़ने में प्राथमिकता दी जाए और इसी तरह जहां पाइप वाटर स्कीम पहले से है, उन्हें ओडीएफ बनाने में प्राथमिकता दी जाए। प्रमुख शासन सचिव, स्थानीय निकाय विभाग मंजीत सिंह ने नगरीय क्षेत्र में संचालित स्वच्छ भारत अभियान के संबंध में जानकारी दी एवं जिला कलक्टरों को अपेक्षाएं बताई। निदेशक, स्वच्छता एवं पंचायती राज आरुषि ए. मलिक ने अभियान में राजस्थान की स्थिति के बारे में प्रस्तुतीकरण दिया। (भाषा)
जयपुर की टीम-9 रोज श्रमदान करके 35 किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र को साफ कर चुकी है
च्छ भारत स्व अभियान के साथ
कई लोग भावनात्मक तौर पर तो जुड़ जाते हैं, पर इसके लिए किसी गंभीर प्रयास का हिस्सा बनना वे पसंद नहीं करते हैं, पर जयपुर की टीम-9 ऐसी नहीं है। उसने अपने प्रयास और संकल्प से सबको प्रभावित किया है। आसपास के लोगों के लिए मिसाल बन चुकी टीम-9 ने सफाई के क्षेत्र में 1000 दिन पूरे कर लिए हैं। स्वच्छ भारत मिशन के इन सिपाहियों की टीम शहर के वॉर्ड नंबर-9 में है। विद्याधर नगर वॉर्ड के पार्षद दिनेश कांवट ने प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छ भारत अभियान से प्रेरित होकर यह टीम बनाई। शुरुआत 4-5 लोगों के साथ हुई और अब इसमें 200 से ज्यादा सदस्य हैं। इनमें गृहिणी से लेकर डॉक्टरइंजीनियर और छात्र-छात्राएं तक शामिल हैं। टीम के सदस्य सुबह होते ही हाथ में झाड़ू उठा लेते हैं। वे सुबह 6 से 8 बजे तक सार्वजनिक सफाई करते हैं। झाड़ू से लेकर पौधे लगाने और उसमें पानी डालने तक सारा सामान टीम के सदस्य खुद और कॉलोनी के लोगों की मदद से
स्वच्छता मुंबई
स्वच्छता की मिसाल
मुंबई की इस हाउसिंग सोसायटी में जमा कचरे से खाद बनाई जाती है और उसका उपयोग बागवानी के लिए होता है
रिहायशी मुं बईइलाकोंके माहिममें मेंएकसमुद्रीहैकिनारोंमकरंसेद सटेसोसायटी।
यह सोसायटी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को साकार करने की राह में चल पड़ा है। आज यह सोसायटी पूरी तरह से स्वच्छ है। कचरे को नियोजित करके इस सोसायटी ने एक तरह से मनपा का काम भी हल्का किया है। मकरंद सोसायटी में साफ-सफाई करने वाली दो महिलाएं हैं, जिनका नाम सरला गुलाब पाटील (45) आणि गंगू दगडू शिंदे (30) है। यहां जमा कचरे से खाद बनाई जाती है और उस खाद का उपयोग बागवानी के लिए होता है, इसीलिए यह सोसायटी साफ और हरा भरा दिखाई देता है। मकरंद सोसायटी में 120
परिवार रहते हैं, लेकिन कचरे को नियोजन करने से यह खुबसूरत और साफ सुथरा दिखाई देता है। यहां जिस पानी का प्रयोग पेड़ों की सिंचाई के लिए किया जाता है उसी पानी का प्रयोग टॉयलेट में भी किया जाता है, जिससे पानी की बचत होती
है। अगर मकरंद सोसायटी की तरह मुंबई और दूसरे महानगरों की सभी सोसायटियों ने अपना कचरे का नियोजन करना सीख लिया तो शहरी भारत को स्वच्छ शहर और हरित शहर बनने से कोई नहीं रोक सकता। (मुंबई ब्यूरो)
खरीदते हैं। हालांकि अब उन्हें नगर निगम का भी सहयोग मिलने लगा है। टीम-9 की चर्चा जब हर तरफ होने लगी तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी उसकी तारीफ की। यही नहीं, सांसद रामचरण बोहरा, महापौर अशोक लाहोटी और उप महापौर मनोज भारद्वाज ने टीम के साथ आकर श्रमदान किया। टीम के अपने नियम-कायदे भी हैं। टीम-9 के सभी को गुलाबी रंग की पोशाक पहननी होती है। टीम के 2-2 सदस्य 15 दिन के लिए कप्तान बनते हैं। गौरतलब है कि श्रमदान के जरिए टीम9 अब तक 35 किलोमीटर से ज्यादा का इलाका साफ कर चुकी है और करीब तीन हजार पेड़ लगाए हैं। (भाषा)
संक्षेप में
बस स्टैंड में होगा शौचालय निर्माण
प
श्चिम बंगाल के पुरुलिया-आसनसोल मुख्य मार्ग पर स्थित आसनसोल नगर निगम के 105 नंबर वार्ड अंतर्गत डिसरगढ़ घाट स्थित बस पड़ाव पर यात्रियों की सुविधा के लिये शौचालय की सुविधा नहीं होने से यात्रियों की परेशानी को देखते हुए मेयर जितेन्द्र तिवारी ने कहा कि निगम द्वारा डीआरपी तैयार किया जा रहा है। वहां जल्द हीं शौचालय का निर्माण किया जाएगा। गौरतलब हो कि डिसरगढ़ घाट स्थित बस पड़ाव पर पुरुलिया-आसनसोल से सैकड़ों यात्री प्रतिदिन आते है। शौचालय न होने से खासकर महिला यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। (भाषा)
12 - 18 जून 2017
स्वच्छता गंगा
स्वच्छता दिल्ली
सर्वे से दुरुस्त होंगे शौचालय
उ
उत्तर दिल्ली नगर निगम अपने इलाके के सार्वजनिक शौचालयों का सर्वे करने के बाद उन्हें बेहतर बनाएगा
त्तर दिल्ली नगर निगम अब इलाके में शौचालयों की कमी, वर्तमान शौचालयों का रखरखाव संबंधी सर्वे कराने की तैयार में है। सर्वे का जिम्मा निजी कंपनी को दिया जा सकता है। सर्वे के लिए जल्द ही निविदी आमंत्रित की जाएगी। उत्तर दिल्ली निगम की महापौर प्रीति अग्रवाल ने कहा कि प्रत्येक इलाके में निश्चित अंतराल पर सार्वजनिक शौचालय की उपलब्धता सुनिश्चित कराई जाएगी। महापौर प्रीति अग्रवाल ने बताया कि सिविल लाइंस, रोहिणी, सिटी, सदर पहाड़गंज, नरेला और करोल बाग जोन के प्रत्येक वार्ड में सर्वे कराया जाएगा। इसमें आरडब्ल्यूए पदाधिकारियों की भी मदद ली जाएगी। सार्वजनिक शौचालयों की कैटगरी बनाकर उनके मरम्मत की रूपरेखा बनाई जाएगी। अधिकारियों ने बताया कि सर्वे के बाद छह चरणों में प्रत्येक जोन में शौचालयों की मरम्मत होगी। वरिष्ठ अधिकारियों की देखरेख में टीम गठित की जाएगी जो निगरानी रखेगी। (भाषा)
जोन में कितने शौचालय
300 268 199 202 55 138
सिविल लाइंस जोन रोहिणी सिटी
सदर पहाड़गंज नरेला
करोल बाग
40 वाटरलेस यूरिनल-338
केंद्रीयभारतीजलने संकहासाधन किमंत्री उमाजल
संसाधन विभाग के विशेषज्ञ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलेंगे और मुख्यमंत्री की सलाह पर पटना तथा फरक्का बराज के बीच गंगा नदी में गाद जमा होने वाले स्थलों का निरीक्षण करेंगे। बता दें कि नीतीश कुमार गंगा नदी में गाद जमा होने पर हमेशा से चिंता जताते रहे हैं। उमा भारती ने कहा कि गंगा नदी से गाद हटाने पर अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों की एक टीम जल संसाधन विभाग के सचिव की नेतृत्व में पांच जून को पटना
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स्वच्छ भारत मिशन के लिए हस्ताक्षर अभियान
कम्यूनिटी टायलेट कॉम्प्लेक्स-
फेसबुक ग्रुप बना स्वच्छता की मिसाल दिल्ली के नौकरीपेशा लोगों ने स्वच्छता को लेकर फेसबुक पर बनाया ग्रुप
सोशलही नहींमीडियाहै, बल्किलोगों यहको कईआपसअच्छीमें जोड़ता पहल
को पूरा कर रहे हैं। खास बात यह कि इस ग्रुप के सभी मेंबर नौकरीपेशा लोग हैं, लेकिन हर रविवार यानी छुट्टी के दिन ये लोग फेसबुक पर पर इस बात को लेकर जानकारी साझा करते हैं कि आज किस इलाके को स्वच्छ करना है। इस तरह देखते ही देखते वो इलाका स्वच्छ हो जाता है। (भाषा)
आएगी। उन्होंने कहा कि टीम नीतीश कुमार की सलाह पर समस्या के गहन अध्ययन के लिए पटना तथा पश्चिम बंगाल में फरक्का बराज के बीच विभिन्न स्थानों का निरीक्षण करेगी। बता दें कि उमा भारती ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ बैठक की थी। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की प्राथमिकता गंगा नदी को गाद से मुक्त करना और उसके बाद अन्य नदियों के लिए भी ऐसे ही कदम उठाना है। उन्होंने एक अन्य सवाल के जवाब में कहा कि मैंने कहा है कि गंगा निर्मलता 10 साल में पूरी होगी। (भाषा)
स्वच्छता दिल्ली
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स्वच्छता दिल्ली
को भी आगे बढ़ाने का माध्यम बनकर उभरा है। स्वच्छता को लेकर ऐसी ही एक पहल का नाम है- ‘माय देल्ही- कीप इट क्लीन’। दरअसल यह नाम है फेसबुक पर सक्रिय एक अनूठे समूह का। दिल्ली के कुछ उत्साही लोगों द्वारा शुरू किए गए इस फेसबुक ग्रुप ने स्वच्छता की एक बड़ी मिसाल कायम की है। ग्रुप से अभी तक 14 हजार से ज्यादा लोग जुड़ चुके हैं। इस समूह का लक्ष्य है दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में जाकर वहां कि गंदगी को दूर करना। अच्छी बात यह भी है कि इस ग्रुप का ताल्लुक किसी भी पार्टी या एनजीओ से नहीं है। यह अनूठे तरह का सामाजिक समूह है, जिसमें दिल्ली के आम लोग एक मंच पर आकर स्वच्छता को लेकर अपना कर्तव्य और शपथ
गंगा में गाद के अध्ययन के लिए विशेषज्ञ पटना और फरक्का का दौरा करेंगे
बिल्ड आपरेट ट्रांसफर (बीओटी)नम्मा-
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विशेषज्ञ करेंगे पटना का दौरा
सार्वजनिक शौचालयों की संख्या महिला टायलेट-
स्वच्छता
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दक्षिण नगर निगम ने अपने क्षेत्र में कूड़े को अलग-अलग करने के लिए नागरिकों की भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से कई नए कदम उठाए हैं
क्षिण दिल्ली नगर निगम ने सभी जोन में कूड़े को अलग करने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करने के लिए व्यापक हस्ताक्षर अभियान की शुरूआत की है। निगम के चारों जोन में हस्ताक्षर के लिए बड़े आकार के बोर्ड लगाए गए, जिन पर लोगों ने हस्ताक्षर किए। चारों स्थानों पर बड़ी संख्या में नागरिक, आरडब्ल्यूए और मार्केट एसोसिएशन के सदस्य पूरे उत्साह के साथ शामिल हुए। इस अवसर पर संबंधित जोन के उपायुक्त और अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। नजफगढ़ जोन में आयोजित समारोह में महापौर कमलजीत सहरावत ने बोर्ड पर सबसे पहले हस्ताक्षर कर अभियान का शुभारंभ किया। इस अवसर पर महापौर ने कहा कि दिल्ली में प्रतिदिन 9000 मीट्रिक टन कूड़ा कचरा निकलता है। इसका संकलन और निपटान चुनौतीपूर्ण कार्य है। उन्होंने कहा कि नागरिक अपनी वचनबद्धता व्यक्त कर रहे हैं कि वे कूड़े को अलग अलग कर सूखे कूड़े को हरे बिन में और गीले कूड़े को नीले बिन में डालेंगे। महापौर ने कहा कि इसकी आदत बन जाने से बिना अलग किए कूड़े से जो बदबू आया करती थी वह अब नहीं आएगी। पश्चिमी जोन में हस्ताक्षर अभियान का शुभारंभ उपमहापौर कैलाश सांकला ने किया। उन्होंने कहा कि हम सबको मिलकर दिल्ली को स्वच्छ, स्वस्थ और सुंदर बनाना है। मध्य जोन में निगम के आयुक्त डॉ. पुनीत कुमार गोयल ने हस्ताक्षर अभियान का शुभारंभ करते हुए कहा कि इस अभियान से न केवल स्वच्छता के महत्व
का प्रचार होगा, अपितु समाज में एक प्रभावी संदेश जाएगा। इससे निवासियों को याद रहेगा कि उन्हें कूड़ा अलग अलग कर दो डस्टबिन में डालना है। डॉ. गोयल ने कूडे़ को अलग अलग करने और उसे हरे और नीले डस्टबिन में डाले जाने की उपयोगिता और आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि निगम पर्याप्त संख्या में हरे और नीले डस्टबिन उपलब्ध करा रहा है। आयुक्त ने यह भी कहा कि हम 5 जून 2017 तक लोगों को कूड़े को अलग अलग करने और अलग अलग कूड़ेदान में डालने की आदत बनाने का माहौल विकसित करेंगे। उन्होंने कहा कि अब तक बिना अलग किया गया सारा कूड़ा लैंडफिल साइट में डाला जाता था, लेकिन अब केवल सूखा कूड़ा ही वहां डाला जाएगा। इस प्रकार लैंडफिल साइट पर बोझ भी कम होगा। आयुक्त ने कहा कि निगम ने डेम्स विभाग के अधिकारियों और कमर्चारियों से कहा कि वे कूड़े को अलग अलग करने के बारे में नागरिकों की आशंकाओं का समाधान करें। (भाषा)
14 गुड न्यूज
12 - 18 जून 2017
महाराष्ट्र स्वच्छता
दिल्ली मिसाल
सलमान ने किया पब्लिक टॉयलेट का उद्घाटन
बीएमसी के ब्रैंड अंबेसडर सलमान खान ने मुंबई के गोरेगांव इलाके में किया पब्लिक टॉयलेट का उद्घाटन
दिल्ली के नटराजन सालों से प्यासों के लिए पानी का इंतजाम करते हैं
द
त्री नरेंद्र मोदी के ‘स्वच्छ भारत मिशन’ में प्रधानमं जिन कुछ फिल्मी सितारों ने आरंभ से ही बढ़-
चढ़कर हिस्सा लिया, उनमें सलमान खान शामिल हैं। सलमान बीएमसी यानी मुंबई नगर निगम के ब्रैंड अंबेसडर भी हैं और इसी लिहाज से उन्होंने हाल में मुंबई के गोरेगांव इलाके में पब्लिक टॉयलेट का उद्घाटन कर लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक किया। दिलचस्प है कि वे इन दिनों अपनी आने वाली फ़िल्म 'ट्यूबलाइट' के प्रमोशन में व्यस्त हैं, बावजूद इस व्यस्तता के वे समय निकाल कर स्वच्छता जैसे मुद्दे पर किसी पहल से जुड़ने में पीछे नहीं हटते हैं। पब्लिक टॉयलेट के उद्घाटन के मौके पर सलमान ने लोगों से खुले में शौच न करने की अपील भी की। साथ ही उन्होंने कहा कि इस तरह के कई पब्लिक टॉयलेट अभी और बनाए जाएंगे। गोरेगांव स्थित आरे कॉलोनी के स्लम में जब सलमान पहुंचे तो उन्हें देखने के लिए भीड़ जमा हो गई। उन्होंने हाथ हिला कर अपने प्रशंसकों का अभिवादन स्वीकार किया। इस पब्लिक टॉयलेट के उद्घाटन के बाद इस इलाके के लोगों को बड़ी राहत मिली है। सलमान ने इस मौके पर काफी जोर देकर कहा
गरीबों की प्यास बुझा रहा है यह 'मटका मैन'
कि इस तरह की सुविधाएं ज्यादा से ज्यादा बढ़ाई जानी चाहिए। उन्होंने वादा किया है कि वो व्यक्तिगत रूप से इस पर निगरानी रखेंगे। बहरहाल, पब्लिक टॉयलेट को बढ़ावा देने की सलमान की मुहिम से स्थानीय निवासी काफी खुश हैं। (मुंबई ब्यूरो)
क्षिण दिल्ली के पंचशील पार्क में रहने वाले 68 साल के नटराजन को इलाके के लोग आज ‘मटका मैन’ के रूप में जानते हैं। नटराजन को मटका मैन इसीलिए कहा जाता है क्योंकि वे हर दिन प्यासों के लिए पानी का इंतजाम करते हैं। पेशे से इंजीनियर नटराजन हर सुबह 4.30 बजे उठ जाते हैं और पीने का पानी पहुंचाने के लिए खासतौर पर बनाई गई अपनी कार में रखे 60 से ज्यादा मटकों में पानी भरते हैं। इसके बाद वह कार को दक्षिणी दिल्ली की ओर लेकर जाते हैं, ताकि प्यासे राहगीरों और गरीबों को पीने का साफ पानी उपलब्ध करा सकें। लंदन में करीब 32 साल इंजीनियर के तौर पर काम करने के बाद 2005 में भारत लौटे नटराजन ने बताया कि मलाशय के कैंसर के बाद उनकी सोच पूरी तरह बदल गई। उन्हें कैंसर के बारे में जानकारी शुरुआत में ही मिल गई और समय से ईलाज भी हो गया। रिटायरमेंट के बाद
उन्होंने ‘शांति अवेदना सदन’ कैंसर हॉस्पिटल के लिए स्वेच्छा से काम किया। वहां नटराजन ने उन लोगों की मदद की जो अपने परिजनों का अंतिम संस्कार का खर्च उठाने में असमर्थ थे। नटराजन ने कहा, 'कितने ही लोग ऐसे हैं जो अंतिम संस्कार का खर्च उठाने के लिए 500 रुपए भी नहीं जुटा पाते हैं, मैंने उनकी मदद की।'बाद में उनके मन में आईआईटी, ग्रीन पार्क, पंचशील और चिराग दिल्ली जैसी जगहों पर पानी के मटके रखने का विचार आया। नटराजन बताते हैं कि यह पानी तीन बोरवेल से आता है। बोरवेल के मालिक इस काम को नेक मानते हैं और उनकी मदद करते हैं। (भाषा)
प. बंगाल पहल
लड़कियों के अधिकारों के लिए लड़ती हैं 'कन्याश्री फाइटर्स' पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में गरीबी और अशिक्षा की वजह से होने वाले बाल विवाह को रोकने में ‘कन्याश्री फाइटर्स’ काफी सफल
और सफेद दुपट्टे में नीलीलिपटीसलवार-कमीज ये लड़कियां आपको सामान्य छात्राएं
लग रही होंगी लेकिन दरअसल ऐसा है नहीं। ये 32 लड़कियां 'कन्याश्री फाइटर' हैं, जो बच्चियों के अधिकारों के लिए लड़ती हैं। जब भी इनको किसी नाबालिग की जबरन शादी की खबर मिलती है तो फाइटर्स का यह दस्ता तुरत सक्रिय हो जाता है और ऐसी शादियों सब कुछ करता है। पिछले 5 महीनों में इन्होंने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के हरिहरपारा ब्लॉक में इस दस्ते ने ऐसी 24 शादियां रुकवाई हैं। हरिहरपारा के ब्लॉक डेवलपमेंट अधिकारी पूर्णेंदु सान्याल बताते हैं कि कन्याश्री फाइटर्स हमारा गर्व हैं। बाल-विवाह रोकने के लिए वे एक कठिन लड़ाई लड़ रही हैं। लड़कियों की शिक्षा के
मामले में इस ब्लॉक में कोई खास सुधार अब तक नहीं हुआ है। यह एक बड़ा कारण है कि क्यों यहां के लोग बाल-विवाह रोकने के सरकारी प्रयासों पर ध्यान नहीं देते। राज्य सरकार द्वारा कन्याश्री प्रॉजेक्ट शुरू करने के बाद जिला प्रशासन ने कन्याश्री फाइटर्स के समूह तैयार करने शुरू किए। हाल ही में इस दस्ते ने दौलतपुर गांव की 17 साल की मीरा हालदार की शादी रुकवाई थी। मीरा की शादी आनंदनगर के एक मछली विक्रेता के साथ तय की गई थी। इस शादी की खबर लगते ही कन्याश्री फाइटर्स उस लड़की के घर पहुंच गईं और घरवालों और मीरा से काफी लंबी बातचीत के बाद उन्होंने उनके माता-पिता से एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करवाए। इस घोषणापत्र के मुताबिक वे अपनी बेटी पर शादी के लिए तब तक दबाव
नहीं डालेंगे जब तक वह वयस्क नहीं हो जाती और अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर लेती। पिछले कुछ महीनों में इन फाइटर्स को ऐसी शादियां रुकवाने का अच्छा-खासा अनुभव हो गया है। एक कन्याश्री फाइटर जयकिरण का मानना है कि अशिक्षा और गरीबी बाल विवाह के सबसे बड़े कारण हैं। बहरामपुर के सब-
डिविजनल ऑफिसर दिव्यनारायण चटर्जी का कहना है कि कन्याश्री फाइटर्स बहुत अच्छा काम कर रही हैं। दूसरे ब्लॉक भी कन्याश्री फाइटर्स का ग्रुप तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। ये फाइटर समाज में अच्छा बदलाव लेकर आएंगी और मुर्शिदाबाद में एक रोल मॉडल के तौर पर देखी जाएंगी। (एजेंसी)
12 - 18 जून 2017
सबसे वजनी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 का प्रक्षेपण
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रिकार्ड समय में बना पुल
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• करीब तीस साल की रिसर्च के बाद इसरो ने बनाया इसका इंजन • इसरो का अब तक का सबसे भारी रॉकेट है जीएसएलवी मार्क-3 • पांच बोइंग विमान या दो सौ हाथियों जितना वजनी है यह रॉकेट
• रॉकेट अपने साथ 3136 किलो का संचार उपग्रह जीसैट- 19 लेकर गया है • निचली कक्षा में एक हजार किलो तक के पेलोड या उपग्रह ले जाने की क्षमता
• भूस्थैतिक कक्षा में चार हजार किलो तक का पे लोड ले जा से प्रक्षेपित किया जाने वाला यह अब तक का सकता है सबसे भारी रॉकेट और उपग्रह है।' इससे • जीएसएलवी मार्क-3 में स्वदेशी उच्च गति वाले क्रायोजोनिक इंजन पहले इसरो ने 3,404 किलो के संचार उपग्रह का इस्तेमाल किया गया है जीसैट-18 को फ्रेंच गुयाना स्थित एरियाने से प्रक्षेपित किया था। जीएसएलवी मार्क-3 लांच • सामग्री, डिजाइन और प्रौद्योगिकी के मामले में यह पूरी तरह करने के लिए उच्च गति वाले क्रायोजेनिक इंजन स्वदेशी रॉकेट है का इस्तेमाल किया गया है। बता दें कि करीब • इसके लांच से संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण में आत्मनिर्भर हो 30 साल की रिसर्च के बाद इसरो ने यह इंजन गया देश बनाया था। यह अभियान भारत के संचार संसाधनों को बढ़ावा देगा, क्योंकि अकेला एक जीसैट-19 उपग्रह पुरानी किस्म के 6-7 संचार उपग्रहों के इसके प्रक्षेपण के लिए विदेश जाना पड़ता है। के निदेशक रहे और फिर इसरो के अध्यक्ष बने। जीएसएलवी मार्क तीन के कामकाज शुरू करने के वह अब इसरो के सलाहकार हैं। जीएसएलवी बराबर होगा। बाद हम संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण में आत्मनिर्भर मिशन के डायरेक्टर जी अय्यप्पन ने कहा, 'यह हो जाएंगे और विदेशी ग्राहकों को लुभाने में भी जीएसएलवी मार्क-5 लॉन्च 'मैक इन इंडिया' इसरो की बड़ी कामयाबी स्पेस प्रॉजेक्ट की सफलता के साथ-साथ सामग्री, इसरो के पूर्व प्रमुख के राधाकृष्णन ने कहा कि सफल होंगे। उन्होंने कहा कि यह ज्यादा साधारण और बेहतर डिजाइन और प्रौद्योगिकी के मामले में भी पूरी तरह यह प्रक्षेपण बड़ा मील का पत्थर है, क्योंकि इसरो प्रक्षेपण उपग्रह की क्षमता 2.2-2.3 टन से करीब पेलोड भाग वाला प्रक्षेपण यान है। यह भविष्य में इसरो से स्वदेशी लांच होगा।' उन्होंने बताया कि इसकी दोगुना करके 3.5- 4 टन कर रहा है। उन्होंने कहा का मजबूत प्रक्षेपण यान होने वाला है। राधाकृष्णन खासियतों में दोहरा अतिरेक, स्वास्थ्य निगरानी कि आज अगर भारत को 2.3 टन से अधिक 2000 में मंजूर जीएसएलवी मार्क तीन कार्यक्रम और दोष का पता लगाकर उसे ठीक करना के संचार उपग्रह का प्रक्षेपण करना हो तो हमें से करीबी रूप से जुड़े रहे हैं। वह वीएसएससी शामिल हैं। (भाषा)
महाराष्ट्र निर्माण
पुराना पुल बीते साल ध्वस्त होने पर केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने छह माह में नए पुल के निर्माण की घोषणा की थी
हाराष्ट्र में महाड के निकट सावित्री और काल नदी पर 1928 में बना एक पुराना पुल 2 अगस्त, 2016 को भारी वर्षा के कारण ध्वस्त हो गया था। आम लोगों की आवाजाही के लिहाज से इस पुल का काफी महत्व था। पुल के अभाव में स्थानीय लोगों के साथ कारोबारियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। पुराने पुल के ध्वस्त होने के कारण इलाके में एक ही पुल के जरिए आवाजाही चल रही थी, जो कई बार इस राष्ट्रीय राजमार्ग पर ट्रैफिक जाम का कारण भी बन रहा था। लिहाजा में नए पुल का निर्माण जल्द पूरा करने का खासा दबाव था। इस दबाव को देखते हुए ही सड़क परिवहन और राजमार्ग तथा जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने इस पुल के स्थान पर छह महीने के भीतर नया पुल खड़ा करने की घोषणा की थी। अच्छी बात यह रही कि घोषणा के बाद इस परियोजना पर तेजी से काम किया गया और इसे रिकार्ड समय में पूरा भी कर
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इसरो सफलता
इसरो ने सबसे वजनी सैटेलाइट लांच वीइकल जीएलएलवी मार्क-3 को प्रक्षेपित कर एक और बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है
रतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने भारी भरकम सैटेलाइट लांच वीइकल जीएलएलवी मार्क-3 को प्रक्षेपित कर एक और बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है। भारत के सबसे वजनी इस रॉकेट को श्रीहरिकोटा से लांच किया गया। इसका वजन करीब 640 टन है। जीएसएलवी मार्क-3 अन्य देशों के चार टन श्रेणी के उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की दिशा में भारत के लिए अवसर खोलेगा। यह रॉकेट अपने साथ 3,136 किलोग्राम वजन का संचार उपग्रह जीसैट-19 लेकर गया है। अब तक 2,300 किलो से ज्यादा वजन वाले संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए इसरो को विदेशी प्रक्षेपकों पर निर्भर रहना पड़ता था। जीएसएलवी एमके3-डी1 भूस्थैतिक कक्षा में 4000 किलो तक के और पृथ्वी की निचली कक्षा में 10,000 किलो तक के पेलोड (या उपग्रह) ले जाने की क्षमता रखता है। इसरो के अध्यक्ष ए एस किरण कुमार ने कहा था कि यह अभियान अहम है क्योंकि 'देश
गुड न्यूज
मुंबई स्वास्थ्य
‘वन रूपी क्लीनिक’ का होगा विस्तार
मुंबई के उपनगरीय रेलवे स्टेशनों पर आम जनता को एक रुपए में मेडिकल सहायता देने की योजना का होगा विस्तार
रेलवे स्टेशनों पर मुबईआम ं केजनताकई कोउपनगरीय एक रुपए में स्वास्थ्य
लिया गया। नए पुल के निर्माण पर करीब 35.77 करोड़ रुपए की लागत आई। नया पुल 16 मीटर चौड़ा और 239 मीटर लंबा है। इस पर फुटपाथ, बाढ़ चेतावनी प्रणाली और प्रकाश की समुचित व्यवस्था की गई है। नए पुल को मजबूत बनाने के लिए खासतौर पर इसके निर्माण में जंगरोधी इस्पात का इस्तेमाल किया गया है। (भाषा)
सुविधा देने की ‘मैजिक दल’ की योजना अब विस्तार लेने वाली है। इसकी शुरुआत 10 मई को सेंट्रल रेलवे के घाटकोपर स्टेशन पर की गई। उसके बाद इसका प्रयोग दादर, कुर्ला, मुलुंड और वडाला स्टेशनों पर भी किया गया, जो काफी सफल रहा। ‘मैजिक दल’ ने इस योजना को मिली सफलता और साधारण जनता को मिले लाभ को देखते हुए मुंबई महानगरपालिका में भी आजमाने का फैसला किया है। ‘मैजिक दल’ के कार्यकारी अधिकारी डॉ. राहुल धुले ने इस सिलसिले में मनपा के कमिश्नर अजय मेहता से मिलकर पूरी योजना की जानकारी दी और उनसे आग्रह किया कि साधारण गरीब जनता के फायदे के लिए इस योजना को लागू
किया जाए। उम्मीद की जा रही है कि कमिश्नर इस पर शीघ्र विचार कर हामी भरेंगे। डॉ. धुले का कहना है कि मनपा के हेल्थ पोस्ट और डिस्पेंसरी में झुग्गी- झोपड़ियों से काफी संख्या में गरीब मरीज आते हैं। अगर मनपा ‘मैजिक दल’ को क्लीनिक खोलने के लिए सहमति देती है तो जो भीड़ वहां जुट रही है, वह कम हो जाएगी। इससे मनपा को राहत मिलेगी और उसका आर्थिक बोझ भी कम हो जाएगा। हर किसी को लाईन में खड़े होने की जरूरत नहीं होगी, तुरंत सुविधा मिलने लगेगी। सेंट्रल रेलवे के सहयोग से स्टेशनों पर क्लिनिक खोलने का जो सफल प्रयोग किया गया, वह बाकी क्षेत्रों की भी आंखें खोलेगा। पैथोलोजी की भी शुरू हुई सुविधा ने मरीजों का काम और भी आसान कर दिया है। (मुंबई ब्यूरो)
16 खुला मंच
12 - 18 जून 2017
‘काम करना और जिम्मेदारी उठाना जिम्मेदार पुरुषों की निशानी है। यदि आप ऐसा नहीं कर रहे हैं तो आप अपनी जिम्मेदारी का बोझ दूसरों पर लाद रहे हैं’ डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम भारत के पूर्व राष्ट्रपति
स्मार्ट रेलवे का ‘उदय’ रेलवे अपनी नई सेवा उदय एक्सप्रेस के जरिये महानगरों को जोड़ने पर गौर कर रही है
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लवे के विकास के लिए पीपीपी मॉडल को लेकर सरकारी सहमति तो बहुत पहले बन गई थी, पर इसे लेकर विभिन्न योजनओं को अमली जामा पहनाने का सिलसिला बीते तीन सालों में तेज हुआ है। नरेंद्र मोदी सरकार ने इस मॉडल को रेल उपभोक्ताओं के साथ कॉरपोरेट जगत के लिए भी आकर्षक बनाया है। इसी प्रयास के तहत सरकार ने रात की डबल-डेकर रेल सेवा शुरू करने की बात कही है। यात्रियों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने में लगी रेलवे का यह कदम उद्योगपतियों को भी अपनी ओर आकर्षित करने की उम्मीद के साथ बनाया गया है। यह सेवा आधुनिक सुविधाओं से तो पूरी तरह युक्त होगी ही, इससे रेलवे के चालन-परिचालन का एक सर्वथा नया अध्याय शुरू होगा। इस बारे में बताते हुए रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने 'स्मार्ट रेलवे' पर एक सम्मेलन में कहा कि रेलवे नई सेवा ‘उदय एक्सप्रेस’ के जरिये महानगरों को जोड़ने पर गौर कर रही है। उन्होंने कहा, 'हम व्यापारी यात्रियों के लिए ‘उदय एक्सप्रेस’ शुरू करेंगे। वे इसमें रात में यात्रा शुरू करेंगे और सुबह गंतव्य पर पहुंच जाएंगे। इससे होटल में ठहरने का उनका खर्च बचेगा।' रेलमंत्री ने यह भी जोड़ा कि रेलवे अपनी क्षमता बढ़ाने और यात्रियों को यात्रा के दौरान बेहतर सुविधाएं देने के लिए कई और भी परियोजनाओं के क्रियान्वयन में लगी है। बात करें ‘उदय एक्सप्रेस’ की तो यह भारतीय रेलवे सेवा का सर्वथा स्मार्ट रूप होगा। इसमें टिकट बुकिंग से लेकर यात्रा के दौरान खान-पान और कोच की सफाई के काम स्मार्ट तरीके से किए जाएंगे। गौरतलब है कि भारतीय रेलवे पर एक तरफ जहां यात्रियों का काफी दबाव है, वहीं इसके चालन-परिचालन को समय के मुताबिक स्मार्ट और द्रुत बनाने का भी दबाव है। ‘उदय एक्सप्रेस’ इस दरकार को दोनों ही स्तरों पर पूरा करेगा। वैसे रेलमंत्री की मानें तो वे इस स्मार्ट योजना के अलावा भी रेल के आधुनिकीकरण और विस्तार की कई परियोजनाओं को तेजी से क्रियान्वित करने में जुटे हैं। इसमें तेजी से नई लाइन बिछाना और विद्युतीकरण शामिल है। कह सकते हैं कि आने वाले सालों में भारतीय रेलवे काफी हद तक माडर्न और स्मार्ट हो जाएगी, यह उम्मीद अब वाकई सरजमीं पर उतरती दिख रही है।
शशांक गौतम
लेखक विधिक एवं सामाजिक मामलों के विशेषज्ञ हैं और एक दशक से विभिन्न सामाजिक संस्थाअों से संबद्ध हैं
सेंसेक्स का बढ़ा रूतबा
सेंसेक्स के उतार-चढ़ाव से देश के कारोबारी जगत के साथ अर्थव्यवस्था को लेकर मूड का पता लगता है
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क्जिट के खतरों के उलट जीएसटी से बढ़ी अनुकूलता के बीच देश के वित्तीय माहौल के चेहरे पर जो मुस्कान खिल रही है, उसकी गवाही है सेंसेक्स की 31 हजारी उछाल, जिसमें अब एक स्थिरता भी देखी जा रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिहाज से यह बड़ी बात तो है ही, बड़ी कामयाबी भी है। सेंसेक्स को भले ही हम निर्णयात्मक तौर पर भारतीय अर्थव्यवस्था का आईना या न संकेतक नहीं मानें, पर इसके उतार-चढ़ाव से देश के कारोबारी जगत के साथ अर्थव्यवस्था को लेकर मूड या रुझान का पता तो लगता ही है। आर्थिक नजरिए से यह रुझान मनोवैज्ञानिक तौर पर तो अहम है ही, इससे कई तथ्यातमक अनुकूलता के भी हवाले जाहिर होते हैं। यही नहीं, बीते दो-ढाई दशकों में सरकारों के आर्थिक कार्य प्रदर्शन को लेकर जब भी तीखी आलोचना हुई है तो उसमें एक बड़ा कारक सेंसेक्स की सुस्ती भी रहा है। गौरतलब है कि इससे पहले अप्रैल में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के लिए वह दिन खास बन गया जब बीएसई सूचकांक सेंसेक्स ने पहली बार 30,000 का आंकड़ा पार किया और साथ ही निफ्टी भी रेकॉर्ड स्तर पर बंद हुआ। इस अवसर 30 किलो का केक काट जश्न मनाया गया। इस तेजी के पीछे जो कारण रहे, उनमें विदेशी पूंजी प्रवाह जारी रहने के साथ खुदरा निवेशकों की लिवाली प्रमुख है। एक खास बात यह भी है कि अब रुपए ने भी डॉलर के मुकाबले अपनी मजबूती दिखाई है। बहुत पीछे न भी जाएं तो भी यह तो कहना ही पड़ेगा कि मई के आखिर से सेंसेक्स के चढ़े ग्राफ से जहां बाजार को एक नया हौसला मिला है, वहीं तमाम तरह की वित्तीय आशंकाओं पर भी इससे विराम लगा। अब तो मॉनसून को लेकर भी जो साकारात्मक खबरें आई हैं, उससे भी बाजार का मूड हरा हुआ है। दरअसल, ऐसे में एक ऐसे दौर में जब ब्रेक्जिट इंपैक्ट से लेकर ग्लोबल इकोनामिक स्लोडाउन तक के खतरे भारत को लेकर जताए जा रहे हैं, सेंसेक्स के आंकड़े निस्संदेह
आत्मविश्वास की एक दूसरी ही कहानी बयान करते हैं। खासतौर पर नोटबंदी के मोदी सरकार के फैसले के बाद तो भारतीय वित्तीय जगत में किसी तरह की तेजी की बात अच्छे-अच्छे वित्तीय मामलों के जानकार भी करने से परहेज कर रहे थे। सेंसेक्स की यह कामयाबी आरबीआई के मौजूदा गवर्नर उर्जित पटेल के लिए भी शुभ संकेत हैं, क्योंकि एक तो उनके पद भार संभालने से पहले कई तरह की बातें हो रही थीं, वहीं नोटबंदी का फैसले के बाद के अनुभव को लेकर जो भी भविष्यवाणियां थीं, वह ज्यादातर निराशा पैदा करने वाली ही थीं। यह अलग बात है कि इस बीच सरकार नीतिगत तौर पर अपने कदम को देश की भावी अर्थव्यवस्था के लिहाज से सही बताती रही। इस बीच तो स्टार्ट अप से लेकर मेक इन इंडिया को लेकर भी जो खबरें आ रही हैं, उससे यह जाहिर हो रहा है कि भारत कौशल, उद्यम और बाजार के एक नए दौर में कदम रख चुका है। बात करें एक बार फिर अनुभवी अर्थशास्त्री और रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की तो निश्चित तौर पर यह उनके लिए भी ऐसी अनुकूल स्थिति है, जहां से वे खासतौर पर बैंकिंग सुधार की बड़ी दरकार की तरफ साहसिक कदमों के साथ बढ़ सकते हैं। क्योंकि जो स्थितियां कम से कम सेंसेक्स के गुलाबी आंकड़ो में दिख रहा है, वह यही दर्शा रहा है कि देश के भीतर कारोबारी हालात न सिर्फ बेहतर हैं, बल्कि उसे अपनी तेजी बनाए रखने के लिए सुधार के कुछ और बड़े कदमों का इंतजार है। एफडीआई के मुद्दे पर सरकार ने पहले से कई दरवाजे खोल रखे हैं। इस बीच, विदेशी निवेशकों का रुझान भी भारत की तरफ अमेरिका में हाल में
जब ब्रेक्जिट इंपैक्ट से लेकर ग्लोबल इकोनामिक स्लोडाउन के खतरे जताए जा रहे हैं, सेंसेक्स के आंकड़े आत्मविश्वास की एक दूसरी ही कहानी बयान करते हैं
12 - 18 जून 2017
राजीव रंजन गिरि जारी रोजगार के कमजोर आंकड़ो को देखते हुए बढ़ा है। बल्कि रोजगार के आंकड़े कमजोर रहने के कारण तो अभी से यहां तक मान कर चला जा रहा है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में शायद ही इजाफे का फैसला ले। जिस मोदी सरकार को जीएसटी बिल के केंद्र में पास होने से पहले इस बात के ताने सहने पड़ रहे थे कि आर्थिक मोर्चे पर उसके कार्य प्रदर्शन में ढिलाई के कारण बाजार का भरोसा डिग रहा है, वह अब जीएसटी पर फैसले के साथ एक तरह से पूरे देश के कारोबारी जगत को भरोसे में ले चुकी है और भला ऐसा हो भी क्यों नहीं जब भारतीय शेयर बाजार के दोनों सूचकांक ऐतिहासिक ऊंचाई को हासिल कर चुके हैं। यह देश में आर्थिक और राजनीतिक हालात में एक ऐसे परविर्तन को रेखांकित करने वाली भी स्थिति है, जिसकी देश के भीतर ही नहीं, बल्कि देश के बाहर भी काफी चर्चा है। भारत का संसदीय लोकतंत्र अपनी तमाम व्यावहारिक कमियों के बावजूद समन्वयवादी है। लिहाजा एक ऐसे समय में जब ब्रेक्जिट जैसा प्रकरण आर्थिक अनुशासन की किसी बड़ी छतरी के विरोध को ग्लोबल फिनोमेना बनने की आशंका को बढ़ा रहा है, भारत में जीएसटी को लेकर बनी सहमित को अर्थ पंडित 'रिवर्स ब्रेक्जिट’ तक बता रहे हैं। यानी आर्थिक सुधार का एक ऐसा मॉडल जो लोकतांत्रिक संघीय ढांचे को और मजबूत करता है। बाजारवादी अर्थव्यवस्था के जानकार पिछले कुछ सालों से इस बात को लेकर लगातार परेशान रहे हैं कि दुनिया में कहीं भी इकोनामिक बूम जैसी कोई स्थिति नहीं है। अमेरिका बमुश्किल अपने ग्रोथ रेट को निगेटिव होने से रोक पा रहा है तो वहीं चीन मौद्रिक अवमूल्यन जैसे खतरनाक खेल से अपनी आर्थिक दशा को बेहतर साबित करने में लगा है। जबकि वैश्विक परिदृश्य की सचाई यह है कि शरणार्थियों को लेकर गुस्सा, आतंकी घटनाओं में वृद्धि और उत्तर पूंजीवाद के सिकुड़ते फायदे कहीं न कहीं ये दिखाते हैं कि हम एक गहरे आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संकट की तरफ बढ़ रहे हैं। 2008-09 में अमेरिकी बैंक लीमैन ब्रदर्स की लुटिया डूबने से लेकर अब तक के वैश्विक आर्थिक अनुभव का जायजा लें तो सरकारों के आगे दो बड़ी चिंताएं हैं- राजस्व की आमद कैसे बढ़े और बैंकिंग ढांचे को कैसे दोषमुक्त करें। ऐसे में भारत ने एक नया इकोनामिक ब्लूप्रिंट दुनिया के समाने रखा है। आर्थिक सुधारों के इस नए ब्लूप्रिंट में टैक्स और बैंकिंग सुधार एजेंडे में सबसे ऊपर है। ज्यादा समग्रता में बात करें तो इस साल के बजटीय प्रावधानों के बाद खेती-किसानी से लेकर कारपोरेट जगत तक सरकार की आर्थिक नीति और नीयत को लेकर एक सकारात्मक संदेश गया है। यह संदेश आज जहां एक तरफ सेंसेक्स के और आगे बढ़ने की ललक में प्रकट हो रहा है तो वहीं देश के भीतर कारोबारी जगत का पहिया एक बार फिर से तेजी से घूमने की स्थिति में है।
खुला मंच
लेखक गांधीवादी लेखक-विचारक और दिल्ली विश्वविद्यालय में व्याख्याता हैं
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विलक्षण प्रतिभाओं के धनी हमारे राष्ट्रपति
मु
बाबू राजेंद्र प्रसाद से लेकर प्रणब बाबू तक ये सभी अपने क्षेत्रों की नामचीन हस्तियां रहे हैं
ख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने खचाखच भरे संवाददाता सम्मेलन में नए राष्ट्रपति चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा की। मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल इस वर्ष 24 जुलाई को खत्म होगा। इससे पहले 20 जुलाई तक इस पद के लिए समस्त निर्वाचन प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। गर्व की है कि एक ऐसे दौर में जब सार्वजनिक जीवन में आई स्फीतियों को लेकर चिंता जता रहे हैं, हमारे अब तक हुए राष्ट्रपति का सार्वजनिक जीवन तो विशिष्ट रहा ही हो, इनमें से कई अपने-अपने क्षेत्रों की बड़ी हस्ती भी रहे हैं। देश के पहले और लगातार दूसरी बार राष्ट्रपति चुने जाने का रिकार्ड बनाने वाले डॉ. राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के यशस्वी सभापति तो थे ही, स्वाधीनता आंदोलन के बड़े सेनानी भी थे। अभी देश गांधी के चंपारण सत्याग्रह की जन्मशती बना रहा है। गौरतलब है कि राजेंद्र बाबू चंपारण से ही गांधी के अनन्य सहयोगियों में शामिल हो गए थे। वे अपने जमाने के बड़े वकील भी थे और तब लाखों की उनकी प्रैक्टिस थी। राजेंद्र बाबू के बाद राष्ट्रपति बने डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस पांच सितंबर को देश आज भी ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाता है। वे कीर्तिलब्ध शिक्षक के साथ बड़े दार्शनिक भी थे। खासतौर पर गीता की
उन्होंने आधुनिक तरीके से दार्शनिक व्याख्या की थी। दिलचस्प है कि 1933 से 1937 तक लगातार पांच बार साहित्य के नोबल सम्मान के लिए वे नामित किए गए थे। इसी तरह डॉ. जाकिर हुसैन बड़े शिक्षाविद थे। वे जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के संस्थापक भी थे। इसी तरह वाराहगिरी वेंकट गिरि राष्ट्रपति बनने से पहले श्रम और उद्योग मंत्री रह चुके थे। देश में श्रम आंदोलन को आगे बढ़ाने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। गिरि के बाद राष्ट्रपति भवन में पहुंचे मोहम्मद हिदायतुल्ला राष्ट्रपति बनने से पहले ही काफी यशस्वी हो चुके थे। वे भारत के पहले मुस्लिम मुख्य न्यायाधीश थे। बी.डी जत्ती का नाम राष्ट्रपति होने के साथ सार्वजनिक जीवन मूल्यों को प्रतिष्ठित करने वाले राजनेता के तौर पर याद किया जाता है। राष्ट्रपति बनने से पहले वे उपराष्ट्रपति भी
शानदार अंक
का पर्यावरण विशेषांक ‘सु लभके लिएस्वच्छबधाईभारत’स्वीकार करें। यह अंक संग्रहणीय ही नहीं, बल्कि पर्यावरण के बारे में व्यापक जानकारी उपलब्ध करवाने वाला है। ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ की यह खूबी है कि पाठकों को समय समय पर विशेष जानकारियों से भरपूर अंक पढ़ने को मिलता है। पर्यावरण विशेषांक इस मायने में खास है कि इसमें पूरी दुनिया के सामने उत्पन्न पर्यावरण संकट से लेकर गांव से शहर तक चलाए जा रहे पर्यावरण संरक्षण के अभियानों की पूरी जानकारी है। पर्यावरण के संरक्षण में एक किसान से लेकर स्कूली बच्चों के प्रयासों की सूचना एक
रह चुके थे। डॉ. नीलम संजीव रेड्डी देश में बदले दौर की राजनीति के दौर में राष्ट्रपति भवन पहुंचे। आंध्र प्रदेश के कृषक परिवार में जन्मे रेड्डी की छवि कवि, अनुभवी राजनेता एवं कुशल प्रशासक के रूप में थी। ज्ञानी जैल सिंह का नाम पंजाब की राजनीति के बड़े पुरोधा के तौर पर होता है तो वहीं उनके बाद राष्ट्रपति बने आर. वेंकटरमन कुशल राजनेता और प्रशासक होने के साथ विविध विषयों के विद्वान भी थे। डॉ. शंकर दयाल शर्मा और के आर नारायणन उस पीढ़ी के अंतिम पांत के राजनेताओं में शामिल रहे जिन्होंने बेदाग तरीके से अपने सार्वजनिक जीवन को जिया। ये दोनों कई विषयों के जानकार भी थे। खासतौर पर नारायणन तो अच्छे लेखक भी रहे। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का कुछ अरसे पहले ही निधन हुआ है। राष्ट्रपति बनने से पहले ‘मिसाइल मैन’ के तौर पर ख्यात हो चुके डॉ. कलाम को देश में आणविक और उपग्रहीय विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान को देश शायद ही कभी भूल पाएगा। प्रतिभा पाटिल को देश की पहली महिला राष्ट्रपति होने का यश प्राप्त है तो वहीं मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने करीब छह दशक लंबे राजनीतिक सफर में मर्यादा और शुचिता के साझे को कभी टूटने नहीं दिया।
साथ पहली बार पढ़ने को उपलब्ध है। हिंदी में ऐसे प्रयास बहुत कम हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी अपनी छोटी छोटी बातों से स्वच्छता को जन आंदोलन की शक्ल दे चुके हैं। उन्होंने देश में स्वच्छता के लिए प्रतियोगिताएं शुरु करने की बात कही है। आवरण कथा बहुत बेहतर है, जो हमें यह बताता है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए महात्मा गांधी उस जमाने में भी सक्रिय थे। इस लिहाज से प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी एकमात्र राजनेता हैं जिन्होंने पर्यावरण की रक्षा को जरूरी ही नहीं माना, बल्कि इसके लिए व्यपक स्तर पर प्रयास भी कर रहे हैं। प्रदीप कश्यप, सायरी, हिमाचल प्रदेश
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खास है हौज खास
दिल्ली के दूसरे सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी द्वारा निर्मित हौज खास कभी शाही तालाब हुआ करता था। अब खंडहरों में तब्दील हो चुकी सल्तनतकालीन वास्तुकला का नायब नमूना आज भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है
फोटाेः शिप्रा दास
दरवाजे के अंदर का दरवाजा शानदार इमारतों की दुनिया में खुलता है जिनमें कुछ तो खंडहर हो चुकी हैं और कुछ की शानोशौकत अभी भी बची हुई है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के बोर्ड पर इन इमारतों के नाम लिखे हैं जिन पर इतिहास में दिलचस्पी रखने वालों के अलावा शायद ही किसी की नजर पड़ती हो
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फोटो फीचर
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शहर के कोलाहल और शोरगुल से दूर यह एक शांत जगह है जहां आप अपने दोस्तों के साथ हाथ में गिटार लिए मौज-मस्ती या आराम करने के लिए भी जा सकते हैं। यहां के बगीचे और महल आपको अतीत में ले जाते हैं और शांत झील रोजमर्रा की भागमभाग भरी तनावपूर्ण जिंदगी से कुछ देर के लिए आपको निजात दिलाते हैं
20 कृषि
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उन्नत कृषि
20 फीट का गन्ना उगाता है नौवीं पास किसान सुरेश कबाडे के उद्यम ने मिठास पैदा करने वाली इस फसल को अब पारंपरिक से उन्नत खेती में बदल दिया है
ट्रंच जिग जैग विधि से गन्ना उगाने वाला किसान
बरेली के किसान ने ट्रंच जिग जैग विधि से गन्ने की खेती कर न सिर्फ गन्ने की लंबाई बढ़ाई, बल्कि भारी मुनाफा भी कमाया
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एसएसबी ब्यूरो
न्ने की खेती में मुनाफा तो है पर इसकी खेती में कई बातों का खास ख्याल रखना पड़ता है। एक तो इसकी खेती के लिए पानी की पर्याप्त आपूर्ति जरूरी है, दूसरे कुछ खास इलाकों की ही भौगोलिक स्थिति इसकी बेहतर पैदावार के लिए अच्छी मानी गई है। पर अच्छी बात यह है कि कृषकों के उद्यम ने मिठास पैदा करने वाले इस फसल को अब पारंपरिक तरीके से आगे उन्नत खेती में बदल दिया है। महाराष्ट्र के एक किसान सुरेश कबाडे तो 19 फीट तक लंबे गन्ने पैदा कर लोगों कर दंग ही कर दिया है। सिर्फ लंबाई ही नहीं, बल्कि सुरेश एक एकड़ में 1000 क्विंटल गन्ने की पैदावार भी लेते हैं। दिलचस्प है कि महज नौवीं पास सुरेश कबाडे अपने अनुभव और तकनीक के सहारे खेती से साल में करोड़ों रुपए की कमाई भी करते हैं। दरअसल, मुंबई से करीब 400 किलोमीटर दूर सांगली जिले की तहसील वाल्वा में कारनबाड़ी के 48 साल के किसान सुरेश कबाडे अपने खेतों में
एक नजर
महाराष्ट्र के किसान सुरेश कबाडे की पूरे देश में ख्याति सुरेश एक एकड़ में 1000 क्विंटल गन्ने की पैदावार भी करते हैं गन्ना खेती की यह तकनीक पाकिस्तान तक में लोकप्रिय ऐसा करिश्मा कर रहे हैं कि महाराष्ट्र, कर्नाटक, यूपी तक के किसान उनका अनुसरण कर रहे हैं। उनकी ईजाद की गई तकनीक का इस्तेमाल करने वालों में पाकिस्तान के भी कई किसान शामिल हैं। वे बताते हैं, ‘ये पेड़ी का गन्ना है। लंबाई 19 फीट और उसमें 47 कांडी (आंख) थीं। हमारे दूसरे खेतों में ऐसे ही गन्ने होते हैं।’ इससे पहले सुरश े 20 फीट का भी गन्ना उगा चुके हैं। करीब 30 एकड़ में आधुनिक तरीकों से खेती करने वाले सुरेश कबाडे पिछले कई वर्षों से लगातार एक एकड़ खेत में 1000 क्विंटल का उत्पादन लेते आ रहे हैं। सुरेश खास इसीलिए हैं,
सान जबर पाल सिंह ने ट्रंच जिग जैग विधि में गन्ने की बुआई की थी, जिसका असर अब उनके खेतों में नजर आ रहा है। इससे उनके खेतों में लगने वाले गन्ने की लंबाई में दोगुनी बढ़ोतरी हुई है। वे अपने खेतों से 900-1000 क्विंटल प्रति एकड़ गन्ना उगाने के साथ ही सहफसली खेती कर अपनी आमदनी को बढ़ाते हैं। उत्तर प्रदेश में बरेली जिले से 45 किलोमीटर दूर मीरगंज तहसील से पश्चिम दिशा में करनपुर गांव हैं। 1200 की आबादी वाले इस गांव में सैकड़ों हेक्टेयर में गन्ना की खेती की जा रही हैं। गेहूं और गन्ना यहां की मुख्य फसल है। साथ ही कई किसान उड़द, मूंग, प्याज, आलू, मक्का, सरसों, आलू और मूंगफली को सहफसली के रुप में गन्ने के साथ उगाते हैं। 43 वर्षीय जबर बताते हैं, ‘जबसे ट्रंच जिग जैग विधी से गन्ना की खेती करना शुरू किया है पैदावार बढ़ गई है। मेरे ही खेतों में करीब 150 क्विंटल बीघा की ज्यादा पैदावार हुई है।’ वे इलाके में अपने खेतों में 15 फीट का गन्ना उगाने वाले किसान के तौर पर लोकप्रिय हैं ही, सूबे
क्योंकि उत्तर प्रदेश में सबसे बेहतर उत्पादन करने वाला किसान 500 क्विंटल प्रति एकड़ की ही उपज ले पाता है, जबकि औसत उत्पादन 400 क्विंटल ही है। अपनी तकनीक और तरीके के बारे में सुरश े बताते हैं, ‘बीज मैं खुद तैयार करता हूं। भारत में अभी भी ज्यादातर लोग 3-4 फीट पर गन्ना बोते हैं, मैं 5 से 6 फीट की दूरी और आंख की आंख की दूरी 2 से ढाई फीट रखता हूं। किसान खेतों में सीधे उर्वरक डाल देते हैं। मैं गन्ने के बीच कुदाली से जुताई कर जमीन में खाद डालता हूं।’
के बाहर के किसान भी उन्हें जानते हैं। पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड समेत कई प्रदेशों से लोग उनकी खेती देखने आते हैं। जबरपाल को जिले के गन्ना विभाग और क्षेत्रीय गन्ना मिल का भी पूरा साथ मिला है। उनका नया लक्ष्य है 12001500 एकड़ प्रति क्विंटल गन्ना पैदा करना। है। जबर के ही गांव के दूसरे किसान जीतेंद्र सिंह बताते हैं, ‘हम लोगों को थोड़ी सी सहूलियतें मिल जाए तो किसानों की दशा सुधर सकती है। गांव में बिजली नहीं है। पंपिंग सेट से सिंचाई में काफी लागत आती है। बिजली हो तो कई और काम भी हो सकते हैं।’ सुरेश के खेत का गन्ना, महाराष्ट्र के दूसरे इलाकों के किसानों के साथ कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और गुजरात तक के किसान बीज के लिए ले जाते हैं। सुरेश खुद बताते हैं, ‘पिछली बार मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में रामदेव शुगर मिल क्षेत्र के एक किसान गन्ना लेने आए। उनका घर मेरे यहां से करीब 1050 किलोमीटर दूर था। मेरी कोशिश रहती है कि गन्ना मिल को देने के बजाए बीज में ज्यादा जाए वो ज्यादा मुनाफा देता है और खेत भी जल्दी खाली होते हैं।’
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उत्तर प्रदेश की गन्ना बेल्ट लखीमपुर खीरी के रहने वाले प्रगतिशील किसान और जेट एयरवेज में सीनियर फ्लाइट मैनेजर रह चुके दिलजिंदर सहोता सुरेश को देश के किसानों का गुरु बताते हैं। दिलजिंदर के शब्दों में, ‘सुरेश का काम बहुत सिस्टमेटिक है, वो खेती की नवीन तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें जमीन और बीज की समझ है। वे देश में प्रति एकड़ 1000 क्विंटल उत्पादन लेने वाले पहले किसान हैं। यूपी वाले उनका आधा उत्पादन नहीं कर पाते हैं। महाराष्ट्र में कम ठंड का पड़ना और खेतों में ज्यादा दिन (15-18 महीने)
‘बीज मैं खुद तैयार करता हूं। भारत में अभी भी ज्यादातर लोग 3-4 फीट पर गन्ना बोते हैं, मैं पांच से छह फीट की दूरी और आंख की आंख से दूरी 2 से ढाई फीट रखता हूं। मैं गन्ने के बीच कुदाली से जुताई कर जमीन में खाद डालता हूं।’ - सुरेश कबाडे, गन्ना किसान तक फसल तक का रहना भी उनकी मदद करते हैं।’ बात कमाई की करें तो सुरेश गन्ने से सालाना 50-70 लाख की कमाई करते हैं, जबकि हल्दी और केले को मिलाकर वो साल में एक करोड़ से ज्यादा की कमाई करते हैं। पिछले वर्ष उन्होंने
एक एकड़ गन्ना बीज के लिए 2 लाख 80 हजार में बेचा था। 2016 में एक एकड़ गन्ने का बीज वो 3 लाख 20 हजार में भी बेच चुके हैं। लेकिन कुछ साल पहले तक वो भी उन्हीं परेशान किसानों में शामिल थे, जो भरपूर पैसे लगाने के
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बावजूद बेहतर उत्पादन नहीं ले पाते थे। अपने इस अनुभव के बारे में वे बताते हैं, ‘पहले मेरे खेत में भी प्रति एकड़ 300-400 क्विंटल की पैदावार होती थी, फिर मैंने उसकी कमियां समझी और पैटर्न बदला। भरपूर जैविक और हरी खाद डालता हूं, रायजोबियम कल्चर एवं एजेक्टोबैक्टर और पीएसबी (पूरक जीवाणु) का इस्तेमाल करता हूं। गन्ना बोने से पहले उस खेत में चना बोता हूं। गन्ना खेत से पहले उसे ट्रे में उगाता हूं। उसमें भी समय और मौसम का ध्यान रखता हूं।’ सुरेश महज नौंवी पास हैं लेकिन खेती को किसी वैज्ञानिक की तरह करते हैं। अच्छी वेरायटी के गन्ने की बुआई के लिए वो अप्रैल-मई से लेकर जुलाई तक खेत तैयार करते हैं। 15 अगस्त से ट्रे में बड (अंकुर) उगाना शुरू कर देते हैं, जिसके बाद 15 सितंबर से खेत में निश्चित दूरी प्लांटेशन कर देते हैं। इतनी सफलता के बावजूद सुरेश ने अपनी खेती को और बेहतर करने का रास्ता बंद नहीं किया है। वे अब भी कई तरह के प्रयोग करने में जुटे हैं। वे अब टिशू कल्चर से भी गन्ना उगाने लगे हैं। उनके मुताबिक, ‘किसी भी फसल के लिए जमीन और अच्छा बीज होना बहुत अहम होता है। मैं इन दोनों को काफी अहमियत देता हूं। मैं अपने बीज खुद तैयार करता हूं, बेहतर तरीके से खेतों की जुताई, खाद पानी का इंतजाम करता हूं।’ वे बीज के लिए खेत में 9-11 महीने फसल रखते हैं तो मिल के लिए 18 महीने तक गन्ना खेत में रखते हैं।
पं. दीनदयाल के नाम से जाना जाएगा मुगलसराय स्टेशन उ
योगी कैबिनेट ने मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी
त्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम दीन दयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। हाल में संपन्न कैबिनेट मीटिंग में इस बारे में निर्णय लिया गया है। यूपी सरकार के प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने बताया कि इस निर्णय पर विचार के लिए प्रदेश सरकार रेल मंत्रालय को प्रस्ताव भेजेगी। गौरतलब है कि केंद्र और राज्य सरकार बड़े स्तर पर पं. दीन दयाल उपाध्याय का जन्म शताब्दी वर्ष मना रही है। पं. दीनदयाल उपाध्याय मुगलसराय स्टेशन पर ही मृत अवस्था में मिले थे, इसीलिए मुगलसराय रेलवे स्टेशन उनके नाम पर किया गया है। इस सिलसिले में मंत्रिमंडल ने और भी फैसले लिए हैं, जिनमें दीनदयाल उपाध्याय की जन्मस्थली मथुरा के नगला चन्द्रभान को पर्यटक केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने बताया कि अंत्योदय विचारधारा के तहत काम कर रही सरकार पं. उपाध्याय की जन्म तिथि 25 सितंबर तक कई कार्यक्रम आयोजित करेगी। इसके लिए कई विभाग काम कर रहे हैं। कार्यक्रमों में समन्वय
बनाए रखने के लिए सूचना विभाग को नोडल विभाग बनाया गया है। इसके अलावा जिले स्तर के पुस्तकालयों को पंडित दीन दयाल उपाध्याय पुस्तकालय नाम दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि दीनदयाल जी पर जो किताब लिखी गई है, उसका भी प्रचार प्रसार किया जाएगा। दीनदयाल उपाध्याय को लेकर प्रखंड
और जिला स्तर पर प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी। खेल विभाग भी दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर खेल प्रतियोगिता प्रारंभ करेगा। राज्य के परिवहन विभाग भी दीनदयाल जयंती के अवसर पर कई कार्यक्रम आयोजित करेगा। राज्य सरकार के दूसरे विभागों को भी दीनदयाल जन्मशती वर्ष के उपलक्ष्य में कार्यक्रम आयोजित करने का निर्देश दिया गया है। कई विभागों की योजनाओं में
दीनदयाल उपाध्याय के विचारों के आधार पर काम किया जाएगा। गौरतलब है कि इससे पहले अप्रैल में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने आगरा हवाई अड्डे का नाम बदल कर दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर रखने का फैसला किया था। गौरतलब है कि बता दें कि योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से पूरे उत्तर प्रदेश में कई मार्गों, चौराहों और सार्वजनिक स्थानों के नाम बदले गए हैं। लखनऊ के कई चौराहों और सड़कों के नाम भी इसी क्रम में बदले गए हैं। बात करें मुगलसराय रेलवे स्टेशन की तो यह देश के व्यस्तम रेलवे स्टेशनों में से एक है। मुगलसराय उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले का एक शहर है। यह वाराणासी से पूर्णतः जुड़ा हुआ है। यहां भारतीय रेलवे का एक क्लास-ए रेलवे स्टेशन है। यह भारतीय रेलवे का महत्वपूर्ण केंद्र है। यह एशिया का सबसे बड़ा रेलवे मार्शलिंग यार्ड भी है। मुगलसराय दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर की भी जन्मभूमि है। लाल बहादुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट यहां से 30 किलोमीटर पर है। इसके आस पास अन्य महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन है जैसे वाराणसी, महुआडीह आदि।
22 नगर विकास
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दिल्ली ग्रीन सिटी
दिल्ली के कड़कड़डूमा में देश की पहली ग्रीन स्मार्ट सिटी पूर्वी दिल्ली के कड़कड़डूमा इलाके में सौ मंजिला ग्रीन स्मार्ट सिटी बनाई जाएगी
एक नजर
75 एकड़ में बनने वाला यह शहर भूकंपरोधी होगा
बुजुर्गों के लिए खास तौर पर बनेंगे पांच सौ अपार्टमेंट भारतीय भवन निर्माण निगम बनाएगा यह शहर
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सत्यम
पको यह जान कर सुखद अहसास होगा कि देश की राजधानी दिल्ली में सौ मंजिला शहर बसाने की तैयारी है। यह शहर आम शहरों की तरह नहीं होगा, बल्कि यह हरित स्मार्ट सिटी होगी, जिसमें बगैर किसी बाधा के आप रह पाएंगे। 75 एकड़ में फैली यह सिटी पूरी तरह से भूकंपरोधी होगी। यहां रहने वाले लोगों को बुनियादी चीजों के लिए बहुत दूर नहीं जाना पड़ेगा। अस्पताल और स्कूल से लेकर बच्चों के खेलकूद के मैदान, पार्क, बुजुर्गों व महिलाओं के टहलने के लिए सुरक्षित और पर्यावरणीय माहौल, शॉपिंग मॉल्स, सामुदायिक भवन, होटल, रेस्टोरेंट, रचनात्मकता दिखाने और देखने के लिए आर्ट गैलरी, साइक्लिंग और जॉगिंग ट्रैक के साथ आने-जाने के लिए ट्रांसपोर्ट की सुविधा और सबसे बड़ी खासियत आइकानिक टावर वालों के लिए रूफ टॉप पर घूमने वाला रेस्तरां, कैफे, डिस्कोथैक के साथ हेलीपैड तक इस शहर में होंगे। यह शहर रिहाइशी और व्यावसायिक दोनों तरह की बसावट वाला होगा। बनने के बाद इस शहर को बेचा जाना है। जिसकी कीमत अभी तय नहीं की गई है। बनने के बाद लागत के हिसाब से इसे बेचकर दिल्ली विकास प्राधिकरण को दे दिया जाएगा। दिल्ली विकास प्राधिकरण से इस बात का
एमओयू हो चुका है। अपने तरीके के इस महत्वाकांक्षी शहर को बनाने की चुनौती को भारतीय भवन निर्माण निगम (एनबीसीसी) ने स्वीकार किया है। एनबीसीसी का दावा है कि स्मार्ट सिटी में सप्लाई और डिमांड पूरी तरह से मार्केट पर आधारित होगी। इससे जनता, कारोबारी और सरकार सबको फायदा होगा। इस शहर को बनाने की योजना आर्थिक मंदी के समय सामने आई। 2008 में आईबीएम ने स्मार्टर सिटीज कांसेप्ट पर काम करना शुरू किया। 2009 में कई देशों ने इसे अपना लिया। दक्षिण कोरिया, यूएई और चीन ने इस पर काम शुरू किया और रिसर्च पर काफी पैसा खर्च किया। वतर्मान में वियना, एम्सटर्डम, लियोनवेरोन और सिओल के पास सोंगदो ऐसे ही शहर के रूप में विकसित हैं। इन्हीं शहरों को देखकर केंद्र सरकार ने दिल्ली की सबसे बड़ी हरित स्मार्ट सिटी बनाने का जिम्मा भारतीय भवन निर्माण निगम को सौंपा। देश के पहले इस सौ मंजिले शहर को पूर्वी दिल्ली के कड़कड़डूमा में बनाने का फैसला किया गया है। शहर का डिजाइन तैयार करने के लिए स्पेन की एक निर्माण कंपनी को भारतीय कंपनी के
साथ जोड़ा गया है। एनबीसीसी के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक डॉक्टर अरुप कुमार मित्तल ने बताया कि दिल्ली विकास प्राधिकरण और एनबीसीसी इस परियोजना को बनाने के लिए उत्साहित है। ‘पूर्वी दिल्ली हब’ नाम से बनने वाली इस स्मार्ट सिटी को बनाने में शुरुआती आकलन करीब छह हजार करोड़ रुपए का किया गया है। पांच साल में यह बनकर तैयार हो जाएगा। एनबीसीसी ही क्यों, के सवाल पर मित्तल कहते हैं कि ऐसे निर्माण में हमारी विश्वसनीयता पहले से परखी गई है। दिल्ली में ही पुनर्विकास कर न्यू मोतीबाग में हमने एक छोटा शहर बनाकर अपनी विश्वसनीयता बरकरार रखी है। यह मॉडल प्रोजेक्ट हरित होम कांप्लेक्स के नाम से जाना जाता है। भारत सरकार के सरकारी आला अधिकारियों के लिए बने मोतीबाग का इलाका भी सौ एकड़ का था। यहां पांच सौ बड़े आकार के जबकि छोटे और मध्यम आकार के अलग से फ्लैट बनाए गए थे। पेड़-पौधों से भरे इस इलाके में अलग से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण किया गया, ताकि सीवर समस्या से यहां से लोगों को दो चार न होना पड़े। जबकि किदवई
देश के पहले सौ मंजिले शहर का डिजाइन तैयार करने के लिए स्पेन की एक निर्माण कंपनी को भारतीय कंपनी के साथ जोड़ा गया है
नगर, सरोजनी नगर, नेताजी नगर और नौरोजी नगर में पुनर्विकास कर ऐसे ही प्रोजेक्ट हमारे हाथ पहले से आए हुए हैं। कहीं निर्माण हो चुका है तो कहीं निर्माण की प्रक्रिया जोर-शोर से चल रही है। एक अन्य मॉडल सिटी पूर्वी दिल्ली में ही संजय झील के पास बनना है। एम्स के सामने निर्माणाधीन किदवईनगर हरित सिटी करीब 86 एकड़ में फैला हुई है और यहां 86 एकड़ में करीब पांच हजार फ्लैट बन रहे हैं। कड़कड़डूमा का पूर्वी दिल्ली हब पूरी तरह से कचरा रहित होगा। सीवर और कचरे को इसी जगह उपयोग कर पीने लायक पानी बनाने में तब्दील किया जाएगा। मांग के मुताबिक बिजली व्यवस्था मजबूत होगी। 75 एकड़ का यह पूरा इलाका सौ मंजिल बिल्डिंग के लिए तो प्रसिद्ध होगा ही इसके अलावा अन्य सुविधाएं भी यहां दी जाएंगी। सौ मंजिल के अलावा कुछ फ्लैट कम उंचाई के भी होंगे। अत्याधुनिक तकनीकी से बनने वाले इस पायलट प्रोजेक्ट को एनबीसीसी चुनौती की तरह ले रहा है। दिल्ली की पहली स्मार्ट सिटी होने के कारण वे तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए संबंधित एजेंसियों से भी संपर्क साधने के साथ औपचारिकताएं शुरू हो गई हैं। इस शहर में युवा व्यावसायिकों को अत्याधुनिक तकनीक उपलब्ध कराने की योजना है। सभी सार्वजनिक परिवहन, एनएमटी एजेंसियों को पिक और ड्रॉप की सुविधा मुहैया कराने से लेकर लोग अपने सामर्थ्य के मुताबिक यहां घर खरीद सकें और सारी सुविधाओं का लाभ ले सकें इसका विशेष रूप से ध्यान रखा जा रहा है। व्यावसायिक और आवासीय होने के कारण बाहर से आने वाले और यहां रहने वाले लोगों के आने-जाने और उनकी अन्य सुविधाओं का विशेष ख्याल रखी जाएगी। पैदल लोगों के लिए अलग से व्यवस्था होगी। भवनों में खुली जगह रखा जाएगा जिसमें लेजर शो हो सके। सारे हरित इलाके और पार्कों को बायोगैस और प्राकृतिक रूप से मिलने वाली चीजों से लैस किया जाएगा। अत्याधुनिक चिकित्सा, अंधेरा रहित घूमने फिरने की जगह सहित अन्य सारी सुविधाओं से युक्त पांच सौ अपार्टमेंट बुजुर्गों के लिए बनेंगे।
12 - 18 जून 2017
स्वदेशी बुलेटप्रूफ जैकेट पहनेगी सेना रक्षा कामयाबी
रक्षा क्षेत्र में देश को आत्म निर्भर बनाने में देश को एक बड़ी कामयाबी मिली है। वैज्ञानिकों ने स्वदेशी बुलेटप्रूफ जैकेट तैयार कर ली है
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एसएसबी ब्यूरो
लेटप्रूफ जैकट के लिए अमेरिका की तरफ देखने की अब शायद भारत को जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि भारतीय वैज्ञानिकों ने बेहतर स्वदेशी बुलेटप्रूफ जैकेट बना लिए हैं। अच्छी खबर यह है कि भारत सरकार ने इसके निर्माण को मंजूरी भी दे दी है। स्वदेशी बुलेटप्रूफ के इस्तेमाल से भारत सरकार को कम से कम 20,000 करोड़ रुपए की बचत होगी। रक्षा मंत्रालय से पहले ही मंजूरी पा चुके इस जैकेट का निर्माण अत्याधुनिक थर्मोप्लास्टिक तकनीक से हुआ है, जिसकी वजह से यह बेहद हल्के हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनुमति मिलते ही इसे 'मेक इन इंडिया' से जोड़ दिया जाएगा। इस जैकेट का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि 1.5 लाख रुपए में मिलनेवाले जैकेट सेना को अब मात्र 50 हजार रुपए में मिलने लगेंगे। यानी एक जैकेट पर एक लाख रुपए की बचत होगी। वर्तमान में भारत सरकार अमेरिका से बुलेटप्रूफ जैकेट का आयात करती है। आजादी के सत्तर साल के इतिहास में यह पहला मौका है कि हमारी सेना स्वदेशी बुलेटप्रूफ जैकेट पहनेगी। देश के रक्षा क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बनने की दिशा में इसे बड़ा कदम माना जा रहा है। मौजूदा समय में हम अधिकतर रक्षा उपकरणों के लिए आयात पर निर्भर हैं। लेकिन अब यह तस्वीर धीरे-धीरे बदलने
लगी है। और ‘मेक इन इंडिया’ के तहत भारत में ही अधिकतर रक्षा उपकरणों की मैन्युफैक्चरिंग शुरू हो रही है। स्वदेशी जैकेट विदेशी जैकेट से काफी हल्का और किफायती भी है। विदेशी जैकेट का वजन 15 से 18 किलोग्राम के बीच होता है, जबकि इस स्वदेशी बुलेटप्रुफ जैकेट का वजन सिर्फ 1.5 किलोग्राम है। इस जैकेट को अमृता यूनिवर्सिटी, कोयंबटूर के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रमुख प्रोफेसर शांतनु भौमिक ने तैयार किया है। कार्बन फाइबर वाले इस जैकेट में 20 लेयर हैं। इसे 57 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान पर भी पहना जा सकता है। इस जैकेट को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और रक्षा मंत्रालय के संयुक्त उद्यम से बनाया जा सकता है। रक्षा क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार कई योजनाएं शुरू कर रही है जिससे दुनिया की प्रमुख डिफेंस कंपनियों के लिए भारत में यूनिट लगाना आसान होगा। वो भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर भारत में ही प्लांट लगा सकेंगी। घरेलू रक्षा विनिर्माण के लिए नीति बनाने का काम बहुत तेजी से चल रहा है। सीआईआई की वार्षिक बैठक में केंद्रीय रक्षा मंत्री अरुण जेटली के द्वारा
दी गई जानकारी के अनुसार इस नीति के लागू होने के बाद रक्षा क्षेत्र में आयात में भारी कमी लाई जा सकेगी। इस नीति से डिफेंस क्षेत्र में मैन्यूफैक्चरिंग को प्रोत्साहन मिलने के साथ ही बड़े-बड़े फाइटर जेट्स, युद्धक जहाज और पनडुब्बियों का भारत में निर्माण संभव हो सकेगा और आयात पर होने वाले खर्च में भारी कमी आएगी। इस समय भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियारों का आयातक है। देश अपने जीडीपी का 1.8 प्रतिशत हथियारों पर खर्च करता है, क्योंकि वो अपने 70 प्रतिशत रक्षा उपकरणों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है। मोदी सरकार इसी स्थिति में बदलाव लाना चाहती है। भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है। यही नहीं रक्षा के क्षेत्र में सबसे अधिक खर्च करने वाले देश में भारत का स्थान छठा है। भारत परंपरागत रक्षा उपकरणों का सबसे बड़े आयातक देशों में शामिल है। ये अपने कुल रक्षा बजट का करीब
स्वदेशी जैकेट विदेशी जैकेट से काफी हल्की और किफायती भी है। विदेशी जैकेट का वजन 15 से 18 किलोग्राम के बीच होता है, जबकि इस स्वदेशी बुलेटप्रूफ जैकेट का वजन सिर्फ 1.5 किलोग्राम है
रक्षा
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एक नजर
अब तक अमेरिका से खरीदे जाते हैं बुलेटप्रूफ जैकेट
स्वदेशी जैकेट से होगी बीस हजार करोड़ की बचत अमेरिकी जैकेट से अधिक हल्की और कारगर है यह जैकेट
30 प्रतिशत इस पर खर्च करता है। मैन्युफैक्चरिंग में स्वदेशी को बढ़ावा देने के लिए मेक इन इंडिया के तहत पहल की गई है। इसका लक्ष्य रक्षा के क्षेत्र में विदेशों पर से निर्भरता खत्म करने की है। पिछले कुछ सालों में इसका बहुत ही अधिक लाभ भी मिल रहा है। रक्षा मंत्रालय ने भारत में निर्मित कई उत्पादों का अनावरण किया है, जैसे लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस, विशेष रूप से अर्जुन टैंक के लिए 95 प्रतिशत भारतीय पार्ट्स से निर्मित वरुणास्त्र टॉरपीडो और मध्यम दूरी की मिसाइल्स। भारत में बनाओ और भारत में बना खरीदो, इस नीति के तहत रक्षा मंत्रालय ने 82 हजार करोड़ की डील को मंजूरी दी है। इसके अतर्गत लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट, टी- 90 टैंक, मिनी अनमैंड व्हीकल, और हल्के लड़ाकू हेलिकॉप्टर खरीद भी शामिल हैं। रक्षा उत्पादों के स्वदेश में निर्माण के लिए सरकार ने 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दी है। इसमें से 49 प्रतिशत तक की एफडीआई को सीधे मंजूरी का प्रावधान है, जबकि 49 प्रतिशत से अधिक के एफडीआई के लिए सरकार से अलग से मंजूरी लेनी पड़ती है। वित्त वर्ष 2015-16 में कुल रक्षा निर्यात 2059 करोड़ से भी अधिक हुआ था, जबकि 2014-15 में ये आंकड़ा 1682 करोड़ रुपए का रहा था। भारत में बने इन रक्षा उत्पादों का निर्यात 28 से अधिक देशों में किया गया। सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रम और ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड के द्वारा जो कुछ बड़े रक्षा उपकरणों का निर्यात किया गया वो हैं- हेलीकॉप्टर एवं उसके पार्ट्स, सोनार एवं राडार, राडार वॉर्निंग रिसिवर्स, छोटे हथियार, हल्के इस्तेमाल वाले गोला बारूद, ग्रेनेड और संचार उपकरण। रक्षा उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए स्पष्ट प्रक्रिया और संस्थागत व्यवस्था तय की गई है। इसके अंतर्गत विदेश व्यापार नीति के तहत गाइडलाइंस तय किए गए हैं। जिसमें निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विदेशों में भारतीय दूतावासों और उच्चायोगों से सहयोग लेने की व्यवस्था है। मोदी सरकार डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में भारत को एक बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर तैयार करने की ओर अग्रसर है। सरकार की मंशा है कि न्यू इडिया में देश रक्षा उत्पादों के क्षेत्र में न सिर्फ आत्मनिर्भर बने, बल्कि वो उसका नाम दुनिया के एक बहुत बड़े निर्यातक के तौर पर उभर कर सामने आए। यही वजह है कि सरकार ने 2025 तक हथियारों और रक्षा उपकरणों पर 250 अरब डॉलर खर्च करने की योजना तैयार की है।
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12 - 18 जून 2017
सिर्फ उनकी आंखों के लिए शिक्षा मिसाल
पश्चिमी भारत में दृष्टिहीनों के लिए करेंट अफेयर्स की दो पत्रिकाएं निकालने के लिए स्वागत थोराट यानी भरत के ब्रेल मैन को करना पड़ा संघर्ष
औ
इंदिरा सील
सत व्यक्ति जो देख सकता है उसके लिए एक नेत्रहीन व्यक्ति की तरह सोचना मुश्किल है। यह एक ऐसी चुनौती है जिसका सामना स्वागत थोराट कर रहे हैं – जो पत्रकार, थियेटर पर्सनालिटी, वाइल्ड लाईफ फोटोग्राफर और डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता बने, लेकिन अधिकतर लोग उन्हें भारत के ब्रेल मैन के रूप में ही जानते हैं। वह भारत की पहली ब्रेल पत्रिका लॉन्च करना चाहते थे। 1998 में ‘स्पर्शज्ञान' पत्रिका का पहला अंक मराठी में प्रकाशित हुआ था। यह सब 1993 में शुरू हुआ जब थोराट पुणे के दो दृष्टिहीन विद्यालयों पर एक वृत्त फिल्म की परियोजना बना रहे थे। 1997 में उन्होंने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एक मराठी नाटक 'स्वातंत्र्याचि यशोगथा' का मंचन किया, जिसमें इन दोनों स्कूलों के 88 दृष्टिहीन कलाकार थे। नेत्रहीनों की सबसे बड़ी संख्या वाले कलाकारों के लिए इस एक्ट ने रिकॉर्ड बनाया। इस एक्ट का उल्लेख
गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में है। स्वागत थोराट कहते हैं कि उन लोगों ने एक बच्चे की तरह मुझे आकर्षित किया, जो नहीं देख सकते थे। हर दिन स्कूल से वापस जाते समय रास्ते में मुझे दृष्टिहीन ज्योतिषियों के एक समूह का सामना करना पड़ता था। मैं कुछ मिनट के लिए रुकता और उनके साथ बात करता था। उनके अनुभवों ने मुझे मोहित किया। मैं यह जानना चाहता था कि वे अंधेरे के साथ लंबे समय तक कैसे रहते हैं। थोराट कहते हैं कि कभी-कभी मैं खुद अपनी आंखों पर पट्टी बांध देता था। फिर मुझे एहसास हुआ कि हम इतनी सारी इंद्रियों का उपयोग करना ही भूल गए हैं। स्टेज प्रोडक्शन के लिए काम करते समय व्यापक यात्रा की आवश्यकता होती है, तब हमें उन्हें नजदीक से देखने का मौका मिला। वह लोग ज्यादातर उन चीजों पर चर्चा करते थे,
जो उन्होंने पढ़ी थी। लेकिन 1998 में ब्रेल में बहुत कम किताबें ही उपलब्ध हो पाती थीं, जबकि बच्चे और अधिक पढ़ना चाहते थे। थोराट को दृष्टिहीनों की दुनिया ने हमेशा मोहित किया। वहां आपको देखने की जरूरत थी। टेलीविजन और रेडियो वहां थे, लेकिन पढ़ने की सामग्री का अभाव उनके अलगाव का कारण था। थोराट कहते हैं कि वे कल्पनाशील थे, लेकिन इन माध्यमों ने उन्हें सपने या खुद के लिए जगह बनाने की अनुमति नहीं दी थी। लेकिन नेत्रहीनों के लिए लिखना सबसे बड़ी चुनौती साबित हुई। उन्हें बिना प्रकाश की दुनिया को समझना था और वास्तविक जीवन में दुविधाओं वाले दृष्टिहीन लोगों को भी समझना था। आपको दृष्टिहीनों के लिए लिखने के लिए उन्हीं की तरह सोचना होगा। मैंने दिखाई देने वालों के लिए लिखा था, लेकिन यह एक अलग तरह का
दृष्टिहीनों के लिए लिखने पर आपको उन्हीं की तरह सोचना होगा। मैंने दिखाई देने वालों के लिए लिखा था, लेकिन यह एक अलग तरह की चुनौती थी
एक नजर
1997 में ‘स्पर्शज्ञान' का पहला दिवाली विशेषांक छपा
1998 में मराठी में प्रकाशित हुआ ‘स्पर्शज्ञान' का पहला अंक 2013 में एक और ब्रेल पत्रिका ‘दृष्टि’ का हिंदी में प्रकाशन
खेल था। उनकी दुनिया इंद्रियों से भरी है। हम देखते हैं क्योंकि हम देख सकते हैं। मुझे खुद को फिर से सिखाने की जरूरत थी। मान लीजिए आप उनके लिए नुस्खा लिख रहे हैं। इसीलिए 'सुनहरा भूरा होने तक प्याज को भूनें' इसकी जगह, दो से तीन मिनट के लिए भूनें। रंग, आकार और आकृतियों की अपनी स्वयं की व्याख्याओं के बारे में सीखने के लिए यह एक आश्चर्यजनक तरीका है। प्रकाश पर्व दिवाली में 1997 के दौरान ‘स्पर्शज्ञान' का पहला त्योहार पर आधारित अंक
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ब्रेल पत्रिका का निर्माण समुदाय के सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह उन माध्यमों में से एक है, जो हमें दूसरों के साथ समानता स्थापित करने में काफी मदद करता है ब्रेल में प्रकाशित हुआ। दिवाली अंक मराठी भाषा कल्चर का मौलिक अंग है, पश्चिम भारत के प्रत्येक प्रकाशनों ने कई विशेष अंक निकाले थे, लेकिन किसी ने ब्रेल भाषा में कोई अंक प्रकाशित नहीं किया था। लेकिन लोगों ने इसे वार्षिक प्रकाशन की तुलना में ज्यादा मांगना शुरू कर दिया। इस तरह से इसकी पाक्षिक पत्रिका का जन्म हुआ। थोराट के सामने दूसरी सबसे बड़ी समस्या थी, लोगों को यह समझाना कि दृष्टिहीनों को भी एक पत्रिका की जरूरत है। जब उन्होंने पहली बार शुरू किया, तब उनके माता-पिता ने सवाल किया कि उन्हें एक समाचार पत्र की आवश्यकता क्यों है। इसके अलावा थोराट के पास धन की समस्याओं जैसी सामान्य चुनौतियां भी थीं। लेकिन लोग ‘स्पर्शज्ञान' के साथ जुड़ना चाहते थे और उदारता से उसके लिए दान करते थे, जिससे वे आज तक प्रकाशन जारी रखे हुए हैं। कुछ समर्थक ऐसे भी हैं जो देख सकते हैं फिर भी वह ब्रेल को पढ़ना सीख गए हैं। पत्रिका ज्यादातर व्यक्तिगत पाठकों के दान और सदस्यता पर चलती है, जो उसके लिए खर्च कर सकते हैं। यह एक ऐसी योजना चलाती है, जिसके माध्य्म से लोग 1200 रुपए सदस्यता शुल्क के लिए दान कर सकते हैं। यह शुल्क उन लोगों की वार्षिक सदस्यता का ध्यान रखने के लिए है जो पेपर का भुगतान नहीं कर सकते। थोराट ने खुद ब्रेल छपाई मशीन को खरीदने के लिए और मुंबई में किराए पर कार्यालय के लिए चार लाख से अधिक रुपए खर्च किए। 2007 में यह निवेश ‘स्पर्शज्ञान' का पहला द्वैमासिक अंक
बनाने में मदद करता है, जो 15 फरवरी, 2008 को प्रकाशित हुआ था। थोराट ने इस पत्रिका को 100 प्रतियों के साथ शुरू किया था। छह साल बाद इस पत्रिका का वितरण 430 प्रतियों तक पहुंच गया। ज्यादातर प्रतियां महाराष्ट्र में दृष्टिहीन लोगों के साथ काम करने वाले लोगों और गैर सरकारी संगठनों के लिए स्कूलों में भेंट की जाती हैं। एनएबी ‘ब्रेल प्रेस के निदेशक रमन शंकर कहते हैं कि ब्रेल पत्रिका का निर्माण समुदाय के सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह उन माध्यमों में से एक है, जो हमें दूसरों के साथ समानता स्थापित करने में काफी मदद करता है।’ थोराट कहते हैं कि हमें यह जानकर खुशी हो रही है कि मेरे काम ने लोगों के नेत्रहीनों को देखने के तरीके में बदलाव लाने में काफी सहायता की है। लेकिन हमने अभी तक बिना विज्ञापन के एक पत्रिका चलाने का रिकॉर्ड भी बनाया है। विज्ञापनदाता किसी कारण से यह महसूस करने में विफल होते हैं कि ये लोग भी उपभोक्ता हैं और इन्हें भी सभी चीजों की जरूरत है, जो हम करते हैं। उन्होंने कहा कि इसके विपरीत उन्हें और अधिक की आवश्यकता है। आज भी उनकी प्रतीक्षा सूची में 3, 000 पाठक हैं, लेकिन थोराट के पास अधिक प्रतियां प्रकाशित करने के लिए धन नहीं हैं। हालांकि थोराट 2013 में एक और ब्रेल पत्रिका को प्रकाशित करने में सफल रहे। ‘दृष्टि’ नामक इस हिंदी प्रकाशन को रिलायंस फाउंडेशन से मदद मिलती है। हालांकि ‘स्पर्शज्ञान' मुख्यधारा की मीडिया में
प्रकाशित होने वाली सभी चीजें प्रकाशित करता है। पत्रिका ध्यान रखती है कि कभी भी उनके पाठकों की भावनाओं को चोट न पहुंचे। प्रकाशन में राजनीति, समाज, सरकार, स्वास्थ्य पर लेख और प्रसिद्ध व्यक्तित्वों की प्रोफाइलें भी प्रकाशित की जाती हैं। थोराट कहते हैं कि हम खाना पकाने, योग और जीवन के अन्य सभी पहलुओं पर भी लेख प्रकाशित करते हैं। हमारे पाठक जरूर दृष्टिहीन हो सकते हैं, लेकिन उनकी जरूरतें आपके और मेरे जैसी ही होती हैं। इसमें दूसरे पत्रिका की तरह ही एक संपादकीय पृष्ठ भी है, जहां भ्रष्टाचार, शासन, राजनीति और अन्य मामलों और लोगों को प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाता है। हालांकि, ज्योतिष, क्रिकेट और अपराध से जुड़ी कहानियों को ‘स्पर्शज्ञान' में नहीं लिया जाता है, हालांकि क्रिकेट के बारे में खबर 'दृष्टि' में प्रमुखता से प्रकाशित की जाती है। मैं भाग्य पर विश्वास नहीं करता, लेकिन कड़ी मेहनत करने में जरूर विश्वास करता हूं। तो हम ज्योतिष को एक तरफ ही छोड़ देते हैं। क्रिकेट का प्रसारण मीडिया पर है, अपराध की कहानियां भावनात्मक रूप से हर किसी को प्रभावित करती हैं तो सोचें कि यह दृष्टिहीनों पर कितना असर डाल सकती हैं, जो पहले से ही अपने जीवन के अवसाद से लड़ रहे हैं। दोनों पत्रिकाओं ने भौतिक रूप से उन सामग्रियों के साथ चुनौती दी जिन्हें वे बौद्धिक रूप से संलग्न कर सकते हैं। थोराट काफी विश्वास के साथ कहते हैं कि यह उस समय शुरू हुआ जब लोगों ने नेत्रहीनों के लिए यह सोचते थे कि उच्च शिक्षा या बौद्धिक उत्तेजना की आवश्यकता उन्हें नहीं है। चूंकि मेरे ज्यादातर पत्रकार मित्र हमारे लिए लिखने के लिए पैसे नहीं लेते हैं, इसीलिए हम इतने बड़े लेखों को प्रदान करने में सक्षम हैं। इसके अलावा मेरे परिवार के सदस्यों ने मुझे इसके प्रोडक्शन में मदद की। इस तरह से मैं कम लागत में भी पत्रिका प्रकाशित करने में सक्षम हूं। 'दृष्टि'
विशेष
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की अवधारणा थोराट के दिमाग में बहुत लंबे समय से थी। वह हिंदी में एक पत्रिका प्रकाशित करना चाहते थे, जिसमें एक बड़ा पाठक होगा। वह चाहते थे कि यह अधिक से अधिक दृष्टिहीन लोगों तक पहुंचे। यह सपना मई, 2013 में सच हो गया, जब रिलायंस फाउंडेशन की अध्यक्ष नीता अंबानी ने इस पत्रिका का पहला अंक लॉन्च किया। 'रिलायंस दृष्टि' ब्रेल में प्रकाशित पहली मासिक हिंदी समाचार पत्रिका है और यह पूरे भारत में प्रसारित होती है। इसकी एक पत्रकार हैं जो आंशिक रूप से दृष्टिहीन हैं। थोराट कहते हैं कि वह हमें अपनी दुनिया और उनकी आवश्यकताओं की बेहतर समझ प्रदान करने में सहायता करती हैं। हम हर महीने करीब 900 प्रतियां प्रकाशित करते हैं जो दृष्टिहीनों के लिए संगठनों को दान की जाती हैं। आप जानते हैं इसकी प्रत्येक प्रति कम से कम 80 लोगों द्वारा पढ़ी जाती है। हालांकि थोराट ने अपनी गतिविधियों को 'दृष्टि' और ‘स्पर्शज्ञान' तक ही सीमित नहीं किया है बल्कि नेत्रहीनों की समस्याओं को कम करने के उद्देश्य से उन्होंने ब्रेल में कैलेंडर और लिफ़्ट, सार्वजनिक स्थानों में इस्तेमाल किए जाने वाले ब्रेल स्टिकर डिजाइन किए हैं। लिफ्ट स्टिकर नेत्रहीनों को स्वयं लिफ्ट संचालित करने में मदद करता है। यह अब मुंबई में 100 से अधिक लिफ्टों में उपयोग किया जाता है। ये संख्याएं आगे बढ़ती रहती हैं और रिलायंसदृष्टिमोर लोगों को दृष्टिहीन की जरूरतों के बारे में संवेदनशीलता प्राप्त होती हैं। पत्रिका, स्टिकर और कैलेंडर के पीछे का पूरा विचार एक नेत्रहीन व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाना है। एक मिशन वाले व्यक्ति का कहना है कि एक दृष्टिहीन पुरुष या महिला के लिए दिन-प्रतिदिन के कार्य भी एक चुनौती है। हमें हर महीने 600 से 700 संपादक के नाम पत्र मिलते हैं। हमारे पाठकों की संख्या दस वर्षीय बच्चों से लेकर 80 वर्षीय लोगों तक है। आधे से अधिक पाठक 18 से 35 साल के बीच वाले हैं। जब एक दृष्टिहीन व्यक्ति पत्रिका पढ़ने के बाद अपने विचारों के बारे में लिखता है, तो यह आपको एक अलग तरह की प्रसन्नता देता है। सामान्य ज्ञान के हमारे वार्षिक अंक ने कई लोगों को गुणवत्ता की नौकरी देने में मदद की है। एिडटर इन चीफ कहते हैं कि ‘दृष्टिहीन लोग जो कुछ भी छूकर सीखते हैं वह उसे कभी नहीं भूलते हैं। इस तरह ‘स्पर्शज्ञान’, स्पर्श द्वारा ज्ञान प्राप्त करने का जरिया है, इसीलिए इसका एक उपयुक्त नामकरण किया गया है।’ पुणे के एक स्नातकोत्तर छात्र विनायक धूत कहते हैं कि ‘मैंने जो भी हासिल किया है, इन दो पत्रिकाओं के कारण ही किया है। हम बहुत सी बातें सुनते हैं लेकिन याद करते हैं कि हम क्या पढ़ते हैं। आज, मुझे प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने का विश्वास है।’ थोराट अब भारतीय शिखर से परे दृष्टिहीनों की मदद करने के अपने जीवन के मिशन को लेकर व्यस्त हैं। उनका संगठन कनाडा में डीफ एंड ब्लाइंड के लिए रोटरी चेशायर होम्स और कनाडाई हेलेन केलर सेंटर के लिए इन-हाउस ब्रेल पत्रिका विकसित कर रहा है।
26 पर्यावरण
12 - 18 जून 2017
पर्यावरण चेतना का पर्व बना गंगा दशहरा पर्व जागरुकता
जो बात इस साल के गंगा दशहरा को बाकी सालों से अलग करती है, वह बात है इस मौके पर स्वच्छता और नदी जल संरक्षण को लेकर प्रकट हुई चेतना और उनके लिए शुरू हुए प्रयास
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एसएसबी ब्यूरो
ते चार जून को गंगा दशहरा पूरे देश में आस्था और उल्लास के साथ मनाया गया। वैसे तो इस दिन पूरे देश में जो कुछ भी हुआ और दिखा, उसमें आस्था और भक्ति का वही संगम इस बार भी था, जो हर साल इस अवसर पर पूरे देश में देखी जाती है। पौराणिक मान्यता के मुताबिक ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को हस्त नक्षत्र में गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। इसी दिन महर्षि भागीरथ उन्हें धरती पर लाए थे और तभी से इस दिन को ‘गंगा दशहरा’ के नाम से जाना जाने लगा। बात इस साल के गंगा दशहरा की करें तो इस साल एक विलक्षण बात यह जरूर रही कि लंबे समय बाद इस वर्ष गंगा दशहरा हस्त नक्षत्र में पड़ा था। इस संयोग के कारण लोगों में निश्चित तौर पर इस दिन आस्था की डुबकी लगाने को लेकर कुछ ज्यादा ही उत्साह था। अलबत्ता एक और उल्लेखनीय बात है, जो इस साल के गंगा दशहरा को बाकी सालों से अलगाती है, वह बात है इस मौके पर स्वच्छता और नदी जल संरक्षण को लेकर प्रकट हुई चेतना और उनके लिए शुरू हुए प्रयास। राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में की थी। तीन सालों में इस मिशन को लेकर सरकारी, असरकारी और निजी स्तरों पर बहुत कार्य हुए हैं। इनमें तो कई काफी प्रेरक हैं, जिनकी चर्चा मीडिया में तो रही ही
है, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी ‘मन की बात’ में इसका उल्लेख किया है। झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने तो गंगा दशहरा पर इस बात की घोषणा ही कर दी कि इस पर्व को सूबे में अब ‘नदी संरक्षण दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। यह घोषणा मुख्यमंत्री दास ने लोहरदगा में दामोदर नदी के उद्गम स्थल वाले गांव सलगी में ‘देवनद दामोदर महोत्सव’ के उद्घाटन के मौके पर की। उन्होंने कहा कि इस दिन प्रदेश की जनता और सरकार नदियों को संरक्षित करने का संकल्प लेगी। वह नदियों के करीब जाएंगे और उनकी स्वच्छता पर विचार करेंगे। मुख्यमंत्री दास ने यह घोषणा दामोदर बचाओ आंदोलन के प्रणेता और राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय की मांग पर की। उन्होंने राय की मांग पर सलगी गांव को आदर्श गांव बनाने की घोषणा भी की। उन्होंने कहा, ‘मुझे पता नहीं था कि देवनद दामोदर का उद्गम स्थल लोहरदगा में है। कुछ दिन पहले सरयू राय ने यह जानकारी दी थी।’ उन्होंने कहा कि पर्यटन विकास और इस नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सरकार दामोदर महोत्सव का आयोजन कर रही है। दामोदर नदी की स्वच्छता को लेकर साथ में
उन्होंने जोर देकर यह भी कहा कि आज दामोदर नदी 90 प्रतिशत प्रदूषण मुक्त हो चुकी है। इस मौके पर मंत्री सरयू राय ने कहा कि विश्व की सबसे प्रदूषित नदियों में दामोदर का नाम छठे नंबर पर था। 13 वर्षों से दामोदर को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इस मौके पर झारखंड के राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि युग बदलता गया और हम अपने पौराणिक तथ्यों को भूलते गए तथा नदियां दूषित होने लगीं। अब हमें नदियों में गंदगी को किसी भी रूप में फेंकने से रोकना होगा। उन्होंने कहा कि आज नदियों को साफ करने की आवश्यकता ही नहीं, बल्कि खुद की आदत में बदलाव लाने की भी जरूरत है। सरकार के साथ-साथ हमें भी नदियों को शुद्ध करने की पहल करनी होगी। गंगा दशहरा पर घाटों पर आमतौर पर खाकी वर्दी वालों को लोगों की सुरक्षा में जुटा देखा जाता है। पर उत्तर प्रदेश के रायबरेली में इस बार कुछ अलग ही दृश्य था। यहां गंगा नदी के तट पर बसे गांवों में स्वच्छता के लिए होमगार्ड्स ने रैली निकाली। जवानों ने गांव-गांव जाकर ग्रामीणों को स्वच्छता के लिए जागरूक किया। रैली के दौरान ग्रामीणों को स्वच्छता से होने वाले लाभ बताए गए। साथ ही उन्हें गंदगी की वजह से फैल रही बीमारियों के प्रति भी जागरूक किया। पुलिस के आला अधिकारियों को यह पहल इतनी प्रभावशाली लगी कि उन्होंने आगे भी इस तरह के जागरुकता कार्यक्रम करने की घोषणा की। लखनऊ में इस बार गंगा दशहरा मानो प्रेरणा और संदश े का कोई अलग ही त्योहार बन गया था। इस अवसर पर यहां मनकामेश्वर मठ मंदिर के महंत देव्यागिरि की अगुवाई में ब्रह्म मुहूर्त में पूजन कर मनकामेश्वर घाट पर उगते सूर्य को अर्घ्य दिया गया। इस आयोजन में लोक गायिका और समाज में प्रकृति संरक्षण का संदश े देने वाली कुसुम वर्मा को ‘नमोस्तुते मां गोमती श्री सम्मान’ से अलंकृत किया गया। इस मौके पर महंत देव्यागिरि की अगुवाई में शंखनाद और नगाड़े, झांझ और डमरू के ताल पर मंत्रों के बीच सूर्य देव को दस भक्तों ने अर्घ्य अर्पित
झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने तो गंगा दशहरा पर इस बात की घोषणा की कि इस पर्व को सूबे में अब ‘नदी संरक्षण दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा
एक नजर
गंगा दशहरा के दिन ही भागीरथ गंगा को धरती पर लाए थे
इस मौके पर कई जगहों पर ली गई पर्यावरण सुरक्षा की शपथ साथ ही बेटियों की सुरक्षा को लेकर भी किए गए प्रयास
किया। यह अर्घ्य भारत माता की विशाल तस्वीर के सामने सूर्य देव को अर्पित किया गया। खास बात यह रही कि इसमें अर्घ्य का जल संदेश देती मटकियों में संकलित कर गोमती नदी में प्रवाहित किया गया। किसी मटकी पर वर्षा जल संचयन संदेश लिखा था तो किसी पर ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का। इसके अलावा नदी की स्वच्छता और सर्व शिक्षा का भी संदेश मटकियों के माध्यम से लोगों को दिया गया। मनकामेश्वर घाट पर इस अनूठे तरीके से मनाए गए गंगा दशहरा को लोकरंग ने और भी खास बना दिया। लोकप्रिय गायिका कुसुम वर्मा अपनी शिष्याओं के साथ मिलकर वृक्षों की सुरक्षा और नदी जल संरक्षण तक कई प्रेरक गीत सुनाकर लोगों को भाव विभोर तो किया ही, पर्यावरण सुरक्षा को लेकर नई प्रेरणा से भी भर दिया। इसी तरह गंगा दशहरा पर अलगीढ़ में अचल सरोवर रक्षक दल के सदस्यों ने भजन-कीर्तन करते हुए परिक्रमा लगाई। इस मौके पर वहां एक तरफ मां गंगा की जयकार हो रही थी, तो वहीं स्वच्छता का अलख भी जगाया जा रहा था। जगह-जगह फूलों से दल के सदस्यों का स्वागत किया गया। परिक्रमा आरती घाट से शुरू हुई। अलेश्वरधाम मंदिर पर पहुंचते ही ‘हर-हर गंगे’ की धुन पर लोग झूम उठे। महंत योगी कौशलनाथ ने बताया कि प्रसन्नता की बात है कि उनकी यह मुहिम लगातार चल रही है। अचल सरोवर रक्षक दल के सदस्यों ने स्थानीय पौराणिक घाट की जल्द ही साफ-सफाई की शपथ लेकर गंगा दशहरा को स्वच्छता का प्रेरक महापर्व बना दिया। गंगा दशहरा के साथ जुड़ी पर्यावरण चेतना की ये खबरें भारतीय आस्था, चेतना और प्रेरणा की परंपरा को नए सिरे से समझने के लिए बाध्य करती हैं, क्योंकि चेतना की इस आस्थापूर्ण प्रवाह को महज पुरातनपंथ का नाम देना गलत होगा। इसीलिए साहित्य और संस्कृति के मर्मज्ञों ने इस देश की विलक्षणता को ‘लोक’ और ‘परंपरा’ के साझे के तौर पर देखना ज्यादा उचित माना है।
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कानून
जजों ने पढ़ाया कानून का पाठ कानून जागरुकता
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स्कूली बच्चों को कानून की बारीकियां सिखाने का अभियान परवान चढ़ चुका है। इस अभियान में बच्चों को उनके अधिकारों के साथ उनके कर्तव्यों की भी जानकारी दी गई
सत्यम
नून के जानकार जब कानून की जानकारी स्कूली छात्रों में देने का बीड़ा उठाएं तो इससे अच्छी और सुकून देनेवाली खबर और क्या हो सकती है। अगर संख्या बल में थोड़े से भी बच्चे इस अभियान को आत्मसात कर उसे अपने जीवन में उतार लें तो इस अभियान की सार्थकता सिद्ध होगी। दिल्ली राज्य विधिक सेवाएं प्राधिकरण (डीएसएलएसए) ने इस नई पहल को अपने कंधे पर उठाया है। इससे पहले डीएसएलएसए ने स्ट्रीट प्ले प्रतियोगिता का भी आयोजन किया था और उस कार्यक्रम ने खूब वाहवाही बटोरी थी। प्रतियोगिता में भाग लेने वाले बच्चों के बीच पुरस्कार वितरण के समय दिल्ली हाईकोर्ट की जज जस्टिस इंदिरा बनर्जी और दक्षिणी जिला पुलिस के उपायुक्त ईश्वर सिंह बतौर डीएसएलएसए के अध्यक्ष और सदस्य सचिव शामिल हुए थे। साकेत के सलेक्टसिटी वॉक शापिंग कांप्लेक्स में इसे अमलीजामा पहनाया गया था। अप्रैल के अंतिम सप्ताह में पूर्वी दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट परिसर के आडिटोरियम में डीएसएलएसए ने पुलिसवालों को कानून की जानकारी देने के लिए भी एक जागरुकता अभियान चलाया था। इसमें क्षेत्र के संयुक्त आयुक्त रवींद्र यादव से लेकर पुलिस उपायुक्तों आईपीएस अधिकारी नुपुर प्रसाद, आईपीएस एके सिंगला और ओमवीर सिंह विश्नोई सहित तीनों जिलों के सहायक पुलिस आयुक्तों (एसीपी), थाने के एसएचओ सहित अन्य इंसपेक्टर और सब इंसपेक्टर शामिल हुए थे। किस प्रकार कानून की जानकारी के बिना कई बार आरोपियों को फायदा मिल जाता है और कई बार कानून के दायरे में रहकर आरोपियों को सजा दिलाने में पुलिस अधिकारी सफल हो जाते हैं इन तमाम बातों की जानकारी उस जागरुकता अभियान में दी गई। महिलाएं और बुजुर्ग कई बार अपने घर परिवार में भी शोषित और पीड़ित होने को बाध्य हो जाते हैं और पुलिस उन्हें उचित न्याय दिलाने की भरसक कोशिश के बाद भी सम्मानजनक फैसले नहीं दिला पाती है। ऐसी तमाम बारीकियों और कानूनी पहलुओं की जानकारी पुलिस को देने के लिए ही ऐसी कोशिश शुरू हुई है। लेकिन इन दोनों अभियानों से अलग दिल्ली के स्कूली बच्चों को कानून की जानकारी देने के लिए पहली बार डीएसएलएसए ने बीड़ा उठाया। गर्मी की छुट्टियां शुरू होने से पहले
एक नजर
दिल्ली राज्य विधिक सेवाएं प्राधिकरण की अनूठी पहल स्कूली बच्चों को कानून की जानकारी देने की पहल
अब तक हजारों छात्र हो चुके हैं अभियान में शामिल
सप्ताह भर के लिए चलाए गए इस अभियान में पूर्वी जिला, उत्तर-पूर्वी और शाहदरा जिला दिल्ली के करीब दो हजार सरकारी और प्राइवेट स्कूल सहभागी बने। महानगर दंडाधिकारी (मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रट) से लेकर जिला जज तक बच्चों को कानूनी जानकारी देने के लिए आगे आए। उन्हें कानूनी शिक्षा देकर यह बताया गया कि कैसे वे अपनी जानकारी को खुद के उपर लागू कर सकते हैं। अधिकारों की बच्चों को अगर जानकारी हो जाए तो फिर वे समाज की मुख्यधारा में अपनी सहभागिता निभाने से भी पीछे नहीं रहेंगे। प्राधिकरण के सचिव और मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अरविंद बंसल ने इस पूरे अभियान के बारे में जो जानकारी दी वह काबिले तारीफ कही जा सकती है। बंसल का कहना था कि हम अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को समय-समय पर एक अभियान के रूप में अमलीजामा पहनाते रहते हैं। पुलिसवालों के बीच जागरुकता फैलाना भी इसी का एक हिस्सा था। इसमें तीनों जिले के माननीय जज उत्तरी जिला के तलवंत सिंह, उत्तर-पूर्वी जिला के राकेश तिवारी और शाहदरा जिला जज ए एस जयचंद्रा मुख्य रूप से शामिल हुए। बंसल के मुताबिक डीएसएलएसए ने शिक्षा विभाग दिल्ली सरकार के साथ मिलकर कानूनी जागरुकता और शिक्षा देने के लिए स्कूल के
नौंवी से 12वीं तक के बच्चों को 60-50 के ग्रुप में शिक्षा देने की योजना बनाई। छात्रों से उसके प्रश्नों पर सवाल जबाब हुए और उन्हें कानूनी शिक्षा, उसके पहलुओं की जानकारी दी गई। समाज में जो समस्याएं पैदा हो रही है वह चाहे लैंगिक समस्याएं हो या फिर सेक्सुअल अत्याचार। कम उम्र में गर्भधारण हो या फिर किशोरों के बीच न्याय और उनके अधिकारों को जानने समझने की जिज्ञासा, इन तमाम बातों को कानून के जानकारों के द्वारा उन्हें बताया गया। भारतीय संविधान की धारा -51ए के तहत मिलने वाली तमाम जानकारियां बच्चों को देने के लिए ही इस प्रकार के विशेष अभियान की जरूरत महसूस की गई। साल 2014 में भारत के मुख्य न्यायाधीश की मौजूदगी में स्कूलों में बृहद पैमाने पर कानून की जानकारी देने के लिए दिल्ली के विज्ञान भवन में एक अभियान चलाया गया था। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के जजों के अतिरिक्त दिल्ली सरकार के सीनियर अधिकारी इसमें शामिल हुए थे। सिर्फ एक दिन में 850 स्कूलों के छात्रों को जागरूक किया गया था। फिर साल 2016 में 1024 स्कूलों में दूसरे फेज में इसी तरह का अभियान चलाया गया। इसमें रिर्सोस पर्सन के रूप में न्यायिक अधिकारी, प्रशिक्षित कानूनी सेवा के जानकार, विभिन्न बार एसोसिएशन के अधिवक्ताओं, शिक्षाविदों, पब्लिक प्रोसीक्यूटर्स
अपने अधिकारों की बच्चों को अगर जानकारी हो जाए तो फिर वे समाज की मुख्यधारा में अपनी सहभागिता निभाने से भी पीछे नहीं रहेंगे
सहित दिल्ली के विभिन्न कालेजों में कानून की पढ़ाई करने वाले छात्रों को भी शामिल किया गया। अरविंद बंसल ने बताया कि कार्यक्रम के दौरान यह देखा गया कि छात्रों में एक नई स्फूर्ति और जिज्ञासा है। छात्रों के अलावा स्कूलों के शिक्षकों में भी इस कार्यक्रम के प्रति उत्सुकता दिखती है। डीएसएलएसए के अध्यक्ष के निर्देश के मुताबिक नवीं से 12वीं तक के बच्चों को अभी शामिल किया जा रहा है। इनमें 30-25 की संख्या में बच्चों को कोर्ट परिसर में भी भ्रमण कराया जा रहा है ताकि न्यायपालिका का काम किस तरह से चल रहा है, इसकी जानकारी उन्हें मिल सके। करीब एक लाख बच्चे इस अभियान में अब तक शामिल हो चुके हैं और खुली आंखों से छात्र यह जान सके हैं कि उनके क्या अधिकार और क्या कर्तव्य हैं। इस कानूनी जागरुकता अभियान के तहत बाबूनगर के डीआरपी कान्वेंट स्कूल में सत्र न्यायाधीश एस के शर्मा और वरिष्ठ अधिवक्ता धर्मेश शर्मा ने बताया कि देश में हर वर्ग के लिए अलग कानून बना हुआ है। बच्चों के लिए भी अलग से कानून बने हुए हैं। किसी बच्चे के साथ अगर कोई अपराध होता है तो अपराधी को कठोर सजा होती है। अपराधिक वारदातों को कभी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। डीएलएसए बुजुर्ग, महिलाओं और बच्चों के हितों के लिए कार्य करता है। किसी व्यक्ति को लगता है कि उसके साथ किसी ने अन्याय किया और उसके पास मुकदमा लड़ने के लिए पैसे नहीं हैं तो उसकी मदद भी डीएलडीएसए करता है। इस देश में कानून से बढ़कर कुछ नहीं है। हर व्यक्ति को अपने अधिकार और कानून की जानकारी होनी चाहिए इसीलिए इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित कर बच्चों में लेख प्रतियोगिता भी आयोजित किए जाते हैं, ताकि उनकी जानकारी को बढ़ाया जा सके।
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धरोहर संरक्षण
खतरे में समुद्रतटीय धरोहर भारतीय तटीय क्षेत्र अपनी समृद्ध विरासत के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। खासतौर पर जगन्नाथ मंदिर से लेकर महाबलीपुरम मंदिर तक कई ऐसे आस्था के केंद्र इस तटीय क्षेत्र में हैं जिन पर जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के कारण खतरा मंडरा रहा है
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एसएसबी ब्यूरो
र्यावरण को लेकर खतरा अब महज आशंका या चेतावनी नहीं, बल्कि इसके असर भी साफ तौर पर दिखने लगे हैं। स्मॉग जैसे खतरे जहां इंसान की सांसों में जहर घोल रहे हैं तो वहीं समुद्र का बढ़ता जल स्तर पूरे जैविक संतुलन को बदलने पर तुला है। बात करें भारत की तो यहां भी प्लास्टिक कचरा और जलवायु परिवर्तन के कारण कई तरह के परिवर्तन साफ देखे जा सकते हैं। आलम यह है कि आस्था और इतिहास की दृष्टि से कई महत्वपूर्ण ईमारतों तक की सुरक्षा को खतरा है। इनमें आगरे के ताजमहल का नाम तो पहले से ही चर्चा में है, नए अध्ययन में समुद्र तटीय क्षेत्रों के मंदिरों और दूसरी धरोहरों को भी इनसे नुकसान पहुंच रहा है। पिछले महीने ही तस्मानिया इंस्टीट्यूट फॉर मरीन एंड अंटार्कटिक स्टडीज (आईएमएएस)
ने अपने शोध में पाया है कि चिली और न्यूजीलैंड के बीच दक्षिण प्रशांत महासागर में सुदूर स्थित विश्व धरोहर घोषित हेंडर्सन द्वीप के समुद्र तटों पर 17.6 टन कचरा बिखरा पड़ा है। द्वीप के समुद्र तट पर रोज कचरे के 3,570 टुकड़े बहकर आते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार हेंडर्सन द्वीप पर प्रति वर्ग मीटर क्षेत्रफल में कचरे के 671.6 टुकड़े मिले हैं। मानव सभ्यता की कल्पना में पृथ्वी के सबसे दूरस्थ भाग की श्रेणी में आने वाले प्राचीन ‘डेजर्टेड आइलैंड’ से भी दूर हेंडर्सन द्वीप के लिए सामने लाए गए प्रदूषण के ये आंकड़े आश्चर्य मिश्रित चिंता में डालने वाले हैं। इस द्वीप में कचरे में अधिकांश मात्रा
प्लास्टिक कचरे की पाई गई है। जब हेंडर्सन द्वीप जैसे निर्जन स्थान का यह हाल है तो जनसंख्या से अटे पड़े विश्व के भागों का अंदाजा किन्हीं आंकड़ों का मोहताज नहीं हो सकता। यह बात अच्छी तरह से साफ होती जा रही है कि जहां एक ओर अन्य प्रदूषकों के साथ-साथ प्लास्टिक कचरा वैश्विक स्तर पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, वहीं इनके कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से प्राकृतिक और ऐतिहासिक विरासतों के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है। इसी मुद्दे को लेकर पिछले महीने यूनेस्को किंग्स्टन और यूनेस्को जमैका नेशनल कमीशन के
संस्कृति मंत्रालय ने इसरो के सहयोग से पुरातात्विक स्थलों की इन्वेंटरी और निगरानी के लिए राष्ट्रीय परियोजना चलाई है। इससे हजारों विरासत स्थलों और राष्ट्रीय स्मारकों का संरक्षण किया जा रहा है
एक नजर
विश्व धरोहर घोषित हेंडर्सन द्वीप के समुद्र तटों पर 17.6 टन कचरा विश्व भर में कुल 1,052 विश्व धरोहर स्थल हैं
इनमें करीब 50 लुप्तप्राय स्थलों के रूप में सूचीबद्ध
सहयोग से जमैका के कल्चर, जेंडर, एंटरटेंमेंट एंड स्पोर्ट (एमसीजीईएस) मंत्रालय ने विश्व संस्कृति और धरोहर पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर तीन दिवसीय संगोष्ठी और कार्यशाला आयोजित की थी। विश्व भर में कुल मिलाकर 1,052 विश्व धरोहर स्थल हैं। इनमें से करीब 50 को विश्व धरोहर
12 - 18 जून 2017 लुप्तप्राय स्थलों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। उनमें से कई संकटग्रस्त क्षेत्रों में हैं, जिनके जीर्णोद्धार करने की सख्त आवश्यकता है। समय रहते इस दिशा में यदि उचित कार्रवाई नहीं की गईं, तो वो दिन दूर नहीं जब ये ऐतिहासिक स्मारक महज इतिहास के पृष्ठों में ही सिमटकर रह जाएंगे। हाल में ही एक और आंकड़ा सामने आया, जिसमें साफ किया गया कि हर साल पूरी दुनिया में उत्पादित होने वाला लगभग 30 करोड़ टन प्लास्टिक दोबारा उपयोग में नहीं लाया जाता है, जिसका दीर्घकालिक प्रभाव कहीं न कहीं पृथ्वी के चारों महासागरों पर पड़ रहा है। समुद्री खाद्य श्रृंखला और खाद्यजाल बुरी तरह अनियमित होकर समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को बदल रहे हैं। एक अन्य शोध निष्कर्ष से पता चला है कि समुद्री मछलियों के पेट में बड़ी मात्रा में प्लास्टिक मिलने लगा है। इस तरह मछलियों में प्लासटिक का मिलना न केवल मत्स्य प्रजातियों के लिए घातक है, बल्कि समुद्री खाद्य पर निर्भर मनुष्यों व अन्य जीवों का जीवन भी खतरे में पड़ जाएगा। इस दृष्टिकोण से समुद्री द्वीपों या समुद्रीतटों के स्थलों की बात की जाए तो प्लास्टिक से होने वाला प्रदूषण जलवायु परिवर्तन जितना ही खतरनाक बनता जा रहा है। समुद्र तटों के मूल निवासियों को हमेशा ही उनके निवास स्थानों पर आने वाले खतरों के प्रति तैयार रहने की सलाह दी जाती है।
बढ़ रहा समुद्री जलस्तर
हिंद महासागर में स्थित अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध मालदीव को भौगोलिक दृष्टि से सबसे निचला द्वीप माना जाता है। यहां के पर्यटन को लेकर भारत में तो आकर्षण है ही, बाकी दुनिया में भी है। मालदीव के बारे में चौंकाने वाली बात सामने आई है कि जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री जल के बढ़ने से मालदीव संभवतः अतिशीघ्र निवास करने योग्य भी नहीं बचेगा। ऐसा ही कुछ हाल भारत के सुदंरवन क्षेत्र का है। बंगाल की खाड़ी का जलस्तर बढ़ने के कारण
सुंदरवन के कई द्वीप समुद्र में डूब चुके हैं और दूसरों पर इसका खतरा मंडरा रहा है। विश्वस्तरीय जलवायु परिवर्तन सम्मेलनों में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि यदि ग्रीन हाउस गैसों का उत्सार्जन इसी तरह चलता रहा, तो भूमंडलीय तापमान के कारण 2100 तक समुद्र के जलस्तगर में करीब 75 से 190 सेंटीमीटर तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है। निश्चित है कि ऐसे में सर्वाधिक प्रभाव समुद्री तट के किनारे वाले भागों पर सबसे पहले पड़ेगा। भारत के संदर्भ में इन तथ्यों को देखें तो यहां भी स्थिति खासी गंभीर है। भारत की भौगोलिक स्थिति दर्शाती है कि हिंद महासागर में इसके दक्षिण-पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया की सामुद्रिक सीमाएं लगती हैं और इसके पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर है। इस विशाल समुद्रतटीय जीवंत देश का अपना विविध सांस्कृतिक इतिहास रहा है, जिसकी गाथाएं इसके समुद्र तटों पर बने मंदिर, किले आदि जैसे विरासत स्थल सुनाते हैं। यहां एक बात भलीभांति समझने की है कि भारत में इस समय जितने भी समुद्रतटीय विश्व धरोहर स्थल, प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक इमारते हैं, उनका निर्माण उस समय की एक विशिष्ट स्थानीय जलवायु के अनुसार किया गया था। भारत में कई प्रकार की जलवायु पाई जाती है। यहां दक्षिण में उष्ण कटिबंधीय, हिमालयी क्षेत्रों में अल्पाइन (ध्रुवों की भांति), पूर्वोत्तर में उष्ण कटिबंधीय परंतु नम और पश्चिमी भागों में शुष्क प्रकार की विविधता और विशिष्टता वाली जलवायु होती है। भारत के पूर्वी व पश्चिमी और दक्षिणी समुद्र तटों पर बने सांस्कृतिक ऐतिहासिक विरासत स्थलों को इस समय लगातार जलवायु परिवर्तनशील कारकों के बदलने से खतरा बना हुआ है। समुद्रतटों की जलवायु को निरंतर परिवर्तित कर रहे प्रमुख कारकों में समुद्र के स्तर में बढ़ोत्तरी के अलावा समुद्री अम्लता और लवणता, सतह
हर साल पूरी दुनिया में उत्पादित होने वाला लगभग 30 करोड़ टन प्लास्टिक दोबारा उपयोग में नहीं लाया जाता है, जिसका दीर्घकालिक प्रभाव कहीं न कहीं पृथ्वी के चारों महासागरों पर पड़ रहा है
पर्यावरण
ताज को गोल्डी से खतरा
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गोल्डी काइरोनोमस के साथ-साथ ताज पर वायु प्रदूषण का खतरा भी बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा खतरा पीएम-2.5 कणों की मात्रा बढ़ने से पैदा हो रहा है
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जमहल की खूबसूरती पर बढ़ते खतरे की बात बीते एक दशक में कई बार सुर्खियों में रही है। मौजूदा स्थिति यह है कि जगह-जगह से ताजमहल हरा-हरा दिखाई देने लगा है। गोल्डी काइरोनोमस नाम के कीड़ों ने ताज की खूबसूरती से प्रभावित होकर उस पर ठिकाना बना लिया है। ताज पर वायु प्रदूषण का असर भी खासा दिखाई देने लगा है। पीएम-2.5 कणों की मात्रा भी बढ़ गई है। विशेषज्ञों की मानें तो ताजमहल पर बने रंग-बिरंगे नक्काशीदार फूलों से प्रभावित होकर ये ताज की दीवारों से चिपक रहा है। ये कोई पहला मौका नहीं है जब इस कीड़े ने ताजमहल को अपना ठिकाना बनाया हो। सेंट जोंस कॉलेज, आगरा के प्रोफेसर गिरीश महेश्वरी बताते हैं कि ये कीड़े यमुना में पैदा होते हैं। जब यमुना में पानी की कमी हो जाती है तो ये पानी की काई में पनपने लगता है। अब क्यों कि ताजमहल पर बहुत सारे हरे रंग के नक्काशीदार फूल बने हुए हैं तो ये उसी से प्रभावित होकर ताजमहल से चिपक रहे हैं। अब चूंकि यह काई को ही खाता है तो इसकी बीट भी हरे रंग की
होती है जो ताजमहल को बेरंग कर रही है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की रसायन शाखा से जुड़े एक जानकार बताते हैं कि गोल्डी काइरोनोमस के साथ-साथ ताज पर वायु प्रदूषण भी बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा खतरा पीएम-2.5 कणों की मात्रा बढ़ने से पैदा हो रहा है। इसकी एक बड़ी वजह यमुना में पानी की कमी होना भी है। वहीं राजस्थान की ओर से भी हवा के साथ पीएम2.5 कण ताजमहल से टकरा रहे हैं। एक ओर तो गोल्डी काइरोनोमस का खतरा है और दूसरी ओर वायु प्रदूषण लगातार ताज को नुकसान पहुंचा रहा है। एक पुरानी रिपोर्ट पर गौर करें तो जांच के दौरान ताजमहल पर 55 प्रतिशत धूल के कण, 35 प्रतिशत ब्राउन कार्बन कण और 10 प्रतिशत ब्लैक कण पाए गए थे। इसी के बाद से ताजमहल के आसपास के क्षेत्र में गोबर के उपले जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। बेशक उपले जलना बंद हो गए हों, लेकिन वायु प्रदूषण अभी तक कम नहीं हुआ है।
पर हवा के तापमान में वृद्धि, असामान्य मानसून, प्रचंड तूफान, वर्षा और आर्द्रता में हो रहे बदलाव भी उतनी ही गुणात्मक और मात्रात्मक अहमियत रखते हैं। इसके साथ-साथ समुद्रतटों पर बढ़ रही मानव आबादी, मत्स्यपालन और शिपिंग उद्योगों के विकास और जल-परिवहन की सुविधाओं की भी कहीं न कहीं समुद्र तटीय जलवायु परिवर्तन में बड़ी भूमिका है। ये सभी कारक सम्मिलित रूप से समुद्रों के निकट स्थित धरोहरों, विरासत स्थलों और राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारकों में क्रमिक अपक्षय के महत्त्वपूर्ण और अपरिहार्य कारण साबित हो रहे हैं। वैश्विक जलवायु परिवर्तन के समायोजन में सुधार की आवश्यकता है, जिससे तत्काल प्रतिक्रिया के लिए समय पर इन परिवर्तनों की पहचान की जा सके और सांस्कृतिक विरासत को बदलते माहौल और आपदाओं के लिए
अधिक लचीला बनाने में सुधार किया जा सके।
भारतीय तटीय क्षेत्र
गौरतलब है कि भारतीय तटीय क्षेत्र अपने समृद्ध विरासत के लिए प्रसिद्ध रहे हैं, जैसे- पश्चिम में औपनिवेशिक युग की इमारतें जिनमें गोवा, दमन दीव के ऐतिहासिक किले, मंदिर और चर्च, पूर्व में उड़ियाई मंदिर और दक्षिण में द्रविड़ मंदिर। कुछ बेहतरीन उदाहरणों में ओडिशा के पुरी का जगन्नाथ मंदिर और तमिलनाडु का तटीय महाबलिपुरम मंदिर हैं। पश्चिम में गुजरात के सोमनाथ और द्वारिकाधीश मंदिर आते हैं। लाखों की संख्या में प्रतिदिन देश-विदेश से लोग यहां घूमने आते हैं। विश्वभर में प्रदूषण के प्रति और भारत विशेष में स्वच्छता को लेकर इतनी अधिक जागरुकता के बावजूद इन पर्यटन स्थलों के आस-
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पास कचरा फैलाने की प्रवृत्ति कम होने का नाम नहीं ले पा रही है। थोड़े बहुत स्वच्छता नियमों का पालन करते लोग कुछ ही समय में अपनी आलस्य और अकर्मण्य आदतों के चलते कब कारों और वाहनों की खिड़कियों से कोल्ड ड्रिंक की बोतलें और चिप्स के रैपर बाहर फेंकते जाते हैं, शायद उनको खुद भी होश नहीं रहता। क्योंकि वे इन विरासतों को अपना समझते हुए नहीं देखते। वे उनके लिए सिर्फ और सिर्फ कई वर्षों से खड़ी इमारतों से अधिक कुछ और मायने नहीं रखतीं। देखा जाए तो जलवायु परिवर्तन और कचरा वृद्धि दोनों के लिए मानव ही जिम्मेदार है। फर्क केवल यह है कि जलवायु परिवर्तन के उत्तरदायित्व को भौतिकरूप से समझ पाना और स्वीकार कर पाना कठिन होता है, लेकिन कचरा फैलाना बिल्कुल सामने दिखने वाली प्रवृत्ति है, जिससे हम नजरें चुराते हैं। दरअसल, भौतिक सामग्रियों को जुटाकर आधुनिक होने का दंभ भरने वालों ने ही पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। उस पर तुर्रा यह कि कोयले और लकड़ी के जलावन से जलने वाले चूल्हों का अब भी इस्तेमाल हो रहा है। वे ही पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि के जिम्मेदार हैं। इसीलिए हम पेरिस समझौते से अपने-आप को अलग महसूस करते हैं। पर्यावरण के प्रति अपने कर्तव्यों से मुक्त होने की सोच को आज अमेरिकी सोच की संज्ञा दे दी जाए, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हर वो व्यक्ति जो समुद्र तटों पर कचरा फैला रहा है, वैश्विक धरोहरों की चिंताओं से स्वयं को जोड़ पाने के प्रति असंवेदनशील है और सिर्फ स्वयं के विकास के स्वार्थ की सीमाओं में बंधा है, वह भी कहीं न कहीं अपने स्तर पर पेरिस समझौते से दूर हो रहा है। हस्ताक्षर जैसी प्रतिबद्धताएं सही कर्तव्यनिष्ठाएं नहीं कही जा सकती, कोई व्यक्ति निजी तौर पर कितने प्रतिशत पर्यावरण संरक्षण की भावना से जुड़ा है, यह कहीं अधिक मायने रखता है। तभी तो भूटान जैसे
विश्वभर में प्रदूषण के प्रति और भारत में स्वच्छता को लेकर इतनी अधिक जागरुकता के बावजूद इन पर्यटन स्थलों के आस-पास कचरा फैलाने की प्रवृत्ति कम नहीं हो पा रही है छोटे से देश को धरती पर सबसे हरित देशों में से एक माना गया है। विश्व बैंक के अनुसार वर्तमान में भूटान की कार्बन उत्सर्जन दर सबसे नगण्य प्रति व्यक्ति 0.8 मीट्रिक टन है। न केवल भूटान कार्बन तटस्थ है, बल्कि यह एक कार्बन सिंक भी है। यह दुनिया के उन कुछ देशों में से एक है, जो नकारात्मक कार्बन उत्सर्जन की श्रेणी में रखे गए हैं। हाल के आंकड़ों के मुताबिक भूटान में प्रति वर्ष 1.5 मिलियन टन कार्बन का उत्सर्जन होता है और इसके वन 6 मिलियन टन से अधिक कार्बन अवशोषित करते हैं। इसके बावजूद यह देश अब भी 2020 तक शून्य शुद्ध ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन की दिशा में आगे बढ़ना चाहता है, साथ ही वह 2020 तक 100 प्रतिशत कार्बनिक और सन 2030 तक शून्य अपशिष्ट होने की दिशा में भी प्रतिबद्ध है। पर्यावरण के प्रति ऐसी ही कर्तव्यनिष्ठा की अपेक्षा धरती हर व्यक्ति से रखती है। इसमें कोई शक नहीं कि आज बच्चे बड़ों से कहीं अधिक सचेत दिखाई देते हैं। लेकिन धरोहरों के प्रति वैसा लगाव उनमें पनप नहीं पाया है, वे इतिहास की संवेदनाओं को महसूस नहीं कर पाते, उनके लिए वे महज इमारतों से अधिक कुछ नहीं है। भारतीय बच्चे अनभिज्ञ हैं कि जलवायु परिवर्तन से बढ़ी समुद्री लवणता का नमक महाबलिपुरम, पुरी और द्वारिका के मंदिरों के प्लास्टर को चाट रहा है, सदियों के लोहे में जंग लग रही है। ऐतिहासिक दीवारें नमक और नमी को सोख-सोखकर झरझरा गई हैं। दरारों ने पानी के रिसावों को प्रोत्साहन दे रखा है। समुद्र के स्तर में वृद्धि, तटीय क्षरण, लवणता और रेत के कारण हवाओं की संक्षारक
प्रक्रियाओं के कारण देश की ये अनमोल विरासतें संकट में आ गई हैं।
हल के लिए पहल
यह सच है कि भारत का पुरातत्व सर्वेक्षण इन अनमोल धरोहरों की रक्षा के लिए विभिन्न उपाय करता रहता है। इन इमारतों में लगे पत्थरों को कमजोर होने से रोकने के लिए उनके रासायनिक उपचार, समय-समय पर पेपर-पल्प पद्धति के माध्यम से दीवारों पर जम रहे लवणों को हटाना, क्षतिग्रस्त भागों का पुनर्निर्माण करना, इमारतों के नियोजन और डिजाइनिंग में मदद के लिए नई टाइपोग्राफिक्स का विकास करना आदि काम शामिल हैं। इसके अलावा हवा में बफर के रूप में कार्य करने के लिए कई तरह के पेड़ जैसे नारियल (कॉक्स नैसिफेरा), पोर्टिया (थीस्पेसिया पॉपुलनेया), नीम (अजाडिरेक्टा इंडिका), करंजा (पोंगामिया ग्लाब्र्रा), पाल्मीरा (बोरासस फ्लैबेलिफ़र) और ओक आदि भी लगाए जाते हैं। वाहनों की पार्किंग पर भी ध्यान दिया जाता है, जिसमें अनिवार्य रूप से मूल स्थलों से 100 मीटर दूर पार्क करना होता है। ऐसे बहुत से नियम कानून बनाए गए हैं, लेकिन ईमानदारी से पालन करने वालों की कमी के चलते पर्यावरण असंतुलन जैसी प्राकृतिक गड़बड़ियां अब धीरे-धीरे दिखाई भी देने लगी हैं। ये पूरी मानव सभ्यता को चीखचीखकर सतर्क होने की गुहार लगा रही हैं, जरूरत है तो सिर्फ इस आवाज की वेदना को महसूस करने की है। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के सहयोग से देश के पुरातात्विक स्थलों की इन्वेंटरी और निगरानी के लिए राष्ट्रीय परियोजना चलाई है। इस परियोजना से
देश भर में फैले हजारों विरासत स्थलों और राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारकों का संरक्षण और प्रबंधन किया जा रहा है। इसके तहत समुद्र तटों से लेकर सभी जगहों के विरासत स्थलों और राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारकों के लिए इसरो मानचित्रण और प्रबंधन कर रहा है। विश्व धरोहर स्थलों, प्राचीन स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों का संरक्षण राष्ट्रीय महत्त्व का है। भावी पुरातात्विक स्थानों के लिए स्थानिक मॉडलिंग पूर्वानुमान, मानक प्रचालन प्रक्रिया (एसओपी) प्राथमिक डेटा स्रोत के रूप में उच्च विभेदन उपग्रह डेटा और उच्चतम स्तरीय खोज भू-स्थानिक डेटाबेस जैसी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग करके इन विरासत स्थलों के व्यवस्थित डेटाबेस और साइट प्रबंधन से इनके संरक्षण और निगरानी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को इनके रख-रखाव के लिए कम से कम प्रयास, समय और लागत लगाने में मदद मिली रही है। इसरो के कार्टोसैट-1, कार्टोसैट-2 और रिसोर्ससैट लिस-4 के डाटा विरासत स्थलों और स्मारकों पर डेटाबेस बनाने के लिए उपयोग किए जा रहे हैं। विशेष-रूप से तीन प्रबंधन क्षेत्रों यथा संरक्षित, निषिद्ध और विनियमित क्षेत्रों में विरासत स्थल के आस-पास उपग्रह प्रतिबिंब के आधार पर स्मारक पर जीआईएस अपने उपकरण लगाकर काम कर रहा है। प्रशासन, संबद्ध विभाग और सरकारें अपने-अपने स्तर पर जलवायु परिवर्तन की मार से इन धरोहरों को संरक्षित करने में लगी हुई हैं, लेकिन आम लोगों को भी इस ओर उतनी ही शिद्दत से जुड़ने की जरूरत है। पर्यटन और आर्थिक मुद्दे जितने सरकार के हैं, उतने ही जनता के भी हैं। धरोहरों का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक सरोकार पर्यटन और आर्थिक क्षेत्रों में वृद्धि का कारण बन सके, इसके लिए उनसे संबद्ध मानवजनित और पर्यावरणीय पहलुओं को सम्मिलित करना भी अनिवार्य है। एकीकृत रूप से इन समस्त पहलुओं का सार्थक सदुपयोग ही जलवायु परिवर्तन और प्लास्टिक कचरे के कुप्रभाव से समुद्र तटीय भारतीय धरोहरों को बचा पाएगा।
12 - 18 जून 2017
लोककथा
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विश्व की प्रसिद्ध लोककथा
ए
क राजा था। नाम था मुन मू। उसके शत्रु उसे तंग करते रहते थे। इसीलिए उसने एक मंदिर बनवाना शुरू किया ताकि भगवान उसके राज्य पर विपत्ति न आने दें। लेकिन मंदिर पूरा बनने से पहले ही उसकी मौत हो गई। वह मर कर समुद्री ड्रैगन बन गया। उसके बाद उसका बेटा राजा बना। उसने कामुन मंदिर का निर्माण पूरा कराया। उसका नाम सिनमुन था। मंदिर के स्वर्ण कक्षा की ओर जाने वाली सीढ़ियों के नीचे एक गुफा थी। पूर्वी समुद्र में। इसी में आकर समुद्री ड्रैगन बैठता था। यही जगह थी जहां राजा मुन मू की अस्थियां रखी गई थीं। जिस जगह से समुद्री ड्रैगन को देखा जा सकता था उसे ‘ड्रैगन देखने वाला पर्वत’ का नाम दिया गया। एक बार एक अधिकारी पाक सुक चोंग ने सूचित किया कि एक छोटा पहाड़ लहरों पर तैर रहा था। वह पूर्वी समुद्र से कामुन मंदिर की ओर आ जा रहा था। राजा सिनमुन ने तुरंत ज्योतिषी को बुलाया और उस घटना का अर्थ जानना चाहा। ‘महाराज!’ ज्योतिषी ने बताया, ‘आपके महान पिता समुद्री ड्रैगन बन गए हैं। वे समुद्र में रहकर आपके राज्य की रक्षा कर रहे हैं। 33 स्वर्गों के बेटों में से एक जनरल किम यू सिन भी धरती पर उतर आया है। ये दोनों देवता आपको पवित्र खजाना देना चाहते हैं। इससे आपके राज्य की रक्षा होगी। अगर आप किनारे जाएंगे तो वहां आपको बहुमूल्य आभूषण मिलेंगे।’ यह जानकर राजा बहुत खुश हुआ। उसने किनारे की एक पहाड़ी से तैरते हुए पहाड़ को
जादुई बांसुरी
देखा। चकित होकर। एक तैराक को पहाड़ के नजदीक भेजा गया। उसने आकर बताया, ‘राजा! तैरते पहाड़ का ऊपरी हिस्सा कछुए जैसा है। उस पर एक बांस उगा है। दिन में बांस दो भागों में दो पौधों में बंट जाता है। लेकिन रात में बांस फिर एक हो जाता है।’ राजा को यह सब जानकर बहुत अचंभा हुआ। वह उस दिन कामुन मंदिर में ही सोया। अगले दिन दोपहर में उसने अचानक देखा कि बांस एक हो गया। आकाश और धरती तूफान से हिल उठे। कई दिनों तक हवाएं चलती रहीं, वर्षा होती रही, अंधेरा छाया रहा। यह सब कहीं सोलहवें दिन जाकर थमा। अब राजा एक नाव पर बैठा और जाकर समुद्री पहाड़ पर उतरा। वहां दैत्याकार ड्रैगन ने उसे एक काली पेटी भेंट दी। राजा ने पूछा, ‘श्रीमान ड्रैगन, मैं देखकर हैरान हूं कि कभी बांस टुकड़ों में बंट जाता है और कभी एक हो जाता है। ऐसा क्यों होता है?’ ड्रैगन ने कहा, ‘एक हाथ से ताली नहीं बजती। लेकिन दो हाथों से संगीत पैदा किया जा सकता है। ऐसे ही जब दो हिस्से मिलते हैं तो फटा बांस भी मधुर आवाज पैदा करता है। यह एक अच्छा शगुन है महाराज। आप अपनी प्रजा पर अच्छी तरह राज
करेंगे। इस बांस से आप बांसुरी बनवाएं। इसका मुधर संगीत आपके राज्य में खुशहाली और शांति लाएगा। यह जादुई बांस और दूसरी चीजें आपके महान पिता जो कि समुद्री ड्रैगनों के राजा हैं और जनरल किम यू सिन की ओर से उपहार हैं।’ राजा अपने भाग्य पर मुग्ध था। ड्रैगन की दयालुता से वह बहुत प्रभावित था। उसने उसे बदले में ढेर सारा सोना, रत्न और पंचरंगी जरी भेंट दी। राजा के एक आदमी ने बांस का एक टुकड़ा काटा और उसे जमीन पर ले आया। उधर ड्रैगन और पहाड़ धुंधले में ओझल हो गए। राजा भी राजमहल की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसे राजकुमार मिला। उसने खुश होकर कहा, ‘बधाई हो महाराज! ध्यान से देखिए। आपकी पेटी का एक-एक आभूषण जीवित ड्रैगन है!’ ‘तुम्हें कैसे मालूम?’ राजा ने हैरान होकर पूछा। ‘आप एक आभूषण को पानी में डालकर देखें।’ राजा ने पेटी पर से उतारकर एक आभूषण नदी में डाला। यह क्या? आभूषण अचानक ड्रैगन में बदला और स्वर्ग की ओर उड़ गया। नदी गहरा तालाब बन गई। राजा ने उसे ‘ड्रैगन झील’ नाम दिया।
राजा का जुलूस राजमहल पहुंच गया। बांस के टुकड़े से बांसुरी बनाई गई। यह बांसुरी सचमुच कमाल की थी। जादुई शक्ति से भरपूर। शत्रु आक्रमण करते तो बांसुरी बजाई जाती। शत्रु के छक्के छूट जाते। वे उल्टे पांव दौड़ जाते। बीमारियां बांसुरी के संगीत से रफूचक्कर हो गईं। अकाल समाप्त हो गया और मीठी वर्षा हुई। सूर्य चमका। शांत-शांत हवा बहने लगी और समुद्र भी शांत हो गया। राजा अपने महान पिता के आशीर्वाद से मिली बांसुरी को पाकर बहुत ही खुश था। उसने उसे नाम दिया-दस हजार लहरों को शांत करने वाली बांसुरी। उसे देश का सबसे बड़ा खजाना माना गया। राजा ने मन ही मन अपने स्वर्गीय पिता के प्रति आभार व्यक्त किया। उसे संतोष था कि उसने मंदिर निर्माण का, अपने पिता का अधूरा काम पूरा किया था। बड़ों का आदर करना और बड़ों का आशीर्वाद लेना क्या होता है, यह राजा की समझ में अच्छी तरह आ गया था। उसने कितने ही साल सुख-शांति से राज किया।
32 अनाम हीरो
12 - 18 जून 2017
अनाम हीरो प्रिंस मेहरा
प्रिंस की बर्ड एंबुलेंस
प
साइन बोर्ड बनाने वाले पेंटर प्रिंस से परिंदों की तकलीफ देखी नहीं जाती और इस तरह उन्होंने देश की पहली बर्ड एंबुलेंस बना डाली
क्षियों से प्यार तो सभी करते हैं, पर उनकी सेहत के लिए शायद ही कोई फिक्र करता है। चंडीगढ़ के साइन बोर्ड बनाने वाले पेंटर प्रिंस मेहरा को इसी बात ने प्रेरित किया और आखिरकार उन्होंने देश की पहली बर्ड एंबुलेंस बना डाली। प्रिंस घायल पक्षियों को दूर-दूर तक ढ़ूंढता है और फिर अपने बनाए एंबुलेंस में उनका इलाज करता है। उनकी बर्ड एंबुलेंस एक तरह का ई-बाइक है। इससे पहले वह कई साल तक घायल परिंदों की देखभाल के लिए साइकल को ही बर्ड एंबुलेंस के तौर पर इस्तेमाल कर रहा था। उनकी यह मुहिम दुनिया के सामने आई तो एक बैंक ने उन्हें वैन डोनेट करने की कोशिश की। प्रिंस ने वैन के पैट्रोल से फैलने वाले प्रदूषण से चिंतित होकर इसे लेने
से मना कर दिया तो उन्हें ई-बाइक दी गई। तब से प्रिंस इसी ई-बाइक पर बर्ड एंबुलेंस लेकर दूर-दराज तक आता-जाता है। प्रिंस ने बताया कि प्रकृति ने परिंदों को खुद का ख्याल रखने का गुण दिया है। इन निरीह प्राणियों को अगर किसी से खतरा है तो वे इंसान हैं। ज्यादातर पक्षी हम लोगों की गलतियों की वजह से मारे जाते हैं। वे अब तक 550 परिंदों का दाह संस्कार कर चुके हैं और असंख्य घायल परिंदों का जीवन बचा चुके हैं। गर्मियों में वे लोगों को पानी के कटोरे भी भेंट करते हैं, ताकि लोग इन्हें घरों की छत पर रखें और पक्षियों को पीने का पानी मिल सके। प्रिंस को उनकी इस अनूठी मुहिम के अब अवार्ड भी मिलने लगे हैं। लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में उनका नाम आ चुका है।
न्यूजमेकर
पवन का स्मार्ट डस्टबिन यूट्यूब देखकर बना दिया जहाज बीटेक के छात्र पवन कुमार ने बनाया सिम कार्ड से चलने वाला स्मार्ट डस्टबिन
पवन कुमार
स्व
च्छ भारत को लेकर देश भर में कई तरह के अभियान ही चल रहे हैं, इससे जुड़े कुछ दिलचस्प इनोवेशन भी देखने में आ रहे हैं। दिल्ली से लगे यूपी के गाजियाबाद के बीटेक छात्र पवन कुमार का स्मार्ट डस्टबिन इस लिहाज से काफी चर्चा में है। हाल में पवन ने भाजपा सांसद व पार्टी के दिल्ली अध्यक्ष मनोज तिवारी को यह डस्टबिन दिखाया, जो उन्हें काफी पसंद आया। उन्होंने जल्द ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस आविष्कार के बारे में बताने का भरोसा दिया है। साथ ही, पवन को इसके लिए पूरी तैयारी रखने के लिए कहा है। पवन अभी कंप्यूटर साइंस से बीटेक कर रहे हैं। पहले ही साल में टेक सेवी पवन ने स्मार्ट डस्टबिन तैयार किया है। महज 8 हजार रुपए खर्च करके तैयार हुए इस डस्टबिन के लिए कॉलेज की डायरेक्टर डॉ. भावना अग्रवाल
ने पवन को 5100 रुपए की मदद की थी। इस डस्टबिन में 2 सेंसर, डायोड, माइक्रो कंट्रोलर्स के साथ जीएसएम पैनल लगा है, जिसमें एक मोबाइल सिम लगाई जा सकती है। इस सिम का नंबर ही डस्टबिन की पहचान होगा। हर कूड़ेदान से 2 मोबाइल नंबर अटैच किए जा सकते हैं। पवन ने आईसी प्रोग्रामिंग के जरिए ऐसी कमांड सेट की है, जिससे कूड़ादान भरते ही दोनों अटैच्ड नंबरों पर मेसेज चला जाएगा। वहीं, जब तक कूड़ेदान को खाली नहीं किया जाएगा, वह हर 30 सेकड ं में मेसज े भेजता रहेगा। यह तकनीक प्लास्टिक या मेटल और हर तरह के डस्टबिन में काम कर सकती है। पवन के मुताबिक, स्मार्ट डस्टबिन को चलाने के लिए महज 15-20 वोल्ट पावर की जरूरत होती है, जिसके लिए कूड़ेदान पर सोलर प्लेट भी लगाई जा सकती है। ऐसे में अलग से बिजली का खर्च भी नहीं आएगा। इससे पहले 2015 में कमीज में सोलर प्लेट सेट करके कहीं भी मोबाइल चार्ज करने की तकनीक का आविष्कार पवन कर चुके हैं। इसके लिए पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें अपने आवास पर बुलाकर सम्मानित भी किया था।
कंबोडिया के कार मैकनि े क पेन लॉन्ग ने यूट्यूब वीडियो देखकर जहाज बना डाला
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ट्यू ब पर मनोरंजक ही नहीं, बल्कि कई शिक्षाप्रद वीडियो भी होते हैं। विभिन्न विषयों की पढ़ाई से लेकर नृत्य तक सब कुछ यहां से सीखा जा सकता है। पर क्या कोई व्यक्ति यूट्यूब विडियो देखकर जहाज बनाना भी सीख सकता है। जी हां, यह संभव है और यह कर दिखाया है कंबोडिया के कार मकैनिक पेन लॉन्ग ने। उन्होंने यूट्यूब से सीखकर न सिर्फ एक जहाज बना डाला, बल्कि उड़ान भी भर ली। दिलचस्प यह भी कि पेन ने यह जहाज रीसाईकल्ड चीजों से बनाया है। उनका यह एक तरह से बचपन का सपना था, पर उन्हें डर था कि अगर किसी को इसके बारे में पता चल गया तो वे उनका मजाक बनाएंगे। पेन ने चुपचाप अपने बचाए हुए पैसे से जहाज बनाना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने यूट्यूब पर जहाज बनाने से लेकर उसे उड़ाने तक के ढेर सारे वीडियो देखे। पुराने जापानी मॉडल पर आधारित पेन
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 1, अंक - 26
पेन लॉन्ग के जहाज में 5.5 विंग स्पैन है। इसमें एक प्लास्टिक की एक कुर्सी भी लगी है और कार के डैशबोर्ड को जहाज के कंट्रोल पैनल को तौर पर इस्तेमाल किया गया है। पूरे गांव के सामने अपनी पहली उड़ान में पेन का जहाज 50 मीटर तक ही उड़ सका। पर उन्होंने हिम्मत नहीं छोड़ी। वे अपने जहाज पर 10 हजार डॉलर से भी ज्यादा खर्च कर चुके हैं। उम्मीद है कि कुछ ही दिनों में उनके पास जहाज का अपना मॉडल होगा, जो खासा किफायती होगा। इससे आगे पेन की योजना पानी का जहाज बनाने की भी।’