सुलभ स्वच्छ भारत (अंक - 44)

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वर्ष-1 | अंक-44 | 16 - 22 अक्टूबर 2017

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

sulabhswachhbharat.com

12 लोक कला

स्टेशन पर पेंटिंग

स्टेशन पर दिखेगी मधुबनी पेंटिंग की छटा

18 फोटो फीचर

फुटबॉल का कुंभ

22 स्वच्छता

भारत में फीफा अंडर-17 वर्ल्ड कप का आयोजन

मायके में दिवाली

शौचालय के लिए ब​हुएं ससुराल में नहीं मनाएंगी दिवाली

ममता का आलिंगन

सेवा और करुणामय आलिंगन से मानव कल्याण की राह दिखा रहीं माता अमृतानंदमयी देवी भारतीय अध्यात्म और दर्शन परंपरा को वैश्विक प्रसार दे रही हैं। अपने श्रद्धालुअों के बीच ‘अम्मा’ के रूप में लोकप्रिय माता अमृतानंदमयी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए स्वच्छता मिशन में भी बड़ी भूमिका निभा रही हैं


02 आवरण कथा

ममता और आलिंगन का दिव्य दर्शन 16 - 22 अक्टूबर 2017

सेवा और करुणामय आलिंगन से मानव कल्याण की राह दिखा रहीं माता अमृतानंदमयी देवी भारतीय अध्यात्म और दर्शन परंपरा को वैश्विक प्रसार दे रही हैं। अपने श्रद्धालुअों के बीच ‘अम्मा’ के रूप में लोकप्रिय माता अमृतानंदमयी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए स्वच्छता मिशन में भी बड़ी भूमिका निभा रही हैं

मा

एसएसबी ब्यूरो

ता अमृतानंदमयी देवी की पूरी दुनिया में ख्याति जहां एक अाध्यात्मिक गुरु के तौर पर है, वहीं वह क्रोध, घृणा और हिंसा के खिलाफ प्रेम के प्रति वैश्विक आस्था बढ़ाने में लगातार लगी हैं। माता अमृतानंदमयी देवी को श्रद्धा से लोग अम्मा कहते हैं। इसी नाम से उनकी भारत सहित पूरी दुनिया में ख्याति भी है। भारतीय अध्यात्म के आधुनिक व्याख्याकारों की नजर में अम्मा ने भारतीय अध्यात्म दर्शन के इस मूल सिद्धांत को अपने उपदेश का आधार बनाया, जिसमें सबके लिए प्रेम और करुणा ही एक अच्छे मनुष्य की पहचान है। अम्मा के बारे में यह भी मशहूर है कि वह लोगों को गले लगाकर आशीर्वाद देती हैं।

मान्यता है कि उनके ऐसा करने से व्यक्ति के दुखतकलीफ तो कम हो ही जाते हैं, वह हर तरह से विकार-मुक्त अनुभव करने लगता है। लोग अम्मा की इस खूबी को उनकी दिव्य शक्ति मानते हैं। अम्मा के तौर पर शक्ति का यह प्रकटीकरण भारतीय अध्यात्म धारा का ही कहीं न कहीं विकास है। अम्मा के रूप में जब हम इस शक्ति को देखते हैं तो इससे भारतीय अाध्यात्मिक दर्शन की वह परंपरा भी सहज ही जुड़

जाती है, जिसमें नारी और शक्ति को एकल तौर पर देखा गया है।

भारतीय दर्शन में शक्ति की कल्पना

दरअसल, भारतीय आध्यात्मिक परंपरा और दर्शन में शक्ति की कल्पना नई नहीं है। आदि शक्ति, परम शक्ति, महादेवी, महाशक्ति आदि के महात्मय और पूजन की परंपरा प्राचीन है। शक्ति का भारतीय

अम्मा कभी-कभी अचानक ही लोगों को दुख से राहत पहुंचाने के लिए उन्हें गले से लगा लेती थीं। यह तब की बात है जब एक 14 वर्ष की कन्या को किसी को भी स्पर्श करने से सामाजिक परंपरा के हिसाब से रोका जाता था

एक नजर

अम्मा का जन्म केरल के पर्यकडवु गांव में 1953 में हुआ था

माता अमृतानंदमयी देवी का बचपन का नाम सुधामणि इदमन्नेल है 1981 में अम्मा ने एक मठ स्थापित किया, जो उनके ही नाम पर है

दर्शन मानता है कि चाहे अलौकिक शक्ति की बात करें या जागतिक, उसका आदि स्रोत पूरे ब्रह्मांड में नारी ही है। सर्जन से लेकर संहार तक यही शक्ति अंतिम और नियामक है। बड़ी बात यह है कि शक्ति


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परिवर्तन और आलिंगन का साझा दर्शन

‘लोगों को प्रभावित करने के द्वारा, आप इस समाज में परिवर्तन ला सकते हैं और इसके द्वारा इस संसार में परिवर्तन लाया जा सकता’

ब 2002 में अम्मा से यह पूछा गया कि उन्हें क्या लगता है उनका आलिंगन किस हद तक दुनिया के बीमारों की सहायता करता है? अम्मा ने कहा, ‘मैं यह नहीं कहती कि मैं इनकी समस्याओं का 100 प्रतिशत समाधान कर को लेकर यह प्रतिस्थापना निर्गुण और सगुण दोनों ही मान्यताओं से समान रूप से जुड़ी है। यहां तक कि प्रकृति को भी देखें तो यह भी तो नारी शक्ति का ही एक रूप है। शक्ति को लेकर यह व्याख्या भी दिलचस्प है कि आदिशक्ति मूलत: तीन रूप में विभक्त है- माया, महामाया और योगमाया। इसे दूसरे रूप में हम तमोगुण, रजोगुण और सत्वगुण के तौर पर समझ सकते हैं। साफ है कि आकार या अस्तित्व के रूप में हम जो भी देखते हैं, उसके स्रोत और केंद्र में अंतिम रूप से नारी शक्ति ही है। इसके अलावा भी हम देखें तो पाएंगे कि पृथ्वी, प्रकृति, चंद्रमा, खगोलगंगा के रूप में जो भी ब्रह्मांडीय शक्तियां हैं, उसका हमारे जन्म, लालन-पालन और उसके आगे पूरे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मानव गुण की श्रेष्ठता के साथ त्याग जैसी भावना इन शक्तियां की प्रेरणा से ही हमारे भीतर विकसित होती है।

अम्मा का जीवन

माता अमृतानंदमयी देवी का जन्म केरल के छोटे से गांव पर्यकडवु (जो अब अमृतापुरी के नाम से भी जाना जाता है) में 1953 में सुधामणि इदमन्नेल के रूप में हुआ था। नौ वर्ष की आयु में उनका विद्यालय जाना बंद हो गया था और वे पूरे समय अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल और घरेलू काम करने लगीं। इन कार्यों के एक हिस्से के रूप में सुधामणि अपने परिवार की गायों-बकरियों के लिए अपने पड़ोसियों से बचा हुआ भोजन एकत्र करती थीं। अम्मा बताती हैं कि उन दिनों वे अत्यधिक निर्धनता और अन्य लोगों के कष्टों के कारण अत्यधिक दुख से गुजर रही थीं। वे अपने घर से इन लोगों के लिए वस्त्र और खाना लाती थीं। उनका परिवार, जो कि

सकती हूं। इस संसार को पूरी तरह से परिवर्तित करने का प्रयास करना ठीक वैसा ही है, जैसे कुत्ते की टेढ़ी पूंछ को सीधा करना, लेकिन लोगों से ही समाज का जन्म होता है। इसीलिए लोगों को प्रभावित करने के द्वारा, आप इस समाज में परिवर्तन ला सकते हैं और इसके द्वारा इस संसार में परिवर्तन लाया जा सकता है। आप परिवर्तन ला सकते हैं, पर इसे पूरी तरह परिवर्तित नहीं कर सकते। प्रत्येक व्यक्ति के मानस में चलने वाला युद्ध ही वास्तविक युद्धों के लिए उत्तरदायी है। इसीलिए यदि आप लोगों को स्पर्श कर सकते हैं, तो अाप इस विश्व को भी धनवान नहीं था, इसके लिए उन्हें डांटता और दंडित करता था।

मठ की स्थापना

माता-पिता द्वारा उनके विवाह के कई प्रयास के बावजूद अम्मा इसके लिए कभी तैयार नहीं हुईं। जब अनेकों जिज्ञासु पर्यकडवु में आकर अम्मा के सान्निध्य में रहने लगे तो 1981 में वहां उनके

स्पर्श कर सकते हैं।’ अम्मा का यह दर्शन ही उनके जीवन का केंद्र है क्योंकि 1970 के उत्तरार्ध से वह लगभग प्रतिदिन ही लोगों से मिलती हैं। इसके साथ ही अम्मा का आशीर्वाद पाने के लिए आने वाले लोगों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है, कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि वह लगातार 20 घंटों तक दर्शन देती रहती हैं। 2004 की एक पुस्तक ‘फ्रॉम अम्माज हार्ट’ में अंकित संवाद में अम्मा कहती हैं, ‘जब तक मेरे ये हाथ जरा भी हिल पाने और मेरे पास आने वाले लोगों तक पहुंच पाने में समर्थ रहेंगे और जब तक मुझमें रोते हुए व्यक्ति के कंधे पर अपना हाथ रखने और पर प्रेम से हाथ फेरने तथा उनके आंसू पोंछने की शक्ति रहेगी, तब तक यह अम्मा दर्शन देती रहेगी। इस नश्वर संसार का अंत होने तक, लोगों पर प्रेम से हाथ फेरना, उन्हें सांत्वना देना और उनके आंसू पोंछना, यही अम्मा की इच्छा है।’ नाम से एक मठ की स्थापना की गई। आज माता अमृतानंदमयी मठ अनेकों आध्यात्मिक और धर्मार्थ गतिविधियों से तत्पर भाव से जुड़ा है। श्रद्धालुओं के काफी आग्रह पर 1987 से अम्मा देश और देश से बाहर अपने कार्यक्रम आयोजित करने लगीं।

स्पर्श शक्ति

अम्मा कभी-कभी अचानक ही लोगों को दुख

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से राहत पहुंचाने के लिए उन्हें गले से लगा लेती थीं। यह तब की बात है जब एक 14 वर्ष की कन्या को किसी को भी स्पर्श करने से सामाजिक परंपरा के हिसाब से रोका जाता था। यह मनाही खास तौर पर पुरुषों को स्पर्श करने को लेकर थी। मातापिता के रोक-टोक के बावजूद अम्मा ऐसा करती रहीं। दूसरों को गले लगाने की बात पर अम्मा कहतीं, ‘मैं यह नहीं देखती कि वह एक स्त्री है या पुरुष। मैं किसी को भी स्वयं से भिन्न रूप में नहीं देखती। मुझसे संसार की सभी रचनाओं की ओर निरंतर प्रेम धारा बहती है। यह मेरा जन्मजात स्वभाव है। एक चिकित्सक का कर्तव्य रोगियों का उपचार करना होता है। इसी तरह मेरा कर्तव्य उन लोगों को सांत्वना देना है, जो कष्ट में हैं।’

अम्मा का दर्शन

संस्कृत में ‘दर्शन’ का अर्थ होता है 'देखना'। आदर्श रूप में यह किसी मंदिर में एक ईश्वर की छवि में उस पवित्र व्यक्ति या वस्तु के दर्शन के सदृश होता है। अम्मा किशोरावस्था से ही इस तरह से दर्शन दे रही हैं। अम्मा ध्यान, कर्म योग पर आधारित क्रियाओं, आत्म नियंत्रण आदि के महत्व पर भी बल देती हैं। अम्मा कहती हैं कि इन गुणों का अभ्यास हमारे मष्तिष्क को परिष्कृत करता है, इसे अंतिम सत्य को आत्मसात करने के योग्य बनाता है। बात करें अम्मा के दर्शन की तो यह भारतीय अध्यात्म के मूल दर्शन के काफी करीब है। यह भी कह सकते हैं कि यह उससे अभिप्रेरित है और इसे अम्मा ने नए जीवन संदर्भों और चुनौतियों को देखते हुए अपनी तरफ से कुछ और सहजता प्रदान की है। संस्कृत में दर्शन का अर्थ होता है 'देखना'। हिंदू पारंपरिक प्रथा में यह पवित्र व्यक्ति या वस्तु को देखने की ओर संकेत करता है। आदर्श रूप में यह किसी मंदिर में एक ईश्वर की छवि में उस पवित्र


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व्यक्ति या वस्तु के दर्शन के सदृश होता है। किसी देवता की छवि देखने में दर्शनकर्ता अपनी आंखों के माध्यम से उस देवता की शक्तियों को ग्रहण करते हैं। अतः दर्शन में दर्शनकर्ता को सौभाग्य, कल्याण और ईश्वरीय प्रभाव प्रदान करने की क्षमता होती है। अम्मा के अनुयायी इस शब्द का प्रयोग विशिष्ट रूप से प्रेमपूर्वक आलिंगन किए जाने के बेहद मांगपूर्ण संस्कार के लिए करते हैं। अम्मा अपनी किशोरावस्था से ही इस तरह से दर्शन दे रही हैं। यह प्रथा किस प्रकार शुरू हुई इस बारे में वह बताती हैं, ‘लोग यहां आकर अपनी समस्याओं के बारे में बताया करते थे। वे रोते थे और मैं उनके आंसू पोंछा करती थी। जब वे रोतेरोते मेरी गोद में गिर जाया करते थे, तो मै उन्हें गले से लगा लेती थी। फिर अगला व्यक्ति भी मुझसे ऐसे ही व्यवहार की उम्मीद रखता था। इस तरह से यह रिवाज बन गया।’ अम्मा का संगठन, माता अमृतानंदमयी मठ यह दावा करता है कि अम्मा ने

इस दुनिया के 29 मिलियन से भी अधिक लोगों को अपने गले से लगाया है। पुस्तक ‘द टाइमलेस पाथ’ में अम्मा के एक वरिष्ठ शिष्य स्वामी रामकृष्णनंदा पुरी लिखते हैं, ‘अम्मा द्वारा मन में बैठाया गया आध्यात्मिक पाठ ठीक वैसा ही है जैसा कि हमारे वेदों में दिया गया है और उनके बाद के पारंपरिक धार्मिक ग्रंथों में संक्षेप में दोहराया गया है जैसे भगवदगीता।’ अम्मा स्वयं ही कहती हैं, ‘कर्म, ज्ञान और भक्ति यह तीनों ही आवश्यक हैं। यदि भक्ति और कर्म एक पक्षी के दो पंख हैं तो ज्ञान उसका अंत सिरा है। इन तीनों की सहायता से ही पक्षी उंचाइयों तक पहुंच सकता है।’ अम्मा सभी धर्मों की विभिन्न प्रार्थनाओं और आध्यात्मिक परिपाटियों को मन के निर्मलीकरण के एकमात्र उद्देश्य के लिए विविध पद्धतियों के रूप में देखती हैं। इसके साथ ही अम्मा ध्यान, कर्म योग पर आधारित क्रियाओं, परोपकार और करुणा, धैर्य, दया, आत्म नियंत्रण जैसे दैवीय गुणों के विकास के महत्व पर भी बल देती हैं, अम्मा कहती हैं कि इन गुणों का अभ्यास हमारे मष्तिष्क को परिष्कृत करता है, इसे अंतिम सत्य को आत्मसात करने के योग्य बनाता है। अम्मा के मुताबिक अंतिम सत्य यह है कि हमारा अस्तित्व इस शरीर और मानस की सीमा में सीमित नहीं हैं, अपितु यह एक आनंदमय चेतना है, जो इस ब्रह्मांड के अद्वैत अधःस्तर के रूप में कार्य करती है। अपने इस विचार को ही अम्मा जीवनमुक्ति कहती हैं। अम्मा कहती हैं, ‘जीवनमुक्ति कोई ऐसी अवस्था नहीं है, जिसे मृत्यु के बाद प्राप्त किया जाए और न ही आपको इसका अनुभव या प्राप्ति किसी दूसरे संसार में होगी। यह पूर्ण चेतना और समवृत्ति की एक अवस्था है, जिसका अनुभव इस जीवित शरीर को धारण किये हुए ही इसी संसार में अभी ही किया जा सकता है। अपने ‘स्व’ के साथ एकीकृत होकर इस उच्चतम सत्य का अनुभव करने के बाद, ऐसी आनंदमय आत्म को पुनः जन्म लेने की आवश्यकता नही होती। वह अनंत चेतना के साथ एकीकृत हो जाती है।’

1993 1993 1998

पुरस्कार और सम्मान

'प्रेसिडेंट ऑफ द हिंदू फेद' (पार्लियमेंट ऑफ द वर्ल्ड रिलिजन्स) हिंदू पुनर्जागरण पुरस्कार (हिंदू धर्म आज)

केयर एंड शेयर इंटरनेशनल ह्यूमैनिटेरियन ऑफ द इयर अवॉर्ड (शिकागो)

द वर्ल्ड मूवमेंट फॉर नॉनवायलेंस द्वारा अहिंसा के लिए गांधी-किंग अवॉर्ड (संयुक्त राष्ट्र, जेनेवा)

2002 2002

2005 2005 2006 2006 2007 2010

धर्मार्थ मिशन

कर्म योगी ऑफ द इयर (योग जर्नल)

महावीर महात्मा अवॉर्ड (लंदन)

सेंटेनरी लिजेंड्री अवॉर्ड ऑफ द इंटरनेशनल रोटैरियंस (कोचीन)

जेम्स पार्क मॉर्टन इंटरफेथ अवॉर्ड (न्यूयॉर्क)

द फिलॉसफर सेंट श्री ज्ञानेश्वर वर्ल्ड पीस प्राइज (पुणे) ले प्रिक्स सिनेमा वेरिट (सिनेमा वेरिट, पैरिस)

अपने बफैलो कैंपस में 25 मई 2010 को मानवीय पत्र में स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क ने अम्मा को मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया

अम्मा के विश्वव्यापी धर्मार्थ मिशन में बेघर लोगों के लिए 100,000 घर, 3 अनाथ आश्रम बनाने का कार्यक्रम और 2004 में भारतीय सागर में सुनामी जैसी आपदाओं से सामना होने की अवस्था में राहत-और-पुनर्वास, मुफ्त चिकित्सकीय देखभाल, विधवाओं और असमर्थ व्यक्तियों के लिए पेंशन, पर्यावरणीय सुरक्षा समूह,

मलिन बस्तियों का नवीनीकरण, वृद्धों के लिए देखभाल केंद्र और गरीबों के लिए मुफ्त वस्त्र और भोजन आदि कार्यक्रम सम्मिलित हैं। ये परियोजनाएं अनेकों संगठनों द्वारा संचालित की जाती हैं, जिसमे माता अमृतानंदमयी मठ (भारत), माता अमृतानंदमयी सेंटर (संयुक्त राज्य अमेरिका), अम्मा-यूरोप, अम्मा-जापान, अम्माकेन्या, अम्मा-ऑस्ट्रेलिया आदि शामिल हैं। यह सभी संगठन संयुक्त रूप से एम्ब्रेसिंग द वर्ल्ड (विश्व को गले लगाने वाले) के रूप में जाने जाते हैं। जब उनसे यह पूछा गया कि उनके धर्मार्थ मिशन का विकास कैसा चल रहा है तो अम्मा ने कहा, ‘जहां तक गतिविधियों की बात है यह किसी योजना पर आधारित नहीं हैं। सब कुछ सहज रूप से होता है। गरीबों और व्यथित लोगों की दुर्दशा देखकर एक कार्य ही दूसरे कार्य का माध्यम बना। अम्मा प्रत्येक व्यक्ति से मिलती हैं, वे प्रत्यक्ष ही उनकी समस्याओं को देखती हैं और उनके कष्टों को दूर करने का प्रयास करती हैं।’ ‘ॐ लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु’, यह सनातन धर्म के प्रमुख मंत्रों में से एक है, जिसका अर्थ होता है, 'इस संसार के सभी प्राणी प्रसन्न और शांतिपूर्ण रहें।' इस मंत्र की भावना को अम्मा अपने और सबके लिए ही कर्म का माध्यम बताने की प्रेरणा मानती हैं। अपने अनुयायियों और स्वयंसेवकों के लिए अम्मा की इच्छा है कि उनके सभी बच्चे इस विश्व में प्रेम और शांति के प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दें। अम्मा कहती हैं, ‘गरीबों तथा पीड़ितों के लिए सच्ची करुणा ही ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम और भक्ति है। मेरे बच्चे उन्हें भोजन कराते हैं


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करुणा से संवाद

‘हमारे जीवन में करुणा का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। यह हमारे द्वारा उठाया गया पहला कदम है’

ध्यात्मिक गुरु माता अमृतानंदमयी देवी ने अमेरिका में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि अध्यात्‍म का रास्ता करुणा के साथ ही शुरू और समाप्त होता है। उन्होंने कहा कि मानव की गणना गलत हो सकती है, लेकिन सच्ची करुणा से जन्मे कार्य हमेशा सही होंगे। इस अवसर पर अम्मा ने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर कम्पैशन एंड अल्ट्ररूइज्म रिसर्च एंड एजुकेशन (सीसीएआरई) के संस्थापक और निदेशक तथा प्रमुख न्यूरोसर्जन और समाजसेवी डॉ. जेम्स डॉटी के साथ आध्यात्मिकता पर बातचीत की। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के 1700 सीट वाले मेमोरियल हॉल में चल रहे सीसीएआरई के 'करुणा पर संवाद' श्रृंखला के तहत अम्मा ने अपने 90 मिनट की बातचीत में कहा कि मेरी नजर में हमारे जीवन में करुणा का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। यह हमारे द्वारा उठाया गया पहला कदम है। यदि हम डर के बिना हिम्मत से इस दिशा में पहला कदम उठाते हैं, तो हमारे सभी निर्णयों और बाद के कार्यों और उनके परिणामों में विशेष सौंदर्य, सहजता और शक्ति निहित होगी। डॉ. डॉटी के सवालों का जवाब देते हुए अम्मा ने कहा कि मानव की गणना गलत हो सकती है, लेकिन सच्ची करुणा से जन्मे कार्य हमेशा सही होंगे। उन्होंने कहा कि ऐसा इसीलिए है क्योंकि दया प्रकृति का नियम है, भगवान की शक्ति है और रचना का केंद्र है। जब हम करुणा के साथ मानव मन का तालमेल बिठाते हैं, तब हम व्यक्ति के रूप में, वास्तव में लंबे समय तक कार्यों का प्रदर्शन नहीं कर रहे होते हैं, बल्कि हमारे द्वारा केवल सृजन के माध्यम से कार्य करने के लिए अनुमति मिल रही होती है और यह करुणा की शक्ति है। वास्तव में आध्यात्‍म का रास्ता करुणा के साथ ही शुरू और समाप्त होता है।

नमो का नमन

मो

प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत अभियान में अम्मा को गंगा नदी घाटी के पांच राज्यों के गांवों में शौचालय निर्माण परियोजना शुरू करने का आग्रह किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया

दी और अम्मा ने 28 मार्च, 2015 को पहली बार स्वच्छ गंगा परियोजना में मठ की भागीदारी को लेकर चर्चा की थी। बैठक के दौरान मठ की पर्यावरणीय पहल के लिए प्रधानमंत्री ने अम्मा की सराहना की थी। श्री माता अमृतानंदमयी देवी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके आवास पर मुलाकात की थी एवं उन्हें आर्शीवाद दिया था। अम्मा ने खासतौर पर नमामि गंगे कार्यक्रम में

अपनी गहरी रूचि दिखाई। प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत अभियान में माता अमृतानंदमयी के वृहत सहयोग के लिए उन्हें धन्यवाद दिया और उनसे गंगा नदी घाटी के पांच राज्यों के गांवों में शौचालय निर्माण परियोजना शुरू करने का आग्रह किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। माता अमृतानंदमयी मठ ने 2010 में अमला भारतम अभियान (एबीसी) की शुरूआत की

‘मैं यह नहीं देखती कि वह एक स्त्री है या

पुरुष। मैं किसी को भी स्वयं से भिन्न रूप में नहीं देखती। मुझसे संसार की सभी रचनाओं की ओर निरंतर प्रेम धारा बहती है’

जो भूखे हैं, गरीबों की सहायता करते हैं, दुखी लोगों को सांत्वना देते हैं, पीड़ितों को राहत पहुंचाते हैं और सभी के प्रति दानशील हैं।’

भक्ति संगीत

अम्मा अपने भक्ति संगीत के लिए भी बहुत प्रसिद्ध हैं। उनके द्वारा गाए भजनों की 100 से अधिक रिकॉर्डिंग, 20 से भी अधिक भाषाओँ में उपलब्ध हैं। उन्होंने दर्जनों भजनों की रचना की है और उन्हें पारंपरिक रागों के अनुसार ढाला है। भक्ति गीतों को

आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में गाए जाने के संबंध में अम्मा कहती हैं, ‘यदि भजनों को एकाग्रता के साथ गाया जाए तो यह गायक, श्रोता और प्रकृति के लिए लाभप्रद होता है। बाद में जब श्रोता भजन पर विचार करते हैं तो वे भजनों में उच्चारित पाठों के अनुरूप रहने का प्रयास करते हैं।’ अम्मा कहती हैं कि आज के संसार में, प्रायः लोगों के लिए ध्यान के दौरान एकाग्र होना कठिन हो जाता है, लेकिन भक्ति गायन के द्वारा यह एकाग्रता सरलता से प्राप्त की जा सकती है।

थी जिसका लक्ष्य देश के पावन सौंदर्य को पुन: स्थापित करना और लोक कल्याण था। इस अभियान के तहत लाखों कार्यकर्ता नियमित रूप से सार्वजनिक स्थानों की सफाई करते हैं और स्कूलों में कचरे के निपटान के सही तरीकों के बारे में जागरुकता फैलाते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले साल अम्मा को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अम्मा को उनके जन्मदिन की बधाई भी दे चुके हैं।

पुस्तक और पत्रिकाएं

अम्मा के शिष्यों ने भक्तों और आध्यात्मिक अन्वेषणकर्ताओं के साथ उनके संवादों को लिपिबद्ध करके उनकी शिक्षाओं की लगभग एक दर्जन पुस्तकों का निर्माण किया है। उन्होंने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय सभाओं में जो भाषण दिए हैं, उन्हें भी पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया है। स्वामी रामकृष्णनंद पुरी सहित अन्य वरिष्ठ शिष्यों, स्वामी तुरियामृतनंद पुरी, स्वामी परमात्मानंद और स्वामी कृष्णमित्रनंद प्राण सहित अन्य वरिष्ठ शिष्यों ने भी अम्मा के साथ अपने अनुभवों और अम्मा की शिक्षाओं के संबंध में पुस्तकें लिखी हैं। माता अमृतानंदमयी मठ के उपाध्यक्ष, स्वामी अमृतास्वरुपनंद पुरी ने अम्मा की एक जीवनी भी लिखी है। माता अमृतानंदमयी मठ ‘मातृवाणी’ और एक चतुर्मासिक पत्रिका ‘इमोर्टल ब्लिस’ का भी प्रकाशन करता है, जो कि एक आध्यात्मिक पत्रिका है।


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अम्मा के शब्दों में अम्मा की प्रेरणा माता अमृतानंदमयी देवी का जितना व्यक्तित्व सहज और प्रेमल हैं, वैसे ही उनके शब्द भी हैं। पर ये शब्द साधारण होते भी असाधारण हैं, क्योंकि इनमें शांति और कल्याण का मंत्र छिपा हुआ है

मेरी प्रार्थना

कृ

‘आज, प्रार्थना एवं साधना की पहले से कहीं अधिक आवश्यकता है। लोग ऐसा सोचते हैं कि केवल मेरे प्रार्थना करने से क्या लाभ हो सकता है। ऐसी सोच ही गलत है’

पया विश्व को एक रेगिस्तान न बनाएं! हम इस धरती से प्रेम व करुणा लुप्तप्राय होने नहीं दे सकते। यदि ऐसा हुआ तो मनुष्य ही नहीं रहेगा, मनुष्य के रूप में पशु रह जायेगा। वर्तमान स्थिति स्थिति को देखते हुए, अम्मा को संदेह होने लगता है कि कदाचित शांति तथा एकता चाहने वाले लोगों की संख्या दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है। क्या मनुष्य जान-बूझ कर अपने भीतर पाशविक-वृत्तियों को बढ़ावा दे रहा है? अथवा वो मौजूदा परिस्थितियों का असहाय शिकार हो गया है? कारण जो भी हो, केवल मनुष्य के सामर्थ्य में विश्वास रखना गलत होगा। हमें परमात्मा के सामर्थ्य की आवश्यकता होगी। परमात्मा की शक्ति कहीं बाहर नहीं, हमारे भीतर है, केवल हमें इसे जागृत करना है। जिस शांति की हम आशा करते हैं, वो कोई अध्यारोपित शांति नहीं और न ही मृत्योपरांत प्राप्त होने वाली कोई वस्तु है। यह वो शांति

है जिसका समाज में तब प्राकट्य होता है जब सब अपने-अपने धर्म पर अटल रहते हों। प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे में अपनी आत्मा का ही दर्शन करते हुए दूसरे का सम्मान करना चाहिए। आज प्रार्थना एवं साधना की पहले से कहीं अधिक आवश्यकता है। लोग ऐसा सोचते हैं कि केवल मेरे प्रार्थना करने से क्या लाभ हो सकता है। ऐसी सोच ही गलत है। प्रार्थना द्वारा हम प्रेम के बीज बो रहे हैं। पूरे रेगिस्तान में एक भी फ़ूल खिले तो कुछ तो होगा। वहां एक भी वृक्ष उगाया जाए तो क्या थोड़ी सी छाया नहीं देगा? बच्चों, यह सदा याद रहे - प्रार्थना प्रेम है और प्रेम ही के माध्यम से विश्व भर में शुद्ध प्रेम की तरंगें हिलोरें लेने लगती हैं। आतंकवादियों, युद्ध-संबंधी प्रवृत्ति तथा आपराधिक-प्रवृत्ति वाले लोगों के हृदय प्रेम व करुणा से रिक्त हो गए हैं। ईश्वर करे कि करोड़ों लोगों की प्रार्थनाओं के फलस्वरूप

वातावरण प्रेम तथा करुणा से सिक्त हो उठे ताकि उनके दृष्टिकोण में थोड़ा सा परिवर्तन तो आये। आज विश्व को आवारा हाथी जैसे जीने वाले स्वार्थी लोगों की आवश्यकता नहीं है, जिन्हें हत्या, लूटपाट के सिवा कुछ और नहीं आता। यह तो अहंकार की भाषा है। आज हमें आवश्यकता है प्रेम व करुणा से लबालब भरे हृदयों की जो समाज की असली ताक़त हैं। उन्हीं के हाथों समाज का उत्थान सम्भव है। मेरा स्वप्न है कि कम-से-कम एक रात के लिए ही सही, विश्व का प्रत्येक व्यक्ति भय-मुक्त हो कर सो सके। प्रत्येक व्यक्ति को कम-से-कम एक दिन भरपेट भोजन प्राप्त हो। कम-से-कम एक दिन ऐसा हो जब एक भी व्यक्ति हिंसा के कारण अस्पताल का मुंह न देखे। कम-से-कम एक दिन निस्स्वार्थ सेवा द्वारा, प्रत्येक व्यक्ति गरीबों, ज़रूरतमंदों की सहायता करे। मेरी प्रार्थना है कि कम-से-कम उनका यह छोटा सा स्वप्न साकार हो!

पूजा और स्त्री

‘मंदिरों में पूजा को लेकर लिंग-भेद का कोई स्थान नहीं है। कम-से-कम परमात्मा के सम्मुख जा कर तो इस भेद-दृष्टि का तिरस्कार करें’

कु

छ वर्ष पूर्व इस बात पर भारी विवाद उठ खड़ा हुआ था कि महिलाओं को शबरीमाला मंदिर में जाने की अनुमति होनी चाहिए अथवा नहीं। क्योंकि मंदिर घने जंगल के भीतर स्थित है और वो भी खड़ी ढाल वाली पहाड़ी के शिखर पर, अतः वहां तक यात्रा कर के जाना प्रायः दुष्कर व खतरनाक हुआ करता था। जंगली हाथी तथा भेड़िए मंदिर के रास्ते में घूमते-फिरते रहते थे और लोगों को कई दिनों तक पैदल यात्रा करनी पड़ती थी। ऐसे में यदि तीर्थयात्रियों के दल में महिलाएं भी होतीं तो यात्रा और अधिक कठिन हो जाती। कदाचित यही कारण था कि महिलाओं को शबरीमला जाने की अनुमति नहीं दी

जाती थी। किंतु बात यहीं समाप्त नहीं हो जाती। ऐसी समस्याओं में आध्यात्मिक आचार्यों का परामर्श लेना आवश्यक है। वेदों व शास्त्रों में निर्धारित आचारसंहिता धर्म की आधार-स्तंभ है, इन आचारों की अवमानना का अर्थ होगा सर्वनाश को गले लगाना। स्त्री व पुरुष दोनों को ही पूजा-उपासना हेतु समान स्वातंत्र्य होना चाहिए। ब्रह्मस्थान मंदिरों में मैं ब्रह्मचारिणियों को शास्त्रीय नियमों के अनुसार पूजा आदि के लिए प्रोत्साहन देती हूं। इन मंदिरों में पूजा को लेकर लिंग-भेद का कोई स्थान नहीं है। कम-सेकम परमात्मा के सम्मुख जा कर तो इस भेद-दृष्टि का तिरस्कार करें!


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आवरण कथा

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जहां अहंकार, वहां सौंदर्य नहीं मातृत्व स्वयं में ब्रह्मांड

‘मातृत्व स्वयं में ब्रह्मांड सदृश एक बहुत विशाल व्यवस्था है। मातृत्व-शक्ति के बल पर एक स्त्री समस्त विश्व को प्रभावित कर सकती है’

समान हैं। वे एक पक्षी स्त्री-पुके रुदोष दोनों पंखों जैसे हैं। किस आंख,

दाईं या बाईं, को अधिक महत्वपूर्ण कहेंगे? दोनों का अपना-अपना महत्व है। समाज में ऐसा ही दर्जा है स्त्री-पुरुष का! दोनों को ही अपने-अपने धर्म के प्रति जागरूक रहते हुए, एक-दूसरे का सहारा बनना चाहिए। इसी प्रकार हम विश्व में सामंजस्य बनाये रख सकते हैं। यदि स्त्री और पुरुष एक दूसरे की संपूरक शक्तियां बनकर, मिलजुल कर परस्पर आदर सहित आगे बढ़ें तो पूर्णत्व को प्राप्त होंगे। वस्तुतः पुरुष स्त्री का ही अंश हैं। प्रत्येक शिशु सर्वप्रथम माता के गर्भ में, उसके अस्तित्व का ही अंग बन कर रहता है। जहां तक जन्म का संबंध है, पुरुष की एकमात्र भूमिका बीज डालने की ही है। उसके लिए यह भोग-सुख के क्षण मात्र से अधिक कुछ नहीं, जबकि स्त्री के लिए इसके आगे नौ-माह की कठिन तपस्या होती है। इस जीवन को ग्रहण, धारण कर स्त्री ही इसे अपने अस्तित्व का अंश बना कर रखती है तथा अपने भीतर उसके पलनेबढने के लिए सबसे अनुकूल वातावरण प्रदान करती है और फिर समय आने पर जन्म देती है। स्त्री मूलतः माता, जीवन-

स्रष्टा है। पुरुष के अवचेतन मन में कहीं यह आकांक्षा बनी रहती है कि मां के शुद्ध प्रेम में फिर से लथपथ हो जाए। पुरुष के स्त्री के प्रति आकर्षण का यह एक सूक्ष्म कारण है क्योंकि वो उसकी जन्म-दात्री है। मातृत्व की वास्तविकता पर कोई भी प्रश्नचिन्ह नहीं लगा सकता। पुरुष की रचना स्त्री से हुई है। फिर भी जिन्हें अपने संकीर्ण मानसिकता से बाहर आने से इंकार है, वे कभी इस मूलभूत वास्तविकता को समझ नहीं पाएंगे। जिन्हें केवल अंधकार का ज्ञान है, उन्हें प्रकाश के विषय में समझाना कठिन है। मातृत्व स्वयं में ब्रह्मांड सदृश एक बहुत विशाल व्यवस्था है। मातृत्व-शक्ति के बल पर एक स्त्री समस्त विश्व को प्रभावित कर सकती है। परमात्मा पुरुष है अथवा स्त्री? इस प्रश्न का उत्तर है - वह न पुरुष है, न स्त्री। परमात्मा 'वह ' है। किंतु आप यदि परमात्मा के लिंग के विषय में आग्रह ही रखते हों तो वो स्त्रीलिंग अधिक है क्योंकि पुल्लिंग, स्त्रीलिंग में ही निहित है। महिलाओं को जागृत होना होगा! आज समय की मांग है कि आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ महिलाओं को आत्मज्ञान की शिक्षा भी दी जाए।

‘जिनकी दृष्टि में अहंकार का मोतियाबिंद का रोग हो गया है, उनके लिए इस विश्व के सौंदर्य के दर्शन करना असंभव है’

क बार एक व्यक्ति बहुत समय से बेरोजगार था। फिर एक दिन उसे एक नौकरी के लिए इंटरव्यू हेतु बुलावा आया। जब उसे यह नौकरी नहीं मिली, तो हताश-निराश हो कर वह एकांत-स्थान पर बैठ कर, अपनी ठुड्डी को हथेलियों पर टिकाये सोच में डूब गया। तभी किसी ने उसका कंधा थपथपाया। पलट कर देखा तो उसने धूप का चश्मा पहने, एक बच्चे को देखा। यद्यपि वह इस एकांत के भंग होने पर झल्लाया, परंतु छिपा गया। उसने इतना ही पूछा कि क्या बात है? बच्चे ने उसे एक मुरझाया हुआ फूल देते हुए कहा, ‘इस सुंदर फूल को देखो।’ अब उसे थोड़ा और क्रोध आया परंतु इस बार भी उसने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त नहीं किया। इतना ही कहा, ‘हां, सुंदर है।’ बच्चे ने कहा, ‘यह सिर्फ देखने में ही सुंदर नहीं, इसकी सुगंध भी बहुत अच्छी है।’ अब तो इस व्यक्ति को सचमुच क्रोध आ गया। उसने सोचा, यह बच्चा पागल तो नहीं? इस बासी फ़ूल को ले कर यह क्यों मेरे पीछे पड़ा है? उसने तंग आ कर कहा, ‘हां, तुम ठीक कहते हो। यह सुंदर व सुगंधित फूल है।’ बच्चे ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘मैं इसे आप ही के लिए लाया हूं। ले लीजिये। परमात्मा आप पर कृपा करें!’ अब इस व्यक्ति को थोड़ा बेहतर लगा, शांति का अनुभव हुआ। बच्चे का धन्यवाद करके वह क्षितिज में ताकने लगा। तभी उसने धरती पर कुछ थपथपी होती महसूस की। मुड़ कर देखा तो वही बच्चा एक छड़ी ले कर खड़ा था। अचानक उसे बोध हुआ कि बच्चा अंधा है। उस क्षण उसे अनुभव हुआ कि उसने हाथ में जो फ़ूल पकड़ा था, वो वास्तव में विश्व का सबसे सुन्दर और सुगंधमय फ़ूल था। वह बच्चे के पीछे दौड़ा और जा कर उसे गले से लगा

लिया। भाव-विभोर हो कर आंखों में आंसू लिए हुए वह बोला, ‘यह कोई सामान्य फ़ूल नहीं। यह वो फ़ूल है जो तुम्हारे हृदय में खिला है।’ अब जिस सौंदर्य व निर्मलता पर इस व्यक्ति की दृष्टि पड़ी थी, वो उस बच्चे की थी जो फ़ूल में प्रतिबिंबित हो रही थी। वह व्यक्ति अभिभूत हो गया था। नौकरी न मिलने के कारण वो इतना निराश, हताश था कि उसके मन में जीवन का अंत करने का विचार भी आया। और यहाँ यह बच्चा दोनों आंखें खो कर भी, न केवल खुश था अपितु दूसरों में भी खुशी बांट रहा था। जब हम दूसरों के साथ परमात्मा की कृपा की बात करें तो हममें योग्यता होनी चाहिए कि उनके भीतर ऐसी भावनाओं को जगा सकें। दूसरों की समस्याओं की तुलना में हमारी समस्याएं, प्रायः तुच्छ होती हैं, अतः हमें अपने वर्तमान को स्वीकारते हुए खुशी-खुशी जीवन बिताना चाहिए। वास्तव में, देखा जाए तो हमारे विचार ही तो हमारी खुशी की राह में बाधा बन कर रोड़ा अटकाते हैं, हमें स्वयं को भुला कर दूसरों के सहायक होने से रोकते हैं। प्रत्येक वस्तु पर अपनी सत्ता जमाने की इच्छा द्वारा हम इतने अभिभूत हुए रहते हैं कि ‘यह/वो मेरे पास होना ही चाहिए!’ जब तक मन ऐसी वासनाओं से भरा है तब तक खुशी क्या है- हम जान भी नहीं पाएंगे। हृदय में प्रेम हो तो एक अंधा व्यक्ति भी राहगीर हो सकता है, परंतु जिसका हृदय ही अंधा हो चुका हो, उसे राह दिखलाना बहुत कठिन कार्य है। अहंकार का अंधत्व, मानो हमें एक तहखाने में कैद कर देता है। अज्ञानवश हम जागते हुए भी सोए हैं। इस अहंकार पर विजय पा लें तो हम स्वाभाविक ही विश्व के लिए अर्पित हो जाएंगे। जिनकी दृष्टि में अहंकार का मोतियाबिंद का रोग हो गया है, उनके लिए इस विश्व के सौंदर्य के दर्शन करना असंभव है।


08 जल प्रबंधन

बेहतर जल प्रबंधन समय की जरूरत 16 - 22 अक्टूबर 2017

बेहतर प्रबंधन से ही जल संकट से उबरा जा सकता है और उसका संरक्षण भी किया जा सकता है

एक नजर

मात्र 2.5 प्रतिशत पानी ही प्राकृतिक स्रोतों से मिलता है भारत जल संकट वाले देशों की लाईन के मुहाने पर है

सामाजिक सहयोग और पर्यावरणीय एकरूपता जल प्रबंधन के लिए जरूरी

एसएसबी ब्यूरो

हा गया है कि जल ही जीवन है। जल प्रकृति के सबसे महत्वपूर्ण संसाधनों में से एक है। कहने को तो पृथ्वी चारों ओर से पानी से ही घिरी है, लेकिन मात्र 2.5 प्रतिशत पानी ही प्राकृतिक स्रोतों - नदी, तालाब, कुओं और बावड़ियों-से मिलता है, जबकि आधा प्रतिशत भूजल भंडारण है। 97 प्रतिशत जल भंडारण तो समुद्र में है। लेकिन यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि भारत जल संकट वाले देशों की लाईन के मुहाने पर खड़ा है। जल के इसी महत्व के मद्देनजर भारत में भी 2012 से सप्ताह भर तक प्रतिवर्ष विचार विमर्श किया जाता है, जिसे सरकार ने भारत जल सप्ताह नाम दिया है। इसके आयोजन की जिम्मेदारी जल संसाधन मंत्रालय को सौंपी गई है। इसकी परिकल्पना भी इसी मंत्रालय ने ही की थी। जल की उपयोगिता, प्रबंधन तथा अन्य जुड़े मुद्दों पर खुली चर्चा के लिए यह अंतरराष्ट्रीय मंच बहुत उपयोगी साबित हुआ है, जिसमें देश विदेश से आए विशेषज्ञों ने जल संसाधन के प्रबंधन और उसके क्रियान्वयन पर महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए हैं। समन्वित जल संसाधन प्रबंधन के लिए तीन आधारभूत स्तंभों को विशेषज्ञों ने जरुरी माना है - सामाजिक सहयोग, आर्थिक कुशलता और पर्यावरणीय एकरूपता। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए जरूरी है कि नदियों

के थालों (बेसिन) के अनुरूप कार्ययोजना बना कर प्रबंधन किया जाए तथा बेसिन की नियमित निगरानी और मूल्यांकन किया जाए। 2012 में हुए पहले मंथन में पांच महत्वपूर्ण सुझाव मिले। 2013 में सात सुझाव मिले जिनमें बेहतर जल प्रबंधन, उसके वित्तीय तथा आर्थिक पहलुओं, बांधों की सुरक्षा और उससे संबंधित कदमों पर कुछ ठोस सुझाव शामिल थे। जल संसाधन से जुड़ी परियोजनाओं के मूल्यांकन किये जाने के सुझाव शामिल थे। आम चुनाव के कारण 2014 में भारत जल सप्ताह का आयोजन नहीं हुआ, लेकिन उसके बाद 2015 में आयोजित जल सप्ताह में इसका स्वरूप ही बदल गया। जल से जुड़े तमाम मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई। इस बात पर आम सहमति रही कि कृषि, औद्योगिक उत्पादन, पेयजल, ऊर्जा विकास, सिंचाई तथा जीवन के लिए पानी की निरंतरता बनाए रखने के लिए सतत प्रयास की जरूरत है। नागरिकों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराना सरकार की पहली प्राथमिकता होती है। पहली बार जल से संबधि ं त विभिन्न मुद्दों पर विषय वार कार्य योजना बनाने पर भी सहमति बनी। 2016 के भारत जल सप्ताह में

विदेशी विशेषज्ञों की प्रभावी भागीदारी के लिए अन्य देशों को भी शामिल किया गया। 2016 के आयोजन में इजराइल को सहयोगी देश के रूप में शामिल किया गया और उसके विशेषज्ञों ने विशेष रूप से शुष्क खेती जल संरक्षण पर बहुत महत्वपूर्ण सुझाव दिए। इसमें इजराइल को महारत हासिल है और इस तकनीक में वहां के वैज्ञानिक दुनियाभर में अपना लोहा मनवा चुके हैं। पिछले साल के आयोजन में भारत सहित 20 देशों के करीब डेढ़ हजार प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसमें कुल आठ संगोष्ठी हुई। दो सत्रों का आयोजन सहयोगी देश इजराइल ने किया था। नदियों को आपस में जोड़ने के मुद्दे पर भी पहली बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर खुली और विस्तृत चर्चा हुई। जल संसाधन मंत्रालय ने कई सिफारिशों को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है। कम सिंचाई वाली खेती को बढ़ावा देना और रिसाइकिल्ड पानी का उपयोग कारखानों, बागवानी और निर्माण उद्योग आदि में किया जाने लगा है। कुछ और सिफारिशों को लागू करने की भी तैयारी है इजराइल के मुकाबले भारत में जल की उपलब्धता पर्याप्त है, लेकिन वहां का जल प्रबंधन हमसे कहीं ज्यादा बेहतर है। इजराइल में खेती,

इजराइल के मुकाबले भारत में जल की उपलब्धता पर्याप्त है, लेकिन वहां का जल प्रबंधन हमसे कहीं ज्यादा बेहतर है

उद्योग, सिंचाई आदि कार्यों में रिसाइकिल्ड पानी का उपयोग अधिक होता है। इसीलिए उस देश के लोगों को पानी की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ता। भारत जैसे विकासशील देश में 80 प्रतिशत आबादी की पानी की जरूरत भूजल से पूरी होती है और इस सच्चाई से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि उपयोग में लाया जा रहा भूजल प्रदूषित होता है। कई देश, खासकर अफ्रीका तथा खाड़ी के देशों में भीषण जल संकट है। प्राप्त जानकारी के अनुसार दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में रह रहे करोड़ों लोग जबरदस्त जल संकट का सामना कर रहे हैं और असुरक्षित जल का उपयोग करने को मजबूर हैं। बेहतर जल प्रबंधन से ही जल संकट से उबरा जा सकता है और संरक्षण भी किया जा सकता है। भारत में भी वही तमाम समस्याएं हैं, जिसमें पानी की बचत कम, बर्बादी ज्यादा है। यह भी सच्चाई है कि बढ़ती आबादी का दबाव, प्रकृति से छेड़छाड़ और कुप्रबंधन भी जल संकट का एक कारण है। पिछले कुछ सालों से अनियमित मानसून और वर्षा ने भी जल संकट और बढ़ा दिया है। इस संकट ने जल संरक्षण के लिए कई राज्यों की सरकारों को परंपरागत तरीकों को अपनाने को मजबूर कर दिया है। देश भर में छोटे- छोटे बांधों के निर्माण और तालाब बनाने की पहल की गई है। इससे पेयजल और सिंचाई की समस्या पर कुछ हद तक काबू पाया जा सका है। भारत में तीस प्रतिशत से अधिक आबादी शहरों में रहती है। आवास और शहरी विकास मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि देश के लगभग दो सौ शहरों में जल और बेकार पडे पानी के उचित प्रबंधन की ओर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। इसके कारण सतही जल को प्रदूषण से बचाने के उपाय भी सार्थक नहीं हो पा रहे हैं। खुद जल संसाधन मंत्रालय भी मानता है कि ताजा जल प्रबंधन की चुनौतियों लगातार बढती जा रही है। सीमित जल संसाधन को कृषि, नगर निकायों और पर्यावरणीय उपयोग के लिए मांग,


16 - 22 अक्टूबर 2017

गुणवत्तापूर्ण जल और आपूर्ति के बीच समन्वय की जरूरत है। देश में पिछले 70 सालों में तीन राष्ट्रीय जल नीतियां बनी। पहली नीति 1987 में बनी जबकि 2002 में दूसरी और 2012 में तीसरी जल नीति बनी। इसके अलावा 14 राज्यों ने अपनी जलनीति बना ली है। बाकी राज्य तैयार करने की प्रक्रिया में हैं। इस राष्ट्रीय नीति में जल को एक प्राकति ृ क संसाधन मानते हुए इसे जीवन, जीविका, खाद्य सुरक्षा और निरंतर विकास का आधार माना गया है। नीति में जल के उपयोग और आवंटन में समानता तथा सामाजिक न्याय का नियम अपनाए जाने की बात कही गई है। मंत्रालय का कहना है कि भारत के बड़े हिस्से में पहले ही जल की कमी हो चुकी है। जनसंख्यावृद्धि, शहरीकरण और जीवनशैली में बदलाव से जल की मांग तेजी से बढने के कारण जल सुरक्षा के क्षेत्र में गंभीर चुनौतियों खड़ी हो गई है। जल स्रोतों में बढता प्रदूषण पर्यावरण तथा स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होने के साथ ही स्वच्छ पानी की उपलब्धता को भी प्रभावित कर रहा है। जल नीति में इस बात पर बल दिया गया है कि खाद्य सुरक्षा, जैविक तथा समान और स्थाई विकास के लिए राज्य सरकारों को सार्वजनिक धरोहर के सिद्धांत के अनुसार सामुदायिक संसाधन के रूप में जल का प्रबंधन करना चाहिए। हालांकि, पानी के बारे में नीतियां, कानून तथा विनियमन बनाने का अधिकार राज्यों का है फिर भी जल संबंधी सामान्य सिद्धातों का व्यापक राष्ट्रीय जल संबंधी ढांचागत कानून तैयार करना समय की मांग है। ताकि राज्यों में जल संचालन के लिए जरूरी कानून बनाने और स्थानीय जल स्थिति से निपटने के लिए निचले स्तर पर आवश्यक प्राधिकार सौंपे जा सकें। तेजी से बदल रहे हालत को देखते हुए नयी जल नीति बनाई जानी चाहिए। इसमें हर जरूरत के लिए पर्याप्त जल की उपलब्धता और जल प्रदूषित करने वाले को कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए। जल की समस्या, आपूर्ति, प्रबंधन तथा दोहन के लिए सरकारी स्तर पर कई संस्थांऐं काम कर रही हैं। राष्ट्रीय जल मिशन तथा जल क्रांति अभियान अपने अपने स्तर पर अच्छा काम कर रहे हैं। मिशन का उद्देश्य जल संरक्षण, दुरुपयोग में कमी लाना और विकसित समन्वित जल संसाधन और प्रबंधन द्वारा सभी को समान रूप से जल आपूर्ति सुनिश्चित करना है। अभियान गांवों और शहरी क्षेत्रों में जल प्रबंधन, जन जागरण और आपूर्ति के काम में लगा है। पानी के महत्व को सभी देशों ने पहचाना है। कनाडा, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर, अमेरिका जैसे विकसित देश भी जल सप्ताह आयोजित करते हैं। सिंगापुर में तो यंग वाटर लीडर्स - 2016 के आयोजन में तीस देशों से आए 90 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया और पानी के मुद्दे पर गहन चर्चा की।

रोचक

09

पीएम मोदी की आवाज उनके प्रशंसक फिल्म में भी सुन सकेंगे

आकाशवाणी के जरिए अपने ‘मन की बात’ करने वाले पीएम मोदी खुद एक फिल्म के लिए वॉयस ओवर करने जा रहे हैं

एसएसबी ब्यूरो

रेंद्र मोदी आज की तारीख दुनिया के सर्वाधिक नेताओं की सूची में शामिल हैं। उनकी लोकप्रियता एक ब्रांड की तरह है, जिसकी चाह देश में ही नहीं बल्कि देश के बाहर भी देखने को मिलती है। प्रधानमंत्री की इस छवि में अब कुछ एेसा जुड़ने जा रहा है, जिसकी इससे पहले किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। देशदुनिया को अपनी भाषण शैली, अद्भुत नेतत्व ृ क्षमता और विचारों से प्रभावित करने वाले नरेंद्र मोदी अब राजनीति की गलियारों में सबका दिल जीतने के बाद वो बॉलीवुड में कदम रखने जा रहे हैं। अपनी इस भूमिका में वो अभिनय तो खैर नहीं करेंगे लेकिन उनकी आवाज का जादू हम फिल्म में देख सकेंगे। खबर है कि प्रधानमंत्री मोदी जल्द ही ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान पर बन रही फिल्म के लिए अपनी आवाज देंगे। हर महीने के आखिरी रविवार को आकाशवाणी पर अपने शो ‘मन की

बात’ से जनता से रूबरू होने वाले मोदी खुद इस फिल्म के लिए वॉयस ओवर करेंगे। बताया जा रहा है कि समाज में नारी शिक्षा का संदेश देने के लिए बनाई जा रही इस फिल्म के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की पत्नी अमृता फडणवीस म्यूजिक कंपोज करेंगी। इस फिल्म का निर्देशन रामकुमार शेंडगे करेंगे। इन सभी के अलावा ‘एंटी करप्शन’ और ‘क्राइम कमेटी’ और ‘ग्रेविटी ग्रुप’ इस प्रोजेक्ट पर मिलकर काम करेंगे। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान पर बन रही फिल्म के कास्ट की बात की जाए तो इसमें सुनील शेट्टी, चिरंजीवी, किरण बेदी और अमिताभ बच्चन जैसी नामचीन हस्तियां सेलेब्रिटी गेस्ट के रूप में नजर आएंगी। वहीं इस फिल्म में अतिथि भूमिका में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर भी नजर आने वाले हैं। फिल्म में ‘बाहुबली’ की एक्ट्रेस तमन्ना भाटिया और उनके साथ ऑस्कर नॉमिनेटेड फिल्म ‘लायन’ में बाल

नारी शिक्षा का संदेश देने के लिए बनाई जा रही इस फिल्म के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की पत्नी अमृता फडणवीस म्यूजिक कंपोज करेंगी

एक नजर

अतिथि कलाकारों में बिग बी, चिरंजीवी और सुनील शेट्टी शामिल इस फिल्म में श्री श्री रविशंकर भी होंगे अतिथि भूमिका में फिज्म बालिकाओं को लेकर जागरूकता बढाने पर आधारित

कलाकर के रूप में नजर आए सनी पवार भी काम करेंगे। ये फिल्म अगले साल जनवरी में होने वाले जर्मन एंड फ्रेंच फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जाएगी। इस फिल्म को करीब 14 भाषाओं में डब किया जाएगा जिसके बाद ये कई देशों के स्कूलों में दिखाई जाएगी। इस फिल्म के बारे में तमन्ना से जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि एक मीडिया पर्सन होने की ताकत को मिसयूज करने की बजाय इसका सही इस्तेमाल किया जाना चाहिए। वो इस प्रोजेक्ट से जुड़कर काफी खुश हैं। फिल्म की स्क्रिप्ट गर्ल चाइल्ड के बारे में जागरूकता फैलाने और उन्हें शिक्षित बनाने पर आधारित होगी।


10 प्रेरक

16 - 22 अक्टूबर 2017

पहले अपनी फिर पलटी गांव की किस्मत

58 वर्षीय उद्यमशील काश्तकार जगमोहन सिंह रावत ने कुछ नए प्रयोगों से अपने गांव की खेती, बागवानी व पर्यटन व्यवसाय को जो नई पहचान दी है, वह निश्चित ही प्रेरणादायी है

एक नजर

एसएसबी ब्यूरो

पने बढ़े सामर्थ्य का फायदा सबसे पहले अपने लोगों को देने की इच्छा स्वाभाविक है। यही कारण है कि दूर देश में कामयाबी के झंडे गाड़ने वाले कई लोग भी लौटकर अपने घर आते हैं और फिर अपने इलाके की समृद्धि के प्रयासों में लग जाते हैं। ऐसी ही एक बड़ी मिसाल कायम की है जगमोहन सिंह रावत ने। रावत ने अपने गांव को न सिर्फ एक आदर्श गांव में बदल दिया , बल्कि उन्होंने यहां खेती-किसानी के कुछ दिलचस्प प्रयोग भी किए । रावत के प्रयासों का ही फल है कि आज उनके गांव को लेकर आसपास ही नहीं, बल्कि दूर-दूर प्रेरक बातें करते हैं। रावत के गांव का नाम है बारसू। यह गांव उत्तरकाशी जनपद के भटवाड़ी विकासखंड में आता है। प्रकृति की नैसर्गिक सुंदरता के बीच स्थित यह गांव उत्तरकाशी से तकरीबन 44 किलोमीटर दूर है। गंगोत्री राजमार्ग में भटवाड़ी से कुछ ही आगे एक मोटर सड़क बारसू गांव को जाती है, जहां से 9 किलोमीटर की दूरी तय करके इस गांव में आसानी से पहुंचा जा सकता है। समुद्र सतह से लगभग 4000 मीटर की ऊंचाई पर पसरे दियारा बुग्याल की तलहटी में बसे बारसू गांव (2300 मीटर) को प्रकृति ने सुंदरता और संसाधनिक समृद्धता का उपहार दिल खोलकर दिया है। बारसू गांव को भू-आकृति विज्ञान की नजर से देखें तो प्रथम दृष्टि में प्रतीत होता है कि यहां की भौगोलिक संरचना के निर्माण में स्थानीय छोटी-छोटी हिमानियों और जलधाराओं की भूमिका रही है। दीर्घकाल तक चली सतत भौगोलिक प्रकिया के तहत हिमानियों द्वारा यहां मिट्टी और अन्य ठोस पदार्थों का जमाव किया जाता रहा। इसी के परिणामस्वरूप बारसू गांव की वर्तमान संरचना का निर्माण हुआ है। चारों ओर बांस, बुरांश व देवदार के जंगलों से घिरे 100 परिवारों व 500 के करीब जनसंख्या वाले इस गांव की समृद्धता की चर्चा आज की तारीख में हर किसी की जुबान पर है। देखा जाए तो बारसू गांव पहाड़ के स्थानीय संसाधनों पर आधारित खेती, बागवानी, सब्जी उत्पादन, मत्स्य पालन, पशुपालन से लेकर पर्यटन अर्थव्यवस्था को सही दिशा प्रदान करने वाला एक जीता-जागता उदाहरण बन गया है। बारसू गांव को समृद्धता के इस शिखर पर ले जाने का भगीरथ प्रयास किया है जगमोहन सिंह रावत ने।

बारसी गांव उत्तरकाशी के भटवाड़ी विकासखंड में आता है

प्रगतिशील विचार और उन्नत तकनीक ने बदली गांव की किस्मत

100 परिवारों वाले इस गांव की समृद्धता की चर्चा आज हर तरफ है

जगमोहन रावत का मानना है कि यदि यहां के आदमी के अंदर पहाड़ के प्रति जरा भी जुड़ाव हो तो वह सकारात्मक व सोच, परिश्रम व लगन के बल पर यहां की मिट्टी में सोना भी उगा सकता है 58 वर्षीय उद्यमशील काश्तकार जगमोहन सिंह इसी गांव के निवासी हैं। मात्र सरकारी योजनाओं के भरोसे न रहते हुए भी जगमोहन रावत ने अपने स्तर ईजाद की गई तरकीबों के बूते और खुद के प्रयासों से यहां की खेती, बागवानी व पर्यटन व्यवसाय को जो नई पहचान दी है, वह निश्चित ही प्रेरणादायी है। बारसू गांव के प्रधान से लेकर भटवाड़ी विकासखंड के ज्येष्ठ प्रमुख व जिला पंचायत उत्तरकाशी के सदस्य रह चुके जगमोहन रावत का साफ तौर पर

मानना है कि यदि यहां के आदमी के अंदर पहाड़ के प्रति जरा भी जुड़ाव हो तो वह सकारात्मक व सोच, परिश्रम व लगन के बल पर यहां की मिट्टी में सोना भी उगा सकता है। प्रगतिशील विचारों और उन्नत तकनीक के साथ काश्तकारी पर नित नए प्रयोग करना जगमोहन सिंह का जुनून है। ऐसा नहीं कि वे सिर्फ आधुनिक काश्तकारी के ही हिमायती हों बल्कि परंपरा से चली आ रही खेती को भी वे उसी स्तर पर महत्त्व देते हैं।

बारसू गांव में बागवानी की यदि बात करें तो यहां सेब की छुट-पुट खेती पहले से होती आ रही थी। आर्थिक नजरिए से बागवानी का यह परम्परागत तरीका काश्तकारों के लिए अधिक फायदेमन्द साबित नहीं होता था क्योंकि सेब की पौध को पूरी तरह फलदार पेड़ बनने में बहुत अधिक (तकरीबन 15 साल) समय लगता था। अधिक उम्र के कारण सेब के पुराने पेड़ जब खत्म होने लगे तो देर से फल देने के कारण काश्तकारों ने यहां के बागानों में नए पेड़ों के रोपण में खास दिलचस्पी नहीं दिखाई लिहाजा यहां के पुराने बगीचे धीरे-धीरे खत्म होने लगे। जिससे बागवानी चौपट होने की कगार पर पहुंच गई। इस बात से जगमोहन रावत अक्सर चिंतित रहने लगे। कई बार उद्यान विभाग के चक्कर काटने के बाद भी उन्हें इस संबंध में खास सफलता नहीं मिल पाई। दस-बारह साल पहले जब वे एक बार हिमाचल प्रदेश गए तो उन्हें वहां के बागानों को देखकर इस समस्या का हल खोज लिया। जगमोहन रावत ने देखा कि वहां स्पर प्रजाति का सेब केवल पांच साल के अंतराल में ही फल देना प्रारम्भ कर देता है जिसके लिए आदर्श ऊंचाई, ढाल और मिट्टी तथा जलवायुगत विशेषताएं उनके इलाके में पर्याप्तता के साथ विद्यमान है। इन स्थितियों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने गांव लौटकर इस दिशा में प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया। अंततः उनकी मेहनत रंग लाई और वे स्पर प्रजाति सहित अन्य विश्वस्तरीय प्रजातियों यथा सुपरचीफ, रेड चीफ, आर्गन स्पर, स्पर टू, रेडब्लॉक्स, जेरोमाइन, गेलगाला, और क्रिम्सनगाला को यहां सफलतापूर्वक उगाने में सक्षम रहे। उनके इसी जुनून के चलते उनके 150 नाली जमीन में आज


16 - 22 अक्टूबर 2017

करीब 2000 से अधिक सेब के पेड़ लहलहा रहे हैं, जिनमें से अधिकांश पेड़ फल भी दे रहे हैं। जगमोहन रावत ने अपने स्तर पर सेब के इन विश्वस्तरीय प्रजातियों की एक नर्सरी भी बनाई है, जिसमें इस समय 3000 पौधे हैं। इस नर्सरी के माध्यम से वह स्थानीय काश्तकारों को आसानी से सेब की उन्नत पौध मुहैया करा रहे हैं। जगमोहन रावत के मुताबिक उनका बगीचा साल में तकरीबन 15 लाख रुपए तक की आय देता है। इनके अभिनव प्रयोग से प्रेरित होकर बारसू सहित आसपास के कई काश्तकार अपनी नई जमीन के साथ ही पुराने बंजर पड़े सेब के बगीचों को पुनः आबाद करने में जुट रहे हैं। बागवानी के साथ ही जगमोहन रावत ने शाक सब्जी उत्पादन की दिशा में भी आशातीत सफलता पाई है। तकरीबन 3000 वर्ग मीटर जमीन में आपने पॉली हाउस का निर्माण किया है। पॉली हाउस निर्माण के लिए इन्हें नेशनल हॉर्टीकल्चर मिशन से सहायता मिली है। वर्तमान में जगमोहन रावत पॉली हाउस के जरिए बे-मौसमी शाक सब्जी यथा-टमाटर, शिमला मिर्च, बैगन, मिर्च, प्याज, लहुसन, ब्रॉकली, करेला तथा खीरा-ककड़ी आदि की खेती कर रहे हैं। जगमोहन के अनुसार उनके पास टमाटर की हिमसोना, अविनाश, अभिनव नाम की हाइब्रीड प्रजातियाँ हैं जो जुलाई से लेकर दिसम्बर तक फल देते रहते हैं। अमूमन टमाटर का एक पौधा 25 किग्रा की पैदावार देता है। केवल टमाटर के जरिए ही उनकी एक साल में दस-बारह लाख तक आमदनी हो जाती है। इतनी ऊंचाई पर हरी सब्जी राई, फ्रेंचबीन व मटर जैसी सब्जियों को भी इन पॉली हाउसों में उगाने में वे सफल रहे हैं। जगमोहन बताते हैं कि सामान्य खेती की तुलना में पॉली हाउसों के जरिए उगाई जाने वाली शाक सब्जी आठ गुना अधिक पैदावार देती है। खेती की जुताई के लिए उन्होंने पावर टिलर भी रखा है। उनसे प्रेरित होकर बारसू और आसपास के कई उत्साही काश्तकारों ने पॉली हाउस बना लिए हैं और शाक सब्जी उत्पादन के जरिए जीविकोपार्जन कर रहे हैं। जगमोहन रावत ने बगीचे के फलों व अन्य फसलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए निहायत सस्ती तकनीक से बनी सुरक्षा बाड़ का डिजाइन भी बनाया है। उनकी यह तकनीक काफी हद तक सफल रही है। बागवानी और शाक सब्जी उत्पादन के अलावा मत्स्य पालन के क्षेत्र में भी जगमोहन रावत ने खुद के प्रयासों से महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की है। स्थानीय ठंडी जलवायु और 3000 मीटर से अधिक

रावत ने अपने स्तर पर सेब के विश्वस्तरीय प्रजातियों की एक नर्सरी भी बनाई है, जिसमें इस समय 3000 पौधे हैं। इस नर्सरी के माध्यम से वह स्थानीय काश्तकारों को आसानी से सेब की उन्नत पौध मुहैया करा रहे हैं की ऊंचाई पर स्थित दियारा बुग्याल से बहकर आने वाले प्रचुर जल की उपलब्धता को देखकर उन्होंने गांव में शीत जल में रहने वाली ट्राउट मछली के पालन की योजना पर अमल करने का विचार किया। शुरुआत में प्रयोग के तौर पर ट्राउट मछली के पालन के लिए आपने एक तालाब बनाया और भविष्य में इस दिशा में सफलता मिलने की उम्मीद से आप इसे आगे बढ़ाने का निरन्तर प्रयास कर रहे हैं। आज आप चार तालाबों के जरिए मत्स्य उत्पादन कर रहे हैं। मत्स्य विभाग के सहयोग से 16000 से अधिक मत्स्य बीज इन तालाबों में पाले जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि ट्राउट मछली सतत प्रवाहित होने वाले शीत जल की प्राणी होने के साथ मांसाहारी भोजन की आदी है। महानगरों के बड़े-बड़े होटल/रेस्टोरेंट में इस मछली की मांग अत्यधिक रहती है और इसकी कीमत 1500 से 2000 रुपए प्रति किग्रा तक होती है। जगमोहन रावत के अनुसार बारसू जैसी भौगोलिक स्थिति वाले उत्तराखंड के कई अन्य गांवों में भी ट्राउट मछली पालन की अपार सम्भावनाएं मौजूद हैं और आर्थिकी के लिहाज से इस कार्य को निश्चित ही एक महत्त्वपूर्ण साधन बनाया जा सकता है। स्थानीय पर्यटन को सतत व्यवसाय से जोड़ने और उसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार बनाने की दिशा में भी जगमोहन रावत ने अथक प्रयास किए हैं। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि बारसू गांव विश्व प्रसिद्ध दियारा बुग्याल का बेस कैंप है। बारसू से दियारा बुग्याल मात्र 7 किलोमीटर की दूरी

पर है। दियारा बुग्याल जाने वाले पर्यटक बारसू से पथारोहण अथवा घोड़े-खच्चरों के द्वारा वहां पहुंचते हैं। दियारा बुग्याल की प्रसिद्धि के पीछे दरअसल वहां के खूबसूरत मखमली ढलान, शीतकालीन हिम क्रीड़ाओं व साहसिक पर्यटन के लिए आदर्श जगह, समृद्ध जैवविविधता, उत्तुंग हिम शिखरों के मनभावन दृश्य और आसान पहुंच जैसे कारण मुख्य हैं। पर्यटन विकास की संभावना को समझते हुए जगमोहन रावत ने बारसू गांव में कैंपिंग की सुविधा उपलब्ध कराने के साथ ही पर्यटकों हेतु आवास गृह बनाने की महत्वाकांक्षी योजना को मूर्त रूप देने का प्रयास किया। इसी सार्थक पहल का परिणाम रहा है कि आज बारसू में उनका दियारा रिजॉर्ट नाम से एक आधुनिक सुख-सुविधाओं सज्जित आवास गृह तैयार हो गया है जिसमें तकरीबन 60-70 लोगों के एक साथ ठहरने की व्यवस्था है। खास बात यह है कि इस पर्यटक आवास गृह के निर्माण और साज-सज्जा में गढ़वाली वास्तु शिल्प और उसकी शैली के भी भव्य दर्शन होते हैं। यही नहीं दियारा रिजॉर्ट में ठहरने वाले पर्यटकों को उनकी मांग पर प्रतीक स्वरूप पहाड़ में निर्मित वस्तुओं, पहाड़ के समाज, इतिहास व संस्कृति से संबंधित साहित्य तथा पहाड़ी व्यंजन भी उपलब्ध कराया जाता है। जगमोहन रावत बताते हैं कि आज की तारीख में यह गांव पर्यटन मानचित्र पर पूरी तरह छा चुका है। पर्यटन के बदौलत ही गांव के तकरीबन 90 प्रतिशत परिवार इससे अपनी आविका चला रहे हैं।

प्रेरक

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स्थानीय लोगों को कैंपिंग, होटल, रिजॉर्ट, चायपानी की दुकान, कुक, पोर्टर, सवारी अथवा माल ढोने वाले घोड़े खच्चर तथा गाइड के रूप में किसी-नकिसी तरह आर्थिक लाभ मिल ही रहा है। उनके दियारा रिजॉर्ट में ही स्थानीय 5-6 लोगों को स्थायी तौर पर रोजगार मिला हुआ है। सीजन के दौरान कुछ और लोगों को भी अस्थायी तौर पर रोजगार मिल जाता है। बारसू से दियारा बुग्याल होते हुए निकटवर्ती सारा बुग्याल, गिडारा बुग्याल तथा पथारोहण के लिए बकरा टॉप, सुरिया टॉप आसानी से पहुंचा जा सकता है। जिसके लिए स्थानीय स्तर पर कैम्पिंग, गाइड, पोर्टर, खानपान की व्यवस्था व अन्य सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। हिमालयी भौगोलिक परिवेश में स्थानीय संसाधनों व आजीविका को लेकर राज्य और केंद्र सरकारें आए दिन नीति-निर्धारक व योजनाकारों के साथ चर्चाएं करने के साथ ही तमाम विकास योजनाओं पर अमल करती रहती हैं उसके चलते भी आज जिस गति से पहाड़ के युवा लोग खेती किसानी से विमुख होकर मैदानी इलाकों में पलायन कर रहे हैं वह निश्चय ही चिंता का विषय बनता जा रहा है। ऐसे में पहाड़ की आर्थिकी को समृद्ध बनाने में स्थानीय खेती-बागवानी, मत्स्य पालन, पर्यटन, तथा प्राकृतिक संसाधनों का बेहतर उपयोग अपने स्वप्रयासों व सरकारी योजनाओं के तालमेल के साथ किस तरह किया जा सकता है इसके लिए जगमोहन रावत का जुनून और उनका बारसू गांव एक आदर्श और शानदार उदाहरण प्रस्तुत करता है। यहां पर महत्वपूर्ण बात यह भी है कि शहरों में उच्च शिक्षा प्राप्त और प्रतिष्ठित संस्थानों में काम कर चुकने के बाद भी उनके पुत्र गांव में ही रहते हुए स्व-रोजगार से जुड़कर स्थानीय बेरोजगार युवकों का मार्गदर्शन कर रहे हैं।


12 लोक कला

16 - 22 अक्टूबर 2017

मधुबनी पेंटिंग का कमाल अब रेलवे स्टेशन पर अगर आप बिहार के मधुबनी रेलवे स्टेशन पर आने वाले हैं, तो स्टेशन पर मधुबनी पेंटिंग की सज्जा देखकर संभव है कि आप दंग रह जाएं

एक नजर

लोक चित्रकारी की दुनिया में मधुबनी पेंटिंग विश्व प्रसिद्ध है

गैर सरकारी संस्था 'क्राफ्टवाला' की पहल पर शुरू हुआ अभियान पेंटिंग बनाने में जुटे मधुबनी पेंटिंग करने वाले सौ कलाकार

पटना ब्यूरो

धुबनी पेंटिंग की पहचान देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में है। लोक चित्रकला का ऐसा सुंदर रूप दुनिया में और कहीं शायद ही देखने को मिले। भारतीय रेलवे और नागरिक विमानन मंत्रालय की तरफ से काफी पहले से मधुबनी पेंटिंग को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इसी सिलसिले में रेलवे की तरफ से मधुबनी स्टेशन को यहां की विख्यात पेंटिंग से सज्जित करने का एख नया अभियान चल रहा है। लिहाजा, अगर आप बिहार के मधुबनी रेलवे स्टेशन पर आने वाले हैं, तो आपको यहां का नजारा बदला-बदला सा नजर आने वाला है। लोक चित्रकारी के लिए विख्यात मधुबनी का रेलवे स्टेशन आपको न केवल मधुबनी पेंटिंग के लिए आकर्षित करेगा, बल्कि इन पेंटिंग के जरिए आप इस क्षेत्र की पुरानी कहानियों और स्थानीय सामाजिक सरोकारों से भी रूबरू हो सकेंगे।

पूर्व मध्य रेलवे के मधुबनी रेलवे स्टेशन की दीवारों पर एक गैर सरकारी संस्था की पहल पर करीब 7,000 वर्गफीट से अधिक क्षेत्रफल में मधुबनी पेंटिंग बनाई जा रही है, जिसमें 100 कलाकार अपना श्रमदान कर रहे हैं। गैर सरकारी संस्था 'क्राफ्टवाला' की पहल पर इस कार्य में रेलवे भी सहयोग कर रहा है। क्राफ्टवाला के संयोजक और मधुबनी के ठाढ़ी गांव निवासी राकेश कुमार झा ने बताया कि किसी भी क्षेत्र में इतने बड़े क्षेत्रफल में लोक चित्रकला को उकेरा जाना एक रिकॉर्ड हो है। उन्होंने बताया कि गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में मात्र 4566.1 वर्गफीट में पेंटिंग दर्ज है, जबकि भारत में सबसे बड़ी पेंटिंग का रिकॉर्ड मात्र 720 वर्गफीट का है। गांधी जयंती के मौके पर दो अक्टूबर को मधुबनी रेलवे स्टेशन पर इस कार्य का शुभारंभ समस्तीपुर के क्षेत्रीय रेलवे प्रबंधक (डीआरएम) रवींद्र कुमार जैन ने किया है। झा ने बताया कि प्रत्येक थीम पर एक से 10 कलाकारों की टीम बनाई गई, जिसमें अनुभवी

7,000 वर्गफीट से अधिक क्षेत्रफल में लोक चित्रकला को उकेरा जाना एक रिकॉर्ड है। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में मात्र 4566.1 वर्गफीट में पेंटिंग का कीर्तिमान दर्ज है

कलाकारों को टीम लीडर बनाया गया। पेंटिंग कर रही महिला कलाकार स्वीटी कुमारी ने कहा, इस पेंटिंग को कुल 46 छोटे-बड़े थीम में बांट कर 100 से अधिक कलाकारों के माध्यम से किया जा रहा है। ये सारे कलाकार 'क्राफ्टवाला' संगठन से जुड़े हैं। स्वीटी ने कहा, ‘पेंटिंग के जरिए जहां रामचरित मानस के सीता जन्म, राम-सीता वाटिका मिलन, धनुष भंग, जयमाल और सीता की विदाई को दिखाया जा रहा है वहीं कृष्णलीला के तहत कृष्ण के जन्म के बाद उनके पिता द्वारा उनको यमुना पार कर मथुरा ले जाना, माखन चोरी, कालिया मर्दन, कृष्ण

रास, राधा कृष्ण प्रेमालाप को भी बड़े मनोयोग से प्रदर्शित करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में महाकवि विद्यापति, ग्राम जीवन का विकास, ग्रामीण हाट, ग्रामीण खेलों (गिल्ली-डंडा, कितकित, पिटो), मिथिला लोक नृत्य और पर्व (झिझिया, सामा-चकेबा, छठ) को भी प्रदर्शित किया जा रहा है। इस कार्य में एक मूक-बधिर लड़की कोमल कुमारी भी अपनी कला से लोगों का मन मोह रही है। समस्तीपुर क्षेत्र के डीआरएम ने कोमल को रेलवे में बतौर पेंटर दिव्यांग कोटे से नौकरी देने की बात कही है। मधुबनी के जिलाधिकारी शीर्षत कपिल अशोक ने भी कोमल की कला की प्रशंसा करते हुए उसकी पढ़ाई में मदद करने और उचित सहायता का अश्वासन दिया है। इससे पहले बिहार के ही एक और रेलवे स्टेशन पर इस तरह का कलात्मक प्रयोग किया जा चुका है। कटिहार स्टेशन पर अब यात्रियों को मधुबनी पेंटिंग के साथ ग्राम संस्कृति की झलक देखने को मिल रही है। इसकी कवायद इस साल फरवरी में शुरू हुई थी। डीआरएम उमाशंकर सिंह यादव के निर्देश पर रेल इंजीनियरिंग विभाग द्वारा यह कार्य कराया गया है। त्रिपुरा के विशेषज्ञ कलाकारों द्वारा स्टेशन के मुख्य द्वार सहित अंदर के दीवारों पर इसे उभारा गया है। दरअसल, रेलवे बोर्ड के नए नियम के अनुसार स्टेशन के सौंदर्यीकरण के तहत इस तरह की स्थानीय कलात्मक विशिष्टता वाली चीजों को प्राथमिकता दी जा रही है। इसमें मिथिलांचल की ऐतिहासिक परंपरा की झलक को खासतौर पर महत्व दिया जा रहा है। इसमें दुल्हन की पालकी में विदाई, खेत-खलिहान के साथ धान आदि की कुटाई आदि पर आधारित पेंटिंग बनाई जाती है।


रंग ला रही मुहिम कई दूल्हे पहुंचे जेल

16 - 22 अक्टूबर 2017

राज्य

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नवी मुंबई में ई-टॉयलेट

स्वच्छता के लिए सिडको करा रहा है ई-टॉयलेट का निर्माण

बिहार में दहेज और बाल विवाह विरोधी अभियान का असर शहरों से लेकर गांवों तक दिखना शुरू हो गया है

एक नजर

सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लोगों में भी जागरूकता बढ़ी है इस अभियान में चाइल्ड लाइन परामर्श केंद्र भी कर रहा है मदद

पटना जिले में एक अधेड़ दूल्हा परिजनों के साथ हुआ गिरफ्तार

बि

हार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चलाए दहेज और बाल विवाह विरोधी अभियान का असर अब राज्य के शहरों से लेकर गांवों तक में देखने को मिल रहा है। दहेज और बाल विवाह के खिलाफ ग्रामीण न केवल सामाजिक स्तर पर विरोध कर रहे हैं, बल्कि कई मामलों में पुलिस को भी इसकी सूचना दे रहे हैं। इन कुरीतियों के खिलाफ आम लोगों में भी जागरूकता बढ़ी है। वैशाली जिले के देसरी प्रखंड के चौनपुर नन्हकार गांव में दो नाबालिग बहनों की शादी मुखिया और ग्रामीणों के हस्तक्षेप से रुकी। गांव के राम बाबू पासवान अपनी 15 वर्षीय और 13 वर्षीय दो पुत्रियों की शादी दोगुने उम्र के लड़कों के साथ अपने घर पर ही कर रहे थे। इसकी जानकारी गांव के लोगों को मिल गई। ग्रामीणों ने इसकी सूचना मुखिया सुबोध ठाकुर को दी। मुखिया ने भी आगे बढ़कर बाल विवाह का विरोध किया और शादी रोकी गई। शादी रुकने के बाद चाइल्ड लाइन परामर्श केंद्र के सदस्यों ने भी लड़कियों और उसके माता-

पिता को समझाया। अब रामबाबू बालिग होने पर ही लड़कियों की शादी करने की बात कर रहे हैं। वैसे बिहार में यह कोई पहला मामला नहीं है, जहां चाइल्ड लाइन और ग्रामीणों के हस्तक्षेप से बाल विवाह रोके जा रहे हैं। इसी तरह कटिहार जिले के फलका के समलतियां गांव में भी एक नाबालिग लड़की की शादी ग्रामीणों ने रोक दी। पुलिस के अनुसार, फलका के ठाकुरबाड़ी मंदिर में एक नाबालिग लड़की की शादी जबरन उससे दोगुने उम्र के पुरुष (समस्तीपुर निवासी मदन सहनी) से करवाया जा रहा था, जिसकी सूचना ग्रामीणों को मिल गई। ग्रामीणों ने तत्काल इसकी सूचना पुलिस को दे दी। फलका थाना के सहायक अवर निरीक्षक फैयाज खान ने बताया कि दूल्हे और उसके भाई को गिरफ्तार कर लिया गया है। मुख्यमंत्री ने राज्य में दहेज प्रथा एवं बाल विवाह के खिलाफ अभियान छेड़ते हुए दो अक्टूबर को घोषणा की है कि इसको लेकर अगले साल 21 जनवरी को मानव श्रृंखला बनाई जाएगी। नीतीश ने कहा, ‘बापू के चंपारण सत्याग्रह के सौ साल पूरा

चंपारण सत्याग्रह के सौ साल पूरा होने के अवसर पर शराबबंदी के बाद अब राज्य में बाल विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ बड़े अभियान की शुरुआत की जा रही है- नीतीश कुमार

होने के अवसर पर शराबबंदी के बाद अब राज्य में बाल विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ बड़े अभियान की शुरुआत की जा रही है, जो बापू के विचारों के प्रति हम लोगों की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।’ उन्होंने कहा कि दहेज एवं बाल विवाह एक बड़ी सामाजिक कुरीति है, जिसे जड़ से मिटाना जरूरी है। बिहार में इन कुरीतियों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है तथा लोगों को इन कुरीतियों के खिलाफ शपथ भी दिलाई जा रही है। इससे पहले, पटना जिले के दनियांवा क्षेत्र में एक नाबालिग लड़की से शादी करने पहुंचे उत्तर प्रदेश के 45 वर्षीय अधेड़ दूल्हे कृष्णा सिंह उर्फ तारण सिंह को उसके परिजनों के साथ गिरफ्तार किया गया है। इस क्रम में पुलिस ने शादी कराने वाले दो एजेंटों (दलालों) को भी गिरफ्तार किया है। पटना जिले के ग्रामीण पुलिस अधीक्षक ललन मोहन प्रसाद कहते हैं कि कई मौकों पर पुलिस को समय रहते सूचना मिल जाती है, तो पुलिस आवश्यक कार्रवाई करती है। उन्होंने कहा कि लोगों में जागरूकता आ रही है और लोग अब इसकी सूचना भी पुलिस को दे रहे हैं, यह अच्छी पहल है। पटना विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त प्रोफेसर भारती एस. कुमार कहती हैं, ‘इन कुरीतियों को सरकार और कानून के दम पर नहीं मिटाया जा सकता, इसके लिए आम लोगों को भी जागरूक होना होगा।’ हालांकि सरकार द्वारा इन सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ चलाए गए अभियान की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार का यह प्रयास प्रशंसनीय है, लेकिन अभी इसके लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। लोगों को शिक्षित कर सामाज में व्याप्त ऐसी कई कुरीतियों को खत्म किया जा सकता है। भारती कहती हैं कि ग्रामीण अगर ऐसी पहल कर रहे हैं, तो यह तय है कि अब कई जिंदगियां उजड़ने से बच जाएंगी। (आईएएनएस)

रा

ष्ट्रीय स्वच्छता अभियान को सफल बनाने की दिशा में सिडको (शहर और औद्योगिक विकास महामंडल) ने एक अच्छी पहल की है। वह शहर को साफ रखने और नागरिकों की जरुरत को ध्यान में रखते हुए जगह-जगह ई-टॉयलेट का निर्माण कर रहा है। बाजारों में दिन भर खरीददारी करने वाले और फुटपाथ पर व्यवसाय करने वाले लोग शौचालय के अभाव में कहीं भी हल्का होने के लिए बैठ जाते थे। गंदगी के कारण चलानाफिरना मुश्किल हो रहा था। इससे शहर तो गंदा होता ही था, तरह-तरह की बीमारियों का भी खतरा बना रहता था। इस हालत को देखकर सिडको ने अपनी तरह से पहल की और बाजारों को गंदगीमुक्त करने का फैसला किया। जहां-जहां ई-टॉयलेट बन रहे हैं, वे कम्प्युटर से संचालित होंगे। टॉयलेट के प्रवेश द्वार के पास सिक्का डालने का संकेत होगा। दो रूपए का सिक्का डालते ही स्टेनलेस से बने शौचालय का दरवाजा अपने आप खुल जाएगा। इसमें पानी की खपत भी कम होगी और पर्यावरण की भी रक्षा होगी। इस शौचालय को अगर अच्छा प्रतिसाद मिलता है तो शहर के हर हिस्से में बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। अभी कलंबोली इलाके में 50 लाख रूपए की लागत से 7 ई-टॉयलेट का निर्माण चल रहा है जो इसी महीने आम लोगों के लिए खोला जाएगा। सिडको को उम्मीद है कि इससे आम जनता को काफी राहत मिलने वाली है। हालांकि पनवेल महानगरपालिका ने पूरे क्षेत्र में सार्वजनिक शौचालयों की सुविधा उपलब्ध करा दी है, लेकिन कलंबोली सहित कुछ इलाकों में घनी आबादी के कारण शौचालयों की कमी महसूस की जा रही है। इसी कमी को दूर करने के खयाल से सिडको ने सामाजिक दायित्व के तहत पनवेल मनपा का साथ देने का फैसला किया। (मुंबई ब्यूरो)


14 स्वास्थ्य मोटापा से दूर तो बीमारी से महफूज 16 - 22 अक्टूबर 2017

मो

भारत में मोटापे के रोगियों के साथ बड़ी समस्या यह है कि वह अपनी बीमारी को एक रोग नहीं मानते हैं

टापा परेशानियों का कारण बनता है, फिर भी जो लोग सचेत नहीं हैं, वे इसे बीमारी मानने को तैयार नहीं होते। इतना ही नहीं, मोटापे से ग्रस्त लोग कोई टीका-टिप्पणी भी सहन नहीं करते। मोटापे को कोई भले ही न माने, लेकिन चिकित्सक तो कहते हैं कि यह कई रोगों को बुलावा देता है। दक्षिणी दिल्ली स्थित हैबिलाइट बरिएट्रिक्स ने मोटापा संबंधी जानकारी देने के लिए एक कार्यक्रम की शुरुआत की है। इस कार्यक्रम के जरिए सेंटर के चिकित्सक यह जानकारी दे रहे हैं कि कैसे मोटापे के कारण गैरसंचारी रोग (नॉन कम्युनिकेबल डिजीज) की गिरफ्त में आ जाते हैं और ऐसी स्थिति में वह खुद को कैसे बचा सकते हैं। हैबिलाइट बरिएट्रिक्स के संस्थापक डॉ. कपिल अग्रवाल, वरिष्ठ सलाहकार, बरिएट्रिक एवं लैप्रोस्कोपिक सर्जन बताते हैं कि भारत में मोटापे के रोगियों के साथ बड़ी समस्या यह है कि वह अपनी बीमारी को एक रोग नहीं मानते हैं और इसके गंभीर परिणामों की अनदेखी करते हैं। हैबिलाइट सपोर्ट ग्रुप के साथ हम लोगों को यह जानकारी प्रदान कर रहे हैं कि मोटापा एक गंभीर रोग है और कैसे यह मोटापा अन्य गंभीर गैर-संचारी रोगों का कारण बन सकता

है। इसीलिए इसके उपचार के लिए पेशेवर स्वास्थ्य सलाहकार की आवश्यकता होती है। डॉ. अग्रवाल ने बताया कि भारत दुनिया में तीसरा सबसे अधिक मोटी आबादी वाला देश है। भागदौड़ भरी जीवन शैली के साथ तेजी से बढ़ता शहरीकरण

मोटापे के बढ़ते स्तरों के लिए मुख्य कारक है। वहीं कुछ लोग इसके नतीजों के बारे में अनजान हैं कि मोटापा गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के लिए जिम्मेदार है। हमारे देश में 10 प्रतिशत आबादी सामान्य मोटापे और 5 प्रतिशत आबादी अत्यधिक मोटापे की शिकार है। इसलिए मोटापे को नियंत्रित करने के लिए उसकी रोकथाम की उपयुक्त योजना का निष्पादित करना बेहद आवश्यक है, ताकि वजन को दोबारा बढ़ने से रोका जा सके और उसके उपचार में आने वाले खर्च को नियंत्रित किया जा सके। हैबीलाइट सपोर्ट ग्रुप इस स्थिति का विश्लेषण करने के लिए सर्वेक्षण कर रहा है और मरीजों को बेहतर

मोटापा एक गंभीर रोग है और कैसे यह मोटापा अन्य गंभीर गैर-संचारी रोगों का कारण बन सकता है, इसके उपचार के लिए पेशेवर स्वास्थ्य सलाहकार की आवश्यकता होती है

एक नजर

भारत दुनिया में तीसरा सबसे अधिक मोटी आबादी वाला देश है देश में 10 प्रतिशत आबादी सामान्य मोटापे के शिकार हैं

अत्यधिक मोटापे की शिकार लोगों की संख्या 5 प्रतिशत है

आहार विकल्पों का चयन करने, स्वस्थ वातावरण बनाने, उन्हें प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल परामर्श प्रदान कर रहा है। डॉ. अग्रवाल बताते हैं कि हैबिलाइट सपोर्ट ग्रुप में रोगियों को स्वास्थ्य सुरक्षा प्रबंधन में प्रशिक्षित स्वास्थ्य सलाहकार समाज में मोटापे को लेकर व्याप्त विकृत सोच व वजन प्रबंधन को डील करने के बारे में मरीजों को अवगत कराते हैं। अगर हर कोई इलाज की जरूरत को कम करने के लिए रोकथाम में निवेश के महत्व को समझ जाए, तो मोटापे के बढ़ते बोझ से निपटा जा सकता है। (एजेंसी)

मुंबई के कामकाजी सर्वाधिक तनावग्रस्त, अध्ययन में खुलासा तनाव को लेकर ऑनलाइन सर्वे में मुंबई के बाद दिल्ली दूसरे नंबर पर है

एक नजर

मुंबई में 31 फीसदी कामकाजी लोग तनाव झेल रहे हैं दिल्ली में यह संख्या 27 और मुंबई में 14 फीसदी है

क अध्ययन में पता चला है। मुंबई के 31 फीसदी कामकाजी पेशेवर तनाव से ग्रस्त हैं। ऑनलाइन डॉक्टर परामर्श मंच ‘लीब्रेट’ द्वारा किए गए अध्ययन में पता चला है कि प्रथम श्रेणी के शहरों में लगभग 60 फीसदी कामकाजी पेशेवर तनाव ग्रस्त हैं। इसमें दिल्ली (27 फीसदी), बेंगलुरू (14 फीसदी), हैदराबाद (11 फीसदी), चेन्नई (10 फीसदी) और कोलकाता (7 फीसदी) शामिल हैं। कामकाजी पेशेवरों की मुख्य चिंताएं हैं- तंग

समय सीमा, लक्ष्य पूरा न कर पाना, कामकाजी दबाव, कार्यालय की राजनीति, लंबे समय तक काम करने वाला समय, उदासीन और असंबद्ध प्रबंधक और घर-बाहर का असंतुलन। लीब्रेट के सीईओ और संस्थापक सौरभ अरोड़ा ने कहा, ‘लोग तनाव को लेकर अपने परिवार और दोस्तों से बात करने में असहज महसूस करते हैं, लेकिन स्वास्थ्य के नजरिए से यह जरूरी है कि वह अपने अंदर की हताशा और अपनी भावनाओं का इजहार करें।’

अरोड़ा ने कहा, ‘आपको यह पता लगाना जरूरी है कि आपको क्या परेशान कर रहा है और तनाव का कारण क्या है, जिससे प्रभावी तौर से निपटा जा सके। लंबे समय से जारी तनावर्पूण भावनाएं गंभीर स्वास्थ्य का कारण बन सकती हैं।’ अध्ययन में पता चला है कि मीडिया और पब्लिक रीलेशन (22 फीसदी), बीपीओ (17 फीसदी ), ट्रैवल और टूरिज्म (9 फीसदी) और एडवरटाइजिग और इवेंट मैनेजमेंट (8 फीसदी) की तुलना में सेल्स और मार्केटिंग क्षेत्र

सबसे ज्यादा तनावग्रस्त लोग मीडिया और पीआर के क्षेत्र में

से संबधि ं त कामकाजी पेशेवर (24 फीसदी) अधिक तनाव ग्रस्त रहते हैं। इस अध्ययन के लिए, लीब्रेट की टीम ने 10 अक्टूबर, 2016 से लेकर 12 महीने की अवधि के दौरान डॉक्टरों के साथ मिलकर एक मंच पर एक लाख से ज्यादा कामकाजी पेशेवरों से बातचीत का विश्लेषण किया। (एजेंसी)


16 - 22 अक्टूबर 2017

स्वास्थ्य

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बुजुर्गों की आंखों की रोशनी लौटाएंगे छात्र ​​ ल ईमे उपयोगकर्ताओं को साइबर खतरे का सबसे ज्यादा जोखिम

हर नौवें उपयोगकर्ता में से एक उपयोगकर्ता को 2017 की पहली छमाही में द्वेषपूर्ण ई मेल प्राप्त हुए हैं

को किसी भी दूसरे ई मेमैललवेयउपयोगकर्ता र की तुलना में ईमेल के माध्यम से

साइबर खतरे का सामना करने की संभावना दोगुना से अधिक होती हैं। एक नई रपट में बुधवार को इस बात की जानकारी दी गई। हर नौवें उपयोगकर्ता में से एक उपयोगकर्ता को 2017 की पहली छमाही में द्वेषपूर्ण ई मेल प्राप्त हुए हैं, इसका खुलासा साइबर सुरक्षा कंपनी सिमेनटेक की रिपोर्पट 'ई-मेल थ्रेटस 2017' में हुआ है। बिजनेस ईमेल समझौता (बीईसी) घोटालों को साइबर खतरे के रूप में भी पहचाना गया है, जहां स्कैमर्स किसी कंपनी के भीतर, या प्रशासनिक चेन के भीतर किसी व्यक्ति का प्रतिरूप तैयार करते हैं और उपयोगकर्ताओं के पैसे निकालने या संवेदनशील जानकारी साझा करने का प्रयास करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया, 'हम लगभग एक महीने में बीईसी घोटालों द्वारा लक्षित लगभग 8,000 व्यवसायों को देखते हैं। औसतन इन व्यवसायों को हर महीने पांच से अधिक घोटाले वाले ई-मेल प्राप्त होते हैं।' इस रिपोर्ट ने स्पैम ईमेल को एक और झुंझलाहट के रूप में पहचाना है। स्पैम दर जो 2011 से धीमी लेकिन स्थिर गिरावट पर थी, अब बढ़ने की शुरुआत में है। 2017 की पहली छमाही में स्पैम दर ने 54 फीसदी का आंकड़ा छू लिया, जो यहां दर्शाता है कि एक साल पहले की तुलना में आपके पास हर महीने इनबॉक्स में करीब 11 स्पैम ईमेल आ रहे हैं। (एजेंसी)

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बेंगलुरु के स्कूली छात्रों ने पहल करते हुए बुजुर्गों की आंखों के इलाज के लिए साठ दिनों में जुटाए 25 लाख

गलुरु के एक स्कूल के छात्रों ने गरीब और जरूरतमंद वरिष्ठ नागरिकों की आंखों के इलाज का बीड़ा उठाया है। छात्रों ने इसके लिए सिर्फ 60 दिनों में 25 लाख रुपए जुटाए हैं। इससे करीब 2500 जरूरतमंद बुजर्गों ु की आंखों की रोशनी दोबारा लौटाई जा सकेगी। बुजुर्गों को दृष्टि देने के नेक काम में जुटे दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस) बेंगलुरु पूर्व और इलेक्ट्रानिक्स सिटी ब्रांच के छात्रों ने अलग-अलग तरीकों से आम जनता के बीच जाकर कड़ी मेहनत से ये पैसे जोड़े हैं। इसके लिए उन्होंने डोर टू डोर कैंपेनिंग के साथ ही ऑनलाइन पोर्टल का भी सहारा लिया। डीपीएस (ई-सिटी) की प्रिंसिपल अनुपमा रामचंद्रन ने बताया, 'हर स्टूडेंट ने अपने स्तर पर इसके लिए अभियान चलाया। सभी ने अपना एक लक्ष्य तय किया और ऑनलाइन पोर्टल के जरिए लोगों तक संदेश पहुंचाकर उनसे मदद मांगी। इसमें उन्होंने लिखा, हम गांव में रह रहे मोतियाबिंद के शिकार जरूरतमंद बुजुर्ग लोगों की आंखों की रोशनी दोबारा लौटाना चाहते हैं। हमें आपकी मदद की दरकार है।' अनुपमा ने कहा, हम किताबों के जरिए तो रोजाना छात्रों को दूसरों की मदद करने का ज्ञान देते हैं, लेकिन इस बार हम एक कदम आगे बढ़े हैं और बच्चों को किताबों से निकालर सीधे लोगों के बीच पहुंचाया है, ताकि हम उन्हें वास्तविक जीवन में रोल मॉडल बना सकें।' अनुपमा ने बताया कि छात्रों की मेहनत रंग लाई है। इस नेक काम के लिए पैसे तो

जुट ही गए हैं, उधर अस्पताल भी न्यूनतम दर पर सभी जरूरतमंद बुजुर्गों की आंखों की सर्जरी के लिए तैयार है। डीपीएस (पूर्व) की प्रिंसिपल मनीला सी. ने कहा, ' इस नेक पहल के लिए हमारे संस्थान के छात्रों ने ऑनलाइन पोर्टल के अलावा फूड स्टॉल लगाकर, ग्रीटिंग कार्ड्स और पोस्ट कार्ड्स की बिक्री करके भी पैसे जुटाए। इसके अलावा छात्रों ने नुक्कड़ नाटक के जरिए भी फंड जुटाए।' मनीला सी. ने कहा, 'एक बेहतर इंसान बनने

के लिए संवेदनशील होना जरूरी है। स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ जरूरी है कि छात्रों को इसके लिए भी प्रोत्साहित किया जाए। इससे वे समाज के लोगों की जरूरतों को समझेंगे। वे महसूस कर पाएंगे कि समाज के लोग किन दिक्कतों से गुजर रहे हैं और फिर उसके समाधान में अपना योगदान दे पाएंगे।' मनीला ने कहा कि उन्हें एक प्रिंसिपल होने के नाते इस बात की खुशी है कि उनके कैंपस के स्टूडेंट्स इस तरह के सामाजिक कार्यों में रूचि रखते हैं और बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं। (एजेंसी)

गैर हिंदी भाषियों की हिंदी में बढ़ रही रुचि हिंदीतर भाषी हिंदी नवलेखक शिविर में यह बात सामने आई कि गैरहिंदी भाषियों के बीच हिंदी की लोकप्रियता बढ़ रही है

दे शकामेंदर्जाअबनहींतक मिलहिंदी पायाको भलेहो,हीलेराष्ट्रभाषा किन गैर

हिंदी भाषियों में हिंदी सीखने और जानने की ललक बढ़ी है। यह बात केंद्रीय हिंदी निदेशालय और बिड़ला महाविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित दस दिवसीय हिंदीतर भाषी हिंदी नवलेखक शिविर में सामने आई है। इस शिविर में तमिलनाडु, केरल, गुजरात सहित कई प्रदेश से शोधार्थी आए हैं। इन शोधार्थियों के मुताबिक हिंदी एक समृद्ध भाषा है। यह रोजगार परक भाषा बन गई है और जब दुनियाभर के कई विश्वविद्यालयों में यह भाषा पढ़ाई जाती है, तब इस भाषा को सर्व सम्मति से राष्ट्रभाषा घोषित कर देना चाहिए। इस

शिविर में नवलेखकों को हिंदी भाषा और साहित्य के विविध पक्षों में लेखन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। शिविर में अब तक गैर हिंदी भाषी नवलेखकों

को अलग-अलग विधाओं पर दिल्ली के डॉ. ब्रजेंद्र तिवारी, अहमद नगर के प्राध्यापक पुरुषोत्तम कुंदे, डॉ. रामजी तिवारी, सुशीला गुप्ता, सूर्यबाला, डॉ. विजय कुमार, सतीश पांडेय, डॉ. बालकवि सुरंजे, डॉ. श्यामसुंदर पांडेय आदि ने मार्गदर्शन किया। शिविर प्रभारी और केंद्रीय हिंदी निदेशालय से संबद्ध डॉ. रत्नेश कुमार मिश्र ने कहा कि शिविर में देश के विभिन्न हिस्से लोग आए हैं। यह शिविर गैर हिंदी भाषियों में हिंदी के प्रचार-प्रसार और रचनात्मक लेखन को बढ़ावा देने के लिए आयोजित किया जाता है। उन्होंने कहा कि इस शिविर में कई विद्यार्थी ऐसे आए हैं, जिनकी हिंदी और शब्द ने प्रभावित किया है। (एजेंसी)


16 खुला मंच

16 - 22 अक्टूबर 2017

‘हम अपने लिए नहीं, अपनों के लिए हैं। अपने वे हैं, जो सदियों से पीड़ित एवं उपेक्षित हैं’ -नानाजी देशमुख

रामनाथ कोविंद

अभिमत

राष्ट्रपति

पानी का हाल और सवाल जलवायु परिवर्तन और संबंधित पर्यावरण चिंताओं को देखते हुए जल विषय के रूप में काफी महत्वपूर्ण हो गया है

कुछ कहता है यह ‘उजाला’ देश भर में अब तक करीब 26 करोड़ से ज्यादा बल्ब लगाए भी जा चुके हैं

पहले मई महीने में भारत दो साल ने ऊर्जा क्षेत्र में स्वावलंबन का

एक बड़ा कदम उठाया था। यह कदम था ‘उन्नत ज्योति बॉय अफर्डेबल फॉर ऑल’ यानी उजाला योजना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस योजना की शुरुआत के समय से ही यकीन था कि यह भारत में ऊर्जा क्रांति की ओर बढ़ाया गया अहम कदम साबित होगा। आज उजाला योजना वाकई यह लोगों के घरों में उजाला भर रही है। इस योजना के तहत एक वर्ष के अंदर ही 9 करोड़ एलईडी बल्बों की बिक्री हो गई थी, जिससे लगभग 550 करोड़ रुपए के बिजली बिल की बचत हुई थी। इससे उत्साहित होकर इसे और विस्तार दिया गया और अब तक करीब 26 करोड़ से ज्यादा बल्ब लगाए भी जा चुके हैं। इस मिशन ने बिजली और पैसों की बचत के साथ-साथ प्रदूषण भी कम किया है। इसके माध्यम से देश में 77 करोड़ एलईडी बल्ब लगाने की योजना है। दिलचस्प है कि जब योजना की शुरुआत हुई थी तो एलईडी बल्ब की कीमत सामान्य बल्ब से 30-35 गुना अधिक थी। 3 साल पहले जब कोई एक एलईडी बल्ब खरीदना चाहता था तो उसे 300 रुपए से भी अधिक खर्च करने पड़ते थे। अधिक कीमत इसकी सफलता में बड़ी बाधा थी। इसका कारण था कि उस वक्त एलईडी बल्बों का उत्पादन कम था। इससे लागत ज्यादा आती थी। इस समस्या से निबटने का इकलौता तरीका था ज्यादा से ज्यादा एलईडी बल्ब का प्रोडक्शन ताकि इनकी कीमत कम हो सके। ऐसे में ऊर्जा मंत्रालय के तहत एनटीपीसी, पावर फायनांस कॉरपोरेशन जैसे पीएसयूज ने मिलकर ईईएसएल का गठन किया ताकि एलईडी रेवेल्यूशन को अंजाम तक पहुंचाया जा सके। एलईडी की कीमतें जब बाजार में कम होने लगीं तो धीरे-धीरे लोगों ने इसमें दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया। आज बिजली से जलने वाले पीले बल्ब इतिहास की बात हो गई है। नया भारत तो अंधेरे में भी एलईडी के दुधिया उजाला में नहा रहा है।

टॉवर

(उत्तर प्रदेश)

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नव जीवन के लिए जल आवश्यक है। वास्तव में मानव शरीर का 60 प्रतिशत हिस्सा जल है। यह कहा जा सकता है कि जल स्वयं जीवन है। जल के बिना किसी भी क्षेत्र में मानवीय गतिविधि पूरी नहीं हो सकती। आज विश्व इस विषय पर चर्चा कर रहा है कि क्या सूचना प्रवाह ऊर्जा प्रवाह से अधिक महत्वपूर्ण है। यह एक अच्छा प्रश्न है, लेकिन जल प्रवाह भी महत्वपूर्ण है। यह अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी और मानव समानता का मूल है। जलवायु परिवर्तन और संबधि ं त पर्यावरण चिंताओं को देखते हुए जल विषय के रूप में और महत्वपूर्ण हो गया है। भारत में हमारे कुछ अग्रणी कार्यक्रमों के केंद्र में जल है। मैं यह कहना चाहूंगा कि भारत का आधुनिकीकरण जल प्रबंधन के आधुनिकीकरण पर निर्भर है। यह आश्चर्य नहीं है कि विश्व की 17 प्रतिशत आबादी वाले हमारे देश के पास विश्व के जल संसाधन का सिर्फ 4 प्रतिशत हिस्सा है। भारतीय कृषि और उद्योग के लिए समान रूप से जल का बेहतर और कारगर इस्तेमाल एक चुनौती है। इसके लिए हमें अपने गांव और शहरों में नए मानक स्थापित करने होंगे। भारत में 54 प्रतिशत लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं, फिर भी राष्ट्रीय आय में उनका हिस्सा केवल 14 प्रतिशत है। कृषि को और मूल्य आकर्षक बनाने तथा किसान समुदाय की समृद्धि में सुधार के लिए सरकार ने अनेक नई परियेाजनाएं शुरू की है, इन परियोजनाओं में शामिल हैं-

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हर खेत को पानी– प्रत्येक खेत के लिए पानी- इसके लिए जल की आपूर्ति और उपलब्धता में वृद्धि आवश्यक। l प्रति बूंद, अधिक फसल– इसके लिए उत्पादकता सुधार में टपक सिंचाई और संबंधित तरीकों का उपयोग आवश्यक। l 2022 तक कृषि आय दुगुनी करना- इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार सिंचाई क्षेत्र का तेजी से विस्तार कर रही है और 99 लंबित सिंचाई परियोजनाओं को पूरा कर रही है। ऐसी 60 प्रतिशत परियोजनाएं सूखा प्रभावित क्षेत्रों में है। अब मैं भारत की औद्योगिकीकरण और जल की भूमिका पर बात करना चाहूंगा। ‘मेक इन इंडिया’ मिशन के अंतर्गत भारत जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग का हिस्सा बढ़ाने की दिशा में कार्य कर रहा है। हम जीडीपी में वर्तमान 17 प्रतिशत की हिस्सेदारी 2025 तक बढ़ाकर 25 प्रतिशत करने के लिए संकल्पबद्ध हैं। उद्योग को बड़े स्तर पर जल की आवश्यकता होती है। इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर, कंप्यूटर तथा मोबाईल फोन बनाने के मामले में विशेष रूप से। यह सारे क्षेत्र ‘मेक इन इंडिया’ के फोकस में हैं। भारत में अभी 80 प्रतिशत जल का उपयोग कृषि कार्य में किया जाता है और उद्योग में जल का उपयोग केवल 15 प्रतिशत होता है। आने वाले वर्षों में इस अनुपात में बदलाव होगा। जल की कुल मांग भी बढ़ेगी। इसीलिए औद्योगिक परियोजनाओं के ब्लू प्रिंट में सक्षम तरीके से जल के उपयोग

भारत में 54 प्रतिशत लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं, फिर भी राष्ट्रीय आय में उनका हिस्सा केवल 14 प्रतिशत है


16 - 22 अक्टूबर 2017 और पुन: उपयोग को शामिल किया जाना चाहिए। इस समस्या के समाधान में व्यवसाय और उद्योग को भागीदारी करनी होगी। इसीलिए मुझे खुशी है कि इस सम्मेलन में मैन्यूफैक्चरिंग कम्पनियों के प्रतिनिधि बड़ी संख्या में उपस्थित हैं। भारत का शहरीकरण पहले की तुलना में बहुत अधिक तेजी से हो रहा है। स्मार्ट सिटी कार्यक्रम के अंतर्गत 100 आधुनिक सिटी बनाने या उन्नत करने के प्रयास किए जा रहे हैं। हम सभी जानते हैं कि स्मार्ट सिटी के मूल्यांकन के लिए जल का पुन: उपयोग, ठोस कचरा प्रबंधन तथा बेहतर स्वच्छता ढांचा और व्यवहार मानक हैं। शहरी भारत में प्रतिदिन 40 बिलियन लीटर गंदा जल उत्पन्न होता है। इस जल के विषैले प्रभाव को कम करने और सिंचाई या अन्य कार्यों में इस जल के उपयोग के लिए प्रोद्योगिकी अपनाना महत्वपूर्ण है। यह शहरी नियोजन कार्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए। मैं जल अनुभव के बारे में भारत में क्षेत्रीय भिन्नता की ओर भी संकेत देना चाहूंगा। एक तरफ भू-जल संसाधनों का अंधाधुन दोहन किया जा रहा है, और हमारे उत्तरी और पश्चिमी राज्य जर्जर हो रहे हैं तो दूसरी और पूर्वी व पूर्वोत्तर राज्यों में नदियों के उफान और नियमित बाढ़ की चुनौती बनी हुई है। प्रत्येक वर्ष इससे आबादी को नुकसान होता है और अनगिनत परिवारों में त्रासदी आती है। ऐसी त्रासदियों से केवल बहुहितधारक और बहुपक्षीय दृष्टिकोण से निपटा जा कसता है। इस कार्य में जहां संभव हो नदियों को आपस में जोड़ने का लक्ष्य शामिल है। नदियों को स्वच्छ रखने के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के उपयोग के उद्देश्य से नदी प्रणाली का प्रबंधन बेसिन व्यापी करना आवश्यक है। ‘नमामि गंगे’ परियोजना एक अच्छी शुरूआत है। हमें ऐसी सोच को देश की अन्य नदी प्रणालियों तक और भारतीय उपमहाद्वीप विशेषकर देश की पूर्वी हिस्सों तक ले जाना चाहिए। आखिर में मैं आग्रह करूंगा कि जल का प्रबंधन स्थानीय स्तर पर किया जाना चाहिए। इस कार्य में गांव और पड़ोसी समुदाय को सशक्त बनाना चाहिए और उन्हें जल संसाधन प्रबंधन, आवंटन और मूल्य क्षमता के लिए सक्षम बनाया जाना चाहिए। 21वीं शताब्दी की किसी भी जल नीति में जल के मूल्य को शामिल करना होगा। समुदायों सहित सभी हितधारकों की सोच को व्यापक बनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, हमें लोगों को जल परिमाण निर्धारित करने से आगे लाभ परिमाण निर्धारित करने की ओर बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। निश्चित रूप से लाभ परिमाण का निर्धारण गतिशील होगा। यह मैपिंग तथा मानव समाज में आजीविका के तौर-तरीकों के अनुमानों से जुड़ा होगा और यह विकसित होता रहेगा। मानव सम्मान के लिए जल तक पहुंच एक पर्याय है। भारत में 6 सौ हजार गांवों तथा शहरी क्षेत्रों की आबादी को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराना केवल परियोजना प्रस्ताव नहीं है। यह पवित्र संकल्प है। सरकार ने भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरा होने पर 2022 तक सभी ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल सप्लाई सुनिश्चित करने की रणनीतिक योजना बनाई है। उस वर्ष तक का लक्ष्य है 90 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों में पाईप से पानी सप्लाई करना।

ल​ीक से परे

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प्रियंका तिवारी

खुला मंच

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लेखिका युवा पत्रकार हैं और देश-समाज से जुड़े मुद्दों पर प्रखरता से अपने विचार रखती हैं

पधारो म्हारे देस!

कानून व्यवस्था और अन्य सुविधाअों की दृष्टि से भारत वर्ल्ड टूरिस्ट सर्किट का एक अहम डेस्टिनेशन बन गया है

रत को उसकी मेहमाननवाजी के लिए विश्वभर में जाना जाता है। अब तो कानून व्यवस्था और अन्य सुविधाअों की दृष्टि से भी भारत वर्ल्ड टूरिस्ट सर्किट का एक अहम डेस्टिनेशन बन गया है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में संवाद ‘मन की बात’ में लोगों से अपील की कि वे अद्भुत भारत के विभिन्न अद्भुत स्थलों को खोजें। प्रधानमंत्री का यह संदेश सरकार की इश मंशा को दिखाता है कि वह लोगों को पर्यटन से जुड़े फायदे के प्रति जागरूक करना चाहती है। पर्यटन मंत्रालय ने शहरी इलाकों में ‘बी एंड बी’ (ब्रेड एंड ब्रेकफास्ट) भवनों के विकास एवं निर्माण को बढ़ावा दिया है लेकिन अब समय आ गया है कि ग्रामीण इलाकों में गृह निवास (होम स्टे) बनाने पर ध्यान दिया जाए। केवल यह भवन ही पर्यटन को स्थिरता दे सकते हैं क्योंकि बड़े होटल तो केवल प्राकृतिक संसाधनों के बूते अपनी जेबें भर रहे हैं। स्थानीय गृह निवास स्थानीय लोगों से सीधा संपर्क बनाने और उनकी सभ्यता संस्कृति को जानने में मददगार साबित होगा। यह व्यवस्था स्थानीय लोगों को भी रोजी रोटी कमाने का अच्छा अवसर देगी। भारत के पर्यटन क्षेत्र में आगे बढ़ने में उसकी यह अनुकूलता भी खास मायने रखती है कि हमारे यहां की उत्सवप्रियता पूरी दुनिया में मशहूर है। दरअसल यह समय ऐसा है जब लोग नए, शांत और थोड़े अनजान स्थान खोजने की तरह ही सांस्कृतिक रूप से संपन्न जगहों की भी सैर करना चाहते हैं।

लोगों की पर्यटन से जुड़े इस रूझान को देखते हुए ही भारत सरकार ने हाल में पर्यटन पर्व का भी आयोजन किया। भारत सरकार की इस योजना से दो अति महत्त्वपूर्ण बातें हैं- ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ योजना के अंतर्गत अंतर्राज्यीय संबध तथा सी.बी. एस.ई. मान्यता प्राप्त विद्यालयों को अन्य गतिविधियों के साथ विरासत रूप स्मारकों की यात्रा हेतु दिशानिर्देश। स्कूली बच्चों के लिए स्मारकों के दर्शन का विचार नया नहीं है लेकिन ‘पर्यटन एवं अध्ययन’ से इसे जोड़ना इसे नया बनाता है। कल्पना करें कि एक कक्षा महाराष्ट्र के एक किले में बैठकर छत्रपति शिवाजी की विजय के बारे में पढ़ रही हो या अकबर ने क्या किया यह आगरा के किसी किले में बैठकर सीखा जा रहा हो। ये स्मारक ज्ञान एवं जानकारी का खजाना हैं। वे केवल इतिहास के पाठ ही उपलब्ध नहीं कराते बल्कि उस युग के शिल्पकला और परंपरागत प्रथाओं से भी अवगत कराते हैं। वास्तविक दर्शन से बेहतर सीखने का कोई और तरीका नहीं हो सकता। भारत का सौभाग्य है कि यह 3500 से अधिक स्मारकों से संपन्न है और 10,000 अन्य

स्मारकों की देख-रेख राज्य सरकारें करती हैं। पर्यटन मंत्रालय की सालाना रिपोर्ट के अनुसार 2016-17 में घरेलू पर्यटन का महत्त्वपूर्ण योगदान भारतीय पर्यटन सेक्टर में रहा है। राज्य पर्यटन एवं पर्यटन मंत्रालय के आकंड़ों के अनुसार घरेलू सैलानियों की संख्या 2014 में 1282.8 मिलियन के मुकाबले 2015 में 1432 मिलियन रही, जो 11.63% वृद्धि थी। विदेशी सैलानियों के आगमन का यह आंकड़ा(8.03 मिलियन) बहुत बड़ा है तथा पिछले साल के मुकाबले 4.5 % की वार्षिक वृद्धि भी दिखा रहा है। निवेशकों और इस सेक्टर से जुड़े लोगों को घरेलू पर्यटन के बढ़ते झुकाव को समझने की जरूरत है। उदाहरण के तौर पर लगभग 190.67 मिलियन सैलानी 1999 में थे, जो 2015 में बढ़कर 1,431.97 मिलियन हो गए। इस उद्योग ने 16 सालों में 651.02% का उदय देखा। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने मार्च 2018 तक संशोधित पर्यटन पॉलिसी बनाने कि पहल की है। पहले एक समय ऐसा था जब लोग केवल तीर्थयात्राओं के लिए ही बाहर निकलते थे और यह केवल अमीर लोगों का ही शौक हुआ करता था, परंतु अब आम महिला पुरुष भी सामान्य स्थलों के अलावा नई जगहों कि खोज कर रहे हैं। इस प्रकार घरेलू पर्यटन का दायरा बढ़ा है, जिससे सरकार और निवेशकों को सकारात्मक रवैया अपनाकर इस सेक्टर को और आगे बढ़ाने के लिए संभव द्वार खुले हैं।

स्वच्छता है आवश्यक

शौचालय इस्तेमाल करने हेतु लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए समाज से जुड़ी सच्ची घटनाओं को सुलभ स्वच्छ भारत प्रमुखता से प्रकाशित करता हैं। मैं इसका नियमित पाठक हूं। इस अंक में बाल विवाह और दहेज जैसी कुरुतियों को समाज से दूर करने के लिए चलाए गए अभियान को प्रमुखता से प्रकाशित किया गया है। इसमें हमें देश ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर की भी अच्छी जानकारियां प्राप्त होती है। इसके लिए हम सुलभ स्वच्छ भारत के आभारी हैं। आशा करते हैं कि यह जानकारियां हम पाठकों को हमेशा प्राप्त होती रहेंगी।

इस देश में जितनी राजनीतिक क्षेत्र में आजादी महत्वपूर्ण है उसी तरह स्वच्छता भी आवश्यक है। पीएम मोदी के इस मुहिम में सुलभ स्वच्छ भारत ने स्वच्छता से संबंधित खबरें प्रकाशित कर विशेष योगदान दिया है। इस अंक में प्रकाशित ‘स्वच्छता मिशन के तीन वर्ष, दूर नहीं मंजिल’ लेख ने हमें काफी प्रभावित किया है। इसके साथ ही सुलभ स्वच्छ भारत समाचार पत्र से लोगों में स्वास्थ एवं स्वच्छता के प्रति जागरुकता आई है। इस समाचार पत्र ने स्वच्छता के साथ ही साथ तकनीक क्षेत्र में हुए नए बदलावों को भी अपने लेख के माध्यम से विशेष महत्व दिया है।

ललित शर्मा, रोहतक,हरियाणा

अजरा खान, कानपुर, उत्तर प्रदेश

समाज को किया जागरुक


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फुटबॉल का कुंभ 16 - 22 अक्टूबर 2017

भारत में फीफा अंडर-17 वर्ल्ड कप की मेजबानी से यह जाहिर हो गया है कि इस खेल को खेलने के साथ इससे जुड़ी सुविधाअों में हम ने वैश्विक मानक स्तर को सफलता के साथ पार कर लिया है। साथ ही इस आयोजन से देश में फुटबॉलरों की नई खेप पैदा होगी फोटो ः शिप्रा दास


16 - 22 अक्टूबर 2017

फोटो फीचर

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भारत में फीफा अंडर-17 वर्ल्ड कप का आयोजन नई दिल्ली में हो रहा है। देश में आयोजन का यह अवसर एक सांस्कृतिक उत्सव की तरह है। इसके उद्घाटन मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ केंद्रीय खेल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर समेत कई गणमान्य लोग मौजूद थे


20 विज्ञान उपग्रह डेटा आधारित फसल बीमा 16 - 22 अक्टूबर 2017

उपग्रह डेटा के साथ उन्नत मॉडलिंग तकनीक का उपयोग कर प्रभावित लोगों को त्वरित बीमा भुगतान करने में सक्षम बनाता है

नासा इंसानों को फिर से चांद पर भेजेगा ट्रंप सरकार चाहती है कि नासा फिर से इंसानों को चांद पर भेजे

बा

ढ़ग्रस्त बिहार में अंतरराष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान (आईडब्लूएमआई) ने सूचकांक आधारित बाढ़ बीमा (आईबीएफआई) के साथ बाढ़ प्रभावित किसानों की मदद करने की अपने तरह की पहली शुरुआत की है। यह उपग्रह डेटा के साथ उन्नत मॉडलिंग तकनीक का उपयोग कर प्रभावित लोगों को त्वरित बीमा भुगतान करने में सक्षम बनाता है। कोलंबो स्थित आईडब्ल्यूएमआई के भारतीय प्रतिनिधि आलोक के. सिक्का ने कहा, ‘हम मुजफ्फरपुर के कुछ गांवों में आईबीएफआई के साथ बाढ़ से प्रभावित किसानों की मदद करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसा बिहार में ही नहीं, बल्कि देश में पहली बार हो रहा है। उपग्रह डेटा का प्रयोग कर बाढ़ग्रस्त किसानों को बीमा प्रदान करना इससे पहले कभी नहीं किया गया।’ सिक्का ने कहा कि गायघाट ब्लॉक के गांवों में 200 से अधिक खेती करने वाले परिवारों को इस आईबीएफआई योजना के तहत जुलाई में एक पायलट अभियान के लिए चुना गया था। इन किसानों में ज्यादातर सीमांत किसान हैं, जिनकी अक्टूबर के अंत या नवंबर के शुरू में बाढ़ के कारण फसल खराब हो गई थी, वह बीमा धन प्राप्त कर सकते हैं। वे भरोसे के साथ बताते हैं, ‘हम आईबीएफआई का प्रयोग कर यह दिखाने की कोशिश कर रहे

एक नजर

हैं कि यह ग्रामीण आजीविका की सुरक्षा के लिए अधिक विश्वसनीय तरीका है।’ गैर लाभकारी संस्था आईडब्ल्यूएमआई की एक टीम विकासशील देशों में पानी और भूमि संसाधनों के स्थायी उपयोग पर ध्यान केंद्रित कर रही है, बाढ़ के जलस्तर में गिरावट आने के बाद जमीनी स्तर से जुड़ी जानकारी प्राप्त करने के लिए टीम किसानों से मिली और किसानों को आश्वासन दिया कि वे अपने बीमा के पैसे प्राप्त कर सकेंगे। आईडब्ल्यूएमआई के कम्युनिकेशन एंड नॉलेज मैनेजमेंट के वरिष्ठ प्रबंधक नाथन रसेल ने कहा, ‘हमने इस पायलट परियोजना के लिए बिहार का चयन किया है, क्योंकि यह देश का सबसे बाढ़ग्रस्त राज्य है, जहां हर साल कृषि को भारी नुकसान पहुंचता है। भारत भर में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के किसानों के लिए आईबीएफआई एक आदर्श मॉडल है।’ आईडब्ल्यूएमआई में पानी के खतरे और आपदाओं के अनुसंधान समूह के अध्यक्ष गिरिराज अमरनाथ ने बताया कि इस वर्ष सूचकांक आधारित बाढ़ बीमा मुफ्त प्रदान किया गया, क्योंकि यह उनके बीच आत्मविश्वास जगाने की पहल थी। अमरनाथ के शब्दों में, ‘हमने उन्हें किसी भी प्रीमियम का भुगतान करने के लिए नहीं कहा है। आईबीएफआई निशुल्क है। इन किसानों ने पचास लाख रुपए की कीमत का बीमा कराया है।’

इस प्रक्रिया में किसी एजेंट या मध्यस्थ की कोई भूमिका नहीं होगी। यह उम्मीद की जाती है कि सूचकांक आधारित बीमा, बीमाकर्ताओं को बाढ़ के बाद तेजी से और सही तरीके से किसान के उपज नुकसान की अदायगी करने में मदद करेगा

आईबीएफआई संग आईडब्लूएमआई कर रहा है योजना पर काम पायलट प्रोजेक्ट के लिए बाढ़ग्रस्त बिहार का खासतौर पर चयन

रजिस्टर्ड किसानों को बीमा कंपनी से पैसे सीधे उनके बैंक खाते में मिलेंगे

अमरनाथ ने कहा कि रजिस्टर्ड किसानों को बीमा कंपनी से पैसे सीधे उनके बैंक खाते में मिलेंगे। इस प्रक्रिया में किसी एजेंट या मध्यस्थ की कोई भूमिका नहीं होगी। यह उम्मीद की जाती है कि सूचकांक आधारित बीमा बीमाकर्ताओं को बाढ़ के बाद तेजी से और सही तरीके से किसान के उपज नुकसान की अदायगी करने में मदद करेगा। यह पारंपरिक बीमा के विपरीत है जिसमें हर नुकसान का आकलन किया जाता है, जिसमें समय अधिक लगता है और अरक्षणीय है। बिहार आपदा प्रबंधन विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक इस साल पिछले दो दशकों में सबसे खतरनाक बाढ़ का सामना करना पड़ा, क्योंकि 19 जिलों के 187 ब्लॉक के 2371 पंचायतों में 1.716 करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं। इसके साथ ही बाढ़ से 514 लोग मारे गए। बाढ़ के कारण भारी क्षति को देखते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र से मुआवजे के रूप में 7,637 करोड़ रुपए की मांग की है। अगस्त में सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों का हवाई सर्वेक्षण करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 करोड़ रुपए के मुआवजे की घोषणा की थी। वर्तमान में आठ सदस्यीय केंद्रीय दल बाढ़ प्रभावित जिलों में हुए नुकसान का आकलन कर रहा है। यह राज्य को अंतिम मुआवजे के लिए केंद्र को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। (आईएएनएस)

मेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने कहा कि ट्रंप प्रशासन नासा को निर्देशित करेगा कि वह चांद पर लोगों को उतारने और लाल ग्रह या उससे आगे अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने से पहले चंद्रमा की सतह पर उपस्थिति स्थापित करें। दि वर्गा ने खबर दी कि पेंस ने वॉल स्ट्रीट जर्नल ऑप-एड में प्रशासन के इरादों को बताया, साथ ही नेशनल स्पेस काउंसिल की उद्घाटन बैठक में दिए एक भाषण में उन्होंने एक नए पुनरुत्थान वाले कार्यकारी समूह के उद्देश्य यूएस स्पेस एजेंडा को मार्गदर्शन करने वाला बताया। उन्होंने वर्जीनिया के चैंटिली में स्मिथसोनियन नेशनल एयर एंड स्पेस म्यूजियम के स्टीवन एफ उद्वार-हजी सेंटर में संवाददाताओं से कहा कि हम नासा के अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा से वापस लाएंगे - न केवल पैरों के निशान और झंडे पीछे छोड़ने के लिए, बल्कि नींव बनाने के लिए, हमें अमेरिकियों को मंगल और उससे परे भेजना होगा। पेंस ने स्पष्ट किया कि अंतरिक्ष एक राष्ट्रीय प्राथमिकता है, नासा के कार्यकारी प्रशासक रॉबर्ट लाइटफुट ने परिषद की पहली बैठक के बाद एक बयान में कहा। लाइटफुट ने कहा कि उपराष्ट्रपति ने अंतरिक्ष में नए सिरे से अमेरिकी नेतृत्व के लिए एक आह्वान की घोषणा की है राष्ट्रपति की सिफारिश के साथ नासा आगे बढ़ने और नेतत्व ृ करने में मदद कर रहा है। लाइटफुट ने कहा, परिषद ने सीआईएसचंद्र अंतरिक्ष के सामरिक महत्व को स्वीकार किया है। चंद्रमा के आसपास का क्षेत्र मंगल और उससे आगे के मिशन के लिए सिद्ध मैदान के रूप में काम करेगा। (आईएएनएस)


जीवन बदलने वाले क्रांतिकारी आविष्कार

16 - 22 अक्टूबर 2017

विज्ञान

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आम लोगों की जिंदगी की परेशानी को कम करने के लिए अरबपति समाजसेवी मनोज भार्गव ने पेश किए कई क्रांतिकारी आविष्कार

आईएएनएस

रबपति समाजसेवी मनोज भार्गव ने आम लोगों के जीवन को बदल देने वाले क्रांतिकारी आविष्कार पेश किए। भार्गव ने हाल में रिलीज अपनी डॉक्युमेंट्री फिल्म 'बिलियन्स इन चेंज 2' में इस उत्पादों पर विस्तार से चर्चा की है। भार्गव द्वारा पेश पहला उत्पाद है-पोर्टेबल डिवाइस हंस पावरपैक। यह मूलभूत इस्तेमाल के लिए बिजली का उत्पादन करता है और उसका भंडारण भी करता है। भार्गव द्वारा पेश हंस सोलर ब्रीफकेस असल में एक पोर्टेबल सोलर पावर स्टेशन है। भार्गव ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘बिजली कई कार्यो को करने में प्रभावी ढंग से सक्षम बनाती है। यह शिक्षा, आजीविका, उद्यमिकता और संचार के क्षेत्र में सभी तरह के मौकों के दरवाजे खोलती है। हालांकि अब भी लगभग आधी दुनिया को केवल दिन में 2-3 घंटे ही बिजली मिलती है, लेकिन अपने हंस सोलर ब्रीफकेस के माध्यम से मैं दुनिया को जगमग और उन्नत देखना चाहता हूं।’ 300 वॉट के हंस पावरपैक में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गहरी दिलचस्पी दिखाई। उत्तराखंड सरकार ने जरूरतमंद गांवों को मुफ्त और बिजली का स्थायी स्रोत उपलब्ध कराने के लिए 1,00,000 हंस पावरपैक हासिल करने की प्रतिबद्धता जताई है। भार्गव ने कहा, ‘हंस पावरपैक और हंस सोलर ब्रीफकेस के सम्मिश्रण से ग्रामीण

क्षेत्र में स्थित घरों के मालिक अपनी बिजली संबंधी सभी जरूरतें पूरी कर सकते हैं और उनका कभी बिजली का बिल भी नहीं आएगा।' इस अवसर पर पानी को फिल्टर करने वाली 2 रेनमेकर फिल्ट्रेशन यूनिट का भी प्रदर्शन किया गया था, जो खारे और भूरे पानी को पीने योग्य और कृषि कार्यों में इस्तेमाल किए जाने लायक बनाती है। भार्गव ने कहा, ‘लोगों को शायद न महसूस होता है, लेकिन गंदा पानी दुनिया भर में बीमारी फैलाने और मौत का सबसे बड़ा कारण है। यह महामारी है। हमारा लक्ष्य लोगों को साफ पानी मुहैया कराना है, जिससे वह सेहतमंद बन सकें, ज्यादा उत्पादक और क्रियाशील बन सकें और बेहतरीन गुणवत्ता वाले जीवन का आनंद ले सकें। साफ पानी सेहतमंद बनाता है।’ रेनमेकर मशीन प्रयोग न किए जा सकने वाले पानी को इस्तेमाल लायक बनाकर प्रभावी ढंग से नए जल स्रोत का निर्माण करती है, जो कि भयानक सूखे की मार से प्रभावित क्षेत्रों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इस मशीन में कई सालों तक, संभवत: दशकों तक पानी के संकट को खत्म करने या दूर धकेलने की क्षमता है। भार्गव ने बताया कि भारत में सबसे

एक नजर

हंस पावरपैक बिजली का उत्पादन और भंडारण करता है

कम जोत के किसानों के लिए पेश किया यूरिया से बेहतर खाद

पानी फिल्टर करने वाली 2 रेनमेकर फिल्ट्रेशन यूनिट का भी प्रदर्शन

पहला रेनमेकर मशीन बद्रीनाथ मंदिर ट्रस्ट को उपहार में दिया है। सबसे अंत में, भार्गव ने शिवांश फर्टिलाइजर खाद के छिड़काव के तरीके का विस्तृत विवरण पेश किया, जिसमें लघु पैमाने पर खेती कर रहे भारतीय किसानों को रेनमेकर के इस्तेमाल के बाद हुए अनगिनत लाभों की खेत से निकली कहानियां

उत्तराखंड सरकार ने जरूरतमंद गांवों को मुफ्त और बिजली का स्थायी स्रोत उपलब्ध कराने के लिए 1,00,000 हंस पावरपैक हासिल करने की प्रतिबद्धता जताई है

भी शामिल थीं। यूरिया के बिना लागत वाले विकल्प को बनाने के लिए उस तकनीक का प्रयोग किया गया है, जिससे खेत का कूड़ा करकट या बेकार बचे पदार्थों को पोषक तत्वों से समृद्ध उर्वरक में तब्दील किया जाता है। आश्चर्य की बात यह है कि यह खाद सिर्फ 18 दिनों में तैयार होता है और इससे पूरे सीजन के लिए यूरिया या दूसरे खाद के विकल्प के तौर पर उपयोग में लाया जा सकता है। भार्गव ने बताया, ‘एक फसल की बुआई के बाद खेतों में शिवांश फर्टिलाइजर छिड़कने से मृत हो गई मिट्टी में नई जान फूंकी जा सकती है। परिणाम आश्चर्यजनक और चौंकाने वाले हैं। किसान अब फसलों की ज्यादा पैदावार कर रहे हैं। वे कम कीटनाशकों और कम पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं। किसानों के बच्चे ज्यादा स्वस्थ हो गए हैं, क्योंकि उन्हें पोषक भोजन मिल रहा है। और इन सबसे बढ़कर यह है कि इससे किसान वास्तव में अच्छी कमाई कर रहे हैं।’


22 स्वच्छता

16 - 22 अक्टूबर 2017

शौचालय नहीं तो दिवाली मायके में मनाएंगी बहुएं

मध्य प्रदेश की बहुओं ने शौचालय नहीं बनने पर ससुराल में नहीं, मायके में दिवाली मनाने का फैसला किया है

सुराल में शौचालय नहीं तो घर की लक्ष्मी ससुराल की जगह मायके में दिवाली मनाएगी। शौचालय नहीं होने से तंग मध्यप्रदेश के शहडोल जिले की महिलाओं ने पतियों के विरुद्ध आंदोलन का शंखनाद कर दिया। पतियों स साफतौर पर कह दिया गया है कि पहले घर मे शौचालय बनवाओ इसके बाद ही वो ससुराल में दिवाली मनाएंगी, नहीं तो गांव की बहुएं इस बार अपने-अपने मायके में त्योहार मनाएंगी। मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के बिजहा गांव में शौचालय के लिए महिलाओं के इस आंदोलन ने अपना परिणाम भी दिखाना शुरू कर दिया है। गांव की अधिकांश महिलाएं अपना ससुराल छोड़ मायके चली गईं। वहीं लगभग एक दर्जन जाने की तैयारी में हैं। गांव की बहुओं ने चिट्ठी लिख इस समस्या से जनप्रतिनिधियों को भी अवगत कराया है। अपनेअपने नाम से लिखी चिट्ठी में बहुओं ने साफ लिखा है कि शौचालय नहीं बनने से वो अपने मायके चली

परेशानी में ससुराल पक्ष

ध्य प्रदेश में शौचालय निर्माण के लिए यह अब तक का सबसे अनोखा मामला है जहां गांव की बहुएं एकजुट होकर पूरा का पूरा गांव खाली करने में आमदा हो गईं हैं। एक ओर जहां उनके पति परेशान हैं वहीं दूसरी ओर यह जगह-जगह चर्चा का विषय बना हुआ है। ससुराल पक्ष के लोग अब आनन-फानन में शौचालय निर्माण की तैयारी में जुटे हैं तो कुछ अब भी खुद को लाचार महसूस करते हुए शौचालय निर्माण में अक्षम बता रहे हैं, लेकिन गांव की इन बहुओं ने अपने इस आंदोलन से स्पष्ट कर दिया है कि वो ससुराल में तभी रहेंगी जब उनके लिए शौचालय का निर्माण होगा।

जाएंगी। बहुओं को स्वाति सोनी नाम की महिला ने शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित किया है। सिंगरौली जिले से जून 2017 में बिजहा गांव के शिवशंकर सोनी से उनकी शादी हुई। स्वाति ने देखा कि उसके ससुराल में शौचालय नहीं है, जबकि उसके मायके में है। शुरू में उसने अपने पति और ससुराल के अन्य लोगों से घर में शौचालय बनवाने की मिन्नत की। जब वो लोग नहीं माने तब स्वाति ने गांव की महिला जिला पंचायत सदस्य कृष्णा पटेल को एक चिट्ठी लिखकर अपनी निजता की समस्या से अवगत कराया। स्वाति सोनी का शौचालय को लेकर अपने घर

में शुरू किया गया विरोध अब आंदोलन की ओर बढ़ रहा था। शौचालय निर्माण की मांग को लेकर अपने ससुराल में अड़ी स्वाति ने मायके पक्ष को भी अपनी इस समस्या से अवगत कराया। स्वाति गांव में खुलेआम कहने लगी अगर मुझे पता होता कि इनके घर शौचालय नहीं है तो मैं शादी ही नहीं करती। इसके बाद भी जब ससुराल पक्ष के लोग शौचालय निर्माण के लिए राजी नहीं हुए तो स्वाति सोनी ने एलान कर दिया कि अब वह अपने मायके वापस चली जाएंगी और तब तक वापस नहीं आएगी जब तक ससुराल में शौचालय का निर्माण नहीं होता है। शौचालय के लिए स्वाति का उठाया यह कदम

शौचालय के लिए स्वाति का उठाया कदम गांव में आग की तरह फैल गया। लगभग उन सभी घरों से आवाज आने लगी जहां शौचालय नहीं थे और बहुएं खुले में शौच जाती थीं

गांव में आग की तरह फैल गया। लगभग उन सभी घरों से आवाज आने लगी जहां शौचालय नहीं थे और बहुएं खुले में शौच जाती थीं। सभी ने जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को चिट्ठी लिखना शुरू कर दिया। देखते-देखते गांव की महिलाएं यह कहकर अपना ससुराल छोड़ मायके जाने लगीं की उनके यहां शौचालय नहीं है। बिजहा गांव में रहने वाली जिला पंचायत सदस्य कृष्णा पटेल बताती हैं कि गांव की कई महिलाओं ने उन्हें भी चिट्ठी लिखकर इस समस्या से अवगत कराया है और यह भी जिक्र किया है कि शौचालय नहीं होने के कारण वो अपना ससुराल छोड़ मायके में दीवाली मनाएंगी। जिला पंचायत सदस्य ने बताया कि गांव की कुछ महिलाएं अपने मायके चली गईं हैं और कुछ जाने की तैयारी में हैं। शहडोल मुख्यालय से लगभग 90 किलोमीटर दूर महिलाओं के इस आंदोलन की गूंज अब जिले के कोने-कोने में सुनाई दे रही है। महिलाओं का कहना है कि शौचालय नहीं होने से उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, अब बेटियां भी बड़ी हो गईं हैं। (एजेंसी)


शौचालय जाइए और इनाम पाइए

16 - 22 अक्टूबर 2017

स्वच्छता को बढावा देने के लिए कानपुर नगर निगम की अनूठी इनामी पहल

इस तरह मिलेंगे पुरस्कार

नगर आयुक्त अविनाश सिंह ने बताया कि 50 वर्ष से अधिक आयु वालों के नियमित शौचालय जाने पर 11 हजार रुपए, 35 से 50 वर्ष के बीच की आयु वालों को 7000 रुपए, 20 से 35 वर्ष के बीच उम्र वालों को 5100 रुपए और 20 वर्ष से कम आयु वालों को 2100 रुपए का इनाम प्रोत्साहन राशि के रूप में दिया जाएगा। इसमें एक महिला और एक पुरुष को बराबर-बराबर धनराशि मिलेगी। दिव्यांगों के लिए अलग से विशेष पुरस्कार दिए जाएंगे। 100 लोगों को सांत्वना पुरस्कार दिए जाएंगे। इसमें 101 रुपए भी हो सकते हैं और कोई गिफ्ट भी।

बच्चों को मिलेंगे चॉकलेट व चिप्स

खु

ले में शौच से कानपुर को मुक्त करने के लिए नगर निगम ने अनूठी पहल की है। अब उन लोगों को इनाम दिया जाएगा जो सार्वजनिक व सामुदायिक शौचालयों में जाएंगे। इनाम की राशि 2100 से 11000 रुपए निर्धारित की गई है। अलगअलग आयु वर्ग के लोगों के लिए अलग-अलग पुरस्कार होंगे। महिलाओं और पुरुषों के लिए एक समान पुरस्कार रखे गए हैं। ये पुरस्कार खुले में शौच करने वालों को जागरूक करने के लिए होंगे। शौचालयों पर लोगों का स्वागत बैंड बाजे के साथ किया जाएगा ताकि ऐसा लगे कि खुले में शौच से मुक्ति के लिए उत्सव का माहौल है।

नगर निगम खुले में शौच करने वालों को रोकने के लिए हर रोज नए फंडे अपना रहा है। इसका व्यापक असर भी पड़ा है। शहर के 40 हॉट स्पॉट (खुले में शौच करने वाले स्थान) से 500 मीटर की दूरी पर स्थित शौचालयों में लोगों को भेजने के लिए अब प्रतिस्पर्द्धा शुरू होने जा रही है। शौचालयों में पारिवारिक सदस्यता कार्ड भी बन रहे हैं। गरीब लोगों के लिए शौचालय फ्री किए गए हैं, इसीलिए रजिस्टर पर नाम भी लिखे जाते हैं। अब प्रतिदिन जिसके नाम रजिस्टर में अंकित होंगे वही इनाम के हकदार होंगे। जो पुरस्कार पुरूष को दिए जाएंगे वही महिलाओं को भी।

अभी तक खुले में शौच करने वाले बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए हर रोज चॉकलेट व चिप्स दिए जाएंगे। ये चॉकलेट व चिप्स शौचालय के बाहर जार में रखे जाएंगे। ऐसा इसीलिए भी किया गया है जो अभिभावक अपने बच्चों को खुले में भेजते हैं, उनका आकर्षण शौचालय की तरफ बढ़े और बच्चों को भेजें। अभी से आदत बनेगी तो भविष्य में भी वे खुले में शौच करने नहीं जाएंगे। जो बच्चे हर रोज शौचालय आएंगे उनकी गिनती अलग से होगी। नगर आयुक्त ने बताया कि जिन लोगों को नगद पुरस्कार दिए जाना है उनके नाम हर शौचालय से एकत्र करके पर्ची के रूप में नगर निगम मुख्यालय लाए जाएंगे। यहां लाटरी निकलेगी। (एजेंसी )

शौचालय के लिए अब 20 हजार रुपए

उत्तर प्रदेश सरकार अब व्यक्तिगत शौचालय के निर्माण हेतु 20 हजार रुपए देगी

त्तर प्रदेश सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) के अन्तर्गत व्यक्तिगत शौचालय के निर्माण हेतु लागत का निर्धारण करते हुए 20 हजार रुपए कर दिया है। इस संबंध में मिशन निदेशक स्वच्छ भारत मिशन, समस्त नगर आयुक्त नगर निगम, तथा समस्त अधिशासी अधिकारी नगर पालिका परिषद/नगर पंचायत को प्रमुख सचिव नगर विकास मनोज कुमार सिंह की ओर से आवश्यक आदेश जारी कर दिए गए हैं। प्रमुख सचिव नगर विकास ने जारी निर्देशों में कहा है कि व्यक्तिगत शौचालय (सेप्टिक टैंक व सोकपिट आधारित) निर्माण, जलापूर्ति की व्यवस्था के साथ-साथ 20 हजार रुपए की धनराशि में पूर्ण कराया जाय। शौचालय निर्माण हेतु दिए जाने वाली धनराशि में 4 हजार रुपए केंद्र सरकार की ओर से, 4 हजार रुपए राज्य सरकार की ओर से तथा 12 हजार रुपए नगर निकाय के पास उपलब्ध धनराशि से उपलब्ध करायी जाएगी।

प्रमुख सचिव नगर विकास ने कहा है कि यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू होंगे। आदेश जारी होने के तिथि तक पूर्ण/निर्मित शौचालयों को यह अतिरिक्त धनराशि नहीं दी जाएगी। जहां पर सीवर लाइन लाभार्थी के मकान से 30 मीटर के अन्दर है, वहां पर लाभार्थी को मात्र 8 हजार रुपए निर्माण

के लिए अनुमन्य होंगे, क्योंकि ऐसे मामलों में सेप्टिक टैंक के निर्माण की आवश्यकता नहीं होगी। अंतिम रूप से लाभार्थी का चयन होने के पश्चात निर्माण कार्य प्रारंभ करने के लिए उसके खाते में 4 हजार रुपए ट्रांसफर किए जाएंगे। निकाय द्वारा लाभार्थी की पात्रता की पुष्टि आधार संख्या, स्थायी पता, बैंक खाता नम्बर तथा एमआईएस पर अपलोड किए जाने के बाद पहली किश्त की धनराशि राज्य मिशन निदेशालय स्तर से जारी की जाएगी। सेप्टिक टैंक का वेस तैयार होने के उपरान्त लाभार्थी को निकाय द्वारा अपने अंश का 12 हजार रुपए की धनराशि लाभार्थी के खाते में ट्रांसफर की जाएगी। सेप्टिक टैंक पूरा होने, कमोड बैठाने, तथा सुपर स्ट्रक्चर बनाने के उपरांत छत पड़ने के पहले लाभार्थी को 4 हजार रुपए की अंतिम किश्त राज्य मिशन निदेशालय द्वारा उपलब्ध कराई जाएगी। (एजेंसी )

स्वच्छता

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शौचालय निर्माण में यूपी नंबर वन व्यक्तिगत शौचालयों के निर्माण में उत्तर प्रदेश बना देश का नंबर वन राज्य

स्व

च्छता ही सेवा' अभियान में यूपी के पहले नंबर पर आने के बाद अब व्यक्तिगत शौचालयों के निर्माण में भी प्रदेश को पहला स्थान मिला है। मुख्य सचिव राजीव कुमार ने बताया कि यूपी ने 14,88,948 व्यक्तिगत शौचालय बनवाकर पहला स्थान पाया है। मध्य प्रदेश 14,36,642 शौचालयों के साथ दूसरे और राजस्थान 12,42,374 शौचालयों के निर्माण के साथ तीसरे स्थान पर रहा। देश के 34 राज्यों में 1,10,09,798 व्यक्तिगत शौचालयों के निर्माण कराया गया। मुख्य सचिव के मुताबिक शामली, बिजनौर, गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ और गौतबुद्धनगर के 13,092 गांवों को ओडीएफ घोषित किया चुका है। मुख्य सचिव ने शास्त्री भवन स्थित कार्यालय में जिलों को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) करने के संबंध में निर्देश दे रहे थे। मुख्य सचिव ने कहा, प्रदेश में पंजीकृत निर्माण श्रमिकों के लिए जिलेवार सर्वे कराकर उनके लिए शौचालय बनवाए जाएं। पंचायतीराज विभाग के अपर मुख्य सचिव चंचल कुमार तिवारी ने बताया कि जनवरी से सितंबर 2016 तक 1,640 गांव ओडीएफ घोषित हुए थे जबकि इस साल इसी समयावधि में चार गुना से ज्यादा 6,965 गांवों को ओडीएफ घोषित किया गया। स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के निदेशक विजय किरन आनंद ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों के सभी प्राथमिक और अपर प्राथमिक विद्यालयों में शौचालय बनवाये जा चुके हैं, लेकिन पर्याप्त स्वच्छता सुविधा न होने और रख-रखाव के अभाव में बच्चे, खासकर छात्राओं को दिक्कत होती है। इस वजह से सभी विद्यालयों में शौचालयों को चाइल्ड फ्रेंडली बनाने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है। इसी तरह सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में छह साल से कम उम्र के बच्चों के लिए बेबी फ्रेंडली टॉइलट्स बनाए जा रहे हैं। (एजेंसी )


24 गुड न्यूज

16 - 22 अक्टूबर 2017

स्वच्छता सर्वेक्षण को लेकर नगर निगम की कवायद शुरू लखनऊ को देश के 10 सबसे साफ शहरों में शामिल कराने के लिए नगर निगम ने अपनी तैयारियां तेज की

चिकित्सक ने खुद खून दे बचाई मरीज की जान

उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात चिकित्साधिकारी ने अपना खून मरीज को दान कर बचाई जान

त्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ को देश के 10 सबसे साफ शहरों में शामिल कराने के लिए चार जनवरी से होने वाले स्वच्छता सर्वेक्षण को लेकर नगर निगम ने अपनी तैयारियां तेज कर दी है। अधिकारियों की मानें तो हर काम की डेट लाइन तय कर जिम्मेदार अधिकारियों को नोटिस जारी कर दिया गया है। नगर निगम के एक अधिकारी ने बताया कि अधिकारियों को नोटिस जारी कर दिया गया है और उनकी जवाबदेही भी तय की जा रही है। इको ग्रीन संस्था के माध्यम से नगर निगम द्वारा छह लाख घरों में कैरी बैग बांटे जाएंगे। अधिकारी ने बताया कि 70 पार्कों में साफसफाई की व्यवस्था के लिए एलडीए और नगर

निगम जल्द ही एक साथ एक कार्य योजना की शुरुआत करेंगे। 31 अक्टूबर तक 100 फीसदी घरों से कूड़ा उठाने का प्रबंध किया गया है। 15 दिन के भीतर सभी गाड़ियों में जीपीएस लगवाया जाएगा ताकि उनकी निगरानी हो सके। उन्होंने बताया कि एक महीने के भीतर बायोमैट्रिक मशीन पर अटेंडेंस की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। इसके साथ ही खुले में शौच को रोकने के लिए कड़े नियम बनाए गए हैं और इसका कड़ाई से पालन कराया जाएगा। नगर आयुक्त उदयराज सिंह ने बताया कि सभी अधिकारियों को तय समय पर काम पूरा करना होगा। हम लापरवाही और जवाबदेही तय करने के साथ ही कार्रवाई भी करेंगे। (आईएएनएस)

पने डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप कहते सुना होगा, लेकिन किसी मरीज की जान बचाने के लिए खुद का खून दान करने की बानगी नहीं देखी होगी। जी हां, उत्तर प्रदेश में बांदा जिले के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात चिकित्साधिकारी ने खुद का खून मरीज को दान कर यह साबित कर दिया है। हमीरपुर जिले के जितेंद्र सिंह (28) अपने जिले में शिक्षा विभाग में अनुदश े क के पद पर तैनात हैं। वह पिछले एक पखवाड़े से पीलिया जनित बीमारी से ग्रसित हैं। उसके शरीर में महज पांच यूनिट खून बचा था। जिला चिकित्सालय बांदा के चिकित्सकों ने अस्पताल में भर्ती जितेंद्र के परिजनों को तत्काल 'ए बी निगेटिव' ग्रुप के खून का इंतजाम

करने को कहा, लेकिन न तो ब्लड बैंक में ही खून मिला और न ही उसके रिश्तेदारों का ही ग्रुप मेल खाया। इत्तेफाक से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कमासिन के प्रभारी चिकित्साधिकारी डॉ. नवीन चक अचानक ब्लड बैंक पहुंचे और उन्होंने अपना खून देकर मरीज की जान बचा ली, जिससे एक बार फिर यह साबित हो गया कि वाकई डॉक्टर भगवान का दूसरा रूप होता है। डॉ. नवीन चक से जब खून देने के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि महज इलाज कर ही मरीज की जान बचाना चिकित्सक का फर्ज नहीं है, खून नहीं, अगर मेरी किडनी की भी मरीज को जरूरत होती तो वह भी दान कर देता। (आईएएनएस)

नासा के मंगल ओडिसी ने फोबोस की तस्वीर ली नासा के अंतरिक्ष यान मार्स ओडिसी ने पहली बार मंगल के चंद्रमा फोबोस की तस्वीरें कैमरे में कैद की है

मेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अंतरिक्ष यान मार्स ओडिसी ने 16 सालों तक मंगल ग्रह का चक्कर लगाने के बाद पहली बार मंगल के चंद्रमा फोबोस की तस्वीरें कैमरे में कैद की है। 2001 में लॉन्च किए गए मार्स ओडिसी के द थर्मल एमिशन इमेजिंग सिस्टम (टीएचईएमआईएस) नामक कैमरे ने 29 सिंतबर को फोबोस की तस्वीरें लीं। फोबोस अंडाकार आकृति का है और इसका औसत व्यास करीब 22 किलोमीटर है। अन्य मंगल यान ने इससे पहले फोबोस

की हाई-रिजोल्यूशन वाली तस्वीरें ली थीं, लेकिन वैज्ञानिकों को इंफ्रारेड संबंधी कोई जानकारी नहीं मिली। नासा ने एक बयान में कहा है कि थर्मल-इंफ्रारेड तरंगों के कई बैंडों ने सतह की खनिज संरचना और बनावट की जानकारी जुटाई है। एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी से टीएचईएमआईएस मिशन के योजनाकार जोनाथन हिल ने कहा, ‘टीएचईएमआईएस हालांकि पिछले 16 सालों से मंगल पर है, लेकिन पहली बार हम फोबोस को देखने के लिए अंतरिक्ष यान को मोड़ने में सक्षम हुए हैं।’ (आईएएनएस)


अमेरिका के रिचर्ड थालेर को अर्थशास्त्र का नोबेल व्यवहारगत अर्थशास्त्र के क्षेत्र में रिचर्ड थालेर के योगदान को देखते हुए मिला नोबेल सम्मान

एकेडमी ने अर्थशास्त्र का नोबेल स्वी डिश पुरस्कार देने के लिए अमेरिका के रिचर्ड

थालेर के नाम का एलान करते हुए कहा, ‘कुल मिलाकर रिचर्ड थालेर ने अर्थशास्त्र और फैसले लेने के व्यक्तिगत मानसिक विश्लेषण के बीच पुल तैयार किया है।’ नोबेल पुरस्कार के तहत उन्हें 90 लाख स्वीडिश क्रोनर दिए जाएंगे। थालेर ने पुरस्कार जीतने पर खुशी का इजहार किया है। जब उनसे पूछा गया कि वह 90 लाख क्रोनर की धनराशि को कैसे खर्च करेंगे तो उन्होंने कहा, ‘उनके शोध का एक क्षेत्र मेंटल अकाउंटिंग भी है। इसीलिए मैं शिकागो के एक बढ़िया अर्थशास्त्री के रूप में आपके सवाल का जबाव नहीं दे पाऊंगा।’ उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा, ‘मेरी कोशिश होगी कि जितना बेतुके तरीके से खर्च कर पाऊंगा, करूंगा।’

अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार बाकी पुरस्कारों से थोड़ा अलग है, क्योंकि इसकी रचना अल्फ्रेड नोबेल ने नहीं की थी। स्वीडेन के सेंट्रल बैंक ने 1968 में अल्फ्रेड नोबेल की याद में अर्थशास्त्र के लिए पुरस्कारों की शुरुआत की

एक नजर

नोबेल पुरस्कार के तहत थालेर को 90 लाख स्वीडिश क्रोनर दिए जाएंगे रिचर्ड थालेर ने शिकागो यूनिवर्सिटी में रहते हुए किए कई अहम शोध थालेर के मुताबिक उनके शोध का एक क्षेत्र मेंटल अकाउंटिंग भी है

स्वीडिश एकेडमी का कहना है कि शिकागो यूनिवर्सिटी के थालेर के योगदान ने तीन बातों को मनोवैज्ञानिक खासियतों को ध्यान में रखते हुए आर्थिक विश्लेषण को विस्तार दिया है। ये खासियतें हैं- सीमित तार्किता, निष्पक्षता को लेकर धारणा और आत्म नियंत्रण की कमी। अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार बाकी पुरस्कारों से थोड़ा अलग है, क्योंकि इसकी रचना अल्फ्रेड नोबेल ने नहीं की थी। नोबेल ने अपनी वसीयत में केवल भौतिकी, रसायन, चिकित्सा, शांति और साहित्य के लिए ही नोबेल पुरस्कार देने की बात कही थी। स्वीडेन के सेंट्रल बैंक ने 1968 में अल्फ्रेड नोबेल की याद में अर्थशास्त्र के लिए पुरस्कारों की शुरुआत की। इसके लिए विजेता का चुनाव भी हर साल नोबेल कमेटी ही करती है। (एजेंसी)

16 - 22 अक्टूबर 2017

गुड न्यूज

'शांत मन से वाहन चलाने' के संदेश के लिए बाइक रैली

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बाइकर्स ने दिल्ली की विभिन्न सड़कों से गुजरते हुए मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता कायम की

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श्व मानसिक दिवस के सिलसिले में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता कायम करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बाइक रैली का आयोजन किया गया जिसमें 70 से अधिक मोटर साइकिल चालकों ने हिस्सा लिया। हारले डेविडसन, ड्काटी, केटीएम, कावासाकी, ट्राइम्प और रॉयल इनफील्ड जैसी मोटर बाइकों पर सवार इन वाइकरों ने राजधानी की विभिन्न सड़कों से गुजरते हुए मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता कायम की। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के सिलसिले में इस मोटर बाइक रैली का आयोजन सीआईएमबीएस के सामाजिक जागरूकता अभियान 'इंडिया फॉर मेंटल हेल्थ' तथा राइडर्स प्लैनेट की ओर से किया गया। इस रैली के जरिए अगले महीने भारत में पहली बार आयोजित हो रही डब्ल्यूएफएमएच विश्व मानसिक स्वास्थ्य कांग्रेस के आयोजन का आगाज भी किया गया। इस रैली में सुपर बाइकर्स, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। इस रैली के जरिए लोगों को 'शांत मन से वाहन चलाने' का संदेश भी दिया गया। गौरतलब है कि विश्व मानसिक दिवस का आयोजन हर साल 10 अक्टूबर को होता है। इस साल के विश्व मानसिक दिवस का संदेश है कार्यस्थलों पर मानसिक स्वास्थ्य।' इस मौके पर डब्ल्यूएफएमएच विश्व मानसिक स्वास्थ्य कांग्रेस के आयोजन अध्यक्ष डॉ. सुनील मित्तल ने कहा, ‘आज के समय में रोड रेज की बढ़ रही घटनाओं का संबंध मानसिक तनाव से भी है। हम सड़कों पर किस तरह से वाहन चलाते हैं और किस तरह का व्यवहार करते हैं यह हमारी मानसिक स्थिति पर भी निर्भर है। हमारा फ्रस्ट्रेशन एवं मानसिक तनाव अक्सर रोड रेज के रूप में सामने आता है।’ मोटर बाइक चलाने का शौक रखने वाले सीआईएमबीएस के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. समीर कलानी ने कहा, ‘बाइक रैली में हमने लोगों को 'शांत मन के साथ वाहन चलाने' का संकल्प लेते हुए देखा। शांत मन से वाहन चलाने

एक नजर

रैली में हारले डेविडसन, केटीएम और ट्राइम्प सरीखी बाइक शामिल रैली में सुपर बाइकर्स के साथ सामाजिक कार्यकर्ता भी हुए शरीक विश्व मानसिक दिवस पर किया गया था बाइक रैली का आयोजन

पर हम अपना ध्यान बेहतर तरीके से केंद्रित कर पाते हैं, जिससे दुर्घटना होने की आशंका बहुत कम होती है।’ दिल्ली की मनोचिकित्सक डॉ. शोभना मित्तल ने कहा कि पिछले छह वर्षो में दिल्लीवासियों को सड़क जाम में फंसकर दोगुना समय बर्बाद करने को मजबूर होना पड़ता है जो रोड रेज तथा मानसिक तनाव का कारण है। समय पर दफ्तर या अन्य जगह पहुंचने की आपाधापी में लोग मानसिक तनाव से गुजरते हैं और यह तनाव दफ्तर एवं घर में भी बना रह सकता है। सड़कों पर मानसिक तनाव के साथ वाहन चलाने के कारण दुर्घटना होने की आशंका कई गुना बढ़ती है। इस मौके पर वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. नीलम कुमार बोहरा ने कहा कि आज जीवन के हर क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है जिसके कारण कार्यस्थलों पर मानसिक तनाव बढ़ रहा है। इस प्रतिस्पर्धा के कारण लोगों में डिप्रेशन भी बढ़ रहा है। एक अनुमान के अनुसार आज पांच में से एक व्यक्ति अपने जीवन में किसी न किसी मुकाम पर डिप्रेशन से ग्रस्त होते हैं, लेकिन मानसिक समस्याओं को लेकर समाज में कायम भ्रांतियों के कारण लोग अपनी मानसिक समस्याओं को छिपाते हैं, जबकि इन समस्याओं का सही समय पर सही इलाज होना चाहिए। ऐसे में यह जरूरी है कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में कायम भ्रांतियों को दूर किया जाए तथा समाज में जागरूकता कायम की जाए। (आईएएनएस)


26 गुड न्यूज

16 - 22 अक्टूबर 2017

अदालत ने युवती का बाल विवाह तोड़ा

एक सामाजिक संस्था की मदद से सात वर्ष पूर्व हुए बाल विवाह के खिलाफ अदालत पहुंची लड़की को मिला न्याय

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आईएएनएस

एक नजर

जस्थान की एक अदालत ने 18 वर्षीया एक युवती की वर्ष 2010 में 12 वर्ष की उम्र में हुई शादी को रद्द कर दिया। यह फैसला जोधपुर के एक परिवार न्यायालय ने सुनाया। 18 साल की सुशीला के लिए यह एक बड़ी जीत है। उसने गौना (शादी के बाद दुल्हन की विदाई) से एक दिन पहले ही अपना घर छोड़ दिया। सुशीला उसके बाद एक आश्रय घर में रह रही थी और एक गैर लाभकारी संगठन सृष्टि ट्रस्ट के जरिए परिवार न्यालालय का दरवाजा खटखटाया। सुशीला ने बयान में कहा, ‘कृति दीदी की मदद से मेरा बाल विवाह रद्द हुआ। अब मैं पुलिस अधिकारी बनने के अपने सपने को पूरा कर सकती

सारथी ट्रस्ट ने भारत में अब तक 33 बाल विवाह को रद्द करवाया है और कई बाल विवाहों को होने से रोका है। भारत में बाल विवाह कानून के विरुद्ध है, लेकिन खासकर राजस्थान में लोग अभी भी इस कुप्रथा को आगे बढ़ा रहे हैं

12 वर्ष की अवस्था में करा दी गई थी सुशीला की शादी सुशीला की मदद के लिए सामने आई सामाजिक संस्था

सुशीला पढ़ाई करके पुलिस अफसर बनना चाहती है

हूं।’ राजस्थान के बाड़मेर जिले के भंडियावास निवासी सुशीला की वर्ष 2010 में 12 वर्ष की अवस्था में जोधपुर जिले के बिलासपुर गांव के नरेश से शादी कर दी गई थी। उसके पिता ने पिछले वर्ष से उसे स्कूल भेजना बंद कर, गौना की तैयारी शुरू कर दी थी। इसके बाद सुशीला 27 अप्रैल 2016 की

मध्यरात्रि को घर छोड़कर चली गई। इस दौरान सृष्टि ट्रस्ट की प्रबंध ट्रस्टी और पुनर्वास मनोवैज्ञानिक कृति भारती ने उसे बाड़मेर राजमार्ग पर देखा और बाड़मेर बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश करने के बाद अपने साथ रख लिया। बाद में सुशीला को जोधपुर बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया गया। वह यहां के बालगृह में पिछले 15 माह से सुरक्षित तरीके

यूपी में शौचालय निर्माण पर आसमान से नजर

से रह रही थी। भारती की मदद से सुशीला ने सात वर्ष पूर्व हुए विवाह को रद्द करवाने के लिए परिवार न्यायालय में याचिका दाखिल की। भारती ने सुशीला के पति नरेश के दो फेसबुक खातों से बाल विवाह के समर्थन में सबूत जुटाए। भारती ने कहा, ‘परिवार न्यायालय ने समाज के समक्ष बाल विवाह के खिलाफ एक कड़ा संदेश दिया है। सुशीला अब दोबारा अपनी पढ़ाई से जुड़ पाएगी और उसके बेहतर पुनर्वास के प्रयास किए जाएंगे।’ सारथी ट्रस्ट ने भारत में अब तक 33 बाल विवाह को रद्द करवाया है और कई बाल विवाहों को होने से रोका है। भारत में बाल विवाह कानून के विरुद्ध है, लेकिन कई जगहों पर खासकर राजस्थान में लोग अभी भी इस कुप्रथा को आगे बढ़ा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में शौचालय निर्माण में धांधली को रोकने के लिए अब सेटेलाइट से नजर रखी जाएगी

त्तर प्रदेश स्वच्छता मिशन ने एक अनोखा तरीका अपनाया है। इसमें बनने वाले शौचालयों की जियो टैगिंग की जाएगी, ताकि इंटरनेट पर सही सही जानकारी दर्ज हो सके। इसमें यह जानकारी फीड की जाएगी कि किस देशांतर और अक्षांतर पर शौचालय बना है। यही नहीं, ऑनलाइन मॉनीटरिंग भी की जाएगी। स्वच्छ भारत मिशन, उत्तर प्रदेश के निदेशक विजय किरण आनंद ने बताया, ‘हम स्कूलों और आंगनबाड़ियों में बच्चों के अनुकूल शौचालय बनवा रहे हैं, ताकि छोटे बच्चों में शुरू से ही शौचालय उपयोग करने की आदत आए। स्कूलों में शौचालयों की सफाई के लिए सफाई कर्मचारी को निर्देशित किया गया है।’ उन्होंने आगे बताया, ‘बनने वाले शौचालयों की जियो टैगिंग की जाएगी ताकि धांधली रोकी जा सके।’ दिलचस्प है कि स्वच्छता ही सेवा अभियान में अव्वल आने के बाद यूपी ने व्यक्तिगत शौचालय निर्माण में भी देश में पहला स्थान प्राप्त किया है। देश के 34 राज्यों में 18,24,549 निर्मित शौचालयों में

से उत्तर प्रदेश के 3,52,950 शौचालयों का निर्माण कराने में प्रथम स्थान प्राप्त किया। यही नहीं प्रदेश

के छह जिले शामली, बिजनौर, गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ व गौतमबुद्ध नगर खुले में शौच मुक्त हो चुके हैं। इसके अलावा प्रदेश के 13,092 गांव भी ओडीएफ घोषित हो चुके हैं। मुख्य सचिव राजीव कुमार ने स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) अभियान के तहत प्रदेश के जनपदों को ओडीएफ किये जाने के लिए विभागीय अधिकारियों के साथ बैठक की। उन्होंने निर्देश दिए कि प्रदेश में पंजीकृत निर्माण श्रमिकों को खुले में शौच से मुक्त करने के लिए जनपदवार सर्वे कराकर निर्माण श्रमिकों के लिये शौचालयों का निर्माण कराया जाये। उन्होंने प्रदेश के गंगा किनारे स्थित 25 जनपदों के 1605 ग्रामों में 3 लाख 98 हजार शौचालयों का निर्माण कराकर वर्तमान वर्ष में ओडीएफ कराये जाने पर प्रसन्नता व्यक्त की। अपर मुख्य सचिव, पंचायती राज चंचल कुमार तिवारी ने बताया, ‘स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत खुले में शौच मुक्ति के लिए प्रदेश के हर जिले में

सीएलटीएस विधा पर स्वच्छाग्रहियों का चयन एवं प्रशिक्षण प्रदान कर व्यवहार परिवर्तन के लिए ग्रामों का स्वामित्व दिया जा रहा है।’ निदेशक विजय किरण आनंद के मुताबिक, ‘ग्रामीण क्षेत्रों में सभी प्राथमिक व अपर प्राथमिक विद्यालयों में यद्यपि शौचालयों का निर्माण किया जा चुका है, लेकिन उनमें समुचित स्वच्छता सुविधाओं की अनुपलब्धता के कारण कुछ छात्राएं बीच में ही पढ़ाई छोड़ देती हैं। इस दृष्टिकोण से सभी विद्यालयों में शौचालयों को चाइल्ड फ्रेन्डली बनाने की कार्यवाही प्रारंभ कर दी गई है।’ उन्होंने बताया कि परिवार रजिस्टरों के डिजिटाइजेशन का कार्य विभाग द्वारा आरंभ किया जा चुका है। प्रथम चरण में पांच जिलों -मेरठ, गाजीपुर, इटावा, बांदा, बहराइच को पायलट के रूप में चिन्हित करते हुये कार्यवाही प्रारंभ की जा चुकी है। (एजेंसी )


व्हाट्सएप पर चलता है 'पुलिस परिवार'

16 - 22 अक्टूबर 2017

इस परिवार में कुल एक हजार से ज्यादा जवान हैं, जो मिलकर पैसे इकट्ठा करते हैं और फिर अपने साथियों और उनके परिजनों की मदद करते हैं

शहीद जवानों के परिवरों को दी जा रही आर्थिक सहायता

अब तक आठ लाख 76 हजार रुपए की राशि का कुल सहयोग

त्तीसगढ़ की पुलिस के जवान सिर्फ नक्सलियों से लोहा लेना और अपराधियों की मुश्कें कसना ही नहीं जानते, बल्कि जरूरत पड़ने पर अपने साथियों की मदद करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते। जब भी इनके किसी सहयोगी के साथ कोई घटना घटती है, उसकी मदद को कबीरधाम पुलिस परिवार तत्काल सामने आता है। ये पूरा परिवार व्हाट्सएप पर चलता है। इस परिवार में कुल एक हजार से ज्यादा जवान हैं, जो अपनी-अपनी सामर्थ्य के हिसाब से पैसे जोड़कर इकट्ठा करते हैं और फिर उसको जरुरतमंद सहयोगी के परिजनों तक

गुब्बारों के जरिए सेलुलर कनेक्टिविटी

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पुलिस वालों ने अपने साथियों की मदद के लिए की पहल

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अल्फाबेट इंक प्रोजेक्ट लून के तहत तूफान प्रभावित प्यूटरे रिको में गुब्बारों के माध्यम से आपातकालीन कनेक्टिविटी सेवा मुहैया कराएगी

एक नजर

आईएएनएस/वीएनएस

गुड न्यूज

पहुंचा दिया जाता है। परिवार के सदस्य आरक्षक लवलेश परिहार ने कहा, ‘इस समूह का नाम ‘पुलिस परिवार’ दिया गया है। इसे व्हाट्सएप पर संचालित किया जा रहा है। यह समूह आकस्मिक-प्राकृतिक रूप से निधन हो जाने पर आपस में सहयोग राशि एकत्र करके मृतक के परिवार को सहयोग कर रहा है। साथ ही अपने साथी जवान या उनके परिवार में स्वास्थ्य संबधी कोई परेशानी होने पर आपस में आर्थिक रूप से भी पीड़ित परिवार का सहयोग कर रहा है।’ लवलेश ने कहा, ‘इस समूह ने 5 मार्च, 2015 को चिल्फी थाना में पदस्थ आरक्षक नीलकमल चंद्रवंशी की सड़क दुर्घटना में मृत्यु होने पर सभी

यह समूह आकस्मिक-प्राकृतिक रूप से निधन हो जाने पर आपस में सहयोग राशि एकत्र करके पीड़ित पुलिस वाले के परिजनों की अपने आर्थिक संसाधन से सहयोग कर रहा है

85,251 रुपए इकट्ठा कर शोकाकुल परिवार की मदद की थी। इसके बाद आरक्षक जगतु भुआर्य, आरक्षक विश्वनाथ राजपूत, आरक्षक छन्नू साहू, प्रतीक बघेल, सुरेश ठाकुर, आरक्षक मनीष यादव, प्रधान आरक्षक खगेश बंजारा, प्रधान आरक्षक परमानंद डहरिया एवं सहायक उपनिरीक्षक रेणु वैष्णव के निधन होने और प्रधान आरक्षक रामहू राम का स्वास्थ्य बिगड़ने पर आर्थिक मदद कर सहायता की थी।’ उन्होंने कहा कि पुलिस परिवार कबीरधाम के सभी अधिकारियों-कर्मचारियों ने मिलकर अब तक सात आरक्षक, तीन प्रधान आरक्षक और एक सहायक उपनिरीक्षक के लिए कुल आठ लाख 76 हजार रुपए की राशि का सहयोग कर चुके हैं। यह पहल छत्तीसगढ़ पुलिस के आपसी सौहार्द समरसता और आपसी भाईचारे को प्रदर्शित करता है, जो कि बहुत सराहनीय और अनुकरणीय पहल है। अभी तक ऐसे कार्य को सफल बनाने में आरक्षक से निरीक्षक स्तर तक के सभी जवान सहयोग दे रहे हैं।

गल की पैरेंट कंपनी अल्फाबेट इंक ने प्रोजेक्ट लून के तहत तूफान प्रभावित प्यूटरे रिको में गुब्बारों के माध्यम से आपातकालीन कनेक्टिविटी सेवा मुहैया कराने का संकेत दिया है। इस संबंध कंपनी के इंजीनियरों ने भी एक हफ्ते पहले ट्वीट किया था। कंपनी की इस योजना को अमेरिका के संघीय संचार आयोग (एफसीसी) ने हरी झंडी दे दी है। एफसीसी ने अल्फाबेट को प्यूटरे रिको और वर्जिन द्वीप के ऊपर छह महीनों के लिए 30 गुब्बारे उड़ाने की मंजूरी प्रदान कर दी है। अल्फाबेट के गुब्बारे अति तीव्रता के तूफान के कारण खराब हो गए हजारों सेलफोन टॉवरों की जगह वॉयस और डेटा सेवा मुहैया कराएंगे। एफसीसी को भेजे गए अल्फाबेट के आवेदन में प्यूटरे रिको में काम कर रहीं आठ वायरलेस कंपनियों के पत्र भी शामिल हैं, जिसमें 'लून' की फ्रिक्वेंसी का प्रयोग कर राहत कार्य चलाने तथा सीमित संचार मुहैया कराने की अनुमति देने की मांग की गई थी। अल्फाबेट के एक प्रवक्ता ने कहा कि 'लून' को दूरसंचार सहयोगियों के नेटवर्क के साथ एकीकृत करने की जरूरत है। गुब्बारों का यह नेटवर्क अकेले सेवा नहीं दे सकता। इससे पहले इस साल की शुरुआत में अल्फाबेट ने बाढ़ प्रभावित पेरू में भी लून के माध्यम से आपातकालीन फोन सेवाएं मुहैया कराई थी। (आईएएनएस)


28 गुड न्यूज

16 - 22 अक्टूबर 2017

ट्रांस जेंडर के लिए अस्पताल में विशेष ओपीडी

छत्तीसगढ़ की राजधानी में ट्रांस जेंडर समुदाय के लोगों को विशेष ओपीडी के साथ मुफ्त ऑपरेशन की भी सुविधा भी समुदाय के लोगों को सामाजिक-आर्थिक विकास की मुख्य धारा से जोड़ने और उनके लिए शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, आवास, स्वास्थ्य सुविधा, कौशल प्रशिक्षण, स्वरोजगार, राशनकार्ड की बेहतर व्यवस्था करने की दिशा में काम शुरू कर दिया है। समाज कल्याण सचिव सोनमणि बोरा ने कहा कि ट्रांस जेंडर समुदाय को लेकर समाज में व्याप्त भ्रांतियों को दूर करने और इस समुदाय के प्रति सरकार के सभी विभागों को अधिक संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि स्कूल-कॉलेजों के दाखिले के आवेदन फार्मों सहित सरकारी योजनाओं के आवेदन फार्मो में भी पुरुष, महिला के साथ-साथ एक कॉलम तृतीय लिंग का भी होना चाहिए, ताकि उन्हें भी चिन्हांकित कर शासकीय सुविधाओं और योजनाओं का लाभ दिलाया जा सके।

त्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के डॉ. भीमराव सर्वे प्रपत्र भरवाया जा चुका है। इनमें से 338 लोगों अंबेडकर में स्थित आयुष्मान भवन में प्रत्येक को पहचान पत्र भी जारी किए जा चुके हैं। छत्तीसगढ़ गुरुवार को सवेरे 11 बजे से दोपहर 12 बजे तक सरकार ने राज्य में निवास कर रहे ट्रांस जेंडर ट्रांस जेंडर समुदाय के मरीजों के लिए ओपीडी का संचालन किया जा रहा है। इसके साथ ही उन्हें मुफ्त ऑपरेशन की भी सुविधा दी जा रही है। ट्रांस जेंडर समुदाय को लेकर समाज में व्याप्त भ्रांतियों को दूर करने राज्य के सभी जिलों में समाज कल्याण विभाग लिए सभी विभागों को अधिक संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की ओर से सर्वेक्षण किया गया है और अब तक इस की जरूरत है - सोनमणि बोरा, समाज कल्याण सचिव समुदाय के लगभग तीन हजार लोगों की पहचान कर

के

स्वच्छता के लिए क्यूसीआई प्रमाण

क्यूसीआई ने स्वच्छता के निर्धारित मापदंडों को पूरा करने पर 361 नगरीय निकायों को खुले में शौच मुक्त शहर प्रमाणित किया है

ध्य प्रदेश के 361 नगरीय निकायों को क्वालिटी काउंसिल आफ इंडिया (क्यूसीआई) द्वारा स्वच्छता के निर्धारित मापदंडों को पूरा करने पर खुले में शौच मुक्त शहर प्रमाणित किया है। इस तरह राज्य के सभी 378 नगरीय निकाय को खुले में शौच मुक्त घोषित किया गया है। आधिकारिक तौर पर दी

गई जानकारी के अनुसार, वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक लगभग 7,31000 से अधिक परिवार को शौचालय विहीन चिन्हित किया गया था। सभी नगरीय क्षेत्रों में सर्वे कराकर 6,18000 व्यक्तिगत शौचालय स्वीकृत किए गए। अब तक लगभग 4,80000 शौचालय निर्मित कराए जा चुके

हैं। इस वित्त वर्ष में लगभग दो लाख शौचालय निर्माण का लक्ष्य है। उल्लेखनीय है कि शहरी स्वच्छ भारत मिशन की लक्ष्य पूर्ति में व्यक्तिगत शौचालय के लिए 39 हजार 200 रुपये प्रति सीट, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए 35 प्रतिशत तथा सूचना शिक्षा

एक नजर

ट्रांस जेंडर समुदाय को समाज की मुख्यधारा में लाने की कोशिश समुदाय के 338 लोगों को पहचान पत्र भी जारी किए जा चुके हैं

छत्तीसगढ़ में ट्रांस जेंडर लोगों की संख्या करीब तीन हजार है

राज्य में प्रारंभिक आंकड़ो के अनुसार ट्रांस जेंडर समुदाय के लोगों की संख्या लगभग तीन हजार है। प्रदेश भर में ट्रांस जेंडर समुदाय के लोगों की पहचान और उनके लिए कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए समाज कल्याण विभाग द्वारा सभी जिलों में जिला स्तर पर कलेक्टर अथवा अपर कलेक्टर की अध्यक्षता में आठ सदस्यीय समिति का भी गठन किया गया है। इस सिलसिले में मंत्रालय (महानदी भवन में समाज कल्याण विभाग के सचिव सोनमणि बोरा की अध्यक्षता में सभी संबंधित विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों की समीक्षा बैठक आयोजित की गई। (एजेंसी )

एक नजर

2011 की जनगणना में 7,31000 से अधिक परिवार शौचालय विहीन अब तक लगभग 4,80000 शौचालय निर्मित कराए जा चुके हैं इस वित्त वर्ष में लगभग दो लाख शौचालय निर्माण का लक्ष्य है

संप्रेषण के लिए 15 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार द्वारा दी जा रही है। बताया गया है कि प्रदेश के सभी 378 नगरीय निकायों के 26 समूह गठित कर एकीकृत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन योजना को जन-भागीदारी से किया जा रहा है। (एजेंसी)


16 - 22 अक्टूबर 2017

गुड न्यूज

'कूलिंग' से घटेगा बिजली का बिल

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विज्ञान के नए चमत्कार का नाम है स्काई कूलिंग की तकनीक। जहां कम ठंड की जरूरत है उन ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस तकनीक का उपयोग किया जा सकता है

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आपने कभी सोचा है कि आपके मकान में एयर कंडीशनर बिना बिजली के काम कर सकता है? मगर अमेरिका के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि हां, ऐसा हो सकता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि ऐसा रेडिएटिव स्काई कूलिंग की तकनीक से संभव है। कूलिंग टूल एक नई कोटिंग सामग्री से विकसित किया गया है। शोध

अब एक और खूबसूरत चौपाटी मुं बईमिलेगकोी। गिरगां व, जुहू और वर्सोवा के बाद माहिम चौपाटी का सौंदर्यीकरण किया जाएगा। माहिम चौपाटी पहले से ही मौजूद है, लेकिन उसका रख रखाव उस तरह से नहीं हो पा रहा था, जो बाकी

रिपोर्ट के प्रमुख सह-लेखक यानी मुंबई में जन्मे आस्वथ रमन ने कहा, ‘रेडिएटिव स्काई कूलिंग हमारे वातावरण की प्राकृतिक संपत्ति का लाभ उठाती है। यदि आप गर्मी को अवरक्त विकिरण के रूप में किसी ठंडी चीज में डाल सकते हैं, जैसे कि बाहरी अंतरिक्ष तो आप बिजली के बिना किसी भी एक इमारत को ठंडा कर सकते हैं। इसके बाद यह पूरे परिवेश में वायु तापमान को शांत करता है और गैर-

वाष्पीकरणीय रास्ता प्रदान करता है।’ इस आविष्कार को एक अत्यंत पतली बहुस्तरित सामग्री से बनाया गया है। साथ ही इसको विकसित करने का श्रेय रमन और सह-कार्यकर्ता एली गोल्डस्टीन और शानुई फैन को जाता है। वर्ष 2014 में इसका पहला परीक्षण किया गया था। यह सामग्री, सिलिकॉन डाइऑक्साइड की सात परतों और सिल्वर की पतली परत के शीर्ष पर हैफनियम ऑक्साइड से बना है। यह एक ही समय में दो चीजें करती हैं। यह एक इमारत के भीतर अदृश्य अवरक्त गर्मी को ठंडे बाहरी अंतरिक्ष में तब्दील करती है, साथ ही सूरज की रोशनी जो इमारत को गर्म करती है, उसे प्रतिबिंबित करती है। लेखकों के मुताबिक, सामग्री 'रेडिएटर और एक उत्कृष्ट दर्पण' के रूप में कार्य करती है और भवन को कम एयर कंडीशनिंग की स्थिति में अधिक ठंडा करती है। सामग्री की आंतरिक संरचना एक आवृत्ति पर अवरक्त किरणों को विकीर्ण करने के लिए तैयार की जाती है, जिससे उन्हें इमारत

शोध रिपोर्ट के प्रमुख सह-लेखक यानी मुंबई में जन्मे आस्वथ रमन ने कहा, ‘रेडिएटिव स्काई कूलिंग हमारे वातावरण की प्राकृतिक संपत्ति का लाभ उठाती है’

एक नजर

कूलिंग टूल एक नई कोटिंग सामग्री से विकसित किया गया है आविष्कार को एक अत्यंत पतली बहुस्तरित सामग्री से बनाया गया 2014 में इस तकनीक का पहला परीक्षण किया गया था

के पास हवा को गर्म किए बिना अंतरिक्ष में पहुंचा देती है। रमन ने कहा, ‘भारतीय इमारतों, सुपरमार्केट, शीत भंडारण सुविधाओं, डेटा केंद्र, कार्यालय भवन, मॉल और अन्य व्यावसायिक भवनों में हमारा तरल पदार्थ कूलिंग पैनल वाणिज्यिक रेफ्रिजरेशन में बड़ा प्रभावी हो सकता है। साथ ही, पूरी तरह से बिजली मुक्त। जहां कम ठंडा की जरूरत है, उन ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस तकनीक का उपयोग किया जा सकता है।’ उन्होंने कहा, ‘प्रौद्योगिकी के व्यावहारिक उपयोग करने के लिए कम से कम दो तकनीकी समस्याएं हल होनी चाहिए। पहली, इंजीनियरों को सबसे पहले यह पता होना चाहिए कि कोटिंग सामग्री में इमारत की गर्मी को कुशलतापूर्वक कैसे ले जाएं। इसके लिए वे एक पैनल बना सकते हैं।’ (आईएएनएस)

माहिम चौपाटी का सौंदर्यीकरण गिरगांव, जुहू और वर्सोवा के बाद अब माहिम चौपाटी का भी सौंदर्यीकरण किया जाएगा

चौपाटी का मुकाबला कर सके। राज्य के उद्योग मंत्री सुभाष देसाई ने इस चौपाटी पर आयोजित स्वच्छता अभियान कार्यक्रम में कहा कि चौपाटी को न केवल स्वच्छ रखा जाएगा, बल्कि इसका सौन्दर्यीकरण भी किया जाएगा ताकि पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र

बन सके। देसाई ने कहा कि सबसे पहले माहिम किले की मरम्मती जरुरी है। उसके बाद समुद्र किनारे की नियमित सफाई पर ध्यान दिया जाएगा। स्थानीय नागरिकों के लिए स्वच्छता गृह का भी निर्माण किया जाएगा। सामान्य जनता में स्वच्छता

के प्रति जागृति लाने के लिए पर्यटन विभाग की मदद से अभियान चलाए जाएंगे। इस अवसर पर जिलाधिकारी संपदा मेहता, नगरसेवक, स्कूली छात्र तथा स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे। (मुंबई ब्यूरो)


30 लोक कथा

16 - 22 अक्टूबर 2017

बकरी और सियार

क बकरी थी। रोज सुबह जंगल चली जाती थी - सारा दिन जंगल में चरती और जैसे ही सूर्य अस्त होता, बकरी जंगल से निकल आती। रात के वक्त उसे जंगल में रहना पसंद नहीं था। रात को वह चैन की नींद सो जाना चाहती थी। जंगल में जंगली जानवर क्या उसे सोने देगें? जंगल के पास उसने एक छोटा सा घर बनाया हुआ था। घर आकर वह आराम से सो जाती थी। कुछ महीने बाद उसके चार बच्चे हुए। बच्चों का नाम उसने रखा आले, बाले, छुन्नू और मुन्नू। नन्हेनन्हे बच्चे बकरी की ओर प्यार भरी निगाहों से देखते और मां से लिपट कर सो जाते। बकरी कुछ दिनों तक जंगल नहीं गई। आस-पास उसे जो पौधे दिखते, उसी से भूख मिटाकर घर चली जाती और बच्चों को प्यार करती। एक दिन उसने देखा कि आसपास और कुछ भी नहीं है। अब तो फिर से जंगल में ही जाना पड़ेगा - क्या करे? एक सियार आस-पास घूमता रहता है। वह तो आले, बाले, छुन्नू और मुन्नू को नहीं छोड़ेगा। कैसे बच्चों की रक्षा करे? बकरी बहुत चिंतित थी। बहुत सोचकर उसने एक टटिया बनाया और बच्चों से कहा - "आले, बाले, छुन्नू और मुन्नू, ये टटिया न खोलना, जब मैं आऊं, आवाज दूं, तभी ये टटिया खोलना" सबने सर हिलाया और कहा - "हम टटिया न खोले, जब तक आप हमसे न बोले"। बकरी अब निश्चिन्त होकर जंगल चरने के लिए जाने लगी। शाम को वापस आकर आवाज देती -

"आले टटिया खोल बाले टटिया खोल छुन्नू टटिया खोल मुन्नू टटिया खोल" आले, बाले, छुन्नू, मुन्नू दौड़कर दरवाजा खोल देते और मां से लिपट जाते। वह सियार तो आस-पास घूमता रहता था। उसने एक दिन पेड़ के पीछे खड़े होकर सब कुछ सुन लिया। तो ये बात है। बकरी जब बुलाती है तब ही बच्चे टटिया खोलते हैं। एक दिन बकरी जब जंगल चली गई, सियार ने इधर देखा और उधर देखा, और फिर पहुंच गया बकरी के घर के सामने। और फिर आवाज लगाई आले टटिया खोल बाले टटिया खोल छुन्नू टटिया खोल मुन्नू टटिया खोल आले, बाले, छुन्नू और मुन्नू ने एक दूसरे की ओर देखा "इतनी जल्दी आज मां लौट आई" - चारों बड़ी खुशी-खुशी टटिया के पास आए और टटिया खोल दी। सियार को देखकर बच्चों की खुशी गायब हो गई। चारों उछल-उछल कर घर के और भीतर जाने लगे। सियार कूद कर उनके बीच आ गया और एक-एक करके पकड़ने लगा। आले, बाले, छुन्नू, मुन्नू रोते रहे, मिमियाते रहे पर सियार ने चारों को खा लिया। शाम होते ही बकरी भागी-भागी अपने घर पहुंची

- उसने दूर से ही देखा कि टटिया खुली है। डर के मारे उसके पैर नहीं चल रहे थे। वह बच्चों को बुलाती हुई आगे बढ़ी - आले, बाले, छुन्नू, मुन्नू। पर ना आले आया ना बाले, न छुन्नू, न मुन्नू। बकरी घर के भीतर जाकर कुछ देर खूब रोई। उसके बाद वह उछलकर खड़ी हो गई। ध्यान से देखने लगी जमीन की ओर। ये तो सियार के पैरों के निशान हैं। तो सियार आया था। उसके पेट में मेरे आले, बाले, छुन्नू, मुन्नू हैं। बकरी उसी वक्त बढ़ई के पास गई और बढ़ई से कहा - "मेरे सींग को पैना कर दो" - "क्या बात है? किसको मारने के लिए सींग को पैने कर रही हो" - बकरी ने जब पूरी बात बताई, बढ़ई ने कहा "तुम सियार से कैसे लड़ाई करोगी? सियार तुम्हें मार डालेगा। वह बहुत बलवान है" बकरी ने कहा, "तुम मेरे सींग को अच्छी तरह अगर पैने कर दोगे, मैं सियार को हरा दूंगी" - बढ़ई ने बहुत अच्छे से बकरी के सींग पैने कर दिए। बकरी अब एक तेली के पास पहुंची। तेली से बकरी ने कहा - "मेरे सीगों पर तेल लगा दो और उसे चिकना कर दो" - तेली ने बकरी के सीगों को चिकना करते करते पूछा - "अपने सीगों को आज इतना चिकना क्यों कर रहे हो?" बकरी ने जब पूरी कहानी सुनाई, तेली ने और तेल लगाकर उसके सीगों को और भी चिकना कर दिया। अब बकरी तैयार थी। वह उसी वक्त चल पड़ी जंगल की ओर। जंगल में जाकर सियार को ढ़ूंढने

लगी। कहां गया है सियार? जल्दी उसे ढ़ूंढ निकालना है। आले, बाले, छुन्नू, मुन्नू उसके पेट में बंद हैं। अंधेरे में न जाने नन्हे बच्चों को कितनी तकलीफ हो रही होगी। बकरी दौड़ने लगी - पूरे जंगल में छान-बीन करने लगी। बहुत ढ़ूंढ़ने के बाद बकरी पहुंच गई सियार के पास। सियार का पेट इतना मोटा हो गया था, आले, बाले, छुन्नू, मुन्नू जो उसके भीतर थे। बकरी ने कहा - "मेरे बच्चों को लौटा दो", सियार ने कहा - "तेरे बच्चों को मैंने खा लिया है अब मैं तुझे खाऊंगा"। बकरी ने कहा - मेरे सींगो को देखो। कितना चिकना है "तुम्हारा पेट फट जाएगा - जल्दी से बच्चे वापस करो"। सियार ने कहा - "तू यहां मरने के लिए आई है"। बकरी को बहुत गुस्सा आया। वह आगे बहुत तेजी से बढ़ी और सियार के पेट में अपने सींग घोंप दिए। सियार का पेट फट गया, आले, बाले, छुन्नू, मुन्नू पेट से निकल आए। बकरी खुशी से अब चारों को लेकर घर लौट कर आई। तब से आले, बाले, छुन्नू, मुन्नू टटिया तब तक नहीं खोलते जब तक बकरी दो बार तो कभी तीन बार दरवाजा खोलने के लिए न कहती। रोज सुबह जाने से पहले बकरी उन चारों से फुसफुसाकर कहकर जाती कि वह कितनी बार टटिया खोलने के लिए कहेगी।



32 अनाम हीरो

डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

16 - 22 अक्टूबर 2017

अनाम हीरो

वि

स्वच्छता का विनय

यूपी के इस युवक ने दिव्यांग लड़कियों को जागरुक करने के लिए चलाया अभियान

नय कुमार उत्तर प्रदेश के एटा जिले के एक छोटे से गांव नागला राजा से हैं। विनय ने दिव्यांग लड़कियों के लिए एक विशेष अभियान की शुरुआत की है। विनय आज विकलांग लड़कियों को माहवारी के बारे में शिक्षित करते हैं। हालांकि विनय के माता-पिता उन्हें आगे पढ़ाना चाहते थे, लेकिन उनके पास इसके लिए संसाधन नहीं थे। इसलिए विनय कक्षा 12 के बाद नोएडा चले गए, वहां उन्होंने एक कंस्ट्रक्शन मजदूर की तरह कार्य करने लगे। एक बार जब किसी अवसर पर विनय घर वापस आए तो वह अमित से मिले। अमित को पोलियो था और कानून से स्नातक था। अमित ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए उनकी मदद करने की पेशकश की।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मीडिया अध्ययन में स्नातक और विज्ञापन व जनसंपर्क में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त करने के बाद विनय को सूचना और जनसंपर्क विभाग में नौकरी मिल गई, लेकिन अलग-अलग तरीके से लोगों की सहायता करने वाले विनय को किस्मत एक अलग रास्ते पर ले आई। 2016 में विनय ने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी। विनय विकलांग बच्चों के साथ एक नाटक करना चाहता था। उनकी यह तलाश उन्हें एक विशेष विद्यालय उम्मीद मुंबारा तक ले गई। मुंबारा में एक बड़ी मुस्लिम आबादी रहती है और वहीं उम्मीद के संस्थापक परवेज को अपने घरों से बाहर निकलने वाली लड़कियों को ढूंढना मुश्किल काम था। लेकिन एक तभी एक घटना ने विनय के

शिक्षण मॉड्यूल को ही बदल दिया। इस घटना में एक महिला अपनी दिव्यांग बेटी के गर्भाशय को हटवा दिया था, ताकि उनकी बेटी को माहवारी के दौरान होने वाली दिक्कतों का सामना ना करना पड़े और उसे छेड़छाड़ की घटना से बचाया जा सके। यह सब विनय के लिए चौंकाने वाला था। इसके लिए उन्होंने शुमा बानिक और विजयेता पांडे से बात की, जो सूरत में माहवारी के खिलाफ ‘हैप्पी पीरियड’ अभियान के तहत काम कर रहीं थीं। विनय कहते हैं कि पहले तो लड़कियां बहुत ज्यादा शर्माती थीं, उन्हें हम वीडियो के माध्यम से माहवारी में कैसे खुद को स्वच्छ और स्वस्थ रखें सिखाने का कार्य किया। लड़कियों के साथ-साथ उनकी मां को भी हमने इसके बारे में सिखाना

शुरू किया। हमने इसके लिए कार्यशालाओं का भी आयोजन किया। विनय कहते हैं कि कार्यशाला हमारे लिए एक बड़ी सफलता थी, जहां कई मांओं ने कबूल किया कि कैसे वे अपनी और उनकी बेटियों की मासिक धर्म के प्रति स्वास्थ्य की उपेक्षा कर रहे हैं। उनमें से ज्यादातर मासिक धर्म के बारे में अनजान थे और इसके संबंध में कई सवाल थे।

न्यूजमेकर

सौंदर्य की मधु भारतीय मूल की मधु ने जीता मिस इंडिया वर्ल्डवाइड-2017

मधु वल्ली

मेरिका में रहने वाली भारतीय मूल की मधु वल्ली ने मिस इंडिया वर्ल्डवाइड-2017 का खिताब अपने नाम किया है। वह वर्जीनिया में जार्ज मेसन यूनिवर्सिटी से कानून की छात्रा और हिप-हॉप की उभरती कलाकार भी हैं। बता दें कि न्यूयॉर्क की इंडिया फेस्टिवल कमेटी यह सौंदर्य प्रतियोगिता दुनियाभर में रहने वाले भारतीय प्रवासियों के लिए साल 1990 से करा रही है। यह 26वीं सौंदर्य प्रतियोगिता थी, जिसका आयोजन रविवार को न्यूजर्सी में किया गया। इसमें दूसरी विजेता फ्रांस की स्टेफनी मेडवने चुनी गईं, तो वहीं गुयाना की संगीता

बहादुर तीसरे स्थान पर रहीं। हालांकि इस साल की सौंदर्य प्रतियोगता में 18 देशों की प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था। मिस इंडिया वर्ल्डवाइड चुने जाने के बाद 20 वर्षीय मधु ने कहा कि मैं बॉलीवुड और हॉलीवुड के बीच सेतु की तरह काम करना चाहती हूं। मेरी भारतीय अमेरिकी युवा महिलाओं से अपील है कि वे महिला सशक्तीकरण की दिशा में काम करें और खुद की सकारात्मक छवि का निर्माण करें। मैं भारत और अमेरिका दोनों देशों से बहुत प्यार करती हूं, क्योंकि मैं दोनों ही देशों से बचपन से जुड़ी हुई हूं। उन्होंने कहा कि भले ही मेरी परवरिश अमेरिका में हुई है, लेकिन अपना देश तो अपना ही होता है। इसलिए मुझे जितना अमेरिका से प्यार है उतना ही मुझे भारतीय संस्कृति से लगाव भी है। वहीं टेक्सास में रहने वाली सरिता पटनायक को मिसेज इंडिया वर्ल्डवाइड के खिताब से नवाजा गया। वह पेशे से इंटीरियर डिजाइनर और दो बच्चों की मां हैं। मिसेज इंडिया वर्ल्डवाइड प्रतियोगिता की शुरुआत भारतीय मूल की विवाहित महिलाओं को मंच मुहैया कराने के लिए किया गया है।

मोहना सिंह, अवनी चतुर्वेदी और भावना कंठ

जांबाज महिला पायलट

देश की पहली 3 महिला पायलट रचेंगी इतिहास, अगले महीने उड़ाएंगी लड़ाकू विमान

लड़ाकू विमान दे शपायलटकी आनेपहलीवालेतीननवंबमहिला र के महीने में इतिहास

रचने वाली हैं। वे सभी आने वाले तीन हफ्ते में गहन प्रशिक्षण के बाद सेना के जेट विमानों को उड़ाएंगी। बता दें कि अवनी चतुर्वेदी, भावना कंठ और मोहना सिंह को पिछले साल जुलाई में फ्लाइंग अधिकारी के तौर पर कमीशन दिया गया था। उससे करीब एक साल पहले सरकार ने प्रयोग के तौर पर महिलाओं को युद्धक भूमिका में लाने का निर्णय लिया था। वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ ने कहा कि यह बेहद खुशी की बात है कि महिला पायलटों का प्रदर्शन भी दूसरे पायलटों ही तरह ही है। तीनों

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयक्त ु पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 1, अंक - 44

महिला पायलट के प्रशिक्षण में शामिल वायुसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि वे आने वाले नवंबर महीने से युद्धक विमान उड़ाएंगी। वर्तमान में तीनों महिला पायलट उन्नत जेट प्रशिक्षण विमान हॉक उड़ा रही हैं। हालांकि वायुसेना प्रमुख ने कहा है कि तीन महिला प्रशिक्षु पायलटों का अगला बैच जुलाई में चुना गया है और वर्तमान में वे लड़ाकू पायलट प्रशिक्षण के दूसरे चरण में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण के सफलतापूर्वक पूरा होने पर तीन महिला लड़ाकू पायलटों को इस साल दिसंबर में लड़ाकू श्रेणी में कमीशन दिया जाएगा।


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