वर्ष-1 | अंक-31 | 17 - 23 जुलाई 2017
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597
sulabhswachhbharat.com
06 संबोधन
04 संबोधन
धर्म से कल्याण
संघ प्रमुख मोहन भागवत के प्रेरक वचन
अंतिम जन की सरकार
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का उद्बोधन
भव्य लोकार्पण
24 स्मरण
भारतीय भाल पर तिलक प्रखर राष्ट्रवादी लोकमान्य तिलक का स्मरण
‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी : द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’
सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक द्वारा रचित कॉफी टेबल बुक ‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी : द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ का दिल्ली के मावलंकर सभागार में सरसंघचालक मोहन भागवत के हाथों लोकार्पण हुआ। इस भव्य लोकार्पण सामरोह में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी मौजूद थे
02 आवरण कथा
प्र
17 - 23 जुलाई 2017
एक नजर
प्रियंका तिवारी
धानमंत्री नरेंद्र मोदी का अब तक का जीवन सामान्य से विशिष्ट की यात्रा का है। इस जीवन यात्रा में कई ऐसे पड़ाव हैं, जो हर किसी के लिए अनुकरणीय और प्रेरक हैं। सेवा और कर्म को अपने जीवन का लक्ष्य कैसे बनाया जा सकता है, बहुत सारी बाधाओं और विरोधों को साध कर अपने पक्ष में किया जा सकता है, यह नरेंद्र दामोदरदास मोदी से सीखा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन के इन पहलुओं को विशेष रूप और दृष्टि से देखने की जरूरत को सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने गहरे से महसूस किया और फिर वे सृजन कर्म में जुट गए। इस तरह अपनी विशिष्ट शैली और दृष्टि के सहारे एक सचित्र जीवनी ‘नरेंद्र दामोदरदास ः द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ की रचना पूरी हुई। डॉ. पाठक द्वारा लिखित पुस्तक ‘नरेंद्र दामोदरदास ः द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ का लोकार्पण राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने नई दिल्ली स्थित मावलंकर ऑडिटोरियम में किया। मावलंकर ऑडिटोरियम में आयोजित भव्य लोकार्पण समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष बल्देव भाई शर्मा विशिष्ट रूप से शामिल हुए। लोकार्पण समारोह के शुभारंभ से पहले सुलभ प्रणेता ने सरसंघचालक मोहन भागवत एवं अन्य सम्मानित अतिथियों का स्वागत किया। डॉ. पाठक ने मोहन भागवत जी को सुलभ स्कूल के बच्चों, मथुरा से आई माताओं और पूर्व स्कैवेंजर्स से मिलवाया। पूर्व स्कैवेंजर्स ने सरसंघचालक को गायत्री मंत्र का जाप करके सुनाया और यह भी बताया कि कैसे सुलभ प्रणेता ने उन सबकी जिंदगी बदल दी, कैसे अब उनको समाज में सम्मान के साथ देखा जाता है और कैसे उन्हें समानता का हक प्राप्त
कॉफी टेबल बुक है ‘द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’
यह पुस्तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सचित्र जीवन यात्रा
स्वच्छता के लिए प्रधानमंत्री के साथ डॉ. पाठक के कार्यों की सराहना
पुस्तक लोकार्पण समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष बल्देव भाई शर्मा विशिष्ट रूप से शामिल हुए हुआ है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक सुलभ स्कूल के बच्चों ने भागवत जी को अपना मोहन भागवत ने पूरी गंभीरता से उनकी बातें सुनीं परिचय अंग्रेजी में दिया, जिससे वे काफी प्रभावित और उनके जीवन में आए बदलावों से बेहद प्रसन्न दिखे। डॉ. पाठक ने मोहन भागवत जी को सुलभ दिखे। द्वारा किए जनहित के अन्वेषणों की जानकारी दी और
साथ ही उनके समक्ष सुलभ द्वारा विकसित तकनीकों का भी प्रदर्शन किया गया। सुलभ की तकनीक को देखने के बाद मोहन भागवत जी ने उसकी सराहना की। उन्होंने कहा कि डॉ. पाठक के नेतृत्व में सुलभ परिवार देश और समाज के हित में बहुत ही सराहनीय कार्य कर रहा है, इसके लिए हम सबका अभिनंदन करते हैं। डॉ. पाठक और अमोला पाठक ने समारोह में आए सभी अतिथियों का पुष्प गुच्छ और शॉल देकर स्वागत किया। इस विशेष अवसर पर ‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी : द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ पुस्तक के लेखन और प्रकाशन में सहायता करने वाली टीम का डॉ. पाठक ने जिक्र किया। टीम के सदस्यों रिटायर्ड कर्नल जयबंस सिंह और सुशील गोयल को मोहन भागवत और अमित शाह द्वारा मेडल देकर सम्मानित किया। इस समारोह में कॉफी टेबल बुक ‘द मेकिंग ऑफ ए लिजेंड’ के लोकार्पण के साथ ही डॉ. पाठक द्वारा मोदी जी पर लिखे गीत ‘सन ऑफ इंडिया’ और ‘सुलभ टेंपल ऑफ ग्रेटीट्यूड’ का भी लोकार्पण किया गया। ‘द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ में प्रधानमंत्री के जीवन के तमाम पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है। इस पुस्तक में नरेंद्र मोदी द्वारा देश में किए जा रहे अभूतपूर्व कार्यों को चित्रों के माध्यम
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आवरण कथा
03
‘द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ पुस्तक का उद्देश्य ऐसे व्यक्ति के व्यक्तित्व को जन-जन तक पहुंचाना है, जिसने अपने पूरे जीवन को देश के लिए समर्पित किया है से दर्शाया गया है। देश के नागरिकों, खासतौर पर गरीबों, किसानों और वंचितों के हित में लिए गए कड़े और अहम फैसलों पर इस पुस्तक में विशेष रूप से फोकस किया गया है, क्योंकि कड़े फैसले लेने का साहस कोई विशिष्ट व्यक्तित्व ही कर सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने देश के सभी मोर्चों पर प्रशंसनीय कार्य किए हैं, लेकिन इन सबके बीच स्वच्छता अभियान को आंदोलन बना देने का अद्भुत कार्य उन्होंने जिस सरलता से किया, वह कोई महान जननायक ही कर सकता है। डॉ. पाठक ने इस अवसर पर कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी एक नियति पुरुष हैं। वे उन दुर्लभ लोगों में से एक हैं, जो राष्ट्र और मानवता के इतिहास विकास को अपनी दूरदृष्टि तथा करिश्मे से करते हैं। वे अत्यंत बुद्धिमान पुरुष हैं, पर जो बात उन्हें उत्कृष्ट व्यक्ति बनाती है, वह है उनके अनुभव की समृद्धि तथा उनका गहरा ज्ञान, जिसे उन्होंने अपने जीवन की अद्भुत यात्रा में कठोर परिश्रम द्वारा हासिल किए हैं। ‘द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ पुस्तक प्रसिद्ध समाजशास्त्री और सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर
पाठक की इस दूरदृष्टि का ही प्रतिफल है, जिसमें उन्होंने गहराई से महसूस किया कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी के जीवन और कार्यकाल का इतिहास इस प्रकार लिखा जाए कि जिससे आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरणा मिले। इस पुस्तक की रचना और प्रकाशन के लिए डॉ. पाठक ने एक विशेषज्ञों की समर्पित टीम बनाई और उसका मार्गदर्शन किया। मोदी जी के कार्यकाल और कठिन परिश्रम के ऊपर कई पुस्तकें लिखी गई हैं, परन्तु ‘द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ का उद्देश्य ऐसे व्यक्ति के व्यक्तित्व को जन-जन तक पहुंचाना है, जिसने अपने पूरे जीवन को देश के लिए समर्पित दिया है। यह सचित्र जीवनी नरेंद्र दामोदरदास मोदी के बचपन से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक के वृत्तांत को पूरी गंभीरता और गहराई से वर्णित करती है। इस पुस्तक में प्रधानमंत्री के अनुभवों, प्रेरणाओं, संकल्पों और सपनों को कुछ इस तरह प्रस्तुत किया गया है, जिसे हर कोई आसानी से समझ सकता और प्रेरणा ग्रहण कर सकता है। इस पुस्तक का लोकार्पण करते हुए सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि मोदी जी के गुजरात का
मुख्यमंत्री बनने से लेकर देश का प्रधानमंत्री बनने तक की चर्चा पूरे विश्व में है। प्रत्येक व्यक्ति इनके बारे में जानना चाहता है। यदि इसके मूल में जाकर देखें तो मोदी जी की गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से पहले की जो यात्रा है, उसी की वजह से उनकी आगे की यात्रा भी प्रकाशवान पथ पर बढ़ रही है। इस मौके पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि यह पुस्तक प्रधानमंत्री जी के जीवन की एेसी सचित्र गाथा है, जिसमें एक बालक अपने कर्तव्यों को सामने रखकर आगे बढ़ता है। उन्होंने कहा कि डॉ. पाठक ने देश के सबसे निर्धनतम परिवार में जन्म लेने वाले एक बच्चे की उस जीवन यात्रा को सामने रखा है, जिसमें वह स्वयं की अपेक्षाओं को भूल कर देश हित के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करता है और एक दिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का प्रधानमंत्री बनता है। उन्होंने कहा कि इस सभागार में मौजूद कई लोगों ने मोदी जी को बहुत करीब से कार्य करते हुए देखा है। सभी जानते हैं कि सहजता और सरलता से, कार्यकर्ता की तरह कार्य करते करते आगे बढ़ने का उनका स्वभाव है।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष बल्देव भाई शर्मा ने इस अवसर पर कहा कि मोदी जी ने भारत की ऊर्जा और संस्कृति को पूरे विश्व में प्रतिष्ठित किया है। उन्होंने कहा कि महर्षि व्यास ने बहुत ही सुंदर बात कही है कि ‘धन तो आता जाता है, आज है कल नहीं है, लेकिन जो इतिहास है उसको प्रयत्नपूर्वक संरक्षित करके रखो। उसी से हमारी भावी पीढ़ियां प्रेरणा ग्रहण करेंगी, क्योंकि इतिहास सिर्फ आंकड़े नहीं होते। इतिहास उन्हीं लोगों का होता है, जिन्होंने देश, समाज और मानवता के निर्माण में नई चेतना के साथ जीवन समर्पित कर दिया और हर तरह की परिस्थितियों पर विजय प्राप्त की।’ समारोह के अंत में सुलभ स्कूल के बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया और इसके साथ ही पंडित सुरेश नीरव की अध्यक्षता में युवा कवयित्रियों समीक्षा सिंह, डॉ रूचि चतुर्वेदी, अंकिता सिंह, प्रेमलता नीलम और कौमुदी ने डॉ. पाठक द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लिखी कविताओं का पाठ किया। इस दौरान सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने भी अपनी रचनाओं का पाठ कर सभी लोगों का उत्साहवर्धन किया।
04 संबोधन
17 - 23 जुलाई 2017
भारत के नेतृत्व में जब धर्म आएगा तभी देश का कल्याण होगा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का संबोधन
परख से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कृतित्व, व्यक्तित्व और नेतृत्व को मान्यता मिली है, लेकिन हमें इस चरित्र के मूल में जाकर उसे पढ़ना पड़ेगा और उन्हें देखना पड़ेगा
एक नजर
'व्यक्तित्त्व, कृतित्व और नेतृत्व से बनता है उत्तम चरित्र'
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चरित्र में 6 गुण मौजूद हैं किसी भी कार्य को असंभव न मानकर उसे करने की क्षमता है
कृ
एसएसबी ब्यूरो
तित्व संपन्न लोगों के चरित्र लिखे जाते हैं, जिन्हें बाहरी जगत में करिश्माई नेता कहा जाता है, उनके चरित्र लिखे जाते हैं। स्वाभाविक बात है उससे लोगों को स्फूर्ति और प्रेरणा मिलती है, लेकिन ऐसे चरित्रों से प्रेरणा लेने के लिए उसे ठीक से पढ़ना पड़ता है। व्यक्तित्व, कृतित्व और नेतृत्व के माध्यम से ही उत्तम चरित्र का निर्माण होता है। नरेंद्र मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने से लेकर देश का प्रधानमंत्री बनने तक की चर्चा पूरे विश्व में है। प्रत्येक व्यक्ति इसके बारे में जानना चाहता है। यदि इसके मूल में जाकर देखें तो मोदी की गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से पहले की जो यात्रा है, उसी के कारण उनकी आगे की यात्रा भी उज्ज्वल हो रही है। चरित्र को लिखने का कार्य तो कोई भी
कर सकता है, परंतु किसी के चरित्र को समझकर लिखने के लिए वैसा ही व्यक्ति चाहिए। सामान्यतः मैं कहीं नहीं जाता हूं, लेकिन हमने डॉ. पाठक के निवेदन को स्वीकार किया, क्योंकि वह भी देशहित के लिए वैसा ही कार्य कर रहे हैं। डॉ. पाठक द्वारा किया गया कार्य भी अब प्रसिद्ध हो रहा है। प्रसििद्ध की राह में रह कर भी अपने कर्तव्य को पूरा करना अपने आप में बड़ा सराहनीय है, जैसे नरेंद्र भाई कर रहे हैं। वे एक व्यक्ति, एक स्वयंसेवक या एक कार्यकर्ता के नाते देश हित के लिए कार्य कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी गुजरात का मुख्यमंत्री बनने से पहले जैसे थे, वैसे ही आज भी हैं। उनकी इस कठिन यात्रा को
डॉ. पाठक भली-भांति समझ सकते हैं। जैसा अमित भाई ने कहा कि गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से लेकर देश के प्रधानमंत्री बनने तक की यात्रा हम स्वयं सेवकों और कार्यकर्ताओं के लिए है। वह उसी स्तर पर चलती रहती तो आप नरेंद्र भाई को नहीं जानते, क्योंकि वह हमारे स्वयंसेवक हैं, इसीलिए हम उन्हें जानते, उनकी यात्रा के महत्व को जानते और वह सिर्फ हमारे लिए ही रहता। दुनिया को इतनी फुर्सत नहीं है कि वह लोगों को देखे। वास्तव में उन्हें देखना चाहिए लेकिन वह नहीं देखते। आज हम इस चरित्र को उस दृष्टिकोण से पढ़ें, जिस दृष्टिकोण से वह लिखा गया है। यह नरेंद्र भाई
'डॉ. पाठक द्वारा किया गया कार्य भी अब प्रसिद्ध हो रहा है। प्रसििद्ध की राह में रह कर भी अपने कर्तव्य को पूरा करना अपने आप में बड़ा सराहनीय है, जैसा नरेंद्र भाई कर रहे हैं'
के लिए नहीं, हमारे लिए आवश्यक है। क्योंकि हजार पंद्रह सौ वर्षों से नीचे जाते जाते हमारा देश जहां था, हमें उसको उससे भी ऊंचा बनाना है, लेकिन यह हम सभी के प्रयासों से ही संभव हो सकेगा। सभी कार्य सरकार नहीं कर सकती, इसके लिए देश के प्रत्येक नागरिक को अपना योगदान देना होगा और हमें उम्मीद है कि जिस तरह लोगों ने अब तक सरकार के हर फैसले में साथ दिया है, आगे भी ऐसे ही अपना योगदान देते रहेंगे। व्यक्तित्व, कृतित्व और नेतृत्व के गुणों के कारण ही आज हमारा ध्यान नरेंद्र भाई की ओर है और वह ध्यान देने योग्य बात भी है। उसे आप सभी देख रहे हो, हमें ज्यादा वर्णित करने की आवश्यकता नहीं है। आप के परख से ही उस कृतित्व, व्यक्तित्व और नेतृत्व को मान्यता मिली है, लेकिन हमें इस चरित्र के मूल में जाकर उसे पढ़ना पड़ेगा और नरेंद्र भाई को देखना पड़ेगा। जब हम व्यक्तित्व की बात करते हैं तो इसमें एक दिखने वाला और एक वास्तव में होने वाला होता है। जो दिखने वाला होता है वह दिखता है, लेकिन होने वाले को देखना पड़ता है। यदि दोनों में अधिक से अधिक समानता हो जाए तो व्यक्ति कुशल व्यक्तित्व संपन्न होता है। क्योंकि ये जो ऊपरी बातें है, कुशलताएं, क्षमताएं, बोलचालचलन के तरीके ये तो सीखने की बात है। सभी लोग सीख सकते हैं, लेकिन उसकी चमक जो आती है वह अंदर की संपदा के कारण आती है, बाहर दिखने वाली संपदा के कारण नहीं। वृंदावन के एक संत ने हमसे कहा था कि भारत के नेतृत्व में जब धर्म आएगा तभी देश का कल्याण होगा। धर्म के चार पैर होते हैं, पहला सत्य, दूसरा
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करुणा, तीसरा अंतर्वायु स्वच्छता-शुचिता और इन तीनों को प्राप्त करने के लिए जो कठिन तपस्या करनी होती है, वह है तपस। सत्य कठोर और कटु होता है और जब इसे समाज में देना पड़ता है या कण-कण में बोना पड़ता है, तब उसे करुणा का पुट चढ़ाए बिना देंगे तो अनर्थ होगा। मुझे ऐसा लगता है कि तथागत ने वही किया है। तुम्हारा जीवन दुखी है पहले उसे सुखी करो और उसके लिए योग्य बनो। उन्होंने यह जाना कि समाज को दुखों से मुक्त करना पहली प्राथमिकता है। सुख प्राप्त करके व्यक्ति आगे बढ़ सकता है। पहले तो उसे उसके दुखों से ही मुक्त कराना पड़ता है। यह उनके विचार में इसीलिए आया, क्योंकि वह करुणा के अवतार थे। बिना करुणा के सत्य का कोई अर्थ नहीं है, लेकिन समाज को एक कल्याणकारी रास्ता दिखाने के लिए सत्य के साथ करुणा का होना अति आवश्यक है और ऐसी करुणा रखने के लिए अंतर्वायु शुचिता चहिए, जिसका मन साफ नहीं, जो तमाम विकारों से ग्रसित है उसके मन में क्या करुणा आएगी। वह तो अपने स्वार्थ के लिए राक्षस बन सकता है। इसीलिए स्वच्छता का इतना महत्व है। गांधीजी और बाबा साहेब अंबेडकर ने भी स्वच्छता को महत्व दिया था। क्योंकि इस अंतर्वायु स्वच्छता का प्रभाव दूर तक जाता है और इसको करने के लिए वह तपस चाहिए। इसका प्रभाव नरेंद्र भाई के व्यक्तित्व पर
होना स्वाभाविक बात है, इसमें अस्वाभाविक कुछ भी नहीं है। कृतित्व की बात आती है कि किसने क्या किया.....और जिसने कार्य किया है उसके कार्य का गुणगान होना चाहिए। लेकिन हमें देश के लिए योग्य बनना है तो कृतित्व संपन्न व्यक्तियों के पीछे क्या है, कृतित्व का मूल उद्देश्य क्या है इत्यादि उसे जानना होगा। मोदी के चरित्र में 6 गुण मौजूद हैं और इसके साथ ही उनमें सभी के विरोध के बावजूद किसी भी कार्य को असंभव न मानकर उसे क्रियान्वित करने की क्षमता है। क्या होना चाहिए, इसकी चर्चा तो हमारे देश में आजादी के बाद से ही हो रही है, लेकिन उस पर कार्य अब हो रहा है, क्योंकि अब सरकार उस कार्य को कर रही है, इसीलिए हो रहा है। सरकार इस कार्य को इसीलिए कर रही है, ताकि देश का और गरीब से गरीब लोगों का विकास हो, सभी एक समान अधिकार के साथ सम्मान से जी सकें। इसके बाद आता है नेतृत्व....वोट मिलते हैं तो आदमी नेता हो जाता है, लेकिन यह वोट क्यों मिलते हैं? वोट चमत्कार से नहीं मिलते हैं। इसके लिए प्रयास करने पड़ते हैं। इसके लिए साथ काम करने वाले लोग होते हैं और देखते हैं कि व्यक्ति का व्यक्तित्व कैसा है। जैसे पात्र त्यागी, अर्थात योग्य व्यक्ति के लिए पद छोड़ने वाला, देने वाला। फिर गुणेरागी अर्थात गुणों से प्रेम करने वाला...। नरेंद्र
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‘नरेंद्र मोदी का नेतृत्व देश की जनता के लिए आशा की किरण उनके गुणों के कारण बना है। जिनका कार्य जन गणों के हित के लिए होता है तो उनके अंदर आत्मीयता, प्रेम और करुणा होती है’ मोदी डॉ. पाठक का हाथ पकड़ कर मंच पर ले गए तो उन्होंने उनके गुणों को पहचान लिया, इसीलिए उन्हें आगे किया। इसके बाद है भागी परिजन सह, अर्थात सबके साथ बांटने वाला। शास्त्रेबोधा अर्थात, शास्त्रों को जानने वाला और रणेयोद्धा, अर्थात, रणंजय। यही वे गुण हैं जो नरेंद्र मोदी के नेतृत्व के पीछे हैं। दिखने वाली बातों का अनुकरण संभव नहीं है। उन्होंने जैसा किया वैसा करना सबके लिए संभव नहीं है। सभी व्यक्ति अलग अलग होते हैं और उन्हें अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करना चाहिए और देश हित में योगदान देना चाहिए, जिस तरह पाठक जी दे रहे हैं। वह भी समाज और देश की सेवा अपने तरीके से कर रहे हैं और वह भी किसी बिना कुछ लिए दिए। वैसे ही हम सब को प्रयास करना होगा, तभी देश और इस समाज का विकास संभव है। नरेंद्र मोदी का नेतृत्व देश की जनता के लिए आशा की किरण उनके गुणों के कारण बना है। जिनका कार्य जन गणों के हित के लिए होता है तो उनके अंदर आत्मीयता, प्रेम और करुणा होती
है। देश हित के लिए जो आवश्यक है, उस कार्य को किया जाना चाहिए। देश में कुछ दिनों पहले जो मनःस्थिति बनी थी, उससे देश इसीलिए निकल सका, क्योंकि लोगों में मोदी के प्रति श्रद्धा थी कि यह देश उनके नेतृत्व में आगे बढ़ेगा। किसी भी कार्य को करने के लिए मन में समर्पण होता है। हमें क्या करना है वह परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है। यदि हम प्रधानमंत्री नहीं बनते तो हम अपनी भक्ति और विवेक के साथ देश हित के लिए कार्य कर सकते हैं। कभी हम जीवन में अपने कार्य को करने के लिए सीधे नहीं चल सकते हैं, इसीलिए अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हमें कई विषम परिस्थितियों और कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। विवेकहीन वाणी, सोच और कार्य अनर्थ ही करते हैं। यह सभी बातें नेतृत्व, व्यक्तित्व और कृतित्व का बोध कराती हैं, जो इस पुस्तक में आपको मिलेगा। इस चरित्र में होने वाली बातों को पढ़ना, दिखने वाली बातों को नहीं। मैं आज इस समारोह में सभी लोगों से यही अनुरोध करता हूं।
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भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का उद्बोधन
‘मोदी जी की सरकार देश के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक पहुंची है’ मोदी जी ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते जो कार्य किया उसी की सुगंध पूरे देश में फैली, जिसका परिणाम हमें 2014 के चुनाव में जनता के आशीर्वाद से मिला
एक नजर
कार्यकर्ता की तरह कार्य करते हुए आगे बढ़ना उनका स्वभाव है
नर्मदा का पानी सरस्वती नदी तक लेकर गए
मुख्यमंत्री रहते कौशल विकास और स्वरोजगार पर दिया बल
है और ना ही देश की समस्याओं का निवारण हो सकता है।
गुजरात में गिरते जलस्तर के लिए जमीनी स्तर पर किया कार्य
‘द
एसएसबी ब्यूरो
मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ प्रधानमंत्री जी के जीवन की सचित्र गाथा है, जिसमें एक बालक के अपने कर्तव्यों के आधार, देश के सबसे गरीब से गरीब परिवार में जन्म लेकर परिश्रम करके स्वयं की अपेक्षाओं को भूल कर देश हित के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का प्रधानमंत्री कैसे बना वह गाथा लिखी गई है। इस सभागार में मौजूद कई लोगों ने मोदी जी को बहुत करीब से कार्य करते हुए देखा है। सहजता से, सरलता से, कार्यकर्ता की तरह कार्य करते आगे बढ़ने का उनका स्वभाव है। उनका बचपन बहुत ही गरीबी में बीता है। वह
बचपन में ही आरएसएस से जुड़े, फिर पार्टी के प्रचारक बने। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व की जिम्मेदारी आई तो वह गुजरात के संगठन मंत्री बने। उसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर बात आई तो वह राष्ट्रीय महामंत्री बने। एक भी पंचायत का चुनाव ना लड़ने के बावजूद भी पार्टी ने उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री बना कर भेज दिया। अब तक की यात्रा हम जैसे स्वंय सेवकों और कार्यकर्ताओं के लिए है। गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने जो कार्य किए
उसके चर्चे पूरे देश भर में हुए हैं, लेकिन मैं इसका एक अलग पहलू आप लोगों के समक्ष रखना चाहता हूं। नरेंद्र भाई जब गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो उसके 8-10 साल के अंदर देश में एक अलग तरह का माहौल सृजित हुआ था और देश के कई शुभ चिंतकों को लगता था कि हमारी जो बहुपक्षीय लोकतांत्रिक व्यवस्था है वह फेल कर जाएगी क्या....यह देश किस तरफ जा रहा है। यदि देश में ऐसे ही अस्थिरता का माहौल बना रहा तो ना देश का विकास हो सकता
‘नरेंद्र भाई ने योजना को राष्ट्रीय स्तर पर भी क्रियान्वित किया। उन्होंने देश में बढ़ती बेरोजगारी को खत्म करने के लिए स्वरोजगार और कौशल विकास की नई योजना बनाई’
मैं नरेंद्र भाई के साथ गुजरात मंत्रिमंडल में रहा हूं, हमने देखा है कि नरेंद्र भाई ने गुजरात में कैसे काम किया है और उसी कार्य योजनाओं को वह आज राष्ट्रीय स्तर पर भी क्रियान्वित कर रहे हैं। गुजरात में सबसे बड़ी समस्या जलस्तर का लगातार कम होना था। नरेंद्र भाई ने इसके लिए जमीनी स्तर पर कार्य किया। उन्होंने इस समस्या से निपटने के लिए ना सिर्फ बड़े लोगों से, बल्कि उन ग्रामीण लोगों से भी बात की जो इसके लिए निजी स्तर पर कार्य कर रहे थे और उसका परिणाम जल्द ही राज्य की जनता के सामने आया। राज्य का जलस्तर बढ़ाने के लिए उन्होंने 1 साल के अंदर ही 1 लाख से ज्यादा चेक डैम बनवा कर गुजरात में गिरते जल स्तर को ऊपर उठाने को एक नई दिशा दी। इतना ही नहीं उन्होंने मां नर्मदा के पानी को सरस्वती नदी तक ले जाकर 21 नदियों में मिलाना, गुजरात के 11 हजार तालाबों में मां नर्मदा के पानी को पहुंचाना, जैसे धुन लगी थी कि गुजरात को गिरते हुए जलस्तर से मुक्ति दिलाना है। मुझे याद है कि यह अभियान 2006 में शुरू हुआ था और 2012 में गुजरात का जलस्तर काफी बढ़ चुका था। इसके अलावा गुजरात के कई क्षेत्र डार्क जोन से बाहर आ गए थे। आज पूरा गुजरात डार्क जोन मुक्त हो गया है और यह जल संचय के सफल प्रयोग की वजह से संभव हुआ है।
17 - 23 जुलाई 2017
‘मुद्रा बैंक के माध्यम से 7 करोड़ 28 लाख गरीब बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार देने का कार्य मोदी सरकार ने किया है’ कौशल विकास और स्वरोजगार पर दिया बल
इसी तरह से नरेंद्र भाई ने स्वरोजगार पर बल देने की योजना पर भी मुख्यमंत्री रहते ही प्रयोग किया था। सवा सौ करोड़ की जनसंख्या जिस देश की हो, वहां पर नौकरियों के माध्यम से बोरोजगारी को खत्म करने का समाधान नहीं लाया सकता है। मोदी जी ने गुजरात के अंदर ही स्वरोजगार और कौशल विकास का प्रयोग सफलता पूर्वक किया था। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने उस योजना को राष्ट्रीय स्तर पर भी क्रियान्वित किया। उन्होंने देश में बढ़ती बेरोजगारी को खत्म करने के लिए स्वरोजगार और कौशल विकास की नई योजना बनाई। आज भी देश के अर्थशात्री ढूंढते फिर रहे हैं कि जॉबलेस ग्रोथ है....मैं ऐसे लोगों का ध्यान इंगित कराना चाहता हूं कि मुद्रा बैंक के माध्यम से 7 करोड़ 28 लाख गरीब बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार देने का कार्य मोदी सरकार ने किया है। हमारे देश में बेरोजगारी भी एक सबसे बड़ी समस्या
है। इसे खत्म करने के लिए स्वरोजगार और कौशल विकास ही सबसे सुलभ माध्यम है। इस देश की समस्याओं का समाधान यहां की समस्याओं की दृष्टि के माध्यम से ही लाना होगा। इसे उधारी पर लाई गई योजनाओं से कभी भी खत्म नहीं किया जा सकता है। मोदी जी ने गुजरात के अंदर कार्य करते हुए स्वउद्योग, वाईब्रेंट गुजरात के लिए एक ऐसी योजना बनाई, जिसे आज भारत के कई राज्यों ने स्वीकार किया है। इसके साथ ही उन्होंने कृषि विकास की योजनाओं को लागू किया, जिससे कृषि विकास के क्षेत्र में 12 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करने वाला गुजरात पहला राज्य बना। मोदी जी के नेतृत्व में गुजरात 12 प्रतिशत से ज्यादा जीडीपी प्राप्त करने वाला देश का पहला राज्य बना।
पीएम ने नहीं ली एक भी छुट्टी
मैं यह मानता हूं कि नरेंद्र भाई ने गुजरात का मुख्यमंत्री रहते जो कार्य किया उसी की सुगंध पूरे देश में फैली, जिसका परिणाम हमें 2014 के चुनाव में जनता के
आशीर्वाद से मिला। बता दें कि 2014 में जब नरेंद्र भाई का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए घोषित किया गया तो पूरे देश में एक आशा की किरण का संचार हुआ। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देश की सवा सौ करोड़ जनता ने अपना फैसला उन्हें अपना प्रधानमंत्री चुन कर सुना दिया। मोदी जी देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने इन 3 सालों में एक भी छुट्टी नहीं ली। इस सरकार ने लोगों के बहुत से द्वंद को समाप्त कर दिया है। पहले जब सरकार बनती थी तो लोग तीन सवाल पूछते थे कि क्या इस सरकार में कृिष का विकास होगा या उद्योग का, सिर्फ शहर का विकास होगा या गांवों का, रिसोर्स को रिफॉर्म करने की नीति पर कार्य होगा या नहीं, लेकिन इस सरकार ने अपने कार्यों से इन सभी सवालों पर लगाम लगा दिया। विदेश नीति के मामले में भी इस सरकार ने नई रणनीति अपनाई है। इस तीन साल में सरकार ने देश के अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को अपना विकास करने, सम्मान से जीने का हक देने का कार्य किया है। यही इस सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
महिलाओं को सम्मान
सरकार ने देश में अब तक 4 करोड़ 38 लाख
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शौचालयों का निर्माण करवाया है। इस सरकार ने महिलाओं और बच्चियों को सम्मान के साथ जीने का मौका दिया है। 12 करोड़ 50 लाख एलपीजी गैस शहरी एरिया में थे, लेकिन गांव की गरीब महिलाओं के नसीब में एक भी गैस सिलेंडर नहीं था। मोदी जी ने तय किया कि 2019 तक देश की 5 करोड़ गरीब माताओं-बहनों को गैस कनेक्शन देने का कार्य हमारी सरकार करेगी और 2014 तक देश के हर गरीब के घर में एलपीजी गैस, बिजली, शुद्ध पेय जल की सुविधा उपलब्ध होगी। ये सब हमें आजादी के 70 साल बाद करना पड़ रहा है, यदि इसे पहले ही किया गया होता तो आज देश की स्थिति कुछ और होती। हमारी सरकार ने देश के दलित, गरीब, शोषित व्यक्ति को सम्मान से जीने और ऊपर उठाने का कार्य किया है। इसके साथ ही नरेंद्र भाई ने भारत की संस्कृति को विश्व पटल पर फैलाने का कार्य किया है। आज पूरी दुनिया नरेंद्र भाई के व्यक्तित्व को जानने के लिए आतुर है। ऐसे में डॉ. पाठक ने इस पुस्तक का लेखन करके बड़ा ही सराहनीय कार्य किया है। इसके लिए मैं उनका अभिनंदन करता हूं।
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17 - 23 जुलाई 2017
डॉ. विन्देश्वर पाठक का संबोधन
"शौचालय और स्वच्छता को महत्व देने वाले नरेंद्र मोदी जी देश के पहले प्रधानमंत्री"
स्वच्छता को लेकर पहले सभी लोगों ने चर्चा की, लेकिन महात्मा गांधी के बाद इस समस्या को महत्व देने वाले या इस पर योजनाओं का क्रियान्वयन करने वाले हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ही हैं
एक नजर
आ
2019 तक देश को स्वच्छ और स्वस्थ्य करने का उद्देश्य
एसएसबी ब्यूरो
ज मेरे लिए और सुलभ-स्वच्छता एवं सामाजिक सुधार आंदोलन के लिए एक स्वर्णिम दिन है। यहां पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूजनीय सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी एवं भारतीय जनता पार्टी के माननीय राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह जी एक साथ उपस्थित हैं। आप दोनों की उपस्थिति से सुलभ आंदोलन को बल मिलेगा और समाज में जो उपेक्षित वर्ग हैं, उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने में एक बहुत बड़ा सहयोग और आशीर्वचन प्राप्त होगा, ऐसा मैं मानता हूं। मैं सर्वप्रथम परम पूजनीय सरसंघचालक जी का हार्दिक स्वागत और अभिनंदन करता हूं कि आपने अपने बहुमूल्य समय में से कुछ समय निकालकर यहां आने की कृपा की और माननीय प्रधनमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के जीवन पर आधरित पुस्तक ‘नरेंद्र मोदी दामोदरदास मोदी ः द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’
सुलभ का मुख्य उद्देश्य देश से छुआछूत को जड़ से मिटाना
भागवत जी और अमित शाह महिला उत्थान के लिए कर रहे कार्य
का लोकार्पण करने की सहमति दी। जब मैं उनसे मिलने नागपुर जा रहा था तो लोगों ने मुझे हिदायत दी थी कि मैं उनसे ज्यादा ना बोलूं, वह बहुत ही गंभीर प्रकृति के व्यक्ति हैं, लेकिन जब मैं उनसे मिला तो उन्होंने बड़े ही सहज भाव से मेरा स्वागत किया। हम भागवत जी के सानिध्य में और उनके साथ मिलकर देश को स्वच्छ और स्वस्थ रखने के अपने लक्ष्य को आगे बढ़ाएंगे। उन्होंने मुझसे कहा कि समाज में जो असमानता है, उसको दूर करने में मैं स्वयं लगा हुआ हूं और आरएसएस भी इस दिशा में कार्यरत है। जब इन्हें यह बताया कि मैंने सुलभ शौचालय नामक दो गड्ढे वाली एक तकनीक की खोज की है, जिससे मानव-मल खाद में परिवर्तित हो जाता है, तत्पश्चात उस खाद और उससे बनी वस्तु के नमूने दिखाए तो
इन्होंने उस खाद को और उससे बनाई हुई छोटी-छोटी बॉल, जो बच्चों के खेलने के लिए बनाया हुआ है, को अपने हाथों में लिया, गौर से देखा और पूछा कि क्या यह मानव-मल का ही खाद है? मैंने ‘हां’ में जवाब दिया। ये मुस्कुराए और बहुत देर तक उसको हाथ में रखे रहे। ये इनकी विशालता और सरलता दोनों का परिचायक है। हम आपका एक बार पुनः हार्दिक स्वागत और अभिनंदन करते हैं। भारतीय जनता पार्टी के माननीय राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह जी ने अपने बहुमूल्य समय में से कुछ क्षण निकालकर यहां आने की कृपा की है, हम अपनी ओर से, सभागार में उपस्थित आप लोगों की ओर से एवं संपूर्ण सुलभ-परिवार की ओर से आपका हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन करते हैं। माननीय राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह जी से यों तो मैं कई बार मिल चुका हूं, लेकिन एक बार आपने मुझे अपने घर पर बुलाया और सुलभआंदोलन क्या है, इसे जानने की जिज्ञासा प्रकट की। उनसे मिलने के पश्चात मैंने माननीय श्री अमित शाह जी के बारे में लिखाः‘आज मेरी मुलाकात एक महान व्यक्ति से हुई। महान आत्मा, महान सोच, महान विचार एवं महात्मा गांधी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों से
प्रभावित एवं प्रेरित। दलितों को समाज में सर्वोच्च स्थान के पक्ष में, श्री अमित शाह जी की सोच से मेरी पूर्ण सहमति है। सबसे बड़ी बात हम दोनों ही अपनी मां के सिखाए रास्तों पर आज भी चल रहे हैं। मेरी मां का मुझ पर सबसे ज्यादा प्रभाव रहा है। वह हमेशा मुझसे कहा करती थीं कि बेटा आधी रोटी खाना, लेकिन कभी किसी के साथ बेईमानी मत करना। काम ऐसा करना जिससे देश और समाज का भला हो। खादी के प्रति उनमें प्रेम एवं अटूट आस्था है... क्योंकि यह कपड़े के साथ-साथ आज भी गरीबों का बड़ा अवलंबन है।’ ये व्यक्तित्व के धनी हैं। आपसे मिलने के बाद आपने हमारे आग्रह पर सुलभ-ग्राम, महावीर इन्क्लेव में पधारने की कृपा की। यहां आकर आपने विगत 50 वर्षों से हमारे द्वारा किए जा रहे कार्यों को देखा और अपना आशीर्वचन दिया, जिसके कुछ अंशों को निकालकर मैं आपके समक्ष रखना चाहता हूं। ‘मित्रो, स्वच्छता के बारे में मेरी माता जी गांधी जी की बहुत बड़ी अनुयायी थीं। तो बचपन से खादी, स्वच्छता इन सारी चीजों को मैं सुनता आया हूं, देखता भी आया हूं और जीवन में कहीं-न-कहीं मैंने अपनाया भी है। मगर मैंने स्वच्छता के इतने डायमेंशंस हो सकते हैं, इतने परिमाण हो सकते हैं, ये पहली बार आज इस संस्था में देखा।
‘मैं गांधी जी का अनुयायी हूं। अब मैं प्रधानमंत्री जी का भी अनुयायी हो गया हूं और इनके सपनों को साकार करने में लग गया हूं’
17 - 23 जुलाई 2017
संबोधन
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'प्रधानमंत्री जी के मेरे जैसे छोटे आदमी के साथ किए गए उस स्नेह और प्यार को मैं अब तक संजोए हूं और अपने जीवन-पर्यंत उसको संजो कर रखूंगा' जीरो वेस्ट, हंड्रेड परसेंट वेस्टेज, जीरो वेस्ट की दिशा में स्वच्छता के कार्यक्रम को कैसे जोड़ना है, ये श्रीमान पाठक जी ने पूरी दुनिया को बताने का काम किया है। मैं मानता हूं, ‘68 से लेकर आज तक पाठक साहब ने लगभग अपना पूरा जीवन इस काम के लिए दिया है। पाठक साहब को बहुत सारे अवॉर्ड भी मिले हैं। भारत सरकार ने भी ‘पद्म’ अवॉर्ड से सम्मानित किया, दुनिया-भर ने अवॉर्ड दिए हैं। मगर पाठक साहब, मैं अलग दुनिया का व्यक्ति हूं। ये अवॉर्ड कोई मायने नहीं रखते, ये सारे अवॉर्ड एक ओर, और एक व्यक्ति, जो िसर पर मैला ढोता है, उससे उसको मुक्ति दिलाकर उसका आशीर्वाद, जो आपको प्राप्त हुआ होगा, वो अवॉर्ड एक तरफ! दोनों मंे कोई तुलना नहीं हो सकती! करोड़ों लोगों के जीवन में उनके स्वास्थ्य का सुधार, उनको संस्कारित जीवन देने का संस्कार और स्वच्छता के काम के साथ जुड़े हुए लोगों का सामाजिक सशक्तीकरण-मैं मानता हूं कि ये बहुत बड़ी बात है। सुलभ इंटरनेशनल में एक बार पहले भी आने का मेरा कार्यक्रम तय हुआ था, मगर अनिवार्य कारणों से मैं आ नहीं पाया था, आज मैं यहां आया। इसको सुना बहुत था, अपनी आंखों से देखा और मैं मन से कहता हूं मित्रो, समाज में बदलाव के लिए जो संस्था काम करती है, उसको किस तरह काम करना चाहिए, वह देखना है तो सुलभ इंटरनेशनल में आकर देखना चाहिए, समझना चाहिए। इस संस्था के साथ जुड़े हुए भारत भर से आए हुए सभी भाइयों और बहनों को मैं कहना चाहता हूं कि बहुत अच्छे काम के साथ आप जुड़े हैं। इस काम के साथ जुड़ने का मतलब ही है कि इसी से आत्मा का कल्याण होता है और आगे की गति मिलती है।’ एक बार पुनः मैं माननीय श्री अमित शाह जी का हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन करता हूं। आज की सभा में उपस्थित राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के माननीय अध्यक्ष श्री बल्देव भाई शर्मा का भी मैं हार्दिक स्वागत और अभिनंदन करता हूं। आपने अपने बहुमूल्य समय में से कुछ क्षण निकालकर यहां आने की कृपा की है। वेद-पुराण, वाङ्मय इत्यादि पर मैंने आपका संभाषण सुना है। आप लोगों को अपने ज्ञान और वाणी से मंत्रमुग्ध कर देते हैं। आपके लेख भी बड़े ही ज्ञानवर्धक होते हैं। इसके बाद मैं माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र
दामोदरदास मोदी जी के बारे में लिखी गई पुस्तक के लोकार्पण-समारोह में उपस्थित श्रीमती अमोला पाठक, श्रीमती आभा कुमार, विशिष्ट अतिथिगण, साहित्यकारों, कवियों, समाजसेवियों, समाचारपत्रों एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से आए पत्रकारों तथा छायाकारों और सुलभ के मित्रों का भी हार्दिक स्वागत एवं अभिनंदन करता हूं। हम स्वागत करते हैं अलवर एवं टोंक से आईं उन महिलाओं का, जो पहले मैला ढोती थीं। अब इन्होंने ब्राह्मण जाति स्वीकार कर ली है। भारतीय समाज में पांच हजार वर्षों के बाद यह एक बहुत बड़ी क्रांति है। इससे समाज के जो पिछडे़ लोग हैं, उनको प्रतिष्ठा मिलेगी और िसर उठाकर जीने का अवसर मिलेगा। लगभग 50 वर्षों से साधना, त्याग, तपस्या, कड़ी मेहनत, सच्ची लगन, ईमानदारी और मिशनरी भाव के द्वारा जो हमने गांधी के सपनों को साकार किया है, भारतवर्ष में सेनिटेशन के संबंध में जो विचार थे, उसे बदला है। हमने विधवाओं के जीवन में आमूल परिवर्तन लाया है। मेरा यह मानना है कि महात्मा गांधी के बाद प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने स्वच्छता को, शौचालय को महत्त्व दिया है, इसे राष्ट्रीय प्राथमिकता में स्थान दिया है। स्वयं झाडू उठाकर तमाम जगहों को साफ किया है और मां गंगा के तट पर बसे काशी के अन्य घाटों के अलावा एक अस्सी घाट की कुदाल से स्वयं सफाई की और लोगों को प्रेरित किया कि गंगा को साफ रखें। हम लोगों ने भी प्रधानमंत्री जी के सपनों को साकार किया, अस्सी घाट की सफाई ऐसी कर दी और लगातार करते आ रहे हैं कि वह पुनः पर्यटक-स्थल बन गया है, न सिर्फ बाहर के लोगों के लिए, बल्कि काशी के लोगों के लिए भी। इस प्रकार माननीय प्रधानमंत्री ने स्वच्छता की संस्कृति को बदल दिया है। मोहन-जोदाड़ो और हड़प्पा की संस्कृति को वापस लाया है। मैंने इसे 'रेनेसां ऑफ कल्चर ऑफ सैनिटेशन' कहा है‘माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देश को स्वच्छ बनाने के लिए भारतीयों के बीच स्वच्छता का दीप जलाया है। उन्होंने स्वच्छता की उस संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए देशवासियों का आह्वान किया है, जो हड़प्पा-सभ्यता के समय यहां थी। हमलोगों को अपनी पूरी शक्ति तथा साधन-द्वारा
प्रधानमंत्री का साथ देना चाहिए। देश को स्वच्छ बनाना तथा खुले में शौच से मुक्त करना है। एतदर्थ आएं, हम सभी सभ्य, सुसंस्कृत और स्वच्छ होकर भारत को सभ्य, सुसंस्कृत तथा स्वच्छ राष्ट्रों की कतार में अग्रणी बनाएं।’ माननीय प्रधानमंत्री जी ने लक्ष्य रखा है कि सन् 2019 तक देश के सभी निवासियों के घरों में शौचालय हो जाने चाहिए। शौच के लिए कोई बाहर न जाए और भारत एक स्वच्छ और सुंदर देश हो सके एवं महात्मा गांधी को उनके 150वीं जन्मदिवस की वर्षगांठ पर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सके। केंद्र-सरकार, राज्य-सरकार तो इसके लिए कार्य कर ही रही हैं, हम लोग भी सरकार के प्रयास को पूरा करने में अपनी क्षमता के अनुसार लगे हैं। माननीय प्रधानमंत्री जी ने जब 15 अगस्त, 2014 को झंडा फहराते हुए स्वच्छता और शौचालय की बात की तो मेरी आंखों से आंसू झर-झर गिरने लगे और मैंने कहा कि एक प्रधानमंत्री ऐसा आया, जिन्होंने गांधी के सपनों को साकार करने की घोषणा की। मैं 2005 में मोदी जी से मिला था, जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे। भुज में एक कार्यक्रम था और वहां हमने भी प्रदर्शनी लगाई थी। वे आए और हमारी प्रदर्शनी को गौर से देखा, उसके बाद उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मंच पर बैठाया था और कहा कि तुम भी कुछ बोलो। इसके बाद 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद वाराणसी के अस्सी घाट की सफाई के दौरान भी हमें अपने साथ ले गए। हमें उनका अपार स्नेह मिलता रहा है। उनके बचपन से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक के संघर्षों और चुनौतियों पर हमने एक किताब लिखी है, जिसका लोकार्पण आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक माननीय मोहन भागवत जी के शुभ हाथों से हो रहा है। इस पुस्तक के बारे में बस इतना कहूंगा कि इसे हर वर्ग के लोगों को पढ़ना चाहिए और अपने घर में रखना चाहिए। खास कर बच्चों और युवाओं को इस पुस्तक से यह प्रेरणा मिलेगी कि किस तरह एक व्यक्ति विषम परिस्थितियों से लड़ कर देश का प्रधानमंत्री बनता है। प्रधानमंत्री जी के मेरे जैसे छोटे आदमी के साथ किए गए उस स्नेह और प्यार को मैं अब तक संजोए हूं और अपने जीवन-पर्यंत उसको संजो कर रखूंगा। मैं गांधी का अनुयायी हूं। अब मैं प्रधानमंत्री जी का
भी अनुयायी हो गया हूं और इनके सपनों को साकार करने में लग गया हूं। ‘गांधी जी की मान्यता थी कि ‘भंगियों को अपमानित कर हिंदू-समाज ने पूरे विश्व की निंदा अर्जित की है।’ वे हिंदू-सामाजिक संरचना की कुरीतियों के उन्मूलन के लिए प्रतिबद्ध थे। भंगीसमुदाय को मर्यादापूर्ण जीवन-यापन का अवसर उपलब्ध कराने के लिए सामाजिक सोच में बदलाव लाना उनके समाज-सुधार-कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य था। उनकी मान्यता थी कि अगर ब्राह्मण आत्मा की पवित्रता बनाए रखने के लिए आध्यात्मिक प्रयास करता है तो वाल्मीकि-समुदाय भी समाज की भौतिक पवित्रता बनाए रखने के लिए अपनी अनमोल सेवाओं से कृतार्थ कर रहा है। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह थी कि मानव-मल ढोने का काम करनेवालों को अछूत माना गया और सामाजिक दबाव के तहत जाति विशेष को इस प्रकार का घृणित कार्य करने के लिए मजबूर किया गया। इस घृणित प्रथा के उन्मूलन के लिए गांधी जी की अपेक्षा थी कि प्रत्येक व्यक्ति का यह पुनीत दायित्व है कि वह अपने शौचालयों की सफाई स्वयं करे। गांधी जी के आश्रमों में इस नियम को पूरी मुस्तैदी से लागू किया गया था। ‘अछूतों की दशा सुधरने की दिशा में अपनी प्रतिबद्धता के संदर्भ में गांधी जी का कहना था कि यदि हिंदुत्व को जिंदा रहना है तो छुआछूत को अवश्य मरना चाहिए और यदि छुआछूत को जिंदा रहना है तो हिंदुत्व को मरना पड़ेगा।’ उल्लेखनीय है कि गांधी जी को मनुष्य की बुनियादी अच्छाई और भूल-सुधारक होने पर अत्यधिक विश्वास था। वे हृदय-परिवर्तन में भी विश्वास रखते थे। गांधीजी ने कहा था कि समाज की समस्याओं का समाधान करना सबसे महत्वपूर्ण है। जॉन एफ. केनेडी ने 1961 में अपने भाषण में कहा था कि देश ने आपके लिए क्या काम किया है इसे मत सोचो, बल्कि ये सोचो कि आपने देश के लिए क्या काम किया है, क्योंकि यह बातें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। देश और समाज के लिए हमसे जो बन पड़ा वह हमने किया और आगे करते रहेंगे। इन सबमें गांधी के विचारों के बाद मेरी मां का सबसे बड़ा योगदान रहा है। वह हमेशा मुझसे कहा करती थी कि बेटा आधी रोटी खाना, लेकिन कभी किसी के साथ बेईमानी मत करना। काम ऐसा करना जिससे देश का, समाज का
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17 - 23 जुलाई 2017
भला हो। यही बात हमसे एक आईएस ऑफिसर ने कहा था कि जब में उनके पास काम के लिए गया था तो उन्होंने हमसे कहा कि मेरा चेहरा तुम्हें याद रहेगा हमने कहा हां...फिर उन्होंने कहा कि कभी तुम्हें बेईमानी करने का ख्याल आए तो मेरा चेहरा याद कर लेना। यदि 1968 में हमने सुलभ शौचालय का निर्माण नहीं किया होता तो आज भी लोग खुले में शौच करने के लिए मजबूर होते और हमारे स्कैवेंजर्स भाई-बहनों को इससे कभी मुक्ति नहीं मिलती। सुलभ ने इन्हें मैला ढोने से ही मुक्ति नहीं दिलाई, बल्कि इन स्कैवेंजर्स भाई-बहनों को पंडित भी बनाया। मैं गांधी जी की ही तरह हिंसा में नहीं, अहिंसा में विश्वास रखता हूं और कोई ऐसी बात नहीं बोलता, जिससे हिंसा उत्पन्न हो। बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर ने कहा था कि एक दलित के पार्लियामेंट का सदस्य बन जाने से छुआछूत कभी खत्म नहीं होगी। इसके लिए उन्होंने चार बातें कहीं थी कि सभी लोग एक साथ मंदिर जाएं, एक साथ खाना खाएं, एक साथ कुएं से पानी भरें, एक साथ तालाब में स्नान करें तभी इस समाज और देश से छुआछूत की भावना खत्म हो सकती है। हमने उनकी इन चारों बातों को अलवर और टोंक में पूरा कर दिया है। अब वहां पर हमारे स्कैवेंजर्स भाई-बहनों को लोग घृणा की दृष्टि से नहीं, बल्कि सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। उनके साथ खाना खाते हैं, उनके हाथों के बने सामान अपने घरों में इस्तेमाल करते हैं। सुलभ की यह सबसे बड़ी उपलब्धि है। आज का दिन सुलभ परिवार के साथ ही साथ उन पुनर्वासित स्कैवेंजर्स के लिए भी ऐतिहासिक है। इस देश की सबसे बड़ी समस्या छुआछूत रही है, जिसने हमारे हिंदू समाज को दो वर्गों में बांट रखा है। सुलभ का मुख्य उदेश्य इस देश से छुआछूत को जड़ से मिटाना है। गांधी ने कहा था कि इस देश में या तो हिंदू धर्म रहेगा या छूआछूत । उन्होंने यह बात वर्षों पहले कही थी। हिंदू धर्म हमेशा चलता रहेगा, लेकिन इस छुआछूत की परंपरा को इस देश से हम लोग हमेशा के लिए मिटाकर ही रहेंगे। हमने राजस्थान के अलवर और टोंक में मैला ढोने वाले स्केवैंजर्स को ब्राह्मण बना दिया। अब वह मंत्र का उच्चारण करते हैं, मंदिर जाते हैं, भगवान की पूजा करते हैं। हमने देखा है कि हमारे देश के प्रत्येक गांव में दूसर जातियां हों न हों, लेकिन ब्राह्मण का घर अवश्य
मिल जाता है। इसीलिए हमने सभी मैला ढोने वालों से कहा कि वह खुद को ब्राह्मण कहें। देश में 6 लाख 46 हजार गांव है। सुलभ ने प्रत्येक गांव में एक व्यक्ति को ट्रेनिंग देने की योजना बनाई है। ट्रेनिंग प्राप्त करने के बाद वह व्यक्ति अपने गांव में शौचालय बनवाने का कार्य करेगा। यदि बैंक से लोन की व्यवस्था समय पर हो जाती है तो हम 2019 तक प्रधानमंत्री जी के सपने को जरूर पूरा करने में सफल हो जाएंगे। इसके साथ ही हम देश के प्रत्येक ब्राह्मण परिवार से अनुरोध करते हैं कि वह छुआछूत जैसी इस विकट बीमारी को देश से खत्म करने में हमारा साथ दें। जिस तरह आजादी की लड़ाई में सभी ने कफन बांध लिया था उसी तरह इसे एक लड़ाई मान लीजिए और अपने गांव के गरीबदलित भाई-बहनों के घर जाएं, वहां पूजा करें। उनके साथ खाना खाएं, जिससे यह छुआछूत की बीमारी हमेशा के लिए खत्म हो जाए। वाराणसी में गंगा के अस्सी घाट की सफाई करने के समय मेरे मन में एक ख्याल आया कि माननीय प्रधानमंत्री जी के बचपन से लेकर अबतक किए गए कार्यों को एक ‘कॉफी टेबल बुक’ में प्रकाशित करवाया जाए। इसके लिए मैंने कई मित्रों से सलाह की और उन्होंने मेरा साथ दिया और उनके सहयोग से ही यह पुस्तक ‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी ः द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ प्रकाशित हो सकी है। पुस्तक में तथ्यों का पूरा ध्यान रखा गया है तथा इसका अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रकाशन किया गया है। अन्य मित्रों के अलावा मैं कर्नल (सेवानिवृत्त) जयबंस सिंह और प्रकाशक श्री सुशील गोयल जी को विशिष्ट रूप से धन्यवाद देता हूं, जिनके सहयोग से इतना बड़ा कार्य हुआ है। मैं एक बार पुनः परमपूजनीय सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी, भाजपा के माननीय राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह जी एवं नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया के माननीय चेयरमैन श्री बल्देव भाई शर्मा जी का हार्दिक स्वागत और अभिनंदन करता हूं। महात्मा गांधी, बाबासाहेब डॉ. भीमराव
अंबेडकर तथा पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा देश के लिए किए गए कार्य, त्याग एवं बलिदान तथा अद्वितीय सार्वजनिक जीवन से शक्ति एवं प्रेरणा लेते हुए मैं इस अवसर पर अपने अथक संघर्ष एवं सुलभ आंदोलन की उस संक्षिप्त गाथा को आपके समक्ष रखना चाहता हूं, जिसके लिए मैंने अपना जीवन समर्पित कर दिया है। मैंने आज से लगभग 48 वर्ष पूर्व सुलभ-आंदोलन की स्थापना की थी। इस संस्थान के माध्यम से हम सामाजिक, शैक्षिक और स्वच्छता-कार्य के द्वारा देश के लिए अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। सुलभ के नाम से सामान्यतः एक शौचालय का चित्र उभरता है या स्वच्छता के कार्य में इसके योगदान की चर्चा होती है, किंतु एक परिष्कृत तथा नवीकृत भारत के लिए सुलभ का जो योगदान रहा है-हजारों दलित स्कैवेंजरों की मुक्ति तथा उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने का, वह, हमने जो उल्लेखनीय संख्या में शौचालय बनाए हैं, उसके सामने गौण हो जाता है।
सुलभ-तकनीक की वैश्विक मान्यता
सुलभ शौचालय-तकनीक को कालक्रम में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानव-मल के सुरक्षित निपटान के लिए सर्वोत्तम वैश्विक प्रयोग में पहचान मिली। संस्था कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ संबद्ध होकर कार्य कर रही है। सुलभ शौचालय-तकनीक को कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों, जैसे-यूएनडीपी, विश्व-बैंक, यूनिसेफ और डब्ल्यू्एचओ-द्वारा जांचा-परखा गया है, साथ ही वैश्विक स्तर पर, विशेषतः विकासशील देशों में, इसके निर्माण के लिए अनुशंसा भी की गई है। इस प्रौद्योगिकी और इसके असर को संयुक्तराष्ट्र-विकास-योजना ‘यूएनडीपी’ की मानवविकास-रिपोर्ट-2003 ने बेहतरीन माना है। मार्च, 2014 में बीबीसी होराइजंश-द्वारा आधुनिक काल में दुनिया के पांच महत्त्वपूर्ण आविष्कारों में
'आज का दिन सुलभ परिवार के साथ उन पुनर्वासित स्कैवेंजर्स के लिए भी ऐतिहासिक है। इस देश की सबसे बड़ी समस्या छुआछूत रही है, जिसने हमारे हिंदू समाज को दो वर्गों में बांट रखा है'
सुलभ-तकनीक को परिगणित किया गया है।
स्कैवेंजरों का पुनर्वासन
पुनर्वासित स्कैवेंजरों को सशक्त करने के प्रयास के रूप में सुलभ ने राजस्थान के अलवर एवं टोंक में ‘नई दिशा’ नामक कौशल विकास केंद्र स्थापित किया, जहां पूर्व में स्कैवेंजिंग का काम कर रही महिलाएं अब पढ़ाई-लिखाई, कढ़ाई-बुनाई, सिलाई, सौंदर्य-प्रसाधन तथा पापड़-अचार-जैसे खाद्य पदार्थ बनाने का प्रशिक्षण पाती हैं। अब इनके द्वारा तैयार खाद्य पदार्थ ऊंची जाति के वे लोग भी खरीदते हैं, जो कदाचित इनकी छाया से भी दूर रहा करते थे। वर्ष 2008 में सुलभ 36 ऐसी प्रशिक्षणार्थियों को न्यूयॉर्क ले गया, जहां स्वच्छता के अंतरराष्ट्रीय दिवस पर उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित फैशन-शो में भाग लिया और दुनिया के प्रसिद्ध मॉडलों के साथ रैंप पर कैटवॉक किया। वहां उन्होंने ‘स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी’ के समक्ष घोषणा की कि अब वे अछूत नहीं हैं। विभिन्न जाति के लोगों को साथ लाने के हमारे अभियान के फलस्वरूप अब विवाह, मुंडन इत्यादि अवसरों पर दलित-वर्ग के लोग तथाकथित ऊंची जाति के लोगों के घर और ऊंची जाति के लोग तथाकथित दलितों के घर एक-दूसरे की खुशियों में शामिल होने के लिए आते-जाते हैं। देश के अंदर किसी भी मंदिर में सैकड़ों वर्षों से स्कैवेंजरों का प्रवेश वर्जित था। हमने समाज की उस रूढ़ि को भी सविनय तोड़ा और देश के अति विशिष्ट मंदिरों में इन लोगों को ससम्मान प्रवेश दिलवाया। हमने 200 से अधिक पुनर्वासित स्कैवेंजर महिलाओं को काशी की गंगा नदी में स्नान करवाकर बाबा विश्वनाथ के मंदिर में प्रवेश के साथ-साथ स्थानीय प्रतिष्ठित पंडित-ब्राह्मणसमाज के साथ सहभोज करवाया। यही नहीं, इन पुनर्वासित महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए, सभी धर्मों के प्रति सम्मान और सद्भाव रखने के लिए इन्हें विंध्याचल, पुष्कर के ब्रह्मामंदिर, अजमेर शरीफ में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती दरगाह और नई दिल्ली स्थित पवित्र गिरजाघर एवं गुरुद्वारा में ले जाया गया, जहां इन लोगों ने पूजाप्रार्थना की और अपने स्वर्णिम जीवन की दुआ मांगी। अब ये सभी पूर्णरूपेण सवर्ण की तरह जीवन-यापन करती हैं, पर्व-त्योहार मनाती हैं और सवर्णों के यहां
17 - 23 जुलाई 2017
विवाह-उपनयन-मुंडनादि सामाजिक आयोजन और यज्ञ-याजन में अन्य समागत सम्मानित अतिथियों की तरह भाग लेती हैं। सुलभ ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए विगत 5 अक्टूबर, 2016 को इन महिलाओं को पीले वस्त्र पहनाए और इनके ‘ब्राह्मण’ होने की घोषणा की। मेरा यह मानना है कि इन्हें समाज के सबसे उच्च वर्ण का स्थान देना चाहिए, ताकि धर्म-परिवर्तन का विषय ही न रहे। मुझे प्रसन्नता है कि समाज ने इनके इस परिवर्तन को स्वीकार किया है।
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शौचालय के संबंध में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का एक क्रांतिकारी स्लोगन है-‘पहले शौचालय, फिर देवालय’। हमारे धर्मग्रंथों में भी शुचिता को आरंभ में रखा गया है। ‘ऋग्वेद’ के ‘श्रीसूक्तम्’ के सोलहवें मंत्र में शुचिता की सर्वोच्चता का उल्लेख है। मंत्र हैयः शुचिः प्रयतोभूत्वा जुहुयाद् आज्यमन्वहन्। श्रियः प चदशर्श च श्रीकामः शततं जपेत्। महर्षि पतंजलि ने तीन प्रकार के मल को रेखांकित किया है और उनके निराकरण के लिए मार्ग प्रशस्त किए हैं। पहला है चित्त का मल, जिसे चिद्विकार कहते हैं। इसके निराकरण के लिए उन्होंने ‘पातंजल योगसूत्र’ की रचना की। महर्षि पाणिनि की ‘अष्टाध्यायी’ पर ‘महाभाष्य’ लिखकर उन्होंने वाणी के मल को निराकृत करने का प्रयत्न किया और िफर शरीर के मल को दूर करने के लिए ‘वैद्यक शास्त्र’ की रचना की। इस संबंध में एक बहुप्रतिष्ठित और बहुप्रचलित सूक्ति है-
स्वच्छ और समरस भारत
सुलभ के केंद्र में जो सामाजिक दर्शन है, उसके अनुसार देश को हर प्रकार की विसंगतियों से मुक्त करना है। हम लोग विशेष तौर पर उन लोगों को मुक्त करने के लिए प्रयासरत हैं, जो सामाजिक वर्गीकरण में सबसे निचली सीढ़ी पर हैं और पारंपरिक तौर पर अन्य लोगों का मैला साफ करते आ रहे हैं। यहां यह भी ध्यातव्य है कि सुलभ ने जो सार्वजनिक शौचालय देश भर में बनाए हैं, वे अधिकतर उच्च वर्ग के लोगों द्वारा चलाए जा रहे हैं, जिनके लिए पहले शौचालय और मानव-मल के विषय पर चर्चा करना भी निषिद्ध था। यह स्वस्थ और समेकित सामाजिक विकास की दिशा में ऐतिहासिक परिवर्तन के रूप में जाना जाता है। मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि ये सारे कार्य मैंने स्त्रीत्व के मार्ग से किया है। यह मार्ग अहिंसक, प्रेम, सद्भावना, दया, करुणा और स्नेह का होता है। इसके लिए हमने न कभी वेद-पुराण के पन्ने फाड़े, न ही कहीं धरणा-प्रदर्शन किया, बल्कि एक पक्ष, जो भारतीय जाति-व्यवस्था के शीर्ष पर था, के मुकाबले मैंने अस्पृश्यों को भी उतनी ऊंचाई पर बैठने के योग्य बना दिया। बिल्कुल एक बड़ी रेखा को बिना मिटाए या काटे उसके सामने उसके सामानांतर एक रेखा खींचने की तरह। सभ्यता की शुरुआत स्वच्छता से होती है, क्योंकि यह मानव की बुनियादी आवश्यकता है। महात्मा गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता-आंदोलन के दौरान इस विषय पर स्पष्टतः कहा था, ‘स्वतंत्रता से अधिक महत्त्वपूर्ण स्वच्छता है।’ हमारा सुलभआंदोलन गांधी जी के आदर्शों से प्रारंभ होता है। महात्मा गांधी के उस स्वप्न को पूरा करने के लिए
संबोधन
'श्री नरेंद्र मोदी राजनीतिक दृढ़ इच्छा-शक्ति वाले पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने स्वच्छता को महत्त्व के साथ प्रमुखता प्रदान की और उन्होंने गांधी जी के ‘सत्याग्रह’ के तर्ज पर ‘स्वच्छाग्रह’ की अपील की है' हम विगत 48 वर्षों से दिन-रात प्रयासरत हैं। हमारा एक ही उद्देश्य है, लोग खुले में शौच नहीं करें और एक मानव दूसरे मानव का मल ढोकर अस्पृश्य की श्रेणी में न जाए। मेरे प्रयास के फलस्वरूप नई पीढ़ी में शौचालय को लेकर जागरूकता तो बढ़ी ही है, साथ-ही-साथ पुरानी पीढ़ी पर भी स्वच्छता-अभियान का असर दिखने लगा है। जागरूकता अब गांव-गांव तक पहुंच रही है। हमने वाराणसी के अस्सी घाट की सफाई भी की है, जो वर्षों से मिट्टी और गाद से भरा था। इसके लिए हमारी संस्था को माननीय प्रधानमंत्री ने ‘इंडिया टुडे’ की ओर से ‘सफाईगीरी’ का सम्मान भी दिया है। सुलभ इंटरनेशनल को विभिन्न कल्याणकारी कार्यों के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक सम्मानों से पुरस्कृत किया गया है।
विनम्रतापूर्वक कहना चाहूंगा कि मेरे लिए 14 अप्रैल, 2016 का दिन बड़ा ही गर्व और गौरव का दिन था। उस दिन को न्यूयाॅर्क के मेयर ने ‘डाॅ. विन्देश्वर पाठक-दिवस’ घोषित किया और मेरा तथा सुलभ के कार्यों का सम्मान किया। श्री नरेंद्र मोदी राजनीतिक दृढ़ इच्छा-शक्ति वाले पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने स्वच्छता को महत्त्व के साथ प्रमुखता प्रदान की और उन्होंने गांधी जी के ‘सत्याग्रह’ के तर्ज पर ‘स्वच्छाग्रह’ की अपील की है। आज पूरे देश में निजी घरों और सार्वजनिक स्थलों पर शौचालय बनाए जा रहे हैं। ट्रेनों में शौचालय के माॅडल बदले जा रहे हैं। गली-मुहल्लों से कचरे साफ कर उठाए जा रहे हैं। उन कचरों के डिस्पोजल की व्यवस्था की जा रही है। भारत को साफ-सुथरा और पर्यटकों को आकर्षित करने वाला देश बनाया जा रहा है। ये सारे कार्य प्रशंसनीय हैं।
योगेन चित्तस्य पदेन वाचां मलं शरीरस्य च वैद्यकेन यो पाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां पतजलिं प्रा जलिरानतो स्मि। आधुनिक काल में मनोविज्ञानियों ने मनोमल का उल्लेख किया है। किसी एक व्यक्ति के मन में दुर्विचार उत्पन्न होता है और विश्वयुद्धजैसी दुर्घटना घट जाती है। इसीलिए इन चारों प्रकार के मल को दूर करने के लिए स्वच्छ समाज की स्थापना हो सकती है। उपर्युक्त विषय के आलोक में इस अवसर पर आप सभी से मेरा विनम्र आग्रह है कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देश को स्वच्छ बनाने के लिए जो संकल्प लिया है, घरों में शौचालय बनाने की जो बात की है, कूड़े-कचरे के निपटान के लिए जो अभियान चलाया है, हम उस संकल्प में अपनी सहभागिता प्रदान करें और अपने देश को सभ्य, सुसंस्कृत तथा स्वच्छ राष्ट्रों की कतार में अग्रणी बनाएं एवं महात्मा गांधी, डॉ. अंबेडकर तथा पंडित दीनदयाल उपाध्याय के सपनों के भारत को साकार करें। एक बार पुनः मैं आप सबका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन करता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद!
12 संबोधन
17 - 23 जुलाई 2017
बल्देव भाई शर्मा, अध्यक्ष, नेशनल बुक ट्रस्ट, का संबोधन
'मोदी जी द्वारा किया गया कार्य भारत के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय' यदि देश के सवा सौ करोड़ लोग इस पुस्तक को पढ़ कर नरेंद्र मोदी बन जाएं तो इस पुस्तक का लिखना सार्थक हो जाएगा
एक नजर
गांधी जी के सपने को मोदी जी ने जन-जन का संकल्प बनाया
गांधी जी और मोदी जी के बीच डॉ. पाठक स्वच्छता का पताका लेकर चले मोदी जी ने सबको समाज में सम्मान के साथ जीने का रास्ता दिखाया
आ
एसएसबी ब्यूरो
ज डॉ.पाठक ने तो हमें धर्मसंकट में डाल दिया और मेरे जैसे एक मामूली स्वंय सेवक को इस कार्यक्रम की अध्यक्षता सौंप दी, लेकिन यह संघ ने ही हमें सिखाया है कि एक कार्यकर्ता अपने परिवार के मुखिया के साथ बड़े ही सम्मान और आनंद से बैठ सकता है। यह संघ के कार्यों का ही प्रतिफल है कि हमें आज देश का ऐसा यशस्वी प्रधानमंत्री मिला है, जो देश के प्रत्येक वर्ग को साथ लेकर चलने की बात ही नहीं करते, बल्कि उन्हें इस समाज में सम्मान के साथ जीने का रास्ता भी दिखाया है। अभी अमित शाह जी ने सभी को बताया कि किस तरह हमारे प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे देश का कायाकल्प किया है। यह न केवल भारत में, बल्कि जहां भारत की जीवन दृष्टि के अनुसार लोग रहते हैं वहां सामान्य जन के उन्नयन का काम किया, उस तरह की योजनाएं क्रियान्वित की। इसके साथ ही उन्होंने विश्व पटल पर भारत को नई प्रतिष्ठा दिलाई। एक समय में जो देश मोदी
जी को वीजा नहीं देना चाहते, वही आज उनके सामने नतमस्तक हो रहे हैं। यह मोदी के करिश्माई नेतृत्व का ही परिणाम है। मोदी जी ने भारत की उस ऊर्जा को, संस्कृति को पूरे विश्व में प्रतिष्ठित किया है। महर्षि व्यास ने एक बहुत ही सुंदर बात कही है कि धन तो आना जाना है, आज है कल नहीं है, लेकिन जो इतिहास है उसको प्रयत्नपूर्वक संरक्षित करके रखो। उसी से हमारी भावी पीढ़ियां प्रेरणा ग्रहण करेंगी। इतिहास सिर्फ आंकड़े नहीं होते हैं। इतिहास, जिन लोगों ने देश, समाज, मानवता के निर्माण में नई चेतना के साथ जीवन समर्पित कर दिया, उनका स्मरण, उन परिस्थितियों का स्मरण करना कि किस तरह उन्होंने उन परिस्थितियों पर विजय प्राप्त की है। मैं डॉ. पाठक को बहुत बधाई देना चाहूंगा कि उन्होंने मोदी जी के कृतित्व को एक स्वंय सेवक से
लेकर प्रधान सेवक बनने तक की यात्रा को लिखा और उसे प्रकाशित किया। किसी का जीवन चरित्र लिखना व्यक्ति की पूजा नहीं है। व्यासजी ने जिस इतिहास की बात की है वह उसकी प्रेरणा के लिए की है, कि उस व्यक्ति के जो गुण हैं, उसके आधार पर समाज का निर्माण हो। प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के लोगों को एक नई दिशा दी है। यदि देश के सवा सौ करोड़ लोग इस पुस्तक को पढ़ कर नरेंद्र मोदी बन जाएं तो इस पुस्तक का लिखना सार्थक हो जाएगा। हमारे पूर्वजों ने कहा है कि किसी के चरित्र को पढ़कर उसे अपने व्यक्तित्व में उतारो और देशहित में कार्य करो। स्वच्छता अभियान गांधी जी का सपना था, जिसे
‘मैं डॉ. पाठक ने मोदी जी के कृतित्व को एक स्वयं सेवक से लेकर प्रधान सेवक बनने तक की यात्रा को लिखा और उसे प्रकाशित किया। किसी का जीवन चरित्र लिखना व्यक्ति की पूजा नहीं है’
मोदीजी ने जन-जन का संकल्प बना दिया है। गांधी और मोदी के बीच डॉ. पाठक पताका लेकर चले हैं। स्वच्छता सिर्फ कूड़े का ढेर हटाना नहीं है। इसके लिए मन की स्वच्छता भी मायने रखती है। जब तक मन स्वच्छ नहीं होगा, सुचिता नहीं आएगी तब तक बदलाव नहीं हो सकता है। मैं यह बताना चाहता हूं कि मोदी जी के स्वच्छता मिशन को ध्यान में रखते हुए नेशनल बुक ट्रस्ट ने जापान की एक बड़ी प्रकाशन कंपनी के साथ करार किया है, जिसके तहत स्वच्छता पर उनकी जापानी में लिखी एक सिरीज मौंक्ताइन का हिंदी में अनुवाद करके प्रकाशित कर रहा है, ताकि हमारे देश के बच्चे-बच्चे को स्वच्छता का ज्ञान प्राप्त हो सके। आज का यह कार्यक्रम बहुत ही प्रेरणास्पद रहा। मैं इस पुस्तक के लेखन के लिए नहीं, बल्कि इसके विचारों को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य करने के लिए डॉ. विन्देश्वर पाठक का बहुत बहुत धन्यवाद करता हूं।
17 - 23 जुलाई 2017
पुस्तक
13
पुस्तक समीक्षा
‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी : द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड
विलक्षण जीवन पर
असाधारण पुस्तक ‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी- द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर लिखी गई अनेक पुस्तकों से बिल्कुल हट कर है। लेखक डॉ. विन्देश्वर पाठक ने इस पुस्तक में उनके जीवन के तमाम पक्षों को संवेदनशील तरीके से व्यक्त किया है
भा
रत के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी उन दुर्लभ व्यक्तियों में हैं जिन्होंने अपनी सोच और करिश्माई नेतृत्व से मानवता और राष्ट्र के इतिहास को आकार दिया है। वह मशहूर अमेरिकी वैज्ञानिकों थॉमस एडिसन के सबसे प्रसिद्ध कथन-एक फीसदी प्रेरणा और निन्यानवे फीसदी पसीना के प्रतीक बन गए हैं। नरेंद्र मोदी की बौद्धिकता अपार है, परंतु अपने इस अद्भुत जीवन यात्रा में कड़ी मेहनत से प्राप्त उनका वृहद अनुभव तथा गहरा ज्ञान उन्हें दूसरों की तुलना में अधिक ऊंचाई पर ला रखता है और यही उन्हें अद्वितीय भी बनाता है। यह पुस्तक सुविख्यात समाजशास्त्री और सुलभ स्वच्छता और समाज सुधार आंदोलन के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक की दूरदृष्टि का परिणाम है, जिन्होंने प्रधानमंत्री के जीवन को काल-क्रमानुसार इस तरह सुव्यवस्थित ढंग से और बड़ी खूबसूरती के साथ एक लड़ी में इस तरह से पिरोया है, जिससे यह आने वाले पीढ़ियों को अभिप्रेरित कर सके। डॉ. पाठक के इस कार्य में उनके नेतृत्व में समर्पित टीम ने पूरे समर्पण से कठिन परिश्रम किया है। पुस्तक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन और कार्यों के बारे में काफी विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई गई है। पुस्तक का मुख्य उद्देश्य नरेंद्र मोदी के जीवन की व्यापक और विश्वसनीय गाथा को प्रस्तुत करना है। इस तरह यह जीवनी नरेंद्र मोदी के आरंभिक दिनों से लेकर उनके वर्तमान समय तक
का प्रेरणादायक और सम्मोहक वर्णन प्रस्तुत करती है, जिसमें उनकी जिंदगी का वह सफरनाना है, जो गुजरात में उनके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्पित स्वयंसेवक बनने से शुरू होता है। यह सफरनामा कई प्रेरक जीवन प्रसंगों से समृद्ध है। एक लोकप्रिय नेता बनने, भारतीय जनता पार्टी में कई संगठनात्मक जिम्मेदारियां स्वीकार करने, गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर अंतत: देश के प्रधानमंत्री बनने तक वे निस्वार्थ सेवा और समर्पित कार्यकर्ता की तरह आगे बढ़ते हैं। पुस्तक इस बात को गहराई से रेखांकित करती है कि नरेंद्र मोदी एक एेसे चमत्कारी वैश्विक नेता हैं, जो अपनी दूरदृष्टि और समझ से राष्ट्र निर्माण व मानवता का इतिहास पुनः लिख रहे हैं। उनका एेसे दिव्य और ऊर्जावान नायक के रूप में प्रकट होना वाकई बड़ी परिघटना है। यह पुस्तक में गुजरात में सबसे अधिक समय तक शासन करने वाले मुख्यमंत्रियों में से एक और भारत के अब तक के सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी यात्रा और फिर प्रधानमंत्री के रूप में उनके कार्यों के विभिन्न आयामों का गहराई से स्पर्श करती है। इन आयामों का विस्तार नरेंद्र मोदी के विश्व रंगमंच पर आने के बाद वैश्विक बदलाव के विभिन्न पक्षों तक पहुंचता है। पुस्तक की विषय सामग्री और इसके प्रकाशन की गुणवत्ता इसको पिछले कुछ वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर छपी अन्य दूसरी सभी पुस्तकों से श्रेष्ठ श्रेणी में रखती हैं। पुस्तक में नरेंद्र मोदी द्वारा प्रधानमंत्री बनने के
नरेंद्र मोदी निस्वार्थ सेवा और समर्पित कार्यकर्ता की तरह आगे बढ़ते हैं। पुस्तक इस बात को गहराई से रेखांकित करती है कि वे एक एेसे चमत्कारी वैश्विक नेता हैं
एक नजर
पीएम मोदी तीन सालों में हर मोर्चे पर रहे सफल समकालीन विश्व के महानतम नेताओं में शामिल हैं मोदी
स्वच्छता के कार्य को प्रधानमंत्री ने बनाया राष्ट्रीय मिशन
बाद 15 अगस्त 2014 को लालकिले से उनके पहले भाषण सहित उनके कुछ अन्य भाषणों के अलावा विश्व नेताओं-पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून, जर्मन चांसलर एंजेला मॉर्कल, जापानी प्रधानमंत्री शिंजो अबे आदि की नरेंद्र मोदी के बारे में की गई टिप्पणियों का सारसंक्षेप भी मौजूद है। विश्व के बड़े बिजनेस लीडर जैसे फेसबुक के सीईओ मॉर्क जकरबर्ग, गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई, टाटा संस के चेयरमैन रतन टाटा आदि की मोदी पर की गई टिप्पणियों में उनकी लोकप्रियता की झलक दिखाई पड़ती है। पुस्तक में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके द्वारा आरंभ की गई विभिन्न योजनाओं और उनसे भारत और इसके लोगों का जीवन किस प्रकार से बदल रहा है, इसकी विस्तृत जानकारी दी गई हैं। चाहे यह ‘स्वच्छ भारत मिशन’ हो, ‘स्किल
इंडिया’ हो, ‘मेक इन इंडिया’ हो या ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ हो, पुस्तक से हमें इनकी और इनके देश पर पड़ रहे सकारात्मक प्रभावों की भरी-पूरी जानकारी मिलती है। पुस्तक में नरेंद्र मोदी के बचपन से लेकर उनके प्रधानमंत्री बनने तक के समय के अनेक फोटोग्राफ हैं। इनमें उनकी (एनसीसी नेशनल कैडर कोर) कैडेट के रूप में एक फोटो, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वर्दी में एक फोटो, आपातकाल में अपने गुरु लक्ष्मण राव इनामदार के साथ अपना गणवेश बदले हुए एक सिख के रूप में फोटो शामिल हैं। इन फोटो ग्राफ में उनकी राजनैतिक यात्रा का सफर भी दर्शाया गया है जिसमें 1991 भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी द्वारा निकाली गई एकता यात्रा के दौरान श्रीनगर के लाल चौक में तिरंगा फहराने से लेकर तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी की स्वराज जयंती यात्रा तक की तस्वीरें शामिल हैं। इन सबसे बढ़कर इस पुस्तक द्वारा हमें नरेंद्र मोदी के जीवन की उस कहानी की जानकारी प्राप्त होती है, जिसमें उनकी लगातार मेहनत करने और निरंतर सीखते रहने की दृढ़ इच्छाशक्ति तथा समाज को वह सब लौटा देने की कामना की जानकारी मिलती है, जो उन्होंने भीषण गरीबी और संघर्ष से प्राप्त किया है।
14 फोटो फीचर
17 - 23 जुलाई 2017
‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी : द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’
पुस्तक लोकार्पण फोटाेः मोंटू एवं जयराम
लोकार्पण समारोह में
समारोह पुस्तक लोकार्पण
फोटो प्रदर्शनी भी आयो
जित
गत
में अतिथियों का स्वा
पुनर्वासित स्कैवेंजर्स से मिलते सरसंघचालक
पर मारोह स्थल स क ाठ प र रते हुए डॉ. विन्देश्व सुलभ प्रणेता ोहन भागवत का स्वागत क म सरसंघचालक
मोहन भागवत
कूल के भ पब्लिक स् ल ु स क ाठ प डॉ. विन्देश्वर े परिचय कराते हुए स मोहन भागवत
भाजपा के र ाष्ट्रीय अध्यक्ष अ पुस्तक के बार े में चर्चा करत मित शाह के साथ े डॉ. विन्देश्वर पाठक
मोहन भाग
छात्रों का
ेट करते डॉ.
नी पेटिंग भ वत को मधुब
डॉ. पाठक , मधुबाला स श्रीमती अमोला प ाठक और ंघ प्रमुख क े साथ
वृंदावन की माताओं से मिलते संघ प्रमुख
पाठक
श्रीमती अमोला पाठक , डाॅ. पाठक और म ोहन भागवत के साथ करते अमित शाह दीप प्रज्ज्वलित
17 - 23 जुलाई 2017
15
फोटो फीचर
वत
रते मोहन भाग
अनावरण क ष्ट लड्डू का
विशि
विशिष्ट लड्डू का स्वाद लेते अतिथिगण
सम्मानित अतििथयों क
ा संबोधन
डॉ. पाठक क
ोकार्पण ाथ पुस्तक का ल स े क ों य थ तिि अ त
सम्मानि
े द्वारा पुस्तक का लाे
कार्पण
बादल बरसे तो बचपना बरसता है। हंसी-ठिठोली और मुस्कुराने के इस मौसम का स्वागत पूरी प्रकृति करती है। आसमान बरसता है तो धरती अमृत का गर्भ धारण करती है। एक नई उम्मीद और नया जीवन कहीं न कहीं पलता है। जिसकी प्रतीक्षा हम ही नहीं, पूरी दुनिया करती है अनवरत और अथक
करते डॉ. पाठक
अमित शाह का संबोध
न
मोहन भागवत का संबोधन
अध्यक्ष बल्देव राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के
भाई शर्मा का संबोधन पुस्तक लोकार्पण के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम की
प्रस्तुति
16 खुला मंच
17 - 23 जुलाई 2017
‘हमारी राष्ट्रीयता का आधार ‘भारत माता’ हैं, केवल भारत नहीं। ‘माता’ शब्द हटा दीजिए तो भारत केवल जमीन का टुकड़ा मात्र बनकर रह जाएगा’ - पंडित दीनदयाल उपाध्याय
सौर क्षमता में बढ़ा दमखम एक दशक में हम उन अग्रणी देशों की कतार में खड़े होंगे, जिन्होंने इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा प्रगति की है
भा
रत की सौर क्षमता 2016 तक 6,000 मेगावाट तक पहुंच गई थी। आज देश जिस तरह सौर ऊर्जा क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है, उसमें यह आंकड़ा अगले एक दशक के भीतर इतना ऊपर पहुंच जाएगा कि हम उन अग्रणी देशों की कतार में खड़े होंगे, जिन्होंने इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा प्रगति की है। दिलचस्प है कि 2010 में भारत की स्थापित सौर क्षमता 10 मेगावाट थी, जो तेजी से बढ़ते हुए पिछले साल तक तक 6,000 मेगावाट के स्तर पर पहुंच गई। अच्छी बात यह भी है कि इस दौरान अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में निवेश भी तेजी से बढ़ा है। इस क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने वाले देशों में भारत का स्थान तीसरा है। हाल में इस दिशा में भारतीय रेलवे ने भी काफी महत्वाकांक्षी तरीके से कदम बढ़ाए हैं। देश में सौर ऊर्जा से चलने वाली पहली ट्रेन को रेलमंत्री सुरेश प्रभु हरी झंडी दिखा चुके हैं। देश में आने वाले वर्षों में महानगरीय क्षेत्रों में इस तरह के ट्रेनों के सघन परिचालन की योजना है। रेलवे भारत में आवागमन का बड़ा साधन तो है ही, इसमें ऊर्जा की भी काफी खपत होती है। इस लिहाज से रेलवे का सौर ऊर्जा की दृष्टि से आधुनिकीकरण एक बड़ी पहल है। अच्छी बात यह भी है कि सरकार ने अपने इस कदम को घोषित प्राथमिकता पर रखा है। यह देश में तकनीकी स्वावलंबन की दृष्टि से भी बड़ा कदम है। जिस पहली सोलर ट्रेन को राष्ट्र को समर्पित किया गया है, उसका निर्माण भारतीय रेलवे की कोच फैक्टरी- इंटेग्रल कोच फैक्टरी (आईसीएफ) चेन्नई में किया गया है। वहीं ट्रेन के सौर पैनल और सौर प्रणालियां भारतीय रेलवे वैकल्पित ईंधन संगठन (आईआरओएएफ), दिल्ली द्वारा विकसित और फिट किए गए हैं। भारतीय रेलवे ने पहले ही अगले पांच वर्षों में 1000 मेगावाट क्षमता वाले सौर संयंत्र बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। वैकल्पिक ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए भारतीय पहले से ही रेलवे चाय की खेती, बायो-टॉयलेट, जल-पुनर्चक्रण, अपशिष्ट निपटान, सीएनजी और एलएनजी, पवन ऊर्जा आदि जैव ईंधन के इस्तेमाल जैसे पर्यावरण के अनुकूल कई उपाय कर रहे हैं। 1994 में डीईएमयू सेवा के आरंभ के बाद ऊर्जा इस्तेमाल के लिहाज से भारतीय रेलवे नए चरण में पहुंच चुका है। यह पूरे देश के लिए गर्व और संतोष का विषय है।
टॉवर
(उत्तर प्रदेश)
लोकेंक शशां द्र सिं गौतम ह
लेखक विधि एवं सामाजिक मामलों के जानकार हैं और एक दशक से विभिन्न सामाजिक संस्थाअों से संबंद्ध हैं
ऐसे थे क्रांतिधर्मी ‘पंडित जी’ भा
क्रांतिधर्मी चंद्रशेखर आजाद न सिर्फ तब, बल्कि आज भी तरुण भारत के सबसे बड़े रोल मॉडल हैं
रतीय स्वाधीनता संग्राम की सबसे चमकती इबारत निस्संदेह उन क्रांतिवीरों ने लिखी, जिन्होंने अपनी कुर्बानी से देश में जहां एक तरफ देशभक्ति के जज्बे को बढ़ाया, वहीं सबको फिरंगी हुकूमत से भिड़ने की निर्भीक प्रेरणा दी। आज भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। देश की तरुणाई अपने उद्यम और क्षमता से कई क्षेत्रों में भारतीय मेधा का लोहा मनवा रही है। पर यहां गौर करना जरूरी है कि आज जिस आजाद भारत में हम सांस ले रहे हैं और कई तरह की सहूलियतें हासिल कर पा रहे हैं, उसके पीछे संघर्ष का एक लंबा इतिहास है। इतिहास के ये पन्ने किताबों में तो हैं ही, इन्हें सदा हमारी स्मृतियों में भी होना चाहिए। वैसे भी भारत का स्वतंत्रता संग्राम कई मायनों में विलक्षण है। पहली विलक्षणता तो यही कि देश में पहले सांस्कृतिक नवजागरण का अखल जगा, फिर स्वराज की मांग उठी। महात्मा गांधी के आगमन से पहले देश में लाल-बाल-पाल स्वराज की ललकार को इतना ऊंचा उठा चुके थे कि भारत को लंबे समय तक गुलाम बनाए रखने का भरोसा अंग्रेज हुक्मरान भी खो चुके थे। सबसे बड़ी विलक्षणता तो यह रही कि जिस भारतीय स्वाधीनता संघर्ष के न सिर्फ शुरुआती, बल्कि इसके आगे के कई पन्ने बलिदानी लहू से लिखे गए। भारतीय स्वाधीनता संग्राम की यह दो अलग-अलग झांकियां नहीं, बल्कि एक विकास यात्रा है, जिसे एक साथ देखते हुए हम राष्ट्र, राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रवाद के भारतीय साझे को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में समझ सकते हैं। खासतौर पर ऐसे समय में जब सूचना क्रांति की तेजी ने मर्म और संवेदना के कई धरातल अनजाने ही हमसे छीन लिए हैं। यह देखना, जानना और समझना बहुत जरूरी है कि एक दौर में देश के वीर सपूतों ने किस तरह का जोश और जज्बा दिखाते हुए देश और समाज के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया। यशपाल ने एक अद्भुत पुस्तक लिखी है, नाम है- ‘फांसी के फंदे तक’। इसमें क्रांतिकारियों के जीवन से जुड़े कई रोचक प्रसंग और संस्मरण हैं। 23 जुलाई को अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की जयंती है। हमारे लिए यह मौका है खासतौर पर उन नौजवानों की जिंदगी में झांकने और उनके जीवन प्रसंगों से सीखने का, जिनका नाम लेते आज भी हमारे मन में राष्ट्र प्रेम का बलिदानी रोमांच अंगड़ाई लेने लगता है। आजाद अपने करीबियों के बीच ‘पंडित जी’ के रूप में प्रसिद्ध थे। पंडित जी की देशभक्ति के कई किस्से मशहूर हैं। उनके सामने एक ही लक्ष्य था, भारत की आजादी। इस लक्ष्य के सामने बाकी सारे मुद्दे गौण थे। मुल्क की आजादी के लिए उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की थी और शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव एवं
चंद्रशेखर आजाद जयंती (23 जुलाई) पर विशेष बटुकेश्वर दत्त आदि इसके सदस्य बने। एक बार की बात है जब भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और बटुकेश्वर दत्त इलाहाबाद में प्रवास कर रहे थे, तभी एक दिन सुखदेव कहीं से एक कैलेंडर ले आए जिस पर शायद किसी सिने तारिका की मनमोहक तस्वीर छपी थी। सुखदेव को कैलेंडर अच्छा लगा। उन्होंने उसे कमरे की दीवार पर टांग दिया और बाहर चले गए। उनके जाने के बाद पंडित जी वहां पहुंचे। ऐसे कैलेंडर को देखकर उनकी भृकुटी तन गई। उनके गुस्से को देखकर वहां मौजूद अन्य साथी डर गए। सभी पंडित जी का मिजाज जानते थे। पंडित जी ने किसी से कुछ नहीं कहा, पर कैलेंडर को फाड़कर फेंक दिया। कुछ समय बाद सुखदेव वापस आ गए। दीवार पर कैलेंडर न देख वे इधर-उधर देखने लगे। थोड़ी ही देर बाद उन्हें उसके अवशेष दिखाई दिए तो वे क्रोधित हो गए। वे भी गर्म मिजाज के थे। उन्होंने गुस्से में कहा कि किसने उनके लाए कैलेंडर की यह दशा की है? पंडित जी ने शांत स्वर में उनसे कहा, ‘हमने किया है?’ सुखदेव थोड़ा कसमसाए, परंतु पंडित जी के सामने क्या बोलते। सो धीरे से बोले कि अच्छी तस्वीर थी। पंडित जी ने कहा, ‘यहां ऐसी तस्वीरों का क्या काम।’ उन्होंने सुखदेव को
यह जानना और समझना बहुत जरूरी है कि एक दौर में देश के वीर सपूतों ने किस तरह का जोश और जज्बा दिखाते हुए देश और समाज के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया।
17 - 23 जुलाई 2017
राकेश कुमार समझा दिया कि ऐसे किसी भी आकर्षण से लोगों का ध्यान ध्येय से भटक सकता है। पंडित जी के जीवन से जुड़ी ऐसी ही एक और घटना बीसवीं सदी के दूसरे दशक के अंत की है। अंग्रेजों का दमन चक्र तेजी से चल रहा था और जनता में खासा रोष था। एक दिन महिलाएं इलाहाबाद में जुलूस निकाल रही थीं और सामने पड़ जाने वाले किसी भी पुरुष पर यह कहते हुए खासी लानत भेज रही थीं कि वे कुछ नहीं कर पा रहे हैं। आजाद अपने किसी साथी के साथ वहां से गुजर रहे थे। महिलाओं ने उन्हें घेर लिया और एक महिला ने गरजते हुए उन पर शब्दों से आक्रमण कर दिया, ‘आप लोगों से कुछ होने वाला नहीं है, आप सब मर्दों को चूड़ी पहन कर घर बैठ जाना चाहिए।’ एक दो महिलाओं ने आगे बढ़कर आजाद के हाथ पकड़ लिए और कहने लगीं कि इन्हें चूड़ियां पहनाओ। जाहिर था कि उन्होंने पंडित जी को पहचाना नहीं था। आजाद मुस्कुराए और उन्होंने अपनी कलाइयां बढ़ाते हुए कहा कि लो बहन पहना लो चूड़ियां। कद्दावर शरीर के मालिक आजाद के हृष्ट-पुष्ट हाथों के चौड़े गट्टों में भला कौन सी चूड़ी चढ़ सकती थी? नतीजतन, कुछ देर में महिलाएं शर्मिंदा हो गईं। जिन लोगों को पंडित जी के बारे में थोड़ी भी जानकारी है, वे यह जानते हैं कि पंडित जी अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करते हुए आत्मरक्षा के प्रति कितना तत्पर और सचेत रहते थे। देश के इस अमर बलिदानी ने अपने जीवन की अंतिम सांस तक इस सचेत तत्परता को बनाए रखा और फिरंगी पुलिस से घिर जाने के बावजूद वे उनकी नहीं, अपनी गोली से शहीद हुए। उनकी इस प्रवृत्ति से जुड़ी एक दिलचस्प घटना भी है। पंडित जी चाकू चलाने में माहिर एक उस्ताद से चाकू चलाना सीखा करते थे। उस्ताद जी पंडित जी को छत पर चाकू चलाना सिखाते थे। पास ही स्थित एक दूसरे घर की छत से, जो इस घर की छत से थोड़ा ऊंची थी, रोज एक युवती और उसका छोटा भाई इस ट्रेनिंग को देखा करते थे। दोनों नियत समय पर छत पर आकर बैठ जाते और आजाद को देखते थे। एक दिन ऐसा संयोग हुआ कि सीखते हुए आजाद का ध्यान थोड़ा हट गया और उस्ताद जी का चाकू उनके शरीर को छीलता हुआ निकल गया। उस्ताद जी और उनके शागिर्द पंडित जी के घाव को देख रहे थे कि उस दूसरी छत से बहुत सारी चीजें वहां बरसनी शुरू हो गईं। जो भी उसके हाथों में आ रहा था, युवती उसे निशाना साध कर उस्ताद जी के ऊपर फेंक रही थी और उसका छोटा भाई भी उसकी सहायता कर रहा था। उस्ताद जी ने मुस्कुराते हुए पंडित जी से कहा, ‘लगता है लड़की का दिल लग गया है तुमसे।’ इस पर पंडित जी मुस्कुराए भर, लेकिन साथ में यह भी साफ हो गया कि उनकी जिंदगी की मंजिल देश की स्वाधीनता भर है। बाकी चीजें उनके लिए महत्वहीन हैं। एक युवा के लिए इस तरह के गुण, शील और स्वभाव का होना, कितनी बड़ी बात है। इसे आज के खुलेपन के दौर में हम ज्यादा बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। बताना यह भी जरूरी है कि सिद्धांतप्रिय आजाद आजीवन स्त्रियों के प्रति अगाध आदर रखने वाले व्यक्ति रहे। साफ है कि क्रांतिधर्मी पंडित जी देश के स्वराज के लिए एक ऐसे व्रती बने, जिनके शील, गुण धर्म सब प्रेरक संस्कारों से भरे थे। वे सही मायनों में न सिर्फ तब, बल्कि आज भी तरुण भारत के सबसे बड़े रोल मॉडल हैं।
खुला मंच
लेखक नेशनल बुक ट्रस्ट के डिप्टी डायरेक्टर हैं और कई सामाजिक-सांस्कृतिक अभिक्रमों से लंबे समय से जुड़े हैं
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मंडेला स्मरणीय, तो महात्मा वंदनीय ने
27 साल का जीवन जेल की सलाखों के पीछे बिताने के बावजूद अपने संघर्ष की अलख जलाए रखना कोई मामूली बात नहीं है
ल्सन मंडेला जब पांच दिसंबर, 2013 को दुनिया छोड़ कर चले गए, तो उन्हें याद करने वालों ने उनके साथ गांधी की स्मृति और प्रेरणा को भी नमन किया। दिलचस्प है कि 20वीं सदी ने जहां मध्यकालीन बर्बरता से लेकर दो विश्व युद्ध देखे, वहीं गांधी, मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला जैसे महापुरुष भी देखे, जिनके संघर्ष में धैर्य और प्रतिरोध मानवीयता की सीमा का कहीं भी उल्लंघन नहीं करते हैं। यह अलग बात है कि 21वीं सदी की दुनिया ने खुद को रफ्तार और तकनीक की स्पर्धा में इस तरह लगा दिया कि उसने इन विभूतियों को स्मरणीय तो बनाए रखा पर इनके अनुकरण की लीक छोटी पड़ती गई। मंडेला निश्चय ही गांधीवादी परंपरा के बड़े नायक रहे। उनके संघर्ष ने साम्राज्यवाद और नस्लभेद की चूलें हिला दीं। दक्षिण अफ्रीका आज अगर विश्व के बाकी देशों के साथ बैठकर विकास और समृद्धि की बात कर रहा है तो निस्संदेह इसके पीछे उनके प्रिय नेता ‘मदीबा’ का तीन दशक से भी लंबा संघर्ष है। नस्लवाद साम्राज्यवाद का ऐतिहासिक तौर पर सबसे कारगर औजार रहा है। जब गांधी दक्षिण अफ्रीका में थे तो रंगभेदी घृणा के वे खुद शिकार हुए थे। दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए इस घृणा और हिंसा के खिलाफ लोगों को जागरूक करने और संगठित संघर्ष शुरू करने का पहला श्रेय गांधी को ही है। बाद में संघर्ष की इस विरासत ने वहां एक राष्ट्रीय आंदोलन की शक्ल ली। मंडेला को इस बात का श्रेय जाता है कि दबे-सताए लोगों को संघर्ष की
नेल्सन मंडेला दिवस (18 जुलाई) पर विशेष राह पर आगे बढ़ाने और फिर निर्णायक सफलता हासिल करने तक हौसले का जज्बा बनाए रखना कितना जरूरी है, यह सीख उन्होंने अपने आचरण से दी। इस तरह का सकर्मक नायकत्व हासिल करना बड़ी उपलब्धि है। 27 साल का जीवन जेल की सलाखों के पीछे बिताने के बावजूद अपने संघर्ष की अलख जलाए रखना कोई मामूली बात नहीं है। 1990 में जब वे जेल से रिहा हुए तो देखतेदेखते दुनिया के हर हिस्से में अन्याय के खिलाफ संघर्ष और क्रांतिकारी-वैचारिक गोलबंदी के जीवित प्रतीक बन गए। ऐसे दौर में जब दुनिया भले कहने को एक छतरी में खड़ी हो पर लैंगिक और नस्ली
‘
भावुक क्षण
सुलभ स्वच्छ भारत’ के 10-16 जुलाई, 2017 के अंक में प्रकाशित खबर, ‘प्रणब दा मेरे लिए पिता की तरह’ पढ़ने को मिला। दरअसल, प्रधानमंत्री का राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से अपने रिश्ते से जुड़े अनुभव का साझा करना भावुक क्षण है। राष्ट्रपति श्री मुखर्जी पुराने अनुभवी राजनेता रहे हैं। राष्ट्रपति बनने से पहले वे कई प्रधानमंत्रियों के साथ काम कर चुके हैं। वे विभिन्न मंत्रालयों को भी संभाल चुके हैं। लिहाजा उन्हें बखूबी पता है कि प्रधानमंत्री का पद कई महती दायित्वों वाला है। मोदी की नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक कुशलता की प्रशंसा सभी करते हैं। प्रधानमंत्री के लगातार दौरों के आलोक में राष्ट्रपति का
विभेद से लेकर मानवाधिकार हनन तक के मामले हमारी तमाम तरक्की और उपलब्धि को सामने से मुंह चिढ़ाते हैं, संघर्ष के प्रतीकों और नायकों का बने और टिके रहना बहुत जरूरी है। वैसे गांधी और मंडेला के बीच तमाम साम्य के बावजूद कुछ मौलिक भेद भी हैं। गांधी जिस तरह के 'सत्यान्वेषी’ रहे, उसमें सत्य-प्रेम और करुणा की साझा पहली शर्त है। इसकी अवहेलना करके गांधीवादी मूल्यों की बात नहीं की जा सकती। अलबत्ता, गांधी के कई अध्येताओं ने भी जरूर यह कबूला है कि यह ऐसा आदर्शवाद है, जिसे मानवीय दुर्बलताओं के बीच एक प्रवृत्ति की शक्ल देना कोई साधारण बात नहीं है। मंडेला के यहां गांधी का धैर्य और अटूट संघर्ष तो है पर वे साधन और साध्य की शुचिता के मामले में गांधी से थोड़े अलग खड़े दिखाई पड़ते हैं। वे इस बारे में कोई बड़ी दार्शनिक या सैद्धांतिक रेखा भी नहीं खींचते हैं, जैसा कि गांधी ने अपनी पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ और सत्याग्रह के सतत प्रयोग के माध्यम से खींचे। गांधी जिस रास्ते पर चले, उस पर चलने वाले वे संभवत: अकेले पथिक थे। मंडेला ने इस लीक को निश्चित रूप से इकहरा और कमजोर होने से बचाया, पर वे इसे आगे नहीं ले जा सके। कह सकते हैं कि गांधी का सत्य और उसका प्रयोग अब भी अहिंसक संघर्ष और जीवन रचना के प्रति आस्था रखने वालों के लिए सबसे बड़ा आदर्श है, सबसे बड़ी प्रेरणा है। कमाल की बात यह है कि यह आदर्श और प्रेरणा सिर्फ गांधी के वचनों और शब्दों में नहीं, उनके पूरे जीवन में दिखाई पड़ती है।
उनके स्वास्थ्य की चिंता करना, बड़े पदों पर बैठे लोगों के व्यवहार और शिष्टाचार को दिखलाता है। विनीत प्रभाकर, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
इन्हें अब चाहिए शौचालय
‘सुलभ स्वच्छ भारत’ का अंक समय से मिल रहा है। यह पत्र मैं हालिया अंक को पढ़कर लिख रहा हूं। इस अंक के ज्यादातर लेख पसंद आए, लेकिन ‘स्वच्छता की मुहिम में जुटीं महिलाएं’ ने खास तौर पर प्रभावित किया। खबर को पढ़कर पता लगता है कि बिहार ही नहीं, देश के दूसरे राज्यों में भी महिलाएं स्वच्छता जैसे अहम मामले में काफी सक्रिय हैं। प्रेमशंकर चतुर्वेदी, सीवान, बिहार
18 संगठन
17 - 23 जुलाई 2017
संघ परिवार
लक्ष्य एक कार्य अनेक संघ की शाखा से देशभक्ति, अनुशासन तथा अपने समाज के प्रति अपनेपन का पाठ पढ़ने वाले स्वयंसेवक देश और समाज के तमाम क्षेत्रों में सक्रिय हैं
पां
एसएसबी ब्यूरो
च तरुणों से शुरू होने वाली संघ की शाखा का विस्तार आज दुनिया के पचास से ज्यादा देशों तक हो गया है। यह चमत्कार संघ के स्वयंसेवकों की त्याग, तपस्या और बलिदान के चलते ही हो सका है। आज देशविदेश के अनेक विश्वविद्यालयों में संघ पर शोध हो रहे हैं। संघ की साधारण-सी दिखने वाली शाखा से अद्भुत व्यक्तित्व पैदा हुए हैं। शाखा से प्रेरणा प्राप्त स्वयंसेवकों पर संघ को ही नहीं, पूरे देश को गर्व है। सामान्य किसान-मजदूर से लेकर प्रधानमंत्री तक संघ के स्वयंसेवक हैं और सभी अपनी सेवाएं राष्ट्र को समर्पित कर रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं कि संघ के स्वयंसेवक अपनी प्रतिभा, कठोर परिश्रम एवं ईमानदारी के चलते लोगों के प्रेरणा-स्रोत बने हुए हैं। संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार कहते थे कि संघ कुछ नहीं करेगा, संघ केवल शाखा चलाएगा यानी संघ व्यक्तित्व निर्माण करेगा और स्वयंसेवक सब कुछ करेगा। संघ की शाखा से देशभक्ति,
अनुशासन तथा अपने समाज के प्रति अपनेपन का पाठ पढ़नेवाले स्वयंसेवक देश और समाज के तमाम क्षेत्रों में सक्रिय हैं। यहां हम उन संगठनों की संक्षिप्त जानकारी दे रहे हैं, जो संघ के स्वयंसेवकों द्वारा संचालित होते हैं और संघ परिवार का हिस्सा हैं।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद
देश के विद्यार्थियों की अथाह ऊर्जा को एकजुट कर उसे राष्ट्र के सर्वांगीण विकास और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के मार्ग पर अग्रसर करने के लिए 23 जून 1948 को कुछ स्वयंसेवकों ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना की। आज यह देश का सबसे बड़ा गैर राजनीतिक छात्र संगठन है। परिषद अपने अनुशासन, दायित्व बोध, नैतिक बोध, सक्रियता और रचनात्मक कार्यों के लिए विख्यात है।
राष्ट्र सेविका समिति
देश की महिला शक्ति के मनो-बौद्धिक, शारीरिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक उत्थान के साथ उन्हें भी राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में सहभागी बनाने के उद्देश्य से श्रीमती लक्ष्मीबाई केलकर ने संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार से परामर्श कर 1936 में विजयदशमी के दिन ‘राष्ट्र सेविका समिति’ की स्थापना की। इस समय समिति की देश-विदेश में 500 से अधिक शाखाएं तथा लाखों सेविकाएं हैं।
विद्या भारती
भारतीयता एवं राष्ट्र भक्ति से ओतप्रोत सर्वांगीण शिक्षा देने के लिए 1951 में प्रथम सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना गोरखपुर में की गई। प्रांत में अन्य विद्यालयों के संचालन के लिए 1958 में उत्तर प्रदेश
संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार कहते थे कि संघ कुछ नहीं करेगा, संघ केवल शाखा चलाएगा यानी संघ व्यक्तित्व निर्माण करेगा और स्वयंसेवक सब कुछ करेगा
एक नजर
23 जून 1948 को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना
वनवासियों की सेवा के लिए 1952 में वनवासी कल्याण आश्रम स्थापित 1936 में विजयदशमी के दिन राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना
की शिशु शिक्षा प्रबंध समिति का गठन हुआ। इसी प्रकार अन्य प्रांतों में भी कार्य प्रारंभ हुए। अखिल भारतीय स्तर पर सभी प्रांतीय समितियों के मार्गदर्शन के लिए विद्या भारती की 1977 में स्थापना हुई। आज विद्या भारती में शिशु वाटिकाओं एवं संस्कार केंद्रों सहित 25 हजार से अधिक शिक्षण संस्थाएं, 2,50,000 आचार्य और 25 लाख से अधिक विद्यार्थी हैं। सरकार के बाद यह देश का सबसे बड़ा शिक्षा संगठन है।
17 - 23 जुलाई 2017
अखिल भारतीय शिक्षण मंडल
शिक्षा क्षेत्र में भारतीय जीवन मूल्यों की स्थापना और राष्ट्र विरोधी प्रवृत्तियों के प्रतिरोध के लिए अखिल भारतीय शिक्षण मंडल का गठन किया गया। शिक्षकों का यह संगठन भारतीय परिवेश में आवश्यक शिक्षा के लिए शिक्षक और सरकार की भूमिका को लेकर अनेक कार्यशालाअों, गोष्ठियों और शोध कार्य का संचालन करता है।
संस्कृत भारती
देववाणी संस्कृत को फिर से जन-जन की भाषा बनाने के लिए संस्कृत भारती कार्य कर रही है। संस्कृत संभाषण शिविर, पत्राचार द्वारा संस्कृत प्रशिक्षण तथा संस्कृत ललित साहित्य सृजन आदि माध्यमों से निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है।
भारत विकास परिषद
देश के उद्यमी और संपन्न वर्ग को राष्ट्र सेवा कार्य से जोड़ने और भारतीय जीवन मूल्यों की रक्षा में प्रवृत्त करने के लिए 1963 में डॉ. सूरज प्रकाश और लाला हंसराज गुप्त ने भारत विकास परिषद की स्थापना की। संपर्क, सहयोग, संस्कार, सेवा और समर्पण के पांच सूत्रों पर आधारित परिषद की आज 1200 शाखाएं, 54 हजार परिवार और एक लाख 8 हजार सदस्य हैं।
राष्ट्रीय सेवा भारती
वंचित बस्तियों में रहने वाले आर्थिक दृष्टि से पिछड़े और उपेक्षित बंधुओं की सेवा और उत्थान के लिए संघ में सेवा विभाग बनाया गया है। स्वयंसेवकों के प्रयास से सेवा भारती के द्वारा एक लाख के लगभग सेवा कार्य चलाए जा रहे हैं। बाल संस्कार केंद्र, सिलाई केंद्र, नियमित स्वास्थ्य सेवा के लिए मोबाइल वैन, कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र आदि द्वारा इस वर्ग में आर्थिक स्वावलंबन और संस्कार देने का महत्वपूर्ण कार्य किया जा रहा। कुंवारी माताओं द्वारा छोड़ दिए बच्चों के लिए मातृछाया जैसे कई अभिनव प्रकल्प चलाए जा रहे हैं।
दीनदयाल शोध संस्थान
पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुण्य स्मृति में 1972 में नानाजी देशमुख ने दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की। बौद्धिक क्रियाकलापों के अलावा ग्राम
विकास के कार्य इस संस्थान की प्रमुख गतिविधियां है। उत्तर प्रदेश के गोंडा, चित्रकूट तथा अोडिशा और बिहार के भी एक-एक जिले में समग्र ग्राम विकास के प्रकल्प चल रहे हैं। मध्य प्रदेश के सतना में बना चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय इस संस्थान का विशिष्ट प्रकल्प है।
विश्व हिंदू परिषद
हिंदू समाज के विश्व भर में फैले सभी मत-संप्रदायों में एकता स्थापित कर संपूर्ण समाज को सुसंगठित, एकात्म और वास्तविक अर्थ में धर्म-प्रवण बनाने के उद्देश्य से संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी की प्रेरणा से वर्ष 1965 में जन्माष्टमी के अवसर पर अनेक महाविभुतियों के सानिध्य में स्थापना हुई।
वनवासी कल्याण आश्रम
दुर्गम वनों और तीर्थ क्षेत्रों में आधुनिक विकास से दूर, साधनहीन जीवन जी रहे वनवासियों की सेवा करते हुए उन्हें उन्नति के मार्ग पर अग्रसर कर देश की मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य से वर्ष 1952 में वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना की गई। देश के कोने-कोने में 12,000 के लगभग सेवा कार्यों के द्वारा वनवासी कल्याण आश्रम आज वनवासियों की आशा का केंद्र बन चुका है।
विज्ञान भारती
भारतीय ज्ञान विज्ञान की पुन: प्रतिष्ठा और स्वदेशी विज्ञान एवं प्रोद्यौगिकी के विकास के लिए यह वैज्ञानिकों की संस्था है। देश में सुपर कंप्यूटर के निर्माण से जुड़े डॉ. विजय भाटकर वर्तमान में विज्ञान भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।
पूर्व सैनिक सेवा परिषद
पूर्व सैनिकों के पुनर्वास में सहायता करने तथा उनकी देशभक्ति, अनुशासन और दक्षता का उपयोग देश ॔अौर समाज सेवा में करने को समर्पित संगठन है।
क्रीड़ा भारती
अगर आप खेल में रुचि रखते हैं तो आपके लिए समाज सेवा के लिए क्रीड़ा भारती एक अच्छा विकल्प हो सकता है। तीन दिसंबर 1992 को पुणे में स्थापित क्रीड़ा भारती का उद्देश्य खेल संस्कृति का विकास, खेल संगठनों में समन्वय, भारतीय खेलों,
संगठन
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देश के उद्यमी और संपन्न वर्ग को राष्ट्र सेवा कार्य से जोड़ने और भारतीय जीवन मूल्यों की रक्षा में प्रवृत्त करने के लिए 1963 में भारत विकास परिषद की स्थापना की गई सूर्य नमस्कार, योगासन, भारतीय व्यायाम पद्धति को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ खिलाड़ियों में राष्ट्रीय भावना जगाना है।
अखिल भारतीय सहकार भारती
साहित्यिक क्षेत्र में भारतीय अस्मिता और सांस्कृतिक चेतना को प्रोत्साहन देकर राष्ट्रीय विचारधारा को प्रभावी भूमिका में लाने के लिए 1996 में अखिल भारतीय साहित्य परिषद की स्थापना हुई। साहित्य परिषद भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों के लिए संयुक्त मंच प्रदान करता है। आज साहित्य परिषद से उदीयमान साहित्यकार से लेकर अनेक प्रसिद्ध साहित्यकार जुड़े हैं।
अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत
देश की न्याय-प्रणाली में भारतीय संस्कृति के अनुरूप सुधार करवाने और प्रभावी न्यायप्रक्रिया के निर्माण का कार्य करने के लिए बना विधिवेत्ताओं का संगठन है अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद।
प्रज्ञा प्रवाह
अखिल भारतीय साहित्य परिषद
अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद
उत्पादक, वितरक और ग्राहक के संबंधों का समन्वय कर सहकारिता द्वारा अर्थ व्यवस्था को पुष्ट करने के लिए बनाई गई संस्था है। ग्राहकों का प्रबोधन और संगठन कर अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए बनाई गई संस्था है।
लघु उद्योग भारती
भारतीय अर्थ आवश्यकताओं के लिए उपयुक्त लघु उद्योगों की कठिनाइयों को दूर कर उन्हें सफल बनाने में सहायता देने के लिए लघु उद्योग भारती की स्थापना की गई। वैचारिक आंदोलन को राष्ट्रीय रंग में रंगने के लिए बुद्धिजीवियों के लिए एक प्रभावी मंच है। प्रज्ञा प्रवाह के मार्गदर्शन में देश में अलग-अलग नामों से मंच सक्रिय है। पंजाब में पंचनद शोध संस्थान कार्य कर रहा हैं।
20 संगठन
17 - 23 जुलाई 2017
सीमा जागरण
राजस्थान में वर्ष 1985 में सीमावर्ती क्षेत्र के ग्रामों में जन जागरण से प्रारंभ और वर्ष 2000 में अखिल भारतीय स्वरूप पाने वाला यह संगठन सीमा क्षेत्र में रहने वाले लोगों में राष्ट्र की सुरक्षा हेतु जन जागरण के कार्य में प्रमुखता से लगा है। पंजाब में यह संगठन सरहदी लोक सेवा समिति नाम से चल रहा है।
स्वदेशी जागरण मंच
वैश्वीकरण के नाम पर आर्थिक साम्राज्यवाद थोपने के विदेशी षड्यंत्रों से राष्ट्र समाज को सचेत करके स्वदेशी के प्रति प्रेम जागृत करने वाला यह मंच विभिन्न आर्थिक मुद्दों पर काफी सक्रिय है।
भारतीय मजदूर संघ
पूंजीपतियों के स्वार्थ पर आधारित व्यवस्था के विरोध में खड़े श्रमिकों और उनके नेताओं के स्वार्थ पर ही केंद्रित संगठनों के स्थान पर, उद्योग से जुड़े सभी लोगों के संयुक्त औद्योगिक परिवार के हितों व राष्ट्र हित को समर्पित भारतीय मजदूर संघ की स्थापना 23 जुलाई 1955 को हुई। संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं चिंतक दत्तोपंत ठेंगडी इस संगठन के संस्थापक थे। अधिकार के साथ कर्तव्य को भी जोड़ने वाला, भगवा झंडा को अपनाने वाला और विश्वकर्मा जयंती को श्रमिक जयंती के रूप में मनाने वाला भारतीय मजदूर संघ देश का सबसे बड़ा श्रमिक संगठन है। इसकी सदस्य संख्या एक करोड़ से भी अधिक है।
भारतीय किसान संघ
राष्ट्र हित के साथ किसान हित की रक्षा और कृषक संगठन के स्थापित संस्था जो किसानों के सर्वांगीण विकास के लिए प्रयत्नशील है। इस समय इसके 8 लाख सदस्य हैं।
भारतीय इतिहास संकलन योजना
बाबा साहिब आप्टे स्मारक समिति द्वारा संचालित प्रकल्प भारतीय इतिहास संकलन योजना भारत के गत 5000 वर्ष के तथ्यपरक इतिहास के शोधन एवं लेखन को समर्पित है। महाभारत की कालगणना और सरस्वती नदी के विलुप्त प्रवाह का अनुसंधान समिति के विशेष कार्यों में से एक है।
राष्ट्रीय सिख संगत
दशम गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी की भावना- ‘जगे धर्म हिंदू, सकल भंड भाजे...’ के अनुरूप सिख समुदाय की शेष हिंदू समाज से एकता-एकात्मता पुष्ट करने में लगा समर्पित संगठन है।
शिला पर स्वामी विवेकानंद का भव्य स्मारक बनाने के लिए गठित विवेकानंद जन्म शताब्दी समारोह समिति से ही विवेकानंद केंद्र की स्थापना की प्रक्रिया वर्ष 1963 में शुरू हो गई थी। विवेकानंद केंद्र देश के कोने-कोने में (विशेषकर उत्तर-पूर्वांचल में) चरित्र निर्माण, संस्कार जगाने और अनेक प्रकार के रचनात्मक कार्यों में संलग्न है।
आरोग्य भारती
का पहला संगठन वर्ष 1949 में प्रारंभ हुआ। समाचार जगत में प्रभावी भूमिका निभाने के बाद वर्ष 1975 में आपातकाल के समय बंद हो गया। पुन: सन 2000 में शुरू किया गया।
ग्राम विकास
हरिद्वार में वर्ष 1992 में स्थापना। शिक्षा के लिए शिक्षक और उनके लिए शिक्षक संगठन। शिक्षकों की मांगों के लिए संघर्ष करने के साथ-साथ उनके सर्वांगीण विकास के लिए अनेक कार्यक्रमों के साथ कार्यरत है।
भोपाल में वर्ष 2004 में स्थापना है। स्वास्थ्य चेतना जागरण, आरोग्य शिक्षण, आरोग्य संवर्धन, रोग प्रतिबंधन तथा भारत में प्रचलित सभी प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों में आरोग्य के भारतीय चिंतन का जागरण हुआ। मंदिर व ग्राम देवता के आधार पर आत्मीय और एकरस समाज भाव निर्माण करना, ग्राम के प्रति अपनत्व, मिट्टी, जल, पशु-पक्षी आदि के संरक्षण हेतु नागरिक कर्तव्य व प्रकृति के संसाधनों के उपयोग का ज्ञान के साथ ग्राम स्वच्छता, जैविक खेती और गाय को आधार बनाकर ग्रामवासियों द्वारा ग्राम विकास का लक्ष्य पूरा करने में लगा संगठन है ग्राम विकास।
प्रकाशन
राष्ट्र विरोधी तत्वों की घुसपैठ, तोड़फोड़, अराजकता और उपद्रव इत्यादि गतिविधियों पर सतर्क दृष्टि रखने के लिए विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग मंच बनाए गए हैं। तमिलनाडु में हिंदू मुन्नानी, दिल्ली में हिंदू जागरण मंच और महाराष्ट्र में हिंदू एकजुट मंच आदि है।
किसी समय बिना कागज-कलम के कार्य करने वाले स्वयंसेवक आज कई बड़े और प्रतिष्ठित प्रकाशन चला रहे हैं। वर्ष 1947 की जुलाई में दीनदयाल उपाध्याय जी ने अटल बिहारी वाजपेयी को साथ लेकर मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म’ का प्रारंभ किया। बाद में ‘पाञ्चजन्य’ तथा ‘आॅर्गनाइजर’ साप्ताहिक शुरू हुए। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार का राष्ट्र उपयोगी साहित्य के प्रकाशन प्रारंभ हुए। सुरुचि प्रकाशन (दिल्ली), लोकहित प्रकाशन (लखनऊ), अर्चना प्रकाशन (भोपाल) एवं भारत भारती प्रकाशन (नागपुर) आदि अनेक प्रकाशन संस्था कार्य कर रही हैं।
कन्याकुमारी के पास समुद्र के बीच विवेकानंद
हिंदी व विभिन्न प्रांतीय भाषाओं में समाचार संकलन
हिंदू जागरण मंच
विवेकानंद केंद्र
आज विद्या भारती में शिशु वाटिकाओं एवं संस्कार केंद्रों सहित 25 हजार से अधिक शिक्षण संस्थाएं, 2,50,000 आचार्य और 25 लाख से अधिक विद्यार्थी हैं। यह देश का सबसे बड़ा शिक्षा संगठन है
हिंदूस्थान समाचार
अखिल भारतीय शैक्षिक महासंघ
नेशनल मेडिकोज ऑर्गनाइजेशन
गो सेवा एवं संवर्धन
गाय हमारे समाज में श्रद्धा एवं कृषि व रोजगार का आधार रही है। आधे-अधूरे भारतीय ज्ञान तथा पश्चिम के अंधानुकरण के आधार पर बनी योजनाओं के कारण गाय को हमने लगभग समाप्त ही कर दिया। आज भारत में गाय की बहुत सारी नस्लें ही लुप्त हो गई हैं। इस परिस्थिति में सब समस्याओं से मुक्ति के लिए जन जागरण और प्रशिक्षण द्वारा गोभक्त, गोसेवक, गोपालक और गोरक्षक खड़े करना तथा गो आधारित जैविक कृषि, पञ्चगव्य चिकित्सा व रोजगार आदि से स्वावलंबन लेने की दिशा में प्रयत्नशील है।
चिकित्सकों को समाज सेवा के लिए प्रेरित करने के लिए वर्ष 1997 में प्रारंभ। सेवा बस्तियों तथा वनवासी क्षेत्रों में चिकित्सा सेवा प्रदान करने के साथ स्वास्थ्य संबंधी मार्गदर्शन करना दूसरा लक्ष्य है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के छात्रों के मन में स्वदेशी भाव जागृत करने पर बल दिया जाता है।
परिवार प्रबोधन
चांपा (छत्तीसगढ़) में वर्ष 1962 में कुष्ठ रोगियों की सेवा एवं पुनर्वास के लिए प्रारंभ। पंजाब में कोटकपुरा में निरोग बाल आश्रम सेवारत है।
समाज में शक्ति, सामंजस्य एवं एकात्मता के लिए समरसता की आवश्यकता रहती है। समरसता केवल कानून से नहीं आती। समरसता के लिए सामाजिक मानसिकता, अपनत्व का भाव जागरण तथा हम सब एक भारतमाता के पुत्र होने के कारण सगे भाई-बहन हैं। इसकी अनुभूति करना सामाजिक समरसता का प्रमुख कार्य है।
भारतीय कुष्ठ निवारक संघ
सक्षम
‘सक्षम’ अर्थात समदृष्टि क्षमता विकास एवं अनुसंधान मंडल की मान्यता है कि विकलांग परिवार का अंग है, समाज पर बोझ नहीं। अगर उनको अपनी योग्यता, प्रतिभा तथा क्षमता दिखाने का अवसर मिले तो वे भी स्वावलंबी बन कर राष्ट्र और समाज सेवा में अपना योगदान कर सकते हैं। वर्ष 1997 से ‘दृष्टिहीन कल्याण संघ’ के नाम से कार्य करने के बाद 20 जून 2008 को ‘सक्षम’ नाम से नागपुर में स्थापना हुई।
हिंदू संस्कृति सनातन और शाश्वत है। अपनी संस्कृति के इस अनोखे सामर्थ्य के अनेक कारणों में हमारी परिवार व्यवस्था भी प्रमुख कारण है। अपने परिवार की व्यवस्था तथा समाज व्यवस्था सक्षम और सुदृढ़ हो, इसी उद्देश्य को लेकर यह विभाग सक्रिय है।
सामाजिक समरसता
धर्म जागरण विभाग
अपने देश में मतांतरण की समस्या हिंदू समाज के अस्तित्व से जुड़ी है। संभावित मतांतरण से हिंदू समाज को बचाना, मतांतरित बंधुओं को वापस हिंदू समाज में लाना धर्म जागरण विभाग का उद्देश्य है।
17 - 23 जुलाई 2017
सम्मान
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‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी : द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’
समर्पित टीम का सम्मान
सुशील गोयल कर्नल (सेवानिवृत) जयबंस सिंह अनीता अग्रवाल
आरती अरोड़ा
‘न
शिश धर तरुण शर्मा
रें द्र दामोदरदास मोदी : द मे कि ं ग ‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी : द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ के लोकार्पण के अवसर ‘नरें द्र दामोदरदास मोदी : द मे कि ं ग ऑफ ए लीजें ड ’ नामक सचित्र ऑफ ए लीजें ड ’ के लोकार्पण के अवसर पर पुस्तक के लेखन और प्रकाशन में सहायता करने वाले सदस्यों जीवनी प्रसिद्ध समाजशास्त्री तथा सु ल भपर पु स ्तक के ले ख न और प्रकाशन में स्वच्छता एवं सामाजिक सु ध ार-आं द ोलन सहायता करने वाले सदस्यों रिटायर्ड रिटायर्ड कर्नल जयबंस सिंह, सुशील गोयल को मोहन भागवत के सं स ्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक की कर्नल जयबं स सिं ह , सु शी ल गोयल को और अमित शाह द्वारा गोल्ड मेडल देकर सम्मानित किया गया दू र दृष्टि का ही प्रतिफल है , जिससे श्री नरें द्र मोहन भागवत और अमित शाह द्वारा मे ड ल दामोदरदास मोदी के जीवन का आरं भ से हर नागरिक के लिए प्रेरणादायी है । अं ग्रे ज ी सिं ह सहित अने क सहायक अनु सं ध ानकर्ता, दे क र सम्मानित किया गया। इसके साथ ही ले क र अब तक का इतिहास इस प्रकार में लिखित इस सचित्र ग्रं थ के निर्माण के ले ख क, डिजाइनर, प्रकाशक तथा निर्माता डॉ. पाठक और श्रीमती अमोला पाठक ने लिखा जा सका, जिससे आने वाली पीढ़ियों विभिन्न पहलु ओं पर बारीक नजर रखने के शामिल हैं , जिन्होंने कठिन परिश्रम तथा टीम के अन्य सदस्यों आरती अरोड़ा, तरुण को प्रेरणा मिले । एक सामान्य जन से व क के लिए डॉ. पाठक ने विशे ष ज्ञों की एक समर्पित निष्ठा से ‘नरें द्र दामोदरदास मोदी : शर्मा, अनीता अग्रवाल और शिश धर को दे श के प्रधान से व क बनने की पू र ी प्रक्रिया टीम तै य ार की ओर उसका मार्गदर्शन किया। द मे कि ं ग ऑफ ए लीजें ड ’ नामक 10 हजार का चे क और शॉल दे क र सम्मानित दे श के यु व ाओं के लिए ही नहीं , बल्कि । इस टीम में कर्नल (से व ानिवृ त ) जयबं स सचित्र जीवनी तै य ार की। किया ।
22 महोत्सव
17 - 23 जुलाई 2017
भय्यूजी ने सबका साथ दिया, सबका विकास किया: नजमा हेपतुल्ला श्री सद्गुरु दत्त धार्मिक एवं पारमार्थिक ट्रस्ट द्वारा आयोजित गुरु पूर्णिमा महोत्सव इस वर्ष संकल्पपूर्ति एवं संकल्प प्रतिबद्धता दिवस के रूप में मनाया गया
एक नजर
केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री जनरल वीके सिंह ने की सराहना
भय्यूजी के मंच पर सभी धर्मों के लोग होते हैं : शाहनवाज हुसैन
संत-वसंत में काफी समानता: सुशील कुमार, अंतरराष्ट्रीय पहलवान
भ
एसएसबी ब्यूरो
य्यूजी महाराज जैसे नौजवान संत ने इतनी कम उम्र में जिस तरह के विकास कार्य किए हैं, वह प्रशंसा का विषय है और इसके लिए में उन्हें कोटि-कोटि नमन करती हूं। यह उद्गार मणिपुर की राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला ने श्री सद्गुरु दत्त धार्मिक एवं पारमार्थिक ट्रस्ट द्वारा आयोजित इंदौर के लाभ गंगा गार्डन में गुरु पूर्णिमा महोत्सव का उद्घाटन करते हुए व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि जिस तरह हमारे प्रधानमंत्री `सबका साथ, सबका विकास' की बात करते हैं, ठीक उसी तरह भय्यूजी ने भी सबका साथ भी दिया और सबका विकास भी किया। हेपतुल्ला ने कहा कि भय्यू महाराज ने मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं गुजरात में विशिष्ट कार्य किए हैं, जहां से मेरा व्यक्तिगत संबंध है। भय्यूजी महाराज ने बहुत ही कम उम्र में बड़े बड़े काम किए हैं। अपने उद्बोधन में केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री जनरल वी के सिंह ने कहा कि आध्यात्मिक प्रवचन तो बहुत लोग देते हैं, लेकिन भय्यूजी की जो सिद्धि है वो सेवा कार्यों के माध्यम से सिद्ध होती है। ऐसे संत कम हैं जो नदियों को पुनर्जीवन प्रदान करें। उन्होंने कहा कि गुरु का प्रकाश हमें हमेशा मार्ग दिखाता है। गुरु द्वारा सकारात्मकता का भाव शिष्य में किया जाता है। इस अवसर पर राष्ट्र संत डॉ. भय्यूजी महाराज ने कहा कि गुरु पूर्णिमा आशा, आकृति, कल्पना, विचार की तरह सामने आती है। इसे हम गुरु के रूप में देखते हैं। हमारे सामने ऐसी ही आकृति मां के रूप में पहली बार सामने आती है, जो उत्पत्ति से विरक्ति और विरक्ति से मुक्ति की और ले जाती है। वह कार्य गुरु ही करता है। ऐसी ही प्रथम गुरु वंदनीय मां होती हैं। भाजपा राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि भय्यूजी महाराज के मंच पर सभी धर्मों के लोग
इस अवसर पर अतिथियों द्वारा सूर्योदय छात्रवृत्ति योजना अंतर्गत 7500 छात्र-छात्राओं को किट वितरण के अलावा कई कल्याणकारी योजनाओं का शुभारंभ होते हैं, यही असली धर्म है, यही असली मजहब है। अंतर्राष्ट्रीय पहलवान सुशिल कुमार ने कहा कि संत और वसंत में काफी समानता होती है, वसंत जब आता है तो प्रकृति खिल उठती है, उसकी प्रकार एक सच्चे संत के हमारे जीवन में प्रवेश से हमारे व्यक्तित्व में एक नया संचार होता है। सदगुरु डॉ. भय्यूजी महाराज प्रणित श्री सदगुरु दत्त धार्मिक एवं पारमार्थिक ट्रस्ट द्वारा आयोजित गुरु पूर्णिमा महोत्सव इस वर्ष संकल्पपूर्ति एवं संकल्प प्रतिबद्धता दिवस के रूप में मनाया गया। गुरु पूर्णिमा महोत्सव के गरिमामय समारोह में विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावा, आध्यात्मिक संत भय्यूजी महाराज के जीवन पर लिखित पुस्तक `सार' का विमोचन उपस्थित अतिथियों द्वारा किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत संध्या 4 बजे मणिपुर की राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला एवं केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री जनरल वी के सिंह तथा उपस्थित अन्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से हुई। कार्यक्रम के प्रारम्भ में मंचासीन अतिथियों की अगुवाई में उपस्थित विशाल जन समूह द्वारा राष्ट्र संकल्प भाव प्रतिज्ञा अंतर्गत देश की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता को अक्षुण्ण रखने की सामूहिक
प्रतिज्ञा तथा राष्ट्र के प्रति दायित्व का संकल्प लिया गया। कार्यक्रम के दूसरे चरण में प्रसिद्ध लेखिका मल्लिका राजपूत द्वारा लिखित भय्यूजी महाराज के जीवन चरित्र पर आधारित पुस्तक - `सार' का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया। तत्पश्चात लेखक सुरेंद्र बंसल की प्रकृति के पंच तत्व पर आधारित पुस्तक पंच महाभूतस्य डॉ. श्री भय्यूजी महाराज का विमोचन हुआ। तत्पश्चात भय्यूजी महाराज एवं सूर्योदय परिवार द्वारा संकल्पपूर्ति एवं संकल्प प्रतिबद्धता के कार्यों पर आधारित लिखित पुस्तकों का विमोचन किया गया। इस कार्यक्रम में देश की कई राजनितिक हस्तियों, विभिन्न धर्म गुरुओं के अलावा खेल एवं फिल्म जगत की कई गणमान्य हस्तियां उपस्थित थीं, जिनमें प्रमुख थे बिहार के पूर्व राज्यपाल डी वाई पाटिल, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन, सांसद अनिल शिरोले, हिंदू विद्वान भूषण मा.साध्वी सरस्वती जी, अजमेर शरीफ के डॉ. पीर सैय्यद इरफान मोईन उस्मानी, अंतर्राष्ट्रीय पहलवान सुशील कुमार, फिल्म अभिनेता मिलिंद गुणाजी, मकरंद देशपांडे, मुकेश तिवारी, गोविन्द नामदेव, अजिंक्य देव, आचार्य प. रामकृष्ण शर्मा इत्यादि।
अपने उद्बोधनों में अतिथियों ने आध्यात्मिक संत डॉ. भय्यूजी महाराज के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करते हुए उनके द्वारा समाज एवं गरीबों, किसानों के हितों में चलाए जा रहे विभिन्न सामाजिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य एवं कृषि आधारित प्रकल्पों की सराहना करते हुए कहा कि उनके द्वारा समाज सुधार के क्षेत्र में किए गए प्रयासों से समाज के वंचित तबकों की दिशा एवं दशा में एक आमूल परिवर्तन आया है और इसके लिए उनकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा श्री सद्गुरु दत्त धार्मिक एवं पारमार्थिक ट्रस्ट द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न सामाजिक प्रकल्पों के अंतर्गत हितग्राहियों को लाभान्वित किया गया। इस अवसर पर अतिथियों द्वारा सूर्योदय छात्रवृत्ति योजना अंतर्गत 7500 छात्र-छात्राओं को किट वितरण, निर्धन एवं अल्पभूधारक 10,000 किसानों को बीज एवं 25,000 किसानों को जैविक खाद का वितरण तथा 25,000 आदिवासियों को कपड़े एवं 2,200 निर्धन महिलाओं में साड़ियों के वितरण का औपचारिक शुभारंभ किया गया। समारोह में `युगंधरा' की मूर्ति का लोकार्पण, कृषि पार्क, नॉन कन्वेंशन पार्क ऑन व्हील, मिट्टी व जल परीक्षण प्रयोगशालाएं एवं चलित प्रयोगशाला योजना इत्यादि का भी लोकार्पण किया गया। संध्या 8 बजे से लाभगंगा गार्डन में भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ जिसमें सुप्रसिद्ध सूफियाना कव्वाल असलम साबरी व यश वडाली के द्वारा सूफियाना कव्वाली कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का रसास्वादन देर रात तक लोगों ने किया। इससे पूर्व गुरु पूर्णिमा महोत्सव के अवसर पर भय्यूजी महाराज के स्थानीय सूर्योदय आश्रम पर सुबह 7 बजे से हवन का आयोजन हुआ। सुबह 8 बजे श्री कृष्ण सरस्वती महाराज का पाद्य पूजन की गई तथा प्रातः 9 बजे वृक्ष पूजन, गौ पूजन, पृथ्वी पूजन एवं देवी-देवताओं का पूजन विद्वान पंडितों की उपस्थिति में किया गया।
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Sulabh International Social Service Organisation, New Delhi is organizing a Written Quiz Competition that is open to all school and college students, including the foreign students. All those who wish to participate are required to submit their answers to the email address contact@sulabhinternational.org, or they can submit their entries online by taking up the questions below. Students are requested to mention their name and School/College along with the class in which he/she is studying and the contact number with complete address for communication
First Prize: One Lakh Rupees
PRIZE
Second Prize: Seventy Five Thousand Rupees Third Prize: Fifty Thousand Rupees Consolation Prize: Five Thousand Rupees (100 in number)
500-1000) ti on (W or d Li m it: ti pe m Co iz Qu en tt Qu es ti on s fo r W ri nounced? rt was ‘Swachh Bharat’ an Fo d be no open Re the m fro y da ich houses and there should the 1. On wh all in d cte ru nst co be by 2019, toilets should 2. Who announced that l. defecation? Discuss in detai Toilet? 3. Who invented Sulabh ovement? Cleanliness and Reform M 4. Who initiated Sulabh e features of Sulabh Toilet? ? 5. What are the distinctiv used in the Sulabh compost r ise til fer of ge nta rce pe d an 6. What are the benefits of the Sulabh Toilet? ’? 7. What are the benefits be addressed as ‘Brahmins to me ca g gin en av sc al nu discussing ople freed from ma If yes, then elaborate it by s? 8. In which town were pe ste ca r pe up of s me ho take tea and have food in the 9. Do these ‘Brahmins’ story of any such person. entions of Sulabh? 10. What are the other inv
Last
ritten Quiz Competition W of on si is bm su r fo te da
: September 30, 2017
For further details please contact Mrs. Aarti Arora, Hony. Vice President, +91 9899 855 344 Mrs. Tarun Sharma, Hony. Vice President, +91 97160 69 585 or feel free to email us at contact@sulabhinternational.org SULABH INTERNATIONAL SOCIAL SERVICE ORGANISATION In General Consultative Status with the United Nations Economic and Social Council Sulabh Gram, Mahavir Enclave, Palam Dabri Road, New Delhi - 110 045 Tel. Nos. : 91-11-25031518, 25031519; Fax Nos : 91-11-25034014, 91-11-25055952 E-mail: info@sulabhinternational.org, sulabhinfo@gmail.com Website: www.sulabhinternational.org, www.sulabhtoiletmuseum.org
24 नमन
17 - 23 जुलाई 2017
भारतीय भाल पर चमकता तिलक
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तिलक जयंती (23 जुलाई) पर विशेष
हिंदू राष्ट्रवाद के पिता कहे जाने वाले बाल गंगाधर तिलक एक साथ प्रखर राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और वीर स्वाधीनता सेनानी थे
एक नजर
एसएसबी ब्यूरो
रतीय स्वाधीनता संघर्ष ने देश को सिर्फ फिरंगी दासता से आजादी नहीं दिलाई, बल्कि राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र चरित्र की बुनियाद भी मजबूत की। जिन लाल-बाल-पाल की तिकड़ी का जिक्र स्वाधीनता संघर्ष में काफी प्रमुखता से होता है, उसकी खासियत यही थी कि वे स्वाधीनता के साथ देश को सांस्कृतिक तौर पर भी समृद्ध करने के प्रण के साथ आंदोलनरत थे। इस तिकड़ी में शामिल हैं-लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक और विपिनचंद्र पाल। ये तीनों महापुरुष देश में स्वराज और संस्कृति का साझा किस तरह विकसित कर रहे थे, इसकी ही मिसाल है कि लोकमान्य तिलक ने जहां गणेश उत्सव को राष्ट्रीयता का पर्व बना दिया, वहीं विपिनचन्द्र पाल ने दुर्गा पूजा और लाला लाजपत ने श्री रामलीला के जरिए देश में सांस्कृतिक एकता के सूत्र मजबूत किए। इन तीनों में लोकमान्य तिलक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता हुए। ब्रिटिश सत्ता उनके नाम से इतना खौफ खाती थी कि उन्हें ‘भारतीय अशांति के पिता’ के नाम से पुकारती थी। इसके उलट वे लोगों के बीच खासे लोकप्रिय और सम्मानित थे। देश की जनता ने ही उन्हें आदर से ‘लोकमान्य’ कहना शुरू किया था। लोकमान्य को हिंदू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है। दरअसल वे एक साथ एक प्रखर राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और एक स्वाधीनता सेनानी थे। तिलक ब्रिटिश राज के दौरान स्वराज की मांग सबसे सबसे पहले और मजबूती से उठाने वालों में थे। उनका मराठी में दिया गया नारा ‘स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच’ (स्वराज यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूंगा) बहुत प्रसिद्ध हुआ। जब तिलक मात्र एक साल के थे, वह समय भारतीय के लिए ऐतिहासिक क्षण था। भारत की आजादी की पहली लड़ाई हुई, जिसे 1857 की क्रांति के नाम से जाना जाता है। हालांकि उस समय तिलक बहुत छोटे थे परंतु इस क्रांति ने उनके बाल मन पर अमिट छाप छोड़ी। आगे चलकर तिलक ने देश की तत्कालीन परिस्थितियों पर बहुत गहरा चिंतन किया। उन्होंने महसूस किया कि यदि देश को गुलामी की वर्तमान अवस्था से बाहर निकालना है तो इसके लिए भारत की शिक्षा पद्धति में सुधार करना आवश्यक है, क्योंकि अंग्रेजों द्वारा जिस पद्धति के आधार पर भारतियों को शिक्षा दी जा रही है, वह केवल इतनी ही है जिससे अंग्रेज हम पर लंबे समय तक शासन कर सकें। तिलक ब्रिटिश प्रेरित भ्रष्ट और मूर्ख
जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले के चिकल गांव में स्वराज की मांग सबसे सबसे पहले और मजबूती से उठाने वाले नेता
‘केसरी’ और ‘मराठा’ के ऐतिहासिक प्रकाशन के संपादन में भूमिका
बनाने वाली शिक्षा के भारतीय मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभावों से पूरी तरह परिचित थे। इनका मानना था कि ब्रिटिशों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा पूर्व व पश्चिम की नस्लवादिता पर आधारित थी। इसीलिए उन्होंने सबसे पहले राष्ट्रीय शिक्षा पर बल दिया। एक सम्मानित शिक्षाविद के रूप में प्रसिद्ध महादेव गोविंद रानाडे का भी यही मानना था कि देश को जब तक आजाद नहीं कराया जा सकता तब तक कि इसके पास अमेरिका की तरह राष्ट्रीय शिक्षा पद्धति और राष्ट्रीय प्रेस न हों।
न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना
राष्ट्रीय शिक्षा की योजना को कार्यान्वित करने के लिए धन की आवश्यकता थी। इसके लिए जन-धन का प्रबंध करने का निश्चय किया गया। इसी बीच इनकी मुलाकात विष्णु शास्त्री चिपलूणकर से हुई। चिपलूणकर मराठी के प्रसिद्ध लेखक थे। 1873 में इन्होंने सरकारी शिक्षक के रुप में नौकरी कर ली। इसी बीच, इनके मन में अपने देश के युवाओं के हृदय में राष्ट्रीय चेतना जगाने की इच्छा हुई, जिसके लिए ये एक विद्यालय खोलना चाहते थे। जब गंगाधर
तिलक ने इन्हें अपनी राष्ट्रीय शिक्षा योजना के बारे में बताया तो ये तुरंत मदद करने के लिए तैयार हो गए। इस तरह तिलक ने आगरकर, चिपलूणकर, एम.बी. नामजोशी के सहयोग से जनवरी 1880 में पहले प्राइवेट स्कूल ‘न्यू इंग्लिश स्कूल’ की स्थापना की। इस स्कूल के संस्थापकों की प्रतिष्ठा के कारण आस-पास के जिलों के विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया। प्रारंभिक वर्षों में स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या 336 थी जो अगले 5 सालों में बढ़कर 1900 हो गई। चिपलूणकर और तिलक दोनों ही धार्मिक थे, लेकिन स्कूल के पाठ्यक्रम में कोई भी धार्मिक विषय शामिल नहीं किए गए। दोनों ही चाहते थे कि देश का प्रत्येक वर्ग (बच्चे, युवा, वृद्ध सभी) देश की वर्तमान परिस्थितियों को जानें। इस स्कूल ने पूना की सांस्कृतिक और राजनीतिक परिस्थितियों में एक नया इतिहास रचा था। 1882 में विलियम हंटर की अध्यक्षता में एजुकेशन कमीशन बंबई प्रेसीडेंसी में आया तो न्यू इंग्लिश स्कूल के कार्यकर्ताओं ने उनके मस्तिष्क पर बहुत गहरा प्रभाव छोड़ा। इस स्कूल के कार्यकर्ताओं के कार्य से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने भारतीयों
ब्रिटिश सत्ता तिलक के नाम से इतना खौफ खाती थी कि उन्हें ‘भारतीय अशांति के पिता’ के नाम से पुकारती थी। इसके उलट वे लोगों के बीच खासे लोकप्रिय और सम्मानित थे
की उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज स्थापित करने के लिए भी प्रेरित किया। सर विलियम हंटर ने न्यू इंग्लिश स्कूल की शिक्षा प्रणाली से प्रभावित होकर टिप्पणी की थी, ‘इस विद्यालय की प्रगति देखते हुए मैं निश्चित कह सकता हूं कि पूरे भारत में इसकी बराबरी करने वाला एक भी स्कूल मेरी नजर में नहीं आया। बिना किसी सरकारी सहायता लिए ये स्कूल सरकारी हाई स्कूल की न केवल बराबरी करेगा, बल्कि उससे प्रतियोगिता भी कर सकता है। यदि हम दूसरे देशों के स्कूलों से इसकी तुलना करें तो भी ये ही प्रथम आएगा।’
‘केसरी’ और ‘मराठा’
जब बाल गंगाधर तिलक ने बड़ौदा के महाराज मल्हार राव को भी अंग्रेज सरकार के सामने बेबस देखा तो उन्हें बहुत बड़ा धक्का लगा। ब्रिटिश सरकार ने महाराज मल्हार राव पर अभियोग लगाया कि उन्होंने रेजीडेंट कर्नल फेयर को जहर देने की कोशिश की है। इस अभियोग की जांच के लिए सरकार ने कमीशन नियुक्त की, जिसमें उन्हें दोषी ठहराकर राज्य से वंचित कर दिया और सारी संपत्ति भी जब्त कर ली। दूसरी घटना दिल्ली दरबार में घटित हुई, जिससे यह बिल्कुल साफ हो गया कि अंग्रेज भारतीयों के लिए क्या सोचते हैं। 1877-78 में एक ओर तो भारत में भयंकर अकाल के कारण लोग भूखे मर रहे थे, वहीं दूसरी ओर ब्रिटिशों ने दिल्ली में दरबार लगाकर ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को ‘केसर-ए-हिंद’ की उपाधि देकर भारत की साम्राज्ञी घोषित किया। अंग्रेजों के इस कार्य से भारतीयों के मन में क्रोध भर गया, जिसके परिणामस्वरूप महाराष्ट्र में बलवंत फाकड़े के नेतृत्व में विद्रोह हुआ, पर यह विद्रोह अंग्रेजों के दमन का शिकार हुआ। इन तीन प्रमुख घटनाओं ने तिलक को देश के स्वराज्य प्राप्ति के लिए नए सिरे से सोचने पर विवश कर दिया। वैसे यह स्पष्ट हो गया था कि सिर्फ क्रांति द्वारा ही अंग्रेजों की गुलामी से आजादी नहीं पाई जा सकती।
17 - 23 जुलाई 2017
इसके लिए लोगों को देश की वास्तविक परिस्थितियों से परिचित कराना अति आवश्यक हैं। अतः तिलक ने पत्र प्रकाशन करके लोगों को जागरूक करने का लक्ष्य बनाया। इस तरह तिलक ने अपने साथियों चिपलूणकर, नामजोशी और आगरकर के साथ समाचार पत्र निकालने का विचार किया। 1881 में समाचार पत्र के प्रकाशन के लिए आर्यभूषण प्रेस खरीदा गया। इस प्रेस में चिपलूणकर की निबंधमाला प्रकाशित होती थी। इसके 66वें अंक में लोगों को सूचना दी गई कि ‘केसरी’ और ‘मराठा’ दो समाचार पत्रों का प्रकाशन किया जाएगा। इसी अंक में इन दो समाचार पत्रों के प्रकाशन की नियमावली भी प्रकाशित की गई। तिलक के सहयोगियों-चिपलूणकर, आगरकर, गर्दे और बी.एम. नामजोशी के संयुक्त हस्ताक्षरों
के साथ ‘केसरी’ का घोषणापत्र प्रकाशित हुआ। इसमें कहा गया था कि इसमें अन्य पत्रों की भांति समाचार, राजनीतिक घटनाएं, व्यापार के साथ ही सामाजिक विषय पर निबंध, नई पुस्तकों की समीक्षा और इंग्लैंड की नई राजनीतिक घटनाओं की भी चर्चा की जाएगी। इस घोषणापत्र ने यह साफ कर दिया कि ये दोनों समाचार पत्र अन्य पत्रों की तरह प्रचलित शासन व्यवस्था की चापलूसी नहीं करेंगे। इन दोनों पत्रों की विषय सामग्री एक ही थी। अंतर केवल इतना था कि ‘केसरी’ पत्र मराठी भाषा में प्रकाशित होता था और ‘मराठा’ पत्र अंग्रेजी भाषा में। दोनों पत्रों का एकमात्र उद्देश्य देशवासियों में स्वाधीनता की भावना का विकास करना था। ‘मराठा’ का पहला अंक 2 जनवरी 1881 को और ‘केसरी’ का पहला अंक 4 जनवरी 1881 को प्रकाशित किया गया। ‘केसरी’ के संपादन का कार्य गंगाधर तिलक करते थे और आगरकर ‘मराठा’ के संपादक थे। ‘केसरी’ के प्रथम अंक के प्रकाशन के बाद खुद तिलक ने घर-घर जाकर इसकी प्रतियां ग्राहकों को पहुंचाई थी। ‘केसरी’ और ‘मराठा’ दोनों पत्रों के संस्थापक स्पष्टवादी और निर्भीक थे। इनके ग्राहकों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ने लगी। समाचार पत्रों की लोकप्रियता के साथ-साथ तिलक की भी लोकप्रियता बढ़ने लगी। लोगों को भी ये विश्वास हो गया कि ये लोग न केवल समाज सुधारक हैं बल्कि देशभक्त भी हैं। दोनों पत्रों में देशी रियासतों के प्रबंध के बारे में बराबर लिखा जाता था। इसका कारण यह था कि इन देशी रियासतों को स्वतंत्रता और परंपरा का संरक्षक समझा जाता था। संपादकों की लेखनी ब्रिटिश सरकार के लिए तीखी रहती थी। इस तथ्य को 24 अप्रैल 1881 में प्रकाशित एक लेख स्पष्ट करता है, ‘इतिहास के छात्रों की तेज नजर ने देश में अंग्रेजों के बढ़ते हुए कदम तथा देशी युवराजों के
तिलक के विद्यार्थी जीवन की ऐसी अनेक घटनाएं हैं, जिन्होंने यह स्पष्ट कर दिया था कि ये बालक न तो कभी अपने ऊपर हो रहे अन्याय को सहेगा और न ही किसी और के ऊपर हो रहे अन्याय को चुपचाप देखेगा
साथ दुर्व्यवहार को अच्छी तरह से जान लिया है। वे जान गए हैं कि सरकार उन पर हावी रहती है और उन्हें आश्रित (मातहत, दास) बना लिया है।’
गणपति और शिवाजी उत्सव
बाल गंगाधर तिलक देश का विकास धार्मिक और सामाजिक विकास के साथ-साथ करना चाहते थे। प्राचीन काल से ही भारत अपने गौरवान्वित इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। यहां तक कि महाराष्ट्र को तो वीर भूमि कहा जाता है। ऐसे में जब तिलक ने मराठियों को गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए देखा तो ये सहन नहीं कर पाए। अंग्रेजों की ‘फूट डालो शासन करो’ की नीति को विफल करने व सभी भारतीयों को एक सूत्र में बांधने के लिए गणपति उत्सव और उनके सोए हुए वीरत्व को जगाने के लिए शिवाजी उत्सव शुरू किया।
अशांति का दौर
1893 में बंबई और पूना के साथ अन्य राज्यों में भी हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़के। इससे आहत तिलक ने 15 अगस्त 1893 को अंग्रेजी शासन को चेतावनी देते हुए कहा, ‘सरकार से लगातार प्रोत्साहन मिलने के कारण मुस्लिमों ने आक्रामक व्यवहार अपना लिया है, जिसका कारण सिर्फ इतना है कि ब्रिटिश स्वयं को मुस्लिमों का संरक्षक कहते हैं। ब्रिटिशों का कहना था कि केवल वो ही मुस्लिम संप्रदाय को हिंदुओं से सुरक्षित रख सकते हैं। दोनों धर्मों के शिक्षित नेताओं के मंतव्यों को लेकर कोई वास्तविक झगड़ा नहीं है, झगड़ा तो अशिक्षित, अनपढ़ों के बीच में है। यदि ऐसे लोगों को काबू में रखना है तो सरकार को किसी एक का पक्ष लेने की नीति छोड़नी होगी।’ तिलक के इन लेखों और भाषणों को आधार बनाकर कई ब्रिटिश अधिकारियों ने इनके खिलाफ लोगों को भड़काने की कोशिश की। इनमें सबसे आगे था, सर वैलेन्टाइन शिरोल। इसने अपने लेख ‘इंडियन अनरेस्ट में तिलक को ‘फादर ऑफ इंडियन अनरेस्ट’ (भारतीय अशांति का जनक) कहा था। भारत में 1876-1900 के बीच में सबसे ज्यादा अकाल पड़े। इस बीच में 18 बार भारतवासियों ने अकाल के प्रकोप को सहन किया। 1896 में भारत में जब अकाल पड़ा तो तिलक ने अपनी पत्रिका ‘केसरी’ के माध्यम से लेख लिखकर भारत की वास्तविक परिस्थिति से अवगत कराया। एक तरफ तो किसान अकाल के कारण कष्ट झेल रहे थे, वहीं सरकार ने उनकी लगान को माफ नहीं किया। इस पर तिलक ने किसानों को भी उनके हक के लिए मांग करने के लिए प्रेरित किया। भारतीयों के हित की बात आने पर तिलक ने अपने समाचार पत्रों और पूना की सार्वजनिक सभाओं के माध्यम से सीधे ही सरकार से जनता के हितांे में प्रश्न उठाए। अपने इन कार्यों से तिलक सरकार की आंख में कांटे की तरह चुभने लगे थे। तिलक ने बिना किसी स्वार्थ की भावना के किसानों के हित के लिए सरकार के खिलाफ आवाज उठाई थी। इनके इस कार्य ने किसानों का दिल जीत लिया। ये अब बुद्धिजीवी समाज के साथ-साथ सामान्य जनता के भी दिलों पर राज करने लगें। अब लोग उन्हें ‘लोकमान्य’ कहने लगे।
नमन
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बंग-भंग
1899 में भारत में गवर्नर के रूप में नियुक्त होकर लार्ड कर्जन भारत आया। उसने भारत आते ही बंगाल प्रांत को दो भागों में बांट दिया। इस विभाजन के मुख्यतः दो कारण थे, पहला कारण था कि बंगाल में मुस्लिम अधिक होने के बाद भी हिंदू और मुस्लिम एकता के साथ रहते थे। कर्जन ने राज्य की अच्छी व्यवस्था करने की आड़ में बंगाल के दो टुकड़े कर दिए। हिंदी बाहुल्य क्षेत्र की राजधानी कलकत्ता और मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र की राजधानी ढाका घोषित की गई। इस बंटवारे का देशव्यापी विरोध हुआ। इस बंटवारे की रूपरेखा 1903 में ही बना दी गई थी और तभी से इसका विरोध किया जा रहा था। लेकिन इसे लागू 1905 में करना निश्चित किया गया। इस दौरान देश में लगभग 500 से अधिक सभाएं व विरोध प्रदर्शन हुए। इसी दौरान लाल-बाल-पाल की तिकड़ी का निर्माण हुआ, जो कांग्रेस के उग्र दल के विचारक माने जाते हैं। इस तिकड़ी में लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चंद्र पाल थे। बंगाल विभाजन के समय तिलक के उग्रवादी विचारों के कारण इन्हें राजद्रोह के आरोप में एक बार फिर से 1908 में छह साल की सजा सुनाकर देश से निष्कासित कर दिया। तिलक को देश से निष्कासित करके मांडले जेल में रखा गया। मांडले जेल में रहते हुए तिलक ने दो नए ग्रंथों, ‘गीता-रहस्य’ और ‘द आर्कटिक होम ऑफ द आर्यन’ की रचना की। ये दोनों ग्रंथ तिलक के विशाल ज्ञान, ऐतिहासिक शोध और उच्च विचारों के परिचायक बनें।
स्वदेश वापसी
तिलक मांडले से रिहा होकर 1914 में भारत आए। भारत आते ही उन्होंने फिर से राष्ट्रीय हित के लिए कार्य करना शुरू कर दिया। पूना की बहुत सी संस्थाओं ने तिलक के सम्मान में सार्वजनिक सभाओं का आयोजन किया। इन सभाओं में तिलक को आमंत्रित किया गया। उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए भाषण दिया, ‘मेरा देश से 6 साल का निष्कासन मेरे देशप्रेम की परीक्षा था। मैं स्वराज्य के सिद्धांत को नहीं भूला हूं। इसके कार्यक्रमों में कोई भी बदलाव नहीं किया जाएगा, ये पहले की तरह ही कार्यान्वित होंगे।’ तिलक ने जेल से बाहर आने के बाद कांग्रेस के दोनों दलों को एक करने का प्रयास किया लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। 1916 में तिलक एनी बेसेंट द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन से जुड़ गए,जिसका उद्देश्य स्वराज्य की प्राप्ति था। तिलक होमरूल के उद्देश्यों से लोगों को परिचित कराने के लिए विभिन्न गांवों में घूमें। ये अपने कार्यों के माध्यम से अब एक जनप्रिय नेता बन गए।
अंतिम समय
1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड की उन्होंने अपने लेखों के माध्यम से आलोचना की और बहिष्कार के आंदोलन को जारी रखने की अपील की। उन्होंने इस संदर्भ में सांगली, हैदराबाद, कराची, सोलापुर, काशी आदि स्थानों पर भाषण भी दिए। 1920 तक आते-आते ये काफी कमजोर हो गए थे। 1 अगस्त 1920 को स्वाधीनता के इस महान पुजारी ने इस संसार से अंतिम विदा ली।
26 गुड न्यूज
17 - 23 जुलाई 2017
स्वच्छता आंध्र प्रदेश
मणिपुर आजीविका मिशन
‘स्वच्छता’ का विजयानगरम आं
ग्रामीण युवाओं का कौशल विकास
आंध्र प्रदेश के विजयानगरम जिले ने स्वच्छता अभियान में पेश की मिसाल
ध्र प्रदेश में विजयानगरम जिला सबसे पिछड़े जिलों में शुमार है लेकिन ‘स्वच्छ भारत’ कार्यक्रम के मामले में इसने अपना झंडा काफी ऊंचा फहराया है। 10 से 14 मार्च के बीच जिला प्रशासन ने यहां सौ घंटों के भीतर 10,000 शौचालयों का निर्माण करवाया। इस काम में ग्रामवासियों, स्थानीय नेता, अधिकारियों और गैरसरकारी संगठनों की सहायता ली गई। 71 ग्राम पंचायतों को व्यापक स्वच्छता अभियान के तहत लाकर उन्हें खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया जा चुका है। खुले में शौच से मुक्त के अंतर्गत शौचालयों का निर्माण उनकी उपलब्धि है। प्रधानमंत्री का ध्यान इस उपलब्धि पर गया। 25 जून को प्रसारित ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने इसका उल्लेख किया था। अब 15 अगस्त तक 50,000 और 2 अक्टूबर तक 50,000 घरों में शौचालय सुविधा देने पर काफी तेजी से काम जारी है। मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू इस पहल से प्रभावित होकर इस बात का आश्वासन दे चुके हैं कि वे एक लाख शौचालयों के निर्माण में सहायता करेंगे । विजयानगरम के जिलाधिकारी
मणिपुर राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने 10518 उम्मीदवारों को प्रशिक्षित करने की योजना बनाई
मौ
विवेक यादव कहते हैं कि इस नेक काम की सफाई योजना पर काम करने के लिए हम प्रेरित हुए हैं। हमें उम्मीद है कि पूर्व योजना को दोहराते हुए अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे। बस इस काम में लोगों की भागीदारी से तय समय में सबकुछ हो सकता है। इस कार्य के लिए हितधारकों को विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू हुआ है। जिले के अधिकारियों के अलावा कई सरपंचों और गैरसरकारी संगठन के प्रतिनिधियों को भी इस कार्य से जोड़ा गया है। साथ ही, कई जगहों पर बैठकें आयोजित कर लोगों को जागरूक बनाने और घर-घर प्रचार करने के अलावा लक्ष्य हासिल करने के लिए योजनाएं बनाई जा रही हैं। (भाषा)
जूदा वित्तीय वर्ष में मणिपुर राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन ने 10518 उम्मीदवारों को प्रशिक्षित करने की योजना बनाई है। इस योजना के तहत दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (डीडीयू-जीकेवाई) के कार्यान्वयन के लिए अपोलो मेडस्कील्स लिमिटेड के साथ एक समझौते ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया है। इस एमओयू पर राज्य मिशन के निदेशक आर सुधान और अपोलो मेडस्कील्स के वरिष्ठ उपाध्यक्ष एस श्रीधर और पंचायतीराज मंत्री थोंगम बिश्वजीत सिंह ने हस्ताक्षर किए। डीडीयूजीकेवाई राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की कौशल क्रिया है, जो ग्रामीण युवाओं को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहा है। यह योजना उन्हें मुफलिसी से उत्पादकता की तरफ ले जा रहा है। यह इंटर्नशिप और प्लेसमेंट के अवसरों की पहचान करने और स्नातक स्तर की पढ़ाई से
3 वर्षों की अवधि में करियर की प्रगति को ट्रैक करने के लिए स्किलिंग परियोजनाओं (प्रशिक्षुओं या नियोक्ताओं के लिए बिना किसी कीमत पर) में निवेश करने की प्रक्रिया के पूरे जीवन चक्र का मालिक है और इसका प्रबंधन भी करता है। डीडीयू-जीकेवाई 3-स्तरीय कार्यान्वयन मॉडल का अनुसरण करता है। इसकी प्राथमिक श्रेणी राष्ट्रीय इकाई है, जो नीति बनाने, तकनीक सहायता, सुविधा और निवेश एजेंसी के रूप में कार्य करती है। (भाषा)
असम विकास
सिंगापुर की असम में कौशल विकास केंद्र में रुचि
बुनियादी ढांचा, पर्यटन, तेल और प्राकृतिक गैस की खोज के साथ ही आईटी क्षेत्र में असम और सिंगापुर एक-दूसरे के साथ मिलकर काम कर सकते हैं
अ
सम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल की सिंगापुर के वरिष्ठ रक्षा और विदेश मंत्री डॉ. मलिकी उस्मान से मुलाकात हुई है। दिल्ली डायलॉग सम्मेलन में दिल्ली आने पर हुई मुलाकात के दौरान भारत में सिंगापुर के उच्चायुक्त लिम थुआन कुआन भी उपस्थित थे। दोनों पक्षों ने आपसी हितों को लेकर कई विषयों पर गंभीर चर्चा की। अधिकारियों का कहना है कि 30 मिनट चली बैठक में मुख्यमंत्री ने असम और सिंगापुर के बीच कारोबार और आर्थिक गतिविधियों ने नए अवसरों को तलाशने पर बल
दिया। डॉ. मलिकी उस्मान ने इस पर सकारात्मक उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि वे 18 से 21 जुलाई को दौरा करने वाले हैं। आवश्यक क्षेत्रों में सहयोग का पता लगाने का प्रयास होगा। डॉ. उस्मान ने जानकारी दी कि उनके दौरे का उद्देश्य युवाओं की कुशल का प्रशिक्षण देने के लिए गुवाहाटी में कौशल विकास केंद्र स्थापित करना है। डॉ. मलिकी उस्मान ने बताया, ‘युवा मानव संसाधन के मामले में काफी उच्च स्तर के हैं और उनकी ऊर्जाओं का आर्थिक समृद्धि का विस्तार होना ही चाहिए।’ बुनियादी ढांचे का विस्तार,
पर्यटन, तेल और प्राकृतिक गैस की खोज के साथ ही आईटी के क्षेत्र में असम और सिंगापुर एक-दूसरे के साथ मिलकर काम कर सकते हैं। इससे दोनों को आर्थिक लाभ भी होंगे। मुख्यमंत्री सोनोवाल ने सिंगापुर के वरिष्ठ मंत्री से यह भी कहा कि गुवाहाटी को विकसित करने के लिए तकनीक जानकारी और विशेषज्ञता की आवश्यकता है जिससे इसे आईटी का अहम केंद्र बनाया जा सके। सोनोवाल ने गुवाहाटी में सिंगापुर का वाणिज्यिक दूतावास खोले जाने की
बात भी की। इससे सिंगापुर में नौकरियां तलाशने के इच्छुक असमी जनता को अत्यधिक लाभ होगा। सोनोवाल ने सिंगापुर के मंत्री से आग्रह किया कि वे गुवाहाटी और सिंगापुर के बीच सीधी उड़ान सेवा शुरू कराएं, जिससे पूर्वोत्तर क्षेत्र की जनता को परिवहन की बेहतरीन सेवा मिल सके। डॉ. उस्मान ने आश्वासन दिया कि जमीनी यथार्थ का ठीक से मूल्यांकन करने के बाद विमान सेवाएं शुरू होंगी। इसके लिए निजी क्षेत्र को भी आगे लाया जाएगा।
17 - 23 जुलाई 2017
महाराष्ट्र सोलर प्लांट
औरंगाबाद में सौर ऊर्जा से बिजली
महानगरपालिका सौर बिजली उपलब्ध कराना चाहती है, ताकि लोगों पर आर्थिक बोझ कम हो
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हाराष्ट्र का औरंगाबाद महानगरपालिका अब सौर बिजली से जगमगाएगा। पिछले पांच साल से इसपर काम हो रहा था, लेकिन कामयाबी अब मिलने जा रही है। अभी इसकी शुरुआत महानगरपालिका की एक बिल्डिंग से हो रही है। बाकी दो बिल्डिंगों में भी सोलर प्लांट लगाए जा रहे हैं। इसकी सफलता के बाद स्कूलों और अस्पतालों
में प्लांट लगाए जाएंगे। महानगरपालिका की कोशिश है कि लोगों को सौर ऊर्जा से ही बिजली मिले, ताकि लोगों पर पड़ने वाला आर्थिक बोझ कम हो जाए। मनपा औरंगाबाद शहर को बिजली के मामले में आत्मनिर्भर बनाना चाहती है। हालांकि सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन की शुरुआती लागत बहुत है इसीलिए मनपा इसमें निजी संस्था से प्लांट आउटसोर्स कर रही है। यह प्लांट अत्याधुनिक तकनीक वाला है। ऐसा ही प्लांट बाकी जगहों पर स्थापित किया जाएगा। निजी संस्था से हुए करार के अनुसार, आवश्यकता से अधिक उत्पादित बिजली को बाहर बेचा जा सकेगा। महानगरपालिका आयुक्त डीएम मुग्लीकर का कहना है, ‘हमारा प्रयास है कि महानगरपालिका को सौर ऊर्जा के माध्यम से बिजली के मामले में आत्मनिर्भर बना दिया जाए क्योंकि इसमें बिल भी कम आएंगे। (मुंबई ब्यूरो)
आंध्र प्रदेश पौध रोपण
रोपण के बाद पौध संवर्धन की जिम्मेदारी पौ
नांदेड़ में पौध रोपण के बाद उसके संवर्धन का जिम्मा दत्तनगर के लोगों ने उठाया
धरोपण को लेकर लोगों में जागरुकता बड़े पैमाने पर आई है। सरकार हर साल इसे अभियान के रूप में उठाती है और आम लोगों से इसमें सहयोग के लिए कहती है। उसके बाद इसकी देखरेख और सिंचाई की जिम्मेदारी पंचायत और नगरपालिका की हो जाती है। जानवर इसे भले नोंचकर खा जाएं, उसके बचाव की कोशिश शायद ही कोई करता है। लेकिन अब उसमें एक नयी पहल जुड़ रही है। रोपण के बाद संवर्धन को लेकर नांदेड़ के दत्तनगर के निवासियों ने अच्छा कदम उठाया है। वन महोत्सव के दौरान दत्तनगर परिसर में पौधरोपण किया गया था। तब यह सवाल उठा था कि इसकी देखभाल और संवर्धन की जिम्मेदारी कौन लेगा? अमूमन यही होता है कि नगरपालिका के कर्मचारी यह काम करते हैं, लेकिन लापरवाही के कारण अधिकांश पौधों को बचाना मुश्किल हो जाता है। वे सूख जाते हैं या जानवरों की भूख मिटाने लगते हैं। अगर इसमें आम नागरिकों की सहभागिता
हो जाए तो पौधे नष्ट होने से बच जाएंगे। तब दत्तनगर परिसर के लोगों ने यह बीड़ा उठाया कि वे इसकी जिम्मेदारी लेंगे। उन्हें पूरे परिसर और आस-पास के क्षेत्रों को हरा-भरा देखना है, इसीलिए हम कोशिश करेंगे। इस संकल्प ने बाकी लोगों का भी मनोबल बढ़ाया। नगरपालिका के अधिकारियों ने खुशी जताते हुए यह उम्मीद जाहिर की कि यह पहल पौधरोपण अभियान को एक नई पहचान देगी। उन्होंने शहर के नागरिकों से यह अपील की कि वे भी इन लोगों की तरह जिम्मेदारी लेना सीखें।
गुड न्यूज
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नगालैंड पहल
छात्रों के साथ साप्ताहिक रात्रिभोज
नगालैंड के आईएएस अधिकारी आर्मस्ट्रांग पामे ने एक नई पहल करते हुए छात्रों के साथ साप्ताहिक डिनर करने का फैसला किया है
आ
राज कश्यप
ईएएस अधिकारी आर्मस्ट्रांग पामे एक अनोखी पहल के लिए फिर से चर्चा में हैं। उन्होंने छात्रों को उनकी समस्याओं को दूर करने और उन्हें प्रशासन कैसे काम करता है। यह जानने का अवसर देने के लिए हाल ही में उन्होंने एक पहल की है। मणिपुर के तामेंगलांग जिले के उपायुक्त पामे ने अपने जिले के सभी स्कूल के अधिकारियों से कहा कि वह अपने-अपने स्कूल के होनहार छात्रों की एक लिस्ट तैयार करने और उन्हें डिप्टी कमिश्नर के कार्यालय के कामकाज के बारे में अनुभव देने की बात कही है। उन्होंने कहा कि वह इन चयनित छात्रों के साथ अपने आधिकारिक बंगले पर सप्ताह में एक बार डिनर करेंगे। डिप्टी कमिश्नर कार्यालय द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार कहा गया है कि कक्षा पांचवीं से दसवीं तक के 10 छात्रों के एक समूह को हर शुक्रवार को डीसी के साथ रात्रिभोज के लिए आमंत्रित किया जाएगा। तामेंगलांग हायर सेकेंडरी स्कूल के लगभग 20 छात्र डीसी कार्यालय में आए। पद और प्रशासन के अन्य अधिकारियों ने छात्रों के साथ बातचीत की और विभिन्न प्रश्न पूछे। डीसी ने सभी छात्रों को उनके साथ भोजन करने के लिए आमंत्रित किया और केरोिसन लैंप के साथ अध्ययन कर रहे पांच छात्रों को सौर दीपक दिए। अपने फेसबुक पोस्ट में पामे ने लिखा था
कि एक बच्चे के रूप में मैं हमेशा से डीसी बंगला और कार्यालय देखना चाहता था ... कि वास्तव में वहां क्या होता है, लेकिन हमें कभी ऐसा मौका नहीं मिला। लेकिन इन स्कूल के बच्चों को यहां खाने की टेबल पर मेरे साथ भोजन करना और यहां के माहौल से वाकिफ होना... उनके सपनों को जीने के लिए उन्हें उत्साहित करेगा। पामे ने दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से भौतिकी में स्नातक किया है। वह नगालैंड के ज़ेमे जनजाति के पहले आईएएस अधिकारी हैं। पांच साल पहले इस आईएएस अधिकारी ने असम के तामेंगलांग से हॉफलोंग को जोड़ने वाली सौ किलोमीटर की सड़क के निर्माण की शुरुआत की। उनके बड़े भाई, जो दिल्ली विश्वविद्यालय के एक संकाय सदस्य हैं, ने इस उद्देश्य के लिए लगभग 4 लाख रुपए दान दिए। इसके लिए दिल्ली, बेंगलुरू, चेन्नई, पुणे, गुवाहाटी, शिलांग आदि प्रमुख शहरों में दान केंद्र स्थापित किए गए थे। अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के प्रवासी भारतीयों ने सड़क परियोजना के लिए भी योगदान दिया, जिसे अक्सर पीपल्स रोड कहा जाता है। उन्होंने 2012 में अपने फेसबुक पेज के माध्यम से इस परियोजना के लिए 40 लाख रुपए जुटाए, जिसके बाद उन्हें कैलिफोर्निया में फेसबुक मुख्यालय में आमंत्रित किया गया। उन्होंने अपने अभिनव परियोजना के लिए कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं।
28 परंपरा
17 - 23 जुलाई 2017
शहनाई वाला गांव उत्तर प्रदेश
मंझावान गांव
कानपुर के मंझावान गांव में हर घर से आपको शहनाई की स्वर लहरी सुनाई पड़ेगी, क्योंकि इस गांव में लगभग सभी लोग शहनाई वादक हैं
एक नजर
कानपुर से लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर है यह गांव
यहां अब भी पहर के मुताबिक राग बजाने की परंपरा
गांव में आठ-दस पीढ़ियों से बजाई जा रही शहनाई
पास काफी पुरानी किताबें हैं, जिनमे सुर लिखे हुए हैं। नए किसी भी बोल को वे लोग तब तक नहीं अपनाते जब तक उसके सुर इस किताब से मेल नहीं खाते है। मंझावान के बुजुर्गों से बात करें तो वे बताएंगे कि उन्हीं के गांव से कुछ शहनाई वादक निकल कर दिल्ली, वाराणसी, लखनऊ, महोबा, रीवा और ग्वालियर तक फैल गए हैं। इस बात की पुष्टि शकील मास्टर भी यह बताते हुए करते हैं कि कि सब जगह उनकी रिश्तेदारियां हैं। मंझावान की पहचान का मजबूत होते जाने के बजाय खोते जाने की एक बड़ी वजह यह
श
एसएसबी ब्यूरो
हनाई का नाम लेते ही उस्ताद बिस्मिल्ला खां का ध्यान आता है और बनारस के साथ उनके रिश्तों की बातें भी जेहन में उभरने लगती हैं। पर कमाल की बात है कि उत्तर प्रदेश में ही एक गांव है, जहां के बिस्मिल्ला खां तो नहीं हैं, पर इस गांव की पहचान आज भी शहनाई वाले गांव के तौर पर होती है। दुखद बस यह है कि पहचान का यह गाढ़ापन नए दौर के बदलावों के बीच अपनी शिनाख्त बचाने का संघर्ष कर रहा है। यह गांव है कानपुर का मंझावान गांव। अगर आप मंझावान गांव की गलियों में घूम रहे हैं तो आपको शहनाई के सुरीले स्वर आज भी सुनाई पड़ेंगे। यह भी कि अगर आप इस गांव में घूम रहे हैं तो फिर एक जगह खड़े होकर शहनाई वादन सुनने की आवश्यकता नहीं हैं। आप चलते रहिए, तकरीबन हर घर से आपको शहनाई की स्वर लहरी सुनाई पड़ेगी। ऐसा इसीलिए है कि इस गांव में लगभग सभी लोग शहनाई वादक हैं। इस गांव के लोग सिर्फ शहनाई ही नहीं बजाते, बल्कि इसके वादन से जुड़ी शास्त्रीय खूबियों और पाबंदियों से भी भली भांति अवगत हैं। यही वजह है कि यहां के लोग हर सुर समय के हिसाब से बजाते हैं। गौरतलब है कि हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में पहर के
हिसाब से राग तय हैं। एक पहर में दूसरे पहर का राग बजाना गलत समझा जाता है। इसका कारण पूछिए तो यहां के ग्रामीण बताएंगे कि सोते हुए राग को जगाना गलत होता है। इस मान्यता से जुड़ी एक पुरानी कहावत भी है, ‘बेवक्त की शहनाई न बजाया करो।’ लोग भले शहनाई वादन का मतलब सिर्फ भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां या उनके परिवार को मानें, लेकिन कानपुर से लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर घाटमपुर तहसील के अंतर्गत आने वाले मंझावान गांव में लोग पिछली दस पीढियों से शहनाई वादक रह रहे हैं। आलम यह कि हर घर में शहनाई वादक हैं। अगर किसी घर में ऐसा नहीं है तो तो समझिए कि उसने तंगहाली में शहनाई उठा कर रख दी है। मंझावान गांव के निवासी जलील, शकील, बशीर, कल्लन, गुग्गल, शरीफ, रईस, नूर, नबी और सभी के नाम के आगे मास्टर लगा है, क्योंकि सब शहनाई वादक हैं। भारत में शहनाई वादन का इतिहास बहुत पुराना है। मंझावान निवासियों को भी इस बारे ज्यादा पता नहीं है। इसकी एक वजह यह भी है कि इस गांव में शायद
ही कोई पढ़ा-लिखा हो। जलील मास्टर बताते हैं, ‘हम लोग पिछली 8-10 पीढियों से यहीं रह रहे हैं यानी 200-250 साल से। हम लोगों ने यह कला अपने नाना गुलाम हुसैन से सीखी जो रीवा के राजदरबार में शहनाई बजाते थे। यह खानदानी परंपरा तब से चली आ रही है।’ जलील मास्टर की उम्र आज 65 साल है। वे पूरे मन से आज भी शहनाई बजाते हैं। हां, यह जरूर है कि उन्होंने घर का खर्च पूरा करने के लिए टेंट हाउस भी खोल लिया है। वैसे यह भी सच है कि अब शहनाई से परिवार चलाना मुश्किल हो चला है। बदलते परिवेश में अब लोग शहनाई की मोहक स्वर ध्वनि पर ध्यान नहीं देते हैं। संगीत अब तेज हो चला है। ऐसे में शहनाई सुनने वाले पहले जैसे रसिया नहीं रहे। एक बात और जो मंझावान के साथ यह हुई कि शिक्षा के बढ़े प्रसार के बीच यहां के कई शहनाई वादकों ने तालीम की राह नहीं पकड़ी। यहां तक कि वे बदले दौर के हिसाब से अपने संगीत की प्रस्तुति को भी नहीं बदल पाए। आलम यह है कि मंझावान में जो लोग आज भी शहनाई बजा रहे हैं, उनके पास
मंझावान की पहचान के मजबूत होते जाने के बजाय खोते जाने की एक बड़ी वजह यह भी रही कि शहनाई के इस गांव के लोग अपने आप को ब्रांड के रूप में स्थापित नहीं कर पाए
छोटी हुई शहनाई
श
हनाई सीखने में 7-10 साल लग जाते हैं। जलील मास्टर के अनुसार उन्होंने 15 साल रियाज किया तब पारंगत हुए। जैसे जैसे मांग कम हो रही है वैसे ही शहनाई भी छोटी होती जा रही है। पहले 22 इंच लंबी शहनाई होती थी, जो अब 16 इंच की रह गई है। सुरों के लिए शहनाई में छेद होते हैं, जिन्हें उंगलियों से कंट्रोल किया जाता है। अब नए लड़के छोटी शहनाई बजा रहे हैं क्योंकि अगर सुर दूर हुए तो मेहनत ज्यादा लगेगी।
17 - 23 जुलाई 2017
उपलब्धि
सबसे विश्वसनीय सरकार
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फोर्ब्स मैगजीन में छपे ओईसीडी के सर्वे के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा 73 प्रतिशत भारतीय अपनी सरकार पर भरोसा करते हैं
भी रही कि शहनाई के इस गांव के लोग अपने आप को ब्रांड के रूप में स्थापित नहीं कर पाए। भारत में शहनाई वादन में सबसे बड़ा नाम बनारस के उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का है। उनको देश का सर्वोच्च भारत रत्न पुरस्कार भी दिया गया। देश-विदेश में उनकी धूम मची रहती थी। उस्ताद बिस्मिल्लाह खां बनारस के पर्याय बन गए। इसीलिए आज भी शहनाई वादन में सबकी जुबान पर बनारस का ही नाम आता है। दुर्भाग्य से पीढ़ियों की सुर साधना के बावजूद इस तरह की पहचान न तो मंझावान को गांव को मिली और नही इस बात को ही कहीं रेखांकित किया गया कि देश में शहनाई की लोकप्रियता में इस गांव की कितनी बड़ी तारीखी भूमिका है। एक अफसोस इस गांव के शहनाई वादकों को यह भी है कि कई गुणी शहनाई बजाने वाले उनके बीच से हुए, पर किसी को बड़ी पहचान नहीं मिली। ऐसा बिस्मिल्लाह खां की बड़ी प्रसिद्धि के कारण भी हुआ, क्योंकि उनके सामने शहनाई के क्षेत्र में हर नाम हमेशा बौने दिखाई दिए। शकील मास्टर बताते हैं कि इन सब बातों का नुकसान आज उनका पूरा गांव उठा रहा है। स्थिति यह है कि शहनाई के पक्के शास्त्रीय सुर साधने वालों को ज्यादातर बुकिंग शादी विवाह में जाना होता है। कई बार तो उन्हें रोजी-रोटी के लिए बैंड बजाने वालों के बीच शहनाई बजानी पड़ती है। इसके उलट बनारस के शहनाई वादकों की आज भी पूछ है। उन्हें देश-विदेश के कार्यक्रम तो मिलते ही हैं, पैसे भी ज्यादा मिलते हैं। अपने गांव की तंगहाली का जिक्र करते हुए शकील मास्टर कहते हैं कि उनके यहां से तो महज 4-5 हजार में शहनाई वादकों को लोग बुला लेते हैं। इस पैसे में भी बंटवारा होता है, क्योंकि ढोलक और मंजीरावालों को भी पैसा देना होता है। इसके उलट रही बात बनारस की तो उस्ताद बिस्मिल्लाह खां भले अब नहीं रहे, लेकिन बनारस से शहनाई का रिश्ता अभी भी बना हुआ हैं। शहनाई बनाने में लगने वाला लकड़ी का हिस्सा और सुर बजाने वाला हिस्सा दोनों बनारस से आता है। एक शहनाई लगभग 1600-1800 रुपए में तैयार हो जाती है। पहले शहनाई वादन को रजवाड़ों ने प्रश्रय दिया। हर शुभ काम पर शहनाई बजाई जाती थी। जब मुगल सल्तनत ढल रही थी तब शहनाई वादक दूसरी जगह चले गए उनमें से कुछ उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में मंझावान में बस गए। लेकिन अब समाज में शहनाई वादन के कद्रदान नहीं बचे हैं और यहां के शहनाई वादक भी आजीविका के लिए तरस रहे हैं। लोग बैठे रहते हैं कि कोई मौका आए और उनकी बुकिंग हो। हालात यह है कि धीरे-धीरे शहनाई का मंझावान गांव अपनी पहचान खोता जा रहा है औऱ यहां के लोग शहनाई छोड़ पेट के लिए दूसरे काम करने को विवश हैं।
काम करना देशही मेंजरूरीसरकारनहींकाहै,होनालोगोंऔरकेउसका बीच उस सरकार
का इकबाल भी बुलंद होना चाहिए। विभिन्न देशों की सरकारों और जनता के बीच उनकी विश्वसनीयता को लेकर प्रतिष्ठित पत्रिका 'फोर्ब्स' में एक रिपोर्ट छपी है, जिससे यह पता चलता है कि भारतीय अपनी सरकार पर सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं। फोर्ब्स मैगजीन में छपे ओईसीडी के सर्वे के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा 73 प्रतिशत भारतीय अपनी सरकार और उसकी नीतियों पर भरोसा करते हैं। ‘गवर्नमेंट एट ग्लांस- 2017’ नाम से छपी इस सर्वे रिपोर्ट में बताया गया है पिछले कुछ सालों में अलग-अलग देशों की सरकारों में जनता का भरोसा बदलता रहा है। इस सूची में कुल 15 देशों को जगह दी गई है। जहां ग्रीस सबसे कम 13 प्रतिशत के साथ नीचे है, वहीं भारत 73 प्रतिशत के साथ
ऊपर है। भारत के बाद कनाडा, तुर्की और रूस का नाम है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र कहलाने वाले अमेरिका को इस सूची में 10वें नंबर पर रखा गया है। अमेरिका में सिर्फ 30 फीसदी लोगों को अपनी सरकार पर भरोसा है। संभव है कि अमेरिका में नई सरकार के आने के बाद से सरकार को लेकर लोगों के बीच
भरोसे का संकट बढ़ा हो। सर्वे के अनुसार ग्रीस में यूरोप के पलायन संकट, एक से ज्यादा चुनाव और बैंकों के बंद होने के चलते केवल 13 प्रतिशत लोग सरकार पर भरोसा करते हैं, वहीं घोटालों और राष्ट्रपति चुनाव में रूसी हैकिंग की खबरों के कारण महज 30 प्रतिशत लोगों को अमेरिकी सरकार पर भरोसा हुआ। ब्रेक्जिट से गुजर चुके यूनाइटेड किंग्डम की 41 प्रतिशत जनता को अपनी सरकार पर भरोसा जताया है तो, वहीं रूस और तुर्की के 58 प्रतिशत लोगों ने अपनी सरकार पर भरोसा जताया। फोर्ब्स में प्रकाशित ये सभी आंकड़े 2016 के हैं। इस लिहाज से देखें तो 2014 में बनी भारत की नई सरकार की लोकप्रियता का स्तर न सिर्फ काफी है, बल्कि वह पूरी तरह बहाल भी है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की छवि और लोकप्रियता के लिहाज से यह सर्वे काफी मह्तवूर्ण है और काफी चर्चा में भी है। (एजेंसी)
देश में दौड़ी सोलर ट्रेन ट्रेन की छत पर लगे सोलर पैनल से 300 वॉट बिजली बनेगी और कोच में लगा बैटरी बैंक चार्ज होगा
भा
रत अब उन देशों की सूची में शामिल हो गया है, जहां रेलवे के परिचालन में सौर ऊर्जा की मदद ली जा रही है। भारतीय रेलवे की सोलर पॉवर सिस्टम की तकनीक पर आधारित पहली ट्रेन को रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने हरी झंडी दिखाई। इसे तकनीकी रूप से स्पेशल डीईएमयू (डीजल-इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट) ट्रेन कहा जा रहा है। इस ट्रेन में कुल 10 कोच (8 पैसेंजर और 2 मोटर) हैं। ट्रेन के 8 कोच की छतों पर 16 सोलर पैनल लगे हैं। सूरज की रोशनी से इस ट्रेन की छत पर लगे सोलर पैनल से 300 वॉट बिजली बनेगी और कोच में लगा बैटरी बैंक चार्ज होगा। इसी से ट्रेन की सभी लाइट,
पंखे और इंफॉर्मेशन सिस्टम संचालित होगा। रेलवे का कहना है कि यह ट्रेन हर साल 21 हजार लीटर डीजल की बचत करेगी। रेलवे का कहना है कि अगले 6 महीने में ऐसे 24 कोच और मिल जाएंगे। इस मौके पर रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने कहा, ‘इंडियन रेलवे को इको-फ्रेंडली बनाने के लिए यह एक लंबी छलांग है। हम एनर्जी के गैर-परंपरागत तरीकों को बढ़ावा दे रहे हैं।’ आमतौर पर डीईएमयू ट्रेन मल्टीपल यूनिट ट्रेन होती है, जिसे इंजन से जरिए बिजली मिलती है। इसके लिए इंजन में अलग से डीजल जनरेटर लगाना पड़ता है, लेकिन अब इसकी जरूरत नहीं होगी। रेलवे द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक डीईएमयू ट्रेन दिल्ली डिवीजन के आसपास के शहरों में चलेगी। अभी इस ट्रेन के लिए रूट और किराया तय नहीं किया गया है। रेलवे अधिकारियों ने मीडिया को जानकारी दी कि 1600 हॉर्स पॉवर ताकत वाली यह ट्रेन चेन्नई की कोच फैक्ट्री में तैयार की गई है, जबकि इंडियन
रेलवेज ऑर्गेनाइजेशन ऑफ अल्टरनेटिव फ्यूल (आईआरओओएएफ) ने इसके लिए सोलर पैनल तैयार किए हैं और इन्हें कोच की छतों पर लगाया गया है। रेलवे का दावा है कि इस ट्रेन में लगे सोलर सिस्टम की लाइफ अगले 25 सालों तक है। इस दौरान यह न केवल पर्यावरण को बचाने में सहायक होगी, बल्कि लाखों रुपए के डीजल की बचत भी होगी। ट्रेन को तैयार करने में 13.54 करोड़ का खर्च आया है। एक पैसेंजर कोच की लागत करीब एक करोड़ रुपए आई है। ट्रेन में रेलवे ने आधुनिक सुविधाओं को देने का प्रयास किया है। इसके सभी कोच में बायो-टॉयलेट, वॉटर रिसाइकिलिंग, वेस्ट डिस्पोजल, बायो-फ्यूल और विंड एनर्जी के इस्तेमाल का भी इंतजाम है। ट्रेन के एक कोच में 89 लोग सफर कर सकते हैं। सोलर पॉवर सिस्टम को मजबूती देने के लिए इसमें स्मार्ट इन्वर्टर लगे हैं, जो ज्यादा बिजली पैदा करने में मददगार साबित होंगे। साथ ही इसका बैटरी बैंक रात के वक्त कोच का पूरा इलेक्ट्रीसिटी लोड उठा सकेगा। रेलवे का कहना है कि यह ट्रेन एक बार फुल चार्ज होने पर दो दिनों तक चल सकती है यानी सूरज यदि दो दिनों तक न भी निकले तो भी इस ट्रेन की सेवा पर कोई असर नहीं पड़ेगा। (एजेंसी)
30 पर्यावरण
17 - 23 जुलाई 2017
इधर प्रदूषण की मार, उधर पौधों से प्यार पर्यावरण सुधार
घर के भीतर की हवा को शुद्ध रखने के लिए लोग कमरों में गमले रख रहे और बोनसाई पौधे लगा रहे हैं
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एक नजर
एसएसबी ब्यूरो
श की राजधानी में प्रदूषण का खतरा लगातार बना हुआ है। इसे लेकर एक तरफ जहां नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट कई कदम उठा रही हैं, तो वहीं आम लोग भी प्रदूषण के बढ़े खतरे को देखते हुए पर्यावरण प्रेमी बनते जा रहे हैं। ऐसा इसीलिए क्योंकि प्रदूषण से कोई भी अछूता नहीं है। प्रदूषण के बढ़े स्तर के कारण सभी डरे हुए हैं। इसी डर ने लोगों को खासतौर पर पौधों से प्यार करना सिखा दिया है। जिन लोगों के घरों में कभी एक गमला नहीं होता था, उनकी बालकनी और छत पर मिनी गार्डन सज रहे हैं। घर के भीतर की हवा को शुद्ध रखने के लिए लोग कमरों में गमले रख रहे हैं और बोनसाई पौधे लगा रहे हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल विश्व भर में करीब 4.3 मिलियन लोग इंडोर पॉल्यूशन से मर जाते हैं। मतलब साफ है कि इंडोर हो या आउटडोर, प्रदूषण तो हर हाल में जानलेवा ही है।
एयर प्यूरीफायर का नया चलन
घर के भीतर की हवा अशुद्ध हो रही है तो एयर प्यूरीफायर का नया चलन देखने को मिल रहा है। वैसे यह इंतजाम जेब पर तो भारी पड़ता ही है, बिजली की खपत भी बढ़ जाती है। ऐसे में पौधों को लगाकर घर की हवा को शुद्ध बनाए रखने का चलन तेजी से बढ़ रहा है। इससे स्वस्थ सांसें तो मिलती ही हैं, घर भी सुंदर दिखाई देता है। विषेषज्ञों का कहना है कि इंडोर एयर की कंपोजिशन बाहर की प्रदूषित हवा से अलग होती है। जहां बाहर की हवा में प्रदूषण को पार्टिकुलेट मैटर, कार्बन मोनोऑक्साइड, ओजोन और सल्फर डाइऑक्साइड के स्तर को माप कर पता किया जा सकता है, वहीं घर में इसका पता वोलाटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड्स, बायो एयरोसोल्स और नाइट्रस ऑक्साइड से चलता है।
दुनिया में करीब 4.3 मिलियन लोग इंडोर पॉल्यूशन से मर जाते हैं ऐसे कई इंडोर प्लांट हैं, जिनसे घर की हवा शुद्ध की जा सकती है अगरबत्ती का धुआं पीएम स्तर को 15 गुना तक बढ़ा देता है
इन पौधों को लाएं घर
ऐसे कई इंडोर प्लांट हैं, जिनसे घर की हवा को शुद्ध किया जा सकता है। दिल्ली के लोग तो खासतौर पर एयर प्यूरीफायर को छोड़कर घरों में ये प्लांट लगा रहे हैं। ये पौधे जहरीली हवा से होने वाले नुकसान से लोगों को बचा रहे हैं। एलोवेरा : इस पौधे को घर में रखने से यह कार्बन डाइऑक्साइड, फॉर्मेल्डिहाइड और कार्बन मोनोऑक्साइड को अवशोषित कर लेता है। यह 9
ज्यादा खतरे में महिलाएं और बच्चे
इंडोर पॉल्यूशन पर काबू
वल्लभभाई पटेल ‘चेस्ट इंस्टीट्यूट ऑफ पल्मोनोलॉजी’ विभाग के हेड डॉ. राज कुमार का कहना है कि जो पॉल्यूटेंट बाहर होते हैं, वही हमारे घर के अंदर भी होते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि उनकी डेंसिटी इंडोर में कम रहती है, लेकिन सबसे अच्छी बात ये है कि इंडोर पॉल्यूशन पर काबू पाया जा सकता है। वैसे भी आउटडोर पॉल्यूशन के लिए सरकार और दूसरी एजेंसियां ही समाधान ढूंढ सकती हैं, पर इंडोर पॉल्यूशन को काबू करना तो अपने हाथ में है। इसके लिए आप एलोवेरा और क्रिजैंथेमस जैसे पौधे लगा सकते हैं। ये जहरीले पदार्थों को फिल्टर करते और ऑक्सीजन के स्तर को बढ़ाते हैं।
एयर प्यूरीफायर के बराबर काम करता है। फिकस एलास्टिका : इस पौधे को ज्यादा रोशनी की जरूरत नहीं होती। इसीलिए आप इसे आसानी से रख सकते हैं। यह भी हवा से फॉर्मेल्डिहाइड को खत्म करता है। हालांकि अगर आपके घर में बच्चे और पालतू जानवर हैं तो इसे न ही लगाएं क्योंकि, इसके पत्ते जहरीले होते हैं। इंग्लिश ईवी : इस पौधे के बारे में कहा जाता है कि छह घंटे के भीतर ये 58 प्रतिशत तक हवा को शुद्ध
डॉ
बायोलॉजिकल एजेंट्स से होने वाला इंडोर एयर पॉल्यूशन सांस की बीमारियों के खतरे बढ़ाता है
क्टरों का कहना है कि अगर घर में वेंटीलेशन अच्छा नहीं, कोई स्मोक करता है तो इनसे हवा में कणों का स्तर बढ़ जाता है। इससे सबसे ज्यादा खतरा महिलाओं और बच्चों को रहता है, क्योंकि ये घर के अंदर ज्यादा समय बिताते हैं। अगर हम इंडोर एलर्जेन्स और पॉल्यूटेंट्स को कम करते हैं तो जिन बच्चों को अस्थमा है, उन्हें काफी राहत मिलती है। इससे उनकी दवाई की जरूरत को भी कम किया जा सकता है। विशेषज्ञों की मानें तो भवनों
में इस्तेमाल किए जाने वाले पेंट आदि का स्वास्थ्य पर खराब असर होता है। बायोलॉजिकल एजेंट्स से होने वाला इंडोर एयर पॉल्यूशन सांस की बीमारियों के खतरे को बढ़ाता है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि घरों में लोग अगरबत्ती का इस्तेमाल करते हैं और इससे निकलने वाला धुआं पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) को 15 गुना तक बढ़ा देता है। अगरबत्ती से निकलने वाले धुएं से पीएम 1.0, पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे हानिकारक पॉल्यूटेंट निकलते हैं।
कर सकता है। स्पाइडर प्लांट : यह पौधा कम रोशनी में फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया को पूरा करने के लिये जाना जाता है। यह फॉर्मेल्डिहाइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, गैसोलिन और स्टाइरिन को हवा से अवशोषित करता है। एक पौधा 200 स्क्वाॅयर मीटर तक के स्पेस में हवा को शुद्ध कर सकता है। स्नेक प्लांट : स्पाइडर प्लांट की तरह ही स्नेक प्लांट भी काफी टिकाऊ होता है। यह भी कम रोशनी में फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया को पूरा कर लेता है। आप इसे बेडरूम में लगा सकते हैं, क्योंकि, यह रात में ऑक्सीजन पैदा करता है। पीस लिली : यह पौधा भी फॉर्मेल्डिहाइड और ट्राइक्लोरोइथलीन को हवा से खत्म करने का काम करता है। नासा की एक रिपोर्ट की मानें तो 500 स्क्वाॅयर मीटर में इसके 15-18 पौधे रखने से हवा पूरी तरह से शुद्ध हो जाती है। आप इसे बेडरूम में भी लगा सकते हैं। बोस्टन फर्न : पौधा इंडोर एयर पॉल्यूटेंट्स को दूर करने में काफी कारगर है। यह हवा से बेंजीन, फॉर्मेल्डिहाइड और जाइलिन खत्म कर हवा शुद्ध बनाता है। इसे हैंगिंग बास्केट्स में उगाया जा सकता है। एरेका पाम : इसे बैम्बू पाम, गोल्डन केन पाम और यलो पाम भी कहते हैं। नासा की रिपोर्ट के मुताबिक, ये पौधा हवा से जाइलिन और टालुइन को खत्म करता है। यह एक प्रभावी ह्यूमिडिफायर भी है, जो वातावरण में नमी को बनाए रखता है।
छत पर गार्डन
जनकपुरी निवासी राकेश शर्मा ने अपनी 50 गज की छत पर पूरा गार्डन बनाया हुआ है। उन्होंने करीब 20 औषधीय पौधे लगाए हैं। टोकरियों में पौधे और चिड़ियों के घोंसले उन्होंने सजा रखे हैं। उन्होंने बताया कि उनका खुद का अनुभव है कि सुबह के समय पौधों को निहारने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। शर्मा ने बताया कि उन्होंने अपने घर में श्यामा तुलसी, गिलोय, घृतकुमारी, धनिया, पुदीना, पत्थर चट, बेलपत्र, लेमन ग्रास, करी पत्ता, अदरक, हल्दी, कपूर, तुलसी, ब्राह्मी, अश्वगंधा आदि औषधीय पौधे लगाए हैं।
17 - 23 जुलाई 2017
लोक कथा
पुरुषार्थ ः जीवन का सबसे बड़ा उत्सव
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क बार एक शिष्य ने विनम्रतापूर्वक अपने गुरु जी से पूछा- ‘गुरु जी, कुछ लोग कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष है, कुछ अन्य कहते हैं कि जीवन एक खेल है और कुछ जीवन को एक उत्सव की संज्ञा देते हैं। इनमें कौन सही है?’ गुरु जी ने तत्काल धैर्यपूर्वक उत्तर दियापुत्र, जिन्हें गुरु नहीं मिला उनके लिए जीवन एक संघर्ष है, जिन्हें गुरु मिल गया उनका जीवन एक खेल है और जो लोग गुरु द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने लगते हैं, मात्र वे ही जीवन को एक उत्सव का नाम देने का साहस जुटा पाते हैं| यह उत्तर सुनने के बाद भी शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हुआ। गुरु जी को इसका आभास हो गया। वे कहने लगे-‘लो, तुम्हें इसी संदर्भ में एक कहानी सुनाता हूं। ध्यान से सुनोगे तो स्वयं ही अपने प्रश्न का उत्तर पा सकोगे।’ उन्होंने जो कहानी सुनाई,वह इस प्रकार थीएक बार की बात है कि किसी गुरुकुल में तीन शिष्यों ने अपना अध्ययन संपूर्ण करने पर अपने गुरुजी से विनयपूर्वक यह जानना चाहा कि गुरुजी
को गुरुदक्षिणा में उनसे क्या चाहिए। गुरुजी पहले तो मंद-मंद मुस्कराए और फिर बड़े स्नेहपूर्वक कहने लगे- ‘मुझे तुमसे गुरुदक्षिणा में एक थैला भर सूखी पत्तियां चाहिए, ला सकोगे?’ वे तीनों मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए, क्योंकि उन्हें लगा कि वे बड़ी आसानी से अपने गुरु की इच्छा पूरी कर सकेंगे। सूखी पत्तियां तो जंगल में सर्वत्र बिखरी ही रहती हैं। वे उत्साहपूर्वक एक ही स्वर में बोले- ‘जी गुरु जी, जैसी आपकी आज्ञा।’ अब वे तीनों शिष्य चलते-चलते एक जंगल में पहुंचे। लेकिन यह देखकर कि वहां पर तो सूखी पत्तियां केवल एक मुट्ठी भर ही थीं, उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। वे सोच में पड़ गए कि आखिर जंगल से कौन सूखी पत्तियां उठा कर ले गया होगा? इतने में ही उन्हें दूर से आता हुआ कोई किसान दिखाई दिया। वे उसके पास पहुंच कर, उससे विनम्रतापूर्वक याचना करने लगे कि वह उन्हें केवल एक थैला भर सूखी पत्तियां दे दे। अब उस किसान ने उनसे क्षमायाचना करते हुए, उन्हें यह बताया कि वह उनकी मदद नहीं कर सकता
तितली का संघर्ष
क्योंकि उसने सूखी पत्तियों का ईंधन के रूप में पहले ही उपयोग कर लिया था। अब, वे तीनों, पास में ही बसे एक गांव की ओर इस आशा से बढ़ने लगे कि हो सकता है वहां उस गांव में उनकी कोई सहायता कर सके। वहां पहुंच कर उन्होंने जब एक व्यापारी को देखा तो बड़ी उम्मीद से उससे एक थैला भर सूखी पत्तियां देने के लिए प्रार्थना करने लगे, लेकिन उन्हें फिर से एकबार निराशा ही मिली, क्योंकि उस व्यापारी ने पहले ही, सूखी पत्तियों के दोने बनाकर बेच दिए थे, लेकिन उस व्यापारी ने उदारता दिखाते हुए उन्हें एक बूढ़ी मां का पता बताया जो सूखी पत्तियां एकत्रित किया करती थी। पर भाग्य ने यहां पर भी उनका साथ नहीं दिया, क्योंकि वह बूढ़ी मां तो उन पत्तियों को अलग-अलग करके कई प्रकार की औषधियां बनाया करती थीं। अब निराश होकर वे तीनों खाली हाथ ही गुरुकुल लौट गए। गुरु जी ने उन्हें देखते ही स्नेहपूर्वक पूछा‘पुत्रो,ले आए गुरुदक्षिणा?’ तीनों ने सर झुका लिया। गुरुजी द्वारा दोबारा पूछे जाने पर उनमें से एक शिष्य कहने लगा-‘गुरुदेव,हम आपकी इच्छा पूरी नहीं कर पाए। हमने सोचा था कि सूखी पत्तियां तो जंगल में सर्वत्र बिखरी ही रहती होंगी, लेकिन बड़े ही आश्चर्य की बात है कि लोग उनका भी कितनी तरह से उपयोग करते हैं। गुरुजी फिर पहले ही की तरह मुस्कराते हुए प्रेमपूर्वक बोले- ‘निराश क्यों होते हो? प्रसन्न हो जाओ और यही ज्ञान कि सूखी पत्तियां भी व्यर्थ नहीं हुआ करतीं, बल्कि उनके भी अनेक उपयोग हुआ करते हैं, मुझे गुरुदक्षिणा के रूप में दे दो।’ तीनों
ए
क आदमी को एक बार अपने बाग में टहलते हुए एक टहनी से लटकता हुआ तितली का कोकून दिखाई पड़ा। अब हर रोज वह देखने लगा। एक दिन उसने देखा कि उस कोकून में एक छोटा सा छेद बन गया है। उस दिन वह वहीं बैठ गया और घंटों उसे देखता रहा। उसने देखा कि तितली उस खोल से बाहर निकलने की बहुत कोशिश कर रही है, पर बहुत देर तक प्रयास करने के बाद भी छेद से नहीं निकल पाई फिर वो बिल्कुल शांत हो गयी मानो उसने हार मान ली हो। इसीलिए उस आदमी ने निश्चय किया कि वह उस तितली की मदद करेगा। उसने एक कैंची उठाई और कोकून की ओपनिंग को इतना बड़ा कर दिया कि तितली आसानी से बाहर निकल सके। और यही हुआ, तितली बिना किसी और संघर्ष के आसानी से बाहर निकल आई, पर उसका शरीर सूजा हुआ था, और पंख सूखे हुए थे। वो आदमी तितली को ये सोच कर देखता रहा कि वो किसी भी वक्त अपने पंख फैला कर उड़ने लगेगी, पर
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शिष्य गुरु जी को प्रणाम करके खुशी-खुशी अपनेअपने घर की ओर चले गए। वह शिष्य जो गुरुजी की कहानी एकाग्रचित्त हो कर सुन रहा था, अचानक बड़े उत्साह से बोला-‘गुरु जी,अब मुझे अच्छी तरह से ज्ञात हो गया है कि आप क्या कहना चाहते हैं। आप का संकेत, वस्तुतः इसी ओर है न कि जब सर्वत्र सुलभ सूखी पत्तियां भी निरर्थक या बेकार नहीं होती हैं तो फिर हम कैसे, किसी भी वस्तु या व्यक्ति को छोटा और महत्त्वहीन मान कर उसका तिरस्कार कर सकते हैं? चींटी से लेकर हाथी तक और सुई से लेकर तलवार तक-सभी का अपना-अपना महत्त्व होता है। गुरुजी भी तुरंत ही बोले-‘हां, पुत्र, मेरे कहने का भी यही तात्पर्य है कि हम जब भी किसी से मिलें तो उसे यथायोग्य मान देने का भरसक प्रयास करें, ताकि आपस में स्नेह, सद्भावना,सहानुभूति एवं सहिष्णुता का विस्तार होता रहे और हमारा जीवन संघर्ष के बजाए उत्सव बन सके। दूसरे, यदि जीवन को एक खेल ही माना जाए तो बेहतर यही होगा कि हम स्वस्थ एवं शांत प्रतियोगिता में ही भाग लें और अपने निष्पादन तथा निर्माण को ऊंचाई के शिखर पर ले जाने का अथक प्रयास करें।’ अब शिष्य पूरी तरह से संतुष्ट था। शिक्षा- अंततः यह कि यदि हम मन, वचन और कर्म- इन तीनों ही स्तरों पर इस कहानी का मूल्यांकन करें, तो भी यह कहानी खरी ही उतरेगी। सब के प्रति पूर्वाग्रह से मुक्त मन वाला व्यक्ति अपने वचनों से कभी भी किसी को आहत करने का दुःसाहस नहीं करता और उसकी यही ऊर्जा उसके पुरुषार्थ के मार्ग की समस्त बाधाओं को हर लेती है। वस्तुतः, हमारे जीवन का सबसे बड़ा ‘उत्सव’ पुरुषार्थ ही होता हैऐसा विद्वानों का मत है।
ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। इसके उलट बेचारी तितली कभी उड़ ही नहीं पाई और उसे अपनी बाकी की जिंदगी इधर-उधर घिसटते हुए िबतानी पड़ी। वह आदमी अपनी दया और जल्दबाजी में ये नहीं समझ पाया कि दरअसल कोकून से निकलने की प्रक्रिया को प्रकृति ने इतना कठिन इसीलिए बनाया है, ताकि ऐसा करने से तितली के शरीर में मौजूद तरल तत्व उसके पंखों में पहुंच सकें और वह छेद से बाहर निकलते ही उड़ सके। शिक्षा- वास्तव में कभी-कभी हमारे जीवन में संघर्ष ही वह चीज होती है जिसकी हमें सचमुच आवश्यकता होती है। यदि हम बिना किसी संघर्ष के सब कुछ पाने लगें तो हम भी एक अपंग के समान हो जाएंगे। बिना परिश्रम और संघर्ष के हम कभी उतने मजबूत नहीं बन सकते जितनी हमारी क्षमता है। इसीलिए जीवन में आने वाले कठिन पलों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखिए वह आपको कुछ ऐसा िसखा जाएंगे जो आपकी जिंदगी की उड़ान को संभव बना पाएंगे।
32 अनाम हीरो
17 - 23 जुलाई 2017
अनाम हीरो रविन्दर के. बंसल
कैंसर अस्पताल के लिए मुहिम
18 देशों के 34 हवाई अड्डे से उड़ान भर कर हरियाणा में कैंसर अस्पताल के लिए 4.83 करोड़ रुपए जुटाए
वि
श्वभर में उड़ान भर कर परिक्रमा करना सदा से बेहद साहस का काम हो सकता है। लेकिन सामाजिक कल्याण यानी परोपकार के लिए भी ऐसी यात्राएं की जा सकती हैं। इन दिनों कई आयुवर्ग के समूह सड़कों, आकाश मार्ग और मोटरसाइकिलों पर सवार होकर परोपकार के कार्य करते मिल जाते हैं। इसी क्रम में 68 साल के भारतीय अमेरिकी रविन्दर के. बंसल भी हैं। न्यूयॉर्क के भारतीय समुदाय से जुड़े बंसल अवकाश प्राप्त इंजीनियर और उद्यमी हैं। रविन्दर के. बंसल ने नेक कार्य के लिए 18 देशों के 34 हवाई अड्डे का इस्तेमाल करने हुए
अकेले ही उड़ान भरी और हरियाणा के अंबाला में कैंसर अस्पताल के लिए उन्होंने 4.83 करोड़ रुपए जुटाए। उनका जन्म अंबाला में हुआ है। अकेले 20 हजार मील की उड़ान भरने के पीछे उनका एकमात्र उद्देश्य है अधिक से अधिक धन जुटा लेना ताकि अपने शहर में वे रोटरी अंबाला कैंसर अस्पताल के लिए एमआरआई मशीन खरीद सकें। अमेरिकी की स्वतंत्रता दिवस 4 जुलाई को रविन्दर के. बंसल ने बफैलो नियाग्रा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से एक इंजन वाले सेसेना हवाई जहाज से उड़ान भरी। उनका यह पुनीत कर्म भारत में पहुंचने पर समाप्त होगा।
छह सप्ताह पहले एक उड़ान के अंतर्गत पूरी पृथ्वी की उन्होंने परिक्रमा की। इस काम में उन्हंस एक लाख डॉलर यानी 64.4 लाख रुपए खर्च करने पड़े और बदले में उन्होंने 750,000 डॉलर जुटा लिये। इस धन को बचत खाते में रखा गया जाएगा। रविन्दर ने अपनी उड़ान में इंग्लैंड, फ्रांस, इटली, यूनान, जॉर्डन, संयुक्त अरब अमीरात और ओमान की यात्रा की। इसके बाद उन्होंने भारत में कदम रखे। वे अमेरिका दौरे के क्रम में थाइलैंड, मलयेशिया, फिलीपींस, जापान, रूस और कनाडा भी पहुंचेंगे। रोटरी अंबाला कैंसर अस्पताल के लिए एमआरआई
मशीन खरीदने के लिए धन संग्रह करने के अलावा रविन्दर बंसल ने यात्रा के दौरान लोगों को सीने के कैंसर को लेकर भी जागरूकता अभियान चलाएंगे। वे अपनी पुत्रवधू और बड़े भाई की पत्नी को कैंसर से मरता देख चुके हैं। हरियाणा के कसौली में पिता ही एकमात्र निजी डॉक्टरी करते थे। उन दिनों अंबाला में उपचार बढ़िया सुविधा नहीं थी। पुत्रवधू को छाती में कैंसर का पता चला तो वे अंबाला से लेकर उसे लुधियाना पहुंचे। वहां कीमेथेरेपी करवायी। उनके यहां रोटरी अंबाला कैंसर अस्पताल में लगी एमआरआई मशीन रविन्दर बंसल की देन है।
न्यूजमेकर
सिंधू बनीं वर्ष की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी
रि
पीवी सिंधू
ओलंपिक में रजत पदक विजेता पीवी सिंधू को वर्ष की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के रूप में सम्मानित
यो ओलंपिक खेलों में रजत पदक विजेता पीवी सिंधू को वर्ष की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के रूप में सम्मानित किया गया है। मारुति सुजुकी की प्रवक्ता ने चैरिटी गाला पुरस्कार विवरण समारोह में उन्हें सम्मानित किए जाने की जानकारी दी। खिलाड़ियों को उनकी उपलब्धियों के लिए प्रदान किए गए पुरस्कार को खेल पत्रिका ‘इंडिया मैगजीन’ ने शुरू किया है। सिंधू के कोच पी. गोपीचंद को वर्ष का श्रेष्ठ कोच पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उड़न सिख मिल्खा सिंह को लिविंग लीजेंड ऑफ द ईयर पुरस्कार ने नवाजा गया। हालांकि मिल्खा सिंह समारोह में नहीं पहुंच पाए थे। दिलचस्प बात यह है कि सिंधु और गोपी के अलावा युवा क्रिकेटर आर. एल. राहुल को भी सम्मानित किया गया है। राहुल ने आस्ट्रेलिया के विरुद्ध पिछले क्रिकेट श्रृंखला में शानदार प्रदर्शन
किया था। उन्हें गेमचेंजर ऑफ द ईयर पुरस्कार से विभूषित किया गया। राहुल समारोह में उपस्थित नहीं थे, उनका वीडियो संदेश दिखाया गया। 2008 बीजिंग ओलम्पिक खेलों के एकल मुकाबले में भारत के स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा रहे। उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया है। बिंद्रा के अपने संक्षिप्त संदेश में कहा कि 34 साल की आयु में यह पदक पाना महान उपलब्धि सरीखा लग रहा है। बिंद्रा कहते हैं कि 12 वर्ष की आयु में उन्हें खेलों से घृणा थी। मेरे अंदर कड़ा परिश्रम करके काफी अच्छा निशानेबाज बनकर उभरने की प्रेरणा रची-बसी थी। पैरा खिलाड़ी- देवेन्दर झझारिया, मरियप्पन थांगवेलु, वरुण भारती और दीपा मलिक को भी पुरस्कारों से अलंकृत किया गया। बैडमिंटर खिलाड़ी ज्वाला गुट्टा, महान फुटबॉलर बाइचुंग भूटिया, मुक्केबाज, आमिर खान और क्रिकेट खिलाड़ी प्रज्ञान ओझा भी समारोह में उपस्थित थे।
संताली सृजन की जेवर जोबा
जोबा मुर्मू पिछले डेढ़ दशक से भी लंबे समय से लगातार साहित्य सृजन में जुटी हैं
सं
थाली की चर्चित लेखिका जोबा मुर्मू को उनके लघु कहानी संग्रह 'ओलोन बहा’ (अलंकार पुष्प) के लिए साहित्य अकादमी का बाल साहित्य पुरस्कार-2017 देने की घोषणा की गई है। जोबा प्राथमिक स्कूल में शिक्षिका हैं। वह कानून में स्नातक के साथ संताली और हिंदी भाषा साहित्य में स्नातकोत्तर हैं। वह ऑल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएसन की सदस्य होने के साथ जाहेरथान कमेटी की कार्यकारी सदस्य भी हैं। उन्होंने कई संताली पुस्तकें लिखीं हैं, जिनमें बहा उमुल (2009), बेवरा (2010), ओलोन बहा (2014), प्रेमचंद की सरस कहानियों का संताली अनुवाद (2014) और रवींद्रनाथ टैगोर रचित 'गीतांजलि का संताली अनुवाद (2015) शामिल हैं। उनकी महिलाओं पर आधारित कहानी पुस्तक ‘तिरला’ जल्द ही प्रकाशित होने वाली है। झरखंड में जमशेदपुर जिलांतर्गत करनडीह (दुखुटोला) की
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 1, अंक - 31
जोबा मुर्मू
निवासी जोबा समाजसेवी व साहित्यकार सीआर माझी की बेटी और साहित्यकार पीतांबर हांसदा की पत्नी हैं। जोबा से पहले उनके पति उन खास दंपत्तियों में शामिल हो गए हैं, जिन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है। दिलचस्प है कि पांच साल पहले पीतांबर हांसदा को भी संथाली में बाल साहित्य के लिए ही यह पुरस्कार मिला था। जोबा बताती हैं कि उन्हें उनके पिताजी सीआर मांझी से प्रेरणा मिली। वह हमेशा अपने पिताजी को साहित्य का सृजन कार्यों में व्यस्त रहते देखती रही हैं। इस तरह उनके अंदर भी यह प्रेरणा जगी कि उन्हें भी साहित्य सृजन करना चाहिए। शादी के बाद जोबा को पति पीतांबर हांसदा ने भी साहित्य लेखन के लिए खूब प्रोत्साहित किया। जोबा मुर्मू पिछले डेढ़ दशक से भी लंबे समय से लगातार साहित्य सृजन में जुटी हैं।