आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597
विश्व योग दिवस विशेष
वर्ष-1 | अंक-27 | 19 - 25 जून 2017
sulabhswachhbharat.com
07 सम्मान
डॉ. पाठक को अवार्ड
सतत सेवा और सामाजिक सुधार कार्यों के लिए सम्मानित
10 विश्व चेतना
कुछ मन की, कुछ योग की विश्व योग दिवस को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल
15 तकनीक
ऐप्स सिखाए योग
ऐप्स या साइटों से घर बैठे ही योग सीख सकते हैं
प थ र प य ो श्व ग ि व
02 आवरण कथा
19 - 25 जून 2017
विश्व योग दिवस विशेष
योग दरकार भी बाजार भी
आज अगर 30 करोड़ से ज्यादा लोग पूरी दुनिया में नियमित योगाभ्यास कर रहे हैं तो जाहिर है कि यह भारतीय ज्ञान परंपरा को मिली आधुनिक स्वीकृति भर नहीं है, बल्कि इसने बाजार की दुनिया को भी कहीं न कहीं अपनी गोद में समा लिया है
प्र
प्रेम प्रकाश
धानमंत्री नरेंद्र मोदी की सफलता सिर्फ इसी बात में नहीं है कि उन्होंने योग की दरकार को नए सिरे से वैश्विक स्वीकृति दिलाई है, बल्कि आज इसके जरिए उनके न्यू इंडिया के सपने में भी रंग भर रहे हैं। वैसे योग की स्वीकृति और प्रसिद्धि के पीछे अगर भारत के प्रधानमंत्री का यशस्वी नाम है तो कुछ परिस्थितियों ने इसके ग्लोबल विस्तार को संभव बनाया है। दरअसल, बीते दो दशकों में जिस तरह विश्व में विकास और समृद्धि को लेकर निजी और सार्वजनिक अवधारणा बदली है, उसने समय और समाज के सामने उपलब्धियों की चौंध तो पैदा की ही है,लेकिन तमाम तरह की शारीरिक-मानसिक परेशानियों को
भी बढ़ाया है। आज शहरी कामकाजी समाज में अवसाद और तनाव इस तरह व्याप्त है कि इससे मुक्ति के लिए हर तरफ एक बेचैनी देखी जा सकती है। इन्हीं बेचनि ै यों के बीच भारत की पांच हजार साल पुरानी योग की विरासत हेल्थ और फिटनेस की नई दरकार बनकर सामने आई है। यही वजह है कि भागती-दौड़ती जिंदगी के बीच सेहत को लेकर जिस तरह लोग जागरुक हो रहे हैं, उससे योग को लेकर एक स्वाभाविक आकर्षण
एक नजर
2014 में भारत सरकार ने की आयुष मंत्रालय की स्थापना इसी साल यूएन द्वारा 21 जून को विश्व योग दिवस मनाने की घोषणा
योग के साथ बढ़ा खादी और आयुर्वेद का भी बाजार
आज शहरी कामकाजी समाज में अवसाद और तनाव से मुक्ति के लिए हर तरफ एक बेचैनी देखी जा सकती है। इन्हीं बेचैनियों के बीच भारत की पांच हजार साल पुरानी योग की विरासत हेल्थ और फिटनेस की नई दरकार बनकर सामने आई है
विश्व योग दिवस विशेष
19 - 25 जून 2017
विश्व योग दिवस
11 दिसंबर 2014 को प्रधानमंत्री की योग दिवस को लेकर अपील का जिस तरह विश्व के 192 देशों ने समर्थन किया और 177 देशों ने सह-प्रायोजक बनना स्वीकार किया, वो अभूतपूर्व था
त्री नरेंद्र मोदी ने प्र धानमं 27 सितंबर 2014 को
संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग के महत्व को एक गंभीर और वैश्विक स्वीकृति दिलाने के लिए अलग से एक दिवस की घोषणा का प्रस्ताव रखा था। इस पर 11 दिसंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र ने 193 में से 177 देशों की हामी के साथ 21 जून को विश्व योग दिवस मनाने की घोषणा कर दी। इस लिहाज से देखें तो योग के साथ भारत की कूटनीतिक ग्रहदशा भी बदली है। प्रधानमंत्री मोदी ने 27 सितंबर 2014 को संयक्त ु राष्ट्र में 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाने की अपील की। इसके बाद 11 दिसंबर 2014 को इस अपील का जिस तरह विश्व के 192 देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया और 177 देशों ने सह-प्रायोजक बनना स्वीकार किया, वो अभूतपूर्व था। आधुनिक भारत के इतिहास में शायद ही
आज हर तरफ दिख रहा है। मन और शरीर को एक संयमित अनुशासन में ढालने की नई ग्लोबल ललक का नतीजा यह है कि योग आज दुनिया के पांच सबसे तेजी से बढ़ने वाले आर्थिक उपक्रमों में शामिल है। ब्रांड और इंडस्ट्री के तौर पर बढ़ी योग की वैश्विक स्वीकृति का आलम यह है कि एक आकलन के मुताबिक दुनियाभर में 30 करोड़ से ज्यादा लोग नियमित योगाभ्यास कर रहे हैं। अमेरिका जैसे मुल्क में डेढ़ करोड़ से भी ज्यादा लोग योग को अपना चुके हैं और वहां योग का कारोबार 17 अरब डॉलर की सीमा लांघ चुका है। एक टीवी न्यूज चैनल के मुताबिक तो यह आंकड़ा इससे भी ज्यादा यानी 30 अरब डॉलर का है। अमेरिकन कॉलेज ऑफ स्पोर्ट्स एंड मेडिसीन ने अपने एक सर्वे के आधार पर बीते साल योग को दुनिया के टॉप-10 फिटनेस ट्रेंड में स्थान दिया है। यही नहीं, जापान जैसा मुल्क जो अपनी जरूरत को इलेक्ट्राॅनिक और डिजिटल डिवाइस से पूरा करने का आदी है और उसके यहां शारीरिक चुस्ती-फुर्ती की कुछ अपनी रिवायतें भी हैं, वहां बीते पांच सालों में योगा बिजनेस ने 413 फीसद का ग्रोथ दर्ज कराया है। योग के साथ ही आयुर्वेद और खादी जैसे देसी प्रोडक्ट्स का भी क्रेज बढ़ गया है। जाहिर है, योग से जुड़े उत्पादों के लिए आज पूरा विश्व भारत की तरफ टकटकी लगाए देख रहा है। भारत में योग और आयुर्वेद से जुड़े प्रोडक्ट्स का बाजार 12 हजार करोड़ रुपए का हो चुका है । एक सर्वे के
इसके अलावा कोई दूसरा मौका रहा हो, जब भारत और उसके किसी प्रस्ताव के पक्ष भी इतनी बड़ी स्वीकृति देखी गई हो। दिलचस्प है कि भारत की तरफ से आया यह प्रस्ताव तीन महीने से भी कम समय में पास हुआ, जो संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में किसी दिवस के प्रस्ताव को मानने की सबसे अल्प अवधि के लिहाज से एक रिकार्ड है। बहरहाल, आज अगर योग के कारण भारत की पूरी दुनिया में प्रतिष्ठा बढ़ी है तो निस्संदेह इसके पीछे बहुत बड़ी भूमिका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रही है। वैसे ऐतिहासिक तौर पर देखें तो योग को जन-जन तक पहुंचाने का बड़ा श्रेय योगगुरु बीकेएस अयंगर और बाबा रामदेव जैसे योगाचार्यों को जाता है। योगगुरु बाबा रामदेव की सिखाई कपालभाति क्रिया को तो भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में लोकप्रियता मिली है।
अनुसार योग करने वालों की तादाद में 35 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हुई है। योग से जुड़े उत्पाद बनाने वाली कंपनियां भी तेजी से आगे बढ़ रही हैं। योग के दौरान पहनी जाने वाली ड्रेस का बाजार भी हजार करोड़ पार कर चुका है। योग की ही शब्दावली में कहें तो बीते तीन साल में योग के कारोबार की ऐसी आंधी चली कि दुनिया भर के बाजार एक साथ मिलकर अनुलोम-विलोम और कपालभाति कर रहे हैं। योग के जरिए भारत को ग्लोबल स्तर पर एक नई पहचान मिली है और उसका कद काफी बढ़ गया है। आज योग के साथ बाजार की एक पूरी व्यवस्था पूरी दुनिया में खड़ी हो गई है। दिलचस्प है कि इस बाजार में योग और भारत के पुराने साझे के कारण न सिर्फ सबसे बड़ी हिस्सेदारी हमारी है, बल्कि इसका जो भारत के बाहर भी विस्तार है, वह परोक्ष रूप से हमें लाभान्वित कर रहा है। बात करें प्रधानमंत्री मोदी की तो वे इस स्थिति को कहीं न कहीं पहले ही भांप गए थे। इसीलिए उन्होंने आयुर्वेद प्रोडक्ट्स, योग प्रशिक्षण और आयुर्वेदिक शोध जैसी बातों पर पहले से बल देना शुरू कर दिया था। केंद्र की सत्ता संभालते ही वर्ष 2014 में ही पीएम मोदी ने आयुष मंत्रालय बनाया तो 2015 के बजट में उन्होंने योग से जुड़े सभी व्यापारिक कार्यों को दान की श्रेणी में रखते हुए कर मुक्त कर दिया।
केंद्र की सत्ता संभालते ही वर्ष 2014 में ही पीएम मोदी ने आयुष मंत्रालय बनाया तो 2015 के बजट में उन्होंने योग से जुड़े सभी व्यापारिक कार्यों को दान की श्रेणी में रखते हुए कर मुक्त कर दिया
पेटेंट की जंग
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भारत सरकार 1500 योग मुद्राओं और आसनों का पेटेंट हासिल करने में जुटी है
007 में अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के योग गुरु विक्रम चौधरी ने तमाम योगासनों, उनकी पद्धतियों और उनसे जुड़े जरूरी उपकरणों पर अमेरिकी कॉपीराइट कार्यालय से पेटेंट हासिल कर लिए थे। भारत में योग का पेटेंट हासिल करने की मांग तब से उठ रही है। दुर्भाग्य से इस बारे में हमारे यहां ज्यादा गंभीर पहल पिछले दो सालों से ही चल रही है। योग पर पेटेंट का अभिप्राय है कि हमें किसी खास आसन को करने और उससे जुड़े उपकरणों (जैसे कि जलनेति के काम में आने वाले लोटे) का इस्तेमाल करने तक पर रॉयल्टी देनी पड़ सकती है। योग पर पेटेंट की लड़ाई भारत के लिए आसान नहीं है। क्योंकि दुनियाभर में आज योग के 30 से भी ज्यादा प्रकार प्रचलन में हैं। यहां तक कि जब विक्रम चौधरी ने भी पेटेंट हासिल किए
तो उन्हें यह विक्रम योग या पावर योग के नाम पर मिला। चौधरी को नए तरीके से विकसित योग पैंट जैसे उत्पादों तक पर पेटेंट हासिल है। बहरहाल, भारत सरकार 1500 योग मुद्राओं और आसनों का पेटेंट हासिल करने में जुटी है। नई दिल्ली स्थित ट्रेडिशनल नॉलेज डिजिटल लाइब्रेरी को इन मुद्राओं-आसनों के वीडियो संग्रह का जिम्मा सौंपा गया है। सभी मुद्राओं के लिखित विवरण का हिदी, अंग्रेजी, फ्रांसीसी, चीनी, जापानी, स्पैनिश, जर्मन समेत सैकड़ों भाषाओं में अनुवाद हो रहा है। ये वीडियो संग्रह और लिखित विवरण विभिन्न देशों में पेटेंट, कॉपीराइट और ट्रेडमार्क जारी करने वाली संस्थाओं को भेजने की योजना है। इससे पाइरेसी रोकने के साथ-साथ झूठे दावे पर पेटेंट या ट्रेडमार्क हासिल करने की दुनिया भर में चल रही कोशिशें नाकाम करने में मदद मिलेगी।
आवरण कथा
शीर्षासन
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सिर के बल किए जाने की वजह से इसे शीर्षासन कहते हैं। इससे पाचनतंत्र ठीक रहता है। साथ ही मस्तिष्क में रक्त संचार बढ़ता है, जिससे स्मरण शक्ति सही रहती है
04 आवरण कथा
19 - 25 जून 2017
किस्म-किस्म के योग
गोट योगा, पावर योगा, हॉट योगा, फ्लो योगा, फॉरेस्ट योगा से लेकर स्नो योगा तक 30 से ज्यादा किस्म के योग दुनिया भर में प्रचलित
आ
सूर्य नमस्कार
सूर्य नमस्कार करने से शरीर निरोग और स्वस्थ होता है। सूर्य नमस्कार की दो स्थितियां होती हैंपहले दाएं पैर से और दूसरा बाएं पैर से
ज पूरी दुनिया में गोट योगा, पावर योगा, हॉट योगा, फ्लो योगा, फॉरेस्ट योगा से लेकर स्नो योगा तक 30 से ज्यादा किस्म के योग प्रचलित हैं। यह सारा खेल ब्रांडिंग का है, जिसमें योग ट्रेनर योग को एक नए तरह की पैकेजिंग और आकर्षक ब्रांडिंग के साथ लोगों के सामने ला रहे हैं। सभी योग वैरिएंट का प्रचार उनका अभ्यास करने वाले किसी बड़ी सेलिब्रेटी के नाम पर किया जा रहा है। आलम यह है कि बॉलीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी से लेकर योग गुरु विक्रम चौधरी के महंगे डीवीडी खरीद कर लोग योगाभ्यास कर रहे हैं। कोई वजन कम करने के लिए योग कर कर रहा है तो कोई चिर युवा बने रहने का खयाल लिए योग को अपने जीवन में अपना रहा है। पर इस सबके बीच योग और अध्यात्म का साझा कहीं न कहीं दरका है। आज अध्यात्म और शांति को भी लोग दो मिनट नूडल्स की तरह चाहते हैं। भौतिक सुखों के पीछे भागने की होड़ और अपनी व्यस्त जीवनशैली में तनाव मुक्ति और स्वास्थ्य के लिए लोग योग की शरण में आ रहे हैं।
पावर योगा
गोट योगा
योग के नए प्रकार के तौर पर गोट योगा (बकरी योगा) का इन दिनों खासतौर पर अमेरिका में न सिर्फ खूब चर्चा है, बल्कि लोग इसके अभ्यास से जुड़ भी रहे हैं। इसके बारे में दावा किया जा रहा है कि इससे कई प्रकार के स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। अमेरिका के ओरेगन में रहने वाली लायनी मोर्से बताती हैं कि उन्होंने योग प्रशिक्षक हीथर बैलेंगरडेविस के साथ मिलकर बकरी को योगाभ्यास में शामिल कर लिया। उनके मुताबिक इस योग में एक खास तरह की बकरी की आवश्यकता होती है। जो नाइजीरियन प्रजाति की होती है। यह सामान्य बकरी की तरह न होकर बौनी होती है। जो देखने में किसी कुत्ते के बच्चे की तरह दिखाई देती है। बकरी को योगाभ्यास में शामिल करने से पहले उसे विशेष तरह का प्रशिक्षण देना पड़ता है। इस तरह यह बकरी योगाभ्यास के दौरान अपने शरीर को संतुलित तो रखती ही है, अपनी नटखट हरकतों की वजह से योग करने वालों का मनोरजंन भी करती है। योग सिखाने वालों का मानना है कि जब कोई जानवर योग में शामिल होता है तो योग करने वालों को एक अलग तरह की खुशी और ऊर्जा अपने आप में महसूस होती हैं। अगर आपको लगता है कि यह आसान और रिलैक्सिंग होगा, तो ऐसा नहीं है। दरअसल इस
आज अध्यात्म और शांति को भी लोग दो मिनट नूडल्स की तरह चाहते हैं। भौतिक सुखों के पीछे भागने की होड़ और अपनी व्यस्त जीवनशैली में तनाव मुक्ति और स्वास्थ्य के लिए योग की शरण में आ रहे हैं दौरान आपको थोड़ा दर्द हो सकता है। अमेरिका के डेवन स्थित पेनिवेल फार्म में इन दिनों 2 घंटे की बकरी योगा क्लास शुरू की गई है, जिसकी फीस 380 डॉलर यानी करीब 25 हजार रुपए रखी गई है। बकरी योगा की यह क्लास इतनी फेमस हो गई है कि सितंबर 2017 तक के लिए इसकी बुकिंग हो चुकी है। आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में हम सब काम रिमोट से करना चाहते हैं, चाहे वह टीवी का चैनल बदलना हो या खिडकी के पर्दे हटाने हों। शरीर के स्वास्थ्य की तरफ ध्यान देने के लिए बिलकुल टाइम नहीं है। आदमी पहले बुजुर्ग होने पर बीमार पड़ता था, लेकिन आजकल युवा पीढ़ी ही कई प्रकार की बीमारियों अर्थराइटिस, हार्ट अटैक, कैंसर, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और डिप्रेशन के शिकार हो रही है। लेकिन पॉवर योगा करके कम समय में ही आसानी से स्वस्थ रह सकते हैं।
इसे भारतीय योग के प्रमुख आसन सूर्य नमस्कार के 12 स्टेप्स और कुछ अन्य आसनों को मिलाकर बनाया गया है। इस योग का भारत के साथ दुनिया भर के सेलििब्रटीज ने अपनाया है। जीरो फीगर व फिटनेस के लिहाज से इसे काफी उपयोगी माना जाता है। आलम यह है कि वजन घटाने व फिगर मेंटेन करने के लिए लड़कियां जहां पावर योगा सीख रही हैं, वहीं युवा लड़के भी फिटनेस, स्ट्रेंथ, सेल्फ कंट्रोल और कन्संट्रेशन के लिए इस योग का सहारा ले रहे हैं। इस योग को करने में आमतौर पर 40-45 मिनट समय लगता है और इसे सप्ताह में दो या तीन दिन ही करने की सलाह दी जाती है। इसके लिए सुबह का समय सबसे उपयोगी रहता है । पावर योगा की शुरुआत 1990 के मध्य में हुई थी। पावर योगा मुख्य रूप से अष्टांग योग पर निर्भर है, लेकिन यह साधारण योग से थोड़ा अलग है। यह योग का एथलेटिक वर्जन है, जिसमें सांसों की गति और अध्यात्म से ज्यादा शक्ति और लचीलेपन पर जोर रहता है। इसमें मुद्राओं की एक निर्धारित श्रेणी नहीं होती, इसीलिए इंस्ट्रक्टर के अनुसार स्टाइल अलग-अलग हो सकते हैं। पावर योगा में इंस्ट्रक्टर आपकी बॉडी के अनुसार ही आपको एक्सरसाइज की टिप्स बताते हैं। इस योग में आमतौर पर चार प्रकार के बॉडी शेप माने जाते है। एप्पल शेप, पियर शेप, नार्मल शेप और ट्यूब शेप जिसे जीरो फीगर भी कहा जाता है। इसमें प्रत्येक शेप के लिए अलग-अलग योग की एक्सरसाइज होती है। कह सकते हैं कि साधारण योग में जहां आसन और सांस की प्रक्रिया में जोर दिया जाता है, वहीं पावर योगा वर्कआउट की तरह है। जिसमें विभिन्न पोज और एक्सारसाइज होती है। बताते हैं कि पावर योगा के करने से रक्त संचार और शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जिससे अनेक बीमारियां जैसे- अस्थमा, अर्थराइटिस, डिप्रेशन, डायबिटीज, हाइपरटेंशन आदि बीमारियां समाप्त होती हैं। पावर योगा तनाव कम करने में भी उपयोगी है। इसे करते वक्त पसीने से शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले टॉक्सिन निकलते हैं जिससे सेल्फ-कंट्रोल और कन्संट्रेशन बढ़ता है।
हॉट योगा
पूरी दुनिया में जिस हॉट योगा को लेकर खासतौर पर युवाओं में सबसे ज्यादा क्रेज है, उसे लोकप्रिय बनाने का श्रेय भारतीय मूल के अमेरिकी योग गुरु विक्रम चौधरी को हासिल है। पूरी दुनिया में उनके 650 से अधिक योग स्कूल हैं। विक्रम चौधरी अपने शिष्यों को 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में योग सिखाते हैं।
विश्व योग दिवस विशेष
सरकार अब योगा कोर्स के लिए आने वालों को अलग श्रेणी में वीजा देने की भी तैयारी कर रही है। अमेरिका तो हर साल योग सीखने पर करीब 2.5 बिलियन डॉलर खर्च करता है
19 - 25 जून 2017
योगा जर्नल के 40 साल
12 हजार करोड़ रुपए का योग
एक अनुमान के मुताबिक बीते तीन वर्षों में ही योग के बाजार में करीब 100 प्रतिशत तक का उछाल आया है। जून 2016 के आंकड़ो के आधार पर ये साफ है कि योग ने एक बड़े बाजार को भी खड़ा कर दिया है। सिर्फ देश में योग से जुड़े उत्पादों का बाजार 12 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। 2015 और 2016 के बीच ही योग इंडस्ट्री में 50 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। योग ट्रेनरों की संख्या 40 प्रतिशत तक बढ़ी तो योग करने वालों की संख्या भी 35 प्रतिशत बढ़ गई। जून 2016 तक पूरी दुनिया में योग इंडस्ट्री के 2.5 लाख करोड़ डॉलर पार करने के आंकड़े बताए गए थे, जो इस साल के अंत तक 5 लाख करोड़ डॉलर पार कर जाने का अनुमान है।
भारत में योग
संस्करण के तौर पर प्रिंटपूरीऔरदुनियाऑनलाइन में जिस पत्रिका को लोकप्रियता
हासिल है, उसका नाम है- ‘योगा जर्नल’। इसके प्रिंट संस्करण के दो मिलियन से ज्यादा पाठक हैं और पांच मिलियन से ज्यादा लोग इस पत्रिका को एक महीने के भीतर ऑनलाइन पढ़ते हैं। जर्नल का कहना है कि उसे अब लोगों के लिए योग आधारित ज्यादा विविधतापूर्ण सामग्री पाठकों के लिए जुटानी पड़ रही है। क्योंकि लोगों की न सिर्फ जिज्ञासा बढ़ी है, बल्कि वे अपने मन, शरीर और जीवन की कई समस्याओं के लिए योग को अपनाना चाहते हैं।
योग को प्रोत्साहन देने की दिशा में सरकार ने जो कुछ ठोस प्रयास किए हैं, उनमें योग के लिए योग्य शिक्षकों की संख्या बढ़ाने के लिए भारतीय गुणवत्ता परिषद के तहत चलाया जा रहा अभियान अहम है। इसके तहत बाहर और देश में योग के शिक्षकों की योग्यता को परख कर प्रमाणपत्र दिया जा रहा है। देश से बाहर योग सिखाने जाने वालों के लिए यह प्रमाणपत्र आवश्यक कर दिया गया है। एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में योग सीखने वाले लोगों की संख्या महानगरों में तो बढ़ ही रही है, इसमें मझोले श्रेणी के शहर भी तेजी से शामिल हो रहे हैं। एसोचैम की इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि योग की शिक्षा देने वालों की मांग 30-35 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ने का अनुमान है। देश में योग ट्रेनिंग का कारोबार करीब 2.5 हजार करोड़ रुपए का हो चुका है। इसमें लगाए जाने योग शिविर, कॉरपोरेट्स कंपनियों को दी जाने वाली ट्रेनिंग और प्राइवेट ट्रेनिंग भी शामिल हैं। योग शिक्षक आमतौर पर प्रति घंटे 400-1500 रुपए तक फीस लेते हैं। योग सिखाने वाली कई संस्थाएं तो एक महीने की फीस सवा लाख रुपए तक भी लेती हैं। एसोचैम की रिपोर्ट के अनुसार देश में योग की मांग आने वाले वर्षों में 30-40 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ने का अनुमान है। ऋषिकेश के एक मशहूर योग केंद्र की मासिक फीस तो 1.34 लाख रुपए है। अमरीका, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में 3 से 5 घंटे के 3-5 हजार डॉलर तक फीस है। इसके साथ ही एक साल में अमरीका और चीन के साथ यूरोप में योग अपनाने वाले भी बढ़े हैं। यहां बड़ी संख्या में भारतीय ट्रेनर जा रहे हैं और वहां से ट्रेनिंग लेने लोग भारत भी
जिस रफ्तार से योग करनेवाले बढ़े, उसी रफ्तार से योग िसखाने वाले स्कूल भी अमेरिका में खुले। 2008 में सिर्फ 818 योग स्कूल थे अब ये 3900 का आंकड़ा पार कर गया है
योग बाजार पर कितना बड़ा प्रभाव पड़ा है इसकी बानगी इन आंकड़ो में दिखती है। 2008 के एक आंकड़े के मुताबिक करीब डेढ़ करोड़ (1.58 करोड़) लोग योग करते थे, लेकिन 2016 में यह बढ़कर 3.67 करोड़ पर पहुंच गया। जिस रफ्तार से योग करनेवाले बढ़े, उसी रफ्तार से योग िसखाने वाले स्कूल भी अमेरिका में खुले। 2008 में सिर्फ 818 योग स्कूल थे अब ये 3,900 का आंकड़ा पार कर गया है। आज की तारीख में अमेरिका में योग का बिजनेस करीब 1 लाख 80 हजार करोड़ रुपए का हो चुका है। सबसे खास यह है कि अमेरिका में 37 प्रतिशत योग करनेवाले 18 साल से कम उम्र के हैं।
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योग शिक्षकों की बढ़ी डिमांड
अमेरिका का योग बाजार
योगकादिवसअमेरशुिकारू होनेमें
आवरण कथा
एसोचैम की रिपोर्ट के अनुसार 90 प्रतिशत अमेरिकी योग के बारे में जानते हैं, जबकि 2012 में 70 प्रतिशत को ही इसके बारे में जानकारी थी। अमेरिका में योग के बाजार की कुल कीमत लगभग 27 बिलियन डालर है। 2012 की तुलना में यह 76 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी है। इसी तरह, योग बाजार में इस बाजार को योग सिखाने वाले शिक्षकों की मांग देश ही नहीं विश्व के अन्य देशों में भी बढ़ रही है। योगा एलायंस की 2016 की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में 76,000 रजिस्टर्ड योग शिक्षक हैं और इसके साथ 7,000 योग के स्कूल जुड़े हुए हैं। योगा एलायंस से 2014 से 2016 के बीच 14,000 नये योग शिक्षक जुड़े।
कटिचक्रासन
कटि का अर्थ कमर अर्थात कमर का चक्रासन। यह आसन खड़े होकर किया जाता है। यह कमर, पेट, कूल्हे को स्वस्थ रखता है। इससे कमर की चर्बी भी कम होती है
06 आवरण कथा
विश्व योग दिवस विशेष
19 - 25 जून 2017
पादहस्तासन
इस आसन में हम अपने दोनों हाथों से अपने पैर के अंगूठे को पकड़ते हैं, पैर के टखने भी पकड़े जाते हैं। चूंकि हाथों से पैरों को पकड़कर यह आसन किया जाता है, इसीलिए इसे पादहस्तासन कहा जाता है। यह आसन खड़े होकर किया जाता है
आ रहे हैं। सरकार अब योग के कोर्स के लिए आने वालों को अलग श्रेणी में वीजा देने की भी तैयारी कर रही है। अमेरिका तो हर साल योग सीखने पर करीब 2.5 बिलियन डॉलर खर्च करता है।
भारत में तीन हजार करोड़ का योग उद्योग एबीपी न्यूज के जुटाए आंकड़ो के मुताबिक भारत में योग उद्योग 2000-3000 करोड़ रुपए का है। यहां योग करने वालों की संख्या 2001 में महज 60-65 लाख थी, जो 2015 तक आते-आते दो करोड़ तक पहुंच गई। भारत में योग ट्रेनर की फीस 400 से 2000 रुपये प्रति घंटा है। कुछ जिम और फिटनेस ट्रेनिंग सेंटर योग और हर्बल ब्यूटी थेरेपी का कांबो पैकेज पेश कर भी लोगों को लुभा रहे हैं। दुनिया में जिस तरह से योग का क्रेज लोगों में बढ़ रहा है, वैसे ही योग से जुड़े छोटे-बड़े व्यापार का दायरा बढ़ता जा रहा है। योग के लिए चटाई से लेकर जूते, सीडी, डीवीडी, बैंड, एसेसरीज, स्टूडियोज की भी डिमांड बढ़ी है। ई-कॉमर्स कंपनियां स्पेशल योग थीम स्टोर ले आई हैं। दुनिया भर में योग एक्सेसरी का कारोबार करीब 5.37 लाख करोड़ रुपए का है। अकेले अमेरिकी में 69 हजार करोड़ रुपए योग से जुड़ी किताबों और एक्सेसरी पर खर्च करते हैं।
योग अब चूंकि एक फैशनेबल बिहेवियर और क्रेज का भी नाम है, इसीलिए लोग पारंपरिक तरीके से योग करने की बजाय इसे नए तरह की ड्रेस पहनकर करना पसंद करते हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में योग के दौरान पहने जाने वाले ड्रेस का कारोबार ही करीब एक हजार करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। यही वजह है कि प्रयोग, भूसत्व, फॉर एवर योग, अर्बन योग जैसी नई कंपनियां योग से जुड़े कपड़े बनाने के मैदान में उतर आई हैं। अगले दो साल में इनके बाजार के दोगुना हो जाने के आसार हैं।
आयुर्वेद उत्पादों की मांग में इजाफा
योग के बाजार के बढ़ने के साथ ही आयुर्वेदिक उत्पादों की भी मांग में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है। पश्चिमी यूरोप, रूस, अमेरिका, कजाकिस्तान, यूएई, नेपाल, यूक्रेन, जापान, फिलीपींस, केन्या जैसे देशों में आयुर्वेदिक उत्पादों की जबरदस्त डिमांड है। एक अनुमान के अनुसार विश्व में आयुर्वेदिक और हर्बल उत्पादों का 2015 में 83 बिलियन यूएस डॉलर का व्यापार हुआ जो 2020 तक एक ट्रिलियन यूएस डॉलर तक हो जाएगी। मेक इन इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार योगगुरु बाबा रामदेव की पंतजलि का 31 मार्च 2017 तक 10,561 करोड़ रुपए का व्यापार रहा। जबकि
पतंजलि आयुर्वेद ने वित्त वर्ष 2014 में 1,200 करोड़ रुपए की कमाई की थी।
खादी का भी बढ़ा बाजार
आयुर्वेद संबंधी ऐसे कई प्रोडक्ट हैं, जिसका योग के दौरान सेवन करने से शारीरिक तौर पर कई प्रकार के लाभ मिलने का दावा किया जाता है। ‘खादी’ ब्रांड भी फेमस हो चुका है। योगा सेंटर्स और कंपनियां अपनी दीवारों पर लगाने के लिए योग से जुड़ी पेंटिंग्स अधिक खरीद रही हैं। योग पेंटिंग्स कारोबार का टर्नओवर करीब 500 करोड़ रुपए का है और ये कारोबार लगातार बढ़ रहा है। साफ है कि योग अब आसनों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके प्रसार ने पूरी तरह से एक नया समाज और अर्थतंत्र ही रच दिया है। कह सकते हैं भारत का योग हिमालय की गोद से निकलकर और हिंदू व बौद्ध मठों से होते हुए लंदन, न्यूयॉर्क, कैलिफोर्निया, मैक्सिको, बैंकॉक, स्पेन, मलेशिया, थाइलैंड और इंडोनेशिया के महंगे योगा रिजॉर्ट तक पहुंच गया है। निस्संदेह बाजार ने योग के स्वरूप को अपने अनुसार बदला भी है। हां, यह जरूर है कि योग के प्रसार के साथ भारतीय ज्ञान भी कहीं न कहीं नए दौर में ग्लोबल यात्रा कर रहा है और इसका बहुत बड़ा श्रेय हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है।
विश्व योग दिवस विशेष
19 - 25 जून 2017
सम्मान
07
डॉ. विन्देश्वर पाठक को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड भारत गौरव अवार्ड
प्रवासी भारतीयों की एक संस्था ने डॉ. विन्देश्वर पाठक को उनकी सतत सेवा और सामाजिक सुधार कार्यों के लिए सम्मानित किया
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एसएसबी ब्यूरो
लभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक को 9 जून को न्यूयार्क के संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में भारत गौरव अवार्ड से सम्मानित किया गया। ‘संस्कृति युवा संस्था’ द्वारा उन्हें यह अवार्ड प्रदान किया गया। ‘संस्कृति युवा संस्था’ अमेरिका में रह रहे प्रवासी भारतीयों की संस्था है, जो लोगों को भविष्य में सफलता का नया रोल मॉडल बनने के लिए प्रेरित करती है। सम्मान समारोह में डॉ. विन्देश्वर पाठक के लिए प्रशस्ति पत्र पढ़ते हुए संस्था द्वारा कहा गया, ‘आप हमारे देश के गौरव हैं और हम आपको ‘भारत गौरव’ लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड देते हुए गौरव का अनुभव कर रहे हैं।’ इस समारोह में डॉ. पाठक के अलावा आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रवि शंकर, स्वर्गीय कल्पना चावला, फिल्म
निर्माता मधुर भंडारकर और आचार्य लोकेश मुनी को भी सम्मानित किया गया।
गांव का नाम ट्रंप के नाम पर
अमेरिका में वाशिंगटन डीसी के उपनगर में आयोजित एक अन्य समारोह में डॉ. पाठक ने हरियाणा के मेवात क्षेत्र के एक गांव का नाम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नाम पर रखने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि भारत-अमेरिका संबंधों को बढ़ावा देने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति के नाम पर गांव का नाम रखा जाएगा।
इस मौके पर डॉ. पाठक ने भारतीय मूल के अमेरिकी समुदाय से आग्रह किया कि वे भारत में स्वच्छता और सफाई के लक्ष्य को पूरा करने में उनकी मदद करें। उन्होंने वहां आए लोगों के बीच सस्ते शौचालयों को लेकर एक प्रेजेंटेशन भी रखा। इस मौके पर वर्जीनिया के रिपब्लिकन नेता एडी गिलेस्पी ने अमेरिका में भारतवंशियों द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया और कहा कि अमेरिका का भारत के साथ बहुत मजबूत संबंध है। गौरतलब है कि गिलेस्पी सुलभ द्वारा किए
अमेरिका में ही आयोजित एक अन्य समारोह में डॉ. पाठक ने हरियाणा के मेवात क्षेत्र के एक गांव का नाम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नाम पर रखने की घोषणा की
एक नजर
डॉ. विन्देश्वर पाठक 9 जून को हुए ‘भारत गौरव अवार्ड’ से सम्मानित
सम्मान समारोह न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित था सुलभ द्वारा स्वच्छता के लिए किए गए कार्यों की वैश्विक सराहना
गए कार्यों के पहले से प्रशंसक रहे हैं। वर्जीनिया के दूसरे रिपब्लिकन नेता पुनीत आहलूवालिया ने इस मौके पर कहा है कि वर्जीनिया और मैरीलैंड दोनों के कई अधिकारियों ने इसे स्थानीय रूप से अपनाए जाने में रुचि व्यक्त की है, ताकि लागत खर्च को कम किया जा सके।
08 नीति
विश्व योग दिवस विशेष
19 - 25 जून 2017
नमो की योग नीति योग की जरूरत सिर्फ भारत को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को है, प्रधानमंत्री ने दुनिया की इस जरूरत को पहचाना और उस दिशा में आगे बढ़े
पद्मासन
इस आसन से रक्त संचार तेजी से होता है और उसमें शुद्धता आती है। यह तनाव हटाकर चित्त को एकाग्र कर सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है
यो
एसएसबी ब्यूरो
ग जीवन को जी भर कर जीने का मंत्र है। योग न तो पहुंच और विस्तार देखता है और न ही जाति -धर्म के अंतर को। योग शब्द में ही जुड़ने का अद्भुत अहसास है। भारत की सनातन संस्कृति भी तो यही कहती है जोड़ो... शामिल करो...। दरअसल योग एक ऐसी व्यवस्था है, जो स्वयं में एक आस्था है। अगर आस्था के अहसास के साथ योग को अपनाया जाए तो सारा संसार एक हो जाएगा। इसी विजन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुनर्स्थापित करने की ठानी और दुनिया ने उनकी बात मानी। जापान, चीन, तिब्बत, म्यांमार और थाईलैंड
जैसे दुनिया के कई देशों में योग पहले से विद्यमान है। लेकिन पूरी दुनिया ने आज योग को अलग अलग नजरिए से देखना शुरू कर दिया है। 27 सितंबर, 2014 को पीएम मोदी ने संयक्त ु राष्ट्र की 69वीं आमसभा को संबोधित करते हुए कहा, ‘योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है। यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है, मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है, विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने के साथ स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण भी प्रदान करने वाला है। यह व्यायाम के बारे में नहीं है,लेकिन अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है। हमारी बदलती जीवन शैली में यह चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है। ...तो आएं एक अंतरराष्ट्रीय
एक नजर
पीएम की तमाम नीतियों में हैं योग के तत्व
नरेंद्र मोदी की योग नीति के साथ पूरी दुनिया दुनिया के लिए आज सबसे जरूरी है योग
योग दिवस के आयोजन की दिशा में हम काम करते हैं।’ प्रधानमंत्री की यह बात पूरी दुनिया को पसंद आई और 21 जून, 2015 की तारीख एक यादगार तारीख बन गई।
विश्व योग दिवस विशेष
19 - 25 जून 2017
नीति
09
21 जून साल का सबसे लंबा दिन होता है और समझा जाता है कि इस दिन सूरज, रोशनी और प्रकृति का धरती से विशेष संबंध होता है। योग दिवस का चयन किसी व्यक्ति विशेष को ध्यान में रख कर नहीं, बल्कि प्रकृति को ध्यान में रख कर किया गया है इस तरह अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का आगाज हुआ और पूरी दुनिया में भारत का डंका बजने लगा। पूरी दुनिया जब एक साथ सूर्य नमस्कार और अन्य योगासनों के जरिए ‘स्वस्थ तन और स्वस्थ मन’ के इस अभियान से जुड़ी, तो हर भारतवासी के लिए वह एक अद्भुत अहसास का दिन था। लेकिन ये सब आसान नहीं था, इसके पीछे एक शख्सियत की संकल्प शक्ति का अहम योगदान है और वह शख्सियत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की है, जिनकी मुहिम से आज भारत की इस प्राचीन विरासत की ताकत का अहसास पूरी दुनिया को हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच, आचार- व्यवहार और जीवन जीने का आधार, हर कहीं आपको योग दिख जाएगा। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने जिन नीतियों की लीक गढ़ी, उनमें भी कहीं न कहीं योग का योगदान है। ‘सबका साथ –सबका विकास’ हो या फिर ‘एक भारत- श्रेष्ठ भारत’ नीति, योग का प्रभाव हर कहीं दिखता है। क्योंकि पीएम की इन नीतियों में भी जुड़ने और जोड़ने की बात है, शामिल होने और करने की बात है, समाज को साथ लेकर चलने और समाज के साथ चलने की बात है, दुनिया के साथ और दुनिया को साथ लेकर चलने की बात है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस योग नीति को पूरी दुनिया ने स्वीकार किया। इसी तरह प्रधानमंत्री ने स्वच्छता को जिस तरह सरकारी अभियान से आगे एक राष्ट्रीय आंदोलन की शक्ल दी है, वह उनकी उस योग नीति का विस्तार है, जिसमें आत्मशुद्धि से लेकर परिवेश शुद्धि तक को एक सीध में रखकर देखने का विवेक देश-समाज के आगे रखी गई है। स्वाधीन भारत के इतिहास में कम ही मौके ऐसे रहे हैं, जिसमें समाज का हर वर्ग और हर हिस्सा एक अभियान को लेकर इस तरह आगे बढ़ रहे हों। वह भी कुछ समय के लिए नहीं,
बल्कि तीन साल से लगातार। अहम यह भी है कि उन्होंने स्वच्छता के अभियान के लिए महात्मा गांधी की प्रेरणा को आगे रखा। एक राजनेता के लिए लोकप्रियता का यह संयम कम से कम आज की तारीख में बड़ी बात है। इस संयम का ही कहीं न कहीं प्रतिफलन है कि स्वच्छता से लेकर योग तक प्रधानमंत्री की अपील का लोगों पर सीधा और साकारात्मक असर हर ओर दिख रहा है। एक बार फिर से बात करें योग को लेकर वैश्विक स्वीकृति की तो प्रधानमंत्री के संयुक्त राष्ट्र संघ के 27 सितंबर, 2014 के संबोधन के आधार पर भारत के राजदूत अशोक मुखर्जी ने 21 जून को विश्व योग दिवस मनाए जाने का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र संघ के उसी 69वें सत्र में रखा। इस प्रस्ताव को पेश करते हुए मुखर्जी ने कहा, ‘संस्कृत में योग का अर्थ है– शामिल होना। हम आशा करते हैं कि इस संकल्प का प्रभाव वैश्विक स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए जा रहे हमारे प्रयासों पर पड़ेगा।’ इसके बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष, सैम कहाम्बा कुटैसा ने कहा, ‘यह दर्शाता है कि किस प्रकार योग के मूर्त और अप्रत्यक्ष लाभ दुनिया भर के लोगों को आकर्षित करते हैं।’ इस मौके पर संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव बान की मून ने कहा,‘योग सम्मिलित तरीके से समुदायों को साथ ला सकता है, जो सम्मान उत्पन्न करता है और शांति और विकास को बढ़ावा दे रहा है और लोगों को आपात स्थितियों में तनाव से निपटने में मदद भी कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के इस प्रस्ताव के समर्थन में आम सभा में सभी क्षेत्रिय समूहों के देशों ने समर्थन किया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि संयुक्त राष्ट्र के सभी पांच स्थायी सदस्यों ने भी इसका समर्थन किया। इस समर्थन से भारत के योग के प्रति सभी संस्कृतियों में सम्मान के बात की
पुष्टि होती है, और यह स्थापित करता है कि पूरा विश्व भारत को योग के संरक्षक के रूप में आज भी देखता है। कहने की जरूरत नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योग नीति को पूरी दुनिया का साथ मिला और योग शब्द का उद्देश्य पूरा होता दिखाई देने लगा। दरअसल योग संस्कृत के ‘युज’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है जोड़ना। पूरी दुनिया को जोड़ने का एक जरिया योग बन गया और अमेरिका, सीरिया, रूस, ब्रिटेन, चीन, फिलीपींस जैसे विरोधी नीतियों वाले देशों ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया और 11 दिसंबर, 2014 को यूएन महासभा ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाए जाने का प्रस्ताव पारित कर दिया। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव को 193 देशों ने अपना समर्थन दिया। इसे ‘विश्व स्वास्थ्य और विदेश नीति’ की कार्यसूची के तहत अंगीकार किया गया। इसके साथ ही 177 देशों ने इसका सह-प्रायोजक बनना स्वीकार किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 21 जून को विश्व योग दिवस मनाने के आह्वान के पीछे प्रकृति से प्रेम की सोच थी। दरअसल, 21 जून साल का सबसे लंबा दिन होता है और समझा जाता है कि इस दिन सूरज, रोशनी और प्रकृति का धरती से विशेष संबंध होता है। इस दिन का चयन किसी व्यक्ति विशेष को ध्यान में रख कर नहीं, बल्कि प्रकृति को ध्यान में रख कर चुना गया है। देश ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की जबरदस्त तैयारियां की गई। दिल्ली के राजपथ का दृश्य अद्भुत था। राजपथ पर दो वर्ल्ड रिकॉर्ड एक साथ बने। पहला यह कि इस समारोह में विश्व भर के 36 हजार प्रतिभागियों ने एक साथ योगासन की प्रक्रिया में भाग लिया और दूसरा 84 देश आधिकारिक रूप से इसमें शामिल हुए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योग नीति पूरी दुनिया में तेजी से स्वीकारी जा रही है। योग के विश्वव्यापी होने का आर्थिक लाभ तो भारत को मिला और मिलेगा ही, लेकिन एक सबसे बड़ी बात तो यह है कि योग की वजह से देश की दुनिया में एक बड़ी पहचान बनी है और यह सब संभव हुआ है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योग नीति की वजह से।
नौकासन
अपनी लंबाई को बढ़ाने के लिए हम एक योग को नियमित रूप से कर सकते हैं। इस योग का नाम नौकासन है। इस योग को करते समय आपके शरीर की मुद्रा एक नाव की तरह हो जाती हैं। इसीलिए इस योग को नौकासन कहते हैं। यह आपकी लंबाई बढ़ाने में सहायक तो है ही, साथ ही यह आसन आपके पेट और कमर के हिस्से को मजबूत बनाता है
10 विश्व चेतना
विश्व योग दिवस विशेष
19 - 25 जून 2017
दंडासन
दंडासन एक मात्र ऐसा योगासन है जो शरीर को मजबूत बनाता है। अगर आप चौड़ी और मजबूत छाती बनाना चाहते हैं तो दंडासन सबसे अच्छा उपाय है। दंडासन से हाथों, कंधों व छाती का विकास होता है। यह हाथ-पैरों को शक्तिशाली तथा छाती को चौड़ा व मजबूत बनाता है
कुछ मन की कुछ योग की विश्व योग दिवस को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल विश्व चेतना को जगाने के साथ उसे एक प्रासंगिक दिशा भी दे रही है
अं
एसएसबी ब्यूरो
तरराष्ट्रीय योग दिवस के तीसरे साल में तीन पीढ़ियां एक साथ योग करेंगी। यह अनूठी सोच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की है। 28 मई को ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री ने लोगों से यह खास अपील की। उन्होंने कहा, ‘हर परिवार की तीन पीढ़ियां एक साथ योग करें। मतलब दादा-दादी या नाना-नानी और नई पीढ़ी के बच्चों के साथ परिवार की तीनों पीढ़ियां एक साथ योग करें।’ उन्होंने लोगों से कल, आज और कल की ये तस्वीरें ‘नरेंद्र मोदी ऐप्प’ और ‘माई गौव इन’ पर भेजने की भी अपील की।
पारिवारिक एकजुटता का योग
प्रधानमंत्री का मानना है कि योग दिवस के माध्यम से बिखरते टूटते परिवार को आसानी से एकजुट किया जा सकता है। यह बिखराव सिर्फ परिवार का नहीं है। परिवार बिखरे तो समाज बिखरा और समाज बिखरा तो देश और फिर दुनिया बिखरी। योग के माध्यम से इन सबको फिर से एकजुट करने की बड़ी कोशिश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की है। यह सोच उन्हें दुनिया के उन कुछ चुने हुए नेताओं में शुमार करती है, जिन्होंने पूरे देश और दुनिया को एकजुट करने की कोशिश की। बहुत पहले की बात नहीं है, डोनाल्ड ट्रंप से पूर्व जब बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति थे, तो उन्होंने
‘सूरज की कोई भी किरण ऐसी नहीं होगी, सूरज की कोई यात्रा ऐसी नहीं होगी कि जिन्हें इन योग अभ्यासियों को आशीर्वाद देने का मौका न मिला हो’ – नरेंद्र मोदी
एक नजर
‘परिवार की तीन पीढ़ियां एक साथ योग करें’ ‘योग एक तरह से जीरो प्रीमियम में हेल्थ इंश्योरेंस है’ ‘मृत्यु के बाद क्या मिलेगा, इसका रास्ता योग नहीं दिखाता’
अपने देश में पारिवारिक विघटन और युवाओं में बढ़ी हिंसक हताशा को लेकर कहा था कि परंपरा और परिवार से जुड़े मूल्य हमें भारत से सीखने चाहिए। भारत एक तरफ जहां आधुनिकता की तरफ तेजी से डग भर रहा है तो वहीं वह परिवार और परंपरा से जुड़ी लीक भी नहीं छोड़ी है।
विश्व योग दिवस विशेष
19 - 25 जून 2017
विश्व चेतना
तोलांगुलासन
योग आज के जीवन के लिए सबसे उपयोगी है। क्योंकि योग महज व्यायाम नहीं है, यह सिर्फ स्वस्थ रहने की गारंटी भर भी नहीं है, बल्कि इसमें बेहतर विचार और सोच भी है योग की वैश्विक स्वीकार्यता
योग की स्वीकार्यता आज पूरी दुनिया में हो चुकी है। निस्संदेह इसके पीछे सबसे बड़ी पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रही है। वैसे एक तरह से देखें तो जिस तरह की आज वैश्विक आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था है, उसमें सफलता और आगे बढ़ने के नाम पर एक नाहक की होड़ हर जगह देखी जा रही है। इससे जहां सामाजिक बनावट के धागे उलझे हैं तो वहीं मानवीय प्रेम और करुणा के लिए धैर्यपूर्ण तरीके से सोचने वालों की संख्या लगातार कम हो रही है। ऐसे में योग ने कहीं न कहीं दुनिया को वह रास्ता दिया है, जिसमें वह अपने विकास और संपन्नता के साथ शांति और सहअस्तित्व को बनाए रख सके।
कल, आज और कल
आधुनिक जीवन शैली ने एक आदमी की जिंदगी को जिस तनाव के अंधेरे में धकेल दिया है, उससे निकले बगैर एक बेहतर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। योग दिवस के माध्यम से प्रधानमंत्री पूरी दुनिया को यही संदेश देना चाहते हैं। कल आज और कल के बीच ही सफल और सुंदर जीवन के सूत्र छिपे हुए हैं। जरूरत उन सूत्रों को उन्हें समझने और फिर अपनाने की है। इसीलिए योग आज के जीवन के लिए सबसे उपयोगी है। क्योंकि योग महज व्यायाम नहीं है, यह सिर्फ स्वस्थ रहने की गारंटी भर नहीं है, बल्कि इसमें बेहतर विचार और सोच भी है, जो आपके और हमारे जीवन को एक ऐसी दुनिया में ले जाते हैं, जहां सुकून और अपनापा है। 21 जून, 2015, यही वो दिन था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर पहली बार दुनिया भर के
देश योग के माध्यम से आपस में पहली बार जुड़े। इन तीन सालों में योग ने दुनिया भर के लोगों को अपने तन-मन की सहज अनुभूति का अवसर दिया है। जिन लोगों ने सक्रिय रूप से योग को अपनाया, सृष्टि को देखने का उनका नजरिया बदल गया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि भारत की अनमोल सांस्कृतिक विरासत के प्रति पूरी दुनिया का लगाव और भी गहरा होता जा रहा है। दुनिया में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की शुरुआत 21 जून, 2015 को हुई थी। प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली में खुद इसकी अगुवाई की। राजपथ, योगपथ में परिवर्तित हो गया। पूरा राजपथ योगाभ्यासियों से पट गया। एक साथ, एक मुद्रा में हजारों की संख्या में लोगों के योग करने से पूरे वातावरण में एक सकारात्मक शांति फैल गई। मन, बुद्धि, आत्मा और शरीर के संतुलन के एहसास से लोग गदगद थे। आधे घंटे से अधिक चले इस कार्यक्रम में लोगों ने 21 योगासन किए। एक साथ इतने लोगों के योग और लगभग 85 देशों के प्रतिनिधियों के एक साथ एक स्थान पर आसनप्राणायाम के चलते उस दिन दो वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बने। योग की लगभग ऐसी ही प्रक्रिया विश्व के 193 देशों में योग गुरुओं और योग प्रशिक्षकों के निर्देशन में भी अपनाई गई। योग दिवस की इस सफलता के बाद प्रधानमंत्री से संयुक्त राष्ट्र का आभार व्यक्त करते हुए कहा,‘ मैं आज यूएन का आभार व्यक्त करता हूं। दुनिया के 192 देशों का आभार व्यक्त करता हूं, जिन्होंने सर्वसम्मति से इस प्रकार के प्रस्ताव को पारित किया और मैं उन देशों का आभार व्यक्त करता हूं, जिन्होंने योग के महत्व को स्वीकार किया और आज सूरज की पहली किरण जहां से प्रारंभ हुई और चौबीस घंटे के बाद सूरज की आखिरी किरण
जहां पहुंचेगी। सूरज की कोई भी किरण ऐसी नहीं होगी, सूरज की कोई यात्रा ऐसी नहीं होगी कि जिन्हें इन योग अभ्यासियों को आशीर्वाद देने का मौका न मिला हो।’
चंडीगढ़ में योग
प्रधानमंत्री मोदी ने दूसरे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की अगुवाई चंडीगढ़ में की। इस अवसर पर तीस हजार से अधिक लोगों का एक साथ योग करने से पूरी कैपिटल कॉम्लेक्सी योगमय हो गई। इस अवसर पर पीएम ने देश में डायबिटीज के मरीजों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई। उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि अगर नियमित योग किया जाय तो डायबिटीज जैसी बीमारियों पर आसानी से नियंत्रण रखा जा सकता है। उन्होंने बताया, ‘योग एक तरह से जीरो प्रीमियम में हेल्थ इंश्योरेंस है।’
अंतरराष्ट्रीय रस्म भर नहीं
योग दिवस सिर्फ एक अंतरराष्ट्रीय रस्म नहीं है कि साल में एक दिन निभाई और काम खत्म और न ही यह कोई धार्मिक अनुष्ठान है। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री कहते हैं,‘योग परलोक के लिए नहीं है। मृत्यु के बाद क्या मिलेगा, इसका रास्ता योग नहीं दिखाता है और इसीलिए यह धार्मिक कर्मकांड नहीं है। योग से इहलोक में तुम्हारे मन को शांति कैसे मिलेगी, शरीर को स्वास्थ्य कैसे मिलेगी, समाज में एकसूत्रता कैसे बनी रहेगी, उसकी ताकत देता है। ये परलोक का विज्ञान नहीं है, इसी इहलोक का विज्ञान है। इसी जन्मत में क्या, मिलेगा, उसका विज्ञान है।’ साफ है कि प्रधानमंत्री मोदी की पहल से साथ शुरू हुई विश्व योग दिवस की यात्रा जहां दुनिया भर में एक नई तरह की मानवीय चेतना को जगा रही है, वहीं इससे भारतीय ज्ञान, परंपरा और संस्कृति का भी एक सर्वथा नया प्रकल्प तैयार हुआ है, जो अतीत, वर्तमान और भविष्य को एक सीध में रखकर देखता है, उसे सतत मानवीय चेतनधारा के रूप में महसूस करता है।
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तोलांगुलासन वजन तौलते वक्त दोनों तराजू संतुलन में रहते हैं, अर्थात तराजू का कांटा बीचोबीच रहता है। उसी तरह इस योगासन में भी शरीर का संपूर्ण भार नितंब पर आ जाता है और व्यक्ति की आकृति तराजू जैसी लगती है इसीलिए इसे तोलांगुलासन कहते हैं। इस योग को करने से शरीर की कई बीमारियां दूर हो जाती है और शरीर निरोग बनता है
12 शख्सियत
विश्व योग दिवस विशेष
19 - 25 जून 2017
पाश्चात्य योग की माता
हॉलीवुड सहित पूरे पाश्चात्य जगत में योग को लोकप्रिय बनाने का श्रेय येव्गेनिया पीटरसन को है, जो भारत में जन्मीं तो नहीं, पर उनका भारत प्रेम आजीवन बना रहा
एक नजर
येव्गेनिया का जन्म 1899 में लात्विया के रीगा शहर में हुआ था भारत आकर उन्होंने अपना नाम बदलकर ‘इंद्रा देवी’ रख लिया अपने दौर की कई बड़ी हस्तियों को योग सिखाने का श्रेय
रहा था। 28 वर्ष की उम्र में उन्होंने भारत की यात्रा की। इस यात्रा का खर्च जुटाने के लिए उन्होंने अपने आभूषण तथा महंगे वस्त्र तक बेच दिए। भारत में येव्गेनिया पीटरसन ने अपना नाम बदलकर ‘इंद्रा देवी’ कर लिया। अभिनेत्री व नृत्यांगना एनाक्षी रामाराव से उन्होंने नृत्य की शिक्षा ली। जल्दी ही इंद्रा देवी एक नृत्यांगना के रूप में सार्वजनिक तौर पर अपने कार्यक्रम पेश करने लगीं। उनका नृत्य इतना मनमोहक होता था कि पंडित जवाहरलाल नेहरु ने भी उनके नृत्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी।
कृष्णमाचार्य से योग सिखाने का अनुरोध किया। शुरू में तो कृष्णमाचार्य ने उनके स्त्री होने और यूरोपीय होने की बात कहते हुए उन्हें योग सिखाने से मना कर दिया, लेकिन जब मैसूर के महाराजा और महारानी ने भी उनसे अनुरोध किया तो कृष्णमाचार्य बेमन से इंद्रा देवी को योग की शिक्षा देने पर सहमत हो गए। वह एक वर्ष तक लगातार तिरुमलई कृष्णमाचार्य से योग सीखती रहीं। इस बीच, उनका अपने गुरु से गहरा जुड़ाव हो गया। जब कृष्णमाचार्य को यह पता चला कि इंद्रा देवी के पति को चीन भेजा जा रहा है, तो उन्होंने इंद्रा देवी को योग शिक्षिका के रूप में प्रशिक्षित किया। चीन में इंद्रा देवी वहां के प्रतिष्ठित नागरिकों को योग की शिक्षा देने लगीं। उनसे योग सीखने वालों में च्यांग काईशेक भी शामिल थीं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद इंद्रा देवी भारत लौट आईं। उन्होंने ‘आपके लिए योग’ नामक एक पुस्तक लिखी। अमेरिका में यह पुस्तक ‘अमेरिकियों के लिए योग’ के नाम से प्रकाशित हुई।
इंद्रा देवी ने भारत के नवोदित फिल्मोद्योग में भी अपना भाग्य आजमाया था। उन्होंने ‘शेर ए अरब’ नामक हिन्दी फिल्म में पृथ्वीराज कपूर के साथ काम किया। यह फिल्म चली भी खूब और इस तरह वह रातोंरात लोगों के दिलों पर छा गईं। ऐसा लग रहा था कि एक अभिनेत्री के रूप में इंद्रा देवी अब काफी ऊंचाई पर पहुंच जाएंगी, पर शायद उनकी किस्मत में कुछ और ही था। उनके पति चेक गणराज्य (तत्कालीन चेकोस्लोवाकिया) के राजनयिक थे। उनके पति ने मैसूर के महाराजा तथा महारानी से उनका परिचय करवाया। मैसूर के राजपरिवार के संरक्षण में एक योग पाठशाला चलती थी, जिसमें ‘आधुनिक योग के पिता’ के रूप में विख्यात तिरुमलई कृष्णमाचार्य शिक्षक थे। तिरुमलई कृष्णमाचार्य बेल्लुर कृष्णमाचार सुंदरराज आयंगर के भी गुरु थे। इंद्रा देवी ने तिरुमलई
पति के असामयिक निधन के बाद इंद्रा देवी अमेरिका चली गईं और वहां पूर्णकालिक योग शिक्षिका के रूप में काम करने लगीं। उन्होंने योग को पश्चिमी देशों के लोगों की जरूरतों के अनुरूप ढाला। अमेरिका में लोग उन्हें माताजी कहकर पुकारते थे। जब यह बात फैली कि इंद्रा देवी ग्रेटा गार्बो और ग्लोरिया स्वानसन जैसी प्रसिद्ध अभिनेत्रियों को योग सिखा रही हैं, तो हॉलीवुड के लोग उन्हें हाथों-हाथ लेने लगे। वायलिन वादक व आर्केस्ट्रा निर्देशक यहूदी मेनुहिन भी उनके शिष्यों में शामिल थे। पिछली सदी के छठे और सातवें दशकों में हॉलीवुड सितारों के बीच योग बेहद लोकप्रिय हो गया था। इंद्रा देवी ने लिखा है, ‘अक्सर आम लोग उन लोगों की नकल करते हैं, जिन्हें वे बेहद पसंद करते हैं। जब आम लोगों ने देखा कि ग्लोरिया स्वानसन, यहूदी मेनहि ु न, पंडित नेहरु और बेन गुरियन जैसे लोग योगाभ्यास
ताड़ासन
इसमें शरीर की स्थिति ताड़ के पेड़ के समान रहती है, इसीलिए इसे ताड़ासन कहते हैं। यह आसन खड़े होकर किया जाता है। इस आसन को नियमित करने से पैरों में मजबूती आती है
आ
डॉ. स्वाति सोनल
ज अगर पाश्चात्य जगत में योग का डंका बज रहा है, तो इसके पीछे भारतीय परंपरा और दर्शन से प्रभावित रूसी महिला की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्हें ‘मदर ऑफ वेस्टर्न योगा’ कहा भी जाता है। दरअसल हम बात कर रहे हैं रूसी अभिनेत्री व नृत्यांगना येव्गेनिया पीटरसन की, जो आगे चलकर योग के क्षेत्र में इंद्रा देवी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। उन्होंने एक तरह से भारत, रूस और पश्चिमी देशों के बीच एक सेतु के रूप में काम किया। वैसे परमहंस योगानंद जैसे महान गुरुओं के प्रयासों से भी पश्चिमी देशों के लोगों के बीच योग की लोकप्रियता काफी बढ़ी। येव्गेनिया का जन्म 1899 में लात्विया के रीगा शहर में हुआ था। उस समय लात्विया रूसी साम्राज्य का अंग था। येव्गेनिया पीटरसन के पिता स्वीडिश मूल के एक बैंक निदेशक थे, जबकि उनकी मां रूसी मूल की एक कुलीन महिला थीं। जब येव्गेनिया बच्ची थीं, उस समय रूसी जारवंश का अवसानकाल चल रहा था। नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले रवींद्रनाथ टैगोर की रचनाओं को पढ़ने के बाद येव्गेनिया पीटरसन के मन में भारत के लिए काफी दिलचस्पी पैदा हो गई थी। येव्गेनिया पीटरसन को मस्कवा के नाट्य विद्यालय में प्रवेश लेना था, किंतु इसी बीच 1917 की बोल्शेविक क्रांति हो गई और उनके परिवार ने रूस छोड़कर जाने का फैसला किया। पिछली सदी के तीसरे दशक में येव्गेनिया पीटरसन बर्लिन में रहा करती थीं। वे अभिनेत्री व नृत्यांगना के तौर पर वहां काम कर रही थीं, लेकिन भारत के प्रति उनका अनुराग लगातार बढ़ता जा
पृथ्वीराज कपूर के साथ फिल्म
हॉलीवुड की योग की गुरु
28 वर्ष की उम्र में उन्होंने भारत की यात्रा की। इस यात्रा का खर्च जुटाने के लिए उन्होंने अपने आभूषण तथा महंगे वस्त्र तक बेच दिए
विश्व योग दिवस विशेष
करते हैं, तो भारी संख्या में आम लोग भी योग में दिलचस्पी लेने लगे।’ आज इतने साल बीत जाने के बाद भी उस स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। आज अनेक सफल उद्यमियों, खिलाड़ियों और नेताओं के मुंह से हमें अक्सर यह सुनने को मिलता है कि वे योगाभ्यास करते हैं और इससे उन्हें बहुत लाभ होता है। 1960 में इंद्रा देवी रूस वापस लौट आईं। हालांकि उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध से ही रूस के अनेक प्रख्यात लोग योगाभ्यास करते आ रहे थे, लेकिन साम्यवादी विचारधारा वाले सोवियत नेता योग को संदेह की दृष्टि से देखते थे और उन्होंने
योग को मार्डन फिटनेस स्टाइल में बदलने वाले
19 - 25 जून 2017
पिछली सदी के चौथे दशक में योग को अवैध घोषित कर दिया था। इंद्रा देवी ने अब रूस में योग को वैध घोषित कराने के लिए प्रयास शुरू किए। रूस में भारत के तत्कालीन राजदूत केपीएस मेनन (कुमार पद्मनाभ शिवशंकर मेनन) इंद्रा देवी के पुराने मित्र थे। मेनन ने इंद्रा देवी और प्रधानमंत्री अलिक्सेय कोसिगिन तथा विदेश मंत्री अंद्रेय ग्रोमिका सहित शीर्ष सोवियत नेताओं के बीच एक बैठक रखी। सोवियत नेता योग को लेकर क्या जानते और समझते थे, इसके बारे में इंद्रा देवी ने एक अभिनंदन समारोह में अपने उद्गार व्यक्त किए। उन्होंने बताया,
2.एलेना ब्रोअर
टॉप-5 योगा ट्रेनर्स
योग स्टाइल- कुंडलिनी न्यूयार्क में 16 सालों से योग सिखा रही एलेना की ख्याति एक स्टाइलिश और इंस्प्रेशनल योगिनी के तौर पर है
1.हेयदी क्रिस्टोफर
3.टिफेनी क्रयूशनेक
योग स्टाइल- विन्यासा फ्लो न्यूयार्क में योग और हीलिंग का प्रशिक्षण दे रही इस स्टाइलिश योगा ट्रेनर को लोग अपसाइड-डाउन गर्ल भी कहते हैं
योग स्टाइल- विन्यासा टिफेनी एक लेखक भी हैं। वह योग और वेलनेस को लेकर लोगों को तरह-तरह के शारीरिक मानसिक अभ्यास कराते हैं
‘फिर विदेश मंत्री अंद्रेय ग्रोमिका ने मेरे सम्मान में कहा कि रोटी का यह टुकड़ा इंद्रा देवी के नाम, जिन्होंने योग के बारे में हमारी आंखें खोल दी हैं।’ वैसे रूस में योग को स्वीकृति मिलना इतना आसान भी नहीं था। इसीलिए इंद्रा देवी भी फिर से अपनी पुरानी दुनिया में लौट आईं। वह फिर 1990 में रूस वापस आईं। उस समय तक रूस में योग को वैध घोषित किया जा चुका था और रूस में योग की लोकप्रियता एक बार फिर से बढ़ रही थी। इंद्रा देवी रूस के एक लोकप्रिय टेलीविजन कार्यक्रम में दिखाई दीं, जिसमें वह साड़ी पहनकर सोफे पर पद्मासन में बैठी हुई थीं। कहने वाले कहते हैं कि अगले दिन मस्कवा (मास्को) में ऑटोग्राफ लेने वालों की भारी भीड़ उनके पीछे-पीछे लगी रही। मध्य और दक्षिण अमरीका में, जहां योग के बारे में कोई जानता तक नहीं था, योग का प्रचार-प्रसार करने के काम में इस रूसी योगिनी ने अपने जीवन के कई दशक खपा दिए।
आजीवन बना रहा भारत प्रेम
1982 में इंद्रा देवी अर्जेंटीना चली गईं थीं और मृत्युपर्यंत वहीं रहीं। 2002 में ब्यूनस आयर्स में 102 वर्ष की अवस्था में उन्होंने अपने पार्थिव शरीर त्याग दिया। वैसे जब तक वह जीवित रहीं भारत के साथ उनका गहरा जुड़ाव कायम रहा । जीवन की अंतिम सांस तक वह नियमित रूप से भारत की यात्रा पर आती रहीं। (लेखिका वनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान में हिंदी विभाग में असिसटेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं )
4.नोह मेज
योग स्टाइल- अनुसरा, अष्टांग, विन्यासा नोह को अमेरिका का सबसे जानकार योग ट्रेनर माना जाता है। वे लास एंजेल्स में अपने खास अंदाज में योग प्रशिक्षकों को योग सिखाते हैं
5.कैथरीन बुडिग
योग स्टाइल- विन्यासा फ्लो कैथरीन पिछले आठ सालों से लोगों को अपने घर पर योग करने के लिए प्रेरित कर रही हैं। वे इसके लिए देश-विदेश की यात्रा भी करती हैं।
शख्सियत
हलासन
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हलासन में शरीर का आकार हल जैसा बनता है, इसीलिए इसे हलासन कहते हैं। इस आसन को पीठ के बल लेटकर किया जाता है। हलासन हमारे शरीर को लचीला बनाने के लिए महत्वपूर्ण है
14 प्रेरक
विश्व योग दिवस विशेष
19 - 25 जून 2017
मुस्कुराहट का योग
स्वास्तिकासन
स्वास्तिक का अर्थ होता है-शुभ। यह ध्यान के लिए एक उम्दा आसन है। यह सारे शारीरिकएवं मानसिक परेशानियों से आपको बचाता है। यह तन एवं मन में संतुलन बनाने में बड़ी भूमिका निभाता है। भगवान आदिनाथ ने जिन चार आसनों को सबसे महत्त्वपूर्ण बताया है उनमें से एक स्वास्तिकासन भी है
प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रवि शंकर लोगों को ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ सिखाते हैं। वे मानते हैं कि जीवन में सबसे जरूरी है प्रसन्नता और इसके लिए सबसे अच्छा तरीका है योग। प्रस्तुत है श्री श्री रवि शंकर के ही शब्दों में योग का अर्थ और महत्व
यो
ग के लाभ अनन्य हैं। सबसे पहले तो यह हमारे स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है। योग से हमें चिंता मुक्त और तनाव-मुक्त रहने के लिए साधन और तकनीक मिलते हैं। योग मानव जीवन का सबसे बड़ा धन है। धन क्या है? धन का उद्देश्य प्रसन्नता और आराम देना है। योग इस दृष्टि से धन ही है, क्योंकि यह हमें पूर्ण आराम देता है। हिंसा मुक्त समाज, रोग मुक्त शरीर, संभ्रांति मुक्त मन, शंका रहित बुद्धि, सदमा रहित स्मरण शक्ति और एक दुख रहित आत्मा, प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। पूरे विश्व की संसद सत्ता के एक ही ध्येय को पाने का प्रयत्न कर रही है, वह है प्रसन्नता। हम सबको अपने लोगों के लिए प्रसन्नता के लिए विचार और व्यवहार करना चाहिए।
योग और विज्ञापन
हम समझते हैं कि योग केवल एक व्यायाम है। 80 और 90 के दशक में जब मैं यूरोप में जाता था तो आम लोगों का समाज आसानी से योग को स्वीकार नहीं करता था। आज मैं प्रसन्न हूं कि एक जागृति आई है और लोगों ने योग के महत्व को पहचाना है। विज्ञापनों में क्यों दिखाई जाती है ध्यान मुद्रा? दरअसल, पूरे विश्व में योग विश्राम, प्रसन्नता और क्रियात्मकता का पर्यायवाची बन गया है। यहां तक कि बड़ी कंपनियां अपने विज्ञापनों में आंतरिक शांति प्रदर्शित करने के लिए लोगों को योग की स्थिति या ध्यान मुद्रा में बैठे दिखाते हैं।
योग शिक्षक जरूरी नहीं
हम इस बात को पसंद करें या न करें, हम सब जन्म से योगी ही हैं। हम एक बच्चे को देखें तो हम समझ जाएंगे कि योग शिक्षक की आवश्यकता ही नहीं है।
विश्व में कोई भी बच्चा 3 महीने से 3 वर्ष की उम्र तक योग के सारे आसन करता है। सांस लेना, जिस तरह वे सोते हैं, जिस तरह से वे मुस्कुराते हैं, यह सब योग है। एक बच्चा एक योग शिक्षक होता है, एक योगी होता है। इसीलिए बच्चा तनाव मुक्त होता है, उसमें प्रसन्नता होती है। कहते हैं कि वह दिन में 400 बार मुस्कुराता है।
व्यवहार में बदलाव
योग जीवन में कई परिवर्तन लाता है । योग का एक और महत्वपूर्ण लाभ है कि वह व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन लाता है, क्योंकि व्यवहार व्यक्ति के तनाव के स्तर पर निर्भर करता है। यह लोगों में मैत्रीपूर्ण चित्तवृत्ति और प्रसन्नचित वातावरण का निर्माण करता है। योग हमारी तरंगों को बेहतर बनाता है। हम अपनी उपस्थिति से बहुत कुछ प्रेषित करते हैं, अपने शब्दों से भी अधिक। क्वांटम विज्ञान की भाषा में कहें तो हम सब तरंगें या लहरें छोड़ते हैं। जब हमारा किसी के साथ संचार टूट जाता है, तो हम प्राय: कहते हैं कि हमारी तरंगें नहीं मिलतीं। क्योंकि हमारी संचार करने की क्षमता हमारी संचार ग्रहण करने की क्षमता पर निर्भर करती है। यहां योग हमें मानसिक स्पष्टता पाने में सहायता करता है। योग हमारे अंदर कुशलताओं को विकसित करने में सहायता करता है। योग जोड़ने का काम करता है। योग के प्रस्तोता भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है, ‘योग कुशलता का क्रियान्वयन है।’ योग केवल एक व्यायाम नहीं है, अपितु यह आप किसी परिस्थिति में किस प्रकार संचार और क्रिया करते हैं, इस बात की कुशलता है। नयापन, पूर्वाभास, कुशलता और बेहतर संचार, यह सब योग के प्रभाव हैं। योग सदैव अनेकता में
नयापन, पूर्वाभास, कुशलता और बेहतर संचार, ये सब योग के प्रभाव हैं। योग सदैव अनेकता में एकता को बढ़ावा देता है। योग शब्द का अर्थ ही जोड़ना है, जीवन और अस्तित्व के विपरीत अंगों को जोड़ना
एक नजर
योग के जरिए व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन आता है
योग के कारण पूरी दुनिया में एक जागृति आई है जीडीपी के बदले जीडीएच की बात कर रहा यूरोपियन यूनियन
एकता को बढ़ावा देता है। योग शब्द का अर्थ ही जोड़ना है, जीवन और अस्तित्व के विपरीत अंगों को जोड़ना। अब चाहे तो कोई व्यावसायिक हो, राजनीतिक व्यक्ति हो या सामान्य व्यक्ति, हमें शांति चाहिए, हम मुस्कुराना चाहते हैं, हम प्रसन्न रहना चाहते हैं। प्रसन्नता तभी संभव है जब हम अप्रसन्नता के मूल कारण को ढूंढें।
जीडीपी से जरूरी जीडीएच
अप्रसन्नता अदृश्यता (संकुचित सोच), चिंता और तनाव के कारण होती है। अवसाद को दूर करने वाला योग यूरोपियन यूनियन में सकल घरेलू खुशी (जीडीएच) के विषय में काफी बात करते हैं। जीडीपी से हम जीडीएच की ओर बढ़ रहे हैं। योग में कुछ ऐसा है, जिससे उसमें सहायता मिल सकती है और यह एक और यह एक अत्यंत लाभदायक औजार (साधन) साबित हो सकता है। वर्तमान में हमारे जनजीवन का बड़ा भाग अवसाद से ग्रसित है। प्रोजैक नाम की अवसाद घटाने वाली दवा खा लेने भर से मदद नहीं मिलती। हमें कुछ ऐसा चाहिए जो प्राकृतिक हो। इतना प्राकृतिक हो, जितना हमारा श्वास, वह जिसके प्रयोग से हमारी आत्मा ऊपर उठे। योग का उद्देश्य है, हमारे दैनिक जीवन में होने वाली चिंता, तनाव और परिस्थितियां, जिनका हमें सामना करना पड़ता है, के होते हुए भी हमारे चेहरे पर मुस्कुराहट लाना।
विश्व योग दिवस विशेष
ऐप्स सिखाए योग
19 - 25 जून 2017
तकनीक
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आप अगर स्मार्ट तरीके से योग िसखना चाहते हैं तो आप योग से संबंधित ऐप्प या वेबसाइटों के जरिए घर बैठे ही योग सीख सकते हैं
पैरेंटल योगा
ज
इस ऐप्प में स्पेशल सेक्शन है, जिसमें बताया जाता है कि गर्भवती महिलाओं को कौन-कौन से व्यायाम करने चाहिए। इससे मां और बच्चे, दोनों के स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ता है।
प्रियंका तिवारी
माना स्मार्ट ऐप्स का है। लोग सब कुछ या तो अपने मोबाइल फोन में चाहते हैं या फिर लैपटॉप पर। योग की दुनिया भी इस तकनीकी क्रांति से दूर नहीं है। अगर घर पर ही योग सीखना चाहते हैं, तो इससे संबंधित ऐप्स या वेबसाइट आपकी मदद कर सकते हैं।
डेली योग
योग के दौरान पॉश्चर यानी आसन किस तरह होने चाहिए, यह आप इस ऐप्प से सीख सकते हैं। इसमें 100 यूनिक योग और मेडिटेशन एक्सरसाइज के साथ 500 से अधिक योग आसनों के बारे में बताया गया है। इसमें एचडी वीडियोज के साथ वॉयस इंट्रक्शंस भी दिए गए हैं। ऐप्प में अलग-अलग योग प्रोग्राम्स दिए गए हैं। योग सीखने की शुरुआत से लेकर आप फिटनेस, वेट लॉस, फ्लैक्सिबिलिटी, रिलैक्सेशन, बैलेंस, मेडिटेशन आदि के लिए अपना अलग प्लान बना सकते हैं। इस ऐप्प में टाइम टु वर्क, गेट इन शेप, फ्री योर माइंड, कीप एंड कॉम एंड कैरी ऑन जैसे फीचर्स दिए गए हैं। ऐप्प में फोरम फीचर भी है, जहां अपने विचार शेयर किए जा सकते हैं। यह ऐप्प एंड्रॉयड और आइओएस यूजर्स के लिए उपलब्ध है। इसे गूगल प्ले स्टोर और ऐप्प स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है।
योग-ट्रैक योग
अगर आप हठ योग, प्राणायाम, विन्यास योग, यीन योग, योगासान, अष्टांग योग, कोर योग, पावर योग, अयंगर योग और बाबा रामदेव की योग विधि को सीखना चाहते हैं, तो योग-ट्रैक योग ऐप्प को अपने स्मार्टफोन में इंस्टॉल कर लीजिए। यहां पर योग के स्टेप-बाई-स्टेप इंस्ट्रक्शंस दिए गए हैं। साथ ही, योग के क्लासेज भी चलाए जाते हैं, जिसके एचडी वीडियोज आप देख सकते हैं। इस ऐप्प की खासियत है कि यहां आप प्रोफेशनल इंस्ट्रक्टर से योग से संबंधित अपने सवाल भी पूछ सकते हैं। यहां वीकली प्रोग्रेस को भी ट्रैक किया जा सकता है।
योग डॉट कॉम एंड्रॉयड यूजर इसे गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं। इसके लिए एंड्रॉयड 4.0.3 या फिर ऊपर के वर्जन्स होने चाहिए।
पॉकेट योग
इस योग ऐप्प में 27 अलग-अलग सेशंस दिए गए हैं। यहां पर प्रत्येक योग पोज के बारे में डिटेल वॉयस और वीडियो इंस्ट्रक्शन गाइड मिल जाएंगे। इसमें 200 से अधिक योग पोजेज इलॅस्ट्रेटेड इमेज के साथ दिए गए हैं। इसमें योग पोज की डिक्शनरी भी दी गई है, जिसमें अलग-अलग पोज के बारे में जानकारी के साथ-साथ उसके फायदे भी बताए गए हैं। योग के दौरान म्यूजिक सुनना पसंद हो, तो डिफॉल्ट म्यूजिक सेटिंग की जगह म्यूजिक लाइब्रेरी से अपनी पसंद के म्यूजिक भी सुन सकते हैं। यह ऐप्प एंड्रॉयड और आइओएस यूजर्स के लिए उपलब्ध है। यूनिवर्सल ब्रीदिंग ऐप्प उन लोगों के लिए है, जो प्राणायम सीखना चाहते हैं। इसमें अन्य व्यायाम भी हैं। आप अपनी प्रोग्रेस को भी इस पर ट्रैक कर सकते हैं।
बाबा रामदेव ऐप्प
योग पर बात हो और बाबा रामदेव का जिक्र न हो, ऐसा हो नहीं सकता। बाबा रामदेव ऐप्प में योग के फायदों के बारे में बताया गया है। इसमें प्राणायम व विभिन्न आसनों की भी जानकारी दी गई है। इसमें यह भी बताया गया है कि किन रोगों के लिए कौन सा आसन करना चाहिए ।
फेशियल योगा
बहुत से लोग ब्यूटी प्रॉडक्ट्स पर पैसे खर्च करते हैं, मगर फेशियल योगा ऐप्प से इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। व्यायाम के जरिए ही आप फिर से त्वचा में रौनक ला सकते हैं। चेहरे पर जमा अतिरिक्त वसा को हटाने के लिए क्या करना चाहिए, यह भी इसमें बताया गया है। हिंदी और इंग्लिश समेत यह ऐप्प 85 भाषाओं को सपोर्ट करता है।
योग सीखने के लिहाज से उपयोगी ऐप्प है। इसमें 289 पोजेज और ब्रीदिंग एक्सरसाइज के बारे में जानकारी दी गई है। योग एक्सरसाइज के एचडी वीडियोज दिए गए हैं। आप अपनी फिटनेस गोल या फिर स्किल लेवल के हिसाब से पोजेज को सर्च कर सकते हैं। इसमें पहले से ही करीब 37 प्री-इंस्टॉल्ड प्रोग्राम्स हैं। सभी तरह के लोगों के लिए योग एक्सरसाइज की जानकारी दी गई है। यह बिगनर्स से लेकर एडवांस्ड लेवल तक है। प्रत्येक योग पोज के 3डी इमेज भी दिए गए हैं, जिससे आपको सीखने में आसानी होगी। एंड्रॉयड 4.0 या फिर उससे ऊपर के वर्जन्स वाले यूजर इसे गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं।
आर्ट ऑफ लिविंग
‘आर्ट ऑफ लिविंग डॉट ओरआरजी’ पर आपको योग ही नहीं, अन्य तरह के व्यायाम और ध्यान आदि की भी जानकारी मिलेगी। आर्ट ऑफ लिविंग का योग प्रोग्राम आपको कई तरह के आसान सिखाता है। इसमें बीमारियों के निदान के लिए कौन सा योग करना चाहिए, यह भी बताया गया है।
ध्यान फाउंडेशन
‘ध्यान फाउंडेशन डॉट कॉम योग’ के बारे में संपूर्ण जानकारी देती है। इसमें तंत्र, स्पिरिचुअल हीलिंग, वैदिक मंत्रों की भी जानकारी मिलती है।
ईशा फाउंडेशन
‘ईशा फाउंडेशन डॉट कॉम’ पर बच्चों और व्यस्कों दोनों के लिए खास योग प्रोग्राम बताए गए हैं।
बीकेएस अयंगर
‘बीकेएस अयंगर डॉट कॉम’ पर योग कार्यक्रम को 8 चरणों में बांटा गया है- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान धारणा और समाधि। इस वेबसाइट पर लकड़ी की चीजों और रस्सियों वगैरह के साथ योग करने के बारे में भी जानकारी दी गई है।
मत्स्यासन
इस आसन में शरीर का आकार मछली जैसा बनता है, इसीलिए यह मत्स्यासन कहलाता है। यह आसन से आंखों की रोशनी बढ़ती है और गला साफ रहता है
16 खुला मंच
19 - 25 जून 2017
‘दिल और दिमाग शांति और सद्भाव को आत्मा के दिव्य विचारों से प्राप्त कर सकते हैं’
शैलेश सृष्टि
लेखक वरिष्ठ सािहत्यकार और तीन दशकों से जनांदोलनों में सक्रिय
‘योग: कर्मसु कौशलम्’
-महर्षि पतंजलि
योग और भारत
भारतीय संस्कृति में कई ऐसे तत्व रहे हैं, जो मनुष्य और समाज के कल्याणकारी साझे से जुड़े हैं
यो
ग को लेकर बीते तीन सालों में दुनिया भर में जिस तरह से दिलचस्पी बढ़ी है, वह नए भारत के निर्माण का एक ऐसा सुलेख है, जिसमें आगे अभी बहुत कुछ लिखा जाना बाकी है। जिस संयुक्त राष्ट्र में युद्ध पीड़ितों को राहत तक के सवाल पर कूटनीतिक दीवारें खड़ी हो जाती हैं, वहां से योग के लिए समवेत स्वीकृति प्राप्त करना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल की तो सफलता है ही, यह भारत की सांस्कृतिक यात्रा का उत्तर-आधुनिक विस्तार भी है। निश्चित रूप से बधाई देनी होगी प्रधानमंत्री मोदी को, जिसने यह विवेक दिखाया कि भारत के लिए ‘विश्वगुरु’ होने से ज्यादा जरूरी है कि वह ‘विश्वबंधु’ बनकर दिखाए। भारतीय संस्कृति में कई ऐसे तत्व रहे हैं, जो मनुष्य और समाज के कल्याणकारी साझे से जुड़े हैं। वैसे भी ‘योग’ का शाब्दिक अर्थ ‘जोड़ना’ या ‘जुड़ाव’ ही है। इन तत्वों के साथ विलक्षण बात यह रही है कि पारंपरिक प्रवाह के साथ इनका क्षरण नहीं, बल्कि विकास हुआ है। खासतौर पर बीते दो दशकों में अमेरिका से लेकर यूरोप तक इस बात की चिंता बढ़ी है कि विकास का गंतव्य हम किसे मानें। यह भी कि विकास की उपलब्धियां गिनाने के नाम पर अगर हम शरीर और हृदय के स्तर पर बहुत कुछ खोते जा रहे हैं, तो क्या यह विकास का वांछित फलित है। गौरतलब है कि इन सारी चिंताओं के मूल में वह सोच है, जिसमें सैद्धांतिक रूप से यह मान लिया गया कि स्थूल भौतिकता को अपनाए बगैर मनुष्य तरक्की नहीं कर सकता। भारत का सांस्कृतिक पक्ष इसी मुद्दे पर सबसे प्रासंगिक जान पड़ता है। भौतिकता का जोर निस्संदेह बीते दशकों में भारत में भी बढ़ा है, पर आज भी भारतीय समाज का गठन कहीं न कहीं पारंपरिक है। इसीलिए जीवन और समाज को लेकर वह चिंता जो पूरी दुनिया को व्याकुल कर रही है, भारत के पास उसके लिए समाधानकारी रास्ता है। आज यह रास्ता योग के जरिए अगर पूरी दुनिया को दिख रहा है तो यह उस स्वभाव के कारण है, जिसमें एक भारतीय भी सबके हित में हम अपना हित और सबके विकास में अपना विकास देखता है।
धर्म, आस्था, परंपरा और दर्शन की भारतीय यात्रा में योग की उपस्थिति हमेशा बनी रही है। यही नहीं, योग और भारत के इस संबंध को वैश्विक आदर और स्वीकृति भी प्राप्त है
भा
रतीय दर्शन में योग की यात्रा लंबी है और अब भी जारी है। हमारी मान्यताअों में जहां शंकर आदि योगी हैं, तो वहीं कृष्ण योगेश्वर कहे जाते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता और बुद्ध की योग मुद्राओं में अद्भुत समानता है। ऋग्वेद से लेकर पतंजलि योग सूत्र तक योग का पाठ पढ़ाते हैं। मतलब यह कि योग का सिलसिलेवार इतिहास भले ही पतंजलि योगसूत्र से मिले, लेकिन भारतीय जीवन में योग हजारों साल से रचा बसा है। वेदों, उपनिषदों, स्मृतियों, पुरानों, बौद्ध और जैन धर्म के ग्रंथों में योग की चर्चा है। भगवान शंकर को योग का संस्थापक माना जाता है, इसीलिए उन्हें आदि योगी कहा गया है। ऋग्वेद में योग का उल्लेख मौजूद है। इसके माध्यम से ऋषि-मुनि और योगी गण सत्य एवं तप के अनुष्ठान से ब्रह्मांड के अनेक रहस्यों से साक्षात्कार करते रहे हैं। योग से व्यक्ति की चेतना, ब्रह्मांड की चेतना से जुड़ जाती है। व्यष्टि से समष्टि की यात्रा में योग महत्पूर्ण कारक है। क्योंकि योग से मन एवं शरीर और व्यक्ति एवं प्रकृति के बीच पूर्ण सामंजस्य की अनुभूति होने लगती है। यह चिंतन, सोच एवं कार्य के बीच एकीकरण एवं तालमेल स्थापित करता है। सदियों से योग की कई शाखाएं विकसित हुई हैं, लेकिन इस बात पर लगभग आम सहमति है कि योग का विकास पूर्व वैदिक काल में हुआ था। वैदिक काल में सूर्य को सबसे अधिक महत्व दिया गया। संभव है। इसी वजह से आगे चलकर 'सूर्य नमस्कार' की प्रथा विकसित हुई। प्राणायाम दैनिक संस्कार का हिस्सा था तथा यह समर्पण के लिए किया जाता था। हालांकि पूर्व वैदिक काल
में योग किया जाता था, महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्रों के माध्यम से उस समय विद्यमान योग की प्रथाओं, इसके आशय एवं इससे संबधि ं त ज्ञान को व्यवस्थित एवं कूटबद्ध किया। पतंजलि के बाद, अनेक ऋषियों एवं योगाचार्यों ने अच्छी तरह प्रलेखित अपनी प्रथाओं एवं साहित्य के माध्यम से योग के परिरक्षण एवं विकास में काफी योगदान दिया। गीता में कहा गया है, ‘योग: कर्मसु कौशलम्’। यानी जो योग की साधना करता है, उसके कर्मों में कुशलता आती है, निपुणता आती है। गीता में ये भी कहा गया है, ‘योगस्थ: कुरु कर्माणि’ यानी योग में रमकर कर्म करो। व्यास भाष्य में योग विद्या को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया है। यह तथ्य पूर्ण रूप से प्रमाणित है कि वेदों में निहित गूढ़ अर्थ का प्रतिपादन योग शास्त्रों में है। वेदों और पुराणों में तो योग और आसनों पर विस्तार से बात हुई है, लेकिन उसके साक्ष्य हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसी अति-विकसित सभ्यताओं में भी मौजूद रहे हैं। इन सभ्यताओं के अवशेषों की खुदाई में मिली में कई ऐसी मुहरें और अन्य वस्तुएं साक्ष्य के तौर पर पाई गई हैं, जिनसे प्रमाणित होता है कि भारतीय संस्कृति कितनी विकसित और उन्नत रही है। हड़प्पा कालीन मुहरों पर कई मुद्राएं अंकित हैं। ये मुद्राएं आसन और प्राणायाम की हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के इन सिक्कों पर पशुपति की योग आकृतियां हैं। योग का जो मौजूदा स्वरूप आज हमारे सामने है, उसका उल्लेख सबसे पहले कठोपनिषद में मिलता है। हालांकि योगाभ्यास का सबसे पुराना उल्लेख प्राचीनतम उपनिषद-
गीता में कहा गया है, ‘योग: कर्मसु कौशलम्’। यानी जो योग की साधना करता है, उसके कर्मों में कुशलता आती है, निपुणता आती है
विश्व योग दिवस विशेष वृहदअरण्यक में मिलता है। यही नहीं, वेद मंत्रों में प्राणायाम के अभ्यास का भी वर्णन है और छांदोग्य उपनिषद में भी इसका जिक्र मिलता है। वृहदअरण्यक उपनिषद में ‘योग याज्ञवल्क्य’ के एक प्रसिद्ध संवाद का भी जिक्र है जो ऋषि याज्ञवल्क्य और शिष्य ब्रह्मवादी गार्गी के बीच हुआ। इसमें सांस लेने की कई तकनीकें, शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़े आसन और ध्यान का भी उल्लेख है। गार्गी ने छांदोग्य उपनिषद में भी योगासन के बारे में बातें की हैं। कहा जाता है कि अथर्ववेद में संन्यासियों के एक समूह ने शरीर के विभिन्न तरह के आसनों के महत्व को समझाया वही आगे चलकर योग के रूप में विकसित हुआ। वेद और पुराण, तप, ध्यान और कठोर आचरण के माध्यम से शरीर, मन और आत्मा को अनुशासित रखने वाले ऋषि, मुनियों के ज्ञान से भरे पड़े हैं। भारतीय दर्शन में योग का सबसे विस्तृत उल्लेख ‘पतंजलि योगसूत्र’ में किया गया है। पतंजलि योग सूत्र ही अष्टांग योग का आधार बना। जैन धर्म की पांच प्रतिज्ञा और बौद्ध धर्म के योगाचार की जड़ें भी पतंजलि योगसूत्र में समाहित हैं। योगसूत्र में मानव चित्त को एकाग्र करके उसे सार्वभौमिक चेतना में लीन करने का विधान है। पतंजलि यो सूत्र के अनुसार चित्त की चंचलता को रोककर मन को भटकने से रोकना ही योग है। आगे चलकर योग की अनेक शाखाएं विकसित होती गई हैं, जिनमें यम, नियम एवं आसन और हठयोग, राजयोग, ज्ञानयोग और समाधि जैसी धाराएं भी शामिल हैं। भारतीय संस्कृति की सबसे पुरानी विरासत के रूप में योग आधुनिक काल में और भी अधिक प्रासंगिक हो गई है। आज की भागदौर भरी जिंदगी में योग एकमात्र साधन है, जो किसी व्यक्ति के तन-मन और आत्मा को शुद्ध कर प्रकृति को जीवंत बनाए रख सकता है। इसीलिए स्वामी विवेकानंद कहते हैं, ‘हम मानते हैं कि हर कोई दिव्य है, भगवान है। हर आत्मा एक सूर्य है जो अज्ञानता के बादलों से ढंका है, आत्मा और आत्मा के बीच अंतर बादलों की इन परतों की तीव्रता में अंतर की वजह से है।’ दरअसल योग इसी अज्ञानता के बादलों को हटाने का माध्यम है। हजारों-हजार साल से हमारे पूर्वजों ने इस सांस्कृतिक धरोहर को विश्व कल्याण के लिए संजो कर रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से योग को उसी लक्ष्य तक पहुंचाने की अद्भुत कोशिश की जा रही है। 21 जून, 2015, यही वो दिन है जब सारी दुनिया ने योग ज्ञान को आत्मसात करने के प्रति अपनी ललक दिखाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर इस दिवस को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ के रूप में पहचान मिली। हजारों-हजार साल की जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर थी उसका डंका एक साथ दुनिया के 192 देशों में बजा। भारत की इस प्राचीन विरासत ने एकबार फिर से देश का मस्तक गौरव से ऊंचा कर दिया, जो सात-आठ सौ वर्षों से सिमट कर रह गया था। उस ऐतिहासिक दिवस के तीन साल पूरे हो रहे हैं। सारी दुनिया भारत के योग ज्ञान को पाकर गौरव कर रही है।
19 - 25 जून 2017
राकेश कुमार
लेखक नेशनल बुक ट्रस्ट के डिप्टी डायरेक्टर हैं और कई सामाजिक-सांस्कृतिक अभिक्रमों से लंबे समय से जुड़े हैं
खुला मंच
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बांग्लादेश का अनुभव और योग
डिप्रेशन आज एक सिंड्रोम की तरह है, जो हर विकसित देश और समाज में तेजी से उभर रहा है। योग की मौजूदा दरकार की जमीन इस सिंड्रोम के कारण ही तैयार हुई है
आ
धुनिक विकास का सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि इससे लोगों के जीवन में आराम और सुविधाएं तो बढ़ी हैं, पर उनकी जिंदगी में खुशी के बजाय तनाव बढ़ गया है। तनाव या डिप्रेशन आज एक ऐसे सिंड्रोम की तरह है, जो हर विकसित देश और समाज में तेजी से उभर रहा है। बात करें योग की तो इसकी मौजूदा जरूरत की जमीन इस सिंड्रोम के कारण ही तैयार हुई है। योग के बिना मानसिक तनावों से जर्जर होता आज का मनुष्य संतोष और आनंद की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था। जैसा कि योग के बारे में योग गुरु बताते रहे हैं कि यह कोई पुरातन व्यायाम पद्धति नहीं है। योग एक मानवतावादी सार्वभौम जीवन दर्शन है। यही नहीं, यह भारतीय संस्कृति का बीज तत्व भी है। शताब्दियों से भारतीय समाज में योग एक परंपरा की तरह विद्यमान रहा है। आज जबकि जीवन में सूक्ष्म के बजाय स्थूल तत्व हावी हो गए हैं तो जीवनानुभव का हृदयपक्ष गौण हो गया है। इस कारण संवाद और संवेदना से जुड़ने वाला जीवन और समाज नैराश्य के अंधेरे में डूबता जा रहा है। यह अंधेरा हर उम्र के लोगों में है। कहीं यह आत्महीनता के तौर पर उभर रहा है, तो कहीं हिंसक निराशा की शक्ल ले रहा है। गहराई से देखें तो आतंक से लेकर हर तरह के अतिवाद के पीछे यही अंधेरा है, यही निराशा है। बांग्लादेश में जब कुछ उच्च शिक्षित छात्रों ने जानबूझकर बारूदी
हिंसा को अंजाम दिया इसको लेकर वहां का समाज एकदम से चौंक गया। इस तरह की हिंसा की प्रवृति का अपने आसापास सिर उठाते देखना, उनके लिए बिल्कुल नई बात थी। नतीजतन, इस घटना को लेकर वहां के प्रबुद्ध वर्ग के बीच काफी चर्चा हुई। इस बारे में इन लोगों ने अखबारों और सोशल मीडिया में भी काफी लिखा। तमाम लोग एक तरफ से एक ही बात दोहरा रहे थे कि पिछले कुछ दशकों में उनके देश के एक खास वर्ग में नई तरह की संपन्नता आई है। यह पूरे देश का सच भले न हो, पर इस सचाई को देखकर वहां के लोगों में एक नई तरह की लालसा पैदा हुई है। इस तरह वहां एक दोहरा संकट पैदा हुआ। एक तो शिक्षित व संपन्न वर्ग के युवा अपनी जिंदगी में आगे की दिशा को लेकर अंधेरे में भटक रहे हैं, वहीं दूसरी तरह देश में पैदा हुए नए प्रभु वर्ग
‘
स्वच्छ पहल
सुलभ स्वच्छ भारत’ का नया अंक पढ़ा। स्वच्छता को लेकर जो सामग्री प्रकाशित की गई है वह प्रशंसनीय है। अब देश भर में लोग सक्रिय रूप से स्वच्छ भारत अभियान में शामिल हो रहें है। स्वच्छ भारत मिशन को पूरा करने के लिए लोग छोटी-छोटी पहल कर रहें हैं। भरत को स्वच्छ बनाने के लिए शौचालय के उपयोग को बढ़ावा देना जरूरी है। लोग अब शौचालय का उपयोग करने के प्रति जागरूक हो रहे हैं । शौचालय का उपयोग करने के प्रति जागरूक करने के लिए कई विद्यालयों में शौचालयों को आकर्षक बनाया जा रहा है। यह शौचालय के उपयोग को बढ़ावा देने की एक अनोखी पहल
की जीवनशैली को लेकर बाकी देश-समाज में एक नई तरह की सनक पैदा हुई। नतीजा अंधेरे में भटकाव का एख सर्वथा नया सिलसिला बांग्लादेश में शुरू हुआ, जिसका सबसे बड़ा प्रटीकरण वहां हुई आतंकी हिंसा थी। योग को जब से ‘विश्व योग दिवस’ के रूप में नई स्वीकृति मिली है, तब से न सिर्फ बांग्लादेश में, बल्कि अरब देशों समेत यूरोप, अफ्रीका और अमेरिका में इसे लेकर एख नई ललक पैदा हुई है। यह ललक है भौतिकवादी, क्लेशमय जीवन से मुक्ति का। थोड़ा-सा नियमित आसन और प्राणायाम हमें निरोगी तथा स्वस्थ रख सकता है। यम-नियमों के पालन से हमारा जीवन अनुशासन से प्रेरित होता है और फिर यह हमारे चरित्र में अकल्पनीय परिवर्तन लाता है। धारणा एवं ध्यान के अभ्यास से लोग न केवल तनावरहित होते हैं, वरन कार्यकुशलता में भी पारंगत हो सकते हैं। इस तरह हम अपने उत्थान के साथ-साथ समाज तथा राष्ट्र के उत्थान में भी सहभागी हो सकेंगे। योग को भारतीय दर्शन में इसीलिए भी प्राचीन समय से महत्व प्राप्त है, क्योंकि गीता में योग की चर्चा है। कृष्णा द्वारा अर्जुन को सांख्ययोग तथा कर्मयोग के बारे में ज्ञान देना इसी बात को दिखलाता है कि जीवन संयम, विवेक और उद्यम का नाम है। इसके बाद की सारी लालसा, सारी तृष्णा, सारा मोह भटकाव भर है और कुछ नहीं। कह सकते हैं कि योग, भटकाव से मुक्ति के साथ जीवन की सार्थक दिशा का नाम है।
है। स्वच्छता को लेकर लोग सोशल मीडिया में भी कई अभियान चला रहे हैं। पूरे देशभर में लोग अपनी सोच और छोटी-छोटी पहल से भारत को एक स्वच्छ देश बनाने का संकल्प पूरा करने में जुटे हुए हैं। ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ में लड़कियों के हक के लिए लड़ने वाली ‘कन्याश्री फाइटर्स’ वाला आलेख अच्छा है। ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ हमेशा से ऐसी खबरें प्रकाशित करता है जो लोगों को प्रेरणा देती है। मुझे खुशी है कि आपके अखबार ने महिलाओं द्वारा की गई इस नेक पहल को प्रकाशित किया। ये फाइटर्स समाज को बदलने के लिए अच्छा काम कर रही है। आपसे अनुरोध है कि इस तरह के आलेख को प्रकाशित करते रहें ताकि लोगों को समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा मिलती रहे। पवन सिंह, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश
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19 - 25 जून 2017
योग पथ पर देश
दुनिया को योग का उपहार देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सही मायने में विश्व बंधु बन गए हैं। ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ इसी विश्व बंधुत्व की भावना को व्यक्त करने का सबसे बड़ा दिन है। जब पूरी दुनिया एक साथ प्राणायाम और सूर्य नमस्कार करती है, तो भारतीय सांस्कृतिक चेतना का सूरज एक नई चमक से भर उठता है
फोटाेः प्रभात पांडे
नई दिल्ली में राजपथ पर स्थित वोट क्लब के लॉन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय शहरी विकास मंत्री एम.वेंकैया नायडू और योगगुरु बाबा रामदेव विभिन्न योगाभ्यास करते हुए। ये तस्वीरें बताती हैं कि योग का भारतीय जीवन से कितना गहरा जुड़ाव है
19 - 25 जून 2017
फोटो फीचर
योग स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम दवा तो है ही, एक शांत और निर्मल जीवन के लिए भी उपयोगी है। एकाग्र मन और मजबूत तन योग के सहारे ही आज पाया जा सकता है
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20 योग गुरु
विश्व योग दिवस विशेष
19 - 25 जून 2017
भारतीय योग के प्रदीप्त नक्षत्र मौजूदा दौर में योग को सर्वाधिक ख्याति दिलाने का श्रेय बाबा रामदेव को है। योग को आधुनिक जीवनशैली में स्थान दिलाने वाले इस योगगुरु की जीवनयात्रा साधारण से असाधारण होने की यात्रा है
सुप्त-वज्रासन
यह आसन वज्रासन की स्थिति में सोए हुए किया जाता है। इस आसन में पीठ के बल लेटना पड़ता है, इसीलिए इस आसन को सुप्त-वज्रासन कहते हैं, जबकि वज्रासन बैठकर किया जाता है। इससे घुटने, वक्षस्थल और मेरुदंड को आराम मिलता है
एक नजर
मौ
एसएसबी ब्यूरो
जूदा समय में देश के अंदर और बाहर जिस व्यक्ति को योग और आयुर्वेद को लोकप्रिय बनाने का सर्वाधिक श्रेय जाता है, वे हैं योगगुरु बाबा रामदेव। उनकी प्रसिद्धि निस्संदेह आज की तारीख में सबसे ज्यादा है पर उनके प्रारंभिक जीवन के बारे में ज्यादा सामग्री उपलब्ध नहीं है। उन्होंने जब-तब अपने आरंभिक जीवन के बारे में जरूर कुछ बातें कही हैं और इसी के आधार पर हम उनके शुरुआती जीवन का एक स्थूल रेखाचित्र खींच पाते हैं। संभवत: उनका जन्म 1965 में हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले में अलीपुर के नारनौल गांव के एक सामान्य परिवार में हुआ। माता-पिता ने उनका नाम रामकृष्ण यादव रखा। उनकी जीवनी ‘योगगुरु स्वामी रामदेव’ के अनुसार उन्होंने गांव के विद्यालय में पांचवीं कक्षा तक अध्ययन किया और एक प्रखर छात्र के रूप में अपना स्थान बनाया। इसके बाद वे निकट के गांव शहजादुर के विद्यालय में दाखिल हुए और आठवीं
कक्षा तक अध्ययन किया। चूंकि गांव में बिजली की व्यवस्था नहीं थी, अत: उन्होंने किरोसिन से जलनेवाले लैंप की रोशनी में अध्ययन किया। उनके पिता द्वारा खरीदी गई पुरानी पाठ्य पुस्तकें ही उनकी पाठ्य सामग्री होती थीं। उनके परिवार में उनके माता-पिता, भाई और बहन थे, पर अब उन सबों के साथ उनका संबंध कुछ खास नहीं रह गया है। रामदेव के बचपन ने उनके भविष्य के जीवन पर एक चिरस्थायी प्रभाव डाला था। जब वे काफी छोटे थे, उनके शरीर का बायां हिस्सा पक्षाघात से ग्रस्त हो गया। उनके अनुसार, योग के माध्यम से ही उन्होंने अपने शरीर की संपूर्ण सक्रियता प्राप्त की और पूर्णत: स्वस्थ हो सके। ऐसा प्रतीत होता है कि रामदेव की पक्षाघात पीड़ित दशा और योग द्वारा इसके उपचार ने उन्हें जीवन के लय-ताल के प्रति एक दूसरा रुख अपनाने को प्रेरित किया। इस असामान्य अनुभव ने उन्हें अपने जीवन को एक ऐसे पथ ले जाने को प्रेरित किया, जो उन्हें ज्ञान की तह और उनके जीवन के वास्तविक उद्देश्य की ओर ले जा सकता था। शीघ्र ही यह युवक
जन्म 1965 में हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के नारनौल गांव में
काफी मुश्किलों के बीच उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की आठवीं तक की पढ़ाई के बाद गृहत्याग करने का फैसला
परिवार, समाज और औपचारिक शिक्षा के बंधनों से परे सामाजिक रूप से लाभदायी भूमिका के एक नए आयाम की खोज करने के लिए जिज्ञासु हो गया। जैसा वे बाद में स्मरण करते हैं- ‘मैंने जीवन के आरंभ में ही यह सीखा कि हमारे देश में स्वास्थ्य, शिक्षा और संपत्ति वितरण में गहन असंतुलन है।’ इस प्रकार समस्त रुकावटों और अनिश्चितताओं के साथ इस बालक की तीर्थ-यात्रा शुरू हुई। किशोर रामदेव के आध्यात्मिक कैरियर में पहला निर्णायक मोड़ तब आया जब उन्होंने आठवीं कक्षा तक पढ़ाई पूरी करने के बाद घर छोड़ दिया और हरियाणा के रेवाड़ी जिले के किशनगढ़ घसेदा के खानपुर गांव में
19 - 25 जून 2017
विश्व योग दिवस विशेष आचार्य बलदेव द्वारा स्थापित गुरुकुल से जुड़ गए। आचार्य ने अपने नए शिष्य को पाणिनि के संस्कृत व्याकरण और वेद एवं उपनिषद के ज्ञान से परिचय करवाया। इसी समय, उन्होंने गहन आत्मानुशासन और ध्यानमग्नता का अभ्यास भी शुरू किया। यद्यपि वे आर्यसमाज के साथ औपचारिक रूप से नहीं जुड़े थे, फिर भी इस दौरान वे स्वामी दयानंद के आदर्शों से अत्याधिक प्रभावित थे। रामकृष्ण ने संसार से वैराग्य ले लिया और संन्यासी का चोगा पहना तथा ‘स्वामी रामदेव’ के नाम से लोकप्रिय हुए। वे बताते हैं, ‘मैं किसी अन्य की प्रेरणा अथवा प्रभाव के चलते संन्यासी नहीं बना। जब मैं चार साल का था, तब से ही मैं संन्यासी बनना चाहता था। मुझमें कभी भगोड़ी मानसिकता नहीं थी।’ तब वे हरियाणा के जींद जिला चले गए, जहां वे आचार्य धर्मवीर के गुरुकुल कल्व में शामिल हो गए और हरियाणा के ग्रामवासियों को योग की शिक्षा देने लगे। किंतु रामदेव की खोज अभी पूरी नहीं हुई थी। पूर्ववर्ती आध्यात्मिक गुरुओं की भांति रामदेव के भटकते मन ने उन्हें हिमालय जाने को प्रेरित किया, जहां उन्होंने अनेक आश्रमों का भ्रमण किया- वहां के मनीषियों द्वारा अभ्यास किए जा रहे योग व ध्यानमग्नता की अपनी समझदारी और दक्षता बढ़ाते
हुए। गंगोत्री ग्लेशियर के निकट गुफा में गहन ध्यानमग्नता में तल्लीन रहने के दौरान उन्हें इच्छित प्रबुद्धता का बोध हुआ, जिसने उन्हें उनके जीवन के वास्तविक मिशन, जिसको समग्र रूप से जानने का प्रयास वे वर्षों से कर रहे थे, का ज्ञान दिया। ‘जब मैं हिमालय में था, गहन चिंतन किया करता था, मेरे अंदर आंतरिक संघर्ष चल रहा था। मैं सोचता था, मैं यहां क्या कर रहा हूं? संन्यासी बंधुत्व-मानवता के कल्याण के लिए है। यदि मेरा जीवन इस स्थान पर समाप्त हो जाता है, तब थोड़ा-बहुत जो ज्ञान मुझमें है, वह मेरे साथ समाप्त हो जाएगा।’ वहीं उनकी मुलाकात अपने भविष्य के सहयोगियों आचार्य बालकृष्ण और आचार्य कर्मवीर के साथ हुई, जो उनके द्वारा शीघ्र ही स्थापित किए जाने वाले मिशन के बहुमूल्य सहयोगी बनने वाले थे। इसी स्थान पर उनकी मुलाकात अपने भविष्य के अन्य सहयोगियों आचार्य मुक्तानंद और आचार्य वीरेंद्र के साथ भी हुई। 1993 में रामदेव ने हिमालय छोड़ा और हरिद्वार आ गए। सन 1995 में वे कृपालु बाग आश्रम के अध्यक्ष स्वामी शंकरदेव के शिष्य बन गए। यह आश्रम क्रांतिकारी से आध्यात्मिक गुरु बने स्वामी कृपालु देव द्वारा सन 1932 में स्थापित किया गया था। मेवाड़, राजस्थान में यति किशोर चंद्र के नाम
‘मैं किसी अन्य की प्रेरणा अथवा प्रभाव के चलते संन्यासी नहीं बना। जब मैं चार साल का था, तब से ही मैं संन्यासी बनना चाहता था। मुझमें कभी भगोड़ी मानसिकता नहीं थी’ – बाबा रामदेव
से जन्मे यह संन्यासी सक्रिय स्वंतत्रता सेनानी थे। वे बंगाल के क्रांतिकारियों द्वारा स्थापित विप्लव दल के सदस्य थे और उत्तरी भारत में ‘युगांतर’ एवं ‘लोकांतर’ नामक समाचार-पत्रों के वितरण की जिम्मेदारी उन पर थी। ये समाचार-पत्र स्वंतत्रता सेनानियों के मुखपत्र थे और ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित थे। ब्रिटिश सरकार ने इन समाचार-पत्रों के प्रकाशन स्थल का पता लगाने और इनके वितरण को रोकने का भरपूर प्रयास किया, पर विफल रही। किशोर चंद्र ने प्रसिद्ध क्रांतिकारी रास बिहारी बोस (जो लॉर्ड हार्डिग बम प्रकरण में शामिल थे और जिनके ऊपर ब्रिटिश सरकार ने 3 लाख रुपए का इनाम रखा था) सहित अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को शरण दी थी। हरिद्वार में प्रथम सार्वजनिक पुस्तकालय स्थापित करने का श्रेय किशोर चंद्र को जाता है। इस पुस्तकालय में लगभग 3,500 पुस्तकों का संग्रह था। उन्होंने राष्ट्रवादी ढांचे के अधीन शिक्षा प्रदान करने के लिए क्षेत्र में अनेक विद्यालयों की स्थापना की और नवयुवकों के बीच स्वतंत्रता संग्राम की ठोस जमीन तैयार की। इस अवधि के दौरान किशोर चंद्र ने संन्यास ले लिया और स्वामी कृपालु देव के नाम से पुकारे जाने लगे। वे बाल गंगाधर तिलक, मदन मोहन मालवीय, मोतीलाल नेहरू, महात्मा गांधी चितरंजन दास, गणेश शंकर विद्यार्थी, वीजे पटेल, हकीम अजमल खां, जवाहरलाल नेहरू, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पुरुषोत्तम दास टंडन और गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के संस्थापक स्वामी श्रद्धानंद के करीबी सहयोगी थे। वे सब प्राय: उनके आश्रम में आया करते थे। स्वामी कृपालु देव ‘विश्व ज्ञान’ नामक पत्रिका प्रकाशित करते थे, जो स्वतंत्रता आंदोलन का मुखपत्र था। उन्होंने 'वेद गीतासार', 'जीवन मुद्रा गीता' और 'आत्मब्रह्म बोधमाला' सहित अनेक पुस्तकों की रचना की। सौ वर्ष की आयु में सन् 1968 में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद स्वामी शंकरदेव उनके उत्तराधिकारी बने। 1995 में अपने गुरु से दीक्षा प्राप्त करने के बाद बाबा रामदेव ने लोगों के बीच योग और इसके चिकित्सकीय लाभों के प्रचार-प्रसार का कार्य छोटे स्तर पर आरंभ किया। योग और आयुर्वेद के महत्व पर तैयार परचों का वितरण करते हुए वे हरिद्वार की सड़कों पर घूमा करते थे। शीघ्र ही उन्होंने मानव शरीर पर योग का प्रयोग शुरू किया और पांच वर्षों से भी अधिक समय में विस्तारपूर्वक किए गए शोध के उपरांत उन्होंने अपना योग स्वास्थ्य सिद्धांत स्थापित किया, जो अब विश्व-प्रसिद्ध है। 2002 में अपनी पहली सार्वजनिक सभा में उन्होंने इस सिद्धांत को प्रकट किया। 2003 में योग उपचार कैंपों को शुरू किया गया और अगले साल प्रथम आवासीय कैंप लगाया गया। ऐसा लगता है कि व्यापक तैयारी के बाद रामदेव ने अपने आगमन की घोषणा की। ऐसा बताया जाता है कि उन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी और सुयोग्य एलोपैथिक डॉक्टरों से अनेक रोगों के उपचार तरीकों और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की शिक्षा ग्रहण की। जैसा उनके बाद के संभाषण में दिखता है, कि चिकित्सीय शब्दावली और रोगों की प्रकृति एवं ड्रग-थेरेपी पर उनकी पकड़ और ज्ञान विशाल है।
योग गुरु
वज्रासन
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वज्रासन से जांघें मजबूत होती हैं। शरीर में रक्त संचार बढ़ता है। पाचन क्रिया के लिए यह बहुत लाभदायक है। भोजन करने के बाद इसी आसन में कुछ देर बैठना चाहिए
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विश्व योग दिवस विशेष
19 - 25 जून 2017
हर उम्र में योग
योग शरीर और मन दोनों के आरोग्य की कुंजी है। यही कारण है कि इसे करने वाले हर उम्र के लोग हैं। यहां हम बता रहे हैं चार साल से लेकर 98 साल के ऐसे योग शिक्षकों के बारे में जिन्होंने योग के क्षेत्र में अपनी अद्वितीय परिचय देकर सबको चौंकाया है
पवनमुक्तासन
पवनमुक्त का अर्थ है पवन या हवा को मुक्त करना। यह आसन पेट की वायु निकालने में मदद करता है, इसी कारण इस आसन का नाम पवनमुक्तासन है। यह पेट एवं दूसरी इन्द्रियों की मालिश और पाचन क्रिया में मदद करता है
विश्व की सबसे छोटी योगा इंस्ट्रक्टर इलाहाबाद की श्रुति को दुनिया की सबसे छोटी योगा इंस्ट्रक्टर माना जाता है। वह छह साल की उम्र से योग शिक्षा दे रही है
अपनी उम्र से कई गुना बड़े शिष्यों को पूरा मान देती हैं। श्रुति की मां भी उसकी योग पाठशाला मे क्लास करती हैं। श्रुति की मां रीता पांडेय और पिता कृष्ण कुमार पांडेय का कहना है कि उनकी बेटी के शिविर में ऐसे लोग भी योग करने आते हैं जो पेशे से डॉक्टर भी हैं । काफी दिनों से बीमार हते हैं कि प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती । इलाहाबाद की श्रुति ने अपने कठिन अभ्यास चल रहे डॉ. एस.एस शुक्ल योग करके अब अपने आप को बिल्कुल फिट महसूस कर रहे और प्रण से इसे साबित कर दिखाया है। हैं। श्रुति का सपना है कि पूरे विश्व मे आलम यह है कि श्रुति खिलौनों से खेलने योग की शिक्षा दें ताकि सभी लोग योग की उम्र में ही योग के 84 आसनों में करके निरोग रह सके। पारंगत हो गई। छह साल की उम्र से योग श्रुति दो साल से इलाहाबाद के सिखा रही श्रुति पांडे के अब तक दर्जनों झूसी कस्बे में स्थित ब्रह्मानंद शिष्य बन चुके हैं। साथ ही वह सैकड़ों लोगों को योग के जरिए श्रुति दो साल से इलाहाबाद सरस्वती आश्रम में योग सिखा रही है। यह आश्रम श्रुति के निरोग बना चुकी है। के झूसी कस्बे में स्थित योग गुरु हरि चेतन ने 35 साल तीन साल की उम्र में बड़े भाई को योग करते श्रुति देखती ब्रह्मानंद सरस्वती आश्रम पहले स्थापित किया था। यहां तो उसका बाल मन वैसा ही सुबह साढ़े पांच बजे श्रुति में योग सिखा रही है। यह हर करने के लिए मचलने लगता। योग की शिक्षा देती है। सफेद आश्रम श्रुति के योगगुरु पजामा और लाल टी शर्ट पहने योग के लिए लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज करा हरि चेतन ने 35 साल पहले श्रुति की कक्षा में तीस लोग चुके बड़े भाई हर्ष ने उसकी योग सीखते हैं। इनमें शहर के स्थापित किया था मानसिकता को समझा और नामी उद्योगपतियों से लेकर श्रुति को योग सिखाने लगे। तीन अध्यापक, गृहणियां और साल की उम्र से शुरू हुआ श्रुति का यह सफर छह बुजुर्ग शामिल हैं। श्रुति के 67 वर्षीय गुरु हरि चेतन साल की उम्र में पहली बार निखर कर तब सामने के मुताबिक, ‘वह बहुत ही तेजी से हर चीज को आया जब वह योग सीखने नहीं, बल्कि सिखाने के सीखती है जो कि उसकी उम्र के अन्य बच्चों के लिए लिए आसन लगाकर बैठी। आज श्रुति के देशभर में बहुत ही मुश्किल है। उसे दुनिया की सबसे कम उम्र तकरीबन दो दर्जन शिष्य हैं और सैकड़ों लोग उसके की योग इंस्ट्रक्टर होने का सौभाग्य प्राप्त है। योग योग शिविर में आकर निरोग हो चुके हैं। युवतियां की कठिन से कठिन मुद्राओं को श्रुति बड़ी आसानी श्रुति की दीवानी हैं और अपने से काफी छोटी उम्र से कर लेती है। यहां तक कि अपने नन्हे से हाथों पर की गुरू को वे बड़े ही ध्यान से सुनती हैं। श्रुति भी वह अपने पूरे शरीर को टिका लेती है।’
शीर्षासन में वर्ल्ड रिकॉर्ड
दसवीं के छात्र अनुज के नाम है कम उम्र में लंबे समय तक शीर्षासन करने का विश्व खिताब
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रामपुर ब्लॉक का रहने शिमलावाला जिलेअनुजकेसीनियर सेकेंडरी स्कूल
गानवीं में 10वीं कक्षा में पढ़ता है। पिछले एक साल से अनुज योग समिति, गानवीं में योग सीख रहा है। यह लगातार योगाभ्यास का नतीजा है कि अनुज लगातार ढाई घंटे तक शीर्षासन करने में माहिर हो चुका है। उसके योग गुरु दावा करते हैं कि अनुज का प्रदर्शन उम्मीद से कहीं ज्यादा बेहतर है। समय के साथ अनुज के प्रदर्शन में और सुधार आ रहा है। शीर्षासन के चलते अनुज अपने स्कूल का हीरो बन गया है। कम उम्र में लंबे समय तक शीर्षासन करने का वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके अनुज का कहना है कि उसे योग करने में काफी आनंद आता है। वह हर रोज सुबह साढ़े तीन बजे उठकर योग का अभ्यास करता है। वह बताता है कि उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि शीर्षासन में वह किसी दिन विश्व रिकॉर्ड स्थापित करेगा। अपने इस कीर्तिमान का श्रेय वह अपने योगगुरु रंजीत सिंह को देते हैं।
विश्व योग दिवस विशेष
19 - 25 जून 2017
मिसाल
वर्ल्ड रिकॉर्ड की खुशी
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सांस की समस्या से पीड़ित 13 साल की खुशी ने चक्रासन करने में बनाया वर्ल्ड रिकॉर्ड
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च्चे अगर कुछ करने की ठान लें तो अच्छे अच्छों को पीछे छोड़ देते हैं। पूर्ण चक्रासन सबसे कठिन योगासनों में एक है, लेकिन एक 13 साल की बच्ची इसे जितनी आसानी से कर लेती है कि उसे देखकर अच्छे-अच्छे योग गुरु भी चकित रह जाएं। मैसूर की रहने वाली खुशी नाम की इस बच्ची ने इस बेहद कठिन आसान को एक मिनट में 15 बार करके वर्ल्ड रिकॉर्ड कायम किया है। खुशी
के पिता रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारी हैं। दिलचस्प है कि खुशी को कभी सांस से संबंधित स्वास्थ्य समस्या थी। इसीलिए उसके पिता उसे योग गुरु के पास ले गए। धीरे-धीरे खुशी पूरी तरह से स्वस्थ हो गई, लेकिन उसने आसनों का अभ्यास जारी रखा और अब वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने में कामयाब रही। अभ्यास के दौरान खुशी निरालांबा पूर्ण चक्रासन को एक मिनट में 13 बार
छोटी उम्र में बन गया योग गुरु
करती थी, लेकिन रिकॉर्डिंग के दौरान उसने 15 बार करके अपना भी रेकॉर्ड तोड़ा। गोल्डन बुक ऑफ रिकॉर्ड्स के प्रतिनिधि संतोष अग्रवाल ने हाल में ही खुशी को सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया। दरअसल, बीते तीन सालों में खुशी ने योग के क्षेत्र में कई नेशनल और इंटरनेशनल मेडल हासिल किए हैं। 2014 में उसने चीन में आयोजित अंडर17 इंटरनेशनल योगा कॉम्पिटिशन में सिल्वर मेडल हासिल किया। इसी तरह पिछले साल वियतनाम में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में उसने 2 गोल्ड और 2 सिल्वर मेडल पर कब्जा किया। अपनी भविष्य की योजनाओं को लेकर खुशी कहती हैं, 'मैं योग शिक्षक बनना चाहती हूं और कई रिकॉर्डस बनाना चाहती हूं। इसके साथ ही मेरा लक्ष्य आईएएस अफसर बनना भी है।'
साढ़े चार साल का शिवम पढ़ाई करने के साथ एक टीम बनाकर साथी बच्चों को योग शिक्षा दे रहा है
नाम पर योगजिससेआज प्रेरितभारत मेंहोकरएक कईऐसी तरहप्रेरणाकीका प्रतिभाएं
सामने आ रही हैं। एक ऐसी ही प्रतिभा का नाम है शिवम सरस्वती। अक्सर लोग पढ़ाई लिखाई करने के बाद नौकरी करने की सोचते हैं। समाज में कुछ लोग ही ऐसे होते हैं जो समाज सेवा करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह के कम लोग ही देखने को मिलते हैं, जो समाज सेवा के कार्य में जुटे हैं। लेकिन साढ़े चार साल की उम्र से ही शिवम न केवल पढ़ाई करने के साथ खुद को स्वस्थ रख रहा है, बल्कि एक टीम बनाकर साथी बच्चों को भी निरोग रहने का मंत्र भी दे रहा है। उत्तर प्रदेश के संभल तहसील के अझरा गांव निवासी गजेंद्र के साढ़े चार वर्षीय पुत्र शिवम
सरस्वती विद्या मंदिर सीनियर सेकेंडरी स्कूल चंदौसी रोड में यूकेजी का छात्र है। शिवम को योग से प्यार है। टीवी पर जहां बच्चे कार्टून नेटवर्क देखते हैं, वहीं वह योग गुरु बाबा रामदेव का योग देखता है। शिवम न केवल पढ़ाई में अव्वल है, बल्कि अपने शरीर को स्वस्थ रख विद्यालय में प्रतिदिन उपस्थित भी रहता है। विद्यालय की तरफ से उसे सौ फीसदी उपस्थिति से सम्मानित भी किया गया है। पढ़ाई के साथ-साथ वह हमउम्र एक दर्जन बच्चों को वह सुबह होते ही निरोग रहने का मंत्र दे रहा है। बच्चे भी शिवम से खुशी-खुशी योग सीख रहे हैं। शिवम दो बार योग गुरु स्वामी रामदेव से सात दिवसीय योग का प्रशिक्षण प्राप्त कर चुका है।
शिवम बताता है कि मुझे योग की शिक्षा बचपन से ही मिली है। योग से न केवल शरीर निरोग रहता है, बल्कि इससे सुखी जीवन जीने का मार्ग भी मिलता है। इसीलिए वह योग को प्राथमिकता देता है। शिवम के विद्यालय के प्रधानाचार्य कृष्णकांत द्विवेदी बताते हैं, ‘शिवम पढ़ाई में तो अव्वल है ही, उसका कक्षा में व्यवहार भी अच्छा है। वह सभी शिक्षकों का पूरा सम्मान करता है और शिक्षक भी उसे भरपूर प्यार देते हैं।’
98 साल की उम्र में भी योग
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दक्षिण भारत की 98 वर्षीय वी नानम्मल को योग में है महारत, फिटनेस वीडियो देख हैरान रह जाएंगे आप
गर आप नियमित योग करते हैं तो लंबी उम्र तक आपका शरीर स्वस्थ तो रहेगा ही आपकी शारीरिक स्फूर्ति भी बनी रहेगी। कोयंबटूर की रहने वाली 98 वर्षीय वी. नानम्मल को कभी इलाज के लिए अस्पताल नहीं जाना पड़ा। दरअसल, ये लंबे समय से योग कर रही हैं, जिसका असर यह है कि उम्र के इस पड़ाव पर भी उनकी सभी इंद्रियां दुरुस्त हैं। आंखें ठीक से देख पाती हैं। तंदुरुस्ती ऐसी कि योग के कठिन अभ्यास भी उनके लिए मामूली
है। नानम्मल न सिर्फ योग के जरिए खुद को फिट रखती हैं, बल्कि करीब 100 छात्रों को रोज योग भी सिखाती हैं। उनसे सीखने वाले लोगों में हर उम्र के लोग शामिल हैं, जिनमें महिलाओं का तादाद अच्छी खासी है। नानम्मल ने अपने दादा से योग सीखा, जब वह काफी छोटी थीं। इसके बाद योग को उन्होंने कभी विराम नहीं दिया। अब 11 साल का उनका परपोता भी योग करता है। वह
मानती हैं कि योग जीवन को सही रास्ता दिखाने का जरिया है। उनके मुताबिक योग संगीत की तरह है, जो शरीर के विभिन्न अंगों के बीच तारतम्य पैदा करता है। योग करते हुए उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर हाल में ही वायरल हुआ था। नानम्मल मानती हैं कि धन कमाने से ज्यादा जरूरी शरीर का स्वस्थ होना है।
वीरासन
वीर का अर्थ होता है बहादुर। इसके अभ्यास से हाथ-पैर मजबूत हो जाते हैं। वज्रासन और वीरासन में कोई खास फर्क नहीं होता। वैसे वीरासन की कई और भी स्थितियां होती है। इस आसन के नियमित अभ्यास से अधिक नींद आने की समस्या पर नियंत्रण हो सकेगा। श्वसन एवं ध्यान मुद्रा के संदर्भ में वीरासन काफी उपयोगी है
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19 - 25 जून 2017
योग की पाठशाला विश्व योग दिवस विशेष
योग करने की ललक से भर उठना और कायदे से योगाभ्यास करना दो अलग बातें हैं। कई लोग उत्साह में योगाभ्यास तो करते हैं पर इसकी सही विधि न अपनाने से उन्हें कोई खास फायदा नहीं होता और बाद में चलकर वे इसे करना छोड़ भी देते हैं। इसीलिए हमारे लिए जरूरी है कि हम योगाभ्यास सही तरीके से करें
त्रिकोणासन
त्रिकोणासन खड़े होकर करने वाला एक महत्वपूर्ण आसन है। ‘त्रिकोण’ का अर्थ होता है त्रिभुज और ‘आसन’ का अर्थ योग है। त्रिकोणासन योग कमर दर्द को कम करने के लिए एक अति उत्तम योगाभ्यास है। यह मोटापा घटाने के साथ मधुमेह को काबू करने में बड़ी भूमिका निभाता है
यो
एसएसबी ब्यूरो
ग एक तरह से शारीरिक और मानसिक चिकित्सा है। योग के दौरान किए गए हर एक छोटे आसान का अपना खास महत्व है। ऐसा नहीं है कि आपको हर दिन कुछ घंटे योग करना ही है। आप एक हफ्ते में चार दिन भी अगर योग करते हैं, तो वह आपके शरीर को स्वस्थ रखने के लिए काफी है। जब आप योग करने की शुरुआत करते हैं, तो बहुत-सी बातों से अनजान होने के कारण कई गलतियां करते हैं।
ढीली न हो ड्रेस
योगासन सही तरीके से करने के लिए आपका कंफर्टेबल होना जरूरी है। दिमाग, मन और शरीर तीनों चीजों को रिलेक्स रखें। इसके लिए योग के
दौरान पहने जाने वाले पैंट और टी-शर्ट आपकी फिटिंग के ही होने चाहिए। पैंट मुलायम और िखंचने वाली होनी चाहिए ताकि योगासन में आपको किसी तरह की कोई दिक्कत न हो। इसके साथ ही टीशर्ट भी ज्यादा फिटिंग की नहीं होनी चाहिए, लेकिन ज्यादा ढीली भी नहीं होनी चाहिए। योग हमेशा बिना चप्पल और जूते पहने ही किया जाता है। योग के दौरान हल्के फैब्रिक से बने कपड़े ही पहनें।
खुद चुनें अपना आसन
खुद ध्यान दें कि आपके लिए योग का कौन-सा आसन बेस्ट है। योग में हर व्यक्ति के लिए कोई न कोई आसन है। अपने लचीलेपन, सहनशक्ति और संतुलन को ध्यान में रखते हुए शुरुआत में वही आसन चुनें। चिंता खत्म होना, दिमाग को शांत करना और शरीर को आराम देना जैसे फायदे योग के बाद
योग में हर व्यक्ति के लिए कोई न कोई आसन है। अपने लचीलेपन, सहनशक्ति और संतुलन को ध्यान में रखते हुए शुरुआत में वही आसन चुनें
एक नजर
योग के दौरान हल्के फैब्रिक से बने कपड़े पहनें कोई भी आसन करने में जल्दबाजी न दिखाएं योग के लिए संतुलन जरूरी है न कि ताकत
ही दिखते हैं। अपने स्वास्थ्य और उद्देश्य को देखते हुए आसन का चयन करें। कमजोरियों और ताकत के बारे में एक्सपर्ट को बताते हुए सही आसन की जानकारी लें।
धीरे-धीरे करें शुरुआत
आसन को शुरुआत में धीरे-धीरे करें, क्योंकि आप कोई एक्सपर्ट नहीं हैं, जो एक बार में सही से कर लेंगे। योग के लिए लचीली बॉडी की आवश्यकता नहीं है। मुद्राएं लचीलापन और आपकी ताकत बढ़ाने
19 - 25 जून 2017
विश्व योग दिवस विशेष
दस बातें सबसे खास
योगासन करने से कई सारी बीमारियां ठीक हो सकती हैं। अगर आप घर पर ही योगासन करने की सोच रहे हैं तो इसके बारे में सही जानकारी लेकर ही करें, क्योंकि योगासन अगर सही तरीके से नहीं किया गया तो यह नुकसान भी कर सकता है
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आसन के बाद
योगासन हमेशा खुले और हवादार कमरे में करना चाहिए, ताकि आप श्वास के साथ शुद्ध हवा ले सकें। योगासन अगर सुबह 5.30 से 7.00 के बीच में करेंगे तो आपको विटामिन – डी भी मिलेगा।
वीरभद्रासन
• किसी भी आसन को करने से पहले उसके बारे में सही जानकारी प्राप्त करें। बहुत से आसन में आगे या पीछे की तरफ झुकना पड़ता है, इन्हें बहुत ही आसानी से करें। झुकने वाले कुछ आसन को पीठ या रीढ़ की हड्डी में समस्या वालों को मना किया जाता है।
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शुरू के दिनों में बहुत अधिक कठिन योगासन नहीं करें। क्योंकि योग समय के साथ – साथ गहन होता जाता है। इसके लिए रोज अभ्यास करना आवश्यक है।
• जिन
लोगों को कमर दर्द या गर्दन में समस्या हो, उन्हें शरीर में ज्यादा दबाव डालकर या फिर उल्टा होकर करने वाले आसनों को बहुत ही सावधानी से करना चाहिए।
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आसन के बाद की सबसे जरूरी चीज, जो हर नौसिखिए को पता होनी चाहिए कि आसन के बाद कैसे रिलेक्स किया जाए। यह भी व्यायाम की ही एक शैली है। इस शवासन के दौरान आप पीठ के बल लेट जाएंगे और सांस पर ध्यान केंद्रित करें। यह शरीर को आराम देने की तकनीक है।
योगासन शुरू करने से पहले थोड़ा टहल लें। इससे शरीर की जकड़न खत्म हो जाएगी। इसके बाद प्राणायाम करें, प्राणायाम करने के बाद विश्राम जरूर करें। उसके बाद आसनों का अभ्यास करें। हर आसन के अंत में विश्रामासन भी करते रहें।
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योग शिक्षा
सबसे पहले तो सीधे बैठने का अभ्यास करें। क्योंकि अगर आप गलत तरीके से बैठकर आसन करते हैं तो सांस लेने की क्षमता में कमी और रीढ़ की हड्डी पर प्रभाव पड़ सकता है और ऊर्जा में कमी या बेचैनी भी हो सकती है।
में मदद करेंगे। शुरुआत में योग के बाद शरीर को थोड़ा दर्द होगा, लेकिन अभ्यास करते रहने से यह दर्द खत्म हो जाएगा ।
सांस का रखें ध्यान
सांस लेना, सांस छोड़ना और सही से सांस लेना। सही से सांस लेना व्यायाम का ही रूप है। आप आसन का अभ्यास तब तक नहीं कर सकते, जब तक आप मुंह से सांस लेते रहेंगे। लिहाजा, योगासन के दौरान नाक से ही सांस लेना और छोड़ना जरूरी है। योग के दौरान सबसे पहली इसी का अभ्यास करना चाहिए। यही नहीं, सांस लेने और छोड़ने की प्रकिया में संतुलन बनाना भी जरूरी है। आप सांस को
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योग कभी भी खाना खाने के तुरंत बाद या पहले नहीं करना चाहिए। वैसे तो योग के लिए सुबह का समय सबसे अच्छा होता है, लेकिन अगर सुबह नहीं कर सकते तो खाने के 4 घंटे बाद ही करें।
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गर्भावस्था, बुखार, मासिक धर्म और गंभीर रोग आदि के समय योगाभ्यास नहीं करना चाहिए।
योगासन के दौरान सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया को सही तरीके से ही करना चाहिए।
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अगर आपको कोई बीमारी है और आप योग करना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने चिकित्सक को योग की क्रिया के बारे में बताएं और उनसे सलाह ले कर ही करें।
जितना लंबा और देर तक ले सकते हैं करें, लेकिन ध्यान रहे कि दबाव डालकर सांस रोकने और खींचने की कोशिश न करें। आपको सांस को लेकर सतर्क होना पड़ेगा। यह सुनने में जितना आसान लगता है, करने में उतना ही मुश्किल होता है।
संतुलन का खेल
आप सोच रहे होंगे कि आसन को बना लेना ही काफी है, लेकिन ऐसा नहीं है। जी हां, आसन को बनाने के साथ-साथ उन्हें कुछ समय रोक कर भी रखना चाहिए। संतुलन की ओर ध्यान लगाएं, लेकिन ताकत के साथ नहीं। दिमाग संतुलन बनाने में होना चाहिए न कि मुद्रा बनाने में।
सही तरीके से सांस लेना व्यायाम का ही रूप है। आप आसन का अभ्यास तब तक नहीं कर सकते, जब तक आप मुंह से सांस लेते रहेंगे आधे घंटे पहले खाएं खाना
योग में मोड़ना, पलटना और उलटना शामिल है। अगर इस दौरान आपका खाना पचा नहीं होगा तो योग की प्रक्रिया के दौरान आप असहज महसूस करेंगे। इस समय कुछ हल्का खाएं, जैसे नट्स, जूस, फल और दही। प्रोटीन आपको एनर्जी देगा। योग शुरू करने से पहले ज्यादा पानी न पीएं। अभ्यास के दौरान पेट बिल्कुल खाली होना चाहिए।
अभ्यास में अंतराल
योग का मतलब यह नहीं है कि खुद को जबरदस्ती घसीटते हुए करते ही जाएं। एक हफ्ते में चार दिन किया योग भी आपके लिए काफी होता है। खुद को एक्सपर्ट न समझें। अपना संतुलन बनाएं। जितना आपका शरीर कर सकता है, उतना ही करें। समय को लेकर इसमें कोई नियम नहीं है, लेकिन अपनी मुद्रा के अनुसार आप यह निर्णय ले सकते हैं। जैसे कुछ लोग ताजगी के लिए योग करते हैं, तो कुछ दिमाग को शांत करने के लिए। सुबह के समय किया योग काफी स्फूर्तिदायक होता है और आपको पूरे दिन ताजगी देता है। आप शुरुआत शाम में भी कर सकते हैं, लेकिन उस समय आराम वाले आसन की ओर ज्यादा ध्यान दें।
यह आसन हाथों, कंधों, जांघों एवं कमर की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है। यह आसन हाथ, पैर और कमर को मजबूती प्रदान करता है, शरीर में संतुलन बढ़ाता है, सहनशीलता बढ़ती है। बैठकर कार्य करने वालों के लिए अत्यंत लाभदायक है
26 योग परंपरा
विश्व योग दिवस विशेष
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भारतीय योग परंपरा और गुरु
आज भले योग की अखिल विश्व में ख्याति है, पर योग को इस मुकाम तक पहुंचाने वाले गुरुओं की एक लंबी परंपरा रही है। यह यात्रा योग के पुरातन से अधुनातन के साथ भारतीय संस्कृति की भी विकास यात्रा है
सर्वांगासन
इस आसन में सभी अंगों का व्यायाम होता है, इसीलिए इसे सर्वांगासन कहते हैं। इस आसन को पीठ के बल लेटकर किया जाता है। इससे दमा, मोटापा, दुर्बलता एवं थकानादि विकार दूर होते हैं
भा
डॉ. स्वाति सोनल
रतवर्ष की सांस्कृतिक यात्रा के साथ यह बात खास रही कि समय के प्रवाह के साथ संस्कृति ने परंपरा के साथ अपना नाता तोड़ा नहीं, बल्कि हर देशकाल में अपने लिए स्पेस बनाए रखा। योग भारतीय संस्कृति के इसी स्पेस से आगे चलकर आज वैश्विक स्वीकृति पा रहा है। बात करें योग की इस अखिल ख्याति की तो इसके पीछे गुरुओं की एक लंबी परंपरा रही है। यह यात्रा योग के पुरातन से अधुनातन के साथ भारतीय संस्कृति की भी विकास यात्रा है। दरअसल, योग भारतीय ज्ञान और जीवनशैली है। इसे हजारों सालों
से हमारे ऋषि-मनीषी परिष्कृत और विकसित करते आए हैं। इतिहास के उतार-चढ़ाव के बावजूद यह विद्या भारत में सुरक्षित ही नहीं रही, बल्कि काल के प्रवाह के साथ संवर्द्धित भी होती गई। प्राचीन मनीषियों की सोच आज एक वैश्विक विचारधारा बन गई है और आज योग पूरी दुनिया में फैल चुका है। करोड़ों लोगों ने अपने जीवन में स्वास्थ्य एवं स्फूर्ति की प्राप्ति तथा आंतरिक प्रतिभाओं की जागृति के लिए इस विद्या को अपना लिया है। बुनियादी मानवीय मूल्य योग साधना की पहचान हैं। महान संत महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्रों के माध्यम से अपने समय में विद्यमान योग की प्रथाओं, इसके आशय एवं इससे संबंधित ज्ञान को
एक नजर
भारत में योग के प्रचलन के साक्ष्य 2700 ईसा पूर्व से मौजूद हैं
वेदों-उपनिषदों के अलावा बौद्ध व जैन धर्मग्रंथों में भी योग का जिक्र
महर्षि पतंजलि का ‘योगसूत्र’ योग की सबसे पुरानी और प्रामाणिक किताब
व्यवस्थित किया। पूर्व वैदिक काल (2700 ईसा पूर्व) एवं इसके बाद पतंजलि काल तक योग की मौजूदगी
विश्व योग दिवस विशेष
19 - 25 जून 2017
के ऐतिहासिक साक्ष्य हैं। वेदों, उपनिषदों, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, पाणिनी, महाकाव्यों के उपदेशों, पुराणों आदि में योग के उल्लेख हैं। आज योग का जो रूप हम देख रहे हैं,वह कई मनीषियों के हाथों परिष्कृत और विकसित होता हुआ हमारे पास पहुंचा है।
अरविंद का गुप्त योगदान असंख्य सशस्त्र सैनिकों से कम न था। यद्यपि योगी आज नहीं हैं, किंतु उनका अमर पुदुचेरी आश्रम सदैव ही उनकी याद दिलाता रहेगा, जहां उन्होंने राष्ट्र कल्याण के लिए तप किया था, योग साधना की थी।
स्वामी चिन्मयानंद (चिन्मय मिशन के संस्थापक), स्वामी ज्योर्तिमयानंद (मियामी अमेरिका में योग रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष), स्वामी सच्चिदानंद (अमेरिका में योग इंटीग्रल के संस्थापक) और स्वामी सत्यानंद (योग मिशन के संस्थापक) शामिल हैं।
पुदुचेरी का विश्वविख्यात श्री अरविंद आश्रम, जो लोगों को आत्मसंयम के जरिए आंतरिक क्रियाओं से ईश्वर के साक्षात्कार का संदेश एवं प्रेरणा प्रदान करता है, उसके जनक श्री अरविंद घोष थे। अरविंद घोष, जिन्होंने संपूर्ण जीवन को साधना में लगाकर, संसार के सारे सुख-साधनों को त्याग कर विश्व मानवता के कल्याण के लिए उत्सर्ग कर दिया। इनका जन्म 15 अगस्त 1872 को कोलकाता में श्री कृष्णधन घोष के यहां हुआ। श्री अरविंद के पिता पाश्चात्य सभ्यता के पक्षधर थे। वे अंग्रेज सरकार में सिविल सर्जन थे। पिता चाहते थे कि उनका बेटा भी पाश्चात्य संस्कृति में पले-बढ़े। इसीलिए उन्होंने सात वर्ष की आयु में ही श्री अरविंद को इंग्लैंड भेज दिया। श्री अरविंद ने इंग्लैंड में सफलतापूर्वक अपनी शिक्षा पूरी की और पिता के कहने पर वहां होनेवाली भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा में हिस्सा लिया, लेकिन घुड़सवारी की परीक्षा में असफल हो गए और 1893 में भारत वापस आ गए। उन्हीं दिनों इंग्लैंड में उनका परिचय बड़ौदा महाराज से हुआ। उन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें अपने राज्य में एक उच्च पद पर नियुक्त कर लिया। बाद में वे बड़ौदा कॉलेज में वाइस प्रिंसिपल हुए। यहीं उन्होंने भारतीय भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। उन्हें पढ़ कर लगा कि आध्यात्मिक ज्ञान का जो अपार भंडार भारतीय प्राचीन ग्रंथों, वेदपुराण-उपनिषदों में मौजूद है, वह कहीं और नहीं है। इसी दौरान क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण उन्हें एक साल की जेल हो गई। जेल के दौरान ही उन्होंने भगवान कृष्ण की एक अदृश्य शक्ति को अनुभव किया। इस एक बड़े तथ्य को पाकर जब वे जेल से बाहर आए, तो यह संकल्प लेकर निकले कि वे अपनी समग्र मानवीय शक्तियों को आत्मा में एकीभूत करके अनंत अंत: शक्ति को मातृभूमि की रक्षा में नियोजित करेंगे। जेल से बाहर आने के बाद वे पुदुचेरी चले गए, जहां उन्होंने जीवन का ज्यादातर समय विभिन्न तरह की साधना के विस्तार में लगाया। उनकी साधना की दिशा मनुष्य चेतना पर केंद्रित थी, वे मानव चेतना को शारीरिक, मानसिक, स्नायविक से होते हुए चैतन्य की श्रेणी तक ले जाना चाहते थे। शीघ्र ही उनका छोटा-सा साधना कुटीर एक बड़े आश्रम के रूप में बदलने लगा। उनका आश्रम आध्यात्मिक अस्त्रों की एक यंत्रशाला बन गया। यह एक संयोग है कि उनकी जन्मतिथि पर भारत स्वतंत्र हुआ। भारत की इस सफलता में श्री
चिकित्सक से योगी बने स्वामी शिवानंद उन आध्यात्मिक गुरुओं में एक हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया में योग का प्रचार किया। निष्काम कर्मयोग के प्रतिपादक होने के कारण उन्होंने स्वार्थरहित सेवा के आदर्श पर बल दिया। वह सेवा की उच्चतर चेतना प्राप्त करने के लिए शुद्धिकरण की तैयारी जरूरी मानते थे। उनके योग में कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग, राजयोग और मंत्रयोग शामिल था। आठ सितंबर, 1887 को दक्षिण भारत के पट्टामदायी गांव में जन्मे स्वामी शिवानंद तंजौर चिकित्सा महाविद्यालय से चिकित्सक बनने के बाद तिरुचि में डॉक्टरी शुरू की। उनके बचपन का नाम कुप्पुस्वामी अय्यर था। 1913 में पिता की मौत के बाद एक रबर स्टेट के अस्पताल में प्रभारी की हैसियत से काम करने मलयेशिया चले गए। वहां भ्रमणशील साधुओं के सानिध्य में हिंदू धर्म ग्रंथों और बाइबल का अध्ययन किया। 1923 में सब कुछ दान कर वे भारत वापस आए और एक वर्ष तक तीर्थ यात्रा करते रहे। ऋषिकेश में स्वामी विश्वानंद सरस्वती ने स्वामी शिवानंद सरस्वती के रूप में उन्हें दीक्षा दी। कई वर्षों तक चिकित्सक के तौर पर तीर्थयात्रियों और रोगग्रस्त भिक्षुओं की सेवा की। सन 1927 में बीमा पॉलिसी से प्राप्त धन से उन्होंने नि:शुल्क आरोग्यशाला की स्थापना की। सन 1932 में शिवानंद आश्रम की स्थापना की और उसके चार वर्ष के बाद डिवाइन लाइफ सोसाइटी बनाई तथा वहां से एक पत्रिका ‘द डिवाइन लाइफ’ का प्रकाशन आरंभ किया। 1945 में हिमालय की दुर्लभ जड़ी-बूटियों से औषधि बनाने के लिए शिवानंद ने आयुर्वेदिक फार्मेसी की स्थापना की। अपने शिष्यों तथा आम लोगों को योग का प्रशिक्षण देने के लिए 1948 में योग वेदांत उपवन अकादमी की स्थापना की। 1957 में नेत्र अस्पताल की आधारशिला रखी गई। भारत, अमेरिका, कनाडा, म्यांमार, दक्षिण अमेरिका, आस्ट्रेलिया, यूरोप और दक्षिण अफ्रीका के 137 शाखाओं में फैले पूरी दुनिया में स्वामी शिवानंद के लाखों अनुयायी हैं। अंतरराष्ट्रीय शिवानंद योग वेदांत केंद्र द्वारा ‘ योग जीवन पत्रिका’ का वर्ष में दो बार प्रकाशन किया जाता है। 1963 में उनके निधन के बाद उनके शिष्य चिदानंद डिवाइन लाइफ सोसाइटी के अध्यक्ष बने। अपने विश्व भ्रमण के माध्यम से पश्चिमी जगत में इसका व्यापक प्रचार किया। नए आध्यात्मिक संगठनों का निर्माण करने वाले उनके शिष्यों में
परमहंस योगानंद आध्यात्मिक गुरु और योगी थे। उन्होंने क्रियायोग का उपदेश दिया और पूरी दुनिया में उसका प्रचार किया। इनका जन्म पांच फरवरी 1893 को गोरखपुर के एक बंगाली परिवार में हुआ था। पिता भगवती चरण घोष ने इनका नाम मुकुंद चरण घोष रखा था। इनके माता-पिता श्यामाचरण लाहिड़ी के शिष्य थे। योगानंद के अनुसार क्रियायोग ईश्वर से साक्षात्कार की प्रभावी विधि है। इसके पालन से अपने जीवन को संवारा और ईश्वर की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है। योगानंद पहले भारतीय गुरु थे, जिन्होंने अपने अधिकतर कार्य पश्चिम में किए। 1920 में वे अमेरिका चले गए। अपना पूरा जीवन व्याख्यान देने, लेखन तथा निरंतर विश्वव्यापी कार्य को दिशा देने में लगाया। उनकी उत्कृष्ट कृति ‘योगी कथामृत’ है। क्रियायोग पद्धति में प्राणायाम के कई स्तर होते हैं, जिनका मकसद आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया को तेज करना है। यह सरल मन:कायिक पद्धति है। इसके माध्यम से मानव रक्त कार्बन रहित तथा ऑक्सीजन से पूर्ण हो जाता है। इसके अतिरिक्त ऑक्सीजन के अणु जीवन प्रवाह में रूपांतरित होकर मस्तिष्क और मेरुदंड के चक्रों को नवशक्ति से पूर्ण कर देते हैं।
महर्षि अरविंद
स्वामी शिवानंद सरस्वती
चिकित्सक से योगी बने स्वामी शिवानंद उन आध्यात्मिक गुरुओं में एक हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया में योग का प्रचार किया। निष्काम कर्मयोग के प्रतिपादक होने के कारण उन्होंने स्वार्थरहित सेवा के आदर्श पर बल दिया
योग परंपरा
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परमहंस योगानंद
स्वामी कुवलयानंद
योग और योग शिक्षा में वैज्ञानिक एवं उपचार संबंधी शोध के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान के लिए स्वामी कुवलयानंद का महत्वपूर्ण योगदान है। 30 अगस्त 1887 को बड़ौदा जिले के दबोई गांव में मराठी परिवार में जन्मे स्वामी कुवलयानंद के बचपन का नाम जगन्नाथ गणेश गुणे था। किशोरावस्था में वे गुजरात के नर्मदा नदी के किनारे मलसार स्थित योग केंद्र के परमहंस माधव दास जी महाराज के शिष्य बन गए। वे एक प्रसिद्ध विद्वान और शिक्षाशास्त्री एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। 1916 में उन्होंने खंडेश एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की तथा 1923 तक इसके प्राचार्य के रूप में कार्यरत रहे। 1943 में कुवलयानंद ने योग चिकित्सा और वैज्ञानिक अन्वेषण के लिए पुणे में कैवल्यधाम की स्थापना की। यह संस्था आजकल योग शिक्षा के लिए कार्यशालाएं चलाती है और विभिन्न रोगों का उपचार करती है। भारत में इसकी अनेक शाखाएं हैं। दो शाखाएं अमेरिका और फ्रांस में है। 1935 से यहां ‘योग मीमांसा’ पत्रिका का प्रकाशन हो रहा है। योग की विशेष कला और विज्ञान में युवक और युवतियों को प्रशिक्षण देने के लिए गोरहनदास सेकहरिया सांस्कृतिक विन्यास महाविद्यालय की भी स्थापना की।
स्वामी सत्यानंद सरस्वती
उत्तराखंड के अल्मोड़ा में 25 दिसंबर, 1923 को
शवासन
शवासन में शरीर को मुर्दा समान बना लेने के कारण ही इस आसन को शवासन कहा जाता है। यह पीठ के बल लेटकर किया जाता है और इससे शारीरिक तथा मानसिक शांति मिलती है
28 योग परंपरा
मयूरासन
विश्व योग दिवस विशेष
19 - 25 जून 2017
इस आसन को करते समय शरीर की आकृति मोर की तरह दिखाई देती है, इसीलिए इसका नाम मयूरासन है। इस आसन को बैठकर सावधानी पूर्वक किया जाता है। इस आसन से वक्षस्थल, फेफड़े, पसलियां और प्लीहा को शक्ति प्राप्त होती है
जन्मे स्वामी सत्यानंद सरस्वती इस शताब्दी के महानतम संतों में हैं, जिन्होंने समाज के हर क्षेत्र में योग को समाविष्ट कर, सभी वर्गों, राष्ट्रों और धर्मों के लोगों का आध्यात्मिक उत्थान सुनिश्चित किया। योग का तात्पर्य होता है जोड़ना और परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने योग का संसार में जिस वैज्ञानिक रूप में पुनर्जीवन किया, उस योग ने पूरी दुनिया को एक सूत्र में जोड़कर रखा है। आज पूरब से लेकर पश्चिम तक जिस योग लहर में योग स्नान कर रहा है, उसके मूल में स्वामी सत्यानंद सरस्वती का कर्म और उनके गुरु स्वामी शिवानंद सरस्वती का वह आदेश है, जो उन्होंने सत्यानंद को दिया था। जन्म से ही उनमें अभूतपूर्व आध्यात्मिक प्रतिभा परिलक्षित हुई। युवावस्था तक उनकी आध्यात्मिक आकांक्षा अत्यंत तीव्र हो गई और 1943 में गुरु की तलाश में अपना घर-परिवार त्याग दिया। उनकी खोज ऋषिकेश में जाकर समाप्त हुई, जहां उन्होंने महान संत स्वामी शिवानंद को गुरु के रूप में 19 वर्ष की आयु में वरण किया। उनके गुरु स्वामी शिवानंद सरस्वती ने 1956 में उनसे कहा,‘सत्यानंद जाओ और दुनिया को योग सिखाओ।’ स्वामी सत्यानंद गुरु आश्रम त्याग कर परमहंस परिव्राजक संन्यासी हो गए। गुरु के आदेशानुसार उनके जीवन का एक ही लक्ष्य था- ‘योगविद्या का प्रचार-प्रसार, द्वारे-द्वारे, तीरे-तीरे। उन्होंने पूरे भारत की यात्रा के साथ-साथ पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों की भी यात्रा की। परिव्राजक के रूप में बिहार यात्रा के क्रम में छपरा के बाद 1956 में पहली बार मुंगेर आए। मुंगेर में पहले वे लाल दरवाजा और बाद में राय बहादुर केदारनाथ गोयनका के आनंद भवन में रहते थे। यहां की प्राकृतिक छटा उन्हें आकर्षित करती थी। जब वे यहां रहते तो कर्णचौड़ा अवश्य जाते। कभी ध्यान करते तो कभी सो जाते। यहां उन्हें विशेष अनुभूति होती थी। यहीं उन्हें दिव्य दृष्टि से यह पता चला कि यह स्थान योग का अधिष्ठान बनेगा और योग विश्व की भावी संस्कृति बनेगी। आनंद भवन में रहकर उन्होंने सिद्ध भजन पुस्तिका तैयार की। 1961 में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय योग मित्र मंडल की स्थापना की, तब तक योग निद्रा और प्राणायाम विज्ञान, पुस्तक प्रकाशित हो चुकी थी। 1962 में इंटरनेशनल योग फेलोशिप का रजिस्ट्रेशन हुआ। इसके बाद तो योग पर पत्र-पत्रिकाओं और किताबों का सिलसिला चल पड़ा। परिव्राजक जीवन की समाप्ति के बाद उन्होंने वसंत पंचमी के दिन 19 जनवरी, 1964 को बिहार योग विद्यालय की स्थापना की। वे आरंभ से इस बात के लिए प्रयत्नशील रहे कि योग विद्या को विज्ञान और जीवनशैली के रूप में किस प्रकार विकसित किया जाए। योग की प्रकाशन क्षमता के प्रतीक के रूप में स्वामी शिवानंद की अखंड ज्योति प्रज्वलित की। साथ ही सत्यानंद योग रिसर्च लाइब्रेरी भी शुरू किया गया। 1964 में मुंगेर में प्रथम अंतरराष्ट्रीय योग सम्मेलन आयोजित किया, जिसका उद्घाटन बिहार के तत्कालीन राज्यपाल अनंत शयनम आयंगर ने किया। इसके उपरांत उन्होंने डेनमार्क, फ्रांस, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के योग शिक्षकों को प्रशिक्षित किया। प्रशिक्षण के उपरांत इन लोगों ने अपने-अपने
देशों में योग के प्रथम विद्यालय और योग केंद्रों की स्थापना की। इसके परिणामस्वरूप सत्तर के दशक में योग का कार्य पूरी दुनिया में फैलने लगा। इसी प्रकार 1966 में दूसरा और उसके बाद तीसरा योग सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय स्तर का हुआ। 1967 में रायगढ़ में उन्होंने योग विद्यालय की स्थापना की। इस दौरान वे योग के प्रचार प्रसार को लेकर कई गतिविधियों से जुड़े रहे। इसमें अहम है गोंदिया में चतुर्थ अंतरराष्ट्रीय योग सम्मेलन में शिक्षा के क्षेत्र में योग के समावेश पर गहन चर्चा। 26 अप्रैल 1968को योग के प्रचार के लिए स्वामी जी ने विदेश प्रस्थान किया और हांगकांग, सिडनी, तोक्यो, सेन फ्रांसिस्को, शिकागो, टोरंटो, नार्वे, हॉलैंड, एम्सटरडम, फ्रैंकफर्ट, जिनेवा, ज्यूरिख और वियेना का भ्रमण कर योग का शंखनाद किया। 2007 में सेवा, प्रेम और दान को व्यावहारिक रूप प्रदान करने के लिए उन्होंने देवघर के रिखिया में रिखिया पीठ की स्थापना की। पांच दिसंबर, 2009 को शिष्यों की उपस्थिति में वे महासमाधि में लीन हो गए।
श्री तिरुमलाई कृष्णमाचार्य
श्री तिरुमलाई कृष्णमाचार्य भारत के आरंभिक आदर्श योग पुरुष थे। इन्होंने योग की भिन्न और विशिष्ट प्रथाएं स्थापित की। इनके शिष्यों में बीकेएस अयंगार, के पट्टाभि जॉयस, इंद्रा देवी, श्रीवत्स रामास्वामी, एजी मोहन और कृष्णमाचार्य के पुत्र टीकेबी देसिकाचार्य प्रमुख हैं। कर्नाटक के चित्तदुर्ग जिले के मुचुकुंदापुरम के अयंगार परिवार में जन्मे कृष्णमाचार्य के पूर्वजों में एक नौंवी सदी के शिक्षक और संत नाथमुनि थे। कृष्णमाचार्य के पिता वेदों के प्रसिद्ध शिक्षक थे। पिता के मार्गदर्शन में ही संस्कृत, वेद और अमरकोष जैसी पुस्तकों का अध्ययन आरंभ किया। पिता की मृत्यु के बाद वे मैसूर आए। यहां उनके प्रपितामह श्री श्रीनिवास ब्रह्मतंत्र प्रकाल स्वामी प्रकाल मठ के अध्यक्ष थे। यहां उन्होंने स्वामी प्रकाल मठ और कामराज संस्कृत महाविद्यालय में औपचारिक शिक्षा प्राप्त की। मैसूर में ही उन्होंने वैदिक विद्या में परीक्षा उत्तीर्ण की। सोलह वर्ष की आयु में लंबी भारत यात्रा के दौरान उन्होंने छह भारतीय दर्शनशास्त्रों वैशेषिक न्याय, सांख्य, योग मीमांसा और वेदांत का अध्ययन किया। 1906 में वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय पहुंचे और उस दौरान ब्रह्मर्षि शिव कुमार शास्त्री के साथ कार्य करते हुए तर्कशास्त्र और संस्कृत का अध्ययन जारी रखा। पुन: 1909 में मैसूर आकर प्रकालमठ में वेदांत का अध्ययन किया। इस दौरान उन्होंने प्राचीनतम वाद्य यंत्र वीणा बजाना भी सीखा। 1914 में फिर बनारस आए और क्वींस कॉलेज में दाखिला लिया। आर्थिक सहयोग न मिलने के कारण धार्मिक भिक्षुओं की तरह प्रतिदिन सात घरों से रोटी के लिए गूंथा आटा पाकर भोजन की व्यवस्था की। बनारस के बाद दर्शन की पढ़ाई करने के लिए पटना विश्वविद्यालय में दाखिला लिया।
बंगाल के वैद्य कृष्ण कुमार से आयुर्वेद अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति भी मिली। उन्होंने श्री बाबू भगवान दास से योग सीखा और पटना विश्वविद्यालय से सांख्य योग की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1919 में कृष्णमाचार्य योगेश्वर राममोहन ब्रह्मचारी की खोज में निकले। वे नेपाल के परे हिमालय पर्वत में निवास करते थे। श्रीब्रह्मचारी से पतंजलि के योग सूत्र, आसन व प्राणायाम और योग के चिकित्सकीय पहलुओं को सीखते हुए वहां उन्होंने कई साल बिताए। गुरु ने गुरखा भाषा में योग कुरूंथा का स्मरण कराया। दक्षिण भारत लौट कर मैसूर के राजा के संरक्षण में उन्होंने योग विद्यालय की स्थापना की। योग, मकरंद, योगांजलि और योगसानालू सहित अनेक पुस्तकों का लेखन किया। उनका योग सिद्धांत आष्टांग विन्यास योग के निमित्त है। इसका खास जोर शक्ति व ओजस्विता प्राप्त करने के लिए प्रभावकारी शैली पर आधारित है। उन्होंने अपने शिष्यों के धर्म और संस्कृति को समझने का प्रयास किया। हैदराबाद के निजाम से उन्होंने योग शिक्षा पर उर्दू में बात की। इससे प्रभावित होकर उनका सारा परिवार योग करने लगा। जीवन के एक शतक बितानेवाले कृष्णमाचार्य का योग के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान रहा।
स्वामी निरंजनानंद सरस्वती
स्वामी निरंजनानंद सरस्वती योग के प्रसिद्ध जानकार हैं। वे बिहार के मुंगेर स्थित प्रसिद्ध योग स्कूल के प्रमुख हैं और उन्होंने योग, तंत्र और उपनिषदों पर कई पुस्तकें लिखी हैं। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में 14 फरवरी, 1960 को जन्मे स्वामी निरंजनानंद की जीवनदिशा उनके गुरु स्वामी सत्यांनद द्वारा निर्देशित रही। स्वामी सत्यानंद सरस्वती, बिहार योग विद्यालय के संस्थापक थे। 1964 बिहार योग विद्यालय और स्वामी निरंजन दोनों के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण साल रहा। इसी साल मुंगेर में बिहार योग विद्यालय की स्थापना हुई और इसी साल चार साल के निरंजन योग विद्यालय में प्रविष्ट हुए। यहां उन्हें गुरु ने योग निद्रा के माध्यम से योग और अध्यात्म का प्रशिक्षण दिया। कम उम्र में ही वे इतने योग्य हो चुके थे कि स्वामी सत्यानंद ने उन्हें दशनामी संन्यास परंपरा में दीक्षित करने के बाद उन्हें विदेशों में योग के प्रसार की जिम्मेवारी दी गई। उन्हें न सिर्फ योग समझाना था, बल्कि दुनिया की विविध संस्कृतियों को समझना भी था। उन्होंने विशेष तौर पर ध्यान और प्राणायाम के क्षेत्र में अनुसंधान का काम अल्फा रिसर्च के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित डॉ. जो कामिया के साथ काम किया। सैन फ्रांसिस्को, कैलिफोर्निया के ग्लैडमैन मेमोरियल सेंटर के जापानी डॉ टॉड मिकुरिया ने उन पर ध्यान संबंधी शोध किए। जिस समय स्वामी निरंजनानंद विदेश के लिए निकले, तो उस समय स्वामी सत्यानंद के योग आंदोलन के परिणामस्वरूप केवल फ्रांस में 77 हजार पंजीकृत योग शिक्षक थे। उस समय के लिए यह बहुत बड़ी संख्या थी। उन दिनों वे सिर्फ इन योग शिक्षकों को को प्रशिक्षित
योग का तात्पर्य है जोड़ना और परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने योग को संसार में जिस वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत किया, उसने पूरी दुनिया को एक सूत्र में जोड़कर रखा है
विश्व योग दिवस विशेष
19 - 25 जून 2017
बीकेएस अयंगर के नाम के मशहूर योगगुरु वेल्लुर कृष्णमाचारी सुंदरराजा अयंगार अग्रणी योगगुरु थे। उन्होंने ‘आयंगर योग’ की स्थापना की और इसे पूरी दुनिया में मशहूर बनाया करते थे। इस आंदोलन का नाम योगा एजुकेशन इन स्कूल रखा गया। 23 साल की उम्र तक निरंजनानंद सरस्वती अपने हिस्से का एक बड़ा काम पूरा करके वापस लौट आए थे। भारत लौटने के बाद उन्होंने 1993 के विश्वयोग सम्मेलन के बाद गंगा दर्शन में बाल योग मित्र मंडल की स्थापना की। उन्होंने 1994 में विश्व के प्रथम योग विश्वविद्यालय, बिहार योग भारती तथा 2000 में योग पब्लिकेशन ट्रस्ट की स्थापना की। मुंगेर में विभिन्न गतिविधियों के संचालन के साथ उन्होंने दुनिया भर के साधकों का मार्गदर्शन करने हेतु व्यापक रूप से यात्राएं की। 2009 में गुरु के आदेशानुसार उन्होंने संन्यास जीवन का एक नया अध्याय आरंभ किया। उन्होंने योग दर्शन, अभ्यास एवं जीवनशैली की गहन जानकारी रखनेवाले स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने योग, तंत्र, और उपनिषद पर अनेक प्रामाणिक पुस्तकें लिखी हैं। योग का मानव प्रतिभा के रूप में कैसे इस्तेमाल हो, इसके लिए वे निरंतर प्रत्यनशील हैं। स्वामी निरंजनानंद जी के मुताबिक दरअसल योग जीवनशैली है। यह एक अभ्यास नहीं है। यहां तक कि यह आध्यात्मिक साधना भी नहीं है। असल में यह जीवनशैली ही है। एक बार आप योग के नियमों के तहत जीना शुरू कर देते हैं, तो बहुत संभावनाएं हैं कि आपकी धारणाओं, बातचीत, मन, भावनाओं, व्यवहार और कार्यों आदि में सुधार होने लगेगा।
बी.के.एस. अयंगर
बीकेएस अयंगर के नाम के मशहूर योगगुरु वेल्लुर कृष्णमाचारी सुंदरराजा अयंगर अग्रणी योगगुरु थे। उन्होंने ‘अयंगर योग’ की स्थापना की और इसे पूरी दुनिया में मशहूर बनाया। 2002 में भारत सरकार द्वारा उन्हें साहित्य तथा शिक्षा के क्षेत्र में पद्मभूषण व 2014 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। 'टाइम' पत्रिका ने 2004 में दुनिया के सबसे प्रभावशाली 100 लोगों की सूची में उनका नाम शामिल किया था। अयंगर ने जिन प्रसिद्ध लोगों को योग सिखाया था, उनमें जी. कृष्णमूर्ति, जयप्रकाश नारायण, येहूदी मेनुहिन जैसे नाम शामिल हैं। आधुनिक ऋषि के रूप में विख्यात अयंगर ने विभिन्न देशों में अपने संस्थान की सौ से अधिक शाखाएं स्थापित की। यूरोप में योग फैलाने में वे सबसे आगे थे। कर्नाटक के वेल्लुर में 1918 में पैदा हुए अयंगर 1937 में महाराष्ट्र के पुणे चले आए और योग प्रसार करने के बाद 1975 में योग विद्या नाम से अपना संस्थान आरंभ किया, जिसके बाद देशविदेश में कई शाखाएं खोली गईं। उन्होंने योग पर तीन पुस्तकें लिखी हैं – ‘लाइट ऑफ योगा’,‘ लाइट ऑन प्राणायाम’, और ‘लाइट ऑन योग सूत्र ऑफ पतंजलि’। ‘लाइट ऑफ योगा’' का 18 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उन्हें आधुनिक योग का जनक माना जाता है। बीकेएस अयंगर ने अयंगर योग की सृष्टि
की। उन्होंने योग की पहली शिक्षा अपने गुरु तिरुमलाई कृष्णमाचार्य से ली थी। इसके बाद योग इन्हें इतना प्रिय हो गया था कि वे इस ज्ञान को खुद तक ही सीमित न रख कर सब में बांट देना चाहते थे। उन्होंने कई अनुसंधानों के बाद अयंगर योग की पद्धति विकसित की। यह पद्धति अष्टांग योग पर आधारित है।
डॉ. एच.आर. नागेंद्र
योग के साथ पूरब और पश्चिम की संस्कृति का जहां सर्वोत्तम मेल देखा जा सकता है, वह ‘स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान है’। यह जहां एक तपोभूमि है, वहीं प्रयोगभूमि भी है। अब यह एक विश्वविद्यालय का रूप ले चुका है। इसकी शुरुआत 25 साल पहले हुई थी। विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ एचआर नागेंद्र की पैतृक जमीन पर संस्थान का सपना बुना गया। डॉ. नागेंद्र नासा से इस्तीफा देकर योग की ओर अग्रसर हुए। उनके इस रूपांतरण में एकनाथ रानाडे की भूमिका रही है। उन्हीं की प्रेरणा से पहले वे विवेकानंद शिला स्मारक से जुड़े और उसके बाद यहां आए। योग का हाल के वर्षों में काफी प्रचार-प्रसार हुआ है। उसे वैज्ञानिक आधार देने में इस संस्थान का बड़ा योगदान माना जा रहा है। 1973 में एक दिन वे कन्याकुमारी के विवेकानंद शिला स्मारक गए। वहां उनकी मुलाकात स्मारक के तत्कालीन संचालक एकनाथ रानाडे से हुई। 1975 में वे विवेकानंद शिला स्मारक में जीवनदानी के रूप में सम्मिलित हुए। वहीं पर उनके दिल में योग थेरेपी और रिसर्च का काम आया। 1986 से अब तक वे विवेकानंद केंद्र योग रिसर्च फाउंडेशन के सेक्रेटरी हैं। योग पर उनकी 35 पुस्तकें हैं। उनमें जो पुस्तक सबसे चर्चित है, वह है ‘योग का आधार और उसके प्रयोग’।
स्वामी वेद भारती
ऋषिकेश में स्वामी राम साधक ग्राम में स्वामी वेद भारती का आश्रम है। वे स्वामी राम के शिष्य हैं। उन्होंने मात्र नौ वर्ष की उम्र से पतंजलि के योग सूत्र की शिक्षा देनी शुरू की। 14 वर्ष की उम्र से वे देश और दुनिया का भ्रमण कर रहे हैं। योग ध्यान और अध्यात्म पर उनकी 18 पुस्तकें हैं। उनके मुताबिक योग और ध्यान स्वशासन का विज्ञान है, उसकी कला है। यह प्रक्रिया सिर्फ आसनों तथा प्राणायामों तक सीमित नहीं है।
जग्गी वासुदेव
जग्गी वासुदेव एक योगी और दिव्यदर्शी हैं। जग्गी
वासुदेव का जन्म तीन सितंबर, 1957 को कर्नाटक राज्य के मैसूर शहर में हुआ। उनके पिता एक डॉक्टर थे। बालक जग्गी को कुदरत से खूब लगाव था। अक्सर ऐसा होता था, वे कुछ दिनों के लिए जंगल में गायब हो जाते थे, जहां वे पेड़ की ऊंची डाल पर बैठ कर हवाओं का आनंद लेते और अनायास ही गहरे ध्यान में चले जाते थे। जब वे घर लौटते तो उनकी झोली सांपों से भरी होती थी, जिनको पकड़ने में उन्हें महारत हासिल है। 11 वर्ष की उम्र में जग्गी वासुदेव ने योग का अभ्यास करना शुरू किया। इनके योग शिक्षक थे श्री राघवेंद्र राव। 25 वर्ष की उम्र में अनायास ही बड़े विचित्र रूप से, इनको गहन आत्म अनुभूति हुई, जिसने इनके जीवन की दिशा को ही बदल दिया। एक दोपहर जग्गी वासुदेव मैसूर में चामुंडी पहाड़ियों पर चढ़े और एक चट्टान पर बैठ गए। तब उनकी आंखें पूरी खुली हुई थीं। अचानक उन्हें शरीर से परे का अनुभव हुआ। उन्हें लगा कि वह अपने शरीर में नहीं हैं, बल्कि हर जगह फैल गए हैं, चट्टानों में, पेड़ों में, पृथ्वी में। अगले कुछ दिनों में, उन्हें यह अनुभव कई बार हुआ और हर बार यह उन्हें परमानंद की स्थिति में छोड़ जाता। इस घटना ने उनकी जीवनशैली को पूरी तरह से बदल दिया। जग्गी वासुदेव ने उन अनुभवों को बांटने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने का फैसला किया। इस मकसद को पूरा करने के लिए ईशा फाउंडेशन की स्थापना की। सद्गुरु द्वारा स्थापित ईशा फाउंडेशन एक लाभरहित मानव सेवा संस्थान है, जो लोगों की शारीरिक, मानसिक और आतंरिक कुशलता के लिए समर्पित है। यह दो लाख पचास हजार से भी अधिक स्वयंसेवियों द्वारा चलाया जाता है। इसका मुख्यालय ईशा योग केंद्र, कोयंबटूर में है। आंतरिक विकास के लिए बनाया गया यह शक्तिशाली स्थान योग के चार मुख्य मार्ग – ज्ञान, कर्म, क्रिया और भक्ति को लोगों तक पहुंचाने के प्रति समर्पित है। इसके परिसर में ध्यानलिंग योग मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की गई है। योग विज्ञान का सार ध्यानलिंग, ऊर्जा का एक शाश्वत और अनूठा आकार है। इसके प्रवेश द्वार पर सर्व-धर्म स्तंभ है, जिसमें हिंदू, इस्लाम, ईसाई, जैन, बौद्ध, सिख, ताओ, पारसी, यहूदी और शिंतो धर्म के प्रतीक अंकित हैं।
योगीराज हरिदेव प्रसाद ठाकुर
बिहार के भागलपुर में जन्मे योगीराज हरिदेव प्रसाद ठाकुर का नाम योग के क्षेत्र में प्रसिद्ध नाम है। उन्होंने अपने गुरु विष्णु चरण घोष से योग में शिक्षा ली। उन्हें बिहार के तत्कालीन राज्यपाल डॉ जाकिर हुसैन ने ‘योगीराज’ की उपाधि से सम्मानित किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू और चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई ने भी उन्हें सम्मानित किया था। बंगाल के शांति निकेतन में भी उन्होंने योग की शिक्षा दी। योग प्रसार के लिए उन्होंने दीपनगर में 1963 में भारतीय शारीरिक प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की। लंबे अरसे तक वे मारवाड़ी व्यायामशाला में योग प्रशिक्षक रहे।
(लेखिका वनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान में हिंदी विभाग में असिसटेंट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं )
योग परंपरा
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पश्चिमोत्तनासन
इस आसन को पीठ के बल किया जाता है। इससे पीठ में खिंचाव होता है, इसीलिए इसे पश्चिमोत्तनासन कहते हैं। इस आसन से शरीर की सभी मांसपेशियों पर खिंचाव पड़ता है, जिससे उदर, छाती और मेरुदंड की कसरत होती है
30 संस्थान
विश्व योग दिवस विशेष
19 - 25 जून 2017
पतंजलि योगपीठ
देश के प्रमुख योग संस्थान आर्ट ऑफ लिविंग
2009 में गुरु कृष्ण पट्टाभि की मृत्यु के बाद उनके परिजनों ने उनकी स्मृति में की थी।
परमार्थ निकेतन
वक्रासन
वक्रासन बैठकर किया जाता है। इस आसन को करने से मेरुदंड सीधा होता है। इस आसन के अभ्यास से लीवर, किडनी स्वस्थ रहते हैं
योगगुरु बाबा रामदेव द्वारा हरिद्वार में 2006 स्थापित पतंजलि योगपीठ आज भारत ही नहीं, बल्कि विश्व का सबसे बड़ा योग संस्थान माना जाता है। इसकी स्थापना योग का आधिकारिक प्रचार करने और इसे सर्वसुलभ बनाने के लिए किया गया था। यह संस्थान हरिद्वार के अलावा देश-विदेश में भी योग प्रशिक्षण का कार्य कर रहा है।
योगदा सत्संग सोसाइटी
श्री श्री रविशंकर द्वारा 1982 में इस संस्थान की ख्याति ध्यान की समन्वित साधना विधि सुदर्शन क्रिया के प्रशिक्षण के कारण है। यहां के योग प्रशिक्षण कार्यक्रमों में जीवन की नकारात्मक प्रवृत्तियों को दूर करने पर खासतौर पर जोर रहता है।
ऋषिकेश जैसे रमणीक जगह में यह योग संस्थान पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है। पर्यटक यहां योग रिजार्ट का आनंद लेने पहुंचते हैं।
रमामणि अयंगर मेमोरियल योगा कृष्णामचर्या योग मंदिरम इंस्टीट्यूट इसकी स्थापना विख्यात योग गुरु बीकेएस अयंगर ने 1975 में की थी। आधुनिक दौर में अयंगर को पूरी दुनिया में योग को लोकप्रियता और प्रतिष्ठा देने का बड़ा श्रेय दिया जाता है।
बिहार स्कूल ऑफ योगा
इस संस्थान की स्थापना विख्यात योग और आध्यात्मिक गुरु परमहंस योगानंद द्वारा 1917 में की गई थी। उनके द्वारा लिखी गई किताब ‘एन ऑटोबॉयग्राफी ऑफ ए योगी’ पूरी दुनिया में लोकप्रिय है। इस संस्थान में योग के साथ डीप मेडिटेशन का अभ्यास कराया जाता है।
ईशा फाउंडेशन
जग्गी वासुदेव द्वारा 1992 में स्थापित इस संस्थान की आज योग और अध्यात्म शिक्षा के क्षेत्र में काफी ख्याति है। जग्गी वासुदेव को 2016 के संयुक्त राष्ट्र के योग दिवस कार्यक्रम का प्रमुख प्रशिक्षक घोषित किया गया। इस संस्थान में योग और मेडिटेशन से जुड़े अल्प और दीर्घ अवधि के कई कोर्स कराए जाते हैं।
चेन्नई स्थित इस योग मंदिर की स्थापना 1976 में योग गुरु टीकेएस कृष्णामचर्या के पुत्र ने की और यह आज भी काफी लोकप्रिय है। इसकी स्थापना 1964 में स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने की थी। बिहार के मुंगेर में स्थित इस संस्थान की आज देश और विदेशों में काफी प्रतिष्ठा है।
योगा इंस्टीट्यूट
यह काफी पुराना योग संस्थान है। 2018 में यह संस्थान अपने सौ वर्ष पूरे कर लेगा। इसकी स्थापना स्वामी योगेंद्र ने की थी।
अष्टांग संस्थान
यह संस्थान मैसूर, कर्नाटक में है। इसकी स्थापना
शिवानंद योग वेदांत धन्वंतरि संस्थान
इस योग संस्थान की स्थापना 1959 में स्वामी शिवानंद के शिष्यों ने की थी। यह केरल में नेवार डैम के पास 12 एकड़ में फैला है।
विपश्यना
एस. एन. गोयनका द्वारा 1969 में स्थापित इस संस्थान में बौद्ध धर्म से जुड़ी शिक्षा के साथ योग और ध्यान के लिए विभिन्न तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाते हैं।
एसएसवाई (सिद्ध समाधि योग)
ऋषि प्रभाकर द्वारा 1979 में स्थापित इस संस्थान में योग के कई कोर्स कराए जाते हैं। यह संस्थान योग के गांधीवादी दर्शन से प्रभावित है।
विश्व योग दिवस विशेष
19 - 25 जून 2017
बुरी लत से आगे का सबक
मिसाल
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भोला कभी शराबी हुआ करते थे, लेकिन अब योगगुरु बनकर लोगों को जीने की कला सिखा रहे हैं
ब
ड़े-बड़े योगगुरु इस बात को कहते हैं हैं कि प्रशिक्षण में उनका खास ध्यान वैसे कि योग महज एक व्यायाम भर नहीं लोगों पर होता है, जो नशा करना छोड़ना है, बल्कि यह साकारात्मक ऊर्जा से जीवन चाहते हैं। उनके बारे में जानने के बाद कई जीने की कला का नाम है। योग जीवन लोगों ने उनसे मिलकर नशा छोड़ने के बारे को कैसे संभाल लेता है, इसकी मिसाल में जाना है। स्थानीय योग शिक्षक किशोर हैं भोला चैहान। भोला कभी शराबी हुआ कुमार बताते हैं कि पहली बार जब भोला करते थे, लेकिन अब योगगुरु बनकर लोगों योग कक्षा में आए थे तो वे काफी तनाव में को जीने की कला सिखा रहे हैं। झारखंड में थे। ठीक से योग नहीं कर पा रहे थे, लेिकन धनबाद के पास धनसार में रहने वाले भोला धीरे -धीरे उनमें सुधार आया और वे अच्छी चौहान (61) अपने जीवन में आए इस तरह योग करने लगे। परिवर्तन का सारा श्रेय योग को देते हैं। वे बताते हैं कि कई वर्षों से वे शराब का सेवन बीसीसीएल से रिटायर्ड कर रहे थे, उनकी हालत काफी खराब हो भोला चौहान बीसीसीएल से पिछले साल ही चुकी थी। वो ठीक से बैठ भी नहीं पाते थे। स्थानीय योग शिक्षक किशोर कुमार बताते हैं सेवानिवृत हुए हैं। सेवानिवृत होने से कुछ पिछले साल उन्हें योग से होने वाले लाभ माह पहले ही उन्होंने नशा छोड़ने के लिए कि पहली बार जब भोला योग कक्षा में के बारे में पता चला। वे पहले टीवी देखकर योग अपनाया था। उन्होंने बताया कि योग योग करने लगे। फिर तीन माह बाद योग आए थे तो वे काफी तनाव में थे के साथ-साथ नशा छोड़ने का संकल्प भी प्रशिक्षण शिविर से जुड़कर योग सिखने लेना जरूरी है, तब ही योग कारगर साबित लगे। इस बीच, उनका स्वास्थ्य सुधरने नि:शुल्क योग प्रशिक्षण होता है। भोला आज लोगों के बीच एक ऐसे लगा और आठ माह बाद भोला चौहान लोगों को वे धनसार सहित शहर के कई जगहों पर लोगों प्रेरक उदाहरण के तौर पर हैं, जिनके जीवन में योग िसखा रहे हैं। को नि :शुल्क योग प्रशिक्षण दे रहे हैं। वे बताते साकारात्मक परिवर्तन को लोग खुद देख रहे हैं।
थाने में योग की कक्षा
उत्तर प्रदेश में देवरिया के खुखदुं ू थाने में सुबह छह बजते-बजते योग की कक्षा सज जाती है। यहां करीब एक घंटे तक सभी साथ मिलकर योग करते हैं
पाठक ने अपने साथियों के काम व स्वास्थ्य को लेकर बात किया। खुद योग के जरिए अपने को तरोताजा रखने वाले एसओ ने थाने में भी योग की क्लास लगाने का निर्णय लिया। पहले दिन खुद आए और पीपल के पेड़ के नीचे योग किया। अगले दिन से थाने में रहने वाले सभी पुलिस कर्मियों को छह बजे तक पहुंचने को कहा। उसके बाद रोज थाना परिसर के पीपल के पेड़ के नीचे योग की क्लास लग रही है।
देश में ऐसी प्रेरणा और लगन का योगनामआजहै, जिसका असर हर कहीं देखने को
मिल रहा है। उत्तर प्रदेश में देवरिया के खुखुंदू थाने पर एसओ से लेकर सिपाही तक सुबह छह बजते-बजते परिसर के पीपल पेड़ के नीचे जमा हो जाते हैं। फिर योग की कक्षा सजती है। करीब एक घंटे तक सभी साथ मिलकर योग करते हैं। यहां के एसओ की मानें तो इससे थाने में तैनात सभी लोगों
एसओ की मानें तो इससे थाने में तैनात सभी लोगों के कार्य में सुधार आया है
के कार्य में सुधार आया है। आए दिन अखबारों में इस तरह की खबरें छपती हैं कि रोज की भागदौड़ व अनियमित दिनचर्या पुलिस वालों को बीमार बना रही है। इससे उनके काम पर भी असर पड़ रहा है। ऐसे में खुद को स्वस्थ्य रखने व बेहतर काम के लिए योग अहम माध्यम बन रहा है। खुखुंदू थाने के एसओ का चार्ज लेने के बाद ही थानेदार मृत्युंजय
पाठक बताते हैं कि पुलिसकर्मी काफी राहत महसूस कर रहे हैं। ताजगी, स्फूर्ति महसूस करने के साथ उनके तनाव में भी कमी आ रही है। यह कार्यक्रम नियमित चलता रहेगा। थाने में मौजूद सिपाही, दीवान सहित सभी पुलिसकर्मियों को छह बजे तक पीपल के पेड़ के नीचे आना अनिवार्य कर दिया गया है।
सुखासन
सुखासन का शाब्दिक अर्थ है सुख देने वाला आसन। यह आसन बहुत ही आसान है। इस आसन के नियमित अभ्यास से आपको मानसिक सुख और शांति की भी अनुभति ू होगी। अगर आप चिंता, अवसाद या अति क्रोध से ग्रस्त हैं, तो इस आसन को करने से बहुत लाभ प्राप्त होगा
32 अनाम हीरो
विश्व योग दिवस विशेष
19 - 25 जून 2017
अनाम हीरो कार्तिकेय थियम सुंदरम
प्र
डिजिटल साक्षरता
हरियाणा के छात्र कार्तिकेय थियम सुंदरम ने वंचितों के लिए कंप्यूटर की एक सरल पुस्तिका विकसित की है
धानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से चलाए गए डिजिटल इंडिया कार्यक्रम से प्रेरित होकर 16 वर्षीय कार्तिकेय थियम सुंदरम ने वंचितों के लिए कंप्यूटर की एक सरल और व्यापक पुस्तिका विकसित की है। कार्तिकेय इसके माध्यम से गरीब और वंचितों की मदद करना चाहता थे, इसीलिए उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी दोनों में इसके पाठ्यक्रम और सामग्री को स्वतंत्र रूप से डिजाइन किया। बता दें कि कार्तिकेय जीडी गोयनका वर्ल्ड स्कूल, सोहना के छात्र हैं। कार्तिकेय को उत्सव फाउंडेशन ने उनके इस प्रयास के लिए समर्थन दिया, जहां उन्होंने सर्दियों की छुट्टियों के दौरान वंचित बच्चों और वयस्कों के लिए
कंप्यूटर साक्षरता पर काम किया। सिर्फ 30 दिनों में ही कार्तिकेय ने डिजिटल तकनीक की मूल बातें िसखाने वाली इस पुस्तिका को विकसित किया। इस पुस्तिका में कंप्यूटर, टाइपिंग, ग्राफिकल यूजर इंटरफेस, फाइल मैनेजमेंट सीखने के आसान तरीकों को शामिल किया गया है। इसके अलावा उन्होंने इसमें सावर्जनिक रूप से उपलब्ध यूट्यूब वीडियो और उसके लिंक जोड़े, जो सरल हिंदी भाषा के प्रत्येक अवधारणा को स्पष्ट करने में सक्षम है। इस पुस्तिका में छात्रों के ज्ञान का मूल्यांकन करने और उसे प्रमाणित करने के लिए शिक्षकों के मार्गदर्शक नोट, उससे जुड़े फोटो व टेस्ट पेपर भी शामिल किए गए हैं।
न्यूजमेकर
आजादी की आवाज पारिवारिक प्रताड़ना की शिकार महिलाओं की आवाज बनी जसविंदर संघेरा
झूलन का रिकॉर्ड इ झूलन ने महिला क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट लेने का रिकॉर्ड बनाया
ज
झूलन गोस्वामी
हां एक तरफ भारतीय क्रिकेट टीम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने प्रदर्शन से लोगों को प्रभावित कर रही है तो वहीं भारतीय महिला क्रिकेट टीम में झूलन गोस्वामी एक नया आयाम जोड़ रहीं हैं। उन्होंने महिला एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में सबसे ज्यादा 180 विकेट लेने का रिकॉर्ड बनाया है। इस रिकॉर्ड के साथ ही वह ऑस्ट्रेलिया की गेंदबाज कैथरीन फिट्ज़पैट्रिक को पीछे छोड़ दिया है, लेकिन एक क्रिकेटर के रूप में झूलन की यात्रा इतनी आसान नहीं थी। झूलन का जन्म पश्चिम बंगाल के एक छोटे से शहर नदिया में हुआ। वह अपने शहर में सबसे लंबी लड़की थी। अगर वह सड़क पर निकलती तो लोग पीछे मुड़ कर उन्हें देखते थे। बचपन में क्रिकेट उसके लिए जुनून बन गया था। उनके पिता जो एयर इंडिया में काम करते थे, उन्हें क्रिकेट में कोई दिलचस्पी नहीं थी। हालांकि उन्होंने कभी अपनी बेटी
को क्रिकेट खेलने से नहीं रोका। लेकिन उनकी मां उन्हें सड़कों पर लड़कों के साथ गेंदबाजी करते हुए देखना पसंद नहीं करती थीं। वह बचपन में पड़ोसी लड़कों के साथ सड़क पर क्रिकेट खेलती थीं। उन दिनों में वह बहुत धीमी गति से गेंद फेंकती थी, इसीलिए लड़के उनकी गेंद पर आसानी से चौके-छक्के लगाते थे। कई बार लड़के उन्हें चिढ़ाते हुए कहते झूलन तुम्हें गेंद से दूर रहना चाहिए। इससे झूलन को इतना दुख पहुंचा कि उन्होंने जीवन में तेज गेंदबाज बनने का फैसला कर लिया। उन्होंने साल 2002 में भारतीय महिला क्रिकेट टीम के साथ अपने करियर की शुरुआत की। हालांकि वह एक आसान रन-अप के साथ गेंद करती हैं। अब वह 120 किमी की रफ्तार से गेंदबाजी करने वाली दुनिया की सबसे तेज महिला गेंदबाज बन गई हैं। उन्हें साल 2007 में साल की आईसीसी महिला क्रिकेटर के खिताब से नवाजा गया। इतना ही नहीं उन्हें अर्जुन पुरस्कार और पद्म श्री सम्मान से भी सम्मानित किया गया है।
स बदलते परिवेश में जहां महिलाएं भी पुरुषों के साथ कदम मिला कर चल रही हैं और हर सुख-दुख में उनका साथ दे रहीं हैं, तो वहीं आज भी कुछ इलाकों में लड़कियों को शादी के लिए मजबूर किया जाता है। ऐसी महिलाओं और लड़कियों को इस प्रताड़ना से बचाने की लंबी लड़ाई 52 साल की जसविंदर संघेरा लड़ रही हैं। बता दें कि जसविंदर का एक गैर-सरकारी संगठन ‘कर्मा निर्वाण’ है। यह संगठन अपमानजनक संबंध में फंसी या दबाव में की जाने वाली शादी से बचाने और महिलाओं के साथ होने वाले किसी भी तरह के अपराध के खिलाफ उनकी मदद करता है। जसविंदर एक अत्यधिक प्रशंसित अंतरराष्ट्रीय स्पीकर और अदालतों की एक विशेषज्ञ सलाहकार भी हैं। जसविंदर को ‘दबाव में किए जाने वाले विवाह के मुद्दे’ को सार्वजनिक क्षेत्र में लाने के लिए जाना जाता है। ब्रिटेन के पूर्व प्रधान मंत्री डेविड कैमरन ने कहा कि उनके काम ने ‘दबाव में किए जाने वाले विवाह के मुद्दे’ पर मेरा ध्यान खींचा। उनकी पहली पुस्तक ‘शेम’, जिसमें जसविंदर ने अपने अनुभवों का वर्णन किया है और दूसरी ‘डाटर्स ऑफ शेम’ में उन हजारों महिलाओं के बारे में लिखा है, जिन्होंने चैरिटी के लिए दान किया था। उनके संस्मरण 'शेम' टाइम्स
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयक्त ु पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 1, अंक - 27
जसविंदर संघेरा
के शीर्ष 10 बेस्टसेलर में से एक था। जसविंदर के पिता ने 1950 के दशक में भारत से इंग्लैंड में रहने के लिए आए थे। उनके परिवार में बेटियों को अपने माता पिता से ससुराल में हो रही प्रताड़ना की शिकायत करने की अनुमति नहीं थी। यदि वे माता-पिता से इसकी शिकायत करतीं तो उन्हें समझाया जाता कि वे अपने ससुराल वालों को खुश रखें। जसविंदर ने इस रास्ते पर चलने से मना कर दिया। क्योंकि जसविंदर अपनी बहनों से अलग थीं। वह पढ़-लिख कर एक स्वतंत्र जीवन जीना चाहती थीं। जसविंदर ने कहा कि ब्रिटेन से सैकड़ों लड़कियां शादी करने के लिए प्रत्येक वर्ष भारत या पाकिस्तान भेजी जाती हैं। यह शादी उनकी मर्जी के खिलाफ होती है। यह सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखने के अलावा कुछ भी नहीं है। यह ब्रिटेन में उनके पतियों के पासपोर्ट को सुरक्षित करने का गलत तरीका है। अपने घर से बाहर निकल कर विभिन्न पार्कों में कई रात गुजारने के बाद जसविंदर को इस क्रूरता से लड़ने के लिए एक आदर्श वाक्य मिला।