सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 30)

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व्यक्तित्व

06

विज्ञान का मान, शांति का ज्ञान

24

स्वच्छता

पुस्तक अंश

डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

26 कही-अनकही

29

अभिनय की बनारसी ‘लीला’

सागर, स्वच्छता और विशेष अनुभागों के सौंदर्य की भूमि कल्याण के लिए योजनाएं

sulabhswachhbharat.com आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

वर्ष-2 | अंक-30 | 09 - 15 जुलाई 2018

पश्चिम बंगाल में आर्सेनिक से प्रभावित क्षेत्र में

सुलभ जल क्रांति

टू पिट-पोर फ्लश तकनीक से स्वच्छता की नई इबारत लिखने के साथ सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने देश-समाज के वंचित वर्गों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने का बीड़ा उठाया है। ‘सुलभ जल’ कैसे लाखों आर्सेनिक पीड़ितों के लिए जीवन-जल बना, इस क्रांतिकारी पहल को पश्चिम बंगाल के मधुसूदनकाती, मिदनापुर और मुर्शिदाबाद से लेकर उत्तर प्रदेश के वाराणसी और देश की राजधानी दिल्ली तक बेहतर तरीके से जाना-समझा जा सकता है

वि

एसएसबी ब्यूरो

कास की एक ग्लोबल छतरी के नीचे आने के बाद से दुनिया के कई देशों ने तकनीक और विकास की दिशा में लंबे डग भरे हैं। पर तकरीबन तीन दशकों से जारी विकास की इस होड़ के कुछ अंतरविरोध भी इन्हीं वर्षों में सामने आए हैं। बात शौचालय से लेकर स्वच्छता की करें या भोजन से लेकर जल की उपलब्धता की करें तो कई अफ्रीकी मुल्कों के साथ दक्षिण एशिया के ज्यादातर देश इन मोर्चों पर बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं। इसी चुनौती को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने सहस्राब्दि विकास लक्ष्य-2030 (एमडीजी-2030) तय किया है। जिसमें शुद्ध पेयजल की उपलब्धता और स्वच्छता का सवाल सबसे ऊपर है। न सिर्फ पर्यावरण प्रेमी बल्कि समाज-विज्ञानी भी जल और स्वच्छता को मानवाधिकार से जोड़कर देखते हैं। इस लिहाज से

खास बातें स्वच्छता के बाद देशभर में जल प्रदूषण दूर करने की दिशा में बढ़ा सुलभ

आर्सेनिक- प्रदूषित जल को जीवनदायी बनाने में सुलभ की बड़ी पहल सहस्राब्दि विकास लक्ष्य-2030 के एजेंडे में जल और स्वच्छता सर्वोपरि


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