वर्ष-1 | अंक-33 | 31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597
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06 सम्मान
प्रतिभाएं सम्मानित
बिहार के प्रतिभाशाली छात्रों का सम्मान
20 आपदा
‘फ्लड रेडी’ बच्चे
असम में बच्चों को बाढ़ से निपटने का प्रशिक्षण
28 नमन
विज्ञान का ‘टर्निंग प्वाइंट’ विज्ञान को काव्य की तरह देखने वाले वैज्ञानिक
सशक्त हो रही हैं महिलाएं देश की आधी आबादी की शिक्षा और सुरक्षा की गारंटी के साथ उन्हें स्वावलंबी बनाने की दिशा में सरकार ने कई अहम मुकाम हासिल किए
02 आवरण कथा
स
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
एसएसबी ब्यूरो
शक्त नारी, सशक्त देश, इसी सोच को अमलीजामा पहनाने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कृतसंकल्प हैं। प्रधानमंत्री के इरादों को पूरा करने के लिए तीन वर्षों में केंद्र सरकार ने कई ऐसी योजनाएं शुरू की हैं जिससे न सिर्फ महिलाओं का सशक्तिकरण हुआ है, बल्कि उनके समाज में आगे बढने का मार्ग भी प्रशस्त हुआ है। पिछले तीन वर्षों में महिलाओं के विकास का आकाश ज्यादा बड़ा हुआ और साथ ही उनके प्रति सामाजिक सम्मान का स्तर भी काफी बढ़ा है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना, महिला और बेटी की सुरक्षा के लिए पैनिक बटन की सुविधा, ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए प्रशिक्षण और रोजगार योजना, सुकन्या समृद्धि योजना और महिलाओं के लिए राज्य और जिला महिला सम्मान जैसे कई कार्य किए गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नारी को सशक्त करने के लिए सामाजिक आंदोलन चलाते हुए न केवल उनके रहन-सहन में बदलाव लाने की दिशा में काम किया है, बल्कि घर के बाहर भी व्यवस्था में सुधार लाने का मार्ग प्रशस्त किया है।
एक नजर
माटुंगा रेलवे स्टेशन को किया महिलाओं के हवाले इस स्टेशन पर नियुक्त हैं 30 महिला कर्मचारी
घर बैठे महिलाएं कर रही हैं करीब 9 अरब डॉलर का कारोबार
माटुंगा रेलवे स्टेशन महिलाओं के हवाले
सरकार की कार्यशैली बदली तो, तो देश और समाज की सोच भी बदली। समाज और सरकार दोनों का भरोसा महिलाओं पर तेजी से बढ़ा है। इसी भरोसे की बुनियाद पर सरकार ने माटुंगा रेलवे स्टेशन महिलाओं के हवाले कर दिया है। जी हां, मध्य रेलवे ने उपनगरीय माटुंगा स्टेशन पर सभी महिला कर्मचारी की नियुक्ति कर महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक कदम उठाया है। माटुंगा स्टेशन अब इस तरह का पहला महिला स्टेशन बन गया है। पिछले तीन हफ्ते से माटुंगा स्टेशन के सभी कार्यों का संचालन सिर्फ महिला कर्मचारी ही कर रही हैं। स्टेशन पर कुल 30 महिला कर्मचारी हैं। जिनमें 11 बुकिंग क्लर्क, पांच आरपीएफ कर्मी और सात टिकट चेकर्स शामिल हैं।
छोटी पहल, बड़ा संदेश
माटुंगा रेलवे स्टेशन को महिलाओं के हवाले किया जाना महिलाओं को सशक्त बनाने की एक छोटी सी पहल है। सरकार ने तय किया है कि अगर यह प्रयोग सफल रहा तो अन्य स्टेशनों को भी पूरी तरह महिलाओं को सौंपा जा सकता है। महिलाओं को सशक्त बनाने का संदेश देने के लिए सेंट्रल रेलवे ने इससे पहले ममता कुलकर्णी नाम की महिला कर्मी को कुर्ला स्टेशन की पहली महिला स्टेशन मास्टर बनाया था। यही ममता कुलकर्णी आज माटुंगा स्टेशन की मैनेजर हैं।
घर से रोजगार
एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में घर से बैठकर कम से कम 20 लाख महिलाएं 8 से 9 अरब डॉलर का व्यापार कर रही हैं। अने वाले समय में घर से कारोबार करने वाली महिलाओं की संख्या में बढ़ोत्तरी होने के संकेत हैं। डिजिटल लेनदेन के सरकार के प्रयासों में अब गृहणियां भी बढ़-चढ़कर हाथ बंटा रही
पता लगाया जा सकेगा कि किसी खास समय पर वह फोन किस स्थान पर था।
पासपोर्ट बनवाना आसान
माटुंगा रेलवे स्टेशन को महिलाओं के हवाले किया जाना महिलाओं को सशक्त बनाने की एक छोटी सी पहल है। अगर यह प्रयोग सफल रहा तो अन्य स्टेशनों को भी महिलाओं को सौंपा जा सकता है हैं। व्हाट्सएप्प और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए वो अपने द्वारा बनाए गए सामान को लोगों तक पहुंचा रही हैं।
रंग लाई मुद्रा योजना
घर बैठकर ई-कॉमर्स के जरिए रोजगार कर रही महिलाओं के सपनों को प्रधानमंत्री मुद्रा योजना ने बड़ी उड़ान दी है। पापड़, अचार, सिलाई,बुनाई जैसे व्यवसाय करने वाली महिलाओं ने इस योजना का सबसे ज्यादा लाभ उठाया है। गौर करने वाली बात यह है कि अब तक 7.5 करोड़ लोगों ने इस योजना का लाभ उठाया है,जिनमें से करीब 76 प्रतिशत महिलाएं हैं।
यौन उत्पीड़न के खिलाफ ई-प्लेटफॉर्म
कार्यालयों में यौन उत्पीड़न की घटनाओं को रोकने और इसके खिलाफ लड़ने के लिए ई-प्लेटफॉर्म लांच किया गया है। इस सुविधा के माध्यम से केंद्र सरकार की महिला कर्मचारी ऐसे मामलों में ऑनलाइन ही शिकायत दर्ज करा सकेंगी। केंद्र सरकार में करीब 30
लाख से ज्यादा कर्मचारी हैं। 2011 के जनगणना के अनुसार केंद्रीय कर्मचारियों में महिलाओं का प्रतिशत 10.93 है। किसी भी आपात स्थिति में महिलाओं को अपने परिजनों या पुलिस तक अपना संदेश पहुंचाने के लिए दूरसंचार विभाग ने ‘मोबाइल फोन हैंडसेट में पैनिक बटन और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम नियम 2016’ को 22 अप्रैल, 2016 को भारतीय वायरलेस टेिलग्राफ एक्ट 1933 की धारा 10 के तहत जारी किया है। इन नियमों के तहत 1 जनवरी, 2017 से सभी फीचर फोन में पैनिक बटन की सुविधा होना अनिवार्य है। इसके लिए फोन के की-पैड के 5वें अथवा 9वें बटन को निर्धारित किया गया है। इसी तरह सभी स्मार्ट फोन में भी पैनिक बटन की सुविधा होगी, जिसके लिए इसके की-पैड के ऑन-ऑफ बटन को तीन बार बेहद थोड़े समय के लिए दबाने की व्यवस्था है। यही नहीं, 1 जनवरी, 2018 से सभी मोबाइल फोन में ऐसी विशेष सुविधा देनी होगी, जिससे उपग्रह आधारित जीपीएस के माध्यम से यह
13 अप्रैल 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडियन मर्चेन्ट चेंबर की लेडीज विंग के गोल्डन जुबली समारोह में महिलाओं को पासपोर्ट बनवाने में दी जाने वाली रियायतों का एेलान किया। अब महिलाओं के लिए शादी के बाद पासपोर्ट में अपना नाम बदलवाना जरूरी नहीं है, उनको पासपोर्ट के लिए शादी या तलाक का सर्टिफिकेट देने की भी जरूरत नहीं है। महिलाएं पासपोर्ट के लिए आवेदन में अपने पिता या मां का नाम लिख सकती हैं।
सुकन्या वृद्धि योजना
4 दिसंबर, 2014 को सरकार ने छोटी बचत को प्रोत्साहन देने के लिए बालिकाओं की विशेष जमा योजना ‘सुकन्या समृद्धि खाता’ का शुभारंभ किया। इस योजना के तहत 10 वर्ष तक की बालिकाओं का खाता खोला जा सकता है और इसमें ब्याज दर हर वर्ष निर्धारित किया जाता है। इस खाते में एक साल में अधिकतम डेढ़ लाख रुपए जमा किए जा सकते हैं जो किसी भी कर के दायरे से बाहर हैं।
उज्ज्वला से फैला उजाला
मई 2016 से शुरू हुई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उज्ज्वला योजना के तहत चौदह महीने में ही 2.50 करोड़ परिवारों को इस योजना का लाभ मिल चुका है। गरीब महिलाओं के लिए धुंआ रहित रसोई को लेकर शुरू की गई उज्ज्वला योजना सफलता के शिखर पर पहुंच गई। देश के गरीब परिवार इसका लाभ ले रहे हैं। इस योजना के तहत मुफ्त एलपीजी कनेक्शन दिया जाता है।
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
मुद्रा योजना से मिली आर्थिक आजादी रोजगार अवसर
मुद्रा योजना की सफलता की कहानी नए रोजगार के अवसरों के निर्माण में है, जिससे देश में अब तक सबसे ज्यादा महिलाएं लाभान्वित हुईं हैं
रोजगार
03
एक नजर
मुद्रा योजना से 6.2 करोड़ महिलाएं हुईं लाभान्वित
केंद्र ने अब तक दिया 3,55,590 करोड़ रुपए का ऋण सबका साथ, सबका विकासमुद्रा योजना का मूल मंत्र
रहे हैं, उसका तीन गुना अधिक ब्याज देना पड़ता। यह काफी मंहगा पड़ता। शमशुल हुदा को बैंक से ऋण लेने में भी आसानी रही, क्योंकि इनकी अपनी फैक्ट्री है। इनका बैंक से लेन-देन का पिछला रिकार्ड भी साफ सुथरा रहा है।
8.19 करोड़ को मिला रोजगार
आंकड़े बताते हैं कि मुद्रा योजना के तहत 8.19 करोड़ लोगों ने ऋण लिया है। यदि हर ऋण से कम एक व्यक्ति के रोजगार मिलने का भी औसत माना लिया जाए, तो मुद्रा योजना से अब तक 8.19 करोड़ लोगों को रोजगार मिल चुका है। रोजगार पाने वालों की संख्या हर एक ईकाई में एक से अधिक ही होता है। उस हिसाब से रोजगार मिलने का यह आंकड़ा काफी ज्यादा होगा। सुनीता धवन और शमशुल हुदा की तरह से छोटे व्यवसाय जैसे बेकरी की दुकान वाले, कागज से बनने वाले उत्पादों के उद्यमी, ढाबा या रेस्त्रां चलाने वाले, नाई की दुकान वाले, कंप्यूटर और मोबाइल के पार्ट्स बेचने और बनाने वाले, सड़कों के किनारे दुकान लगाने वालों इत्यादि ने इस योजना का भरपूर लाभ उठाया और अपने लिए रोजगार पैदा किया है।
सभी राज्यों में पहुंचा लाभ
सु
एसएसबी ब्यूरो
नीता धवन की फरीदाबाद में कपड़ों की दुकान है। दुकान पर अन्य सौंदर्य प्रसाधन का सामान बेचने के लिए सुनीता ने बैंक से 50,000 रुपए का ऋण लिया है। 35 साल की सुनीता को ऋण आसानी से मिल गया। इसके लिए, वह हर माह 1250 रुपए बैंक में ईएमआई जमा करती हैं। सुनीता बताती हैं, कि अब दुकान से उनकी कमाई बढ़ गई है। अभी सुनीता को हर महीने ईएमआई जमा कराने बैंक जाना होता है, लेकिन ऑटो डेबिट की सुविधा मिलने के साथ ही जल्द ही इस झंझट से भी उन्हें मुक्ति मिल जाएगी।
6.2 करोड़ महिलाओं को लाभ
सुनीता जैसी इस देश में 6.2 करोड़ महिलाएं हैं, जिन्होंने बैंकों से ऋण लेकर अपने छोटे- छोटे कामधंधो को बढ़ाया और अपनी कमाई में भी इजाफा
किया है। सरकारी आंकड़ो में सुनीता जैसी महिलाओं के जीवन की सच्चाई छुपी है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले ही समझ लिया था। इसीलिए उन्होंने 08 अप्रैल 2015 को मुद्रा योजना का शुभांरभ किया। अब, सभी को इसका सीधा लाभ मिलता दिखाई दे रहा है। यह बात तो समझ में आती ही है कि सरकार देश में सभी को नौकरियां नहीं दे सकती, लेकिन वह रोजगार के अवसर और धन उपलब्ध करवा कर सभी का विकास में योगदान तो सुनिश्चित कर सकती है।
बड़ा आंकड़ा है। इस योजना से महिलाओं को ही नहीं, सभी धर्म, जाति और वर्ग के लोगों को फायदा मिल रहा है। सही मायनों में यह योजना प्रधानमंत्री मोदी के मूल मंत्र सबका साथ, सबका विकास का सबसे बड़ा प्रमाण है।
केंद्र सरकार ने इस योजना के तहत लोगों को अभी तक 3,55,590 करोड़ रुपए का ऋण दिया है। इसमें से लगभग 50 प्रतिशत यानी 1,78,313 करोड़ रुपए 6.2 करोड़ महिलाओं को मिला है। यह कुल ऋण लेने वालों की संख्या का 78 प्रतिशत है। दो साल के अंदर, रोजगार के अवसर उपलब्ध होने का यह एक
पटना के 27 वर्षीय शमशुल हुदा की कंकरबाग में जूते-चप्पल बनाने का एक छोटा उद्यम है। शमशुल हुदा ने बैंक से मुद्रा योजना के तहत 6 लाख रुपए का ऋण लिया। ताकि वह नकद में जूते चप्पल के बनाने के लिए माल खरीद सके। यदि शमशुल हुदा किसी व्यक्ति से ऋण लेते तो अभी जो वह ब्याज दे
ऋण लेने वालों में महिलाएं अधिक
एक और एक ग्यारह
पिछड़े और अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों ने लगभग 82,000 करोड़ रुपए का ऋण लेकर अपने रोजगार को बढ़ाया है। मुद्रा योजना का लाभ लेने वालों में महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है। इस योजना का लाभ हर प्रदेश के सभी लोग उठा रहे हैं। इस योजना की सफलता छोटे राज्यों में भी कम नहीं है। नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम और सिक्किम ने अपने राज्यों में 200 करोड़ रुपए से अधिक का ऋण दिया है। देश में सभी को रोजगार मिले और सबका विकास हो, यह सोचना और नीति बनाना तो आसान है, लेकिन सरकारों की अग्नि परीक्षा योजना को लागू करके सभी तक लाभ पहुंचाने में होती है। 125 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में किसी योजना को लागू करने में, छोटी-छोटी अपने किस्म की अनेक समस्याऐं आती हैं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने मुद्रा योजना को जिस मिशन के उत्साह से लागू किया है, उसकी प्रतिछाया आंकड़ो में साफ नजर आती है।
04 विकास
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
सरकार उपलब्धि
अच्छे दिन की चौतरफा गवाही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कौशल विकास से लेकर कारोबार तक आज हर क्षेत्र में ‘अच्छे दिन’ का सपना साकार होता दिख रहा है
एक नजर
नोटबंदी के बाद 91 लाख नए करदाता सामने आए
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एसएसबी ब्यूरो
च्छे दिन आएंगे’, 2014 में यह चुनावी नारा देश की जुबान पर ऐसा चढ़ा कि भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई और नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन ‘अच्छे दिन आएंगे’, यह महज चुनावी नारा भर नहीं रहा, सरकार इस नारे को हकीकत में बदलने में जुट गई। सरकार बनने के तीन साल बाद आज पूरे देश में अच्छे दिन की आहट सुनाई दे रही है। नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री क्या बने, देश की सत्ता क्या बदली, सत्ता के मायने बदल गए, प्रधानमंत्री ‘प्रधान सेवक’ बना, तो देश का मूड बदल गया। निराशा के दौर में बदलाव के नारे तो पहले भी लगते रहे हैं, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि अच्छे दिन के नारे के साथ सत्ता के शिखर पर पहुंचे पीएम मोदी ने देश के लोगों में उम्मीद जगाई।
आर्थिक संकट से जूझ रहे देश में समृद्धि की उम्मीद जगाई। देश की क्षमताओं का आकलन करते हुए हर क्षेत्र में अवसर की तलाश की। हालांकि अभी उनके कार्यकाल के दो साल बाकी हैं, फिर भी लगभग हर क्षेत्र में बदलाव के साथ प्रगति देखी जा सकती है।
सामर्थ्य बढ़ाने की पहल
प्रधानमंत्री की हर नीति देश को सामर्थ्यवान बनाने की दिशा में है। ‘स्किल इंडिया’, ‘मेक इन इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’, ‘स्टार्ट अप इंडिया’, ‘मुद्रा योजना’ जैसी सारी योजनाएं देश के लोगों में विश्वास जगाने की एक पहल है। सरकार ने आधार,
दिवालियापन का कानून, जीएसटी और मौद्रिक नीति को देश की आर्थिक तकदीर बदलने का माध्यम बना दिया है, जबकि भ्रष्टाचार, कालाधन, उच्च शिक्षा, प्रशासनिक सुधार, बिजली सुधार, रेल सुधार के क्षेत्र में किए जा रहे कायाकल्प के प्रयास देश में सत्ता बदल जाने का अहसास जगाने का जरिया बन गया। यह एक ऐसा दौर है जिसमें सत्ता, आवाजें, चेहरे और शब्द बदल जाने का अनुभव होने लगा है। यानी अच्छे दिन आने लगे हैं।
बेहतर आर्थिक हालात
नोटबंदी के जरिए देश की अर्थव्यवस्था की गुणवत्ता
सरकार बनने के तीन साल बाद आज पूरे देश में अच्छे दिन की आहट सुनाई दे रही है। प्रधानमंत्री ‘प्रधान सेवक’ बना, तो देश का मूड बदल गया
फार्मा बाजार में 14-18 फीसदी की वृद्धि दर
इस साल जीडीपी सात फीसद से ऊपर रहने की उम्मीद
को बेहतर बनाने की कोशिश सफर रही। 1000 और 500 के पुराने नोट बंद किए जाने के बाद से अब तक करीब 4.6 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की नकदी पकड़ी जा चुकी है। अप्रैल 2017 तक ऑपरेशन क्लीन के तहत 60,000 लोग आयकर विभाग के रडार पर हैं। इतना ही नहीं नोटबंदी के बाद 91 लाख नए करदाता सामने आए हैं जो पिछले साल के मुकाबले 80 प्रतिशत ज्यादा हैं। विश्व बैंक की जून में आई एक रिपोर्ट के अनुसार 2017 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 7.2 प्रतिशत रहेगी, जो 2016 में 6.8 प्रतिशत से अधिक है। अगर 2013 की बात करें तो
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017 ये आंकड़ा महज 4 प्रतिशत से थोड़ा ही ज्यादा था। विश्व बैंक ने जनवरी के अनुमान की तुलना में भारत की वृद्धि दर के आंकड़े को जून में 0.4 प्रतिशत संशोधित किया है, वहीं भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है। दूसरी तरफ कालेधन की समानांतर अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी से चोट पड़ी है यानी काला धन से जुड़े आतंकवाद, हवाला, भ्रष्टाचार और तस्करी जैसी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के जिस इरादे के साथ नोटबंदी का निर्णय लिया गया था, वो इरादे पूरे होने के मजबूत संकेत मिलने लगे हैं।
जीएसटी ने बढ़ाया राजस्व
जीएसटी के शुरुआती 15 दिन के बाद राजस्व में 11 फीसदी की ही बढ़ोत्तरी हुई है। आंकड़े बताते हैं कि राजस्व में महीने-दर-महीने आधार पर 11 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो रही है। केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क बोर्ड की जानकारी के अनुसार एक जुलाई से 15 जुलाई के बीच आयात से प्राप्त कुल राजस्व 12,673 करोड़ रुपए रहा, जबकि जून महीने में समान अवधि में यह 11,405 करोड़ रुपए था। जीएसटी को लागू हुए महीना हो गया, जैसेजैसे समय बीत रहा है छोटे और मझोले कारोबारियों में इसे लेकर भ्रांतियां खत्म हो रही है। व्यापारियों में सकारात्मक सोच उभर कर सामने आने लगी है। जीएसटी का सबसे ज्यादा विरोध कर रहे कपड़ा व्यवसायियों ने भी अपना विरोध वापस ले लिया है और इनमें से करीब 65 प्रतिशत व्यवसायियों ने रजिस्ट्रेशन भी करवा लिया है।
उदय से हुआ उजाला
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उदय योजना से न सिर्फ वितरण कंपनियों के नुकसान की भरपाई हुई है, बल्कि बिजली कटौती की समस्या से भी लोगों को राहत मिली है
दय योजना ने देश को बिजली की बदहाली से उबारना शुरू कर दिया है। योजना के लागू होने के मात्र दो साल ही हुए हैं, लेकिन इतने कम समय में ही बिजली कटौती की समस्या आधी से भी कम रह गई है। इस योजना के चलते राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों की आर्थिक बदहाली के दिन दूर हो चुके हैं। इसका असर यह हुआ है कि प्रति दिन बिजली कटौती के घंटे 19 से घटकर 7 तक पहुंच चुके हैं।
उदय से फैला उजियारा
देश में बिजली की जबरदस्त किल्लत और वितरण कंपनियों की आर्थिक बदहाली को सुधारने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 5 नवंबर, 2015 को उदय योजना को लागू किया। इस योजना ने राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों को कर्ज से उबरने का एक नया रास्ता दिखाया। आज ये कंपनियां अपने ऋणों को वित्तीय संस्थानों और बैंकों के बांड में बदलकर कर्ज के बोझ से बाहर आ चुकी हैं। हाल
की रिपोर्ट बताती है कि ये कंपनियां लोन के 87 प्रतिशत यानी 2,32,000 लाख करोड़ का बांड जारी कर चुकी हैं। कर्ज की स्थिति में सुधार के साथ-साथ इस योजना के तहत, बिजली कंपनियों के नुकसान को कम करने के लिए स्मार्ट मीटरिंग की व्यवस्था की गई है। इस तरह बिजली आपूर्ति पर आने वाले खर्च और बिजली आपूर्ति के खर्च की वसूली के अंतर को भी पाटने की कोशिश की गई है। उदय में 27 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं। बिजली की आपूर्ति के खर्च और वसूली का भी अंतर घटकर मात्र 45 पैसे रह गया है, जो 2015-16 में 59 पैसा था। उदय के लागू होने के बाद से राज्यों के बिजली
वितरण कंपनियों का वार्षिक घाटा भी कम हो रहा है। 2016 में जहां इन कंपनियों को 51,340 करोड़ का नुकसान हुआ था, वहीं 2017 में यह घाटा 40, 295 करोड़ रुपए रह गया है।
उदय से जनता को फायदा
राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों को मिल रहे
आज ये कंपनियां अपने ऋणों को वित्तीय संस्थानों और बैंकों के बांड में बदलकर कर्ज के बोझ से बाहर आ चुकी हैं। हाल की रिपोर्ट बताती है कि ये कंपनियां लोन के 87 प्रतिशत यानी 2,32,000 लाख करोड़ रुपए का बांड जारी कर चुकी हैं
विकास
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जेनरिक दवाएं
कभी संरक्षणवाद और भ्रष्ट तंत्र का सबसे ज्यादा शिकार हेल्थ सेक्टर का कारोबार ही रहा करता था। विदेशी कंपनियों की मनमानी और शासन तंत्र की नाफरमानी से देश की जनता जूझ रही थी, लेकिन पीएम मोदी ने इस क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव किए। अमेरिकी दवा नियामकों द्वारा उठाए गए सख्त कदमों के बावजूद देश-विदेश में जेनरिक दवाओं की बिक्री में वृद्धि हो रही है।
बढ़ेगा फार्मा कारोबार
‘प्राइस वाटरहाउस कूपर्स’ की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 तक भारत का फार्मा बाजार 74 अरब डॉलर का हो जाएगा। इस बाजार में साल-दरसाल 14 से 18 फीसदी की बढ़त की उम्मीद है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां इस सेक्टर को लेकर काफी सकारात्मक हैं। भारतीय दवाओं का कारोबार विदेशों में तेजी से बढ़ रहा है। बहरहाल, आईटी उद्योग पर अमेरिका की नई वीजा व्यवस्था से मुश्किलें जरूर आईं, लेकिन ऐसे बाहरी कारक ज्यादा दिनों तक भारत के आईटी उद्योग को दरकिनार नहीं कर सकते। दूसरी तरफ स्मार्ट सिटी परियोजना, भारत की स्वच्छ गंगा, नवीकरणीय ऊर्जा और सूचना तकनीक और संचार के कार्यक्रमों में भारत तेजी से विकास कर रहा है, जिसका आने वाले वक्त में देश की तस्वीर और तकदीर दोनों पर गहरा और सकारात्मक प्रभाव पड़ने वाला है। सुधार और स्वबलंबन की जिस दिशा में देश तेजी से आगे बढ़ रहा है, उसके संकेत साफ हैं कि आने वाले दिन अच्छे ही नहीं, बहुत अच्छे होंगे।
फायदे का लाभ सीधे देश की जनता को मिल रहा है। इसी उद्देश्य से प्रधानमंत्री मोदी ने इस महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की थी। योजना से पहले जहां 18-19 घंटों की बिजली की कटौती आम बात थी, वहीं योजना के लागू होने के दो साल के अंदर अब बिजली कटौती मात्र 7.45 घंटे ही रह गई है। 2014 से पहले राज्यों की बिजली वितरण कंपनियां अभूतपूर्व 3,95,000 करोड़ रुपए के कर्ज के बोझ से दबी हुई थीं। हालत ऐसी हो चुकी थी कि बिजली का कुछ घंटे भी लगातार रहना एक बड़ी बात हो गई थी। 30 और 31 जुलाई 2012 का काला दिन, देश के मन में आज भी भय का अहसास करा जाता है, जब पूरे उत्तर भारत में बिजली, ग्रिड की खराबी के कारण बिजली आपूर्ति ठप हो गई थी। 26 मई, 2014 के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस खराब व्यवस्था में जान फूंकने का प्रयास किया,तो आज उसका परिणाम धीरे-धीरे सामने आ रहा है।
06 आयोजन
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
बिहार की प्रतिभाएं हुईं सम्मानित प्रतिभा सम्मान
यूपीएससी परीक्षा में इस वर्ष सफल होने वाले बिहार के छात्रों को ‘वॉयस ऑफ बिहार’ ने किया सम्मानित
एक नजर
समारोह की अध्यक्षता सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने की डॉ. पाठक ने निष्ठा और धैर्य से कार्य करने की दी सलाह
सुलभ का प्रेरक उदाहरण देकर समझाई अपनी बात
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प्रियंका तिवारी
क दो नहीं, बल्कि देश के कई प्रतिष्ठित ब्यूरोक्रेट्स बिहार की मिट्टी से उपजे हैं। संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में सफलता के तौर पर यह सिलसिला अब भी कायम है। संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में इस वर्ष सफल होने वाले बिहार के प्रतिभाशाली छात्रों को ‘वॉयस ऑफ बिहार’ ने नई दिल्ली स्थित कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित एक समारोह में सम्मानित किया। इस मौके पर सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक और बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक अभयानंद मौजूद रहे। सम्मान समारोह की अध्यक्षता कर रहे सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने सभी सफल अभ्यर्थियों को शुभकामनाएं दीं और कहा कि सभी को अपनी जिंदगी में एक लक्ष्य बनाना चाहिए और उसके लिए पूरी ईमानदारी से मेहनत करनी चाहिए, तभी सफलता आपके कदम चूमेगी। सुलभ की सफलता का राज यही है कि इसमें ज्यादातर लोग बिहार के हैं। बिहार के लोग बहुत मेहनती और संस्कारी होते
हैं, वह दिन-रात काम करते हैं। हमारा कार्य एक-दो वर्षों का नहीं, बल्कि पचास वर्षों का है। आप लोगों को जानकर आश्चर्य होगा कि 'इकाॅनामिस्ट' पत्रिका ने विश्व के 50 प्रतिष्ठित लोगों की सूची में बिहार के एक व्यक्ति को शामिल किया है। यह आप लोगों के लिए गर्व की बात है। इतना ही नहीं न्यूयॉर्क के मेयर ने मेरे लिए 14 अप्रैल 2016 का एक दिन समर्पित किया है, जो गौरव अब तक किसी भी भारतीय को नहीं मिला। हमें अपनी संस्कृति, अपनी मेहनत पर विश्वास करना चाहिए। बिहार के लोग हर क्षेत्र में सफल हैं। सीढ़ियां उनके लिए अबोध
हैं छतों तक जिनको जाना है, बादलों पर है जिनकी दृष्टि उन्हें पथ आप बनाना है। सुलभ ने देश से मैला ढोने की प्रथा को खत्म किया है, यदि सुलभ शौचालय का आविष्कार नहीं किया गया होता तो देश से मैला ढोने की प्रथा खत्म ही नहीं होती। हमने स्कैवेंजर्स भाईबहनों को इस नर्क से मुक्ति दिलाई, उन्हें सम्मान से जीने का हक दिलाया। आज वह सबके साथ मंदिर जाते हैं, खाना खाते हैं। आज वे सम्मान के साथ िसर उठाकर जीवन जी रहे हैं। सुलभ के इस अविष्कार को बीबीसी ने दुनिया के पांच अविष्कारों में शामिल किया
‘सुलभ की सफलता का राज यही है कि इसमें ज्यादातर लोग बिहार के हैं। बिहार के लोग बहुत मेहनती और संस्कारी होते हैं, वह दिन-रात काम करते हैं। हमारा कार्य एक-दो वर्षों का नहीं, बल्कि पचास वर्षों का है’ -डॉ. विन्देश्वर पाठक
है। डॉ. पाठक ने नवनिर्वाचित ब्यूरोक्रेट्स को एक कहानी के माध्यम से समझाया कि आप लोगों को सबके साथ एक समान व्यवहार करना है, जिसके हिस्से जितना होगा, उतना उसे मिलेगा। आप लोगों को अपने पद की गरिमा बनाए रखनी चाहिए और किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए। प्रतिभा सम्मान समारोह में सुपर-30 के संस्थापक अभयानंद ने कहा कि नई जिम्मेदारी संभालने जा रहे ब्यूरोक्रेट्स के लिए समाज और सरकार के बीच समन्वय बनाए रखना जरूरी है। दोनों के बीच में एक लाइन है, जिसे संयोजित करके चलने से ही समाज और देश का भला हो सकता है। उन्होंने कहा कि मेरी पूरी जिंदगी अभिनव प्रयोगों की रही है। मेरे प्रयोगों का जो सारांश है, सुपर-30 उसका एक पार्ट है। समाज में बहुत सी समस्याएं हैं, जिसमें से ज्यादातर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में हैं और हम इसके लिए मान लेते हैं कि यह सरकार का काम है और सरकार ही इन समस्याओं का निदान कर सकती है। इन सबका आशय यह हुआ कि क्या सरकार ही समाज की हर समस्या का निदान ढूंढ़ेगी या समाज भी इन समस्याओं के निदान के लिए कुछ करेगा। समाज को सरकार पर आश्रित रहने की कितनी आवश्यकता है, यह उन लोगों के लिए एक सवाल है जो उस लाइन के दोनों तरफ हैं। इस मुख्य बिंदु का निचोड़ यह है कि अब तक आप समाज में थे, लेकिन अब सरकार में आ गए हैं। यहां से आपकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है, जिससे आपकी समस्याएं शुरू हो जाती हैं। आईएसआईपीएस बनने के बाद लोगों को बड़ा बंगला मिलता है, जिसमें आने का सभी व्यक्तियों को अधिकार होता है। यदि कोई रात को आपके बंगले पर आए तो आप उससे बहानेबाजी नहीं कर सकते हैं। उस व्यक्ति को उस बंगले में आने का अधिकार सरकार से मिला है और वह अपनी शिकायतें लेकर जब चाहे आ सकता है।
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
अपनी बातों को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि अब आप सिर्फ एक पदाधिकारी नहीं है, आप देश को चलाने जा रहे हैं। आपके साथ आपकी फैमिली भी जुड़ी है। इस तरह के सर्विसेज डिमांडिंग होती है। इस तरह के जॉब में आपको अपने परिवार के साथ समाज को भी साथ लेकर चलना होता है। अभयानंद ने सबको नए पद को संभालने के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं और कहा कि आप खुद को हमेशा समाज से जोड़ कर रखें। क्योंकि इस समाज को बनाने का उत्तरदायित्व अब आपके कंधों पर है। बिहार के छपरा जिले के रहने वाले भारतीय जूनियर हॉकी टीम के कोच हरिंदर सिंह, जिन्होंने 14 साल बाद हॉकी टीम को विश्व चैंपियन बनाया। उन्होंने सर्वप्रथम नवनिर्वाचित ब्यूरोक्रेट्स को शुभकामनाएं दीं और कहा कि वह भी बिहार से एक सपना लेकर 1979 में दिल्ली आए थे। उन्होंने कहा कि पढ़ाई के दौरान हमने इंडिया-पाक का हॉकी का मैच देखा और इंडिया की हालत देखकर उसी समय प्रण कर लिया कि मैं हॉकी खेलूंगा और पाक को हरा कर दिखाऊंगा। हमने इसके लिए रात को 11 बजे के बाद प्रैक्टिस करनी शुरू की क्योंकि 11 बजे तक हम सभी दोस्त पढ़ाई किया करते थे। कॉलेज में जब पहली बार मैच खेलने गया तो हमारे टीम के कैप्टन ने मेरी हॉकी स्टिक फेंक दी और कहा कि बिहारी दिल्ली में रिक्शा चलाने आते हैं। उसके बाद हमने कभी पीछे
आयोजन
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प्रतिभा सम्मान समारोह में सुपर-30 के संस्थापक अभयानंद ने कहा कि नई जिम्मेदारी संभालने जा रहे ब्यूरोक्रेट्स के लिए समाज और सरकार के बीच समन्वय बनाए रखना जरूरी है
मुड़ कर नहीं देखा। मैं उनका शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे हॉकी खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। बता दें कि हरिंदर सिंह को खेल का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार द्रोणाचार्य से 2012 में भारत सरकार ने सम्मानित किया। इसके साथ ही बिहार सरकार, यूपी सरकार, महाराष्ट्र सरकार ने भी उन्हें सम्मानित किया है। इस मौके पर वरिष्ठ टीवी पत्रकार राणा यशवंत सिंह ने कहा कि बिहारी देश की प्रतिभा हैं। हमें समाज को बदलने के लिए कोशिश करनी चाहिए। जब हम ऊंचे पदों पर पहुंचते है तो हमारे साथ हमारी पहचान भी चलती है। हम जितना बेहतर करेंगे, वह हमारे जमीन और क्षेत्र के लिए बेहतर साबित होगा। बिहार के लोग राष्ट्रीय अस्मिता
को लेकर चलते हैं, लेकिन खुद पर गर्व नहीं करते हैं। इस साल बिहार के बुनकर बस्ती के 17 बच्चे आईआईटी में क्वालीफाइड हुए हैं। हमें इन प्रतिभाओं को दुनिया के सामने लाने की आवश्यकता है। इस समारोह में नवनिर्वाचित ब्यूरोक्रेट्स के अलावा दूसरे क्षेत्रों में काम कर रहे लोगों को भी सम्मानित किया गया। इनमें शशांक भी शामिल हैं, जो किसानों के लिए काम कर रहे हैं। बता दें कि शशांक ने आईआईटी,दिल्ली के छात्र रहे हैं। पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्हें एक कंपनी में जॉब मिली, लेकिन उन्होंने वह जॉब छोड़ दी और किसानों के लिए काम करने का विचार किया। इसके लिए उन्होंने ‘फॉर्म एडं फार्मर’ नाम की संस्था बनाई है। यह संस्था एक ही छत के नीचे किसानों की हर समस्या का समाधान करती है। यह संस्था बिहार के 25 हजार किसानों के साथ काम कर रही है। इस मौक पर शशांक ने कहा कि यह सम्मान समारोह मेरे और मेरी संस्था को प्रोत्साहित करने वाला है। सम्मान समारोह में यूपीएससी में चयनित होकर बिहार का गौरव बढ़ाने वाले आनंद वर्धन
(7वीं रैंक), सोमेश उपाध्याय (34वीं रैंक), आरिफ एहसान (74वीं रैंक), शशिप्रकाश सिंह (75वीं रैंक), सुमित कुमार झा (111वीं रैंक), सन्नी राय (132वीं रैंक), प्रभात रंजन पाठक (137 वीं रैंक), नितेश पांडेय (141वीं रैंक), केशव कुमार (222वीं रैंक), विवेक नंदन (374वीं रैंक), सत्यम (339वीं रैंक), ओमकार राय (498वीं रैंक) को सम्मानित किया गया। इसके अलावा भोजपुरी फिल्म की डायरेक्टर पल्लवी प्रकाश, एमसीडी कांउसलर संजय ठाकुर, लैंग्वेज एक्सपर्ट निवेश कुमार, स्वउद्यमी निर्मल, वंदना भारद्वाज, संदीप और मैथिली ठाकुर को भी सम्मानित किया गया। बता दें कि ‘वॉयस ऑफ बिहार’ एक संस्था है, जिसमें लगभग 250 लोग सदस्य के तौर पर कार्य करते हैं। इस कार्यक्रम के आयोजक ब्रिजेश कुमार ने बताया कि वह इस संस्था के माध्यम से तीन सालों से बिहार की आवाज को दुनिया के सामने लाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह बिहार की बिगड़ती छवि को सुधारने और वहां कि प्रतिभाओं से दुनिया को अवगत कराने का कार्य कर रहे हैं।
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सुलभ दर्शन
सुलभ ने छुआछूत खत्म करने का किया प्रयासः मल्लिका नड्डा सुलभ ग्राम दर्शन के लिए पहुंचीं डॉ. मल्लिका नड्डा ने की सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक के कार्यों की सराहना
सु
लभ परिवार ऐसे कार्य में लगा है, जिसकी कल्पना भी हम सब नहीं कर सकते हैं। डॉ. विन्देश्वर पाठक ने ब्राह्मण परिवार से होते हुए भी छुआछूत जैसे मुद्दे पर विचार ही नहीं किया, बल्कि उसे समाज से दूर करने के अपने सपने को भी साकार किया है। डॉ. पाठक के इस सराहनीय कार्य के लिए हम उनका अभिनंदन करते हैं। ये बातें डॉ. मल्लिका नड्डा ने सुलभ ग्राम में कहीं। इस दौरान उन्होंने सुलभ की सभी तकनीक, सुलभ स्कूल के बच्चों, ट्रेनिंग सेंटर के प्रशिक्षुओं, वृंदावन से आईं माताओं और पूर्व स्कैवेंजर्स बहनों से भी मुलाकात की। सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने मल्लिका नड्डा और उनके साथ आए अतिथियों का पुष्प गुच्छ व शाल देकर स्वागत किया। इस दौरान डॉ. पाठक ने कहा कि आपको सोचना है कि इस धरती पर आप ही नहीं हैं, बल्कि दूसरे लोग भी हैं। उन लोगों के लिए हम क्या कर रहे हैं, हमें ये भी सोचना है, तभी समाज आगे बढ़ सकता है। यह समाज उन्हें ही याद रखता है, जो दूसरों के बारे में सोचते हैं और उनके लिए कुछ करते हैं। किसी भी व्यक्ति के पास कितनी जमीन और जायदाद है, यह कोई नहीं याद रखता है। इतिहास में पहली बार हुआ है कि मैला ढोने वाले लोग समाज में सबके साथ खाना खा रहे हैं और मंदिरों में जा रहे हैं। वह सम्मान के साथ खुद को ब्राह्मण कहते हैं और सिर उठा कर जी रहे हैं। यह किसी ने नहीं सोचा होगा कि मैला ढोने वालों को ब्राह्मण का दर्जा मिलेगा। सुलभ ने महात्मा गांधी के सपने को साकार किया है। डॉ. मल्लिका नड्डा ने इस अवसर पर कहा
एक नजर
कि पाठक जी हमारे पिता तुल्य हैं, उनका व्यक्तित्व महान है। डॉ. पाठक हमारे लिए पथ-प्रदर्शक हैं। उन्होंने देश से छुआछूत को दूर करने के लिए कई आविष्कार ही नहीं किए, बल्कि उसे इस सुलभ ग्राम में लागू भी किया है। इस तकनीक के साथ मिलकर सरकार को कार्य करने की आवश्यकता है, जिससे भारत की तस्वीर को बदला जा सकता है। आज सुलभ ग्राम में हम सब को एक ऐसी चीज देखने को मिली, जो कहीं और देखने को नहीं मिल सकती। महिलाओं को होने वाली पीड़ा को डॉ. पाठक और सुलभ परिवार ने पूरी तरह समझा है।
मल्लिका नड्डा
डॉ. पाठक हमारे लिए पथप्रदर्शक हैं। उन्होंने देश से छुआछूत को दूर करने के लिए कई आविष्कार ही नहीं किए, बल्कि उसे इस सुलभ ग्राम में लागू भी किया है
इसके साथ ही स्कैवेंजर्स बहनों को ब्राह्मण बनाकर समाज में सर्वोच्च स्थान दिलाया है, जो बहुत ही सराहनीय है। डॉ. पाठक की इस पहल से हमारे समाज से छुआछूत जैसी गंभीर बीमारी जल्द ही खत्म हो जाएगी। आज हम सब यहां से यह प्रेरणा लेकर जाएंगे कि अपने गांव, शहरों-मोहल्लों में शौचालय बनवाने का कार्य करेंगे। उन्होंने कहा कि हम सब मिलकर ऐसे भारत का सपना देखते हैं, जहां सब के बीच समानता हो, प्रेम हो और यह सपना डॉ. पाठक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जरूर पूरा होगा। कार्यक्रम में आईं भजपा नेता रूपम सिंह ने कहा कि सुलभ ऐसी जगह है जहां हमारे प्रधानमंत्री मोदी का सपना साकार हो रहा है। इसके लिए हम सब डॉ. पाठक के आभारी हैं कि उन्होंने शौचालय की एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसे कम लागत में गरीब से गरीब व्यक्ति के घर में बनवाया जा सकता है। महिलाओं और स्कैवेंजर्स भाई-बहनों के लिए सुलभ परिवार ने बहुत ही सराहनीय कार्य किया है। हमने यहां आने से पहले सोचा नहीं था कि मुझे एक नई चीज देखने को मिलेगी। मैं इस तकनीक को अंडमान निकोबार में भी लागू करने की योजना बनाऊंगी, जिससे वहां के लोगों को भी इस तकनीक का लाभ मिल सके। इस मौके पर तेजस्विनी आनंद कुमार ने कहा कि भारत में महिलाओं के लिए शौचालय होना बहुत ही जरूरी था, जिसके लिए डॉ. पाठक ने अथक प्रयास किया है। इसके लिए हम उन्हें और सुलभ परिवार को बहुत धन्यवाद देते हैं। डॉ पाठक गांधी जी और प्रधानमंत्री मोदी के सपने को साकार करने
सुलभ तकनीक और गतिविधियों को देखकर हुईं प्रभावित सुलभ ने समाज में समानता की सोच को किया साकार
सुलभ की सामाजिक दृष्टिऔर कार्यक्रमों से खासी प्रभावित
के लिए सराहनीय कार्य कर रहे हैं। सुलभ ग्राम ने हमें आज एक अलग तरह की दुनिया का दर्शन कराया है। ऐसी तकनीक हमने पहले नहीं देखी थी। शौचालय महिलाओं के लिए बहुत ही आवश्यक है, इसके लिए डॉ. पाठक ने अद्भुत कार्य किया है। सुलभ इंटरनेशनल के चेयरमैन एसपी सिंह ने इस अवसर पर कहा कि गरीब इस देश में बहुत ही मुश्किल से जीता है, उसके बारे में कोई नहीं सोचता है। सुलभ परिवार पिछले 50 सालों से देश में छुआछूत, स्वच्छता और शौचालय जैसे मुद्दों पर सफलता से कार्य कर रहा है। इन पचास सालों में कई लोग आए हमारे यहां और हमने सबसे कहा कि इन लोगों को मदद की जरूरत है। यदि आप इनकी मदद नहीं करेंगे तो समाज कभी आगे नहीं बढ़ पाएगा, इस बात पर लोगों ने कहा कि इनकी पैसे से मदद कर देते हैं, लेकिन डॉ. पाठक ने कहा कि अगर पैसे दे देने से इनका उद्धार हो जाए तो यह काम कोई भी कर सकता है। इसके लिए हमें सुनियोजित तरीके से कार्य करने और समाज में इन्हें प्रतिष्ठा दिलाने की आवश्यकता थी। डॉ. पाठक की अगुआई में सुलभ ने समाज को बदलने की दिशा में एक नया इतिहास लिखा है।
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गरीब बेटियों की ‘साइकल वाली दीदी’ व्यक्तित्व
बिहार की राजधानी पटना के करीब वंचित समाज की बेटियों की जिंदगी में शिक्षा और स्वावलंबन का अलख जगा रही हैं सुधा वर्गीज
बि
संजीव / पटना
हार की राजधानी पटना से लगे दानापुर और फुलवारी शरीफ में 50 किशोरी शिक्षा केंद्रों में मुसहरों की करीब 1500 बेटियां रह रही हैं। उन्हें हर उन चीजों की जानकारी दी जा रही है, जो उनकी जिंदगी को बेहतर बनाने में सहायक है। रीता, मोना, सोना, रूबी, महिसी, देवी सब एक साथ पढ़ रही हैं और अपना सुनहरा भविष्य बना रही हैं। यहां उनकी सेहत के लिए उनकी खुराख पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। अगर आप जानना चाहते हैं कि इतनी बड़ी रचनात्मक पहल के पीछे कौन है, तो आपको सुधा वर्गीज के बारे में जानना होगा और उन्हें जानने का मतलब है, वंचित बच्चों की उस दुनिया में पहुंचना, जिसे सुधा ने उजाले की एक नई दुनिया में तब्दील कर दिया है। बच्चों के लिए वह साइकल वाली दीदी है। साइकल वाली दीदी अपने बच्चों को इतना प्यार करती हैं कि शबरी की तरह बच्चों को गुड़ देने से पहले उसकी मिठास को जीभ पर रखकर खुद चेक करती हैं, फिर उन्हें चने के साथ मिलाने को कहती हैं। वह बच्चों की साफ-सफाई का भी बेहद ख्याल रखती हैं। कभी जिन बच्चों की जिंदगी में शोर और भूख भरी थी, अब
उनकी जिंदगी तो सुकून से बीत ही रही है, उनके मन में भविष्य की चुनौतियों को लेकर भी खासा आत्मविश्वास भर रहा है। यहां बच्चों के सोने की व्यवस्था पूरी तरह से बैरकों की तरह है। जिंदगी की दिशा को मोड़ने के लिए उन्हें थोड़ा टफ जो बनाना है। अच्छी नींद इन्हें अगले दिन के अभ्यासों के लिए तैयार कर देती है। मां-पिता का विश्वास किसी बेटी को मिल जाए तो क्या नहीं हो सकता। सुधा वर्गीज ने जिस राह को चुना है, उस पर निरंतर चलते रहने की प्रेरणा उन्हें आज भी उनके माता-पिता से मिलती रहती है। केरल में उनके फार्म में जब अलग-अलग समुदाय के बच्चे खेलने आते थे तो सुधा भी उनके साथ खूब खेलती थी, भेदभाव क्या होता है, उन्हें पता नहीं था, उनके माता-पिता भी वहां आने वाले बच्चों से खूब बातें किया करते थे। फिर भला सुधा को क्यों रोकते। इस तरह भेदभाव रहित समाज उन्हें विरासत में मिली।
किशोर मन कोमल होता है और इस अवस्था में कभी-कभी बातें सीधे दिल में उतर जाती हैं, चाहे वे किताबों में पढ़ी गई बातें ही क्यों न हो। सुधा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। कच्ची उम्र में बिहार की गरीबी के विषय में पढ़ने के बाद इस प्रदेश को नजदीक से देखने, समझने और यहां के लोगों के लिए कुछ करने की भावना प्रबल होती गई। फिर केरल में अपने मांपिता और घर-द्वार को छोड़ कर बिहार चली आईं। मिशनरी शिक्षिकाओं के साथ बिहार में कदम रखने के बाद यहां की अमीरी देखकर सुधा को जल्द ही अहसास हो गया कि यह उनका लक्ष्य नहीं है। उस समय उन्हें हिंदी बिल्कुल नहीं आती थी, लेकिन यहां के गरीब तबकों के बीच काम करने का इरादा पक्का था, स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ हिंदी सीखती रहीं, ताकि भविष्य में अपने लक्ष्य की ओर मजबूती से डग भर सके। गरीबों के लिए कुछ करने की ललक के साथ बिहार आने के बाद सुधा के कानों से जाति जैसे शब्द टकराए, जो उनके लिए नया था। यहां की सामाजिक संरचना को समझने की जरूरत उन्होंने महसूस की और अलग-अलग क्षेत्र से जुड़े लोगों से मुलाकात का सिलसिला शुरू हुआ, जिनमें सामाजिक कार्यकर्ता और समाजशास्त्री भी शामिल थे। एक तरह से प्रारंभिक दौर में वे यहां की चीजों को जमीनी स्तर पर टटोल रही थी और उस जमीन की तलाश भी कर रही थी, जहां भविष्य में मजबूती
पिछले दो दशक से निरंतरता से सुधा वर्गीज अपने जीवन को सार्थक कार्य में लगाए हुए हैं। वर्ष 2006 में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मश्री के सम्मान से भी नवाजा गया
के साथ उन्हें जूझना था। बिहार की जड़ों को समझने के क्रम में ही सुधा को यहां के सामाजिक बुनावट में िनचले पायदान पर खड़े मुसहर जाति के विषय में जानकारी मिली। धीरे-धीरे वह इस जाति पर केंद्रित होती चली गईं। अपने जीवन की सार्थकता उन्हें इसी में दिखी और एक अविराम सफर का दौर शुरू हुआ। मुसहरों के बीच में काम करते हुए उन्हें जल्द ही अहसास हो गया कि जिस रास्ते पर वे चल रही हैं, वह कांटों से भरा हुआ है। पटना के करीब दानापुर के जिस गांव में वो रहती थीं, वहां पर एक मुसहर किशोरी के साथ दबंगों के कुकृत्य ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया। संगठन में शक्ति है, इस फार्मूले को समझते हुए सुधा वर्गीज ने महसूस किया कि महिलाओं को एकजुट करना जरूरी है, ताकि अपनी बातों को कहने के लिए उनके पास एक साझा मंच हो और लोग उन समस्याओं और परिस्थितियों की ओर ध्यान दें, जिनके कारण महिलाओं के जीवन में घुटन पैर जमाए हुए है। महिलाओं की आवाज की सशक्त अभिव्यक्ति का माध्यम बना 1987 में गठित संस्था ‘नारी गूंजन’, जो क्रमश: सुधा के जमीनी अनुभव और निरंतर चिंतन का प्रतिफल था। पिछले दो दशक से निरंतरता से सुधा वर्गीज अपने जीवन को सार्थक कार्य में लगाए हुए हैं। उनके कार्यों को तमाम तरह के सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा सराहा और पुरस्कृत भी किया गया है। बिहार सरकार और महिला आयोग ने भी सुधा के कार्यों का ऊंचा मूल्यांकन किया। वर्ष 2006 में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मश्री के सम्मान से भी नवाजा गया। इस पुरस्कार के मिलने की जानकारी होने पर उन्हें आश्चर्य के साथ सुखद अनुभूति हुई थी।
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स्वच्छता महाराष्ट्र
स्वच्छता महाराष्ट्र
बगैर शौचालय के उम्मीदवारी नहीं
मीरा-भाईंदर महानगरपालिका चुनाव में उम्मीदवारों को अपने घरों में शौचालय बनवाना जरूरी
मुबईमहानगरपालिका ं से सटे मीरा-भाईंदर (मनपा)
ने अगले महीने होने वाले मनपा के चुनाव में उम्मीदवारी के लिए यह शर्त रखी है कि जिनके घर में शौचालय होगा, सिर्फ वही उम्मीदवारी का पर्चा दाखिल कर पाएंगे। हालांकि इसका असर शहरी क्षेत्र में रहने वाले संभावित उम्मीदवारों पर बिलकुल नहीं पड़ेगा, लेकिन झोपडपट्टी में रहने वालों के लिए शौचालय न होने पर वो चुनाव में नहीं लड़ पाएंगें। ग्रामीण तथा खाड़ी इलाकों के बहुत सारे घर ऐसे हैं जहां लोग शौचालय बनाने से गुरेज करते रहे हैं। उनके लिए अभी भी समंदर का किनारा, पहाड़ी जंगल और खाली पड़ी जमीन शौच के लिए मुफीद जगह है। प्रशासन की ओर
से यह बार-बार कहा गया है कि समर्थ लोग खुद अपने अपने घरों में तुरंत शौचालय का निर्माण कराएं। जो सक्षम नहीं हैं, वे सरकारी मदद का उपयोग करें। इससे न केवल स्वास्थ्य की रक्षा होगी, बल्कि स्वच्छता अभियान को भी मजबूती मिलेगी। मनपा उपायुक्त विजय म्हसाल ने साफ तौर पर कहा है कि सभी उम्मीदवारों को यह लिखित तौर पर देना होगा कि उनके घर में शौचालय है या नहीं। जिनकी अर्जी में इसका जिक्र नहीं होगा, उन्हें उम्मीदवारी से वंचित कर दिया जाएगा। यह संकेत भी दिया गया है कि जो झूठा हलफनामा देंगे, उनके खिलाफ कार्रवाई भी हो सकती है। (मुंबई ब्यूरो)
शौचालय योजना की राशि की जांच
ना
गपुर जिले के कन्हान नगर प्रशासन ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत घरों में शौचालय बनवाने के लिए सरकार की और से दिए गए अनुदान का गलत फायदा उठाने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाने का फैसला किया है। सरकार ने कन्हान नगरपालिका को जरूरतमंद लोगों के शौचालय निर्माण के लिए एक करोड़ चार लाख की राशि उपलब्ध कराई थी। इस राशि से अबतक 763 घरों में शौचालय का निर्माण हुआ है, लेकिन बाद में यह शिकायत मिलने लगी कि कुछ गलत तरह से इस पैसे का उपयोग
स्वच्छता उत्तर प्रदेश
10 सुलभ शौचालय का लोकार्पण
शौचालय नहीं होने पर ससुराल छोड़ने वाली सुमन को संतकबीर नगर के डीएम ने प्रशंसा पत्र देकर सम्मानित किया
घर शौचालय जरूरी होने के नारे को उत्तर प्रदेश के संतकबीर नगर की सुमन ने पूरी तरह अपनाया। शौचालय न होने पर वे ससुराल छोड़कर मायके चलीं गईं। ससुराल वालों को यह बात खटकी तो सास उर्मिला ने पूरे मामले की जानकारी देते हुए तहसील में प्रार्थना पत्र दे दिया। डीएम अतरी नानकार गांव पहुंचे और उर्मिला के घर शौचालय की नींव रखी गई। इतना ही नहीं डीएम ने उर्मिला की बहू सुमन को सम्मानित भी किया। सांथा के अतरी नानकार निवासी उर्मिला ने 18 जुलाई को शौचालय न होने का प्रार्थना पत्र तहसील में दिया। इसमें उर्मिला ने बताया
कि शौचालय न होने के कारण उनकी बहू सुमन अपने मायके चली गई है। इसे डीएम मार्कंडेय शाही ने गंभीरता से लिया और शौचालय निर्माण कराने का निर्देश जारी किया। यही नहीं डीएम ने स्वयं अतरी नानकार जाकर शौचालय की नींव रखने का निर्णय लिया। इसके बाद गांव में जगह - जगह सफाई होने लगी। डीएम उर्मिला के घर पहुंचे और शौचालय की नींव रखी। इस दौरान उन्होंने उर्मिला और उसकी बहू सुमन को प्रशंसा पत्र भी दिया। डीएम ने ग्राम प्रधान से गांव में जिनके पास शौचालय नहीं है, उसकी सूची बीडीओ सांथा को देने को कहा। साथ ही गांव में शत प्रतिशत शौचालय निर्माण का निर्देश भी दिया। (भाषा)
किया गया है। उनमें, यह भी शामिल है कि जिन घरों में पहले से ही शौचालय हैं, उन्हें भी राशि दे दी गई है। इस अनियमितता के खिलाफ एक कमिटी भी बना दी गयी है जो सर्वे के साथ-साथ सही स्थिति की जांच कर रही है। जिन्होंने गलत तरीके से पैसे लिए हैं, फिलहाल उनसे वह राशि लौटाने के लिए कहा जाएगा। अगर किसी ने राशि नहीं वापिस की तो उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू की जाएगी। इसमें उन अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई होगी जिन्होंने गलत सर्वेक्षण किया था। (मुंबई ब्यूरो)
स्वच्छता उत्तर प्रदेश
शौचालय के लिए ससुराल छोड़ने वाली सम्मानित
अभियान स्वच्छता के तहत घर-
सरकारी अनुदान का गलत फायदा उठाने वालों के खिलाफ होगी कार्रवाई
वाराणसी में दस सार्वजनिक सुलभ शौचालयों का लोकार्पण
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राणसी के महापौर रामगोपाल मोहले ने नदेसर स्थित मलिन बस्ती में जायका के तहत नवनिर्मित सुलभ शौचालय का लोकार्पण किया। इसी के साथ ही कमच्छा मस्जिद, मलदहिया कूड़ाघर, सेंट्रल हिंदू ब्यॉयज स्कूल, सुंदरपुर प्राइमरी स्कूल, नाटीइमली धूपचंडी, औरंगाबाद सोनिया, सुंदरपुर नटबस्ती, राजाबाजार नदेसर, नगर निगम आफिस परिसर के समीप स्थित शौचालयों का भी शुभारम्भ
किया। इस मौके पर महापौर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रेरणा से खुले में शौचमुक्त अभियान के तहत शौचालयों का निर्माण प्रगति पर है और इस संदर्भ में निर्धारित लक्ष्य को शीघ्र ही लक्ष्य पूरा कर लिया जाएगा। उन्होंने नगर निगम और जायका के अधिकारियों से कहा कि वे शौचालयों के इस्तेमाल के लिए लोगों को जागरूक करें। इस मौके पर नगर आयुक्त डॉ. नितिन बंसल,अपर नगर आयुक्त सच्चिदानन्द सिंह, मुख्य अभियंता कैलाश सिंह,अधिशासी अभियंता लोकेश जैन, पार्षद अनिल शर्मा, अशोक मौर्या, आेमप्रकाश चौरसिया, संजय शाह मुन्ना आदि लोग उपस्थित रहे। (एजेंसी)
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स्वच्छता उत्तर प्रदेश
मेट्रो में पेयजल और शौचालय की सुविधा लखनऊ मेट्रो अपने यात्रियों को मुफ्त पेयजल और शौचालय की सुविधा देने की तैयारी में
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खनऊ मेट्रो भारत की पहली ऐसी मेट्रो होगी जो सभी 21 स्टेशनों पर यात्रियों को स्वच्छ पीने का पानी पिलाएगी और वो भी मुफ्त। इसके साथ ही लखनऊ मेट्रो सभी स्टेशनों पर आधुनिक शौचालयों की सुविधा भी नि:शुल्क मुहैया कराएगी, लेकिन इन सारी सुविधाओं का लाभ वो ही ले पाएंगे, जिनके पास मेट्रो का टिकट होगा। लखनऊ मेट्रो रेल कार्पोरेशन ने यात्रियों की सुविधा का विशेष ध्यान दे रही है। स्टेशन पर एक स्टॉल पर ठंडा और प्योरिफाइड पानी दिया जाएगा। मेट्रो रेल कार्पोरेशन लखनऊ से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि हर टॉयलेट में 3-3 सीटें महिलाओं और पुरुषों के लिए होंगी और एक सीट दिव्यांगों के लिए। यह सुविधाएं केवल उन्हीं लोगों के लिए होंगी जिन्होंने टोकन या गो-स्मार्ट कार्ट से भुगतान किया होगा। यात्री टिकट खरीदने के बाद
ही पानी के कियोस्क तक पहुंच सकेंगे। लखनऊ मेट्रो के अधिकारी ने कहा कि बाकी सभी स्टेशन इन सुविधाओं से पैसे कमाते हैं, लेकिन हम लोगों को यह मुफ्त में दे रहे हैं। हालांकि, मुफ्त पानी के लिए लोगों को अपनी बोतलें लानी होंगी। प्लास्टिक के गिलासों से होने वाले कचरे को रोकने के लिए ऐसा किया गया है। उन्होंने कहा कि मेट्रो में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा गया है। लखनऊ मेट्रो अपने कर्मचारियों को विशेष ट्रेनिंग दे रही है ताकि वे यात्रियों से सलीके से पेश आने और उन्हें वांछित जानकारियां देने का तरीका सीख सकें। इन सभी ऑपरेटरों को सेंटर फॉर एक्सीलेंस में ट्रेंड किया जा रहा है। इसमें कुल 26 कस्टमर रिलेशन असिस्टेंट और 97 स्टेशन कंट्रोलर ट्रेन ऑपरेटर हैं। इनमें चार महिला कस्टमर रिलेशन असिस्टेंट और 19 महिला स्टेशन कंट्रोलर ट्रेन ऑपरेटर हैं। ट्रेनिंग के दौरान खासतौर से दिव्यांगों को मेट्रो के सफर के दौरान गाइड करने के निर्देश दिए गए हैं। (एजेंसी)
स्वच्छता
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स्वच्छता उत्तर प्रदेश
शौचालय के लिए प्रधान ने गिरवी रखे जेवर
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के एक ग्राम प्रधान ने अपनी पत्नी के गहने गिरवी रख कर127 शौचालयों का निर्माण करवाया
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क ओर गांवों में शौचालय बनवाने के लिए कुछ लोगों से मान-मनौव्वल करना पड़ रहा है वहीं दूसरी ओर गोरखपुर जिले की दो महिलाओं और एक प्रधान ने प्रेरक मिसाल पेश की है। सरदारनगर और भटहट की दो महिलाओं में एक ने शौचालय बनवाने के लिए अपने जेवर गिरवी रख दिए, तो दूसरी ने अपना मंगलसूत्र बेच दिया। कौड़ीराम के टीकर गांव के एक प्रधान ने अपने गांव में घर-घर शौचालय बनवाने के लिए अपनी पत्नी के सारे जेवर ही गिरवी रख दिए। कुछ व्यापारियों के सहयोग से उन्होंने 127 शौचालय बनवाए और बजट मिलने के बाद पत्नी के जेवर छुड़ाने के साथ ही 100 और शौचालयों का निर्माण कराया। खुले में शौचमुक्त अभियान को आगे बढ़ाने के लिए इन तीनों का अतुलनीय सहयोग प्रशासन को इतना पसंद आया कि अब इन्हें नजीर बना कर पेश किया जा रहा है, ताकि दूसरे लोग इनसे सीख ले सकें। सरदारनगर के अयोध्याचक की रहने वाली नजमा ने घर में बहुओं के आने पर शौचालय बनवाने की ठान ली। घर में शौचालय बनवाने के लिए उन्होंने गांव के प्रधान से संपर्क किया तो उन्होंने बजट न होने
की बात कही। बात यहीं खत्म नहीं हुई। शौचालय की जिद पर अड़ी नजमा ने अपने गहने 20 हजार रुपए में गिरवी रख दिए और घर में शौचालय का निर्माण कराया। नजमा अब गांव की दूसरी महिलाओं को भी शौचालय बनवाने के लिए प्रेरित कर रही हैं। भटहट के बूढाडीह में रहने वाली सविता की घर शौचालय नहीं था। उसने अपने पति वीरेन्द्र मौर्या से शौचालय बनवाने के लिए कहा, लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण वीरेन्द्र उनकी बात को टालता रहा। इसी बीच वीरेन्द्र शिमला काम करने चला गया और वादा कर किया वहां से आने के बाद शौचालय बनवा देगा। कोई व्यवस्था न होते देख सविता ने अपना मंगलसूत्र बेच दिया। मंगलसूत्र के बदले मिले 15 हजार रुपए से उसने शौचालय बनवा लिया। (एजेंसी)
स्वच्छता हिमाचल प्रदेश
शौचालय नहीं तो खाता अलग नहीं
हिमाचल प्रदेश में पंचायतों में लोगों को परिवार से खाता अलग करने के लिए पहले शौचालय बनाना होगा
हि
माचल प्रदेश में स्वच्छता के मापदंड कायम रहें, इसके लिए प्रदेश सरकार ने एक और व्यवस्था की है। प्रदेश भर की पंचायतों में अब लोगों को परिवार से खाता अलग करने के लिए पहले शौचालय बनाना होगा। इसी के साथ कैबिनेट ने हिमाचल प्रदेश पंचायतीराज सामान्य नियम 1997 के नियम 21 में किए गए संशोधन को मंजूरी प्रदान कर दी है। इस व्यवस्था को कानून का अमलीजामा पहनाने से पहले लोगों से 30 दिनों में आपत्तियां मांगी जा रही हैं। इसके बाद यह फैसला कानून का रूप
ले लेगा। हिमाचल प्रदेश के पंचायतीराज विभाग के संयुक्त निदेशक केवल शर्मा के मुताबिक, ‘प्रदेश में स्वच्छता से जुड़े इस कानून के लागू हो जाने के बाद पंचायतों में परिवार का खाता अलग करने से पहले पंचायत के अधिकारी मौके पर जाकर पहले शौचालय का निरीक्षण करेंगे। इसके बाद ग्राम बैठक में पुष्टि करने पर ही परिवार खाता अलग करने के आवेदन पर ही मुहर लगेगी और परिवार रजिस्टर में खाते की अलग से एंट्री होगी।’ दिलचस्प है कि इस कानून के लागू हो जाने से अलग हुए परिवारों
का राशनकार्ड भी बन पाएगा और पंचायतों से अन्य सुविधाएं भी मिलेंगी। वर्तमान में अलग खाता करने के लिए आवेदनकर्ता का खानपान, रहन-सहन, नफा व नुकसान संयुक्त परिवार से अलग है या नहीं यही देखा जाता है। इसके बाद ही परिवार रजिस्टर में एंट्री होती है। नए कानून में अब इसमें शौचालय को भी जोड़ा गया है। ऐसे में स्वच्छ भारत अभियान के तहत देश भर में मिसाल बने हिमाचल ने इस दिशा में यह एक अच्छा कदम बढ़ाया है।
हिमाचल 28 अक्तूबर 2016 को खुला शौचमुक्त राज्य घोषित हुआ था। देश के बड़े राज्य में इस उपलब्धि को हासिल करने वाला हिमाचल पहला प्रदेश बना था। भविष्य में भी स्वच्छता के मापदंड बरकरार रहे, इसके लिए सरकार काफी गंभीर है। इस बारे में किसी भी स्तर पर कोई लापरवाही सहन नहीं की जाएगी। प्रदेश में पंचायतों की संख्या 3226 है। वर्तमान में सभी पंचायतें खुले में शौचमुक्त हैं।
12 गुड न्यूज
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
डिजिटल भुगतान
भीम एप्प 1.6 करोड़ लोगों ने किया डाउनलोड सुगम और तत्काल भुगतान का साझा प्लेटफॉर्म भीम एप्प का नया वर्जन शीघ्र जारी किया जाएगा
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शनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनसीपीआई) ने कहा कि उसके भीम (भारत इंटरफेस फोन मनी) एप्प के कुल डाउनलोड 1.6 करोड़ से अधिक हो गए हैं। इसके साथ ही भीम एप्प का सक्रिय ग्राहक आधार 40 लाख है और इसका नया उन्नत संस्करण शीघ्र ही जारी किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि भीम एप्प मोबाइल के जरिए सरल, सुगम व तत्काल भुगतान का साझा प्लेटफार्म एप्प है। एनपीसीआई के प्रबंध निदेशक व सीईओ एपी होता ने कहा, ‘भीम एप्प को 30 दिसंबर 2016 को शुरू किया गया था और उसके बाद से इसके
जन
सुविधा
वोटिंग कार्ड बनवाना होगा आसान
मतदाता पहचान पत्र अब अधकितम तीस दिनों में बनेगा, इसके लिए सरकार ने समय सीमा तय कर दी है
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जरिए होने वाला लेनदेन हर महीने लगातार बढ़ रहा है। 1.6 करोड़ डाउनलोड डिजिटल लेनदेन व नकदीरहित समाज बनाने की दिशा में बड़ी उपलब्धि है।’ उन्होंने कहा कि इस समय इस एप्प का 1.3 वर्जन गूगल प्लेस्टोर व एप्पल स्टोर पर उपलब्ध है। इसका नया संस्करण (वर्जन 1.4) जल्द ही पेश किया जाएगा। भीम रेफरल योजना इस समय परिचालन में है। इसके तहत मौजूदा भीम ऐप उपयोक्ता को नए लोगों को भीम एप्प के उपयोग को प्रोत्साहित करना होगा। इसमें दोनों पक्षों को कुछ प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
रकार आम लोगों की सुविधा के लिए रोजमर्रा की जरूरतों को आसान बनाने को तत्पर है। लोगों को ज्यादा परेशानी न हो, इसके लिए डिजिटल से लेकर डेडलाइन तक का ध्यान रखा जा रहा है। इसी के मद्देनजर अगले दिनों में कुछ अहम बदलाव देखने को मिलेंगे। नया मतदाता पहचान पत्र बनाने के लिए अब समय तय कर दिया गया है। मुख्य चुनाव अधिकारी चंद्रभूषण ने बताया कि फॉर्म नंबर-6 को अगर कोई भी व्यक्ति ऑनलाइन या ऑफलाइन भरता है तो उसका वोटर कार्ड 30 दिनों के भीतर बनकर तैयार हो जाएगा। यह समय उस दिन से गिना जाएगा, जिस दिन से वह फॉर्म चुनाव दफ्तर को प्राप्त होगा, लेकिन जरूरी है कि इसके लिए जमा कराए जाने वाले दस्तावेज आदि की औपचारिकता पूरी की गई हो। इसमें अवास प्रमाण पत्र देना
जरूरी है, लेकिन जिनके पास घर नहीं हैं, उनके लिए यह जरूरी नहीं है। वाजिब कारणों के बिना अगर लापरवाही बरती गई तो संबंधित अफसरों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होगी। वोटर कार्ड बनवाने के लिए अब फॉर्म नंबर-6 में दिव्यांगों के लिए एक कॉलम जोड़ा जाएगा, ताकि मतदान के दिन उनकी सुविधाओं का ख्याल रखा जा सके। (एजेंसी)
रेलवे पहल
रेलवे स्टेशन पर बनेंगे 'ब्रेस्ट फीडिंग रूम'
महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी की पहल पर रेल मंत्रालय ने देश के 100 स्टेशनों पर स्तनपान कराने के लिए अलग कक्ष बनने के निर्देश दिए
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न साल या उससे कम उम्र के बच्चों की माताओं को भारतीय रेलवे ने एक नया तोहफा दिया है। प्लेटफार्म पर बच्चों को स्तनपान कराने में होने वाली दिक्कतों को देखते हुए रेल मंत्रालय ने देश के 100 रेलवे स्टेशनों पर स्तनपान कराने के लिए वेटिंग रूम में ही अलग से एक कक्ष बनाने का निर्देश दिया है। महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने रेल मंत्री सुरेश प्रभु को इस साल की शुरुआत में इस संबंध में चिट्ठी लिखी थी। उन्होंने रेल मंत्री से कहा था कि स्टेशनों पर महिलाओं को बच्चों
को स्तनपान कराने में परेशानी होती है। अब एक चिट्ठी के जरिए रेलवे बोर्ड ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव को यह जानकारी दी है कि इस मामले में 8 जून को सभी जोनल रेलवे को निर्देश जारी कर दिए गए हैं और उन्हें वेटिंग हॉल के अंदर स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए अलग से कक्ष बनाने को कहा गया है। इस कक्ष में एक छोटी टेबल और कुर्सी होगी। अभी तक 100 से ज्यादा स्टेशनों पर यह सुविधा शुरू होने जा रही है। (एजेंसी)
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
यूजीसी नेट
नेट के लिए के लिए आधार जरूरी सी
नेट की परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों के लिए इस वर्ष से आधार कार्ड अनिवार्य कर दिया गया है
बीएसई ने अब यूजीसी-नेट एग्जाम के लिए भी आधार कार्ड जरूरी कर दिया है। जूनियर रिसर्च फेलोशिप और असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए होने वाले नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट (नेट) की परीक्षा के लिए फॉर्म भरने पर अब स्टूडेंट्स को आधार कार्ड नंबर भरना होगा। नेट की परीक्षा 5 नवंबर को है। बोर्ड का कहना है कि इससे पारदर्शिता रहेगी और परीक्षा केंद्र में आसानी भी होगी। छात्रों को आधार नंबर फॉर्म में भरना होगा।
नेट के लिए आवेदन करने की प्रक्रिया 1 अगस्त से शुरू होगी। सीबीएसई ने कहा है कि जिन उम्मीदवारों ने आधार के लिए एनरोल नहीं किया है, वो उसके लिए अप्लाई कर लें। आधार का प्रावधान जम्मू कश्मीर, असम और मेघालय को छोड़कर सभी राज्यों में लागू होगा। इन तीन राज्यों के कैंडिडेट्स को फॉर्म में पासपोर्ट नंबर, राशन कार्ड नंबर, बैंक खाता नंबर या दूसरा कोई सरकारी आईडी नंबर भरना होगा। (भाषा)
रेलवे सुरक्षा
रेल पटरियों को पेड़ों से बचाने की मुहिम
पटरियों पर पेड़ गिरने से होने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए मध्य रेलवे स्पेशल गैंगमैन की नियुक्ति करेगा
भा
आनंद भारती
री बरसात के कारण मुंबई में सड़कों, घरों और रेल लाइनों पर पेड़ों के गिरने की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। पिछले दिनों उन पेड़ों के कारण मुंबई महानगरपालिका के अंतर्गत जान-माल का काफी नुकसान हुआ। रेल पटरियों पर पेड़ गिरने से ट्रेनों के परिचालन में बाधा भी आई है। गाड़ियों के लेट होने से नागरिकों को परेशानी का सामना करना पड़ा है। इन घटनाओं से रेल अधिकारी सजग हो गए हैं। खास तौर पर मध्य रेलवे ने रेल लाइनों के किनारे पुराने और
कमजोर पेड़ों की कटाई-छंटाई के लिए अब स्पेशल गैंगमैन की तैनाती पर विचार शुरू कर दिया है। ये ऐसे लोग होंगे जिन्हें जंगल, जमीन और पेड़ों की जानकारियां होंगी। अभी तक गैंगमैन रेल पटरियों की देखभाल और मरम्मत का कार्य करते थे, लेकिन अब वे पूरे साल वे पटरियों के किनारे के पेड़ों पर भी नजर रखेंगे। समय पर उनकी कटाई-छंटाई तो करेंगे ही, कमजोर पेड़ों को गिरने से बचाने का भी उपाय करेंगे। प्राप्त जानकारी के अनुसार, मध्य रेल ने इसके लिए 25 गैंगमैन को हायर करने की योजना बनाई हैं। ये लोग हर दिन रेल लाइनों पर घूमते नजर आएंगे और देखेंगे कि कौन सा पेड़ लाइनों को बाधित कर रहा है। वे जरुरत के मुताबिक उनकी कटाई-छंटाई करेंगे। हालांकि इस कार्य में अभी समय लगेगा तब तक बरसात खत्म हो जाएगी, लेकिन भविष्य को ध्यान में रखकर इनको बहाल करना अनिवार्य माना जा रहा है। हालांकि अभी रेल कर्मचारी ही पेड़ों की छंटाई करते हैं, लेकिन स्पेशल गैंगमैन के आने से काम ज्यादा आसान हो जाएगा।
गुड न्यूज
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महिला सुरक्षा
ऑफिस में यौन उत्पीड़न की शिकायत के लिए 'शी-बॉक्स'
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने दफ्तर में होने वाले यौन उत्पीड़न की ऑनलाइन शिकायत के लिए 'शी-बॉक्स' लांच किया है
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द्र सरकार के विभिन्न विभागों में काम मेनका गांधी ने अधिकारियों को पोर्टल को ज्यादा कर रही महिला कर्मचारी अब दफ्तर में से ज्यादा आसान बनाने के लिए कहा है। यौन उत्पीड़न की शिकायत शी-बॉक्स के जरिए शी-बॉक्स के जरिए शिकायत की जा सकती है, कर सकेंगी। इसके लिए महिला और बाल साथ ही शिकायत करने वाले अपनी शिकायत विकास मंत्रालय ने ऑनलाइन प्लैटफॉर्म शी- का स्टेटस भी देख सकते हैं। केंद्र सरकार में करीब 30.87 लाख बॉक्स लांच किया है। महिला और बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि शुरू में शी-बॉक्स कर्मचारी हैं। जिसमें करीब 10.93 प्रतिशत केंद्र सरकार की कर्मचारियों के लिए है, जिसके महिला हैं। अभी यह पोर्टल इन्हीं कर्मचारियों के लिए है, लेकिन धीरे-धीरे बाद इसका विस्तार किया इसका दायरा बढ़ाया जाएगा। जाएगा और इसमें प्राइवेट मेनका गांधी ने मुताबिक हमें सेक्टर को भी शामिल किया इस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जाएगा। उन्होंने कहा कि हम में कुछ बदलाव करने हैं जल्द ही एक राष्ट्रीय स्तर का जिसके बाद प्राइवेट कंपनियों सर्वे भी कराएंगे जिसके जरिये में काम कर रही महिलाएं भी ऑफिस और कामकाज की इसमें शिकायत कर सकेंगी। जगह में होने वाले उत्पीड़न मेनका ने कहा कि अगर सभी की प्रकृति का अनुमान ऑफिसों में इंटरनल कंप्लेन लगाया जाएगा। कमिटी काम कर रही है तो ऑनलाइन शिकायत करने हम वहां कोई दखल नहीं का मैनेजमेंट सिस्टम शीदेंगे, लेकिन हमारे पास जो बॉक्स (सेक्सुअल हैरसमेंट मे न का गां ध ी ने शिकायतें आ रही हैं वह वे इलेक्ट्रॉनिक बॉक्स) महिला महिला कर्मचारी हैं जिनके और बाल विकास मंत्रालय अधिकारियों को ऑफिस में कोई कमिटी नहीं की वेबसाइट पर ही है। अगर पोर्टल को ज्यादा से है या बस नाममात्र की हैं शी-बॉक्स में कोई शिकायत ज्यादा आसान बनाने या फिर कमिटी में ऐसे लोग आती है तो इसे सीधे संबंधित हैं जो पहले ही नकारात्मक मंत्रालय, विभाग की इंटरनल के लिए कहा है सोचते हैं। पोर्टल में यौन कंप्लेन कमिटी के पास भेज उत्पीड़न की क्या परिभाषा है दिया जाएगा, जिसके पास इसकी जांच का अधिकार होगा। इंटरनल कंप्लेन यह भी बताया जाएगा। उन्होंने कहा कि कुछ कमिटी नियमों के मुताबिक कार्रवाई करेगी और लोग कहते हैं कि सीसीटीवी कैमरे लगाना भी शिकायत का स्टेटस अपडेट करेगी। मंत्रालय के उत्पीड़न है, तो इसलिए हमें इसे परिभाषित करने एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक यह पोर्टल की जरूरत है, ताकि कोई फर्जी शिकायतें न यौन उत्पीड़न झेल रही महिलाओं को राहत देगा। आए। (एजेंसी)
14 गुड न्यूज
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
बिहार शिक्षा
जीरो रिजल्ट देने वाले प्रधानाध्यापकों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति बिहार में इंटरमीडिएट की परीक्षा में जीरो प्रतिशत रिजल्ट देने वाले स्कूलों के प्रधानाध्यापकों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने की योजना
बि
हार सरकार ने शिक्षा स्तर में गिरावट की स्थिति पर संजीदगी दिखाते हुए बड़ा फैसला लिया है। फैसले के मुताबिक, इंटरमीडिएट की परीक्षा में जीरो प्रतिशत परिणाम वाले स्कूलों के प्रधानाध्यापकों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जाएगी। साथ ही, ऐसे जिलों के जिला शिक्षा पदाधिकारी और जिला कार्यक्रम पदाधिकारी जिनकी उम्र 50 साल से अधिक हो गई होगी, उन्हें भी अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जाएगी। राज्य सरकार ने इस फैसले को लागू कराने के लिए जरूरी तैयारी भी कर ली है। ऐसे अधिकारियों और प्रधानाध्यापकों के चयन
के लिए एक जांच समिति का गठन किया गया है। प्रदेश के शिक्षा विभाग के सचिव, निदेशक प्रशासन और माध्यमिक शिक्षा के निदेशक समिति में रखे गए हैं।
शिक्षा विभाग के सूत्रों की मानें तो इंटरमीडिएट के परिणाम की गिरावट के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस पर आक्रोश व्यक्त किया था। साथ ही विभाग को माध्यमिक और उच्च माध्यमिक का रोड मैप तैयार करने एवं खराब परिणाम देने वालों का दायित्व तय करने के निर्देश भी दिए थे। इसी को लेकर विभाग ने वैसे स्कूलों जहां का रिजल्ट जीरो है, वहां के प्रधानाध्यापकों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जाएगी। शिक्षा विभाग ने राज्य विद्यालय परीक्षा
बिहार में 11 जिलों के 237 स्कूल ऐसे हैं जहां एक भी बच्चा उत्तीर्ण नहीं हो पाया। ऐसे स्कूलों के प्रधानाध्यापकों के साथ संबंधित जिलों के जिला शिक्षा पदाधिकारी और जिला कार्यक्रम पदाधिकारी को भी अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जाएगी स्वास्थ्य
समिति से ऐसे जिलों और स्कूलों की सूची ली है। अब इस पर कार्रवाई करने की तैयारी जोरों से जारी है। सूत्रों ने बताया कि 11 जिलों के 237 स्कूल ऐसे हैं, जहां का एक भी बच्चा उत्तीर्ण नहीं कर पाया। ऐसे में उन स्कूलों के प्रधानाध्यापकों के साथ-साथ संबंधित जिलों के जिला शिक्षा पदाधिकारी और जिला कार्यक्रम पदाधिकारी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जाएगी। सरकार की ओर से बनी जांच समिति बिहार बोर्ड से आई सूची की जांच करेगी। उसके बाद उनकी अनिवार्य सेवानिवृत्ति की अनुशंसा सरकार से करेगी। अधिकारियों और प्रधानाध्यापकों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति अगले दो से तीन महीने में दी जाएगी। अधिकारियों पर यह कार्रवाई बिहार सेवा संहिता के तहत की जाएगी। (एजेंसी)
जागरुकता
तंबाकू नियंत्रण में भारत ‘वर्ल्ड लीडर’ वि
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी हालिया रिपोर्ट में भारत को तंबाकू नियंत्रण करने वाले देशों में अव्वल बताया और उसके प्रयासों की सराहना की
श्व स्वास्थ्य संगठन ने तंबाकू नियंत्रण में भारत को विश्व प्रणेता बताया है। हाल में न्यूयॉर्क में डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी ‘ग्लोबल टोबैको एपिडिमिक-2017’ की रिपोर्ट में तंबाकू नियंत्रण के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना की गई है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में जारी ग्लोबल एडल्ट्स टोबैको सर्वे (गेट्स-2)-2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत मंब गत सात वर्षों में तंबाकू उपभोक्ताओं की संख्या 34.6 से घटकर 28.6 फीसद हो गई है। यानी छह फीसद तंबाकू उपभोक्ता कम हुए हैं। इसी रिपोर्ट के आधार पर डब्ल्यूएचओ ने ‘ग्लोबल टोबैको एपिडिमिक-2017’ की रिपोर्ट में भारत को विश्व प्रणेता माना है। आंकड़े बताते हैं कि भारत सरकार द्वारा जागरुकता बढ़ाने, तंबाकू उत्पादों के प्रचार-प्रसार पर रोक लगाने के बाद सात साल में 81 लाख उपभोक्ताओं
दर्जा मिला है। आज तंबाकू नियंत्रण में सख्ती बरतने के मामले में दुनिया के टॉप 100 शहरों की सूची में भी भारत के कई शहर शामिल हैं।
जागरुकता कार्यक्रम
ने तंबाकू से तौबा कर लिया। तंबाकू उत्पादों के प्रचार-प्रसार पर रोक लगाने के प्रयासों का नतीजा है कि भारत को विश्व प्रणेता का
भारत ने राष्ट्रीय स्तर पर तंबाकू के खिलाफ जागरुकता कार्यक्रम चलाया। साथ ही तंबाकू छोड़ने वाले लोगों के लिए वर्ष 2016 में टोल फ्री नंबर जारी किया। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में होने वाली हर 10 मौत में से एक मौत तंबाकू के कारण ही होती है। करीब 70 लाख लोग दुनियाभर में प्रतिवर्ष तंबाकू के कारण ही मरते हैं। भारत के अलावा नेपाल, भूटान, बांग्लादेश व फिलीपींस ने भी तंबाकू नियंत्रण में लोहा मनवाया है।
जारी रखने होंगे प्रयास
इस बारे में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए नेशनल
इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेन्शन एंड रिसर्च, नोएडा के डायरेक्टर डॉ. रवि मेहरोत्रा ने इसे बड़ी उपलब्धि माना लेकिन इस दिशा में अभी और प्रयास करने पर बल दिया। उनके शब्दों में, ‘जब तक सभी राज्यों में तंबाकू के खिलाफ बनाए नियमों का सख्ती से पालन नहीं होगा, तब तक तंबाकू नियंत्रण का मकसद अधूरा है। सभी को इसके लिए संवेदनशील होना होगा।’ (एजेंसी)
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
दिल्ली मेट्रो
मेट्रो स्टेशन पर एयरपोर्ट जैसे ट्रैवलेटर्स
दिल्ली मेट्रो यात्रियों की सुविधा के लिए एयरपोर्ट लाइन पर धौला कुआं और साउथ कैंपस मेट्रो स्टेशन के बीच ट्रैवलेटर्स बना रही है
ए
यरपोर्ट की तर्ज पर मेट्रो स्टेशन पर भी लोग पैदल चलने के बजाए ट्रैवलेटर्स का इस्तेमाल कर सकेंगे। मेट्रो पहली बार एयरपोर्ट लाइन पर धौला कुआं मेट्रो स्टेशन और साउथ कैंपस के बीच लगभग एक किलोमीटर की दूरी को तय करने के लिए ट्रैवलेटर्स बना रही है। पिंक लाइन पर राजौरी गार्डन और पंजाबी बाग मेट्रो स्टेशनों पर भी ट्रैवलेटर्स लगाए जाएंगे। तीनों स्टेशनों पर 58 ट्रैवलेटर्स लगेंगे। दिल्ली मेट्रो के प्रवक्ता अनुज दयाल ने बताया कि धौला कुआं पर 2 लाइनें आ रही हैं। एक एयरपोर्ट लाइन जिसका मेट्रो स्टेशन धौला कुआं के बीच है, दूसरा पिंक लाइन पर एक स्टेशन साउथ कैंपस के पास है। इन दोनों स्टेशनों के यात्रियों को सहूलियत देने के लिए यह फैसला किया गया। यहां पर सीधे फुटओवर ब्रिज बनाया जा सकता था, लेकिन दोनों स्टेशन के बीच दूरी 920 मीटर है और इतनी दूरी तय करने में लोगों का काफी समय बर्बाद हो सकता है। उन्हें थकान भी हो सकती है। इसलिए इंटरनेशनल एयरपोर्ट की तर्ज पर यहां पर ट्रैवलेटर्स लगाने का फैसला किया गया है।
अनुज दयाल ने कहा कि ट्रैवलेटर्स लगाने के लिए पिलर पर काम चल रहा है। जिस तरह मेट्रो में अप एंड डाउन ट्रैक होता है, उसी तरह ट्रैवलेटर भी अप एंड डाउन होगा। इन दोनों स्टेशनों को जोड़ने के लिए 26 ट्रैवलेटर्स लगाए जाएंगे। इनकी चौड़ाई 7 मीटर होगी। एक तरफ से 13 और दूसरी तरफ 13 ट्रैवलेटर्स लगाए जाएंगे। यह एक तरह से एफओबी वॉकवे होगा। इसके बनने से लोगों को मेट्रो बदलने में ज्यादा परेशानी नहीं होगी। अनुज ने कहा कि ट्रैवलेटर्स उन स्टेशनों के बीच बनाए जा रहे हैं, जहां यात्रियों को एक से दूसरे स्टेशन जाने के लिए 300 मीटर से ज्यादा की दूरी तय करना पड़ेगी। ब्लू लाइन मेट्रो के राजौरी गार्डन स्टेशन और पिंक लाइन कॉरिडोर के राजौरी गार्डन मेट्रो स्टेशन को जोड़ने के लिए ट्रैवलेटर्स लगाए जाएंगे। यहां इन दोनों स्टेशनों के बीच की दूरी 310 मीटर है। पिंक लाइन कॉरिडोर पर पंजाबी बाग वेस्ट मेट्रो स्टेशन और ग्रीन लाइन कॉरिडोर के शिवाजी पार्क मेट्रो स्टेशन को जोड़ने के लिए ट्रैवलेटर्स लगाए जाएंगे। इन दोनों स्टेशनों के बीच की दूरी 900 मीटर है, यहां 22 ट्रैवलेटर्स लगेंगे। (भाषा)
गुरुद्वारा बंगला साहिब में शुरू होगा अस्पताल
बंगला साहिब में बाला प्रीतम अस्पताल के निर्माण का काम लगभग पूरा हो गया है और अब यहां जल्द ही डे केयर सेंटर खोला जाएगा
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ल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी गुरुद्वारा बंगला साहिब में बाला प्रीतम अस्पताल शुरू करने जा रही है। अस्पताल के निर्माण का काम लगभग पूरा हो गया है और अब यहां जल्द ही डे केयर सेंटर खोला जाएगा। कमिटी फिलहाल बंगला साहिब में डिस्पेंसरी चला रही है। बाला प्रीतम अस्पताल बनने के बाद यह गुरुद्वारे में चलने वाला दूसरा डे केयर होगा। डीएसजीपीसी के अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके ने बताया कि यहां लोगों को सस्ता इलाज मिलेगा। बाहर जहां एमआरआई का रेट 5,000-6,000 रुपए के बीच है, यहां सिर्फ 1,000-1,500 रुपए के बीच में हो जाएगा। बंगला साहिब गुरुद्वारे में बाला प्रीतम डायगनॉस्टिक सेंटर अंडरग्राउंड बन रहा है। इस सेंटर में स्पेशलिस्ट डॉक्टर इलाज करेंगे। कमिटी के अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके ने बताया कि गुरुद्वारे के आसपास पांच बड़े अस्पताल हैं। इनमें गंगाराम, एलएनजेपी, जीबी पंत और
स्वच्छता की मिसाल बने प्रांजल
जयपुर मेट्रो में स्वच्छता से जुड़े एक युवक के कार्य की सोशल मीडिया पर खूब चर्चा और सराहना
धानमंत्री द्वारा स्वच्छ भारत अभियान की घोषणा के बाद से देश में स्वच्छता को लेकर कई तरह के उदाहरण पेश किए हैं। इस कारण देश में स्वच्छता को लेकर काफी जागरुकता भी आई है। हाल में जयपुर मेट्रो में सफाई से जुड़े एक युवक की खबर सोशल मीडिया पर खूब देखी और सराही जा रही है।
फेसबुक पर सुनील चौधरी नाम के एक शख्स ने दो तस्वीरों के साथ एक दिलचस्प और प्रेरक पोस्ट शेयर किया है। इस पोस्ट में सुनील लिखते हैं कि मेट्रो में हेडफोन लगाकर बैठा एक युवक अपने बैग से पानी की बोतल निकाल रहा था। अचानक उसका बैग ज्यादा खुल गया और उसका लंच बॉक्स बैग
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स्वास्थ्य सुविधा
स्वच्छता राजस्थान
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गुड न्यूज
से निकलकर मेट्रो की फर्श पर गिर गया, जिससे पूरे फर्श पर गंदगी हो गई। सुनील लिखते हैं कि ऐसा होने के बाद मुझे लगा कि अब पूरा दिन मेट्रो का ये फर्श का यूं ही गंदा पड़ा रहेगा, लेकिन इसके बाद मैंने जो देखा वो चौंकाने वाला था। उस लड़के ने
आरएमएल शामिल हैं। यहां पर इलाज के लिए लोगों को या तो इंतजार करना पड़ता है या फिर टेस्ट कराने के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ते हैं। ऐसे में कमिटी ने दिल्ली के सेंटर में अस्पताल को बनाने का फैसला लिया था। जीके ने बताया कि सबसे पहले यहां पर मरीजों के लिए एमआरआई मशीन के साथसाथ सीटी स्कैन मशीन भी लगाई जाएगी। यह सुविधा लोगों को प्राइवेट लैब्स के मुकाबले काफी सस्ते रेट पर मिलेगी। बाला साहिब हॉस्पिटल में भी बाला प्रीतम नाम से कैंसर रिसर्च सेंटर चल रहा है। कई कैंसर रोगी यहां इलाज कराने आते हैं। ऐसे में इस अस्पताल के शुरू होने से भी यहां काफी मरीजों को कम रेट पर सुविधा मिलेगी। गुरुद्वारे में कोई भी अपने छोटे से लेकर बड़े टेस्ट या बॉडी चेकअप करा सकता है। इसके लिए उन्हें काफी कम पैसे देने होंगे। जीके का कहना है कि अगर कोई एनसीआर या फिर दूसरे राज्यों से यहां आता है तो उनके लिए खास इंतजाम किए गए हैं। मरीज के साथ आने वाले लोगों के लिए गुरुद्वारे में ठहरने के लिए भी सराय में जगह दी जाएगी। ऐसे में उन्हें यहां रहने की भी परेशानी नहीं उठानी होगी। गुरुद्वारे में लंगर भी 24x7 चलता है जहां वह लंगर भी छक सकते हैं। ऐसे में मरीजों को पैसों की परेशानी भी नहीं झेलना पड़ेगा। (एजेंसी)
अपना बैग साइड में रखकर कॉपी से कुछ पेज फाड़े और रुमाल व पेज की मदद से फर्श को साफ करने लगा। स्वच्छता को लेकर समर्पित इस लड़के का नाम प्रांजल दुबे है। सुनील लिखते हैं कि तब तक मेरा स्टॉपेज आ चुका था, लेकिन मैंने उस लड़के का नाम पूछा और ट्रेन की सफाई का ख्याल रखने के लिए प्रांजल का शुक्रिया अदा किया। इस दौरान सुनील ने प्रांजल के कुछ फोटो भी ले लिए जिन्हें उन्होंने अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर शेयर किया। लोगों ने प्रांजल के इस काम की तारीफ की और फेसबुक पर यह कहानी स्वच्छता अभियान से जुड़े कई हैशटैग के साथ लोग आपस में शेयर करने लगे। (एजेंसी)
16 खुला मंच
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
‘हमें परिमित निराशा को स्वीकार करना चाहिए, लेकिन अपरिमित आशा को कभी नहीं खोना चाहिए’
-मार्टिन लूथर किंग ‘जूनियर’
प्रेरणा का ‘कलाम’
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम का स्मारक बनाने वाले श्रमिकों ने ओवर टाइम का भुगतान लेने से किया इनकार
पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर दे शएपीजेने जबअब्दुल कलाम को
उनकी दूसरी पुण्यतिथि पर याद किया तो यह मौका उनके जन्मस्थान रामेश्वरम के लिए तो खास था ही, उन तमाम लोगों के लिए भी अभिभूत करने वाला अवसर था, जिनके दिलों में कलाम एक प्रेरणा की तरह बसे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामेश्वरम में उनकी याद में बने स्मारक को राष्ट्र को समर्पित करते हुए कहा कि इस धरती पर आना उनके लिए बहुत गौरव की बात है। उन्होंने कहा कि पिछले साल किए गए वादे के अनुसार ये स्मारक बनना प्रसन्नता की बात है। डीआरडीओ के सहयोग से बहुत ही कम समय में यह स्मारक तैयार हुआ है, जो देश की वर्तमान और भावी पीढ़ी को प्रेरणा देता रहेगा। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने विशेष तौर पर उन मजदूरों की प्रशंसा की, जिन्होंने इस कार्य को भक्तिभाव से पूरा किया। इस कार्य को समय पर पूरा करने के लिये मजदूरों ने समय से दो-दो घंटे अधिक काम किया, लेकिन कलाम साहब को श्रद्धांजलि देते हुए अतिरिक्त काम की मजदूरी लेने से मना कर दिया। गौरतलब है कि ये ऐसी बातें हैं, जो महत्वपूर्ण होते हुए कई बार गौण रह जाती हैं। तारीफ करनी होगी प्रधानमंत्री की, जिन्होंने इससे पूर्व भी कई बातों की असाधारणता को लोगों के सामने रखा और उसे एक बड़ी नजीर की तरह पेश किया। डॉ. कलाम का राष्ट्र को समर्पित जीवन इतना प्रेरक है कि वे आज भी युवाओं के सबसे बड़े रोल मॉडल हैं। भारत दुनिया का सबसे युवा देश है और इस लिहाज से पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम की स्मृति के साथ प्रेरणा की एक नई कड़ी, एक नए उदाहरण का जुड़ना बड़ी बात है। देश निस्संदेह अपने इस महान वैज्ञानिक और राष्ट्रपति के जीवन की उपलब्धियों और आचरण से लंबे समय तक कर्मशीलता का पाठ सीखता रहेगा।
टॉवर
(उत्तर प्रदेश)
जे.पी.नड्डा
लेखक केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं
निमोनिया के खिलाफ जंग
कई दशकों से हमारे बच्चे ऐसे रोगों के कारण असमय मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे, जिन रोगों को रोका जा सकता था। बाल और शिशु मृत्यु को कम करने के लिए नए टीके शुरू किए गए हैं
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14 में मौजूदा सरकार ने भारत की जनता से यह वादा किया था कि वह उनके स्वास्थ्य की रक्षा करेगी और इस देश के स्त्रियों, पुरुषों और बच्चों को अपने जीवन को बचाने और स्वस्थ जीवन जीने का हर अवसर प्रदान करेगी। उठाए गए प्रमुख कदमों के तहत यथासंभव कई रोगों से अपने बच्चोंे को सुरक्षित करना है। इस संबंध में सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के जरिए नए टीके शुरू करना और उन्हें हर व्यक्ति तक पहुंचाना शामिल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व के तहत जन स्वस्थ्य के क्षेत्र में यह अत्यंत महत्वपूर्ण नीतिगत फैसला था। आज मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि यह वायदा पूरा होने की दिशा में अग्रसर है। कई दशकों से हमारे बच्चे ऐसे रोगों के कारण असमय मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे, जिन रोगों को रोका जा सकता था। बाल और शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए नए टीके शुरू किए गए हैं। पिछले दो वर्षों के दौरान सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के जरिए इनएक्टिवेटेड पोलियो टीका (आईपीवी), पेचिशरोधी रोटावायरस टीका और खसरा व रुबेलारोधी मीजलरुबेला टीका शुरू किया गया है। निमोनिया के खिलाफ टीका एक नए हथियार के रूप में सामने आया है। इसे न्यू मोकोकल कोन्जूेगेटेड वैक्सिन (पीसीवी) के नाम से जाना जाता है। 130 से अधिक देशों ने बाल टीकाकरण कार्यक्रम के अंग के रूप में पीसीवी को शुरू किया है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक सुझावों के अनुरूप है। इस टीके से निमोनिया के अत्यंत सामान्य कारणों के खिलाफ सुरक्षा होती है। यह एक तरह का बैक्टीरिया है, जिसे न्यूमोकोकस कहा जाता है। इस बैक्टीरिया से कान में संक्रमण, दिमागी बुखार और रक्त संक्रमण जैसे रोग भी हो जाते हैं। इन रोगों से मृत्यु हो सकती है या गंभीर विकलांगता की स्थिति भी पैदा हो सकती है। यह टीका काफी समय से भारत में निजी क्षेत्र में उपलब्ध था। केवल अमीर परिवारों के बच्चों को ही यह टीका मिल पाता था, लेकिन आज इसे सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत लाने की वजह से हम प्रयास कर रहे हैं कि यह टीका सभी बच्चों तक पहुंचे, खासतौर से उन बच्चों तक, जो वंचित वर्ग के हैं। जीवन बचाने वाले टीकों की उपलब्धता केवल उसी वर्ग तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए, जो उसे प्राप्त कर सकते हैं। पीसीवी जैसे टीकों के जरिए हम इस देश के नागरिकों को
बेहतर भविष्य दे सकते हैं और हर नागरिक के जीवन को स्वस्थ और सकारात्मक बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। कई लोग पूछते हैं, ‘टीकाकरण क्यों?’ तर्क दिया जाता है कि पिछली पीढि़यां भी पेचिश, खसरा और निमोनिया से पीड़ित होती थीं, फिर हमारे लिए यह क्यों आवश्यक है कि हम अपने बच्चों को इन रोगों के टीके लगवाएं? इस आलेख को जब तक आप पूरा पढ़ेंगे, तब तक भारत में निमोनिया से एक बच्चे की मृत्यु हो चुकी होगी। हर तीन मिनट पर एक बच्चे पर देश में निमोनिया इसी तरह हमला करता है। हमें इन बच्चोंे को बचाने और सुरक्षित करने की जरूरत है। टीके को वैश्विक प्रतिरक्षा कार्यक्रम (यूआईपी) के रूप में शुरू करना एक सोची-समझी, नियोजित और व्यवस्थित प्रक्रिया है। टीके की आवश्यकता, सुरक्षा और क्षमताओं पर विचार करते हुए यह निर्णय लिया गया है। देश में प्रस्ताावित किसी भी नए टीके को, प्रतिरक्षा के राष्ट्रीय तकनीकी परामर्शदाता समूह (एनटीएजीआई) द्वारा किसी निरोध्य रोग के निश्चित टीके के रूप में बीमारी के भार, किसी भी निरोध्य रोग के टीके की महामारी विज्ञान, टीके की उपलब्धता और इसकी लागत कुशलता के विश्लेषण के बाद ही प्रस्तावित किया जाता है। एनटीएजीआई इस क्षेत्र में अनुभव और विशेषज्ञों के लिए प्रसिद्ध एक स्वायत्त संगठन है। मंत्रालय ने इस नए टीके को एनटीएजीआई की अनुशंसाओं को लक्ष्य परिचालन समूह (एमएसजी) और सशक्त कार्यक्रम समिति के अनुमोदन के पश्चात ही प्रस्तावित किया है। पीसीवी समेत सभी टीकों को एनटीएजीआई की अनुशंसा के बाद ही यूपीआई में शामिल कर प्रक्रिया को पूरा किया गया है। पीसीवी उन जीवाणुओं से रक्षा करता है जो भारत और पूरे विश्व में निमोनिया से होने वाली बच्चों की मौतों की अधिकतर संख्या का कारण बनते हैं। हम
अपने वादों को पूरा करना और उन हजारों बच्चों की जान बचाना हमारा कर्तव्य है, जो कि रोकथाम योग्य बीमारियों के कारण पांच साल भी नहीं जी पाते हैं। इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हम इस दिशा में अपने कार्य करने की गति को धीमा नहीं कर सकते हैं
बिहार, उत्तर प्रदेश और हिमाचल के कुछ हिस्सों में इसकी शुरुआत कर रहे हैं, लेकिन हमारी योजना इसे जल्द ही पूरे देश में लागू करने की है। यह एक मंहगा टीका है, लेकिन अब यह हमारे नागरिकों को मुफ्त में उपलब्ध हो जाएगा। स्वस्थ समाज के लिए अतिरिक्त आर्थिक लाभों का समायोजन सरकारी कोष की लागत पर किया जाएगा। करीब 1.8 लाख मौतों और सालाना 20 लाख से अधिक मामलों के साथ बच्चों में होने वाला निमोनिया भारत पर एक बड़ा वित्तीय बोझ बन गया है। निमोनिया के इलाज में आने वाली लागत गरीबी के चक्र को बनाए रखती है। निमोनिया से ग्रस्त बच्चों के माता-पिता का काफी सारा पैसा अस्पतालों के भारी-भरकम बिल चुकाने में खर्च हो जाता है। अपने बच्चे का इलाज कराने में उनकी कई महीनों की मजदूरी खर्च हो जाती है। यही नहीं, जो वक्त उन्हें अपने कार्य में देना चाहिए, उसे वह अपने बीमार बच्चे की देखभाल करने में लगाते हैं। इससे भारत की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। स्वस्थ बच्चों का अपेक्षाकृत बेहतर ज्ञानात्मक विकास होता है, वह स्कूल में भी अच्छा करते हैं और आगे जाकर जब वह पेशेवर जिंदगी में कार्यबल में शामिल होते हैं, तब वह अधिक उपयोगी साबित होते हैं तथा वह अधिक कमाते हैं। स्पष्ट है कि स्वस्थ रहने से ही धन आता है। ऐसे कई वैश्विक उदाहरण हैं, जहां स्वस्थ जनसंख्या ने अपनी आय बढ़ाई और तेजी के साथ गरीब के कुचक्र से बाहर निकला गया। ऐसे में पीसीवी आर्थिक रूप से विकसित भारत के निर्माण की दिशा में भारत की तरक्की के लिए एक महत्वपूर्ण निवेश है। निमोनिया से होने वाली मौतों के मामले में भारत विश्व में सबसे आगे है, पीसीवी की शुरुआत के साथ इन आंकड़ो को बदलने का हमारे पास पूरा अवसर है। बीते समय में टीकों ने मौतों और बीमारियों को कम करने में काफी योगदान दिया है। चेचक और प्लेग जैसी बीमारियां अब परेशान नहीं करती और भारत अब पोलियो मुक्त भी हो चुका है। भारत के यूआईपी में सरकार के निवेश और प्रतिबद्धता ने इस दिशा में प्रगति में अहम योगदान दिया है। आज यूआईपी के जरिए भारतीय बच्चों को 11 जानलेवा और खतरनाक बीमारियों का टीका उपलब्ध करवाया जा रहा है। पीसीवी के पेश किए जाने से यह आंकड़ा बढ़कर 12 हो गया है। हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) द्वारा जारी किए गए आंकड़ो के अनुसार भारत का पूर्ण टीकाकरण कवरेज 62 प्रतिशत है, जो कि करीब एक दशक पहले 43.5 प्रतिशत था। और अधिक टीकों के आने और अधिक कवरेज से शिशु एवं बाल मृत्यु दर में कमी आएगी। इस गति में तेजी लाने के लिए वर्ष 2014 में मिशन इंद्रधनुष भी शुरू किया गया था। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि वर्ष 2020 तक जीवन रक्षक टीकों तक भारत के 90 प्रतिशत बच्चों की पहुंच हो जाए। हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने इस लक्ष्य की समय सीमा घटाकर 2018 कर दी है। इससे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए परियोजना की गति शीर्ष पर है। इस बात पर पूरा जोर है कि देश में कोई भी बच्चा इनके लाभ से वंचित न रहे। अपने वादों को पूरा करना और उन हजारों बच्चों की जान बचाना हमारा कर्तव्य है जो कि रोकथाम योग्य बीमारियों के कारण पांच साल भी नहीं जी पाते हैं। इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हम इस दिशा में अपने कार्य करने की गति को धीमा नहीं कर सकते। बच्चों को टीके लगाए जाएं, ताकि उन्हें जानलेवा बीमारियों से पूरी तरह सुरक्षा मिल सके।
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
राकेश कुमार
खुला मंच
लेखक नेशनल बुक ट्रस्ट के डिप्टी डायरेक्टर हैं और कई सामाजिक-सांस्कृतिक अभिक्रमों से लंबे समय से जुड़े हैं
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पहले चिंता की फसल, अब फसल की चिंता नए समय में कृषि क्षेत्र के साथ एक विडंबना यह जरूर जुड़ गई है कि इससे विकास के ग्लोबल लक्ष्य की तरफ हम ज्यादा तेजी से नहीं बढ़ सकते
आ
धुनिकता एक काल सापेक्ष अवधारणा है। इस अवधारणा के साथ देखें तो भारत लंबे समय से एक आधुनिक राष्ट्र रहा है। यही नहीं, हमारी आधुनिकता की खासियत यह भी रही कि हमने परंपराओं की जमीन को उस तरह उजड़ने नहीं दिया, जैसा आधुनिकता की होड़ में दुनिया के कई नामवर देशों ने किया। आधुनिकता और परंपरा के इस मेल को आज भी भारत की राजनीति से लेकर जीवनशैली और आजीविका के तरीकों के तौर पर देख सकते हैं। कृषि भारतीय उद्यम परंपरा की सबसे बड़ी निशानी है। भारतीय कृषि ने समय के साथ अपने तौर-तरीके तो बदले पर कृषक भारत का ठेठ स्वभाव ज्यादा नहीं बदला। आज भी जब हम किसी सरकार की उपलब्धियों को गिनाते हैं तो उसकी उपलब्धियों के लाख दावों के बीच सबसे वजनदार बात यही होती है कि उसके कार्यकाल में कृषि क्षेत्र ने कितनी तरक्की की। क्योंकि नए समय में कृषि क्षेत्र के साथ एक विडंबना यह जुड़ गई है कि इससे विकास के ग्लोबल लक्ष्य की तरफ हम ज्यादा तेजी से नहीं बढ़ सकते, यह पूर्वाग्रह हमेशा बना रहा है। श्रेय देना चाहिए मौजूदा सरकार को कि उसने इस पूर्वाग्रह को नकारते हुए किसानों के हित में कई फैसले लिए। इनमें सबसे अहम है प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 जनवरी, 2016 को देश के किसानों को इस योजना का तोहफा दिया था। किसान आज इसका ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा रहे हैं। सरकार के मुताबिक प्रीमियम से अधिक राशि के
वर्ष-1 | अंक-32 | 24 आरएनआई नंबर-DELHIN
- 30 जुलाई 2017
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m wachhbharat.co
sulabhs
04 नवाचार
बुके नहीं बुक
के पीएम मोिी की भेंट में ‘बु के बजाय बुक’ िेने की अपील
06 ट्ंप सुलभ दवलेज
ट्ंप दवलेज में सवच्छता
और सुलभ ने मरोरा को सवच्छ उठाया सवावलंबी बनाने का बीडा
सर्वे भर्ंतु सुखिन: के नवदनवा्षदचत ठ वयक्तितव के धनी िेश करने के बेिाग, दनषपक्ष और कम्ष दरिक परंपराओं का पालन महामदहम पुरानी महान लोकतां यारी में हैं की तै साथ एक नई इबारत दलखने
28 परंपरा
जल प्रबंधन के मंदिर कुंडों के साथ मंदिर दनमा्षण की परंपरा
दावों का भुगतान किसानों को किया गया है। पहले बीमा योजना में मुश्किल से पांच प्रतिशत किसान शामिल होते थे, लेकिन आज इसके तहत 23 प्रतिशत किसान आते हैं, जो काफी उत्साहजनक है। इस योजना की आवंटन राशि को भी बढ़ाया गया है। 2015-16 में इसके लिए 3000 करोड़ रुपए आवंटित थे, जिसे 2017-18 में बढ़ाकर 9000 करोड़ रुपए कर दिया गया है। इसके साथ ही इस योजना में फसल क्षेत्र के दायरे का लक्ष्य 30 प्रतिशत से बढ़ाकर 40 प्रतिशत कर दिया गया रखा गया है। यह योजना किस तरह किसानों की मदद कर रहा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि खरीफ 2016 सीजन के लिए 6478 करोड़ रुपए के दावों को मंजूरी दी जा चुकी है। इसमें से 4274 करोड़ रुपए का भुगतान भी किया जा चुका है। खरीफ 2016 में 390.02 लाख किसानों का बीमा हुआ जबकि 2016-17 रबी के लिए 167.14 लाख किसानों का बीमा हुआ। इस योजना के लिए 2016-17 में प्रीमियम 13,240
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खेल और संन्यास
सुलभ स्वच्छ भारत’ के 24-30 जुलाई, 2017 के अंक में लेख शीर्षक ‘जीत फेडरर की, संन्यास बार्तोली का’ काफी पठनीय लगा। फेडरर ने आठवीं बार विंबलडन टाइटल जीता है। खेल की इसी भावना के साथ उन्होंने विश्व को जतला दिया कि भले ही उनकी आयु इस समय 37 वर्ष को स्पर्श करने जा रही है, लेकिन ऊर्जा उनमें शेष है। इसके उलट कुछ साल पहले फ्रांस की टेनिस की धुरंधर खिलाड़ी मरियन बार्तोली का 28 साल की आयु में संन्यास की घोषणा ने वाकई सबको चौंकाया था। लेखक ने खिलाड़ी और संन्यास के मुद्दे को जिस तरह जेंडर एंगल से समझने की कोशिश की है, वह तार्किक और प्रभावशाली है। मेघा रावत, शकरपुर, दिल्ली
करोड़ रुपए रहा और इस साल सकल प्रीमियम 16675 करोड़ रुपए रहने का अनुमान है। दरअसल, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना आइडिया के लेवल पर कई दशकों बाद आई एक ऐसी सरकारी योजना है, जिसमें किसानों की जरूरत व उनकी वास्तविक स्थिति को ध्यान में तो रखा ही गया है, योजना का नियमन और प्रबंध तंत्र भी ऐसा बनाया गया है, जिससे किसान सीधे तौर पर लाभान्वित हों। इस योजना में बेहद कम प्रीमियम पर किसानों की फसल का बीमा किया जाता है, ताकि किसान इसकी किश्तें आसानी से वहन कर सकें। कम प्रीमियम पर अधिकतम बीमा देने वाली प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की खासियत है कि इस योजना में सभी खाद्य फसलें, तिलहन, वार्षिक व्यावसायिक या साग सब्जी का बीमा होता है। पहले की योजनाओं में कुछ फसलें और तिलहन का ही बीमा होता था। पहले किसानों को 50 फीसदी फसल नष्ट होने पर मुआवजा मिलता था अब महज 33 फीसदी फसल नष्ट होने पर ही फसल का बीमा मिलता है। इस योजना में पोस्ट हार्वेस्ट नुकसान भी शामिल किया गया है। बेहतर हो कि जो लोग भी देश में किसान हित की चिंता करते हैं या अलग-अलग मंचों से उनकी मांगें उठाते हैं, वे सरकार की इस बेहतरीन योजना के बारे में भी किसानों को और जागरुक करें क्योंकि सरकार इस योजना की सफलता में अपने एजेंडे की कामयाबी तो देखती ही है, उससे यह भी लगता है कि किसानों की दशा अगर सुधरेगी तभी देश के विकास की तस्वीर भी मुकम्मल होगी।
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शिवभक्तों की सेवा में एप्प
सुलभ स्वच्छ भारत’ के 24-30 जुलाई, 2017 के अंक में ‘कांवड़ियों की मदद के लिए एप्प’ शीर्षक से छपी जानकारी यह अच्छी लगी। पढ़ कर सुखद लगा कि इस एप्प को देवघर जाने वाले 10 हजार से ज्यादा शिवभक्त अब तक डाउनलोड कर चुके हैं। वाकई इस एप्प के आ जाने के बाद से शिवभक्तों को अब रास्ता खोजने की परेशानी से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा। अच्छी बात है कि इस एप्प को पांच में से 4.7 रेटिंग मिली है। उम्मीद है कि अगले साल सावन में यह आंकड़ा और ज्यादा बढ़ जाएगा। मनोहर मयंक, समस्तीपुर, बिहार
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31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
राष्ट्रपति भवन
स्वागत और विदाई साथ-साथ
राष्ट्रपति भवन में नए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का शपथ ग्रहण समारोह संपन्न हुआ। भव्य समारोह में निवर्त्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उन्हें कार्यभार सौंपा। समारोह के बाद नए राष्ट्रपति को गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया
फोटाेः शिप्रा दास
निवर्त्तमान और नए राष्ट्रपति दोनों ही एक साथ राष्ट्रपति भवन से बाहर आए और फिर रामनाथ कोविंद ने गार्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण किया
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
फोटो फीचर
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निवर्त्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का विदाई समारोह भी भव्य रहा। उन्होंने अपने नए निवास पर जाने से पूर्व अंतिम बार गार्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण किया। नए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का पूरा परिवार इस ऐतिहासिक अवसर पर उपस्थित था
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31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
असम के ‘फ्लड रेडी’ बच्चे बाढ़ आपदा
असम देश के सर्वाधिक बाढ़ प्रभावित राज्यों में से एक है। ऐसे में यहां बाढ़ से निपटने का प्रशिक्षण बच्चों को देने की सराहनीय पहल
मी
एसएसबी ब्यूरो
डिया में लगातार खबरें आ रही हैं कि असम में इस बार बाढ़ की विभिषिका बहुत ज्यादा है। जानमाल का भी काफी नुकसान हुआ है। पर यह तो रही खबर की बात जो हर साल इन महीनों में आती है। बड़ी बात तो यह है कि हर साल आने वाली इस आपदा के बीच असम का जन-जीवन कैसे चलता है और वह कैसे अपने को बाढ़ की चुनौती के लिए तैयार करता है। असम के वे इलाके जो ग्रामीण हैं और जहां का भूगोल भी खासा असामान्य है, वहां बाढ़ की तबाही सबसे ज्यादा देखने को मिलती है, पर अच्छी और संतोषजनक बात यह है कि असम के इन्हीं अंचलों में बाढ़ की चुनौतियों का सामना करने वाली संस्कृति भी विकसित हो रही है। जिन लोगों ने भी इस पर शोध किया है वे इसे ‘फ्लड रेडी’ होने की संस्कृति और उसका विकास कहते हैं। जिबोन पेयांग पैंतालीस साल के हैं। जब उनसे पूछा जाता है कि बाढ़ से कैसे निपटेंगे तो जवाब देने के लिए उनके मन में कोई निराशा नहीं होती। वे बहुत आत्मविश्वास से जवाब देते हैं कि बाढ़
से बचने के लिए क्या-क्या करना है। उनका पूरा परिवार बाढ़ से निपटने के लिए तैयार है। जब हमने उनसे पूछा कि ये बातें किसने बताई तो वो बहुत गर्व से बताते हैं, ‘मेरे बेटे केशव ने।’ उत्तर असम के धेमाजी जिले में दिहरी गांव के रहने वाले पेयांग के गांव में पहले बाढ़ नहीं आती थी, लेकिन अब बीते कुछ सालों से बाढ़ का पानी उनके गांव को भी घेरने लगा है। साल में दो से तीन बार उनका गांव बाढ़ के पानी से घिर जाता है और लगातार बाढ़ का पानी घटने की बजाय बढ़ता जा रहा है। गुवाहाटी के ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’ से जुड़े रिसर्च स्कॉलर ललित सैकिया बताते हैं, ‘जलवायु परिवर्तन का असर साफ दिख रहा है। बारिश का तंत्र बुरी तरह बिगड़ गया है। इसके कारण बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है।’ सैकिया कहते हैं कि अब इस क्षेत्र में कभी भी बाढ़ आ जाती है। न तो बारिश की भविष्यवाणी की जा
सकती है और न ही बाढ़ की। उनका कहना है कि दुर्भाग्य से अभी इस बारे में कोई खास अध्ययन भी नहीं हो रहा है। जीबोन पेयांग के बेटे की तरह ही लखीमपुर और धेमाजी जिले के हजारों बच्चे बाढ़ से निपटने की शिक्षा ले रहे हैं। स्कूलों में शिशु दुर्योग प्रतिरोध समिति की तरफ से जानकारी देने का कार्यक्रम चलाया जाता है और बच्चों को बाढ़ से निपटने का प्रशिक्षण दिया जाता है। शिशु दुर्योग प्रतिरोध समिति बच्चों को सिखाती है कि आपदा की स्थिति में वे क्या करें और क्या न करें। इसी तरह का प्रशिक्षण पा चुका एक किशोर है दीपेन पेगू का बेटा भुवन। वह बाढ़ से निपटने की कला सीख चुका है और अब पूरा परिवार उसकी इस शिक्षा से खुश है। दीपेन कहते हैं कि पहले भी बाढ़ आती थी और वो लोग बाढ़ से निपटने की तैयारी रखते थे, लेकिन अब तो कुछ पता नहीं कब
बाढ़ से निपटने के लिए परंपरागत उपायों की उपेक्षा ने परिस्थितियों को और मुश्किल बना दिया। ऐसे में शिशु दुर्योग प्रतिरोध समिति की पहल का हर तरफ स्वागत हुआ
एक नजर
शिशु दुर्योग प्रतिरोध समिति ‘फ्लड रेडी’ होने का दे रहा प्रशिक्षण प्रशिक्षित बच्चे अपने पूरे परिवार को ‘फ्लड रेडी’ बना रहे हैं
असम में ब्रह्मपुत्र बेसिन के इलाके में सबसे ज्यादा बाढ़ का खतरा
बाढ़ आ जाए। ऐसे में बेटे को जो कुछ सिखाया गया है वह सब हमारे काम का है। उत्तर पूर्व में असम का यह हिमालय क्षेत्र मूल रूप से कृषि अर्थव्यवस्था पर निर्भर है। लेकिन सदियों से जारी बाढ़ की निरंतर तबाही के कारण यहां कृषि योग्य भूमि का बहुत नुकसान हुआ है। इसका परिणाम यह हुआ है कि अच्छे भले किसान भी अपनी जोत का बड़ा हिस्सा गंवा चुके हैं। लगातार होने वाले विस्थापन, पीने के पानी की समस्या, शिक्षा और स्वास्थ्य का संकट यहां बाढ़
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
विशेष
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शिशु दुर्योग प्रतिरोध समिति का गठन 2003 में धेमाजी जिले में ही सक्रिय रूरल वॉलेंटरी सेंटर ने किया था। कुछ गांव के स्कूलों में सेंटर ने बच्चों को बाढ़ से निपटने के उपायों के बारे में सिखाना शुरू किया की ही देन है। इसके साथ ही परंपरागत खेती को भी बाढ़ के कारण बड़ा नुकसान होता है। बाढ़ से निपटने के लिए परंपरागत उपायों की उपेक्षा ने परिस्थितियों को और मुश्किल बना दिया। ऐसे में शिशु दुर्योग प्रतिरोध समिति की पहल का हर तरफ स्वागत हुआ। धेमाजी में सामाजिक मुद्दों पर काम करने वाले केशव कृष्ण छात्रधारा बताते हैं कि नदी घाटियों का विनाश, प्रकृति का नुकसान होने की वजह से ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ रहा है। हमें कभी उम्मीद नहीं थी कि साल में तीन-तीन बार बाढ़ आएगी, लेकिन अब आती है। ये ऐसे खतरे हैं जिससे हमें ही निपटना है। ऐसे में शिशु दुर्योग प्रतिरोध समिति की शिक्षा और प्रयास हमारे लिए बहुत महत्व का है।
शिशु दुर्योग प्रतिरोध कार्यक्रम
शिशु दुर्योग प्रतिरोध समिति का गठन 2003 में धेमाजी जिले में ही सक्रिय रूरल वॉलेंटरी सेंटर ने किया था। कुछ गांव के स्कूलों में सेंटर ने बच्चों को बाढ़ से निपटने के उपायों के बारे में सिखाना शुरू किया। 2006 में यह एक पूर्ण पाठ्यक्रम बन गया और आज लखीमपुर और धेमाजी जिले के 90 स्कूलों में चलाया जाता है। इस कार्यक्रम में शिक्षकों की अहम भूमिका होती है और सेंटर की योजना है
कि इसे स्थानीय विस्तार देने के साथ-साथ जोरहाट जिले के माजुली द्वीप पर भी चलाया जाए जो कि एक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। स्कूलों में इस पाठ्यक्रम को सिखाने वाले अध्यापकों का कहना है कि शुरुआत में तो बच्चों के अभिभावकों को ही समझाना मुश्किल था। इसके लिए उन्हें हर एक अभिभावक से अलग-अलग बात करनी पड़ती थी कि यह पाठ्यक्रम बच्चों के लिए कितना जरूरी है। इसके बाद अभिभावकों ने अपने बच्चों को इस पाठ्यक्रम को सीखने की इजाजत देना शुरू कर दिया। एक बार शिशु दुर्युोग प्रतिरोध समिति का गठन हो जाए तो चार तरह के टास्क फोर्स में बच्चों को बांट दिया जाता है। इसमें शुरुआती सूचना देनेवाला टास्क फोर्स, राहत एवं बचाव करने वाला टास्क फोर्स, कैंप मैनेजमेंट टास्क फोर्स और स्वास्थ्य टास्क फोर्स प्रमुख होता है। हर टास्क फोर्स में छह सदस्य होते हैं, जिनमें तीन लड़के और तीन लड़कियां होती हैं। हर बच्चे को अपना रोल पता होता है कि आपदा की स्थिति में उसे क्या करना है। इसके बाद सरकारी एजेंसियों को भी इस शिक्षा कार्यक्रम में शामिल किया जाता है। टास्क फोर्स के बच्चों को रीजनल वॉलेंटरी सेंटर (आरवीसी) के विशेषज्ञों द्वारा ट्रेनिंग दी जाती है। इसके बाद डिजास्टर मैनेजमेंट से जुड़े सरकारी विभाग के
अधिकारी इन बच्चों को ट्रेनिंग देते हैं। सारी ट्रेनिंग होने के बाद स्कूल में ही मॉक ड्रिल भी किया जाता है, ताकि आपदा की स्थिति में बच्चे अपनी भूमिका का निर्वहन कर सकें।
कार्यक्रम का सामाजिक प्रभाव
शिशु दुर्योग प्रतिरोध समिति प्रयासों के सुखद परिणाम सामने आने लगे हैं। सबसे पहला प्रभाव तो यही दिख रहा है कि ऊपरी ब्रह्मपुत्र बेसिन में अब आपदा बचाव के लिए स्कूली बच्चे समाज और गैर सरकारी संगठनों के बीच एक कड़ी बन गए हैं। इसके साथ ही आदिवासी संगठन भी इसमें शामिल हो गए हैं। जोहन डोले पहले शिशु दुर्योग समिति के छात्र नेता रह चुके हैं। वे बताते हैं, ‘जब यह कार्यक्रम शुरू हुआ था तभी मैने इसकी ट्रेनिंग ले ली थी। यह निश्चित रूप से आपदा के समय लोगों की मदद करता है। हम लोगों को बचाने के लिए बेहतर प्रयास करते हैं।’ आरवीसी के अधिकारी कहते हैं इस कार्यक्रम के कारण स्थानीय लोगों की बोली समझने में मदद मिलती है और हमें काम करने
में आसानी होती है। आरवीसी के निदेशक लुइट गोस्वामी बताते हैं कि अगर स्थानीय समाज से कोई व्यक्ति आपके साथ जुड़ जाता है तो स्थानीय लोगों का भरोसा जीतने में बहुत मदद मिलती है। इसके बाद स्थानीय लोग आपका साथ देना शुरू कर देते हैं। शिशु दुर्योग प्रतिरोध समिति के काम से स्थानीय स्कूल भी प्रभावित हुए हैं और उन्होंने सरकार को प्रस्ताव भेजा है कि अब स्कूल ऊंची नींव पर बनाए जाएं, ताकि बाढ़ के दौरान स्कूल और स्कूली बच्चों, दोनों की सुरक्षा हो सके। इसी के साथ अब स्कूल आपदा के समय सुरक्षित निकास के लिए मास्टर प्लान भी बना रहे हैं। धेमाजी और लखीमपुर ऊपरी ब्रह्मपुत्र बेसिन में बसे हैं, जहां बाढ़ आना अवश्यंभावी है। इसका कारण यह है कि ये जिले हिमालय की तराई में पड़ते हैं। हर साल लाखों लोग इस बाढ़ की चपेट में आते हैं जिसमें बच्चों पर सबसे बुरा असर पड़ता है। ऐसे में शिशु दुर्योग प्रतिरोध समिति ने बच्चों को ही प्रशिक्षित करके बाढ़ के प्रभाव को कम से कमतर करने का अहम प्रयास किया है।
22 पर्यावरण
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
चक्रवात के बीच जीवन का तट आपदा संरक्षण
तटीय ओेडिशा ने बीस साल में अस्सी समुद्री आपदाएं झेली हैं, पर अब वहां के लोगों ने इन आपदाओं से संघर्ष करने के कई समाधानकारी रास्ते निकाल लिए हैं
एक नजर
ओडिशा की 36 प्रतिशत आबादी तटवर्ती जिलों में रहती है
पहले साल में 120 दिन बारिश होती थी, अब मुश्किल से 90 दिन
तालाब और सदाबहार वनों के प्रति लोगों में बढ़ी जागरुकता
भा
एसएसबी ब्यूरो
रत का प्रायद्वीपीय भूगोल कुछ ऐसा है कि एक तरफ तो उसे ऊंची पर्वत श्रृंखलाएं उसके भाल को ऊंचा करती हैं तो दूसरी तरफ समुद्र की लहरें उसके पांव पखारती हैं। पर भूगोल की यह विलक्षणता कविता में तो ठीक है, लेकिन वास्तव में इससे जिंदगी से जुड़ी कई चुनौतियां भी खड़ी होती हैं। बात करें अकेले तटीय भारत की तो ग्लोबल वार्मिंग के बढ़े खतरे के बीच समुद्री की ऊंची लहरें जब-तब तटीय बसावट के इलाकों में जान-माल को भारी क्षति पहुंचा जाती है। दिलचस्प है कि इन जानलेवा खतरों के बीच तटीय क्षेत्रों में एक नए तरह का जुझारू जीवन संस्कार जन्म भी ले रहा है। छह साल का दिव्य खेलकूद के साथ-साथ एक काम बहुत नियम से करता है। जब भी उसके पिता नाव लेकर आते या जाते हैं तो वह उस नाव की रस्सी को पेड़ से बांधने खोलने का काम करता है। ऐसा करते हुए उसके पैर भले ही कीचड़ में गंदे हो जाते हैं, लेकिन उसे मजा आता है। तटीय ओडिशा के प्रहराजपुर के निवासी उसके पिता सुधीर पात्रा कहते हैं, ‘ऐसा करना उसके अनुभव के लिए जरूरी है। आपको कुछ पता नहीं है कि कब समुद्र आपके दरवाजे पर दस्तक देने पहुंच जाए।’ तटीय ओडिशा का समुद्री किनारा 480 किलोमीटर लंबा है। राज्य की 36 प्रतिशत आबादी
राज्य के नौ तटवर्ती जिलों में निवास करती है। ये तटवर्ती जिले जलवायु परिवर्तन के सीधे प्रभाव क्षेत्र में पड़ते हैं। ओडिशा के क्लाइमेट चेंज एक्शन प्लान 2010-15 के मुताबिक इन पांच सालों के दौरान बंगाल की खाड़ी में औसतन हर साल पांच चक्रवात आए हैं, जिनमें से तीन ओडिशा के तटवर्ती इलाकों तक पहुंचे हैं। राज्य के आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का कहना है कि इनमें केंद्रपाड़ा जिला सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। समुद्र में उठने वाले चक्रवात के कारण यहां तेज हवाएं चलती हैं और भारी बारिश होती है। इसके कारण बाढ़ आने का खतरा तो रहता है लेकिन केंद्रपाड़ा में इतनी बारिश के बाद सूखा भी पड़ता है। ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ द्वारा 2011 में किए गए एक सर्वे के मुताबिक केंद्रपाड़ा का हर घर बीते पंद्रह सालों में कभी न कभी जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हुआ है।
साल के आंकड़ो के मुताबिक बीस वर्षों के भीतर ओडिशा में ऐसे 80 आपदाएं आई हैं, जबकि भारी बारिश होने के कारण बाढ़ आई है। बाढ़ के साथसाथ सूखा भी ओडिशा में लगातार पड़ता रहता है। ओडिशा के मौसम विभाग का कहना है कि आने वाले समय में ऐसी आपदाओं में कमी आने की बजाय बढ़ोत्तरी ही होगी। इन आपदाओं के कारण राज्य की गरीबी में भी कोई खास सुधार होने की उम्मीद नहीं है। राज्य में छोटी जोत के किसानों की बहुतायत है और बाढ़ या सुखाड़ के कारण सबसे ज्यादा छोटी जोत के किसान ही प्रभावित होते हैं। ऐसी आपदाओं के कारण उनकी फसलें नष्ट होती हैं और उनके जीवनस्तर में गिरावट आती है। गरीबी उन्मूलन के जितने भी कार्यक्रम जाते हैं उन पर जलवायु परिवर्तन का बढ़ता प्रभाव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर पानी फेर देता है।
भारतीय मौसम विभाग द्वारा इकट्ठा किए गए बीस
तटीय ओडिशा के ज्यादातर इलाकों में चावल की
20 साल में 80 आपदाएं
कृषि और मछली पालन पर असर
सदाबहार के जंगल लगाने के साथ-साथ केंद्रपाड़ा के निवासी एक और काम कर रहे हैं। वे अपने परंपरागत तालाबों को पुनर्जीवित कर रहे हैं। तटवर्ती ओडिशा के इलाकों में परंपरागत रूप से तालाब पहले से मौजूद रहे हैं
खेती की जाती है। चक्रवात सबसे ज्यादा चावल की खेती को ही नुकसान पहुंचाता है। केंद्रपाड़ा के निवासी महेश्वर रापट बताते हैं, ‘पहले साल में 120 दिन बारिश होती थी, अब साल में नब्बे दिन मुश्किल से बारिश होती है।’ बारिश के दिन कम हो गए, लेकिन बारिश की मात्रा बढ़ गई जो कि दोनों ही तरीकों से खेती के लिए नुकसानदायक है। पहले किसान एक मौसम में दो बार धान की फसल ले लेते थे, लेकिन अब एक बार से ज्यादा धान की फसल नहीं ले सकते। रापट बताते हैं, ‘बारिश के कारण ही मिट्टी का खारापन खत्म हो जाता है, क्योंकि बारिश के कारण समुद्र का खारा पानी बह जाता है। लेकिन जब बारिश ही कम हो गई तो जगह-जगह मिट्टी का यह खारापन भी महीनों बना रहता है, जिसके कारण हम खेतों में उतनी धान की खेती नहीं कर पाते जितना पहले कर लेते थे।” बार-बार आने वाले तूफान समुद्र को उग्र करते हैं और इसके कारण न सिर्फ अचानक भारी बारिश होती है, बल्कि मिट्टी का कटाव भी होता है। जाहिर है, समुद्र के इस उग्र व्यवहार से मनुष्य, पशु और अर्थव्यवस्था सभी बुरी तरह प्रभावित होते हैं। किसानों को नुकसान और परेशानी भी होती है और राज्य सरकार का बजटीय घाटा भी बढ़ता है। कृषि के साथ-साथ यहां मत्स्य पालन न सिर्फ लोगों के खानपान का दूसरा सबसे बड़ा जरिया है, बल्कि रोजगार का भी बड़ा साधन है, लेकिन जलवायु परिवर्तन का असर मत्स्य पालन पर भी साफ दिखने लगा है। बार-बार के चक्रवात और अतिवृष्टि के कारण न सिर्फ समुद्र में मछली पकड़ने के लिए जाना मुश्किल हो जाता है, बल्कि जमीन पर भी मछली पालन में बाधा आती है। भुवनेश्वर स्थित ‘रीजनल सेंटर फॉर डेवलपमेंट कोऑपरेशन’ के कैलाश दास कहते हैं ‘कृषि और मत्स्य पालन लगभग ठप होते जा रहे हैं, जिसके कारण तटीय लोगों की जिंदगी दूभर होती जा रही है। परम्परागत रूप से तटीय ओडिशा के निवासी दूसरे हिस्से के निवासियों के मुकाबले ज्यादा समृद्ध समझे जाते रहे हैं, लेकिन अब यह क्रम उलट गया है।’ बार-बार आने वाले चक्रवात के कारण राहत और
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केंद्रपाड़ा का प्रहराजपुर गांव हंसुआ नदी के डेल्टा पर बसा हुआ है। गांव के एक तरफ नदी है तो दूसरी तरफ समुद्र। एक तरफ नदी गांव को घेरती रहती है तो दूसरी तरफ से समुद्र का चक्रवात। समुद्री ज्वारभाटा गांव की तरफ चढ़े रहते हैं। ऐसे में अस्सी के दशक में गांव के लोगों ने इस समस्या से निजात पाने का निश्चय किया। प्रहराजपुर के निवासी बलराम विश्वाल बताते हैं, ‘हमारे पुरखों ने वन विभाग की मदद से नदी के किनारे एक तटबंध बना दिया और नदी की धारा को बदल दिया। इसके साथ ही उन्होंने उस तटबंध के साथ-साथ सदाबहार (मैंग्रोव) के पौधे लगा दिए। इससे मिट्टी का कटान रोकने में मदद मिल गई। धीरे-धीरे यही सदाबहार के पौधे सदाबहार जंगल में बदल गए।’ वैसे तो सदाबहार के ये पेड़ मिट्टी का क्षरण रोकने के लिए लगाए गए थे, लेकिन बाद में ग्रामवासियों ने महसूस किया कि सदाबहार के दूसरे भी कई फायदे हैं। 1982 में जब चक्रवात आया तो लोगों ने महसूस किया कि इस बार गांव को लगभग न के बराबर नुकसान हुआ है। इसके बाद ग्रामवासियों ने न सिर्फ तेजी से मैंग्रोव (सदाबहार) के बचाव कार्य का बोझ भी लगातार बढ़ता जाता है। हरिहरपुर गांव के हरिकृष्ण साई कहते हैं, ‘अभी हम इकहत्तर में आए चक्रवात के प्रभाव से उबरने की कोशिश कर ही रहे थे कि 81 में फिर से चक्रवात आ गया। इक्यासी के प्रभाव से उबरे नहीं थे कि 1999 में फिर चक्रवात आ गया। 1999 के प्रभाव से नहीं उबरे थे कि 2013 में फेलिन साइक्लोन आ गया। यह सिलसिला लगातार बढ़ता ही जा रहा है। हम खड़े भी नहीं हो पाते कि चक्रवात हमें फिर गिराकर चला जाता है।’
लाभकारी साबित हुए तालाब
सदाबहार के जंगल लगाने के साथ-साथ केंद्रपाड़ा के निवासी एक और काम कर रहे हैं। वे अपने परंपरागत तालाबों को पुनर्जीवित कर रहे हैं। तटवर्ती ओडिशा के इलाकों में परंपरागत रूप से तालाब पहले से मौजूद रहे हैं। राज्य में तालाब के रूप में 10 लाख 18 हजार हेक्टेयर जमीन पहले से चिन्हित हैं। राज्य के 8 लाख 34 हजार मछुआरों में 6 लाख 61 हजार मछुआरे ऐसे हैं, जो जमीन पर मौजूद जलस्रोतों में ही मछली पकड़ने का काम करते हैं, लेकिन इसके बावजूद भी 20 लाख 59 हजार टन मछली पालन की संभावना के बाद भी राज्य में 10 लाख 33 हजार टन ही सालाना मछली का उत्पादन हो पाता है। ऐसा इसीलिए क्योंकि ज्यादातर परंपरागत तालाब या तो नष्ट हो गए हैं या फिर अब उनका इस्तेमाल नहीं होता है। राज्य में परंपरागत तालाबों के मौजूद होने का एक कारण लोगों का घर निर्माण भी था। रीजनल सेंटर फॉर डेवलपमेंट कोऑपरेशन के कैलाश दास बताते हैं, ‘लोग मिट्टी के घर बनाते थे। जहां से मिट्टी निकालते थे, वह जगह तालाब
आपदा के विरुद्ध 'सदाबहार' संघर्ष
पौधे रोपने शुरू कर दिए, बल्कि उन्हें बचाने के कानून भी बनाए। गांव के वन संरक्षण इकाई के अध्यक्ष रवींद्र बेहरा बताते हैं, ‘हमने एक पंद्रह सदस्यीय वन संरक्षण समिति का गठन किया और रात में वनों की रखवाली के लिए एक गार्ड नियुक्त किया, जिसे हर रात का सौ रूपए दिया जाता था।’ इन उपायों का परिणाम सामने है। आज प्रहराजपुर और समुद्र के बीच 40 हेक्टेयर का सदाबहार जंगल खड़ा है। रवींद्र बेहरा इस सदाबहार के जंगल का फायदा बताते हुए कहते हैं कि 1999 के चक्रवात में दस हजार लोग मारे गए थे, लेकिन इस जंगल की वजह से हमारे जान माल को कोई खास नुकसान नहीं हुआ। गांव में एक कच्ची दीवार गिरने से दो लोग मारे गए थे। इसी तरह 2013 के चक्रवात फेलिन के दौरान भी जब राज्य में हजारों
एकड़ फसलें नष्ट हो गई और बड़े पैमाने पर जान माल का नुकसान हुआ तब भी हमारे गांव में इस सदाबहार के जंगल ने हमारी रक्षा की। गांव के दो सौ घरों में डेढ़ सौ से ज्यादा घर सुरक्षित बचे रहे। बीते तीन दशक से ज्यादा समय से सदाबहार के जंगल प्रहराजपुर की बार-बार रक्षा करते आ रहे हैं। वैसे बेहरा की मानें तो इसके साथ एक दुखद सच यह भी है कि ‘परिस्थितियां पहले जैसी दोबारा कभी नहीं हो पातीं।’ फेलिन चक्रवात में अपना घर गंवा चुके सुधीर पात्रा बताते हैं, ‘हम बच तो जाते हैं, लेकिन हमें नहीं पता आगे क्या होने वाला है। समुद्र पहले से अब बहुत उग्र हो गया है। हम सिर्फ एक काम कर सकते हैं कि पहले से ज्यादा तैयारी रखो, ताकि अगली बार भी अपना बचाव कर सको।’ सुधीर पात्रा की इस तैयारी का फायदा तो है।
बार-बार के चक्रवात और अतिवृष्टि के कारण न सिर्फ समुद्र में मछली पकड़ने के लिए जाना मुश्किल हो जाता है, बल्कि तालाबों में भी मछली पालन में बाधा आती है के रूप में विकसित हो जाती थी। फिर इस तालाब के पानी का घर के कामकाज में इस्तेमाल करते थे। इसके अलावा अलग से भी तालाब बनाए जाते थे।’
कारगर रहा ‘परिवर्तन’
अब परंपरागत तालाबों को पुनर्जीवित करने के लिए परिवर्तन हो रहा है। ‘रीजनल सेंटर फॉर डेवलपमेंट कोऑपरेशन’, ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ के साथ मिलकर लोग तालाबों को पुनर्जीवित कर रहे हैं और मछली पालन, चावल की खेती के लिए कैसे इस्तेमाल किया जाए इसके उपाय सुझा रहे हैं। तालाब के किनारे वर्मी कंपोस्ट भी तैयार किया जा रहा है और साग सब्जी की खेती भी की जा रही है। 2011 में शुरू की गई यह पूरी परियोजना ‘परिवर्तन’ के नाम से चलाई जा रही है। ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ की श्वेता मिश्रा बताती हैं, ‘परंपरागत ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के मेल जोल से यह काम किया जा रहा है। तालाब के किनारे
खेती से खारे पानी के प्रभाव को कम करने में मदद मिलती है और वर्मी कंपोस्ट मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाकर रखती है। तालाब के पानी से मछली पालन के साथ-साथ सब्जियों की खेती भी हो जाती है। इसके साथ ही बत्तख पालन भी करवाया जाता है जो कि तटीय इलाकों में मुर्गियों के मुकाबले ज्यादा अनुकूल होती हैं। इस तरह संयुक्त प्रयास से किसानों को कम निवेश से अधिकतम लाभ अर्जित होता है। अगर आपदा के समय एक फसल नष्ट हो जाती है तो बाकी दूसरे साधनों से वह अपना जीवन-यापन कर सकता है।’
कामयाबी दर कामयाबी
इंक्रिया गांव के किसान रमेश चंद्र बताते हैं, ‘दो साल पहले हमारे गांव से लोगों ने पलायन करना शुरू कर दिया था। खेती और मछली पालन दोनों लगभग खत्म हो गए थे। सामाजिक कारणों में आस-पास के गांव में कोई मजदूरी करना नहीं
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‘दिल्ली स्कूल आॅफ इकोनॉमिक्स’ के एक अध्ययन में इस बात की पुष्टि होती है कि सदाबहार के जंगलों के कारण 1999 में आए चक्रवात में बहुत से लोगों की जानमाल की रक्षा हुई। अगर ये सदाबहार के जंगल न होते तो 35 प्रतिशत अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ जाती। सदाबहार के जंगलों ने एक कवच की तरह चक्रवात से गांवों की रक्षा की।’ प्रहराजपुर में मैंग्रोव की सफलता देखकर आस-पास के गांवों ने भी सदाबहार के जंगल लगाने शुरू कर दिए। आरसीडीसी के सुरेश बिसोयी बताते हैं, 'मैंग्रोव के ये जंगल चक्रवात से बचाने के साथ-साथ लकड़ी, शहद और फल भी उपलब्ध कराते हैं जो आपातकाल के दिनों में लोगों की बहुत मदद करता हैं।' इसके फायदों की वजह से ही जहां सदाबहार के जंगल खत्म होते जा रहे थे, वहीं राज्य में अब मैंग्रोव के जंगल फिर से लौट आए हैं। 1944 में राज्य में 30,766 हेक्टेयर सदाबहार के जंगल थे जो 1999 में गिरकर 17,900 हेक्टेयर रह गया, लेकिन अब फिर से सदाबहार के जंगलों का दायरा बढ़ा है और 2011 में यह 22,200 हेक्टेयर हो गया। चाहता था, इसीलिए लोग पलायन कर रहे थे। दो साल पहले हमने अपने सामुदायिक तालाब को पुनर्जीवित किया। इसमें मछली पालन शुरू किया और आस-पास सब्जी की खेती की।’ दो साल बाद जब उन्होंने मछली बेची तो 12 हजार रुपए की आय हुई। इस पैसे से उन्होंने सबसे पहले चक्रवात से बचने के लिए एक सामुदायिक आश्रय बनवाया। इसके साथ ही सब्जी बेचने के लिए अलग से शेड बनवाए, ताकि सब्जियों के तैयार होने पर वहां बैठकर लोग सब्जी बेच सकें। रमेश चंद्र कहते हैं, ‘पहले मछली पालन हमारे लिए आय का दूसरा बड़ा स्रोत होता था। मछली पालन से हमने महसूस किया कि यह कृषि से ज्यादा फायदेमंद है। सामुदायिक तालाब के फायदे को देखकर चार और लोगों ने अपने निजी तालाब बनवा लिए।’ इसी तरह जूनापागरा गांव के अशोक कुमार दास हैं। अशोक कुमार दास को 1999 के चक्रवात में भारी नुकसान हुआ था। उनकी फसल और घर सब बर्बाद हो गए थे। उन्हें चालीस हजार रूपए का अनुदान दिया गया ताकि वो तालाब बना सकें। उन्होंने तालाब बनवाया और उसमें मछली पालन के साथ-साथ धान और सब्जियों की खेती भी शुरू की। अब वे संयुक्त रूप से सालाना 50 से 70 हजार रुपया कमा लेते हैं। उन्होंने अपने पुराने कच्चे घर की जगह पक्का घर बनवा लिया है जो चक्रवात में कच्चे घर के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित है। वे कहते हैं, ‘अब मैं ज्यादा सक्षम तरीके से चक्रवात से लड़ सकता हूं।’ अशोक कुमार दास का मॉडल इतना सफल रहा कि आस-पास के दो सौ से ज्यादा किसानों ने इसी मॉडल को अपना लिया है।
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31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
नमक भी बढ़ा रहा प्रदूषण नमक अधिकता
नमक की अधिकता प्रदूषण के खतरे को तो बढ़ा ही रही है, इससे जीव-जगत और प्रकृति का संतुलन भी बिगड़ रहा है
एक नजर
नमक की वजह से पानी और भूमि में प्रदूषण बर्फ पिघलाने के लिए नमक का प्रयोग खतरनाक
खा
एसएसबी ब्यूरो
ने की रेसिपी बताते हुए तो शेफ कह देते हैं कि नमक स्वाद के अनुसार। घर में भी रसोई में कुछ बनता है तो नमक जरूरी तो होता है, लेकिन मात्रा बस स्वादानुसार। नमक की अधिकता स्वाद में हो या समुद्र के जल में, कभी भी और किसी को भी भाती नहीं। उलटे स्थिति यह है कि कुछ लोग हमेशा या कुछ खास मौकों पर नमक को थाली से विदा कर देते हैं। प्रकृति और पर्यावरण के साथ भी ऐसा ही है। नमक की अधिकता यहां भी परेशानी पैदा करती है। दुर्भाग्य से यह परेशानी नए दौर में लगातार बढ़ती जा रही है। इस कारण हम कई तरह की समस्याओं से घिरते जा रहे हैं।
बर्फ हटाने के लिए नमक का प्रयोग
दरअसल, हमारे वातावरण में प्रदूषण फैलाने में नमक का बड़ा हाथ है, जो बराबर बढ़ रहा है। इसकी प्रमुख वजह मोटर गाड़ियों की तादाद, कारोबार और उपयोग में बेतहाशा इजाफा है, जिसको ध्यान में रखकर और चलाने वालों के सुरक्षा की बुनियाद पर सर्दी में सड़कों से बर्फ हटाने और पिघलाने के लिए
स्थलीय और जलीय जीवों पर भी प्रतिकूल असर
नमक का उपयोग आमतौर पर किया जाता है, जिससे वातावरण में प्रदूषण बढ़ जाता है। नमक के साथ एक बात यह भी है कि यह आसानी से सस्ते दामों में हर जगह मिल जाता है। चट्टानी नमक को ज्यादा तरजीह दी जाती है, क्योंकि वह कीमत में कम होने के साथ-साथ उपलब्ध भी ज्यादा होता है। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि चट्टानी नमक 20 डॉलर में एक टन मिलता है, जबकि इसका स्थानापन्न कैल्शियम मैग्नीशियम एक टन 700 डॉलर में मिलता है। अमेरिका में हर साल बर्फ पिघलाने के लिए 10 मिलियन टन नमक की जरूरत पड़ती है और कनाडा को तीन मिलियन नमक की आवश्यकता पड़ती है। यह नमक सड़कों पर गिरी हुई और जमी बर्फ को हटाने और पिघलाने के लिए बड़ी मात्रा में डाला जाता है। चूंकि नमक के पिघलने की दर कम होती है, इसीलिए वह जमी बर्फ को पिघला देता है।
पानी और भूमि में प्रदूषण
नमक की वजह से पानी और भूमि में प्रदूषण फैलता है। सड़कों पर जो नमक छिड़का जाता है वो मिट्टी में रिसकर भूजल में मिल जाता है। अनुमान है कि इस तरीके से नमक का 30 से 50 प्रतिशत हिस्सा जमीन के अंदर चला जाता है और वहां के जलस्रोतों को क्लोराइड और सोडियम, दोनों प्रभावित करते हैं। ये दो किस्म का होता है। एक तो पारदर्शी ठोस और दूसरा तरल पदार्थ के रूप में। इनकी सामान्य मात्रा एक लीटर पानी में 10 मििलग्राम होती है, लेकिन जिन मार्गों पर बर्फ हटाने के लिए नमक डाला जाता है, उनके आस-पास के भूजल स्रोतों में यह मात्रा एक लीटर में 250 मििलग्राम तक पहुंच गई है। इस वजह से ऐसे इलाकों में पानी के गुण-धर्म में उल्लेखनीय परिवर्तन देखा गया है।
गंभीर रोगों का बढ़ा खतरा
भूजल में नमक की बढ़ी हुई मात्रा से हाई ब्लड
भूजल में नमक की बढ़ी हुई मात्रा से हाई ब्लड प्रेशर और हाइपर टेंशन जैसे रोग पैदा हो सकते हैं। दुनिया में सब जगह खासकर अमेरिका में इन रोगों से पीड़ित लोगों की तादाद बराबर बढ़ रही है
प्रेशर और हाइपर टेंशन जैसे रोग पैदा हो सकते हैं। दुनिया में सब जगह खासकर अमेरिका में इन रोगों से पीड़ित लोगों की तादाद बराबर बढ़ रही है। डॉक्टरों की सलाह है कि नमक का उपयोग कम-सेकम किया जाए और 20 मिलीलीटर से ज्यादा नमक वाले पानी को न पिया जाए। टोरंटो में प्राइवेट कुओं के पानी का जायजा लेने से पता चला है कि आधे से ज्यादा कुओं के पानी में नमक की मात्रा उससे कहीं ज्यादा है। यहां के 20 फीसदी कुओं में एक लीटर पानी में 100 मिलीग्राम और 6 फीसदी में 250 मिलीग्राम तक पाई गई है। सोडियम या क्लोराइड की अधिकता से मानव शरीर के अंदर पानी का संतुलन भी बिगड़ जाता है।
जल स्रोतों में प्रदूषण
सड़क पर नमक के छिड़काव से साफ पानी के स्रोत जैसे नदी, झीलें, तालाब वगैरह भी प्रभावित होते हैं। इनमें सोडियम और क्लोराइड के कण भारी मात्रा में मिलकर पानी में पारा से प्रदूषण फैलाते हैं, जिसकी वजह से पानी का रासायनिक संगठन बदल गया है। सेहत के लिए वह नुकसानदेह साबित हो सकता है। इस प्रदूषण का असर पानी के अंदर जिंदा रहने वाली मछलियों, घोंघों और कछुओं जैसे जीवों पर भी देखा जा रहा है।
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कैलोरी और कैंसर
सलाद में नमक ना बाबा ना
अ
इसमें नमक नहीं मिलाना चाहिए। अगर सलाद में नमक बुरककर खाते हैं तो समझिए, इसमें मिलने वाले पोषक तत्वों को आप खत्म कर देते हैं। फिर ऐसा सलाद लाभकारी न होकर नुकसानदेह है। सलाद में नमक डालकर रख देने से इसमें काफी मात्रा में पानी निकलता है। इसीलिए सलाद को बिना नमक डाले ही खाना चाहिए, तभी इसकी पौष्टिकता बरकरार रहती है। इसी तरह अगर हम दही की बात करें तो इसमें भी कई लोग नमक मिला देते हैं, जबकि ऐसा करना गुणकारी लाभ को खत्म करना माना जाता है।
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अधिक मात्रा में नमक का सेवन करने से शरीर में कैलोरी की मात्रा बढ़ जाती है
सलाद युक्त सब्जियों में पहले से सोडियम होता है, इसीलिए इसमें नमक नहीं मिलाना चाहिए
क्सर खाने की शुरुआत हम सलाद से करते हैं। बाकायदा इसके लिए तैयारी भी की जाती है। कहा जाता है कि सलाद खाने की खूबसूरती बढ़ा देता है, वहीं खाने को पचाने में भी मददगार है। अगर आप सलाद में ये सोचकर नमक छिड़क देते हैं कि इससे स्वाद बढ़ जाएगा तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। डॉक्टरों और अनुसंधानकर्त्ताओं की मानें तो सलाद में नमक डालकर आप इसमें जहर घोलने का काम करते हैं। खानपान विशेषज्ञ बताते हैं कि सलाद युक्त सब्जियों में पहले से सोडियम होता है, इसीलिए
पर्यावरण
रखने के लिए खाने में नमक की मात्रा का संतुलन बनाए रखें।
खा
ने में अगर नमक की मात्रा ज्यादा हो जाए तो खाने का पूरा स्वाद खराब हो जाता है। उसी तरह शरीर में ज्यादा मात्रा में नमक जाने लगे तो यह सेहत को कई तरह से नुकसान पहुंचा सकता है। अधिक मात्रा में नमक का सेवन करने से शरीर में कैलोरी की मात्रा बढ़ जाती है जो कैंसर के जोखिम को काफी बढ़ा देती है। इसके अलावा ज्यादा नमक खाने से सेहत को होते हैं ये चार नुकसानदिल की बीमारियां नमक का ज्यादा सेवन दिल की बीमारियों के खतरे को बढ़ा देता है। इसलिए दिल को सेहतमंद
हाई ब्लडप्रेशर विशेषज्ञों की मानें तो ज्यादा नमक हाई बीपी का कारण बनता है, इसीलिए अपने खाने में नमक कम डालें। अगर कभी भी खाने में नमक कम लगे तो इसे अलग से खाने में डालकर सेवन करने से बचें। डिहाइड्रेशन शरीर में ज्यादा नमक की मात्रा से डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है। शरीर में डिहाइड्रेशन की समस्या न हो, इसके लिए आप नमक की संतुलित मात्रा लेने के साथ भरपूर पानी पिएं। बढ़ा सकता है सूजन शरीर में नमक की मात्रा ज्यादा होने पर पानी जरूरत से ज्यादा जमा हो जाता है। यह स्थिति वाटर रिटेंशन या फ्लूड रिटेंशन कहलाती है। ऐसी स्थिति में हाथ, पैर और चेहरे में सूजन हो जाती है।
नमक की अधिकता की वजह से कई जानवर निडर होने लगे हैं। वे अब आराम से चलते वाहनों के बीच घूमा-फिरा करते हैं। देखा गया है कि वे सड़कों और उनके किनारों पर नमक की तलाश में निकलते हैं
ताजे पानी से निकाली जाने वाली मछलियों की गंध और स्वाद में नमक की वजह से फर्क आ गया है। नमक की बढ़ी हुई मात्रा की वजह से मछली के शरीर में पानी कम पहुंचता है, जिससे मछली अपने बदन में ज्यादा पानी दाखिल करने की कोशिश करती है। ऐसे में उसकी मौत भी हो सकती है। खासकर जब नमक की मात्रा ज्यादा हो जाए। उसी तरह पानी के अंदर रहने वाले कीड़े-मकोड़े भी इस प्रदूषण का शिकार हो सकते हैं। चूंकि यह पानी में रहने वाली बड़ी आबादी के भोजन के रूप में इस्तेमाल होते हैं, इसीलिए उनकी मौत और प्रदूषण भी इनके लिए खतरनाक साबित हो सकती है।
घट सकती है जीवों की संख्या
अंदेशा जाहिर किया जा रहा है कि नमक के इजाफे की वजह से इन जीवों का 75 प्रतिशत हिस्सा जल्द ही प्रभावित हो सकता है। नमक के प्रदूषण से पानी के कीड़े, जिनकी पैदाइश यूं ही कम है, इनकी तादाद रोज-ब-रोज घटती जा रही है, जिसका असर मछलियों की पैदाइश और तादाद पर पड़ना
स्वाभाविक है। भोजन और व्यवसाय की दृष्टि से यह स्थिति सारी दुनिया के लिए चिंता का कारण है।
उर्वरा शक्ति पर प्रभाव
पानी के साथ नमक से पैदा होने वाला प्रदूषण का असर स्थल पर भी देखा जा रहा है। इस पर गौर करने की जरूरत है। मिट्टी की संरचना और जानवरों की सेहत भी इससे प्रभावित हो सकती है। सोडियम क्लोराइड की अधिकता से जमीन की सतह की बनावट में भी फर्क आ सकता है, जिसका असर इसकी पैदावार और उर्वरा शक्ति पर पड़ता है। सोडियम की अधिकता से जमीन बंजर हो जाती है। इसकी वजह से जमीन की अम्लीयता 5.4 से बढ़कर 6.6 तक पहुंच जाती है। कहीं-कहीं जमीन की सतह पर नमक के पहाड़ बन जाते हैं, जिनकी वजह से जमीन की आर्द्रता कम होने लगती है और पानी की कमी होने लगती है। पानी की कमी से जमीन सख्त हो जाती है और उस पर खेती करना मुश्किल हो जाता है। इस प्रकार की भूमि पर की गई खेती से फसल भी प्रदूषित हो जाती है। नमक की ज्यादा मात्रा होने की वजह से
फसल जल्द सूखने लगती है। दबाव ज्यादा होने की वजह से पौधों की जड़ें और पत्तियां मुरझाने लगती हैं। जब पौधे और बड़े होने लगते हैं तो नमक की अधिकता से होने वाला लक्षण स्पष्ट रूप में नजर आने लगता है। मसलन, पत्तियों का जल जाना, फूलों और कोपलों का गिर जाना, रंग-खुशबू और हरियाली में कमी हो जाना। पौधे का तकरीबन 0.5 फीसदी हिस्सा नमक बन जाता है।
जानवरों के स्वभाव में अंतर
यह जानना दिलचस्प है कि ज्यादा नमक का मुकाबला करने की कुव्वत जानवरों में पेड़-पौधों के मुकाबले ज्यादा होती है। अलबत्ता नमक की अधिकता उनके जीवन को प्रभावित तो कर रही है। हिरन, मोर और जंगल के शाकाहारी जानवर जो नमक चाटने के शौकीन होते हैं, वे इस प्रदूषण से और ज्यादा प्रभावित हैं। वे सड़कों के किनारे और यहां-वहां जमे नमकीन पानी पीने के आदी होते जा रहे हैं, जो उनके लिए काफी अस्वास्थ्यकर है। नमक की अधिकता से जानवरों के स्वभाव में भी अंतर आता है और पिछले दो दशकों में किए गए कई शोधों से सामने आया यह प्रमाणित तथ्य है। नमक की अधिकता से कई जानवर निडर होने
लगे हैं। वे अब आराम से चलते वाहनों के बीच घूमा-फिरा करते हैं। देखा गया है कि वे सड़कों और उनके किनारों पर नमक की तलाश में निकलते हैं। नमक की अधिकता से उन जानवरों को गुर्दे की समस्या, दिमाग सुन्न होना वगैरह बीमारियां बढ़ गई हैं, जिस कराण अक्सर उनकी मौत भी हो जाती है। खरगोश खासतौर पर इस तरह के प्रदूषण का शिकार होते हैं, क्योंकि वे ज्यादा नमक चाटने से बाज नहीं आते। यही हाल पालतू जानवरों का है। मसलन, कुत्ते, बिल्लियां। जब वे घर से बाहर निकलते हैं तो उनके पैरों में नमक लग जाता है, जिसे वे पैर साफ करते वक्त चाटते रहते हैं। साफ है कि नमक की अधिकता जहां एक तरफ पर्यावरण को नए तरीके से प्रदूषित कर रही है, वहीं यह जीव-जंतुओं के शरीर में पहुंचकर उन्हें बीमार और मौत का शिकार बना रहा है।
नमक के प्रदूषण पर रोक
पानी से नमक को निकालना वक्त की अहम जरूरत है। इसके लिए इलेक्ट्रोड्स जिनमें बहुत बारीक रेशे लगे हों, उनको उपयोग में लाया जा सकता है। इसमें बिजली का खर्च भी कम होता है और नमकीन पानी को पीने के लायक बनाया जा सकता है।
26 स्वास्थ्य
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
एप्प निर्माण
मूक-बधिरों के लिए बन रहा है एप्प मूक-बधिर बच्चों को सुनने और बोलने लायक बनाने में जुटे डॉ. सोमेश्वर सिंह अपनी टीम के साथ इनके लिए एक एप्प विकसित कर रहे हैं
एक नजर
कॉकलीयर इम्प्लांट के विशेषज्ञ हैं डॉ. सोमेश्वर सिंह अब तक तीन सौ सफल इंप्लांट सर्जरी कर चुके हैं 2 से 3 साल की उम्र में होता है कॉकलीयर इम्प्लांट
मां
प्रियंका तिवारी
की आवाज सुन कर बच्चे खुशी से किलकने लगते हैं और उसकी मां खुशी से झूम उठती है, लेकिन ऐसे भी कई बच्चे होते हैं, जो न तो अपनी मां की आवाज सुन पाते हैं और न ही खुशी से किलकारियां भर पाते हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है, उन माताओं के दुख का जिनके बच्चे इस किस्म की बीमारी से ग्रस्त होते हैं। ऐसी माओं और बच्चों के दुख को डॉ. सोमेश्वर सिंह ने महसूस किया और इंग्लैंड की अपनी शानदार नौकरी छोड़ कर भारत वापस आ गए और जुट गए बच्चों की गुम आवाज वापस लाने की मुहिम में। एक दो नहीं, बल्कि अब तक तीन सौ बच्चों को वे इस लायक बना चुके हैं कि वे अपनी मां की आवाज सुन सकें और खुश हो सकें। अपनी मुहिम में लगे डॉ. सोमेश्वर सिंह को न धन की चिंता है और न किसी दूसरे चीज की, उनकी चिंता सिर्फ यही है कि देश का कोई भी बच्चा मूक बधिर न रहे। सब बोलें, सब सुनें, इसी मूल मंत्र के सहारे डॉ. सोमेश्वर सिंह दिन रात काम में जुटे हुए हैं। देश के टॉप कॉलेज से अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने
के बाद इंग्लैंड में मिली नौकरी उन्हें रास नहीं आई, कारण यह कि वे अपने देश से दूर नहीं रहना चाहते थे। इसीलिए वे नौकरी छोड़कर भारत आ गए और एक अमेरिकी संस्था से जुड़ कर लोगों का इलाज करने लगे। आज डॉ. सोमेश्वर सिंह भारत सरकार के प्रोत्साहन पर कम सुनने और बोलने वाले बच्चों व लोगों के लिए एक एप्प बना रहे हैं। डॉ. सोमेश्वर सिंह ने कहा कि भारत में बच्चों से लेकर बुजुर्गों में कम सुनने या बिल्कुल भी नहीं सुनने की समस्या ज्यादा है। इसका मुख्य कारण लोगों में जागरुकता ही कमी है। इस बीमारी से समय रहते ही निजात मिल सकता है, लेकिन इसके लिए सरकार के साथ लोगों को भी जागरुक होने की आवश्यकता है। जब तक लोग जागरुक नहीं होंगे, तब तक हमें इस बीमारी से पूरी तरह निजात नहीं मिल पाएगी। उन्होंने बताया कि उनका स्पेशलाइजेशन ‘कॉकलीयर
इम्प्लांट’ में है। 2009-10 में भारत में कॉकलीयर इम्प्लांट बहुत कम होता था। कॉकलीयर इम्प्लांट पर हमने लंदन में काफी रिसर्च किया है और मुझे हमेशा से लगता था कि मै इस क्षेत्र में बेहतर कर सकता हूं। भारत में बहुत से बच्चे ऐसे पैदा होते हैं जो सुन नहीं पाते, जिससे वह बहरे होने के साथ ही साथ गूंगे भी हो जाते हैं। कॉकलीयर इम्प्लांट पर कम से कम 7 से 8 लाख रुपए और ज्यादा से ज्यादा 15 से 16 लाख रुपए खर्च होते हैं। क्योंकि कॉकलीयर इम्प्लांट 2 से 3 साल की उम्र में होता है, तो बच्चों को बोलने में दिक्कत नहीं होती है, लेकिन यही ट्रीटमेंट 5 से 6 साल के बीच होता है तो बच्चे अपने बोलने की क्षमता खो देते हैं। इसके लिए हम एक एप्प बनाने के लिए रिसर्च कर रहे हैं, जिसके लिए भारत सरकार ने हमारी बहुत मदद की है। भारत सरकार ने मुझ पर और मेरी टीम पर भरोसा दिखाया है। रिसर्च सफल रहा तो एक साल
अब भारत में भी कॉकलीयर इम्प्लांट सर्जरी हो रही है और इसके लिए भारत सरकार भी लोगों की मदद कर रही है। हम बच्चे की स्थिति देखकर पता कर लेते हैं कि ऑपरेशन कितना सफल होगा
में हम इस एप्प को विकसित कर लेगें। उन्होंने कहा कि मैंने मेडिकल और साइंस को चुना, क्योंकि मैं पढ़ने वाला छात्र था। मेरी फैमिली में सभी लोग जस्टिस रहे हैं, इसके बावजूद मैंने एक अलग रास्ता चुना, मुझ पर किसी भी तरह का कोई दवाब नहीं था। क्योंकि मुझे हमेशा से यही लगता है कि जिस काम को करने में आपका जमीर साथ दे, उसे करना चाहिए। हमने हमेशा अपने मन की आवाज सुनी और वही किया जो समाज के हित में था। डॉ. सिंह ने कहा कि मेरे लिए पैसा कमाना कभी भी मुद्दा नहीं रहा, लेकिन आजकल के डॉक्टर या प्राइवेट हॉस्पिटल में पैसा कमाने की होड़ लगी हुई है। आजकल कॉरपोरेट सेक्टर के लोगों ने ऐसी ही नीति बना ली है, जिसमें जो डॉक्टर जितना ज्यादा ऑपरेशन करेगा उसे उतना ज्यादा पैसे मिलेंगे। इस चक्कर में गरीबों के साथ अन्याय हो रहा है। मैं भारत सरकार का शुक्रगुजार हूं कि वह इस क्षेत्र में जागरुकता फैलाने का कार्य कर रही है। अब कॉकलीयर इम्प्लांट सरकारी हॉस्पिटल्स में भी होने लगा है, लेकिन अभी भी वहां पूर्ण व्यवस्था नहीं है। अब भारत सरकार बहुत कुछ कर रही है और लोगों को कॉकलीयर इम्प्लांट फ्री में उपलब्ध करा रही है। हमने अब तक लगभग 300 से ज्यादा बच्चों का ऑपरेशन किया है और भगवान की कृपा से सभी सफल रहे हैं। इसके लिए हमें संस्थाओं से भी बहुत मदद मिली। अब भारत में भी कॉकलीयर इम्प्लांट सर्जरी हो रही है और इसके लिए भारत सरकार भी लोगों की मदद कर रही है। हम बच्चे की स्थिति देखकर पता कर लेते हैं कि ऑपरेशन कितना सफल होगा। इस ऑपरेशन से सुनने की क्षमता तो ठीक हो जाती है, लेकिन बोलने कि क्षमता ठीक नहीं हो पाती है। क्योंकि भारत में यह ऑपरेशन ज्यादातर 3 से 5 साल के बीच में होती है। यदि जन्म के समय ही माता पिता बच्चे को हमारे पास ले आएं तो समय रहते इसका इलाज हो सकता है। बच्चों के जन्म के समय ही इस बात का पता चल जाता है कि बच्चे को क्या समस्या है। भारत में जहां जरूरत है, वहां स्क्रीनिंग नहीं होती है। इसीलिए यह दर बढ़ती जा रही है।
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
औषधीय उत्पाद
‘ट्रिटिकल’ गेहूं से मधुमेह व हृदय रोग पर रोक
‘ट्रिटिकल’ गेहूं में पाए जाने वाले फाइबर सेहत के साथ स्वाद के लिहाज से भी बेहतर साबित होगा
स्वास्थ्य
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स्वास्थ्य शोध
नुकसानदायक एंटीबायटिक्स इटली में हुए एक शोध से पता चला है कि एंटीबायटिक दवाएं पर्यावरण के अनुकूल नहीं हैं
का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार एंटीबायटिक के बैक्टीरिया संक्रमण से सुरक्षा और
खा
नपान से ही रोगों को दूर करने के प्रयास में जुटे कानपुर स्थित चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) ने एक अहम सफलता हासिल की है। यहां की महिला कृषि विज्ञानी ने राई से मिलकर बनी गेहूं की नई प्रजाति ‘ट्रिटिकल’ से औषधीय उत्पाद तैयार किए हैं, जो लोगों को मधुमेह और हृदय रोग से बचाएंगे। ट्रिटिकल गेहूं में फाइबर, ग्लाइसेमिक इंडेक्स व प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाए जाने के कारण यह सेहत के लिए लाभदायक है। सीएसए में इस प्रजाति के बीज विकसित किए जा रहे हैं। औषधीय उत्पादों का अभी व्यावसायिक उत्पादन शुरू नहीं हुआ है। विश्वविद्यालय में खाद्य विज्ञान एवं पोषण विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ.सीमा सोनकर ने इससे मेडिकेटेड ड्रिंक पाउडर और नॉन मेडिकेटेड ड्रिंक पाउडर बनाया है। उन्होंने इसी माह इन दोनों उत्पादों पर अपना शोध पत्र भी जर्मनी के गटिंगेन विश्वविद्यालय में प्रस्तुत किया है। ट्रिटिकल गेहूं सेहत और स्वाद, दोनों कसौटियों पर बेहतर साबित होगा। इसमें पेट व आंतों के लिए फायदेमंद फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है। यह कोलेस्ट्रोल पर
नियंत्रण रखने के कारण दिल की बीमारियों के लिए लाभदायक है।
क्या है ट्रिटिकल गेहूं
राई और गेहूं की क्रास वैरायटी ‘ट्रिटिकल’ है। दोनों के जीन को मिलाकर विकसित की गई ट्रिटिकल गेहूं की प्रजाति मैनमेड सेरियल (मानव निर्मित प्रजाति) भी कहलाती है। भारत में इसके उत्पादन के साथ इस प्रजाति को बढ़ावा दिया जा रहा है। देश में एस्टीवम, ड्यूरम व ट्रिटिकल तीन तरह के गेहूं का उत्पादन किया जाता है। एस्टीवम के अंतर्गत सामान्य गेहूं की प्रजातियां आती हैं, जबकि ड्यूरम में
राई और गेहूं की क्रास वैरायटी ‘ट्रिटिकल’ है। दोनों के जीन को मिलाकर विकसित की गई ट्रिटिकल गेहूं की प्रजाति मैनमेड सेरियल (मानव निर्मित प्रजाति) भी कहलाती है
कम सिंचाई वाली प्रजातियां विकसित की जाती हैं। ट्रिटिकल संकर किस्म की प्रजाति है।
ऐसे करता है काम
ट्रिटिकल गेहूं और इससे बने उत्पाद मधुमेह से प्रभावित लोगों के लिए बेहतर हैं, क्योंकि इसमें ग्लाइसेमिक इंडेक्स 50 से 55 नंबर होता है। ट्रिटिकल गेहूं से बने उत्पाद शरीर में धीमी गति से अवशोषित होते हैं और फाइबर होने के कारण तेजी से पच जाते हैं। इनके सेवन से न केवल ब्लड शुगर का स्तर धीमी गति से बढ़ता है, बल्कि इंसुलिन का स्तर भी नियंत्रित रहता है।
उनसे होने वाले रोगों को दूर करने में किया जाता है, लेकिन एक अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि यह एक स्वस्थ वातावरण के लिए जरूरी रोगाणुओं को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। इस शोध के अनुसार, यह महत्वपूर्ण रूप से पूरे विश्व के लोगों के जीवन पर असर डाल सकते हैं। जब लोग एंटीबायटिक दवाइयां लेते हैं, तो शरीर में दवाओं के केवल एक हिस्से का मेटाबॉलिज्म होता है, बाकी बाहर निकल जाता है। चूंकि अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र को एंटीबायटिक या अन्य दवा संयुग्मों को पूरी तरह से हटाने के लिए डिजाइन नहीं किए जाते हैं, इसीलिए इनमें से कई यौगिक प्राकृतिक प्रणालियों तक पहुंच जाते हैं जहां वे 'अच्छे' रोगाणुओं को भी नुकसान पहुंचाते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि यह चिंता वाली बात है, क्योंकि पर्यावरण में पाए जाने वाले कई सूक्ष्मजीवों की प्रजातियां लाभकारी होती हैं, जो पोषक तत्वों के प्राकृतिक चक्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इटली में ‘नेशनल रिसर्च काउंसिल’ के ‘वॉटर रिसर्च इंस्टीट्यूट की माइक्रोबॉयल इकोलॉजिस्ट’ पाओला ग्रेनिनी ने कहा, 'एंटीबायॉटिक दवाओं की मात्रा बहुत ही कम है- सामान्य रूप से प्राकृतिक वातावरण में पाए जाने वाले अणु प्रति लीटर में प्रति नैनोग्राम होते हैं, लेकिन एंटीबायटिक्स और अन्य दवाएं कम कॉन्सनट्रेशन में भी प्रभाव डाल सकती हैं, जिसके फलस्वरूप पर्यावरणीय दुष्प्रभाव सामने आ सकते हैं।' यह शोध 'माइक्रोकेमिकल जर्नल' में प्रकाशित हुआ है। (एजेंसी)
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प्रो. यशपाल (26 नवंबर,1926 - 24 जुलाई, 2017)
विज्ञान का ‘टर्निंग प्वाइंट’
विज्ञान की दुरूहता को काव्य की सरसता की तरह देखने और इसको इसी रूप में लोगों के बीच प्रसार करने के हिमायती थे प्रो. यशपाल
गि
एसएसबी ब्यूरो
रिश कर्नाड और उनके साथ प्रो. यशपाल। एक ख्यातिलब्ध अभिनेता तो दूसरा जाना-माना वैज्ञानिक। पर ये दोनों साझे तौर पर नब्बे के दशक के युवाओं की स्मृति में इस तरह बस गए कि उन्हें वे अपने रोल मॉडल की तरह देखने लगे। दरअसल, हम बात कर रहे हैं दूरदर्शन पर लंबे समय तक प्रसारित होने वाले कार्यक्रम ‘टर्निंग प्वाइंट’ की। यह कार्यक्रम देश में टीवी के विकास और प्रचलन के उस दौर की भी याद दिलाता है, जब दूरदर्शन श्याम-श्वेत से धीरे-धीरे रंगीन हो रहा था। इस कार्यक्रम के प्रस्तोता तो थे गिरिश कर्नाड पर इसमें एक विशेषज्ञ के तौर पर प्रो. यशपाल शामिल होते थे। 30 मिनट के इस कार्यक्रम में विज्ञान और गणित की कई समस्याओं और समीकरणों को वे दिलचस्प तरीके से बताते-समझाते थे। नब्बे साल की उम्र में जब प्रो. यशपाल के देहांत की खबर आई तो लोगों ने देश के इस महान वैज्ञानिक और शिक्षाविद को याद करते हुए इस कार्यक्रम को भी खूब याद किया। लोगों ने याद किया उस दौर में कैसे प्रो. यशपाल टीवी स्टुडियो में बैठकर लोगों को सूर्यग्रहण के बारे में बताते थे और कहते थे कि यह प्रकृति की विलक्षण घटना है, इसे देखें-समझें, न कि इस नाम पर किसी तरह की पोंगापंथी दिखाएं। करीब पांच साल पहले फेफड़े के कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी को मात देने वाले प्रोफेसर यशपाल का जन्म 1926 में अविभाजित भारत के झांग जिले (अब पाकिस्तान का हिस्सा) में हुआ था। उन्होंने 1949 में पंजाब विश्वविद्यालय ने फिजिक्स में स्नातक डिग्री ली। इसके बाद 1958 में अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से हाईएनर्जी फिजिक्स, एस्ट्रोफिजिक्स, कम्युनिकेशन, साइंस पॉलिसी और स्पेस टेक्नोलॉजी में पीएचडी की। कॉस्मिक रेज पर उनके अध्ययन ने उन्हें ख्याति दिलाई। नब्बे के दशक में उन्होंने दूरदर्शन को जरिया बनाकर युवाओं के बीच विज्ञान की समझ और उसको लेकर ललक पैदा करने का बड़ा कार्य किया। वे मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के प्रमुख रहे। इसके अलावा 1973 से 1981 तक करीब नौ साल अहमदाबाद के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के निदेशक रहे। इसी दौरान उन्हें 1976 में पद्म भूषण आैर
परिघटना का नाम है। आइंस्टीन मानते थे कि काम कलाकार का हो या वैज्ञानिक का, दोनों के लिए अंतर्दृष्टि होनी जरूरी है। उनका यह भी कहना था कि अंतर्दृष्टि गणित और तर्क की चौहद्दी से बाहर की चीज है, अंतर्दृष्टि हमेशा हृदय से उठने वाली प्रेरणा की देन होती है, इसे अंतर्बोध कहा जा सकता है। आइंस्टीन का एक और भी मशहूर कथन है, 'कल्पना ज्ञान से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।'
कविता और विज्ञान
नब्बे के दशक में प्रो. यशपाल ने दूरदर्शन को जरिया बनाकर युवाओं के बीच विज्ञान की समझ और उसको लेकर ललक पैदा करने का बड़ा कार्य किया 2013 में पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। उन्हें आगे चलकर योजना आयोग का मुख्य सलाहकार नियुक्त किया गया. इस पद पर वे 198384 के बीच रहे। केंद्र सरकार के विज्ञान एवं तकनीक विभाग में सचिव के तौर पर भी उन्होंने दो साल (1984-86) काम किया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। इस दौरान उन्होंने शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के मकसद से कई नएनवेले कार्यक्रम शुरू किए।
आइंस्टीन जैसी समझ
'हर महान वैज्ञानिक खुद में एक कलाकार भी होता है।' बीसवीं सदी के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों में शुमार
आइंस्टीन का यह कथन बड़ा मशहूर है। जिंदगी भर विज्ञान को लोगों के बीच ले जाने के अपने संकल्प से बंधे प्रो. यशपाल को आइंस्टीन की यह पंक्ति बहुत पसंद थी। बातचीत में अक्सर वे सामने वाले को यह पंक्ति किसी ना किसी बहाने से सुनाते थे। विज्ञान की किवदंति बन चुके आइंस्टीन के बारे में यह भी कहा जाता है कि वे पियानो और वायलिन किसी सधे कलाकार की तरह बजाते थे। प्रो. यशपाल का वायलिन, पियानो या फिर वीणा अथवा संतूर बजाना तो प्रसिद्ध नहीं है, लेकिन उनके व्यक्तित्व और काम को समझने के लिए ‘वैज्ञानिक कलाकार’ की यह कसौटी बड़ी कारगर साबित हो सकती है, क्योंकि प्रो. यशपाल किसी एक व्यक्ति का नाम ही नहीं, बल्कि कई भूमिकाओं को साकार करने वाली एक
प्रो. यशपाल भी कुछ ऐसी ही समझ और मान्यता वाले वैज्ञानिक थे। उनकी मानें तो कविता करते हुए विज्ञान तक पहुंचा जा सकता है और विज्ञान तक पहुंचना वैसा ही है, जैसे किसी कविता को रचना। दोनों सब कुछ में सब कुछ को मिलाने की एक कीमियागरी है। उनकी नजर में कल्पना और ज्ञान आपस में विरोधी नहीं, बल्कि जिज्ञासा के दो अलग-अलग छोर हैं। इसी नजरिए से वे कहते थे कि शिक्षा का उद्देश्य अलग से कुछ सिखाना नहीं, बल्कि जिज्ञासा को बचाए रखने का होना चाहिए क्योंकि मनुष्य स्वाभाविक रूप से जिज्ञासु होता है, प्रयोग करते हुए सीखता है और प्रयोग करते हुए सीखने के क्रम में जान लेता है कि सूरज, चांद, सितारे या यह पूरी कायनात आपस में अलग-अलग नहीं, बल्कि सब कुछ बड़े विचित्र तरीके से एक-दूसरे से गूंथा-बिंधा है। हर कुछ के हर कुछ से जुड़े होने के इसी भाव को प्रो. यशपाल आध्यात्मिकता कहते थे। वे वैज्ञानिक, नीति-निर्माता, प्रबंधक और प्रबोधक सब कुछ एक ही साथ थे। वे पूरी गंभीरता के साथ योजना आयोग के सदस्यों के बीच उच्च शिक्षा संबंधी अपनी सोच का साझा कर सकते थे और पूरे उत्साह से बच्चों के बीच सूर्यग्रहण का रहस्य बता सकते थे। देश के लिए नीति-निर्माण की उनकी गंभीरता को सृष्टि के रहस्य समझाने के उनके उत्साह से अलग करके नहीं देखा जा सकता।
‘सरफेस टेंशन’
1995 के 21 नवंबर को देश में दैवीय चमत्कार का हल्ला मचा। टीवी सेट्स पर हड़कंप मचाने के अंदाज में आ रहे समाचारों के जरिए घर-घर में लोग जान गए कि भगवान गणेश की प्रतिमा दूध पीने का चमत्कार कर रही है। चमत्कार को नमस्कार करने
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017 के अंदाज में दंडवत बैठे देश को मानस को उस वक्त पूरे साहस के साथ प्रो. यशपाल ने बताया कि मामला किसी तरल-पदार्थ पर स्वाभाविक रूप से काम करने वाले एक बल ‘सरफेस टेंशन’ का है। इसी बल के कारण पानी की बूंद बहुधा नलके से सटी रहती है और हाथ से छूते ही नीचे टपक पड़ती है। पाखंड की पोल खोलने के प्रो. यशपाल के इस साहस की कहानी तब तक पूरी नहीं होती जब तक आप यह न याद कर लें कि उम्र के पूरे 35 साल टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में कॉस्मिककिरणों और उच्च-ऊर्जा संबंधी भौतिकी पर काम करने वाले इस वैज्ञानिक के भीतर एक हमेशा एक सचेत नागरिक मौजूद रहा। ऐसा नागरिक जो लोककल्याण की भावना से आस-पास घट रही घटनाओं की परीक्षा करता है और कोई चीज लोक-कल्याण के लिहाज से घातक हो तो संविधान प्रदत्त तमाम उपायों का सहारा लेकर उसे रोकने की कोशिश करता है।
उच्च शिक्षा की चिंता
यह प्रो. यशपाल ही थे जिनकी नजर गई कि राज्यों ने प्राइवेट यूनिवर्सिटी बिल का माखौल बना रखा है। राज्यों में अजब-गजब नाम के निजी विश्वविद्यालय खुल रहे हैं, गैराज बनाने-चलाने से लेकर जूतों की मरम्मती और डिजाइनिंग तक विचित्र डिग्रियां थोक के भाव से छात्रों में बांटी जा रही हैं और उच्च शिक्षा की ये निजी दुकानें नियामक संस्था यूजीसी के नियमों की धज्जियां उड़ा रही हैं। उनकी ही अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने 2005 की फरवरी में फैसला सुनाया था कि छत्तीसगढ़ प्राइवेट सेक्टर यूनिवर्सिटी एक्ट (2002) के तहत बने निजी विश्वविद्यालय बंद किए जाएं। उच्च शिक्षा की बेहतरी के लिए किए गए उनके कुछ कार्य तो ऐतिहासिक महत्व के हैं। उनकी अध्यक्षता में बनी उच्च शिक्षा संबंधी समिति की रिपोर्ट की शुरुआत में ही कहा गया है, ‘हमने गुजरे सालों में उच्च शिक्षा को अलग-अलग खानों में बांट दिया है, जबकि नया ज्ञान हमेशा एक से ज्यादा विषयों के संधि-स्थल पर पैदा होता है। उच्च शिक्षा के ऐसे विधान ने कल्पना की हमारी उड़ान को सीमित किया है और नया रच पाने की हमारी क्षमता में कमी आई है।’ इस समिति ने सिफारिश की कि तमाम किस्म की शिक्षा को समग्र नजरिए से देखना होगा। पेशेवर शिक्षा को सामान्य शिक्षा से अलग करके देखने की रीत छोड़नी होगी। उच्च शिक्षा की तमाम संस्थाएं, चाहे वह चिकित्सा की हों या फिर कृषि-विज्ञान की, कानून की हों या फिर प्रबंधन की- सब को एक ही नियामक संस्था के अंतर्गत बनाया और चलाया जाना चाहिए। इसी तरह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के रूप में उनकी भरसक कोशिश रही कि उच्च शिक्षा में व्याप्त विषयों की खेमेबंदी को खत्म किया जाए। इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर्स, एकेडमिक स्टॉफ कॉलेज और मीडिया इन्फॉरमेशन एंड लाइब्रेरी नेटवर्क ऐसी ही कोशिशों के मूर्त रूप हैं। देश अपने इस महान वैज्ञानिक को याद रखे उससे ज्यादा जरूरी है कि वह ज्ञान को सुलभ बनाने और शिक्षा व्यवस्था को व्यावहारिक बनाने की उनकी कोशिशों को एक लीक की तरह और आगे बढ़ाए।
वित्त
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वित्तीय शुचिता
तीन वर्षों में पकड़ी गई हजारों करोड़ की अघोषित आय कें
भ्रष्टाचार मुक्त देश बनाने की दिशा में सरकार के प्रयासों से 72 हजार करोड़ की अघोषित आय का खुलासा हुआ
द्र की कमान संभालने के बाद देश के प्रधानमंत्री का यह संकल्प सबको याद है,‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा।’ तीन वर्षों से सरकार इसी संकल्प के सहारे भ्रष्टाचारमुक्त देश बनाने की दिशा में कार्य कर रही है। इस संकल्प को पूरा करने में आयकर विभाग पूरी तरह सक्रिय है। बेनामी संपत्ति के मामले में देश भर में कार्रवाई जारी है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी है कि उसने सघन खोज, जब्ती और छापे में करीब 71,941 करोड़ रुपए की ‘अघोषित आय’ का पता लगाया है। वित्त मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में बताया है कि बीते तीन सालों के दौरान विभाग ने 2 हजार से ज्यादा कंपनियों पर छापे मारे गए, जिसमें 36,051 करोड़ रुपए से अधिक की अघोषित आय का पता चला। इसके अतिरिक्त करीब 2890 करोड़ रुपए की अघोषित संपत्ति भी जब्त की गई। शपथ पत्र में 1 अप्रैल 2014 से 28 फरवरी 2017 तक की जानकारी दी गई है। इसमें यह भी कहा गया है कि तीन साल के दौरान आयकर विभाग ने 2027 समूहों की तलाशी ली। 9 नवंबर से 10 जनवरी तक नोटबंदी के दौरान 5400 करोड़ की अघोषित आय जमा हुई। इसमें 3 सौ किलो से ज्यादा सोना जब्त हुआ। नोटबंदी के दौरान आयकर विभाग ने 1100 सर्चिंग-सर्वे और 5100 वेरिफिकेशंस किए। इस कार्रवाई के कारण 610 करोड़ की संपत्ति जब्त की गई, जिसमें 513 करोड़ का नकद शामिल है। पिछले साल नंवबर और दिसंबर में क्रमश: 147.9 करोड़ और 306.89 करोड़ रुपए जब्त किए गए। इस दौरान नवंबर में 69.1 और दिसंबर में 234.26 किलोग्राम सोना भी जब्त किया गया। छानबीन के बाद बाद 400 मामले प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई के पास जांच के लिए भेजे गए हैं।
पीएम मोदी ने चार्टर्ड अकाउंटेंट्स को दी थी चेतावनी पीएम मोदी ने जुलाई के पहले हफ्ते में चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) के एक कार्यक्रम में नोटबंदी के बाद सीए के रोल पर सवाल खड़े किए थे। उन्होंने चार्टर्ड अकाउंटेंट्स को समझाया फिर सही रास्ते पर आने की हिदायत भी दी थी। उन्होंने कहा भी था कि देश के लाखों
चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) और तीन लाख रजिस्टर्ड कंपनियां आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के रडार पर हैं।
9 लाख कंपनियां कारोबार की जानकारी नहीं देती
दरअसल, देश में 9 लाख ऐसी कंपनियां हैं जो सरकार को अपने सालाना कारोबार की कोई जानकारी नहीं देती है। एक जानकारी के अनुसार देश में इस वक्त 15 लाख कंपनियां रजिस्टर्ड हैं, पर सिर्फ 6 लाख ही ऐसी कंपनियां है जो अपना टैक्स रिटर्न फाइल करती हैं। इसके साथ ही इन 6 लाख में से 3 लाख कंपनियां ऐसी हैं जो अपनी सालाना आय शून्य दिखाती हैं। मोदी सरकार मानती है कि देश के लाखों चार्टर्ड अकाउंटेंट्स इन कंपनियों के कालेधन को सफेद करते हैं।
चार्टर्ड अकाउंटेंट्स को पीएम मोदी का ‘झटका’
देश के कई चार्टर्ड अकाउंटेंट्स पर आरोप हैं कि पिछले पांच साल में ही लगभग 30 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कालाधन सफेद कर दिया गया। जाहिर है ऐसे में चार्टर्ड अकाउंटेंट्स
की भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इसी सिलसिले में पीएम मोदी ने पहल की है और अब मुखौटा कंपनियों की कथित रूप से मदद करने को लेकर कम से कम 26 चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट ऑफ इंडिया (आईसीएआई) की जांच के घेरे में है। आईसीएआई अकाउंटेंसी फ्रफेशनल्स के लिए रेग्युलेटर है और गड़बड़ी करने वाले सदस्यों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकता है।
11 सालों में केवल 25 चार्टर्ड अकाउंटेंट्स को मिली सजा
आईसीएआई के अनुसार कई चार्टर्ड अकाउंटेंट्स मुखौटा कंपनियां बनाने से लेकर अवैध रकम को सफेद करने का काम करते हैं। इस कारण देश के राजस्व को बड़ा नुकसान पहुंचता है। पीएम मोदी के आह्वान के बाद कई चार्टर्ड अकाउंटेंट्स आईसीएआई के रडार पर हैं। ऐसे में इनके निलंबन से लेकर पंजीकरण रद्द करने की कार्रवाई तक हो सकती है। हालांकि एक तथ्य यह भी है कि पिछले 11 सालों में महज 25 चार्टर्ड अकाउंटेंट्स को ही नियमों के उल्लंघन के मामले में सजा मिली है।
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कि
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
सी जमाने में एक चोर था। वह बड़ा ही चतुर था। लोगों का कहना था कि वह आदमी की आंखों से काजल तक चुरा सकता था। एक दिन उस चोर ने सोचा कि जब तक वह राजधानी में नहीं जाएगा और अपना करतब नहीं दिखाएगा, तब तक चोरों के बीच उसकी धाक नहीं जमेगी। यह सोचकर वह राजधानी की ओर रवाना हुआ और वहां पहुंचकर उसने यह देखने के लिए नगर का चक्कर लगाया कि वह कहां क्या कर सकता है? उसने तय कि कि राजा के महल से अपना काम शुरू करेगा। राजा ने रात-दिन महल की रखवाली के लिए बहुत से सिपाही तैनात कर रखे थे। बिना पकड़े गए परिंदा भी महल में नहीं घुस सकता था। महल में एक बहुत बड़ी घड़ी लगी थी, जिसमें घंटे बजते थे। चोर ने लोहे की कुछ कीलें इकट्ठी कीं और जब रात को घड़ी ने बारह बजाए तो घंटे की हर आवाज के साथ वह महल की दीवार में एक-एक कील ठोकता गया। इस तरह बिना शोर किए उसने दीवार में बारह कीलें लगा दीं, फिर उन्हें पकड़पकड़ कर वह ऊपर चढ़ गया और महल में दाखिल हो गया। इसके बाद वह खजाने में गया और वहां से बहुत से हीरे चुरा लाया। अगले दिन जब चोरी का पता लगा तो मंत्रियों ने राजा को इसकी खबर दी। राजा बड़ा हैरान और नाराज हुआ। उसने मंत्रियों को आज्ञा दी कि शहर की सड़कों पर गश्त करने के लिए सिपाहियों की संख्या दोगुनी कर दी जाए और अगर रात के समय किसी को भी घूमते हुए पाया जाए तो उसे चोर समझकर गिरफ्तार कर लिया जाए। जिस समय दरबार में यह एेलान हो रहा था, नागरिक के वेश में वह चोर मौजूद था। उसे सारी
चोर और राजा
योजना की जानकारी मिल गई। उसे यह भी मालूम हो गया कि कौन से छब्बीस सिपाही शहर में गश्त के लिए चुने गए हैं। वह घर गया और साधु का बाना धारण करके उन छब्बीसों सिपाहियों की बीवियों से जाकर मिला। उनमें से हरेक यह चाहती थी कि उसका पति ही चोर को पकड़े ओर राजा से इनाम ले। एक एक करके चोर उन सबके पास गया और उनका हाथ देखकर बताया कि रात उसके लिए बहुत शुभ है। पति की पोशाक में चोर उसके घर आएगा, लेकिन, देखो, चोर को अपने घर के अंदर मत आने देना, नहीं तो वह तुम्हें पकड़ लेगा। घर के सारे दरवाजे बंद कर लेना और भले ही वह पति की आवाज में बोलता सुनाई दे, लेकिन उसे भगाने के लिए उसके ऊपर जलता कोयला फेंकना। इसका नतीजा यह होगा कि चोर पकड़ में आ जाएगा। सारी स्त्रियां रात को चोर के आगमन के लिए तैयार हो गईं। अपने पतियों को उन्होंने इसकी जानकारी नहीं दी। इस बीच सबके पति गश्त पर चले गए और सवेरे चार बजे तक पहरा देते रहे। हालांकि अभी अंधेरा ही था, लेकिन उन्हें उस समय तक इधर उधर कोई भी दिखाई नहीं दिया, तो उन्होंने सोचा कि अब चोर नहीं आएगा, यह सोचकर उन्होंने घर लौटने का फैसला किया। ज्यों ही वे घर पहुंचे, उनकी पत्नियों को संदेह हुआ और चोर जो उन्हें समझा गया था, वह सब काम वे करने लगीं। नतीजा यह हुआ कि सारे सिपाही जल गए। वे बड़ी मुश्किल से अपनी पत्नियों को विश्वास दिला पाए कि वे ही उनके असली पति हैं और उनके लिए दरवाजा खोल दिया जाए। दूसरे दिन राजा दरबार में आया तो उसे सारा हाल सुनाया गया। सुनकर राजा बहुत चिंतित हुआ और उसने कोतवाल को आदेश दिया कि वह स्वयं जाकर चोर पकड़े।
कोतवाल ने शहर में पहरा देना शुरू किया। जब वह एक गली में जा रहा रहा था, चोर ने उससे कहा, ‘मैं चोर हूं।’ कोतवाल ने कहा, ‘मजाक छोड़ो अगर तुम चोर हो तो मेरे साथ आओ। मैं तुम्हें काठ में डाल दूंगा।’ चोर बोला, ‘ठीक है। इससे मेरा क्या बिगड़ेगा’ और वह कोतवाल के साथ चलने लगा। चोर ने कोतवाल से पूछा, ‘कोतवाल साहब, इस काठ का आप इस्तेमाल कैसे करते हैं, मेहरबानी करके मुझे समझा दीजिए।’ कोतवाल ने कहा, ‘तुम्हारा क्या भरोसा! मैं तुम्हें बताऊं और तुम भाग जाओ तो ?’ चोर बोला, ‘आपके बिना कहे मैंने अपने को आपके हवाले कर दिया है। मैं भाग क्यों जाऊंगा?’ कोतवाल उसकी बात मान गया और ज्यों ही उसने अपने हाथ-पैर काठ में डाले चोर ने झट चाबी घुमाकर काठ का ताला बंद कर दिया और वहां से चला गया। सवेरे सिपाहियों ने कोतवाल को काठ से निकाला। राजा ने आखिरकार खुद चोर की निगरानी करने का निश्चय किया। चोर उस समय दरबार में मौजूद था और सारी बातों को सुन रहा था। रात होने पर उसने साधु का वेश बनाया और नगर के सिरे पर एक पेड़ के नीचे बैठ गया। राजा दो बार साधु के सामने से गुजरा। तीसरी बार जब वह उधर आया तो उसने साधु से पूछा कि क्या इधर से किसी अजनबी आदमी को जाते उसने देखा है? साधु ने जवाब दिया, ‘वह तो ध्यान में था, अगर उसके पास से कोई निकला भी होगा तो उसे पता नहीं। यदि आप चाहें तो मेरे पास बैठ जाइए और देखते रहिए कि कोई आता-जाता है या नहीं।’ यह सुनकर राजा के दिमाग में एक बात आई और उसने फौरन तय किया कि साधु उसकी पोशाक पहनकर शहर का चक्कर लगाए और वह साधु के कपड़े
पहनकर वहां चोर का इंतजार करे। साधु बना चोर राजा की बात मानने को राजी हो गया और दोनों ने आपस में कपड़े बदल लिए। चोर तत्काल राजा के घोड़े पर सवार होकर महल में पहुंचा और राजा के सोने के कमरे में जाकर आराम से सो गया, बेचारा राजा साधु बना चोर का इंतजार करता रहा। सुबह होने का वक्त हो गया, लेकिन न तो साधु लौटा और न चोर उस रास्ते से गुजरा, तो उसने महल में लौट जाने का निश्चय किया, लेकिन जब वह महल के द्वार पर पहुंचा तो संतरियों ने सोचा, राजा तो पहले ही आ चुके हैं, इसीलिए हो न हो यह चोर हो। उन्होंने राजा को पकड़ लिया और काल कोठरी में डाल दिया। दिन का उजाला होने पर काल कोठरी का पहरा देने वाले संतरी ने राजा का चेहरा पहचान लिया और मारे डर के थरथर कांपने लगा। वह राजा के पैरों पर गिर पड़ा। राजा ने सारे सिपाहियों को बुलाया और महल में गया। उधर चोर, जो रात भर राजा के रूप में महल में सोया था, सूरज की पहली किरण फूटते ही रफू चक्कर हो गया। अगले दिन जब राजा अपने दरबार में पहुंचा तो बहुत ही हताश था। उसने एेलान किया कि अगर चोर उसके सामने उपस्थिति हो जाएगा तो उसे माफ कर दिया जाएगा और उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी, बल्कि उसकी चतुराई के लिए उसे इनाम भी मिलेगा। चोर वहां मौजूद था, वह फौरन राजा के सामने आ गया ओर बोला, ‘महाराज, मैं ही वह अपराधी हूं।’ इसके सबूत में उसने राजा के महल से जो कुछ चुराया था, वह सब सामने रख दिया, साथ ही राजा की पोशाक और उसका घोड़ा भी। राजा ने उसे गांव इनाम में दिया और वादा कराया कि वह आगे चोरी करना छोड़ देगा।
24 - 30 जुलाई 2017
sulabh sanitation
लोक कथा
Sulabh International Social Service Organisation, New Delhi is organizing a Written Quiz Competition that is open to all school and college students, including the foreign students. All those who wish to participate are required to submit their answers to the email address contact@sulabhinternational.org, or they can submit their entries online by taking up the questions below. Students are requested to mention their name and School/College along with the class in which he/she is studying and the contact number with complete address for communication
First Prize: One Lakh Rupees
PRIZE
Second Prize: Seventy Five Thousand Rupees Third Prize: Fifty Thousand Rupees Consolation Prize: Five Thousand Rupees (100 in number)
500-1000) ti on (W or d Li m it: ti pe m Co iz Qu en tt Qu es ti on s fo r W ri nounced? rt was ‘Swachh Bharat’ an Fo d be no open Re the m fro y da ich houses and there should the 1. On wh all in d cte ru nst co be by 2019, toilets should 2. Who announced that l. defecation? Discuss in detai Toilet? 3. Who invented Sulabh ovement? Cleanliness and Reform M 4. Who initiated Sulabh e features of Sulabh Toilet? ? 5. What are the distinctiv used in the Sulabh compost r ise til fer of ge nta rce pe d an 6. What are the benefits of the Sulabh Toilet? ’? 7. What are the benefits be addressed as ‘Brahmins to me ca g gin en av sc al nu discussing ople freed from ma If yes, then elaborate it by s? 8. In which town were pe ste ca r pe up of s me ho take tea and have food in the 9. Do these ‘Brahmins’ story of any such person. entions of Sulabh? 10. What are the other inv
Last
ritten Quiz Competition W of on si is bm su r fo te da
: September 30, 2017
For further details please contact Mrs. Aarti Arora, Hony. Vice President, +91 9899 855 344 Mrs. Tarun Sharma, Hony. Vice President, +91 97160 69 585 or feel free to email us at contact@sulabhinternational.org SULABH INTERNATIONAL SOCIAL SERVICE ORGANISATION In General Consultative Status with the United Nations Economic and Social Council Sulabh Gram, Mahavir Enclave, Palam Dabri Road, New Delhi - 110 045 Tel. Nos. : 91-11-25031518, 25031519; Fax Nos : 91-11-25034014, 91-11-25055952 E-mail: info@sulabhinternational.org, sulabhinfo@gmail.com Website: www.sulabhinternational.org, www.sulabhtoiletmuseum.org
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32 अनाम हीरो
डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19
31 जुलाई - 06 अगस्त 2017
अनाम हीरो नाथन
किशोरों का कारनामा यूके के किशोरों ने स्कूल के बाथरुम से कारोबार कर कमाए 56000 डॉलर
ना
थन और उनकी टीम 15 साल की उम्र से ही कार्य कर रही हैं। इसके लिए उन्होंने अपने स्कूल के बाथरुम का उपयोग किया था। वे दूसरे स्कूलों में चॉकलेट, मिठाई
यू
लिली सिंह
और फिजी पेय बेचने के लिए अपने स्कूल के बाथरूम का इस्तेमाल किया करते थे। इससे उन्होंने करीब 1,200 डॉलर प्रति सप्ताह कमाई करना शुरू कर दिया था। इससे वह आनंद ही
नहीं लेते थे, बल्कि उन्हें इससे अपने जीवन शैली को बनाने की प्रेरणा मिलती थी। नाथन ने बताया कि उन्होंने एक करोड़पति से पैसे कमाने का तरीका सीखा है, जो एक विकास कार्यक्रम का हिस्सा थे। इस बात ने उनको अपने स्कूल में आने वाले छात्रों को मिठाई खरीदने और बेचने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने साथ अन्य लड़कों को भी जोड़ा। उन्होंने स्नैपचैट के माध्यम से अपने ऑर्डर बनाए और फिर ब्रेक टाइम के दौरान उन चीजों को बेचना शुरू किया। इन उद्यमी किशोरों के स्मार्ट कौशल ने
सद्भावना की लिली
हर मन में बसी हरमन
न्यूजमेकर
यूनिसेफ ने भारतीय मूल की लिली सिंह को ग्लोबल सद्भावना राजदूत नियुक्त किया
निसेफ ने भारतीय मूल की कनाडाई यूट्यूब स्टार लिली सिंह को अपना वैश्विक सद्भावना राजदूत नियुक्त किया है। बता दें कि लिली यूनिसेफ द्वारा युवाओं के लिए चलाए जा रहे एक कार्यक्रम ‘यूथ फॉर चेंज’ के समर्थन के लिए राष्ट्रीय राजधानी में मौजूद थीं। इस कार्यक्रम के दौरान ही उन्हें यूनिसेफ द्वारा ग्लोबल सद्भावना राजदूत नियुक्त किया गया। यूट्यूब पर लिली को 'सुपर वूमन' के नाम से जाना जाता है। वह अपनी कुछ हिंदी वीडियो के साथ यूट्यूब पर आती हैं और वह अपने वीडियो, ब्लॉगों और चैनल के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा हिंदी को बढ़ावा दे रहीं हैं। इसके लिए वह अपने इंग्लिश ब्लॉग, वीडियो और चैनल में उपशीर्षक हिंदी में ही डालने का अधिकतर प्रयास करती हैं, जिससे उनके चैनल की पहुंच ज्यादा से ज्यादा लोगों तक हो। बता दें कि यूनिसेफ द्वारा चलाई जा रही
योजना यूथ फॉर चेंज स्वास्थ्य, स्वच्छता, बाल श्रम और लिंग समानता जैसे मुद्दों पर कार्रवाई करने के लिए अपने साथियों और समुदायों को एकजुट करतीं हैं। लिली ने कहा कि मुझे सद्भावना राजदूत के रूप में शामिल करने और हर बच्चे तक पहुंचने के अपने मिशन में मेरी आवाज का उपयोग करने के लिए मैं यूनिसेफ की बहुत आभारी हूं। यूनिसेफ की नवनिर्वाचित राजदूत लिली की वीडियो वेबसाइट पर लगभग 11.9 मिलियन लोग हैं। वह इसका इस्तेमाल संगठन के काम को दिखाने के लिए करेंगी और साथ ही बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने के लिए लोगों से आग्रह भी करेंगी। इस 28 वर्षीय लड़की ने सोशल मीडिया पर एक नई पहल की शुरुआत कर दी है, जिसका उद्देश्य लड़कियों और बच्चों के अधिकारों के लिए कार्य करना है।
महिला क्रिकेट टीम की विस्फोटक बल्लेबाज हरमनप्रीत कौर विश्व कप में शानदार प्रदर्शन कर देश की चहेती बन गईं
पं
जाब की हरमनप्रीत कौर ने महिला विश्वकप के सेमी फाइनल मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 115 गेंदो में 171 रन की नाबाद पारी खेलकर भारत को फाइनल में पहुंचा दिया, लेकिन वह इस टूर्नामेंट के दौरान सबसे ज्यादा छक्का लगाने के रिकॉर्ड से चूक गईं। वह इस टूर्नामेंट में 11 छक्के लगा कर दूसरे स्थान पर रहीं। इस टूर्नामेंट में हरमनप्रीत ने 359 रन बनाए और उनका औसत 61 रन के आसपास का रहा। इतना ही नहीं हरमनप्रीत ने इस टूर्नामेंट में 33 चौके भी लगाए। हरमनप्रीत कौर का यहां तक का सफर आसान नहीं था। जब वह बड़ी हुईं और खेल में अपनी रुचि को जाहिर किया तो उनके पिता ने उन्हें हॉकी स्टीक थमा दी थी, क्योंकि वहां कोई लड़की क्रिकेट नहीं खेलती थी। लेकिन हरमन के क्रिकेट के प्रति लगन को देख कर उन्हें क्रिकेट खेलने दिया। हरमन के पिता ने कहा कि मुझे मेरी बेटी पर गर्व है कि उसने अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर मोगा को गौरवान्वित किया है। परिवार में सीमित वित्तीय साधनों और बड़ी चुनौतियों के बावजूद उन्होंने अपनी बेटी के सपने
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 1, अंक - 33
उन्हें 'वुल्फ ऑफ वॉल्थमस्टो' नाम दिया। लेकिन जब उनका व्यापार एक वर्ष में 56,000 डॉलर पर पहुंचने वाला था, तभी स्कूल को पता चल गया और स्कूल प्रशासन ने इसे बंद करवा दिया। वह अब जब भी निराश होते हैं तो अपनी आंखो को बंद करके अपनी जीत के बारे में सोचते हैं, जिससे उन्हें भविष्य में मेहनत करने की प्रेरणा मिलती है। जॉन बैप्टिस्ट ने कहा कि जब आप कुछ जीतते हैं तो कुछ ना कुछ खोते भी हैं, लेकिन इस वुल्फ में जीतने की महत्वाकांक्षा अभी भी है।
हरमनप्रीत कौर
को साकार किया। हरमनप्रीत को भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम के कैप्टन विराट कोहली की तरह माना जाता है। महिला विश्वकप के सेमीफाइनल में उनकी विस्फोटक बल्लेबाजी को कभी भूलाया नहीं जा सकता। पश्चिम रेलवे के मुंबई संभाग ने कहा है कि इस बल्लेबाज ने असाधारण प्रतिभा दिखाई इसीलिए उनकी पदोन्नति की सिफारिश रेलवे बोर्ड से की जाएगी। पश्चिम रेलवे के मुख्य पीआरओ रविंदर भाकर ने कहा कि हरमनप्रीत फिलहाल मुंबई में चीफ आफिस सुपरीटेंडेंट हैं। भाकर ने कहा कि जब भी हमारे खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में बेहतरीन प्रदर्शन करते हैं तो हम उनके नाम की सिफारिश पदोन्नति के लिए करते हैं। मध्य रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी और रेलवे की महिला क्रिकेट टीम चुनने वाली समिति के प्रमुख सुनील उदासी ने कहा कि रेलवे हमेशा अपने खिलाड़ियों का खयाल रखता है और उन्हें उचित ट्रेनिंग मुहैया कराता है।