सुलभ स्वच्छ भारत (अंक 49)

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वर्ष-1 | अंक-49 | 20 - 26 नवंबर 2017

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

sulabhswachhbharat.com

06 विशेष

जिंदगी न मिलेगी दोबारा

2025 तक रहने लायक जगहांे में दस फीसद की कमी

10 विचार

‘हिंद स्वराज’

पर्यावरण को लेकर गांधी व‌िचार आज भी प्रासंग‌िक

28 गुड न्यूज

नई उड़ान

दो वर्ष में कपड़ा उद्योग 250 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा

नरेंद्र दामोदर दास मोदी - द मेकिंग ऑफ अ लीजेंड

‘झरनों से मधुर संगीत सुनाई नहीं देता गर राहों में उनके पत्थर ना होता’ - डॉ. पाठक पीएम मोदी के जीवन पर लिखी सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक की पुस्तक ‘नरेंद्र दामोदर दास मोदी - द मेकिंग ऑफ अ लीजेंड’ को गुजरात में लोकार्पण

खास बातें मोदी सरकार नहीं, देश को लेकर चल रहे हैं – विजय रुपानी सुलभ ने पेश की जनभागीदारी की मिसाल– किरीटभाई सोलंकी गांधी और मोदी स्वच्छता के दो स्तंभ- डॉ. पाठक

गु

प्रियंका तिवारी

जरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने कहा कि हमारी धरती के लाल मोदी जी की अगुवाई में आज भारत की आवाज पुरी दुनिया में

सुनी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि मोदी जी के पहले भी सरकारें थी लेकिन देश की इज्जत दुनिया में मोदी जी की सरकार ने बढ़ाई हैं। उनके नेतृत्व में आज देश विश्व में कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। उन्होंने यह बात नरेंद्र दामोदर दास मोदी - द मेकिंग

ऑफ अ लीजेंड- पुस्तक के विमोचन के मौके पर कहीं। प्रधानमंत्री मोदी के जीवन के अनछुए पहलुओं पर यह पुस्तक सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक ने लिखी है। इस कॉफी टेबल बुक में प्रधानमंत्री के

जीवन की कई घटनाओं को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है। इससे यह किताब बेहद आकर्षक बन गई है। बता दें कि इससे पहले इस पुस्तक का विमोचन सरसंघसंचालक मोहन भागवत और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के हाथों दिल्ली में हो चुका है। देश के ओजस्वी प्रधानमंत्री के जीवन पर डॉ. पाठक द्वारा लिखी पुस्तक नरेंद्र दामोदर दास मोदी - द मेकिंग ऑफ अ लीजेंड के विमोचन और स्वच्छता के समाजशास्त्र पर राष्ट्रीय से​िमनार कार्यशाला का आयोजन ठाकोर भाई देसाई हॉल, लॉ गार्डन, एलिसब्रिज, अहमदाबाद में 17 नवंबर को किया गया। इस दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी, महाराजा कृष्ण कुमार सिंह जी, भावनगर विश्वविद्यालय के उप कुलपति डॉ. शैलेश झाला


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और अहमदाबाद के सांसद किरीटभाई सोलंकी मौजूद रहे। डॉ. पाठक द्वारा सभी अतिथियों को शॉल फूल और मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया।

पूरे विश्व में बढ़ी भारत की इज्जतविजय रुपानी

गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने कहा कि हमारी धरती के लाल मोदी की अगुवाई में आज भारत की आवाज पूरे विश्व में सुनी जा रही है। उन्होंने कहा कि मोदी जी के पहले भी सरकारें थीं, लेकिन देश की इज्जत विश्व में मोदी जी की ही सरकार ने बढ़ाई है। रुपानी ने कहा कि गुजरात के लाडले मोदी पर किताब लिखकर डॉ. पाठक ने बड़ा ही सराहनीय कार्य किया है। विजय रुपानी ने पुस्तक विमोचन और समाजशास्त्र में स्वच्छता विषय पर सेमिनार के लिए डॉ. पाठक और सुलभ का बहुत बहुत धन्यवाद दिया। पीएम मोदी ने स्वंय झाड़ू उठाकर गंदगी साफ की। आज भारत का वातावरण बदला है, जिसका पूरा श्रेय मोदी भाई को जाता है। यह देशभक्ति ही तो है

कि देश के सर्वोच्च पद पर होते हुए भी मोदी भाई ने दिल्ली की गलियों में झाड़ू लगाई, तो काशी में कुदाल से स्वयं मिट्टी साफ की। मुख्यमंत्री रुपानी ने कहा कि ‘सबका साथ, सबका विकास’ मंत्र को मोदी भाई ने साबित किया है। शौचालय की बात तो सभी ने की, लेकिन लोगों की मानसिकता को बदलना बहुत ही मुश्किल था। इस मानसिकता को मोदी भाई ने बदला है। गुजरात के सूरत और वडोदरा ने स्वच्छता का पुरस्कार जीता है तो वहीं सोमनाथ, जूनागढ, द्वारका, अंबा जी में भी सफाई देखी जा सकती हैं। गुजरात ने हमेशा से देश के लिए रोल मॉडल प्रस्तुत किया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि डॉ. पाठक भारत में सामाजिक बदलाव लाएं है और देश को एक नई दिशा दी है। उन्होंने स्कैवेंजर्स भाई-बहनों को नई जिंदगी ही नहीं दी बल्कि उनको रोजगारोन्मुख भी बनाया है।

गांधी और मोदी स्वच्छता के दो स्तंभडॉ. पाठक

इस मौके पर डॉ. विन्देश्वर पाठक ने कहा कि महात्मा गांधी के बाद प्रधानमंत्री मोदी ही ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने स्वच्छता को राष्ट्रीय अभियान बनाया है। उन्होंने कहा कि लालकिले की प्राचीर से शौचालय की बात करके मोदी जी ने साहस दिखाया। ‘झरनों से मधुर संगीत सुनाई नहीं देता, गर राहों में उनके पत्थर ना होता’ ये पंक्तियां डॉ. पाठक ने पीएम मोदी के लिए कहीं। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने अपने कृतित्व से देश में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में अपना परचम लहराया है। आज की विश्व नीति बदल गई है। उन्होंने पीएम बनते समय कहा था कि ना किसी को आंख दिखाएंगे और ना दिखाने देगें। उसे उन्होंने आज साबित कर दिखाया है। विश्व नीति में ऐसा

पीएम मोदी ने स्वयं झाड़ू उठाकर गंदगी साफ की। आज भारत का वातावरण बदला है, जिसका पूरा श्रेय मोदी भाई को जाता है – विजय रुपानी

बदलाव पहले कभी नहीं हुआ। डॉ. पाठक ने कहा कि पीएम मोदी ने गुजरात का सीएम बनते ही निर्मल गुजरात अभियान चालाय था और आज वह पूरे देश में स्वच्छ भारत अभियान चला रहे हैं। देश में स्वच्छता को मानने वाले गांधी के बाद पीएम मोदी ही हैं। पीएम मोदी स्वच्छता के विषय पर बात करने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री हैं। वह गांधी की विचार धारा को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। आज पूरा देश स्वच्छता की बात करता है। इतना ही नहीं बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी स्वच्छता और शौचालय के महत्व को लेकर जागरुक हो रहे हैं। यह सब प्रधानमंत्री मोदी के अथक प्रयासों का ही प्रतिफल है। डॉ. पाठक ने कहा कि पीएम मोदी ने जब 2014 में लाल किले की प्राचीर से स्वच्छता और शौचालय की बात की तो उससे सुनने के बाद मेरी आंखों में आंसू आ गए। हमने सोचा चलो इतने वर्षों बाद देश में दूसरे गांधी का पदार्पण हो गया है, जो स्वच्छता और शौचालय की बात कर रहा है। वहीं से मुझे इस पुस्तक को लिखने की प्रेरणा मिली। डॉ. पाठक ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी देश के ही नहीं विश्व के पहले ऐसे प्रधानमंत्री


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स्वच्छता के समाजशास्त्र पर नेशनल सेमिनार की प्रेपरेट्री

गांधी-मोदी और डॉ. पाठक में है समानता भारत में जब हम स्वच्छता के प्रतीक के बारे में बात करते हैं तो डॉ. विन्देश्वर पाठक से बड़ा कोई नहीं हो सकता है

स्व

च्छता के समाजशास्त्र पर राष्ट्रीय सेमिनार कार्यशाला का आयोजन ठाकोर भाई देसाई हॉल, लॉ गार्डन, एलिसब्रिज, अहमदाबाद में सुलभ के द्वारा गया। इस कार्यक्रम में डॉ. गिरिश बघेला, डॉ. राजेश और प्रो. अनिल बघेला मौजूद रहे।

डॉ पाठक हैं स्वच्छता के प्रतीकडॉ. गिरिश बघेला

हैं, जिन्होंने बनारस के अस्सी घाट पर स्वयं मिट्टी साफ की। इतना ही नहीं अभी हाल ही में उन्होंने वाराणसी में शौचालय बनाने के लिए ईटें जोड़ी। आज तक पूरे विश्व में किसी प्रधानमंत्री ने स्वच्छता और शौचालय के लिए स्वयं कार्य नहीं किया है। पूरे विश्व में स्वच्छता के दो स्तंभ हैं एक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और दूसरे प्रधानमंत्री मोदी। अब हम सब का उत्तरदायित्व है कि हम गांधी-मोदी के मिशन को आगे बढ़ाएं और देश को स्वच्छ और खुले में शौचमुक्त बनाने में अपना योगदान दें। इससे पहले डॉ. पाठक ने समारोह में उपस्थित गुजरात के सीएम विजय रुपानी समेत सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि महाराजा कृष्णकुमारसिंहजी भावनगर विश्वविद्यालय ने स्वच्छता के समाजशास्त्र पर पढ़ाई की शुरुआत करके सराहनीय कदम उठाया है। इसके लिए हम उप कुलपति शैलेश झाला और विश्वविद्यालय प्रशासन का आभार व्यक्त करते हैं। अगले साल अप्रैल में स्वच्छता पर एक बड़ा सेमिनार होना है उस पर भी आज के सेमिनार में चर्चा की जानी है। डॉ. पाठक ने कहा कि समाज शास्त्र में स्वच्छता की अवधारणा हमने 1985 में दी

थी। हालांकि पहले इसे लोगों ने मानने से इंकार कर दिया था, लेकिन इससे लोगों को रोजगार भी मिलेगा और वह जागरुक भी होगें।

सुलभ से जुड़ना बात- शैलेश झाला

गौरव

की

इस कार्यक्रम में महाराजा कृष्णकुमारसिंहजी भावनगर विश्वविद्यालय के उप कुलपति शैलेश झाला ने कहा कि मोदी जी ने देश को नई ऊर्जा और दिशा दी है। झाला ने कहा कि यह गुजरात ही नहीं, देश के लिए गर्व की बात है कि आज मोदी जी जैसा हमें प्रधानमंत्री मिला है, जिसकी बात पूरी दुनिया सुन रही है। उप कुलपति ने कहा कि डॉ. पाठक ने स्वच्छता के विषय पर सराहनीय कार्य किया है। उन्होंने देश में ही नहीं पूरे विश्व को स्वच्छता और शौचालय के लिए जागरुक किया है। उन्होंने कहा कि हमारे विश्वविद्यालय में स्वच्छता का समाजशास्त्र प्रमुखता से पढ़ाया जा रहा है और यह सब डॉ. पाठक के प्रयासों से ही संभव हो सका है। हमारा विश्वविद्यालय देश का पहला ऐसा शिक्षण संस्थान है, जहां स्वच्छता का समाजशास्त्र पढ़ाया

स्वच्छता की धारा मां गंगे के उदाहरण से बड़ी नहीं हो सकती और भारत में जब हम स्वच्छता के प्रतीक के बारे में बात करते हैं तो डॉ. विन्देश्वर पाठक से बड़ा कोई नहीं हो सकता है। स्वच्छता की संस्कृति भारत वर्ष की संस्कृति जनम-जनम से हर भारतीय को मिला है, लेकिन हम इसे किस सोच, परिवेश और किस तरह से लेते हैं यह हर भारतीय की जिम्मेदारी है। सुलभ शौचालय तकनीक का विकास करना समाजशास्त्र के छात्र रहे डॉ. विन्देश्वर पाठक की सोच थी, जिसे उन्होंने सुलभ टू-पिट शौचालय तकनीक के रूप में मूर्त रूप दिया। टू-पिट सुलभ शौचालय एक चमत्कारी शौचालय है, जिसने लोगों के जीवन में बदलाव लाया है। इस सभागार में बैठी हमारी पूर्व स्कैवेंजर्स बहनें आज समाज में ​िसर उठा कर जी रही हैं और इतना ही नहीं वह खुद को ब्राह्मण कहती हैं। यह एक बहुत बड़ा सामाजिक परिवर्तन है। यह हम जैसे समाजशास्त्रियों के लिए चुनौती है कि एक ही जीवन काल में एक व्यक्ति अपनी सोच से इतना बड़ा परिवर्तन कर सकता है।

गांधी-मोदी और डॉ. पाठक में है समानता- शैलेश झाला

महाराजा कृष्णकुमारसिंहजी भावनगर विश्वविद्यालय के उप कुलपति शैलेश झाला ने कहा कि बापू, मोदी भाई और डॉ. पाठक में एक समानता है, वह यह है कि इन लोगों ने स्वच्छता को महत्व दिया। स्वच्छता और शौचालय के

क्षेत्र में डॉ. पाठक ने सराहनीय कार्य किया है तो वहीं पीएम मोदी ने बापू के सपने को साकार करने के लिए पूरे देश को स्वच्छता और शौचालय के विषय पर गंभीरता से विचार करने के लिए प्रोत्साहित किया है। यह सोच देश को आगे ले जाने की मुहिम को बढ़ा रहा है। आज देश मोदी भाई के नेतृत्व में आगे बाढ़ रहा है।

सुलभ ने हमारे जीवन में किया परिवर्तन- पूजा

पुनर्वासित स्कैवेंजर पूजा ने कहा कि मैं पहले मैला ढोने का काम करती थी। मैं मम्मी के साथ इस काम को करती थी। बारिश के दिनों में तो हमें बहुत परेशानी होती थी, हमारे कपड़े खराब हो जाते थे। हमारे समाज में यह काम बेटियों को सिखाया जाता था। हमारे यहां शादियों से पहले ये पूछते थे कि जजमान कितने हैं, तभी उस घर में बेटी की शादी की जाती थी। नवरात्रि के समय में हमारे स्कूल में कन्यापूजन का आयोजन हुआ तो प्रिंसिपल ने मुझे भी बुलाया, मैं वहां देर से पहुंची थी। मुझे देखकर सभी लड़कियां खड़ी हो गईं और बोलीं की वह मेरे साथ भोजन नहीं करेंगी, क्योंकि उनके घर वाले उन्हें डांटने लगेंगे। यह एक अछूत की बेटी है, इसकी मम्मी हमारे यहां मैला ढोने आती हैं। यह सुनकर मैं वहां से आ गई और अपनी मम्मी से पूछा तो उन्होंने कहा कि बेटा हम मैला ढोने का काम करते हैं, इसीलिए हमारे साथ लोग हमें अछूत मानते हैं। साल 2008 में सुलभ टीम हमारे टोंक शहर में आई और उन्होंने सर्वे किया तो पता चला की मां के साथ बेटी भी मैला ढोने का काम करती है। सुलभ ने कहा कि वह मां के साथ बेटियों को भी गोद लेंगे और उन्हें ट्रेनिंग देंगे। पहले तो मेरे घर वालों ने मना किया फिर सुलभ टीम के समझाने पर मान गए। पहले मेरी मम्मी सुलभ आई और सुलभ के सभी कामों को देखा फिर उन्होंने मुझे भी बुला लिया। आज मैं सिलाई करती हूं और जो जजमान पहले हमारे साथ खड़े नहीं होते थे, आज वह हमें कपड़े सिलने को देते हैं। हमारे जीवन में यह परिवर्तन डॉ. पाठक और सुलभ की वजह से आया है। इसके लिए हम सुलभ और डॉ. पाठक के बहुत आभारी हैं।


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जाता है। यह हमारे और पूरे विश्वविद्यालय के लिए गौरव की बात है कि हम सुलभ से जुड़े हैं। आज चारो तरफ सुलभ शौचालय देखने को मिलता है, जिसे देखने के बाद डॉ. पाठक याद आते हैं। इस क्षेत्र में सुलभ ने बहुत ही सराहनीय कार्य किया है, जिसके लिए डॉ. पाठक को जितना धन्यवाद दिया जाए कम है। वहीं उन्होंने कहा कि मोदी भाई पहले ऐसे पीएम है, जिनकी पूरे देश में लोकप्रियता है।

लोग ‘हर-हर मोदी घर-घर मोदी’ का नारा लगाते हैं। उनके द्वारा चलाए गई योजनाओं को पूरा देश मिल कर जन अभियान बना देता है। इससे ही पता चलता है कि मोदी भाई की लोकप्रियता देश की जनता में कितनी है। आज हमारा देश पीएम मोदी के नेतृत्व में विकास के पथ पर अग्रसर है। हम सभी को उनका साथ देना चाहिए और देश के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए।

सुलभ ने पेश की जनभागीदारी की मिसाल- किरीटभाई सोलंकी

अहमदाबाद के सांसद किरीटभाई सोलंकी ने कहा कि भारत ही नहीं पूरा विश्व जिसके लिए गौरव महसूस करता है ऐसे यशस्वी प्रधानमंत्री के जीवन पर लिखी पुस्तक नरेंद्र दामोदर दास मोदी ‘द मेकिंग ऑफ अ लीजेंड’ के विमोचन समारोह में आकर मैं खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। मैं इस

समारोह में उपस्थित सीएम विजय रुपानी, सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक, मेयर, गौतम शाह, उप कुलपति, शैलेश झाला और सभी अतिथियों का स्वागत और अभिनंनदन करता हूं। उन्होंने कहा कि सर्वप्रथम मैं इस पुस्तक के विमोचन और मैला ढोने वालों को मुक्ति दिलाने में किए गए सराहनीय कार्यों के लिए डॉ. पाठक को बहुत बहुत बधाई देता हूं। मोदी जी कहते हैं कि जनभागीदारी के बिना हम देश का विकास नहीं कर सकते हैं। सुलभ ने अपने कार्यों के माध्यम से जनभागीदारी की सबसे बड़ी मिसाल पेश की है। मोदी के नेतृत्व में गुजरात ने विकास का नया मॉडल प्रस्तुत किया और आज देश विश्व में कीर्तिमान हासिल कर रहा है। गांधी के बाद मोदी ने देश को नई राह दिखाई है। पीएम मोदी और गांधी में एक समानता है कि दोनों ही गुजरात से हैं। देश की आजादी के लिए गांधी ने अथक प्रयास किए और अब मोदी पूरे विश्व में भारत का परचम लहरा रहे हैं। आज पूरा देश उनके अभियान से जुड़ा है और वह एक जननायक की तरह कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मोदी जी ने स्वच्छता को लेकर जो अभियान छेड़ा है, उसे पूरा करने का दायित्व हमारा हैं।


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ऊर्जा

नवीकरणीय ऊर्जा की तरफ बढ़ रहा है विश्व

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नवीकरणीय ऊर्जा द्वारा समर्थित होने पर भविष्य में हमें कोई बड़ी आर्थिक या तकनीकी बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ेगा। वहीं जीवाश्म ईंधन के विस्तार के लिए, जैसे कोयले की खानों, बिजली संयंत्रों, तेल रिग्स और निर्यात टर्मिनलों का समर्थन करने के लिए बनाया गया कोई भी नया बुनियादी ढांचा मात्र पैसे की बर्बादी होगी और फिर हमें अपरिवर्तनीय जलवायु परिवर्तन के लिए एक रास्ते पर बंध कर कार्य करना होगा।

खास बातें पिछले तीन सालों में सौर ऊर्जा क्षमता में 370% की वृद्धि हुई है। आज की पीढ़ी पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर जीने वाली होगी। शोधकर्ताओं का मानना है अगले 50 वर्षों में तेल और प्राकृतिक गैस खत्म हो जाएगा।

मे

बारिश रमण

रे विचार में, यह कहने में कोई दिक्कत नहीं है कि हम निकट भविष्य में नवीकरणीय ऊर्जा पर पूरी तरह से चल रही दुनिया को देख सकते हैं। वर्तमान में डेनमार्क जैसे कई प्रमुख देश नवीकरणीय ऊर्जा पर निर्भर हैं। यह 43 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन कर रहा है और 2020 तक इसे 70 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है। वहीं जर्मनी 25 प्रतिशत से अधिक उत्पादित कर रहा है और जल्द ही 30 प्रतिशत के आंकड़े को पार कर जाएगा। इतना ही नहीं 2025 तक 40 से 45 प्रतिशत, 2035 तक 55-60 प्रतिशत और 2050 में 80 प्रतिशत होने की उम्मीद जताई है। हालांकि चीन विश्व का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है, जिसे कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, इसके बावजूद वह विश्व में नवीकरणीय निवेश का प्रमुख स्त्रोत है। इसके साथ ही सबसे बड़ा सौर निर्माता भी है। वहीं भारत वर्तमान समय में कार्बन उत्सर्जनकर्ता के रुप में पूरी दुनिया में चौथे स्थान पर है। भारत ने जलवायु परिवर्तन के अनिश्चित खतरे से मुक्त दुनिया की दिशा में आगे बढ़ने के लिए हस्ताक्षर किए हैं। बेहद विविध और बड़ी आबादी होने के बावजूद, भारत ने पिछले दो

वर्षों में 9 गीगावाट सौर ऊर्जा में जोड़ा है- सौर ऊर्जा क्षमता के कुल 12 गीगावॉट के लिए 4.5 हूवर दम के समतुल्य। पिछले तीन वर्षों में सौर क्षमता में 370 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी फाइनेंस (बीएनईएफ) के एक विश्लेषण के मुताबिक, 2020 तक 37 गीगावॉट अतिरिक्त जोड़ा जाएगा। भारत ने 2016 में पवन ऊर्जा की 3.6 गीगावॉट की कमी की और 2017 की पहली तिमाही में ही इसे दोगुना कर दिया। मैं इन सभी आंकड़ो को अपने दृष्टिकोण से समर्थन देती हूं, क्योंकि आज की पीढ़ी सौर, पवन और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों द्वारा संचालित इस दुनिया में रहने वाला पहला व्यक्ति होगा। इन कुछ उदाहरणों में यह भी बताया गया है कि अक्षय ऊर्जा द्वारा समर्थित भविष्य में कोई बड़ी आर्थिक या तकनीकी बाधाएं नहीं होने वाली हैं। वहीं कोल माइंस या ऑयल रग्स में निवेश करना केवल पृथ्वी के पर्यावरण को नष्ट करने और ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन को खत्म करने वाली दुनिया में एक

तरफ़ा टिकट खरीदने के लिए भुगतान करने जैसा है। हाल ही की गतिविधियों जैसे तूफान हार्वे और तूफान नैट पर ध्यान दें, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई थी। इस घातक घटना के नतीजों के बारे में हर किसी को पता है। 2017 अटलांटिक तूफान सीजन के चौदह नामित तूफान और नौ तूफानों ने इस साल उत्तरी अमेरिका में उथल-पुथल मचा दी। यह सभी घटनाएं ग्लोबल वार्मिंग में बढ़ोत्तरी के परिणाम को दर्शाती हैं। नासा के मुताबिक, ग्लोबल वार्मिंग के कारण ध्रुवों और भूमध्य रेखा के तापमान के अंतर को कम करके तूफान के गठन को प्रभावित किया जा सकता है। भूमि पर बढ़ने वाले तापमान के संयुक्त परिणाम से भूमध्य रेखा-बनाम-पोल तापमान के अंतर में कमी आई है और बढ़ी हुई आर्द्रता सूखे व बाढ़ के तीव्र चक्रों के रूप में हो सकती है, क्योंकि यह कई छोटे क्षेत्रों को प्रभावित करने के बजाय एक बड़े क्षेत्र को प्रभावित करती है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी)

2017 में अटलांटिक तूफान सीज़न के 14 नामित तूफान और नौ अन्य तूफान ने उत्तरी अमेरिका में उथल-पुथल मचा दी। ये सभी ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही हुए हैं।

ने 2014 के अंत में एक रिपोर्ट में कहा, "ग्रीनहाउस गैसों के निरंतर उत्सर्जन में जलवायु, पर्यावरण के सभी घटकों में अधिक गर्मजोड़ और लंबे समय तक चलने वाले बदलाव होंगे, जिससे गंभीर, व्यापक और अपरिवर्तनीय प्रभावों की संभावना बढ़ रही है।" वहीं कई शोधकर्ताओं का मानना है कि अगले 50-55 वर्षों में तेल और प्राकृतिक गैस खत्म हो जाएंगे, जबकि यह माना जा रहा है कि 2088 तक कोयला पूरी तरह से विलुप्त हो जाएगा। हालांकि जीवाश्म ईंधन के गहन निकास में निवेश करने से पर्यावरण को नुकसान ही नहीं होगा बल्कि यह भी अनिश्चिततापूर्ण होगा। इन जीवाश्म ईंधनों का रोजमर्रा के जीवन में उपयोग करने के बजाय, इन्हें भविष्य और अनुसंधान उद्देश्यों के लिए संरक्षित किया जाना चाहिए। नवीकरणीय ऊर्जा का क्षेत्र काफी विशाल है, इतना ही नहीं इसमें लाखों नौकरियों की संभावनाएं भी हैं। हर साल गंदी व खतरनाक जीवाश्म ईंधन और परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं को पार कर नवीकरणीय ऊर्जा का विकास तेजी से हो रहा है। जिस तरह यह पूरी दुनिया में आगे बढ़ता जा रहा है, उससे तो लगता है कि आने वाले समय में नवीकरणीय ऊर्जा को तैनात करना सस्ता और आसान हो जाएगा। माइक्रो सोलर सल्यूशन, जो ग्रामीण भारत में पानी की फसलों में काफी मदद करता है, वहीं विश्व स्तर पर अमेरिका या बैटरी कारों में विशाल पवन ऊर्जा संचालित डेटा फार्म राजमार्गों पर चल रहा है। अविश्वसनीय समाचार ऊर्जा के विकास विश्लेषण से पता चलता है कि 100% नवीकरणीय ऊर्जा में हमारी जगह कोई प्रमुख आर्थिक या तकनीकी बाधाएं नहीं हैं। ऐसा करने की सभी की राजनीतिक इच्छा है। लोगों में सही जागरूकता, सरकार व महत्वाकांक्षी लक्ष्यों और उनकी नीतियों में गंभीर निवेश से इस धरती को बचाया जा सकता है।


06 विशेष

विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस (26 नवंबर) पर विशेष

20 - 26 नवंबर 2017

विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस (26 नवंबर) पर विशेष

जिंदगी न मिलेगी दोबारा

पर्यावरण का अगर इसी तरह विनाश होता रहा तो 2025 तक दुनिया में रहने लायक स्वस्थ जगहों का क्षेत्रफल सात से दस फीसदी तक और कम हो जाएगा

जो

एसएसबी ब्यूरो

या अख्तर ने 2011 में एक फिल्म बनाई थी- जिंदगी न मिलेगी दोबारा। फिल्म का कथानक जिंदादिल दोस्तों की जिंदगी के इर्द-गिर्द बुना गया था। पर यह फिल्म एक मैसेज यह भी देती है कि जिंदगी में कुछ अवसर दोबारा नहीं आते। पर्यावरण संकट को सामने रखकर इस बात को इस तरह समझा जा सकता है कि हम आज जिस हालात तक पहुंच गए हैं, वहां से आगे समस्या की अनदेखी भारी पड़ सकती है। ग्लेशियरों के पिघलने से लेकर नदियों और समुद्री जल में प्रदूषण का आलम यह कि अब भविष्यवाणी सौ-दौ सौ साल आगे की नहीं की जा रही, बल्कि बताया जा रहा है कि 2025 तक दुनिया में रहने लायक स्वस्थ जगहों के रकबे में सात से दस फीसदी तक की कमी आ सकती है। संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान की मून विभिन्न वैश्विक मंचों से अक्सर यह बात कहा करते हैं कि प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा की चुनौती आगे हमारे लिए चिंता का सबब तो है ही, साथ ही यह हमारे लिए यह एक बड़ा अवसर भी साबित हो सकता है। दरअसल, वे मानते थे कि पर्यावरण के बिगड़े हालात के कारण जो मुसीबतें पैदा होंगी, वह वैश्विक विवेक को इकट्ठे मजबूत देगी। आज भले ग्लोबल वार्मिंग जैसे ज्वलंत मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय सहमति बनाने में सफलता न मिल पा रही हो, पर इतना तो तय हो ही गया है कि इस समस्या से हम और ज्यादा समय तक आंखें नहीं मूंद सकते। महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था, ‘दो चीजें असीमित हैं एक ब्रह्मांड तथा दूसरी मानव की मूर्खता।’ जाहिर है कि मनुष्य ने अपनी मूर्खता के कारण अनेक समस्याएं पैदा की हैं। इनमें से पर्यावरण प्रदूषण अहम है। आज जब हम इस बारे में चर्चा कर रहे हैं तो देश की राजधानी और उसके लगे इलाकों सहित देश के कई शहरों और हिस्सों में जहरीली धुंध छायी हुई है। जहां सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण अपने-अपने तरीके से इस समस्या से बचाव के विकल्प सुझा रहे हैं, वहीं केंद्र और राज्य की सरकारें भी हरकत में हैं। पर्यावरण सुरक्षा महज सरकारी मसला नहीं

खास बातें पर्यावरण संरक्षण के लिए देश में 200 से भी ज्यादा कानून हैं

है। इसके लिए जन जागृति, जन जिम्मेदारी, जन भागीदारी, जन कार्यवाही, सामाजिक दायित्व एवं सामाजिक संकल्प की प्रक्रिया से गुजरे बिना हम कारगर हल तक नहीं पहुंच सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात के 20वें संस्करण में खासतौर पर वर्तमान जल समस्या के लिए जन भागीदारी का आह्वान किया था। कह सकते हैं कि सरकार की करोड़ों अरबों रुपए की सफाई योजनाओं और कार्यक्रमों के बावजूद इस दिशा में सौ प्रतिशत सफलता जनभागीदारी पर ही निर्भर है।

महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था, ‘दो चीजें असीमित हैं। एक ब्रह्मांड तथा दूसरी मानव की मूर्खता।’ जाहिर है कि मनुष्य ने अपनी मूर्खता के कारण अनेक समस्याएं पैदा की हैं। इनमें से पर्यावरण प्रदूषण अहम है

मनुष्य पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली घटक है। पर्यावरण से परे उसका अस्तित्व नहीं रह सकता। पर्यावरण के अनेक घटकों के कारण वह निर्मित हुआ तथा अनेक कारकों से उसकी क्रियाएं प्रभावित होती रहती हैं। मानव पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण उपभोक्ता भी है। यह बात औद्योगिकरण के बाद के दिनों से ही साफ हो गया था कि अपने नैतिक, आर्थिक तथा सामाजिक विकास की उच्चतम उपलब्धियां मनुष्य उसी समय प्राप्त कर पाएगा, जब वह प्राकृतिक संपदा का विवेकपूर्ण उपयोग करेगा। आज जनाधिक्य, भोगवाद की संस्कृति, प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग, युद्ध, परमाणु परीक्षण, तीव्र औद्योगिक विकास आदि के कारण नई-नई पारिस्थितिकीय समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। विश्व के वर्तमान परिवेश में सर्वाधिक संकटग्रस्त

जल संकट से निपटने के लिए पीएम की जन भागीदारी की अपील एक वर्ष पहले बीजिंग में प्रदूषण के कारण आपातकाल की घोषणा स्थिति में पृथ्वी पर जीवन के लिए अत्यंत अनिवार्य पर्यावरण आज कई तरह के खतरों की जद में आ गया है। पृथ्वी को इस संकट से बचाने के लिए तथा स्थानीय स्तर पर प्रदूषण को नियंत्रित रखने के साथ ही पर्यावरण को सुरक्षित करने हेतु ढेरों कानून राष्ट्रीय स्तर पर, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, स्थानीय स्तर पर भी बनाए जा चुके हैं। फिर भी प्रदूषण पर प्रभावी नियंत्रण नहीं हो पाता, पर्यावरण का संरक्षण तो दूर उसका स्तर सुरक्षित तक नहीं रह पाता। वायु


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विशेष

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मेगा बायोडाइवर्सिटी में समृद्ध हैं हम देश में 45 हजार से अधिक वानस्पतिक प्रजातियां हैं, जो समूची दुनिया की पादप प्रजातियों का 7 फीसदी हैं संजोए हुए, जीवन को जीवंत बनाए हुए है।

‘जीव जीवनस्य भोजनम्’

दु

निया के बारह मेगा बायोडाइवर्सिटी केंद्रों में से भारत एक है और 18 बायोलॉजिकल हॉट स्पॉट में से भारत में दो पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाट हैं। अनुमान है कि देश में 45 हजार से अधिक वानस्पतिक प्रजातियां हैं, जो समूची दुनिया की पादप प्रजातियों का 7 फीसदी हैं। इन्हें 15 हजार पुष्पीय पौधों सहित कई वर्गिकीय प्रभागों में बांटा जाता है। करीब 64 जिम्नोस्पर्म 2843 ब्रायोफाइट, 1012 टेरिडोफाइट, 1040 लाइकेन, 12480 एल्गी तथा 23 हजार फंजाई की प्रजातियां लोवर प्लांट के अंतर्गत हैं। पुष्पीय पौधों की करीब 4900 प्रजाति सिर्फ भारत में ही पाई जाती हैं। करीब 1500 प्रजातियां विभिन्न स्तर के खतरों के कारण आज संकट में हैं। भारत खेती वाले पौधों के विश्व के 12 उद्भव केंद्रों में से एक है। भारत में समृद्ध जर्म प्लाज्म संसाधनों में खाद्यान्नों की 51 प्रजातियां, फलों की 104, मसालों की व कोंडीमेंट्स की 27, दालों एवं सब्जियों की 55, तिलहनों की 12 तथा चाय, काफी, तंबाकू एवं गन्ने की विविध जंगली नस्लें शामिल हैं। देश में प्राणी संपदा भी उतनी विविध है। विश्व की 6.4 प्रतिशत प्राणी संपदा का प्रतिनिधित्व करती भारतीय प्राणियों की 81 हजार प्रजातियां हैं। भारतीय प्राणी विविधता में 5000 से अधिक मोलास्क और 57 हजार इनसेक्ट के अतिरिक्त अन्य इनवार्टिब्रेट्स शामिल हैं। मछलियों की 2546, उभयचरों की 204, सरीसृपों की 428, चिड़ियों की 1228 एवं स्तनधारियों की 327 प्रजातियां भारत में पाई जाती प्रदूषण नियंत्रण कानून 1981 के उल्लंघन हेतु कठोर कारावास की सजा के ही प्रावधानों के बावजूद राष्ट्र में सैकड़ों शहर के वायुमंडल पर प्रदूषण का स्तर क्रांतिक स्तर तक पहुंच चुका है, और पहुंच रहा है। जल प्रदूषण नियंत्रण एवं निवारण अधिनियम 1976 में अर्थदंड एवं कारावास के प्रावधानों के बावजूद गंगा और यमुना सहित कई नदियां जहरीली हो चुकी हैं। प्लास्टिक वेस्ट पर कानून में भी भारी अर्थदंड के बावजूद प्लास्टिक कचरों के ढेर बढ़ रहे हैं।

हैं। भारतीय प्राणी प्रजातियों में स्थानिकता या देशज प्रजातियों का प्रतिशत काफी अधिक है, जो लगभग 62 फीसदी है।

नैसर्गिक संपदा का दोहन

भारत जैव विविधता के मामले में विश्व के समृद्धशाली देशों में से एक है, इस कारण वह नैसर्गिक संपदा का व्यापारिक दोहन और उसकी तस्करी करने वालों की निगाहों में है। यही कारण है कि जहां एक तरफ इनकी स्वाभाविक स्थिति से छेड़छाड़ की कोशिशें हो रही हैं। वैसे भारत में जैव विविधता को क्षति पहुंचाने और उसे चोरी छिपे ले जाने के खिलाफ सरकार सतर्क है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां खाद्यान्नों को ले जाने की कोशिश में लगी हैं। वास्तविकता है कि जैव विविधता आमजन की नैसर्गिक संपदा है, जिसका अधिकार सरकार किसी को नहीं दे सकती। जैव विविधता जीवन की सहजता के लिए जरूरी है। प्रकृति का नियामक चक्र जैव विविधता की बदौलत दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। वनस्पति, खाद्यान्न, जीव-जंतुओं की अनुपस्थिति से कितना नुकसान हो सकता है, वैज्ञानिक भी इसका आकलन नहीं कर सकते। धरती अमूल्य धरोहर

गीता की उक्ति- ‘जीव जीवनस्य भोजनम’, प्राकृतिक और जीवन क्रम के लिए जरूरी है। हवा, जल, मिट्टी जीवन के आधारभूत तत्व हैं। प्राकृतिक रूप से इनका सामंजस्य सतत जीवन का द्योतक है। मिट्टी से फसलें और कीट-पतंगे उन पर आश्रित हैं। शाकाहारी व मांसाहारी जीवों का भोजन यही है। मेढक और चूहे जिन पर आश्रित हैं। इन्हीं के बीच अनेक कीट, जीव और पशु-पक्षी हैं। इनका संबंध जितना जटिल होगा, जैव विविधता उतनी ही समृद्ध होगी।

भारत में 176 प्रजातियों के पक्षी

पक्षियों की दृष्टि से भारत का स्थान दुनिया के दस प्रमुख देशों में आता है। भारतीय उप-महाद्वीप में पक्षियों की 176 प्रजातियां पाई जाती हैं। दुनिया भर में पाए जाने वाले 1235 प्रजातियों के पक्षी भारत में हैं, जो विश्व के पक्षियों का 14 प्रतिशत है। गंदगी साफ करने में कौआ और गिद्ध प्रमुख हैं। गिद्ध शहरों ही नहीं, जंगलों से भी खत्म हो गए हैं। 99 प्रतिशत लोग नहीं जानते कि गिद्धों के न रहने से हमने क्या खोया।

रेबीज का खतरा

1997 में रेबीज से पूरी दुनिया के 50 हजार लोग मर गए। भारत में सबसे ज्यादा 30 हजार मरे। सवाल है कि आखिर रेबीज से क्यों मरे? स्टेनफोर्ट विश्व विद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि ऐसा गिद्धों की संख्या में अचानक कमी के कारण हुआ। वहीं दूसरी तरफ चूहों और कुत्तों की संख्या में अचानक वृद्धि हुई। अध्ययन में बताया गया कि पक्षियों के खत्म होने से मृत

भारतीय उप-महाद्वीप में पक्षियों की 176 प्रजातियां पाई जाती हैं। दुनिया भर में पाए जाने वाले 1235 प्रजातियों के पक्षी भारत में हैं, जो विश्व के पक्षियों का 14 प्रतिशत है म्यूनिसिपल सॉलिड वेस्ट (नगरीय ठोस अपशिष्ठ) कानून में भी कठोर दंड के बावजूद महानगरों में गंदे कचरों के पहाड़ प्रकट हो चुके हैं। हमने यह पाया है कि इस दायित्व के निर्वहन के लिए जिम्मेदार समाज के महत्वपूर्ण घटक भी अपनी जिम्मेदारी को कानून द्वारा सरकार पर थोप देना ही पर्याप्त मानते हैं। पर कानून के उल्लंघन के लिए किसी एक आदमी को कितनी भी बड़ी सजा क्यों न दे दी जाए, उससे ऐसा कोई उदाहरण प्रस्तुत नहीं होता,

जिससे कि सफलतापूर्वक प्रदूषण नियंत्रित किया जा सके। व्यावहारिक रूप से प्रदूषण नियंत्रण के सफल उदाहरणों को प्रस्तुत किया जाए तो उससे पर्यावरण संरक्षण की दिशा में हम ज्यादा सार्थक तरीके से आगे बढ़ सकते हैं। विकास के जिस बड़े लक्ष्य को पाने के लिए दुनिया भर में अंधी दौड़ चल पड़ी है, उसका नतीजा यह है कि पिछले एक वर्ष पहले चीन की राजधानी बीजिंग तक में प्रदूषण के भयावह स्तर को दृष्टिगत

पशुओं की सफाई, बीजों का परागण भी काफी हद तक प्रभावित हुआ। अमेरिका जैसा देश अपने यहां के चमगादड़ों को संरक्षित करने में जुटना पड़ा है। अब हम सोचते हैं कि चमगादड़ तो पूरी तरह बेकार हैं। मगर वैज्ञानिक जागरूक करा रहे हैं। चमगादड़ मच्छरों के लार्वा को खाता है। यह रात्रिचर परागण करने वाला प्रमुख पक्षी है। उल्लू से क्या फायदा, मगर किसान जानते हैं कि वह खेती का मित्र है, जिसका मुख्य भोजन चूहा है। भारतीय संस्कृति में पक्षियों के संरक्षण, संवर्धन की बात है। देवी-देवताओं के वाहन पक्षियों को बनाया गया है। उल्लू धन की देवी लक्ष्मी का वाहन है। उल्लू का भोजन चूहों का मंदिर मां करणी माता मंदिर राजस्थान में है।

अंतरराष्ट्रीय बीज बैंक

जलवायु परिवर्तन, औद्योगिक विकास के साथ मानवीय गतिविधियों के चलते जैव विविधता का ह्रास हो रहा है। पेड़, पौधों, जीव-जंतुओं को विलुप्त होने से बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास चल रहे हैं। इन्हें बचाना मानवता को बचाना ही है। साल 2000 में लंदन में अंतरराष्ट्रीय बीज बैंक की स्थापना की गई। बीज बैंक में अब तक 10 फीसदी जंगली पौधों के बीज संग्रहित हो चुके हैं। नार्वे में ‘स्वाल बार्ड ग्लोबल सीड वाल्ट’ की स्थापना की गई है, जिसमें विभिन्न फसलों के 11 लाख बीजों का संरक्षण किया जा रहा है। ‘द एलायंस फॉर जीरो एक्सटिंशन’ में पर्यावरण एवं वन्य जीवों के क्षेत्र के 13 जानेमाने संगठन हैं। इसके तहत किए गए अध्ययन में 395 ऐसे स्थानों का विवरण तैयार किया गया है, जहां कोई न कोई प्रजाति के विलुप्त होने का खतरा है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में 800 से ज्यादा प्रजातियां सिर्फ एक ही स्थान पर पाई जाती हैं। अगर इन्हें संरक्षित नहीं किया गया तो कई विलुप्त हो जाएंगी। धरती की जैव विविधता ‘जियो और जीने दो’ जैसी लीक पर चलकर संरक्षित किया जा सकता है। प्रकृति, जीव-जंतु और मनुष्य के बीच सामंजस्य कायम रहेगा, तब तक विविधता रंग बने रहेंगे और मानव जीवन में बहारे आती रहेंगी। करते हुए आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी। स्कूल, कालेजों की भी छुट्टी करनी पड़ गई। भारत लगातार इस स्थिति को कम से कम दो सालों से तो झेल ही रहा है। चीन की मियू नदी में इतना अधिक दूषित तेल प्रवाहित किया जा रहा था कि एक दिन उसमें आग लग जाने से पूरी नदी ही सुलगने लगी। भारत में भले हालात अभी इतने बुरे नहीं हैं, पर जो स्थितियां हैं, वह कभी भी बड़ी त्रासदी को जन्म दे सकते हैं। शासकीय प्रयासों से व्याप्त प्रदूषण के स्तर


08 विशेष

विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस (26 नवंबर) पर विशेष

20 - 26 नवंबर 2017

चिपको की राह और सबक

चिपको आंदोलन से 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन तक पर्यावरण सुरक्षा को लेकर हुई पहल की लंबी परंपरा है

स्व

तंत्र भारत में पर्यावरण चेतना और आंदोलन के इतिहास को देखें तो चिपको आंदोलन का ध्यान सबसे पहले आता है। यह आंदोलन अप्रैल, 1973 में जगल और पेड़ों की सुरक्षा के लिए अहिंसक प्रतिबद्धता के साथ शुरू हुआ था। चिपको को लेकर छपे लेखों में एक प्रतिबद्ध पत्रकार ने एक बार लिखा था कि गांधी जी के भूत ने हिमालय के वृक्षों को बचाया है। चिपको आंदोलन से 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन तक पर्यावरण सुरक्षा को लेकर हुई पहल की लंबी परंपरा है। इस परंपरा में कभी संस्थाओं ने तो कभी कुछ लोगों के समूह या फिर कभी अकेले किसी व्यक्ति ने जल संरक्षण से लेकर जैविक खेती और वृक्षों की रक्षा तक कई महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। प्रेरणा और ऐतिहासिक भूमिका की दृष्टि से जिन दो असाधारण गांधीवादी पर्यावरणविदों की चर्चा सबसे जरूरी है, वे हैं चंडी प्रसाद भट्ट और सुंदरलाल बहुगुणा। चिपको को लेकर प्रसिद्धि पाने वाले भट्ट और बहुगुणा की कार्यशैली पर गौर करें तो कुछ और बातें साफ होती हैं। भट्ट और उनका संगठन दशौली ग्राम स्वराज्य मंडल (डीजीएसएम) ने चिपको के उद्भव में शुरूआती भूमिका निभाई थी। इसकी तकनीकें स्वयं भट्ट ने मंडल के ग्रामवासियों को बताई थी। व्यावसायिक फैक्ट्रियों के विरूद्ध प्रदर्शन को समन्वित करने से लेकर डीजीएसएम ने पर्यावरणीय पुनरूद्धार पर अपना ध्यान केंद्रित किया। इसने हिमालय क्षेत्र में

चिपको आंदोलन अप्रैल, 1973 में जगल और पेड़ों की सुरक्षा के लिए अहिंसक प्रतिबद्धता के साथ शुरू हुआ था। चिपको को लेकर छपे लेखों में एक प्रतिबद्ध पत्रकार ने एक बार लिखा था कि गांधी जी के भूत ने हिमालय के वृक्षों को बचाया है

अलकनंदा के गावों में वृक्षारोपण कार्य के लिए महिलाओं को संगठित करने में पहल की। चूंकि चंडी प्रसाद भट्ट की गिनती चिपको के अगुआ के रूप में ज्यादा होती है, इसीलिए कई बार इसमें

सुंदरलाल बहुगुणा के सामाजिक कार्यों के महत्व और चिपको आंदोलन को उससे मिली ताकत के बारे में हम गहराई से नहीं समझ पाते हैं। दरअसल, बहुगुणा और उनकी पत्नी विमला

जल प्रदूषण नियंत्रण एवं निवारण अधिनियम 1976 में अर्थदंड एवं कारावास के प्रावधानों के बावजूद कई नदियां जहरीली हो चुकी हैं। प्लास्टिक वेस्ट पर कानून में भी भारी अर्थदंड के बावजूद प्लास्टिक कचरों के ढेर बढ़ रहे हैं

पर काफी कमी आई है, किंतु अगर महज कानूनी प्रयासों के स्थान पर सामूहिक सामंजस्य एवं आपसी समझ के द्वारा प्रयास किए जाते तो प्रदूषण के स्तर पर और ज्यादा अच्छे से नियंत्रण करना संभव हो पाता। जितना श्रम, साधन, धन एवं समय हम सब

प्रदूषण नियंत्रण एवं पर्यावरण संरक्षण के कानूनी मार्ग में व्यय करते हैं, उसका एक चौथाई भी हमने सामूहिक, सामाजिक सामंजस्य के द्वारा किए होते तो इतनी बुरी स्थिति कभी भी नहीं बनती। एक अध्ययन के अनुसार धरती का पानी 70

प्रतिशत प्रदूषित हो चुका है। उन्नत कृषि के नाम पर इस्तेमाल रासायनिक खादों, कीटनाशकों, उद्योगों के विसर्जन और कुछ रूढ़ कर्मकांडीय परंपराएं पानी को गंभीर रूप से प्रदूषित कर रहे हैं। न सिर्फ भारत में बल्कि, दुनिया के ज्यादातर देशों में जल के लिए लोक चेतना का पूर्ण अभाव है। यह अभाव पर्यावरण संरक्षण के दूसरे मुद्दों पर देखा जा सकता है। रूसो का कथन है कि हमें आदत न डालने की आदत डालनी चाहिए। रूसो ने प्रकृति की ओर लौटने का आह्वान आज से 300 वर्ष पूर्व किया था। हमें निश्चित रूप से प्रकृति की ओर लौटना होगा। लेकिन प्रकृति की ओर लौटने की हमारी शैली पुरातन

सरला देवी कैथरीन मैरी हैलमैन द्वारा पहाड़ियों में प्रशिक्षित किए गए पहले सर्वोदय कार्यकर्ताओं के समूह में से थे। सरला देवी महात्मा गांधी की शिष्या थीं, जो 1940 के दशक में कुमायूं की ओर आ गईं। बहुगुणा ने उनके घर भागीरथी घटी में 1977 और 1980 के मध्य अनेक महत्वपूर्ण चिपको आंदोलन के विरोध प्रदर्शन आयोजित किए। यही नहीं, एक अथक पदयात्री के रूप सुंदरलाल बहुगुणा अपनी से आधी उम्र के लोगों के जोश के साथ भारत और विदेशों में व्यापक भ्रमण कर चुके हैं। वे एक आकर्षक वक्ता भी रहे हैं। अपनी इस क्षमता के सहारे उन्होंने शहरी प्रबुद्ध वर्ग को अनियंत्रित भौतिकवाद के खतरों के प्रति सचेत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बहुगुणा औद्योगिक समाज की गंभीर आलोचना करते समय गांधी जी की ‘हिंद स्वराज’ के अनुसरण के काफी करीब दिखाई देते हैं। जैसा कि बहुगुणा के भ्रमण, दौरों एवं व्याख्यानों से भी जाहिर होता है कि बहुगुणा व्यक्तियों की चेतना को एक सारमय अपील करते हैं, उन्हें उपभोक्तावाद के सशपथ त्याग एवं सादे जीवन की ओर लौटने के लिए तर्क देते हैं। इनके मुकाबले भट्ट और उनका समूह केंद्रीकृत विकास के स्थानापन्न टिकाई विकास को व्यवहार रूप में लाने के लिए कार्य करने को अहमियत देता है। निस्संदेह भट्ट के कार्यों ने महात्मा गांधी के आदर्श ग्राम स्वराज्य या ग्राम निर्भरता को एक नया पारिस्थितिकीय अर्थ देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। न होकर नूतन रहेगी। प्रकृति के साथ जो भूल मानव जाति अनजाने में कर रही है, उसकी पुनरावृत्ति को रोकना होगा। अपनी सुरम्य प्रकृति की ओर लौटना होगा और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए विश्वस्तर पर पर्यावरणीय शिक्षा की आवश्यकता की अनुभूति की जाने लगी। प्रकृति व पर्यावरण की रक्षा के लिए हुए खेजड़ली के आत्मोत्सर्ग, चिपको आंदोलन और एप्पिको आंदोलन को कौन भूल सकता है। पर्यावरण संरक्षण के लिए देश में 200 से भी ज्यादा कानून हैं। इन कानूनों का खुलेआम उल्लंघन होता है और भारत विश्व के सबसे प्रदूषित देशों की श्रेणी में आता है। पर्यावरण एवं प्रकृति संरक्षण भले ही एक कानूनी मुद्दा अवश्य है, किन्तु इसे सर्वाधिक रूप से शुद्ध करने के लिए, इसे संरक्षित रखने के लिए समाज के सभी अंगों के मध्य आवश्यक समझ एवं सामंजस्य के द्वारा, सामूहिक प्रयास किया जाना ज्यादा जरूरी है। दरअसल, इसके लिए सामाजिक जागरूकता की जरूरत है। पर्यावरण संरक्षण जनजागृति के बिना अपूर्ण रहेगा, सरकार तथा अंतरराष्ट्रीय संगठन चाहे कितना भी प्रयास करें। वास्तव में पर्यावरण को समग्रता में देखा जाए और जितना जरूरी सुंदर परिवार के साथ जीवन है उतना ही जरूरी सुंदर पर्यावरण है।


20 - 26 नवंबर 2017

आधी दुनिया की हरी-भरी पहल

विशेष

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भारतीय महिलाएं, पुरुषों से किसी लिहाज से कम नहीं हैं। एेसे में भला पर्यावरण संरक्षण में वे पीछे क्यों रहें सुरक्षा में बड़े ही मनोयोग से जुड़ी है। उनके इस उत्साह एवं सफलता को देखते हुए ही पर्यावरणसंरक्षण के लिए वर्ष 1991 का ‘केपी गोयनका पुरस्कार’ इन महिलाओं द्वारा तैयार ‘सेवा मंडल’ नामक संस्था को मिला है।

हिमाचल की महिलाएं

एसएसबी ब्यूरो

ह बात कई बार रेखांकित हो चुकी है कि भारतीय महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं हैं। चाहे स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी की बात हो, कला का क्षेत्र हो, साहित्य का क्षेत्र हो, समाज सेवा का क्षेत्र हो अथवा साहसिक कारनामों का क्षेत्र हो। भारतीय महिलाएं, पुरुषों से किसी लिहाज से कम नहीं हैं। एेसे में भला पर्यावरण संरक्षण में वे पीछे क्यों रहें। सर्वप्रथम हम अपनी सामाजिक प्रथाओं और रीति-रिवाजों को देखें तो पता चलता है कि प्राचीन काल से ही महिलाएं पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरुक रही हैं, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण आज भी महिलाओं द्वारा व्रत-त्योहार के अवसर पर या यों भी पूजा-अर्चना में अनेक वृक्षों यथा-पीपल, तुलसी, आंवला, अशोक, बेल, शमी, नीम, आम आदि वृक्षों तथा अनेक फूलों को शामिल करती हैं। यही नहीं, उनकी नजर में विभिन्न पशुओं यथा गाय, बैल, चूहा, घोड़ा, सांप, बंदर, उल्लू आदि भी अहम हैं, क्योंकि विभिन्न पर्व-त्योहारों में महिलाएं इन्हें भी पूजती हैं। जल स्रोतों के प्रति भी संरक्षण की भावना महिलाओं में प्राचीन काल से ही चली आ रही है, जैसे- गंगापूजन, कुओं की पूजा करना अथवा तालाब की पूजा करना। साफ है कि संपूर्ण पारिस्थितिकी को संतुलित बनाए रखने के प्रति महिलाएं सदैव से ही अग्रणी रही हैं। भारतीय संस्कृति में रची-बसी महिलाओं द्वारा प्रकृति-संरक्षण अथवा पर्यावरण-संरक्षण की यह भावना पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आई है एवं आज भी देखने को मिलती है। यहां एक बात साफ कर देना समीचीन प्रतीत होता है कि भारत की सामाजिक

रचना में जहां महिलाओं की अपेक्षा पुरुष कई गुना अधिक महत्त्वपूर्ण एवं सुविधाभोगी है, खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरण प्रदूषण ने महिलाओं की जीवन-शैली को बुरी तरह प्रभावित किया है। यही कारण है कि पर्यावरण एवं प्रकृति से सीधे रूप में जुड़ने में ग्रामीण महिलाएं पर्यावरण संरक्षण के प्रति अधिक सचेष्ट हैं। पर्यावरण सुरक्षा पर विमर्श का एक जेंडर एंगल भी है। मसलन, आज ऐसे क्षेत्रों में जहां अंधाधुंध पेड़ काटे जा रहे हैं, वहां महिलाओं को रसोई के लिए लकड़ी लाने के लिए घर के पुरुष महिलाअों को कई किलोमीटर दूर तक जाने को विवश करते हैं इसी तरह जहां पानी की किल्लत है, वहां पानी जुटाने का दायित्व आमतौर पर महिलाओं पर ही है। कई इलाकों में एक-एक घड़ा पानी के लिए महिलाअों को 10-15 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है। अपने कई अध्ययनों से वरिष्ठ पर्यावरणविद अनुपम मिश्र ने यह बताया है कि एेसे क्षेत्रों में पर्यावरण सुरक्षा को लेकर कोई भी पहल शुरू होती है तो उसमें पहली पंक्ति में महिलाएं नजर आती हैं। मिश्र ने ऐसे प्रयोगों के उदाहरण राजस्थान से लेकर, हिमाचल, उत्तराखंड और तमिलनाडु जैसे राज्यों में चले पर्यावरण संर7ण आंदोलनों के लेकर गिनाए हैं। दरअसल, प्राकृतिक संसाधनों यथा- वन, मिट्टी एवं जल से महिलाओं का सीधा एवं गहरा संबंध है। पारंपरिक तौर पर महिलाओं को ही इनका संरक्षक माना भी गया है। सतौर से आदिवासी लोगों में तो वनसंपदा की अर्थव्यवस्था पूर्णतया महिलाओं की ही मानी जाती है। यही कारण है कि पर्यावरण-संरक्षण, खासतौर से वन-संरक्षण में महिलाओं की भागीदारी अत्यंत ही महत्वपूर्ण हो गई है और महिलाएं इसके प्रति जागरुक भी हैं।

चिपको आंदोलन

देश के पर्वतीय अंचलों में चले ‘चिपको आंदोलन’ ने पर्यावरण संरक्षण खासतौर से वन-संरक्षण की दिशा में एक नई चेतना पैदा की है। यह आंदोलन पूर्णतया महिलाओं से जुड़ा है और इस इसने यह सिद्ध कर दिया कि जो काम पुरुष नहीं कर सकते, उसे महिलाएं कर सकती हैं। यह आंदोलन उत्तराखंड के चमोली, कुमाऊं, गढ़वाल, पिथौरागढ़ आदि में प्रारंभ हुआ और जंगलों के विनाश के विरुद्ध सफल आंदोलन के रूप में पूरी दुनिया में सराहा जा चुका है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस आंदोलन का संचालन करने वाली महिलाएं पहाड़ी ग्रामीण क्षेत्रों की रहने वाली निरक्षर एवं अनपढ़ महिलाएं हैं। यह स्वतः स्फूर्त एवं अहिंसक आंदोलन विश्व के इतिहास को महिलाओं की अनूठी देन है। यह आंदोलन उनका अपनी जीवनरक्षा का आंदोलन है। इन महिलाओं ने अपने आंदोलन को इस तरह से संगठित किया है कि उनके गांवों का प्रत्येक परिवार जंगलों की रक्षा के लिए सुरक्षाकर्मी तैनात करके सामूहिक चंदा अभियान से उनके वेतन भुगतान की व्यवस्था करता है। इन महिलाओं के शब्दकोश में असंभव नामक कोई शब्द है ही नहीं। इस आंदोलन की प्रमुख अगुआ गायत्री देवी रहीं।

सेवा मंडल की महिलाएं

राजस्थान में उदयपुर के निकट ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर ऊसर एवं रेतीली भूमि को हरे-भरे खेतों में बदल रही हैं। ‘सेवा मंडल’ एक संस्था ने पिछड़े भील समुदाय को इतना अधिक प्रेरित किया है कि अब वह सैकड़ों वर्षों से वीरान पड़ी भूमि को हरा-भरा बनाने में जुट गया है। यह संस्था उदयपुर के छह विकासखंडों की

हिमाचल प्रदेश की महिलाएं भी पर्यावरण-संरक्षण कार्यक्रम में किसी से पीछे नहीं हैं। यहां की महिलाएं छोटे-छोटे गुट बनाकर आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं। यही कारण है कि अखबारों में इनकी चर्चा तक नहीं है। हिमाचल प्रदेश में ही रामपुर परगने में तुरू नाम का एक गांव है। गांव की महिलाओं ने देवदार में वृक्षों को काटने से बचाकर अच्छा खासा तहलका मचा दिया है। केशू देव नाम की एक महिला की जमीन पर देवदार के पेड़ लगाए थे। जब उसकी मौत हो गई तो उसका लड़का उन पेड़ों को काटकर उस भूमि का प्रयोग दूसरे कार्यों में करना चाहता था। किन्तु स्थानीय महिला मंडल से जुड़ी महिलाएं सक्रिय हो गईं और उन्होंने पेड़ों को काटे जाने का प्रयास विफल कर दिया।

बिश्नोई समाज की महिलाएं

राजस्थान की बिश्नोई समाज की महिलाओं ने भी इस एेसा ही एक अनोखा उदाहरण पेश किया है। थार रेगिस्तान के मध्य बिश्नोई जाति की बस्ती एक नखलिस्तान की तरह दिखती है। यह इस जाति की महिलाओं का पेड़ों के प्रति अनुराग का फल है। उनके समाज में एक लोक कथा प्रचलित है कि प्राचीन काल में जब राजा के नौकर एवं कर्मचारी राजमहल बनाने के लिए वृक्षों को काटने आते थे इस जाति की महिलाएं पेड़ों को काटने से बचाने की दृष्टि से पेड़ों से ही लिपट जाती थीं और कर्मचारी पेड़ों के साथ निर्दयतापूर्वक महिलाओं को भी काट देते थे। जब राजा ने यह सुना कि पेड़ों के साथ महिलाएं भी काट डाली जा रही हैं, तो राजा ने उस क्षेत्र में जंगलों को कटवाना रोक दिया। इस तरह विश्नोई जाति की महिलाओं ने न केवल उस समय पेड़ों की सुरक्षा की, बल्कि एक इतिहास रच डाला, जो आज भी महिलाओं के लिए प्रेरणा का काम करता है और आज भी पहाड़ों पर महिलाएं यही प्रक्रिया अपना कर पेड़ों को बचाने में लगी हैं।

चिपको की तर्ज पर ‘अप्पिको’

दक्षिण में भी चिपको आंदोलन की तर्ज पर ‘अप्पिको’ आंदोलन उभरा, जो 1983 में कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ क्षेत्र से शुरू हुआ। वहां सलकानी तथा निकट के गांवों के जंगलों को वन विभाग के आदेश से काटा जा रहा था। तब इन गांवों की महिलाओं ने पेड़ों को गले से लगा लिया। यह आंदोलन लगातार 38 दिनों तक चला। सरकार को मजबूर हो कर पेड़ों की कटाई रुकवाने का आदेश देना पड़ा।


10 विशेष

बा

विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस (26 नवंबर) पर विशेष

20 - 26 नवंबर 2017

पर्यावरण और ‘हिंद स्वराज’

गांधी जी ने बहुत पहले ही आधुनिक औद्योगिक समाज के पारिस्थितकीय संकट का अनुमान लगा लिया था और इसका तार्किक जिक्र उन्होंने अपनी पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ में किया है

एसएसबी ब्यूरो

त पर्यावरण की हो रही हो और महात्मा गांधी का जिक्र न हो ऐसा नहीं हो सकता। वैसे प्रकृति, पर्यावरण और महात्मा को लेकर साझा विचार करने का कोई एक प्रस्थान बिंदु नहीं हो सकता है। गांधी जी ने बहुत पहले ही आधुनिक औद्योगिक समाज के पारिस्थितकीय संकट का अनुमान लगा लिया था। इसीलिए यह प्रश्न कि क्या गांधी मौलिक तौर पर पर्यावरणवादी थे, तो इसका उत्तर यही है कि इसके लिए गांधी विचार को एकांगी या वर्गीकृत तौर पर नहीं बल्कि समग्रता के साथ देखना होगा। इस दृष्टि से गांधी की पुस्तिका ‘हिंद स्वराज’ सबसे अहम है। दिलचस्प है कि यह पुस्तिका वास्तव में तब लिखी गई थी जब गांधी दक्षिणी अफ्रीका में थे। इसमें उन्होंने सभ्यता और विकास को लेकर अपनी अहिंसक समझ की पूरी अवधारणा को स्पष्ट किया है। 1914 में अपने भारत आगमन पर गांधी जी ने अपने आप को तत्काल गांवों की सामाजिक व आर्थिक स्थितियों का प्रत्यक्ष परिचय पाने में लगा दिया। भारतीय गांवों में उनकी यात्राओं के द्वारा तथा चंपारण व खेड़ा में किसानों द्वारा प्रारंभिक सत्याग्रहों के दौरान गांधी ने उपनिवेशवाद को एक आर्थिक शोषण और जातीय विभेद की व्यवस्था की तरह स्पष्ट रूप से देखा। वैसे इसका अनुभव वह दक्षिणी अफ्रीका में भी कर चुके थे। भारतीय गांवों में अपनी तल्लीनता तथा उपनिवेशवाद की इस गहरी समझ के द्वारा गांधी ने यह देखा कि औद्योगिक विकास के पश्चिमी नमूने के साथ बराबरी करना भारत के लिए असंभव होगा। इसके लिए तो भारत को अपनी परंपरा और पुरुषार्थ की जमीन को हराभरा करना होगा। ‘यंग इंडिया’ के 20 दिसंबर, 1928 को वे लिखते हैं, ‘ईश्वर न करे कि भारत भी कभी पश्चिमी देशों के ढंग का औद्योगिक देश बने। एक अकेले इतने छोटे से द्वीप (इंग्लैंड) का आर्थिक साम्राज्यवाद ही आज संसार को गुलाम बनाए हुए है। 30 करोड़ आबादी वाला हमारा समूचा राष्ट्र भी अगर इसी प्रकार के आर्थिक शोषण में जुट गया तो वह सारे संसार पर एक टिड्डी दल की भांति छाकर उसे तबाह कर देगा।’ गांधी जी अपनी इस पूरी समझ में गांव और गरीब के हक में इस लिहाज से भी खड़े दिखाई देते हैं कि वे हमेशा गांवों की रचनात्मक ताकत को चिन्हित करते हैं और इसे ही भविष्य के भारत की ताकत बनाना चाहते हैं। 23 जून, 1946 को ‘हरिजन’ में छपे एक आलेख में वे कहते हैं, ‘ग्रामीण रक्त ही वह सीमेंट है, जिससे शहरों की इमारतें बनती हैं।’ ‘हरिजन’ में ही 11मई, 1935 को दर्ज अपने एक अनुभव में वे कह चुके होते हैं, ‘हम इस सुंदर पंडाल में बिजली की रोशनी की चकाचौंध में बैठे हैं लेकिन हम नहीं जानते कि हम इस रोशनी को गरीबों की

खास बातें

गांधी जी 'पर्यावरण' शब्द का इस्तेमाल नहीं करते थे ‘ग्रामीण रक्त ही वह सीमेंट है, जिससे शहरों की इमारतें बनती हैं’ उन्होंने उपनिवेशवाद को एक आर्थिक शोषण के रूप से देखा

कीमत पर जला रहे हैं।’ दिलचस्प है कि गांधी के लेखन या चिंतन में ‘पर्यावरण’ शब्द का प्रयोग नहीं मिलता है। वैसे यह एक भाषागत मुद्दा है न कि वैचारिक। हिंदी में ‘पर्यावरण’ शब्द वैसे भी ‘एनवायरेंटमेंट’ शब्द के हिंदी अनुवाद से ही ज्यादा प्रचलन में आया है। वरिष्ठ पर्यावरणविद अनुपम मिश्र भी कहते थे कि अगर हमें जीवन और प्रकृति के बीच संबंधों को

लेकर उनके देशज जड़ों तक पहुंचना है तो हमें देशज भाषा की मदद लेनी चाहिए। उन्होंने शोध करके बताया था कि जिस राजस्थान में बादल का बरसना तो दूर, उसकी छाया भी वहां के लोगों नसीब नहीं होती, वहां बादल और मेघ के लिए एक-दो नहीं, बल्कि दर्जनों स्थानीय शब्द हैं। तारीफ ये कि इसमें एक भी शब्द दूसरे शब्द के पर्यावाची नहीं, बल्कि सभी अलग-अलग लक्ष्यार्थों को व्यक्त करते

1914 में अपने भारत आगमन पर गांधी जी ने अपने आप को तत्काल गांवों की सामाजिक व आर्थिक स्थितियों का प्रत्यक्ष परिचय पाने में लगा दिया

हैं। साफ है कि पर्यावरण शब्द का प्रचलन और उसको लेकर चिंता भले नई हो, पर पर्यावरण के साथ हमारे भाषिक-सांस्कृतिक सरोकार और संस्कार बहुत पहले से जुड़े रहे हैं। इन सरोकारों-संस्कारों के कारण ही कई लोग खुद को पर्यावरण कार्यकर्ता या प्रेमी कहलाने के बजाय प्रकृतिवादी अथवा प्रकृति प्रेमी कहलाना पसंद करते हैं। दरअसल, सभ्यता विकास के जिन आरंभिक बोधों के साथ मनुष्य आगे बढ़ा, उनमें हवा, पानी, पर्वत, नदी, वन, वनस्पति, पशु-पक्षी आदि के साथ एक समन्वयवादी संबंध शामिल रहा। उषा की प्रार्थना, सूर्य नमस्कार, नदियों की पूजा-आरती, पर्वतों की वंदना, जड़-चेतन सबमें ब्रह्म के होने की परिकल्पना, प्रकृति के प्रति करुणा का भाव आदि ने एक तरह से भारतीय जीवनशैली को गढ़ा है। भारतीय चिंतन की यही प्रवृति हमें गांधी के चिंतन में भी दिखाई पड़ती है। गांधी पर्यावरण शब्द का इस्तेमाल नहीं करते, क्योंकि उनके समय में यह शब्द प्रचलित नहीं था। पर पर्यावरण को लेकर आज जो भी आशय प्रकट किए जाते हैं या चिंता जताई जा रही है, गांधी उससे पूरी तरह जुड़े दिखाई पड़ते हैं। प्रेम और करुणा का भाव उन्हें प्रकृति के साथ रचनात्मक साहचर्य के लिए तो प्रेरित करता ही रहा, संत विनोबा सरीखे कुछ विद्वानों की नजर में ये भाव उन्होंने प्रकृति से ही ग्रहण भी किए। प्रकृति प्रदत्त नियमों से उनका गहरा लगाव व्यवहार में तो सामने आया ही है, इसे उन्होंने शब्दों में भी व्यक्त किया है। 20 अक्टूबर 1927 के ‘यंग इंडिया’ के अंक में छपे एक लेख में हिंदू धर्म की विशेषता बताते हुए वे कहते हैं- ‘हिंदू धर्म न केवल मनुष्य मात्र की बल्कि प्राणिमात्र की एकता में विश्वास करता है। मेरी राय में गाय की पूजा करके उसने दया धर्म के विकास में अद्भुत सहायता की है। यह प्राणिमात्र की एकता में विश्वास रखने का व्यावहारिक प्रयोग है।’ जाहिर है कि जो व्यक्ति प्राणिमात्र की एकता में विश्वास करेगा, वह चर-अचर, पशु-पक्षी, नदीपर्वत-वन सबके सहअस्तित्व में भी जरूर विश्वास


20 - 26 नवंबर 2017 करेगा और उस सब के संरक्षण के लिए सदैव तत्पर रहेगा। आज पर्यावरण बचाने के नाम पर बाघ, शेर, हाथी आदि जानवरों, नदियों, पक्षियों, वनों आदि को बचाने का जो विश्वव्यापी स्वर उठ रहा है, गांधी की दृष्टि में इसका सबसे अच्छा समाधान सभी प्राणियों की एकता और सहअस्तित्व को जीवन संस्कार बनाना है।

शारीरिक श्रम

गांधी जहां एक तरफ आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखने पर बल देते और इस कार्य को खुद भी करते थे, तो वहीं दूसरी तरफ वे अहिंसा के अंतर्गत समस्त प्राणियों की रक्षा पर बल देते हुए ऐसी उत्पादन-पद्धति को वांछनीय समझते थे जो प्रकृति के दोहन-शोषण से मुक्त रह कर मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम हो सके। इसी सोच की भूमि पर खड़े होकर वे आजीवन अंध मशीनीकरण का विरोध करते रहे। वे इसे मनुष्य को उसके शारीरिक श्रम से वंचित करने का कारण मानते थे। जो लोग गांधी की अहिंसा का दायरा सिर्फ मनुष्य द्वारा मनुष्य के खिलाफ हिंसा का विरोध या शाकाहार भर समझते हैं, वे उनकी अहिंसा को अधूरे तरीके से समझते हैं। वस्तुत: जब तक नाना प्राकृतिक संसाधनों-वनस्पतियों, नदियों, पर्वतों के साथ-साथ पशु-पक्षियों को आवास सुलभ कराने वाले स्थानों की कीमत पर चलने वाली औद्योगिक पद्धति को बदल कर उसे मानव श्रम, प्रकृति की संगति पर आधारित नहीं करते, तब तक अहिंसा अपने संपूर्ण संदर्भ में अर्थपूर्ण नहीं हो सकती।

‘हिंद स्वराज’

मशीनीकरण को लेकर गांधी के बीज विचार ‘हिंद स्वराज’ में प्रकट हुए हैं। 1909 में प्रकाशित यह पुस्तिका गांधी विचार की कुंजी मानी जाती है। बाद में खुद गांधी ने भी माना था कि वे ‘हिंद स्वराज’ में प्रकट विचार पर आजीवन कायम रहेंगे और इसमें एक शब्द तक के हेर-फेर के लिए वे तैयार नहीं हैं। 1909 में आई इस पुस्तिका को प्रकाशित हुए सौ साल से ज्यादा हो गए हैं, पर आज भी गांधी विचार की यह टेक अपनी प्रासंगिक व्याख्याअं के साथ

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पक्ष एकमात्र समाधान की तरह दिखता है। अच्छी बात यह होगी कि यह समाधान चिंतन और चर्चा से आगे हमारे जीवन में भी स्थायी जगह बनाए।

विकेंद्रित अर्थव्यवस्था

वृक्ष पूजा

आज पर्यावरण-रक्षा के नाम पर पौधारोपण का जो अभियान चलाया जा रहा है, उसके महत्त्व से गांधी भी अवगत थे और अपने धर्म का दायरा विस्तृत करते हुए उसमें वृक्ष-पूजा को भी उन्होंने शामिल कर लिया था। इस संबंध में ‘यंग इडिया’ के 26 सितंबर 1929 के अंक में उनके छपे लेख का यह अंश दृष्टव्य है- ‘ वृक्ष पूजा में कोई मौलिक बुराई या हानि दिखाई देने के बजाय मुझे तो इसमें एक गहरी भावना और काव्यमय सौंदर्य ही दिखाई देता है। वह समस्त वनस्पति-जगत के लिए सच्चे पूजा-भाव का प्रतीक है। वनस्पति जगत तो सुंदर रूपों और आकृतियों का भंडार है, उनके द्वारा वह मानो असंख्य जिह्वाओं से ईश्वर की महानता और गौरव की घोषणा करता है। वनस्पति के बिना इस पृथ्वी पर जीवधारी एक क्षण के लिए भी नहीं रह सकते। इसीलिए ऐसे देश में जहां खासतौर पर पेड़ों की कमी है, वृक्ष-पूजा का एक गहरा आर्थिक महत्व हो जाता है।’

विशेष

वरिष्ठ पर्यावरणविद अनुपम मिश्र भी कहते थे कि अगर हमें जीवन और प्रकृति के बीच संबंधों को लेकर उनके देशज जड़ों तक पहुंचना है तो हमें देशज भाषा की मदद लेनी चाहिए लगातार चर्चा में बनी हुई है। इसमें मशीनीकरण के अंधे दौड़ को लेकर एक जगह वे दो टूक कहते हैं, ‘ऐसा नहीं था कि हमें यंत्र वगैरह की खोज करना आता नहीं था। लेकिन हमारे पूर्वजों ने देखा कि लोग यंत्र वगैरह की झंझट में पड़ेंगे, तो गुलाम ही बनेंगे और अपनी नीति को छोड़ देंगे। उन्होंने सोच-समझ कर कहा कि हमें अपने हाथ-पैरों से जो काम हो सके वही करना चाहिए। हाथ-पैरों का इस्तेमाल करने में ही सच्चा सुख है, उसी में तंदुरुस्ती है।’ वस्तुत: गांधी की दृष्टि में श्रम आधारित उद्योगशिल्प ही वह चीज है, जिसकी बदौलत मनुष्य भोजन, वस्त्र, आवास जैसी आवश्यकताओं के लिहाज से स्वावलंबी रहता आया था और अन्य प्राणी भी

सुरक्षित रहते आए थे। इस जीवन संस्कार की ही यह देन रही कि पेयजल संकट, ग्लोबल वार्मिंग, पशुपक्षियों और पेड़ों की कई प्रजातियों के समाप्त होने के खतरे जैसे अनुभव लंबे दौर में कभी हमारे सामने नहीं आए। ये संकट तो उस आधुनिकता के साथ सामने आए जिसकी शुरुआता यूरोपीय औद्योगिक क्रांति से मानी जाती है। औद्योगिक क्रांति ने उत्पादन के जिस अंबार और उसके असीमित अनुभव के लिए हमें प्रेरित किया, उसकी पूरी बुनियाद मजदूरों का शोषण पर टिकी थी। दिलचस्प है कि ज्यादा उत्पादन और असीमित उपभोग को जहां आगे चलकर विकास का पैमाना माना गया, वहीं प्राकृतिक संपदाओं के निर्मम दोहन को लेकर सबने एक तरफ से आंखें मूंदनी शुरू कर दी। कार्ल मार्क्स ने इस उत्पादन-उपभोग की इस होड़ में मजदूरों के शोषण को तो देखा, लेकिन मनुष्येतर प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को, मशीनीकरण की आंधी से उजड़ते यूरोप को वे नहीं देख सके। इसे अगर किसी ने देखा तो वे थे गांधी। उन्होंने ‘हिंद स्वराज’ में साफ शब्दों में कहा, ‘मशीनें यूरोप को उजाड़ने लगी हैं और वहां की हवा अब हिंदुस्तान में चल रही है। यंत्र आज की सभ्यता की मुख्य निशानी है और वह महापाप है। मशीन की यह हवा अगर ज्यादा चली, तो हिंदुस्तान की बुरी दशा होगी।’ कहना नहीं होगा कि गांधी ने औद्योगीकरण की अविवेकी राह पर चलते हुए मनुष्य और प्रकृति दोनों के धीरे-धीरे मिटते जाने का खतरा आज से सदी पहले भांप लिया था। लिहाजा, आज ग्लेशियरों के पिघलने से बढ़े ग्लोबल वार्मिंग के संकट से लेकर जल और वायु प्रदूषण के तमाम खतरों के बीच प्रकृति, प्रेम और करुणा का गांधी का समन्वयवादी

गांधी जिस ग्राम स्वराज की बात करते हैं उसकी रीढ़ है कृषि और ग्रामोद्योग। इसे ही विकेंद्रित अर्थव्यवस्था का नाम दिया गया। गांधी ने कृषि अर्थव्यवस्था में भारत के चिरायु स्वावलंबन के बीज देखे थे। ऐसा भला होता भी क्यों नहीं, क्योंकि वे दक्षिण अफ्रीका से भारत आने पर सबसे पहले गांवों की तरफ गए, किसानों के बीच खड़े हुए। चंपारण सत्याग्रह इस बात की मिसाल है कि गांधी स्वराज की प्राप्ति के साथ जिस तर्ज पर अपने सपनों के भारत को देख रहे थे, उसमें किसान महज हरवाहा-चरवाहा या कुछ मुट्ठी अनाज के लिए चाकरी करने वाले नहीं थे, बल्कि देश के स्वावलंबन का जुआ अपने कंधों पर उठाने वाले पुरुषार्थी अहिसक सेनानी थे। गांधीवादी अर्थ दृष्टि और कृषि-ग्रामोद्योग की उनकी दरकार को तार्किक आधार देने वाले प्रसिद्ध विद्वान डॉ. जेसी कुमारप्पा ने मशीनीकरण के जोर पर बढ़े शोषण की जगह सहयोग और उपभोग की जगह जरूरी आवश्यकता को मनुष्य के विकास और कल्याण की सबसे बड़ी कसौटी माना। सहयोग और आवश्यकता की इस कसौटी से स्वावलंबी आर्थिक स्थायित्व को तो पाया ही जा सकता है, प्राकृतिक असंतुलन जैसे खतरे से भी बचा जा सकता है। कहने की जरूरत नहीं कि विकास को होड़ की जगह सहयोग के रूप में देखने वाली गांधीवादी दृष्टि विकास और जीवन मूल्यों को अलगाकर नहीं बल्कि साथ-साथ देखती है।

'द इकोनमी ऑफ परमानेंस’

कुमारप्पा अपनी किताब 'द इकोनमी ऑफ परमानेंस’ के पहले अध्याय में ही इस मिथ को तोड़ते हैं कि अर्थ और विकास कभी स्थायी हो ही नहीं सकते। औद्योगिक क्रांति से लेकर उदारीकरण तक का अब तक हमारा अनुभव यही सिखाता रहा है कि विकास की दरकार और उसके मानदंड बदलते रहते हैं।


12 विशेष

विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस (26 नवंबर) पर विशेष

20 - 26 नवंबर 2017

‘ड्राइंग रूम की तरह स्वच्छ हो शौचालय’ गांधी जी को गंदगी में हिंसा का सबसे घृणित रूप छिपा हुआ दिखता था

हात्मा गांधी ने आजादी हासिल करने के अपने अहिंसक आंदोलन की समूची अवधि के दौरान स्वच्छता के अपने संदेश को जीवंत बनाए रखा। नोआखाली नरसंहार के बाद अहिंसा के अपने विचार और व्यवहार की अग्निपरीक्षा की घड़ी में गांधी जी ने अपने इस संदेश को जनजन तक पहुंचाने का कोई अवसर नहीं गंवाया कि स्वच्छता और अहिंसा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक दिन नोआखाली के गड़बड़ी वाले इलाकों में अपने शांति अभियान के दौरान उन्होंने पाया कि कच्ची सड़क पर कूड़ा और गंदगी इसलिए फैला दी गई है, ताकि वह हिंसाग्रस्त इलाके के लोगों तक शांति का संदेश न पहुंचा पाएं। गांधी जी इससे जरा भी विचलित नहीं हुए और उन्होंने इसे उस कार्य करने का एक सुनहरा अवसर माना जो इसी लिहाज से सरकार और समाज भी अर्थ और विकास को लेकर अपनी प्राथमकिताओं में हेरफेर भी करते रहते हैं। पर इस बदलाव का अंतिम लक्ष्य क्या है, इसको लेकर कोई गंभीर सोच कभी सामने नहीं उभरी। जो सोच हर बार सतह पर दिखी, वह यही कि बचेगा वही, टिकेगा वही, जो ताकतवर होगा। अर्थशास्त्रीय शब्दावली में इसके लिए जो सैद्धांतिक जुमला इस्तेमाल होता है, वह है- सर्ववाइवल ऑफ द फिटेस्ट। इस दृष्टि में मानवीय करुणा और अस्मिता के लिए कितना स्थान है, समझा जा सकता है। यह समृद्धि और विकास की हिंसक दृष्टि है। एक ऐसी दृष्टि जो बूट पहनकर दूसरों को रौंदते हुए सबसे आगे निकल जाने की सनक से हमें लैश करती है। इस हिंसक विकास को लेकर कोई एतराज किसी स्तर पर कभी जाहिर नहीं हुआ, ऐसा भी नहीं है। खासतौर पर शीतयुद्ध के खात्मे के साथ भूमंडलीकरण का ग्लोबल जोर शुरू होने पर अमेरिका से लेकर भारत तक कई अराजनीतिक जमात, चिंतक और जागरूक लोगों का समूह इस तार्किक दरकार को सरकारों की नीति पर हावी कराने के संघर्ष में जुटे कि विकास की समझ और नीति मानव अस्मिता और प्रकृति के लिहाज से अकल्याणकारी न हो। आज अर्थ और विकास की हर उपलब्धि को जिस समावेशी दरकार पर खरे उतरने की बात हर तरफ हो रही है, उसके पीछे का तर्क गांधी की समन्वयवादी अवधारणा की ही देन है। वैसे यहां यह भी समझ लेना जरूरी है कि यह देन हमें गांधी के करीब तो जरूर ले जाती है, पर उनसे सीधे जुड़ने से परहेज भी बरतती है। यह परहेज कोई चालाकी है, ऐसा भी नहीं है।

सिर्फ वही कर सकते थे। आसपास की झाड़ियों की टहनियों से झाड़ू बनाकर शांति और अहिंसा के इस दूत ने अपने विरोधियों की गली की सफाई की और हिंसा को ओर भड़कने से रोक दिया। उनके लिए ‘स्वस्थ तन, स्वस्थ मन’ की कहावत में कोई मूर्त अभिव्यक्ति अंतर्निहित नहीं थी, बल्कि इसमें एक गहरा दार्शनिक संदेश छिपा हुआ था। स्वच्छता की कमी एक अदृश्य हत्यारे की तरह है। गांधी जी को गंदगी में हिंसा का सबसे घृणित रूप छिपा हुआ दिखता था। इसीलिए वह सामाजिक-राजनीतिक, दोनों ही तरह की स्वतंत्रता के मार्ग में स्वच्छता और अहिंसा सहयात्री की तरह मानते थे। गांधी जी पश्चिम में स्वच्छता के सुचिंतित नियमों को देख चुके थे, इसलिए वे इन्हें अपने और अपने करोड़ों अनुयायियों के जीवन में अपनाने का लोभ संवरण नहीं कर पाए। हालांकि इसके लिए उन्हों ने जो कार्य शुरू किया उसमें से ज्यादातर अब भी अधूरे ही हैं। ‘वर्षों पहले मैंने जाना कि शौचालय भी उतना

'असंभव संभावना’

गांधी और उनके मूल्यों को लेकर नई व सामयिक व्याख्या रचने वाले सुधीर चंद्र इस परहेज को अपनी तरह से एक 'असंभव संभावना’ के तौर पर देखते हैं। यानी सत्य, प्रेम और करुणा के दीए सबसे पहले

मन में जलाने का आमंत्रण देने वाले गांधी के पास आधे-अधूरे मन से जाया भी नहीं जा सकता। क्योंकि फिर वो सारी कसौटियां एक साथ हमें सवालों से बेध डालेंगी, जो गांधी की नजरों में मानवीय अस्मिता की सबसे उदार और उच्च कसौटियां हैं। बात पर्यावरण संकट को लेकर हो रही है तो गांधी के विकेंद्रीकरण की चर्चा भी चर्चा जरूरी है। भारतीय ग्रामीण परंपरा और संस्कृति में सहअस्तित्व और स्वावलंबन का साझा स्वाभाविक तौर पर मौजूद है। जो ग्रामीण

ही साफ-सुथरा होना चाहिए जितना कि ड्राइंग रूम’, गांधी जी का यह कथन स्वच्छता अभियान के दौरान बार-बार उद्धृत किया जाता है। अपनी जानकारी को ऊंचे स्तर पर ले जाते हुए गांधी जी ने अपने शौचालय को (सेवाग्राम आश्रम में) शब्दश: पूजास्थल की तरह बनाया क्योंकि उनके लिए स्वच्छता दिव्यता के समान थी। शौचालय को इतना महत्व‍ देकर ही जनता को इसके महत्व के बारे में समझाया जा सकता है। इस पर अमल के लिए हमें गंदगी में रहने के बारे में अपनी उस धारणा में बदलाव लाना होगा जिसके तहत हम स्वच्छता को आम बात न मानकर एक अपवाद अधिक मानते हैं। देश को 2 अक्टूबर 2019 तक खुले में शौच से मुक्ति दिलाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य उसी दिशा में उठाया गया पहला कदम है। देश भर में 5 करोड़ से ज्यादा घरों में से हर एक में शौचालय का निर्माण करने का वादा एक चुनौती भरा लक्ष्य0 है, लेकिन ‘शौचालय आंदोलन’ को ऐसे ‘सामाजिक आंदोलन’ में बदलना, जिसमें शौचालयों का उपयोग आम बात बन जाए, तभी संभव है जब हम गांधी जी के जीवन से सबक लें। अन्य बातों जीवन महज कुछ कोस की दूरी पर अपनी बोली और पानी के इस्तेमाल तक के सलूक में जरूरी बदलाव को सदियों से बरतता रहा है, उसे यह अक्ल भी रही है कि उसकी जरूरत और पुरुषार्थ को एक जमीन पर खड़ा होना चाहिए। गैरजरूरी लालच से परहेज और मितव्ययिता ग्रामीण स्वभाव का हिस्सा है। पर बदकिस्मती देखिए कि इस स्वभाव पर रीझने की जगह इसे विकास की मुख्यधारा से दूरी के असर के रूप में देखा गया। नतीजतन एक परावलंबी विकास की होड़ उन गांवों तक पहुंचा दी गई, जो स्वावलंबन को अपनी जीवन जीने की कला मानते थे।

मशीनीकरण का विरोध

गांधी 'हिंद स्वराज’ में बड़ी लागत, बल्क प्रोडक्शन, मशीनीकरण इन सब का विरोध एक स्वर में करते हैं। उनकी नजर में प्रकृति, संस्कृति और पुरुषार्थ का साझा बनाए रखना इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे विकास और स्वावलंबन के अस्थायी या गैर टिकाऊ होने का संकट तो नियंत्रित होता ही है, उस

के अलावा हमें शौचालयों की सफाई करने और सीवेज के गड्ढों को खाली करने के बारे में गांव के लोगों की अनिच्छा जैसी सामाजिक-सांस्कृतिक वर्जना को दूर करना होगा। कोई भी इस समस्या की गंभीरता का अनुमान उस तरह से नहीं लगा सकता जिस तरह गांधी जी ने खुद इसका आकलन किया था। एक बार जब कस्तूरबा गांधी ने शौचालय साफ करने और गंदगी का डब्बा उठाने में घृणा महसूस की थी तो गांधी जी ने उन्हें झिड़की दी थी कि अगर वह सफाईकर्मी का कार्य नहीं करना चाहतीं तो उन्हें गृह-त्याग कर देना चाहिए। स्वच्छता उनके लिए अहिंसा की तरह, या शायद इससे भी ऊंची चीज थी। गांधी जी के जीवन के इस छोटे-से मगर महत्वपूर्ण प्रकरण में एक बहुमूल्य संदेश निहित है। अपने बाकी जीवन में इस पर अमल करते हुए कस्तूरबा ने अनजाने में ही ‘स्वच्छता ही व्यवहार है’ का परिचय दे दिया। देश में चल रहे स्वच्छता अभियान के लिए यह प्रेरक संदेश हो सकता है। आखिर यही तो वह व्यवहार-परिवर्तन है, जिसके संदेश को स्वच्छ भारत मिशन के जरिए करोड़ों लोगों के मन में बैठाने का प्रयास किया जा रहा है।

गांधी 'हिंद स्वराज’ में बड़ी लागत, बल्क प्रोडक्शन, मशीनीकरण इन सब का विरोध एक स्वर में करते हैं। उनकी नजर में प्रकृति, संस्कृति और पुरुषार्थ का साझा बनाए रखना इसलिए जरूरी है विकासवादी जोर से भी मोहभंग होता है जो हमें एक एसे संकट की तरफ लगातार ले जा रहा है, जहां धूपपानी-धरती सब हमारे लिए प्रतिकूल होते जा रहे हैं। आखिर में गांधी की पर्यावरणवादी दृष्टि की व्यापकता को समेकित तौर पर समझने के लिए प्रसिद्ध लेखक और ‘हिंद स्वराज’ की पुनर्व्याख्या का जोखिम उठाने वाले वीरेंद्र कुमार बरनवाल का यह कथन गौरतलब है- ‘गांधी ने अपनी आधी सदी से अधिक चिंतन के दौरान यह सिद्ध करने का अनवरत प्रयास किया कि लगातार धरती के पर्यावरण के विनाश की कीमत चुका कर अंधाधुंध औद्योगीकरण आर्थिक दृष्टि से भी निरापद नहीं है। गांधी हमें यह देखने की दृष्टि देते हैं कि हमारे जल-जंगल-जमीन के लगातार भयावह रूप से छीजने से हो रही भीषण हानि के सहस्रांश की भी भरपाई की क्षमता हमारे सुरसावदन बढ़ते उद्योगों में नहीं है। इसका आर्थिक मूल्य अर्थशास्त्र की बारीकियों को बिना जाने भी समझा जा सकता है। गांधी-चिंतन का यह प्रबल उत्तर आधुनिक पक्ष है।’


20 - 26 नवंबर 2017

कम पानी से मुनाफे की खेती

उज्ज्वला ने बदली तकदीर

केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना का असल मकसद ग्रामीण महिलाओं को गैस का सिलेंडर मुहैया करवा कर मिट्टी के चूल्हे से निजात दिलवाना है

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धानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश संकल्प से सिद्धि की ओर बढ़ चुका है। वर्ष 2022 तक न्यू इंडिया के सपने को साकार करने में महिलाओं की बड़ी भूमिका सुनिश्चित करने के लिए मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना सहित कई योजनाओं को मूर्त रूप दिया है। इस उज्ज्वला योजना से देश के करोड़ों लोगों की जिंदगी बदल चुकी है। महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके में देवली तहसील के पिंपलगांव के मंगेश रायमल की भी जिंदगी अब बदल चुकी है। मंगेश इस बात को लेकर काफी खुश हैं कि जिंदगीभर मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाने वाली उनकी बूढ़ी मां को अब ‘उज्ज्वला’ योजना के तहत गैस का सिलेंडर मिल गया है। मंगेश की मां देवकाबाई जब चूल्हे पर खाना बनातीं और लकड़ियों के जलने से जो धुआं उनकी आंखों में लगता था, वह उनके लिए बहुत ही पीड़ादायक था। अब मंगेश को लगा है कि उज्ज्वला योजना देश की सभी मांओं के लिए एक बड़ी राहत के रूप में सामने आई है। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री को निजी रूप से धन्यवाद देने के लिए सीधे खत लिखने का विचार बनाया। मंगेश को सबसे ज्यादा आश्चर्य तो तब हुआ जब प्रधानमंत्री ने तुरंत खुद ही उनकी चिट्ठी का जवाब दिया। प्रधानमंत्री ने लिखा‘देश के करोड़ों घरों में जल रहे मिट्टी के चूल्हे महिलाओं के स्वास्थ्य को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। अमीर लोग अच्छी सुविधाएं हासिल कर सकते हैं। लेकिन गरीबी रेखा से नीचे की महिलाओं के लिए तो यह अभी एक सपना ही है। इस सपने को साकार करने के लिए ही उज्ज्वला योजना के जरिए कोशिशें की जा रही हैं।’ केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना का असल मकसद ग्रामीण महिलाओं को गैस का सिलेंडर मुहैया करवा कर मिट्टी के चूल्हे से निजात दिलवाना है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत सरकार बीपीएल परिवारों को फ्री गैस कनेक्शन और चूल्हे दे रही है। इसके लिए 8 हजार करोड़ रुपए का बजट 3 साल के लिए बनाया गया है। मोदी सरकार उज्ज्वला योजना के तहत देश के ग्रामीण क्षेत्रों की गरीब महिलाओं को खाना पकाने के दौरान जानलेवा धुएं के कहर मुक्ति दिलाने में जुटी हुई है।

जेंडर

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महाराष्ट्र की महिलाओं ने खेती करने और उससे मुनाफा कमाने का ऐसा नया तरीका खोजा जिसने दूसरे किसानों को एक नई राह दिखाई एसएसबी ब्यूरो

हाराष्ट्र में किसान आत्महत्या न करें, इसके लिए यहां एक गांव की महिलाएं प्रेरणास्रोत बन गई हैं। महिला किसानों ने खेती का ऐसा तरीका खोजा है, जिससे कम पानी में वह फसल उगा रही हैं। इतना ही नहीं उन्होंने बैंक का कर्ज चुकता करते हुए कारोबार का टर्नओवर 1 करोड़ रुपए कर लिया है। यह कहानी है उस्मानाबाद जिले के हिंगलाज्वाडी गांव की। यहां महिला किसानों के समूह ने गांव की दशा बदल कर नई दिशा दिखाई है। इस गांव के पुरुष घर और बच्चे संभालते हुए दिखते हैं, तो महिलाएं खेतों में काम करने जाती हैं। ये महिलाएं बैंक में किस्त जमा करने भी जाती हैं। 3000 आबादी वाले इस गांव में सब कुछ अलग सा दिखता है। पुरुष घर संभालने का काम आराम से करते दिखते हैं तो महिलाएं पुरुषों की तरह खेत में काम करते हुए दिख जाती हैं।

फसल की कीमत करने जाती हैं बाजार

गांव में महिला किसानों का समूह फसल के भाव को तय करने खुद ही बाजार जाकर सप्लायर से बात करती हैं। महिला किसानों के समूह की लीडर कोमलवती हैं। उनके पति के अच्युत काटकटे ने बड़े गर्व से कहा कि मेरी पत्नी समूह की नेता है। मैं उसको फॉलो कर रहा हूं। उसने मेरी जिंदगी बदल दी है और आज एक बेहतर किसान की भूमिका में है। गांव की महिलाओं ने आर्थिक तंगी से परेशान पुरुषों को राह दिखाई है। इतना ही नहीं कम संसाधनों में खेती कैसे की जाए, इसका तरीका भी खोजा है।

इसीलिए महिलाओं ने संभाली कमान

गांव के विष्णु कुमार ने बताया कि पानी की कमी और बैंक लोन की किस्त न जमा कर पाने की वजह से किसान खुदकुशी कर रहे थे। इसे रोकने के लिए गांव की महिलाओं ने मोर्चा संभाला। गांव की महिलाओं की सूझबूझ के कारण गांव के किसी किसान ने बैंक का कर्ज चुकता न करने की परेशानी से खुदकुशी नहीं की। हमारे गांव में खुशियां लौट आई हैं।

हमने खेती के लिए मांगी जमीन

महिला किसान रेखा शिंडे ने बताया, 'बारिश न होने से पानी की कमी और बैंक कर्ज न चुका पाने की वजह से जिले में किसान आत्महत्या कर रहे थे। यह

सब बढ़ता जा रहा था। फिर हम गांव की महिलाओं ने सोचा क्यों न हम खुद खेती करके देखें। तब हमने खेती के लिए एक छोटा सा जमीन का टुकड़ा मांगा जिससे हम वहां खेती करें। मगर पहले तो हमें मना किया गया कि यह पुरुषों का काम है, मगर बाद में फिर हमें खेती के लिए जमीन मिल गया। इसके बाद हमने कम पानी में खेती शुरू की। फसल अच्छी हुई और हमने बैंक के पैसे अदा करना शुरू कर दिया। इसके बाद तो घर, परिवार और बच्चों का पालनपोषण आराम से होने लगा। हमारा आत्मविश्वास बढ़ गया और हम सभी महिलाओं का समूह अब गांव में सब्जियां उगातीं हैं।'

नहीं हारी हिम्मत

मंजूश्री ने बताया कि सब्जियां उगाने और बेचने के बाद हालत सुधरी तो महिलाओं ने उस्मानाबाद जाकर सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी हासिल की। मगर सरकारी कार्यालय में कोई महिलाओं को बाबू ने किसी भी तरह से खेती और किसानी से संबंधित स्कीम के बारे में बताने में असमर्थता जताई। हमने हिम्मत नहीं हारी और हम लगातार सरकारी योजनाओं की जानकारियां जुटाने में लगे रहे। आज हमारे गांव में 200 स्वयं सहायता समूह है, जिसमें 265 महिलाएं सदस्य हैं। इन महिला किसानों के समूह का टर्नओवर 1 करोड़ पहुंच गया है।

3000 आबादी वाले इस गांव में सब कुछ अलग सा दिखता है। पुरुष घर संभालने का काम आराम से करते दिखते हैं तो महिलाएं पुरुषों की तरह खेत में काम करते हुए दिख जाती हैं

खास बातें महिला किसानों ने गांव को बनाया 'नो सूसाइड जोन' महिलाओं ने बैंक का कर्ज चुकाने के साथ कमाया मुनाफा उस्मानाबाद जिले के हिंगलाज्वाडी गांव की महिलाओं ने पेश की मिसाल

मिला सम्मान

गांव में खेती करने के बाद आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए स्वयं सहायता समूह की मदद से ब्यूटी पार्लर, पोलट्री फॉर्म, बकरी पालन और दुग्ध व्यवसाय भी शुरू किया गया। इससे गांव में अच्छी आमदनी हुई। गांव की महिलाओं को मिली इस उपलब्धि को देखते हुए साल 2017 का सीआईआई द्वारा दिया जाने वाला फाउंडेशन महिला प्रत्याशी सम्मान गांव मिला। इतना ही नहीं इन्हें नीति आयोग अवॉर्ड भी दिया गया है।

यह है नियम

रेखा शिंडे ने बताया कि महिलाओं ने एक नियम बनाया है कि गांव का कोई भी व्यक्ति अगर कुछ खरीददारी कर रहा है तो वह गांव की दुकानों से ही खरीदे। इससे गांव का पैसा गांव में ही रहता है बाहर नहीं जाता।


14 प्रदेश

20 - 26 नवंबर 2017

पहली एयर डिस्पेंसरी पूर्वोत्तर में

पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय सुदूरवर्ती क्षेत्रों में हेलिकॉप्टर आधारित डिस्पेंसरी सेवा सुलभ कराने की जो संभावनाएं तलाश रहा था, वह अब मूर्त रूप लेने जा रहा है

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एसएसबी ब्यूरो

श के पूर्वोत्तर क्षेत्र में ही भारत की प्रथम ‘एयर डिस्पेंसरी’ स्थापित की जाएगी, जो एक हेलीकाप्टर में अवस्थित होगी। केंद्रीय पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास (डोनर) मंत्रालय ने इस पहल के लिए

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आरंभिक वित्त पोषण के एक हिस्से के रूप में 25 करोड़ रुपए का योगदान पहले ही कर दिया है। इस आशय की जानकारी देते हुए केंद्रीय पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि पिछले कुछ महीनों से पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय इस तरह के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में हेलीकाप्टर आधारित डिस्पेंसरी/ओपीडी सेवा सुलभ कराने की

संभावनाएं तलाश रहा था। उन्होंने कहा कि ऐसे सुदूरवर्ती क्षेत्रों में यह सेवा उपलब्ध कराई जाएगी, जहां कोई भी डॉक्टर या चिकित्सा सुविधा सुलभ नहीं होती है और जरूरतमंद मरीजों को किसी भी तरह की चिकित्सा सेवा नहीं मिल पाती है। उन्हों ने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया है और यह अब केन्द्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय में अनुमोदन के अंतिम चरण में है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने विमानन क्षेत्र और हेलिकॉप्टर सेवा/पवन हंस के प्रतिनिधियों के साथ बैठक के बाद ये बातें कहीं। डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय इस प्रस्ताव को गंभीरता के साथ आगे बढ़ा रहा है, ताकि वर्ष 2018 के आरंभ में यह केंद्र सरकार की ओर से पूर्वोत्तर क्षेत्र की आम जनता को एक अनुपम उपहार के रूप में प्राप्त हो सके। आज भी भारत की लगभग एक तिहाई आबादी को अस्पतालों में समुचित ढंग से बिस्तर उपलब्ध नहीं हो पाता है, जिसके चलते दूरदराज के इलाकों में रहने वाले निर्धन मरीजों को आवश्यक चिकित्सा सेवा सुलभ नहीं हो पाती है। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र

बंगाल के हुए रस भरे रसगुल्ले ओडिशा से रसगुल्ले को लेकर सालों चली दिलचस्प लड़ाई पश्चिम बंगाल ने जीती। अब उसे रसगुल्ले के लिए भौगोलिक पहचान यानी जीआई टैग मिल गया है

नियाभर में फैले रसगुल्ले के कद्रदानों के लिए अच्छी खबर है। रसगुल्ले पर अपने हक को लेकर पश्चिम बंगाल और ओडिशा सरकार के बीच पिछले कई वर्षों से चल रहे विवाद का अब समाधान हो गया है। पश्चिम बंगाल सरकार को रसगुल्ले के लिए भौगोलिक पहचान टैग मिल गया। टैग मिलने से पश्चिम बंगाल के रसगुल्ला बनाने वालों को काफी फायदा होने की उम्मीद है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसे वैश्चिक स्तर पर राज्य के प्रतिनिधि के रूप में पेश करना चाहती हैं। इसके लिए वह काफी प्रयास कर रही थीं। रसगुल्ले को जीआई टैग मिलने पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बधाई दी है। उन्होंने ट्वीट किया, 'सभी के लिए अच्छी खबर है। पश्चिम बंगाल को रसगुल्ले के लिए जीआई

टैग मिलने पर हम बेहद खुश और गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।' बता दें, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के बीच इस बात को लेकर कई साल से खींचतान से चल रही थी कि आखिर रसगुल्ले का ईजाद कहां हुआ? पश्चिम बंगाल सरकार का कहना था कि रसगुल्ले का ईजाद उनके राज्य में हुआ है जबकि ओडिशा ने इसे अपना बताया था। पश्चिम बंगाल के खाद्य प्रसंस्करण मंत्री अब्दुर्रज्जाक

मोल्ला का कहना था कि बंगाल रसगुल्ले का आविष्कारक है। मोल्ला ने ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह बताया था कि बंगाल रसगुल्ले का जनक है। उन्होंने बताया कि बंगाल के विख्यात मिठाई निर्माता नवीन चंद्र दास ने वर्ष 1868 से पूर्व रसगुल्ले का आविष्कार किया था। यह मामला तब सुर्खियों में आया जब ओडिशा सरकार ने रसगुल्ले के लिए भौगोलिक पहचान (जीआइ) टैग लेने की बात कही। ओडिशा के विज्ञान व तकनीकी मंत्री प्रदीप कुमार पाणिग्रही ने 2015 में मीडिया के समक्ष दावा किया था कि 600 वर्ष पहले से उनके यहां रसगुल्ला मौजूद है। उन्होंने इसका आधार बताते हुए भगवान जगन्नाथ के भोग खीर मोहन से भी जोड़ा था। ओडिशा के इस दावे के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की बात कही थी। (एजेंसी)

विकास मंत्रालय की पहल पर पूर्वोत्तर क्षेत्र में किए जा रहे इस प्रयोग को अन्य पहाड़ी राज्यों जैसे कि हिमाचल प्रदेश और जम्मू​ू-कश्मीर में भी अपनाया जा सकता है। आरंभ में इस योजना के तहत हेलिकॉप्टर को दो स्थलों यथा मणिपुर के इंफाल और शिलांग के मेघालय में अवस्थित किया जाएगा। इन दोनों ही शहरों में प्रमुख स्नातकोत्तर चिकित्सा संस्थान हैं जहां के विशेषज्ञ डॉक्टर आवश्यक उपकरणों एवं सहायक कर्मचारियों के साथ हेलिकॉप्टर के जरिए पूर्वोत्तर क्षेत्र के सभी आठों राज्यों के विभिन्न स्थानों पर पहुंच कर डिस्पेंेसरी/ओपीडी सेवा मुहैया करा सकते हैं। उन्होंने कहा कि वापसी के दौरान उसी हेलिकॉप्टर से जरूरतमंद मरीज को शहर में लाकर संबंधित अस्पताल में भर्ती भी कराया जा सकता है। पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए अन्य नई हेलिकॉप्टर सेवाएं उपलब्ध कराने की योजनाओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि आरंभ में इंफाल, गुवाहाटी और डिब्रुगढ़ के आसपास अवस्थित क्षेत्र में छह मार्गों पर दोहरे इंजन वाले तीन हेलिकॉप्टेरों का परिचालन सुनिश्चित किया जाएगा।

12 साल की लड़की गाएगी 85 भाषाओं में गीत

80 भाषाओं में गाना गाने वाली दुबई निवासी भारतीय मूल की सुचेता अब गिनिज वर्ल्ड रेकॉर्ड तोड़ने की तैयारी कर रही है

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रल से ताल्लुक रखने वाली सुचेता दुबई के इंडियन हाईस्कूल में 7वीं की छात्रा हैं। वह 29 दिसंबर को एक साथ 85 भाषाओं में गाने की कोशिश करेंगी। एक साल में 80 भाषाओं में गाना सीखने वाली सुचेता ने अपना पहला गाना जापानी भाषा में गाया था। सुचेता के पिता जापान में त्वचा रोग विशेषज्ञ हैं। सुचेता के मुताबिक, उन्हें विदेशी भाषा का गीत सीखने में दो घंटे लगते हैं। अगर गाने का उच्चारण आसान होता है, तो वह उसे और भी जल्दी सीख जाती हैं। सुचेता को सबसे ज्यादा मुश्किल फ्रेंच, जर्मन और हंगेरियन भाषा सीखने में आई। फिलहाल सबसे ज्यादा भाषाओं में गाना गाने का गिनिज वर्ल्ड रेकॉर्ड आंध्र प्रदेश के केसिराजू श्रीनिवास के नाम है। श्रीनिवास ने 2008 में गांधी हिल में 76 भाषाओं में गाना गाकर यह रेकॉर्ड अपने नाम किया था। (एजेंसी)


डीजल का धुआं ज्यादा हानिकारक

डीजल के धुएं में जो बारीक कण मिले होते हैं, वे आकार में 0.1 माइक्रोन से भी छोटे होते हैं और वे फेफड़ों में गहरे तक समा सकते हैं

जारों वाहन धुआं उत्सर्जन या वायु प्रदूषण का बड़ा स्रोत हैं। डीजल से चलने वाले वाहन वायु प्रदूषण को हवा में सीधे छोड़कर और नाइट्रोजन ऑक्साइड व सल्फर ऑक्साइड का उत्सर्जन कर वायु प्रदूषण में और ज्यादा इजाफा करते हैं, जिससे वातावरण में और अधिक हानिकारण कण तैरने लगते हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. केके अग्रवाल ने कहा, ‘डीजल वाहनों से निकला उत्सर्जन खतरनाक रूप से अधिक होता है और इसका एक प्रमुख कारण है नाइट्रोजन ऑक्साइड व हवा में अधजले कणों का फैल जाना। लगभग 80-95 प्रतिशत डीजल के धुएं में जो बारीक कण मिले होते हैं, वे आकार में 0.1 माइक्रोन से भी छोटे होते हैं और वे फेफड़ों में गहरे तक समा सकते हैं।’ उन्होंने बताया कि ये कण सांस में अंदर जाकर हानिकारक प्रभाव डाल सकते हैं और फेफड़ों में सूजन पैदा कर सकते हैं। इनके कारण भविष्य में और अधिक बच्चों में दमा हो सकता है। डीजल का धुंआ गैसों और कई तरह के सूक्ष्म कणों से भरा होता है। डीजल

वाहनों से नाइट्रोजन उत्सर्जन होता है, जिसे जमीनी स्तर का ओजोन माना जा सकता है। यह स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है। ओजोन प्रदूषण में अस्थमा जैसी श्वसन समस्या का खतरा बढ़ जाता है। डीजल नाइट्रोजन ऑक्साइड का एक प्रमुख स्रोत है। हवा में औद्योगिक विषाक्त पदार्थों को पार्किं सन रोग से जोड़कर देखा जाता है और इससे दिमागी सक्रियता में गिरावट आती है। सेंटर फॉर ऑक्यूपेशनल एंड एन्वायरनमेंटल हेल्थ के निदेशक डॉ. टीके जोशी ने कहा, ‘डीजल के धुएं को अमेरिका की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) और विश्व स्वास्थ्य संगठन से संबद्ध इंटरनेशनल

एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर द्वारा नंबर एक कार्सिनोजन की श्रेणी में रखा गया है। डीजल के धुएं के संपर्क में आने पर फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।’ उन्होंने कहा, ‘एक्सपोजर की सीमा के साथ जोखिम बढ़ता है। इसलिए भविष्य में फेफड़े के कैंसर के अधिक मामलों के लिए तैयार रहना होगा। डीजल के धुएं और मूत्राशय के कैंसर के बीच भी गहरा संबंध देखा गया है।’ डॉ. जोशी के मुताबिक, ‘बच्चों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं, धूम्रपान करने वालों और हृदय व श्वसन संबंधी समस्याओं से परेशान लोगों के लिए आम तौर पर वायु प्रदूषण बहुत अधिक घातक हो सकता है, इसलिए उन्हें अधिक सतर्क होना चाहिए।’ उन्होंने बताया कि अमेरिका स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एन्वायरनमेंटल हेल्थ साइंसेज द्वारा किए गए एक नए शोध से यह पता चला है कि वायु प्रदूषण के संपर्क में आने पर भ्रूण को तो बहुत ही अधिक नुकसान होने का खतरा रहता है। यह एक रहस्योद्घाटन के रूप में आया है और बहुत ही परेशान करने वाला डवलपमेंट है। (आईएएनएस)

10 हजार लोगों को बांटे प्रदूषण रोधी एन-95 मास्क

स्वच्छ हवा और फेफड़ों के स्वास्थ्य पर लोगों को जागरूक करने के लिए ब्ल्यूएयर की नई पहल

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श्व क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) दिवस के मौके पर ब्ल्यूएयर ने स्वच्छ हवा और फेफड़ों के स्वास्थ्य पर लोगों को जागरूक करने के लिए एक नई पहल की है। इस पहल के तहत ब्ल्यूएयर ने 10 हजार लोगों को एन-95 प्रदूषण रोधी मास्क वितरित किए। यह कार्यक्रम 15 से 17 नवंबर तक साइबर हब गुरुग्राम में आयोजित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डॉ. नरेश शर्मा, अध्यक्ष इंडियन मेडिकल एसोसिएशन गुरुग्राम, डॉ.हिमांशु गर्ग अर्टिमिस हॉस्पिटल और पर्यावरणविद रुचिका सेठी थीं। इस अवसर पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए ब्ल्यूएयर इंडिया के कंट्री हैड अरविंद छाबड़ा ने कहा, ‘दिल्ली एनसीआर भारत के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में से एक है। ऐसे में प्रदूषित वायु में सांस लेने के अदृश्य खतरों

की पहचान करना बहुत आवश्यक है। मौजूदा आंतरिक प्रदूषण कणों के साथ मिलकर बाहरी प्रदूषण 5 गुणा अधिक प्रदूषित हो सकता है। घर के अंदर की वायु को हमेशा स्वस्थ रखने के लिए एयर प्यूरीफायर सबसे प्रभावी उपाय हैं।’ आर्टिमिस हॉस्पिटल में पल्मोनॉलॉजी निदेशक डॉ. हिमांशु गर्ग ने कहा, ‘क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) एक शब्द है जिसका इस्तेमाल फेफड़ों की बीमारियों के एक समूह के वर्णन में किया गया है जिसमें क्रोनिक ब्रॉन्काइटिस, एमफिस्मा और अस्थमा शामिल हैं। यह छठा सबसे

बड़ा जानलेवा रोग है और जल्द ही तीसरा हो जाएगा। माना जाता है कि ये धूम्रपान के कारण हो सकता है लेकिन अब प्रदूषण को इसमें एक मजबूत योगदानकर्ता माना जाता है जो हाल के महीनों में 25 प्रतिशत की वृद्धि दर से बढ़ रहा है।’ विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, दुनिया भर में करीब 6 करोड़ लोग मध्यम से गंभीर सीओपीडी से पीड़ित हैं। इनमें से 2005 में सीओपीडी से 30 लाख की मृत्यु हो गई और विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2030 तक यह लोगों की मौतों का तीसरा सबसे आम कारण होगा। (एजेंसी)

20 - 26 नवंबर 2017

स्वास्थ्य

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'धरती को कृत्रिम तरीके से ठंडा करना विनाशकारी' जियो इंजीनियरिंग के उपायों से तूफान या लंबे समय तक सूखे की स्थिति क्षेत्र में पैदा हो सकती है

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मुकाबला करने के प्रस्तावों में ज्वालामुखी विस्फोट करने की नकल करने से दुनिया के विभिन्न भागों में प्राकृतिक आपदा को दावत मिल सकती है। जियोइंजीनियरिंग को जलवायु परिवर्तन से संभावित रूप से निपटने के एक तरीके के तौर पर प्रस्तुत किया गया है। जियो इंजीनियरिंग के जरिए ग्लोबल वार्मिंग में मनचाहे तरीके से हेरफेर कर वातावरण में कृत्रिम तौर पर एयरोसाल को प्रवेश कराते हैं। 'नेचर कम्युनिकेशंस' पत्रिका में प्रकाशित शोध के अनुसार, जियो इंजीनियरिंग के उपायों का विनाशकारी प्रभाव हो सकता है। इस तरह के उपायों से तूफान या लंबे समय तक सूखे की स्थिति क्षेत्र में पैदा हो सकती है। शोध में कहा गया है कि एक गोलार्ध में जियोइंजीनियरिंग को लक्षित करने से दूसरे गोलार्ध में गंभीर हानिकारक प्रभाव पड़ सकते हैं। ब्रिटेन के एक्सेटर विश्वविद्यालय में शोध के प्रमुख एंथोनी जोंस ने कहा, ‘हमारे नीतीजे इस बात की पुष्टि करते हैं कि क्षेत्रीय सौर जियोइंजीनियरिंग एक उच्च जोखिम भरी रणनीति है, जिससे लगातार एक क्षेत्र को फायदा पहुंचा सकती है व दूसरे क्षेत्र को नुकसान कर सकती है।’ (एजेंसी)

डायबिटीज के उच्च जोखिम से जुड़ा है सोराइसिस

सोराइसिस से प्रभावित लोगों में टाइप-2 डायबिटीज विकसित होने का जोखिम ज्यादा रहता है

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ना सोराइसिस (त्वचा रोग) वाले लोगों की तुलना में सोराइसिस से प्रभावित लोगों में टाइप-2 डायबिटीज विकसित होने का जोखिम ज्यादा रहता है। यह जोखिम आश्चर्यजनक रूप से रोग की गंभीरता पर निर्भर है। सोराइसिस प्रतिरक्षा प्रणाली की एक बीमारी है, जिसमें त्वचा में सूजन हो जाती है, त्वचा की कोशिकाएं सामान्य से ज्यादा तेजी से बढ़ती है। इससे लाल रंग के चकत्ते बन जाते हैं, जो सफेद त्वचा से ढक जाते हैं, जब यह त्वचा के सतह तक पहुंचते हैं, तो मर जाते हैं। सोराइसिस से पीड़ित लोग अपने शरीर का 10 फीसदी या उससे ज्यादा हिस्सा ढके रहते हैं। इनमें से बिना सोराइसिस लोगों की तुलना में 64 फीसदी सोराइसिस वाले लोगों को डायबिटीज होने की संभावना रहती है। इस शोध के निष्कर्ष 'जर्नल ऑफ अमेरिकन एकेडमी ऑफ डर्मेटोलॉजी' में प्रकाशित किए गए हैं। (एजेंसी)


16 खुला मंच

20 - 26 नवंबर 2017

'अपने आपको को जीवन में ढूंढ़ना है, तो लोगों की मदद में खो जाओ'

अभिमत

-महात्मा गांधी

जलवायु वार्ता फिर असफल

चंडी प्रसाद भट्ट

लेखक गांधीवादी पर्यावरण कार्यकर्ता और चिपको आंदोलन के अगुआ रहे हैं

उत्तराखंड त्रासदी के सबक को न भूलें

मध्य हिमालय पहले से ही बहुत संवेदनशील है, ऊपर से यहां होने वाले छोटे-बड़े भूकंप इसकी संवेदनशीलता को और बढ़ाते रहते हैं

पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौता लागू करने के लिए बॉन में हुई वार्ता बेनतीजा रही

जलवायु और पर्यावरण ग्लोबलका पूवार्मिंरा गसंतकेुलनकारणबिगड़ता जा रहा है। इस

असंतुलन के कारण अमेरिका से लेकर आस्ट्रेलिया और भारत से लेकर अफ्रीकी मुल्कों तक मौसम के बदले तेवर कुछ-कुछ समय के अंतराल पर बार-बार देखने को मिल रहे हैं। दुर्भाग्य से इस स्थिति को लेकर जिस गंभीर सजगता की जरूरत है, वह वैश्विक स्तर पर दिख नहीं रही है। पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौता लागू करने के संबंध में दो सप्ताह चली संयुक्त राष्ट्र की वार्ता जर्मनी के बॉन में संपन्न हो गई। जीवाश्म र्इंधन के इस्तेमाल का अमेरिका द्वारा बचाव किए जाने के कारण इस वार्ता की गति पहले ही धीमी हो गई थी। इस सम्मेलन में समृद्ध और विकासशील देशों के बीच मतभेद फिर से उभर आए। सबसे बड़ी बाधा जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने में विश्व के गरीब देशों की मदद करने के लिए उन्हें रकम देने के मामले पर सामने आई। एक अन्य रूकावट यह रही कि अमेरिका के नेतृत्व में विकसित देशों ने इस बात पर बल दिया कि पेरिस समझौते के तहत सभी देशों के समान दायित्व हैं जबकि ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जक विकासशील देश कुछ हद तक छूट चाहते हैं। दो साल पहले धरती के बढ़ते तापमान की रफ्तार को कम करने और जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से निपटने के लिए पैरिस में 190 से भी ज्यादा देशों के बीच समझौता हुआ था। हालांकि पेरिस समझौता पर्याप्त नहीं था लेकिन लगभग दो सौ देशों का साथ आना और एक दिशा में काम करने का फैसला एक सकारात्मक संकेत जरूर था। पैरिस समझौते का उत्साह ज्यादा देर तक नहीं टिक पाया क्योंकि डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद जून 2017 में पैरिस समझौते से बाहर निकलने का निर्णय ले लिया| बात करें अपने देश की तो हर बार की तरह इस बार भी भारत की कोशिश विकास की अपनी संभावनाीअों को बरकरार रखते हुए जलवायु संकट की चुनौती पर खरा उतरने का रहा। उम्मीद करनी चाहिए कि अगले दौर की वार्ताअों में सहमति का तर्क ज्यादा प्रभावी होगा और जलवायु संकट को लेकर एक वैश्विक कार्यनीति बिना और विलंब के शक्ल ले पाएगी।

टॉवर

(उत्तर प्रदेश)

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16-17 जून 2013 को आई आपदा के तत्काल बाद अलकनंदा और मंदाकिनी के बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में तीन-तीन बार गया, उसके बाद पिंडर नदी एवं बागेश्वर जिले की सरयू एवं रामगंगा नदी, पिथौरागढ़ जिले की गौरी-धौली के साथ ऐलागाढ़ और काली नदी तक की यात्रा की। मंदाकिनी शांत दिखने वाली नदी रही है। समय-समय पर इसकी सहायक धाराएं बौखलाती रही है, जिसके कारण मंदाकिनी इनके अवसाद से प्रभावित हुई और बौखलाई। 1961 के 26-27 जुलाई को हुई अतिवृष्टि से मंदाकिनी की सहायक धारा-डमार गाड़ बहुत बौखलाई थी। उस समय एक बड़े भूस्खलन से डडुवा गांव नष्ट हुआ था, जिसमें तीन दर्जन से अधिक लोग एवं पशु मारे गए थे। 1979 में मंदाकिनी की सहायक नदी क्यौंजागाढ़ के जलग्रहण क्षेत्र में कुन्था एवं बाड़व के इलाके में भयंकर भूस्खलन हुआ और वहां पर 40 के लगभग लोग मारे गए तथा अपार धन सम्पदा की क्षति हुई। क्यौंजागाड़ के बौखलाने का प्रभाव मंदाकिनी पर भी पड़ा। 1991 में उत्तरकाशी भूकंप का प्रभाव मंदाकिनी घाटी में भी पड़ा लोगों के मकान नष्ट हुए तथा सड़कों एवं पहाड़ियों पर दरारें भी पड़ीं। केदारनाथ में भी मकान नष्ट हुए, कुछ पर दरारें पड़ीं तथा चार यात्रियों के मारे जाने की जानकारी है। स्थानीय लोगों के अनुसार मंदाकिनी के उद्गम क्षेत्र के ग्लेश्यिरों की टूटने की आवाज भी लोगों ने सुनी। अगस्त 1998 में उखीमठ के पास एक पहाड़ के टूटने से भेंटी और बरूवा गांव पूरी तरह से मलबे के नीचे दब गए थे एवं मंदाकिनी की सहायक

धारा मधमहेश्वरी नदी में झील बन गई थी और इस पूरे इलाके में छोटे-बड़े भूस्खलनों से 16 गांव प्रभावित हुए थे और 100 से ज्यादा लोग मारे गए थे। पूर्व से पश्चिम तक ढाई हजार किलोमीटर से अधिक लंबाई तथा दो सौ पचास से लेकर चार सौ किलोमीटर चढ़ाई में संपूर्ण हिमालय फैला है। यहीं हमारे देश की तीन प्रमुख नदियां गंगा, बह्मपुत्र तथा सिन्धु एवं उनकी सहस्त्रों धाराओं का उद्गम स्थल है। इन तीनों धाराओं का 43 फीसदी बेसिन हमारे देश के तहत आता है, जिसमें 63 प्रतिशत जलराशि प्रवाहित एवं भूमिगत है। हिमालय को मिट्टी,जल और वनस्पति के जनक के रूप में भी देखा जा सकता है। यह मौसम का नियंत्रक तो है ही, तापमान को भी प्रभावित करता है। इस सबके बावजूद यह अत्यंत संवेदनशील है। कहा जाता है कि इसके अंतर्गत तीन मुख्य भ्रंस हैं। इसकी नाजुकता का प्रभाव यहां के निवासियों को तो भुगतना पड़ता ही है। अब स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि इससे लगे मैदानी क्षेत्रों पर भी पड़ने लगा है। इधर, मौसम में होने वाली हलचल तथा महाविकास की गतिविधियों ने यहां से होने वाले विनाश का दायरा बढ़ा दिया है। मौसम तथा महाविनाश का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव मध्य हिमालय में देखा जा रहा है। मध्य हिमालय पहले से ही बहुत संवेदनशील है, ऊपर से यहां होने वाले छोटे-बड़े भूकंप इसकी संवेदनशीलता को और बढ़ाते रहते हैं। पिछली शताब्दी के अंतिम दशक में 1991 का उत्तरकाशी भूकंप, 1999 का चमोली भूकंप,

मौसम में होने वाली हलचल तथा महाविकास की गतिविधियों ने हिमालय क्षेत्र में होने वाले विनाश का दायरा बढ़ा दिया है


20 - 26 नवंबर 2017 जो दोनों 6 रिचर से अधिक मापे गए थे, ने बहुत तबाही मचाई थी। इनके अलावा छोटे-छोटे भूकंप तो आए दिन आते रहते हैं। पिछले तीन दशकों से इन क्षेत्रों में महाविकास के नाम पर संवेदनशील क्षेत्रों में बड़ी-बड़ी विद्युत परियोजनाओं के लिए चट्टानों को खोदकर, काटकर और टनल बनाकर इनकी संवेदनशीलता को और बढ़ावा मिला है। नदियों से छेड़छाड़ जारी है। इसके अलावा मोटर मार्ग का भी अनियोजित ढंग से विस्तार हो रहा है और इस सबसे खोदी गई मिट्टी का नदियों के तटवर्ती क्षेत्रों में ढेर लगाया गया। जहां पहले हिमानियां पसरी रहती थीं, घने जंगल थे, सुनसान बुग्याल थे, उन क्षेत्रों में अनियोजित ढंग से खोद-खोद कर मोटर मार्गों का जाल बिछा दिया गया। ऐसे सुनसान वन प्रांतों में रातों-रात बड़े-बड़े शहर बन गए। आबादी का कई गुना विस्तार हो गया। देखते ही देखते बढ़ती आबादी की जल, जमीन और ऊर्जा की आपूर्ति के लिए प्रकृति के साथ अनाप-शनाप बिना सोचे-समझे औषधीय पादपों के नाम पर छेड़खानी हुई। ग्रामीण विकास में क्षेत्रीय असंतुलन से आबादी का शहरों की ओर पलायन, आबादी का अस्थिर क्षेत्रों में विस्तार एक सामान्य बात हो गई। छोटी-बड़ी नदियों के आसपास तेजी के साथ अतिक्रमण भी हुआ। ये सारी परिस्थितियां है, जिसका हिमालय और हिमालय से प्रवाहित नदियों पर दबाव बढ़ा है और उसकी बौखलाहट साल दर साल बढ़ रही है। पहले प्राकृतिक प्रकोप बीस-तीस साल के अंतराल में होते थे, अब एक-दो साल की अवधि में ही होने लगे हैं। ये सारे दबाव हैं, जिसके कारण हिमालय और यहां से उद्गमित नदियों की बौखलाहट में अभूतपूर्व बढ़ावा हुआ है और यहां के निवासियों की तबाही हो रही है। यदि अभी भी इन दबावों को कम करने की दिशा में एकीकृत कार्यक्रम राष्ट्रीय स्तर पर नहीं बनते हैं तो आने वाले वर्षों में इससे भी भयंकर त्रासदी को नकारा नहीं जा सकता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि हिमालय के संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान हो। हिमनदों, हिमतालाबों में होने वाली हलचलों के बारे में निगरानी तंत्र खड़ा किया जाना चाहिए। हिमरेखा एवं उससे जुड़े बुग्यालों के आसपास निगरानी के साथ संवेदनशीलता को बढ़ाने वाली गतिविधियों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। इन क्षेत्रों में बड़ी-बड़ी परियोजनाओं के निमार्ण का मोह छोड़ना पड़ेगा। पारिस्थितिकी के अनुरूप छोटी-छोटी परियोजनाओं का ही विस्तार होना चाहिए। निमार्ण कार्यों में भूमि भार वहन क्षमता आदि का ध्यान अवश्य रखा जाना चाहिए। इससे निकलने वाली मिट्टी तथा मलबे के निस्तारण का प्रबंध योजना निमार्ण के समय सही तरीके से होना चाहिए। सड़क आदि के निमार्ण में मिट्टी-मलबे आदि के निस्तारण के साथ-साथ पानी के बहाव को नियंत्रित करने के लिए नाली, स्कबर आदि का समुचित प्रबंध साथ-साथ किया जाना चाहिए। साथ ही वर्षा और बर्फ की मारक क्षमता को कम करने के लिए प्राकृतिक जंगलों की उत्पादकता और सघनता बढ़ाई जानी चाहिए तथा नंगी एवं वृक्षविहीन धरती को हरियाली में बदलने के कार्यक्रम आरंभ किए जाने चाहिए व इसके लिए जिम्मेदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।

ल​ीक से परे

प्रियंका तिवारी

खुला मंच

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लेखिका युवा पत्रकार हैं और देश-समाज से जुड़े मुद्दों पर प्रखरता से अपने विचार रखती हैं

सबके लिए खुशियों का आशियाना

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प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत अपना घर खरीदने वाले लोगों को ब्याज दर में मिलने वाली छूट का दायरा और बढ़ा

श में कम से कम साढ़े चार लाख परिवार बेघर हैं। बेघर परिवारों में से प्रत्येक का औसत तकरीबन चार लोगों का है। जनगणना के 2011 के आंकड़ो की मानें तो बीते एक दशक (2001-2011) के बीच बेघर लोगों की संख्या 8 प्रतिशत घटी है, तो भी देश में अभी कुल 17.7 लाख लोग बिल्कुल बेठिकाना हैं। हालांकि देश की कुल आबादी में बेघर लोगों की संख्या महज 0.15 प्रतिशत है तो भी इनकी कुल संख्या, यानी तकरीबन 17 लाख लोगों की अनदेखी नहीं की जा सकती। जनगणना में बेघर परिवार की बड़ी स्पष्ट परिभाषा नियत की गई है। जनगणना में उन परिवारों को बेघर माना जाता है जो किसी इमारत, जनगणना के क्रम में दर्ज मकान में नहीं रहते, बल्कि खुले में, सड़क के किनारे, फुटपाथ, फ्लाईओवर या फिर सीढियों के नीचे रहने-सोने को बाध्य होते हैं अथवा जो लोग पूजास्थल, रेलवे प्लेटफार्म अथवा मंडप आदि में रहते हैं। वैसे विशेषज्ञों का मानना है कि बेघर लोगों की संख्या ठीक-ठीक बता पाना मुश्किल है, क्योंकि ऐसे लोगों का कोई स्थायी वास-स्थान, पता-ठिकाना नहीं होता और ऐसे में बेघर लोगों को खोज पाना ही अपने आप में बड़ी मुश्किल का काम है। जिन मकानों की हालत अत्यंत जर्जर है, जो घरों बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं या फिर जिन घरों में एक छोटे से छत के नीचे बड़ी तादाद में लोग रहते हैं उन्हें भी बेघर में

गिना जाय- ऐसा कई विशेषज्ञों का सुझाव है। बहरहाल, सरकार की नई पहलों से लोगों को अपने सिर पर छत मिलने की उम्मीद ने एक बार फिर पंख फैला दिए हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत अपना घर खरीदने वाले लोगों को ब्याज दर में मिलने वाली छूट का दायरा और बढ़ा दिया गया है। इससे अपने घर का सपना सभी देशवासियों के लिए और अधिक सहज हो गया है। इसी तरह, एक ताजा निर्णय में आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत मध्यम आय वर्ग के ऋण द्वारा घर बनाने पर मिलने वाली सब्सिडी को बढ़ा दिया गया है। पूर्व योजना के अनुसार यह छूट अभी तक 90 स्क्वेयर मीटर एरिया पर मिलती थी, जिसे अब बढ़ाकर 120 स्क्वेयर

​िपछडे लोगों का साथी

‘सुलभ स्वच्छ भारत’ की सबसे बड़ी खूबी है कि इसके हर अंक में आधी आबादी यानी महिलाओं से जुडी खबरें प्रमुखता से दिखती हैं। सतत और समावेशी विकास की खबरों के साथ-साथ सकारात्मक और दिल को सुकून देने वाली खबरों की वजह से मैं इसका नियमित पाठक बन गया हूं। सुदूर गांवों और दूरदराज के इलाकों तक पहुंच उनकी व्यथा और उसके निवारण पर लिखना आज के दौर में सिर्फ सुलभ स्वच्छ भारत ही कर रहा है। दुआ करता हूं कि सुलभ की टीम निरंतर ऐसे ही कार्य करता रहे और मुख्यधारा से टूटे हुए लोगों तक खुशियां पहुंचाती रहे। मनीष अस्थाना, राजस्थान

मीटर कर दिया गया है। इसके साथ-साथ सरकार ने उन लोगों के लिए कॉरपेट एरिया भी बढ़ा दिया गया है, जो इस योजना के अंतर्गत ऋण ले पाने की पात्रता रखते हैं। इस योजना का लाभ मध्यम आय वर्ग के लोगों को क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम के अंतर्गत मिल सकेगा। प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत इसका लाभ उन गरीब तथा मध्यम आय वर्ग वाले लोगों को मिलता है, जो बैंक से लोन लेकर अपना मकान बनाते हैं या हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों अथवा किसी अन्य संस्थान से लिए ऋण की सहायता से अपने घर का निर्माण कार्य कराते हैं। इन्हें ब्याज पर 6.5 प्रतिशत की छूट मिलती है और कुछ प्रावधान के साथ 20 वर्षों तक का लोन टेन्योर भी मिलता है। इस योजना के अंतर्गत मिलने वाली क्रेडिट लिंक्ड सब्सिटी उसी स्थिति में मिल सकती है, जब ऋण की राशि 6 लाख तक हो तथा अतिरिक्त 6 लाख के ऋण पर दिया जाता है। इस सब्सिटी का लाभ उन लोगों को पहुंचेगा, जो अपना नया मकान बनवा रहे हो, मौजूदा घर में कोई नया कमरा बना रहे हों या फिर कोई लघु विस्तार कर रहे हों, जैसे रसोईघर आदि बनवाना। उम्मीद है कि मौजूदा दशक बीतते-बीतते देश दो बड़ी उपलब्धियां हासिल कर चुका होगा, इनमें पहला है स्वच्छता और दूसरा है बेघरों को घर। अगर वाकई ऐसा होता है, तो यह देश में विकास के कारवां को बहुत दूर ले जाना वाला कारक साबित होगा।

ट्रंप विलेज की बदली फिज़ा के लिए लाल बाबा को बधाई

आज के दौर में जहां मीडिया का निरंतर पतन हो रहा है, वही ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ जैसा भी अखबार है जो लोगों को कुछ बेहतर की आश में खुद से जोड़े हुए है। बात चाहे स्वच्छता की हो या स्वास्थ्य से जुडी खबरों की, बात चाहे जीवन-यापन के नए तरीकों की हो या फिर रोमांचक जानकारियों वाले आलेखों की, सुलभ हर कसौटी पर खरा उतरता है। अबकी बार के विशेषांक में हरियाणा के एक पिछड़े ट्रंप विलेज (मरोरा) में किस तरह से स्वच्छता के प्रति अलख जगी और लोगों की ज़िन्दगी बदली, यह जानकार बहुत खुशी मिली। सुरेंद्र नागर, रतलाम, मध्यप्रदेश


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हमारा पर्यावरण 20 - 26 नवंबर 2017

संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस (19 नवंबर) पूरी दुनिया में इस सबक को याद करने के लिए मनाया जाता है कि पर्यावरण को बचाने के लिए सबको मिलकर प्रयास करने की जरूरत है। बिना इस पहल के न पर्यावरण सुरक्षित रह पाएगा और न हम फोटो ःजयराम


20 - 26 नवंबर 2017

जीवन सिर्फ पृथ्वी पर है। इस लिहाज से हम सब पृथ्वी की संतान भी हैं। हमें पृथ्वी पर अपने साथ सबके जीवन की रक्षा की चिंता करनी चाहिए। हमारा पर्यावरण जितना सुरक्षित होगा, उतने ही हम भी सुरक्षित होंगे। पर्यावरण का बिगड़ा संतुलन सबसे बड़ी चुनौती है और इस चुनौती पर हम सबको खरा होना ही होगा, नहीं तो हम अपनी भावी पीढ़ी के लिए जीवन का संकट और बढ़ाएंगे

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20 - 26 नवंबर 2017

आग का गोला बन जाएगी धरती

एक्सरे ध्रुवीकरण की विविधताओं को मापा

स्टीफन हॉकिंग का दावा है कि अगले 600 सालों में धरती आग के गोले में बदल जाएगी

भारतीय अंतरिक्ष दूरबीन, एस्ट्रोसैट ने क्रेब पुच्छल तारे की एक्सरे ध्रुवीकरण के प्रथम चरण को मापा

भा स्टीफन हॉकिंग ने चेतावनी दी ब्रिटिशहै इंसवैानोंज्ञानिककी बढ़ती आबादी और बड़े पैमाने

पर ऊर्जा की खपत से पृथ्वी 600 सालों से भी कम समय में आग के गोले में तब्दील हो जाएगी। उन्होंने कहा कि इंसानों को अगर कुछ और लाख वर्षों तक अस्तित्व बचाना है, तो उन्हें ऐसे ग्रह पर जाना होगा, जहां अभी तक कोई और नहीं गया है। पेइचिंग में टेंसेंट डब्ल्यूई समिट में एक विडियो संदेश के जरिए स्टीफन ने कहा कि इंसानों की बढ़ती आबादी और ऊर्जा के बेहिसाब इस्तेमाल के चलते हमारी दुनिया एक आग के गोले में बदलने जा रही है। हॉकिंग ने वैज्ञानिकों से सौरमंडल के बाहर एक

ऐसे तारे की खोज करने की अपील की है, जहां ग्रहों की परिक्रमा इंसानों के रहने के अनुकूल हो। स्टीफन ने अल्फा सेनटॉरी नाम के एक तारे की तरफ इशारा किया, जो हमारे सौरमंडल में इंसानों के रहने लायक है और चार अरब प्रकाश वर्ष दूर है। स्टीफन ने कहा कि वैज्ञानिकों को एक ऐसे एयरक्राफ्ट के लिए काम करना चाहिए, जो रोशनी की गति से उड़ान भर सके। उन्होंने कहा, 'एक ऐसी प्रणाली विकसित हो जो मंगल ग्रह तक एक घंटे, प्लूटो तक एक दिन और अल्फा सेनटॉरी तक 20 वर्षों से भी कम समय में पहुंच सके।' (आईएएनएस)

रत की बुह तरंगदैर्ध्य अंतरिक्ष दूरबीन, एस्ट्रोसैट ने एक्सरे ध्रुवीकरण को मापने का अति कठिन कार्य सफलता पूर्वक पूरा कर लिया है। नेचर एस्ट्रोनोमी शीर्षक अखबार में प्रकाशित जानकारी के अनुसार कार्यदल ने उनके 18 माह के वृषभ नक्षत्र में क्रैब पुच्छल तारे के अध्ययन का आलेख प्रस्तुत किया है। और एक्सरे ध्रुवीकरण की विविधताओं को मापा है। यह अत्याधिक सम्मोहक (मैगनेटाइजड) वस्तु प्रत्येक एक सेकेंड में 30 बार चक्कर लगाती है। इस

सबसे बड़ी दूरबीन के दर्पण की ढलाई शुरू

6,000 साल पुरानी मानव खोपड़ी पापुआ न्यू गिनी में खोजी गई 6,000 साल पुरानी मानव खोपड़ी दुनिया के सबसे पुराने सुनामी पीड़ित व्यक्ति की हो सकती है

पा

पुआ न्यू गिनी में वर्ष 1929 में खोजी गई 6,000 साल पुरानी मानव खोपड़ी दुनिया के सबसे पुराने सुनामी पीड़ित व्यक्ति की हो सकती है। जर्नल पीएलओएस वन में प्रकाशित यह अध्ययन दिखाता है कि इस क्षेत्र में लगातार विनाशकारी सुनामी आई जिससे इतिहास में मौतें हुईं और विध्वंस हुआ। ऑस्ट्रेलिया में यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स में वैज्ञानिक जेम्स गॉफ ने कहा कि हमने यह पता लगाया कि जिस जगह एटापे से खोपड़ी खोजी गई वह तटीय क्षेत्र है जो करीब 6,000 साल पहले आई भयंकर सूनामी से

डूब गया था। ऐसी ही सुनामी वर्ष 1998 में आई थी जिसमें 2,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। गॉफ ने कहा कि हमने निष्कर्ष निकाला कि वहां मारा गया व्यक्ति दुनिया में सुनामी का सबसे पुराना पीड़ित हो सकता है। ऑस्ट्रेलिया के भूवैज्ञानिक पॉल हॉसफेल्ड ने करीब 90 साल पहले एटापे से यह खोपड़ी खोजी थी। वैज्ञानिकों का दल वर्ष 2014 में वहां गया और उसने प्रयोगशाला में अध्ययन के लिए हॉसफेल्ड द्वारा संरक्षित की गई भूवैज्ञानिक चीजों के नमूने एकत्रित किए। गॉफ ने कहा कि हड्डियों का अच्छी तरह से अध्ययन करते हुए उस तलछट पर भी पहले ध्यान दिया गया जहां से ये मिली थीं। उन्होंने कहा कि इन तलछटों और वर्ष 1998 की सुनामी के दौरान की तलछट के बीच भूगर्भीय समानताओं से हमें यह पता चला कि इस इलाके में मानव आबादी हजारों साल पहले आई सुनामी से प्रभावित रही है। (एजेंसी)

ऐतिहासिक मापन ने पुच्छल तारे द्वारा उत्सर्जित उच्च ऊर्जा किरणों की प्रचलित धारणाओं के लिए मजबूत चुनौती रखी है। (एजेंसी)

जाएंट मेगेलन टेलीस्कोप संगठन के अनुसार दुनिया के सबसे बड़े दूरबीन के पांचवें दर्पण की ढ़लाई का काम शुरू हो चुका है

न सात दर्पणों में से पाचंवे दर्पण की ढलाई शुरू हो गई है, जो दुनिया की सबसे विशाल दूरबीन में लगाया जाएगा। जाएंट मेगेलन टेलीस्कोप संगठन (जीएमटी) ने यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी एफे न्यूज की रिपोर्ट में बताया गया कि जीएमटी को चिली के एंडेस में स्थापित किया जाएगा और यह हब्बल स्टेस दूरबीन से 10 गुणा अधिक शार्प इमेज देगा। इसमें 8.4 मीटर (27.5 फीट) चौड़े 7 दर्पण लगे होंगे। इसके दर्पण की ढलाई में 20 टन शीशे का इस्तेमाल किया जा रहा है। जाएंट मेगेलन टेलेस्कोप संगठन ने एक प्रेस विज्ञप्ति में यह जानकारी दी। यह परियोजना साल 2015 में शुरू हुई थी और 2021 तक इसके चालू होने की उम्मीद है। इस दूरबीन का प्रयोग हमारी सौर प्रणाली के बाहर के ग्रहों का अध्ययन करने के लिए किया जाएगा। जीएमटीओ के अध्यक्ष राबर्ट ए. शेल्टन ने कहा

कि जाएंट मेगेलन टेलीस्कोप परियोजना खगोल विज्ञान में नई खोज करेगी और शायद अध्ययन के लिए एक पूरा नया क्षेत्र खोलेगी। एरिजोना विश्वविद्यालय की प्रतिभाओं के साथ मिलकर हमारी टीम सातवें दर्पण का काम पूरा कर रही है। जीएमटी के पहले दर्पण का निर्माण कई साल पहले पूरा किया गया था। जबकि तीन अन्य दर्पण एरिजोना विश्वविद्यालय के मिरर लैब में उत्पादन के विभिन्न चरण में हैं। (आईएएनएस)


दिखी तारों से गुजरती वस्तु नासा के वैज्ञानिकों ने पहली बार ‘तारों के बीच से गुजरती’ एक ऐसी वस्तु देखी है जो सौर मंडल के बाहर उत्पन्न हुई है

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सा के वैज्ञानिकों ने पहली बार ‘तारों के बीच से गुजरती’ एक ऐसी वस्तु देखी है जो सौर मंडल के बाहर उत्पन्न हुई है और जो किसी अन्य स्थान से हमारी आकाशगंगा में आई है। यह वस्तु छोटा क्षुद्रग्रह या धूमकेतु प्रतीत होती है। इस वस्तु का नाम ए/2017 यू1 रखा गया है और इसका व्यास 400 मीटर से कम है व यह उल्लेखनीय ढंग से तेज गति से चल रही है। विश्वभर में वैज्ञानिक दूरबीनों के माध्यम से अंतरिक्ष में इस उल्लेखनीय वस्तु पर नजर रखे हुए हैं। एक बार संबंधित डेटा मिलने और इसका विश्लेषण होने पर खगोल विज्ञानी इसकी उत्पत्ति व इसके संभावित संघटक के बारे में अधिक जान सकते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ हवाई की पैन-स्टार्स 1 टेलिस्कोप ने रात के दौरान धरती के नजदीक की वस्तुओं की खोज के दौरान ए/2017 यू1 का पता

लगाया था। नासा के सेंटर फॉर नियर अर्थ ऑब्जेक्ट स्टडी के मैनेजर ने कहा, 'वे इस दिन का काफी समय से इंतजार कर रहे थे। यह काफी दिनों से हमें पता है कि ऐसी चीजें अंतरिक्ष में होती हैं जो सितारों और कभी-कभी हमारे सौरमंडल के पास से भी गुजरती हैं, पर पहली बार हमने ऐसी चीज को डिटेक्ट किया है। अभी तक जो भी हमने देखा है उसके आधार पर हम यह कह सकते हैं कि वह एक इंटरस्टेलर ऑब्जेक्ट था पर अभी आगे आने वाली जानकारी से इस बात की पुष्टि हो पाएगी।' (एजेंसी)

भारतीयों ने 'नासा मिशन' के लिए भेजे नाम

20 - 26 नवंबर 2017

अं

तरिक्ष में रूचि रखने वाले 1.3 लाख से अधिक भारतीयों ने अपने नाम नासा को भेजे हैं। ये नाम अगले साल मंगल ग्रह जाने वाले अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी के यान में भेजे जाएंगे। पिछले महीने नासा ने लोगों से कहा था कि वे अपने नाम भेजे जिसे मंगल जाने वाले ‘इनसाइट’ (इंटीरियर एक्सप्लोरेशन यूजिस सिसमिक इंवेस्टीगेशंस) मिशन पर भेजा जाएगा। जिन लोगों ने नाम भेजे थे उन्हें मिशन के लिए आनलाइन 'बोर्डिंग पास' मुहैया कराए गए थे। नामों को एक सिलिकॉन वैफर माइक्रोचिप

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मंगल पर सर्दी से बदलता है परिदृश्य शोधकर्ताओं ने कार्बन डाई ऑक्साइड (सीओ2) के ठोस से गैस में बदलने की उर्ध्वपातन की प्रक्रिया पर प्रयोगशालाओं में प्रयोग किए

क अध्ययन के अनुसार मंगल पर सर्दी कार्बन डाइऑक्साइड के जमने का कारण बनती है और इससे यह रेत के टीलों के आकार में नजर आती है। अध्ययन में बड़ी मात्रा में तरल पानी के अभाव में लाल ग्रह पर बनने वाली इस तरह की चीजों की विशेषताओं को बताया गया है। शोधकर्ताओं ने कार्बन डाई ऑक्साइड (सीओ2) के ठोस से गैस में बदलने की उत्सादन या उर्ध्वपातन की प्रक्रिया पर प्रयोगशालाओं में प्रयोग किए। अध्ययन के अनुसार मंगल पर रेत के टीलों में बदलने के लिए भी यही प्रक्रिया जिम्मेदार है। ब्रिटेन में ट्रिनिटी कॉलेज, डबलिन की लॉरेन मैक इओन ने कहा, 'हम सभी ने मंगल पर पानी के प्रमाण के बारे में रोचक खबरों को सुना है।' उन्होंने कहा, 'हालांकि मंगल पर मौजूदा

जलवायु प्राय: उसकी तरल अवस्था में पानी से मेल नहीं खाती है, इसीलिए यह महत्वपूर्ण है कि हम अन्य वाष्पशील पदार्थों की भूमिका को भी समझें जिससे आज मंगल में परिवर्तन करने की संभावना है।' उन्होंने कहा, 'मंगल ग्रह पर वातावरण 95 प्रतिशत से अधिक सीओ2 से बना होता है, फिर भी हम इस बारे में अब तक कम जानते है कि इस ग्रह की सतह किस प्रकार की है।' (एजेंसी)

आेजोन में बना सबसे छोटा छेद अंटार्कटिका क्षेत्र में हर साल बनने वाले ओजोन छेद में इस साल सितंबर में 1988 के बाद सबसे ज्यादा घटाव पाया गया है

इस साल ओजोन छेद में इस परिवर्तन के पीछे वैज्ञानिक अंटार्कटिक भंवर की अस्थिरता व ज्यादा गर्मी, जोकि अंटार्कटिक क्षेत्र के वायुमंडल में दक्षिणावर्त बनने वाले समतापमंडलीय निम्न दबाव के कारण उत्पन्न होती है, को मानते हैं।

पिछले महीने नासा ने लोगों से कहा था कि वे अपने नाम भेजे जिसे मंगल जाने वाले ‘इनसाइट’ मिशन पर भेजा जाएगा

पर एक इलेक्ट्रानिक बीम की मदद से उकेरा जाएगा। चिप को इनसाइट लैंडर डेक के साथ लगाया जाएगा और यह हमेशा के लिए मंगल पर रहेगा। चिप को मंगल ग्रह जाने वाले इनसाइट मिशन पर ले जाया जाएगा जो कि अगले वर्ष पांच मई को रवाना होगा। मंगल पर नाम भेजने के नासा के आह्वान पर बड़ी संख्या में भारतीयों ने अपने नाम उसे भेजे थे। पूरे विश्व से नासा को कुल 2,429,807 नाम मिले थे। इसमें से सबसे अधिक 6,76,773 नाम अमेरिका से थे। इसके बाद चीन से 2,62,752 लोगों ने अपने नाम भेजे थे। इस मामले में भारत का स्थान तीसरा है जहां से 1,38,899 भारतीयों ने मिशन के लिए अपने नाम भेजे। कैलीफोर्निया स्थित नासा के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के ब्रूस बैनर्ड ने कहा, 'मंगल अंतरिक्ष में रूचि रखने वाले सभी आयु के लोगों को रोमांचित करता है। यह मौका उन्हें उस अंतरिक्ष यान का हिस्सा बनने का मौका देगा जो मंगल ग्रह के बारे में अध्ययन करेगा।' (एजेंसी)

साइंस

अं

टार्कटिका क्षेत्र में हर साल बनने वाले ओजोन छेद में इस साल सितंबर में 1988 के बाद सबसे ज्यादा घटाव पाया गया है। नासा और नेशनल ओसनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के वैज्ञानिकों ने इस बारे में घोषणा की और बताया कि गर्म वायु के कारण हर साल सितंबर में किए जाने वाली जांच में अंटार्कटिक क्षेत्र के ऊपर ओजोन परत का छेद 1988 के बाद सबसे छोटा पा गया है। नासा के मुताबिक, 11 सितंबर को ओजोन छेद में सबसे ज्यादा विस्तार हुआ, जोकि आकार में तकरीबन अमेरिका के क्षेत्र का ढाई गुना यानी 76 लाख वर्गमील था। इसके बाद सितंबर से अक्टूबर तक ये छोटा होता रहा। नासा के मैरीलैंड के ग्रीनबेल्ट स्थित गोड्डार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर में प्रमुख भूवैज्ञानिक, पॉल ए. न्यूमैन ने कहा, 'सबसे छोटा इस साल अंटार्कटिक ओजोन छेद असाधारण रूप से छोटा पाया गया है।'

पीठ दर्द भगाएगा ओजोन का इंजेक्शन

पिछले साल 2016 में ओजोन छेद सबसे बड़ा 89 लाख वर्गमील का पाया गया था, जोकि उससे पिछले साल 2015 से 20 लाख वर्गमील से छोटा था। सबसे पहले ओजोन छेद का पता 1985 में लगाया गया था। दाक्षिणी गोलार्ध में सिंतबर से दिसंबर के दौरान शीत ऋतु के बाद सूर्य की किरणों की वापसी से जो उत्प्रेरक प्रभाव पड़ता है, उससे अंटार्कटिक क्षेत्र में ओजोन छेद का निर्माण होता है।

शुक्र के पास भी ओजोन परत

अमूमन धरती से 25 मील ऊपर समताप मंडल में ओजोन परत है, जोकि सनस्क्रीन की तरह काम करती है और पृथ्वी को सूर्य की अल्ट्रावायोलेट किरणों के हानिकारक प्रभावों से बचाती है। अल्ट्रावायोलेट किरणों के विकरण से लोगों को कैंसर, मोतियाबिंद जैसे रोगों का खतरा रहता है। साथ ही इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी नष्ट हो सकती है। (एजेंसी)


22 विविध छ

20 - 26 नवंबर 2017

पिछड़े गांवों को गोद ले रही कांकेर पुलिस कांकेर पुलिस नई पहल करते हुए छत्तीसगढ़ के सुदूरवर्ती गांवों को विकसित करने के लिए गोद ले रही है

त्तीसगढ़ के कांकेर जिले की पुलिस इन दिनों जिले के पिछड़े हुए गांवों में काम कर रही है। यह पहला प्रयोग है, जिसके तहत कांकेर पुलिस ने एक गांव गोद लिया है, जो पहाड़ी के ऊपर स्थित है और यहां पर यदि कोई आपात स्थिति हो जाए तो शहर तक आने में ही दिनभर लग जाते हैं। ऐसे हालात से बचने के लिए पुलिस ने मोर मितान कांकेर अभियान शुरू किया है। कांकेर पुलिस की ओर से किया जा रहा यह प्रयोग प्रदेश में अपनी तरह का अनूठा प्रयोग है। पहले चरण में ऐसे गांव के रूप में कांकेर से 16 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत मरदापोटी के आश्रित गांव जिवलामारी व मरार्पी को चुना गया है। पहाड़ी पर बसे इन गांव में न तो बिजली है और न ही आनेजाने के लिए सड़क। यहां की जमीनी हकीकत जानने के लिए पहाड़ी की चढ़ाई करपुलीस अधीक्षक स्वयं जिवलामारी गांव पहुंचे। प्राथमिकता को देखते मरार्पी को गोद लेकर यहां सबसे पहले सड़क बनाने का फैसला लिया। इसके लिए मरदापोटी में उसके आश्रित ग्रामों की ग्रामीणों की बैठक भी रखी गई है। इसमें बस्तर संभाग के आईजी भी शामिल होंगे। यहां ग्रामीणों से

उनकी समस्याओं को दूर किया जाएगा। एसपी केएल ध्रुव ने कहा कि मुख्यालय से 16 किलोमीटर दूर मरार्पी के ग्राम पंचायत मुख्यालय मरदापोटी जाने तक तो पक्की सड़क है, लेकिन छह किलोमीटर की दूरी में सड़क नहीं है। दो किलोमीटर तक प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की सड़क है। इसके बाद दो किलोमीटर जंगल व दो किलोमीटर

रांची में बढ़ी थैलों की बिक्री

पहाड़ी चढ़ाई है। इसमें पैदल चलकर ही ग्रामीणों को जाना होता है। उन्होंने जानकारी दी कि पुलिस यहां पहले अपने स्तर पर श्रमदान कर छोटे वाहन चलने लायक सड़क बनाएगी। इसके बाद जिला प्रशासन की मदद से यहां पक्की सड़क बनाई जाएगी। पहाड़ी पर बसा मरार्पी गांव 50 साल से भी पुराना है। इसकी जनसंख्या 360 है। यहां के ग्रामीण रोजमर्रा के

छोटे दुकानदार लोगों से गुजारिश कर रहे हैं कि हम सामान तो दे देंगे, लेकिन पॉलिथीन हमारे पास नहीं है

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एसएसबी ब्यूरो

रखंड सरकार द्वारा पॉलिथीन पर बैन लगाने का असर सूबे की राजधानी में दिखने लगा है। शहर के बाजारों से पॉलिथीन तकरीबन नदारद है। छोटे दुकानदार लोगों से गुजारिश करते दिख रहे हैं कि हम सामान तो दे देंगे, लेकिन पॉलिथीन हमारे पास नहीं है। आपको थैला खरीद कर लाना पड़ेगा। हरमू बाजार स्थित दुकानों में दुकानदारों ने पॉलिथीन मुक्त बाजार का पोस्टर लगा रखा है। यहां आनेवाले ग्राहकों को दुकानदार दो से पांच रुपए लेकर कपड़े से बने छोटे-छोटे थैले दे रहे हैं। यहां दुकानदार लोगों से यह अपील भी कर रहे हैं कि सरकार ने हम सब की भलाई के लिए पॉलिथीन पर बैन लगाया है, इसीलिए हमारा भी दायित्व है

कि हम इसका पालन करें। कुछ-कुछ यही नजारा लालपुर सब्जी मंडी का भी है। यहां भी दुकानदार ग्राहकों को सब्जी पॉलिथीन पर नहीं दे रहे हैं। आमतौर पर कपड़े का थैला जेनरल स्टोर में ही बिकता था। पॉलिथीन बैन के बाद अब इनकी बिक्री सब्जी दुकानों में भी होने लगी है। कोई भी ग्राहक जैसे ही कुछ खरीदारी करने आता है, उसे बता दिया जाता है कि आपको झोला अलग से खरीदना पड़ेगा। पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगने के बाद सरकार के कार्रवाई के डर से शहर के अपर बाजार के रंगरेज गली, जेजे रोड और नॉर्थ मार्केट रोड में स्थित कुछ स्टॉकिस्टों ने अपने यहां जमा स्टॉक वाहन से लोड कर हटा दिया। पॉलिथीन के इन स्टॉकों को शहरी क्षेत्र से बाहर भेज दिया गया है। रांछी निवासी आशीष नायक कहते हैं, ‘सरकार के इस निर्णय की हम सराहना करते हैं। दुकानों में पॉलिथीन नहीं मिलने से थोड़ी बहुत परेशानी तो हुई, लेकिन यह एक अच्छा कदम है> आगे से अब झोला लेकर ही बाजार निकलेंगे।’ उन्होंने आगेकहा कि हम अब नगर निगम से हम यह उम्मीद करते हैं कि अधिकारी केवल छोटे दुकानों में नहीं, बल्कि बड़े-बड़े शॉपिंग मॉलों में इसकी जांच करें।

कामों व जरूरत के लिए पहाड़ी से उतरकर नीचे पीढ़ापाल, गुमझीर, इरादाह तक पहुंचते हैं। बच्चे भी स्कूल के लिए रोज पैदल ही आते-जाते हैं। सड़क नहीं होने के कारण सबसे अधिक गर्भवती महिलाओं व मरीजों को लाने ले जाने में ग्रामीणों को परेशानी होती है। इन्हें सड़क तक खाट में लेटाकर लाया जाता है। इसके अलावा गांव के कई पारों में बिजली भी नहीं है। जनपद सदस्य राजेश भास्कर ने कहा कि इरादाह से मरार्पी तक 2.26 करोड़ रुपए की लागत से छह किलोमीटर लंबी सड़क प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बननी थी। ठेकेदार ने मात्र दो किलोमीटर सड़क बनाया और इसके बाद काम बंद कर दिया। आज तक आगे सड़क नहीं बनाई जा सकी है। इससे मरार्पी के ग्रामीण परेशान हैं। एसपी ने कहा कि बुनियादी सुविधाओं से दूर इस गांव में पुलिस काम करना चाहती है। इसके लिए मोर मितान कांकेर कार्यक्रम चलाया जा रहा है। पहले चरण में पहाड़ी में बसे गांव मरार्पी तक अपने स्तर पर सड़क बनाने की योजना है। इसके लिए पुलिस जवान श्रमदान करेंगे। पक्की सड़क बनाने जिला प्रशासन से मदद लेकर उन्हें सुरक्षा देंगे। (आईएएनएस)

टीबी के लिए अब दवा की मिश्रित खुराक

दवा की खुराक में परिवर्तन से तपेदिक बीमारी से लड़ने के दृष्टिकोण में बदलाव आएगा

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एसएसबी ब्यूरो

स्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने संशोधित राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) के तहत पूरे देश में तपेदिक रोग पीडितों के लिए दवा की दैनिक खुराक व्यवस्था लागू करने की घोषणा की है। मंत्रालय ने पहले तपेदिक बीमारी के इलाज के लिए दवा की खुराक सप्ताह में तीन बार लेने को कहा था लेकिन अब टीबी रोगियों के लिए इलाज में बदलाव करने का निर्णय लिया गया है और इलाज के लिए मिश्रित दवाओं की तय खुराक का इस्तेमाल करते हुए सप्ताह में तीन बार के स्थान पर दैनिक खुराक की व्यवस्था की गई है। इस परिवर्तन से तपेदिक बीमारी से लड़ने के दृष्टिकोण में बदलाव आएगा। तपेदिक के कारण प्रत्येक वर्ष 4.2 लाख लोग मर जाते हैं। तपेदिक रोधी दैनिक मिश्रित दवा खुराक निजी फार्मेसी और प्राइवेट प्रेक्टिस करने वाले डाक्टरों को उपल्बध करवाई जाएगी ताकि दवाओं

की खुराक उन रोगियों को दी जा सके जो निजी क्षेत्र में अपनी सुविधा अनुसार इलाज करा रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय टीबी के सभी मरीजों तक मिश्रित दवाओं की तय खुराक दैनिक रूप से उपलब्ध कराने के लिए इसका विस्तार सभी बड़े अस्पतालों, आईएमए, आईएपी, तथा पेशेवर चिकित्सा संगठनों तक करेगा। इलाज के इस तरीके की विशेषता यह है कि सभी रोगियों को निरंतर चरणों में इथैन ब्यूटॉल दिया जाएगा। दवायें रोजाना दी जाएंगी। दवायें पहले सप्ताह में तीन बार दी जाती थी। मिश्रित दवाओं की तय खुराक से मरीजों को कम गोलियां खानी पडेंगी उन्हें पहले सात अलग-अलग टैबलेट खाने पडते थे। बच्चों के लिए घुलनशील टैबलेट होंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक टीबी रिपोर्ट 2017 में कहा गया है कि टीबी ग्रसित लोगों की संख्या 28.2 लाख से घटकर 27 लाख हो गई है और पिछले एक वर्ष में मृत्यु में 60 हजार की कमी आई है। भारत सरकार का टीबी रोधी अभियान की पुष्टि है।


20 - 26 नवंबर 2017

‘मैला ढोने वालों के रूप में रोजगार पर रोक’

सरकार मैला ढोने की प्रथा को निर्धारित समय के आधार पर समाप्त करना चाहती है और इसके लिए राज्य सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे कानून के प्रावधानों को लागू कराएं

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द्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने ‘मैला ढोने वालों के रूप में रोजगार पर रोक और उनके पुनर्वास कानून’ के कार्यान्वयन की समीक्षा के लिए केंद्रीय निगरानी समिति की नई दिल्ली में एक अहम बैठक हुई। इस मुद्दे पर हुई केंद्रीय निगरानी समिति की 5वीं बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने की। बैठक में सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले, मंत्रालय में सचिव लता कृष्णा राव और अन्या वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे। मैला ढोने की कुप्रथा के खिलाफ इस महत्त्वपूर्ण केंद्रीय कानून को संसद ने सितंबर 2013 में बनाया और यह दिसंबर 2014 में अमल में आया। इसका उद्देश्य मैला ढोने की प्रथा को पूरी तरह समाप्तं करना और पहचाने गए मैला ढोने वालों का विस्तृत पुनर्वास करना है। सरकार मैला ढोने की प्रथा को

निर्धारित समय के आधार पर समाप्त करना चाहती है जिसके लिए राज्य सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे मैला ढोने की प्रथा कानून 2013 के प्रावधानों को लागू करें। बैठक में सिफारिश की गई कि मैला ढोने वालों की तेजी से पहचान के लिए सर्वेक्षण दिशानिर्देशों को सरल बनाया जाए। समीक्षा बैठक में भारत में मैला ढोने की प्रथा और इससे जुड़े कानून के बारे में विचार-विमर्श किया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जो भी व्यक्ति मल-मूत्र उठा रहा है, उसकी पहचान कर उसे मैला ढोने वालों की सूची में शामिल किया जाए। बैठक में

इस बारे में भी चर्चा की गई कि पहचाने गए मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए स्व–रोजगार योजना का कार्यान्वयन किया जाए जिसके अंतर्गत एक बार नकद सहायता प्रदान करना; कौशल विकास प्रशिक्षण और ऋण सब्सिडी देना शामिल है। बैठक में सदस्यों को जानकारी दी गई कि राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम ने मैला ढोने वालों और उनके आश्रितों को कौशल विकास प्रशिक्षण देने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए अनेक जागरूकता शिविर लगाए हैं ताकि उन्हें उचित रोजगार मिल सके अथवा वे स्व–रोजगार कार्य शुरू कर सकें। इस बैठक में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के अध्यक्ष, सांसद, समिति में शामिल गैर-सरकारी सदस्य, केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों और राज्य सरकारों/ संघ शासित प्रशासनों के प्रतिनिधि तथा मैला ढोने वालों/सफाई कर्मियों के कल्याण के लिए काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी हिस्सा लिया।

महिला अपराध रोकने के लिए सरकार की पहल मध्यप्रदेश सरकार ने कन्या छात्रावासों, धार्मिक स्थलों और स्कूलों के आसपास की शराब दुकानें बंद करने के निर्देश दिए हैं

आईएएनएस

ध्य प्रदेश में छेड़छाड़ और दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं पर काबू पाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निर्देश दिए हैं कि कन्या छात्रावासों, धार्मिक स्थलों और स्कूलों के आसपास की शराब दुकानें बंद की जाएं। महिला अपराधों पर नियंत्रण के संबंध में समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री चौहान ने अफसरों को निर्देश दिए कि उन कन्या छात्रावासों, धार्मिक स्थलों और

स्कूलों की सूची बनाई जाए, जिनके आसपास शराब दुकान है और कार्रवाई की जाए। शराब दुकानों के अहाते तुरंत बंद कराए जाएं। युवाओं में जागरूकता लाने के लिए स्कूलों-कॉलेजों में विशेष अभियान चलाया जाए। मुख्यमंत्री चौहान ने हाल में संपन्न इस संबंध में हुई बैठक के निर्णयों के पालन में की गई कार्रवाई की समीक्षा की। उन्होंने कहा कि स्कूल-कॉलेज और लोक परिवहन की बसों में जीपीएस सिस्टम और सीसीटीवी कैमरे लगाना अनिवार्य रूप से सुनिश्चित

किया जाए। इसका पालन नहीं करने वाली संस्थाओं की मान्यता निरस्त की जाए। महिला छात्रावासों के प्रवेश द्वार पर सीसीटीवी लगाए जाएं। महिला अपराध के प्रकरणों में तुरंत चिकित्सा सहायता उपलब्ध करवाई जाए और चिकित्सकों में संवेदनशीलता के लिए स्वास्थ्य विभाग के अमले को प्रशिक्षित किया जाए। पुलिस विभाग द्वारा महिला अपराधों की रोकथाम के लिए महिलाओं से विशेष संपर्क कार्यक्रम के तहत स्कूलों-कॉलेजों में संपर्क किया जा रहा है। इसके तहत दो सप्ताह में करीब ढाई लाख महिलाओंयुवतियों से संपर्क किया जाएगा। महिला अपराध तुरंत पंजीकृत हों, इसके लिए पुलिस के मैदानी अमले को अगले तीन माह में व्यापक प्रशिक्षण दिया जाएगा। वर्तमान में चल रहे इस तरह के प्रकरणों की समीक्षा कर त्वरित कार्रवाई की जाएगी। स्कूल बसों में महिला परिचालक की उपस्थिति अनिवार्य करने तथा चालकों के चरित्र सत्यापन के लिए परिवहन विभाग द्वारा निर्देश जारी किए गए हैं। स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा सभी स्कूलों में 'गुड टच - बैड टच' के बारे में फिल्म दिखाकर बच्चों को जागरूक किया जाएगा। महिला अपराधों की आपातकालीन शिकायत के लिए 100 और 1090 हेल्प लाइन पर दर्ज प्रकरणों की लगातार समीक्षा की जाएगी।

विविध

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गहने गिरवी रखकर बनवाया शौचालय

गहने गिरवी रखकर शौचालय बनवाने के बाद अन्य परिवारों को भी स्वच्छता को लेकर कर रही हैं जागरूक

प्र

धानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर देश के अलग-अलग हिस्सों से स्वच्छ भारत अभियान को व्यापक समर्थन मिल रहा है। मध्य प्रदेश के देवास जिले की आदिवासी महिला अन्नपूर्णा बाई के दिल व दिमाग पर इस अभियान का संदेश कुछ ऐसा बैठा कि उन्होंने अपने गहने गिरवी रखकर शौचालय बनवा डाला। इतना ही नहीं वह गांव के अन्य परिवारों को भी शौचालय बनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं। देवास जिले की दूरस्थ पंचायत बरोली व उसका भील आदिवासी बाहुल्य गांव अमोदिया की आबादी 630 लोगों की है। इस गांव में अन्नपूर्णा बाई नाम की भील आदिवासी महिला अपने परिवार के साथ रहती है, उसके चार बच्चे हैं, जिनमें दो बेटी और दो बेटे हैं। अन्नापूर्णा के पति मजदूरी करते हैं। अन्नपूर्णा बाई बताती हैं कि उन्हें खुले में शौच जाना अच्छा नहीं लगता था। उसने शौचालय निर्माण के लिए मिलने वाली राशि का भी इंतजार नहीं किया और अपनी लज्जा तथा परिवार की सुरक्षा के लिए अपने गहनों को गिरवी रख शौचालय का निर्माण कराया। अन्नपूर्णा को देखकर गांव के अन्य परिवार भी अब शौचालय का निर्माण करा रहे हैं। वहीं, इसी गांव की कालीबाई (65) का कहना है कि उन्होंने भी अपने घर में शौचालय का निर्माण कराया है, ताकि बहू-बेटियों का सम्मान बना रहे। अन्नपूर्णा बाई एवं कालीबाई की प्रेरणा से ही मनीबाई एवं मीराबाई ने जिला पंचायत के अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी की मौजूदगी में शौचालय निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया है। अब गांव में निगरानी समिति का गठन कर लिया गया है। यह समिति सुबह उठकर स्वच्छता का संदेश देगी और अपने गांव के लोगों को खुले में शौच से मुक्त करने की प्रतिज्ञा दिलवाएगी। (आईएएनएस) वर्गीकृत विज्ञापन


24 गुड न्यूज

20 - 26 नवंबर 2017

बिजलीकरण की निगरानी के लिए 'सौभाग्य' लांच सौभाग्य वेब पोर्टल से घरों के बिजलीकरण की प्रगति की लाइव निगरानी की जा सकेगी

वि

आईएएनएस

द्युत व नवीकरणीय ऊर्जा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) आरके सिंह ने प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना के तहत 'सौभाग्य' वेब पोर्टल लांच किया। इस पोर्टल को वेबसाइट पर देखा जा सकता है। इस अवसर पर मीडिया को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा कि सौभाग्य-डैश बोर्ड घरों के बिजलीकरण की प्रगति की निगरानी का एक ऐसा मंच है, जो घरेलू बिजलीकरण की स्थिति (राज्य, जिला, गांवों के क्रम में) लाइव आधार पर प्रगति, राज्यवार लक्ष्य और उपलब्धि तथा बिजलीकरण की मासिक प्रगति के बारे में सूचनाओं का प्रसार करेगा। विद्युत मंत्री ने कहा कि 4 करोड़ घरों का बिजलीकरण एक बड़ी चुनौती है, फिर भी सरकार ने सभी राज्यों के सहयोग से दिसंबर, 2018 तक यह लक्ष्य प्राप्त करने का संकल्प व्यक्त किया है। इससे भारत के नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार आएगा। उन्होंने कहा, ‘सरकार विद्युत पारिस्थितिकी प्रणाली में परिवर्तन ला रही है और प्रीपेड तथा स्मार्ट मीटरों के माध्यम से सभी नए बिजली कनेक्शन के लिए मीटर की व्यवस्था अनिवार्य बनाने का काम कर रही है। इससे गरीब लोगों के लिए बिजली का बिल भरना आसान होगा, बिजली नुकसान में कमी आएगी और बिजली बिल भुगतान परिपालन में वृद्धि होगी।’ सिंह ने सौभाग्य पोर्टल की चर्चा करते हुए कहा कि इस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए सभी राज्य बिजलीकरण कार्य की प्रगति के बारे में

चीन ने नया मौसम उपग्रह छोड़ा

जानकारी देंगे और इससे राज्य बिजली कंपनी/ डिस्कॉम के लिए उत्तरदायी प्रणाली बनेगी। उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, मिजोरम, नगालैंड, छत्तीसगढ़ और असम सहित सात राज्यों ने सौभाग्य योजना के अंतर्गत बिजली मंत्रालय से कोष की मांग की है। बिजली वितरण कंपनियां गांवों में शिविर लगाएंगी और मौके पर आवेदन करने तथा घरों को बिजली कनेक्शन देने संबंधी आवश्यक दस्तावेजों को पूरा करने में मदद करेंगी। सिंह ने बताया कि उनके मंत्रालय ने एनटीपीसी को ताप विद्युत संयंत्रों में बिजली उत्पादन के लिए कोयले के साथ 10 प्रतिशत तक फसलों के अवशेष मिलाने का निर्देश दिया है। इससे पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में खरपतवार और पराली जलाने में कमी आएगी और वायु प्रदूषण कम होगा। इस कदम से किसानों को 5,500 रुपए प्रति टन फसल अवशेष के लिए प्राप्त होगा। फसल अवशेष एकत्रित करने के लिए अवसंरचना तैयार की जा रही है और एनटीपीसी इस संबंध में शीघ्र ही निविदा जारी करेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितंबर को सौभाग्य योजना शुरू की थी। यह योजना 12,320 करोड़ रुपए के बजटीय समर्थन सहित 16,320 करोड़ रुपए की है। सौभाग्य योजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों के सभी इच्छुक घरों और शहरी क्षेत्रों के गरीब परिवारों को नि:शुल्क बिजली कनेक्शन दिया जाता है। देश में 4 करोड़ घरों का बिजलीकरण नहीं हुआ है और दिसंबर, 2018 तक इन घरों को बिजली देने का लक्ष्य रखा गया है।

ची

न ने एक नए मौसम उपग्रह फेंगयुन-3डी को अंतरिक्ष में छोड़ा है। शांक्सी प्रांत में स्थित ताइयुआन उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र से उपग्रह को छोड़ा गया। लांग मार्च-4सी रॉकेट इस उपग्रह को लेकर अंतरिक्ष में गया। फेंगयुन-3डी ध्रुवीय कक्षा के लिए चीन की दूसरी पीढ़ी के मौसम उपग्रहों में से एक है, जो वैश्विक थ्री डाइमेंशनल ऑल-वेदर और मल्टी-

बल्ब खरीदते वक्त आंखों की चिंता नहीं!

21 फीसदी लोग ही बल्ब खरीदते समय यह ध्यान रखते हैं कि यह उनकी आंखों के लिए आरामदायक होगा या नहीं

हां दो-तिहाई भारतीय इस बात से सहमत हैं कि रोशनी की गुणवत्ता खराब होने से उनकी आंखों को खतरा है, लेकिन केवल 21 फीसदी लोग ही बल्ब खरीदते समय यह ध्यान रखते हैं कि यह उनकी आंखों के लिए आरामदायक होगा या नहीं। यहां एक सर्वेक्षण में बुधवार को यह जानकारी सामने आई है। फिलिप्स लाइटिंग सर्वेक्षण के मुताबिक ज्यादातर भारतीय लोगों के लिए आंखों की देखभाल, त्वचा की देखभाल और अन्य स्वास्थ्य मुद्दों जैसे वजन घटाना या फिटनेस का स्तर बढ़ाना, जितना भी महत्वपूर्ण नहीं है। यह सर्वेक्षण भारत समेत 12 देशों में 9,000 वयस्क प्रतिभागियों पर किया गया। इसमें पता चला कि बल्ब की खरीदारी के वक्त 50 फीसदी लोग आंखों की सुविधा की बजाए कीमत को तथा 48 फीसदी लोग बल्ब की मजबूती की तवज्जो देते हैं। हमारे जीवन में डिजिटल प्रौद्योगिकी के आक्रमण को देखते हुए, यह स्थिति चिंताजनक है। क्योंकि करीब 70 फीसदी भारतीय रोज 6 घंटे से ज्यादा वक्त चमकीली स्क्रीन के आगे बिताते हैं और इतने ही फीसदी लोग आंखों की समस्याओं से जूझ रहे हैं। ये परिणाम ऐसे समय आए हैं जब दुनियाभर में निकट दृष्टि दोष रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा व्यक्त अनुमान कि 2050 तक प्रत्येक दो में से एक व्यक्ति दूर दृष्टि दोष से ग्रसित होगा के साथ, भविष्य में नहीं बल्कि तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। फिलिप्स लाइटिंग इंडिया के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक सुमित जोशी ने कहा, ‘गुणवत्तापूर्ण प्रकाश न केवल दीर्घायु से संबंधित है, बल्कि यह अविश्वसनीय रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है जब हमारी आंखों

को तनावमुक्त रखने को सुनिश्चित करने और आरामदायक महसूस कराने की बात आती है। लोगों को उच्च गुणवत्ता वाले लैम्प का चुनाव करना चाहिए जो उनकी आंखों के लिए सहज हैं।’ नेत्र रोग विशेषज्ञ इस स्थिति की गंभीरता को समझते हैं और आम जनता को उनकी आंखों की देखभाल के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए हर कदम उठा रहे हैं। ऑल इंडिया ऑप्थैल्मोलॉजी सोसाएटी के अध्यक्ष और कमल नेत्रालय, बेंगलुरु के डा. के.एस. संथन गोपाल के मुताबिक, ‘जनता को आंखों की देखभाल के प्रति लगातार शिक्षित करने की जरूरत है। इस मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने के लिए ऑल इंडिया ऑप्थैल्मोलॉजी ने जनता के बीच नेत्र शिक्षा को बढ़ाने के लिए सक्रियता से सामुदायिक आधारित कार्यक्रम, दिशा-निर्देश और संसाधन विकसित किए हैं।’ अध्ययन के परिणामों के मुताबिक, 44 प्रतिशत भारतीय नियमित तौर पर नेत्र विशेषज्ञ के पास नहीं जाते हैं, जबकि तकरीबन तीन चौथाई भारतीय स्वास्थ्य के समग्र संकेतक के रूप में औसत तौर पर वजन (73 प्रतिशत) और फिटनेस (60 प्रतिशत) पर ध्यान देते हैं। (आईएएनएस)

फेंगयुन-3डी ध्रुवीय कक्षा के लिए चीन की दूसरी पीढ़ी के मौसम उपग्रहों में से एक है स्पेक्ट्रल रिमोट सेंसिंग तस्वीरें प्रदान कर सकता है। यह उपग्रह फेंगयुन-3सी उपग्रह के साथ एक नेटवर्क स्थापित करेगा, जिसे सितंबर 2013 में लॉन्च किया गया था, ताकि वायुमंडलीय ध्वनि की सटीकता में सुधार और ग्रीनहाउस गैसों की निगरानी में वृद्धि हो सके। यह नेटवर्क चीन में आपदा राहत कार्यो में मदद करेगा। (एजेंसी)


भा

भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में 1.13 लाख नौकरियां दीं एक लाख से ज्यादा नौकरियां देने के अलावा भारतीय कंपनियों ने वहां करीब 18 अरब डॉलर का निवेश भी किया है

रतीय कंपनियों ने अमेरिका में 1,13,000 रोजगार के अवसरों का सृजन किया है और वहां करीब 18 अरब डॉलर का निवेश किया है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। ‘इंडियन रुट्स, अमेरिकन सॉयल शीर्षक’ वाली यह रिपोर्ट सीआईआई ने जारी की है। इसमें बताया गया कि भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व में 14.7 करोड़ डॉलर का योगदान दिया। इसके अलावा भारतीय कंपनियों ने यहां शोध एवं विकास गतिविधियों पर 58.8 करोड डॉलर खर्च किए। इस वार्षिक रिपोर्ट में अमेरिका तथा प्यूर्टोरिको में कारोबार कर

रही 100 भारतीय कंपनियों के निवेश और रोजगार सृजन का ब्योरा दिया गया है। करीब 50 राज्यों में इन कंपनियों ने 1,13,423 लोगों को रोजगार दिया है। भारतीय कंपनियों ने सबसे ज्यादा नौकरियां न्यूजर्सी में 8,572 दी हैं। टेक्सास में भारतीय कंपनियों ने 7,271, कैलिफोर्निया

में 6,749, न्यूयॉर्क में 5,135 और जॉर्जिया में 4,554 नौकरियां दी हैं। जहां तक भारतीय कंपनियों द्वारा किए गए निवेश का सवाल है तो सबसे ज्यादा निवेश न्यूयॉर्क में 1.57 अरब डॉलर का किया गया है। न्यूजर्सी में 1.56 अरब डॉलर, मैसाचुसेट्स में 93.1 करोड डॉलर, कैलिफोर्निया में 54.2 करोड डॉलर और व्योमिंग में 43.5 करोड डॉलर का निवेश भारतीय कंपनियों द्वारा किया गया है। सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा कि अमेरिका में भारतीय कंपनियों के निवेश की कहानी से दोनों देशों द्वारा एक दूसरे की सफलता में दिए गए योगदान का पता चलता है।

ढाका लिट फेस्ट में महिलाओं के मुद्दे इ

बांग्लादेश की राजधानी ढाका में आयोजित होने वाले साहित्य समागम 'ढाका लिट फेस्ट' में इस बार अभिव्यक्ति की आजादी और महिला-केंद्रित मुद्दे छाए रह सकते हैं

स महीने के आखिर में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में आयोजित होने वाले साहित्य समागम 'ढाका लिट फेस्ट' में इस बार अभिव्यक्ति की आजादी और महिला-केंद्रित मुद्दे छाए रह सकते हैं। दरअसल, ये दोनों मुद्दे इस साल इस साहित्यिक कार्यक्रम की थीम हैं। ढाका से महोत्सव के निदेशक के अनीस अहमद की ओर से मिले ईमेल में उन्होंने बताया कि अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर इस साल हमारा ध्यान फर्जी खबरों के घटनाक्रमों और साहित्यक चिंतन व आस्वादन पर सोशल मीडिया के असर पर होगा। हमारा महिला अमला इस बार लड़ाकू जेट विमान उड़ाने से लेकर विविध क्षेत्रों में नए कीर्तिमान स्थापित करने वाली महिलाओं पर केंद्रित 'हरस्टोरी' को इस साहित्य समागम में शामिल कर रहा है। उन्होंने बताया कि इस साहित्य महोत्सव में साहित्यिक अमलों की धूम रहेगी, जिसमें अंग्रेजी और बांग्ला साहित्य के अलावा

अध्यात्मिकता से लेकर दुनियाभर में हथियारों का व्यापार, नष्ट होती विश्व-व्यवस्था से लेकर रोहिग्या फरियाद के विषय शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इस मौके पर पहली बार भागीदार बनने वालों के साथ ग्रांट मैगजिन के विशेष अंक का लोकार्पण होने को लेकर वे गौरवान्वित हैं। इसके साथ ही, प्रतिष्ठित डीएससी प्राइज सम्मान की मेजबानी को लेकर उनका रोमांचित होना स्वाभाविक है। सदाफ साज और एहसान अकबर ढाका

लिट फेस्ट यानी डीएलएफ के दो अन्य निदेशक हैं। उन्होंने बताया कि इस साहित्यिक महोत्सव में 23 देशों का प्रतिनिधित्व करते हुए 200 से ज्यादा वक्ता, प्रदशनकर्ता व चिंतक शामिल होंगे और कार्यक्रम में शामिल होने के लिए किसी प्रकार का शुल्क नहीं है और प्रवेश सबके लिए खुला है। महोत्सव के सौ से ज्यादा सत्रों के बीच ब्रिटिश साहित्य की पत्रिका ग्रांट का लोकार्पण किया जाएगा। डीएलएफ के निदेशक ने बताया कि इस कार्यक्रम में पुस्तकों का विमोचन, फिल्मों की स्क्रीनिंग और विशेष कार्यक्रमों का आयोजन के अलावा डीएससी पुरस्कार और बांग्लादेश में सबसे ज्यादा मौद्रिक मूल्य वाला साहित्यिक सम्मान गेमकॉन लिटरेरी अवार्ड के विजेताओं की घोषणा की जाएगी। (आईएएनएस)

20 - 26 नवंबर 2017

अंतरराष्ट्रीय

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विंची की पेंटिंग की सबसे महंगी नीलामी

1500 ई. के आसपास बनी 'साल्वातोर मुंडी' नामक इस पेंटिंग को रिकार्ड 45 करोड़ डॉलर में बेचा गया

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ओनार्दो दा विंची की पेटिंग 'साल्वातोर मुंडी' अब तक नीलाम होने वाली सबसे महंगी पेटिंग बन गई है। इसे रिकार्ड 45 करोड़ डॉलर में बेचा गया। सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, 1500 ईस्वी के आसपास बनी 16 दुर्लभतम पेंटिंगों में शुमार इस पेंटिंग को पुनर्जागरण के दौर में बनाया गया था। इन दुर्लभतम पेंटिंगों में विंची द्वारा बनाई गई प्रसिद्ध 'मोनालिसा' की पेंटिंग भी शामिल है। इस निलामी

ने पिकासो द्वारा निर्मित पेंटिंग 'लेस फेम्स द अल्गर' का रिकार्ड तोड़ दिया है। यह पेंटिंग वर्ष 2015 में 17.94 करोड़ डॉलर में बिकी थी। 'साल्वातोर मुंडी' की इससे पहले लंदन, हांग-कांग और सैन फ्रांस्सिको में नीलामी के दौरान लोगों के बीच काफी चर्चा हुई थी। इसमें ईसा मसीह को पुनर्जागरण काल के कपड़े पहने, एक हाथ से आशीर्वाद देते व दूसरे हाथ में क्रिस्टल आर्ब पकड़े दिखाया गया है। सबसे पहले इस पेंटिंग को 1958 में बेचने की कोशिश की गई थी, तब इसे डुप्लीकेट करार देकर केवल 59 डॉलर में बेचा गया था। इस नीलामी से पहले यह पेंटिंग रूस के अरबपति दिमित्री ई. रायबोलोवेल्व के पास था। ऐसा माना जाता है कि उसने 2013 में यह पेंटिंग 12.75 करोड़ डॉलर में खरीदा था। (एजेंसी)

सऊदी अरब में योग को मिला खेल का दर्जा

इस्लामिक देश सऊदी अरब में योग को एक खेल के तौर पर आधिकारिक मान्यता मिल गई

भा

रत में जहां योग और धर्म लेकर विवाद छिड़ा है, वहीं दूसरी ओर इस्लामिक देश सऊदी अरब में योग को एक खेल के तौर पर आधिकारिक मान्यता मिल गई है। सऊदी अरब की ट्रेड ऐंड इंडस्ट्री मिनिस्ट्री ने स्पोर्ट्स ऐक्टिविटीज के तौर योग सिखाने को आधिकारिक मान्यता दे दी है। सऊदी अरब में अब लाइसेंस लेकर योग सिखाया जा सकेगा।

खास बात यह है कि नोफ मारवाई नामक एक महिला को सऊदी अरब की पहली योग प्रशिक्षक का दर्जा भी मिल गया है। योग को खेल के तौर पर सऊदी में मान्यता दिलाने का श्रेय भी नोफ को ही जाता है। नोफ ने इसके लिए लंबे समय तक अभियान चलाया था। अरब योगा फाउंडेशन की फाउंडर नोफ का मानना है कि योग और धर्म के बीच किसी तरह का विवाद नहीं है। आपको बता दें कि 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग को वैश्विक तौर पर स्वीकृति मिली थी और 21 जून को हर साल विश्व भर में योग दिवस मनाया जाता है।


26 गुड न्यूज

20 - 26 नवंबर 2017

सूरत में है सर्वोत्तम शहरी बस सेवा

भारत सरकार ने सूरत को सर्वोत्तम शहरी बस सेवा उपलब्ध कराने के लिए पुरस्कृत किया है

पुरस्कृत हुए आनंद कुमार

सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार को राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय बाल कल्याण पुरस्कार से नवाजा

सु

पर 30 के संस्थापक गणितज्ञ आनंद कुमार को इस साल का राष्ट्रीय बाल कल्याण पुरस्कार दिया गया है। आनंद पढ़ाने की अपनी अनोखी शैली के जरिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) की प्रवेश परीक्षा में विद्यार्थियों को उत्तीर्ण कराने के लिए चर्चित हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति भवन में आनंद कुमार को इस सम्मान से सम्मानित किया। केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण विभाग द्वारा दिए जाने वाले इस पुरस्कार के तहत एक लाख रुपए तथा प्रशस्तिपत्र दिए जाते हैं। इसके तहत देश भर से चुनिंदा लोगों का चयन कर उनके कार्य की पूरी समीक्षा के बाद यह प्रतिष्ठित पुरस्कार दिया जाता है। आनंद कुमार अपने पटना स्थित अपने आवास पर ही 30 बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देकर उन्हें आईआईटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कराते हैं। सुपर 30 से अब तक वंचित तथा निर्धन परिवार के 450 बच्चे शिक्षा ग्रहणकर आईआईटी प्रवेश परीक्षा में सफलता पा चुके हैं। आनंद की इस मुहिम में उनका पूरा परिवार लगा हुआ है। आनंद की जिदगी पर प्रसिद्घ फिल्मकार विकास बहल एक फिल्म बना रहे हैं, जिसमें अभिनेता रितिक रोशन, आनंद की भूमिका में होंगे। यह फिल्म अगले साल 23 नवंबर को रिलीज होगी। राष्ट्रीय बाल कल्याण पुरस्कार मिलने पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए आनंद कुमार ने कहा कि हर पुरस्कार मुझे बच्चों के लिए कुछ और करने का हौसला देता है। उन्होंने कहा कि पुरस्कार मिलने के बाद लोगों की उम्मीदें और बढ़ जाती हैं और मेरा उत्तरदायित्व भी बढ़ जाता है। पुरस्कार मिलने से हौसला भी बढ़ता है। (आईएएनएस)

के

न्द्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा सूरत नगर निगम का चयन ‘सर्वोत्ताम शहरी बस सेवा पुरस्कादर’ के लिए किया गया है। 87 फीसदी निजी वाहन एवं ऑटो-रिक्शा इस्ते‍मालकर्ताओं को शहरी बस सेवा का उपयोग करने के लिए आकर्षित करने में मिली उल्लेवखनीय सफलता को ध्या न में रखते हुए सूरत नगर निगम का चयन इस पुरस्काफर के लिए किया गया है। इसी तरह सार्वजनिक साइकिल साझा करने के लिए मैसूर को ‘सर्वश्रेष्ठ गैर-मोटर चालित परिवहन पुरस्कार’ प्राप्त हुआ है। उधर, कोच्चि (केरल) का चयन तेजी से अपनी मेट्रो रेल परियोजना को पूरा करने और परिवहन के अन्यश साधनों के साथ मेट्रो को एकीकृत करने के लिए ‘सर्वोत्तनम शहरी परिवहन

पहल पुरस्का र’ के लिए हुआ है। हैदराबाद की यातायात एकीकृत प्रबंधन पहल ‘एच-ट्रिम्सन’ का चयन ‘सर्वाधिक बुद्धिमान परिवहन परियोजना’ श्रेणी के तहत ‘प्रशंसनीय पहल पुरस्कावर’ के लिए किया गया है। वहीं, चित्तूसर का चयन सड़क सुरक्षा बेहतर करने के लिए शहरी पुलिस की पहल को ध्या न में रखते हुए ‘प्रशंसनीय पहल पुरस्काकर’ के लिए किया गया है। लगभग 45 लाख की आबादी वाला सूरत शहर वर्ष 2014 तक तिपहिया एवं निजी वाहनों पर अत्य धिक निर्भर था, जब बस त्वकरित परिवहन प्रणाली (बीआरटीएस) और शहरी बसों का परिचालन शुरू किया गया था। मौजूदा समय में इस शहर में 28 मार्गों पर 275 शहरी बसों का परिचालन किया जा रहा है,

जिनका किराया न्यूोनतम 4 रुपए से लेकर अधिकतम 22 रुपए तक है। पर्यटन शहर मैसूर ने इसी साल जून में 425 साइकिलों और 45 डॉकिंग केंद्रों के साथ अपनी सार्वजनिक साइकिल साझा सुविधा का शुभारंभ किया था। पिछले महीने तक 6400 से भी ज्या​ादा सदस्यों का पंजीकरण हो चुका है। इसका किराया बेहद कम है। दो घंटे तक इस्ते‍माल करने के लिए सिर्फ 5 रुपए बतौर किराया लिए जाते हैं। आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने शहरी परिवहन में सर्वोत्तएम विधाओं को बढ़ावा देने के लिए इन पुरस्काीरों की घोषणा की है। ये पुरस्काकर वार्षिक ‘शहरी गतिशीलता भारत सम्मेोलन’ के दौरान प्रदान किए गए। (एजेंसी)

सिस्टर रानी मारिया धन्य घोषित

केरल की नन सिस्टर मारिया को धन्य घोषित किया गया। अब वे संत की उपाधि से केवल एक कदम दूर हैं

के

रल की नन सिस्टर रानी मारिया को धन्य घोषित किए जाने के अवसर पर उनके गांव पुलुवाझी में ग्रामीणों ने पटाखे छोड़कर और मिठाइयां बांटकर खुशियां मनाई। मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में संत घोषित किए जाने के कार्यक्रम के मद्देनजर यहां संत थॉमस कैथोलिक चर्च के पास आयोजित विशेष प्रार्थनासभा में हिस्सा लेने बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। चर्च के पादरी ने कहा कि यह हमारे लिए खुशी की बात है और इस अवसर पर एक विशेष प्रार्थना

सभा आयोजित की गई है। इसके अलावा अन्य कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे। संत थॉमस कैथोलिक चर्च के एक पादरी ने कहा, चर्च के लगभग 300 लोगों ने इंदौर में प्रार्थना और धन्य घोषित किए जाने के कार्यक्रम में हिस्सा लिया। सिस्टर रानी मारिया का जन्म 1954 में हुआ था और नन बनने के बाद मिशनरी के काम के लिए वह फ्रांसिस्कन क्लेरिस्ट कांग्रीगेशन में शामिल हुई। उन्होंने अपने अधिकतर कार्य उत्तर भारत में किया। (आईएएनएस)


20 - 26 नवंबर 2017

नाडेला का 'हिट रिफ्रेश' अब हिंदी में भी

सांस्कृतिक शाम - गंगा के नाम गंगा नदी के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए दिल्ली में एक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया

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गा नदी के सांस्कृातिक और सामाजि‍क महत्व को रेखांकित करते हुए जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने राजधानी दिल्ली में एक सांस्कृतिक संध्या ‘एक शाम गंगा के नाम’ का आयोजन किया। जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के सचिव अमरजीत सिंह इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। वर्ष 2008 में 4 नवंबर को गंगा को देश की राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया था। लोगों में गंगा नदी के बारे में जागरुकता फैलाने और उन्हें संवेदनशील बनाने के उद्देश्य से आयोजित इस कार्यक्रम में नौकरशाहों, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, कलाकारों, छात्रों, शिक्षकों, जल और नदी विशेषज्ञों, इंजीनियरों, मीडिया और अन्य हितधारकों सहित समाज के कई क्षेत्रों के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित थे। इस सांस्कृतिक

संध्या का उद्देश्य गंगा के कायाकल्प के चुनौतिपूर्ण काम के लिए सभी हितधारकों को एकजुट करना था। एकत्रित लोगों को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक उपेन्द्र प्रसाद सिंह ने कहा, ‘गंगा केवल एक जल स्रोत ही नहीं, बल्कि यह लाखों लोगों की भावनाओं से जुड़ी हुई है। इस नदी को प्रदूषण से मुक्त करना आवश्यक है। जहां सरकार इस नदी के संरक्षण के लिए काफी परिश्रम कर रही है, वहीं इस काम में लोगों की भागीदारी भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है।’ सांस्कृतिक संध्या‍ का मुख्य आकर्षण पदम् भूषण डॉ. सरोज वैद्यनाथन द्वारा तैयार की गई नृत्य‍ नाटिका ‘नमामि गंगे’ थी। नृत्य नाटिका में कलाकारों ने बड़े आकर्षक ढंग से गंगा के इतिहास और उसके सौन्दर्य और उसकी निर्मलता और अविरलता को मिल रही चुनौतियों का प्रस्तुतिकरण किया। नृत्य नाटिका से पूर्व गायक पार्थ पुरूषोत्तम दत्त और उनकी पत्नी बीनापाणी दत्त और उनके समूह ने गंगा से जुड़े कई लोकप्रिय गीत पेश किए। (एजेंसी)

वंचित बच्चों के साथ क्रिसमस कार्निवल दिल्ली में आयोजित क्रिसमस कार्निवल में वंचित बच्चों के साथ उत्सव को साझा किया गया

बैप्टिस्ट यूनियन ऑफ नार्थ इंडिया (बीयूएनआई), दिल्ली डिस्ट्रिक्ट बैप्टिस्ट यूनियन (डीडीबीयू) के साथ मिलकर बीसीटीए ग्राउंड पर क्रिसमस कार्निवल का आयोजन किया, जिसमें छात्रों ने आसपास के क्षेत्रों के वंचित बच्चों के साथ अपने आनंद को साझा कर पूरे उत्सव को भावविभोर कर दिया। यहां जारी बयान के अनुसार, कार्यक्रम की शुरुआत भाषण और एक क्रिसमस कैरोल के साथ हुई। पूरे दिल्ली में बीयूएनआई के तहत आठ स्कूल चल रहे हैं, और इन स्कूलों से लगभग 4000 विद्यार्थियों ने इस उत्सव का आनंद लिया। इस उत्सव में उनके माता-पिता को भी आमंत्रित किया गया था। शिक्षकों के साथ विद्यार्थियों ने 50 से अधिक स्टाल लगाए, जहां खेल से जुड़ी गतिविधियां हुईं। बीसीटीए के कोषागार सचिव सुमित नाथ ने

कहा कि हम क्रिसमस समारोह को एक कार्निवल के रूप में व्यवस्थित करते हैं और आशा करते हैं कि यीशु यहां मौजूद हर किसी की इच्छा पूरी करें। उत्सव का आकर्षण एक लकी-ड्रा था, जिसके तहत कई आकर्षक पुरस्कार वितरित किए गए। सांता ने लोगों के बीच मिठाइयां बांटी। (आईएएनएस)

गुड न्यूज

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माइक्रोसॉफ्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सत्या नाडेला की बेस्टसेलर किताब 'हिट रिफ्रेश' जल्द ही हिंदी में प्रकाशित होगी

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रतीय मूल के माइक्रोसॉफ्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सत्या नाडेला की बेस्टसेलर किताब 'हिट रिफ्रेश' जल्द ही हिंदी में उपलब्ध होगी । इसका हिंदी संस्करण हार्पर कालिंस इंडिया ने प्रकाशित किया है, जो इस माह के अंत तक किताबों की दुकानों पर बिक्री के लिए उपलब्ध होगी। कंपनी ने एक बयान में कहा कि इस किताब का तमिल और तेलुगू संस्करण वेस्टलैंड बुक्स

शिक्षकों को सशक्त बनाएगी डेल

डेल इंडिया सीईएनटीए के साथ मिल कर डिजिटली सशक्त भविष्य के शिक्षक तैयार करेगी

डे

ल इंडिया ने डेल आरंभ की पहुंच को व्यापक करते हुए शिक्षा की अपनी पहल के लिए गै र - ल ा भ क ा र ी शिक्षक प्रत्यायन केंद्र (सीईएनटीए) के साथ साझेदारी की। इस साझेदारी का लक्ष्य शिक्षकों को डिजिटली सशक्त भविष्य के शिक्षक बनाने के लिए उनके कौशल का विकास करना है। डेल इंडिया की विपणन निदेशक रितु गुप्ता ने एक बयान में कहा कि सीईएनटीए के साथ साझेदारी से हम उत्साहित हैं। यह एक अनोखा मंच है, जोकि शिक्षकों को मान्यता देता है और उनको पुरस्कृत करता है। सीईएनटीए की संस्थापक-निदेशक अंजली जैन ने कहा कि हमारी संयुक्त भागीदारी से संभावित प्रभाव को देखने के लिए हम उत्साहित हैं। (आईएएनएस)

ने प्रकाशित किया है, जो 7 नवंबर से उपलब्ध है। वहीं, तमिल संस्करण का किंडन वर्शन भी 7 नवंबर से डाउनलोड के लिए उपलब्ध है। 'हिट रिफ्रेश' में नाडेला पाठकों को हैदराबाद से शुरू हुई अपनी निजी यात्रा के जरिए कंपनी के अमेरिका वाशिंगटन राज्य के रेडमंड में चल रहे बदलावों तक ले जाते हैं। नाडेला को भरोसा है कि भारत के प्राप्त ज्ञान उन्हें माइक्रोसॉफ्ट के वैश्विक दर्शकों के लिए जीवन के नए कोड लिखने में मदद कर रहा है, इनमें क्लाउड, माइक्रोसॉफ्ट 365, विंडोज 10 समेत उभरती विघटनकारी प्रौद्योगिकीयां शामिल हैं। नाडेला का कहना है कि भविष्य एआई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) आधारित कंप्यूटिंग का है और माइक्रोसॉफ्ट दुनिया सबसे शक्तिशाली सुपरकंप्टूयर बना रहा है और हर किसी के लिए अवसंरचना मुहैया करा रहा है। (आईएएनएस)

मंदि‍र ने जीता यूनेस्को का अवार्ड

ति‍रुचि‍रापल्ली में बने श्री रंगनाथस्वामी मंदि‍र को यूनेस्को एशि‍या पेसि‍फि‍क अवार्ड ऑफ मेरि‍ट 2017

खि‍रकार वर्षों की मेहनत और हिंदुस्तानि‍यों के प्रयास रंग लाया। तमि‍लनाडु के इस भव्ये मंदि‍र ने वो कारनामा कर दि‍खाया जो ताजमहल नहीं कर पाया। ति‍रुचि‍रापल्ली में तकरीब 6,31000 वर्गमीटर में फैले श्री रंगनाथस्वामी मंदि‍र को यूनेस्को एशि‍या पेसि‍फि‍क अवार्ड ऑफ मेरि‍ट 2017 मि‍ला है। इस पुरस्कार के लि‍ए एशि‍या प्रशांत क्षेत्र के 10 देशों से कई प्रोजेक्ट्स आए थे। यह सब करीब 25 करोड़ की लागत से हुए रि‍नोवेशन की बदौलत संभव हुआ है। आपको बता दें कि इस अवार्ड के लि‍ए ताजमहल का नाम भी जा चुका है, मगर वह भी इस अवार्ड को हासि‍ल नहीं कर पाया। हालांकि‍ यह यूनेस्को की वि‍श्व धरोहरों की सूची में शामि‍ल है। (एजेंसी)


28 आयोजन

20 - 26 नवंबर 2017

17वां अखिल भारतीय कवयित्री सम्मेलन

चंडीगढ़ में कवयित्रियों का संगम

तीन दिनों के इस अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूएसए, यूके, जापान, मलेशिया, नेपाल इत्यादि देशों की कवयित्रियों ने देशभर से पधारीं लगभग 350 कवयित्रियों के साथ अपना काव्य पाठ किया

डॉ. प्रभा शर्मा

जो कुछ मैं आज हूं, जो कुछ मैं बन सका, उसका कारण मेरी मां, मेरी बहन और मेरी बीबी है।...’ जीवन में नारी के महत्त्व को रेखांकित करते हुए यह बात कही पूर्व क्रिकेटर और पंजाब सरकार के कला एवं पर्यटन मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने। उन्होंने 9 से 11 नवंबर, 2017 तक आयोजित अखिल भारतीय कवयित्री सम्मेलन के 17वें अधिवेशन में बतौर मुख्य अतिथि अपना वक्तव्य दिया। 9 नवंबर, 2017 को चंडीगढ़ के सेक्टर 16 बी स्थित पंजाब आर्ट्स काउंसिल के रंधावा ऑडिटोरियम में अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर त्रिदिवसीय महाधिवेशन का उद्घाटन किया, जिनमें प्रमुख थे डॉ. लारी आजाद, डॉ. स्ट्रीमलेट दखार, डॉ. विजयलक्ष्मी कोसगी, सुरजीत पातर, डॉ. अशोक कुमार ज्योति, सिमरत सुमेरा, डॉ. सरबजीत कौर और सतिंदर कौर पन्नू। सिद्धू ने अपने चिर-परिचित अंदाज में अपने वक्तव्य की शुरुआत की, ‘अजब समां है, गजब समां है/महोतरम कम हैं और मोहतरमाएं ज्यादा हैं/प्रेम परिचय को पहचान बना देता है/वीराने को गुलिस्तां बना देता है/मैं आपबीती कहता हूं, गैरों की नहीं/ क्योंकि प्रेम इंसानों को भगवान बना देता है/आदमी खाना खाकर तृप्त नहीं होता, आदर और सम्मान से होता है।’ सिद्धू ने कहा कि जीवन में महिलाओं का स्थान सदैव ऊंचा होता है और इसके लिए किसी प्रमाण की जरूरत उसी प्रकार नहीं है, जिस प्रकार सूरज कभी प्रमाण नहीं देता कि उसमें प्रकाश है। उन्होंने संस्कृति मंत्री की हैसियत से पंजाब सरकार की ओर से समारोह में पधारे सभी कवयित्रियों का

स्वागत और अभिनंदन किया। इस अवसर पर उन्होंने पंजाब आर्टस काउंसिल को विविध साहित्यिक एवं कलात्मक गतिविधियों के संचालन के लिए 2 करोड़ रुपए प्रदान करने की घोषणा की। इस अवसर पर सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक पद्मभूषण डॉ. विन्देश्वर पाठक के शुभकामना-संदेश का वाचन उनके प्रतिनिधि डॉ. अशोक कुमार ज्योति ने किया। सुरजीत पातर ने साहित्य और उसकी सामाजिक महत्ता को रेखांकित किया। सतिंदर कौर पन्नू ने कविता और उसमें निहित शब्द के शाश्वत महत्त्व को बताया। अखिल भारतीय कवयित्री सम्मेलन के संस्थापक डॉ. लारी आजाद ने वैश्विक परिप्रेक्ष्य में महिलाओं की स्थिति का वर्णन करते हुए उनके स्वावलंबन और सशक्तीकरण में ऑल इंडिया पोएटेस काउंसिल के योगदानों की चर्चा की। उन्होंने बताया कि इस महाधिवेशन में पूरे देश की अनेक भाषाओं की कवयित्रियां शिरकत कर रही हैं, जिससे इसका रूप एक लघु भारत का हो गया है और ये सभी आपसी बातचीत में प्रायः हिंदी का प्रयोग करते हैं, इस तरह हिंदी-भाषा का भी विस्तार हो रहा है। इन तीन दिनों में ये सभी अपनी-अपनी संस्कृतियों का आदान-प्रदान करती हैं। ये अपनी कविताओं में समाज के हर अच्छे-बुरे प्रसंगों का उल्लेख करती हैं। उन्होंने कहा कि एआईपीसी अपने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अधिवेशनों के माध्यम से कवयित्रियों में नवीन ऊर्जा का संचार करता है। उन्होंने कहा कि पंजाब की अमृता प्रीतम जैसी प्रसिद्ध लेखिका इस संस्था की सदस्य रहीं और यहां से हमेशा इसका जुड़ाव रहा। डॉ. लारी ने पंजाब की समृद्ध गुरु-परंपरा को नमन करते हुए देश और समाज के लिए सिखगुरुओं के योगदानों की विशेष चर्चा की। तीन दिनों तक चले इस अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यूएसए, यूके, जापान, मलेशिया, नेपाल इत्यादि देशों की कवयित्रियों ने देशभर से पधारीं लगभग 350 कवयित्रियों के साथ अपनी प्रस्तुतियां दीं। ‘महिला उत्पीड़न की अंतहीन चुनौतियां और भारतीय साहित्य’ विषय पर शोध-पत्र प्रस्तुति का सत्रा भी रखा गया, जिसका संचालन केरल की डॉ. सुप्रिया पी. निवेद ने किया। उसमें अनेक शोध-पत्रों का वाचन किया गया। तीनों दिन संध्या समय रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया, जिसमें बाहर के कलाकारों और कवयित्री कलाकारों ने भी भाग लिया। उद्घाटन-सत्रा में एआईपीसी के प्रकाशन त्रैमासिक पत्रिका’ ‘कालजयी’ के अंक-4-5, ‘जेएचएसएस’, ‘एआईपीसी स्मारिका-2017’, माला प्रकाशन की तीन किताबें, ‘गांधी और हिंदी पत्राकारिता’, अंजू सिंह की पुस्तक ‘उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन’, ज्योति नारायण की काव्य-

पुस्तक ‘शब्द-ज्योति’ एवं अन्य अनेक पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। सम्मान-समारोह में लगभग डेढ़ लाख रुपयों की पुरस्कार-राशि कवयित्रियों को प्रदान की गई। सम्मानित होनेवाली कुछ कवयित्रियां हैं-प्रो. राजेंद्र गार्गी, डॉ. मेघना शर्मा, रमणप्रीत कौर, डॉ. नलिनी विभा नाजली, डॉ. बीना बुदकी, कुलजीत कौर गजल, सुरजीता हांडिक, डॉ. प्रतिभा मुदालियर, सुनंदा एस. मुले, डॉ. विजय लक्ष्मी कोसगी, अल्वरेन आंकड़ा, डॉ. रोशन जैकब, जसप्रीत चिना इत्यादि। इसमें एआईपीसी मिस इंडिया से सिमरत सुमेरा, मिस टिन से अश्विनी एसके, मिस ब्यूटी विद ब्रेन से सुनीता मूर्ति, मिस चंडीगढ़ से हर्की विर्क क्राउन, मिस ट्रिप हैट ट्रिक से सुनीता ‘श्रुतिश्री’, मिस पॉपुलर से जसप्रीत चिना और मिस पंजाब से सरबजीत कौर को नवाजा गया। वहीं देशभर में संस्था के उद्देश्यों के प्रचार-प्रसार के लिए कर्नाटक की डॉ. सरस्वती चिम्मलगी, मेघालय की डॉ. स्ट्रीमलेट दखार, कश्मीर की डॉ. बीना बुदकी, दिल्ली की श्रीमती प्रभा शर्मा भार्गव और पंजाब की श्रीमती सतिंदर कौर पन्नू को ‘गुडविल एम्बैसडर ऑफ एआईपीसी’ की उपाधि से अलंकृत किया गया। कार्यक्रम में पधारीं महत्त्वपूर्ण कवयित्रियां थींविजय लक्ष्मी कोसगी, सुप्रिया पी. निवेद, रमणप्रीत कौर, सिमरत सुमेरा, मंगला कपरे, पोपी सैकिया, अतिमा एलिका ;8 वर्षीया, एम.के. पृथा, डॉ. कल्पना कुमारी झा, सुनीता ‘श्रुतिश्री’, कांक्षा कौमुदी, नम्रता कोसगी, सुनीता खोखा, प्रभा शर्मा भार्गव, अशी आयुश्री, डॉ. मेघना शर्मा, फामेलिन मराक, मंजूला देवी, ललिता बेलवडी, कमला सुदर्शन, डॉ. कविता रायजदा, राधामणि सी., सुरेंदर कौर इत्यादि। इस 17वें महाधिवेशन में नौ कवयित्रियों को सुलभ साहित्य अकादमी के तीन-तीन हजार के पुरस्कार उन्हें शॉल, माला, प्रतीक-चिह्न और प्रमाण-पत्रा के साथ प्रदान किए गए। लुधियाना की सुखविंदर अमृत को ‘लोपामुद्रा सम्मान’, बीदर की चेनम्मा वल्लेपुरे को ‘मैत्रेयी सम्मान’, भावनगर, गुजरात की डॉ. सुमन शर्मा को ‘अनसूया सम्मान’, बटाला, पंजाब की सतिंदर कौर पन्नू को ‘सहजोबाई सम्मान’, इंग्लैंड की दलबीर कौर को ‘मदर टेरेसा सम्मान’, बैंगलोर की जयशीला बायकोड को ‘कस्तूरबा सम्मान’, गुलबर्गा, कर्नाटक की सुमंगला प्रपफुल्ल कोठारी को ‘श्रीमां अरविंदाश्रम सम्मान’ और बेगूसराय, बिहार की डॉ. सुनीता सुमन को ‘प्रभावती सम्मान’ से नवाजा गया। सुलभ इंटरनेशनल द्वारा पुनर्वासित की गईं और शिक्षित-प्रशिक्षित होकर समाज की मुख्यधारा में अपना स्थान बनानेवाली टोंक, राजस्थान की श्रीमती अन्नू तमोली और पूजा चांगरा इस 17वें महाधिवेशन की विशेष आकर्षण रहीं। आयोजकों से लेकर

खास बातें त्रैमासिक पत्रिका कालजयी का हुआ लोकार्पण डेढ लाख की पुरस्कार राशि कवयित्रियों को दिए गए सुलभ द्वारा पुनर्वासित पूर्व स्कैवेंजरर्स ने किया काव्य पाठ मीडिया तक ने उनके इस बदली हुई जिंदगी के लिए उन्हें शाबाशी दी। दोनों ने अपनी-अपनी कविताओं का पाठ किया और एक सत्र में प्रसिद्ध कवयित्रियों के साथ मंच पर स्थान पाया। उनकी कविताओं को कापफी पसंद किया गया। जो सुलभ के प्रशिक्षणकेंद्र ‘नई दिशा’ से जुड़ने से पहले अनपढ़ थीं, आज साक्षर होकर कविताएं लिखने लगी हैं। अन्नू तमोली की ‘कन्या-भूण-हत्या’ पर पढ़ी कविता की कुछ काव्य-पंक्तियां हैंक्या था कसूर मेरा जो तूने मुंह मोड़ लिया उन दरिंदों के हाथों मरने को छोड़ दिया कर दिया छन्नी-छन्नी मेरी नन्ही-सी जान को सांस लेने से पहले सांसों को तोड़ दिया मां, मैं भी तेरा हिस्सा थी तेरी जिंदगी का एक किस्सा थी... पूजा चांगरा की कविता ‘मेरे भी अरमान’ की पंक्तियां रहीं मेरे भी अरमान थे / मेरी भी ख्वाहिश थी जिंदगी में आगे बढ़ना था सभी के साथ बराबर चलना था / सिखाया उन्होंने जीने का ढंग, जिंदगी में आया एक ऐसा इंसान न हम उसे जानते, न वो हमें, पर ढ़ूंढ़ निकाला उन्होंने हमे दिया इतना प्यार जितना करते अपने बच्चों से मां और बाप, बनाया हमें हर काम में सक्षम हमारी बनाई नई पहचान सिखाया हमें बात करने और दिया उठने-बढ़ने का ज्ञान हमारी जिंदगी को मिला सहारा हो गए सपने पूरे सुलभ ने थामा हाथ हमारा...


20 - 26 नवंबर 2017

कपड़े की नई उड़ान

नेशनल पावर पोर्टल लांच

गुड न्यूज

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भारतीय टेक्सटाइल उद्योग नई ऊंचाइयों को छूता हुआ 250 अरब डॉलर पर पहुंच जाएगा

एनपीपी मंत्रालय द्वारा पहले लांच किए गए बिजली क्षेत्र के सभी ऐप्प के लिए एकल प्लेटफार्म होगा

खास बातें भारत में टेक्सटाइल उद्योग अभी 150 अरब डॉलर का है एसोचैम तथा रिसर्जेंट ने उद्योग की तरक्की भविष्यवाणी की है 2015-16 में 68 करोड़ लोग अप्रत्यक्ष रूप से इस उद्योग से जुड़े

वि

एसएसबी ब्यूरो

द्युत और नवीन तथा नवीकरणीय ऊर्जा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) आरके सिंह ने भारतीय बिजली क्षेत्र की सूचना एकत्रीकरण और प्रसार के लिए केंद्रित प्लेटफार्म-नेशनल पावर पोर्टल (एनपीपी) लांच किया। एनपीपी भारतीय विद्युत क्षेत्र के लिए केंद्रिकृत प्रणाली है, जो देश में बिजली उत्पादन से लेकर संप्रेषण और वितरण से संबंधित दैनिक, मासिक और वार्षिक ऑनलाइऩ डाटा कैपचर/ इनपुट में सहायता देती है। यह केंद्रिकृत प्रणाली विश्लेषित विभिन्न रिपोर्टों, ग्राफ, उत्पादन, संप्रेषण और वितरण के लिए अखिल भारतीय, क्षेत्रीय और केंद्रीय राज्य तथा निजी क्षेत्र के लिए राज्य स्तरीय आंकड़ों के माध्यम से बिजली क्षेत्र से संबंधित (संचालन, क्षमता, मांग, आपूर्ति, खपत आदि) सूचनाएं प्रसारित करती है। एनपीपी डैश बोर्ड इस तरह से डिजाइन और विकसित किया गया है कि यह जीआईएस सक्षम नेविगेशन और राष्ट्रीय, राज्य, डिस्कॉम, शहर, फीडर स्तर और राज्यों को योजना आधारित धन पोषण पर क्षमता, उत्पादन, वितरण संबंधी विजुअल चार्ट के माध्यम से विश्लेषित सूचना का प्रसार करता है। इस प्रणाली से नियमति रूप से प्रकाशित होने वाली विभिन्न वैधानिक रिपोर्टों को भी देखा जा सकता है। मंत्रालय द्वारा पहले बिजली क्षेत्र से संबंधित लांच किए गए ऐप्प तरंग, उजाला, विद्युत प्रवाह, गर्व, ऊर्जा, मेरिट अब एकीकृत रूप में इस डैश बोर्ड पर होंगे। एनपीपी को केंद्रीय बिजली प्राधिकरण (सीईए), बिजली वित्त निगम, ग्रामीण बिजलीकरण निगम (आरईसी) तथा अन्य बड़ी कंपनियों के साथ एकीकृत किया गया है और यह बिजली क्षेत्र के लिए एकमात्र प्रमाणिक सूचना स्रोत के रूप में काम करेगा। यह प्रणाली 24x7 आधार पर काम करती है और प्रभावी और समय से डाटा एकत्रीकरण सुनिश्चित करती है।

एसएसबी ब्यूरो

बनारसी साड़ियों की शान

सोचैम तथा रिसर्जेंट ने हाल ही में अपने संयुक्त अध्ययन के आधार पर जारी की रिपोर्ट में यह बात कही है कि अगले दो वर्षों में भारतीय टेक्सटाइल उद्योग नई ऊंचाइयों को छूता हुआ 250 अरब डॉलर पर पहुंच जाएगा, जो कि वर्तमान में 150 अरब डॉलर है। इस अध्ययन से इस बात की पुष्टि होती है कि नोटबंदी के कारण जो तात्कालिक प्रभाव पड़े थे, अब यह उद्योग उससे उबर चुका है। यह तथ्य उस दूरदर्शितापूर्ण निर्णय की जीत है, जो मोदी सरकार ने देशहित में लिया था। इसके अतिरिक्त मोदी सरकार के और कई ऐसे प्रयास हैं, जिनसे भारतीय वस्त्र उद्योग को नई दिशा-दशा मिली।

मोदी सरकार अपनी योजनाओं द्वारा इस क्षेत्र के विकास के प्रति आरंभ से ही कटिबद्ध रही है। प्रधानमंत्री पद संभालने के कुछ ही समय बात नरेंद्र मोदी ने बनारसी साड़ियों के लिए प्रख्यात वाराणसी के लालपुर में व्यापार सुविधा केंद्र एवं शिल्प संग्रहालय की आधारशिला रखी। अपनी अतुलनीय सुंदरता, रंगों एवं बनावट के लिए पहचानी जाने वाली बनारसी साड़ियां देश का गौरव हैं। इसके महत्व को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाना ही इस केंद्र की स्थापना का उद्देश्य था। यह प्रयास मोदी सरकार ही था। सरकारी उपेक्षा का शिकार रहा यह उद्योग भयानक बदहाली झेल रहा था। मोदी सरकार के प्रयासों से इस उद्योग और इसके बुनकरों को बड़ी राहत मिली।

भारत में कपड़ा उद्योग एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें बड़ी संख्या में समान रूप से स्त्री-पुरुष कार्यरत हैं। उल्लेखनीय है कि भारत में सर्वाधिक रोजगार उपलब्ध कराने वाले उद्योगों में टेक्सटाइल उद्योग का दूसरा स्थान है। निर्यात से होने वाली आय में 13 प्रतिशत सहभागिता रखते हुए, संपूर्ण जीडीपी में इसका योगदान 5 प्रतिशत है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वर्ष 2015-16 में 5 करोड़ लोग प्रत्यक्ष रूप से तथा 68 करोड़ लोग अप्रत्यक्ष रूप से इस उद्योग से जुड़े हुए थे। यहां इस बात का भी बहुत महत्व है कि कम पूंजी निवेश, मूल्य वृद्धि के उच्च अनुपात तथा देश के लिए निर्यात और विदेशी मुद्रा आय के सशक्त साधन के रूप में कपड़ा एवं हस्तशिल्प का क्षेत्र अपार संभावनाशील है।

बनारसी साड़ी बनाने के अतिरिक्त यहां और भी कई लघु एवं कुटीर उद्योग थे, जिन्हें सरकारी सहायता की घोर आवश्यकता थी। मोदी सरकार ने इन सभी के समग्र विकास को ध्यान में रखते हुए 347 करोड़ की लागत वाली परियोजनाओं की शुरुआत की। प्रधानमंत्री की ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्किल इंडिया’ जैसी योजनाओं का मूल भी ऐसे ही वर्गों का विकास है। यहां के हथकरघा और हस्तशिल्प उद्योग को तकनीकी व विपणन संबंधी सहयोग प्रदान करने के लिए यहां 305 करोड़ की लागत से टेक्सटाइल फैसिलिटेशन की शुरुआत हुई। बुनकरों की विशेष सुविधा के लिए कॉमन फैसिलिटेशन सेंटर खोले गए। वाराणसी में 6 करोड़ रुपए की लागत वाला नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी की

रोजगार में नंबर दो

मेक इन इंडिया

भारत में सर्वाधिक रोजगार उपलब्ध कराने वाले उद्योगों में टेक्सटाइल सेक्टर का दूसरा स्थान है। निर्यात से होने वाली आय में 13 प्रतिशत सहभागिता रखते हुए, संपूर्ण जीडीपी में इसका योगदान 5 प्रतिशत है

शाखा स्थापित हुई। रीजनल सिल्क टेक्नोलॉजिकल रिसर्च स्टेशन भी शुरू हुआ। इन सभी के साथसाथ 31 करोड़ की लागत वाली हस्तशिल्प उद्योग सर्वांगीण विकास योजना आरंभ की गई।

बढ़ा खादी का गौरव

भारतीय खादी व हस्तशिल्प की दिशा में किए गए प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों से शायद ही कोई देशवासी होगा, जो परिचित न हो। रेडियो पर ‘मन की बात’ से लेकर अपनी अनेक योजनाओं तक प्रधानमंत्री ने इस उद्योग के उत्थान के लिए अनेक प्रयास किए। उन्होंने सभी देशवासियों को भी इस के लिए प्रेरित किया कि वे अपने निजी जीवन में खादी को और अन्य हस्तशिल्प की वस्तुओं को अवश्य स्थान दें, चाहे वह कितने भी छोटे से छोटे रूप में क्यों न हो। दूसरों को उपहार आदि देते समय भी वे इसी प्रकार की वस्तुओं का उपयोग कर सकते हैं।

नीतियों का चौतरफा लाभ

यह स्थिति भी संतोषजनक है कि भारतीय खादी और हस्तशिल्प के प्रति विदेशों में भी रुझान देखने को मिलता है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस विषय में दोतरफा नीति अपनाई। एक ओर तो उन्होंने वस्त्र उद्योग के लिए आवश्यक कच्चे माल के उत्पादन के लिए किसानों को प्रेरित किया, ताकि उन्हें बड़ा लाभ मिल सके। दूसरी ओर उन्होंने इस उद्योग से जुड़े लोगों को नई से नई तकनीक और व्यवसायगत प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए भी प्रेरित किया। इस संबंध में उन्होंने समय-समय पर राज्य सरकारों से भी संपर्क बनाए रखा और उन्हें हरसंभव सहायता प्रदान करने के निर्देश दिए। कभी स्वतंत्रता संग्राम में देश का गौरव बढ़ाने वाली खादी को आज अपना अस्तित्व बचाने के लिए देश से सहयोग की अपेक्षा है, जिसे सशक्त स्वर दिया प्रधानमंत्री मोदी ने।


30 लोकार्पण

20 - 26 नवंबर 2017

‘द लिविंग लीजेंड्स ऑफ मिथिला’ का भव्य विमोचन बिहार की पवित्र धरती मिथिला के आधुनिक दिग्गजों को एक सूत्र में पिरोने के मकसद से लिखी गई पुस्तक ‘द लीविंग लीजेंड्स ऑफ मिथिला और हिंदी संस्करण ‘मिथिला के आधुनिक दिग्गज’ पुस्तक का भव्य लोकार्पण दिल्ली में किया गया

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प्रियंका तिवारी

थिला के आधुनिक दिग्गजों में सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक का नाम सबसे पहले आता है। विवेकानंद झा ने कहा कि डॉ. पाठक मिथिला के भीष्म पितामह हैं और हम सभी के आदर्श हैं। मैं आज इस मंच से पीएम मोदी से आग्रह करता हूं कि वह डॉ. पाठक को देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित करें। यह बातें ‘द लिविंग लीजेंड्स ऑफ मिथिला’ पुस्तक के लेखक विवेकानंद झा ने कहीं। उन्होंने कहा कि मैं यह बात इसीलिए नहीं कह रहा हूं कि डॉ. पाठक मिथिला से हैं, बल्कि देश और समाज के प्रति किए गए उनके सराहनीय कार्यों को देख कर कह रहा हूं। देखा जाए तो डॉ. पाठक ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सच्चे अनुयायी हैं। डॉ. पाठक ने महात्मा गांधी के सपने को साकार करने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया और देश को एक नई राह दिखाई। बिहार की पवित्र धरती मिथिला के आधुनिक दिग्गजों को एक सूत्र में पिरोने के मकसद से लिखी गई पुस्तक ‘द लिविंग लीजेंड्स ऑफ मिथिला और हिंदी संस्करण ‘मिथिला के आधुनिक दिग्गज’ पुस्तकों का भव्य विमोचन गांधी पीस फाउंडेशन दिल्ली में किया गया। इस पुस्तक का उद्घाटन भारत के वाटरमैन और मैगसेसे पुरस्कार विजेता डॉ. राजेंद्र सिंह, झारखंड के मंत्री सरयू राय, पूर्व राज्यपाल टीएन चतुर्वेदी और प्रतिष्ठित लेखक मधु किश्वर द्वारा किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत स्वर कोकिला अवार्ड से पुरस्कृत मिथिला की बाल गायिका मैथिली ठाकुर के भजन से की गई।

किताब नहीं अपने आप में है इतिहासविवेकानंद झा

विवेकानंद झा ने कहा कि यह पुस्तक मिथिला के उन 25 सुप्रसिध्द दिग्गजों के बारे में है, जिन्होंने मिथिला और देश के विकास में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। इतना ही नहीं मिथिला के इन महान दिग्गजों के योगदान ने भारत को वैश्विक मंच पर भी एक अलग पहचान दिलाई है। उन्होंने कहा कि यह मात्र एक किताब नहीं है, बल्कि अपने आप में एक इतिहास है। इस पुस्तक को लिखने में हमें पूरे दो साल का समय लगा और इसके साथ ही हमें भारत के विभिन्न राज्यों और नेपाल की कई यात्रा भी करनी पड़ी थी। उन्होंने कहा कि मिथिला की धरती ने देश को ऐसे दिग्गज दिए हैं, जिन्होंने न सिर्फ मिथिला पूरे देश का गौरव बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक मिथिला के इन महान लोगों के योगदान की कहानी बयान करती है। यह पुस्तक पाठकों के लिए प्रेरणा स्त्रोत है।

खास बातें

मिथिला दिग्गजों की भूमि- सरयू राय

पर्यावरणविद और झारखंड के मंत्री सरयू राय ने कहा कि मिथिला तो दिग्गजों की भूमि रही है और यहां पर मिथिला के कई महान दिग्गज बैठे हुए है। यदि मैं आप सब के सामने मिथिला का बखान करूं तो ऐसा लगेगा कि कोई नानी के आगे ननिहाल का बखान कर रहा है। जब से हमारे सृष्टि की रचना हुई है तब से मिथिला ने अनेकों दिग्गजों को जन्म दिया है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी मिथिला के अनेक लोगों की चर्चा हुई है। हम सब मिथिला को भगवान राम और सीता माता के परिणय से ही जानते हैं। प्राचीन काल में मिथिला का जो यश था वह कभी धूमिल ना हो और निरंतर आगे बढ़ता रहे। मिथिला के दिग्गजों ने देश दुनिया में अपने काम से मिथिला के गौरव को बढ़ाया है। चर्चा होती है मंडन मिश्र, भारती की, जिन्होंने आदिशंकराचार्य को शास्त्रार्थ में हराया था। मिथिला का इतिहास बिहार के गौरव से भी जुड़ा हुआ है। मिथिला में इतनी मेधा होने के बावजूद आज भी बिहार को वह प्रतिष्ठा नहीं मिली है, जो उसे मिलनी चाहिए। भले ही हम मुंबई में रह कर ये कह लें कि एक बिहारी सौ पर भारी... दिनेश मिश्र द्वारा मिथिला की नदियों पर लिखीं किताबें तथ्यपरक हैं। मिश्र ने जमीनी स्तर पर जाकर लोकसभा-विधानसभा में होने वाली बहसों को शामिल कर कई पुस्तकें लिखी हैं, जिसका एक बार फिर से प्रचार प्रसार होना चाहिए। आज लोग महसूस करने लगे हैं कि विकास के वैकल्पिक दिशा की जरुरत है, जो पिछले 70 सालों में कहीं दिखाई नहीं दी। इससे उबरने के लिए हमें एक नई दिशा में काम करना होगा तभी मिथिला की धरती प्रदूषित होने से बची रहेगी और विकास के राह पर अग्रसर हो सकेगी।

रीजनल डाइवर्सिटी है हिंदुस्तान की पहचान- मधु किश्वर

प्रतिष्ठित लेखक व प्रोफेसर मधु किश्वर ने कहा कि हिंदुस्तान को हम तभी पहचान सकते हैं, जब हम उसकी रीजनल डाइवर्सिटी को पहचानें, उसे सेलिब्रेट करें, लेकिन यह पर्याप्त रुप से नहीं हो रहा है। उन्होंने कहा कि मिथिला के लिविंग लीजेंड्स के बाद मैं उम्मीद करती हूं कि विवेकानंद आप मिथिला के जो नॉन लिविंग लीजेंड्स हैं उनसे भी हमारा परिचय कराएंगे। उन्होंने कहा कि किसी भी

डॉ. पाठक को मिले भारत रत्न- विवेकानंद झा मिथिला दिग्गजों की भूमि है- सरयू राय रीजनल डाइवर्सिटी है हिंदुस्तान की पहचान- मधु किश्वर

व्यक्ति के लिए यह जरूरी है कि उसके लोग उसे पहचाने और यह तभी संभव होगा जब उनके कार्यों और योगदान को उनके अपने लोगों के बीच सेलिब्रेट किया जाएगा। मुझे इसकी झलक गुजरात में देखने को मिली थी, जब पीएम मोदी वहां के मुख्यमंत्री हुआ करते थे, तब उन्होंने एक नई प्रथा शुरू की थी। वे प्रत्येक राष्ट्रीय पर्व गांधीनगर व अहमदाबाद को छोड़कर अलग-अलग जिले में मनाते थे और वहां के स्थानीय लीजेंड्स को सम्मानित किया जाता था। मधु किश्वर ने कहा कि मैं आज इस सभागार में उपस्थित सभी दिग्गजों का अभिवादन करती हूं। आप सभी लोग ऐसे ही अपने कार्य क्षेत्र में उन्नति करते रहें और देश को गौरवान्वित करते रहें।

मिथिला अभी तक प्रदूषित होने से बची है - वाटरमैन

वाटरमैन और मैगसेसे पुरस्कार विजेता डॉ. राजेंद्र सिंह ने कहा कि मैं उम्मीद करता हूं कि विवेकानंद उन लोगों पर भी एक पुस्तक लिखेंगे, जिन्हें समाज जानता नहीं है, लेकिन वह चुपके से समाज के लिए बहुत कुछ कर देते हैं। उन्होंने कहा कि यह किताब

डॉ. पाठक ने महात्मा गांधी के सपने को साकार करने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया और देश को एक नई राह दिखाई - विवेकानंद झा

मिथिला की भाषा, उसकी सरलता व सहजता को समेटे हुए है। यह खुशकिस्मती की बात है कि मिथिला अभी प्रदूषित नहीं है, जैसे देश के बाकी हिस्से प्रदूषण की चपेट में आ गए हैं और वहां सांस लेना दूभर हो गया है। मुझे गौरव है कि इस किताब में ऐसे हीरोज को लिया गया है, जो सच्चे और पवित्र हैं। मिथिला के लोगों ने अभी तक वहां की धरती को प्रदूषित होने से बचाए हुए हैं। देश में ऐसे भी कई स्थान है, जहां ऐसी बीमारियां फैली हैं कि उनका इलाज भी नहीं किया जा सकता है। मुझे गर्व है कि मिथिला में अभी ऐसे उद्योगों ने अपने पैर नहीं जामाए हैं। मैं मिथिला के दोस्तों से गुजारिश करना चाहता हूं कि आप मिथिला को अभी तक जैसा बचा हुआ है, आगे भी वैसा ही बचा कर रखें। इस पुस्तक में मिथिला की भू-संस्कृति को ध्यान में रख कर वहां के महान दिग्गजों से हम सभी का परिचय कराया गया है।

पुस्तक में इन दिग्गजों को किया गया शामिल

‘द लिविंग लेजेंड्स ऑफ मिथिला’ व ‘मिथिला के आधुनिक दिग्गज’ की सूची में निश्चलानंद सरस्वती महाराज, परमानंद झा, ज्ञान सुधा मिश्रा, सुलभ स्वच्छता एवं सामाजिक सुधार आंदोलन के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक, अमिताभ चौधरी, शारदा सिन्हा, डॉ. बीरबल झा, अंजनी कुमार सिंह, राजेश झा, डॉ. दिनेश मिश्रा, तिलाया देवी, उषा रानी झा, डॉ. जगन्नाथ मिश्रा, निर्मल चंद्र झा, रमाकांत झा, आशा झा, मानस बिहारी वर्मा, नरेंद्र झा, कृष्णा कुमार कश्यप, उषा किरण खान, टीएन ठाकुर, डॉ. जनार्दन झा, डॉ. मोहन मिश्रा, अरविंद सिंह और जे एन सिंह को शामिल किया गया है। इस समारोह में मिथिला के इन दिग्गजों को शॉल, फूल और मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया।


मध्य-पूर्व की लोक कथा

इतना महंगा नाश्ता?

क बहुत बड़े मुल्क का सुलतान कहीं दूर की यात्रा पर एक गांव से गुजरा। रास्ते में वह एक बहुत मामूली चायघर में नाश्ता करने के लिए रुक गया। उसने खाने में आमलेट की फरमाइश की। चायघर के मालिक ने बहुत सलीके से उसे मामूली बर्तनों में आमलेट परोसा। मालिक ने टूटे-फूटे टेबल कुर्सी और मैले बिछावन के लिए सुलतान से माफी मांगी और कहा – ‘मुझे बेहद अफसोस है हुजूर-ए-आला कि यह मामूली चायघर आपकी इससे बेहतर खातिरदारी नहीं कर सकता।’

वृद्धजनों की प्राणरक्षा

चीन काल में प्रथा थी की जब कोई व्यक्ति साठ वर्ष का हो जाता था तो उसे राज्य से बाहर जंगल में भूखों मरने के लिए भेज दिया जाता था, ताकि समाज में केवल स्वस्थ और युवा लोग ही जीवित रहें। एक व्यक्ति शीघ्र ही साठ वर्ष का होने वाला था। उसका एक जवान बेटा था जो अपने पिता से बहुत प्रेम करता था। बेटा नहीं चाहता था कि उसके पिता को भी अन्य वृद्धों की भांति जंगल में भेज दिया जाए इसीलिए उसने अपने पिता को घर के तहखाने में छुपा दिया और उनकी हर सुविधा का ध्यान रखा।

लोक कथा

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अफ्रीकी लोक-कथा

मनुष्य को ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ

‘कोई बात नहीं’ – सुलतान ने उसे दिलासा दिया और पूछा –‘आमलेट के कितने पैसे हुए?’ ‘आपके लिए सुलतान इसकी कीमत है सिर्फ सोने की हजार अशर्फियां’ – चायघर के मालिक ने कहा। ‘क्या?’ – सुलतान ने हैरत से कहा – ‘क्या यहां अंडे इतने मंहगे मिलते हैं? या फिर यहां अंडे मिलते ही नहीं हैं क्या?’ ‘नहीं हुज़ूर-ए-आला, अंडे तो यहां खूब मिलते हैं’ – मालिक ने कहा –‘लेकिन आप जैसे सुलतान कभी नहीं मिलते।’

सर्बिया की लोक-कथा

प्रा

20 - 26 नवंबर 2017

लड़के ने एक बार अपने पड़ोसी से इस बात की शर्त लगाई की सुबह होने पर सूरज की पहली किरण कौन देखेगा। उसने अपने पिता को शर्त लगाने के बारे में बताया। उसके पिता ने उसे सलाह दी –‘ध्यान से सुनो, जिस जगह पर तुम सूरज की किरण दिखने के लिए इंतजार करो वहां सभी लोग पूरब की तरफ ही देखेंगे, लेकिन तुम उसके विपरीत पश्चिम की ओर देखना। पश्चिम दिशा में तुम सुदूर पहाड़ों की चोटियों पर नजर रखोगे तो तुम शर्त जीत जाओगे।’ लड़के ने वैसा ही किया जैसा उसके पिता ने उसे कहा था और उसने ही सबसे पहले सूरज की किरण देख ली। जब लोगों ने उससे पूछा कि उसे ऐसा करने की सलाह किसने दी तो उसने सबको बता दिया कि उसने अपने पिता को सुरक्षित तहखाने में रखा हुआ था और पिता ने उसे हमेशा उपयोगी सलाह दीं। यह सुनकर सब लोग इस बात को समझ गए कि बुजुर्ग लोग अधिक परिपक्व और अनुभवी होते हैं और उनका सम्मान करना चाहिए। इसके बाद से राज्य से वृद्ध व्यक्तियों को जंगल में निष्कासित करना बंद कर दिया गया।

हुत पुरानी बात है। अफ्रीका के किसी भूभाग में अनानसी नामक एक व्यक्ति रहता था। पूरी दुनिया में वही सबसे बुद्धिमान मनुष्य था और सभी लोग उससे सलाह और मदद मांगने आते थे। एक दिन अनानसी किसी बात पर दूसरे मनुष्यों से नाराज हो गया और उसने उन्हें दंड देने की सोची। बहुत सोचने के बाद उसने यह तय किया कि वह अपना सारा ज्ञान उनसे हमेशा के लिए छुपा देगा, ताकि कोई और मनुष्य ज्ञानी न बन सके। उसी दिन से उसने अपना सारा ज्ञान बटोरना शुरू कर दिया। जब उसे लगा कि उसने दुनिया में उपलब्ध सारा ज्ञान बटोर लिया है, तब उसने सारे ज्ञान को मिटटी के एक मटके में बंद करके अच्छे से सीलबंद कर दिया। उसने यह निश्चय किया कि उस मटके को वह ऐसी जगह रखेगा जहां से कोई और मनुष्य उसे प्राप्त न कर सके। अनानसी के एक बेटा था जिसका नाम कवेकू था। कवेकू को धीरे-धीरे यह अनुभव होने लगा कि उसका पिता किसी संदिग्ध कार्य में लिप्त हैं, इसीलिए उसने अनानसी पर नजर रखनी शुरू कर दी। एक दिन उसने अपने पिता को एक मटका लेकर दबे पांव झोपड़ी से बाहर जाते देखा। कवेकू ने अनानसी का पीछा किया। अनानसी गांव से बहुत दूर एक जंगल में गया

और उसने मटके को सुरक्षित रखने के लिए एक बहुत ऊंचा पेड़ खोज लिया। अपना ज्ञान दूसरों में बंट जाने की आशंका से भयभीत अनानसी मटके को अपनी आंखों के सामने ही रखना चाहता था, इसीलिए वह अपनी छाती पर मटके को टांगकर पर पेड़ पर चढ़ने लगा। इस तरह अपनी छाती पर मटका टांगकर पेड़ पर चढ़ना तो लगभग नामुमकिन ही था ! उसने कई बार पेड़ पर चढ़ने की कोशिश की लेकिन वह जरा सा भी न चढ़ पाया। सामने की ओर मटका टंगा होने के कारण वह पेड़ को पकड़ ही न पा रहा था। कुछ देर तक तो कवेकू अपने पिता को पेड़ पर चढ़ने का अनथक प्रयास करते देखता रहा। जब उससे रहा न गया तो वह चिल्लाकर बोला –‘पिताजी, आप मटके को अपनी पीठ पर क्यों नहीं टांगते? तब आप पेड़ पर आसानी से चढ़ पाएंगे!’ अनानसी मुड़ा और बोला –‘मुझे तो लगता था कि मैंने दुनिया का सारा ज्ञान इस मटके में बंद कर लिया है! लेकिन, तुम तो मुझसे भी ज्यादा ज्ञानी हो! मेरी सारी बुद्धि मुझे वह नहीं समझा पा रही थी जो तुम दूर बैठे ही जान रहे थे!’ उसे कवेकू पर बहुत गुस्सा आया और क्रोध में उसने मटका जमीन पर पटक दिया। जमीन पर गिरते ही मटका टूट गया और उसमें बंद सारा ज्ञान उसमें से निकलकर पूरी दुनिया में फैल गया और सारे मनुष्य बुद्धिमान हो गए।


32 अनाम हीरो

डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

20 - 26 नवंबर 2017

अनाम हीरो

पोय्यामोझी

ईमानदार पोर्टर

चेन्नई के थंबरम रेलवे स्टेशन पर कार्य करने वाले एक पोर्टर ने, 5 लाख रुपयों से भरे बैग वापस मालिक तक पहुंचाया

स कलयुग में जहां पैसों के लिए लोग कुछ भी करने को तैयार हैं। वहीं आज भी कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अपनी ईमानदारी से सबको चकित कर रहे हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं चेन्नई के थंबरम रेलवे स्टेशन पर कार्य करने वाले एक पोर्टर की, जिसने 5 लाख रुपयों से भरे बैग को वापस कर दिया। बता दें कि पोय्यामोझी नाम के पोर्टर पिछले 15 सालों से थंबरम रेलवे स्टेशन पर कार्यरत हैं। उन्होंने अपनी ईमानदारी दिखाते हुए एक यात्री के 5 लाख रुपए से भरे बैग को वापस कर दिया। यह घटना 1 नवंबर की है, जब इस ईमानदार पोर्टर ने रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म संख्या 5 पर एक लावारिस बैग को देखा था। स्टेशन पर लावारिस

बैग मिलने के कुछ ही देर पहले इस प्लेटफार्म से सलेम-चेन्नई एक्सप्रेस निकली थी। जब पोर्टर ने यह देखा कि इस बैग का कोई मालिक नहीं है तो उसने बैग को खोला, लेकिन पैसों से भरा बैग देखकर उसने तुरंत इसकी सूचना प्वॉइंट्समैन और स्टेशन मास्टर को दी। इसके बाद रेलवे प्रोटोकॉल के अनुसार स्टेशन मास्टर ने इसकी सूचना रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स को दी। जब अधिकारियों द्वारा इस बैग की जांच की गई तो उसमें 5,75,720 रुपए कैश के साथ कुछ कपड़े मिले। इसके बाद आरपीएफ ने उस बैग के मालिक की तलाश शुरु कर दी। वहीं जब बैग के मालिक को अपनी भूल का एहसास हुआ तो उसने चेन्नई के स्टेशन पर बैग चोरी होने की

मैरी कॉम

स्वर्णिम मैरी

मैरी कॉम ने एशियाई मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में पांचवी बार स्वर्ण पदक जीता

प्र

त्येक मेडल मैरी कॉम के संघर्ष की कहानी को बयान करता है। हालांकि हाल ही में उन्होंने एशियाई मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में उत्तर कोरिया की मुक्केबाज को 5-0 से मात देकर पांचवी बार स्वर्ण पदक जीता है। मल्टीपल वर्ल्ड चैम्पियन और ओलंपिक कांस्य पदक विजेता मैरी कॉम ने वियतनामी शहर हो ची मिन्ह में अपने करियर का 5वां स्वर्ण पदक जीत कर मुक्केबाजी के क्षेत्र में इतिहास रच दिया है। हालांकि एक साक्षात्कार में मैरी कॉम ने कहा कि यह पदक मेरे लिए बहुत खास है, मैंने अब तक जितने भी पदक जीते हैं,

शिकायत लिखाई। इसके बाद पुलिस की तरफ से उसे सूचना दी गई कि उसका गुम हुआ बैग मिल गया है और सही-सलामत है। बैग मिलने के बाद मालिक ने पोय्यामोझी को ईनाम के रुप में कुछ पैसे देने चाहे, लेकिन उसने पैसे लेने से इंकार कर दिया। पोर्टर ने कहा कि उसने बस अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया है। पोय्यामोझी केवल पैसे लौटने के कारण प्रसिद्ध

न्यूजमेकर

वह मेरे संघर्ष की कहानी को बयान करते हैं। उन्होंने कहा कि मुझे इस पदक की उम्मीद थी, क्योंकि यह मुझे मेरे सांसद बनने के बाद मिला है। इससे मेरी प्रतिष्ठा और कद दोनों बढ़ जाएंगे। मैरी कॉम देश में मुक्केबाजी के लिए एक सरकारी पर्यवेक्षक होने के साथ ही साथ तीन बेटों की बहुत ही व्यस्त मां भी हैं। इतना ही नहीं वह अपने पति ऑलंरकॉम के साथ उनकी एकेडमी चलाने में भी मदद करती हैं। उन्होंने कहा कि मैं एक सक्रिय सांसद रही हूं, मैं नियमित रूप से संसद की कार्यवाहियों में हिस्सा लेती रही हूं। इसके बावजूद मैंने इस चैंपियनशिप के लिए कड़ी मेहनत की है। चूंकि मैं एक सरकारी पर्यवेक्षक हूं, इसीलिए मुझे खेल से संबंधित बैठकों में भी उपस्थित होना होगा। मैं आशा करती हूं कि लोगों को पता है कि यह कितना कठिन है। मैरी कॉम को उनके लंबे और शानदार करियर के लिए पिछले साल एआईबीए लीजेंड्स अवार्ड से नवाजा गया था। जिसमें 2014 एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक को भी शामिल किया गया था। मैरी कॉम मानती हैं कि उनकी जिंदगी की गति कभी-कभी मुश्किल हो जाती है, लेकिन उससे भागने का कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि एशियाई चैंपियनशिप के बाद मुझे आईओसी एथलीट्स फोरम के लिए लॉजेन की यात्रा करना पड़ा था। और अब मैं यात्रा से नफरत करती हूं। वास्तव में एक हवाई अड्डे से दूसरे तक जाना बहुत ही भयावह है, लेकिन आप अपनी जिम्मेदारियों और प्रतिबद्धताओं से दूर नहीं जा सकते हैं।

नहीं हुए हैं, बल्कि इससे पहले भी उन्होंने बड़ी संख्या में गुम हुए बच्चों को वापस उनके घरवालों से मिलाया है। इस घटना से प्रभावित चेन्नई के डिविजनल रेलवे मैनेजर ने पोर्टर के ईमानदारी की सराहना करते हुए थंबरम स्टेशन का दौरा कर पोय्यामोझी को उसके काम के लिए स्मृति चिन्ह और रेलवे कोच का मॉडल देकर सम्मानित किया।

शक्ति

शिक्षा की शक्ति

शक्ति ने अपने समुदाय के भाग्य को बदलने के लिए शिक्षा के मार्ग का अनुसरण किया और अपने समुदाय के लगभग 25 बच्चों को स्कूली शिक्षा से जोड़ा

मिलनाडु के खानाबदोश नारिकुरुवार समुदाय का शक्ति भले ही इस बदलती दुनिया की हलचल से दूर हो, लेकिन अब यह देश के कई लोगों के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत बन गया है। नारिकुरुवार के एक लड़के ने ध्वजधारक के रूप में न केवल ख्याति अर्जित की है, बल्कि बच्चों को दिए जाने वाले अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार के लिए भी इस वर्ष नामित हुआ है। इस सूची शामिल किए गए 169 बच्चों में शक्ति सबसे छोटे हैं। बता दें कि तमिलनाडु में नारिकुरुवार खानाबदोश समुदाय के लिए आजीविका का एकमात्र साधन सड़कों पर माला बेचना या उससे भी बदतर भीख मांगना था। आठ साल की उम्र में शिक्षक के

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 1, अंक - 49

गलत व्यवहार के कारण शक्ति ने स्कूल छोड़ दिया था और अपने परिवार की जीविका चलाने के लिए काम करने लगे थे। लेकिन एक एनजीओ के समझाने पर वह फिर से स्कूल गया और उसके बाद से ही उनका जीवन बदल गया। उन्होंने अपने समुदाय के भाग्य को बदलने के लिए शिक्षा के मार्ग का अनुसरण किया और अपने समुदाय के लगभग 25 बच्चों को स्कूली शिक्षा से जोड़ा है। आज कोई भी पूरी तरह से दावा नहीं कर सकता है कि इस समुदाय के बच्चों की स्कूलों या शिक्षा तक पहुंच नहीं है। इतना ही नहीं कई बच्चे स्थानीय सरकारी स्कूलों में भी शिक्षा ग्रहण करने के लिए जाते हैं।


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