सुलभ स्वच्छ भारत (अंक 51)

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अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस विशेष

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

वर्ष-1 | अंक-51 | 04 - 10 दिसंबर 2017

sulabhswachhbharat.com

10 पर्यावरण

पानीदार बना गांव

18 फोटो फीचर

30 कही अनकही

कमाल का हस्तशिल्प

दिलीप पर जुर्माना

ग्रामीणों ने 11 लाख लीटर लोक कला के नायाब बरसाती पानी बचाया नमूने दिखे शिल्प हाट में

बदल रही दिव्यांगों की दुनिया पिछले कुछ वर्षों में दिव्यांगजनों के प्रति दृष्टिकोण में काफी बदलाव आया है। भारत आज उन देशों की कतार में खड़ा है, जहां दिव्यांगों के लिए समन्वित आधार पर कई पहल किए जा रहे है

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खास बातें 2015 में विकलांगों के लिए एक्सेसिबल इंडिया अभियान शुरू प्रधानमंत्री मोदी द्वारा विकलांगों को दिव्यांग कहने की अपील दिव्यांगो ने विभिन्न क्षेत्रों में गाड़े कामयाबी के झंडे अब दिव्यांग लोगों के अधिकार आधारित आर्थिक सशक्तिकरण कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित कर रही है। भारत में 1995 के दिव्यांग व्यक्ति अधिनियम (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और संपूर्ण सहभागिता) लागू होने के साथ ही उनके अधिकार आधारित आर्थिक सशक्तिकरण के लिए पहला कदम बढ़ाया गया है। भारत का दूसरा कदम दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र समझौता (यूएनसीआरपीडी) स्वीकार करना है। इसके अलावा भी सरकार ने दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिए कई उपाय किए हैं।

सुगम्य भारत अभियान

कें

एसएसबी ब्यूरो

द्र सरकार द्वारा दिसंबर, 2015 में विकलांगों के लिए सुगम्य भारत (एक्सेसिबल इंडिया) अभियान शुरू करने से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकलांगों को ‘दिव्यांग’ कहने की अपील की थी, जिसके पीछे उनका तर्क था कि किसी अंग से लाचार व्यक्तियों में ईश्वर प्रदत्त कुछ खास विशेषताएं होती हैं। शुरुआत में इस अपील को लेकर कई तरह के सवाल भी उठे। पर धीरे-धीरे यह बात लोगों के समझ में आई कि विकलांगों के जीवन में बदलाव और उनके विकास के लिए अवसरों की सुलभता मुहैया कराने से पहले

हमें पहले उनके प्रति अपनी दृष्टि बदलनी होगी। खुशी की बात है कि आज की तारीख में भारत में सरकार के साथ समाज भी इस बदले दृष्टिकोण के साथ काम कर रहे हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में ढाई करोड़ से कुछ अधिक लोग दिव्यांगता से जूझ रहे हैं। वैसे कुछ अन्य अनुमानों के अनुसार वास्तविक संख्या इससे ज्यादा हमारी आबादी का 5 प्रतिशत अधिक हो सकती है। गैर सरकारी संस्था ‘स्वयं फाउंडेशन' ने देश के आठ शहरों में किए अपने सर्वे में पाया कि सार्वजानिक जगहों पर जो सुविधाएं दिव्यांगों के लिए होनी चाहिए, वे प्राय: नहीं हैं। ‘एक्सेसिबल इंडिया कैंपेन' यानी ‘सुगम्य भारत

अभियान' के तहत किए गए इस सर्वे में मुंबई के 51 सार्वजानिक स्थानों की पड़ताल की गई। लगभग अस्सी फीसदी स्थानों पर रैंप नहीं पाया गया. इस सर्वे में शामिल किसी भी बिल्डिंग में विकलांगों के लिए अलग से पार्किंग की व्यवस्था नहीं थी। अधिकतर भवनों में निर्धारित मानकों के अनुसार विकलांगों के लिए शौचालय तक नहीं पाया गया। मुंबई के आलावा चंडीगढ़, दिल्ली, फरीदाबाद, देहरादून, गुरुग्राम, जयपुर और वाराणसी में भी इस तरह के सर्वे किए गए। स्वयं फाउंडेशन के अनुसार इन सभी शहरों में स्थिति लगभग एक जैसी ही है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में दिव्यांगजनों के प्रति दृष्टिकोण में काफी बदलाव आया है। सरकार

यह अभियान लगभग एक वर्ष पहले 15 दिसंबर को शुरू किया गया था। सरकार के इस प्रमुख कार्यक्रम का उद्देश्य सक्षम और बाधारहित वातावरण तैयार कर दिव्यांगजनों के लिए सुगम्यता उपलब्ध कराना है। इसे तीन उद्देश्यों- तैयार वातावरण में सुगम्यता, परिवहन प्रणाली में सुगम्यता और ज्ञान तथा आईसीटी पारिस्थितिकी तंत्र में पहुंच पर केंद्रित किया गया है। दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग के अनुसार भवनों को पूरी तरह सुगम्य बनाने के लिए 31 शहरों के 1098 भवनों में से 1092 भवनों की जांच का कार्य पहले ही पूरा हो चुका है।

सुगम्य पुस्तकालय

सरकार ने एक ऑनलाइन मंच के तौर पर सुगम्य पुस्तकालय का शुभारंभ किया है, जहां दिव्यांगजन बटन क्लिक करते ही पुस्तकालय की किताबें पा


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