सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 25)

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विचार

03 सम्मान

प्रकृति की तरह करें सबकी परवाह

समाज सेवा के लिए दिया अपना जीवन

06

व्यक्तित्व

डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

20

असमानता के खिलाफ निर्भीक आवाज

कही-अनकही

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उसूलों के पक्के दत्त साहब

sulabhswachhbharat.com

वर्ष-2 | अंक-25 | 04 - 10 जून 2018

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

बड़ी चुनौती, बढ़ी चेतना विश्व पर्यावरण दिवस 2018

पर्यावरण संकट से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर व्यापक सहमति और साझी कार्यनीति तय करने को लेकर भले कई समस्याएं रही हों, पर इस दौरान भारत सहित दुनिया के कई देशों ने सकारात्मक कदम भी उठाए हैं

प्रियंका तिवारी

र्यावरण को लेकर चुनौती का अहसास आज हर देश को है। यही कारण है कि इस बारे में वैश्विक स्तर पर व्यापक सहमति और साझी कार्यनीति तय करने को लेकर भले ही कई समस्याएं रही हों, पर इस दौरान दुनिया भर में सरकारों और संस्थाओं की तरफ से कई सकारात्मक कदम भी उठाए गए हैं, जो न सिर्फ समाधानकारी हैं, बल्कि यह उम्मीद भी जगाते हैं कि पर्यावरण को लेकर भविष्य में संकट का क्षेत्रफल घटेगा न कि बढ़ेगा। भारत सहित कई देशों में इस तरह की पहल को अंतरराष्ट्रीय सराहना मिल चुकी है। भारत के लिए वैसे भी पर्यावरण की समस्या ज्यादा चिंताजनक है। इस वर्ष के आरंभ में जारी वैश्विक पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में भारत आखिरी पांच देशों में शामिल है और वह दो साल में 36 पायदान नीचे आया है। इसी तरह ग्रीनपीस के एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि स्वच्छ वायु के मामले में 280 भारतीय शहरों में एक भी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानदंडों पर खरा नहीं उतर सका।

शहरी प्रदूषण

दुनिया के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से 13 हमारे देश में हैं। अक्टूबर, 2017 में प्रकाशित लांसेट के शोध में जानकारी दी गई थी कि 2015 में 25 लाख लोगों को प्रदूषणजनित बीमारियों के चलते अपनी जान गंवानी पड़ी थी। नदियों में प्रदूषण तथा वन क्षेत्र के घटते जाने की समस्या भी लंबे समय से मौजूद


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आवरण कथा

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विश्व पर्यावरण दिवस 2018 का वैश्विक मेजबान भारत

संयुक्त राष्ट्र ने दिल्ली सहित अन्य महानगरों में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने से लिए भारत के प्रयासों को अत्यधिक उत्साहजनक बताते हुए इसे विश्व के लिए अनुकरणीय बताया है

सं

पर्यावरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 में जहां देश का वन क्षेत्र 701495 वर्ग किलोमीटर था, तो वहीं 2017 में बढ़कर वह 708273 वर्ग किलोमीटर पर पहुंच गया है। विकास और शहरीकरण के कारण पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव स्वाभाविक है, किंतु पर्यावरण को संरक्षित करने और प्रदूषण को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाने से वर्तमान और भविष्य के लिए गंभीर मुश्किलें खड़ी हो रही हैं। पर्यावरण संकट के कारण जहां शहरी इलाकों में हवा-पानी के खराब होने से स्वास्थ्य संकट पैदा हो रहे हैं, वहीं जीवन-यापन के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर लोग दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। जानकारों की मानें तो 2014 से 2017 के बीच 36 हजार हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र को खनन, सड़क निर्माण, उद्योग जैसे उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल में लाया गया है। विकास के ब्लूप्रिंट पर सरकारों को तो विचार करना ही चाहिए, समाज को

खास बातें दुनिया के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से 13 भारत में दो वर्षों में भारत के वन क्षेत्रफल में एक फीसदी का इजाफा स्वच्छता के क्षेत्र में भारत ने चार वर्षों में काफी तेजी से प्रगति की

भी ग्रीन डेवलपमेंट जैसे सरोकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए।

संसाधन और दोहन

उल्लेखनीय है कि बांधों के मामले में हिमालय जल्दी ही दुनिया का सबसे अधिक घनत्व का क्षेत्र बन जाएगा। ऐसे में स्वाभाविक तौर पर सामाजिक और कानूनी विवाद के साथ पलायन जैसी समस्याएं भी बढ़ती जा रही हैं। हालांकि, सरकार ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन और वैश्विक गर्मी की चुनौती का सामना करने के साथ पर्यावरण बचाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को बारबार दोहराया है और समय-समय पर राज्य सरकारों ने भी पहल की है। लेकिन, एक तो इन कोशिशों के सकारात्मक परिणाम अभी नहीं दिख रहे हैं और दूसरे सरकार की जल-मार्ग बनाने या बंजर जमीनों को सुधारने जैसी अनेक कोशिशों पर उठे सवालों का संतोषजनक जवाब भी नहीं मिल रहा है। एक परेशानी की बात यह भी है कि कुछ लोग पर्यावरण को लेकर चिंता को विकास की राह में बाधक मानते हैं, जबकि जरूरत इस बात की है कि एक ऐसी समझ बनाई जाए, जो विकास की जरूरतों और संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के बीच संतुलन बना सके। यदि हमने नदियों, भूजल, जंगलों, पहाड़ों जैसे प्राकृतिक देनों को सहेज कर नहीं रखा और उनका ठीक से उपयोग नहीं किया, तो समृद्धि और विकास के लक्ष्यों को भी ठीक से पाना संभव नहीं होगा। सरकार, उद्योग जगत और समाज को पर्यावरण के मौजूदा संकट पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

युक्त राष्ट्र ने दिल्ली सहित अन्य महानगरों में वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए भारत के प्रयासों को अत्यधिक उत्साहजनक बताते हुए इसे विश्व के लिए अनुकरणीय बताया है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के कार्यकारी निदेशक इरिक सोलहिम ने हाल ही में भारत को इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस का वैश्विक मेजबान घोषित करने से जुड़े सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कारगर उपाय कर रही है। करते हुए कहा कि भारत ने विकास कार्यों और इस दौरान डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के बीच बेहतर संतुलन कायम प्लास्टिक को वैश्विक स्तर पर गंभीर खतरा किया है। उन्होंने भारत को पर्यावरण दिवस की माना गया है, इसके मद्देनजर इस चुनौती से वैश्विक मेजबानी सौंपे जाने का स्वागत करते निपटने के लिए तथा प्लास्टिक के खतरे को हुए कहा कि भारत का यह प्रयास विश्व के खत्म करने के लिए यह शुरुआत की गई है। लिए नजीर साबित हुआ है। उन्होंने कहा कि विश्व पर्यावरण दिवस 2018 इस मौके पर केंद्रीय पर्यावरण, वन व मात्र एक प्रतीकात्मक समारोह नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने बताया एक मिशन है। कि भारत इस साल विश्व डॉ. हर्षवर्धन ने लोगों भारत दु नि या में सबसे ते ज ी पर्यावरण दिवस का से पर्यावरण की देखभाल से विकसित हो रहा है, वैश्विक मेजबान होगा और करने की जिम्मेदारी लेने इस वर्ष आयोजन की थीम इसके बावजूद विकास और का आह्वान करते हुए ‘प्लास्टिक प्रदूषण की पर्यावरण संरक्षण में संतुलन कहा कि भारत ने अपने समाप्ति’ होगी। सोलहिम पूर्वजों से प्रकृति के साथ कायम करने का भारत ने तालमेल करते हुए जीवन ने कहा कि भारत दुनिया बेहतर प्रयास किया है में सबसे तेजी से विकसित जीना सीखा है। भारत के हो रहा है, इसके बावजूद लिए पर्यावरण के मुद्दे विकास और पर्यावरण संरक्षण में संतुलन केवल तकनीक से संबंधित नहीं हैं, बल्कि कायम करने का भारत ने बेहतर प्रयास किया वास्तविक नैतिक मुद्दे हैं। यह आने वाली है। उन्होंने कहा, ‘यह पहल न सिर्फ भारतीयों पीढ़ियों के लिए एक आंदोलन है। इस अवसर के लिए, बल्कि शेष विश्व के लिए भी बहुत पर केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन महत्वपूर्ण है। क्षेत्रफल और आबादी के लिहाज राज्य मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने कहा कि पर्यावरण से भारत बड़ा देश है, इसीलिए भारत में जो की सुरक्षा आज की जरूरत है। यह संपूर्ण विश्व कुछ भी होता है, वह शेष विश्व के लिए भी की मानवता के लिए आवश्यक है। डॉ. शर्मा महत्वपूर्ण हो जाता है।’ सोलहिम ने कहा कि ने कहा कि एक डॉक्टर के रूप में मैं स्वच्छ भारत सरकार दिल्ली और अन्य बड़े शहरों में हवा के संदर्भ में दिल्ली व अन्य स्मार्ट शहरों वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए के दुर्भाग्य को समझ सकता हूं।

वनों का क्षेत्रफल बढ़ा

बीते दो वर्षों के दौरान भारत के वनों के क्षेत्रफल में एक फीसदी का इजाफा हुआ है। पर्यावरण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 में जहां देश का वन क्षेत्र 701495 वर्ग किलोमीटर का था तो वहीं 2017 में बढ़कर वह 708273 वर्ग किलोमीटर पर पहुंच गया। यह इजाफा करीब 6778 वर्ग किलोमीटर का है। वनों के लिहाज से आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा और तेलंगाना में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई। लेकिन इस खबर में एक चिंताजनक तथ्य भी शामिल है। रिपोर्ट के मुताबिक पूर्वोत्तर भारत के

छह राज्यों के वनों का क्षेत्रफल घटा है। यही नहीं पूर्वी हिमालय के 630 वर्ग किलोमीटर हिस्से में फैला वन क्षेत्र भी सिकुड़ा है। वनों की वृद्धि बयान करने वाली इंडिया स्टेट फॉरेस्ट रिपोर्ट (आईएसएफआर) को पर्यावरण मंत्रालय ने जारी की है। उसके मुताबिक बीते दो वर्षों के दौरान भारत के वन क्षेत्र में एक फीसदी की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि बीते दो वर्षों में वन क्षेत्र के साथ देश के वृक्ष क्षेत्र में भी इजाफा हुआ है। इसके अनुसार देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 24.3 प्रतिशत हिस्से पर वन


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आवरण कथा

प्रकृति की तरह करें सबकी परवाह

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जीवधारी चाहे छोटा या बड़ा, शांत हो या शोर मचाने वाला, सभी को मिलजुल कर साथ-साथ पुष्पित-पल्लवित होने देती है प्रकृति। मानव जाति को प्रकृति से यह गुण सीखना चाहिए रामनाथ कोविंद / राष्ट्रपति

बह मैं जल्दी उठकर अपने पोते और पोती के साथ सैर के लिए शिमला जल संग्रहण क्षेत्र और वन्यजीव अभयारण्य के लिए निकला। मैं पिछले पांच दिन से मशोबरा में ठहरा हुआ हूं और यह अभ्यारण्य मशोबरा से बाहर निकलते ही सामने है। शिमला पक्षी विहार शहर से बहुत नजदीक है, लेकिन शहर के शोरगुल से बहुत दूर भी है। इसकी परिकल्पना एक वन के रूप में की गई थी। सोचा गया था कि यहां पर फूल-पौधे होंगे और शिमला के लिए एक बड़ा जल-स्रोत तैयार हो सकेगा। यहां मैं प्रकृति की शोभा देखकर मंत्रमुग्ध रह गया। मैंने यहां छिप कर चिड़ियों को देखा, उनकी जादुई आवाजें सुनीं, छोटे-छोटे लुभावने जीव-जंतुओं की प्राकृतिक सुंदरता और हरियाली देखी। सीधे तनकर खड़े देवदार और ओक के वृक्ष देखे, छोटे बच्चों की खिलखिलाहट सुनी और महसूस किया कि मशोबरा का अपना अलग ही स्वर्ग है। मैंने प्रकृति को उसके भव्यतम रूप में देखा। मैंने

कि इन महत्वपूर्ण अवसरों पर देश में अनेक सार्थक योजनाएं आरंभ की जाएगी। 2047 में जब भारत की आजादी के सौ वर्ष पूरे होंगे, उस समय का भारत कैसा होगा? जब 2069 में हम गांधी जी की 200वीं जयंती मना रहे होंगे, उस समय का भारत कैसा होगा? हमारे पास आज इन प्रश्नों के बहुत स्पष्ट उत्तर नहीं हैं, लेकिन सामाजिक, बौद्धिक, नैतिक और प्रकृति एवं पर्यावरण के क्षेत्रों में आज की पीढ़ी जो कुछ भी निवेश कर रही है उसी पर हमारे इन सवालों का जवाब निर्भर है। हम लोग ही यह तय करेंगे कि अगले 25 से 50 वर्षों में इस भारत का निर्माण करने वाले लोगों के पास कैसी ताकत और क्षमता होगी? हम लोग ही यह तय करेंगे कि हजारों-हजार वर्षों से जो नदियां, जो पहाड़ और जो जंगल हमें इस प्रकृति ने अपनी पूरी भव्यता में उपलब्ध कराए हैं वे नदियां, वे पहाड़ और वे जंगल क्या हमारी आने वाली पीढ़ियों को इसी भव्य रूप में उपलब्ध पाएंगे? हमने बहुत तरक्की की है। अनेक उपलब्धियां प्राप्त की है, लेकिन अभी बहुत कुछ

प्रकृति हमें एक-दूसरे पर निर्भरता सिखाती है। मधुमक्खी को पोषण फूल से मिलता है, जल सभी जीवों की प्यास बुझाता है और वृक्ष पक्षियों एवं जीव-जंतओं ु का स्वागत बांह पसार कर करते हैं यह भी अनुभव किया कि यहां प्रकृति किस तरह से मनुष्य की चिंता करती है। यह वन किस तरह से शिमला और इसकी जनता का पोषण करता है। यह वन बिल्कुल उसी तरह हमारी देख-भाल करता है जैसे कोई मां अपनी संतान का भरणपोषण करती है। प्रकृति हमें प्यार करती है और हम उसे प्यार करते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसी साधारण-सी यात्रा में भी कोई बड़ा विचार पनप जाता है। मैंने सोचा कि यह धरती मां कितनी अच्छी तरह से हमारा पोषण करती है, लेकिन हम इसके पोषण के लिए क्या करते हैं? अगर हमें यह सुनिश्चित करना है कि यह प्रकृति एक संसाधन के रूप में, स्रोत के रूप में, मित्र के रूप में हमारी आने वाली पीढ़ियों को उपलब्ध रहे तो इसके लिए हमें क्या करना चाहिए? क्या हमें आने वाली पीढ़ियों के प्रति, अपनी संतति के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का अहसास है? आगामी 2 अक्टूबर के दिन हम सब महात्मा गांधी जी की 150 वीं जयंती मनाने जा रहे हैं। यह एक राष्ट्रीय पर्व है। 2022 में हमारी आजादी की 75 वीं वर्षगांठ भी एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाई जाएगी। इसमें कोई संदेह नहीं

ऐसा है जो प्राप्त किया जाना बाकी है। जैसे-जैसे कोई समाज विकसित होता है, वैसे-वैसे उसके लक्ष्य भी सटीक और निश्चित होते जाते हैं। हिमाचल प्रदेश में बेटे-बेटियों की शिक्षा को लेकर गौरव का भाव मौजूद है। यहां के स्कूलों में बेटे और बेटियों की शिक्षा के लिए, उनको स्कूल तक पहुंचाने के संदर्भ में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। दूसरे राज्य भी हैं जिन्होंने स्कूलों में बच्चों के दाखिले के मामले में सराहनीय प्रगति की है, लेकिन हमारा अगला लक्ष्य स्कूलों में नामांकन से आगे शिक्षा के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों पर होना चाहिए। हमारे बच्चे कक्षाओं तक पहुंच तो रहे हैं, लेकिन वहां जाकर वे कितना कुछ सीख पा रहे हैं? कितना ज्ञान अर्जित कर पा रहे हैं? आने वाले नए औद्योगिक युग के लिए हम उन्हें किस प्रकार तैयार कर पा रहे हैं? ये सवाल ऐसे हैं जो हर मां-बाप को परेशान कर रहे हैं। अगर सोचें तो जिस प्रकार से स्कूलों का प्रसार स्थान-स्थान पर हो गया है, क्या उसी प्रकार से हेल्थकेयर भी आधारभूत सुविधा के रूप में अपनी जनता को उपलब्ध नहीं कराई जानी चाहिए? ये मुद्दे समाधान चाहते हैं, हर भारतीय

के लिए हमें इन मुद्दों से जूझना होगा और ऐसा करते हुए क्षेत्र या धर्म आधारित किसी प्रकार के भेदभाव को पास फटकने नहीं देना है। ये सुविधाएं सबको देनी होंगी, चाहे वे हमारे किसान भाई-बहन हों या फिर औद्योगिक नगर हों। सब को हेल्थकेयर उपलब्ध करानी होगी। प्रकृति हमें एक संदेश देती है। जिस प्राकृतिक क्षेत्र में मैं गया, वहां एक-दूसरे के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता। यहां पर जल सभी के लिए उपलब्ध है, यहां के पेड़ सभी को छाया देते हैं, यहां की साफ हवा सभी को पोषण देती है। भाईचारा और करुणा तो मानो प्रकृति के स्वभाव में है। जो कुछ भी हम एक समाज के रूप में करते हैं वह सब करते हुए हमें उसी करुणा को भाईचारे को, मानवीयता को और परस्पर गरिमा को, सम्मान के भाव को अपनी आशाओं में और भारत के प्रति अपने सपनों में शामिल करना होगा। इस सबके मूल में मेल मिलाप की भावना है,सबको एक सूत्र में पिरोने वाली भावना है। प्रकृति हमें एक-दूसरे पर निर्भरता सिखाती है। मधुमक्खी को पोषण फूल से मिलता है, जल सभी

जीवों की प्यास बुझाता है और वृक्ष पक्षियों एवं जीव-जंतुओं का स्वागत बांह पसार कर करते हैं। मेलजोल में, एकात्मकता में एक प्रकार का संगीत महसूस होता है। ऐसा लगता है कि जैसे कोई ईश्वरीय बंधन है इन सबके बीच। जीवधारी चाहे छोटा हो या बड़ा, शांत हो या शोर मचाने वाला, सभी को मिलजुल कर साथ-साथ पुष्पित-पल्लवित होने देती है हमारी प्रकृति। आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करती है। मानव जाति को भी प्रकृति से यह गुण सीखना चाहिए। भारत को प्रकृति से अनुपम वरदान मिला है। इसीलिए आइए हम सब मिलकर उस एकात्मकता को और हर एक व्यक्ति को अपनी यह आकांक्षा पूरी करने, अपने सपनों और अपने भाग्य के लिखे को पूरा कर पाने में सहायक बनें। इसे हमें एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप देना होगा। भारत का कर्ज है हमारे ऊपर। हमें अपने वर्तमान का यह ऋण चुकाना है। आइए धरती मां का, प्रकृति का यह ऋण हम उतार कर जाएं।


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आवरण कथा

या फिर वृक्ष मौजूद हैं। सरकार ने इस खबर पर खुशी जताई है। पर्यावरण मंत्री हषवर्धन के शब्दों में, ‘2015 की तुलना में 2017 में देश के अत्यंत सघन वन के क्षेत्रफल में 1.36 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई जो कि पर्यावरण के लिहाज से अच्छी खबर है।’ उधर सेंटर फॉर साइंस ऐंड एन्वायरमेंट (सीएसआर) के वन विशेषज्ञ अजय सक्सेना का कहना है, ‘सघन वनों में वृद्धि सकारात्मक संकेत है। लेकिन जलवायु में हो रहे

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बांधों के मामले में हिमालय जल्दी ही दुनिया का सबसे अधिक घनत्व का क्षेत्र बन जाएगा। ऐसे में स्वाभाविक तौर पर सामाजिक और कानूनी विवाद के साथ पलायन जैसी समसस्याएं भी बढ़ती जा रही हैं बदलाव को नियंत्रित करने के लिए सामान्य वनों पर भी विशेष ध्यान देना होगा। पेड़ों की कटाई रोककर ही जंगलों के घटते क्षेत्रफल को बचाया जा सकता है।’

ग्लोबल वार्मिंग

सीएसई ने यह भी कहा कि है कि वर्ष 2015 की रिपोर्ट में देश के 589 जिलों को शामिल किया गया था, जबकि इस बार की रिपोर्ट में 633 जिलों को शामिल किया गया है। उसके मुताबिक

इस तथ्य पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है कि कहीं जिलों की संख्या बढ़ाए जाने की वजह से हरित और वन क्षेत्र में वृद्धि की बात न की जा रही हो।

स्वच्छता और पर्यावरण

जल की पूर्ति, स्वच्छता और स्वास्थ्य आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। अपर्याप्त शुद्ध पेय जल और स्वच्छता की सुविधाओं के अभाव के कारण

ग्लोबल वार्मिंग को 21वीं शताब्दी का सबसे बड़ा खतरा बताया जा रहा है। यह खतरा तृतीय विश्वयुद्ध या किसी क्षुद्रग्रह (एस्टेरॉइड) के पृथ्वी से टकराने से भी बड़ा माना जा रहा है

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कास के लिए प्रकृति का अंधाधुंध दोहन और पर्यावरण को लगातार पहुंचाए जा रहे नुकसान की ही देन है- ग्लोबल वार्मिंग। ग्लोबल वार्मिंग को 21वीं शताब्दी का सबसे बड़ा खतरा बताया जा रहा है। यह खतरा तृतीय विश्वयुद्ध या किसी क्षुद्रग्रह (एस्टेरॉइड) के पृथ्वी से टकराने से भी बड़ा माना जा रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैस हैं। ग्रीन हाउस गैसें, वे गैसें होती हैं, जो बाहर से मिल रही गर्मी या ऊष्मा को अपने अंदर सोख लेती हैं। ग्रीन हाउस गैसों का इस्तेमाल सामान्यतः अत्यधिक सर्द इलाकों में उन पौधों को गर्म रखने के लिए किया जाता है जो अत्यधिक सर्द मौसम में खराब हो जाते हैं। ऐसे में इन पौधों को कांच के एक बंद घर में रखा जाता है और कांच के घर में ग्रीन हाउस गैस भर दी जाती है। यह गैस सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी सोख लेती है और पौधों को गर्म रखती है। ठीक यही प्रक्रिया पृथ्वी के साथ होती है। सूरज से आने वाली किरणों की गर्मी की कुछ

अगर ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने वाले उत्सर्जन में कमी नहीं आई तो वर्ष 2100 तक भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बड़े हिस्से में तापमान जीवन को खतरे में डालने के स्तर तक पहुंच जाएगा मात्रा को पृथ्वी द्वारा सोख लिया जाता है। इस प्रक्रिया में हमारे पर्यावरण में फैली ग्रीन हाउस गैसों का महत्वपूर्ण योगदान है। वर्ष 2006 में एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म आई ‘द इनकन्विनिएंट ट्रुथ’। यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म तापमान वृद्धि और कार्बन उत्सर्जन पर केंद्रित

थी। इस फिल्म में मुख्य भूमिका में थेतत्कालीन अमेरिकी उपराष्ट्रपति अल गोरे और इस फिल्म का निर्देशन ‘डेविड गुग्न्हेम’ ने किया था। इस फिल्म में ग्लोबल वार्मिंग को एक विभीषिका की तरह दर्शाया गया, जिसका प्रमुख कारण मानव गतिविधि जनित कार्बन डाइऑक्साइड गैस माना गया। इस फिल्म को पूरे विश्व में बहुत सराहा गया और इसे ऑस्कर अवार्ड भी मिला। यद्यपि ग्लोबल वार्मिंग पर वैज्ञानिकों द्वारा शोध कार्य जारी है, मगर मान्यता यह है कि पृथ्वी पर हो रहे तापमान वृद्धि के लिए जिम्मेदार कार्बन उत्सर्जन है जो मानव गतिविधि जनित है। इसका प्रभाव विश्व के राजनीतिक घटनाक्रम पर भी पड़ रहा है। दिलचस्प है कि वर्ष 1988 में जलवायु परिवर्तन पर अंतरशासकीय दल का गठन किया गया था। 2007 में इस दल और अल गोरे को शांति का नोबल पुरस्कार दिया गया। इसरो के पूर्व चेयरमैन और भौतिकविद प्रो. यूआर राव अपने शोध-पत्र में लिखते हैं कि अंतरिक्ष से पृथ्वी पर आपतित हो रहे कॉस्मिक विकिरण का सीधा संबंध सौर-क्रियाशीलता से होता है। अगर सूरज की क्रियाशीलता बढ़ती है तो ब्रह्मांड से आने वाला कॉस्मिक विकिरण निचले स्तर के बादलों के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाता है। इस बात की पेशकश सबसे पहले स्वेंसमार्क और क्रिस्टेंसन नामक वैज्ञानिकों ने की थी। निचले स्तर के बादल सूरज से आने वाले विकिरण को परावर्तित कर देते हैं, जिस कारण से पृथ्वी पर सूरज से आने वाले विकिरण के साथ आई गर्मी भी

परावर्तित होकर ब्रह्मांड में वापस चली जाती है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि वर्ष 1925 से सूरज की क्रियाशीलता में लगातार वृद्धि हुई है। इस कारण पृथ्वी पर आपतित होने वाले कॉस्मिक विकिरण में लगभग 9 प्रतिशत कमी आई है। इस विकिरण में आई कमी से पृथ्वी पर बनने वाले खास तरह के निचले स्तर के बादलों के निर्माण में भी कमी आई है, जिससे सूरज से आने वाला विकिरण सोख लिया जाता है और इस कारण से पृथ्वी के तापमान में वृद्धि का अनुमान लगाया जा सकता है। प्रो. राव के निष्कर्ष के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग में इस प्रक्रिया का 40 प्रतिशत योगदान है।

ग्लोबल वार्मिंग से सिर्फ जागरुकता फैलाकर ही इससे लड़ा जा सकता है। हमें अपनी पृथ्वी को सही मायनों में ‘ग्रीन’ बनाना होगा, अपने कार्बन फुटप्रिंट्स (प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन को मापने का पैमाना) को कम करना होगा। हम अपने आस-पास के वातावरण को प्रदूषण से जितना मुक्त रखेंगे, इस पृथ्वी को बचाने में उतनी ही बड़ी भूमिका निभाएंगे। ग्लोबल वार्मिंग को लेकर जागरुकता हमारे दौर की सबसे जरूरी दरकार है, क्योंकि अगर हम नहीं चेते तो ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन की वजह से उष्णकटिबंधीय रेगिस्तानों में नमी बढ़ेगी। मैदानी इलाकों में भी इतनी गर्मी पड़ेगी जितनी कभी इतिहास में नहीं पड़ी। इस वजह से विभिन्न प्रकार की जानलेवा बीमारियां पैदा होंगी। वैज्ञानिकों के अनुसार अगर प्रदूषण फैलने की रफ्तार इसी तरह बढ़ती रही तो अगले दो दशकों में धरती का औसत तापमान 0.3 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक के दर से बढ़ेगा। जो चिंताजनक है। हाल में हुए एक अध्ययन के मुताबिक अगर ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने वाले उत्सर्जन में कमी नहीं आई तो वर्ष 2100 तक भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बड़े हिस्से में तापमान जीवन को खतरे में डालने के स्तर तक पहुंच जाएगा। शोधकर्ताओं का कहना है कि खतरनाक उमस भरी गर्म हवाओं के घेरे में 30 फीसदी आबादी आ सकती है।


04 - 10 जून 2018 विश्व के लाखों गरीब प्रतिवर्ष रोकथाम करने योग्य रोगों के शिकार हो जाते हैं। महिलाएं और बच्चे इनसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। दरअसल, पानी और ऊर्जा की बचत और पर्यावरण के प्रदूषण को कम करना ही पर्यावरणीय स्वच्छता का उद्देश्य है। मल-मूत्र के पुनर्चक्रण से भू-जल, नदियों और पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। यहां जो बात खासतौर पर समझने की है, वह यह कि स्वच्छता और जल का आपसी नाता है। जल स्रोतों में गंदगी मिलने से नदियों और भूजल प्रदूषित होता है। पेय जल एवं स्वच्छता विभाग के सचिव परमेश्वरन अय्यर बताते हैं कि आज भी हमारे यहां करोड़ों लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं। 2 अक्टूबर, 2014 को शुरू किए गए स्वच्छ भारत अभियान का लक्ष्य रखा गया है कि महात्मा गांधी की 150वें जयंती, 2 अक्टूबर 2019 तक खुले में शौच की समस्या का पूरी तरह से खात्मा हो जाए। ताजा आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट कहती है कि देश में अक्टूबर 2014 में खुले में शौच जाने वाले लोगों की आबादी 55 करोड़ थी, जो जनवरी, 2018 में घटकर 25 करोड़ हो गई है। अब तक पूरे

ईपीआई में 36 पायदान फिसला भारत 2016 में 141वें स्थान के मुकाबले भारत के स्थान में 36 अंकों की गिरावट आई है

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रत पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ईपीआई) 2018 में अंत के पांच देशों में शामिल है। 2016 में 141वें स्थान के मुकाबले भारत के स्थान में 36 अंकों की गिरावट आई है। इसी वर्ष जनवरी में येल और कोलंबिया विश्वविद्यालयों द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। भारत पर्यावरण स्वास्थ्य वर्ग की सूची में सबसे निचले स्थान पर है, जबकि उसने वायु गुणवत्ता के मामले में 180 में से 178वां स्थान हासिल किया। उसकी कुल मिलाकर कम रैंकिंग (180 में से 177वां स्थान) पर्यावरण स्वास्थ्य नीति और वायु प्रदूषण से मौत, वर्गों में खराब प्रदर्शन को लेकर है। इस रिपोर्ट में कहा गया कि अतिसूक्ष्म पीएम 2.5 प्रदूषक के कारण मरने वालों की संख्या बीते दशक में बढ़ी है। एक अनुमान के अनुसार, यह भारत में 16 लाख 40 हजार 113 सालाना है। इस सूची में शुरुआती पांच स्थानों पर स्विट्जरलैंड, फ्रांस, डेनमार्क, माल्टा और स्वीडन हैं।

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आवरण कथा युगरत्ना श्रीवास्तव

मिलिए भारत की ग्रीन गर्ल से छोटी उम्र में ही युगरत्ना के मजबूत इरादों ने आज उन्हें पर्यावरण के क्षेत्र में एक जाना-माना नाम बना दिया

जि

स मंच पर बराक ओबामा, बान की मून और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसी शख्सियत मौजूद हों, उस मंच पर यदि कोई भारत की बेटी पहुंचती है तो वह बड़ी बात है। दरअसल, हम बात कर रहे हैं युगरत्ना श्रीवास्तव की, जो लखनऊ में अलीगंज की रहने वाली हैं। 19 साल की युगरत्ना श्रीवास्तव इंजीनियरिंग कर रही हैं। छोटी उम्र में ही युगरत्ना के मजबूत इरादों ने आज उन्हें पर्यावरण के क्षेत्र में एक जानामाना नाम बना दिया है। उस वक्त युगरत्ना की उम्र महज 12 साल थी, जब उन्हें इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन यूनेप के जूनियर बोर्ड की सदस्य

के रूप में चुना गया। उसी समय से वह इस संस्था के साथ जुड़ीं और तब से आज तक पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों पर काम कर रही हैं। 2008 में नॉर्वे में हुए यूनेप इंटरनेशनल सम्मेलन में युगरत्ना पहली इतनी कम उम्र की

2008 में नॉर्वे में हुए यूनेप इंटरनेशनल सम्मेलन में युगरत्ना पहली इतनी कम उम्र की भारतीय थीं, जिन्हें इस सम्मेलन में शामिल होने का मौका मिला

भारतीय थीं, जिन्हें इस सम्मेलन में शामिल होने का मौका मिला। पर्यावरण संरक्षण में युगरत्ना ने पेड़ों की संख्या को बढ़ाने के लिए बहुत काम किया है। युगरत्ना ने रोडसाइड गार्डन डिवेलप करने के लिए भी कई प्रोजेक्ट्स बनाए हैं जिनपर काम चल चल रहा है। इन दिनों वह ‘प्लांट फॉर दि प्लेनेट’ मुद्दे पर काम कर रही हैं, जिसके तहत अब तक 14 मिलियन पेड़ लगाए जा चुके हैं। युगरत्ना ने कई ग्रीन कैंपेन चलाए, लोगों को पौधे बांटे, उनमें पर्यावरण को लेकर संवेदना औऱ चेतना बढ़ाई। यही कारण है कि उन्हें इतनी कम उम्र में ही यूनेप का सदस्य चुना गया। युगरत्ना का मानना है कि बच्चे चेंजमेकर होते हैं और इसीलिए हर बदलाव की शुरुआत बच्चों के साथ ही होनी चाहिए। वह कहती हैं कि बच्चों के जरिए किए गए बदलाव लंबे समय तक टिकते हैं। बातचीत के क्रम में युगरत्ना केदारनाथ आपदा का भी जिक्र करती हैं। वह कहती हैं कि हम प्रकृति के साथ जैसा व्यवहार करेंगे, वह भी हमारे साथ वैसा ही व्यवहार करेगी, इसीलिए हमें पर्यावरण को बचाना ही होगा। पर्यावरण के अलावा महिला सशक्तीकरण को लेकर भी युगरत्ना काफी सजग हैं। वह महिलाओं के लिए एक एनजीओ खोलना चाहती हैं। उनका मानना है कि शहरों के मुकाबले गांवों में अपराध ज्यादा है, इसीलिए वहां काम करना बेहद जरूरी है।

पर्यावरणीय स्वच्छता की तीन बातें

1. पूर्व प्रदूषण को रोकना न कि उसे प्रदूषित करने के बाद रोकने की कोशिश करना 2. मल-मूत्र से खाद का निर्माण करना 3. इस खाद का प्रयोग उपयोग खेती के लिए करना। इस प्रक्रिया को पुनर्चक्रण (रिसाइकिल) कहते हैं। देश में 296 जिलों तथा 3,07,349 गांवों को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया जा चुका है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आठ राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों – सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, केरल, हरियाणा, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, दमन और दीव तथा चंडीगढ़ को खुले में शौच से पूर्ण रूप से मुक्त घोषित किया गया है।

सुलभ का योगदान

किसी ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि 21वीं सदी के दूसरे दशक तक आते-आते स्वच्छता देश का

प्राइम एजेंडा बन जाएगा। इस बदलाव के पीछे एक बड़ा संघर्ष है। आज देश में स्वच्छता को लेकर जो विभिन्न अभियान चलाए जा रहे हैं, उसमें जिस संस्था और व्यक्ति का नाम सबसे पहले आता है, वह सुलभ इंटरनेशनल और इस संस्था के प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक। पूरी दुनिया आज डॉ. पाठक को ‘टॉयलेट मैन’ के रूप में जानती है। उन्होंने एक तरफ जहां सिर पर मैला ढ़ोने की मैली प्रथा को खत्म करने बीड़ा उठाया, वहीं देशभर में सुलभ शौचालय की उपलब्धता से उन्होंने आमलोगों की स्वच्छता जरूरत को पूरा करने के क्षेत्र में महान कार्य किया। बड़ी बात यह है कि डॉ. पाठक द्वारा

शुरू किया गया स्वच्छता का सुलभ अभियान अब भी थमा नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दो अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन शुरू होने के बाद डॉ. पाठक के मार्गदर्शन में सुलभ का स्वच्छता अभियान नई प्रेरणा और गति के साथ आगे बढ़ रहा है। शौचालय और स्वच्छता को पांच दशक से अपनी समझ और विचार की धुरी बनाकर चल रहे डॉ. विन्देश्वर पाठक ने एक तरह से दुनिया को स्वच्छता का नया समाजशास्त्र सिखाया है, जिसमें साफसफाई के सबक तो हैं ही, मानवीय प्रेम और करुणा को भी पर्याप्त महत्व दिया गया है।


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आयोजन

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डॉ. पाठक ने समाज सेवा के लिए अपना जीवन दिया - दीपक द्विवेदी दैनिक भास्कर समाचार पत्र ने नई दिल्ली में ‘भारत के सामाजिक-आर्थिक और सतत विकास में स्वच्छता और स्वास्थ्य का महत्व’ विषय पर सेमिनार का आयोजन किया

प्रियंका तिवारी

ज देश में विकास, शिक्षा, महिला सुरक्षा जैसे कई मुद्दों पर हम चर्चा करते हैं, भले ही हमारी इसमें कोई सक्रिय भूमिका हो या ना हो। पढ़ाई के बाद लोग डॉक्टर, इंजीनियर और आईएएस-पीसीएस बनते हैं, लेकिन इन सबसे अलग डॉ. पाठक ने अपने लिए समाज सेवा को चुना। उन्होंने समाज सेवा के लिए अपना पूरा जीवन दे दिया। ऐसी महान विभूति को आज पूरा देश नमन करता है। यह बातें दैनिक भास्कर के मुख्य संपादक दीपक द्विवेदी ने ‘भारत के सामाजिक-आर्थिक और सतत विकास में स्वच्छता और स्वास्थ्य का महत्व’ विषय पर आयोजित सेमिनार में कहीं। उन्होंने कहा कि ऐसे प्रयास डॉ. पाठक तक ही सीमित न रहें, उनके इन प्रयासों की धारा सतत बहती रहे, इसके लिए समाचार पत्रों की एक भूमिका होती है। इस भूमिका का निर्वहन करने का जिम्मा दैनिक भास्कर ने उठाया है और आगे भी राष्ट्र के विकास में हर आहूति को शक्ति प्रदान करने का कार्य दैनिक भास्कर करेगा। दैनिक भास्कर हिंदी समाचर पत्र ने ‘भारत का सामाजिक-आर्थिक और सतत विकास में स्वच्छता

और स्वास्थ्य का महत्व’ विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया। इस सेमिनार में सुलभ इंटरनेशनल सामाजिक सुधार ऑर्गेनाइजेशन के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक, केरल हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस नवनीति प्रसाद सिंह, यूनेस्को एजक्यूटिव बोर्ड के प्रतिनिधि प्रो. जेएस राजपूत, यूफ्लेक्स लिमिटेड के अध्यक्ष दिनेश जैन और दैनिक भास्कर के चीफ एडिटर दीपक द्विवेदी मौजूद रहे।

भास्कर निभाएगा अपनी भूमिका

कार्यक्रम के दौरान दैनिक भास्कर के चीफ एडिटर दीपक द्विवेदी ने पुष्प गुच्छ और स्मृति चिन्ह प्रदान कर सभी अतिथियों का स्वागत किया और कहा कि डॉ. पाठक आधुनिक भारत के महात्मा गांधी हैं। उन्होंने अपने सामाजिक सेवा के माध्यम से देश को एक नई दिशा दी है। द्विवेदी ने कहा कि एक सपना गांधी जी ने देखा था, लेकिन उनके इस

सपने को डॉ. पाठक ने पूरा किया है। ऐसी महान विभूतियों के कार्यों को समाज के हर तबके तक पहुंचाने का कार्य समाचार पत्रों का है और दैनिक भास्कर इस कार्य को समाज के लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी लेता है। उन्होंने कहा कि आज इस मौके पर हम लोग इसीलिए एकत्रित हुए हैं क्योंकि आधुनिक भारत के नए इतिहास की शुरुआत हो रही है और इसे लि​िपबद्ध करने की जिम्मेदारी हम लोगों की ही है, जो आने वाली पीढ़ी के लिए एक रोल मॉडल होंगे। देश के प्रति जो योगदान इन महान विभूतियों ने दिया, इसे कौन लि​िपबद्ध करेगा। इसके बारे में आने वाली पीढ़ी को कौन बताएगा, इसकी जिम्मेदारी समाचार पत्रों की है। इसके लिए हम लोगों ने इस अभियान को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी ली है। हमने डॉ. पाठक से इसके लिए समय लिया, उनसे बात की, उनके साथ कुछ समय बिताया तो उन्होंने अपने

गांधी जी के सपने को डॉ. पाठक ने पूरा किया है। ऐसी महान विभूतियों के कार्यों को समाज के हर तबके तक पहुंचाने का कार्य समाचार पत्रों का है और दैनिक भास्कर इस कार्य को समाज के लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी लेता है-दीपक द्विवेदी

जीवन से जुड़े कई पहलुओं के बारे में हमें बताया। अपने प्रयास को वह कहां तक ले जाना चाहते हैं, उस पर भी चर्चा की। देश में किए जाने वाले इन नए प्रयासों को कैसे सराहा जाए, उसे कैसे शक्ति प्रदान की जाए, उनका सम्मान किया जाए, इसकी जिम्मेदारी दैनिक भास्कर लेता है और इस यात्रा में ग्राम पंचायत से लेकर देश की पंचायत तक हर जगह जो भी योगदान होगा, उसे करने में दैनिक भास्कर कभी पीछे नहीं रहेगा। आज समाचार पत्र का कार्य अच्छे सामाचार छापना ही नहीं रहा, बल्कि समाचारों की गुणवत्ता, सत्यता और उनकी सक्रियता से जुड़ना, यह आधुनिक पत्रकारिता का नया आयाम है। इसी आयाम के साथ हम लोग डॉ. पाठक की जो यह यात्रा है उसमें पूरे मनोयोग से कदम से कदम मिलाकर चलेंगे और आहूति देंगे।

दैनिक भास्कर का आभारी हूं

अपने संबोधन में डॉ. विन्देश्वर पाठक ने कहा कि दैनिक भास्कर समाचार पत्र द्वारा मुझे आधुनिक गांधी कह कर सम्मानित किए जाने से मैं काफी गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। मैं गांधी का अनुयायी हूं और उनके कार्यों को मैंने टेक्नोलाजी से जोड़ कर समाज तक पहुंचाने का कार्य किया है। मुझे इस मिशन में 50 साल हो चुके हैं। डॉ.


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स्वच्छता और स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता बचपन से ही डाली जाए तो देश की दशा बदलने में समय नहीं लगेगा। इसके लिए माता-पिता और शिक्षकों को अपनी आहूति देनी होगी तभी देश का सतत विकास संभव है।

बदली देश की दृष्टि

पाठक ने कहा कि दैनिक भास्कर ने स्वच्छता के हमारे मिशन को आगे बढ़ाने का जो बीड़ा उठाया है, इसके लिए उन्हें धन्यवाद देने के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं। दैनिक भास्कर ने हमसे कहा कि राजा राम मोहन राय और ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने कोलकाता में मीडिया के सहयोग से ही अपने मिशन को पूरा किया था। वैसे ही हम आपके इस मिशन से जुड़ कर इसे देश के हर तबके तक पहुंचाना चाहते हैं। इस दौरान डॉ. पाठक ने कहा कि मुझे 13 जून 2018 को निक्केई एशिया अवार्ड से सम्मानित किया जाना है। उन्होंने कहा कि जब मैं छोटा था तो एक अछूत महिला को छू देने पर मेरी दादी ने मुझे गोबर और गंगा जल पिलाया था। तब से वह बात मेरे मन में बैठ गई थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं बिहार गांधी कमेटी से जुड़ गया। हमने समाज में फैली अछूत नामक बीमारी को दूर करने का बीड़ा उठाया। इसके लिए मैं मलिन बस्ती में तीन दिनों तक रहा और स्वयं मैला ढोया। हमने महात्मा गांधी और बाबा साहब आंबेडकर के सपने को साकार करने का कार्य किया है। हमने स्कैवेंजिंग की प्रथा को खत्म करने के लिए टू-पिट पोर फ्लश टॉयलेट टेक्नोलॉजी का निर्माण किया। यह बहुत ही सरल टेक्नोलॉजी है और इसका इस्तेमाल भी बहुत आसान है। यह टेक्नोलॉजी अफ्रीका, अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के पास भी नहीं हैं। इसी

लिए मैं सिर्फ भारत की बात नहीं करता, बल्कि विश्व को भी स्वच्छ और स्वस्थ्य बनाने की बात कहता हूं। इस टेक्नोलॉजी के दो फायदे हैं, एक तो हमारे देश के स्कैवेंजर्स भाई-बहनों को मैला ढोने से आजादी मिली और दूसरा भारत में खुले में शौच जाना कम हुआ है।

स्वच्छता और स्वास्थ्य जरूरी

इस मौके पर केरल हाईकोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस नवनीति प्रसाद सिंह ने कहा कि डॉ. पाठक के कार्यों की जितनी सराहना की जाए वह कम है। उन्होंने देश को एक नई दिशा दी है। उन्होंने कहा कि पाठक ने समाज के उन तबकों के बारे में सोचा और कार्य किया, जिसके बारे में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सोचते थे। उन्होंने कहा कि किसी भी देश के सतत विकास में स्वच्छता और स्वास्थ्य बहुत मायने रखते हैं और इसकी शुरुआत खुद के घर और स्कूल से की जा सकती है। बच्चों में यदि

यूनेस्को एजक्यूटिव बोर्ड के प्रतिनिधि प्रो. जेएस राजपूत ने कहा कि जब तक मैं पाठक जी से मिला नहीं था, केवल उनके काम को जानता था और जहां-जहां जाता था उसे देखता था। तब यही सोचता था कि उनके कार्यों और बड़ी-बड़ी उपलब्धियों पर पुस्तकें लिखी जा सकती है, लिखी भी गई हैं और लिखी जानी भी चाहिए। यदि मुझसे डॉ. पाठक के अचीवमेंट के बारे में पूछा जाए तो सिर्फ एक शब्द में कहूंगा कि उन्होंने देश के लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन के लिए सफलता पूर्वक काम किया और लोगों कि दृष्टि बदली है। 1916 में महात्मा गांधी ने भारतीय रेलों में स्वच्छता की बात कही थी, जिससे बहुत कम परिवर्तन हुआ, लेकिन डॉ. पाठक की बात ने देश में बहुत बड़ा परिवर्तन किया है। यदि आपको लोगों के दृष्टिकोण को बदलना है तो वह शिक्षा के बिना नहीं किया जा सकता है। स्कूलों, विश्वविद्यालयों से ही किसी भी नए परिवर्तन की शुरुआत की जा सकती है। हमने अपनी शिक्षा के सार तत्वों पर ध्यान नहीं दिया। यदि दिया होता तो हमारे तालाब, हमारी

हमने स्कैवेंजिंग की प्रथा को खत्म करने के लिए टू-पिट पोर फ्लश टॉयलेट टेक्नोलॉजी का निर्माण किया। यह बहुत ही सरल टेक्नोलॉजी है। यह टेक्नोलॉजी अफ्रीका, अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के पास भी नहीं है -डॉ. पाठक

नदियां और हवाएं प्रदूषित नहीं होती। हमारे यहां कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति जन्म लेता है तो उसके जन्म के साथ चार ऋण उससे जुड़ जाते हैं, देव ऋण, पितृ ऋण, ऋषि ऋण और मानव ऋण (समाज के प्रति आपकी कृतज्ञता)। हमारा जो समाज है वह कर्तव्यपूर्ण समाज है फिर ऐसा कैसे हुआ कि जो समाज के हित में नहीं था हम उसी दिशा में बढ़ते गए। इसके समझने के लिए गांधी जी का वह वाक्य हमें बड़ा ही उपयुक्त लगता है कि प्रकृति के पास सभी की आवश्यकताओं की पूर्ति के संसाधन हैं, मगर एक भी व्यक्ति के लालच की पूर्ति के लिए नहीं हैं। हमने लालच में आकर प्रकृति की संवेदनाओं से खिलवाड़ करना शुरू कर दिया, जिसका नतीजा है कि आज हम प्रदूषण और स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। हमें अपनी संस्कृति की तरफ लौटना होगा, तभी हम इस मुहिम को आगे बढ़ा सकते हैं।


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सम्मान

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महज विश्लेषण तक सीमित नहीं समाजशास्त्र : डॉ. पाठक

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सुलभ प्रणेता ने दरभंगा स्थित ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर समाजशास्त्र विभाग में महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह मेमोरियल चेयर का किया उद्घाटन

लभ क्रांति के जनक डॉ. विन्देश्वर पाठक ने हाल में ही ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर समाजशास्त्र विभाग में महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह मेमोरियल चेयर का उद्घाटन किया। डॉ. पाठक ने इस चेयर के लिए 20 लाख रुपए देने की घोषणा की। इस मौके पर सुलभ प्रणेता ने ‘सोशियोलॉजी ऑफ सेनिटेशन’ विषय पर बतौर मुख्य वक्ता व्याख्यान देते हुए कहा कि समाजशास्त्रियों को सिर्फ पढ़नेपढ़ाने और विश्लेषण करने तक सीमित नहीं रहना चाहिए। उन्हें समस्या का निदान भी देना चाहिए। डॉ. पाठक सुलभ क्रांति का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने एक ऐसे दौर में जब समाज के एक वर्ग की परछाई से लोग दूर भागते थे, उनको मुख्यधारा में जोड़ने के लिए यह अभियान शुरू किया और आज इसका नतीजा सामने है। आज उसी परिवार के सदस्यों के साथ तथाकथित संभ्रांत समाज के लोग समवेत हो रहे हैं। समाज में उन्हें सम्मान के साथ ही बराबरी का हक मिल रहा है। समाजशास्त्री की भूमिका को रेखांकित करते हुए डॉ. पाठक ने कहा कि इन्हीं की मदद से आज अपना देश 2019 तक स्वच्छ होने की स्थिति में आया है। उन्होंने कहा कि सफलता के लिए विनम्रता के मार्ग पर चलना होगा। यह समाज सुधार के लिए सबसे जरूरी पहलू है। शांति, अहिंसा से ही समाज में बदलाव संभव है। उन्होंने समाजशास्त्र के सहारे

सु

खास बातें

‘सोशियोलॉजी ऑफ सेनिटेशन’ विषय पर डॉ. पाठक का व्याख्यान स्वच्छता के क्षेत्र में समाजशास्त्रियों की भूमिका को किया रेखांकित ‘समस्याओं का विश्लेषण नहीं, समाधान भी सुझाए समाजशास्त्र’ ही छूआछूत जैसी कुरीति को दूर करने में सफलता हासिल की है। इस मौके पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. साकेत कुशवाहा ने डॉ. पाठक के स्वच्छता आधारित पाठ्यक्रम शुरू करने के आग्रह पर कहा कि सीनेट-सिंडिकेट का सहयोग अगर मिला तो वे इस पाठ्यक्रम को शुरू करेंगे और नौकरी लेने नहीं, बल्कि देनेवाली पीढ़ी तैयार करेंगे। प्रो. पाठक ने कहा कि जब यह पाठ्यक्रम शुरू होगा तो फिर से डॉ. पाठक को आमंत्रित किया जाएगा। इस मौके पर उन्होंने यह भी कि कहा कि स्वच्छता दो तरह की होती है। दिखने वाली

स्वच्छता स्वास्थ्य व प्रसन्नता आधारित होती है, जबकि दूसरी मानसिक स्वच्छता होती है जो कि विचार, क्रिया व कार्य संस्कृति में छलकती है। इस अवसर पर उन्होंने एक-एक दिन का वेतन सीएम राहत कोष में देने का सभी से आग्रह किया। इस अवसर पर व्याख्यान से पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. नागेंद्र कुमर ने आयोजन के महत्व और रूपरेखा के बारे में बताया। कार्यक्रम में स्वागत भाषण पूर्व विधान पार्षद सह सिंडिकेट सदस्य डॉ. विनोद कुमार चौधरी ने दिया। विभाग की ओर से डॉ. पाठक को अभिनंदन पत्र समर्पित किया गया।

दरभंगा में डॉ. पाठक का सम्मान

इस अवसर पर विभाग की स्मारिका के साथ ही ‘मिथिलाक गौरव’ नामक पुस्तक का लोकार्पण भी हुआ। इस मौके पर कुलसचिव अजित कुमार सिंह ने भी अपने विचार रखे। सिंडिकेट सदस्य डॉ. बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने त्रिदिवसीय मिथिला विभूति पर्व के लिए डॉ. पाठक को आमंत्रित करते हुए उन्हें ‘मिथिला विभूति’ सम्मान से सम्मानित करने संबंधी पत्र दिया। कार्यक्रम का संचालन अमलेंदु शेखर पाठक ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. गोपीरमण प्रसाद सिंह ने किया।

बाईसी मेहतर समाज संस्थान के सदस्यों ने पाग, माला, शॉल और मिथिला पेंटिंग देकर सुलभ प्रणेता को किया सम्मानित

लभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक को दरभंगा में बाईसी मेहतर समाज संस्थान के सदस्यों ने पाग, माला, चादर और मिथिला पेंटिंग देकर सम्मानित किया। दरभंगा नगर निगम वार्ड नं 21 की ओर से भी उनका जोरदार अभिनंदन किया गया, जिसके सदस्य जियारत के दौरान सुलभ संस्थान भी जाते हैं। इस मौके पर रोटी बैंक, ब्लड डोनर टीम और तालाब सफाई में जुटे विवेकानंद युवा संस्थान और लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करने वाले समूह के सदस्य भी मौजूद थे। सम्मान समारोह में सुलभ की पहल से अलवर, टोंक (राजस्थान) हरमथला (हरियाणा) की पुनर्वासित हो चुकीं स्कैंवेंजर महिलाएं और वृंदावन से आईं विधवा माताएं भी मौजूद थीं।

कार्यक्रम में नगर विधायक संजय सरावगी और पूर्व विधान पार्षद डॉ. विनोद चौधरी भी मौजूद थे। इस मौके पर डॉ. पाठक ने चारों संस्थान के निस्वार्थ कार्य की जानकारी मिलने पर बाद मंच से ही उन्हें दो-दो लाख रुपए की मदद देने की

घोषणा की। बाईसी मेहतर संस्थान के संबंध में उन्होंने कहा कि एक अलग बैठक में इनके उत्थान हेतु वे वार्ता करेंगे। उन्होंने कहा कि सरकार और समाज मिलकर काम करेंगे, तभी समुचित विकास होगा। इस अवसर पर डॉ. पाठक ने वार्ड 21 में पार्षद के अपने स्तर से चलाए जा रहे 11 सबमर्सिबल पंप से पानी सप्लाई की भी तारीफ की तथा घोषणा की कि हरिबोल तालाब, जिसमें वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की एनओसी मिल गया है, उसे वे 4 माह में लगवा देंगे। इस मौके पर सुलभ की अध्यक्ष उषा चौमड़ ने कहा कि सुलभ प्रणेता ने मुझ जैसी हजारों मैला ढोने वाली महिलाओं की तकदीर बदली। गौरतलब है कि उषा चौमड़ 2003 तक अलवर में सिर पर मैला ढोती थी। पिछले वर्ष उन्होंने सुलभ की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

के हाथों पुरस्कार प्राप्त किया था। ऐसी ही कहानी पूजा की भी है, जो 2008 तक मैला ढोती थी। इस मौके पर उसने भी अपने विचार रखे। डॉ. विनोद चौधरी ने इस मौके पर बोलते हुए कहा कि ‘डॉ. विन्देश्वर पाठक एक व्यक्ति नहीं, बल्कि अमूल्य धरोहर हैं, जिनके दर्शन और संबोधन से प्रेरणा मिलती है।’ इस अवसर पर नगर निगम के दो दर्जन पार्षदगण भी मौजूद थे, जिन्होंने डॉ पाठक के साथ आईं महिलाओं को मिथिला पेंटिंग, साड़ी एवं लहठी देकर सम्मानित किया। इससे पूर्व दरभंगा नगर निगम के सार्वजनिक शौचालय को भी डॉ. पाठक ने देखा। यहां शौच के उपरांत बच्चों को चॉकलेट तथा रविवार को बड़ों को चाय भी मिलती है। वे शौचालय के पास आधुनिक सजावट एवं लाइब्रेरी से भी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने हरिबोल तालाब के मछलियों को दाना भी खिलाया, जिस तालाब में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगना है।


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सच हुआ बापू और बाबा साहेब का सपना... य

ह एक ऐतिहासिक अवसर था, जब सुलभ संस्था द्वारा पुनर्वासित स्कैवेंजर्स (जो अब ब्राह्मण हो चुकी हैं) व उनके पुराने नियोक्ताओं और वृंदावन में रहने वाली विधवा माताओं के लिए फिल्म ‘परमाणु’ का विशेष शो रखा गया। यह फिल्म भारत के पहले परमाणु परीक्षण पर आधारित है। इस फिल्म को सब लोगों ने साथ मिलकर देखा और इस तरह सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने इस फिल्म शो के माध्यम से महात्मा गांधी और डॉ. आंबेडकर के स्वप्न को सच कर दिखाया। फिल्म देखने को दौरान सभी प्रसन्न और रोमांच से भरे हुए थे। फिल्म का यह विशेष शो नई दिल्ली में चाणक्यपुरी स्थित पीवीआर मल्टीप्लेक्स में आयोजित किया गया था।


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स्वच्छता

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मोरक्को : स्वच्छता का मॉडल देश

यूनिसेफ ने वाटर, सेनिटेशन और हाइजीन (वॉश) को लेकर पूरी दुनिया की आबादी को सुरक्षित स्तर पर लाने की ग्लोबल कवायद शुरू की है, उसमें जो देश मॉडल कंट्री के तौर पर उभरे, उसमें मोरक्को का नाम काफी ऊपर है

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सुमित श्रीवास्तव

रक्को उत्तरी अफ्रीका का एक ऐसा देश है, जो आधुनिकता के साथ ऐतिहासिक विडंबनाओं के लंबे दौर से साक्षी रहा है। बात स्वच्छता की करें तो यूनिसेफ ने वाटर, सेनिटेशन और हाइजीन (वॉश) को लेकर पूरी दुनिया की आबादी को सुरक्षित स्तर पर लाने की ग्लोबल कवायद शुरू की है, उसमें जो देश मॉडल कंट्री के तौर पर उभरे, उसमें मोरक्को का नाम काफी ऊपर है। दरअसल, भौगोलिक तौर पर तमाम तरह की प्रतिकूलताओं को झेलने वाले मोरक्को ने विगत दो दशकों में जहां अपने को एक विकसित अर्थव्यवस्था के तौर पर दुनिया के प्रस्तुत किया है, वहीं उसने स्वच्छता के क्षेत्र में आशातीत सफलता भी हासिल की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट (ग्लास : 2013-14) के मुताबिक मोरक्को सरकार के तमाम मंत्रालय और विभागों ने जल प्रबंधन और स्वच्छता के क्षेत्र में न सिर्फ बेहतरीन प्रदर्शन किया , बल्कि उन्होंने कई मामलों में लक्ष्य को समय से काफी पहले पूरा करने का

खास बातें मोरक्को की राजधानी को आदर्श स्वच्छ महानगर माना जाता है मोरक्को के रेगिस्तान में प्लास्टिक के कृत्रिम पेड़ लगाए गए हैं फॉग कैचर के जरिए पानी की आपूर्ति की तकनीक लोकप्रिय

रिकॉर्ड बनाया है। विश्व बैंक के एक मूल्यांकन के मुताबिक मोरक्को में जहां वर्ष 2000 तक महज 69 प्रतिशत आबादी तक न्यूनतम स्वच्छता सेवाओं की पहुंच थी, वहीं यह दायरा वर्ष 2015 तक आते-आते 83 प्रतिशत हो गया।

प्रतिकूल भूगोल

कभी उत्तरी अफ्रीका में रोमन प्रांत रहे इस क्षेत्र पर मध्यकाल में एक अफ्रीकी मूल के वंश का शासन रहा, जिस पर इस्लामिक प्रभाव 10वीं सदी से पड़ता गया। आज यह एक मुस्लिम देश है, जिसकी भाषा अरबी है। यहां की अरबी अफ्रीकी मिश्रित है। मराकेश यहां की राजधानी है और कासाब्लांका आर्थिक केंद्र। दिलचस्प है इंटरनेशनल टूरिस्ट सर्किट में एक आकर्षक देश माना जाने वाले मोरक्को के पास एक तरफ जहां समुद्र तट हैं, वहीं वहां ऐसा रेगिस्तान भी है, जो पानी के लिए आज भी तरसता है। इस लिहाज से स्वच्छता और जल प्रबंधन को लेकर जागरुकता भले यहां के लोगों के लिए एक आधुनिक परिघटना हो, पर यहां के लोगों ने अपनी भौगोलिक चुनौतियों के बीच अपने सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन को जिस तरह आगे बढ़ाया है, वह भी एक मिसाल ही है। मोरक्को भौगोलिक रूप से अटलांटिक महासागर और भूमध्य सागर के साथ उत्तरी अफ्रीका में स्थित है। यह अल्जीरिया और पश्चिमी

सहारा से घिरा हुआ है। यह अभी भी दो इंक्लेव्स और मेलिला के साथ सीमाओं को साझा करता है, लेकिन सेतु और मेलिला को स्पेन का हिस्सा माना जाता है। मोरक्को की स्थलाकृति इसके उत्तरी तट के रूप में भिन्न होती है और आंतरिक क्षेत्र पहाड़ी है, जबकि इसके तटीय क्षेत्र में उपजाऊ मैदान हैं जहां देश की अधिकांश कृषि होती है। मोरक्को के पहाड़ी इलाकों के बीच घाटियां भी हैं। मोरक्को में सबसे ऊंचा बिंदु जेबेल टुबकल है, जो 13,665 फीट (4,165 मीटर) तक ऊंचा है, जबकि इसका सबसे निचला बिंदु सेबखा ताह है जो समुद्र तल से -180 फीट (-55 मीटर) है।

एटलस पर्वत

मोरक्को का वातावरण, इसकी स्थलाकृति की तरह ही स्थान के साथ भिन्न है। तट के साथ, भूमध्यसागरीय गर्म, सूखे ग्रीष्म और हल्के सर्दियों के साथ भूमध्य सागरीय है। दूरदराज के अंतर्देशीय, जलवायु अधिक गरम है और निकटतम सहारा मरुस्थल में आता है, यह अधिक गरम हो जाता है। उदाहरण के लिए मोरक्को की राजधानी, राबत तट पर स्थित है और इसका जनवरी

का औसत तापमान 460F (80C) है और औसत जुलाई उच्च तापमान 820F (280C) है। इसके विपरीत, मराकेश, जो आगे के अंतर्देशीय स्थित है, में औसतन जुलाई का उच्च तापमान 980F (370C) और जनवरी का औसत 430F (60C) है।

अस्थिर अतीत

मोरक्को का एक लंबा इतिहास है, जिसे दशकों से अटलांटिक महासागर और भूमध्य सागर दोनों पर अपने भौगोलिक स्थान से आकार दिया गया है। फोएनशियाई इस क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले पहले व्यक्ति थे, लेकिन रोमन, विसिगोथ्स, वंडल और बीजांटिन यूनानियों ने भी इसे नियंत्रित किया। 7वीं शताब्दी में अरब लोग इस क्षेत्र में आए, इस्लाम धर्म का भी प्रचार हुआ। इस लिहाज से प्रभुत्व की जोर आजमाइश में मोरक्को कभी दुनिया के संपर्क और बदलावों से एकदम कटा नहीं रहा। यही वजह है कि ब्रिटेन की तरह यहां कम से कम ऐसी किसी परंपरागत रूढ़ता का पता नहीं चलता है, जिस कारण यहां के समाज में स्वच्छता को लेकर लंबे समय तक किसी तरह की ग्रंथि रही हो। 15वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने मोरक्को के अटलांटिक तट को नियंत्रित किया। 1800 के दशक तक हालांकि कई अन्य यूरोपीय देशों की इस रणनीतिक स्थान की वजह से इस क्षेत्र में रुचि थी। फ्रांस इनमें से पहला था और 1904 में, यूनाइटेड

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट (ग्लास : 2013-14) के मुताबिक मोरक्को सरकार के तमाम मंत्रालय और विभागों ने जल प्रबंधन और स्वच्छता के क्षेत्र में न सिर्फ बेहतरीन प्रदर्शन किया है, बल्कि उन्होंने कई मामलों में लक्ष्य को समय से काफी पहले पूरा करने का रिकॉर्ड बनाया है


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स्वच्छता

स्वच्छता और जल प्रबंधन के क्षेत्र में मोरक्को सरकार का प्रदर्शन

शीर्ष संस्थाएं/ विभाग ऊर्जा, खनन, जल एवं पर्यावरण मंत्रालय स्वास्थ्य मंत्रालय आंतरिक सुधार मंत्रालय विद्युत एवं जल का राष्ट्रीय कार्यालय जलापूर्ति की स्वतंत्र इकाइयां

स्वच्छता में मिसाल है रबात

उपराष्ट्रपति हामिद दोवर्षअंसारीपहलेमोरक्कोतत्कालीन और ट्यूनीशिया की यात्रा

पर गए थे। अपनी इस यात्रा के दौरान अंसारी ने दोनों देशों के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की और आपसी हितों से संबंधी कई मुद्दों पर चर्चा की। गौरतलब है मोरक्को की राजधानी और अन्य शहरी क्षेत्रों में जल और सीवरेज प्रबंधन का काम जिस तरह से किया गया है, वह एक मिसाल है। इस मामले में यह देश

काफी हद तक सिंगापुर जैसा प्रतीत होता है। सिंगापुर ने भी जल संकट की भीषण चुनौती के बीच अपने यहां जलापूर्ति और सीवरेज का अत्यंत उन्नत प्रबंधन विकसित करने में सफलता पाई है। तभी अंसारी के साथ दौरे पर गए भारत सरकार के अधिकारियों ने भी माना कि स्वच्छता के मामले में भारत मोरक्को की राजधानी रबात से सीख सकता है।

स्वच्छता

स्वच्छता और संवैधानिक राजशाही

आज मोरक्को सरकार को एक संवैधानिक राजशाही माना जाता है। वहां एक द्विपक्षीय संसद भी है, जिसमें इसकी विधायी शाखा के लिए चैंबर ऑफ काउंसलर्स और चैंबर ऑफ रिप्रेजेंटेटिव शामिल हैं। मोरक्को में सरकार की न्यायिक शाखा सर्वोच्च न्यायालय से बनी है। मोरक्को स्थानीय प्रशासन के लिए 15 क्षेत्रों में बांटा गया है और इसकी एक

(स्रोत- विश्व स्वास्थ्य संगठन)

बकरियों के मल से कुबेरी कमाई मोरक्को में इन खास बकरियों का मल इतना कीमती होता है कि उससे वहां के किसान लाखों करोड़ों कमाते हैं

दर को तो आपने अक्सर आपने पेड़ों पर चढ़ते उतरते देखा होगा, लेकिन अफ्रीकी देश मोरक्को में बंदरों की तरह बकरियां भी पेड़ों पर चढ़कर फल खाती हुई नजर आ जाएंगी। मोरक्को की ये बकरियां पेड़ों पर चढ़ने में माहिर होती है। इन बकरियों के संबंध में दूसरी खास बात यह है कि इन बकरियों का मल इतना कीमती होता है कि उससे वहां

भी दबाव डाला। 2 मार्च, 1956 को देश ने अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की। 1969 में, मोरक्को ने विस्तार किया जब उसने दक्षिण में इफनी के स्पेनिश एन्क्लेव पर नियंत्रण लिया। हालांकि स्पेन अभी भी उत्तरी मोरक्को में दो तटीय इंक्लेव्स और मेलिला नियंत्रित क्षेत्र पर दावा करता है।

स्वास्थ्यकर सेवाओं का प्रसार

बं

किंगडम ने आधिकारिक तौर पर फ्रांस के प्रभाव के क्षेत्र के रूप में मोरक्को को मान्यता दी। 1906 में, अल्जेसिरास सम्मेलन ने फ्रांस और स्पेन के लिए मोरक्को में पुलिस के कर्तव्यों की स्थापना की और फिर 1912 में मोरक्को फ्रांस की संधि के साथ फ्रांस मोरक्को का संरक्षक बन गया। द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद मोरक्को ने आजादी के लिए दबाव डालना शुरू किया और 1944 में स्वतंत्रता के लिए आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए इस्टिक्कल या स्वतंत्रता पार्टी बनाई गई थी। 1953 में संयुक्त राज्य अमेरिका के राज्य विभाग के अनुसार, लोकप्रिय सुल्तान मोहम्मद वी फ्रांस द्वारा निर्वासित किया गया था। उन्हें मोहम्मद बेन आराफा ने प्रतिस्थापित कर दिया था, जिसके कारण मोरक्कन लोगों ने आजादी के लिए और

पेय जल  

के किसान लाखों करोड़ों कमाते हैं। आइए, आपको बताते हैं कि क्या खास होता है इनके मल में। दरअसल, साउथ वेस्ट मोरक्को और अल्जीरिया के कुछ इलाकों में आर्गन नामक एक पेड़ पाया जाता है, जिसके फल खाना ये बकरियां बहुत पसंद करती हैं। फल खाने के बाद ये बकरियां उसका गूदा तो पचा जाती हैं, परंतु बीज (गुठली) को मल के साथ बाहर निकाल देती हैं। किसान इन बकरियों के मल को इकठ्ठा कर उससे बीज निकाल लेते हैं और उसे भूनकर आर्गन का तेल निकालते हैं जो कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में बहुत महंगा बिकता है। इसके 1 लीटर की बोतल की कीमत लगभग 70 हजार रुपए है। कुछ इलाकों में किसान महिलाएं भी आर्गन के फलों को तोड़ने का काम करती हैं, लेकिन उससे पेड़ों को नुक्सान पहुंचने का खतरा रहता है। इसी कारण ज्यादातर किसान पेड़ों पर बकरियों को ही चढ़ने देते हैं।

विश्व बैंक के एक मूल्यांकन के मुताबिक मोरक्को में जहां वर्ष 2000 तक महज 69 प्रतिशत आबादी तक न्यूनतम स्वच्छता सेवाओं की पहुंच थी, वहीं यह दायरा वर्ष 2015 तक आते-आते 83 प्रतिशत हो गया कानूनी व्यवस्था है जो इस्लामी कानून के साथसाथ फ्रेंच और स्पेनिश पर आधारित है। हाल ही में मोरक्को ने अपनी आर्थिक नीतियों में कई बदलाव किए हैं, जिसने इसे अधिक स्थिर और बढ़ने की अनुमति तो दी ही है, इससे वह स्वास्थ्य और स्वच्छता के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ा है। इस कारण वहां औद्योगिक प्रगति भी हुई है। इस लिहाज से मोरक्को का स्वच्छता मॉडल जिस तरह का है, उसमें औद्योगिक विकास न तो आपवादिक है और न ही बाधा, बल्कि वह एक सहयोगी और समन्वयी भूमिका में है। मोरक्को में मुख्य उद्योग आज फॉस्फेट रॉक खनन और प्रसंस्करण, खाद्य प्रसंस्करण, चमड़े

के सामान, कपड़ा, निर्माण, ऊर्जा और पर्यटन के निर्माण हैं। चूंकि पर्यटन देश में एक प्रमुख उद्योग है, इसीलिए सेवाएं भी हैं। इसके अलावा कृषि मोरक्को की अर्थव्यवस्था में भी भूमिका निभाती है और इस क्षेत्र के मुख्य उत्पादों में जौ, गेहूं, नींबू, अंगूर, सब्जियां, जैतून, पशुधन और शराब शामिल हैं।

प्लास्टिक कचरे का संकट

समूची दुनिया के जंगल कटने से मौसम-चक्र एवं जल-चक्र में परिवर्तन और तापमान में बेतहाशा वृद्धि अब चिंता का विषय है। पिछले कुछ वर्षों में यह चिंता और अधिक गहराई है। पिछले दशक में 15 करोड़ हेक्टेयर से भी अधिक कटिबंधीय वनों


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स्वच्छता क्षेत्र

शहरी स्वच्छता ग्रामीण स्वच्छता स्कूलों में स्वच्छता स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में स्वच्छता शहरी क्षेत्रों में जलापूर्ति ग्रामीण क्षेत्रों में जलापूर्ति स्कूलों में पेयजल सफाई को लेकर जागरुकता का प्रसार सफाई को लेकर जागरुकता का प्रसार(स्कूलों में) स्वास्थ्य सेवाओं को क्षेत्र में सफाई को लेकर जागरुकता का प्रसार का सफाया हुआ है। पुनः वनीकरण के प्रयास निर्धारित लक्ष्य से बहुत कम हैं। अब तक केवल 3 करोड़ 70 लाख हेक्टेयर इलाके में ही वृक्षारोपण हो पाया है। लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया सर्वाधिक प्रभावित महाद्वीप हैं। जाहिर है कि प्लास्टिक कचरे का यह संकट विकास के नए दौर में मोरक्को के लिए भी एक नई मुसीबत बन गया है। पर समाधानकारी बात यह है कि मोरक्को इस संकट को लेकर आंख मूंदने के बजाय इससे निपटने के उपाय में जुटा। यह उपाय है प्लास्टिक के पेड़ों को कुदरती पेड़ों की तरह विकसित करना। स्पेन के एक इंजीनियर एंटोनियो इवानेज अल्वा ने कुदरती पेड़ों के संभावित विकल्प के रूप में प्लास्टिक के पेड़ों को विकसित किया है। पोलीयूरेथेन से बने ये कृत्रिम पेड़ रात में अपनी सतह पर जमा होने वाली ओस को सोखते हैं और दिन में धीरे-धीरे उसे हवा में छोड़ते हैं। इस प्रक्रिया से आसपास का तापमान कम हो जाता है। तापक्रम

योजना में शामिल   

04 - 10 जून 2018

कवरेज टारगेट प्रतिशत वर्ष 80 2020 100 100 लक्ष्य पूरा 100

लक्ष्य पूरा

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100 96 100 100 100

लक्ष्य पूरा 2016 लक्ष्य पूरा 2020 2020

100

2020

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(स्रोत- विश्व स्वास्थ्य संगठन)

में यही कमी वर्षा को प्रेरित करती है। प्लास्टिक के इन कृत्रिम पेड़ों को अगर रेगिस्तान में उगने वाले प्राकृतिक पौधों के साथ पर्यावरण सुधार के लिए इस्तेमाल में लाया जाए तो इसके अच्छे परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। इनसे वर्षा क्रम भी नियमित करने में मदद मिल सकती है, जिससे वनस्पतियों के पनपने में सहायता मिलती है और पर्यावरण में उत्तरोतर सुधार और प्राकृतिक हरियाली के विस्तार का क्रम चल पड़ता है। देखने में ताड़ के समान ये पेड़ पोलीयूरेथेन और फिनोलिकफोन के बने होते हैं। ये पेड़ जमीन से पानी या अन्य तत्व सोखने की क्षमता नहीं रखते। तने की संरचना पोलीयूरेथेन की कई परतों की होती है जिनका घनत्व अलगअलग होता है। ये पेड़ 70 डिग्री सेंटीग्रेड से 5 डिग्री सेंटीग्रेड तक के तापक्रम में प्रभावी ढंग से काम कर सकते हैं। प्लास्टिक के पेड़ों की विशेषता यह भी है कि उनके रख-रखाव पर कुछ खर्च नहीं

भौगोलिक तौर पर तमाम तरह की प्रतिकूलताओं को झेलने वाले मोरक्को ने विगत दो दशकों में जहां अपने को एक विकसित अर्थव्यवस्था के तौर पर दुनिया के सामने प्रस्तुत किया है, वहीं उसने स्वच्छता के क्षेत्र में आशातीत सफलता भी हासिल की है

मोरक्को में खास

मोरक्को में लगभग 33 मिलियन लोग रहते हैं

 यह देश 274,461 वर्ग मील (710,850 वर्ग किलोमीटर) में फैला है 

मोरक्कोवासी मजाक में अपने नल के पानी को सिदी रॉबिनेट (सर, या लॉर्ड, टैप) कहते हैं और यह देश के अधिकांश हिस्सों में पीने योग्य है

परंपरागत रूप से दिल के बजाए जिगर (लीवर ) को मोरक्को में प्यार का प्रतीक माना जाता है

 मोरक्को की आधिकारिक भाषा बर्बर और अरबी हैं

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आज यह देश अफ्रीका के सभी हिस्सों में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है

मोरक्को में ‘धन’ के लिए एक शब्द ‘वुसाख डी-डून्या’ यानी दुनिया की गंदगी है मोरक्को में आधिकारिक मुद्रा को दिरहम कहा जाता है

दूसरे मुल्कों के फिल्मकारों ने आकर यहां कई मशहूर फिल्मों को फिल्माया है। ऐसी ही एक फिल्म 2000 में आई ‘ग्लैडिएटर’ है

करना पड़ता। लीबिया, मोरक्को, अल्जीरिया आदि कई अफ्रीकी देश अपने रेगिस्तानों में हरियाली की वापसी के लिए इन कृत्रिम पेड़ों की सहायता लेने का प्रयास कर रहे हैं। प्लास्टिक का मानव कल्याण की दिशा में इस्तेमाल हो सके, ये तो सभी चाहते हैं, लेकिन सतर्कता इस बात में बरतनी है कि प्लास्टिक पर्यावरण विनाश का कारण न बने।

पानी की खेती

चौंक गए ना आप, लेकिन आपने सही ही सुना... पानी की खेती। दरअसल, इन दिनों दुनिया में कई ऐसी जगह भी हैं, जहां पानी की किल्लत के कारण लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसी समस्या से निपटने के लिए मोरक्को के रेगिस्तान में पानी बनाने के लिए हवाओं की नमी को एकत्रित करने वाली अनूठी तकनीक का प्रयोग हो रहा है।

बंजर पड़े टीलों पर फॉग कैचर यानी कोहरा पकड़ने वाले जाल लगाए गए हैं। इन्हीं जालों के जरिए न सिर्फ पीने का पानी मिल रहा है, बल्कि इस बीहड़ रेगिस्तान में भी पेड़-पौधे उगने लगे हैं। इस नई तकनीक से 5 गांवों के 400 लोगों को पीने का पानी मिल रहा है। ये एक ऐसी जगह है, जहां 12 महीने में से 6 महीने तक समुद्र में कोहरा रहता है। इन जाल की मदद से बेहद ही आसानी से कोहरे को पानी में बदल दिया जाता है। इन कणों की नमी को एक पाइप से जगहजगह बने छोटे कुओं में पहुंचा दिया जाता है। फिर इन्हें ठंडा किया जाता है, जिसके बाद नमी पानी में बदल जाती है। लेकिन छाने बिना इस पानी का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, आपको इसे अच्छी तरह छानना होगा, उसके बाद ही इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।


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स्वास्थ्य

गांवों में सैनेटरी नैपकिन के प्रति जागरुकता की कमी

पैडमैन के नाम से मशहूर कोयंबटूर के रहने वाले मुरुगनाथम का मानना है कि सैनिटरी स्वच्छता को लेकर अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है

खास बातें

देश के छह लाख गांवों में सैनेटरी जागरुकता की काफी कमी है अपने जैसा कई पैडमैन बनाना चाहते हैं मुरुगनाथम टाइम मैगजीन की 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल

यु

सुगंधा रावल

वा महिलाओं से जब उसने सैनेटरी पैड के बारे में सवाल पूछना शुरू किया तो कुछ ने उसे पागल सोचा और कुछ ने समाज को बिगाड़ने वाला। लेकिन अरुणाचलम मुरुगनाथम ने यह सब अपनी पत्नी के लिए सस्ते सैनेटरी नैपकिन बनाने की अपनी तलाश के लिए किया, जिसने आखिरकार विश्व भर में ग्रामीण महिलाओं के माहवारी स्वास्थ्य में क्रांतिकारी परिवर्तन ला खड़ा किया। तमिलनाडु के कोयंबटूर के रहने वाले मुरुगनाथम का कहना है कि अपने मिशन को पूरा करने के लिए अभी और लंबा सफर तय करना बाकी है ताकि माहवारी स्वच्छता सभी को किफायती और सुलभ रूप में हासिल हो सके। मुरुगनाथम ने ई-मेल के माध्यम से दिए साक्षात्कार में बताया कि यह सब मेरी पत्नी शांति के साथ शुरू हुआ और विश्व भर में फैल गया, जिसने एक क्रांति को जन्म दिया। मुझे खुशी है कि मेरा मिशन लोगों तक पहुंचा। उन्होंने कहा कि लोग वास्तव में बदल गए हैं। सैनेटरी स्वच्छता के बारे में अब अधिक लोग खुलकर बातें किया करते हैं। 20 साल पहले लोग इसके बारे में बात करने से भी डरते थे। आज वह भ्रम टूट गया है। लेकिन भारत केवल मेट्रो शहरों से नहीं बना। हमारे देश में छह

लाख गांव हैं और जागरुकता का स्तर बहुत कम है। सभी के लिए माहवारी स्वच्छता किफायती और सुलभ बनाने के हमारे मिशन को अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है। मुरुगनाथम का कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति पैडमैन बन सकता है और इसलिए मुझे लगता है कि ज्यादा से ज्यादा पैडमैन बनाना मेरी जिम्मेदारी है। मुरुगनाथम ने प्रसिद्धि और प्रशंसा पाने के लिए अपने इस सफर की शुरुआत नहीं की थी, बल्कि वह चाहते थे कि उनकी पत्नी को उस महीने के दौरान रूई, राख और कपड़े के टुकड़े जैसे गंदे तरीकों का न अपनाना पड़े। स्कूल छोड़ने वाले मुरुगनाथम ने करीब करीब अपना परिवार, अपना पैसा और समाज में इज्जत खो दी थी। लोगों ने उन्हें नजरअंदाज करना शुरू कर दिया, वह अपने पड़ोस के लोगों के तानों का विषय बन गए और कुछ ने सोचा कि वह रोग से ग्रस्त हैं। और तो और उनकी पत्नी ने भी किफायती सैनेटरी नैपकिन बनाने की उनकी सनक के कारण उन्हें छोड़

दिया था। अपने कांटों भरे सफर को याद करते हुए उन्होंने कहा कि अपनी पत्नी को स्वच्छ उत्पाद मुहैया कराने की मेरी लालसा ने मुझे अपना काम जारी रखने की हिम्मत दी। मैं एक इंजीनियरिंग फर्म के लिए भी काम करता था और मैं इस बात को जानता था कि मैं 9999 बार विफल हो सकता हूं। मैं जानता था कि अगर मैं ब्लेड का कोण बदल दूं तो कल मैं सफल हो सकता हूं। अपने इस प्रयास में सबसे मुश्किल काम के बारे में उन्होंने कहा कि सबसे मुश्किल काम लोगों के विचारों में बदलाव लाना था। कोई व्यक्ति गरीबी से नहीं मरता, बल्कि यह अज्ञानता के कारण होता है। दशकों पुराने भ्रम को तोड़ना और महिलाओं व लड़कियों को पैड का प्रयोग करते देखना एक मुश्किल काम था। वर्तमान में वह कोयंबटूर में महिलाओं को सैनेटरी पैड की आपूर्ति करने के लिए एक कंपनी चला रहे हैं और कई देशों में अपने कम लागत वाले स्वच्छता उत्पादों के लिए प्रौद्योगिकी

मुरुगनाथम ने प्रसिद्धि और प्रशंसा पाने के लिए इस सफर की शुरुआत नहीं की थी, बल्कि वह चाहते थे कि उनकी पत्नी को उस महीने के दौरान रूई, राख और कपड़े के टुकड़े जैसे गंदे तरीकों का न अपनाना पड़े

प्रदान कर रहे हैं। टाइम मैगजीन ने 2014 में उन्हें 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में स्थान दिया था। साथ ही 2016 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उनकी कहानी को अभिनेता अक्षय कुमार ने फिल्म 'पैडमैन' के माध्यम से एक अलग ढंग से पर्दे पर अपनी स्टार पॉवर के साथ पेश किया। फिल्म मे माहवारी स्वच्छता पर देश भर में खुली बहस छेड़ दी थी। उन्होंने कहा कि यह पहली दफा था जब कोई सुपरस्टार माहवारी स्वच्छता पर फिल्म बनाने के लिए आगे आया। उन्होंने इस कारण को माना और जिस तरीके से फिल्म बनाई गई वह सबने देखा भी। उन्होंने कहा कि अक्षय जी के स्टारडम ने जागरुकता बढ़ाने में मदद की और इस संवाद को अगले स्तर पर ले गए। उन्होंने मेरे मिशन में अधिक शक्ति जोड़ दी। मुरुगनाथम ने कहा कि मैं अधिक पैडमैन बनाना चाहता हूं जो समाज पर प्रभाव डाल सकें। फिल्म ने इस दिशा में प्रभावी रूप से योगदान दिया है और मैं इसके लिए ट्विंकल, अक्षय जी, बाल्की सर और पूरी टीम का धन्यवाद देना चाहूंगा। साधारण जिंदगी जीने में विश्वास रखने वाले मुरुगनाथम अपनी लालसा के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए नए व्यवसायिक हितों का प्रयोग कर रहे हैं। उनका कहना है कि "हमने जमीनी स्तर और डिजिटली महावारी स्वच्छता पर जागरुकता फैलाने के मकसद से स्टैंडबाय हर की पहल शुरू की है। हमने कुछ दिमाग वाले लोगों की मदद से स्कूली छात्रों और ग्रामीणों के बीच जागरुकता फैलाई है। मुरुगनाथम ने कहा कि हमने महिला पुलिसकर्मियों, स्कूली लड़कियों और ग्रामीण महिलाओं को भी पैड वितरित किए हैं। जागरुकता फैलाने के लिए हम विभिन्न अनूठी धारणाएं बना रहे हैं। पैडमैन चुनौती उसमें से एक है। महावारी स्वच्छता के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए हम एक बहुभाषी गाना भी निकालने वाले हैं।


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विशेष

04 - 10 जून 2018

विश्व महासागर दिवस (8 जून) पर विशेष

समुद्री प्रदूषण से निपटने की तैयारी

समुद्र को कचरा निस्तारण का स्रोत न बनाया जाए, बल्कि भूमि पर ही कूड़े-कचरे के निस्तारण का उचित प्रबंधन किया जाए, यह विवेक न सिर्फ हमारे समय की मांग है, बल्कि इस दिशा में प्रयास शुरू भी हो चुके हैं

सं

एसएसबी ब्यूरो

युक्त राष्ट्र ने हाल ही में समुद्र को गंदा करने वाले स्रोतों को खत्म करने के लिए हाल ही में एक अप्रत्याशित अभियान की शुरुआत की। बाली में इकोनॉमिस्ट वर्ल्ड ओशियन सम्मिट के दौरान शुरू किए गए #क्लीनसी अभियान में 10 देश शामिल हुए। ये देश हैं- बेल्जियम, कोस्टा रिका, फ्रांस, ग्रेनाडा, इंडोनेशिया, नार्वे, पनामा, सेंट लुसिया, सियेरा लियोन और उरुग्वे। इस अभियान

खास बातें

नार्वे, फ्रांस और कनाडा सहित 10 देश #क्लीनसी अभियान में शामिल समुद्र हमारी धरती के लगभग 71 प्रतिशत हिस्से पर है हर वर्ष 28 करोड़ टन प्लास्टिक का 20 फीसदी समुद्र में जाता है

के तहत सरकारों से प्लास्टिक को कम करने से संबंधित नीतियों को पारित करने की अपील की गई, प्लास्टिक पैकेजिंग को कम करने तथा प्लास्टिक उत्पादों को रिडिजाइन करने के लिए उद्योगों को चिन्हित करने तथा लोगों से प्लास्टिक का कम से कम इस्तेमाल करने व उन्हें फेंकने की आदत में बदलाव लाने की अपील की गई। अभियान की शुरुआत करते हुए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक एरिक सोल्हेम ने कहा, ‘प्लास्टिक प्रदूषण इंडोनेशिया के समुद्र तटों पर साफ नजर आता है, उत्तरी ध्रुव में समुद्र की सतह पर बैठ रहा है तथा अंतत: खाद्य श्रृंखला के माध्यम से हमारे भोजन तक पहुंच रहा है।’ दरअसल, कूड़े-कचरे का यदि उचित प्रबंधन न किया जाए तो वह प्रदूषण ही फैलाता है, इससे मृदा प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण आदि फैलते हैं। कूड़ा-कचरा अब केवल भूमि के लिए ही नहीं, समुद्रों के लिए भी एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है। आमतौर पर यह मान्यता है कि सागर बहुत विशाल है, इसमें कुछ भी डाल दिया जाए तो पर्यावरण पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा पर वास्तविकता इसके विपरीत है। समुद्र हमारी धरती के लगभग 71 प्रतिशत हिस्से पर है। समुद्र की उपस्थिति पर ही धरती का अस्तित्व निर्भर करता है, परंतु विगत कुछ वर्षों से धरती पर मौजूद अन्य जलाशयों की

जापान में 2011 में आए हुए सुनामी ने प्रशांत महासागर में कूड़े का एक सत्तर किलोमीटर लंबा टापू बना दिया भांति ही मनुष्यों ने सागरों को भी अपने अविवेकपूर्ण एवं लापरवाह आचरण का शिकार बनाना शुरू कर दिया है और चिंताजनक विषय यह है कि इस ओर हमारे पर्यावरणविदों का ध्यान भी न के बराबर है। समुद्र में पानी की तरह कचरा लगातार बह रहा है। लहरें उन्हें अपने साथ एक जगह से दूसरी जगह व एक महासागर से दूसरे महासागर तक ले जाती हैं। सागरों के लिए सबसे बड़ा पर्यावरणीय खतरा है- प्लास्टिक। बदलती जीवनशैली यूज एंड थ्रो की मनोवृत्ति और सस्ती प्लास्टिक की उपलब्धता ने प्लास्टिक उत्पादन और कचरा, दोनों ही बढ़ाए हैं और इस प्लास्टिक कचरे के निस्तारण की पर्याप्त व्यवस्था अभी सभी देशों के पास उपलब्ध नहीं है। पर्यावरण संस्था ग्रीन पीस के आकलन के अनुसार, हर साल लगभग 28 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है, जिसका 20 प्रतिशत हिस्सा सागर में चला जाता है। कितना प्लास्टिक हमारे सागर के तल में जमा हो चुका है, इसका अंदाजा भी किसी को नहीं है। उल्लेखनीय है कि ये कचरा सागर के ऊपर तैरते कचरे से अलग है। इस प्लास्टिक कचरे

की वजह से समुद्री खाद्य श्रृंखला पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। प्लास्टिक की वजह से न केवल समुद्री जीवजंतुओं और पेड़-पौधों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है, बल्कि पूरे समुद्री पारिस्थितिकीय तंत्र के बिखेरने का खतरा भी उत्पन्न हो गया है। पानी के पाउच, फास्ट फूड के पैकेट्स, प्लास्टिक की थैलियां आदि हर गली, मुहल्ले, रेलवे स्टेशनों और जंगल-पहाड़ से गुजरते रेल मार्गों और सड़क मार्गों आदि पर बिखरी पड़ी रहती हैं। समुद्र इनके लिए अंतिम शरणस्थली बनते हैं। प्लास्टिक को प्रकृति नष्ट नहीं कर सकती, कीड़े खा नहीं सकते, इसीलिए समूचे प्रकृति चक्र में यह अपना दुष्प्रभाव फैला रही है। ग्रीनपीस संस्था के आंकड़ो के अनुसार, प्रतिवर्ष लगभग दस लाख पक्षी और एक लाख स्तनधारी जानवर समुद्री कचरे के कारण काल का ग्रास बन जाते हैं। विश्व में प्रतिवर्ष लगभग 14 हजार करोड़ पाउंड कूड़ा-कचरा सागरों में फेंका जाता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के


04 - 10 जून 2018

भा

स्वचालित समुद्री प्रदूषण निगरानी प्रणाली शुरू

रत ने इस वर्ष अपनी खुद की स्वचालित समुद्री प्रदूषण निगरानी प्रणाली शुरू कर दिया है, जिससे समुद्र के प्रदूषण के स्तरों पर नजर बनाए रखने में मदद मिलेगी और समुद्र प्रणाली के बदलते स्वरूप की जानकारी मिलेगी। भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (आईएनसी-ओआईएस) के निदेशक एसएससी शेनोई के अनुसार यह प्रणाली हाल में ही काम करनी शुरू हुई है और परियोजना पर करीब 100 करोड़ रुपए की लागत आई है। आईएनसी-ओआईएस पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त निकाय है। शेनोई कहा कि नई प्रणाली से समुद्र से पानी के

अनुसार, मानवीय गतिविधियों के फलस्वरूप समुद्री कचरे का लगभग 80 प्रतिशत भाग जमीन पर आता है तथा शेष बीस प्रतिशत भाग सागरों में रहता है। इसका उदाहरण यह है कि जापान में 2011 में आए हुए सुनामी ने प्रशांत महासागर में कूड़े का एक सत्तर किलोमीटर लंबा टापू बना दिया। इसी तरह विश्व भर में समुद्री कूड़े से बने ऐसे अनेकों टापू हैं और यदि सागर में कूड़ा डालने की मौजूदा स्थितियां ऐसे ही बनी रहीं तो वह दिन दूर नहीं होगा, जब सागर में हर तरफ सिर्फ कूड़े के टापू ही नजर आएंगे। समुद्री कचरा, जमीनी कचरे की तरह एक जगह इकट्ठा न होकर पूरे सागर में फैल जाता है। इसीलिए यह पर्यावरण, समुद्री यातायात, आर्थिक और मानव स्वास्थ्य को बहुत नुकसान पहुंचाता है। हम अपने सीवरेज के केवल तीस प्रतिशत का ही निस्तारण कर पाते हैं। बाकी का सीवरेज वैसे का वैसा ही नदियों में डाल दिया जाता है, जो अंतत: समुद्र में जाता है। हमारे देश में आठ हजार किलोमीटर लंबी समुद्री तटरेखा पर एक सघन आबादी बसी हुई है, जिसमें मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गोवा, त्रिवेंद्रम और विशाखापट्टनम जैसे शहर शामिल हैं। आर्थिक रूप से विकसित इन शहरों में जनसंख्या का दबाव बढ़ रहा है और शहर भी अपने कूड़े को सागर में डाल रहे हैं। अल्पविकसित देशों के लिए कूड़ा निस्तारण हेतु सागर एक अच्छा विकल्प साबित होते हैं। इससे समस्या का तात्कालिक समाधान तो हो जाता है, लेकिन लंबे समय में यह व्यवहार पर्यावरण और

नमूने लेकर उनमें प्रदूषण के स्तर का अध्ययन करने का मौजूदा चलन खत्म हो जाएगा। उनके ही शब्दों में, ‘भारत के पास पहली बार ऐसी कोई प्रणाली काम कर रही है। अमेरिका में ऐसी प्रणाली है। यह समुद्र प्रदूषण से जुड़ी जानकारी हासिल करने के लिहाज से एक बेहद प्रभावशाली प्रणाली है। इस प्रणाली से जुटाए गए आंकड़े का इस्तेमाल हम पानी की गुणवत्ता को समझने के लिए करेंगे।’ उन्होंने बताया कि नई प्रणाली अचूक है और सरकार से मंजूरी मिलने के बाद अप्रैल से काम करने लगेगी। जाहिर है कि इससे समुद्र जल के प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की निगरानी में मदद मिलेगी। मानव जाति के लिए गंभीर खतरे का रूप ले सकता है। पिछले तीन दशकों से विश्व के बड़े देश भी अपना कचरा जहाजों में भर कर समुद्रों में डालते रहे हैं। 1998 में ऐसे ही कचरे के कारण नाइजीरिया भीषण त्रासदी से गुजरा, जिसके कोको बंदरगाह पर इटली की एक कंपनी 3800 टन खतरनाक कचरा छोड़ गई। कचरे में रेडियोएक्टिव पदार्थ होने से लोग मरने लगे। कोको बंदरगाह से बचे लोगों को स्थानांतरित करना पड़ा, लेकिन इस कचरे के कारण भारी संख्या में मरे समुद्री जीव-जंतुओं और मछलियों की भरपाई नहीं हो सकी। हाल ही में दुर्घटना का शिकार हुए मलेशिया के विमान का मलबा ढूंढते समय स्वच्छ समझे जाने वाले हिंद महासागर में जिस मात्रा में अत्यधिक प्रदूषक कूड़ा निकला है, इसमें संपूर्ण विश्व का ध्यान समुद्री प्रदूषण की विकराल होती समस्या की ओर आकर्षित किया है। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण भूमि संसाधनों पर निरंतर बढ़ते जा रहे दबाव से यह अब तय है कि आने वाले समय में हमें अपनी कई आवश्यकताओं के लिए सागरों की शरण लेनी पड़ेगी। ऐसे में यदि हमारे सागरों में कचरे की मात्रा बढ़ेगी तो इससे विश्व के लिए एक बड़ी समस्या उठ खड़ी होगी। हम जो भी देते हैं, वही हमें मिलता है। यदि हम सागर को कचरा देंगे, तो वो भी जब हमें बादलों के रूप में जल देंगे तो वह प्रदूषित होगा और हमारे लिए नुकसानदायक होगा। विशालता के कारण

बै

विशेष

ग्रेट प्लास्टिक पिक अप अभियान

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प्लास्टिक कचरे के खिलाफ ब्रिटेन में बड़ा अभियान

ग, दस्तानों, कचरा उठाने की छड़ियों तथा एक अटल उद्देश्य की भावना से लैस लगभग 12000 पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने मई की शुरुआत में एक वीकेंड के दौरान राष्ट्रीय स्तर के ग्रेट प्लास्टिक पिक अप अभियान के अंतर्गत ब्रिटेन की गलियों, हरित क्षेत्रों तथा समुद्र तटों की सफाई की। इन स्वयंसेवियों में युवा स्काउट, बुक क्लब के सदस्य, मार्शल आर्ट के समर्थक, राजनेता और सेलिब्रिटी शामिल थे। सबने गंदगी साफ करने तथा जागरुकता फैलाने के लिए इस अभियान में अपना समय दिया। यह अभियान ‘डेली मेल’ समाचार पत्र तथा कीप ब्रिटेन टाइडी नामक पर्यावरण चैरिटी द्वारा आयोजित एक तीन दिवसीय कैंपेन का हिस्सा था। प्रधानमंत्री थेरेसा ने मेडेनहेड के एक स्कूल में हिस्सा लिया और ‘हम सब के लिए एक बेहतर पर्यावरण’ का निर्माण करने के लिए स्वयंसेवियों की प्रशंसा की। उनकी सरकार पहले ही वर्ष 2042 तक हर ऐसे प्लास्टिक कचरे को हटाने का संकल्प ले चुकी है, जिसके उपयोग से परहेज किया जा सकता है। डेविड कात्ज ‘द प्लास्टिक बैंक’ के संस्थापक और सीईओ हैं, जो प्लास्टिक कचरे को मुद्रा में बदलता है, जो दुनिया के कुछ सबसे गरीब लोगों के लिए मददगार है। वह इस समस्या की तुलना ऊपर तक पानी से भरे हुए एक सिंक से करते हैं। जब तक आप नल को बंद नहीं करते, फर्श पोंछने का कोई औचित्य नहीं है। स्पष्ट तौर पर यह देखने को मिल रहा है कि ग्रेट प्लास्टिक पिक अप जैसे सफाई अभियान निश्चित ही परिवर्तन लाते हैं और यह केवल अस्थायी नहीं होता है। आप मुंबई के वर्सोवा बीच का ही उदाहरण ले सकते हैं। वर्ष 2015 में वकील अफरोज शाह एक अपार्टमेंट में रहने लगे जहां से समुद्र तट का नजारा दिखता था। प्लास्टिक प्रदूषण के स्तर को महसूस करने के बाद उन्होंने कुछ करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने एक दोस्त के साथ कचरा उठाने की शुरुआत की और तब से लेकर, वीकेंड में होने वाले उनके सफाई अभियानों ने ढेर सारे स्वयंसेवियों का ध्यान आकर्षित किया है जिन्होंने लगभग 13 मिलियन किग्रा कचरे को हटाया है। संयुक्त राष्ट्र ने इसे ‘विश्व का सबसे बड़ा समुद्र तट सफाई प्रोजेक्ट’ कहा है। इतनी सारी कमर-तोड़ मेहनत और गंदगी सभी सागरों की सफाई संभव नहीं है। इसीलिए यह आवश्यक है कि समुद्रों व सागरों को कचरा निस्तारण का स्रोत न बनाया जाए, बल्कि भूमि पर

से भरे काम के बाद खुशखबरी भी आई, जब स्वयंसेवियों को लगभग 80 ओलिव राइडले कछुओं के बच्चे समुद्र की ओर तरफ जाते दिखे। इन कछुओं को दशकों से समुद्र तट पर नहीं देखा गया था। हिंसक जानवरों से रक्षा करने के लिए स्वयंसेवी घोसलों के पास सोए और उन्होंने सुनिश्चित किया कि वे नवजात कछुए सही सलामत समुद्र में पहुंच जाएं। समुद्र तट सफाई अभियान जागरुकता फैलाने का कार्य भी करते हैं। जब स्वयंसेवी देखते हैं कि कितना प्लास्टिक हमारे तटों पर जमा हो जाता है तो उन्हें अक्सर प्रेरणा मिलती है कि वे एक बार उपयोग होने वाले प्लास्टिक पर अपनी निर्भरता घटाएं और महत्वपूर्ण रूप से, यह बात दूसरों तक भी पहुंचाएं। वकील तथा इंडोनेशिया प्लास्टिक बैग डाइट मूवमेंट नाम के गैर लाभकारी संगठन की निदेशक तीजा माफिरा कहती हैं कि समुद्र तट सफाई अभियानों से स्वयंसेवियों को समस्या की गंभीरता के बारे में स्पष्ट तौर पर पता चलता है। ‘जब हम समुद्र तट या नदी की सफाई करते हैं तब हम सुनिश्चित करते हैं कि कचरे को रखने के लिए स्वयंसेवियों के पास नॉनप्लास्टिक थैला हो और हम उन्हें लंच केले के पत्तों में लपेटकर देते हैं और उन्हें कांच का ग्लास लाने के लिए कहते हैं। इस तरह हम उन्हें दिखाते हैं कि प्लास्टिक के विकल्प मौजूद हैं,’ वह आगे कहती हैं। इंडोनेशिया, जो चीन के बाद विश्व में समुद्री प्रदूषण का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है, संयुक्त राष्ट्र की स्वच्छ समुद्र कैंपेन से जुड़ चुका है और उसने 2025 तक समुद्री प्लास्टिक कचरे को 70 प्रतिशत तक घटाने का संकल्प लिया है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ, प्लास्टिक फ्री जुलाई और लेट्स डू इट वर्ल्ड जैसे अभियान और समूह दुनिया भर के लोगों से आगे आने और अपनी नदियों, समुद्र तटों, जंगलों और कस्बों को साफ कर इस लड़ाई में शामिल होने का आह्वान कर रहे हैं। ही कूड़े-कचरे के निस्तारण का उचित प्रबंधन किया जाए और इस बारे में अधिक से अधिक जागरुकता फैलाई जाए।


16 खुला मंच

04 - 10 जून 2018

धरती हर मनुष्य की जरूरत को पूरा करती है, लेकिन हर व्यक्ति के लालच को नहीं

अभिमत

सरकार ने आर्थिक सर्वे में 7.7 फीसदी ग्रोथ का अनुमान लगाया था और सरकार का अनुमान पूरी तरह से सही साबित हुआ

ला

ल किले से देश की स्वच्छता की बात करने से लेकर आर्थिक शुचिता के चार वर्ष पूरे हो चुके हैं। इन चार वर्षों में एक तरफ देश की स्वच्छता का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ आर्थिक शुचिता और स्वच्छता के कारण देश के विकास का ग्राफ भी रफ्तार पकड़ चुका है। नोटबंदी से शुरू हुई आर्थिक स्वच्छता के अभियान को करीब अट्ठारह महीने बीत चुके हैं। इस दौरान केंद्र सरकार ने जो आर्थिक सुधार किए और आर्थिक माहौल को बदलने की जो कोशिशें की है, उसका असर दिखाई देने लगा है। आर्थिक मोर्चे पर बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए वित्त वर्ष 2017-18 की चौथी तिमाही यानी जनवरी-मार्च तिमाही में जीडीपी दर 7.7 प्रतिशत दर्ज की गई है। साल की अन्य तीन तिमाहियों के मुकाबले जनवरी से मार्च क्वॉर्टर में यह सबसे अच्छा स्तर है। इससे पहले साल की पहली, दूसरी और तीसरी तिमाही में जीडीपी की दर क्रमश: 5.6% , 6.3% और 7% थी। इस तरह वित्त वर्ष 2017-18 में देश की अर्थव्यवस्था की विकास दर 6.7 पर्सेंट रही। मोदी सरकार की ओर से जारी किए गए आंकड़ो के मुताबिक वित्त वर्ष 2016-17 की जुलाई-सितंबर तिमाही के बाद यह सबसे अच्छी ग्रोथ रेट है। सरकार ने इस तिमाही के बाद ही नवंबर के महीने में देश में नोटबंदी का एेलान किया था और 500 व 1000 रुपए के पुराने नोटों के प्रचलन को खत्म करने का फैसला लिया था। तब से इकॉनमी की ग्रोथ काफी गिर गई थी। इसके लिए नोटबंदी और जीएसटी को जिम्मेदार ठहराया भी गया। रॉयटर्स के पोल में अर्थशास्त्रियों ने 7.3 पर्सेंट की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान लगाया था, लेकिन नतीजे उससे ज्यादा आए। सरकार ने आर्थिक सर्वे में 7.7 फीसदी ग्रोथ का अनुमान लगाया था और सरकार का अनुमान पूरी तरह से सही साबित हुआ। इस तिमाही नतीजे बताते हैं कि बीते 18 महीनों में नोटबंदी और जीएसटी के बाद से कुछ धीमी चल रही इकॉनमी की रफ्तार अब दोबारा लय में है।

टॉवर फोनः +91-120-2970819

(उत्तर प्रदेश)

लेखक वरिष्ठ टीवी पत्रकार और स्तंभकार हैं

अभी भी वक्त है कुदरती पानी को सहेजें

- महात्मा गांधी

आर्थिक शुचिता की राह पर देश

ऋतुपर्ण दवे

जिस तत्परता से 'स्वच्छ भारत मिशन' के लिए खुले में शौच प्रतिबंधित है, उसी तर्ज पर वर्षा जल संग्रहण को जरूरी कर इसके बड़े और चौंकाने वाले नतीजे हासिल किए जा सकते हैं। जरूरत इच्छा शक्ति और ईमानदार प्रयासों की है

पा

नी को लेकर विश्वयुद्ध की बातें अब नई नहीं हैं। सुनने में जरूर अटपटी लगती हैं, लेकिन हकीकत और हालात का इशारा कुछ यही है। इस बावत विश्व बैंक की उस रिपोर्ट को नजरअंदाज करना बेमानी होगा जो कहती है, 'जलवायु परिवर्तन और बेतहाशा पानी के दोहन की मौजूदा आदत से, बहुत जल्द देशभर के 60 फीसदी वर्तमान जलस्रोत, सूख जाएंगे। खेती तो दूर की कौड़ी रही, प्यास बुझाने को पानी होना, नसीब की बात होगी।' उधर, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट भी डराती है। उसने पानी संकट को दस अहम खतरों में ऊपर रखा है। दसवीं 'ग्लोबल रिस्क' रिपोर्ट में यह खास है। पहली बार हुआ है, जब जलसंकट को बड़ा और संवेदनशील मुद्दा माना गया, वरना दशकभर पहले तक वित्तीय चिंताएं, देशों की तरक्की, ग्लोबल बिजनेस, स्टॉक मार्केट का छिन-पल बदलाव, तेल बाजार का उतार-चढ़ाव अहम होते थे। वर्ष 2050 के लिए अभी सोचना होगा, जब पीने के पानी के लिए करीब पांच अरब लोग जूझ रहे होंगे। यूनेस्को की एक हालिया जल रिपोर्ट कहती है कि अकेले भारत में 40 फीसदी जल संसाधन कम हो जाएंगे। समझ सकते हैं, पानी की किस कदर किल्लत होगी। उत्तर भारत का हाल तो अभी बेहाल है, जो आगे और कितना बदतर होगा? पंजाब, हरियाणा, दिल्ली में भूजल बेहद कम है, जबकि दक्षिण और मध्य भारत में अगले 30-32 सालों में पानी की गुणवत्ता और भी ज्यादा खराब होगी। प्रदूषित पानी की समस्या सतही भंडारों के अलावा भूजल में भी है, क्योंकि इसमें धातु का दूषित पदार्थ घुल जाता है,

जिसकी वजह जमीन पर खराब पदार्थों की डंपिंग है। कहने को धरती का तीन चौथाई हिस्सा पानी से जरूर घिरा है, लेकिन साफ पानी और गिरता भूजल स्तर दुनिया की सबसे बड़ी चिंता का सबब बन चुका है। पानी की जरूरत और उसे साफ रखने के महत्व को इन हालातों के बावजूद भी नहीं समझेंगे तो कब चेतेंगे? कुछ दिनों पहले मप्र के उमरिया के सरसवाही की एक घटना ने झकझोर कर रख दिया। मोहल्ले के कुएं सूख गए थे, इसीलिए एक कुएं में सुरंग बनाकर पास के नाले से जोड़कर पानी लाने की कोशिश के दौरान मिट्टी धसक गई और दो सगे व एक चचेरे भाई की मौत हो गई। इसी तरह अनूपपुर के चोंडी गांव में दो साल पहले 23 अप्रैल को हुई घटना बेहद झकझोरने वाली है। 14 साल का खेमचंद प्यास बुझाने, रोज की तरह घर के सूखे कुएं की तलहटी में, चुल्लू भर पानी की खातिर उतरा तभी अचानक ऊपर से मिट्टी भरभरा गई। वो प्यासा ही कुएं में जिंदा दफन हो गया। 32 घंटों की कवायद के बाद शव निकल पाया। महाराष्ट्र के औरंगाबाद की हालिया घटना भी चिंताजनक

बरसात आने वाली है, क्यों न इसी साल घर पर ही सहज, सुलभ आसान-सा रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाने की मुहिम चले, जिससे जल बैंक में बढ़ोत्तरी हो और केवल दो-तीन महीनों की कोशिशों से पूरे साल बेहिसाब साफ, शुद्ध और प्राकृतिक पानी मिल सके


04 - 10 जून 2018 है, जिसमें 17 साल के नौजवान और 65 साल के बुजुर्ग की मौत हो गई। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश बिहार, ओडिशा में जहां-तहां पानी की जबरदस्त किल्लत है। गुजरात के सरदार सरोवर बांध को बीते मानसून में मप्र में कम हुई बारिश के चलते केवल 45 फीसदी पानी मिला। वहां उद्योगों को पानी देना मुश्किल हो रहा है। लंदन से आई एक रिपोर्ट जो पूर्व चेतावनी उपग्रह प्रणाली के अध्ययन पर आधारित है, वह काफी डराने वाली है, जो बताती है भारत एक बड़े जलसंकट की ओर बढ़ रहा है। भारत, मोरक्को, इराक और स्पेन में सिकुड़ते जलाशयों से नलों में पानी गायब हो सकता है! दुनिया के 500,000 बांधों के लिए पूर्व चेतावनी उपग्रह सिस्टम बनाने वाले डेवलपर्स के अनुसार, यहां पानी संकट 'डे जीरो' तक पहुंच जाएगा, जिसका मतलब नलों से पानी एकदम गायब हो सकता है! जान हथेली पर रखकर पानी जुटाना गरीबों की नियति बन चुकी है! पैसे वाले तो अपना इंतजाम आसानी से कर लेते हैं। लेकिन गरीबों की स्थिति के लिए उपरोक्त घटनाएं सबूत हैं। इससे अमीर-गरीब के बीच की खाई और दुश्मनी भी बढ़ रही है। हर साल लगभग 7-8 महीने पानी की कमीं से कई राज्य जूझते हैं। जनसंख्या बढ़ने के साथ कलकारखानों, उद्योगों और पशुपालन को मिले बढ़ावे के बीच जल संरक्षण की ओर ध्यान नहीं गया। नतीजन, भूजल स्तर गिरता गया। अब समस्या पानी ही नहीं, बल्कि शुद्ध पानी भी है। दुनिया में करीब पौने 2 अरब लोगों को साफ पानी नहीं मिल रहा। सोचिए, पानी को हम किसी कल कारखाने में नहीं बना सकते। कुदरती पानी का ही जतन करना होगा। इसके लिए चेतना ही होगा। चीन, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया, इजरायल सहित कई देशों में 'रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम' पर काफी काम हो रहा है। सिंगापुर में तो यही पानी का खास जरिया बन गया है। भारत में इस बावत जागरुकता की जरूरत है। गांव, बस्ती, मुहल्ले, घर-घर और खेतों में भूजल स्तर बढ़ाने की वैज्ञानिक विधि से रू-ब-रू कराने की आसान कवायद शुरू हो। भूजल स्तर बढ़ाने खातिर 'रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम' को जरूरी किया जाए और घर-घर और खेत-खेत पानी बैंक बनाने की ईमानदार कोशिश हो। लोगों को कम से कम इतना तो समझाया जाए कि और कुछ नहीं तो, एक-दो बारिश के बाद घर की छत को अच्छी तरह साफ कर उससे निकलने वाले पानी को चंद फुट पाइप के जरिए सीधे कुएं में भरकर उसे रिचार्ज करना बेहद आसान है और मुफ्त में बहुत बड़ा फायदा है। जिस तत्परता से 'स्वच्छ भारत मिशन' के लिए खुले में शौच प्रतिबंधित है, उसी तर्ज पर वर्षा जल संग्रहण को जरूरी कर इसके बड़े और चौंकाने वाले नतीजे हासिल किए जा सकते हैं। जरूरत सरकारी इच्छा शक्ति और ईमानदार प्रयासों की है। बरसात आने वाली है, क्यों न इसी साल घर पर ही सहज, सुलभ आसान-सा रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाने की मुहिम चले, जिससे जल बैंक में बढ़ोत्तरी हो और केवल दो-तीन महीनों की कोशिशों से पूरे साल बेहिसाब साफ, शुद्ध और प्राकृतिक पानी मिल सके

ल​ीक से परे

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खुला मंच

ओशो

महान दार्शनिक और विचारक

समृद्धि आनंद दे ही नहीं सकती!

आनंद न हो, आलोक न हो तो निश्चय ही जीवन नाम-मात्र का ही रह जाता है

मैं

आश्चर्य में हूं कि इतनी आत्मविपन्नता, इतनी अर्थहीनता और इतनी घनी ऊब के बावजूद भी हम कैसे जी रहे हैं! मैं मनुष्य की आत्मा को खोजता हूं, तो केवल अंधकार ही हाथ आता है और मनुष्य के जीवन में झांकता हूं, तो सिवाय मृत्यु के और कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता है। जीवन है, लेकिन जीने का भाव नहीं है। जीवन है, लेकिन एक बोझ की भांति। सौंदर्य, समृद्धि और शांति नहीं है। आनंद न हो, आलोक न हो तो निश्चय ही जीवन नाम-मात्र का ही रह जाता है। क्या हम जीवन को जीना ही तो नहीं भूल गए हैं? पशु, पक्षी और पौधे भी हमसे ज्यादा सघनता, समृद्धि और संगीत में जीते हुए मालूम होते हैं। लेकिन शायद कोई कहे कि मनुष्य की समृद्धि तो दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही है- फिर भी आप यह क्या कह रहे हैं? उत्तर में मैं कहूंगा‘परमात्मा मनुष्य को उसकी तथाकथित समृद्धि से बचाए। वह समृद्धि नहीं, बस केवल दरिद्रता और दीनता को भुलाने का उपाय है। यह समृद्धि, शक्ति और प्राप्ति सब स्वयं से पलायन है।’ समृद्धि के वस्त्रों को उतारकर, जब मनुष्य को देखता हूं तो उसकी आंतरिक दरिद्रता को देखकर हृदय बहुत विषाद से भर जाता है। क्या इस दरिद्रता को छिपाने और विस्मरण करने के लिए ही हम समृद्धि को नहीं ओढ़े हुए हैं। जो थोड़ासा भी विचार करेगा, वह सहज ही इस सत्य से परिचित हो जाएगा। आत्महीनता से पीड़ित व्यक्ति पद को खोजते हैं और आत्मदरिद्रता से ग्रसित धन

‘परमात्मा मनुष्य को उसकी तथाकथित समृद्धि से बचाए। वह समृद्धि नहीं, बस केवल दरिद्रता और दीनता को भुलाने का उपाय है। यह समृद्धि, शक्ति और प्राप्ति सब स्वयं से पलायन है’

और संपदा को। भीतर जो है, उससे पलायन करने को उसके विपरीत ही हम बाहर स्वयं को निर्मित करने लगते हैं। अहंकारी विनीत बन जाते हैं और अतिकामी ब्रह्मचर्य और साधुता में स्वयं को भुला लेना चाहते हैं। मनुष्य जो भीतर होता है, साधारणतः ठीक उससे विपरीत ही वह बाहर स्वयं को प्रकट करता है। इसीलिए ही दरिद्र संपदा को खोजते हैं और जो संपदाशाली होते हैं, वे दरिद्रता को वरण कर लेते हैं! क्या आपने दरिद्रों को सम्राट और सम्राटों को

दरिद्र होते नहीं देखा है। इसीलिए यह न कहें कि मनुष्य की समृद्धि बढ़ गई। वस्तुओं की समृद्धि तो बढ़ी है पर मनुष्य की समृद्धि नहीं। वह और भी दरिद्र हो गया है। स्मरण रहे कि बाह्य समृद्धि को बढ़ाने की पागल दौड़ में वह निरंतर और भी दरिद्र ही होता जाएगा। क्योंकि इस दौड़ में वह यह भूलता ही जा रहा है कि एक और प्रकार की समृद्धि भी है, जो बाहर नहीं, स्वयं के भीतर ही उपलब्ध की जाती है। वस्तुओं का बढ़ता जाना ही एकमात्र विकास नहीं है। एक और विकास भी है जिसमें स्वयं मनुष्य भी बढ़ता है। निश्चय ही वही विकास वास्तविक है, जिसमें मानवीय चेतना ऊर्ध्वगमन करती है और प्रगाढ़ता, सौंदर्य, संगीत और सत्य को उपलब्ध होती है। मैं आप से ही पूछना चाहता हूं कि क्या आप वस्तुओं के संग्रह से ही संतुष्ट होना चाहते हैं या कि चेतना के विकास की भी प्यास आप के भीतर है जो मात्र वस्तुओं में ही संतुष्टि सोचता है वह अंततः असंतोष के और कुछ भी नहीं पाता है। क्योंकि वस्तुएं तो केवल सुविधा ही दे सकती हैं और निश्चय ही सुविधा और संतोष में बहुत भेद है। सुविधा, कष्ट का अभाव है, तो संतोष आनंद की उपलब्धि। आपका हृदय क्या चाहता है? आपके प्राणों की प्यास क्या है आपके श्वासों की तलाश क्या है? क्या कभी आपने अपने आपसे ये प्रश्न पूछे हैं यदि नहीं, तो मुझे पूछने दें। यदि आप मुझसे पूछें तो मैं कहूंगा- ‘उसे पाना चाहता हूं जिसे पाकर फिर कुछ और पाने को नहीं रह जाता।’ क्या मेरा ही उत्तर आपकी अंतरात्माओं में भी नहीं उठता है।

सदस्य बनें 06

व्यक्तितव 20

इतिहास

बहादुरी और दृढ़िा का अमर ‘प्रिाप’

अमेररका का गांधी

पुसिक अंश

सवच्छ भारि

24

कही-अनकही

29

रईस घराने की पहली हीरोइन

harat.com

sulabhswachhb

मई - 03 जून 2018 वर्ष-2 | अंक-24 | 28

/2016/71597 आरएनआई नंबर-DELHIN

एसएसबी ब्यूरो

कर देने वाले सीने और उमस से तर-बतर द करेगा। पर मौसम को भला कौन पसं वजह से गममी हर वर्ष अगर ककसी एक ज्ादा होता है, तो वह के मौसम का इंतजार सबसे लेते ही भला ककसे वजह है आम। आम का नाम लाजवाब सवाद अपने होगा। आता नहीं मुंह में पानी फलों का राजा कहा की वजह से ही आम को तरह आम को फलों जाता है। कदलचसप है कक कजस तरह दशहरी आम का राजा कहा जाता है, उसी जाता है। आम की इस को आमों का राजा माना के कलए ककसी ने हैकस्त को सही साकबत करने में गनदुम के ‘कफरदौस कक है कलखा ही माकूल आदम कभी जन्नत से एवज में आम जो खाते, कनकाले नहीं जाते'। आम के सवाद का में भर न्ा क दु सकहत भारत है, इसका जवाब जादू क्ों कसर चढ़ कर बोलता । दुकन्ा भर में जाता है कुछ आंकडो से खुद कमल है उसमें 54 प्रकतशत आम का जो उतपादन होता डी हैं। इतना ही नहीं पूरे आम की ककसमें भारत से जु भारत में पैदा होता है। कवश्व का 63 प्रकतशत आम समुद्रतल से 1000 भारत में कसफ्फ मरूस्थल और को छोडकर पूरे देश मीटर की ऊंचाइ्इ वाले इलाकों है। कवश्व में आम की में आम की पैदावार होती पाइ्इ जाती हैं, कजसमें 1365 से भी ज्ादा ककसमें में ही पाइ्इ जाती हैं। से लगभग 1000 ककसमें भारत कमकल्न हेकटे्र जमीन भारत में कम से कम 1.23

आम का खास सफर

राजा माना दशहरी आम को आमों का तलखा है कहा जािा है, उसी िरह ही आम को फलों का राजा के तलए तकसी ने माकूल े नहीं जािे’ तस्यि को सही सातबि करने जािा है। आम की इस है आदम कभी जन्नि से तनकाल एवज में आम जो खािे, तक ‘तफरदौस में गनदुम के

खास बािें

तकसमों दुतन्या में मौजूद आम की हैं में 54 प्रतिशि आम भारिी्य हेक्े्यर भारि में 1.23 तमतल्यन होिी है जमीन पर आम की खेिी पूरे तवश्व का 63 प्रतिशि भारि में पैदा होिा है

आम

पर आम की खेती होती है। वमी भारत में असम, आम की जनमभूकम मूलतः पू जाती है। भारत से ही बांगलादेश व म्ांमार मानी चौ्थी-पांचवी सदी में आम पूरी दुकन्ा में फैला। आम मलेकश्ा और बौद्ध धम्ष प्रचारकों के सा्थ

चा। पारसी लोग 10वीं पूवमी एकश्ा के देशों तक पहं ले गए। पुत्षगाली 16वीं सदी में इसे पूवमी अफ्ीका वहीं से ्ह वेसटइंडीज सदी में इसे ब्ाजील ले गए। ररका में ्ह 1861 में और मैककसको पहंचा। अमे ग्ा। उगा्ा बार पहली

आम का इतिहास

ज्ादा की ऐकतहाकसक लगभग 4000 साल से में समेटे आम भारती् कवरासत को अपने बागों है। ्ह भारती् उपमहाद्ीप का प्रमुख फल अकभन्न अंग है। अपने संसककृकत व धम्ष का भी एक

खबरों के रंग सबसे अलग अखबारों की दुनिया में घूमने पर खबरों का समंदर तो मिलता है, लेकिन उसमें बेहतर जिंदगी जीने के लिए उम्मीद की बूंदें सिर्फ हमें ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ के रूप में मिला है। जिंदगी की मूलभूत समस्याओं को उठाने के साथ-साथ उनसे निपटने के आसान तरीके सुलभ के हर पन्ने पर होते हैं। खबरों के सभी रंग में सुलभ की खबरों का रंग शायद इसीलिए अलग है, क्योंकि यह हम सब से सीधे तौर पर जुड़ी होती हैं। अबकी बार का फोटो फीचर मुझे बेहद पसंद आया। पर्यावरण को बेहद संजीदगी के साथ दिखाती तस्वीरों ने दिल को छू लिया। स्वप्निल कुमार रतलाम, मध्य प्रदेश

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फोटो फीचर

04 - 10 जून 2018

चिर जीवन की प्रकृति

पृथ्वी एकमात्र ऐसा ग्रह है, जहां जीवन पलता है और हर जीवन को प्रकृति का समर्थन मिलता है। दो बड़े ध्रुवों में बंटी पृथ्वी की विशेषता जलवायु है। हवा, पानी और मौसम के साथ पृथ्वी का और इस पर रहने वाले समस्त जीवों का जीवन पलता है

फोटोः जयराम


04 - 10 जून 2018

प्राकृतिक संसाधनों के भरपूर दोहन ने अक्षय प्राकृतिक संपदाओं को बड़ी क्षति पहुंचाई है। प्राकृतिक आपदाओं के रूप में इसका नतीजा सामने है। कलकल बहने वाला निर्मल जल प्रदूषित हो चुका है। विष बुझी हवा सांसों में समा रही है। जीवन संकट में है। इसीलिए जरूरत प्रकृति की रक्षा का है। यह जरूरत किसी व्यक्ति, समाज या देश की नहीं, बल्कि वैश्विक है

फोटो फीचर

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व्यक्तित्व

04 - 10 जून 2018

अन्याय और असमानता के खिलाफ निर्भीक आवाज डेसमंड टूटू ने रंगभेद सहित हर तरह के अन्याय और भेदभाव के ​िखलाफ आवाज उठाकर विश्वव्यापी प्रसिद्धि प्राप्त की। उनकी यह प्रसिद्धि महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला के बाद सबसे बड़ी मानी जाती है

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एसएसबी ब्यूरो

रत सरकार ने महात्मा गांधी की 125वीं जयंती के अवसर पर 1995 में अंतरराष्ट्रीय गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने की शुरुआत की थी। यह पुरस्कार 2005 में डेसमंड टूटू को दिया गया। 1984 में नोबेल पुरस्कार पा चुके टूटू के लिए यह एक और अवसर था, जब भारत में शांति और अहिंसा का हिमायत में लगातार खड़े रहने वाले आर्चबिशप डेसमंड टूटू के बारे में गंभीर सिंहावलोकन किया गया और मानवता के लिए उनकी सेवाओं की सराहना हुई। दक्षिण अफ्रीकी पादरी और शांति कार्यकर्ता टूटू दक्षिण अफ्रीका में एग्लिंकन चर्च का नेतृत्व करने वाले प्रथम अश्वेत व्यक्ति हैं। उन्होंने रंगभेद के विरोधी के रूप में विश्वव्यापी प्रसिद्धि प्राप्त की, उनकी यह प्रसिद्धि महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला के बाद सबसे बड़ी मानी जाती है।

खास बातें

पादरी होने के बावजूद धर्म प्रचारक की छवि नहीं रही नेल्सन मंडेला के जेल में रहने के दौरान आंदोलन के प्रमुख नेता रहे मलाला को ख्याति दिलाने वालों में टूटू की बड़ी भूमिका

दक्षिण अफ्रीकी पादरी और शांति कार्यकर्ता टूटू दक्षिण अफ्रीका में एग्लिंकन चर्च का नेतृत्व करने वाले प्रथम अश्वेत व्यक्ति हैं उन्होंने अपने देश और विदेशों में अपने लेखों और व्याख्यानों के माध्यम से रंगभेद को मानने वाले दलों को इसके विरुद्ध एकजुट करने के लिए निरंतर प्रयास किया।

गांधीवादी मूल्य

अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय में मुकदमा चलाया जाना चाहिए। ब्रिटिश समाचार पत्र ‘आब्जर्वर’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट में टूटू ने दोनों पूर्व नेताओं पर जनसंहार के हथियारों के बारे में झूठ बोलने का आरोप लगाया। टूटू ने कहा है कि इराक में सैन्य हस्तक्षेप ने दुनिया को जितना अस्थिर किया, उतना इतिहास के किसी भी सैन्य हस्तक्षेप ने नहीं किया। इराक युद्ध में हुई हिंसा से टूटू इतने आहत थे कि उन्होंने तब जोहानिसबर्ग में हुए एक नेतृत्व शिखर

सम्मेलन से अपने को अलग कर लिया था, क्योंकि उन्होंने ब्लेयर के साथ मंच साझा करने से इनकार कर दिया था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति को लेकर ऐसी मुखर पैरोकारी करने वाले टूटू को इस कारण कई बार आलोचनाओं का भी शिकार होना पड़ा, पर इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा और वे एक प्रतिबद्ध शांति कार्यकर्ता की तरह लगातार कार्य करते रहे। केपटाउन के पूर्व आर्कबिशप टूटू ने इसी तरह बारबार फिलिस्तीन और इंडोनेशिया में मानवाधिकारों और लोकतंत्र का सशक्त समर्थन किया।

दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की समस्या के उन्मूलन उदार छवि नोबेल शांति पुरस्कार विजेता टूटू खुद जरूर पादरी हेतु किए गए अभियान में सबको एकसूत्र में बांधने रहे, पर उनकी छवि कभी धर्म प्रचारक की नहीं वाले नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाने के कारण रही। इसके उलट वे सभी धर्मों को लेकर न सिर्फ डेसमंड टूटू को 1984 में नोबेल शांति पुरस्कार एक उदार और समन्वयी भाव दिखाते रहे, बल्कि प्रदान किया गया था। रंगभेद की समाप्ति के पश्चात साथ में यह भी कहते रहे ‘कोई भी धर्म दावे के साथ वे दक्षिण अफ्रीका में सत्य एवं सामंजस्य आयोग के यह नहीं कह सकता कि उन्हीं के पास विश्वास प्रमुख रहे, जिसके लिए उन्हें वर्ष 1999 का सिडनी की सच्ची समझ है।’ जाहिर है कि वे उन धार्मिक शांति पुरस्कार प्रदान किया गया। दिलचस्प है कि नेताओं से बिल्कुल अलग हैं, जिन्हें अपने धर्म उनके ऐसे ही प्रयासों को रेखांकित करते हुए 31 और धर्मग्रंथों की श्रेष्ठता ही सर्वोपरि नजर आती जनवरी, 2007 को भारत सरकार द्वारा गांधी शांति पूरा नाम: डेसमंड मपीलो टूटू है। टूटू को इस बात का श्रेय जाता है कि वे धर्म पुरस्कार प्रदान किया गया। यह पुरस्कार अहिंसा जन्म: 7 अक्टूबर, 1931 की वर्तमान और भावी भूमिका की एक ऐसी व अन्य गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक लीक खींचते हुए आगे बढ़े जिसमें अंतिम लक्ष्य और राजनीतिक परिवर्तन के क्षेत्र में की गई अति प्रसिद्धि: दक्षिण अफ्रीकी समाजसेवी, उत्कृष्ट सेवा एवं अवदान के लिए प्रदान किया राजनेता एवं केपटाउन शहर के पूर्व आर्चबिशप अहिंसा और शांति के साथ मानवीय अस्मिता की रक्षा करना है। हां,यह जरूर है कि उन्होंने जाता है। इस पुरस्कार में एक करोड़ रूपए या सम्मान: 1984 में नोबे ल शां त ि पु र स्कार, इस बात से कभी इनकार नहीं किया कि धर्म विदेशी मुद्रा में इसके बराबर राशि और एक 1999 में सिडनी शांति पुरस्कार, लोगों की निजी निष्ठा से जुड़ा है पर यह निष्ठा प्रशस्ति पत्र दिया जाता है। 2005 में अंतरराष्ट्रीय गांधी शांति पुरस्कार शांतिमय मानवीय सरोकारों से भी प्रत्यक्ष तौर पर शांति को लेकर निर्भीकता और उनकी अटल जुड़ी होनी चाहिए। प्रतिबद्धता इराक युद्ध के दौरान खासतौर पर देखने संन्यास: 2010 में सार्वजनिक जीवन को मिली। वर्ष 2012 में उन्होंने मुखरता के साथ से संन्यास की घोषणा गरीबों को लेकर नजरिया यह बात कही कि इराक युद्ध को लेकर टोनी 2013 में नई दिल्ली में दिए अपने एक यादगार ब्लेयर और जॉर्ज बुश के खिलाफ द हेग स्थित


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दक्षिण अफ्रीका की मौजूदा स्थिति से नाखुश

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दक्षिण अफ्रीका में उसी तरह की स्थिति पैदा हो रही है जैसी जाति और नस्लों की लड़ाई से जूझ रहे रवांडा और बोस्निया जैसे देशों की है। अपने देश की इस स्थिति से डेसमंड टूटू नाखुश हैं

समंड टूटू दक्षिण अफ्रीका में अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। शांति का नोबेल पुरस्कार पाने वाले अफ्रीकी आर्चबिशप डेसमंड टूटू ने दक्षिण अफ्रीका की आलोचना करते हुए कहा है कि देश उन आदर्श मूल्यों को बरकरार रखने में नाकाम रहा है, जिन्होंने रंगभेद को खत्म किया था। दक्षिण अफ्रीका में लोगों के दिलों में कानूनों के लिए कोई इज्जत नहीं है और यहां तक कि वे जीवन का भी सम्मान नहीं करते। डेसमंड टूटू ने कहा है कि दक्षिण अफ्रीका में उसी तरह की स्थिति पैदा हो रही है जैसी जाति और नस्लों की लड़ाई से जूझ रहे रवांडा और बोस्निया जैसे देशों की है। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में हत्याओं की बढ़ती दर का हवाला दिया, नौ महीने के बच्चे के बलात्कार का उदाहरण दिया और कहा कि उनके देश में जिंदगी की जो अहमियत थी वो खत्म हो रही है। डेसमंड टूटू का कहना है, ‘दक्षिण अफ्रीका में अब उन्हीं बातों को अपनाया जा रहा है, जिनका कभी विरोध किया जाता था, मिसाल के तौर पर भौतिकतावादी रवैया। और अब यह भी लगता है कि हम जिंदगी के महत्व को भूल रहे हैं। दरअसल अब तो यह लगता है कि रंगभेद ने हमें, जितनी आशंका थी उससे कहीं ज्यादा तबाह किया है।’ टूटू की ये बातें थोड़ी विरोधाभासी लगती हैं। दक्षिण अफ्रीका में शांति है, विकास की गति ठीक है, बेरोजगारी में कमी आई है और हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि लोग अपने देश के प्रति अभी भी आशावान हैं। पर यदि हम सतह को थोड़ा सा कुरेदें तो स्थिति गंभीर नजर आती है। अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस और उसके नेतृत्व को लेकर देश में स्वीकृति का स्तर तो व्याख्यान में डेसमंड टूटू ने कहा कि गरीबों को दया नहीं सम्मान चाहिए, गरीब लोग भी अपने बारे में सोचने की क्षमता रखते हैं, यह बात हमें समझ लेना चाहिए। टूटू, यहां नेहरु स्मृति संग्रहालय में आयोजित एलसी जैन स्मृति व्याख्यान दे रहे थे। व्याख्यान का आयोजन एक्शन एड इंडिया और जनाग्रह द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था। इस मौके पर दक्षिण अफ्रीका में अहिंसात्मक अश्वेत आंदोलन के नेता टूटू ने कहा कि उनके देश में अमीरों और गरीबों के बीच की खाई लगातार गहरी होती जा रही है, जो न तो अमीरों के लिए शुभ संकेत है और न ही गरीबों के लिए। उन्होंने अश्वेत आंदोलन का जिक्र करते हुए कहा, ‘मैं भारत का धन्यवाद देना चाहता हूं, क्योंकि आपके प्रयासों से ही नेल्सन मंडेला और अन्य साथी जेल से रिहा होने में कामयाब रहे।’

हो गया है कि वे ऊंची चहारदिवारियों के पीछे भी सुरक्षित नहीं हैं। एक दशक पहले का एक आंकड़ा है कि विगत एक दशक में जो श्वेतों की जनसंख्या थी, उसका बीस प्रतिशत अब वहां से अपनी संपत्ति बेचकर जा चुका है। यह स्थिति बाद में भी जारी रही है।

‘दक्षिण अफ्रीका में अब उन्हीं बातों को अपनाया जा रहा है, जिनका कभी विरोध किया जाता था, मिसाल के तौर पर भौतिकतावादी रवैया। और अब यह भी लगता है कि हम जिंदगी के महत्व को भूल रहे हैं’

गिरा ही है, संगठन की अपनी कार्यप्रणाली और मकसद को लेकर भी आलोचना के स्वर तीव्र हुए हैं। कुछ वर्ष पहले ट्रेड यूनियन के बडेल सम्मेलन में आलम यह रहा कि उपराष्ट्रपति के मंच पर आते ही इतना शोर शराबा हुआ कि उन्हें मंच छोड़ना पडा। तो गलती कहां हुई। कई लोग उस रास्ते पर ही प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं जिस राह पर वहां की सरकार देश को चला रही है। इस अवसर पर टूटू ने चुटकी लेते हुए कहा कि श्वेत और अश्वेत के बीच का फासला कम होने के चलते अब केपटाउन में मिक्स्ड जोड़ों को देखा जा सकता है, और इन मिक्स्ड जोड़ों के बच्चे किस रंग के हैं, यह सुनिश्चित करना मुश्किल होता जा रहा है। व्याख्यान में उपस्थित एक्शन एड इंडिया की अध्यक्ष शबाना आजमी ने कहा की डेसमंड टूटू जैसे नेता आज के दौर में इस बात के उदाहरण हैं कि अहिंसा के माध्यम से भी आंदोलन अपने लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं। शबाना ने कहा कि टूटू जैसे नेता जहां आम लोगों को अपने अधिकारों के लिए अहिंसात्मक संघर्ष की शक्ति देते हैं, वहीं नीति और

वामपंथी दल और मजदूर यूनियन राष्ट्रीयकरण और समाजवादी मॉडल की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार उदारीकरण और वैश्वीकरण का मॉडल अपना रही है।अनेक लोगों का कहना है कि रंगभेद खत्म होने के बाद गरीबों के लिए जितना किया जाना चाहिए था, उतना हुआ नहीं और अब लोग चुप बैठने को तैयार नहीं हैं। हत्याओं की बढ़ती दर से लोगों को विश्वास नीयत में ईमानदारी का विश्वास भी जगाते हैं।

‘आर्च फॉर आर्च’

दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में डेसमंड टूटू के जन्मदिन समारोह को विशेष रूप से मानाया गया। इस मौके पर प्रसारित अफने विशेष विडियो संदेश में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने उन्हें अपना बड़ा आध्यात्मिक भाई बताते हुए कहा कि वे उनके प्रशंसक है। आर्चबिशप के स्वतंत्रता संघर्ष के सम्मान में केपटाउन शहर में एंग्लिकन सेंट जॉर्ज कैथेड्रल में ‘आर्च फॉर आर्च’ नाम के एक गुंबदनुमा स्मारक का इस मौके पर अनावरण किया गया।

शांति को लेकर निर्भीकता और उनकी अटल प्रतिबद्धता इराक युद्ध के दौरान खासतौर पर देखने को मिली

इसी तरह दूसरे समुदायों की युवा पीढ़ी, जिनमें से कईयों का जन्म भी नहीं हुआ होगा जब रंगभेद अपने चरम पर था, उन्हें नौकरी मिलने में दिक्कत हो रही है क्योंकि अश्वेत लोगों के लिए एक तरह के आरक्षण की व्यवस्था है। डेसमंड टूटू इन्हीं हालात को देखकर दक्षिण अफ्रीका के भविष्य को लेकर चिंता जता रहे हैं। उन्हें लगता है कि एक राष्ट्र के तौर पर जिस तरह का देश दक्षिण अफ्रीका को बनना चाहिए था, उसे जिस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए था, उसमें खासतौर पर नेल्सन मंडेला के बाद काफी विचलन आया है। इस स्मारक का निर्माण क्रोएशिया के नौका निर्माता डेरियो फार्सिक ने लकड़ी के 4 टुकड़ों से किया है। इस पर दक्षिण अफ्रीका के संविधान के कुछ अंश उत्कीर्ण हैं। इस समारोह में एक विशेष वीडियो संदेश में तिब्बती आध्यात्मिक गुरु ने कहा कि टूटू ने गहरे मानवीय मूल्यों से लाखों लोगों के मन पर प्रभाव डाला है। दलाई लामा ने कहा, ‘मैं आपके 86 वें जन्मदिन पर आपको बधाई देता हूं और प्रार्थना करता हूं।’

संन्यास की घोषणा

नोबेल पुरस्कार विजेता आर्चबिशप डेसमंड टूटू ने वर्ष 2010 में घोषणा की कि वे सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले रहे हैं। टूटू ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति के खिलाफ संघर्ष में एक अहम भूमिका निभाई। नेल्सन मंडेला के 27 वर्ष के जेल प्रवास के


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मलाला में सबसे पहले देखी संभावना

‘मलाला ने अपने तथा अन्य लड़कियों के लिए खड़ा होने की हिम्मत दिखाई है और दुनिया को यह बताने के लिए कि लड़कियों को भी स्कूल जाने का अधिकार है, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मीडिया का इस्तेमाल किया है’

लाला यूसुफजई और डेसमंड टूटू, ये दो नाम ऐसे हैं, जिनके नाम, कार्य और संघर्ष से न जाने कितने लोग प्रेरणा लेते हैं। दिलचस्प है कि मलाला टूटू से काफी छोटी हैं, पर दोनों के बीच मानवता की सेवा और अहिंसक संवेदना की एक ऐसी कड़ी जुड़ी है, जिसकी कई बार लोग उदाहरण के तौर चर्चा करते हैं। एक बार की बात है कि अंतरराष्ट्रीय बच्चों की वकालत करने वाले समूह किड्स राइट्स फाउंडेशन ने मलाला को अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार के लिए प्रत्याशियों में शामिल किया, वह पहली पाकिस्तानी लड़की थी, जिसे इस पुरस्कार के लिए नामांकित किया

दौरान डेसमंड टूटू ने रंगभेद के खिलाफ लगातार आवाज उठाई। उन्हें इन्हीं प्रयासों के लिए 1984 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। केपटाउन में एक प्रेसवार्ता में टूटू ने कहा कि पिछले कुछ सालों से उनके काम का बोझ काफी

गया। दक्षिण अफ्रीका के नोबेल पुरस्कार विजेता डेसमंड टूटू ने एम्स्टर्डम, हॉलैंड में एक समारोह के दौरान 2011 के इस नामांकन की घोषणा की, लेकिन मलाला यह पुरस्कार नहीं जीत सकी और यह पुरस्कार दक्षिण अफ्रीका की 17 वर्षीय लड़की ने जीत लिया, यह पुरस्कार बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था हर साल एक लड़की को देती है। मलाला के नामांकन को लेकर डेसमंड टूटू ने कहा था, ‘मलाला ने अपने तथा अन्य लड़कियों के लिए खड़े होने की हिम्मत दिखाई और दुनिया को यह बताने के लिए कि लड़कियों को भी स्कूल जाने का अधिकार है, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मीडिया का इस्तेमाल किया है।’ दिलचस्प है कि तब मलाला को तो यह पुरस्कार नहीं मिल सका पर इस कारण उसे काफी शोहरत मिली और खासतौर पर पाकिस्तान में उसे एक सिलेब्रटी का दर्जा मिल गया। गौरतलब है कि तब मालाला की उम्र महज 13 वर्ष थी।

बढ़ गया है। उन्होंने कहा, ‘मैं अपने आपको भाग्यशाली मानता हूं कि मैं एक नए लोकतांत्रिक, आनंदित करने वाले और कभी-कभी उत्तेजित करने वाले राष्ट्र के विकास में कुछ योगदान दे पाया हूं।’ उन्होंने कहा कि वे रिटायर होने के बाद अपनी पत्नी

के साथ चाय की चुस्कियां लेते हुए क्रिकेट मैच देखा करेंगे और साथ ही अपने पोता-पोतियों के साथ वक्त बिताया करेंगे। नेल्सन मंडेला ने डेसमंड टूटू को दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के दौर में हुए अपराधों की सुनवाई के लिए

प्रेरक वक्तव्य

• बिना क्षमा के कोई भविष्य नहीं है।

• आप अपने परिवार का चयन नहीं करते हैं वे आप के लिए भगवान का उपहार हैं, जैसा कि आप उनके लिए हैं|

• घने अंधेरे में भी रोशनी की एक झलक देख पाना ही उम्मीद है।

• यदि आप शांति चाहते हैं, तो आपको अपने मित्रों से वार्तालाप नहीं करना है। आपको अपने दुश्मनों से वार्ता करनी है। •

गरीबों को दया नहीं सम्मान चाहिए, गरीब लोग भी अपने बारे में सोचने की क्षमता रखते हैं, यह बात हमें समझ लेना चाहिए।

बने आयोग की अध्यक्षता करने के लिए भी चुना था। मंडेला के साथ अपने संबंध को लेकर डेसमंड टूटू ने कहा भी है कि 1994 में नेल्सन मंडेला को दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति के रुप में पेश करना उनके लिए एक बड़ी खुशी का लम्हा था।

धार्मिक सौहार्द की मिसाल बना गुरुद्वारा

दुखद व हिंसा का इतिहास होने के बावजूद मस्तगढ़ साहिब चितियां गुरुद्वारे के ग्रंथी जीत सिंह ने पुरानी मस्जिद की मरम्मत और रख-रखाव का जिम्मा उठाया

जयदीप सरीन

तिहास के पन्नों में दर्ज सिखों और मुगलों के संग्राम की दास्तान को यादों में संजोए फतेहगढ़ शहर की इस पवित्र धरती पर धार्मिक सौहार्द की मिसाल देखने को मिलती है, जहां मस्जिद और गुरुद्वारा एक ही परिसर में हैं।और तो और इस मस्जिद की देखरेख का जिम्मा भी गुरुद्वारे के ग्रंथी ही संभाल रहे हैं। महदियां गांव में स्थित सफेद चितियां मस्जिद को दूरस्थ खेतों से भी देखा जा सकता है। पंजाब के इन गांवों में आज भी मुगल काल की कुछ स्थापत्य कला के अनेक उदाहरण मिलते हैं, मगर सिख बहुल

इलाका होने के कारण यहां गुरुद्वारों की बहुलता है। फहेतगढ़ साहिब का गुरुद्वारा सिखों का तीर्थस्थल है, जहां पूरी दूनिया से सिख तीर्थयात्री पहुंचते हैं। सिखों के तीर्थस्थल में स्थित यह प्राचीन मस्जिद यहां मुगलों के आक्रमण और सिखों पर ढाए कहर की चश्मदीद है। बताया जाता है कि मुगल बादशाह औरंजगजेब के फरमान की तामील करने के लिए यहां से पांच किलोमीटर दूर सरहिंद के नवाब वजीर खान ने सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के दो पुत्र फतेह सिंह (7) और जोरावर सिंह (9) को 1705 में जिंदा दफना दिया था। इस्लाम कबूल करने से मना करने पर दोनों मासूमों को ऐसा क्रूर दंड दिया गया था। गुरु गोविंद सिंह के छोटे बेटे फतेह के नाम पर ही शहर का नाम फतेहगढ़ पड़ा। यह शहर चंडीगढ़ से 45 किलोमीटर दूर है और सिखों का पवित्र तीर्थस्थल है। यहां मासूम बालकों की शहादत को याद रखने के लिए हर साल मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें बड़ी संख्या में सिख पहुंचते हैं। दुखद व हिंसा का इतिहास होने के बावजूद

मस्तगढ़ साहिब चितियां गुरुद्वारों के ग्रंथी जीत सिंह ने पुरानी मस्जिद की मरम्मत और रखरखाव का जिम्मा उठाया। उन्होंने बताया कि यह जानते हुए कि यहां कोई मुसलमान नमाज अदा करने नहीं आता है फिर भी धार्मिक स्थल की पवित्रता कायम रखने के लिए उन्होंने मस्जिद की मरम्मत और सफाई करवाई। जीत सिंह ने बताया कि माना जा रहा है कि यह मस्जिद 350 साल पुरानी है। सिखों के धार्मिक नेता अर्जुन सिंह सोढी द्वारा गुरुग्रंथ साहिब मस्जिद के भीतर रखने के बाद से इसे खुला छोड़ दिया गया। उन्होंने कहा कि संगत ने उसके बाद मस्जिद परिसर में ही एक नया गुरुद्वारा बनवाने का फैसला लिया, क्योंकि मस्जिद पुरानी हो गई थी और इसकी दीवार व गुंबदों की हालत जर्जर थी। गुरुद्वारा अब बन चुका है और उसमें गुरुग्रंथ साहिब रखा जा चुका है। फिर भी हम मस्जिद की देखभाल कर रहे हैं और इसके रखरखाव का ध्यान रख रहे हैं। मस्जिद और गुरुद्वारा पास-पास हैं जो चार दीवारी से घिरे परिसर में सांप्रदायिक सौहार्द की

मिसाल है। मस्जिद की दीवारों व भवनों का नियमित रूप से सफाई और सफेदी की जाती है। कहा जाता है कि इस मस्जिद के काजी ने साहिबजादों की मौत की निंदा की थी। उन्होंने कहा था कि बच्चों को ऐसी मौत नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने बताया कि 20वीं सदी की शुरुआत में जब मस्जिद का उपयोग गुरुद्वारे के रूप में किया जाने लगा तो पड़ोस के बस्सी पठाना के मुसलमानों ने एतराज जताया। मगर पटियाला के तत्कालीन महाराजा ने हस्तक्षेप किया और मामले को सुलझाया। तब से वर्षों तक मस्जिद में गुरुद्वारा चलता रहा। इतिहासकारों का मानना है कि इस मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां के शासनकाल 1628-1658 के दौरान किया गया। सिखों और मुगलों की लड़ाई में भी मस्जिद बची रही। सिखों ने 1710 में वजीर खान को पराजित कर इस इलाके पर अपना कब्जा जमाया। आक्रमण की चश्मदीद रही यह मस्जिद बुरे दौर में भी सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे की मौन साक्षी बनी रही।


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दुनिया घूमकर लौटीं देश की बेटियां

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आठ महीने में पांच देशों, 4 महाद्वीपों, तीन महासागर और तीन अंतरीपों को पर कर आईएनएस तारिणी पर सवार नेवी की छह महिला अफसर सकुशल स्वदेश लौटीं

छले वर्ष 10 सितंबर को लंबी समुद्री यात्रा पर निकली इंडियन नेवी की छह महिला अफसरों की टीम वापस भारत पहुंच गई। आठ महीने से ज्यादा के इस सफर में इस टीम ने 21600 नॉटिकल मील की यात्रा की। आईएनएस तारिणी पर सवार इस टीम ने पांच देशों, 4 महाद्वीपों, तीन महासागर और तीन अंतरीपों (केप्स) के साथ-साथ भूमध्य रेखा को भी दो बार पार किया। इस टीम का नेतृत्व लेफ्टिनेंट कमांडर वर्तिका जोशी ने किया। टीम में वर्तिका के साथ लेफ्टिनेंट कमांडर प्रतिभा जामवाल, स्वाति पी, लेफ्टिनेंट ऐश्वर्या बोड्डापति, एस विजया देवी और पायल गुप्ता शामिल थीं। इस यात्रा को नाविक सागर परिक्रमा नाम दिया गया था। इनके लौटने पर रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण और नेवी चीफ ऐडमिरल सुनील लांबा ने गोवा में टीम का स्वागत किया। यात्रा के बारे में अपने अनुभव साझा करते हुए नैविगेशन ऑफिसर लेफ्टिनेंट कमांडर स्वाति पी कहती हैं, 'न्यूजीलैंड से फॉकलैंड जाते वक्त तापमान -5 डिग्री सेल्सियस से कम था और तूफान की गति बहुत ज्यादा होती थी। हमें काफी मुश्कलों का सामना करना पड़ा। 140 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से आती

हवा और 10 मीटर ऊंचाई तक उठती लहरें हमारा रास्ता मुश्किल कर रही थीं, लेकिन हमने लड़ाई जारी रखी। कई बार तो हमारी टीम 17 घंटे तक ना कुछ खा पाई ना सो पाई। 'वह आगे बताती हैं, 'ठंड के मारे हमारे हाथ-पैर सुन्न हो जाते थे। हमारी टीम में से कोई एक

विश्व की सबसे बड़ी पक्षी प्रतिमा केरल में बनी रामायण के जटायु की प्रतिमा दुनिया में किसी पक्षी की सबसे बड़ी प्रतिमा है

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रल पर्यटन विश्व की सबसे बड़ी पक्षी प्रतिमा 'जटायु अर्थ सेंटर' का यहां 4 जुलाई को उद्घाटन करेगा। पर्यटन मंत्री कडकमपल्ली सुरेंद्रन ने इस बात की जानकारी दी। पक्षी जटायु (रामायण का एक चरित्र) की प्रतिकृति 200 फीट लंबी, 150 फीट चौड़ी, 65 फीट ऊंची है और यह चट्टान के ऊपर दाहिने तरफ स्थित हैं। यह समुद्र तल से 1000 फीट ऊपर है। यह प्रतिमा तिरुवनंतपुरम में 65 एकड़

में फैली है। यह 100 करोड़ रुपए की लागत से बनी है। सुरेंद्रन ने कहा कि यह फिल्म निमार्ता राजीव अंचल का कार्य है और इस परियोजना की घोषणा 2006 की वाम सरकार के दौरान निर्माण-संचालनस्थानांतरण के तहत की गई थी। सुरेंद्रन ने कहा कि इन सालों में उन्होंने इसके लिए काम किया है और चार जुलाई को यह जनता के लिए खोला जाएगा। हालांकि अब भी यह तैयार है, लेकिन चूंकि बारिश के कभी भी होने की उम्मीद है, इसीलिए हमने इसका उद्घाटन जुलाई में करने का फैसला किया है। पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता अंचल ने परियोजना के स्थल का चुनाव किया है, क्योंकि इस जगह के साथ कुछ मिथ जुड़े हुए हैं। (आईएएनएस)

वील संभालतीं तो एक उनके साथ बैठकर हवा की दिशा के बारे में जानकारी देती थी। कई बार तो हवा की गति इतनी ज्यादा होती कि हमारी नाव 180 डिग्री पर घूम जाती और हमें फिर से उसी दिशा में घूमना पड़ता था।' लेफ्टिनेंट ऐश्वर्या अपने अनुभव के बारे

में कहती हैं, 'हमने साउथ पैसिफिक (दक्षिण प्रशांत) महासागर भी पार किया, जो कि अपने आप में बहुत शानदार अनुभव रहा। हमने इस दौरान ढेर सारी मरीन लाइफ देखीं जो कि बेहद शानदार थीं। हमने अपनी इसी यात्रा के दौरान क्रिसमस और न्यू ईयर भी अपनी बोट पर ही मनाया। इस यात्रा में हम कई जगहों पर गए, उनमें से सबसे खूबसूरत जो रहा वह फॉकलैंड आईलैंड था, मैं लोगों को सुझाव दूंगी कि वहां जाएं और वहां की खूबसूरती देखें। आईएनएस तारिणी के बारे में बताते हुए लेफ्टिनेंट कमांडर प्रतिभा जामवाल कहती हैं, 'आईएनएस महादेई के बाद यह अपनी तरह का दूसरा पोत है। इसका डिजाइन तूफान झेलने में काफी मदद करता है। यह एक डच डिजाइन है। वुडेन-फाइबर ग्लास से बना हुआ यह पोत कई मामलों में शानदार है और इसने इस यात्रा में खुद को साबित किया है। 'इस टीम का स्वागत करते हुए रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, 'मैं इनकी सफलता पर काफी खुश हूं। भारत के युवा जो भी हासिल कर रहे हैं, वह महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए काफी प्रेरणादायक है।' (आईएएनएस)

मार्क्स की पांडुलिपि का 1 पेज हजारों डॉलर में बिका कार्ल मार्क्स की 200वीं जंयती मना रहा रहे चीन में उनकी पांडुलिपि का एक पन्ना 524,000 डॉलर में बिका

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र्ल मार्क्स से संबंधित एक पांडुलिपि का एक पन्ना यहां एक नीलामी में 524,000 डॉलर में बिक गया। सरकारी समाचार पोर्टल, चाइना डॉट ओआरजी पर जारी रिपोर्ट के मुताबिक, स्थानीय व्यापारी फेंग लुन द्वारा मुहैया कराया गया पन्ना शुरुआती कीमत से 10 गुना ज्यादा की कीमत पर बिक गया। समाचार एजेंसी एफे के अनुसार, यह दस्तावेज 'कैपिटल : क्रिटिक ऑफ पॉलिटिकल इकोनॉमी' के मसौदे के रूप में जर्मन विचारक और दार्शनिक द्वारा लंदन में सितंबर 1850 से अगस्त 1853 के बीच लिखे गए 1,250 से ज्यादा पन्नों के नोट्स का एक हिस्सा था। इसी नीलामी में मार्क्स के समकालीन फ्रेडरिक एंगेल्स से संबंधित पांडुलिपि 16.7

लाख युआन में बिका। एंगेल्स ने मार्क्स के साथ मिलकर 'कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो' लिखी थी। यह नीलामी ऐसे समय में हुई है, जब चीन इसी महीने मार्क्स की 200वीं जंयती मना रहा है। (आईएएनएस)


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गुड न्यूज

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मलमास में विराजते हैं 33 करोड़ देवी-देवता

ताजमहल को दुनिया में छठा स्थान

मान्यता है कि मलमास के दौरान राजगीर छोड़कर दूसरे स्थान पर पूजा-पाठ करने वाले लोगों को किसी तरह के फल की प्राप्ति नहीं होती है, क्योंकि सभी देवी-देवता राजगीर में रहते हैं

ट्रिपएडवाइजर ने ट्रैवलर्स चॉइस अवार्डस में कंबोडिया का अंगकोर वाट दुनिया और एशिया में पहले स्थान पर है

ने ट्रैवलर्स चॉइस अवार्डस के ट्रिपएडवाइजर विजेताओं की घोषणा की। इसमें ताजमहल

को दुनिया में छठा, एशिया में दूसरा स्थान और भारत में सर्वोच्च स्थान हासिल हुआ है। कंबोडिया का अंगकोर वाट दुनिया और एशिया में पहले स्थान पर है। एशिया लिस्ट में पांच भारतीय स्थलों ताजमहल (2), आमेर किला (9), हरमिंदर साहिब (10), स्वामीनारायण अक्षरधाम (13) और गुरुद्वारा बंगला साहिब

(14) को स्थान मिला है। अवार्ड विजेताओं का निर्धारण एक एल्गोरिदम का उपयोग कर किया गया था, जिसमें 12 महीने की अवधि में दुनियाभर के स्थलों के लिए जुटाए गए रिव्यू और रेटिंग की क्वालिटी को देखा गया। इस साल के अवार्ड के लिए पूरी दुनिया में आठ क्षेत्रों के 68 देशों से 759 स्थलों को चुना गया। ट्रिपएडवाइजर इंडिया के कंट्री मैनेजर निखिल गंजू ने कहा कि भारत के स्थल अपनी विरासत के अनुरूप विविधता से भरे हुए हैं और ये दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित संरचनाओं में से एक हैं। यह सूची निर्विवाद स्मारकों से लेकर शानदार वास्तुकला के बेशकीमत रत्न प्रस्तुत करती है, जो ऐसे ट्रैवलर्स के लिए बेहतर विकल्प हैं, जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अनुभव से परिपूर्ण यात्रा करना चाहते हैं। (आईएएनएस)

असम में खुलेंगे कैंसर और डेंटल कॉलेज

राज्य में कैंसर के 19 अस्पताल और दो डेंटल कॉलेज अगले दो साल में खुलेंगे

सम के स्वास्थ्य मंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि दो साल के भीतर राज्य में कैंसर के 19 अस्पताल खोले जाएंगे, जिसमें से एक गुवाहाटी में होगा। उन्होंने बताया सरकार ने प्रस्तावित कैंसर के 19 अस्पतालों में से 13 के लिए स्थलों की पहचान कर ली है। उन्होंने कहा कि टाटा ट्रस्ट के सहयोग से असम सरकार ने असम कैंसर केयर फाउंडेशन गठित किया है जो इन अस्पतालों को चलाएगा। मंत्री ने कहा कि इन प्रस्तावित अस्पतालों में से अधिकतर का संचालन अगले 24 महीनों में शुरू हो जाएगा। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में

करीब पांच करोड़ जनता निवास करती है, जिसमें कैंसर के प्रत्येक वर्ष 45 हजार नए मामले सामने आते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि डेंटल कौंसिल आफ इंडिया ने असम को डिब्रूगढ़ और सिलचर में दो दंत चिकित्सा कॉलेज स्थापित करने की अनुमति दी है। राज्य में फिलहाल एक डेंटल कॉलेज है। प्रस्तावित नए डेंटल कॉलेजों में से प्रत्येक में 50 विद्यार्थियों की क्षमता होगी, इस प्रकार राज्य के डेंटल कॉलेजों में दंत चिकित्सा पाठ्यक्रम के लिए सीटों को दोगुना कर दिया गया है। (आईएएनएस)

मनोज पाठक

लमास (अधिमास) में सभी शुभ कार्यो पर रोक लगी रहती है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि इस दौरान सभी 33 करोड़ देवी-देवता बिहार के नालंदा जिले के राजगीर में रहते हैं। मान्यता है कि यहां विधि-विधान से भगवान विष्णु (भगवान शालीग्राम) की पूजा करने से लोगों को सभी पापों से छुटकारा मिलता है। यही कारण है कि अधिमास में यहां ब्रह्म कुंड पर साधु-संतों सहित पर्यटकों की भारी भीड़ लगी रहती है। तीन वर्षों में एक बार लगने वाले मलमास इस वर्ष 16 मई से शुरू हुआ है। मलमास के दौरान राजगीर में एक महीने तक विश्व प्रसिद्ध मेला लगता है, जिसमें देशभर के साधु-संत पहुंचते हैं। इस साल इस प्रसिद्ध मेले का उद्घाटन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 16 मई को किया। राजगीर की पंडा समिति के धीरेंद्र उपाध्याय ने बताया कि इस एक महीने में राजगीर में काले काग को छोड़कर हिंदुओं के सभी 33 करोड़ देवता राजगीर में प्रवास करते हैं। प्राचीन मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र राजा बसु द्वारा राजगीर के ब्रह्म कुंड परिसर में एक यज्ञ का आयोजन कराया गया था, जिसमें 33 करोड़ देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया गया था और वे यहां पधारे भी थे, लेकिन काले काग (कौआ) को निमंत्रण नहीं दिया गया था। जनश्रुतियों के मुताबिक, इस एक माह के दौरान राजगीर में काले काग कहीं नहीं दिखते। इस क्रम में आए सभी देवी-देवताओं को एक ही कुंड में स्नानादि करने में परेशानी हुई थी, तभी ब्रह्मा ने यहां 22 कुंड और 52 जलधाराओं का निर्माण किया था।

इस ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी में कई युगपुरुष, संत और महात्माओं ने अपनी तपस्थली और ज्ञानस्थली बनाई है। इस कारण मलमास के दौरान यहां लाखों साधु-संत पधारते हैं। मलमास के पहले दिन हजारों श्रद्धालु राजगीर के गर्म कुंड में डुबकी लगाते हैं और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं। राजगीर कुंड के पुजारी बलबीर उपाध्याय बताते हैं कि मलमास के दौरान राजगीर छोड़कर दूसरे स्थान पर पूजा-पाठ करने वाले लोगों को किसी तरह के फल की प्राप्ति नहीं होती है, क्योंकि सभी देवी-देवता राजगीर में रहते हैं। पंडित प्रेम सागर बताते हैं कि जब दो अमावस्या के बीच सूर्य की संक्रांति अर्थात सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश नहीं करते हैं तो मलमास होता है। मलमास वाले साल में 12 नहीं, बल्कि 13 महीने होते हैं। इसे अधिमास, अधिकमास, पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं। इस महीने में जो मनुष्य राजगीर में स्नान, दान और भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसके सभी पाप कट जाते हैं और वह स्वर्ग में वास का भागी बनता है। धीरेंद्र उपाध्याय कहते हैं कि 'ऐतरेय बाह्मण' में यह मास अपवित्र माना गया है और 'अग्निपुराण' के अनुसार इस अवधि में मूर्ति पूजा-प्रतिष्ठा, यज्ञदान, व्रत, वेदपाठ, उपनयन, नामकरण आदि वर्जित हैं। इस अवधि में राजगीर सर्वाधिक पवित्र माना जाता है। उल्लेखनीय है कि राजगीर न केवल हिंदुओं के लिए धार्मिक स्थली है, बल्कि बौद्ध और जैन धर्म के श्रद्धालुओं के लिए भी पावन स्थल है। इस वर्ष 13 जून तक मलमास रहेगा। इधर, पूरे मास लगने वाले मलमास मेले में आने वाले सैलानियों के स्वागत में भगवान ब्रह्मा द्वारा बसाई गई नगरी को दुल्हन की तरह सजाया गया है। पर्यटन विभाग से लेकर जिला प्रशासन के अधिकारी समेत स्थानीय लोग आने वाले लोगों को कोई परेशानी नहीं हो इसका खास ख्याल रख रहे हैं। तकरीबन तीन साल पर लगने वाले इस मेले की प्रतीक्षा जितनी सैलानियों को होती है, उससे कहीं अधिक सड़क किनारे व फुटपाथों पर लगाने वाले दुकान संचालकों को भी। इस वर्ष मलमास मेला में सुरक्षा के भी पुख्ता प्रबंध किए गए हैं।


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विविध

चकोतरा में मिले मधुमेह-रोधी तत्व

सूखे हुए चकोतरा का पांच ग्राम पाउडर 200 ग्राम आटे में मिलाकर उसकी बनी चपाती को खाना मधुमेह रोगियों के लिए उपयोगी हो सकता है

उमाशंकर मिश्र

भा

रतीय वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक ताजा शोध में नींबू-वंशीय फल चकोतरा में नरिंगिन नामक तत्व की पहचान की गई है, जो रक्त में उच्च ग्लूकोज स्तर (हाई ब्लड शुगर) के लिए जिम्मेदार एंजाइम को नियंत्रित करने में उपयोगी हो सकता

है। इस अध्ययन से जुड़े वैज्ञानिकों के अनुसार, चकोतरा फल के उपयोग से कई तरह के फूड फॉर्मूलेशन विकसित किए जा सकते हैं, जो मधुमेह रोगियों के लिए खासतौर पर लाभकारी हो सकते हैं। मैसूर स्थित केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान (सीएफटीआरआई) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्ययन के दौरान खास वैज्ञानिक विधियों

वापस आएगी सरस्वती नदी

से चकोतरा फल के विभिन्न भागों के अर्क को अलग किया गया और फिर विभिन्न परीक्षणों के जरिए उनमें मौजूद गुणों का पता लगाया गया है। इस अध्ययन के नतीजे शोध पत्रिका करंट साइंस के ताजा अंक में प्रकाशित किए गए हैं। मधुमेह के शुरुआती चरण में मरीजों के उपचार के लिए भोजन के बाद हाई ब्लड शुगर को नियंत्रित करना चिकित्सीय रणनीति का एक प्रमुख हिस्सा है। इसके लिए कार्बोहाइड्रेट के जलीय अपघटन के लिए जिम्मेदार एंजाइमों को बाधित करने की रणनीति अपनाई जाती है। रक्त में ग्लूकोज के बढ़ते स्तर को धीमा करने के लिए इन एंजाइमों के अवरोधकों का उपयोग किया जाता है। नरिंगिन जैविक रूप से सक्रिय एक ऐसा ही एंजाइम है, जो कार्बोहाइड्रेट के जलीय अपघटन से जुड़ी गतिविधियों के अवरोधक के तौर पर काम करता है। सीएफटीआरआई से जुड़ीं प्रमुख शोधकर्ता डॉ. एमएन शशिरेखा ने बताया कि नरिंगिन के अलावा, चकोतरा में पाए गए अन्य तत्व भी लाभकारी हो सकते हैं। चकोतरा का स्वाद कुछ ऐसा होता है कि इसे सीधा खाना कठिन होता है। सूखे हुए चकोतरा का पांच ग्राम पाउडर 200 ग्राम आटे में मिलाकर उसकी बनी चपाती को खाना मधुमेह रोगियों के लिए उपयोगी हो सकता है। बेकरी उत्पादों में भी इसके पाउडर का उपयोग किया जा सकता है। चकोतरा

के स्वास्थ्य संबंधी फायदों को देखते हुए इसके उत्पादन और इस फल से बनने खाद्य उत्पादों को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। पारंपरिक एवं हर्बल चिकित्सा पद्धति में नींबू-वंशीय फलों की व्याख्या मधुमेह-रोधी दवाओं के स्रोत के रूप में की गई है, जिसमें चकोतरा भी शामिल है। रूटेसी पादप समूह से जुड़ा चकोतरा भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिणपूर्वी एशिया मूल का नींबू-वंशीय फल है। पूरी तरह विकसित होने पर इसके फल का वजन एक से दो किलोग्राम होता है। हालांकि, संतरा, मौसमी, नारंगी और नींबू जैसे दूसरे नींबू-वंशीय फलों के वैश्विक उत्पादन के मुकाबले चकोतरा का उत्पादन सबसे कम होता है। मधुमेह की सिंथेटिक दवाओं के संभावित दुष्प्रभावों के कारण कई बार हर्बल दवाओं के उपयोग की सलाह दी जाती है। चकोतरा जैसे फलों में मधुमेह-रोधी तत्वों की खोज उसी से प्रेरित है। चकोतरा में एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-इन्फ्लेमेटरी, ट्यूमर-रोधी, मधुमेह-रोधी और मोटापा-रोधी गुण पाए जाते हैं। पुराने साहित्य में भी चकोतरा के गुणों की व्याख्या भूख बढ़ाने वालेपेट के टॉनिक, बुखार, अनिद्रा, गले के संक्रमण तथा हृदय के लिए उपयोगी फल के रूप में की गई है। अध्ययनकर्ताओं में डॉ. शशिरेखा अलावा एसके रेशमी, एचके मनोनमनी और जेआर मंजूनाथ शामिल थे।

अंतरिक्ष तकनीक के माध्यम से सरस्वती नदी को मिलेगा फिर से नया जीवन

रियाणा सरकार ने प्राचीन सरस्वती नदी को फिर से जीवित करने का बीड़ा उठाया है। इस कार्य को पूरा करने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जा रहा है। प्रदेश सरकार इस परियोजना को अमलीजामा पहनाने को लेकर 'मिशन मोड' में है। सरकार ने इसके लिए 50 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं। इस दिशा में कार्य में तेजी लाने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो), राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच), नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी), भारतीय भूवज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) को जिम्मेदारी दी गई। प्रदेश की कला व संस्कृति मंत्री कविता जैन ने कहा कि हरियाणा सरकार सरस्वती नदी को पुनरुज्जीवित करने के लिए मिशन मोड में काम कर रही है। नदी भारत की राष्ट्रीय धरोहर है। उन्होंने कहा कि सरस्वती नदी समृद्ध

सांस्कृतिक विरासत है और इसको नया जीवन प्रदान करने के लिए समेकित प्रयास की जरूरत है, जिससे भारत दोबारा विश्वगुरु का दर्जा हासिल कर पाएगा। इसरो पिछले 20 साल से सरस्वती नदी पर कार्य कर रहा है। राज्य सरकार ने अवसाद से भरे होने से विलुप्त हो चुकी नदी की धारा के अन्वेषण और सरस्वती नदी के जल विज्ञान संबंधी पहलुओं के अध्ययन के लिए दो एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं। करार पर हरियाणा सरस्वती विरासत विभाग बोर्ड (एचएसएचडीबी) और इसरो ने हस्ताक्षर किए हैं। जल-भू विज्ञान प्रतिदर्श और भू-अंतरिक्ष तकनीक के माध्यम से सरस्वती नदी के जलग्रहण क्षेत्र के जल संतुलन का अध्ययन किया जाएगा। यह कार्य वर्ष 2018 से लेकर 2020 तक चार चरणों में किया जाएगा। कविता जैन ने कहा कि यह गर्व की बात है कि आदि भारती इस नदी का

उद्गम बिंदु हैं। प्राचीन काल में हमारे वेदों की रचना इसी नदी के तट हुई थी। सरस्वती नदी हरियाणा से होते हुए राजस्थान को जाती थी। भाजपा सरकार पौराणिक नदी की खोज के सिलसिले में अप्रैल, 2015 में हरियाणा के यमुनानगर जिला स्थित रोहलाहेरी गांव में सिर्फ

सात फीट की खुदाई पर पानी मिलने से उत्साहित हुई। सरस्वती नदी की खुदाई को लेकर अपने स्पष्ट इरादे के साथ मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर की अध्यक्षता में सरकार ने सरस्वती नदी के उद्गम स्थान कुरुक्षेत्र से युद्ध स्तर पर करवाने के निर्देश दिए। (आईएएनएस)


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पुस्तक अंश

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नमामि गंगे

उत्तर प्रदेश में गंगा के तट पर स्थित वाराणसी से मई 2014 में सांसद चुने जाने के बाद, नरेंद्र मोदी ने सगर्व कहा था- ‘गंगा मां की सेवा करने का सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता। लगता है मेरी नियति में मां की सेवा करना लिखा है।’ अपने वादे को पूरा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा को स्वच्छ करने और इस पौराणिक नदी को सतत प्रवाह्यमान बनाए रखने के लिए गंगा संरक्षण मिशन 'नमामि गंगे' को लॉन्च किया

गं

8 नवंबर, 2014 : वाराणसी के अस्सी घाट की सफाई करने में जुटे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

गा नदी न केवल अपने सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व के कारण अहम है, बल्कि यह इस कारण भी विशिष्ट है क्योंकि यह देश की 40 फीसदी से ज्यादा आबादी को अपने तटों पर आश्रय देती है। 2014 में न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ‘अगर हम इसे साफ करने में सक्षम हैं, तो देश की 40 प्रतिशत आबादी के लिए यह बड़ी मदद होगी। इसीलिए गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है।’ इस दृष्टि को धरातल पर उतारने के लिए सरकार ने गंगा को प्रदूषण मुक्त करने और उसे पुनर्जीवन देने के लिए 'नमामि गंगे' नाम से एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन लॉन्च किया। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नदी की सफाई पर 2019-2020 तक 20,000 करोड़ रुपए खर्च करने की घोषणा की। इस तरह इस कार्य के लिए बजट में चार गुना वृद्धि हुई।

यह केंद्र सरकार का 100 फीसदी अंशदान वाला प्रोजेक्ट है। गंगा के कायाकल्प की चुनौती बहुक्षेत्रीय, बहु-आयामी और बहु-हितधारकों से जुड़ी है। लिहाजा, इसकी कार्ययोजना तैयार करने हेतु अंतर-मंत्रालीय व केंद्र-राज्य समन्वय बढ़ाने तथा इसकी निगरानी के लिए केंद्र और राज्य के स्तरों पर प्रयास किए गए हैं। कार्यक्रम के कार्यान्वयन को प्रारंभिक (नजर आने वाले शुरुआती प्रभाव), माध्यावधि (पांच वर्ष के भीतर किए जाने वाले कार्य) और दीर्घकालिक (दस साल की अवधि में किए जाने वाले कार्यक्रम) स्तरों पर विभाजित किया गया है। प्रारंभिक स्तर के कार्यक्रमों में नदी के साथ बहने वाली मिट्टी और कीचड़ की सफाई, प्रदूषण मुक्ति के लिए शौचालय निर्माण सहित ग्रामीण स्वच्छता (शुष्क और आद्र रूप में), शवदाह गृहों का निर्माण और

‘नमामि गंगे’, एक पवित्र नदी को साफ और पुनर्जीवित करने का मिशन है। इसके लिए शहरी सीवरेज और औद्योगिक अपशिष्ट को उनके स्रोत स्तर पर ही निस्तारित करने पर ध्यान देना होगा। औद्योगिक इकाइयों को अपने अपशिष्ट को रिसाइकल करने के लिए प्रेरित और इसका उल्लंघन करने वालों को दंडित किया जाना चाहिए। - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

आधुनिकीकरण तथा घाटों के निर्माण पर जोर दिया गया है, ताकि नदी और मनुष्य का रिश्ता और बेहतर हो सके। मध्यावधि में किए जाने वाले कार्यक्रमों में

नदी में औद्योगिक और म्यूनिसिपल प्रदूषण का निस्तारण है। म्यूनिसिपल सीवेज से होने वाले प्रदूषण को दूर करने के लिए पांच वर्षों में अतिरिक्त 2500 एमएलडी ट्रीटमेंट क्षमता विकसित की जानी है। इस कार्यक्रम को पारदर्शी और लंबे समय तक प्रभावी बनाए रखने के लिए अहम आर्थिक सुधार की प्रक्रिया अभी चल रही है। इस दृष्टि से फिलहाल सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के तहत हाईब्रीड तकनीकी विकल्पों पर कैबिनेट विचार कर रहा है। अगर इन्हें स्वीकृति मिल जाती है तो स्पेशल पब्लिक व्हीकल के जरिए सभी प्रमुख शहरों-बाजारों को मदद पहुंचाइ जाएगी ताकि उन्हें शोधित जल के साथ दीर्घकालिक जरूरत की कई और जरूरी चीजें मिलनी सुनिश्चित हो सके। इन गतिविधियों के अलावा इस कार्यक्रम के तहत जैव विविधता संरक्षण, वनीकरण और जल गुणवत्ता निगरानी के कार्य भी किए जा रहे हैं। गोल्डन महासीर, डॉल्फिन, घड़ियाल और कछुए आदि जैसे प्रतिष्ठित जलीय प्रजातियों के संरक्षण के लिए योजनाएं पहले ही शुरू हो चुकी हैं। इसी प्रकार, 'नमामि गंगे' के तहत 30,000 हेक्टेयर जमीन पर नदी पारिस्थितिकी तंत्र के बेहतर स्वास्थ्य के लिए वनीकरण की जाएगी। वनीकरण कार्यक्रम 2016 में शुरू हो चुका है। इसके अलावा पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए 113 रीयल टाइम क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन स्थापित किए जाएंगे। ई-प्रवाह के निर्धारण, पानी की उपयोग


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अस्सी घाट की सफाई

सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन द्वारा युद्ध स्तर पर सफाई के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अस्सी घाट का निरीक्षण किया। वह कार्य से बहुत संतुष्ट थे और सुलभ ने उनसे वादा किया कि इस घाट की स्वच्छता को हमेशा बहाल रखा जाएगा।

ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नदी को विभिन्न हिस्सों में साफ करने के कार्य को इस तरह विभाजित किया है- गोमुख से हरिद्वार, हरिद्वार से कानपुर, कानपुर से उत्तर प्रदेश की सीमा तक, उत्तर प्रदेश की सीमा से झारखंड की सीमा तक और वहां से बंगाल की खाड़ी तक। क्षमता में वृद्धि और बेहतर सिंचाई की कुशलता के माध्यम से लंबी अवधि में नदी को पर्याप्त प्रवाह प्रदान करने की संकल्पना की गई है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अपने सामाजिक-आर्थिकसांस्कृतिक महत्व और विभिन्न उपयोगों के लिए इस्तेमाल के कारण गंगा नदी की सफाई कार्य बेहद जटिल है। विश्व में अब तक कहीं भी इतना जटिल कार्यक्रम लागू नहीं किया गया है। इसके लिए तमाम क्षेत्रों और देश के हर नागरिक की भागीदारी की आवश्यकता होगी। गंगा नदी की सफाई में हम में से प्रत्येक व्यक्ति विभिन्न तरीकों से योगदान कर सकता है।

ट्रिब्यूनल ने गोमुख से हरिद्वार तक नदी में किसी भी तरह के प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध लगा चुका है और इस आदेश के उल्लंघन करने वाले होटलों, धर्मशालाओं और आश्रमों पर 5000 रुपए प्रतिदिन का जुर्माना लगाने का फैसला किया है। धनराशि का वितरण:

बड़ी आबादी से जुड़ी गंगा नदी की गुणवत्ता को बहाल करने के लिए भारी निवेश की आवश्यकता होती है। सरकार ने बजट

को पहले ही चार गुना बढ़ा दिया है, लेकिन यह अब भी आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त नहीं है। ‘स्वच्छ गंगा फंड’ स्थापित किया गया है, जो गंगा नदी को साफ करने के लिए धन का योगदान करने के लिए सभी को एक मंच प्रदान करता है।

रिड्यूस, रीयूज एंड रिकवरी:

ज्यादातर भारतीयों को यह अहसास नहीं होता है कि यदि सही तरीके से निपटान नहीं किया जाता है तो उनके घरों का पानी और गंदगी नदियों तक पहुंच जाती है। सीवरेज इंफ्रास्ट्रक्चर पहले ही सरकार द्वारा बनाया जा रहा है। लोग अगर चाहें तो वे पानी के इस्तेमाल और कचरे के उत्पादन को खुद भी कम कर सकते हैं। प्रयुक्त पानी का बचाव और दोबारा उपयोग के साथ जैविक अपशिष्ट और

20 फरवरी, 2015 : अस्सी घाट पर स्वच्छता बहाली के बाद स्थानीय नावों की कतारें।

पवित्र शहर वाराणसी के अस्सी घाट की सीढ़ियां मिट्टी और गाद से ढकी हुई थीं। आम आगंतुक और तीर्थयात्री घाट का उपयोग नहीं कर ससकते थे। 8 नवंबर, 2014 को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने खुद हाथ में कुदाल लेकर घाट पर जमा गंदगी और मिट्टी को खोदने और हटाने की पहल के साथ सफाई अभियान की शुरुआत की। इसके बाद सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गेनाइजेशन ने घाट की सभी 52 सीढ़ियों की सफाई की। इसके साथ ही 22 फरवरी 2015 को घाट सभी के लिए खोल दिया गया। अब वहां सुबह 5 बजे गंगा आरती के साथ हवन, योग शिविर और दूसरे कार्यक्रम शाम को आयोजित किए जाते हैं। अस्सी घाट अब पर्यटकों के साथ-साथ फिल्मों की शूटिंग के लिए एक हॉट स्पॉट बन गया है। वहां डीलक्स मार्डन सुलभ पब्लिक टॉयलेट्स का निर्माण किया गया है। पर्यटकों के लिए अब अस्सी घाट पूर्व की तरह एक पवित्र स्थान बन गया है जैसा कि वह अतीत में था। प्लास्टिक के भी पुनर्प्रयोग से इस कार्यक्रम को काफी लाभ पहुंचा सकता है। गंगा नदी, जो भारतीय सभ्यता का एक अद्वितीय सांस्कृतिक प्रतीक है, उसे बचाने के लिए सभी भारतीयों को हाथ मिलाकर आगे बढ़ना चाहिए। (शेष अगले अंक में)


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खेल

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इतिहास दोहराने उतरेगा क्रोएशिया

फीफा विश्व कप

विश्व कप में क्रोएशिया की सबसे बड़ी ताकत उसकी मिडफील्ड है

एजाज अहमद

र्ष 1998 के अपने पहले ही फीफा विश्व कप में सेमीफाइनल तक पहुंचकर तीसरे स्थान पर रहने वाली क्रोएशियाई टीम कोच ज्लाटको डालिक के मार्गदर्शन में एक बार फिर अपने पिछले प्रदर्शन को दोहराना चाहेगी। वर्ष 1991 में युगोस्लाविया से स्वतंत्र होने के बाद क्रोएशिया 2010 को छोड़कर छह में पांच बार विश्व कप में अपनी जगह बना चुका है। फीफा की विश्व रैंकिंग में 18वें नंबर पर काबिज क्रोएशिया 1998 के बाद से एक बार से एक बार भी ग्रुप चरण से आगे नहीं बढ़ पाई है। 1998 में उसने नीदरलैंड्स को 2-1 से हराकर तीसरा स्थान हासिल किया था। 2002 और 2006 में वह 23वें और 22वें पर रही। ब्राजील में 2014 में क्रोएशिया 19वें स्थान पर रही थी। टीम के हालिया प्रदर्शन पर अगर नजर डाला जाए तो उसने मार्च में हुए दोस्ताना मैच में पेरू को 2-0 से और मेक्सिको को 1-0 से मात दी है। क्रोएशिया ने विश्व कप क्वालीफाइंग मुकाबले में मिस्र को 4-1 से हराकर रूस में 14 जून से शुरू होने जा रहे विश्व कप का टिकट कटाया जहां उसे

अर्जेंटीना, आइसलैंड और नाइजीरिया के साथ ग्रुप डी में रखा गया है, जो उसके लिए ग्रुप आफ डेथ जैसा है। क्रोएशिया 26 मई से अपना अभ्यास शुरू करेगी और फिर विश्व कप शुरू होने से पहले वह ब्राजील और सेनेगल के साथ क्रमश: तीन और आठ जून को दोस्ताना मैच खेलेगी। टूर्नामेंट में क्रोएशिया 16 जून को नाइजीरिया के साथ मुकाबले से अपने अभियान की शुरूआत करेगा। टीम को उसके बाद फिर 21 जून को अर्जेंटीना से और फिर 26 जून को आइसलैंड के खिलाफ मुकाबले में उतरना है। विश्व कप में क्रोएशिया की सबसे बड़ी ताकत उसकी मिडफील्ड है। स्पेनिश क्लब रियल मेड्रिड के लुका मोड्रिक और माटिओ कोवाचिक के अलावा टीम में बार्सिलोना के इवान रेकिटिक तथा एटलेटिको मेड्रिड के सिमे वसाल्जको मौजूद है। कोच डालिक पहले ही यह कह चुके हैं कि वेद्रन कोलुर्का और एलेक्जेंडर म्रिटोविक चोटिल हैं और उनकी योजना 4 जून को होने वाली टीम की अंतिम 23 सदस्यीय चयन के समय एक डिफेंडर को बाहर रखने की है। उनकी प्राथमिकता स्ट्राइकर मारियो मांजुकिक को टीम में शामिल करने की है।

मांजुकिक से टीम को बड़ी उम्मीदें होंगी, वह अपने देश के लिए 82 अंतरराष्ट्रीय मैचों में 30 गोल कर चुके हैं। हालांकि, टीम को अपने व्यवहार में सुधार लाना होगा। ये व्यवहार खिलाड़ियों के लिए नहीं है, बल्कि स्थिति का कैसे मुकाबला करना

है इसको लेकर है। 51 साल के कोच डालिक के अंदर अनुभव की कमी है जो दबाव में नर्वस दिखाई देने लगते हैं। इसके अलावा टीम का डिफेंस भी इस बार काफी कमजोर हैं। डेजान लोवरेन एवं वेद्रन कोलुर्का टीम में सबसे अनुभवी डिफेंडर हैं।

पुर्तगाल को खिताब दिलाना चाहेंगे रोनाल्डो

रोनाल्डो ने अबतक तीन विश्व कप में हिस्सा लिया है और 33 वर्षीय सुपरस्टार का यह आखिरी विश्व कप भी हो सकता है

गौरव कुमार सिंह

रिश्माई फारवर्ड क्रिस्टियानो रोनाल्डो की अगुवाई में 2016 यूरोपीय चैंपियनशिप में सबको चौकाते हुए खिताब जीतने वाली पुर्तगाल की नजर अगले माह रूस में शुरू होने वाले फीफा विश्व कप की ट्रॉफी पर होगी। रोनाल्डो ने अबतक तीन विश्व कप में हिस्सा लिया है और 33 वर्षीय सुपरस्टार का यह आखिरी विश्व कप भी हो सकता है। ऐसे में दुनिया भर के फुटबाल प्रशंसकों की नजरें इस महान खिलाड़ी पर टिकी होंगी, क्योंकि वह खुद भी ट्रॉफी के साथ विश्व कप को अलविदा कहना चाहेंगे। विश्व कप में एक टीम के रूप में पुर्तगाल का प्रदर्शन मिला-जुला रहा है। पुर्तगाल ने 1966 में पहली बार इस टूर्नामेंट में हिस्सा लिया था। अपने पहले विश्व कप में पुर्तगाल का प्रदर्शन शानदार रहा और टीम ने सेमीफाइनल तक का सफर तय किया। सेमीफाइनल में पुर्तगाल को टूर्नामेंट की विजेता मेजबान इंग्लैंड के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा था। पुर्तगाल एवं उत्तर कोरिया के बीच हुआ क्वार्टर फाइनल मुकाबला विश्व कप इतिहास के

सबसे यादगार मैचों में गिना जाता है। शुरूआती 25 मिनटों में 0-3 से पिछड़ने के बाद पुर्तगाल ने 'द ब्लैक पैंथर' के नाम से मशहूर महान खिलाड़ी युसेबियो के चार गोलों की बदौलत दमदार वापसी करते हुए कोरिया को 5-3 से शिकस्त दी। युसेबियो ने विश्व कप में बेहतरीन प्रदर्शन किया और टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा कुल नौ गोल दागे। पुर्तगाल के फुटबाल इतिहास में सबसे ज्यादा गोल करने वाले रोनाल्डो ने पहली बार 2006 विश्व कप में भाग लिया। रानाल्डो, लुइस फीगो और पॉलेटा जैसे खिलाडियों की मौजूदगी में टीम ने शानदार प्रदर्शन किया लेकिन 1966 की तरह इस बार भी टीम का सफर

सेमीफाइनल में रुक गया। फ्रांस ने एक कड़े सेमीफाइनल मुकाबले में पुर्तगाल को 1-0 से मात दी। रोनाल्डो को 2010 विश्व कप के लिए टीम का कप्तान बनाया गया। इंग्लिश क्लब मैनचेस्टर युनाइटेड से 9.4 करोड़ यूरो की कीमत पर स्पेनिश क्लब रियल मेड्रिड में शामिल होने वाले रोनाल्डो से विश्व कप में दमदार प्रदर्शन की उम्मीद थी, लेकिन वह पूरे टूनार्मेंट में एक ही गोल दाग पाए ओर टीम प्रीक्वार्टर फाइनल मुकाबले स्पेन के खिलाफ हारकर विश्व कप से बाहर हो गई। रोनाल्डो की कप्तानी में ब्राजील में हुए 2014 विश्व कप में भी पुर्तगाल अच्छा प्रदार्शन नहीं कर पाई और ग्रुप स्तर से

आगे नहीं बढ़ पाई। रोनाल्डो पूरे टूर्नामेंट के दौरान घुटने की चोट से भी जूझते नजर आए। 2018 विश्व कप के लिए पुर्तगाल की टीम में भले ही सुपरस्टार खिलाड़ियों की भरमार ना हो, लेकिन 2016 यूरोपीय चैंपियनशिप में किए गए शानदार प्रदर्शन के बाद कोई भी टीम उन्हे हल्के में लेने की गलती नहीं करेगी। फर्नांडो सांतोस के सितंबर 2014 में पुर्तगाल का कोच बनने के बाद भी टीम के प्रदर्शन में बदलाव आया है। सांतोस के मार्गदर्शन में पुर्तगाल ने 24 में से कुल 20 मैच जीते हैं, जबकि केवल एक में उसे हार का सामना करना पड़ा है। पुर्तगाल भले ही रोनाल्डो पर अत्याधिक निर्भर नजर आए लेकिन विश्व कप में ग्रुप बी में मौजूद स्पेन, मोरक्को एवं ईरान की टीम बर्नाडो शिल्वा, आंद्रेस सिल्वा एवं रिकाडरे क्वारेसमा के कौशल से भी परिचित होगी। फारवर्ड लाइन की तरह पुर्तगाल की मिडफील्ड में भी सधी हुई नजर आ रही है। पुर्तगाल के तीन प्रमुख डिफेंडर पेपे, ब्रेनो आल्वेस एवं जोसे फोंते की उम्र 30 के पार है, लेकिन इन खिलाड़ियों का अनुभव टीम के लिए संजीवनी बूटी साबित हो सकती है। पुर्तगाल विश्व कप में अपना पहला मैच 15 जून को स्पेन के खिलाफ खेलेगी।


04 - 10 जून 2018

कही-अनकही

उसूलों के पक्के दत्त साहब

सु

तारेंद्र किशोर

मुंबई की फिल्मी दुनिया से राजनीति और समाज सेवा के क्षेत्र में आए सुनील दत्त अकेले ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने एक राजनेता के तौर पर भी आदर्श कायम किया

नील दत्त को पहचान भले ही एक अभिनेता के तौर पर मिली हो, लेकिन उन्हें सिर्फ एक अभिनेता के तौर पर देखना, उनकी शख्सियत के इस दूसरे सबसे बड़े आयाम को नजरअंदाज करना होगा। अब के पाकिस्तान स्थित पंजाब के झेलम जिले के खुर्द गांव में 6 जून 1929 को सुनील दत्त का जन्म हुआ था। वो वहां के एक जमींदार परिवार से थे। लेकिन बंटवारे के बाद अपनी जमीन-जायदाद छोड़ भारत आना पड़ा था। पिता का साया तो बचपन में ही उठ गया था। हिंदुस्तान की सरजमीं पर एक रिफ्यूजी की पहचान के साथ मुफलिसी में उनके जीवन का संघर्ष शुरू हुआ। पाकिस्तान से आकर उन्होंने हरियाणा के यमुनानगर के मंडोली गांव में शरण ली थी। इसके बाद उनका परिवार लखनऊ गया और सुनील दत्त लखनऊ से बंबई चले गए। बंबई के काला घोड़ा में नौसेना की एक इमारत में उन्होंने रहने के लिए एक कमरे का जुगाड़ किया था। उस छोटे से कमरे में उनके साथ आठ लोग रहते थे, जिसमें दर्जी से लेकर नाई का काम करने वाले लोग थे। सुनील दत्त ने यहीं जय हिंद कॉलेज में दाखिला लिया और एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में छोटी-सी नौकरी पकड़ ली। इसके बाद वे रेडियो सीलोन में उद्घोषक बने और यहीं से फिल्मी कलाकारों के इंटरव्यू लेते हुए फिल्मी दुनिया के दरवाजे तक पहुंच गए। पहली बार नर्गिस यहीं एक इंटरव्यू के सिलसिले में उनसे मिली थीं, लेकिन नर्गिस को देखकर सुनील दत्त इतने नर्वस हो गए थे कि वो उनसे कोई सवाल नहीं कर सके । नतीजतन ये शो रद्द करना पड़ा था। बाद में यही नर्गिस उनकी जीवनसाथी बनीं। मदर इंडिया के सेट पर आग से नर्गिस को बचाने के बाद कैसे वे दोनों एक-दूसरे के नजदीक आए और जिंदगी भर के लिए एक-दूजे के हो गए, ये किस्सा तो शायद सब को पता हो। लेकिन कम लोग ही

खास बातें पाकिस्तान स्थित झेलम जिले के खुर्द गांव में 6 जून 1929 को जन्म फिल्मों में आने से पहले रेडियो उद्घोषक के तौर पर कार्य धार्मिक सद्भाव और शांति के लिए कई पदयात्राएं कीं

जानते हैं कि शादी की बात एक साल तक दोनों ने दुनिया से छिपाकर रखी थी। शादी करने के बाद दोनों एक साल तक अपने-अपने घरवालों के साथ रहे। एक साल बाद उन्होंने ये बात दुनिया के सामने मानी कि दोनों ने शादी कर ली है। दो घटनाओं ने सुनील दत्त के व्यक्तित्व के निर्माण में बड़ी भूमिका निभाई थी। एक थी नर्गिस से शादी और दूसरी भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय पाकिस्तान में भड़के दंगे में याकूब नाम के एक मुसलमान द्वारा उनके परिवार की हिफाजत करना। वे ताउम्र हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के पैरोकार बने रहे। धर्मनिरपेक्षता, शांति और सद्भाव जैसे जीवन मूल्यों के प्रति जीवन भर समर्पित रहने वाले सुनील दत्त राजीव गांधी के कहने पर राजनीति में आए थे। उन्हें लगा कि राजनीति के माध्यम से वो अपना संदेश लोगों तक बखूबी पहुंचा सकते हैं। इन सिद्धांतों के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने अपनी राजनीतिक संसाधनों का खूब इस्तेमाल भी किया। इस देश में अभिनेता से राजनेता बने किसी दूसरे व्यक्ति में यह खासियत शायद ही हो। उनका मानना था, ‘धर्मनिरपेक्षता का मतलब अच्छा इंसान बनने से है जो सभी मजहबों की इज्जत करता हो।’ 1987 में उन्होंने पंजाब में उग्रवाद की समस्या के समाधान के लिए बॉम्बे से अमृतसर के स्वर्ण मंदिर तक 2,000 किलोमीटर की पैदल यात्रा की थी। इस यात्रा के दौरान का एक दिलचस्प किस्सा है।

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रमेश डावर की किताब बॉलीवुड: यस्टर्डे, टुडे एंड उनके गांव जाने के सारे इंतजाम कर दिए। पत्नी नर्गिस की मृत्यु कैंसर से होने के बाद टुमॉरो। इस किताब में इस वाकये का जिक्र है। एक ईसाई लड़के के हवाले से इसमें कहा गया है, उन्होंने नर्गिस दत्त मेमोरियल फाउंडेशन की शुरुआत ‘मैंने ईसा मसीह के बारे में सुना था। मुझे खुशी है की। साथ ही कैंसर पर एक फिल्म बनाई ‘दर्द का कि मैं ईसा मसीह के साथ आज पैदल यात्रा कर रिश्ता’ और इससे हुई कमाई टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल को दान में दे रहा हूं।’ इसके अगले साल दी। टाटा मेमोरियल कैंसर 1988 में उन्होंने जापान के अस्पताल में होने वाले भारत नागासाकी से हिरोशिमा तक 1987 में उन्होंने पंजाब के पहले बोनमैरो ट्रांसप्लांट विश्व शांति और परमाणु में उग्रवाद की समस्या के के लिए अमेरिका से दवा हथियारों को नष्ट करने को समाधान के लिए बॉम्बे से मंगवाई। अमेरिका, ब्रिटेन, लेकर 500 किलोमीटर की पैदल यात्रा की। सुनील दत्त अमृतसर के स्वर्ण मंदिर तक कनाडा, जर्मनी और हॉलैंड कहा करते थे कि जो पैसा 2,000 किलोमीटर की पैदल से नर्गिस दत्त मेमोरियल फाउंडेशन के जरिए पचास हम हथियारों पर खर्च करते यात्रा की थी लाख अमेरिकी डॉलर हैं, वो लोगों को पानी मुहैया इकट्ठा किए, जो उन्होंने कराने, सब को शिक्षा, मेडिकल सुविधाएं और नौजवानों को रोजगार देने भारत के तमाम अस्पतालों को कैंसर के इलाज के पर खर्च कर सकते हैं। 1990 में उन्होंने भागलपुर लिए दिए। एक वक्त ऐसा भी आया जब सुनील दत्त दंगे के बाद सांप्रदायिक शांति कायम करने के लिए के राजनीतिक सिद्धांत और मूल्यों के सामने एक भागलपुर का दौरा किया। इसके बाद उन्होंने धार्मिक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई थी। बेटे संजय दत्त बंबई सद्भाव बनाने के लिए फैजाबाद से अयोध्या तक बम धमाकों के दौरान अवैध तरीके से हथियार रखने के मामले में अभियुक्त थे। संजय दत्त ने खुद को की पदयात्रा की। सुनील दत्त उन लोगों में से थे जिनके लिए ये निर्दोष बतलाया था और सुनील दत्त को अपने बेटे मानना हमेशा मुश्किल रहा कि भारत-पाकिस्तान की बेगुनाही पर यकीन था। सुनील दत्त को अंतरराष्ट्रीय शांति और अब दो देश है। वे कहते थे कि मैं पाकिस्तान के लोगों से उतना ही प्यार और स्नेह महसूस सांप्रदायिक सद्भाव के लिए खान अब्दुल गफ्फार करता हूं जितना कि खान, राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सौहार्द के अपने हिंदुस्तान के लिए मौलाना अबुल कलाम आजाद और हिंसा लोगों से। पचास और आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के लिए राजीव साल के बाद एक गांधी राष्ट्रीय सद्भावना अवॉर्ड जैसे पुरस्कारों से बार पाकिस्तान यात्रा नवाजा गया। इससे पहले 1968 में ही सुनील दत्त के दौरान उनका अपने को पदमश्री मिल चुका था । उनकी मौत के बाद गांव खुर्द जाना हुआ। मंडोली गांव के लोग उनकी याद में गांव में एक जब उन्होंने प्रधानमंत्री स्मारक बनवाना चाहते थे, लेकिन उनकी बेटी प्रिया नवाज शरीफ के दत्त ने उन्हें मना करते हुए कहा कि पिताजी इसके सामने अपने पैतृक बजाए लोगों के दिल में रहना ज्यादा पसंद करेंगे। गांव जाने की इच्छा सुनील दत्त अपनी आत्मकथा लिखना चाहते थे जताई तो शरीफ ने इसके लिए उन्होंने बहुत सारी यादें और दस्तावेज इकट्ठा कर रखे थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। उनके जाने के बाद उनकी दोनों बेटियों नम्रता दत्त और प्रिया दत्त ने इसे एक किताब की शक्ल में ‘मिस्टर एंड मिसेज दत्त: मेमॉयर्स ऑफ अवर पैरेंट्स’ के नाम से प्रकाशित किया।


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सा​िहत्य

04 - 10 जून 2018

पत्नी

कविता

गरीबी एक एहसास शैल मिश्रा गरीबी एक एहसास हजारों दर्द है इनमें कहे किससे जाकर ये हजारों दर्द है इनमें कहे किससे जाकर ये उसी मिट्टी में पलते हैं उसी मिट्टी में मिल जाते है​ैं सुनो जब हाल इनके दिल का तो दिल दहल ही जाता है न जाने कितनी हसरत को छुपाए दिल में बैठे हैं मिलो एक बार जाकर के, ये हजारों गम दिल में छुपाए बैठे हैं यहां तो बाहरी दुनिया का चमकना जरूरी है जरा उन पर नजर डालो जो नजर झुकाए बैठे हैं

अंहकार

क शिष्य ने ज्ञान की प्राप्ति के बाद गुयदक्षिणा देनी चाहिए। गुरू ने कहा गुरूदक्षिणा में मुझे ऐसी वस्तु चाहिए जो बिल्कुल व्यर्थ हो। शिष्य चीज की खोज में निकल पड़ा। मिट्टी को व्यर्थ समझकर उसने मिट्टी की तरफ हाथ बढ़ाया तो उसका अंतर्मन बोला- अरे मूर्ख तुम इसे व्यर्थ समझ रहे हो? धरती का सारा वैभव इसी के गर्भ से प्रकट होता है। वह चलता गया। घूमते फिरते उसे गंदगी का ढेर दिखा। उसे देखते ही शिष्य के मन में घृणा उभरी। सोचा इससे बेकार चीज और क्या होगी? उसका अंतर्मन फिर बोला- इससे बढि़या खाद कहा मिलेगी? फसलें इसी का पोषण ग्रहण करती है।, शिष्य गहरी सोच में डूब गया, तो भला व्यर्थ क्या हो सकता है? तभी ज्ञान का प्रकाश हुआ कि सृष्टि का हर पदार्थ उपयोगी है। व्यर्थ और तुच्छ तो वह है जो दूसरों को व्यर्थ और तुच्छ समझता हैं अंहकार के सिचा व्यर्थ और क्या हो सकता है? शिष्य गुरू के पास लौटा। गिड़गिड़ाया -

पूजा माथुर

मैं

ने अपने घरेलू नौकर से पूछा। रामलाल तुम अपनी बीबी से इतना क्यों डरते हो? मैं डरता नहीं सर, उसकी कद्र करता हूं उसका सम्मान करता हूं। मैं हंसा और बोला- ऐसा क्या है उसमें। ना सूरत, ना पढ़ी लिखी। जबाव मिला- कोई फर्क नहीं पड़ता सर कि वो कैसी है, पर मुझे सबसे प्यारा रिश्ता उसी का लगता है। जोरू का गुलाम। मेरे मुंह से निकला। और सारे रिश्ते कोई मायने नहीं रखते तेरे लिए। मैंने पूछा। उसने बहुत इत्मिनान से जबाव दियासर जी, मां बाप रिश्तेदार नहीं होते।वो भगवान

होते हैं। उनसे रिश्ता नहीं निभाते उनकी पूजा करते हैं। भाई बहन के रिश्ते जन्मजात होते हैं , दोस्ती का रिश्ता भी मतलब का ही होता है। आपका मेरा रिश्ता भी जरूरत और पैसे का है , पर,पत्नी बिना किसी करीबी रिश्ते के होते हुए भी हमेशा के लिए हमारी हो जाती है, अपने सारे रिश्ते को पीछे छोड़कर। और हमारे हर सुख दुख की सहभागी बन जाती है आखिरी सांस तक। वह आगे बोला- सर जी, पत्नी अकेला रिश्ता नहीं है, बल्कि वो पूरा रिश्तों की भंडार है। जब वो हमारी सेवा करती है हमारी देख भाल करती है , हमसे दुलार करती है तो एक माँ जैसी होती है। जब वो हमें जमाने के उतार चढ़ाव से आगाह करती है और मैं अपनी सारी कमाई उसके हाथ पर रख देता हूं। क्योंकि जानता हूं वह हर हाल मे मेरे घर का भला करेगी तब पिता जैसी होती है। जब वह सारे घर का लेन देन , खरीददारी , घर

विकास

गुरूदेव, दर-दर खोजन के बावजूद मुझे धरती पर अंहकार के अलावा व्यर्थ और कुछ नहीं मिला। इसीलिए मैं दक्षिणा में अंहकार देने आया हू।

यह सुनकर गुरू प्रसन्न हो गए। बोले- सही समझे वत्स अंहकार के विसर्जन से ही विद्या सार्थक और फलदायाक होती है।

चलाने की जिम्मेदारी उठाती है तो एक मालकिन जैसी होती है। और जब वही सारी दुनिया को, यहां तक कि अपने बच्चों को भी छोड़कर हमारी बाहों मे आती है, तब वह पत्नी, प्रेमिका, प्रेयसी, हमारी प्राण और आत्मा होती है, जो अपना सब कुछ सिर्फ हम पर न्योछावर करती है। मैं उसकी इज्जत करता हूं तो क्या गलत करता हूं सर। मैं उसकी बात सुकर अवाक रह गया।। एक अनपढ़ और सीमित साधनों मे जीवन निर्वाह करने वाले से जीवन का यह फलसफा सुनकर मुझे एक नया अनुभव हुआ । और मैं अपनी पत्नी को आजतक लड़ाकी समझ रहा था, धिक्कार है मेरी सोच को ...।

कविता

नया आकाश लिली गुप्ता

दुनिया के आईने मे कैद है एक रोती हुई हंसती गुड़िया वह अच्छी नहीं लगती सुविधाओं में जीती हुई वह सुघड़ नहीं लगती चुपचाप रसोई में जब वह काम नहीं करती जीवन के संघर्ष में जब सोचती है अपने लिए जीना शुरू करती है जब अपने लिए बंधनों को जब वह नकारती है तो वह लगने लगती है। कुरूप कुलटा मेहनत से कमाई रोटी को वो कहते हैं पाप की कमाई औरत का बगल में होना और उसका ना होना बस एक संख्या हो जाती है बस एक ही जिंदगी मां बहन बेटी पत्नी और बस सब यही चाहते हैं सिवा उसकी मर्जी के चल पड़ी है नारी, तोड़ चुकी है परंपरा भूल चुकी है दम तोड़ती रसोई की गरमी जीती है वह अपने दम पर सांसे भरती है वो अपने लिए मिल गया है एक नया आकाश


04 - 10 जून 2018

आओ हंसें

एटीएम लाइन में

लड़का : पैसे निकल रहे हैं क्या? लड़की : नहीं। लड़का : मैं ट्राई करता हूं। लड़के के पैसे निकल गए। लड़की : वाओ... आपके पैसे कैसे निकल गए। लड़का : मैंने कार्ड सीधा लगाया था।

मदद का रिश्ता

संता बीवी से कपड़े धुलवा रहा था। बंता : तुझे शर्म नहीं आती। बीवी के साथ कपड़े धुलवाता है। संता : इसमें शर्म की क्या बात है? ये भी तो मेरी रोटी बनाने में मदद करती है।

सु

जीवन मंत्र

डोकू -25

कामयाब लोग अपने फैसले से दुनिया बदल देते हैं। नाकाम लोग दुनिया के डर से अपने फैसले बदल लेते हैं।

रंग भरो सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी व‌िजते ा को 500 रुपए का नगद पुरस्कार द‌िया जाएगा। सुडोकू के हल के ल‌िए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देख।ें

महत्वपूर्ण दिवस

• 4 जून बाल यातना एवं अवैध तस्करी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दिवस • 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस, गुरु गोलवलकर स्मृति दिवस • 8 जून विश्व महासागर दिवस, विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस • 9 जून बिरसा मुंडा शहीद दिवस, अंतरराष्ट्रीय अभिलेख दिवस • 10 जून

सुडोकू-24 का हल

दृष्टिदान संकल्प दिवस

वर्ग पहेली - 25

1. इच्छा (3) 3. सदाबहार (5) 6. जीवन, साँस (2) 7. बेसहारा (4) 8. एक नक्षत्र (4) 9. नियत, निश्चय (2) 10. थोड़ा (3) 12. दर्जा, ग्रहों का मार्ग, परिधि (2) 14. अँग्रेजी साल का दूसरा माह (4) 15. भेंट (4) 16. गली (2) 17.परिपाटी, संस्कार, व्यवहार (5) 18. पर्णशाला, झोंपड़ी (3)

वर्ग पहेली-24 का हल

बाएं से दाएं

ऊपर से नीचे

31

इंद्रधनुष

2. शराबघर (5) 3.तीर (2) 4. साथ बैठने वाला मित्र (4) 5. सरहद की रक्षा करना (5) 6. पाप या शास्त्र विरुद्ध कर्म से मुक्ति का उपाय (4) 9. पक्षपात (5) 11. छोटा धनुष (4) 12. कूड़ा डालने का डिब्बा (5) 13. एक फिल्म संगीतकार जोड़ी का नाम (4) 16. ध्वनि शब्द (2)

कार्टून ः धीर


32

न्यूजमेकर

04 - 10 जून 2018

अनाम हीरो

डी. प्रकाश राव

गगनदीप सिंह

ी च ं ऊ क त न गग इंसानियत

हिंसक भीड़ से एक मुस्लिम युवक को बचाने के इंसानी हौसले ने गगनदीप सिंह को हीरो बनाया

चाय बेचकर चला रहे स्कूल

गरीब बच्चों के लिए स्कूल चलाते हैं राव, पीएम मोदी ने भी की तारीफ

डिशा के कटक में चाय बेचने का काम करने वाले डी. प्रकाश राव अपने कार्य और लगन से सबको प्रेरणा दे रहे हैं। राव चाय बेचने के साथ-साथ स्कूल भी चलाते हैं। उनके स्कूल में झोपड़ियों में रहने वाले बच्चे पढ़ते हैं। उनके इस कार्य की तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ में की थी। पीएम ने कहा, ‘आप जानकर हैरान हो जाएंगे, उन्होंने 70 से अधिक बच्चों के जीवन में उजाला भरा है। उन्होंने ‘आशा-आश्वासन’ नाम का स्कूल खोला

है।’ इसके अलावा राव अस्पताल में मरीजों की मदद भी करते हैं। उन्होंने बताया कि वह अपनी आय का आधा हिस्सा इस स्कूल पर खर्च करते हैं। बातचीत के क्रम में राव बताते हैं, ‘मैं अस्पताल में मरीजों की भी मदद करता हूं। मैं सुबह 10 बजे तक चाय बेचता हूं, उसके बाद मैं यहां पढ़ाता हूं और इस स्कूल के लिए अपनी आय का आधा हिस्सा देता हूं।’ प्रकाश राव पिछले 50 सालों से चाय बेच रहे हैं।

अनुष्का पांडा

दिव्यांग बनी टॉपर सीबीएसई की 10वीं की परीक्षा में दिव्यांग श्ण रे ी में किया टॉप

सी

बीएसई की 10वीं की परीक्षा में गुरुग्राम के सनसिटी स्कूल की छात्रा अनुष्का पांडा ने 97.8 फीसदी अंकों के साथ देश में दिव्यांग श्रेणी में टॉप किया है। देश भर में टॉप करने पर अनुष्का ने कहा, ‘मैं बहुत खुश हूं कि मेरे कठिन मेहनत का पुरस्कार मिला है। यह मेरे लिए वास्तव में एक बड़ा क्षण है। मैं रिजल्टल आने से पहले काफी नर्वस थी।’ अनुष्का को रीढ़ की बीमारी स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉपी है। यह ऐसी अनुवांशिक बीमारी है, जिससे रीढ़ की हड्डी की मोटर नर्व कोशिकाएं प्रभावित होती हैं। इससे रोगी को चलने-फिरने

समेत दूसरी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। व्हीलचेयर पर आश्रित होने के बावजूद 14 साल की अनुष्का ने यह सफलता हासिल की है। अपनी सफलता के बारे में अनुष्का ने कहा, ‘मैं पहले दिन से ही अपनी पढ़ाई में लगी हुई थी। मैं अपने स्कू‘ल को धन्यवाद देती हूं, जिसने मेरी काफी मदद की।’ सनसिटी स्कूल की प्रिंसिपल रूपा चक्रवर्ती ने कहा, 'हमें अनुष्का पर काफी गर्व है। वह काफी प्रतिबद्ध है और किसी भी मुश्किल को अपने ऊपर हावी होने नहीं देती है और उसके मानदंड काफी ऊंचे हैं। वह हम सभी के लिए प्रेरणा है।’

ज जब धर्म के नाम पर लोग एक-दूसरे को मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं, एक पुलिस सबइंस्पेक्टर ने इंसानियत की ऐसी मिसाल पेश की कि वो रातोंरात सोशल मीडिया पर हीरो बन गया। यह कहानी गगनदीप सिंह की है, जो पुलिस सब इंस्पेक्टर हैं और उनकी तैनाती उत्तराखंड के रामनगर में है। जिस दिन भीड़ मुस्लिम लड़के को मारने पर उतारू थे, उस दिन सब-इंस्पेक्टर गगनदीप सिंह की ड्यूटी कोसी नदी के किनारे बने गरजिया देवी मंदिर के बाहर थी। यहीं भीड़ एक मुस्लिम लड़के को हिंदू लड़की के साथ देखकर भड़क गई थी और मुस्लिम लड़के को मारने पर उतारू हो गई। उस वक्त सब-इंस्पेक्टर गगनदीप सिंह उस लड़के की मदद के लिए आगे आए। उन्होंने मुस्लिम लड़के को अपने आगोश में ले लिया और उस पर टूटती भीड़ को दूर खदेड़ दिया। सैकड़ों की भीड़ से इस मुस्लिम लड़के को बचाने वाले सरदार पुलिस अफसर का वीडियो तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इसके बाद कई लोगों ने अपनी फेसबुक प्रोफाइल, व्हाट्सऐप पर इस अफसर की तस्वीर साझा कर दी। रातों-रात एक पुलिस सब-इंस्पेक्टर सोशल मीडिया के हीरो बन गए। उनके मुताबिक, ‘इसमें क्या बहादुरी है कि एक पुलिसवाला किसी आदमी की जान बचाए। मैं अपनी ड्यूटी कर रहा था। मैंने उस लड़के की आंखों में डर और बेबसी देखी थी। वो बुरी तरह कांप रहा था। उसने मुझे कसकर पकड़ लिया था। उसे मुझ में उम्मीद दिख रही थी। ऐसे में मैं कैसे उसे छोड़ सकता था। अगर मैं ऐसा करता तो अपनी आंखों में गिर जाता।’ गगनदीप का बचपन संर्घषों में बीता है। जब वे महज दो साल के थे, उनके पिता की मौत हो गई थी। उसके बाद मां ने ही उन्हें अकेले पाला-पोसा और आज इस काबिल बनाया। गगनदीप पुलिस में जाना चाहते थे। ऐसा इसीलिए नहीं कि उन्हें वर्दी पसंद थी, बल्कि इस नौकरी के जरिए वो समाज में कुछ बदलाव ला सकते थे।

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 25


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