सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 36)

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मेरे अटल जी!

अनंत प्रेरणा

पड़ोस और प्रेम

अटल कविताएं

प्रधानमंत्री

केंद्रीय मंत्री

कार्यकारी संपादक, जियो टीवी

की रचनाएं

नरेंद्र मोदी

अरुण जेटली

हामिद मीर

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

बदलते भारत का साप्ताहिक

अटल स्मृति

अटल जी

डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

वर्ष-2 | अंक-36 | 20 - 26 अगस्त 2018

अटल बिहारी वाजपेयी (25 नवंबर 1924 - 16 अगस्त 2018)

मैं जी भर जिया मैं मन से मरूं लौटकर आऊंगा कूच से क्यों डरूं?


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अटल स्मृति

20 - 26 अगस्त 2018

‘सुलभ ऑनेस्ट मैन ऑफ द ईयर अवार्ड’

अटल बिहारी वाजपेयी के यशस्वी व्यक्तित्व और राष्ट्र के प्रति समर्पित जीवन को देखते हुए सुलभ संस्था की तरफ से उन्हें प्रतिष्ठित ‘सुलभ ऑनेस्ट मैन ऑफ द ईयर अवार्ड-1997’ देने का निर्णय किया। प्रधानमंत्री रहते हुए अटल जी ने न सिर्फ इस पुरस्कार को स्वीकार किया बल्कि इस मौके पर सुलभ के स्वच्छता कार्यों की सराहना भी की

लोकतंत्र ऐसी जगह है, जहां दो मूर्ख मिलकर एक शक्तिशाली इंसान को हरा देते हैं

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एसएसबी ब्यूरो

नवंबर 1998 को अटल जी को एक ऐसा पुरस्कार मिला, जो उनके कृतित्व और यश के साथ जीवन में अटल निष्कलंकता की देन था। ‘सुलभ ऑनेस्ट मैन ऑफ द ईयर अवार्ड’ के नाम पर यह प्रतिष्ठित पुरस्कार उन्हें सुलभ इंटरनेशनल की तरफ से दिया गया। उन्हें यह पुरस्कार वर्ष 1997 के लिए दिया गया था औऱ तब वे विपक्ष के नेता थे। पर 1998 में वे प्रधानमंत्री बन चुके थे, सो ​सरकारी एजेंसियों ने उन्हें पुरस्कार

खास बातें वर्ष 1997 के लिए अटल जी को दिया गया था यह पुरस्कार जब पुरस्कार का निर्णय किया गया था तब वे पीएम नहीं थे लखनऊ में सुलभ के स्वच्छता कार्यों की अटल जी ने की प्रशंसा

अटल जी को यह पुरस्कार सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक की उपस्थिति में तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्णकांत ने प्रदान किया। अटल जी ने पुरस्कार स्वरूप मिले पांच लाख रुपए सुलभ संस्था को उसी समय लौटा दिए स्वीकार करने से यह कहकर मना किया कि आप प्रधानमंत्री हैं इसीलिए आपको किसी एनजीओ से पुरस्कार ग्रहण नहीं करना चाहिए। अटल जी ने उनसे कहा कि यह पुरस्कार मैंने तब स्वीकारा था जब मैं विपक्ष में था। इसीलिए प्रधानमंत्री बनने के बाद इस पुरस्कार को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। पुरस्कार के पीछे की भावना और इसे स्वीकार करने के सकारात्मक संदेश को समझते हुए उन्होंने यह पुरस्कार स्वीकार किया।

उपराष्ट्रपति ने दिया पुरस्कार

अटल जी को यह पुरस्कार सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक की मौजूदगी में तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्णकांत ने भेंट किया। अटल जी ने पुरस्कार स्वरूप मिले पांच लाख रुपए सुलभ संस्था को उसी समय लौटा दिए। इस मौके पर अटल जी ने कहा कि खासतौर पर जब उन्होंने पुरस्कार के लिए बने निर्णायक मंडल में शामिल नामों पर गौर किया तो उन्हें लगा कि उन्हें इस बारे में ‘हां’

कह देना चाहिए। गौरतलब है कि इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए बनाए गए निर्णायक मंडल में जस्टिस यदुनाथ शरण सिंह, जस्टिस शम्सुल हसन (दोनों पटना हाईकोर्ट के सेवानिवृत जज) और डॉ. आंबेडकर विश्वविद्यालय, बिहार के तत्कालीन कुलपति डॉ. जियाउद्दीन अहमद शामिल थे।

सुशासन पर बोले अटल

इस अवसर पर पुरस्कार स्वीकार करते हुए अटल जी ने कहा, ‘प्रशासन में नैतिकता की बहाली सुनिश्चित करने के लिए कठिन उपाय किए जाने चाहिए, क्योंकि इसके बिना सुशासन संभव नहीं होगा। अब समय आ गया है कि व्यवस्था को ईमानदार और पारदर्शी बनाने के लिए भारतीय समाज में नैतिक पुनरुत्थान को लेकर प्रभावी कदम उठाए जाएं।’

सुलभ की सराहना

इस मौके पर अटल जी ने खासतौर पर स्वच्छता


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अटल स्मृति

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अटल! तुम तो अटल हो डॉ. विन्देश्वर पाठक (सुलभ प्रणेता)

अटल! तुम तो अटल हो, ऐसे कैसे कि कुछ टल जाए तुम सुबह हो तुम शाम नहीं कि पलकों में ही वह ढल जाए। अटल! तुम तो ...।

भारत माता के तुम हो सपूत ऐसे कैसे कि कुछ बिगड़ जाए पोखरण के ऐसा कुछ करो उपाय कि अपराध, भ्रष्टाचार भारत से मिट जाए। अटल! तुम तो ...। पोखरण से हमारा मान बढ़ा है देश का बड़ा सम्मान बढ़ा है अब कहते हैं अप्रवासी हम भी हैं अब भारतवासी। अटल! तुम तो ...। गांधी का एक सपना था वाल्मीकि उनका अपना था रोजी-रोटी और सम्मान उनको भी दे दो भगवान। अटल! तुम तो ...।

हम तुम्हारा कर रहे हैं सम्मान आज कर दो राष्ट्र को आह्वान वाल्मीकि अब मैला नहीं उठाएंगे इज्जत की रोटी खाएंगे हम सब उनको गले लगाएंगे हम सब उनको गले लगाएंगे। अटल! तुम तो अटल हो, ऐसे कैसे कि कुछ टल जाए तुम सुबह हो तुम शाम नहीं कि पलकों में ही वह ढल जाए। अटल! तुम तो ...।

के क्षेत्र में सुलभ द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की। उन्होंने कहा कि जब वे लखनऊ से सांसद चुने गए तो वहां के लोगों ने स्वच्छता को लेकर कुछ समस्याएं बताईं। उन्हें लगा कि यह अहम समस्या है और इसे दूर किया जाना चाहिए। अटल जी के शब्दों में, ‘जब मैंने अपने संसदीय क्षेत्र लखनऊ में स्वच्छता सुविधाओं का जायजा लिया, तो मैंने वहां की समस्याएं दूर करने के लिए सुलभ संस्था से संपर्क किया। मुझे अभी तक वहां से सुलभ द्वारा किए कार्यों को लेकर किसी तरह की शिकायत सुनने को नहीं मिली है।’

अभिनंदन के शब्द

‘सुलभ ऑनेस्ट मैन ऑफ द ईयर अवार्ड’ दिए जाने के मौके पर अटल जी को जो अभिनंदन पत्र सौंपा गया, उसमें इस बात का खासतौर पर उल्लेख किया गया कि उन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में शिरकत करने से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक राष्ट्र के प्रति एक समर्पित जीवन जिया। सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में वे जिन मूल्यों और आदर्शों पर सदैव खड़ा रहे, वह न सिर्फ दुर्लभ है, बल्कि सबके लिए प्रेरक भी है।

पुरस्कार की शुरुआत

गौरतलब है कि ‘सुलभ ऑनेस्ट मैन ऑफ द ईयर अवार्ड’ की शुरुआत नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए किया गया था। यह पुरस्कार सुलभ आंदोलन के स्वर्ण जयंती वर्ष 1995 में पहली बार देने का निर्णय किया गया। इसके पीछे बड़ा मकसद यह था कि इसके जरिए सार्वजनिक जीवन में उच्च नैतिक मूल्यों को बनाए रखते हुए ईमानदारी के साथ कर्तव्यों के प्रति समर्पित जीवन जीने वाले प्रेरक व्यक्तित्व को पुरस्कृत किया जाएगा। इस पुरस्कार के लिए अटल जी के नाम को लेकर निर्णायकों के बीच एक स्वाभाविक सहमति इसलिए बनी, क्योंकि वे सबकी नजर में सिद्धांतप्रिय और देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए समर्पित राजनेता थे।

कड़ी मेहनत कभी भी आप पर थकान नहीं लाती, वो आपके लिए संतोष ही लाती है


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अटल स्मृति

चार दशक लंबी अटल साधना

सु

मेरा कवि हृदय मुझे राजनीतिक समस्याएं झेलने की शक्ति देता है

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‘सुलभ ऑनेस्ट मैन ऑफ द ईयर अवार्ड-1997’ अर्पण समारोह में सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक का भावपूर्ण संबोधन

लभ आंदोलन से जुड़े सभी लोगों की ओर से आप सभी का हम स्वागत करते हैं। साथ ही, हम स्वागत, अभिनंदन करते हैं, माननीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का, माननीय उप-राष्ट्रपति कृष्णकांत का और देश के गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी जी का, जिन्होंने अपने बहुमूल्य समय से कुछ वक्त निकालकर सुलभ के कार्यक्रम में आने की कृपा की। सुलभ आंदोलन के प्रेरणास्त्रोत थे, बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय दरोगाप्रसाद राय। उन्होंने कहा था, ‘सामाजिक महत्त्व का कार्य सरकार अकेले पूरा नहीं कर सकती है। लेकिन यदि सरकार और सामाजिक संस्थाएं मिल जाएं, तो सभी सामाजिक महत्त्व के काम पूरे हो सकते हैं।’ सुलभ आंदोलन आज कश्मीर से कन्याकुमारी तक, सभी राज्यों में सरकार के साथ मिलकर गांधी जी का सपना साकार करने में लगा हुआ है। सुलभ की प्रेरणा के दूसरे स्रोत थे, तत्कालीन आईएएस अधिकारी रामेश्वर नाथ, जिन्होंने मुझसे साल 1971 में ही कहा था कि तुम्हारा काम पूरे भारत में बहुत बड़ा प्रभाव डालेगा। लेकिन एक बात से तुम्हें सावधान रहना होगा, वह यह कि तुम्हें सरकारी अनुदान से दूर रहना होगा क्योंकि सरकारी अनुदान ही तुम्हारे लिए कठिनाईयां बनेंगी। इसीलिए कार्य पूरा कर जो धन बचे, उसी से ही यह संस्था चलाना। उसी परामर्श को ध्यान में रखते हुए आज तक हमने, देश और विदेश अपनी संस्था को चलाने के लिए किसी भी सरकारी या गैर-सरकारी संस्था से एक पैसे का भी अनुदान नहीं लिया है। गांधी जी के सपने को पूरा करने के लिए हम वाल्मीकि समाज के लोगों के आंसुओं को पोंछ रहे हैं। उन्हें मैला ढोने की अमानवीय प्रथा से निकालकर, उन्हें रोजगार, शिक्षा एवं प्रशिक्षण दिलाकर समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। हमने 40 हजार भाइयों-बहनों को इस आमानवीय प्रथा से मुक्ति दिला दी है।

इस काम को आगे बढ़ाने के लिए हमने ‘पीपल्स कमीशन ऑन द एबोलीशन ऑफ स्कैवेंजिंग’ का

गांधी जी के सपने को पूरा करने के लिए हम वाल्मीकि समाज के लोगों के आंसुओं को पोंछ रहे हैं। उन्हें मैला ढोने की अमानवीय प्रथा से निकालकर, उन्हें रोजगार, शिक्षा एवं प्रशिक्षण दिलाकर समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं

गठन किया है। माताओं और बहनों को सूर्योदय से पहले एवं सूर्यास्त के बाद, शौच के लिए बाहर जाना पड़ता था, न जाने कितने विदेशी पर्यटकों ने भारत की इस प्रथा की आलोचना की थी। हमने इस प्रथा को दूर करने के लिए सुलभ शौचालय की तकनीक विकसित की, जो भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के लिए कारगर साबित हुई। साल 1996 में इस्तांबुल में हैबीटेट- 2 कांफ्रेंस में मनुष्य मल के निष्पादन के लिए इसे दुनिया भर में सबसे अच्छी प्रणाली घोषित किया गया। हमने शहर के


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माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी की राजनीतिक साधना 40 वर्षों से भी अधिक की है और आज भी इनका दामन बिलकुल साफ है। पक्ष का हो या विपक्ष का, अति-विशिष्ट हो या आम नागरिक, सभी वाजपेयी जी को बड़े सम्मान की निगाह से देखते हैं गंदे पानी को साफ करने, कूड़े-कचरे से खाद बनाने, मानव मल और जल-कुंभी से बायोगैस बनाने के लिए स्वच्छ एवं साफ प्रणाली विकसित की है। समेकित ग्राम विकास के कार्यक्रम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए विजन 2000 प्लस अभियान चलाया है, जिसमें एक तरफ गांवगांव जाकर सैनिटेशन के विषय में जागरुकता पैदा करना है, दूसरी तरफ प्रशिक्षण देकर हजारों बेरोजगार नवयुवक व युवतियों को स्वरोजगार के लिए तैयार करना है। हमने जनसंख्या नियंत्रण और एड्स की रोकथाम व प्राथमिक स्वास्थ्य और साफ-सफाई के लिए के कार्यक्रम चलाए हैं। विकलांग बच्चों की शिक्षा पर हम जोर दे रहे हैं और हमारे स्कूल से दो बच्चे प्रतियोगिता में सफल होकर हाल ही में अमेरिका जाने वाले हैं। ये सारे कार्यक्रम हम सुलभ से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए 50 हजार भाइयों और बहनों के सहयोग से कर रहे हैं। इन सब कार्यों के लिए, संयुक्त राष्ट्र की ‘इकॉनोमिक एंड सोशल काउंसिल’ ने हमारी संस्था को स्पेशल कंसल्टेटिव स्टेटस प्रदान किया है। भारत का चहुंमुखी विकास

हुआ है और हम दुनिया के विकसित राष्ट्रों के समकक्ष पहुंच रहे हैं। फिर भी इस देश की बहुत सी समस्याओं का समाधान खोजना अभी जरूरी है। अप्रत्याशित बढ़ती जनसंख्या, अपराध और भ्रष्टाचार को रोकना इस देश के लिए सबसे आवश्यक है। हम एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं, जिसमें राजनेता, प्रशासक, उद्योगपति और विभिन्न कार्यों में लगे हुए लोग न तो अपराध में लिप्त हों और न ही भ्रष्टाचार में। स्वस्थ एवं सफल समाज के लिए ईमानदार व्यक्तियों का होना बहुत ही जरूरी है। हमें ऐसे व्यक्ति खोजने हैं, जो मर्यादित हो, सभ्य, सुसंस्कृत और ईमानदार हों, जिसके आचरण का वर्तमान और भविष्य की आने वाली पीढ़ियां अनुसरण कर सकें। ऐसे व्यक्तियों से ही एक अच्छे समाज का निर्माण हो सकेगा। साल 1995 में यह पुरस्कार हमने टीएन शेषन और 1996 में डॉ. मनमोहन सिंह को दिया था। माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी की राजनीतिक साधना 40 वर्षों से भी अधिक की है और आज भी इनका दामन बिलकुल साफ है। पक्ष

अटल स्मृति

का हो या विपक्ष का, अति-विशिष्ट हो या आम नागरिक, सभी वाजपेयी जी को बड़े सम्मान की निगाह से देखते हैं। लगता है कि इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए, ज्यूरी ने वाजपेयी जी का नाम बड़े सम्मान के साथ इस पुरस्कार के लिए चुना होगा। वर्ष 1997 में जब वाजपेयी जी लोकसभा में विरोधी दल के नेता थे, उसी समय उन्होंने इस पुरस्कार को ग्रहण करने की स्वीकृति दे दी थी। लेकिन कुछ अपरिहार्य कारणों से उस वक्त यह पुरस्कार नहीं दिया का सका था। वह शुभ घड़ी आज दिनांक 26 नवंबर1998 को आई है। हम अटल जी के प्रति आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होंने एक छोटी सी संस्था के पुरस्कार को ग्रहण कर हमारा उत्साह और सम्मान बढ़ाया है। देश का सम्मान बढ़ाने वाले, अटल जी ने जब पोखरण परमाणु परीक्षण किया तो अमेरिका में रहने वाली एक भारतीय बच्ची ने कहा कि अब जब मैं स्कूल जाती हूं, तो सभी अमेरिकी बच्चे मुझे पहचानते हुए कहते हैं कि तुम इंडिया से हो न। इस तरह अटल जी ने देश का मान पूरी दुनिया में ऊंचा कर दिया है। आज, इस अवसर पर मैंने वाजपेयी जी के लिए एक छोटी- सी कविता बनाई है। मैं कोई कवि नहीं हूं, लेकिन जो उदगार मेरे मन से निकले हैं, उन्हीं को शब्दों में पिरोने की कोशिश की है। यह कविता उन्हें समर्पित कर रहा हूं। ( 26 नवंबर1998, विज्ञान भवन, नई दिल्ली)

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सार्वजनिक दिखावे से शांत कूटनीति कहीं ज्यादा प्रभावी होती है


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देश में नैतिक पुनर्जागरण की आवश्यकता मैं

अगर किसी देश में हलचल नजर आए तो समझिए वहां का राजा ईमानदार है

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‘सुलभ ऑनेस्ट मैन ऑफ द ईयर अवार्ड-1997’ को ग्रहण करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का प्रेरक संबोधन

बड़े धर्मसंकट में हूं। जब इस पुरस्कार से मुझे सम्मानित किया जा रहा था तब मैं प्रतिपक्ष में था। इसीलिए मैंने पुरस्कार स्वीकार भी कर लिया। लेकिन आज प्रधानमंत्री के नाते मुझे पुरस्कार ग्रहण करते हुए बड़ा संकोच हो रहा है। देश का प्रधानमंत्री पुरस्कार ग्रहण करे इसके औचित्य का सवाल उठाया जाता है। किस पुरस्कार को लें, किसको छोड़ें। ले तो उसकी कसौटी क्या हो, न लें तो किस आधार पर मना करें। ये श्रृंखला शुरू हो जाएगी तो कठिनाई पैदा करेगी। दूसरी बात यह है कि ऐसे अवसरों पर जिसे पुरस्कार दिया जाना है... और मैंने जब ज्यूरी के नाम देखे, उसी समय देखे थे। यह भी एक कारण है कि मैं पुरस्कार लेने के लिए तैयार हो गया। लेकिन पुरस्कार समारोह में अभिनंदन का आयोजन होता है, मान पत्र प्रस्तुत किया जाता है, यहां तो कविता भी पढ़ी गई थी और इस सब में अतिश्योक्ति अलंकार का जिस मात्रा में प्रयोग किया जाता है, वह सब देखकर संकोच होता है। गनीमत है कि यह एक वर्ष के लिए है। इस पुरस्कार को मैं बड़े विनम्र भाव से ग्रहण कर रहा हूं। मेरा प्रयास रहा है, आगे भी रहेगा कि मैं लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं के अनरूप खरा उतर सकूं। इस देश में भौतिक संपदा पर्याप्त है। पांच हजार - छह हजार साल की हमारी संस्कृति है। लेकिन अगर हम आज भी अपनी संभावनाओं के अनुरूप अपनी क्षमताओं के अनुरूप आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं तो उसका एक कारण यह भी है कि जो चोटी के लोग हैं, वे आम आदमी के सामने अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं। पुरानी कहावत है कि धरती टिकी है तो पुण्यात्माओं के बल पर। आज भी हमारे देश में ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा है जो प्रामाणिक हैं, ईमानदार हैं, मेहनत करके रोजी कमाते हैं। बांटकर खाते हैं। हमारी सारी परिवार प्रणाली इसी पर टिकी हुई है। हराम की कमाई को हमारे यहां बहुत बुरा समझा जाता है। ईमानदारी की बड़ी प्रशंसा होती है। ईमानदारी की बड़ी कद्र है। वक्त बदला है। लेकिन मूल्यों को खोने से हमें रोकना है। इसके लिए अनेक चुनौतियां उठानी होंगी। सार्वजनिक जीवन को शुद्ध करना होगा। अपराधियों और राजनेताओं की बढ़ती हुई साठगांठ को तोड़ना होगा और सबसे बड़ी बात यह कि देश में एक ऐसा वातावरण बनाना होगा, जिसमें आदमी को ईमानदारी से काम करने के लिए

प्रोत्साहन मिले। आज ऐसा नहीं है। आप लोगों से मैंने बहुत सी ऐसी बातें सीखी हैं, जो पहले सीखने का कभी मौका नहीं मिला। वो सब गलत बातें नहीं, उनमें कुछ अच्छी बातें भी हैं।

कभी-कभी ऐसी परिस्थिति उपस्थित हो जाती है कि देखकर बड़ा दुख होता है। कोई अधिकारी अगर मेरे इस सवाल के जवाब में कि तुम ठीक तरह से काम नहीं कर रहे, वह कहे कि मुझे ठीक


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आज भी सिर पर मैला ढोने वाली बहनों को देखकर अंत:करण में पीड़ा होती है। क्योंकि भीतर बैठा हुआ चैतन्य कचोटता है। पीड़ा संवेदना जगा देती है, जगनी चाहिए। संवेदना मर न जाए यह खतरा पैदा होता है, लेकिन इस देश में ऐसा होगा नहीं तरह से काम नहीं करने दिया जा रहा । मैं ईमानदार हूं और इसलिए जहां हूं, वहां न रहूं, बल्कि कहीं और चला जाऊं इसके लिए मेरे संगी-साथी मेरे ऊपर दबाव डालते हैं। मुझे नहीं मालूम कि यह कहां तक ठीक है। लेकिन वातावरण अगर इस हद तक बिगड़ गया तो यह समझना चाहिए कि कुछ कठोर कदम उठाने की जरूरत है। हमारे यहां लोकतंत्र है। लोकतंत्र एक नैतिक व्यवस्था है, यह मात्र शासन चलाने का ढंग नहीं है। हर बालिग को उसका अधिकार क्यों, वोट का अधिकार बराबर क्यों। विभिन्नताएं हैं, विषमताएं हैं, लेकिन सब में एक ही परम तत्व है, एक ही ईश्वर विद्यमान है, इसीलिए सब बराबर हैं। इसीलिए मानवाधिकारों की सार्थकता है। फिर किसी के लिए विशेष व्यवस्था क्यों? आज भी सिर पर मैला ढोने वाली बहनों को देखकर अंत:करण में पीड़ा होती है क्योंकि भीतर बैठा हुआ चैतन्य कचोटता है। पीड़ा संवेदना जगा देती है, जगनी चाहिए। संवेदना मर न जाए यह खतरा पैदा होता है, लेकिन इस देश में ऐसा होगा नहीं। हम भले ऐसा करने की लाख कोशिश करें, लेकिन इस देश की ऐसी पुण्याई है कि

ऐसा होगा नहीं। इस देश में करोड़ों लोग लगे हुए हैं ईमानदारी से अपना काम करने के लिए, दूसरे की मदद करने के लिए। खुद डूबकर दूसरों को बचाने की क्या आवश्यकता है, अपना जान जोखिम में क्यों डालें। पर वह अंतर्यामी बैठा है, जो शांत बैठने नहीं देता है। इस तरह आदमी डूबने वाले को बचा लाता है और खुद डूब जाता है। यह सब भौतिकता के कारण नहीं, कहीं कोई आध्यात्मिकता है, नैतिकता है कि आदमी विपत्ति में दूसरे की मदद करता है। देश में ईमानदारी और प्रामाणिकता का भाव बनाने के लिए उसी तरह की भावना की जरूरत है। आखिर मनुष्य को कितना धन चाहिए। वैध और अवैध का सवाल अलग है। बड़ा सवाल यह कि आदमी को कितना धन कमाना चाहिए। लाभ की, लोभ की कोई सीमा होनी चाहिए, कोई मर्यादा होनी चाहिए। मर्यादा मन को बांधने की होनी चाहिए। कानून अपनी जगह है। कानून अपनी जगह है। कानून को और कड़ा करने, प्रभावी बनाने की भी कोशिश की जा रही है। लेकिन सारे देश में एक नैतिक पुनर्जागरण की आवश्यकता है। सुलभ इंटरनेशनल अपने ढंग से बहुत अच्छा

अटल स्मृति

काम कर रहा है। संसद सदस्य होने के नाते अपने चुनाव क्षेत्र के लिए मुझे जो एक करोड़ रुपए मिले थे। उसका सबसे अच्छे तरह से उपयोग मैं कैसे करूं, जब मेरे सामने यह प्रश्न लखनऊ में पैदा हुआ तो कई सरकारी संस्थाएं हैं, मैं उनकी आलोचना नहीं कर रहा, लेकिन मेरी नजर सुलभ इंटरनेशनल पर गई कि यह काम को अच्छे ढंग से करेंगे। बाद में मैंने काम की देखभाल के लिए लोग लगाए थे, कार्यकर्ता खड़े किए थे कि सीमेंट में रेत ज्यादा न हो, ईंट अच्छी हो पक्की हो, इंजीनियर प्रामाणिकता से काम करें। इन कसौटियों पर सुलभ इंटरनेशनल खरा उतरता है। ...अन्यथा ठेकेदार काम करते हैं, जिसकी ज्यादा चर्चा न करना ही अच्छा है। इस देश की मुक्ति के अनेक उपायों में एक है पारदर्शी प्रामाणिकता। कोई आवरण नहीं कोई प्रच्छन्नता नहीं। लोगों को जानने का हक होना चाहिए कि क्या हो रहा है। और जो शीर्ष स्थलों पर बैठे हैं, उनकी चादर साफ होनी चाहिए। मैं आभारी हूं कि मुझे एक वर्ष के लिए चुना गया। मैं पुरस्कार की राशि स्वीकार नहीं करूंगा। मैं इसे सुलभ इंटरनेशनल को वापस कर रहा हूं। इसका वे जैसा उपयोग करना चाहें करें और मुझे भरोसा है कि वे इसका अच्छा उपयोग करेंगे। मेरे बारे में जो भावनाएं व्यक्त की गई हैं, मैं उसके अनुरूप अपना आगे आना वाला जीवन जीने की कोशिश करूंगा। भगवान मुझे शक्ति दें और आप लोग मुझे सहयोग दें, आशीर्वाद दें। ( 26 नवंबर1998, विज्ञान भवन, नई दिल्ली)

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मैं हमेशा की तरह वादे लेकर नहीं आया, बल्कि अपने इरादे लेकर आया हूं


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अटल स्मृति

20 - 26 अगस्त 2018

अटल प्रयाण

अटल जी नौ साल से बीमार थे और 67 दिन से एम्स में भर्ती थे। हालांकि इस बीच वे कभी लोगों की स्मृति से ओझल नहीं हुए। उनके निधन की खबर ने सबको आहत किया। उनके न होने को भारतीय राजनीति और सार्वजनिक जीवन में एक युगांत की तरह देखा जा रहा है। अटल जी के बाद उनका जीवन भारतीय समाज और राजनीति के लिए एक ऐसी प्रेरणा की तरह है, जिससे काफी कुछ सीखा जा सकता है

आ मैं ऐसे भारत का सपना देखता हूं जो समृद्ध और मजबूत है। ऐसा भारत जो दुनिया के महान देशों की पंक्ति में खड़ा हो

एसएसबी ब्यूरो

शंकाएं सांकल खड़का रही थीं। हवाओं ने सन्नाटा बुनना शुरू कर दिया था। बादल नम होने लगे। उम्मीदों का दम टूटने लगा था। लाल किले से देश को संबोधित करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एम्स पहुंचे। खबर पलक झपकते ही पूरे देश को मिल गई। अटल जी... अटल जी... अटल जी...! सबके कदम उस ओर बढ़ चले। सबकी निगाहें उसी तरफ उठने लगीं। देखते-देखते उम्मीदों और आंसुओं का सैलाब एक साथ उमड़ने लगा। घंटों बीत गए। उम्मीद की कोई खबर नहीं आई। हर तरफ सन्नाटा... चुभता हुआ मौन... और नाउम्मीदी के भंवर में फंसी जीवन की नाव। न दवा और न दुआओं का कोई असर हुआ। आखिरकार 16 अगस्त की वह शाम भी आई जब देश का चमकता सूरज हमेशा के लिए डूब गया। शब्द गुम हो गए, सारे पन्ने फट गए, स्याही सूख गई, अटल मृत्यु को टाला नहीं जा सकता। कई प्रश्न और कई उत्तर। आखिर मौत से उनकी ही क्यों ठन गई? क्यों वो बिना बुलाए बीच रास्ते में उनका रास्ता रोक कर खड़ी हो गई? क्यों वो उस जिंदगी से बड़ी हो गई, जिसने लाखों करोड़ों जिंदगियों में उम्मीदों के दीपक जलाए थे? काश...काश... काश...!

खास बातें अटल जी की आवाज देश ने आखिरी बार करीब नौ वर्ष पहले सुनी थी अंत्येष्टि में उतरा जनसैलाब, तमाम दलों व कई देशों के नेता हुए शरीक अंतिम यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री उनके शव वाहन के पीछे पैदल चले

अटल जी पूरे देश की भावनाओं में उमड़े और आंसुओं में बह गए। स्मृतियों के बंद कपाट खुल गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 65 वर्षों तक साथ निभाने वाले लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी से लेकर पक्ष विपक्ष के सारे नेताओं के पास अटल जी की स्मृतियां दर्ज हैं, लेकिन किसी के पास कोई शब्द शेष नहीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तो पहली प्रतिक्रिया ही इस रूप में आई कि मैं नि:शब्द हूं। अटल जी की आवाज देश ने आखिरी बार

करीब नौ वर्ष पहले सुनी थी। लेकिन लगा कि वो कल की ही बात हो। उनके भाषण, उनकी कविताएं, उनकी टिप्पणियां, तंज कसने का उनका खास अंदाज, हजारों लाखों की भीड़ को अपने साथ बहा ले जाने वाले अटल जी देश के जनमानस में दर्ज हैं।

नौ साल से बीमार

अटल जी नौ साल से बीमार थे और 67 दिन से एम्स में भर्ती थे। हालांकि इस बीच वे कभी


20 - 26 अगस्त 2018

सुलभ प्रणेता का नमन

पू

र्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी का निधन भारत और विश्व के लिए एक बड़े आघात की तरह है। इस तरह के एक प्रतिबद्ध, ईमानदार, दूरदर्शी और विनम्र नेता का जाना एक अपूरणीय क्षति है। उन्होंने अपने राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में जिस विलक्षण तरीके से कार्य किया, उसके लिए उन्हें युगों तक याद किया जाएगा।वर्ष 1997 में सुलभ परिवार को इस महान व्यक्ति को अॉनेस्ट मैन अॉफ ईयर का पुरस्कार देने का सौभाग्य मिला था। वे एक उदार व्यक्ति थे और उनकी छवि काफी दिव्य थी। हम उनकी दिवंगत आत्मा को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वह उनके परिवार और उनके विश्वभर में फैले लाखों प्रशंसकों को इस शोक की घड़ी में शक्ति प्रदान करें। - डॉ. विन्देश्वर पाठक लोगों की स्मृति से ओझल नहीं हुए। उनके निधन की खबर ने सबको आहत किया। भारत रत्न और तीन बार प्रधानमंत्री रहे 93 वर्षीय अटल जी 17 अगस्त को शाम 4:56 बजे पंचतत्व में विलीन हो गए। अटल जी की दत्तक पुत्री नमिता भट्टाचार्य ने उन्हें मुखाग्नि दी। अंत्येष्टि में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई देशों के नेता मौजूद रहे।

प्र

अंतिम यात्रा

अंतिम यात्रा के दौरान भाजपा मुख्यालय से स्मृति स्थल के पांच किलोमीटर रास्ते पर हजारों लोगों ने अटल जी को पुष्प चढ़ाए। इस दौरान नरेंद्र मोदी अंत्येष्टि स्थल तक पैदल साथ आए। उनके अलावा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान समेत कई वरिष्ठ भाजपा नेता भी साथ-साथ पैदल चले।

दुख में डूबे नमो

‘श्रद्धेय अटल जी हमारे बीच नहीं रहे। यह मेरे लिए निजी क्षति है’

धानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अटल जी का निधन व्यक्तिगत शोक की तरह था। उन्होंने अटल जी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा भी कि उनका जाना सिर से पिता का साया उठने जैसा है। इससे पहले उन्होंने ट्वीट में कहा- ‘‘मैं नि:शब्द हूं, शून्य में हूं, लेकिन भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा है। हम सभी के श्रद्धेय अटल जी हमारे बीच नहीं रहे। यह मेरे लिए निजी क्षति है। अपने जीवन का प्रत्येक पल उन्होंने राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। उनका जाना, एक युग का अंत है।”

अटल स्मृति

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स्मृति स्थल पर श्रद्धांजलि

स्मृति स्थल पर तीनों सेना प्रमुख, रक्षा राज्य मंत्री सुभाष भामरे, रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण, लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन, नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामगेयाल वांगचुक, बांग्लादेश के विदेश मंत्री अबुल हसन महमूद अली, नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार, अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई, श्रीलंका के कार्यवाहक विदेश मंत्री तिलक मारापना, लालकृष्ण आडवाणी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने श्रद्धांजलि दी। अटल जी की नातिन निहारिका को सेना ने अटलजी की पार्थिव देह पर लिपटा तिरंगा सौंपा। स्मृति स्थल पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सभी दलों के प्रमुख नेता भी मौजूद थे। यमुना किनारे डेढ़ एकड़ जमीन पर अटलजी का स्मृति स्थल बनाया जाएगा।

भाजपा मुख्यालय में अटल दर्शन

इससे पूर्व अंतिम दर्शन के लिए अटलजी की पार्थिव देह को 17 अगस्त को सुबह 9 बजे उनके आवास से भाजपा मुख्यालय लाया गया था। यहां सभी दलों के नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। अटलजी ने गुरुवार शाम 5.05 बजे एम्स में अंतिम सांस ली थी। पार्टी मुख्यालय में नरेंद्र मोदी, पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने अटलजी को पुष्पांजलि दी। अन्य दलों के नेता भी भाजपा मुख्यालय आए। इनमें सपा नेता मुलायम सिंह यादव, शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे, माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया आप सांसद संजय सिंह, द्रमुक नेता ए. राजा, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह शामिल थे। उनके राजनीतिक जीवन के सबसे लंबे समय तक सहयोगी रहे लाल कृष्ण आडवाणी पूरे वक्त भावुक नजर आए।

सत्य सबसे शक्तिशाली हथियार है, हर कोई जानता है सरकारी जगहों पर हथियार लेकर नहीं जा सकते


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अटल स्मृति

20 - 26 अगस्त 2018

शोकाकुल खेल जगत

अटल बिहारी वाजपेयी सबके साथ खिलाड़ियों के भी प्रिय थे। उनके निधन पर भारतीय खेल जगत शोक में डूबा नजर आया

खे

हम दोस्त बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं, इसीलिए पड़ोसियों से अच्छे संबंध होने चाहिए

ल मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ और महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर के साथ भारतीय खेल जगत ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर संवेदना प्रकट की। मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने ट्वीट किया, ‘ भारत के लिए आज बहुत बड़ी क्षति हुई है। अटल बिहारी वाजपेयी जी का हमारे देश के लिए अनगिनत योगदान रहा है. उनके चाहने वालों के लिए मेरी प्रार्थनाएं।’ खेलमंत्री राठौड़ ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, ‘अपने वचन के पक्के, वादों और इरादों में ‘अटल’ हमारे अटल जी हमारे बीच नहीं रहे। चाहे पोखरण हो या कारगिल, राष्ट्रनिर्माण में अटल जी का योगदान कृतज्ञता और सम्मान से याद किया जाएगा। नेता और जनता, सभी के मन में बसते थे हमारे अटल जी। उनका निधन देश के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है।’

अपने घर में अंतिम दर्शन

16 अगस्त को एम्स में निधन के बाद अटल जी के के पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए कृष्ण मेनन मार्ग स्थित उनके आवास पर रखा गया था। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसी आवास पर पहुंचकर अटल जी को 17 अगस्त की सुबह श्रद्धांजलि दी। वहीं, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, मोदी, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह समेत कई नेताओं ने 16 अगस्त देर रात को उनके अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे।

राष्ट्रीय शोक

अटल जी के निधन पर 7 दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की गई। देश के 12 राज्यों ने राजकीय शोक और अवकाश की घोषणा की। इनमें दिल्ली, उत्तरप्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पंजाब, बिहार, झारखंड, हरियाणा, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्य शामिल हैं। इन राज्यों में सरकारी कार्यालय, स्कूलों और कॉलेजों में अवकाश रखा गया। सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में भी 17 अगस्त को एक बजे तक ही काम हुआ। दिल्ली में व्यापारियों ने भी सभी बाजार बंद रखे।

क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने ट्वीट किया, ‘आसमान को छू गया, जो आसमान सा विशाल था, धरती में सिमट गया, जो मिट्टी जैसा नर्म था। कौन है जो अटल रह पाया है जिंदगी भर, अटल बनकर वह जिंदगी को पा गया। ओम शांति! अटल बिहारी वाजपेयी जी।’ ओलंपिक रजत पदक विजेता विजेंदर सिंह ने कहा, ‘ देश के महानतम प्रधानमंत्री में से एक भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी अब हमारे बीच नहीं रहे। एक दूरदर्शी, एक कवि, एक राजनेता, लाखों लोगों का दिल जीतने वाले। वह कुछ और नहीं सिर्फ सम्मान के हकदार हैं। मातृभूमि के लिए उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगा।’ शतरंज में पांच बार के विश्व चैंपियन विश्वनाथ आनंद ने कहा, ‘ भारत ने एक महान नेता खो दिया। ‘जेंटल जायंट’ उनके और उनके काम को याद रखने का एक शानदार तरीका

वैश्विक शोक

भूटान के नरेश जिग्मे खेसर नामगेयाल वांगचुक के साथ नेपाल के विदेश मंत्री पीके ग्यावाल, बांग्लादेश के विदेश मंत्री अबुल हासन महमूद अली, श्रीलंका के कार्यकारी विदेशी मंत्री लक्ष्मण किरीला, अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और पाकिस्तान के कानून मंत्री अली जफर अटल जी की अंत्येष्टि में मौजूद रहे। मॉरिशस ने अटलजी के निधन पर गहरा दुख जताया। शोक स्वरूप मॉरिशस सरकार ने अपना राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका दिया। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने कहा, ‘अटल बिहारी वाजपेयी ने पूरी दुनिया में सम्मान हासिल किया। उन्हें एक ऐसे राजनेता के तौर पर याद किया जाएगा, जिसने रूस और भारत के कूटनीतक संबंधों को मजबूत करने में निजी तौर पर बड़ा योगदान किया।’ श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने ट्वीट किया, ‘हमने एक महान मानवतावादी और श्रीलंका का अच्छा दोस्त खो दिया।’ पाकिस्तान तहरीक-इंसाफ के नेता और प्रधानमंत्री बनने जा रहे इमरान खान ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति के एक बड़े व्यक्तित्व थे। भारतपाक संबंधों में सुधार के लिए उनके प्रयासों को हमेशा याद किया जाएगा। चीन के राजदूत लुयो झाओहुई ने ट्वीट किया, ‘अटल बिहारी वाजपेयी के निधन से

होगा। मैं गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं।’ पूर्व क्रिकेटर और भारतीय टीम के पूर्व कोच अनिल कुंबले ने लिखा, ‘ देश के लिए बुरा दिन क्योंकि हमने अपने महानतम नेता को खो दिया। देश की बेहतरी के लिए अटल बिहारी वाजपेयी का योगदान बहुत ज्यादा है। उनकी आत्मा को शांति मिले।’ पूर्व क्रिकेटर वीवीएस लक्ष्मण ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘ भारत के सबसे प्रिय प्रधानमंत्री, एक महान कवि और अद्भुत राजनेता में से एक अटल बिहारी वाजपेयी जी हम एक राष्ट्र के रूप में आपको याद करेंगे। आपके चाहने वालों के प्रति मेरी गहरी संवेदना।’ बीसीसीआई ने ट्वीट किया, ‘ भारतीय क्रिकेट टीम और बीसीसीआई भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर शोक व्यक्त करता है। अटल जी ने देश की सेवा में अपना जीवन समर्पित किया।’ गहरा दुख पहुंचा है।’ भारत स्थित अमेरिकी दूतावास ने कहा, ‘पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने शासनकाल में अमेरिका के साथ मजबूत रिश्तों पर जोर दिया।’ ब्रिटेन और जापान के राजदूत ने कहा कि वे वैश्विक नेताओं में से एक थे। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा कि बांग्लादेश के लोगों में भी अटल बिहारी वाजपेयी काफी लोकप्रिय थे।

अटल होने का अर्थ

अटल जी सिर्फ एक राजनेता नहीं थे। अटल जी एक संस्कार थे। अटल जी एक विचार थे। वे सहज थे, सरल थे। एक तेज का नाम था अटल। एक त्याग का नाम था अटल। एक तर्क का नाम था अटल। एक विस्तार का नाम था अटल। एक तीर थे अटल। एक तलवार थे अटल। एक कल्पना थे अटल। एक सपना थे अटल। अतुलनीय और अविश्वसनीय। समंदर को लांघने की ललक का नाम था अटल। बुझे दीपक जलाने के हौसले का नाम था अटल। अटल जी रहेंगे। देश के दिल में, गरीबों के घर में वंचितों के हक में, राष्ट्र के सम्मान में,बंसी के स्वर में, बादलों की नमी में, धरती के विस्तार में, सूरज के प्रकाश में, उम्मीदों के आकाश में, कविता के छंद में, मौन में, मुखरता में, शब्द में, ध्वनि में और हम सबके जीवन में अटल जी जी रहेंगे। वे थे..हैं और रहेंग.े ..!


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अटलनामा

पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी माता कृष्णा देवी

जन्म 25 दिसंबर 1924

स्थान ग्वालियर (मध्य प्रदेश) शिक्षा

एमए (राजनीति शास्त्र), ग्वालियर के विक्टोरिया (अब लक्ष्मीबाई) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज से

कार्य पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनेता

भाई का नारा गुम हो गया था। दोनों देशों के संबंध बेहद तनावपूर्ण थे। लंबे समय तक यह तनाव चला। विदेशमंत्री के तौर पर 1979 में अटल बिहारी वाजपेयी चीन की ऐतिहासिक यात्रा पर गए। उनकी कुशल रणनीति से संबंध सामान्य होने लगे। पड़ोसी देशों से मधुर संबंधों के पैरोकार अटल बिहारी वाजपेयी ने विदेश मंत्री के रूप में पाकिस्तान की भी यात्रा की। 1971 के युद्ध में बुरी तरह से हारे पाकिस्तान से सारे संवाद टूट गए थे। कारोबार ठप था। यहां भी दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य करने में कुशल रणनीति का परिचय दिया। उनकी विदेश नीति सराही गई।

परमाणु शक्ति की वकालत

भारतीय राजनीति के पितृ-पुरुष

आजादी के सिपाही

अटल बिहारी वाजपेयी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। अंग्रेजों की लाठियां खाईं। जेल भी भेजे गए। उस समय उनकी उम्र कम थी, लेकिन देशभक्ति और साहस से भरे थे। आजादी की लड़ाई के दौरान ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी के संपर्क में आए। 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की। अलग पहचान बनाई। संगठन को मजबूत बनाने की दिशा में काम किया। 1957 में दूसरी लोकसभा के लिए बलरामपुर सीट से सांसद बने। युवा थे। ओजस्वी भाषणों और विभिन्न विषयों पर पकड़ की वजह से विपक्ष की मजबूत आवाज बनकर उभरे।

दल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को सत्ता से हटा पाने में असफल रहे। 1975 में इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया। भारतीय जनसंघ ने देश की कई पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव और नागरिक अधिकारों के निलंबन जैसे कदमों का कड़ा विरोध किया। 1977 में आम चुनाव हुए। भारतीय जनसंघ (बीजेएस) ने कई केंद्रीय और क्षेत्रीय दलों-समूहों के साथ मिलकर जनता पार्टी का गठन किया। चुनाव में जनता पार्टी को जीत मिली। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। नई दिल्ली लोकसभा सीट से जीतकर अटल बिहारी वाजपेयी मोरारजी देसाई कैबिनेट में विदेश मंत्री बने।

लोकतंत्र के लिए संघर्ष

कुशल रणनीतिकार

जनाधार बढ़ा, लेकिन भारतीय जनसंघ समेत विपक्षी

1962 के चीन के साथ युद्ध के बाद हिंदी-चीनी

वह निशस्त्रीकरण सम्मेलन में भी गए। शीत युद्ध का युग था। वाजपेयी ने भारत के परमाणु शक्ति से लैस होने की वकालत की। उन्होंने साफ कहा कि जब पड़ोसी देश चीन परमाणु हथियार से लैस है, तो भारत अपनी रक्षा के लिए इससे वंचित क्यों रहे? इस सम्मेलन में उन्होंने इस संबंध में जो दलीलें दीं, वह दमदार थीं। बाद में जब वह प्रधानमंत्री हुए, तो दूसरी बार बुद्ध मुस्कुराए, यानी परमाणु परीक्षण हुआ। भारत ने दूसरी बार पोखरण में यह परीक्षण किया। भारत की सामरिक शक्ति की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी।

शिखर पुरुष

भाजपा 1996 के आम चुनाव में अकेली सबसे बड़ी पार्टी बन गई। वाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी, लेकिन वह सरकार मात्र 13 दिन ही चली। 1996 और 1998 के दौरान दो बार तीसरे मोर्चे की सरकारें गिरने के बाद नए सिरे से चुनाव कराए गए। पार्टी को एक बार फिर बढ़त मिली। कई दलों ने साथ सरकार बनाने का संकल्प किया था। हालांकि, जयललिता की पार्टी एआइडीएमके के समर्थन वापस लेने से सरकार अल्पमत में आ गई। विश्वास मत के दौरान एक मत से हारने के बाद सरकार फिर गिरी। 1999 के चुनाव में जनता ने फिर अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों में सत्ता की चाबी सौंपी। वाजपेयी के नेतृत्व में पहली बार किसी गैर कांग्रेसी सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।

जब मैं बोलना चाहता हूं तो लोग सुनते नहीं, जब लोग चाहते हैं, मैं बोलूं तो मेरे पास कुछ नहीं होता


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अटल स्मृति

20 - 26 अगस्त 2018

मेरे अटल जी!

कभी सोचा नहीं था कि अटल जी के बारे में ऐसा लिखने के लिए कलम उठानी पड़ेगी। देश और दुनिया अटल जी को एक स्टेट्समैन, धारा प्रवाह वक्ता, संवेदनशील कवि, विचारवान लेखक, धारदार पत्रकार और विजनरी जननेता के तौर पर जानती है। लेकिन मेरे लिए उनका स्थान इससे भी ऊपर का था

कहने की बात है कि हमारे बुजुर्ग सपनों में खेलते थे और आज हम 'माउस' से खेलते हैं

नरेंद्र मोदी / प्रधानमंत्री

टल जी अब नहीं रहे। मन नहीं मानता। अटल जी, मेरी आंखों के सामने हैं, स्थिर हैं। जो हाथ मेरी पीठ पर धौल जमाते थे, जो स्नेह से, मुस्कुराते हुए मुझे अंकवार में भर लेते थे, वे स्थिर हैं। अटल जी की ये स्थिरता मुझे झकझोर रही है, अस्थिर कर रही है। एक जलन सी है आंखों में, कुछ कहना है, बहुत कुछ कहना है, लेकिन कह नहीं पा रहा। मैं खुद को बार-बार

खास बातें

21वीं सदी के सशक्त भारत के लिए अटल जी ने जो किया, वह अभूतपूर्व है काल के कपाल पर लिखने और मिटाने की ताकत हमेशा रही भारत प्रथम का मंत्र पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी का जीवन ध्येय था

यकीन दिला रहा हूं कि अटल जी अब नहीं हैं, लेकिन ये विचार आते ही खुद को इस विचार से दूर कर रहा हूं। क्या अटल जी वाकई नहीं हैं? नहीं। मैं उनकी आवाज अपने भीतर गूंजते हुए महसूस कर रहा हूं, कैसे कह दूं, कैसे मान लूं, वे अब नहीं हैं। वे पंचतत्व हैं। वे आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, सबमें व्याप्त हैं, वे अटल हैं, वे अब भी हैं।

नाम सुना था, जिसको इतना पढ़ा था, जिससे बिना मिले, इतना कुछ सीखा था, वो मेरे सामने था। जब पहली बार उनके मुंह से मेरा नाम निकला तो लगा, पाने के लिए बस इतना ही बहुत है। बहुत दिनों तक मेरा नाम लेती हुई उनकी वह आवाज मेरे कानों से टकराती रही। मैं कैसे मान लूं कि वह आवाज अब चली गई है।

पहली भेंट

कभी सोचा न था

जब उनसे पहली बार मिला था, उसकी स्मृति ऐसी है जैसे कल की ही बात हो। इतने बड़े नेता, इतने बड़े विद्वान। लगता था जैसे शीशे के उस पार की दुनिया से निकलकर कोई सामने आ गया है। जिसका इतना

कभी सोचा नहीं था कि अटल जी के बारे में ऐसा लिखने के लिए कलम उठानी पड़ेगी। देश और दुनिया अटल जी को एक स्टेट्समैन, धारा प्रवाह वक्ता, संवेदनशील कवि, विचारवान लेखक,


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नमो पर अटल भरोसा

नरेंद्र मोदी राजनीतिक जीवन त्यागकर अमेरिका में थे, तो प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनसे कहा था, ‘ऐसे भागने से काम नहीं चलेगा, कब तक यहां रहोगे? दिल्ली आओ’

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वेदना, शालीनता, सहजता, विश्वसनीयता, स्वीकार्यता ये कुछ ऐसे गुण हैं जो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व को सरल शब्दों में बयां करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसी चरित्र चिंतन के कायल रहे हैं। पीएम मोदी का राजनीतिक जीवन पर भी अटल जी का काफी प्रभाव रहा है। उनके प्रधानमंत्री के मुकाम तक पहुंचाने में भी अटल जी का अहम योगदान रहा है। दरअसल, कम ही लोग इस बात को जानते हैं कि नरेंद्र मोदी जब राजनीतिक जीवन त्याग अज्ञातवास पर चले गए थे, तो उन्हें वापस राजनीति में लाने धारदार पत्रकार और विजनरी जननेता के तौर पर जानती है। लेकिन मेरे लिए उनका स्थान इससे भी ऊपर का था। सिर्फ इसीलिए नहीं कि मुझे उनके साथ बरसों तक काम करने का अवसर मिला, बल्कि मेरे जीवन, मेरी सोच, मेरे आदर्शों-मूल्यों पर जो छाप उन्होंने छोड़ी, जो विश्वास उन्होंने मुझ पर किया, उसने मुझे गढ़ा है, हर स्थिति में अटल रहना सिखाया है।

उनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि

हमारे देश में अनेक ऋषि, मुनि, संत महात्माओं ने जन्म लिया है। देश की आजादी से लेकर आज तक की विकास यात्रा के लिए भी असंख्य लोगों ने अपना जीवन समर्पित किया है। लेकिन स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्र की रक्षा और 21वीं सदी के सशक्त, सुरक्षित भारत के लिए अटल जी ने जो किया, वह अभूतपूर्व है। उनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि था- बाकी सब का कोई महत्व नहीं।

इंडिया फर्स्ट का मंत्र

इंडिया फर्स्ट- भारत प्रथम, यह मंत्र वाक्य उनका जीवन ध्येय था। पोखरण देश के लिए जरूरी था

का काम अटल जी ने ही किया था। नरेंद्र मोदी राजनीतिक जीवन त्यागकर अमेरिका में थे, तो प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनसे कहा था, ‘ऐसे भागने से काम नहीं चलेगा, कब तक यहां रहोगे? दिल्ली आओ।’ गौरतलब है कि तत्कालीन पीएम अटल बिहारी अमेरिकी दौरे पर गए थे। जब उन्हें इस बात का पता चला कि मोदी जी अमेरिका में ही हैं, तो उन्हें तुरंत बुलवा लिया। वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी की किताब ‘हार नहीं मानूंगा-अटल एक जीवन गाथा’ के

12वें अध्याय में भी इस घटना का जिक्र है। विजय त्रिवेदी ने पीएम मोदी के एक खास मित्र के हवाले से लिखा है, ‘अमेरिका में हुई इस मुलाकात के कुछ दिनों बाद ही मोदी जी दिल्ली आ गए थे। इसके बाद उनको बीजेपी के पुराने दफ्तर (अशोक रोड) में एक कमरा दिया गया और उन्हें संगठन को मजबूत करने के काम सौंपा गया।’ अक्टूबर 2001 की सुबह मोदी जी को एक फोन आया। यह फोन अटल जी का था। उन्होंने मोदी को तुरंत मिलने के लिए बुलाया था। दरअसल गुजरात में केशुभाई पटेल की छवि बेहद खराब बनती जा रही थी, जिससे पार्टी को भारी नुकसान हो रहा था। वर्ष 2000 में भाजपा अहमदाबाद और राजकोट का म्युनिसिपल चुनाव भी हार गई थी। 20 सितंबर 2001 को भाजपा अहमदाबाद, एलिसब्रिज और साबरकांठा नाम विधानसभा सीटों पर उपचुनाव भी हार गई। गौरतलब है कि एलिसब्रिज सीट, भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की गांधीनगर लोकसभा सीट का हिस्सा भी थी। पार्टी हाईकमान को लगा कि ऐसे चलता रहा तो वर्ष 2003 विधानसभा चुनाव में हार हो सकती है। फिर केशुभाई को हटाने का फैसला ले लिया गया। 7 अक्टूबर 2001 को अटल जी की रजामंदी से मोदी जी को गुजरात का नया सीएम बनाया गया। इसके बाद का इतिहास देश की राजनीति का नमो अध्याय है।

मैं खुद को बार-बार यकीन दिला रहा हूं कि अटल जी अब नहीं हैं, लेकिन ये विचार आते ही खुद को इस विचार से दूर कर रहा हूं। क्या अटल जी वाकई नहीं हैं? नहीं। मैं उनकी आवाज अपने भीतर गूंजते हुए महसूस कर रहा हूं, कैसे कह दूं, कैसे मान लूं, वे अब नहीं हैं। वे पंचतत्व हैं। वे आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, सबमें व्याप्त हैं, वे अटल हैं, वे अब भी हैं तो चिंता नहीं की प्रतिबंधों और आलोचनाओं की, क्योंकि देश प्रथम था। सुपर कंप्यूटर नहीं मिले, क्रायोजेनिक इंजन नहीं मिले तो परवाह नहीं, हम खुद बनाएंगे। हम खुद अपने दम पर अपनी प्रतिभा और वैज्ञानिक कुशलता के बल पर असंभव दिखने वाले कार्य संभव कर दिखाएंगे। और ऐसा किया भी। दुनिया को चकित किया। सिर्फ एक ताकत उनके भीतर काम करती थी- देश प्रथम की जिद।

हार-जीत से ऊपर

काल के कपाल पर लिखने और मिटाने की ताकत, हिम्मत और चुनौतियों के बादलों में विजय का सूरज उगाने का चमत्कार उनके सीने में था तो इसीलिए क्योंकि वह सीना देश प्रथम के लिए धड़कता था।

इसीलिए हार और जीत उनके मन पर असर नहीं करती थी। सरकार बनी तो भी, सरकार एक वोट से गिरा दी गई तो भी, उनके स्वरों में पराजय को भी विजय के ऐसे गगन भेदी विश्वास में बदलने की ताकत थी कि जीतने वाला ही हार मान बैठे।

अपनी अटल लीक

अटल जी कभी लीक पर नहीं चले। उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में नए रास्ते बनाए और तय किए। ‘आंधियों में भी दीये जलाने’ की क्षमता उनमें थी। पूरी बेबाकी से वे जो कुछ भी बोलते थे, सीधा जनमानस के हृदय में उतर जाता था। अपनी बात को कैसे रखना है, कितना कहना है और कितना अनकहा छोड़ देना है, इसमें उन्हें

सिर्फ राजनीति ही ऐसी जगह है, जहां किसी भी तरह की तैयारी की जरूरत नहीं होती


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अटल स्मृति

राजनीति इतनी दुखद है कि अगर मैं बलवान नहीं होता, तो आत्महत्या कर चुका होता

20 - 26 अगस्त 2018

महारत हासिल थी। राष्ट्र की जो उन्होंने सेवा की, विश्व में मां भारती के मान सम्मान को उन्होंने जो बुलंदी दी, इसके लिए उन्हें अनेक सम्मान भी मिले। देशवासियों ने उन्हें भारत रत्न देकर अपना मान भी बढ़ाया। लेकिन वे किसी भी विशेषण, किसी भी सम्मान से ऊपर थे। जीवन कैसे जीया जाए, राष्ट्र के काम कैसे आया जाए, यह उन्होंने अपने जीवन से दूसरों को सिखाया।

राष्ट्र के लिए त्याग

वे कहते थे, ‘हम केवल अपने लिए न जीएं, औरों के लिए भी जीएं... हम राष्ट्र के लिए अधिकाधिक त्याग करें। अगर भारत की दशा दयनीय है तो दुनिया में हमारा सम्मान नहीं हो सकता। किंतु यदि हम सभी दृष्टियों से सुसंपन्न हैं तो दुनिया हमारा सम्मान करेगी।’ देश के गरीब, वंचित, शोषित के जीवन स्तर को ऊपर उठाने के लिए वे जीवनभर प्रयास करते रहे। वे कहते थे ‘गरीबी, दरिद्रता गरिमा का विषय नहीं है, बल्कि यह विवशता है, मजबूरी है और विवशता का नाम संतोष नहीं हो सकता।’ करोड़ों देशवासियों को इस विवशता से बाहर निकालने के लिए उन्होंने हर संभव प्रयास किए। गरीब को अधिकार दिलाने के लिए देश में आधार जैसी व्यवस्था, प्रक्रियाओं का ज्यादा से ज्यादा सरलीकरण, हर गांव तक सड़क, स्वर्णिम चतुर्भुज, देश में विश्वस्तरीय इंफ्रास्ट्रक्चर, राष्ट्र निर्माण के उनके संकल्पों से जुड़ा था। आज भारत जिस टेक्नोलॉजी के शिखर पर खड़ा है, उसकी आधारशिला अटल जी ने ही रखी थी।

स्वप्नद्रष्टा और कर्मवीर

वे अपने समय से बहुत दूर तक देख सकते थे स्वप्नद्रष्टा थे लेकिन कर्मवीर भी थे। कवि हृदय, भावुक मन के थे तो पराक्रमी सैनिक मन वाले भी थे। उन्होंने विदेश की यात्राएं कीं। जहां-जहां भी गए, स्थायी मित्र बनाए और भारत के हितों की स्थायी आधारशिला रखते गए। वे भारत की विजय और विकास के स्वर थे।

काल के कपाल पर लिखने और मिटाने की ताकत, हिम्मत और चुनौतियों के बादलों में विजय का सूरज उगाने का चमत्कार उनके सीने में था तो इसीलिए क्योंकि वह सीना राष्ट्र प्रथम के लिए धड़कता था प्रखर राष्ट्रवाद

पायदान पर खड़ा करती है।

भारत उनके मन में

वे पीड़ा सहते थे, वेदना को चुपचाप अपने भीतर समाये रहते थे, पर सबको अमृत देते रहे- जीवन भर। जब उन्हें कष्ट हुआ तो कहने लगे, ‘देह धरण को दंड है, सब काहू को होये, ज्ञानी भुगते ज्ञान से मूरख भुगते रोए।’ उन्होंने ज्ञान मार्ग से अत्यंत गहरी वेदनाएं भी सहन कीं और वीतरागी भाव से विदा ले गए। यदि भारत उनके रोम-रोम में था तो विश्व की वेदना उनके मर्म को भेदती थी। इसी वजह से ‘हिरोशिमा’ जैसी कविताओं का जन्म हुआ। वे विश्व नायक थे। मां भारती के सच्चे नायक। भारत की सीमाओं के परे भारत की कीर्ति और करुणा का संदेश स्थापित करने वाले आधुनिक बुद्ध।

अटल जी का प्रखर राष्ट्रवाद और राष्ट्र के लिए समर्पण करोड़ों देशवासियों को हमेशा से प्रेरित करता रहा है। राष्ट्रवाद उनके लिए सिर्फ एक नारा नहीं था, बल्कि जीवन शैली थी। वे देश को सिर्फ एक भूखंड, जमीन का टुकड़ा भर नहीं मानते थे, बल्कि एक जीवंत, संवेदनशील इकाई के रूप में देखते थे। ‘भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।’ यह सिर्फ भाव नहीं, बल्कि उनका संकल्प था, जिसके लिए उन्होंने अपना जीवन न्योछावर कर दिया। दशकों का सार्वजनिक जीवन उन्होंने अपनी इसी सोच को जीने में, धरातल पर उतारने में लगा दिया। आपातकाल ने हमारे लोकतंत्र पर जो दाग लगाया था, उसको मिटाने के लिए अटल जी के प्रयास को देश हमेशा याद रखेगा। राष्ट्रभक्ति की भावना, जनसेवा की प्रेरणा उनके नाम के ही अनुकूल अटल रही। भारत उनके मन में रहा, भारतीयता तन में। उन्होंने देश की जनता को ही अपना आराध्य माना। भारत के कण-कण, कंकर-कंकर, भारत की बूंदबूंद को, पवित्र और पूजनीय माना। जितना सम्मान, जितनी ऊंचाई अटल जी को मिली, उतना ही अधिक वह जमीन से जुड़ते गए। अपनी सफलता को कभी भी उन्होंने अपने मस्तिष्क पर प्रभावी नहीं होने दिया। प्रभु से यश, कीर्ति की कामना अनेक व्यक्ति करते हैं, लेकिन ये अटल जी ही थे जिन्होंने कहा, ‘हे प्रभु! मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना। गैरों को गले ना लगा सकूं, इतनी रुखाई कभी मत देना।’ अपने देशवासियों से इतनी सहजता और सरलता से जुड़े रहने की यह कामना ही उनको सामाजिक जीवन के एक अलग

विश्व नायक

अटल संदेश

कुछ वर्ष पहले लोकसभा में जब उन्हें वर्ष के सर्वश्रेष्ठ सांसद के सम्मान से सम्मानित किया गया था तब उन्होंने कहा था, ‘यह देश बड़ा अद्भुत है, अनूठा है। किसी भी पत्थर को सिंदूर लगाकर अभिवादन किया जा रहा है, अभिनंदन किया जा सकता है।’ अपने पुरुषार्थ को, अपनी कर्तव्यनिष्ठा को राष्ट्र के लिए समर्पित करना उनके व्यक्तित्व की महानता को प्रतिबिंबित करता है। यही सवा सौ करोड़ देशवासियों के लिए उनका सबसे बड़ा और प्रखर संदेश है। देश के साधनों, संसाधनों पर पूरा भरोसा करते हुए, हमें अब अटल जी के सपनों को पूरा करना है, उनके सपनों का भारत बनाना है। नए भारत का यही संकल्प, यही भाव लिए मैं अपनी तरफ से और सवा सौ करोड़ देशवासियों की तरफ से अटल जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, उन्हें नमन करता हूं।


20 - 26 अगस्त 2018

अटल स्मृति

अटल सपने हो रहे साकार

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अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी दूरदर्शी सोच के कारण देश के चहुंमुखी विकास की कई योजनाएं बनाई थी, केंद्र सरकार आज उनकी योजनाओं को पूरा करने में जुटी है

प्र

एसएसबी ब्यूरो

धानमंत्री अक्सर अपने संबोधनों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जिक्र करते हैं। देश के इन्फ्रास्टक्चर में वाजपेयी जी के योगदान को देखते हुए पीएम मोदी ने उन्हें ‘भारत मार्ग विधाता’ का नाम दिया है। दरअसल, अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी दूरदर्शी सोच के कारण देश के चहुंमुखी विकास का मार्ग प्रशस्त किया था। उन्होंने प्रधानमंत्री रहते ईस्ट वेस्ट कॉरिडोर और महानगरों को जोड़ने के लिए स्वर्ण चतुर्भुज योजना की शुरुआत की थी, जिससे देश में औद्योगिक विकास के साथ सामाजिक सांस्कृतिक को भी बल मिला। उन्होंने तब कहा था कि यह ‘भारत की भाग्य रेखा’ है। प्रधानमंत्री मोदी उनके इसी विजन को आगे बढ़ाते हुए इसे और विस्तार दे रहे हैं।

सागरमाला परियोजना

सागरमाला परियोजना की घोषणा 15 अगस्त 2003 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी। ये योजना देश के सभी बंदरगाहों को आपस में जोड़ने के लिए, इसीलिए इसे सागरमाला नाम दिया गया। इसके तहत गैर प्रमुख बंदरगाहों को नई तकनीक से लैस करना और समुद्र व्यापार को बढ़ावा देना शामिल है। मोदी सरकार इस पर 70 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही है। रेल मंत्रालय ने भी 20 हजार करोड़ रुपए की लागत से 21 बंदरगाह-रेल संपर्क परियोजनाओं पर काम शुरू कर दिया है।

भारतमाला परियोजना

मोदी सरकार ने 10 करोड़ रुपए की भारतमाला परियोजना को रफ्तार दे दी है। इसमें राष्ट्रीय राजमार्ग

वर्ष 2000 में अटल जी ने देश के सभी गांवों को सड़क से जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना शुरू की थी। पीएम मोदी ने तय किया है कि 2019 तक देश के हर गांव को पक्की सड़क से जोड़ दिया जाएगा विकास परियोजना (एनएचडीपी), जिसे 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा लॉन्च किया था, सहित सभी मौजूदा राजमार्ग परियोजनाओं को समाहित किया गया है। इसमें 5.35 लाख करोड़ की लागत से 34,800 किमी हाइवे का निर्माण किया जाएगा। 9000 किमी लंबा इकॉनामिक कॉरिडोर बनाया जाएगा। इसमें 6000 किमी लंबी इंटर कॉरिडोर, 2000 किमी फीडर रूट्स, 2000 किमी बॉर्डर और इंटरनैशनल कनेक्टिविटी रोड भी शामिल है।

नदी जोड़ो परियोजना

नदियों को जोड़ने की परियोजना सबसे पहले यह विचार 158 साल पहले एक अंग्रेज आर्थर थॉमस कार्टन ने रखा था। डेढ़ सौ वर्षों में भी नदियों को आपस में जोड़ने की अवधारणा सिरे नहीं चढ़ सकी। अटल बिहारी वाजपेयी ने नदी जोड़ो परियोजना पर जोरशोर से पहल की, लेकिन यह तब भी अमल में नहीं आ सकी। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे साकार रूप देने की ओर कदम बढ़ा दिए हैं और नदी जोड़ो परियोजना के काम को रफ्तार देने का फैसला किया है। इस परियोजना पर 40,000 करोड़ रुपए की लागत आएगी।

सभी गांव में सड़क

वर्ष 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के सभी गांवों को सड़क से जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना शुरू की

थी। पीएम मोदी अटल जी के उसी सपने को पूरा करने में लगे हुए हैं। उन्होंने लक्ष्य तय किया है कि 2019 तक देश के हर गांव को पक्की सड़क से जोड़ दिया जाएगा। दिसंबर, 2017 तक गांवों में रहने वाले 1,78,184 आवासीय इलाकों में से 85 प्रतिशत को सभी मौसम में कारगर सड़कों से जोड़ दिया गया है। शेष 15 प्रतिशत गांवों को मार्च 2019 तक सड़कों से जोड़ दिया जाएगा। गौरतलब है कि 2014 में सिर्फ 57 प्रतिशत आवासीय इलाके सड़क मार्ग से जुड़े थे। गौरतलब है कि मोदी सरकार में करीब 140 किलोमीटर रोजाना सड़कों का निर्माण हो रहा है

पूर्वी क्षेत्र का विकास

दिसंबर 2017 में मिजोरम में हाइड्रो प्रोजेक्ट का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री मोदी न अटल बिहारी वाजपेयी को याद करते हुए कहा उनके कार्यकाल के दौरान उत्तर-पूर्व के विकास के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए गए थे। हमने इस दृष्टि को आगे बढ़ाया है और पूर्वोत्तर की प्रगति के लिए संसाधनों को समर्पित कर रहे हैं। वास्तविकता भी यही है। 28 अप्रैल को जब मणिपुर के लायसांग में बिजली पहुंची तो वह देश का अंतिम गांव बन गया जहां बिजली पहुंचाई गई। इसी तरह अगरतला में रेलवे स्टेशन बन गया, ढोला सादिया पुल का उद्घाटन हो गया और 102 रणनीतिक सड़कों का निर्माण भी द्रुत गति से हो रहा है। इसी तरह गोरखपुर, सिंदरी, बरौनी जैसे खाद कारखाना का जीर्णोद्धार भी किया जा रहा है।

हमारे शक्तिशाली राजनीतिज्ञों को कॉमेडियन की तरह दिखाया जाता है, तो लोगों को मजा आता है


16 खुला मंच

20 - 26 अगस्त 2018

मैं हमेशा की तरह वादे लेकर नहीं आया, बल्कि अपने इरादे लेकर आया हूं – अटल बिहारी वाजपेयी

अभिमत

अरुण जेटली

केंद्रीय मंत्री और अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक सहयोगी

अटल युग की अनंत प्रेरणा

अटल जी भले ही इस दुनिया से विदा हो गए हों, लेकिन उन्होंने जिस दौर की बुनियाद रखी वह आगे और समृद्ध होता जाएगा

अटल प्रेरणा

अटल जी के लिए राष्ट्र सर्वोपरि था। राजनीति की यह लीक वर्षों तक भारतीय सार्वजनिक जीवन को ‘अटल प्रेरणा’ देता रहेगा

टल बिहारी वाजपेयी (19242018) को जो लोग नजदीक से जानते रहे, वह यही कहते थे कि वह हमेशा पार्टी और समय से ऊपर उठकर सोचते हैं। वे युवावस्था में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े और फिर उसकी अनुषांगी संस्थाओं से जुड़ते चले गए। सेवा और समर्पण के इस अनुशासन से दीक्षित होते हुए राजनीति के मैदान तक पहुंचे। वे 1957 में यूपी के बलरामपुर से जीत कर अटल संसद भी पहुंच चुके थे। अब तक लोहिया संसद से बाहर थे। संसद में अपनी क्षमता से अटल ने दूसरों को प्रभावित किया। उनके प्रशंसकों में जवाहरलाल नेहरू भी थे। यह दो भिन्न विचारधाराओं के बीच साम्य से ज्यादा भारतीय राजनीति और लोकतंत्र के समावेशी चरित्र के ही कारण था। यह चरित्र आगे अटल राजनीति का अमिट चरित्र बन गया। कोई ऐसी पार्टी नहीं थी जिसके लोगों से उनका याराना नहीं था। उन्होंने राजनीति में लंबी पारी खेली, लेकिन अजातशत्रु बने रहे। जब वह प्रधानमंत्री थे एक बार उनसे विपक्ष के एक बड़े नेता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के लिए कहा गया। वह इस बात को हंसकर टाल गए कि मुल्क की जनता मुझे माफ नहीं करेगी। बैर और बदले की भावना पालना वह जानते ही नहीं थे। अटल जी ने अपने देश भारत को बहुत हद तक समझा था। यह देश एक पूरा उपमहाद्वीप है। हजारों नदियां और जाने कितनी पर्वतमालाएं। लेकिन क्या यही देश है? नहीं, देश का मतलब होता है उसके लोग, संस्कृतियां, रीति-रिवाज, जुबानें, परिधान और धार्मिंक आस्थाएं। विविधता की ताकत, उसके औदार्य और सौंदर्य को वह बखूबी समझते थे। राजनीतिक अस्थिरता के दौर में कई ऐसे मौके आए जब अटल जी ने संयम और धौर्य दिखाते हुए भारतीय लोकतंत्र और उसपर आस्था रखने वाले लोगों के हित में फैसले लिए। उनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि था। राजनीति की यह लीक वर्षों तक भारतीय सार्वजनिक जीवन को ‘अटल प्रेरणा’ देता रहेगा।

टल जी के निधन को तमाम लोग एक युग का अंत बता रहे हैं, लेकिन मेरे ख्याल से यह उस युग की निरंतरता ही है जिसके वे प्रवर्तक रहे। उनकी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत छात्र जीवन में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने से हुई। फिर वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े। उसके बाद वे डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आह्वान पर भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक रहे।

बाद कांग्रेस से मोहभंग हो रहा था तब डॉ. लोहिया ने ‘कांग्रेस हटाओ, देश बचाओ’ अभियान का बिगुल बजाया और उपचुनावों में पं. दीनदयाल उपाध्याय और आचार्य कृपलानी के साथ सीटों पर साझेदारी को लेकर बात शुरू की। अपनी राजनीतिक टीम के साथ दीनदयाल जी एक नई पार्टी का सांगठनिक ढांचा खड़ा करने में जुटे थे। उनके साथियों में अधिकतर उम्र के तीसरे दशक में दाखिल युवा ही थे।

कश्मीर सत्याग्रह

जनसंघ की सफलता

जनसंघ के शुरुआती दौर में वे ‘कश्मीर सत्याग्रह’ से जुड़े, जिसका मकसद राज्य में भारतीय नागरिकों पर लगे तमाम प्रतिबंधों को हटवाना था। डॉ. मुखर्जी के साथ ही वे भी लियाकत-नेहरू समझौते के घोर विरोधी थे। 1957 में एक युवा सांसद के तौर पर तिब्बत संकट और फिर 1962 में चीन से मिली पराजय पर संसद में उनके भाषणों ने सभी को प्रभावित किया। युवावस्था में ही वे जनसंघ का प्रमुख चेहरा बन गए। उन्होंने देश भर का दौरा किया और करिश्माई वक्ता की छवि हासिल की।

1967 में जनसंघ के कई सांसद चुने गए। दिल्ली में उसे पूर्ण बहुमत मिला। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और पंजाब में पार्टी अपनी ठीकठाक मौजूदगी दर्ज कराने में सफल रही। दीनदयाल जी के असामयिक निधन से जनसंघ के नेतृत्व की बागडोर टल जी के हाथ आ गई। पार्टी के मूल सिद्धांतों से समझौते किए बिना उन्होंने दूसरे दलों के साथ तालमेल किया और राष्ट्रीय स्तर पर जनसंघ के सम्मानित एवं स्वीकार्य चेहरा बन गए।

राजनीति का नया दौर

वे दलगत हितों से ऊपर उठने में हिचकते नहीं थे और 1971 के युद्ध में इंदिरा सरकार को उनका समर्थन इसकी मिसाल थी। अटल जी के नेतृत्व में जनसंघ के सहयोग से 1974 में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन को बहुत मजबूती

प्रवास के दौरान अधिकांश मौकों पर वे कार्यकर्ताओं के घर पर ही ठहरते थे। यह उस दौर की बात है जब एक नई पार्टी खड़ी हो रही थी। 1962 में जब चीन से मिली पराजय के टॉवर फोनः +91-120-2970819

(उत्तर प्रदेश)

आपातकाल का विरोध

1980 में जनसंघ का भाजपा के रूप में पुनर्जन्म हुआ और उद्घाटन सत्र में ही उत्साही कार्यकर्ताओं ने नारा दिया- ‘प्रधानमंत्री की अगली बारी, अटल बिहारी, अटल बिहारी’


20 - 26 अगस्त 2018

काव्य में व्यक्त व्यक्तित्व

भाजपा का विस्तार

शानदार जीत

1998 और 1999 में अटल जी के नेतृत्व में पार्टी को शानदार जीत मिली और प्रधानमंत्री के रूप में वे बेहद सफल रहे। उन्होंने भारतीय राजनीति में एक पार्टी के वर्चस्व को खत्म किया। भाजपा ने अपने सामाजिक एवं भौगोलिक दायरे में विस्तार किया। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अटल जी ने एक पार्टी के दबदबे वाली स्थिति में लोगों को राजनीतिक विकल्प दिया।

राष्ट्रहित सर्वोपरि

आडवाणी जी के साथ मिलकर उन्होंने केंद्रीय और राज्य स्तर पर दूसरी पांत के नेताओं की फौज तैयार की। विचारों को लेकर वे बहुत खुले हुए थे। हमेशा राष्ट्र हितों को सर्वोपरि रखा। साथियों और विरोधियों के साथ सहज रहे और कभी भी बेवजह विवाद में नहीं फंसे। चूंकि वे निजी हमले के बजाय

संस्मरण

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अपनी बात मनवा लेते थे। उनकी कैबिनेट बैठकें घंटों तक चलती थीं। वे हर एक मुद्दे पर चर्चा कराते और फिर विरोधाभासी विचारों को गुण-दोष के आधार पर परखते। वे खान-पान के भी बड़े शौकीन थे।

मिली। आपातकाल का विरोध और लोकतंत्र की पुनर्स्थापना को लेकर उनके नेतृत्व में जनसंघ ने लड़ाई लड़ी। जनता सरकार में कुछ समय के लिए सत्ता में भागीदारी भी मिली, लेकिन वह प्रयोग विफल हुआ। फिर 1980 में जनसंघ का भाजपा के रूप में पुनर्जन्म हुआ और उद्घाटन सत्र में ही उत्साही कार्यकर्ताओं ने नारा दिया- ‘प्रधानमंत्री की अगली बारी, अटल बिहारी, अटल बिहारी।’ अपने शुरुआती दौर में भाजपा राजनीतिक छुआछूत की शिकार थी। 1984 के चुनाव में उसकी शुरुआत ही खराब रही। इससे हतोत्साहित हुए बिना अटल जी और आडवाणी जी की जोड़ी भाजपा के विस्तार को लेकर दृढ़ संकल्पित रही। नतीजे में 1989 के चुनाव में भाजपा को लोकसभा की 89 सीटें मिलीं, जिनका दायरा 1991 में बढ़कर 121 हो गया। फिर यह आंकड़ा 1996 में 166 और 1998 में बढ़कर 183 तक पहुंच गया। अलग-थलग पड़ी भाजपा अब भारतीय राजनीति की मुख्यधारा की पार्टी बन गई थी।

खुला मंच

आर्थिक मोर्चे पर भी वे बड़े सुधारक रहे। राष्ट्रीय राजमार्ग, ग्रामीण सड़कें, बेहतर बुनियादी ढांचा और नई व्यावहारिक दूरसंचार नीति और नया विद्युत कानून इसके प्रमुख उदाहरण हैं मुद्दों पर ही बात करते थे, इसीलिए कोई उनसे बैर भी नहीं रखता था।

शब्दों का जादू

शब्दों के वे ऐसे जादूगर थे कि अपनी वक्तृत्व कला से किसी भी मुश्किल हालात को मात दे सकते थे। संसद में जब वे बोलते तो चप्पा-चप्पा शांत हो जाता। रैलियों में उन्हें सुनने के लिए लोग घंटों पहले पहुंच जाया करते थे। हाजिर-जवाबी में भी उनका कोई सानी नहीं था। वे मुश्किल चीजों को भी आसानी से समझा देते थे। समय-समय पर गठबंधन में उनसे लग-लग साथी जुड़ते रहे। केसी पंत और रामकृष्ण हेगड़े जैसे विरोधियों को भी उन्होंने साथ लिया। 1998 में परमाणु परीक्षण उनकी सरकार का निर्णायक

रामबहादुर राय

वरिष्ठ पत्रकार

हंसाते भी थे, भावनाओं में बहाते भी थे

वाजपेयी जी बिना किसी पर्ची के बोलते थे और मुद्दों को सही समय पर सटीक तरीके से रखते थे

क्षण था। पाकिस्तान के साथ शांति बहाली के भी प्रयास किए। कारगिल जैसी साजिश हुई तो उसका मुंहतोड़ जवाब भी दिया।

बड़े आर्थिक सुधारक

आर्थिक मोर्चे पर भी वे बड़े सुधारक रहे। राष्ट्रीय राजमार्ग, ग्रामीण सड़कें, बेहतर बुनियादी ढांचा और नई व्यावहारिक दूरसंचार नीति और नया विद्युत कानून इसके प्रमुख उदाहरण हैं। सरकार के भीतर किसी भी चर्चा में वह हमेशा उदार आर्थिक दृष्टिकोण के हिमायती रहे। बदलते वैश्विक परिदृश्य में उन्होंने विदेश नीति को भी सही दिशा में मोड़ा। प्रधानमंत्री के रूप में भी वह अपने मातहत मंत्रियों और नौकरशाहों पर कभी सख्त नहीं रहे। विनम्र, लेकिन दृढ़ लहजे में अपने मातहतों से वे

ई 1963 की बात है। मैंने पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी को सुना था। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जौनपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे। उस समय चार उपचुनाव हो रहे थे। वडोदरा से मीनू मसानी चुनाव लड़ रहे थे, अमरोहा से जेबी कृपलानी और फर्रुखाबाद से डॉ. राम मनोहर लोहिया चुनाव मैदान में थे। जौनपुर की सभा में मैंने वाजपेयी जी को पहली बार सुना। मैंने यह महसूस किया कि वाजपेयी जी लोगों को अपनी सभा में हंसाते भी हैं और भावनाओं में बहा भी देते हैं। यही उनके भाषण की अद्भुत कला थी और उन्हें यह कला अपने पिता से मिली थी। इसके लिए उन्हें कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ी। वाजपेयी

उनके भीतर मौजूद कवि ने उन्हें स्वप्नदर्शी बनाया। उनकी कविताओं की तमाम पंक्तियां उनके मिजाज का ही प्रतिबिंब हैं। आपातकाल के दौरान कमर में तकलीफ के उपचार के लिए उन्हें एम्स ले जाया गया। डॉक्टर ने पूछा कि क्या आप झुक गए थे? दर्द में भी उनका हास्यबोध कायम था। उन्होंने आपातकाल के संदर्भ में जवाब दिया, ‘झुकना तो सीखा नहीं डॉक्टर साहब, मुड़ गए होंगे।’ इसी विचार से उन्होंने अस्पताल बेड पर ही ‘टूट सकते हैं, मगर झुक नहीं सकते’ जैसी आपातकाल विरोधी कविता लिखी, जो उस दौर में बहुत लोकप्रिय हुई।

आम सहमति की कद्र

अटल जी सच्चे अर्थों में लोकतांत्रिक थे। उनकी राजनीतिक शैली उदार थी। वह आलोचना को स्वीकार करते थे। संसदीय लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में पगे हुए होने के कारण वे आम सहमति की कद्र करते थे। किसी से कोई द्वेष नहीं रखते थे। सहमति रखने वालों से भी संवाद करते थे। विपक्ष में रहे हों या सत्ता में उनका रवैया कभी नहीं बदला। वे ऐसे प्रतिष्ठित ओजस्वी वक्ता थे, जिनकी हालिया इतिहास में मिसाल मिलना मुमकिन नहीं। साख उनकी सबसे बड़ी थाती थी।

आगे बढ़ेगा अटल दौर

नेहरूवादी कांग्रेस के दबदबे वाले दौर में उन्होंने ऐसी वैकल्पिक राजनीतिक धारा बनाई, जो न केवल कांग्रेस का विकल्प बनी, बल्कि उससे कहीं आगे निकल गई। धैर्य के मामले में अटल जी मैराथन धावक थे। अटल जी भले ही इस दुनिया से विदा हो गए हों, लेकिन उन्होंने जिस दौर की बुनियाद रखी वह आगे और समृद्ध होता जाएगा।

जी के भाषण में हास्य, विनोद और मुद्दे की बात हुआ करती थी। वाजपेयी जी बिना किसी पर्ची के बोलते थे और मुद्दों को सही समय पर सटीक तरीके से रखते थे। उनकी सभा में हर विचारधारा के लोग उन्हें सुनने आते थे।


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अटल-वाणी अटल स्मृति

20 - 26 अगस्त 2018

अटल बिहारी वाजपेयी की मंत्रमुग्ध करने वाली उनकी कुछ नायब टिप्पणियों और भाषणों के अंश

बा

भारत को लेकर मेरी एक दृष्टि है- ऐसा भारत जो भूख, भय, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो

एसएसबी ब्यूरो

त संयुक्त राष्ट्र में पहली बार हिंदी में भाषण देने की हो या शहीद सैनिकों के शवों को घर भेजने की, अटल जी ने हमेशा जनता की नब्ज टटोली है। वरिष्ठ कवि हरिओम पंवार अटल जी के बारे में कहते हैं, ‘राजनीति के केवल एक व्यक्ति के मैंने पैर छुए हैं, वह थे अटल बिहारी वाजपेयी। उनके पैर छूकर कभी-कभी महसूस होता है कि हमने छोटा- सा तीर्थ किया है।’ कविता और राजनीति दोनों में गहरा विरोधाभास है। राजनीति कहती है कि दिल में जो कुछ हो किसी को पता भी नहीं चलना चाहिए और कविता कहती है कि दिल में कही भी थोड़ी फड़फड़ाहट हो तो उसकी खबर पूरी दुनिया को होनी चाहिए। लेकिन भारत छोड़ो आंदोलन में अपने भाषणों से नौजवानों में देशभक्ति की ज्वाला भड़काने वाला वह कवि अटल कब पत्रकार बने, फिर कब नेता बने और कब देश के पहला गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बन गए, यह किसी को पता ही नहीं चला। संसद में अपने एक भाषण में अटल जी ने कहा था कि, ‘जब मैं राजनीति में आया तो मुझे पता भी नहीं था कि मैं एमपी बनूंगा। मैं पत्रकार था और यह राजनीति... जिस तरह की राजनीति चल रही

है, मुझे रास नहीं आती।’ इस पर किसी ने कहा, ‘...तो छोड़ क्यों नहीं देते?’ तब अटल जी ने कहा कि, ‘मैं तो छोड़ना चाहता हूं, लेकिन राजनीति मुझे नहीं छोड़ती।’ एक बार और बड़ी बेबाकी से अटल जी ने कहा था कि, ‘सच्चाई ये है कि कविता और राजनीति दोनों साथ साथ नहीं चल सकते। ऐसी राजनीति जिसमें हर-रोज भाषण देना जरूरी है और भाषण भी ऐसा जो श्रोताओं को प्रभावित कर सके। तो ऐसे में कविता की एकांत साधना के लिए समय और वातावरण कैसे मिल सकता है!’ अटल जी के बारे में बात करते हुए मशहूर कवि अशोक चक्रधर कहते हैं, ‘वे राजनेता थे ही नहीं! राजनेता तो उनको विचारों को स्वीकार कर लेने के बाद तत्कालीन स्थितियों ने बना लिया।’

मेरी कविता जंग का एेलान

अटल जी की कविता हर अंदाज में थी। अपनी कविताओं के बारे में एक दफा उन्होंने कहा थामेरी कविता जंग का एेलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जयसंकल्प है। वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है।

पद कोई अलंकार नहीं

जनता पार्टी के विघटन के बाद 1980 में भारतीय जनता पार्टी का निर्माण हुआ जिसके अध्यक्ष पद की कमान अटल जी को सौंपी गई। भाजपा के पहले अधिवेशन में अध्यक्षीय भाषण के दौरान उन्होंने कहा थाभारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष पद कोई अलंकार की वस्तु नहीं है! यह पद नहीं, दायित्व है। प्रतिष्ठा नहीं, परीक्षा है। यह सम्मान नहीं, चुनौती है।

आत्म- सम्मान

भाजपा के पहले अधिवेशन में ही उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के नैतिक मूल्यों की बात करते हुए कहा था पद, पैसा और प्रतिष्ठा के पीछे पागल होने वालों के लिए हमारे यहां कोई जगह नहीं है। जिनमें आत्म-सम्मान का अभाव हो, वो दिल्ली में जाकर दिल्ली के दरबार में मुजरे झाड़े!

चालीस साल की साधना

1996 में 13 दिन की सरकार चलाने के बाद संसद को संबोधित करते हुए अटल जी ने कहा था-


20 - 26 अगस्त 2018

हमारे इन प्रयासों के पीछे चालीस साल की साधना है। यह कोई आकस्मिक जनादेश नहीं है, यह कोई चमत्कार नहीं हुआ है, हमने मेहनत की है, हम लोगों के बीच गए हैं, हमने संघर्ष किया है। पार्टी 365 दिन चलने वाली पार्टी है। यह कोई चुनाव में कुकुरमुत्ते की तरह से खड़ी होने वाली पार्टी नहीं है।

वाजपेयी अच्छा, पार्टी गलत

अपनी 13 दिन की सरकार के ही आखिरी भाषण में उन्होंने सत्ता की मलाई खाने के लिए लालायित नेताओं को आड़े हाथ लेते हुए कहा था मैं चालीस साल से इस सदन का सदस्य हूं। सदस्यों ने मेरा व्यवहार देखा है, मेरा आचरण देखा है। जनता दल के मित्रों के साथ सत्ता में भी रहा हूं। कभी हम सत्ता के लोभ से गलत काम करने को तैयार नहीं हुए। इस चर्चा में बार-बार यह स्वर सुनाई दिया है कि वाजपेयी तो अच्छा है लेकिन पार्टी ठीक नहीं है! अच्छा है तो अच्छे वाजपेयी का आप क्या करने का इरादा रखते हैं? मैं नाम नहीं लेना चाहता लेकिन पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गठबंधन करके अगर सत्ता हाथ में आती है तो ऐसी सत्ता को मैं चीमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा!

कैसे देश चलेगा

संसद में लोकपाल पर बहस करते हुए अटल जी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव पर एक गहरा तंज कसा था अगर पार्लियामेंट अपना काम न करे और एग्जीक्यूटिव अपने फैसले न करे, मामले को लटकाएं और जब प्रधानमंत्री से पूछा जाए कि आप निर्णय क्यों नहीं करते तो उनका उत्तर ये हो कि निर्णय न लेना भी एक निर्णय हैं। अब यह कर्मयोग की स्थिति! कैसे देश चलेगा!

पुरुष सब दस नंबरी

आपातकाल के दौरान इंदिरा सरकार ने अटल जी को जेल में कैद कर लिया था। लेकिन उन्होंने जेल में रहकर भी कलम के जरिए

सरकार पर प्रहार जारी रखे। उन्होंने पूर्व उप प्रधानमंत्री और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे यशवंतराव चव्हाण का नाम लेकर कैदी कविराय के रूप में इंदिरा गांधी के एकाधिकार पर कुछ इस तरह चुटकी लीपूछा श्री चव्हाण से नम्बर दो है कौन? भौचक-भौचक से रहे पल-भर साधा मौन, न कोई नंबर दो है, केवल नंबर एक, शेष जोहै सो है! कह कैदी कविराय, नई गणना- गुणाक्षरी, नारी नंबर एक, पुरुष सब दस नंबरी!

सोनिया को प्रति-उत्तर

2003 में जब अटल जी प्रधानमंत्री थे तो सोनिया गांधी ने अटल जी की सरकार पर गंभीर आरोप लगाए थे। तब अटल जी की ओर से प्रति-उत्तर कुछ यूं मिला मैंने श्रीमती सोनिया जी का भाषण पढ़ा। उन्होंने सारे शब्द इकट्ठे कर दिए हैं एक ही पैराग्राफ में। ... राजनीतिक क्षेत्र में जो आपके साथ कंधे से कंधा लगाकर काम कर रहे हैं इसी देश में, मतभेद होंगे, पर उनके बारे में ये आपका मूल्यांकन है। मतभेदों को प्रकट करने का ये तरीका है? ऐसा लगता है कि शब्दकोश खोलकर बैठ गए हैं और उसमें से ढूंढ-ढूंढकर शब्द निकाले गए हैं। इनकांपिटेंट, इन्सेंसिटिव, इरिस्पांसिबल। लेकिन ये शब्दों का खेल नहीं है। ... हम यहां लोगों से चुन के आए हैं और जब तक लोग चाहेंगे, हम रहेंगे। आपका मैंडेट कौन होता है हमारा फैसला करने वाला? किसने आपको जज बनाया है? आप या तो शक्ति परीक्षण के लिए तैयार रहिए या असेंबली के चुनाव होंगे तब कर लेंगे दो-दो हाथ।

गजनी की कसक

सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान में अतिथि के तौर पर भाषण देते हुए अटल जी की बातों में गहरा दर्द झलक रहा था। उन्होंने कहा विदेश मंत्री के नाते मैं अफगानिस्तान गया था। आपको सुन कर ताज्जुब होगा कि अफगानिस्तान के मेजबानों से मैंने कहा, मैं गजनी जाना चाहता हूं। गजनी। पहले तो मेरी बात उनके समझ में नहीं आई। कहने लगे गजनी तो कोई टूरिस्ट

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अटल स्मृति

स्पॉट नहीं है। गजनी में कोई फाइव स्टार होटल नहीं है। गजनी में आप जाकर क्या करेंगे? गजनी आप जाकर क्या देखेंगे? मैं उन्हें पूरी बात नहीं बता सकता था। मेरे हृदय में कहीं गजनी कांटे की तरह चुभ रहा है, जबसे मैंने गजनी से आए एक लुटेरे की कथा पढ़ी है और किशोरावस्था में पढ़ी है। मैं देखना चाहता था वह गजनी कैसा है!

भाजपा का सूर्योदय

1988 में कांग्रेसी, संसद में अटल जी का उपहास उड़ा रहे थे। तब अटल जी ने व्यापक क्रोध में कहा था उपहास उड़ाते हो आप लोग। हम तो विरोधी हैं फिर भी आप सब का सम्मान करते हैं। परंतु आप सब में मानवता नहीं, संस्कार को तिलांजलि देने वालों एक दिन पूर्व में भी सूर्योदय होगा भाजपा का।

लोकापवाद से डरता हूं

अपने भाषणों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर वाजपेयी अपने 50 सालों के राजनीतिक करियर में बेदाग छवि के लिए जाने जाते हैं। जब केंद्र में उनकी 13 दिनों की सरकार बनी और वह सत्ता के लिए उनका संघर्ष जारी था। राष्ट्रपति ने बीजेपी को सबसे बड़े दल होने के नाते सरकार बनाने के लिए बुलाया था। उनको 10 दिन में बहुमत साबित करने का मौका मिला था। समर्थन के लिए उन्होंने कई दलों से बात की लेकिन किसी भी तरह की जोड़तोड़ से अलग रहे। इस बीच, कुछ विपक्षी नेता उनके ऊपर आरोप लगाने लगे कि वाजपेयी को सत्ता का लोभ हो गया है। इस पर अटल बिहारी वाजपेयी काफी आहत गए और सदन में खड़े होकर उन्होंने कहा मेरे ऊपर आरोप लगाया गया है कि मुझे सत्ता का लोभ हो गया है। मैंने सदन में 40 वर्ष बिताए हैं। सदस्यों में मेरा व्यवहार देखा है, आचरण देखा है... पार्टी तोड़कर सत्ता मिलती है तो ऐसी सत्ता मैं चीमटे से भी छूना पसंद नहीं करूंगा। ‘न भीतो मरणादस्मि केवलं दूषितो यशः’, भगवान राम ने कहा था कि मैं मृत्यु से नहीं डरता, डरता हूं तो बदनामी से डरता हूं, लोकापवाद से डरता हूं।

कोई हथियार नहीं, केवल आपसी भाईचारा ही हर समस्या का समाधान कर सकता है


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पड़ोस और प्रेम की अटल दरकार

भले परिस्थितियां बदल गई हों, लेकिन वाजपेयी जी के सपने भारतीयों और पाकिस्तानियों के करोड़ों दिलों में जीवित हैं। वे विदा हो गए पर उनके सपने और कविताएं अब भी हमारे साथ हैं

लोकतंत्र एक ऐसी जगह है जहां दो मूर्ख मिलकर एक पावरफुल इंसान को हरा देते हैं

हामिद मीर

(कार्यकारी संपादक, जियो टीवी पाकिस्तान)

टल बिहारी वाजपेयी सपने देखने वाले व्यक्ति थे, क्योंकि वे कवि थे। कवि राजनीतिज्ञ अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में मेरी पहली राय बहुत सकारात्मक नहीं थी। मैंने पहली बार उनके बारे में कुछ पंक्तियां ‘इफ आई एम असेसिनेटेड’ किताब में पढ़ी थीं। यह चार दशकों पहले पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने रावलपिंडी सेंट्रल जेल में लिखी थी। इसकी पांडुलिपि भुट्टो के वकील ने 1978 में चुपके से लंदन भिजवाई थी और इसे भारत में प्रकाशित किया गया था। 1978 में वाजपेयी विदेश मंत्री के रूप में पहली बार पाकिस्तान आए। जिया-उल-हक तब पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे और भुट्‌टो जेल में चुपचाप अपनी किताब लिख रहे थे। दुनिया के कई नेता पाकिस्तानी सैन्य तानाशाह से भुटटों ्‌ की मौत की सजा रद्द करने की अपील कर रहे थे पर वाजपेयी ने अपनी पाकिस्तान यात्रा में कभी भुट्‌टो के बारे में बात नहीं की। भुट्टो ने अपनी किताब में वाजपेयी की आलोचना करते हुए उन्हें मुस्लिम विरोधी नेता बताया, जिन्होंने पाक-चीन को जोड़ने

वाजपेयी जी जानते थे कि क्रिकेट कई पाकिस्तानियों व भारतीयों के लिए दूसरा प्यार है। फरवरी 1999 में उनकी बस डिप्लोमेसी नाकाम हो गई लेकिन, मार्च 2004 में उन्होंने सफलतापूर्वक क्रिकेट डिप्लोमेसी शुरू की वाले काराकोरम हाईवे के प्रति अपनी अप्रसन्नता जताई थी। 1998 में भारत ने तब प्रधानमंत्री वाजपेयी के आदेश पर परमाणु परीक्षण किया था। मैं उन पाकिस्तानियों में शामिल था, जो तब के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से वाजपेयी का अनुसरण कर दक्षिण एशिया में परमाणु संतुलन लाने की अपील कर रहे थे। मैं वाजपेयी से पहली बार लाहौर में मिला, जब वे बस में सवार होकर पाकिस्तान आए थे। उनकी इस दूसरी यात्रा ने पूरे पाकिस्तान को रोमांचित कर दिया था। लाहौर के किले में उनके सम्मान में भव्य स्वागत कार्यक्रम रखा गया। जब वाजपेयी जी पहुंचे तो मेरे सहित कई पत्रकारों, लेखकों, कवियों और गायकों से उनका परिचय कराया गया। उन्होंने चेहरे पर प्यारी- सी मुस्कान के साथ मुझसे हाथ मिलाया। उनके हाथ उनके चेहरे की तरह कोमल थे। उन्होंने अपने भाषण से हम सबको प्रभावित किया। शरीफ ने वाजपेयी जी की सराहना में कहा कि वे पाकिस्तान में चुनाव जीत सकते हैं।

दुर्भाग्य से कुछ दिनों में करगिल युद्ध शुरू हो गया। जनरल परवेज मुशर्रफ अक्टूबर 1999 में सत्ता में आए और दिसंबर 1999 में भारतीय विमान का अपहरण हो गया। दोनों देशों के बीच हवाई संपर्क निलंबित कर दिया गया। 2001 की आगरा शिखर बैठक पाकिस्तान के साथ खाई पाटने का वाजपेयी जी का एक और प्रयास था। लेकिन शिखर बैठक की नाकामी के बाद मैं ताज महल के सामने हताश खड़ा पाकिस्तान विरोधी नारे सुन रहा था। 2003 में वाजपेयी जी श्रीनगर गए और कहा, ‘बंदूक से कोई समस्या नहीं सुलझ सकती, लेकिन भाईचारा सुलझा सकता है।’ मैंने भारतीय विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा का इंटरव्यू लेने का प्रयास किया। मुझे इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायुक्त ने वीजा दिया और मैं कोलंबो के रास्ते नई दिल्ली पहुंचा। यशवंत सिन्हा का मेरा इंटरव्यू भारत-पाकिस्तान के बीच नई जमीन तोड़ने वाला साबित हुआ। कई भारतीय अधिकारियों ने निजी रूप से मुझे बताया


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कि यशवंत सिन्हा को इंटरव्यू की अनुमति वाजपेयी जी ने दी थी। 2004 में हुई उनकी तीसरी पाकिस्तान यात्रा में मेरी उनसे दूसरी बार मुलाकात हुई। वे इस्लामाबाद की सेरेना होटल में ठहरे थे। पाकिस्तान के वित्तमंत्री शौकत अजीज को भारतीय प्रधानमंत्री के लिए मिनिस्टर इन वेटिंग नियुक्त किया गया था। अजीज मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं और मुझे उनके जरिए वाजपेयी जी के बारे में बहुत सारी जानकारी मिलती रहती। उन्होंने मुझसे कहा, ‘वाजपेयी जी का सेंस ऑफ ह्यूमर जबर्दस्त है।’ उन्होंने शौकत अजीज को अपनी किताब ‘21 कविताएं’ और लता मंगेशकर के गीतों की एक सीडी भेंट की। शौकत अजीज ने उन्हें नूरजहां, नुसरत फतह अली खान, मेंहदी हसन, गुलाम अली, इकबाल बानो और नायरा नूर की सीडी भेट की। उस यात्रा में जनरल परवेज मुशर्रफ और अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रसिद्ध इस्लामाबाद घोषणा पर दस्तखत किए। एक शाम मैंने अजीज को मेरे टीवी टॉक शो में वाजपेयी के बारे में बोलने के लिए आमंत्रित किया और वे तो उनकी तारीफ ही किए जा रहे थे। अजीज ने उनके साथ होटल के कमरे में दो घंटे तक ऑस्ट्रेलिया-भारत मैच देखा और उन्हें

अहसास हुआ कि भारतीय प्रधानमंत्री का क्रिकेट ज्ञान उनसे अधिक है। जब वाजपेयी जी पाकिस्तान से विदा हो रहे थे तो उन्होंने मुशर्रफ से बेबाकी से कहा, ‘शौकत अजीज ने मेरा बहुत ख्याल रखा। वे आपके भविष्य के सितारे हैं।’ कुछ ही महीनों में मुशर्रफ ने जफरुल्लाह जमाली को हटाकर शौकत अजीज को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया। वाजपेयी जानते थे कि क्रिकेट कई पाकिस्तानियों व भारतीयों के लिए दूसरा प्यार है।

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फरवरी 1999 में उनकी बस डिप्लोमेसी नाकाम हो गई, लेकिन मार्च 2004 में उन्होंने सफलतापूर्वक क्रिकेट डिप्लोमेसी शुरू की। मुझे अब भी याद है कि भारतीय क्रिकेट टीम के पाकिस्तान रवाना होने के पहले अटल जी टीम से मिले और कप्तान सौरव गांगुली से कहा, ‘खेल भी जीतिए और दिल भी जीतिए।’ कश्मीर विवाद के समाधान के लिए उनके तीन सूत्रीय फॉर्मूले से उन्होंने पाकिस्तानियों को संदेश दिया कि वे उनसे शांति स्थापित करने के प्रति गंभीर है। उन्होंने कहा, ‘इंसानियत, जम्हूरियत (लोकतंत्र) और कश्मीरियत (हिंदू-मुस्लिम एकता की पुरानी परंपरा) सारी समस्याओं को सुलझाने का अल्टीमेट तरीका है।’ वाजपेयी जी के निधन पर संवेदना संदेश भेजने वालों में पाकिस्तान के भावी प्रधानमंत्री इमरान खान ही नहीं है, कई पाकिस्तानी व कश्मीरी नेता हैं। भले परिस्थितियां बदल गई हों, लेकिन वाजपेयी जी के सपने भारतीयों और पाकिस्तानियों के करोड़ों दिलों में जीवित हैं। वे विदा हो गए पर उनके सपने और कविताएं अब भी हमारे साथ हैं। वे पाकिस्तान के साथ शांति चाहते थे और मुझे विश्वास है कि प्रधानमंत्री मोदी और इमरान खान उनके सपनों को हकीकत में बदल सकते हैं। वही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। आइए नए प्रयास करें।

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अगर आपका देश पावरफुल है तो किसी की भी हमारे देश पर आंख उठाकर देखने की हिम्मत नहीं होगी


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अटल घटनाक्रम

भारत के सर्वाधिक करिश्माई नेताओं में शुमार अटल बिहारी वाजपेयी का एक ऐसे राजनेता के रूप में सम्मान किया जाता है, जिन्होंने तमाम अवरोधों को तोड़ते हुए 90 के दशक में राजनीति के मुख्य मंच पर भाजपा को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपनी वाणी के ओज और 'अटल' फैसले लेने के लिए विख्यात अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमं​​ित्रत्वकाल में पोखरण-2 से लेकर ऑपरेशन विजय तक कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिसने देश के इतिहास को बदल कर रख दिया अमेरिकी ने कई तरह की पाबंदी लगा दी थी। इसके बाद भारत के विदेश मंत्री जसवंत सिंह और अमेरिकी विदेश मंत्री स्ट्रोब टालबोट ने ​िद्वपक्षीय वार्ता की, जिसने दोनों देशों के संबंधों को सुधारने का काम किया। वार्ता के बाद अमेरिका ने भारत को अपना पारंपरिक सहयोगी करार दिया था। इसकी बदौलत ही 2005 में भारत-अमेरिका के बीच परमाणु समझौता हुआ था।

हमारे परमाणु हथियार विशुद्ध रूप से किसी विरोधी की तरफ से परमाणु हमले के डर को खत्म करने के लिए हैं

लाहौर यात्रा

पोखरण-2

एसएसबी ब्यूरो

1998 में सरकार बने 3 महीने हुए थे कि अटल जी ने परमाणु परीक्षण का फैसला किया। अमेरिका खिलाफ था। उसकी खुफिया एजेंसी सैटेलाइट्स से निगरानी कर रही थी। उसे चकमा देते हुए 11 व 13 मई 1998 को पोखरण में सफल परमाणु परीक्षण किए। फिर तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को लिखा- ‘परमाणु हथियारों का इस्तेमाल उस देश के खिलाफ नहीं होगा, जिसकी भारत के प्रति बुरी भावना नहीं है।’ गौरतलब है कि परीक्षण के बाद भारत पर

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भारतपाक रिश्तों में आई तब्दीलियों के लिए जाना जाता है। 1999 में सरकार बनने के बाद अटल जी दो दिवसीय दौरे पर पाकिस्तान गए थे। तब उन्होंने दिल्ली-लाहौर बस सेवा शुरू करते हुए बस में लाहौर यात्रा की थी। सर्विस का शुभारंभ करते हुए फर्स्ट पैसेंजर के तौर पर अटल जी पाकिस्तान गए थे। भारत-पाकिस्तान सीमा पर वाघा में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने अटल जी का स्वागत किया था। यहां उन्होंने पाकिस्तान के तत्कालीन पीएम नवाज शरीफ से मुलाकात कर आपसी संबंधों की नई शुरुआत की थी। अपनी इस यात्रा​ा के दौरान लाहौर के मीनारए-पाकिस्तान पर अटल जी ने लिखा था कि भारत चाहता है कि पाकिस्तान संप्रभु और समृद्ध बने। यह पहली बार था कि जब किसी भारतीय नेता ने


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ऑपरेशन विजय

टल जी ने पाकिस्ता​ान के साथ रिश्तों को सुधारने की भरसक कोशिश की थी। फरवरी 1999 की उनकी ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा इसी संदर्भ में थी, लेकिन उनकी इस पहल के बावजूद भारत के लिए परिणाम उल्टा ही रहा। पाकिस्तानी सैनिक

सरहद लांघकर कारगिल की ऊंची पहाड़ी की चोटियों पर आ जमें। भारतीय सेना को इस बारे में पता 1999 की गर्मियों में चला, जब बर्फ पिघलनी शुरू हुई। इसके बाद सेना ने 'ऑपरेशन विजय' शुरू किया और करीब 18 हजार फीट की ऊंचाई पर कारगिल

आगरा शिखर सम्मेलन

पाकिस्तान की संप्रभुता की बात कही थी।

चंद्रयान

15 अगस्त 2003 को अटल ने देश के पहले चंद्रमिशन ‘चंद्रयान-1’ की घोषणा की, जिसे 22 अक्टूबर 2008 को लॉन्च किया गया। इसका काम चांद की परिक्रमा कर जानकारियां जुटाना था। इस यान ने चांद पर पानी खोजा, जो इसरो की सबसे बड़ी सफलता मानी गई थी।

कंधार

24 दिसंबर 1999 को आतंकी प्लेन को हाईजैक कर कंधार ले गए। इसमें 176 यात्री और 15 क्रू मेंबर्स थे। रक्षा मंत्री जसवंत सिंह जैश सरगना मौलाना मसूद अजहर समेत तीन आतंकियों को कंधार लेकर गए। इसके लिए अटल जी पर तीखे हमले हुए। उन्होंने विनम्रता से सारे इल्जाम अपने सिर ले लिए। उनका मानना था कि सरकार को हरसंभव अपने लोगों को बचाने के लिए प्रयास करना चाहिए और ऐसा ही उन्होंने किया।

जुलाई 2001 में वाजपेयी और मुशर्रफ दो दिनों के लिए आगरा में मिले। दोनों यहां परमाणु हथियारों को कम करने, कश्मीर मसले और सीमापार आतंकवाद जैसे मामलों पर बातचीत करने के लिए मिले थे। लेकिन यह बातचीत तब खत्म हो गई मुशर्रफ ने भारतीय संपादकों को बताया कि कश्मीर अकेला मुद्दा था और भारत ने उसके मसौदे को खारिज कर दिया है।

संसद पर हमला

दिसंबर 2001 में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-एमोहम्मद के पांच आतंकियों ने संसद भवन पर हमला कर दिया था। आतंकियों सहित 12 लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद वाजपेयी जी ने कड़ा फैसला लेते हुए सीमा पर 5 लाख सैनिकों की

युद्ध लड़ा गया। तब सेना सीमा पार कर पाकिस्तान से सीधे-सीधे दो-हाथ करने के मूड में थी, लेकिन अटल जी ने ऐसा नहीं होने दिया और पाकिस्तान की ओर से मिले धोखे के बावजूद इस युद्ध में भी सिद्धांतों का पूरा पालन किया। तैनाती की। सभी लड़ाकू विमान और जंगी जहाज को तैयार किया गया, ताकि पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके। सीमा पर यह तनातनी 6 महीने तक जारी रही। दोनों देश युद्ध की दहलीज पर खड़े थे। जिसकी वजह से अमेरिका ने हस्तक्षेप किया और मुशर्रफ को समझाया कि वह भारत के साथ बातचीत के जरिए इस मसले को सुलझाए।

समग्र संवाद

2004 में वाजपेयी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ इस्लामाबाद में सार्क देशों के शिखर सम्मेलन से पहले मिले। इस मौके पर पहली बार आधिकारिक तौर पर मुशर्रफ ने कहा कि वह अपने देश की धरती का इस्तेमाल आतंकियों को भारत के खिलाफ नहीं करने देंगे।

देश एक मंदिर है, हम पुजारी हैं, राष्ट्रदेव की पूजा में हमें, खुद को समर्पित कर देना चाहिए


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अटल बिहारी वाजपेयी की ख्याति में अगर सबसे बड़ा हाथ उनकी भाषण शैली का है तो वहीं वे जिस तरह के हाजिरजवाब थे, वैसी वाकपटुता राजनीति के क्षेत्र में कम ही मिलती है

पाकिस्तान के साथ सामान्य संबंध बनाने की कोशिशें हमारी कमजोरी का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि ये शांति के लिए हमारी प्रतिबद्धता की संकेत हैं

एसएसबी ब्यूरो

टल बिहारी वाजपेयी का नाम लेते ही उनकी वाकपटुता का ध्यान सबसे पहले आता है। उनकी ख्याति में अगर सबसे बड़ा हाथ उनकी भाषण शैली का है तो वहीं वे जिस तरह के हाजिरजवाब थे, वैसी वाकपटुता राजनीति के क्षेत्र में कम ही मिलती है। वे अपनी वाकपटुता से न सिर्फ मुश्किल सवालों से बच जाते थे, बल्कि कई बार पूरे मुद्दे को ही अलग शक्ल दे देते थे। कई बार दूसरे पाले में खड़ा व्यक्ति भी असल बात भूलकर खिलखिला देता था या उनकी हाजिरजवाबी की रपटीली राह पर फिसल बैठता था। प्रस्तुत हैं अटल जी की जिंदगी के कुछ ऐसे ही हैं, जिनमें उन्होंने अपनी भाषा और विनोदप्रियता की झलक मिलती है-

‘पंडित जी शीर्षासन करते हैं’

अटल बिहारी वाजपेयी 1957 में पहली बार सांसद हो गए थे। तब जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री हुआ करते थे। तब अटल को संसद में बोलने का बहुत वक्त नहीं मिलता था, लेकिन अच्छी हिंदी से उन्होंने अपनी पहचान बना ली थी। नेहरू भी वाजपेयी की हिंदी से प्रभावित थे। वह उनके सवालों का जवाब संसद में हिंदी में ही देते थे। विदेश नीति हमेशा उनका प्रिय विषय रहा। एक बार नेहरू ने जनसंघ की आलोचना की तो जवाब में अटल ने कहा, ‘मैं जानता हूं कि पंडित जी रोज शीर्षासन करते हैं। वह शीर्षासन करें, मुझे कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन मेरी पार्टी की तस्वीर उल्टी न देखें। इस बात पर नेहरू भी ठहाका मारकर हंस पड़े।’

लाजवाब

हाजिरजवाब

पद और यात्रा

अस्सी के दशक में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं, अटल जी उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार की घटना को लेकर पदयात्रा कर रहे थे। उनके मित्र अप्पा घटाटे ने उनसे पूछा, ‘वाजपेयी, ये पदयात्रा कब तक चलेगी?’ जवाब मिला, ‘जब तक पद नहीं मिलता, यात्रा चलती रहेगी।’

मूर्तियां पत्थर की क्यों होती हैं!

सत्तर के दशक में पुणे में अटल जी को एक सभा में तीन लाख रूपए भेंट किए जाने थे। इस राशि को मेहनत से जुटाने वाले कार्यकर्ताओं को एक-एक करके वाजपेयी को माला पहनाने का अवसर दिया गया। बार-बार गले तक मालाएं भर जातीं तो अटल जी उन्हें उतार कर रख देते। जब भाषण देने लगे तो कहा, ‘अब समझ आया कि ईश्वर की मूर्ति पत्थर की क्यों होती है। ताकि वह भक्तों के प्यार के बोझ को सहन कर सके।’

दूल्हे को पहचानिए

अटल जी अपनी वाकपटुता से अनचाहे सवालों से बच निकलते थे। 1984 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद जब कांग्रेस को 401 सीटों पर प्रचंड जीत मिली तो लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि ये लोकसभा नहीं, शोकसभा के चुनाव थे। कांग्रेस इतनी मजबूत दिख रही थी कि अगले चुनाव में कांग्रेस को हराने के लिए गठबंधन जरूरी था। वीपी सिंह भाजपा से गठबंधन नहीं चाहते थे, लेकिन कुछ मध्यस्थों के समझाने पर सीटों के समझौते के लिए राजी हो गए थे। चुनाव प्रचार के दौरान ही एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, जिसमें अटल जी और वीपी सिंह दोनों मौजूद थे, पत्रकार विजय त्रिवेदी ने अटल जी से पूछा, ‘चुनावों के बाद अगर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरती है तो क्या आप प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी लेने को तैयार होंगे?’ अटल जी थोड़ा मुस्कुराए और जवाब दिया, ‘इस बारात के दूल्हा वीपी सिंह हैं।’


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मार्जिन का इस्तेमाल

फरवरी 1991 में जयपुर में बीजेपी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक हुई। बैठक के आखिरी दिन जब वाजपेयी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे तो वरिष्ठ पत्रकार नीना व्यास ने पूछा, "सुना है वाजपेयी जी आज कल आप पार्टी में मार्जिनलाइज हो गए हैं, हाशिए पर आ गए हैं?" अटल जी ने सवाल अनसुना कर दिया। दोबारा वही सवाल पूछा गया तो वाजपेयी ने कहा, "नहीं नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है।" लेकिन नीना व्यास मानने वाली नहीं थीं। उन्होंने फिर कहा कि अब तो ज़्यादातर लोग मानने लगे हैं कि आप पार्टी में मार्जिनलाइज़ हो गए हैं। वाजपेयी ने तब अपने ही अंदाज में जवाब दिया, "कभी-कभी करेक्शन करने के लिए मार्जिन का इस्तेमाल करना पड़ता है।"

बेटी बहुत शरारती है

अटल जी ने गठबंधन सरकार चलाई और इसे चलाने में उनका व्यवहार बहुत काम आया। पर मुश्किलें कम न थीं। जयललिता और ममता बनर्जी की रोज रोज की मांगें उनके लिए सिरदर्द बनी रहती थीं। ममता बनर्जी मंत्रालयों के बंटवारे और उनके काम-काज को लेकर जब-तब नाराजगी जाहिर करती रहती थीं। वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय के मुताबिक, ‘जब ममता बनर्जी रेल मंत्री थीं तो आए दिन कोई न कोई मुसीबत खड़ी हो जाती। एक बार पेट्रोलडीजल के दामों को लेकर ममता नाराज हो गईं। अटल जी ने अपने संकटमोचकों में से एक जॉर्ज फर्नांडीस को ममता को मनाने के लिए कोलकाता भेजा। जॉर्ज शाम से पूरी रात तक इंतजार करते रहे पर ममता ने मुलाकात नहीं की। इसके बाद एक दिन अचानक प्रधानमंत्री अटल जी ममता के घर पहुंच गए। उस दिन ममता कोलकाता में नहीं थीं। अटल जी ने ममता के घर पर उनकी मां के पैर छू लिए और उनसे कहा, ‘आपकी बेटी बहुत शरारती है, बहुत तंग करती है।’ बताते हैं कि इसके बाद ममता का गुस्सा मिनटों में उतर गया।

विमान रास्ता भटक गया

1993 में हिमाचल प्रदेश में चुनाव थे। कानपुर के जेके सिंघानिया कंपनी के एक छोटे विमान में अटल जी के साथ भाजपा नेता बलबीर पुंज और दो लोग सफर कर रहे थे। उन्हें धर्मशाला पहुंचना था। अटल जी सो रहे थे। तभी विमान का सह-पायलट कॉकपिट से निकला और उसने पुंज से कहा, ‘क्या आप पहले कभी धर्मशाला आए हैं?’ पुंज ने पूछा, ‘लेकिन आप ये क्यों पूछ रहे हैं?’ पायलट ने जवाब दिया, ‘इसलिए क्योंकि हमें धर्मशाला मिल नहीं रहा। एटीसी से भी कोई संपर्क नहीं हो पा रहा और हमारे पास जो नक्शा है, वो दूसरे विश्व युद्ध के समय का है और इससे कुछ भी मेल खाता नहीं दिख रहा।’ पुंज ने कहा, ‘बस इसे चीन मत ले जाना।’ इतने में वाजपेयी की आंख खुली तो उन्होंने कहा, ‘सभा का समय हो रहा है, हम कब उतर रहे हैं?’ पुंज ने उन्हें सब हाल बताया तो अटल जी बोले, ‘यह तो

बहुत बढ़िया रहेगा। खबर छपेगी- वाजपेयी डेड। गन कैरेज में जाएंगे।’ पुंज ने कहा, ‘आपके लिए तो ठीक है, मेरा क्या होगा?’ अटल जी बोले, ‘यहां तक साथ आए हैं तो वहां भी साथ चलेंगे।’ फिर कहा, ‘जागते हुए अगर क्रैश हुआ तो बहुत तकलीफ होगी।’ इतना कहकर वो दोबारा सो गए। बाद में इंडियन एयरलाइंस के एक विमान से संपर्क हुआ और अटल जी के विमान को पीछे आकर कुल्लू में लैंडिंग कराने का निर्देश दिया गया। विमान धर्मशाला के बजाय कुल्लू में उतरा। जनसभा छूट ही चुकी थी, इसीलिए अटल जी बिना किसी फ़िक्र के गेस्ट हाउस में जाकर सो गए।

पंडे, डंडे और झंडे

एक बार उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में जनसंघ और कांग्रेस की सभाएं थीं। कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पंडित गोविंद वल्लभ पंत की सभा चार बजे होनी थी और उसी मैदान पर जनसंघ की सभा शाम 7 बजे होनी थी। लेकिन गोविंद वल्लभ पंत चार बजे के बजाय, देरी से सात बजे पहुंचे। अब दुविधा हुई कि किसकी सभा पहले हो। जब जनसंघ के कार्यकर्ताओं ने वाजपेयी से पूछा तो उन्होंने कहा कि पहले पंत जी को करने दीजिए, इससे मुख्यमंत्री का सम्मान भी रह जाएगा और हमें उनका भाषण भी सुनने को मिल जाएगा, जिसका जवाब हम अपने भाषण में देंगे। जैसे ही पंत की सभा खत्म हुई, कई लोग उठकर जाने लगे। तब अटल जी ने माइक संभाला और बोलना शुरू किया, ‘भाइयों आपने एक पंडे का भाषण सुन लिया। अब इस दूसरे पंडे की बात भी सुन लीजिए। काशी के गंगा घाट पर जैसे पंडे होते हैं, वैसे ही चुनावी गंगा में नहाने-नहलाने के लिए पंडे भी अपनी बात सुनाने बैठते हैं। यानी जितने पंडे, उतने डंडे भी लग जाते हैं और डंडे पर फिर झंडे लग जाते हैं। चुनाव में जितने पंडे, उतने ही डंडे और वैसे ही झंडे।’ बस सभा फिर से जम गई।

दल, दलदल और कमल

पत्रकार रजत शर्मा ने अपने टीवी शो ‘आपकी अदालत’ में अटल जी से कहा, ‘सुनने में आता है कि बीजेपी में दो दल हैं। एक नरम दल है, एक गरम दल है। एक वाजपेयी का दल है और एक

आडवाणी का दल है।’ अटल जी ने जवाब दिया, ‘जी नहीं, मैं किसी दलदल में नहीं हूं। मैं तो औरों के दलदल में अपना कमल खिलाता हूं।"

बिहारी भी हूं

2004 में अटल जी बिहार में एक चुनावी सभा को संबोधित करने पहुंचे। भाषा के इस्तेमाल में माहिर अटल जी जब मंच पर आए तो बिहार से अपना रिश्ता इस तरह जोड़ा, ‘मैं अटल हूं और बिहारी भी हूं।’ पब्लिक ने खूब तालियां पीटीं।

बेनजीर को संदेश

1996 में हुए चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी। वाजपेयी का नाम देश के प्रधानमंत्री के तौर पर आगे किया गया। प्रेस कांफ्रेंस में एक पत्रकार ने उनसे तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो से जुड़ा सवाल पूछा, जो यूं था- ‘आज रात आप बेनजीर भुट्टो को क्या संदेश देना चाहेंगे?’ इस पर अटल जी ने कहा- ‘अगर मैं कल सुबह बेनजीर को कोई संदेश दूं तो क्या कोई नुकसान है?'

फल अच्छा तो पेड़ कैसे बुरा

जब रजत शर्मा ने अपने इंटरव्यू में अटल बिहारी वाजपेयी से कहा कि लेखक खुशवंत सिंह ने कहा है कि अटल बिहारी वाजपेयी अच्छे आदमी हैं लेकिन गलत पार्टी में हैं। इस पर अटल जी हंसे और फिर कहा, ‘सरदार खुशवंत सिंह जी की मैं बड़ी इज्जत करता हूं। उनका लिखा-पढ़ने में बड़ा आनंद आता है। उन्होंने जो मेरी तारीफ की है, उसके लिए मैं उन्हें शुक्रिया अदा करता हूं। लेकिन उनकी इस बात से मैं सहमत नहीं हूं कि मैं आदमी तो अच्छा हूं लेकिन गलत पार्टी में हूं। अगर मैं सचमुच में अच्छा आदमी हूं तो ग़लत पार्टी में कैसे हो सकता हूं। और अगर गलत पार्टी में हूं तो अच्छा आदमी कैसे हो सकता हूं। अगर फल अच्छा है तो पेड़ ख़राब नहीं हो सकता।’ यही बात संसद में भी उठी थी। साल 1996 के अपने चर्चित भाषण में उन्होंने विपक्ष की ओर इंगित करते हुए कहा, ‘किसी ने कहा कि मैं आदमी तो अच्छा हूं, पर गलत पार्टी में हूं। वो बताएं कि ऐसे अच्छे आदमी का वो क्या करने का इरादा रखते हैं।’

क्रांतिकारियों के साथ हमने न्याय नहीं किया, देशवासी महान क्रांतिकारियों को भूल रहे हैं, आजादी के बाद अहिंसा के अतिरेक के कारण यह सब हुआ


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अटल स्मृति

20 - 26 अगस्त 2018

अटल राजनीति के पांच सूत्र अटल जी की राजनीति मूल्यों और सिद्धांतों पर आधारित थी। उनकी राजनीतिक मान्यता और शैली को कोई चाहे तो सूत्र रूप में देख सकता है। जाहिर है इन सूत्रों से भारतीय राजनीति को काफी कुछ सीखने को मिल सकता है

हम हथियार खरीदने पर पैसा खर्च करना नहीं चाहते, हम शांति की बात करते हैं

एसएसबी ब्यूरो

क राजनेता जब अपने कृतित्व से सिर्फ अपनी सफलता का आख्यान ही नहीं रचता, बल्कि इतिहास में एक नए युग का भी प्रवर्तन करता है। अटल बिहारी वाजपेयी ने एक ऐसे ही युग का प्रवर्तन भारतीय राजनीति में किया। अटल जी की राजनीति का यह युग देश में भविष्य की राजनीति के लिए कुछ सबक दिए हैं, जिस पर अमल करते हुए हमारे नेता भारतीय लोकतंत्र को और मजबूत कर सकते हैं, उसे फिर से एक स्वर्णिम दौर में ले जा सकते हैं। अटल जी के जीवन और

अटल सूत्र

आज विपक्षी नेताओं पर निजी हमले करना बेहद आम हो गया है। यह प्रवृति हर पार्टी के नेताओं में दिखती है। ऐसा करने वालों को अब पार्टी की ओर से रोका भी नहीं जाता। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी का इस मामले में एक अलग मानदंड था कार्यशैली में कई ऐसी बातें रहीं हैं, जिनका इस पीढ़ी के नेताओं में अभाव दिखता है। और यह किसी एक पार्टी की बात नहीं। इस लिहाज से देखा जाए तो राजनीतिक वर्ग की ओर से अटल जी को वास्तविक श्रद्धांजलि यही होगी कि उनकी कुछ बातों को वह

- समर्थकों के साथ विरोधियों का भी सम्मान - संघीय ढांचे की मजबूती पर जोर

- पूर्ववर्तियों को लेकर रंजिश के बजाय सम्मान का भाव - जोड़-तोड़ की राजनीति से हमेशा तौबा

- व्यक्तिगत नाराजगी से बड़ा दलगत अनुशासन

जीवन में उतारे और भारत की राजनीतिक संस्कृति को समृद्ध करते हुए लोकतंत्र को मजबूत बनाने का कार्य करे।

सबको सम्मान

इस दौर में विपक्षी नेताओं पर निजी हमले करना बेहद आम हो गया है। यह प्रवृति हर पार्टी के नेताओं में दिखती है। ऐसा करने वालों को अब पार्टी की ओर से रोका भी नहीं जाता। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी का इस मामले में एक अलग मानदंड था। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद वाजपेयी सरकार में भी मंत्री थे। उन्हें एक बार कोयला मंत्रालय का भी जिम्मा सौंपा गया था। एक बार रविशंकर प्रसाद ने बिहार जाकर लालू यादव के खिलाफ कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया। यह बात अटल जी को ठीक नहीं लगी। उन्होंने रविशंकर प्रसाद को चाय


20 - 26 अगस्त 2018 पर बुलाया और पूरी मुलाकात के दौरान कुछ नहीं कहा। परेशान रविशंकर जब जाने लगे तो अटल जी बोले, ‘रवि बाबू! अब आप भारत गणराज्य के मंत्री हैं, सिर्फ बिहार गणराज्य के नहीं। इस बात का आपको ध्यान रखना चाहिए।’ यह किस्सा वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी ने अटल बिहारी वाजपेयी की जीवनी ‘हार नहीं मानूंगाः एक अटल जीवन गाथा।’ में दर्ज किया है।

संघीय ढांचे का सम्मान

अटल जी से जुड़ी एक घटना से इस पीढ़ी के नेता संघीय ढांचे के बारे में काफी कुछ सीख सकते हैं। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। सूबे के राज्यपाल से उन्हें कुछ दिक्कत हो रही थी। उन्होंने यह बात प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को बताई। प्रधानमंत्री ने राज्यपाल को हिदायत दी कि वे चुनी हुई सरकार के कामकाज में दखल न दें। दूसरी घटना भी मध्य प्रदेश से ही जुड़ी हुई है। 2002-03 में मध्य प्रदेश में सूखा पड़ा था। दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे। उनकी सरकार के 10 साल पूरे होने वाले थे और कुछ महीनों बाद चुनाव होने वाले थे। भाजपा हरसंभव कोशिश कर रही थी कि अगले चुनाव में उसकी सरकार बन जाए। सूखा राहत के लिए केंद्र सरकार को भारी रकम जारी करनी थी। बताया जाता है कि इसी बीच मध्य प्रदेश से भाजपा के कई नेता प्रधानमंत्री वाजपेयी से मिले और उनसे आग्रह किया कि वे पैसा जारी न करें, क्योंकि पैसा केंद्र देगा और इसका फायदा चुनावों में राज्य सरकार को मिलेगा। विजय त्रिवेदी लिखते हैं कि यह सुनते ही अटल जी नाराज हो गए। उन्होंने कहा, ‘आप लोगों ने इस तरह की बात सोच कैसे ली? दिग्विजय सिंह अभी चुने हुए मुख्यमंत्री हैं और सूखा राहत का पैसा राज्य का अधिकार है तो उसे कैसे रोका जा सकता है? मैं पैसा जारी करूंगा और चुनाव कैसे लड़ना है, यह आप लोग देखिए।’

अटल स्मृति

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आम तौर पर अब ऐसा होता है कि कोई भी नेता सत्ता में आता है तो वह और उसके सहयोगी पहले से सत्ता में रहे लोगों पर निशाना साधने लगते हैं। पर अपने पूर्ववर्तियों का सम्मान कैसे करते हैं, यह मौजूदा पीढ़ी के नेताओं को अटल जी से सीखना चाहिए पूर्ववर्तियों का सम्मान

आम तौर पर अब ऐसा होता है कि कोई भी नेता सत्ता में आता है तो वह और उसके सहयोगी पहले से सत्ता में रहे लोगों पर निशाना साधने लगते हैं। पर अपने पूर्ववर्तियों का सम्मान कैसे करते हैं, यह मौजूदा पीढ़ी के नेताओं को अटल जी से सीखना चाहिए। अटल बिहारी वाजपेयी 1977 में मोरारजी देसाई की सरकार में विदेशी मंत्री बनाए गए थे। उस समय की एक घटना का भी उनकी जीवनी में उल्लेख है। वाजपेयी जब पहले दिन अपने दफ्तर गए तो दीवारों पर नजर पड़ते ही लगा कि कुछ गायब है। अटल जी ने अपने सचिव से कहा, ‘यहां तो पंडित जी की फोटो लगी होती थी। पहले कई बार मैं इस दफ्तर में आया हूं, तब होती थी। अब कहां गई? उसे फिर से लगाइए।’ अफसरों को लगा था कि नए विदेश मंत्री को नेहरू की तस्वीर देखकर अच्छा नहीं लगेगा, क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को नेहरू पसंद नहीं थे। अटल जी भी नेहरू की नीतियों की आलोचना करते थे। लेकिन फिर भी अटल जी को यह ठीक नहीं लगा कि नेहरू की फोटो विदेश मंत्रालय से हटा दी जाए। बाद में यह फोटो वहां फिर लगा दी गई। इस प्रसंग की चर्चा खुद अटल जी ने संसद में की है।

जोड़-तोड़ से तौबा

जोड़-तोड़ की राजनीति इस दौर की सियासत का एक कड़वा सच बन गई है। इस बारे में भी अटल बिहारी वाजपेयी इस पीढ़ी के नेताओं को राह दिखा सकते हैं। जब जनता पार्टी से अलग होकर भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ तो पार्टी के पहले अध्यक्ष अटल जी बने। अपने पहले भाषण में उन्होंने कहा

था, ‘भाजपा अध्यक्ष का पद अलंकार का विषय नहीं है। यह पद नहीं, दायित्व है, प्रतिष्ठा नहीं, परीक्षा है। हम राजनीति को मूल्यों पर आधारित करना चाहते हैं। इसे सिर्फ कुर्सी का खेल नहीं रखना चाहते।’ उन्होंने आगे कहा, ‘अब शिखर की राजनीति के दिन लद गए। जोड़-तोड़ की राजनीति का कोई भविष्य नहीं है। पैसा और प्रतिष्ठा के लिए पागल होने वालों के लिए जगह नहीं है। जिनमें आत्मसम्मान का अभाव हो, दिल्ली के दरबार में मुजरे झाड़ने वालों के लिए यहां कोई जगह नहीं है।’

व्यक्ति से बड़ा दल

आज दलों में विचार और सांगठनिक निष्ठा की जगह व्यक्ति पूजा का महत्व बढ़ता जा रहा है। इस बारे में अटल जी से काफी कुछ सीखा जा सकता है। पहली घटना है लालकृष्ण आडवाणी की राम रथयात्रा से जुड़ी है। बताते हैं कि इस रथयात्रा का उन्होंने यह कहते हुए विरोध किया था कि राजनेताओं को धार्मिक मसलों में दखल नहीं देना चाहिए। लेकिन जब पार्टी इस यात्रा के पक्ष में दिखी तो अटल जी ने पार्टी के फैसले को मानते हुए आडवाणी की यात्रा को दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में हरी झंडी दिखाई। इसी तरह जब संसदीय दल की बैठक होती थी और संसद के अंदर पार्टी की रणनीति के तहत यह तय होता था कि किसी मसले पर सदन के वेल में जाना है तो वाजपेयी अक्सर इससे असहमत रहते थे। वे कहते थे कि कुएं में कूदने की क्या जरूरत है? चर्चा कीजिए, बोलना सीखिए, इसका अभ्यास कीजिए। लेकिन यदि पार्टी में सबकी राय सदन की कार्यवाही में बाधा डालने या वेल में जाने की होती कूदिए।

कोई बंदूक नहीं, केवल भाईचारा ही समस्याओं का समाधान कर सकता है


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फोटो फीचर

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लो श्रद्धांजलि राष्ट्र-पुरुष लो श्रद्धांजलि राष्ट्र-पुरुष शतकोटी हृदय के कंज खिले है। आज तुम्हारी पूजा करने सेतु हिमाचल संग मिले है ॥ तुम अजात-अरि लोक-संग्रही संघ शक्ति के वलयकोण थे देव बता दो प्रतिपक्षी भी क्यों इतने संतुष्ट मौन थे सुनकर पावन चरित तुम्हारा कोटि हृदय प्रस्तर पिघले है॥ आज तुम्हारी पूजा करने सेतु हिमालय संग मिले हैं ॥


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फोटो फीचर

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पुस्तक अंश

20 - 26 अगस्त 2018

यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका

26 सितंबर से 30 सितंबर 2014 तक प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राज्य अमेरिका की चार दिवसीय यात्रा की। इस यात्रा ने भारत-अमेरिका संबंधों को सुदृढ़ करने की दिशा में नए प्रतिमान स्थापित किए। प्रधानमंत्री मोदी और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक विजन स्टेटमेंट के माध्यम से दोनों देशों के बीच व्यापक सामरिक और वैश्विक साझेदारी का समर्थन किया। इसके साथ ही दोनों देशों के रिश्तों ने एक नए चरण में प्रवेश किया। ये समझौते, दोनों देशों के आपसी हितों को लेकर हर क्षेत्र में सहयोग के लिए एक मार्गदर्शिका का काम करेंगे

प्र

ओवल ऑफिस, व्हाइट हाउस: पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हाथ मिलाते हुए

धानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी इस यात्रा को एक बेहतर सुअवसर में बदलते हुए कहा कि भारत, संयुक्त राज्य को अपनी ‘लुक ईस्ट, लिंक वेस्ट’ नीति का एक अभिन्न हिस्सा मानता है। पहली बार संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति और भारत के प्रधानमंत्री ने एक डिजिटल पहल के तहत ‘वाशिंगटन पोस्ट’ के साथ बातचीत की, जो अखबार में संयुक्त संपादकीय के तौर पर प्रकाशित हुआ, जिसका शीर्षक था - एक बेहतर कल के रिश्तों के पथप्रदर्शक के लिए ‘चलें साथ-साथ’। मोदी ने लिखा, ‘अमेरिका को भारत एक ‘प्राकृतिक वैश्विक

भागीदार’ के रूप देखता है। दोनों देशों ने रक्षा, व्यापार, खुफिया, आतंकवाद, अफगानिस्तान, अंतरिक्ष अन्वेषण, विज्ञान, ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, उच्च प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए हामी भरी और समझौते किए। मैडिसन स्क्वायर गार्डन पर मोदी ने भारतीय मूल के लोगों को संबोधित किया। अमेरिका की धरती पर, किसी भारतीय नेता के भाषण के दौरान सबसे अधिक भीड़ देखी गई। मोदी ने अपने भाषण में जोर दिया कि भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश को विश्व स्तर पर स्वीकार किया जाना चाहिए।

उनके भाषण का मुख्य केंद्र कौशल विकास और घरेलू तथा एनआरआई प्रतिभा समूह के उपयोग पर था। उन्होंने वादा किया कि भारतीय मूल के व्यक्तियों (पीआईओ), कार्डधारकों को ‘आजीवन भारतीय वीजा’ मिलेगा और अमेरिकी पर्यटकों को भी आगमन पर वीजा (वीजा ऑन अराइवल’ दिया जाएगा। संयुक्त राष्ट्र महासभा के 67 वें सत्र

को संबोधित करते हुए, उन्होंने विश्व के नेताओं से एक दीर्घकालिक दुनिया की दिशा में काम करने की अपील की। उन्होंने आतंकवाद के मुद्दे पर, विशेष रूप से पाकिस्तान के संदर्भ में, और दक्षिण एशिया में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की आवश्यकता पर व्यापक रूप से बात की। प्रमुख निवेशकों और फाइनेंसरों के साथ एक बैठक में, मोदी ने भारत को एक


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पुस्तक अंश

27 सितंबर, 2014: न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क में वैश्विक नागरिक महोत्सव को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

वॉशिंगटन में नेशनल मॉल स्थित मार्टिन लूथर किंग जूनियर मेमोरियल में पूर्व राष्ट्रपति ओबामा और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

वैश्विक नागरिक महोत्सव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणी 27 सितंबर, 2014: सेंट्रल पार्क, न्यूयॉर्क भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका, सामान्य मूल्यों और आपसी हितों से बंधे हैं। हम प्रत्येक ने मानव इतिहास के सकारात्मक स्वरुप को आकार दिया है, और हमारे संयुक्त प्रयासों के माध्यम से, हमारी प्राकृतिक और अनूठी साझेदारी आने वाले वर्षों में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और शांति को बेहतर

आकार देने में मदद कर सकती है। भारत में एक नई सरकार का आगमन, हमारे रिश्ते को विस्तार और गहरा बनाने का एक प्राकृतिक अवसर है।

पीएम मोदी की यात्रा अमेरिका और भारत के बीच संबंधों को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण सकारात्मक कदम है, जो साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और पारस्परिक समृद्धि और सुरक्षा पर केंद्रित है। मैं इस सप्ताह वाशिंगटन, डीसी की उनकी यात्रा के लिए

उत्सुक हूं, जहां मुझे उम्मीद है कि वह हमारे दो महान राष्ट्रों के बीच मजबूत संबंध बनाएंगे। मैं एक उज्ज्वल भविष्य के लिए उनके प्रेरणादायक संदेश को साझा करने के लिए प्रधानमंत्री का धन्यवाद करता हूं। साथ ही, मैं उनके लिए कामना करता हूं कि वह अपना सेवा का मिशन पूरा करते हुए काम करते रहें।

आर्थिक अवसर वाले राष्ट्र के रूप में देखने और लाल फीताशाही के उनके डर को हटाने का आग्रह किया। एक दुर्लभ घटना में, मोदी और ओबामा

मैं वास्तव में यहां उपस्थित होने को लेकर बहुत खुश हूं। खुले सेंट्रल पार्क में, न कि पार्क के अंदर, एक बंद सम्मेलन कक्ष में...

युवाओं के बीच, आप के बीच, क्योंकि आप भविष्य हैं। आज आप क्या करते हैं, यही कल हमारा फैसला करेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा वाशिंगटन पोस्ट में संयुक्त संपादकीय का अंश

तुलसी गैबार्ड अमेरिकी कांग्रेस सदस्य ने अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन के नेता मार्टिन लूथर किंग को संयुक्त रूप से श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए मार्टिन लूथर किंग जूनियर मेमोरियल का दौरा किया।

27 सितंबर, 2014: न्यूयॉर्क शहर के सेंट्रल पार्क में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हॉलीवुड हीरो ह्यूज जैकमैन

यह मेरा सपना है कि हर आंख में उम्मीद की रोशनी और हर दिल में विश्वास की खुशी भर सकूं। लोगों को गरीबी से बाहर निकाल सकूं। सभी की पहुंच में साफ पानी और स्वच्छता आ सके। सभी के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हो सकें। हर सिर पर एक छत आ सके। मुझे पता है कि यह संभव है... क्योंकि मैं महसूस कर सकता हूं, ऊर्जा की एक नई भावना, उद्देश्य, और भारत में कुछ कर गुजरने की इच्छा। क्योंकि भारत के युवा इसे देख सकते हैं, आप उनके साथ, हाथ मिला रहे हैं। क्योंकि मुझे विश्वास है

कि हम एक भविष्य के एक आवाज में बात कर सकते हैं... और मैं इसीलिए यहां पर हूं, क्योंकि मैं आप में विश्वास करता हूं ... कुछ पंक्तियांे, जो मुझे व्यक्तिगत रूप से प्रेरित करती हैं, के साथ समाप्त करने की अनुमति दें। सभी समृद्ध और खुश रहें, सभी बीमारी से मुक्त हों, सभी का आध्यात्मिक रूप से उत्थान हो कोई भी पीड़ित न हो, ओम शांति, शांति, शांति ... (जारी अगले अंक में)


32 मैंने जन्म नहीं मांगा था! मैंने जन्म नहीं मांगा था, किंतु मरण की मांग करूंगा।

अटल स्मृति

20 - 26 अगस्त 2018

अटल जी की कविताएं जीवन की ढलने लगी सांझ

कदम मिला कर चलना होगा

मौत से ठन गई

जीवन की ढलने लगी सांझ उमर घट गई डगर कट गई

बाधाएं आती हैं आएं घिरें प्रलय की घोर घटाएं, पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं, निज हाथों में हंसते-हंसते, आग लगाकर जलना होगा। कदम मिलाकर चलना होगा।

ठन गई! मौत से ठन गई!

जाने कितनी बार जिया हूं, जाने कितनी बार मरा हूं। जन्म मरण के फेरे से मैं, इतना पहले नहीं डरा हूं।

बदले हैं अर्थ शब्द हुए व्यर्थ शांति बिना खुशियां हैं बांझ।

अंतहीन अंधियार ज्योति की, कब तक और तलाश करूंगा। मैंने जन्म नहीं मांगा था, किंतु मरण की मांग करूंगा।

सपनों में मीत बिखरा संगीत ठिठक रहे पांव और झिझक रही झांझ। जीवन की ढलने लगी सांझ।

बचपन, यौवन और बुढ़ापा, कुछ दशकों में खत्म कहानी। फिर-फिर जीना, फिर-फिर मरना, यह मजबूरी या मनमानी? पूर्व जन्म के पूर्व बसी— दुनिया का द्वारचार करूंगा। मैंने जन्म नहीं मांगा था, किंतु मरण की मांग करूंगा।

हास्य-रूदन में, तूफानों में, अगर असंख्यक बलिदानों में, उद्यानों में, वीरानों में, अपमानों में, सम्मानों में, उन्नत मस्तक, उभरा सीना, पीड़ाओं में पलना होगा। कदम मिलाकर चलना होगा। उजियारे में, अंधकार में, कल कहार में, बीच धार में, घोर घृणा में, पूत प्यार में, क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में, जीवन के शत-शत आकर्षक, अरमानों को ढलना होगा। कदम मिलाकर चलना होगा। सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ, प्रगति चिरंतन कैसा इति अब, सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ, असफल, सफल समान मनोरथ, सब कुछ देकर कुछ न मांगते, पावस बनकर ढ़लना होगा। कदम मिलाकर चलना होगा। कुछ कांटों से सज्जित जीवन, प्रखर प्यार से वंचित यौवन, नीरवता से मुखरित मधुबन, परहित अर्पित अपना तन-मन, जीवन को शत-शत आहुति में, जलना होगा, गलना होगा। कदम मिलाकर चलना होगा।

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 36

जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, यों लगा जिंदगी से बड़ी हो गई। मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं। मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं? तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ, सामने वार कर फिर मुझे आजमा। मौत से बेखबर, जिंदगी का सफर, शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर। बात ऐसी नहीं कि कोई गम ही नहीं, दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं। प्यार इतना परायों से मुझको मिला, न अपनों से बाकी हैं कोई गिला। हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए, आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए। आज झकझोरता तेज तूफान है, नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है। पार पाने का कायम मगर हौसला, देख तेवर तूफां का, तेवरी तन गई। मौत से ठन गई।


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