सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 39)

Page 1

sulabhswachhbharat.com

12

20

22

व्याख्यान

व्यक्तित्व

खेल

स्वच्छता के लिए सुलभ के आविष्कार

एशियाड में गोल्डन शो

गति का विज्ञान

डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

बदलते भारत का साप्ताहिक

उत्तिष्ठत जाग्रत... ‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।’ अर्थात उठो, जागो, और जानकार श्रेष्ठ पुरुषों के सान्निध्य में ज्ञान प्राप्त करो। कठोपनिषद के इस सूत्र वाक्य के सहारे स्वामी विवेकानंद ने देश को अज्ञानजन्य अंधकार से बाहर निकलकर ज्ञानार्जन की प्रेरणा दी थी। कदाचित अंधकार से उनका तात्पर्य अंधविश्वासों, विकृत रूढ़ियों, अशिक्षा एवं अकर्मण्यता की अवस्था से था। वे चाहते थे कि अपने देशवासी समाज के समक्ष उपस्थित विभिन्न समस्याओं के प्रति सचेत हों और उनके निराकरण का मार्ग खोजें

स्वा

वर्ष-2 | अंक-39 |10 - 16 सितंबर 2018

एसएसबी ब्यूरो

मी विवेकानंद ने एक बार कहा था, ‘मैं जो देकर जा रहा हूं, वह एक हजार साल की खुराक है।’ लेकिन जब आप उनके बारे में और उनके साहित्य का अध्ययन करते हैं तो ऐसा लगता है कि यह खुराक सिर्फ एक हजार साल की नहीं, बल्कि कई सदियों की है। महज 39 वर्ष 5 महीने और 24 दिन का

छोटा-सा जीवन। लेकिन इस छोटे से जीवनकाल में ही उन्होंने उन्होंने विश्व को वेदांत के मर्म से परिचित कराया। विवेकानंद ने राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना। युवाओं को रोज दौड़ने और फुटबाल खेलने की प्रेरणा देने वाले इस आधुनिक युवा संत ने युवाओं का इस बात के लिए आह्वान किया था कि वे रूढ़िवादी जड़ताओं से निकलकर नए भारत के निर्माण का अगुआ बनें। स्वामी विवेकानंद की प्रासंगिकता अगर आज भी


Turn static files into dynamic content formats.

Create a flipbook
Issuu converts static files into: digital portfolios, online yearbooks, online catalogs, digital photo albums and more. Sign up and create your flipbook.
सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 39) by Sulabh International Social Service Organisation - Issuu