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व्याख्यान
व्यक्तित्व
खेल
स्वच्छता के लिए सुलभ के आविष्कार
एशियाड में गोल्डन शो
गति का विज्ञान
डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597
बदलते भारत का साप्ताहिक
उत्तिष्ठत जाग्रत... ‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।’ अर्थात उठो, जागो, और जानकार श्रेष्ठ पुरुषों के सान्निध्य में ज्ञान प्राप्त करो। कठोपनिषद के इस सूत्र वाक्य के सहारे स्वामी विवेकानंद ने देश को अज्ञानजन्य अंधकार से बाहर निकलकर ज्ञानार्जन की प्रेरणा दी थी। कदाचित अंधकार से उनका तात्पर्य अंधविश्वासों, विकृत रूढ़ियों, अशिक्षा एवं अकर्मण्यता की अवस्था से था। वे चाहते थे कि अपने देशवासी समाज के समक्ष उपस्थित विभिन्न समस्याओं के प्रति सचेत हों और उनके निराकरण का मार्ग खोजें
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वर्ष-2 | अंक-39 |10 - 16 सितंबर 2018
एसएसबी ब्यूरो
मी विवेकानंद ने एक बार कहा था, ‘मैं जो देकर जा रहा हूं, वह एक हजार साल की खुराक है।’ लेकिन जब आप उनके बारे में और उनके साहित्य का अध्ययन करते हैं तो ऐसा लगता है कि यह खुराक सिर्फ एक हजार साल की नहीं, बल्कि कई सदियों की है। महज 39 वर्ष 5 महीने और 24 दिन का
छोटा-सा जीवन। लेकिन इस छोटे से जीवनकाल में ही उन्होंने उन्होंने विश्व को वेदांत के मर्म से परिचित कराया। विवेकानंद ने राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना। युवाओं को रोज दौड़ने और फुटबाल खेलने की प्रेरणा देने वाले इस आधुनिक युवा संत ने युवाओं का इस बात के लिए आह्वान किया था कि वे रूढ़िवादी जड़ताओं से निकलकर नए भारत के निर्माण का अगुआ बनें। स्वामी विवेकानंद की प्रासंगिकता अगर आज भी