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व्याख्यान
व्यक्तित्व
खेल
स्वच्छता के लिए सुलभ के आविष्कार
एशियाड में गोल्डन शो
गति का विज्ञान
डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597
बदलते भारत का साप्ताहिक
उत्तिष्ठत जाग्रत... ‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।’ अर्थात उठो, जागो, और जानकार श्रेष्ठ पुरुषों के सान्निध्य में ज्ञान प्राप्त करो। कठोपनिषद के इस सूत्र वाक्य के सहारे स्वामी विवेकानंद ने देश को अज्ञानजन्य अंधकार से बाहर निकलकर ज्ञानार्जन की प्रेरणा दी थी। कदाचित अंधकार से उनका तात्पर्य अंधविश्वासों, विकृत रूढ़ियों, अशिक्षा एवं अकर्मण्यता की अवस्था से था। वे चाहते थे कि अपने देशवासी समाज के समक्ष उपस्थित विभिन्न समस्याओं के प्रति सचेत हों और उनके निराकरण का मार्ग खोजें
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वर्ष-2 | अंक-39 |10 - 16 सितंबर 2018
एसएसबी ब्यूरो
मी विवेकानंद ने एक बार कहा था, ‘मैं जो देकर जा रहा हूं, वह एक हजार साल की खुराक है।’ लेकिन जब आप उनके बारे में और उनके साहित्य का अध्ययन करते हैं तो ऐसा लगता है कि यह खुराक सिर्फ एक हजार साल की नहीं, बल्कि कई सदियों की है। महज 39 वर्ष 5 महीने और 24 दिन का
छोटा-सा जीवन। लेकिन इस छोटे से जीवनकाल में ही उन्होंने उन्होंने विश्व को वेदांत के मर्म से परिचित कराया। विवेकानंद ने राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना। युवाओं को रोज दौड़ने और फुटबाल खेलने की प्रेरणा देने वाले इस आधुनिक युवा संत ने युवाओं का इस बात के लिए आह्वान किया था कि वे रूढ़िवादी जड़ताओं से निकलकर नए भारत के निर्माण का अगुआ बनें। स्वामी विवेकानंद की प्रासंगिकता अगर आज भी
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आवरण कथा
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खास बातें आज भारत में करीब 60 करोड़ लोग 25 से 30 वर्ष के हैं स्वामी विवेकानंद को लेकर आज भी सबसे ज्यादा आकर्षण युवाओं में वे युवाओं को रोज दौड़ने और फुटबाल खेलने के लिए कहते थे
ईश्वर ही ईश्वर की उपलब्थि कर सकता है। सभी जीवंत ईश्वर हैं–इस भाव से सब को देखो। मनुष्य का अध्ययन करो, मनुष्य ही जीवंत काव्य है। जगत में जितने ईसा या बुद्ध हुए हैं, सभी हमारी ज्योति से ज्योतिष्मान हैं। इस ज्योति को छोड़ देने पर ये सब हमारे लिए और अधिक जीवित नहीं रह सकेंगे, मर जाएंगे। तुम अपनी आत्मा के ऊपर स्थिर रहो।
बनी हुई है और उनके बारे में मोटिवेशन सेशन लेने वाले बड़े-बड़े वक्ता अगर बोलते नहीं अघाते हैं तो इसके पीछे भारत की महान ज्ञान, दर्शन और अध्यात्म की परंपरा है। एक तरफ जहां देश में श्रम और उद्यम की सांस्कृतिक प्रतिष्ठा रही है, वहीं धर्म और अध्यात्म ने सामाजिक चेतना की सांस्कृतिक परंपरा की मजबूत नींव रखी है। बात करें खास तौर पर आज के भारत की तो आज भारत की तरुणाई दुनिया भर में चर्चा में हैं, ऐसे में देश की आध्यात्मिक सांस्कृतिक यात्रा से गुजरते हुए जो संत सबसे पहले याद आते हैं, तो वे स्वाभाविक रूप से स्वामी विवेकानंद हैं। एक युवा और आधुनिक भारतीय संत जिनकी ख्याति उनके समय में तो पूरी दुनिया में फैली ही थी, आज भी उनको लेकर विश्व समाज में खासी दिलचस्पी है। दरअसल, युवा और संत, यह साझा ही अपने आप में काफी विलक्षण है। स्वामी विवेकानंद इसी विलक्षणता का नाम है। 12 जनवरी स्वामी विवेकानंद का जन्मदिवस है। इस प्रेरक दिन को 1985 से भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र ने 1985 को अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया था। उसी साल भारत सरकार ने स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में इस दिन के चुनाव को लेकर सरकार का विचार था कि स्वामी विवेकानंद का दर्शन एवं उनका जीवन भारतीय युवकों के लिए प्रेरणा का बहुत बड़ा स्रोत हो सकता है।
बचपन का नाम नरेंद्रनाथ
कलकत्ता के शिमला पल्ली में 12 जनवरी 1863 में एक संभ्रांत परिवार में जन्मे विवेकानंद का बचपन का नाम नरेंद्रनाथ था। अध्यात्म के प्रति उनका झुकाव बचपन से ही था और छात्र जीवन में उन्होंने पूर्वी और पश्चिमी देशों की धर्म तथा दर्शन से जुड़ी पद्धतियों का गहराई से अध्ययन किया। स्वामी अदीश्वरानंद ने 1893 में शिकागो में हुई धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद के प्रेरक उद्बोधन के बारे में लिखा है कि उन्होंने अपने विचारों से अमेरिकी लोगों के दिल को छुआ। उन्होंने अपनी
अगर आपको तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं पर भरोसा है, लेकिन खुद पर नहीं तो आप को मुक्ति नहीं मिल सकती। खुद पर भरोसा रखें, अडिग रहें और मजबूत बनें। हमें इसकी ही जरूरत है जादुई भाषण शैली, रूहानी आवाज और क्रांतिकारी विचारों से अमेरिका के आध्यात्मिक विकास पर गहरी छाप छोड़ी। विवेकानंद ने अमेरिका और इंग्लैंड जैसी महाशक्तियों को भारतीय अध्यात्म के प्रति प्रेरित किया।
दिलचस्प है कि विवेकानंद जिस समय शिकागो गए थे, उस वक्त अमेरिका गृहयुद्ध जैसी स्थिति से जूझ रहा था और तथाकथित वैज्ञानिक प्रगति ने धार्मिक मान्यताओं की जड़ों को हिला दिया था। ऐसे में अमेरिकी लोग एक ऐसे दर्शन की प्रतीक्षा में
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आवरण कथा
साधारण पृष्ठभूमि का असाधारण संत
जिस व्यक्ति की विद्वता और अंग्रेजी भाषा का कौशल शिकागो धर्म संसद में सिर्फ अमेरिकियों को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को अपना कायल बनाने के लिए काफी था, उसे इस विषय में अंक बहुत कम मिले थे
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ह भी दिलचस्प है कि जिस संत के एकएक शब्द उद्बोधन के मंत्र बन गए वे अपने छात्र जीवन में बहुत मेधावी नहीं थे। ‘द मॉडर्न मॉन्क : व्हाट विवेकानंद मीन्स टू अस टुडे’ के लेखक हिंडोल सेनगुप्ता कहते हैं कि विवेकानंद की आधुनिकता ही है, जो हमें आज भी आकर्षित करती है। हम जिन भी संतों को जानते हैं, वे उन सबसे अलग हैं। न तो इतिहास उन्हें बांध पाया और न ही कोई कर्मकांड। वह अपने आसपास की हर चीज पर और खुद पर भी लगातार सवाल उठाते रहते थे। लिहाजा, जो युवा स्कूल-कॉलेज या प्रतियोगी परीक्षाओं के दबाव में खुद को लगातार निराशा की तरफ धकेले जा रहे हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि जीवन का लक्ष्य अगर बड़ा है तो फिर उसे प्राप्त करने से हमें वे विफलताएं भी नहीं रोक सकतीं, जो जीवन की तात्कालिक स्थितियों में बहुत बड़ी लगती हैं। इस की सबसे बड़ी मिसाल के रूप में हमारे सामने स्वामी विवेकानंद का जीवन है। सेनगुप्ता के मुताबिक, जिस व्यक्ति की विद्वता थे जो उन्हें इस संकट से मुक्ति दिलाए। विवेकानंद ने अपने विचारों से उनकी इच्छा की पूर्ति के लिए आशा की किरण दिखाई।
उठो, जागो, आगे बढ़ो
स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आह्वान करते हुए कठोपनिषद का एक मंत्र कहा था-‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।’ अर्थात उठो, जागो और तब
और अंग्रेजी भाषा का कौशल शिकागो धर्म संसद में सिर्फ अमेरिकियों को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को अपना कायल बनाने के लिए काफी थे, उसे इस विषय में अंक बहुत कम मिले थे। वे लिखते हैं, उन्होंने विश्वविद्यालय की तीन परीक्षाएं दीं- एंट्रेंस एग्जाम, फर्स्ट आर्ट्स स्टैंडर्ड और बैचलर ऑफ आर्ट्स। एंट्रेस एग्जाम में अंग्रेजी भाषा में उन्हें 47 प्रतिशत अंक मिले थे, एफएएस में 46 प्रतिशत और बीए में 56 प्रतिशत अंक। गणित और संस्कृत जैसे विषयों में भी उनके अंक औसत ही रहे।
विवेकानंद जिस समय शिकागो गए थे, उस वक्त अमेरिका गृहयुद्ध जैसी स्थिति से जूझ रहा था और तथाकथित वैज्ञानिक प्रगति ने धार्मिक मान्यताओं की जड़ों को हिला दिया था। ऐसे में अमेरिकी लोग एक ऐसे दर्शन की प्रतीक्षा में थे जो उन्हें इस संकट से मुक्ति दिलाए तक मत रुको, जब तक कि ध्येय की प्राप्ति न हो जाए। विकास और सफलता से जुड़ी कई तरह की आपाधापी के बीच फंसी देश की तरुणाई के आगे आज सबसे बड़ा संकट आत्मबोध का है। लक्ष्य और सफलता को लेकर युवा आज अकसर तात्कालिकता से काम लेते हैं। उनके आगे लक्ष्य के नाम पर भौतिक कामनाएं भर हैं। यही कारण है कि वे सुचिंतित तरीके से न कोई निर्णय लेते हैं और न ही धैर्य के साथ जीवन में किसी बड़े लक्ष्य की तरफ बढ़ने का साहस दिखा पाते हैं। जीवन और सफलता को लेकर ऐसी सोच-समझ न सिर्फ भ्रामक है, बल्कि यह एक तरह की हिंसा भी है खुद के प्रति और अपने देशकाल के प्रति। इन स्थितियों से बाहर निकलने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है आत्मबोध, जिसके लिए स्वामी जी
कहते हैं कि खुद को समझाएं, दूसरों को समझाएं। सोई हुई आत्मा को आवाज दें और देखें कि यह कैसे जागृत होती है। सोई हुई आत्मा के जागृत होने पर ताकत, उन्नति, अच्छाई, सब कुछ आ जाएगा। बोध की इसी सकारात्मकता को स्वामी विवेकानंद ने भारतीयों के गौरवबोध से भी जोड़ा और बताया कि हम अपने मार्ग और आदर्श से अगर डिगे नहीं तो फिर भविष्य का सारा उजास हमारे लिए है।
शुद्धता, धैर्य और दृढ़ता
आज युवाओं को रातोंरात सफलता के मंत्र सिखाने वाले मोटिवेटर हर जगह अपनी दुकान सजाए मिल जाएंगे। सफलता के इस मंत्र के लिए कोई क्रैश कोर्स करवा रहा है तो कोई इसके लिए इंस्टेंट फामूर्ले को बेस्टसेलकर बताकर किताब के रूप
मानव-देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव-देह तथा इस जन्म में ही हम इस सापेक्षिक जगत से संपूर्णतया बाहर हो सकते हैं–निश्चय ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं, और यह मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है।
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आवरण कथा
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सारी शक्तियां हमारे भीतर
जो लोग अपने अंदर की सभी अच्छी शक्तियों को पहचान लेते हैं, सफलता उनके कदम चूमती है
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मी जी का काफी प्रसिद्ध कथन है, ‘ब्रह्मांड की सारी शक्तियां हमारे ही भीतर हैं। वह हम ही तो हैं जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है। हमारे मस्तिष्क की शक्तियां सूर्य की किरणों के समान हैं, जब वे केंद्रित होती हैं तो चमक उठती हैं।’ इस कथन के पीछे उनका आशय यह है कि इस संसार की सभी बुरी और अच्छी शक्तियां हमारे ही अंदर मौजूद हैं। जरूरत तो केवल उन अच्छी शक्तियों को पहचानने की है, जिनके द्वारा हम कोई भी बड़ी सफलता प्राप्त कर सकते हैं। कुछ लोग ऐसे हैं जो अपने अंदर की शक्तियों की पहचान ही नहीं कर पाते और हमेशा अपने भाग्य को दोष देते रहते हैं। ये वही लोग हैं, जो अपनी आंखों को अपने ही हाथों से बंद कर लेते हैं और कहते हैं कि यह संसार
जो महापुरुष प्रचार-कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, वे उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैं, जो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ विचारों का चिंतन करते हुए जगत की सहायता करते हैं। इन सभी महापुरुषों में एक के बाद दूसरे का आविर्भाव होता है–अंत में उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्तिसंपन्न पुरुष आविर्भूत होता है, जो जगत को शिक्षा प्रदान करता है।
में बेच रहा है। व्यक्तित्व निर्माण और सफलता के ये सारे प्रस्ताव जितने आकर्षक हैं, उतने ही भ्रामक और खतरनाक भी। सफलता के लिए विवेकानंद बताते हैं कि इसके लिए जो तीन बातें जरूरी हैं, वे हैं शुद्धता, धैर्य और दृढ़ता। इसके आगे वह एक और दरकार पर जोर देते हैं। यह दरकार है प्रेम। वे कहते भी हैं कि मैं सिर्फ और सिर्फ प्रेम की शिक्षा देता हूं और मेरी सारी शिक्षा वेदों के उन महान सत्यों पर आधारित है जो हमें समानता और आत्मा की सर्वत्रता का ज्ञान देती है।
खुद पर भरोसा
बात युवाओं की शिक्षा की करें तो इसे आज जिस तरह सिर्फ रोजगार और आय से जोड़ दिया गया है, वह सही नहीं है। इस बारे में विवेकानंद की स्पष्ट धारणा है कि शिक्षा ऐसी हो, जिससे चरित्र निर्माण हो, मानसिक शक्ति का विकास हो, ज्ञान का विस्तार हो और जिससे हम अपने पैरों पर खड़े होने में सक्षम बन जाएं। उनकी प्रसिद्ध उक्ति है, अगर आपको तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं पर भरोसा है, लेकिन खुद पर नहीं तो आप को मुक्ति नहीं मिल सकती। खुद पर भरोसा रखें, अडिग रहें और मजबूत बनें। हमें इसकी ही जरूरत है। सरकार की युवानीति कैसी हो और वह किस तरह के कार्यक्रमों को हाथ में ले, इसके लिए वे कहते हैं कि यदि युवाओं को कोई उपयुक्त कार्य नहीं दिया गया, तो मानव संसाधनों का भारी राष्ट्रीय क्षय होगा।
अंधकार से भरा हुआ है। ऐसे लोग कभी भी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते, लेकिन यदि हम अपनी सभी अच्छी शक्तियों को अपने लक्ष्य पर केंद्रित कर देते हैं तो सफलता की तेज रोशनी से हमारा पूरा जीवन चमक उठता है। अतः जो लोग अपने अंदर की सभी अच्छी शक्तियों को पहचान लेते हैं और इन सभी शक्तियों को सफलता प्राप्त करने में लगा देते हैं, सफलता उनके कदम चूमती है।
विवेकानंद की स्पष्ट धारणा है कि शिक्षा ऐसी हो, जिससे चरित्र निर्माण हो, मानसिक शक्ति का विकास हो, ज्ञान का विस्तार हो और जिससे हम अपने पैरों पर खड़े होने में सक्षम बन जाएं तरुणाई की ताकत
आज भारत में करीब 60 करोड़ लोग 25 से 30 वर्ष के हैं और यह स्थिति वर्ष 2045 तक बनी रहने वाली है, तो यह देखना दिलचस्प है कि देश की तरुणाई में क्या उतनी ही ऊर्जा और तेज है, जिसकी कामना स्वामी विवेकानंद ने की थी। निस्संदेह बीते दो-ढाई दशकों में भारतीय युवाओं ने सूचना तकनीक जैसे उद्यम के नए क्षेत्रों में बड़ी कामयाबी हासिल की है। पर इस कामयाबी से अलग एक दूसरी तस्वीर भी है, जो खासी चिंताजनक है। भारतीय सांख्यिकी विभाग द्वारा जारी आंकड़ो के अनुसार देश में बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ रही है। देश में बेरोजगारों की संख्या 11.3 करोड़ से अधिक है। 15 से 60 वर्ष आयु के 74.8 करोड़ लोग बेरोजगार हैं, जो काम करने वाले लोगों की संख्या का 15 प्रतिशत है। वर्ष 2001 की जनगणना में जहां 23 प्रतिशत लोग बेरोजगार थे, वह 2011 की जनगणना में इनकी संख्या बढ़कर 28 प्रतिशत हो गई। बेरोजगारी युवाओं को लगातार हताशा के अंधेरे की तरफ ले जा रही है। नशाखोरी
और अपराध की प्रवृति युवाओें में इस कदर बढ़ी है कि पंजाब जैसे राज्य में तो इसको लेकर खास चिंता जताई जा रही है। देश में युवाओं की इस त्रासद स्थिति की पुष्टि वैश्विक युवा विकास सूचकांक-2016 से होती है, जिसमें भारत 133वें स्थान पर है। यह सूचकांक राष्ट्रमंडल सचिवालय रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, नागरिक और राजनीतिक क्षेत्र में युवाओं के लिए अवसर की संभावना के आधार पर तैयार करता है।
मृत्यु की भविष्यवाणी
विवेकानंद ने अपने जीवन के आखिरी दिन बेलूर स्थित रामकृष्ण मठ में बिताए। लगातार यात्राओं से उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया और शारीरिक रूप से लगातार कमजोर होते गए। बताया जाता है कि उन्होंने अपने निर्वाण से पहले यह कह दिया था कि वह 40 वर्ष की उम्र तक जिंदा नहीं रह पाएंगे। उनकी भविष्यवाणी सच साबित हुई। इस महान आध्यात्मिक गुरु ने अपने विचारों से विश्व को प्रकाशित करने के बाद 4 जुलाई 1902 को दुनिया को अलविदा कह दिया।
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आवरण कथा
संस्कृति का ‘विवेक’ विरासत का ‘आनंद’
सवा सौ साल पहले एक 9/11 था, जिस दिन इस देश के एक नौजवान ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा था। विश्व उसे गुलाम भारत के प्रतिनिधि के रूप में देख रहा था। पर उसके आत्मविश्वास में वो ताकत थी कि गुलामी की छाया न उसके चिंतन में थी और न वाणी में। वह विश्वास से कह रहा था कि विश्व को देने का सामर्थ्य इस धरती में है, यहां के चिंतन में है नरेंद्र मोदी
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प्रधानमंत्री
श्व को 2001 से पहले यह पता ही नहीं था कि 9/11 का महत्त्व क्या है। दोष दुनिया का नहीं था, दोष हमारा था कि हमने ही उसे भुला दिया और अगर हम न भुलाते तो शायद 21वीं शताब्दी का भयानक 9/11 न होता। सवा सौ साल पहले एक 9/11 था, जिस दिन इस देश के एक नौजवान ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा था। आप ही की उम्र का गेरुआ वस्त्रधारी, दुनिया जिस कपड़ों से भी परिचित नहीं थी। विश्व जिसे गुलाम भारत के प्रतिनिधि के रूप में देख रहा था। लेकिन उसके आत्मविश्वास में वो ताकत थी
कि गुलामी की छाया उसके न चिंतन में थी, न व्यवहार में और न वाणी में। वह कौन सी विरासत है, जिसे उसने अपने अंदर संजोया होगा कि गुलामी के बावजूद उसके भीतर वह ज्वाला धधक रही थी, वह विश्वास उमड़ रहा था कि विश्व को देने का सामर्थ्य इस धरती में है, यहां के चिंतन में है, यहां की जीवनशैली में है। यह असामान्य घटना थी।
ब्रदर्स एंड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका
हम खुद सोचें कि हमारे चारों तरफ जब निगेटिव चलता हो, हमारी सोच के विपरीत चलता हो, चारों तरफ आवाज उठी हो और फिर हमें अपनी बात बोलनी हो तो कितना डर लगता है। इस महापुरुष की वह कौन-सी ताकत थी कि इस दबाव को कभी
‘विश्व में वे जहां गए वहां, जहां भी बात करने का मौका मिला वहां उन्होंने बड़े विश्वाकस के साथ, बड़े गौरव के साथ भारत का महिमामंडन, भारत की महान परंपराओं का महिमामंडन, भारत के महान चिंतन का महिमामंडन किया’
उसने अनुभव नहीं किया। भीतर की ज्वाला, भीतर की उमंग, भीतर का आत्मविश्वास इस धरती की ताकत को भलिभांति जानने वाला इंसान विश्व को सामर्थ्य देने, सही दिशा देने, समस्याओं के समाधान का रास्ता दिखाने का सफल प्रयास करता है। विश्व को पता तक नहीं था कि ‘लेडीज एंड जेंटलमेन’ के सिवाय भी कुछ बात हो सकती है। और जिस समय ‘ब्रदर्स एंड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका’ ये शब्द निकले तो मिनटों तक तालियां बजती रही। इन शब्दों से भारत की ताकत का उन्होंने परिचय करवा दिया था। जिस व्यक्ति ने अपनी तपस्या से, मां भारती की पदयात्रा करके मां भारती को अपने में संजोया था। उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम, हर भाषा को हर बोली को जिसने आत्मसात किया था। ऐसा एक महापुरुष पल दो पल में पूरे विश्व को अपना बना लेता है। पूरे विश्व को अपने अंदर समाहित कर लेता है। हजारों साल की विकसित हुई भिन्न-भिन्न मानव संस्कृति को वो अपने में समेट कर विश्व को अपनत्व की पहचान देता है। विश्व को जीत लेता है। वो 9/11 था, विश्व विजयी दिवस था मेरे लिए।
जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ेगा। वह जिस युग में जन्मा है, उससे उसे बहुत आगे जाना पड़ेगा, कितंु साधारण लोग किसी तरह रेंगते-रेंगते ही आगे बढ़ सकते हैं।
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आवरण कथा
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‘वंदे मातरम’ कहने का पहला हक सफाई करने वालों को
मैं
मुक्ति-लाभ के अतिरिक्त और कौन सी उच्चावस्था का लाभ किया जा सकता है? देवदूत कभी कोई बुरे कार्य नहीं करते, इसीलिए उन्हें कभी दंड भी प्राप्त नहीं होता, अतएव वे मुक्त भी नहीं हो सकते। सांसारिक धक्का ही हमें जगा देता है, वही इस जगत्स्वप्न को भंग करने में सहायता पहुंचाता है। इस प्रकार के लगातार आघात ही इस संसार से छुटकारा पाने की अर्थात मुक्ति-लाभ करने की हमारी आकांक्षा को जाग्रत करते हैं।
‘वंदे मातरम’ बोलने का इस देश में सबसे पहला किसी को हक है तो देशभर में सफाई का काम करने वाले भारत मां के उन सच्चे संतानों को है, जो सफाई करते हैं
यहां आया तो पूरी ताकत से ‘वंदे मातरम’- वंदे मातरम’ सुन रहा था। रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हृदय के अंदर भारत भक्ति का एक भाव सहजरूप से जग जाता है। लेकिन मैं पूरे हिंदुस्तान को पूछ रहा हूं कि क्या हमें ‘वंदे मातरम’ कहने का हक है। मैं जानता हूं कि मेरी यह बात बहुत लोगों को चोट पहुंचाएगी। मैं जानता हूं 50 बार सोच लीजिए क्या हमें, ‘वंदे मातरम’ कहने का हक है क्या। हम लोग पान खा कर के भारत मां पर पिचकारी मार रहे हैं। हम रोज सारा कूड़ा-कचरा भारत मां पर फेंके और फिर ‘वंदे मातरम’ बोलते हैं। ‘वंदे मातरम’ बोलने का इस देश में सबसे पहला किसी को हक है तो देशभर में सफाई का काम करने वाले भारत मां के उन सच्चे संतानों को है, जो सफाई करते हैं। हम सफाई करें या न करें, गंदा करने का हक हमें नहीं है। गंगा के प्रति श्रद्धा हो, गंगा में डुबकी लगाने से पाप धुलते हों। हर नौजवान के मन मैं रहता है कि मेरे मां-बाप को एक बार गंगा स्नान कराऊं लेकिन उस गंगा को गंदा करने से हम अपने आप को रोक पाते हैं क्या। क्या आज विवेकानंद जी होते तो हमें इस बात पर डांटते कि नहीं डांटते। हमें कुछ कहते कि नहीं कहते। इसीलिए कभी-कभी हम लोगों को लगता है कि हम स्वस्थ इसीलिए हैं क्योंकि डॉक्टरों की भरमार है, क्योंकि उत्तम से उत्तम डॉक्टर हैं। जी नहीं, हम इसलिए स्वस्थ नहीं हैं क्योंकि हमारे पास उत्तम से उत्तम डॉक्टर हैं। हम स्वस्थ इसीलिए हैं कि कोई मेरा कामदार सफाई कर रहा है। डॉक्टर से भी ज्यादा अगर उसके प्रति सम्मान रहे तब जाकर ‘वंदे मातरम’ कहने का आनंद आता है। अमेरिका की धरती पर उस संदेश को भुला देने का परिणाम था कि मानव के संहार का रास्ते के एक विकृत रूप ने विश्व को हिला दिया था। उसी 9/11 को हमला हुआ और तब जाकर दुनिया को समझ में आया कि भारत से निकली हुई आवाज 9/11 को किस रूप में इतिहास में जगह देती है और विनाश और विकृति के मार्ग पर चल पड़ा ये 9/11 विश्व के इतिहास में किस प्रकार अंकुरित रह जाता है। इसीलिए आज जब 9/11 के दिन विवेकानंद जी को अलग रूप से समझने की आवश्यकता मुझे लगती है।
स्वामी को दो रूप
विवेकानंद जी के दो रूप, अगर आप बारीकी से देखेंगे तो ध्यान में आएंगे। विश्व में वे जहां गए वहां,
पहले शौचालय फिर देवालय
मुझे याद है एक बार मैंने बोल दिया- पहले शौचालय फिर देवालय। बहुत लोगों ने मेरे बाल नोच लिए थे। लेकिन आज मुझे खुशी है कि देश में ऐसी बेटिया हैं, जो शौचालय नहीं, तो शादी नहीं करेगी, ऐसा तय कर लिया। हम लोग हजारों साल से टिके हैं, उसका कारण क्या है। हम समयानुकुल परिवर्तन के अनुसार वाले लोग हैं। हम ऐसे लोगों को जन्म देते हैं, जो हमारी बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए नेतृत्व देते हैं और वह ही हमारी ताकत है। इसलिए स्वामी विवेकानंद जी का हम स्मरण करते हैं तो हमारे लिए 9/11 शब्दों का भंडार भर नहीं था। वो एक तपस्वी की वाणी थी, एक तप वाणी थी, जो दुनिया को अभिभूत कर देता जहां भी बात करने का मौका मिला वहां उन्होंने बड़े विश्वास के साथ, बड़े गौरव के साथ भारत का महिमामंडन, भारत की महान परंपराओं का महिमामंडन, भारत के महान चिंतन का महिमामंडन किया, उसे व्यक्त करने में वे कभी थकते नहीं थे, रुकते नहीं थे, कभी उलझन अनुभव नहीं करते थे। यह एक रूप था विवेकानंद का और दूसरा रूप वह था, जब भारत के भीतर बात करते थे तो हमारी बुराइयों को खुलेआम कोसते थे। हमारे भीतर की दुर्बलताओं पर कठोराघात करते थे। वह जिस भाषा का प्रयोग करते थे, उस भाषा का प्रयोग तो आज भी हम अगर करें तो शायद लोगों को आश्चर्य होगा कि ऐसे कैसे बोल रहे हैं। वे समाज की हर बुराई के खिलाफ आवाज उठाते थे। उस समय के समाज की कल्पना कीजिए
था। वरना सांप-सपेरों का देश, जादू-टोना वालों का देश, एकादशी को क्या खाना और पूर्णिमा को क्याे नहीं खाना, यही हमारे देश की पहचान थी। विवेकानंद ने दुनिया के सामने कह दिया था कि हमारी परंपरा के नीचे उनकी परंपरा नहीं है। क्या खाना, क्या नहीं खाना, यह मेरे देश की संस्कृति-परंपरा नहीं है, वो तो हमारी व्यवस्थाओं का हिस्सा होगा, हमारी सांस्कृतिक व्यवस्था अलग है। ‘आत्मवत् सर्व भूतेषु’ यह हमारी सोच है। ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ ऐसी बातें नहीं हैं। ‘गुणतम् विश्वमार्यम्’ यह आर्य शब्द हम पूरे विश्व को सुसंस्कृत करेंगे, इस अर्थ में है। किसी जाति परिवर्तन धर्म परिवर्तन के लिए नहीं है। हम उस परंपरा से पले-बढ़े लोग हैं, यह सब इस धरती की पैदावर है। जब रूढ़ियों-परंपराओं का महत्त्व ज्यादा था। पूजापाठ और परंपरा, यह सहज समाज जीवन की प्रकृति थी। ऐसे समय 30 साल का एक नौजवान, ऐसे माहौल में खड़ा होकर कह दे कि पूजा-पाठ, पूजा अर्चन मंदिर में बैठे रहने से कोई भगवानवगवान मिलने वाला नहीं है। जन सेवा ही प्रभु सेवा, जाओ जनता जर्नादन और गरीबों की सेवा करो, तब जा कर के प्रभु प्राप्त होगा... कितनी बड़ी ताकत।
गुरु खोजने नहीं निकले थे
वे संत परंपरा से थे, लेकिन जीवन में वे कभी गुरु खोजने नहीं निकले थे। यह सीखने और समझने का विषय है। वे सत्य की तलाश में थे। महात्मा गांधी भी जीवन भर सत्य की तलाश से जुड़े हुए थे। परिवार
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आवरण कथा
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में, आर्थिक स्थिति कठिन थी। रामकृष्ण देव मां काली के पास भेजते हैं। जा तुझे जो चाहिए मां काली से मांग और बाद में पूछा कि कुछ मांगा तो बोले कि नहीं मांगा। कौन-सा मिजाज होगा, जो काली के सामने खड़े होकर भी मांगने के लिए तैयार नहीं है। भीतर वो कौन-सा लौह तत्व होगा, वह कौनसी ऊर्जा होगी, जिसमें यह सामर्थ्य। पैदा हुआ। इसीलिए वर्तमान समाज में जो बुराइयां हैं, क्या हम उन बुराइयों के खिलाफ नहीं लड़ेंगे। क्या हम उन्हें स्वीकार कर लेंगे। मैं नौजवानों को विशेष रूप से कहना चाहूंगा कि क्या हम नारी का सम्मान करते हैं क्या, हम लड़कियों के प्रति आदर भाव से देखते हैं क्या, जो देखते हैं उनको मैं 100 बार नमन करता हूं। लेकिन जो नहीं देख पाते तो उन्हें स्वामी विवेकानंद के ‘ब्रदर्स एंड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका’ पर तालियां बजाने का हक नहीं है।
स्वामी और गुरुदेव
गुलामी के कालखंड में दो व्यक्तित्वोंे ने भारत में एक नई चेतना, नई ऊर्जा प्रकट की थी। इन दो घटनाओं में, एक जब रवींद्रनाथ टैगोर को नॉबेल प्राइज मिला और दूसरा स्वामी विवेकानंद जी का 9/11 का भाषण, जिसकी देश-दुनिया में चर्चा हुई। गुलामी के कालखंड में एक नई चेतना का एक भाव पूरे भारत में इन दो घटनाओं ने जगाया था। दोनों बंगाल की संतान थे। कितना गर्व होता है जब मैं दुनिया में किसी को जाकर कहता हूं कि मेरे देश के रवींद्रनाथ टैगोर ने श्रीलंका का राष्ट्रगीत बनाने में भूमिका निभाई, भारत का राष्ट्रगीत भी उन्होंने बनाया, बांग्लादेश का राष्ट्रगीत भी उन्होंने बनाया। क्या हम अपनी इस विरासत के प्रतिगर्व करते हैं? आज दुनिया में हम एक युवा देश है। 800 मिलियन लोग इस देश में उससे भी कम उम्र के हैं, जिस उम्र में विवेकानंद जी ने शिकागो में भाषण दिया। इस देश की 65 प्रतिशत जनसंख्या, विश्व में डंका बजाने वाले विवेकानंद जी की उम्र से कम है। ऐसे देश में विवेकानंद से बड़ी प्रेरणा क्या हो सकती है।
रामकृष्ण मिशन
विवेकानंद जी सिर्फ उपदेश देने वाले नहीं रहे। उन्होंने आइडिया और आइडियलिज्म काे मिलाकर इंस्टीट्यूशनल फ्रेमवर्क बनाया। आज से करीब 120 साल पहले इस महापुरुष ने रामकृष्ण मिशन को जन्म दिया। आज 120 साल के बाद भी मिशन में न कोई फर्क आया है और न ही स्फीति। एक ऐसी संस्थान की उन्होंने कैसी मजबूत नींव बनाई होगी, विजन कितना क्लीयर होगा। एक्शन प्लान कितना स्ट्रांग होगा। भारत के विषय में हर चीज की कितनी गहराई से अनुभूति होगी, तब जाकर एक संस्था 120 साल बाद भी आंदोलन के उसी भाव से चल रही है। मेरा सौभाग्य रहा है कि उस महान परंपरा में कुछ पल आचमन लेने का। जब विवेकानंद जी के 9/11 की भाषण की शताब्दी थी, तो मुझे उस दिन शिकागो में जाने का सौभाग्य मिला था। उस साभागार में जाने का सौभाग्य मिला था और उस शताब्दी समारोह के अवसर पर मुझे शरीक होने का सौभाग्य मिला था। मैं कल्पना कर सकता हूं कि वो
कैसा भाव, कैसा पल रहा होगा। क्या कभी दुनिया में किसी ने सोचा है कि किसी लेक्चर की सवा सौवीं जयंती मनाई जाए। यह अपने-आप में हम लोगों के लिए एक महान विरासत से जुड़ने का अवसर है।
आत्मसम्मान और आत्मगौरव
इस देश के हर व्यक्ति ने इसके अंदर कुछ न कुछ जोड़ा ही है। यह वह देश है, जहां भीख मांगने वाला भी ज्ञान से भरा होता है। जब कोई आता है तो कहता है देने वाला का भी भला न देने वाला का भी भला। इसीलिए स्वामी विवेकानंद जी की सफलता का मूल आधार यह था उनके भीतर आत्म सम्मान और आत्मगौरव का भाव था। आज के संदर्भ में विवेकानंद जी को देखें। जब मैं कहता हूं ‘मेक इन इंडिया’ तो बहुत लोग हैं, जो कहते हैं कि इसका विरोध करने वाले भी लोग हैं। कुछ कहते हैं कि ‘मेक इन इंडिया’ नहीं ‘मेड इन इंडिया’ चाहिए। लेकिन जिसको मालूम होगा कि विवेकानंद जी और जमशेद जी टाटा के बीच जो संवाद हुआ। विवेकानंद जी और जमशेद जी टाटा के बीच का पत्र व्यवहार, किसी ने देखा होगा तो पता चलेगा कि उस समय गुलाम हिंदुस्तान था। तब भी 30 साल का नौजवान विवेकानंद जमशेद जी टाटा जैसे व्यक्ति को कह रहा है कि भारत में उद्योग लगाओ न, ‘मेक इन इंडिया’ बनाओ न। स्वयं जमशेद जी टाटा ने लिखा है कि विवेकानंद जी के वे शब्द, वो बातें मेरे लिए प्रेरणा रहीं।
पहली कृषि क्रांति की प्रेरणा
आप हैरान होंगे जानकर कि हमारे देश में पहली कृषि क्रांति विवेकानंद जी के विचारों से आई। डॉक्टर सेन जो पहले कृषि क्रांति के मुखिया माने जाते हैं, उन्होंने एक इंस्टीट्यूट बनाया था, जिसका नाम उन्होंने विवेकानंद एिग्रकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूशन रखा था। यानी हिंदुस्तान में कृषि को आधुनिक बनाना चाहिए, वैज्ञानिक रिसर्च से बनाना चाहिए, इस सोच की बातें विवेकानंद जी उस उम्र में करते थे।
दीनदयाल और विनोबा की स्मृति
9/11 पंडित दीनदयाल उपाध्याय की शताब्दी समारोह से भी जुड़ा है। जिस महापुरुष ने महात्मा
गांधी को जी कर के दिखाया, ऐसे आचार्य विनोबा भावे की भी यह जयंती है। आचार्य विनोबा जी के बड़े निकट के साथी दादा धर्माधिकारी ने एक किताब में लिखा है बड़ा मजेदार लिखा है। कोई नौजवान उनके पास आया नौकरी के लिए किसी परिचित के द्वारा आया था। वो चाहता था कि धर्माधिकारी जी कुछ सिफारिश करें, कुछ मदद करें तो कहीं काम मिल जाए। दादा धर्माधिकारी जी ने लिखा है कि उसको मैंने पूछा कि तुम्हेंे क्या आता है, तो उसने कहा कि मैं ग्रेजुएट हूं। उन्होंने दोबारा पूछा कि तुम्हें क्या आता है तो उसने दोबारा कहा कि मैं ग्रेजुएट हूं। वो समझ नहीं पाया। तीसरी बार पूछा कि भाई तुम्हें क्या आता है? नहीं बोले कि मैं ग्रेजुएट हूं। धर्माधिकारी ने पूछा कि तुम्हें टाइपिंग करना आता है क्या? तो बोले नहीं, खाना पकाना आता है? बोले नहीं, फर्नीचर बनाना आता है? बोले नहीं, चाय नाश्ता बनाना आता है? जी नहीं, मैं तो ग्रेजुएट हूं। अब देखिए विवेकानंद जी ने क्या कहा था। उन्होंने बड़ा मजेदार कहा- ‘शिक्षा सूचना की वह मात्रात्मक खुराक नहीं, जो हम दिमाग में डालते हैं और जीवन भर अपाच्य रहता है।’
उपनिषद से उपग्रह तक
विवेकानंद जी कूपमंडूकता पर बड़ी एक कथा सुनाया करते थे। कुंए के मेढक की बात करते थे। हम वैसे नहीं बन सकते। हम तो जय जगत वाले लोग हैं। पूरे विश्व को अपने भीतर समाहित करना है। उपनिषद से उपग्रह तक की हमारी यात्रा विश्व के हर विचार के लिए अनुकूल है, मानवता के लिए अनुकूल है तो स्वीकार करने में संकोच क्या है। और हम डरे भी नहीं हैं कि कोई आएगा और हमें कुचल जाएगा। जी नहीं, जो आएगा उसको हम पचा लेंगे इस सोच के हम लोग हैं। उसे अपना बना लेगें, उसकी जो अच्छाई है, उसको लेकर आगे चलेंगे तभी तो भारत विश्व को कुछ देने में समर्थ बनेगा। (स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण और पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी के अवसर पर नई दिल्ली के विज्ञान भवन में ‘यंग इंडिया, न्यू इंडिया’ विषय पर दिए गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन का संपादित अंश)
मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहां इच्छा हो, वहां इसका प्रयोग करो– उससे अति शीघ्र फल प्राप्ति होगी। यह है यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता है, वह अंश को भी प्राप्त कर सकता है।
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आवरण कथा
10 - 16 सितंबर 2018
यात्रा जो बना इतिहास
शिकागो में होने वाली ‘सर्व धर्म- सभा’ में 1893 से पहले सनातन हिंदू धर्म की ओर से कोई प्रतिनिधि नहीं गया था। स्वामी विवेकानंद ने इस रिक्तता को जिस सारस्वत भाव से भरा वह आज भारतीय इतिहास का एक प्रेरक सर्ग है
सभी मरेंगे- साधु या असाधु, धनी या दरिद्रसभी मरेंगे। चिर काल तक किसी का शरीर नहीं रहेगा। अतएव उठो, जागो और संपूर्ण रूप से निष्कपट हो जाओ। भारत में घोर कपट समा गया है। चाहिए चरित्र, चाहिए इस तरह की दृढ़ता और चरित्र का बल, जिससे मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके।
स्वा
एसएसबी ब्यूरो
मी विवेकानंद संपूर्ण देश का भ्रमण करके और यहां के छोटे-बड़े सैकड़ों प्रसिद्ध व्यक्तियों से वार्ता करके इस निश्चय पर पहुंचे कि एक बार देश से बाहर जाकर हिंदू धर्म के उच्च सिद्धांतों का प्रचार किया जाए, जिससे एक ओर तो विदेशों के अध्यात्म प्रेमी व्यक्ति भारतवर्ष की तरफ आकर्षित हों और दूसरी ओर जो हमारे शिक्षित देश-बंधु विदेशी सभ्यता से चकाचौंध होकर अपनी प्राचीन संस्कृति से विमुख हो जाते हैं, उनकी भी आंखें खुलें। इसी अवसर पर मद्रास में उनको यह सूचना मिली कि अमेरिका के शिकागो नगर में एक ‘सर्व धर्म- सभा’ होने वाली है और उसमें अभी तक सनातन हिंदू धर्म की ओर से कोई प्रतिनिधि नहीं गया। स्वामीजी को अपनी अंतरात्मा से
यह प्रेरणा हुई कि इस अवसर पर उनको अन्य धर्म वालों के समक्ष हिंदू धर्म के झंडे को ऊंचा करना चाहिए। उनके सभी मित्रों और शुभचिंतकों ने भी इस मत का समर्थन किया और 31 मई 1893 को विदेश जाने का निश्चय हो गया।
मिला नया नाम
जिस समय स्वामी जी यात्रा के लिए धन की व्यवस्था पर विचार कर रहे थे, उसी समय खेतड़ी के दीवान जगमोहनलाल उनकी सेवा में उपस्थित हुए। उन्होंने कहा, ‘आपने दो वर्ष पहले राजा साहब को पुत्र होने का आशीर्वाद दिया था, वह सफल हो गया है और उस आनंदोत्सव में महाराज ने आपसे पधारने की प्रार्थना की है।’ स्वामीजी खेतड़ी पहुंचे और नवजात शिशु को आशीर्वाद देकर चल दिए। खेतड़ी नरेश ने अपने दीवान को भी उनके साथ भेजा और यात्रा का
31 मई 1893 को स्वामीजी बंबई के बंदरगाह पर अमेरिका जाने वाले जहाज में सवार हो गए। उस समय भगवा रंग का रेशमी लबादा, माथे पर उसी रंग का फेंटा बांधकर किसी राजा के समान शोभायमान हो रहे थे
खास बातें शिकागो यात्रा को लेकर स्वामी जी को शुभचिंतकों का समर्थन मिला खेतड़ी के दीवान जगमोहनलाल ने की यात्रा में आर्थिक मदद जयपुर से बंबई जाते हुए हुई गुरुभाई तुरीयानंद से मुलाकात पूरा प्रबंध और मार्ग व्यय आदि की व्यवस्था करने की ताकीद कर दी। खेतड़ी नरेश स्वामी जी को विदा करने जयपुर स्टेशन तक आए। चलते-चलते उन्होंने पूछा- ‘आप अमेरिका पहुंचकर किस नाम से प्रचार-कार्य करेंगे?’ स्वामी जी ने उत्तर दिया- ‘अभी तक तो मैंने कोई पक्का नाम रखा नहीं है। कभी सच्चिदानंद,
10 - 16 सितंबर 2018 कभी अन्य कोई नाम रखकर फिरता रहा हूं।’ उसी समय राजा साहब ने कहा- ‘स्वामी जी! आपको ‘विवेकानंद’ नाम कैसा लगता है?’ उस दिन से ही परमहंस देव के शिष्य ‘नरेंद्र’ स्वामी विवेकानंद के ही नाम से प्रसिद्ध हुए।
स्वामी तुरीयानंद से भेंट
जयपुर से बंबई जाते हुए आबू रोड स्टेशन पर स्वामीजी की भेंट अचानक अपने एक गुरुभाई तुरीयानंद से हो गई। उनसे बातें करते हुए स्वामी जी ने कहा- ‘हरिभाई, मैं तुम्हारे धर्म- कर्म को अधिक नहीं समझता, पर मेरा हृदय अब बहुत विशाल हो गया है और मुझे सामान्य लोगों के दुखों का बड़ा अनुभव होने लगा है। मैं सत्य कहता हूं कि लोगों को कष्ट पाते देखकर मेरा हृदय बड़ा व्याकुल होता है।’ यह कहते-कहते स्वामीजी की आंखों से आंसू गिरने लगे। स्वामी तुरीयानंद ने इस प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा है- ‘क्या यह भावना और शब्द बुद्धदेव के से नहीं हैं? मैं दीपक के प्रकाश की तरह स्पष्ट देख रहा था कि देशवासियों के दुखों से स्वामीजी का हृदय धधक रहा था और वे इस दुर्व्यवस्था का सुधार करने के लिए किसी रामबाण रसायन की खोज कर रहे थे?’
बंबई से अमेरिका रवाना
31 मई 1893 को स्वामीजी बंबई के बंदरगाह पर अमेरिका जाने वाले जहाज में सवार हो गए। उस समय भगवा रंग का रेशमी लबादा, माथे पर उसी रंग का फेंटा बांधकर किसी राजा के समान शोभायमान हो रहे थे। इन सबकी व्यवस्था खेतड़ी के दीवान जगमोहनलाल ने ही की थी। जगमोहनलाल और मद्रास के एक भक्त अलसिंह पेरुमल उन्हें जहाज के दरवाजे तक पहुंचाने को आए। थोड़ी देर बाद जहाज के छूटने का घंटा बजा। दोनों भक्तों ने स्वामी जी के पैर पकड़कर आंसू भरे नेत्रों से विदा ली और जहाज चल दिया। कोलंबो, पिनांग, सिंगापुर, हांगकांग, नागासाकी, ओसाका, टोक्यो आदि बड़े नगरों को देखते हुए स्वामी जी अमेरिका के वैंकूवर बंदरगाह पर उतरे। वहां से रेल द्वारा शिकागो पहुंच गए।
शिकागो में स्वामी
स्वामी जी जुलाई, 1893 के आरंभ में अमेरिका पहुंच गए थे। वहां उनको मालूम हुआ कि सभा सितंबर में होने वाली है। इतने समय तक शिकागो जैसे खर्चीले शहर में होटल में रहने लायक धन स्वामी जी के पास न था। यह भी कहा गया कि किसी प्रसिद्ध संस्था के प्रमाण- पत्र के बिना यह धर्म सभा के प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार नहीं किए जा सकते। वे कुछ दिन बाद कम खर्च की निगाह से बोस्टन चले गए। रास्ते में एक भद्र महिला से परिचय हो गया, जिसने आग्रहपूर्वक उनको अपने घर ठहरा लिया। पर उस शहर में अपनी पोशाक के कारण उन्हें असुविधा होने लगी। विचित्र ढंग का गेरुआ लबादा और फेंटा देखकर मार्ग में अनेक व्यक्ति और लड़के एक तमाशा समझकर उनके पीछे लग जाते और ‘हुर्रेहुर्रे’ का शोर मचाने लगते। इस दिक्कत से बचने के लिए उस महिला ने उनको सलाह दी कि सामान्यत: आप यहीं की पोशाक पहना कीजिए।
आवरण कथा
विश्व मंच पर भारत गौरव
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स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक बेहद चर्चित भाषण दिया था। उनका जब भी जिक्र आता है तो उनके इस भाषण की चर्चा जरूर होती है। पढ़ें उनका यह ऐतिहासिक भाषण-
अमेरिका के बहनो और भाइयो आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिदंुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्त्रायलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस
रहा है। भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है: जिस तरह अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं। वर्तमान सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है। जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं। सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इसके भयानक वंशज हठधमिर्ता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं। अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।
शिकागो से वापस आने पर एक दिन उनको स्टेशन के बाहर पड़ी खाली पेटी के भीतर सारी रात काटनी पड़ी। फिर भी उनका धैर्य सहायक बना रहा और सब तरह की बाधाओं को पार करके वे ‘धर्म सभा’ के अधिवेशन में प्रतिनिधि रूप में सम्मिलित होने में सफल हो गए रूढ़ियों के गुलाम नहीं
स्वामी जी संन्यासी होने पर भी रूढ़ियों के गुलाम नहीं थे और उद्देश्य की सिद्धि के लिए इस प्रकार के बाह्य परिवर्तन में उनको कुछ भी एतराज न था। पर कठिनाई यह थी कि अब उनके पास अधिक रुपए नहीं बचा था। इससे वे धैर्यपूर्वक कठिनाइयों को सहन करके दिन बिताने लगे। इतने में स्त्रियों की एक संस्था ने उनको अपने यहां व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया। उस भाषण से जो आय
हुई, उनसे स्वामी जी के लिए अमेरीकी पोशाक बन गई और तब से उन्होंने गेरुआ वस्त्रों को केवल भाषण के समय के लिए रख दिया। फिर भी उनकी कठिनाइयों का अंत न हुआ और शिकागो वापस आने पर एक दिन उनको स्टेशन के बाहर पड़ी खाली पेटी के भीतर सारी रात काटनी पड़ी। फिर भी उनका धैर्य सहायक बना रहा और सब तरह की बाधाओं को पार करके वे ‘धर्म सभा’ के अधिवेशन में प्रतिनिधि रूप में सम्मिलित होने में सफल हो गए।
संन्यास का अर्थ है, मृत्यु के प्रति प्रेम। सांसारिक लोग जीवन से प्रेम करते हैं, परन्तु संन्यासी के लिए प्रेम करने को मृत्यु है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम आत्महत्या कर लें। आत्महत्या करने वालों को तो कभी मृत्यु प्यारी नहीं होती है। संन्यासी का धर्म है समस्त संसार के हित के लिए निरंतर आत्मत्याग करते हुए धीरे-धीरे मृत्यु को प्राप्त हो जाना।
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आवरण कथा
10 - 16 सितंबर 2018
तरुणाई को संदेश
उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए, स्वामी विवेकानंद ने ऐसा कहते हुए न सिर्फ अपने समय में बल्कि आज भी युवाओं को भी सफलता का संदेश दे रहे हैं। वे एक आधुनिक संत हैं और अपने जीवन में उन्होंने सबसे ज्यादा युवाओं के साथ संवाद किया है
लक्ष्य की स्पष्टता
यदि आपको सफलता प्राप्त करना है तो अपना एक स्पष्ट लक्ष्य तय करना होगा
स्वा
मी विवेकानंद का प्रेरणादायक कथन है, ‘एक विचार लो। उस विचार को अपना लक्ष्य बना लो। उसके बारे में सोचो, उसके सपने देखो, उस विचार को जिओ, अपने दिमाग, मांसपेशियों, नसों और शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो तथा बाकी सभी विचारों को किनारे रख दो। यही सफल होने का तरीका है।’ स्वामी जी की दृष्टि में यदि आपको सफलता प्राप्त करना है तो अपना एक स्पष्ट लक्ष्य तय करना होगा। इसके बाद केवल यही विचार अपने मन में रखें कि कैसे भी हो, मुझे अपना लक्ष्य जरूर प्राप्त करना है और उसे प्राप्त करने के लिए कार्य शुरू कर दें। स्वामी जी की नजर में लक्ष्य और उसके लिए पूरी लगन जरूरी है। लक्ष्य और उसे हासिल करने का विचार अगर हर समय हमारे साथ है, हमारा अंग-अंग उस लक्ष्य को प्राप्त करने के रोमांच से भरा है तो फिर सफलता हमसे कतई दूर नहीं जा सकती है। कहने का तात्पर्य यह कि आपका लक्ष्य आपकी जिंदगी बन जाए। ऐसा हो जाए कि लक्ष्य को प्राप्त करने में हम इतना डूब जाएं कि बाकी कोई और विचार दिमाग में घर ही न कर सके। फिर हमें सफलता प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता।
नाक र त ख ा न ो उम्मीद खुछ खो देना इतना बुरा
क जीवन में सब उम्मीद को खो देना ा ा, ‘सब नहीं है जितन ेकानंद से पूछ
ए
, ्वामी विव ी व्यक्ति ने स ै?’ स्वामी जी ने उत्तर दिया स कि ार ब क ्या ह पस सब कुछ वा े ज्यादा बुरा क कुछ खोने स देना, जिसके सहारे हम की बात को खो शा की किरण आ ां ह य े व यह ‘उस उम्मीद , े हैं।’ दरअसल को यह कहते सुनते हैं कि त क स र क प्राप्त ह आग लोगों आमतौर पर म्मीद ही तो व उ म ह । ै ह । ैं ई ह े हु त ी र क मारे क पर ही तो टि का अंधेरा ह द ा त ्मी म ल उ फ स अ निया ु पना पूरी द ै जब रोशनी देती ह है कि यदि कोई व्यक्ति अ ैह, जो तब भी वह त्य ायता न करें, ेता है। यह स ह ल स र े ी घ भ ो ल क जीवन ी बिल्कु ंधकार े, लोग उसक ंधकार ही अ द अ ो ह ख ग छ ु ज क र ह द सब ो जाए, उसे एक भी उम्मी ह ें ा म ल े न क म े अ क व्यक्ति बिल्कुल दद से भी यदि उस किरण की म ब ी त क , े ग द ल ्मी े म न उ दिख ब कुछ ह उस ः जीवन में स के ाकी हो तो व स की किरण ब प्राप्त कर सकता है। अत ो खो देना जि ा क ार द ोब ्मी द म उ छ ु क स सब जितना उ ा बुरा नहीं है न त इ जा सकता है। ा न े द ो किया ख राप्त प् े स कुछ फिर बल पर सब
स्वयं से करें वार्ता
खुद अपने साथ की गई वार्ता आपके भविष्य को निर्धारित करेगी
स्वा
मी जी की एक मशहूर प्रेरक उक्ति है‘खुद से दिन में कम से कम एक बार बात जरूर करें, अन्यथा आप दुनिया के एक अनूठे व्यक्ति के साथ बात करने का मौका खो दोगे। मनुष्य स्वयं अपने भाग्य का निर्माता है।’ स्वामी विवेकानंद ने यहां यह बताया है कि दिन में थोड़ा सा समय ऐसा भी निकालो, जिस समय आप हों और आपके साथ आपके विचार हों। यह वह समय होगा, जब आप खुद से बातें करेंगे। यह वह समय होगा, जब आप स्वयं के साथ बैठकी करेंग े, संगत करेंगे। इस समय आप स्वयं से कुछ सवा ल पूछें। सवाल पूछने वाले भी आप होंगे और उत्तर दे ने वाले भी आप ही होंगे। इस समय आप जो भी प्रश्न खुद से पूछेंगे, उनका सही उत्तर आपके अलावा कोई और नहीं दे सकता, क्योंकि आपके बारे में आपसे ज्यादा कोई और नहीं जानता। आप ही वह अनूठे व्यक्ति हैं, जो खुद के प्रश्नों के एकदम सही उत्तर दे सकते हैं। खुद अपने साथ की गई आप की यह वार्ता आपके भविष्य को निर्धारित करेगी। इस बैठक में आप जो भी तय करेंगे वही भविष्य में आपका भाग्य गोगा। इस प्रकार आप खुद ही अप ने भाग्य के निर्माता हैं।
आवरण कथा
10 - 16 सितंबर 2018
स्वा
खुद को बनाएं सर्वाधिक योग्य खुद को इतना योग्य बना लें कि कुछ भी कठिन न लगे
मी विवेकानंद का प्रसिद्ध उद्धरण है, ‘संभव की सीमा जानने का केवल एक ही तरीका है, वह यह है कि असंभव से भी आगे निक ल जाओ।’ स्वामी विवेकानंद हमें बताते हैं कि इस दुनिया में आपके लिए क्या-क्या संभव है। इसे जानने का सबसे सरल तरीक ा है कि असंभव से आगे निकल जाओ और वहां पहुंच जाओ, जहां कुछ भी असंभव नहीं है। अस ंभव से आगे निकलते ही आपके लिए सब कुछ संभव हो जाएगा। आपके अंदर वह सभी शक् ति यां मौजूद हैं, जिनके बल पर आप कह सकते हैं कि आपके लिए इस दुनिया में सब कुछ संभव है अर्थात इस दुनिया में आपके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। जब आप असंभव से आग े निकल जाएंगे तब यह जान जाएंगे कि जीवन में अप ार संभावनाएं मौजूद हैं। अतः खुद को इतन ा योग्य बना लें कि आपके लिए कुछ भी कठिन न लगे, आपके लिए सब कुछ सरल हो जाए।
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जीवन भर सीखन
ा जब तक व्यक्ति क े अंदर कुछ नया स ीखने की इच्छा रहती है, उसका वि कास होता रहता मी विवेकानंद ने अ है पने गुरु रामकृष्ण पर
महंस से बहुत कुछ हैं, ‘ श्री रामकृष्ण पर सीखा। वे एक जगह महंस जी मुझसे कहा सीख सकता हूं। वह बताते करते थे, जब तक व्यक्ति या वह समाज म ैं ज ीवि त ह , ूं तब जिसके पास सीखने मौत के मुंह में है।’ तक मैं को कुछ नहीं है, व यहां स्वामी विवेकान ह पहले से ही ंद अपने गुरु के कहे हैं कि जब तक कोई हुए शब्दों को याद व्यक्ति जीवित रहता करते हुए बताते है तब तक उसके अ रहती हैं। किसी भी ंदर कुछ भी सीखने व्यक्ति का व्यक्तित्व की संभावनाएं निर्माण एक सतत प्रक्रिया कुछ नया सीखने क ी इच्छा रहती है, उ है । ज ब तक व्य क्ति के अंदर सका विकास होता नया सीखने की इच रहता है और जब उ ्छा समाप्त हो जाती स क े अ है , ंदर से कुछ तब माना जा सकता है। उस व्यक्ति को एक चलती फिरती लाश के समान दरअसल, यह बात व्यक्ति ही नहीं, ब ल्कि किसी भी सम समाज जो कुछ नया ाज पर लागू होती सीखता हुआ समय है। कोई भी के अनुसार खुद क का अस्तित्व हमेश ो ढालता चला जात ा बना रहता है और ा है , जो कुछ नया नहीं उस समाज के चलते पतन की सीखता, वह समाज ओर चलता चला ज अनेक परेशानियों ाता है। अतः हमेशा कुछ नया सीखते रह ना चाहिए।
ता क ्म ात ार क न ी ग े ार ह े स ा त क ्म ात ार सक ग में जगह बनाएंगे
मा जब सकारात्मक विचार आपके दि पना वजूद खो देंगे तो नकारात्मक विचार खुद ही अ विचार करते रहें। बुरे विचारों
स्वा
है- ‘लगातार पवित्र मी विवेकानंद का प्रेरणादायक संदेश ्मक और ी एकमात्र साधन हैं।’ वे यहां नकारात और संस्कारों को दबाने के लिए यह घेर लिया हैं। यदि आपको नकारात्मक सोच ने रहे ा बत बात ढ़ गू एक में े बार के सकारात्मक सोच न में अपनाना है। वल सकारात्मक सोच को अपने जीव के को आप लिए के ने कर र दू े ता इस है तो हटाने के लिए तरह तरह के प्रयास कर को र विचा ्मक ारात नक के र द अं ने बहुत से व्यक्ति अप ीं बुरे विचारों ने बुरे विचारों को हटाने के लिए उन्ह अप वह कि ों क्य , े पात हो ीं नह ल सफ है, लेकिन चीज पर केंद्रित करते दरअसल, हम अपने दिमाग को जिस । हैं ते कर त द्रि कें को ाग दिम ने अप ारात्मक पर इसीलिए स्वामी जी कहते हैं कि नक । है ी आत र -बा बार में न जीव ारे हैं, वह चीज हम र की तरफ बढ़ चलो, ्छा तरीका है कि सकारात्मक विचा अच से सब का ने कर र दू र को र विचा ाग में जगह बनाएंगे तो नकारात्मक विचा दिम के आप र विचा ्मक ारात सक जब उसका ध्यान करो। खुद ही अपना वजूद खो देंगे।
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जैसा सोचेंगे, वैसा रबजनबेंगबे ुरा करेंगे
रेंगे औ यदि बुरा सोचेंगे तो बुरा ही क तो परिणाम भी बुरा ही होगा
स्वा
हो ा विचार करेंगे, वैसे ही आप स जै प ‘आ है न वच मोल मी विवेकानंद का अन र यदि आप ेंगे तो आप निर्बल बन जाएंगे औ मान ल निर्ब को ं स्वय प आ जाएंगे। यदि ारे सोच-विचार के एंगे।’ उनकी कही यह बात हम जा बन र्थ सम प आ तो े ग ें अपने मान स्वयं को समर्थ बन जाते हैं। जैसे विचार हमने ही े स वै , हैं े चत सो ा स जै हम भविष्य होगा। तरीके और स्तर से जुड़ी है। र हमारे आज हैं, वैसा ही हमारा विचा े स जै र औ हैं ज आ हम ही े अतीत में रखे थे, वैस हमारे विचारों की होगी, वैसी ही निया दु की ार प्रक स जि कि है ता ओर आकर्षित सम्मोहन का सिद्धांत भी यही कह ा सोचेंगे, वैसी ही चीजें हमारी स जै हम कि ों क्य ी, होग भी णाम प्राप्त होता है। हमारी वास्तविक दुनिया र जैसा करते हैं, वैसा ही हमें परि औ हैं ते कर ही ा स वै , हैं े चत सो बुरा ही होंगी। हम जैसा जब बुरा करेंगे तो परिणाम भी र औ े ग ें कर ही ा र बु तो े ग चें सो सका परिणाम भी जाहिर है कि यदि बुरा ी कुछ अच्छा कर पाएंगे और जि तभ , लें डा दत आ की े चन में सो होगा। अतः अच्छा चें क्योकि जो लोग विपरीत परिस्थिति सो ्छा अच ा श े हम हो, अच्छा ही होगा। कोई भी परिस्थिति ा को प्राप्त कर पाते हैं। भी अच्छा सोचते हैं, वही सफलत
...तो दोष किसका!
जो अग्नि हमें गर्मी प्रदान करती है, वह हमें उसी गर्मी से नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं है
स्वा
मी विवेकानंद अपनी कई बातों से चमत्कृत करते हैं। खासतौर पर युवाओं को वे सामान्य सी बात कहकर भी कई बार गूढ़ संदेश दे जाते हैं। उनकी उक्ति है, ‘जो अग्नि हमें गर्मी प्रदान करती है, वह हमें उसी गर्मी से नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं है।’ यहां वे हमें किसी भी चीज का उपयोग कैसे करें, इस बारे में बताते हैं। उन्होंने अग्नि का उदाहरण देते हुए बताया कि अग्नि हमारे लिए बहुत उपयोगी है। जब तक हम अग्नि को उन कार्यों में लगाते हैं, जिनका परिणाम अच्छा होता है, तब तक अग्नि हमारे लिए वरदान है, लेकिन जब हम अग्नि का उपयोग गलत तरीके से करने लगते हैं तो वह किसी भी चीज को नष्ट कर सकती है और बुरे परिणाम आ सकते हैं। अर्थात अग्नि का काम गर्मी देना है, यह हम पर निर्भर करता है कि हम उसका उपयोग खाना बनाने में करते हं् या अपना घर जलाने में करते हैं। अगर आपका घर जलता है तो यह अग्नि का दोष नहीं है, क्योंकि यह आपके ऊपर है कि आप अग्नि का उपयोग कैसे करते हैं।
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सत्य की तर
ह लक्ष्य एक लक्ष्य तय कर ल ो और कोई भी एक अ च्छा रास्ता चुन लो और द ौड़ ल ग ा दो मी विवेकानंद सत्य क
ो लेकर एक गूढ़ बात बताते हैं, ‘किसी भी स तरीकों से बताया जा स त्य को हजारों कता है। फिर भी हर तर बताते हैं कि किसी भी ीका सत्य ही बताएगा।’ मंजिल तक पहुंचने क यहां वे हमें े हजारों रास्ते हो सकते पहुंचने के लिए कोई स हैं। हम उस मंजिल तक ा भी रास्ता अपना सक ते हैं, क्योंकि हमारे द्वा रास्ता हमें मंजिल तक रा अपनाया गया कोई पहुंचा देगा। भी दरअसल, इस दुनिया में अरबों लोग हैं, सभी स फलता प्राप्त करना चा है कि सफलता तक पहुंच हते हैं तो यह संभव ने के भी अरबों रास्ते मौ जूद हों। यदि सभी व्यक्ति भी अपनाएं तो एक दि अलग-अलग रास्ता न सभी को पहुंचना क ेवल एक ही मंजिल पर सत्य को कितने भी तर है। इसी प्रकार किसी भी ीकों से बता दिया जाए लेकिन बताया गया हर बताएगा। अतः एक लक्ष्य तर ीका सत्य के बारे में ही तय कर लें और कोई भी एक अच्छा रास्ता चुन और तब तक मत रुको लो और दौड़ लगा दो जब तक आपको आपक ा लक्ष्य न मिल जाए।
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य
व्याख्यान
10 - 16 सितंबर 2018
सुलभ के आविष्कार पूरी दुनिया की स्वच्छता के लिए
डॉ. पाठक ने पिछड़ों और समाज में हाशिए पर रह रहे लोगों को मुख्यधारा में लाकर उन्हें सशक्त बनाया है, साथ ही पर्यावरणीय स्वच्छता को लेकर उनके काम ने पूरी दुनिया में नाम कमाया है उरुज फातिमा
दि आप डॉ. विन्देश्वर पाठक के जीवन को देखें, तो उन्होंने वैज्ञानिक, इंजीनियर, प्रौद्योगिकीविद, योजनाकार, प्रशासक, आविष्कारक, दार्शनिक, लेखक-कवि, संगीतकार, गायक और इन सबसे बढ़ कर एक परोपकारी के कई गुणों को खुद में समाहित किया है। ये बातें एनआईएएस के निदेशक डॉ. शैलेश नायक ने एनआईएएस-डीएसटी प्रशिक्षण कार्यक्रम में कहीं। महिला वैज्ञानिकों के लिए ‘भारत में विज्ञान और स्थायित्व’ विषय पर बेंगलुरु स्थित एनआईएएस कैंपस में ‘शांति और अहिंसा के माध्यम से स्वच्छता, अस्पृश्यता और सामाजिक भेदभाव की समस्या को हल करने के लिए मेरी खोज और आविष्कार’ विषय पर आयोजित व्याख्यान में डॉ. शैलेश ने कहा कि डॉ. पाठक एनआईएएस सोच में फिट बैठते हैं, जहां वे विज्ञान, इंजीनियरिंग, सामाजिक विज्ञान, मानविकी को एकीकृत करने की कोशिश करते हैं, ताकि लोगों की कुछ समस्याओं का व्यवहारिक हल निकाला सकें।
एक बहु-अनुशासनात्मक चरित्र
डॉ. शैलेश नायक ने कहा कि मुझे लगता है कि दुनिया में ही नहीं, बल्कि भारत में बहुत कम लोग होंगे, जिनका इतना अनुशासनात्मक चरित्र है। सिर्फ यही नहीं, गरीबों और समाज के कमजोर वर्ग के लिए उनका प्यार बेमिसाल हैं, यह सब कुछ ऐसा है जो आज की दुनिया में नहीं दिखाई पड़ता हैं। उनके आविष्कारों और खोजों ने खुले में शौच से मुक्ति, अस्पृश्यता, सामाजिक भेदभाव सहित कई समस्याओं को हल किया है। उन्होंने वृंदावन, वाराणसी की विधवाओं के जीवन में खुशियां लाने का काम किया है, साथ ही समाज में हाशिए पर रहे कई लोगों की जिंदगियों में परिवर्तन लाए हैं। सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार में आर्सेनिक युक्त पानी की समस्या को भी हल करने की कोशिश कर रहे हैं, जहां आर्सेनिक युक्त जल बहुत गंभीर मुद्दा बन चुका है। लोग इसकी वजह से अपनी जान गंवा रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने जो बहुत ही रोचक काम किया है, वह है शौचालय का एक संग्रहालय स्थापित करना, जो शायद मुझे लगता है कि दुनिया में एकमात्र संग्रहालय है। उन्हें कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, जिनकी गिनती लगभग सौ से अधिक है। पद्म भूषण, स्टॉकहोम जल पुरस्कार, पर्यावरण के लिए अंतरराष्ट्रीय सेंट फ्रांसिस पुरस्कार, निकी
और संघर्षों में हमेशा शांति और अहिंसा का मार्ग अपनाया है। स्वच्छता, अस्पृश्यता और सामाजिक भेदभाव की समस्याओं को हल करने के लिए मेरा अपना दृष्टिकोण अद्वितीय और अनोखी चीजों से भरा हुआ है, जो अपनी नवीनता और रचनात्मकता को दर्शाता है।’ सुलभ प्रणेता ने कहा कि ‘गांधी, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े व्यक्ति थे। उनके पास भारत के लिए एक बड़ा विजन भी था, जिसमें सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक मुद्दों की एक ऐसी श्रृंखला शामिल थी, जिसके लिए उन्होंने जीवनभर संघर्ष किया। उनकी प्रमुख चिंताओं में स्वच्छता, साफ-सफाई और अस्पृश्यों की मुक्ति शामिल था और ये मुद्दे पिछले 50 वर्षों से मेरे कार्यक्षेत्र में भी प्रमुखता से शामिल हैं।’
महापुरुषों से सीखा दर्शन
पिछले 50 सालों से, मैं महात्मा गांधी, अब्राहम लिंकन, मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला और डॉ. बीआर आंबेडकर के सपनों को पूरा कर रहा हूं – डॉ. विन्देश्वर पाठक एशिया पुरस्कार सहित इसकी गिनती अभी जारी है।
सुलभ प्रणेता का संघर्ष
इस अवसर पर पिछले 50 वर्षों के अपने अनुभवों के बारे में डॉ. विन्देश्वर पाठक ने कहा कि वे जिन हालातों से गुजरे हैं और जो कुछ भी कर रहे हैं, उसके पर हर कोई सोच भी नहीं सकता। वे रेलवे प्लेटफॉर्म पर सोए, चिलचिलाती धूप में काम किया, लोगों की सेवा के लिए अपनी पत्नी के गहने बेच दिए। उनके जीवन में कई महत्वपूर्ण मोड़ हैं, जहां उन्होंने सब कुछ खोया हुआ और हारा हुआ असहाय महसूस किया। लेकिन इन वर्षों में भी वे अपने मिशन से कभी नहीं भटके और लगातार उसके बारे में सोचते रहे। वे जहां आज खड़े हैं, यहां पर होने के लिए उन्होंने बहुत सी परेशानियों का सामना किया है। डॉ. पाठक ने कहा, ‘लंबा संघर्ष और परिवारसमाज से हर तरह के प्रतिरोध सहने के बाद मैंने अपना जीवन अस्पृश्यों के बीच स्वच्छता और सामाजिक कार्य करने तथा अपने देश के लिए उचित, प्रभावी और किफायती शौचालय प्रौद्योगिकी
की खोज करने में लगाया और उसे लोगों को समर्पित कर दिया।’
गांधी जी के अनुयायी
डॉ. पाठक ने कहा, ‘मैं महात्मा गांधी का अनुयायी हूं, लेकिन निश्चित रूप से कुछ अलग तरह से। क्योंकि मैंने गांधी के मौलिक सिद्धांतों और फिर उसके रूढ़िग्रस्त अनुसरण में बने सिद्धांतों को अलग कर दिया है। यदि आप अपने दिल से दूसरों की मदद करना चाहते हैं, तो आप सभी गांधीवादी हैं। कुछ नियमों में बंधकर, कुछ प्रकार के कपड़े पहनने या खाने की कोई जरूरत नहीं है। इसीलिए मैंने गांधी को लेकर एक नया सिद्धांत दिया है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने गांधी जी के सिद्धांतों यानी सच्चाई और अहिंसा के मूलभूत सिद्धांतों को स्वीकार कर लिया है और इसी सच्चाई के साथ, मैं आपके और देश के सामने हूं। सभी परिवर्तन और रूपांतरण मैं अहिंसा को साथ रखकर लाया हूं। मैंने वेदों, पुराणों और ऐसी अन्य किताबों को नष्ट नहीं किया है। मैंने गांधी और गांधीवाद से बहुत कुछ सीखा है और मैंने अपने सभी कार्यों
अपने जीवन और अनुभवों को लेकर अपनी बात जारी रखते हुए डॉ. पाठक ने कहा कि गांधी जी ने कहा था, ‘अभ्यास का एक औंस भी प्रचार के मुकाबले ज्यादा मूल्यवान है।’ पिछले 50 सालों से, मैं महात्मा गांधी, अब्राहम लिंकन, मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला और डॉ. बीआर आंबेडकर के सपनों को पूरा कर रहा हूं। मार्टिन लूथर किंग चाहते थे कि दासों और मालिकों के पुत्र, जॉर्जिया की रेड हिल्स में एक साथ बैठें। लेकिन मैंने न केवल पूर्व अस्पृश्यों को एक साथ बैठने में मदद की, बल्कि उन्हें साथ में भोजन करने और खुशियों का आदान-प्रदान करने में भी मदद की। साथ ही, जाति आधारित भारतीय समाज में ब्राह्मणों की स्थिति पर अछूतों को खुद को ले जाने में भी मदद की, भारत के इतिहास के समाज में ऐसा कभी नहीं सुना गया। गांधी जी ने कहा था, ‘मैं पहले भारत को साफ करना चाहता हूं और बाद में स्वतंत्रता चाहता हूं।’ जॉन एफ केनेडी ने अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में अपने पहले उद्घाटन संबोधन में कहा था, ‘यह न पूछें कि आपका देश आपके लिए क्या कर सकता है, बल्कि यह पूछें कि आप अपने देश के लिए क्या कर सकते हैं।’ एेसी ही एक और मिसाल देते हुए सुलभ प्रणेता ने कहा कि एक जापानी दार्शनिक डॉ. डैसाकू इकेडा ने कहा था, ‘सिर्फ एक व्यक्ति के अंदर की महान आंतरिक क्रांति ही एक राष्ट्र की नियति में बदलाव लाने में मदद कर सकती है और यही आगे मानव जाति की नियति में भी बदलाव लाएगी।’ यह बात कहते हुए डॉ. पाठक लोगों के बाच कहते हैं
10 - 16 सितंबर 2018 आप मुझे इसके जीवंत उदाहरण के तौर पर देख सकते हैं। वे कहते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि स्वच्छता हर भारतीय का स्वभाव बनना चाहिए। स्वच्छता हमारी नसों में बहनी चाहिए। यह हमारे चरित्र में, हमारे विचारों और हमारे शिष्टाचार में भी रहना चाहिए। महात्मा गांधी के बाद, हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही स्वच्छता और शौचालयों के बारे में बात करने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं। इन सारी बातों को कहते हुए आखिर में डॉ. पाठक कहते हैं, ‘मैंने इन सभी महान लोगों से और विशेष रूप से हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से बहुत कुछ सीखा है, जिनके अहिंसा के सिद्धांतों को शांति और सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए दुनिया भर में बड़े सम्मान के साथ देखा जाता है।’ यह कहते हुए वे इस दिलचस्प तथ्य को भी साझा करते हैं कि यह भी एक संयोग ही है कि मैंने उसी वर्ष अपना काम शुरू किया, जब देश-समाज महात्मा गांधी की जन्म शताब्दी मना रहा था, यानी वर्ष 1968 में। अब हम स्वच्छ भारत अभियान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनकर उनकी 150 वीं वर्षगांठ मनाएंगे।
मूलभूत सिद्धांत
डॉ. पाठक के जीवन की बुनियादी बातों में ईमानदारी, अखंडता, नैतिकता और प्रतिबद्धता और 'एक जीवन एक मिशन’ शामिल हैं। डॉ. पाठक, इन सभी मौलिक सिद्धांतों से भरे व्यक्ति का एक जीवंत उदाहरण है। आज तक, उन्होंने समाज के लिए अपने काम में ईमानदारी और अखंडता बनाए रखी है।
इंदिरा गांधी को लिखा पत्र
डॉ. पाठक ने बताया कि जब उन्होंने स्वच्छता का काम शुरू किया तो इसमें मैला ढोने की प्रथा को दुर करने को लेकर समस्या आ रही थी। इसीलिए उन्होंने बिहार के एक विधायक से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को एक पत्र लिखने के लिए कहा। इंदिरा गांधी ने बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री केदार पांडे को उस पत्र का जवाब भेजा और उसी वजह से स्वच्छता के कार्य में तेजी आई और यह स्वच्छ विचार आगे बढ़ा। फिर डॉ. पाठक ने इस बारे में बात की कि कैसे उन्होंने पर्यावरणीय स्वच्छता, सार्वजनिक स्वास्थ्य, अस्पृश्यता, सामाजिक भेदभाव और विधवाओं की समस्याओं का समाधान किया।
व्याख्यान
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सुलभ टू पिट टेक्नोलॉजी
18 वीं शताब्दी में, इंग्लैंड ने 'सीवेज सिस्टम' विकसित किया। सबसे पहले, 1850 में लंदन में सीवेज सिस्टम स्थापित किया गया। 1860 में न्यूयॉर्क में दूसरा और 1870 में भारत के कलकत्ता में तीसरा सीवेज सिस्टम स्थापित किया गया। यह मानव अपशिष्ट का केंद्रीकृत तंत्र था। हमारे यहां 7935 कस्बे और शहर हैं, जिनमें से केवल 732 कस्बे/शहर सीवेज आधारित हैं, वो भी आंशिक रूप से। पूरे अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया में 2.3 अरब लोगों की पहुंच सुरक्षित और स्वच्छ शौचालय तक नहीं है। यह सीवेज प्रौद्योगिकी निर्माण में बहुत महंगी है, साथ ही इसके लिए उच्च रखरखाव और पानी की बड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है। लेकिन सुलभ प्रौद्योगिकी, जैसा कि अब सबको पता है, सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त, पर्यावरणीय रूप से सुरक्षित और बहुत ही लागत प्रभावी है। यह एक टू-पिट-पोर-फ्लश (दो गड्ढे, फ्लश करना) ऑन-साइट कंपोस्ट टॉयलेट है, जिसे आसानी से स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्रियों से बनाया जा सकता है। यह मानव अपशिष्ट के सुरक्षित निपटान के लिए सबसे अच्छी वैश्विक प्रौद्योगिकियों में से एक के रूप में पहचानी गई है। यहां तक कि अमेरिका भी इस तकनीक को अपनाना चाहता है। क्योंकि अमेरिका के पास सिर्फ शहरों में सीवेज सिस्टम है, ग्रामीण इलाकों में नहीं है।
अस्पृश्यता का अंत
इस अवसर पर डॉ. पाठक ने कहा कि ‘स्वच्छता प्रौद्योगिकी के अपने आविष्कार, नवाचार और सामाजिक इंजीनियरिंग के उपयोग के माध्यम से, मैं अस्पृश्यों की स्थिति में बदलाव ला सका। साथ ही उन्हें ब्राह्मण बनाकर, भारतीय समाज की
यह भी एक संयोग ही है कि मैंने उसी वर्ष अपना काम शुरू किया, जब देश-समाज ने महात्मा गांधी की जन्म शाताब्दी मनाई, यानी वर्ष 1968 में। अब हम स्वच्छ भारत अभियान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनकर उनकी 150 वीं वर्षगांठ मनाएंगे - डॉ. विन्देश्वर पाठक कठोर जाति पदानुक्रम को चुनौती दी। जमीन पर मेरी अपारंपरिक दृष्टि और कार्य एक ऐतिहासिक और अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, क्योंकि शायद महात्मा गांधी ने भी कल्पना नहीं की होगी कि अस्पृश्य 'नए ब्राह्मण' बन सकते हैं।’ सुलभ ने बड़े सामाजिक संदर्भ में योगदान दिया है, हजारों अस्पृश्यों को मुक्त कराके उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने का काम किया है। सुलभ की तकनीक और आविष्कारों ने इस प्रकार अस्पृश्यों के जीवन में एक बड़ा अंतर पैदा किया है। वे अब अस्पृश्य नहीं हैं। अब, वे हमारे जैसे स्वतंत्र दुनिया के स्वतंत्र नागरिक हैं।
विधवाओं के लिए 'लाल बाबा'
डॉ. पाठक का एक अन्य सामाजिक कार्य है, विधवाओं के जीवन स्तर में सुधार, जो कि उन सभी के लिए प्यार और करुणा के सिद्धांत पर आधारित है। 2012 से वे वृंदावन, वाराणसी और उत्तरकाशी की विधवाओं को 2000 रुपए (पहले 1000 रुपए था) का एक मासिक अनुदान प्रदान कर रहे हैं। इसने वैधव्य का जीवन जी रही माताओं
के जीवन में उल्लास और खुशियां दी, साथ ही उनकी दुखी आत्माओं को पुनर्जीवित किया। उनकी उचित चिकित्सा सुनिश्चित करने के लिए, सुलभ ने पांच आधुनिक एंबुलेंस भी प्रदान किए, जो पांच आश्रमों में तैनात रहती हैं। विधवाओं के लिए, डॉ. पाठक 'लाल बाबा' हैं, जिन्होंने उनके रंगहीन जीवन में रंग भर दिए। अंत में, डॉ पाठक ने कहा, ‘गांधी की तरह, जिसे मैं मानता हूं और उसका पालन करता हूं, मैं एक तरह का आलोचनात्मक परंपरावादी हूं, क्योंकि उन्हीं परंपरा के मूल्यों से ही प्यार, करुणा और मानवता को बढ़ावा मिला है। जीवंत और रचनात्मक होने के लिए, व्यक्ति और समाज को नए विचारों और नई गतिविधियों की आवश्यकता होती है। इस तरह की सोच मुझे दुनिया के सभी बेहतर मूल्यों, चाहे वह प्राचीन हों या आधुनिक, पूर्वी हो या पश्चिमी, को गले लगाने की प्रेरणा देती है। इस अर्थ में, मैं एक समालोचनात्मक आधुनिकतावादी भी हूं, जो अपनी जड़ों और मिट्टी से जुड़े रहने के बाद भी, अपने दरवाजे और खिड़कियों को खुला रखता है।
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पुस्तक अंश
9 आमतौर पर मान लिया जाता है कि गांधी जी जिस पारिवारिक पृष्ठभूमि से आते थे, उसमें विदेश यात्रा कोई बड़ी बात नहीं होगी। पर उनकी आत्मकथा को पढ़कर ऐसा लगता है कि यह परिवार परंपरा और मान्यताओं में एक आम गुजराती परिवार की तरह ही था। एक तरफ जहां जीवन और व्यवहार में शुचिता का जोर था, वहीं जैसा की खुद गांधी जी बताते हैं, वे इस जोर को संस्कार की लीक मानने को विवश थे। यह भी कि इंग्लैंड से दक्षिण अफ्रीका तक अपनी उपस्थिति और विचार की छाप छोड़ने वाले गांधी जी पहली बार विलायत जाते हुए खासे नर्वस थे
10 - 16 सितंबर 2018
पहली बार बंबई पहली बार विलायत
आगे कॉलेज की पढ़ाई करनी चाहिए। कॉलेज बंबई में भी था और भावनगर में भी। भावनगर का खर्च कम था। इसीलिए भावनगर के शामलदास कॉलेज में भर्ती होने का निश्चय किया। कॉलेज में मुझे कुछ आता न था। सब कुछ मुश्किल मालूम होता था। इसमें दोष अध्यापकों का नहीं, मेरी कमजोरी का ही था। उस समय के शामलदास कॉलेज के अध्यापक तो प्रथम पंक्ति के माने जाते थे। पहला सत्र पूरा करके मैं घर आया। कुटुंब के पुराने मित्र और सलाहकार एक विद्वान, व्यवहार-कुशल ब्राह्मण मावजी दवे थे। पिताजी के स्वर्गवास के बाद भी उन्होंने कुटुंब के साथ संबंध बनाए रखा था। वे छुट्टी के इन दिनों में घर आए। माता जी और बड़े भाई के साथ बातचीत करते हुए उन्होंने मेरी पढ़ाई के बारे में पूछताछ की। जब सुना कि मैं शामलदास कॉलेज में हूं, तो बोले, ‘जमाना बदल गया है। तुम भाइयों में से कोई कबा गांधी की गद्दी संभालना चाहे तो बिना पढ़ाई के वह नहीं होगा। यह लड़का अभी पढ़ रहा है, इसीलिए गद्दी संभालने का बोझ इससे उठवाना चाहिए। इसे चार-पांच साल तो अभी बी.ए. होने में लग जाएंगे, और इतना समय देने पर भी इसे 5060 रुपए की नौकरी मिलेगी, दीवानगीरी नहीं। और अगर उसके बाद इसे मेरे लड़के की तरह वकील बनाएं, तो थोड़े वर्ष और लग जाएंगे और तब तक तो दीवानगीरी के लिए वकील भी बहुत से तैयार हो चुकेंगे। आपको इसे विलायत भेजना चाहिए। केवलराम (भावजी दवे का लड़का) कहता है कि वहां की पढ़ाई सरल है। तीन साल में पढ़कर लौट आएगा। खर्च भी चार-पांच हजार से अधिक नहीं होगा। नए आए हुए बैरिस्टरों को देखो, वे
प्रथम भाग
11. विलायत की तैयारी
सन 1886 में मैंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। देश की और गांधी-कुटुंब की गरीबी ऐसी
थी कि अहमदाबाद और बंबई-जैसे परीक्षा के दो केंद्र हों, तो वैसी स्थितिवाले काठियावाड़-निवासी नजदीक के और सस्ते अहमदाबाद को पसंद करते थे। वही मैंने किया। मैंने पहले-पहल राजकोट से अहमदाबाद की यात्रा अकेले की। बड़ों की इच्छा थी कि पास हो जाने पर मुझे
भावनगर के शामलदास कॉलेज में भर्ती होने का निश्चय किया। कॉलेज में मुझे कुछ आता न था। सब कुछ मुश्किल मालूम होता था। इसमें दोष अध्यापकों का नहीं, मेरी कमजोरी का ही था। उस समय के शामलदास कॉलेज के अध्यापक तो प्रथम पंक्ति के माने जाते थे
10 - 16 सितंबर 2018
कैसे ठाठ से रहते हैं! वे चाहें तो उन्हें दीवानगीरी आज मिल सकती है। मेरी तो सलाह है कि आप मोहनदास को इसी साल विलायत भेज दीजिए। विलायत में मेरे केवलराम के कई दोस्त हैं, वह उनके नाम सिफारिशी पत्र दे देगा, तो इसे वहां कोई कठिनाई नहीं होगी।’ जोशी जी ने (मावजी दवे को हम इसी नाम से पुकारते थे) मेरी तरफ देखकर मुझसे ऐसे लहजे में पूछा, मानो उनकी सलाह के स्वीकृत होने में उन्हें कोई शंका ही न हो। ‘क्यों, तुझे विलायत जाना अच्छा लगेगा या यहीं पढ़ते रहना?’ मुझे जो भाता था वही वैद्य ने बता दिया। मैं कॉलेज की कठिनाइयों से डर तो गया ही था। मैंने कहा, 'मुझे विलायत भेजें, तो बहुत ही अच्छा है। मुझे नहीं लगता कि मैं कॉलेज में जल्दी-जल्दी पास हो सकूंगा। पर क्या मुझे डॉक्टरी सीखने के लिए नहीं भेजा जा सकता?' मेरे भाई बीच में बोले- ‘पिता जी को यह पसंद न था। तेरी चर्चा निकलने पर वे यही कहते कि हम वैष्णव होकर हाड़-मांस की चीर-फाड़ का काम न करें। पिताजी तो मुझे वकील ही बनाना चाहते थे।’ जोशी जी ने समर्थन किया : ‘मुझे गांधी जी की तरह डॉक्टरी पेशे से अरुचि नहीं है। हमारे शास्त्र इस धंधे की निंदा नहीं करते। पर डॉक्टर बनकर तू दीवान नहीं बन सकेगा। मैं तो तेरे लिए दीवान-पद अथवा उससे भी अधिक चाहता हूं। तभी तुम्हारे बड़े परिवार का निर्वाह हो सकेगा। जमाना बदलता जा रहा है और मुश्किल होता जाता है। इसीलिए बैरिस्टर बनने में ही बुद्धिमानी है।’ माता जी की ओर मुड़कर उन्होंने कहा‘आज तो मैं जाता हूं। मेरी बात पर विचार करके देखिए। जब मैं लौटूंगा तो तैयारी के समाचार सुनने की आशा रखूंगा। कोई कठिनाई हो तो मुझसे कहिए।’ जोशी जी गए और मैं हवाई किले बनाने लगा। बड़े भाई सोच में पड़ गए। पैसा कहां से आएगा? और मेरे जैसे नौजवान को इतनी दूर कैसे भेजा जाए! माता जी को कुछ सूझ न पड़ा। वियोग की बात उन्हें जंची ही नहीं। पर पहले तो उन्होंने यही कहा- ‘हमारे परिवार में अब बुजुर्ग तो चाचा जी ही रहे हैं। इसीलिए पहले उनकी सलाह लेनी चाहिए। वे आज्ञा दें तो फिर हमें सोचना होगा।’ बड़े भाई को दूसरा विचार सूझा- ‘पोरबंदर राज्य पर हमारा हक है। लेली साहब एडमिनिस्ट्रेटर हैं। हमारे परिवार के बारे में उनका अच्छा खयाल है। चाचा जी पर उनकी खास मेहरबानी है। संभव है कि वे राज्य की तरफ से तुझे थोड़ी बहुत मदद कर दें।’ मुझे यह सब अच्छा लगा। मैं पोरबंदर जाने के लिए तैयार हुआ। उन दिनों रेल नहीं थी। बैलगाड़ी का रास्ता था। पांच दिन में पहुंचा जाता
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पुस्तक अंश
हाई स्कूल में सभा हुई। राजकोट का एक युवक विलायत जा रहा है, यह आश्चर्य का विषय बना। मैं जवाब के लिए कुछ लिखकर ले गया था। जवाब देते समय उसे मुश्किल से पढ़ पाया। मुझे इतना याद है कि मेरा सिर घूम रहा था और शरीर कांप रहा था
था। मैं कह चुका हूं कि मैं खुद डरपोक था। पर इस बार मेरा डर भाग गया। विलायत जाने की इच्छा ने मुझे प्रभावित किया। मैंने धोराजी तक की बैलगाड़ी की। धोराजी से आगे, एक दिन पहले पहुंचने के विचार से, ऊंट किराए पर लिया। ऊंट की सवारी का भी मेरा यह पहला अनुभव था। मैं पोरबंदर पहुंचा। चाचा जी को साष्टांग प्रणाम किया। सारी बात सुनाई। उन्होंने सोचकर जवाब दिया- ‘मैं नहीं जानता कि विलायत जाने पर हम धर्म की रक्षा कर सकते हैं या नहीं। जो बातें सुनता हूं उससे तो शक पैदा होता है। मैं जब बड़े बैरिस्टरों से मिलता हूं, तो उनकी रहनसहन में और साहबों की रहन-सहन में कोई भेद नहीं पाता। खाने-पीने का कोई बंधन उन्हें नहीं ही होता। सिगरेट तो कभी उनके मुंह से छूटती नहीं। पोशाक देखो तो वह भी नंगी। यह सब हमारे कुटुंब को शोभा न देगा। पर मैं तेरे साहस में बाधा नहीं डालना चाहता। मैं तो कुछ दिनों बाद यात्रा पर जाने वाला हूं। अब मुझे कुछ ही साल जीना है। मृत्यु के किनारे बैठा हुआ मैं तुझे विलायत जाने की, समुद्र पार करने की इजाजत कैसे दूं?
लेकिन मैं बाधक नहीं बनूंगा। सच्ची इजाजत तो तेरी मां की है। अगर वह इजाजत दे दे तो तू खुशी-खुशी से जाना। इतना कहना कि मैं तुझे रोकूंगा नहीं। मेरा आशीर्वाद तो तुझे है ही।' मैंने कहा- ‘इससे अधिक की आशा तो मैं आपसे रख नहीं सकता। अब तो मुझे अपनी मां को राजी करना होगा। पर लेली साहब के नाम आप मुझे सिफारिशी पत्र तो देंगे न?’ चाचा जी ने कहा- ‘सो मैं कैसे दे सकता हूं? लेकिन साहब सज्जन है, तू पत्र लिख। कुटुंब का परिचय देना। वे जरूर तुझे मिलने का समय देंगे और उन्हें रुचेगा तो मदद भी करेंगे।’ मैं नहीं जानता कि चाचा जी ने साहब के नाम सिफारिश का पत्र क्यों नहीं दिया। मुझे धुंधली-सी याद है कि विलायत जाने के धर्म-विरुद्ध कार्य में इस तरह सीधी मदद करने में उन्हें संकोच हुआ। मैंने लेली साहब को पत्र लिखा। उन्होंने अपने रहने के बंगले पर मुझे मिलने बुलाया। उस बंगले की सीढ़ियों को चढ़ते वे मुझसे मिल गए और मुझे यह कहकर चले गए- ‘तू बी.ए. कर ले, फिर मुझसे मिलना। अभी कोई मदद नहीं दी
जा सकेगी।’ मैं बहुत तैयारी करके, कई वाक्य रटकर गया था। नीचे झुककर दोनों हाथों से मैंने सलाम किया था। पर मेरी सारी मेहनत बेकार हुई! मेरी दृष्टि पत्नी के गहनों पर गई। बड़े भाई के प्रति मेरी अपार श्रद्धा थी। उनकी उदारता की सीमा न थी। उनका प्रेम पिता के समान था। मैं पोरबंदर से विदा हुआ। राजकोट आकर सारी बातें उन्हें सुनाई। जोशी जी के साथ सलाह की। उन्होंने कर्ज लेकर भी मुझे भेजने की सिफारिश की। मैंने अपनी पत्नी के हिस्से के गहने बेच डालने का सुझाव रखा। उनसे 2-3 हजार रुपए से अधिक नहीं मिल सकते थे। भाई ने, जैसे भी बने, रुपयों का प्रबंध करने का बीड़ा उठाया। माता जी कैसे समझतीं? उन्होंने सब तरफ की पूछताछ शुरू कर दी थी। कोई कहता, नौजवान विलायत जाकर बिगड़ जाते हैं; कोई कहता, वे मांसाहार करने लगते हैं; कोई कहता, वहां शराब के बिना तो चलता ही नहीं। माता जी ने मुझे ये सारी बातें सुनाई। मैंने कहा, ‘पर तू मेरा विश्वास नहीं करेगी? मैं शपथपूर्वक कहता हूं कि मैं इन तीनों चीजों से बचूंगा। अगर ऐसा खतरा होता तो जोशी जी क्यों जाने देते?' माता जी बोली, ‘मुझे तेरा विश्वास है। पर दूर देश में क्या होगा? मेरी तो अक्ल काम नहीं करती। मैं बेचरजी स्वामी से पूछूंगी।’ बेचरजी स्वामी मोढ़ बनियों में से बने हुए एक जैन साधु थे। जोशी जी की तरह वे भी हमारे सलाहकार थे। उन्होंने मदद की। वे बोले- ‘मैं इन तीनों चीजों के व्रत दिलाऊंगा। फिर इसे जाने देने में कोई हानि नहीं होगी।’ उन्होंने प्रतिज्ञा दिलवाई और मैंने मांस, मदिरा तथा स्त्री-संग से दूर रहने की प्रतिज्ञा की। माता जी ने आज्ञा दी। हाई स्कूल में सभा हुई। राजकोट का एक युवक विलायत जा रहा है, यह आश्चर्य का विषय बना। मैं जवाब के लिए कुछ लिखकर ले गया था। जवाब देते समय उसे मुश्किल से पढ़ पाया। मुझे इतना याद है कि मेरा सिर घूम रहा था और शरीर कांप रहा था। बड़ों के आशीर्वाद लेकर मैं बंबई के लिए रवाना हुआ। बंबई की यह मेरी पहली यात्रा थी। बड़े भाई साथ आए। पर अच्छे काम में सौ विघ्न आते हैं। बंबई का बंदरगाह जल्दी छूट न सका। (अगले अंक में जारी)
16 खुला मंच
10 - 16 सितंबर 2018
स्वतंत्र वही हो सकता है, जो अपना काम स्वयं कर लेता है – संत विनोबा भावे
जनधन योजना बंद नहीं होगी
प्रधानमंत्री जनधन योजना की भारी सफलता को देखते हुए सरकार ने इस योजना को हमेशा खुली रखने का फैसला किया है
दे
श के गरीबों और वंचितों के लिए यह एक अच्छी खबर है कि लोगों को बैंक खाता खोलने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री जनधन योजना को हमेशा खुली रहने वाली योजना बनाने का फैसला किया है। इसके साथ ही योजना में कुछ और प्रोत्साहन जोड़ने का भी फैसला किया गया है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री जनधन योजना की भारी सफलता को देखते हुए सरकार ने इस योजना को हमेशा खुली रखने का फैसला किया है। योजना अनिश्चित काल तक खुली रहेगी। पीएमजेडीवाई को अगस्त, 2014 में शुरू किया गया था। तब योजना को चार साल के खोला गया था। आम जनता को बैंकों से जोड़ने और उन्हें बीमा और पेंशन जैसी वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए इसकी शुरुआत की गई। सरकार जनधन खातों को अधिक आकर्षक बनाने के लिये सरकार ने इन खातों में मिलने वाले ओवरड्राफ्ट की सुविधा को 5,000 रुपए से बढ़ाकर 10,000 रुपए कर दिया है। इसके साथ ही इसके तहत मिले रुपे कार्ड से जुड़ी दुर्घटना बीमा योजना के तहत मिलने वाली राशि की सीमा एक लाख रुपए से बढ़ाकर दो लाख रुपए कर दिया गया है। जो 28 अगस्त 2018 के बाद खुलने वालों खाताधारकों के लिए होगा। उन्होंने कहा कि दो हजार रुपए तक की ओडी के लिए कोई शर्त नहीं होगा और ओडी लेने वालों की आयु पहले 18 से 60 वर्ष थी जिसे बढ़ाकर अब 65 वर्ष कर दी गई है जनधन योजना के तहत अब तक 32.41 करोड़ खाते खोले जा चुके हैं और इनमें अब तक 81,200 करोड़ रुपए की राशि जमा है। जनधन खाते खोलने वालों में 53 प्रतिशत महिलाएं हैं, जबकि इनमें 83 प्रतिशत खाते आधार से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि 59 प्रतिशत बैंक खाते ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में खोले गए हैं और 24.4 करोड़ लोगों के पास रुपे कार्ड है।
टॉवर फोनः +91-120-2970819
(उत्तर प्रदेश)
अभिमत
प्रो. (डॉ.) योगेंद्र यादव
लेखक प्रख्यात गांधीवादी-समाजवादी चिंतक और समाजशास्त्री और महात्मा गांधी पीस एंड रिसर्च सेंटर, घाना के इंटरनेशनल को-ऑर्डिनेटर हैं
शांति, शक्ति और स्वामी स्वामी विवेकानंद द्वारा 1899 में लिखा गई ‘पीस’ कविता की चर्चा काफी होती है। इस कविता में उन्होंने शक्ति और सत्य को लेकर अपनी अवधारणा को स्पष्ट किया है
सं
त का हृदय कवि हृदय होता है, अध्यात्म की ओर बढ़ते हुए यह संसार उससे छूटता नहीं है, अपितु वह वृहदाकार होकर इस संसार को ढकने का प्रयास करता है, जिससे इस संसार को सुरक्षित रखा जा सके, इसमें रहने वाले मानव जाति का पूर्णरूपेण हित किया जा सके, उन्हें आपदाओं और विपत्तियों से बचाया जा सके। स्वामी विवेकानंद भी एक ऐसे ही संत हैं, जो कवि हृदय हैं और युवा शक्ति को एक दिशा प्रदान करने की कोशिश आजीवन करते रहे। उन्हीं की 1899 में मूल रूप से अंगेजी में लिखी कविता है- ‘पीस’। हिंदी में यह कविता ‘शांति’ नाम से भावानुवादित हुई है। इस कविता में स्वामी विवेकानंद के हृदय में अंकुरित हुए विचार वाणी से खुद-ब-खुद निकले हुए लगते हैं। वे अपने पहले की सभी परिभाषाओं को झुठलाते हुए कहते हैं कि शक्ति वह नहीं, जो जबरदस्ती इकट्ठा की जाती है। फिर कहते हैं कि उसे शक्ति माना जा सकता है, क्योंकि समाज उसे ही शक्ति मानता है, फिर तत्क्षण उन्हें ध्यान आता है कि नहीं, वह तो दूसरे लोग से छीन कर, उनकी रोटियों का अपहरण करके इकट्ठा की गई शक्ति है। फिर वह शक्ति कैसे हो सकती है, यानी उनकी वाणी से फिर यह प्रकट हो जाता है कि वह शक्ति नहीं है। वे कहते हैं कि शांति प्रकाश भी है और प्रकाश नहीं भी है, क्योंकि वह जब आती है, तो न प्रकाश का आभास होता है और न अंधकार का। एक विलग तरह की अनुभूति होती है। लगता है, जो अंधेरे के भीतर समाई हुई है। कभी वह छाया महसूस होती है, कभी लगता है कि वह छाया भी नहीं है। जो मनुष्य की जेहन को एकाएक चकाचौंध कर देता है, जो प्रकाश के साथ आता है, वह वस्तुत: आनंद है, जो कभी अभिव्यक्त ही नहीं हुआ। जिसे अभिव्यक्त करने में उन लोगों ने अभिरुचि ही नहीं दिखाई, जिन्हें वह प्राप्त हुआ। वह तो अनभोगा जैसा है, जो गहन दुख के रूप में दिखा, वह तो अमर जीवन के समान है, जो कभी जिया ही नहीं गया। जिसे जीने का किसी को शौक भी नहीं हुआ, वह शांति अनंत मृत्यु के समान है। अमर जीवन के समान है। ‘देखो जो बलात आती है, वह शक्ति, शक्ति नहीं है, वह प्रकाश, प्रकाश नहीं है, जो अंधेरे के भीतर है, और न वह छाया है, छाया ही है, जो चकाचौंध करने वाले, प्रकाश के साथ है। फिर एकाएक स्वामी की वाणी से प्रस्फुटित होता है, न
वह दुख है, न वह सुख है। वह तो सत्य है, एक प्रामाणिक सत्य है, जो मिलाता है, उस परमपिता परमात्मा से, जिससे मिलने के लिए यह जीव बेचैन रहता है। स्वामी जी के इन भावों को उनकी लिखी इन पंक्तियों में महसूस कीजिए‘वह आनंद है, जो कभी व्यक्त नहीं हुआ, और अनभोगा, गहन दुख है, अमर जीवन, जो जिया नहीं गया, और अनंत मृत्यु जिस परकिसी को शोक नहीं हुआ, न दुख है, न सुख, सत्य वह है, जो इन्हें जोड़ता है। स्वमी विवेकानंद उस सत्य को उद्घाटित करने के लिए अपने भावों को आकाश की तरफ ले जाते दीखते हैं, ऐसा लगता है कि जैसे उन भावों का प्रत्यक्षीकरण करके वे सभी को दिखला देना चाहते हों। वे कहते हैं, वह शांति जो विरलों को ही प्राप्त होती है, सामजिक जीवन में जिसकी अनुभूति जरूर हर दिन, सप्ताह, मास, वर्ष के एकाध बार किसी न किसी रूप में अवश्य हो जाती है। उसी का वर्णन करते हुए विवेकानंद जी कहते हैं कि वह न तो रात है, न सुबह है, उन्हें केवल एक ही बात समझ में आती है, कि वह आत्मा और
स्वामी विवेकानंद ने अपनी आध्यात्मिक अनुभति ू यों को सांसारिक जीवन से विलग करके नहीं देखा है, बल्कि उस पथ पर आगे बढ़ते हुए, संसार का सर्वोत्तम कल्याण कैसे हो, इस पर भी उनका चिंतन बराबर टिका रहता है
10 - 16 सितंबर 2018 परमात्मा को जोड़ने के काम आती है। वह संगीत का वह मधुर विराम है, जो कानों में मिश्री घोलता हुआ प्रतीत होता है। वह पावन छंद के मध्य यति के समान है। वह मुखरता के मध्य मौन के समान प्रतीत होता है, इन संसारिक वासनाओं के बीच वह हृदय की शांति के समान है। सुंदरता की अलग परिभाषा देते हुए वे कहते हैं कि वस्तुत: सुंदरता वह होती है, जो दिखाई ही नहीं पड़ती, वह तो केवल महसूस की जा सकती है। प्रेम वह है, जो अकेला हो, गीत वह है, जो जीवन बन जाए, भले ही वह होठों पर स्पंदित न हो। ज्ञान वह है, जो कभी जाना ही नहीं जा सके। वह तो दो प्राणों के बीच की मृत्यु के समान है। वह दो तूफानों के बीच की स्तब्ध करने वाली शांति के समान है। वह शून्य है, जहां से सृष्टि की रचना का कार्य प्रारंभ होता है और प्रलय होने पर यह सृष्टि जहां पुन: लौट जाती है, वहीं पर अश्रुबिंदुओं का अवसान भी होता है, जो प्रसन्नता के चरम का प्रतीक है। वही मनुष्य के जीवन का चरम लक्ष्य है और शांति ही मनुष्य की एकमात्र शरण है। यानी जो शांति को प्राप्त कर लेता है, उसे ही सब कुछ मिलता है, अन्यथा सब कूछ रहते हुए भी उसके आनंद को वह अनुभूत नहीं कर पाता है, जिसे वह अनुभूत करता है, वह आनंद नहीं होता है। यह एक ऐसी चीज है, जिसकी आवश्यकता मनुष्य के हर कर्म को संपादित करने के लिए, उसके सर्वांग रूप में प्रदर्शित करने के लिए होती है। इसी कारण स्वामी विवेकानंद उसे जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी करार देते हैं। स्वामी जी के इन्हीं भावों को उनकी रचित इन पंक्तियों में अनुभव कीजिएन दुख है, न सुख , सत्य वह है, जो इन्हें मिलाता है | न रात है, न प्रात सत्य वह है, जो इन्हें जोड़ता है | वह संगीत में मधुर विराम, पावन छंद के मध्य यति है, मुखरता के मध्य मौन, वासनाओं के विस्फोट के बीच वह ह्रदय कि शांति है | सुंदरता वह है ,जो देखी न जा सके प्रेम वह है ,जो अकेला रहे गीत वह है, जो जिए बिना गाए, ज्ञान वह है, जो कभी जाना न जाए। जो दो प्राणियों के बीच मृत्यु है और दो तूफानों के बीच एक स्तब्धता है, वह शून्य, जहां से सृष्टि आती है और जहां वह लौट जाती है| इस प्रकार हम देखते हैं कि स्वामी विवेकानंद ने अपनी आध्यात्मिक अनुभूतियों को सांसारिक जीवन से विलग करके नहीं देखा है, बल्कि उस पथ पर आगे बढ़ते हुए संसार का सर्वोत्तम कल्याण कैसे हो, इस पर भी उनका चिंतन बराबर टिका रहता है। वे इस बात को बराबर महसूस करते हैं कि आध्यात्मिक व्यक्ति का उद्देश्य अपने साथसाथ इस मानव जगत का भी कल्याण होना चाहिए, अन्यथा उनके संतत्व पर ही प्रश्नचिह्न लग जाएगा। उनकी इस कविता को आत्मसात करने के प्रयत्न करने में यह महसूस होता है कि उन्होंने अपनी इस कविता में दोनों जगत का उल्लेख कर दिया है।
खुला मंच
17
जैनेंद्र कुमार
लीक से परे
प्रख्यात साहित्यकार
बाजार का जादू
मैं यह स्वीकार नहीं करना चाहता हूं कि उस अपदार्थ प्राणी को वह प्राप्त है जो हममें से बहुत कम को शायद प्राप्त है
बा
जार में एक जादू है। वह जादू आंख की राह काम करता है। वह रूप का जादू है। पर जैसे चुंबक का जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है। जेब भरी हो और मन खाली हो, ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है। जेब खाली पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा। मन खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का निमंत्रण उस तक पहुंच जाएगा। कहीं हुई उस वक्त जेब भरी तब तो फिर वह मन किसकी मानने वाला है! मालूम होता है यह भी लूं, वह भी लूं। सभी सामान जरूरी और आराम को बढ़ाने वाला मालूम होता है। पर यह सब जादू का असर है। जादू की सवारी उतरी कि पता चलता है कि फैंसी चीजों की बहुतायत आराम में मदद नहीं देती, बल्कि खलल ही डालती है। थोड़ी देर को स्वाभिमान को जरूर सेंक मिल जाता है। पर इससे अभिमान की गिल्टी को और खुराक ही मिलती है। जकड़ रेशमी डोरी की हो तो रेशम के स्पर्श के मुलायम के कारण क्या वह कम जकड़ होगी? पर उस जादू की जकड़ से बचने का एक सीधा-सा उपाय है। वह यह कि बाजार जाओ तो मन खाली न हो। मन खाली हो, तब बाजार न जाओ। कहते हैं लू में जाना हो तो पानी पीकर जाना चाहिए। पानी भीतर हो, लू का लूपन व्यर्थ हो
जाता है। मन लक्ष्य में भरा हो तो बाजार भी फैलाका-फैला ही रह जाएगा। तब वह घाव बिलकुल नहीं दे सकेगा, बल्कि कुछ आनंद ही देगा। तब बाजार तुमसे कृतार्थ होगा, क्योंकि तुम कुछ-न-कुछ सच्चा लाभ उसे दोगे। बाजार की असली कृतार्थता है आवश्यकता के समय काम आना।... पड़ोस में एक महानुभाव रहते हैं, जिनको लोग भगत जी कहते हैं। चूरन बेचते हैं। यह काम करते जाने उन्हें कितने बरस हो गये हैं। लेकिन किसी एक भी दिन चूरन से उन्होंने छह आने पैसे से ज्याद नहीं कमाए। चूरन उनका आसपास सरनाम है और खुद खूब लोकप्रिय हैं। कहीं व्यवसाय का गुर पकड़ लेते और उस पर चलते तो आज खुशहाल क्या मालामाल होते! क्या कुछ उनके पास न होता। इधर दस वर्षों से मैं देख रहा हूं, उनका चूरन हाथों-हाथ
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29 24 04
कही-अनकही ये रातें नई पुरानी
वयक्तितव
सजिने सबखरे चीन को जोड़ा
आयोजन
िुलभ प्रणेता डॉ. पाठक को 'जीवन गौरव िम्ान'
241/2017-19
डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2
/2016/71597 आरएनआई नंबर-DELHIN
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बदलते भारत का िाप्ासह
वर्ष-2 | अंक-38 |03 -
09 सितंबर 2018
का सामाजिक बदलाव न ध बं वत्र पज
िदसयों िे िुलभ पररवार की ्सहला नरेंद्र ्ोदी। राखी बंधवाते प्रधान्ंंत्ी कु्ार, भगवती, उरा श्ा्ष, आभा और आकांक्ा श्ा्ष, सनतया पाठक दाएं) जयोतिना पाठक (बाएं िे
ना, कु् साल पहले उममीद, आकांक्ा और प्ाथ्थ धरिरा माताओं की भी उरूज फासत्ा तक पूर्थ सककैरेंजस्थ और कयो भरने उतसर के रंगों से अपने जीरन ही हम में से थी, जब रे धक एक धदन र साल, त्योहारी मौसम आते रखती थीं। धकसे पता था जाते हैं और की इच्ा के द्ारा इस अधिकतर लयोग खुधि्ों से भर इच्ाओं की पूधत्थ भगरान ्ह त्योहार उनकी इन साल इस धक हैं भ इंटरनेिनल सयोिल ल सु करते जब उममीद की जाएगी। में से अधिकतर लयोग तरह सथापक डॉ. धरनदेश्वर हमारे धलए िानदार रहेगा। हम सधर्थस ऑग्थनाइजेिन के सं क्ाओं के साथ सयोचते व्क्ति उनकी सुरक्ा बहुत सी उममीदों और आकां पाठक जैसा कयोई मानरतारादी ्तरी' के सबसे अच्े तरीके से के धलए उनहें अपनी 'सुलभ ि्ों ध हैं धक इस साल त्योहार हम खु और ्ही घर भर जाएगा। मनाएंगे और खुधि्ों से हमारा
ह
प्रेरक विचार ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ पत्रकारिता के क्षेत्र में एक ऐसी क्रांति है, जिसमें सकारात्मक सामाजिक बदलाव के सारे सूत्र मौजूद हैं। इसमें वंचितों के लिए उम्मीद भरी जिंदगी का मंत्र छुपा है। सदियों से सामाजिक रूढ़ियों के शिकार बने लोगों के लिए एक बड़ा संबल है। सकारात्मक आलेख, विचारोत्तेजक रपटें, अपने दम पर दुनिया में बड़ा बदलाव लाने वाले महान लोगों की प्रेरक बातें। मतलब वह सब कुछ है, जिसकी अपेक्षा और जरूरत आज के दौर में हर किसी है। संजीत राठी, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
जाता है। पर वह न उसे थोक में देते हैं, न व्यापारियों को बेचते हैं। पेशगी ऑर्डर कोई नहीं लेते। बंधे वक्त पर अपनी चूरन की पेटी लेकर घर से बाहर हुए नहीं कि देखते-देखते छह आने की कमाई उनकी हो जाती है। लोग उनका चूरन लेने को उत्सुक जो रहते हैं। चूरन से भी अधिक शायद वह भगत जी के प्रति अपनी सद्भावना का श्रेय देने को उत्सुक रहते हैं पर छह आने पूरे हुए नहीं कि भगत जी बाकी चूरन बालकों को मुफ्त बांट देते हैं। कभी ऐसा नहीं हुआ है कि कोई उन्हें पच्चीसवां पैसा भी दे सके! कभी चूरन में लापरवाही नहीं हुई है और कभी रोग होता भी मैंने उन्हें नहीं देखा है। और तो नहीं, लेकिन इतना मुझे निश्चय मालूम होता है कि इन चूरन वाले भगत जी पर बाजार का जादू नहीं चल सकता।
महत्वपूर्ण प्रकाशन महात्मा गांधी की जीवनी सत्य के प्रयोग और प्रधानमंत्र नरेंद्र मोदी पर लिखी गई सुलभ संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक की पुस्तक का धारावहिक प्रकाशन एक बड़ी उपलब्धि है। आज के दौर में खास तौर से देश के युवाओं को इन दो महान व्यक्तियों को जानने समझने और इनसे सीखने की जरूरत है। महात्मा गांधी आज भी प्रासंगिक हैं और सदियों तक रहेंगे। इसीलिए उनकी पुस्तको और उनके विचारों का निरंतर प्रकाशन होता रहना चाहिए। क्योंकि वे एक ऐसे महान व्यक्तित्व हैं, जिनके पथ का अनुशरण करके ही जिंदगी को बेहतर बनाया जा सकता है। सलिल ओझा, साहिबाबाद, उत्तर प्रदेश
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फोटो फीचर
10 - 16 सितंबर 2018
अलविदा जकार्ता, हांगझू में मिलेंगे
जकार्ता में 18वें एशियाई खेल का समारोह पूर्वक समापन चीन के हांगझू में मिलने के वादे के साथ हुआ। महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल ने भारतीय दल की अगुआई की। कार्यक्रम में बॉलीवुड के गानों की भी धूम रही। 'कोई मिल गया,' 'तुम पास आए' और 'जय हो' गाने जब स्टेडियम में गूंजे तो भारतीय खिलाड़ी झूम उठे। 2022 में चीन के हांगझू में 19वें एशियाई खेल होंगे। हांगझू एशियाड की मेजबानी करने वाले चीन का तीसरा शहर होगा
फोटोः शिप्रा दास
10 - 16 सितंबर 2018
फोटो फीचर
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व्यक्तित्व
10 - 16 सितंबर 2018
सर आइजक न्यूटन
गति के जिन तीन नियमों से आधुनिक भौतिक शास्त्र ने अपनी पहुंच ग्रह-नक्षत्रों की गणना और उनकी प्रकृति के अध्ययन तक बनाई है, उसका पूरा श्रेय महान वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन को है
वि
एसएसबी ब्यूरो
ज्ञान की चर्चा को सिद्धांत के साथ दिलचस्प सूत्रों का आधार बनाकर जिन लोगों ने लोकप्रिय बनाया, उसमें सर आइजक न्यूटन का नाम सबसे ऊपर है। वे इंग्लैंड के एक वैज्ञानिक थे और गुरुत्वाकर्षण का नियम और गति के सिद्धांत की खोज की। वे एक महान वैज्ञानिक तो थे ही, अपने समय के सबसे बड़े गणितज्ञ, ज्योतिषी और दार्शनिक भी थे। उनका शोध प्रपत्र ‘फिलॉसफी नेचुरेलिस प्रिंसपिया मेथेमेटिका’ 1687 में प्रकाशित हुआ, जिसमें सार्वत्रिक गुर्त्वाकर्षण एवं गति के नियमों की व्याख्या की गई थी और इस प्रकार चिरसम्मत भौतिकी (क्लासिकल भौतिकी) की नींव रखी गई। उनका शोध प्रपत्र विज्ञान के इतिहास में अपने आप में सबसे प्रभावशाली पुस्तक है, जो अधिकांश साहित्यिक यांत्रिकी के लिए आधारभूत कार्य की भूमिका निभाती है। इस कार्य में न्यूटन ने सार्वत्रिक गुरुत्व और गति के तीन नियमों का वर्णन किया जिसने अगली तीन शताब्दियों के लिए भौतिक ब्रह्मांड के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया।
खास बातें न्यूटन का मन शुरुआत से ही गणित में बहुत लगता था ‘फिलॉसफी नेचुरेलिस प्रिंसपिया मेथेमेटिका’ 1687 में प्रकाशित चाचा रेव विलियम के कहने पर ट्रिनिटी कॉलेज, कैंब्रिज में प्रवेश
गति का विज्ञान
ग्रहीय गति और गुरुत्वाकर्षण
न्यूटन ने दर्शाया कि पृथ्वी पर वस्तुओं की गति और आकाशीय पिंडों की गति का नियंत्रण प्राकृतिक नियमों के समान समुच्चय के द्वारा होता है, इसे दर्शाने के लिए उन्होंने ग्रहीय गति के केपलर के नियमों तथा अपने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के बीच निरंतरता स्थापित की, इस प्रकार से सूर्य केंद्रीयता और वैज्ञानिक क्रांति के आधुनिकीकरण के बारे में पिछले संदेह को दूर किया। यांत्रिकी में न्यूटन ने संवेग तथा कोणीय संवेग दोनों के संरक्षण के सिद्धांतों को स्थापित किया। प्रकाशिकी में उन्होंने पहला व्यवहारिक परावर्ती दूरदर्शी बनाया। इस आधार पर रंग का सिद्धांत विकसित किया कि एक प्रिज्म श्वेत प्रकाश को कई रंगों में अपघटित कर
देता है जो दृश्य स्पेक्ट्रम बनाते हैं। उन्होंने शीतलन का नियम दिया और ध्वनि की गति का भी अध्ययन किया।
प्रारंभिक जीवन
न्यूटन का जन्म 25 दिसंबर, 1642 को क्रिसमस वाले पवित्र दिन को वुल्सथार्प, लंकशायर (इंग्लैंड) में हुआ था। उनके जन्म से ठीक 3 महीने पहले इनके पिता का देहांत हो गया था। बचपन में ही
पिता का साया सिर से उठ जाने से उन्हें काफी तकलीफों का सामना करना पड़ा। जब वे 3 साल के हुए तो उनकी मां ने नई शादी कर ली। ऐसे में उनके पालन पोषण का जिम्मा दादी मां ने उठाया। न्यूटन को अपने सौतेले पिता बिलकुल अच्छे नहीं लगते थे। जब न्यूटन छोटे थे तो बहुत दिन तक ठीक से बोल नहीं पाते थे।
स्कूल से निकाले भी गए
उनका शोध प्रपत्र ‘फिलॉसफी नेचुरेलिस प्रिंसपिया मेथेमेटिका’ 1687 में प्रकाशित हुआ, जिसमें सार्वत्रिक गुर्त्वाकर्षण एवं गति के नियमों की व्याख्या की गई थी और इस प्रकार चिरसम्मत भौतिकी (क्लासिकल भौतिकी) की नींव रखी गई
10 - 16 सितंबर 2018
सेब और गति का नियम
सांसद भी रहे न्यूटन
न्यूटन इंग्लैंड की महारानी के प्रिय तो थे ही, वे वहां सांसद भी रहे
न्यू
टन ने आजीवन विवाह नहीं किया। उन्होंने अपना पूरा जीवन अपने शोध और वैज्ञानिक खोजों को ही समर्पित किया। उन्होंने बाइबिल पर अपने धार्मिक शोध भी लिखे। वे इंग्लैंड की संसद के सदस्य भी रहे। इंग्लैंड में उन्हें वहां की टकसाल का वार्डन भी नियुक्त किया गया। यहां उन्होंने बहुत ही ईमानदारी से काम किया। अपनी मौत तक वो इस पद पर बने रहे। अप्रैल 1705 में इंग्लैंड की महारानी ऐनी ने न्यूटन को उनके राजनितिक योगदान के लिए ट्रिनिटी कॉलेज, कैंब्रिज में एक शाही यात्रा के दौरान ‘नाइटहुड’ की उपाधि दी। उनकी मृत्यु 31 मार्च 1727 को नींद में सोते हुए हुई। उन्हें वेस्टमिंस्टर एब्बे में दफनाया गया। न्यूटन का मन शुरुआत से ही गणित विषय में बहुत लगता था। वे बचपन से ही आकाशीय पिंडों और ग्रहों की ओर आकर्षित रहते थे और सूरज की किरणों को देखकर उन्हें आश्चर्य होता था। अक्टूबर 1659 को न्यूटन को उनके स्कूल से निकाल दिया गया। इधर उनके सौतेले पिता का भी देहांत हो चुका था। इसी कारण मां ने उन्हें खेती बाड़ी संभालने को कहा। लेकिन न्यूटन का मन खेतीबारी में नहीं लगता था। हेनरी स्टोक्स जो कि द किंग्स स्कूल के प्रिंसिपल थे, ने न्यूटन की मां से न्यूटन को फिर से स्कूल में दाखिला दिलाने को कहा ताकि वह आगे की पढाई कर सकें। इस बार न्यूटन ने हताश नहीं किया और बहुत जल्दी वो स्कूल के टॉपर बन गए।
कैंब्रिज में दाखिला
अपने चाचा रेव विलियम एस्क्फ के कहने पर जून, 1661 में उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज, कैंब्रिजमें अध्ययन के लिए प्रवेश लिया। पढ़ाई की फीस भरने और खाना खाने के लिए आइजक न्यूटन कॉलेज में एक कर्मचारी की तरह काम भी करते थे। उस समय कॉलेज की शिक्षाएं अरस्तु के दर्शन पर आधारित थीं। लेकिन न्यूटन अधिक आधुनिक दार्शनिकों के विचारों को पढ़ना चाहते थे। 1664 में इनकी प्रतिभा के कारण एक स्कॉलरशिप की व्यवस्था कॉलेज की तरफ से की गई, जिसकी मदद से न्यूटन आगे की पढ़ाई कर सकते थे। उस समय विज्ञान बहुत आगे नहीं था। यहीं रहकर न्यूटन ने प्रसिद्ध केप्लर के नियम पढ़े।
कैलकुलस की खोज
1665 में उन्होंने सामान्यीकृत द्विपद प्रमेय की खोज की और एक गणितीय सिद्धांत विकसित करना शुरू किया, जो बाद में अत्यल्प कलन (कैलकुलस) के नाम से जाना गया। न्यूटन ने इसकी जानकारी काफी समय बाद दी। इसका कारण उन्होंने यह बताया कि उन्हें डर था कि न्यूटन ने कहा कि वे इसे
न्यूटननामा सर आइजक न्यूटन
जन्म : 25 दिसंबर 1642 लिंकनशायर, इंगलैंड मृत्यु: 31 मार्च 1727 केंसिंग्टन, मिडलसेक्स, इंगलैंड क्षेत्र : भौतिक विज्ञान, गणित, खगोल, प्राकृतिक दर्शन आदि। शिष्य: रोजर कोट्स, विलयम व्हिस्टन प्रसिद्धि: चिरसम्मत यांत्रिकी, गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत, कलन, गति नियम प्रकाशित करके कहीं उपहास के पात्र न बन जाएं। न्यूटन ने गैलिलियो, कैपलर, देकार्त और युक्लिड की रचनाओं को ज्यादा पढ़ा था। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने युक्लिड को इसीलिए पढ़ना शुरू किया था क्योंकि वे नक्षत्र विज्ञान की एक पुस्तक के कुछ चित्रों को समझने में नाकाम रहे थे। हालांकि उन्होंने इस पुस्तक को एक तुच्छ पुस्तक समझकर अलग रख दिया था, किंतु अपने शिक्षक के समझाने पर इसे पुनः पढ़ा था। अप्रैल 1664 में न्यूटन को छात्रवृति मिली, जिसके कारण वो 1668 तक कैंब्रिज रुक गए थे। इस अवधि में न्युटन ने बी.ए. और एम.ए. की डिग्री ली।
मूल्यवान 18 महीने
1665 में अचानक लंदन में प्लेग की महामारी फैल
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व्यक्तित्व
यह घटना काफी लोकप्रिय है कि सेब को गिरते देख न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का पता लगाया, पर इस बारे में यह भी कहा जाता है कि इस महान वैज्ञानिक ने सेब की बात लोगों को समझाने के लिए कही थी
न्यू
टन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का पता लगाने की घटना, साढ़े तीन सौ साल पुरानी, 1660 के दशक के मध्य की घटना है। विलियम स्ट्यूक्ली ने लिखा है कि 1726 की बसंत में एक दिन एक सेब के पेड़ की छाया में न्यूटन ने उन्हें इस घटना के बारे में बताया। तब न्यूटन कैंब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ते थे। प्लेग फैलने के कारण विश्वविद्यालय के बंद होने पर न्यूटन उत्तरी इंग्लैंड में अपने घर चले गए। न्यूटन ने स्ट्यूक्ली को बताया कि जिस तरह वह उस दिन उस सेब के पेड़ के नीचे बैठे थे, उसी तरह की अवस्था में वो एक पेड़ के नीचे बैठे सोच रहे थे जब एक सेब गिरा। स्ट्यूक्ली लिखते हैं, ‘न्यूटन बैठे सोच रहे थे। जब एक सेब गिरा, उन्होंने सोचा कि ये सेब
सीधा ही क्यों गिरा, अगल-बगल या ऊपर क्यों नहीं गिरा। इसका मतलब धरती उसे खींच रही है, मतलब उसमें आकर्षण है।’ वैसे रॉयल सोसायटी की लाइब्रेरी के प्रमुख कीथ मूर का कहना है कि सेब के गिरने की कहानी शायद एक कहानी ही है, जिसे न्यूटन ने बाद में आम लोगों को समझाने के लिए बना लिया। कीथ मूर कहते हैं, ‘न्यूटन ने सेब गिरने की कहानी का सहारा आम लोगों को गुरुत्वाकर्षण क्या है, ये समझाने के लिए लिया और सेब के सिर पर गिरने की कहानी तो और भी बाद में बनाई गई।’
1665 में उन्होंने सामान्यीकृत द्विपद प्रमेय की खोज की और एक गणितीय सिद्धांत विकसित करना शुरू किया, जो बाद में अत्यल्प कलन (कैलकुलस) के नाम से जाना गया। हालांकि न्यूटन ने इसकी जानकारी काफी समय बाद दी गई थी, जिससे शहर मानो पूर्ण रूप से बंद हो गया था। शीघ्र ही कैंब्रिज ने भी उसका अनुसरण करते हुए विश्वविद्यालय को अस्थायी रूप से बंद कर दिया। कुछ छात्र अपने शिक्षकों के साथ निकटवर्ती गांवों में चले गए। न्यूटन अपनी मां के फार्म पर लिंकनशायर चले गए। वो फार्म उनके दादा रोबर्ट न्यूटन का था। आइजक न्यूटन 18 महीनों तक वहीं रहे। वो उनके लिए जबरदस्ती की छुट्टी थी लेकिन वो समय न्यूटन के लिए बेहद निर्णायक सिद्ध हुआ। इस अवकाशकाल में न्यूटन अपने कुछ विचार निश्चित किए, जिनके परिणाम ने विज्ञान में उनके लंबे और फलदायी भविष्य की शुरुआत को जन्म दे दिया।
वैज्ञानिक उपलब्धियां
न्यूटन ने बताया कि सूर्य का सफेद प्रकाश असल में सफेद ना होकर कुछ रंगों का मिश्रण है। इसके
लिए उन्होंने सूर्य की किरणों को प्रिज्म से गुजारा तो देखा जामुनी, नारंगी, पीला, लाल, नीला, हरा और बैंगनी रंग का स्पैक्ट्रम बनता है। इसे ही हम इंद्रधनुष भी कहते हैं, जो हमें बारिश के दिनों में पानी की बूंदों से सूर्य के प्रकाश के परावर्तित होने के कारण आकाश में दिखाई देता है। न्यूटन ने टेलिस्कोप के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अलावा उन्होंने मैकेनिक्स और गुरुत्व के क्षेत्र में बहुत काम किया। एडमंड हेली की मदद से उन्होंने अपनी फेमस बुक ‘प्रिंसपिया मेथेमेटिका’ प्रकाशित करवाई। न्यूटन ने इसमें गति के तीन नियमों को वैज्ञानिक तरीके से सत्यापित किया और गुरुत्वाकर्षण के नियम को परिभाषित किया। उनके ये नियम आने वाले समय में मॉडर्न फिजिक्स के लिए आधारस्तंभ साबित हुए। इसमें उन्होंने ग्रहों की गति को भी व्याख्यायित किया।
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खेल
10 - 16 सितंबर 2018
एशियाड में भारत का गोल्डन शो भारतीय खिलाड़ियों ने 1951 के ‘गोल्डन शो’ को फिर से दोहराते हुए जकार्ता में संपन्न हुए एशियाई खेलों के इतिहास में सबसे अधिक पदक अपने नाम किए हैं
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एसएसबी ब्यूरो
कार्ता में आयोजित 18वें एशियाई खेलों के समापन के बाद दो बातें उभरकर सामने आई हैं। पहली बात तो यह कि 2010 और 2014 की तुलना में चीन ने जकार्ता में समाप्त 18वें एशियाई खेलों में कम पदक जीते हैं। वैसे इसके बावजूद वह अपनी बादशाहत कायम रखने में सफल रहा। इसके उलट जो दूसरी बात जकार्ता एशियाड से सामने आई है, वह यह कि एशिया में भारतीय एथलीटों का दखल अब काफी बढ़ गया है। भारतीय खिलाड़ियों ने 1951 के ‘गोल्डन शो’ को फिर से दोहराते हुए एशियाई खेलों के इतिहास में सबसे अधिक पदक अपने नाम किए हैं। वैश्विक स्तर पर खेल महाशक्ति माने जाने वाले चीन ने जकार्ता में 132 स्वर्ण, 92 रजत और 65 कांस्य के साथ कुल 289 पदक जीते। इसके अलावा जापान ही 200 पदकों का आंकड़ा पार कर सका। कुल 205 पदकों के साथ जापान दूसरे और 177 पदकों के साथ दक्षिण कोरिया तीसरे पायदान पर रहा, जबकि भारत ने भी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 15 स्वर्ण के साथ कुल 69 पदक जीते। चीन हालांकि जकार्ता में एशियाई खेलों के पिछले संस्करणों के अपने शानदार प्रदर्शन को दोहरा नहीं पाया। इंचियोन में चीन ने 151 स्वर्ण, 109 रजत और 85 कांस्य के साथ कुल 345 पदक जीते थे। ग्वांगझू में चीन ने अपनी मेजबानी में 199 स्वर्ण जीतकर कीर्तिमान स्थापित किया, लेकिन इस बार वह इसके करीब भी नहीं पहुंच सका। ग्वांगझू में चीन ने कुल 416 पदक जीते थे।
सबसे ज्यादा स्वर्ण पदक
भारत का एशियन गेम्स में भारत का स्वर्णिम प्रदर्शन
जकार्ता में 14 दिनों तक हुई विभिन्न स्पर्धाओं में भारत ने 15 स्वर्ण, 24 रजत और 30 कांस्य समेत कुल 69 पदक जीते। एशियाड के 67 साल के इतिहास में सबसे ज्यादा स्वर्ण और कुल पदक जीतने के लिहाज से इस बार का प्रदर्शन सबसे बेहतरीन रहा। 1951 के एशियाड में भारत ने कुल 51 पदक जीते थे। तब भारत को 15 स्वर्ण, 16 रजत और 20 कांस्य पदक मिले थे, तब पदक तालिका में दूसरा स्थान था।
इस बार भी 8वां स्थान
भारत इस बार पदक तालिका में टॉप-5 में जगह नहीं बना पाया, उसे 8वें स्थान पर संतोष करना पड़ा है। भारत 2014 इंचियोन एशियाड में भी 8वें स्थान पर रहा था। 1986 सियोल एशियाड में भारत को पांचवां स्थान मिला था। इस बार के एशियाड में टॉप-3 में चीन, जापान और दक्षिण कोरिया रहे। चीन ने 132 स्वर्ण, 92 रजत, 65 कांस्य जीते।
कई स्पर्धा में स्वर्ण
एथलेटिक्स: नीरज चोपड़ा ने जेवलिन थ्रो, मनजीत सिंह ने 800 और जिनसन जॉनसन ने 1,500 मीटर रेस, तेजिंदर पाल सिंह तूर ने शॉट पुट, अरपिंदर सिंह ने ट्रिपल जम्प, हिमा दास, पूवम्मा राजू मछेत्रिया, सरिताबेन लक्ष्मणभाई गायकवाड़, विस्मया कोरोत वेल्लुवा ने महिला 4x400 मीटर और स्वप्ना बर्मन ने महिला हेप्टाथलन में स्वर्ण पदक जीते। निशानेबाजी: सौरभ चौधरी ने पुरुष 10 मीटर एयर पिस्टल और राही जीवन सरनोबत ने महिला 25 मीटर पिस्टल में देश को स्वर्ण पदक दिलाया। जकार्ता एशियाड पदक तालिका कुश्ती: बजरंग पुनिया पुरुष 65 किग्रा और विनेश फोगाट महिला 50 देश स्वर्ण रजत कांस्य कुल पदक किग्रा वर्ग में सोना जीतने में सफल चीन 132 92 65 289 रहे। जापान 75 56 74 205 ब्रिज: इस खेल को पहली बार एशियाड में शामिल किया गया। दक्षिण कोरिया 49 58 70 177 प्रणब बर्धन और शिवनाथ सरकार इंडोनेशिया 31 24 43 98 ने मेन्स पेयर में चैम्पियन बने। उज्बेकिस्तान 21 24 25 70 रोइंग: स्वर्ण सिंह, ओम प्रकाश, सुखमीत सिंह और बब्बन दत्तू ईरान 20 20 22 62 भोकानल की टीम ने देश को पहली चीनी ताइपे 17 19 31 67 बार क्वाड्रपल स्कल्स स्पर्धा में स्वर्ण भारत 15 24 30 69 दिलाया। कजाकिस्तान 15 17 44 76 टेनिस: रोहना बोपन्ना और दिविज शरण पुरुष युगल का स्वर्ण पदक उत्तर कोरिया 12 12 13 37 जीतने में सफल रहे।
मुक्केबाजी: अमित पंघाल ने 49 किग्रा वर्ग में पहली बार सोना दिलाया।
पदकों की रेल
इस बार के एशियाई खेलों में रेलवे के खिलाड़ियों ने नौ पदक जीते, जिनमें दो स्वर्ण, चार रजत और तीन कांस्य पदक जीते। बजरंग पुनिया और
विनेश फोगाट ने स्वर्ण, महिला कबड्डी टीम में कप्तान पायल, ऋतु नेगी और सोनाली शिंगते और एथलेटिक्स में सुधा सिंह और नीना पिंटो ने रजत पदक जीते। इसके अलावा रजत पदक जीतने वाली महिला हॉकी टीम में रेलवे की 13 और कांस्य जीतने वाली पुरुष हॉकी टीम में तीन खिलाड़ी शामिल थे। दो कांस्य पदक जीतने वाली ब्रिज टीम में रेलवे से तीन खिलाड़ी थे। इन एशियाई खेलों में रेलवे के 73 खिलाड़ियों ने भाग लिया।
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खेल
स्वर्णिम प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी बजरंग पूनिया- कुश्ती
(पुरुष फ्री स्टाइल 65 किलोग्राम)
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शियन गेम्स-2018 के के पहले दिन भारत को पहला स्वर्ण दिलाने वाले रेसलर बजरंग पूनिया ने अपना पदक दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को
भा
समर्पित किया। यह पदक पूनिया ने जापान के रेसलर ताकातिनी दायची को हराकर जीता। बजरंग ने पुरुषों के 65 किलोग्राम भार वर्ग फ्रीस्टाइल स्पर्धा में स्वर्ण
पदक पर कब्जा किया। उन्होंने कहा, ‘मैं यह गोल्ड मेडल पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को समर्पित करता हूं।’ साथ ही उन्होंने गोल्डन सफलता का श्रेय अपने मेंटॉर और ओलिंपिक मेडलिस्ट रेसलर योगेश्वर दत्त को दिया। 24 वर्षीय इस पहलवान ने कहा कि मैंने योगी भाई से किया हुआ वादा पूरा किया है। बजरंग ने पुरुषों की 65 किलोग्राम भार वर्ग फ्रीस्टाइल स्पर्धा के फाइनल में जापान के ताकातानी को 11-8 से मात देकर इस महाद्वीपीय खेल आयोजन में अपना पहला स्वर्ण हासिल किया और साथ ही इन खेलों के मौजूदा संस्करण में भारत को पहला स्वर्ण दिलाया।
विनेश फोगाट- कुश्ती
(महिला फ्री स्टाइल 50 किलोग्राम)
रत की महिला पहलवान विनेश फोगाट ने भारत को दूसरा गोल्ड मेडल दिलाया। विनेश ने 50 किलोग्राम भारवर्ग फ्रीस्टाइल स्पर्धा के फाइनल में जीत हासिल कर ये मेडल जीता। विनेश ने जापानी महिला पहलवान यूकी आइरी को फाइनल मुकाबले में 6-2 से हराकर गोल्ड पर कब्जा किया। एशियन गेम्स के इतिहास में ये पहला मौका है जब भारत ने महिला रेसलिंग में गोल्ड मेडल जीता है। हरियाणा की 23 साल की खिलाड़ी ने स्वर्ण पदक जीतने के बाद नम आंखों के साथ कहा, ‘मेरा लक्ष्य स्वर्ण पदक जीतना था। मैंने एशियाई स्तर पर तीन-चार रजत पदक जीते हैं। इसीलिए इस बार मैं स्वर्ण जीतने का दृढ़ निश्चय बनाकर आई थी। मेरे शरीर ने भी मेरा साथ दिया। मैंने कड़ा प्रशिक्षण लिया था और ईश्वर ने भी मुझ पर कृपा दिखाई। आज सब कुछ मेरे अनुकूल रहा।’ उन्होंने कहा, ‘चोटें एक खिलाड़ी के करियर का हिस्सा
होती हैं। यह भावनात्मक और शारीरिक दोनों रूप से मुश्किल होता है, लेकिन तमाम चीजों को पीछे छोड़ते हुए हाल में कुछ अच्छे पदक जीते। किसी ने कहा है कि एक खिलाड़ी चोट के बाद मजबूत होकर उभरता है और मुझे लगता है कि सच में मैं पहले से ज्यादा मजबूत हुई हूं।’ विनेश की इस शानदार जीत के बाद ट्विटर पर #विनेशफोगाट टॉप ट्रेंड करने लगा और उन्हें बधाई देने वालों का तांता लग गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने भी ट्वीट कर उन्हें बधाई दी। 23 साल की विनेश हरियाणा से हैं और 'दंगल' वाले फोगाट परिवार से ताल्लुक रखती हैं। दो साल पहले रियो ओलंपिक में मिली हार को भुलाते हुए विनेश ने अपनी चीनी प्रतिद्वंद्वी यनान सुन को हराकर अपने विजयी अभियान की शुरुआत की। यनान वही खिलाड़ी हैं जिनसे विनेश ओलंपिक में पैर में चोट लगने की वजह से हार गई थीं। लेकिन इस बार उन्होंने अपना हिसाब चुकता कर लिया।
बजरंग ने कहा, ‘टूर्नमेंट से पहले योगी भाई ने कहा था कि मैंने 2014 में गोल्ड जीता था, अब तुम्हें यह करना है।’ साथ ही उन्होंने अपने भविष्य के लक्ष्य के बारे में कहा कि अब मेरी नजरें ओलिंपिक मेडल पर हैं। मैं इसकी पूरी तैयारी करुंगा। दूसरी ओर, योगेश्वर दत्त ने भी अपने चेले बजरंग पूनिया को बधाई दी है। योगेश्वर ने सोशल मीडिया पर बजरंग को बधाई देते हुए लिखा, ‘आपको स्वर्ण पदक जीतने की बहुत बहुत बधाई। ऐसे ही देश का झंडा ऊंचा करते रहो। देश का नाम रोशन करते रहो। मुझे और देश को आप पर बहुत गर्व है। जय हिंद, जय भारत।’
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व्यक्तित्व
10 - 16 सितंबर 2018
सौरभ चौधरी- शूटिंग
(पुरुष 10मीटर एयर पिस्टल)
शू
टर सौरभ चौधरी ने भारत की झोली में तीसरा गोल्ड मेडल डाला। सौरव ने 10 मीटर एयर पिस्टल इवेंट में भारत को गोल्ड मेडल दिलाया। 16 वर्ष का सौरभ अगर ओलंपियन चैंपियन चीनी निशानेबाज को हराकर स्वर्ण पदक जीता है तो ये सफलता कोई तुक्का नहीं था। सौरभ शूटिंग रेंज में एक स्थान पर रोजाना चार
घंटे खड़े रहने का कड़ा अभ्यास करता था। जबरदस्त एकाग्रता के दम पर सौरभ ने गत दिनों जूनियर वर्ल्ड कप में रिकार्ड बना दिया था। किसी भारतीय निशानेबाज ने पहली बार एशियाड में एयर पिस्टल में स्वर्ण पदक जीता है। सौरभ पूर्व ओलंपियन जसपाल राणा का सबसे होनहार शिष्य माना जाता है। मेरठ की धरती हमेशा तेज तर्रार खिलाड़ियों को पैदा करती रही है। इस कड़ी की नई सनसनी कलीना गांव का सौरभ चौधरी बन गया, जब जकार्ता में खेले जा रहे एशियाड में उसने 2016 रियो ओलंपिक चैंपियन चीनी निशानेबाज को
शिकस्त दे दी। कोच अमित कुमार सौरान कहते हैं कि ओलंपिक विजेता के सामने बड़े-बड़े खिलाड़ी दबाव में आ जाते हैं, वहीं सौरभ के मनोबल पर कोई असर नहीं पड़ा। इससे पहले सौरभ का चयन भी भारत के ओलंपियन शूटर जीतू राय की जगह हुआ था। पिछले माह जर्मनी में खेली गई वर्ल्ड कप जूनियर में जब उसने नया रिकार्ड बना दिया, तभी मान लिया गया कि यह लंबी रेस का घोड़ा साबित होगा। सौरभ दिसंबर 2014 में पहली बार बिलौनी शूटिंग रेंज पहुंचा। कोच अमित बताते हैं कि अगले साल यानी 2015 में वह दिल्ली में खेली गई यूथ नेशनल के लिए सेलेक्ट हो गया। 2016 में जर्मनी में होने वाली स्पर्धा के लिए चयनित कर
लिया गया। इसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। सौरभ अपने कोच एवं पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी जसपाल राणा की बेटी दिव्यांशी राणा के साथ वर्ल्ड कप में मिक्स डबल्स का भी पदक जीत चुका है। इंडिया कैंप में स्थान बनाने के बाद प्रदर्शन की धार तेज होती गई। सौरभ के कोच अमित सौरान कहते हैं कि वह बेहद अनुशासित लड़का है। किसी चीज का कोई शौक नहीं रखा। घर वालों ने मोबाइल दिया था, किंतु कोच ने इसे भी घर पर रखने के लिए कहा। सौरभ की दिनचर्या रोजाना आठ घंटे शूटिंग रेंज के इर्द गिर्द घूमती रह गई। जूनियर इंडिया के कोच जसपाल राणा दावा कर चुके हैं कि सौरभ ओलंपिक पदक भी जीतेगा।
राही सरनोबत- शूटिंग
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मीटर एयर पिस्टल में भारत की राही सरनोबत ने गोल्ड मेडल जीता। राही आखिरी सीरीज में राही तीन के तीन निशाने चूक गई थी, लेकिन दबाव के कारण फाइनल में थाईलैंड की निशानेबाज के भी सभी निशाने चूक गए। दोनों के बीच नतीजा शूटऑफ से हुआ। फाइनल में इन दोनों के बीच बहुत रोमांचक मुकाबला हुआ। एशियाई खेलों में शूटिंग में गोल्ड जीतने वाली वह पहली महिला खिलाड़ी हैं। भारत के स्टार शूटर अभिनव बिंद्रा ने राही को इस जीत पर बधाई देते हुए कहा, ‘वो फाइनल वाकई एशियाई खेल
(महिला 25 मीटर पिस्टल)
के बेहद रोमांचक मुकाबलों में से एक था। बधाई हो राही।’ भारतीय खेल प्राधिकरण ने भी राही को इस शानदार प्रदर्शन पर बधाई दिया है। साई मीडिया की तरफ से ट्विटर पर बधाई देते हुए लिखा गया, ‘हमारी शार्प शूटर ने आज एक शानदार खेल का प्रदर्शन किया और एशियाई खेलों में दूसरा पदक जीत लिया। ढेर सारी बधाइयां। ये वाकई दिलचस्प है कि हमारे शूटर भारत को गौरवान्वित कर रहे हैं।’ 1990 में पैदा हुई राही जीवन सरनोबत महाराष्ट्र के कोल्हापुर की रहनेवाली हैं। 27 साल
की राही ने 2014 के एशियाई खेलों में कांस्य पदक हासिल किया था। राष्ट्रमंडल खेलों में वो अब तक तीन बार पदक जीत चुकी हैं। 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों में दो इवेंट में से एक में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता था और दूसरे में रजत
टेनिस पुरुष डबल्स
पुरुष रोइंग
(सरवन सिंह, दत्तू भोकानाल, ओम प्रकाश, सुखमीत)
भा
रतीय खिलाड़ियों ने रोइंग मुकाबले में बेहतरीन प्रदर्शन कर गोल्ड मेडल अपने नाम किए हैं। भारतीय रोइंग टीम ने (नौकायन) पुरुषों की 'क्वाडरपल स्कल्स स्पर्धा' में गोल्ड मेडल जीता। स्वर्ण सिंह, दत्तु भोकनल, ओम प्रकाश और सुखमीत की टीम ने भारत को रोइंग में गोल्ड मेडल दिलाया।
पदक। 2014 के एशियाई खेलों में भी उन्होंने पिस्टल शूटिंग में स्वर्ण पदक जीता था। इस तरह एशियाई खेलों में ये राही का दूसरा पदक है।
टे
(रोहन बोपन्ना और दिविज शरण)
निस के डबल्स में भी भारत ने गोल्ड मेडल जीता। रोहन बोपन्ना और दिविज शरण की जोड़ी ने फाइनल मुकाबले में शानदार खेल दिखाते हुए कजाकिस्तान की जोड़ी को 6-3, 6-4 से शिकस्त दी है।
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व्यक्तित्व
तेजिंदर सिंह तूर चार उड़नपरियां
(महिला 4 x 400 रिले)
भा
रत के लिए 13वां गोल्ड मेडल भी एथलेटिक्स से ही आया। महिलाओं की चार गुणा चार सौ मीटर के रेस में भारतीय महिला धावकों ने एशिया में अपनी धाक जमा दी। इस रिले रेस के फाइनल में हिमा दास की अगुआई में भारत ने गोल्ड मेडल अपने नाम किया। इस रेस में हिमा का साथ एमआर पूवामा, सरिताबेन गायकवाड़ और विस्मय कोरोथ ने निभाया। इन चारों धावकों ने अपनी रेस को पूरा करने में 3:28:72 सेकेंड का वक्त निकाला और पहले स्थान पर रहे।
अरपिंदर सिंह
(पुरुष ट्रिपल जंप)
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रपिंदर ने भारत को टूर्नामेंट 10वां गोल्ड दिलाया। ट्रिपल जंप में इस भारतीय एथलीट ने गोल्ड जीतकर इतिहास रचा। अरपिंदर ने भारत को 48 साल बाद ट्रिपल जंप में गोल्ड मेडल दिलाया। ट्रिपल जंप में यह भारत का छठा पदक है। हालांकि इनमें से तीन बार ही भारतीय खिलाड़ी गोल्ड जीत पाए हैं। ट्रिपल जंप में भारत के लिए आखिरी गोल्ड साल 1970 में मोहिंदर सिंह गिल ने जीता था।
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जिंदरपाल सिंह तूर ने ना केवल गोल्ड जीता, बल्कि इतिहास रच दिया, उन्होंने अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 18वें एशियाई खेलों में शॉट पुट स्पर्धा में गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया। तूर ने एशियाई रिकॉर्ड के साथ पहला स्थान भी हासिल किया। तेजिंदर ने 20.75 मीटर के मुकाबले में जीत के साथ भारत का परचम लहराया। तेजिंदर की इस सफलता पर जहां देशभर में खुशी मनाई गई, वहीं तेजिंदर को इस बात का हमेशा अफसोस रहेगा कि उनकी इस सफलता के साक्षी उनके पिता न हो सके। उनके पिता
नीरज चोपड़ा
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(पुरुष शॉटपुट)
करण सिंह का निधन हो गया और इस वजह से तजिंदर के पिता का भी अपने बेटे का गोल्ड मेडल देखने का सपना अधूरा रह गया। तेजिंदर कैंसर से लड़ रहे अपने पिता को गोल्ड मेडल देकर खुश करना चाहते थे। जकार्ता में एशियन गेम्स में हिस्सा लेने के बाद दिल्ली पहुंचकर तजिंदर पंजाब के मोगा स्थित घर जाने वाले थे, उसी वक्त उन्हें अपने पिता के निधन की खबर मिली। शॉटपुट के इस चैपिंयन खिलाड़ी को अपने पिता की बिगड़ती हालत के बारे में तो पहले से ही अंदाजा
(पुरुष जेवलिन थ्रो)
न्स जेवलिन थ्रो में भारत के नीरज चोपड़ा ने स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा। नीरज का पहला थ्रो 83.46 मीटर रहा हालांकि दूसरे थ्रो में उनका पैर लाइन से बाहर चला गया, जिसे फाउल माना गया, लेकिन तीसरे थ्रो में उन्होंने 88.06 दूर भाला फेंका और यह स्वर्ण जीतने के लिए काफी था। इसी के साथ नीरज ने खुद का ही नेशनल रिकॉर्ड तोड़ा। नीरज के पास कभी जेवलिन खरीदने को पैसे नहीं थे। परिवार का कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण वह कहीं से ट्रेनिंग भी नहीं ले सकता था, लेकिन देश के इस बहादुर बेटे ने हिम्मत नहीं हारी और यूट्यूब से सीखकर एशियन गेम्स 2018 में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया।हरियाणा में पानीपत के गांव खंदरा के रहने वाले जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा
ने सबसे ज्यादा 88.06 मीटर का थ्रो किया। नीरज एशियन गेम्स 2018 में भारतीय दल के ध्वजवाहक भी रहे। नीरज चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज से दो साल पहले ही पास आउट हुए हैं। मौजूदा समय में वे आर्मी में सूबेदार के पद पर नौकरी कर रहे हैं। जेवलिन थ्रोअर बनने की तैयारियों करते हुए एक दौर ऐसा आया, जब नीरज के पास जेवलिन खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। अच्छी जेवलिन की कीमत डेढ़ लाख रुपए थी, पर नीरज ने हौसला नहीं खोया। पिता सतीश कुमार व चाचा भीम सिंह चोपड़ा से सात हजार रुपए
मंजीत सिंह
था, लेकिन उन्हें यह उम्मीद नहीं रही होगी कि उनके पिता से आखिरी वक्त में उनकी मुलाकात भी नहीं हो पाएगी। तेजिंदर के पिता करण सिंह 2015 से कैंसर की जंग लड़ रहे थे।
लेकर सस्ता जेवलिन खरीदा और हर दिन आठ घंटे अभ्यास किया। चाचा भीम सिंह बताते हैं कि नीरज में इस खेल को लेकर इतना जुनून था कि जब वह पानीपत के शिवाजी स्टेडियम में तैयारी करता था तो वे नीरज को अपने साथ बाइक पर लेकर जाते थे। एक दिन उन्होंने देखा कि नीरज एकांत में बैठकर रो रहा था। उसने पूछा तो काफी देर तक नीरज ने कुछ नहीं बताया। कई बार पूछने पर उसने बताया कि उसके भाले की आगे की नोंक टूट गई है। नया भाला बहुत महंगा आता है। उसने कई जगह भाले का रेट पता किया। उस वक्त मैं उधार पैसे लेकर नीरज के लिए 25 हजार का भाला लेकर आया था। नीरज के पिता व तीनों चाचा मात्र डेढ़ एकड़ भूमि में ही खेती करके अपने संयुक्त परिवार को पाल रहे हैं। इस समय नीरज भारतीय थल सेना में सूबेदार के पद पर नियुक्त है और कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में बीए का विद्यार्थी है।
जॉनसन एक मिनट 46.35 सेकेंड का समय लेकर दूसरे स्थान पर रहे। यह पहला अवसर नहीं है, जब मंजीत ने जॉनसन को पीछे छोड़ा। इससे पहले पुणे में 2013 में भी उन्होंने केरल के एथलीट को हराया था। मंजीत ने कहा, ‘मैं आशान्वित था मैंने अपने हिसाब से तैयारी की और कभी राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ने के बारे में नहीं सोचा। मैं केवल अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाहता था। मेरे पास नौकरी नहीं है, लेकिन मेरा कोच सेना से जुड़ा है।’ जॉनसन ने कहा कि मंजीत का प्रदर्शन बेजोड़ था और वह जीत का हकदार था। उन्होंने कहा, ‘उसने वास्तव में शानदार दौड़ लगाई और इसलिए वह पहले स्थान पर रहा। उसका प्रदर्शन बेजोड़ था।’
(पुरुष 800 मीटर रेस)
भा
रत के मनजीत सिंह ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए पुरुषों की 800 मीटर स्पर्धा में स्वर्ण पदक अपने नाम किया है। मनजीत ने 1 मिनट 46.15 सेकेंड का समय निकाला। इस सफलता से पहले मंजीत एक बेरोजगार और अनजान एथलीट था। जकार्ता में
मंजीत सिंह ने ट्रैक पर धूम मचाई तथा एशियाई खेलों की पुरुष 800 मीटर दौड़ में प्रबल दावेदार हमवतन जिनसन जॉनसन को पीछे छोड़ते हुए स्वर्ण पदक जीता। भारत ने इस स्पर्धा में पहले दो स्थान हासिल किए। मंजीत को पदक का दावेदार नहीं माना जा रहा था, लेकिन उन्होंने अनुभवी जॉनसन को पीछे छोड़कर एक मिनट 46.15 सेकेंड का व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ समय निकालते हुए अपना पहला बड़ा अंतरराष्ट्रीय पदक जीता। केरल के एशियाई चैंपियनशिप के पदक विजेता
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व्यक्तित्व
10 - 16 सितंबर 2018
स्वप्ना बर्मन
स्व
प्ना बर्मन ने हेप्टाथलन 800 मीटर की रेस को 2.21.13 में खत्म करके 808 अंक हासिल किए और सात अलग अलग इवेंट में कुल 6 हजार अंकों के साथ के साथ गोल्ड पर कब्जा जमाया। ऐसा करने वाली वह पहली भारतीय एथलीट है। तमाम दिक्कतें, अभाव के बाद भी जब कोई तपकर सामने आता है तो उसे 'कुंदन' कहते हैं। कुंदन यानी तपा हुआ सोना। गुदड़ी के लाल शायद इसे ही कहते हैं। रिक्शा चालक की बेटी स्वप्ना बर्मन ने बुधवार को 18वें एशियाई खेलों की हेप्टाथलन स्पर्धा में जब सोना जीता तो पूरे
(महिला हैप्टाथलन)
देश का सिर अपनी इस बेटी के प्रदर्शन से गर्व से ऊंचा हो गया। जिंदगी में हर बाधा को लांघने वाली स्वप्ना ने एशियन गेम्स में सात बाधाओं को लांघकर सोना अपने नाम किया। वह इस स्पर्धा में सोना जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी हैं। पश्चिम बंगाल की जलपाईगुड़ी की रहने वाली एक रिक्शाचालक की बेटी स्वप्ना ने जैसे ही जीत दर्ज की पश्चिम बंगाल के घोषपाड़ा में स्वप्ना के घर के बाहर लोगों को जमावड़ा लग गया और चारों तरफ मिठाइयां बांटी जाने लगीं। अपनी बेटी की सफलता से खुश स्वप्ना की
जिनसन जॉनसन
(पुरुष 1500 मीटर)
भा
रतीय धावक जिनसन जॉनसन ने 1500 मीटर फाइनल में अपनी धाक दिखाते हुए भारत को 12वां गोल्ड मेडल दिलाया। उन्होंने 1500 मीटर फाइनल रेस को 3:44:72 सेकेंड में पूरा करते हुए सोने पर कब्जा किया। केरल से ताल्लुक रखने वाले 27 वर्षीय जॉनसन इससे पहले एशियन गेम्स 2018 में ही 800 मीटर के फाइनल में सिल्वर मेडल जीता था। इस एशियन गेम्स में ये जॉनसन
भा
रतीय मुक्केबाज अमित पंघाल ने भारत को 14वां गोल्ड मेडल दिलाया। 49 किलोग्राम भारवर्ग के मुक्केबाजी फाइनल प्रतियोगिता में अमित का सामना रियो ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट उजबेकिस्तान के हसनबॉय दुश्मातोव से था। खिताबी मुकाबले को अमित ने आसानी से गोल्डन पंच मारा। एशियन गेम्स 2018 में गोल्ड मेडल जीतने वाले 22 साल के बॉक्सर अमित पंघाल यूं ही इस मुकाम तक नहीं पहुंचे। मां ने बेटे के बारे में दो ऐसे राज खोले, सुनकर आप भी भावुक हो जाएंगे। पदक जीतने के बाद अमित ने एक ट्वीट के माध्यम से उनके पिता व कोच का धर्मेंद्र की फिल्मों के प्रति लगाव को बताया है। अमित ने ट्वीट में लिखा, ‘जकार्ता में स्वर्ण पदक देश को समर्पित.. बधाइयों के लिए सभी का आभार,
मां बाशोना इतनी भावुक हो गई थीं कि उनके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे। बेटी के लिए वह पूरे दिन भगवान के घर में अर्जी लगा रही थीं। स्वप्ना की मां ने अपने आप को काली माता के मंदिर में बंद कर लिया था। इस मां ने अपनी बेटी को इतिहास रचते नहीं देखा क्योंकि वह अपनी बेटी की सफलता की दुआ करने में व्यस्त थीं।
का दूसरा पदक है। उनकी इस सफलता पर पीएम नरेंद्र मोदी ने उन्हें बधाई दी। ट्रैक एंड फील्ड में जॉनसन का रिकॉर्ड बेहद शानदार रहा है। उन्होंने वर्ष 2015 में वुहान में आयोजित एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 800 मीटर इवेंड में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए सिल्वर मेडल अपने नाम किया था। इसके लिए उन्होंने 1:49:98 सेकेंड का समय निकाला था। इसी वर्ष थाइलैंड में आयोजित एशियन ग्रां प्री में उन्होंने तीन गोल्ड मेडल अपने नाम किए थे।
स्वप्ना के घरवालों ने अपनी बेटी के जीत का जश्न मनाते हुए उसे आगे बढ़ने में हुई परेशानियों का भी जिक्र किया। स्वप्ना की मां ने कहा, 'मुझे बेहद खुशी है। मैंने और स्वप्ना के पिता ने उसे यहां तक लाने में काफी कठिनाइयों का सामना किया है। आज हमारा सपना पूरा हो गया।'
(भारतीय ब्रिज टीम)
प्रणब बर्धन और शिवनाथ सरकार भारत को गोल्ड मेडल मिला है। 60 वर्षीय प्रणब बर्धन ब्रिऔरज में 56भी वर्षीय शिवनाथ सरकार की जोड़ी ने इस कम लोकप्रिय खेलों में गोल्ड मेडल जीता लेकिन ये भी सच है कि इस भारतीय जोड़ी से गोल्ड की उम्मीद कोई नहीं कर रहा था।
अमित पंघाल (बॉक्सिंग)
अगली ही पंक्ति में उन्होंने लिखा, मेरा पहला ट्वीट अपने पिता जी व कोच की दिली ख्वाहिश बताने के लिए। दोनों धर्मेंद्र जी के जबरदस्त फैन हैं। धर्मेंद्र की फिल्म के ब्रेक में भी उनके पिता ने कभी चैनल नहीं बदलने दिया। अगली पंक्ति में उन्होंने लिखा, धर्म जी से मुलाकात हो जाए तो खुशी दोगुनी होगी।’ ट्वीट के जवाब में फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र ने अमित पंघाल को टैग करते हुए उन पर गर्व होने की बात लिखी व अगली ही पंक्ति में उन्होंने लिखा, ‘मुझे भी आपसे मिल कर बहुत खुशी होगी। जब भी मुंबई आओगे, बता दें। बधाई हो, आपको, आपके गुरु और आपके परिवार को। आप हर प्रतियोगिता में जीत हासिल करके देश का नाम रोशन करें, ईश्वर से यही प्रार्थना करता हूं।’ फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र के इस जवाब को
1884 लोगों ने लाइक, 399 लोगों ने री- ट्वीट किया। अपने ट्वीट पर फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र के ट्वीट का जवाब मिलने के बाद अमित ने उन्हें रिप्लाई करते हुए लिखा, बहुत-बहुत आभार आपका सर.. भारत लौटते ही आपके दर्शन के लिए संपर्क करूंगा।
हरियाणा के रोहतक जिले के मैना गांव का यह छोरा भारतीय सेना में नायब सूबेदार के पद पर तैनात है। पिता विजेंदर सिंह पेशे से किसान हैं। उनके बड़े भाई अजय भी भारतीय सेना में कार्यरत हैं। वहीं मां ऊषा देवी गृहिणी हैं।
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स्वच्छता
श्रीलंका
स्वच्छता की तरफ तेजी से बढ़ते कदम
साल 2016 में कुल आबादी में 96 प्रतिशत लोगों तक शुद्ध पेयजल और 95 फीसदी आबादी तक बेहतर स्वच्छता की पहुंच थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मानकों पर बेहतर जल आपूर्ति और स्वच्छता के संबंध में श्रीलंका को और काम करने की जरुरत है
खास बातें
श्रीलंका में आम लोगों तक स्वच्छता और पेय जल उपलब्धता सरकार का प्रंबधन दर्शनीय है सरकार बनाम लिट्टे युद्ध ने कई सामाजिक चुनौतियां खड़ी कीं
द
एसएसबी ब्यूरो
क्षिण एशिया के हिंद महासागर में स्थित श्रीलंका 2.12 करोड़ की आबादी के साथ एक निम्न-मध्यम आय वाला देश है। कुल जनसंख्या का करीब 7 प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे है। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर्यटन और कृषि आधारित है। 2011 के बाद से वहां पर्यटन व्यवसाय तेजी से पनपा है। श्रीलंका में वन संपदा, प्राकृतिक सौंदर्य भी अपार है। श्रीलंका अपने हाथियों के अनाथालय के लिए भी प्रसिद्द है, जहां कई पुराने हाथियों की देखभाल की जाती है। वहां हर्बल गार्डन्स हैं, चंदन, चाय, मसाले और कोको की खेती प्रमुख रूप से की जाती है। इस द्वीप स्थित देश में, बेहतर जल और स्वच्छता तक आम लोगों की पहुंच, अपने पड़ोसी दक्षिण एशियाई देशों की तुलना में काफी बेहतर है। साथ ही पूर्व एशिया में ऊपरी-मध्य-आय वाले दोनों देशों, मलेशिया और थाईलैंड के साथ इसकी तुलना की जा सकती है। स्वच्छता को लेकर सरकार का प्रबंधन देखने लायक है। आमतौर पर भ्रमण करते हुए भारत की तरह श्रीलंका में गंदगी शायद ही देखने को मिले। श्रीलंका ने पिछले दो दशकों में बेहतर जल आपूर्ति तक लोगों को पहुंच प्रदान करने में प्रभावशाली प्रगति की है। आंकड़ो के अनुसार 2016 में कुल आबादी में 96 प्रतिशत लोगों तक शुद्ध पेयजल और 95 फीसदी आबादी तक बेहतर स्वच्छता की पहुंच थी। श्रीलंका में 93 फीसदी ग्रामीण परिवारों के पास शौचालय है। जबकि श्रीलंका में 98.5 फीसद लोग शौचालय का उपयोग करते हैं और खुले में शौच कुछ साल पहले के 14 फीसद से घटकर अब करीब एक फीसदी तक रह गया है। श्रीलंका शौचालय के उपयोग में कई देशों से आगे है।
हालांकि, इस सब के बाद भी अंतरराष्ट्रीय मानकों पर बेहतर जल आपूर्ति और स्वच्छता के संबंध में, श्रीलंका के ये दावे बिलकुल खरे नहीं उतरते। इनमें लोगों की जरुरत के हिसाब से आपूर्ति में गंभीर अंतराल और बड़ी खामियां पाई गईं हैं। सबसे अधिक समस्या प्राकृतिक आपदाओं के लिए देश की तैयारी को लेकर है, जहां तरल और ठोस कचरे के निपटान के लिए प्रबंधन अपर्याप्त है। जल निकासी के लिए बनी नहरें, खुले सीवर बन गए हैं और बाढ़ के पानी को पूरी तरह निकालने में तंत्र अप्रभावी है। स्वच्छता: स्वच्छता का बुनियादी ढांचा श्रीलंका में भले ही अन्य पड़ोसी देशों के मुकाबले बेहतर हो लेकिन वह मौजूदा जरूरतों के हिसाब से पीछे है और शहरीकरण के बढ़ते प्रभाव के साथ कदमताल नहीं मिला पा रहा है। 90 प्रतिशत से अधिक शहरी निवासियों के पास अपने उपयोग में लाए जाने वाले शौचालयों की सुविधा है, केवल 2.7 प्रतिशत लोग ही सार्वजनिक शौचालयों पर निर्भर हैं। वहीं कोई भी घर बिना शौचालय के नहीं है। लेकिन पाइप सीवरेज सिस्टम वर्तमान में सिर्फ 12 फीसदी शहरी आबादी के दायरे में आता है। ग्रामीण आबादी में 90 फीसदी से अधिक लोगों के पास शौचालय की सुविधा है। पुरानी और अक्षम प्रणाली: कोलंबो शहर में सीवरेज प्रणाली का निर्माण 100 साल पहले किया गया था। इनमें से कुछ सीवर अब खराब स्थिति में हैं या उनकी क्षमता में गिरावट आ गई है। वहीं कुछ गंभीर अवरोध और अति प्रवाह से प्रभावित हैं। जबकि श्रीलंका की सरकार ने इसी प्रणाली को
शहर के हाल में हुए तेजी से विकास, विशेष रूप से व्यावसायिक और उच्च वृद्धि वाले अपार्टमेंटों के निर्माण से जोड़ दिया है। स्वच्छता के प्रबंधन की जिम्मेदारी मुख्य रूप से व्यक्तिगत घरों पर होती है, जो अक्सर कम लागत वाले पिट शौचालयों का निर्माण करने का विकल्प चुनती है। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन: ठोस अपशिष्ट का खराब प्रबंधन ही शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता के बुनियादी ढांचे को प्रभावित कर रहा है, जिसकी वजह से पर्यावरणीय गिरावट और लोगों का स्वास्थ्य जोखिम में पड़ रहा है। सीवरेज सिस्टम में भी ठोस अपशिष्ट काफी मात्र में पाया गया है, जिसकी वजह से स्वच्छता बनाए रखने में मुश्किलें पैदा होती हैं। श्रीलंका के ग्रामीण क्षेत्रों में, उचित सेप्टिक टैंकों की कमी, घरों और बिल्डरों को शिक्षित करने के लिए व्यवस्थित कार्यक्रमों की कमी, और भूजल प्रवाह के व्यवस्थित अध्ययन की कमी की वजह से कई नई समस्याएं पैदा हो रही हैं। साथ ही, इसकी वजह से भूजल की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। पानी: शहरी क्षेत्रों में 2012-13 में शुद्ध पेयजल तक 98.8 प्रतिशत लोगों की पहुंच थी। शहरी आबादी में 92 प्रतिशत से अधिक लोगों को उनके ही परिसर में पेयजल मिल जाता है। हालांकि, अभी भी वह इलाके जो पहले संघर्ष प्रभावित क्षेत्र थे, पाइप के तहत पानी पहुंचाने की प्रक्रिया जारी है। शहरी इलाकों के विपरीत, ग्रामीण आबादी में 15 प्रतिशत को ही वाटर पाइप के तहत पानी पहुंचाया जा रहा है, जबकि शेष आबादी अभी भी या तो कुंए या बोरिंग के पानी पर निर्भर है या फिर
श्रीलंका में 90 प्रतिशत से अधिक शहरी निवासियों के पास अपने उपयोग में लाए जाने वाले शौचालयों की सुविधा है, केवल 2.7 प्रतिशत लोग ही सार्वजनिक शौचालयों पर निर्भर हैं
से उसे कहीं से पानी लाना पड़ता है। पर्याप्तता और विश्वसनीयता: एक अनुमान के मुताबिक श्रीलंका में लगभग 98 प्रतिशत शहरी आबादी के पास पीने, नहाने और साफ-सफाई के लिए पर्याप्त पानी है। शहरी जल आपूर्ति कार्यक्रमों में से लगभग 40 प्रतिशत 18-20 घंटे लगातार आपूर्ति प्रदान करते हैं। दूसरी तरफ, ग्रामीण इलाकों में 24 घंटे से काफी कम आपूर्ति ही मिलती है। क्वालिटी: स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, बैक्टीरियोलॉजिकल परीक्षण के दौरान राष्ट्रीय जल आपूर्ति और ड्रेनेज बोर्ड के वितरण नेटवर्क से एकत्रित सिर्फ 77 फीसदी नमूने ही संतोषजनक पाए गए। ग्रामीण इलाकों में, 2013-15 के दौरान द्वीप से एकत्रित जल नमूने में से केवल 45 प्रतिशत पानी के नमूनों ही सही पाए गए थे, वहीं निजी आधिपत्य वाले कुओं और बोरिंग से प्राप्त नमूनों में से सिर्फ 49 प्रतिशत संतोषजनक गुणवत्ता में थे। जीसीडब्ल्यूएमपी योजना: श्रीलंका की स्वच्छता और पानी से संबंधित समस्याओं को हल करने के उद्देश्य से एक ऐतिहासिक आधारभूत संरचना परियोजना ‘ग्रेटर कोलंबो अपशिष्ट जल प्रबंधन’ परियोजना शुरू की गई है। डा100 मिलियन की लागत वाली जीसीडब्ल्यूएमपी का लक्ष्य 2025 तक 100 फीसदी आबादी के लिए पर्याप्त स्वच्छता मुहैया करना है। जब स्वच्छता को लेकर श्रीलंका ने की भारत की तारीफ: श्रीलंका ने अपने पड़ोसी देश भारत की सरकार के स्वच्छता अभियान 'स्वच्छ भारत' से प्रेरित होकर सितंबर 2017 में दक्षिण एशिया में शौचालयों तक पहुंच में सुधार के लिए एक क्षेत्रीय शोध एवं विकास केंद्र की स्थापना को लेकर प्रतिबद्धता जाहिर की थी। श्रीलंका के तत्कालीन नगर नियोजन एवं जलापूर्ति मंत्री राऊफ हकीम ने पीएम नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान की सराहना भी की थी।
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पुस्तक अंश
10 - 16 सितंबर 2018
कैलिफोर्निया, यूएसए
विदेशी सरजमीं पर रह रहे मेरे देश के युवा जब पूरी दुनिया को एक दिशा प्रदान करते हैं, तो मेरे जैसे व्यक्ति को एक महान संतुष्टि और खुशी का आभास होता है। (27 सितंबर, 2015) कैलिफोर्निया: सैन जोस स्थित सैप केंद्र में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए पीएम मोदी
आ
ज यहां 27 सितंबर है, भारत में यह तारीख 28 सितंबर होगी, जो कि देश के लिए एक विशेष दिन है। इस दिन भारत मां के लाल और महान बेटे शहीद भगत सिंह का जन्मदिन होता है। मैं शहीद भगत सिंह के लिए सम्मान प्रकट करता हूं। विदेशी सरजमीं पर रह रहे मेरे देश के युवा जब पूरी दुनिया को एक दिशा प्रदान करते हैं, तो मेरे जैसे व्यक्ति को एक महान संतुष्टि और खुशी का आभास होता है। दुनिया भर में
भारत की एक नई छवि उभरी है। भारत के बारे में पुराने विचार अब दूर हो रहे हैं। आपकी उंगलियों ने कीबोर्ड और कंप्यूटर पर जादू पैदा किया है। इसने भारत को एक नई पहचान दी है। आपका कौशल और प्रतिबद्धता अद्भुत है। ‘यह ब्रेन गेन है, न कि ब्रेन ड्रेन (प्रतिभा पलायन)।’ भारत बहुरत्न वसुंधरा है, वहां कई प्रकार के ब्रेन (दिमाग) होंगे।
न्यूयॉर्क में बातचीत के बाद अमेरिकी सीईओ के साथ एक ग्रुप फोटो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
27 सितंबर, 2015: कैलिफोर्निया के मेनलो पार्क स्थित फेसबुक मुख्यालय में एक टाउन हॉल मीटिंग के दौरान फेसबुक इंक के सीईओ मार्क जकरबर्ग के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
मैंने डिजिटल इंडिया को समर्थन देने के लिए अपनी प्रोफाइल तस्वीर बदल दी है। डिजिटल इंडिया, ग्रामीण समुदायों को इंटरनेट से जोड़ने और लोगों को अधिक से अधिक ऑनलाइन सेवाओं तक पहुंच प्रदान करने का भारत सरकार का प्रयास है। मार्क जकरबर्ग अध्यक्ष और सीईओ, फेसबुक
25 सितंबर, 2015: न्यूयॉर्क में विश्व बैंक के अध्यक्ष डॉ. जिम योंग किम से मुलाकात करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
म्यांमार
10 - 16 सितंबर 2018
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पुस्तक अंश
राष्ट्रपति सेन भारत को ‘भाई’ के रूप में देखते हैं, जो उनके देश के विकास में बड़ी मदद कर सकता है।
प्र
सैयद अकबरुद्दीन प्रवक्ता, विदेश मंत्रालय
धानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 से 19 नवंबर के बीच अपने 10 दिवसीय तीन देशों के दौरे के पहले चरण में म्यांमार की यात्रा की। 11 नवंबर से 13 नवंबर तक इस यात्रा के दौरान मोदी ने एशियान-भारत और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन को संबोधित किया, साथ ही म्यांमार नेतृत्व के साथ द्विपक्षीय चर्चा भी की। अपनी चर्चा में, उन्होंने भारत और म्यांमार के बीच कनेक्टिविटी, सांस्कृतिक संपर्कों और व्यावसायिक संबंधों सहित तीन मुख्य मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। भारत और म्यांमार ने प्रमुख परियोजनाओं की समीक्षा की, जिसमें कनेक्टिविटी से लेकर त्रिपक्षीय राजमार्ग, कालादान परियोजना और इंफाल और मंडले के बीच जल्द से जल्द बस सेवा शुरू करने की आवश्यकता शामिल है। सांस्कृतिक रूप से दोनों पक्षों ने अपने बौद्ध (भगवान् बुद्ध को लेकर) संबंधों और इसे आगे बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा की। वाणिज्यिक क्षेत्र में, भारत और म्यांमार ने, म्यांमार में विशेष आर्थिक क्षेत्रों में निवेश करने की संभावनाओं के साथ दूसरे प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की। साथ ही भारतीय छोटे और मध्यम उद्यमों द्वारा म्यांमार में निवेश किए जाने के संदर्भ में भी चर्चा हुई। म्यांमार के तेल और प्राकृतिक गैस क्षेत्र में निवेश करने वाली भारतीय कंपनियों की क्षमता पर भी विचार किया गया। कृषि और कौशल विकास जैसे क्षेत्रों में भारत और म्यांमार के बीच विकास सहयोग और सहायता पर चर्चा की गई।
मोदी के पास इस देश (म्यांमार) और लोकतंत्र के हमारे आंदोलन के रूप में (एनएलडी) के प्रति जबरदस्त सद्भावना है। आंग सान सू की राष्ट्रपति, नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी
म्यांमार की प्रतिष्ठित नेता और नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
म्यांमार के पूर्व राष्ट्रपति, यू थीन सेन के साथ बातचीत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
भारत और म्यांमार ऐतिहासिक रूप से जुड़े हुए हैं। हम एक साथ अपनी आजादी के लिए लड़े और आज भी इस देश के लोग बुद्ध के कारण भारत को बेहद सम्मान देते हैं। (13 नवंबर 2014)
म्यांमार में भारतीय समुदाय के लिए संबोधन
राष्ट्रपति महल में म्यांमार के पूर्व राष्ट्रपति यू थीन सेन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
मैं इन सभी देशों में से प्रत्येक के साथ व्यक्तिगत द्विपक्षीय संबंधों के प्रति एक महत्वपूर्ण और ठोस कदम उठाकर बहुत खुश हूं। नरेंद्र मोदी तीन राष्ट्रों की यात्रा पर ब्लॉग पोस्ट में
कुछ दिन पहले, मैंने घोषणा की थी कि हम सार्क को समर्पित एक उपग्रह का निर्माण करेंगे और उसे कक्षा में भेजेंगे। हमने कुछ जिम्मेदारियों को उठाने का फैसला किया है, जिसकी घोषणा नेपाल में होने वाली सार्क बैठक में करेंगे। उन जिम्मेदारियों में से एक है, सार्क में म्यांमार को शामिल कराना और पोलियो से देश को छुटकारा दिलाना। (जारी अगले अंक में)
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सुलभ संसार
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ह्यूमन केयर इंटरनेशनल, नजफगढ़, नई दिल्ली से जुड़े डॉ. आरके मैसी, अनिल कुमार और प्रिया मैसी ने सुलभ ग्राम का दौरा किया। इस दौरान इन इन लोगों ने यहां चल रही विविध गतिविधियों के साथ सुलभ पब्लिक स्कूल में किफायती और स्वच्छ सेनेटरी नैपकिन बनाने के लिए दिए जा रहे प्रशिक्षण कार्यक्रम को देखा।
जापान के बंक्यो यूनिवर्सिटी से आए 13 अंतर-स्नातक छात्रों ने सुलभ ग्राम का दौरा किया। इन छात्रों ने खास तौर पर सुलभ टॉयलेट म्यूजियम और सुलभ तकनीक पर आधारित टू पिट पोर फ्लश टॉयलेट, बॉयोगैस प्लांट और वॉटर एटीएम को देखने में दिलचस्पी ली।
कौन अमीर और कौन गरीब?
नज्म
कल्पना
आईना-ए-जिंदगी में खुद का अक्स देखते रहे ढूंढ़ते रहे खुद को खुद में और यूं ही खोते रहे कभी देखा इस आइने में खुद को कीर-सा हमने कभी देखा खुद को अमीर-सा हमने बताया आईने ने हमें सच, हमारी सच्ची तस्वीर क्या है इंसा वही जो ठोकर खाकर संभाल ले खुद को एक दिन बताया आईने ने हमें, हम न समझे दुनिया का खुदा खुद को कहा टटोलकर देख दिल अपना, और जब देखा हमने खुद को
ए
कविता
क बहुत धनी व्यक्ति अपने छोटे से लड़के को एक बार गांव दिखाने ले गया ताकि उसका बेटा जान सके कि गरीब लोग कैसे रहते हैं। उन्होंने शहर से कुछ दूर अपने फार्म हाउस में दो दिन बिताए। फार्म हाउस के सामने ही एक गरीब परिवार रहता था। यात्रा से वापस लौटते समय पिता ने अपने पुत्र से पूछा – बेटा, यात्रा कैसी रही? बहुत अच्छी, पापा – बेटे ने कहा। तो तुमने देखा कि गरीब लोग कैसे रहते हैं? -हां
-तो तुमने यात्रा से क्या सीखा? बेटे ने जवाब दिया –मैंने देखा कि हमारे पास तो एक ही कुत्ता है, जबकि उनके पास चार हैं। हमारा स्वीमिंग पूल तो बहुत छोटा है, लेकिन वे बहुत बड़ी नहर में नहाते हैं। हमारे बगीचे में मंहगे लालटेन लगे हैं, जबकि वे तारों भरे आकाश को देख सकते हैं। हमारे घर से तो दूर तक नहीं दिखता जबकि वे दूर-दूर की पहाड़ियां और घाटियां देख सकते हैं। हमारे नौकर हमारी देखभाल करते हैं, लेकिन वे सभी का खयाल रखते हैं। हम अपना अन्न खरीदते हैं, लेकिन वे अपना अन्न खुद उगाते हैं। हमारे घर की रक्षा के लिए चारदीवारी है, लेकिन उनके दोस्त उनकी रक्षा करते हैं। लड़के का पिता निरुत्तर हो गया।
पाया जो कुछ भी है, सब तो दिया खुदा तेरा ही है आईने ने दिखाया सच का आईना हमको रहो जमीं पर न उड़ो आसमां पर परिंदा बनकर क्यूंकि आसमां है परिंदों की जागीर आईने ने कहा इंसा तू तो हार जाता सिर्फ एक हार से फिर भी अहंकार और घमंड न छोड़े है तू और मान लेता है खुद को खुदा जीवन में कभी न कभी, खुदा, खुद को शुक्रगुजार हूं आर्ईना बनाने वाले का जिसने भरम तोड़ा है खुद को खुदा मानने वालों का जब भी सवार हो भूत घमंड का इंसा तुझपे देख लेना आईना एक बार अपने अक्स को निहार लेना
10 - 16 सितंबर 2018
आओ हंसें
जीवन मंत्र
लाखों फंसे हैं भिखारी: साहब एक रूपया दे दो। साहब: कल आना। भिखारी: इस कल-कल के चक्कर में इस कॉलोनी में मेरे लाखों रुपए फंसे हुए हैं।
डोकू -39
रंग भरो सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी विजते ा को 500 रुपए का नगद पुरस्कार दिया जाएगा। सुडोकू के हल के लिए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देख।ें
महत्वपूर्ण तिथियां
• 10 सितंबर हरियाणा दिवस, पंजाब दिवस, गोविंदवल्लभ पंत जन्मदिवस • 11 सितंबर विश्व प्राथमिक चिकित्सा दिवस, विनोबा भावे जयंती, महादेवी वर्मा स्मृति दिवस • 13 सितंबर ब्रह्मानंद लोधी स्मृति दिवस • 14 सितंबर हिंदी दिवस • 15 सितंबर अभियंता दिवस • 16 सितंबर विश्व ओजोन परत संरक्षण दिवस
बाएं से दाएं
सु
जीवन न तो भविष्य में है न अतीत में जीवन तो वर्तमान में है
कुत्ता और मालिक कुत्ता : कल मेरे मालिक ने रात के 2:30 बजे चोर पकड़ा। दूसरा कुत्ता : तू कहां था? पहला कुत्ता : कुत्ता हूं, इस ं ान नहीं जो सारी रात नेट चलाता रहूं। मैं तो आराम से सो रहा था।
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इंद्रधनुष
1. निपुण (3) 3. सभ्य लोगों का समूह (5) 6. हवन की सामग्री (3) 8. सवेरे का सूरज (4) 10. साले की पत्नी (4) 11. ज्योतिष में एक राशि (2) 13. उत्तरीय (3) 15. राँगा (3) 17. लक्ष (2) 19. द्वारपाल (4) 20. समस्या का निराकरण (4) 23. झुकना, प्रणाम (3) 24. नासूर (5) 25. वरण करने योग्य (3)
सुडोकू-38 का हल विजेता का नाम नरेश कुमार दिल्ली
वर्ग पहेली-38 का हल
ऊपर से नीचे
1. कुटुम्ब (3) 2. तरंग (3) 3. चेला (2) 4. स्त्री का सौभाग्य चिह्न (5) 5. स्वादिष्ट (3) 7. अनेक (3) 9. मस्तक (3) 12. नोकदार (3) 14. अवैध चीजें बेचने का स्थान (5) 16. अग्रगण्य, पुरोहित (3) 18. पति (3) 19. संध (3) 21. मनुष्य (3) 22. बहुत छोटा, जो गिना न जा सके (3) 23. बड़ी नदी (2)
कार्टून ः धीर
वर्ग पहेली - 39
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न्यूजमेकर
10 - 16 सितंबर 2018
रो
ही म ा न अ
हम्सा
सेवा की लॉटरी
केरल में कोल्लम निवासी हम्सा ने लॉटरी में जीती हुई पूरी राशि सीएम राहत कोष में दे दी ताकि बाढ़ पीड़ितों की मदद की जा सके
के
रल में आई भीषण बाढ़ के बाद लोग राहत के लिए जिस तरह से आगे आ रहे हैं, वह एक मिसाल है। बचाव अभियान से लेकर राज्य को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए और पीड़ित लोगों की मदद करने के लिए लोग अपना सब-कुछ लगा रहे हैं। इसी का एक उदाहरण कोल्लम में सामने आया है, जहां एक परिवार ने लॉटरी में जीती हुई राशि सीएम राहत कोष में दे दी है ताकि जरूरतमंद लोगों की मदद की जा सके। कोल्लम में लॉटरी एजेंट और सेल्समैन हम्सा ने राज्य सरकार की निर्मल लॉटरी योजना के तहत 10 अगस्त को एक लाख रुपए की
लॉटरी जीती थी। उनके परिवार के लिए यह राशि जीतना बहुत खुशी लेकर आया, लेकिन उन्होंने इसका इस्तेमाल करने की जगह कुछ और ही फैसला लिया। हम्सा, उनकी पत्नी सोनिया और बेटियां फातिमा और हादिया केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के पास पहुंचे और उन्हें लॉटरी का टिकट दे दिया। उनके इस कदम की हर तरफ तारीफ हो रही है। हम्सा कहते हैं कि उनके सूबे में जिस तरह की आपदा आई है, उसमें इस राशि का वे इससे बेहतर इस्तेमाल नहीं कर सकते थे। गौरतलब है कि हम्सा की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। हम्सा का उदाहरण सामने आने के बाद
कन्नन गोपीनाथन
केरल में मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष की ओर से घोषणा की गई है कि और फंड जुटाने के लिए स्पेशल लॉटरी निकाली जाएगी। लॉटरी के टिकट
न्यूजमेकर
की कीमत 250 रुपए होगी और 3 अक्टूबर को ड्रॉ निकाला जाएगा। इस लॉटरी का पूरा पैसा मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष को जाएगा।
उमा महेश्वर शर्मा
पिता का सैल्यूट बेटी को
डीएसपी पिता ने एसपी बेटी को कार्यस्थल पर देख फख्र के साथ किया सैल्यूट
बिना पहचान सेवा का कीर्तिमान
आईएएस अफसर कन्नन गोपीनाथन ने अपनी पहचान छिपाकर आठ दिनों तक केरल वालों की मदद की
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रल में बाढ़ की तबाही के बाद देशभर से मदद के हाथ आगे आए हैं। इसी कड़ी में एक आईएएस अफसर का नाम सामने आया है, जो अपनी पहचान छुपाकर पीड़ितों की मदद कर रहे थे। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही उनकी कहानी के मुताबिक गोपीनाथन ने अपनी पहचान छुपाकर आठ दिनों तक लोगों की मदद की है। जब उनकी पहचान जाहिर हुई तो सभी हैरान रह गए और देश के प्रति उनकी निष्ठा को देखकर उनके जज्बे को सलाम कर रहे हैं। 2012 कैडर के अफसर गोपीनाथन केरल के
कोट्टयम के रहने वाले हैं और इस वक्त दादरा एंड नगर हवेली के कलेक्टर हैं। केरल में आई तबाही का मंजर देखकर उनसे नहीं रहा गया और उन्होंने पर्सनल कारण बताकर नौकरी से छुट्टी ले ली। इसके बाद वह अपने गृह राज्य कोट्टयम आ गए। यहां आकर उन्होंने किसी को नहीं बताया कि वह आईएएस अफसर हैं। वे यहां आकर बाढ़ के बाद पैदा हुई समस्या को दूर करने में लग गए। एक आईएएस अफसर होते हुए भी गोपीनाथन ने लोगों के घर की सफाई तक में मदद की।
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लंगाना की एक बेटी ने कुछ ऐसा कर दिखाया कि उसके पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। हाल में हैदराबाद में आयोजित तेलंगाना राष्ट्र समिति की रैली में प्रदेश के कई पुलिस अधिकारियों की तैनाती थी। डीसीपी एआर उमा महेश्वर शर्मा भी वहां पर तैनात थे। रैली के दौरान डीसीपी उमा की बेटी आईपीएस सिंधू शर्मा भी वहां पहुंचीं। दोनों का आमनासामना नहीं हुआ था तब तक तो माहौल ठीक था। जैसे ही उमा महेश्वर और सिंधू का आमनासामना हुआ तो डीसीपी पिता ने अपनी एसपी बेटी को सैल्यूट मारा। यह नजारा देखकर वहां मौजूद सभी लोग हैरान हो गए। उमा पिछले 30 सालों से पुलिस विभाग में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, जबकि उनकी बेटी का चार साल पहले ही आईपीएस में सलेक्शन हुआ था। फिलहाल सिंधू जगतियाल में एसपी के पद पर तैनात हैं। उमा महेश्वर अगले साल रिटायर होने वाले हैं। उन्होंने बताया, ‘हम दोनों बाप-बेटी पहली
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 39
बार ड्यूटी के दौरान आमने-सामने आए हैं। मैं बहुत भाग्यशाली हो जो अपनी बेटी के साथ काम करने का मौका मिला।’ उमा ने गर्व से कहा कि सिंधू मेरी वरिष्ठ अधिकारी है। मैं जब भी उन्हें देखता हूं तो सैल्यूट करता हूं। हम बस अपनी-अपनी ड्यूटी करते हैं और इसपर चर्चा नहीं करते हैं। लेकिन जब हम घर पर होते हैं तो बाप-बेटी की तरह रहते हैं। सिंधू ने भी कहा कि मैं बहुत खुशनसीब हूं कि हमें एक साथ काम करने का मौका मिला।