सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 35)

Page 1

sulabhswachhbharat.com

06

10

20

28

स्वतंत्रता दिवस

आयोजन

व्यक्तित्व

खेल

स्वाधीन भारत की पहली सरकार

‘होप’ एक स्वास्थ्य आंदोलन

लेखकों की रोल मॉडल

देशभक्ति का गोल डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

बदलते भारत का साप्ताहिक

वर्ष-2 | अंक-35 | 13 - 19 अगस्त 2018

अहिंसा की सीख, समानता की लीक चाहे भारत हो या अमेरिका, मानवता का दर्शन हर जगह समान है

सै

स्वास्तिका

कड़ों वर्षों से, मिशनरीज सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन लाने में प्रभावशाली रही हैं। वे इसके निर्धारक कारक रही हैं। सेवा करने की इच्छा, किसी के भी रूपांतरण, योग्यता और तैयारी का एक प्राकृतिक परिणाम है। मिशनरी केवल वह नहीं है, जो किसी चर्च से जुड़ा हो, बल्कि हर वह इंसान है, जो भगवान और मानव जाति की पूर्णकालिक सेवा करने के लिए खुद को समर्पित कर दे। भारत में भी ऐसी एक मिशनरी है, जो दशकों से स्वास्थ्य, स्वच्छता और सभी के लिए समानता को लेकर काम रही है। यहां यह समानता, सभी के

लिए सुरक्षित और स्वच्छ शौचालयों के माध्यम से है। और जब एक मिशनरी दुनिया के दूसरे हिस्सों की अन्य मिशनरियों के साथ मिलती है, तो विजन और मिशन स्पष्ट हो जाते हैं। पूरे विश्वव्यापी समाज के लिए बेहतर तरीके से काम करने के लिए साथ आकर काम करना, बेहतर परिणाम देता है। और यही हुआ, जब ‘द चर्च ऑफ जीसस क्राइस्ट ऑफ लैटर-डे सेंटस’ के प्रतिष्ठित अतिथिगण अमेरिका से सुलभ ग्राम का दौरा करने के लिए आए। ब्रैड हैनसेन (अध्यक्ष, भारत, द चर्च ऑफ जीसस क्राइस्ट ऑफ लैटर-डे सेंटस), डाना हैनसेन, एल्डर ग्रांट हर्स्ट और सिस्टर जेनेट हर्स्ट का सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। उनके साथ सुलभ के वरिष्ठ

कार्यकर्ता, अलवर व टोंक की पूर्व स्कैवेंजर्स जिन्हें डाॅ. पाठक के अथक प्रयासों से ब्राह्मण बन गई हैं और वृंदावन की विधवा माताएं भी थीं। भारतीय और अमेरिकी कार्यकर्ता मंचों पर इकट्ठे हुए और समानता, शिक्षा, शांति, अहिंसा और अभिनव सुधार के संदेश को फैलाने के लिए अपनी बात कही।

सही तरीके से बेहतर काम करना ही सांसारिक समस्याओं का समाधान

इस अवसर पर सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के अध्यक्ष एस. पी. सिंह ने कहा कि हमारे प्रतिष्ठित अतिथि, दुनिया के प्रति जागरूकता के प्रतिनिधि हैं। जब भी वे बोलते हैं या लोगों

खास बातें ब्रैड हैनसेन ने सुलभ ग्राम का दौरा किया डॉ. पाठक ने सुलभ के समानता सिद्धांत के बारे में बताया मानवता के लिए किया गया काम भगवान की सेवा है: ब्रैड हैनसेन


02 04 से बात करते हैं, तो वे हमेशा सभी अच्छी चीजों के बारे में बात करते हैं। ईसाई धर्म, सिर्फ एक ईसाई मूल्यों के बारे में नहीं है, बल्कि यह एक सार्वभौमिक मूल्य के बारे में है। इसी तरह से हमें जीवन जीना चाहिए। जब हम ईसाई धर्म के बारे में बात करते हैं, तो हम सामाजिक मानव मूल्यों के बारे में बात करते हैं। हम सब बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि मिशनरियों ने कितने अधिक सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन किए हैं। सार्वभौमिक समाज में, कई प्रकार के भेदभाव होते हैं - रंग, जाति, ऊंचाई, पैसा और बहुत कुछ। लेकिन भारत में, 'शौचालय को लेकर भेदभाव' है। आपने पूरी दुनिया में कभी नहीं सुना होगा कि शौचालय, भेदभाव का मूल कारण हो सकता है। लेकिन हमारे यहां शौचालय भेदभाव का एक प्रमुख स्रोत है। एस.पी.सिंह ने जोर दे कर कहा कि शौचालय केवल एक स्वच्छता की समस्या नहीं है। यह सामाजिक परिवर्तन की भी एक समस्या है। डॉ. विन्देश्वर पाठक कहते हैं कि हमने पूरी दुनिया में शौचालय बनाए हैं, लेकिन हमारा काम तब तक पूरा नहीं होता है, जब तक कि वे स्वच्छ नहीं रहते और उनकी देखभाल नहीं की जाती। साथ ही शौचालय के बारे में लोगों को शिक्षित करना और उन्हें समाज के बीच लाना भी जरूरी है। परिवर्तन करने की प्रक्रिया यहां बताई गई है। अगर कोई भी कहीं भी पीड़ित है, तो हमारे समाज सही नहीं कर रहा है। अमेरिका से आए हुए हमारे दोस्त लोगों को सही और बेहतर चीजें बता रहे हैं, इसके लिए हम इनके आभारी हैं। हम लोगों के भले के लिए सही तरीके से काम करने की कोशिश कर रहे हैं। हिंसा के साथ, आप अच्छे नहीं बन सकते। अगर अच्चा बनना है तो शिक्षा, प्रशिक्षण और लोगों की प्रेरणा से बेहतर बन सकते हैं। यही मिशनरियां कर रही हैं, साथ ही, यही सुलभ भी कर रही है और यही हमारी भविष्य की पीढ़ी को करना चाहिए। यही दुनिया की समस्याओं का एकमात्र समाधान है।

सुलभ प्रौद्योगिकी की स्वीकार्यता विश्व स्तर पर

सुलभ स्वच्छता और सामाजिक सुधार के अग्रणी डॉ. विन्देश्वर पाठक ने इस मौके पर कहा कि भगवान ने यह दुनिया बनाई है और हमने उनकी

आवरण कथा

13 - 19 अगस्त 2018

बनाई दुनिया में एक छोटी सी सुलभ की दुनिया बनाई है, जिसे हम सुलभ संसार कहते हैं। हम भारतीयों के रूप में हम महसूस करते हैं कि अमेरिका और भारत के बीच मजबूत संबंध होने चाहिए। यह दोनों देशों को मजबूत करेगा। पूर्व-अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने अपने उद्घाटन संबोधन में कहा था, ‘यह मत पूछें कि आपका देश आपके लिए क्या कर सकता है, पूछें कि आप अपने देश के लिए क्या कर सकते हैं।’ पिछले पांच दशकों में, हमने भारत की कई समस्याओं का समाधान किया है। या, हमने रास्ता दिखाया है कि भारत इन समस्याओं को कैसे हल कर सकता है। स्वच्छता को लेकर, न केवल भारत, बल्कि अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में 2.3 अरब लोग सुरक्षित और स्वच्छ शौचालयों की पहुंच में नहीं है। उन्हें पिछले पांच दशकों में किए गए मेरे आविष्कारों और खोजों से लाभान्वित किया जा सकता है। इन तीन महाद्वीपों पर अकेले सीवरेज सिस्टम, 2.3 अरब लोगों को सुरक्षित और स्वच्छ शौचालय नहीं प्रदान कर सकता। आपने दो तकनीकों को

देखा – एक घरों के लिए और दूसरी अतिथियों का गर्मजोशी पर काम करते हुए, मैं स्कैवेंजरों की आवासीय कालोनियों, ऊंची इमारतों, से स्वागत करते हुए कॉलोनी में गया और तीन महीने के स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों के लिए। डॉ. पाठक और उनके लिए वहां रहा। इस दौरान मुझे उनके ये दो तकनीकें हमारे पास हैं। साथ पूर्व स्कैवेंजर्स व जन्म, संस्कृति, मूल्यों, नैतिकता आदि सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हमने के बारे में पता चला। मैं उनके साथ विधवा माताएं नवाचार, समाजशास्त्र, सामाजिक रहता था, बातचीत करता था और उन्हें सुधार और दर्शन, धर्म, परोपकार और दान के साथ शाम को पढ़ाया करता था। तभी मैं बेहतर तरीके से तकनीक मिश्रित की है। यह अकेले स्वच्छता या उनके दुःख-दर्द को समझ सका। शौचालय की कहानी नहीं है। भारत की स्वतंत्रता से पहले, उन्हें 'अस्पृश्य' सुलभ प्रणेता ने अपनी सुलभ यात्रा पर प्रकाश कहा जाता था। समाज ने उनके लिए जीवन इतना डालते हुए कहा कि स्वच्छता के लिए मेरे आंदोलन कठिन बना दिया कि उन्हें किसी भी अन्य पेशे की शुरुआत पटना से हुई, जहां गांधी संग्रहालय की अनुमति नहीं थी। क्योंकि वे अस्पृश्य थे, भवन में बिहार गांधी जन्म शताब्दी उत्सव समिति इसीलिए जो भी वे करते थे, चाहे सब्जियां बेचते से संबंधित एक कार्यालय था। इस समिति का गठन हों, या मिठाई बेचते हों, कोई भी इसे अपने हाथों 1969 में महात्मा गांधी के जन्म शताब्दी वर्ष के से नहीं खरीदता था। इसीलिए उनके पास अपनी उत्सव की तैयारी करने के लिए किया गया था। आजीविका कमाने के लिए, शौचालयों को साफ यहीं पर मैं सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम करने के अलावा, कोई अन्य रास्ता नहीं था। इसे करता था। यहां मुझसे शुष्क शौचालयों को साफ आप उनके लिए पृथ्वी पर ही नरक जैसा बोल कर मानव मल को सिर पर ढोने वाले स्कैवेंजर्स सकते हैं। की प्रतिष्ठा और मानवाधिकारों की बहाली के किसी ने नरक नहीं देखा है, न ही किसी ने लिए काम करने को कहा गया। तब, मैंने पहली स्वर्ग देखा है। लेकिन उषा चौमर और पूजा जैसे बार समाज के इस तबके की दुर्दशा देखी। यहीं लोगों ने अपने जीवन में नरक देखा है। वे जैसे रहते


13 - 19 अगस्त 2018 थे। तो यह अब सबसे महत्वपूर्ण है। अब उषा और पूजा, दोनों ब्राह्मण हैं। वे अब उषा शर्मा और पूजा शर्मा हैं। अब उन घरों में भी उनका स्वागत होता है, जहां वे शौचालय साफ करने जाते थे। वे उनके साथ बैठते हैं, उनके साथ खाते हैं, उनके साथ बात करते हैं, उनके कार्यों में भी एक साथ भाग लेते हैं, खुशियों का आदान-प्रदान करते हैं। उन्हें समाज द्वारा पूरी तरह से स्वीकार किया गया है। आप पहले से ही भारतीय समाज में महात्मा गांधी के योगदान के बारे में जानते हैं - स्वतंत्रता से लेकर बहुत से योगदान तक। लेकिन गांधी ने भी कभी नहीं सोचा होगा कि अस्पृश्य, भारतीय समाज में ब्राह्मणों के रूप में स्वीकार किए जा सकते हैं। कोई भी नहीं सोचता था। लेकिन सोशल इंजीनियरिंग द्वारा, हमने इसे सार्थक किया है। यह केवल इसका एक सारांश है। हमने उन्हें उन मंदिरों में जाने में मदद की है, जो इस देश में अनादिकाल से या जब आर्यन समाज शुरू हुआ था, तब से अस्तित्व में हैं। लेकिन 5000 वर्षों में उन्होंने इन मंदिरों के अंदर जाने और देवताओं की पूजा करने के लिए 'अस्पृश्यों' को कभी अनुमति नहीं दी। लेकिन 5000 वर्षों बाद, मैंने इसे संभव बना दिया। अब वे मंदिरों में जा सकते हैं, गंगा नदी में पवित्र डुबकी लगा सकते हैं, वे अपने देवताओं की पूजा कर सकते हैं, वे ब्राह्मणों के साथ खा सकते हैं। यह सब हमने, शांति और अहिंसा के रास्ते से किया है। जैसा कि हमारे अध्यक्ष एस. पी. सिंह ने कहा कि हिंसा से कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है। हम केवल शिक्षा, प्रशिक्षण और सुधारवादी तरीकों से ही सब हासिल कर सकते हैं। क्यूबा की क्रांति के महानायक और महान साम्यवादी नेता चे ग्वेरा की 1959 में भारत यात्रा को अगर देखें, तो चे ग्वेरा जब भारत आए तो अपने सिद्धांतों को लेकर आए थे, जिसमें गरीबों और समाज के दबे-कुचले लोगों को हिंसा का सहारा लेकर परिवर्तन लाने का नियम था, लेकिन

आवरण कथा

03 ब्रैड हैनसेन, डाना हैनसेन, ग्रांट हर्स्ट और जेनेट हर्स्ट द्वारा सुलभ वाटर एटीएम, सुलभ टॉयलेट म्यूजियम, सुलभ क्लीनिक और सुलभ बायोगैस संयंत्र का दौरा

इस मौके पर मिशनरी के सदस्यों को डॉ. पाठक ने पुस्तकें भी भेंट की-

महात्मा गांधी'ज लाइफ इन कलर,

नरेंद्र दामोदरदास मोदी: द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड, (डॉ. पाठक द्वारा लिखी पीएम मोदी की बायोग्राफी)

फुलफिलिंग बापूज ड्रीम्स: प्राइम मिनिस्टर मोदी'ज ट्रिब्यूट टू गांधी जी

भारत और गांधी की पावन भूमि ने उन्हें बदल दिया और चे ग्वेरा ने गांधी के अहिंसा के रास्ते को ही बेहतर बताया। गांधी सबसे अच्छे उदाहरण हैं, लोग उनकी अहिंसा के बारे में बात करते हैं। आज आपने अपनी आंखों से देखा है कि हमने भारतीय समाज में ‘अस्पृश्यता’ जैसी सबसे घृणित चीज को कैसे बदल दी है। कोई कुत्तों को छू सकता था, लेकिन उषा को नहीं छू सकता। और फिर हमने वहां से, किसी भी नियम या कानून को तोड़े बिना, बिना

ब्रैड हैनसेन, डाना हैनसेन, ग्रांट हर्स्ट और जेनेट हर्स्ट ने सुलभ ग्राम का दौरा किया। डॉ. पाठक ने माला पहनाकर गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया

किसी आंदोलन के, अहिंसा द्वारा समाज को बदल दिया है। मैं लंबे समय तक उपवास नहीं कर सकता, इसीलिए मैंने कभी किसी के लिए उपवास नहीं किया है (हंसते हुए)। हमने किसी के खिलाफ आंदोलन नहीं किया। हम किसी भी हड़ताल के लिए किसी अथॉरिटी में नहीं गए। एक देश के राजनयिक हमारे पास आए 'आप क्या सुझाव देते हैं कि गैर सरकारी संगठनों को सामाजिक कार्यों के लिए धन दिया जा जाना चाहिये या नहीं?' मैंने कहा, आप एनजीओ को दे सकते हैं, जो कार्यकर्ता हैं, जो काम करने के लिए

जाते हैं, वे जो सुधार करना चाहते हैं। झोपड़पट्टी में जाएं, बच्चों को सिखाएं, समाज को बदलें, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं को नहीं (हंसते हुए)। वे सिर्फ रोते हैं और समस्याओं को बताते हैं। इस तरह यह सबसे महत्वपूर्ण है कि यहां हम सामाजिक कार्यकर्ता हैं। हम कार्यवाही करते हैं और हम समाज को शांतिपूर्वक बदलते हैं। इसीलिए, यहां दुनिया का सबसे अच्छा उदाहरण है। लोग गांधी की अहिंसा के बारे में बात करते हैं, लेकिन हमने पूरे समाज को बदला है। ये 'अस्पृश्य' अब 'ब्राह्मण' बन गए हैं।


04

आवरण कथा

13 - 19 अगस्त 2018

उषा, केवल 7 वर्ष की थीं, जब वह अपनी मां के साथ मानव मल की सफाई करती थीं। पूजा भी, उसी उम्र में थीं, जब उसने यह घृणित काम करना शुरू किया। इनके, अपने जीवन में बहुत सारी समस्याएं थीं। लेकिन अब ये आप के सामने खड़े हैं। आप अब नहीं बता सकते कि ये कभी 'अस्पृश्य' थे। यह समाज को दिया हुआ हमारा सबसे अच्छा उदाहरण है। जॉन एफ केनेडी ने जो कहा था, यह मेरी उनको श्रद्धांजलि है। आप देख सकते हैं कि हमने अपने देश भारत और वैश्विक स्तर पर क्या किया है। मैं पिछले साल अमेरिका में था और वाशिंगटन में, चेंबर ऑफ कॉमर्स और कुछ कांग्रेस के सदस्यों से बात कर रहा था। उन्होंने पूछा, ‘आप अमेरिका में ऐसा क्यों नहीं करते हैं क्योंकि यहां हमारे गांवों में सेप्टिक टैंक हैं। सीवर प्रणाली केवल शहरी क्षेत्रों में है।’ इसीलिए हमारी तकनीक न केवल भारत के लिए बल्कि विश्व स्तर पर लागू होती है।

पूरी दुनिया को अपनी दुनिया बनाए 'सुलभ'

इस बड़े मौके पर ‘द चर्च ऑफ जीसस क्राइस्ट ऑफ लैटर-डे सेंटस’ के भारत मिशन के अध्यक्ष ब्रैड हैनसेन ने सुलभ को धन्यवाद देते हुए कहा कि 'हमें सुलभ परिवार का हिस्सा बनाया और इतना शानदार स्वागत किया, इसके लिए हम आपकी उदारता और शिक्षा के आभारी हैं' - ब्रैड हैनसेन

हमको दिए गए इतने सम्मान के लिए आपका आभार। डॉ. पाठक ने कहा कि यह हमारा परिसर है, 'सुलभ संसार'। लेकिन मुझे लगता है कि आपको इस दुनिया को अपने परिसर के रूप में हमारी दुनिया को देना चाहिए। आपको पूरी दुनिया को सुलभ संसार बनाना चाहिए। आप शब्दों और मुख्यतया कार्यों के माध्यम से, दुनिया को सिखा रहे हैं कि हम सब भगवान की नजरों में बराबर हैं। यह मेरे लिए और पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा सबक है कि हम सब बराबर हैं। कोई भी बेहतर नहीं है, किसी और की तुलना में किसी से भी भगवान ज्यादा प्यार नहीं करते। उसकी नजर में सब बेहतर हैं और सबको वह प्यार करता है। हम सब बराबर हैं। ‘द चर्च ऑफ जीसस क्राइस्ट ऑफ लैटरडे सेंटस’ की ओर से हम पूरी दुनिया में आपके प्रेरणादायक कार्यों के लिए, आपको धन्यवाद देते हैं। यह हमारा और इस संगठन का दर्शन है कि जब हम दूसरों की सेवा में होते हैं, तो हम वास्तव में अपने भगवान की सेवा कर रहे होते हैं। हमारे द्वारा अनुसरण किए जाने वाले महान आदेश या नियमों में से पहला यह है कि हम अपने पूरे दिल, दिमाग और क्षमता से भगवान से प्यार करें। दूसरा नियम वही है, जिसका आप सभी पालन करते हैं, और वह है कि हमें अपने पड़ोसियों से खुद की तरह प्यार करना है। इसका मतलब है, जब किसी को भूख लगी है, तो हम भूखे हैं; अगर कोई बीमार है, तो हम बीमार हैं; जब किसी को अशुद्ध और अस्पृश्य माना जाता है, तो हम भी वही हैं। हम एक परिवार हैं, हम भाई और बहन हैं। हमें अपने परिवार का हिस्सा बनाने के लिए धन्यवाद।

डॉ. पाठक की वजह से सुलभ पूरी दुनिया में प्रसिद्ध

इस शुभ अवसर पर


13 - 19 अगस्त 2018

05

आवरण कथा

सुलभ संस्था के अध्यक्ष एस पी सिंह अतिथियों को संबोधित करते हुए

पूर्व महिला स्कैवेंजर्स की मार्मिक कहानी सुनाते डॉ. पाठक सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के कार्यकारी अध्यक्ष एस. चटर्जी ने कहा कि यह वास्तव में हमारे लिए बड़े विशेषाधिकार का विषय है कि आपने हमें सुलभ इंटरनेशनल की विभिन्न गतिविधियों को दिखाने का अवसर दिया। लेकिन आज आप जो देख रहे हैं, 45 साल पहले वह नहीं था। आज की सारी उपलब्धियां, एक ऐसे व्यक्ति के प्रयासों पर खड़ी हुई हैं, जिनके पास एक महान विजन था, जिन्होंने समाज में आपत्तियों और विपत्तियों के बावजूद सपने देखे, बड़े लक्ष्य बनाए और इन्हें साकार किया जैसा आप आज देख रहे हैं। अंत में यह हमारे संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक के मिशन की उपलब्धियां है, जिसने न केवल देश के भीतर, बल्कि दुनिया भर में सुलभ के लिए एक

जगह बनाई है। उन्हें 1991 में पद्म भूषण और कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इसके साथ ही न्यूयॉर्क शहर के मेयर द्वारा उन्हें बड़ा सम्मान मिला, जब 14 अप्रैल को 'डॉ. विन्देश्वर पाठक दिवस' घोषित किया गया। ऐसे व्यक्ति के लिए, जो पिछले 50 वर्षों में मानव जाति की सेवा में रहा हो, इससे अधिक और क्या सम्मान हो सकता है? जैसा कि ब्रैड हैनसेन ने

‘द चर्च ऑफ जीसस क्राइस्ट ऑफ लैटर-डे सेंटस’ के बारे में

द चर्च ऑफ जीसस क्राइस्ट ऑफ लैटर-डे सेंटस’ (एलडीएस चर्च), जिसे अक्सर अनौपचारिक रूप से मॉर्मन चर्च के नाम से जाना जाता है, एक गैर-त्रिरूपेश्वारवाद, ईसाई पुनर्स्थापनात्मक चर्च है, जिसे उसके सदस्य यीशु मसीह द्वारा स्थापित मूल चर्च में मनाते हैं। चर्च का मुख्यालय संयुक्त राज्य अमेरिका के उटाह में साल्ट लेक सिटी में स्थित है और इसने दुनिया भर में मंदिरों का निर्माण किया है। चर्च के अनुसार, इसकी 67,000

कहा कि मानवता की सेवा भगवान की सेवा है। सुलभ भी इसी आदर्श वाक्य में विश्वास करता है। हमारे संस्थापक डॉ. पाठक ने इसे मुख्य कार्य में ले आए हैं। उन्होंने पहले से ही दिखाया है कि 15 साल के दौरान मैला ढोने वाले से ब्राह्मण बनने तक का सफर वास्तव में सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह सारे बदलाव एक अहिंसक तरीके से लाए गए हैं। और समाज ने इसे बिना किसी आपत्ति के स्वीकार भी किया है। मुझे यकीन है कि हमारे प्रतिष्ठित अतिथि यहां से जो संदेश लेकर जाएंगे, वह कुछ उस तरह का होगा जैसा वे अपने चर्च में पिछले कई वर्षों से कर रहे हैं। कार्यक्रम में प्रार्थना कक्ष के अंदर, मेहमानों को पारंपरिक तरीके से शॉल और माला के साथ स्वागत किया गया, साथ ही उन्हें मधुबनी पेंटिंग्स और स्मृति चिन्ह भेंट स्वरूप दिए गए।

सुलभ का दौरा

मेहमानों ने सुलभ ग्राम का दौरा किया। वे ‘सुलभ स्वच्छता रथ’ के अंदर गए और दूरदराज के इलाकों में स्वच्छता के संदेश को फैलाने की व्यवस्था का अनुभव किया। उन्होंने, सार्वजनिक शौचालय आधारित बायोगैस संयंत्र, सुलभ हेल्थ सेंटर, वॉटर एटीएम और ईंधन के रूप में बायोगैस प्रयोग करती रसोई का दौरा किया। सुलभ पब्लिक स्कूल में उन्होंने व्यावसायिक प्रशिक्षण देने वाले शिक्षकों से मुलाकात की, उन्होंने छात्रों को सस्ता और साफ सैनिटरी नैपकिन बनाने और निर्माण करते देखने में अधिक रुचि दिखाई। पूरी दुनिया में अपनी तरह का पहला, सुलभ टॉयलेट म्यूजियम देखकर मेहमानों को आश्चर्य हुआ, साथ ही उन्हें पता चला कि भारत फ्लश शौचालय और सीवर प्रणाली का चैंपियन है।

सुलभ की लाजवाब टेक्नोलॉजी

सुलभ ग्राम के दौरे के दौरान बायोगैस प्लांट को देखकर ‘द चर्च ऑफ जीसस क्राइस्ट ऑफ लैटरडे सेंटस’ के सदस्य आश्चर्यचकित रह गए। यह टेक्नोलॉजी सच में लाजवाब है और इससे प्रदूषण भी कम किया जा सकता है। विभिन्न तरह के सुलभ शौचालय देखकर उन्होंने तकनीक की खूब सराहना की। सुलभ के टू-पिट-पोर-फ्लश शौचालय के मॉडल को देखकर सभी अतिथि बहुत प्रभावित हुए।

सुलभ म्यूजियम

से अधिक मिशनरी हैं और इसके सदस्य 160 लाख से ज्यादा हैं। 2012 में, इसे चर्चों की राष्ट्रीय परिषद द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका में चौथा सबसे बड़ा ईसाई संप्रदाय घोषित किया गया था, जिससे जनवरी 2018 तक 6.5 मिलियन से अधिक लोग जुड़े हुए थे। यह दूसरे पुनर्जागरण के रूप में जाने वाले ‘धार्मिक पुनर्जागरण’ की अवधि के दौरान लैटर डे सेंट आंदोलन का ‘जोसेफ स्मिथ’ द्वारा स्थापित सबसे बड़ा संप्रदाय है।

डाना हैनसेन ने जहां म्यूजियम का आनंद लिया और सभी प्रकार के अजब-गजब शौचालयों के बारे में जाना, वहीं जेनेट और ग्रांट हर्स्ट ने भी इस मौके पर कहा कि वास्तव में सुलभ की सभी पहलों और प्रयासों के बारे में जानना रोमांचक है और समाज को लेकर दृष्टिकोण भी बहुत शानदार है। उन्होंने बताया कि सुलभ ग्राम की उनकी यात्रा वास्तव में उनके लिए बहुत ‘जानकारीपूर्ण’ थी। हड़प्पा सभ्यता से लेकर मुगलकाल तक और ब्रिटिश शासन से लेकर वर्तमान के आधुनिक शौचालायों के माडल देखकर सदस्यों ने म्यूजियम की काफी सराहना की।


06

स्वतंत्रता दिवस विशेष

13 - 19 अगस्त 2018

स्वाधीन भारत की पहली सरकार

भा

आजादी के साथ भारत ने देश विभाजन का दंश जरूर झेला, पर राष्ट्रीयता की भावना को कमजोर नहीं पड़ने दिया। इसके पीछे सबसे बड़ी प्रेरणा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी रहे। यही कारण है देश में जो पहली सरकार बनी, वह एक राष्ट्रीय चरित्र वाली सरकार थी, क्योंकि इसमें कई दलों और विचारों के लोग शामिल थे

रत का स्वाधीनता आंदोलन जब 15 अगस्त, 1947 को अपने आखिरी मुकाम तक पहुंचा तो इसके साथ ही देश एक नए युग में प्रवेश कर गया। इतिहास के पन्नों में ये घटनाक्रम सुनहरे पन्नों पर अंकित है। 15 अगस्त को 32 करोड़ लोगों ने आजादी की सुबह देखी थी। आज हमारा देश जनसंख्या ही नहीं, बल्कि विकास के मामले में भी काफी आगे निकल गया है। पर हमारे लिए यह जरूरी है कि हम देश की स्वाधीनता से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को जानें-समझें।

एकसूत्र में बंधा देश

गौरतलब है कि दुनिया के कई देशों ने अपनी स्वाधीनता के लिए बड़ा संघर्ष किया है। पर भारतीय स्वाधीनता संघर्ष इस लिहाज से विलक्षण रहा कि इसमें जहां हिंसा की जगह अहिंसा को ज्यादा महत्व मिला, वहीं यह पूरे देश को एकसूत्र में बांधने का एक ऐतिहासिक अवसर भी बना। महात्मा गांधी के नेतृत्व में चले इस स्वाधीनता संग्राम को मिली सफलता की चमक देश के बंटवारे के कारण थोड़ी फीकी जरूर पड़ी, पर आजाद भारत में जिस तरह लोकतांत्रिक व्यवस्था ने पहले दिन से अपनी जड़ें गहरी जमाने की कोशिशें की, वह अद्भुत है। इस कोशिश की सबसे बड़ी मिसाल

स्वतंत्र भारत में पहली सरकार है। यह कोई दलगत नहीं बल्कि राष्ट्रीय सरकार थी, क्योंकि इसमें कई दलों और विचारों के लोग शामिल थे।

दलगत राजनीति से परहेज

दिलचस्प है कि स्वतंत्र भारत की पहली सरकार के चरित्र को दलीय न रहने देने के बजाय राष्ट्रीय और सर्व-समन्वयी बनाए रखने के पीछे भी सबसे बड़ी प्रेरणा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ही थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू के प्रधानमं​ित्रत्व में बने मंत्रिमंडल में पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी को शामिल करने को लेकर तो उन्होंने खासतौर पर जोर दिया था। गांधीजी ऐसा इसीलिए कर रहे थे, क्योंकि तब उनके सामने सबसे बड़ा लक्ष्य देश में सामाजिक सद्भाव को कायम रखना था। वे नहीं चाहते थे कि देश में पहली सरकार ऐसी बने, जिसके मंत्रिमंडल को लेकर लोगों के बीच यह संदेश जाए कि इनमें कुछ खास वर्गों और विचारों का तो प्रतिनिधित्व है पर सबका नहीं है।

बापू की प्राथमिकता

देश में शांति और सद्भाव तब गांधीजी के लिए इतना महत्वूर्ण था कि वे आजादी के दिन दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर बंगाल के नोआखली में थे, जहां उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए अनशन भी किया। गौरतलब है कि जब तय हो गया कि भारत 15 अगस्त को आजाद होगा तो जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी को खत भेजा। इस खत में लिखा था, ‘15 अगस्त हमारा पहला स्वाधीनता दिवस होगा। आप राष्ट्रपिता हैं। इसमें शामिल हों अपना आशीर्वाद दें।’ गांधी ने इस खत का जवाब भिजवाया, जिसमें उन्होंने लिखा, ‘जब कलकत्ते में हिंदू-मुस्लिम एक-दूसरे की जान ले रहे हैं। ऐसे में मैं जश्न मनाने के लिए कैसे आ सकता हूं। मैं दंगा रोकने के लिए अपनी जान दे दूंगा।’ गांधी और देश की आजादी से जुड़ा एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जवाहर लाल नेहरू ने

स्वतंत्र भारत की पहली सरकार के चरित्र को दलीय न रहने देने के बजाए राष्ट्रीय और सर्व-समन्वयी बनाए रखने के पीछे भी सबसे बड़ी प्रेरणा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ही थे

खास बातें देश की पहली कैबिनेट में हर विचार और समुदाय को प्रतिनिधित्व महात्मा गांधी की सलाह पर शामिल किए गए डॉ. मुखर्जी कैबिनेट की अकेली महिला सदस्य थीं राजकुमारी अमृत कौर

ऐतिहासिक भाषण 'ट्रायस्ट विद डेस्टनी' 14 अगस्त की मध्यरात्रि को वायसराय लॉज (मौजूदा राष्ट्रपति भवन) से दिया था। दिलचस्प है कि तब नेहरू प्रधानमंत्री नहीं बने थे। रही बात बापू की तो भले इस भाषण को पूरी दुनिया ने सुना, लेकिन गांधी जी उस दिन नौ बजे सोने चले गए थे।

नियति से वादा

कई वर्ष पहले हमने नियति से एक वादा किया था और अब समय आ गया है कि हम अपना वादा निभाएं, पूरी तरह न सही पर बहुत हद तक


07

स्वतंत्रता दिवस विशेष

13 - 19 अगस्त 2018

पहली कैबिनेट के सदस्य 1. पंडित जवा​हर लाल नेहरू

प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने देश के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली। उस दौरान उनके पास विदेश मंत्रालय, राष्ट्रमंडल संबंध मंत्रालय और वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्रालय भी थे।

2. सरदार पटेल

गृह और सूचना एवं प्रसारण मंत्री भारत की एकता को अपना परम उद्देश्य मानने वाले और सभी रियासतों को एकजुट कर भारत गणराज्य में शामिल कराने वाले लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारत के उप प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। उस वक्त उनके पास गृह और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी थी।

1

4. डॉ. ‌भीमराव आंबेडकर

रेल एवं परिवहन मंत्री जॉन मथाई एक अर्थशास्त्री थे, जो भारत के पहले रेल एवं परिवहन मंत्री बने। बाद में उन्होंने भारत के वित्त मंत्री के रूप में भी सराहनीय कार्य किया।

6. मौलाना अबुल कलाम आजाद

शिक्षा मंत्री देश की शिक्षा व्यवस्था उस वक्त तक अंग्रेजों के मुताबिक ही थी। लेकिन जब आजाद ने देश के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में शपथ ली, तो देश की शिक्षा व्यवस्था को नई उंचाइयां मिलीं।

7. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी

उद्योग और आपूर्ति मंत्री किसी भी नए आजाद हुए मुल्क के लिए उद्योग और आपूर्ति दोनों का तत्काल बेहतर होना बेहद ही जरूरी होता है। डॉ. मुखर्जी एक बेहतर राजनीतिज्ञ के साथ मशहूर बैरिस्टर भी थे।

8. डॉ. राजेंद्र प्रसाद

खाद्य और कृषि मंत्री डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने देश के पहले खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में शपथ ली थी। आगे चलकर 26 जनवरी 1950 को वे देश के प्रथम राष्ट्रपति बने।

13

2

कानून मंत्री डॉ. आंबेडकर जाने-माने विधिशास्त्री, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और सामाजिक सुधारक थे। देश के पहले विधि मंत्री को ही आगे देश के संविधान निर्माता होने का श्रेय भी मिला।

5. जॉन मथाई

8 5

3. आरके षणमुगम शेट्टी

वित्त मंत्री आरके षणमुगम वरिष्ठ अधिवक्ता, अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ थे। स्वतंत्र भारत के पहले वित्त मंत्री बने।

12

4

9 6

14 10

3

9. जगजीवन राम

श्रम मंत्री जगजीवन राम ने देश के पहले श्रम मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला। उन्होंने ऑल इंडिया डिप्रेस्ड क्लासेस में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

10. बलदेव सिंह

रक्षा मंत्री बलदेव सिंह एक सिख राजनेता थे। स्वाधीन भारत में उनके मजबूत कंधों पर देश की रक्षा का भार आया।

11. राजकुमारी अमृत कौर

15

7

स्वास्थ मंत्री राजकुमारी अमृत कौर ने स्वतंत्र भारत के पहले स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर पदभार संभाला। उन्होंने पूरी तन्मयता से 10 साल तक कार्य किया था। वह एक प्रतिष्ठित गांधीवादी, स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता थीं।

वह संविधान सभा के सदस्य भी थीं।

11

12. सीएच भाभा

वाणिज्य मंत्री एक पारसी उद्यमी और कैबिनेट में शामिल होने से पहले वे ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी के डायरेक्टर थे। कैबिनेट में उनका चयन मौलाना आजाद के जोर देने पर पारसी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए हुआ था।

13. रफी अहमद किदवई संचार मंत्री

आजाद भारत की संचार व्यवस्था की जिम्मेदारी रफी अहमद किदवई के कंधों पर आई। उन्होंने देश के पहले संचार मंत्री के रूप में शपथ ली थी।

14. नरहर विष्णु गाडगिल

कार्य, खान एवं ऊर्जा मंत्री महाराष्ट्र के महान स्वाधीनता सेनानी होने के साथ अंग्रेजी और मराठा भाषा के वरिष्ठ लेखक नरहर विष्णु गाडगिल पहले कार्य, खान एवं ऊर्जा मंत्री थे।

15. के.सी. नियोगी

राहत और पुनर्वास मंत्री प्रमुख स्वाधीनता सैनिक। बाद में प्रथम वित्त आयोग अध्यक्ष और संविधान सभा के भी सदस्य रहे के.सी. नियोगी देश के पहले राहत और पुनर्वास मंत्री बने।


08

स्वतंत्रता दिवस विशेष

13 - 19 अगस्त 2018

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी

भारतीय उद्यम को प्रतिष्ठा 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने तो स्वयं महात्मा गांधी एवं सरदार पटेल ने डॉ. मुखर्जी को तत्कालीन मंत्रिपरिषद में शामिल करने की सिफारिश की और नेहरू द्वारा डॉ. मुखर्जी को मंत्रिमंडल में लेना पड़ा हुकूमत को रास नहीं आई।

बंगाल विभाजन

डॉ

. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का स्वतंत्रता से पूर्व और स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र निर्माण में ऐतिहासिक योगदान है। भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत 1937 में संपन्न हुए प्रांतीय चुनावों में बंगाल में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था। यह चुनाव ही डॉ. मुखर्जी के राजनीति का प्रवेश काल था। कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी और मुस्लिम लीग एवं कृषक प्रजा पार्टी को भी ठीक सीटें मिली थीं। बंगाल में लीगी सरकार का गठन हो गया। लीगी सरकार के गठन के साथ ही अंग्रेज हुकूमत अपनी मंशा में कामयाब हो चुकी थी।

लीग का मुखर विरोध

लीगी सरकार के समक्ष जब सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस उदासीन रुख रखे हुए थी। ऐसे में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी तत्कालीन नीतियों का मुखर विरोध करने वाले सदस्य थे। उन्होंने मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक नीतियों और तत्कालीन सरकार की कार्यप्रणाली का हर मोर्चे पर खुलकर विरोध किया। तत्कालीन सरकार द्वारा बंगाल विधानसभा में कलकत्ता म्युनिसिपल बिल रखा गया था, जिसके तहत

तो निभाएं। आधी रात के समय, जब दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता के लिए जाग जाएगा। ऐसा क्षण आता है, मगर इतिहास में विरले ही आता है, जब हम पुराने से बाहर निकल नए युग में कदम रखते हैं, जब एक युग समाप्त हो जाता है, जब एक देश की लंबे समय से दबी हुई आत्मा मुक्त होती है। यह संयोग ही है कि इस पवित्र अवसर पर हम भारत और उसके लोगों की सेवा करने के लिए

मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन का प्रावधान था। इस बिल का उस दौर में अगर सर्वाधिक मुखर विरोध किसी एक नेता ने किया तो वे डॉ. मुखर्जी थे। दरअसल, लीगी सरकार द्वारा हिंदू बहुल क्षेत्रों में हिंदुओं की भागीदारी को सीमित करने की यह एक साजिश थी, जिसका विरोध उन्होंने किया था।

श्यामा-हक कैबिनेट

वर्ष 1937 से लेकर 1941 तक फजलुल हक और लीगी सरकार चली और इससे ब्रिटिश हुकूमत ने फूट डालो और राज करो की नीति को मुस्लिम लीग की आड़ में हवा दी। लेकिन अपनी राजनीतिक सूझबूझ की बदौलत डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1941 में बंगाल को मुस्लिम लीग के चंगुल से मुक्त कराया और फजलुल हक के साथ गठबंधन करके नई सरकार बनाई। इस सरकार में डॉ. मुखर्जी के प्रभाव का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह साझा सरकार ‘श्यामा-हक कैबिनेट’ के नाम से मशहूर हुई। इस सरकार में डॉ. मुखर्जी वित्तमंत्री बने थे। श्यामा प्रसाद ने नई सरकार के माध्यम से बंगाल को स्थिरता की स्थिति में लाने की दिशा में ठोस कदम उठाना शुरू किया तो यह बात ब्रिटिश

तथा सबसे बढ़कर मानवता की सेवा करने के लिए समर्पित होने की प्रतिज्ञा कर रहे हैं... ये वे शब्द हैं, जो आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 15 अगस्त 1947 को देश की आजादी की घोषणा करते हुए कहे थे। आजादी की घोषणा होते ही देशवासियों की आंखों में सिर्फ सुनहरे सपने थे। जो कि वर्षों से अंग्रेजों की गुलामी की दास्ता से मुक्त हो चुके थे।

अंग्रेज लगातार बंगाल को अस्थिर करने की कोशिशों में लगे रहे। मिदनापुर त्रासदी से जुड़े एक पत्र में उन्होंने बंगाल के गवर्नर जॉन हर्बर्ट को कहा था, ‘मैं बड़ी निराशा और विस्मय से कहना चाहूंगा कि पिछले सात महीनों के दौरान आप यह बताते रहे कि किसी भी कीमत पर मुस्लिम लीग से समझौता कर लेना चाहिए था।’ ब्रिटिश हुकूमत की सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने वाली नीतियों के प्रति मन में उठे विरोध के भाव ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को त्यागपत्र देने पर मजबूर कर दिया। लेकिन उन्होंने मुस्लिम लीग को बंगाल की सत्ता से किनारे करके अंग्रेजों की मंशा पर पानी फेरने का काम तो कर ही दिया था। बंगाल विभाजन के दौरान हिंदू अस्मिता की रक्षा में भी डॉ. मुखर्जी का योगदान बेहद अहम माना जाता है। हिंदुओं की ताकत को एकजुट करके डॉ. मुखर्जी ने पूर्वी पाकिस्तान में बंगाल का पूरा हिस्सा जाने से रोक लिया था। अगर डॉ. मुखर्जी नहीं होते तो आज पश्चिम बंगाल भी पूर्वी पाकिस्तान (उस दौरान के) का ही हिस्सा होता, लेकिन हिंदुओं के अधिकारों को लेकर वे अपनी मांग और आंदोलन पर अडिग रहे, लिहाजा बंगाल विभाजन संभव हो सका।

नेहरू की कैबिनेट में

वर्ष 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने तो स्वयं महात्मा गांधी एवं सरदार पटेल ने डॉ. मुखर्जी को तत्कालीन मंत्रिपरिषद में शामिल करने की सिफारिश की और नेहरू को डॉ.

यही वो पल था जब पंडित जवाहर लाल नेहरू ने प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में पद ग्रहण किया और वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पहले गवर्नर जनरल के रूप में अपना पदभार संभाला। भारत को अपना पहला वजीर-ए-आजम मिल चुका था, अब बस जरूरत थी सियासत को चलाने के लिए दूसरे सहयोगी मंत्रियों की। देश के पहले यूनियन कैबिनेट के गठन की रूपरेखा तैयार हो चुकी थी बस उसे

मुखर्जी को मंत्रिमंडल में लेना पड़ा। डॉ. मुखर्जी देश के प्रथम उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री बने। उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री के रूप में उन्होंने कम समय में उल्लेखनीय कार्य किए। अपने छोटे से कार्यकाल में डॉ. मुखर्जी ने भावी भारत के औद्योगिक निर्माण की दिशा में जो बुनियाद रखी उसको लेकर किसी के मन में को संदेह नहीं होना चाहिए। प्रशांत कुमार चटर्जी की किताब ‘डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एंड इंडियन पॉलिटिक्स’ में उनके द्वारा बेहद कम समय में किए औद्योगिक विकास के कार्यो का विस्तार से उल्लेख है। भावी भारत के औद्योगिक निर्माण की जो कल्पना डॉ. मुखर्जी ने उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री रहते हुए की थी, उसके परिणामस्वरूप औद्योगिक विकास के क्षेत्र में देश ने कई प्रतिमान स्थापित किए। नीतिगत स्तर पर उनके द्वारा किए गए प्रयास भारत के औद्योगिक विकास में अहम कारक बनकर उभरे।

औद्योगिक भारत की नींव

उनके कार्यकाल में ही ऑल इंडिया हैंडिक्राफ्ट बोर्ड, ऑल इंडिया हैंडलूम बोर्ड, खादी ग्रामोद्योग की स्थापना हुई थी। जुलाई 1948 में इंडस्ट्रियल फाइनांस कॉरपोरेशन की स्थापना हुई। डॉ. मुखर्जी के कार्यकाल में देश का पहला भारत निर्मित लोकोमोटिव एसेंबल्ड पार्ट इसी दौरान बना और चितरंजन लोकोमोटिव फैक्ट्री भी शुरू की गई। चटर्जी की किताब में इस बात का बड़े स्पष्ट शब्दों में जिक्र है कि भिलाई प्लांट, सिंदरी फर्टिलाइजर सहित कई और औद्योगिक कारखानों की परिकल्पना मंत्री रहते हुए डॉ. मुखर्जी ने की थी, जो बाद में पूरी भी हुईं। हालांकि कुछ साल बाद उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया।

मूर्त्त रूप देना बाकी था। इसके लिए राष्ट्रपिता की सलाह को सबने महत्व दिया। इस कैबिनेट में शामिल राजनेताओं में सरदार पटेल से लेकर डॉ. आंबेडकर तक कई दिग्गजों के नाम शामिल थे। पंडित नेहरू ने भी हर तरह के मतांतर को एक किनारे रखते हुए महात्मा गांधी की सलाह पर देश की पहली कैबिनेट को एक ऐसे गुलदस्ते की शक्ल दी।


13 - 19 अगस्त 2018

स्वतंत्रता दिवस विशेष

भारत के आसपास के देशों को स्वाधीनता 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो एशिया और उसके बाहर भी मुल्कों के आजाद होने का एक सिलसिला चल रहा था। देश आजाद हो रहे थे और एक दूसरे की आजादी में मदद कर रहे थे। देखिए भारत के आसपास के मुल्कों को आजादी कब मिली।

पाकिस्तान- 14 अगस्त 1947

भारत का बंटवारा करके पाकिस्तान का जन्म हुआ और भारत की आजादी से ठीक एक दिन पहले ये नया देश अस्तित्व में आया। इस आजादी में विभाजन का दर्द छिपा था जो 70 साल के बाद भी दोनों मुल्कों के लोगों को तकलीफ देता है।

इंडोनेशिया- 17 अगस्त 1945

इंडोनेशिया ने डच शासन से खुद को इसी दिन आजाद घोषित किया था और तब ब्रिटिश इंडिया उन शुरुआती देशों में था जिसने इसे मान्यता दी थी। हालांकि तब भारत खुद अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था।

म्यांमार- 4 जनवरी 1948

भारत के पड़ोसी देश म्यांमार को 1948 में आजादी मिली तब इसका नाम बर्मा था। आजादी की लड़ाई में सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज बर्मा के रास्ते ही भारत आई थी।

श्रीलंका- 4 फरवरी 1948

श्रीलंका को इसी दिन ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिली।

इस दिन को यहां राष्ट्रीय छुट्टी रहती है और पूरे देश में समारोह मनाया जाता है।

चीन- 1 अक्टूबर 1949

चीन हर साल एक अक्टूबर को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है। इसी दिन थियानमेन चौक पर सेंट्रल पीपुल्स गर्वनमेंट का गठन हुआ था। हालांकि पीपुल्स रिप​ब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना 21 सितंबर को ही हो गई थी लेकिन सरकार के गठन को ही चीन की सरकार ने आपना राष्ट्रीय दिवस घोषित किया।

मलेशिया- 31 अगस्त 1957

मलेशिया की आजादी आसपास के दूसरे देशों की तुलना में इसीलिए थोड़ी अलग है, क्योंकि इस मुल्क को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए हासिल हो गई। एक साल पहले तय हुए समझौते का इसी दिन सार्वजनिक एलान हुआ था।

बांग्लादेश- 26 मार्च 1971

पाकिस्तान का हिस्सा रहे इस धरती को शेख मुजीबुर रहमान ने आजाद घोषित कर दिया। इसके बाद 9 महीने

के खूनी संघर्ष और भारत से मिले सैनिक सहयोग की बदौलत बाग्लादेश अपनी आजादी हासिल करने में कामयाब हुआ।

नेपाल

हिमालय की तलहटी में बसा छोटा सा पहाड़ी देश नेपाल दुनिया का इकलौता मुल्क है जो कभी भी गुलाम नहीं रहा। यह अपने पूरे इतिहास में हमेशा आजाद रहा है।

भूटान- 17 दिसंबर 1907

भूटान दुनिया के उन देशों में हैं जो इतिहास में ज्यादातर आजाद रहे। भूटान पर किसी का शासन नहीं था, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि तिब्बत के कामरूप शासन ने उन्हें कुछ वक्त तक अपने अधीन रखा था। 1907 की इस तारीख से ही वांगचुक वंश ने देश की बागडोर अपने हाथ में ली। भूटान इसे ही अपना राष्ट्रीय दिवस मानता है।

राजकुमारी अमृत कौर

एम्स की स्थापना का श्रेय

रा

राजकुमारी अमृत कौर 1947 से 1957 तक वह भारत सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहीं। महात्मा गांधी के प्रभाव में राजनीति में आईं राजकुमारी कौर ने ही दिल्ली में एम्स की स्थापना कराई थी

जकुमारी अमृत कौर आजाद भारत की पहली भारतीय महिला थीं, जिन्हें केंद्रीय मंत्री बनने का मौका मिला। वे जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में पहले मंत्रिमंडल में बतौर स्वास्थ्य मंत्री शामिल थीं। विदेश में पढ़ाई करने के बाद वो वापस भारत लौटीं और स्वतंत्रता संग्राम में जुट गईं। महात्मा गांधी के प्रभाव में आने के बाद उन्होंने भौतिक जीवन की सभी सुख-सुविधाओं को छोड़ दिया और तपस्वी का जीवन अपना लिया। उन्होंने 16 साल तक गांधीजी के सचिव का भी काम किया। 1930 में जब दांडी मार्च की शुरुआत हुई, तब अमृत कौर ने बापू के साथ यात्रा की और जेल की सजा भी काटी। 1934 से वे गांधी जी के आश्रम में रहने लगी। उन्हें भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भी जेल हुई।

नई दिल्ली में एम्स की स्थापना में भी अमृता कौर ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। वह एम्स की पहली महिला अध्यक्ष थीं। उन्होंने शिमला में अपनी पैतृक संपत्ति और घर को संस्थान और कर्मचारियों के लिए दान कर दिया था। साल 1950 में उन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन का अध्यक्ष बनाया गया। यह सम्मान हासिल करने वाली वह पहली एशियाई महिला थीं। 1954 में यूनेस्को की बैठकों में सम्मिलित होने के लिए जो भारतीय प्रतिनिधि दल लंदन गया था, राजकुमारी अमृत कौर उसकी उपनेत्री थीं। 1947 से 1957 तक वह भारत सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहीं। उन्हें खेलों से बहुत लगाव था। नेशनल स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया की स्थापना उन्होंने ही की थी।

09


10

आयोजन

13 - 19 अगस्त 2018

‘होप’ एक स्वास्थ्य आंदोलन इस साल गुरुग्राम में आयोजित होप इनिशिएटिव ने अपने 6 साल पूरे किए

उरूज फातिमा

क लड़का था जो एक मेडिकल टेस्ट में खुद को एचआईवी पॉजिटिव पाता है, जैसे ही उसके गांव वालों को इसके बारे में पता चला, उन्होंने उससे मिलना-जुलना और बातें करना बंद कर दिया। यही नहीं, उसकी अपनी मां ने भी उसे छोड़ दिया। ऐसा इसीलिए है, क्योंकि लोगों को एड्स और हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों के बारे में ज्यादा पता नहीं है और यह आम गलत धारणा है कि जो भी इन बीमारियों से पीड़ित रोगी को छुएगा, अपने आप ही संक्रमित हो जाएगा। वह लड़का अपने घर से भाग गया और दिल्ली आ गया। एक नए स्थान पर जिंदा रहने के तमाम संघर्षों के बीच, वह बिना पैसों के खतरनाक बीमारी से लड़ रहा था। एक दिन उसने एक गैर सरकारी संगठन की सड़क किनारे लगा हुआ होर्डिंग देखा, यह संगठन एचआईवी पॉजिटिव या हेपेटाइटिस बी और सी से पीड़ित लोगों के लिए कार्य करता था। वह किसी तरह से उस गैर सरकारी संगठन के पास जाने में कामयाब रहा और उसके बाद उसकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई। अब, वह एक विवाहित

खास बातें

साल 2004 में गुरुदास चौधरी द्वारा लखनऊ में स्थापना की गई लोगों को हेपेटाइटिस के बारे अधिक जागरूक होना चाहिए होप कॉन्क्लेव में डॉ. पाठक मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए

व्यक्ति है, आईवीएफ तकनीक की मदद से उनका एक बच्चा है। साथ ही, वह खुद एचआईवी पॉजिटिव लोगों के लिए सफलतापूर्वक अपना एक एनजीओ चला रहा है। तो, यह पूरी कहानी है कि हमारा समाज इन रोगियों के साथ किस तरह का व्यवहार करता है। आम तौर पर, लोग बहुत जल्द उम्मीद छोड़ देते हैं या यूं कहें कि हम एक समाज के रूप में, उन्हें अपनी बीमारी से लड़ने के लिए साहस देने के बजाए, उम्मीद छोड़ देने के लिए प्रेरित करते हैं। हमें, लोगों को इन बीमारियों के बारे में और अधिक जागरूक करना चाहिए। खासकर, ग्रामीण क्षेत्रों में, और रोगी को इससे लड़ने में मदद करनी चाहिए। वर्ल्ड हेपेटाइटिस जागरूकता दिवस (28 जुलाई) के एक कार्यक्रम में 4 अगस्त, 2018 को गुड़गांव के होटल पलाजियो में सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। हेपेटाइटिस जागरुकता के एक महीने लंबे अभियान के बाद होप इनिशिएटिव द्वारा आयोजित ‘होप कॉन्क्लेव’ में डॉ. पाठक ने एक सच्ची कहानी सुनाई। डॉक्टरों (चिकित्सा प्रतिनिधियों), कॉरपोरेट भागीदारों, एनजीओ भागीदारों, हेपेटाइटिस से पीड़ित मरीजों, शैक्षणिक क्षेत्र के विशेषज्ञ आदि ने इस संगोष्ठी में भाग लिया। डॉ. पाठक का स्वागत करते हुए, अरुंधती चौधरी ने कहा, ‘मुझे बहुत खुशी है कि डॉ पाठक मुख्य अतिथि के रूप में यहां आए। वह सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के संस्थापक हैं। डॉ. पाठक को भारत के ‘टॉयलेट मैन’ के रूप में भी जाना जाता है। साथ ही, उन्हें मानवाधिकार, पर्यावरण स्वच्छता, ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोत और कुप्रबंधन के बारे जोर-शोर से काम करने के लिए भी जाना जाता है। वह, भारतीय रेलवे के लिए स्वच्छ ब्रांड एंबेसडर हैं और सामाजिक सुधार और आंदोलन में अग्रणी भूमिका रखते हैं। अगर हमें उनके जैसे और लोग मिल जाएं, तो मुझे यकीन है कि भारत का निश्चित ही एक अलग चेहरा देखने को मिलेगा।’

डॉ. पाठक ने इस मौके पर कहा, ‘मैं होप हेल्थ शिखर सम्मेलन में आमंत्रित करने के लिए, होप इनिशिएटिव और इसके समर्पित कार्यकर्ताओं का बहुत आभारी हूं। हालांकि, यह कार्यक्रम डॉ. चौधरी द्वारा डॉ पाठक को संगठन की ओर से सम्मानित किया गया हेपेटाइटिस डे को लेकर जागरुकता फैलाने के लिए आयोजित किया जा रहा रोकने के लिए स्वच्छता एक अनिवार्य शर्त है। सुलभ है। व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर ये चुनौतियां के आंदोलनों ने पिछले कुछ वर्षों से बीमारी मुक्त व्यापक और भयानक हैं, क्योंकि वे हमारे जीवन को और स्वस्थ भारत बनाने में कई महत्वपूर्ण योगदान खतरे में डालती हैं। साथ ही, हमारे देश में स्वास्थ्य किए हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने देखभाल व्यय के एक महत्वपूर्ण हिस्से को भी के लिए, एक स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण की आवश्यकता को अनसुना नहीं किया जा सकता प्रभावित करती हैं।’ उन्होंने कहा, ‘अब समय आ गया है कि जीवन और हमारे सुलभ आंदोलन ने स्वच्छता से संबंधित को खतरे में डालने वाले हेपेटाइटिस की विभिन्न विभिन्न कार्यों और पहलों के माध्यम से इस संबंध बीमारियों से निपटने के लिए, हम बड़े कदम उठाएं। में कई मानक स्थापित किए हैं। होप इनिशिएटिव ने जुलाई माह में कई इसके लिए, पहले हमें एक समुदाय के रूप में बेहतर और अधिक प्रभावी तरीकों को तैयार करने के लिए, गतिविधियों और कार्यक्रमों का आयोजन किया एक साथ आना होगा। फिर, हमे सभी भारतीयों के है। इनमें हेपेटाइटिस जागरुकता के नियमित स्कूल लिए एक समावेशी स्वास्थ्य प्रणाली सुनिश्चित करने कार्यक्रम के अलावा, कुछ अन्य कार्यक्रम भी हुए। उनमें से हेयर ड्रेसर और ब्यूटी पार्लर्स के के लिए कदम उठाने होंगे। डॉ. पाठक ने आगे अपने विचार रखते हुए कहा, साथ कार्यशालाएं, हेपेटाइटिस के स्क्रीनिंग और ‘हालांकि यह मांग कठिन है, क्योंकि यह देखभाल, टीकाकरण शिविर जैसे कार्यक्रम हैं। यह सम्मेलन, हालांकि हेपेटाइटिस दिवस चीजें साझा करने और कुछ देने की एक नई संस्कृति को विकसित करने के बारे में बात करती है, जिसके कार्यक्रम के रूप में आयोजित किया जा रहा था। बिना स्वस्थ, खुश और रचनात्मक समाज के निर्माण लेकिन इसके साथ ही, यह हमारी अर्थव्यवस्था के विभिन्न स्तरों को प्रभावित करने वाले स्वास्थ्य का हमारा सपना सफल नहीं हो सकता।’ उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे मैं बड़ा हो रहा था, संबंधी मुद्दों, जैसे पोषण, स्वच्छता, और विभिन्न मैं अपने आस-पास के पर्यावरण के बारे जागरूक जीवनशैली विकारों की समस्याओं पर भी ध्यान हो रहा था। मैंने ध्यान दिया कि बेहद गंदी और दिलाना चाहता है। इन बातों के अलावा, कॉन्क्लेव में पैनल चर्चा, हानिकारक स्थितियां हमारी जिंदगियों को घेर रही हैं। पर्यावरण स्वच्छता, जो सुलभ आंदोलन का स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न विषयों पर बच्चों द्वारा प्राथमिक केंद्र है और जन-स्वास्थ्य का अभिन्न प्रस्तुति और कुछ मरीजों के अनुभवों को भी साझा अंग है, क्योंकि बीमारियों की एक लंबी श्रृंखला को किया गया।


13 - 19 अगस्त 2018

स्वास्तिका ‘प्यारे दरसन दीज्यो आय तुम बिन रह्यो न जाय, जल बिन कमल चंद बिन रजनी ऐसे तुम देख्यां बिन सजनी, आकुल व्याकुल फिरूं रैन दिन बिरह कालजो खाय, दिवस न भूख नींद नहिं रैना मुख सूं कथत न आवे बैना।’

डिशा की रहने वाली, प्रोमिला विस्वास कान्हा की नगरी वृंदावन की सड़कों पर घूमती हैं और अगरबत्ती बनाने से उन्हें खास लगाव है। वह बेहद उत्साह के साथ बताती हैं, “मेरी आंखें थोड़ी कमजोर हो गई हैं, इसीलिए अब ज्यादा सिलाई नहीं कर पाती हूं, लेकिन अगरबत्ती बनाना मुझे बहुत पसंद है। इसके आलावा, मैं भगवद गीता पढ़ती हूं, माला जपती हूं, प्रभु का भजन करती हूं...।” लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था। उनकी इस खुशहाल कहानी का एक स्याह पक्ष भी है। प्रोमिला जब 12 साल की थीं तभी उनकी शादी, एक 18 साल के व्यक्ति से हो गई थी। बेहद कम उम्र में शादी के बंधन में बंधने के बाद भी, दोनों ने बेहतर जीवन की उम्मीद में, अपनी जिंदगी की नई शुरुआत की। उनके एक लड़का और लड़की पैदा हुई। प्रोमिला का पति आजीविका चलाने के लिए खेतों में काम करता था, और वह अपने दोनों बच्चों की घर पर देखभाल करती थी। वह चारों, अपनी जिंदगी में बहुत खुश थे। वक्त गुजरा, बच्चे बड़े हुए। प्रोमिला और उसके पति ने अपनी क्षमता के अनुसार दोनों बच्चों की खूब धूमधाम से शादी की। लेकिन एक रात वह हुआ, जिसकी उम्मीद शायद किसी को नहीं थी। प्रोमिला के पति को एक जहरीले सांप ने काट लिया। इससे पहले कि वह कुछ कर पाती, जहर उसके पति के पूरे शरीर में फैल गया। और प्रोमिला का पति, उसे हमेशा के लिए छोड़कर चला गया। यह सब इतनी जल्दी हुआ कि प्रोमिला को कुछ समझ ही नहीं आया। जब सबकुछ ठीक चल रहा था, दोनों खुश थे, दोनों ने

11

जेंडर

प्रोमिला विस्वास

आपका दिल सच्चा हो, फिर भगवान आपके साथ होंगे प्रोमिला को तब नहीं पता था कि वह घर क्यों छोड़ रही हैं, शायद उन्हें भगवान को महसूस करना था और फिर यही हुआ अपने सारे कर्तव्यों का निर्वाहन कर लिया था, तभी भगवान ने उनकी जिंदगी में सब कुछ हमेशा के लिए बदल दिया। प्रोमिला, अब वैधव्य की चादर में लिपटी एक नीरस और रंगहीन जिंदगी जीने लगी थी। उसने मान लिया था कि शायद यही उसका नसीब है। वह अभी अपने पति के दर्द से उबरने की कोशिश कर ही रही थी, कि अचानक एक और भयावह खबर उसके दरवाजे पर दस्तक देने वाली थी। अब काल ने उसकी बेटी की तरफ नजर फेर ली थी। शादी के बाद उसकी बेटी ने एक बच्ची को जन्म दिया, लेकिन बच्ची के जन्म के कुछ ही दिन

हां, मेरी पोती मुझे बहुत याद करती है। लेकिन, मुझे वैधव्य से भरे हर रोज के अपने नीरस जीवन से छुटकारा चाहिए था

बाद, उसकी बेटी की मौत हो गई। बेटी की मौत ने जैसे प्रोमिला को अंदर तक हिला दिया था। लेकिन प्रोमिला ने खुद को संभालते हुए, अपनी बेटी की बच्ची में ही अपनी खुशी तलाशनी शुरू कर दी। उसे लगा कि उसकी बेटी तो गुजर गई है, लेकिन उसके बच्चे के रूप में उसे अपनी बेटी दोबारा मिली है। इसीलिए प्रोमिला ने उसको पालना शुरू कर दिया, पूरे मन से उसकी देखभाल करने लगी। उसने अपने वैधव्य के जीवन को भूलकर एक मां के जीवन को फिर से अपना लिया और उस बच्ची के लिए मां बनकर उसका लालन-पोषण करने लगी। बच्ची को भी अपनी नानी से बहुत लगाव हो चुका था। पांच साल कैसे गुजर गए, पता ही नहीं चला। बच्ची अब थोड़ी बड़ी हो चुकी थी। इसीलिए प्रोमिला के लिए, अब कठिन फैसला करने का वक्त आ गया था। प्रोमिला ने बच्ची की जिम्मेदारी, उसके पिता यानी अपने दामाद को सौंपकर, फिर से वैधव्य भरे जीवन में लौटने का फैसला कर लिया। प्रोमिला ने वृंदावन के बारे में पहले कहीं सुना था, इसीलिए वह जानती थी कि यहां उनके जैसी वैधव्य भरा जीवन जीने वाली विधवाएं रहती हैं। सो, अब प्रोमिला ने भी वृंदावन जाने की तैयारी कर ली। अब प्रोमिला को वृंदावन की पवित्र धरती में जीवन गुजारते हुए लगभग 7 साल हो गए हैं। ‘शुरुआत में, मैं हर दो महीने पर निरंतर वृंदावन आती थी। मैं मीराबाई आश्रम में भजन गाती और गुरुकुल में ठहरती थी। लगभग 7 साल पहले, मैंने यहीं रुकने का फैसला किया। फिर मैं मां शारदा महिला आश्रम में रहने लगी। हां, मेरी पोती मुझे बहुत याद करती है। जब भी मैं उससे मिलने जाती हूं, वह यही कहती है कि यहीं रुक जाओ। वह कहती है कि आप जिंदा हो, फिर भी मुझे यही लगता है कि मेरी नानी अब मेरे साथ नहीं हैं। लेकिन मैंने वही किया जो मैं चाहती थी। मुझे अपने वैधव्य भरे नीरस जीवन के लिए एक उद्देश्य चाहिए था जो मुझे वृंदावन आकर मिला।’ प्रोमिला हर चीज के चमकीले और सकारात्मक पक्ष को देखती हैं। शायद इसी वजह से जब उनसे

खास बातें 12 साल की उम्र में ओडिशा की प्रोमिला की शादी हो गई पति की मौत हो गई, फिर उसकी बेटी भी नहीं रही उसकी पोती, उसके बहुत करीब ही, लेकिन उसने, सबको छोड़ दिया दैनिक जीवन के बारे में पूछा, तो उन्होंने बहुत उत्साह से जवाब दिया। भजन, गीता का सुमिरन, खाना बनाना और खुद भगवान की भक्ति में तल्लीन रखना, यही सब उनकी खुशी का कारण है। और हां, अगरबत्ती बनाना भी उन्हें बहुत भाता है - उसकी खुशबू उन्हें शांति और संतुष्टि देती है। प्रोमिला अब सुलभ द्वारा सहायता प्राप्त आश्रम में रहती हैं और अपनी जिंदगी से संतुष्ट हैं। वह बताती है कि लाल बाबा (डॉ. विन्देश्वर पाठक) की शरण में आकर, उन्हें जीवन जीने के लिए मूलभूत सुविधाओं की कभी कमी नहीं रही। उनके लिए अब हर प्रकार की सहायता उपलब्ध रहती है। प्रोमिला अपने झुर्रियों भरे चेहरे पर आत्मसंतुष्टि की लालिमा के साथ, एक खूबसूरत मुस्कान बिखेरते हुए कहती हैं, ‘मैंने भगवान को कभी नहीं देखा है, लेकिन मैं उसकी उपस्थिति वृंदावन की माटी में महसूस कर सकती हूं। मैं उसे हर किसी में और हर जगह महसूस कर सकती हैं। क्या भगवान हर किसी में नहीं है? मुझमें, तुममे, हर किसी में! बस आपको साफ दिल और भक्ति भाव के साथ करीब से देखना है। यही मुझे वृंदावन ने सिखाया है। जब मैंने घर छोड़ा, मैं नहीं जानती थी कि मैं ऐसा क्यों कर रही हूं। शायद, मैं भगवान की सच्ची उपस्थिति को समझने और महसूस करने वाली थी।’


12

पुस्तक अंश

13 - 19 अगस्त 2018

मित्रता-विषयक मूर्च्छा

पर दया आती है

6 अच्छे संस्कार के लिए अच्छी सोहबत जरूरी है। गांधीजी इस बात को समझते थे पर मित्र धर्म को लेकर उनके मन में हमेशा एक द्वंद्व चलता रहा। नतीजा गलत मित्र की गलत सलाह के वे शिकार हुए। पर कमाल यह कि इसी अनुभव ने उन्हें यह विवेक भी दिया कि जीवन में अच्छे संस्कार और संयम का क्या महत्व है

प्रथम भाग

7. दुखद प्रसंग- 2

निश्चित दिन आया। अपनी स्थिति का संपूर्ण वर्णन करना मेरे लिए कठिन है। एक तरफ सुधार का उत्साह था, जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन करने का कुतूहल था, और दूसरी ओर चोर की तरह छिपकर काम करने की शरम थी। मुझे याद नहीं पड़ता कि

इसमें मुख्य वस्तु क्या थी। हम नदी की तरफ एकांत की खोज में चले। दूर जाकर ऐसा कोना खोजा, जहां कोई देख न सके और कभी न देखी हुई वस्तु - मांस

- देखी! साथ में भटियारखाने की डबल रोटी थी। दोनों में से एक भी चीज मुझे भाती नहीं थी। मांस चमड़े-जैसा लगता था। खाना असंभव हो गया। मुझे कै होने लगी। खाना छोड़ देना पड़ा। मेरी वह रात बहुत बुरी बीती। नींद नहीं आई। सपने में ऐसा भास होता था, मानो शरीर के अंदर बकरा जिंदा हो और रो रहा है। मैं चौंक उठता, पछताता और फिर सोचता कि मुझे तो मांसाहार करना ही है, हिम्मत नहीं हारनी है! मित्र भी हार खानेवाले नहीं थे। उन्होंने अब मांस को अलग-अलग ढंग से पकाने, सजाने और ढंकने का प्रबंध किया। नदी किनारे ले जाने के बदले किसी बावरची के साथ बातचीत करके छिपे-छिपे एक सरकारी डाक-बंगले पर ले जाने की व्यवस्था की और वहां कुर्सी, मेज वगैरह सामान के प्रलोभन मंे मुझे डाला। इसका असर हुआ। डबल रोटी की नफरत कुछ कम पड़ी, बकरे की दया छूटी और मांस का तो कह नहीं सकता, पर मांसवाले पदार्थों में स्वाद आने लगा। इस तरह एक साल बीता होगा और इस बीच पांच-छह बार मांस खाने को मिला होगा, क्योंकि डाक-बंगला सदा सुलभ न रहता था और मांस के स्वादिष्ट माने जानेवाले बढ़िया पदार्थ भी सदा तैयार नहीं हो सकते थे। फिर ऐसे भोजनों पर पैसा भी खर्च होता था। मेरे पास तो फूटी कौड़ी भी नहीं थी, इसलिए मैं कुछ दे नहीं सकता था। इस खर्च की व्यवस्था उन मित्रों को ही करनी होती थी, कैसे व्यवस्था की, इसका मुझे आज तक पता नहीं है। उनका इरादा मुझे मांस की आदत लगा देने का - भ्रष्ट करने का - था, इसीलिए वे अपना पैसा खर्च करते थे। पर उनके पास भी अकूत खजाना नहीं था, इसलिए ऐसी दावतें कभीकभी ही हो सकती थीं। जब-जब ऐसा भोजन मिलता, तब-तब घर पर तो भोजन हो ही नहीं सकता था। जब माताजी भोजन के लिए बुलातीं, तब ‘आज भूख नहीं है, खाना हजम नहीं हुआ है’... ऐसे बहाने बनाने पड़ते थे। ऐसा कहते समय हर बार मुझे भारी आघात पहुंचता था। यह झूठ, सो भी मां के सामने! और अगर माता-पिता

माता-पिता को धोखा न देने के शुभ विचार से मैंने मांसाहार छोड़ा, पर वह मित्रता नहीं छोड़ी। मैं मित्र को सुधारने चला था, पर खुद ही गिरा और गिरावट का मुझे होश तक न रहा। इसी सोहबत के कारण मैं व्यभिचार में भी फंस जाता


13 - 19 अगस्त 2018

को पता चले कि लड़के मांसाहारी हो गए हैं तब तो उन पर बिजली ही टूट पड़ेगी। ये विचार मेरे दिल को कुरेदते रहते थे, इसलिए मैंने निश्चय किया- ‘मांस खाना आवश्यक है, उसका प्रचार करके हम हिंदुस्तान को सुधारेंगे, पर माता-पिता को धोखा देना और झूठ बोलना तो मांस न खाने से भी बुरा है। इसलिए माता-पिता के जीते जी मांस नहीं खाना चाहिए। उनकी मृत्यु के बाद, स्वतंत्र होने पर खुले तौर से मांस खाना चाहिए और जब तक वह समय न आए, तब तक मांसाहार का त्याग करना चाहिए।’ अपना यह निश्चय मैंने मित्र को जता दिया, और तब से मांसाहार जो छूटा, सो सदा के लिए छूटा। माता-पिता कभी यह जान ही न पाए की उनके दो पुत्र मांसाहार कर चुके है। माता-पिता को धोखा न देने के शुभ विचार से मैंने मांसाहार छोड़ा, पर वह मित्रता नहीं छोड़ी। मैं मित्र को सुधारने चला था, पर खुद ही गिरा और गिरावट का मुझे होश तक न रहा। इसी सोहबत के कारण मैं व्यभिचार में भी फंस जाता। एक बार मेरे ये मित्र मुझे वेश्याओं की बस्ती में ले गए। वहां मुझे योग्य सूचनाएं देकर एक स्त्री के मकान में भेजा। मुझे उसे पैसे वगैरह कुछ देना नहीं था। हिसाब हो चुका था। मुझे तो सिर्फ दिल-बहलाव की बातें करनी थी। मैं घर में घुस तो गया, पर जिसे ईश्वर बचाता है, वह गिरने की इच्छा रखते हुए भी पवित्र रह सकता है। उस कोठरी में मैं तो अंधा बन गया। मुझे बोलने का भी होश न रहा। मारे शरम के सन्नाटे में आकर उस औरत के पास खटिया पर बैठा, पर मुंह से बोल न निकल सका। औरत ने गुस्से में आकर मुझे दो-चार खरी-खोटी सुनाई और दरवाजे की राह दिखाई। उस समय तो मुझे जान पड़ा कि मेरी मर्दानगी को बट्टा लगा और मैंने चाहा कि धरती जगह दे तो मैं उसमें समा जाऊं। पर इस तरह बचने के लिए मैंने सदा ही भगवान का आभार माना है। मेरे जीवन में ऐसे ही दूसरे चार प्रसंग और आए हैं। कहना होगा कि उनमें से अनेकों में, अपने प्रयत्न के बिना, केवल परिस्थिति के कारण मैं बचा हूं। विशुद्ध दृष्टि से तो इन प्रसंगों में मेरा पतन ही माना जाएगा। चूंकि विषय की इच्छा की, इसलिए मैं उसे भोग ही चुका। फिर भी लौकिक दृष्टि से, इच्छा करने पर भी जो प्रत्यक्ष कर्म से बचता है, उसे हम बचा हुआ मानते हैं; और इन प्रसंगों में मैं इसी तरह, इतनी ही हद तक, बचा हुआ माना जाऊंगा। फिर कुछ काम ऐसे हैं, जिन्हें करने से बचना व्यक्ति के लिए और उसके संपर्क में आनेवालों के लिए बहुत लाभदायक होता है, और जब विचार शुद्धि हो जाती है तब उस कार्य में से बच जाने कि लिए वह ईश्वर का अनुगृहित होता है। जिस तरह हम यह अनुभव करते हैं कि पतन से बचने का प्रयत्न करते हुए भी मनुष्य पतित बनता है, उसी तरह यह भी एक अनुभव-सिद्ध बात है कि गिरना चाहते हुए भी अनेक संयोगों के कारण मनुष्य गिरने से बच जाता है। इसमें पुरुषार्थ कहां है, दैव कहां है, अथवा किन नियमों के वश होकर मनुष्य आखिर गिरता या बचता है, ये सारे गूढ़ प्रश्न हैं। इसका हल आज तक हुआ नहीं और कहना कठिन है कि अंतिम

13

पुस्तक अंश

संदेह की जड़ तो तभी कटी जब मुझे अहिंसा का सूक्ष्म ज्ञान हुआ, यानी जब मैं ब्रह्मचर्य की महिमा को समझा और यह समझा कि पत्नी पति की दासी नहीं, पर उसकी सहचरिणी है, सहधर्मिणी है। दोनों एक-दूसरे के सुख-दुख के समान साझेदार हैं और भला-बुरा करने की जितनी स्वतंत्रता पति को है उतनी ही पत्नी को है निर्णय कभी हो सकेगा या नहीं। पर हम आगे बढ़े। मुझे अभी तक इस बात का होश नहीं हुआ कि इन मित्र की मित्रता अनिष्ट है। वैसा होने से पहले मुझे अभी कुछ और कड़वे अनुभव प्राफ्त करने थे। इसका बोध तो मुझे तभी हुआ जब मैंने उनके अकल्पित दोषों का प्रत्यक्ष दर्शन किया। लेकिन मैं यथासंभव समय के क्रम के अनुसार अपने अनुभव लिख रहा हूं, इसलिए दूसरे अनुभव आगे आवेंगे। इस समय की एक बात यहीं कहनी होगी। हम दंपति के बीच जो जो कुछ मतभेद या कलह होता, उसका कारण यह मित्रता भी थी। मैं ऊपर बता चुका हूं कि मैं जैसा प्रेमी था वैसा ही वहमी पति था। मेरे वहम को बढ़ानेवाली यह मित्रता थी, क्योंकि मित्र की सच्चाई के बारे में मुझे कोई संदेह था ही नहीं। इन मित्र की बातों में आकर मैंने अपनी धर्मपत्नी को कितने ही कष्ट पहुंचाए। इस हिंसा के लिए मैंने अपने को कभी माफ नहीं किया है। ऐसे दुख हिंदू स्त्री ही सहन करती है, और इस कारण मैंने स्त्री को सदा सहनशीलता की मूर्ति के रूप में देखा है। नौकर पर झूठा शक किया जाए तो वह नौकरी छोड़ देता है, पुत्र पर ऐसा शक हो तो वह पिता का घर छोड़ देता है, मित्रों के बीच शक पैदा हो तो मित्रता टूट जाती है, स्त्री को पति पर शक हो तो वह मन मसोस कर बैठी रहती है, पर अगर पति पत्नी पर शक करे तो पत्नी बेचारी का भाग्य ही फूट जाता है। वह कहां जाए? उच्च माने जानेवाले वर्ण की हिंदू स्त्री अदालत में जाकर बंधी हुई गांठ को कटवा भी नहीं सकती, ऐसा एकतरफा न्याय उसके लिए रखा गया है। इस तरह का न्याय मैंने दिया, इसके दुख को मैं कभी नहीं भूल सकता। इस संदेह की जड़ तो तभी कटी जब मुझे अहिंसा का सूक्ष्म ज्ञान हुआ, यानी जब मैं ब्रह्मचर्य की महिमा को समझा और यह समझा कि पत्नी पति की दासी नहीं, पर उसकी सहचरिणी है, सहधर्मिणी है। दोनों एक दूसरे के सुख-दुख के समान साझेदार हैं और भला-बुरा करने की जितनी स्वतंत्रता पति को है उतनी ही पत्नी को है। संदेह के उस काल को जब मैं याद करता हूं तो मुझे अपनी मूर्खता और विषयांध निर्दयता पर क्रोध आता है और मित्रता-विषयक अपनी मूर्च्छा पर दया आती है।। (अगले अंक में जारी)


14

प्रदर्शनी

13 - 19 अगस्त 2018

आजादी का उत्सव

जनपथ सबवे पर देशभक्ति और आजादी को समर्पित प्रदर्शनी ‘ट्रिम्फ ऑफ मास्टरवर्क्सःअवर नेशनल प्राइड-III’ में लगभग 100 कला वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया

आरके पटनायक की पेंटिंग में एनिमल्स ने इंसानों का मास्क पहना है। वे बहुत खुश भी नजर आ रहे हैं। यह पेंटिंग एक्रेलिक ऑन कैनवस है जो बता रही है कि कैसे हमारे समाज में एक डर समा गया है एक्सप्रेशन के साथ एकदम जीवंत लग रही है। इसके चेहरे पर पड़ी झुर्रियां उस के तजुर्बे को तो बता ही रहा है, वहीं मुंह पर रखा हाथ और हंसी को रोकने की कोशिश बता रही है कि हमें खुश होने की आजादी भी नहीं है। इस माहौल को हर हाल में बदलना होगा।

अपनी पसंद की आजादी

आए और उन्हें खाने के लिए मेंढक भी आ गए। बेशक मुश्किलें हैं, लेकिन उम्मीदें हमेशा बाकी हैं। ये पेटिंग एक मिडिल क्लास सोच को बता रही है। जहां अभावों के बावजूद उम्मीद जिंदा है।

डर से छुटकारा

एसएसबी ब्यूरो

नॉट प्लेस, राजधानी का वह जगह जहां हर कोई घूमने आता है। और जो आता है वह जनपथ के चक्कर जरूर लगाता है, क्योंकि वहां कपड़ों का एक बड़ा बाजार है, लेकिन पिछले दिनों जनपथ की रौनक कुछ ज्यादा ही बढ़ गई। अचानक जनपथ सबवे आउटर सर्किल बहुत ही जीवंत नजर आने लगा। वजह यह था कि यहां लगी देशभक्ति और आजादी को समर्पित प्रदर्शनी। पैट्रोटिज्म से भरपूर यह प्रदर्शनी ‘ट्रिम्फ ऑफ मास्टरवर्क्सःअावर नेशनल प्राइड-III’ में लगभग 100 कला वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया था। जिसमें एक्रेलिक ऑन कैनवस, विंटेज पेपर पर आर्ट वर्क,

ऑयल ऑन कैनवस और फोटोग्राफी आदि शामिल हैं। यहां छात्रों की प्रतिभा को प्रोत्साहित करने के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया और कॉलेज ऑफ आर्ट, दिल्ली के छात्रों के काम को भी प्रदर्शित किया गया था। प्रदर्शनी में शामिल हर कलाकृति आजादी की कहानी को बयां कर रहा था। इसका आयोजन नई दिल्ली नगर परिषद के द्वारा किया गया।

अभी जिंदा हैं उम्मीदें

यहां अंधेरे को रोशन करती उम्मीद की एक लौ जल रही है। किताब में समाजवाद का चैप्टर खुला है। आर्टिस्ट संदीप कुमार कहते हैं, यह पेटिंग हमें बताती है कि कैसे पूंजीवाद के रास्ते हम समाजवाद की ओर जाएंगे। जब दीया जला तो उसके आसपास कीड़े

आरके पटनायक की पेंटिंग में एनिमल्स ने इंसानों का मास्क पहना है। वे बहुत खुश भी नजर आ रहे हैं। यह पेंटिंग एक्रेलिक ऑन कैनवस है जो बता रही है कि कैसे हमारे समाज में एक डर समा गया है। समाज के कुछ लोग तय करते हैं कि क्या होगा, क्या नहीं होगा। इसमें एनिमल्स को लिया है, जहां बताने की कोशिश की गई है कि वे हमारे साथ खुश होना चाहते हैं। रहना चाहते हैं, लेकिन अफसोस कि हम सिर्फ अपने जैसों को स्वीकार करते हैं। तभी तो इन जानवरों को सेलिब्रेशन में शामिल होने के लिए मास्क पहनकर आना पड़ा।

मुस्कुराने की आजादी

कभी जो ना हुआ वो आज कर लें, चलो हंसी को आज रिवाज कर लें...गीतकार प्रसून जोशी की यह कविता इस पेंटिंग के लिए बिल्कुल सटीक बैठती है। चैतन्य जयपुरिया की पेंटिंग में एक महिला अपने

हिंदुस्तान में बहुत से धर्मों के मानने वाले लोग रहते हैं। वे अपने-अपने रीति-रिवाजों के साथ जिंदगी कैसे जीते हैं, यह उनका व्यक्तिगत मामला होना चाहिए। आर्टिस्ट डॉ. प्रिंस राज ने इसे ही रंगों से कैनवस पर उतारा है। जब हमने उनसे बात की तो वह बोले, हमने अपना एक माइंड सेट बना लिया है। इसे ना हम तोड़ रहे हैं ना तोड़ना चाहते हैं। लेकिन कला से मैंने तोड़ने की कोशिश की है। मैंने एक साधु को लिया है और उसके माथे पर तिलक की जगह तिरंगा बनाया है।

सभी को खुलकर जीने का हक

प्रदर्शनी में शामिल एक स्कल्पचर एक महिला की आजादी को बयां कर रहा है। आर्टिस्ट कपिल कपूर ने बताया, अफसोस की बात है कि आजाद हुए हमें 71 साल बीत गए, लेकिन आज भी एक महिला क्या पहने और क्या ना पहने, यह समाज तय करता है। इस समाज में एक महिला को आजादी आखिर कब मिल पाएगी? मैंने यही सवाल अपने स्कल्पचर में उठाया है। इसमें एक महिला खुले आसमान में उड़ रही है। उसने खुद को ढककर भी नहीं रखा। हां,विचारों की आजादी महज अभी कला में ही है। हकीकत में आने में इसे बहुत वक्त लगेगा। अनीता सेठी, अंजलि मित्तल, अशोक बालोदिया, आशीष ठाकुर, भारती आर्य, आशीष बोस, चंचल गांगुली, चिरंजीब के.पांडा, डॉ. प्रिंस राज, दीपाली रूंगटा, दीपू डेविड, किरन सोनी गुप्ता, कपिल कपूर, कुणाल कपूर, कमलेश तिवारी, मनोज भाटी, मदीहा खान, मेघना अग्रवाल और मीनाक्षी चटर्जी के काम को भी प्रदर्शनी में काफी सराहना मिली।


13 - 19 अगस्त 2018

15

गुड न्यूज

बुलेट ट्रेन में महिलाओं के लिए अलग शौचालय

बुलेट ट्रेन में यात्रियों को बाल पोषण के लिए अलग से कमरा मुहैया कराया जाएगा। बीमार लोगों के लिए सुविधा प्रदान की जाएगी और पुरुषों व महिलाओं के लिए अलग-अलग शौचालय बनाए जाएंगे

मुं

बई-अहमदाबाद उच्च-गति रेल गलियारा परियोजना के लिए जमीन के अधिग्रहण में देरी से इसके लांच की तारीख को भले ही आगे खिसकाना पड़ सकता है, लेकिन रेलवे बुलेट ट्रेन के विभिन्न कल-पुरजों और यात्रियों की सुविधाओं को अंतिम रूप देने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। बुलेट ट्रेन में यात्रियों को बाल पोषण के लिए अलग से कमरा मुहैया कराया जाएगा। बीमार लोगों के लिए सुविधा प्रदान की जाएगी और पुरुषों व महिलाओं के लिए अलग-अलग शौचालय बनाए जाएंगे। भारतीय रेलवे में ये सुविधाएं पहली बार प्रदान की जाएंगी। सभी ट्रेनों में 55

सीटें बिजनेस क्लास और 695 सीटें स्टैंडर्ड क्लास के लिए आरक्षित होंगी। ट्रेन में यात्रियों को सामान रखने के लिए जगह दी जाएगी। ई5 शिंकनसेन सिरीज बुलेट ट्रेन में बेबी चेंजिंग रूम की भी सुविधा दी जाएगी, जिसमें बेबी टॉयलेट सीट, डायपर डिस्पोजल और बच्चों के हाथ धोने के लिए कम ऊंचाई के सिंक लगे होंगे। व्हीलचेयर वाले यात्रियों के लिए अतिरिक्त जगह वाले टॉयलेट की सुविधा दी जाएगी। रेलवे द्वारा बुलेट ट्रेन के लिए तैयार अंतिम रूपरेखा के अनुसार, 750 सीटों वाले ई5 शिंकनसेन एक नए जमाने का हाई स्पीड ट्रेन है। इसमें 'वाल माउंटेड

सबसे ज्यादा दी जाने वाली दवा है एंटीबायोटिक्स

एक शोध में पाया गया है कि 2000 व 2010 के बीच एंटीबायोटिक्स का उपभोग वैश्विक रूप से बढ़ा है और यह 50 अरब से 70 अरब मानक इकाई हो गया है

भा

रत सहित कई देशों में एंटीबायोटिक दवाओं की आपूर्ति बढ़ने से वैश्विक स्तर पर एंटीबायोटिक का असर बुरी तरह बेअसर होता जा रहा है। ऐसा एक शोध में सामने आया है, जिसमें कानून को बेहतर तरीके से तत्काल लागू करने की जरूरत बताई गई है। शोध में पाया गया है कि 2000 व 2010 के बीच एंटीबायोटिक्स का उपभोग

वैश्विक रूप से बढ़ा है और यह 50 अरब से 70 अरब मानक इकाई हो गया है। इसके इस्तेमाल में वृद्धि में प्रमुख रूप से भारत, चीन, ब्राजील, रूस व दक्षिण अफ्रीका में हुई है। ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के इमानुएल एडेवुयी ने कहा कि एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक इस्तेमाल एंटीबायोटिक के

टाईप यूरिनल' की सुविधा प्रदान की जाएगी। डिब्बों में आरामदायक स्वचालित घूमने वाली सीट प्रणाली होगी। ट्रेन में फ्रीजर, हॉट केस, पानी उबालने की सुविधा, चाय और कॉफी बनाने की मशीन और बिजनेस क्लास में हैंड टॉवल वार्मर की सुविधा प्रदान की जाएगी। डिब्बों में एलसीडी स्क्रीन लगी होगी, जहां मौजूदा स्टेशन, आने वाले स्टेशन, गंतव्य और अगले स्टेशन पहुंचने और गंतव्य पहुंचने के समय के बारे में जानकारी आती रहेगी। मोदी सरकार की पहली बुलेट ट्रेन परियोजना के अंतर्गत रेलवे 5000 करोड़ रुपये में जापान से 25 ई5 सिरीज के बुलेट ट्रेन खरीदने की तैयारी में है। मुंबई-अहमदाबाद कॉरिडोर का अधिकतर

प्रतिरोध के फैलाव व विकास को सुविधाजनक बना सकता है। उदाहरण के लिए करीब 57,000 नवजात सेप्सिस की मौतें एंटीबायोटिक प्रतिरोधी संक्रमण के कारण होती हैं। इससे अमेरिका में सालाना 20 लाख संक्रमण व 23,000 मौतें होती हैं और यूरोप में हर साल करीब 25,000 मौतें होती हैं। एडेयुवी ने कहा कि विकासशील देशों में

हिस्सा एलिवेटेड होगा, जिसमें ठाणे से विरार तक 21 किलोमीटर भूमिगत गलियारा होगा। इसमें भी सात किलोमीटर गलियारा समुद्र के अंदर बनाया जाएगा। अधिकारी ने कहा कि बुलेट ट्रेन की डिजाइन को लंबी नाक के आकार का रखा गया है। जब एक उच्च गति की ट्रेन सुरंग से बाहर निकलती है तो, सूक्ष्म दबाव तरंगों की वजह से काफी तेज ध्वनि उत्पन्न होती है। सूक्ष्म दबाव को कम करने के लिए, सामने की कार को नाक के आकार का बनाया जाता है। बुलेट ट्रेन से मुंबई और अहमदाबाद के बीच 508 किलोमीटर की यात्रा करने में मात्र दो घंटा सात मिनट का समय लगेगा। भारतीय रेलवे इस परियोजना में 9800 करोड़ रुपये खर्च करेगी, जबकि बाकी खर्च महाराष्ट्र और गुजरात की सरकारें वहन करेंगी। (आईएएनएस)

एंटीबायोटिक प्रतिरोधी संक्रमण के भरोसेमंद अनुमानों की कमी है, लेकिन माना जाता है कि इन देशों में कई और मौतों का कारण बनती हैं। इस शोध का प्रकाशन 'द जर्नल ऑफ इंफेक्शन' में किया गया है। इसमें 24 देशों के शोध का विश्लेषण किया गया है। (आईएएनएस)


16 खुला मंच

13 - 19 अगस्त 2018

अपने प्रयोजन में दृढ़ विश्वास रखने वाला एक सूक्ष्म शरीर इतिहास के रुख को बदल सकता है – महात्मा गांधी

अभिमत

अटल बिहारी वाजपेयी पूर्व प्रधानमंत्री

लोकतंत्र में आम सहमति

27 मार्च 1998 को लोकसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश करते हुए प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के ऐतिहासिक भाषण का संपादित अंश

स्वाधीनता संघर्ष की प्रेरणा

पीएम मोदी अकसर देशवासियों को स्वाधीनता के लिए दी गई शहादतों की याद दिलाते हैं और कहते हैं कि जिस आजादी को हमने इतनी कीमत देकर चुकाई है, उस आजाद देश को हर क्षेत्र में अग्रणी बनाना हम सबका कर्तव्य है

पनिवेशिक दासता का दंश दुनिया के कई देशों ने झेला है, पर भारत ने खुद को इस दासता से मुक्त होने के लिए जो रास्ता अपनाया, वह एक मिसाल है। इस मिसाल में अहिंसक मूल्य के साथ देश के लिए सब कुछ न्योछावर करने की भावना शामिल है। जिस भारत छोड़ो आंदोलन को अंग्रेजों के खिलाफ सबसे निर्णायक आंदोलन के तौर पर देखा गया, उसके गत वर्ष 75 वर्ष पूरे हुए थे। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहा था कि स्वाधीनता संघर्ष की यह प्रेरणा और उससे जुड़ी भावना आज भी देश के लोगों को निष्ठा और समर्पण की सीख देती हैं। यह प्रेरणा जहां एक तरफ स्वच्छता जैसे मुद्दे पर महात्मा गांधी की सीख की याद दिलाता है, वहीं यह देश को अशिक्षा और गरीबी से मुक्त करने की भी प्रेरणा देता है। इस वर्ष भी प्रधानमंत्री ने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लेने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की है। इस अवसर पर अपने उद्गार व्यक्त करते हुए उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लिखी एक कविता को ट्वीट के जरिए साझा किया है। इस कविता की शुरुआती पंक्तियां हैं- ‘सुनो प्रलय की अगवानी का स्वर उनवास पवन में।’ यह कविता 1946 में ‘अभ्युदय’ अखबार में छपी थी। यह समाचार पत्र मदन मोहन मालवीय से जुड़ा था। दिलचस्प है कि भारत आज उस दौर में है, जहां एक तरफ उसके आगे ‘न्यू इंडिया’ का विजन है, तो वहीं दूसरी तरफ इतिहास की वह प्रेरणा भी है, जिससे राष्ट्र के प्रति समर्पण और सेवा भाव की प्रेरणा मिलती है। पीएम मोदी अकसर देशवासियों को स्वाधीनता के लिए दी गई शहादतों की याद दिलाते हैं और कहते हैं कि जिस आजादी को हमने इतनी कीमत देकर चुकाई है, उस आजाद देश को हर क्षेत्र में अग्रणी बनाना हम सबका कर्तव्य है।

टॉवर फोनः +91-120-2970819

(उत्तर प्रदेश)

लो

कतंत्र की सरिता अबाध गति से बहती रहे, यह आवश्यक है। लेकिन कभी-कभी ऐसा लगता है कि वह सरिता अविश्वास के भंवर में फंसकर अपना प्रवाह खो रही है। तब मैंने त्याग-पत्र दे दिया, क्योंकि मैं अल्पमत में था और अंपायर मुझे कहते कि आप मैदान से बाहर चले जाइए, उससे पहले ही मैंने मैदान छोड़ दिया। लेकिन उसके बाद जो घटनाचक्र चला, उस पर इस देश को गंभीरता से विचार करना होगा। 1989 से विश्वास मत के भंवर में पड़े हुए लोकतंत्र का चित्र हमें चिंता पैदा करता है। 21 दिसंबर 1989 को फिर विश्वास मत हुआ था। सरकार केवल ग्यारह महीने चली। सात नवंबर 1990 को पुन: विश्वास मत हुआ। 1990 में नए प्रधानमंत्री ने विश्वास मत लिया। किंतु पांच वर्ष सरकार चलने की बजाए पांच महीने सरकार चली। लोकसभा भंग हो गई। 1991 के चुनाव में किसी को बहुमत नहीं मिला। कांग्रेस की अल्पमत की सरकार बनी। प्रारंभ में हमने उसे सहयोग दिया। बाद में वह अल्पमत बहुमत में कैसे बदला, इस कहानी में मैं जाना नहीं चाहता। मामला अदालत में है। वह सरकार अस्थिरता के भंवर में तो नहीं थी, लेकिन इस सरकार की नाव को भ्रष्टाचार के मगरमच्छों ने क्षत-विक्षत कर दिया। इसीलिए कांग्रेस चुनाव में हारी। कांग्रेस की ऐसी पराजय पहले कभी नहीं हुई थी। 1977 में इमरजेंसी के अपराधों के कारण कांग्रेस

को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था, फिर भी कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी। लेकिन उस समय सबसे बड़ा दल होने का स्थान कांग्रेस ने खो दिया। भारतीय जनता पार्टी बढ़ते हुए जन-विश्वास के आधार पर सबसे बड़े दल का दर्जा प्राप्त करने में सफल हुई। लेकिन चुनाव में कांग्रेस की पराजय के बाद फिर एक अस्थिरता का दौर चला। संख्या कम होने के कारण हमने अपने आप को अलग कर लिया। लेकिन 28 मई को इस सदन में भाषण करते हुए मैंने कहा था कि जनता का विश्वास प्राप्त करके हम पुन: आएंगे और आज हम फिर यहां उपस्थित हैं। कांग्रेस का भी एक सदस्य बढ़ा है। संयुक्त मोर्चा की संख्या तो आधी रह गई है। उन्होंने भी कहा है कि हम सरकार बनाने में रुचि नहीं रखते। तब राष्ट्रपति महोदय ने मुझे सरकार बनाने के लिए कहा। एक समय-सीमा निर्धारित की और वह समय-सीमा 28 तारीख को समाप्त हो रही है। मैं विश्वास का मत प्राप्त करने के लिए आपके सामने खड़ा हूं। मैं सदन के सामने इस बात को रखना चाहता हूं कि विश्वास मत प्राप्त करने का सिलसिला एक वर्ष के बाद दूसरे वर्ष, तीसरे वर्ष, ये कब तक चलेगा। विश्वास का मत मुझे प्राप्त करना है, इसीलिए मैं यह प्रश्न खड़ा कर रहा हूं ऐसी बात नहीं है। आज हर देशवासी के मन में, हर लोकतंत्र प्रेमी के मन में यह सवाल उठ रहा होगा और उठना भी चाहिए

जब मैं विदेश मंत्री बन गया, तो एक दिन मैंने देखा कि गलियारे में टंगा हुआ नेहरू जी का फोटो गायब है। मैंने कहा कि यह चित्र कहां गया? कोई उत्तर नहीं मिला। वह चित्र वहां फिर से लगा दिया गया। क्या इस भावना की कद्र है?


13 - 19 अगस्त 2018 कि आखिर देश राजनीतिक अस्थिरता के भंवर में क्यों फंस गया है? जैसा मैंने कहा, यह सिलसिला बंद होना चाहिए।

राष्ट्रपति के सामने दो कसौटियां

राष्ट्रपति जी ने जब हमें बुलाया तो उनके सामने दो कसौटियां थीं। उन्होंने दो बातों पर गंभीरता से विचार किया- एक, भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी और दूसरा, भारतीय जनता पार्टी और मित्र दलों का गठबंधन सबसे शक्तितशाली गठबंधन था। एक और विशेषता थी कि यह गठबंधन चुनाव के पूर्व हुआ था, चुनाव के बाद नहीं। हम इस गठबंधन को लेकर मतदाता के पास गए थे। चुनाव के पूर्व जो गठबंधन होते हैं, उनमें विचारों की समानता होती है। इसीलिए राष्ट्रपति महोदय ने चुनाव के पूर्व गठबंधन के तथ्य को अधिमान दिया और हमें सरकार बनाने के लिए बुलाया। चुनाव में हम जनता के सामने दो प्रमुख लक्ष्य लेकर गए थे- एक देश को राजनीतिक स्थिरता देना और दूसरा देश को स्वच्छ शासन और प्रशासन देना। यह गठबंधन चुनाव के पूर्व था, इसीलिए यह कहना गलत होगा कि यह गठबंधन केवल सत्ता के लिए था। लोकतंत्र में सत्ता में भागीदारी स्वाभाविक है, आवश्यक है, लेकिन चुनाव पूर्व गठबंधन में और चुनाव के बाद के गठबंधन में जो गुणात्मक परिवर्तन है, उसको समझा जाना चाहिए। राष्ट्रपति महोदय ने समझा और उन्होंने हमें सरकार बनाने के लिए बुलाया। जिस तरह के चुनाव परिणाम आए हैं, उनका मैं संक्षेप में उल्लेख करना चाहता हूं। तमिलनाडु में सुश्री जयललिता के नेतृत्व में एआईएडीएमके की वापसी ने चुनाव दृश्य के पर्यवेक्षकों को आश्चर्य में डाल दिया। कर्नाटक में श्री हेगड़े के नेतृत्व में लोकशक्ति के साथ हमारे गठबंधन ने परिणाम लाया है। उड़ीसा में श्रद्धेय बीजू बाबू के सुपुत्र श्री नवीन पटनायक ने बीजू जनता दल का उदय करके राजनीति की तस्वीर ही बदल दी। पश्चिम बंगाल में ममता जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस तथा मार्क्सवादी दलों को मूल से हिला दिया। गुजरात में सिद्धांतहीन गठबंधन परास्त हुआ और जनता ने पुन: हमें अपना विश्वास दिया। कुछ प्रदेशों में हमें अपेक्षा के अनुसार सफलता नहीं मिली। हम असफलता के कारणों पर गहराई से विचार कर रहे हैं। कुछ दलों के साथ हमारा गठबंधन इस चुनाव को लेकर ही नहीं हुआ, इससे पहले भी हम उनके साथ मिलकर काम करते रहे हैं, सरकार चलाते रहे हैं। अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन केवल सत्ता के बंटवारे के लिए नहीं है। पंजाब में सैकड़ों साल से हिंदू और सिखों के बीच में जो भाईचारा चला आ रहा है, यह उसे मजबूत करने के लिए है। अब पंजाब में सरसों की पीली फसल के ऊपर रक्त के लाल धब्बे नहीं दिखाई देंगे। पंजाब की शामों में गिद्धा सुनाई देता है। अभी बैसाखी का त्योहार आ रहा है। पूरा पंजाब मस्ती में झूमेगा।

बहुमत और अल्पमत

जैसा मैं स्पष्ट कर चुका हूं कि बहुमत प्राप्त करने में कमी रहने के कारण हमने सरकार बनाने का दावा

नहीं किया था, लेकिन आज हम सदन में बहुमत में हैं और अपना बहुमत सिद्ध करेंगे। मैं फिर इस बात को दोहराना चाहता हूं कि बहुमत और अल्पमत, ये लोकतंत्र के लिए आवश्यक हैं, लेकिन क्या लोकतंत्रीय पद्धति बहुमत और अल्पमत के खेल में अटककर रह जाएगी? क्या स्थिरता का कभी समाप्त न होने वाला दौर चलता रहेगा? पिछले 18 महीने की अनिश्चतता ने, अस्थिरता ने किस तरह से देश को कठिनाइयों में डाला है, विशेषकर आर्थिक मोर्चे पर। स्थिति चिंताजनक है। 18 महीने की अनिश्चतता के कारण, अदूरदर्शी नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई है। खाद्यान्न का उत्पादन घटा है, निर्यात घटा है, सरकारी आमदनी घटी है, वित्तीय घाटा बढ़ा है। इसे रोकने के उपाय करने पड़ेंगे। उसके लिए केंद्र में स्थिर, सक्षम और ईमानदार सरकार की जरूरत है। अगली शताब्दी की चुनौतियों का सबको सामना करना होगा।

राष्ट्र सर्वोपरि

यह अकेले एक दल का या अनेक दलों के गठबंधन का सवाल नहीं है। आप जब इधर थे तब आपकी कठिनाइयां हम देख रहे थे और जब-जब उन कठिनाइयों से निकलने के लिए हमारी सहायता की आवश्यकता हुई, हमने कभी इनकार नहीं किया, हमने कभी अस्वीकार नहीं किया। आखिर दल देश के लिए हैं, राष्ट्र सर्वोपरि है, भारत संसार का सबसे

बात है कि अलग-अलग क्षेत्रों में क्षेत्रीय दल सत्ता की बागडोर संभाल रहे हैं और राष्ट्र के विकास में अखिल भारतीय दृष्टिकोण विकसित करते हुए योगदान दे रहे हैं। ये सब हमारी बधाई के अधिकारी हैं, हमारे अभिनंदन के अधिकारी हैं। शक्तिशाली केंद्र और शक्तिशाली राज्य, इनमें कोई अंतरविरोध नहीं है। हम चाहेंगे कि राज्यों को और अधिक स्वायत्तता मिले। हम चाहेंगे कि मुख्यमंत्री छोटी सी बात के लिए, थोड़ा सा अनुदान लेने के लिए, छोटी सी योजना पूरी कराने के लिए नई दिल्ली तक दौड़ लगाने का सिलसिला बंद कर दें। साधनों का बंटवारा इस तरह से होना चाहिए कि राज्य अपने पैरों पर खड़े हो सकें, विकास की जिम्मेदारियां निभा सकें। मित्रों, इसके लिए राजनीति में जो नकारात्मकता आ गई है, जो एक छूआछूत की भावना आ गई है, उसे दूर करने की जरूरत है। पिछली बार केवल भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से अलग रखने के लिए जो गठबंधन बना, वह गठबंधन टूट गया, बिखर गया।

दल से आगे जनता

बड़ा लोकतंत्र है, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता न केवल हमारी अर्थव्यवस्था को आहत कर रही है, बल्कि सबसे बड़े लोकतंत्र के नाते वह विश्व में हमारी छवि को भी धूमिल कर रही है। हमारा कार्यक्रम राष्ट्र के सर्वांगीण विकास का कार्यक्रम है। यह सर्वस्पर्शी कार्यक्रम है। यह देश के सभी भागों और समाज के सभी अंगों के उत्थान के लिए है। इसीलिए हमने इसे न्यूनतम कार्यक्रम नहीं कहा। हमने इसे राष्ट्रीय एजेंडा का नाम दिया है। हम चाहेंगे कि वह गंभीर चर्चा का विषय बने। इस एजेंडे में हम जन-आकांक्षाओं और सरकार की करनी के बीच जो फासला बढ़ा है, उसे कम करना चाहते हैं।

पुराने राजनीतिक दल पहले जहां खड़े थे, भले ही वे वहां खड़े हों, लेकिन जनता आगे बढ़ गई और हमारे साथ काम करने वालों की संख्या भी निरंतर आगे बढ़ रही है। आज सारे देश का प्रतिनिधित्व इधर है। हम समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलना चाहते हैं। देश में अनेक विभिन्नताएं हैं। बहुदलीय होने के साथ यह देश बहुभाषी और बहुधर्मी भी है। इस देश में अलग-अलग जनजातियों का निवास है। वे संख्या में कम हैं, इसीलिए अपने अस्तित्व के बारे में चिंतित हैं। कभी-कभी उत्तर-पूर्व में बसे हुए लोग न केवल भौगोलिक दूरी अनुभव करते हैं, बल्कि भावनात्मक दृष्टि से भी अपने को उपेक्षित पाते हैं। इस स्थिति को बदलना पड़ेगा और हम बदलने के लिए कटिबद्ध हैं। लेकिन यह काम आम सहमति के आधार पर ज्यादा अच्छी तरह हो सकता है, केवल सरकार के भरोसे नहीं। विविधता हमारी संस्कृति की समृद्धि का परिचायक है, हमारी दुर्बलता की देन नहीं। सभी भाषाओं के साहित्य का अध्ययन कीजिए, तो उनमें कहीं न कहीं एक स्वर की झनक सुनाई देती है, एक झलक दिखाई देती है। अनेक कारणों से जो संख्या में कम हैं भाषा के कारण, धर्म के कारण या अपनी नस्ल के कारण, वैसे तो हम सभी एक ही नस्ल के हैं, उनके मन में आशंकाएं पैदा होती हैं। हम उन आशंकाओं से परिचित हैं और उन आशंकाओं के निराकरण के लिए पूरी कोशिश करेंगे।

बहुदलीय लोकतंत्र

व्यापक आम सहमति

पुराने राजनीतिक दल पहले जहां खड़े थे, भले ही वे वहां खड़े हों, लेकिन जनता आगे बढ़ गई और हमारे साथ काम करने वालों की संख्या भी निरंतर आगे बढ़ रही है

भारत एक बहुदलीय लोकतंत्र है, हमें इस पर गर्व है और हम लोकतंत्र की इस विशेषता को वर्धमान करने के लिए कटिबद्ध हैं। स्वाधीनता के बाद ऐतिहासिक कारणों से केंद्र में और राज्यों में भी एक दल का वर्चस्व रहा, जिसके कारण अनेक विकृतियां आईं। कुछ लाभ भी हुए थे। लेकिन स्थिति यहां तक बिगड़ गई कि मुख्यमंत्री केंद्र से नामजद होने लगे। प्रदेशों की स्वायत्तता व्यवहार में घटने लगी। क्षेत्रीय अपेक्षा और आवश्यकताओं के प्रकटीकरण का उचित माध्यम नहीं मिला। आज यह बड़ी प्रसन्नता की

कुछ प्रश्नों पर इस देश में हमेशा आम सहमति रही है और व्यापक आम सहमति रही है। मैं खासतौर से विदेश नीति के क्षेत्र का उल्लेख करना चाहूंगा। जब जिनेवा में मानवाधिकारों के सम्मेलन में कश्मीर के सवाल को हमारे पड़ोसी देश ने उठाने का फैसला किया, तो उस समय के प्रधानमंत्री श्री नरसिंहराव की नजर मेरे ऊपर गई कि मैं वहां जाकर भारत का प्रतिनिधित्व करूं। इस पर हमारे पड़ोसी देश के लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ, वहां के नेताओं को बड़ा ताज्जुब हुआ। किसी नेता ने कहा भी कि भारत

खुला मंच

17

का लोकतंत्र बड़ा ​िवचित्र लोकतंत्र है कि प्रतिपक्ष का नेता अपनी सरकार के पक्ष को रखने के लिए जिनेवा जाता है और एक हमारा प्रतिपक्ष का नेता है, जो देश के अंदर ही ऐसी कठिनाइयां पैदा करता है जिससे अंतरराष्ट्रीय बाधाएं उत्पन्न होती हैं। लोगों ने कहा कि नरसिंह राव जी सरल आदमी नहीं हैं, बड़े चतुर आदमी हैं। यह मत समझिए कि वे केवल देश की एकता का प्रदर्शन करने के लिए आपको भेज रहे हैं, बल्कि उनके मन में यह भी हो सकता है कि अगर जिनेवा में बात नहीं बनी और हमारे खिलाफ प्रस्ताव पास हो गया तो दोष में हिस्सा बंटाने के लिए वाजपेयी जी को भी बलि का बकरा बनाया जा सकता है। मैंने इस पर विश्वास नहीं किया। हम एक दूसरे की सदाशयता पर भरोसा करते हैं। मेरे मित्र श्री गुजराल यहां बैठे हैं। जब मैं थोड़ी देर के लिए विदेश मंत्री बना था तब वे मास्को में हमारे राजदूत थे। उस समय से हम एक-दूसरे को जानते हैं। 1977 में भी इमरजेंसी के बाद देश में एक परिवर्तन आया था, आमूल परिवर्तन आया था। बड़े-बड़े स्तंभ ढह गए थे। तंबू उखड़ गए थे। बरसों से सत्तारूढ़ दल लोगों का विश्वास खो चुका था। उस समय भी विदेश नीति आम सहमति के आधार पर चली थी।

नेहरू जी का चित्र

मुझसे एक विदेशी राजनीतिज्ञ ने पूछा था कि विदेश मंत्री महोदय, आप जहां बैठते हैं, वहां क्या परिवर्तन हुआ है, साउथ ब्लॉक में क्या परिवर्तन होने वाला है? मैंने कहा कि मंत्री बदल गया है और कोई परिवर्तन होने वाला नहीं है। कांग्रेस के मित्र शायद भरोसा नहीं करेंगे। साउथ ब्लॉक में नेहरू जी का एक चित्र लगा रहता था। मैं आते-जाते देखता था। नेहरू जी के साथ सदन में नोंक-झोंक भी हुआ करती थी। मैं नया था और पीछे बैठता था। कभीकभी तो बोलने के लिए मुझे वाकआउट करना पड़ता था, लेकिन धीरे-धीरे मैंने जगह बनाई। मैं आगे बढ़ा और जब मैं विदेश मंत्री बन गया, तो एक दिन मैंने देखा कि गलियारे में टंगा हुआ नेहरू जी का फोटो गायब है। मैंने कहा कि यह चित्र कहां गया? कोई उत्तर नहीं मिला। वह चित्र वहां फिर से लगा दिया गया। क्या इस भावना की कद्र है? ऐसा नहीं है कि नेहरू जी से मेरे मतभेद नहीं थे। मतभेद चर्चा में गंभीर रूप से उभरकर सामने आते थे। मैंने एक बार पंडित जी से कह दिया कि आपका एक मिला-जुला व्यक्तित्व है और आप चर्चिल भी हैं, चेंबरलिन भी हैं। वह नाराज नहीं हुए। शाम को किसी बैंक्वेट में मुलाकात हो गई। उन्होंने कहा कि आज तो बड़ा जोरदार भाषण दिया और हंसते हुए चले गए। आजकल ऐसी आलोचना करना दुश्मनी को दावत देना है। लोग बोलना बंद कर देंगे। क्या एक राष्ट्र के नेता, हम आपस में मिलकर काम नहीं कर सकते? क्या एक राष्ट्र के नेता, हम सब आने वाले संकटों का सामना नहीं कर सकते? एक शताब्दी खत्म हो रही है, दूसरी शताब्दी दरवाजे पर खड़ी है। अगर हमें छोड़कर आप कोई नया प्रयोग करना चाहते हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी लेकिन हम जो प्रयोग कर रहे हैं, उस प्रयोग को आप सफल होने दें, यह मैं आपसे अनुरोध जरूर करना चाहता हूं।


18

फोटो फीचर

13 - 19 अगस्त 2018

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा...

गुलामी से अधिक दंश गुलाम होने के अहसास का होता है। इसीलिए सदियों की गुलामी के बाद मिली आजादी, अनमोल आजादी का जश्न भी अद्भुत सुखद अनुभूति की तरह है, जिसे जितनी, जितनी तरह से अनुभव करें, मनाएं कम है। आजादी का उत्सव एक ऐसा राष्ट्रीय पर्व है, जिसमें पूरा देश तिरंगे में लिपट जाता है


13 - 19 अगस्त 2018

15 अगस्त, देश के पुनर्जागरण का दिन, एक ऐसा दिन जिस दिन पूरा देश एक ही सपना देखता है- एक समृद्ध और गौरवशाली राष्ट्र का। इस सपने को साकार करने के लिए जी-जान से जुटने का प्रण लहराते हुए तिरंगे के सामने किया जाता है। हवाएं देश का संगीत सुनाती हैं, मिट्टी में राष्ट्रीय एकता और अखंडता के बीज बोए जाते हैं। हवा में लहराते तिरंगे को देखकर हर भारतवासी का मन गा उठता है- विजयी विश्व तिरंगा प्यारा...!

फोटो फीचर

19


20

व्यक्तित्व

13 - 19 अगस्त 2018

जेके रोलिंग

लेखकों की

रोल मॉडल

कहानी की दुनिया को तिलस्मी तरीके से सजाने की कला पुरानी है, पर जेके रोलिंग ने इस कला का उत्तर सर्ग प्रस्तुत किया। उनका यह प्रयाेग रचनात्मक स्तर पर तो विलक्षण रहा ही है, इसने कमाई और प्रसिद्धि के कई बड़े कीर्तिमान भी रचे पहले पुस्तकें नापसंद

ले

एसएसबी ब्यूरो

खन में नए रचनात्मक प्रयोग आपको एक उद्यमी की तरह सफल ही नहीं बल्कि मालामाल भी कर सकते हैं। हमारे दौर में इसकी सबसे बड़ी उदाहरण हैं ब्रिटिश लेखिका जेके रोलिंग। ‘हैरी पॉटर’ सीरीज की लेखिका रोलिंग को वर्ष 2012 में ब्रिटेन की सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्व घोषित किया गया था। उनकी सफलता की कहानी किसी परीकथा सरीखी लगती है। जब उनके दिमाग में हैरी पॉटर का विचार आया तब वह जिंदगी से बहुत ही हताश थीं और हाल ही में उनका तलाक हुआ था। उनका बैंक अकाउंट खाली हो चुका था। वर्ष 1997 में पहली हैरी पॉटर किताब के लिए उन्हें 2250 अमेरिकन डॉलर मिले थे, लेकिन इस सीरीज की अगली छह किताबों के लिए उन्हें एक बिलियन अमेरिकी डॉलर की संपत्ति मिली। वह अरबपति बनने वाली पहली लेखिका हैं।

रोलिंग को चौदह साल की उम्र तक किताब पढ़ना बहुत पसंद नहीं था। जो स्कूल के लिए अनिवार्य था, उन्होंने वह पढ़ा, लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं। लेकिन जब उनकी एक मित्र ने ‘जादूगरों और चुड़ैलों’ की किताब उन्हें दी तो किताब न पढ़ने की आदत एकदम बदल गई। उन्होंने किताबें पढ़ना शुरू कर दिया। वह किताब ‘हैरी पॉटर’ का पहला खंड था। इसके बाद लगभग हर एक साल एक-एक ‘हैरी पॉटर’ की किताब प्रकाशित हुई। इस सीरीज ने बच्चों के साथ तकरीबन हर उम्र के पाठकों को रोलिंग का दीवाना बना दिया। रोलिंग का असली नाम जोआन मुर्रय है, हालांकि लेखन वो दो नामों से करती हैं। इनमें पहला नाम है जेके रोलिंग और दूसरा है रॉबर्ट गैलब्रेथ। जाहिर है कि पॉटर सीरीज चूंकि उन्होंने रोलिंग नाम से लिखी है, इसीलिए उनकी यह पहचान सबसे लोकप्रिय भी है।

ऑक्सफोर्ड में प्रवेश नहीं

रोलिंग का जन्म 31 जुलाई 1965 को इंग्लैंड के येट, ग्लोसेस्टरशायर नामक स्थान पर हुआ था।

उनके पिता पीटर जेम्स रोलिंग रॉल्स-रॉयस नामक एक मशहूर कंपनी में विमान इंजीनियर थे। उनकी मां एन रोलिंग फ्रेंच तथा स्कॉटिश माता-पिता की संतान थीं। कुछ समय बाद ही यह परिवार येट के पास के ही गांव विंटरबार्न में जाकर बस गया। रोलिंग की प्रारंभिक शिक्षा सेंट माइकल प्रराइमरी स्कूल में हुई। 1982 में रोलिंग ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की प्रवेश-परीक्षा में भाग लिया, लेकिन उन्हें ऑक्सफोर्ड में प्रवेश नहीं मिल पाया और मजबूरन फ्रेंच तथा प्राचीन साहित्य की पढ़ाई के लिए उन्हें एक्सेटर विश्वविद्यालय में बी.ए. में प्रवेश लेना पड़ा। इस कॉलेज में जैसे-जैसे उनके नए मित्र बनते गए, उन्हें अपने कॉलेज जीवन में भी आनंद आने लगा और उनका मन पढाई में भी लगता चला गया।

अंग्रेजी भाषा का अध्यापन

अपनी पढाई के सिलसिले में वह कुछ समय पेरिस में भी रहीं। 1986 में उन्हें बी. ए. की डिग्री मिल गई और उसके बाद वे लंदन स्थित ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल संस्था’ में शोध सचिव के रूप में काम करने लगीं। कुछ साल लंदन में काम करने

खास बातें रोलिंग को पहले पुस्तकें पढ़ना ज्यादा पसंद नहीं था पढ़ाई के दिनों में उसका रिकार्ड भी कोई खास नहीं रहा वैवाहिक असफलता ने रोलिंग को लेखन की तरफ मोड़ा के बाद रोलिंग ने मैनचेस्टर में रहने का फैसला किया। इसके बाद अंग्रेजी भाषा के अध्यापन के लिए रोलिंग पुर्तगाल चली गईं। यहां उनकी मुलाकात पुर्तगाल के एक टेलीविजन पत्रकार जॉर्ज अरांतेस से हुई। दोनों की ही दिलचस्पी साहित्य में थी, धीरे-धीरे वे एक-दूसरे के करीब आते चले गए और 16 अक्टूबर 1992 को दोनों ने विवाह कर लिया।


13 - 19 अगस्त 2018

जे.

21

व्यक्तित्व

हैरी पॉटर की दुनिया

हैरी पॉटर एक अनाथ जादूगर है। कहानी हैरी की एक शैतानी जादूगर वोल्डेमॉर्ट से दुश्मनी के बीच घूमती रहती है

के. रोलिंग ने मिथक और कल्पना की एक नई और अनोखी दुनिया बनायी है, जिसका मुख्य पात्र हैरी पॉटर है। यह दुनिया जादू और चमत्कार से भरी पड़ी है। हैरी पॉटर खुद एक (अनाथ) जादूगर है और वह तंत्र-मंत्र और जादू-टोने के विद्यालय हॉग्वार्ट्स जाता है। कहानी हैरी की एक शैतानी जादूगर वोल्डेमॉर्ट से दुश्मनी के बीच घूमती रहती है। इन सातों उपन्यासों के ऊपर कुल आठ फिल्में बनी हैं, जो सुपरहिट रहीं और उन्होंने ऑस्कर भी जीते हैं। उनकी सारी सातों किताबों के हिंदी संस्करण तो उपलब्ध हैं ही, इनका विश्व की तकरीबन सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

मतभेद से टूटी शादी

हैरी पॉटर और पारस पत्थर

हैरी पॉटर और रहस्यमयी तहखाना

हैरी पॉटर और अज्कबान का कैदी हैरी पॉटर और आग का प्याला

हैरी पॉटर और मायापंछी का समूह हैरी पॉटर और हाफ-ब्लड प्रिंस हैरी पॉटर और मौत के तोहफे स्वीकृति से पहले अस्वीकृति

विवाह के अगले साल ही जुलाई में उनकी पुत्री जेसिका इजाबेल का जन्म हुआ, लेकिन वैचारिक मतभेद के कारण यह विवाह ज्यादा नहीं चल पाया और नवंबर, 1993 में वें एक-दूसरे से अलग हो गए। उनके देश इंग्लैंड की सामाजिक सुरक्षा इतनी मजबूत है कि बेरोजगारी के कारण राज्य से मिलने वाली आर्थिक सहायता के बल पर वह न केवल अपनी बेटी का पालन पोषण ठीक से कर पाईं, बल्कि दुनिया के एक सर्वाधिक लोकप्रिय होने वाले उपन्यास का सृजन भी कर पाईं, जिसने उनकी जीवन की दिशा ही बदल दी। 2001 में रोलिंग ने नील माइकल मूरे नामक एक डॉक्टर से दूसरा विवाह कर लिया। 2005 में उनकी छोटी बेटी मेकेंजी का जन्म हुआ।

हैरी पॉटर पर लिखना शुरू करने के कुछ समय बाद ही रोलिंग की माता की मृत्यु हो गई। इससे पहले रोलिंग ने हैरी पॉटर के बारे में किसी को कुछ नहीं बताया था। रोलिंग अपने दर्द को छिपाने के लिए पढ़ने और लिखने में डूब गईं। इस समय अत्यंत मेहनती ‘हरमाइनी’ के चारित्र का जन्म हुआ। 1990 के दशक में अनेक प्रकाशकों ने उनके हैरी पॉटर श्रृंखला के पहले उपन्यास को छापने से इंकार कर दिया था। अनेक अस्वीकृतियों तथा निराशाओं के बाद आखिर उनका पहला उपन्यास ‘हैरी पॉटर एंड द फिलोस्फर्स स्टोन’ 1997 में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास ने दुनिया भर में धूम मचा दी।

हैरी पॉटर की शुरुआत

1998 में जब अमेरिका में इस उपन्यास का दूसरा संस्करण ‘हैरी पॉटर एंड सोंर्सेरर्स स्टोन’ नाम से प्रकाशित हुआ तो पाठक इसकी प्रति खरीदने के लिए दुकानों पर उमड़ पड़े थे। इस श्रृंखला में रोलिंग के अब तक सात उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं और वे सभी पाठकों में अत्यधिक लोकप्रिय रहे हैं। पॉटर उपन्यास श्रृंखला के सभी उपन्यासों पर फिल्में बन चुकी है और उन सभी को दुनिया भर में असाधारण सफलता मिली है। उपन्यासों तथा फिल्मों की सफलता ने रोलिंग को एक अरबपति लेखिका में परिवर्तित कर दिया है।

‘हैरी पॉटर’ के सात खंडों को पढ़कर साफ लगता है कि कहानी के प्रमुख पात्रों का व्यक्तित्व रोलिंग के जीवन के महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों पर आधारित है। रोलिंग हमेशा लेखिका रहीं, लेकिन उन्हें अपने लिखे लेखों को बेचना शुरू में असंभव लगता था। 1990 में वह ‘हैरी पॉटर’ लिखने लगीं। इस बारे में वह बताती हैं, ‘एक बार रेलगाडी के लंबे सफर में हैरी पॉटर ने जन्म लिया। बाद में इस किरदार को लेकर मेरी दिलचस्पी मेरी सृजन लंबी यात्रा की संगिनी बन गई।’

रोलिंगनामा

जन्म: 31 जुलाई 1965 को येट, ग्लोसेस्टरशायर (इंग्लैंड) पूरा नाम: जोन कैथलीन रोलिंग प्रसिद्धि: ‘हैरी पॉटर’ सीरीज की लेखिका। 21वीं सदी की सर्वाधिक चर्चित उपन्यासकार और पुस्तक लेखन से रिकॉर्ड कमाई।

असाधारण सफलता

कमाई खूब, शोहरत भरपूर

रोलिंग को ब्रिटेन की तेहरवीं सबसे संपन्न महिला बताया गया है यानी ब्रिटेन की महारानी से भी अधिक संपन्न

20

04 में ‘फोर्ब्स’ पत्रिका ने रोलिंग का नाम दुनिया में पुस्तके लिखने से अरबपति बने पहले लेखक और विश्व कि दूसरी सबसे अमीर मनोरंजक लेखक के रूप में घोषित किया। रोलिंग ने इस गणना को विवादित ठहराते हुए कहा है कि, उनके पास संपत्ति तो बहुत है, पर वह अरबपति नहीं हैं। 2008 के ‘संडे टाइम्स’ में ब्रिटेन के सबसे धनी लोगों की सूची में रोलिंग का नाम 144वें स्थान पर था। 2012 में ‘फोर्ब्स’ ने रोलिंग को सबसे अमीर लोगों की सूची से यह दावा करते हुए हटा दिया कि 160 लाख डॉलर धर्मार्थ दान में देने और ब्रिटेन के अधिक कर दर के कारण अब वह अरबपति नहीं रहीं। एक आकलन में रोलिंग को ब्रिटेन की तेहरवी सबसे संपन्न महिला बताया गया है यानी ब्रिटेन की महारानी से भी अधिक संपन्न। वह और पुस्तकें लिखने का विचार तो नहीं कर रही हैं। यह पूछे जाने पर रोलिंग इस संभावना को पूरी तरह से खारिज भी नहीं करती हैं।

हैरी पॉटर के बाद

हालांकि हैरी पॉटर श्रृंखला खत्म हो चुकी है पर रोलिंग अभी अन्य लेखन कार्यों में जुटी हैं। ‘द टेल्स ऑफ बीडल द बार्ड’ पांच कल्पित कथाओं का संग्रह है, जिसका उल्लेख हैरी पॉटर में किया गया था। रोलिंग ने पुस्तक की सारी कमाई ‘चिल्ड्रन हाई लेवल ग्रुप’ नामक संस्था को दे दी, जिसकी वो सह

संस्थापिका हैं। 2013 में रोलिंग ने अपराध परिकल्पना की रचना शैली में लिखने का प्रयास किया पर वह अपने में ही बहुत रहस्यपूर्ण थी। उन्होंने अपनी वेबसाइट पर कहा है कि वह हैरी पॉटर का विश्वकोश लिखेंगी, जिस की सारी कमाई सामाजिक संस्थाओं को जाएगी।


22

मिसाल

13 - 19 अगस्त 2018

अनुपम 'मशरूम गर्ल'

बिहार के सीतामढ़ी जिले की अनुपम कुमारी की प्रेरणा से चूड़ियों से भरे हाथों में कुदाल थाम लिया है। यही कारण है कि आज इस क्षेत्र में अनुपम की पहचान 'मशरूम गर्ल' के रूप में की जाती है

मनोज पाठक

मतौर पर धारणा है कि किसानी का काम पुरुषों के जिम्मे है, लेकिन अगर आप जगत जननी सीता मां की जन्मस्थली सीतामढ़ी से गुजर रहे हों और कोई लड़की महिलाओं को इकट्ठा कर किसानी का गुर बताती नजर आए तो चौंकिएगा नहीं। सीतामढ़ी जिले के चोरौत प्रखंड के बेहटा गांव की रहने वाली अनुपम कुमारी ऐसी लड़की है, जो आज कृषि क्षेत्र में पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर काम कर रही है। अनुपम के इस जुनून ने न केवल उनके वजूद को नाम दिया है, बल्कि कई महिलाओं ने भी उनकी प्रेरणा से चूड़ियों से भरे हाथों में कुदाल थाम लिया है। यही कारण है कि आज इस क्षेत्र में अनुपम की पहचान 'मशरूम गर्ल' के रूप में की जाती है। केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह से कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए सम्मानित अनुपम ने बताया कि जब सभी क्षेत्रों में महिलाएं और लड़कियां सफल हो रही हैं, तो कृषि क्षेत्र में लड़कियां क्यों नहीं सफल हो सकतीं। स्नातक की

शिक्षा ग्रहण करने वाली अनुपम प्रारंभ से ही कुछ अलग करना चाहती थी। इसी कारण उन्होंने कृषि क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने की ठानी। किसान पिता उदय कुमार चौधरी की पुत्री होने के कारण जन्म से ही अनुपम ने खेती-बाड़ी को नजदीक से देखा था। कुछ अलग करने की चाहत ने उसे कृषि विज्ञान केंद्र पहुंचा दिया और वहां उसने मशरूम उत्पादन एवं केंचुआ खाद उत्पादन विषयक

धरती को बचाने में लगी ईहा

प्रशिक्षण प्राप्त की और उसके बाद तो मानो यह पूरे गांव की महिलाओं की प्रशिक्षक बन गईं। अनुपम ने गांव में ही नहीं, जिले के विभिन्न प्रखंडों के गांवों में महिलाओं को इकट्ठा कर उन्हें मशरूम उत्पादन के गुर सिखाने लगीं। वह कहती हैं कि आज विभिन्न गांव की करीब 200 महिलाएं मिलकर मशरूम उत्पादन कर रही हैं। अनुपम को हालांकि इस बात का मलाल है कि वे लोग तापमान के कारण सिर्फ सितंबर, अक्टूबर और नवंबर तीन महीने ही मशरूम उत्पादन कर पा रही हैं। वह कहती हैं कि फिलहाल ओएस्टर मशरूम का ही उत्पादन हो रहा है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा वह गांव-गांव में केंचुआ खाद उत्पादन (वर्मी कंपोस्ट) की भी जानकारी कृषकों को दे रही हैं। अनुपम बताती हैं कि प्रारंभ में अन्य कार्यो की तरह उन्हें भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ा, बाद में महिलाओं का जुड़ाव उनसे होता गया और अब तो यह कारवां बन गया है। अनुपम कहती हैं कि प्रारंभ से बलहा मधुसूदन कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों डॉ. रामेश्वर प्रसाद और डॉ. किंकर कुमार का सहयोग मिलता रहा है। वैज्ञानिकों का भी मानना है कि कृषि के जिन क्षेत्रों में पुरुषों का कब्जा था, वहां आज अनुपम के कारण अन्य महिलाओं को भी स्वावलंबी बनते देखा जा रहा है। आज अनुपम की पहचान 'मशरूम गर्ल' के रूप में की जा रही है। बकौल अनुपम, 'महिलाओं को आत्मनिर्भर बनते देखकर सुकून मिलता है। आज महिलाएं अपनी जरूरतें की चीजें

खुद पूरी कर रही हैं और उनमें आत्मबल का संचार हुआ है।' अनुपम को कृषि के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने के लिए केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने 22 फरवरी को पटना में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद पूर्वी क्षेत्र की ओर से आयोजित 18वें स्थापना दिवस समारोह में प्रशस्ति पत्र देकर हौसला अफजाई की थी। इससे पूर्व, गणतंत्र दिवस के अवसर पर डॉ़ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर में आयोजित कार्यक्रम में वहां के कुलपति डॉ. आर.सी. श्रीवास्तव द्वारा 'अभिनव किसान' से अनुपम को सम्मानित किया गया था। केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय द्वारा प्रत्येक साल जिले के कृषि विज्ञान केंद्र से जुड़कर कृषि एवं संबद्ध कार्यो में बेहतर कार्य करने वाले चयनित एक किसान को अभिनव किसान पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। इसके अलावे अनुपम को सीतामढ़ी के पुलिस अधीक्षक और सीतामढ़ी जिला प्रभारी मंत्री सुरेश शर्मा भी कृषि में योगदान के लिए सम्मानित कर चुके हैं। बेहटा गांव की महिलाएं भी आज अपनी बेटी अनुपम को 'मशरूम गर्ल' के रूप में पहचान बनाए जाने से गर्व महसूस करती हैं। गांव की महिला यशोदा देवी कहती हैं कि सीतामढ़ी की पहचान मां सीता की जन्मस्थली के रूप में है, आज इसी सीता की धरती पर अनुपम भी महिलाओं के कल्याण में जुटी हैं।

मेरठ में रहने वाली छह साल की ईहा ने अपने पांचवें जन्म दिन पर 1008 पौधे लगा कर पर्यावरण संरक्षण की जो मुहिम शुरू की उससे अब कई लोग जुड़ चुके हैं

ज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती पर्यावरण को बचाने की है। दिन-प्रतिदिन बढ़ती ग्लोबल वार्मिग से हमारी आने वाली पीढ़ी का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। इस नुकसान की भरपाई के लिए अब सिर्फ एक ही उपाय है कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएं और उनका संरक्षण करें। मेरठ में रहने वाली छह साल की ईहा पर्यावरण बचाने के लिए सबको प्रेरित कर रही है। ईहा ने प्रधानमंत्री के मासिक रेडियो प्रसारण 'मन की बात' से प्रेरित होकर पिछले साल 29 सितंबर को अपने पांचवें जन्मदिन के अवसर पर मेडिकल कॉलेज परिसर में 1008 पौधे लगाए। इसके बाद

शुरू हुआ ईहा का ये अभियान उनके आस-पास रहने वाले अन्य लोगों को भी प्रेरित कर रहा है। छह साल की ईहा को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड, यूपी बुक ऑफ रिकॉर्ड, वियतनाम बुक ऑफ रिकॉर्ड, महिला गौरव तथा और भी कई सम्मान मिल चुके हैं। ईहा के पिता कुलदीप चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं। ईहा ने 'ग्रीन ईहा स्माइल क्लब' नामक एक समूह बनाया है, जिसमें उन्होंने अपने छह दोस्तों को शामिल किया है। ये सभी बच्चे प्रत्येक रविवार को अलग-अलग स्थानों पर पौधरोपण करते हैं। ईहा का कहना है

कि वह किसी के जन्मदिन पर पौधों का उपहार देकर उनसे पौधरोपण का वादा लेती है। ये बच्चे हर रविवार को पौधरोपण करने के अलावा पिछले पौधों का भी निरीक्षण करते रहते हैं। ईहा के अभियान में बच्चों के साथ-साथ अब बड़े लोग भी सक्रियता से भाग ले रहे हैं। रविवार को जिन लोगों के पास कोई काम नहीं होता, वे ईहा के साथ जाकर पौधारोपण करते हैं। ईहा प्रति रविवार लगभग 10 पौधे लगाती है। ये पौधे ईहा खुद नर्सरी से खरीद कर पहले ही घर पर रख लेती है। ईहा के पिता बताते हैं कि पहले वे इसे सिर्फ एक बच्चे की जिद समझकर इसे इतनी गंभीरता से नहीं लेते थे, लेकिन जब ईहा बार-बार इसी बात

पर डटी रही तो उसकी मंशा को समझते हुए उन्होंने भी ईहा का पूरा सहयोग करने का फैसला कर लिया। ईहा घर पर आने वाले आम और जामुनों को खाने के बाद उनकी गुठलियों को भी गमलों में लगा देती थी। दो सप्ताह में ही उनमें अंकुर फूटने लगे। ईहा का कहना है कि वह इन आम के 40 पौधों को लगाकर एक बाग तैयार करेगी और इसके लिए वह जमीन तलाश रही है। इस मुहिम के लिए ईहा को कई राजनेताओं से भी सराहना मिल चुकी है। (आईएएनएस)


13 - 19 अगस्त 2018

23

प्रेरक

अशक्तों की शक्ति

मा

ग्रेनेड विस्फोट में अपने हाथ और पैर गंवाने वाली मालविका अय्यर आज दुनिया भर के अशक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई हैं

खास बातें

भावना अकेला

लविका अय्यर जब महज 13 साल की थीं, तभी 2002 में अचानक हथगोला फटने से उसकी बाहें उड़ गईं। उस समय वह अपने माता-पिता के साथ राजस्थान के बीकानेर में रहती थीं। इस घटना में उनके पैरों में भी पक्षाघात हो गया था। मगर, जिस घटना में उनकी मौत भी हो सकती थी, उसी घटना से जिंदगी जीने का उनका नजरिया बदल गया। हालांकि उस सदमे से उबरने में उन्हें कई साल लग गए, लेकिन उन्होंने न सिर्फ अपनी जिंदगी को दोबारा वापस पटरी पर लौटाया, बल्कि वह अन्य अशक्तों की जिंदगी में बदलाव लाने में जुट गईं। चेन्नई की इस 29 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से अपनी विकलांगता के सदमे पर विजय पा ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इसी साल मार्च में उन्हें प्रतिष्ठित नारी शक्ति पुरस्कार-2017 से सम्मानित किया। वह एक अभिप्रेरणा प्रदान करने वाली वक्ता बन गई हैं, जिनसे प्रेरणा पाकर अमेरिका, नार्वे और दक्षिण अफ्रीका समेत दुनिया के अन्य देशों में अशक्तों की जिंदगी में आशा की किरणों का संचार हुआ। मालविका ने बताया, "मैं राजस्थान के बीकानेर में पली-बढ़ी, जहां मेरे पिता प्रदेश के जलापूर्ति विभाग में इंजीनियर थे। यह घटना 26 मई, 2002 को हुई, जब मैं 13 साल की थी और नौवीं कक्षा में पढ़ती थी।" मालविका ने घटना को याद करते हुए कहा, "मैं घर के गैराज में कुझ ढूंढ रही थी। अनजाने में मैंने एक ग्रेनेड हाथ में उठा लिया, जो फट गया। इसमें मेरी बांहें उड़ गईं और टांगें बुरी तरह जख्मी हो गईं।" बीकानेर की आयुधशाला में जनवरी 2002 में आग लगी थी, जिसमें कुछ गोले आस-पास के इलाकों में फैल गए थे। उन्हीं में से एक के फटने से मालविका को अपनी बाहें गंवानी पड़ी। वह करीब 18 महीने तक बिस्तर पर पड़ी रही। उनके पैरों में कई सर्जरी हुई, जिससे उन्हें पक्षाघात के दौर से गुजरना पड़ा। साथ ही, उनकी कृत्रिम बाहें भी लगवाई गई थीं। इतनी कम उम्र में दारुण शारीरिक पीड़ा झेलने के बावजूद मालविका जिंदगी की चुनौतियों का सामना करने के लिए बेचैन थीं। वर्ष 2004 में 10वीं की परीक्षा में महज चार महीने बचे थे, लिहाजा मालविका ने चेन्नई में एक निजी उम्मीदवार के रूप में तमिलनाडु सेकंडरी स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट (एसएसएलसी) के लिए परीक्षा में शामिल होने का फैसला किया। वह अस्पताल में भर्ती होने के कारण 2002-03 में 9वीं की परीक्षा नहीं दे पाई थीं। लिपिक की मदद से उन्होंने परीक्षा दी और विशिष्टता के साथ परीक्षा पास की। वह प्रदेश में टॉपर में शामिल थीं। मालविका ने बताया, "मेरे बारे में अखबार में पढ़ने पर राष्ट्रपति ए.पी. जे. अब्दुल कलाम ने मुझे

प्रतिष्ठित नारी शक्ति पुरस्कार2017 से सम्मानित हैं मालविका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मालविका को 'अद्भुत नारी' बताया ए.पी. जे. अब्दुल कलाम ने करियर के बारे में की थी बात

मालविका अभिप्रेरणा प्रदान करने वाली वक्ता हैं, जिनसे प्रेरणा पाकर अमेरिका, नार्वे और दक्षिण अफ्रीका समेत दुनिया के अन्य देशों में अशक्तों की जिंदगी में आशा की किरणों का संचार हुआ राष्ट्रपति भवन बुलाया। उन्होंने मुझसे मेरे करियर की योजनाओं के बारे में पूछा और मुझे मिसाइल निर्माण के बारे में बताया।" अशक्तता अधिकारों की कार्यकर्ता ने कहा, "बिना हाथ के बोर्ड परीक्षा देना और राष्ट्रपति कलाम से मिलना मेरे लिए प्रेरणादायी था, जिसके बाद ऐसा लगा कि मुझे कुछ खोने पर कभी बुरा महसूस नहीं करना चाहिए। इसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।" उसके बाद मालविका ने पढ़ाई जारी रखते हुए दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से अर्थशास्त्र में डिग्री ली और उन्होंने दिल्ली से सामाजिक कार्य में मास्टर की उपाधि हासिल की। इसके बाद मालविका ने चेन्नई स्थित मद्रास स्कूल ऑफ सोशल वर्क से

सामाजिक कार्य में एमफिल और पीएचडी हासिल की। उन्होंने अशक्तता से निपटने और इसके प्रति लोगों का नजरिया बदलने का प्रशिक्षण भी लिया। मालविका ने कहा, "मैं बचपन में खेल, नृत्य और किशोर वय के मनोरंजक कार्यो में अच्छी थी। हाथ गंवाने और पैरों की निर्बलता से उबरना आसान काम नहीं था। लेकिन अशक्तता के प्रति लोगों का जो रवैया था, वह मेरे लिए शारीरिक अशक्तता से ज्यादा कष्टकारी था।" उन्होंने अपना पहला सार्वजनिक व्याख्यान 2013 में चेन्नई में दिया और बताया कि उस घटना ने किस प्रकार हमेशा के लिए उनकी जिंदगी बदल दी। मालविका ने दुनिया के अनेक देशों से अशक्त

लोगों के लिए बेहतर कानून और सुविधाओं की मांग की। अपने व्याख्यान के माध्यम से मालविका समावेशन, अशक्तों के प्रति नजरिए में बदलाव, चुनावों में पहुंच जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाती रही हैं। वह फैशन की दुनिया में भी इनकी पैठ बनाने पर जोर देती रही हैं। मॉडल बनकर फैशन की दुनिया में अशक्तों की पहुंच की वकालत करने वाली मालविका ने बताया, "रोज मेरे पास दुनियाभर के देशों से लोगों के सैकड़ों संदेश आते हैं, जिनमें वे बताते हैं कि उन्होंने क्यों अपनी जिंदगी में कभी हार नहीं मानी। यह काफी उत्साह की बात है कि मैं लोगों की जिंदगी में बदलाव लाने के काबिल हूं।" वह विश्व आर्थिक मंच की पहल ग्लोबल शेपर्स कम्युनिटी के चेन्नई केंद्र की सदस्य हैं, जो 30 साल से कम उम्र के लोगों को बदलाव लाने के लिए कार्य करने को प्रोत्साहित करती है। वह युवा विकास मामलों के संयुक्त राष्ट्र अंतर-एजेंसी नेटवर्क की सदस्य के रूप में विभिन्न महादेशों में अपने विचारों से लोगों को प्रेरणा प्रदान करती हैं। संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय न्यूयॉर्क में उन्हें मार्च 2017 में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया था। उन्होंने बताया, "मैंने जब अपनी कहानी बताई तो अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों ने सराहना करते हुए मेरा उत्साहवर्धन किया।" मार्च में नारी शक्ति पुरस्कार प्राप्त करने वाली महिलाओं से बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें 'अद्भुत नारी' बताया। मालविका ने बताया कि उस अवार्ड को पाकर महिलाओं और दिव्यांगों के लिए काम करने की उनकी इच्छाशक्ति बढ़ गई। उन्होंने कहा, "लोगों के मनोभाव में परिवर्तन की जरूरत है, क्योंकि भेदभाव अशक्तों के लिए मुख्य बाधक है।" मालविका ने कहा, "मुझे उम्मीद है कि युवाओं के लिए अशक्तता को समझने और दयाभाव व कलंक को समाप्त करने के मकसद से स्कूलों में एक पाठ्यक्रम शुरू करने में मैं सरकारी संस्थाओं और शैक्षणिक संस्थानों के साथ काम कर सकती हूं।"


24

स्वच्छता

13 - 19 अगस्त 2018

सउदी अरब

धुनिकता के साथ संपन्नता और परंपरा के साथ रूढ़िग्रस्त जड़ता, ग्लोब पर ऐसी विलक्षणता वाले किसी देश का चयन करना होगा, तो जिस देश का नाम सबसे पहले जेहन में आएगा, वह है सउदी अरब। सउदी अरब मध्यपूर्व में स्थित एक सुन्नी मुस्लिम देश है। यह एक इस्लामी राजतंत्र है, जिसकी स्थापना 1750 के आसपास सउद द्वारा की गई थी। यहां की धरती रेतीली है तथा जलवायु उष्णकटिबंधीय मरुस्थल। सउदी अरब विश्व के अग्रणी तेल निर्यातक देशों में गिना जाता है। सउदी अरब की एक बड़ी खासियत यह भी है कि यहां इस्लाम के प्रवर्तक मुहम्मद साहब का जन्म हुआ था और यहां इस्लाम के दो सबसे पवित्र स्थल मक्का और मदीना हैं।

जल और स्वच्छता

तेल के निर्यात के कारण होने वाली कमाई से सउदी समाज की स्थिति काफी पहले से अच्छी रही है। इसका असर वहां स्वास्थ्य और स्वच्छता

खास बातें

आधुनिक और सुरक्षित स्वच्छता का 100 फीसदी लक्ष्य पूरा

सउदी अरब में शराब के बाद अब तंबाकू भी हुआ प्रतिबंधित

की स्थिति पर साफ देखी जा सकती है। सउदी अरब विश्व के उन कुछ देशों में शामिल है जिसने स्वच्छता का 100 फीसदी लक्ष्य बहुत पहले हासिल कर लिया है। फिलहाल वहां अगर कुछ समस्या है तो वह पानी को लेकर है। वहां 97 फीसदी आबादी को स्वच्छ जलापूर्ति तो हो रही है पर 3 फीसदी आबादी अब भी इस सुविधा से दूर है।

तंबाकू पर बैन

सार्वजनिक के साथ निजी जीवन में भी सउदी अरब में स्वास्थ्य और स्वच्छता को काफी महत्व दिया जाता है। इसकी ताजा मिसाल है वहां तंबाकू पर नियंत्रण के लिए सऊदी राष्ट्रीय समिति ने बड़ी पहल की है। इसके तहत सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने वालों पर 1300 डॉलर तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। इस पहल की खासियत लोगों को धूम्रपान से होने वाली जानलेवा बीमारियों से बचाना है, इसके लिए ध्रूम्रपान करने वालों के इलाज के लिए मोबाइल क्लीनिक भी देशभर में होंगे।

स्वच्छता के स्वयंसेवक

सउदी समाज में स्वच्छता और सफाई को लेकर काफी जागरुकता है। इसकी मिसाल वहां हाल में 66 स्वयंसेवकों का बना एक समूह है। इस समूह में नौजवानों के साथ बूढ़े लोगों को भी शामिल किया गया है। समूह के स्वयंसेवकों ने हर शुक्रवार की सुबह जेद्दाह के तट पर कचरे को हटाने के लिए योजना बनाई है। यह कदम सऊदी अरब को हर लिहाज से स्वच्छ और सुंदर बनाए रखने के लक्ष्य के तहत उठाया गया है। समुद्र तट पर चूंकि कई तरह की गंदगी और कबाड़ जमा होने का खतरा रहता है, इसीलिए इसकी शुरुआत नई जेद्दाह समुद्र तट को बेहतर और साफ रखने के साथ किया गया है, यहीं यहां का सबसे लंबा पैदल चलने वाला पुल भी है। इस स्वच्छता समूह के संस्थापक डॉ. सईद

बदलाव की बयार

सउदी अरब में इन दिनों बदलाव की बयार बह रही है। इस कारण वहां एक तरफ जहां सरकार की नीतियों में खुलापन दिख रहा है, वहीं इससे वहां के समाज में खासतौर पर महिलाओं की स्थिति तेजी से बदल रही है। ऐसे ही एक फैसले में सउदी हुकूमत ने अपने यहां घूमने आने वाले लोगों की सहूलियतें बढ़ा दी हैं। दिलचस्प है कि यहां हर साल करीब 250 मिलियन पर्यटक आते हैं, जिन्हें यहां की गुफाएं सबसे आकर्षित करती हैं। प्राचीन में अरब के खानाबदोश लोगों ने गुफाओं को एक सुरक्षित आश्रय के रूप में माना, क्योंकि यह उन्हें गंभीर गर्मी और ठंड के साथ-साथ रेतीली हवाओं से सुरक्षित करता था। गुफाओं का पानी भी एक अच्छा स्रोत था। सऊदी अरब जो हजारों मुसलमान हर साल तीर्थ यात्रा पर आते हैं, उनके लिए भी इन गुफाओं की अहमियत है। मक्का के ऐतिहासिक गुफा ‘गारे हेरा’ के बारे में तो प्रसिद्ध है कि वहीं पैगंबर हजरत मोहम्मद (सल.) को 610 ई. में पहला ज्ञान मिला था।

पेयजल और स्वच्छता स्वच्छ या शोधित शहरी : 97% आबादी ग्रामीण : 97% आबादी

शराब पहले से प्रतिबंधित

तंबाकू सेवन के लिए लगाए जाने वाले दंड में सिगरेट, सिगार, पाइप, जिग, शीशा, चबाने वाली जैसी वस्तुओं या किसी अन्य प्रासंगिक विधि का उपयोग करना शामिल होगा। जिन स्थानों को खासतौर पर धूम्रपान निषिद्ध क्षेत्र बनाया गया है, वे हैं- मस्जिद, शैक्षिक संस्था, हॉस्पिटल, स्पोर्ट्स कांप्लेक्स, सांस्कृतिक स्थल, बैंकों और दूसरे सरकारी-निजी कार्यस्थल। दिलचस्प है कि सऊदी अरब में शरियत कानून होने की वजह से शराब पर पहले से ही प्रतिबंध है।

ने जेद्दाह निवासियों से अनुरोध किया कि वह इस स्वच्छता अभियान से जुड़ें और सऊदी को स्वच्छ रखें।

स्वच्छ व उन्नत शहरी : 100% आबादी

कुल : 97% आबादी

ग्रामीण : 100% आबादी कुल : 100% आबादी

(2015 तक अनुमानित)

(2015 तक अनुमानित)

अस्वच्छ या अशोधित

शहरी : 3% आबादी ग्रामीण : 3% आबादी कुल : 3% आबादी

अस्वच्छ या पारंपरिक शहरी : 0% आबादी ग्रामीण : 0% आबादी कुल : 0% आबादी

स्वच्छता सुविधाएं

97 फीसदी आबादी तक स्वच्छ जलापूर्ति की सुविधा

अरबी पगड़ी पर स्वच्छता की कलगी

पेयजल स्रोत

एसएसबी ब्यूरो

तेल के निर्यात के कारण होने वाली कमाई से सउदी समाज की स्थिति काफी पहले से अच्छी रही है। इसका असर वहां स्वास्थ्य और स्वच्छता की स्थिति पर साफ देखा जा सकता है

स्रोत : सीआईए वर्ल्ड फैक्टबुक (जनवरी, 2018)


13 - 19 अगस्त 2018

25

कही-अनकही

देशभक्ति का ‘प्रदीप’

भा

फिल्मों में देशभक्ति के गानों को लेकर जो प्रयोग कवि प्रदीप ने किए, वह न सिर्फ दुस्साहस से भरा है बल्कि हिंदी फिल्मी गीतों की दुनिया के लिए बड़ी रचनात्मक उपलब्धि भी है एसएसबी ब्यूरो

रतीय स्वाधीनता के लिए संघर्ष करने वालों में जहां एक तरफ राष्ट्रीय नेताओं की पांत और उनके पीछे चलनेवाले लाखों राष्ट्रभक्त थे, तो वहीं संघर्ष की इस मशाल को कलम के सिपाहियों ने अपने लेखन के बूते जलाए रखा। खासतौर पर 1931 के बाद वो दौर था जब भारत में स्वतंत्रता संग्राम का आंदोलन अपने चरम पर था। एक तरफ भगत सिंह और साथियों की शहादत के बाद लोगों ने भारत को आजाद कराने के लिए कमर कस ली थी। दूसरी तरफ लोगों का हौसला बुलंद करने का जिम्मा कई कवि निभा रहे थे। उस समय तमाम कवियों के बीच एक नाम जो काफी लोकप्रिय था, वह नाम था रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी यानी प्रदीप का। रामचंद्र द्विवेदी, कवि प्रदीप कैसे बने इसका भी एक

दिलचस्प किस्सा है। यह किस्सा जानने से पहले इनके शुरुआती दिनों की बात करते हैं। 6 फरवरी 1915 को उज्जैन के बड़नगर में एक मिडिल क्लास परिवार में रामचंद्र द्विवेदी का जन्म हुआ था। उनकी रुचि बचपन से ही कविताओं में थी। 1939 में लखनऊ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के बाद वे शिक्षक बनने की तैयारी करने लगे।

हिमांशु राय से भेंट

उसी दौरान कवि प्रदीप की जिंदगी में एक मोड़ आया और उनकी जिंदगी बदल गई। दरअसल, उसी दौरान उन्हें मुंबई में एक कवि सम्मेलन में जाने का मौका मिला। इस कवि सम्मेलन में उनका परिचय बॉम्बे टॉकीज में काम करने वाले एक व्यक्ति से हुआ, जो कवि प्रदीप की कविताओं से काफी प्रभावित था। उस व्यक्ति ने बॉम्बे टॉकीज के संस्थापक हिमांशु राय को कवि प्रदीप के बारे में बताया और हिमांशु राय ने उनको बुलावा भेज दिया। बस फिर क्या था, हिमांशु राय कवि प्रदीप से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें अपने स्टूडियो में 200 रुपए प्रति माह पर नौकरी पर रख लिया। रामचंद्र से प्रदीप वो हिमांशु राय के कहने पर ही बने। हिमांशु राय का सुझाव था कि इतना लंबा नाम होना फिल्मी जगत में ठीक नहीं है, जिसके बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर प्रदीप रख लिया। लेकिन इसके बाद उनकी मुश्किलें और बढ़ गई।

दो प्रदीप

उन दिनों अभिनेता प्रदीप भी काफी मशहूर थे और स्टूडियो में दो प्रदीप हो गए थे। अकसर डाकिया भी असमंजस में गलती कर बैठता और एक की डाक दूसरे को दे बैठता। इसी समस्या के हल के तौर पर प्रदीप ने अपने नाम के आगे कवि लगाना

शुरू कर दिया और तब से वो कवि प्रदीप के नाम से जाने जाने लगे।

गिरफ्तारी का वारंट

खास बातें कवि प्रदीप ने में 71 फिल्मों के लिए 1700 गीत लिखे

कवि प्रदीप की जिंदगी में दो बेहद अहम समय आए जो आज भी लोगों के जेहन में ताजा है। पहला समय था आजादी से पहले का, जब 1943 में बॉम्बे टॉकीज की फिल्म ‘किस्मत’ रिलीज हुई। इस फिल्म में कवि प्रदीप ने एक गाना लिखा, जिसकी वजह से उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हो गया। यह गाना भारत छोड़ो आदोलन के समर्थन में माना जा रहा था, जिसके बोल कुछ इस प्रकार थेआज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है यह गाना काफी मशहूर हुआ, लेकिन ब्रिटिश सरकार को नागवार गुजरा। इस गाने के चलते उन्हें काफी समय तक भूमिगत रहना पड़ा। लेकिन वारंट से बचने के लिए कवि प्रदीप ने जो तर्क दिया वो काफी मजेदार था। उन्होने कहा कि यह गाना अंग्रेजों के खिलाफ नहीं बल्कि उनके पक्ष में है। दरअसल, इस गाने की आगे की लाइनें थींशुरू हुआ है जंग तुम्हारा जाग उठो हिंदुस्तानी, तुम न किसी के आगे झुकना जर्मन हो या जापानी दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1942 में जब सिंगापुर और बर्मा लड़खड़ाने लगे तो भारत पर जापानी आक्रमण की संभावना और बढ़ गई। बस कवि प्रदीप ने इसी मुद्दे का फायदा उठाया। उन्होंने इस गाने की आगे की पंक्तियों से ब्रिटिश सरकार को ये मानने पर मजबूर कर दिया कि यह गाना उनके नहीं, बल्कि जर्मनी और जापान जैसे शत्रु राष्ट्र के खिलाफ है और इस तरह वो गिरफ्तार होने से बच गए।

इस गाने को 26 जनवरी 1963 में लता मंगेशकर ने दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में गाया। इस अवसर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन सहित सभी मंत्री और लगभग पूरी फिल्म इंडस्ट्री मौजूद थी। इस गाने को सुनकर सभी की आंखें नम थीं। पर हैरानी की बात यह थी कि इस अवसर पर कवि प्रदीप को आमंत्रित नहीं किया गया। हालांकि इस कार्यक्रम के तीन महीने बाद जवाहरलाल नेहरू कवि प्रदीप से मिले और उनकी अवाज में यह गाना भी सुना। कवि प्रदीप ने यह गाना सैनिकों की विधवाओं के नाम कर दिया था ताकि इस गाने से होने वाली कमाई विधवाओं को मिले। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कवि प्रदीप आजीवन पूछते रह गए कि 15 अगस्त और 26 जनवरी को ये गाना बजाया जाता है तो इसकी कमाई सैनिकों की विधवाओं तक क्यों नहीं पहुंचती। इस पर न तो म्यूजिक कंपनी ने कोई जवाब दिया और ना ही आर्मी ने। बाद में मुंबई हाई कोर्ट ने 25 अगस्त 2005 में इस पर फैसला सुनाया और एचएमवी म्यूजिक कंपनी को विधवा कोष में 10 लाख जमा करने का आदेश दिया।

‘ऐ मेरे वतन के लोगों’

सफलता के साथ लोकप्रियता भी

इसके बाद कवि प्रदीप के लिखे ‘दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल’ और ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं’ जैसे कई देशभक्ति से भरे गाने लोकप्रिय हुए। इसके बाद कवि प्रदीप की कलम ने वो गीत लिखा जिसे सुनकर जवाहर लाल नेहरू की आंखें नम हो गई थीं। वह गीत था ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’, जो कवि प्रदीप ने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान शहीद सैनिकों के लिए लिखा था।

1998 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से हुए सम्मानित उनका मूल नाम रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी था

कवि प्रदीप ने अपने जीवन में 71 फिल्मों में 1700 गीत लिखे, जिनमें देशभक्ति सहित धार्मिक गीत भी शामिल थे। इन गानों में से कई गीत कवि प्रदीप ने खुद भी गाए जो काफी लोकप्रिय हुए। कवि प्रदीप को 1998 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपने गीतों से फिल्मी जगत का रचनात्मक स्तर और बढ़ाने वाले कवि प्रदीप का 11 दिसंबर 1998 को निधन हो गया।


26

पुस्तक अंश

नेपाल

13 - 19 अगस्त 2018

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, नेपाली प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल के साथ बातचीत करते हुए

3 अगस्त, 2014: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काठमांडू आगमन पर, नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री सुशील कोइराला उनका स्वागत करते हुए

मेरी यात्रा प्रकृति, इतिहास, संस्कृति, आध्यात्मिकता और धर्म की हमारी साझी विरासत को दिखाती है। यह हमारी उच्च प्राथमिकता को दिखाती है कि हमारी सरकार नेपाल के साथ रिश्तों को लेकर सजग है और उन्हें नए स्तर पर ले जाने के लिए पूरी तरह से दृढ़ संकल्पित है।

20

14 में नरेंद्र मोदी ने नेपाल का दो बार दौरा किया, पहली बार अगस्त (3 और 4) में और

3 अगस्त, 2014: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, नेपाल की राजधानी काठमांडू में अभिवादन करते हुए

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

दूसरी बार नवंबर (25 से 27) के महीने में। अगस्त 2014 की यात्रा, पिछले 17 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा नेपाल में पहली यात्रा थी। प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल को आश्वासन दिया कि भारत, नेपाल के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता। उन्होंने नेपाल के संविधान की आवश्यकता के बारे में बात की, जो उनके लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता हो। अपनी यात्रा के दौरान, वह 3 अगस्त, 2014 को नेपाल की संसद (पहले संविधान सभा) को संबोधित करने वाले, पहले विदेशी नेता बने।

उन्होंने नेपाल के लिए 10,000 करोड़ रुपए की रियायती क्रेडिट लाइन की घोषणा की, साथ ही आई-वेज (इनफार्मेशन सुपर हाईवेज) और ट्रांसवे के विकास में सहायता का आश्वासन भी दिया। दोनों देशों ने तीन समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए: (1) नेपाल में पर्यटन विकास, (2) नेपाल में एक गॉइटर (Goitre) नियंत्रण कार्यक्रम का प्रचार, (3) दूरदर्शन और नेपाल टेलीविजन (एनटीवी) के बीच सहयोग। प्रधानमंत्री ने 4 अगस्त, 2014 को नेपाल के प्रसिद्ध श्री पशुपतिनाथ मंदिर में पूजा की। उन्होंने इस मौके पर, अपने परिवार से बिछड़े जीत बहादुर नाम के एक लड़के को कई सालों बाद नेपाल में अपने परिवार के साथ मिलने में मदद की। इसके बाद, मोदी ने 25 से 27 नवंबर, 2014 के बीच नेपाल की दूसरी यात्रा की। इस दौरे पर, दोनों देशों ने दस द्विपक्षीय समझौतों पर पर हस्ताक्षर किए। इससे ये संदेश गया कि भारत अपने पड़ोसियों के साथ बेहतर संबंध बनाने के लिए बड़े कदम उठाने को तैयार है। दोनों देशों के बीच, एक ऐतिहासिक मोटर वाहन समझौते के तहत नियमित बस सेवाओं (पशुपतिनाथ एक्सप्रेस) की आधारशिला रखी गई, इससे निजी वाहनों को नेपाल-भारत सीमा पार करने के लिए बिना किसी परेशानी के इजाजत दी गई। भारत, नेपाल के पनौती में 550 करोड़ रुपए की लागत से पुलिस प्रशिक्षण अकादमी बनाने के लिए भी तैयार हो गया। दोनों देशों ने पारंपरिक चिकित्सा, पर्यटन और युवा मामलों को लेकर भी समझौते पर

प्रधानमंत्री मोदी ने नेपाल के लोगों का दिल जीत लिया है। देखिए, उन्हें देखने के लिए कैसे लोग सड़कों पर लाइन लगाए खड़े हैं, आप और क्या पूछ सकते हैं? उन्होंने कहा है कि वह एक शांतिपूर्ण और स्थिर नेपाल, संपूर्ण संविधान के साथ एक मजबूत लोकतांत्रिक नेपाल को देखना चाहते हैं। हम इसके आलावा और क्या मांग सकते हैं? सुशील कोइराला, नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री हस्ताक्षर किए। एक्जिम बैंक से नेपाल सरकार को 1 बिलियन अमरीकी डालर की क्रेडिट लाइन जलविद्युत, सिंचाई और आधारभूत विकास परियोजनाओं में उपयोग के लिए बढ़ा दी गई। काठमांडू-वाराणसी, जनकपुर-अयोध्या और लुंबिनी-बोध गया जैसे शहरों को जुड़वा शहरों के रूप में जोड़ने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। प्रधानमंत्री ने बिहार के बोध गया के महाबोधि मंदिर से बोधि वृक्ष के एक पौधे को लुंबिनी में माया देवी मंदिर परिसर में अशोक स्तंभ के पास लगाने के लिए भेंट स्वरुप दिया।


जापान

13 - 19 अगस्त 2018

27

पुस्तक अंश

प्रधानमंत्री मोदी के साथ, मैंने आज सुबह तोजी मंदिर का दौरा किया। बुद्ध की मूर्तियों को देखते हुए, हमें जापान और भारत के बीच गहरे ऐतिहासिक संबंधों की याद आ गई। मुझे बहुत खुशी है कि प्रधानमंत्री मोदी, जापान की प्राचीन राजधानी क्योटो की सांस्कृतिक विरासत देखकर आनंदित हुए।

जापान के प्रधान मंत्री शिंजो आबे

जापान के तोजी मंदिर में अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अपने समकक्ष शिंजो आबे के साथ

क्योटो: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, क्योटो में किंकाकू-जी (गोल्डन मंडप) मंदिर का दौरा करते हुए

मो

दी का प्रधानमंत्री के रूप में जापान का पहला पांच दिवसीय (30 अगस्त से 3 सितंबर) दौरा, दोनों देशों के बीच मौजूदा द्विपक्षीय संबंध और सहयोग को अगले स्तर तक ले जाने पर केंद्रित था। यह एक ऐसी यात्रा थी, जिसने भारतजापान संबंधों को आगे बढ़ाते हुए ‘विशेष सामरिक वैश्विक साझेदारी’ के स्तर तक पहुंचा दिया। जापान, पांच वर्षों की अवधि के लिए भारत में विकास और आधारभूत

क्योटो: जापान के क्योटो में तोजी मंदिर की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके जापानी समकक्ष शिंजो आबे

संरचना परियोजनाओं के लिए 35 बिलियन डॉलर देने पर सहमत हो गया। दोनों सरकारें, रक्षा प्रौद्योगिकी और उपकरणों में सहयोग सहित द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को एक नया असर और दिशा देने पर भी सहमत हुईं। साथ ही शांति, स्थायित्व और समुद्री सुरक्षा बनाए रखने पर भी सहमती बनी। उन्नत प्रौद्योगिकी, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, लोगों में आपसी सहयोग, शैक्षणिक आदान-प्रदान और स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के वादों पर भी सहमती हुई। इस यात्रा में, जापान ने मई 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद लगाए गए छह भारतीय इकाइयों पर प्रतिबंध को हटा लिया और असैनिक परमाणु समझौते में तेजी लाने के लिए सहमति भी व्यक्त की। जापान के प्रधान मंत्री शिंजो आबे ने गैर-परमाणु प्रसार के क्षेत्र में भारत के प्रयासों की सराहना की, जिसमें इसकी पुष्टि भी शामिल थी कि जापान से स्थानांतरित वस्तुओं और प्रौद्योगिकियों को सामूहिक विनाश के हथियारों के लिए वितरण प्रणाली के रूप में उपयोग नहीं किया

जापान के एक स्कूल में, संगीतज्ञ के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री मोदी के अधीन, भारत का आर्थिक परिवर्तन मजबूत से आगे बढ़ेगा। भारत का आर्थिक रूप से पुनरुत्थान, इस क्षेत्र और दुनिया के लिए बड़ा रणनीतिक महत्व होगा, और दुनिया भर में लोकतांत्रिक ताकतों के लिए एक प्रेरणा होगी। शिंजो आबे जापान के प्रधानमंत्री जाएगा। भारत के भूभाग पर दौड़ती हाईस्पीड बुलेट ट्रेन के प्रधानमंत्री मोदी के महत्वाकांक्षी सपने को उस वक्त पंख लग गए, जब जापान ने बुलेट ट्रेन परियोजना को शुरू करने के लिए वित्तीय, तकनीकी और परिचालन संबंधी सहायता प्रदान करने की घोषणा की। पहली

हाल ही में संपन्न हुई मोदी की यात्रा के दौरान काफी कुछ हासिल किया गया है...आबे के विशेष भावों से उत्साहित मोदी ने भारत-जापान संबंधों के बारे में अपने ‘आत्मविश्वास, उत्साह और आशावाद’ की आवाज बुलंद की है। दोनों नेताओं के बीच निश्चित रूप से रिश्तों में गर्माहट आई हैं और चीजें सरल हुई हैं। कंवल सिब्बल हिंदुस्तान टाइम्स में कॉलमनिस्ट और पूर्व विदेश सचिव हाई स्पीड ट्रेन (प्रति घंटे 300 किलोमीटर की अधिकतम गति), अनुमानित लागत लगभग 60,000-70,000 करोड़ रुपए, के अहमदाबाद और मुंबई के बीच चलने की उम्मीद है। मोदी ने यह भी घोषणा की कि उनका कार्यालय जापान से निवेश प्रस्तावों की सुविधा के लिए एक विशेष प्रबंधन टीम नियुक्त करेगा।


28

खेल

13 - 19 अगस्त 2018

देशभक्ति का गोल

मेजर ध्यानचंद

क्रिकेट की लोकप्रियता ने बाकी खेलों को पीछे धकेल दिया है। पर आज भी अगर कुछ नहीं बदला है तो वह देश के महान खिलाड़ी और हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद को लेकर देशवासियों का प्यार और सम्मान

भा

एसएसबी ब्यूरो

रत में खेल की दुनिया काफी बदल गई है। साथ ही खेलों की लोकप्रियता में भी फर्क आया है। खासतौर पर क्रिकेट की लोकप्रियता ने बाकी खेलों को पीछे धकेल दिया है। पर आज भी अगर कुछ नहीं बदला है तो वह देश के महान खिलाड़ी और हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद को लेकर देशवासियों का प्यार और सम्मान। ध्यानचंद ने अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल दागे। जब वो मैदान में खेलने को उतरते थे तो गेंद मानों उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। उन्हें 1956 में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा बहुत से संगठन और प्रसिद्ध लोग समय-समय पर उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित करने की मांग करते रहे हैं। कहते हैं कि किसी भी खिलाड़ी की महानता को नापने का सबसे बड़ा पैमाना है कि उसके साथ कितनी किंवदंतियां जुड़ी हैं। इस लिहाज से मेजर ध्यानचंद का कोई जवाब नहीं है। हॉलैंड में लोगों ने उनकी हॉकी स्टिक तुड़वा कर देखी कि कहीं उसमें चुंबक तो नहीं लगा है। जापान के लोगों को अंदेशा था कि उन्होंने अपनी स्टिक में गोंद लगा रखी है। हो सकता है कि

खास बातें बुढ़ापे में कोई खिलाड़ी बुली में भी उनसे गेंद नहीं छीन सकता था डी में घुसने के बाद वो काफी तेजी और ताकत से शॉट लगाते थे वियना के स्पोर्ट्स क्लब में ध्यानचंद की मूर्ति लगाई गई है

इनमें से कुछ बातें बढ़ा-चढ़ाकर कही गई हों, लेकिन अपने जमाने में इस खिलाड़ी ने किस हद तक अपना लोहा मनवाया होगा, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वियना के स्पोर्ट्स क्लब में उनकी एक मूर्ति लगाई गई है, जिसमें उनके चार हाथ और उनमें चार स्टिक्स दिखाई गई हैं, मानों कि वो कोई देवता हों।

गैप को पहचानने की क्षमता

1936 के बर्लिन ओलंपिक में उनके साथ खेले और बाद में पाकिस्तान के कप्तान बने आईएनएस दारा ने वर्ल्ड हॉकी मैगजीन के एक अंक में लिखा


13 - 19 अगस्त 2018

जर्मनी के खिलाफ फाइनल मैच 14 अगस्त 1936 को खेला जाना था। लेकिन उस दिन बहुत बारिश हो गई। इसलिए मैच अगले दिन यानी 15 अगस्त को खेला गया। मैच से पहले मैनेजर पंकज गुप्ता ने अचानक कांग्रेस का झंडा निकाला। उसे सभी खिलाड़ियों ने सेल्यूट किया था, ‘ध्यान के पास कभी भी तेज गति नहीं थी, बल्कि वो धीमा ही दौड़ते थे। लेकिन उनके पास गैप को पहचानने की गजब की क्षमता थी। बाएं फ्लैंक में उनके भाई रूप सिंह और दाएं फ्लैंक में मुझे उनके बॉल डिस्ट्रीब्यूशन का बहुत फायदा मिला। डी में घुसने के बाद वो इतनी तेजी और ताकत से शॉट लगाते थे कि दुनिया के बेहतरीन से बेहतरीन गोलकीपर के लिए भी कोई मौका नहीं रहता था।’

दिमागी हॉकी

उपहार में सहगल के गाने

कुदं न लाल सहगल खुद अपनी कार में उस जगह पहुंच,े जहां ध्यानचंद के साथ पूरी टीम ठहरी हुई थी। उन्होंने उनके लिए न सिर्फ 14 गाने गाए बल्कि उन्होंने हर खिलाड़ी को एक एक घड़ी भी भेंट की

फि

ल्म अभिनेता पृथ्वीराज कपूर ध्यानचंद के फैन थे। एक बार मुंबई में हो रहे एक मैच में वो अपने साथ नामी गायक कुंदन लाल सहगल को ले आए। हाफ टाइम तक कोई गोल नहीं हो पाया। सहगल ने कहा कि हमने दोनों भाइयों का बहुत नाम सुना है। मुझे ताज्जुब है कि आप में से कोई आधे समय तक एक गोल भी नहीं कर पाया। रूप सिंह ने तब सहगल से पूछा कि क्या हम जितने गोल मारेंगे, उतने गाने हमें आप सुनाएंगे? सहगल राजी हो गए। दूसरे हाफ में दोनों भाइयों ने मिल कर 12 गोल दागे।

दो बार ओलंपिक चैंपियन टीम के हिस्सा रहे शिव दत्त बताते हैं, ‘बहुत से लोग उनकी मजबूत कलाइयों ओर ड्रिब्लिंग के कायल थे। लेकिन उनकी असली प्रतिभा उनके दिमाग में थी। वो उस ढ़ंग से हॉकी के मैदान को देख सकते थे जैसे शतरंज का खिलाड़ी चेस बोर्ड को देखता है। उनको बिना देखे ही पता होता था कि मैदान के किस हिस्से में उनकी टीम के खिलाड़ी और प्रतिद्वंद्वी मूव कर रहे हैं।’ याद कीजिए 1986 के विश्व कप फुटबॉल का फाइनल। माराडोना ने बिल्कुल ब्लाइंड एंगिल से बिना आगे देख पाए तीस गज लंबा पास दिया था जिस पर बुरुचागा ने विजयी गोल दागा था। किसी खिलाड़ी की संपूर्णता का अंदाजा इसी बात से होता है कि वो आंखों पर पट्टी बांधकर भी मैदान की ज्योमेट्री पर महारत हासिल कर पाए।

हर बार कमाल का मूव

दत्त कहते हैं, ‘जब हर कोई सोचता था कि ध्यानचंद शॉट लेने जा रहे हैं तो वे गेंद को पास कर देते थे। इसीलिए नहीं कि वे स्वार्थी नहीं थे (जो कि वो नहीं थे), बल्कि इसलिए कि विरोधी उनके इस मूव पर हतप्रभ रह जाएं। जब वो इस तरह का पास आपको देते थे तो जाहिर है आप उसे हर हाल में गोल में डालना चाहेंगे।’ 1947 के पूर्वी अफ़्रीका के दौरे के दौरान उन्होंने केडी सिंह बाबू को गेंद पास करने के बाद अपने ही गोल की तरफ अपना मुंह मोड़ लिया और बाबू की तरफ देखा तक नहीं। जब उनसे बाद में उनकी इस अजीब सी हरकत का कारण पूछा गया तो उनका जवाब था, ‘अगर उस पास पर भी बाबू गोल नहीं मार पाते तो उन्हें मेरी टीम में रहने का कोई हक नहीं था।’ 1968 में भारतीय ओलंपिक टीम के कप्तान रहे गुरुबख्श सिंह ने बताया कि 1959 में भी जब ध्यानचंद 54 साल के हो चले थे तो भी भारतीय हॉकी टीम का कोई भी खिलाड़ी बुली में उनसे गेंद

29

खेल

नहीं छीन सकता था।

जर्मनी पर बड़ी जीत

1936 के ओलंपिक खेल शुरू होने से पहले

लेकिन फाइनल विसिल बजने से पहले सहगल स्टेडियम छोड़ कर जा चुके थे। अगले दिन सहगल ने अपने स्टूडियो आने के लिए ध्यानचंद के पास अपनी कार भेजी। लेकिन जब ध्यानचंद वहां पहुंचे तो सहगल ने कहा कि गाना गाने का उनका मूड उखड़ चुका है। ध्यानचंद बहुत निराश हुए कि सहगल ने नाहक ही उनका समय खराब किया। लेकिन अगले दिन सहगल खुद अपनी कार में उस जगह पहुंचे, जहां उनकी टीम ठहरी हुई थी और उन्होंने उनके लिए 14 गाने गाए। न सिर्फ गाने गाए बल्कि उन्होंने हर खिलाड़ी को एक एक घड़ी भी भेंट की।

एक अभ्यास मैच में भारतीय टीम जर्मनी से 4-1 से हार गई। ध्यानचंद अपनी आत्मकथा ‘गोल’ में लिखते हैं, ‘मैं जब तक जीवित रहूंगा इस हार को कभी नहीं भूलूंगा। इस हार ने हमें इतना हिलाकर रख दिया कि हम पूरी रात सो नहीं पाए। हमने तय किया कि इनसाइड राइट पर खेलने के लिए आईएनएस दारा को तुरंत भारत से हवाई जहाज से बर्लिन बुलाया जाए।’ दारा सेमी फाइनल मैच तक ही बर्लिन पहुंच पाए। जर्मनी के खिलाफ फाइनल मैच 14 अगस्त 1936 को खेला जाना था। लेकिन उस दिन बहुत बारिश हो गई। इसलिए मैच अगले दिन यानी 15 अगस्त को खेला गया। मैच से पहले मैनेजर पंकज गुप्ता ने अचानक कांग्रेस का झंडा निकाला। उसे सभी खिलाड़ियों ने सेल्यूट किया। दिलचस्प है कि उस समय तक भारत का अपना कोई झंडा नहीं था। भारत ब्रिटिशों के अधीन था, इसीलिए यूनियन जैक के तले ओलंपिक खेलों में भाग ले रहा था। बर्लिन के हॉकी स्टेडियम में उस दिन 40,000 लोग फाइनल देखने के लिए मौजूद थे। देखने वालों में बड़ौदा के महाराजा और भोपाल की बेगम के साथ साथ जर्मन नेतृत्व के चोटी के लोग मौजूद थे। ताज्जुब यह था कि जर्मन खिलाड़ियों ने भारत की तरह छोटे

छोटे पासों से खेलने की तकनीक अपना रखी थी। हाफ टाइम तक भारत सिर्फ एक गोल से आगे था। इसके बाद ध्यानचंद ने अपने स्पाइक वाले जूते और मोजे उतारे और नंगे पांव खेलने लगे। इसके बाद तो गोलों की झड़ी लग गई।

जर्मन रह गए अभिभूत

दारा ने बाद में लिखा, ‘छह गोल खाने के बाद जर्मन रफ हॉकी खेलने लगे। उनके गोलकीपर की हॉकी ध्यानचंद के मुंह पर इतनी जोर से लगी कि उनका दांत टूट गया। उपचार के बाद मैदान में वापस आने के बाद ध्यानचंद ने खिलाड़ियों को निर्देष दिए कि अब कोई गोल न मारा जाए। सिर्फ जर्मन खिलाड़ियों को ये दिखाया जाए कि गेंद पर नियंत्रण कैसे किया जाता है। इसके बाद हम बार-बार गेंद को जर्मन डी में ले कर जाते और फिर गेंद को बैक पास कर देते। जर्मन खिलाड़ियों की समझ में ही नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है।’ भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराया और इसमें तीन गोल ध्यानचंद ने किए। एक अखबार मॉर्निंग पोस्ट ने लिखा, ‘बर्लिन लंबे समय तक भारतीय टीम को याद रखेगा। भारतीय टीम ने इस तरह की हॉकी खेली मानो वो स्केटिंग रिंक पर दौड़ रहे हों। उनके स्टिक वर्क ने जर्मन टीम को अभिभूत कर दिया।’

पास के मास्टर

ओलंपियन नंदी सिंह ने बताया था कि लोगों में ये बहुत बड़ी गलतफहमी है कि ध्यानचंद बहुत ड्रिबलिंग किया करते थे। वो बिल्कुल भी ड्रिबलिंग नहीं करते थे। गेंद को वो अपने पास रखते ही नहीं थे। गेंद आते ही वो उसे अपने साथी खिलाड़ी को पास कर देते थे।


30

सुलभ संसार

13 - 19 अगस्त 2018

असंतुष्ट कौआ

गजल कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए कहीं पे शाम सिरहाने लगाके बैठ गए। जले जो रेत में तलुवे तो हमने ये देखा बहुत से लोग वहीं छटपटाके बैठ गए। खडे़ हुए थे अलावों की आंच लेने को सब अपनी अपनी हथेली जलाके बैठ गए। दुकानदार तो मेले में लुट गए यारो तमाशबीन दुकानें लगाके बैठ गए। लहू लुहान नजरों का जिक्र आया तो शरीफ लोग उठे दूर जाके बैठ गए। ये सोचकर कि दरख्तों में छांव होती है यहां बबूल के साये में आके बैठ जाए। (दुष्यंत कुमार की इस गजल का पाठ सुलभ प्रार्थना सभा में बबली ने किया)

मंजू

क कौआ जब-जब मोरों को देखता, तो वह मन-ही-मन कहता-‘भगवान ने मोरों को कितना सुंदर रूप दिया है। यदि मैं भी ऐसा रूप पाता तो कितना मजा आता।’ एक दिन

उसने जंगल में मोरों के बहुत से पंख बिखरे देखे। उन्हें देख कर वह प्रसन्न होकर कहने लगा-‘वाह भगवान! बड़ी कृपा की आपने जो मेरी पुकार सुन ली। मैं इन पंखो से अच्छा-खासा मोर बन जाता हूं।’ फिर वह बड़े अभिमान से मोरों के सामने पहुंचा। उसे देखते ही मोरों ने ठहाका लगाया। एक

जीवन में पैसे का महत्त्व

अंजिता

क लड़का था जो अपने माता पिता के साथ एक गांव में रहता था वह लड़का पढ़ने लिखने में तेज था, लेकिन उसके दोस्तों की यह सोच थी की यदि वे पढ़ लिखकर

कोई नौकरी प्राप्त कर लें तो उनका जीवन सुखमय हो जाएगा और इस दुनिया का कोई भी सुख अपने धन दौलत से खरीद सकते हैं, लेकिन वह लड़का अक्सर उनकी बातों से सहमत नहीं होता था। एक दिन उसने अपने पिताजी से कहा की पिताजी क्या अगर हमारे पास ढेर सारा धन हो जाए

तो क्या हम दुनिया के सबसे सुखी इंसान हो सकते हैं। उसी दिन शाम को पिता ने अपने बेटे के साथ अपने बगीचे में आम का एक पौधा लगाया। पिता ने कहा कि देखो बेटा तुमने आज सुबह पूछा था की क्या धन से ही सारे सुख प्राप्त किया जा सकता है तो इस आम के पेड़ को देखो और सोचो कि क्या हमने इसे बेकार में ही लगा दिया है, क्योंकि इस पौधे को पेड़ बनने में काफी समय लगेगा और फिर इस पर फल आने में भी वक्त लगेगा और हो सकता है कि इसके फल हमें खाने को मिले या ना मिले। इससे हम सभी यही सोचेंगे कि यह समय की बर्बादी है। तो ठीक है तुम जरा सोचो अगर सब लोग यही सोचने लगे कि भला हम क्यों पेड़ लगाए अगर हमें फल खाना ही है तो हम अपने पैसों से बाजार से फल खरीदकर खा सकते है। सोचो जब सबकी यही सोच होगी कि धन से सब कुछ खरीदा जा सकता है ऐसे में कोई भी इन पेड़ों को नहीं लगाएगा तो एक दिन ऐसा भी आएगा की इस धरती पर सबके पास तो खूब धन दौलत होगी, लेकिन जब फल देने वाले पेड़ पौधे नही होंगे, तो भला इन पैसो का क्या मोल। अपने पिता से यह सब बाते सुनकर उस लड़के को समझ में आ गया कि पैसे से खरीद सकते हैं, मगर खरीदने के लिए हमें कुछ प्रयास भी करना होगा।

मोर ने कहा- ‘जरा देखो इस दुष्ट कौए को।’ यह हमारे फेंके हुए पंख लगाकर मोर बनने चला है। लगाओ इस बदमाश को चोंच और पंजों से कसकसकर ठोकरें।’ यह सुनते ही सभी मोर कौए पर टूट पड़े और मार-मारकर उसे अधमरा कर दिया। कौआ भागा-भागा अन्य कौओं के पास जाकर मोरों की शिकायत करने लगा तो एक बुजुर्ग कौआ बोला‘सुनते हो इस अधम की बातें। यह हमारा उपहास करता था और मोर बनने के लिए बावला रहता था। इसे यह भी ज्ञान नहीं कि जो प्राणी अपनी जाति से संतुष्ट नहीं रहता, वह हर जगह अपमान पाता है। आज यह मोरों से पिटने के बाद हमसे मिलने आया है। लगाओ इस धोखेबाज को कसकर मार।’ इतना सुनते ही सभी कौओ ने मिलकर उसकी अच्छी मरम्मत कर दी। ईश्वर ने हमे जिस स्वरूप मे बनाया है, उसी स्वरूप मे संतुष्ट रहकर अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए।

कविता

रोटी

स्निग्धा

रोटी तेरी गजब की माया मानव तुझको समझ न पाया तेरी पड़ी है ऐसी छाया मानव-मानव ना रह पाया तुझे ढूंढ़ने दर-दर भटका कितनों के पैरों सिर पटका ढोल-मजीरा लेकर गाया फिर भी रोटी कहीं न पाया तेरे कारण की चोरी किसकी पॉकेट नही टटोली कि गली में मारा-मारी क्या था तुममें कभी न सोचा तेरे लिए ईनाम भी बेचा बने भिखारी दर-दर गाया मिली न रोटी गाली पाया धर्म खोता है तेरे लिए इंसान अच्छे होकर भी बना शैतान कोई न समझा तेरी काया रोटी से मानव न मुक्ति पाया।


13 - 19 अगस्त 2018

आओ हंसें

जीवन शिक्षक : जीवन क्या है? छात्र : व्हाट्सऐप से बचा हुआ समय ही जीवन है। याद पत्नी मायके से फोन पर : क्या, तुम मुझे याद करते हो? पति : याद करना इतना आसान होता तो दसवीं में टॉप न कर जाता। अंगरू नहीं उगते इंटरव्यूी के दौरान राजू से पूछा गया : आम के पेड़ और संतरे के पेड़ में क्या समानता है? राजू ने जवाब दिया : दोनों पर अंगरू नहीं उगते हैं।

31

इंद्रधनुष

जीवन मंत्र

सु

कौन कहता है कि परमात्मा नजर नहीं आते एक वही नजर आते हैं जब कोई नजर नहीं आता

डोकू -35

रंग भरो

महत्वपूर्ण तिथियां

• 13 अगस्त अंग दान दिवस • 14 अगस्त पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस • 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस (भारत), विंध्याचली भीमचण्डी जयंती, योगी अरविंद जयंती • 17 अगस्त मदन लाल ढींगरा स्मृति दिवस • 19 अगस्त विश्व फोटोग्राफी दिवस, विश्व मानवीय दिवस

बाएं से दाएं

1. मन को मोहने वाला (5) 3. अभिनय (3) 5. कल्याण, त्रिमूर्ति का एक देव (2) 6. नगर-की-व्यवस्था करने वाली संस्था (3,3) 8. चैन (2) 9. मुकुट (2) 10. यथोचित (3) 11. बीता हुआ काल (3) 12. हिंसक जानवर (3) 13. व्यसन, आदत (2) 15. मोड़ (2) 16. अस्थिर व अस्थायी (मुहावरा) (3,3) 18. रव, हल्ला गुल्ला (2) 19. सरदार, नेता, अभिनेता (3) 20. बे फिक्र (5)

सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी व‌िजता े को 500 रुपए का नगद पुरस्कार द‌िया जाएगा। सुडोकू के हल के ल‌िए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देख।ें

सुडोकू-34 का हल विजेता का नाम सौरभ भगत लाजपत नगर, दिल्ली

वर्ग पहेली-34 का हल

ऊपर से नीचे

1. बड़प्पन (4) 2. मुद्रा (3) 3. कश्ती (2) 4. भूरा (3) 5. किसी गलत बातत का दूसरे से निवेदन (4) 7. पौ फटते (उर्दू) (3,2) 8. दुख सहन करना (मुहावरा) (2,3) 11. अभिनेता (4) 14. ध्यान (उर्दू) (4) 15. आँखें फाड़कर देखना (3) 17. बबूल के पेड़ का एक नाम (3) 18. दुख (2)

कार्टून ः धीर

वर्ग पहेली - 35


32

न्यूजमेकर

अनाम हीरो

13 - 19 अगस्त 2018

संघर्ष की कला

अभाव और बेबसी के दलदल से निकलकर शकीला ने जिस तरह कला जगत में वैश्विक ख्याति अर्जित की, वह एक मिसाल है

हिलाएं आज किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। अपनी मेहनत और स्मार्टनेस के कारण वह हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर रही हैं। ऐसी ही एक कहानी है आर्टिस्ट शकीला शेख की, जिन्होंने अपनी गृहस्थ भूमिका से हटकर अपनी एक अलग पहचान बनाई है। शकीला कोलकाता से 30 किमी दूर स्थित एक गांव में रहती थीं। आम महिलाओं के तरह वह भी अपने परिवार को खाना बनाकर देती थीं और घर का काम करती थीं। मगर एक दिन अचानक शकीला ने अपना गृहस्थ जीवन छोड़ दिया। बाद में कला के क्षेत्र में लगातार संघर्ष करते हुए उसने एक मशहूर और कामयाब आर्स्टिस के रूप में अपनी पहचान बनाई। शकीला जब बहुत छोटी थीं, जब उनके पिता उन्हें छोड़ कर चले गए थे। पिता के जाने के बाद उनकी मां सब्जी बेचने के लिए 40 किलोमीटर मोगरा घाट से चलकर कोलकाता तक जाती थी। शकीला का कहना है कि उनकी मां उन्हें साथ तो ले जाती थी, लेकिन कोई काम करने नहीं देती थी। वह फुटपाथ पर बैठकर ट्राम और बसों को देखा करती थी और कई बार तो काम के लिए उन्हें सड़कों पर ही सोना पड़ता था। बलदेव राज पनेसर, जो कि सरकारी कर्मचारी और

चित्रकार थे, वह गरीब बच्चों को अंडे, चॉकलेट, पेंसिल और पत्रिकाएं दिया करते थे। लेकिन शकीला ने उनसे कुछ भी नहीं लिया। वह बताती हैं, ‘मैंने किसी अजनबी से कभी कुछ भी स्वीकार नहीं किया था, इसीलिए मैं ये नहीं ले सकती।’ इसके बाद पनेसर ने उन्हें पढ़ाने के लिए उनकी मां को राजी किया, जिसके बाद वह शकीला के लिए ‘बाबा’ बन गए। कुछ समय बाद शकीला की मां ने उनकी शादी अकबर शेख नाम के शख्स से कर दी, जोकि पहले से ही शादीशुदा थे। वह भी कोलकाता की सड़कों पर सब्जी बेचा करता था। इसके बाद शकीला ने बाबा की सलाह से पोलॉथीन बैग बनाने शुरू किया। एक दिन बाबा ने अपनी प्रदर्शनी देखने के लिए शकीला और अकबर को आमंत्रित किया। उनके चित्रों को शकीला ने उन्हें बहुत उत्सुकता से देखा। प्रदर्शनी देखने के बाद शकीला ने अकबर से कार्डबोर्ड शीट्स और कलर्ड पेपर्स मंगवाए। इसके बाद उन्होंने सब्जियों का कोलाज बनाना शुरू किया। उनके कोलाज को देखकर बाबा ने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को कोलाज बनवाने के लिए शकीला जी के पास

न्यूजमेकर

गीता मित्तल व सिंधु शर्मा

न्याय के आसन पर महिला

जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय पहली बार महिला मुख्य न्यायाधीश

स्टिस गीता मित्तल को जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया है। वह राज्य के उच्च न्यायालय की अध्यक्षता करने वाली पहली महिला न्यायाधीश हैं। जस्टिस गीता मित्तल अब तक दिल्ली उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश थीं। इसी तरह जस्टिस सिंधु शर्मा जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश बनी हैं। जम्मू कश्मीर में न्याय के उच्च आसन पर इस तरह किसी महिला का आसीन होना एक बड़ी खबर है। इससे जम्मू कश्मीर में न्याय और महिला सशक्तीकरण के एक नए अध्याय के आरंभ की उम्मीद है। जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सिंधु शर्मा के अलावा भी कई कई महत्वपूर्ण नियुक्तियां हुई हैं।

शकीला शेख

जाने के लिए कहा। उन्होंने सब्जियों से लेकर घरेलू हिंसा तक की कहानी को कैनवस पर उतारा, जोकि लोगों को काफी पसंद आए। इसके बाद उन्होंने 1990 में अपनी पहली प्रदर्शनी लगाई, जिसमें शकीला ने 70,000 रुपए कमाए। आज उनकी कला फ्रांस, जर्मनी, नॉर्वे और अमेरिका जैसे शहरों में बिकती है। उन्हें अपनी कला के ​िलए कई ऑवार्ड भी मिल चुके हैं। शकीला शेख का जीवन हर महिला के लिए प्रेरणा है।

अक्षय वेंकटेश

ना

गणित का नोबेल

भारतीय मूल के गणितज्ञ को मिला गणित फील्ड्स मेडल मी भारतीय-ऑस्ट्रेलियाई गणितज्ञ अक्षय वेंकटेश समेत चार विजेताओं को गणित का विशिष्ट फील्ड्स मेडल मिला है। गणित के क्षेत्र में इसे नोबेल पुरस्कार के समान माना जाता है। हर चार साल बाद फील्ड्स मेडल 40 साल से कम उम्र के सबसे उदीयमान गणितज्ञ को दिया जाता है। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ा रहे नई दिल्ली में जन्मे वेंकटेश को गणित विषय में विशिष्ट योगदान के लिए फील्ड्स मेडल मिला है। रिओ दि जेनेरियो में गणितज्ञों की अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस में उनके मेडल के लिए प्रशस्ति में उनके योगदान को रेखांकित किया गया है। तीन अन्य विजेता हैं- कैंब्रिज विश्वविद्यालय में इरानी-कुर्द मूल के प्रोफेसर कौचर बिरकर, बॉन विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले जर्मनी के पीटर स्कूल्ज और ईटीएच ज्यूरिख में इतालवी गणितज्ञ एलिसो फिगेली। हर विजेता को 15,000 कनाडाई डॉलर का नकद पुरस्कार मिला है। वेंकटेश यह पुरस्कार जीतने वाले भारतीय मूल के दूसरे शख्स हैं। उनसे पहले 2014 में मंजुल भार्गव भी यह पुरस्कार जीत चुके हैं।

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 35


Turn static files into dynamic content formats.

Create a flipbook
Issuu converts static files into: digital portfolios, online yearbooks, online catalogs, digital photo albums and more. Sign up and create your flipbook.