सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 34)

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स्वच्छता

व्यक्तित्व

स्वच्छता

पुस्तक अंश

सुलभ का बहुआयामी योगदान

रंग और रेखा का जादू

अभाव के बीच स्वच्छता की ललक

वैश्विक स्तर पर भारत की मजबूत छवि

डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

बदलते भारत का साप्ताहिक

आदिवासी

वर्ष-2 | अंक-34 | 06 - 12 अगस्त 2018

प्रकृति का जीवन

पर्यावरण और प्रकृति की जो चिंता आधुनिक विश्व को सबसे ज्यादा है, उस प्रकृति और पर्यावरण के सबसे बड़े संरक्षक और सखा आदिवासी ही हैं, जिन्होंने हजारों वर्षों से निरंतर इसका संरक्षण और संवर्द्धन किया है

एसएसबी ब्यूरो

ल के साथ तैरते हुए जीना, जंगलों के साथ जीना, हरियाली की तरह जीना, अंकुर के विशाल वृक्ष बनने तक का साहचर्य और सानिध्य, मौसम के साथ जीवन को बदलने और प्रकृति के उल्लास में अपनी खुशियां व्यक्त करना, यही

आदिवासियों की सबसे बड़ी पहचान है और सबसे बड़ी खूबी भी। प्रकृति और पर्यावरण की जिस नई चिंता में पूरी दुनिया डूबी है। उस प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षक ये आदिवासी ही हैं, जिनके जीवन और समाज को लेकर आज भी बहुत सारी सतही और कुछ हद तक एक रोमानी समझ हम सबके बीच है।

जल, जंगल और जमीन का जीवन

प्रश्न कई हैं, लेकिन जल, जंगल और जमीन के इन वारिसों का समाज और उसकी संरचना भी अपनी है। अपने नियम और अपने कानून, अपना बंधन और अपनी आजादी, अपनी सीमा और अपनी असीमता के साथ हजारों – हजार साल से पूरे उल्लास के साथ जीना किसी समाज के लिए बहुत आसान नहीं है। लेकिन इसे इन प्रकृति पुत्रों की खासियत कहें या इनकी जीवटता, किसी भी हाल में, किसी भी मौसम और हालात में ये अपने और अपनों का साथ नहीं छोड़ते। यह शायद इनकी विवशता भी हो सकती है, लेकिन इसके पीछे अपने जीवन मूल्यों और सामाजिक सोच के प्रति गहरी निष्ठा भी है। जल, जंगल और जमीन के साथ सूरज, चांद

खास बातें

जल, जंगल और जमीन के असली हकदार हैं आदिवासी प्रकृति से जितना लेते हैं, उतना पूरी आस्था के साथ लौटाते भी हैं पलायन और पहचान के संकट से जूझ रहा है आदिवासी समाज


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