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स्मरण
शिक्षा और भाईचारे को समर्पित जीवन
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स्वच्छता
कही-अनकही
स्वच्छता का चमकता सूर्य
बाल सितारों की दुनिया
डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597
बदलते भारत का साप्ताहिक
वर्ष-2 | अंक-47 |05 - 11 नवंबर 2018 मूल्य ` 10/-
जब बना सुलभ शौचालय तो आई असली आजादी
सिक्किम के राज्यपाल गंगा प्रसाद ने सुलभ ग्राम का दौरा किया, जहां डॉ. विन्देश्वर पाठक पुनर्वासित स्कैवेंजर्स और विधवा माताओं ने उनका स्वागत किया
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आवरण कथा
05 - 11 नवंबर 2018
खास बातें सिक्किम स्वच्छ, स्वस्थ और खुश रहने का एक आदर्श उदाहरण है राज्यपाल का स्वागत कर सुलभ सम्मानित महसूस कर रहा है: डॉ. पाठक डॉ. विन्देश्वर पाठक उन व्यक्तित्वों में से हैं, जो इतिहास बनाते हैं: गंगा प्रसाद गया। इसके बाद सुलभ के वरिष्ठ लोगों, अलवर से आईं पुनर्वासित स्कैवेंजर्स और वृंदावन की विधवा माताओं ने भी राज्यपाल महोदय का हार्दिक स्वागत किया।
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स्वतंत्रता और धर्म स्वस्तिका त्रिपाठी
त्तर-पूर्वी भारत के छोटे राज्य सिक्किम के लोगों के चेहरों पर एक चमकीली, खूबसूरत मुस्कुराहट हर वक्त देखने को मिलती है। लोगों में गर्व की भावना रहती है। वजह ऐसी उपलब्धियां हैं, जो मानव जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में शामिल है। यह गौरव, भारत के पहले खुले में शौचालय से मुक्त (ओडीएफ) राज्य के होने का है। लेकिन सिक्किम का यह महान सफाई अभियान सिर्फ एक रात में ही संभव नहीं हुआ। यह लोगों के उस निरंतर प्रयास के कारण ही हुआ, जो 15 साल पहले साल 2003 में शुरू हुआ था। ऐसे प्रयासों के पीछे सिक्किम के लोगों की प्रतिबद्धता और आत्मनिर्भर अनुशासन था। लोगों ने एक ऐसा समग्र दृष्टिकोण अपनाया, जो स्वच्छता और स्वास्थ्य में सुधार करे, पर्यावरण की रक्षा करे और राज्य के विकास की गति को उच्चतम स्तर पर ले जाए। शौचालयों के निर्माण से लेकर हर घर में प्रचार-प्रसार किया गया, स्कूलों में स्वच्छता और स्वास्थ्य से जुड़े शिक्षा के कार्यक्रम शुरू किए गए। एक दशक से अधिक समय तक ऐसे ही अनेक प्रयास हुए, जिनके माध्यम से सिक्किम को स्वच्छता और सफाई के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और यह 'निर्मल राज्य' के रूप में उभरा और आखिर में देश में ओडीएफ घोषित होने वाला पहला राज्य बना। सिक्किम में साफ भोजन, साफ हवा और साफ पानी है। यह पूरी तरह से आर्गेनिक (जैविक) राज्य भी है। सिक्किम स्वच्छ, स्वस्थ और खुश रहने का एक आदर्श उदाहरण है। इस तरह के एक सुंदर राज्य के शासन का हिस्सा होना गर्व का विषय है, लेकिन यह सबकी जिम्मेदारी को भी बढ़ा देता है। स्वच्छता सर्वोच्च प्राथमिकता है, क्योंकि किसी उपलब्धि को बनाए
रखना उस ऊंचाई तक पहुंचने से कहीं अधिक कठिन और आवश्यक होता है। स्वच्छता की भावना और उसकी महत्वपूर्ण भूमिका, सिक्किम के 16वें राज्यपाल गंगा प्रसाद के दृष्टिकोण में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। प्रसाद की बातों में ही आपको सबसे स्वच्छ राज्य के राज्यपाल होने की झलक मिल जाएगी। ऐसे ही एक अन्य व्यक्ति जिनके लिए स्वच्छता और साफ-सफाई ही जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है, सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक हैं, जो स्वच्छता अभियान सिक्किम से भी काफी
पहले शुरू कर चुके थे। एक ऐसी यात्रा जो डॉ. पाठक ने 50 साल पहले शुरू की थी, आज उससे पूरी दुनिया अवगत है। इसीलिए सिक्किम के माननीय राज्यपाल जिनके बारे में अब तक सुनते-पढ़ते आए थे, उसका साक्षात अनुभव करने के लिए उन्होंने नई दिल्ली में सुलभ ग्राम का दौरा किया। पूरा सुलभ परिसर, माननीय राज्यपाल का स्वागत करने के लिए उत्साहित था। राज्यपाल गंगा प्रसाद शंख ध्वनि की गूंज के बीच सुलभ परिसर पहुंचे, जहां डॉ. विन्देश्वर पाठक द्वारा माला पहनाकर गर्मजोशी से उनका स्वागत किया
जब से मेरे घर में एक शौचालय का निर्माण हुआ है, हमारा घर सच में सपनों का घर बन गया। आज हमारे घरों में शौचालय हैं, जिनके कारण हम परेशानी से मुक्त होकर दिन भर काम कर रहे हैं, साथ ही बच्चे पूरी तरह से अपने अध्ययन पर ध्यान केंद्रित कर पर रहे हैं। इस सबके साथ ही, भारत ने अपनी असली आजादी हासिल की है। और यह असली आजादी, हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और डॉ. पाठक ने हमें दी है -परमजीत कौर
डॉ. पाठक और सुलभ संगठन द्वारा हजारों लोगों के जीवन को बदहाली से खुशहाली में बदला गया है। डॉ. पाठक की पहल से जिन लोगों के जीवन में बेहतर परिवर्तन आए, उनमें से कुछ कार्यक्रम में उपस्थित थे और उन्होंने गंगा प्रसाद को अपने जीवन में आए बदलाव के बारे में बताया। इस अवसर पर सुलभ इंटरनेशनल की अध्यक्ष और अलवर की रहने वाली उषा शर्मा (पहले चौमर) ने अपनी मार्मिक कहानी सुनाई, कि किस तरह सिर पर मैला ढोने से लेकर एक गरिमामय जीवन जीने के लिए उन्होंने सुलभ और डॉ. पाठक की सहायता से लड़ाई लड़ी। उन्होंने कहा, ‘यह एक सुखद क्षण है कि हमें आज महामहिम गंगा प्रसाद से मिलने, उनका स्वागत करने और उनसे बात करने का अवसर मिला है। इससे पहले जब हम शुष्क शौचालयों की सफाई के घृणित कार्य में लगे थे, हमें किसी से भी मिलने की अनुमति नहीं थी। हम 'अस्पृश्य' थे। लेकिन सुलभ ने हमें इस घृणित कार्य से मुक्त कराया और उसके बाद तो पूरा जीवन ही बदल गया। अब हम न केवल सबसे मिलते हैं, स्वागत करते हैं, बल्कि एक साथ बैठते हैं, एक साथ खाते हैं, एक साथ प्रार्थना करते हैं और समाज के किसी अन्य व्यक्ति की तरह ही वार्तालाप भी करते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘पाठक जी हमारी दुर्दशा को समझ सकते थे, क्योंकि हमारे दर्द को व्यावहारिक रूप से अनुभव करने के लिए वह खुद अपने िसर पर मानव मल ढोने की हिम्मत जुटा सके। डॉ. पाठक हमारे गांधी हैं, वह हमारे भगवान हैं।’ लुधियाना से आई परमजीत कौर ने इस मौके पर कहा, ‘हमारे घरों में शौचालय नहीं थे और हम खुले में जाते थे। हमें मीलों चलना पड़ता था और यह हमारे दैनिक जीवन में किसी बहुत बड़ी बाधा की तरह शामिल था। हम गरीब थे, इसीलिए हम अपने घर में शौचालय नहीं बना सके। लेकिन जब मेरे घर में सुलभ शौचालय बना, तभी लगा की अब हमें असली आजादी मिली है। हमारा घर सच में सपनों का घर बन गया। आज हमारे घरों में
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सुलभ टीवी के साथ सिक्किम के महामहिम गंगा प्रसाद की बातचीत
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‘स्वच्छता विचार है...’
म्र सिर्फ एक संख्या है, लोग सही कहते हैं। चाहे वह पांच दशकों से अथक रूप से काम कर रहे सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक हों, या सिक्किम के राज्यपाल गंगा प्रसाद हों। दोनों ने अपनी जिंदगी में अपने अथक प्रयासों से समाज को बहुत कुछ दिया है और आज भी समाज के लिए काम कर रहे हैं। गंगा प्रसाद ने सुलभ की प्रत्येक पहल, नवाचार और प्रौद्योगिकी को उत्साहपूर्वक जानने के लिए अतिरिक्त दूरी तय की।
सुलभ ग्राम की अपनी व्यापक यात्रा के दौरान, प्रसाद ने ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ की स्वास्तिका त्रिपाठी के साथ बातचीत की। प्रस्तुत हैं उस बातचीत के संपादित अंशसुलभ ग्राम की आपकी यात्रा काफी व्यापक रही है। यह कैसी थी? सबसे ज्यादा रुचि और प्रभावित करने वाला क्या था? डॉ. विन्देश्वर पाठक ने छोटी-छोटी चीजों से शुरुआत की और उन्हें उन ऊंचाइयों तक ले गए जो अकल्पनीय थी। ऐसा कहा जाता है कि यदि कोई दृढ़-संकल्पी होता है, तो वह हर उपलब्धि प्राप्त कर सकता है। डॉ. पाठक उसका जीता-जागता उदहारण हैं। मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि उन्होंने कहां और कैसे अपना आंदोलन शुरू किया और आज पूरी दुनिया उन्हें पहचानती है। मुझे इस यात्रा में बहुत सारी चीजें देखने और सीखने को मिली, और उनमें से बहुत ने मुझे प्रभावित किया है। मैं डॉ. पाठक के काम की सराहना करता हूं। उन्होंने लोगों के लिए, विशेष रूप से गरीबों और वंचित लोगों के लिए बहुत कुछ किया है। इसके लिए कोई भी प्रशंसा पर्याप्त नहीं है। मुझे सूचित किया गया कि सुलभ पब्लिक स्कूल में 60 प्रतिशत छात्र आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आते हैं जिन्हें यहां मुफ्त शिक्षा दी जा रही है। शेष 40 प्रतिशत भी मामूली शुल्क का भुगतान कर रहे हैं। यह एक बड़ी बात है कि गरीब बच्चों के पास सीखने के लिए एक मंच है, जिसके सहारे वे खुद औ र
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आवरण कथा
अपने परिवारों के लिए बेहतर कर सकते हैं। मैंने यह भी देखा कि सुलभ पब्लिक स्कूल अपने छात्रों में राष्ट्रवाद की भावना पैदा करने का प्रयास करता है। मुझे यकीन है कि इस स्कूल से बाहर निकलने वाले बच्चे समाज को कुछ वापस देने के लिए प्रेरित होंगे, जैसे कि डॉ. पाठक कर रहे हैं। सुलभ ने बड़ी संख्या में प्रौद्योगिकियां ईजाद की हैं, उनमें से एक तकनीक के माध्यम से मानव-अपशिष्ट से खेतों के लिए खाद तैयार हो रहे हैं। वहीं, सिक्किम अपनी आर्गेनिक (जैविक) खेती के लिए पूरे भारत में जाना जाता है। खेती में ऐसी तकनीकों और तरीकों को अपनाने के लिए आप अन्य राज्यों काे क्या सुझाव देते हैं? देखिए, यह जागरूकता का विषय है। जनता को इन तरीकों से अवगत कराया जाना चाहिए और समझाया जाना चाहिए। रासायनिक उर्वरक खेतों की उपज क्षमता को बिगाड़ते हैं। यह आवश्यक है कि जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाए और जैविक उर्वरकों को आसानी से उपलब्ध और सुलभ बनाया जाए। एक बार जब लोग इस तरह की खेती के महत्व को समझ लेंगे, तो मवेशी पालन का महत्व भी बढ़ जाएगा जो आज की जरूरत है। यह देखा गया है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मवेशी की उम्र क्या है, उनका गोबर हमेशा उपयोगी और लाभदायक होता है। लोग प्राचीन काल में ऐसी ही कृषि पद्धतियों को अपनाते थे और वे आज भी प्रासंगिक हैं। सिक्किम सरकार वर्षांे से जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। राज्य को इसके लिए सम्मानित भी किया गया है। यदि सिक्किम ऐसा कर सकता है, तो अन्य राज्य भी कर सकते हैं। ऐसा करके जो भी उत्पादन होगा, वह स्वच्छ और स्वस्थ होगा। जब स्वच्छता की बात आती है तो पूर्वी राज्य बहुत सतर्क होते हैं। यह ऐसा कुछ है जो भारत के अन्य राज्यों में आसानी से देखने को नहीं मिलता है। लोगों को 'सुलभ स्वच्छ भारत' सुनिश्चित करने के लिए आप क्या सलाह देंगे? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने स्वच्छ भारत अभियान को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहे हैं। मैं आपको मेघालय के एक गांव ‘मायलिनोंग’ के बारे में बताना चाहता हूं। यह गांव एशिया का सबसे साफ-सुथरा गांव है। बहुत से लोग स्वच्छ वातावरण का अनुभव करने के लिए गांव जाते हैं। इस तरह पर्यटन में भी बढ़ोत्तरी हुई है, जिससे गांव के लोगों को व्यावसायिक अवसर मिलते हैं। उनके पास कई होटल हैं, कई चीजें बेच रहे हैं और इसीलिए गांव की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। स्वच्छता एक ऐसा विचार है, जो हमेशा साथ रहता है जब लोग स्वयं इसका निर्णय लेते हैं कि ‘नहीं, अब हम अपने पर्यावरण को गंदा करने नहीं जा रहे हैं।’ मॉरीशस का ही उदाहरण देख लें। मैं वहां गया और मैंने एक पिकनिक स्पॉट का दौरा किया। सभी लोगों ने खाया-पिया, मौज-मस्ती की। लेकिन वे एक बड़ी पॉलीथीन लाए थे, जिसमें उन्होंने सभी प्लास्टिक या अपशिष्ट एकत्र किए। वहां कोई भी कूड़ा नहीं दिख रहा था। लेकिन अपने यहां परिदृश्य बिलकुल विपरीत है। लोगों का जहां मन होता है, वहां कूड़ा फैला देते हैं। इसीलिए, जैसा कि मैंने कहा, यह करने के लिए कोई बहुत बड़ा काम नहीं है। यह विचार, आदत, दृढ़ संकल्प के बारे में है। ऐसे विचार लोगों के बीच विकसित होने और करने की जरूरत है। इसके लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार प्रयास कर रही है, सुलभ भी कर रहा है। यह बताया गया है कि स्वच्छ भारत की शुरुआत के बाद, बीमारियों में गिरावट आई है। यह एक महान पहल है और इसे यथासंभव व्यापक रूप से फैलाना है।
सबसे पहले ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता थी, और अब इस तरह की कलंक से स्वतंत्रता है। दुनिया ने भी उनके योगदान के लिए डॉ. पाठक को मान्यता दी है -गंगा प्रसाद, राज्यपाल सिक्किम शौचालय हैं, जिनके कारण हम परेशानी से मुक्त होकर दिनभर काम कर रहे हैं, साथ ही बच्चे पूरी तरह से अपने अध्ययन पर ध्यान केंद्रित कर पा रहे हैं। इस सबके साथ ही, भारत ने अपनी असली आजादी हासिल की है। और यह असली आजादी, हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और डॉ. पाठक ने हमें दी है। इस अवसर पर जम्मू-कश्मीर से आए अब्दुल लतीफ खान ने डॉ. पाठक को दूसरा गांधी बताते हुए अपने संबोधन में कहा, ‘डॉ. पाठक के मिशन को परिभाषित करने और प्रशंसा करने के लिए कोई भी शब्द पर्याप्त नहीं है। डॉ. पाठक भगवान हैं, डॉ. पाठक एक धर्म हैं। हमारे पाठक जी वह धर्म हैं, जिसने सभी को स्वीकार किया है, गरीबों को समाज में ऊपर उठाया है, समाज में 'अस्पृश्य' शब्द के मायने खत्म कर दिए हैं।
आजादी का दूसरा आंदोलन
इस अवसर पर अपने संबोधन में, डॉ. विन्देश्वर पाठक ने कहा कि उन्होंने वह सब कुछ किया है, जो वह कर सकते थे और वह अभी भी कर रहे हैं। लोग आमतौर पर केवल समस्याओं की बात करते हैं, लेकिन सुलभ उन समस्याओं का समाधान करता है। परमजीत कौर की बातों को दुहराते हुए डॉ. पाठक ने कहा, ‘कौर का कहना है कि जब उनके घर में शौचालय बना, तो उन्हें लगा कि उन्हें सच में आजादी मिली है और यही उनके लिए स्वतंत्रता का असली अर्थ था। परमजीत का यह कहना सच में बड़ी बात है। यह हमारे लिए भी एक संदेश है। हम गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा नहीं थे। लेकिन उनका दूसरा सबसे बड़ा आंदोलन जातिवाद, लिंग पूर्वाग्रह, विधवाओं के साथ कठोर व्यवहार, उचित स्वच्छता की कमी के खिलाफ एक लड़ाई थी।’ इसके साथ ही डॉ. पाठक ने बताया कि कैसे बिहार ने आजादी के दोनों आंदोलन में बड़ा योगदान दिया है। गांधी ने बिहार से ही अपना दूसरा स्वतंत्रता आंदोलन शुरू किया था। और गांधीजी के दूसरे स्वतंत्रता आंदोलन (स्वच्छ भारत), जिसका उन्होंने हमेशा सपना देखा, को भी सुलभ ने बिहार से ही शुरू किया। गौरतलब है की महामहिम गंगा प्रसाद भी बिहार से हैं और डॉ. पाठक भी यहीं से हैं। इसीलिए माननीय राज्यपाल पहले से ही डॉ. पाठक के कार्यों से अवगत हैं।
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आवरण कथा
गंगा प्रसाद
एमएलसी से गवर्नर तक
गंगा प्रसाद जी का जन्म 8 जुलाई 1937 को बिहार की राजधानी पटना में हुआ था। उनके पास बी.कॉम की डिग्री है। वह केंद्र में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे हैं। वर्ष 1994 में उन्होंने अपना राजनीतिक करियर बिहार से ही शुरू किया और पहली बार विधान परिषद के सदस्य बने और साल 2012 तक लगातार 18 साल इसके सदस्य बने रहे। जैसे-जैसे उनके राजनीतिक करियर में प्रगति हुई, वह भी पार्टी की प्रमुखता में आते रहे। जब बिहार में एनडीए सत्ता में आया, प्रसाद ने बिहार विधान परिषद के नेता के रूप में महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया। एमएलसी के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने विधान परिषद में 5 साल तक विपक्षी दल का नेतृत्व भी किया। वे बिहार में बीजेपी के महासचिव भी रहे हैं। बाद में प्रसाद को भाजपा की पूरी तरह नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया गया। 5 अक्टूबर, 2017 को उन्हें मेघालय के गवर्नर के रूप में नियुक्त किया गया। 26 अगस्त, 2018 को उन्होंने गंगटोक के राजभवन में आयोजित समारोह में सिक्किम के 16 वें राज्यपाल के रूप में शपथ ली। डॉ. पाठक ने कहा कि सुलभ ने सक्रिय रूप से इस स्वतंत्रता आंदोलन को आगे बढ़ाया है और यह सब अहिंसा के साथ किया है। डॉ. पाठक या उनके संगठन ने कभी भी कोई विरोध प्रदर्शन नहीं किया है और न ही उन्होंने कभी भी किसी के लिए बुरे शब्दों का प्रयोग किया है। उन्होंने समाज की दुर्दशाओं को देखा और समझा है और उन समस्याओं को हल करने के ऐसे तरीके ईजाद किए जिन्हें समाज आसानी से स्वीकार कर सकता है। ‘आज आप पूर्व स्कैवेंजर्स और जिनके घर ये स्कैवेंजर्स मानव-मल साफ करने जाते थे, उन दोनों से मिले हैं। आज, वे सुलभ ग्राम में आपका स्वागत करने के लिए एक साथ खड़े हैं। यह एक बड़ा सामाजिक परिवर्तन है, कि जिन लोगों को कभी एक-दूसरे को छूने की इजाजत भी नहीं थी, वे आज साथ खड़े होकर बात कर रहे हैं और आपका स्वागत कर रहे हैं। यही वह असली आजादी है, जिसे सुलभ ने दी है।’
वह बनो जो आपको गरिमा दे
महात्मा गांधी चाहते थे कि उन्हें (मैनुअल स्कैवेंजर्स को) इस समाज में सम्मानजनक जगह मिलनी चाहिए। सुलभ ने एक कदम आगे बढ़ाया और न केवल उनके उस सम्मान को सुनिश्चित किया जिसके वे हकदार थे, बल्कि उन्हें समाज में ब्राह्मणों के रूप में भी बदल दिया। डॉ. पाठक याद
05 - 11 नवंबर 2018 करते हैं कि इन लोगों को पहले धमकी दी गई थी कि यदि वे मंत्रों-वेदों को पढ़ने की कोशिश करेंगे, तो उनकी जीभ काट दी जाएगी और कान में कांच के टुकड़े भर दिए जाएंगे। ‘उसी समुदाय की महिलाओं ने आज आपके स्वागत में संस्कृत श्लोकों का जाप किया। इस बदलाव को लाने के लिए, हमने कोई भी हिंसा से भरा और निरर्थक कदम नहीं उठाया, न तो वेदों या पुराणों को फाड़ा और ना ही उन्हें जलाया।’ डॉ. पाठक ने कहा कि लोग अक्सर उनसे सवाल करते हैं कि आपने उन्हें सिर्फ 'ब्राह्मण' ही क्यों बनाया? इसके जवाब में डॉ. पाठक कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि यह केवल 'ब्राह्मण' के रूप में ऊंची जाति को अपनाने के बारे में नहीं है, बल्कि इस तरह से आप किसी भी उस जाति को अपना सकते हैं जिससे आपको उचित सम्मान मिले। ये आपकी पसंद है। मैं एक ब्राह्मण हूं, इसीलिए मैंने उन्हें भी इसी जाति में परिवर्तित किया, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सभी को ब्राह्मण ही बनाना या बनना है।’ डॉ. पाठक ने कहा, ‘गांधी ने कहा था कि दोनों में से केवल एक ही अस्तित्व में रह सकता है या तो हिन्दू धर्म या जातिवाद। तो मैंने सोचा कि अस्पृश्यता से छुटकारा पाने के लिए जब बेहतर रास्ते मौजूद हैं तो धर्म को क्यों खत्म होना चाहिए। तो मैं इस सिद्धांत के साथ आया कि अगर लोगों को अपने धर्मों को बदलने की इजाजत है, तो जाति को बदलने की क्यों नहीं? आप जैसे भी चाहें अपनी जाति को बदलने के लिए स्वतंत्र हैं।’
ईएम फोस्टर ने लिखा, सुलभ ने किया
ईएम फोस्टर ने कहा था कि 'अस्पृश्यों' को उनकी
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दुर्दशा से बाहर निकालने के लिए शौचालयों की आवश्यकता है। मुल्कराज आनंद के 1935 में लिखे उपन्यास 'अस्पृश्य' (अनटचेबल) की प्रस्तावना में उन्होंने लिखा कि सिर्फ और सिर्फ फ्लश सिस्टम ही अस्पृश्यों को बचा सकता है। 5000 साल पुरानी प्रथा को समाप्त करने के लिए सुलभ ने सबसे पहले 'सुलभ शौचालय' का आविष्कार किया। डॉ. पाठक ने कहा कि अगर सुलभ ने इसका आविष्कार नहीं किया होता, तो न ही मैनुअल स्कैवेंजिंग की घृणित प्रथा समाप्त होती और न ही देश खुले में शौचालय से मुक्ति पाने की तरफ आगे बढ़ता। गांधीजी चाहते थे कि वाल्मीकि समाज की किसी महिला को इस देश का राष्ट्रपति बनाना चाहिए। डॉ. पाठक ने बताया कि गांधी के इस विचार ने उन्हें अपनी संस्था का अध्यक्ष उषा शर्मा को बनाने के लिए प्रेरित किया। ‘मैंने सोचा कि देश का राष्ट्रपति चुनने का मुझे कोई अधिकार नहीं है, लेकिन क्यों न इस विचार को सुलभ संस्था
में अपनाया जाए। और आज हमारी संस्था की अध्यक्ष पूर्व स्कैवेंजर उषा शर्मा हैं। अगर आप मुझसे पूछें कि पिछले पांच दशकों में मैंने क्या किया है, तो अब मुझे जवाब देने की जरूरत नहीं होगी। क्योंकि मेरे जवाब की जगह मेरी किताबें यानी मेरे लोग खुद ही इस बारे में बता देंगे। आज ये सभी लोग जो यहां उपस्थित हैं और मन की बात कहने आए हैं, इस बात का सबूत हैं कि मेरी किताबें, मेरे पौधे बोलते हैं।’ डॉ पाठक ने अंत में कहा कि वही जीवन सार्थक है जो दूसरों के लिए जिया जाता है।
इस वक्त की जरूरत
इस मौके पर लोगों को संबोधित करते हुए सिक्किम के राज्यपाल गंगा प्रसाद ने कहा कि शौचालय के
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डॉ. पाठक एक धर्म है। हमारे पाठक जी वह धर्म हैं, जिसने सभी को स्वीकार किया है, गरीबों को समाज में ऊपर उठाया है, समाज में 'अस्पृश्य' शब्द के मायने खत्म कर दिए हैं -अब्दुल लतीफ खान बिना बना घर, बीमारियों का घर होता है। जब बाहर अंधेरा रहेगा तब तो महिलाएं खुले में शौच के लिए चली जाएंगी, लेकिन दिन के वक्त क्या होगा जब बाहर उजाला रहेगा, उस वक्त महिलाएं कैसे शौच के लिए जाएंगी। शौच को लंबे समय तक रोक कर रखना, कई सारी बीमारियों को दावत देना है। ‘आज जब मैंने सुलभ ग्राम परिसर का दौरा किया और डॉ. पाठक के कार्यों को करीब से
‘हम गांधीजी के नेततृ ्व में स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा नहीं थे। लेकिन हमने उनके दूसरे स्वतंत्रता आंदोलन ‘स्वच्छता’ को आगे बढ़ाया है’ - डॉ. विन्देश्वर पाठक
जांचा-परखा, तब मुझे बेहद खुशी हुई कि वह सच में दिल से महात्मा गांधी के सपनों को पूरा कर रहे हैं। अपनी सुलभ संस्था के माध्यम से डॉ. पाठक स्वच्छता, साफ-सफाई और हाईजीन को बढ़ावा दे रहे हैं। उनके प्रयासों ने एक समय समाज में निचले पायदान पर रहने वाले स्कैवेंजर्स को बेहतर जीवन दिया है। पाठक जी के योगदान को सिर्फ समाज ने ही नहीं, बल्कि सरकार ने भी सराहा और सम्मानित किया है।’ पटना का निवासी होने के नाते उन्होंने बताया कि वह डॉ. पाठक के कार्यों के लंबे समय से साक्षी रहे हैं। बेहद मुश्किल वक्त को झेलने के बाद भी उनका समर्पण और योगदान अद्वितीय है।
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यह उनकी सच्चाई, मजबूत इच्छाशक्ति, प्यार और लोगों का उनको समर्थन ही है जो उन्हें लगातार आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा है। गंगा प्रसाद ने कहा, ‘यह इस वक्त की जरूरत है कि हम स्वच्छता के माध्यम से मानव अभिरुचियों को पूरा करें। समाज ऐसे व्यक्तित्व को सलाम करता है। केवल कुछ ही ऐसे लोग हैं जो अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए अपना रास्ता बनाते हैं और उसी पर चलते हैं। ऐसे ही एक दुर्लभ व्यक्ति डॉ. पाठक भी हैं। यह रास्ता समाज को फायदा पहुंचाता है, उत्पीड़ितों को ऊपर उठाता है, गरीबी को दूर करता है और समाज को एकता के सूत्र में पिरोता है। डॉ. पाठक ने समाज को विकास का रास्ता दिखाया है।
कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता
राज्यपाल ने अस्पृश्यता और जातिवाद जैसी प्रथाओं को ‘समाज के लिए नासूर’ बताया। उन्होंने कहा कि यही कारण थे कि हमारा देश ब्रिटिश राज का दास बन गया। उन्होंने आगे कहा, ‘सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि हम सभी मानव कल्याण की ओर अपनी ऊर्जा का निवेश करें। उदारता और करुणा मानव को विनम्र बनाते हैं। जो हमेशा मानवता को प्रतिबिंबित करते हैं और समाज के प्रति समर्पित होते हैं, ऐसे व्यक्तित्व ही इतिहास बनाते हैं। डॉ. पाठक उन्हीं व्यक्तित्वों में से हैं।’ उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे देश के लगभग हर नुक्कड़ और कोने में सुलभ शौचालयों की उपस्थिति के साथ भारत के स्वच्छता परिदृश्य में सुधार संभव है। इंदौर एशिया का सबसे साफ शहर है और सुलभ इंटरनेशनल ने उसे इस ऊंचाई पर पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सुलभ ने सिखाया है कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता है। बस उस काम की ओर आपका जुनून उसे आकार देता है। राज्यपाल ने कहा, ‘मुझे सूचित किया गया है कि सुलभ ने स्वच्छ पेयजल प्रदान करने के लिए भी
और मानव-अपशिष्ट से बिजली उत्पादन जैसी तकनीकें देने के लिए आगे बढ़े। वह सच में प्रशंसा के पात्र हैं।’ अंत में राज्यपाल ने कहा, ‘डॉ. पाठक के साथ मेरी शुभकामनाएं हैं कि वह समाज के विकास, प्रगति और सुधार में अपना बहुमूल्य योगदान देते रहें। गौतम बुद्ध, महावीर और महात्मा गांधी जैसे लोगों के लिए बिहार प्रेरणा और ज्ञान की भूमि रही है। अब डॉ. पाठक जैसे लोग न केवल भारत बल्कि दुनिया को जागृत कर रहे हैं और लगातार सामाजिक कार्य भी कर रहे हैं। उनके बारे में कहने के लिए कोई भी शब्द पर्याप्त नहीं है।’
अनोखे सुलभ ग्राम का दौरा अपने प्रयासों को आगे बढ़ाया है। देश के सपनों को वास्तविकता में बदलने के लिए स्वच्छता और स्वास्थ्य जैसे सुलभ द्वारा उठाए गए कदम प्रशंसनीय हैं।’
स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत
माननीय राज्यपाल ने आग्रह करते हुए कहा, ‘आज समाज और राष्ट्र निर्माण के लिए नागरिकों को साफ और स्वस्थ पर्यावरण मुहैया करना सबसे बड़ी जरूरत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने प्रमुख ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत लोगों को स्वच्छता के महत्वपूर्ण आयामों के बारे में अवगत करा चुके हैं। राष्ट्र के हर नागरिक को उनके ‘स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत’ मिशन को कामयाब बनाने के लिए योगदान करना होगा।’ खुले में शौच के अभ्यास को समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के परिणामस्वरूप हमारे गांव एक के बाद एक खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) हो रहे हैं। यह एक संकेत है कि हमारा देश स्वस्थ भारत बनने की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि विभिन्न स्थानों पर डॉ. पाठक द्वारा निर्मित शौचालय लोगों के लिए एक वरदान हैं। लोग खुश हैं कि वे उचित शौचालय सुविधाओं
का उपयोग करते हैं और निश्चित रूप से उन्हें उनके काम के लिए आशीर्वाद देना चाहिए। ‘जैसा कि डॉ. पाठक ने कहा, यह उन सभी लोगों के लिए स्वतंत्रता की भावना की तरह है। सबसे पहले ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता थी और अब इस तरह के कलंक से स्वतंत्रता है। दुनिया ने भी उनके योगदान के लिए डॉ. पाठक को मान्यता दी है।’
डॉ. पाठक की प्रशंसा
प्रसाद ने सभी के लिए शौचालयों के अलावा सुलभ की अन्य पहलों की भी खूब बात की। उन्होंने कहा कि शिक्षा एक राष्ट्र और उसके समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है सुलभ पब्लिक स्कूल और सुलभ व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र बच्चों और महिलाओं को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बना रहा है, जिससे हम मजबूत भारत का रास्ता तय करने के लिए आगे बढ़ सकते हैं और खुद को राष्ट्र की सेवा में समर्पित कर सकते हैं। ‘डॉ पाठक ने शौचालयों का निर्माण करके अपना आंदोलन शुरू किया और वे दुनिया को सुलभ जैव गैस संयंत्र, सुलभ जल उपचार संयंत्र, शौचालय के अनोखे सुलभ म्यूजियम (संग्रहालय)
राज्यपाल गंगा प्रसाद के साथ उनके ओएसडी मनोज संधवार और उनके अतिरिक्त सचिव आईपीएस ठाकुर थापा भी थे। डॉ. विन्देश्वर पाठक ने उनका भी पारंपरिक तरीके से स्वागत किया। मेहमानों ने पूरे सुलभ ग्राम परिसर का दौरा किया। राज्यपाल ने बहुत ही तन्मयता से ‘सुलभ स्वच्छता रथ’ को देखा। यह रथ देश के दूरदराज के इलाकों में स्वच्छता का संदेश फैलाता है। इसके आलावा उन्होंने सार्वजनिक शौचालय आधारित बायोगैस संयंत्र, स्वास्थ्य केंद्र, जल एटीएम और रसोई बायोगैस ईंधन परिचालन भी देखा। उसके बाद मेहमानों को सुलभ पब्लिक स्कूल में ले जाया गया, जहां उनका स्वागत छात्रों ने किया। व्यावसायिक प्रशिक्षण शाखा के प्रशिक्षुओं को देखते हुए प्रसाद ने छात्रों द्वारा खुद ही सस्ते और स्वच्छ सैनेटरी नैपकिन के निर्माण और सिलाई में रुचि ली। सुलभ शौचालय म्यूजियम के अन्दर, मेहमान यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि भारत फ्लश शौचालय और सीवर सिस्टम का चैंपियन रहा है। उसके बाद मेहमानों ने सुलभ तकनीक पर आधारित टू-पिट-पोर-फ्लश शौचालय को देखा। मेहमानों का माला, शॉल और स्मृति चिन्ह के साथ पारंपरिक तरीके से स्वागत किया गया।
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पर्यावरण
समुद्र में कचरा नदियों की मेहरबानी
दुनियाभर के समुद्रों में मिल रहे कचरे के लिए 10 नदियां सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं, इनमें चीन की यांग्त्जे नदी पहले नंबर पर है
प्र
एसएसबी ब्यूरो
दूषण का खतरा अब हर जगह है। पर जिस तरह नदियों के बाद समुद्री जल के भी विषाक्त होते जाने की खबरें आ रही है, वह चिंताजनक है। दुनियाभर के वैज्ञानिक इस सवाल का जवाब खोजने में लगे हैं कि समुद्रों में प्लास्टिक का कचरा कैसे बढ़ रहा है। इसका जवाब हाल में हुए एक अध्ययन से मिल गया है। पता चला है कि दुनियाभर के समुद्रों में मिल रहे कचरे के लिए 10 नदियां ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। इनमें चीन की यांग्त्जे नदी पहले नंबर पर है। यांग्त्जे चीन की सबसे लंबी नदी है। दूसरे पायदान पर भारत की गंगा नदी है। समुद्रों में जो प्लास्टिक कचरा मिल रहा है, उसका करीब 90 फीसदी इन 10 नदियों से
ही आ रहा है। दुनियाभर में सभ्यताएं नदियांे के किनारे विकसित हुई हैं। पर दुर्भाग्य से मनुष्य ने इन्हीं नदियों को सबसे ज्यादा प्रदूषित किया है। अब इस प्रदूषण के कारण समुद्र भी प्रदूषित हो रहे हैं। बड़ी बात यह है कि जिन 10 नदियों को इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार ठहराया गया है, उनमें से 8 नदियां तो एशिया की ही हैं। यांग्त्जे और गंगा के अलावा इस सूची में सिंधु (तिब्बत और भारत), येलो (चीन), पर्ल (चीन), एमर (रूस और चीन), मिकांग (चीन) और दो अफ्रीका की नील और नाइजर नदियां शामिल हैं। हर साल करीब 80 लाख टन कचरा समुद्रों में मिल रहा है। इस बारे में गहन शोध करने वाले डॉ. क्रिश्चियन
चीन में दुनिया का सबसे ज्यादा प्लास्टिक कचरा होता है। प्लास्टिक कचरा ले जाने में गंगा दुनिया में दूसरे स्थान पर है, जबकि सिंधु नदी छठे स्थान पर आती है एरिक सोलहेम
संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम के प्रमुख
स्कीमिट ने बताया, ‘ज्यादातर कचरा नदी के किनारों की वजह से होता है, जिसका निपटारा नहीं हो पाता है और वह बहता हुआ समुद्रों में आ जाता है। यह भी देखने में आया है कि बड़ी नदियों के प्रति घन मीटर पानी में जितना कचरा रहता है, उतना छोटी नदियों में नहीं रहता है।’ एशिया की सबसे लंबी और दुनिया में इकोलॉजी के लिहाज से महत्वपूर्ण नदियों में से एक यांग्त्जे के आसपास चीन की एक तिहाई आबादी यानी 50 करोड़ से ज्यादा लोग बसते हैं। यही नदी समुद्र सबसे ज्यादा कचरा ले जा रही है। चीन ने रिसाइकलेबल वेस्ट का पहले खूब आयात किया, पर बाद में सरकारी नीतियों के कारण यह रुक गया। विदेशी कचरे पर रोक में सबसे पहले धातु के कचरे पर रोक लगाई गई है। इस वर्ष चीन ने 46 शहरों में कचरे को काबू करने का निर्देश दिया है। इसके कारण अगले दो साल में 35 फीसदी कचरा
1. यांग्त्जे 2. गंगा 3. येलो 4. पर्ल 5. एमर 6. सिंधु 7. मिकांग 8. है ही 9. नील 10. नाइजर
रिसाइकल हो चुका होगा। संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम के प्रमुख एरिक सोलहेम का कहना है, ‘चीन में दुनिया का सबसे ज्यादा प्लास्टिक कचरा होता है। प्लास्टिक कचरा ले जाने में गंगा दुनिया में दूसरे स्थान पर है, जबकि सिंधु नदी छठे स्थान पर आती है।’ कुछ साल पहले सरकार ने गंगा की सफाई के लिए ‘नमामि गंगे’ प्रोजेक्ट शुरू किया है। इससे गंगा और दूसरी नदियों में बढ़ रहे प्रदूषण को कम करने को लेकर देशभर में जागृति तो आई है, पर यह काम अकेले न तो सरकार के बूते का है और न ही इसे रातोंरात पूरा किया जा सकता है। गंगा तब तक स्वच्छ नहीं होगी जब तक सरकार और समाज इसके लिए एक साथ प्रण न लें। साथ ही गंगा के तटीय क्षेत्रों में पड़ने वाले शहरों-गांवों के सीवरेज सिस्टम को भी इसके लिए व्यापक तौर पर सुधारना होगा।
(चीन) (भारत) इन 10 नदियां से हो रहा (चीन) समुद्री जल विषाक्त (चीन) (रूस-चीन) (भारत) (चीन) (चीन) (अफ्रीका) (अफ्रीका)
इन 10 नदियों में सबसे ज्यादा 5 नदियां चीन की और 2 भारत की हैं समुद्रों में मिलने वाला 90% प्लास्टिक कचरा, इन्हीं 10 नदियों से आ रहा है वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट के मुताबिक हर वर्ष करीब 80 लाख टन कचरा समुद्रों में मिल रहा है यांग्त्जे नदी एशिया की सबसे लंबी नदी है
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स्मरण
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राष्ट्रीय शिक्षा दिवस (11) नवंबर पर विशेष
शिक्षा और भाईचारे को समर्पित जीवन मौलाना आजाद स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने। उन्होंने ग्यारह वर्षों तक राष्ट्रनीति का मार्गदर्शन किया
मौलाना अबुल कलाम आजाद एसएसबी ब्यूरो
लाना अबुल कलाम आजाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी तथा राष्ट्रवादी नेता थे। आचार्य जेबी कृपलानी ने उनके संबंध में कहा था- ‘वे भारत के एक महान शास्त्रवेत्ता, विद्वान, प्रभावशाली वक्ता, राष्ट्रभक्त एवं विश्ववादी नेता थे।’ धर्मनिरपेक्षतावादी सिद्धांतों में उनकी गहरी आस्था थी। उनकी निडरता एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व के कई उदाहरण मिलते हैं। भारतीय संस्कृति में उनका अटूट विश्वास था।
ललित कला अकादमी की स्थापना भी उन्हीं के कार्यकाल में की गई। उनके द्वारा स्थापित भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् आज कला, संस्कृति और साहित्य के विकास और संवर्धन के क्षेत्र में एक अग्रणी संस्था के रूप में विख्यात है। इसकी शाखाएं देश के प्रत्येक बड़े शहर में सफलता पूर्वक कार्य कर रही हैं और देश तथा विदेश में सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ाने में प्रयासरत हैं। शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान देने के साथ-साथ उन्होंने उर्दू भाषा और साहित्य की बड़ी सेवा की।
देश के पहले शिक्षा मंत्री
जन्म मक्का में
मौ
वे स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने। उन्होंने ग्यारह वर्षों तक राष्ट्रनीति का मार्गदर्शन किया। शिक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की। ‘भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान, (आईआईटी) और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की स्थापना का श्रेय उन्हीं को जाता है। संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी और
मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म 11 नवंबर, 1888 को मक्का में हुआ था। उनका
असली नाम अबुल कलाम गुलाम मोहिउद्दीन था। उनके पिता मौलाना खैरुद्दीन ने एक अरब महिला (आलिया) से विवाह किया था। मौलाना खैरुद्दीन स्वयं एक प्रसिद्ध विद्वान थे और उन्होंने दर्जनों पुस्तकें लिखी थीं। मौलाना आजाद के पूर्वज अफगानिस्तान से आकर बंगाल में बस गए थे। मौलाना आजाद के पिता प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारत छोड़कर मक्का में जाकर बस गए, जहां मौलाना आजाद का जन्म हुआ। बाद में उनका परिवार पुनः भारत लौट आया और कलकत्ता (अब कोलकाता) में बस गया। तेरह वर्ष की आयु में उनका विवाह जुलेखा बेगम से हुआ था।
घर पर ही तालीम
मौलाना आजाद बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। उन्होंने उर्दू, हिंदी, फारसी, बांग्ला, अरबी और अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में महारत हासिल कर ली थी। वे कवि-लेखक होने के साथ आला दर्जे के पत्रकार भी थे। अल्पायु में ही उन्होंने कुरान के पाठ में निपुणता हासिल कर ली थी। अबुल कलाम ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की। उन्हें विभिन्न विषयों को पढ़ाने के लिए अलग-अलग अध्यापक आया करते थे। इस्लामी ढंग की शिक्षा पूर्ण रूप से प्राप्त कर उन्होंने दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र व गणित की भी शिक्षा प्राप्त की। वे प्रगतिशील विचारों के मुसलमान थे। एक बार उन्होंने सर सैयद अहमद के रूढ़िवादी धार्मिक विचारों का विरोध भी किया था। वे जानते थे कि पुराने ढंग की शिक्षा प्राप्त करने से काम नहीं
मौलाना आजाद की उर्दू साप्ताहिक पत्रिका ‘अल हिलाल’ की लोकप्रियता ऐसी थी कि सप्ताह में 26 हजार प्रतियां बिकने लगीं। 1914 में अंग्रेज सरकार ने इसे साम्राज्यवाद विरोधी मानकर जब्त कर लिया
चलेगा। अत: विज्ञान के साथ-साथ अंग्रेजी का ज्ञान भी आवश्यक है। उन्होंने अपने मित्र की सहायता से शब्दकोश और समाचार-पत्रों के माध्यम से अंग्रेजी सीख ली। अबुल कलाम के विचारों में एक उदार दृष्टिकोण था, जिससे कुछ लोग प्रभावित हुए और कुछ ने इनका विरोध किया। आगे चलकर उन्होंने काहिरा के अल अजहर विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की।
स्वाधीनता संघर्ष में बड़ी भूमिका
अबुल कलाम देश के सच्चे सपूत थे। अत: 1905 के बंग-भंग आंदोलन में वे सक्रिय रूप से कूद पड़े। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम बहुमत के आधार पर बंगाल विभाजन का पुरजोर विरोध किया। बंगाल के क्रांतिकारियों के संपर्क में आकर इस आंदोलन को आगे बढ़ाया। उन्होंने इराक, मिस्र, सीरिया, तुर्की और फ्रांस की भी यात्रा की और इन देशों के राष्ट्रवादियों से संपर्क किया। 1920 में रिहा होते ही वे गांधीजी से मिले और असहयोग आंदोलन में पूरी शक्ति से भाग लिया। 1923 में जब वे रिहा होकर आए तो उन्हें न केवल कलकत्ता अधिवेशन का सभापति चुना गया, वरन अखिल भारतीय स्तर का राष्ट्रीय नेता भी घोषित किया गया। नमक सत्याग्रह में गांधीजी के साथ फिर जेल में डाल दिए गए। लंदन के गोलमेल सम्मेलन के असफल होते ही उन्हें 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के सिलसिले में कैद कर लिया गया। वे 1945 तक जेल में रहे।
निर्भीक पत्रकारिता
कलकत्ता में रहते हुए उन्होंने ‘लिसान-उल-सिद’ नामक पत्रिका प्रारंभ की। तेरह से अठारह साल की उम्र के बच्चों के लिए उन्होंने कई पत्रिकाओं का संपादन किया। 1912 में उन्होंने ‘अल हिलाल’ नामक एक उर्दू अखबार का प्रकाशन प्रारंभ किया। इस अखबार ने हिंदू-मुस्लिम एकता को मजबूत
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स्मरण
1946 में ही ‘बांग्लादेश’ की भविष्यवाणी
एक ऐसे दौर में जब राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक पहचान को धर्म के साथ जोड़कर देखा जा रहा था, उस समय मौलाना आजाद एक ऐसे राष्ट्र की परिकल्पना कर रहे थे, जहां धर्म, जाति, संप्रदाय और लिंग किसी के अधिकारों में आड़े न आने पाए
सा
आरिफ मोहम्मद खान पूर्व केंद्रीय मंत्री
र्वजनिक जीवन में उतरने के साथ ही आजाद ने स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय एकता को सबसे जरूरी हथियार बताया। साल 1921 में आगरा में दिए अपने एक भाषण में उन्होंने कहा, ‘मैं यह बताना चाहता हूं कि मैंने अपना सबसे पहला लक्ष्य हिंदू-मुस्लिम एकता रखा है। मैं दृढ़ता के साथ मुसलमानों से कहना चाहूंगा कि यह उनका कर्तव्य है कि वे हिंदुओं के साथ प्रेम और भाईचारे का रिश्ता कायम करें जिससे हम एक सफल राष्ट्र का निर्माण कर सकेंगे।’ मौलाना आजाद के लिए स्वतंत्रता से भी ज्यादा महत्वपूर्ण थी राष्ट्र की एकता। साल 1923 में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय संबोधन में उन्होंने कहा, ‘आज अगर कोई देवी स्वर्ग से उतरकर भी यह कहे कि वह हमें हिंदू-मुस्लिम एकता की कीमत पर 24 घंटे के भीतर स्वतंत्रता दे देंगी, तो मैं ऐसी स्वतंत्रता को त्यागना बेहतर समझूंगा। स्वतंत्रता मिलने में होने वाली देरी से हमें थोड़ा नुकसान तो जरूर होगा, लेकिन अगर हमारी एकता टूट गई तो इससे पूरी मानवता का नुकसान होगा।’ एक ऐसे दौर में जब राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक पहचान को धर्म के साथ जोड़कर देखा जा रहा था, उस समय मौलाना आजाद एक ऐसे राष्ट्र की परिकल्पना कर रहे थे, जहां धर्म, जाति, संप्रदाय और लिंग किसी के अधिकारों में आड़े न आने पाए। हिंदू-मुस्लिम एकता के पैरोकार मौलाना आजाद कभी भी मुस्लिम लीग की द्विराष्ट्रवादी सिद्धांत के समर्थक नहीं बने, उन्होंने खुलकर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उर्दू साप्ताहिक पत्रिका ‘अल हिलाल’ की लोकप्रियता ऐसी थी कि सप्ताह में 26 हजार प्रतियां बिकने लगीं। 1914 में अंग्रेज सरकार ने इसे साम्राज्यवाद विरोधी मानकर जब्त कर लिया। 1916 में उन्हें कलकत्ता से निष्कासित कर अन्य राज्यों में प्रवेश से वंचित कर दिया गया। उन्हें छह माह के लिए बिहार के रांची में नजरबंद कर दिया गया। मौलाना आजाद ने कई पुस्तकों की रचना और अनुवाद भी किया। उनके द्वारा रचित पुस्तकों में ‘इंडिया विंस फ्रीडम’ और ‘गुबार-ए-खातिर’ प्रमुख हैं।
विभाजन का विरोध
मौलाना आजाद ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में बढ़-
इसका विरोध किया। 15 अप्रैल 1946 को कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना आजाद ने कहा, ‘मैंने मुस्लिम लीग की पाकिस्तान के रूप में अलग राष्ट्र बनाने की मांग को हर पहलू से देखा और इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि यह फैसला न सिर्फ भारत के लिए नुकसानदायक साबित होगा बल्कि इसके दुष्परिणाम खुद मुसलमानों को भी झेलने पड़ेंगे। यह फैसला समाधान निकालने की जगह और ज्यादा परेशानियां पैदा करेगा।’ मौलाना आजाद ने बंटवारे को रोकने की हरसंभव कोशिश की। साल 1946 में जब बंटवारे की तस्वीर काफी हद तक साफ होने लगी और दोनों पक्ष भी बंटवारे पर सहमत हो गए, तब मौलाना आजाद ने सभी को आगाह करते हुए कहा था कि आने वाले वक्त में भारत इस बंटवारे के दुष्परिणाम झेलेगा। उन्होंने कहा था कि नफरत की नींव पर तैयार हो रहा यह नया देश तभी तक जिंदा रहेगा जब तक यह नफरत जिंदा रहेगी, जब बंटवारे की यह आग ठंडी पड़ने लगेगी तो यह नया देश भी अलग-अलग टुकड़ों में बंटने लगेगा। मौलाना ने जो दृश्य 1946 में देख लिया था, वह पाकिस्तान बनने के कुछ सालों बाद ही 1971 में सच साबित हो गया। मौलाना आजाद ने पाकिस्तान के संबंध में कई और भविष्यवाणियां भी पहले ही कर दी थीं। उन्होंने पाकिस्तान बनने से पहले ही कह दिया था कि यह देश एकजुट होकर नहीं रह पाएगा, यहां राजनीतिक नेतृत्व की जगह सेना का शासन चलेगा, यह देश भारी कर्ज के बोझ तले दबा रहेगा, पड़ोसी देशों के साथ युद्ध के हालात का सामना करेगा, यहां अमीरव्यवसायी वर्ग राष्ट्रीय संपदा का दोहन करेंगे और अंतरराष्ट्रीय ताकतें इस पर अपना प्रभुत्व जमाने
आजादनामा
पूरा नाम : मौलाना अबुल कलाम आजाद जन्म : 11 नवंबर, 1888 जन्म स्थान : मक्का ओटोमन साम्राज्य (अब सऊदी अरब) निधन : 22 फरवरी 1958 (69 वर्ष) दिल्ली, भारत पद : कांग्रेस अध्यक्ष, शिक्षा मंत्री (15 अगस्त चढ़ कर भाग लिया था। वे एक पक्के राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी थे। अंग्रेजी शासन के दौरान उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। उन्होंने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल होकर अंग्रेजी शासन का विरोध किया। उन्होंने अपनी एक साप्ताहिक पत्रिका ‘अल-बलाग’ में हिंदू-मुस्लिम एकता पर
क्या अब वो वक्त नहीं आ गया है कि उपमहाद्वीप के मुसलमान, जो बीते दशकों में अभाव और अपमान से जूझ रहे हैं, उस मसीहा की विचारधारा को अपनाएं जिसे उन्होंने 1947 में खारिज कर दिया था - अहमद हुसैन कामिल, प्रसिद्ध पाकिस्तानी लेखक
की कोशिशें करती रहेंगी। इसी तरह मौलाना ने भारत में रहने वाले मुसलमानों को भी यह सलाह दी कि वे पाकिस्तान की तरफ पलायन न करें। उन्होंने मुसलमानों को समझाया कि उनके सरहद पार चले जाने से पाकिस्तान मजबूत नहीं होगा, बल्कि भारत के मुसलमान कमजोर हो जाएंगे। उन्होंने बताया कि वह वक्त दूर नहीं जब पाकिस्तान में पहले से रहने वाले लोग अपनी क्षेत्रीय पहचान के लिए उठ खड़े होंगे और भारत से वहां जाने वाले लोगों से बिन बुलाए मेहमान की तरह पेश आने लगेंगे। मौलाना ने मुसलमानों से कहा, ‘भले ही धर्म के आधार पर हिंदू तुमसे अलग हों लेकिन राष्ट्र 1947 – 2 फरवरी 1958) ख्याति और श्रेय : महान स्वाधीनता सेनानी, हिंद-ू मुस्लिम एकता के आजीवन पैरोकार, कई राष्ट्रीय शैक्षिक-सांस्कृतिक संस्थाओं (साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग आदि) का निर्माण सम्मान: भारत रत्न
आधारित भारतीय राष्ट्रवाद और क्रांतिकारी विचारों का प्रचार-प्रसार किया। भारत विभाजन के समय भड़के हिंदू-मुस्लिम दंगों के दौरान मौलाना आजाद ने हिंसा प्रभावित बंगाल, बिहार, असम और पंजाब राज्यों का दौरा किया और वहां शरणार्थी शिविरों में रसद आपूर्ति और सुरक्षा का बंदोबस्त किया।
और देशभक्ति के आधार पर वे अलग नहीं हैं, वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान में तुम्हें किसी दूसरे राष्ट्र से आए नागरिक की तरह ही देखा जाएगा।’ जब हम पीछे मुड़ कर देखते हैं तो मौलाना आजाद की अक्ल की दाद देनी पड़ती है, उनकी सटीक भविष्यवाणियां प्रशंसनीय हैं। शायद ये वही प्रशंसा थी जिसकी वजह से पाकिस्तानी लेखक अहमद हुसैन कामिल ने ये सवाल पूछा था- क्या अब वो वक्त नहीं आ गया है कि उपमहाद्वीप के मुसलमान, जो बीते दशकों से अभाव और अपमान से जूझ रहे हैं, उस मसीहा की विचारधारा को अपनाएं जिसे उन्होंने 1947 में खारिज कर दिया था। मौलाना आजाद हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर और भारत विभाजन के घोर विरोधी थे। वे प्रचंड विद्वान और शिक्षाविद् होने के साथ-साथ दूरद्रष्टा भी थे।
भारत रत्न से सम्मानित
मौलाना अबुल कलाम आजाद देश की सेवा करते हुए 22 फरवरी, 1958 को मृत्यु को प्राप्त हुए। 1992 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। देश में शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए उत्कृष्ट कार्यों के सम्मान स्वरूप उनके जन्म दिवस, 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस घोषित किया गया है। उनके सम्मान में पूरे देश में अनेक शिक्षा संस्थानों और संगठनों का नामकरण उनके नाम पर किया गया है।
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गुड न्यूज
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शहर की अस्वच्छता बताएगी 3डी स्कैनिंग तकनीक शोधकर्ताओं ने 3डी सेंसर तकनीक आधारित एक नई पद्धति विकसित की है, जिसकी मदद से शहरी कचरे के प्रबंधन का सही आकलन किया जा सकेगा दिनेश सी शर्मा
में सड़कों के किनारे अनधिकृत देरूपश मेंसे शहरों फेंके जाने वाले कचरे की मात्रा का पता
लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने 3डी सेंसर तकनीक आधारित एक नई पद्धति विकसित की है। इसकी मदद से शहरी कचरे के प्रबंधन का सही आकलन किया जा सकेगा। इस तकनीक के उपयोग से पता चला है कि दिल्ली में सड़कों के किनारे या खुले में अनधिकृत रूप से फेंके गए कचरे की मात्रा करीब 5.57 लाख टन है, जो रोज निकलने वाले कचरे से 62 गुना अधिक है। कचरे की मात्रा का पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने 3डी सेंसर का उपयोग किया है। इन सेंसर्स का आमतौर पर 3डी प्रिंटिंग के लिए उपयोग किया जाता है। इस डिवाइस में लगे हाई डेफिनेशन रंगीन कैमरे और संवेदनशील इन्फ्रारेड प्रोजेक्टर की मदद से वस्तुओं की मात्रा का सटीक आकलन किया जा सकता है। इससे कचरे की मात्रा के साथसाथ कचरे के विभिन्न प्रकारों- मलबा, प्लास्टिक और जैविक रूप से अपघटित होने वाले कचरे- का
भी पता लगा सकते हैं। इस शोध के लिए दिल्ली के चार ऐसे इलाकों में कचरे का सर्वेक्षण किया गया, जो विभिन्न सामाजिक-आर्थिक वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन इलाकों में बृजपुरी, भोगल, जंगपुरा एक्सटेंशन और सफदरजंग एन्क्लेव शामिल हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा के शोधकर्ता डॉ. अजय सिंह नागपुरे ने बताया कि म्युनिसिपल कचरे का आकलन करने के लिए हमने पहली बार 3डी सेंसर तकनीक का उपयोग किया है। इसीलिए, अध्ययन क्षेत्र में सेंसर्स का उपयोग करने से पहले उनकी वैधता की जांच की गई है। यह अध्ययन शोध पत्रिका रिसोर्सेज कंजर्वेशन एंड रिसाइक्लिंग में प्रकाशित किया गया है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राजधानी दिल्ली में कचरे के संग्रह की वार्षिक क्षमता 83
प्रतिशत है, जिसका अर्थ है कि नगरपालिका द्वारा इतना अपशिष्ट एकत्रित किया जाता है और लैंडफिल में ले जाया जाता है। लेकिन, अध्ययन में कचरे को एकत्रित करने की क्षमता विभिन्न इलाकों में अलग-अलग पाई गई है, जिसका संबंध आर्थिक स्थिति से जुड़ा हुआ है। निम्न आय वर्ग वाले इलाकों में यह क्षमता 67 प्रतिशत है, जबकि उच्च आय वाले क्षेत्रों में 99 प्रतिशत तक है। उच्च आय वर्ग की कॉलोनियों में डोर-टू-डोर कचरे के संग्रह की सुविधा है और साथ ही कचरा संग्रह केंद्रों और म्युनिसिपल कर्मचारियों की उपलब्धता भी अच्छी
है। कम आय वर्ग वाले क्षेत्रों में इन सुविधाओं की कमी है। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, सार्वजनिक कचरा संग्रह केंद्रों या ढलाव के अलावा कहीं पर भी खुले में कचरा फेंकना गैर-कानूनी है। प्रतिदिन निकलने वाले म्युनिसिपल कचरे के एकत्रीकरण की क्षमता भारत के अधिकतर शहरों में 50 से 90 प्रतिशत तक है। बाकी का कचरा सड़कों के किनारे या फिर खुले प्लॉटों में जमा होता रहता है। डॉ नागपुरे के अनुसार, ‘इस पद्धति से पता लगाया जा सकता है कि हमारे शहर वास्तव में कितने स्वच्छ हैं। यह पद्धति देशभर में कचरे का आकलन करने के लिए उपयोग की जा सकती है। इसकी मदद से कचरे के निपटारे के लिए सही रणनीतियां बनाने में भी मदद मिल सकती है।’
हैप्पीनेस प्लेटफार्म पर आपका स्वागत है
बिहार के सोनपुर जंक्शन पर हैप्पीनेस प्लेटफार्म की शुरुआत हुई है। यहां से आप अपनी जरूरत का सामान ले सकते हैं और अपना गैरजरूरी सामान छोड़ सकते हैं
बि
हार के सोनपुर रेलवे स्टेशन पर आपको अक्सर यह उद्घोषणा सुनने को मिलेगा, ‘याित्रगण कृपया ध्यान दें, देश के पहले हैप्पीनेस जंक्शन पर आपका स्वागत है।’ यह सुनकर आप चौंकिएगा नहीं, क्योंकि आप बिहार के सोनपुर
जंक्शन पर खड़े हैं जिसे देश का पहला रेलवे स्टेशन बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है, जहां हैप्पीनेस प्लेटफार्म है। भारतीय रेल ने कुछ अलग मकसद से पहले हैप्पीनेस जंक्शन के लिए सोनपुर रेलवे स्टेशन
को चुना है। सोनपुर मंडल के रेल अधिकारियों ने हाल ही में सोनपुर स्टेशन पर इसकी शुरुआत की। सोनपुर स्टेशन पर एक बोर्ड लगाया गया है जिसपर लिखा है – हैप्पीनेस जंक्शन। बोर्ड पर यह भी लिखा है कि आप अपनी जरूरत का कोई भी सामान यहां से ले जा सकते हैं। साथ ही जो सामान आपके काम का नहीं है या फिर जरूरत से अधिक है तो उसे आप यहां पर छोड़ सकते हैं। सोनपुर रेल मंडल के सीनियर डीसीएम
दिलीप कुमार ने बताया कि हैप्पीनेस जंक्शन की शुरुआत के पीछे सोच जरूरतमंद लोगों को मदद पहुंचाना है। उन्होंने बताया कि हैप्पीनेस जंक्शन में निर्धारित जगह पर जरूरतमंद लोग अपने उपयोग के सामान बेझिझक ले सकते हैं और जरूरतमंद लोगों को मदद पहुंचाने वाले व्यक्ति अपने सामान को वहीं छोड़ भी सकते हैं। उन्होंने बताया कि लोगों को देश-दुनिया की खबरों से रूबरू कराने के लिए पत्र-पत्रिकाओं का भी बोर्ड लगाया गया है। समाचार जानने या फिर अखबार या पत्रिका पढ़ने के इच्छुक लोग पत्र-पत्रिका को बोर्ड पर से लेकर पढ़ सकते हैं और पढ़ने के बाद उसे यथास्थान रख भी देंगे। किसी के चेहरे पर खुशी दिखे, यही है सोच। हैप्पीनेस जंक्शन की शुरुआत करते हुए सोनपुर रेल मंडल के डीआरएम मनोज कुमार अग्रवाल ने कहा कि यदि हमारे अनुपयोगी सामान का उपयोग करने से किसी व्यक्ति के चेहरे पर खुशी आ जाती है तो इससे बड़ा पुण्य कुछ नहीं हो सकता। (एजेंसी)
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पर्यावरण रक्षा का ‘विवेक’ बिहार के नरकटियागंज के विवेक कुमार के पर्यावरण प्रेम के लोग कायल हो गए हैं। पिछले 12 वर्षों में वे करीब दो हजार पौधे लगा चुके हैं
गुड न्यूज
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बाढ़ का पूर्वानुमान स्मार्टफोन से संभव
इजरायल की तेल अवीव यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा कि स्मार्टफोन से मौसम का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है
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हार के पश्चिम चंपारण जिले के विवेक कुमार सिंह पिछले 12 वर्ष से पर्यावरण की रक्षा करने में जुटे हैं। छुट्टियों या खाली समय को विवेक घूमने-फिरने में नहीं, बल्कि पर्यावरण के संवर्द्धन में खर्च करते हैं। विवेक पौधरोपण के साथ लोगों को जागरूक करने का अभियान भी चलाते हैं ताकि हरियाली बची रहे। विवेक अब तक दो हजार से अधिक पौधे लगा चुके हैं। नरकटियागंज के विवेक ने बचपन से ही पौधरोपण के प्रति पिता में संवेदनशीलता देखी। वे पेड़-पौधे लगाते थे। स्कूली किताबों में पर्यावरण महत्व की पाठ ने भी उन्हें प्रेरित किया। विवेक ने संकल्प लिया कि कहीं भी रहूं, छुट्टियां पौधों के नाम ही गुजरेंगी। वर्ष 2006 में जब दसवीं कक्षा में थे तो पौधरोपण अभियान शुरू किया। स्नातक, एलएलबी और एमबीए तक की पढ़ाई के दौरान जब भी छुट्टियां मिलीं, घूमने-फिरने में समय जाया करने के बजाय उन्होंने पौधरोपण और उसकी देखभाल में वक्त बिताया। आम, कटहल, महोगनी और शीशम के पौधे लगाने को उन्होंने प्रमुखता दी। उनके प्रयास के चलते गांव में हरियाली है। आज लोग न केवल उनकी सराहना कर रहे, बल्कि कई ने पौधरोपण भी शुरू कर दिया है। 2016 से दो साल तक पुणे की एक कंपनी में नौकरी के बाद विवेक घर चले आए। अब पूरा समय वकालत और पर्यावरण को देते हैं। लोगों को अपने पैसे से पौधा उपलब्ध कराते हैं। समाजसेवा से भी जुड़े हैं। अपने लगाए पौधों के फल और उनसे निकली लकड़ियों को गांव के गरीबों व जरूरतमंदों में बांटते हैं। अब गांव के लोग इसका महत्व समझने लगे हैं। वाल्मीकिनगर के सांसद सतीशचंद्र दुबे कहते हैं, इससे सभी को सीख लेनी चाहिए। समय का सदुपयोग हो और उसका लाभ आम जनता को मिले, ऐसा काम करना चाहिए। यह सराहनीय है। (एजेंसी)
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क अध्ययन में दावा किया गया है कि स्मार्टफोन के डेटा का उपयोग मौसम संबंधी पूर्वानुमान जाहिर करने के लिए किया जा सकता है। इससे अचानक आने वाली बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के बारे में समय रहते सूचना मिल सकेगी। इजरायल की तेल अवीव यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा कि स्मार्टफोन से वायुमंडल के दबाव, तापमान और आर्द्रता आदि की जानकारी के अलावा वायुमंडलीय स्थितियों का पता भी लगाया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने स्मार्टफोन के सेंसरों की
कार्यप्रणाली समझने के लिए चार स्मार्टफोन को नियंत्रित स्थिति में तेल अवीव यूनिवर्सिटी के आसपास रखे। एटमॉस्फेरिक ऐंड सोलर टेरेस्ट्रियल फिजिक्स जरनल में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि इस दौरान स्मार्टफोन में जो डेटा रहा उसका उपयोग मौसम संबंधी स्थिति का पता लगाने में किया गया। शोधकर्ताओं ने ब्रिटेन के एक ऐप वेदरसिग्नल के डेटा का भी अध्ययन किया। तेल अवीव यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कोलिन प्राइस ने बताया, ‘हमारे स्मार्टफोन के सेंसर पृथ्वी के
बेटियों की बस
गुरुत्व, उसके चुंबकीय क्षेत्र, वायुमंडलीय दाब, प्रकाश के स्तर, आर्द्रता, तापमान, ध्वनि के स्तर सहित पर्यावरण की तमाम स्थितियों पर लगातार निगरानी रखते हैं।’ उन्होंने बताया, ‘आज, दुनियाभर के 3 से 4 अरब स्मार्टफोन में वायुमंडल संबंधी महत्वपूर्ण डेटा हैं जो मौसम और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के बारे में सटीक पूर्वानुमान लगाने की हमारी क्षमता को बेहतर बना सकते हैं। इन आपदाओं की वजह से हर साल बड़ी संख्या में लोगों की जान चली जाती है।’ (एजेंसी)
राजस्थान के डॉ. रामेश्वर प्रसाद यादव ने बेटियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपने पीएफ के रुपयों से न सिर्फ एक बस खरीदी, बल्कि हर दिन वे बेटियों को मुफ्त कॉलेज पहुंचा और ला भी रहे हैं
डॉ
. रामेश्वर प्रसाद यादव ने बेटियों के लिए बहुत बड़ा और प्रेरक काम किया है। उन्होंने अपने पीएफ के पैसों से एक बस खरीदी और उसे ‘नि:शुल्क बेटी वाहिनी’ बना दिया। इस बस का काम बेटियों को सुरक्षित और समय पर उनके कॉलेज पहुंचाना है। इस बस सर्विस ने राजस्थान के सीकर जिले की लड़कियों को ना सिर्फ सुरक्षा का अहसास करवाया, बल्कि उनके सपनों को उड़ान भी दी है। राजस्थान के डॉ. रामेश्वर प्रसाद बाल रोग विशेषज्ञ हैं। वह एक बार अपनी पत्नी के साथ कार में कहीं जा रहे थे तभी उनकी नजर बारिश में भींगती
कुछ लड़कियों पर पड़ी, जिन्हें मनचले छेड़ रहे थे। उन्होंने लड़कियों को कार में लिफ्ट दी। लड़कियों
से पता चला कि वह रोजना 4 से 5 किलोमीटर चलकर बस स्टॉप तक जाती हैं, जहां से वे कॉलेज के लिए बस पकड़ती हैं। छात्राओं की समस्या जानने के बाद उन्होंने उनके लिए कुछ करने का फैसला किया। उन्होंने अपने पीएफ से 19 लाख रुपए निकाले और एक बस खरीदी और ‘नि:शुल्क बेटी वाहिनी’ शुरू की। 40 सीटों वाली यह बस सिर्फ लड़कियों के लिए है। अब तक 62 लड़कियों ने इस सेवा के लिए रजिस्टर किया है। डॉ. यादव हर महीने इस बस के संचालन में करीब 36,000 रुपए खर्च करते हैं, जिसमें डीजल से लेकर बस स्टाफ का वेतन भी शामिल है। (एजेंसी)
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स्वच्छता
05 - 11 नवंबर 2018
अर्जेंटीना
कई वर्ष पहले ही अर्जेंटीना ने स्वच्छता और उससे जुड़े लक्ष्यों को 95 फीसदी से ज्यादा पूरा कर लिया था। दिलचस्प यह है कि स्वच्छता का आंकड़ा यहां शहरी के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा सुदृढ़ है
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स्वच्छता का चमकता सूर्य
एसएसबी ब्यूरो
नरल मैनुअल बेलग्रानो ने 1812 में कल्पना कर ली थी कि जिस देश की आजादी के लिए वे लड़ रहे हैं, भविष्य में उस देश की कीर्ति पूरी दुनिया में सूर्य की तरह चमकेगी। बेलग्रानो एक सैन्य नायक के साथ अर्थशास्त्री, वकील और राजनेता थे। वे स्पेनिश शासन से अर्जेंटीना के मुक्तिदाताओं में से एक थे। उन्होंने ही पहली बार
खास बातें
1816 में स्पेन की दासता से स्वतंत्र हुआ अर्जेंटीना स्वच्छता के साथ जल प्रबंधन में भी अर्जेंटीना का रिकॉर्ड बेहतर एंडीज पर्वतीय प्रदेश के तहत देश का करीब 30 फीसदी भाग आता है
अर्जेंटीना का ध्वज डिजाइन किया था। बेलग्रानो ने अर्जेंटीना के ध्वज में विशेष रूप से सूर्य की किरणें बिखेरते चित्र को शामिल किया था। आज शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक और जल प्रबंधन से लेकर स्वच्छता तक अर्जेंटीना एक आदर्श देश है। अर्जेंटीना दक्षिण अमेरिका में स्थित एक देश है। क्षेत्रफल एवं जनसंख्या की दृष्टि से ब्राजील के बाद यह सबसे बड़ा दक्षिणी अमेरिकी देश है। इसके उत्तर में ब्राजील, पश्चिम में चिली तथा उत्तर-पश्चिम में पराग्वे है। इसकी आकृति एक अधोमुखी त्रिभुज के समान है, जो लगभग 2600 किमी चौड़े आधार से दक्षिण की ओर संकरा होता चला गया है। अर्जेंटीना का नाम लैटिन शब्द ‘अर्जेंटम’ से पड़ा, जिसका अर्थ चांदी है। आरंभ में यह उपनिवेश था, जिसकी स्थापना स्पेन के चार्ल्स तृतीय ने पुर्तगाली दबाव को रोकने के लिए की थी। 1810 में देश की जनता ने स्पेन की सत्ता के विरुद्ध आंदोलन आरंभ किया जिसके परिणामस्वरूप 1816 में यह स्वतंत्र हुआ। परंतु स्थाई सरकार की स्थापना 1853 से ही संभव हुई। अर्जेंटीना गणतंत्र के अंतर्गत 22 राज्यों के अतिरिक्त एक फेडरल जिला तथा टेरा डेल फ्यूगो, अंटार्कटिका महाद्वीप के कुछ भाग और दक्षिणी अटलांटिक सागर के कुछ द्वीप हैं।
अर्जेंटीना का नाम लैटिन शब्द ‘अर्जेंटम’ से पड़ा जिसका अर्थ चांदी है। आरंभ में यह उपनिवेश था, जिसकी स्थापना स्पेन के चार्ल्स तृतीय ने पुर्तगाली दबाव को रोकने के लिए की थी
स्वच्छता
विकास के अन्य मानकों को छोड़कर बात अकेले स्वच्छता की करें तो कई वर्ष पहले ही अर्जेंटीना ने स्वच्छता और उससे जुड़े लक्ष्यों को 95 फीसदी से ज्यादा पूरा कर लिया था। दिलचस्प यह है कि स्वच्छता का आंकड़ा यहां शहरी के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा सुदृढ़ है। वहां स्वच्छता दायरे में तो वैसे देश की 96.4 फीसदी आबादी आती है, पर इसमें शहरी आबादी 96.2 फीसदी है, जबकि गांवों में यह आंकड़ा 98.3 फीसदी है। यह सूरत वहां इसीलिए मुमकिन हो पाई क्योंकि जल उपलब्धता और प्रबंधन के मामले में यह देश तकरीबन आत्मनिर्भर है।
प्राकृतिक क्षेत्र
पश्चिम के पर्वतीय क्षेत्रफल को छोड़कर देश का अन्य भाग मुख्यत: निम्न भूमि है। देश सामान्यत: चार स्थलाकृतिक प्रदेशों में विभक्त हो जाता हैएंडीज पर्वतीय प्रदेश, उत्तर का मैदान, पंपाज और
पैटागोनिया। एंडीज पर्वतीय प्रदेश के अंतर्गत देश का लगभग 30 प्रतिशत भाग आता है। पश्चिम में उत्तरदक्षिण तक फैली इस पर्वतश्रेणी का उत्थान आल्प्स पर्वतमाला के निर्माण-काल में हुआ था। यह चिली के साथ प्राकृतिक सीमा निर्धारित करती है। इस श्रेणी में ही विश्व के उच्चतम शिखर स्थित हैं, जैसे माउंट अकोंकागुआ (7023 मीटर), मर्सीडरियो (6672 मीटर) और टुपनगाटो (6802 मीटर)। इस प्रदेश में अंगूर, शहतूत तथा अन्य फल बहुतायत से पैदा होते हैं। उत्तर के मैदानी प्रदेश के अंतर्गत चैको मैसोपोटामिया तथा मिसिओनेज क्षेत्र हैं। इस प्रदेश में जलोढ़ के विस्तृत निक्षेप पाए जाते हैं। अधिकांश भाग वर्षा में बाढ़ग्रस्त हो जाते हैं। चैको क्षेत्र वन संसाधन में धनी है तथा मिसिओनेज में यर्बा माते (एक प्रकार की चाय) की खेती होती है। पराना, परागुए आदि नदियों से घिरा मैसोपोटामिया पशुओं के लिए प्रसिद्ध है।
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स्वच्छता
डॉ. विभा भारद्वाज
अर्जेंटीना की राजधानी को स्वच्छ बनाएगी भिवानी की बेटी
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रियाणा के भिवानी शहर के मानानपाना निवासी शोधकर्ता डॉ. विभा भारद्वाज अर्जेंटीना में कचरा प्रबंधन पर काम करने जा रही हैं। अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स के प्रशासन ने पेपर, प्लास्टिक और बॉयो-डिग्रेडेबल कचरे के निस्तारण के अध्ययन और सुझाव के लिए डॉ. विभा के साथ एक साल का करार किया है। विभा करनाल स्थित सीएसएसआरआई में वैज्ञानिक हैं। शोध के लिए दुनियाभर से चुने गए केवल 10 वैज्ञानिकों में से भारत से केवल डॉ. विभा का चयन किया गया। इसके लिए वह पहले मेरिट के आधार पर, फिर साक्षात्कार, आखिर में फाइनल टेस्ट में उत्कृष्ट रहने पर चयनित हुई। विभा ने वर्ष 2004 में देहरादून से माइक्रोबायोलॉजी में स्नातक, 2008 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर व केयू से ही 2015 में माइक्रोबायोलॉजी में ही पीएचडी कर डाक्टरेट की डिग्री हासिल की। साथ ही करनाल के दयाल सिंह कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर भी अपनी सेवाएं दी। अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों में जहां उनके द्वारा लिखित पुस्तकें पढ़ाई जाती हैं, वहीं थर्मोकोल से बनी वस्तुओं के प्रयोग से मानव शरीर पर होने वाले दुष्प्रभाव, कपड़े को अधिक समयावधि तक प्रयोग करने, पानी, एंटी कैंसर ड्रग, बायोडायवर्सिटी आदि पर वह शोध कर चुकी हैं। अर्जेंटीना की राजधानी में अपने शोध को पूरा करने के बाद विभा इटली में जीका वायरस की दवा पर भी काम करेंगी। विभा ने बताया कि इस
ब्यूनस आयर्स के प्रशासन ने पेपर, प्लास्टिक और बॉयो-डिग्रेडेबल कचरे के निस्तारण के लिए डॉ. विभा के साथ एक साल का करार किया है बारे में इटली सरकार उनसे संपर्क कर चुकी है। इसके अलावा स्वीडन में वेस्ट मेटेरियल के प्रयोग से बॉयोडीजल बनाने पर काम करने के लिए एंग्रीमेंट हो चुका है। इससे पहले वह 2010 में मलेशिया व 2014 में थाईलैंड में हुई इंटरनेशनल कांफ्रेंस में बतौर साइंटिस्ट भाग ले चुकी हैं। वहीं नाइजीरिया और शिकागो में भी उन्हें आमंत्रित किया गया। लेकिन व्यस्तता के कारण वह भाग नहीं ले सकीं।
माता-पिता का साथ
डॉ. विभा का कहना है कि हर कदम पर मिले माता-पिता के सहयोग से ही उनकी मेहनत व प्रयास सफल हुए। पिता वेद पुजारी व माता निर्मल ने बचपन से ही चारों बहनों व भाई को पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। बड़ी बहन ऋचा वशिष्ठ गुड़गांव में प्राध्यापक, छोटी बहन प्रेरणा न्यूजीलैंड में इंटीरियर डिजाइनर, तो वहीं सबसे छोटी बहन क्षमा एमबीए- लॉ करने के बाद न्यायिक सेवा की तैयारी में जुटी हैं। भाई अश्विनी आईएएस की तैयारी कर रहा है। माता-पिता ने बेटियों पर गर्व जताते हुए समाज में लोगों को बेटियों को लगातार बढ़ने के लिए सहयोग व प्रेरित करने को कहा। डॉ. विभा का कहना है कि देश में रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर खास मदद नहीं मिलती। शोधार्थी को अपने पैसों से एक-एक केमिकल को टेस्ट करवाने व अन्य जरूरी उपकरण जुटाने पड़ते हैं। अपने शोध के
अर्जेंटीना की राजधानी में अपने शोध को पूरा करने के बाद विभा इटली में जीका वायरस की दवा पर भी काम करेंगी। विभा ने बताया कि इस बारे में इटली सरकार उनसे संपर्क कर चुकी है दौरान खुद एक-एक टेस्ट, केमिकल के लिए 35 से 40 हजार रुपए खर्च किए। लैब में मिलने
आबादी
पेयजल और स्वच्छता
पेयजल स्रोत
स्वच्छ व उन्नत शहरी : 96.2% आबादी
कुल : 99.1% आबादी
ग्रामीण : 98.3% आबादी कुल : 96.4% आबादी
(2015 तक अनुमानित)
(2015 तक अनुमानित)
अस्वच्छ या अशोधित
शहरी : 1% आबादी ग्रामीण : 0% आबादी कुल : 0.9% आबादी
परागुए तथा युरुगुए मुख्य नदियां हैं। अर्जेंटीना की जलवायु प्रधानत: शीतोष्ण है। जलवायु, मिट्टी और उच्चावच में विशिष्ट क्षेत्रीय
देश की जनसंख्या का अधिकांश आप्रवासित यूरोपवासी (मुख्यत: इटली एवं स्पेन निवासी) हैं। अन्य दक्षिणी अमेरिका के देशों के विपरीत यहां नीग्रो अथवा इंडियन आदिवासियों की संख्या नगण्य है। इस प्रकार देशवासियों में प्रजातीय एवं सांस्कृतिक समानताएं मिलती हैं। स्पैनिश यहां की राष्ट्रभाषा है। 95 प्रतिशत लोग रोमन कैथाेलिक हैं।
अस्वच्छ या पारंपरिक
शहरी : 3.8% आबादी ग्रामीण : 1.7% आबादी कुल : 3.6% आबादी
स्वच्छता सुविधाएं
देश के मध्य में स्थित पंपाज प्रदेश अत्यधिक उपजाऊ और विस्तृत समतल घास का मैदान है। यह देश का सबसे समृद्धिशाली भाग है, जिसमें 80 प्रतिशत जनसंख्या रहती है। कृषि एवं पशुपालन उद्योगों के कुल उत्पादन का लगभग दो तिहाई भाग यहीं से प्राप्त होता है। पैटागोनिया प्रदेश रायो निग्रो से दक्षिण की ओर देश के दक्षिणी छोर तक फैला है (क्षेत्रफल : 7,77,000 वर्ग किमी)। यह अर्धशुष्क एवं अल्प जनसंख्या वाला पठारी प्रदेश है। यहां विशेष रूस से पशुपालन का कारोबार होता है। नदियां एंडीज पर्वत अथवा उत्तर की उच्च भूमि से निकलकर पूर्व की ओर प्रवाहित होती हैं और अटलांटिक सागर में गिरती हैं। इस प्रदेश में पराना,
स्वच्छ या शोधित शहरी : 99% आबादी ग्रामीण : 100% आबादी
वाले रसायन आदि काफी निम्न स्तर के होते हैं, जिनका कभी प्रयोग ही नहीं हो पाता।
स्रोत : सीआईए वर्ल्ड फैक्टबुक (जनवरी, 2018)
विभिन्नताओं के कारण ही देश में उष्ण-कटिबंधीय वर्षावाले वनों से लेकर मरुस्थलीय कांटेदार झाडि़यां तक पाई जाती हैं।
आर्थिक दशा
अर्जेंटीना विश्व का एक महत्वपूर्ण खाद्य उत्पादक और खाद्य निर्यातक देश है। गेहूं मुख्य व्यावसायिक फसल है, जिसकी अधिकतम खेती पंपाज में होती है। मांस, चमड़ा तथा ऊन के उत्पादन एवं निर्यात की दृष्टि से अर्जेंटीना विश्व का एक महत्वपूर्ण देश है। पशुपालन उद्योग मुख्यत: पंपाज प्रदेश में है। देश में डेयरी उद्योग का भी यथेष्ट विकास हुआ है। मत्स्य क्षेत्रों के विकास की संभावनाओं को लेकर यह देश तेजी से आगे बढ़ रहा है।
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पुस्तक अंश
15 विलायत में गांधीजी के प्रवास के दौरान कई ऐसी घटनाएं घटीं, जो उनके भीतर चल रहे परिवर्तन को पुख्ता कर रही थीं। परिवर्तन की इस सुदृढ़ होती प्रक्रिया में सबसे अहम भूमिका निभाई धर्मग्रंथों को पढ़ने की उनकी ललक ने। इस कारण आस्तिकता को लेकर उनकी आस्था तो बढ़ी ही, वे चरित्रगत रूप से भी दृढ़तर होते गए
प्रथम भाग
05 - 11 नवंबर 2018
विलायत में गीता बुद्ध चरित और बाइबल
20. धर्मों का परिचय
विलायत में रहते हुए मुझे कोई एक साल हुआ होगा। इस बीच दो थियॉसॉफिस्ट मित्रों से मेरी पहचान हुई। दोनों सगे भाई थे और अविवाहित थे। उन्होंने मुझसे गीता की चर्चा की। वे एडविन आर्नल्ड की गीता का अनुवाद पढ़ रहे थे। पर उन्होंने मुझे अपने साथ संस्कृत में गीता पढ़ने के लिए न्योता। मैं शरमाया, क्योंकि मैंने गीता संस्कृत में या मातृभाषा में पढ़ी ही नहीं थी। मुझे उनसे कहना पड़ा कि मैंने गीता पढ़ी ही नहीं पर मैं उसे आपके साथ पढ़ने के लिए तैयार हूं। संस्कृत का मेरा अभ्यास भी नहीं के बराबर ही है। मैं उसे इतना ही समझ पाऊंगा कि अनुवाद में कोई गलत अर्थ होगा तो उसे सुधार सकूंगा। इस प्रकार मैंने उन भाइयों के साथ गीता पढ़ना शुरू किया। इसमें दूसरे अध्याय के अंतिम श्लोकों में से एक है ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते। संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोभिजायते।। क्रोधाद् भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः। स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।। ( विषयों का चिंतन करनेवाले पुरुष को उन विषयों में आसक्ति पैदा होती है। फिर आसक्ति से कामना पैदा होती है और कामना से क्रोध, क्रोध से मूढ़ता पैदा होती है , मूढ़ता से स्मृति-लोप होता है और स्मृति-लोप से बुद्धि नष्ट होती है, और जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है उसका खुद का नाश हो जाता है।) इन श्लोकों का मेरे मन पर गहरा असर पड़ा। उनकी भनक मेरे कान में गूंजती ही रही। उस समय मुझे लगा कि भगवद्गीता अमूल्य ग्रंथ है। यह मान्यता धीरे-धीरे बढ़ती गई, और आज तत्वज्ञान के लिए मैं उसे सर्वोत्तम ग्रंथ मानता हूं। निराशा के समय में इस ग्रंथ ने मेरी अमूल्य सहायता की है। इसके लगभग सभी अंग्रेजी अनुवाद पढ़ गया हूं। पर एडविन आर्नल्ड का अनुवाद मुझे श्रेष्ठ प्रतीत होता है। उसमें मूल ग्रंथ के भाव की रक्षा की गई है, फिर भी वह ग्रंथ अनुवाद जैसा नहीं लगता। इस बार मैंने भगवद्गीता का अध्ययन किया, ऐसा तो मैं कह ही नहीं सकता। मेरे नित्यपाठ का ग्रंथ तो वह कई वर्षों के बाद बना। इन्हीं भाइयों ने मुझे सुझाया कि मैं आर्नल्ड का बुद्ध-चरित पढूं। उस समय तक तो मुझे सर एडविन आर्नल्ड के गीता के अनुवाद का ही पता था। मैंने बुद्ध-चरित भगवद्गीता से भी अधिक रस-पूर्वक पढ़ा। पुस्तक हाथ में लेने के बाद समाप्त करके ही छोड़ सका। एक बार ये भाई मुझे ब्लैवट्स्की लॉज में भी ले गए। वहां मैडम ब्लैवट्स्की और मिसेज एनी बेसेंट के दर्शन कराए। मिसेज बेसेंट हाल ही में थियॉसॉफिकल इन्हीं दिनों एक अन्नाहारी छात्रावास में मुझे मैनचेस्टर के एक ईसाई सज्जन सोसाइटी में दाखिल हुई थीं। इससे समाचारपत्रों में इस संबंध की जो चर्चा मिले। उन्होंने मुझसे ईसाई धर्म की चर्चा की। मैंने उन्हें राजकोट का अपना चलती थी, उसे मैं दिलचस्पी के साथ पढ़ा करता था। इन भाइयों ने मुझे संस्मरण सुनाया। वे सुनकर दुखी हुए। उन्होंने कहा, ‘मै स्वयं अन्नाहारी हूं। सोसायटी में दाखिल होने का भी सुझाव दिया। मैंने नम्रतापूर्वक इनकार किया मद्यपान भी नहीं करता। यह सच है कि बहुत से ईसाई मांस खाते हैं और शराब और कहा, 'मेरा धर्मज्ञान नहीं के बराबर है, इसीलिए मैं किसी भी पंथ में सम्मिलित होना नहीं चाहता।' मेरा खयाल है कि इन्हीं भाइयों के कहने से मैंने मैडम मुझे लगा कि भगवद्गीता अमूल्य ग्रंथ है। यह मान्यता धीरे-धीरे बढ़ती गई, और ब्लैवट्स्की की पुस्तक 'की टू थियॉसॉफी' पढ़ी थी। आज तत्वज्ञान के लिए मैं उसे सर्वोत्तम ग्रंथ मानता हूं। निराशा के समय में इस उससे हिंदू धर्म की पुस्तकें पढ़ने की इच्छा पैदा हुई रे ी अनुवाद पढ़ गया और पादरियों के मुंह से सुना हुआ यह खयाल दिल से ग्रंथ ने मेरी अमूल्य सहायता की है। इसके लगभग सभी अंग्ज ह।ूं पर एडविन आर्नल्ड का अनुवाद मुझे श्रेष्ठ प्रतीत होता है निकल गया कि हिंदू धर्म अंधविश्वासों से भरा हुआ है।
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पीते हैं, पर इस धर्म में दोनों में से एक भी वस्तु का सेवन करना कर्तव्य रूप नहीं है। मेरी सलाह है कि आप बाइबल पढ़ें।’ मैंने उनकी सलाह मान ली। उन्हीं ने बाइबल खरीद कर मुझे दी। मेरा खयाल है कि वे भाई खुद ही बाइबल बेचते थे। उन्होंने नक्शों और विषय-सूची आदि से युक्त बाइबल मुझे बेची। मैंने उसे पढ़ना शुरू किया, पर मैं ‘पुराना इकरार’ (ओल्ड टेस्टामेंट) तो पढ़ ही न सका। ‘जेनेसिस’ (सृष्टि रचना) के प्रकरण के बाद तो पढ़ते समय मुझे नींद ही आ जाती थी। मुझे याद है कि ‘मैंने बाइबल पढ़ी है’ यह कह सकने के लिए मैंने बिना रस के और बिना समझे दूसरे प्रकरण बहुत कष्टपूर्वक पढ़े। 'नंबर्स' नामक प्रकरण पढ़ते-पढ़ते मेरा जी उचट गया था। पर जब ‘नए इकरार’ (न्यू टेस्टामेंट) पर आया, तो कुछ और ही असर हुआ। ईसा के ‘गिरि प्रवचन’ का मुझ पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा। उसे मैंने हृदय में बसा लिया। बुद्धि ने गीता के साथ उसकी तुलना की- ‘जो तुझसे कुर्ता मांगे उसे अंगरखा भी दे दे’, ‘जो तेरे दाहिने गाल पर तमाचा मारे, बांया गाल भी उसके सामने कर दे’ - यह पढ़कर मुझे अपार आनंद हुआ। शामल भट्ट के छप्पय (यह छप्पय धर्म की झांकी के अंत में दिया गया है। शामल भट्ट 18वीं सदी के गुजराती के एक प्रसिद्ध कवि हैं। छप्पय पर उनका जो प्रभुत्व था, उसके कारण गुजरात में यह कहावत प्रचलित हो गई है कि ‘छप्पय तो शामल के’) की याद आ गई। मेरे बालमन ने गीता, आर्नल्ड कृत बुद्ध चरित और ईसा के वचनों का एकीकरण किया। मन को यह बात जंच गई कि त्याग में धर्म है। इस वाचन से दूसरे धर्माचार्यो की जीवनियां पढ़ने की इच्छा हुई। किसी मित्र ने कार्लाइल की ‘विभूतियां और विभूति पूजा’ (हीरोज एंड हीरोवर्शिप) पढ़ने की सलाह दी। उसमें से मैंने पैगंबर (हजरत मुहम्मद) का प्रकरण पढ़ा और मुझे उनकी महानता, वीरता और तपश्चर्या का पता चला। मैं धर्म के इस परिचय से आगे न बढ़ सका। अपनी परीक्षा की पुस्तकों के अलावा दूसरा कुछ पढ़ने की फुर्सत मैं नहीं निकाल सका। पर मेरे मन ने यह निश्चय किया कि मुझे धर्म की पुस्तकें पढ़नी चाहिए और सब धर्मों का परिचय प्राप्त कर लेना चाहिए। नास्तिकता के बारे में भी कुछ जाने बिना काम कैसे चलता? ब्रेडला का नाम तो सब हिंदुस्तानी जानते ही थे। ब्रेडला नास्तिक माने जाते थे। इसीलिए उनके संबंध में एक पुस्तक पढ़ी। नाम मुझे याद नहीं रहा। मुझ पर उसका कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा। मैं नास्तिकता रूपी सहारे के रेगिस्तान को पार कर गया। मिसेज बेसेंट की ख्याति तो उस समय भी खूब थी। वे नास्तिक से आस्तिक बनी हैं। इस चीज ने भी मुझे नास्तिकतावाद के प्रति उदासीन बना दिया। मैंने मिसेज बेसेंट की ‘मैं थियॉसॉफिस्ट कैसे बनी?’ पुस्तिका पढ़ ली थी। उन्हीं दिनों ब्रेडला का देहांत हो गया। वोकिंग में
पुस्तक अंश
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मिसेज बेसेंट हाल ही में थियॉसॉफिकल सोसाइटी में दाखिल हुई थीं। इससे समाचारपत्रों में इस संबंध की जो चर्चा चलती थी, उसे मैं दिलचस्पी के साथ पढ़ा करता था
उनका अंतिम संस्कार किया गया था। मै भी वहां पहुंच गया था। मेरा खयाल है कि वहां रहनेवाले हिंदुस्तानियों में से तो एक भी बाकी नहीं बचा होगा। कई पादरी भी उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए आए थे। वापस लौटते हुए हम सब एक जगह रेलगाड़ी की राह देखते खड़े थे। वहां इस दल में से किसी पहलवान नास्तिक ने इन पादरियों में से एक के साथ जिरह शुरू की‘क्यों साहब, आप कहते हैं न कि ईश्वर है?’ उन भद्र पुरुष ने धीमी आवाज में उत्तर दिया, ‘हां, मैं कहता तो हूं।’ वह हंसा और मानो पादरी को मात दे रहा हो इस ढंग से बोला, ‘अच्छा, आप यह तो स्वीकार करते है न कि पृथ्वी की परिधि 28000 मील है?’ ‘अवश्य’ ‘तो कहिए, ईश्वर का कद कितना होगा और वह कहां रहता होगा?’ ‘अगर हम समझें तो वह हम दोनों के हृदय में वास करता है।’ ‘बच्चों को फुसलाइए, बच्चों को’, यह कहकर उस योद्धा ने आसपास खड़े हुए हम लोगों की तरफ विजय दृष्टि से देखा। पादरी मौन रहे। इस संवाद के कारण नास्कितावाद के प्रति मेरी अरुचि और बढ़ गई।
21. निर्बल के बल राम
धर्मशास्त्र का और दुनिया के धर्मों का कुछ भान
तो मुझे हुआ, पर उतना ज्ञान मनुष्य को बचाने के लिए काफी नहीं होता। संकट के समय जो चीज मनुष्य को बचाती है, उसका उसे उस समय न तो भान होता है, न ज्ञान। जब नास्तिक बचता है तो वह कहता है कि मैं संयोग से बच गया। ऐसे समय आस्तिक कहेगा कि मुझे ईश्वर ने बचाया। परिणाम के बाद वह यह अनुमान कर लेता है कि धर्मों के अभ्यास से संयम से ईश्वर उसके हृदय में प्रकट होता है। उसे ऐसा अनुमान करने का अधिकार है। पर बचते समय वह नहीं जानता कि उसे उसका संयम बचाता है या कौन बचाता है। जो अपनी संयम शक्ति का अभिमान रखता है, उसके संयम को धूल मिलते किसने नहीं जाना है? ऐसे समय शास्त्र ज्ञान तो कोरा जैसा प्रतीत होता है। बौद्धिक धर्मज्ञान के इस मिथ्यापन का अनुभव मुझे विलायत में हुआ। पहले भी मैं ऐसे संकटों में से बच गया था, पर उनका पृथक्करण नहीं किया जा सकता। कहना होगा कि उस समय मेरी उम्र बहुत छोटी थी। पर अब तो मेरी उम्र 20 साल की थी। मैं गृहस्थाश्रम का ठीक-ठीक अनुभव ले चुका था। बहुत प्रयास से मेरे विलायत निवास के आखिरी साल में, यानी 1890 के साल में पोर्टस्मथ में अन्नाहारियों का एक सम्मेलन हुआ था। उसमें मुझे और एक हिंदुस्तानी मित्र को निमंत्रित किया गया था। हम दोनों वहां पहुंचे। हमें एक महिला के घर ठहराया गया था। पोर्टस्मथ खलासियों का बंदरगाह कहलाता है। वहां बहुतेरे घर दुराचारिणी स्त्रियों के होते हैं। वे स्त्रियां वेश्या नहीं होती, न निर्दोष ही होती हैं। ऐसे ही एक घर में हम लोग टिके थे। इसका यह मतलब नहीं कि स्वागत समिति ने जान-बूझकर ऐसे घर ठीक किए थे। पर पोर्टस्मथ जैसे बंदरगाह में जब यात्रियों को ठहराने के लिए डेरों की तलाश होती है, तो यह कहना मुश्किल ही हो जाता है कि कौन से घर अच्छे हैं और कौन से बुरे। रात हुई। हम सभा से घर लौटे। भोजन के बाद ताश खेलने बैठे। विलायत में अच्छे भले घरों में भी इस तरह गृहिणी मेहमानों के साथ ताश खेलने बैठती हैं। ताश खेलते हुए निर्दोष विनोद तो सब कोई करते हैं। लेकिन यहां तो वीभत्स विनोद शुरू हुआ। मैं नहीं जानता था कि मेरे साथी इसमें निपुण हैं। मुझे इस विनोद में रस आने लगा। मैं भी इसमें शरीक हो गया। वाणी से क्रिया में उतरने की तैयारी थी। ताश एक तरफ धरे ही जा रहे थे। लेकिन मेरे भले साथी के मन में राम बसे। उन्होंने कहा, ‘अरे, तुममें यह कलियुग कैसा! तुम्हारा यह काम नहीं है। तुम यहां से भागो।’
मैं शरमाया। सावधान हुआ। हृदय में उन मित्र का उपकार माना। माता के सम्मुख की हुई प्रतिज्ञा याद आई। मैं भागा। कांपता-कांपता अपनी कोठरी में पहुंचा। छाती धड़क रही थी। कातिल के हाथ से बचकर निकले हुए शिकार की जैसी दशा होती है वैसी ही मेरी हुई। मुझे याद है कि पर-स्त्री को देखकर विकारवश होने और उसके साथ रंगरेलियां करने की इच्छा पैदा होने का मेरे जीवन में यह पहला प्रसंग था। उस रात मैं सो नहीं सका। अनेक प्रकार के विचारों ने मुझ पर हमला किया। घर छोड़ दूं? भाग जाऊं? मैं कहां हूं? अगर मैं सावधान न रहूं तो मेरी क्या गत हो? मैंने खूब चौकन्ना रहकर बरतने का निश्चय किया। यह सोच लिया कि घर तो नहीं छोड़ना है, पर जैसे भी बने पोर्टस्मथ जल्दी छोड़ देना है। सम्मेलन दो दिन से अधिक चलने वाला न था। इसलिए जैसा कि मुझे याद है, मैंने दूसरे दिन ही पोर्टस्मथ छोड़ दिया। मेरे साथी पोर्टस्मथ में कुछ दिन के लिए रुके। उन दिनों मैं यह बिल्कुल नहीं जानता था कि धर्म क्या है, और वह हममें किस प्रकार काम करता है। उस समय तो लौकिक दृष्टि से मैंने यह समझा कि ईश्वर ने मुझे बचा लिया है। पर मुझे विविध क्षेत्रों में ऐसे अनुभव हुए हैं। मैं जानता हूं कि ‘ईश्वर ने बचाया’ वाक्य का अर्थ आज मैं अच्छी तरह समझने लगा हूं। पर साथ ही मैं यह भी जानता हूं कि इस वाक्य की पूरी कीमत अभी तक मैं आंक नहीं सका हूं। वह तो अनुभव से ही आंकी जा सकती है। पर मैं कह सकता हूं कि कई आध्यात्मिक प्रसंगों में वकालत के प्रसंगों में, संस्थाएं चलाने में, राजनीति में ‘ईश्वर ने मुझे बचाया है।’ मैंने यह अनुभव किया है कि जब हम सारी आशा छोड़कर बैठ जाते हैं, हमारे हाथ टिक जाते हैं, तब कहीं न कहीं से मदद आ ही पहुंचती है। स्तुति, उपासना, प्रार्थना वहम नहीं है, बल्कि हमारा खाना-पीना, चलना-बैठना जितना सच है, उससे भी अधिक सच यह चीज है। यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं कि यही सच है और सब झूठ है। ऐसी उपासना, ऐसी प्रार्थना, निरा वाणी-विलास नहीं होती। उसका मूल कंठ नहीं, हृदय है। अतएव यदि हम हृदय की निर्मलता को पा लें, उसके तारों को सुसंगठित रखें, तो उनमें से जो सुर निकलते हैं, वे गगनगामी होते हैं। उसके लिए जीभ की आवश्यकता नहीं होती। वह स्वभाव से ही अद्भुत वस्तु है। इस विषय में मुझे कोई शंका ही नहीं है कि विकाररूपी मलों की शुद्धि के लिए हार्दिक उपासना एक रामबाण औषधि है। पर इस प्रसादी के लिए हममें संपूर्ण नम्रता होनी चाहिए। (अगले अंक में जारी)
16 खुला मंच
05 - 11 नवंबर 2018
बहुत सारे लोग पेड़ लगाते हैं, लेकिन उनमें से कुछ को ही उसका फल मिलता है – मौलाना अबुल कलाम आजाद
अभिमत
नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री
एकता का राष्ट्रवादी भूगोल सरदार पटेल ने उपनिवेशवाद के इतिहास को ढहाने के लिए अभूतपूर्व गति से काम किया और राष्ट्रवाद की भावना के साथ एकता के भूगोल की रचना की
भारतीय उद्यम का वैश्विक अर्थ
सरकार की सूझबूझ और नीति के साथ देशवासियों के उद्यम ने देश की आर्थिक ताकत काफी बढ़ा दी है
भा
रत के नए आ र्थि क शक्ति में उभरने की बात अब कुछ इकोनॉमिक फर्मों और अर्थ पंडितों की भविष्यवाणी नहीं, बल्कि एक जमीनी यथार्थ है। सरकार की सूझबूझ और नीति के साथ देशवासियों के उद्यम ने देश की आर्थिक ताकत काफी बढ़ा दी है और अब इसका असर भारत को लेकर होने वाले वैश्विक मूल्यांकनों पर भी लगातार दिख रहा है। विश्व बैंक की ताजा ईज ऑफ डूईंज बिजनेस रिपोर्ट में भारत ने 23 रैंक की छलांग लगाई है। भारत अब 100 नंबर से चढ़कर 77वें पायदान पर आ गया है। इसके पहले पिछले वर्ष भारत विश्व की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रिपोर्ट 2018 में 30 अंकों की जबदस्त उछाल हासिल कर ओवरऑल रैंकिंग में 100 वें स्थान पर आ गया था। इसमें विशेष बात यह है कि किसी भी देश द्वारा लगाई गई अब तक की यह सबसे बड़ी छछांग है। इसके साथ ही भारत इस छलांग के बाद दुनिया में 10 सबसे बड़े सुधार करने वाले देशों में शामिल हो गया है। साफ है कि भारत में कारोबारी माहौल बेहतर हुआ है और व्यवसाय शुरू करने की प्रक्रिया भी सरल हो गई है। बड़ी बात यह कि इसके अलावा और भी कई आर्थिक मूल्यांकनों में देश की आर्थिक तरक्की दिखी है। विश्व आर्थिक मंच के वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा सूचकांक 2018 में भारत पांच स्थान ऊपर चढ़कर 58वें स्थान पर पहुंच गया है। विश्व आर्थिक मंच ने अपनी ताजा रिपोर्ट में भारत को 58वीं सर्वाधिक प्रतिस्पर्द्धी अर्थव्यवस्था घोषित किया है। उसका कहना है कि भारत की रैंकिंग में पांच स्थान की वृद्धि जी-20 देशों के बीच सर्वाधिक बढ़ोत्तरी है। मंच ने यह भी कहा कि भारत दक्षिण एशिया में महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्था बना हुआ है।
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(उत्तर प्रदेश)
व
र्ष 1947 के पहले छह महीने भारत के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण रहे थे। साम्राज्यवादी शासन के साथ-साथ भारत का विभाजन भी अपने अंतिम चरण में पहुंच गया था, हालांकि उस समय यह तस्वीर पूरी तरह से साफ नहीं थी कि क्या देश का एक से अधिक बार विभाजन होगा। कीमतें आसमान पर पहुंच गई थीं, खाद्य पदार्थो की कमी आम बात हो गई थी, लेकिन इन बातों से परे सबसे बड़ी चिंता भारत की एकता को लेकर नजर आ रही थी, जो खतरे में थी। इस पृष्ठभूमि में ‘गृह विभाग’ का बहुप्रतीक्षित गठन वर्ष 1947 के जून महीने में किया गया। इस विभाग का एक प्रमुख लक्ष्य उन 550 से भी अधिक रियासतों से भारत के साथ उनके रिश्तों के बारे में बातचीत करना था, जिनके आकार, आबादी, भू-भाग अथवा आर्थिक स्थितियों में काफी भिन्नताएं थीं। उस समय महात्मा गांधी ने कहा था कि, ‘राज्यों की समस्या इतनी ज्यादा विकट हैं कि सिर्फ ‘आप’ ही इसे सुलझा सकते हैं।’ यहां पर ‘आप’ से आशय किसी और से नहीं, बल्कि सरदार वल्लभ भाई पटेल से है। अपनी विशिष्ट सरदार पटेल शैली में उन्होंने सटीक तौर पर सुदृढ़ता और प्रशासनिक दक्षता के साथ इस चुनौती को
पूरा किया। समय कम था और जवाबदेही बहुत बड़ी थी। लेकिन इसे अंजाम देने वाली शख्सियत कोई साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि सरदार पटेल ही थे, जो इस बात के लिए दृढ़प्रतिज्ञ थे कि वह किसी भी सूरत में अपने राष्ट्र को झुकने नहीं देंगे। उन्होंने और उनकी टीम ने एक-एक करके सभी रियासतों से बातचीत की और इन सभी रियासतों को ‘आजाद भारत’ का अभिन्न हिस्सा बनाना सुनिश्चित किया। सरदार पटेल ने पूरी तन्मयता और लगन से दिन-रात एक करते हुए इस कार्य को पूरा किया और इसी शैली की बदौलत ही आधुनिक भारत का वर्तमान एकीकृत मानचित्र हम देख रहे हैं। कहा जाता है कि वीपी मेनन ने स्वतंत्रता मिलने पर सरकारी सेवा से अवकाश लेने की इच्छा व्यक्त की। इस पर सरदार पटेल ने उनसे कहा कि समय आराम करने या सेवानिवृत्त होने का नहीं है। सरदार पटेल का ऐसा दृढ़ संकल्प था। वीपी मेनन विदेश विभाग के सचिव बनाए गए। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘द स्टोरी ऑफ द इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट्स’ में लिखा है कि किस तरह सरदार पटेल ने इस मुहिम में अग्रणी भूमिका निभाई और अपने नेतृत्व में किस प्रकार पूरी टीम को परिश्रम से काम करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने लिखा है कि सरदार पटेल के लिए सबसे पहले भारत की जनता के हित थे, जिस पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। हमने 15 अगस्त, 1947 को नए भारत के उदय का उत्सव मनाया। लेकिन राष्ट्र निर्माण का कार्य अधूरा था। स्वतंत्र भारत के प्रथम गृह मंत्री के रूप में उन्होंने प्रशासनिक ढांचा बनाने का काम प्रारंभ किया, जो आज भी जारी हैचाहे यह दैनिक शासन संचालन का मामला हो अथवा लोगों विशेषकर, गरीब और वंचित लोगों के हितों की रक्षा का मामला हो। सरदार पटेल अनुभवी प्रशासक थे। प्रशासन में उनका अनुभव विशेषकर 1920 के दशक में अहमदाबाद नगरपालिका में उनकी सेवा का अनुभव, स्वतंत्र भारत के प्रशासनिक ढांचे को मजबूत बनाने में सहायक साबित हुआ। उन्होंने अहमदाबाद में स्वच्छता कार्य को आगे बढ़ाने में सराहनीय कार्य किए। उन्होंने पूरे शहर में स्वच्छता और जल निकासी प्रणाली सुनिश्चित की। उन्होंने सड़क, बिजली तथा शिक्षा जैसी शहरी अवसंरचना के अन्य पहलुओं पर भी जोर दिया। आज यदि भारत जीवंत सहकारिता क्षेत्र के लिए जाना जाता है, तो इसका श्रेय सरदार पटेल को जाता है। ग्रामीण समुदायों, विशेषकर महिलाओं को सशक्त बनाने का उनका विजन अमूल परियोजना में दिखता है। यह सरदार पटेल ही थे, जिन्होंने सहकारी आवास सोसाइटी के विचार को लोकप्रिय बनाया और इस प्रकार अनेक लोगों के लिए सम्मान
‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ दिलों की एकता और हमारी मातभ ृ मि ू की भौगोलिक एकजुटता का प्रतीक है। यह याद दिलाता है कि आपस में बंटकर शायद हम डटकर मुकाबला नहीं कर पाएं
05 - 11 नवंबर 2018 और आश्रय सुनिश्चित किया। सरदार पटेल निष्ठा और ईमानदारी के पर्याय रहे। भारत के किसानों की उनमें प्रगाढ़ आस्था थी। वह किसान पुत्र थे, जिन्होंने बारदोली सत्याग्रह के दौरान अगली कतार से नेतृत्व किया। श्रमिक वर्ग उनमें आशा की किरण देखता था, एक ऐसा नेता देखता था जो उनके लिए बोलेगा। व्यापारी और उद्योगपतियों ने उनके साथ इसीलिए काम करना पसंद किया, क्योंकि वे समझते थे कि सरदार पटेल भारत के आर्थिक और औद्योगिक विकास के विजन वाले दिग्गज नेता हैं। उनके राजनीतिक मित्र भी उन पर भरोसा करते थे। आचार्य कृपलानी का कहना था कि जब कभी वह किसी दुविधा में होते थे और यदि बापू का मार्गदर्शन नहीं मिल पाता था, तो वह सरदार पटेल का रुख करते थे। 1947 में जब राजनीतिक समझौते के बारे में विचार-विमर्श अपने चरम पर था, तब सरोजिनी नायडू ने उन्हें ‘संकल्प शक्ति वाले गतिशील व्यक्ति’ की संज्ञा दी। उनके शब्दों और उनकी कार्य प्रणाली पर सभी को पूरा विश्वास था। जाति, धर्म, आयु से ऊपर उठकर सभी लोग सरदार पटेल का सम्मान करते थे। हमें प्रेरणा देते रहेंगे : इस वर्ष सरदार की जयंती और अधिक विशेष है। 130 करोड़ भारतीयों के आशीर्वाद से आज ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का उद्घाटन किया जा रहा है। नर्मदा के तट पर स्थित ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमाओं में से एक है। धरती पुत्र सरदार पटेल हमारा सिर गर्व से ऊंचा करने के साथ हमें दृढ़ता प्रदान करेंगे, हमारा मार्गदर्शन करेंगे और हमें प्रेरणा देते रहेंगे। मैं उन सभी को बधाई देना चाहता हूं जिन्होंने सरदार पटेल की इस विशाल प्रतिमा को हकीकत में बदलने के लिए दिन-रात काम किया। मैं 31 अक्टूबर, 2013 के उस दिन को याद करता हूं जब हमने इस महत्वाकांक्षी परियोजना की आधारशिला रखी थी। रिकॉर्ड समय में इतनी बड़ी एक परियोजना तैयार हो गई और प्रत्येक भारतीय को इससे गौरवान्वित होना चाहिए। मैं आप सभी से आग्रह करता हूं कि आने वाले समय में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ को देखने आएं। ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ दिलों की एकता और हमारी मातृभूमि की भौगोलिक एकजुटता का प्रतीक है। यह याद दिलाता है कि आपस में बंटकर शायद हम डटकर मुकाबला नहीं कर पाएं। एकजुट रहकर हम दुनिया का सामना कर सकते हैं और विकास तथा गौरव की नई ऊंचाइयों को छू सकते हैं। सरदार पटेल ने उपनिवेशवाद के इतिहास को ढहाने के लिए अभूतपूर्व गति से काम किया और राष्ट्रवाद की भावना के साथ एकता के भूगोल की रचना की। उन्होंने भारत को छोटे क्षेत्रों अथवा राज्यों में विभाजित होने से बचाया और राष्ट्रीय ढांचे में सबसे कमजोर हिस्सों को जोड़ा। आज हम 130 करोड़ भारतीय नए भारत का निर्माण करने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं, जो मजबूत, समृद्ध और समग्र होगा। प्रत्येक फैसला यह सुनिश्चित करके किया जा रहा है कि विकास का लाभ भ्रष्टाचार अथवा पक्षपात के बिना समाज के सबसे कमजोर वर्ग तक पहुंचे, जैसा कि सरदार पटेल चाहते थे।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु
सच्चा योग : सच्चा मिलन
खुला मंच
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लीक से परे
‘योग’ शब्द का मतलब है मिलन। मिलन का मतलब है कि आप कुछ चुनते नहीं हैं। एक बार अगर आपके पास चुनने का विकल्प खत्म हो जाता है तो फिर हर चीज आपके साथ यहीं मौजूद होती है
यो
ग का अर्थ है पूर्ण मिलन यानी हर चीज आपके अनुभव में एक हो गई । लेकिन तर्क यह कहता है कि बुराई या गंदगी को स्वीकार मत करो। तर्क और अध्यात्म का मिलन कैसे हो सकता है? कुछ समय पहले की बात है, किसी ने मुझसे पूछा, ‘योग का मतलब तो मिलन या एक होना है, फिर भेदभाव करने वाले मन का क्या करें? क्या ऐसा नहीं है कि जो बुरा है उसे हम छोड़ दें और जो अच्छा है, उसे अपना लें?’ देखिए, आज जो कीचड़ है, वही कल फूल बन सकता है, आज जो गंदगी है, वह कल फल बन सकती है, आज जो दुर्गंध है, वह कल सुगंध में बदल सकती है। अगर हम आपके निर्णय से चलें और सारी गंदगी को बाहर कर दें, तो आपके हिस्से में ना कभी फूल आएगा, न फल, और न ही खुशबू । इसीलिए सबको साथ लेकर चलने की सोच कोई पसंद का मुद्दा नहीं है – क्योंकि ब्रह्मांड की बनावट ऐसी है ही नहीं। आज जो इंसान है, वह कल मिट्टी हो जाएगा। अगर हमें आज ही यह समझ आ जाए, तो हम इसे योग कहते हैं। वरना अगर यही बात अंत में समझ आती है, तो हम इसे अंतिम संस्कार कहते हैं। आप जिसे ‘मैं’ कहते हैं, या जिसे एक ‘कीड़ा’, ‘केंचुआ’ या ‘गंदगी’ कहते हैं, बुनियादी रूप से सब एक ही हैं। आप भोजन और कीचड़ के साथ एक जैसा व्यवहार नहीं कर सकते, लेकिन बिना कीचड़ के भोजन पैदा हो ही नहीं सकता। आज जो भोजन है, वह कल
rat.com sulabhswachhbha
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समरण
अनूठे थे सरदार
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खेल
अनाथ आश्रम से पैरा एनियन गेमस में गोलड तक
वयक्तित्व
करुणा और संघर्ष की अक्षर दुननया
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डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2
/2016/71597 आरएनआई नंबर-DELHIN
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बदलते भारत का साप्ानि
‘ग्ीन ट्ेल’
लय ` 10/बर - 04 न्वंबर 2018 मू
्वर्ष-2 | अंक-46 |29 अक्टू
हिमालय को स्वच्छ ान बनाने का अहिय
के नलए ाती िै तो रोमांच के दी्वानों ा पय्ष्कों को काफी लुभ िै। प्व्षतारोनियों निमालय क्षेत्र की रमणीयत ी से यिां गंदगी फैल रिी । पर लोगों की लापर्वाि मुति करने भी यि बडा आकर्षण िै निमालय क्षेत्र को कचरा का ‘ग्ीन ट्ेल’ अनभयान की संसथा ‘इंनडया िाइकस’ की एक अनूठी पिल िै
फिर से गंदगी में बदल जाएगा। अगर सबको समाहित करने का भाव नहीं होगा, तो जीवन में कोई जैविक एकता होगी ही नहीं। इस जैविक एकता के अभाव में इंसान का संघर्ष अंतहीन हो जाता है। शुरू में यह एक मानसिक समस्या के रूप में शुरू होगा। बाद में आप जैसे-जैसे तरक्की करेंगे, आप भावनात्मक रूप से निराशा से भर उठेंगे। अगर आप यह नहीं जानते कि सहज रूप से जीवन के एक अंश के रूप में कैसे रहा जाए तो आप एक विकृत जीवन जी रहे हैं। आज पन्चानवे फीसदी लोगों में यह विकृति है कि वह सहजता से एक जगह नहीं बैठ सकते। लोगों को हर वक्त कुछ न कुछ करने के लिए चाहिए। क्या आपको लगता है कि सारी आपाधापी इसीलिए हो रही है, क्योंकि हर व्यक्ति इस बारे में पूरी तरह से स्पष्ट है कि वह क्या करना चाहता है? नहीं, वे लोग बाध्य हैं कि वे कुछ किए बिना रह ही नहीं सकते। दरअसल, अगर वे एक जगह बिना कुछ किए बैठे रह गए तो वे पागल हो जाएंगे। अगर यह एक सचेतन प्रक्रिया है- चाहे वह
स्वच्छ हिमालय, स्वस्थ दुनिया 1953 जब एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे ने हिमालय का सीना चीरते हुए दुनिया की सबसे उंची चोटी माउंट एवरेस्ट पहली बार फतह की थी, तब उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि आने वाले वक्त में दुनिया के बेहद मुश्किल और वीरान इलाके में लोग आकर गंदगी फैलाएंग।े लेकिन पिछले 6 दशकों में 4 हजार से अधिक पर्वतारोहियों ने एवरेस्ट फतह किया, लेकिन विजयगाथा के साथ एवरेस्ट पर कचरे का ढेर भी छोड़ गए। हालत ये है कि अब हिमालय को स्वच्छ बनाने का अभियान छोड़ने की जरूरत आन पड़ी है। करिया थापा, उत्तराखंड
खाना हो, बैठना हो, खड़े होना हो या फिर कुछ और करना हो, अगर यह सब सचेतन है तो कोई भी काम ठीक है। लेकिन अधिकतर मौकों पर यह आपके एक जगह नहीं बैठ पाने की वजह से बाध्यकारी प्रतिक्रिया होती है। ‘योग’ शब्द का मतलब है मिलन। मिलन का मतलब है कि आप कुछ चुनते नहीं हैं। एक बार अगर आपके पास चुनने का विकल्प खत्म हो जाता है तो फिर हर चीज आपके साथ यहीं मौजूद होती है। अगर आप अपने तार्किक मन से सवाल करेंगे कि तुम गंदगी और फल में से क्या चुनना चाहोगे? तो जाहिर सी बात है कि आपकी बुद्धि गंदगी को नहीं, बल्कि फल को चुनेगी। इसमें कोई बुराई नहीं है। लेकिन यह चयन सिर्फ आपकी गतिविधि में होगा। अगर आपके मन में गंदगी के प्रति नफरत है तो आपके जीवन रूपी बगीचे में कभी फल नहीं आएगा। हम गंदगी को स्वीकार तो करते हैं, लेकिन उसे अपनी थाली में नहीं चाहते। पेड़ को गंदगी पसंद है और हमें भी इस बात से कोई परेशानी नहीं है। तो बात जब गतिविधि की आती है तो हम चुनेंगे कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं। अगर चयन करना ही है तो सबसे पहले हर चीज यहां होनी चाहिए। गंदगी और फल, ईश्वर और शैतान दोनों को ही स्वीकार करना होगा। अब किसके साथ मैं क्या करता हूं, यह मेरी पसंद होनी चाहिए। अगर आपने अपने जीवन को यथावत ही स्वीकार कर लिया जो अपने आप समावेशी है, केवल तभी सच्चा योग संभव है, सच्चा मिलन संभव है।
सबसे उंचे हमारे सरदार यह सच है कि आजाद भारत के एकीकरण में पटेल के साथ-साथ का वीपी मेनन और लार्ड माउंटबेटेन और पहले प्रधानमंत्री नेहरू का भी योगदान था, लेकिन यह भी सच है पटेल के अथक प्रयासों के बिना 542 देशी रिसायतों का भारत में विलय और देश का एकीकरण संभव नहीं था। भारत की अंतरिम सरकार में जो रियासत डिपार्टमेंट बनाया गया, उसके सरदार पटेल मंत्री और वीपी मेनन सचिव थे। इन सबके प्रयासों से यह संभव हो पाया। लेकिन पटेल के अद्वितीय योगदान को कांग्रेस ने हमेशा भुलाया है। आज पीएम मोदी ने दुनिया में सबसे ऊंची उनकी प्रतिमा बनवाकर वह किया है जिसके पटेल हकदार थे। प्रिय सिंघल, गुजरात
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05 - 11 नवंबर 2018
लैंडस्केप फोटोग्राफर ऑफ द ईयर
ब्रिटेन के प्राकृतिक दृश्यों और उनकी सौंदर्य छाया का नयनाभिराम उत्सव साभार : बीबीसी
माउंटेन बाइकर का स्टंट, कॉर्नवाल -जोसफ फिट्जेराल्ड-पैट्रिक
मिल्की वे, सेंट माइकल्स माउंट, कोर्नवाल -मैरियो डी ओनोफोरियो
समुद्र तट पर कोहरे के बीच लाइट हाउस, ईस्ट ससेक्स रेशल
05 - 11 नवंबर 2018
फोटो फीचर
आइस स्पाइक्स, ग्लेंसो पीटर रोबॉटम बर्फानी तूफान, डर्बीशायर -जॉन फिन्ने
तूफानी थपेड़ों के बीच समुद्र में मछुआरे, कोर्मवाल -मिक ब्लेकी बर्फीली वादी में पेड़ का संघर्ष, साउथ लंकाशायर -ब्रेन केर
बर्फीली चादर से ढकी पर्वतीय चोटियां, आयरलैंड -रॉड आयरलैंड
घरों का दृश्य, ब्रिस्टल -एलेक्स वोल्फी-वारमैन
हिमपात के बीच नॉर्डिक नोयर सिनेमा, नॉरफोक -एंड्रयू मिडग्ले
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मिसाल
05 - 11 नवंबर 2018
एक कैफे ने दिया अशक्तों को सशक्त बनने का अवसर
मुंबई के अर्पण कैफे की खासियत यहां के व्यजनों में तो है ही, लेकिन इसकी लोकप्रियता के पीछे यहां काम करने वाले अशक्त हैं, जिन्हें सशक्त करने का जिम्मा कैफे के संचालकों ने उठाया है
दे
काईद नजमी
श की आर्थिक राजधानी मुंबई में धनाढ्य लोगों के रिहायशी इलाका जुहू में अर्पण कैफे को अभी खुले हुए तीन महीने भी नहीं हुए होंगे, लेकिन इसकी चर्चा चारों तरफ होने लगी है। अनेक लोग इस कैफे के नियमित ग्राहक बन गए हैं। इस कैफे की खासियत यह है कि इसमें काम करने वाले ज्यादातर लोग किसी न किसी शारीरिक अशक्तता से पीड़ित हैं, मगर उनके काम में उनकी शारीरिक अशक्तता आड़े नहीं आ रही है। कैफे में रोजगार मिलने से वह आर्थिक रूप से सशक्त तो हुए ही हैं, बल्कि कैफे की कामयाबी के श्रेय के भी वे हकदार हैं। कैफे में कार्यरत 19 कर्मचारी शारीरिक रूप से अशक्त हैं, लेकिन वे सप्ताह में छह दिन 30 घंटे काम करते हैं। कैफे की संस्थापक और मालिकन डॉ. सुषमा नागरकर ने बताया, ‘यह सपने जैसा था। इसकी योजना बनाने में करीब एक साल का वक्त लग गया, लेकिन उचित जगह मिलने और क्राउडफंडिंग से इसके लिए धन जुटाने के बाद हमने आखिरकार दो अगस्त को सपने को हकीकत में बदला। मेरे पास 19 कर्मचारी हैं जिनमें अधिकतर पूर्णकालिक हैं। इन कर्मचारियों में मेरी बड़ी बिटिया भी शामिल है। सभी कर्मचारी किसी न किसी शारीरिक दुर्बलता से पीड़ित हैं।’ मनोवैज्ञानिक नागरकर दो बेटियों की मां हैं। उनकी बेटी आरती आटिज्म रोग से पीड़ित है। उनकी दूसरी बेटी का नाम दिव्या है। नागरकर जब विदेश में रहती थीं तभी से ही वह कुछ विशेष करना चाहती थीं, जिससे अशक्तता के पीड़ित लोगों का सशक्तीकरण हो। शुरुआत में करीब डेढ़ साल पहले उन्होंने टिफिन सेवा शुरू की थी, जिसमें वह काफी सफल रहीं। यह कार्य उन्होंने अपने एक दर्जन कर्मचारियों को लेकर शुरू किया था। सभी कर्मचारी आटिज्म और डाउन सिंड्रोम जैसी मनोव्यथा से पीड़ित हैं। इन रोगों से पीड़ित लोग बौद्धिक रूप से दुर्बल होते हैं और जिसका कोई इलाज नहीं है। सांता क्रूज वेस्ट स्थित एसएनडीटी वुमंस यूनिवर्सिटी के जुहू परिसर के सामने स्थित अर्पण कैफे को खासतौर से उन्हीं लोगों के लिए डिजाइन किया गया है। नागरकर ने कहा, ‘सीमित लेकिन विशिष्ट व्यंजन-सूची के अलावा इसमें कर्मचारियों के लिए काफी जगह है, जहां वे आराम से चल-फिर सकते हैं। उनकी सुरक्षा के लिए सब कुछ बिजली से चालित है। वे आराम से पांच घंटे काम कर सकते हैं। साथ ही, उद्योग के मानक के अनुरूप उनको पारिश्रमिक मिलता है।’
नागरकर ने बताया कि इन कर्मचारियों की उम्र 23-50 साल के बीच है। वे नाममात्र के साक्षर हैं, लेकिन पूरे समर्पण के साथ सारा कुछ संभालने में सक्षम बन गए हैं। नागरकर ने यश चैरिटेबल ट्रस्ट (वाईसीटी) के तत्वावधान में भोजनालय खोला। वह इस वाईसीटी
की न्यासी हैं और इसके तहत बहुआयामी सामाजिक कार्य करती हैं। मुस्कराते हुए उन्होंने बताया, ‘मैं 15 साल अमेरिका में बिताने के बाद वापस भारत आई हूं। यहां मैंने विकासात्मक अशक्ततता से पीड़ित लोगों को सामाजिक और राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाने के लिए 2014 में वाईसीटी की शुरुआत की।’ नागरकर को लगता है कि अशक्त लोगों में काफी सामर्थ्य होता है, लेकिन उनको अवसर नहीं मिल पाता है। इसीलिए उन्होंने छोटे स्तर पर उनको मदद करने के लिए टिफिन सेवा और अर्पण कैफे की शुरुआत की, जिससे उनको सक्षम बनाया जा सके और वे अपने और अपने परिवारों की आजीविका चलाने में सहयोग कर सकें। आरंभ में कर्मचारी और संरक्षकों में संवादहीनता थी, लेकिन बाद में उनके बीच बेहतर समझदारी बनी और सब कुछ सुचारु चलने लगा। साथ ही, ग्राहकों की ओर से भी इस पहल को सराहना मिलने लगी। अर्पण कैफे सुबह आठ बजे से लेकर अगले 12 घंटे तक खुला रहता है। कैफे में साधारण लेकिन खास तौर से तैयार किया गया व्यंजन मिलता है। यहां बर्गर, पिज्जा, गर्म व शीतल पेय पदार्थ जैसे
कैफे के सभी कर्मचारी आटिज्म और डाउन सिंड्रोम जैसी मनोव्यथा से पीड़ित हैं। इन रोगों से पीड़ित लोग बौद्धिक रूप से दुर्बल होते हैं और जिसका कोई इलाज नहीं है 30 व्यंजन मिलते हैं, जो शारीरिक रूप से अशक्त कर्मचारी आसानी तैयार कर लेते हैं। कैफे के व्यंजन के शौकीन मिनी पी. मेनन ने कहा, ‘नाश्ते के लिए यहां आने पर जब मैंने एक कर्मचारी को ऑर्डर लेकर पूरी सक्षमता से फटाफट जलपान परोसते देखा तो हैरान रह गया। बाद में मुझे मालूम हुआ कि सभी कर्मचारी शारीरिक रूप से अशक्त हैं।’ नागरकर ने लोगों से ऐसे कार्यो के लिए आगे आने की अपील की जिनसे विकासात्मक अशक्तता से पीड़ित लोगों को लाभ मिल सके और वे आत्मनिर्भर बनकर सम्मान की जिंदगी जी सकें। उन्होंने कहा, ‘मैंने ऐसा ही कार्य अमेरिका में करने को सोचा था ताकि सरकार से पर्याप्त धन प्राप्त हो। लेकिन यहां आने का मैंने फैसला लिया क्योंकि भारत में अधिक जरूरत है। हालांकि यह शुरुआत है, लेकिन हम परिणामों से संतुष्ट हैं और आगे इसका विस्तार करने के बारे में सोच सकते हैं।’
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विज्ञान
जहरीले कीटनाशकों से बचाने वाला जेल तैयार
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बंेगलुरु स्थित इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल बायोलॉजी एंड रीजनरेटिव मेडिसिन (इनस्टेम) के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा जेल बनाया है जिसके इस्तेमाल से किसानों पर कीटनाशकों का दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा
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तों में रसायनों का छिड़काव करते समय अधिकतर किसान कोई सुरक्षात्मक तरीका नहीं अपनाते हैं। इस कारण कीटनाशकों में मौजूद जहरीले पदार्थों के संपर्क में आने के कारण उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। गंभीर मामलों में उनकी जान तक चली जाती है। भारतीय वैज्ञानिकों ने अब एक ऐसा सुरक्षात्मक जेल तैयार किया है, जो कीटनाशकों के दुष्प्रभाव से किसानों को बचाने में मददगार हो सकता है। पॉली-ऑक्सिम नामक इस जेल को त्वचा पर लगा सकते हैं, जो कीटनाशकों एवं फफूंदनाशी दवाओं में मौजूद जहरीले रसायनों समेत व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले खतरनाक ऑर्गो फॉस्फोरस यौगिक को निष्क्रिय कर सकता है। इस तरह हानिकारक रसायनों का दुष्प्रभाव मस्तिष्क और फेफड़ों में गहराई तक नहीं पहुंच पाता। चूहों पर किए गए परीक्षणों में इस जेल को प्रभावी पाया गया है और शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि जल्द ही मनुष्यों में भी इसका परीक्षण किया जा सकता है। कीटनाशकों में मौजूद रसायनों के संपर्क में आने से तंत्रिका तंत्र में मौजूद असिटल्कोलिनेस्टरेस
एंजाइम प्रभावित होता है। यह एंजाइम न्यूरोमस्क्यूलर कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। त्वचा के जरिए कीटनाशकों के शरीर में प्रवेश करने पर जब इस एंजाइम की कार्यप्रणाली बाधित होती है तो तंत्रिका तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिससे मनुष्य संज्ञानात्मक रूप से अक्षम हो सकता है और गंभीर मामलों में मौत भी हो सकती है। इस जेल को
चूहों पर लगाने के बाद जब उन्हें घातक एमपीटी कीटनाशक के संपर्क में छोड़ा गया तो उनके शरीर में मौजूद असिटल्कोलिनेस्टरेस एंजाइम के स्तर में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला। इससे वैज्ञानिकों को यकीन हो गया कि यह जेल त्वचा के जरिए शरीर में कीटनाशकों के प्रवेश को रोक सकता है। इस जेल को बंेगलुरु स्थित इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम
सेल बायोलॉजी एंड रीजनरेटिव मेडिसिन (इनस्टेम) के शोधकर्ताओं ने न्यूक्लियोफिलिक पॉलिमर से बनाया है। वैज्ञानिकों ने अध्ययन के दौरान पाया कि पॉली-ऑक्सीम जेल से उपचारित चूहों पर कीटनाशकों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, जबकि जिन चूहों पर जेल का उपयोग नहीं किया गया था, उन पर जहर का दुष्प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा गया। यह अध्ययन शोध पत्रिका साइंस एडवांसेस में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं के अनुसार, ‘पॉली-ऑक्सीम जेल की एक पतली परत त्वचा पर ऑर्गेनोफॉस्फेट को हाइड्रोलाइज कर सकती है। इसके उपयोग से रक्त और मस्तिष्क, फेफड़े, यकृत तथा दिल जैसे सभी आंतरिक अंगों में असिटल्कोलिनेस्टरेस के अवरोध को रोका जा सकता है।’ अध्ययन में यह भी पाया गया है कि यह जेल आमतौर पर उपयोग होने वाले विभिन्न कीटनाशकों और कवकनाशी रसायनों के खिलाफ अवरोध पैदा करने में प्रभावी हो सकता है। यह जेल कामकाज में शारीरिक बाधा नहीं पहुंचाता और ऑर्गेनोफॉस्फेट को निष्क्रिय करने के लिए प्रमुख घटक के रूप में कार्य करता है। लंबे समय तक पराबैंगनी प्रकाश के संपर्क में रहने और 20-40 डिग्री तापमान के बावजूद ऑक्सीम कई ऑर्गेनोफॉस्फेट अणुओं को एक के बाद एक हाइड्रोलाइज करके तोड़ सकता है। शोध टीम के एक वरिष्ठ सदस्य डॉ. प्रवीण कुमार वेमुला ने बताया कि फिलहाल हम जानवरों पर सुरक्षा से जुड़े व्यापक अध्ययन कर रहे हैं, जो चार महीने में पूरा हो जाएगा। इसके बाद मनुष्यों में इस जेल के प्रभाव को दर्शाने के लिए हम एक प्रारंभिक अध्ययन की योजना बना रहे हैं। कीटनाशकों के कारण विषाक्तता की समस्या को समझने के लिए, शोधकर्ताओं ने कई किसानों और उनके परिवारों के साथ बातचीत की है। उनमें से किसी के पास सुरक्षात्मक साधनों तक कोई पहुंच नहीं थी। कई किसानों ने बताया कि वे कीटनाशकों का छिड़काव करने के बाद दर्द महसूस करते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, किसानों ने कीटनाशकों के जोखिम को रोकने के लिए कम लागत वाले तरीकों को अपनाने की इच्छा व्यक्त की है। शोधकर्ताओं में डॉ. वेमुला के अलावा केतन थोराट, सुभाषिनी पांडेय, संदीप चंद्रशेखरप्पा, निकिता वाविल्थोटा, अंकिता ए. हिवले, पूर्ण शाह, स्नेहा श्रीकुमार, शुभांगी उपाध्याय, तेनजिन फुन्त्सोक, मनोहर महतो, किरण के. मुदनाकुदुनागराजु और ओमप्रकाश शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर)
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व्यक्तित्व
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थॉमस एडिसन
अथक लगन और प्रेरणा का विज्ञान
वि
एसएसबी ब्यूरो
ज्ञान का क्षेत्र और आविष्कारों की दुनिया हमेशा ही रोमांच से भरी है। वैज्ञानिकों की कुशाग्रता ने जहां दुनिया के सामने एक से बढ़कर एक आविष्कार किए हैं, वहीं उनकी जिंदगी की असाधारणता सबको प्रेरित भी करती है। ऐसे ही एक महान वैज्ञानिक हैं- थॉमस अल्वा एडिसन। एडिसन की चर्चा ने एक सदी से ज्यादा की यात्रा पूरी कर ली है, पर अब भी न तो उनकी लोकप्रियता कम हुई और न ही उनके प्रेरक जीवन प्रसंगों से सीखने वालों की गिनती।
खास बातें
स्कूल में सिर्फ तीन महीने तक पढ़ाई की कई वर्षों तक मां ने घर पर ही एडिसन को पढ़ाया 1093 पेटेंट उन्होंने अपने समय में अपने नाम से कराए
महान अमेरिकी अाविष्कारक एवं व्यवसायी एडिसन ने फोनोग्राफ एवं बिजली के बल्ब सहित अनेक आविष्कार किए। भारी मात्रा में उत्पादन के सिद्धांत एवं विशाल टीम को लगाकर अन्वेषण कार्य को आजमाने वाले वे पहले वैज्ञानिक थे। इसीलिए एडिसन को ही प्रथम औद्योगिक प्रयोगशाला स्थापित करने का श्रेय जाता है। अमेरिका में अकेले 1093 पेटेंट कराने वाले एडिसन विश्व के सबसे महान अविष्कारकों में गिने जाते हैं। उनका जन्म अमेरिका के ओहायो राज्य के मिलान नगर में 11 फरवरी 1847 को हुआ था। बचपन से ही एडिसन ने कुशाग्रता, जिज्ञासु प्रवृति और अध्यवसाय का परिचय दिया। छह वर्ष तक उन्हें माता ने घर पर ही पढ़ाया। सार्वजनिक विद्यालय में उनकी शिक्षा केवल तीन मास हुई तो भी एडिसन ने ह्यूम, सीअर, बटेन तथा गिबर के महान ग्रंथों एवं ‘डिस्कवरी ऑफ साइंस’ का अध्ययन 10वें जन्मदिन तक पूर्ण कर लिया था। वे 12 वर्ष की आयु में फलों और समाचार-पत्रों का धंधा करके परिवार को प्रतिदिन एक डॉलर की सहायता देने लगे।
तार कर्मचारी के रूप में नौकरी
तार प्रेषण में निपुणता प्राप्त कर 20 वर्ष की उम्र तक एडिसन ने तार कर्मचारी के रूप में नौकरी की। जीविकोपार्जन से बचे समय को एडिसन प्रयोगों और परीक्षणों में लगाते थे। 1869 में उन्होंने अपने
एडिसन की चर्चा ने एक सदी से ज्यादा की यात्रा पूरी कर ली है, पर अब भी न तो उनकी लोकप्रियता कम हुई है और न ही उनके प्रेरक जीवन प्रसंगों से सीखने वालों की गिनती सर्वप्रथम आविष्कार विद्युत मतदान गणक का पेटेंट कराया। नौकरी छोड़कर प्रयोगशाला में आविष्कार करने का निश्चय कर निर्धन एडिसन ने अदम्य आत्मविश्वास का परिचय दिया। 1870-76 के बीच उन्होंने अनेक आविष्कार किए। एक ही तार पर चार छह संदेश अलग-अलग भेजने की विधि खोजी, स्टॉक एक्सचेंज के लिए तार छापने की स्वचालित मशीन को सुधारा और बेल
एडिसननामा
पूरा नाम: थॉमस अल्वा एडिसन जन्म: 11 फरवरी 1847, मिलान, ओहायो, अमेरिका मृत्यु: 18 अक्टूबर, 1931 (उम्र 84) वेस्ट ऑरेंज, न्यूजर्सी, अमेरिका जीवनसाथी मैरी स्टिलवेल (वि. 1871–84) मीना मिलर (वि. 1886–1931) ख्याति: बिजली के बल्ब के आविष्कारक के रूप में सर्वाधिक ख्याति प्रसिद्ध उक्ति: प्रतिभाशाली व्यक्ति एक प्रतिशत प्रेरणा और निन्यानवे प्रतिशत पसीने से बनता है – थॉमस अल्वा एडिसन, हार्पर पत्रिका (सितंबर 1932 संस्करण)
टेलीफोन यंत्र का विकास किया।
‘साइंटिफिक अमेरिकन’ पत्रिका में लेख
एडिसन ने 1875 में ‘साइंटिफिक अमेरिकन’ पत्रिका में इथरीय बल पर खोजपूर्ण लेख प्रकाशित किया। 1878 में फोनोग्राफ मशीन पेटेंट कराई। 21 अक्टूबर 1879 को एडिसन ने 40 घंटे से अधिक समय तक बिजली से जलनेवाला निर्वात बल्ब विश्व को भेंट किया। 1883 में एडिसन ने ऐसे प्रभाव की खोज की, जो कालांतर में वर्तमान रेडियो बॉल्व का जन्मदाता सिद्ध हुआ। अगले 10 वर्षो में एडिसन ने प्रकाश, ऊष्मा और शक्ति के लिए विद्युत उत्पादन और वितरण प्रणाली के साधनों और विधियों पर प्रयोग किए। एडिसन ने भूमि के नीचे केबल के लिए विद्युत के तार को रबड़ और कपड़े में लपेटने की पद्धति खोजी। डायनामो और मोटर में सुधार किए, यात्रियों और माल ढोने के लिए विद्युत रेलगाड़ी तथा चलते जहाज से संदेश भेजने और प्राप्त करने की विधि का आविष्कार किया। एडिसन ने एल्कलाइन बैटरी भी तैयार की। उन्होंने 1891 में चलचित्र कैमरा पेटेंट करवाया एवं इन चित्रों को प्रदर्शित करने के लिए किनैटोस्कोप का आविष्कार किया।
जलसेना सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष
प्रथम विश्वयुद्ध में एडिसन ने जलसेना सलाहकार बोर्ड का अध्यक्ष बनकर युद्धोपयोगी आविष्कार किए। पनामा पैसेफिक प्रदर्शनी ने 21 अक्टूबर 1916 को एडिसन दिवस का आयोजन करके विश्व कल्याण के लिए सबसे अधिक अाविष्कारों के इस सर्जक को सम्मानित किया। अनवरत कान के दर्द
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व्यक्तित्व
एक हजार से ज्यादा पेटेंट
थॉमस अल्वा एडिसन यानी विज्ञान की दुनिया का वह नाम, जिसने अकेले 1,093 आविष्कार पेंटेट कराए। इनमें सर्वप्रमुख हैंसीमेंट
पेटेंट : 22 नवंबर 1904 सीमेंट पहले से अस्तित्व में था, लेकिन एडिसन ने उसे सुधरा हुआ रूप दिया। उनकी कंपनी एडिसन पोर्टलैंड सीमेंट ने व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए उत्पाद मुहैया कराया।
इलेक्ट्रोग्राफिक वोट रिकॉर्डर
असाधारण मां
पेटेंट : 1 जून 1869 ये एडिसन का पहला ऐसा पेटेंट था, जिसे विकसित करने का पूरा श्रेय अकेले उन्हें जाता है। इस डिवाइस के जरिए हां-न लिखने के बजाए सिर्फ बटन दबाकर अपना वोट दे सकते थे। इस पर यस और नो का बटन बना होता था, जिसे दबाना होता था।
ऑटोमेटिक टेलीग्राफ
पेटेंट : 22 जून 1869 टेलीग्राफ को बेहतर बनाने के लिए एडिसन ने एक दूसरा टेलीग्राफ तैयार किया। इसका डिजाइन छेद करने वाली कलम पर आधारित था। इस नई तकनीक के जरिए शब्दों को भेजने की रफ्तार प्रति मिनट बढ़ गई। ये 25-40 से लेकर 1,000 तक पहुंच गई। एडिसन ने ही स्पीकिंग टेलीग्राफ का भी निर्माण किया था।
इलेक्ट्रिक लाइटिंग सिस्टम
पेटेंट : 22 मार्च 1881 एडिसन ने ही इलेक्ट्रिक लाइट का सिस्टम डिजाइन किया था, ताकि समान मात्रा में बिजली डिवाइस तक पहुंचे। उन्होंने अपना पहला स्थानीय स्टेशन मैनहट्टन में स्थापित किया था।
इलेक्ट्रिक जेनरेटर
पेटेंट : 18 अक्टूबर 1881 एडिसन ने एक मोटर का डिजाइन तैयार किया था। ये डिवाइस में बिजली की सप्लाई को नियंत्रित करने के लिए तैयार किया गया था, जिसे इलेक्ट्रिक जेनरेटर का नाम दिया गया।
मोटोग्राफ (लाउड स्पीकिंग टेलीफोन)
पेटेंट : 29 मई 1883 इस डिवाइस के जरिए बिजली के करंट को ज्यादा से कम करने के लिए तैयार किया गया, जिसके जरिए निर्माण के स्तर में परिवर्तन किए जा सकें। जैसे डिमर लाइट और लाउड स्पीकर का निर्माण।
ओर सेपरेटर
पेटेंट : 26 मई 1889 एडिसन ने ही चुंबकीय और गैर चुंबकीय सामान को अलग करने वाली डिवाइस भी डिजाइन की थी। इसके बाद उन्होंने मिलिंग तकनीक विकसित की थी, जिसके भारी-भरकम खर्च के चलते उसका परित्याग करना पड़ा।
एल्कलाइन बैटरी
पेटेंट : 31 जुलाई 1906 लोहे और निकल की बैटरी के प्रयोगों के बाद एडिसन ने एल्कलाइन समाधान खोजा, जिसके जरिए अधिक देर तक चलने वाली बैटरी का निर्माण किया गया। उद्योग जगत ने एडिसन के नए प्रोडक्ट को हाथों-हाथ लिया और उनकी जिंदगी के आखिरी वर्षें में ये उनके सफल आविष्कारों में से एक है।
प्रैक्टिकल इलेक्ट्रिक लैंप
पेटेंट की तारीख: 27 जनवरी 1880 एडिसन का कार्बन फिलामेंट बल्ब व्यावसायिक तौर पर पहली बार इलेक्ट्रिक लाइट के जरिए पेश किया गया। पिछले संस्करणों में स्थायीपन नहीं आ सका था और उनमें काफी महंगी सामग्री प्लेटिनम का इस्तेमाल हुआ था। से पीड़ित रहने पर भी एडिसन ने चकित कर देने वाली सफलताएं पाईं। मृत्यु को भी उन्होंने गुरुतर प्रयोगों के लिए
प्रयोगशाला के पदार्पण के रूप में समझा। ‘मैंने अपना जीवन कार्य पूर्ण किया। अब मैं दूसरे प्रयोग के लिए तैयार हूं’, इस भावना के साथ विश्व की
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मां ने बचपन में बेटे के हित के लिए एक झूठ बोला और इस झूठ ने मंदबुद्धि कहे जाने वाले एक बालक को महान वैज्ञानिक बना दिया
डिसन ने अपनी जिंदगी में भले कई असाधारण कार्य और आविष्कार किए पर जिस तरह का उनका बचपन बीता, उसे देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल था कि वे आगे चलकर महान वैज्ञानिक बनेंगे और लोग उनकी जिदंगी से प्रेरणा लेंगे। बताते हैं कि एक बार एडिसन स्कूल से घर पहुंचे और अपनी मां को एक कागज दिया। एडिसन ने मां से कहा, ‘मेरी शिक्षिका ने यह पत्र दिया है और कहा है कि सिर्फ तुम्हारी मां ही इसे पढ़े। मां, इसमें क्या लिखा है?’ पत्र पढ़ते हुए मां की आंखों में आंसू आ गए। बेटे के सामने मां पत्र को जोर-जोर से पढ़ने लगी। मां ने पत्र में लिखे को पढ़ते हुए कहा, ‘आपका बेटा जीनियस है। हमारा स्कूल बहुत छोटा है। हमारे पास इसको पढ़ाने लायक अच्छे शिक्षक भी नहीं
हैं। कृपया आप इसे खुद पढ़ाएं।’ उस दिन के बाद से जिंदा रहने तक मां ने एडिसन को खुद ही पढ़ाया। मां की मृत्यु के कई वर्ष बाद थॉमस एडिसन दुनिया के महानतम आविष्कारकों में गिने जाने लगे। मां के गुजर जाने के बाद एक दिन एडिसन को उसकी शिक्षिका का लिखा हुआ वह पत्र मिला। एडिसन ने पत्र खोलकर पढ़ा तो वे हैरान रह गए। उसमें लिखा था, ‘आपका बेटा दिमागी तौर पर कमजोर है। हम उसे नहीं पढ़ा सकते। हम उसे स्कूल से निकाल रहे हैं।’ पत्र में लिखी सच्चाई पढ़कर थॉमस इमोशनल हो गए। फिर उन्होंने अपनी डायरी में लिखा, ‘थॉमस ए. एडिसन, जो दिमागी तौर पर कमजोर बच्चा था, उसकी मां ने उसे इस सेंचुरी का सबसे जीनियस इंसान बना दिया।’
भारी मात्रा में उत्पादन के सिद्धांत एवं विशाल टीम को लगाकर अन्वेषण कार्य को आजमाने वाले वे पहले वैज्ञानिक थे। इसीलिए एडिसन को ही प्रथम औद्योगिक प्रयोगशाला स्थापित करने का श्रेय जाता है इस महान विभूति ने 18 अक्टूबर 1931 को आखिरी सांस ली।
सफलता-असफलता और एडिसन
एडिसन बहुत ही मेहनती थे। उन्हें बल्ब का आविष्कार करने के लिए कई प्रयोग करने पड़े, तब जाकर उन्हें सफलता मिली थी। एक बार जब वह बल्ब बनाने के लिए प्रयोग कर रहे थे तभी एक व्यक्ति ने उनसे पूछा, आपने करीब एक हजार प्रयोग किए लेकिन आपके सारे प्रयोग असफल रहे और आपकी मेहनत बेकार हो गई। क्या आपको दुख नहीं होता? तब एडिसन ने कहा, मैं नहीं समझता कि मेरे एक हजार प्रयोग असफल हुए हैं। मेरी मेहनत बेकार
नहीं गई, क्योंकि मैंने एक हजार प्रयोग करके यह पता लगाया है कि इन एक हजार तरीकों से बल्ब नहीं बनाया जा सकता। मेरा हर प्रयोग, बल्ब बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है और मैं अपने प्रत्येक प्रयास के साथ एक कदम आगे बढ़ता हूं। कोई भी सामान्य व्यक्ति होता तो वह जल्द ही हार मान लेता लेकिन थॉमस एडिसन ने अपने प्रयास जारी रखे और हार नहीं मानी। आखिरकार एडिसन की मेहनत रंग लाई और उन्होंने बल्ब का आविष्कार करके पूरी दुनिया को रोशन कर दिया। यह थॉमस एडिसन का विश्वास ही था जिसने आशा की किरण को बुझने नहीं दिया नहीं और पूरी दुनिया को बल्ब के द्वारा रोशन कर दिया।
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पुस्तक अंश
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मध्य एशिया
मध्य एशियाई देशों के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री की चर्चाओं में आतंकवाद का मुकाबला, रक्षा, आर्थिक और ऊर्जा संबंध और कनेक्टिविटी बढ़ाने जैसे मुद्दे बार-बार दोहराए जाने वाले विषय थे। पी. स्टोबडन, रक्षा अध्ययन और विश्लेषण इंस्टीट्यूट में वरिष्ठ वैज्ञानिक
कजाकिस्तान और भारत के सीईओ और व्यापारिक नेताओं के साथ एक गोलमेज बातचीत में प्रधानमंत्री मोदी
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ताशकंद हवाई अड्डे के मीटिंग हॉल में उज्बेकिस्तान के पीएम शावकत मिर्जियायेव मिरमोनोविच से मुलाकात करते हुए प्रधानमंत्री मोदी
7 जुलाई, 2015: उज्बेकिस्तान के ताशकंद में स्वतंत्रता और मानवता के राष्ट्रीय स्मारक में उज्बेकिस्तान के प्रधानमंत्री शावकत मिर्जियायेव मिरमोनोविच के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
धानमंत्री मोदी ने 6 से 13 जुलाई, 2015 के बीच पांच मध्य एशियाई देशों - उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान तथा रूस - के आठ दिवसीय दौरे की शुरुआत की। 6 जुलाई को उनकी यात्रा का पहला पड़ाव उज्बेकिस्तान था, जहां वह राष्ट्रपति इस्लायम करिमोव से मिले और रक्षा और साइबर सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए। उज्बेकिस्तान ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के नियमित सदस्य बनने के लिए भारत के प्रयासों का भी समर्थन किया। उनका अगला पड़ाव 7 जुलाई को कजाकिस्तान था, जहां वह राष्ट्रपति नूरसुल्तान नजरबायेव से मिले। इस यात्रा के परिणामस्वरूप कजाक कंपनियां भारत में बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश करने और रक्षा सहयोग को अगले स्तर पर ले जाने के लिए सहमत हुईं। यात्रा का सबसे बड़ा हासिल यह था कि कजाकिस्तान भारत को 2015 और 2019 के बीच 5,000 टन यूरेनियम की आपूर्ति
करने के लिए सहमत हुआ। कजाकिस्तान, दुनिया का सबसे बड़ा यूरेनियम उत्पादक देश है। कजाकिस्तान से प्रधानमंत्री मोदी 8 जुलाई को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए रूस के उफा गए। इसके बाद उन्होंने अपने मध्य एशिया के दौरे को फिर से शुरू किया। 10 और 11 जुलाई को मोदी तुर्कमेनिस्तान गए। मोदी ने अश्गाबात में राष्ट्रपति गुरबांगल ु ी बर्दीमुखममेडोव के साथ बातचीत की। आतंकवाद और नशीली दवाओं की तस्करी के खिलाफ लड़ने, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, खेल और पर्यटन जैसे प्रमुख क्षेत्रों में पारस्परिक सहयोग के लिए कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। 11 से 12 जुलाई के बीच किर्गिस्तान में मोदी ने अपने किर्गिज समकक्ष तेमिर सरियेव से मुलाकात की। दोनों पक्षों ने रक्षा, संस्कृति, आतंकवाद और चरमपंथ और सैन्य शिक्षा और प्रशिक्षण जैसे मुद्दों पर पारस्परिक सहयोग के लिए समझौते किए। मध्य एशिया दौरे का अंतिम पड़ाव 12 और 13 जुलाई को ताजिकिस्तान था।
भारत ताजिकिस्तान के साथ गहरे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सभ्यता से जुड़े संबंध साझा करता है, किर्गिस्तान और भारत साझा लोकतांत्रिक मूल्यों के बंधन से भी एकजुट होते हैं। चूंकि भारत मध्य एशिया के साथ अपने संबंधों को मजबूत बनाता है, तुर्कमेनिस्तान इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। भारत और कजाकिस्तान ने क्षेत्रीय शांति, कनेक्टिविटी और एकीकरण समेत कई अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर दृष्टिकोण साझा किए हैं, इनमें संयुक्त राष्ट्र में सुधार और आतंकवाद से मुकाबला भी शामिल है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मध्य एशियाई गणराज्यों के दौरे के दौरान ट्वीट्स और टिप्पणियां प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति इमोमाली राहमन के साथ बातचीत की। दोनों देशों ने मानव संसाधन विकास और संस्कृति के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
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पुस्तक अंश
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन - रूस
तुर्कमेनिस्तान के पहले राष्ट्रपति के मकबरे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
ताजिकिस्तान क राजधानी दुशांबे में स्थित कुआरघन तैप्पा् में भारत-ताजिक मैत्री अस्पताल में प्रधानमंत्री मोदी के आगमन पर उनका स्वागत
प्र
उफा, रूस: ब्रिक्स नेताओं और आमंत्रित देशों के नेताओं के साथ एक सामूहिक तस्वीर में प्रधानमंत्री मोदी
कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में कजाक - भारत बिजनेस फोरम में शामिल होते पीएम मोदी
जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन देशों में एक व्यस्त राजनयिक यात्रा की है, नई दिल्ली को उम्मीद है कि इन देशों में से प्रत्येक के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बड़ा प्रोत्साहन मिलेगा। आने वाली यात्राएं, जिसमें से कुछ को ‘गेम चेंजर’ के रूप में वर्णित किया
जा रहा है, भारत की विदेश नीति निर्धारित करने वाली अफसरशाही के बीच इस बढ़े हुए अहसास के साथ आईं कि सरकार को हमारे दूर के पड़ोस में स्थित इन देशों के साथ अधिक बारीकी और गहराई से जुड़ने की जरूरत है। पारुल चंद्र, स्तंभकार
तुर्कमेनिस्तान के अश्गाबात में महात्मा गांधी की अर्धप्रतिमा का अनावरण करते हुए प्रधानमंत्री मोदी
धानमंत्री मोदी रूसी शहर उफा में 7 वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए 8 जुलाई को रूस गए। शिखर सम्मेलन में, प्रधानमंत्री मोदी ने एशिया में आतंकवाद से लड़ने के लिए वैश्विक रणनीति तैयार करने की आवश्यकता पर जोर दिया, साथ ही सदस्य देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिए नियमों और प्रतिबंधों को कम करने की वकालत की। शिखर सम्मेलन में 3 स्तरीय बातचीत हुई, जिनमें ब्रिक्स प्रतिनिधिमंडल के नेताओं और प्रत्येक ब्रिक्स सदस्य देशों के पांच वरिष्ठ व्यावसायिक व्यक्तियों वाली बिजनेस काउंसिल के बीच एक बैठक शामिल थी। इसके बाद एक प्रतिबंधित सत्र आयोजित किया गया, जहां नेताओं ने एजेंडा और विस्तारित प्रतिनिधिमंडल वाले सार्वजनिक सत्र में चर्चा की। अंत में, शिखर चर्चाओं के परिणामस्वरुप तीन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए। प्रतिबंधित सत्र में प्रधानमंत्री मोदी ने हस्तक्षेप किया, जिसमें उन्होंने दस विशिष्ट प्रस्तावों और पहलों को आगे बढ़ाया जो फरवरी 2016 से दिसंबर 2016 तक ब्रिक्स के अध्यक्ष के रूप में भारत द्वारा उठाए जाएंगे। इन पहलों में वार्षिक ब्रिक्स व्यापार मेला, रेलवे अनुसंधान केंद्र, सर्वोच्च लेखापरीक्षा संस्थानों के बीच सहयोग, ब्रिक्स डिजिटल पहल, राज्य और स्थानीय सरकार का एक मंच, शहरों के बीच सहयोग, एक ब्रिक्स स्पोर्ट्स काउंसिल और एक वार्षिक ब्रिक्स स्पोर्ट्स सम्मलेन शामिल था। इसके अलावा, भारत के ब्रिक्स अध्यक्षीय कार्यकाल के दौरान ब्रिक्स अंडर -17 फुटबॉल टूर्नामेंट की मेजबानी करने के लिए भारत के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी गई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही अपनी सरकार के ‘सुधार संबंधी एजेंडे’ का समर्थन करने के लिए गैर-एनडीए दलों को आश्वस्त करने में बहुत सफल नहीं हो पा रहे हों, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर वह यह काम बखूबी कर रहे हैं और आपसी हितों को बढ़ावा देने में बेहद शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं। इसीलिए, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि उन्होंने रूस के उफा में पांच देशों के ब्रिक्स के 7 वें शिखर सम्मेलन में इस कम को जारी रखा। संतोष तिवारी फाइनेंशियल एक्सप्रेस में यह भी निर्णय लिया गया कि ब्रिक्स के नए विकास बैंक की पहली प्रमुख परियोजना स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में होनी चाहिए और एक ब्रिक्स फिल्म फेस्टिवल होना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों और आतंकवाद के खिलाफ ब्रिक्स सदस्य देशों के बीच सहयोग बढ़ाने जैसे मुद्दों को लेकर संयुक्त राष्ट्र में सहयोग पर केंद्रित रहे। इस शिखर सम्मेलन के बाद ब्रिक्स घोषणा पत्र जारी किया गया। भारत को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के नियमित सदस्य के रूप में भी स्वीकार किया कर लिया गया और यह सहमति बनी कि अंततः 2016 में उसे पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल किया जाएगा। (अगले अंक में जारी)
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मिसाल
05 - 11 नवंबर 2018
बालूजी श्रीवास्तव
संगीत की अंतरदृष्टि
बालूजी श्रीवास्तव की आंखों की रोशनी महज चार साल की उम्र में चली गई थी, लेकिन आज वे सितारवादक के रूप में दुनियाभर में मशहूर हैं। इतना ही नहीं उन्होंने अपने जैसे नेत्रबाधित लोगों का एक बैंड भी बनाया है
मैं बॉलीवुड के सुरीले दौर के संगीत का रसिया रहा हूं। इसने मुझे सुर-ताल की दुनिया में आने की ललक से भर दिया। मेरी यह ललक मेरी मां के कारण पूरी हुई, क्योंकि संगीत की शुरुआती शिक्षा मुझे उन्हीं से मिली - बालूजी श्रीवास्तव
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एसएसबी ब्यूरो
गीत का रिश्ता बाह्य दुनिया से नहीं, बल्कि अंतर-जगत से है। संगीत के सुर और ताल हमें मन और खयाल की दुनिया में अनंत कल्पनाओं और अनुभवों तक ले जाते हैं। इसीलिए भारतीय परंपरा में संगीत को अध्यात्म से भी जोड़ा गया है। इस परंपरा और सीख को एक प्रेरक मिसाल बनाया है सितारवादक बालूजी श्रीवास्तव ने। आज यह नाम भारतीय शास्त्रीय संगीत, खासतौर पर हिंदसु ्तानी वाद्य-वादन की दुनिया में काफी सम्मान के साथ लिया जाता है। बालूजी श्रीवास्तव की आंखों की रोशनी महज
खास बातें
आठ वर्ष की उम्र में सितार बजाना शुरू किया नेत्रबाधितों का ‘अंतरदृष्टि : इनर विजन ऑर्केस्ट्रा’ बैंड ब्रििटश काउंसिल के साथ मिलकर कर रहे हैं काम
चार साल की उम्र में चली गई थी, लेकिन आज वे सितारवादक के रूप में दुनियाभर में मशहूर हैं। इतना ही नहीं उन्होंने अपने जैसे नेत्रबाधित लोगों का एक बैंड भी बनाया है। उनके बैंड का नाम है ‘अंतरदृष्टि : इनर विजन ऑर्केस्ट्रा’। बैंड की स्थापना का उद्शदे ्य था नेत्रहीन लोगों के मनोबल को बढ़ाना। बालूजी अपने उद्शदे ्य में कामयाब रहे। उनके बैंड के लोगों को अब अलग-अलग काम भी मिलने लगा है। इनर विजन ऑर्केस्ट्रा के सदस्य कार्यक्रम के दौरान आंखों से तालमेल तो नहीं बिठा पाते हैं, लेकिन हर कोई अपने काम को बखूबी अंजाम देता है।
राज है। बालूजी के जीवन का सफर अविश्वसनीयता से भरा है। उत्तर प्रदेश में उनका जन्म हुआ। आठ महीने के थे, तब मोतियाबिंद हो गया। पड़ोस में रहने वाली एक औरत ने उनकी मां को दवा के नाम पर अफीम की गोली आंखों में डालने को दे दी। तीन दिन के बाद उनकी एक आंख की रोशनी चली गई और दूसरी आंख की रोशनी कम हो गई। लेकिन वे पैदाइशी संगीतकार थे। 18 महीने की उम्र से ही गाना शुरू कर दिया। मां ने उन्हें हॉरमोनियम बजाना सिखाया। इसके बाद बालूजी ने अजमेर के ब्लाइंड स्कूल से पढ़ाई पूरी की।
बैंड का नाम
नेत्रबाधा बनी वरदान
अपने बैंड के नाम और मकसद के बारे में बात करने पर बालूजी कई दिलचस्प जानकारियां देते हैं। वे बताते हैं कि उनके पिता बचपन में उन्हें गीता पढ़कर सुनाया करते थे। संस्कृत के शब्द और श्लोक उन्हें बहुत भाते थे। ‘अंतरदृष्टि’ शब्द का चुनाव उन्होंने अपने बैंड के लिए गीता की प्रेरणा से किया। बालू को लगता है कि मन की आंखें गहराई तक देखती हैं, इसमें एक प्रशांत भाव भी रहता है, जो संगीत के लिए बहुत जरूरी है। जबकि बाहरी आंखों से जो कछ ु भी हम देखते हैं, उसमें या तो भटकाव है या फिर भौतिक आकर्षण ज्यादा। बालूजी कहते हैं, ‘हम लोगों का आपसी तालमेल अभ्यास से पैदा हुआ है।’ दरअसल, अलग-अलग वाद्य यंत्रों को संभालने वाले कलाकार अपने वादन के क्रम को याद रखते हैं। ये उनकी कामयाबी का
स्कूल में उन्होंने संगीत की उस्तादी हासिल की। आठ साल की उम्र में उन्होंने सितार बजाना शुरू किया, तो फिर वे सितार के ही होकर रह गए। दस साल की उम्र में उन्होंने अपने स्कूल के कार्यक्रम में सितार बजाया। पढ़ाई जारी ही थी कि परिवार को कारोबार में घाटा उठाना पड़ा। इसके बाद बालूजी ने बेंत की कुर्सियां बीनने का काम किया, ताकि खर्च चल सके। 20 साल की उम्र के बाद सितार में मास्टर की डिग्री हासिल करने के बाद बालूजी फ्रांस चले गए और उसके बाद ब्रिटेन। बालूजी मानते हैं कि भारत में नेत्रहीन को लेकर परिवारों और समाज का रवैया ठीक नहीं है। वे मानते हैं कि नेत्रहीनता उनके लिए अभिशाप नहीं वरदान साबित हुई। बालूजी के मुताबिक अगर वे नेत्रहीन नहीं होते तो अपनी क्षमता को संगीत में विशेषज्ञता हासिल करने में नहीं लगा
पाते। आज बालूजी दुनिया के कई देशों में न सिर्फ सितार वादन के लिए जाते हैं, बल्कि इसके साथ वे अपने बैंड की लोकप्रियता को भी लगातार बढ़ा रहे हैं। भारतीय संगीत के प्रसार और उसकी शिक्षा के लिए बालूजी ने एक संस्था भी बनाई है, जिसका नाम है बालूजी फाउंडश े न। फाउंडश े न खासतौर पर 2013 से ब्रिटिश काउंसिल के साथ मिलकर काम कर रहा है। बालू अपने ‘अंतरदृष्टि : इनर विजन ऑर्केस्ट्रा’ का कार्य भी इसी संस्था के तहत करते हैं। भारत में जब आजादी के 70 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया गया तो उसमें इस आर्केस्ट्रा ने विशेष कार्यक्रम दिया था। संगीत के क्षेत्र में अपनी रुझान को लेकर बालूजी कहते हैं कि भारत में संगीत की दुनिया संस्कारों में रही है। खासतौर से बॉलीवुड के फिल्म संगीत ने संगीत को नए समय में बड़ी लोकप्रियता दी है। अपने बारे में बालू कहते हैं कि संगीत की उनकी प्रेरणा में बॉलीवुड संगीत की बड़ी भूमिका रही। वे कहते हैं, ‘मैं बॉलीवुड के सुरीले दौर के संगीत का रसिया रहा ह।ूं इसने मुझे सुर-ताल की दुनिया में आने की ललक से भर दिया। मेरी यह ललक मेरी मां के कारण पूरी हुई, क्योंकि संगीत की शुरुआती शिक्षा मुझे उन्हीं से मिली।’ बालूजी देश के चोटी के वाद्य वादकों के साथ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर संगत तो कर ही चुके हैं, वे जॉज और पॉप संगीत के साथ फ्यूजन म्यूजिक भी तैयार कर रहे हैं। यह प्रयोग वे एकल तौर पर और अपने बैंड के साथ कर रहे हैं।
05 - 11 नवंबर 2018
खेल
डिफेंस नहीं बनेगी कमजोरी
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मौजूदा सीजन में पटना पाइरेट्स का डिफेंस कमजोर है, जिसके चलते रेडर भी अंक नहीं बना पा रहे हैं। कभी डिफेंस कमजोर पड़ रहा है तो कभी रेडिंग
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एजाज अहमद
वो-प्रो कबड्डी लीग (पीकेएल) इतिहास में सफलतम रेडरों में से एक मौजूदा विजेता पटना पाइरेट्स के कप्तान प्रदीप नरवाल ने लीग के छठे सीजन में टीम की खराब शुरुआत का कारण कमजोर डिफेंस को बताया है। लीग में खिताबी हैट्रिक लगाने वाली पटना ने इस सीजन में अब तक खेले गए सात में से तीन मैचों में जीत हासिल की और चार मैचों में उसे हार मिली है। ऐसे में खिताब बचाने की उसकी मुहिम खतरे में पड़ती दिखाई दे रही है, लेकिन कप्तान का मानना है कि वक्त के साथ उनकी टीम अपनी कमियों पर विजय पाकर खिताब बचाने में सफल होगी। पटना टीम ने अब तक कुल 17 अंक हासिल किए हैं और जोन-बी में में वह तीसरे स्थान पर है। 'डुबकी किंग' के नाम से मशहूर प्रदीप ने कहा, ‘इस सीजन में हमारा डिफेंस कमजोर है, जिसके चलते रेडर भी अंक नहीं बना पा रहे हैं। कभी डि फ ें स कमजोर पड़ रहा है तो कभी रेडिंग। मुझे
पटना चरण के बाद नोएडा चरण में हमारा कोई मैच नहीं है, लेकिन हम वहां जाएंगे क्योंकि वहां हमारा अपना मैट है, जहां पर हम अभ्यास करेंगे और मुंबई में खेले जाने वाले चरण की अच्छी से तैयारी करेंगे- प्रदीप नरवाल
लगता है कि हमारे खराब प्रदर्शन की यही एक वजह है। हालांकि, उम्मीद है टीम समय के साथ इसमें सुधार करेगी।’ उन्होंने कहा, ‘पिछली बार हम इसलिए जीते क्योंकि डिफेंस के साथ हमारे रेडरों ने भी अच्छा किया था। जब डिफेंस अच्छा खेलेगा तो रेडर खुद ही अच्छा करेंगे। इस बार इनके असफल रहने से टीम उम्मीदों के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पा रही है। हालांकि, अभी लीग में काफी मैच बचे हैं और धीरेधीरे हमारा डिफेंस जम रहा है। हम आगे अच्छा करने की कोशिश करेंगे।’ 21 वर्षीय प्रदीप ने पीकेएल के दूसरे सीजन में बेंगलुरु बुल्स के साथ लीग में पदार्पण किया था। इसके बाद वह तीसरे सीजन से अब तक पटना टीम के लिए खेल रहे हैं। वह पिछले सीजन में पटना के कप्तान बने थे। उन्होंने लीग के छठे सीजन के सात मैचों में अब तक 88 अंक हासिल किए हैं। अपनी कप्तानी में पिछली बार पटना को विजेता बनाने वाले प्रदीप ने इस लीग में 71 मैचों में कुल 720 अंक हासिल किए हैं। लीग में सबसे अधिक अंक हासिल करने
का रिकार्ड तेलुगु टाइटंस के राहुल चौधरी के नाम है। उनके नाम 84 मैचों में 746 अंक हैं। पटना चरण शुरू होने से पहले कोच राम मेहर सिंह ने कहा था कि इस बार उनकी टीम नए संयोजन के साथ खेलेगी। इस पर प्रदीप ने कहा, ‘इन्हीं खिलाड़ियों में से संयोजन बनाया जाएगा, क्योंकि खेलना तो इन्ही खिलाड़ियों को है। कोई बाहर से आकर तो खेलेगा नहीं। हम इन्हीं खिलाड़ियों में से नए संयोजन तलाश रहे हैं।’ पटना टीम के कप्तान ने घरेलू दर्शकों के सामने दबाव में आने की किसी भी संभावनाओं को खारिज करते हुए कहा, ‘नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। दबाव लेकर तो कोई खेलता भी नहीं है और ना ही उनसे खेला जाएगा। इस बार पता नहीं क्या हो रहा है। देखते हैं, इस चरण के बाद नोएडा चरण में हम अभ्यास करेंगे और फिर मुंबई में जरूर वापसी करेंगे।’ प्रदीप 2016 में कबड्डी विश्व कप विजेता, 2017 में
एशियाई कबड्डी चैंपियनशिप विजेता और 2018 में दुबई कबड्डी मास्टर्स विजेता के साथ-साथ इस साल एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा रह चुके हैं। ऐसे में अब तक कबड्डी करियर में सबसे यादगार पल के बारे में पूछे जाने पर प्रदीप ने कहा, ‘जब मुझे पता चला कि मैं प्रो कबड्डी लीग में खेलने के लिए चुना गया हूं, वह मेरे अब तक के करियर का सबसे यादगार लम्हा है। लीग में खेलने के बाद मुझे सभी जानने लग गए। इसके अलावा बड़े-बड़े खिलाड़ियों के साथ खेलने का मौका मिला। उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला जो मेरे खेल के लिए सही है।’ प्रदीप ने पटना पाइरेटस के आगे की रणनीतियों के बारे में कहा, ‘पटना चरण के बाद नोएडा चरण में हमारा कोई मैच नहीं है, लेकिन हम वहां जाएंगे क्योंकि वहां हमारा अपना मैट है, जहां पर हम अभ्यास करेंगे और मुंबई में खेले जाने वाले चरण की अच्छी से तैयारी करेंगे।’
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कही-अनकही
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बाल सितारों की दुनिया
बॉलीवुड फिल्मों की दुनिया ने सिर्फ बड़े सितारों को ही स्टारडम नहीं दिया है, बल्कि कई बाल कलाकार भी छोटी उम्र में स्टारडम तक पहुंचे। पर आगे चलकर इनमें से ज्यादातर सितारे गुमनामी में खो जाते हैं
खास बातें कई बाल कलाकारों ने शिक्षा व अन्य वजहों से अभिनय की राह छोड़ी लता मंगेशकर भी फिल्मों में बाल कलाकार के तौर पर आ चुकी हैं कुछ बाल कलाकारों ने बड़े होकर भी फिल्मों में खूब नाम कमाया
लता भी चाइल्ड आर्टिस्ट रहीं
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र्देशक कौशिक गांगुली सत्यजीत रे की वर्ष 1955 की रिलीज मशहूर फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ में अप्पू का किरदार निभाने वाले बाल कलाकार सुबीर बनर्जी के जीवन पर फिल्म बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं। दरअसल, सुबीर आज 70 साल से ज्यादा उम्र के हैं और वे सिनेमा की दुनिया से पूरी तरह से कटे हैं। फिल्म में काम करने के बाद वे सरकारी दफ्तर में कर्मचारी बन गए और बाद में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। उन्हें जीवनभर अप्पू नाम से बुलाया जाता रहा है। पाथेर पांचाली उनकी एकमात्र फिल्म थी। आश्चर्य इस बात का है कि उन्हें इस फिल्म के बारे में कुछ भी याद नहीं है।
स्टार रुतबा बचाने की चुनौती
हाल के वर्षों में टीवी और फिल्मों में कई बाल कलाकारों ने दर्शकों का ध्यान खींचा है। फिल्म ‘भूतनाथ’ में अमिताभ बच्चन के साथ काम करने वाला बाल सितारा और धारावाहिक ‘उड़ान’ की नन्हीं बाल कलाकार तो स्टार रुतबा भी हासिल कर चुके हैं। पर क्या आगे चल कर ये कलाकार इतने ही चर्चित रहेंगे या फिर ये भी सुबीर कुमार की तरह
मधुबाला और मीना कुमारी ने बाल कलाकार के रूप में काम किया था। श्रीदेवी इस मामले में सबसे ज्यादा सफल रहीं। बाल कलाकार के तौर पर मात्र चार वर्ष की उम्र में काम करने के बाद बतौर अभिनेत्री उन्होंने लंबी पारी खेली बाकी जीवन अज्ञातवास में गुजारेंगे? हिंदी सिनेमा में कई ऐसे बाल कलाकार आए, जिन्होंने अपनी नन्ही- सी उम्र में अभिनय का लोहा मनवाया। इनकी अदाकारी कई बार बड़े-बड़े सितारों पर भारी पड़ी तो कई बार इन्होंने मुख्य भूमिकाओं में अपने अभिनय से सब को चौंकाया, लेकिन बाद में गायब से हो गए।
विजय का किरदार
फिल्म ‘अग्निपथ’ में आंखों में बूट पॉलिश को काजल की तरह लगा कर छोटे विजय का किरदार निभाने वाले बाल कलाकार का गुस्सा एंग्री यंगमैन अमिताभ बच्चन से कम नहीं था। याद होगा इसी कलाकार मंजूनाथ ने आरके नारायण के उपन्यास पर आधारित धारावाहिक ‘मालगुडी डेज’ में स्वामी के किरदार में कितना मार्मिक अभिनय किया था। सरकार ने बच्चों के लिए मनोरंजक फिल्म बनाने
वाली एक संस्था बनाई है पर अब तक न तो बाल कलाकारों का कुछ हुआ है न ही बाल फिल्मों का।
मास्टर सत्यजीत
मास्टर सत्यजीत को दर्शकों ने मनोज कुमार के साथ फिल्म ‘शोर’ में देखा था। उस फिल्म में इस बाल कलाकार ने हैंडीकैप्ड के किरदार को बड़ी सहजता से निभाया था। कुछ और फिल्मों में दिखने के बाद उन्हें फिर नहीं देखा गया। मास्टर राजू भी अपने जमाने के चर्चित बाल कलाकार थे। उन्होंने गुलजार की फिल्म ‘परिचय’ के अलावा राजेश खन्ना के साथ ‘बावर्ची’, ‘अमर प्रेम’ और ‘दाग’ जैसी फिल्मों में काम किया। जावेद अख्तर की पूर्व पत्नी हनी ईरानी भी कभी बतौर बाल कलाकार फिल्मों में काम करती थीं पर बाद में उन्होंने स्क्रिप्ट राइटिंग में कैरियर आजमाया और खासा नाम कमाया।
फिल्म ‘मिस्टर इंडिया’ में बहुत सारे बाल कलाकारों ने काम किया। उन्हीं में से एक अहमद खान भी थे। अहमद ने बड़े हो कर अभिनय के बजाय निर्देशन और कोरियोग्राफी में हाथ आजमाया। वे काफी सफल भी रहे। लता मंगेशकर भी चाइल्ड आर्टिस्ट रहीं। सत्यजीत पुरी ने ‘मेरे लाल’, ‘हरे रामा हरे कृष्णा’, ‘अनुराग’ जैसी फिल्मों में अभिनय किया था। बाद में मौका न मिलने पर वे लेखन के क्षेत्र से जुड़ गए। अभिनेत्री और कमल हासन की पूर्व पत्नी सारिका भी बतौर बाल कलाकार हिंदी फिल्मों की पसंद बनी रहीं। उन्होंने ‘आशीर्वाद’, ‘सत्यकाम’, ‘छोटी बहू’ और ‘हमराज’ में बेहतरीन काम किया। बाद में अभिनेत्री के तौर पर उन्हें आंशिक सफलता हासिल हुई। परजान दस्तूर भी एक ऐसा ही नाम है जो बाल कलाकार के तौर पर सब का चहेता रहा पर बतौर अभिनेता गुमनाम ही रहा। सिनेप्रेमी परजान को ‘कुछ-कुछ होता है’, ‘परजानिया’ और ‘मोहब्बतें’ जैसी फिल्मों में देख चुके हैं।
कुछ की पारी लंबी
कुछ बाल कलाकारों ने फिल्मों में लंबी पारी भी खेली। मसलन, सचिन पिलगांवकर। वह फिल्म ‘नदिया के पार’ में मुख्य भूमिका निभा कर रातोंरात स्टार हुए। सचिन बतौर बाल कलाकार भी उतने ही सफल हुए जितने मुख्य अभिनेता के तौर पर। बतौर बाल कलाकार, उन्होंने ‘बालिका वधू’, ‘मेला’, ‘ब्रह्मचारी’ और ‘ज्वैल थीफ’ जैसी हिट फिल्मों में काम किया। सचिन की तरह अरुणा ईरानी का कैरियर भी काफी सफल रहा। फिल्म ‘कोई मिल गया’ और ‘जागो’ समेत कई सीरियलों में बाल
05 - 11 नवंबर 2018 कलाकार के रूप में काम कर चुकीं हंसिका मोटवानी आज दक्षिण भारतीय फिल्मों में स्टार अभिनेत्री हैं। महेश भट्ट की फिल्मों में अहम किरदार निभाने वाले कुणाल खेमू को लोगों ने ‘जख्म’ फिल्म में अजय देवगन के बचपन का किरदार संजीदगी से निभाते देखा। आज वे भी सफल अभिनेता हैं।
श्रीदेवी सबसे सफल
मधुबाला और मीना कुमारी ने बाल कलाकार के रूप में काम किया था। श्रीदेवी इस मामले में सबसे ज्यादा सफल रहीं। बाल कलाकार के तौर पर मात्र चार वर्ष की उम्र में काम करने के बाद बतौर अभिनेत्री उन्होंने लंबी पारी खेली। इसी क्रम में पद्मिनी कोल्हापुरे भी हैं। गौरतलब है कि रितिक रोशन, नीतू सिंह, आशा पारेख, बॉबी देओल, आमिर खान, आलिया भट्ट, अभिषेक बच्चन, ऋषि कपूर जैसे कई बड़े नाम बाल कलाकार के तौर पर नजर आ चुके हैं और आज इनकी गिनती बड़े स्टार्स में होती है। इसका एक पहलू कुछ लोग यह भी मानते हैं कि ज्यादातर मामलों में उन्हीं बाल कलाकारों को बड़े होने पर मौका मिला जो फिल्मी परिवारों से संबंध रखते थे। जिनके परिवार के सदस्य इंडस्ट्री का हिस्सा नहीं थे वे बाल कलाकार सुपरहिट होने के बावजूद कहीं गुमनामी के अंधेरे में खो गए।
आयशा और दर्शील
फिल्म ‘ब्लैक’ में आयशा कपूर और फिल्म ‘तारे जमीं पर’ में दर्शील सफारी जैसे बाल कलाकारों का अभिनय कोई नहीं भूल सकता। इसी तरह फिल्म ‘भूतनाथ’ में बिग बी के साथ काम करने वाले बंकू यानी अमन सिद्दीकी का आत्मविश्वास देखते ही बनता है। ‘आई एम कलाम’, ‘नन्हे जैसलमेर’, ‘चिल्लर पार्टी’ में बाल कलाकारों की लंबी फौज अभिनय प्रतिभा के साथ लबरेज दिख रही है। उनका आगे चल कर कैसा कैरियर होगा, यह वक्त ही बताएगा। दरअसल, सही मार्गदर्शन न मिलने के चलते वे सही दिशा नहीं पकड़ पाते। इसके अलावा कुछ बाल कलाकारों को यह गुमान हो जाता है कि वे स्टार हो गए हैं। कम उम्र का यह गुमान उन्हें गुमनाम कर देता है।
बाल कलाकार तब और अब मास्टर मंजूनाथ: ‘मालगुडी डेज’ धारावाहिक और फिल्म ‘अग्निपथ’ में काम किया। अब एक सॉफ्टवेयर कंपनी में सेवारत हैं।
बेबी गुड्डू उर्फ शाहिदा बेगम : 80 के दशक में ‘आखिर क्यों’, ‘समंदर’ और ‘घरपरिवार’ जैसी फिल्मों में नजर आई। अब वे एक एअरलाइंस कंपनी में काम करती हैं। शफीक सईद: मीरा नायर की फिल्म ‘सलाम बॉम्बे’ में राष्ट्रीय पुरस्कार जीता। बाद में जूनियर आर्टिस्ट का काम किया। इन दिनों बेंगलुरु में रिक्शा चलाते हैं।
मास्टर अलंकार: ‘शोले’, ‘डॉन’, ‘ड्रीम गर्ल’ जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में काम किया। इनका यूएस में बिजनेस है।
परजान दस्तूर: फिल्म ‘कुछ कुछ होता है’ के क्यूट सरदार और फिल्म ‘परजानिया’ में गंभीर भूमिका करने के बाद इन दिनों अभिनय छोड़ कर पढ़ाई में व्यस्त हैं। मास्टर बिट्टू उर्फ विशाल देसाई: फिल्म ‘चुपकेचुपके’, ‘मिस्टर नटवरलाल’, ‘याराना’ में काम किया। निर्देशक बनने के लिए संघर्षरत।
अविनाश मुखर्जी: धारावाहिक ‘बालिका वधू’ से मिली पहचान। इन दिनों घर पर पढ़ाई कर रहे हैं।
सत्यजीत पुरी: बतौर बाल कलाकार फिल्म ‘मेरे लाल’, ‘हरि दर्शन’ के बाद युवावय में ‘अर्जुन’, ‘शोला और शबनम’ में काम के बावजूद नहीं मिली पहचान। इन दिनों निर्देशक बनने के लिए संघर्षरत। बेबी फरीदा: 60 के दशक में फिल्म ‘दोस्ती’, ‘राम और श्याम’, ‘जबजब फूल खिले’ और ‘काबुलीवाला’ में काम किया। कहते हैं उन्हें फिल्म ‘बॉबी’ के लिए लीड रोल मिला था पर इनकार कर दिया। इन दिनों टीवी पर दादी के किरदार निभा रही हैं।
सना सईद: फिल्म ‘कुछ-कुछ होता है’, ‘हर दिल जो प्यार करेगा’ और ‘बादल’ में काम किया। पिछले दिनों फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईअर’ में भी काम किया। फिलहाल कोई काम नहीं है।
कामयाबी को निरंतर बनाए रखने की चुनौती: मोहित
शिक्षा के कारण बाधा
इसके अलावा कई बाल कलाकार फिल्मों के ढांचे में बहुत दिनों तक खुद को फिट नहीं रख पाते। लिहाजा, वे बहुत जल्दी भुला दिए जाते हैं, जैसा फिल्म ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ के बाल कलाकारों के साथ हुआ है। वरिष्ठ फिल्म समीक्षक जय प्रकाश चौकसे के मुताबिक, एक्टिंग बाल कलाकार की शिक्षा में बाधा बनती है। इसके विशिष्ट होने के भाव के कारण उनका बचपन अपनी स्वाभाविकता और मासूमियत खो देता है। ख्याति जैसे बेलगाम घोड़े की सवारी में गिर जाना स्वाभाविक है। शायद, इसी वजह से वह अपने मूल अभिनय से कट कर खास से आम बन जाता है।
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कही-अनकही
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तौर चाइल्ड आर्टिस्ट, कॉमेडी शो ‘छोटे मियां’ से घर-घर लोकप्रिय हुए मोहित बघेल भी टीवी से फिल्मों में आए। सलमान खान अभिनीत फिल्म ‘रेडी’ में अमर सिंह चौधरी के
किरदार ने मोहित को सलमान का चहेता बना दिया। नतीजतन, मोहित उन के साथ फिल्म ‘जय हो’ में नजर आए। साथ ही जल्द ही ‘नो एंट्री’ के सीक्वल ‘नो एंट्री में एंट्री’ में भी वे कॉमेडी करते नजर आएंग।े बाल कलाकारों के अचानक लाइमलाइट में आने और फिर गुमनाम हो जाने के सवाल पर मोहित का नजरिया कछ ु और है। मोहित के मुताबिक, ‘एक चाइल्ड आर्टिस्ट को अपनी कामयाबी को निरंतर रखना नहीं आता। ज्यादातर बाल कलाकार सफलता के नशे में सवार हो कर यह भूल जाते हैं कि वे बड़े भी हो रहे हैं
और वयस्क होते ही बाल कलाकार की छवि से बाहर आ कर अभिनय करना होगा। यही वजह है कि जैस-े जैसे वे बड़े होते हैं, लोकप्रियता से दूर होने लगते हैं। इस मामले में वे खुद सबक लेते हुए कहते हैं कि बाल कलाकार हमेशा बच्चा बन कर नहीं रह सकता। मैं भी इसीलिए फिल्म ‘युवा’ से अपनी बाल कलाकार छवि से मुक्त हो कर मुख्य अभिनेता बनने के सफर पर निकल चुका हूं। उम्मीद है उन्हें बतौर बाल कलाकार ही नहीं, बल्कि वयस्क अभिनेता के तौर पर भी कामयाबी व पहचान मिलेगी।’
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सुलभ संसार
05 - 11 नवंबर 2018
सुलभ अतिथि
हेड स्टार्ट स्कूल, बेंगलुरु के 51 छात्र और उनके नौ शिक्षक सुलभ ग्राम का दौरा करके अभिभूत रह गए।
अकांक्षा इंस्टीट्यूट ऑफ नर्सिंग, नजफगढ़, नई दिल्ली के 28 छात्र और उनके दो समन्वयकों के साथ अन्य आगंतुकों ने सुलभ परिसर का दौरा किया। बोइंग इंडिया के प्रेसीडेंट प्रत्युष कुमार, उनकी पत्नी गार्गी कुमार और डायरेक्टर प्रवीणा यज्ञमभट्ट ने सुलभ ग्राम का दौरा किया।
अमेरिका के सोशल इनोवेशन के 10 छात्रों के समूह ने अपने अध्यापकों और समन्वयकों के साथ सुलभ परिसर का दौरा किया।
मेंढ़क की सफलता
ए
सिमरन
क मेंढ़क पहाड़ की चोटी पर चढ़ने का फैसला करता है। वह पहाड़ की तरफ बढ़ता है। उसे देख बाकी मेंढ़क शोर मचाने लगते हैं, लेकिन वह रुकता नहीं, आगे बढ़ता जाता है। सारे मेंढ़क चिल्लाने लगते हैं- यह असंभव है। आज तक कोई
मेंढ़क पहाड़ी की चोटी पर नहीं चढ़ पाया। यह कर नहीं पाओगे। लौट आओ। लेकिन वह रुकता नहीं। चोटी की तरफ बढ़ता ही जाता है। आखिरकार वह मेंढ़क चोटी पर चढ़ जाता है। सारे मेंढ़क चकित होकर सोचने लगते हैं कि आखिर उसने हमारी बात क्यों नहीं सुनी? असल में चोटी फतह करने वाला मेंढ़क बहरा था। वह सुन नहीं पाया
जिंदगी संघर्ष का नाम है सिमरन
कि सारे क्या कह रहे हैं। उसने बस सबको चिल्लाते देखा था। उसे लगा कि सब उसका उत्साह बढ़ा रहे हैं और वह उत्साह में चढ़ता चला गया। इस कहानी का फलसफा यही है कि अगर आपको अपना लक्ष्य हासिल करना है तो तो नकारात्मक विचारों और लोगों के प्रति बहरे हो जाइए।
जिंदगी हर पल संघर्ष का नाम है चाहे कितनी ही मुश्किलें आएं कितनी ही कठिनाइयों का करना पड़े सामना उससे वीरता पूर्वक लड़ना तुम्हारा काम है हर कठिनाइयों को गले से लगा लो पथ के कांटों को हंसकर झेल लो तुम विचलित न होना यही पैगाम है जिंदगी हर पल संघर्ष का नाम है तुम्हारे कदम कभी न डगमगाएं तुम जीवन के कण-कण में हो समाए कभी सुबह तो कभी शाम है जिंदगी हर पल संघर्ष का नाम है अपने जीवन को बनाओ उज्ज्वल और निर्मल क्योंकि वापस न आएंगे ये पल तुम्हें बनना बलवान है जिंदगी हर पल संघर्ष का नाम है सफलता की हमेशा करना कामना दुःखों से अधिक दुःखी न होना सुख दुःख का पीना तुम्हें हर जाम है जिंदगी हर पल संघर्ष का नाम है।
05 - 11 नवंबर 2018
आओ हंसें
जीवन मंत्र
लंबी-लंबी फेंकना
लड़की वाले शादी के लिए देखने आ रहे थे। पापा : बेटा लड़की वाले आ रहे हैं। उनके सामने थोड़ी लंबी-लंबी फेंकना। लड़की वालों के आते ही... बेटा : पापा जरा चाभी देना। वो ट्रेन धूप में खड़ी है... अंदर कर देता हूं। पापा बेहोश।
सु
मित्र, आईना या परछाई जैसा हो क्योंकि आईना झूठ नहीं बोलता और परछाई साथ नहीं छोड़ती
डोकू -47
रंग भरो सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी विजते ा को 500 रुपए का नगद पुरस्कार दिया जाएगा। सुडोकू के हल के लिए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देख।ें
महत्वपूर्ण तिथियां
• 6 नवंबर सैन्य संघर्षों में पर्यावरण शोषण की रोकथाम हेतु अंतरराष्ट्रीय दिवस • 8 नवंबर विद्यापति स्मृति दिवस • 9 नवंबर उत्तरांचल राज्य गठन दिवस, कानूनी सेवा दिवस • 10 नवंबर परिवहन दिवस, वन शहीद दिवस, शांति एवं विकास हेतु विश्व विज्ञान दिवस • 11 नवंबर राष्ट्रीय शिक्षा दिवस, मौलाना अबुल कलाम आजाद जयंती
बाएं से दाएं
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इंद्रधनुष
1. फलां, कोई खास (3) 3. रंग बिरंगा, धब्बेदार (5) 6. ईश्वर के नाम पर (उर्दू) (3) 7. जहाँ नगाड़े बजते हों (5) 8. शतरंज की गोटी (3) 9. वात, पवन (2) 10. चंचल (4) 13. यथासाध्य (4) 15. हाथ, टैक्स (2) 16. तीन रास्ते वाला स्थान (3) 17. कानाफूसी, कान में कही हुई बात (5) 19. टीस (3) 20. तड़पना, हाथ-पैर पटकना (5) 21. वेतन, तन्ख्वाह (3)
सुडोकू-46 का हल विजेता का नाम कुमारी प्रिया नई दिल्ली
वर्ग पहेली-46 का हल
ऊपर से नीचे
2. सूखा अंगूर (3) 3. चीखना आवाज देना (3) 4. पेंदा (2) 5. बौखलाया हुआ (5) 6. लिखाई (4) 7. नैन, आँख (3) 8. मुद्रा, ठप्पा (3) 11. टक्कर भिडं़त (5) 12. खरगोश (3) 13. डरावना, रौद्र (4) 14. कृष्ण, कान्हा (3) 17. बाँधना, कसौटी पर आँकना (3) 18. तीन रंग वाला (3) 19. विभाजित, चोट, अलग किया गया (2)
कार्टून ः धीर
वर्ग पहेली - 47
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न्यूजमेकर
अनाम हीरो
05 - 11 नवंबर 2018
मेहरुना खातून और जगरानी देवी
भीख मांगकर बनाया ‘इज्जत घर’ बिहार की दो गरीब ग्रामीण महिलाओं ने भीख मांगकर और मेहनत-मजदूरी कर अपने लिया बनवाया ‘इज्जत घर’
बि
हार की दो अत्यंत निर्धन महिलाएं स्वच्छता के प्रति अपने समर्पण को लेकर इन दिनों चर्चा में हैं। गरीबी की आंचल में स्वच्छता के फूल खिलाने वाली गोपालगंज
जिले के कोन्हवां की 55 वर्षीय मेहरुना खातून और 60 वर्षीय जगरानी देवी ने घूम-घूमकर लोगों से भीख मांगी और अपने घर में खुद के हाथों से ईंट जोड़जोड़कर इज्जत घर बनाया। बेहद गरीबी में जीवन बसर कर रहीं ये दोनों महिलाएं अब अपने इलाके के लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन गई हैं। इन दो महिलाओं के जज्बे को देख कर अब आसपास की पंचायतों की महिलाएं भी अपने घरों में शौचालय बनाने के लिए आगे आ गई हैं। इन दोनों महिलाओं को स्थानीय प्रशासन की
सैनिक स्कूल, मिजोरम
सैनिक स्कूल में पढ़ेंगी बेटियां
तरफ से सम्मानित भी किया गया है। मेहरुना खातून बताती हैं कि भीख मांगकर परिवार चलाने के कारण उन्हें कभी सम्मान नहीं मिला। लोग नीची निगाह से देखा करते थे, लेकिन स्वच्छ भारत अभियान के लिए इस पहल ने उनका दर्जा बढ़ा दिया है। लोग अब उन्हें सम्मान की नजरों से देख रहे हैं। अपने घर में शौचालय बन जाने से मेहरुना तथा जगरानी देवी दोनों खुश हैं। मेहरुना कहती हैं कि इज्जत सबसे बड़ी चीज है। शौचालय महिलाओं के सम्मान से जुड़ा है। इसलिए उन्होंने लोगों से पैसा मांग कर अपने घर में शौचालय बनवाया। वहीं जगरानी देवी कहती हैं कि अब शौच के लिए घर की दहलीज से बाहर नहीं जाना पड़ता है। ठीक से हिंदी या भोजपुरी भी न बोल सकने के बावजूद अपने काम से इन दो महिलाओं ने लोगों तक स्वच्छता का संदेश पहुंचाया है। दोनों
न्यूजमेकर
मिजोरम स्थित देश के सबसे नए सैनिक स्कूल के दरवाजे लड़कियों के लिए खुले
सुजाता गिदला
दलित लेखिका को पुरस्कार
अमेरिका में रह रही दलित लेखिका की पुस्तक छह नामांकित पुस्तकों में सर्वश्रेष्ठ चुनी गई
मि
जोरम के छिंगछिप में स्थित सैनिक स्कूल में 6 लड़कियां अब इतिहास रचने जा रही हैं, जिन्हें इस स्कूल में एडमिशन मिल गया है। इसके साथ ही मिजोरम का यह सैनिक स्कूल देश का पहला ऐसा सैनिक स्कूल बन गया है जिसने लड़कियों को पढ़ने के लिए स्कूल के दरवाजे खोल दिए हैं। यानी अब इन स्कूलों में पढ़कर लड़कियां भी सैनिक, पायलट बनने का सपना पूरा कर सकती हैं। नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) के तहत 28 सैनिक स्कूल हैं। मिजोरम का यह सैनिक स्कूल देश के 28 सैनिक स्कूलों में सबसे नया है। इसने पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए एक नई मिसाल कायम की है। यहां कक्षा 6 में 6 लड़कियों ने एडमिशन लिया है। यहां लड़कियों के साथ 154 लड़कों ने भी एडमिशन लिया है। देश के पहले सैनिक स्कूल की स्थापना साल 1961 में महाराष्ट्र में हुई थी। जिसके बाद हरियाणा के कुंजपुरा, पंजाब के कपूरथला, गुजरात के बालाचडी और राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में सैनिक स्कूल खोले गए। सैनिक स्कूल शुरू होने के लगभग 57 साल बाद लड़कियों को इनमें दाखिले का मौका मिल रहा है।
ही महिलाओं ने अपनी कार्यशैली से लोगों को एक सबक दिया है कि स्वच्छता के लिए बस जज्बे की जरूरत है, न कि सिर्फ पैसों की। शुरुआत में तो इन दोनों महिलाओं के घर की हालत को देखते हुए कोई मदद के लिए आगे नहीं आया। लेकिन उनके लगातार प्रयास के बाद लोग मदद के लिए आगे आने लगे। लोगों द्वारा मदद के लिए आगे आने के बाद मेहरुना ने लोगों के घर से पैसा मांग कर अपने घर में शौचालय का निर्माण किया। जगरानी देवी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। उन्होंने भी लोगों की मदद तथा मेहनत-मजदूरी कर जमा किए गए कुछ रुपयों से खुद अपने हाथों से अपने घर में शौचालय बनाया। इन दोनों महिलाओं के स्वच्छता के प्रति इस जज्बे को देखकर पंचायत में आयोजित कार्यक्रम में जिलाधिकारी ने इन्हें सम्मानित किया।
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रतीय मूल की दलित लेिखक सुजाता गिदला को अमेरिका में शक्ति भट्ट बुक प्राइज से सम्मानित किया गया है। सुजाता
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 47
अमेरिका में रह रही हैं और खुशी की बात यह है कि उनको अपनी पहली पुस्तक ‘एंट्स एमांग एलिफेंट्स : एन अनटचेबल फैमिली एंड द मेकिंग ऑफ मॉडर्न इंडिया’ के लिए यह पुरस्कार दिया गया है। इस प्राइज के विजेता को सम्मान पत्र के साथ 2 लाख रुपए दिए जाते हैं। पिछले साल शक्ति भट्ट पुरस्कार श्रीलंका के लेखक अनुक अरुदगासम को मिला था। सुजाता ने इस किताब में अपने परिवार की चार पीढ़ियों की दास्तान लिखी है। इस पुरस्कार की दौड़ में 6 अन्य पुस्तकें भी शॉर्टलिस्ट थीं। उनकी यह पुस्तक उनके चाचा प्रगतिशील नेता केजी सत्यमूर्ति पर आधारित है। किताब में परिवार की व्यथा, गरीबी, पितृ-सत्तात्मकता और भेदभाव की सीधी, सपाट और साफ तस्वीर पेश की गई है। इस किताब में लिखी हर बात का प्रभाव पाठक के दिल पर पड़ता है, जिसमें लिखे गए किस्सागोई कहीं से भी पाठकों को नाटकीय नहीं लगते।