सम्मान
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डॉ. पाठक को मिलेगा निक्की एशिया पुरस्कार
आयोजन
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विशेष
किताबें कुछ कहना चाहती हैं तुम्हारे पास रहना चाहती हैं!
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जैव विविधता का सिमटता दायरा
कही-अनकही
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वकालत से तौबा ले आया फिल्मों में
sulabhswachhbharat.com आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597
राजा राममोहन राय जयंती (22 मई) पर विशेष
वर्ष-2 | अंक-23 | 21 - 27 मई 2018
स्त्री जागरण के प्रथम प्रवक्ता
19 वीं सदी के प्रारंभ में विधवा विवाह के समर्थन और सती प्रथा के विरोध में राजा राममोहन राय जिस तरह एक नायक बनकर उभरे, वह आगे चलकर भारतीय नवजागरण का पूरा दौर बन गया
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प्रियंका तिवारी
जा राममोहन राय ने लार्ड विलियम बेंटिक की मदद से महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और कानून बनवाकर न केवल सती प्रथा को अवैध करार दिया, बल्कि इस मुद्दे पर सामाजिक जागरुकता भी फैलाई। इससे पहले भारत में विधवाओं की स्थिति काफी त्रासद थी। राजा राममोहन राय के प्रयास के बाद विधवा विवाह को सामाजिक मान्यता मिली। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को आमतौर पर लोग देश की आजादी के पूर्व की एक शती में समेटकर देखते हैं। इतिहासकारों ने भी कमोबेश यही दृष्टि अपनाई है, पर इस तरह के सीमित कालबोध से भारतीय चिंतन-दर्शन के साथ प्रकट होने वाले पुरुषार्थ का एक अहम सिरा हमारे हाथों से छूट जाता है। इसमें सबसे बड़ी बात जो समझने की है, वह यह कि स्वाधीनता संग्राम से पहले भारत धार्मिक-सामाजिक नवजागरण का प्रकाशित दौर देख चुका था।
नवजागरण के केंद्र में स्त्री
भारतीय नवजागरण के साथ खास बात यह रही कि इसका स्वरूप और इसके लिए हुई ऐतिहासिक पहल पूरी तरह अपनी माटी-पानी में सना था। इस पहल ने एक तरफ जहां देश को सांस्कृतिक रूप से सबल बनाया, वहीं इससे परंपरा के नाम पर ढोई जा रही सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ बड़ी जागृति आई। आगे इसी सबलता ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की भी जमीन तैयार की।
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आवरण कथा
21 - 27 मई 2018
खास बातें 1814 में राजा राम मोहन राय ने ‘आत्मीय समाज’ की स्थापना 1828 में द्वारकानाथ टैगोर के साथ मिलकर ब्रह्म समाज की स्थापना नारी सम्मान के साथ प्रेस की स्वतंत्रता के भी हिमायती थे भारतीय नवजागरण की एक बड़ी विशेषता यह भी रही है कि इसके केंद्र में कहीं न कहीं स्त्री रही। यही कारण है कि 19वीं सदी में भारत में महिला सशक्तीकरण को लेकर जिस तरह के प्रयास हुए और उन्हें सामाजिक आधार पर जितनी सफलता मिली, वैसा उदाहरण विश्व इतिहास में अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है।
राजा राममोहन राय की पहल
राजा राममोहन राय 19 वीं सदी के प्रारंभ में उन ‘बंग भद्र पुरूषों’ में थे, जो अंग्रेजों के संपर्क में सबसे पहले आए। उन्होंने फ्रांसीसी क्रांति जैसी पश्चिमी उदारवादी विचारधाराओं से प्रेरणा ली, लेकिन सामाजिक सुधार के संदर्भ में उसे भारतीय परिप्रेक्ष्य में ढ़ाला। राजा राममोहन राय ने लार्ड विलियम बेंटिक की मदद से महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और कानून बनवाकर न केवल सती प्रथा को अवैध करार दिया, बल्कि इस मुद्दे पर सामाजिक जागरुकता भी फैलाई। इससे पहले भारत में विधवाओं की स्थिति काफी त्रासद थी। राजा राममोहन राय के प्रयास के बाद विधवा विवाह को सामाजिक मान्यता मिली।
धार्मिक सुधार की शुरुआत
पिता की मौत के बाद वे लौट आए और उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के राजस्व विभाग में नौकरी शुरू कर दी। कंपनी में अंग्रेज अधिकारी जॉन डिग्बी के सहायक के तौर वे पश्चिमी संस्कृति और साहित्य से अवगत हुए। उन्होंने जैन विद्वानों से जैन धर्म का अध्ययन किया और मुस्लिम विद्वानों से सूफीवाद सीखा। वर्ष 1814 में उन्होंने कंपनी छोड़ दी। उन्होंने ‘आत्मीय समाज’ की स्थापना की और सामाजिक एवं धार्मिक सुधार की शुरुआत की। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह एवं संपत्ति में स्त्रियों के अधिकार समेत महिलाओं के अधिकार के पक्ष में अभियान चलाया।
ब्राह्मण परिवार में जन्म
राजा राममोहन राय का जन्म बंगाल के राधानगर गांव में 22 मई, 1772 को एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता रमाकांत राय वैष्णव थे और मां तारिणी शाक्त थीं। राजा राममोहन राय को उच्च शिक्षा के लिए पटना भेजा गया। पंद्रह साल की
उम्र में उन्होंने बांग्ला, फारसी, अरबी और संस्कृत सीखी। जब वे 24 साल के थे, तब उन्होंने अंग्रेजी सीखनी शुरू कर दी। पटना में उन्होंने अरस्तु और यूक्लिड के साहित्य के अनुवाद पढ़े। उनकी पुस्तकें पढ़कर वे स्वतंत्र चिंतन करने लगे और अपनी पूरी चिंतनधारा को तत्कालीन भारतीय समाज से जुड़े सरोकारों और दरकारों से जोड़ा।
वेदांत का प्रभाव
राजा राममोहन राय मूर्ति पूजा और कट्टरपंथी धार्मिक कर्मकांडों, धर्मांधता, अंधविश्वास के खिलाफ थे। धार्मिक मुद्दों पर पिता से पटरी नहीं बैठने पर उन्होंने घर छोड़ दिया। उन्होंने हिमालय की यात्रा की। वे तिब्बत भी गए। घर लौटने से पहले उन्होंने व्यापक भ्रमण किया। वापस आने पर उनके परिवार ने इस उम्मीद के साथ उनकी शादी करवा दी कि वह बदल जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वे वाराणसी चले गए और वहां उन्होंने वेद, उपनिषद और हिंदू दर्शन का गहराई से अध्ययन किया और अंत में वेदांत को अपने जीवन तथा कार्यों का आधार बनाया। उन्होंने अनेक हिंदू शास्त्रों का अंग्रेजी में अनुवाद किया, जिससे ये शास्त्र विश्व
19वीं सदी में भारत में महिला सशक्तीकरण को लेकर जिस तरह के प्रयास हुए और उन्हें सामाजिक आधार पर जितनी सफलता मिली, वैसा उदाहरण विश्व इतिहास में अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है भर को प्राप्त हो सकें।
एंग्लो हिंदू स्कूल की स्थापना
राजा राममोहन राय मानते थे कि अंग्रेजी भाषा के माध्यम से शिक्षा पारंपरिक भारतीय शिक्षा प्रणाली से बेहतर है। 1822 में उन्होंने एंग्लो हिंदू स्कूल की स्थापना की और उसके चार साल बाद वेदांत कॉलेज खोला। जब पश्चिम बंगाल सरकार ने पारंपरिक कालेज का प्रस्ताव रखा तब उन्होंने उसका जोरदार विरोध किया। उनके ही प्रयास से कलकत्ता में 1827 में हिंदू कॉलेज की स्थापना हुई, जो बाद में प्रेसीडेंसी कालेज के रूप में विख्यात हुआ।
‘ब्रह्म समाज’ की स्थापना
‘ब्रह्म समाज’ भारत का एक सामाजिक धार्मिक
आधुनिक युग का सूत्रपात
रवींद्रनाथ टैगोर के शब्दों में, ‘राजा राममोहन राय ने भारत में आधुनिक युग का सूत्रपात किया।’ उन्हें भारतीय पुनर्जागरण का पिता तथा भारतीय राष्ट्रवाद का प्रवर्तक भी कहा जाता है राजा राममोहन राय 1830 में इंग्लैंड गए। भारत के शिक्षित लोगों में से भारतीय संस्कृति की मशाल को इंग्लैंड ले जाने वाले वह पहले व्यक्तियों में से थे। उनके बाद स्वामी विवेकानंद तथा अन्य विभूतियों ने पश्चिम में भारत का परचम फहराया। राजनीति, लोक प्रशासन, शिक्षा सुधार, समाज सुधार, धार्मिक पुनर्जागरण के क्षेत्रों में किए गए उनके कार्य उनको भारत
की एक विभूति की श्रेणी में खड़ा करते हैं। रवींद्रनाथ टैगोर के अनुसार, ‘राजा राममोहन राय ने भारत में आधुनिक युग का सूत्रपात किया।’ उन्हें भारतीय पुनर्जागरण का पिता तथा भारतीय राष्ट्रवाद का प्रवर्तक भी कहा जाता है। उनके धार्मिक, सामाजिक समरसता जैसे विचारों के पीछे अपने देशवासियों की राजनीतिक उन्नति करने की भावना मौजूद रहती थी।
आंदोलन है, जिसने बंगल के पुनर्जागरण युग को प्रभावित किया। 1828 में ब्रह्म समाज को राजा राममोहन और द्वारकानाथ टैगोर ने स्थापित किया था। इसका एक उद्देश्य भिन्न-भिन्न धार्मिक आस्थाओं में बंटी हुई जनता को एक जुट करना तथा समाज में फैली कुरीतियों को दूर करना है। राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना के बाद उसके जरिए समाज सुधार को गति प्रदान की। आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के पैरोकार राजा राममोहन राय ने कुरीतियां दूर की और कहा कि ऐसा करना धर्मानुकूल है। राजा राममोहन राय ने ब्रिटिश उपनिवेश का विरोध नहीं किया, बल्कि उसके अंतर्गत ही समाज सुधार और ज्ञानार्जन पर बल दिया। ब्रह्म समाज की स्थापना से भारतीय सभ्यता में नवप्रभात का आगमन हुआ। इस समाज ने प्रायश्चित को मोक्षप्राप्ति का मार्ग बताया, जिसका तात्पर्य यह था कि मनुष्य पाप करने में सहज रूप में प्रवृत्त हो जाता है, अतएव उसे कठोर सामाजिक दंड न देकर फिर से अच्छा जीवन व्यतीत करने का अवसर देना चाहिए। ब्रह्म समाज ने एक प्रकार से हिंदुओं की धार्मिक एवं सामाजिक क्रांति का सूत्रपात किया। ब्रह्म समाज के सिद्धांतों में कोई जटिलता नहीं है।
स्वतंत्र पत्रकारिता के जनक
राजा राममोहन राय ऐसे पहले भारतीय थे, जिन्होंने समाचार पत्रों की स्थापना, संपादन तथा प्रकाशन के क्षेत्र में बड़ा कार्य किया। राय ने अंग्रेजी, बांग्ला तथा उर्दू में अखबार निकाले। उनको स्वतंत्र पत्रकारिता का जनक भी कहा गया है। प्रेस की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने कठिन संघर्ष किया। राजा राममोहन राय का व्यक्ति की स्वतंत्रता, स्वायत्तता, समानता तथा न्याय में दृढ़ विश्वास था।
21 - 27 मई 2018
आवरण कथा
महिला सशक्तीकरण का सुलभ मंत्र
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सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक स्वाधीनोत्तर भारत के समाज सुधारक हैं। विधवाओं के विवाह और विधवा माताओं की देखभाल को लेकर सुलभ जिस तरह से कार्य कर रहा है, वह प्रशंसनीय के साथ अद्वितीय भी है
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रंपरागत रूढ़ियों को तोड़कर ही सामाजिक बदलाव की दरकार पूरी की जा सकती है। सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक स्वाधीनोत्तर भारत के एक ऐसे ही समाज सुधारक हैं, जिन्होंने खासतौर पर स्वच्छता और नारी अस्मिता को लेकर कई तारीखी पहल की है। खासतौर पर विधवाओं के विवाह और वृद्ध विधवाओं की देखभाल को लेकर सुलभ जिस तरह से कार्य कर रहा है, वह प्रशंसनीय के साथ अद्वितीय है। तारीखी तौर पर देखें तो राजा राममोहन राय ने भारतीय नारियों के जीवन में बदलाव का जो अलख करीब दो सौ साल पहले जगाया, उसकी मंद पड़ती आंच को सुलभ प्रणेता ने फिर से तेज कर दिया है। क्योंकि सती प्रथा भले ही खत्म मान ली गई हो, लेकिन भारतीय समाज ने विधवाओं को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया है। समाज में मौजूद इस कुरीति के विरुद्ध डॉ. पाठक की पहल सामाजिक बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। विधवाओं के कल्याण की दिशा में जो पहला और अहम कदम राजा राममोहन राय ने उठाया, ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने जिस सामाजिक बदलाव के पाठ बार-बार याद दिलाया, समय के साथ लोग उस पाठ को, उस सबक को भूलते गए। नतीजा यह हुआ कि भारतीय समाज में महिलाओं को अपने तरीके से जीने का हक मिला नहीं, जिसकी कल्पना भारतीय नवजागरण के अग्रदूतों ने की थी। इसी वजह से बहुत सारी महिलाएं आज भी वैधव्य का अभिशाप झेलने को विवश हैं। केदारनाथ त्रासदी में न जाने कितनी महिलाओं के सुहाग लुटे। लेकिन तमाम राहत और मदद के बावजूद उन महिलाओं के जीवन में हरियाली नहीं आई, जो इस त्रासदी में विधवा हुईं। कारण सिर्फ एक है और वह है विधवा विवाह को पूरी तरह सामाजिक स्वीकृति का न मिल पाना। केदारनाथ त्रासदी की शिकार महिलाओं में एक नाम है विनीता। विनीता की खुशियां भी उस जल प्रलय में बह कर इतनी दूर चली गई कि वापसी की कोई गुंजाइश नहीं बची। युवा विनीता की बची हुई लंबी जिंदगी पहाड़ बन गई। आसुंओं का सैलाब उमड़ा। दुखों के बादल आए, उमड़े और बरसे। यह सिलसिला अब तक चलता ही रहता अगर उसे सुलभ प्रणेता का सहारा नहीं मिलता।
वृंदावन में विधवाओं की स्थिति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई थी। कोर्ट के सुझाव पर सुलभ ने यहां रह रही विधवा माताओं की सुध लेने का बीड़ा अपने कंधों पर उठाया भारत में पहली बार विधवा विवाह 7 दिसंबर, 1856 को बंगाल में ईश्वारचंद्र विद्यासागर के प्रयासों से संभव हुआ। तब से अब तक कई विधवाओं की शादियां हुईं, लेकिन उत्तराखंड की विनीता और राकेश की शादी इसीलिए महत्वपूर्ण है कि अब तक रुद्रप्रयाग के देवली-भनीग्राम में विधवाओं को शादी करने की सामाजिक स्वीकृति नहीं थी और न ही ऐसा पहले कभी हुआ था। विनीता को अपना जीवन साथी चुनकर राकेश ने उसे एक नई और खुशहाल जिंदगी तो दे दी, लेकिन एक कसक रह गई थी, परिवार और समाज के बीच उमंग, उत्साह के साथ शादी करने की। जिस धूमधाम के साथ हमारे देश में शादियां होती हैं, वैसा कुछ नहीं हो सका था। एक गुमनाम शादी, जो कोर्ट और मंदिर में की गई और जिसमें शामिल हुए दोनों परिवारों के दो-चार लोग। बस एक औपचारिकता थी, जो निभा दी गई। पिछले लगभग 5 सालों में वृंदावन और वाराणसी के साथ-साथ उत्तराखंड की त्रासदी में ‘विधवाओं का गांव’ बन चुका रुद्रप्रयाग के देवली-भनीग्राम की विधवाओं का सुध ले रहे सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक को जब यह जानकारी मिली कि सिरवाणी गांव की 21 वर्षीया विनीता, जिसके एकाकी जीवन के बारे में वे चिंतित रहा करते थे कि उसकी शादी हो गई तो वे अपनी खुशी को रोक नहीं पाए और उनसे मिलने उसके नई ससुराल तिलवाड़ा तक पहुंच गए। बातचीत के दौरान जब उन्हें राकेश और उसके परिवार से पता चला कि
शादी तो हुई, लेकिन उस धूमधाम के साथ नहीं, जैसी होती है, कोई नाचा नहीं, कोई झूमा नहीं। विधवा विवाह के प्रबल समर्थक डॉ. पाठक नहीं चाहते थे कि सामाजिक परिवर्तन लानेवाली इस तरह की क्रांतिकारी घटना पर गुमनामी की परत चढ़ जाए। इसके बाद प्रतिकात्मक रूप से ही सही, 16 अक्टूबर, 2017 को वृंदावन के गोपीनाथ मंदिर में इन दोनों का जिस भव्यता के साथ उन्होंने विनीता का विवाह करवाया उसका गवाह पूरा देश बन गया। इस शादी की कवरेज के लिए देश ही नहीं, विदेश की मीडिया भी उपस्थित थी। इसके अलावा पिछले 5 वर्षों से सुलभ वृंदावन के विधवा आश्रमों में होली, दीपावली, क्रिसमस जैसे पर्व का आयोजन कर उन रूढ़िवादी परंपराओं की मुखालफत करता आ रहा है, जिसके अनुसार विधवाओं को किसी भी पर्व और त्योहार से वंचित किया जाता रहा है। गौरतलब है कि वृंदावन में विधवाओं की स्थिति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई थी। कोर्ट के सुझाव पर सुलभ ने यहां रह रही विधवा माताओं की सुध लेने का बीड़ा अपने कंधों पर उठाया। आज सुलभ की देखरख में वहां रही विधवा माताएं न सिर्फ स्वास्थ्य व आर्थिक तौर पर सुरक्षित हैं, बल्कि उनके जीवन में निराशा की जगह संतोष और प्रेरणा ने ले ली है। दिलचस्प है सुलभ का नाम सुनते ही सबसे पहले उसके द्वारा देश और देश से बाहर चलाए जा रहे स्वच्छता कार्यक्रमों का ध्यान आता है। पर सुलभ ने न सिर्फ शौचालय तकनीक
के जरिए सिर पर मैला ढोने वाले लोगों की जिंदगी में बदलाव लाने की कोशिश की है, बल्कि सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस आर्गेनाईजेशन की संस्था ‘नई दिशा’ के जरिए अब तक अछूत समझी जाती रही अनेकानेक महिलाओं की जिंदगी में नया सवेरा लाने की कोशिश भी की है। 2003 से ‘नई दिशा’ राजस्थान के टोंक जिला मुख्यालय के हुजूरी गेट इलाके में काम कर रही है। यहां की सैकड़ों महिलाओं को सिर पर न सिर्फ मैला ढोने की कुप्रथा से मुक्त कराया जा चुका है, बल्कि उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए सिलाई-कढ़ाई से लेकर अचार-पापड़ बनाने आदि के कामों से भी जोड़ा गया है, जिसके जरिए उन्हें रोजगार भी हासिल है। अब टोंक के संभ्रांत परिवारों में उनके बनाए अचार और पापड़ बिकते हैं। उनके द्वारा सिले कपड़े उच्चवर्गीय परिवारों के लोग भी पहनते हैं। ‘सुलभ’ ने इस कार्यक्रम की प्रेरक उषा चौमड़ को बनाया है। उषा चौमड़ अब सुलभ के स्कैवेंजर मुक्ति अभियान का प्रतीक बन चुकी हैं। वे संयुक्त राष्ट्र में भाषण दे चुकी हैं। हाल ही में उन्होंने लंदन में बुद्धिजीवियों के बीच भारतीय नारी और स्कैवेंजर मुक्ति पर भाषण दिया है। वह रैंप पर चल चुकी हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ.प्रतिभा पाटिल उन्हें सम्मानित कर चुकी हैं। ‘सुलभ’ अपने सामाजिक दायित्व को निभाते हुए वर्ष 2012 से वृंदावन, काशी और उत्तराखंड की विधवाओं एवं उन पर आश्रित 2000 लोगों की देखभाल कर रहा है। उन्हें अब भोजन के लिए किसी का इंतजार नहीं रहता है। आवश्यकता इस बात की है कि हम अपना सामाजिक और नैतिक दायित्व निभाएं और कम से कम किसी एक व्यक्ति को आत्मविश्वास दें ताकि वह अपने जीवन में आत्मनिर्भर हो सके। सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में हम सभी सक्षम हैं, लेकिन आवश्यकता बस एक पहल की है।
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21 - 27 मई 2018
नारी अस्मिता की रक्षा के साथ सामाजिक समन्वय पर जोर
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सती प्रथा के विरोध और विधवा विवाह की हिमायत के साथ धार्मिक-सामाजिक समन्वय को लेकर राजा राममोहन राय ने कई स्तरों पर कारगर और तारीखी पहल की
जा राममोहन राय ने नारी समाज के उद्धार के लिए अनेक प्रयास किए। यह उनके ही प्रयास का परिणाम था कि 1828 में सती प्रथा को समाप्त करने का कानून बनाया गया। उन्होंने विधवा विवाह का भी समर्थन किया था। सती प्रथा के समर्थक कट्टर लोगों ने जब इंग्लैंड में प्रिवी कौंसिल में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया, तब उन्होंने भी अपने प्रगतिशील मित्रों और साथी कार्यकर्ताओं की ओर से ब्रिटिश संसद के सम्मुख अपना विरोधी प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत किया। उन्हें तब प्रसन्नता हुई, जब प्रिवी कौंसिल ने सती प्रथा के समर्थकों के प्रार्थना-पत्र को अस्वीकृत कर दिया। सती प्रथा के मिटने से राजा राममोहन राय संसार के मानवतावादी सुधारकों की सर्वप्रथम पंक्ति में आ गए। राजा राममोहन राय के प्रयासों का तब के सामाजिक माहौल में क्या स्थिति थी, इसका महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि सती के नाम पर बंगाल में औरतों को जिंदा जला दिया
जाता था। समाज में बाल विवाह की भी प्रथा थी। कहीं-कहीं तो 50 वर्ष के व्यक्ति के साथ 12-13 वर्ष की बच्ची का विवाह कर दिया जाता था और
सती प्रथा के समर्थक कट्टर लोगों ने जब इंग्लैंड में प्रिवी कौंसिल में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया, तब उन्होंने भी अपने प्रगतिशील मित्रों और साथी कार्यकर्ताओं की ओर से ब्रिटिश संसद के सम्मुख अपना विरोधी प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत किया फिर अगर उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती थी तो उस बच्ची को उसकी चिता पर बिठा कर जिंदा जला दिया जाता था। इस तरह की अनेक कुरीतियों के खिलाफ
एक घटना ने बना दिया सती प्रथा का विरोधी
बड़े भाई की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी को सती होते देखकर पैदा हुए विचलन ने राजा राममोहन राय को इस कुप्रथा के विरोध का प्रथम पुरुष बना दिया
भा
रत में स्वतंत्र पत्रकारिता के जनक व समाजसेवी ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय के पूर्वजों ने बंगाल के नवाबों के यहां उच्च पद पर कार्य किया, किंतु
उन्होंने राजनीतिक मूल्यों का कभी भी परित्याग नहीं किया। भारत को राजनीतिक स्वतंत्रता का संदेश देने वाले राजा राममोहन राय पहले व्यक्ति थे। वे एक पत्रकार, संपादक तथा लेखक थे। उन्होंने ‘संवाद कौमुदी’ का बांग्ला भाषा में तथा पर्शियन भाषा में
उनके अभद्र व्यवहार के कारण पद छोड़ दिया। वे लोग वैष्णव संप्रदाय के थे। माता शाक्त थीं। राजा राममोहन राय बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। उन्होंने बीस वर्ष की आयु में पूरे देश का भ्रमण कर अपनी दृष्टि, मानस और चिंतन को आधारभूत विस्तार दिया। 1816 में उनके परिवार में एक अत्यंत पीड़ादायक घटना घटी। बड़े भाई की मृत्यु हुई। उस समय सती प्रथा प्रचलन में था। सो, भाई की चिता के साथ ही उनकी पत्नी को चिता पर बैठा दिया गया। इस घटना का उनके मन पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि 1885 में सती प्रथा के विरोध में प्रथम धार्मिक लेख लिखा। एक प्रकार से भारतीय समाज में आचार-विचार को स्वतंत्रता का श्रीगणेश यहीं से प्रारंभ हुआ। सती प्रथा के विरोध में यह उनका प्रथम प्रयास था।
‘विराट उल’ अखबार का सफल संपादन किया। वे लिखित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धांत का समर्थन करते थे। 1823 में द्वारकानाथ ठाकुर, सज्जन बोस, गौरी शंकर बनर्जी तथा चंद्र कुमार आदि के साथ मिलकर हाई कोर्ट के सामने एक
राजा राममोहन राय ने अपने ही लोगों से जंग लड़ी। लोगों ने उन पर ब्रिटिश एजेंट होने तक के आरोप लगाए, लेकिन उच्च आदर्शों वाले एक सच्चे योद्धा की तरह वे अडिग रहे और विजयी भी हुए। वे रूढ़िवाद और कुरीतियों के विरोधी थे, लेकिन संस्कार, परंपरा और राष्ट्र गौरव के गुण उनके दिल के बहुत करीब थे। वे स्वतंत्रता चाहते थे, लेकिन उनकी यह भी हसरत थी कि देश के नागरिक उसकी कीमत पहचानें। उनके व्यक्तित्व दृष्टिकोण एवं विचार पर गहन दृष्टि डालने से यह स्पष्ट हो गया है कि उनके विचारों पर पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव था। उन्होंने एकेश्वरवाद का प्रसार किया तथा मूर्ति पूजा, बलि प्रथा, भेदभाव, छुआछूत, बहुविवाह एवं सती प्रथा का विरोध किया। वे सभी संस्कृतियों में समन्वय में विश्वास रखते थे। वे धार्मिक तौर पर काफी सहिष्णु थे।
ब्रह्म समाज के प्रमुख सिद्धांत
• परमात्मा कभी जन्म नहीं लेता • वह संपूर्ण गुणों का भंडार है
• परमात्मा प्रार्थना सुनता तथा स्वीकार करता है
• सभी जाति के मनुष्यों को ईश्वर पूजा का अधिकार प्राप्त है • पूजा मन से होती है
• पाप कर्म का त्याग तथा उसके लिए प्रायश्चित करना मोक्ष प्रिप्त का साधन है • संसार में सभी धर्मग्रंथ अधूरे हैं
‘ब्रह्म समाज’ भारत का एक सामाजिक धार्मिक आंदोलन है, जिसने बंगाल के पुनर्जागरण युग को प्रभावित किया। 1828 में ब्रह्म समाज को राजा राममोहन और द्वारकानाथ टैगोर ने स्थापित किया था याचिका प्रस्तुत करके उन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता की मांग की थी। याचिका अस्वीकृत कर देने पर राजा राममोहन राय ने इस निर्णय के विरुद्ध मंत्री परिषद में अपील की।
रहे। भारत में राजनीतिक और सामाजिक चेतना जगाने के कारण ही उन्हें नए भारत का संदेश वाहक कहा जाता है। सुरेंद्र नाथ बनर्जी ने उन्हें संवैधानिक जागरुकता का जनक कहा था।
जब जनता को अपने नागरिक अधिकारों का कोई ज्ञान न था और विदेशी हुकूमत के सामने अपनी बात रखने की सोचता भी न था तब राजा राममोहन राय ने राजनीतिक जागरण में अपना अमूल्य योगदान दिया। अपने ओजपूर्ण राजनीतिक विचारों को शासन सत्ता के केंद्र तक पहुंचाने में कामयाब
1830 में राजा राममोहन राय मुगल सम्राट के दूत के रूप में उनके पेंशन और भत्ते के बारे में पक्ष रखने ब्रिटेन गए। ब्रिस्टल के समीप स्टेप्लटन में 27 सितंबर, 1833 को इस महान विभूति का निधन हो गया। वहां उनकी समाधि है और कॉलेज ग्रीन में उनकी एक भव्य मूर्ति भी लगी हुई है।
संवैधानिक जागरुकता
ब्रिस्टल में समाधि
21 - 27 मई 2018
डॉ. पाठक को मिलेगा निक्की एशिया पुरस्कार
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सम्मान
सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक को निक्की एशिया पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। यह पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है, जिन्होंने अपने उत्कृष्ट कार्यों से एशिया के विकास में अपना योगदान दिया है
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च्छता से जुड़े औद्योगिक उपक्रमों को बढ़ावा देने के लिए एक चीनी पर्यावरणविद ने इंटरनेट की ताकत का बेहतरीन इस्तेमाल किया है। इसी तरह बच्चों को अत्याधुनिक तकनीक चिकित्सा पद्धति उपलब्ध कराने के लिए एक वियतनामी डॉक्टर ने काम किया और एक भारतीय समाज सुधारक ने अपने देश की सबसे बड़ी चुनौतियों- अस्वच्छता और भेदभाव से लड़ने का बीड़ा उठाया। इन सभी को
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क्की एशिया पुरस्कार एक ऐसा पुरस्कार है जो पूरे एशिया में मानव जीवन में सुधार करने वाले लोगों और संगठनों की उपलब्धियों को मान्यता देता है। यह पुरस्कार जापान के सबसे बड़े मीडिया निगमों में से एक निक्की इंक द्वारा बनाए और प्रस्तुत किया जाता है। इस पुरस्कार को वर्ष 1996 में लॉन्च किया गया। यह पूरे एशिया में उन लोगों का सम्मान
इस वर्ष के निक्की एशिया पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है। यह पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है, जिन्होंने अपने उत्कृष्ट कार्यों से एशिया के विकास में अपना योगदान दिया है। यह पुरस्कार 13 जून को टोक्यो में दिए जाएंगे। बता दें कि निक्की एशिया पुरस्कार वर्ष 1996 में निक्की इंक के मुख्य जापानी भाषा के अखबार द निक्की की 120वीं वर्षगांठ मानाने के लिए बनाए गए थे। वे इसके माध्यम से तीन क्षेत्रों- आर्थिक
डॉ. विन्देश्वर पाठक शौचालय को सामाजिक न्याय के लिए एक उपकरण के रूप में देखते हैं, जो भारतीय समाज के सबसे निचले तबके के लोगों को लाभान्वित करता है और व्यावसायिक नवाचार, विज्ञान और तकनीक, संस्कृति और समुदाय में योगदान करने वालों का सम्मान करते हैं। इसके लिए पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र
प्रतिष्ठित पुरस्कार
करता है जिन्होंने तीन क्षेत्रों- क्षेत्रीय विकास, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार और संस्कृति में से किसी एक में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। क्षेत्रीय विकास (आर्थिक और व्यापार नवाचार) की श्रेणी को व्यापार और आर्थिक पहलों को पहचानने के लिए डिजाइन किया गया है, जो उनके क्षेत्रों में जीवन स्तर और स्थिरता में सुधार लाते हैं। यह ऐसे उद्यमी हो सकते हैं, जिन्होंने नवाचार के कारण उद्योगों और व्यवसायों
को सफलतापूर्वक विकसित किया हो। विभिन्न क्षेत्रों में वैज्ञानिक शोध और तकनीकी नवाचारों को पहचानने के लिए विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण की श्रेणी को स्थापित किया गया है। संस्कृति की श्रेणी उन लोगों को पहचानने के लिए डिजाइन की गई है, जिन्होंने सांस्कृतिक, कलात्मक या शैक्षणिक गतिविधियों के माध्यम से अपने देश और एशिया के विकास में अपना योगदान दिया है।
23वें निक्की एशिया पुरस्कार पाने वाले
के विशेषज्ञ नामांकन करते हैं। इसमें उम्मीदवार खुद को नामांकित नहीं कर सकते और जापानी व्यक्ति और संगठन इसके लिए अयोग्य माने जाते हैं।
चयन
इस पुरस्कार में नामांकित व्यक्तियों का चयन क्षेत्र के टिकाऊ विकास और एशिया के बेहतर भविष्य के लिए किए गए योगदान के आधार पर किया जाता है। इसके साथ ही विचार-विमर्श कर प्रत्येक उम्मीदवार की उपलब्धियों की मौलिकता, प्रभाव और योग्यता का भी ध्यान रखा जाता है।
सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक
सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक को संस्कृति और समाज के लिए उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए सम्मानित किया जा रहा है। डॉ. पाठक ने वर्ष 1970 में सुलभ इंटरनेशनल नाम से एक गैर सरकारी संस्था की स्थापना की, जिसने पूरे भारत में सुलभ टू-पिट पोर फ्लश शौचालयों का निर्माण किया और भारतीय समाज में लंबे समय से चली आ रही मैला ढोने की प्रथा व छूआछूत की बीमारी से गरीब महिलाओं और पुरुषों को सुरक्षा प्रदान की।
वियतनामी चिकित्सक गुएन थान लिम
वियतनाम के विनमेक रिसर्च इंस्टीट्यूट के स्टेम सेल और जीन टेक्नोलाजी के निदेशक गुएन थान लिम को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पुरस्कृत किया जा रहा है। वियतनाम के अग्रणी बाल चिकित्सकों में से एक गुएन थान लिम ने 1997 में एक बच्चे पर देश की पहली सफल न्यूनतम आक्रमणकारी लैप्रोस्कोपिक सर्जरी की। गुएन ने रोबो-सहायता सर्जरी और अन्य उन्नत प्रौद्योगिकी शुरू की, जिससे बच्चों के लिए जीवन-परिवर्तनकारी उपचार करने में सफलता मिली है।
चीनी संस्थान आईपीई के संस्थापक-निदेशक माजो
चीन के सार्वजनिक और पर्यावरण संस्थान (आईपीई) के संस्थापक निदेशक माजो को आर्थिक और व्यावसायिक नवाचार के क्षेत्र में किए गए उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए पुरस्कृत किया जा रहा है। माजो एक एेसे गैर सरकारी संस्था का नेतृत्व करते हैं, जो ऑनलाइन प्रदूषण डेटाबेस तैयार करता है और इस क्षेत्र में विशेष जानकारी प्रस्तुत करता है। इसके साथ ही यह संस्था एेसे सूचकांकों का भी प्रकाशन करती है, जिनमें पर्यावरण सुरक्षा के लिए किए गए काॅरपोरेट कार्यों, विविध पर्यावरणीय मोर्चों पर बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली प्रादेशिक सरकारों और कंपनियों का मूल्यांकन रहता है।
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आयोजन
21 - 27 मई 2018
फिल्म ‘किताब’ का प्रीमियर
किताबें कुछ कहना चाहती हैं तुम्हारे पास रहना चाहती हैं!
निर्देशक कमलेश के. मिश्र की लघु फिल्म ‘किताब’ का प्रीमियर नई दिल्ली स्थित फिल्म डिवीजन ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया। साथ ही प्रीमियर से पहले ‘इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के बढ़ते प्रभाव में किताबों का अस्तित्व’ विषय पर सारगर्भित परिचर्चा भी आयोजित की गई
अयोध्या प्रसाद सिंह बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो ऐ काश हमारी आंखों का इक्कीसवां ख्वाब तो अच्छा हो।
गु
लाम मोहम्मद कासिर के लिखे इस शेर से किताबों के महत्व को समझा जा सकता है। सदियों से ज्ञान के रूप में किताबें ही मानव जीवन का वो आधार रही हैं जिस पर आदर्श जीवन और बेहतर दुनिया का सपना साकार हो सका है। लेकिन आधुनिक युग में तकनीक के इस्तेमाल की बढ़ती ललक ने किताबों के अस्तित्व पर भी सवालिया निशान लगा दिया। इन्हीं सवालों के जवाब ढ़ूंढती निर्देशक कमलेश के. मिश्र की लघु फिल्म ‘किताब’ का प्रीमियर नई दिल्ली स्थित फिल्म डिवीजन ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया। साथ ही प्रीमियर से पहले ‘इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के बढ़ते प्रभाव में किताबों का अस्तित्व’ विषय पर सारगर्भित परिचर्चा भी आयोजित की गई।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक और हिंदी अकादमी की उपाध्यक्षा और प्रसिद्ध लेिखका मैत्रेयी पुष्पा थीं। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार और पार्लियामेंटेरियन पत्रिका के संपादक त्रिदीब रमण ने किया।
किताबें सहारा देती हैं
इस मौके पर सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक ने अपनी जिंदगी में किताब के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि किताबों के अस्तित्व पर उठ रहे सवालों को मैं वाजिब नहीं मानता क्योंकि किताबें किसी
भी दौर में अप्रचलित नहीं हो सकतीं। आज के युग में गैजेट्स भले ही किताबों से लैस होकर आ रहे हों, लेकिन जो आनंद और सुख किताबें पढ़ने और सीखने में है, वो गैजेट्स में नहीं । उन्होंने कहा कि गैजेट्स को बिजली से लेकर इंटररनेट तक कई सहारों की जरूरत पड़ती है, लेकिन किताबों को किसी सहारे की जरूरत नहीं होती। इस तरह किताबें सहारा लेती नहीं, सहारा देती हैं। डॉ. पाठक ने आगे कहा कि किताब पढ़ते हुए आप किताब की विषय वस्तु में डूब जाते हैं और उसके पात्रों से खुद को जोड़ लेते हैं, यह तन्मयता गैजेट्स पर कुछ भी पढ़ते हुए कभी नहीं आ सकती। डॉ. पाठक ने यह
गैजेट्स को बिजली से लेकर इंटररनेट तक कई सहारों की जरूरत पड़ती है, लेकिन किताबों को किसी सहारे की जरूरत नहीं होती। इस तरह किताबें सहारा लेती नहीं, सहारा देती हैं - डॉ. पाठक
भी बताया कि किस तरह अपने जीवन की शुरुआत में ही उन्होंने लोगों को देखकर सामाजिक अध्ययन करना शुरू कर दिया था। उसके बाद साहित्य की तरफ उनके रुझान ने उन्हें समाज को समझने का बेहतर मौका दिया। उन्होंने बताया कि उनके जीवन में अच्छी किताबों का बहुत बड़ा योगदान है और किताबों से ही उन्हें जिंदगी में बेहतर करने की प्रेरणा मिलती रही। डॉ. पाठक खुद करीब 32 से ज्यादा किताबें लिख चुके हैं और इस वक्त अपनी आत्मकथा भी लिख रहे हैं।
किताबें सुविधाजनक होती हैं, गैजेट्स नहीं
इस अवसर पर प्रसिद्ध लेखिका मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि किताबों की संस्कृति कभी खत्म नहीं होगी। उन्होंने किताबों के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि किताबों का इतिहास अगर देखें, तो वह दौर जब भोजपत्र पर लिखा जाता था, तब से लेकर आज तक किताबें कई बार बदलीं, कई नए नए प्रयोग किए गए। लेकिन किताबों के महत्व पर कोई असर नहीं पड़ा। उन्होंने कहा कि किताबों के साथ सुविधा होती है, आप इसे किसी भी रूप में, किसी भी तरह पढ़ सकते हैं। लेकिन गैजेट्स के साथ ऐसा नहीं है। उन्होंने बताया कि दूर-दराज के क्षेत्रों में किताबें आसानी से पहुंचाई जा सकती हैं और लोग इन्हें पढ़ सकते हैं। अपने लेखन में स्त्री-विमर्श को प्रमुख स्थान देने वाली मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि स्त्री-विमर्श को
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आयाेजन
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आपका किताबों से बड़ा हमदर्द कोई दूसरा नहीं हो सकता। किताबें ही हैं, जो हमारी सोच या नजरिए का निर्माण करती हैं, इसीलिए बेहतर किताबों के सान्निध्य में रहना बहुत जरूरी है - मैत्रेयी पुष्पा
हर जगह पहुंचाने और इसको लेकर लोगों को जागरूक बनाने में किताबों का बहुत बड़ा हाथ है। किताबें हमेशा से ही एक लेखक की संवेदना और उसकी आवाज को लोगों तक पहुंचाती रही हैं।
किताबों के साथ चिट्ठियों पर भी हो बात
लेकिन आज के दौर किताबों के साथ-साथ चिट्ठियों की खत्म होती संस्कृति पर भी मैत्रेयी पुष्पा ने चिंता जताई। उन्होंने अपने कई संस्मरणों के माध्यम से बताया कि किस तरह चिट्ठियों का उनकी जिंदगी में बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने याद करते हुए कहा कि जब अपनी एक पत्रिका शुरू की तो उसमें ‘प्रेम पत्र’ नाम का एक कॉलम बनाया, जिसमें लोगों के पत्र शामिल किए जाते थे। साथ ही उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों की चर्चा करते हुए कहा कि किस तरह सब चिट्ठियों के माध्यम से खूब संवाद करते थे।
किताबें हैं मोहब्बत की कहानी
मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि किताबें और ग्रंथ यदि आपके घर में हैं तो आपको हमेशा बेहतर संदेश मिलता रहेगा और आप सकारात्मकता से भरे रहेंगे। उन्होंने कहा कि आपका किताबों से बड़ा हमदर्द कोई दूसरा नहीं हो सकता। किताबें ही हैं, जो हमारी सोच या नजरिए का निर्माण करती हैं, इसीलिए बेहतर किताबों के सान्निध्य में रहना बहुत जरुरी है। किताबों को सुविधा का दूसरा रूप बताते हुए
उन्होंने कहा कि किताबों की संस्कृति मोहब्बत की कहानी है, किताबें हमेशा से ही बेहतर दुनिया बनाने का संदेश देती आई हैं। ‘अल्मा कबूतरी’ और ‘इदन्नेमम’ जैसे उपन्यासों की लेखिका मैत्रेयी पुष्पा ने किताबों की संस्कृति को बचाने के लिए सबको साथ आने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि जो जितना पढ़ेगा, उतना बेहतर इंसान बनेगा। गैजेट्स और आधुनिक साधन अपनी तेज और चमकती दुनिया की वजह से लोगों का ध्यान जरूर खींचते हैं, लेकिन ठहराव और सभी भावों के साथ जिस ज्ञान और खूबसूरत दुनिया से किताबें रूबरू करातीं हैं, आधुनिक साधन कभी नहीं करा सकते।
किताबों को बचाने के लिए टॉम अॉल्टर की जद्दोजहद
परिचर्चा के बाद लघु फिल्म 'किताब' का प्रीमियर हुआ। खूबसूरत फिल्मांकन और दिल को छू लेने वाली कहानी से 'किताब' ने सभी का मन मोह लिया। 25 मिनट की इस लघु फिल्म में कोई संवाद नहीं है, लेकिन भावपूर्ण अभिनय मुद्राएं,संगीत और पात्रों के मूड्स और उनके शेड्स अपना संदेश दर्शकों तक पहुंचा देते हैं। फिल्म में लाइब्रेरी के प्रति लोगों की कम होती दिलचस्पी को दर्शाया गया है। फिल्म की कहानी एक सार्वजनिक पुस्तकालय (लाइब्रेरी) के इर्द-गिर्द घूमती है। इस सार्वजनिक लाइब्रेरी में एक उम्रदराज लाइब्रेरियन है। अभिनेता
टॉम अॉल्टर ने लाइब्रेरियन की भूमिका निभाई है। गौरतलब है कि अपनी मृत्यु से कुछ दिनों पहले ही उन्होंने इस फिल्म को पूरा किया था। फिल्म में दिखाया गया है कि साल 2005 में बहुत सारे लोग लाइब्रेरी आते हैं और अध्ययन करते हैं। लेकिन आने वाले सालों में धीरे-धीरे लाइब्रेरी में लोग कम होने लगते हैं और साल 2014 आते-आते लोगों की संख्या लाइब्रेरी में बिलकुल कम हो जाती है। अब बूढ़ा लाइब्रेरियन पाठकों की कम होती संख्या देखकर परेशान होने लगता है। लेकिन तभी फिल्म में एक ट्विस्ट आता है और एक युवा लड़की लाइब्रेरी आती है। वह लाइब्रेरी की सदस्य बनती है और बूढ़ा लाइब्रेरियन अब उसके साथ घुलनेमिलने लगता है। धीरे-धीरे दोनों एक दूसरे के अकेलेपन के साथी बन जाते हैं। लेकिन एक दिन अचानक से वह लड़की लाइब्रेरी आना बंद कर देती है, अब बूढ़ा लाइब्रेरियन फिर से परेशान हो उठता है। पहले तो वह कई दिनों तक इंतजार करता है और अंत में उस लड़की को ढूंढने निकल पड़ता है। इससे आगे की कहानी बेहद दिलचस्प है। फिल्म में लाइब्रेरी और किताबें के प्रति लोगों की घटती रुचि को बहुत ही बेहतर तरीके से फिल्माया गया है। फिल्म का निर्देशन कमलेश के. मिश्र ने किया है। फिल्म में मुख्य अभिनेत्री का किरदार पूजा दीक्षित ने निभाया है। लाइब्रेरी और किताबों के प्रति लोगों को प्रेरित करने की,यह बहुत अच्छी पहल की गई है।
आधुनिक युग में बदला किताब का रूप
संचालक की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ पत्रकार त्रिदीब रमण ने गुलजार की मशहूर कविता ‘किताबें झांकती हैं बंद आलमारी के शीशों से’ पढ़कर परिचर्चा की शुरुआत की। उन्होंने कई सारे
उदाहरणों के माध्यम से आधुनिक युग में किस तरह किताबों की भूमिका बदली है, इस पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा भले ही हम लोगों को लग रहा हो कि किताबें हमारे समाज से दूर जा रही हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। युवा पीढ़ी का कहना है कि किताबें और गैजेट्स एक-दूसरे के पूरक हैं। आज की युवा पीढ़ी किताबों के साथ-साथ किंडल जैसे गैजेट्स का भी इस्तेमाल करती है, जहां पर बहुत सी पाठ्य सामग्री पढ़ने के लिए मौजूद रहती है। इसके साथ-साथ ‘वॉट पैड’ और ‘जगरनॉट’ जैसे ऐप्प का भी पढ़ने के लिए बहुतायत में इस्तेमाल हो रहा है, जहां बहुत सी पाठ्य सामग्री मुफ्त में भी उपलब्ध है। त्रिदीब रमण ने आधुनिक युग में किताबों के बदलते स्वरूप पर एक रोचक किस्सा साझा करते हुए एक चर्चित पुस्तक ‘चेजिंग रेड’ का जिक्र किया। लेखिका इजाबेल रोनिन के इस पहले उपन्यास ने आते ही धमाका कर दिया था।‘चेजिंग रेड’ को सबसे पहले ‘वॉट पैड’ पर रिलीज किया गया था और वहां इसे तकरीबन 17.4 करोड़ लोगों ने पढ़ा। पाठकों और लेखिका के बीच कई दौर का संवाद भी हुआ। कई पात्रों और घटनाओं को बदला गया। अंत में, किताब के इस डिजिटल रूप की सफलता को देखते हुए, किताब का छपा हुआ संस्करण लाया गया और बाजार में आते ही, यह बेस्ट सेलर किताब में शामिल हो गई। इस अवसर पर फिल्म के निर्देशक कमलेश ने सभी आगंतुकों का धन्यवाद व्यक्त किया। साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि जो संदेश वह समाज को देना चाहते थे, वह इस फिल्म के माध्यम से लोगों तक पहुंचा है। उन्होंने निराशा जताई कि टॉम अॉल्टर की मृत्यु होने से वह इस फिल्म को उन्हें नहीं दिखा पाए। कार्यक्रम के अंत में, डॉ पाठक, मैत्रेयी पुष्पा और त्रिदीब रमण को सम्मानित भी किया गया।
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विशेष
21 - 27 मई 2018
अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (22 मई) पर विशेष
जैव विविधता का सिमटता दायरा
बी
रचना मिश्रा
सवीं सदी बीतते-बीतते पारिस्थितकी व पर्यावरण को लेकर होने वाली चिंता ने एक ग्लोबल शक्ल ले ली। समाज और सरकारों ने जीवन और प्रकृति के संबंधों और सरोकारों पर निए सिरे से विचार करने की विवशता को स्वीकार किया। इस दरकार और स्वीकार्यता का ही नतीजा है जैव विविधता को लेकर संयुक्त राष्ट्र की की एक बड़ी पहल। 'बायोलॉजिकल' और 'डायवर्सिटी' शब्दों को मिलाकर संयुक्त राष्ट्र की पहल पर 22 मई को अंतरराष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस मनाया जाता है। इसे 'विश्व जैव-विविधता संरक्षण दिवस' भी कहते हैं। इस पहल का लक्ष्य एक ऐसे पर्यावरण का निर्माण करना है, जो जैव- विविधता में समृद्ध, टिकाऊ और आर्थिक गतिविधियों के लिए हमें अवसर प्रदान कर सके। दिलचस्प है कि विकास के मौजूदा प्रचलन में उपभोग की कई चीजें जहां एक तरफ हमारे जीवन में शामिल होती जा रही हैं, वहीं प्रकृति और परंपरा का पुराना साझा लगातार दरकता जा रहा है। दुनिया के तमाम देशों के विकासवादी लक्ष्यों के आगे यह बड़ी चुनौती है कि वह जैव विविधता के साथ सामंजस्य बैठाते हुए कैसे आगे बढ़ें। यह चुनौती इस कारण भी बड़ी है, क्योंकि जैव-विविधता की कमी से प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़, सूखा और तूफान आदि आने का खतरा और अधिक बढ़ जाता है। जैव-विविधता की दरकार और इसके संरक्षण
को लेकर लेकर बीते कुछ सालों में निश्चित रूप से जागरुकता बढ़ी है। सरकार के साथ कई स्वयंसेवी संस्थाएं इस दिशा में कई अच्छी पहल के साथ सामने आई हैं। दरअसल, लाखों विशिष्ट जैविकों की कई प्रजातियों के रूप में पृथ्वी पर जीवन उपस्थित है और हमारा जीवन प्रकृति का अनुपम उपहार है। अत: पेड़-पौधे, अनेक प्रकार के जीव-जंतु, मिट्टी, हवा, पानी, महासागर-पठार, समुद्र-नदियां इन सभी प्रकृति की देन का हमें संरक्षण करना चाहिए, क्योंकि यही हमारे अस्तित्व एवं विकास के लिए काम आती हैं। जैव-विविधता दिवस को अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाने का निर्णय भी प्राकृतिक एवं पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में जैव-विविधता का महत्व देखते हुए ही लिया गया।
'बायोडायवर्सिटी' शब्द रोसेन की देन जाने-माने संरक्षण जीव-विज्ञानी थॉमस यूजीन लवजॉय ने 1980 में 'बायोलोजिकल' और 'डायवर्सिटी' शब्दों को मिलाकर 'बायोलॉजिकल डायवर्सिटी' या जैविक विविधता शब्द प्रस्तुत किया। चूंकि ये शब्द दैनिक उपयोग के लिहाज से थोड़ा बड़ा महसूस होता था, इसीलिए 1985 में डब्ल्यू.जी.रोसेन ने 'बायोडायवर्सिटी' या जैव
विविधता शब्द की खोज की। मूल शब्द के इस लघु संस्करण ने तुरंत ही वैश्विक स्वीकार्यता प्राप्त कर ली। शायद ही कोई दिन जाता हो जब हम इस शब्द के संपर्क में नहीं आते हैं। समाचार पत्रों और शोध पत्रों में उद्धृत यह शब्द आसानी से समक्ष आ जाता है। जैव विविधता के मायने इतने अधिक प्रयुक्त शब्द के लिए कोई एक आदर्श परिभाषा का न होना वाकई आश्चर्यजनक है। परंतु शब्द के अर्थ से ही इसके मायने समझ में आ जाते हैं। सभी जानते हैं कि 'जैविक' का अर्थ एक जीव जगत है और 'विविधता' का शाब्दिक अर्थ है प्रकार। बायोडायवर्सिटी के पहले हिस्से 'बायो' का अर्थ निकालने में भी कोई दुविधा नहीं है, यह शब्द जीवन या सजीव को इंगित करता है। जैविक विविधता अथवा जैव विविधता का सीधा अर्थ है, ‘जीवित संसार की विविधताएं’। कम से कम मोटे तौर पर तो इसका यही अर्थ समझा जा सकता है, परंतु 'विविधता' शब्द की व्याख्या कई तरह से की जा सकती है। इससे जीवन के विविध पहलुओं का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों की चर्चा में सूक्ष्मभेद उत्पन्न हो जाते हैं। इसीलिए 'विविधता' के तहत न सिर्फ एक प्रजाति के अंदर पाए जाने वाली विविधताएं, अपितु विभिन्न प्रजातियों के मध्य अंतर और पारिस्थितिकीय तंत्रों के मध्य तुलनात्मक
वैश्विक जैव विविधता की सटीक रूप से गणना करना लगभग असंभव है। इस बारे में अब तक की गणना और उसके वर्गीकरण के मुताबिक विश्व भर में करीब 7,50,000 कीट, 41,000 जीव और 2,50,000 वनस्पतियां हैं
खास बातें 1985 में डब्ल्यू.जी.रोसेन ने की 'बायोडायवर्सिटी' शब्द की खोज 1992 में पृथ्वी सम्मेलन में जैव विविधता की मानक परिभाषा तय भारत खेती वाले पौधों के विश्व के 12 उद्भव केंद्रों में से एक है विविधता भी शामिल की जाती है। साधारण व्यक्ति जब शब्द जैव विविधता का प्रयोग करता है तो उसका तात्पर्य प्रजातीय जैव विविधता होता है। प्रजाति का अर्थ है ऐसे प्राणियों का समूह जो ऐसी संतति पैदा करने की क्षमता रखते हों जो खुद जननक्षमता रखते हों। सामान्य आदमी के लिए इस शब्द के तहत कबूतर से लेकर हाथी और अनार से लेकर शलगम तक की समस्त प्रजातियां सम्मिलित हैं। जैव विविधता जीवों की असामान्य विविधताओं तक ही सीमित नहीं रहती है। इसके अंतर्गत जीवित पदार्थों के संपूर्ण संग्रह का कुल योग और जिस पर्यावरण में वे रहते हैं, अर्थात पारिस्थितिकी तंत्र, भी सम्मिलित हैं। इसमें जीवों के अंदर और उनके मध्य की विविधताओं को भी दृष्टिगत रखा जाता
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जैविक हॉट स्पॉट
जैव विविधता विशेषज्ञ डॉ. नॉर्मन मायर्स ने सबसे पहले जैव विविधता हॉट स्पॉट को पहचाना और 1988 और 1990 में प्रकाशित अपने दो लेखों में इन्हें प्रस्तुत किया पुष्पीय पौधों में से लगभग एक तिहाई पौधे पाए जाते हैं।
पश्चिमी घाट हॉट स्पॉट
दु
निया के ‘जैव विविधता हॉट स्पॉट’, ऐसे क्षेत्र हैं जहां स्थानित प्रजातियों की भरमार हो। ऐसे दो क्षेत्र भारत में हैं। जैव विविधता विशेषज्ञ डॉ. नॉर्मन मायर्स ने सबसे पहले जैव विविधता हॉट स्पॉट को पहचाना और 1988 और 1990 में प्रकाशित अपने दो लेखों में इन्हें प्रस्तुत किया। अधिकांश हॉट स्पॉट उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों और जंगली इलाकों में मौजूद हैं। 1988 में किए गए अध्ययन में पहचाने गए 18 हॉट स्पॉट में से दो भारत में खोजे गए। ये दो क्षेत्र पश्चिमी घाट और पूर्वी हिमालय थे। हाल ही में संशोधित 25 हॉट स्पॉट की सूची में चुने गए दो क्षेत्र पश्चिमी घाट/श्रीलंका और भारतबर्मा क्षेत्र को शामिल किया गया है। ये दोनों ही विश्व के आठ शीर्ष सर्वाधिक महत्वपूर्ण हॉट स्पॉट क्षेत्रों में सम्मिलित हैं। इसके साथ ही भारत में ऐसे 26 मान्यता प्राप्त स्थानिक केंद्र हैं, जहां आज तक पहचाने गए और वर्णित है। इसमें एक दूसरे के ऊपर प्रभाव डालने वाले समुदाय भी सम्मिलित हैं।
तुलनात्मक विविधता
इस दृष्टि से अगर देखा जाए तो जैव विविधता विभिन्न पारिस्थितिकीय तंत्रों में उपस्थित जीवों के बीच तुलनात्मक विविधता का आकलन है। साथ ही यह एक महत्वपूर्ण संकल्पना भी है, क्योंकि सभी जीव और उनका पर्यावरण एक दूसरे पर अत्यंत नजदीकी से प्रभाव डालते हैं। इस पर्यावरण में कोई भी बदलाव या तो जीव के विलुप्त होने का कारण बनता है या फिर उनकी संख्या में विस्फोटक बढ़ोत्तरी का। कोई भी प्रजाति अपने पर्यावरण के प्रभाव से अनछुई नहीं रह सकती है। इसी प्रकार किसी प्राणी या वनस्पति की संख्या में कमी या वृद्धि इनके पर्यावरण में परिवर्तनीय प्रभाव डालता है। इससे अन्य प्रजातियों के जीवन
पश्चिमी घाटों को सहयाद्री पहाड़ियां भी कहा जाता है। इस क्षेत्र में लगभग 1,60,000 वर्ग कि.मी. का क्षेत्रफल आता है और यह क्षेत्र देश के दक्षिणी छोर से गुजरात तक 1600 कि.मी. तक फैला हुआ है। पश्चिमी घाट दक्षिण-पश्चिम मानसूनी हवाओं को रोकते हैं, इसीलिए इन पहाड़ियों की पश्चिमी ढलानों पर हर साल भारी बारिश होती है। इसीलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि यहां पाई जाने वाली वानस्पतिक विविधताएं गणना से लगभग परे हैं। झाड़ीदार जंगल, पतझड़ी एवं उष्ण कटिबंधीय वर्षावन, पर्वतीय जंगल और ढलानदार घास के मैदान, यहां सभी कुछ पाया जाता है।
भारत-बर्मा हॉट स्पॉट
यह हॉट स्पॉट उष्ण कटिबंधीय एशिया के गंगाब्रह्मपुत्र निम्नभूमि का 23,73,000 वर्ग कि.मी. क्षेत्र घेरता है। इस हॉट स्पॉट में पारिस्थितिकी तंत्रों की आश्चर्यजनक विविधताएं देखने को मिलती हैं। इनमें मिश्रित आर्द्र सदाबहार, शुष्क सदाबहार, पतझड़ी एवं पर्वतीय वन सम्मिलित हैं। झाड़ीदार वन, काष्ठवन और बिखरे हुए बंजर वन भी कहीं-कहीं पाए जाते हैं। इस क्षेत्र में निम्नभूमि बाढ़ से तैयार दलदल, कच्छ वनस्पतियां (मैंग्रोव) और मौसमी घास के मैदान भी पाए जाते हैं। प्राकृतिक वासों की विविधता के सहयोग से प्राप्त जीवन के प्रकार वास्तव में बेहतरीन विविधता का उदाहरण हैं। पर भी प्रभाव पड़ता है। वृहद रूप से देखा जाए तो वनस्पतियों, प्राणियों और सूक्ष्मजीवों को अति विविधताओं के आधार पर समझा जा सकता है, जीन से प्रजाति तक और उनके पारिस्थितिकी तंत्र के साथ। इसीलिए जैव विविधता की सबसे स्पष्ट परिभाषा होगी, जैविक संगठन के सभी स्तरों पर पाई जाने वाली विविधताएं ही जैव विविधता है। इस दृष्टिकोण को समझने वालों के लिए स्वीकार्य परिभाषा, किसी क्षेत्रा के जीनों, प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्रों की संपूर्णता होगी।
रियो में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन
1992 में रियो डी जेनेरियो में आयोजित संयुक्त राष्ट्र पृथ्वी सम्मेलन में जैव विविधता की मानक परिभाषा को अपनाने का निर्णय लिया गया। इसके तहत जैव विविधता के दायरे में ‘समस्त स्रोतों, यथा- अंतर्क्षेत्रीय, स्थलीय, समुद्री एवं अन्य जलीय
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विशेष
12 देशों को वृहद जैव विविधता वाले देशों का दर्जा मिला हुआ है। ये देश हैं- भारत, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन, कोलंबिया, इक्वाडोर, इंडोनेशिया, मेडागास्कर, मलेशिया, मैक्सिको, पेरू एवं जैरे पारिस्थितिकी तंत्रों के जीवों के मध्य अंतर और साथ ही उन सभी पारिस्थितिकी समूहों में पाई जाने वाली विविधताएं, इसमें एक प्रजाति के अंदर पाई जाने वाली विविधताएं, विभिन्न जातियों के मध्य विविधताएं एवं पारिस्थितिकी तंत्रों की विविधताओं’ को शामिल किया गया। वैसे जैव विविधता को हम चाहे जैसे भी परिभाषित करें, इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि यह अरबों वर्षों के विकास का परिणाम है, जिसे प्राकृतिक गतिविधियों द्वारा आकार प्रदान किया गया। जीव-विज्ञानियों के नजरिए से जैव विविधता जीवों एवं प्रजातियों तथा उनके मध्य प्रभावों का संपूर्ण वर्णक्रम है। वे इस बात का अध्ययन करते हैं कि पृथ्वी पर जीवों की उत्पत्ति कैसे हुई, किस प्रकार वे विलुप्त हुए। बहुत सी प्रजातियां सामाजिक प्रवृत्ति की होती हैं जो अपनी प्रजाति के अन्य सदस्यों एवं अन्य प्रजातियों से पारस्परिक क्रिया कर अपने जीवित रहने की दर को अधिकतम रखती हैं। परिस्थिति-विज्ञानी जैव विविधता का अध्ययन न सिर्फ प्रजातियों के संदर्भ में करते हैं, अपितु प्रजाति के निकटतम वातावरण और उस वृहद परिक्षेत्र, जिसमें वह निवास करते हैं, के संदर्भ में भी करते हैं। प्रत्येक पारिस्थितिकी तंत्र में जीव एक समग्रता का हिस्सा होते हैं जो न सिर्फ अन्य जीवों, बल्कि उनके चारों ओर मौजूद वायु, जल और मिट्टी से भी परस्पर प्रभावित होते हैं। यही वह पहलू है जिस पर ज्यादातर पारिस्थितिकीय अध्ययन केंद्रित होते हैं।
जैव विविधता की गणना!
वैश्विक जैव विविधता की सटीक रूप से गणना करना लगभग असंभव है। इस बारे में अब तक की गणना और उसके वर्गीकरण के मुताबिक विश्व भर में करीब 7,50,000 कीट, 41,000 जीव और 2,50,000 वनस्पतियां हैं। अनवरत वैज्ञानिक खोज और अनुसंधान के बावजूद हम अभी तक
पृथ्वी पर समस्त संभावित पारिस्थितिकी तंत्र और प्राकृतिक आवास भी नहीं खोज पाए हैं। इस प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्रों में महासागरों की गहराइयां, पेड़ों की चोटियां और उष्ण कटिबंधीय वनों की मिट्टी सम्मिलित हैं। समय हमारे लिए भी बहुत तेजी से भाग रहा है। बहुत सी प्रजातियां खतरनाक ढंग से विलुप्तता के कगार पर हैं और शायद जब तक विज्ञान के ज्ञान का प्रकाश उन तक पहुंचे, उनमें से कई गुमनामी की गर्त में खो चुकी होंगी।
अव्वल है अमेजन
जैव विविधता का विस्तार पूरे विश्व में एक समान नहीं है। दुनिया की कुल भूमि क्षेत्र के लगभग सात प्रतिशत हिस्से में दुनिया भर की आधी प्रजातियां निवास करती हैं, जिसमें से उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में ही एक बहुत बड़ा हिस्सा बसता है। हालांकि इस विषय पर एक राय कायम नहीं है कि पृथ्वी के किस हिस्से में सर्वाधिक जैव विविधता है, परंतु अमेजन वर्षावनों को इस शीर्ष पद पर काबिज करने के लिए सर्वाधिक स्वीकार्यता प्राप्त है।
भारत की जैविक संपन्नता
कुछ देशों की तुलना में कुछ देशों में अत्यधिक प्रजातीय प्रचुरता एवं स्थानिक प्रजातियों की अधिक संख्या पाई जाती है। 12 देशों को वृहद जैव विविधता वाले देशों का दर्जा मिला हुआ है। ये देश हैं- भारत, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन, कोलंबिया, इक्वाडोर, इंडोनेशिया, मेडागास्कर, मलेशिया, मैक्सिको, पेरू एवं जैरे। यदि इन देशों की जैव विविधता को संयुक्त रूप से देखा जाए तो ये विश्वभर की ज्ञात जैव विविधता का 60-70 प्रतिशत हिस्सा होगा। विश्व भर के भूमि क्षेत्रफल के 2.4 प्रतिशत हिस्से के साथ भारत ज्ञात प्रजातियों के 7-8 प्रतिशत हिस्से का आश्रयदाता है। अभी तक वनस्पतियों की 46,000 से अधिक एवं प्राणियों की 81,000
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विशेष
21 - 27 मई 2018
बढ़ते खतरे से निपटने के उपाय
विश्व में जीव-जंतुओं की 47677 प्रजातियों में से एक तिहाई से अधिक यानी 7291 प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है
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मूचे विश्व में 2 लाख 40 हजार किस्म के पौधे 10 लाख 50 हजार प्रजातियों के प्राणी हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजनर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) 2000 की रिपोर्ट में कहा कि विश्व में जीव-जंतुओं की 47677 प्रजातियों में से एक तिहाई से अधिक प्रजातियां यानी 7291 प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है।
रेड लिस्ट
उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में 800 से ज्यादा प्रजातियां सिर्फ एक ही स्थान पर पाई जाती हैं। अगर इन्हें संरक्षित नहीं किया गया तो कई विलुप्त हो जाएंगी।
गिद्ध और रेबीज
पक्षियों की दृष्टि से भारत का स्थान दुनिया के दस प्रमुख देशों में आता है। गंदगी साफ करने में कौआ और गिद्ध प्रमुख हैं। गिद्ध शहरों ही
आईयूसीएन की रेड लिस्ट के अनुसार स्तनधारियों की 21 फीसदी, उभयचरों की 30 फीसदी और पक्षियों की 12 फीसदी प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर हैं। वनस्पतियों की 70 फीसदी प्रजातियों के साथ ताजा पानी में रहने वाले सरिसृपों की 37 फीसदी प्रजातियों और 1147 प्रकार की मछलियों पर भी विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है।
खतरे के 395 स्थान
‘द एलायंस फॉर जीरो एक्सटेंशन’ में पर्यावरण एवं वन्य जीवों के क्षेत्र के 13 जाने-माने संगठन हैं। इसके तहत किए गए अध्ययन में 395 ऐसे स्थानों का विवरण तैयार किया गया है, जहां कोई न कोई प्रजाति के विलुप्त होने का खतरा है।
से अधिक प्रजातियां भारत में खोजी जा चुकी हैं। खासौतर पर भारत को फसलों की विविधता का केंद्र माना जाता है। यह खेती की गई वनस्पतियों की उत्पत्ति के 12 केंद्रों में से एक है। भारत को चावल, अरहर, आम, हल्दी, अदरक, गन्ना, गूजबेरी आदि की 30,000-50,000 किस्मों की खोज का केंद्र माना जाता है और दुनिया में कृषि को सहयोग प्रदान करने में भारत का सातवां स्थान है।
पाया कि ऐसा गिद्धों की संख्या में अचानक कमी के कारण हुआ। वहीं दूसरी तरफ चूहों और कुत्तों की संख्या में एकाएक वृद्धि हुई। अध्ययन में बताया गया कि पक्षियों के खत्म होने से मृत पशुओं की सफाई, बीजों के रखरखाव और परागण भी काफी हद तक प्रभावित हुआ। आलम यह है कि अमेरिका जैसा देश आज अपने यहां चमगादड़ों को संरक्षित करने में जुटा है। दरअसल, चमगादड़ मच्छरों के लार्वा खाता है।
बचाव के कई प्रयास
नहीं, जंगलों से भी तकरीबन खत्म हो गए हैं। 99 प्रतिशत लोग नहीं जानते कि गिद्धों के न रहने से हमने क्या खोया। 1997 में रेबीज से पूरी दुनिया के 50 हजार लोग मर गए। भारत में सबसे ज्यादा 30 हजार मरे। स्टेनफोर्ट विश्व विद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में देश में जो वानस्पतिक प्रजातियां हैं, अध्ययन के लिए उन्हें 15 हजार पुष्पीय पौधों सहित कई वर्गिकी प्रभागों में बांटा जाता है। इनमें करीब 64 जिम्नोस्पर्म 2843 ब्रायोफाइट, 1012 टेरिडोफाइट, 1040 लाइकेन, 12480 एल्गी तथा 23 हजार फंजाई की प्रजातियां लोवर प्लांट के अंतर्गत हैं। पुष्पीय पौधों की करीब 4900 प्रजाति सिर्फ भारत में ही पाई जाती हैं। वैसे करीब 1500 प्रजातियां विभिन्न स्तर के खतरों के कारण आज संकट में हैं।
खेती वाले पौधे और भारत
भारत खेती वाले पौधों के विश्व के 12 उद्भव केंद्रों में से एक है। भारत में समृद्ध जर्म प्लाज्म संसाधनों में खाद्यान्नों की 51 प्रजातियां, फलों की 104, मसालों की व कोंडीमेंट्स की 27, दालों
जलवायु परिवर्तन, औद्योगिक विकास के साथ मानवीय गतिविधियों के चलते जैव विविधता का ह्रास हो रहा है। पेड़, पौधों, जीव-जंतुओं को विलुप्त होने से बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास चल रहे हैं। इन्हें बचाना मानवता को बचाना ही है। वर्ष 2000 में लंदन में अंतरराष्ट्रीय बीज बैंक की स्थापना की गई। बीज बैंक में अब तक 10 फीसदी जंगली पौधों के बीज संग्रहित हो चुके हैं। नार्वे में ‘स्वाल बार्ड ग्लोबल सीड वाल्ट’ की स्थापना की गई है, जिसमें विभिन्न फसलों के 11 लाख बीजों का संरक्षण किया जा रहा है। एवं सब्जियों की 55, तिलहनों की 12 तथा चाय, काफी, तंबाकू एवं गन्ने की विविध जंगली नस्लें शामिल हैं।
176 प्रजातियों के पक्षी
पक्षियों की दृष्टि से भारत का स्थान दुनिया के दस प्रमुख देशों में आता है। भारतीय उप-महाद्वीप में पक्षियों की 176 प्रजातियां पाई जाती हैं। दुनिया भर में पाए जाने वाले 1235 प्रजातियों के पक्षी भारत में हैं, जो विश्व के पक्षियों का 14 प्रतिशत है। गंदगी साफ करने में कौआ और गिद्ध प्रमुख हैं। गिद्ध शहरों ही नहीं, जंगलों से भी खत्म हो गए हैं। 99 प्रतिशत लोग नहीं जानते कि गिद्धों के न रहने से हमने क्या खोया।
जैव विविधता को क्षति
भारत जैव विविधता के मामले में विश्व के समृद्धशाली देशों में से एक है, इस कारण वह नैसर्गिक संपदा का व्यापारिक दोहन और उसकी तस्करी करने वालों की निगाहों में है। यही कारण
‘द एलायंस फॉर जीरो एक्सटिंशन’ में पर्यावरण एवं वन्य जीवों के क्षेत्र के 13 जाने-माने संगठन हैं। इसके तहत किए गए अध्ययन में 395 ऐसे स्थानों का विवरण तैयार किया गया है, जहां किसी न किसी प्रजाति के विलुप्त होने का खतरा है है कि जहां एक तरफ इनकी स्वाभाविक स्थिति से छेड़छाड़ की कोशिशें हो रही हैं, तो वहीं इनकी तस्करी भी खुलेआम हो रही है। वनस्पतियां और जीव-जंतुओं की बड़े पैमाने पर चोरी-छिपे ले जाया जा रहा है। वैसे भारत में जैव विविधता को क्षति पहुंचाने उसे चोरी छिपे ले जाने के खिलाफ सरकार सतर्क है। जैव विविधता जीवन की सहजता के लिए जरूरी है। प्रकृति का नियामक चक्र जैव विविधता की बदौलत दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। वनस्पति, खाद्यान्न, जीव-जंतुओं की अनुपस्थिति से कितना नुकसान हो सकता है। वैज्ञानिक भी इसका आकलन नहीं कर सकते। धरती अमूल्य धरोहर संजोए हुए, जीवन को जीवंत बनाए हुए है।
जीव जीवनस्य भोजनम्
गीता की यह उक्ति- ‘जीव जीवनस्य भोजनम्’, प्राकृतिक और जीवन क्रम के लिए जरूरी है। हवा, जल, मिट्टी जीवन के आधारभूत तत्व हैं। प्राकृतिक रूप से इनका सामंजस्य सतत जीवन का द्योतक है। मिट्टी से फसलें और कीट-पतंगे उन पर आश्रित हैं। शाकाहारी व मांसाहारी जीवों का भोजन यही है। मेढक और चूहे जिन पर आश्रित हैं। इन्हीं के बीच अनेक कीट, जीव और पशु-पक्षी हैं। इनका संबंध जितना जटिल होगा, जैव विविधता उतनी ही समृद्ध होगी।
जैव विविधता बचाने के प्रयास
जलवायु परिवर्तन, औद्योगिक विकास के साथ मानवीय गतिविधियों के चलते जैव विविधता का ह्रास हो रहा है। इन्हें बचाना मानवता को बचाना ही है। वर्ष 2000 में लंदन में अंतरराष्ट्रीय बीज बैंक की स्थापना की गई। बीज बैंक में अब तक 10 फीसदी जंगली पौधों के बीज संग्रहित हो चुके हैं। नार्वे में ‘स्वाल बार्ड ग्लोबल सीड वाल्ट’ की स्थापना की गई है, जिसमें विभिन्न फसलों के 11 लाख बीजों का संरक्षण किया जा रहा है। ‘द एलायंस फॉर जीरो एक्सटिंशन’ में पर्यावरण एवं वन्य जीवों के क्षेत्र के 13 जाने-माने संगठन हैं। इसके तहत किए गए अध्ययन में 395 ऐसे स्थानों का विवरण तैयार किया गया है, जहां किसी न किसी प्रजाति के विलुप्त होने का खतरा है। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में 800 से ज्यादा प्रजातियां सिर्फ एक ही स्थान पर पाई जाती हैं। अगर इन्हें संरक्षित नहीं किया गया तो कई विलुप्त हो जाएंगी। धरती की जैव विविधता ‘जियो और जीने दो’ जैसी लीक पर चलकर संरक्षित किया जा सकता है। प्रकृति, जीव-जंतु और मनुष्य के बीच सामंजस्य कायम रहेगा, तब तक विविधता रंग बने रहेंगे और मानव जीवन में बहारे आती रहेंगी।
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मिसाल
लड़कियों ने बदली गांव की तस्वीर
तमिलनाडु के थेन्नामादेवी गांव की लड़कियों ने अपने गांव की नई पहचान और अपने सपनों को नई उड़ान दी
चौ
दह वर्ष की वी. प्रियदर्शिनी शाम ढलते ही डरने लगती थीं, क्योंकि उनके पिता रोज शराब के नशे में धुत होकर घर आते थे। वह उसकी मां को पीटते थे। घर में भद्दी-भद्दी गालियां देते थे। उन लोगों को घर के बाहर ताला लगाकर बंद कर देते थे। तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले में स्थित थेन्नामादेवी गांव की रहने वाली प्रियदर्शिनी का हर दिन अमूमन ऐसा ही बीतता था। प्रियदर्शिनी के साथ
ही गांव के हर घर का यही हाल था। पुरुष शराब के लती थे। एक दिन प्रियदर्शिनी ने ठान लिया कि उसे अपने पिता की शराब की लत छुड़वानी है। उसने एक स्वयं सहायता समूह से संपर्क किया जो स्कूप इंडिया नामक एनजीओ ने बनाया था। समूह के प्रयास से वह अपने पिता की शराब कुछ ही महीनों में छुड़वा सकी। अब वह बहुत खुश है। उसने
उम्र पर भारी हौसला
बताया कि अब वह अपने करियर के बारे में कभी नहीं सोच सकती थी, लेकिन अब वह कैंसर के मरीजों का इलाज करने के लिए डॉक्टर बनेगी। प्रियदर्शिनी की ही नहीं, बल्कि थेन्नमादेवी गांव में रहने वाले हर किसी की जिंदगी अब बदल चुकी है। यह संभव हुआ लड़कियों के समूह से। यहां 50 लड़कियों का एक समूह बना है। इसमें 10 से 18 वर्ष की लड़कियां हैं जो बदलाव के लिए काम कर रही हैं। यह गांव पहले जातिगत अपराध और बच्चों की तस्करी के लिए जाना जाता था। थेन्नमादेवी गांव तमिलनाडु के दूसरे गांवों से अलग था। यहां के कच्चे घरों के बाहर गलियों में बच्चे क्रिकेट खेलते थे। हर तरफ मायूसी छाई रहती थी। हर घर के पुरुष शराब के आदती थे। शराब के कारण कई महिलाओं ने अपने पति खो दिया थे। गांव में गरीबी थी और लोग कर्जदार थे। पितृसत्तात्मक गांव में अब लड़कियों ने यहां की शिक्षा, साफ-सफाई और प्रतिष्ठा सब अपने हाथों में ले ली है। बीते एक साल में गांव की गलियों में स्ट्रीट लाइट्स लग गई हैं। बच्चे स्कूल जाने लगे हैं। लड़कियां माहवारी पर कपड़ा नहीं, सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं। हर घर में टॉयलेट बना है। इस बदलाव की पहल ‘स्कूप इंडिया’ ने की। स्कूप इंडिया के मुख्य पदाधिकारी सथिया बाबू ने बताया कि सर्वे में पता चला की थेन्नमादेवी गांव के लोग नशे से लती हैं। शराब के कारण गांव में 90 महिलाएं विधवा हो चुकी हैं। स्कूप इंडिया ने गांव में
एक साल पहले काम शुरू किया। यहां दो लड़कियों और दो लड़कों के चार क्लब बनाए। लड़कों के क्लब में अनुसूचित जाति और अति पिछड़ा वर्ग के लड़कों को रखा गया और लड़कियों के क्लब में भी इसी वर्ग की लड़कियों को शामिल किया गया। लड़कियों के क्लब लड़कों के क्लब से ज्यादा सक्रिय हुए। लड़कियां ग्राम सभा की हर बैठक में शामिल होती थीं। वहां वह अपनी मांगें और समस्याएं रखती थीं। लड़कियों ने क्लब में सदस्य बढ़ाए और अब तक 115 किशोर लड़कियों को जोड़ चुकी हैं। सभी लड़कियां बाल विवाह पर भी काम करती हैं। उन्होंने शपथ ली है कि न तो वह बाल विवाह करेंगी न ही किसी को करने देंगी। गांव की दो लड़कियों एम स्वाती और विग्नेश्वरी को अशोका फाउंडेशन की तरफ से पढ़ाई पूरी करने के लिए फेलोशिप भी मिली है। क्लब की सभी लड़कियां एक्टिविटि सेंटर में एकत्र होकर किसी मुद्दे को लेकर बहस करती हैं। गांव के बाल संरक्षण कमिटी की बैठक करती हैं। अपने सुझाव देती हैं कि उनके स्कूल, आंगनबाड़ी और एक्टिविटि सेंटर और कैसे चाइल्ड फ्रेंडली बनाए जा सकते हैं। कमिटि के अध्यक्ष पी अरुमई नाथन ने कहा कि जब लड़कियां उनके पास आती हैं तो उन्हें समय का ध्यान ही नहीं रहता। वे अपने अधिकारों के बारे में जानती हैं। उन्हें पता है कि कौन सा प्रमाणपत्र उन्हें कहां से और कैसे मिलेगा। वह उत्साह से भरी होती हैं। वह अपनी मांग बहुत ही मैत्रीपूर्ण और रचनात्मक तरीके से रखती हैं। (एजेंसी)
अगर हौसले बुलंद हों तो हर असंभव को संभव किया जा सकता है। मध्य प्रदेश के 70 वर्ष के बुजुर्ग ने अपने दम पर कुआं खोद कर इसे एक बार फिर साबित किया
बि
हार के दशरथ मांझी के बारे में तो आपने सुना ही होगी जिन्होंने पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाया था। कुछ वैसा ही काम मध्य प्रदेश के सीताराम लोढी ने किया है। उन्होंने 70 साल की उम्र में सूखी जमीन पर अकेले कुआं खोद डाला। 18 महीने तक जीतोड़ मेहनत कर के बाद 33 फुट गहरा कुंआ जब पानी की बूंदों से तर हुआ होगा, तब सीताराम लोढी को कैसा अनुभव हुआ होगा, इसकी बस कल्पना ही जा सकती है। बुंदेलखंड क्षेत्र के छतरपुर जिले में सीताराम ने अपने परिजनों के विरोध के बावजूद ऐसा काम ठान लिया। उन्होंने 2015 में कुआं खोदना शुरू किया और 2017 में काम पूरा भी हो गया। लेकिन, पक्कीकरण के उनकी सारी मेहनत बेकार हो गई जब बिना प्लास्टर कुआं बरसात के पानी
में ढह गया। इसके बावजूद सीताराम एक बार फिर तैयार हैं कुएं को नए सिरे से खोदने के लिए। अविवाहित सीताराम अपने भाई के साथ रहते हैं जिनके पास 20 एकड़ जमीन है। उनके पास पानी का इंतजाम करने के लिए पैसे नहीं थे। यह देख सीताराम ने कुआं खोदने का फैसला किया। उनके परिवार ने उन्हें समझाया कि जब तक यह विश्वास न हो कि पानी निकलेगा ही, उन्हें यह काम नहीं ठानना चाहिए। लेकिन सीताराम तय कर चुके थे। आखिरकार उन्होंने कुआं खोदकर पानी निकाला, लेकिन बरसात में कुआं ढह गया। सीताराम का कहना है कि वह दोबारा कुआं खोद सकते हैं, अगर कहीं से से उसे प्लास्टर कराने के लिए मदद मिल जाए। उधर, लवकुश
नगर के जनपद पंचायत सीईओ आरके शर्मा ने बताया कि उन्हें नहीं पता सीताराम ने कपिल धारा योजना के तहत कुएं के लिए आवेदन दिया था या नहीं। उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत कुआं खोदने के लिए 1.8 लाख रुपए सरकार
की ओर से खर्च किए जाएंगे। सीताराम का के हौसेल आज भी बुलंद है, अगर कहीं से उन्हें कुंए को पक्का बनाने के लिए सहायता मिले , तो वे एक बार फिर अपने दम पर कुंआ खोद सकते हैं। (एजेंसी)
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स्वच्छता
21 - 27 मई 2018
स्वच्छता सर्वेक्षण 2018
स्वच्छता में इंदौर फिर सिरमौर
स्वच्छता सर्वे 2018 में इंदौर फिर से देश का सबसे स्वच्छ शहर बना, जबकि भोपाल दूसरे और चंडीगढ़ तीसरे स्थान पर है। इस बार सर्वे में मुकाबले का दायरा बड़ा था और प्रतियोगियों की होड़ भी पहले से ज्यादा थी
म
एसएसबी ब्यूरो
ध्य प्रदेश के इंदौर में 16 मार्च को स्वच्छ सर्वेक्षण 2018 की घोषणा की गई। आवासीय और शहरी मामलों के केंद्रीय राज्यमंत्री हरदीप सिंह पुरी ने नतीजे घोषित करते हुए कहा कि स्वच्छ सर्वेक्षण 2018, 4 जनवरी से 10 मार्च 2018 तक किया था। इसमें
खास बातें सर्वे में 4203 शहरी स्थानीय निकायों का मूल्यांकन किया गया सर्वे को पूरा करने के लिए 2700 लोगों की टीम बनी सर्वे के दौरान 53.58 लाख स्वच्छता ऐप्प डाउनलोड किए गए
4,203 शहरों का सर्वेक्षण किया गया। इस सर्वे में इंदौर फिर से बना देश का सबसे स्वच्छ शहर जबकि भोपाल दूसरे और चंडीगढ़ तीसरे स्थान पर आया है। हरदीप सिंह पुरी ने स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 के नतीजे घोषित किए। इसका मकसद देश भर के शहरों में स्वच्छता स्तर का आकलन करना है। सर्वेक्षण में झारखंड को सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला राज्य चुना गया। उसके बाद महाराष्ट्र तथा छत्तीसगढ़ का स्थान रहा। पुरी ने सर्वेक्षण के नतीजे जारी करते हुए कहा कि मैं आश्चर्यचकित नहीं हूं कि इन शहरों के नागरिकों ने स्वच्छता अभियान को जन आंदोलन का रूप दे दिया। स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) के सहयोग से केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने स्वच्छ सर्वेक्षण 2018 के तहत 4203 शहरी स्थानीय निकायों का मूल्यांकन किया है। 2700 लोगों की टीम ने पूरे देश के 40 करोड़ लोगों
से संबंधित स्थानीय निकायों का सर्वेक्षण किया जो कि 4 जनवरी 2018 से 10 मार्च 2018 तक चला। स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 के दौरान 53.58 लाख स्वच्छता ऐप्प डाउनलोड किए गए और 37.66 लाख नागरिकों से फीडबैक लिया गया। सर्वे के नतीजे घोषित होने के साथ केंद्रीय मंत्री पुरी ने ट्वीट कर इंदौर और भोपाल के लोगों को स्वच्छता के लिए क्रमश: पहले और दूसरे स्थान पर फिर से चुने जाने के लिए बधाई दी। साथ ही तीसरे स्थान पर आने के लिए चंडीगढ़ की भी प्रशंसा की। उन्होंने लिखा कि अन्य शहर अगले साल जरूर आगे बढ़ेंगे। पिछले सर्वेक्षणों की तुलना में इस बार आम नागरिकों से मिली प्रतिक्रिया को खासा महत्व दिया गया था। इंदौर पिछले साल भी सबसे स्वच्छ शहर चुना गया था। पर उस समय सिर्फ 430 शहरों के लिए सर्वेक्षण कराया गया था। वहीं, इस बार करीब 4200 शहरों को शामिल किया गया।
स्वच्छता सर्वेक्षण का मकसद देश भर के शहरों में स्वच्छता स्तर का आकलन करना है। सर्वेक्षण में झारखंड को सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला राज्य चुना गया। उसके बाद महाराष्ट्र तथा छत्तीसगढ़ का स्थान रहा
पुरी ने कहा कि सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले शहरों के नाम उस दिन घोषित किए जाएंगे जिस दिन पुरस्कार दिए जाएंगे। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने भी ट्वीट कर लिखा कि गर्व और प्रसन्नता का क्षण है कि स्वच्छ सर्वेक्षण 2018 के सर्वे में हमारे इंदौर और भोपाल ने श्रेष्ठता बरकरार रखते हुए फिर
इस सर्वे में खास 4203
छोटे-बड़े शहर हुए शामिल
53.58
लाख स्वच्छता ऐप्प हुए डाउनलोड
37.66
लाख सिटीजन फीडबैक मिले बेस्ट परफॉर्मिंग स्टेट : 1. झारखंड, 2. महाराष्ट्र, 3. छत्तीसगढ़
21 - 27 मई 2018
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स्वच्छता
ये हैं भारत के 23 स्वच्छ शहर
देश का सबसे साफ शहर : इंदौर (मध्य प्रदेश), पहला स्थान
देश का सबसे साफ शहर : भोपाल (मध्य प्रदेश), दूसरा स्थान
गजब का गाजियाबाद
देश का सबसे साफ शहर : चंडीगढ़, तीसरा स्थान
देश का सबसे बड़ा साफ शहर : विजयवाड़ा (आंध्रप्रदेश), (आबादी 10 लाख से ज्यादा)
सफाई में सबसे ज्यादा प्रगति करने वाला शहर : गाजियाबाद (आबादी 10 लाख से ज्यादा) लोगों के फीडबैक के हिसाब से देश का बेस्ट शहर : कोटा (आबादी 10 लाख से ज्यादा) इनोवेशन के मामले में देश का बेस्ट शहर : नागपुर (आबादी 10 लाख से ज्यादा)
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के मामले में देश का बेस्ट शहर : नवी मुंबई, (महाराष्ट्र) (आबादी 10 लाख से ज्यादा) देश का सबसे साफ शहर : मैसूर (कर्नाटक) (आबादी 3 से 10 लाख)
देश का सबसे ज्यादा प्रगति करने वाला शहर : भिवंडी, (महाराष्ट्र) (आबादी 3 से 10 लाख)
लोगों के फीडबैक के हिसाब से देश का बेस्ट शहर : परभणी, (महाराष्ट्र) (आबादी 3 से 10 लाख) इनोवेशन के मामले में देश का बेस्ट शहर: अलीगढ़, (उत्तरप्रदेश) (आबादी 3 से 10 लाख)
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के मामले में देश का बेस्ट शहर : बेंगलुरु, (कर्नाटक) (आबादी 3 से 10 लाख) देश का सबसे साफ शहर : नई दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन (एनडीएमसी) (आबादी 3 लाख से कम) देश का सबसे ज्यादा प्रगति करने वाला शहर : भुसावल, (महाराष्ट्र) (आबादी 3 लाख से कम)
लोगों के फीडबैक के हिसाब से देश का बेस्ट शहर : गिरिडीह, (झारखंड) (आबादी 3 लाख से कम) इनोवेशन के मामले में देश का बेस्ट शहर : अंबिकापुर, (छत्तीसगढ़) (आबादी 3 लाख से कम)
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के मामले में देश का बेस्ट शहर : तिरुपति, (आंध्र प्रदेश) (आबादी 3 लाख से कम) देश की सबसे साफ राजधानी : ग्रेटर मुंबई
देश की सबसे ज्यादा प्रगति करने वाली राजधानी : जयपुर
लोगों के फीडबैक के हिसाब से देश की बेस्ट राजधानी : रांची इनोवेशन के मामले में देश की बेस्ट राजधानी : पणजी
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के मामले में देश की बेस्ट राजधानी : ग्रेटर हैदराबाद, तेलंगाना से देशभर में पहला और दूसरा स्थान प्राप्त किया है। इन महानगरों के नागरिकों की जागरुकता, लगन और संकल्प के लिए अभिनंदन और आभार व्यक्त करता हूं। उन्होंने ये ट्वीट नयाएमपी हैशटैग के साथ किया। स्वच्छता सर्वे में इंदौर के लगातार दूसरे वर्ष शीर्ष स्थान पर रहने से बेहद खुश लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इस उपलब्धि का श्रेय शहर के आम बाशिंदों को दिया है। महाजन इंदौर
क्षेत्र की सांसद भी हैं। उन्होंने कहा, ‘इस सफलता में सहयोग और सहभागिता की इंदौरी संस्कृति का प्रमुख योगदान है। साफ-सफाई को लेकर स्थानीय बाशिंदों की जागरुकता ने देश भर में अलग पहचान बनाई है।’ इस बारे में उन्होंने आगे कहा कि सबसे स्वच्छ शहरों की सूची में इंदौर को शीर्ष पायदान पर बनाए रखने के लिए स्थानीय सफाई कर्मचारियों की जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। स्थानीय प्रशासन ने भी इस सिलसिले में
अपने स्तर पर कड़ी मेहनत की है। इंदौर की महापौर मालिनी गौड़ ने भी इंदौरवासियों को बधाई दी है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि इंदौर की जनता के प्रयास, निगम की पूरी टीम की अथक मेहनत से इंदौर शहर पुनः स्वच्छता में नंबर वन आया है। बीते साल 434 शहरों के 37 लाख लोगों के बीच कराए गए स्वच्छता सर्वेक्षण में मध्य प्रदेश के इंदौर और भोपाल ने ही बाजी मारी थी। इनके
वै
से इस सर्वे में सबसे चौंकाने वाला नाम गाजियाबाद का है। गाजियाबाद पिछले साल की सूची में 359वें स्थान पर था। इस बार चार हजार से ज्यादा शहरों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए गाजियाबाद अब 36वें स्थान पर पहुंच गया है। गंदगी की वजह से स्मार्ट सिटी की दौड़ से पिछड़ चुके उत्तर प्रदेश के लिए गाजियाबाद के लिए यह वाकई बड़ी कामयाबी है। 359 से 36वीं रैंक तक पहुंचने के लिए लगाई गई छलांग की वजह से ही गाजियाबाद को इंडियाज फास्टेस्ट मूवर बिग सिटी का तमगा मिला है। गाजियाबाद के साथ अलीगढ़ ने भी साफ सफाई के मामले में नए तौर तरीके अपनाने वाली श्रेणी में पहला स्थान हासिल किया है। इस लिहाज से देखें तो इस बार स्वच्छता सर्वे में उत्तर प्रदेश ने अपेक्षित रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है।
स्वच्छता सर्वे में इंदौर के लगातार दूसरे वर्ष शीर्ष स्थान पर रहने से बेहद खुश लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इस उपलब्धि का श्रेय शहर के आम बाशिंदों को दिया है। महाजन इंदौर क्षेत्र की सांसद भी हैं बाद शीर्ष के पांच शहरों में विशाखापट्टनम (आंध्र प्रदेश), सूरत (गुजरात) और मैसूर (कर्नाटक) शामिल थे। चंडीगढ़ को इस साल 11वें पायदान पर ही संतोष करना पड़ा। 2016 में वह दूसरे पायदान पर था। दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश स्थित गोंडा और महाराष्ट्र के भुसावल को सबसे गंदा शहर बताया गया था।
20 जोनल अवार्ड
स्वच्छता सर्वे में राष्ट्रीय स्तर के कुल 23 और जोनल स्तर के 20 अवार्ड घोषित किए गए हैं। जोनल अवार्ड में उत्तर प्रदेश के एक लाख की आबादी वाले शहरों में समथर शहर को सॉलिड
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स्वच्छता
21 - 27 मई 2018
स्वच्छता मानदंडों को वेटेज मानदंड ओडीएफ में प्रगति ठोस कचरे को एकत्रित कर ले जाना ठोस कचरे का प्रसंस्करण-निपटान सूचना, शिक्षा और संचार क्षमता निर्माण नवाचार कुल अंक
मूल्यांकन वेटेज
मूल्यांकन श्रेणी सेवा स्तर पर प्रगति (बुनियादी ढांचागत निर्माण, प्रक्रियाएं, परिचालन) नागरिक प्रतिक्रिया स्वतंत्र क्षेत्र अवलोकन वेस्ट मैनेजमेंट का पहला अवार्ड दिया गया है। नई दिल्ली म्युनिसिपल काउंसिल (एनडीएमसी) को छोटे शहरों के वर्ग में सबसे स्वच्छ शहर का खिताब मिला है। दिल्ली कैंटोनमेंट क्षेत्र को सबसे
2017 में वेटेज
2018 में वेटेज
45%
35%
30% 25%
35% 30%
स्वच्छ पाया गया है, अवार्ड के लिए उसे भी चुना गया है। जबकि झारखंड के गिरिडीह और अंबिकापुर को एक से तीन लाख की आबादी वाले शहरों के वर्ग में सिटिजन फीडबैक और इनोवेशन
व बेस्ट प्रैक्टिसेस का अवार्ड दिया गया है। झारखंड की राजधानी रांची को बेस्ट स्टेट कैपिटल वर्ग में सिटीजन फीडबैक के लिए अवार्ड दिया गया है। जोनल स्तर के अवार्ड में भी झारखंड के शहरों ने बाजी मारी है। एक लाख की आबादी वाले यहां के बुंदू को सबसे स्वच्छ चुना गया है। इनोवेशन एंड बेस्ट प्रैक्टिसेस में पाकुर, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट और चाईबासा को सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए सबसे अच्छा माना गया है। नार्थ जोन में छोटे शहरों (एक लाख की आबादी) पंजाब के भाडसोन को सबसे स्वच्छ शहर पाया गया। जबकि पंजाब के ही मूनक को बेस्ट सिटीजन फीडबैक का पुरस्कार मिला
2017 में वेटेज 30 % 40% 20% 05% 05% 2,000
2018 में वेटेज 30 % 30% 25% 05% 05% 05% 4,000
है। हरियाणा के घरौंडा को इनोवेशन एंड बेस्ट प्रैक्टिसेस के लिए चुना गया है। राज्यों में सबसे अधिक स्वच्छ रहने वालों में पहला स्थान झारखंड, दूसरा स्थान महाराष्ट्र और तीसरा स्थान छत्तीसगढ़ को मिला है। कैंटोनमेंट बोर्ड वर्ग में सबसे स्वच्छ दिल्ली कैंटोनमेंट रहा तो दूसरा स्थान उत्तराखंड के अल्मोड़ा कैंट को मिला और तीसरा रानीखेत कैंट को मिला है। सिटिजन फीडबैक के मामले में अव्वल रहा नैनीताल कैंट और इनोवेशन व बेस्ट प्रैक्टिसेस में तमिलनाडु का सेंट थामस का नाम पहले स्थान पर है। जबकि सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट में पहला स्थान पाने वालों में हिमाचल प्रदेश का जुटोघ कैंट शिमला रहा।
छात्रों को बेहतर आवास मुहैया कराने की मुिहम छात्र जीवन की कठिनाइयां झेलने के बाद आईआईएम अहमदाबाद के दो छात्रों की नई पहल
न
ए शैक्षणिक सत्र में प्रवेश शुरू होने से पहले स्टार्ट-अप कंपनी स्टैंजा लिविंग देश की राजधानी नई दिल्ली और आसपास के इलाके में विद्यार्थियों के निवास के लिए हाईटेक सुविधाओं से लैस 2000 बेड के हॉस्टल की सुविधा मुहैया करवाई है। यहां छात्रों के लिए भोजन से लेकर अन्य सभी सुविधाओं सहित प्रति छात्र किराया काफी कम है। इसके साथ ही चार स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था भी है।
स्टैंजा लिविंग के संस्थापक अनिंद्या दत्ता और संदीप डालमिया भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद से एमबीए कर चुके हैं। दोनों मित्रों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नौकरी छोड़कर पिछले साल स्टैंजा लिविंग की नींव डाली। देश के अग्रणी संस्थान से प्रबंधन के गुर सीखकर विद्यार्थियों को बेहतर परिवेश मुहैया करवाने के काम में जुटे अनिंद्या दत्ता ने बताया,
‘हमने महज 100 छात्रों के लिए जरूरी सुविधाओं के साथ पिछले साल अपनी स्टार्ट-अप कंपनी खोली। आज स्टैंजा लिविंग के पास दिल्ली एनसीआर में 2000 बेड की सुविधा से सुसज्जिटत तीन आवासीय परिसर हैं।’ अनिंद्या ने बताया कि एक्सेल और मैट्रिक्स ने स्ट्रैंजा लिविंग में पिछले साल 20 लाख अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है। स्ंदीप ने कहा, ‘अप्रैल 2017 में स्टैंजा लिविंग की नींव डालने के बाद से लगातार हमारी कंपनी प्रसार कर रही है। दिल्ली विश्वविद्यालय के दक्षिण परिसर के पास सत्या निकेतन और उत्तरी दिल्ली में विजयनगर में हमने आवासीय सुविधा मुहैया करवाई है। विश्वविद्यालय के समीप होने के कारण हमारी आवासीय सुविधा छात्र-छात्राओं को ज्यादा पंसदी आ रही है। हाल ही में ग्रेटर नोएडा में भी हमने एक विद्यार्थी निवास परिसर खोला है। इसके बाद अगले महीने तक देहरादून में भी एक आवासीय परिसर खोलने की योजना है।’ एक स्टार्टअप के रूप में अनिंद्या और संदीप की जुगलबंदी की मुख्य वजह है कि दोनों अपने छात्र जीवन में झेल चुकी कठिनाइयों से भावी पीढ़ी को निजात दिलाना चाहते है। अनिंद्या कहते हैं कि समस्याओं के समाधान में हमेशा बेहतर कारोबारी अवसर होते हैं और उसमें विफलता की संभावना
कम होती है। उन्होंने कहा, ‘किसी भी काम में तीव्र लगन और प्रतिबद्धता और एक सिद्धांत की जरूरत होती है। स्टूडेंट फर्स्ट हमारा सिद्धांत है। हम विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास की बात सोचते हैं।" उन्होंने बताया कि धीरे-धीरे पुणे, बेंगलुरु, हैदराबाद, जयपुर, आगरा समेत पूरे देश के सभी प्रमुख एजुकेशन हब में विद्यार्थियों के लिए ऐसी सुविधा प्रदान करने की उनकी योजना है।’ अनिंद्या ने बताया कि उन्होंने अपने आवासीय परिसर में सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा है। उन्होंने कहा, ‘सरकार द्वारा हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र के लिए तय मानकों के अनुरूप हमने अपने परिसर में भोजन से लेकर सुरक्षा का चाक-चौबंद प्रबंध किए हैं। यहां चार स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था है जिसमें सिक्योरिटी गार्ड, सीसीटीवी कैमरे, बायोमेट्रिक एंट्री के अलावा चैबीसों घंटे इलेक्ट्रॉनिक सूचना सेवा की सुविधा से हमारा परिसर लैस है।’ उन्होंने कहा कि स्टैंजा लिविंग के आवासीय परिसर में पीजी-हॉस्टल या लॉज के मुकाबले काफी बेहतर सुविधाएं हैं, लेकिन इसका किराया विद्यार्थियों के लिए एफर्डेबल है। अनिंद्या ने कहा, ‘ दिल्ली के प्रमुख शिक्षण संस्थानों के आसपास के इलाकों में विद्यार्थियों को जितना आवास किराया देना पड़ता है उसके मुकाबले हमारे परिसर का किराया ज्यादा नहीं है।’ (आईएएनएस)
21 - 27 मई 2018
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प्रेरक
हौसले का अस्पताल
यह एक एक मामूली टैक्सी ड्राइवर के जज्बे की कहानी है, जो चाह कर भी अपनी बहन को बचा नहीं सका। आज उसी ने अस्पताल बना कर हजारों लोगों के जीवन को बचाने की पहल की है
खास बातें टैक्सी ड्राइवर सैदुल लश्कर ने अपने दम पर बनाया अस्पताल इस अस्पताल में होता है सबका मुफ्त इलाज प्रधानमंत्री मोदी कर चुके हैं सैदुल के जज्बे की तारीफ
प
मिलिंद घोष रॉय
श्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में निर्माणाधीन भवन में चल रहे अस्पताल की चर्चा आज देशभर में हो रही है, जबकि इस अस्पताल में न तो अत्याधुनिक चिकित्सा का कोई उपकरण है और न ही वातानुकूलित परिवेश जैसी कोई सुविधा। मगर, यह गरीबों के इलाज का एक बड़ा ठिकाना है, जिसके साथ एक भाई के दर्द की एक ऐसी दास्तान जुड़ी है जो गरीबी के कारण अपनी बहन का इलाज नहीं करवा पाया और वह बीमारी के कारण आखिरकार वह इस दुनिया से चल बसी। टैक्सी ड्राइवर सैदुल लश्कर ने 2004 में अपनी बहन मारुफा के असामयिक निधन के बाद गरीबों के इलाज के लिए अस्पताल बनाने का फैसला लिया। छाती में संक्रमण होने से महज 17 साल की उम्र में मारुफा की मौत हो गई। सैदुल के पास उस समय उतने पैसे नहीं थे कि वह दूर शहर जाकर बड़े अस्पताल में अपनी बहन का इलाज करवाते। कोलकाता से करीब 55 किलोमीटर दूर बरुईपुर के पास पुनरी गांव में मारुफा स्मृति वेल्फेयर फाउंडेशन के मरीजों के नवनिर्मित वेटिंग हॉल की दीवार के सहारे खड़े सैदुल ने कहा, ‘मुझे ऐसा महसूस हुआ कि कुछ करना चाहिए ताकि मेरी बहन की तरह इलाज के अभाव में गरीबों को अपनी जान न गंवानी पड़े। मेरी यही ख्वाहिश है कि मेरी तरह
किसी भाई को अपनी बहन को न खोना पड़े।’ उन्होंने कहा, ‘अपने मन में इस सपने को संजोए 12 साल तक वह कोलकाता की सड़कों की खाक छानता रहा। कभी एक क्षण के लिए मेरे मन में अपने लक्ष्य को लेकर कोई दूसरा विचार नहीं आया। मगर, यह कोई आसान कार्य नहीं था।’ सैदुल टैक्सी चलाते समय अपनी गाड़ी में बैठे पैसेंजर को अपने कागजात व लोगों से मिले दान की पर्चियां दिखाते हैं मगर अधिकांश लोग उनकी कोई मदद करने से इनकार कर देते थे। हालांकि कुछ लोगों ने उनकी मदद भी की। इन्हीं लोगों में कोलकाता की युवती सृष्टि घोष भी हैं जो उनकी व्यथा कथा सुनकर द्रवित हो गई और उन्होंने अस्पताल के लिए अपने पूरे महीने का वेतन देने का निर्णय लिया। सैदुल ने कहा, ‘मुझे सृष्टि के रूप में अपनी खोई बहन मिल गई। मेरी कहानी सुनने के बाद सृष्टि और उनकी मां ने मेरा फोन नंबर लिया और मुझे बाद में फोन किया। मुझे इस बात का कोई भरोसा नहीं था वह मुझे फोन करेंगी। मगर, जब वह अपना पहला वेतन लेकर मेरे पास आईं तो मैं भावविभोर हो गया।’ अस्पताल के लिए मदद के लिए आगे आने वाले अपरिचितों
के साथ-साथ सैदुल की पत्नी शमीमा ने भी उनका हौसला बढ़ाया। उन्होंने कहा, ‘मुझे पत्नी का साथ नहीं मिलता तो कुछ भी संभव नहीं होता। जब मैंने अस्पताल बनाने की ठानी तो मेरे नजदीकी लोगों ने मुझे पागल समझकर मुझसे अलग हो गए मगर मेरी पत्नी हमेशा मेरे साथ खड़ी रहीं। उन्होंने जमीन के वास्ते पैसे जुटाने के लिए मुझे अपने सारे गहने दे दिए।’ आखिरकार, फरवरी 2017 को अस्पताल शुरू होने पर सैदुल का सपना साकार हुआ। सैदुल ने अपनी नई बहन सृष्टि के हाथों अस्पताल का उद्घाटन करवाया। करीब 11 किलोमीटर के दायरे में सबसे नजदीकी अस्पताल होने से स्थानीय निवासियों से काफी अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। अस्पताल जाते समय ई-रिक्शा चालक सोजोल दास ने बताया, ‘हर तरफ अब चर्चा होती है और इलाके में अस्पताल के बारे में लोग बातें करते हैं।’ अब इस अस्पताल को 50 बिस्तरों से सुसज्जित और एक्स-रे व ईसीजी की सुविधा से लैस करने की दिशा में काम चल रहा है। सैदुल ने कहा, ‘वर्तमान में यह दोमंजिला भवन है, लेकिन हमारी योजना इसे चार मंजिला बनाने की है। अस्पताल
‘मुझे ऐसा महसूस हुआ कि कुछ करना चाहिए ताकि मेरी बहन की तरह इलाज के अभाव में गरीबों को अपनी जान न गंवानी पड़े। मेरी यही ख्वाहिश है कि मेरी तरह किसी भाई को अपनी बहन को न खोना पड़े’
के उद्घाटन के दिन हमारे चिकित्सकों ने यहां 286 मरीजों का ईलाज किया। समय और संसाधन की कमी के चलते अनेक लोगों को वे नहीं देख पाए। मुझे पक्का भरोसा है कि जब अस्पताल पूरी तरह से चालू हो जाएगा तो इससे करीब 100 गांवों के लोगों को फायदा होगा।’ सैदुल के बड़े सपने देखने और उसे साकार करने के जुनून से काफी लोग प्रभावित हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में सैदुल के प्रयासों की सराहना की। 40 वर्षीय टैक्सी ड्राइवर ने कहा कि मोदी द्वारा अस्पताल के बारे में चर्चा करने से निस्संदेह वह काफी उत्साहित हुए हैं। उन्होंने कहा, ‘उनके द्वारा चर्चा करने के बाद से कई लोगों ने मुझसे संपर्क किया है। कुछ स्थानीय ठेकेदारों ने निर्माण कार्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए रेत, ईंट और सीमेंट मुहैया करवाकर मेरी मदद की है। चेन्नई के एक डॉक्टर ने मेरे अस्पताल में अपनी सेवा देने और मरीजों का ईलाज करने की इच्छा जताई है।’ उन्होंने बताया कि वर्तमान में आठ चिकित्सक अस्पताल से जुड़े हैं, जो यहां अभी मुफ्त में अपनी सेवा दे रहे हैं। हालांकि सैदुल ने कहा कि उनकी योजना है कि अस्पताल के रखरखाव के लिए जरूरी मात्र न्यूनतम शुल्क पर स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने की है। हड्डीरोग विभाग के प्रभारी डॉ. धीरेश चौधरी ने सैदुल के प्रयासों की काफी सराहना की। उन्होंने कहा, ‘अस्पताल बनाना बड़ा कार्य है। अत्यंत कम आमदनी वाले सैदुल के लिए यह कार्य अकल्पनीय है। हम सभी उनके साथ हैं।’ डॉक्टर का एनजीओ 'बैंचोरी' अस्पताल को चिकित्सा उपकरण मुहैया करवाता है। सैदुल ने कहा, ‘अब हमारे साथ कई लोग हैं। मुझे लगता है कि अपने सपने को पूरा करने के लिए मैं अब आगे की बात भी सोच सकता हूं। शायद, मैं सिर्फ एक अस्पताल बनाकर नहीं रुकूंगा और नए सपने की तलाश में जाऊंगा’।
16 खुला मंच
21 - 27 मई 2018
प्रत्येक स्त्री को पुरुषों की तरह अधिकार प्राप्त हो, क्योंकि स्त्री ही पुरूष की जननी है। हमें हर हाल में स्त्री का सम्मान करना चाहिए
अभिमत
देश में सौर तथा पवन ऊर्जा क्षेत्र में तीन लाख से अधिक श्रमिकों की नियुक्ति होने की उम्मीद
भा
रत सरकार ने वर्ष 2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 लागू किया था। इसमें ऊर्जा के गैर पारंपरिक स्रोतों को इस्तेमाल में लाने के लिए बड़े पैमाने पर तैयारी पारंपरिक ऊर्जा स्त्रोतों के संरक्षण आदि की बात कही गई थी। पर इस दिशा में देश अपेक्षित गति से आगे नहीं बढ़ सका। लेकिन 2014 के बाद से ऊर्जा क्षेत्र की तस्वीर बदलनी शुरू हो गई। आज देश न सिर्फ ऊर्जा संकट से पूरी तरह से बाहर आ चुका है, बल्कि ऊर्जा के गैरपारंपरिक स्रोतों को भी काफी प्रोत्साहन दिया जा रहा है। खासतौर पर सौर और पवन ऊर्जा को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने कई नीतिगत फैसले लिए हैं। इन्हीं फैसलों का एक बड़ा असर यह भी है कि अब भविष्य में सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र लाखों युवाओं को रोजगार देने में सक्षम होंगे। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईओएल) की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने के लिए आने वाले दिनों में लाखों नए रोजगार के अवसर पैदा होंगे। आईओएल का कहना है कि 2030 तक भारत समेत दुनिया भर में करीब 2.4 करोड़ नए पद सृजित होंगे। रिपोर्ट में ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद और नेशनल रिसोर्सज डिफेंस काउंसिल के अनुमानों का हवाला देते हुए कहा गया है कि सौर और पवन ऊर्जा कंपनियों, डेवलपरों और विनिर्माताओं के सर्वेक्षण के आधार पर भारत में सौर तथा पवन ऊर्जा क्षेत्र में तीन लाख से अधिक श्रमिकों की नियुक्ति होगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में लक्ष्य को पूरा करने के लिए पवन ऊर्जा परियोजनाओं और सौर ऊर्जा के कर्मचारियों की संख्या को बढ़ाना होगा। दिलचस्प है कि सरकार ने 2022 तक सौर बिजली उत्पादन को एक लाख मेगावाट तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार पूरी तरह से प्रतिबद्ध दिखाई दे रही है। सरकार सोलर फोटोवोल्टिक मैन्यूफैक्चरिंग को प्रोत्साहन देने के लिए 11 हजार करोड़ रुपए का पैकेज देने पर विचार कर रही है ताकि ऊर्जा की जरूरतें भी पूरी हों और प्रकृति का संरक्षण भी साथ-साथ जारी रहे।
टॉवर फोनः +91-120-2970819
(उत्तर प्रदेश)
लेखक वरिष्ठ लेखक और स्तंभकार हैं
विश्व सांस्कृतिक विविधता दिवस (21 मई) पर विशेष
सांस्कृतिक सेतु है पर्यटन
- राजा राममोहन राय
ऊर्जा के साथ रोजगार भी
पांडुरंग हेगड़े
कौशल विकास और आधारभूत संरचना के विकास पर जोर देश की विविधता का अनुभव प्राप्त करने के लिए घरेलू और विदेशी पर्यटकों को प्रोत्साहन प्रदान करता है
दे
श में विदेशी पर्यटकों की संख्या 2016 के 6.8 प्रतिशत से बढ़कर जनवरी 2017 में 16.5 प्रतिशत हो गई। इसी प्रकार घरेलू पर्यटकों की संख्या में (2015 की तुलना में) 2017 में 15.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पर्यटकों की बढ़ती संख्या से स्पष्ट है कि एनडीए सरकार द्वारा लागू की गई पर्यटन नीतियां सफल रही हैं। विदेशी पर्यटकों की संख्या में वृद्धि का कारण ऑनलाइन वीजा सुविधा उपलब्ध कराना है। यह सुविधा अब 180 देशों को उपलब्ध है। चिकित्सा और व्यावसायिक पर्यटकों के लिए ई-वीजा की सुविधा तथा ठहरने की अवधि को 30 दिनों से बढ़ाकर 60 दिन कर देने की वजह से भी विदेशी पर्यटकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। ताजमहल जैसी ऐतिहासिक इमारतों में ई-टिकट के लांच से, विशेष पर्यटन रेलगाड़ियों की सुविधा से तथा 24x7 पर्यटन हेल्पलाईन की सुविधा के कारण विदेश से पर्यटकों का आगमन बढ़ा है। 2015 की तुलना में 2017 में पर्यटन से अर्जित विदेशी मुद्रा में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 2015 में यह 12000 करोड़ रुपए थी, जो 2017 में बढ़कर 13,669 करोड़ रुपए हो गई। पर्यटन क्षेत्र के पास विदेशी मुद्रा कमाने की अपार क्षमता है। यह जीडीपी को बढ़ाने में भी योगदान दे सकता है। पर्यटन क्षेत्र 39.5 मिलियन लोगों को सेवा क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध कराता है। 2017-2018 के बजट भाषण में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 5 विशेष पर्यटन जोन बनाने का प्रस्ताव दिया था, जो राज्यों के सहयोग से विशेष उद्देश्य कंपनी (एसपीवी) के माध्यम से लागू किए जाएंगे। वित्त मंत्री ने पर्यटन द्वारा बड़ी संख्या में रोजगार उपलब्ध कराने की क्षमता को रेखांकित करते हुए कहा था कि यह क्षेत्र अर्थव्यवस्था को गुणात्मक रुप से प्रभावित करता है। मंत्री महोदय ने पूरे विश्व में ‘अतुल्य भारत : 2.0’ अभियान के शुभारंभ करने की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री ने भी सोशल मीडिया के माध्यम से भारत की विविधता को विश्व तक पहुंचाया है। देश की आध्यात्मिक विरासत की क्षमता का उपयोग करने के लिए उन्होंने देश की सांस्कृतिक विविधता और आध्यात्मिक संबंध को विश्व के समक्ष प्रचारित करने का आग्रह किया है। प्रधानमंत्री ने पर्यटन क्षेत्र के सेवा क्षेत्र में शत-प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति प्रदान की ताकि पूरे देश में पर्यटन के लिए मूलभूत
संरचना का विकास हो सके। केंद्र सरकार यात्रा और पर्यटन को विशेष प्रोत्साहन प्रदान करती है। पर्यटकों को आर्कषित करने के लिए सरकार ने कई योजनाओं का शुभारंभ किया है। ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत पर्यटन केंद्रों को स्वच्छ बनाया गया है, जैसे वाराणसी में गंगा नदी के तट का पुनर्रुद्धार किया गया है। प्रधानमंत्री ने ‘स्वच्छ भारत, स्वच्छ स्मारक’ का नारा दिया है। इसके तहत विरासत केंद्रों को स्वच्छ रखने की आवश्यकता स्पष्ट होती है। ‘आदर्श स्मारक’, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की एक महत्वपूर्ण योजना है। इसके तहत ऐतिहासिक स्थलों में पर्यटन सुविधाओं को बढ़ावा दिया जाता है। ‘स्वदेश दर्शन’, पर्यटन मंत्रालय की एक महत्वपूर्ण योजना है। इसके तहत थीम आधारित पर्यटन सर्किट का विकास किया जाता है। इसके तहत देश में 13 पर्यटन सर्किटों का चयन किया गया है। ‘प्रसाद’, योजना के अंतर्गत, भारत में 25 महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों की पहचान की गई है- अमरावती (आंध्र प्रदेश), अमृतसर (पंजाब), अजमेर (राजस्थान), अयोध्या (उत्तर प्रदेश), बद्रीनाथ (उत्तराखंड), द्वारका (गुजरात), देवघर (झारखंड), बेलूर (पश्चिम बंगाल), गया (बिहार), हजरतबल (जम्मू और कश्मीर), कामख्या (असम), कांचीपुरम (तमिलनाडु), कटरा (जम्मू और कश्मीर), केदारनाथ (उत्तराखंड) मथुरा (उत्तर प्रदेश), पटना (बिहार), पुरी (ओडिशा), श्रीसैलम (आंध्र प्रदेश), सोमनाथ (गुजरात), तिरुपति (आंध्र प्रदेश), त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र), ओमकारेश्वर (मध्य प्रदेश), वाराणसी (उत्तर प्रदेश) और वेल्लंकनी (तमिलनाडु)। पर्यटन दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा निर्यात उद्योग है। इसके
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया के माध्यम से भारत की विविधता को विश्व तक पहुंचाया है
21 - 27 मई 2018 तहत 1.235 मिलियन पर्यटक अंतरराष्ट्रीय सीमाएं पार करते हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2017 को सतत पर्यटन के अंतरराष्ट्रीय वर्ष के रूप में घोषित किया है। इसी तरह 21 मई को विश्व सांस्कृतिक विविधता दिवस मनाया जाता है। इस दृष्टिकोण के अंतर्गत जहां संस्कृतियों के बीच आपसी संवाद और सेतु निर्माण पर बल दिया गया है, वहीं समावेशी आर्थिक विकास, स्थानीय समुदायों को अच्छे रोजगार, पर्यावरण संरक्षण, जलवायु परिवर्तन की समस्या के प्रति ध्यान और अद्वितीय सांस्कृतिक पहचान का सम्मान को शामिल किया गया है। इस प्रकार पर्यटन विकास लोगों तथा विश्व के लिए समृद्धि का बेहतर अवसर प्रदान करता है। सरकार एक नई राष्ट्रीय पर्यटन नीति (एनटीपी) तैयार करने की प्रक्रिया में है। एनटीपी की मुख्य विशेषताएं समावेशी तरीका अपनाना, रोजगार सृजन करना और सामुदायिक भागीदारी को सुनिश्चित करते हुए पर्यटन का विकास करना है। इसका उद्देश्य समृद्ध संस्कृति और विरासत के प्रति जागरूकता बढ़ाते हुए मेडिकल और वेलनेस पर्यटन को बढ़ावा देना है। यह कौशल विकास और आधारभूत संरचना के विकास पर भी बल देता है। यह देश की विविधता का अनुभव प्राप्त करने के लिए घरेलू और विदेशी पर्यटकों को प्रोत्साहन प्रदान करता है। पर्यटन मंत्रालय ने सुरक्षित पर्यटन के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। इसके अंतर्गत मौलिक मानव अधिकार और महिलाओं एवं बच्चों की शोषण से मुक्ति सुनिश्चित की गई है। आधारभूत संरचना की कमी के कारण पर्यटन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में कुछ समस्याएं हैं। मसलन, सड़कों का अभाव और पर्यटकों के लिए स्वच्छ, आरामदायक प्रवास सुविधा की कमी आदि। इसके निदान के लिए सरकार यात्री टर्मिनल को अपग्रेड कर रही है, पर्यटन स्थलों में कनेक्टिविटी प्रदान कर रही है, स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करा रही है और पर्यटकों को सुविधा देने के लिए पर्यटन क्षेत्रों में संचार नेटवर्क का निर्माण कर रही है। भारत सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और प्राकृतिक रूप से समृद्ध है। इस संदर्भ में विश्व का कोई अन्य देश इसका मुकाबला नहीं कर सकता। विविध परंपराएं, जीवन पद्धतियां, रंगारंग मेले तथा हमारे पर्व त्योहार घरेलू और विदेशी पर्यटकों को कई तरह के विकल्प प्रदान करते हैं। भारत सरकार समावेशी विकास हेतु पर्यटन के उपयोग के प्रति न सिर्फ सचेत है, बल्कि स्थानीय समुदायों के साथ पर्यटन के लाभों को बांटने के लिए भी कृत संकल्प है। हमारे वन, जनजाति जीवन, सुंदर समुद्र तट, वन अभयारण्य और राष्ट्रीय पार्क पर्यटकों को देश की विविधता अनुभव करने का अतुल्य अवसर प्रदान करते हैं। केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री के.जे. अल्फोंस ने कहा है, ‘हमें भारत की विरासत, दर्शन और अविश्वसनीय विविधतापूर्ण विशेषताओं को लोगों तक पहुंचाने की जरूरत है जो अनुभव प्राप्त करने योग्य हैं।’ भारत सरकार पर्यटन के विकास के लिए उचित वातावरण प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है और सतत पर्यटन के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु एक रोडमैप प्रस्तुत कर रही है जो अंतरराष्ट्रीय सतत पर्यटन वर्ष का महत्वपूर्ण लक्ष्य है।
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खुला मंच
विष्णु प्रिया
लीक से परे
लेखिका पेशे से आर्टिटेक्ट और स्वच्छता के मुद्दे पर खासी सक्रिय हैं
स्वच्छता के लिए भारत भ्रमण
एक गांव में बेहतरीन कचरा प्रबंधन देखने के बाद मेरे मन में पूरे भारत में गंदगी की समस्या को लेकर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने का खयाल आया। इस काम के लिए मैंने पूरे भारत का भ्रमण किया
मे
रा जन्म तमिलनाडु के मदुरै में हुआ, लेकिन पिता की नौकरी के सिलसिले में मेरी परवरिश मुंबई से लेकर केन्या तक हुई। मैं पढ़ाई के सिलसिले में वापस भारत आई और चेन्नई में आर्किटेक्चर की पढ़ाई शुरू की। दो साल पहले ऐसे ही दोस्तों के साथ बातचीत करते हुए एक दिन मुझे पता चल कि ग्रामीण इलाके की लड़कियां तब तक ही स्कूल जाती है, जब तक उन्हें मासिक धर्म की हकीकत से जूझना नहीं पड़ता। दरअसल, अधिकतर ग्रामीण स्कूलों में शौचालय की व्यवस्था नहीं होती। वैसे यह जानकर मैं थोड़ा हैरान हुई। इस सिलसिले में मैंने खोजबीन की तो मुझे सच्चाई और भी भयावह लगी। मुझे एक ऐसी बच्ची के बारे में पता चला जिसने सिर्फ इसलिए दम तोड़ दिया था, क्योंकि खुले में शौच करने के शर्म से उसने शौच पर जाना ही छोड़ दिया था, जिससे उसके शरीर ऊतकों में संक्रमण हो गया और वह मर गई। सच्चाई को और बेहतर तरीके से समझने के लिए मैंने कई ग्रामीण स्कूलों का दौरा किया। मैंने समस्या के पीछे की वजह जानने की कोशिश की, तो पता चला कि ग्रामीण इलाकों में पानी की कमी शौचालयों के निर्माण में असली बाधा है। मुझे यह भी जानकारी हुई कि कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के पास और सरकारी इंतजामों में ऐसे शौचालय
बनाने की तकनीक उपलब्ध है, जिसमें पानी की बेहद कम जरूरत होती है। मुझे पता चला कि त्रिची के पास एक गांव मुसिरी में ऐसे विशेष डिजाइन वाले शौचालय अस्तित्व में हैं। पेशे से आर्किटेक्ट और एक सामाजिक समस्या दूर करने की इच्छा के साथ मैं मुसिरी गई। मैं गई तो थी वहां के विशेष शौचालयों का निरीक्षण करने पर वहां पहुंचने के बाद मुझे कुछ और भी खास दिखा। उस छोटी-सी पंचायत में गंदगी का नामो-निशान नहीं था। कचरा प्रबंधन ऐसा था कि बड़ी-बड़ी नगर पालिकाएं भी हार जाएं। मुझे दुख बस इस बात का हुआ कि इतनी अच्छी जगह के बारे में मुझ समेत ज्यादातर लोगों को अब तक कोई जानकारी नहीं थी। कचरे के पहाड़ की अभ्यस्त मेरी आंखों को अप्रत्याशित रूप से यह देखने को मिला था। मैंने उस गांव का वीडियों बनाकर सोशल मीडिया के
माध्यम से अपने दोस्तों के बीच साझा किया। यही से मेरे दिमाग में एक ख्याल आया कि लोगों को जागरूक करने के लिए क्यों न मैं पूरे भारत की गंदगी की समस्या को एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म के माध्यम से दिखाऊं। इस काम के लिए मैंने पूरे भारत का भ्रमण किया। मैंने दिल्ली में नाला बन चुकी यमुना की सच्चाई को भी कैमरे में कैद किया, तो लेह के पर्यटन स्थलों से इतर वहां के सुदूर क्षेत्रों की हकीकत को भी देखा। पिछले दो वर्षों से मैं खुद की बचत के पैसों से डॉक्यूमेंट्री निर्माण के लिए काम कर रही हूं। अब जबकि मेरी डॉक्यूमेंट्री अपने अंतिम चरण में है और कुछ ही दिनों बाद वह रिलीज हो जाएगी, तो इसके बाद मुझे अपने पुराने काम यानी आर्किटेक्चर से भी जुड़ना है। मेरे परिवार ने मेरा साथ दिया है, पर शुरू में यह इतना आसान नहीं रहा। मेरा अब तक का पूरा सफर संयोगों की कड़ी है। मेरे पास किसी भी काम की कोई विशेष योजना नहीं थी, लेकिन समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा ने मुझे गतिशील रखा। मगर अब मेरी एक योजना है, मैं चाहती हूं कि मैं फिल्म वाले काम के बाद कुछ सरकारी स्कूलों को गोद लेकर उनके लिए उन्हीं विशेष डिजाइन वाले शौचालय बनाऊं, ताकि कम से कम कुछ बच्चियां तो स्कूल न छोड़ें।
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सामाजिक सुधार का ग्रीन जरिगेड
संग्हालय
संसककृज्त व जवरास्त का अनमोल खिाना
24 पुस्तक अंश
26
कौशल भार्त योिना
कहरी-अनकहरी
29
ल्ता ने माना अपना मॉडल
harat.com
sulabhswachhb
- 20 मई 2018 वर्ष-2 | अंक-22 | 14
/2016/71597 आरएनआई नंबर-DELHIN
अलपसंखयक कलयाण का
सवजण्षम दौर महि एक नारा नहीं, सबका साथ सबका जवकास ल मंत्र है और इसे मू देश के समयक जवकास का खयक मंत्रालय िानने-समझने के जलए अलपसं केंद्र सरकार पर एक बेह्तर कसौटरी है, जिस आसानरी से के कलयाण काय्षक्रमों को परखा िा सक्ता है
विकास का आईना सुलभ स्वच्छ भारत ने नकारात्मकता से भरी खबरों से अलग हटकर हमें समाज से जोड़ने और सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों से रुबरू कराने का काम किया है। देश और समाज के लोगों के लिए सरकार क्या कर रही है और उसका जनता पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। इन सभी बातों से हमें सुलभ स्वच्छ भारत हमेशा से रूबरू कराता रहा है। हमें ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ के पिछले अंक में प्रकाशित ‘अल्पसंख्यक कल्याण का स्वर्णिम दौर’ आलेख काफी अच्छा लगा। हम आशा करते हैं कि सुलभ स्वच्छ भारत हमें इसी तरह की खबरों से हमेशा रुबरू कराता रहेगा। अमरेश कुमार पटना, बिहार
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कैनवास पर उतरा चांद
कवियों और शायरों ने चांद के कई रूपक गढ़े, उसके हर रूप-रंग को शब्दों में उकेरा, लेकिन वही पुराना चांद जब कोटा नीलिमा के कैनवास पर उतरा तो उसका अंदाज कुछ बदला-बदला दिखा। कोटा नीलिमा के चित्रों की प्रदर्शनी इन दिनों ललित कला अकादमी में चल रही है
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तैल रंगों में डूबे नीलिमा के चांद के कई रूप हैं, कई भंगिमाएं, कई आयाम और कई अर्थ। ठीक वैसे ही इन पेंटिंग्स में वृक्ष है, सुबह है, शाम है। लहरों पर तैरते चांद के मुखर रंगों के साथ कहीं एक खामोश और शांत सी दुनिया भी है, जो सिर्फ चांद की है और इस दुनिया को नीलिमा ने पहले चारकोल और फिर तैल रंगों के संयोजन से कैनवास पर बसाया है। नीलिमा का यह चांद वाकई कुछ कहता है...
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संवाद
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शौचालय निर्माण के साथ बदल रही हैं लोगों की आदतें - डॉ. विन्देश्वर पाठक
आकाशवाणी, नई दिल्ली के समाचार-सेवा-प्रभाग द्वारा ‘आदतों में बदलाव और स्वच्छता के प्रति संवेदनशीलता’ विषयक एकदिवसीय कार्यशाला का आयोजन डॉ. अशोक कुमार ज्योति
‘आ
दतों में बदलाव के लिए सबसे पहले आवश्यक है कि हर घर में शौचालय हो। जैसे-जैसे घरों में शौचालय बन रहे हैं, लोगों की आदतों में भी बदलाव आ रहा है। पहले खुले रूप में शौच जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था तो लोग बाहर ही शौच के लिए जाते थे, लेकिन आज शौचालय बन रहे हैं तो सभी उस ‘इज्जत घर’ में शौच के लिए जाते हैं।’ ये बातें सुलभ-स्वच्छता एवं सामाजिक सुधार-आंदोलन के संस्थापक एवं ‘सुलभवाद’ के प्रवर्तक पद्मभूषण डॉ. विन्देश्वर पाठक ने 8 मई, 2018 को आकाशवाणी, नई दिल्ली के समाचार सेवा प्रभाग द्वारा आयोजित ‘आदतों में बदलाव और स्वच्छता के प्रति संवेदनशीलता’ विषयक एकदिवसीय कार्यशाला में बतौर मुख्य वक्ता के रूप में कही। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने कहा था कि स्वच्छता पहले चाहिए, आजादी बाद में। आज देश प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर स्वच्छता के प्रति विशेष रूप से जाग्रत हुआ है। उन्होंने स्वच्छता को एक इज्जत प्रदान की है और शौचालय को ‘इज्जत घर’ कहकर इसके महत्त्व को रेखांकित किया है।
खुले में शौच जाने का शास्त्रों में उल्लेख
डॉ. पाठक ने देश में खुले रूप में शौच जाने की परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘हमारे यहां ‘देवीपुराण’ में उल्लेख है कि अपने घर से तीर छोड़ने पर वह जितनी दूर जाकर गिरे, वहां शौच करना चाहिए। शौच करने से पहले वहां पहले गड्ढा खोदना चाहिए, उसमें खर-पतवार डालना
खास बातें
घर में शौचालय होगा, तभी बदलेगी की खुले में शौच की आदत देश में बहू-बेटियों की तेजी से बदल रही है आदत मुस्लिम शासकों के कराण शुरू हुई स्कैवेंजिग की कुप्रथा
चाहिए, पिफर शौच करना चाहिए और उसपर फिर खर-पतवार डालकर उसे मिट्टी से ढक देना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसीलिए खुले रूप में शौच जाने की प्रथा हमारे यहां आज तक कायम है। उन्होंने कहा कि लोग शौच तो बाहर जाते रहे, किंतु गड्ढा खोदकर उसमें शौच कर उसे ढक देने की आदत भूल गए। इसीलिए खुले में शौच जाने पर उस मल से अनेक प्रकार के रोग हो जाते हैं। डायरिया, हुकवर्म, राउंडवर्म इत्यादि रोग खुले में मल के होने के कारण ही होता है।
विदेशी शासकों ने दिए शौचालय के दूसरे रूप
डॉ. पाठक ने बताया कि मुसलमान शासकों की महिलाएं ज्यादा पर्दे में रहती थीं और वे शौच के लिए बाहर नहीं जाती थीं। इसीलिए उनके घरों में बाल्टीनुमा खुला शौचालय बना और मल की सफाई के लिए हिंदू राजपूत कैदियों को रखा गया। उल्लेख है कि मुसलमानों द्वारा राजपूतों की 29 उपजातियों को स्कैवेंजर बना दिया गया, जिनके जाति सूचक उपनाम आज भी वही हैं। उनके द्वारा मानव मल की सफाई हाथों से करने के कारण उन्हें अछूत की श्रेणी में रख दिया गया। अंग्रेजों के आने पर यहां बड़ेबड़े घर तो बने, पर उनमें भी शौचालय की व्यवस्था नहीं थी। हमारे यहां सबसे पहले 1870 में कलकत्ता में सीवर लाइन की व्यवस्था शुरू हुई, लेकिन वह
मुसलमानों द्वारा राजपूतों की 29 उपजातियों को स्कैवेंजर बना दिया गया, जिनके जाति सूचक उपनाम आज भी वही हैं। उनके द्वारा मानव मल की सफाई हाथों से करने के कारण उन्हें अछूत की श्रेणी में रख दिया गया भी आंशिक रूप से। आज भारत में 7,935 शहर हैं, जिनमें मात्रा 732 शहरों में सीवर हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली जैसे बड़े नगर में भी मात्रा 29 प्रतिशत सीवेज ट्रीटमेंट की व्यवस्था है। सीवर सिस्टम से न मैला ढोने की प्रथा समाप्त हो सकती थी और न ही खुले रूप में शौच जाने की प्रथा। यह प्रणाली बहुत महंगी है और इसे सभी जगह लगाना संभव नहीं है। इसीलिए अफ्रिका, लैटिन अमेरिकी देशों में स्वच्छता की बहुत कमी है। दूसरा है, सेप्टिक टैंक की व्यवस्था। अमेरिका के गांवों में भी सेप्टिक टैंक का प्रचलन है, जो उचित निदान नहीं है।
गांधी जी का योगदान
डॉ. पाठक ने कहा कि इस समस्या पर सबसे पहले गांधी जी का ध्यान गया। उन्होंने ट्रेंच लैट्रिन बनवाया। डॉ. पाठक ने अपने बचपन को याद करते हुए कहा कि मेरे नाना के घर ट्रेंच लैट्रिन था, जिसका हम उपयोग करते थे। उन्होंने कहा कि गांधी ने ‘टट्टी पर मिट्टी’ देने की बात की।
यानी जब हम खुले में शौच करें तो उसे मिट्टी से ढक दें। लोगों के सम्मान के लिए वे एक वैज्ञानिक शौचालय चाहते थे, किंतु उनके जीवनकाल में यह संभव नहीं हो पाया। डॉ. पाठक ने कहा कि देश से स्कैवेंजिंग को खत्म करने के लिए 1957 में सरकार द्वारा मलकानी कमिटी का गठन किया गया, जिससे कोई खास परिवर्तन नहीं आया। कमिटी ने कहा कि मैला ढोने के काम में लगे लोगों को अच्छा बर्तन उपलब्ध करवाया जाना चाहिए, ताकि उनके शरीर पर मल न गिरे। इस तरह स्कैवेंजिंग की समस्या बरकरार रही।
गांधी जन्म शताब्दी समारोह में मिली प्रेरणा
डॉ. पाठक ने कहा कि ‘गांधी के बाद स्कैवेंजरों की दशा में सुधार लाने के लिए कोई आगे नहीं आया। अनेक लोगों ने कुछ पहल तो की, पर वह कोई बड़ा परिवर्तन लाने में सफल नहीं हुए। वर्ष 1968 में मैं बिहार गांधी जन्म शताब्दी समारोह समिति से
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सुलभ मैजिक शौचालय है उचित निदान
डॉ. पाठक ने बताया कि मैला ढोने की कुप्रथा की समाप्ति और छुआछूत को खत्म करने के लिए मैंने दो गड्ढे वाली सुलभ मैजिक शौचालय तकनीक का आविष्कार किया। इसमें एक बार में एक गड्ढे का उपयोग किया जाता है और एक गड्ढा स्टैंड बॉय में रखा जाता है। जब पहला गड्ढा भर जाता है तो दूसरे का उपयोग किया जाता है और इस दौरान डेढ़-दो साल में पहले गड्ढे का मल खाद में बदल जाता है। इसीलिए इसको साफ करने के लिए किसी स्कैवेंजर की जरूरत नहीं पड़ती है। इस प्रकार हमने बाल्टीनुमा शौचालय की जगह सुलभ मैजिक शौचालय की तकनीक दी, जिससे समाज की एक बड़ी समस्या का समाधान संभव हुआ। उन्होंने बताया कि हमने देशभर में 15 लाख शौचालय बनवाए हैं, जो आज भी ठीक से चल रहे हैं।
बड़ा सामाजिक बदलाव
डॉ. पाठक ने कहा कि सुलभ ने लगभग 9,000 सार्वजनिक शौचालय बनवाए हैं और उनका उपयोग प्रतिदिन लगभग 2 करोड़ लोग कर रहे हैं। उन्होंने महाराष्ट्र के पंढरपुर में स्थित विश्व के सबसे बड़े सुलभ सार्वजनिक शौचालय के बारे में बताते हुए कहा कि उस शौचालय का उपयोग प्रतिदिन लगभग 4 लाख लोग करते हैं। उन्होंने बताया कि जब हमने सबसे पहले पटना में सुलभ सार्वजनिक शौचालय बनवाया तो लोग कहते थे कि बस और रेल में टिकट न खरीदकर चलनेवाले बिहारी मानसिकता के बीच इस शौचालय के लिए कौन पैसा देगा! पर हमने जब शुरू किया तो 10 पैसे शुल्क देकर पहले ही दिन लगभग 500 लोगों ने उसका उपयोग किया। अब देश के 26 राज्यों और 4 केंद्रशासित प्रदेशों में सुलभ सार्वजनिक शौचालय कार्य कर रहे हैं। उन्होंने सुलभ सार्वजनिक शौचालय से बायोगैस और उसमें उपयोग किए गए जल को शुद्ध कर पुनः उपयोग में लाने की वैज्ञानिक सुलभ तकनीक का उल्लेख करते हुए कहा कि शहरों को स्वच्छ रखने और जल-संरक्षण के लिए हमारी ये दोनों तकनीकें काफी कारगर हो रही हैं। उन्होंने कहा कि हमने भारत सरकार के सहयोग से अफगानिस्तान की
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होगी। सुलभ संस्थापक डॉ. पाठक ने कहा कि हमने अलवर और टोंक शहरों में ऊंची जाति के लोगों तथा स्कैवेंजरों को एक साथ बैठाकर खाना खिलाया और मंदिरों में प्रवेश करवाया। डॉ. पाठक ने कहा कि आज देशभर में 6,46,000 गांव हैं। हर गांव में एक ब्राह्मण रहता है। वे दलितों के घरों में जाएं, उनके यहां पूजा करवाएं, उनसे प्रसाद लें, उनके यहां खाना खाएं तो छुआछूत अपने आप समाप्त हो जाएगी।
प्रश्न-सत्र
राजधानी काबुल शहर में भी बायोगैस से जुड़े पांच सुलभ सार्वजनिक शौचालय-परिसरों का निर्माण करवाया है, जो -30 डिग्री तापमान में भी कार्य करता है।
स्वच्छता की आदत
सुलभ संस्थापक ने बताया कि गांधी के बाद सबसे अधिक किसी ने स्वच्छता और शौचालय की बात की है तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। उन्होंने स्वच्छता को इज्जत दी है। उन्होंने कहा कि मैं इस्तेमाल के बाद अपना शौचालय स्वयं साफ करता हूं। उन्होंने आगे कहा कि जब नागरिक, संस्था और सरकार मिलकर काम करेंगे, तभी संपूर्ण स्वच्छता तक पहुंच संभव है। उन्होंने कहा कि प्रचार-प्रसार की दृष्टि से आकाशवाणी महत्त्वपूर्ण कार्य कर रही है, क्योंकि इसकी पहुंच दूर-दराज के गांवों और लोगों तक है।
स्थानीय जनप्रतिनिधियों की भागीदारी अहम
डॉ. पाठक ने कहा कि अपने इलाके को स्वच्छ रखने के लिए आवश्यक है कि जो वहां के स्थानीय जनप्रतिनिधि हैं, वे इसकी पहल करें। उन्होंने कहा कि हर गांव के मुखिया को वहां की सफाई व्यवस्था देखनी चाहिए। उसी तरह शहरों में सफाई व्यवस्था पार्षदों को देखनी चाहिए। इसमें जनभागीदारी आवश्यक है।
विधवाओं के कल्याण के लिए सुलभ की पहल
डॉ. पाठक ने कहा कि देश के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण यानी नालसा को यह निर्देश दिया कि वह सुलभ इंटरनेशनल से यह पूछे कि क्या वह वृंदावन के आश्रमों में रह रहीं विधवाओं को खाना खिला सकता है। दरअसल, एक वरिष्ठ पत्राकार आरती धर की एक रिपोर्ट ‘द हिंदू’ अखबार में वृंदावन की विधवाओं की दुर्दशा के संबंध में छपी, जिसमें यह भी उल्लेख था कि उनके मरने के बाद उनका अंतिम संस्कार भी ठीक से नहीं होता है और उनके शरीर को काटकर बोरे में बांधकर यमुना नदी में फेंक दिया जाता है, तब नालसा ने कोर्ट में याचिका दायर कर उनकी जिंदगी बचाने की गुहार लगाई थी। माननीय उच्चतम न्यायालय के इस निर्देश के बाद सुलभ ने वृंदावन में रह रहीं विधवाओं की सेवा का दायित्व लिया। सुलभ ने
उनकी चिकित्सा देखभाल के लिए उनके लिए पांच एंबुलेंस, टी.वी., फ्रीज, वाटर फिल्टर इत्यादि मुहैया कराए और संस्था उन्हें प्रतिमाह 2000/-रुपए की सहयोग-राशि भी उपलब्ध करा रही है। उन्हें हिंदी, बांग्ला, अंग्रेजी भाषा पढ़ना-लिखना सिखाया गया है। उनके आत्मविश्वास और गरिमा के लिए उनके लिए होली, दशहरा, दिवाली इत्यादि जैसे त्योहारों का भी आयोजन किया जाता है। चूंकि उनमें से अधिकतर बंगाल की रहनेवाली हैं, इसीलिए उन्हें कोलकाता ले जाकर दशहरा के त्योहार में शामिल करवाया गया, जहां कइयों के रिश्तेदार भी उनसे आकर मिले। इस तरह सुलभ ने उन्हें एक नया जीवन दिया है। उनके मरने के बाद सम्मानजनक तरीके से उनके अंतिम संस्कार की व्यवस्था भी कराई जाती है।
सुलभ पेयजल
डॉ. पाठक ने कहा कि जब हमें यह जानकारी दी गई कि पश्चिम बंगाल के मिदनापुर, चौबीस परगना और मधुसूदनकाती इलाके में आर्सेनिक युक्त जल पीने से अनेक तरह के चर्म रोगों और पेट के रोगों से लोग ग्रस्त हो गए हैं, तो हमने वहां तालाब, कुओं या फिर नदी के जल को शुद्ध कर मात्रा 50 पैसे प्रति लीटर शोधित पेयजल उपलब्ध करवा रहे हैं।
‘सुलभवाद’ की अवधारणा
डॉ. पाठक ने अपने वक्तव्य में कहा कि समाज की समस्याओं की खोज कर उनका निदान निकालकर उन समस्याओं को दूर करना ‘सुलभवाद’ का प्रथम ध्येय होगा। डॉ. पाठक ने कहा कि स्कैवेंजरों के सामाजिक उत्थान के लिए गांधी जी चाहते थे कि इस देश का राष्ट्रपति कोई स्कैवेंजर बने। मैं उनकी इच्छा के अनुकूल किसी को देश का राष्ट्रपति तो नहीं बना सकता हूं, लेकिन सुलभ द्वारा पुनर्वासित अलवर की स्कैवेंजर महिला उषा चौमड़ को मैंने सुलभ इंटरनेशनल का प्रेसिडेंट बनाया है। उन्होंने कहा कि अब ये स्कैवेंजर नहीं, बल्कि ब्राह्मण हैं। मैंने इनकी जाति बदल दी है और इन्हें ब्राह्मण बना दिया है। समाज में जब धर्म परिवर्तन की व्यवस्था है तो जाति बदलने की भी व्यवस्था होनी चाहिए।
समरस समाज का हो निर्माण
डॉ. पाठक ने कहा कि बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर ने छुआछूत खत्म करने के चार उपाय बताए थे। उनका मानना था कि संसद में जाने से या विधायक बन जाने से छुआछूत समाप्त नहीं
डॉ. पाठक के वक्तव्य की समाप्ति के बाद प्रश्नसत्र रखा गया। मृत्युंजय ने पूछा कि क्या शौचालयों के उपयोग के बाद भुगतान के लिए सुलभ स्मार्ट कार्ड लागू करने का आपका विचार है? डॉ. पाठक ने कहा कि यह व्यवस्था अच्छी रहेगी। हम इसके पक्ष में हैं। उन्होंने माहौल को हल्का बनाते हुए कहा कि लेकिन एक सुविधा यह भी रहेगी कि यदि आपके पास कार्ड नहीं है या पैसा नहीं है तो भी शौचालय जा सकते हैं, क्योंकि शौच को रोका नहीं जा सकता है। डॉ. पाठक ने कहा कि 1987-88 में एक स्लम इलाके में कहा गया कि शौचालय-उपयोग के लिए वहां के लोगों से पैसे न लिए जाएं, क्योंकि ये लोग बहुत गरीब हैं। हमने पैसा लेना बंद कर दिया। कुछ दिनों के बाद स्लम में रहनेवाले लोग आए और कहा कि हम पैसा देना चाहते हैं। हमने पूछा कि ऐसा क्या हो गया? लोगों ने कहा कि हमारे बाल-बच्चों की शादी नहीं हो रही है, क्योंकि दूसरे इलाके के लोग समझते हैं कि हम बहुत गरीब हैं। तीसरा प्रश्न आकाशवाणी के प्रशासनिक अधिकारी चुन्नी लाल ने पूछा कि विदेशों में जो ड्राई टॉयलेट का कंसेप्ट है, उसके बारे में आप क्या कहना चाहेंगे, क्योंकि उसमें पानी की जरूरत नहीं होती है। इसके उत्तर में डॉ. पाठक ने कहा कि हमारी संस्कृति मल को पानी से साफ करने की रही है। यह बहुत स्वास्थ्यकर भी नहीं है। हमलोग कागज से साफ नहीं कर सकते हैं। हमलोगों की आदत तो यह भी रही है कि हम शौच के बाद स्नान करना पसंद करते हैं। यह वहां के लिए ठीक है, जहां बहुत ठंड हो। डॉ. पाठक ने कहा कि अब हमारी बहू-बेटियों की खुले में शौच जाने की आदत बदल रही है। ससुराल वो तभी जाना पसंद करती हैं, जब वहां शौचालय हो। उन्होंने बैतूल की अनीता बाई नर्रे, जिनकी कथा पर अक्षय कुमार ने ‘टॉयलेट: एक प्रेमकथा’ फिल्म बनाई, महाराजगंज की प्रियंका भारती और कुशीनगर की प्रियंका राय तथा महाराष्ट्र की चैताली दिलीप राठौड़ का उल्लेख किया, जिन्होंने अपने सम्मान और गरिमा के लिए ससुराल में शौचालयों की मांग की। इंदौर की एक घटना का उल्लेख करते हुए डॉ. पाठक ने कहा कि घर में शौचालय नहीं होने पर पत्नी ने पति को तलाक देने की अर्जी दे दी। हमने उनके घर में सुलभ शौचालय बनवाया और उनका तलाक खत्म करवाया। डॉ. पाठक ने कहा कि यह बड़ा सामाजिक बदलाव है। हमने 5000 वर्षों की पुरानी आदत बदल दी है। अब जल्द ही पूरे देश के घर-घर में शौचालय होंगे और लोग स्वच्छ और संस्कारित तरीके से रहना पसंद करेंगे। पीएम मोदी का सपना पूरा होकर रहेगा।
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व्यक्तित्व
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‘अमेजिंग’ समाज सेवा!
कारोबार और दौलत दोनों ही क्षेत्रों में कामयाबी के सबसे ऊंचे शिखर पर बैठे ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन के संस्थापक और सीईओ जेफ बेजोस ने समाज सेवा को अपने जीवन का बड़ा लक्ष्य बनाने की घोषणा की है
खास बातें बेजोस ने गत वर्ष दुनिया भर के लोगों से समाज सेवा के आइडिया मांगे उन्होंने समाज सेवा को जीवन का भावी और बड़ा लक्ष्य बताया अमेजन दो वर्ष में बनी दुनिया की शीर्ष ई-कॉमर्स कंपनी
किताबों से बनी बात
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प्रियंका तिवारी
-कॉमर्स कंपनी अमेजन के संस्थापक और सीईओ जेफ बेजोस अपने धन को समाज सेवा पर खर्च करना चाहते हैं, यह खबर पिछले वर्ष इन्हीं दिनों खासी चर्चा में थी। साथ ही चर्चा में यह बात भी रही कि कामयाबी और श्रेष्ठता का मानवता के साथ स्वाभाविक रिश्ता है और इस बात को एक और कामयाब व्यक्ति ने सच कर दिखाया। बेजोस ने अपने कल्याणकारी लक्ष्यों के लिए दुनिया भर से समाज सेवा के आइडिया मांगे थे। उन्होंने ट्विटर पर दिए अपने एक संदेश में कहा था कि वह समाज सेवा के बारे में सोच रहे हैं और इसके लिए उन्होंने दुनिया भर से समाजसेवा के लिए नए आइडिया भेजने के लिए लोगों से अपील की। साथ में उन्होंने यह भी कहा कि समाज सेवा से खुद को जोड़ने का उनका फैसला जहां भावी जीवन का बड़ा लक्ष्य है, वहीं अब यह उनकी जिंदगी की सार्थकता भी है।
समाज सेवा के लिए सुझाव
दिलचस्प है कि समाज सेवा के अपने मिशन को लेकर यह अपील उन्होंने गत वर्ष 4 महीने के अंतराल पर दो बार की थी। एक बातचीत में उन्होंने बताया कि वह समाज सेवा के बारे में गंभीरता के साथ सोच रहे हैं। इस बातचीत में उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि वे अभी तक जो भी काम करते रहे हैं वह समाज सेवा से बिल्कुल विपरीत है। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी कंपनी अमेजन समाज सेवा के लिए पहले से काम कर रही है, लेकिन वे इस पर अलग
समाज सेवा के अपने मिशन को लेकर यह अपील जेफ ने गत वर्ष 4 महीने के अंतराल पर दो बार की थी। एक बातचीत में उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि वे अभी तक जो भी काम करते रहे हैं वह समाज सेवा से बिल्कुल विपरीत है से और काफी गंभीरता और विस्तार के साथ काम करना चाहते हैं।
अमेजन के ‘अमेजिंग’ नायक
1999-2000 में डॉट कॉम संस्कृति अपने पूरे खुमार पर थी। इसी युग के प्रणेता के रूप में अमेजन डॉट कॉम और उसके संस्थापक जेफ बिजोस डॉट.कॉम के परिचायक बन गए थे। उन्मुक्त हंसी और हंसमुख व्यक्तित्व वाले जेफ को अमेजन डॉट कॉम की सफलता पर हमेशा विश्वास था, जो उनके नेतृत्व में लगातार भी साबित भी हो रहा है। आलम यह कि आज उनके विश्वास का दुनिया ने भी अनुमोदन कर दिया है।
सम्मोहक है उनकी हंसी
‘मेरे ऑफिस में तो लोग मुझे मेरे ठहाकों की गूंज से ही ढूंढते हैं।’ अपनी हंसी को लेकर जेफ बेजोस यह बात अकसर कहते हैं। उनके व्यक्तित्व में कई बातें आकर्षक हैं, पर इन सबमें सम्मोहक है उनकी हंसी, उनका हंसमुख चेहरा। वर्ष 1994 में न्यूयॉर्क में एक प्रमुख इनवेस्टमेंट फर्म डी.ई. शाव एंड कंपनी की
अमेजन डॉट कॉम की सफलता में किताबों का बड़ा हाथ है। खुद जेफ भी स्वीकार करते हैं- ‘मैंने किताबों को इसीलिए चुना, क्योंकि किसी भी वस्तु की श्रेणी में शायद किताबें ही ऐसी श्रेणी है, जो सबसे बड़ी है। दुनिया की सबसे बड़ी किताबों की दुकान में भी 1,50,000 से ज्यादा किताबें नहीं मिल सकती, जबकि अमेजन डॉट कॉम पर हमने 10 लाख से ज्यादा किताबों का भंडार अपने ग्राहकों के लिए रखा है। यही तो है इंटरनेट की क्षमता का शाही उपभोक्ता उद्योग।’
नाम की ‘अमेजिंग’ दास्तान
बढ़िया नौकरी और जीवन-शैली को ठोकर मारकर जेफ ने कूच किया सुदूर पश्चिम में सिएटल की ओर। इस तरह चार लोगों और जेफ के किराए के मकान के गैरेज से शुरू हुआ अमेजन डॉट कॉम का सफर ।
पहले संघर्ष, फिर सफलता
अमेजन की सफलता आज भले मैनेजमेंट और बिजनेस क्षेत्र में सक्सेस की मॉडल स्टोरी है, पर इसकी शुरुआत के दिनों के संघर्ष आसान नहीं थे। सीखने वाली बात यही है कि जेफ बिजोस तब भी आज की तरह ही हंसमुख थे और हमेशा प्रसन्नचित्त रहा करते थे। उनके ही शब्दों में, ‘वे भी क्या दिन थे। दिन में हम कंप्यूटर प्रोग्राम लिखते थे, रात में किताबों को डिब्बों में बंद करके डाकघर तक पहुंचाना, क्या मजा आता था।’ कामयाबी का आलम यह रहा कि इस नई कारोबारी आगाज के छह साल के भीतर ही जेफ की व्यक्तिगत संपति (जो कि अधिकांश अमेजन के शेयर के रूप में है) लगभग 10 अरब डॉलर पहुंच गई।
नाम कुछ अजीब सा लगता है अमेजन। इस नाम के चुनाव को लेकर जेफ बताते हैं, ‘मैंने पहले तो कंपनी का नाम सोचा था कैडबरा डॉट कॉम (जैसे जादूगर कहते हैं न आबरा का डाबरा) पर कुछ महीने बाद उसे हमने बदलकर रख दिया, अमेजन, जो कि दुनिया की सबसे विशाल नदी है और हमारी दुकान, दुनिया की किताबों की सबसे विशाल दुकान।’
ट्रेंड सेटर
आज अमेजन डॉट कॉम इंटरनेट पर ई-कॉमर्स को प्रचलित करने में अमेजन डॉट कॉम का योगदान अग्रणी है। बर्नेस एंड नोबल जैसी सदियों से स्थापित और प्रतिष्ठित किताबों की श्रृंखला को अमेजन डॉट कॉम ने अपनी स्थापना के महज दो-तीन वर्षों में सचमुच नाकों चने चबवा दिए। अमेजन ई-कॉमर्स की दुनिया में नया सक्सेस मॉडल लाने के साथ कई प्रेरक व अनुकरणीय ट्रेंड भी लेकर आई। मसलन, इंटरनेट पर ग्राहकों की संतुष्टि ही काफी नहीं है, ग्राहक को अपनी अति उत्तम सेवा से दीवाना बनाया जा सकता है (कस्टमर अमेजमेंट), इसकी शुरुआत अमेजन डॉट कॉम ने ही की थी।
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शोहरत के साथ दौलत में भी नंबर वन
रोमांचक सफरनामा
अमेजन ऐसा नाम है, जिससे अब कोई अनजान नहीं है। दो दशक पहले अमेजन डॉट कॉम का आईपीओ लॉन्च हुआ था। दुनिया की सबसे बड़ी ऑनलाइन रिटेलर कंपनी का तमगा लिए अमेजन आज भारत में भी छा चुकी है
अपनी कुबेरी कामयाबी के बाद अमेजन के फाउंडर जेफ बेजोस भले समाज सेवा जैसी कल्याणकारी सोच की तफ बढ़ रहे हैं। पर उनके इस मुकाम तक पहुंचने की यात्रा रोमांचक है
दु
अपने प्लान के बारे में बताया तो उन्होंने पूछा, 'इंटरनेट क्या होता है?' जेफ का कहना है कि उनको मेरे आइडिया पर नहीं, मुझ पर भरोसा था।
निया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन के फाउंडर जेफ बेजोस दुनिया के सबसे अमीर आदमी बन गए हैं। उन्होंने यह उपलब्धि माइक्रोसॉफ्ट के को-फाउंडर बिल गेट्स को पीछे छोड़कर गत वर्ष नवंबर में हासिल की है। फोर्ब्स की एक रिपोर्ट के मु त ाबि क अमेजन डॉट कॉम के शेयर में भारी उछाल आने के बाद बेजोस की कुल संपत्ति बढ़कर
बंपर शुरुआत
बदलाव लाने वाला आइडिया
90 के दशक में एक ऐसी खोज हुई जिसका असर दुनिया पर अभी तक है। वॉल स्ट्रीट में नौकरी करने वाले जेफ बेजोस इंटरनेट क्रांति को बहुत करीब से देख रहे थे। अमेरिका मे तेजी से बढ़ रहे इंटरनेट को देखते हुए जेफ अपनी नौकरी छोड़ इंटरनेट कंपनी खोलने का फैसला करते हैं। जेफ के दिमाग में तब आइडिया आता है ऑनलाइन रिटेल का।
गैरेज से हुई शुरुआत
1995 में जेफ ने अमेजन डॉट कॉम की शुरुआत की। तब यह स्टार्टअप का ऑफिस वाशिंगटन में उनके घर का गैरेज था। जेफ को उनकी फैमिली का भी साथ मिला। कंपनी की शुरुआती फंडिंग उनके माता पिता ने ही की। वह बताते हैं कि जब उन्होंने अपने पापा को
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व्यक्तित्व
कंपनी को पहले दो सप्ताह में ही भविष्य नजर आ गया। महज दो हफ्तों में कंपनी की कमाई 20 हजार डॉलर हर हफ्ते होने लगी। जेफ रेवन्यू को कंपनी की ग्रोथ में लगाते रहे। दो महीनों में ही अमेजन ने अमेरिका के 50 राज्यों में अपना बिजनस शुरू कर दिया। अमेजन का रेवन्यू प्लान अलग ही था। कंपनी ने 4-5 साल प्रॉफिट का नहीं सोचा था। कंपनी के स्टॉक होल्डर्स इस से परेशान थे। 21वीं सदी के आते ही जब डॉटकॉम का गुबारा फुटा तो अधिकतर ऑनलाइन कंपनियां उससे बुरी तरह प्रभावित हुई, लेकिन अमेजन उसके बाद और मजबूत हुआ। कंपनी को प्रॉफिट पहली बार 2001 में हुआ।
93.8 अरब डॉलर हो गई। बेजोस ने 5.1 अरब डॉलर की कमाई की और इसके साथ ही उन्होंनने पूर्व नंबर वन माइक्रोसॉफ्ट के सहसंस्थाथपक बिल गेट्स को पीछे छोड़ दिया।
तीसरे नंबर पर पहुंचे वॉरेन बफे
फोर्ब्स की रेटिंग में वॉरेन बफे तीसरे स्थान पर हैं। उनके पास कुल संपत्ति 88 अरब डॉलर है। इसके बाद स्पेन के जारा क्लोथिंग दिग्गज अमानसियो ओरटेगा का स्थान है, उनके पास 77.2 अरब डॉलर की संपत्ति है। फेसबुक के मार्क जकरबर्ग 75.4 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ पांचवें स्थान पर हैं।
क्यों आई शेयर में तेजी
अमेजन डॉट कॉम के शेयर में तेजी की मुख्य वजह कंपनी के पिछले साल जुलाई-सितंबर में आए शानदार तिमाही नतीजे थे। कंपनी के तिमाही नतीजे अनुमान से बहुत बेहतर रहे थे। अमेजन ने व्हूनल फूड्स का अधिग्रहण 13.7 अरब डॉलर में किया था, जो अब तक का सबसे बड़ा अधिग्रहण है।
पर्सन ऑफ द इयर
1999 में टाइम पत्रिका ने जेफ बेजोस को ‘पर्सन ऑफ द इयर’ माना। टाइम ने कहा कि अमेजन की वजह से ऑनालाइन शॉपिंग लोकप्रिय हुई है।
जेफ बेजोस के प्रेरक विचार
समाज सेवा आपके व्यक्तित्व का उदात्त पक्ष है। दुनिया में किसी भी आदमी को इस उदत्तता से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। जो लोग साधन संपन्न नहीं हैं तो उनके साथ समय बिताने के लिए ये जीवन बहुत छोटा है। किसी कंपनी के लिए एक ब्रांड उसकी साख की तरह है। आप कठिन चीजों को करने का प्रयास करके साख पाते हैं। किसी टाइट बॉक्स से बाहर निकलने के तरीकों में से एक मात्र तरीका है, अपना रास्ता
जीवन से भरपूर जेफ
इस पूरी यशगाथा में जो बात सबसे अहम है, वह यह है कि बगैर किसी व्यावसायिक घराने या बड़े परिवार के वंशज होने के, सिर्फ अपने दृढ़ विचार और जन उपयोगी व्यावसायिक आंदोलन से भी व्यक्ति चंद वर्षों में कामयाबी के आसमान छू सकता है, यह कर दिखाया जेफ बेजोस ने।
खुद खोजना। अमेजन में हमारे पास तीन बड़े आइडियाज थे, जिनसे हम पिछले 18 साल से चिपके हुए हैं और वे ही हमारी सफलता के कारण हैं। कस्टमर को पहले रखें, इन्वेंट करें और धैर्य रखें। हम चीजों को सिर्फ इसीलिए नहीं करना चाहते, क्योंकि हम उन्हें कर सकते हैं। हम व्यर्थ कुछ भी नहीं करना चाहते। दो तरह की कंपनियां होती हैं, एक वह जो ज्यादा चार्ज करने के लिए काम करती हैं और दूसरा वह
जेफ जीवन से भरपूर हैं, अपने परिवार और अमेजन परिवार के साथ हंसते-खेलते काम करते हैं। अपने दादा के साथ रांच पर बिताई बचपन की छुटि्टयां उनके बचपन की सबसे सुनहरी यादें और शिक्षा हैं। अपने सौतेले पिता को ही वे दुनिया का सबसे अच्छा पिता मानते हैं। प्रिंशेसन में भौतिक शास्त्र पढ़ने जाने के दो साल में उन्होंने अपनी लाइन
जो कम चार्ज करने के लिए काम करती हैं। हम दूसरी वाली होंगे। यदि पिछले 6 सालों में हमने इंटरनेट स्पेस में अपने साथियों से बेहतर किया है, तोवो है हमारा कस्टमर एक्सपीरियंस पर लेजर फोकस रखना और यह सचमुच मायने रखता है। मेरे मानना है कि किसी भी बिजनेस में और खासतौर पर ऑनलाइन बिजनेस में तो ये निश्चित रूप से मैटर करता है, जहां वर्ड ऑफ माउथ बहुत अधिक पावरफुल होता है।
बदली और कंप्यूटर में स्नातक होकर फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
माता-पिता का आशीर्वाद
अपने जीवन और मकसद को लेकर किए गए इस बड़े फैसले के बारे में वे कहते हैं, ‘1994 में जब मैंने अच्छी नौकरी छोड़कर एक वेबसाइट
शुरू करने की बात की, तो एक बार मेरे माता-पिता चौंके, पर फिर उन्होंने न सिर्फ मुझे आशीर्वाद दिया, बल्कि अपनी जन्मभर की सारी जमा पूंजी 3 लाख डॉलर भी मुझे दे दिए। मेरी पत्नी भी पूरी तरह मेरे साथ थी। उनकी मां याद करती हैं, हम तो सिर्फ जेफ और उसके विश्वास को जानते थे, इंटरनेट और अमेजन को नहीं।’।
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पुस्तक अंश
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डिजिटल इंडिया
डिजिटल इंडिया को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विजन काफी सशक्त है। यह नागरिकों को तकनीकी दृष्टि से लैस करने की दिशा में उठाया गया पहला कदम है। अजीम प्रेमजी अध्यक्ष, विप्रो
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सपनों को मिले पंख
धानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब से कार्यभार संभाला है, उनके लिए ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘मेक इन इंडिया’ की नीति पर अमल प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर है। प्रधानमंत्री के ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम का आधार जहां बहुत व्यापक है, वहीं यह अपने लक्ष्य में काफी
महत्वाकांक्षी है। यह एक ऐसे विशाल छाते की तरह है, जिसमें एक साथ कई परियोजनाएं चल सकती हैं। इस कार्यक्रम का एक उद्देश्य यह भी रहा कि संवाद-सूचना तंत्र से जुड़ने के लिए संघर्ष कर रहे गांवों को ब्रॉडबैंड के साथ जोड़ा जाए। यह कार्यक्रम का एक बड़ा लाभ शासकीय तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार में पर्याप्त कमी लाना है।
‘डिजिटल इंडिया’ प्रोजेक्ट के लांच के मौके पर कॉरपोरेट जगत के दिग्गज।
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पुस्तक अंश
मेरे सपनों का डिजिटल इंडिया वह है, जहां हाईस्पीड डिजिटल हाइवे के जरिए पूरा राष्ट्र एकजुट हो। मेरे सपनों का डिजिटल इंडिया वह है, जहां सरकार खुली हो और शासन पारदर्शी हो। मेरे सपनों का डिजिटल इंडिया वह है, जहां एक-दूसरे से जुड़े 1.2 अरब, एक-दूसरे से जुड़े भारतीय नवाचारों का नया दौर लेकर आएं। मेरे सपनों का डिजिटल इंडिया वह है, जहां दुनिया नए आविष्कारों को लेकर भारत की तरफ देखे। मेरे सपनों का डिजिटल इंडिया वह है, जहां आईसीटीसक्षम नागरिक और सरकारी इंटरफेस मिलकर एक ईमानदार तंत्र बने। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्र
अपने विजन को लेकर प्रधानमंत्री के विचार
धानमंत्री ने सभी नागरिकों को डिजिटल तौर पर समस्त नागरिकों को समर्थ-सशक्त बनाने पर बल दिया है। उनका मानना है कि यदि जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा इस लिहाज से छोड़ दिया गया है, तो इसका अर्थ है कि डिजिटल संकट के रूप में हमें एक बड़ी आपदा का इंतजार है। उन्होंने कहा कि जब एमगवर्नेंस कहा जाता है, तो इसका मतलब ‘मोदी गवर्नेंस’ नहीं, बल्कि ‘मोबाइल गवर्नेंस’ है। प्रधानमंत्री ने डिजिटल इंडिया
को लेकर अपने सपने के बारे में स्पष्ट तौर पर कहा है कि इससे अभिप्राय एक ऐसे राष्ट्र से है, जिसे डिजिटल हाइवे एकजुट करे, जहां सरकार खुली हो और शासन पारदर्शी, जहां तकनीक यह सुनिश्चित करे कि सरकार ईमानदार है, जहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सबके लिए हो, जहां बेहतर स्वास्थ्य सेवा सबके लिए उपलब्ध हो, जहां समय के साथ सूचना किसानों को सशक्त बनाए और जहां ई-कॉमर्स से अर्थव्यवस्था चले।
मैं ऐसे डिजिटल इंडिया का सपना देखता हूं, जहां तकनीक सरकारी व्यवस्था को पारदर्शी बनाए और लोगों की जिंदगी में सकारात्मक बदलाव लाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
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पुस्तक अंश
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डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत अहम परियोजनाएं
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हमारी जनसांख्यिक पूंजी को डिजिटल शक्ति मिलनी चाहिए। #डिजिटलइंडिया और साइबर सिक्योरिटी देश की सुरक्षा के आंतरिक तंत्र का हिस्सा है। #डिजिटलइंडिया का स्वप्न दुनिया को भारत की तरफ नए विचार (आइडिया) के लिए देखने को विवश करेगा। #डिजिटलइंडिया का स्वप्न 1.2 अरब कनेक्टेड लोगों द्वारा देश को आगे ले जाना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
जिटल लॉकर सिस्टम के तहत फाइल और कागजात के इस्तेमाल को कम करने और एजेंसियों के बीच ई-डाक्यूमेंट शेयरिंग पर जोर। ‘चर्चा करो, कार्य करो और उसे प्रसारित करो’ के दृष्टिकोण के साथ माईगोव डॉट इन (MyGov.in) के रूप में नागरिकों के शासन में सहभाग के लिए प्लेटफार्म तैयार। डिजिटाइज्ड इंडिया प्लेटफार्म (डीआईपी) के जरिए दस्तावेजों का बड़े
सबसे सुदूरवर्ती गांव के निर्धनतम व्यक्ति की पहुंच दिल्ली तक सिर्फ डिजिटल इंडिया के जरिए ही सुनिश्चित हो सकती है। एनआर नारायणमूर्ति इंफोसिस के सह-संस्थापक
पैमाने पर डिडिटलीकरण, ताकि नागरिकों को त्वरित सेवाएं मुहैया कराई जा सके। ई-साइन फ्रेमवर्क नागरिकों को दस्तावेज पर ई-हस्तक्षर करने की सुविधा प्रदान करता है। ई-हॉस्पिटल एप्लिकेशन लोगों को ऑनलाइन निबंधन, शुल्क अदायगी, मिलने का समय तय करने, डॉयगनॉस्टिक रिपोर्ट्स हासिल करने और अन्य संबंधित पूछताछ की सुविधा प्रदान करता है। स्कॉलरशिप्स की प्रक्रिया ऑनलाइन पूरी करने के लिए नेशनल स्कॉलरशिप्स पोर्टल का निर्माण।
भारत-नेट और ब्रॉडबैंड हाइवेज के जरिए देश के 2.5 लाख ग्राम पंचायतों को कनेक्ट करना। बीएसएनएल द्वारा नेक्स्ट जेनरेशन नेटवर्क (एनजीएन) के जरिए 30 वर्ष पुराने आईपी आधारित तकनीक में परिवर्तन, ताकि डेटा, मल्टीमीडिया और विडियो आदि की सुविधा में सुधार हो। इसके अलावा बीएसएनएल देश भर में बड़े पैमाने पर वाई-फाई हॉटस्पॉट लगा रहा है। डिजिटल इंडिया के तहत सबसे बड़ी पहल ई-क्रांति है, जिसके जरिए सार्वजनिक सुविधा और शिकायत समाधान के लिए सिंगल पोर्टल का निर्माण है।
डिजिटल इंडिया का प्रभाव
वर्ष 2019 तक डिजिटल इंडिया के जरिए सभी पंचायतों तक ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी, विद्यालयों-विश्वविद्यालयों में वाई-फाई और सार्वजनिक तौर पर वाई-फाई हॉटस्पॉट की सुविधा सुनिश्चत हो जाएगी। इसके जरिए प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर लाखों नौकरियां पैदा होंगी। इससे भारत डिजिटली सशक्त होगा और भविष्य में आईटी का इस्तेमाल स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि और बैंकिंग क्षेत्र में बेहतर सुविधा विकसित करने की स्थिति में होगा।
आमतौर पर सरकार से ज्यादा तेजी के साथ उद्योग विकास करते हैं, पर डिजिटल इंडिया के साथ ऐसा नहीं है। मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं कि सरकार बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है। मुकेश अंबानी चेयरमैन और एमडी, रिलायंस इंडस्ट्रीज पुस्तक अंश अगले अंक में...
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कला
आज की कथा, समाज की व्यथा रेखा मेहरा की नृत्य मुद्राओं में राधा कृष्ण ही नहीं, आज का समाज भी दिखता है। नृत्यगुरु रेखा कथक के सहारे वर्तमान समय की विद्रूपताओं को प्रस्तुत करती हैं
दु
खास बातें
ममता अग्रवाल
नियाभर में अपनी नृत्य-प्रस्तुतियों से भारतीय कला की धाक जमा चुकीं कथक नृत्यांगना रेखा मेहरा कथक प्रेमियों को अपने नृत्य के माध्यम से केवल मंत्रमुग्ध ही नहीं करतीं, बल्कि मानती हैं कि नृत्य को समाज के ज्वलंत मुद्दों को सामने लाने के लिए एक बेहतर माध्यम के तौर पर भी प्रयोग किया जा सकता है। वह वंचित वर्ग के बच्चों के लिए एक संस्थान का संचालन भी करती हैं, जहां वर्तमान में कमजोर तबके के 300 बच्चों को इस कला का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। पारंपरिक और आधुनिक का समागम करते हुए कुशल नृत्यांगना रेखा अपनी इस कला के जरिए गंभीर मुद्दों को उठाती हैं। रेखा ने कहा कि नृत्य कार्यक्रम दर्शकों को आकर्षित करते हैं और जब इस माध्यम को हमारे समाज की कटु सच्चाइयों को उजागर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो यह निश्चित तौर पर दिलों को छूता है और लोगों को काफी प्रभावित करता है। बाल यौन शोषण, कन्या भ्रूणहत्या, पर्यावरणीय समस्याएं, महिलाओं की स्थिति जैसे आज के समय के कई गंभीर मुद्दों को नृत्य के माध्यम से प्रभावशाली ढंग से उठाया जा सकता है और लोगों को इनके प्रति संवदेनशील बनाया जा सकता है। कथक नृत्यांगना ने बेहतर समाज के निर्माण की दिशा में नृत्य के माध्यम से योगदान देते हुए एचआईवी-एड्स 'निदान', अतिथि देवो भव, अटल शक्ति की खोज में, वॉर एंड पीस, पर्यावरण की रक्षा के लिए धानी चुनरिया जैसे अनेक थीम के साथ कई प्रभावशाली और भावनात्मक नृत्य कोरियोग्राफ किए हैं। उनके ये प्रयास कितने प्रभावशाली रहे और क्या ये सचमुच जनमानस की भावनाओं को जागृत कर पाए? जवाब में नृत्यगुरु ने कहा, ‘मैंने जो नृत्य कार्यक्रम पेश किए, उनसे मैंने कई लोगों को प्रभावित होते देखा है। ये उनके दिलों को जितनी गहराई से छूते हैं, उतना कोई अन्य विज्ञापन या अन्य माध्यम नहीं छू सकते। हाल ही में कन्या भ्रूणहत्या के विषय पर प्रस्तुत मेरे नृत्य के दौरान मैंने देखा कि उस प्रस्तुति ने दर्शकों के दिलों को इतनी गहराई से छुआ था कि उनकी आंखें नम हो गई थीं।’ रेखा मेहरा खजुराहो महोत्सव, महाकुंभ, लखनऊ महोत्सव, फेस्टिवल ऑफ इंडिया, शारजाह फेस्टिवल, मालदीव में आयोजित ओणम महोत्सव समेत देश और विदेश में कई महोत्सवों में प्रस्तुति दे चुकी हैं। अपनी सशक्त भावनाओं के चलते रेखा मेहरा भी नृत्य के पारंपरिक और आधुनिक स्वरूप को लेकर वर्षों से चली आ रही बहस का हिस्सा
कमजोर वर्ग के 300 बच्चों को नृत्य की शिक्षा देती हैं रेखा ज्वलंत समस्याओं के प्रति जागरुकता फैलाती हैं नृत्यगुरु उवर्शी डांस, म्यूजिक एंड कल्चरल सोसायटी का संचालन भी करती हैं
बच्चों से दुष्कर्म, महिला सशक्तीकरण, पर्यावरण से जुड़े मुद्दे और ऐसे ही अन्य मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। मुझे लगता है कि कथक प्रस्तुति को पूरे प्रवाह में बहने दिया जाना चाहिए और बदलाव लाने देना चाहिए बन गई हैं। वह कहती हैं कि उनकी नृत्य प्रस्तुतियां, हालांकि नृत्य के पारंपरिक सिद्धांतों पर गहराई से टिकी होती हैं, लेकिन साथ ही वे समाज को आईना भी दिखाती हैं और दुनिया को बेहतर बनाने के लिए जो प्रयास किए जाने की जरूरत है, उनके लिए जागरूकता पैदा करती हैं। रेखा कहती हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि रचनात्मकता को ऐतिहासिक विरासत की सीमाओं में बांधकर रखा
जाना चाहिए। मैं मानती हूं कि हमें अपने समृद्ध इतिहास को नहीं भूलना चाहिए। राधा-कृष्ण और शिव जैसे धार्मिक थीम्स पर आधारित नृत्य कार्यक्रम भी पेश किए जाने चाहिए, ताकि हमारी नई पीढ़ियां अपनी ऐतिहासिक विरासत और संस्कृति को भूल न जाएं।’ मेहरा दिल्ली में उवर्शी डांस, म्यूजिक एंड कल्चरल सोसायटी चलाती हैं। उन्होंने कहा,
हालांकि, ‘बच्चों से दुष्कर्म, महिला सशक्तीकरण, पर्यावरण से जुड़े मुद्दे और ऐसे ही अन्य मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। मुझे लगता है कि कथक प्रस्तुति को पूरे प्रवाह में बहने दिया जाना चाहिए और बदलाव लाने देना चाहिए।’ बॉलीवुड फिल्मों में जिस तरह का क्लासिकल डांस पेश किया जाता है, उसके बारे में क्या ख्याल है? इस सवाल पर प्रख्यात नृत्यांगना ने कहा, ‘फिल्मों में नृत्य प्रस्तुतियां सच्चाई से परे, बढ़ा-चढ़ा कर पेश की जाती हैं। लोगों को फिल्मों में पेश किए जाने वाले नृत्यों में दिखाई जाने वाली खूबसूरत लाइटिंग, परिधान और अन्य चीजें आकर्षित करती हैं। इससे ये नृत्य दर्शकों के बीच लोकप्रिय हो जाते हैं और सभी को क्लासिकल नृत्य की एक झलक मिल जाती है।’ उन्होंने कहा, ‘हालांकि, फिल्मों में नृत्य की केवल एक साधारण तस्वीर ही पेश की जाती है। नृत्य विधा का बुनियादी स्वरूप और उसकी बारिकियां इसमें पूरी तरह पेश नहीं की जातीं। वहीं, दूसरी ओर कई लाइव परफॉर्मर्स को ऐसे भव्य बैकड्रॉप्स, परिधान और ऐसी अन्य चीजों की सुविधा नहीं मिल पाती। दर्शक आमतौर पर इन प्रॉप्स से प्रभावित होते हैं और इस कारण लाइव परफॉर्मर्स उतनी ज्यादा भीड़ नहीं जुटा पाते।’ भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछे जाने पर रेखा मेहरा ने कहा, ‘फिलहाल मैं वंचित वर्ग के करीब 300 बच्चों के साथ काम कर रही हूं और पूरे भारत में कई नृत्य प्रस्तुतियों के माध्यम से उन्हें बढ़ावा देना चाहती हूं। इन कार्यक्रमों में मैं अपने देश की विभिन्न समस्याओं को उठाना चाहती हूं। मैं अपने दर्शकों को केवल शहरों तक ही सीमित नहीं रखना चाहती, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी अपने कार्यक्रम पेश करना चाहती हूं, जहां लोगों ने कभी ऐसी प्रस्तुतियों का अनुभव न किया हो।’नृत्यगुरु ने बेहद सकारात्मक अंदाज में कहा, ‘अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।’
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खेल
21 - 27 मई 2018
हॉकी में गोल बनाने का उस्ताद
भारत के सर्वश्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ियों में शुमार शाहिद मॉस्को ओलंपिक-1980 में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा थे। ओलंपिक में भारत का यह आखिरी स्वर्ण पदक था
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एसएसबी ब्यूरो
लंपिक स्वर्ण विजेता टीम के सदस्य रह चुके भारत के दिग्गज हॉकी खिलाड़ी मोहम्मद शाहिद सिर्फ अपनी शानदार ड्रिबलिंग कुशलता के लिए ही नहीं जाने जाते थे, बल्कि उनकी गिनती देश के सार्वकालिक महान खिलाड़ियों में भी होती है। शाहिद का 56 वर्ष की अवस्था में दो वर्ष पूर्व लंबी बीमारी के कारण गुड़गांव के एक अस्पताल में निधन हो गया। वे काफी समय से किडनी और लीवर की परेशानी से जूझ रहे थे। पीलिया और डेंगू की चपेट में आने के कारण उनकी तबीयत और भी खराब हो गई थी। भारत के सर्वश्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ियों में शुमार शाहिद मॉस्को ओलंपिक-1980 में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा थे, जिसके कप्तान वासुदेवन भास्करन थे। ओलंपिक में भारत का यह आखिरी स्वर्ण पदक था। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 14 अप्रैल, 1960 को जन्मे शाहिद ने 1979 में फ्रांस में हुए जूनियर विश्व कप में पहली बार भारत का प्रतिनिधित्व किया था। इसी वर्ष कुआलालंपुर में हुए चार देशों के टूर्नामेंट में उन्होंने देश की सीनियर टीम में कदम रखा। इसके बाद आगा खां कप में शानदार प्रदर्शन करने वाले शाहिद ने अपनी प्रतिभा और खेल के प्रति प्यार से सीनियर खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों का ध्यान अपनी तरफ खींचा। उनके बारे में कहा जाता था कि मैदान पर जितने खतरनाक थे, मैदान से बाहर वह उतने ही उदार थे। शाहिद अपनी चपलता, फुर्तीले खेल और बेहद तेजी से दौड़ते हुए शानदार अंदाज में किए जाने वाले ड्रिबलिंग कौशल के लिए देश के हॉकी प्रेमियों के चहेते बन चुके थे। लेफ्ट मिड-फील्ड क्षेत्र में एक अन्य दिग्गज जफर इकबाल के साथ शाहिद को जोड़ी बेहतरीन थी। उन्हें कराची में 1980 में खेली गई चैंपियंस ट्रॉफी में सर्वश्रेष्ठ फॉरवर्ड खिलाड़ी का पुरुस्कार भी मिला। वे मास्को ओलंपिक-1980 में स्वर्ण पदक, 1982 में एशियाई खेलों में रजत पदक और एशियाई खेलों-1986 में कांस्य पदक जीतने वाली टीम का भी हिस्सा थे। उनकी योग्यता ने उन्हें 1986 में एशिया की ऑल स्टार टीम में भी जगह दिलाई। शाहिद ने 1985-86 सत्र में भारतीय हॉकी टीम की कमान भी संभाली और 1981 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार तथा 1986 में पद्मश्री से नवाजा गया।
ड्रिबलिंग के मास्टर
हॉकी के मैदान में मोहम्मद शाहिद अपने बाएं हाथ का कमाल दिखाने को मशहूर थे। वे स्वाभाविक तौर पर खब्बू प्लेयर थे। गेंद लेकर तेजी से विपक्षी खिलाड़ियों को छकाते हुए आगे बढ़ते और गोल तक पहुंचकर ही रुकते। हॉकी में अटैक करते खिलाड़ी का नैचुरल टर्न दायें होता है और डिफेंडर उसे ही एंटीसिपेट करते हुए उनका रास्ता रोकता। शाहिद की चालाकी ये थी कि वो पहले दायें मुड़ने का फेक मूव बनाते, और जब डिफेंडर उनके झांसे में आ जाता तो फौरन अपने नेचुरल टर्न बाएं मुड़कर फुर्ती से निकल जाते।
रफी-किशोर के फैन
मोहम्मद शाहिद जितने अच्छे खिलाड़ी थे। उतने ही कमाल के संगीत प्रेमी इंसान भी थे, ड्रेसिंग रूम में घूमते हुए उनकी जुबान पर या तो किशोर कुमार का कोई फड़कता हुआ गाना होता था या मोहम्मद रफी की कोई उदासी भरी गजल। बड़े मैचों के पहले जहां बाकी खिलाड़ी तनाव की रेखाओं से घिरे, चुपचाप बैठे मिलते, मोहम्मद शाहिद की जबान पर सदा कोई तराना होता। शायद इस मायने में भी वो पक्के बनारसी थे। दूसरे साथी को उदास देखते तो कहते, ‘तुम क्यों फिकर करते हो। मेरे को बॉल दे देना। फिर मैं खेलूंगा।’ शिवरात्रि के दिनों में अगर अपने शहर में होते तो वहीं गंगा घाट पर बैठ जाया करते और सबके साथ मिलकर घंटों भजन गाया करते, सुना करते।
जफर के साथ जोड़ी
जवान मोहम्मद शाहिद गोल मारने का चैंपियन नहीं था, गोल बनाने का चैंपियन था। इस मायने में वो आज के लियोनल मेस्सी जैसे थे। अपनी प्रसिद्ध ड्रिबलिंग से मिडफील्ड को छकाते हुए अटैकिंग लाइन में खेल रहे साथी खिलाड़ियों जफर इकबाल और मेरवन फर्नांडिस तक गेंद पहुंचाना उनकी जिम्मेदारी थी। जफर इकबाल लिखते हैं कि उनके साथ खेलना दर्शनीय तो था, लेकिन फ्रस्ट्रेटिंग भी था। वजह, ‘अरे गेंद उनके पास होती तो वे पास ही नहीं करते। पिच के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक खुद ही विपक्षी खिलाड़ियों को छकाते ऐसे गेंद ले जाते जैसे खाली मैदान में खेल रहे हों।’ जफर मजाक में कहते थे कि इसके साथ तो मैं कभी बहस में भी ना जाऊं, क्योंकि एक बार माइक इसे मिल गया तो ये कभी मुझे पास नहीं करेगा!
मोहम्मद शाहिद जितने अच्छे खिलाड़ी थे, उतने ही कमाल के संगीत प्रेमी इंसान भी थे। ड्रेसिंग रूम में घूमते हुए उनकी जुबान पर या तो किशोर कुमार का कोई फड़कता हुआ गाना होता था या मोहम्मद रफी की कोई उदासी भरी गजल
रात में प्रैक्टिस
रातों में सोते हुए भी उनके दिमाग से हॉकी की हरी पट्टी खिसकती नहीं थी। साथी खिलाड़ी परेशान रहते थे। शाहिद अचानक आधी रात को उठ जाते और गेंद को दीवार से मार-मार कर प्रैक्टिस करने लगते। आस-पास के दूसरे कमरों में ठहरे खिलाड़ी नाराज होते, उन्हें कोसते-चिल्लाते। लेकिन वो भी थे जिद्दी। न सुनते, न मानते। तभी मानते जब रात 2-3 बजे जाकर खुद थक जाते, और सो जाते। उनके कप्तान रहे वी भास्करन बताते हैं कि साथी खिलाड़ियों ने बाद में उनकी इस रात में प्रैक्टिस की आदत से खुद ही दोस्ती कर ली थी और उसे ही लोरी मानकर आराम से सोने लगे।
शादी और अंग्रेजी
शाहिद उस दौर की हॉकी के पोस्टर ब्वॉय थे। पर खांटी बनारसी शाहिद का अंग्रेजी में हाथ तंग था। फिर एक दिन खुद भारतीय महिला टीम की खिलाड़ी ने आगे बढ़कर उन्हें शादी का प्रस्ताव दे दिया। पर उन्होंने प्रस्तव ठुकरा दिया। वजह पूछने पर मैदान पर अपने जोड़ीदार जफर इकबाल को उन्होंने बताया, ‘यार, वो तो सिर्फ अंग्रेजी बोलती हैं। हमसे तो बोला जाएगा नहीं।’ वैसे बाद में जब शादी हुई मोहम्मद शाहिद की तो थी वो भी लव मैरिज ही।
खेल से संन्यास
हॉकी से संन्यास लेने के बाद शाहिद ने भारतीय रेलवे के साथ खेल अधिकारी के तौर पर काम किया और अपने गृहनगर वाराणसी में ही रहे। पेट दर्द की समस्या के कारण उन्हें दो वर्ष पूर्व काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लेकिन स्थिति में सुधार न होने के कारण उन्हें वाराणसी से गुड़गांव के मेदांता मेडिसिटी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उन्होंने अंतिम सांसें ली।
पीएम का नमन
सर्वश्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ियो में से एक माने जाने वाले शाहिद को श्रद्धांजलि देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सरकार ने उन्हें बचाने की काफी कोशिश की थी। प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया, ‘शाहिद के असामयिक और दुर्भाग्यपूर्ण निधन के साथ ही भारत ने एक ऐसी प्रतिभाशाली खेल हस्ती खो दी, जो पूरे जोश और उत्साह के साथ खेलते थे।’ उन्होंने आगे कहा, ‘हमने उन्हें बचाने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन दुखद है कि हमारी प्रार्थनाएं भी उन्हें बचाने में असफल रहीं। शाहिद को नमन।’
खास बातें शाहिद अपने बाएं हाथ का कमाल दिखाने के लिए मशहूर थे गोल दागने में नहीं, बल्कि गोल बनाने के चैंपियन थे शाहिद 56 वर्ष की अवस्था में दो वर्ष पूर्व लंबी बीमारी के बाद निधन
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कही-अनकही
वकालत से तौबा ले आया फिल्मों में
कु
आज की पीढ़ी केएन सिंह को नहीं जानती है, लेकिन लंबे समय तक फिल्मी पर्दे पर उनकी तूती बोलती रही। उनकी उपलब्धियां आने वाली पीढ़ियों के लिए फिल्म की रीलों और डीवीडी में सुरक्षित हो चुकी हैं
एसएसबी ब्यूरो
दरत ने उन्हें गरजदार आवाज दी थी, भाव भंगिमाओं को खास आकार देने की शैली उन्होंने खुद विकसित की और इन दो चीजों के मेल ने भारतीय फिल्म जगत को बेमिसाल खलनायक दिया। कृष्ण निरंजन सिंह उर्फ केएन सिंह जब पर्दे पर अपनी आंखों को उतार चढ़ाव देते हुए सधी हुई आवाज में संवाद बोलते थे तो वाकई लगता था कि इस शख्स से ज्यादा खतरनाक और कोई नहीं हो सकता। बिना संवाद का स्तर गिराए और बिना और चीखे-चिल्लाए बगैर केएन सिंह भय और घृणा की भावना दर्शकों के मन में पैदा कर देने का हुनर रखते थे। न कभी अभिनय का शौक रहा, न फिल्मों में काम करने की तमन्ना, लेकिन बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले ना भीख की कहावत ने एन सिंह के जीवन में महत्वपूर्ण रोल अदा किया। देहरादून के विख्यात वकील चंडी प्रसाद सिंह के घर एक सितंबर 1909 को जन्मे केएन की पढ़ाई देहरादून और लखनऊ में हुई। लामाटीनियर लखनऊ से सीनियर कैंब्रिज करने के बाद वे बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड जाना चाहते थे, लेकिन गए नहीं क्योंकि वकील बाप की संतान होकर भी वकीलों की झूठ को सच साबित
करने की कोशिशें उन्हें नाजायज लगने लगी। लखनऊ में ही उनकी दोस्ती अपने एक हमउम्र कुंदन लाल सहगल से हुई। आगे चल कर इस दोस्ती ने रिशतों के कई पड़ाव तय किए। केएन सिंह की एक बहन की शादी कोलकाता में हुई थी। उनकी अचानक तबीयत खराब हो गई। उनकी देखभाल के लिए किसी को जाना था। सहगल भी उन दिनों कोलकाता में ही थे, क्योंकि उस समय कोलकाता फिल्म निर्माण का सबसे प्रमुख केंद्र था। एक दिन उनकी एक शख्स से मुलाकात हुई। उनकी नाम था इजरा मीर। वो उन दिनों इंद्रपुरी स्टूडियों के डायरेक्टर थे। मीर ने केएन सिंह को स्टूडियो में आने निमंत्रण दिया। वहां केएन की मुलाकात उस समय की कई फिल्म हस्तियों से हुई। एक दिन केएन सिंह कुंदन लाल को ढूंढते हुए एक स्टूडियो पहुंचे। वो कुंदन लाल से मिलने में झिझक रहे थे, लेकिन कुंदन लाल ने उन्हें देखते ही दौड़ कर गले लगा लिया। इसके बाद केएन सिंह की पृथ्वी राज कपूर से मुलाकात हुई। उन्होंने केएन को फिल्मी दुनिया में रोजगार ढूंढने का सुझाव दिया। पृथ्वी राज कपूर के सुझाव पर केएन
खास बातें
निर्देशक देवकी बोस के असिस्टेंट बन गए। उन्हें फिल्मी दुनिया और वहां का काम बहुत दिलचस्प लगा। देवकी बोस उस समय एक फिल्म बना रहे थे 'सुनहरा संसार' जिसके हीरो थे गुल हमीद। के एन सिंह का हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी का शुद्ध उच्चारण देखते हु्ए इस फिल्म में उन्हें एक डाक्टर का रोल दिया गया। इसके बदले उन्हें मिले 300 रुपए। यह फिल्मों से उनकी पहली कमाई थी। के एन सिंह के काम को देवकी बोस के अलावा पूरी यूनिट के लोगों ने पसंद किया। अब केएन के सामने यह साफ हो गया था कि उन्हें फिल्मी दुनिया में ही अपना भविष्य मजबूत करना है। केएन सिंह के इस फैसले में मदद उनकी किस्मत ने भी की। ‘सुनहरा संसार’ के बाद देवकी बोस ने ‘हवाई डाकू’ नाम की फिल्म पर काम शुरू किया। इसके हीरो भी गुल हमीद चुने गए। लेकिन शूटिंग के वक्त गुल हमीद बुरी तरह बीमार हो गए। देवकी बोस ने केएन सिंह से गुल हमीद का रोल करवाया। खलनायक थे मजहर खां। फिल्म फ्लॉप हो गई, लेकिन केएन हीरो बन गए। कई और फिल्मों में काम करते करते केएन को फिल्म 'मिलाप' में काम करने का मौका मिला। इस फिल्म का निर्देशन एआर कारदार कर रहे थे। यह कारदार की पहली फिल्म थी। ‘मिलाप’ हिट ही नहीं सुपर हिट हुई। तब तक मुंबई फिल्म निर्माण के बड़े केंद्र के रूप में उभर रहा था । कोलकाता में कई फिल्म कंपनियां आर्थिक संकट से जूझ रही थीं। कारादार ने केएन के सामने मुंबई चलने का प्रस्ताव रखा। कारदार का मानना था कि डील डौल के मुताबिक भी केएन सिंह खलनायक के रोल के लिए फिट रहेंगे। अब केएन सिंह को फैसला करना था कि वो खलनायक बने या नहीं। उस समय के सबसे चर्चित खलनायक मजहर खां केएन के दोस्त थे, उन्होंने केएन को राय दी कि उन्हें खलनायक या चरित्र अभिनेता जिसका भी रोल मिले करना चाहिए, क्योंकि किसी हीरो की दो फिल्में फ्लॉप होने के बाद उसकी मांग घट जाती है। लेकिन खलनायक या चरित्र अभिनेता पर फिल्म फ्लॉप होने का सीधा असर नहीं पड़ता।
रूप से उस समय के प्रसिद्ध खलनायक याकूब इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने खलनायक के रोल लेने बंद कर दिए और वे हास्य अभिनेता बन गए। 1951 में बनी राजकपूर की फिल्म 'आवारा' में केएन ने एक डाकू की भूमिका निभाई फिल्म रिलीज होने के बाद केएन के रोल की जमकर प्रशंसा हुई। बरसों तक उनके प्रशंसक उन्हें जग्गा डाकू के नाम से याद करते रहे। मगर यह केएन सिंह का बड़प्पन था कि उन्होंने अपनी इस उपलब्धि का श्रेय अकेले ही नहीं लिया। उन्होंने हमेशा कहा कि ख्वाजा अहमद अब्बास ने जग्गा डाकू का रोल इतना असरदार लिखा था कि वह यादगार बन गया। शक्ति सामंत को लगता था कि केएन के बिना उनकी फिल्म अधूरी रहेगी। इसीलिए उन्होंने अपनी फिल्मों इंस्पेक्टर, हावड़ा ब्रिज, इवनिंग इन पेरिस में केएन को दोहराया। धीरे-धीरे पर्दे पर प्राण, कन्हैयालाल और जीवन जैसे खलनायक उभरे, लेकिन केएन ने खलनायकी में अपना जो अंदाज और स्थान बनाया था वह हमेशा बना रहा। फिल्मों में कई पीढ़ियां उनके सामने जवान हुईं। उन्होंने पृथ्वी राज कपूर के साथ काम किया फिर राज कपूर के साथ और 1975 में राजकपूर के बेटे ऋषि कपूर की फिल्म 'रफूचक्कर' में भी केएन सिंह ने काम किया। सहगल और मोतीलाल से लेकर दिलीप, राजकपूर, देवानंद त्रयी सहित गुरुदत्त, सुनील दत्त,
खुद मजहर खां भी हीरो थे और अपनी मर्जी से खलनायक का किरदार करने लगे। केएन सिंह ने 'बागबान' में खलनायक का रोल किया। फिल्म सुपर हिट रही और इसी के साथ फिल्मी दुनिया को 6 फुट दो इंच उंचा एक ऐसा खलनायक मिला जिसकी रहस्यमय मुस्कान उसका अचूक हथियार था, जो सिर्फ आंखों को खास अंदाज में हरकत दे कर सिहरन पैदा कर देता था। केएन के खलनायक
मनोज कुमार, धर्मेंद्र और राजेश खन्ना से लेकर अमिताभ बच्चन तक फिल्मों के हर दौर के नायकों के मुकाबले में केएन सिंह अकेले खड़े नजर आते हैं। आज की पीढ़ी केएन सिंह को नहीं जानती है, लेकिन लंबे समय तक फिल्मी पर्दे पर उनकी तूती बोलती रही। अनकी उपलब्धियां आने वाली पीढ़ियों के लिए फिल्म की रीलों और डीवीडी में सुरक्षित हो चुकी हैं।
1909 को जन्मे केएन की पढ़ाई देहरादून और लखनऊ में हुई पृथ्वी राज के सुझाव पर निर्देशक देवकी बोस के असिस्टेंट बने सहगल से लेकर अमिताभ बच्चन के दौर तक केएन फिल्मों में छाए रहे
केएन के खलनायक रूप से उस समय के प्रसिद्ध खलनायक याकूब इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने खलनायक के रोल लेने बंद कर दिए और हास्य अभिनेता बन गए
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सािहत्य
21 - 27 मई 2018
थोड़ी देर का स्वाद जीवन भर की परेशानी
ए
आशा
क शहद व्यापारी अपने ग्राहक को शहद दे रहा था। अचानक व्यापारी के हाथ से शहद का बर्तन छुटकर गिर गया और उसका ढक्कन खुलने की वजह से बहुत सारा शहद नीचे गिर गया। व्यापारी ऊपर -ऊपर से जितना शहद उठा सकता था उठा लिया, लेकिन फिर भी बहुत सारा शहद नीचे पड़ा रहा। बहुत सारी मक्खियां शहद के लालच में वहां आ गई और शहद चाटने लगी। मीठा मीठा शहद उन्हें इतना अच्छा लगा कि वे एक दूसरे से प्रतिस्पर्ध कर जल्दी जल्दी चाटने लगी। जल्दी ही उनका पेट भर गया। जब मक्खियां को पेट भर गया तो उन्होंने उड़ना चाहा, लेकिन उनके पंख शहद में चिपक गये थे, इसीलिए वे उड़ नहीं पा रही थीं। वे उड़ने की जितनी भी कोशिश करतीं उनके पंख उतने
कविता
मैं क्यों ?
हविशा अरोड़ा
शिव नाडर स्कूल, नोएडा, ग्रेड 11
उसकी आंख खुली, तो सच्चाई खुली वही सच्चाई जो युगों तक जारी रही चाहे वह द्रौपदी की साड़ी हो या निर्भया की चीख, पापा की डांट हो या मां की सीख। एक अजीब उलझन थी मां से घंटो सवाल करती वही उलझन कि क्यों वह पुरुष, वह लड़का हमें दुख पहुंचाता है बलात्कार, उत्पीड़न क्या यही मेरी जिंदगी है ? बस यही? मां से करती हूं बस एक ही सवाल: मैं क्यों? मेरी स्कर्ट की लंबाई पर वे उंगली उठाते हैं हम इनकार करें तो हमें मारते हैं क्या मेरे शब्द महत्वपूर्ण नहीं? क्या इनका कोई मूल नहीं ? सड़क पर आधी रात गए मैं चल नहीं सकती सांझ ढ़ले टहल नहीं सकती चिल्ला कर मां से करती हूं बस एक ही सवाल: मैं क्यों? मैं कोई खिलौना नहीं, मुझे और रोना नहीं हम स्त्रियों के पास दिव्य हृदय है यह एक मां, बहू, बेटी का हृदय है यह इक्कीसवीं सदी है मेरी स्कर्ट की लंबाई चिंता नहीं, अब और न सहूंगी, बहुत गहरा है यह धाव बहुत गहरा है यह धाव बहुत गहरा है यह धाव !!!
ही शहद में चिपक जाते। इस प्रकार बहुत से मक्खियां शहद में लोट-पोट होकर मर गईं और मक्खियां वहां आतीं शहद खातीं और थोड़ी देर में उनकी भी हालत वैसी ही हो जाती। पंख चिपक जाने से तड़प तड़प कर मर जाती। पर शहद खाने का मोह नहीं छोड़ पाती। मक्खियों की इस हालत को देखकर व्यापारी बोला - जो लोग जीभ के स्वाद के लोभ में पड़ जाते हैं वे भी इन मक्खियों के समान मूर्ख होते हैं। जीभ के थोड़ी देर के स्वाद के लिए वे अपना स्वास्थ्य खराब कर लेते हैं और फिर रोगी बनकर छटपटाते हैं। शीघ्र ही मृत्यु के ग्रास बनते हैं। शिक्षा - जो व्यक्ति थोड़ी देर के जीभ के स्वाद के लालच में पड़ जाते हैं वे अपना स्वास्थ्य खराब कर रोगी बनकर छटपटाते हैं और अपने धन व समय को फिर से स्वास्थ्य को प्राप्त करने में खर्च करते हैं। लेकिन फिर से स्वास्थ्य प्राप्त करने की संभावना फिर भी कम रहती है।
कविता
खेल ही जिदंगी पूजा
न जाने मैं कब इतनी बड़ी हो गई, खेल-कूद, दौड़-भाग को भूल, जीवन के पतंग की डोर हो गई कामकाज को, चाल-ढाल को, सीख-सीख कर मैं बड़ी हो गई अनमनी बेरुखी सी, गुमसुम मुरझाई सी, किसी पिंजड़े की चिड़िया सी, मैं ऐसे ही बड़ी हो गई मैं कागज की गुड़िया सी, हाथों की कठपुतली सी, किसी की इज्जत, किसी का मान हो गई अपने से दूर, अपने मन से दूर, न जाने कब परायी हो गई चहकना भूल गई, उड़ना भूल गई, पिंजड़े में बैठी, मैना के जैसी, आसमान से क्यों लड़ाई हो गई ? आज, खेल का नाम सुनकर, बचपन के समंदर में, गोता लगाया, मन को बहकाया, दौड़ाया-भगाया, फिर से आज खेल में सबको हराया, कितनों को गिराया, कितनो को हंसाया। चीखी-चिल्लाई, ठहाके लगाई ये कौन थी आज बिलकुल समझ न पाई
21 - 27 मई 2018
आओ हंसें
पति-पत्नी और टीवी
बीवी घर पर टीवी देख रही थी। पति : क्या देख रही हो? बीवी : कुकिंग शो! पति : दिन भर कुकिंग शो देखती हो, खाना बनाना तो आया नहीं फिर भी। बीवी : तुम भी तो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ देखते हो, पर मैंने कभी कुछ कहा पति शांत।
सु
जीवन मंत्र
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इंद्रधनुष
डोकू -23
हाथ ठंड में... और दिमाग घमंड में... अकसर काम नहीं करते।
फेमस गाना
पिताजी के समय का फेमस गाना‘मेरा नाम करेगा रौशन, जग में मेरा राजदुलारा।’ हमारे जमाने का फेमस गाना‘पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा।’ हमारे बच्चे अब गाते हैं‘ओ बापू, सेहत के लिए तू तो हानिकारक है।’
रंग भरो
सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी विजते ा को 500 रुपए का नगद पुरस्कार दिया जाएगा। सुडोकू के हल के लिए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देख।ें
महत्वपूर्ण दिवस
• 21 मई विश्व सांस्कृूतिक विविधता दिवस, राजीव गांधी स्मृति दिवस • 22 मई अंतराराष्ट्रीय जैविक विविधता दिवस, राजा राममोहन राय जयंती • 25 मई रास बिहारी बोस जयंती, अफ्रीका दिवस • 27 मई जवाहरलाल नेहरू स्मृति दिवस
सुडोकू-22 का हल
बाएं से दाएं
ऊपर से नीचे
वर्ग पहेली - 23
वर्ग पहेली-22 का हल
1. नित्य चलनेवाला भंडारा (4) 5. शहद (2) 6. भोज, मिलकर भोजन करना (3) 7. ठंडक, शीतलता (4) 8. गायब (3) 9. बहुत महीन पिसा हुआ आटा (2) 10. भगवान कृष्ण (2,3) 12. मुसीबत, परेशानी (2) 13. दिवस (2) 14. गरदन (2) 16. बंध, छोटी रस्सी जो बाँधने के काम आए (2) 17. नीले रंग का कमल (5) 18. काला (2) 19. हैरानी (3) 20. बड़ा राजा (4) 21. मुसलिम रीति से विवाह (3) 23. सफेद (2) 24. जेल, जहाँ कैदी रखे जाते हैं (4) 1. सज्जनता (5) 2.वन, जंगल (2) 3. उपवास, प्रतिज्ञा (2) 4. आटा माड़ने का बड़ा बर्तन (3) 5. मिट्टी की तरह मैला (4) 7. गरमी, सूर्य (3) 8. संदल, मलय (3) 11. कामधेन,ु गाय, बेटी (3) 12. बगुला (3) 14. त्रुटिपूर्ण (2) 15. पीले व लाल रंग के फूलों वाला एक वृक्ष (5) 16. लुगं ी (4) 17. कमल (3) 19. परेशान, भौंचक (3) 21. अत्यंत, बहुत (2) 22. कौवा (2)
कार्टून ः धीर
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न्यूजमेकर
डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19
21 - 27 मई 2018
अनाम हीरो
सुप्रिया चौधरी
झुंझुनू की बहादुर बेटी
सुप्रिया चौधरी ने प्रादेशिक सेना में राजस्थान में पहली और देश की दूसरी महिला लेफ्टिनेंट बनने का गौरव हासिल किया है
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जस्थान का झुंझुनू जिला देश को पहली महिला फाइटर पायलट मोहना सिंह देने वाला शहर है। यहां की एक और बेटी ने बड़ी उड़ान भरी है। झुंझुनू की रहने वाली सुप्रिया चौधरी ने प्रादेशिक सेना में राजस्थान में पहली और देश की दूसरी महिला लेफ्टिनेंट बनने का गौरव हासिल किया है। झूंझुनू के अलसीसर तहसील के गोखरी में रहने वाली सुप्रिया का कहना है कि महिलाओं को देश की सेवा के लिए आगे आना चाहिए। सुप्रिया ने कहा, ‘देश की सेवा का कोई मौका हमे नहीं गंवाना चाहिए, महिलाओं को भी इसके लिए आगे आना चाहिए। हमें देश की सेवा का मौका मिले तो उसके लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए। ‘सुप्रिया चौधरी शादीशुदा है और उन्होंने कठिन परिश्रम के दम पर यह गौरव हासिल किया है। राष्ट्रपति रामनाथ
कोविंद और आर्मी प्रमुख जनरल विपिन रावत से सेना दिवस के मौके पर उन्होंने दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में सराहना बटोरी थी। मौजूदा समय में सुप्रिया वरिष्ठ अधिकारी के पद पर तैनात हैं। वह तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम अंकलेश्वर गुजरात में तैनात हैं। देश के गौरव को बढ़ाने वाली सुप्रिया का कहना है कि उन्हें यह प्रेरणा ओएनजीसी में कार्यकरत पति वरुण सिंह पूनियां व अपने घरवालों से मिली। सुप्रिया न सिर्फ लेफ्टिनेंट के पद पर तैनात हैं, बल्कि उन्होंने देहरादून में गणतंत्र दिवस के मौके पर परेड को भी कमांड किया था। वह एक सक्रिय खिलाड़ी भी हैं। सेना में ट्रेनिंग के दौरान सुप्रिया को काफी मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा था। लेकिन अपने ऊपर भरोसे के दम पर उन्होंने इस मुकाम को हासिल किया है।
सुहास एलवाई
दिव्यांग डीएम का गोल्डन शटल
यूपी कैडर के तेज तर्रार आईएएस अफसर ने टर्किश पैरा बैडमिंटन द्वारा आयोजित एनेस कप में सिंगल और डबल मुकाबले का खिताब जीता
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पी कैडर के तेज तर्रार आईएएस अफसर और इलाहाबाद के डीएम सुहास एलवाई ने तुर्की में चल रही बैडमिंटन प्रतियोगिता में दोहरा खिताब हासिल कर एक बार फिर अपने जनपद का नाम रौशन किया है। उन्होंने टर्किश पैरा बैडमिंटन द्वारा आयोजित एनेस कप अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में सिंगल और डबल मुकाबले का खिताब अपने नाम किया। इस टूर्नामेंट में भारतीय पैरा शटलरों ने कुल छह पदक जीते। इससे पहले सुहास बीजिंग में हुई पैरा एशियन गेम्स में भारत की तरफ से एशियन खिताब भी जीत चुके हैं। उनका कहना है कि अपने शौक व जूनून को पूरा करने के लिए लोगों को वक्त जरूर निकालना चाहिए और अगर पूरी मेहनत व लगन से कोई कोशिश की जाए, तो शारीरिक कमजोरी के बावजूद मंजिल तक आसानी से
पहुंचा जा सकता है। सुहास का एक पैर खराब है और उन्हें चलने में थोड़ी दिक्कत होती है। उन्हें यह बीमारी बचपन से है, लेकिन इसके बावजूद वह न सिर्फ हमेशा पढ़ाई में अव्वल रहे, बल्कि खेलों में खासी दिलचस्पी दिखाई। पैरों में तकलीफ होने के बावजूद सुहास एलवाई बैडमिंटन के बेहतरीन खिलाड़ी साबित हुए हैं। पैरा बैडमिंटन की तमाम प्रतियोगिताओं में उन्होंने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। डीएम सुहास एलवाई ने हाल में ही संपन्न पैरा बैडमिंटन नेशनल चैंपियनशिप का खिताब भी जीता है। इस चैंपियनशिप में हुए पांचों मैचों में उन्होंने इकतरफा जीत हासिल की थी। इस चैंपियनशिप में चौबीस राज्यों के खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था। वे 2016 में यश भारती सम्मान से नवाजे जा चुके हैं।
लिंडसे बर्न्स- रंजन घोष
ी क ी र ्या क न द ं च फिरंगी मेम
इंग्लैंड की लिंडसे बर्न्स और उनके भारतीय पति रंजन घोष ने झारखंड में लिखा महिला सशक्तीकरण का इतिहास
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साल की उम्र में इंग्लैंड से दुनिया देखने की चाह में निकलीं लिंडसे बर्न्स भारत आईं और यहीं की होकर रह गईं। झारखंड में बोकारो जिले के सबसे पिछड़े प्रखंड की कम पढ़ी-लिखी महिलाओं के साथ महिला बैंक व अस्पताल के सफल संचालन का उनका प्रयोग अद्भुत है। नतीजतन आज चास व चंदनक्यारी में 500 महिला मंडल, महिलाओं के बैंक व महिला स्वास्थ्य केंद्रों का सफल संचालन हो रहा है। बड़ी बात यह कि इन सबके पदाधिकारी और कर्ताधर्ता गांव की महिलाएं ही हैं। बैंक का सालाना टर्नओवर लगभग सवा दो करोड़ है। बैंक से महिलाओं के बीच लगभग 70 लाख का कर्ज भी बांटा जा चुका है। लिंडसे की पहल से खुले अस्पताल में 25 रुपए में इलाज की सुविधा तो मिलती ही है। साथ में यहां से गरीब को बेहतर इलाज के लिए 7000 रुपए की मदद भी दी जाती है। बातचीत के क्रम में लिंडसे कहती हैं, ‘चंदनक्यारी में रहने का मेरा निर्णय कोई त्याग की बात नहीं, आत्मसंतोष की बात है।’ लिंडसे बताती हैं कि जेएनयू में ही कोलकाता के रंजन घोष से उनकी मुलाकात हुई और बाद में उनसे शादी। फिर घोष ने चंदनक्यारी कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया। इसी दौरान उनका लगाव इलाके से हुआ और 1989 में वह चमड़ाबाद गांव में रहने लगीं। फिर पति के साथ मिल उन्होंने कॉलेज के विद्यार्थियों के साथ जन चेतना मंच का गठन किया। 1994 में चमड़ाबाद में ही पहले स्वयं सहायता समूह का गठन किया। लिंडसे बताती हैं कि आज चास और चंदनक्यारी में 500 महिला मंडल हैं और आठ हजार महिलाएं इसकी सदस्य हैं।
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 23