विशेष
08 व्यक्तित्व
प्रेम और अहिंसा को समर्पित शब्द और जीवन
योग हुआ ग्लोबल
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स्वच्छता
स्वच्छता के क्षेत्र में युगांडा के बढ़ते कदम
24 खेल
डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19
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ब्राजील के चैंपियन बनने के आसार : सर्वे
sulabhswachhbharat.com आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597
वर्ष-2 | अंक-27 | 18 - 24 जून 2018
सुलभ प्रणेता को निक्की पुरस्कार
प्रमुख जापानी मीडिया हाउस का प्रतिष्ठित निक्की एशिया पुरस्कार संस्कृति और समुदाय के क्षेत्र में आधी सदी से कार्य कर रहे भारतीय सामाजिक सुधारक डॉ. विन्देश्वर पाठक को दिया गया है। यह पुरस्कार मानवाधिकार और स्वास्थ्य सुधार के क्षेत्रों में अभिनव शौचालय निर्माण के जरिए किए गए उनके अथक कार्यों को मिली बड़ी मान्यता की तरह है। डॉ. पाठक ने इस पुरस्कार को समाज के सबसे गरीब तबके के लोगों को समर्पित किया है
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आवरण कथा
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जापान में भारत के राजदूत सुजन आर. चिनॉय को ‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी: द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’पुस्तक भेंट करते डॉ. पाठक
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एसएसबी ब्यूरो
निक्की पुरस्कार के साथ डॉ. पाठक, अमोला पाठक एवं परिवार के सदस्य
भी स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के लिए प्रसिद्ध उद्घोषक हरीश भिमानी ने कहा था कि लता जी को देखकर लगता है कि सफलता ने संपूर्णता का वरण कर लिया है। इसी बात को अगर सामाजिक सेवा के क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों के लिए कहना हो तो कहेंगे कि अगर सेवा और सफलता एक दूसरे के पूरक बन जाएं तो इतिहास का एक सर्ग निर्मित होता है। पूरी दुनिया में स्वच्छता और मानव सेवा के क्षेत्र में सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक की ख्याति कुछ ऐसी ही है। सुलभ शौचालय जैसी सस्ती तकनीक के जनक और इसे पूरी दुनिया में शौचालय का सबसे किफायती और उपयोगी मॉडल के रूप में स्वीकृति दिलाने वाले डॉ. पाठक को प्रतिष्ठित निक्की एशिया पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
यश और सम्मान का विस्तार
सुलभ प्रणेता की कीर्ति और यश पहले से वैश्विक स्तर पर समादृत रही है। इस नए पुरस्कार ने जहां डॉ. पाठक के यश और सम्मान का फलक और
व्यापक बना दिया है, वहीं इससे उनके कृत्य को मिली वैश्विक स्वीकृति को एक और प्रतिष्ठित अनुमोदन मिला है। इस पुरस्कार का महत्व इससे भी जाहिर होता है कि यह अब तक एशिया-प्रशांत क्षेत्र में विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले कई बड़े दिग्गजों को मिल चुका है। भारत में अब तक पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, इंफोसिस के सह संस्थापक नारायण मूर्ति के अलावा अक्षय पात्र
खास बातें
डॉ. पाठक ने यह पुरस्कार समाज के कमजोर वर्ग को समर्पित किया 1996 में निक्की इंक ने की थी इस पुरस्कार की शुरुआत मनमोहन सिंह और नारायण मूर्ति को मिल चुका है यह पुरस्कार
निक्की पुरस्कार के साथ डॉ. पाठक एवं अमोला पाठक
1996 में निक्की इंडस्ट्री द्वारा स्थापित यह पुरस्कार एशिया में क्षेत्रीय विकास, विज्ञान, तकनीक और नवाचार के साथ ही संस्कृति और समुदाय की श्रेणी में उल्लेखनीय योगदान को रेखांकित करने के मकसद से दिया जाता है संस्था को इस पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।
पहले भी पुरस्कृत हो चुके भारतीय
डॉ. पाठक को इस वर्ष का निक्की एशिया पुरस्कार संस्कृति और समुदाय श्रेणी में दिया गया। जापान का यह प्रतिष्ठित पुरस्कार एशिया की उन हस्तियों और संगठनों को दिया जाता है, जिन्होंने लोगों की सामुदायिक जिंदगी में क्रांतिकारी और सकारात्मक बदलाव लाने में बड़ी भूमिका निभाई है। 1996 में निक्की इंडस्ट्री द्वारा स्थापित यह पुरस्कार एशिया में क्षेत्रीय विकास, विज्ञान, तकनीक और नवाचार के साथ ही संस्कृति और समुदाय की श्रेणी में उल्लेखनीय योगदान को रेखांकित करने के मकसद से दिया जाता है। भारत से पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और इन्फोसिस के चेयरमैन एन. आर. नारायणमूर्ति इस पुरस्कार से पहले सम्मानित हो चुके हैं।
निक्की इंडस्ट्रीज ने जापानी भाषा के अपने अखबार की 120वीं सालगिरह पर 1996 में इस पुरस्कार की स्थापना की थी। यह कंपनी जापान के प्रमुख आर्थिक अखबार का प्रकाशन करती है। जिसके अंग्रेजी और चीनी भाषा में भी संस्करण हैं। सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक को यह पुरस्कार टोक्यो में आयोजित एक भव्य और गरिमामय आयोजन में निक्की इंडस्ट्रीज के प्रेसिडेंट नाओतोशी ओकादा ने दिया। पुरस्कार की घोषणा करते हुए सम्मान समिति के अध्यक्ष फुजियो मितराई ने कहा कि डॉ. पाठक को यह पुरस्कार उनके देश की दो बड़ी चुनौतियों, खराब साफ-सफाई व्यवस्था और सामाजिक भेदभाव की चुनौती का मुकाबला करने के लिए दिया जा रहा है।
1996 में पहला पुरस्कार
बता दें कि निक्की एशिया पुरस्कार की शुरुआत
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आवरण कथा
निक्की एशिया पुरस्कार
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पुरस्कार समारोह को संबोधित करते डॉ. पाठक
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सम्मान ग्रहण करने के दौरान निक्की इंडस्ट्रीज के प्रेसिडेंट नाओताशी ओकादा से हाथ मिलाते डॉ. पाठक
क्की एशिया पुरस्कार, एक ऐसा पुरस्कार है जो पूरे एशिया में मानव जीवन में सुधार करने वाले लोगों और संगठनों की उपलब्धियों को मान्यता देता है। यह पुरस्कार जापान के सबसे बड़े मीडिया निगमों में से एक निक्की इंक द्वारा स्थापित किया गया है और उन्हीं की देखरेख में दिया जाता है।
तीन क्षेत्रों के लिए तीन पुरस्कार
पुरस्कार वितरण समारोह के दौरान इंडियन इंस्टीट्यूट अॉफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, डिजाइन एंड मैन्यूफैक्चरिंग, जबलपुर में जापानी भाषा के विजिटिंग प्रोफेसर प्रो. अकियो हागा और उनकी पत्नी इजुमी हागा के साथ डॉ. पाठक
वर्ष 1996 में निक्की इंक के मुख्य जापानी भाषा के अखबार ‘द निक्की’ की 120वीं वर्षगांठ पर की गई थी। यह पुरस्कार क्षेत्रीय उन्नति, विज्ञान, तकनीकी एवं नवाचार और संस्कृति एवं समुदाय के तीन क्षेत्रों में से किसी एक क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान करने के लिए एशिया के लोगों को प्रदान किया जाता है। इस वर्ष डॉ. पाठक के साथ चीन के पर्यावरणविद् माजो को इंटरनेट के जरिए सफाई
सुलभ परिवार के सदस्यों के साथ डॉ. पाठक
व्यवस्था को सुधारने के लिए और वियतनाम के प्रोफेसर गुएन थान लिम को विज्ञान और तकनीकी श्रेणी में बच्चों के लिए सस्ती दवाओं के विकास के लिए निक्की एशिया पुरस्कार दिया गया है।
कमाल की सुलभ तकनीक
गौरतलब है कि डॉ. पाठक ने दो गड्ढों वाले फ्लश और पर्यावरण अनुकूल कंपोस्ट बनाने वाले सुलभ
इस पुरस्कार को वर्ष 1996 में निक्की इंक द्वारा लॉन्च किया गया। यह पूरे एशिया में उन लोगों का सम्मान करता है जिन्होंने तीन क्षेत्रों- क्षेत्रीय विकास, विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार और संस्कृति में से किसी एक में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। क्षेत्रीय विकास (आर्थिक और व्यापार नवाचार) की श्रेणी को व्यापार और आर्थिक पहलों को पहचानने के लिए डिजाइन किया गया है, जो इसके जरिए लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाते हैं। इस दृष्टि से पुरस्कृत होने वालों में वैसे उद्यमी भी हो सकते हैं, जिन्होंने नवाचार के कारण उद्योगों और व्यवसायों को सफलतापूर्वक विकसित किया हो। विभिन्न क्षेत्रों में वैज्ञानिक शोध और तकनीकी नवाचारों को पहचानने के लिए विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण की श्रेणी को शौचालय का आविष्कार किया है। इस तकनीक की लोकप्रियता टू पिट पोर फ्लश या सुलभ टॉयलेट के रूप में है। इसने खासतौर पर विकासशील दुनिया के करोड़ों लोगों की जिंदगी में बड़ा बदलाव लाने में बड़ी भूमिका निभाई है। इसके साथ ही इसने ग्रामीण महिलाओं और हाथ से मैला सफाई करने वाली महिलाओं की जिंदगी में भी सकारात्मक बदलाव लाने में भूमिका निभाई है।
स्थापित किया गया है। संस्कृति की श्रेणी उन लोगों को पहचानने के लिए डिजाइन की गई है, जिन्होंने सांस्कृतिक, कलात्मक या शैक्षणिक गतिविधियों के माध्यम से अपने देश और एशिया के विकास में अपना योगदान दिया है।
पारदर्शी चयन प्रकिया
इस पुरस्कार में नामांकित व्यक्तियों का चयन क्षेत्र के टिकाऊ विकास और एशिया के बेहतर भविष्य के लिए किए गए योगदान के आधार पर किया जाता है। इसके साथ ही विचारविमर्श कर प्रत्येक उम्मीदवार की उपलब्धियों की मौलिकता, प्रभाव और योग्यता का भी ध्यान रखा जाता है। इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए यह भी महत्वपूर्ण है कि इसके लिए कोई भी व्यक्ति या संस्था खुद नामांकन नहीं भेज सकती है। पुरस्कार की निर्णय प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए इसमें एक शर्त यह भी शामिल किया गया है कि यह पुरस्कार किसी जापानी को नहीं दिया जा सकता है। दरअसल, पुरस्कार की निर्णायक समिति उन नामांकनों पर विचार कर अपना निर्णय देती है, जो उनके पास एशिया प्रशांत क्षेत्र में कार्य करने वाले विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की तरफ से उनके पास प्रस्तावना उल्लेख के साथ भेजे जाते हैं।
‘प्रतिबद्धता में एक और मील का पत्थर’
एशिया-प्रशांत क्षेत्र के विशेषज्ञ निक्की एशिया पुरस्कार के लिए अपनी तरफ से नामांकन दाखिल करते हैं। हालांकि वे स्वयं अपना नामांकन नहीं दाखिल कर सकते। इस पुरस्कार के लिए जापानी नागरिक और संगठन भी अपना नामांकन नहीं दे सकते। डॉ. पाठक ने यह पुरस्कार समाज के उस कमजोर वर्ग को समर्पित
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सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक
आवरण कथा
23वें निक्की एशिया पुरस्कार विजेता
सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. विन्देश्वर पाठक को संस्कृति और समाज के लिए उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए सम्मानित किया गया है। डॉ. पाठक ने वर्ष 1970 में सुलभ इंटरनेशनल नाम से एक गैर सरकारी संस्था की स्थापना की, जिसने पूरे भारत में सुलभ टू-पिट पोर फ्लश शौचालयों का निर्माण किया और भारतीय समाज में लंबे समय से चली आ रही मैला ढोने की प्रथा व छूआछूत की बीमारी से गरीब महिलाओं और किया, जिसकी बेहतरी के लिए वे पांच दशकों से अधिक समय से अभियान चला रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘यह पुरस्कार विशेष रूप से एशिया में समाज की सेवा के प्रति मेरी प्रतिबद्धता में एक और मील का पत्थर साबित होगा।’
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पुरुषों को सुरक्षा प्रदान की।
वियतनामी चिकित्सक गुएन थान लिम
वियतनाम के विनमेक रिसर्च इंस्टीट्यूट के स्टेम सेल और जीन टेक्नोलाजी के निदेशक गुएन थान लिम को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए पुरस्कृत किया गया है। वियतनाम के अग्रणी बाल चिकित्सकों में से एक गुएन थान लिम ने 1997 में एक बच्चे पर देश की पहली सफल न्यूनतम आक्रमणकारी
डॉ. पाठक का सामाजिक योगदान
पाठक के ‘फ्लश’ तकनीक वाले कम कीमत के पर्यावरण अनुकूल शौचालय ने दुनिया के लाखों लोगों की मदद की। इसने सिर पर मैला ढोने की अमानवीय प्रथा से मुक्ति दिलाई और
वर्ष 2018 का निक्की एशिया पुरस्कार विजेता गुएन थान लिम, माजो और डॉ. पाठक (बाएं से दाएं)
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी की। गुएन ने रोबो-सहायता सर्जरी और अन्य उन्नत प्रौद्योगिकी शुरू की, जिससे बच्चों के लिए जीवन-परिवर्तनकारी उपचार करने में सफलता मिली है।
आईपीई के संस्थापक-निदेशक माजो
चीन के सार्वजनिक और पर्यावरण संस्थान (आईपीई) के संस्थापक निदेशक माजो को आर्थिक और व्यावसायिक नवाचार के क्षेत्र में किए गए उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए ग्रामीण महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की। डॉ. पाठक ने स्वच्छता के क्षेत्र में जो योगदान किया है, उसका महत्व इसीलिए भी है, क्योंकि यह उस मानवाधिकार के संघर्ष से भी जुड़ा है, जिसमें सब लोगों को समाज में समान अधिकार और
पुरस्कृत किया गया है। माजो एक ऐसे गैर सरकारी संस्था का नेतृत्व करते हैं, जो ऑनलाइन प्रदूषण डेटाबेस तैयार करता है और इस क्षेत्र में विशेष जानकारी प्रस्तुत करता है। इसके साथ ही यह संस्था ऐसे सूचकांकों का भी प्रकाशन करती है, जिनमें पर्यावरण सुरक्षा के लिए किए गए कॉरपोरेट कार्यों, विविध पर्यावरणीय मोर्चों पर बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली प्रादेशिक सरकारों और कंपनियों का मूल्यांकन रहता है।
सम्मान मिले। मैला ढोने की मैली प्रथा के साथ समाज में जिस तरह की विषमता आई, उसने महात्मा गांधी तक को विचलित कर दिया था। दिलचस्प है कि सुलभ प्रणेता डॉ. पाठक ने महात्मा गांधी की प्रेरणा से ही स्वच्छता के क्षेत्र में कार्य
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आवरण कथा
जापान के पीएम को पुस्तक भेंट
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डॉ. विन्देश्वर पाठक ने जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे से भेंट के दौरान उन्हें दो पुस्तकें ‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी: द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ और ‘फुलफिलिंग बापू’ज ड्रीम- प्राइम मिनिस्टर मोदी’ज ट्रिब्यूट टू गांधी जी’ भेंट की
जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे को ‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी: द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ और द ‘फुलफिलिंग बापू’ज ड्रीम- प्राइम मिनिस्टर मोदी’ज ट्रिब्यूट टू गांधी जी’ पुस्तकें भेंट करते डॉ.पाठक और अमोला पाठक
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डॉ. पाठक द्वारा भेंट की गई पुस्तक ‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी: द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ के पन्ने पलट कर देखते जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे
क्की एशिया पुरस्कार ग्रहण करने टोक्यो पहुंचे डॉ. पाठक वहां निक्की द्वारा आयोजित ‘एशिया का भविष्य’ विषय पर आयोजित 24वें अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भी विशेष रूप से आमंत्रित थे। सम्मेलन में आए अतिथियों और प्रतिभागियों के लिए जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने एक रात्रिभोज का आयोजन किया था। इस मौके पर सुलभ प्रणेता ने पीएम आबे को ‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी: द मेकिंग ऑफ ए लिजेंड’ पुस्तक भेंट की। आबे को तब काफी खुशी हुई जब उन्होंने उन्होंने पुस्तक के पन्ने पलटते हुए अपनी तस्वीर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ देखी। गौरतलब है कि जापानी प्रधानमंत्री की भारत यात्रा नए द्विपक्षीय आर्थिक और राजनीतिक साझेदारियों के साथ दोनों देशों के संबंधों को सुदृढ़ करने की दिशा में काफी सफल रही थी। आबे से भेंट के दौरान डॉ. पाठक ने उन्हें कहा कि पीएम मोदी उन्हें काफी सम्मान देते हैं और
प्रभावशाली नेतृत्व के लिए उनकी सराहना करते हैं। इस मौके पर सुलभ प्रणेता ने जापानी पीएम को ‘फुलफिलिंग बापू’ज ड्रीम- प्राइम मिनिस्टर मोदी’ज ट्रिब्यूट टू गांधी जी’ भी भेंट की। रात्रिभोज के अवसर पर शिंजो आबे ने अपने संबोधन में भारत के सर्वांगीण विकास को लेकर किए जा रहे प्रयास और पीएम नरेंद्र मोदी के प्रेरक नेतृत्व की सराहना की।
जापान के राजदूत से भेंट
सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक ने जापान में भारत के राजदूत सुजन आर. चिनॉय से मुलाकात कर उन्हें कॉफी टेबल बुक ‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी: द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ भेंट की। गौरतलब है कि यह पुस्तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर लिखी गई अनेक पुस्तकों से बिल्कुल अलग हट कर है। लेखक डॉ. विन्देश्वर पाठक ने इस पुस्तक में उनके जीवन के तमाम पक्षों को संवेदनशील तरीके से व्यक्त किया है।
करने का प्रण लिया। टू-पिट पोर फ्लश के रूप में एक बड़ा अस्त्र साबित हुआ, जो सिर पर मैला उन्होंने दुनिया को शौचालय की एक ऐसी तकनीक उठाने के अमानवीय पेशे से जुड़े होने के कारण दी, जो उपयोगी और किफायती होने के साथ या तो सामाजिक तौर पर बहिष्कृत माने जाते थे या उन लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने में अस्पृश्य।
पुस्तक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन और कार्यों के बारे में काफी विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई गई है। पुस्तक का मुख्य उद्देश्य, अपने जीते जी ही किंवदंती बन चुके एक व्यक्ति के जीवन की व्यापक और विश्वसनीय गाथा को प्रस्तुत करना है। इस तरह यह जीवनी नरेंद्र मोदी के आरंभिक दिनों से लेकर उनके वर्तमान समय तक का एक प्रेरणादायक और सम्मोहक वर्णन प्रस्तुत करती है, जिसमें उनकी जिंदगी का वह सफरनामा है, जो गुजरात में उनके राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के समर्पित स्वयंसेवक बनने से शुरू होता है। यह सफरनामा कई प्रेरक जीवन प्रसंगों से समृद्ध है। यह पुस्तक इस बात को गहराई से रेखांकित करती है कि नरेंद्र मोदी एक ऐसे चमत्कारी वैश्विक नेता हैं, जो अपनी दूरदृष्टि और समझ से राष्ट्र निर्माण व मानवता का इतिहास पुनः लिख रहे हैं। उनका ऐसे दिव्य और ऊर्जावान नायक के रूप में प्रकट होना वाकई एक बड़ी परिघटना है। इस पुस्तक की विषय सामग्री और इसके प्रकाशन की गुणवत्ता में साज-सज्जा पर विशेष ध्यान दिया गया है। इसके साथ ही नरेंद्र मोदी के जीवन चरण और विकास, खासतौर पर प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके द्वारा शुरू की गई विभिन्न योजनाएं और वैश्विक नेताओं से उनकी भेंट आदि के बारे में जानकारियों को एक चित्रमय झांकी के रूप में पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। चिनॉय के साथ मुलाकात के दौरान
कई सम्मान
डॉ. पाठक ने उन्हें एक औऱ विशिष्ट पुस्तक ‘फुलफिलिंग बापू’ज ड्रीम- प्राइम मिनिस्टर मोदी’ज ट्रिब्यूट टू गांधी जी’ भी भेंट की। इस पुस्तक में इस बात के प्रेरक और प्रामाणिक हवाले हैं कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वच्छता से लेकर खादी और ग्रामोत्थान तक राष्ट्रपिता के वैचारिक आदर्शों पर लगातार खरे उतर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने विचार और कार्यक्रमों की संगति महात्मा गांधी के जीवन, आदर्श और प्रेरणा के साथ हरसंभव बैठाने की कोशिश की है। नतीजा यह कि स्वच्छता से लेकर खादी तक तमाम क्षेत्रों में उन्होंने कई ऐसे कदम उठाए हैं, जिससे ‘न्यू इंडिया’ में गांधी के ‘मेरे सपनों का भारत’ का अक्स झलके। इस पुस्तक के दो खंड हैं। पहले खंड में विभिन्न मौकों पर महात्मा गांधी के जीवन और विचारों से प्रधानमंत्री मोदी कितना प्रभावित हैं और इस कारण उन्होंने विभिन्न मौकों पर जो उद्गार व्यक्त किए हैं, इस बारे में प्रसंगों और संदर्भों का संकलन है। दूसरे खंड में गांधी जी के उन प्रेरक उद्गारों का संग्रह है, जो आज भी प्रासंगिक है और खुद मोदी जिनके बारे में समय-समय पर बात करते रहे हैं। ‘फुलफिलिंग बापू’ज ड्रीम- प्राइम मिनिस्टर मोदी’ज ट्रिब्यूट टू गांधी जी’ की प्रथम प्रति 9 मार्च को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भेंट की गई थी।
करने वाले व्यक्तियों की सूची में शामिल किया गया। इससे पूर्व डॉ. पाठक को 1991 में पद्मभूषण इसके अलावा एनर्जी ग्लोब पुरस्कार, इंदिरा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2003 में पुरस्कार, स्टाकहोम वाटर पुरस्कार समेत अनेक उनका नाम विश्व के 500 उत्कृष्ट सामाजिक कार्य पुरस्कारों से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है।
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आवरण कथा
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गांधी का स्वप्न, हमारा प्रण
(निक्की एशिया पुरस्कार ग्रहण करने के मौके पर सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक के संबोधन का संपादित अंश)
मे
डॉ. विन्देश्वर पाठक (पीएच.डी., डि.लिट.)
री बहुत इच्छा थी कि मैं बिहार स्थित पटना विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र का प्रोफेसर बनूं। पर जल्द ही मेरी समझ में आ गया कि नियति ने पहले से मेरे लिए कुछ और ही सोच रखा है। मैंने अपने करियर की शुरुआत उस स्कूल में कुछ दिनों तक पढ़ाने सी की, जहां कभी मैं स्वयं पढ़ा करता था। बाद में 1968 में पटना में मैंने बिहार गांधी शताब्दी समारोह समिति से एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर जुड़ गया। यह समिति 1969 में महात्मा गांधी की जन्म शताब्दी मनाने के लिए बनाई गई थी। शताब्दी समिति ने मुझे वैसे लोगों के पुनर्वास का चुनौतीपूर्ण कार्य सौंपा, जो लोग दूसरे लोगों का मैला साफ करते हैं। जातीय आधार पर बने समाज में स्कैवेंजिंग का काम करने वालों को अस्पृश्य माना जाता है, इन्हें मुख्यधारा से जोड़ना महात्मा गांधी का सपना था। उन्हीं दिनों मुझे बचपन की एक घटना याद आई जब मैंने अस्पृश्य समाज की एक महिला को छू लिया तो मेरी दादी ने मुझे
गाय का गोबर खाने, उसका मूत्र पीने को मजबूर किया और जनवरी के कड़कते ठंड के दिनों में मुझे पवित्र गंगाजल से नहलाया गया। पर एक समाजिक कार्यकर्ता के तौर पर मुझे जो कहा गया उसमें मुझे अस्पृश्य समाज के लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रतिबद्ध होकर कार्य करना था। इसीलिए मैं बिहार में बेतिया, चंपारण के उस कॉलोनी में गया जहां इस समाज के लोग रहते थे। यही वह जगह है जहां से महात्मा गांधी ने अपना स्वाधीनता संघर्ष शुरू किया था। एक दिन काम करते हुए वहां एक चिंता से भर देने वाली घटना देखी। मैंने देखा कि लाल कमीज पहने एक लड़के पर हमला कर दिया। जब लोग उसे बचाने के लिए दौड़े तो कुछ लोगों ने शोर मचाना शुरू किया कि वह अस्पृश्य है। यह सुनकर उसे बचाने के लिए आगे बढ़ी भीड़ अचानक रुक गई और सबने उसे मरने के लिए छोड़ दिया। इस त्रासदपूर्ण घटना ने मुझे अंदर तक झकझोर कर रख दिया। इस तरह उस दिन मैंने शपथ ली कि मैं न सिर्फ अस्पृश्यों के अधिकार के लिए संघर्ष करूंगा, बल्कि मानवाधिकार और समानता
न मैं वैज्ञानिक हूं, न इंजीनियर और न ही कोई तकनीकी व्यक्ति हूं। पर मैंने काफी सोच-विचार और लगन के साथ कुछ ऐसे आविष्कार किए हैं, जो स्वच्छता की चुनौती से निपटने, स्वच्छ संस्कार को बढ़ाने और अपने देश के लोगों में बेहतर स्वास्थ्य और सफाई को लेकर जागरुकता बढ़ाने की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं के मुद्दे को अपने देश के साथ पूरी दुनिया में उठाऊंगा। इस तरह यह कार्य मेरा मिशन बन गया। पर मेरे आगे तब भी यह सवाल था कि अस्पृश्यों को दूसरों का मैला साफ करने के अमानवीय पेशे से कैसे बाहर निकालें, उनका पुनर्वास कैसे करें। इस मुश्किल कार्य को करते हुए मुझे महसूस हुआ कि एक उपयुक्त और किफायती टॉयलेट तकनीक की तत्काल जरूरत है। फिर मैं दृढ़ता से इस आवश्यकता के समाधान की तलाश शुरू कर दी। उन दिनों बिहार के गांवों में गंदगी और बदबू फैले रहते थे, क्योंकि ज्यादातर लोग शौच के लिए खुले में जाते थे। इस प्रथा की सबसे ज्यादा शिकार
महिलाएं थीं। उन्हें शौच के लिए सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद जाना पड़ता था। अंधकार के कारण वे अक्सर सांपों और दूसरे जानवरों की शिकार हो जाया करती थीं। यही नहीं ऐसे में उन्हें असमाजिक तत्वों के आपराधिक कृत्य का भी खतरा रहता था। अस्वच्छता के कारण डायरिया और निर्जलीकरण जैसी बीमारियों से बच्चों की मौत हो जाती थी। बच्चियां स्कूल नहीं जा पाती थीं, क्योंकि स्कूलों में शौचालय नहीं थे। शहरी क्षेत्रों में 85 फीसदी घरों में कमाऊ शौचालय (बकेट टॉयलेट) थे, जिसकी सफाई अस्पृश्य समाज के लोगों द्वारा की जाती थी। रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों, बाजारों के साथ धार्मिक
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व पर्यटक स्थलों पर भी सार्वजनिक शौचालयों की कोई सुविधा नहीं थी। नतीजतन, न सिर्फ भारतीय, बल्कि विदेशियों को भी शौच के लिए काफी परेशानी उठानी पड़ती थी। यहां मैं जापान के एक महान बौद्ध दार्शनिक डॉ. डाईसाकू इकेदा के एक कथन का स्मरण करना चाहूंगा, जो मेरी तरह महात्मा गांधी से प्रेरित थे। इकेदा ने कहा है‘एक व्यक्ति में भी दिव्य आंतरिक परिवर्तन होता है तो वह राष्ट्र की नियति में बदलाव लाने में मदद करेगी और आगे इससे मानव जाति की नियति में भी बदलाव आएगी।’ मेरी कहानी में इस अर्थ में डॉ. इकेदा का कथन प्रतिध्वनित होता है कि मैं दृढ़ इच्छाशक्ति और लगन के साथ वैसे अस्पृश्यों के जीवन में बदलाव में जुटा हूं, जो परंपरागत सामाजिक व्यवस्था में बहिष्कृत मान लिए गए थे। अगर हम अपने को बदलाव का दूत बना लें तो व्यापक सामाजिक बदलाव मुमकिन हैं। मैंने एक ‘चेंज-मेकर’ के तौर पर कार्य किया है। हमारे आविष्कार सामाजिक परिवर्तन के औजार हैं। मैं यहां यह बात साफ कर देना जरूरी समझता हूं कि न मैं वैज्ञानिक हूं, न इंजीनियर और न ही कोई तकनीकी व्यक्ति हूं। पर मैंने काफी सोचविचार और लगन के साथ कुछ ऐसे आविष्कार किए हैं, जो स्वच्छता की चुनौती से निपटने, स्वच्छ संस्कार को बढ़ाने और अपने देश के लोगों में बेहतर स्वास्थ्य और सफाई को लेकर जागरूकता बढ़ाने की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं। खासतौर पर पूर्व स्कैवेंजर्स के लिए इनका विशेष महत्व है। मैंने घरेलू इस्तेमाल के लिए टू-पिट इकोलॉजिकल कंपोस्ट टॉयलेट का आविष्कार किया। यह सुलभ शौचालय के नाम से प्रसिद्ध है। इस तकनीक में दो गड्ढ़े होते हैं। एक बार में एक गड्ढ़े का इस्तेमाल होता है और दूसरा भविष्य के उपयोग के लिए सुरक्षित रहता है। गड्ढ़े के तल के रूप में चूंकि धरती रहती है, इसीलिए मिट्टी में मौजूद बैक्टिरिया से मानव मल जैविक खाद में तब्दील हो जाता है। इस खाद में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाशियम
के अलावा कई ऐसे पोषक तत्व होते हैं जो खेतों की उर्वरता को बढ़ाते हैं। सुलभ शौचालय की तकनीक ईको-फ्रेंडली भी है। ज्यादातर तकनीकों से लोगों की जिंदगी आसान बनाती है पर मेरे आविष्कार ने वह कर दिखाया है, जो दूसरी तकनीकों से कभी संभव नहीं हुआ। इसने अस्पृश्यों को उनके उस अमानवीय पेशे से बाहर निकालने में बड़ी भूमिका निभाई, जिसे वे 5000 वर्षों से कर रहे थे। इस तकनीक ने ऐसे लोगों के मानवाधिकार को भी फिर से बहाल किया है। इससे महिलाओं की असुरक्षा भी कम हुई है, क्योंकि वे शौचालय का इस्तेमाल निर्भीकता के साथ बगैर अपनी अस्मिता गंवाए कर सकती हैं। 1974 में भुगतान करो और इस्तेमाल करो के आधार पर मैं सार्वजनिक शौचालयों की नई व्यवस्था लेकर आया। उस समय यह भारत में नए तरह का विचार था, इसीलिए यह काफी लोकप्रिय हुआ। इस तरह सार्वजनिक सुलभ शौचालयों का निर्माण पूरे देश में हुआ। मुझे आपको यह बताते हुए खुशी हो रही है कि आज महाराष्ट्र के पंढ़रपुर में दुनिया का सबसे बड़ा सार्वजनिक शौचालय है। इसका निर्माण सुलभ ने महाराष्ट्र सरकार की वित्तीय मदद से किया है। इसमें 2,858 शौचालय हैं और हर दिन इसका करीब 4 लाख लोग इस्तेमाल करते हैं। मैंने 1977 में एक और तकनीक का आविष्कार किया। इस तकनीक से मानव मल से ऊर्जा पैदा होती है। इस तकनीक के जरिए पैदा होने वाले बॉयोगैस से घरों में प्रकाश की व्यवस्था के साथ खाना बनाने में तो मदद मिलती ही है। यह शरीर को गर्म रखने में भी उपयोगी है। इस तरह से पैदा हुई ऊर्जा से सड़कों पर प्रकाश की व्यवस्था करने में सक्षम है। सार्वजनिक शौचालयों से निकलने वाले पानी का चूंकि शोधन किया जाता है, इसीलिए नदियों या दूसरी जगहों पर इसे प्रवाहित करने से किसी तरह का प्रदूषण नहीं पैदा होता है। मैं यहां इस तथ्य को गर्व के साथ रखना चाहता हूं कि हम अब तक 15,00,000 परिवारों में सुलभ शौचालयों के साथ 9000 सुलभ सामुदायिक शौचालयों का निर्माण कर चुके हैं। भारत सरकार ने भी 6,00,00,000 से ज्यादा सुलभ डिजाइन के
आवरण कथा
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हम अब तक 15,00,000 परिवारों में सुलभ शौचालयों के साथ 9000 सुलभ सामुदायिक शौचालयों का निर्माण कर चुके हैं। भारत सरकार ने भी 6,00,00,000 से ज्यादा सुलभ डिजाइन के शौचालय बनाए हैं शौचालय बनाए हैं। आज इन सुविधाओं का हर दिन 2,00,00,000 से ज्यादा लोग इस्तेमाल करते हैं। आज इन तकनीकों से खुले में शौच की समस्या समाप्त करने, अस्पृश्य लोगों का जीवन बेहतर बनाने में तो मदद मिल ही रही है, भारत सरकार के स्वच्छ भारत अभियान में इनका बड़ा योगदान है। इस तरह महात्मा गांधी और हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, दोनों के सपने पूरे किए जा रहे हैं। सुलभ टॉयलेट तकनीक को जहां बीबीसी ने दुनिया के पांच विशिष्ट आविष्कारों में शुमार किया है, वहीं इसे यूनिसेफ और यूएनहैबिटेट ने इसके इस्तेमाल को प्रस्तावित किया है। मैं स्कैवेंजर्स के पुनर्वास और उन्हें समज की मुख्यधारा में शामिल करने दिशा में भी अथक रूप से लगा हूं। इसके लिए मैंने कई उद्यमता विकास प्रशिक्षण केंद्र खोलने के साथ कई और प्रयास किए हैं, जिनसे ये लोग आर्थिक रूप से सशक्त हो सकें। समानता पर सामाजिक अखंडता को प्रश्रय देकर ही इस क्षेत्र में वांछित लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। खासतौर पर महिलाओं को ब्यूटीशियन बनने के साथ सिलाई-कढ़ाई और फूड प्रोसेसिंग का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। पहले ये महीने में 4-5 डॉलर ही कमा पाती थीं पर मेरी पहलों के बाद ये प्रतिमाह 200-300 डॉलर कमाने लगी हैं। इसी तरह, मैंने माननीय सुप्रीम कोर्ट के आग्रह पर भारत में विधवाओं, खासकर वृंदावन की विधवा माताओं की मदद कर रहा हूं। मैंने विधवा माताओं को सशक्त बनाने के लिए कई तरह के प्रयास किए हैं, ताकि वे अपनी जिंदगी के आखिरी दिनों को सम्मानजनक ढंग से गुजार सकें। आज वे प्रकाश के त्योहार दिवाली और रंगों के त्योहार होली के रूप में उन भारतीय त्योहारों को उल्लास के साथ मनाती हैं, जिन त्योहारों में उनके शामिल होने पर एक तरह का प्रतिबंध था।
सुलभ ने अपने राष्ट्रव्यापी अभियान के तहत महिलाओं को सैनिटेरी नैपकिन बनाना सिखा रहा है। यह काम हम स्कूलों में भी कर रहे हैं, ताकि लोगों में स्वास्थ्य के साथ स्वच्छ व्यवहार, शौचालयों की सफाई और श्रम की अस्मिता को लेकर जागरुकता बढ़े। इन सब कार्यों के अलावा मैंने लोगों, खासकर बच्चों को स्वच्छता के प्रति सजग करने के लिए एक टॉयलेट म्यूजियम बनाया है, जो दुनिया में अपनी तरह का अकेला म्यूजियम है। मैं इस बात का यहां इस बात का भी जिक्र करना चाहूंगा कि हमारी तकनीक को चीन, बांग्लादेश, वियतनाम, दक्षिण अफ्रीका, भूटान, नेपाल, अफगानिस्तान और घाना आदि देशों ने अपनाया है। अशांति और निर्धनता से जूझ रहे अफगानिस्तान में हमने वर्ष 2007 में बॉयोगैस प्लांट के साथ पांच सामुदायिक शौचालय बनाए। ये वे वहां न सिर्फ अच्छे से कार्य कर रहे हैं, बल्कि -30 डिग्री सेल्सियस में भी पूरी तरह कारगर हैं। हाल में जब मैं अमेरिका के दौरे पर था, तो वहां मैंने वहां लोगों से आग्रह किया कि अमेरिका के ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों में जहां सीवेज सिस्टम नहीं है और सैप्टिक टैंक इस्तेमाल हो रहा है, वे हमारी तकनीक को अपनाएं। इन तमाम बातों से अलग एक बात मैं आखिर में काफी दृढ़ता के साथ कहना चाहूंगा कि हमारी तकनीकों की मदद से धरती पर रहने वाले 2.3 अरब ऐसे लोगों की समस्या दूर हो सकती हैं, जिनके पास सुरक्षित और स्वच्छ शौचालय की सुविधा नहीं है। इनमें से ज्यादातर लोग अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में रहते हैं। मैं इस अवसर पर आप सब लोगों को भारत आने और नई दिल्ली स्थिति सुलभ ग्राम परिसर देखने के लिए विनम्रता के साथ आमंत्रित करना करता हूं। हमारी इच्छा है कि आप वहां आकर हमारे काम को प्रत्यक्ष रूप से देखें-समझें।
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योग विशेष
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योग हुआ ग्लोबल
संयुक्त राष्ट्र के मंच पर योग को मिली स्वीकृति के साथ जहां योगाभ्यास को वैश्विक मान्यता मिली है, वहीं इससे प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान की विलक्षणता में भी लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है तरफ टकटकी लगाए देख रहा है। भारत में योग और आयुर्वेद से जुड़े प्रोडक्ट्स का बाजार 20-25 हजार करोड़ रुपए का हो चुका है। एक सर्वे के अनुसार योग करने वालों की तादाद में 35 प्रतिशत की दर से बढ़ोत्तरी हो रही है। योग से जुड़े उत्पाद बनाने वाली कंपनियां भी तेजी से आगे बढ़ रही हैं। योग के दौरान पहने जाने वाली पोशाक का बाजार भी हजार करोड़ रुपए बीते वर्ष ही पार कर चुका है। योग की ही शब्दावली में कहें तो बीते तीन साल में योग के कारोबार की ऐसी आंधी चली कि दुनिया भर के बाजार एक साथ मिलकर अनुलोम-विलोम और कपालभाति कर रहे हैं।
बड़ी स्वीकृति
प्र
एसएसबी ब्यूरो
धानमंत्री नरेंद्र मोदी की सफलता सिर्फ इसी बात में नहीं है कि उन्होंने योग को नए सिरे से वैश्विक स्वीकृति दिलाई है, बल्कि इसके साथ उनके न्यू इंडिया के सपने में भी रंग भरे जा रहे हैं। योग की स्वीकृति और प्रसिद्धि के पीछे कुछ परिस्थितियां भी रही हैं, जिन्होंने इसके ग्लोबल विस्तार को संभव बनाया है। दरअसल, बीते दो दशकों में जिस तरह विश्व में विकास और समृद्धि
खास बातें दुनिया के टॉप- 10 फिटनेस ट्रेंड में योग भी शामिल है भारत में योग ट्रेनिंग का कारोबार करीब 2.5 हजार करोड़ रुपए अमेरिका में डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग योग को अपना चुके हैं
भागती-दौड़ती जिंदगी के बीच सेहत को लेकर जिस तरह लोग जागरूक हो रहे हैं, उससे योग को लेकर एक स्वभाविक आकर्षण आज हर तरफ दिख रहा है को लेकर निजी और सार्वजनिक अवधारणा बदली है, उसने समय और समाज के सामने उपलब्धियों की चौंध तो पैदा की ही है, तमाम तरह की शारीरिकमानसिक परेशानियों को भी बढ़ाया है। आज शहरी कामकाजी समाज में अवसाद और तनाव इस तरह व्याप्त हैं कि इससे मुक्ति के लिए हर तरफ एक बेचैनी देखी जा सकती है। इन्हीं बेचैनियों के बीच भारत की पांच हजार साल पुरानी योग की विरासत हेल्थ और फिटनेस की नई दरकार बनकर सामने आई है। यही वजह है कि भागती-दौड़ती जिंदगी के बीच सेहत को लेकर जिस तरह लोग जागरूक हो रहे हैं, उससे योग को लेकर एक स्वाभाविक आकर्षण आज हर तरफ दिख रहा है।
ग्लोबल ललक
मन और शरीर को एक संयमित अनुशासन में ढालने की नई ग्लोबल ललक का नतीजा यह है कि योग आज दुनिया के पांच सबसे तेजी से बढ़ने वाले आर्थिक उपक्रमों में शामिल है। ब्रांड और इंडस्ट्री के
तौर पर बढ़ी योग की वैश्विक स्वीकृति का आलम यह है कि एक आकलन के मुताबिक दुनियाभर में करीब 40 करोड़ ज्यादा लोग नियमित योगाभ्यास कर रहे हैं। अमेरिका जैसे मुल्क में डेढ़ करोड़ से भी ज्यादा लोग योग को अपना चुके हैं और वहां योग का कारोबार 30 अरब डॉलर की सीमा लांघ चुका है। अमेरिकन कॉलेज ऑफ स्पोर्ट्स एंड मेडिसिन ने अपने एक सर्वे में योग को दुनिया के टॉप-10 फिटनेस ट्रेंड में स्थान दिया है। यही नहीं, जापान जैसा मुल्क जो अपनी जरूरत को इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल डिवाइस से पूरा करने का आदी है और उसके यहां शारीरिक चुस्ती-फुर्ती की कुछ अपनी रिवायतें भी हैं, वहां बीते पांच सालों में योग बिजनेस ने 413 फीसद का ग्रोथ दर्ज कराया है।
देसी उत्पादों की मांग
योग के साथ ही आयुर्वेद और खादी जैसे देसी प्रोडक्ट्स का भी क्रेज बढ़ गया है। जाहिर है, योग से जुड़े उत्पादों के लिए आज पूरा विश्व भारत की
योग के जरिए भारत को ग्लोबल स्तर पर एक नई पहचान मिली है और उसका कद काफी बढ़ गया है। इस लिहाज से देखें तो योग के साथ भारत की कूटनीतिक ग्रहदशा भी बदली है। प्रधानमंत्री मोदी ने 27 सितंबर 2014 को जिस अंदाज में संयुक्त राष्ट्र में 21 जून को विश्व योग दिवस के रुप में मनाने की अपील की और जिस तरह विश्व के 192 देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया और 177 देशों ने सह-प्रायोजक बनना स्वीकार किया, वो अभूतपूर्व था। आधुनिक भारत के इतिहास में शायद ही इसके अलावा कोई दूसरा मौका रहा हो, जब भारत और उसके किसी प्रस्ताव के पक्ष भी इतनी बड़ी स्वीकृति देखी गई हो। आज योग के साथ बाजार की एक पूरी व्यवस्था पूरी दुनिया में खड़ी हो गई है। दिलचस्प है कि इस बाजार में योग और भारत के पुराने साझे के कारण न सिर्फ सबसे बड़ी हिस्सेदारी हमारी है, बल्कि इसका जो भारत के बाहर भी विस्तार है, वह परोक्ष रूप से हमें लाभान्वित कर रहा है।
नमो की पहल
बात करें प्रधानमंत्री मोदी की तो वे इस स्थिति को कहीं न कहीं पहले ही भांप गए थे। इसीलिए उन्होंने आयुर्वेद प्रोडक्ट्स, योग प्रशिक्षण और आयुर्वेदिक शोध जैसी बातों पर पहले से बल देना शुरू कर दिया था। केंद्र की सत्ता संभालते ही वर्ष 2014 में ही पीएम मोदी ने आयुष मंत्रालय बनाया तो 2015 के बजट में उन्होंने योग से जुड़े सभी व्यापारिक कार्यों को दान की श्रेणी में रखते हुए कर मुक्त कर दिया। योग को प्रोत्साहन देने की दिशा में सरकार ने जो कुछ ठोस प्रयास किए हैं, उनमें योग के लिए योग्य शिक्षकों की संख्या बढ़ाने के लिए भारतीय गुणवत्ता परिषद के तहत चलाया जा रहा अभियान अहम है। इसके तहत बाहर और देश में योग के शिक्षकों की योग्यता को परख कर प्रमाणपत्र दिया जा रहा है। देश से बाहर योग सिखाने जाने वालों के लिए यह प्रमाणपत्र आवश्यक कर दिया गया है। एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक योग शिक्षकों की
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नरेंद्र मोदी का योग चिंतन
पिछले कुछ वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया से योग अपनाने की अपील करते आ रहे हैं जिसके फायदे वो अपने निजी जीवन में देख चुके हैं। प्रधानमंत्री की सक्रियता आज लोगों के लिए एक प्रेरणा है जिसमें योग की बड़ी भूमिका है। वे कहते हैं योग फिटनेस ही नहीं, वेलनेस की भी गारंटी है। योग पर उनके ऐसे कई संदेश रहे हैं, जो प्रेरक उद्धरण का रूप ले चुके हैं।
ब्रांड और इंडस्ट्री के तौर पर बढ़ी योग की वैश्विक स्वीकृति का आलम यह है कि एक आकलन के मुताबिक दुनियाभर में 40 करोड़ से ज्यादा लोग नियमित योगाभ्यास कर रहे हैं मांग सालाना 35 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। देश में योग ट्रेनिंग का कारोबार करीब 2.5 हजार करोड़ रुपए का हो चुका है। इसमें लगाए जाने योग शिविर, कॉरपोरेट्स कंपनियों को दी जाने वाली ट्रेनिंग और प्राइवेट ट्रेनिंग शामिल हैं। योग शिक्षक आमतौर पर प्रति घंटे 400-1500 रुपए तक फीस लेते हैं। योग सिखाने वाली कई संस्थाएं तो एक महीने की फीस सवा लाख रुपए तक भी लेती हैं। ऋषिकेश के एक मशहूर योग केंद्र की मासिक फीस तो 1.34 लाख रुपए है। अमरीका, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में 3 से 5 घंटे के 3-5 हजार डॉलर तक फीस है। इसके साथ ही एक साल में अमरीका और चीन के साथ यूरोप में योग अपनाने वाले भी बढ़े हैं। यहां बड़ी संख्या में भारतीय ट्रेनर जा रहे हैं और वहां से ट्रेनिंग लेने लोग भारत भी आ रहे हैं। सरकार अब योग कोर्स के लिए आने वालों को अलग श्रेणी में वीजा देने की भी तैयारी कर रही है। अमेरिका तो हर साल योग सीखने पर करीब 2.5 बिलियन डॉलर खर्च करता है। साफ है कि योग अब आसनों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके प्रसार ने पूरी तरह से एक नया समाज और अर्थतंत्र ही रच दिया है। कह सकते हैं भारत का योग हिमालय की गोद से निकलकर और हिंदू व बौद्ध मठों से होते हुए लंदन, न्यूयॉर्क, कैलिफोर्निया, मैक्सिको, बैंकॉक, स्पेन, मलेशिया, थाइलैंड और इंडोनेशिया के महंगे योगा रिजॉर्ट तक पहुंच गया है। निस्संदेह बाजार ने योग के स्वरूप को अपने अनुसार बदला भी है। हां, यह जरूर है कि योग के प्रसार के साथ भारतीय ज्ञान भी कहीं न कहीं नए दौर में ग्लोबल यात्रा कर रही है और इसका बहुत बड़ा श्रेय हमारे मौजूदा प्रधानमंत्री को जाता है।
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हर कोई चाहता है तनावमुक्त जीवन हो, पीड़ामुक्त जीवन हो, बीमारी से मुक्त जीवन हो, प्रसन्न जीवन हो, इन सबको अगर किसी एक मार्ग से पाया जा सकता है, तो वो मार्ग है योग का। एक संपूर्ण जीवन को संतुलित रूप में कैसे जीया जा सकता है, तन से, मन से, विचारों से, आचारों से स्वस्थता की अंतर्यात्रा कैसे चले उसका अगर अनुभव करना है, तो योग के माध्यम से इसे किया जा सकता है।
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एकमात्र नमक से जीवन नहीं चलता है, लेकिन जीवन में नमक न होने से जीवन नहीं चलता है। जैसा जीवन में नमक का स्थान है, वैसा ही योग का स्थान भी हम बना सकते हैं। कोई बहुत चौबीसों घंटे योग करने की जरूरत नहीं है। 50 मिनट, 60 मिनट, और मैंने पहले भी कहा है कि बिना लागत के स्वास्थ्य बीमा की ताकत योग के अंदर है।
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आज जीवन शैली के कारण, कार्य की शैली के कारण, आपाधापी के कारण, बढ़ती हुई जिम्मेदारियों के कारण तनाव से मुक्त जीवन जीना मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे में हमें हमारी दिनचर्या में, हमारे जीवन में, हमारे कार्यकलाप में उन चीजों को लाना बहुत आवश्यक है जो हमें तनाव भरी अवस्था में भी तनाव से मुक्त रहने का रास्ता दिखाए, ताकत दे और वो संभव है योग के नित्य अभ्यास से।
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हम योग के मास्टर बनें या न बनें, लेकिन हम योग के अभ्यासु बन सकते हैं। और जिस समय पहली बार योग करते हैं, तो पता चलता है कि हमारे शरीर के कितने महत्वपूर्ण अंग हैं, जिसकी तरफ हमारा कभी ध्यान नहीं गया, कितने बेकार होते गए हैं। और जब योग शुरू करते हैं तो शरीर के अनेक अंग जो सुषुप्त अवस्था में पड़े हैं, उनकी जागृति को हम खुद अनुभव कर सकते हैं। उसके लिए कोई बड़ी दिव्य चेतना की आवश्यकता नहीं होती।
योग को अमीर-गरीब का भेद नहीं है। विद्वान-अनपढ़ का भेद नहीं है। गरीब से गरीब व्यक्ति भी, अमीर से अमीर व्यक्ति भी योग आसानी से कर सकता है। किसी चीज की जरूरत नहीं है। एक हाथ फैलाने के लिए कहीं जगह मिल जाए, तो वो अपना योग कर सकता है और अपने तन-मन को तंदुरुस्त रख सकता है।
योग आज इतने बड़े पैमाने पर जन सामान्य का आंदोलन बना है और मैं समझता हूं कि ये हमारे पूर्वजों ने, हमें जो विरासत दी है, इस विरासत की ताकत क्या है? इस विरासत की पहचान क्या है? इसका परिचय करवाते हैं।
इस शताब्दी में हम अनुभव कर रहे हैं, योग ने पूरे विश्व को जोड़ दिया है। जैसे योग शरीर, मन, बुद्धि आत्मा को जोड़ता है वैसे आज योग विश्व को भी जोड़ रहा है।
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योग बीमारी से ही मुक्ति का मार्ग नहीं है। ये सिर्फ फिटनेस की नहीं, ये वेलनेस की गारंटी है। अगर जीवन को एक आध्यात्मिक दिशा की ओर ले जाना है, तो योग उसका उत्तम मार्ग है। योग ‘मैं’ से ‘हम’ की यात्रा है। ये यात्रा व्यक्ति से समष्टि तक है। ‘मैं’ से ‘हम’ तक की यह अनुभूति, अहम से वयम तक का यह भाव-विस्तार, यही तो योग है।
योग में संपूर्ण मानवता को एकबद्ध करने की शक्ति है। योग ज्ञान, कर्म और भक्ति का एक अद्भुत तालमेल है।
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योग विशेष
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मोदी ने मोमेंटम बनाया तो योग से जुड़ी दुनिया
चौथा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने को लेकर दुनिया भर में अगर भारी उत्साह का माहौल बना है तो यह प्रधानमंत्री मोदी के कारण ही संभव हुआ है
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धानमंत्री नरेंद्र मोदी जो भी कार्य हाथ में लेते हैं, जो भी शुरुआत करते हैं उसके लिए एक पूरा मोमेंटम बनाते हुए आगे बढ़ते हैं। संकल्प से सिद्धि के लिए एक अनुकूल वातावरण बनाने में प्रधानमंत्री इसीलिए सफल रहते हैं क्योंकि वे खुद को भी इस दिशा में शत प्रतिशत झोंक देते हैं। चौथा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने को लेकर दुनिया भर में अगर भारी उत्साह का माहौल बना है तो यह प्रधानमंत्री मोदी के कारण ही संभव हुआ है।
3 डी वीडियो से योग के गुर योग के प्रति अधिक से अधिक जागरुकता बढ़े, इ स क े
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लिए प्रधानमंत्री मोदी खुद भी कुछ ना कुछ नए तरीके लेकर सामने आते रहे हैं। इसमें सबसे नया है सोशल मीडिया पर 3 डी वीडियो के माध्यम से योग सिखाना। पिछले कई हफ्तों से प्रधानमंत्री अपने ट्विटर हैंडल पर वृक्षासन, भुजंगासन, पवनमुक्तासन और सेतुबंधासन समेत कई अलग-अलग योगासन के 3 डी वीडियो पोस्ट करते आ रहे हैं। इनमें वो संबंधित आसन के गुर भी सिखा रहे हैं साथ ही यह भी बता रहे हैं कि किस आसन को करने से क्या लाभ होता है।
हम फिट तो इंडिया फिट कैंपेन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सरकार में उनके सहयोगियों को भी फिट रहने की प्रेरणा मिलती रहती है। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने तो प्रधानमंत्री से प्रेरणा लेकर ‘हम फिट तो इंडिया फिट’ हैशटैग से ट्विटर पर एक फिटनेस चैलेंज शुरू कर दिया। देखते ही देखते इस चैलेंज को स्वीकार करने की होड़ लग गई और देश के अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़ी कई हस्तियों ने अपने फिटनेस से
योग पर पुतिन का सवाल
धानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऐतिहासिक प्रयास से अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को संयुक्त राष्ट्र से मान्यता मिलने के बाद सबसे बड़ी चुनौती थी पहले आयोजन को सफल बनाना। यूएन में प्रधानमंत्री के प्रस्ताव रखने के साथ ही भारत योग दिवस के लिए जरूरी कदम उठाने में जुट चुका था। योग को अधिक से अधिक प्रोत्साहन मिले, इसके लिए अलग से एक आयुष मंत्रालय भी बनाया गया। चूंकि योग दिवस पर भारत की पहल से मुहर लगी, इसीलिए पहले आयोजन में भारत की जिम्मेदारी भी कहीं ज्यादा थी। तैयारियां तेज थीं और दुनिया भर में उत्साह का एक माहौल तैयार बनाया जा रहा था। इन्हीं तैयारियों के बीच एक पत्रकार ने रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से एक सवाल
किया कि योग को बढ़ावा देने के भारतीय प्रधानमंत्री के प्रयासों को लेकर आप क्या कहेंगे जिन्होंने इसके लिए अलग से एक आयुष मंत्रालय भी बनाया है? तब पुतिन ने छूटते ही उल्टा यह सवाल किया था कि ‘क्या मोदी खुद योग करते हैं’? पुतिन को उनके सवाल का जवाब जल्दी ही और खुद-ब-खुद तब मिल गया जब पहले अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर पूरी दुनिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिल्ली के राजपथ पर योग करते देखा। यहां पूरे समारोह की अगुवाई खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे थे। राजपथ पर हुए आयोजन ने 84 देशों के प्रतिनिधियों और 35,985 लोगों की भागीदीरी के साथ गिनीज बुक में दो रिकॉर्ड भी दर्ज कराए। प्रधानमंत्री ने इस मौके पर कहा था,
संबंधित वीडियो शेयर किए और एक-दूसरे को चैलेंज भी किया। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली ने प्रधानमंत्री मोदी को फिटनेस चैलेंज दिया जिसे प्रधानमंत्री ने भी स्वीकार किया।
‘मन की बात’ से योग पर संदेश
27 मई को अपने ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री ने योग के फायदों को बताने के लिए संस्कृत के महान कवि भर्तृहरि की कही उन बातों का उल्लेख किया जो सदियों पहले उन्होंने शतकत्रयम् में लिखी थी। इसमें भर्तृहरि ने जो कहा था उसका मतलब है नियमित योग अभ्यास करने पर कुछ अच्छे गुण ब्लादिमीर पुतिन से सगे-संबंधियों और मित्रों की तरह हो जाते हैं। योग करने से साहस पैदा होता है जो सदा पिता की तरह एक पत्रकार ने सवाल हमारी रक्षा करता है। क्षमा का भाव उत्पन्न होता है, किया कि योग को बढ़ावा जैसा मां का अपने बच्चों के लिए होता है और देने के भारतीय प्रधानमंत्री के मानसिक शांति हमारी स्थायी मित्र बन जाती है। दुनिया के दिल में उतरा विचार प्रयासों को लेकर आप क्या योग को अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति कहेंगे तब पुतिन ने छूटते ही उल्टा दिलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह सवाल किया था कि ‘क्या ने 27 सितंबर 2014 को अपनी मोदी खुद योग करते हैं?’ बात को संयुक्त राष्ट्र के मंच पर प्रभावी तरीके से रखा था। ‘कभी किसी ने सोचा भी होगा कि ये राजपथ प्रधानमंत्री ने कहा था, ‘योग भी योगपथ बन सकता है? यूएन के द्वारा आज केवल व्यायाम भर न होकर अंतरराष्ट्रीय दिवस का आरंभ हो रहा है, लेकिन अपने आप से तथा विश्व व मैं मानता हूं कि आज 21 जून से अंतरराष्ट्रीय योग प्रकृति के साथ तादात्म्य दिवस से न सिर्फ एक दिवस मनाने का प्रारंभ हो रहा को प्राप्त करने का माध्यम है, बल्कि शांति-सद्भावना इन ऊंचाइयों को प्राप्त है। यह हमारी जीवन शैली करने के लिए मानव मन को ट्रेनिंग करने के लिए में परिवर्तन लाकर तथा एक नए युग का आरंभ हो रहा है।’ हममें जागरुकता उत्पन्न किसी भी मुद्दे पर देश-दुनिया में किस तरह की करके जलवायु परिवर्तन बयानबाजी होती है उसकी जगह प्रधानमंत्री का ध्यान से लड़ने में सहायक हो इस पर रहता है कि लक्ष्य की दिशा में हम कैसे बढ़ सकता है। आइए हम एक रहे हैं। विश्व के अनेक देशों से योग की जो तस्वीरें ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ आईं वो अपने-आपमें जोश भरने वाली थीं। मास्को को आरंभ करने की दिशा सहित रूस के भी कई शहरों से लोगों के योग करने में कार्य करें।’ यह प्रधानमंत्री की तस्वीरें भारत की पहल की सफलता की कहानी मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व कह रही थीं। पहले योग दिवस के कुछ ही दिन की बदौलत ही संभव हुआ बाद जब उफा में ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन से कि उन्होंने योग पर 193 देशों का समर्थन हासिल किया। गौर पहले पुतिन से प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात हुई तो करने वाली बात है कि इनमें चीन भी प्रधानमंत्री ने उन्हें रूस में हुए योग के आयोजनों के था और 40 मुस्लिम राष्ट्र भी शामिल लिए धन्यवाद दिया। इस दौरान पुतिन ने योग को थे। बहुत आकर्षक अभ्यास बताया।
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लैटिन अमेरिका पहुंचा योग का जादू
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पूरे लैटिन अमेरिका में योग विद्यालयों का दिखाई पड़ना एक आम बात है। कुछ लैटिन अमेरिकी जेलों में अपराधियों को भी योग और ध्यान सिखाया जाता है
हुमा सिद्दिकी
पनी अंतरात्मा में स्वयं को महसूस करने से बेहतर कोई अनुभव नहीं है। सदियों से योग अंतर्मन की शांति जागृत करने के लिए जाना जाता है। हम अकसर मन की शांति की तलाश भौतिक वस्तुओं में करते हैं। आश्चर्य नहीं कि लैटिन अमेरिकी इस शानदार विज्ञान की जानकारी प्राप्त कर चुके हैं। वास्तव में वे भारत को योग, ध्यान, दर्शन, ज्ञान, संस्कृति तथा अध्यात्मवाद की भूमि मानते हैं। पूरे लैटिन अमेरिका में योग विद्यालयों का दिखाई पड़ना एक आम बात है। कुछ लैटिन अमेरिकी जेलों में अपराधियों को योग और ध्यान सिखाया जाता है। यद्यपि कई वर्षों से इस क्षेत्र में योग का अभ्यास किया जाता रहा है, तथापि पिछले दो वर्षों में योग की इच्छा रखने वालों में एक विस्फोट-सा हुआ है तथा भारतीय संस्कृति के प्रति तेजी से रुचि बढ़ी है। अब योग का पेरू, बोलिविया तथा लैटिन अमेरिका के आस-पास के भागों में लोकप्रिय होना निश्चित है, क्योंकि इस संबंध में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए हैं। पेरू की राजधानी लीमा में भारतीय दूतावास ने आयुष मंत्रालय के निवेदन से भारतीय गुणवत्ता परिषद द्वारा विकसित योग पेशेवरों के मूल्यांकन तथा प्रमाणन के लिए स्वैच्छिक योजनाओं को बढ़ाने की जिम्मेदारी ली है। आश्चर्य कि बात नहीं कि लैटिन अमेरिका उन योग उत्साहियों के लिए एक पसंदीदा गंतव्य है, जो अपने योग अनुभवों को और बेहतर बनाने की तलाश में है। इस क्षेत्र में विकल्पों की कोई कमी नहीं है। कोस्टारिका, निकारागुआ, पेरू, ब्राजील, होंडुरास, ग्वाटेमाला, मेक्सिको, इक्वाडोर, चिली सहित सभी देश योग उत्साहियों की पसंदीदा स्थलों में से हैं। एक छोटे देश कोस्टारिका की पचास लाख जनसंख्या में दो सौ भारतीय हैं, परंतु इन दो सौ लोगों
खास बातें
योग कोई धर्म नहीं, एक विज्ञान और कला है कोस्टारिका में योग काफी लोकप्रिय हो रहा है निकारागुआ, पेरू, ब्राजील, होंडुरास, चिली जैसे देशों में लोकप्रिय है योग
ने बहुत उत्साह से यहां की अधिकांश जनसंख्या को सांस्कृतिक, प्रौद्योगिकीय तथा आर्थिक कारणों से भारत की ओर देखने के लिए प्रेरित किया है। कोस्टारिका को इसकी प्राकृतिक सुंदरता, शांति तथा आर्थिक स्थायित्व के लिए मध्य अमेरिका में एक रत्न के रूप में जाना जाता है। यहां स्वस्थ जीवनशैली अपनाने वालों की संख्या बढ़ी है। लगभग एक दशक पूर्व जब भारतीय कंपनी हैवेल्स ने दुनिया भर में सिल्वानिया का कारोबार शुरू किया तो एक युवा परिवार कंपनी के क्षेत्रीय हितों के प्रबंधन के लिए कोस्टारिका चला आया। उसने केवल कंपनी की ही व्यवस्था ही नहीं देखी, बल्कि भारत के ज्ञान का भी विस्तार किया और यहां एक रेस्टोरेंट खोलकर भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक पहलू के प्रति लोगों में दिलचस्पी बढ़ाई। अतंतराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान की भावना के अनुरूप ‘ताजमहल’ रेस्टोेरेंट के मालिक कपिल गुलाटी ने भारतीय व्यंजनों की पाक-कला कक्षाओं के साथसाथ नियमित योग सत्र तथा भारतीय शास्त्रीय नृत्य सत्र का आयोजन किया है। विचार तो ताजमहल में एक लघु भारत प्रस्तुत करने का है, ताकि घरों से इतनी दूर रह रहे लोग रहस्यपूर्ण भारत और इसकी संस्कृति का अनुभव कर सकें। भारत के राष्ट्रीय पक्षी मोर को प्रतीक के रूप में उपयोग करते हुए रेस्टोरेंट ने तीन मोर रखे हैं, जो स्थानीय लोगों द्वारा योग करने के दौरान नाचते रहते हैं। इससे वातावरण और भी रमणीक और जीवंत हो जाता है। कोस्टारिका में भारतीय संस्कृति के फलने-फूलने के उदाहरण हैं- रेस्टोरेंट में संगीत वाद्ययंत्र, योग की कक्षाएं, भारतीय शास्त्रीय नृत्य कक्षाएं, हिंदी भाषा कक्षाएं, भारतीय पाक कला (व्यंजन) कक्षाएं, भारतीय उत्सव आयोजन, बाॅलीवुड आधारित कोस्टारिका की फिल्में। भारत में कोस्टारिका की राजदूत इस बात का श्रेष्ठ उदाहरण
कोस्टारिका में दो सौ भारतीय हैं, परंतु इन दो सौ लोगों ने बहुत उत्साह से यहां की अधिकांश जनसंख्या को सांस्कृतिक, प्रौद्योगिकीय तथा आर्थिक कारणों से भारत की ओर देखने के लिए प्रेरित किया है हैं कि भारतीय संस्कृति किस प्रकार कोस्टारिका के लोगों को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है। कलियुग में संसार विध्वंस के दौर से गुजर रहा है और जब तक हम अपने से जुड़े रहते हैं और हमें यह ज्ञान है कि हम कहां और क्यों जा रहे हैं, तो हम इस अराजकता में संतुलन बनाए रख सकते हैं। इस कार्य के विभिन्न विकल्पों में योग प्रमुख है। कोस्टारिका रिपब्लिक की राजदूत मेरियला क्रुज अल्वारेज का कहना है कि योग कोई धर्म नहीं है वरन एक विज्ञान और कला है और इससे पूरी मानवता लाभान्वित हो सकती है। योग के बारे में एक वृद्ध महिला कहती हैं, ‘एक व्यक्तिगत संकट के माध्यम से मेरी योग में दिलचस्पी बढ़ी। मैंने अपने हृदय में उत्तर खोजना शुरू किया और मेरी ये खोज मुझे भारत ले आई। मैंने पयर्टक के रूप में उत्तर भारत के तीन दौरे किए। इसके बाद मुझे महसूस हुआ कि दक्षिण भारत जाना चाहिए। मेरी 2003 में कर्नाटक के मैसूर में अपने गुरू श्री के. पट्टा भी जायश और उनके पौत्र शरत जायश से मुलाकात हुई।’ अल्वारेज कुल 14 बार भारत की यात्रा कर चुकी हैं, जिसमें एक राजनयिक के रूप में उनकी यह पहली यात्रा भी शामिल है। वह कहती हैं, ‘ मेरी पिछली 11 यात्राएं भारत स्थित मेरे विद्यालय में गुरूजी के सानिध्य में और 2009 में गुरूजी के निधन के उपरांत उनके पुत्र शरत जी के सानिध्य में अष्टांग योग के अभ्यास हेतु थी। मेरा विद्यालय पश्चिम में बहुत लोकप्रिय है और दुनियाभर में कई विद्यार्थी पारंपरिक पद्धति के रूप में योग के लाभों की सराहना करते हैं। योग का स्रोत एवं जनक
भारत है और इस तथ्य को जानना इसीलिए भी अति आवश्यक है क्योंकि अब पश्चिम में बहुत से लोग बगैर किसी योग्यता के योग की शिक्षा दे रहे हैं। व्यावसायिक योग ने योग को आध्यात्मिक साधना की बजाय शारीरिक स्वस्थता तक सीमित कर दिया है।’ कोस्टारिका में योग काफी लोकप्रिय हो रहा है और यह योग शिक्षकों, योग आश्रमों, प्रकृति और अभ्यास का केंद्र बन गया है। कोस्टाेरिका में शानदार समुद्र तट, ज्वालामुखी, और जंगल हैं और योगाभ्यास ने हमें सौंदर्य, शांति और स्वतंत्रता के प्रशंसक के रूप में परिवर्तित कर दिया है। इन मूल्यों को मेरा देश भली-भांति समझता है। हमारा राष्ट्र हरित विकास का लोकतंत्र है, जो आकार में भले ही छोटा है, लेकिन भावनाओं और सिद्धांतों में बहुत बड़ा है। 30 वर्षों तक एक परिवार का भरण-पोषण करने के बाद दुनिया में अष्टांग योग के अपने पहले मिशन के दूत के रूप में वह कहती हैं, ‘भारत में एक दूत के रूप में मेरी आकांक्षा अपने साथियों से खुले दिल के साथ मिलने की है, भले ही वे योगाभ्यास करते हों अथवा नहीं। मेरे इस अभ्यास का उद्देश्य उन लोगों से उपहार स्वीकार करना है जो दूसरों के प्रति निस्स्वार्थ प्रेम और स्वीकृति का भाव रखते हैं। मैं उनको जानकर कृतज्ञ महसूस करती हूं और सहृदय उनकी सराहना करती हूं।’ (लेिखका ‘फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ में वरिष्ठ संवाददाता हैं और लैटिन अमेरिका पर लिखती हैं)
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योग विशेष
18 - 24 जून 2018
तीन पीढ़ियों का योग
इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का चौथी बार आयोजन होगा और इस मौके पर सबके आकर्षण का केंद्र होगा देहरादून, जहां पीएम मोदी करीब 50 हजार लोगों के साथ योगाभ्यास करेंगे
दु
एसएसबी ब्यूरो
निया चौथे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की तैयारियों में जुटी है। 21 जून, 2015, यही वह दिन था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर पहली बार विश्व भर के देश योग के माध्यम से आपस में जुड़ गए। इन चार सालों में योग ने दुनिया भर के लोगों को अपने तन-मन की सहज अनुभूति का अवसर दिया है। जिन लोगों ने सक्रिय
खास बातें पहले योग दिवस पर दिल्ली का राजपथ बन गया था योगपथ गत वर्ष लखनऊ में पीएम ने बारिश के बीच लोगों के साथ किया योग ‘मन की बात’ में भी प्रधानमंत्री योग से लाभ की चर्चा कर चुके हैं
रूप से योग को अपनाया है, सृष्टि को देखने का उनका नजरिया बदल गया है। इसका परिणाम ये हुआ है कि भारत की अनमोल संस्कृति के प्रति मानव मात्र का रुझान एवं लगाव और भी गहरा होता जा रहा है।
योग दिवस के माध्यम से बिखरते टूटते परिवार को आसानी से एकजुट किया जा सकता है। यह बिखराव सिर्फ परिवार का नहीं है। परिवार बिखरा तो समाज बिखरा और समाज बिखरा तो देश और फिर दुनिया बिखरी – नरेंद्र मोदी
पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस
एक स्थान पर आसन-प्राणायाम के चलते उस दिन दो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बने। योग की लगभग ऐसी ही प्रक्रिया विश्व के 193 देशों में मजे हुए योग गुरुओं और योग प्रशिक्षकों के निर्देशन में भी अपनाई गई।
दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की शुरुआत 21 जून, 2015 को हुई थी। प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली में खुद इसकी अगुवाई की। तब किसी ने नहीं सोचा था कि इस दिन राजपथ योगपथ में परिवर्तित हो जाएगा। पूरा राजपथ योगाभ्यासियों से भरा हुआ था। एक साथ, एक मुद्रा में हजारों की संख्या में लोगों के योग करने से पूरे वातावरण में एक सकारात्मक शांति महसूस हो रही थी। जिन लोगों को भी प्रधानमंत्री मोदी जी के साथ योग करने का मौका मिला वो इतने खुश थे, जैसे कि उनका जीवन सफल हो गया हो। मन, बुद्धि, आत्मा और शरीर के संतुलन के एहसास से लोग गदगद थे। आधे घंटे से अधिक चले इस कार्यक्रम में लोगों ने 21 योग मुद्राओं में आसन किए। इस कार्यक्रम में दुनिया के कई देशों के प्रतिनिधि भी शामिल हुए थे। एक साथ इतने लोगों के योग और लगभग 85 देशों के प्रतिनिधियों के एक साथ
दूसरा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस
प्रधानमंत्री मोदी ने 21 जून, 2016 को दूसरे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की अगुवाई चंडीगढ़ में की। इस अवसर पर 30 हजार से अधिक लोगों का एक साथ योग करने से पूरा कैपिटल कॉम्प्लेक्स योगमय हो गया। इस अवसर पर पीएम ने देश में डायबिटीज के मरीजों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई। उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि अगर नियमित योग किया जाय तो डायबिटीज जैसी बीमारियों पर आसानी से नियंत्रण रखा जा सकता है। उन्होंने बताया कि योग एक तरह से जीरो प्रीमियम में हेल्थ इंश्योरेंस है। तब प्रधानमंत्री ने मौजूदा साल से
योग पर बेहतर कार्य के लिए दो अवॉर्ड की घोषणा भी की थी। एक अंतरराष्ट्रीय योग अवॉर्ड और दूसरा राष्ट्रीय योग अवॉर्ड। चंडीगढ़ के अलावा दुनिया भर में भी लाखों लोग उस दिन योग के कार्यक्रम में शामिल हुए और प्रशिक्षित लोगों की देखरेख में आसन और प्राणायाम किया।
तीसरा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस
तीसरा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस प्रधानमंत्री मोदी ने लखनऊ में मनाया। शहर में लगातार हो रही बारिश के बावजूद हजारों की संख्या में लोग रमाबाई अंबेडकर मैदान में हुए इस कार्यक्रम के लिए एकत्रित हुए। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने लखनऊ से देश भर में योग दिवस कार्यक्रम में शामिल हुए लोगों को अपनी शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा, ‘आज योग कई लोगों के जीवन का हिस्सा बन गया है। भारत के बाहर भी योग की लोकप्रियता काफी बढ़ी है और
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योग विशेष
पूरे परिवार के साथ योग
त वर्ष 28 मई को अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने लोगों से एक विशेष अपील की। उन्होंने कहा, ‘हर परिवार की तीन पीढ़ियां एक साथ योग करें। मतलब दादा-दादी या नाना-नानी और नई पीढ़ी के बच्चों के साथ परिवार की तीनों पीढ़ियां एक साथ योग करें।’ पीएम के अनुसार योग दिवस के माध्यम से भारत बिखराव के शिकार रहे विश्व जगत को एक सूत्र में पिरोने में सफल हो रहा है। उन्होंने कहा कि बहुत कम समय के भीतर विश्व के कोने-कोने में योग फैल चुका है। जीवनशैली और तनाव के बीच योग की भूमिका आज और बढ़ गई है। योग सिर्फ व्यायाम नहीं है, इसमें वेलनेस और फिटनेस की गारंटी भी है। पीएम ने देशवासियों से तुरंत योग के अभ्यास में जुट जाने और इसके विषय को खूब प्रचारित-प्रसारित करने का भी आह्वान किया। योग विश्व को भारत से जोड़ता है।’ उन्होंने कहा कि वह यह देखकर काफी खुश हैं कि पिछले तीन वर्ष में कई योग संस्थान अस्तित्व में आए हैं और योग शिक्षकों की मांग बढ़ती जा रही है। फिटनेस, तंदुरस्ती को महत्वपूर्ण बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, योग तंदुरूस्ती को प्राप्त करने का एक माध्यम है। सभी से योग को उनके जीवन का हिस्सा बनाने का अनुरोध करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि योग अच्छे स्वास्थ्य का आश्वासन देते है और इसका अभ्यास महंगा भी नहीं है।
चौथा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस वर्ष 21 जून को अंतरराष्ट्रीकय योग दिवस मनाने देहरादून जाएंगे। देहरादून में इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम की तैयारियां भी शुरू कर दी गई हैं। काफी विचार-विमर्श के बाद देहरादून के फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एफआरआई) में इसके आयोजन को लेकर सहमति बनी है। बताया जा रहा है योग दिवस पर एफआरआई कैंपस में मुख्य् कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ करीब 50 हजार लोग उपस्थित होकर योग करेंगे।
पारिवारिक एकजुटता का योग
प्रधानमंत्री का मानना है कि योग दिवस के माध्यम से बिखरते टूटते परिवार को आसानी से एकजुट किया जा सकता है। यह बिखराव सिर्फ परिवार का नहीं है। परिवार बिखरा तो समाज बिखरा और
आधुनिक जीवन शैली ने एक आदमी की जिंदगी को तनाव के अंधरे े में धकेल दिया है, उससे निकले बगैर एक बेहतर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। योग दिवस के माध्यम से प्रधानमंत्री पूरी दुनिया को यही संदेश देना चाहते हैं समाज बिखरा तो देश और फिर दुनिया बिखरी। योग के माध्यम से इन सबको फिर से एकजुट करने की बड़ी कोशिश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की है। यह सोच उन्हें दुनिया के उन कुछ चुने हुए नेताओं में शुमार करती है, जिन्होंने पूरे देश और दुनिया को एकजुट करने की कोशिश की। बहुत पहले की बात नहीं है, डोनाल्ड ट्रंप से पूर्व जब बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति थे, तो उन्होंने अपने देश में पारिवारिक विघटन और युवाओं में बढ़ी हिंसक हताशा को लेकर कहा था कि परंपरा और परिवार से जुड़े मूल्य हमें भारत से सीखने चाहिए। भारत
एक तरफ जहां आधुनिकता की तरफ तेजी से डग भर रहा है तो वहीं वह परिवार और परंपरा से जुड़ी लीक भी नहीं छोड़ी है।
कल आज और कल
जिस तरह की आज वैश्विक आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था है, उसमें सफलता और आगे बढ़ने के नाम पर एक होड़ हर जगह देखी जा रही है। इससे जहां सामाजिक बनावट के धागे उलझे हैं तो वहीं मानवीय प्रेम और करुणा के लिए धैर्यपूर्ण तरीके से सोचने वालों की संख्या लगातार कम हो रही है। ऐसे में योग ने कहीं न कहीं दुनिया को वह रास्ता दिया है, जिसमें वह अपने विकास और संपन्नता के साथ शांति और सहअस्तित्व को बनाए रख सके। आधुनिक जीवन शैली ने एक आदमी की जिंदगी को जिस तनाव के अंधेरे में धकेल दिया है, उससे निकले बगैर एक बेहतर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। योग दिवस के माध्यम से प्रधानमंत्री पूरी दुनिया को यही संदेश देना चाहते हैं। कल आज और कल के बीच ही सफल और सुंदर जीवन के सूत्र छिपे हुए हैं। जरूरत उन सूत्रों को उन्हें समझने और फिर अपनाने की है। इसीलिए योग आज के जीवन के लिए सबसे उपयोगी है। क्योंकि योग महज व्यायाम नहीं है, यह सिर्फ स्वस्थ रहने की गारंटी भर नहीं है, बल्कि इसमें बेहतर विचार और सोच भी है, जो आपके और हमारे जीवन को एक ऐसी दुनिया में ले जाते हैं, जहां सुकून और अपनापा है।
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योग विशेष
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योग से खिलेगा खेल
योगाभ्यास न केवल किसी खिलाड़ी के प्रदर्शन को बढ़ा सकता है, बल्कि यह मानसिक व शारीरिक दोनों लिहाज से उसे एक उम्दा और मजबूत मनुष्य बनाता है
यो
गुरप्रीत सिंह
ग समस्त मनुष्य जाति की एक पुरातन विरासत है। मुनष्य समाज कोई पांच हजार साल से योगाभ्यास करता रहा है। योग के रोग निवारक और उपचारात्मक दोनों फायदे हैं और यह मनुष्य के शरीर और दिमाग दोनों को लाभ पहुंचाता है। वैश्विक स्तर पर भी माना गया है कि बिना किसी नकारात्मक प्रभाव, तनाव या शरीर में किसी तरह का असंतुलन लाए बगैर योग का
खास बातें
खिलाड़ियों के लिए बेहद जरूरी है योग साधना शारीरिक और मानसिक दबाव को खत्म करता है योग एकाग्रता और लचीलेपन के लिए योगाभ्यास जरूरी
सम्यक लाभ लिया जा सकता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं, चाहे कोई भी खेल हो, उसमें जबर्दस्त ऊर्जा, खेल भावना, एकाग्रता और कड़ी प्रतिबद्धता की जरूरत होती है। इसीलिए प्राय: यह माना जाता है कि आक्रामकता खेल में जीत के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। एक व्यावसायिक विज्ञापन की ख्यात टैग लाइन है, ‘खाओ नींद और पीओ क्रिकेट’ । आशय यह कि हमेशा अपने लक्ष्य की धुन में रहो। लेकिन यहां सवाल है कि क्या इस तरह के भयानक शारीरिक दबाव को लगातार झेला सकता है और क्या यह जीतने के साथ खिलाड़ी को लंबे समय तक खेलने लायक रखता है? योग के पास इन सब संदेहों और सवालों के समुचित उत्तर हैं। एक स्वस्थ शरीर और शांत दिमाग जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता का पथ प्रशस्त करता है। इसकी महत्ता को समझ-बूझ कर ही फुटबॉल, रग्बी, गोल्फ और किक्रेट जैसे खेलों के कई अंतरराष्ट्रीय टीमों ने भारत की प्राचीनतम योग पद्धति का फायदा उठाना शुरू कर दिया है। योग अन्यान्य प्रविधियों से भिन्न एक अत्यंत विशिष्ट पद्धति है, जो किसी तरह का दाब या तनाव दिए बगैर अभ्यास करने वालों को ऊर्जा से लबरेज कर देती है। तरह-तरह के आसनों (मुद्राओं) का सही तरीके से एक निश्चित अवधि तक अभ्यास किया जाए तो शरीर के भिन्न अंगों को
कुछ खास तरह के योगासन और प्राणायाम के जरिए खिलाड़ी के शारीरिक तनाव को दूर सकते हैं, उसके दिमाग को आराम दिला सकते हैं, खेल पर उसको फोकस कर और उसकी एकाग्रता को बढ़ा सकते हैं बेहतर लचीलापन लाता है और उसमें ताकत भरता है। दरअसल, योग की अधिकतर मुद्राएं गहरी सांस लेने, उसका स्तंभन (रोकने) करने और मांसपेशियों के संकुचन-फैलाव के जरिए शरीर की कोशिकाओं में ऑक्सीजन भेजने का काम करती हैं। जब कोई खिलाड़ी हजारों दर्शकों की मौजूदगी में खेल रहा होता है या अपने देश के मान-स्वाभिमान के लिए प्रदर्शन कर रहा होता है और लाखों लोगों की अपेक्षाएं उसको बिंधती हैं तो इनसे उसका दिमाग पूरी तरह तनावग्रस्त हो जाता है। ऐसे वक्त किसी भी तरह के परामर्श या सलाह से उसकी चिंता या तनाव दूर नहीं किया जा सकता। लेकिन कुछ खास तरह के योगासन और प्राणायाम के जरिए खिलाड़ी के शारीरिक तनाव को दूर सकते हैं, उसके दिमाग को आराम दिला सकते हैं, खेल पर उसको फोकस कर और उसकी एकाग्रता को बढ़ा सकते हैं। अब बहुत सारे खेल हैं, जो खिलाड़ी में बहुत ताकत की अपेक्षा करते हैं। यही वजह है कि खिलाड़ी अपनी ताकत बढ़ाने और गठीली
मांसपेशियों के लिए अनेक तरह के जतन करते हैं, लेकिन इनसे उनका लचीलापन कम हो जाता है। अगर नियमित रूप से योगासन और शरीर के अंगों व मांसपेशियों को मजबूत करने वाले अभ्यासों के साथ-साथ खिलाड़ी का अपना वजन निर्धारित रखने के प्रशिक्षण को जारी रखा जाए तो खेल के दौरान लगने वाली चोटों से बचा जा सकता है। योग के जरिए खिलाड़ी न केवल खेलने लायक उचित लचीलापन पाएगा, बल्कि अपने संतुलन को भी बढ़ा लेगा। इस तरह खिलाड़ी चोट लगने से बेपरवाह होकर अपने शरीर का उपयोग खेल में कई तरीके से कर सकता है। ऐसे कुछ निर्धारित आसन हैं, जिनका अगर सही-सही तरीके से लगातार अभ्यास किया जाए तो ये ताकत बढ़ाने और शारीरिक दुबलापन दूर कर समस्त मांसपेशियों को मजबूत करते हैं। कुछ खास योगासन अविकसित मांसपेशियों के समूहों, जो व्यक्तिगत स्पोटर्स में काम नहीं आते, के रखरखाव में भी मददगार होते हैं। एक क्रिकेटर के रूप
18 - 24 जून 2018 में अपने निजी अनुभवों के आधार पर कह सकता हूं कि क्रिकेट में शरीर की सभी मांसपेशियों का उपयोग नहीं होता है। क्रिकेट में पीछे की मांसपेशियां सबसे अहम होती हैं और योग के जरिए रीढ़ को खूब लचीला बनाया जा सकता है। संभावित चोटों के विरुद्ध शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाई जा सकती है। मुझे एक बार एक तैराक की समस्या को जानने का मौका मिला था, जिसका शरीर लचीला होने के बावजूद संतुलन बनाये रखने में विफल था। नियमित योगाभ्यास से उसे बेहतर समन्वय हासिल करने में मदद मिली और चमत्कारिक रूप से उसमें अपेक्षित संतुलन भी आ गया। अगर आपके पास बेहतर संतुलन और समन्वयन है तो इससे आपको अपने शरीर पर नियंत्रण रखने में मदद मिलेगी। तो खिलाड़ी में यह संतुलन हरेक खेल में जरूरी हैचाहे वह तैराकी हो, गोल्फ की स्विंग हो, क्रिकेट का शॉट या फुटबॉल का दांव। इन खिलाड़ियों में लचीलापन की समस्याएं रहती ही हैं। योग शरीर के जोड़ों और मांसपेशियों के लचीलापन को बढ़ा कर खिलाड़ियों के प्रदर्शन को बेहतर बना देता है। यहां मैं फिर तैराक का उदाहरण दूंगा। एक लचीले शरीर वाला तैराक पानी को काटने में सक्षम होगा, इसके नतीजतन वह कम श्रम में ही अपने प्रतिस्पर्धी से आगे बढ़ने में कामयाब हो जाएगा। जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए पहली और सर्वाधिक जरूरत होती है-आपका शांत दिमाग होना। मैंने 12 साल की
योग विशेष
अवस्था में ही क्रिकेट खेलना प्रारंभ कर दिया मेरे खेल से अवगत मेरे कोच मुझे धैर्य था, जिसने मुझे अच्छे प्रदर्शन के दबाव बंधाते, लेकिन इससे भी कोई फर्क में ला दिया था। चूंकि तब भी प्रतिस्पर्धा नहीं पड़ा। आखिरकार मेरे कोच को बहुत थी और आपकी जगह लेने के लगा कि मुझसे योगाभ्यास कराने का लिए प्रतीक्षित लोगों की कतार लंबी यह सही वक्त है। इसके लिए उन्होंने थी। तब एक और चीज ने परेशान करना एक प्रशिक्षित योगाचार्य से खेल के बाद शुरू किया-पराजित होने का डर। सबसे हफ्ते में तीन दिन शाम को योगाभ्यास बुरा यह कि जब कभी मैं चोटिल होता तो के प्रशिक्षण की व्यवस्था की। योगाचार्य तनाव के मारे मेरा जल्दी ठीक होना और जी मुझे आराम देने वाला कुछ आसन ज्यादा मुहाल हो जाता। इसका कराते थे और ध्यान भी कराते दुष्परिमाण यह हुआ कि थे। धीरे-धीरे उन्होंने मुझसे मैदान में मेरा प्रदर्शन कुछ और उपयोगी प्रभावित होने लगा। आसनों का अभ्यास किसी भी खेल में मन-मस्तिष्क पर इस कराया। उन्होंने बताया अपना सर्वश्रे ष्ठ देने कदर तनाव रहता कि कि सुबह को प्राणायाम के लिए आपको वह खेल के मैदान करना लाभप्रद है। एक सु न म्य शरीर, और उसके बाहर भी जैसे-जैसे मेरा अभ्यास अपना असर दिखाने गहरा होता गया, मुझे एकाग्रता और उन्मुक्त लगा। बड़े खेल अच्छा लगने लगा। दिमाग की जरूरत के आयोजनों की मैंने महसूस किया है । यह सब योग के पहले मैं रतजगा कि मेरे नसें जरिए हासिल किया रहने लगा। शांत हो
जा सकता है
योगगुरु बाबा रामदेव
आ
योग को आधुनिक जीवनशैली में स्थान दिलाने वाले योगगुरु रामदेव की जीवनयात्रा साधारण से असाधारण होने की यात्रा है
ज योग की बात बाबा रामदेव के बिना अधूरी है। रामदेव ने योग को पुनर्जीवित करने के लिए व्यापक स्तर पर कार्य किया है। योग और योगासन से जुड़ी बारिकियों को जन जन तक पहुंचाने में रामदेव ने उल्लेखनीय प्रयास किए। उन्होंने भारत ही नहीं बल्कि विश्व के अलग अलग हिस्सों में योग पहुंचाया। अपने कैंपों के जरिए असाध्य रोगों से बचने के लिए योग के अचूक गुण बताए। रामदेव ने पतंजलि संस्थान की स्थापना की। साथ ही हरिद्वार में उन्होंने योग से चिकित्सा भी शुरू की । रामदेव का जन्म हरियाणा के महेन्द्रगढ़ जिले में हुआ था। उनका मूल नाम राम कृष्ण यादव है। आज लोग उन्हें रामदेव का नाम से जानते हैं। उनकी शुरुआती शिक्षा गुरुकुल में हुई। इस दौरान उन्होंने योग और संस्कृत की शिक्षा ली। योग के प्रति उनकी गहरी रुचि थी। हरियाणा के गांवों में वह लोगों को योग और उससे जुड़े आसन के बारे में बताया करते थे। बाबा रामदेव ने 1995 में दिव्य योग ट्रस्ट की स्थापना की। योग की लोकप्रियता लोगों के बीच उस वक्त और बढ़ी जब सेटेलाइट चैनल के माध्यम से योग घर घर पहुंचने लगा। योग के प्रति जागरुकता इस स्तर तक बढ़ी कि लोगों ने सुबह तड़के योग करना अपने जीवन का अंग बना लिया। इस तरह से रामदेव लोकप्रियता के
शिखर पर पहुंच गए। उनके योग को आम जन से लेकर बड़ी हस्तियों ने अपनाया। बॉलीवुड के कई कलाकारों ने योगासन को लेकर कई कार्यक्रम का निर्माण किया। बाबा रामदेव द्वारा स्थापित पतंजलि योग पीठ में दुनिया के कोने-कोने से गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों का सफल इलाज किया जाता है। रामदेव से जब पूछा गया कि उन्हें योग के संबंध में इतनी बारीक जानकारी कैसे हुई। रामदेव ने बताया कि इन आसनों के बारीकियों को समझने में उन्हें तकरीबन 20 साल लगे। योगगुरु के नाम से प्रसिद्ध रामदेव कहते हैं, ‘योग सिखाने वाले बहुत हैं। मैं उनकी आलोचना नहीं करता लेकिन आसन को सिखाने के लिए सरलतम विधि अपनानी चाहिए। मैंने आसनों को जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए उन्हें दैनिक जीवन में किए जाने वाले कार्यों से जोड़ा और उन्हें बताया। आज मैं कह सकता हूं कि भारत में योग के बेहतरीन प्रशिक्षक हैं।’
15 गई हैं और जो चीजें पहले मुझे तंग करती थीं, अब वह तुच्छ लगने लगी हैं। अनजाने में ही, मैं मैच के पहले के उस तनाव से छुटकारा पा गया, जो रातों की मेरी नींद उड़ाये रहता था। मुझे मीठी नींद आने लगी क्योंकि जगने पर मुझे हल्का महसूस होता और यह भी कि मैं किसी तरह की चुनौतियों से भिड़ने के लिए बिल्कुल तैयार हूं। इन बदलावों को देखकर मैंने योगाचार्य से जानने लिए अधीर हो उठा कि आखिर यह चमत्कार हुआ कैसे! उन्होंने समझाया कि ध्यान और प्राणायाम से मुझे अपनी चिंताओं को दूर कर रक्तचाप को संतुलित रखने में मदद मिली तो दूसरी तरफ मेरी प्रतिरोधक क्षमता में भी बढ़ोत्तरी हुई। एक माह के नियमित योगाभ्यास के बाद मेरा शरीर खूब लचीला, सुनम्य और स्वस्थ हो गया। मैंने खेल के मैदान में अपना बेहतर प्रदर्शन देने लगा और कालक्रम में आत्मविश्वासी होता गया। आज भी मैं योगाभ्यास करता हूं और सभी खेलों के खिलाड़ियों को योग करने की कड़ी सलाह देता हूं। अंत में, मैं आप सभी से यही कहना चाहूंगा कि किसी भी खेल में अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए आपको एक सुनम्य शरीर, एकाग्रता और उन्मुक्त दिमाग की जरूरत है। यह सब योग के जरिए हासिल किया जा सकता है। रोजाना योगाभ्यास न केवल किसी खिलाड़ी के प्रदर्शन को बढ़ा सकता है, बल्कि यह मानसिक व शारीरिक दोनों लिहाज से उसे एक उम्दा और मजबूत मनुष्य बना सकता है। (लेखक पूर्व रणजी खिलाड़ी हैं और लंबे समय से टीवी पर क्रिकेट-कमंटेटर रहे हैं।)
16 खुला मंच
18 - 24 जून 2018
योग हमें उन चीजों को ठीक करना सिखाता है, जिसे सहा नहीं जा सकता और उन चीजों को सहना सिखाता है, जिन्हें ठीक नहीं किया जा सकता -बीकेएस अयंगार
अभिमत
सद्गुरु जग्गी वासुदेव लेखक प्रख्यात योगी एवं अध्यात्म गुरु हैं
योग और उसके लाभ
योग के बारे में असली चीज यह है कि यह आपको जीवन का बड़ा अनुभव देता है और एक व्यक्ति होने के अपेक्षाकतृ आप एक सार्वभौमिक प्रक्रिया के अंग बन जाते हैं
हर युवा को रोजगार का सपना
दुनिया के सबसे युवा देश के युवाओं की क्षमता का पूरा लाभ देश को तभी मिल पाएगा जब उनके पास रोजगार हो
ा के पास रोजगार हो, देशयहकेसपनाहर तोयुवसरकारों का रहा है और
सबने अपने अपने हिसाब से इस दिशा में काम भी किया है। लेकिन हाल ही में रोजगार सृजन को लेकर जो आंकड़े सामने आए हैं, उसने भी दुनिया के लिए नजीर पेश की है। रेलवे में चाहे दुनिया की सबसे बड़ी सरकारी भर्ती का वर्ल्ड रिकॉर्ड हो या फिर मुद्रा योजना, स्टार्ट अप और स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रम के तहत करोड़ों लोगों को रोजगार देना हो, केंद्र सरकार की नीतियां युवाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं। भारत में रोजगार देने के मामले में जो सरकारी आंकड़े, रिसर्च और सर्वे प्राप्त हुए हैं, उससे चौंकाने वाली जानकारी हासिल हुई है। पिछली सरकार ने 10 सालों में जितना रोजगार दिया है, उसके कई गुना रोजगार नरेंद्र मोदी सरकार की सिर्फ एक योजना ने चार साल में ही दे दिया है। जनवरी 2014 में प्रकाशित एनएसएसओ के सर्वेक्षण के अनुसार यूपीए सरकार के शासन में 2004-05 से जनवरी 2012 तक 5 करोड़ 30 लाख रोजगार सृजित हुए। जबकि सिर्फ मुद्रा लोन से 3 साल में 13 करोड़ लोगों को रोजगार मिला। यही नहीं सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक यूपीए के दो टर्म से पहले वाजपेयी सरकार में भी नौकरियां की बहार रही। सर्वेक्षण के मुताबिक 1999-2000 से 200304 के दौरान एनडीए की सरकार के दौरान इससे अधिक 6 करोड़ रोजगार सृजित हुए थे। 22 मई, 2018 को नीति आयोग द्वारा जारी आंकड़े मोदी सरकार द्वारा रोजगार दिए जाने की स्पष्ट तस्वीर पेश करते हैं। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के अनुसार पिछले सात महीने में देश में 39.36 लाख नए लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं। ईपीएफओ के अनुसार सिर्फ मार्च, 2018 में ही नए रोजगार के 6.13 लाख मौके बने फरवरी में नए रोजगार के 5.89 लाख अवसर पैदा हुए थे। रोजगार के ये आंकड़े सभी आयु वर्ग के हिसाब से भविष्य निधि खाते में योगदान करने वाले सदस्यों के हैं। इन आंकड़ो से स्पष्ट है कि सरकार युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के प्रति बेहद गंभीर है और उसका इस दिशा में प्रयास निरंतर जारी है।
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मैं
आम तौर पर योग के लाभों के बारे में बात नहीं करता क्योंकि मैं समझता हूं कि योग के सभी महान लाभ उसकी प्रतिक्रिया हैं। शुरू में लोग योग की तरफ इसीलिए आकर्षित होते हैं, क्योंकि उससे विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य लाभ होते हैं और तनाव से मुक्ति मिलती है। निश्चित रूप से शारीरिक और मानसिक लाभ हैं- लोग शारीरिक और मानसिक बदलाव का अनुभव कर सकते हैं। ऐसे कई लोग हैं जिन्हें अपने पुराने रोगों से चामत्कारिक रुप से मुक्ति मिली है। शांति, प्रसन्नता और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से योग से निश्चित रूप से कई लाभ हैं लेकिन योग की यह विशेष प्रकृति नहीं है। योग के बारे में असली चीज यह है कि यह आपको जीवन का बड़ा अनुभव देता है और एक व्यक्ति होने के अपेक्षाकृत आप एक सार्वभौमिक प्रक्रिया के अंग बन जाते हैं। आप देखेंगे कि इससे अनोखे परिणाम आपको प्राप्त होंगे। योग के बारे में जब पहली बार उसके भौतिक आयाम की जानकारी दी जाती है और तब यह बताया जाता है कि मानव प्रणाली इस अंतरिक्षीय ज्यामिति से कितनी भिन्न है। हम रचना की ज्यामिति की बात करते हैं। अगर आप ज्यामिति की सही जानकारी रखते हैं और उसमें प्रवीण होते हैं तब सारा टकराव समाप्त हो जाता है। आंतरिक टकराव का अर्थ होता है कि आप अपने विरुद्ध काम कर रहे हैं। यानी आप अपने आप में एक समस्या हैं। जब आप स्वयं एक समस्या हैं तब अन्य समस्याओं से आप कैसे मुकाबला करेंगे? सबकुछ तनावपूर्ण है। आप अपने जीवन में स्वयं समस्या न बनें। यदि आपके पास अन्य समस्याएं हैं तो उन पर बात करते हैं। विश्व में तमाम तरह की चुनौतियां मौजूद हैं। आप जितनी गतिविधियां करेंगे उतनी चुनौतियां आएंगी और यह सिलसिला
चलता रहेगा। लेकिन आपका शरीर, मस्तिष्क, भावनाएं, ऊर्जा आपके जीवन की बाधाएं नहीं बननी चाहिए। अगर इन सबको ठीक से दुरुस्त कर दिया जाए तो आपका शरीर और मन ऐसे-ऐसे काम करने में सक्षम हो जाएगा जिसके बारे में आपने कभी कल्पना नहीं की होगी। अचानक लोग समझने लगेंगे कि आप महामानव बन गए हैं। अगर आप ज्यामिति से तालमेल बिठा लेते हैं तब चाहे व्यापार हो, घर हो, प्रेम हो, युद्ध हो, जो कुछ भी हो आप एक ऊंचे स्तर की कुशलता और क्षमता के साथ ये सारे काम कर पाएंगे। ऐसा इसीलिए है कि चाहे चेतनावस्था हो या अवचेतनावस्था, सब ज्यामिति का काम है। आम तौर पर यह कोई चीज समझने जैसी है, लेकिन सैद्धांतिक रुप से यह अस्तित्व की ज्यामिति है। सही ज्यामिति प्राप्त होने से आप सही दिशा में अग्रसर हो जाएंगे। योग का अर्थ है जीवन की प्रणाली। इसके तहत यह समझना है कि जीवन की प्रणाली कैसे बनती है और उसका इस्तेमाल उलझन के लिए नहीं, बल्कि मुक्त होने के लिए कैसे किया जा सकता है। अब शरीर को कैसे स्थिर किया जाए? शरीर को स्थिर करना सीखना आसान नहीं है। आपको याद होगा कि 70 और 80 के दशक में जब आपके घरों में टेलीविजन पहुंचा था तो आपके घर के ऊपर एल्युमीनियम का एंटीना लगा होता था। जब उसे कायदे से दुरुस्त किया जाता था, तो आपके बैठक में पूरी दुनिया चली आती थी क्योंकि आपने उसे सही दिशा दे दी थी। इसी प्रकार इस शरीर में अपार क्षमताएं हैं यदि आप इसे सही दिशा देंगे तो आप पूरे ब्रह्मांड को उतार लेंगे। यही योग है। योग का अर्थ है जोड़ना। जुड़ने का मतलब है कि व्यक्ति
योग का अर्थ है जोड़ना। जुड़ने का मतलब है कि व्यक्ति और ब्रह्मांड के बीच का अंतर समाप्त हो जाता है। तब कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है, कुछ भी सार्वभौमिक नहीं है, सब कुछ आप ही हैं- यानी आप योग में हैं
18 - 24 जून 2018 और ब्रह्मांड के बीच का अंतर समाप्त हो जाता है। तब कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है, कुछ भी सार्वभौमिक नहीं है, सब कुछ आप ही हैं- यानी आप योग में हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि आपने किसी चीज की कल्पना की, बल्कि इसका अर्थ यह है कि आपने क्या अनुभव किया। अनुभव तभी होता है जब आप सही दिशा में हों, अन्यथा वह नहीं होगा। इस शरीर को स्थिर करना सीखने का मतलब आप अपने एंटीना को सही दिशा में दुरुस्त कर रहे हैंअगर आप सही दिशा में स्थिर रहेंगे तो पूरा अस्तित्व आपके भीतर उतर आएगा। यह योग अनुभव का एक जबरदस्त उपकरण है। योग का अर्थ एक विशेष अभ्यास करना यह अपने शरीर को हिलाना डुलाना नहीं है। योग का अर्थ है अपने उच्च स्वभाव तक पहुंचने के लिए उपयोग किया गया कोई भी तरीका। आप जो टेक्नोलॉजी उपयोग में लाते हैं उसे योग कहा जाता है। जीवन में योग क्यों आवश्यक है? निश्चित रूप से इसका शारीरिक लाभ है। यह एक व्यक्ति के लिए बहुत कुछ है। इससे व्यक्ति अपना स्वास्थ्य सुधार सकते हैं और अपने शरीर को और लचीला बना सकते है। लेकिन एक स्वस्थ्य शरीर के साथ भी जीवन में अस्थिरता बनी रहेगी। इस ग्रह पर अस्वस्थ और दयनीय लोगों से अधिक संख्या में स्वस्थ और दुखी लोग हैं। यदि आपको बीमारी है तो कम से कम आपके पास एक अच्छा बहाना है। अधिकतर लोगों के पास तो यह भी नहीं। योग के साथ शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक खुशी मिलेगी। लोग सरल योग प्रक्रियाओं से अनूठा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन इससे जीवन में स्थिरता नहीं आती। जब तक आप का अस्तित्व है मानव के सभी पक्षों को जाने बिना तब तक आप एक संघर्षपूर्ण सीमित जीवन जिएंगे। एक बात मानव शरीर और बुद्धि के साथ इस विश्व में आने पर आप जीवन के सभी पक्षों को ढूंढ़ने में सक्षम होते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो व्यक्ति को कष्ट होता है क्योंकि यह शरीर तक सीमित होता है और अन्य पक्षों के अनुभवों से वंचित है। यह जीवन की प्रकृति है। आप जैसे ही इसे रोकते है यह संघर्ष करता है। योगा के विषय में वास्तविक बात यह है कि योग आपको संपूर्ण समावेशी बनाता है। यह आपके जीवन के अनुभव को इतना व्यापक और संपूर्ण समावेशी बनाता है कि आप व्यक्ति के बदले एक सार्वभौमिक प्रक्रिया हो जाते हैं जोकि प्रत्येक मनुष्य के रूप में मौलिक रूप में निहित है। आप जहां कहीं भी होंगे आप अभी जो कर रहे हैं उससे अधिक करना चाहेंगे। यह बात मायने नहीं रखती कि आपकी सोच शीर्ष पर है अथवा नीचे है फिर भी आप जो हैं उससे अधिक होना चाहते हैं। यदि थोड़ा बहुत कुछ होता है तो आप चाहते हैं कि कुछ और हो, कुछ और हो। यह क्या है जो आप चाहते हैं। आप सीमा रहित विस्तार चाहते हैं। यह सीमा रहित विस्तार शारीरिक साधनों से नहीं हो सकता है। शारीरिक साधन एक निश्चित सीमा है। यदि आप सीमा हटाते हैं तो कुछ भी शारीरिक नहीं बचता। यह सीमाहीनता तभी संभावना बनती है जब एक पक्ष शरीर से बहार निकलकर आपके साथ एक जीवंत वास्तविकता बन जाता है।
ओशो
लीक से परे
अहिंसा और प्रेम
अहिंसा शब्द की नकारात्मकता ने बहुत सारी भ्रांति को जन्म दिया है। यह शब्द तो नकारात्मक है पर अनुभति ू नकारात्मक नहीं है। यह अनुभति ू शुद्ध प्रेम की है
मैं
0/2241/2017-19
डाक पंजीष्यन नंबर-DL(W)1
08 वष्यक्तितव
पष्या्षवरण के लोकतंत्र की रचयष्यता
गरीबी से संघर्ष सवच्छता का लक्ष्य
10
पगुसतक अंश
राजपथ बना योगपथ
26 कही-अनकही
29
आज जाने की यजद न करो...
harat.com
sulabhswachhb
ऊजा्ष और चेतना का ष्योग वर्ष-2 | अंक-26 | 11
आरएनआई नंबर-DELHIN
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महान दार्शनिक और विचारक
अहिंसा पर बहुत विचार करता था। जो कुछ उस संबंध में सुनता था, उससे तृप्ति नहीं होती थी। वे बातें बहुत ऊपरी होती थीं। बुद्धि तो उनसे प्रभावित होती थी, पर अंतस अछूता रह जाता था। धीरे-धीरे इसका कारण भी दिखा। जिस अहिंसा के संबंध में सुनता था, वह नकारात्मक थी। नकार बुद्धि से ज्यादा गहरे नहीं जा सकता है। अहिंसा, हिंसा को छोड़ना ही हो, तो वह जीवनस्पर्श नहीं हो सकती है। वह किसी को छोड़ना नहीं, किसी की उपलब्धि होनी चाहिए। वह त्याग नहीं, प्राप्ति हो, तभी सार्थक है। अहिंसा शब्द की नकारात्मकता ने बहुत सारी भ्रांति को जन्म दिया है। यह शब्द तो नकारात्मक है, पर अनुभूति नकारात्मक नहीं है। यह अनुभूति शुद्ध प्रेम की है। प्रेम राग हो तो अशुद्ध है, प्रेम राग न हो तो शुद्ध है। राग-युक्त प्रेम किसी के प्रति होता है, राग-मुक्त प्रेम सबके प्रति होता है। सच यह है कि वह किसी के प्रति नहीं होता है। प्रेम के दो रूप हैं। प्रेम संबंध हो तो राग होता है। प्रेम स्वभाव हो, स्थिति हो तो, वीतराग होता है। यह वीतराग प्रेम ही अहिंसा है। प्रेम के संबंध से स्वभाव में परिवर्तन अहिंसा की साधना है। वह हिंसा का त्याग नहीं, प्रेम का स्फुरण है। इस स्फुरण में हिंसा तो अपने आप छूट जाती है, उसे छोड़ने के लिए अलग से कोई आयोजन नहीं करना पड़ता है। जिस साधना में हिंसा को भी छोड़ने की चेष्टा करनी पड़े वह साधना सत्य नहीं है। प्रकाश के आते ही अंधेरा चला जाता है। यदि प्रकाश
सवच्छता
खुला मंच
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- 17 जून 2018
र गयतयवयधष्यों द्ारा खासतौ ईशा फाउंडेशन की यवयवध का अहसास कराते हुए पर ष्योग और धष्यान की ऊजा्ष श-समाज से आगे पूरी दे सद्गुरु जगगी वासगुदेव ने ताजगी से भर यदष्या है। इस दगुयनष्या को अधष्यातम की नई वहीं मनगुषष्य के यलए कई है, ताजगी में जहां प्रकृयत प्रेम हैं कलष्याणकारी काष्य्षक्रम भी
ए
एसएसबी बष्यूरो
जीवन के सभी क मनुष्य के लिए उसके सव्यं को प्र्यासों में से सबसे पावन प्र्यास, करना तररत एक उच्चतर संभावना में रूपां मनुष्य होने के उद्ेश्य है। ्यही वह प्र्यास है, जो वह प्र्यास है जो सभी को पूरा करता है तथा ्यही है। ईशा फाउंडेशन का के जीवन में कुशिता िाता सवाभालवक इस की र द अं के मूि उद्ेश्य मनुष्य और पोलित करना और खोज को प्रेररत, प्रोतसालहत को पहचानने में व्यक्ति को अपनी परम क्षमता उसकी सहा्यता करना है।
ईशा फाउंडेशन की स्ापना द्ारा सथालपत ईशा
देव 1992 में सद्ुरु जग्ी वासु लवकास के लिए पूर्ण फाउंडेशन मानव क्षमता के अंतरराष्टी्य िाभ-रलहत समलप्णत, एक सव्यंसेवी, एवं इसके सलरि्य एवं संसथा है। ्यह फाउंडेशन लवलभन्न ्लतलवलि्यां समलप्णत सं्ठन तथा इसकी दा्य के पुनरुतथान के मानव सशतिीकरर और समु सफि आदश्ण के रूप लिए लवश्व के सामने एक में प्रसतुत है। पव्णत की तिहटी तलमिनाडु में वेक्लि्यांल्रर । ध्यानलिं् ्यो् मंलदर, में ईशा ्यो् केंद्र सथालपत है , चंद्र कुंड, अलद्यो्ी लिं् भैरवी मंलदर, सू्य्ण कुंड
के आने पर भी उसे अलग करने की योजना करनी पड़े तो जानना चाहिए कि जो आया है, वह और कुछ भी हो, पर कम-से-कम प्रकाश तो नहीं है। प्रेम पर्याप्त है। उसका होना ही, हिंसा का न होना है। प्रेम क्या है... जिसे प्रेम करके जाना जाता है, वह राग है और अपने-आप को भुलाने का उपाय है। मनुष्य दुख में है और अपने-आप को भूलना चाहता है। तथाकथित प्रेम के माध्यम से वह स्वयं से दूर चला जाता है। वह किसी और में अपने को भुला देता है। प्रेम मादक द्रव्यों का काम कर देता है। वह दुख से मुक्ति नहीं लाता, केवल दुखों के प्रति मूर्च्छा ला देता है। इसे मैं प्रेम का संबंध-रूप कहता हूं। वह वस्तुतः प्रेम नहीं, प्रेम का भ्रम ही है। प्रेम का यह भ्रम-रूप दुख से उत्पन्न होता है। दुखानुभव व्यक्ति चेतना को दो दिशाओं में ले जा सकता है। एक दिशा है उसे भूलने की, और एक दिशा है उसे
प्रभावशाली प्रकाशन ‘सुलभ स्वच्छ भारत’ समाचार पत्र से हम तीन महीना पहले ही जुड़े हैं। इस अखबार ने हमें काफी प्रभावित किया है। जब से हमने सुलभ स्वच्छ भारत को पढ़ना शुरू किया है तब से मैं इसका नियमित पाठक बन गया हूं। नए अंक में सद्गुरु जग्गी वासुदेव के बारे में जो प्रकाशित हुआ है, वह काफी प्रभावशाली है। सद्गुरु के प्रयासों से योग को उसका उचित स्थान मिल रहा है। योग वास्तव में हम सबके लिए बहुत जरूरी है। बेहतर जीवन की कल्पना योग के बिना नहीं की जा सकती है। उम्मीद है कि सुलभ स्वच्छ भारत हमें ऐसे ही महत्वपूर्ण जानकारियां हम सब तक पहुंचाता रहेगा। नरेश कुमार, मेरठ, उत्तर प्रदेश
विसर्जित करने की। जो दुख विस्मृति की दिशा पकड़ता है, वह जाने-अनजाने किसी न किसी प्रकार की मादकता और मूर्च्छा की खोज करता है। दुख-विस्मरण में आनंद का आभास ही हो सकता है, क्योंकि जो है उसे बहुत देर तक भूलना असंभव हो सकता है। यह आभास ही सुख है। निश्चय ही यह सुख बहुत क्षणिक है। साधारण रूप से प्रेम नाम से जाना जानेवाला प्रेम ऐसे ही मूर्च्छा और विस्मरण की चित्तस्थिति है। वह दुख से उत्पन्न होता है और दुख को भुलाने के उपाय से वह ज्यादा नहीं है। मैं जिस प्रेम को अहिंसा कहता हूं वह आनंद का परिणाम है। उससे दुख-विस्मरण नहीं होता है, वरन उसकी अभिव्यक्ति ही दुख-मुक्ति पर होती है। वह मादकता नहीं, परिपूर्ण जागरण है। जो चेतना दुखविस्मरण नहीं, दुख-विसर्जन की दिशा में चलती है, वह उस संपदा की मालिक बनती है, जिसे प्रेम कहते हैं। भीतर आनंद हो तो बाहर प्रेम फलित होता है। वस्तुतः जो भीतर आनंद है, वही बाहर प्रेम है। वे दोनों दो नहीं हैं, वरन एक ही अनुभूति की दो प्रतीतियां हैं। वे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। आनंद स्वयं को अनुभव होता है। प्रेम जो निकट आते हैं, उन्हें अनुभव होता है। आनंद केंद्र है, तो प्रेम परिधि है। ऐसा प्रेम संबंध नहीं, स्वभाव है। जैसे सूरज से प्रकाश निसृत होता है, ऐसे ही वह स्वयं से निसृत होता है। प्रेम के इस स्वभाव और रूप में कोई बाह्य आकर्षण नहीं, आंतरिक प्रवाह है। उसका बाहर से न कोई संबंध है, न कोई अपेक्षा है। वह बाहर से मुक्त और स्वतंत्र है। इस प्रेम को मैं अहिंसा कहता हूं।
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18 - 24 जून 2018
योगमय दुनिया
योग एक आध्यात्मिक क्रिया है, एक विशिष्ट जीवन पद्धति, जो सदियों से भारतीय जीवन परंपरा का अभिन्न हिस्सा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी योग का उपहार पूरी दुनिया को दिया। जब पूरा विश्व एक साथ सूर्य नमस्कार करता है, तब भारतीय आध्यात्मिक चेतना का प्रकाश और तेजोमय हो जाता है
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योग न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है, बल्कि यह एक शांत और निर्मल जीवन भी हर किसी को उपलब्ध कराता है। आज के प्रदूषित समय में निर्मल मन और निरोगी तन की कल्पना को योग ही साकार कर सकता है
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योग विशेष
18 - 24 जून 2018
योग से अवसाद का निदान
बोस्टन यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के एक अध्ययन के अनुसार यदि व्यक्ति सप्ताह में दो बार उपयुक्त उपकरणों के साथ योग करता है और इसका अभ्यास घर पर भी करता है, तो इससे उसके जीवन में अवसाद कम होंगे
खास बातें
योग मस्तिष्क तथा भावनाओं का विज्ञान है विश्व स्तर पर भारत में अवसाद बढ़ने की दर सबसे ज्यादा है अवसाद में सबसे प्रभावी आसन उर्ध्व धनुरासन और विपरीत दंडासन
वि
राजवी एच. मेहता
श्व स्वास्थ्य संगठन के विश्व मानसिक स्वास्थ्य सर्वे 2011 पर आधारित एक अध्ययन के अनुसार विश्व स्तर पर भारत में अवसाद की दर सबसे ज्यादा है। अधिक चिंताजनक स्थिति यह है कि सभी आयु के लोग, किशोर से लेकर प्रौढ़ तक, अवसाद से ग्रस्त हो रहे हैं। यह सभी आर्क थि पृष्टभूमि वाले लोगों को प्रभावित कर रहा है। चाहे एक अभावग्रस्त व्यक्ति जो एक शाम के भोजन के लिए जद्दोजहद कर रहा हो या एक अमीर व्यक्ति जो विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा हो। इससे भी चिंताजनक बात यह है कि अवसाद ग्रस्त व्यक्ति भावनात्मक रूप से कमजोर मानसिक स्थिति में अपना जीवन ही समाप्ति करने का निर्णय ले लेता है। भारत में किशोरों और युवाओं में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृति ने यह इस बात को रख े ांकित किया है कि इस बीमारी पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए। किसी व्यक्ति में अवसाद का प्रांरभ बहुत छोटी व तुच्छ चीजों से भी हो सकता है। जैसे कक्षा में प्रथम न आ पाना, परीक्षा में मनचाहे अंक प्राप्त न कर पाना आदि। अवसाद के कुछ गंभीर कारण भी हो सकते हैं, जैसे कोई व्यक्ति अपने किसी अंग के पक्षाघात से ग्रस्त हो। कैंसर तथा मानसिक असंतल ु न जैसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त लोगों को भी अवसाद हो सकता है। इसे द्वितीयक अवसाद कहते हैं। ऐसे लोगों में अवसाद धीर-े धीरे कम हो जाता है, जो गंभीर बीमारी से लड़ना सीख जाते हैं या उनका सफल इलाज हो जाता है। घटना और वजह जिससे अवसाद होता है को अलग रखते हुए अवसाद का मूलभूत लक्षण बहुत ही सामान्य है। एक अवसाद ग्रस्त व्यक्ति कंधे को उचकाता है, छाती को सिकोड़ता है, भावनात्मक रूप से कमजोर दिखता है तथा उसमें जीवन के प्रति
अलगाव और गैर जवाबदेही दिखाई पड़ती है। कई मामलों में अवसाद अपने आप ही धीर-े धीरे कम होने लगता है। वहीं कुछ मामलों में यह काफी लंबे समय तक जारी रहता है। योग वास्तव में मस्तिष्क तथा भावनाओं का विज्ञान है और इसीलिए अवसाद के लक्षणों को दूर करने के लिए यह एक महान वरदान है। अवसाद के मामलों में जिस चीज की तुरतं आवश्यकता होती है, वह है व्यक्ति को लक्षण के अनुरूप आराम पहुंचाना। किसी व्यक्ति की मानसिक स्थिति और भावनाएं उसकी शारीरिक मुद्रा में प्रतिबिंबित होती हैं। यदि शारीरिक मुद्रा में कोई संशोधन होता है, तो यह व्यक्ति के भावनात्मक क स्थिति में बदलाव ला सकता है। यहीं पर योग की शारीरिक मुद्रा (आसन) अवसाद ग्रस्त व्यक्ति की मदद कर सकती है। यह
प्रभाव क्षणिक हो सकता है, परंतु जब एक निश्चित समय तक इसका निरंतर अभ्यास किया जाता है, तो यह व्यक्ति में परिवर्तन ला सकता है और अवसाद से मुक्ति दिला सकता है। विभिन्न आसनों में सबसे प्रभावी ऊर्ध्व धनुरासन और विपरीत दंडासन हैं। इसमें कंधे को पीछे ले जाया जाता है, जिससे छाती खुलती है और इस प्रकार यह अवसाद की मुद्रा का प्रतिकार करता है। हालांकि कोई व्यक्ति इन आसनों को तुरतं ही नहीं कर सकता, क्योंकि इसमें रीढ़ की हड्डी को पीछे की ओर वलय रूप में मुड़ने लायक होना चाहिए। यही कारण है कि खड़ी मुद्रा वाले आसन जैसे त्रिकोणासन, पार्श्वलकोणासन और अर्धचंद्रासन इस प्रकार सहायता प्रदान करते है कि इससे रीढ़ मजबूत होती है और एक व्यक्ति पीछे की ओर झुक जाता है।
अवसाद के प्रकार
रोगजन्य और शरीरजन्य अवसाद : यह किसी दूसरी बीमारी (गंभीर व जीवन पर्यंत चलने वाली) या किसी इलाज के कारण होती है।
उम्मीद या विफलता आधारित अवसाद : यह उस स्थिति में होता है, जब कोई अपनी उम्मीद पूरी नहीं कर पाता। उदाहरण के लिए एक विद्यार्थी या एक खिलाड़ी जो किसी परीक्षा या खेल में आशा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाता। यह क्षणिक होता है, परंतु उन्हें इससे बाहर निकलने की आवश्यकता है, ताकि उनका अगला प्रदर्शन प्रभावित न हो।
भावनात्माक अवसाद : यह भावनात्मक जुड़ाव के टूटने पर होता है। उदाहरण के लिए दो व्यक्ति जो एक दूसरे के अत्यधिक नजदीक हैं, तो किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु या शोक से भी अवसाद हो सकता है।
अहम केंद्रित अवसाद: अवसाद का यह प्रकार उन लोगों में होता है, जो उच्च अधिकार प्राप्त तथा उच्च पद/स्थिति में जीवन बिताते हैं और जब वे पाते हैं कि अब इसके अधिकारी नहीं है। आमतौर पर यह बीमारी तब होती है, जब लोग अवकाश प्राप्त करने के करीब होते हैं।
जैसा कि पहले कहा गया है कि आसन प्रभावी होते हैं, परंतु जब हम अवसाद ग्रस्त होते हैं, तो हमारी इच्छा शक्ति और संकल्प हमसे दूर हो जाते हैं। किसी कार्य को पूरा करने की हमारी इच्छा अपने निम्नस्तर पर होती है। ऐसी स्थिति में विख्यात योगाचार्य वी.के. एस. अयंगर ने व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव दिया। उन्होंने घरेलु मुड़ने वाली कुर्सी का उपयोग किया, ताकि एक व्यक्ति आसानी से विपरीत दंडासन कर सके, जिससे उसके मन और मस्तिष्क। में परिवर्तन संभव हो सके। अवसाद के लक्षणों को समाप्त करने में उलट आसन सहायता करते हैं। इन उलट आसनों के अंतर्गत अधोमुख वृक्षासन, पिंच मयूरासना, शीर्षासन, सर्वांगासन और सेतु बंध सर्वांगासन आते हैं। इन सभी आसनों को करते समय हमारा मस्तिष्क हृदय से नीचे होता है। अवसाद ग्रस्त व्यक्ति आंतरिक भय से पीड़ित होता है, ये आसन आंतरिक भय जैसे किसी वस्तु, व्यक्ति के खोने का डर, असफलता का भय और शक्तिहीन होने के डर से हमें मुक्ति दिलाते हैं। बोस्टन यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के एक अध्ययन के अनुसार जो व्यक्ति सप्ताह में दो बार उपयुक्त उपकरणों के साथ योग करता है और इसका अभ्यास घर पर भी करता है, तो इससे उसे अवसाद के लक्षणों को कम करने में मदद मिलेगी। प्रत्येक आसन में सांस लेने की विशेष प्रक्रिया होती है। एक व्यक्ति को इसे गंभीरतापूर्वक देखना चाहिए और सांस के प्रति अपने मन में जागरुकता का विकास करना चाहिए। सांस की जागरुकता के साथ जब आसन किए जाते हैं, तो अभ्यास करने वाला व्यक्ति आसन के साथ एकीकृत हो जाता है। इसमें सांस छोड़ने की प्रक्रिया लंबी हो जाती है और इससे तनाव भी बाहर निकल आता है। इसी प्रकार जब हम गहरी सांस लेते हैं, तो हममें साहस की भावना मजबूत होती है। (लेखिका अयंगर योगश्रया, मुबं ई में वरिष्ठ अयंगर योग शिक्षिका हैं।)
18 - 24 जून 2018
जेंडर
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तोरुलता
बच्चों ने किया बेबस
तोरुलता के पति की मौत उसके लिए चौंकाने वाली नहीं थी, लेकिन जो बाद में हुआ वह जरूर चौंकाता है
उ
स्वस्तिका त्रिपाठी
सकी उम्र14 वर्ष थी और वह 50 वर्ष का था। उसका, उस ढलती उम्र के व्यक्ति से विवाह हो गया। उसको शायद उस वक्त पता था कि ऐसा हो सकता है और ऐसा हुआ भी। वह जल्द ही विधवा हो गई। पश्चिमी बंगाल के बालुरघाट की तोरुलता लंबे समय से विधवा हैं। उनके उम्रदराज पति को समय के साथ सांस की बीमारी ने घेर लिया और फिर उनकी मौत हो गई। उनके एक बेटी थी और दो बेटे थे। उनके तीनों बच्चों की शादी पिता के मरने से पहले ही हो गई थी। तोरुलता कहती हैं कि यद्दपि उनके पति की मृत्यु हो गई थी, लेकिन वह अपनी सभी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को निभा चुके थे और इसीलिए उसके ऊपर अब कोई भार नहीं था।” वह बताती हैं, "मुझे हम दोनों की उम्र के बड़े अंतर के बारे में पता था। वह लंबे समय से सांस की बीमारी से पीड़ित थे। मुझे यह पता था कि जल्द ही या कुछ समय बाद, उनकी मौत हो जाएगी और
खास बातें 14 साल की तोरुलता की शादी 50 साल के व्यक्ति से हुई पति की मृत्यु के बाद, वह अपने बच्चों पर आश्रित थी तोरुलता को बच्चों ने नहीं दिया कोई सहारा
मैं विधवा बन जाउंगी। इसीलिए यह मेरे लिए एक बड़ा झटका नहीं था। हां, यह बहुत दर्दनाक था, लेकिन मैं लड़ने की कोशिश कर रही थी। तोरुलता अपने पति को खोने के दर्द से जल्द ही संभल गईं, क्योंकि उन्हें भरोसा था कि उसके बच्चे उसके पति के न रहने पर उसकी देखभाल करेंगे और कभी उसे अकेला नहीं महसूस होने देंगे। वे उसका वैसा ही ख्याल रखेंगे, जैसा जीवन उसने अपने पति के साथ बिताया था। लेकिन जीवन इतना आसान नहीं है। कहा जाता है कि जिन पर आप सबसे अधिक भरोसा और विश्वास करते हैं, वही आपको सबसे अधिक चोट पहुंचाते हैं। यही, तोरुलता के साथ हुआ। पिता की मृत्यु के बाद, दोनों बेटों और उनकी पत्नियों ने तोरुलता को भार के रूप में देखना शुरू कर दिया। अब वह परिवार में एक अवांछित व्यक्ति थी, क्योंकि वह विधवा हो चुकी थी। इन सबसे ऊपर, वह अब इतनी बूढी हो चुकी थी कि घर के किसी काम नहीं आ सकती थी, और इसने उसे एक बड़ा बोझ बना दिया। तोरुलता को धक्का सा लगा। उसने सोचा कि उसके पास बहुत से लोग हैं, लेकिन इसके विपरीत, उसके साथ अब कोई नहीं था। उसके साथ सिर्फ असभ्यों जैसा व्यवहार ही नहीं होता था। वे उसे मारते थे, गालियां देते थे और तब तक नहीं रुकते थे जब तक कि वह दयनीय स्थिति में नहीं पहुंच जाती थी। तोरुलता सुबकते हुए बताती हैं, "मुझे अक्सर पीटा जाता था। वे सब साथ खाना खाते थे और जब मैं अपने लिए भोजन मांगती थी, तो मुझे इसे खुद बनाने के लिए कहा जाता था। जब मैं कहती थी कि मैं बुजुर्ग हूं और मुझे सहायता चाहिए तो वे मुझसे कहते थे कि मैं किसी काम की नहीं हूं और मुझे खूब पीटा जाता था। मेरे बेटे, बहू, पोते कोई भी दया नहीं दिखाता था।"
‘जब मैंने घर छोड़ा, तो मुझे नहीं पता था कि जो मैं कर रही हूं वह गलत है या सही। लेकिन अब मुझे लगता है, जो मैंने किया वह सही था’ निरंतर अपमान और शारीरिक दुर्व्यवहार ने उन्हें शारीरिक और भावनात्मक दोनों रूप से चोट पहुंचाई। तोरुलता ने पहले से पवित्र शहर वृंदावन के बारे में सुना था, लेकिन अब तक के जीवन में उन्होंने कभी भी नहीं सोचा था कि वह भविष्य में इस शहर को अपना घर बुलाएंगी। इतना सब कुछ झेलने के बाद, उन्होंने वृंदावन जाने का फैसला किया। वृंदावन आने वाली कई अन्य विधवाओं की तरह, वह भी पहले मीराबाई आश्रम गईं। वहां उन्होंने दिन में दो बार भजन किया, जिसके बदले में उन्हें 10 रुपए (5 रुपए सुबह और 5 रुपए शाम) और प्रसाद भोजन के रूप में मिला। आज, तोरुलता, सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन द्वारा संचालित विधवा आश्रम तुलसीवन में रहती हैं, जहां वह दो साल पहले आई थीं। वह, यहां एक सामान्य जीवन जी रही है। वह बताती हैं, "जब मैंने घर छोड़ा, तो मुझे
नहीं पता था कि जो मैं कर रही हूं वह गलत है या सही। मैं बस सभी यातनाओं और दुर्व्यवहार से दूर जाना चाहता थी। मैंने अपने बुरे से बुरे सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरे अपने बच्चे मुझे ऐसे घाव देंगे कि मै अपने घर से बेघर हो जाउंगी। लेकिन अब मुझे लगता है, जो मैंने किया वह सही था। अब मैं लाल बाबा (डॉ. विन्देश्वर पाठक) की शरण में हूं। मेरे सिर पर छत है, जीवन में आराम, आत्मा के लिए भोजन है। लाल बाबा हमें दिवाली पर कपड़े उपहार में देते हैं।" वह मुस्कुराते हुए कहती हैं, "मेरे जीवन में कुछ चीजें उम्मीदों के अनुरूप और कई अप्रत्याशित मोड़ लेकर आईं। लेकिन अब यह एक सीधी और चिकनी सड़क है। अब वृंदावन ही मेरा सच्चा घर है और यह घर बहुत शांतिपूर्ण है। मुझे खुशी है कि मेरे अंदर यहां आने का साहस था। जिंदगी अब सही चल रही है।"
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व्यक्तित्व
18 - 24 जून 2018
लियो टॉलस्टॉय
य
खास बातें
महात्मा गांधी
दि टॉलस्टॉय और रस्किन के बीच चुनाव की बात हो और दोनों के जीवन के विषय में मैं और अधिक बातें जान लूं, तो नहीं जानता कि उस हालत में प्रथम स्थान किसे दूंगा। टॉलस्टॉय के जीवन में मेरे लिए दो बातें महत्वपूर्ण थीं। वे जैसा कहते थे, वैसा ही करते थे। उनकी सादगी अद्भुत थी, बाह्य सादगी तो उनमें थी ही। वे अमीर वर्ग के व्यक्ति थे, इस जगत के सभी भोग उन्होंने भोगे थे। धन-दौलत के विषय में मनुष्य जितने की इच्छा रख सकता है, वह सब उन्हें मिला था। फिर भी उन्होंने भरी जवानी में अपना ध्येय बदल डाला। दुनिया के विविध रंग देखने और उनके स्वाद चखने पर भी, जब उन्हें प्रतीत हुआ कि इसमें कुछ नहीं है तो उनसे उन्होंने मुंह मोड़ लिया और अंत तक अपने विचारों पर डटे रहे। इसी से मैंने एक जगह लिखा है कि टॉलस्टॉय इस युग के सत्य की मूर्ति थे। उन्होंने सत्य को जैसा माना तद्नुसार चलने का उत्कट प्रयत्न किया। सत्य को छिपाने या कमजोर करने का प्रयत्न नहीं किया। लोगों को दुख होगा या अच्छा लगेगा, शक्तिशाली सम्राट को पसंद आएगा या नहीं, इसका विचार किए बिना ही उन्हें जो वस्तु जैसी दिखाई दी, उन्होंने वैसा ही कहा।
टॉलस्टॉय अपने युग में अहिंसा के बड़े समर्थक थे टॉलस्टॉय की तरह खरी-खरी सुनाने वाले कम ही मिलते हैं ‘कला क्या है?’ को टॉलस्टॉय ने अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति माना है
अहिंसा यानी प्रेम का समुद्र
अहिंसा का साहित्य और दर्शन
टॉलस्टॉय अपने युग में अहिंसा के बड़े समर्थक थे। जहां तक मैं जानता हूं, अहिंसा के विषय में पश्चिम के लिए जितना टॉलस्टॉय ने लिखा है, उतना मार्मिक साहित्य दूसरे किसी ने नहीं लिखा। उससे भी आगे जाकर कहता हूं कि अहिंसा का जितना सूक्ष्म दर्शन और उसका पालन करने का जितना प्रयत्न टॉलस्टॉय ने किया था, उतना प्रयत्न करनेवाला आज हिंदुस्तान में कोई नहीं है और न मैं ऐसे किसी आदमी को जानता हूं। यह स्थिति मेरे लिए दुखदायक है, यह मुझे नहीं भाती। हिंदुस्तान मेरी कर्मभूमि है। हिंदुस्तान में ऋषि-मुनियों ने अहिंसा के क्षेत्र में बड़ी-बड़ी खोजें की हैं। परंतु पूर्वजों की उपार्जित पूंजी पर हमारा निर्वाह नहीं हो सकता। उसमें यदि वृद्धि न की जाए तो वह समाप्त हो जाती है।
रानाडे की सलाह
वेदादि साहित्य या जैन साहित्य में से हम चाहें जितनी बड़ी-बड़ी बातें करते रहें या सिद्धांतों के विषय में चाहे जितने प्रमाण देकर दुनिया को आश्चर्यचकित करते रहें, फिर भी दुनिया हमें सच्चा नहीं मान
धन-दौलत के विषय में मनुष्य जितने की इच्छा रख सकता है, वह सब उन्हें मिला था। फिर भी उन्होंने भरी जवानी में अपना ध्येय बदल डाला
प्रेम और अहिंसा को समर्पित शब्द और जीवन ‘टॉलस्टॉय अपने युग में सत्य की मूर्ति थे। उन्होंने सत्य को जैसा माना तद्नुसार चलने का उत्कट प्रयत्न किया’
सकती। इसीलिए रानाडे (समाज सुधारक और न्यायविद महादेव गोविंद रानाडे) ने हमारा धर्म यह बताया है कि हम अपनी इस पूंजी में वृद्धि करते जाएं। अन्य धर्मों के विचारकों ने जो लिखा हो, उससे उसकी तुलना करें और ऐसा करते हुए यदि कोई नई चीज मिल जाए या उस पर नया प्रकाश पड़ता हो तो हम उसकी उपेक्षा न करें। किंतु हमने ऐसा नहीं किया। हमारे धर्माध्यक्षों ने एक पक्ष का ही विचार किया है। उनके अध्ययन में, कहने और करने में समानता भी नहीं है।
टॉलस्टॉय की खरी-खरी
जन-साधारण को यह अच्छा लगेगा या नहीं, जिस
समाज में वे स्वयं काम करते थे, उस समाज को भला लगेगा या नहीं, इस बात का विचार न करते हुए टॉलस्टॉय की तरह खरी-खरी सुना देनेवाले हमारे यहां नहीं मिलते। हमारे इस अहिंसा-प्रधान देश की ऐसी दयनीय दशा है। हमारी अहिंसा निंदा के ही योग्य है। खटमल, मच्छर, पिस्सू, पक्षी और पशुओं की किसी न किसी तरह रक्षा करने में ही मानो हमारी अहिंसा की इति हो जाती है। यदि वे प्राणी कष्ट में तड़पते हों तो भी हमें उसकी चिंता नहीं होती। परंतु दुखी प्राणी को यदि कोई प्राणमुक्त करना चाहे अथवा हमें उसमें शरीक होना पड़े तो हम उसे घोर पाप मानते हैं। मैं लिख चुका हूं कि यह अहिंसा नहीं है।
टॉलस्टॉय का स्मरण कराते हुए मैं फिर कहता हूं कि अहिंसा का यह अर्थ नहीं है। अहिंसा का अर्थ है प्रेम का समुद्र। अहिंसा का अर्थ है वैर भाव का सर्वथा त्याग। अहिंसा में दीनता, भीरुता नहीं होती, डरकर भागना भी नहीं होता। अहिंसा में तो दृढ़ता, वीरता, अडिगता होनी चाहिए। यह अहिंसा हिंदुस्तान के समाज में दिखाई नहीं देती। उनके लिए टॉलस्टॉय का जीवन प्रेरक है। उन्होंने जिस चीज पर विश्वास किया। उसका पालन करने का जबरदस्त प्रयत्न किया, और उससे कभी पीछे नहीं हटे। इस जगत में ऐसा पुरुष कौन है जो जीते जी अपने सिद्धांतों पर पूरी तरह अमल कर सका हो? मेरी मान्यता है कि देहधारी के लिए संपूर्ण अहिंसा का पालन असंभव है। जब तक शरीर है, तब तक कुछ-न-कुछ अहंभाव तो रहता ही है। इसीलिए शरीर के साथ हिंसा भी रहती ही है। टॉलस्टॉय ने स्वयं कहा है कि जो अपने को आदर्श तक पहुंचा हुआ समझता है, उसे नष्टप्राय ही समझना चाहिए। बस यहीं से उसकी अधोगति शुरू हो जाती है। ज्योंज्यों हम उस आदर्श के नजदीक पहुंचते हैं, आदर्श दूर भागता जाता है। जैसे-जैसे हम उसकी खोज में अग्रसर होते हैं तो यह मालूम होता है कि अभी तो एक मंजिल और बाकी है। कोई भी एक छलांग में कई मंजिलें तय नहीं कर सकता। ऐसा मानने में न हीनता है, न निराशा; नम्रता अवश्य है। इसी से हमारे ऋषियों ने कहा है कि मोक्ष तो शून्यता है। जिस क्षण इस बात को टॉलस्टॉय ने साफ देख लिया, उसे अपने दिमाग में बैठा लिया और उसकी ओर दो डग आगे बढ़े, उसी वक्त उन्हें वह हरी छड़ी मिल गई (गांधीजी से पूर्व इस सभा में किसी वक्ता ने कहा था कि टॉलस्टॉय के भाई ने उन्हें अनेक सद्गुणों वाली हरी छड़ी खोजने को कहा था जिसे वे आजीवन खोजते ही रहे)। उस छड़ी का वह वर्णन नहीं कर सकते थे। सिर्फ इतना ही कह सकते थे कि वह उन्हें मिली। फिर भी अगर उन्होंने सचमुच यह कहा होता कि मिल गई तो उनका जीवन वहीं समाप्त हो जाता।
18 - 24 जून 2018
सफरनामा
रू
सी लेखक लियो टॉलस्टॉय दुनिया के अब तक के सबसे महान साहित्यकारों में गिने जाते हैं। उनकी सर्वश्रेष्ठ कृतियों में से एक ‘वार एंड पीस’ का दुनिया के महान नेताओं पर गहरा असर पड़ा, जिसमें महात्मा गांधी, लेनिन और मार्टिन लूथर किंग जैसी हस्तियां शामिल हैं। जन्म : 9 सितंबरर 1828 (रूस)
निधन : 20 नवंबर 1910 (रूस)
प्रसिद्धि : महान उपन्यासकार, लघु कथा लेखक, नाटककार और निबंधकार। ‘वार एंड पीस’ तथा ‘अन्ना कारेनिना’ से मिली विशेष ख्याति।
अद्भुत त्याग : 1890 में उन्होंने अपनी धन-संपत्ति त्याग दी। अपने परिवार को छोड़कर वे ईश्वर व गरीबों की सेवा करने हेतु निकल पड़े। उनके स्वास्थ्य ने अधिक दिनों तक उनका साथ नहीं दिया। आखिरकार 20 नवंबर 1910 को अस्तापवा नामक एक छोटे से रेलवे स्टेशन पर इस धनिक पुत्र ने एक गरीब, निराश्रित, बीमार वृद्ध के रूप में मौत का आलिंगन कर लिया।
देखनेवालों की त्रुटि
टॉलस्टॉय के जीवन में जो अंतर्विरोध दिखता है, वह टॉलस्टॉय का कलंक या कमजोरी नहीं, बल्कि देखनेवालों की त्रुटि है। एमर्सन ने कहा है कि अविरोध का भूत तो छोटे आदमियों को दबोचता है। अगर हम यह दिखलाना चाहें कि हमारे जीवन में कभी विरोध आनेवाला ही नहीं है तो यों समझिए कि हम मरे हुए ही हैं। अविरोध साधने में अगर कल के कार्य को याद रखकर उसके साथ आज के कार्य का मेल बिठाना पड़े, तो उस कृत्रिम मेल में असत्याचरण की संभावना हो सकती है। सीधा मार्ग यही है कि जिस वक्त जो सत्य प्रतीत हो उसपर आचरण करना चाहिए। यदि हमारी उत्तरोत्तर उन्नति हो रही हो और हमारे कार्यों में दूसरों को अंतर्विरोध दिखे तो इससे हमें क्या? सच तो यह है कि यह अंतर्विरोध नहीं उन्नति है। इसी तरह टॉलस्टॉय के जीवन में जो अंतर्विरोध दिखता है वह अंतर्विरोध नहीं; हमारे मन का भ्रम है।
ब्रेड-लेबर
अद्भुत विषय पर लिखकर और उसे अपने जीवन में उतारकर टॉलस्टॉय ने उसकी ओर हमारा ध्यान दिलाया है। यह विषय है ब्रेड-लेबर (खुद शरीर श्रम करके अपना गुजारा करना)। यह उनकी अपनी खोज नहीं थी। किसी दूसरे लेखक ने यह बात रूस
प्रमुख साहित्यिक कृतियां : उपन्यास - कज्जाक - युद्ध और शांति - आन्ना कारेनिना - पुनरुत्थान (उपन्यास)
उपन्यासिका एवं लंबी कहानियां - दो हुस्सार - सुखी दंपति - इंसान और हैवान - इवान इल्यीच की मृत्यु - क्रूजर सोनाटा - नाच के बाद नाटक - अंधेरे में उजाला - प्रबोधन के फल - कलवार की करतूत
निबंध एवं विचार-दर्शन - बुराई कैसे मिटे - हम करें क्या धर्म और सदाचार - हमारे जमाने की गुलामी - प्रेम और हिंसा अन्य
- मेरी मुक्ति की कहानी - टॉलस्टॉय की डायरी
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व्यक्तित्व
अनमोल विचार
• हर कोई दुनिया बदलना चाहता है, लेकिन कोई खुद को बदलने की नहीं सोचता है। • दो सबसे महान योद्धा हैं- धैर्य और समय। • संगीत भावनाओं का शॉर्टहैंड है। • कितना अजीब भ्रम है यह मानना कि सुंदरता अच्छाई है। • वहां कोई महानता नहीं है, जहां सादगी, अच्छाई और सच्चाई नहीं है। • उसके पास सब कुछ आता है, जो जानता है कि इंतजार कैसे करना है। • महान चीजें हमेशा सरल और विनम्र होती हैं। • हम हार गए, क्योंकि हमने खुद से कहा कि हम हार गए। • गलती को कभी गलती से ठीक नहीं किया जा सकता और बुराई का अंत बुराई से नहीं हो सकता है। • केवल एक ही समय है जो जरूरी है और वह है- अब! • शुद्ध और पूर्ण दुख उतना ही असंभव है, जितना कि शुद्ध और पूर्ण आनंद। • आर्ट कोई हैंडीक्राफ्ट नहीं है। यह उस अनुभव का प्रसारण है, जिसे कलाकार ने महसूस किया है। • सत्ता पाने और रखने के लिए, एक इंसान को उसे चाहना होगा। • किसी गणितज्ञ ने कहा है- ‘मजा सच खोजने में नहीं, बल्कि उसे खोजने का प्रयास करने में है।’ • कला ज्ञान का उच्चतम साधन है। • आदर का आविष्कार किया गया था, उस खाली जगह को भरने के लिए जहां प्यार होना चाहिए था। • सभी राजा इतिहास के गुलाम हैं। • बिना ये जाने कि मैं क्या हूं और मैं यहां क्यों हूं, जीवन असंभव है।
अहिंसा का अर्थ है प्रेम का समुद्र। अहिंसा का अर्थ है वैरभाव का सर्वथा त्याग। अहिंसा में दीनता, भीरुता नहीं होती, डर-डरकर भागना भी नहीं होता। अहिंसा में तो दृढ़ता, वीरता, अडिगता होनी चाहिए के सर्वसंग्रह (रशियन मिसलेनी) में लिखी थी। इस लेखक को टॉलस्टॉय ने जगत के सामने ला रखा और उसकी बात को भी प्रकाश में लाया। जगत में जो असमानता दिखाई पड़ती है, एक तरफ दौलत और दूसरी तरफ कंगाली नजर आती है, उसका कारण यह है कि हम अपने जीवन का कानून भूल गए हैं। यह कानून ब्रेड-लेबर है। गीता के तीसरे अध्याय के आधार पर मैं इसे यज्ञ कहता हूं। गीता ने कहा है कि जो बिना यज्ञ किए खाता है वह चोर है, पापी है। वही चीज टॉलस्टॉय ने बतलाई है। ब्रेड-लेबर का उलटा-सीधा भावार्थ करके हमें उसे उड़ा नहीं देना चाहिए। उसका सीधा अर्थ यह है कि जो शारीरिक श्रम नहीं करता उसे खाने का अधिकार नहीं है। यदि हममें से प्रत्येक व्यक्ति अपने भोजन के लिए आवश्यक मेहनत करे, तो जो गरीबी दुनिया में दिखती है वह दूर हो जाए। एक आलसी दो व्यक्तियों को भूखों मारता है, क्योंकि उसका काम दूसरे को करना पड़ता है। टॉलस्टॉय ने कहा है कि लोग परोपकार करने निकलते हैं, उसके लिए पैसे खर्च करते हैं और उसके बदले में खिताब आदि लेते हैं; यदि वे ये सब न करके केवल इतना ही करें कि दूसरों के कंधों ने नीचे उतर जाएं तो यही काफी है। यह सच बात है। यह नम्रतापूर्ण वचन है। करने जाएं
परोपकार और अपना ऐशो-आराम लेशमात्र भी न छोड़ें, तो यह वैसी ही हुआ जैसे अखा भगत ने कहा है- निहाई की चोरी, सुई का दान। क्या ऐसे में स्वर्ग से विमान आ सकता है?
मजदूर बने टॉलस्टॉय
ऐसा नहीं है कि टॉलस्टॉय ने जो कहा वह दूसरों ने न कहा हो, लेकिन उनकी भाषा में चमत्कार था और इसका कारण यह है कि उन्होंने जो कहा, उसका पालन किया। गद्दी-तकियों पर बैठने वाले टॉलस्टॉय मजदूरी में जुट गए। आठ घंटे खेती का या मजदूरी का दूसरा काम उन्होंने किया। शरीर-श्रम को अपनाने के बाद से उनका साहित्य और भी अधिक शोभित हुआ। उन्होंने अपनी पुस्तकों में से जिसे सर्वोत्तम कहा है वह है- ‘कला क्या है?’। यह किताब उन्होंने मजदूरी में से बचे समय में लिखी थी। मजदूरी से उनका शरीर क्षीण नहीं हुआ। उन्होंने स्वयं यह माना था कि इससे उनकी बुद्धि और अधिक तेजस्वी हुई और उनके ग्रंथों को पढ़नेवाले भी कह सकते हैं कि यह बात सच है। (10 सितंबर, 1928 को साबरमती आश्रम के युवक संघ ने टॉलस्टॉय जन्म-शताब्दी समारोह का आयोजन किया था। इस मौके पर गांधीजी के संबोधन का संपादित अंश)
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स्वच्छता
18 - 24 जून 2018
स्वच्छता के क्षेत्र में युगांडा के बढ़ते कदम युगांडा के मौजूदा राष्ट्रपति योवेरी मुसेवेनी युगांडा को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में तो जुटे ही हैं, उनकी प्राथमिकता युगांडावासियों को स्वच्छता और स्वास्थ्य के लिहाज से भी सुरक्षित बनाना है डॉलर प्रतिदिन) से नीचे जीवनयापन करती है।
समुद्रतल से 4000 फुट ऊंचा
देश का अधिकांश भूभाग पठारी है, जो समुद्रतल से लगभग 4000 फुट ऊंचा है। पश्चिमी सीमा पर रूबंजोरी पर्वत स्थित है, जिसका उच्चतम शिखर समुद्रतल से 16,791 फुट ऊंचा है, जबकि पूर्वी सीमा पर स्थित ऐलगन पर्वत की अधिकतम ऊंचाई 14,179 फुट है। देश के मध्य में क्योगा एवं दक्षिण में विक्टोरिया झीलें हैं। समुद्रतल से अधिक ऊंचाई पर स्थित इस देश का ताप अन्य विषुवत क्षेत्रीय प्रदेशों की तुलना में न्यून है। औसत वार्षिक ताप उत्तर में 15 डिग्री एवं दक्षिण में 22 डिग्री सेल्सियस है। वार्षिक तापांतर साधारण हैं। औसत वार्षिक वर्षा की मात्रा उत्तर में 35 इंच एवं दक्षिण में 59 इंच तक है।
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फ्रीकी देश युगांडा का नाम आते ही इस देश की एक अलग ही शक्ल नजर आती है। तानाशाही, सिविल वार, सरेआम लूटपाट और हिंसा, इस देश की पहचान बन गए थे। ईदी अमीन के शासन काल में यह दुनिया का सबसे खतरनाक देश माना जाता था। लेकिन अब यहां के हालात बिल्कुल बदलते जा रहे हैं। युगांडा के मौजूदा राष्ट्रपति योवेरी मुसेवेनी के अन्य देशों से अच्छे संबंध से देश की आर्थिक स्थिति अच्छी होती जा रही है। इतना ही नहीं, युगांडा की राजधानी कंपाला में एक समय जहां लोग रात को लूटपाट के डर से घरों से बाहर निकलने से डरते थे। वहीं, अब देर रात तक क्लबों से लेकर सड़कों तक पर पार्टियां होती हैं।
मिशेल के कैमरे में कंपाला
प्रसिद्ध इटालियन फोटोग्राफर मिशेल सिबिलोनी ने युगांडा की राजधानी कंपाला की ऐसी ही कुछ
खास बातें ‘युगांडा’ नाम बुगांडा राजशाही से लिया गया है जैविक खेती को लेकर किसानों में आई है नई जागृति युगांडा का शहरी क्षेत्र स्वच्छता के क्षेत्र में काफी आगे है
तस्वीरें जारी की हैं, जिसमें उन्होंने कंपाला की नाइट लाइफ को दर्शाया है। मिशेल कहते हैं कि ये तस्वीरें युगांडा की बदलती सूरत को बयां करते हैं कि लोग हिंसा नहीं, एक अच्छी और दिलचस्प लाइफ चाहते हैं। देर रात तक चलने वाली इन पार्टियों में हर वर्ग के लोग देखे जा सकते हैं। बता दें कि मिशेल अब तक कई ऐसे देशों की फोटोज क्लिक कर चुके हैं, जिनके हालात पहले काफी बुरे हुआ करते थे।
स्वच्छता को लेकर जागृति
बदलाव के इस बयार के बीच वहां के समाज में स्वास्थ्य और स्वच्छता को लेकर भी नई जागृति आई है। जहां-तहां बिखरे कूड़े के ढेर, वायु और जलीय प्रदूषण के साथ ग्रामीण व गरीब इलाकों में खुले में शौच की प्रवृति के दौर से निकलकर आज युगांडा आगे की तरफ देख रहा है। सरकार की तरफ से स्वच्छता और स्वास्थ्य को लेकर जहां एक तरफ कई महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए गए हैं, वहीं दूसरी तरफ स्वयंसेवी संस्थाएं भी इस दिशा में उल्लेखनीय प्रयास कर रही हैं।
बुगांडा से बनी युगांडा
बात युगांडा के भूगोल की करें तो यह देश पूर्वी अफ्रीका में स्थित एक लैंडलाक देश है। इसकी सीमा पूर्व में केन्या, उत्तर में सूडान, पश्चिम में कांगो, दक्षिण पश्चिम में रवांडा और दक्षिण में तंजानिया से मिलती है। देश के दक्षिणी हिस्से में विक्टोरिया झील का एक बड़ा भाग शामिल है, जिससे केन्या और तंजानिया से सीमा निर्धारित होती है। ‘युगांडा’ नाम बुगांडा राजशाही से लिया गया है। इस देश में गरीबी की स्थिति इतनी चिंताजनक है कि एक तिहाई जनसंख्या अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा (2
केले का देश
युगांडा में पश्चिमी उच्च प्रदेश में लंबी घास तथा वनों की प्रचुरता है। उत्तर के शुष्कतर क्षेत्र में छोटी घास ही अधिक मिलती है। देश के दक्षिणी भाग में
वालों की सेहत पर भी खासा असर पड़ता है। अच्छी बात यह है कि इस वैश्विक प्रवृति के उलट युगांडा के किसान इन दिनों खेती का देसी नुस्खा अपनाकर मोटी कमाई कर रहे हैं। युगांडा के कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि खेती का देसी नुस्खा अपनाकर भी किसान अच्छी पैदावार कर मुनाफा कमा सकते हैं। दरअसल, युगांडा के आर्थिक हालात बेहद खराब है। यहां के किसान न तो महंगे बीज खरीदने के ही काबिल और न ही खेती के आधुनिक साजोसामान। ऐसे में खेती का सस्ता और देसी नुस्खा
युगांडा सरकार की तरफ से स्वच्छता और स्वास्थ्य को लेकर जहां एक तरफ कई महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए गए हैं, वहीं दूसरी तरफ स्वयंसेवी संस्थाएं भी इस दिशा में उल्लेखनीय प्रयास कर रही हैं
प्राकृतिक वनस्पति साफ करके भूमि को कृषि योग्य बना लिया गया है, इसमें केले की उपज मुख्य है। कहीं-कहीं हाथी घास भी उगती है, जिसकी ऊंचाई 10 फुट तक हो जाती है।
जैविक खेती पर जोर
आजकल दुनियाभर के किसान ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए हाईब्रीड बीजों का इस्तेमाल कर रहे हैं। भले ही इन बीजों से होने वाली पैदावार ज्यादा हो, लेकिन इन बीजों के इस्तेमाल से खेतों की उर्वरक क्षमता कम हो जाती है। इतना ही नहीं, कीटनाशकों के बेतरतीब इस्तेमाल की वजह से खाने
युगांडा के किसानों के लिए बेहद फायदे का सौदा साबित हो रहा है। युगांडा के छोटे खेतिहर किसानों की देखा-देखी बड़े किसान भी खेती के देसी नुस्खे अपना रहे हैं। वे खेतों में कीटनाशकों की बजाय जैविक खाद का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस प्रक्रिया से किसानों का पैसा तो बच ही रहा है, साथ ही खेत की उर्वरक क्षमता को भी नुकसान नहीं पहुंच रहा है। खेती का देसी नुस्खा अपनाने से सबसे ज्यादा फायदा सब्जी की खेती करने वालों किसानों को हो रहा है। सब्जी की बुवाई करने वाले किसान देसी तरीके से बनाए गए खाद का इस्तेमाल कर रहे हैं जिसके चलते सब्जियों की पैदावार में जबरदस्त
युगांडा में स्वच्छता की स्थिति
कुल आबादी
: 4,03,00,000
खुले में शौच की समस्या (आबादी)
: 7 फीसदी
अस्वच्छ हालात में रहने वाले लोग
: 77,00,000
उन्नत-स्वच्छ क्षेत्रों में रहने वाली आबादी : 19 फीसदी 5 वर्ष से कम उम्र में डायरिया से मौत
: 8 फीसदी
स्रोत: यूनिसेफ और डब्ल्यूएचओ 2015
18 - 24 जून 2018 इजाफा हुआ है। युगांडा के किसान बड़े पैमाने पर बीजों का संरक्षण करते हैं फिर सीजन के हिसाब से बुआई किया जाता है। सिर्फ इतना ही नहीं, सब्जी की खेती के लिए पानी की भी कम जरूरत पड़ती है। जिन किसानों के पास कम खेत हैं, वे सब्जियों की मिश्रित खेती कर रहे हैं और कम जमीन में ही पांच से छह सब्जियों की खेती कर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं।
सुलभ की पहल
भारत की किफायती शौचालय प्रणाली के तौर पर सुलभ के टॉयलेट मॉडल को युगांडा में बड़ी स्वीकृति मिली है। यूनिसेफ और युगांडा सरकार
आ
के सहयोग से सुलभ संस्था द्वारा वहां सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण किया जा रहा है। सुलभ प्रेणता डॉ. पाठक ने कहा, ‘हर मुद्दे पर विचार-विनिमय हो रहा है। हम शीघ्र ही युगांडा में सार्वजनिक शौचालय का निर्माण करेंगे। हम तकनीक की व्यवस्था करेंगे, एक साल तक उसका रख-रखाव करेंगे, उसके बाद इन्हें स्थानीय पालिका को सौंप दिया जाएगा।’ सुलभ प्रणेता डॉ. विन्देश्वर पाठक बताते हैं, ‘सुलभ ने अफगानिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, भूटान, नेपाल, लाओस तथा इनके अलावा इथियोपियाजैसे दस अफ्रीकी देशों में सार्वजानिक शौचालयों के निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सुलभ ने अफ्रीकी देशों के लिए स्वच्छता तकनीकों
लक्ष्य क्षेत्र
युगांडा का स्वच्छता लक्ष्य-2018
मानवीय दृष्टि से स्वच्छ स्थितियों में रहने वाले लोगों द्वारा पीने, खाना पकाने और स्वच्छता उपयोग में पानी का इस्तेमाल स्वच्छता के सुरक्षित उपायों के साथ खुले में शौच मुक्त आबादी
पर क्षमता निर्माण कार्यशाला भी आयोजित की थी, जो संयुक्त राष्ट्र के जल, स्वच्छता और स्वास्थ्य के टिकाऊ विकास के सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों की
ई-कचरे से जूझता देश
प कभी युगांडा की राजधानी कंपाला जाएं तो वहां हवा के साथ उड़ती धूल और उसके साथ चारों तरफ फैले कचरे की गंध, केले के छिलके और घरेलू कचरे के साथ ही बैटरी और कंप्यूटर चिप्स पड़े मिल जाएंगे। कचरा प्रबंधन की स्थिति यह है कि शहर से आठ ही किलोमीटर बाहर ये सारा कचरा इकट्ठा किया जाता है। युगांडा में ई-कचरे की समस्या पर काबू करने के लिए सरकार ने सेकंड हैंड कंप्यूटरों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। लेकिन इससे इन कंप्यूटरों को सुधारने वाले लोगों रोजी-रोटी खतरे में पड़ गई है।
खतरे की घंटी
यह कचरा समय के साथ गंदे पानी में मिल जाता है। युगांडा का पर्यावरण विभाग इस पानी की जांच करता है। कचरे से फैलने वाले प्रदूषण को लेकर लगातार कार्य कर रहे ओनेस्मुस मुहवेजी युगांडा में पर्यावरण मानकों का ध्यान रखते हैं और उन्हें लागू करने की कोशिश करते हैं। हालांकि वह परेशान हैं क्योंकि कचरे में कार्सेजेनिक यानी कैंसर पैदा करने वाले केमिकल्स हैं। वे बताते हैं, ‘पानी में भारी धातुओं की मात्रा बहुत ही ज्यादा है। जैसे कि लेड यानी सीसे की मात्रा एक लीटर में शून्य दशमलव एक होनी चाहिए, लेकिन यहां एक दशमलव चार है। ये आंकड़े खतरे की घंटी हैं।’
बड़ा बाजार
दिलचस्प है कि युगांडा में कचरे को अलग करने और छांटने के बारे कोई कानून नहीं है। जहरीले इलेक्ट्रॉनिक कचरे का क्या किया जाए, इस बारे में कोई नियम नहीं है। आलम यह है कि मंत्रालयों और कार्यालयों के गोदामों में खराब हो गए डेस्कटॉप कंप्यूटर और मॉनिटर ठूंस-ठूंस कर भरे हुए हैं।
फ्रिज के आयात पर बैन
युंगाडा पहला ऐसा अफ्रीकी देश है, जिसने
सेंकड हैंड कंप्यूटरों और फ्रिज के आयात पर प्रतिबंध लगाया है। यहां के लोग नए कंप्यूटर नहीं खरीद सकते। इसीलिए अब तक विदेशी सेंकड हैंड कंप्यूटरों के लिए यहां बड़ा बाजार था। अब सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया है। ओनेस्मुस मुहवेजी का मानना है, ‘हमें तुरंत सटीक नियम चाहिए कि कैसे इस कचरे को इकट्ठा किया जाए और उससे कैसे निपटाया जाए।’ आयात किए गए सेंकड हैंड कंप्यूटरों का जीवनकाल बहुत कम होता था, इसे देखते हुए ही वहां की सरकार ने फैसला किया कि वह सेकंड हैंड कंप्यूटर आयात नहीं करेगी। संयुक्त राष्ट्र की औद्योगिक विकास संस्था के सर्वे में सामने आया है कि युगांडा की आर्थिक और शैक्षिक प्रणाली इन कंप्यूटरों पर निर्भर है। ...तो क्या सेंकड हैंड कंप्यूटर के आयात पर प्रतिबंध से बड़ी मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी। ओनेस्मस कहते हैं कि अब तो ऐसे नए कंप्यूटर भी आ गए हैं, जो सस्ते हैं और आसानी से खरीदे जा सकते हैं।
खतरे में रोजी
कंपाला में कंप्यूटर बेचने का काम कर रहे मोसेस बातचीत में बतलाते हैं कि वह हर महीने 600
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स्वच्छता
पुराने कंप्यूटर इंग्लैंड से आयात करते हैं। हर कंप्यूटर के लिए वह 70 यूरो देते हैं, इन कंप्यूटरों को ठीक करते हैं और फिर इन्हें सौ यूरो में बेच देते हैं। अच्छा व्यवसाय है, लेकिन अब आयात पर प्रतिबंध के कारण उनका धंधा बंद हो जाएगा। मोसेस का मानना है कि दुकान में रखे यूरोपीय कंप्यूटर काफी लंबे समय तक चलते हैं। यही समस्या सैम्युएल अलिओरिस भी सामने रखते हैं। उनका यूनिवर्सिटी के पास साइबर कैफे है और वह मोसेस से कई बार कंप्यूर खरीदते रहे हैं। कौतूहलवश उन्होंने चीन में बने कुछ सस्ते कंप्यूटर खरीदे जिनसे वह खुश नहीं हैं। उनके ही शब्दों में, ‘मैंने आठ सस्ते कंप्यूटर खरीदे थे और आठ ही महीने के अंदर वे खराब होने लगे। कारण सिर्फ यह है कि वोल्टेज कम ज्यादा होता रहता है जो कंप्यूटर नहीं झेल पाते। साथ ही कई पार्ट्स भी अच्छे नहीं हैं।’ इसीलिए अलिओरिस इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि चीन में बने कंप्यूटर युगांडा में इलेक्ट्रो कूड़े के ढेर में और बढ़ोत्तरी करेंगे क्योंकि वे यूरोपीय सेकंड हैंड कंप्यूटरों से कम समय तक चलते हैं। इन सेकंड हैंड कंप्यूटरों को स्थानीय इंजीनियर, कम से कम, रिपेयर तो कर ही सकते हैं।
लक्षित लोगों की संख्या
लाभान्वित
133,000
27,241
190,000
5,598
स्रोत: यूनिसेफ
उपलब्धि की दिशा में एक प्रयास था।’ गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र पर्यवास के अनुरोध पर सुलभ संस्था ने ‘सोशल मार्केटिंग ऑन सैनिटेशन’ (स्वच्छता के सामाजिक विपणन) पर एक पुस्तिका भी प्रकाशित की है।
हैजे के खिलाफ अभियान
युगांडा सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और अन्य सहयोगी देशों की मदद से होइमा जिले में साढ़े तीन लाख से अधिक लोगों को हैजे का टीका लगाने की योजना पर कार्य कर रही है। डब्ल्यूएचओ के अफ्रीकी क्षेत्र के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि यह टीका कार्यक्रम इन दिनों फैल रहे हैजे के प्रकोप को रोकने के लिए शुरू किया जाएगा और इससे कांगो से आए विस्थापित भी काफी प्रभावित हो रहे हैं। हैजे के खिलाफ ओरल वैक्सीन काफी कारगर हथियार है, लेकिन इसके अलावा पीने के लिए स्वच्छ पानी, साफ सफाई और अन्य एहतियाती उपाय भी जरूरी हैं। होइमा जिले में हैजे के संक्रमण की आधिकारिक पुष्टि 23 फरवरी 2018 को की गई थी और देखतेदेखते इससे मरने वालों की संख्या 50 के करीब हो गई है। वहां इससे 2,119 लोग संक्रमित हैं। हैजे से निपटने के लिए टीका देने का दूसरा दौर इसी माह में शुरू होगा।
टीकाकरण को लेकर कानून
युगांडा में कम उम्र में हो रही बच्चों की मौत से चिंतित राष्ट्रपति योवेरी मुसेवेनी हाल ही में ने एक नया कानून भी बना दिया है। इस कानून के तहत अपने बच्चों का टीकाकरण नहीं करवाने वाले मातापिता को छह महीने तक की जेल हो सकती है। इस कानून के तहत माता-पिता बिना टीका लगवाए अपने बच्चे का स्कूल में दाखिला भी नहीं करवा पाएंगे। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक सरकार ने बच्चे का स्कूल में दाखिला कराते समय टीकाकरण कार्ड दिखाना अनिवार्य कर दिया है। युगांडा की स्वास्थ्य मंत्री सारा ओपेंडी इस कानून की वजह बताते हुए कहती हैं कि कुछ माता-पिता धार्मिक कारणों से अपने बच्चों का टीकाकरण नहीं कराते हैं, जिससे बच्चो में पोलियो और मेनिनजाइटिस का खतरा बना रहता है। ओपेंडी का मानना है कि यह कानून देश में टीकाकरण के लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करेगा। युगांडा में बाल मृत्युदर काफी ऊंची है। 2015 में जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां प्रति 1000 बच्चों में से 70 पांच साल की उम्र से पहले ही मर जाते हैं।
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पुस्तक अंश
18 - 24 जून 2018
गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाएं प्रधानमंत्री जन धन योजना
सीधे लाभार्थियों तक पहुंच रही है। अभी तक 23 करोड़ 62 लाख खाते खोले गए हैं। इस गतिशील योजना के चलते इन खातों में अब तक 41 हजार करोड़ रुपए से अधिक की राशि जमा की गई है।
इस योजना ने बेहद गरीब लोगों को भी देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में बिना किसी राशि के खाता खोलकर देश की बैंकिंग प्रणाली से सीधे जुड़ने की सुविधा प्रदान की है। प्रत्येक खाता रुपे कार्ड और मोबाइल बैंकिंग से
दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना
इस योजना के तहत सरकार देश के हर गांव को बिजली उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। 23 अगस्त 2016 तक 10,086 गांवों में बिजली पहुंचाई गई है। इनमें से कुछ गांवों ने तो आजादी से आज तक बिजली का बल्ब नहीं देखा था। विकास का लाभ तब तक आम आदमी तक नहीं पहुंच सकता है जब तक कि हर परिवार तक बिजली न पहुंचे। वैश्वीकरण के इस दौर में बिजली उत्पादन में आगे निकलने और कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
जुड़ा हुआ है। यह खाता एक लाख रुपए का दुर्घटना बीमा और 30,000 रुपए का जीवन बीमा भी प्रदान करता है। इसके साथ देश भर में धन हस्तांतरण की सुविधा भी है। इन खातों की सहायता से, सरकारी योजनाओं की सब्सिडी
अटल पेंशन योजना
यह योजना उन लोगों के लिए है जो किसी भी प्रकार की पेंशन सुविधा से वंचित हैं। ऐसे लोगों को नियमित रूप से एक छोटी राशि जमा करने के बाद उनको बुढ़ापे में 1,000 रुपए से लेकर 5,000 रुपए तक की पेंशन मिल सकती है। खाते में प्रीमियम का 50 प्रतिशत सरकार जमा करेगी। अटल पेंशन योजना बुजुर्गों के लिए है, ताकि उन्हें किसी की सहायता की आवश्यकता न पड़े प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
इससे पहले बैंकों के दरवाजे केवल अमीर लोगों के लिए खुले थे। हमने इसे बदलने का फैसला किया है। जन धन योजना इस दिशा में नई शुरुआत है, जिसके माध्यम से गरीब और पिछड़े लोग भी बैंक योजनाओं का लाभ उठाएंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना यह योजना स्वभाविक और आकस्मिक दोनों तरह की मौतों को कवर करने के लिए बनाई गई है। इस योजना में, 330 रुपए जमा करके बीमाकृत व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसके परिवार को 2 लाख दिए जाते हैं। 3 करोड़ से ज्यादा लोग इस योजना का लाभ उठा रहे हैं। आपदा के समय में, अधिकांशत: गरीब ही इसके शिकार होते हैं। सरकार का यह कर्तव्य है कि वह उन स्थितियों में गरीबों की रक्षा करे, जो उनकी सशक्तीकरण की प्रक्रिया को धीमा कर सकते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी)
बिचौलियों और दूसरे धन रिसावों को दूर कर लाभार्थियों को सामाजिक सुरक्षा का लाभ सीधे उपलब्ध कराने के मामले में यह एक ऐतिहासिक कदम है। जन धन, आधार और मोबाइल के माध्यम से सब्सिडी हस्तांतरण में अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ है। डीबीटी के माध्यम से, 59 योजनाओं की सब्सिडी सीधे 31 करोड़ लाभार्थियों को स्थानांतरित की जा रही है। लाभार्थियों को 61,822 करोड़ रुपए की रकम सीधे स्थानांतरित करने से 36,500 करोड़ रुपए से अधिक की बचत हुई। यह दुनिया में सबसे बड़ी डीबीटी पहल है। डीबीटी योजना ब्लैक मार्केटिंग को खत्म कर देगी और सब्सिडी प्रभावी ढंग से लाभार्थियों तक पहुंच जाएगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
18 - 24 जून 2018
प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना
यह योजना दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मृत्यु के जोखिम को कवर करने के लिए निर्मित है। हर साल केवल 12 रुपए जमा करना जरूरी है, इसके बदले आकस्मिक मौत के मामले में मृतक के परिवार को बीमा राशि के तौर पर 2 लाख रुपए दिए जाएंगे। स्थायी अक्षमता के मामले में भी 2 लाख रुपए दिए जाएंगे । 9 करोड़ 64 लाख लोग इस योजना का लाभ उठा रहे हैं। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना एक 'सुरक्षा ढाल' है। यह मुश्किल समय में गरीबों को बचाने की हमारी प्रतिबद्धता का हिस्सा है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) इस योजना के तहत सरकार इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि हर एक शहरी भारतीय के लिए एक घर सुनिश्चित हो। 2022 तक शहरी गरीबों के लिए 2 करोड़ घर बनाए जाएंगे, 6.8 लाख घर पहले से ही बनाए जा चुके हैं। इस योजना के 95 प्रतिशत लाभार्थी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से होंगे।
प्रधानमंत्री आवास योजना सिर्फ चार दीवारों का निर्माण नहीं कर रही है, यह गरीबों के सपने को पूरा करने की एक योजना है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
उजाला
उज्ज्वला योजना
इस योजना के तहत भारत सरकार लिए प्रत्येक घर में गैस स्टोव और मुफ्त एलपीजी कनेक्शन प्रदान करेगी, ताकि गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले (बीपीएल) परिवारों को खाना पकाने की धुआंमुक्त सुविधा मिल सके। प्रधानमंत्री के आह्वान पर 1 करोड़ 4 लाख से अधिक लोगों ने अपनी एलपीजी सब्सिडी छोड़ दी है, जिसके चलते अब तक 38 लाख बीपीएल परिवारों को गैस कनेक्शन दिया जा चुका है।
इस योजना का उद्देश्य महिला स्वसहायता समूहों (एसएचजी) को संगठित करके 8 से 9 करोड़ गरीब परिवारों तक वित्तीय संसाधनों की पहुंच प्रदान करना है। इसका उद्देश्य उन्हें आजीविका के साधन प्रदान करना और गरीबी के चंगुल से बाहर आने तक उन्हें लगातार सहायता देना है। 5.31 लाख एसएचजी का गठन किया गया है और वित्तीय सहायता
जब गरीब मां लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाती है, तो वह धुएं में सांस लेती है। मैं इन महिलाओं के दर्द को अच्छे से समझ सकता हूं और इस योजना के माध्यम से उनकी पीड़ा को दूर करना चाहता हूं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना
के रूप में 2.59 लाख एसएचजी को 363.71 करोड़ रुपए दिए गए हैं। इस कार्यक्रम के तहत 59 लाख परिवारों को शामिल किया गया है। सभी का विकास किया जाना है, सभी को एक साथ लेना है, समृद्धि सभी के लिए सुलभ होनी चाहिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण)
सरकार, इस योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में शौचालयों और अन्य बुनियादी सुविधाओं के साथ घर उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। घर के आधार को पहले के 20 वर्ग मीटर से 25 वर्ग मीटर तक बढ़ा दिया गया है। प्रति मकान 1.2 लाख रुपए की लागत से 2019 तक एक करोड़ घर बनाए जाएंगे।
राज्य और केंद्र सरकार एक साथ काम करके देश के गरीबों को छत प्रदान करेगी। इस छत के साथ गरीबों के सपनों को एक नई जमीन मिलेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
दीन दयालु कोच योजना
इस योजना के तहत, लंबी दूरी की ट्रेनों में अनारक्षित यात्रियों के लिए दीन दयालु कोच लगाए जाएंगे। इन कोचों में, कुशन वाली सीटों और
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पुस्तक अंश
सामान रखने की रैक तथा पेयजल जैसी 13 सुविधाएं प्रदान की जाएंगी। 700 कोचों का योजनाबद्ध विनिर्माण पूरा हो चुका है।
लोग 70 करोड़ से अधिक पारंपरिक बल्बों को बदल सकें इसके लिए एलईडी बल्बों को मुफ्त में बांटा जा रहा है । इससे बिजली बिल में 40 हजार करोड़ रुपए की बचत होने की उम्मीद है । 23 अगस्त 2016 तक, 14.98 करोड़ बल्ब वितरित किए गए हैं, जिससे हर दिन 19 करोड़ रुपए की बचत हुई है। बिजली की बचत इस पीढ़ी को बचाने जितना ही महत्वपूर्ण है। यह एक सामाजिक सेवा है और यह पर्यावरण को भी बचाएगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
अंत्योदय एक्सप्रेस इस योजना के तहत, अंत्योदय एक्सप्रेस के नाम से पूरी तरह से अनारक्षित नई सुपरफास्ट ट्रेनें शुरू की जाएंगी। पहली रैक अक्टूबर 2016 में शामिल की गई थी। इस वित्तीय वर्ष में पांच अंत्योदय रैक प्रस्तावित हैं। एक्सप्रेस और दीन दयालु रेल कोच शुरू करना गरीबों के लिए सुपरफास्ट यात्रा की व्यवस्था करने के प्रति हमारी सरकार की प्रतिबद्धता दर्शाती है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गरीब जनता असुविधा के साथ यात्रा करने के लिए क्यों मजबूर रहे? हम गरीबों के लिए आरामदायक और सम्मानित यात्रा के महत्व को जानते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
(शेष अगले अंक में)
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खेल
18 - 24 जून 2018
ब्राजील के चैंपियन बनने के आसार एक सर्वेक्षण में इसकी संभावना जताई गई है कि नेमार जूनियर के नेतृत्व में ब्राजील के इस साल खिताब जीतने की सबसे अधिक 21 फीसदी संभावना है
फी
एजाज अहमद
फा विश्व कप में इस साल ब्राजील की तूती बोल सकती है और वह बीते 16 साल का सूखा खत्म करते हुए रूस में 15 जुलाई को चैंपियन बनने का गौरव हासिल कर सकता है। एक वैश्विक सर्वेक्षण में इसकी संभावना जताई गई है। दुनिया भर में मनोरंजन सेवाओं और कंपनियों के लिए संगीत, वीडियो और खेल मेटाडाटा और स्वचालित सामग्री मान्यता (एसीआर) प्रौद्योगिकी प्रदान करने वाली अग्रणी कंपनी-ग्रेचनोट द्वारा किए गए सर्वे से यह बात निकलकर सामने आई है कि करिश्माई नेमार जूनियर के नेतृत्व में ब्राजील के इस साल खिताब जीतने की सबसे अधिक 21 फीसदी संभावना है। दूसरे क्रम पर स्पेन है, जिसने 2010 में खिताब जीता था, लेकिन इसके बाद लय से भटक गया था। मौजूदा चैंपियन जर्मनी और 2014 में जर्मनी के खिलाफ फाइनल खेलने वाली लियोनेल मेसी की टीम के खिताब तक पहुंचने की 8-8 प्रतिशत संभावना है। इसके बाद 6 प्रतिशत संभावना के साथ फ्रांस चौथे क्रम पर है। कोलंबिया (5 फीसदी), इंग्लैंड, बेल्जियम और यूरोपीयन चैंपियन पुर्तगाल (4 फीसदी), उरुग्वे तथा मेक्सिको (तीन फीसदी), स्विट्जरलैंड और क्रोएशिया (दो फीसदी) संभावना के साथ विश्व कप में अपने अभियान की शुरुआत करेंगे। मेजबान रूस,
पोलैंड, ईरान, डेनमार्क, मोरक्को, सेनेगल, कोस्टा रिका, स्वीडन, आस्ट्रेलिया, सर्बिया, आइसलैंड और ट्यूनिशिया के खिताब तक पहुंचने की एक फीसदी संभावना है। इसके अलावा एशिया से दक्षिण कोरिया, अफ्रीकी टीम नाइजीरिया, दक्षिण अमेरिकी टीम पनामा, मिस्र, जापान और सउदी अरब के खिताब तक पहुंचने की आधा प्रतिशत संभावना है। सर्वे में कहा गया है कि विश्व कप में हिस्सा लेने वाली 32 टीमों में से लगभग सभी बड़ी टीमों के नॉकआउट दौर में पहुंचने की पूरी संभावना है। इसमें 90 फीसदी संभावना के साथ ब्राजील सबसे आगे है। दूसरे क्रम पर अर्जेंटीना है, जो मेसी के दम पर 82 फीसदी संभावना के साथ नॉकआउट में पहुंचेगा। सर्वे के मुताबिक ग्रुप-ए से उरुग्वे (77 फीसदी) और रुस (60 फीसदी) आगे जाएंगे, जबकि मिस्र (36 फीसदी) और सउदी अरब (27 फीसदी) को बाहर जाना होगा। इसी तरह ग्रुप-बी से स्पेन (76 फीसदी) और क्रिस्टीयानो रोनाल्डो की टीम पुर्तगाल (58 फीसदी) अगले चरण में जाएंगे, जबकि ईरान (35 फीसदी) और मोरक्को (30 फीसदी) को बाहर होना पड़ेगा। ग्रुप-सी से फ्रांस (69 फीसदी) और पेरू (68 फीसदी) आगे जाएंगे, जबकि डेनमार्क (35 फीसदी) और आस्ट्रेलिया (27 फीसदी) बाहर हो जाएंगे। ग्रुप-डी से दो बार के विजेता अर्जेंटीना (82 फीसदी) और क्रोएशिया (57 फीसदी) नॉकआउट में जाएंगे, जबकि पहली बार विश्व कप में खेल रहे आइसलैंड (35 फीसदी) और सुपर ईगल्स
नाइजीरिया (27 फीसदी) को बाहर जाना पड़ेगा। ग्रुप-ई से पांच बार का विजेता ब्राजील (90 फीसदी) और स्विट्डरलैंड (51 फीसदी) के साथ अगले दौर में जाएंगे, जबकि सर्बिया (31 फीसदी) तथा कोस्टा रिका (28 फीसदी) के साथ बाहर हो जाएंगे। ग्रुप-एफ मौजूदा तथा चार बार का चैंपियन जर्मनी (79 फीसदी) तथा मेक्सिको (60) अगले दौर का टिकट कटाएंगे, जबकि ज्लाटान इब्राहिमोविच के बगैर खेल रही स्वीडन (34 फीसदी) और दक्षिण कोरिया (27 फीसदी) आगे का सफर नहीं तय कर पाएंगे। ग्रुप-जी से इंग्लैंड और बेल्डियम (71-71 फीसदी) के साथ आगे जाएंगे, जबकि ट्यूनिशया (32 फीसदी) और पनामा (26 फीसदी) को बाहर जाना होगा। ग्रुप-एच से कोलंबिया (77 फीसदी) तथा पोलैंड (50 फीसदी) आगे जाएंगे, जबकि सेनेगल (45 फीसदी) तथा जापान (29 फीसदी) को बाहर जाना होगा। सर्वे में कुछ अंडरडॉग टीमों को लेकर भी आकलन किया गया है, जो नॉकआउट में पहुंच सकती हैं। इमें कोलंबिया के अंतिम-16 दौर में पहुंचने की सबसे अधिक 77 फीसदी संभावना है। इसके बाद पेरू के अंतिम-16 दौर में पहुंचने की 68 फीसदी संभावना है। कोलंबिया के हालांकि क्वार्टर फाइनल में पहुंचने की 43 फीसदी और सेमीफाइनल में पहुंचने की 21 फीसदी ही संभावना है। इसी तरह पेरू के क्वार्टर फाइनल में पहुंचने की 39 फीसदी और सेमीफाइनल में पहुंचने की 22 फीसदी संभावना है। इस सर्वेक्षण में हालांकि एक चौंकाने वाली बात भी कही गई है। रूस में इस साल ब्राजील, अर्जेंटीना, जर्मनी, स्पेन और फ्रांस के अलावा किसी अन्य देश के खिताब जीतने की 47 फीसदी संभावना है। 1970 के बाद से यूरोप और लातिन अमेरिकी देश ही विजेता बनकर उभरे हैं और इसमें ब्राजील, स्पेन, जर्मनी, फ्रांस और अर्जेंटीना को बोलबाला रहा है। इस साल चूंकि इटली (2006 की चैंपियन) की टीम विश्व कप में नहीं खेल रही है, ऐसे में सर्वे में यह संभावना जताई गई है कि 2018 फीफा विश्व कप का सेहरा किसी 'नए' देश के सिर भी बंध सकता है।
फीफा विश्व कप
18 - 24 जून 2018
अभिनय का प्राण
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कही-अनकही
प्राण की अभिनीत भूमिकाओं की यह विशेषता रही है कि उन्होंने जिन फिल्मों में अभिनय किया, उनमें हर पात्र को एक अलग अंदाज में दर्शकों के सामने पेश किया
बॉ
लीवुड में प्राण एक ऐसे कलाकार थे, जिन्होंने अपने दौर में फिल्म इंडस्ट्री पर एकछत्र राज किया और अपने अभिनय का लोहा मनवाया। तिरछे होंठो से शब्दों को चबा-चबा कर बोलना सिगरेट के धुंओं का छल्ले बनाना और चेहरे के भाव को पलपल बदलने में निपुण प्राण ने उस दौर में खलनायक को भी एक अहम पात्र के रूप में सिने जगत में स्थापित कर दिया। प्राण की अभिनीत भूमिकाओं की यह विशेषता रही है कि उन्होंने जिन फिल्मों मे अभिनय किया उनमें हर पात्र को एक अलग अंदाज में दर्शकों के सामने पेश किया। प्राण का पूरा नाम प्राण कृष्ण सिकंद था और उनका जन्म 12 फरवरी, 1920 को पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान इलाके में एक संपन्न परिवार में हुआ था। उनको अभिनय का शौक बचपन से ही था, छुटपन में मोहल्ले की रामलीला में उन्होंने एक बार सीता का किरदार निभाया था। पढ़ाई पूरी करने के बाद प्राण अपने पिता के काम में हाथ बंटाने लगे। एक दिन पान की दुकान पर उनकी मुलाकात लाहौर के मशहूर पटकथा लेखक वली मोहम्मद से हुई। वली मोहम्मद ने प्राण की सूरत देखकर उनसे
क
फिल्मों में काम करने का प्रस्ताव दिया। प्राण ने उस समय वली मोहम्मद के प्रस्ताव पर ध्यान नहीं दिया लेकिन उनके बार-बार कहने पर वह तैयार हो गए। फिल्म ‘यमला जट’ से प्राण ने अपने सिने करियर की शुरूआत की। फिल्म की सफलता के बाद प्राण को यह महसूस हुआ कि फिल्म इंडस्ट्री में यदि वह करियर बनाएंगे तो ज्यादा शोहरत हासिल कर सकते है। इस बीच भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद प्राण लाहौर छोड़कर मुंबई आ गए। प्राण ने लगभग 22 फिल्मों में अभिनय किया और उनकी फिल्में सफल भी हुईं, लेकिन उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि मुख्य अभिनेता की जगह खलनायक के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा। 1948 में उन्हें बांबें टॉकीज की निर्मित फिल्म ‘जिद्दी’ में बतौर खलनायक काम करने का मौका मिला। इस फिल्म की सफलता के बाद प्राण ने लगभग चार दशक तक खलनायकी की लंबी पारी खेली। सत्तर के दशक में प्राण ने खलनायक की छवि से बाहर निकलकर चरित्र भूमिका पाने की कोशिश में लग गए। 1967 में निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार
ने अपनी फिल्म ‘उपकार’ में प्राण को मलंग काका का एक ऐसा रोल दिया जो प्राण के सिने करियर का मील का पत्थर साबित हुआ। वैसे कम ही लोग जानते होंगे कि फिल्मों में अपनी एक्टिंग से सबको अपना दीवाना बनाने वाले प्राण अभिनेता नहीं, बल्कि फोटोग्राफर बनना चाहते थे। खेलों के प्रति प्राण का प्रेम सभी को पता है। 50 के दशक में उनकी अपनी फुटबॉल टीम 'डायनॉमोस फुटबॉल क्लब' काफी लोकप्रिय रही है। प्राण अकेले ऐसे अभिनेता हैं, जिन्होंने कपूर खानदान की हर पीढ़ी के साथ काम किया। प्राण को बतौर अभिनेता तो सभी जानते हैं, लेकिन बतौर इंसान भी वह बहुत अच्छे हुआ करते थे, ये बात बहुत कम लोगों को ही पता है। फिल्मी पर्दे पर छाई उनकी इस नेगेटिव छवि के पीछे एक दरियादिल इंसान रहता था। वह अपने बारे में बाद में पहले लोगों के बारे में सोचा करते थे। प्राण साहब ने
1972 में फि ल ्म 'बेइमान' के लिए बेस्ट सपोर्टिग का फिल्मफेयर अवार्ड लौटा दिया था, क्योंकि कमल अमरोही की फिल्म ‘पाकीजा’ को एक भी पुरस्कार नहीं मिले थे। जीवन के आखिरी सालों में प्राण व्हील चेयर पर आ गए थे। वर्ष 1998 में प्राण में दिल का दौरा पड़ा। उस समय वह 78 साल के थे, फिर भी मौत को उन्होंने पटखनी दे दी थी, लेकिन 12 जुलाई, 2013 को सभी को हमेशा के लिए अलविदा कहकर वह दूर चले गए। वो भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन अपने दमदार अभिनय के कारण वह हमेशा हम सबके दिल में बसे रहेंगे।
बैंकाक फिल्म फेस्ट में ‘किताब’
लॉस एंजेिलस शॉर्ट फेस्ट में ‘किताब’ फाइनलिस्ट है और अवॉर्ड की होड़ में है। रोम इंडिपेंडेट प्रिज्मा फिल्म फेस्टिवल और स्टारलाइट फिल्म अवॉर्ड, हैदराबाद में यह फिल्म औपचारिक तौर पर चयनित हुई है
मलेश मिश्र निर्देशित टॉम ऑल्टर की आखिरी फिल्म किताब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार सराही जा रही है। हाल ही में यह फिल्म बैंकाक के 9 फिल्म फेस्ट में दिखाई गई। इस अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के छठे संस्करण में दुनिया भर की 9 फाइनलिस्ट फिल्मों में किताब भी शामिल थी। इस फिल्म को कॉम्पटिशन कैटेगॉरी में ‘द बेस्ट शॉर्ट फिल्म’ (इन साउंड डिजाइन) का अवॉर्ड मिला। इसके अलावा किताब - ‘द बेस्ट शॉर्ट फिल्म’ (व्यूअर्स च्वाइस) रही। इस समरोह में किताब इकलौती फिल्म रही जिसकी स्क्रीनिंग दर्शकों की मांग पर दो बार हुई। फिल्म की पहली स्क्रीनिंग 30 मई 2018 को तय थी पर दर्शकों की मांग पर इसे समापन समारोह पर क्लोजिंग फिल्म के तौर पर 31 मई 2018 को भी दिखाई गई। बता दें कि यह फिल्म हमारे जीवन में मोबाइल फोन जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के बढ़ते प्रभाव और उसके चलते किताबों से हमारी बढ़ती दूरी पर केंद्रित है। दिलचस्प यह रहा कि बैंकाक में हुए इस फिल्म फेस्टिवल में कई माएं अपने बच्चों को फिल्म ‘किताब’ दिखाने लाईं, ताकि बच्चे इस
फिल्म से सीख लेकर मोबाइल से दूरी बनाएं और किताबें की ओर अपनी रुझान बढ़ाएं। ऐसी ही एक महिला मायरी ने बताया कि मेरे दोनों बेटे मोबाइल फोन के इस कदर आदी हो गए हैं कि
अब मुझे उनके भविष्य की चिंता होने लगी है, मैंने जब इस फिल्म के बारे में सुना तो उन्हें साथ लेकर फिल्म दिखाने आई, उम्मीद है उन्हें अब मेरी चिंता समझ में आएगी। फिल्म की कहानी एक लाइब्रेरी के बुजुर्ग लाइब्रेरीयन जॉन और उसके पाठकों के इर्द गिर्द बुनी गई है। लायब्रेरीयन की भूमिका में हैं प्रख्यात ऐक्टर टॉम ऑल्टर और रिया नाम की लड़की के किरदार में पाठकों का प्रतिनिधित्व कर रही हैं पूजा दीक्षित। रिया लाइब्रेरी में आ रही वह आखिरी पाठक है जो लायब्रेरीयन जॉन की उम्मीद की किरण है। इस समारोह में शरीक होने अमेरिका के न्यू यॉर्क से आए ग्रेमी अवार्ड विनर म्यूजिक प्रोड्यूसर जेट टॉलेंटीनो ने किताब के बारे में कहा कि बिना संवाद वाली फिल्मों का प्रवाह बनाए रखने में उसका फिल्मांकन बेहद महत्व रखता है और इस मायने में इसकी सिनमटोग्राफी कमाल की है, मैं बहुत प्रभावित हुआ हूं। किताब हर एक की फिल्म है। जेट टॉलेंटीनो की बात को आगे बढ़ाते हुए जापानी फिल्मकार सेगी ओजेकी ने कहा कि किताब की विषयवस्तु वर्ल्ड सिनेमा के स्तर की
है और इसे हर स्कूल और कॉलेज में दिखाई जानी चाहिए। 9 फिल्म फेस्ट के निर्देशक और अमेरिकी फिल्मकार ब्रायन बेनेट ने कहा कि यह फिल्म खामोश रह कर भी बड़ी बात कह रही है, निर्देशक कमलेश मिश्र ने उपेक्षित पड़ी किताबों की पीड़ा को इस फिल्म में जिस तरह उभारा है वह काबिल-ए-तारीफ है। मोबाइल फोन सचमुच हमारी जिंदगी के महत्वपूर्ण क्षणों पर कब्जा जमा चुके हैं और हमें इसपर गंभीरता से सोचना होगा, हमें किताबों की ओर लौटना होगा। किताब यहां से आगे अमेरिका में होने वाले ‘इंडी शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल’ में सिलेक्शन के लिए भेजी जा रही है। गौरतलब है कि किताब कोलकाता इंटरनेशनल कल्ट फिल्म फेस्टिवल में सर्वोत्तम शॉर्ट फिल्म का खिताब जीत चुकी है, फील द रील इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल, यूके में फाइनलिस्ट रही, जहां टॉम ऑल्टर को सेकेंड बेस्ट मेल ऐक्टर चुना गया। लॉस एंजेिलस शॉर्ट फेस्ट में यह फिल्म फाइनलिस्ट है और अवॉर्ड की होड़ में है। रोम इंडेपेंडेट प्रिज्मा फिल्म फेस्टिवल और स्टारलाइट फिल्म अवॉर्ड, हैदराबाद में यह फिल्म औपचारिक तौर पर चयनित है।
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सािहत्य कविता
सुलभ प्रणेता का भावुक अभिनंदन
हिमांशी
परम आदरणीय संस्थापक महोदय जी एवं सुलभ सभागार में उपस्थित सुलभ परिवार के सभी सदस्यों को हिमांशी का कोटि-कोटि प्रणाम। मैं सुलभ पब्लिक स्कूल की कक्षा 9 की छात्रा हूं। आज हम सब अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहें हैं, कि हमारे प्यारे संस्थापक सर को विश्व-स्तरीय ‘निक्की एशिया अवार्ड’ से जापान में सम्मानित किया गया, इस अवसर पर मैं भी उनके सम्मान में कुछ पंक्तियां समर्पित कर रही हूं और सभागार में उपस्थित सभी विद्वत जनों से आग्रह करती हूं कि तालियों से मेरा उत्साहवर्धन करें बदल कर धार आंसू की जो पुलकित मन को कर जाएं, जो जीने की नई उम्मीद से दामन को भर जाएं । जो अपने चैन और आराम का ही त्याग कर जाएं, जो दलितों और पिछड़ों का मसीहा आप बन जाएं। जो भाई बनके विधवाओं का ही हमदर्द बन जाएं, हवन करके जो अपनी हर खुशी बस चैन पा जाएं। दलित बच्चों की शिक्षा का जो बस, आधार बन जाएं, इसी जीवन में उनको नरक से मुक्ति दिला जाएं। बदल कर भाग्य जो रख दे वो विन्देश्वर ही कहलाएं -2 सुलभ के वास्ते जीना सुलभ के वास्ते मरना यही है मंत्र जो वो हर घड़ी हर-पल दे जाएं। सहजता से जो अपनी ज्ञान की गंगा बहा जाएं, बड़ी ही सादगी से जो मनुजता तुमको समझाए करें हम प्रार्थना ईश्वर से दीर्घायु वो हो जाएं। हम उनके आगे श्रद्धा और सुमन अर्पण ही कर जाएं, नमन उनको हमारा वो महामानव ही कहलाएं-2
18 - 24 जून 2018
का
विद्वता पर कभी घमंड न करें
दीपक
लिदास बोले : माते पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा। स्त्री बोली : बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं। अपना परिचय दो। मैं अवश्य पानी पिला दूंगी। कालीदास ने कहा : मैं पथिक हूं, कृपया पानी पिला दें। स्त्री बोली : तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चंद्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ। कालिदास ने कहा : मैं मेहमान हूं, कृपया पानी पिला दें। स्त्री बोली : तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं। पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ? (अब तक के सारे तर्क से वे पराजित हताश तो हो ही चुके थे) कालिदास बोले : मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें। स्त्री ने कहा : नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ? (कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)
दा
कालिदास बोले : मैं हठी हूं । स्त्री बोली : फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ? (अब तक वे पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे) कालिदास ने कहा : फिर तो मैं मूर्ख ही हूं । स्त्री ने कहा : नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो। मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए गलत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है। (कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी
की याचना में गिड़गिड़ाने लगे) वृद्धा ने कहा : उठो वत्स ! (आवाज सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए) माता ने कहा : शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसीलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा। कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े। शिक्षा विद्वता पर कभी घमंड न करें, यही घमंड विद्वता को नष्ट कर देता है। दो चीजों को कभी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए... अन्न के कण को और आनंद के क्षण को
मच्छर रोने लगी। तभी उसे अपनी सहल े ी मक्खी आती दिखाई दी। मादा मच्छर बोली – यह तो बहुत बुरा हुआ और देखो न मेरी परेशानी, तालाब में साफ पानी आ गया। अब मैं अंडे कहां दूगं ी? हमारा परिवार कैसे बढ़ेगा? तभी मोहल्ले के बच्चों का झुडं उधर आता दिखाई दिया। साफ तालाब देखकर वे खुश हुए। जब चलने लगे। तभी एकाएक उनकी नजर कूड़े के ढेर पर पड़ी.वे उसके पास जाकर रूक गए। एक ने कहा – यहां अभी कूड़े-कचरे का ढरे
पड़ा है। दूसरे दिन उन्होंने कूड़े को साफ किया। दामोदर कालोनी साफ – सुथरी हो गई। मक्खी ने मच्छरों से कहा – अब हमारे लिए यहां खाने-रहने को कुछ नहीं बचा। चलो, किसी नई जगह को ढूढं ।ें जहां हम रोग के कीटाणु लाएं और बीमारी फैलाएं। हम रोग फैलाएंग।े तभी लोग हमसे डरेंग।े मच्छर बोले मादा मच्छर बोली – तब तो मैं वहीं अंडे दूगं ी और मेरा बड़ा – सा परिवार होगा। मक्खी और मच्छरों का झुडं फिर किसी गंदी जगह की खोज में निकल पड़े। इस कहानी में बच्चों की सक्रियता ने अपने कालोनी को मच्छर मुक्त कर दिया। इसी तरह से लोग यदि गंदगी के प्रति जागरूक हो जाएं तो हमारा देश स्वच्छ और सुदं र बन जाएगा। आइए आज हम सब संकल्प लेते हैं कि हम अपने आसपास को साफ सुथरा रखेंग।ें
दिव्या
मोदर कालोनी अभी नई बनी थी। सभी घर चमकते और साफ – सुथरे थे। कालोनी के बगल में एक तरणताल था। बहुत दिनों से उसकी सफाई नहीं हुई थी। उसी पानी में मच्छरों का परिवार चैन से रहता था। तालाब से थोड़ी दूर पर कूड़े – कचरे का ढेर जमा हो गया था। उस पर मक्खी का परिवार रहता था। दोनों परिवारों में गहरी दोस्ती थी। एक दिन मोहल्ले के कुछ बच्चे हाथ में तैराकी की पोशाक लिए आए। तालाब गंदा देखा तो लौट गए। दूसरे दिन तालाब का गंदा पानी निकाल कर उसमें साफ पानी भरा जाने लगा। उस समय मच्छरों का परिवार मक्खी के घर मिलने गया था। जब वे लौटे तो उन्हें बड़ा झटका लगा। यह क्या! गंदे पानी की जगह तालाब में साफ पानी चमक रहा था। मच्छर बिना घर -बार के हो गए। उन्हें समझ में न आया कि क्या करें। परिवार की मादा
स्वच्छता
18 - 24 जून 2018
आओ हंसें
मां का गुस्सा
मां : सोफा लेटने के लिए नहीं बैठने के लिए होता है बेटा। बेटा : हां, तो... चप्पल भी मारने के लिए नहीं पहनने के लिए होती है। मां गुस्से में और बेटे को एक और पड़ी। भारी पड़ी बड़ाई पत्नी : कैसी लग रही हूं मैं? पति: बिल्कुल प्रियंका चोपड़ा। पत्नी (खुश होते हुए) : कौन सी वाली ‘क्रिस’ वाली या ‘डॉन’ वाली? पति: ‘बर्फी’ वाली। इतना सुनते ही पत्नी के बेलन का वार बाहुबली के तलवार से भी भारी था।
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इंद्रधनुष
जीवन मंत्र
सु
सुविचार पत्थर सिर्फ एक बार मंदिर जाता है और भगवान बनकर पूजा जाता है इनसान रोज मंदिर जाता है पर अच्छा इनसान नहीं बन पाता है
डोकू -27
रंग भरो सुडोकू का हल इस मेल आईडी पर भेजेंssbweekly@gmail.com या 9868807712 पर व्हॉट्सएप करें। एक लकी विजते ा को 500 रुपए का नगद पुरस्कार दिया जाएगा। सुडोकू के हल के लिए सुलभ स्वच्छ भारत का अगला अंक देखें।
महत्वपूर्ण तिथियां
• 18 जून अंतरराष्ट्रीय पिकनिक दिवस, महारानी लक्ष्मीबाई, बलिदान दिवस • 20 जून विश्व शरणार्थी दिवस
• जून का तीसरा रविवार = विश्व पितृ दिवस • 21 जून अंतरराष्ट्रीय योग दिवस • 23 जून
सुडोकू-26 का हल
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ का स्थापना दिवस, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्मृति दिवस, अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस • 24 जून वीरांगना रानी दुर्गावती बलिदान दिवस
बाएं से दाएं
वर्ग पहेली-26 का हल
1. प्रतिनिधि, मुंशी (3) 3. करीबी, विश्वासपात्र (मुहावरा) (2,1,2) 6. थोड़ा (2) 7. किराया (4) 8. पेड़ों के पत्ते झड़ने का मौसम (4) 9. चौपायों का खुर, टाप (2) 10. त्रैमासिक (3) 12. बंदीगृह (2) 14. चंद्रमा (4) 15. पर्वत (4) 16. प्रतिष्ठा, आत्मसम्मान (2) 17. जोड़-मेल, सामंजस्य (5) 18. घोषणा (3)
ऊपर से नीचे
2. अशिक्षित चिकित्सक (5) 3. चेहरे के बाल (2) 4. दूसरा समय, अन्य काल (4) 5. लड़की काटकर बेचने वाला (5) 6. परिवार का स्वामी, विश्वविद्यालय का प्रमुख (4) 9. सुविधा (5) 11. एक कल्पित तोता (4) 12. बात को ध्यान व गहराई से सुनना (5) 13. गणेश (4) 16. जननी, माँ (2)
कार्टून ः धीर
वर्ग पहेली - 27
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न्यूजमेकर
18 - 24 जून 2018
अनाम हीरो
अयान गोगोई गोहैन
सबसे कम उम्र का लेखक असम के अयान में चार वर्ष की उम्र में बने देश के सबसे कम उम्र के लेखक
चा
र वर्ष की उम्र में जहां बच्चे ककहरा सीख ही रहे होते हैं, वहीं उत्तर पूर्वी भारत के एक बच्चे ने इस उम्र में अपने नाम एक बड़ा कीर्तिमान कर लिया है। इस नन्हीं सी उम्र में जो इस बच्चे ने कारनामा कर दिखाया है उसकी चर्चा सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी हो रही है। दरअसल, असम के उत्तरी लखीमपुर जिले के रहने वाले चार वर्षीय अयान गोगोई गोहैन ने इतनी कम उम्र में
भारत का सबसे कम उम्र का लेखक होने का कीर्तिमान अपने नाम कर लिया है। यह खिताब उसकी किताब ‘हनीकॉम्ब’ के लिए इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड ने दिया है। इंडिया बुक आफ रिकार्ड वह संस्था है जो देश में असाधारण प्रतिभा और उपलब्धियां प्राप्त करने वाले लोगों का नाम अपने रिकार्ड में दर्ज करता है। इसके अलावा रिकार्ड पाने वाले व्यक्ति को एक पट्टिका और प्रमाणपत्र भी दिया जाता है। चार साल के अयान को उसकी किताब में प्रकाशित उनकी 30 छोटी कहानियों और चित्रों के लिए यह खिताब दिया गया है। किताब में लिखे उसके परिचय के मुताबिक अयान उत्तरी लखीमपुर के सेंट मेरी स्कूल में पढ़ता है। वह बहुत प्रतिभाशाली है। उसने एक साल की उम्र में चित्रकारी और कहानी लिखना तीन साल की उम्र में शुरू कर दी। अयान के घर में उनकें माता-पिता और दादा जी हैं ये सभी मिजोरम में रहते हैं।
कल्पना कुमारी
पूरी हुई टॉप होने की ‘कल्पना’
मेडिकल प्रवश े परीक्षा नीट-18 में बिहार की बटे ी कल्पना बनी ऑल इंडिया टॉपर
सी
बीएसई द्वारा आयोजित नीट-2018 में बिहार की बेटी कल्पना कुमारी ऑल इंडिया टॉपर बनी है। कल्पना को बायोलॉजी में 360 में 360, केमिस्ट्री में 140 और फिजिक्स में 171 अंक मिले हैं। कल्पना बिहार के शिवहर जिले की रहने वाली है और उसने नवोदय विद्यालय शिवहर से दसवीं तथा बिहार बोर्ड से बारहवीं की परीक्षा पास की है। उसके पिता राकेश मिश्रा शिक्षा विभाग के अधिकारी हैं। कल्पना के पिता की पोस्टिंग सीतामढ़ी जिले में है। कल्पना ने दिल्ली में रहकर परीक्षा की तैयारी की। नीट में इस वर्ष 13,26,725 स्टूडेंट्स ने परीक्षा दी थी। सीबीएसई एमबीबीएस/बीडीएस में एडमिशन के लिए यह परीक्षा आयोजित करता है।
कल्पना ने 720 में से 691 अंक (99.99 परसेंटाइल) हासिल कर टॉप किया। अपनी सफलता को जीवन की सबसे बड़ी खुशी मानने वाली कल्पना ने बातचीत में कहा कि उसे उम्मीद नहीं थी कि पहला रैंक हासिल होगा। लेकिन टॉप 5 में आने का भरोसा उसे जरूर था। उसने ज्यादा फोकस सेल्फ स्टडी पर दिया। हर दिन 12-13 घंटे पढ़ाई करती थी। सोशल मीडिया से पूरी तरह दूर रही। वह कहती है कि अभी एम्स का रिजल्ट नहीं आया है, अगर पास हुई तो वहीं पढ़ाई करूंगी। नहीं तो मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज से पढ़ने की इच्छा है। जो भी मेडिकल की तैयारी कर रहे हैं उसे कल्पना की सलाह है कि वे हार्ड वर्क करें, क्योंकि इसका कोई विकल्प नहीं है।
ग्रामीण महिला समूह
न दि 3 ी ल ा खुद बन क ड़ स ी म कि में 2
बिहार के बांका जिले की तीन गांवों की महिलाओं ने प्रशासन की बेरुखी के बाद खुद सड़क बनाई
बि
हार के बांका जिले के 3 गांवों के 2,000 से ज्यादा लोगों की फरियाद जब सरकार ने नहीं सुनी तो महिलाओं ने खुद सड़क बनाने की ठानी। कड़ी धूप में महिलाओं ने अपने दम पर सिर्फ 3 दिनों में 2 किलोमीटर से ज्यादा लंबी सड़क का निर्माण कर लिया। उन्हें पुरुषों का भी समर्थन मिला। इस गांव में आजादी के बाद से कभी सड़क नहीं बनी थी। बांका जिले के नीमा, जोरारपुर और दुर्गापुर के लोग सड़क न होने से कई वर्षों से परेशान थे। कई लोगों की मौत तो सिर्फ इसीलिए हो गई, क्योंकि सड़क न होने के कारण वे लोग समय से अस्पताल नहीं पहुंच सके। नीमा की रेखा देवी ने बताया कि उनके लोगों का दर्द तब और बढ़ जाता था जब बारिश में रास्ता दलदल में बदल जाता। रेखा ने कहा कि उनका गांव ब्लॉक मुख्यालय से मात्र ढाई किलोमीटर है, वे लोग वहां तक भी नहीं पहुंच सकते थे। प्रशासन की मानें तो पांच साल पहले उन लोगों ने इन गांव के लिए सड़क बनाने के लिए भूमि अधिग्रहण करने का प्रयास किया, लेकिन भूमि मालिकों के विरोध के चलते वे लोग ऐसा नहीं कर सके। गांव की महिलाओं और बच्चों को सड़क न होने से सबसे ज्यादा परेशानी हो रही थी इसीलिए उन्होंने खुद सड़क बनाने की ठानी। नीमा, जोरारपुर और दुर्गापुर गांव की 130 महिलाओं ने एक समूह बनाया। उन लोगों ने फैसला लिया कि बारिश का मौसम आने से पहले वे लोग अपने गांव के लिए खुद सड़क बनाएंगीं। महिलाएं सुबह सूरज उगने के बाद सड़क बनाने के काम में लग जाती थीं और सूरज ढलने के बाद ही घर लौटती थीं। हाथों में टोकरी, फावड़ा लेकर बिना कड़ी धूप की परवाह किए महिलाएं लगातार मेहनत करती रहीं। तीन दिनों के अंदर महिलाओं ने दो किलोमीटर लंबी सड़क बना ली। बांका डीएम कुंदन कुमार ने महिलाओं के इस प्रयास की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि महिलाओं ने जो सड़क बनाई है, अब प्रशासन उस सड़क को कंक्रीट कर देगा।
आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 27