सुलभ स्वच्छ भारत - वर्ष-2 - (अंक 40)

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आवरण कथा

मददगार मोदी

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अभिमत

नमो ने स्वच्छता आंदोलन को दी गति

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प्रधानमंत्री रिलीफ फंड

बदलते भारत का साप्ताहिक

सर झुकाने की बारी आए ऐसा मैं कभी नहीं करूंगा पर्वत की तरह अचल रहूं व नदी के बहाव सा निर्मल श्रृंगारित शब्द नहीं मेरे नाभि से प्रकटी वाणी हूं मेरे एक एक कर्म के पीछे ईश्वर का हो आशीर्वाद

आवरण कथा सैलरी और समर्पण

आवरण कथा

नमो प्रसंग

डाक पंजीयन नंबर-DL(W)10/2241/2017-19

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597

प्रयत्न

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वर्ष-2 | अंक-40 |17 - 23 सितंबर 2018


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आवरण कथा

17 - 23 सितंबर 2018

मोदी चरितम्

आशा और समर्पण के साथ एक व्यक्ति किस तरह अपने साथ पूरे राष्ट्र के जीवन को असाधारण तरीके से बदल सकता है, आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जीवन उसकी सबसे बड़ी मिसाल है

2 अक्टूबर पर महात्मा गांधी की जयंती पर ‘स्वच्छ भारत’ का अभियान सवा सौ करोड़ देशवासियों ने आरंभ किया है। मुझे विश्वास है कि आप सब इसको आगे बढ़ाएंगे

अक्टूबर 2014

एसएसबी ब्यूरो

रेन्द्र मोदी का जीवन और व्यक्तित्व दोनों ही साधारण को असाधारण साबित करता है। एक चाय विक्रेता से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री बनने तक नरेन्द्र मोदी ने सफलता की जो कहानी लिखी है, वह हम सभी को प्रेरित करती है। उनकी सफलता के बारे में उल्लेखनीय बात यह है कि उनके जीवन में हर मुश्किल समय पर, उनके पास साहस और दृढ़ विश्वास था कि वे खुद के लिए सकारात्मक परिणाम का पता लगा सकते हैं। उन्होंने हर नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदल दिया।

‘न्यू इंडिया’ का विजन

उनका दृढ़ विश्वास इतना ताकतवर है कि वह आज एक ताजगी से भरे सकारात्मक बदलाव का प्रतीक बन चुके हैं। ‘न्यू इंडिया’ के विजन के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक ऐसे यज्ञ को पूरा करने में लगे हैं, जो भारत को फिर से विश्वगुरु के प्रतिष्ठित आसन पर आसीन कर सके। यह एक ऐसा यज्ञ है, जिसमें मंत्र के रूप में नरेन्द्र मोदी के प्रेरणा सूत्र काम कर रहे हैं, तो वही समिधा के रूप में देश का युवा उद्यम अपने राष्ट्र को महान बनाने के संकल्प को पूरा करने के योगदान के साथ सामने आ रहा है।

सफलता का श्रेय

एक साक्षात्कार में जब पूछा गया कि वह अपनी सफलता का श्रेय किसे देंगे, तो उन्होंने बार-बार अपनी कड़ी मेहनत के साथ अपने आशावाद और सकारात्मक दृष्टिकोण का उल्लेख किया। वह अक्सर पानी से भरा आधा ग्लास दिखाकर उसका सकारात्मक दृष्टिकोण पेश करते हैं और हर किसी को आश्वस्त करते हैं कि उनके लिए, यह हमेशा कगार से भरा लगता है, जबकि कांच के नीचे आधा पानी से भरा हुआ है, वह सभी को आश्वासन देता है कि आधा भाग हवा से भर जाता है यह केवल धारणा का मामला है।

संवेदनशील राजनेता

देश के सामाजिक- आर्थिक विकास के जो एजेंडे उन्हेंने तय कर रखे हैं, उन्हें लेकर पूरा देश उनके साथ खड़ा है। देश को साथ लेकर चलने की जो क्षमता नरेन्द्र मोदी में है, मौजूदा दौर में उतनी ऊर्जा और क्षमता किसी दूसरे राजनेता में नहीं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि नरेन्द्र दामोदरदास मोदी महज एक राजनेता नहीं हैं, वे महज सत्ता के लिए चुनावी बिसात बिछाने वाले नेता नहीं, बल्कि नरेन्द्र मोदी एक संवेदनशील व्यक्ति का नाम है, जिसे गरीबों का दुख, वंचितों का पसीना, खेतों की दुर्दशा, बेटियों का दर्द, बहनों के आंसू हर

खास बातें हर नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदलने का जज्बा ‘न्यू इंडिया’ के विजन को परू ा करने में जुटे हैं पीएम मोदी नरेन्द्र मोदी ने अपने लिए स्वयं सांचे बनाए और मानदंड गढ़े पल व्यथित करते हैं। सीमा पर तैनात जवानों की चिंता से लेकर सामाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के लिए पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ अहर्निश काम करना और उसके लिए देश के लोगों को निरंतर प्रेरित करना नरेन्द्र मोदी की ऐसी खूबी है, जिसकी तुलना किसी दूसरे से नहीं की जा सकती। निम्न मध्यवर्गीय जीवन का सबक वे कभी नहीं भूलते, इसीलिए वे दुनिया के किसी भी कोने में हों, किसी भी मंच पर और किसी भी मौके पर वे देश समाज और दुनिया के वंचितों को भूलते नहीं।


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आवरण कथा

वडनगर से दिल्ली तक का सफर

एक सामान्य परिवार और पृष्ठभूमि से निकलकर नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह एक साधारण कार्यकर्ता से लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री और फिर देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे, उसकी दास्तां रोमांच से भर देने वाली है

नका जन्म 17 सितंबर 1950 को हुआ। उनकी माता का नाम श्रीमती हीराबेन और पिता का नाम श्री दामोदरदास मोदी है। छह भाइयों के बीच तीसरे बच्चे, मोदी ने अपने शुरुआती सालों में भाई के साथ पिता को चाय बेचने में मदद की। उन्होंने गुजरात में एक छोटे से शहर वडनगर में अपनी पढ़ाई पूरी की। यहां तक की उनके स्कूली शिक्षा के वर्षों में और तुरंत उसके बाद उन्होंने भारत-पाक युद्ध के दौरान सैनिकों को चाय पिलाई। एक महान वक्ता के रूप में मोदी की पहली झलक उनके स्कूली शिक्षा के वर्षों में देखी गई। एक साक्षात्कार में उनके स्कूल के शिक्षक ने यह बताया कि वे हमेशा एक जबरदस्त भाषण देने वाले व्यक्ति रहे, जो हर किसी सुनने वाले को अपनी और आकर्षित कर लेते थे। 1971 में, भारत-पाक युद्ध के ठीक बाद, गुजरात राज्य सड़क परिवहन निगम के कर्मचारी कैंटीन में काम करते समय मोदी एक प्रचारक के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हो गए। इसी दौरान उन्होंने खुद को राजनीति के प्रति समर्पित करने का एक सचेत निर्णय लिया। संघ में उनके योगदान को स्वीकार करते हुए और 1974 के जयप्रकाश आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी को देखते हुए उन्हें अतिरिक्त जिम्मेदारियां दी गईं। धीरे-धीरे वे एकएक कदम बढ़ते गए। उन्हें जल्द ही गुजरात में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का प्रभारी बना दिया गया। उनकी क्षमता को देखते हुए संघ ने उन्हें 1985 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में भेज दिया। हर कदम पर उन्हें जो भी जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई, उसमे नरेन्द्र मोदी ने अपनी क्षमता साबित की और जल्द ही वे

खुद की चुनौती खुद

नरेन्द्र मोदी ने अपने लिए स्वयं सांचे बनाए और मानदंड गढ़े और निरंतर उसी का अनुसरण करते रहे। उनके सामने कोई चुनौती नहीं है, अपनी चुनौतियां वे स्वयं निर्मित करते हैं और अपने लक्ष्य वे स्वयं निर्धारित करते हैं। एक साक्षत्कार में वे कहते हैं, ‘हम खुद अपने लिए चैलेंज हैं, क्योंकि हम ने मयार (बेंचमार्क) इतना बुलंद कर दिया है लोग हमारे मयार पर हमें नापते हैं। मोदी 16 घंटे काम करता है, तो लोग कहते हैं 18 घंटे क्यों नहीं करता? लोगों की एक्स्पेक्टेशन नरेन्द्र मोदी से बहुत ज्यादा हैं। हमें खुद अपने रिकॉर्ड तोड़ने पड़ते हैं।’ नरेन्द्र मोदी के इस कथन को कुछ लोग भले ही उनकी गर्वोक्ति मानें, लेकिन यह नरेन्द्र मोदी

एक साक्षात्कार में उनके स्कूल के शिक्षक ने यह बताया कि वे हमेशा एक जबरदस्त भाषण देने वाले व्यक्ति रहे, जो हर किसी सुनने वाले को अपनी और आकर्षित कर लेते थे पार्टी के लिए अपरिहार्य बन गए। 1988 में वे भाजपा के गुजरात विंग के संगठन सचिव बने और 1995 के राज्य चुनावों में पार्टी को जीत दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई। इसके बाद उन्हें भाजपा के राष्ट्रीय सचिव के रूप में नई दिल्ली में स्थानांतरित किया गया। 2001 में, जब केशुभाई पटेल गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री थे, भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने मोदी को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में चुना। वह 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने और अपने कार्यकौशल के कारण लगातार चार बार मुख्यमंत्री चुने गए।

तथ्य यह है कि गुजरात में उनके उल्लेखनीय और निर्विवाद प्रदर्शन ने उन्हें भाजपा के शीर्ष पीठ नई दिल्ली में बैठने के लिए मजबूर किया, ताकि उन्हें 2014 के चुनावों में पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पदस्थ किया जा सके। इसके साथ ही वे 2014 में भारत के 14वें प्रधानमंत्री बने। इससे आगे का इतिहास सिर्फ नरेन्द्र मोदी का नहीं, बल्कि आधुनिक भारत का नए सिरे से और नए विजन से नवनिर्माण की गाथा है, जिसके स्वर्णिम सुलेख में वे हर दिन कुछ नया जोड़ते चले जा रहे हैं।

सीमा पर तैनात जवानों की चिंता से लेकर समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के लिए पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ अहर्निश काम करना और उसके लिए देश के लोगों को निरंतर प्रेरित करना नरेन्द्र मोदी की ऐसी खूबी है, जिसकी तुलना किसी दूसरे से नहीं की जा सकती के व्यक्तित्व का ऐसा पक्ष है, जिसके रहस्य को सुलझाने में आज भी राजनीतिक विश्लेषक बहस में उलझे हैं।

जनमानस पर छा गए

नरेन्द्र मोदी की बढ़ी लोकप्रियता के बीच उनको

जानने समझने की कोशिशें निरंतर जारी हैं। लेकिन हर कोशिश, हर प्रयास के बाद भी ऐसा बहुत कुछ है, जो बाकी रह जाता है। असल में नरेन्द्र मोदी एक ऐसे सितारे की तरह उभरे और देश के जनमानस पर छा गए, जिनके विकल्प की खोज फिलहाल बेहद मुश्किल है। क्योंकि जनता से सीधे संवाद की जो

कोई कल्पना कर सकता है कि सफाई ऐसा जन आंदोलन का रूप ले लेगा। अपेक्षाएं बहुत हैं और होनी भी चाहिएं। एक अच्छा परिणाम मुझे नजर आ रहा है

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आवरण कथा

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क्षमता नरेन्द्र मोदी में है, जनभावना को समझने और उसके अनुसार काम करने की कला नरेन्द्र मोदी के पास है, जो पारदर्शी, ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्तित्व नरेन्द्र मोदी के पास है, जो तत्परता और कार्य-निष्पादन की चपलता नरेन्द्र मोदी के पास है, जो निडरता और दृढ़ता नरेन्द्र मोदी के पास है, वह सब एक साथ आजाद भारत के किसी नेता में नहीं। इसीलिए नरेन्द्र मोदी एक ऐसे ध्रुव हैं, जिनके समक्ष दूर –दूर तक कोई नहीं। इसीलिए सियासत के वे एक ऐसे केंद्र बन गए हैं, जिन पर निरंतर निशाना साधा जाता है। लेकिन सियासी निशानेबाजी से अब

तक उनका व्यक्तित्व बड़ा ही हुआ है क्योंकि यह तथ्य है कि जनभावनाओं के विरुद्ध की गई बातें अस्वीकृत कर दी जाती हैं। नरेन्द्र मोदी के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। नरेन्द्र मोदी ऐसे नेता हैं, जिन्होंने जनमानस के साथ न सिर्फ राजनीतिक रिश्ता विकसित किया है, अपितु उसके साथ एक भावनात्मक लगाव भी स्थापित किया है। इसीलिए उनके प्रशंसक भारत में ही नहीं, अपितु दुनिया के कई देशों में भी हैं। जनता से सीधे संवाद करने के कौशल से समाज के हर वर्ग में उनकी खास छवि है।

मदद के लिए हमेशा तत्पर

नरेन्द्र मोदी ने जनता से सीधा संवाद स्थापित करने के उद्देश्य से सूचना प्रौद्योगिकी का अनूठा उपयोग किया है एवं इसके माध्यम से देश का युवा वर्ग बड़ी संख्या में नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ है। लोगों के पत्रों को पढ़ना, उनके ट्वीट का उत्तर देना, जरूरतमंद की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहना, एक छोटे से बच्चे से लेकर एक बीमार तक की आकांक्षाओं को पूरा करना, ये सब कुछ ऐसी छोटी, लेकिन बड़ी बातें हैं, जो उन्हें सबसे अलग और विशिष्ट बनाती हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण

देश के सर्वांगीण विकास की जो ललक नरेन्द्र मोदी में दिखती है, वह अपने आप में अनूठी है। किसी समस्या के समाधान के लिए वे राजनीतिक नहीं, अपितु वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हैं। वोट बैंक की राजनीति उन्हें पसंद नहीं और ऐसा करने वालों के प्रति उनकी बेरुखी कई मौकों पर देखी गई है। विकास का उनके लिए सीधा अर्थ है, सबका विकास। इसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव

हम खुद अपने लिए चैलेंज हैं, क्योंकि हम ने मयार (बेंचमार्क) इतना बुलंद कर दिया है लोग हमारे मयार पर हमें नापते हैं। मोदी 16 घंटे काम करता है, तो लोग कहते हैं 18 घंटे क्यों नहीं करता? लोगों की एक्स्पेक्टेशन नरेन्द्र मोदी से बहुत ज्यादा हैं। हमें खुद अपने रिकॉर्ड तोड़ने पड़ते हैं –नरेन्द्र मोदी सबको लगने लगा है कि यह हमारा देश है, इसे हम गंदा नहीं करेंगे । हम गंदगी में इजाफा नहीं करेंगे। और जो भी करते हैं वो शर्मिन्दगी महसूस करते हैं। तुरंत कोई न कोई उनको टोकने वाला मिल जाता है। मैं इसे शुभ संकेत मानता हूं

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आवरण कथा

‘मैं तो औलिया हूं भाई...’

‘मैं अभाव में पैदा हुआ हूं। इसीलिए मुझ पर किसी चीज का प्रभाव नहीं होता है। ...और ये फकीरी वगैरह तो शब्द बड़े हैं, लेकिन मैं तो औलिया हूं भाई, मेरा कोई लेना-देना नहीं है’

नरेन्द्र मोदी

म लोग जानते हैं हिंदुस्तान में राजनेताओं के साथ ऐसी बातें, सब सच होती हैं ऐसा भी मैं नहीं कहता हूं, झूठ होती हैं ये भी मैं नहीं कह सकता। लेकिन ये तो होता कि यार वो फलाना था, कितना ले गया। लेकिन मैं गर्व से कहता हूं कि जब मैंने गुजरात छोड़ा था तो ये जो मुझे मिलती थीं चीजें, मैं उसका लगातार ऑक्शन करता था पब्लिक में। ऑक्शन करके उससे जो पैसा आता था वो मैं बालिका शिक्षा के लिए सरकार को दे देता था। और करीब-करीब 100 करोड़ से ज्यादा रुपए ऑक्शन से आए और फिर लोग मुझे चेक भी देने लगे। किसी फंक्शन में जाता था तो चीज देने के बजाय बालिका शिक्षा के लिए चेक देने लगे। ये रकम करीब-करीब 100 करोड़ से ज्यादा थी, जो मैं बच्चियों की शिक्षा के लिए दे देता था। जब मेरा मुख्यमंत्री छोड़कर दिल्ली आना तय हो गया, आप लोगों ने मुझे धक्का मार दिया। तो मैंने मेरे अफसर जो थे उनको बुलाया। मैंने कहा भाई, ये जो मैं विधायक के नाते कमाता था, क्योंकि विधायक के नाते पैसे मिलते थे, कहां पैसे पड़े हैं? क्या करेंगे हम लोग? मैं कहां ले जाऊंगा? आप हैरान होंगे सुन करके। मुझे अभी याद नहीं है, शायद 5-6 लाख रुपया था। मैंने कहा कि भाई मैं तो कोई सरकार में दे देना चाहता हूं। और मैंने कहा कि मेरी इच्छा यह है कि गांधीनगर के सचिवालय में जो ड्राइवर और चपरासी हैं, उनके लिए मैं रकम छोड़ दूं, आप इसकी व्यवस्था कर दीजिए। उसके ब्याज में से ये ड्राइवर और उनके चपरासी के बच्चों को कुछ न कुछ मदद मिलती न उन्हें पसंद है और न ऐसा करने की वे किसी को इजाजत देते हैं। नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व और उनकी सफलता के पीछे उनकी यही भावना सबसे प्रमुख है।

समस्या से निपटने की कुशलता

वे जितने बेहतर वक्ता हैं उतने ही उत्कृष्ट श्रोता भी हैं। उनका यह प्रयास होता है कि किसी भी समस्या के समाधान हेतु सबसे पहले उसके समग्र रूप को जाना जाए और फिर उसका समाधान भी उसी प्रकार समग्रता से साथ हो। उनका मत है कि समस्या के समाधान की शुरुआत उसे बेहतर तरीके से समझने के साथ होती है। वे हर कोण से समस्या एवं उसके संभावित समाधान पर चर्चा करते है। वे किसी भी कार्य एवं समस्या के लिए तदर्थ अथवा फौरी प्रयास करने के विरुद्ध रहते हैं एवं स्थायी एवं दीर्घकालिक समाधान की रणनीति बनाते हैं।

रहे, वो पढ़ते रहें, ऐसी व्यवस्था कीजिए। मेरे जो अफसर थे, सुन रहे थे मेरी, कुछ बोले नहीं वो। अफसर बड़े कुशल होते हैं। मुंडी ऐसे-ऐसे हिला रहे थे, मैं भी सोच रहा था कि मेरी बात मान ली, कुछ करेंगे। दो दिन के बाद उन्हों ने कहा, साहब हम जरा घर में मिलने आना चाहते हैं। मैंने कहा, आ जाइए, क्योंकि मैं जाने की तैयारी कर रहा था। बोले, साहब आप ऐसा मत कीजिए। पता नहीं कब आपको पैसों की जरूरत पड़ जाए और आपके पास कोई है नहीं। मेरे अफसरों ने मुझे वो पैसे देने नहीं दिए। तो मैंने कहा कि यार कम से कम मैं तो क्या करूंगा इसे ले जाकर?

आखिरकार वो बहुत समझाने पर मान गए और सारे पैसे तो उन्होंने मेरे लेने से मना कर दिए, लेकिन एक छोटा सा फाउंडेशन बनाया और मुझे याद नहीं आज शायद 21 हजार रुपया, इतना कुछ शायद मैं उसमें कुछ दे करके निकल गया। मैं अभाव में पैदा हुआ हूं। इसीलिए मुझ पर किसी चीज का प्रभाव नहीं होता है। और ये फकीरी वगैरह तो शब्द बड़े हैं, लेकिन मैं तो औलिया हूं भाई, मेरा कोई लेना-देना नहीं है।’ (वर्ष 2018 के अप्रैल में लंदन स्थित वेस्टमिंस्टर सेंट्रल हॉल में ‘भारत की बात, सबके साथ’ कार्यक्रम में व्यक्त अनुभव का संपादित अंश)

नरेन्द्र मोदी ऐसे नेता हैं, जिन्होंने जनमानस के साथ न सिर्फ राजनीतिक रिश्ता विकसित किया है, अपितु उसके साथ एक भावनात्मक लगाव भी स्थापित किया है। इसीलिए उनके प्रशंसक भारत में ही नहीं, अपितु दुनिया के कई देशों में भी हैं कालेधन की समस्या से निपटने के लिए जिस तरह से उन्होंने नोटबंदी का फैसला लिया, उससे यह समझा जा सकता है कि समस्या का वे दीर्घकालिक और स्थायी समाधान करने के पक्षधर हैं। वे स्पष्ट लक्ष्य, उद्देश्यों एवं कार्ययोजना के साथ अपना कार्य सम्पादित करते हैं। नरेन्द्र मोदी सही प्रक्रिया, उचित व्यक्तियों एवं समय का चुनाव करते हैं। इसके ऊपर उन्हें कार्ययोजना अनुसार कार्य की प्रगति की निगरानी में दक्षता प्राप्त है। वे अपनी बुद्धि एवं नवाचार से कार्य – प्रबंधन को बेहतर तरीके से संपादित करते हैं।

सरकारी अधिकारी हों, खेल के जगत के लोग हों, सिने जगत के लोग हों, व्यापार जगत के लोग हों, वैज्ञानिक हों...इन दिनों जब भी वो मेरे से बात करते हैं...तो दस मिनट की बात में चार पांच मिनट तो वे समाज संबंधित विषयों पर चर्चा करते हैं। कोई सफाई पर बात करता है, कोई शिक्षा पर बात करता है, कोई सामाजिक सुधार के संबंध में चर्चा करता है

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त्वरित कार्य संपादन की कला

गंदगी से बीमारी आती है, लेकिन बीमारी कहां आती है। क्या अमीर के घर में आती है क्या! बीमारी सबसे पहले गरीब के घर पर ही दस्तक देती है। अगर हम स्वच्छता को अपनाते हैं तो गरीबों की सबसे बड़ी मदद करते हैं

नवंबर 2014

वे एक सफल रणनीतिकार होने के साथ ही त्वरित कार्य संपादन की कला में भी पारंगत है। वे अपने कार्यों के अनुकूल परिणाम देखने के लिए सदैव उत्साहित रहते हैं। नरेन्द्र मोदी जहां बड़ी परियोजनाओं के सफल क्रियान्वयन हेतु कटिबद्ध रहते हैं, वहीं उनका ध्यान छोटी परियोजनाओं पर भी केंद्रित रहता है। उनका स्पष्ट मत है कि ज्ञान-विज्ञान वैश्विक होना चाहिए, परंतु उसका क्रियान्वयन स्थानीय प्रौद्योगिकी के माध्यम से किया जाना चाहिए। वे अपने लक्ष्य के प्रति बहुत सजग रहते हैं। उन्होंने हमेशा ही राजनीति को उनकी शासन व्यवस्था से अलग रखा है। उन्होंने अपने प्रशासनिक निर्णयों को राजनीतिक लाभ–हानि के हिसाब से नहीं लिया है। वे हमेशा ही पूर्ण पेशेवर तरीके से शासन चलाना सुनिश्चित करते हैं। सरकार गुजरात की हो अथवा केंद्र की लक्ष्य की पूर्ति हेतु सरकारी प्रशासनिक व्यवस्था का अराजनीतिक और पेशेवर स्वरूप ही उन्हें प्रिय है।

स्वच्छता से लेकर उज्ज्वला तक

वे गुजरात के पिछड़े माने वाले क्षेत्र के निवासी हैं एवं पिछड़ी जाति से संबंध रखते हैं। उन्होंने अपने प्रारंभिक जीवन में अभावों का सामना करते हुए संघर्ष किया है। उन्हें अच्छी तरह से पता है कि देश का आम नागरिक पानी, बिजली एवं स्वास्थ्य जैसी आधारभूत सुविधाओं के लिए कैसे संघर्ष करता है। इन्हीं अनुभवों के आधार पर उन्होंने मौका मिलते ही योजनाबद्ध एवं आक्रामक तरीके से आम जनता को इन मूलभूत सुविधाओं को उपलब्ध करने हेतु एक नयी व्यवस्था बनाने का कार्य किया है।


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स्वच्छ भारत अभियान से लेकर उज्ज्वला तक कई योजनाएं ऐसी हैं, जो निम्न तथा मध्यवर्गीय समाज को बड़ी समस्याओं से मुक्ति दिलाने वाली हैं। आम लोगों के बीच पले-बढ़े होने और उनके बीच काम करने के कारण उनका विश्वास है कि आम लोग ही बदलाव के असली वाहक हैं। उनका कहना है कि किसी भी विकास कार्यक्रम को अगर जनआंदोलन में तब्दील कर दिया जाए तो उसका असली लाभ प्राप्त किया जा सकता है- वास्तव में सरकारी विकास कार्यक्रम की जगह जनता का आंदोलन। स्वच्छ भारत अभियान का जन आंदोलन में तब्दील हो जाना इसका सबसे बड़ा और अनूठा उदाहरण है।

कम शासन, अच्छा शासन

प्रभावी प्रशासन के लिए नरेन्द्र मोदी का सूत्र वाक्य है- कम शासन, अच्छा शासन। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने सरकारी प्रक्रियाओं को सरल एवं पारदर्शी बनाया है। इस हेतु सूचना प्रौद्योगिकी का भी उचित योगदान लिया गया है। इसीलिए आज देश में ई-गवर्नेंस के रास्ते पर है। नरेन्द्र मोदी का मानना है कि शासन व्यवस्था किसी की व्यक्तिगत सनक या इच्छा पर नहीं, बल्कि एक नीतिगत व्यवस्था के अंतर्गत चलना चाहिए। गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने नीतिगत व्यवस्था को बनाने एवं उसे मजबूत करने का कार्य किया है। मोदी ने व्यवस्था के अंतर्गत कार्य करने एवं प्रणाली में पारदर्शिता बनाए रखने का निर्देश अधिकारियों को हमेशा दिया है। इसके सुखद परिणाम आज दिख भी रहे है।

निष्पक्षता एवं पारदर्शिता

सत्ताधारी नेताओं पर अक्सर भाई–भतीजावाद एवं

मेरा स्वच्छता का सीधा संबंध... मेरे गरीब भाई बहनों के आरोग्य के साथ है। हम गरीबों के और अच्छी सेवा कर पाएं या न कर पाएं हम गंदगी न करें तो भी गरीब का भला होगा, इसको इस रूप में हम लें अच्छा होगा

नवंबर 2014

पक्षपात के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन नरेन्द्र मोदी ऐसे किसी आरोप से कोसों दूर हैं। पद मुख्यमंत्री का हो या प्रधानमंत्री का उन्होंने पूरी निष्पक्षता एवं

पारदर्शिता के साथ कार्य किया है। उनके व्यक्तिगत हित का कोई एजेंडा नहीं रहता है। जन कल्याण ही उनका एकमात्र ध्येय है।


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पहले विकल्प फिर निर्विकल्प चुंबकीय व्यक्तित्व, विश्वसनीय छवि, बेदाग चरित्र, अद्भुत कर्मठता, पक्षपातहीन कार्यशैली, अनवरत काम करते जाने की ताकत के साथ बड़े निर्णय लेने और उस पर अमल करने का जो माद्दा नरेन्द्र मोदी के पास है, वह किसी दूसरे में नहीं

आज मन की बात से शासन में बैठे हुए लोगों को एक कड़ा संदेश मिल रहा है। मैं जरूर बदलाव के लिए, प्रामाणिकता से प्रयास करूंगा और उसके सभी पहलुओं पर सरकार को जगाऊंगा, चेताऊंगा, दौड़ाऊंगा। इसके लिए मेरी कोशिश रहेगी, यह मैं विश्वास दिलाता हूं

मार्च 2015

गु

एसएसबी ब्यूरो

जरात के मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए नरेन्द्र मोदी का व्यक्तित्व और उनकी छवि इतनी विशाल बन गई कि 2014 में देश के समक्ष वे एकमात्र विकल्प के रूप में उभरे। पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ दूर–दूर तक कोई दूसरा चेहरा नहीं था। अगर था भी तो नरेन्द्र मोदी के पक्ष में उमड़े जन सैलाब के सामने वे कहीं टिके नहीं। कई मानक थे और कई चुनौतियां जिन पर खड़ा उतरना किसी दूसरे के बस में नहीं था। देश के नेतृत्व के लिए जनता ने जितने मानदंड स्थापित किए, उन पर खरा उतरने की क्षमता सिर्फ नरेन्द्र मोदी में थी। 2014 में नरेन्द्र मोदी एकमात्र विकल्प थे और आज वे हर लिहाज से निर्विकल्प हैं। तात्पर्य यह कि चुंबकीय व्यक्तित्व, विश्वसनीय छवि, बेदाग चरित्र, अद्भुत कर्मठता, पक्षपातहीन कार्यशैली, अनवरत काम करते जाने की ताकत के साथ बड़े निर्णय लेने और उस पर अमल करने का जो माद्दा नरेन्द्र मोदी के पास है, वह किसी दूसरे में नहीं। नतीजा यह कि देश तब भी विकल्पहीन था और आज भी विकल्पहीन है। नरेन्द्र मोदी ने जनता से सीधा संवाद स्थापित करने के उद्देश्य से सूचना प्रौद्योगिकी का अनूठा उपयोग किया है एवं इसके माध्यम से देश का युवा वर्ग बड़ी संख्या में नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व से

मेरी बेसब्री ही मुझे गति और हर पल सोचने को प्रेरित करती है। जिस दिन मेरे अंदर या किसी के अंदर संतोष का भाव पैदा हो जाएगा तो जिंदगी वहीं थम जाएगी। अगर कोई कहता है कि बेसब्री बुरी चीज है तो समझिए वो बूढ़ा हो गया है- नरेन्द्र मोदी प्रभावित हुआ है। लोगों के पत्रों को पढ़ना, उनके ट्वीट का उत्तर देना, जरूरतमंद की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहना, एक छोटे से बच्चे से लेकर एक बीमार तक की आकांक्षाओं को पूरा करना, ये सब कुछ ऐसी छोटी, लेकिन बड़ी बातें हैं, जो उन्हें सबसे अलग और विशिष्ट बनाती हैं। वर्ष 2018 के अप्रैल में तीन देशों की यात्रा पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ब्रिटेन पहुंचे तो वहां वे अन्य बातों के अलावा अपनी कविताई के लिए खासी चर्चा में रहे। उन्होंने लंदन स्थित वेस्टमिंस्टर सेंट्रल हॉल में ‘भारत की बात, सबके साथ’ कार्यक्रम में भारतीय समुदाय के लोगों को संबोधित किया। इस कार्यक्रम का संचालन लोकप्रिय गीतकार प्रसून जोशी ने किया। इस कार्यक्रम में पीएम मोदी ने कार्यक्रम में आए लोगों के सवालों के जवाब दिए और खुलकर अपनी बात कही। इस दौरान प्रधानमंत्री ने अपने जीवन से जुड़े कुछ खास विषयों पर भी चर्चा की, जिसमें से एक है उनकी कविता। इस दौरान उन्होंने अपनी एक कविता ‘रमता राम अकेला’ की चर्चा

की, जिसे बाद में उन्होंने लोगों के लिए सोशल मीडिया पर शेयर किया। उनकी यह कविता गुजराती में है। जोशी के साथ तमाम मुद्दों पर बात करते हुए मोदी ने उन आलोचनाओं का भी जिक्र किया, जो जीवन में पग-पग पर उन्हें झेलने पड़े। इस बारे में कविताई के अंदाज में उन्होंने कहा‘जो लोग मुझ पर पत्थर फेंकते हैं, मैं उसी पत्थरों से पत्थी बना देता हूं और उस पर चलकर आगे बढ़ता हूं।’

बेसब्री ने दी गति

इसी कार्यक्रम में अपने बारे में एक बहुत ही दिलचस्प बात भी बताई कि वे बहुत बेसब्र हैं। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि मेरी बेसब्री ही मुझे गति और हर पल सोचने को प्रेरित करती है। जिस दिन मेरे अंदर या किसी के अंदर संतोष का भाव पैदा हो जाएगा तो जिंदगी वहीं थम जाएगी। अगर कोई कहता है कि बेसब्री बुरी चीज है तो समझिए वो बूढ़ा हो गया है।


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आवरण कथा

आत्मशुद्धि के लिए नवरात्र

नरेन्द्र मोदी साल में दो बार पड़ने वाले चैत्र और शारदीय नवरात्र में सभी दिन व्रत करते हैं। वे देश में हों या विदेश में व्रत का क्रम कभी टूटने नहीं देते

म नरेन्द्र मोदी के पूरे व्यक्तित्व के केंद्र में जाएं तो वहां आस्था की प्रदीप्ति दिखलाई पड़ती है। आध्यात्मिकता और आस्था कहीं न कहीं उनकी वह ताकत है, जो उन्हें हमेशा लगनशील बनाए रखती है। इस बात को रामकथा के एक संदर्भ से बेहतर समझा जा सकता है। लंका विजय के लिए निकले भगवान राम ने समुद्र तट पर शक्ति की पूजा की थी और देवी दुर्गा से विजयी होने का आशीर्वाद मांगा था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की असीम ऊर्जा का स्रोत भी कहीं न कहीं शक्ति की यह आराधना ही है। एक बार नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि वे आत्म शुद्धिकरण के लिए नवरात्र का व्रत रखते हैं। माता भक्त मोदी साल में दो बार पड़ने वाले चैत्र और शारदीय नवरात्र में सभी दिन व्रत करते हैं। वे देश में हों या विदेश व्रत का क्रम कभी टूटने नहीं देते। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सम्मान में रात्रि भोज का आयोजन किया था। उसमें प्रधानमंत्री शामिल तो हुए, लेकिन उपवास पर होने के कारण कुछ खाया नहीं। हालांकि उनको फल और उस तरह के कई व्यंजन परोसे गए, जिन्हें उपवास के दौरान लोग ग्रहण करते हैं। नवरात्र में उपवास के बावजूद वे असीम ऊर्जा

सेवा और समर्पण का अद्वितीय भाव

‘जब मैं गुजरात में था मुख्यमंत्री के नाते तो सार्वजनि‍क समारोह में जाता था तो लोग भेंट-सौगात देते हैं, बढ़िया सा शॉल देते हैं, कभी कोई चांदी की तलवार दे देता है, कोई अच्छा सा ताजमहल दे देता है। कुछ न कुछ देते रहते हैं। बहुत बढ़िया–बढ़िया पेंटिंग देते हैं, तो मैं भी इंसान हूं, मेरा भी मन करता है, यार ये बहुत बढ़िया पेंटिंग है, इसको घर में एक दीवार पर लगाऊंगा, मेहमान आएंगे तो अच्छा लगेगा। ये बढ़िया सी मूर्ति दी है, यहां रखूंगा तो बहुत अच्छा लगेगा। मेरा भी मन करेगा, आपका भी मन करेगा। करेगा या नहीं करेगा? लेकिन मेरा मन नहीं करता था। और मैं ये सारी चीजें सरकार का जो ट्रेजरी होती है, तोशा खाना बोलते हैं, उसमें डाल देता था। वो भी बड़े तंग आ गए कि ऐसा क्या सब चीज आप हमारे यहां भेज देते हो। मैंने कहा मैं कहां रखूंगा भाई? मेरा कौन संभालेगा इन चीजों को? इसके लिए किसी को रखना पड़ेगा मुझे। मैं दे देता था।’ लंदन के ही ऐतिहासिक कार्यक्रम में प्रसून जोशी के एक सवाल का उत्तर देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कही इन बातों में न सिर्फ उनका पूरा जीवन दर्शन, बल्कि उनका पूरा व्यक्तित्व समाहित है। जिन लोगों ने उस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण देखा-सुना होगा, उन्हें पता होगा कि ये बातें जिस सरलता और साफगोई से उन्होंने कही, वह जितना रोचक है, उतना ही प्रेरक भी। देश और देश की

से भरे होते हैं। वर्ष 2012 में नरेन्द्र मोदी ने अपने ब्लॉग पर लिखा था कि वह पिछले 35 वर्षों से नवरात्र के मौके पर उपवास कर रहे हैं। इसका मतलब है कि अब उन्हें उपवास रखते हुए पूरे 41 साल हो गए हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार चैत्र नवरात्र नए साल की शुरुआत में मनाया जाता है। इस मौके पर हिंदू 9 दिनों का उपवास रखते हैं इस

विश्वास के साथ कि इससे मस्तिष्कऔर शरीर शुद्ध रहता है। साफ है कि जिस नरेन्द्र मोदी को देखकर देश-दुनिया सेवाकार्य और लगन की प्रेरणा लेते हैं, उनकी अपनी शक्ति, अपनी प्रेरणा के पीछे उनकी विनम्र आस्था है, जो उन्हें बगैर किसी कर्मकांडीय आचरण के शक्ति की प्रेरणा से भरती है।

सत्ता में होने के बावजूद ऐसी निर्लिप्तता आज के दौर में लगभग असंभव है। लेकिन जो है वो मेरा नहीं और तेरा तुझको अर्पण करने की मानसिक अवस्था प्राप्त कर चुके व्यक्ति के लिए कहीं कोई बंधन नहीं रह जाता। व्यक्तिगत कोई इच्छा-आकांक्षा नहीं रह जाती। नरेन्द्र मोदी का व्यक्तित्व इन्हीं तत्वों से निर्मित है जनता के प्रति तन समर्पित, मन समर्पित वाला जो भाव नरेन्द मोदी की इन बातों में है, वह अन्यतम है। एक शासक, एक राजा, एक राजनेता और एक प्रधानमंत्री के पास जो समर्पण और सेवा का भाव होना चाहिए, नरेन्द्र मोदी उससे परिपूर्ण हैं। एक औलिया और फकीर की तरह।

कई गुणों का मेल

सत्ता में होने के बावजूद ऐसी निर्लिप्तता आज के दौर में लगभग असंभव है। लेकिन जो है वो मेरा नहीं और तेरा तुझको अर्पण करने की मानसिक अवस्था प्राप्त कर चुके व्यक्ति के लिए कहीं कोई बंधन नहीं रह जाता। व्यक्तिगत कोई इच्छा-आकांक्षा नहीं रह जाती। नरेन्द्र मोदी का व्यक्तित्व इन्हीं तत्वों से निर्मित है। जिसमें राजनीति भी है और अध्यात्म भी, समय के साथ चलने का माद्दा भी है और ध्यान लगाकर बैठने की आध्यात्मिक शक्ति भी, विपक्षी कुचक्रों, राष्ट्र-द्रोहियों और देश के दुश्मनों से निपटने का कौशल भी है और हर वंचित तबके के प्रति संवेदना

भी। भारतीय परंपरा में यह भाव जनकपुर के राजा जनक में ही पाया गया। लिप्त होकर निर्लिप्त रहने के कारण ही उन्हें विदेह कहा जाता रहा है। आज पूरे देश को अपना परिवार मानने और उसके लिए लगातार काम करने की ऊर्जा ही नरेन्द्र मोदी की पहचान है। वे स्वयं कहते हैं, ‘देश के साथ न्याय तब होता है कि मुझे अपने-आपको भुला देना होता है, अपने-आपको मिटा देना होता है। स्वयं को खपा जाना होता है और तब जा करके वो पौध खिलता है। बीज भी तो आखिर खप ही जाता है, जो वटवृक्ष को पनपाता है।’ आखिर कोई आदमी विपरीत परिस्थितियों और असाधारण पृष्ठभूमि से निकलने के बावजूद अपने अंदर इतनी शक्ति और क्षमता कैसे इकट्ठा कर पाता है। यह सवाल कई बार नरेन्द्र मोदी के सामने भी आया पर वे इसका उत्तर देते हुए अकसर राष्ट्र और समाज के लिए कुछ कर पाने की ललक को ही अपनी सबसे बड़ी शक्ति, सबसे बड़ी प्रेरणा मानते हैं। ऐसा है भी।

15 अगस्त, 2014 को मैंने लाल किले पर से स्कूलों में शौचालय के लिए अपील की थी। मैंने कहा था अगले 15 अगस्त तक हमने इस काम को पूरा करना है। ...आज मैं संतोष के साथ कह सकता हूं कि करीबकरीब स्कूलों में टॉयलेट बनाने के काम को लोगों ने पूरा किया

जून 2015


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आवरण कथा

17 - 23 सितंबर 2018

खानपान में सबसे अलग

जब कभी हम दुनियाभर के नेताओं की जीवनशैली या उनकी भागदौड़ भरी जिंदगी के बारे में पढ़ते, सुनते या देखते हैं। हम सब की एक सामान्य रुचि उनके खान-पान को लेकर होती है। हम अक्सर यह जानना चाहते हैं कि वह जिन्हें दुनिया अपेक्षा और आंकाक्षाओं भरी नजरों से देखती है, वह क्या खाते हैं? कैसे रहते हैं? दिलचस्प यह है कि विश्व के नेताओं में खाने के नाम पर सबकी पसंद अलग-अलग तो है पर अगर बात करें नरेन्द्र मोदी की तो खाने को लेकर उनकी पसंद बेहद सादा और देशज है

जीवन स्वस्थ हो इसके लिए पहली आवश्यकता है– स्वच्छता। हम सबने एक देश के रूप में बीड़ा उठाया और इसका परिणाम यह आया कि पिछले लगभग 4 सालों में सैनिटेशन कवरेज दोगुना होकर करीबकरीब 80 प्रतिशत हो चुका है

मार्च 2018

दिनों जब एक पत्रकार ने उनसे उनके पसंदीदा भोजन के बारे में पूछा तो उन्होंने ब्रॉकली का नाम लिया।

डेविड कैमरन

एसएसबी ब्यूरो

बराक ओबामा

मेशा फिट एंड फाइन दिखने वाले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और पीएम नरेन्द्र मोदी के मित्र फास्ट फूड के बड़े शौकीन हैं। उन्हें बर्गर, हॉट डॉग बहुत पसंद है। अक्सर पर अपने खाली समय में परिवार के साथ फास्ट फूड का मजा लेते हैं। हालांकि बीते

पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन से जब टीचर निकोला कैथरी अपनी किताब ‘स्क्ररमी वर्ल्ड कुकबुक’ के बारे बात कर रही थीं, तो लगे हाथ उन्होंने पीएम से उनके पंसदीदा डिश के बारे में भी पूछ लिया था। बात कुछ साल पुरानी है और तब कैमरन ने उत्साह के साथ स्पाइसी सॉसेज पास्ता का नाम लिया था।

व्लादिमीर पुतिन

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने स्वास्थ्य को लेकर काफी संजीदा रहते हैं। उनकी दिनचर्या का एक अच्छा खासा वक्त कसरत में बीतता है। वह खाने में हल्के और कम वसा वाले डिश पसंद करते हैं। हालांकि जब उनसे उनके सबसे फेवरेट

डिश के बारे में पूछा गया तो उन्होंने सारे व्यंजनों को दरकिनार करते हुए पिस्ताशि‍यो (पिस्ता) आइसक्रीम का नाम लिया।


17 - 23 सितंबर 2018

शी जिनपिंग

चीन के राष्ट्रपति अक्सर बीजिंग के किसी न किसी रेस्त्रां में भोजन करते नजर आ जाते हैं। आमतौर पर वह पोर्क बन, पिग लीवर से बनी कोई डिश और साक सब्जी ऑर्डर करते हैं।

नरेन्द्र मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उन चुनिंदा नेताओं में शुमार

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आवरण कथा

हैं, जिनके परिश्रम और ऊर्जा को लेकर आलोचक भी मुरीद हैं। अपने देसी अंदाज के लिए जानेजाने वाले प्रधानमंत्री को खाने में भी गुजराती भोजन ही सबसे ज्यादा पसंद है। वह आमतौर पर अपने रसोइए से खि‍चड़ी बनाने को कहते हैं। जबकि उन्हें साग और दाल भी बेहद पसंद है। उपवास के दिन मोदी गर्म पानी के साथ नींबू का जूस लेते हैं।

बिल क्लिंटन

अमेरिका के राष्ट्रपति रहते हुए कइयों के रोल मॉडल रहे बिल क्लिंटन ने अपने खाने-पीने की आदतों को लेकर कभी संकोच नहीं किया। वह अक्सर रेस्त्रां और अन्य दूसरी जगहों पर लजीज पकवान चखते नजर आते थे। उन्हें खाने में चिकन इकिलाडस, टैकोज, बार्बेक्यू रिब्स और पीच पाई बहुत पसंद है।

एंजेला मर्केल

जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल मिस्ड पोर्क सासेज सबसे अधिक पंसद करती हैं। यह मुख्य रूप से पोर्क का कीमा है। इसके साथ ही उन्हें हरी बंदगोभी खूब पसंद है।

नवाज शरीफ

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को खाने में पुलाव, दाल और चटनी बहुत पसंद है। हालांकि वह खाने-पीने के उतने शौकीन नहीं हैं, लेकिन यारदोस्तो में वह दावत देने के लिए खूब मशहूर हैं।

हमारे जीवन में स्वच्छता के महत्व की अभिव्यक्ति भी इस त्यौहार में समाई हुई है। छठ से पहले पूरे घर की सफाई, साथ ही नदी, तालाब, पोखर के किनारे, पूजा-स्थल यानी घाटों की भी सफाई पूरे जोश से सब लोग जुड़ कर के करते हैं। सूर्य वंदना या छठ-पूजापर्यावरण संरक्षण, रोग निवारण व अनुशासन का पर्व है।

अक्टूबर 2017


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आवरण कथा

17 - 23 सितंबर 2018

मददगार मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आम राजनेताओं की तरह सिर्फ सत्ता की राजनीति नहीं करते। उनकी राजनीति का सबसे महत्वर्ण पहलू है उनकी मानवीय संवेदना। हर किसी के के लिए हर वक्त पीएम मोदी का दिल धड़कता है। बिना किसी भेदभाव के सबका साथ तत्परता से निभाने की यही कला उन्हें महान बनाती है

हमें प्रकृति के साथ सद्भाव के साथ रहना है, प्रकृति के साथ जुड़ करके रहना है। महात्मा गांधी ने जीवन भर इस बात की वकालत की थी। ...हमनें इंटरनेशनल सोलर एलायंस के माध्यम से पूरी दुनिया को एकजुट किया तो इन सबके मूल में महात्मा गांधी के सपने को पूरा करने का एक भाव था।

मई 2018

के लिए एप्लाई कर दिया। सारा को अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए ये लोन बहुत जरूरी था, लेकिन बैंक देर पर देर कर रहा था और सारा को पढ़ाई छूटने का खतरा सता रहा था। थक हारकर सारा ने अपने पिता अब्दुल इलियास के साथ मिलकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अपनी परेशानी से अवगत कराया। प्रधानमंत्री कार्यालय से तुरंत पत्र का जवाब आया कि 10 दिन के अंदर आपको लोन मिल जाएगा, और वैसा ही हुआ 10 दिन से पहले ही बैंक वालों ने सारा को लोन दे दिया। अब सारा की एक ही ख्वाहिश है कि वो एक बार प्रधानमंत्री से मिलकर उनको धन्यवाद कहने की।

पार्थ के सारथी बने मोदी

शा

सन में बढ़ती पारदर्शिता और सरकार की जनता तक पहुंच का जीवंत उदाहरण है नरेन्द्र मोदी सरकार। देश का कोई भी नागरिक हो, चाहे बच्चा या बुजुर्ग वो अपनी बात आसानी से प्रधानमंत्री तक पहुंचा सकता है। क्योंकि वो जानता है कि नरेन्द्र मोदी आज या कल में नहीं तुरंत निर्णय लेने में विश्वास रखते हैं।

अस्पताल में इलाज कराने का फैसला किया, पर ज्यादा खर्च देखकर विवेक के परिवार वाले घबरा गए और उन्होंने माकपा सांसद ऋतुब्रत बनर्जी से मदद की गुहार लगाई। राज्यसभा सांसद ऋतुब्रत ने भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अनुरोध किया। पीएम मोदी ने विवेक के इलाज के लिए 2.90 लाख रुपए के मदद की मंजूरी दे दी।

विवेक को मिला नया जीवन

सारा की नहीं रूकेगी पढ़ाई

पश्चिम बंगाल के नदिया जिले के पलासी क्षेत्र के रहने वाले विवेक विश्वास का कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल में इलाज चल रहा था, लेकिन सरकारी अस्पताल के उपचार की सुस्त चाल के चलते, विवेक के घरवालों ने प्राइवेट

कर्नाटक की बी.बी.सारा, जो अपनी एमबीए की पढ़ाई को आगे जारी रखना चाहती थी, लेकिन आर्थिक हालात ठीक नहीं होने की वजह से वो ऐसा नहीं कर पा रही थी। कर्नाटक के मंड्या की शुगर टाउन की रहने वाली सारा ने बैंक से एजुकेशन लोन

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 12 साल के पार्थ के सारथी बने। गुजरात के भावनगर का रहने वाला पार्थ जो कि डीजेनरेटिव ब्रेन नामक बीमारी से पीड़ित है। पार्थ के पिता अपने बच्चे की इस बीमारी के इलाज में अपनी पूरी जमा-पूंजी खर्च चुके थे, लेकिन फिर भी पार्थ को सही इलाज नहीं मिल पा रहा था। ऐसे में हर जगह हार मान चुके पार्थ के पिता को एक ही उपाय नजर आया और उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा। मोदी ने पत्र पढ़कर तुरंत स्वास्थ्य मंत्री को पार्थ के इलाज की उचित व्यवस्था कराने को कहा। एम्स में पार्थ का सही इलाज चल रहा है।


17 - 23 सितंबर 2018

रोहित के बने संकटमोचक

पर कार्रवाई करते हुए गुरु तेग बहादुर अस्पताल को तैयबा के इलाज का निर्देश दिया और इलाज शुरू हो गया।

कैंसर पीड़ित की मदद

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 14 साल के रोहित कुमार के लिए संकटमोचक बनकर सामने आए। बिहार के सीवान में रहने वाले रोहित के परिवार को मदद की सख्त जरूरत थी। प्रधानमंत्री ने महज एक खबर का संज्ञान लेकर उन्हें ये मदद पहुंचाई। एक अखबार में खबर आने पर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने एम्स में रोहित का इलाज कर रहे डॉक्टर से बात की। जिसके तुरंत बाद 13 फरवरी को रोहित के इलाज और पोर्टेबल वेंटिलेटर खरीदने के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष से दो लाख रुपए जारी कर दिए गए। प्रधानमंत्री से मदद पाकर रोहित का परिवार बेहद खुश है।

पटना के बीएम दास रोड निवासी सुमित रंजन सिन्हा को कैंसर इलाज के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष से दो लाख रुपए दिए गए। राज्यसभा सांसद आरके सिन्हा की अनुशंसा पर पीएम नरेन्द्र मोदी ने सहायता राशि को स्वीकृति दी। पीएम ने सुमित को एक शुभकामना संदेश भी भेजा, जिसमें उनके रोगमुक्त होने की कामना की। इसके अलावा सांसद की अनुशंसा पर कुर्जी के सना अर्फी को कैंसर के इलाज के लिए तीन लाख रुपए, जबकि दिल्ली के प्रमोद जैन को भी पीएम राहत कोष से गंभीर बीमारी के इलाज के लिए 50 हजार रुपए दिए।

नन्ही रिद्धि

सर्जरी के लिए की नाबालिग की मदद

हृदय की गंभीर समस्या से जूझ रहे 16 वर्षीय नाबालिग ने प्रधानमंत्री से आर्थिक मदद मांगी। मदद मांगने के बाद वह चंडीगढ़ में एक चोरी के केस में पकड़ा गया। इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नाबालिग के इलाज के लिए 50 हजार रुपए की आर्थिक सहायता दी है।

तैयबा का सहारा बने

आगरा की तैयबा का परिवार तो निराश हो चला था। महज 12 साल की उम्र में तैयबा के दिल का एक वॉल्व खराब हो गया। इलाज बेहद खर्चीला था। कैसे होगा इलाज तभी तैयबा को मोदी अंकल का

बुलंदशहर की कैंसर पीड़ित नन्ही बच्ची रिद्धि को प्रधानमंत्री ने 3 लाख रुपए की मदद दी है। बुलंदशहर के हाजीपुर गांव के रहने वाले रिद्धि के पिता प्रयमेंद्र दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे, लेकिन अपनी इकलौती बेटी को कैंसर से निजात दिलाने के संघर्ष में उनकी नौकरी चली गई। लाखों रुपए की जमापूंजी और गांव की खेतीबाड़ी बेचकर प्रयमेंद्र ने अपनी बेटी का इलाज कराया। दिल्ली के धर्मशिला अस्पताल में रिद्धि की 5 बार कीमोथैरेपी हुई और फिर बोनमैरो ट्रांसप्लांट हुआ। लेकिन महज दो महीने बाद जांच में पता चला कि रिद्धि का कैंसर फिर से लौट आया है। अपने रिश्तेदार, दोस्तों से उधार लेकर रिद्धि के इलाज में लगा चुके प्रयमेंद्र की पीएम नरेन्द्र मोदी ने 3 लाख रुपए से मदद की।

कैंसर पीड़िता को मिली नयी जिदंगी

ध्यान आया। क्यों न उनसे मदद मांगी जाए। तैयबा ने पीएम को चिट्ठी लिखी और नतीजा दुनिया के सामने है। तैयबा का दिल्ली के गुरु तेग बहादुर अस्पताल में इलाज चल रहा है। तैयबा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखी चिट्ठी में कहा कि वह जन्म से ही दिल की बीमारी से पीड़ित है और उसके मजदूर पिता के पास 15 से 20 लाख रुपए नहीं कि इलाज करा सकें। तैयबा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उन्हें पीएमओ से जवाबी चिट्ठी मिली। उसी खत में दिल्ली सरकार को निर्देश भी दिया गया था कि खर्च की परवाह किए बिना तैयबा का उचित इलाज करवाया जाए। दिल्ली सरकार ने भी इस पत्र

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से एक महिला अपनी बेटी का इलाज कराने की गुहार लगाई। इस महिला की बेटी की दोनों किडनियां भी खराब हैं। प्रधानमंत्री ने पीड़िता को वाराणसी के रविंद्रपुरी स्थित दफ्तर में मुलाकात की। यह दफ्तर उनके संसदीय क्षेत्र के लोगों की समस्याएं सुनने करने के लिए ही बनाया गया था। मोदी से मिलकर आईं कल्याणी मिश्रा ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री से अपनी बेटी का इलाज कराने की गुहार लगाई। प्रधानमंत्री ने तुरंत ही प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के अधिकारियों का नंबर लगाया और उन्हें कहा कि मुझे पहली प्राथमिकता देते हुए मेरी सहायता की जाए। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि प्रधानमंत्री इतने विनम्र

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और मददगार हो सकते हैं।

वैशाली की हुई ओपन हार्ट सर्जरी

मोदी सरकार की तत्परता का अनुभव पुणे की सात साल की वैशाली यादव नाम की छोटी बच्ची ने लिया। वह पुणे में हडपसर के पास भेकराई नगर में रहती है। पहली कक्षा में पढ़ने वाली वैशाली के दिल में होल होने की वजह से वो हमेशा बीमार रहती थी। डॉक्टर ने सर्जरी को अनिवार्य बताया। बच्ची के चाचा मजदूरी करते है। बहादुर बेटी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खत लिखकर अपने मन की बात बताई। खत मिलने पर पीएमओ ऑफिस से पुणे के कलेक्टर को वैशाली की मदद करने कहा गया और पुणे के रुबी हॉल क्लीनिक में वैशाली की ओपन हार्ट सर्जरी भी पूरी हो गई। वो अपने घर पर सुरक्षित है। वैशाली के घरवालों के लिए यही अच्छे दिन है।

डीएवी में नामांकन

मुजफ्फरपुर बिहार जिले के प्रखंड मुरौल के शांभा के छात्र दिव्यांशु ने रेडियो पर प्रधानमंत्री के मन की बात सुनी। उसके बाद उसने अपने मन की बात कहने के लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। उसने लिखा कि उसका सपना डॉक्टर बनने का है। पापा जैसे-तैसे घर संभालते हैं। दादा जी के इलाज में बहुत सारे पैसे खत्म हो जाते हैं। इतने पैसे नहीं कि अच्छे स्कूल में पढ़ाई कर सके। उसने लिखा कि वह डॉक्टर बनकर जरूरतमंदों का इलाज करना चाहता है। पीएम नरेन्द्र मोदी की पहल पर केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय (एमएचआरडी) ने उसके नामांकन की सिफारिश सीबीएसई बोर्ड से की। फिर, बच्चे की इच्छानुसार सीबीएसई ने मुजफ्फरपुर के डीएवी पब्लिक स्कूल (मालीघाट) में उसके नामांकन के लिए स्कूल के प्राचार्य को पत्र लिखा। उसके बाद छात्र का सपना पूरा हो गया।

अभी पिछले दिनों ‘स्वच्छ गंगा अभियान’ के तहत बीएसएफ के एक ग्रुप ने एवरेस्ट की चढ़ाई की। पूरी टीम एवरेस्ट से ढेर सारा कूड़ा अपने साथ नीचे उतार कर लाई। यह कार्य प्रशंसनीय तो है ही, साथ ही यह स्वच्छता के प्रति, पर्यावरण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।

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व्यक्तित्व, कृतित्व और नेतृत्व

हाल के दशकों में भारतीय राजनेता की जो वितृष्णा से भर देने वाली छवि बनी है उससे अलग नरेन्द्र मोदी उस वर्ग को एक ताजगी का अहसास देते हैं

मै आपसे वादा करता हूं कि अगर आप एक दिन में 12 घंटे तो काम करेगे तो मैं 13 घंटे काम करूंगा। अगर आप 13 घंटे तो मै 14 घंटे और आप 14 घंटे काम करेंगे तो मैं 15 घंटे काम करूंगा क्योंकि मैं आप सबका प्रधानमंत्री नहीं प्रधान-सेवक हूं।

एसएसबी ब्यूरो

रेन्द्र मोदी के आलोचक भी ये मानते हैं कि वे स्वयं को एक अलग तरह के राजनेता के रूप में स्थापित करने में कामयाब हुए हैं, जो विकास को मुद्दा बनाकर भी चुनाव जीत सकता है। कहीं न कहीं उन्होंने मध्यवर्गीय भारत की राजनीति के प्रति उदासीनता को अपने प्रति भुनाया है, स्वयं को भीड़ से अलग रखकर, दिखाकर और काम कर। हाल के दशकों में भारतीय राजनेता की जो वितृष्णा से भर देने वाली छवि बनी है, उससे अलग नरेन्द्र मोदी उस वर्ग को एक ताजगी का अहसास देते हैं। दरअसल, नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व के कई ऐसे आयाम हैं, जो उन्हें आम भारतीय राजनेता से अलग करते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह कि उनके विरोधी भी उन्हें एक ईमानदार राजनेता मानते हैं। वे लगातार खुद को भाट चरित्र के लोगों से घिरने से बचाने में कामयाब रहे हैं। प्रसिद्धि और सफलता के शीर्ष पर पहुंचकर ऐसा संयम बहुत कम ही राजनेता दिखा पाते हैं। मध्यवर्गीय भारतीयों की नजर में आज राजनेताओं को हिकारत की नजर से देखा जाता है, उससे हटकर मोदी ने अपनी सम्मान योग्य, जुझारू और ईमानदार नेता के रूप में पहचान बनाई है, जो विकास और काम कर पाने के एजेंडा पर खरा उतरता है। पर सफलता की डगर पर लगातार बढ़ते जाना और लोक स्वीकृति की कसौटी पर बार-बार खरा उतरना नरेन्द्र मोदी के लिए आसान नहीं रहा। उनके बारे में यह बात काफी प्रचलित रहा कि उन्हें जीवन में काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, पर वे कभी इससे घबराए नहीं। वे आज हमारे बीच एक ऐसी शख्सियत के तौर पर हैं, जो अपनी आलोचनाओं का

आत्म मूल्यांकन कर अपनी कमियों को सुधारने की कोशिश करता है। यही खूबी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दूसरे राजनेताओं से अलग बनाती है। अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता की बात की जाए तो आज के समय में भारत देश में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हस्ती कोई है तो उसका नाम नरेन्द्र मोदी है।

आलोचनाओं का सामना

अगर नरेन्द्र मोदी की राजनीति के बारे में बात की जाए तो आजादी के बाद भारत के इतिहास में जिस राजनेता ने विपक्ष की सर्वाधिक आलोचनाओं का सामना किया है तो पहले नंबर पर नरेन्द्र मोदी का नाम होगा। विपक्ष नरेन्द्र मोदी की जितनी भी आलोचना करता रहा हो, लेकिन हर बार नरेन्द्र मोदी पूरी मजबूती के साथ एक सशक्त नेता के रूप में उभर कर आए। क्योंकि वे अपने खिलाफ किए गए दुष्प्रचार से कभी घबराए नहीं, बल्कि उन्होंने अपनी आलोचनाओं और अपने खिलाफ विपक्ष द्वारा किए गए दुष्प्रचार का डटकर सामना किया। तभी नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री जैसे बड़े पद पर पहुंच पाए।

कमाल की लोकप्रियता

गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए विपक्ष नरेन्द्र मोदी की आलोचनाएं और दुष्प्रचार करता रहा और नरेन्द्र मोदी संपूर्ण देश के आमजन के दिलों में अपनी जगह बनाते रहे। इसका नतीजा 2013 में नरेन्द्र मोदी को भाजपा द्वारा प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना रहा। नरेन्द्र मोदी ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिनको 2013 में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने पर कई भाजपा के बड़े नेता सहमत नहीं थे, बल्कि उनका विरोध कर रहे थे। लेकिन देश में नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता काफी बढ़ चुकी थी। इसके बाद देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि जिसमें किसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाने का फैसला पार्टी ने नहीं, बल्कि जनता ने पार्टी को मजबूर कर दिया ऐसा करने के लिए। यह सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र मोदी की भारत के जनमानस में लोकप्रियता के कारण ही हुआ।

गुजरात ने दी साख

नरेन्द्र मोदी ने 13 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री


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रहते हुए अनेक कार्य किए, जिसकी बदौलत गुजरात के साथ-साथ देशभर की जनता में भी नरेन्द्र मोदी के लिए आकर्षण बढ़ा। मुख्यमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के विकास के लिए अनेकों महत्वपूर्ण योजनाएं प्रारंभ कीं और उन्हें सफलतापूर्वक क्रियान्वित कराया, जिससे उनके सुशासन और गुजरात के विकास का डंका देश के साथ ही विश्वभर में भी खूब बजा।

योजनाओं का सफल क्रियान्वयन

उन्होंने गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए अनेक ऐसी योजनाओं को सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया जिसने गुजरात की छवि को बदल कर रख दिया। इन योजनाओं में प्रमुख रूप से पंचामृत योजना, सुजलाम् सुफलाम्, कृषि महोत्सव, चिरंजीवी योजना, मातृ-वन्दना, बेटी बचाओ, ज्योतिग्राम योजना, कर्मयोगी अभियान, कन्या कलावाणी योजना, बालभोग योजना थीं। पंचामृत योजना राज्य के एकीकृत विकास की पंचायामी योजना थी। सुजलाम् सुफलाम् के अंतर्गत गुजरात में जल की बर्बादी को रोकने के लिए जलस्रोतों का उचित व समेकित उपयोग किया गया। कृषि महोत्सव द्वारा उपजाऊ भूमि के लिए गुजरात में शोध प्रयोगशालाएं खुलवाई गईं। चिरंजीवी योजना के अंतर्गत नवजात शिशु की मृत्युदर में कमी लाने पर काम किया गया। मातृ-वंदना योजना के द्वारा जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य की रक्षा हेतु गुजरात सरकार समर्पित रही। कन्याभ्रूण-हत्या व लिंगानुपात पर अंकुश हेतु ‘बेटी बचाओ’ योजना को गुजरात में लागू किया। ज्योतिग्राम योजना के द्वारा गुजरात के प्रत्येक गांव में बिजली पहुंचाई गयी। सरकारी कर्मचारियों में अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा जगाने हेतु कर्मयोगी अभियान उनके गुजरात में मुख्यमंत्री रहते चलाया गया, जिसके सकारात्मक परिणाम निकले। कन्या

आवरण कथा

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नरेन्द्र मोदी ने 13 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए अनेक कार्य किए, जिसकी बदौलत गुजरात के साथ-साथ देशभर की जनता में नरेन्द्र मोदी के लिए आकर्षण बढ़ा कलावाणी योजना द्वारा संपूर्ण गुजरात में महिला साक्षरता व शिक्षा के प्रति जागरुकता पैदा की गई। निर्धन छात्रों को विद्यालय में दोपहर का भोजन खिलने के लिए बालभोग योजना को सफलतापूर्वक किर्यान्वित किया।

‘कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में’

इन सभी योजनाओं के साथ ही नरेन्द्र मोदी ने मुख्यमंत्री रहते हुए गुजरात के पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए ‘कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में’ का सदी के महानायक अमिताभ बच्चन से प्रचार करवाया। इस अभियान से गुजरात के पर्यटन को काफी लाभ हुआ। ये सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र मोदी की दूरदृष्टि का ही कमाल है जिसकी वजह से देश का हर राज्य गुजरात की तरह विकसित राज्य बनना चाहता है। नरेन्द्र मोदी ने देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद संपूर्ण भारत देश का विश्व स्तर पर मान बढ़ाया है।

विराट व्यक्तित्व

आज देश में ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता बड़े पैमाने पर है। वे देश-विदेश में कहीं भी जाते हैं तो लोग उनसे हाथ मिलाने, साथ में फोटो खिंचवाने और सेल्फी लेने को आतुर होते हैं। ऐसी लोकप्रियता आज के समय में विश्व के किसी भी राजनेता की नहीं दिखती है। एक समय ऐसा था जब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब अमेरिका जैसे बड़े देश

ने नरेन्द्र मोदी पर अमेरिका में आने पर प्रतिबंध लगा रखा था, लेकिन आज वही अमेरिका और उसके राष्ट्रपति चाहे बराक ओबामा रहे हों या मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हों, मोदी का बाहें खोलकर स्वागत करते हैं। यह सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हिमालय जैसे विराट व्यक्तित्व की वजह से है।

अंतिम जन तक पहुंच

जब से नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने हैं उनके नेतृत्व में देश ने कई गुना तरक्की की है। साथ-साथ सरकार ने कई बड़े और प्रभावी कदम उठाए हैं, जिनका सीधा-सीधा सरोकार गरीब आम आदमी से था। इसके साथ ही नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपनी योजनाओं के माध्यम से देश के अंतिम आदमी तक पहुंचने का प्रयास किया है, जो कि सराहनीय कदम है। नरेन्द्र मोदी ऐसे व्यक्ति हैं, जो हर चीज को रचनात्मक रूप से पेश करते हैं और आम व्यक्ति को इससे जोड़ते हैं और जन-आंदोलन बना देते हैं। तभी वो हर कार्य में सफल हो पाते हैं। आज नरेन्द्र मोदी की देश के प्रति समर्पण और त्याग की भावना को देखकर देश का प्रत्येक नागरिक उनको अपने दिलों में बसाए हुए है। आज अगर उनके जीवन प्रसंगों को लोग सफलता के सूत्र में पढ़ते हैं और सक्सेस गुरु उनके कथनों को बतौर सूत्र पेश करते हैं, तो यह इसीलिए क्योंकि उनके जीवन में व्यक्तित्व, कृतित्व और नेतृत्व तीनों का योग है।

मेरे जीवन का लक्ष्य ही सब कुछ है पर मेरी महत्वाकांक्षा कुछ भी नहीं है। अगर मैं नगर निगम का अध्यक्ष भी होता तो भी मैं उतना ही मेहनत करता जितना कि आज मैं प्रधानमंत्री होकर करता हूं।


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हमारे मन की कोई समस्या नहीं होती। समस्या तो केवल हमारी मानसिकता की होती है, जिसकी उपज के लिए खुद हम जिम्मेदार होते हैं – नरेन्द्र मोदी

अभिमत

नमो ने स्वच्छता आंदोलन को दी गति देश को स्वच्छ और मैला ढोने वाले लोगों की जिंदगी सुधारने की दिशा में मोदी जी की यह अपील युगांतकारी साबित होने वाली है

किसानों की ‘आशा’

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डॉ. विन्देश्वर पाठक

केंद्र सरकार के लिए किसान कल्याण सर्वोपरि है। यही वजह है कि कृषि के क्षेत्र में देश लगातार नए मुकाम हासिल कर रहा है

22 तक किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में मोदी सरकार ने एक और अहम कदम उठाया है। सरकार ने नई अनाज खरीद नीति, ‘प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान’, को मंजूरी देकर यह साबित कर दिया है कि देश के अन्नदाताओं की आर्थिक सुरक्षा उसकी सबसे बड़ी प्राथमिकताओं में एक है। केंद्र सरकार के लिए किसान कल्याण सर्वोपरि है। यही वजह है कि कृषि के क्षेत्र में देश लगातार नए मुकाम हासिल कर रहा है। इसके लिए समय-समय पर विशेषज्ञों द्वारा मोदी सरकार की तारीफ भी की जाती रही है। केंद्रीय कैबिनेट द्वारा मंजूर किए गए ‘प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान’ (पीएम-आशा) के तहत राज्यों को एक से ज्यादा स्कीमों का विकल्प दिया जाएगा। अगर, बाजार की कीमतें समर्थन मूल्य से नीचे जाती हैं तो सरकार एमएसपी को सुनिश्चित करेगी और किसानों के नुकसान की भरपाई भी करेगी। यह स्कीम राज्यों में तिलहन उत्पादन के 25% हिस्से पर लागू होगी। इस वर्ष केंद्रीय बजट में सरकार ने कहा था कि किसानों को समर्थन मूल्य का फायदा दिलाने के लिए पुख्ता व्यवस्था की जाएगी। समर्थन मूल्य नीति के तहत सरकार हर साल खरीफ और रबी की 23 फसलों के समर्थन मूल्य तय करती है। सरकार ने जुलाई में फसल की लागत का डेढ़ गुना दाम दिलाने का वादा पूरा किया था। इसके तहत धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 200 रुपए प्रति क्विटंल बढ़ा दिया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार जहां एक तरफ किसानों की आय बढ़ाने में लगी है, वहीं दूसरी तरफ जन-जन को पोषक भोजन उपलब्ध कराने के लिए भी काम कर रही है। मोदी सरकार ने किसानों और देश के विकास के लिए एक बड़ी योजना तैयार किया है। इस योजना के तहत गेहूं और चावल के बाद देश की खाद्य सुरक्षा का पूरा दारोमदार अब पोषक मोटे अनाज पर होगा। सरकार ने इसके लिए पोषक अनाज की पैदावार बढ़ाने के लिए उप मिशन शुरु किया है। इसके तहत देश के 14 राज्यों के दो सौ से अधिक जिलों को चिन्हित किया गया है। इन राज्यों की जलवायु मोटे अनाज की खेती के अनुकूल है। सरकार की तरफ से अब मोटे अनाज वाली फसलों को प्रोत्साहित किया जाएगा। इसी को देखते हुए वर्ष 2018 को पोषक अनाज वर्ष घोषित किया है।

टॉवर फोनः +91-120-2970819

(उत्तर प्रदेश)

वि

कास की तेजी के बीच स्वच्छता का मुद्दा भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में थोड़ा पीछे छूटा। अफ्रीका और एशिया के कई विकासशील देशों में तो स्वच्छता को नजरअंदाज करने का आलम यह रहा है कि वहां कुछ समुदाय के लोगों की स्थिति अत्यंत नारकीय है। इसी स्थिति को देखते हुए स्वच्छता को सीधे-सीधे मानवाधिकार मानने की वकालत आज संयुक्त राष्ट्र के मंच तक पर की जा रही है। बात करें भारत की तो स्वच्छता का मुद्दा यहां राष्ट्रीय आंदोलन के दिनों से अहम रहा। खासतौर पर महात्मा गांधी ने कांग्रेसजनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को स्वच्छता के

प्रति प्रतिबद्ध होने की सीख देते थे। मैं 1968 में गांधी जी के जन्मशती मनाने के लिए बनाई गई एक कमेटी में शामिल हुआ। इसके तहत कई स्थानों पर जाने का मौका मिला और समाज में व्याप्त छूआ-छूत को भी करीब से देखा। इसी दौरान बिहार के बेतिया जिले के एक अछूत कॉलोनी में जाने का अवसर मिला। वहां घटी एक घटना ने मेरा जीवन बदल कर रख दिया। एक युवा लड़के को एक सांड ने मारकर बुरी तरह घायल कर दिया था, लेकिन किसी ने भी उसे नहीं उठाया, क्योंकि वो अछूत था। मुझे बड़ी तकलीफ हुई। मैंने उस लड़के को उठाया और

गांधी शताब्दी के दौरान 1969 में मुझे लगा कि इस दिशा में काम किया जाना चाहिए। इसीलिए मैंने सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की और इस दिशा में सुधार और बदलाव के मकसद से काम शुरू किया


17 - 23 सितंबर 2018

ले जाकर अस्पताल में भर्ती करवाया, लेकिन वो बच नहीं सका। इसके बाद मैंने गांधी जी का नाम लेकर कसम खाई कि जब तक मैला ढोने की प्रथा को समाप्त नहीं करुंगा, इन अछूतों का उद्धार नहीं होगा तब तक मैं तब तक शांत नहीं बैठूंगा। बस वहीं से उस आइडिया की शुरुआत हुई जो आगे चलकर सुलभ इंटरनेशनल नामक संस्था के रूप में सामने आया। देखिए, शौचालय की क्रांति की दिशा में इस देश में अब तक महात्मा गांधी और मैंने काम किया है। इसके बाद मोदी जी पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने इतनी संजीदगी से इस मुद्दे को उठाया है। गांधीजी तो इसे इतना अधिक महत्व देते थे कि उन्होंने कहा कि हमें आजादी से पहले देश में स्वच्छता चाहिए। लेकिन दुर्भाग्यवश इस तरफ बाद में किसी ने संजीदगी से ध्यान नहीं दिया। देश में अंग्रेजों के आने के पहले आमतौर पर खुले में ही शौच की परंपरा थी, वह आज भी है। लेकिन अगर शौच का इंतजाम था भी तो वह इंसानों द्वारा सफाई वाली व्यवस्था पर था। गांधी जी ने सबसे पहले उनकी मुक्ति की दिशा में काम किया। हां, अंग्रेजों ने यह जरूर किया कि उन्होंने सीवर व्यवस्था पर आधारित शौचालय व्यवस्था का इंतजाम शुरू किया और कलकत्ता में सबसे पहले 1870 में सीवर शुरू हुआ। दुर्भाग्यवश तब से लेकर अब तक सिर्फ 160 शहरों में ही सीवर व्यवस्था शुरू हो पाई है। जबकि इस देश में 7935 शहर हैं। जाहिर है कि अब भी तमाम उपायों के बावजूद इंसानों द्वारा साफ किए जाने वाले शौचालय या खुले में शौच करने का इंतजाम ही ज्यादा है। इस हालत में 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लाल किले से अपील का बड़ा असर हुआ है। पहले हमारी आवाज को लोग उतनी गहराई से नहीं सुनते थे। अब लोग इसके प्रति जागरूक हो रहे हैं और इसकी तरफ सबका ध्यान गया है। इसीलिए मेरा तो मानना है कि देश को स्वच्छ और मैला ढोने वाले लोगों की जिंदगी सुधारने की दिशा में मोदी जी की यह अपील युगांतकारी साबित होने वाली है। हम तो करीब पांच दशक से यह काम कर रहे हैं, लोगों को स्वच्छता के जरिए स्वस्थ जीवन का संदेश दे रहे हैं। मैं महसूस करता हूं कि मोदी जी की

अपील के बाद बड़ा परिवर्तन आ रहा है। दुनियाभर से लोग हमें फोन कर रहे हैं कि हम कैसे मदद कर सकते हैं। कई कॉरपोरेट हमसे पूछ रहे हैं कि हम कैसे इस दिशा में प्रधानमंत्री की अपील के मुताबिक काम करें। सरकारी क्षेत्र की कंपनियां एनटीपीसी, गेल, आरईसी ने हमसे इस दिशा में सलाह और सहयोग मांगा है। स्वच्छता के मिशन को और कारगर बनाने के लिए हमारा मानना है कि देश में हर इलाके के पचास हजार युवाओं को सैनिटेशन और शौचालय क्रांति के लिए प्रशिक्षित करें। देशभर में करीब ढाई लाख पंचायतें हैं। हर युवा को पांच-पांच पंचायत में शौचालय बनवाने और लगवाने की ट्रेनिंग देकर हमें उतार देना चाहिए। इससे देश में पूरी स्वच्छता आ जाएगी और हजारों युवाओं को इस दिशा में रोजगार भी मिलेगा। एक सवाल यह भी है कि मौजूदा जो शौचालय व्यवस्था है, उसमें पानी की खपत ज्यादा होती है। इसके लिए हम चाहेंगे कि हमारी तकनीक से विकसित शौचालय व्यवस्था का प्रयोग बढ़े। हमने जो शौचालय डिजाइन किया है, उससे सिर्फ एक लीटर पानी में मल और मनुष्य दोनों की सफाई हो जाती है। करीब उतना ही पानी लगता है। जितना लोग खेत में जाते वक्त इस्तेमाल करते रहे हैं। इसीलिए मैं तो चाहूंगा कि इसी व्यवस्था को बढ़ावा दिया जाए, तभी सही मायने में स्वच्छता क्रांति आ पाएगी और पानी की कमी की समस्या से भी नहीं जूझना होगा। मैंने टू-पिट पोर फ्लश तकनीक वाले दुनिया के सबसे किफायती और इस्तेमाल में आसान टॉयलेट बनाने की पद्धति विकसित की, जो कि सुलभ की दुनिया को देन है। केंद्र सरकार ने भी हमारी स्कीम को 2008 से मान्यता दी। राज्य सरकारों ने तो पहले से ही इस तकनीक को मान्यता दे दी थी। इस व्यवस्था में हाथ से मैला साफ करने की जरुरत नहीं पड़ती। सुलभ ने आगे चलकर पर्वतीय और मुश्किल इलाकों में भी स्थानीय संसाधनों से टू-पिट टॉयलेट बनाने की तकनीक का आविष्कार किया है। यह सब करना हमारे लिए एक हरक्यूलिन टास्क था... हिमालय में चढ़ने जितना मुश्किल भी कह सकते हैं, जिसमें कई लोग सफलता हासिल करते हैं और कुछ हार कर लौट जाते हैं। मैंने लौटने

खुला मंच

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अगर देश का टॉप लीडर​शिप कुछ कहता है तो उसका फर्क तो वैसे भी पड़ता है, लेकिन अगर मोदी जी कुछ कहते हैं तो उसका और ज्यादा फर्क पड़ता है, क्योंकि लोग मोदी जी की बातों को सुनते हैं। सो उनकी स्वच्छता योजना की भी काफी चर्चाएं हो रही है वाले मार्ग का चयन नहीं किया। मैं जानता था अगर मैं यह नहीं करुंगा तो मैं खुद को माफ नहीं कर पाऊंगा। महात्मा गांधी ने कहा है- ‘जब तक हरिजनों का उद्धार नहीं होगा सामाजिक विकास अधूरा रहेगा।’ उस दौर में उनकी बातें करने वाले कम ही लोग थे, लिहाजा कुछ खास हो नहीं पा रहा था। यहां तक कि मेरे ससुर ने मुझे बुलाकर कहा कि आपने मेरी बेटी का जीवन चौपट कर दिया। क्योंकि उस इलाके में उनकी ख्याति थी और लोगों में चर्चा का विषय था कि डॉक्टर साहब (डॉ. पाठक के ससुर वैशाली जिले में डॉक्टर थे) का दामाद अापृश्यों के साथ उठते-बैठते और रहते हैं। लेकिन इन तमाम विरोधों के बावजूद मैंने कभी हार नहीं मानी। बस एक बात जो हमेशा मेरे साथ थी, वह थी मेरी हिम्मत। मैंने हिम्मत का दामन कभी नहीं छोड़ा। मैं महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित रहा हूं। खासकर गांव और विकास को लेकर जो विचार गांधी जी ने दिए थे वो आज भी प्रसांगिक हैं। स्टार्टअप करने वाले युवाओं या सोशल स्टार्टअप का विचार रखने वाले युवाओं से मैं यही कहना चाहूंगा कि वो गांधी जी के ट्रस्टीशिप सिद्धांत के मुताबिक काम करें। अपने आइडियाज और सोच को लेकर पहले खुद कन्विंस हों तो उन्हें सफल होने से कोई रोक नहीं सकता। मैं अगर खुद की ही बात करूं तो मैं 1968 से 1973 का वक्त काफी मुश्किलों से भरा था, लेकिन उसके बाद मुझे एक के बाद एक कामयाबी मिलती चली गई। सरकार के स्वच्छता अभियान शुरू करने से बहुत फर्क यह आया है। कई सारे बैंक, पीएसयूज और प्राइवेट कंपनियों ने सुलभ इंटरनेशनल से पब्लिक टॉयलेट बनाने के लिए संपर्क साधा है। जाहिर है कि अगर देश का टॉप लीडर​शिप कुछ कहता है तो उसका फर्क तो वैसे भी पड़ता है, लेकिन अगर मोदी जी कुछ कहते हैं तो उसका और ज्यादा फर्क पड़ता है, क्योंकि लोग मोदी जी

की बातों को सुनते हैं और अमल करते हैं। सो उनकी स्वच्छता योजना की भी काफी चर्चाएं हो रही है। स्कूल, कॉलेज, सरकारी दफ्तर और निजी दफ्तरों में भी स्वच्छता को लेकर काफी चर्चाएं हो रही है, जिससे जागरुकता का स्तर काफी बढ़ गया है। बच्चों और युवाओं के बीच ये अभियान काफी लोकप्रिय हो रहा है और ये लोग इसे आगे लेकर जाएंगे। 201 9 तक देश के हर गांव में टॉयलेट बनाने की पीएम के मिशन में सुलभ कदम दर कदम मिलाकर चलना चाहता है और हमारे पास इसकी पूरी विस्तृत योजना है कि कैसे असंभव- सा दिखने वाला ये मिशन संभव है। आज सुलभ का नाम तो दुनिया के करीबकरीब सभी देशों में पहुंच गया है, लेकिन की अगर बात करें तो अफ्रीकी, एशियाई और मिडिलईस्ट के देशों की सरकारें और लोकल बॉडीज ने सुलभ की कंसलटेंसी ली है। इसके अलावा हमारी संस्था ने कई देशों में ट्रेनिंग देने और उन्हें कम कीमतो में बेहतर टॉयलेट बनाने की योजना दी है। 1974 में पहली बार पटना में सार्वजनिक शौचालय का निर्माण किया। पटना नगर निगम ने जमीन दी और कहा- पब्लिक से पैसा लीजिए और शौचालय चलाइए। डॉ. पाठक कहते हैं, उस समय शौचालय के लिए पैसा देने की बात कहने पर लोग मजाक उड़ाते थे। आज उसी सुलभ शौचालय के कांसेप्ट पर पूरी दुनिया में शौचालय बन रहे हैं। आज करीब 1.5 करोड़ लोग सुलभ शौचालय की सेवा ले रहे हैं। सुलभ इंटरनेशनल से मेरा लगाव इस हद तक है। मैं अपनी पत्नी, परिवार और बच्चों से भी ज्यादा प्यार सुलभ को करता हूं। मैं तो पत्नी को कह भी चुका हूं कि सुलभ सिर्फ मेरा काम या सपना नहीं है, मेरी प्रेमिका है। ठीक वैसे ही, जैसे भगवान कृष्ण की प्रेमिका राधा थी। सुलभ और स्वच्छता का साझा मेरी जिंदगी का अर्थ तो है ही, यही मेरी जिंदगी की यात्रा और उसकी सार्थकता है।


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फोटो फीचर

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मोदी एक रूप अनेक

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि आज पूरी दुनिया में एक एेसे राजनेता की है, जो दृढ़ फैसले लेते हैं, विकास के कल्याणकारी सरोकारों को गहराई से समझते हैं और जिनके नेतृत्व क्षमता का लोहा सभी मानते हैं

जकार्ता में पतंगबाजी

योग मुद्रा

स्वीडन की सड़कों पर सैर

एक अंदाज यह भी

वैश्विक मंत्रणा


फोटो फीचर

साइकिल की सवारी

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बुद्धम् शरणम्...

मुक्तिनाथ (नेपाल) : सुबह का स्वागत

बर्लिन दौरे के दौरान

नंदनवन (रायपुर) : वनराज की फोटोग्राफी


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आवरण कथा

17 - 23 सितंबर 2018

‘आंख आ धन्य छे’ समर्पण ओर सरोकार की कविताएं

जिंदगी की आंच और उम्मीद की आहट के बीच नरेन्द्र मोदी की कविताएं हैं। गुजराती में उनकी कविताओं का संकलन ‘आंख आ धन्य छे’ के नाम से 2007 में प्रकाशित हुआ। हिंदी में इसका अनुवाद अंजना संधीर ने किया है

हम सबको मिलकर बापू को एक यादगार श्रद्धांजलि देनी है और बापू को स्मरण करके उनसे प्रेरणा लेकर के हमारे देश को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाना है

मार्च 2018

सं

एसएसबी ब्यूरो

घ के प्रचारक, भजपा के नेता, गुजरात में पूर्व मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री के रूप में तो नरेन्द्र मोदी को हर कोई बेहतर तरीके से जानता है, लेकिन कवि नरेन्द्र मोदी से बहुत ज्यादा लोगों का परिचय नहीं है। नरेन्द्र मोदी का पहला काव्य संग्रह ‘आंख आ धन्य छे’ के नाम से गुजराती में प्रकाशित हुआ। हिंदी में इसका अनुवाद अंजना संधर ने किया है। जिंदगी की आंच और उम्मीद की आहट के बीच नरेन्द्र मोदी की कविताएं हैं। गुजराती में उनकी कविताओं का संकलन ‘आंख आ धन्य छे’ के नाम से 2007 में प्रकाशित हुआ। हिंदी में इसे आने में यदि सात वर्षों का लंबा समय लगा तो इसके कई कारण हो सकते हैं, किंतु इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि नरेन्द्र मोदी की 67 कविताओं के इस संग्रह की ज्यादातर कविताएं ऐसी हैं, जो सीधे-सीधे मन में उतरती ही नहीं, बल्कि काव्य कला की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। इस काव्य संग्रह की अधिकतर कविताएं देशभक्ति और मानवता की भावना से जुड़ी हैं।

नरेन्द्र मोदी की कविताओं को पढ़कर लगता है कि कवि के अंदर एक आत्मविश्वास है जो ईश्वर पर भरोसा रखने से पैदा हुआ है, जो जीवन में संयम और संयम को बरतते हुए उच्च आदर्शों की तरफ सदैव बढ़ने की ललक से पैदा हुआ है उनके अंदर का जो औलिया है, अंदर का जो फकीर है, उनका जो वीतरागी मन है, इसका संकेत कई कविताओं में मिलता होता। संग्रह की कई कविताओं पर नरेन्द्र मोदी के उच्च आदर्शों और उनके समर्पित जीवन की छाया भी स्पष्ट देखी जा सकती है। इन्हें पढ़कर लगता है कि कवि के अंदर एक आत्मविश्वास है जो ईश्वर पर भरोसा रखने से पैदा हुआ है, जो जीवन में संयम और संयम को बरतते हुए उच्च आदर्शों की तरफ सदैव बढ़ने की ललक से पैदा हुआ हैसर झुकाने की बारी आए ऐसा मैं कभी नहीं करूंगा श्रृंगारित शब्द नहीं मेरे नाभि से प्रकटी वाणी हूं

कवि को खुद आश्चर्य है, ‘अभी तो मुझे आश्चर्य होता है कि कहां से फूटता है यह शब्दों का झरना, कभी अन्याय के सामने मेरी आवाज की आंख ऊंची होती हैं तो कभी शब्दों की शांत नदी शांति से बहती है।’ (सनातन मौसम, पृष्ठ 94) रोज-रोज की सभा,लोगों की भीड़, फोटोग्राफरों का समूह, भाषण- इन सबके बीच भी कवि नरेन्द्र मोदी अपना एकांत बचा लेता है- ‘इतने सारे शब्दों के बीच मैं बचाता हूं अपना एकांत तथा मौन के गर्भ में प्रवेश कर लेता हूं आनंद, किसी सनातन मौसम का।’(सनातन मौसम, पृष्ठ 95) सनातन मौसम, आतंरिक मौन का मौसम ही हो सकता है, अपने ‘स्व’ भाव में स्थित व्यक्ति न तो बाह्य कारणों से विचलित होता है, न प्रभावित। यह भाव किसी योगी मन के पास ही होता है जो बहुत


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साधना के बाद प्राप्त होता है। उन्होंने स्वीकार किया है- ‘दिल में तो देशभक्ति की ज्वाला है, समुद्र में जलती अग्नि की तरह।’ ("मल्लाह" शीर्षक कविता पृष्ठ-97) इस कवि का जीवनधर्म क्या है, कर्म क्या है, जानना चाहेंगे- ‘भीड़ को मेले में बदल डालना ही है मेरा जीवन धर्म -मेरा जीवन कर्म।’ (मिलने दो मेले में, पृष्ठ-83) ऐसा भी नहीं है कि कवि कभी निराश नहीं हुआ, दुखी नहीं हुआ, घबराया नहीं- ‘ठंडे हुए आंसू में पत्थर का भार है, कोने पे सितार जिसके टूटे सब तार हैं।’ (एकाध आंसू ,पृष्ठ 35) या फिर, ‘ऊंचे पहाड़ को पाने की कशमकश की, लेकिन पत्थर मिले अंत में जी... सदियों से चाहा नदी को पाना, लेकिन मिले मुझे बुलबुले जी।’ (कशमकश, पृष्ठ 73) प्रेम के प्रति इस कवि की दृष्टि क्या है- ‘जल की जंजीर जैसा मेरा ये प्रेम कभी बांधने से बंधा नहीं... धूप तो किसी दिन मुठ्ठी में आएगी नहीं, बहती पवन को पिंजरा भी रास नहीं, बहुरूपी बादल सा फिरता यह प्रेम कभी स्वीकारने से स्वीकृत हुआ

नहीं।’ ( प्रेम, पृष्ठ 72) सौंदर्य चाहे प्रकृति का हो, या व्यक्ति के गुणों का, या नारी का, इस कवि ने जीवन के सौंदर्य का अनुभव किया है,उसे सराहा है - ‘धन्य’, ‘मंत्र’, ‘विषम सौंदर्य’ आदि कविताएं इस श्रेणी में रखी जा सकती हैं। अधिकांश कविताओं में कवि की स्पष्ट भाषा के दर्शन होते हैं, किंतु तब भी कई बिंब सराहनीय हैं। उदाहरण के तौर पर ‘प्रतीक्षा’ कविता का बिंब बेहतर है- ‘सूरज के फूल बन कर उगने की प्रतीक्षा

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आवरण कथा

भला किसे न होगी, जब तपता सूरज जीवन की गति रोक रहा हो -आकाश में पत्थर जैसा सूरज उगा जूट जैसा सारा दिन बिलकुल खुरदुरा ....... सारी रात सूरजमुखी करती है प्रतीक्षा आने वाले कल के सूरज की, कि कभी तो सूरज फूल बनकर उगे!’ (प्रतीक्षा, पृष्ठ-67) भारत की जनता भी क्या सूरजमुखी की तरह रात के गुजरने और सूरज के फूल बन कर उगने के लिए प्रतीक्षारत नहीं? नरेन्द्र मोदी की कविताओं का फलक विस्तृत है जो जीवन के विविध रंगों, हर्षविषाद, जय-पराजय, प्रकृति और मानव प्रेम के बीच फैला हुआ है, किंतु इस संग्रह में जो दो स्वर सर्वोपरि हैं, वे हैं देशप्रेम और आस्था के। आस्था- ईश्वर के प्रति, जीवन के प्रति, आस्था मनुष्य मात्र को लेकर। इन कविताओं में एक दृढ़ संकल्पवान व्यक्ति के दर्शन होते हैं जो एक विशिष्ट लक्ष्य को लेकर वीतराग भाव से गतिमान है। वह अपनी कविता में पहले ही कह चुका है – ‘तुम मुझे मेरी तस्वीर या पोस्टर में ढूंढने की व्यर्थ कोशिश मत करो, मैं तो पद्मासन की मुद्रा में बैठा हूं अपने आत्मविश्वास में अपनी वाणी और कर्मक्षेत्र में। तुम मुझे मेरे काम से ही जानो तुम मुझे छवि में नहीं, लेकिन पसीने की महक में पाओ, योजना के विस्तार की महक में ठहरो, मेरी आवाज की गूंज से पहचानो मेरी आंखों में तुम्हारा ही प्रतिबिंब है।’ (तस्वीर के उस पार, पृष्ठ 56) ...और अब हम क्योंकि जानते हैं कि यह कवि भारत का प्रधानमंत्री है तो उसकी आंखों में भारत की आम जनता का प्रतिबिंब मात्र बना ही न रहे वरन सुस्पष्ट हो, वह अपने सत्कार्यों में, अपने उद्देश्य में सफल हो, भारत का भाग्य जागे,यही कामना की जा सकती है। कविताओं में अनुवाद की गंध नहीं आती तो उसका श्रेय अंजना संधीर को जाता है। जो खुद एक समर्थ कवयित्री हैं। बहु भाषाविद अंजना संधीर से यही अपेक्षा भी थी कि सहजता से गुजराती में लिखी इन कविताओं की आत्मा में उतर जाएंगी और यही हुआ है।

मैं मानता हूं कि स्वच्छ भारत और स्वस्थ भारत दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में आज देश कन्वेंशनल अप्रोच से आगे बढ़ चुका है

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आवरण कथा

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स्वच्छता सूत्र


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स्रोत : नरेन्द्र मोदी डॉट इन


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साथ सबका


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आवरण कथा

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विकास सबका

स्रोत : नरेन्द्र मोदी डॉट इन


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आवरण कथा

17 - 23 सितंबर 2018

सैलरी और समर्पण

नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए अपना वेतन कैसे और कहां खर्च करते थे, यह बात वे स्वयं पूरे देश को बता चुके हैं,लेकिन बतौर प्रधानमंत्री अपने वेतन का वे क्या करते हैं, बहुत कम लोग जानते हैं

मौ

जूदा समय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर कई चीजों के बारे में बात होती है। पिछले दिनों लंदन गए पीएम मोदी के बारे में लोगों को कई बातें जानने का मौका मिला। लेकिन आज उनकी कुछ ऐसी बातों को लेकर सामने आ रहे हैं, जो आपने कभी नहीं सुना होगी। क्या आपको इस बात की जानकारी है कि पीएम को कितनी सैलरी मिलती है?क्या आपको इस बारे में पता है कि आखिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी सैलरी के साथ क्या करते हैं? अपनी सैलरी को कहां खर्च करते हैं? आइए आपको भी बताते हैं ।

1.65 लाख रुपए वेतन

प्रधानमंत्री रिलीफ फंड

प्रधानमंत्री के तौर पर उनको 1.65 लाख रुपए वेतन मिलता है। उसके अलावा उन्हें बाकी अलाउंस भी दिए जाते हैं। ताज्जुब की बात तो ये कि प्रधानमंत्री का वेतन एक कैबिनेट सचिव से भी कम होता है। कैबिनेट सचिव का वेतन 2.50 लाख रुपए प्रति माह होती है। वाराणसी से सांसद देश के पीएम नरेन्द्र मोदी अपनी इस सैलरी का क्या करते हैं? कभी किसी ने जानने की कोशिश नहीं की। पिछले चार सालों से उन्हें हर महीने तनख्वाह मिलती है। आखिर वो जाती कहां है? पीएम मोदी का सारा खर्च सरकार वहन करती है। ऐसे में सवाल ये है कि 1.65 लाख रुपए का पीएम क्या करते हैं,कहां रखते हैं।

प्रधानमंत्री रिलीफ फंड

इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं कि पीएम मोदी की सैलरी कहां खर्च हो जाती है। पीम की सैलरी का एक बड़ा हिस्सा या यूं कहें कि पूरा प्रधानमंत्री रिलीफ फंड में चला जाता है। नरेन्द्र मोदी अपनी सेवा से प्राप्त रुपए को अपने पास नहीं रखते हैं। ऐसा कम ही देखने को मिलता है जब कोई अपनी सैलरी को किसी राहत कोष में डाल दें। लेकिन पीएम मोदी ऐसा हर महीने करते हैं। यह बात बड़े ही ताज्जुब की है कि क्योंकि बड़े से बड़ा राष्ट्राध्यक्ष ऐसा करने से पहले एक बार जरूर सोचेगा।

पुरानी लीक

2014 से पहले जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब वो अपनी पूरी सैलरी को अपने विधानसभा क्षेत्र में खर्च कर देते थे। तब उन्हें 2.10 लाख रुपए प्रति माह सैलरी मिलती थी। जानकारों की मानें तो सीएम या पीएम रहते हुए बहुत कम ऐसे नेता होते हैं तो अपनी सैलरी को देश की जनता को समर्पित कर देते हों। लेकिन नरेन्द्र मोदी उनमें से एक हैं।


गाइड

17 - 23 सितंबर 2018

आवरण कथा

नमो की पसंदीदा फिल्म

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बॉलीवुड की सदाबहार क्लासिक फिल्म ‘गाइड’ सबसे ज्यादा पसंद है

प्र

धानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने व्यस्तम दिनचर्या के लिए जाने जाते हैं। लंबी यात्रा और कामकाज में व्यस्त रहने वाले नरेन्द्र मोदी पुस्तकें पढ़ने के शौकीन है। एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि फिल्म देखने में मेरी उतनी रूचि नहीं है, लेकिन इस दौरान उन्होंने ‘गाइड’ फिल्म का जिक्र किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी वेबसाइट में भी 'गाइड' फिल्म का जिक्र किया है। उन्होंने बताया है कि एक बार मैं अपने मित्रों एवं अध्यापकों के साथ मशहूर हिंदी फिल्म ‘गाइड’ देखने गया जो कि आर. के. नारायण के एक उपन्यास पर आधारित थी। फिल्म देखने के बाद मैं दोस्तों के साथ एक गहरी बहस में पड़ गया। मेरा तर्क था कि फिल्म का मूल विषय यह था कि अंत में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी अंतरात्मा से मार्गदर्शन मिलता है, लेकिन क्योंकि मैं उम्र में छोटा था, मेरे दोस्तों ने मुझे गंभीरता से नहीं लिया ! ‘गाइड’ फिल्म ने उनके ऊपर एक और छाप छोड़ी - सूखे की सच्चाई एवं पानी की कमी से किसानों में दिखने वाली निरीहता। प्रधानमंत्री बताते हैं कि इस फिल्म का असर लंबे समय तक मेरे दिमाग में रहा। बाद में बाद में जब मुझे अवसर मिला तो मैंने गुजरात में अपने कार्यकाल का एक बहुत बड़ा भाग जल संचय प्रणाली को एक संस्थागत रूप

फिल्म देखने के बाद मैं दोस्तों के साथ एक गहरी बहस में पड़ गया। मेरा तर्क था कि फिल्म का मूल विषय यह था कि अंत में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी अंतरात्मा से मार्गदर्शन मिलता है, लेकिन क्योंकि मैं उम्र में छोटा था, मेरे दोस्तों ने मुझे गंभीरता से नहीं लिया – नरेन्द्र मोदी देने में लगाया। अभिनय के लिहाज से ‘गाइड’ देव आनंद और वहीदा रहमान दोनों की बेहतरीन फिल्मों में से एक है। 2007 में अपने रिलीज के पूरे 42 साल बाद इस फिल्म को कांस फिल्म फेस्टीवल में दिखाया गया था। यह फिल्म, फिल्म इंडस्ट्री की मास्टरपीस कही जाती है। फिल्म ‘गाइड’ का निर्देशन किया था मशहूर फिल्मकार विजय आनंद ने और इसमें संगीत दिया एस.डी.बर्मन ने। इस सदाबहार फिल्म के लिए गीतकार शैलेंद्र के लिखे गाने आज भी लोग गुनगुनाते हैं। ‘गाइड’ फिल्म ऑफर किए जाने से दो तीन साल पहले की बात है। सत्यजीत रे ने वहीदा रहमान को आर. के. नारायण का ‘द गाइड’ नाम का नॉवेल पढ़ने के लिए कहा। उन्होंने वहीदा से कहा कि वे इस पर फिल्म बनाना चाह रहे हैं और मानते हैं कि इसमें रोजी का जो किरदार है, वह तुमसे बेहतर कोई नहीं निभा सकता। रोजी का किरदार एक डांसर का किरदार है और सत्यजीत रे की नजर में वहीदा एक

बेहतरीन डांसर थीं। पर ये बात आई-गई हो गई। इसके बाद जब देव आनंद ने ‘गाइड’ फिल्म के लिए वहीदा को संपर्क किया तो वहीदा के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा। दिलचस्प है कि देव ने वहीदा को बताया कि इस फिल्म को लेकर सत्यजीत रे से उनकी कोई बात नहीं हुई, बल्कि उन्होंने तो ये नॉवेल अपने यूरोप प्रवास के दौरान पढ़ा और इसके राइट्स खरीद लिए। वहीदा का कहना था कि फिल्म कोई भी बनाता, लेकिन रोजी का किरदार उनको ही मिलना था। उस वक्त की कई अभिनेत्रियों ने बाद में वहीदा से संपर्क भी किया कि अगर किसी वजह से तुम ये रोल नहीं करो तो हमें याद करना। वैसे वहीदा से पहले देव आनंद ने वैजयंती माला को इस फिल्म के लिए लेने की सोची थी, क्योंकि वो भी बेहतरीन डांसर थीं। लेकिन बाद में जब देव साहब को लगा कि उनकी जोड़ी वहीदा के साथ ज्यादा फिट बैठेगी तो वहीदा को इस फिल्म में कास्ट किया गया।

जब भी हम महात्मा गांधी के बारे में सोचते हैं, हमें जिस एक चीज की याद सहजता से आती है, वह है खादी। ...आप कम से कम खादी का एक उत्पाद का उपयोग करें, जैसे रूमाल या तौलिया, चादर, तकिये का कवर, पर्दा या कोई अन्य उपयोगी वस्त्र। यदि परिवार में सभी प्रकार के वस्त्रों के लिए प्रेम है, तो खादी को भी आपके संग्रह का हिस्सा होना ही चाहिए।

अक्टूबर, 2016


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पुस्तक अंश

ऑस्ट्रेलिया

17 - 23 सितंबर 2018

अपने ऑस्ट्रेलियायी समकक्ष प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल के साथ पीएम नरेन्द्र मोदी

धानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 14 से 18 नवंबर के बीच ऑस्ट्रेलिया की ऐतिहासिक यात्रा ने भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों को महत्वपूर्ण सक्रियता प्रदान कर नए मुकाम पर पहुंचाया। मोदी ने ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री टोनी एबॉट के साथ व्यापक स्तर पर बातचीत की और ऑस्ट्रेलियाई संसद की संयुक्त बैठक को संबोधित करने वाले पहले

भारतीय प्रधानमंत्री बने। साथ ही, वह सीनेट के अध्यक्ष, प्रतिनिधि सभा के सभापति और विपक्ष के नेता से राजधानी कैनबरा में मुलाकात की। ऑस्ट्रेलिया की इस यात्रा में जी-20 शिखर सम्मेलन में भागीदारी भी शामिल थी और इसमें भी सबसे यह महत्वपूर्ण था कि 28 वर्षों में पहली बार कोई भारतीय प्रधानमंत्री यह करने जा रहा था। मोदी ने ब्रिस्बेन, सिडनी और मेलबोर्न

ब्रिस्बेन में जी -20 शिखर सम्मेलन में विश्व के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

का भी दौरा किया, जहां उन्होंने राजनेताओं, शिक्षाविदों, व्यापारियों और खेल से जुड़े लोगों से मुलाकात की। मोदी ने ऑस्ट्रेलियाई भारतीय समुदाय के सदस्यों को संबोधित भी किया। कई द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए और नई पहलें शुरू की गई। मोदी और एबॉट दोनों ने भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक संबंधों, विशेष रूप से संसाधनों, शिक्षा, कौशल, कृषि, बुनियादी ढांचे, निवेश, वित्तीय सेवाओं और स्वास्थ्य जैसे प्रमुख क्षेत्रों में बड़ी संभावनाओं को एक-दूसरे के लिए खोलने पर सहमत जताई। असैनिक परमाणु समझौते को लागू करने के लिए, जल्द ही किसी निष्कर्ष तक पहुंचने की दिशा में तेजी से कार्य करने पर भी दोनों सहमत हुए। मोदी ने भारत के ऑस्ट्रेलिया के साथ रिश्तों को साझा मूल्यों और हितों के साथ-साथ, हमारे रणनीतिक समुद्री स्थानों से पनपी प्राकृतिक साझेदारी के रूप बताया। मुझे लगता है कि ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा पीएम मोदी की यात्रा को बहुत अधिक महत्त्व दिया और इस बात ने बहुत से भारतीयों को दिल से प्रभावित किया। साथ ही, इससे यह धारणा बनी कि ऑस्ट्रेलिया,

एक ऑस्ट्रेलिया-भारत सीईओ मंच भी बनाया गया और शिक्षा, खेल, सुरक्षा और प्रसारण में सहयोग पर समझौते किए गए। हम ऑस्ट्रेलियाई गति से प्रभावित हैं और आप भारतीय स्पिन की तरफ आकर्षित हैं। हम ब्रैडमैन की महानता और तेंदुलकर के क्लास की एक साथ सराहना करते हैं। आज, मैं इन सभी भावनाओं एकजुट करने आया हूं, जैसे कि हम एक बार भूगोलीय तौर पर थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ऑस्ट्रेलियाई संसद को संबोधन भारत को भारत-प्रशांत शक्ति (इंडोपैसेफिक पॉवर) के रूप में गंभीरता से ले रहा है। देविरूपा मित्रा, विशेष संवाददाता, न्यू इंडियन एक्सप्रेस


17 - 23 सितंबर 2018

पुस्तक अंश

फिजी

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कैनबरा: ऑस्ट्रेलियाई संसद को संबोधित करने के बाद अपने ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष टोनी एबॉट के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

सिडनी के ऑलफोंस एरीना में भारतीय समुदाय को संबोधन

मैं ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले अपने साथी भारतीय नागरिकों को आश्वस्त करने आया हूं कि उन्हें अब कभी भी अपने प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 28 साल तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा। (27 नवंबर 2014)

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फिजी राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को संबोधित करते हुए पीएम नरेन्द्र मोदी

धानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 1 9 नवंबर को फिजी की यात्रा 33 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा थी। मोदी की उनके समकक्ष फ्रैंक बैनिमारमा के साथ द्विपक्षीय वार्ता के अलावा, दोनों देशों ने तीन समझौते किए। मोदी ने फिजी नागरिकों के लिए भारत में आगमन पर वीजा सुविधा (वीजा ऑन अराईवल) की घोषणा की। उन्होंने फिजियन संसद को संबोधित किया और कहा कि यह दक्षिण प्रशांत द्वीप राष्ट्र, अन्य प्रशांत द्वीपसमूहों के साथ मजबूत भारतीय संबंधों के लिए एक बड़े केंद्र के रूप में काम कर सकता है। भारतीय प्रधानमंत्री ने 12 प्रशांत द्वीप राष्ट्रों के नेताओं से भी बातचीत की।

प्रधानमंत्री मोदी महान ऐतिहासिक कड़ियों को पहचानते हैं और कई तरीकों से हमारे देश को विकसित करने में हमारी सहायता करना चाहते हैं। फ्रैंक बैनिमारमा, फिजी के प्रधानमंत्री

स समय कोई भी रात में अपनी यात्रा शुरू करके, सुबह के वक्त तक ऑस्ट्रेलिया पहुंच सकता है, लेकिन इसके बाद भी ऑस्ट्रेलिया के दौरे के लिए भारत के प्रधानमंत्री को 28 साल लग गए। मैं ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले अपने साथी भारतीय नागरिकों को आश्वस्त करने आया हूं कि उन्हें अब कभी भी अपने प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 28 साल तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा। हमें अपने देश की ताकत पर भरोसा है, हमें अपने देश की नीतियों पर विश्वास होना चाहिए।

कैनबरा: ऑस्ट्रेलियाई संसद को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

19 नवंबर, 2014: फिजी की राजधानी सुवा में फिजी की संसद को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

(जारी अगले अंक में)


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आवरण कथा

17 - 23 सितंबर 2018

बच्चे

‘वरीयर’ नहीं, ‘वारियर’ बनें

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की किताब ‘एक्जाम वारियर्स’ में छात्रों को परीक्षा से नहीं डरने को लेकर कई उपयोगी टिप्स

प्र

धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दो फरवरी, 2016 को ‘मन की बात’ में परीक्षा और शिक्षा को लेकर कई सारी बातें कही थीं। उनका मुख्य जोर इस बात पर था कि शिक्षा सीखने का नाम है और परीक्षा को लेकर जो खौफ बच्चों में देखा जाता है, वह अनुचित है। इसी मौके पर उन्होंने परीक्षा को लेकर कुछ लोगों के सुझाव का जिक्र किया था। उनके ही शब्दों में, ‘तमिलनाडु के मिस्टर कामत ने बहुत अच्छे दो शब्द दिए हैं। वे कहते हैं कि स्टूडेंट्स 'वरीयर’ न बनें, 'वारियर’ बनें।’ अब इसी शब्द को लेकर ‘एक्जाम वारियर्स’ नाम से बच्चों के लिए उनकी पुस्तक आ गई है। यह किताब बच्चों को तनाव से लड़ने के लिए तमाम विशेषज्ञ नुस्खे देते हैं। पर इस बार ये नुस्खे उन्हें

पीएम मोदी की तरफ से काफी सकारात्मक ढंग से मिलेंगे। ‘एक्जाम वारियर्स’ को अनोखे अंदाज में और मंत्रों की शक्ल में लिखा गया है। साथ ही यह 'इंटरएक्टिव' भी है। छात्र इस पुस्तक को चाव से पढ़ें इसीलिए इसमें कई गतिविधियां भी शामिल की गई हैं, जिनका छात्र अभ्यास करके न सिर्फ तनाव से मुक्ति पा सकते हैं, बल्कि परीक्षा के लिए तैयारियां भी कर सकते हैं। पीएम मोदी के ऐप से इस किताब के कई खास फीचर्स को अनलॉक किया जा सकता है। किताब में छात्रों का कम्युनिटी बनाने के लिए मार्गदर्शन भी किया गया है। एक ऐसे दौर में जब परीक्षा को खौफ और फोबिया के तौर पर देखा जाता है। घर से लेकर स्कूल-कॉलेज तक परीक्षा

के दौरान हर तरफ एक भय का माहौल व्याप्त रहता है, नरेन्द्र मोदी की इस पुस्तक के आने से छात्रों पर ही नहीं उनके अभिभावकों और शिक्षकों पर भी एक रचनात्मक प्रभाव पड़ेगा। इस किताब में 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा देने वाले छात्रों की परेशानियों पर फोकस किया गया है। पीएम ने इसमें बताया है कि ‘नॉलेज’ हमेशा ‘एग्जाम मार्क्स’ से ज्यादा अहम होती है। किताब के साथ एक अच्छी बात यह है कि इसे सीधे संवाद के अंदाज में लिखी गई है। इसमें कई उदाहरण दिए गए हैं। साथ ही स्टूडेंट्स को योग और फिजिकल एक्टिविटीज की जरूरत भी समझाई गई है। पुस्तक का प्रकाशन पेंग्विन बुक्स ने किया है।

हम चुनाव से नहीं, बच्चे परीक्षा से न डरें ‘एक्जाम वारियर्स’ पुस्तक के लोकार्पण के अवसर पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पुस्तक के अंश पढ़कर सुनाए

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धानमंत्री मोदी की किताब ‘एक्जाम वारियर्स’ के लॉन्चिंग के दौरान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने बच्चों को एग्जाम में स्ट्रेस से बचने के लिए 'चुनाव' का उदाहरण दिया। उन्होंने किताब में लिखे टिप्स का जिक्र करते हुए 'एक्जाम से डरो नहीं' कि जगह 'चुनाव से डरो नहीं' कह दिया। जिसके बाद प्रोग्राम में उपस्थित लोगों ने जमकर ठहाके लगाने लगे। इस मौके पर सुषमा ने बच्चों को किताब में परीक्षा को लेकर दिए गए टिप्स भी सुनाए। उन्होंने एक वाकिया भी सुनाया और कहा कि मैं ही कई बार बच्चों को कह देती थी कि एक्जाम से डरो

नहीं। भगवान को प्रणाम करो और जाओ। मुझे जवाब मिलता था यदि भगवान को एक्जाम देना पड़े तो वे भी डरने लगें। एक्जाम ऐसी चीज है, लेकिन आज यहां खड़ा होकर भगवान नहीं एक इंसान, वो भी साधारण नहीं इस देश के पीएम कह रहे हैं कि परीक्षा का खौफ सिर पर उठाने की कोई जरूरत नहीं है। इसके बाद विदेश मंत्री समझाने लगती हैं कि हम खुद कहते हैं कि चुनाव से डरो मत। प्रधानमंत्री मोदी भी यही कहते हैं कि मैं चुनाव से नहीं डरता। तुम परीक्षा से नहीं डरो। प्रधानमंत्री कहते हैं कि हमें यह परीक्षा हर पांच साल बाद देनी पड़ती है। लोकसभा पहले भंग हो जाए तो और पहले परीक्षा देनी पड़ती है।


17 - 23 सितंबर 2018

कब-कब छलकी आंखें

आवरण कथा

पीएम नरेन्द्र मोदी का व्यक्तित्व अगर एक तरफ सशक्त राजनेता का है, तो वहीं वे एक काफी संवेदनशील व्यक्ति भी हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद भी कई बार लोगों ने उन्हें सार्वजनिक रूप से भावुक होते देखा

• 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी के बाद 13 नवंबर को गोवा में भाषण देते नरेन्द्र मोदी भावुक हो गए। बोले- मैंने घर-परिवार, सब देश के लिए छोड़ दिया. यह बोलते वक्त मोदी को बमुश्किल अपने आंसू रोक पाए। •

जनवरी 2016 में बाबासाहेब भीमराव अंाबेडकर यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह के दौरान छात्र रोहित वेमुला की मौत का जिक्र करते वक्त भी पीएम मोदी भावुक हो गए थे। मोदी ने कहा था कि एक मां ने अपना बेटा खोया है, वह इसका दर्द समझते हैं।

सितंबर 2015 में अमेरिका यात्रा के दौरान जब मोदी फेसबुक हेडक्वॉर्टर में मार्क जुकरबर्ग के सवालों के जवाब दे रहे थे, तब अपनी मां से संबंधित सवाल का जवाब देते वक्त उनकी आंखें भर आई थीं। मोदी ने इस दौरान अपनी मां के संघर्ष के बारे में बताया था, जब वे भावुक हुए थे।

मई 2014 में प्रधानमंत्री बनने से पहले मोदी के लिए गुजरात विधानसभा में विशेष सत्र रखा गया था। इसमें मोदी ने विदाई भाषण में विपक्ष की भी तारीफ की थी। जब विपक्ष के नेता उन्हें शुभकामनाएं दे रहे थे, तब मोदी भाषण देते हुए भावुक हो गए थे।

मई 2014 में लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा संसदीय दल का नेता चुने जाने के बाद संसद के सेंट्रल हाल में लालकृष्ण आडवाणी के बयान (नरेन्द्र भाई ने कृपा की) का जिक्र करते हुए मोदी के आंसू छलक पड़े थे। उस समय रोते हुए मोदी ने कहा था कि वह (आडवाणी) कृपा शब्द का प्रयोग न करें, मां की सेवा कभी कृपा नहीं होती. मेरे लिए भाजपा मां के समान है।

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आवरण कथा

17 - 23 सितंबर 2018

नमो प्रसंग

नरेन्द्र मोदी की जिंदगी काफी उतार-चढ़ाव भरी रही। एक नजर नरेन्द्र मोदी जिंदगी पर और उनके जन्म से जुड़े कुछ मजेदार किस्सों पर जो शायद ही कोई जानता होगा

पीएम का गांव

गुजरात के 2500 साल पुराने वडनगर नाम के एक छोटे से गांव में नरेन्द्र मोदी का जन्म हुआ। भले ही ये गांव छोटा सा हो, लेकिन इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है। सातवीं सदी में भारत के दौरे पर आए चीनी स्कॉलर ह्वेनसांग ने भी वडनगर और उसकी पृष्ठभूमि की तारीफ की है।

निकनेम नरिया

आमतौर पर जैसे आपका-हमारा निकनेम होता है, वैसे ही नरेन्द्र मोदी का भी था। बचपन में नरेन्द्र मोदी को सभी लोग नरिया कहकर बुलाते थे। हालांकि उन्हें इस नाम का बुरा भी लगता था, लेकिन उन्होंने कभी पलटकर कुछ नहीं कहा। कहा जाता है कि नरेन्द्र मोदी की मां आज भी उन्हें प्यार से नरिया ही कहकर बुलाती हैं।

संन्यासी बनने की चाह

स्कूल की पढ़ाई के बाद नरेन्द्र मोदी पर के दिल में संन्यासी बनने की चाह उठी। वो इस चक्कर में घर से ही भाग गए और इस दौरान उन्होंने पश्चिम बंगाल के रामकृष्ण आश्रम के अलावा कई और जगहों का भ्रमण किया। इस दौरान उनकी आध्यात्म और तर्क में आस्था बढ़ी।

आरएनआई नंबर-DELHIN/2016/71597; संयुक्त पुलिस कमिश्नर (लाइसेंसिंग) दिल्ली नं.-एफ. 2 (एस- 45) प्रेस/ 2016 वर्ष 2, अंक - 40

दयालु के साथ शरारती भी

बचपन में नरेन्द्र मोदी बेहद शरारती थे, लेकिन दयालु भी बहुत थे। किसी को भी वो मुसीबत में देखते तो तुरंत मदद के लिए पहुंच जाते। एक बार 'मन की बात' कार्यक्रम में मोदी ने खुलासा भी किया था कि किस तरह बचपन में शहनाई बजाने वालों को इमली का लालच देकर उनका ध्यान भंग किया करते थे।


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