MAIN HU KISAN_FEB 2018

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RNI. No. RAJBIL/2017/72819

मूल्य : ~ 90

Main Hu Kisan

फरवरी : 2018

2018-19 आम बजट

कृषि-खेती और किसानी

खुशहाली की ओर बढ़ेंगे

किसानों के कदम

खेती की लागत

कम करने के उपाय

पपीते की

उन्नत खेती

एलोवे र ा के 31 अनोखे और कारगर फायदे

स्टीविया (मीठी पत्ती)

शू्न्य कैलोरी औषधीय पौधा

खेतों के जरिये शरीर में उतरता

ज़हर



Contents

RNI. No. RAJBIL/2017/72819

सफलता हमारा परिचय दुनिया को करवाती है और असफलता हमें दुनिया का परिचय करवाती है।

Main Hu Kisan मासिक : जयपुर से अंग्रेजी हिंदी में प्रकाशित वर्ष : 1 - अंक : 10 - फरवरी - 2018 Editor

Monika Gupta

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खुशहाली की ओर बढ़ेंगे किसानों के कदम

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एलोवेरा के अनोखे और कारगर फायदे

गांवों में ईंधन की जरूरतों को पूरा करेगा बायोगैस खेतों के जरिये शरीर में उतरता ज़हर खेत और खेती को खत्म करती रासायनिक खाद पपीते की उन्नत खेती पौष्टिक एवं स्वास्थ्यवर्धक फल शरीफा की उत्पादन तकनीक खेती की लागत कम करने के उपाय स्टीविया (मीठी पत्ती) शू्न्य कैलोरी औषधीय पौधा लेमन ग्रास की उन्नत खेती मिश्रित खेती किसानों के लिए एक वरदान अश्वगंधा की उन्नत खेती अधिक लाभ के लिए बेबी कॉर्न की खेती िपस्ता की खेती फायदे का सौदा मधुमेह से बचाएगी करेले की नई किस्म पूसा हाईब्रिड-4 विधि विधान के साथ तैयार की जाती है पौध नर्सरी ऑग्रेनिक सनराइज नेचुरल ने गाजियाबाद में खोला एक्सक्लूसिव स्टोर अब चांद की लय पर झूमेगी फसल सिक्किम : ऐसा राज्य, जहां मुनाफे का सौदा बनी खेती

mainhukisan

E-mail : mainhukisan132@gmail.com Âç˜æ·¤æ ×ð´ Âý·¤æçàæÌ Üð¹ Üð¹·¤ô´ ·ð¤ ¥ÂÙð çß¿æÚU ãñ´U Âý·¤æàæ·¤ ß â¢Âæ¼·¤ ·¤æ ©UÙâð âãU×Ì ãUôÙæ ¥æßàØ·¤ ÙãUè´ ãñUÐ ¥æñáŠæèØ ¹ðÌè ·¤è ÁæÙ·¤æÚUè ×ð´ ç·¤âè Âý·¤æÚU ·ð¤ ¥æñáŠæè ©UÂØæð» ·ð¤ çÜ° Âç˜æ·¤æ çÁ ×ðÎæÚU ÙãUè´ ãñUÐ ç·¤âè Öè çßßæ¼ ·¤è ¼àææ ×ð´ ‹ØæçØ·¤ ÿæð˜æ ÁØÂéÚU ‹ØæØæÜØ ÚUãðU»æÐ

सभी पद अवैतनिक हैं।

35 44 औषधीय पौधों के समग्र विकास की ऑर्गेनिक और इनोवेटिव फार्मिंग के प्रमुख संस्था राष्ट्रीय औषधीय पौधे बोर्ड लिए युवाओं का बदलने लगा नजरिया

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अधिक कर्ज से ही नहीं होगा किसान का भला

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गत वर्षों की तरह इस साल के आम बजट को भी मुख्यत: किसानों और ग्रामीण विकास से जोडक़र देखा जा रहा है। इस बार भी किसानों के लिए कई योजनाओं की घोषणाएं हुई हैं, लेकिन किसानों के लिए किए गए पिछले वादों पर नजर डालें तो किसी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं है। बजट में आगामी वर्ष में खरीफ की फसलों के समर्थन मूल्य में डेढ़ गुना वृद्धि की घोषणा की है। कृषि को लेकर हुए अनेक अध्ययनों में स्पष्ट है कि अब तक फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों में हुई वृद्धि दर मुद्रास्फीति दर से भी कम रही है। इस बजट में हालांकि सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने के लिए कर्ज आवंटन और अन्य कई बातों का जिक्र किया है, पर यह समझने की बात है कि ज्यादा कर्ज बांटकर किसान का भला नहीं किया जा सकता है। जरूरत यह है कि सरकार नैतिक रूप से किसानों के साथ खड़ी हो। किसानों की आय ही उनका सबसे बड़ा मौजूदा संकट है। किसान को उसके उत्पादन की पूरी लागत नहीं मिल रही है। मंडी में किसान से व्यापारी जो गेंहू खरीद रहा है वही गेंहू बाजार में 800 से 1000 रुपए प्रति क्विंटल महंगा बेचकर भारी मुनाफा कमा रहा है। सरकार किसानों की आर्थिक दशा को सुधारने की बजाय उन्हें और अधिक कर्ज देने के लिए बजट में इजाफा कर रही है। कर्ज देने से किसान की दशा और दिशा को कभी नहीं सुधारा जा सकता है। यदि सरकार किसान का सही मायने में भला करना ही चाहती है तो उसे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए जैविक, कम्पोस्ट खाद अपनाने, ऑर्गेनिक व जैविक खेती के साथ-साथ उनके बाय प्रोडेक्ट निर्माण के लिए उचित प्लेटफार्म प्रदान करे। साथ ही कृषि आधारित अन्य व्यवसाय यथा-पशुपालन, मधुमक्खी पालन इत्यादि को भी बढ़ावा दे। वहीं, बजट में ऑपरेशन ग्रीन पर खास जोर दिया गया है। मगर इसके लिए रखे गए पांच सौ करोड़ रुपए देश के विशाल कृषि क्षेत्र के लिए नाकाफी हैं। इसके बावजूद इस बजट में ई-नैम ग्रामीण बाजार और सिंचाई से जुड़ी कुछ ऐसी घोषणाएं हुई हैं जिनका स्वागत किया जाना चाहिए। ग्रामीण बाजारों को अस्पताल व दूसरी जगहों से जोड़ने के लिए लिंक रोड जैसी बुनियादी ढ़ांचा विकसित करने वाली योजना नि:संदेह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगी। क्रेडिट कार्ड के दायरे में पशुपालकों और मछुआरों को शामिल करना एक अच्छा फैसला है। मोनिका गुप्ता संपादक

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फरवरी - 2018

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किसानों एवं पाठकों के लिए वरदान Main Hu Kisan

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कृषि प्रधान देश में कृषि की दशा और दिशा Á देशी गाय का दूध सर्वश्रेष्ठ रक्षात्मक एवं सम्पूर्ण आहार Á लाभदायक औषधीय खेती तुलसी Á जनवरी माह में िकए जाने वाले खेती-बाड़ी के काम Á जल भविष्य की कुंजी और पूंजी Á हाइड्रोपोनिक्स : बिना मिट्‌टी के पौधे उगाने की तकनीक Á हर्बल गार्डन : वर्तमान युग में महती आवश्यकता Á मौसमी सब्जियां उगाने के लिए लो प्लास्टिक टनल तकनीक Á बढ़ने लगी ऑर्गेनिक दूध की डिमांड Á उत्पादकता वृद्धि के 21 मूल मंत्र

Á कृषक क्लब : ऋण के माध्यम से ग्राम विकास में अहम योगदान Á आर्थिक वृद्धि के लिए करें गाय पालन Á माहवार करें सब्जियों की खेती Á उत्तर भारत में कारगर है पान की खेती Á आयुर्वेदा के बड़े-बड़े गुण Á गुलाब लाभदायक औषधीय खेती Á औषधीय एवं संगध पौधों के शोध की प्रमुख संस्था-सीमैप Á जैविक खाद केंचुआ खाद से बढ़ाएं कृषि उपजाऊपन

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महिला सशक्तिकरण एवं आर्थिक सम्बलता की दिशा में कदम çâÌ ÕÚU, w®v|

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गाय पालन को बढ़ावा देता विशेषांक @ çÙßæ§ü ×ð´ °â°¿Áè ·¤ô Ȥ´Ç çßÌÚU‡æ @ âÙÚUæ§Á Õýæ´Ç çÚUÅUðÜ SÅUôÚU ·¤è ¥æòÂçÙ´» @ ÜæÖÎæØ·¤ ¥õáÏèØ ¹ðÌè — »éÜæÕ, âôÙæ×é¹è, ·¤çÜãæÚUè, ßñçÙÜæ @ ȤâÜ Õè×æ ·¢¤ÂçÙØô´ ·Ô¤ ¿´»éÜ ×ð´ ç·¤âæÙ @ ç´ÁÚUæÂôÜ »õàææÜæ ×ð´ çß·¤çâÌ ãô ÚUãæ ÚUæÁSÍæÙ ·¤æ âÕâð ÕǸæ Áñçß·¤ ßÙ ¥õáÏèØ ÂæΠ·Ô¤‹Îý (Âæ·¤ü) @ ¹ðÌè ×ð´ Áñçß·¤ ·¤èÅUÙæàæ·¤ô´ âð ·¤ÚUð´ ÚUô» çÙØ´˜æ‡æ

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किसानों की आर्थिक दशा को दर्शाता विशेषांक

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जैविक खेती के बारे में सरकार की मंशा

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‘मैं हूं किसान’ प्रकाशन के उद्देश्य

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¥æ× ÕÁÅU çßàæðá

खुशहाली की ओर बढ़ेंगे

किसानों के कदम

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साल 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य उत्पादन लागत से एमएसपी डेढ़ गुना करने का संकल्प

2018-19 आम बजट कृषि-खेती और किसानी @»éÚUÁ´ÅU ŠææÜèßæÜ çßàæðá â¢ßæÎÎæÌæ

ÚU·¤æÚU ·¤Áü ¥æñÚU Ì·¤Ùè·¤ âð »æ´ßæð´, ¹ðÌè ¥æñÚU ç·¤âæÙè ·¤æð ¥æñÚU ×ÁÕêÌ ·¤ÚUÙð ·¤è ·¤ßæØÎ ·¤ÚU ÚUãUè ãñUÐ ·Ô¤´ÎýèØ çßžæ °ß´ ·¤æòÚUÂôÚUðÅU ×æ×Üô´ ·Ô¤ ×´˜æè ¥L¤‡æ ÁðÅUÜè Ùð Îðàæ ·¤è ¥æÁæÎè ·Ô¤ |zßð´ âæÜ ×ð´ ¥ÍæüÌ ßáü w®ww Ì·¤ ç·¤âæÙô´ ·¤è ¥æ×ÎÙè Îô»éÙè ·¤ÚUÙð ·¤æ ¥æqUæÙ ç·¤Øæ ãñÐ ©U‹ãUæð´Ùð ÕÁÅU w®v}-v~ ×ð´ ·ë¤çá ÿæð˜æ ·Ô¤ çÜ° ¥Ùð·¤ Ù§ü ÂãÜô´ ·¤è ƒæôá‡ææ ·¤è ãñUÐ ÕÁÅU ×ð´ ·¤× ¹¿ü ·¤ÚU·Ô¤ â×æÙ Öêç× ÂÚU ·¤ãè´ ’ØæÎæ ©ÂÁ âéçÙçà¿Ì ·¤ÚUÙð ¥õÚU ©â·Ô¤ âæÍ ãè ©ÂÁ ·¤è ÕðãÌÚU ·¤è×Ìð´ ç×Üð´ §Uâ·ð¤ çÜ° ·¤§üU ØæðÁÙæ¥æð´ ·¤æ °ðÜæÙ ç·¤Øæ »Øæ ãñUÐ âÚU·¤æÚU Ùð ¥Õ Ì·¤ ¥ƒæôçáÌ âÖè ¹ÚUèȤ ȤâÜô´ ·Ô¤ çÜ° ©ˆÂæÎÙ Üæ»Ì âð ·¤× âð ·¤× Çðɸ »éÙæ °×°âÂè (‹ØêÙÌ× â×ÍüÙ ×êËØ) ÌØ ·¤ÚUÙð ·¤æ çÙ‡æüØ çÜØæ ãñÐ ×æÙæ Áæ ÚUãUæ ãñU ç·¤ Îðàæ ·Ô¤ ç·¤âæÙô´ ·¤è ¥æ×ÎÙè Îô»éÙè ·¤ÚUÙð ·¤è çÎàææ ×ð´ ØãU ×ãˆßÂê‡æü ·¤Î× âæçÕÌ ãô»æÐ §Uâ·ð¤ çÜ° ·Ô¤´Îý °ß´ ÚUæ’Ø âÚU·¤æÚUô´ ·Ô¤ âæÍ âÜæã×àæçßÚUæ ·¤ÚU ÙèçÌ ¥æØô» °·¤ ¥¿ê·¤ ÃØßSÍæ ·¤æØ× ·¤ÚUð»æ, çÁââð ç·¤ ç·¤âæÙô´ ·¤ô ©Ù·¤è ©ÂÁ ·¤è ÂØæü# ·¤è×Ì ç×Ü â·Ô¤Ð ç·¤âæÙæð´ ·¤æð {® çÎÙ ·¤æ ŽØæÁ ×æȤ ·¤ÚUÙð ·¤æ çÙ‡æüØ Öè çÜØæ »Øæ ãñUÐ çâ´¿æ§üU ·ð¤ çÜ° ¥æß´çÅUÌ ÚUæçàæ x® ãUÁæÚU ·¤ÚUæðǸ L¤Â° âð ÕɸUæ·¤ÚU y® ãUÁæÚU ·¤ÚUæðǸ L¤Â° ·¤ÚU Îè »§ü ãñUÐ §Uâ·ð¤ ¥Üæßæ âæò§UÜ ãñUËÍ ·¤æÇüU ÂÚU ÁæðÚU çÎØæ »Øæ ãñUÐ âæÍ ãUè ·ë¤çá çß™ææÙ ÿæð˜æ ×ð´ v®® Ù° ÜñÕ ÕÙæ° Áæ°´»ðÐ âÚU·¤æÚU Ùð ÁØ ç·¤âæÙ ¥æñÚU ÁØ »æ´ß ·¤æ ÙæÚUæ ÎðÌð ãéU° ÂýŠææÙ×´˜æè ȤâÜ Õè×æ ØæðÁÙæ ·ð¤ çÜ° ~ ãUÁæÚU ·¤ÚUæðǸ, ©UÙ·¤è ×ÎÎ ·ð¤ çÜ° °·¤ ãUÁæÚU Ùæñ âæñ ·¤ÚUæðǸ ß ÇðUØÚUè çß·¤æâ ãðUÌé ¥æÆU ãUÁæÚU ·¤ÚUæðǸ ·¤æ ÂýæߊææÙ ç·¤Øæ ãñUÐ Õðàæ·¤, ¥»ÚU §Uâ ÚU·¤× ·¤æ §üU×æÙÎæÚUè âð §SÌð×æÜ ãéU¥æ Ìæð ØãU ×æÙÙð ×ð´ ãUÁü ÙãUè´ ç·¤ »æ´ßæð´ ß ç·¤âæÙæð´ ·¤è ·¤æØæÂÜÅU ãUæðÙð ×ð´ ÎðÚU ÙãUè´ Ü»ð»èÐ

Main Hu Kisan

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¥æ× ÕÁÅU çßàæðá

©UˆÂæÎÙ Üæ»Ì âð ÇUðɸU »é‡ææ ãUæð»æ °×°âÂè

¥ƒæôçáÌ âÖè ¹ÚUèȤ ȤâÜô´ ·Ô¤ çÜ° ©ˆÂæÎÙ Üæ»Ì âð ·¤× âð ·¤× Çðɸ »éÙæ °×°âÂè ÌØ ·¤ÚUÙð ·¤æ çÙ‡æüØ çÜØæ »Øæ ãñUÐ

â´SÍæ»Ì «¤‡æ vv Üæ¹ ·¤ÚUæðǸ

·ë¤çá ÿæð˜æ ·Ô¤ çÜ° â´SÍæ»Ì «¤‡æ ·¤ô ßáü w®v|-v} ·Ô¤ v® Üæ¹ ·¤ÚUôǸ L¤ÂØð âð Õɸ淤ÚU ßáü w®v}-v~ ×ð´ vv Üæ¹ ·¤ÚUôǸ L¤ÂØð ç·¤Øæ »Øæ ãñUÐ

¥æòÂÚÔUàæÙ »ýè‹â ·¤æ °ðÜæÙ

ÁËÎ ÙC ãôÙð ßæÜè çÁ‹âô´ Áñâð ç·¤ ¥æÜê, ÅU×æÅUÚU ¥õÚU ŒØæÁ ·¤è ·¤è×Ìô´ ×ð´ ÌðÁ ©ÌæÚU-¿É¸æß ·¤è â×SØæ âð çÙÂÅUÙð ·Ô¤ çÜ° z®® ·¤ÚUôǸ L¤ÂØð ·Ô¤ Ò¥æòÂÚUðàæÙ »ýè‹âÓ ·¤è ƒæôá‡ææ, §ââ𠩈Âæη¤ ¥õÚU ©ÂÖôQ¤æ ÎôÙô´ ãè ÜæÖæç‹ßÌ ãô´»ðÐ Ò¥æòÂÚUðàæÙ UÜÇÓ ·¤è ÌÁü ÂÚU àæéM¤ ç·¤Øæ »Øæ Ò¥æòÂÚUðàæÙ »ýè‹âÓ §â ÿæð˜æ ×ð´ ç·¤âæÙ ©ˆÂæη¤ â´»ÆÙô´ (°È¤Âè¥ô), ·ë¤çá-ÜæòçÁçSÅU€Uâ, Âýâ´S·¤ÚU‡æ âéçßÏæ¥ô´ ¥õÚU ÂýôÈÔ¤àæÙÜ ÂýÕ´ÏÙ ·¤ô Õɸæßæ Îð»æÐ

Áñçß·¤ ¹ðÌè ·¤ÚUÙð ßæÜð ç·¤âæÙæð´ ·¤æð ÂýæðˆâæãUÙ

âÚU·¤æÚU ÕǸð €UÜSÅUÚUô´, çßàæðá·¤ÚU ÂýˆØð·¤ v®®® ãð€UÅUðØÚU ×ð´ Èñ¤Üð €UÜSÅUÚUô´ ×ð´ ç·¤âæÙ ©ˆÂæη¤ â´»ÆÙô´ (°È¤Âè¥ô) ¥õÚU »ýæ×è‡æ ©ˆÂæη¤ â´»ÆÙô´

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(ßèÂè¥ô) ×ð´ ÕǸð Âñ×æÙð ÂÚU Áñçß·¤ ¹ðÌè ·¤ô Õɸæßæ Îð»èÐ ÚUæCþèØ »ýæ×è‡æ ¥æÁèçß·¤æ ·¤æØü·ý¤× ·Ô¤ ÌãÌ €UÜSÅUÚUô´ ×ð´ Áñçß·¤ ¹ðÌè ·¤ÚUÙð ·Ô¤ çÜ° ×çãÜæ SßØ´ âãæØÌæ â×êãô´ (°â°¿Áè) ·¤ô Öè ÂýôˆâæçãÌ ç·¤Øæ Áæ°»æÐ

â´»çÆUÌ ¹ðÌè ·¤ô ç×Üð»æ ÕɸUæßæ

¥ˆØ´Ì çßçàæC ¥õáÏ °ß´ âé»´çÏÌ ÂõÏô´ ·¤è â´»çÆÌ ¹ðÌè ×ð´ âãæØÌæ ·¤ÚUÙð ¥õÚU §˜æ, ¥æßàØ·¤ ÌðÜô´ ÌÍæ ¥‹Ø â´Õ´çÏÌ ©ˆÂæÎô´ ·¤æ ©ˆÂæÎÙ ·¤ÚUÙð ßæÜð ÀôÅUð °ß´ ·é¤ÅUèÚU ©lô»ô´ ·¤è ×ÎÎ ·¤ÚUÙð ·Ô¤ çÜ° w®® ·¤ÚUôǸ L¤ÂØð ·¤æ ¥æß´ÅUÙ ç·¤Øæ »Øæ ãñÐ

ww ãUÁæÚU »ýæ×è‡æ ãUæÅU ãUæð´»ð çß·¤çâÌ

ww,®®® »ýæ×è‡æ ãæÅUô´ ·¤ô »ýæ×è‡æ ·ë¤çá ÕæÁæÚUô´ (»ýæ×) ·Ô¤ M¤Â ×ð´ çß·¤çâÌ ç·¤Øæ Áæ°»æ, Ìæç·¤ ç·¤âæÙ âèÏð ©ÂÖôQ¤æ¥ô´ ¥õÚU ÃØæ·¤ ¹ÚUèÎæÚUè ·¤ÚUÙð ßæÜô´ ·¤ô ¥ÂÙè ©ÂÁ ·¤è çÕ·ý¤è ·¤ÚU â·Ô¤´Ð ww®®® »ýæ×ô´ ¥õÚU z}z °Âè°×âè ×ð´ ·ë¤çá ç߇æÙ âð â´Õ´çÏÌ ÕéçÙØæÎè Éæ´¿ð ·Ô¤ çß·¤æâ °ß´ ©óæØÙ ·Ô¤ çÜ° w®®® ·¤ÚUôǸ L¤ÂØð ·¤æ ·¤ôá ÕÙæØæ Áæ°»æÐ


¹æl Âýâ´S·¤ÚU‡æ ·¤æ ÕÁÅU Îæð»éÙæ

¹æl Âýâ´S·¤ÚU‡æ ×´˜ææÜØ ·Ô¤ çÜ° ¥æß´ÅUÙ ·¤ô ßáü w®v|-v} ·Ô¤ |vz ·¤ÚUôǸ L¤ÂØð ·Ô¤ â´àæôçÏÌ ¥Ùé×æÙ âð Îô»éÙæ ·¤ÚU ßáü w®v}-v~ ·Ô¤ ÕÁÅU ¥Ùé×æÙ ×ð´ vy®® ·¤ÚUôǸ L¤ÂØð ·¤ÚUÙð ·¤è ƒæôá‡ææ ·¤è »§üU ãñUÐ ·ë¤çá â´ÂÎæ ØôÁÙæ ¹æl Âýâ´S·¤ÚU‡æ ×ð´ çÙßðàæ ·¤ô Õɸæßæ ÎðÙð ßæÜæ âÚU·¤æÚU ·¤æ ØãU Âý×é¹ ·¤æØü·ý¤× ãñÐ Øã ÿæð˜æ ¥õâÌÙ } ÂýçÌàæÌ âæÜæÙæ ·¤è ÎÚU âð ¥æ»ð Õɸ ÚUãæ ãñÐ §â ÿæð˜æ ·Ô¤ çÜ° ¥æß´ÅUÙ Õɸ淤ÚU âÚU·¤æÚU §â ÿæð˜æ ×ð´ çßçàæC ·ë¤çá-Âýâ´S·¤ÚU‡æ çßžæèØ â´SÍæÙô´ ·¤è SÍæÂÙæ ·¤ô ÂýôˆâæçãÌ ·¤ÚUð»è ¥õÚU âÖè yw ×ð»æ Èê¤Ç Âæ·¤ô´ü ×ð´ ¥ˆØæÏéçÙ·¤ ÂÚUèÿæ‡æ âéçßÏæ¥ô´ ·¤è SÍæÂÙæ ·¤ÚUð»èÐ ÖæÚUÌ ×ð´ }{ ÂýçÌàæÌ âð Öè ¥çÏ·¤ ÀôÅUð °ß´ âè×æ´Ì ç·¤âæÙ ãñ´ Áô âèÏð °Âè°×âè ¥õÚU ¥‹Ø Íô·¤ ÕæÁæÚUô´ ×ð´ ÜðÙ-ÎðÙ ·¤ÚUÙð ·¤è çSÍçÌ ×ð´ ã×ðàææ Ùãè´ ãôÌð ãñ´Ð §Ù Ò»ýæ×ô´Ó ×ð´ ×ÙÚUð»æ ÌÍæ ¥‹Ø âÚU·¤æÚUè ØôÁÙæ¥ô´ ·¤æ ©ÂØô» ·¤ÚU·Ô¤ ÖõçÌ·¤ ÕéçÙØæÎè Éæ´¿ð ·¤ô ÕðãÌÚU ç·¤Øæ Áæ°»æ ¥õÚU §‹ãð´ §Üð€UÅþæòçÙ·¤ É´» âð §ü-Ùæ× âð ÁôǸæ Áæ°»æ ÌÍæ °Âè°×âè ·Ô¤ çÙØ×Ù ·Ô¤ ÎæØÚUð âð ÕæãÚU ÚU¹æ Áæ°»æÐ §ââð ç·¤âæÙ âèÏð ©ÂÖôQ¤æ¥ô´ ¥õÚU ÃØæ·¤ ¹ÚUèÎæÚUè ·¤ÚUÙð ßæÜô´ ·¤ô ¥ÂÙè ©ÂÁ ·¤è çÕ·ý¤è ·¤ÚU â·Ô¤´»ðÐ

׈SØ ß ÂàæéÂæÜ·¤æð´ ·¤æð ç×Üð´»ð ç·¤âæÙ ·ýð¤çÇUÅU ·¤æÇüU

׈SØ ÂæÜÙ °ß´ ÂàæéÂæÜÙ ÿæð˜æ ·Ô¤ ÀôÅUð ¥õÚU âè×æ´Ì ç·¤âæÙô´ ·¤è ·¤æØüàæèÜ Âê´Áè â´Õ´Ïè ÁM¤ÚUÌô´ ·¤è ÂêçÌü ×ð´ ×ÎÎ ·Ô¤ çÜ° ©U‹ãð´U ç·¤âæÙ ·ýð¤çÇÅU ·¤æÇô´ü (·Ô¤âèâè) ·¤è âéçßÏæ Îè Áæ°»èÐ §ââð Âàæé, Öñ´â, Õ·¤ÚUè, ÖðǸ, ×é»èü °ß´ ׈SØ ÂæÜÙ ·Ô¤ çÜ° ȤâÜ «¤‡æ ¥õÚU ŽØæÁ âçŽâÇè ·¤æ ÜæÖ ç×Üð»æÐ ¥Õ Ì·¤ ·Ô¤âèâè ·Ô¤ ÌãÌ ·Ô¤ßÜ ·ë¤çá ÿæð˜æ ·¤ô ãè ©ÂÜŽÏ ÍæÐ ÎôÙæð´ ÿæð˜æô´ ×ð´ ÕéçÙØæÎè Éæ´¿ð ·Ô¤ çß·¤æâ ·Ô¤ çÜ° v®®®® ·¤ÚUôǸ L¤ÂØð ·Ô¤ ·¤ôá ·¤è ƒæôá‡ææ ·¤è »§üU ãñUÐ §â·Ô¤ ¥Üæßæ ׈SØ ÂæÜÙ ·ð¤ çÜ° ׈SØ ÂæÜÙ °ß´ ÁÜèØ ·ë¤çá ÕéçÙØæÎè Éæ´¿æ»Ì çß·¤æâ ·¤ôá (°È¤°¥æ§üÇè°È¤) ¥õÚU ÂàæéÂæÜÙ ÿæð˜æ ·¤è Éæ´¿æ»Ì ÁM¤ÚUÌô´ ·Ô¤ çßžæÂôá‡æ ·Ô¤ çÜ° ÂàæéÂæÜÙ ÕéçÙØæÎè Éæ´¿æ»Ì çß·¤æâ ·¤ôá (°°¿¥æ§üÇè°È¤) ÕÙæÙð ·¤è Öè ƒæôá‡ææ ·¤è »§üU ãñUÐ

Õæ´â ·¤è ¹ðÌè ·ð¤ çÜ° ÚUæCþèØ Õæ´â ç×àæÙ

Õæ´â ÿæð˜æ ·¤ô â×»ý M¤Â âð ÂýôˆâæçãÌ ·¤ÚUÙð ·Ô¤ çÜ° vw~® ·¤ÚUôǸ L¤ÂØð ·Ô¤ ÂéÙ»üçÆÌ ÚUæCþèØ Õæ´â ç×àæÙ ·¤è ƒæôá‡ææ ·¤è »§üU ãñUÐ ØãU ØæðÁÙæ ç·¤âæÙô´ ·Ô¤ çÜ° ¥çÌçÚUQ¤ ¥æ×ÎÙè ¥õÚU çßàæðá·¤ÚU »ýæ×è‡æ ÿæð˜æô´ ·Ô¤ ·é¤àæÜ °ß´ ¥·é¤àæÜ Øéßæ¥ô´ ·Ô¤ çÜ° ÚUôÁ»æÚU ¥ßâÚU âëçÁÌ ·¤ÚUÙð ×ð´ ¥ã× Øô»ÎæÙ Îð»èÐ

ßæØé ÂýÎêá‡æ ·¤è â×SØæ ãUæð»è ÎêÚU

ßæØé ÂýÎêá‡æ ·¤è â×SØæ ÎêÚU ·¤ÚUÙð ·Ô¤ çÜ° ãçÚUØæ‡ææ, ´ÁæÕ, ©žæÚU ÂýÎðàæ ÌÍæ çÎËÜè ·¤è âãæØÌæ ·¤ÚUÙð ¥õÚU ¹ðÌ ×ð´ ãè ȤâÜ ¥ÂçàæC ·Ô¤ â×éç¿Ì ÂýÕ´ÏÙ ·Ô¤ çÜ° ¥æßàØ·¤ ×àæèÙÚUè ÂÚU âçŽâÇè ÎðÙð ãðÌé çßàæðá ØôÁÙæ ç·ý¤Øæç‹ßÌ ·¤è Áæ°»èÐ

·ë¤çá ©UˆÂæη¤ ·´¤ÂçÙØæð´ ·¤æð ÕǸè ÚUæãUÌ

âÚU·¤æÚU Ùð v®® ·¤ÚUôǸ L¤ÂØð Ì·¤ ·Ô¤ ·¤æÚUôÕæÚU ßæÜè ·ë¤çá ©ˆÂæη¤ ·¤´ÂçÙØô´ (°È¤Âèâè) ·¤ô ãôÙð ßæÜð ÜæÖô´ ·Ô¤ â´ÎÖü ×ð´ Âæ´¿ ßáô´ü ·¤è ¥ßçÏ Ì·¤ v®® ÂýçÌàæÌ ·¤è ·¤ÅUõÌè ·¤è ƒæôá‡ææ ·¤è çÁâ·¤è àæéL¤¥æÌ çßžæ ßáü w®v}-v~ âð ãô»èÐ §ââð ·ë¤çá ÿæð˜æ ×ð´ ·¤ÅUæ§ü ©ÂÚUæ´Ì ×êËØ â´ßÏüÙ ×ð´ ÂýôÈÔ¤àæÙÜ ÙÁçÚU° ·¤ô Õɸæßæ ç×Üð»æÐ

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¥æ× ÕÁÅU çßàæðá

·é¤Ü ÕÁÅU wv.z| Üæ¹ ·¤ÚUæðǸ

आम बजट एक नजर में

SßæS‰Ø âéÚUÿææ ·¤è ¥æØéc×æÙ ÖæÚUÌ ØæðÁÙæ

¥æ× ÕÁÅU ×ð´ çßžæ ×´˜æè ¥M¤‡æ ÁðÅUÜè Ùð ç·¤âæÙæð´ ¥æñÚU »ýæ×è‡ææð´ ·ð¤ çÜ° ×æÙæð ¹ÁæÙæ ¹æðÜ çÎØæÐ »ÚUèÕæð´ ·ð¤ çÜ° ÎéçÙØæ ·¤è âÕâð ÕǸè SßæS‰Ø âéÚUÿææ ·¤è ·¤è ×ãUæˆßæ·¤æ´ÿæè ØæðÁÙæ ¥æØéc×æÙ ÖæÚUÌ ·¤æ °ðÜæÙ ç·¤Øæ ãñUÐ §Uâ·ð¤ ÌãUÌ v® ·¤ÚUæðǸ ÂçÚUßæÚUæð´ ·¤æð âæÜæÙæ Âæ´¿ Üæ æ L¤Â° ·¤è Õè×æ âéçߊææ ÎðÙð ·ð¤ çÜ° ÙðàæÙÜ ãñËÍ ÂýæðÅðU€àæÙ S·¤è× Üæ§üU »§üU ãñUÐ §Uâ×ð´ ·¤ÚUèÕ z® ·¤ÚUæðǸ Üæð»æð´ ·¤æð Õè×æ ·¤ßÚU ç×Üð»æÐ

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ÀUæðÅðU ©Ulç×Øæð´ ·ð¤ wz® ·¤ÚUæðǸ L¤Â° Ì·¤ ·ð¤ ·¤æÚUæðÕæÚU ÂÚU ÅñU€â x® ÂýçÌàæÌ âð ƒæÅUæ·¤ÚU wz ÂýçÌàæÌ ç·¤ØæÐ ÚÔUÜßð ·¤æð v.y} Üæ¹ ·¤ÚUæðǸ ·¤æ ÕÁÅU çÎØæ »Øæ ãñU, çÁâ·ð¤ ÌãUÌ ¥Õ Îðàæ ·¤è âÖè Üæ§UÙð´ ÕýæòÇU»ðÁ ·¤è Áæ°´»è v}®®® ç·¤×è. Üæ§UÙ ·¤æ ãUæð»æ ÎæðãUÚUè·¤ÚU‡æ ãUÚU »ÚUèÕ ·¤æð ƒæÚU ÎðÙð ·¤è ¥æßæâ ØæðÁÙæ ·ð¤ ÌãUÌ w®ww Ì·¤ »æ´ßæð´ ×ð´ zv Üæ¹ ÕÙæ°¢»ð ƒæÚU Sß‘ÀU ÖæÚUÌ ¥çÖØæÙ ·ð¤ ÌãUÌ 2 ·¤ÚUæðǸ àææñ¿æÜØ ÕÙæÙð ·¤æ ÜÿØ ÚU¹æ »Øæ ãñU ÚUÿææ ÿæð˜æ ·ð¤ çÜ° w Üæ¹ |~ ãUÁæÚU x®z ·¤ÚUæðǸ L¤Â° ·¤æ ÂýæߊææÙ v{ ãUÁæÚU ·¤ÚUæðǸ L¤Â° ¹¿ü ·¤ÚU y ·¤ÚUæðǸ »ÚUèÕæ𴠷𤠃æÚæð´ ·¤æð Îð´»ð çÕÁÜè ·¤Ùð€àæÙ ÕéÁé»æðZ ·¤æð ÅñU€â ×ð´ z »éÙæ ÀêUÅU ©U’ÁßÜæ ØæðÁÙæ - } ·¤ÚUæðǸ ×çãUÜæ¥æð´ ·¤æð ç×Üð´»ð »ñâ ·¤Ùð€àæÙ ×éÎýæ ØæðÁÙæ ·ð¤ ÌãUÌ x Üæ¹ ·¤ÚUæðǸ L¤Â° ·ð¤ «¤‡æ

×çãUÜæ SßØ´ âãUæØÌæ â×êãUæð´ ·¤æð |z ãUÁæÚU ·¤ÚUæðǸ

ÕÁÅU ×ð´ |z ãUÁæÚU ·¤ÚUæðǸ L¤Â° ×çãUÜæ SßØ´ âãUæØÌæ â×êãUæð´ ·¤æð çΰ ÁæÙð ·¤è ƒææðá‡ææ ·¤è »§üU ãñU, ÁÕç·¤ w®v{-v| ·ð¤ ÕÁÅU ×ð´ ·ð´¤Îý Ùð ×çãUÜæ¥æð´ ·ð¤ SßØ´ âãUæØÌæ â×êãUæð´ ·¤æð ywz®® ·¤ÚUæðǸ L¤Â° ¥æß´çÅUÌ ç·¤° »° ÍðÐ §Uâ ßáü §Uâ×ð´U x| ÂýçÌàæÌ ·¤è ßëçh ·¤è »§üU ãñUÐ §Uâ·ð¤ ÌãUÌ âæɸðU y ·¤ÚUæðǸ ×çãUÜæ¥æð´ ·¤æð â×êãU ·ð¤ ÌãUÌ ÜæØæ »Øæ ãñUÐ ×çãUÜæ SßØ´ âãUæØÌæ â×êãUæ𴠷𤠰·¤ ãUÁæÚU ¥æò»ðüçÙ·¤ ·¤ÜSÅUÚU ·ð´¤Îý âÚU·¤æÚU ¿Üæ ÚUãUè ãñU, çÁÙ×ð´ xw Üæ¹ ×çãUÜæ¥æð´ ·¤æð ÁæðÇ¸æ »Øæ ãñUÐ



¥çÌ »é‡æ·¤æÚUè

एलोवे र ा के अनोखे और कारगर फायदे °ÜôßðÚUæ °·¤ ¥õáçÏ ·Ô¤ M¤Â ×ð´ ÁæÙè ÁæÌè ãñÐ §â·¤æ ©ÂØô» ã× Âý¿èÙ ·¤æÜ âð ãè ·¤ÚUÌð ¥æ ÚUãð´ ãñ´, €UØô´ç·¤ Øã °·¤ â´ÁèßÙè ÕêÅUè ·¤è ÌÚUã ·¤§ü ÚUô»ô´ ·Ô¤ §ÜæÁ ·Ô¤ çÜ° ©ÂØô» ×ð´ Üæ§ü ÁæÌè ãñÐ çιÙð ×ð´ ãÚUæ ¥õÚU ç·¤ÙæÚUð ·¤è ¥ôÚU ·¤æ´ÅUðÎæÚU ¥æ·¤ëçÌ çÜ° ãé° Øã °ÜôßðÚUæ â´ÁèßÙè ·Ô¤ Ùæ× âð Öè ÁæÙæ ÁæÌæ ãñÐ §âð ·¤§ü Ùæ×æð´ âð ÁæÙæ ÁæÌæ ãñ Áñâð — ‚ßæÚUÂæÆæ, ÏëÌ·é¤×æÚUèÐ ÕãéÌ âð ȤæØÎô´ ·¤è ßÁã âð §âð ¿×ˆ·¤æÚUè ÂõÏæ Öè ·¤ãÌð ãñ´Ð °ÜôßðÚUæ ·¤è w®® âð ¥çÏ·¤ Âý·¤æÚU ·¤è ÂýÁæçÌØæ´ Âæ§ü ÁæÌè ã´ñÐ °ÜôßðÚUæ ·Ô¤ ÂõÏð ×ð´ ÚUâ âÕâð ×ãˆßÂê‡æü çãSâæ ãôÌæ ãñÐ °ÜôßðÚUæ ·Ô¤ ÚUâ ×´ð ·¤§ü ÚUæâæØçÙ·¤ ̈ßô´ ·Ô¤ »é‡æ Öè Âæ° ÁæÌð ãñ´, Áñâð v} ¥×èÙô °çâÇ, vw çßÅUæç×Ù ¥õÚU w® ¹çÙÁ Âæ° ÁæÌð ãñ´Ð §â·Ô¤ ¥Üæßæ ·¤§ü ¥‹Ø Øõç»·¤ Ìˆß Öè §â×ð´ Âæ° ÁæÌð ãñ´Ð

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°ÜôßðÚUæ ·Ô¤ Âôá‡æ ·¤æ ×ãˆß °·¤ ¥õáçÏ ·Ô¤ M¤Â ×ð´ ©ÂØô» ×ð´ Üæ° ÁæÙð ßæÜæ Øã °ÜôßðÚUæ ·¤§ü ÂôçcÅU·¤ ̈ßô´ âð ÖÚUæ ÂǸæ ãñÐ §Ù×ð´ vw çßÅUæç×Ù, v} ¥×èÙô °çâÇ, w® ¹çÙÁ, |z Âôá·¤ Ìˆß ¥õÚU w®® âç·ý¤Ø °´Áæ§× àææç×Ü ãñ´Ð §â·Ô¤ ¥Üæßæ ·¤§ü ÚUæâæØçÙ·¤ »é‡æ ¹çÙÁ ·ñ¤çËàæØ×, ÁSÌæ, Ìæ´Õæ, ÂôÅUðçàæØ×, Üôãæ, âôçÇØ×, ×ñ‚ÙèçàæØ×, ·ý¤ôç×Ø× ¥õÚU ×ñ»ÙèÁ Âý¿éÚU ×æ˜ææ ×ð´ ÂæØæ ÁæÌæ ãñ ¥õÚU §â×ð´ çßÅUæç×Ù ·Ô¤ »é‡æ Öè ÖÚUÂêÚU ×æ˜ææ ×ð´ Âæ° ÁæÌð ãñ´Ð çßÅUæç×Ù §ü, çßÅUæç×Ù âè, çßÅUæç×Ù Õè-vw, Õè-{, Õè-w, Õè-v, çßÅUæç×Ù °, Õè-v, Õè-w, Õè-{, çÙØæçâÙ ¥õÚU ȤæòçÜ·¤ °çâÇ àææç×Ü ãñÐ §â·Ô¤ ©Â¿æÚU âð ã×ð´ ·¤§ü âæ·¤æÚUæˆ×·¤ ÂçÚU‡ææ× ÂýæŒÌ ãé° ãñ´Ð

àææÚUèçÚU·¤ ©Â¿æÚU ãðÌé °ÜôßðÚUæ ·Ô¤ ȤæØÎð °ÇæòŒÅUôÁðÙ °ÇæòŒÅUôÁðÙ ×æÙß àæÚUèÚU ·¤è ÚUô» ÂýçÌÚUôÏ·¤ ÿæ×Ìæ ·¤ô ×ÁÕêÌ ·¤ÚUÙð ¥õÚU ßæÌæßÚU‡æ ×ð´ ãôÙð ßæÜð ÕÎÜæßô´ ·Ô¤ ÂýÖæß ·¤ô ÌðÁè âð àæÚUèÚU ×ð´ ÉæÜÌæ ãñÐ ¥æÁ ·¤è Öæ»ÎõǸ ÖÚUè çÁ´Î»è ×ð´ ÕÎÜÌð ãé° ¹æÙ-ÂæÙ ·¤æ ¥âÚU âèÏæ ã×æÚUè ãðËÍ ÂÚU ÂǸÌæ ãñÐ °ÜôßðÚUæ ×ð´ Âæ° ÁæÙð ßæÜð ÂæòçÜâñ¿ðÚUæ§Ç÷â, ßæØÚUâ âð ÜǸ·¤ÚU ·¤§ü Âý·¤æÚU ·¤è Õè×æçÚUØô´ âð àæÚUèÚU ·¤ô âéÚUçÿæÌ ÚU¹Ìð ãñ´Ð °ÜôßðÚUæ ·¤æ Áêâ ¥æ·Ԥ àæÚUèÚU ×ð´ ÌÙæß âð ÜǸÙð ·¤è ÿæ×Ìæ ÕɸæÌæ ãñÐ §â·Ô¤ ¥Üæßæ ØãU ¥æ·¤ô Õè×æÚUè âð Õ¿æÙð ×ð´ âãæØ·¤ Ìô ãôÌæ ãè ãñ, âæÍ ãè ×æÙçâ·¤ àææ´çÌ Öè ÂýÎæÙ ·¤ÚUÌæ ãñÐ

Âæ¿Ù ç·ý¤Øæ ×ð´ âãæØ·¤ ¥æÂÙð ã×ðàææ ÂðÅU ×ð´ »ñâ ÕÙÙæ ¥õÚU ¹æÙð ·Ô¤ ٠¿Ùð ·¤è â×SØæ ·Ô¤ ÕæÚUð ×ð´ Ìô âéÙæ ãè ãô»æÐ ã×æÚUð àæÚUèÚU ×ð´ ÂðÅU â´Õ´Ïè ·¤ô§ü Öè Õè×æÚUè ãô Ìô ¥æ w® »ýæ× °ÜôßðÚUæ ·Ô¤ ÚUâ ×ð´ àæãÎ ¥õÚU Ùè´Õê ç×Üæ·¤ÚU âðßÙ ·¤ÚUð´Ð Øã ÂðÅU ·¤è Õè×æÚUè ·¤ô ÎêÚU Ìô ·¤ÚUÌæ ãè ãñÐ âæÍ ãè âæÍ Âæ¿Ù àæç€Ì ·¤ô Öè ÕɸæÌæ ãñÐ

·¤ŽÁ ·¤è â×SØæ Øã â×SØæ ã×ð´ ¥€UâÚU âéÙÙð ·¤ô ç×ÜÌè ãñÐ Øã â×SØæ ç·¤âè Öè ©×ý ·Ô¤ Üô»ô´ ·¤ô ãô â·¤Ìè ãñÐ §â ÚUô» ·¤ô ÎêÚU ·¤ÚUÙð ·Ô¤ çÜ° °ÜôßðÚUæ ·Ô¤ ÚUâ ·¤æ âðßÙ ·¤ÚUÙð âð ÕãéÌ ’ØæÎæ ȤæØÎæ ãôÌæ ãñÐ ÀôÅUð Õ‘¿ô´ ×ð´ ·¤ŽÁ ·Ô¤ çÜ° Áêâ ß ãè´» ç×Üæ·¤ÚU ÙæçÖ ·Ô¤ ¿æÚUô´ ¥ôÚU Ü»æ Îð´, §ââð ÜæÖ ç×Üð»æÐ §â·Ô¤ ¥Üæßæ Ø·ë¤Ì ×ð´ ÕÉU¸ ÚUãè âêÁÙ ×ð´ §â·Ô¤ »éÎð ·¤æ âðßÙ âéÕã-àææ× ·¤ÚUÙð âð Ø·ë¤Ì ·¤è ·¤æØüÿæ×Ìæ ÕɸÌè ãñÐ §ââð ÂèçÜØæ ÚUô» Öè ÎêÚU ãôÌæ ãñÐ

§ ØéÙè çâSÅU× (ÚUô» ÂýçÌÚUôÏ·¤ Âý‡ææÜè) °ÜôßðÚUæ ÂõÏð ·Ô¤ ÚUâ ×ð´ ÚUô»ô´ âð ÜǸÙð ·¤è ÿæ×Ìæ ãôÌè ãñÐ €UØô´ç·¤ §â×ð´ ÚUô» ÂýçÌÚUôÏ·¤ Ìˆß ×õÁêÎ ãôÌð ãñ´, Áô ã×æÚUð àæÚUèÚU ·¤è ÚUô»-ÂýçÌÚUôÏ·¤ ÿæ×Ìæ ·¤ô ÕɸæÌð ãñ´Ð çÁââð àæÚUèÚU ×ð´ ¿éSÌè ß SȤêçÌü ÕÙè ÚUãÌè ãñÐ

NUÎØ ÚUô» ¥õÚU ×ôÅUæÂæ ¥æÁ ·¤è âÕâð ÁçÅUÜ â×SØæ ã×æÚUð àæÚUèÚU ×ð´ ÕɸÌæ ×ôÅUæÂæ ãñÐ Áô NÎØ ÚUô» ãôÙð ·¤æ ×é Ø ·¤æÚU‡æ ÕÙÌè ãñÐ ×ôÅUæÂð âð àæÚUèÚU ×ð´ ÌðÁè âð ·¤ôÜðSÅþæòÜ ÕɸÌæ ãñ ¥õÚU ÚU€ÌßæçãçÙØô´ ×ð´ ßâæ ·¤æ Á×æß ãôÌæ ãñÐ °ðâè çSÍçÌ ×ð´ °ÜôßðÚUæ ·¤æ ÚUâ ÕðãΠȤæØÎð×´Î ãôÌæ ãñÐ °ÜôßðÚUæ Áêâ ÚUôÁæÙæ w® ç×Üè-x® ç×Üè ·¤è ×æ˜ææ ×ð´ ÂèÙð âð àæÚUèÚU ×ð´ ¥‹ÎÚU âð ÖÚUÂêÚU Ì´ÎL¤SÌè ÌÍæ ÌæÁ»è ·¤æ ¥ãâæâ ãôÌæ ãñ ÌÍæ ª¤Áæü ·¤æ ©‘¿ SÌÚU ÕÙæ ÚUãÌæ ãñÐ §ââð ßÁÙ Öè àæÚUèÚU ·Ô¤ ¥Ùé·ê¤Ü ÚUãÌæ ãñÐ

çÚUØê×æÅUô§üÇ ¥ÍüÚUô§çÅUâ (â´çÏàæôÍ) Øã ÚUô» ·¤æȤè ÎÎüÙæ·¤ ãôÌæ ãñÐ §â×ð´ ÚUô»è ·Ô¤ ãæÍ, ÂñÚU ÁôǸô´ ×ð´ ÎÎü, ¥·¤Ç¸Ù Øæ âêÁÙ ¥æ ÁæÌè ãñÐ âæÍ ÁôǸô´ ×ð´ »æ´Æð´ ÕÙ ÁæÌè ãñ´ ¥õÚU àæêÜ ¿éÖÙð Áñâè ÂèǸæ ãôÌè ãñ, §âçÜ° §â ÚUô» ·¤ô »çÆØæ ÚUô» Öè ·¤ãÌð ãñ´Ð çÁâ·¤æ âãè §ÜæÁ °ÜôßðÚUæ ×ð´ ÂæØæ »Øæ ãñÐ ÂãÜð §â·Ô¤ Îô Ȥ洷¤ ·¤ÚU §â×ð´ ãËÎè ÖÚU·¤ÚU ãË·¤æ »×ü ·¤ÚU Üð´ ¥õÚU ÂýÖæçßÌ Öæ» ÂÚU Ü»æÌæÚU ÂÅU÷ÅUè Ü»æØð´ °ðâæ ¥æ ܻæÌæÚU v® âð vz çÎÙô´ Ì·¤ ·¤ÚUð´Ð »çÆØæ, ÁôǸô ×ð´ ÎÎü, ×ô¿ Øæ âêÁÙ ×ð´ ·¤æȤè ÚUæãÌ ç×Üð»èÐ ÁôǸô ·Ô¤ ÎÎü ×ð´ °ÜôßðÚUæ Áêâ ·¤æ âðßÙ âéÕã-àææ× ¹æÜè ÂðÅU ·¤ÚUð´ ¥õÚU ÂýÖæçßÌ ÁôǸô´ ÂÚU Ü»æÙð âð çßàæðá ȤæØÎæ ãôÌæ ãñÐ

ßÁÙ ·¤× ·¤ÚUÙæ ¥ÂÙð ßÁÙ ·¤ô ·¤× ·¤ÚUÙð ×ð´ Öè °ÜôßðÚUæ ·¤æ ©ÂØô» ç·¤Øæ ÁæÌæ ãñÐ

×é´ã ·¤è âȤæ§ü Á × ƒææß ÁÜÙ Áñâè ·¤ô§ü Öè â×SØæ ãô Øæ çȤÚU ×é´ã ÂÚU ÂǸ ÚUãð ÀæÜô´ ·¤ô ÎêÚU ·¤ÚUÙæÐ §Ù âÖè â×SØæ¥ô´ ×ð´ °ÜôßðÚUæ ·¤æ §SÌð×æÜ ·¤ÚUÙæ ¿æçã°Ð

Á × Øæ ƒææß àæÚUèÚU ×ð´ ç·¤âè Öè Âý·¤æÚU ·¤æ Á × Øæ ƒææß ãô ÁæÙð ÂÚU °ÜôßðÚUæ ·Ô¤ »éÎð Main Hu Kisan

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¥çÌ »é‡æ·¤æÚUè

·¤ô ·ý¤è× ·¤è ÌÚUã Ü»æÙè ¿æçã°Ð §â·Ô¤ žæô´ ·Ô¤ »éÎð ×ð´ ÁÚUæ-âè Âèâè ãËÎè ç×Üæ·¤ÚU §â ÂðSÅU ·¤ô °·¤ ÂÅU÷ÅUè ÂÚU Ü»æ Üð´ ¥õÚU »æ´Æ, ȤôǸð ÂÚU ÚU¹·¤ÚU ÂÅU÷ÅUè Õæ´Ï ÎðРȤôǸæ ·¤ ·¤ÚU SßÌÑ Èê¤ÅU Áæ°»æ ¥õÚU ×ßæÎ çÙ·¤Ü Áæ°»æÐ

°´ÅUè âðçŒÅU·¤, °´ÅUè Õñ€UÅUèçÚUØÜ ¥õÚU °´ÅUè È¢¤»Ü §â×ð´ ·¤ô§ü àæ·¤ Ùãè´ ç·¤ °ÜôßðÚUæ ÎéçÙØæ ·¤æ âÕâð ÕçɸØæ °´ÅUèÕæ§UçÅU·¤ ¥õÚU °´ÅUèâðçŒÅU·¤ »é‡æ ßæÜæ ãôÌæ ãñ, Áô ã×æÚUð àæÚUèÚU ·¤è ÚUô»-ÂýçÌÚUôÏ·¤ ÿæ×Ìæ ·¤ô ÕɸæÌæ ãñÐ §â·Ô¤ ¥Üæßæ ã×æÚUð àæÚUèÚU ·¤ô ֻܻ wv ¥×èÙô°çâÇ ·¤è ÁM¤ÚUÌ ãôÌè ãñ, çÁâ×ð´ °ÜôßðÚUæ âð v} ¥×èÙô°çâÇ ·¤è ×æ˜ææ ·¤ô ÂêÚUæ ·¤ÚUÌæ ãñÐ §Ù »é‡æô´ âð ÖÚUÂêÚU °ÜôßðÚUæ ×ð´ âðÂôçÙÙ Ùæ×·¤ Ìˆß ãôÌæ ãñ, Áô àæÚUèÚU ·¤è ¥´ÎM¤Ùè âȤæ§ü ·¤ÚUÌæ ãñ ÌÍæ ÚUô»æ‡æé ÚUçãÌ ÚU¹Ùð ·¤æ »é‡æ ÚU¹Ìæ ãñÐ §â·Ô¤ ¥Üæßæ ¹ÌÚUÙæ·¤ Õè×æçÚUØô´ âð çÙÁæÌ Öè çÎÜæÌæ ãñÐ Øã °Ç÷â Áñâè Õè×æÚUè ×ð´ Öè ¹æâ âæçÕÌ ãôÌæ ãñÐ

·¤ôÜðSÅþæòÜ ·¤æ SÌÚU ÕÙæ° ÚU¹Ùð ×ð´ âãæØ·¤ ã×æÚUð àæÚUèÚU ×ð´ ×ôÅUæÂæ ãôÙð âð àæÚUèÚU ×ð´ ·¤ôÜðSÅþæòÜ ÌðÁè âð ÕɸÌæ ãñÐ §âè ·¤ôÜðSÅþæòÜ ·¤ô ·¤× ·¤ÚUÙð ×ð´ °ÜôßðÚUæ âÕâð ×ãˆßÂê‡æü M¤Â âð ·¤æ× ·¤ÚUÌæ ãñÐ

×Ïé×ðã âð ÜǸÙð ×ð´ ·¤æÚU»ÚU ØçÎ ¥æ ÇæØçÕÅUèÁ ·¤è â×SØæ âð ÂÚUðàææÙ ãñ´, Ìô v® »ýæ× °ÜôßðÚUæ ·Ô¤ ÚUâ ×ð´ v® »ýæ× ·¤ÚUðÜð ·¤æ ÚUâ ç×Üæ·¤ÚU ·é¤À çÎÙô´ Ì·¤ âðßÙ ·¤ÚUÙð âð ÇæØçÕÅUèÁ âð ×éç€Ì ç×Ü Áæ°»èÐ âæÍ ãè w® »ýæ× ¥æ´ßÜð ·Ô¤ ÚUâ ×ð´ v® »ýæ× °ÜôßðÚUæ ·Ô¤ »éÎð ·¤ô ç×Üæ·¤ÚU ÂýçÌçÎÙ âéÕã âðßÙ ·¤ÚUð´Ð Øã àæé»ÚU ·¤è Õè×æÚUè ·¤ô ÎêÚU ·¤ÚUð»æÐ

·ñ´¤âÚU âð ÜǸÙð ×ð´ °ÜôßðÚUæ ·ñ´¤âÚU Áñâð ¹ÌÚUÙæ·¤ ÚUô»ô´ âð ÜǸÙð ·¤è ÿæ×Ìæ ÚU¹Ìæ ãñÐ

âÎèü ¹æ´âè âð Õ¿æÌæ ãñU Õ‘¿ô´ ×ð´ ãô ÚUãè âÎèü, Áé·¤æ× Øæ ¹æ´âè ÂÚU z »ýæ× °ÜôßðÚUæ ·Ô¤ ÌæÁð ÚUâ

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Main Hu Kisan

×ð´ àæãÎ ç×Üæ·¤ÚU âðßÙ ·¤ÚUæ°´Ð §ââð Õ‘¿ô´ ·¤ô ȤæØÎæ ãô»æÐ °ÜôßðÚUæ ·Ô¤ »éÎð ·¤æ âðßÙ ÚUôÁ ·¤ÚUÙð âð àæÚUèÚU ×ð´ ·ñ¤çËàæØ× ·¤è ·¤×è ·¤ô ÎêÚU ç·¤Øæ Áæ â·¤Ìæ ãñÐ

°ÜôßðÚUæ ·Ô¤ ¹êÕâêÚUÌ ÜæÖ ·¤æ´ÅUðÎæÚU ÂçžæØô´ ßæÜð §â °ÜôßðÚUæ ·¤ô ÀèÜ·¤ÚU °ß´ ·¤æÅU·¤ÚU ÂãÜð ©â·¤æ ÚUâ çÙ·¤æÜæ ÁæÌæ ãñÐ §â ÚUâ ·¤è w-y ¿ ׿ âéÕã ¹æÜè ÂðÅU ÜðÙð âð àæÚUèÚU ×ð´ àæç€Ì ß ¿éSÌè-SÈê¤çÌü ÕÙÌè ãñÐ ¥ÂÙð °´ÅUè Õñ€UÅUèçÚUØæ ¥õÚU °´ÅUè Ȥ´»Ü »é‡æô´ ·Ô¤ ·¤æÚU‡æ Øã ƒææß ·¤ô ÁËÎè ÖÚUÌæ ãñÐ §ââð ÕæÜ ƒæÙð ·¤æÜð Ü´Õð ¥õÚU ×ÁÕêÌ ãôÌð ãñÐ °ÜôßðÚUæ ·Ô¤ ÚUâ ·¤æ âðßÙ ÚUôÁ ·¤ÚUÙð âð ˆß¿æ ÖèÌÚU âð ¹êÕâêÚUÌ ÕÙÌè ãñ ¥õÚU ÕɸÌè ©×ý âð ˆß¿æ ÂÚU ãôÙð ßæÜð ·é¤ÂýÖæß Öè ·¤× ãôÌð ãñ´Ð

ȤÜô´ ·Ô¤ âæÍ ¥æ´ßÜæ ¥õÚU Áæ×éÙ ·Ô¤ âæÍ °ÜôßðÚUæ ·¤æ ©ÂØô» ·¤ÚUÙð âð ÕæÜô´ ·¤ô ×ÁÕêÌè Ìô ç×ÜÌè ãè ãñÐ âæÍ ×ð´ Øð ¥æ´¹ô´ ·¤æ Öè Õ¿æß ·¤ÚUÌæ ãñÐ

°´ÅUè °çÁ´» ÁñÜ °ÜôßðÚUæ °·¤ ÁñÜ ·Ô¤ M¤Â ×ð´ ·¤æ× ·¤ÚUÌæ ãñÐ Øð ã×æÚUð àæÚUèÚU ·Ô¤ ·¤ô×Ü Ìˆßô´ ·¤ô ãæçÙ Ùãè´ Âãé´¿Ùð ÎðÌæÐ ¿ðãÚUð ×ð´ §â·Ô¤ ÁñÜ ·¤æ ÂýØô» ·¤ÚUÙð âð °ÜôßðÚUæ ÕéɸæÂæ ÙÁÚU ¥æÙð ßæÜð ̈ßô´ ·¤ô ÙcÅU ·¤ÚUÌæ ãñÐ °ÜôßðÚUæ ã×æÚUð àæÚUèÚU ·Ô¤ ¥´ÎÚU ·¤è âȤæ§ü ·¤ÚU ©Ù×ð´ ÙßèÙ àæç€Ì ÌÍæ SÈê¤çÌü ÖÚUÌæ ãñÐ °ÜôßðÚUæ ÁñÜ ãÚU ©×ý ·Ô¤ Üô» §SÌð×æÜ ·¤ÚU â·¤Ìð ãñ´Ð Øã àæÚUèÚU ×ð´ Áæ·¤ÚU âÖè Âý·¤æÚU ·¤è ·¤ç×Øô´ ·¤ô ÎêÚU ·¤ÚUÌæ ãñÐ àæÚUèÚU ·¤ô ÁßæÙ ÕÙæÌæ ãñÐ

ç¹´¿æß ·Ô¤ çÙàææÙ ·¤ô ·¤× ·¤ÚUÌæ ãñ ¿ðãÚUð ×ð´ ÂǸ ÚUãð SÅþð¿ ·Ô¤ ·é¤À çÙàææÙ âð ¿ðãÚUð ×ð´ ÕéɸæÂæ ÙÁÚU ¥æÙð Ü»Ìæ ãñÐ ˆß¿æ ×ð´ ÛæéçÚUüØæ´ ÂǸÙð Ü»Ìè ãñÐ °ÜôßðÚUæ ·Ô¤ ÚUâ ·¤æ âðßÙ ·¤ÚUÙð âð ¿ðãÚUæ Î×·¤Ùð Ü»Ìæ ãñÐ ÛæéçÚUüØæ´ Öè ÎêÚU ãôÙð Ü»Ìè ãñ´Ð SÅþð¿ ×æ€Uâü ˆß¿æ âð â´Õ´çÏÌ ¥Ü»-¥Ü» ÌÚUã ·Ô¤ ÚUô»ô´ ·¤ô ÎêÚU ·¤ÚUÙð ×ð´ °ÜôßðÚUæ ÕðãÎ ÜæÖ·¤æÚUè ãñÐ °ÜôßðÚUæ ·Ô¤ »éÎð âð ×âæÁ ·¤ÚUÙð ÂÚU ˆß¿æ ÅUôÙ ãôÌè ãñÐ §â×ð´ Âæ° ÁæÙð ßæÜð Ìˆß SÅþð¿ ×æ€Uâü ·¤ô ÎêÚU ·¤ÚUÙð ×ð´ ·¤æÚU»ÚU âæçÕÌ ãôÌð ãñ´Ð


§â×ð´ ×õÁêÎ °´Áæ§× ¹ÚUæÕ ãô ¿é·¤è ˆß¿æ ·¤ô ãÅUæ·¤ÚU ÎêâÚUè ˆß¿æ ·¤ô ãæ§ÇþðÅU ·¤ÚUÌð ãñ´Ð

°·¤ ¥æ UÅUÚUàæðß ·Ô¤ M¤Â ×ð´ àæðß ·¤ÚUÙð ·Ô¤ ÕæÎ ’ØæÌÚU ¿ðãÚUæ Øæ Ìô ·¤ÅU ÁæÌæ ãñ Øæ çȤÚU ÁÜÙ ãôÙð Ü»Ìè ãñÐ ©â â×Ø °ÜôßðÚUæ ·¤æ ÁñÜ °·¤ ¥æÎàæü ¥æò UÅUÚU àæðß ÜôàæÙ ·¤æ ·¤æ× ·¤ÚUÌæ ãñÐ

Ïê ×ð´ ȤæØÎð×´Î âêØü ·¤è ç·¤ÚU‡æð´ ã×æÚUð ¿ðãÚUð ·¤è ˆß¿æ ÂÚU ’ØæÎæ ¥âÚU çιæÌè ãñ´, €UØô´ç·¤ ã×æÚUè ˆß¿æ ·¤æȤè ÙÚU× ¥õÚU â´ßðÎÙàæèÜ ãôÌè ãñÐ °ÜôßðÚUæ ×ð´ âêØü ·¤è ç·¤ÚU‡æô´ âð ÜǸÙð ·Ô¤ àæç€ÌàææÜè ç¿ç·¤ˆâ·¤ »é‡æ ãôÌð ãñÐ §â·Ô¤ ãÕüÜ ã×æÚUð ¿ðãÚUð ×ð´ °·¤ ÂÚUÌ ·Ô¤ M¤Â ×ð´ ·¤æ× ·¤ÚUÌð ãñ ¥õÚU âæÍ ãè §â·Ô¤ °´ÅUè ¥æò€UâèÇð´ÅU »é‡æ Ù×è ·¤è ·¤×è ·¤è ÖÚUÂæ§ü ·¤ÚUÙð ×ð´ ×ÎÎ ·¤ÚUÌð ãñ´, §âçÜ° ÁÕ Öè ¥æ Ïê ×ð´ ƒæÚU âð ÕæãÚU Áæ°´ Ìô °ÜôßðÚUæ ·¤æ ÚUâ ¥‘Àè ÌÚUã âð ¥ÂÙð ¿ðãÚUð ÂÚU Ü»æ ·¤ÚU Áæ°´Ð ˆß¿æ ·Ô¤ çÜ° ×æòS¿ÚUæ§ÁÚU °ÜôßðÚUæ ·Ô¤ °€USÅþñ€UÅU ×æò§S¿ÚUæ§çÁ´» ©ˆÂæÎô´ ×ð´ §SÌð×æÜ ç·¤° ÁæÌð ãñ´Ð Øã âÖè Âý·¤æÚU ·¤è ˆß¿æ ·Ô¤ çÜ° ¥æÎàæü ×æÙæ ÁæÌæ ãñÐ

ÕæÜô´ ·Ô¤ çÜ° °ÜôßðÚUæ ¥æÁ·¤Ü ÕæÜô´ ·¤è â×SØæ ·¤ô Üð·¤ÚU âÖè Üô» ÂÚUðàææÙ ÚUãÌð ãñ´Ð ÕæÜô´ ·¤æ ÛæǸÙæ, ÕæÜô´ ·¤æ âÈԤΠãôÙæ, ÕæÜô´ ·¤æ M¤¹æÂÙ §â ÌÚUã ·¤è Ùæ ÁæÙð ç·¤ÌÙè ¥õÚU â×SØæ°´ ãñ´ ÂÚU Øð âÖè â×SØæ°´ °ÜôßðÚUæ ·Ô¤ ÂýÖæß âð ÎêÚU ãô ÁæÌè ãñ´Ð ¥æ·¤ô §â·Ô¤ çÜ° °ÜôßðÚUæ ÁñÜ ·¤ô çâÈü ¥æÏð ƒæ´ÅUæ Ü»æÙæ ãñÐ §â·Ô¤ ÕæÎ ¥æ ©â·¤ô Ïô â·¤Ìð ãñ´Ð °ðâæ ¥æ ×ãèÙð ×ð´ çâÈü¤ Îô ÕæÚU ·¤ÚUð´Ð ¥æ·¤ô §â·Ô¤ ÂçÚU‡ææ× ·é¤À ãè ×ãèÙô´ ×ð´ çιæ§ü ÎðÙð Ü»ð´»ðÐ Øã M¤¹ð ÕæÜ ·¤ô ¥æòØÜè ·¤ÚUÌæ ãñÐ

ÕæÜô´ ·¤æ çß·¤æâ ¥»ÚU ¥æ·Ԥ ÕæÜ ÁǸ âð ¹ˆ× ãô ÚUãð ãñ´, Ìô §â·¤æ ÚUâ çÙØç×Ì çâÚU ÂÚU Ü»æÌð ÚUãÙð âð Ù° ÕæÜ ¥æÙð Ü»Ìð ãñ´Ð

M¤âè âð ÀéÅU·¤æÚUæ çÎÜæÌæ ãñ §â·¤æ »éÎæ Øæ ÁñÜ ·¤ô çÙ·¤æÜ·¤ÚU ×ð´ãÎè ·Ô¤ âæÍ ç×Üæ·¤ÚU ÕæÜô´ ·¤è ÁǸô´ ×ð´ ܻ水Р§ââð M¤âè ¹ˆ× ãôÙð ·Ô¤ âæÍ ÕæÜ ·¤æÜð, ƒæÙð-Ü´Õð °ß´ ×ÁÕêÌ ãô´»ðÐ

Âýæ·ë¤çÌ·¤ ·¢¤ÇèàæÙÚU ·Ô¤ M¤Â ×ð´ °ÜôßðÚUæ ·¤æ ÁñÜ ÕÙæ·¤ÚU ÕæÜô´ ·¤è ÁǸô´ ÂÚU Ü»æ° ÁæÙð âð ÕæÜô´ ×ð´ ¿×·¤ ¥æÌè ãñ ¥õÚU Øã °·¤ Âýæ·ë¤çÌ·¤ ·¢¤ÇèàæÙÚU ·Ô¤ M¤Â ×ð´ ·¤æ× ·¤ÚUÌæ ãñÐ

·¢¤ÇèàæÙÚU Ñ ÕñÜð´â Âè°¿ SÌÚU Øã çâÚU ·Ô¤ Âè°¿ SÌÚU ·¤ô â´ÌéçÜÌ ·¤ÚU ÕæÜô´ ×ôS¿ÚUæ§ÁÇ ÚUãÌæ ãñ ¥õÚU ÕæÜô´ ·Ô¤ çß·¤æâ ·¤ô Õɸæßæ ÎðÌæ ãñÐ

ˆß¿æ ÚUô»ô´ ×ð´ ·¤æÚU»ÚU ãñU °ÜôßðÚUæ °ÜôßðÚUæ ÁñÜ ¥õÚU ÜðÅUð€Uâ °ÜôßðÚUæ ·Ô¤ Øð Îô çãSâð âÕâð ¥çÏ·¤ ÜæÖ·¤æÚUè ãôÌð ãñ´Ð Øð ÁñÜ ¹ô¹Üè ÂçžæØô´ ×ð´ ÂæØæ ÁæÌæ ãñ ¥õÚU ÜðÅUð€Uâ žæè ·Ô¤ âÕâð Ùè¿ð çãSâæ ãôÌæ ãñÐ ƒææØÜ ¥ßSÍæ ×ð´ àæÚUèÚU ·Ô¤ ¥´» ×ð´ ÚU€Ì¤ ·¤æ Âýßæã ÁÕ Ìèßý »çÌ âð ÕɸÌæ ãñ §â ÚU€Ì ÂýßæãU ·¤ô ÚUô·¤Ùð ·Ô¤ çÜ° ƒææß ÖÚUÙð ·Ô¤ çÜ° °ß´ ·¤§ü ˆß¿æ ÚUô»ô´ ×ð´ ×ÎÎ ·¤ÚUÌæ ãñÐ

¹éÚUæ·¤ ¥õÚU âæ§Ç §ÈÔ¤€UÅU÷â Øã Ìô ã× ÁæÙÌð ãñ ç·¤ »é‡æô´ ·¤è ¹ÎæÙ ãñ °ÜôßðÚUæ, Üðç·¤Ù Áãæ´ È¤æØÎð ãñ ßãæ´ Ùé·¤âæÙ Öè Îð¹Ùð ·¤ô ç×ÜÌæ ãñÐ °ÜôßðÚUæ ÂõÏð âð ÕÙè Îßæ§üØô´ ×ð´ ¥õáÏèØ »é‡æ ãôÌð ãñ´Ð Øã ã× ¥‘Àè ÌÚUã âð ÁæÙÌð ã´ñ, §â×ð´ ·¤ô§ü àæ·¤ ·¤è ÕæÌ ãè Ùãè´ ãñÐ Øã ·¤§ü ÚUô»ô´ ×ð´ ÕãéÌ ¥âÚUÎæÚU Öè âæçÕÌ ãôÌè ãñ, ÂÚU âæÍ ãè §â·Ô¤ âðßÙ ×ð´ âæßÏæÙè ÕÚUÌÙè ¿æçã° ¥õÚU ¥æ´¹ ×ê´Î ·¤ÚU °ÜôßðÚUæ âð Îßæ ÕÙæÙð ßæÜô´ ·Ô¤ Îæßô´ ÂÚU çßàßæâ Ùãè´ ·¤ÚUÙæ ¿æçã°Ð

ÜðÅUð€Uâ °ÜôßðÚUæ Øð °ðÜôßðÚUæ ·¤è âæÕêÌ ÂçžæØô´ âð ÕÙð Áêâ ×ð´ ÂæØæ ÁæÌæ ãñ, çÁâð Ò°ÜæòØ ÜðÅUð€UâÓ Öè ·¤ãÌð ãñ´Ð ¥ÂÙð Âæ¿Ù ·¤è ç·ý¤Øæ ·¤ô âéÎëɸ ÕÙæÙð ·Ô¤ çÜ° Üô» §âð ÖôÁÙ âð ÂãÜð ÂèÌð ãñ´, Ìæç·¤ ©Ù·¤æ Âæ¿Ù ×ÁÕêÌ ãô ¥õÚU ·¤ŽÁ âð ÎêÚU ÚUãð´Ð ÂÚU ¥æ Ùãè ÁæÙÌð Øð ©ÌÙæ ãè Ùé·¤âæÙÎæØ·¤ ãôÌæ ãñÐ ·¤ãè´ ¥æ ©ËÅUð ãè ÇæØçÚUØæ ¥õÚU ÂðÅU ×ð´ ×ÚUôǸ Áñâð ÚUô» ·Ô¤ çàæ·¤æÚU Ù ãô Áæ°´Ð

âæßÏæçÙØæ´ ¥æ ØçÎ Ü´Õð â×Ø ·Ô¤ çÜ° §â·Ô¤ ÚUâ ·¤æ ©ÂØô» ·¤ÚU ÚUãð ãñ´, Ìô ·é¤À âæßÏæçÙØæ´ Öè ÕÚUÌÙð ·¤è ÁM¤ÚUÌ ãñÐ @ §â ÚUâ ·¤æ Ü´Õð â×Ø Ì·¤ ©ÂØô», ÂôÅUðçàæØ× Áñâð §Üð€UÅþôÜæ§ÅU÷â ·¤è ãæçÙ ·¤æ ·¤æÚU‡æ ÕÙ â·¤Ìè ãñÐ @ °ÜôßðÚUæ ·¤è ÌæâèÚU »×ü ãôÌè ãñ §âçÜ° »ÖæüßSÍæ Øæ ×æçâ·¤ Ï×ü ·Ô¤ ÎõÚUæÙ §âð ÜðÙð âð Õ¿ð´Ð @ ×Ïé×ðã ·Ô¤ ÚUô»è §âð çÕÙæ Çæ€UÅUÚU ·Ô¤ ÂÚUæ×àæü ·Ô¤ Ù Üð´Ð @ Øã ÕßæâèÚU, çÁ»ÚU Øæ çžææàæØ âð ÂèçÇ¸Ì Üô»ô´ ·¤ô §â·Ô¤ ©ÂØô» ·¤ÚUÙð âð Õ¿Ùæ ¿æçã°Ð @ °ÜôßðÚUæ ÕãéÌ ãè Âýæ¿èÙ ¥õáçÏ ·Ô¤ Ùæ× âð ÁæÙè ÁæÌè ãñÐ Áô ˆß¿æ-â´Õ´Ïè ÚUô»ô´ ×ð´ ·¤æÈ¤è ¥âÚUÎæÚU ÚUãè ãñÐ Üðç·¤Ù ·é¤À ÚUô» °ðâð ãôÌð ãñ, çÁÙ·¤æ ©Â¿æÚU Çæò€UÅUÚU ·¤è âÜæã âð ãè ·¤ÚUßæÙæ ¿æçã°Ð Main Hu Kisan

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×ÌæñÚU ÂÚU ¥æò€âèÁÙ ·ð¤ ¥ ææß ×ð´ ·¤æÕüçÙ·¤ ÂÎæÍæðZ ·ð¤ ÚUæâæØçÙ·¤ ¥ÂƒæÅUÙ âð ©UˆÂæçÎÌ »ñâæð´ ·ð¤ çןæ‡æ ·¤æð ·¤ãUæ ÁæÌæ ãñUÐ §Uâ×ð´ ·¤ÚUèÕ zz-{z ÂýçÌàæÌ ç×ÍðÙ »ñâ, xy-y® ÂýçÌàæÌ ·¤æÕüÙ ÇUæ§üU¥æò€âæ§UÇU ¥æñÚU ·é¤ÀU ¥‹Ø »ñâæð´ ·ð¤çןæ‡æ ÂæØð ÁæÌð ãñ´UÐ ×êÜ M¤Â âð ÕæØæð»ñâ â´Ø˜æ âð ÂýæŒÌ Âê‡æüÌØæ ¥ÂƒæçÅUÌ (âǸæ ãéU¥æ) ƒææðÜ ·¤æð Áñß ¹æÎ ·¤ãUæ ÁæÌæ ãñUÐ ØãU ƒææðÜ ÂæñŠææð´ ·¤è ßëçhU ·ð¤ çÜ° ¥æßàØ·¤ Âæðcæ·¤ Ìˆß Ùæ§UÅþæðÁÙ ×ð´ â×ëhU ãñUÐ ØãU Ùæ§UÅUþæðÁÙ ÂæÙè ×ð´ ƒæéÜÙàæèÜ M¤Â ×´´ð ÂæØæ ÁæÌæ ãñU Áæð ¥æâæÙè âð ÂæñŠææð´ mUæÚUæ ¥ßàææðçáÌ ç·¤Øæ Áæ â·¤Ìæ ãñUÐ ÕæØæð»ñâ ·¤æ ©UÂØæð» ¹æÙæ ÕÙæÙð ãðUÌé, ÚUæðàæÙè ·¤ÚUÙð ãðUÌé, ·ë¤çá ´Â, ÚÔUçÈý¤ÁÚÔUÅUÚU ¿ÜæÙð ·ð¤ çÜ° ¥æñÚ UçÕÁÜè ©UˆÂæÎÙ §UˆØæçÎ ·ð¤ çÜ° ç·¤Øæ ÁæÌæ ãñUÐ ×çãUÜæ¥æð´ ·¤æð ÚUâæð§üU ƒæÚU ×ð´ ¹æÙæ ·¤æÌð â×Ø Šæé°´ âð ÀéUÅU·¤æÚUæ ç×ÜÌæ ãñUÐ

ÚUæcÅþUèØ ÕæØæð»ñâ °ß´ ¹æÎ ÂýÕ´ŠæÙ ·¤æØü·ý¤× ÙßèÙ °ß´ Ùßè·¤ÚU‡æèØ ª¤Áæü ×´˜ææÜØ, ÖæÚUÌ âÚU·¤æÚU mUæÚUæ â´¿æçÜÌ §Uâ ·¤æØü·ý¤× ·¤æ ×é Ø ©UÎ÷ÎðàØ ÀUæðÅðU ¥æ·¤æÚU ·ð¤ ƒæÚÔUÜê ÕæØæð»ñâ â´Ø˜ææð´ ·ð¤ ×æŠØ× âð »ýæ×è‡æ ÂçÚUßæÚUæð´ ·¤æð ¹æÙæ ·¤æÙð ·ð¤ çÜ° §ü´ŠæÙ °ß´ ¹ðÌè ·ð¤ çÜ° Áñß ¹æÎ ©UÂÜŽŠæÌæ ·¤ÚUßæÙæ ãñUÐ §Uâ ·¤æØü·ý¤× ·ð¤ ¥´Ì»üÌ çßçÖ‹‹æ Ÿæðç‡æØæð´ °ß´ ÿæð˜ææð´ ·ð¤

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गांवों में ईंधन की जरूरतों को पूरा करेगा बायोगैस ·ñ¤âð Ü»ßæØð ÕæØæð»ñâ â´´Ø´˜æ

सावधानी केवल यह बरतनी चाहिए कि बायोगैस संयंत्र की 15 मीटर की परिधि में कोई पेयजल स्रोत न हो ÜæÖæçÍüØæð´ ·¤æð ÕæØæð»ñâ â´Ø˜æ ·¤è SÍæÂÙæ ·ð¤ çÜ° ·ð¤‹ÎýèØ âãUæØÌæ âð ¥ÙéÎæÙ çÎØæ ÁæÌæ ãñUÐ

ØæðÁÙæ ·ð¤ ©UÎ÷ÎðàØ @ »ýæ×è‡æ ÿæð˜æ ×ð´ âSÌæ, âéÜÖ ß Sß‘ÀU §ZUŠæÙ ·¤è ©UÂÜŽŠæÌæ âéçÙçà¿Ì ·¤ÚUÙæÐ @ ·ë¤çá ·ð¤ çÜ° ÕæØæð¹æÎ ©UÂÜŽŠæ ·¤ÚUæÙæÐ @ Ü·¤Ç¸è ãðUÌé Á´»Ü ·¤è ·¤ÅUæ§üU ·¤æð ·¤× ·¤ÚUÙæÐ @ »ýæ×è‡æ ÿæð˜ææð´ ×ð´ ÚUæðàæÙè °ß´ ´ç´» ·ð¤ çÜ° ßñ·¤çË·¤ âéçߊææ ©UÂÜŽŠæ ·¤ÚUæÙæÐ @ ÂØæüßÚU‡æ â´ÚUÿæ‡æÐ

Âæ˜æÌæ @ ÜæÖæÍèü ·ð¤ Âæâ ·¤× âð ·¤× z® ß»ü×èÅUÚU ·¤æ SÍæÙ ãUæðÐ @ ÂýçÌçÎÙ ÂæÙè ·¤è ©UÂÜŽŠæÌæ @ ÜæÖæÍèü vz âð w® ãUÁæÚU çÙßðàæ ·¤ÚUÙð ·¤è¥æçÍü·¤ ÿæ×Ìæ ÚU¹Ìæ ãUæðÐ

ÚUæÁSÍæÙ ÚUæ’Ø ·ð¤ ç·¤âè Öè ÜæÖæÍèü ·¤æð ÕæØæð»ñâ â´Ø´˜æ ÕÙßæÙð ·ð¤ çÜ° âÕâð ÂãUÜð ÕæØæð»ñâ çß·¤æâ °ß´ Âýçàæÿæ‡æ ·ð¤‹Îý, ©UÎØÂéÚU ÂÚU â´Â·ü¤ ·¤ÚUÙæ ãUæðÌæ ãñUÐ ÜæÖæÍèü ·ð¤ Âæâ ©UÂÜŽŠæ Âàæé °ß´ ÂçÚUßæÚU ×ð´ ÚUãUÙð ßæÜð âÎSØæ𴠷𤠥æŠææÚU ÂÚU ÕæØæð»ñâ â´Ø´˜æ ·¤è ÿæ×Ìæ ·¤æ çÙŠææüÚU‡æ ç·¤Øæ ÁæÌæ ãñUÐ ÕæØæð»ñâ â´Ø´˜æ ·ð¤ çÙ×æü‡æ ·ð¤ çÜ° °·¤ ÂýçàæçÿæÌ ·¤æÚUè»ÚU ·¤è ÁM¤ÚUÌ ãUæðÌè ãñU çÁâ·¤è âê¿è ÜæÖæ‰æèü ·¤æð ÕæØæð»ñâ çß·¤æâ °ß´ Âýçàæÿæ‡æ ·ð¤‹Îý ©UÎØÂéÚ Uâð ç×Ü â·¤Ìè ãñUÐ ç·¤âè Öè ÕæØæð»ñâ â´Ø´˜æ ÂÚU ·ð¤‹ÎýèØ ç߈ÌèØ âãUæØÌæ ÂýæŒÌ ·¤ÚUÙð ·ð¤ çÜ° ©U€Ì â´Ø´˜æ ·¤æ ÕæØæð»ñâ çß·¤æâ °ß´ Âýçàæÿæ‡æ ·ð¤‹Îý ·ð¤ ·¤×ü¿æçÚUØæð´ mUæÚUæ â´Ø´˜æ çÙ×æü‡æ ·ð¤ SÍæÙ ÂÚU °ß´´ â´Ø´˜æ ÕÙÙð ·ð¤ ÕæÎ â´Ø˜æ ·¤æð ¿æÜê ¥ßSÍæ ·¤æ ÖæñçÌ·¤ âˆØæÂÙ ·¤ÚUßæÙæ ¥çÙßæØü ãñUÐ ÎæðÙæð´ âˆØæÂÙ ·ð¤ ÕæÎ ÜæÖæÍèü ·¤æð ·ð¤‹ÎýèØ ¥ÙéÎæÙ ÚUæçàæ ¿ñ·¤ mUæÚUæ Îè ÁæØð»èÐ â´Ø˜æ ·¤æð ÕÙßæÙð ·ð ¤çÜ° â´Ø˜æ ·¤è ·é¤Ü Üæ»Ì ·¤æ ÂýæÚ´UçÖ·¤ Öé»ÌæÙ SßØ´ ÜæÖæÍèü ·¤æð ·¤ÚUÙæ ãUæð»æÐ ¥çŠæ·¤ ÁæÙ·¤æÚUè Ùßè·¤ÚU‡æèØ ª¤Áæü ¥çÖØæ´ç˜æ·¤è çßÖæ», Âýæñlæðç»·¤è °ß´ ¥çÖØæ´ç˜æ·¤è ×ãUæçßlæÜØ, ×ãUæÚUæ‡ææ ÂýÌæ ·ë¤çá °ß´ Âýæñlæðç»·¤è çßàßçßlæÜØ, ©UÎØÂéÚU ÂÚU â ·ü¤ ·¤ÚU ÂýæŒÌ ·¤è Áæ â·¤Ìè ãñUÐ

ÖæÚUÌ ×ð´ ÕæØô»ñâ ÖæÚUÌ ×ð´ ×ßðçàæØô´ ·¤è â´ Øæ çßàß ×ð´ âßæüçÏ·¤ ãñ §âçÜ° ÕæØô»ñâ ·Ô¤ çß·¤æâ ·¤è Âý¿éÚU â´ÖæßÙæ ãñÐ ÕæØô»ñâ (×èÍðÙ Øæ »ôÕÚU »ñâ) ×ßðçàæØô´ ·Ô¤ ©ˆâÁüÙ ÂÎæÍô´ü ·¤ô ·¤× Ìæ ÂÚU Çæ§ÁðSÅUÚU ×ð´ ¿Üæ·¤ÚU ×槷ý¤ôÕ ©ˆÂ‹‹æ ·¤ÚU·Ô¤ ÂýæŒÌ ·¤è ÁæÌè ãñÐ Áñß »ñâ ×ð´ |z ÂýçÌàæÌ ×ðÍðÙ »ñâ ãôÌè ãñ Áô çÕÙæ Ïé´¥æ ©ˆÂ‹‹æ ç·¤° ÁÜÌè ãñÐ Ü·¤Ç¸è, ¿æÚU·¤ôÜ ÌÍæ ·¤ôØÜð ·Ô¤ çßÂÚUèÌ Øã ÁÜÙð ·Ô¤ Âà¿æÌ ÚUæ¹ Áñâð ·¤ô§ü ©ÂçàæC Öè Ùãè´ ÀôǸÌè ãñÐ »ýæ×è‡æ §Üæ·¤ô´ ×ð´ ÖôÁ٠·¤æÙð ÌÍæ §ü´ÏÙ ·Ô¤ M¤Â ×ð´ Âý·¤æàæ ·¤è ÃØßSÍæ ·¤ÚUÙð ×ð´ §â·¤æ ©ÂØô» ãô ÚUãæ ãñÐ ÚUæcÅþUèØ ÕæØô»ñâ çß·¤æâ ·¤æØü·ý¤× (v~}v-}w) ·Ô¤ ¥´Ì»üÌ ÂæçÚUßæçÚU·¤ Øæ ƒæÚUðÜê ÌÍæ âæ×éÎæçØ·¤ Îô Âý·¤æÚU ·Ô¤ â´Ø´˜æô´ ·¤è SÍæÂÙæ ·¤è ÁæÌè ãñÐ §ââð Sß‘À ß âSÌè ª¤Áæü ¥æÂêçÌü ÌÍæ »ýæ×è‡æ ÂØæüßÚU‡æ ·¤è âȤæ§ü ·Ô¤ âæÍ ãè ©‘¿ ·¤ôçÅU ·¤è ·¤æÕüçÙ·¤ ¹æÎ Öè ÂýæçŒÌ ãôÌè ãñ €UØô´ç·¤ Áñß »ñâ ·Ô¤ çÜ° ÂýØé€Ì »ôÕÚU ÌÍæ ÁÜ ·Ô¤ ·¤Îü× ×ð´ Ùæ§ÅþôÁÙ ß È¤æSȤôÚUâ Âý¿éÚU ×æ˜ææ ×ð´ ãôÌð ãñ´Ð âæßÏæÙè ·Ô¤ßÜ Øã ÕÚUÌÙè ¿æçã° ç·¤ ÕæØô»ñâ â´Ø´˜æ ·¤è vz ×èÅUÚU ·¤è ÂçÚUçÏ ×ð´ ·¤ô§ü ÂðØÁÜ dôÌ Ù ãôÐ Main Hu Kisan

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पोषण और स्वास्थ्य की बात आते ही हमारा ध्यान जाता है ताजा, रंग-बिरंगे, स्वादिष्ट फलों और सब्जियों पर क्योंक हर कोई जानता है कि इनमें पोषण और सेहत का खजाना छिपा है। लेकिन पोषण का यह खजाना आपको कुपोषित और गंभीर बीमारियों की चपेट में भी ले सकता है, क्योंकि आजकल अधिकतर फल व सब्जियों को कृत्रिम तरीके के केमिकल्स से पकाकर आकर्षक बनाकर बेचा जा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि शुद्ध रूप में फल व सब्जियां हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फायदेमंद हैं, लेकिन मात्र मुनाफे के लिए इन्हें पकाने के लिए जिन हानिकारक केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है, वे बेहद खतरनाक होते हैं।

कैमिकल से मु

पके फल-सब हो सकती है गंभीर बीमारी

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Main Hu Kisan

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ÎSÌ, ÂðÅU ¥õÚU âèÙð ×ð´ ÁÜÙ, ŒØæâ, ·¤×ÊæôÚUè, çÙ»ÜÙð ×ð´ Ì·¤Üè$Ȥ, ¥æ´¹ô´ ¥õÚ Uˆß¿æ ×ð´ ÁÜÙ, ¥æ´¹ô´ ×ð´ ã×ðàææ ·Ô¤ çÜ° »´ÖèÚU ÿæçÌ, »Üð ×ð´ âêÁÙ, ×é´ã, Ùæ·¤ ß »Üð ×ð´ ÀæÜð ¥õÚU âæ´â ÜðÙð ×ð´ Ì·¤Üè$Ȥ Áñâè â×SØæ°´ ãô â·¤Ìè ãñ´Ð ·Ô¤ç×·¤Ü ØçÎ ¥çÏ·¤ ×æ˜ææ ×ð´ àæÚUèÚU ×ð´ ¿Üæ Áæ°, Ìô ÈԤȤǸô´ ×ð´ ÂæÙè Öè ÖÚU â·¤Ìæ ãñÐ ·ë¤ç˜æ× ÌÚUè·Ô¤ âð ·Ԥ ¥æ×ô´ ·¤ô ¹æÙð âð ÂðÅU$ ¹ÚUæÕ ãô â·¤Ìæ ãñÐ ¥æ´Ìô´ ×ð´ »´ÖèÚU â×SØæ, Øãæ´ Ì·¤ ·¤è ÂðçŒÅU·¤ ¥ËâÚU Öè ãô â·¤Ìæ ãñÐ §Ùâð ‹ØêÚUôÜæòçÁ·¤Ü çâSÅU× Öè Çñ×ðÁ ãô â·¤Ìæ ãñ, çÁââð çâÚU ×ð´ ÎÎü, ¿€·¤ÚU, ØæÎÎæàÌ ß ×êÇ ÂÚ U¥âÚU, Ùè´Î ×ð´ ç΀·¤Ì, ·¤´ UØêÊæÙ ¥õÚU ãæ§Âôç€UâØæ (§â×ð´ àæÚUèÚU ×ð´ Øæ àæÚUèÚU ·Ô¤ °·¤ Øæ ·é¤À çãSâô´ ×ð´ ¥æò€UâèÁÙ ·¤è ×æ˜ææ ÂØæüŒÌ M¤Â ×ð´ Ùãè´ Âãé´¿Ìè) Ì·¤ ãô â·¤Ìæ ãñÐ ØçÎ »ÖüßÌè ×çãÜæ°´ §Ù ·Ô¤ç×·¤Ëâ âð ·Ԥ ȤÜô´ ·¤æ âðßÙ ·¤ÚUÌè ãñ´, Ìô Õ‘¿ð ×ð´ Öè ·¤§ü ¥âæ×æ‹ØÌæ°´ ãô â·¤Ìè ãñ´Ð

°ðâð ¿éÙð´ ȤÜ-âçŽÁØæ¢ @ ©Ù ÂÚU ·¤ô§ü Îæ»-ÏŽÕð Ù Ü»ð ãô´Ð ßô ·¤ãè´ âð ·¤ÅUð ãé° Ù Ü»ð´Ð @ ã×ðàææ È¤Ü ß âçŽÁØô´ ·¤ô ¹æÙð âð ÂãÜ𠥑Àè ÌÚUã âð Ïô Üð´Ð @ çÀÜ·¤æ çÙ·¤æÜ·¤ÚU §SÌð×æÜ ·¤ÚUÙð âð ·Ô¤ç×·¤Ëâ ·¤æ ¥âÚU ·¤× ãô»æÐ @ ·Ô¤ç×·¤Ëâ ·¤æ ÂýÖæß ·¤× ·¤ÚUÙð ·Ô¤ çÜ° ·é¤ÀU âçŽÁØô´ ·Ô¤ ª¤ÂÚUè žæð ß ÂÚUÌô´ ·¤ô çÙ·¤æÜÙð ·Ô¤ ÕæÎ ©â·¤æ §SÌð×æÜ ·¤ÚUð´, Áñâð-žææ»ôÖè Øæ âÜæÎ ·Ô¤ žæðÐ @ ·ë¤ç˜æ× ÌÚUè$·ð¤ âð ·Ԥ ¥æ× ×ð´ ÂèÜð ¥õÚU ãÚUð ÚU´» ·Ô¤ Âñ¿ðâ ãô´»ð ØæÙè ÂèÜð ÚU´» ·Ô¤ Õè¿-Õè¿ ×ð´ ãÚUæ ÚU´» Öè çιð»æÐ ÁÕç·¤ Âýæ·¤ëçÌ·¤ M¤Â âð ·Ԥ ¥æ× ×ð´ ØêÙèȤæò×ü ·¤ÜÚU ãô»æ Øæ ÌôÂèÜæ Øæ ãÚUæÐ @ §â·Ô¤ ¥Üæßæ ·Ô¤ç×·¤Üè ·Ԥ ¥æ× ·¤æ Áô ÂèÜæ ÚU´» ãô»æ, ßô Ùð¿éÚUÜè ·Ԥ ¥æ× ·Ô¤ ×é$·¤æÕÜð ÕãéÌ ãè Õýæ§ÅU ãô»æ ØæÙè ¥ÙÙð¿éÚUÜÕýæ§ÅU ØÜô ·¤ÜÚUÐ @ ·Ô¤ç×·¤Üè ·Ԥ ¥æ× ·¤ô ¹æÙð ÂÚU ×é´ã ×ð´ ãË·¤è-âè ÁÜÙ ×ãâêâ ãô»èÐ ·é¤À Üô»ô´ ·¤ô Ìô ÎSÌ, ÂðÅU ×ð´ ÎÎü ¥õÚU »Üð ×ð´ ÁÜÙ Ì·¤ ×ãâêâ ãô â·¤Ìè ãñÐ

@ Âýæ·¤ëçÌ·¤ M¤Â âð ·Ԥ ¥æ× ·¤ô ·¤æÅUÙð ÂÚU ÂË ·¤æ ·¤ÜÚU Õýæ§ÅUÚUðçÇàæ ØÜô ãô»æ, ÁÕç·¤ ·Ô¤ç×·¤Üè ·Ԥ ¥æ× ·Ô¤ ÂË ·¤æ ÚU´» Üæ§ÅU ¥õÚU Çæ·¤ü ØÜô ãô»æ, çÁâð Îð¹·¤ÚU â×Ûæ ×ð´ ¥æ ÁæÌæ ãñ ç·¤ Øã ÂêÚUè ÌÚUã âð ·¤æ Ùãè´ ãñÐ @ Âýæ·¤ëçÌ·¤ M¤Â âð ·Ԥ ¥æ× ÕãéÌ ãè ÚUâèÜð ãô´»ð, ÁÕç·¤ ·Ô¤ç×·¤Ü âð ·Ԥ ¥æ× ×ð´ ×éçà·¤Ü âð ÚUâ ç×Üð»æÐ @ Áô È¤Ü ÕæãÚU âð Îð¹Ùð ×ð´ ÕãéÌ ãè Õýæ§ÅU ·¤ÜÚU ·Ô¤ ¥õÚU ¥æ·¤áü·¤ ܻ𴠥õÚU âÕ·¤æ ·¤ÜÚU °·¤ Áñâæ ØæÙè ØêÙèȤæò×ü Ü»ð, Áñâð- ·Ô¤Üð ·Ô¤ °·¤ Õ´¿ ×ð´ âÖè ·Ô¤Üð °·¤ ãè ÌÚUã ·Ô¤ Ü»ð´, Ìô ÕãéÌ ãÎ Ì·¤ â´Öß ãñ ç·¤ ßô ·Ô¤ç×·¤Ü âð ·¤æ° »° ãô´Ð @ §âè ÌÚUã âð âæÚUð ÅU×æÅUÚU Øæ ÂÂèÌð ·¤æ ÚU´» °·¤ Áñâæ Õýæ§ÅU Ü»ð, Ìô ßô ·Ô¤ç×·¤Ü âð ·Ԥ ãô´»ðÐ @ ×õâ×è ȤÜô´ ·¤ô ãè ¿éÙð´, ØçÎ ×õâ× âð ÂãÜð ãè ȤÜ-âçŽÊæØæ´ ç×Ü ÚUãè ãñ´, Ìô ©‹ãð´ Ù $¹ÚUèÎÙæ ãè â×ÛæÎæÚUè ãô»èÐ @ ·é¤À ·Ô¤ç×·¤Ëâ ·¤è âèç×Ì ×æ˜ææ ·Ô¤ §SÌð×æÜ ·¤è §ÁæÊæÌ ÊæM¤Ú UãñÐ Øð ·Ô¤ç×·¤Ëâ °·¤ ÌÚUã âð ·¤× ãæçÙ·¤æÚU·¤ ãôÌð ãñ´, Áñâð-°ÍðȤæòÙ (°çÍÜèÙ çÚUÜèÊæÚU)Ð §â ·Ô¤ç×·¤Ü âð ȤÜô´ ·¤ô ·¤æÙð·Ô¤ çÜ° §â·Ô¤ ƒæôÜ ×ð´ ȤÜô´ ·¤ô ÇæÜÙæ ãôÌæ ãñ Øæ çȤÚU §â·Ô¤ Ïé°´ âð ȤÜô´ ·¤ô ·¤æØæ ÁæÌæ ãñÐ @ §â ·Ô¤ç×·¤Ü âð ¥æ×ÌõÚU ÂÚU ¥æ×, ·Ô¤Üð ¥õÚU ÂÂèÌð ·¤ô ·¤æØæ ÁæÌæ ãñÐ @ §ââð ·Ԥ ȤÜô´ ·¤æ ÚU´» Âýæ·¤ëçÌ·¤ ÚU´»ô´ âð Öè ·¤ãè´ ¥çÏ·¤ ÕðãÌÚ UãôÌæ ãñ, çÁââð È¤Ü Âýæ·¤ëçÌ·¤ Ü»Ìð ãñ´ ¥õÚU §Ù·¤è àæðËȤ Üæ§È¤ Öè ·ñ¤çËàæØ× ·¤æÕæü§Ç âð ·Ԥ ȤÜô´ âð ¥çÏ·¤ ãôÌè ãñÐ @ °çÍÜèÙ Öè ·¤æ$Ȥè âéÚUçÿæÌ ×æÙæ ÁæÌæ ãñÐ Øã ȤÜô´ ×ð´ ×õÁêÎ Âýæ·¤ëçÌ·¤ °Áð´ÅU ãôÌæ ãñ, Áô ȤÜô´ ·¤ô ·¤æÌæ ãñÐ §âèçÜ° ·¤æÙð ·¤è Âýç·ý¤Øæ ·¤ô ÍôǸæ ÌðÊæ ·¤ÚUÙð ·Ô¤ çÜ° Öè §â·¤æ ÕæãÚU âð §SÌð×æÜ ç·¤Øæ ÁæÌæ ãñÐ °ßô·ñ¤Çô, ·Ô¤Üæ, ¥æ×, Âæ§ÙðŒÂÜ, ¥×M¤Î ¥õÚU ÂÂèÌæ ·¤æÙð ·Ô¤ ·¤æ× ×ð´ ÜæØæ ÁæÌæ ãñÐ

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×éÎ÷Îæ

खेतों के जरिये शरीर में उतरता

ज़हर

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@×ôçÙ·¤æ »éŒÌæ â¢Âæη¤

ãæÜ ·Ô¤ ¥ŠØØÙô´ âð âæ×Ùð ¥æØæ ãñ ç·¤ ¥Ùð·¤ ·¤èÅUÙæàæ·¤ ÙÚU Øæ ×æÎæ ãæ×ôüÙ çÇâÚUŒÅUÚU (ÿæÌ çßÿæÌ ·¤ÚUÙð ßæÜð) ãôÌð ãñ´Ð »ÖæüßSÍæ ·¤è ©â ¥ßSÍæ ·Ô¤ ÎõÚUæÙ ÁÕ ÁÙÙæ´» çß·¤çâÌ ãô ÚUãð ãô´, ÌÕ ¥»ÚU »ÖüßÌè ×çãÜæ §Ù ·¤èÅUÙæàæ·¤ô´ ·Ô¤ ÂýÖæß ×ð´ ¥æ° Ìô »ÖüSÍ çàæàæé ×´ð ÁÙÙæ´»ô´ ·¤è çß·ë¤çÌØæ´ ãôÙð ·¤è â´ÖæßÙæ°´ Õɸ ÁæÌè ãñ´Ð

×æÚUð Îðàæ ×ð´ çÁâ ÚU UÌæÚU âð ·¤èÅUÙæàæ·¤ Îßæ¥ô´ ·¤æ ÂýØô» ÕɸUÌæ Áæ ÚUãæ ãñ, ßã °·¤ ÕãéÌ ÕɸUè ç¿´Ìæ ·¤æ çßáØ ãñРȤâÜ ·¤è ©ÂÁ ·¤ô ·¤èǸô´ ·¤è ×æÚU âð Õ¿æÙð ·Ô¤ çÜ° ¹ðÌô´ ×ð´ ¥´Ïæ-Ïé´Ï ÁãÚU çÀǸ·¤Ùð ·ð¤ Âý¿ÜÙ ×ð´ ç·¤âæÙ °·¤ ÎêâÚUð ·¤ô ÂÀæǸÙð ×ð´ Ü»ð ãé° ãñ´Ð ·¤èÅUÙæàæ·¤ Áñçß·¤ çßá ãôÌð ãñ´Ð çßçÖóæ Âý·¤æÚU ·Ô¤ ÚUæâæØçÙ·¤ çßá, ×æÙß àæÚUèÚU ÂÚU ©Ù·Ô¤ ·é¤ÂýÖæß ·¤è â´ÖæßÙæ Ìæç·¤ü·¤ ãñÐ Øãæ´ Ì·¤ §Ùâð ·ñ´¤âÚU Öè ãô â·¤Ìæ ãñÐ Øã âæÿØ ·¤èÅUÙæàæ·¤ô´ ·Ô¤ ÃØæ·¤ ÂýØô» ÂÚU ÏèÚUð-ÏèÚUð âæ×Ùð ¥æ° ãñ´Ð ·¤èÅUÙæàæ·¤ô´ ·Ô¤ ÃØæ·¤ ÂýØô» âð ¥×ðçÚU·¤æ ×ð´ Âÿæè çßÜéŒÌ ãô »°Ð ÂçÿæØô´ ·¤æ ·¤ÜÚUß Õ´Î ãô »Øæ, ßæçÎØæ´ àææ´Ì ãô »§ZÐ çßàß Õñ´·¤ mæÚUæ ç·¤Øð »° ¥ŠØØÙ ·Ô¤ ¥ÙéâæÚU ÎéçÙØæ ×ð´ wz Üæ¹ Üô» ÂýçÌßáü ·¤èÅUÙæàæ·¤ô´ ·Ô¤ ÎécÂýÖæßô´ ·Ô¤ çàæ·¤æÚU ãôÌð ã´ñ, ©â×ð´ âð z Üæ¹ Üô» Ì·¤ÚUUèÕÙ ·¤æÜ ·Ô¤ »æÜ ×ð´ â×æ ÁæÌð ãñ´Ð ç¿´Ìæ ·¤æ çßáØ Øã Öè ãñ, Áãæ´ °·¤ ÌÚUȤ ÎéçÙØæ ·Ô¤ ·¤§ü Îðàæô´ Ùð çÁâ ·¤èÅUÙæàæ·¤ Îßæ§ü ·¤ô ÂýçÌÕ´Ï ·¤ÚU çÎØæ ãñ, ¥ÂÙð Øãæ´ ÏǸËÜð âð ©ÂØô» ç·¤Øæ Áæ ÚUãæ ãñÐ Øãæ´ Ì·¤ ·¤è ¥Ùð·¤ ÕãéÚUæcÅþUèØ ·¤ ÂçÙØæ´ ã×æÚUð Îðàæ ×ð´ ·¤æÚU¹æÙð SÍæçÂÌ ·¤ÚU ÕæãÚU ·Ô¤ Îðàæô´ ·Ô¤ ÂýçÌÕ´çÏÌ ¥ÙéÂØô»è ß Õð·¤æÚU ÚUæâæØÙô´ ·¤ô Øãæ´ ×´»æ·¤ÚU çßáñÜð ·¤èÅUÙæàæ·¤ ©ˆÂæçÎÌ ·¤ÚU ÚUãè ãñ´Ð §Ù×´ð âð ·¤§ü ·¤èÅUÙæàæ·¤ô´ ·¤ô çßàß SßæS‰Ø â´»ÆÙ Ùð ÕðãÎ ÁãÚUèÜæ ¥õÚU Ùé·¤âæÙÎðã ÕÌæØæ ãñÐ §UÙ×´ð ÇðçËÌÚUÙ, §ü.Âè.°Ù., €UÜôÚUðÇðÙ, ȤæSßðÜ ¥æçÎ Âý×é¹ ãñ´Ð

¥æâðüçÙ·¤ ¥æŠææçÚUÌ ÚUâæØÙ ·ñ´¤âÚU·¤æÚU·¤ ·¤èÅUÙæàæ·¤ ¥õÚU ¹ÚUÂÌßæÚU Ùæàæ·¤ ¥æâðüçÙ·¤ ¥æÏæçÚUÌ ÚUâæØÙ Áñâð âôçÇØ× ¥æçâüÙðÅU ¥õÚU ·Ô¤çËâØ× ¥æçâüÙðÅU ç¿ç‹ãÌ ·ñ´¤âÚU ·¤æÚU·¤ ãñ´Ð ÁæÙßÚUô´ ÂÚU ÂÚèUÿæ‡æ °ß´ ×æÙß ¥ŠØØÙ ·Ô¤ ¥æÏæÚU ÂÚU Çè.Çè.ÅUè., çÜÇ´ðÙ, ÕðçÁ´Ù ãð€Uâæ€UÜôÚUæ§Ç, Ù§ÅþôçȤÙôËâ, ÂðÚUæÇæ§ü€UÜôÚUôÕð‹ÁèÙ, €UÜæÚUôÇðÙ, ·¤æÕæü×ðÅU-¥æ§Âèâè ß âè¥æ§Âèâè ·¤ô â´ÖæçßÌ ·ñ´¤âÚU·¤æÚU·¤ ·Ô¤ M¤Â ×ð´ ç¿ç±ÙÌ ç·¤Øæ »Øæ ãñÐ âæÍ ãè §‹ãð´ çÀǸ·¤æß ·Ô¤ çÜ° çÁÙ ÂðÅþôçÜØ× ¥æÏæçÚUÌ ÎýÃØô´ ×ð´ ƒæôÜæ ÁæÌæ ãñ, ©Ù×ð´ çSÍÌ °ðÚUð×ñçÅU·¤ âæ§ç€UÜ·¤ ¥õÚU ¥Ùâð‘ØêÚUðÅUðÇ ãæ§üÇþô·¤æÕüÙ Öè ·ñ´¤âÚU·¤æÚU·¤ ãôÌð ãñ´Ð Îðàæ ·Ô¤ ÕæÁæÚUô´ ×ð´ ÃØæ·¤ M¤Â ×ð´ ©ÂÜŽÏ ç×ÜæßÅUè ·¤èÅUÙæàæ·¤ ¥ç̃ææÌ·¤ ãôÌð ãñ´Ð

»ÖüSÍ çàæàæé ÂÚU ·¤ãÚU ãæÜ ·Ô¤ ¥ŠØØÙô´ âð âæ×Ùð ¥æØæ ãñ ç·¤ ¥Ùð·¤ ·¤èÅUÙæàæ·¤ ÙÚU Øæ ×æÎæ ãæ×ôüÙ çÇâÚUŒÅUÚU (ÿæÌ çßÿæÌ ·¤ÚUÙð ßæÜð) ãôÌð ãñ´Ð »ÖæüßSÍæ ·¤è ©â ¥ßSÍæ ·Ô¤ ÎõÚUæÙ ÁÕ ÁÙÙæ´» çß·¤çâÌ ãô ÚUãð ãô´, ÌÕ ¥»ÚU »ÖüßÌè ×çãÜæ §Ù ·¤èÅUÙæàæ·¤ô´ ·Ô¤ ÂýÖæß ×ð´ ¥æ° Ìô »ÖüSÍ çàæàæé ×´ð ÁÙÙæ´»ô´ ·¤è çß·ë¤çÌØæ´ ãôÙð ·¤è â´ÖæßÙæ°´ Õɸ ÁæÌè ãñ´Ð

ÁæÙ ·¤æ Îéà×Ù ãñ ·¤èÅUÙæàæ·¤ ·¤èÅUÙæàæ·¤ô´ ·Ô¤ â´Â·ü¤ ×ð´ ¥æÙð âð Ü´Õð â×ØôÂÚUæ´Ì ·ñ´¤âÚU ãôÙð ·¤è â´ÖæßÙæ ãôÌè ãñÐ Õ¿ÂÙ ×ð´ â´Â·ü¤ ×ð´ ¥æÙð âð ·ñ´¤âÚU ·¤è â´ÖæßÙæ ¥çÏ·¤ ãô ÁæÌè ãñÐ ÁÙüÜ ¥æòȤ ·ñ´¤âÚU §´SÅUèÅU÷ØêÅU ×ð´ Âý·¤æçàæÌ ¥ŠØØÙ ÚUÂÅU ·Ô¤ ¥ÙéâæÚU ƒæÚU ¥õÚU ƒæÚU ·Ô¤ Õ»è¿ð ×ð´ ©ÂØô» ×ð´ çÜ° »° ·¤èÅUÙæàæ·¤ô´ âð Õ‘¿ô´ ×ð´ ÚU€Ì¤ ·ñ´¤âÚU ·¤è â´ÖæßÙæ âæÌ »éÙæ Õɸ ÁæÌè ãñÐ âæÍ ãè Øã Öè ©Áæ»ÚU ãé¥æ ãñ ç·¤ çÁÙ ƒæÚUô´ ×ð´ ·¤èÅUÙæàæ·¤ô´ ·¤æ ÂýØô» ãôÌæ ãñ ©Ù·Ô¤ Õ‘¿ô´ ×ð´ ÚU€Ì ·ñ´¤âÚ, ÕýðÙ ·ñ´¤âÚU ¥õÚU âæò UÅU çÅUàØê âÚU·¤ô×æ Ùæ×·¤ ·ñ´¤âÚU ·¤è ¥æƒæÅUÙ ÎÚU ¥çÏ·¤ ãôÌè ãñÐ ÂýçÌÚUôÏæˆ×·¤ àæç€Ì ·Ô¤ ÿæè‡æ ãôÙð âð Öè ·ñ´¤âÚU ·¤è â´ÖæßÙæ Õɸ ÁæÌè ãñÐ ·¤èÅUÙæàæ·¤ ÂýçÌÚUôÏæˆ×·¤ àæç€Ì ·¤ô ÿæè‡æ ·¤ÚUÌð ãñ´Ð ¥×ðçÚU·¤Ù ·ñ´¤âÚU âôâæ§ÅUè mæÚUæ Âý·¤æçàæÌ ¥ŠØØÙ âð ™ææÌ ãé¥æ ãñ ç·¤ ¥æ× ©ÂØô» ×ð´ çÜ° ãæÕèüâæ§Ç (¹ÚUÂÌßæÚU Ùæàæ·¤) ¥õÚU Ȥ´»èâæ§Ç, çßàæðá·¤ÚU ×ð·¤ôÂýô (°×âèÂèÂè) ×ð´ ÙæòÙ ãæòÁç·¤‹â çÜ È¤ôÙæ Ùæ×·¤ çÜ È¤ ·ñ´¤âÚU ¥çÏ·¤ ãôÌæ ãñÐ ‚ÜæØôȤæâðÅU (ÚUæ©´Ç ¥Â) Ùæ×·¤ °ðâð ·¤èÅUÙæàæ·¤ âð °ðâð ·ñ´¤âÚU ·Ô¤ ãôÙð ·¤è â´ÖæßÙæ w| »é‡ææ ¥çÏ·¤ Âæ§ü »§üÐ ~~ ¥ŠØØÙô´ ×ð´ âð |z ×ð´ ·¤èÅUÙæàæ·¤ âð â´Â·ü¤ ¥õÚU çÜ È¤ô×æ ·Ô¤ Õè¿ â´Õ´Ï ÂæØæ »ØæÐ w®®| ·Ô¤ °·¤ ·Ô¤ÙðçÇØÙ ¥ŠØØÙ ·Ô¤ ¥ÙéâæÚU ÂØæüßÚU‡æ ÂýÎêçáÌ ãôÙð âð ÜǸ·¤ô´ ×ð´ ·ñ´¤âÚU, ¥SÍ×æ Á‹×ÁæÌ çß·¤ëçÌØæ´ ¥õÚU ÅUðçSÅU€UØêÜÚU çÇâÁðÙðçââ çâ´Çþô× (¥çß·¤çâÌ Øæ ¥Âçß·¤çâÌ ßëá‡æ) ·¤è â´ÖßÙæ°´ ¥çÏ·¤ ãôÌè ãñ´Ð

·¤èÅUÙæàæ·¤æð´ ·ð¤ çß·¤Ë ¥ÂÙæÙð ·¤è ÁM¤ÚUÌ ¥æÁ ÁM¤ÚUÌ ãñ ·¤èÅUÙæàæ·¤ô´ ·Ô¤ çß·¤Ë âæÏÙô´ ·¤è Áô Áñçß·¤ çÙØ´˜æ‡æ çßçÏ, âæ×æçÁ·¤ ß Øæ´ç˜æ·¤ ÌÚUè·¤ô´ ·¤ô ¥ÂÙæ°´Ð ÎéçÙØæ ·Ô¤ ·¤§ü Îðàæô´ ×ð´ §Ù·¤æ ÃØæ·¤ ÂýØô» âȤÜÌæÂêßü·¤ ç·¤Øæ Áæ ÚUãæ ãñ, çÁââð ·¤èÅUÙæàæ·¤ô´ ·¤è ¹ÂÌ °·¤ çÌãæ§ü ·¤× ãô »§ü ãñ ¥õÚU ©ˆÂæÎÙ Öè ÕɸU »Øæ ãñÐ ¥æÙðßæÜè ÂèɸUè ß ã×æÚUð SßæS‰Ø ·Ô¤ çÜ° ÏèÚUð-ÏèÚUð ·¤èÅUÙæàæ·¤ô´ ·Ô¤ ÂýØô» ·¤ô ·¤× ·¤ÚUÙæ ¥çÌ ©žæ× ãô»æÐ Main Hu Kisan

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खेत और खेती को खत्म करती रासायनिक खाद

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फरवरी - 2018

Main Hu Kisan


आज ही पत्रिका के सदस्य बनें और पाएं कृषि संबंधित नई जानकारियां मैं हूं किसान पत्रिका किसानों की समस्याओं, विशेष कार्यों, कृषि विशेषज्ञों के साक्षात्कार एवं देश का हर किसान विकास केन्द्र राजस्थान सहित देश के हर राज्यों के कृषि विभाग कृषि उपकरण बनाने वाली समस्त कम्पनियां ट्रैक्टर्स निर्माण समस्त कम्पनियां खाद निर्माता समस्त कम्पनियां समस्त कृषि महाविद्यालय एवं कृषि विश्वविद्यालय केन्द्र सरकार की कृषि एवं किसानों से संबंधित जन कल्याणकारी योजनाओं और नीतियों कृषि क्षेत्र में रिसर्च करने वाली समस्त संस्थाओं के बीच सम्पर्क सेतु बनेगी

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प्लास्टिक की

चीजों का इस्तेमाल करने से बचें प्ला

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ÂæÙè ÂèÙð ×ð´ Öè ÕÚUÌð´ âæßÏæÙè ¥»ÚU ¥æ 緤¿Ù ×ð´ °·¤ ×ÅU·¤æ ÚU¹Ùæ ¿æãð´ Ìô Øã °·¤ ¥‘Àæ çß¿æÚU ãô â·¤Ìæ ãñÐ ÂèÙð ·¤æ ÂæÙè ç×Å÷UÅUè ·Ô¤ ÕÌüÙô´ ×ð´ ÚU¹Ùæ ¿æçã° €UØô´ç·¤, Øã âðãÌ ·Ô¤ çÜãæÁ âð ÕãéÌ È¤æØÎð×´Î ãôÌæ ãñÐ §â·Ô¤ ¥Üæßæ ¥æ ¿æãð´ Ìô Ìæ´Õð ·Ô¤ ç»Üæâ ¥õÚU ÕôÌÜ Öè ¹ÚUèÎ â·¤Ìð ãñ´Ð

¥æòçȤ⠷Ԥ çÜØð °·¤ ×» ¹ÚUèÎð´ Í×ôü·¤ôÜ Øæ ŒÜæçSÅU·¤ ·Ô¤ ·¤Â âð ·¤æòȤè ÂèÙæ ÍæòØÚUæ§Ç Áñâè ãæ×ôüÙÜ â×SØæ¥ô´ ·¤æ ·¤æÚU‡æ ãô â·¤Ìæ ãñÐ »×ü ÂðØ ÂÎæÍô´ü ×ð´ ÕèÂè° Áñâð çßáæ€Ì¤ ÂÎæÍü ƒæéÜ ÁæÌð ãñ´ ¥õÚU ã×æÚUð àæÚUèÚU ×ð´ Âýßðàæ ·¤ÚU â·¤Ìð ãñ´Ð §âçÜØð ¥æòçȤâ ×ð´ ¿æØ-·¤æòȤè ÂèÙð ·Ô¤ çÜØð °·¤ ×» Üð Áæ·¤ÚU ßãæ´ ÚU¹ð´Ð

ŒÜæçSÅU·¤ ·Ô¤ çÇŽÕô´ ×ð´ ¹æÙæ »×ü ·¤ÚUÙð âð Õ¿ð´ ·é¤À ŒÜæçSÅU·¤ ×槷ý¤ôßðß ·Ô¤ ¥Ùé·ê¤Ü Ùãè´ ãôÌð ãñ´Ð ×槷ý¤ôßðß ×ð´ §Ù çÇŽÕô´ ·¤ô ÚU¹Ùð âð ÂãÜð ã×ðàææ ŒÜæçSÅU·¤ ·¢¤ÅUðÙÚU ·Ô¤ »ýðÇ ·¤è Áæ´¿ ·¤ÚUð´Ð ¥ôßÙ ·Ô¤ ¥‹ÎÚU ·¤æ´¿ Øæ ©Ù ¿èÁô´ ·¤æ §SÌð×æÜ ·¤ÚUð´ Áô ×槷ý¤ôßðß ·Ô¤ ¥Ùé·ê¤Ü ãô â·¤Ìè ãñ´Ð

ÌæÁæ ¹æ°´ çÇŽÕæÕ‹Î ÖôÁÙ ¹æÙæ ·¤× ·¤ÚUð´Ð §â·Ô¤ ÕÁæØ Èýð¤àæ ¿èÁ𴠹水РçÅUÙ ·Ô¤ çÇŽÕð ×ð´ ¥‹ÎÚU ·¤è ÌÚUȤ ŒÜæçSÅU·¤ ·¤è ÂÚUÌ ãôÌè ãñ ¥õÚU Øã ŒÜæçSÅU·¤ ¥æ·Ԥ ÖôÁÙ ×ð´ ƒæéÜ·¤ÚU Ùé·¤âæÙ Âãé´¿æÌæ ãñÐ

·¤ÂǸð ·Ô¤ Õñ» ·¤æ §SÌð×æÜ ·¤ÚUð´ Øð ÂØæüßÚU‡æ ·Ô¤ ¥Ùé·¤êÜ ãôÌð ãñ´ ¥õÚU ŒÜæçSÅU·¤ ·¤æ °·¤ ¥‘Àæ çß·¤Ë ãô â·¤Ìð ãñ´Ð ã× ¥·¤âÚU ç·¤ÚUæÙæ ¥õÚU âçŽÁØæ´ ÂæòÜèÍèÙ Õñ» ×ð´ Üð·¤ÚU ƒæÚU ¥æÌð ãñ´, Áô ÂØæüßÚU‡æ ·¤ô Öè Ùé·¤âæÙ Âãé´¿æÌð ãñ´ ¥õÚU ã×ð´ ÖèÐ ßãè´ ·¤ÂǸð âð ÕÙð Õñ» Æè·¤ Ææ·¤ ÚUãð´ §â·Ô¤ çÜØð §Ù·¤è â×Ø-â×Ø ÂÚU âȤæ§ü ·¤ÚUÙè ¿æçã°Ð ßÚUÙæ §â×ð´ »‹Î»è ¥õÚU Õñ€UÅUèçÚUØæ ÖÚU â·¤Ìð ãñ´Ð

çÇSÂôÁðÕÜ ÕÌüÙ âð Õ¿ð´ çÇSÂôÁðÕÜ ÕÌüÙ âéçßÏæÁÙ·¤ ãôÌð ãñ´, Üðç·¤Ù ã×æÚUè âðãÌ ·Ô¤ çÜØð ·¤§ü ÌÚUè·¤ô´ âð Ùé·¤âæÙÎæØ·¤ ãô â·¤Ìð ãñ´Ð §â·Ô¤ ÕÁæØ ¥æ âê¹ð žæô´ âð ÕÙè ÕÌüÙ Øæ žæÜ Áñâè ¿èÁô´ ·¤æ §SÌð×æÜ ·¤ÚU â·¤Ìð ãñ´, Áô ÕæØôçÇ»ýðÇðÕÜ ãôÌð ãñ´ ¥õÚU ¥æ·¤è âðãÌ ·Ô¤ âæÍ ÂØæüßÚU‡æ ·¤ô Öè Ùé·¤âæÙ Ùãè´ Âãé´¿æÌðÐ

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Main Hu Kisan

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पपीते की

उन्नत खेती प

ÂèÌæ âÕâð ·¤× â×Ø ×ð´ È¤Ü ÎðÙð ßæÜæ ÂðǸ ãñ, §âçÜ° ·¤ô§ü Öè §âð Ü»æÙæ Ââ´Î ·¤ÚUÌæ ãñÐ ÂÂèÌæ Ù ·Ô¤ßÜ âÚUÜÌæ âð ©»æØæ ÁæÙð ßæÜæ È¤Ü ãñ, ÕçË·¤ ÁËÎè ÜæÖ ÎðÙð ßæÜæ È¤Ü Öè ãñ, Øã SßæSÍßÏü·¤ ÌÍæ Üô·¤çÂýØ ãñ, §âçÜ° §âð ¥×ëÌ ƒæÅU Öè ·¤ãæ ÁæÌæ ãñÐ ÂÂèÌæ ×ð´ ·¤§ü Âæ¿·¤ §‹Áæ§× Öè ÂæØð ÁæÌð ãñ´ ÌÍæ §â·Ô¤ ÌæÁð ȤÜô´ ·¤ô âðßÙ ·¤ÚUÙð âð Ü Õè ·¤ŽÁçØÌ ·¤è çÕ×æÚUè Öè ÎêÚU ·¤è Áæ â·¤Ìè ãñÐ

»×ü Ù×è Øé€Ì ÁÜßæØé ÕðãUÎ ©UÂØé€Ì ÂÂèÌð ·¤è ¥‘Àè ¹ðÌè »×ü Ù×è Øé€UÌ ÁÜßæØé ×ð´ ·¤è Áæ â·¤Ìè ãñÐ §âð ¥çÏ·¤Ì× x} çÇ»ýè âð yy çÇ»ýè âðçËâØâ Ì·¤ ÌæÂ×æÙ ãôÙð ÂÚU ©»æØæ Áæ â·¤Ìæ ãñ, ‹ØêÙÌ× ÌæÂ×æÙ z çÇ»ýè âðçËâØâ âð ·¤× Ùãè´ ãôÙæ ¿æçã°Ð Üê ÌÍæ ÂæÜð âð ÂÂèÌð ·¤ô ÕãéÌ Ùé·¤âæÙ ãôÌæ ãñÐ §Ùâð Õ¿Ùð ·Ô¤ çÜ° ¹ðÌ ·Ô¤ ©žæÚUèÂçà¿× ×ð´ ãßæ ÚUôÏ·¤ ßëÿæ Ü»æÙæ ¿æçã°Ð ÂæÜæ ÂǸÙð ·¤è ¥æàæ´·¤æ ãô Ìô ¹ðÌ ×ð´ ÚUæç˜æ ·Ô¤ ¥´çÌ× ÂãÚU ×ð´ Ïé´¥æ ·¤ÚU·Ô¤ °ß´ çâ¿æ§ü Öè ·¤ÚUÌð ÚUãÙæ ¿æçã°Ð

©UÂÁ檤 Á×èÙ ×ð´ ·¤ÚÔ´U ¹ðÌè Á×èÙ ©ÂÁ檤 ãô ÌÍæ çÁâ×ð´ ÁÜ çÙ·¤æâ ¥‘Àæ ãô Ìô ÂÂèÌð ·¤è ¹ðÌè ©žæ× ãôÌè ãñÐ çÁâ ¹ðÌ ×ð´ ÂæÙè ÖÚUæ ãô ©â ¹ðÌ ×ð´ ÂÂèÌæ ·¤Îæç Ùãè´ Ü»æÙæ ¿æçã°Ð €Øô´ç·¤ ÂæÙè ÖÚUð ÚUãÙð âð ÂæñÏð ×ð´ ·¤æòÜÚU ÚUæòÅU çÕ×æÚUè Ü»Ùð ·¤è ¥æàæ´·¤æ ÚUãÌè ãñÐ ¥çÏ·¤ »ãÚUè ç×Å÷UÅUè ×ð´ Öè ÂÂèÌð ·¤è ¹ðÌè Ùãè´ ·¤ÚUÙæ ¿æçã°Ð

Öêç× ·¤è ÌñØæÚUè ¹ðÌ ·¤ô ¥‘Àè ÌÚUã ÁæðÌ·¤ÚU â×ÌÜ ÕÙæÙæ ¿æçã° ÌÍæ Öêç× ·¤æ ãË·¤æ ÉæÜ ©žæ× ãñÐ w »éÙæ w ×èÅUÚU ·Ô¤ ¥‹ÌÚUU ÂÚU Ü Õæ, ¿õǸæ, »ãÚUæ »Ç÷UÉUæ ÕÙæÙæ ¿æçã°Ð §Ù »Ç÷UɸUô´ ×ð´ w® ç·¤Üô »ôÕÚU ·¤è ¹æÎ, z®® »ýæ× âéÂÚU ȤæSÈÔ¤ÅU °ß´ wz® »ýæ× ØêÚUðÅU ¥æȤ ÂôÅUæàæ ·¤ô ç×Å÷UÅUè ×ð´ ç×Üæ·¤ÚU ÂõÏæ Ü»æÙð ·Ô¤ ·¤× âð ·¤× v® çÎÙ Âêßü ÖÚU ÎðÙæ ¿æçã°Ð

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पपीता न केवल सरलता से उगाया जाने वाला फल है, बल्कि जल्दी लाभ देने वाला फल भी है, यह स्वास्थ्यवर्धक तथा लोकप्रिय है, इसलिए इसे अमृत घट भी कहा जाता है। Main Hu Kisan

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¹ðÌè-ÕæǸUè

फरवरी माह में किये जाने वाले

कृषि कार्य

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©U‹ÙÌ ·ë¤çá

जलकुम्भियों से बनाएं

मूल्यवान जैविक खाद ¥æØéßðüÎ ×ð´ ¹æâæ ×ãUˆß

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देश का शायद ही कोई गांव या शहर का ऐसा हिस्सा बचा होगा जहां पर ठहरा पानी न हो और उसमें जलकुम्भी का राज न हो। सरकार चाहे तो एक पंथ से दो काज कर सकती है। इस कंट्रोल को लेकर बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षित करके फिजिकल तौर पर इसे खत्म किया जा सकता है। दवाइयों का निर्माण करके या आयुर्वेद की दवाइयां बनाने वाली कंपनियों को सप्लाई करके युवा मोटी कमाई कर सकते हैं। इसके और भी उपयोग हैं जैसे फर्नीचर, हैंडबैग, आर्गेनिक खाद, जानवरों के चारे के साथ कागज बनाने में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। ×ð´ ÌŽÎèÜ ãôÌæ ãñÐ §â·Ô¤ âæÍ ãè ¹ÚUÂÌßæÚU Ùæàæ·¤ ÂæçÚUçSÍçÌ·¤èØ Ì´˜æ ·Ô¤ çÜ° Öè ãæçÙ·¤æÚU·¤ âæçÕÌ ãôÌæ ãñÐ ØôÁÙæÕh ÌÚUè·Ô¤ âð ·¤æ× ·¤ÚU·Ô¤ Áܷ餴çÖØô´ ·¤æ ©ÂØô» ×êËØßæÙ Áñçß·¤ ¹æÎ (·¢¤ÂôSÅU) ÕÙæÙð ·Ô¤ çÜ° ç·¤Øæ Áæ â·¤Ìæ ãñ çÁâ·¤ô vz L¤Â° ç·¤Üô ·Ô¤ ÎÚU âð Õð¿æ Áæ â·¤Ìæ ãñÐ

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¥õáÏèØ ¹ðÌè

पौष्टिक एवं स्वास्थ्यवर्धक फल शरीफा की उत्पादन तकनीक

सीताफल एक मीठा व स्वादिष्ट फल है। इसे ‘ शरीफा’ भी कहा जाता है। सीताफल का वानस्पतिक नाम अन्नोना स्क्वामोसा है। सीताफल उच्च कैलोरी के साथ प्राकृतिक शर्करा और स्वादिष्ट स्वाद देता है और इसे एक मिठाई के रूप में और एक पौष्टिक नाश्ते के रूप में खाया जाता है। यह आयरन और विटामिन सी से भरपूर होता है। यह बाहर से सख्त और अंदर से नरम और चबाने वाला होता है। इसका गुदा सफेद रंग का और मलाईदार होता है। इसे मिल्कशेक और आइसक्रीम बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके इस्तेमाल से कई तरीके के रोगों से छुटकारा मिलता है। इसके बीज पत्ते छाल सभी को औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। इसकी पत्तियां गहरी हरे रंग की होती है। जिसमें एक विशेष महक होने की वजह से कोई जानवर इसे नहीं खाते हैं। सीताफल औषधीय महत्व का भी पौधा है। इसकी पत्तियां हृदय रोग में टॉनिक का कार्य करता है, क्योंकि इसकी पत्तियों में टेट्र्ाहाइड्रो आइसोक्सिनोसीन अल्कलायड पाया जाता है। इसकी जड़ें तीव्र दस्त के उपचार में लाभकारी होती हैं। शरीफे के बीजों से निकालकर सुखाई हुई गिरी में 30 प्रतिशत तेल पाया जाता है, इससे साबुन तथा पेन्ट बनाया जाता है।

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àæÚUèÈÔ¤ ·¤æ âßÏüÙ Øæ ÂýâæÚU‡æ @ âèÌæÈ¤Ü ×é Ø M¤Â âð ÕèÁ mæÚUæ ãè ÂýâæçÚUÌ ç·¤Øæ ÁæÌæ ãñÐ ç·¤‹Ìé ¥‘Àè ç·¤S×ô´ ·¤è àæéhÌæ ÕÙæØð ÚU¹Ùð, ÌðÁè âð çß·¤æâ °ß´ àæèƒæý ȤâÜ ÜðÙð ·Ô¤ çÜØð ßæÙSÂçÌ·¤ çßçÏ mæÚUæ ÂõÏæ ÌñØæÚU ·¤ÚUÙæ ¿æçã°Ð @ àæèËÇ ÕçÇ´» ÁÙßÚUè âð ÁêÙ ÌÍæ çâÌ ÕÚU-¥€UÅUêÕÚU ·Ô¤ ×ãèÙð ×ð´ ¥‘Àè âȤÜÌæ ÂýæŒÌ ãôÌè ãñÐ çÂÀÜè «¤Ìé ×ð´ çÙ·¤Üè SßSÍ °ß´ ÂçÚUÂ€ß ·¤æçÜ·¤æ ·¤æcÆU ·¤æ ¿éÙæß ·¤ÚU ÜðÌð ãñ´Ð ×êÜßë´Ì °·¤ ßáü ÂéÚUæÙæ ÌÍæ Âð´çâÜ ·¤è ×ôÅUæ§ü ·¤æ ãôÙæ ¿æçãØðÐ @ ÂýçÌÚUôÂ‡æ ·Ô¤ ÕæΠֻܻ vz çÎÙ Ì·¤ ·¤çÜ·¤æ ·¤ô ÂæòÜèÍèÙ ·¤è ÂÌÜè ç×Å÷UÅUè Øæ ·Ô¤Üð ·Ô¤ ÚUðàæð mæÚUæ Õæ´Ï ÎðÌð ãñÐ

ÁÜßæØé @ âèÌæÈ¤Ü ·Ô¤ ÂõÏð ·Ô¤ çÜ° ßñâð Ìô ·¤ô§ü çßàæðá ÁÜßæØé ·¤è ¥æßàØ·¤Ìæ Ùãè´ ãôÌè ãñ, çȤÚU Öè ¥‘À𠩈ÂæÎÙ ·Ô¤ çÜ° »×ü ¥õÚU àæéc·¤ ÁÜßæØé ßæÜð ÿæð˜æ Áãæ´ ÂæÜæ Ùãè´ ÂǸÌæ ãñ, ¥çÏ·¤ ©ÂØé€Ì ãôÌæ ãñÐ ’ØæÎæ Æ´Ç ¥õÚU ÂæÜæ ÂǸÙð âð §â·Ô¤ È¤Ü â Ì ãô ÁæÌð ãñ´ ¥õÚU ßô ·¤ Ùãè´ ÂæÌð ãñ´Ð @ ßáæü «¤Ìé ØæÙè ÁêÙ ÁéÜæ§ü ×ð´ Èê¤Ü ¥õÚU çâÌ ÕÚU âð Ùß ÕÚU ×ð´ È¤Ü Ü»Ùð ¥õÚU ·¤Ùð àæéM¤ ãô ÁæÌð ãñ´Ð ©â â×Ø ÌæÂ×æÙ y® çÇ»ýè âð ’ØæÎæ Ùãè´ ãôÙæ ¿æçã°Ð

Öêç× @ âèÌæÈ¤Ü ·Ô¤ ÂõÏð ֻܻ âÖè Âý·¤æÚU ·Ô¤ Öêç× ÚUðÌèÜè ç×Å÷UÅUè, ·¤×ÁôÚU °ß´ ÂÍÚUèÜè Á×èÙ ¥õÚU ÉæÜê Á×èÙ ×ð´ ÂÙ ÁæÌð ãñ´, ÂÚU‹Ìé ¥‘Àè ÁÜ çÙ·¤æâ ßæÜè Îô×ÅU ç×Å÷UÅUè §â·¤è ÕɸUßæÚU °ß´ ÂñÎæßæÚU ·Ô¤ çÜØð ©ÂØé€Ì ãôÌè ãñÐ ·¤×ÁôÚU °ß´ ÂÍÚUèÜè Öêç× ×ð´ Öè §â·¤è ÂñÎæßæÚU ¥‘Àè ãôÌè ãñÐ @ §â·¤æ ÂõÏæ Öêç× ×ð´ z® ÂýçÌàæÌ Ì·¤ ¿êÙð ·¤è ×æ˜ææ âã ÜðÌæ ãñÐ Öêç× ·¤æ Âè.°¿. ×æÙ z.z âð {.z ·Ô¤ Õè¿ ¥‘Àæ ×æÙæ ÁæÌæ ãñ, Üðç·¤Ù §âð |-~ Âè.°¿. ×æÙ ßæÜè Öêç× ÂÚU Öè ©ˆÂæÎÙ çÜØæ Áæ â·¤Ìæ ãñÐ

àæÚUèÈÔ¤ ·¤è ç·¤S×ð´ @ ÕæÜæ Ù»ÚU Ñ ÛææÚU¹´Ç ÿæð˜æ ·Ô¤ çÜ° Øã °·¤ ©ÂØé€Ì ç·¤S× ãñÐ §â·Ô¤ È¤Ü ãË·Ô¤ ãÚUð ÚU´» ·Ô¤ ãôÌð ãñ´Ð Øãæ´ ·Ô¤ Á´»Üô´ ×ð´ §â·Ô¤ ¥Ùð·¤ SÍæÙèØ ÁÙÙÎýÃØ ÂæØð »Øð ã´ñÐ @ ¥·¤æü âãÙ Ñ Øã °·¤ â´·¤ÚU ç·¤S× ãñ, çÁâ·Ô¤ È¤Ü ¥Âðÿææ·ë¤Ì ç¿·¤Ùð ¥õÚU ¥çÏ·¤ ×èÆð ãôÌð ã´ñÐ @ ÜæÜ âèÌæÈ¤Ü Ñ Øã °·¤ °ðâè ç·¤S× ãñ, çÁâ·Ô¤ È¤Ü ÜæÜ ÚU´» ·Ô¤ ãôÌð ãñ´ ÌÍæ ¥õâÌÙ ÂýçÌ ÂðǸ ÂýçÌ ßáü ֻܻ y®-z® È¤Ü ¥æÌð ãñ´Ð ÕèÁ mæÚUæ ©»æØð ÁæÙð ÂÚU Öè ·¤æȤè ãÎ Ì·¤ §â ç·¤S× ·¤è àæéhÌæ ÕÙè ÚUãÌè ãñÐ

àæÚUèÈÔ¤ ·Ô¤ ÂõÏð ·¤è ÚUôÂæ§ü @ âèÌæÈ¤Ü ·Ô¤ ÂõÏð ·Ô¤ çÜØð »×èü ·Ô¤ çÎÙô´ ×ð´ {®&{®&{® âð´.×è. ¥æ·¤æÚU ·Ô¤ »Ç÷UÉðU z&z ×è. ·¤è ÎêÚUè ÂÚU ÌñØæÚU ç·¤Øð ÁæÌð ãñ´Ð @ §Ù »Ç÷UɸUô´ ·¤ô vz çÎÙ ¹éÜæ ÚU¹Ùð ·Ô¤ ÕæÎ ª¤ÂÚUè ç×Å÷UÅUè ×ð´ z-v® ç·¤.»ýæ. »ôÕÚU ·¤è âÇ¸è ¹æÎ, z®® »ýæ× ·¤ÚU´Á ·¤è ¹Üè ÌÍæ z® »ýæ× °Ù.Âè.·Ô¤. çןæ‡æ ·¤ô ¥‘Àè ÌÚUã ç×Üæ·¤ÚU ÖÚU ÎðÙæ ¿æçãØðÐ @ âèÌæÈ¤Ü Ü»æÙð ·Ô¤ çÜØð ÁéÜæ§ü ·¤æ ×ãèÙæ ©ÂØé€Ì ÚUãÌæ ãñÐ àæÚUèÈ¤æ ·¤æ ÕèÁ Á×Ùð ×ð´ ·¤æȤè â×Ø Ü»Ìæ ãñÐ ¥ÌÑ ÕôÙð âð ÂãÜð ÕèÁô´ ·¤ô x-y çÎÙô´ Ì·¤ ÂæÙè ×ð´ çÖ»æ ÎðÙð ÂÚU ÁËÎè ¥´·é¤ÚU‡æ ãô ÁæÌæ ãñÐ §â·¤ô Ü»æÙð ·Ô¤ çÜØð ÂæòÜèÍèÙ ·Ô¤ ÍñçÜØô´ ×ð´ ç×Å÷UÅUè ÖÚU·¤ÚU ÕèÁ Ü»æØð´ ¥õÚU ÁÕ ÂõÏð Á×·¤ÚU ÌñØæÚU ãô ÁæØð´ ÌÕ ÂæòÜèÍèÙ ·Ô¤ ÍñçÜØô´ ·¤ô Ùè¿ð ·¤ô ¥Ü» ·¤ÚU Îð´Ð @ ÂõÏð́ ·¤ô ç´Çè âçãÌ Õ»è¿ð ×ð́ ÌñØæÚU »Ç÷UÉðU ×ð́ Ü»æ Îð́Ð §â·Ô¤ ÕæÎ »Ç÷UÉðU ·¤è ¥‘ÀUè ÌÚUã ÎÕæ Îð́ ¥õÚU ©â·Ô¤ ¿æÚUô´ ÌÚUȤ ÍæÜæ ÕÙæ·¤ÚU ÂæÙè Îð Îð́Ð @ ØçÎ ßáæü Ù ãô ÚUãè ãô Ìô ÂõÏô´ ·¤è x-y çÎÙ ÂÚU çâ´¿æ§ü ·¤ÚUÙð âð ÂõÏæ SÍæÂÙæ ¥‘Àè ãôÌè ãñÐ °·¤ ãð€UÅUðØÚU ×ð´ ¥Ùé×æçÙÌ y®® ÂõÏð Ì·¤ Ü» â·¤Ìð ãñ´Ð

àæÚUèÈÔ¤ ·Ô¤ ÂõÏð ×ð´ çâ´¿æ§ü ¥»ÚU ÂõÏð Ü»æÙð ·Ô¤ ÕæÎ ÕÚUâæÌ ¥æÌè ÚUãè ãô çâ´¿æ§ü ·¤è ·¤ô§ü ¥æßàØ·¤Ìæ Ùãè´ ãôÌè ãñ, Üðç·¤Ù ÕæçÚUàæ Ùæ ¥æÙð ÂÚU ¥»ÚU ÂõÏð ×éÚUÛææØð Main Hu Kisan

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¥õáÏèØ ¹ðÌè

àæÚUèÈÔ¤ ×ð´ ÂécÂÙ °ß´ ȤÜÙ âèÌæÈ¤Ü ×ð´ ÂécÂÙ ·¤æȤè Ü Õð â×Ø Ì·¤ ¿ÜÌæ ãñÐ ©žæÚU ÖæÚUÌ ×ð´ ×æ¿ü âð ãè Èê¤Ü çÙ·¤ÜÙæ ÂýæÚU´Ö ãô ÁæÌæ ãñ ¥õÚU ÁéÜæ§ü Ì·¤ ¥æÌæ ãñÐ Âéc ·¤æçÜ·¤æ ·Ô¤ ¥æ´¹ô´ âð çιæ§ü ÂǸÙð ·¤è çSÍçÌ âð Üð·¤ÚU Âê‡æü ÂécÂÙ ×ð´ ֻܻ °·¤ ×ãèÙð ÌÍæ ÂécÂÙ ·Ô¤ ÕæÎ È¤Ü Â·¤Ùð Ì·¤ ֻܻ y ×ãèÙð ·¤æ â×Ø Ü»Ìæ ãñР·Ԥ È¤Ü çâÌ ÕÚU-¥€UÅUêÕÚU âð ç×ÜÙæ àæéM¤ ãô ÁæÌð ãñ´Ð ÕèÁ mæÚUæ ÌñØæÚU ç·¤Øð »Øð ÂõÏð ÌèâÚUð ßáü È¤Ü ÎðÙæ ÂýæÚU´Ö ·¤ÚUÌð ãñ´, ÁÕç·¤ ÕçÇ´» °ß´ »ýæç UÅU´» mæÚUæ ÌñØæÚU ÂõÏð ÎêâÚUð ßáü ×ð´ ¥‘Àè È¤Ü ÎðÙð Ü»Ìð ãñ´Ð Èê¤Ü ç¹ÜÙð ·Ô¤ ÌéÚU‹Ì ÕæÎ z® Âè.Âè.°×. çÁÕÚUðçÜ·¤ °çâÇ ·Ô¤ ƒæôÜ ·¤æ çÀǸ·¤æß ·¤ÚU ÎðÙð âð ȤÜÙ ¥‘Àè ãôÌè ãñÐ

àæÚUèÈÔ¤ ·¤è ÌéǸæ§ü ãé° ãô´ Ìô çâ´¿æ§ü ·¤ÚU Îð´Ð àæÚUèÈ¤æ ·Ô¤ ÂõÏô´ ·¤ô »ç×üØô´ ×ð´ ÂæÙè ÎðÙæ ¥æßàØ·¤ ãôÌæ ãñÐ ¥ÌÑ §â â×Ø | çÎÙ ·Ô¤ ¥´ÌÚUæÜ ÂÚU çâ´¿æ§ü ·¤ÚUÙè ¿æçãØðÐ âÎèü ·Ô¤ çÎÙô´ ×ð´ ×ãèÙðÖÚU ×ð´ °·¤ ÕæÚU çâ´¿æ§ü ·¤ÚU â·¤Ìð ã´ñÐ È¤Ü Ü»Ìð â×Ø °·¤ çâ´¿æ§ü ÁM¤ÚU ·¤Ú´Uð Ìæç·¤ ȤÜô´ ·¤æ ¥æ·¤æÚU ÕɸU â·Ô¤Ð

àæÚUèÈÔ¤ ×ð´ ¹æÎ °ß´ ©ßüÚU·¤ âèÌæÈ¤Ü ·Ô¤ ÂõÏô´ ·¤ô ¹æÎ ©ßüÚU·¤ ·¤è ÕãéÌ ·¤× ¥æßàØ·¤Ìæ ãôÌè ãñ, Üðç·¤Ù ¥‘Àè ÂñÎæßæÚU ·Ô¤ çÜ° ¥æ âǸè ãé§ü »ôÕÚU ·¤è ¹æÎ ¥õÚU Ùæ§ÅþôÁÙ, ÂôÅUæàæ ¥æçÎ Îð â·¤Ìð ãñ´Ð ¥ÌÑ ¥‘Àè ȤâÜ ÜðÙð ·Ô¤ çÜ° w®® »ýæ× Ùæ§ÅþôÁÙ, wz® »ýæ× È¤æòSȤæðÚUâ °ß´ z®® »ýæ× ÂôÅUæàæ ÂýçÌ ÂõÏð ·¤è ¥æßàØ·¤Ìæ ãôÌè ãñÐ §â·Ô¤ ¥çÌçÚU€Ì ÂýçÌ ßáü ÂýçÌ ÂõÏð w®-wz ç·¤.»ýæ. »ôÕÚU ·¤è âÇ¸è ¹æÎ, °·¤ ç·¤.»ýæ. ÕôÙ×èÜ ¥õÚU °·¤ ç·¤.»ýæ. Ùè× ·¤è ¹Üè ·¤è ÁM¤ÚUÌ ÂǸÌè ãñÐ ¹æÎ ·¤è Øã ×æ˜ææ ÌèÙ ÕæÚU ÕÚUæÕÚU ×æ˜ææ ×ð´ ×æ¿ü-¥ÂýñÜ, ÁéÜæ§ü-¥»SÌ ¥õÚU ¥€ÅêUÕÚU ×ãèÙô´ ×ð´ ÎðÙè ¿æçã°Ð

àæÚUèÈÔ¤ ·Ô¤ ÂõÏô´ ·¤è Îð¹ÖæÜ ÂõÏæ Ü»æÙð ·Ô¤ ÕæÎ âð ÂõÏð ·¤è çÙØç×Ì M¤Â âð Îð¹ÖæÜ ·¤è ÁæÙè ¿æçãØðÐ ÂõÏð ·Ô¤ ÍæÜô´ ×ð´ â×Ø-â×Ø ÂÚU ¹ÚUÂÌßæÚU çÙØ´˜æ‡æ ·¤ÚUÙæ ¿æçã°Ð ÂõÏô´ ×ð´ ÁéÜæ§ü-¥»SÌ ×ð´ ¹æÎ °ß´ ©ßüÚU·¤ ÂýØô» ÌÍæ ¥æßàØ·¤ÌæÙéâæÚU çâ´¿æ§ü ·¤ÚUÌð ÚUãÙæ ¿æçãØðÐ

àæÚUèÈÔ¤ ·Ô¤ ÙØð ÂõÏô´ ·¤è ·¤æ´ÅU-Àæ´ÅU àæÚUèÈÔ¤ ·Ô¤ ÙØð ÂõÏô´ ×ð´ x ßáü Ì·¤ ©ç¿Ì Éæ´¿æ ÎðÙð ·Ô¤ çÜØð ·¤æ´ÅU-Àæ´ÅU ·¤ÚUÙæ ¿æçãØðÐ ·¤æ´ÅU-ÀUæ´ÅU ·¤ÚUÌð â×Ø Øã ŠØæÙ ÚU¹Ùæ ¿æçãØð ç·¤ ÌÙð ÂÚU z®-{® âð´.×è. ª´¤¿æ§ü Ì·¤ ç·¤âè Öè àææ¹æ ·¤ô Ùãè´ çÙ·¤ÜÙð Îð´Ð ©â·Ô¤ ª¤ÂÚU x-y ¥‘Àè àææ¹æ¥ô´ ·¤ô ¿æÚUô´ ÌÚUȤ ÕɸUÙð ÎðÙæ ¿æçãØð çÁââð ÂõÏæ ·¤æ ¥‘Àæ Éæ´¿æ ÌñØæÚU ãôÌæ ãñÐ àæÚUèȤæ ×ð´ È¤Ü ×é ØÌÑ Ù§ü àææ¹æ¥ô´ ÂÚU ¥æÌð ãñ´Ð ¥ÌÑ ¥çÏ·¤ â´ Øæ ×ð´ Ù§ü àææ¹æ°´ çß·¤çâÌ ·¤ÚUÙð ·Ô¤ çÜØð ÂéÚUæÙè, âê¹è ÌÍæ ÎêâÚUô´ âð ©ÜÛæ ·¤ÚU çÙ·¤ÜÌè ãé§ü àææ¹æ¥ô´ ·¤ô ·¤æÅU ÎðÙæ ¿æçãØðÐ ÂýçÌ ßáü È¤Ü ÌôǸÙð ·Ô¤ ÕæÎ ÂðǸ ÂÚU Ü»è âé¹è ÅUãçÙØæ´ ¥õÚU ¥çÏ·¤ ÕɸUè ãé§ü àææ¹æ ·¤ô ·¤æÅU ·Ô¤ ¥Ü» ·¤ÚU ÎðÙæ ¿æçã°Ð

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Main Hu Kisan

âèÌæÈ¤Ü ·Ô¤ È¤Ü ÁÕ ·é¤À ·¤ÆôÚU ãô´ ÌÖè ÜðÙæ ¿æçã°, €UØô´ç·¤ ÂðǸ ÂÚU ·¤æȤè çÎÙô´ Ì·¤ ÀêÅUð ÚUãÙð ÂÚU ßð ȤÅU ÁæÌð ãñ´Ð ¥ÌÑ §â·¤è ÌéǸæ§ü ·Ô¤ çÜØð ©ÂØé€Ì ¥ßSÍæ ·¤æ ¿éÙæß ·¤ÚUÙæ ¿æçãØðÐ §â·Ô¤ çÜØð ÁÕ È¤Üô´ ÂÚU Îô ©ÖæÚUô´ ·Ô¤ Õè¿ çÚU€Ì SÍæÙ ÕɸU ÁæØð ÌÍæ ©Ù·¤æ ÚU´» ÂçÚUßçÌüÌ ãô ÁæØð ÌÕ â×ÛæÙæ ¿æçãØð È¤Ü Â·¤Ùð ·¤è ¥ßSÍæ ×ð´ ãñ´Ð ¥ÂçÚUÂ€ß¤È¤Ü Ùãè´ ÌôǸÙæ ¿æçãØð, €UØô´ç·¤ Øð È¤Ü Æè·¤ âð ·¤Ìð Ùãè´ ¥õÚU ©Ùâð ç×Ææâ ·¤è ×æ˜ææ Öè ·¤× ãô ÁæÌè ãñÐ ÂõÏæ Ü»æÙð ·Ô¤ ÌèâÚUð ßáü âð Øã È¤Ü ÎðÙæ ÂýæÚU´Ö ·¤ÚU ÎðÌæ ãñÐ °·¤ SßSÍ y-z ßáü ÂéÚUæÙð âèÌæÈ¤Ü ·Ô¤ ÂðǸ âð ¥õâÌ }®-v®® È¤Ü ç×Ü ÁæÌð ã´ñÐ âæ×æ‹Ø M¤Â âð ÂðǸ âð ȤÜô´ ·¤ô ÌôǸÙð ·Ô¤ {-~ çÎÙô´ ×ð´ ·¤ ÁæÌð ã´ñÐ Üðç·¤Ù §‹ãð´ ·ë¤ç˜æ× M¤Â âð Öè ·¤æØæ Áæ â·¤Ìæ ãñÐ ÂðǸ ÂÚU ·Ԥ ãé° È¤Ü ·¤è Âã¿æÙ ¥æÂ È¤Ü ÂÚU ·¤æÜð ÖêÚUæ ÚU´» ·Ô¤ ÏŽÕô´, çÁ‹ãð´ »ýæ×è‡æ ÕôÜè ×𴠥洹 çιÙæ ·¤ãÌð ãñ´, ·¤ô Îð¹·¤ÚU ·¤ÚU â·¤Ìð ãñ´Ð ·Ԥ ãé° È¤Üô´ ·¤è ÕæÁæÚU ×ð´ ·¤è×Ì Ü»Ö» vz® ç·¤Üô Ì·¤ ÚUãÌè ãñÐ

àæÚUèÈÔ¤ ·Ô¤ ÚUô» ¥õÚU ·¤èÅU §â ÂÚU ç·¤âè Öè Âý·¤æÚU ·Ô¤ ÚUô» Ùãè´ ¥æÌð ãñ´, Üðç·¤Ù ·¤Öè ·¤Öè ÂçžæØô´ ·¤ô Ùé·¤âæÙ Âãé´¿Ùð ßæÜð ·¤èÅU ¥õÚU Õ» ¥æ ÁæØð´ Ìô Îßæ§ü ·¤æ SÂýð ·¤ÚU ©‹ãð´ ¹Ì× ·¤ÚU Îð´Ð

àæÚUèÈÔ¤ ·¤æ Âýâ´S·¤ÚU‡æ âèÌæÈ¤Ü ·Ô¤ È¤Ü âð °·¤ ×àæèÙ ·Ô¤ mæÚUæ »êÎð ¥õÚU ÕèÁ ·¤ô ¥Ü» çÙ·¤Üæ ÁæÌæ ãñÐ ©â çÙ·¤Üð ãé° »êÎð â𠷤ǸßæãÅU Ùæ ¥æØð´ ¥õÚU âéÚUçÿæÌ ÚU¹Ùð ·Ô¤ çÜ° §â ×àæèÙ ·¤æ ©ÂØô» ç·¤Øæ ÁæÌæ ãñÐ ×àæèÙ âð »êÎð ·¤ô °·¤ âæÜ Ì·¤ âéÚUçÿæÌ ÚU¹ ·¤ÚU ÕæÁæÚU ×𠥑Àð Öæß ÂÚU Õð¿ â·¤Ìð ãñ´Ð §â »êÎð ·¤æ ©ÂØô» ¥æ§â·ý¤è×, ÚUÕÇ¸è ¥õÚU ÂðØ ÂÎæÍü ÕÙæÙð ×ð´ ç·¤Øæ ÁæÌæ ãñÐ

àæÚUèÈÔ¤ ·¤è ©ÂÁ °ß´ ÜæÖ °·¤ ÂõÏð âð ¥õâÌÙ z® ç·¤Üô È¤Ü ÌÍæ °·¤ °·¤Ç¸ ×ð´ } âð v® ÅUÙ È¤Ü ç×Ü ÁæÌæ ãñÐ ÂýçÌ ãð€UÅUÚU âèÌæÈ¤Ü ·¤æ ©ˆÂæÎÙ w®-wz ÅUÙ ãôÌæ ãñÐ ØçÎ {®®® L¤Â° ÅUÙ Öè ·¤è×Ì ¥æ´·¤è Áæßð´, Ìô È¤Ü Õð¿·¤ÚU ç·¤âæÙô´ ·¤ô ÂýçÌ ãð€UÅUÚU vz®®®® L¤Â° ·¤è ¥æØ ÌÍæ Üæ»Ì ·¤æÅU ·¤ÚU }z®®® L¤Â° ·¤æ àæéh ÜæÖ ÂýæŒÌ ãô»æÐ


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औषधीय पौधों के समग्र विकास की प्रमुख संस्था

राष्ट्रीय औषधीय पौध बोर्ड

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ÚUæcÅþèØ ¥õáÏèØ ÂõÏð ÕôÇü ·Ô¤ ©gðàØ

ƒæÚUðÜê ¥õÚU ¥´ÌÚUÚUæcÅþèØ ÕæÁæÚU ×ð´ ÃØæÂæÚU ¥õÚU Îßæ ·Ô¤ Ȥæ×üêÜô´ ·Ô¤ çÜ°

»é‡æßžææ ßæÜð ¥õáÏèØ ÂõÏô´ ·¤è âæ×ç»ýØô´ ·¤è ÕɸÌè ×æ´» ·¤ô ÂêÚUæ ·¤ÚUÙð ·Ô¤ çÜ° °Ù°×ÂèÕè ¥õáÏèØ ÂõÏô´ ÂÚU ¥Ùéâ´ÏæÙ °ß´ çß·¤æâ ·Ô¤ çÜ° çßçÖóæ àæôÏ â´»ÆÙ / â´SÍæ¥ô´ ·¤ô ÂçÚUØôÁÙæ ¥æÏæçÚUÌ çßžæèØ âãæØÌæ ÂýÎæÙ ·¤ÚUÌè ãñÐ §Uâè ·¤æ ÂçÚU‡ææ× ãñU ç·¤ ãæÜ ·Ô¤ ßáôZ ×ð´ ¥õáÏèØ ÂõÏô´ ·¤è ¹ðÌè ×ð´ çÙÚ´UÌÚU §UÁæȤæ ãUæð ÚUãUæ ãñUÐ ØãU â´SÍæ ƒæÚU/ S·ê¤Ü ×ð´ ãÕüÜ ©læÙ çÙ×æü‡æ, ¥‘Àè ·ë¤çá ¥õÚU â´»ýã ÂýÍæ¥ô´ (Áè°âèÂè) ·Ô¤ çß·¤æâ ·Ô¤ ×æŠØ× âð »é‡æßžææ ÕɸUæÙð ·¤æ ·¤æ× ·¤ÚU ÚUãUè ãñUÐ âæÍ ãUè ·ë¤çá Ì·¤Ùè·¤ ·¤æð çß·¤çâÌ ·¤ÚUÙð, ¥æØéßðüçη¤ Îßæ§Øô´, ÕèÁ ¥õÚU ÚUô‡æ âæ×»ýè ·¤è »é‡æßžææ ·Ô¤ Âý×æ‡æè·¤ÚU‡æ ·Ô¤ çÜ° ·¤æØü ·¤ÚUÙæ °Ù°×ÂèÕè ·¤æ ×é Ø ©Î÷ÎðàØ ãñUÐ °Ù°×ÂèÕè ãô× ãÕüÜ »æÇüÙ, S·ê¤Ü ãÕüÜ »æÇüÙ, â´SÍæ»Ì/ âæßüÁçÙ·¤ ãÕüÜ »æÇüÙ, ÚUæ’Ø ¥õÚU ÚUæcÅþèØ ×ãˆß ·Ô¤ ãÕüÜ »æÇüÙ çß·¤çâÌ ·¤ÚUÙð ×ð´ ×æ»üÎàæüÙ ÂýÎæÙ ·¤ÚUÌè ãñUÐ °Ù°×ÂèÕè ÖæÚUÌ ·¤è ƒæÚUðÜê ãÕüÜ ©lô» ·¤æ ÂýçÌçÙçÏˆß ·¤ÚUÙð ßæÜè â´SÍæ ãñUÐ ØãU }{v® Üæ§âð´â ÂýæŒÌ ãÕüÜ §·¤æ§Øô´, ãÁæÚUô´ ·é¤ÅUèÚU SÌÚU ¥çÙØç×Ì ãÕüÜ §·¤æ§Øô´ ¥õÚU Üæ¹ô´ Üô·¤ ç¿ç·¤ˆâ·¤ô´ ¥õÚU ƒæÚUðÜê SÌÚU ÂÚU ãÁæÚUô´ ãÕüÜ ·¤‘¿è Îßæ¥ô´ ·Ô¤ ÃØæÂæÚU ·ð¤ çÜ° ÕðãUÌÚUèÙ ŒÜðÅUȤæ×ü ÂýÎæÙ ·¤ÚUÌè ãñUÐ §Uâ·ð¤ ÁçÚU°U ãÕüÜ ÂýæðÇðU€ÅU ·ð¤ çßçÖ‹Ù ©ÂÖô» dôÌô´ âð Üð·¤ÚU ©ÂØô»·¤Ìæü¥ô´ Ì·¤ Îßæ¥æð´ ·Ô¤ ç߇æÙ ¥õÚU ÃØæÂæÚU ·¤ô â×ÛæÙð ×ð´ ×ÎÎ ç×ÜÌè ãñUÐ §Uâ·ð¤ ¥Üæßæ â´SÍæ ×ð´ ¥õáÏèØ ÂõÏô´ ·¤è ×æ´» ¥õÚU ¥æÂêçÌü ·¤æ Öè ÂêÚUæ âãUØæð» ÂýÎæÙ ç·¤Øæ ÁæÌæ ãñUÐ §Uâ·ð¤ ×æŠØ× âð ¥õáÏèØ ÂõÏæð´ ·ð¤ ç߇æÙ ¥õÚU ¥‹Ø Íô·¤ ÕæÁæÚUô´ ·¤è ÂêÚUè ÁæÙ·¤æÚUè ÂýæŒÌ ·¤è Áæ â·¤Ìè ãñUÐ

°Ù°×ÂèÕè ·¤è ØæðÁÙæ°´

@ ¥õáÏèØ ÂõÏô´ ·¤æð ÕæÁæÚU ×êËØ ÂÚU ©UÂÜŽŠæ ·¤ÚUæÙæ @ ¥õáÏèØ ÂõÏô´ ·¤è ×æ´» ¥õÚU ¥æÂêçÌü ·¤è çSÍçÌ ÂÚU çÙ»ÚUæÙè @ ¥æñcæŠæèØ ¹ðÌè ·¤ÚUÙð ßæÜð ç·¤âæÙæð´ ·¤æð ¥æòÙÜæ§Ù ×æ·¤üðÅU âéçÙçà¿Ì ·¤ÚUæÙæ

आयुष चिकित्सा पद्धति की दवा निर्माण में अहम भूमिका ÖæÚUÌ Áñß çßçßÏÌæ ·Ô¤ ×æ×Üð ×ð´ ÎéçÙØæ ·Ô¤ âÕâð ¥×èÚU Îðàæô´ ×ð´ âð °·¤ ãñ, §â×ð´ vz ·ë¤çá ÁÜßæØé ÿæð˜æ ãñ´Ð Èê¤Üô´ ·Ô¤ ÂõÏô´ ·¤è v|®®®-v}®®® ÂýÁæçÌØô´ ×ð´ âð |®®® âð ¥çÏ·¤ °ðâè ÂýÁæçÌØæ´ ãñU çÁÙ·¤æ ©UÂØæð» ¥õáÏèØ ·¤æØæðZ ·ð¤ çÜ° ç·¤Øæ ÁæÌæ ãñUÐ §UÙ Èê¤Üæð´ ·ð¤ ÂæñŠææð´ ·¤æ ©UÂØæð» ¥æØéßüðÎ, ØêÙæÙè, çâh ¥õÚU ãô ØôÂñÍè (¥æØéá ç¿ç·¤ˆâæ ÂhçÌ) ×ð´ Îßæ çÙ×æü‡æ ×ð´ ç·¤Øæ ÁæÌæ ãñUÐ Øð ¥õáÏèØ ÂõÏð Ù ·Ô¤ßÜ ÂæÚU´ÂçÚU·¤ ¥õáçÏ °ß´ ãÕüÜ ©lô» ·Ô¤ çÜ° °·¤ Âý×é¹ â´âæÏÙ ¥æÏæÚU ãñ´ ÕçË·¤ ÖæÚUÌèØ ¥æÕæÎè ·Ô¤ °·¤ ÕÇ¸ð ¹´Ç ·Ô¤ çÜ° ¥æÁèçß·¤æ ¥õÚU SßæS‰Ø âéÚUÿææ ÂýÎæÙ ·¤ÚUÌð ãñ´Ð ¥õáÏèØ ÂõÏô´ ·¤è ֻܻ vv|} ÂýÁæçÌØæ´ ÃØæÂæÚU ×ð´ ¥Ùé×æçÙÌ ãñ´, çÁÙ×ð´ âð wyw ÂýÁæçÌØô´ ·¤æ ßæçáü·¤ ¹ÂÌ v®® ×èçÅþ·¤ ÅUÙ ÂýçÌßáü âð ¥çÏ·¤ ãñÐ w®vy-w®vz ·Ô¤ ßáü ·Ô¤ çÜ° ¥õáÏèØ ÂõÏô´ ·¤è ƒæÚUðÜê ×æ´» ·¤æ ¥Ùé×æçÙÌ v~z®®® ×èçÅþ·¤ ÅUÙ ãñ ¥õÚU ßáü w®vy-w®vz ×ð´ ¥õáÏèØ ÂõÏô´ ·¤è çÙØæüÌ ·¤è ×æ´» vxyz®® ×èçÅþ·¤ ÅUÙ ãô »§ü ãñÐ ßáü w®vy-vz ·Ô¤ çÜ° Îðàæ ×ð´ ãÕüÜ ·¤‘¿è Îßæ ·¤æ ·é¤Ü ©ÂÖô» zvw®®® ×èçÅþ·¤ ÅUÙ ¥Ùé×æçÙÌ zz®® ·¤ÚUôǸ L¤ÂØð ·Ô¤ ÃØæÂæÚU ×êËØ ·Ô¤ ¥Ùé×æÙ Ü»æØæ »Øæ ãñÐ çÙØæüÌ ×êËØ ×ð´ Âý×é¹ ßëçh ÎÁü ·¤è »§ü ãñ Áô w®®z-®{ ×ð´ xyz.}® ·¤ÚUôǸ âð Õɸ·¤ÚU w®vy-vz ×ð´ xwvv ·¤ÚUôǸ L¤ÂØð ãô »§ü ãñ, Áô çÂÀÜð Îàæ·¤ ·Ô¤ ÎõÚUæÙ ~ »éÙæ ßëçh ÎÁü ·¤è »§ü ãñÐ Main Hu Kisan

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âðßæ×ð´, ÂÚU× ¥æÎÚU‡æèØ ß â ×æÙèØ çטææð´ ß âãUØæðç»Øæð´, ãU× âÙÚUæ§Á »ýé ¥æòȤ ·¢¤ÂÙèÁ ISO 9001:2008, ISO 22000:2005, CRISIL, APEDA, SPICE Board, NPOP, USDA, EU, Halal Certified ãñ´UÐ çÂÀUÜð 8 ßáæðZ âð â¢Âê‡æü ÖæÚUÌ Îðàæ ×ð´ ¥ÂÙ𠻇æ×æ‹Ø »ýæãU·¤æ𢠷¤è ¥æßàØ·¤Ìæ¥æð´ ·¤æð ×ãUâêâ ·¤ÚUÌð ãéU° ¥æñÚU Îðàæ ×ð´ ÕɸUÌè »¢ÖèÚU ƒææðÚU Õè×æçÚUØæð´ Áñâð ·ñ´¤âÚU, ç·¤ÇUÙè â¢Õ¢çŠæÌ Õè×æçÚUØæ¢, ÇUæØçÕÅUèÁ, ŽÜÇU ·ñ´¤âÚU, ÁæðǸæð´ ·¤æ ÎÎü, ¥æ¢ÌçÚU·¤ àæç€Ì ·¤æ çß·¤æÚU, ×æðÅUæÂæ, ÕæÜ ÛæǸÙæ, Ùð˜æ çß·¤æÚU §ˆØæçÎ Õè×æçÚUØæ¢ Îðàæ ·ð¤ 80 ÂýçÌàæÌ Üæð»æð´ ÂÚU ãUæßè ãUæðÌè çι ÚUãUè ãñUÐ çטææð´, °·¤ »ãUÚUæ ç¿¢ÌÙ ·¤æ çßáØ ØãU Öè ãñU ç·¤ çÎÙ-ÂýçÌçÎÙ ãU× ¥ÂÙð ÁèßÙ ·¤æð ¥æŠæéçÙ·¤ ÃØæßâæçØ·¤ÚU‡æ ·¤è ÌÚUȤ §ÌÙæ ’ØæÎæ Üð Áæ ¿é·ð¤ ãñ´U, çÁâ×ð´ ãU×ð´ ×æÙçâ·¤ ¥àææ¢çÌ ÌÍæ ×Ù×æçȤ·¤ çÚUÁËÅU ÙãUè´ ç×ÜÌæ Ìæð ãU× SßæÖæçß·¤ M¤Â âð ç¿Ç¸ç¿Ç¸ð ×ãUâêâ ·¤ÚUÌð ãñ´UÐ ·¢¤ÂÙè ·ð¤ ÂýÕ¢Šæ·¤ çÂÀUÜð 20 ßáæðZ âð ·ë¤çá ·ð¤ ¥æŠæéçÙ·¤è·¤ÚU‡æ, Âý×æç‡æ·¤ Áñçß·¤ ¹ðÌè, Âý×æç‡æ·¤ Èê¤ÇU ÂýæÇðU€ÅU, ’Øêâ, ·¤æòS×ðçÅU·¤, Âý×æç‡æÌ ãðUËÍ ‹ØêÅþUèçàæØ‹â, Âý×æç‡æÌ ¿æØ, Âý×æç‡æÌ ¥æò»ðüçÙ·¤ ÎæÜ, ×âæÜð, ƒæè, ÌðÜ, ÇUþUæ§üÈýê¤ÅU, ¥æò»ðüçÙ·¤ Âý×æç‡æÌ ÁǸè-ÕêÅUè ·ð¤ ÃØßâæØ ×ð´ ¥ÂÙæ ©U‘‘æ SÍæÙ ÕÙæØð ãéU° ãñ´UÐ ·¢¤ÂÙè ·¤è ©UˆÂæÎ Ÿæ뢹Üæ ×ð´ ֻܻ 300 âð ¥çŠæ·¤ ©UˆÂæÎ ×æñÁêÎ ãñ´UÐ ·¢¤ÂÙè ·¤æ ©UÎ÷ÎðàØ Âê‡æü §ü×æÙÎæÚUè âð »ýæãU·¤æð´ ·¤è âðßæ ×æ˜æ ãñUÐ ·¢¤ÂÙè ·ð¤ mUæÚUæ ¥ÂÙð Õýæ¢ÇU ·ð¤ ¥Üæßæ ×æ·ðü¤çÅ¢U» ·¤ÚUÙð ßæÜè âñ·¤Ç¸æð´ ·¢¤ÂçÙØæð´ ·¤è Õýæ¢ÇU ¥ÙéâæÚU ×ñ‹ØêÈñ¤€‘æçÚ¢U» ·¤ÚU·ð¤ (Third Party Manufacturing) ãUæðÜâðÜ ÕæÁæÚU ×ð´ ÌÍæ ·¤æòÚUÂæðüÚÔUÅU ÃØßâæØ ×ð´ ¥ÂÙæ °·¤ SÍæÙ ¥çÁüÌ ç·¤Øæ ãñUÐ ãU× ¥ÂÙð ÃØßâæØ ·¤æð Ü»æÌæÚU ¥æ»ð ÕɸUæÙð ãðUÌé ¥æŠæéçÙ·¤ ×àæèÙ, Åþð´UÇU ¥æñÚU ¥ÙéÖßè çßàæðá™ææð´, Åþð´UÇU SÅUæȤ ÌÍæ Ü»æÌæÚU ©U‘‘æ »é‡æßžææ ·¤æð ÕÉU¸æßæ ÎðÙð ·ð¤ ©UÎ÷ÎðàØ âð çÙÚ¢UÌÚU Âý»çÌàæèÜ ãñ´UÐ ßáü 2017-2020 ·¢¤ÂÙè ·ð¤ ÃØßâæØ ·¤è ÎëçcÅU·¤æð‡æ âð ¥çÌ×ãUˆßÂê‡æü ãññ, §â·ð¤ çÜ° ·¢¤ÂÙè Ùð çÙ Ù ÜÿØ ÚU¹ð ãñ´, Áæð §â Âý·¤æÚU ãñ´U — @ ·¢¤ÂÙè ·ð¤ °€â€Üêçâß ·¤æØü·ý¤× (¥æ»ðüçÙ·¤ âÙÚUæ§Á àææòÂè) ·ð¤ ¥¢Ì»üÌ Âê‡æüÌØæ Áñçß·¤ ÚUâæð§ü, SßæS‰Ø ¥æñÚU ˆß¿æ â¢Õ¢Šæè ¥æØéßðüçη¤ ·¢¤ÂÙè Õýæ¢ÇU ÂýæðÇU€ÅU ·ð¤ ©UžæÚU ÖæÚUÌ ×ð´ 500 SÅUæðÚU, ÚUæcÅþUèØ ÚUæÁŠææÙè ÿæð˜æ ×ð´ 50 SÅUæðÚU ¥æñÚU ÁØÂéÚU ×ð´ 10 SÅUæðÚUè ¹æðÜÙð ·¤æ ÜÿØ ÚU¹æ ãñUÐ @ ·¢¤ÂÙè ¥æòÙÜæ§Ù àææò碻 ßðÕ âæ§ÅU ·ð¤ ×æŠØ× âð »ýæã·¤æð´ ·¤æð ’ØæÎæ âð ’ØæÎæ ãUæð× âçßüâ Âãé¢U¿æÙð ·¤æ ©UÎ÷ÎðàØ Üð·¤ÚU ¥æ»ð ÕÉU¸ ÚUãè ãñUÐ çÁâ·¤æ URL www.sunriseagriland.com ãñUÐ @ ·¢¤ÂÙè ·ð¤ ©UˆÂæÎæð´ ·¤è €ßæçÜÅUè, Âñç·¢¤» ÌÍæ ¥‹Ø Âý×æç‡æ·¤ âçÅüUçȤ·ð¤ÅU ·ð¤ ¥æŠææÚU ©UˆÂæÎæð´ ·¤æð ¥¢ÌÚUÚUæcÅþUèØ ÕæÁæÚU ×ð´ ©UÌæÚÔU»èÐ çÁâ×ð´ ×é ØÌÑ USA, UK, UAE, Indian Ocean, EU Country ÅUæÚU»ðÅU ãUæð´»ðÐ @ ·¢¤ÂÙè ÕæÁæÚU ×ð´ ¥æßàØ·¤Ìæ ·ð¤ ¥ÙéâæÚU ¥ÂÙè ©UˆÂæÎ ÿæ×Ìæ ·¤æð ÕɸUæÙð ·¤æ ÜÿØ Öè Üð·¤ÚU ¿ÜÌè ãñUÐ @ ·¢¤ÂÙè ßáü 2017-2020 ×ð´ Îðàæ ·ð¤ 25 ÂýÎðàææð´ ×ð´ ¥ÂÙð SÅUæòç·¤SÅU çÙØé€Ì ·¤ÚUÙð ·¤æ ÜÿØ ÚU¹Ìè ãñU, âæÍ ãUè 28 ÚUæÁŠææçÙØæð´ ×ð´ 2017-2018 Ì·¤ ·¢¤ÂÙè ¥ÂÙð çÕÁÙðâ °çÚUØæ ×ñÙðÁÚU çÙØé€Ì ·¤ÚUð»èÐ çÁâ·¤æ ÜÿØ âæÜæÙæ 2 ·¤ÚUæðǸ L¤Â° ÂýçÌ ÂýÎðàæ ãUæð»æÐ @ âÙÚUæ§Á »ýæ×è‡æ ÿæð˜ææð´ ×ð´ ÚUæðÁ»æÚU ·¤æð ÕɸUæßæ ÎðÙð ·ð¤ çÜ° Øéßæ¥æð´ ·¤æð Öè âÙÚUæ§Á ·ð¤ Áñçß·¤ ©UˆÂæÎ ·ð¤ çß·ý¤Ø ·ð¤‹¼ý/àææòÂè SÍæçÂÌ ·¤ÚUÙð ·¤æ ¥ßâÚU Öè ÂýÎæÙ ·¤ÚU ÚUãUæ ãñUÐ çßSÌëÌ ÃØæÂæçÚU·¤ ÁæÙ·¤æÚUè ·ð¤ çÜ° â¢Â·ü¤ ·¤ÚÔ´U — ȤæðÙ Ñ 0141-5139005 çÙÎðàæ·¤

www.sunriseagriland.com www.organicfoodproducts.co.in www.indiamart.com/sunriseagrilanddevelopment

www.steviacultivation.blogspot.in www.aloeveracultivation.blogspot.in www.amlablogspotcom.blogspots.in www.organiccultivator.blogspot.in

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ÕÎÜæß

खे त ी की लागत कम

करने के उपाय खेती को लाभदायक बनाने के दो ही उपाय हैं — उत्पादन को बढ़ाएं व लागत खर्च को कम करें। कृषि में लगने वाले मुख्य आदान हैं बीज, पौध पोषण के लिए उर्वरक व पौध संरक्षण, रसायन और सिंचाई। खेत की तैयारी, फसल काल में निराई-गुड़ाई, सिंचाई व फसल की कटाई-गहाईउड़ावनी आदि कृषि कार्यों में लगने वाली ऊर्जा की इकाइयों का भी कृषि उत्पादन में महत्वपूर्ण स्थान है। इनका उपयोग किया जाना आवश्यक है, परंतु सही समय पर सही तरीके से किए जाने पर इन पर लगने वाली प्रति इकाई ऊर्जा की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। इनका अपव्यय रोककर व पूर्ण या आंशिक रूप से इनके विकल्प ढूंढ़कर भी लागत को कम करना संभव है।

â çÎàææ ×ð´ ç·¤° »° ·¤æØô´ü ß ÂýØæâô´ ·Ô¤ ©ˆâæãÁÙ·¤ ÂçÚU‡ææ× ÂýæŒÌ ãé° ãñ´Ð §Ùâð ·ë¤á·¤ô´ ·¤ô ¥çÏ·¤ ÜæÖ ç×ÜÙð ·Ô¤ âæÍ ãè ÂØæüßÚU‡æ ·¤ô ÂýÎêçáÌ ãôÙð âð Öè Õ¿æØæ Áæ â·¤Ìæ ãñÐ

ÂõÏ Âôá‡æ ÂõÏ Âôá‡æ ·Ô¤ çÜ° ÕæÁæÚU âð ¹ÚUèÎð »° Ù˜æÁÙ, SÈé¤ÚU ¥õÚU ÂôÅUæàæØé€Ì ©ßüÚU·¤ ©ÂØô» ×ð´ Üæ° ÁæÌð ãñ´Ð ÂýØô»ô´ ×ð´ ÂæØæ »Øæ ãñ ç·¤ ÚUæâæØçÙ·¤ ©ßüÚU·¤ ·Ô¤ M¤Â ×ð´ Îè »§ü Ù˜æÁÙ (Áô ØêçÚUØæ, ¥×ôçÙØ× âËÈÔ¤ÅU ¥æçÎ ·Ô¤ mæÚUæ Îè ÁæÌè ãñ) ·¤æ çâȤü xx-x} ÂýçÌàæÌ Öæ» ãè ©â ȤâÜ ·¤ô ÂýæŒÌ ãô ÂæÌæ ãñÐ àæðá çâ´¿æ§ü ÁÜ ·Ô¤ âæÍ Ùæ§ÅþðÅU÷â ·Ô¤ M¤Â ×ð´ çÚUâ·¤ÚU Øæ ·¤× Ù×è ·¤è ¥ßSÍæ ×ð´ »ñâèØ M¤Â ×ð´ ßæÌæßÚU‡æ ×ð´ ¿Üæ ÁæÌæ ãñÐ §âè ÌÚUã SÈé¤ÚU ØæÙè ȤæSȤôÚUâ ·¤æ w® ¥´àæ °ß´ ÂôÅUæàæ ·¤æ y® âð z® ÂýçÌàæÌ ¥´àæ ãè ©â ȤâÜ ·¤ô ç×Ü ÂæÌæ ãñÐ SÈé¤ÚU ·¤æ }® ÂýçÌàæÌ ¥´àæ Ì·¤ ·¤æÜè ç¿·¤Ùè ç×Å÷UÅUè ·Ô¤ ·¤‡æô´ ·Ô¤ âæÍ Õ´Ï·¤ÚU ÂõÏô´ ·¤ô ©ÂÜŽÏ Ùãè´ ãô ÂæÌæ ãñÐ

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Main Hu Kisan


@ §Ù ©ßüÚU·¤ô´ ·¤è ×æ˜ææ ·¤ô ·¤× ·¤ÚUÙð °ß´ ©ÂØô» ÿæ×Ìæ ·¤ô ÕɸæÙð ×ð´ Áèßæ´àæ ¹æÎ Áñâð »ôÕÚU ·¤è ¹æÎ Øæ ·¤ ÂôSÅU Øæ ·Ô¤´¿é¥æ ¹æÎ ¥æçÎ ·¤æ ÂýØô» ÜæÖÎæØ·¤ ÂæØæ »Øæ ãñÐ Øð Áñçß·¤ ¹æÎ ç·¤âæÙ ¥ÂÙð SÌÚU ÂÚU Öè ÌñØæÚU ·¤ÚU â·¤Ìð ãñ´Ð §Ù·Ô¤ ¥Üæßæ ¥¹æl ÌðÜô´ Áñâð Ùè×, ·¤ÚU´Á ¥æçÎ ·¤è ¹Üè ·¤æ ©ÂØô» ç·¤Øæ Áæ â·¤Ìæ ãñÐ §Ù ¹çÜØô´ ·Ô¤ ¿êÚUð ·¤è ÂÚUÌ ØêçÚUØæ ·Ô¤ ÎæÙð ÂÚU ¿É¸æ·¤ÚU ØêçÚUØæ ·Ô¤ Ù˜æÁÙ ·¤ô ÃØÍü ÙcÅU ãôÙð âð Õ¿æØæ Áæ â·¤Ìæ ãñÐ @ Ù˜æÁÙ ßæÜð ©ßüÚU·¤ô´ ·¤è çÙÖüÚUÌæ ·¤ô ·¤× ·¤ÚUÙð ·Ô¤ çÜ° Áèßæ‡æé ·¤Ë¿ÚU ÚUæ§ÁôçÕØ× Øæ °Áð€UÅUôÕð€UÅUÚU ·¤æ ©ÂØô», »ðãê´, ’ßæÚU, ×€·¤æ, ·¤Âæâ ¥æçΠȤâÜô´ ·Ô¤ âæÍ ¥´ÌÚUßÌèüØ È¤âÜ ·Ô¤ M¤Â ×ð´ ¿Ùæ, »ð´ãêU, ©Ç¸Î, ¥ÚUãÚU, ¿õÜæ ¥æçÎ ·¤æ ©ÂØô» ÜæÖÎæØ·¤ ÂæØæ »Øæ ãñÐ Øð ÎÜãÙß»èüØ È¤âÜð´ ßæÌæßÚU‡æ ·¤è Ù˜æÁÙ ·¤ô Üð·¤ÚU Ù çâÈü¤ ¥ÂÙð ©ÂØô» ×ð´ ÜæÌè ãñ, ÕçË·¤ ¥ÂÙè ÁǸô´ ×ð´ çSÍÚU Ù˜æÁÙ ·¤æ ÜæÖ âæÍ Ü»æ§ü »§ü ¥´ÌÚUßÌèü ·¤ô Öè Âãé´¿æÌè ãñ´Ð SÈé¤ÚU (ȤæSȤôÚUâ) ·¤è ©ÂØô» ÿæ×Ìæ ·¤ô ÕɸæÙð ·Ô¤ çÜ° SÈé¤ÚU ƒæôÜ·¤ Õñ€UÅUèçÚUØæ ·¤æ ©ÂØô» ç·¤Øæ ÁæÙæ ¿æçã°Ð @ ¥ÂÙð Øãæ´ ¥Öè Öè »ôÕÚU ·¤æ ©ÂØô» ©ÂÜð Øæ ·¢¤Çð ÕÙæ·¤ÚU §ü´ÏÙ ·Ô¤ M¤Â ×ð´ ç·¤Øæ ÁæÌæ ãñÐ ØçÎ §âð »ôÕÚU »ñâ ×ð´ ÂçÚUßçÌüÌ ·¤ÚU â·Ô¤´ Ìô §ü´ÏÙ ·¤è â×SØæ ãÜ ãôÙð ·Ô¤ âæÍ ãè ÕðãÌÚU »é‡æßžææ ·¤æ ¹æÎ Öè ÂýæŒÌ ãô ÁæÌæ ãñÐ »æ´ß ×ð´ Âàæé¥ô´ ·¤è â´ Øæ ·Ô¤ ¥æÏæÚU ÂÚU »ôÕÚU »ñâô´ ·Ô¤ çÙ×æü‡æ, ÚU¹ÚU¹æß ·¤è çÁ ×ðÎæÚUè »ýæ× Â´¿æØÌô´ ·¤ô âõ´Âè Áæ â·¤Ìè ãñÐ @»ð´ãê ·¤è ȤâÜ ·¤è ·¤ÅUæ§ü ·Ô¤ ÕæÎ ¹ðÌô´ ·¤ô ¥æ» ܻ淤ÚU âæȤ ç·¤Øæ ÁæÌæ ãñÐ §ââð ÖæÚUè ×æ˜ææ ×ð´ Áèßæ´àæ ÁÜ·¤ÚU ÙcÅU ãô ÁæÌæ ãñÐ §âð ÁÜæÙð ·Ô¤ ÕæΠȤâÜ ·¤è ·¤ÅUæ§ü ·Ô¤ ̈·¤æÜ ÕæÎ ç×Å÷UÅUè ÂÜÅUÙð ·Ô¤ ãÜ âð ¹ðÌ ·¤ô ÁôÌ·¤ÚU ÉðÜðÎæÚU ¥ßSÍæ ×ð´ ÀôǸ çÎØæ ÁæÙæ ¿æçã°, çÁââð ·¤ÅUð ãé° ÂõÏô´ ·Ô¤ Ç´ÆÜ, Æê´UÆ ¥æçÎ çÙ¿Üè âÌã ×ð´ Áæ·¤ÚU ç×Å÷UÅUè âð ÎÕ Áæ°´ ¥õÚU ßáæü ¥æÙð ÂÚU SßÌÑ ãè ç߃æçÅUÌ ãô·¤ÚU Áèßæ´àæ ¹æÎ ÕÙ ÁæÌð ãñ´Ð @ ȤâÜô´ ×ð´ çâ´¿æ§ü ÁÜ ·¤è ©ÂØô» ÿæ×Ìæ ÕɸæÙð ·Ô¤ çÜ° °·¤ ÙæÜè ÀôǸ·¤ÚU °·¤æ´ÌÚU (¥ËÅUÚUÙðÅU) çâ´¿æ§ü ·¤ÚUÙæ, çSÂý´·¤ÜÚU (Èé¤ãæÚU) çâ´¿æ§ü, ÅU·¤ çâ´¿æ§ü ¥æçÎ çßçÏØô´ ß âæÏÙô´ ·¤æ ÂýØô» ȤâÜ ·¤è ·¤ÌæÚUô´ ·Ô¤ Õè¿ ¥ßÚUôÏ ÂÚUÌ (×Ü¿) ·¤æ ©ÂØô» ¥æçÎ ÌÚUè·Ô¤ ·¤æ× ×ð´ Üæ° ÁæÙð ¿æçã°Ð

ÂõÏ â´ÚUÿæ‡æ @ ÚUô»ô´ ¥õÚU ·¤èǸô´ ·¤è ÕãéÌæØÌ ¥æÏéçÙ·¤ ¥õÚU Ü»æÌæÚU ·ë¤çá ·¤è ÎðÙ ãñÐ ã×æÚUæ ÜÿØ È¤âÜô´ ·¤ô §Ù·Ô¤ mæÚUæ ·¤è ÁæÙð ßæÜè ãæçÙ âð Õ¿æÙæ ãñ Ù ç·¤ ÙcÅU ·¤ÚUÙæÐ ·¤èÅU ß ÚUô»Ùæàæ·¤ ÚUâæØÙô´ ·¤æ ¥âÚU çâÈü¤ Ùé·¤âæÙ ·¤ÚUÙð ßæÜð ·¤èǸô´ ß ÚUô»ô´ ÂÚU Ù ãô·¤ÚU ÜæÖ Âãé´¿æÙð ßæÜð ·¤èǸô´ ß ÚUô»ô´ ÂÚU Öè ãôÌæ ãñÐ @ §Ù·Ô¤ çÙØ´˜æ‡æ ·Ô¤ çÜ° Sß‘À ·ë¤çá, ÂÚUÁèßè ß çàæ·¤æÚUè ·¤èǸô´ ß ·¤èǸô´ ·¤ô ãæçÙ Âãé´¿æÙð ßæÜ𠷤߷¤ô´ (ȤÈê´¤Îô´) ß ßæØÚUâ ·¤æ ÂýØô» ¥âÚU·¤æÚU·¤ ÂæØæ »Øæ ãñÐ §Ù·Ô¤ ¥Üæßæ Ùè×, ·¤ÚU´Á, ãè´», ÜãâéÙ, ¥Ë·¤ôãÜ ¥æçÎ ·Ô¤ ©ÂØô», ¥´ÌÚUßÌèü ȤâÜ, Âý´¿è ȤâÜ ÈÔ¤ÚUô×ðÙ, ÅþðÂ, Âý·¤æàæ Âý´¿ ¥æçÎ âæÏÙô´ ·Ô¤ ©ÂØô» âð ÚUâæØÙô´ ·Ô¤ ©ÂØô» ÂÚU ¹¿ü ãôÙð ßæÜè ÚUæçàæ ×ð´ ·¤×è ·¤è Áæ â·¤Ìè ãñÐ ·¤èÅUÙæàæè ÚUâæØÙ ¥´çÌ× çß·¤Ë ·Ô¤ M¤Â ×ð´ ·¤æ× ×ð´ Üæ°´Ð Main Hu Kisan

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ÜæÖ·¤æÚUè

स्टीविया (मीठी पत्ती)

शू्न्य कैलोरी औषधीय पौधा

Á·¤Ü ×Ïé×ðã ß ×ôÅUæÂð ·¤è â×SØæ ·Ô¤ ·¤æÚU‡æ ‹ØêÙ ·ñ¤ÜôÚUè SßèÅUÙâü ã×æÚUð ÖôÁÙ ·Ô¤ ¥æßàØ·¤ ¥´» ÕÙ ¿é·Ô¤ ãñ´Ð ÕæÁæÚU ×ð´ ©ÂÜŽÏ ·ë¤ç˜æ× ©ˆÂæÎ âðãÌ ·Ô¤ çÜ° Âê‡æüÌØæ âéÚUçÿæÌ Ù ãôÙð ·Ô¤ ·¤æÚU‡æ, ×Ïé ÌéÜâè Øæ SÅUèçßØæ ·Ô¤ ÂõÏð ·¤ô ‹ØêÙ ·¤ñÜôÚUè ç×Ææâ ·¤æ ©žæ× Âýæ·ë¤çÌ·¤ âýôÌ ×æÙæ ÁæÌæ ãñ, Áô à怷¤ÚU âð ֻܻ wz âð x® »éÙæ ¥çÏ·¤ ×èÆæ, ·ñ¤ÜôÚUè ÚUçãÌ ãñÐ ØãU ×Ïé×ðã ß ©‘¿ ÚU€Ì¿æ ·Ô¤ ÚUôç»Øô´ ·Ô¤ çÜ° à怷¤ÚU ·Ô¤ M¤Â ×ð´ Âê‡æüÌØæ âéÚUçÿæÌ ãñÐ §â·Ô¤ žæô´ ×ð´ ÂæØð ÁæÙð ßæÜð Âý×é¹ ƒæÅU·¤ SÅUèçßØôâæ§Ç, ÚUèÕæÇçÎâæ§Ç ß ¥‹Ø Øôç»·¤ô´ ×ð´ §‹âéçÜÙ ·¤ô ÕñÜð‹â ·¤ÚUÙð ·Ô¤ »é‡æ ÂæØð ÁæÌð ãñ´Ð §Uâ·Ô¤ ·¤æÚU‡æ §âð ×Ïé×ðã ·Ô¤ çÜ° ©ÂØô»è ×æÙæ »Øæ ãñÐ Øã °‹ÅUè ßæØÚUÜ ß °´ÅUè Õñ€UÅUèçÚUØÜ Öè ãñ ÌÍæ Îæ´Ìô´ ÌÍæ ×âêǸô´ ·¤è Õè×æçÚUØô´ âð Öè ×éç€Ì çÎÜæÌæ ãñÐ §â×´ð °‹ÅUè °çÁ´», °‹ÅUè Çñ‹ÇþȤ Áñâð »é‡æ ÂæØð ÁæÌð ãñ´ ÌÍæ Øã Ùæò٠Ȥ×üð´ÅUðÕÜ ãôÌæ ãñÐ vz ¥æßàØ·¤ ¹çÙÁô´ (ç×ÙÚUËâ) ÌÍæ çßÅUæç×Ù âð Øé€Ì Øã ¥ˆØ´Ì ©ÂØô»è ¥õáÏèØ ÂõÏæ ãñÐ

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Main Hu Kisan

¹ðÌè ·Ô¤ çÜ° ÁÜßæØé ÌÍæ Öêç×

SÅUèçßØæ ·¤è ¹ðÌè ÖæÚUÌßáü ×ð´ ÂêÚUð âæÜÖÚU ×ð´ ·¤Öè Öè ·¤ÚUæØè Áæ â·¤Ìè ãñÐ §â·Ô¤ çÜØð ¥hUü¥æÎý °ß´ ¥hUü ©c‡æ ç·¤S× ·¤è ÁÜßæØé ·¤æÈ¤è ©ÂØé€Ì ÂæØè ÁæÌè ãñÐ °ðâð ÿæð˜æ Áãæ´ ÂÚU ‹ØêÙÌ× ÌæÂ×æÙ àæê‹Ø âð Ùè¿ð ¿Üæ ÁæÌæ ãñ ßãæ´ ÂÚU §â·¤è ¹ðÌè Ùãè´ ·¤ÚUæØè Áæ â·¤ÌèÐ vv çÇ»ýè âð‹ÅUè»ýðÇ Ì·¤ ·Ô¤ ÌæÂ×æÙ ×ð´ §â·¤è ¹ðÌè âȤÜÌæÂêßü·¤ ·¤è Áæ â·¤Ìè ãñÐ SÅUèçßØæ ·¤è âÈ¤Ü ¹ðÌè ·Ô¤ çÜØð ©ç¿Ì ÁÜ çÙ·¤æâ ßæÜè ÚUðÌèÜè Îô×ÅU Öêç× çÁâ·¤æ Âè.°¿. ×æÙ { âð | ·Ô¤ ×ŠØ ãô, ©ÂØé€Ì ÂæØè »Øè ãñÐ ÁÜ ÖÚUæß ßæÜè Øæ ÿææÚUèØ Á×èÙ ×ð´ SÅUèçßØæ ·¤è ¹ðÌè Ùãè´ ·¤è Áæ â·¤Ìè ãñÐ

SÅUèçßØæ ·¤è ÚUôÂæ§ü SÅUèçßØæ ßáüÖÚU ×ð´ ·¤Öè Ü»æ§ü Áæ â·¤Ìè ãñ, Üðç·¤Ù ©ç¿Ì â×Ø È¤ÚUßÚUè×æ¿ü ·¤æ ×ãèÙæ ãñÐ ÌæÂ×æÙ °ß´ Ü Õð çÎÙô´ ·¤æ ȤâÜ ·Ô¤ ©ˆÂæÎÙ ÂÚU ¥çÏ·¤ ÂýÖæß ÂǸÌæ ãñÐ SÅUèçßØæ ·Ô¤ ÂõÏô´ ·¤è ÚUôÂæ§ü ×ðǸæð´ ÂÚU ·¤è ÁæÌè


ãñÐ §â·Ô¤ çÜØð vz âð×è. ª´¤¿æ§ü ·Ô¤ w ȤèÅU ¿õǸð ×ðǸ ÕÙæ çÜØð ÁæÌð ãñ´ ÌÍæ ©Ù ÂÚU ·¤ÌæÚU âð ·¤ÌæÚU ·¤è ÎêÚUè y® âð×è. °ß´ ÂõÏð ×ð´ ÂõÏð ·¤è ÎêÚUè w®-wz âð×è. ÚU¹Ìð ãñ´Ð Îô ×ðǸæð´ ·Ô¤ Õè¿ v.z ȤèÅU ·¤è Á»ã ÙæÜè Øæ ÚUæSÌð ·Ô¤ M¤Â ×ð´ ÀôǸ ÎðÌð ã´ñÐ

¹æÎ °ß´ ©ßüÚU·¤ €UØô´ç·¤ SÅUèçßØæ ·¤è ÂçžæØô´ ·¤æ ×ÙécØ mæÚUæ âèÏð ©ÂÖô» ç·¤Øæ ÁæÌæ ãñ §â ·¤æÚU‡æ §â·¤è ¹ðÌè ×ð´ ç·¤âè Öè Âý·¤æÚU ·¤è ÚUâæØçÙ·¤ ¹æÎ Øæ ·¤èÅUÙæàæè ·¤æ ÂýØô» Ùãè´ ·¤ÚUÌð ã´ñÐ °·¤ °·¤Ç¸ ×𴠧ⷤè ȤâÜ ·¤ô Ìˆß ·Ô¤ M¤Â ×ð´ Ùæ§ÅþôÁÙ, ȤæSȤôÚUâ °ß´ ÂôÅUæàæ ·¤è ×æ˜ææ ·ý¤×àæÑ vv®ÑyzÑyz ç·¤.»ýæ. ·¤è ¥æßàØ·¤Ìæ ãôÌè ãñÐ §â·¤è ÂêçÌü ·Ô¤ çÜØð |®-}® ç€ß´ÅUÜ ß×èü ·¤ ÂôSÅU Øæ w®® ç€ß´ÅUÜ âÇ¸è »ôÕÚU ·¤è ¹æÎ ÂØæüŒÌ ÚUãÌèÐ

ȤâÜ ×ð´ çâ´¿æ§ü SÅUèçßØæ ·¤è ȤâÜ âê¹æ âãÙ Ùãè´ ·¤ÚU ÂæÌè ãñÐU §â·¤ô Ü»æÌæÚU ÂæÙè ·¤è ¥æßàØ·¤Ìæ ãôÌè ãñÐ âÎèü ·Ô¤ ×õâ× ×ð´ v® çÎÙ ·Ô¤ ¥´ÌÚUæÜ ÂÚU ÌÍæ »ç×üØô´ ×ð´ ÂýçÌ âŒÌæã çâ´¿æ§ü ·¤ÚUÙè ¿æçãØðÐ ßñâð SÅUèçßØæ Öè ȤâÜ ×ð´ çâ´¿æ§ü ·¤ÚUÙð ·¤æ âÕâð ©ÂØé€Ì âæÏÙ çSÂý´·¤ÜÚUâü Øæ çÇþ ãñÐ

¹ÚUÂÌßæÚU çÙØ´˜æ‡æ çâ´¿æ§ü ·Ô¤ Âà¿æÌ ¹ðÌ ·¤è çÙÚUæ§ü-»éǸæ§ü ·¤ÚUÙè ¿æçãØð, çÁââð Öêç× ÖéÚUÖéÚUè ÌÍæ ¹ÚUÂÌßæÚU ÚUçãÌ ãô ÁæÌè ãñ Áô ç·¤ ÂõÏô´ ×ð´ ßëçh ·Ô¤ çÜØð ÜæÖÎæØ·¤ ãôÌæ ãñÐ

ÚUô» °ß´ ·¤èÅU çÙØ´˜æ‡æ âæ×æ‹ØÌÑ SÅUèçßØæ ·¤è ȤâÜ ×ð´ ç·¤âè Öè Âý·¤æÚU ·¤æ ÚUô» Øæ ·¤èǸæ Ùãè´ Ü»Ìæ ãñÐ ·¤Öè-·¤Öè ÂçžæØô´ ÂÚU ÏŽÕð ÂǸ ÁæÌð ã´ñ, Áô ç·¤ ÕôÚUæÙ Ìˆß ·¤è ·¤×è ·Ô¤ Üÿæ‡æ ãñ´ §â·Ô¤ çÙØ´˜æ‡æ ·Ô¤ çÜØð { ÂýçÌàæÌ ÕôÚUð€Uâ ·¤æ çÀǸ·¤æß ç·¤Øæ Áæ â·¤Ìæ ãñÐ ·¤èǸæð´ ·¤è ÚUô·¤Íæ× ·Ô¤ çÜØð Ùè× ·Ô¤ ÌðÜ ·¤ô ÂæÙè ×ð´ ƒæôÜ·¤ÚU SÂýð ç·¤Øæ Áæ â·¤Ìæ ãñÐ

Èê¤Üô´ ·¤ô ÌôǸÙæ €UØô´ç·¤ SÅUèçßØæ ·¤è ÂçžæØô´ ×ð´ ãè SÅUèçßØôâæ§Ç ÂæØð ÁæÌð ãñ´, §âçÜØð žæô´ ·¤è ×æ˜ææ ÕɸUæØè ÁæÙè, ¿æçãØð ÌÍæ â×Ø-â×Ø ÂÚU Èê¤Üô´ ·¤ô ÌôǸ ÎðÙæ ¿æçãØðÐ ¥»ÚU ÂõÏð ÂÚU Îô çÎÙ Èê¤Ü Ü»ð ÚUãð´ ÌÍæ ©Ù·¤ô Ù ÌôǸæ ÁæØð Ìô ÂçžæØô´ ×ð´ SÅUèçßØôâæ§Ç ·¤è ×æ˜ææ ×ð´ z® ÂýçÌàæÌ Ì·¤ ·¤è ·¤×è ãô â·¤Ìè ãñÐ Èê¤Üô´ ·¤è ÌéǸæ§ü, ÂõÏô´ ·¤ô ¹ðÌ ·Ô¤ ÚUôÂæ§ü ·Ô¤ x®, yz, {®, |z °ß´ ~® çÎÙ ·Ô¤ Âà¿æÌ °ß´ ÂýÍ× ·¤ÅUæ§ü ·Ô¤ â×Ø ·¤è ÁæÙè ¿æçãØðРȤâÜ ·¤è ÂãÜè ·¤ÅUæ§ü ·Ô¤ Âà¿æÌ y®, {® °ß´ }® çÎÙô´ ÂÚU Èê¤Üô´ ·¤ô ÌôǸÙð ·¤è ¥æßàØ·¤Ìæ ãôÌè ãñÐ

ȤâÜ ·¤è ·¤ÅUæ§ü SÅUèçßØæ ·¤è ÂãÜè ·¤ÅUæ§ü ÂõÏð ÚUôÂÙð ·Ô¤ ֻܻ y ×ãèÙð Âà¿æÌ ·¤è ÁæÌè ãñ ÌÍæ àæðá ·¤ÅUæ§üØæ´ ~®-~® çÎÙ ·Ô¤ ¥´ÌÚUæÜ ÂÚU ·¤è ÁæÌè ãñ´Ð §â Âý·¤æÚU ßáüÖÚU ×ð´ x-y ·¤ÅUæ§ü ·¤è ÁæÌè ãñ´Ð ·¤ÅUæ§ü ÌèÙ ßáü Ì·¤ ãè Üè ÁæÌè ãñ, §â·Ô¤ ÕæÎ ÂçžæØô´ ·Ô¤ SÅUèçßØôâæ§Ç ·¤è ×æ˜ææ ƒæÅU ÁæÌè ãñÐ ·¤ÅUæ§ü ×ð´ â Âê‡æü ÂõÏð ·¤ô Á×èÙ âð {-| âð×è. ª¤ÂÚU âð ·¤æÅU çÜØæ ÁæÌæ ãñ ÌÍæ §â·Ô¤ Âà¿æÌ ÂçžæØô´ ·¤ô ÅUãçÙØô´ âð ÌôǸ·¤ÚU Ïê ×ð´ ¥Íßæ ÇþæØÚU mæÚUæ âê¹æ ÜðÌð ãñ´ ̈Âà¿æÌ âê¹è ÂçžæØô´ ·¤ô Æ´ÇðU SÍæÙ ×ð´ àæèàæð ·Ô¤ ÁæÚU Øæ °ØÚUÅUæ§üÅU ÂôÜèÍèÙ Âñ·¤ ×ð´ ÖÚU ÎðÌð ãñ´Ð

©ÂÁ ßáüÖÚU ×ð´ SÅUèçßØæ ·¤è x-y ·¤ÅUæ§üØô´ ×ð´ ֻܻ |® ç€ß´ÅUÜ âð v®® ç€ß´ÅUÜ âê¹ð žæð ÂýçÌ °·¤Ç¸ ÂýæŒÌ ãôÌð ãñ´Ð

ÜæÖ ßñâð Ìô SÅUèçßØæ ·¤è ÂçžæØô´ ·¤æ ¥‹ÌÚUæücÅþèØ ÕæÁæÚU Öæß Ü»Ö» x®®-y®® ÂýçÌ ç·¤.»ýæ. ãñ, Üðç·¤Ù ¥»ÚU SÅUèçßØæ ·¤è çÕ·ý¤è ÎÚU v®® L¤Â° ÂýçÌ ç·¤.»ýæ. ×æÙè ÁæØð Ìô ÂýÍ× ßáü ×ð´ °·¤ °·¤Ç¸ Öêç× âð z-{ Üæ¹ ·¤è ¥æ×ÎÙè ãôÌè ãñÐ ¥æ»æ×è âæÜô´ ×ð´ Øã ÜæÖ ¥çÏ·¤ ãôÌæ ãñÐ

स्टीविया की सफल खेती के लिये उचित जल निकाल वाली रेतीली दोमट भूमि जिसका पी.एच. मान 6 से 7 के मध्य हो, उपयुक्त पाई गई है। जल भराव वाली या क्षारीय जमीन में स्टीविया की खेती नहीं की जा सकती। Main Hu Kisan

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ÜæÖ·¤æÚUè

ÇæØçÕÅUèÁ ×ð´ ÜæÖ·¤æÚUè SÅUèçßØæ ÀÚUãÚUæ âÎæÕãæÚU àææ·¤èØ ÂõÏæ ãñÐ ç×Ææâ ·Ô¤ ·¤æÚU‡æ §âð ãÙè ŒÜæ´ÅU Öè ·¤ãæ ÁæÌæ ãñÐ §â·¤æ ©ÂØô» ãÕüÜ ¥õáçÏ ×ð´ ÇæØçÕÅUèÁ ÚUôç»Øô´ ·Ô¤ çÜ° ÅUæòçÙ·¤ ·Ô¤ M¤Â ×ð´ Öè ç·¤Øæ ÁæÌæ ãñÐ SÅUèçßØæ Âñ´ç·ý¤ØæÁ âð §´âéçÜÙ ·¤ô çÚUÜèÁ ·¤ÚUÙð ×ð´ ¥ã× Öêç×·¤æ çÙÖæÌæ ãñÐ Øã §´âéçÜÙ ÂýçÌÚUôÏ ×ð´ ßëçh, ‚Üê·¤ôÁ ·Ô¤ ¥ßàæôá‡æ ·¤ô ÚUô·¤·¤ÚU ¥õÚU ¥‚ÙæàæØ ·Ô¤ SßæS‰Ø ·¤ô Õɸ淤ÚU ŽÜÇ àæé»ÚU ·¤ô çSÍÚU ·¤ÚUÌæ ãñÐ

×ôÅUæÂæ ·¤× ·¤ÚUð´

औषधीय गुणों से भरपूर है स्टीविया

SÅUèçßØæ ·¤è ÂçžæØô´ ×ð´ ¿èÙè âð ÌèÙ âõ »éÙæ ¥çÏ·¤ ×èÆæ ãôÌæ ãñÐ §âè ç×Ææâ ·Ô¤ ·¤æÚU‡æ §âð ãÙè ŒÜæ´ÅU Öè ·¤ãæ ÁæÌæ ãñÐ €UØæ ¥æ SÅUèçßØæ âð ÂçÚUç¿Ì ãñ´, ¥»ÚU Ùãè´ Ìô ã× ¥æ·¤ô §â·Ô¤ ÕæÚUð ×ð´ ÕÌæÌð ãñ´Ð SÅUèçßØæ ·Ô¤ ¥õáÏèØ »é‡æ SÅUèçßØæ çÁâð ×ÏéÚU»é‡ææ ·Ô¤ Ùæ× âð Öè ÁæÙæ ÁæÌæ ãñÐ §â×ð´ ÇæØçÕÅUèÁ ·¤ô ÎêÚU ·¤ÚUÙð ·Ô¤ »é‡æ ãôÌð ãñ´Ð SÅUðçßØæ Ùæ× ·¤è ÁǸè ÕêÅUè ¿èÙè ·¤æ SÍæÙ Üð â·¤Ìè ãñ ¥õÚU ¹æâ ÕæÌ Øð ç·¤ §âð ƒæÚU ·¤è Õç»Øæ ×ð´ Öè ©»æØæ Áæ â·¤Ìæ ãñÐ Øã àæê‹Ø ·ñ¤ÜôÚUè SßèÅUÙÚU ãñ ¥õÚU §â·¤æ ·¤ô§ü ÎécÂýÖæß Ùãè´ ãñÐ §âð ãÚU Á»ã ¿èÙè ·Ô¤ ÕÎÜð §SÌð×æÜ ç·¤Øæ Áæ â·¤Ìæ ãñÐ §ââð ÌñØæÚU ©ˆÂæÎ Ù ·Ô¤ßÜ SßæçÎcÅU ãñ´, ÕçË·¤ çÎÜ ·Ô¤ ÚUô» ¥õÚU ×ôÅUæÂð âð ÂèçÇ¸Ì Üô»ô´ ·Ô¤ çÜ° Öè ȤæØÎð×´Î ãñ´Ð SÅUèçßØæ Ù ·Ô¤ßÜ àæé»ÚU ÕçË·¤ ŽÜÇ ÂýðàæÚU, ãæ§üÂÚUÅUð´àæÙ, Îæ´Ìô´, ßÁÙ ·¤× ·¤ÚUÙð, »ñâ, ÂðÅU ·¤è ÁÜÙ, ˆß¿æ ÚUô» ¥õÚU âé´ÎÚUÌæ ÕɸæÙð ·Ô¤ çÜ° Öè ©ÂØô»è ãôÌè ãñÐ Øãè Ùãè´ §â·Ô¤ ÂõÏð ×ð´ ·¤§ü ¥õáÏèØ ß Áèßæ‡æéÚUôÏè »é‡æ Öè ãôÌð ãñ´Ð

SÅUèçßØæ ·Ô¤ ÕæÚUð ×ð´ ÁæÙð´ ßñâð SÅUèçßØæ ×êÜ M¤Â âð ÁæÂæÙ ·¤æ ÂõÏæ ãñ ç·¢¤Ìé Áñâð-Áñâð §â·¤è ¹êçÕØô´ ·Ô¤ ÕæÚUð ×ð´ ÂÌæ ¿ÜÌæ »Øæ ßñâð ãè ßñâð §â·¤è ÃØßâæçØ·¤ ¹ðÌè ·¤ô Õɸæßæ ç×ÜæÐ ßãè´ ÖæÚUÌßáü ×ð´ Öè ·¤§ü ÚUæ’Øô´ ×ð´ §â·¤è ¹ðÌè ÂýæÚU´Ö ãô ¿é·¤è ãñÐ SÅUèçßØæ àææ·¤èØ ÂõÏæ ãñÐ §â·¤ô ¹ðÌ ×ð´ ©»æØæ ÁæÌæ ãñ ¥õÚU §â·¤è ÂçžæØô´ ·¤æ ©ÂØô» ãôÌæ ãñÐ Øã ¿èÙè âð ÌèÙ âõ »éÙæ ¥çÏ·¤ ×èÆæ ãôÌæ ãñ, §âð ¿æÙð âð àæÚUèÚU ×ð´ °´Áæ§× Ùãè´ ãôÌæ ¥õÚU Ù ãè ‚Üê·¤ôâ ·¤è ×æ˜ææ ÕɸÌè ãñÐ ¥æÁ ·Ô¤ â×Ø ×ð´ SÅUèçßØæ ·¤æ ·¤§ü àæé»ÚU Èý¤è ÂÎæÍôZ ·¤ô ÕÙæÙð ·Ô¤ çÜ° Öè ÂýØô» ç·¤Øæ ÁæÙð Ü»æ ãñÐ

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ऑर्गेनिक और इनोवेटिव फार्मिंग

युवाओं का बदलने लगा नजरिया ऑ

र्गेनिक खेती आजकल कई शिक्षित युवाओं को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। जमीन से जुड़े इस करियर में काफी अच्छी कमाई है। साथ ही सरकार इसे प्रोत्साहित करने के लिए ऑर्गेनिक कृषकों को कई तरह से सहायता उपलब्ध कराती है। देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है, वहीं यह सेक्टर पचास फीसद से ज्यादा आबादी को रोजगार भी उपलब्ध कराता है। इसके अलावा हाल के वर्षों में जिस तरह से कृषि क्षेत्र में आधुनिकीकरण हुआ है, इसमें नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बढ़ा है, पारंपरिक खेती के साथ-साथ ऑर्गेनिक और इनोवेटिव फार्मिंग हो रही है, उसने एग्रीकल्चर के प्रति समाज और खासकर युवाओं का नजरिया काफी हद तक बदला है। यही कारण है कि बीते कुछ समय में आईआईटी और आईआईएम से पास-आउट कई युवाओं ने मल्टीनेशनल कंपनियों की जॉब छोड़कर एग्रीकल्चर और एग्रीबिजनेस की ओर रुख किया है। इनके अलावा भी दूसरे सेक्टरों में काम करने वाले युवा हॉर्टिकल्चर, डेयरी, ऑर्गेनिक और औषधीय फार्मिंग जैसे पेशे से जुड़ रहे हैं। ऐसे में युवा ऊर्जावान किसानों को ऑर्गेनिक खेती में पारंगत करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है जयपुर हैनीमेन चेरिटेबल मिशन सोसायटी। सोसायटी के अध्यक्ष डॉ. अतुल गुप्ता जयपुर शहर की टोंक रोड स्थित पिंजरापोल गोशाला में 150 एकड़ में स्थापित किए गए महर्षि चरक जैविक

बीते कुछ समय में आईआईटी और आईआईएम से पास-आउट कई युवाओं ने मल्टीनेशनल कंपनियों की जॉब छोड़कर एग्रीकल्चर और एग्रीबिजनेस की ओर रुख किया है। वन औषधीय पादप पार्क में हर माह सैकड़ों युवा किसानों को हर्बल आयुर्वेदिक औषधीय पादपों की खेती के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं। इंस्टीटयूट ऑफ एडवांस टेक्नोलोजी ऑफ ऑर्गेनिक हब्र्स एण्ड फूड प्रोसेसे रिसर्च व हैनीमेन चेरिटेबल मिशन सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में देशभर के युवा किसानों को न केवल ऑर्गेनिक फार्मिंग के बारे में उचित प्रशिक्षण देकर स्वावलंबी बनाने पर जोर दिया जाता है।

ऑर्गेनिक खेती बनाए मालामाल

डॉ. अतुल गुप्ता बताते हैं कि ऑर्गेनिक खेती का जिक्र तो आजकल बहुत हो रहा है, लेकिन सवाल यह है कि अगर किसी को इसमें करियर बनाना है, तो वह क्या करे। यह ऐसी खेती है, जिसमें सिंथेटिक खाद, कीटनाशक आदि जैसी चीजों के बजाय तमाम ऑर्गेनिक चीजें जैसे गोबर, वर्मी कंपोस्ट, बॉयोफर्टिलाइजर्स, क्रॉप रोटेशन तकनीक आदि का इस्तेमाल किया जाता है। कम जमीन में, कम लागत में इस तरीके से पारंपरिक खेती के मुकाबले कहीं ज्यादा उत्पादन होता है। यह तरीका फसलों में जरूरी पोषक तत्वों को संरक्षित रखता है और नुकसानदेह केमिकल्स से दूर रखता है। साथ ही यह पानी भी बचाता है और जमीन को लंबे समय तक उपजाऊ बनाए रखता है। यह पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में मददगार है।

सरकार देती है सब्सिडी

दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में डॉ. अतुल गुप्ता ने प्रतिभागी किसानों को बताया कि ऑर्गेनिक खेती के लिए चयनित जमीन की कृषि वैज्ञानिक भूमि की जांच करेंगे और यह तय करेंगे कि इसकी मिट्टी किस फसल की खेती

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ऑर्गेनिक फार्मिंग के लिए तकरीबन हर राज्य में सरकार 80 से 90 फीसद तक सब्सिडी देती है। मतलब यह है कि पूरे प्रोजेक्ट में 10 से 20 फीसद ही इनवेस्ट करना होगा। के लिए अच्छी है। इसके बाद प्रोजेक्ट कृषि विभाग में पास होने के लिए भेज दिया जाता है। ऑर्गेनिक फार्मिंग के लिए तकरीबन हर राज्य में सरकार 80 से 90 फीसद तक सब्सिडी देती है। मतलब यह है कि पूरे प्रोजेक्ट में 10 से 20 फीसद ही इनवेस्ट करना होगा। प्रोजेक्ट पास होने के बाद ऑर्गेनिक फार्मिंग टेक्निक वाली कंपनियां सेटअप लगाने के लिए किसान को खुद संपर्क कर लेती हैं। सरकार से मिले पैसों से ये कंपनियां जमीन पर ग्रीन हाउस और ऑर्गेनिक फार्मिंग के लिए सेटअप लगाकर देती है। साथ ही किसान को ट्रेनिंग भी देती हैं।

सेल्फ एम्प्लॉयमेंट का जरिया

एग्रीकल्चर स्वरोजगार का सबसे अच्छा साधन है। इससे अब अच्छी कमाई भी की जा सकती है। बहुत से प्रोफेशनल फार्मर साइंटफिक फार्मिंग के जरिये न सिर्फ अच्छा पैसा कमा रहे हैं, बल्कि दूसरों को भी रोजगार दे रहे हैं। यही नहीं, प्राइवेट और गवर्नमेंट दोनों सेक्टरों में एग्रीकल्चर का स्कोप तेजी से बढ़ रहा है। इसी का परिणाम है कि जयपुर के महर्षि चरक जैविक वन औषधिय पादप पार्क में आयोजित इस प्रशिक्षण शिविर में इंग्लैंड से फाइनेंस में एमबीए कर चुके भोपाल निवासी सुधांशु शर्मा, चैन्नई से आईआईटी पासआउट समीर, देहरादून से बी-टेक कर चुके इलाहाबाद निवासी सज्जल कुमार शुक्ला व नई दिल्ली से स्नातकोत्तर नीरज त्यागी जैसे युवा ऑर्गेनिक खेती की बारीकियां जानने पहुंचे हैं। Main Hu Kisan

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सारणी-1

लेमन ग्रास की खेती में आय-व्यय (प्रति हेक्टेयर)

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ÁÜ ÂýÕ´ÏÙ Üð×Ù »ýæâ ·Ô¤ çÜ° ÁÜ ·¤è ¥çÏ·¤ ×æ˜ææ ·¤è ¥æßàØ·¤Ìæ Ùãè´ ãôÌè ãñÐ ÕÚUâæÌ ×ð´ çâ´¿æ§ü ·¤è ¥æßàØ·¤Ìæ Ùãè´ ãôÌèÐ ÚUôÂæ§ü ·Ô¤ Âà¿æÌ Öêç× ×ð´ Ù×è ãôÙæ ÁM¤ÚUè ãñÐ »ç×üØô´ ×ð´ v® çÎÙô´ ·Ô¤ ¥´ÌÚUæÜ ÂÚU °ß´ âçÎüØô´ ×ð´ vz çÎÙô´ ·Ô¤ ¥´ÌÚU ÂÚU çâ´¿æ§ü ·¤ÚUÙè ¿æçã°Ð

ȤâÜ ¿·ý¤ Ùè´Õê ƒææâ Âæ´¿ ßáèüØ È¤âÜ ãñÐ °·¤ ÕæÚU Ü»æÙð ·Ô¤ ÕæÎ Âæ´¿ ßáü Ì·¤ ·¤ÅUæ§ü â×Ø-â×Ø ÂÚU ·¤è ÁæÌè ãñÐ ¥ÙéÂÁ檤 Öêç× ÂÚU ȤâÜ x âæÜ ·Ô¤ ÕæÎ ÕÎÜÙæ ¿æçã°Ð

ÕèÁ (y ç·¤Üô) ÙâüÚUè ·¤è ÌñØæÚUè, ÕèÁ ÕôÙæ ¹ðÌ ·Ô¤ ÁéÌæ§ü ÌÍæ €UØæÚUè ÕÙæÙæ ÚUâæØçÙ·¤ ¹æÎ »ôÕÚU ¹æÎ °ß´ ·ð´¤¿é¥æ´ ¹æÎ çÙÚUæ§ü-»éǸæ§ü çâ´¿æ§ü ÂõÏæ â´ÚUÿæ‡æ ·¤ÅUæ§ü °ß´ ÌðÜ ¥æâßÙ ¥‹Øæ‹Ø (ÂçÚUßãÙ ¥æçÎ) ·é¤Ü ÃØØ (L¤.)

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सारणी-2

आय (प्रथम वर्ष) प्रति हेक्टेयर

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द्वितीय वर्ष में पंचम वर्ष तक

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·¤ÅUæ§ü ȤâÜ Ü»æÙð ·Ô¤ ÕæÎ z ßáü Ì·¤ w.z-x.® ×ãèÙð ·Ô¤ ¥´ÌÚUæÜ ÂÚU ·¤ÅUæ§ü ·¤è ÁæÌè ãñÐ ÂýçÌ ßáü y-z ·¤ÅUæ§ü ·¤è Áæ â·¤Ìè ãñÐ ÂõÏô´ ·¤è ·¤ÅUæ§ü Öêç× âð v®-vz âð´ÅUè×èÅUÚU ª¤ÂÚU âð ·¤ÚUÙæ ¿æçã°Ð °·¤ ãð€UÅUðØÚU Öêç× âð y ·¤ÅUæ§üØô´ ×ð´ vz®-v}® ÜèÅUÚU ÌðÜ ÂýçÌ ßáü ÂýæŒÌ ç·¤Øæ Áæ â·¤Ìæ ãñ, Áô ¥æÙð ßæÜð ßáôZ ×ð´ ÕɸUÌæ ãñÐ

ÕèÁ â´»ýã Üð×Ù »ýæâ ×ð´ Ùß ÕÚU-çÎâ ÕÚU ×ð´ Èê¤Ü ç¹ÜÌð ãñ¢ ¥õÚU ÁÙßÚUè-ȤÚUßÚUè ×ð´ ÕèÁ §·¤Å÷UÆUæ ç·¤Øæ ÁæÌæ ãñÐ °·¤ ÂõÏð âð v®®-w®® »ýæ× ÕèÁ ÂýæŒÌ ãôÌð ãñ´Ð Main Hu Kisan

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मिश्रित खेती

किसानों के लिए एक वरदान

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फरवरी - 2018

Main Hu Kisan

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ç×çŸæÌ ¹ðÌè ÕÙæ× ¥´ÌÚUßÌèü ¹ðÌè ç×çŸæÌ ¹ðÌè âð ÂýæŒÌ §Ù ÁæÙ·¤æçÚUØô´ âð Ù§ü â´ÖæßÙæ¥ô´ ·¤æ ©ÎØ ãé¥æ ãñÐ ç×çŸæÌ ¹ðÌè ·Ô¤ßÜ ¥çâ´ç¿Ì ÿæð˜æô´ ·¤è ·ë¤çá ÂhçÌ Íè Áãæ´ ©â·¤æ °·¤×æ˜æ ©Î÷ÎðàØ È¤âÜ ·¤ô Âýæ·ë¤çÌ·¤ çßÖèçá·¤æ¥ô´ âð âéÚUÿææ ÂýÎæÙ ·¤ÚUÙæ ÍæÐ ßñ™ææçÙ·¤ô´ Ùð ç×çŸæÌ ¹ðÌè ·¤ô çâ´ç¿Ì ÿæð˜æô´ ×ð´ Öè çÙM¤çÂÌ


çÁâ·¤æ ÂýçÌ·ê¤Ü ÂýÖæß ·é¤À ȤâÜô´ ÂÚU ÂǸÌæ ãñÐ °ðâè ȤâÜô´ ·¤ô ·¤Öè Öè ç×çŸæÌ ¥Íßæ ¥‹ÌÚUßÌèü ȤâÜ ·Ô¤ M¤Â ×ð´ Ùãè´ Ü»æÙæ ¿æçã°Ð

ç×çŸæÌ, ¥‹ÌÚUßÌèü °ß´ â×æ‹ÌÚU ¹ðÌè ×ð´ ȤâÜô´ ·¤æ ¿éÙæß

ƒæÅUÌè ãé§ü ·ë¤çá Øô‚Ø Öêç× ¥õÚU ÕɸÌè ãé§ü ¥æÕæÎè ·¤ô ç¹ÜæÙð ·Ô¤ çÜ° Øã ¥ˆØæßàØ·¤ ãñ ç·¤ ÂýçÌ ãð€UÅUðØÚU ©ÂÁ Õɸæ§ü Áæ°Ð ç×çŸæÌ ¹ðÌè ©ÂÁ ÕɸæÙð ·¤æ °·¤ Âý×é¹ ×æŠØ× ãñÐ ©Ù ÿæð˜æô´ ×ð´ Áãæ´ ÚUôÁ»æÚU ·Ô¤ âæÏÙ ·¤× ãñ´, ßãæ´ ÂÚU §â·¤ô ¥ÂÙæÙð âð Üô»ô´ ·¤ô ÚUôÁ»æÚU ¥çÏ·¤ ç×ÜÌæ ãñ, ¥õÚU ÂýçÌ ÃØç€Ì ¥æØ ×ð´ Öè ßëçh ãôÌè ãñÐ ç×çŸæÌ, ¥‹ÌÚUßÌèü °ß´ â×æÙæ‹ÌÚU ¹ðÌè ×ð´ çâ´ç¿Ì °ß´ ¥çâ´ç¿Ì ¥ßSÍæ ×ð´ Ü»æ§ü ÁæÙð ßæÜè ȤâÜô´ ·¤è °·¤ ÌæçÜ·¤æ Ùè¿ð Îè Áæ ÚUãè ãñ Áô ç·¤âæÙô´ ·Ô¤ çÜ° ©ÂØô»è °ß´ ÜæÖÂýÎ çâh ãô»èÐ ç·¤ØæÐ Øã ÂæØæ »Øæ ç·¤ ÕãéÌ âæÚUè ȤâÜô´ ·¤è Âýßëçžæ °ðâè ãñ ç·¤ ØçÎ ©‹ã𴠥ܻ-¥Ü» àæéh ȤâÜ ·Ô¤ M¤Â ×ð´ Ü»æØæ Áæ° ÌÍæ °·¤ ¹ðÌ ×ð´ ©‹ãð´ âãØô»è ȤâÜô´ ·Ô¤ M¤Â ×ð´ Ü»æØæ Áæ° Ìô âãØô»è ȤâÜ ·ý¤× ·¤ô ¥çÏ·¤ ÜæÖ ÂýæŒÌ ãôÌæ ãñÐ §â ¥Ùéâ´ÏæÙ ·Ô¤ ÕæÎ ¥´ÌÚUßÌèü ¹ðÌè ×æ˜æ °·¤ âéÚUÿææ ·¤æ âæÏÙ Ù ÚUã·¤ÚU ©ÂÁ °ß´ ¥æØ ÕɸæÙð ·¤è °·¤ âÿæ× çßçÏ ÕÙ »§ü ãñÐ ÁÕ ©Î÷ÎðàØ ÕÎÜð Ìô ÂçÚUÖæáæ°´ Öè ÕÎÜèÐ ç×çŸæÌ ¹ðÌè °·¤ ãè ¹ðÌ ¥õÚU °·¤ ãè ×õâ× ×ð´ Îô Øæ Îô âð ¥çÏ·¤ ȤâÜô´ ·¤ô âæÍâæÍ ç·¤âè çÙçà¿Ì ·¤ÌæÚU ·Ô¤ çÕÙæ Ü»æÙð ·¤è ÂhçÌ ÍèÐ §â·Ô¤ çßÂÚUèÌ ¥‹ÌÚUßÌèü ȤâÜ Âý‡ææÜè çÁâ·¤æ ©Î÷ÎðàØ ©ÂÁ °ß´ ¥æØ ×ð´ ßëçh ·¤ÚUÙæ ãñ, ·¤ô °·¤ ãè ¹ðÌ ¥õÚU °·¤ ãè ×õâ× ×ð´ Îô Øæ Îô âð ¥çÏ·¤ ȤâÜô´ ·¤ô âæÍ-âæÍ ç·¤âè çÙçà¿Ì ·¤ÌæÚU ·ý¤× ×ð´ Ü»æ° ÁæÙð ·¤è ÂçÚUÖæáæ Îè »§üÐ Øã ¥‹ÌÚUßÌèü ȤâÜ Âý‡ææÜè çâ´ç¿Ì ¥Íßæ ¥çâ´ç¿Ì ÎôÙô´ ÂçÚUçSÍçÌØô´ ×ð´ Ü»æ§ü Áæ â·¤Ìè ãñÐ §â çßçÏ ×ð´ ȤâÜô´ ·Ô¤ Õè¿ âÖè âæÏÙô´ ÁñâðÖêç× ÿæð˜æ, ÁÜ, Âôá·¤ ̈ßô´ ¥õÚU âêØü ·¤è ÚUôàæÙè ·Ô¤ çÜ° ·¤× âð ·¤× ÂýçÌSÂÏæü ãô, §â·¤æ ØæÜ ÚU¹æ ÁæÌæ ãñÐ

¥´ÌÚUßÌèü ¹ðÌè ÕÙæ× â×æÙæ‹ÌÚU ¹ðÌè ç×çŸæÌ ¹ðÌè ãô ¥Íßæ ¥‹ÌÚUßÌèü ȤâÜ Âý‡ææÜè, ÎôÙô´ ãè ÂçÚUçSÍçÌØô´ ×ð´ ȤâÜô´ ·¤æ ¿éÙæß Âê‡æüM¤Âð‡æ °·¤ ßñ™ææçÙ·¤ Âýç·ý¤Øæ ãñÐ ØçÎ Îô ȤâÜð´ °·¤-ÎêâÚUð ·¤ô ÜæÖ Âãé´¿æ â·¤Ìè ãñ´ Ìô ·¤Öè-·¤Öè ©Ù·Ô¤ °·¤ âæÍ ãôÙð ·Ô¤ ·¤æÚU‡æ ãæçÙØæ´ Öè ãôÌè ãñ´Ð ·é¤À ȤâÜô´ ·¤è ÁǸô´ â𠥋ÌÑdæß ãôÌæ ãñ

ç×çŸæÌ ¹ðÌè, ¥‹ÌÚUßÌèü ¹ðÌè °ß´ â×æÙæ‹ÌÚU ¹ðÌè ç·¤âæÙô´ ·Ô¤ çÜ° ¥ˆØ´Ì ãè ÜæÖÂýÎ ·ë¤çá Âý‡ææçÜØæ´ ãñ´Ð ÂÚU‹Ìé §Ù ÂhçÌØô´ ·Ô¤ çÜ° ȤâÜô´ °ß´ ç·¤S×ô´ ·¤æ ¿éÙæß ÌÍæ ©Ù·¤è ¹ðÌè ·¤è Âñ·Ô¤Á Âý‡ææÜè ·¤ô ¥ˆØ´Ì âæßÏæÙèÂêßü·¤ ¥ÂÙæØæ ÁæÙæ ¿æçã° Ìæç·¤ ç·¤S×ô´ ·¤æ ¥çÏ·¤æçÏ·¤ ÜæÖ ÂýæŒÌ ãôÐ ØÍæ â´Öß âŽÁè °ß´ ×âæÜô´ ·¤è ȤâÜô´ ·¤ô Öè §â ȤâÜ Âý‡ææÜè ×ð´ âç ×çÜÌ ç·¤Øæ Áæ â·¤Ìæ ãñ €UØô´ç·¤ ÕãéÌ âæÚUè âçŽÁØæ´ °ß´ ×âæÜæ ȤâÜð´ ·¤æÈ¤è ·¤× çÎÙô´ ×ð´ ÌñØæÚU ãôÌè ãñ´, ÀæØæ ·¤ô âãÙ ·¤ÚU â·¤Ìè ãñ´ ÌÍæ Øð ¥Âðÿææ·ë¤Ì ¥çÏ·¤ àæéh ÜæÖ ÎðÌè ãñ´Ð ƒæÅUÌè ãé§ü ·ë¤çá Øô‚Ø Öêç× ¥õÚU ÕɸÌè ãé§ü ¥æÕæÎè ·¤ô ç¹ÜæÙð ·Ô¤ çÜ° Øã ¥ˆØæßàØ·¤ ãñ ç·¤ ÂýçÌ ãð€UÅUðØÚU ©ÂÁ Õɸæ§ü Áæ°Ð ç×çŸæÌ ¹ðÌè ©ÂÁ ÕɸæÙð ·¤æ °·¤ Âý×é¹ ×æŠØ× ãñÐ ©Ù ÿæð˜æô´ ×ð´ Áãæ´ ÚUôÁ»æÚU ·Ô¤ âæÏÙ ·¤× ãñ´, ßãæ´ ÂÚU §â·¤ô ¥ÂÙæÙð âð Üô»ô´ ·¤ô ÚUôÁ»æÚU ¥çÏ·¤ ç×ÜÌæ ãñ, ¥õÚU ÂýçÌ ÃØç€Ì ¥æØ ×ð´ Öè ßëçh ãôÌè ãñÐ ç×çŸæÌ, ¥‹ÌÚUßÌèü °ß´ â×æÙæ‹ÌÚU ¹ðÌè ×ð´ çâ´ç¿Ì °ß´ ¥çâ´ç¿Ì ¥ßSÍæ ×ð´ Ü»æ§ü ÁæÙð ßæÜè ȤâÜô´ ·¤è °·¤ ÌæçÜ·¤æ Ùè¿ð Îè Áæ ÚUãè ãñ Áô ç·¤âæÙô´ ·Ô¤ çÜ° ©ÂØô»è °ß´ ÜæÖÂýÎ çâh ãô»èÐ

çâ´ç¿Ì ÿæð˜æ ·Ô¤ çÜ° ç×çŸæÌ È¤âÜ Âý‡ææÜè @ ÚUÕè ×€·¤æ+¥æÜê, ¥æÜê+Õæ·¤Üæ, ÚUÕè ×€·¤æ+ÚUæÁ×æ (×ñÎæÙè ÿæð˜æô´ ·Ô¤ çÜ°) ÚUÕè ×€·¤æ+ÏçÙØæ (ãÚUè ÂçžæØô´ ·Ô¤ çÜ°)

àæÚUη¤æÜèÙ @ »óææ+ç׿ü, »óææ+ ÏçÙØæ, »óææ+×»ÚUñÜæ, »óææ+ ÜãâéÙ, »óææ+ ¥æÜê, »óææ+»ðãê´, »óææ+¥Áßæ§Ù, »óææ+×âêÚU

Õâ‹Ì ·¤æÜèÙ @ »óææ+çÖ‡Çè, »óææ+×ê´», »óææ+©Ç¸Î, ŒØæÁ+¥Áßæ§Ù, ŒØæÁ+çÖ‡Çè, ŒØæÁ+ç׿ü, âæñ´È¤+ç׿üÐ

¥çâ´ç¿Ì ÿæð˜æ ·Ô¤ çÜ° ç×çŸæÌ È¤âÜ Âý‡ææÜè @ ¥ÙæÁ ÌÍæ ÎÜãÙè ȤâÜô´ ·¤æ çןæ‡æ ¥çÏ·¤ ©ÂØô»è ãôÌæ ãñ ÌÍæ ç×Å÷UÅUè ·¤è ©ßüÚUæàæç€Ì Öè ÕÙè ÚUãÌè ãñÐ @ ÕæÁÚUæ+×êê´», ÕæÁÚUæ+¥ÚUãÚU, ×€·¤æ+©Ç¸Î, »ðãê´+¿Ùæ, Áõ+¿Ùæ, Áõ+×ÅUÚU, ’ßæÚU+¥ÚUãÚU °ß´ »ðãê´+×ÅUÚUÐ

¥ÙæÁ ·¤è ȤâÜô´ ·¤æ çÌÜãÙè ȤâÜô´ ·Ô¤ âæÍ çןæ‡æ @ »ðãê´+âÚUâô´, Áõ+ âÚUâô´, »ðãê´+¥Üâè, Áõ+¥Üâè @ ÎÜãÙè ȤâÜô´ ·¤è ÎÜãÙè ÌÍæ çÌÜãÙè ȤâÜô´ ·Ô¤ âæÍ çןæ‡æ @ ¥ÚUãÚU+×ê´», ¥ÚUãÚU+©Ç¸Î, ¥ÚUãÚU+×괻ȤÜè ¿Ùæ+¥Üâè, ¿Ùæ+ âÚUâô´, ×ÅUÚU+âÚUâô´, ×ÅUÚU+ ·¤éâé×

Îô âð ¥çÏ·¤ ȤâÜô´ ·¤æ çןæ‡æ @ ’ßæÚU+¥ÚUãÚU+×ê´», ÕæÁÚUæ+¥ÚUãÚU+×ê´», ’ßæÚU+¥UÚUãÚU+©Ç¸Î, Áõ+×ÅUÚ U+âÚUâô´, ¿Ùæ+âÚUâô´+¥Üâè, ¿Ùæ+¥Üâè+·¤éâé×, »ðãê´+¿Ùæ+âÚUâô´ Main Hu Kisan

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SßæS‰ØßÏü·¤

अश्वगंधा की उन्नत खेती अ

àß»´Ïæ Øæ ¥â»´Î °·¤ âèÏæ ÕɸÙð ßæÜæ, àææ¹æ¥ô´ ßæÜæ ÀôÅUæ ÂõÏæ ãñ, çÁâ·¤è âæ×æ‹Ø Ü´Õæ§ü v.y âð v.z ×èÅUÚU Ì·¤ ãôÌè ãñÐ Øã ÂõÏæ ©Âôc‡æ·¤çÅUÕ´ÏèØ ¥õÚU âê¹ð ÿæð˜æô´ ×ð´ ¥‘Àè ÌÚUã ÕɸÌæ ãñÐ ¥àß»´Ïæ °·¤ ·¤ÆôÚU ¥õÚU âê¹æ ÕÎæüàÌ ·¤ÚUÙð ßæÜæ ÂõÏæ ãñÐ ¥àß»´Ïæ §´çÇØÙ çÁÙâðÙ Øæ ÁãÚUèÜæ ·¤ÚUõ´Îæ/Œßæò§ÁÙ »éÁÕðÚUè Øæ çß´ÅUÚU ¿ðÚUè ¥õÚU ÖæÚUÌ ·Ô¤ ©žæÚU-Âçà¿×è ¥õÚU ×ŠØ çãSâð ×ð´ ©ÂÁÙð ßæÜð Îðâè Îßæ§ü ·Ô¤ ÂõÏð ·Ô¤ ÌõÚU ÂÚU Öè ÁæÙæ ÁæÌæ ãñÐ ¥àß»´Ïæ ÁǸè-ÕêÅUè Øæ ¥õáçÏ ÕãéÌ ×ãˆßÂê‡æü ¥õÚU Âýæ¿èÙ ãñ çÁâ·¤è ÁǸô´ ·¤æ §SÌð×æÜ ÖæÚUÌèØ ÂæÚU´ÂçÚU·¤ ç¿ç·¤ˆâæ Âý‡ææÜè Áñâð ¥æØéüßðÎ ¥õÚU ØêÙæÙè ×ð´ Îßæ¥ô´ ·Ô¤ M¤Â ×ð´ ç·¤Øæ ÁæÌæ ÚUãæ ãñÐ ¥àß»´Ïæ ¥õáçÏ âôÜðÙçâØæ ÂçÚUßæÚU ¥õÚU çßÍæçÙØæ ÂýÁæçÌ ·¤æ ãôÌæ ãñ ¥õÚU §â·¤æ¤ßñ™ææçÙ·¤ Ùæ× çßÍçÙØæ âæð×æçÙÈð¤ÚUæ ãñUÐ ¥àß»¢Šææ ·¤è ÂçžæØæ¢ ãUË·¤è ãUÚUè, ¥¢ÇUæ·¤æÚU, âæ×æ‹Ø ÌæñÚU ÂÚU 10 âð 12 âð×è Ü¢Õè ãUæðÌè ãñ´UÐ âæ×æ‹ØÌæñÚU ÂÚU §â·ð¤ Èê¤Ü ÀUæðÅðU, ãUÚÔU ¥æñÚU ƒæ¢ÅðU ·ð¤ ¥æ·¤æÚU ·ð¤ ãUæðÌð ãñ´UÐ ¥æ×ÌæñÚU ÂÚU ·¤æ ãéU¥æ È¤Ü ÙæÚ¢U»è ¥æñÚU ÜæÜæ Ú¢U» ·¤æ ãUæðÌæ ãñÐ ¥àß»¢Šææ ·¤è ÃØæßâæçØ·¤ ¹ðÌè ×ð´ ¹ðÌè ÂýÕ¢ŠæÙ ¥æñÚU ©UÂØé€Ì ÕæÁæÚU ×æòÇUÜ ÕÙæ·¤ÚU ¥‘ÀUè ·¤×æ§ü ·¤ÚU â·¤Ìð ãñ´UÐ ¥àß»¢Šææ ·¤è ÂæñŠæð ·¤è ÁÇU¸ ¥æñÚU žæè ·ð¤ ÕèÁ ·¤æ §SÌð×æÜ ç·¤Øæ ÁæÌæ ãñUÐ

जड़ी-बूटी या औषधी अति महत्वपूर्ण âæ×æ‹Ø Ùæ× ¥â»¢Šæ, Ùæ»æñÚUè ¥â»¢Šæ, ÂéÙèÚU, çߢÅUÚU ¿ðÚUè, Œßæò§ÁÙ »éÇUÕðÚUè ¥æñÚU §¢çÇUØÙ çÁÙâð´»Ð

ÖæÚUÌ ×ð´ ÕǸð ©UˆÂæη¤ ÚUæ’Ø §â ȤâÜ ·ð¤ ×é Ø ©UˆÂæη¤ ÚUæ’Ø ×ŠØ ÂýÎðàæ, »éÁÚUæÌ, ãUçÚUØæ‡ææ, ×ãUæÚUæcÅþU, ¢ÁæÕ, ÚUæÁSÍæÙ ¥æñÚU ©UžæÚU ÂýÎðàæ ãñUÐ

ÖæÚUÌ ×ð´ SÍæÙèØ Ùæ× ¥àß»¢Šææ, ¥â»¢Šæ, ¥Á»¢Šææ, Ùæ»æñÚUè ¥â»¢Šæ, çã¢UÎè ×ð´ ÚUâÖÚUè, ¥×逷¤æ, ¥âéÚU滋Šæè (Ìç×Ü), ¥×逷é¤ÚU×, ç˜æÌæßé, ¥Øæ×ôη¤× (×ÜØæÜ×), ÏéŒÂæ (Õ´»æÜè), ·Ô¤ÚUæ×ægèÙæ»aè, ·¤´¿é·¤è (·¤óæǸ), ¥æS·¤Ù´Îæ, ÇôÚU»é´Á, ƒæôǸæ, çÌ„è (×ÚUæÆè), ¥âôÎ, ƒæôÇ¸æ ¥ãæÙ, ƒæôÇ¸æ ¥·¤æÙ, ¥âéÙ, ¥â×, ƒæôǸæâôÇæ (»éÁÚUæÌè), ÂðóæðM¤, ßæÁè»´Ïæ ¥ãæÙ (ÌðÜé»é)Ð

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सामान्य तौर पर इसके फूल छोटे, हरे और घंटे के आकार के होते हैं। आमतोर पर पका हुआ फल नारंगी और लाल रंग का होता है। अश्वगंधा की व्यावसायिक खेती में खेती प्रबंधन और उपयुक्त बाजार मॉडल बनाकर अच्छी कमाई कर सकते हैं। अश्वगंधा की पोधे की जड़ और पत्ती के बीज का इस्तेमाल किया जाता है। ç·¤S×ð´ ÒÁßæãÚUÓ Áô ç·¤ â´ÚU¿Ùæ ×ð´ ÀôÅUð ¥õÚU ·¤æȤè Ü¿èÜð ãôÌð ãñ´ ©‘¿ ƒæÙˆß ßæÜð ÂõÏæÚUôÂÙ ·Ô¤ çÜ° ãñ´Ð âê¹è ÁǸô´ ×ð´ çßÎðÙôÜæ§Ç ·¤è ·é¤Ü ×æ˜ææ ®.x® ȤèâÎè ãôÌè ãñ çÁââð Øã ç·¤S× Àã ×ãèÙð ×ð´ ÂñÎæßæÚU ÎðÌè ãñÐ

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SßæS‰ØßÏü·¤

मानसून की शुरुआत से पहले ही बीज लगा देना चाहिए और बालू का इस्तेमाल करते हुए हल्के ढंग से ढंक देना चाहिए। सामान्यतौर पर छह से सात दिन में अंकुरन हो जाता है। करीब 35 से 40 दिन पुराने पौधे को मुख्य खेत में रोपा या लगाया जा सकता है।

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¹ðÌè ×ð´ Åþæ´âŒÜæç‹ÅU´» Øæ ¥æÚUôÂÙ ç×Å÷UÅUè ×ð´ ¹æÎ ·¤ô ç×ÜæÙð ·Ô¤ ÕæÎ çÚUÁ ·¤ô z® âð {® âð.×è. ·¤è ÎêÚUè ·¤æ ŠØæÙ ÚU¹Ìð ãé° ÌñØæÚUè ·¤ÚUÙè ¿æçã°Ð xz âð y® çÎÙ ÂéÚUæÙæ SßSÍ ÂõÏð ·¤ô x® âð.×è. ·¤è ÎêÚUè ÂÚU Ü»æÙæ ¿æçã°Ð °·¤ °·¤Ç¸ ×ð´ ·¤ÚUèÕ zz ãÁæÚU ÂõÏæÚUôÂÙ ·Ô¤ çÜ° {® âð.×è. »éÙæ x® âð.×è. ÎêÚUè ÚU¹è ÁæÙè ¿æçã°Ð

¹ðÌè ×ð´ ÕèÁ ÂýÕ´ÏÙ ¿ê´ç·¤ ÂõÏð ×ð´ ÕèÁ Áñâè ãè Õè×æÚUè ãôÙð ·¤è ¥æàæ´·¤æ ãôÌè ãñ, °ðâð ×ð´ Õé¥æ§ü âð ÂãÜð ÙâüÚUè ÕðÇ ×ð´ Øæ ×ñÎæÙ ×ð´ §â·¤æ §ÜæÁ ç·¤Øæ ÁæÙæ ¿æçã°Ð ÕèÁ ·¤æ §ÜæÁ ÂýçÌ ç·¤Üô ÕèÁ ×ð´ ÌèÙ »ýæ× çÍÚU× âð ç·¤Øæ ÁæÙæ ¿æçã°Ð

ÕèÁ ÎÚU ¥õÚU ÚUôÂæ§ü ·¤æ ÌÚUè·¤æ âæ×æ‹ØÌõÚU ÂÚU ÕýæòÇ·¤æçSÅU´» Øæ çÀǸ·¤æß ÂhçÌ ×ð´ ÂýçÌ ãð€UÅUðØÚU vw ç·¤Üô ÕèÁ ·¤è ÁM¤ÚUÌ ÂǸÌè ãñÐ Üæ§Ù âð Üæ§Ù ÂhçÌ ÁǸ ·¤è ÂñÎæßæÚU ÕɸæÙð ×ð´ ÕðãÎ âãæØ·¤ ãñ ¥õÚU ¥´ÌÚUâæ´S·¤ëçÌ·¤ ·¤æÚUüßæ§ü ·¤ô ¥æâæÙè âð ÂêÚUæ ·¤ÚUÙð ×ð´ ×ÎÎ ·¤ÚUÌè ãñÐ ÕèÁ ·¤ô ·¤ÚUèÕ °·¤ âð Üð·¤ÚU ÌèÙ âð.×è. ·¤è »ãÚUæ§ü Ì·¤ ÚUôÂæ ÁæÙæ ¿æçã°Ð ÎôÙô´ ãè ÂhçÌ ×ð´ ÕèÁ ·¤ô ãË·¤è ç×Å÷UÅUè âð É´·¤ ÎðÙæ ¿æçã°Ð Üæ§Ù âð Üæ§Ù ·Ô¤ Õè¿ ·¤è ÎêÚUè w® âð wz âð.×è. ¥õÚU ÂõÏð âð ÂõÏð ·Ô¤ Õè¿ ·¤è ÎêÚUè } âð v® âð.×è. ÚU¹è ÁæÙè ¿æçã°Ð ÂõÏô´ ·Ô¤ Õè¿ ·¤è ÎêÚUè ç×Å÷UÅUè ·¤è ª¤ßüÚUÌæ ¥õÚU ©â·¤è ç·¤S× ÂÚU çÙÖüÚU ·¤ÚUÌè ãñÐ

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çâ´¿æ§ü ·¤è âéçßÏæ ¥àß»´Ïæ ·¤è ȤâÜ ’ØæÎæ ÕæçÚUàæ ¥õÚU ÂæÙè Á×Ùð ·¤ô ÕÎæüàÌ Ùãè´ ·¤ÚU ÂæÌè ãñÐ ÂõÏæÚUôÂÙ ·Ô¤ ÎõÚUæÙ ãË·¤è çâ´¿æ§ü âð ç×Å÷UÅUè ×ð´ ÂõÏæ ¥‘Àè ÌÚUã âð ÕñÆ ÁæÌæ ãñÐ ÁǸ ·¤è ¥‘Àè ÕÉ¸Ì ·Ô¤ çÜ° } âð v® çÎÙ ·Ô¤ ¥´ÌÚUæÜ ÂÚU çâ´¿æ§ü ·¤ÚUÌð ÚUãÙæ ¿æçã°Ð

¹ÚU-ÂÌßæÚU çÙØ´˜æ‡æ çÀǸ·¤æß ÂhçÌ Øæ €UØæÚUè ×ð´ Üæ§Ù ÂhçÌ ×ð´ ÂõÏæÚUôÂÙ ·Ô¤ x® çÎÙ ·Ô¤ ÕæÎ É´·¤è ãé§ü ç×Å÷UÅUè ·¤ô ãæÍ âð ãÅUæ ÎðÙæ ¿æçã°Ð §ââð ÂýçÌ ß»ü ×èÅUÚ U×ð´ ¥àß»´Ïæ ·¤æ ÂõÏæ x® âð {® ãô ÁæÌæ ãñÐ ÂõÏð ·¤æ ƒæÙˆß ç×Å÷UÅUè ·Ô¤ SßÖæß ¥õÚU ©â·¤è ª¤ßüÚUÌæ ÂÚU çÙÖüÚU ·¤ÚUÌæ ãñÐ àæéL¤¥æÌè ¿ÚU‡æ ×ð´ ãè ¹ÚU-ÂÌßæÚU ·¤ô ãÅUæÙð âð ¥àß»´Ïæ ·¤æ ÂõÏæ ¥‘Àè ÌÚUã âð ÕɸÌæ ãñÐ âæ×æ‹ØÌõÚU ÂÚU Îô ÕæÚU ¹ÚU-ÂÌßæÚU çÙ·¤æÜÙð âð ¹ÚU-ÂÌßæÚU ÎêÚU ÚUãÌæ ãñÐ Øð ·¤æ× ÂãÜè ÕæÚU Õé¥æ§ü ·Ô¤ wv âð wz çÎÙ ·Ô¤ ÖèÌÚU ·¤ÚUÙæ ¿æçã°, ¥õÚU ÎêâÚUè ÕæÚU ÂãÜè ÕæÚU ¹ÚU-ÂÌßæÚU çÙ·¤æÜÙð ·Ô¤ wv âð wz çÎÙô´ ·Ô¤ ÕæÎ ·¤ÚUÙæ ¿æçã°Ð

ãæçÙ·¤æÚU·¤ Áèß ¥õÚU Õè×æçÚUØæ´ °çȤÇ÷â, ×æ§ÅU÷â (ƒæéÙ) ¥õÚU ·¤èÅUô´ ·¤æ ã×Üæ, ÂõÏð ·¤æ âǸ ÁæÙæ ¥õÚU ÂæÜæ Ü»ÙæÐ ãæÜæ´ç·¤ §â ȤâÜ ×ð´ ·¤ô§ü ãæçÙ·¤æÚU·¤ ·¤èÅU Ùãè´ ÂæØæ ÁæÌæ ãñÐ §â ÌÚUã ·¤è ƒæÅUÙæ¥ô´ ·¤ô ÚUô·¤Ùð ·Ô¤ çÜ° ÕèÁæÚUôÂÙ âð ÂãÜð ÕèÁ ·¤æ §ÜæÁ ¥õÚU Õè×æÚUè ×é€Ì ÕèÁ ·¤æ ¿ØÙ ç·¤Øæ ÁæÙæ ¿æçã°Ð Õè×æÚUè ·¤ô ÚUô·¤Ùð ·Ô¤ çÜ° Ùè×, ç¿˜æ ·¤×êÜ, ÏÌêÚUæ, »æØ ·¤æ ÂðàææÕ ¥æçÎ âð ç×Üæ·¤ÚU ÕæØô-ÂðçSÅUâæ§Ç ÌñØæÚU ·¤ÚUÙæ ¿æçã°Ð §â·Ô¤ ¥Üæßæ ȤâÜ ¿·ý¤ ¥ÂÙæ·¤ÚU ¥õÚU ç×Å÷UÅUè âð ©ç¿Ì ÂæÙè çÙ·¤æâè ·¤è ÃØßSÍæ ·¤ÚU §â Õè×æÚUè ·Ô¤ ÂýÖæß ·¤ô ·¤× ç·¤Øæ Áæ â·¤Ìæ ãñÐ

ȤâÜ ·¤ÅUæ§ü ·¤æ â×Ø âê¹è ÂçžæØæ´ ¥õÚU ÜæÜ-ÙæÚU´»è ÕðÚU §â·Ô¤ ÂçÚUÂ€ß ãôÙð ·¤æ â´·Ô¤Ì ÎðÌð ãñ´Ð ÚUôÂæ§ü ·Ô¤ v{® âð v}® çÎÙô´ ·Ô¤ ÕæÎ ¥àß»´Ïæ ·¤è ȤâÜ ÌñØæÚU ãô ÁæÌè ãñÐ ÂêÚUð ÂõÏð ·¤ô ÁǸ â×ðÌ çÙ·¤æÜ çÜØæ ÁæÌæ ãñ, ©â·Ô¤ ÕæÎ ©ÂÚUè çãSâð ·¤ô ÌÙæ ·Ô¤ àæèáü Öæ» âð (°·¤ âð Îô âð.×è. ·ý¤æ©Ù ØæÙè àæèáü Öæ» â𠪤ÂÚU) ·¤æÅU·¤ÚU ¥Ü» ·¤ÚU çÎØæ ÁæÌæ ãñÐ ©â·Ô¤ ÕæÎ } âð v® âð.×è. ·Ô¤ ÀôÅUð ÅU鷤Ǹð ×ð´ ·¤æÅU·¤ÚU âê¹Ùð ·Ô¤ çÜØð ÇæÜ çÎØæ ÁæÌæ ãñÐ

¥àß»´Šææ ·¤æ ÕæÁæÚU ¥àß»´Šææ ·Ô¤ ÕæÁæÚU ·Ô¤ çÜ° ×ŠØ ÂýÎðàæ ·¤æ Ùè׿ ¥õÚU ×´ÎâõÚU ÂêÚUè ÎéçÙØæ ×ð´ ×àæãêÚU ãñÐ Îðàæ âð ¥æØæÌ·¤, ¹ÚUèÎæÚU, ÂýôâðâÚU, ÂæÚU´ÂçÚU·¤ ÃØæÂæÚUè, ¥æØéßðüçη¤ çßàæðá™æ ãUÚU âæÜ Øãæ´ ¥æÌð ãñ´ ¥õÚU ¥àß»´Ïæ ·¤è ÁǸ ¹ÚUèη¤ÚU Üð ÁæÌð ãñ´Ð ÕǸð Âñ×æÙð ÂÚU ©ˆÂæÎÙ ·¤ÚUÙð âð ÂãÜð, ÕæÁæÚU ·¤ô ¹ôÁÙæ ¥õÚU ©â·¤è SÍæÂÙæ ·¤ÚUÙæ ãñÐ ãÕüÜ, ¥æØéßðüçη¤ ·¤´ÂçÙØô´ âð â´Â·¤ü ·¤ÚUÙæ ÕðãÌÚU çß·¤Ë ãñÐ

¥àß»´Ïæ ·¤æ ¥ÍüàææS˜æ :¥Ùé×æçÙÌ Üæ»Ì ¥õÚU ×éÙæȤæ

@ °·¤ ãð€UÅUðØÚU ÂõÏæÚUô‡æ ÂÚU z{®® L¤ÂØð ¥Ùé×æçÙÌ ¹¿ü (¥ÂÙèÁ×èÙ ãôÙð ·¤è çSÍçÌ ×ð´) @ °·¤ ãð€UÅUØðÚU ×ð´ ÂõÏæÚUôÂÙ âð x® ãÁæÚU L¤ÂØð ·¤æ ×éÙæȤæ-ֻܻ ·é¤Ü ¥æ×ÎÙè wy ãÁæÚU L¤ÂØð ÙôÅU Ñ ª¤ÂÚU çÜç¹Ì ¹¿ü çÙçpÌ Ùãè´ ãñ´ ¥õÚU ×õÁêÎæ ÕæÁæÚU ·¤è ×ÁÎêÚUè ÎÚU ¥õÚU ȤâÜ ×ð´§SÌð×æÜ ç·¤Øð »Øð âæ×æÙ ·¤è ·¤è×Ì ÂÚU çÙÖüÚU ·¤ÚUð»æÐ

सवास्थय संबंधी फायदे

@ ÂýçÌÚUÿææ Ì¢˜æ ·¤æð ×ÁÕêÌ ·¤ÚUÌæ ãñU @ ·¤æðÜðSÅþUæòÜ ·¤è ×æ˜ææ ·¤æð ·¤× ·¤ÚUÌæ ãñU @ ŽÜÇU àæé»ÚU ÜðßÜ ·¤æð çÙØç×Ì ·¤ÚUÌæ ãñU @ NÎØ Øæ çÎÜ ·ð¤ çÜ° ¥‘ÀUæ @ ·¤ôÜðÁÙ ·¤ô ÕɸæÌæ ãñ ¥õÚU ƒææß ·¤ô ÁËÎ Æè·¤ ·¤ÚUÌæãñ @ ¥ßâæÎ, ÌÙæß ¥õÚU ç¿´Ìæ ·¤ô ƒæÅUæÌæ ãñ @ ¥âæ×æ‹Ø M¤Â âð çÙçc·ý¤Ø ÍæØÚUæòØÇ ·¤ô Á»æÌæ ãñ @ ×æ´âÂðàæè ·¤è ×æ˜ææ ¥õÚU Ìæ·¤Ì ·¤ô ÕɸæÙð ßæÜæ @ âêÁÙ ¥õÚU ÎÎü ·¤ô ƒæÅUæÌæ ãñ @ ØæÎÎæàÌ ¥õÚU ™ææÙ â´Õ´Ïè ÿæ×Ìæ ·¤ô Õɸæßæ ÎðÌæ ãñ @ ÂéL¤á ¥õÚU S˜æè ÎôÙô´ ×ð´ SßSÍ ÂýÁÙÙ ÿæ×Ìæ ·¤ô Õɸæßæ ÎðÌæ ãñ @ ª¤Áæü SÌÚU ¥õÚU ©ˆâæã ·¤ô ÕɸæÌæ ãñ @ ÁôǸô´ ¥õÚU ¥æ´¹ ·Ô¤ SßæS‰Ø ·Ô¤ çÜ° ¥‘Àæ @ ·é¤ÀU ÌÚUãU ·ð¤ ·ñ¤¢âÚU ·ð¤ ©Užæ·¤æð´ ·¤æð ÕɸUÙð âð ÚUæð·¤Ìæ ãñ

¥àß»´Šææ ·¤è ÂñÎæßæÚU ȤâÜ ·¤è ÂñÎæßæÚU ç×Å÷UÅUè ·¤è ª¤ßüÚUÌæ, çâ´¿æ§ü ¥õÚU ¹ðÌ ÂýÕ´ÏÙ ·Ô¤ ÌõÚUÌÚUè·¤ô´ â×ðÌ ·¤§ü ̈ßô´ ÂÚU çÙÖüÚU ·¤ÚUÌæ ãñÐ °·¤ ¥õâÌ ·Ô¤ çãâæÕ ·Ô¤ ÂýçÌ °·¤Ç¸ Á×èÙ âð ·¤ÚUèÕ yz® ç·¤Üô»ýæ× ÁǸ𴠥õÚU z® ç·¤Üô»ýæ× ÕèÁ ãæçâÜ ç·¤Øæ Áæ â·¤Ìæ ãñÐ Main Hu Kisan

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ÕðÕè ·¤æòÙü ·¤è ¹ðÌè âð ÜæÖ @ ȤâÜ çßçßçÏ·¤ÚU‡æÐ @ ç·¤âæÙ Öæ§Øô´, »ýæ×è‡æ ×çãÜæ¥ô´ °ß´ ÙßØéß·¤ô´ ·¤ô ÚUôÁ»æÚU ·Ô¤ ¥ßâÚ UÂýÎæÙ ·¤ÚUÙæÐ @ ¥Ë ¥ßçÏ ×ð´ ¥çÏ·¤Ì× ÜæÖ ·¤×æÙæÐ @ çÙØæüÌ mæÚUæ çßÎðàæè ×éÎýæ ·¤æ ¥ÁüÙ ÌÍæ ÃØæÂæÚU ×ð´ ÕɸæßæÐ @ ÂàæéÂæÜÙ ·¤ô Õɸæßæ ÎðÙæÐ @ ×æÙß ¥æãæÚU â´âæÏÙ ©Ulæð» (Èêê¤Ç Âýôâðçâ´» §´ÇSÅþè) ·¤ô Õɸæßæ ÎðÙæÐ @ âSØ ¥‹ÌÚUæÜ (§´ÅU·ý¤æðüç´») mæÚUæ ¥çÏ·¤ ¥æØ ¥çÁüÌ ·¤ÚUÙæÐ

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अधिक लाभ के लिए

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ÕðÕè ·¤æòÙü ·¤è ©ˆÂæÎÙ Ì·¤Ùè·¤ ·é¤À çßçÖ‹‹æÌæ ·Ô¤ ¥Üæßæ âæ×æ‹Ø ×€·¤æ ·¤è ãè ÌÚUã ãñÐ Øð çßçÖ‹‹æÌæ°´ çÙ ÙçÜç¹Ì ãñ´ — @ ¥»ðÌè ÂçÚU€ßÌæ (ÁËÎ ÌñØæÚU ãôÙð ßæÜè) ßæÜè °·¤Ü ·ý¤æâ â´·¤ÚU ×€·¤æ ·¤è ç$·¤S×ô´ ·¤ô ©»æÙæÐ @ ÂõÏð ·¤è ¥çÏ·¤ â´ ØæÐ @ Ûæ´Çô´ ·¤ô ÌôǸÙæ (ÇèÅUðçSÜ´»)Ð @ ÖéÅ÷UÅUæ ×ð´ çâË·¤ ¥æÙð ·Ô¤ v-x çÎÙ ·Ô¤ ¥‹ÎÚU ÖéÅ÷UÅUæ ·¤è ÌéǸæ§üÐ

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ÕèÁ ©Â¿æÚU Õéßæ§ü âð ÂãÜð ÂýçÌ ç·¤»ýæ ÕèÁ ×ð´ °·¤ »ýæ× ÕæßèSÅUèÙ ÌÍæ °·¤ »ýæ× ·ñ¤ŒÅUÙ ç×Üæ ÎðÙæ ¿æçã°Ð ÚUâæØÙ ©Â¿æçÚUÌ ÕèÁ ·¤ô ÀæØæ ×ð´ âé¹æÙæ ¿æçã°Ð §â ÌÚUã ×€·¤æ ·Ô¤ ȤâÜ ·¤ô ÅUè°Ü Õè, °× °Ü Õè, Õè °Ü °â Õè ¥æçÎ Õè×æçÚUØô´ âð Õ¿æØæ Áæ â·¤Ìæ ãñÐ ÌÙæ Öðη¤ (àæêÅU UÜæ§ü) âð Õ¿æß ·Ô¤ çÜ° çȤÂýôçÙÜ y-{ ç× Üè/ ç·¤ »ýæ ÕèÁ ×ð´ ç×ÜæÙæ ¿æçã°Ð

çâ´¿æ§ü ÂýÕ‹ÏÙ ×€·¤æ ·¤è ȤâÜ ×ð´ ×õâ×, ȤâÜ ·¤è ¥ßSÍæ ÌÍæ ç×Å÷UÅUè ·Ô¤ ¥ÙéâæÚU çâ´¿æ§ü ·¤è ÁM¤ÚUÌ ãôÌè ãñÐ ÂãÜè çâ´¿æ§ü Øéßæ ÂõÏ ·¤è ¥ßSÍæ, ÎêâÚUè ȤâÜ ·Ô¤ ƒæéÅUÙð ·¤è ª¢¤¿æ§ü ·Ô¤ â×Ø, ÌèâÚUè Èêê¤Ü (Ûæ‡Çæ) ¥æÙð âð ÂãÜð ÌÍæ ¿õÍæ ÌéǸæ§ü ·Ô¤ Æè·¤ ÂãÜð ÎðÙè ¿æçã°Ð

¥‹ÌÑ È¤âÜè ¹ðÌè ¥‹ÌÑ È¤âÜ âð ÕðÕè ·¤æòÙü ·¤è ©ÂÁ ÂÚU ·¤ô§ü ÕéÚUæ ÂýÖæß Ùãè´ ÂǸÌæ ãñ, ÕçË·¤ ÎÜãÙè ¥‹ÌÑ È¤âÜð´ ×ëÎæ ©ßüÚUÌæ ·¤ô ÕɸæÌè ãñÐ ¹ÚUèȤ ×õâ× ×ð´ ÕðÕè ·¤æòÙü ·Ô¤ âæÍ ÜôçÕØæ, ©Ç¸Î, ×ê´» ¥æçÎ ·¤ô ©»æ§ü Áæ â·¤Ìè ãñÐ ÚUÕè ·Ô¤ ×õâ× ×ð´ ¥æÜê, ×ÅUÚU, ÚUæÁ×æ, ¿é·¤‹ÎÚU, ŒØæÁ, ÜãâéÙ, ÂæÜ·¤, ×ðÍè, Èêê¤Ü»ôÖè, ÙæòÜ-¹ôÜ, Õýô·¤Üè, ÜðÅUØêâ, àæÜÁ×, ×êÜè, »æÁÚU, Èý𴤿çÕÙ Üè Áæ â·¤Ìè ãñÐ ¥‹ÌÑ È¤âÜè ¹ðÌè ·Ô¤ çÜØð ÕðÕè ·¤æòÙü ·¤è çÙÏæüçÚUÌ ©ßüÚU·¤ ·Ô¤ ¥Üæßæ ¥‹ÌÑ È¤âÜ ·¤è çÙÏæüçÚUÌ ©ßüÚU·¤ ·¤æ Öè ÂýØô» ·¤ÚUÙæ ¿æçã°Ð

·¤èÅUô´ ·¤æ ÂýÕ‹ÏÙ ÌÙæ Àðη¤ ×€·¤æ ·¤æ °·¤ Âý×é¹ ãæçÙ·¤æÚU·¤ ·¤èÅU ãñÐ ÂõÏ Á×Ù ·Ô¤ v® çÎÙ ÕæÎ §â·Ô¤ ª¤ÂÚUè Öæ» (»ôÖ) ×ð´ }z ÂýçÌàæÌ ßðÅUðÕÜ Âæ©ÇÚU

ÕæÜæ ·¤æÚUÕðçÚUÜ ·¤æ w.z »ýæ/Üè ÂæÙè ×ð´ ƒæôÜ ·¤ÚU çÀǸ·¤æß ·¤ÚUÙð âð §â ·¤èÅU ·¤æ ÂýÕ‹ÏÙ ãô ÁæÌæ ãñÐ

Ûæ´Çô ·¤ô çÙ·¤æÜÙæ Ûæ‡Çæ ÕæãÚU çιæ§ü ÎðÌð ãè çÙ·¤æÜ ÎðÙæ ¿æçã°Ð §âð Âàæé¥ô´ ·¤ô ç¹ÜæØæ Áæ â·¤Ìæ ãñÐ §â ç·ý¤Øæ ×ð´ ÂõÏô´ âð žæô´ ·¤ô Ùãè´ ãÅUæÙæ ¿æçã°Ð

©ÂÁ ÕðÕè ·¤æòÙü ·¤è ©ÂÁ §â·Ô¤ ç$·¤S×ô´ ·¤è ÿæ×Ìæ °ß´ ×õâ× ÂÚU çÙÖüÚU ·¤ÚUÌè ãñÐ °·¤ «¤Ìé ×ð´ {-} ç€ß´ÅUÜ/°·¤Ç¸ ÕðÕè ·¤æòÙü (çÕÙæ çÀÜ·¤æ) ·¤è ©ÂÁ Üè Áæ â·¤Ìè ãñÐ §ââð }®-v{® ç€ß´ÅUÜ/°·¤Ç¸ ãÚUæ ¿æÚUæ Öè ç×Ü ÁæÌæ ãñÐ §â·Ô¤ ¥Üæßæ ·¤§ü ¥‹Ø ÂõçcÅU·¤ ÂõÏ ©ˆÂæÎ Áñâð - ÙÚU×´ÁÚUè, ÚUðàææ, çÀÜ·¤æ, ÌéǸæ§ü ·Ô¤ ÕæÎ Õ¿æ ãé¥æ ÂõÏæ ¥æçÎ ÂýæŒÌ ãôÌæ ãñ, çÁ‹ãð´ Âàæé¥ô´ ·¤ô ãÚUæ ¿æÚUæ ·Ô¤ M¤Â ×ð´ ç¹ÜæØæ Áæ â·¤Ìæ ãñÐ

ÌéǸæ§ü ©ÂÚUæ‹Ì ÂýÕ‹ÏÙ §â·Ô¤ çÜ° ç٠٠̉Øô´ ·¤æ ŠØæÙ ÚU¹Ùæ ¿æçã° — @ ÕðÕè ·¤æòÙü ·¤æ çÀÜ·¤æ ÌéǸæ§ü ·Ô¤ ÕæÎ ©ÌæÚU ÜðÙæ ¿æçã°Ð Øã ·¤æØü ÀæØæÎæÚU ¥õÚUãßæÎæÚU Á»ãô´ ÂÚU ·¤ÚUÙæ ¿æçã°Ð @ Æ´Çð Á»ãô´ ÂÚU ÕðÕè ·¤æòÙü ·¤æ Ö´ÇæÚU‡æ ·¤ÚUÙæ ¿æçã°Ð @ çÀÜ·¤æ ©ÌÚUð ãé° ÕðÕè ·¤æòÙü ·¤ô ɸðÚU ܻ淤ÚU Ùãè´ ÚU¹Ùæ ¿æçã°, ÕçË·¤ ŒÜæçSÅU·¤ ·¤è ÅUô·¤ÚUè, ÍñÜæ Øæ ¥‹Ø ·¤‹ÅUðÙÚU ×ð´ ÚU¹Ùæ ¿æçã°Ð @ ÕðÕè ·¤æòÙü ·¤ô ÌéÚU´Ì ×´Çè Øæ â´âæÏÙ §·¤æ§ü (Âýôâðçâ´» ŒÜæ‹ÅU) ×ð´ Âãé´¿æ ÎðÙæ ¿æçã°Ð

ç߇æÙ (×æ·ðü¤çÅ´U») §â·¤è çÕ·ý¤è ÕǸð àæãÚUô´ (Áñâð- çÎËÜè, ×é Õ§ü, ·¤ôÜ·¤æÌæ ¥æçÎ) ·Ô¤ ×´çÇØô´ ×ð´ ·¤è Áæ ÚUãè ãñÐ ·é¤À ç·¤âæÙ Õ‹Ïé §â·¤è çÕ·ý¤è âèÏð ãè ãôÅUÜ, ÚUðSÌÚUæ´, ·¤ ÂçÙØô´ (çÚUÜæØ‹â, âÈ¤Ü ¥æçÎ) ·¤ô ·¤ÚU ÚUãð ãñ´Ð ·é¤À ØêÚUôçÂØÙ Îðàæô´ ÌÍæ Øê °â ° ×ð´ ÕðÕè ·¤æòÙü ·Ô¤ ¥æ¿æÚU °ß´ ·ñ¤‹Çè ·¤è ÕãéÌ ãè ’ØæÎæ ×æ´» ãñÐ ãçÚUØæ‡ææ ÚUæ’Ø ·Ô¤ ÂæÙèÂÌ çÁÜæ âð ¿ÚU´»æ ·¤ ÂÙè mæÚUæ §Ù Îðàæô´ ×ð´ ÕðÕè ·¤æòÙü ·Ô¤ ¥æ¿æÚU ·¤æ çÙØæüÌ ç·¤Øæ Áæ ÚUãæ ãñÐ

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बेबी कॉर्न मक्का का भुट्ट‌ ा है जो सिल्क (भुट्‌टा के ऊपरी भाग में आई रेशमी अवस्था तथा सिल्क आने के 1-3 दिन के अन्दर ऋतु के अनुसार पौधे से तोड़ लिया जाता है। इस अवस्था में दाने अनिषेचित (अनफर्टिलाइज्ड) होते हैं। अच्छे बेबी 1.5 सेमी तथा रंग हल्का पीला होना चाहिए। यह फसल खरीफ (गर्मी) में लगभग 50-60 दिनों रबी (जाड़ा) में 110-120 दिनों तथा जायद (बसंत) में 70-80 दिनों में तैयार हो जाती है। एक वर्ष में बेबी कॉर्न की 3-4 फसलें आसानी से ली जा सकती हैं। बेबी कॉर्न की निश्चित (कैनिंग) होने से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इसका उत्पादन विश्व के कई देशों में होता है और विविभन्न व्यंजनों के रूप में उपयोग में लाया जाता है। इसकी खेती से पशुओं के लिए हरा चारा भी मिल जाता है। Main Hu Kisan

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िपस्ता

की खेती फायदे का सौदा

çÂSÌæ ·¤è ¹ðÌè ©â·Ô¤ ÖèÌÚU Âæ° ÁæÙð ßæÜð ȤÜè ·Ô¤ çÜ° ·¤è ÁæÌè ãñ çÁâð ¹æØæ ÁæÌæ ãñÐ §â·Ô¤ ÂðǸ ÀôÅUð âð Üð·¤ÚU ׊Ø× ¥æ·¤æÚU ·Ô¤ ãôÌð ãñ´Ð ÂðǸ ·Ô¤ ×é Ø ÌÙð âð àææ¹æ°´ çÙ·¤ÜÌè ãñ´ Áô ÌðÁè âð ÕɸÌè ãñÐ Á´»Üè §Üæ·Ô¤ ×𴠧ⷤè Ü´Õæ§ü w® ȤèÅU Ì·¤ Õɸ ÁæÌè ãñ ¥õÚU Áãæ´ ÁéÌæ§ü ·¤è ÁæÌè ãñ ßãæ´ v® ȤèÅU Ì·¤ ÕɸÌè ãñÐ ¥çÏ·¤æ´àæ Îðàæô´ ×ð´ ©ÂÁæØæ ÁæÙð ßæÜæ çÂSÌæ ·¤æÁê ÂçÚUßæÚU ·¤æ ãè °·¤ âÎSØ ãñÐ §â ÕæÎæ× (ÙÅU) ×ð´ ·ñ¤ÜÚUè ·¤è ×æ˜ææ ·¤æÈ¤è ·¤× ãôÌè ãñ Üðç·¤Ù Øð Ȥæ§ÅUôSÅUðÚUôËâ, °´ÅUè¥æò€UâèÇð´ÅU÷â, ¥â´ÌëŒÌ ßâæ, ·Ô¤ÚUôÅUðÙæòØÇ÷â, çßÅUæç×Ù, ç×ÙÚUËâ ¥õÚU Ȥæ§ÕÚU âð ÖÚUð ÚUãÌð ãñ´Ð Øð ÂêÚUè ÌÚUã âæȤ Ùãè´ ãñ ç·¤ çÂSÌæ ÕæÎæ× ·¤æ ÂðǸ ×êÜ M¤Â âð ·¤ãæ´ âð ¥æØæ ãñ, Üðç·¤Ù ×æÙæ ÁæÌæ ãñ ç·¤ §â·¤è ÂñÎæ§àæ ×ŠØ Âêßü ¥õÚU ×ŠØ °çàæØæ ãè ãñÐ çÂSÌæ °Ùæ·¤æÚUçÇ°âè ¥õÚU çÂSÅUæçâØæ ÂýÁæçÌ ÂçÚUßæÚU ·¤æ ãñÐ ×é ØM¤Â âð çÂSÌæ Øæ Ìô ÙÚU ÂðǸ ãñ Øæ ×æÎæ ÂðǸРãæÜæ´ç·¤ ȤâÜ ÂñÎæ ·¤ÚUÙð ·Ô¤ çÜ° ÎôÙô´ ÌÚUã ·Ô¤ ÂðǸô´ ·¤è ÁM¤ÚUÌ ãôÌè ãñÐ âæ×æ‹Ø ÌõÚU ÂÚU ÕæÎæ× Øæ ȤÜè ×æÎæ ÂðǸ ÂÚU ÂñÎæ ãôÌæ ãñ ßãè´, ÙÚU ÂðǸ ×æÎæ ÂðǸ ·Ô¤ Èêê¤Ü ·Ô¤ »ÖæüÏæÙ ·Ô¤ çÜ° ÂÚUæ» ×éãñØæ ·¤ÚUæÌæ ãñÐ çÂSÌæ ·¤æ ÂðǸ ©ˆÂæÎÙ SÌÚU ÂÚU ¥æÙð ×ð́ Ü´Õæ ß€Ì Ü»æÌæ ãñÐ çÂSÌæ ÕæÎæ× ·¤è SÍæÙèØ âð Üð·¤ÚU ¥´ÌÚUæücÅþUèØ ÕæÁæÚU Ì·¤ ÁÕÎüSÌ ×æ´» ãñÐ ·¤ô§ü Öè ¥æÎ×è ¥‘Àè ÁÜßæØé ×ð́ çÂSÌæ ·¤è ¹ðÌè âãè ÌÚUè·Ô¤ âð ·¤ÚU ¥‘Àæ ×éÙæÈ¤æ ·¤×æ â·¤Ìæ ãñÐ

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ÖæÚUÌ ×ð´ çÂSÌæ ·¤è ç·¤S×ð´ Á ×ê-·¤à×èÚU §Üæ·Ô¤ ×ð´ ÂñÎæ ·¤è ÁæÙð ßæÜè ·Ô¤ÚU×Ù, ÂèÅUÚU, ç¿·ê¤, ÚUðÇ ¥ÜðŒÂô ¥õÚU ÁæòÜè Áñâè ·é¤À Âý×é¹ ç·¤S×ð´ ãñ´Ð ÖæÚUÌ ×ð´

çÂSÌæ ·Ô¤ SÍæÙèØ Ùæ× çã´Îè, »éÁÚUæÌè, ´ÁæÕè, ÌðÜé»é, ·¤‹‹æǸ, ×ÚUæÆè, ©çǸØæ, ¥â×è ¥õÚU Õ´»æÜè âÖè Á»ãô´ ×ð´ §âð çÂSÌæ ·¤ãÌð ãñ´Ð

¹ðÌè ·Ô¤ çÜ° ÁÜßæØé çÂSÌæ ·¤è ȤâÜ ·Ô¤ çÜ° ×õâ× ·¤è çSÍçÌ ÕðãÎ ¥ã× Ìˆß ãñÐ çÂSÌæ ·Ô¤ ÕæÎæ× ·¤ô çÎÙ ·¤æ ÌæÂ×æÙ x{ çÇ»ýè âðÅUè»ýðÇ âð ’ØæÎæ ¿æçã°Ð ßãè´,

Æ´Ç ·Ô¤ ×ãèÙð ×ð´ | çÇ»ýè âð´ÅUè»ýðÇ ÌæÂ×æÙ ©Ù·Ô¤ çàæçÍÜ ¥ßçÏ ·Ô¤ çÜ° ÂØæüŒÌ ãñÐ §â·Ô¤ ÂðǸ ’ØæÎæ ª¢¤¿æ§ü ßæÜè Á»ãô´ ÂÚU Æ´Çð ÌæÂ×æÙ ·¤è ßÁã â𠥑Àè ÌÚUã Õɸ Ùãè´ ÂæÌð ãñ´Ð ÖæÚUÌ ×ð´ çÂSÌæ ·Ô¤ ÙÅU÷â ØæÙè ÕæÎæ× ·¤ô ÕɸÙð ·Ô¤ çÜ° Á ×ê-·¤à×èÚU Âýæ·¤ëçÌ·¤ Á»ã ãñÐ

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Á×èÙ ·¤è ÌñØæÚUè çÂSÌæ ·¤è ¹ðÌè ·Ô¤ çÜ° Á×èÙ ·¤è ÌñØæÚUè ×ð´ Öè ÎêâÚUð ÙÅU Øæ ÕæÎæ× Áñâè çSÍçÌ ãôÌè ãñÐ Á×èÙ ·¤è ¥‘Àè ÌÚUã âð ÁéÌæ§ü, ·¤ÅUæ§ü ¥õÚ UÜæ§Ù ¹è´¿è ãôÙè ¿æçã° Ìæç·¤ ¥‘Àè ÁéÌæ§ü ·¤è çSÍçÌ ãæçâÜ ·¤è Áæ â·Ô¤Ð ¥»ÚU ç×Å÷UÅUè ×ð´ {-| ȤèÅU ·¤è Ü´Õæ§ü ×ð´ ·¤ô§ü ·¤ÆôÚU ¿èÁ ãñ Ìô ©âð ÌôǸ ÎðÙæ ¿æçã°Ð €UØô´ç·¤ çÂSÌæ ·¤è ÁǸ𴠻ãÚUð Ì·¤ ÁæÌè ãñ ¥õÚU ÂæÙè ·Ô¤ Á×æß âð ÂýÖæçßÌ ãôÌè ãñÐ

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पिस्ता बादाम की स्थानीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय सामान्य तौर पर बादाम मादा पेड़ पर पैदा होता है बाजार तक जबर्दस्त मांग है। कोई भी आदमी वहीं, नर पेड़ मादा के फूल के गर्भाधान के लिए अच्छी जलवायु में पिस्ता की खेती सही तरीके पराग मुहैया कराता है। पिस्ता का पेड़ उत्पादन स्तर पर आने में लंबा वक्त लगाता है। से करके अच्छा मुनाफा कमा सकता है। ç·¤Øæ ÁæÌæ ãñ ¥õÚU ¥´·é¤çÚUÌ ÂðǸ ·¤ô ©âè âæÜ Øæ ¥»Üð âæÜ Ü»æ çÎØæ ÁæÌæ ãñÐ Øã âÕ ·é¤À L¤ÅUSÅUæò·¤(ÂõÏð) ·Ô¤ ¥æ·¤æÚU ·¤ô ŠØæÙ ×ð´ ÚU¹Ìð ãé° ç·¤Øæ ÁæÙæ ¿æçã°Ð

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Main Hu Kisan

ÁM¤ÚUÌ ãôÌè ãñ, €UØô´ç·¤ ÕæÎæ× Áñâè ȤâÜ ·Ô¤ çÜ° Ùæ§ÅþôÁÙ °·¤ ×ãˆßÂê‡æü ª¤ßüÚU·¤ ×æÙæ ÁæÌæ ãñÐ ãæÜæ´ç·¤ ÂõÏð ×ð´ ÂãÜð âæÜ ª¤ßüÚU·¤ ·¤æ §SÌð×æÜ Ùãè´ ç·¤Øæ ÁæÙæ ¿æçã° Üðç·¤Ù ©â·Ô¤ ÕæÎ ¥»Üð âæÜ âð ·¤è Áæ â·¤Ìè ãñÐ ¥æÙð ßæÜð ×õâ× ·Ô¤ ÎõÚUæÙ ÂýˆØð·¤ çÂSÌæ ·Ô¤ ÂõÏð ×ð´ yz® »ýæ× ¥×ôçÙØ× âËÈÔ¤ÅU ·¤è ×æ˜ææ Îô Öæ» ×ð´ ÇæÜè ÁæÙè ¿æçã°Ð ÕæÎ ·Ô¤ ßáô´ü ×ð´ ÂýçÌ °·¤Ç¸ yz âð {z ç·¤Üô ßæSÌçß·¤ Ùæ§ÅþôÁÙ (°Ù) ÂýØô» ·¤ÚUÙæ ¿æçã°Ð ¥æÙð ßæÜð ×õâ× ·Ô¤ ÎõÚUæÙ Ùæ§ÅþôÁÙ ·¤ô Îô Öæ»ô´ ×ð´ Õæ´ÅU·¤ÚU §SÌð×æÜ ç·¤Øæ ÁæÙæ ¿æçã°Ð

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Áæ»L¤·¤Ìæ

आमतौर पर करेले की फसल में 55 से 60 दिनों में फल आने शुरू होते हैं, जबकि नई किस्म में 45 दिन में फल लग जाते हैं। इसके साथ ही इसकी पैदावार भी 20 से 30 प्रतिशत अधिक है।

मधुमेह से बचाएगी करेले की नई किस्म दे

पूसा हाईब्रिड-4

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×ð´ Ȥæ§ÕÚU Öè ÂæØæ ÁæÌæ ãñÐ Øã ÚU€Ì¤ ·Ô¤ çß·¤æÚUô´ ·¤ô Öè Æè·¤ ·¤ÚUÌæ ãñÐ ¥æ×ÌõÚU ÂÚU ·¤ÚUðÜð ·¤è ȤâÜ ×ð´ zz âð {® çÎÙô´ ×ð´ È¤Ü ¥æÙð àæéM¤ ãôÌð ãñ´ ÁÕç·¤ Ù§ü ç·¤S× ×ð´ yz çÎÙ ×ð´ È¤Ü Ü» ÁæÌð ãñ´Ð §â·Ô¤ âæÍ ãè §â·¤è ÂñÎæßæÚU Öè w® âð x® ÂýçÌàæÌ ¥çÏ·¤ ãñÐ »ãÚUð ãÚUð ÚU´» ·¤æ Øã ·¤ÚUðÜæ ׊Ø× Ü Õæ§ü ¥õÚU ×ôÅUæ§ü ·¤æ ãñ çÁâ·¤æ ¥õâÌ ßÁÙ {® »ýæ× ãôÌæ ãñÐ §â·¤è ÂñÎæßæÚU ÂýçÌ ãð€UÅUðØÚU ww ÅUÙ âð ¥çÏ·¤ ãñÐ Ù§ü ç·¤S× Îô ÕæÚU ȤÚUßÚUè ·Ô¤ ¥´Ì ¥õÚU ×æ¿ü ×ð´ ÌÍæ ¥»SÌ °ß´ çâÌ ÕÚU ·Ô¤ ÎõÚUæÙ Ü»æ§ü ÁæÌè ãñРֻܻ ¿æÚU ×æã Ì·¤ §â×ð´ È¤Ü Ü»Ìð ãñ´ ¥õÚU °·¤ °·¤Ç¸ ×ð´ §â·¤è ¹ðÌè âð z® âð {® ãÁæÚU L¤Â° ·¤è ¥æØ ãô â·¤Ìè ãñÐ ·¤ÚUðÜð ·¤è Øã °·¤ °ðâè ç·¤S× ãñ çÁââð Á×èÙ ¥õÚU ׿æÙ ÂÚU Öè ÖÚUÂêÚU ÂñÎæßæÚU Üè Áæ â·¤Ìè ãñÐ §â·Ô¤ ´ç€Ì âð ´ç€Ì ·¤è ÎêÚUè Çðɸ ×èÅUÚU ÌÍæ ÂõÏð âð ÂõÏð ·¤è ÎêÚUè yz âð z® âð´ÅUè×èÅUÚU Ì·¤ ©ÂØéQ¤ ãñÐ Îðàæ âð çÁÙ âçŽÁØô´ ·¤æ çÙØæüÌ ç·¤Øæ ÁæÌæ ãñ ©Ù×ð´ ·¤ÚUðÜæ Öè àææç×Ü ãñÐ ¹æÇ¸è ·Ô¤ Îðàæô´ ×ð´ ÖæÚUÌèØ ·¤ÚUðÜð ·¤è ¥‘Àè ×æ´» ãñÐ §â·Ô¤ ¥Üæßæ ·é¤À ¥‹Ø Îðàæô´ ×ð´ Öè §â·¤è ×æ´» ãñÐ Îðàæ ·Ô¤ âÖè Âý×é¹ âŽÁè ©ˆÂæη¤ ÚUæ’Øô´ ×ð´ ·¤ÚUðÜð ·¤è ¹ðÌè ·¤è ÁæÌè ãñÐ Main Hu Kisan

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ÂõÏàææÜæ बड़े एवं स्वस्थ पौधे तैयार करने हेतु चार इंच व्यास के पी.वी.सी. पाइप को एक-एक फुट के टुकड़ों में काट कर बनाया जाता है। चीरा लगे भागों को आपस में बांधने के लिए छेद कर तारों से बांधा जाता है। इस प्लास्टिक पाइप मदर बेड के पौधे के चारों और रखकर धीरे-धीरे पाइप के चारों ओर की मिट्‌टी अलग की जाती है। इस प्रकार पौधे के चारों ओर मिट्‌टी में गाड़ने के उपरान्त एक तीक्ष्णधार के उपकरण सेड़ को काटकर प्लास्टिक पाइप में पौधे की पोंटिग ले ली जाती है।

विधि विधान के साथ तैयार की जाती है पौध नर्सरी

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Main Hu Kisan

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पौध तैयारी की आधुनिक विधि रूट ट्रेनर

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Main Hu Kisan

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ऑग्रेनिक सनराइज नेचुरल ने गाजियाबाद में खोला एक्सक्लूसिव स्टोर यू.पी. के राज्यमंत्री अतुल गर्ग ने किया शुभारंभ

देशों में अपनी जगह बना चुकी सनराइज एग्रीलेंड डवलपमेंट एण्ड रिसर्च प्रा.लि. ने अपनी विस्तार योजना के तहत अब आर्गेनिक सनराइज नेचुरल ब्राण्ड का उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में भी एक्सक्लूसिव स्टोर खोल दिया है। इस स्टोर का भव्य शुभारंभ उत्तर प्रदेश के खाद्य-रसद, नागरिक आपूर्ति, किराया नियंत्रण, उपभोक्ता संरक्षण, बाट माप, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन राज्यमंत्री अतुल गर्ग व सनराइज ग्रुप ऑफ कंपनीज के डायरेक्टर डॉ. अतुल गुप्ता ने फीता काटकर किया। स्टोर के संचालक शैलेश सिंघल, अभिजीत सिंघल व राहुल अग्रवाल ने सनराइज कंपनी के प्रोडेक्टस के बारे में जानकारी दी।

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स्टोर पर ये उत्पाद उपलब्ध

गाजियाबाद के इस एक्सक्लूसिव स्टोर पर ऑर्गेनिक सनराइज नेचुरल ब्राण्ड के 360 से ज्यादा उत्पाद उपलब्ध हैं। इनमें ऑग्रेनिक हर्बल एण्ड हैल्थ केयर ज्यूस एण्ड सिरप, ऑर्गेनिक कैंडी, ऑर्गेनिक पाउडर, ऑर्गेनिक नेचुरल स्टीविया बेस्ड शत-प्रतिशत शुगर फ्री प्रोडेक्ट्स, ऑर्गेनिक चाय एण्ड कॉफी, हर्बल कॉस्मेटिक तथा ग्रोसरी प्रोडेक्ट्स मुख्य हैं। ऑग्रेनिक कैंडीज : आंवला कैंडी नमकीन, आंवला कैंडी स्वीट, जिंजर कैंडी 200 व 400 ग्राम की पैकिंग में उपलब्ध हैं। ऑग्रेनिक पाउडर : कंपनी ने 100 ग्राम की पैकिंग में आंवला, त्रिफला, अश्वगंधा, तुलसी, गिलोय, ब्रह्मी, मोरिंगा, जटामासी, सफेद मूसली, नीम

व वीट ग्रास का पाउडर तथा 50 ग्राम की पैकिंग में तुलसी की सूखी पत्तियां उपलब्ध करायी हैं। इसी तरह 100 फीसदी शुगर फ्री ऑग्रेनिक नेचुरल स्टीविया के प्रोडेक्ट यथा-मिठी पत्ती (स्टीविया), स्टीविया ग्रीन पाउडर, स्टीविया लिक्विड व्हाइट, स्टीविया लिक्विड ब्राउन व स्टीविया व्हाइट कस्टर्ड पाउडर 10, 20 व 100 ग्राम की पैकिंग में है।

ऑग्रेनिक चाय एवं कॉफी

आयुर्वेद फार्मुले पर आधारित डायब टी (स्टीविया), ग्लो चाय (स्टीविया), एमओपी-ओ चाय (स्टीविया), मिस्टर चाय (स्टीविया), ओबेकट टी (स्टीविया), पीओएम टी (स्टीविया), सिल्म कैफे टी (स्टीविया) 20 नग प्रति पैक तथा ग्रीन टी, लेमन टी (विद इंडिया स्पाइसिज एण्ड हर्बस) 100, 200 व 400 ग्राम की पैकिंग में है।

हर्बल कॉस्मेटिक प्रोडेक्ट्स

ऑग्रेनिक सनराइज नेचुरल ने 100 ग्राम की पैकिंग में एलोवेरा ककुंबर क्रीम, एलोवेरा रोज जैल, एलोवेरा ककुंबर जैल, एलोवेरा सेंडल जैल, 250 व 500 एम.एल. में नेचुरल हेयर क्लीनर, 100 एम.एल. में रोज वाटर, एलोवेरा नीम फेस वॉश तथा एलोवेरा स्ट्रॉबेरी फेस वॉश भी इस स्टोर पर मुहैया करायी है।

ग्रोसरी के उत्पाद

कंपनी ने ऑर्गेंगिक दालें, मसाले, चावल, गेंहू, के साथ-साथ ऑर्गेनिक लाल मिर्च, हल्दी, काली मिर्च, पीसा धनिया, मूंग, अरहर, चना, उड़द, मसूर दाल, काबुली चना, ब्राउन चना, राजमा जम्मू, राजमा चित्रा, बासमती चावल सफेद, बासमती चावल ब्राउन, जीरा, जौ, मिस्सा आटा, आटा, मल्टीग्रेन आटा, डायबिटिक आटा, सत्तु आटा, कुट्टु, सरसों तेल, सूरजमुखी का तेल, मूंगफली का तेल, देशी गाय का घी, भैंस का घी, चीनी, शहद मुख्य उत्पाद ग्राहकों की डिमांड को देखते हुए स्टोर पर उपलब्ध कराये हैं।

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अब चांद की लय पर झूमेगी फसल

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ãUÚU ×ãUèÙð ÚU¹ð´ ŠØæÙ ãUÚU ×ãUèÙð ·¤è °·¤ ÌæÚUè¹ ·¤æð çÁâ ÂÚU ¿æ´Î ¥æñÚU àæçÙ çßÂÚUèÌ çÎàææ ×ð´ ¥æÌð ãñ´U, ©Uâð ·ë¤çá ·¤æØü ·ð¤ çÜ° âßüŸæðcÆU ÂæØæ »Øæ ãñUÐ ßãUè´, ãUÚU ×æãU Îæð ÕæÚU ¿´Îý×æ Âë‰ßè ·ð¤ ÂÍ âð »éÁÚUÌð ãéU° âêØü ·ð¤ ÂÍ ·¤æð ·¤æÅUÌæ ãñUÐ âæ×æ‹Ø Öæáæ ×ð´ §âð ÚUæãé ¥õÚU ·Ô¤Ìé ·Ô¤ Ùæ× âð ÁæÙæ ÁæÌæ ãñÐ §â çÎÙ ç·¤âæÙô´ ·¤ô ·¤ô§ü Öè ·ë¤çá ·¤æ× Ùãè´ ·¤ÚUÙæ ¿æçã°Ð Èê¤Ü ßæØé âð â´Õ´çÏÌ ãñ´ ¥õÚU Èê¤Ü ÂÚU ç×ÍéÙ, ÌéÜæ ¥õÚU ·é¤´Ö ÚUæçàæ ·¤æ ¥âÚU ãôÌæ ãñÐ È¤Ü ¥õÚU ÕèÁ ·¤æ â´Õ´Ï ¥ç‚Ù âð ãôÌæ ãñÐ ×ðá, ÏÙé ¥õÚU çâ´ã ÚUæçàæ ·¤æ §â ÂÚU ÂýÖæß ÂǸÌæ ãñÐ ¹ðÌ, È¤Ü Èê¤Ü ¥õÚU ÂõÏô´ ·¤æ »ëã Ùÿæ˜æô´, âêØü ¿´Îý×æ ¥õÚU Âë‰ßè âð €UØæ â´Õ´Ï ¥õÚU ©â·¤æ €UØæ Ȥ·¤ü ÂǸÌæ ãñ, Øð ©læÙ °ß´ Âýâ´S·¤ÚU‡æ çßÖæ» Ùð çßSÌæÚU âð ÕÌæØæ ãñÐ ©læÙ °ß´ Âýâ´S·¤ÚU‡æ çßÖæ» ·Ô¤ ¥ÙéâæÚU, ÕæØô-ÇæØÙç×·¤ çâhæ´Ì ·Ô¤ ÌãÌ ¿´Îý×æ °·¤ ×ãèÙð ×ð´ ֻܻ w~.z çÎÙô´ ×ð´ Âë‰ßè ·¤æ ÂêÚUæ ¿€·¤ÚU Ü»æÌæ ãñÐ §â ¥ßSÍæ ×ð´ Øã ÕæÚUã ÚUæçàæØô´ âð »éÁÚUÌæ ãñÐ ÂýˆØð·¤ ÚUæçàæ ÂÚU Øã Éæ§ü âð âßæ ÌèÙ çÎÙ Ì·¤ ÚUãÌð ãé° ÎêâÚUè ÚUæçàæ ÂÚU Âãé´¿Ìæ ãñÐ §Ù vw ÚUæçàæØô´ ·¤ô ØêÙæÙè Öæáæ ×ð´ °·¤ ÂýÌè·¤

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Main Hu Kisan

·Ô¤ M¤Â ×𴠥ܻ-¥Ü» Áèßô´ ¥õÚU ßSÌé¥ô´ ·Ô¤ ¥æ·¤æÚU âð ç¿ç˜æÌ ç·¤Øæ »Øæ ãñÐ Øð vw ÚUæçàæØæ´ ¿æÚU ×é Ø Ìˆßô´ Öêç×, ÁÜ, ßæØé ¥õÚU ¥ç‚Ù ·¤ô ÂýÖæçßÌ ·¤ÚUÌè ãñ´Ð §â çßçÏ âð ¹ðÌè ·¤ÚUÙð âð ©‘¿ »é‡æßžææ ·¤æ ©ˆÂæÎÙ, ¹ðÌè ×ð´ Áñçß·¤ ç·ý¤Øæ¥ô´ ·¤ô ÂýôˆâæãÙ, Öêç× ·¤è ©ßüÚUæ àæçQ¤ ×ð´ çÙÚU´ÌÚU ßëçh, âæÍ ãè ÂØæüßÚU‡æ ÂýÎêá‡æ ·¤ô ·¤× ·¤ÚUÙæ ãñÐ §â ¹ðÌè ·Ô¤ ÕæÚUð ÕÌæØæ »Øæ Íæ ç·¤ Øã ·ë¤çá ×ð´ Õýrææ´ÇèØ àæç€ÌØô´ ·Ô¤ â×æ·¤ÜÙ ·Ô¤ ¥æÏæÚU ÂÚU ·¤è ÁæÌè ãñÐ

¿æ´ÎÙè ÚUæÌ ×ð´ »æðÕÚU ÕÙð»æ ¥×ëÌ ·ë¤c‡æ Âÿæ ×ð´ »æØ ·ð¤ âè´» ×ð´ ÎéŠææM¤ »æØ ·¤æ »æðÕÚU ÇUæÜ·¤ÚU âè´» Ùé·¤èÜæ Öæ» ª¤ÂÚU ÚU¹Ìð ãéU° §Uâð ç·¤âè ÀUæØæÎæÚU ß ª´¤¿è Á»ãU ÂÚU wz-x® âð×è. »bUæ ÕÙæ·¤ÚU ÀUãU ×æãU ·ð¤ çÜ° »æǸ ÎðÙæ ¿æçãU°Ð ×âÜÙ, çâÌ´ÕÚU ×ð´ »æǸ·¤ÚU ×æ¿ü ×ð´ çÙ·¤æÜð´Ð §Uâ·ð¤ ÕæÎ §Uââð çÙ·¤Üè ¹æÎ ·¤æð ×ÅU·ð¤ ×ð´ ÚU¹ Üð´Ð Õé¥æ§üU ·ð¤ ÎæñÚUæÙ §Uâ·¤æ ƒææðÜ ÕÙæ·¤ÚU (wz® »ýæ× ·¤è ×æ˜ææ wz® ÜèÅUÚU ÂæÙè ×ð´) çÀUǸ·¤æß ·¤ÚUÙð âð Öêç× ·¤è ©UßüÚUæ àæç€Ì ·¤§üU »éÙæ ÕɸU ÁæÌè ãñU, çÁâð ÕæØæðÇUæØÙðç×·¤ ©UˆÂýðÚU·¤ ·¤ãUÌð ãñ´UÐ

ÕæØæðÇUæÙðç×·¤ ¹ðÌè ·ð¤ ©UÎ÷ÎðàØ @ ©U‘¿ »é‡æßžææØé€Ì ©UˆÂæÎÙ @ ¹ðÌè ×ð´ Áñçß·¤ ç·ý¤Øæ¥æð´ ·¤æð ÂýæðˆâæãUÙ @ Öêç× ·¤è ©UßüÚUÌæ ×ð´ çÙÚ´UÌÚU ßëçh @ »æ´ßæð´ ×ð´ âé»×Ìæ °ß´ âSÌð ×ð´ ©UÂÜŽŠæ â´âæŠæÙæð´ ·¤æ â×ç‹ßÌ ©UÂØæð» @ ÂØæüßÚU‡æ ÂýÎêá‡æ ·¤æð ·¤× ·¤ÚUÙæ

ÂýŠææÙ Ìˆß Âë‰ßè ÁÜ ßæØé ¥ç‚Ù

राशियों का विभिन्न मुख्य तत्वों से संबंध ÂýÖæçßÌ ÂæñŠæ Öæ» ÁǸ žæè Èê¤Ü ȤÜ, ÕèÁ

ÚUæçàæØæ´ ·¤‹Øæ, ×·¤ÚU, ßëá ·¤·ü¤, ßëçà¿·¤, ×èÙ ç×ÍéÙ, ÌéÜæ, ·é´¤Ö ×ðá, ŠæÙé, çâ´ãU


ÂýðÚU‡ææ

सिक्किम

ऐसा राज्य, जहां मुनाफे का सौदा बनी खेती ए

·¤ ¥ôÚU Áãæ´ Îðàæ ×ð´ ç·¤âæÙ ¥æ´ÎôÜÙ ·¤ÚU ÚUãð ãñ´ ¥õÚU ÕðÕâè ×ð´ ¥æˆ×ãˆØæ ·¤ÚUÙð ·¤ô ×ÁÕêÚU ãô ÚUãð ãñ´, ÎêâÚUè ¥ôÚU ¥ÂÙð ÖæÚUÌ Îðàæ ×ð´ °·¤ °ðâè ÚUæ’Ø âÚU·¤æÚU ãñ, çÁâÙð ç·¤âæÙô´ ·¤è ç·¤S×Ì ·¤æ Ù çâÈü¤ ÌæÜæ ¹ôÜæ, ÕçË·¤ ¥ÂÙð ÚUæ’Ø ·Ô¤ ç·¤âæÙô´ ·¤ô ãÚU SÌÚU ÂÚU ×ÎÎ ·¤ÚU ¹ðÌè ·¤ô ×éÙæÈÔ¤ ·¤æ âõÎæ ÕÙæØæÐ Øãè ·¤æÚU‡æ ãñ ç·¤ §â ÚUæ’Ø ×ð´ ç·¤âè Öè ç·¤âæÙ Ùð ¥æˆ×ãˆØæ Ùãè´ ·¤èÐ ÖæÚUÌ ×ð´ çâ瀷¤× Îðàæ ·¤æ ÂãÜæ Áñçß·¤ ÚUæ’Ø ÕÙæ, Áãæ´ ·¤ÚUèÕ |z ãÁæÚU ãð€UÅUðØÚU ·ë¤çá Öêç× ÂÚU ÂêÚUè ÌÚUã âð Áñçß·¤ ¹ðÌè ãô ÚUãè ãñÐ ÎêâÚUð ÚUæ’Ø ·Ô¤ ç·¤âæÙ Áãæ´ ÚUæâæØçÙ·¤ ¥õÚU Ù·¤Üè ·¤èÅUÙæàæ·¤ô´ ·Ô¤ §SÌð×æÜ âð ȤâÜô´ ×ð´ Ùé·¤âæÙ ÛæðÜ ÚUãð ãñ´ ¥õÚU ÕɸÌè â×SØæ¥ô´ âð ¥æˆ×ãˆØæ ·¤ÚUÙð ·¤ô ×ÁÕêÚU ãôÌð ãñ´, ßãè´ çâ瀷¤× Ùð Âê‡æü Áñçß·¤ ÂýÎðàæ ãôÌð ãé° ç·¤âæÙô´ ·¤è ¥æˆ×ãˆØæ ·Ô¤ ¥æ´·¤Ç¸ð âð ×é€Ì ãô·¤ÚU Îðàæ ·Ô¤ ç·¤âæÙô´ ·Ô¤ âæ×Ùð °·¤ ¥ÙéÂ× ©ÎæãÚU‡æ Âðàæ ç·¤Øæ ãñÐ ¥æ§ü° ÁæÙÌð ãñ´ ç·¤ ·ñ¤âð çâ瀷¤× ·Ô¤ ç·¤âæÙô´ Ùð Âý·ë¤çÌ ·Ô¤ âæÍ âæ×ÁSØ ÕñÆæ·¤ÚU ÂêÚUè ÌÚUã âð Áñçß·¤ ¹ðÌè ·¤ô ¥ÂÙæ·¤ÚU ·ë¤çá ·¤ô ÙØæ ¥æØæ× çÎØæÐ

âÕâð ÂãÜð Áñçß·¤ ÙèçÌ ·¤è ƒæôá‡ææ ÚUæâæØçÙ·¤ ·¤èÅUÙæàæ·¤ô´ ¥õÚU ©ßüÚU·¤ô´ ·Ô¤ ©ÂØô» âð çâ瀷¤× ·¤è Öêç× ·¤è ƒæÅUÌè ©ßüÚU·¤ ÿæ×Ìæ ¥õÚU ÂØæüßÚU‡æ ÂÚU ÂǸÌð ÂýçÌ·ê¤Ü ÂýÖæß ·¤ô Îð¹Ìð ãé° Ìˆ·¤æÜèÙ ×é Ø×´˜æè ÂßÙ ·é¤×æÚU ¿æ×çÜ´» Ùð ßáü w®®x ×ð´ çßÏæÙâÖæ ×ð´ Áñçß·¤ ÙèçÌ ·¤è ƒæôá‡ææ ·¤èÐ ¿æ×çÜ´» âÚU·¤æÚU Ùð Ù çâÈü¤ ·¤æØüØôÁÙæ ÕÙæ§ü, ÕçË·¤ ·¤æÙêÙ ÕÙæ·¤ÚU ©âð ÚUæ’Ø ×ð´ ÂêÚUè ÌÚUã âð Üæ»ê Öè ·¤ÚUæØæÐ

ÚUæâæØçÙ·¤ ·¤èÅUÙæàæ·¤ô´ ¥õÚU ©ßüÚU·¤ô´ ÂÚU Âê‡æüÌØæ ÂýçÌÕ´Ï ·¤æÙêÙ ÕÙæÙð ·Ô¤ âæÍ çâ瀷¤× âÚU·¤æÚU Ùð ¿ÚU‡æÕh ÌÚUã âð ÚUæâæØçÙ·¤ ·¤èÅUÙæàæ·¤ô´ ¥õÚU ©ßüÚU·¤ô´ ÂÚU ÚUæ’Ø ×ð´ ÂêÚUè ÌÚUã âð ÂýçÌÕ´Ï Ü»æ çÎØæÐ âæÍ ãUèU ¹ðÌè ×ð´ §â·Ô¤ ©ÂØô» ·¤ÚUÙð ÂÚU âÁæ ¥õÚU Áé×æüÙð ·¤æ Öè ÂýæßÏæÙ ÚU¹æÐ ÚUæâæØçÙ·¤ ·¤èÅUÙæàæ·¤ô´ ¥õÚU ©ßüÚU·¤ô´ ·Ô¤ ©ÂØô» ÂÚU °·¤ Üæ¹ L¤Â° ·¤æ Áé×æüÙæ ¥õÚU ÌèÙ ×ãèÙð ·ñ¤Î ·¤è âÁæ ÌØ ·¤è »§üÐ ¿æ×çÜ´» âÚU·¤æÚU Ùð

§â ·¤æÙêÙ ·¤ô ÚUæ’Ø ×ð´ ÂêÚUè §ü×æÙÎæÚUè âð Üæ»ê Öè ·¤ÚUæØæÐ

ÚUæ’Ø ×ð´ Áñçß·¤ ÕôÇü ·¤æ »ÆÙ çâ瀷¤× âÚU·¤æÚU Ùð ÚUæ’Ø ×ð´ Áñçß·¤ ÕôÇü ·¤æ »ÆÙ ç·¤ØæÐ âæÍ ãè Áñçß·¤ ©ˆÂæÎô´ ·¤ô Üð·¤ÚU ÚUæcÅþèØ ¥õÚU ¥´ÌÚUÚUæcÅþèØ SÌÚU ÂÚU ·¤§ü âæÛæðÎæçÚUØæ´ ·¤èÐ ÁËÎ ãè çâ瀷¤× âÚU·¤æÚU Ùð ·Ô¤´Îý âÚU·¤æÚU âð ç×ÜÙð ßæÜæ ÚUæâæØçÙ·¤ ©ßüÚU·¤ ·¤æ ·¤ôÅUæ ÜðÙæ Öè Õ´Î ·¤ÚU çÎØæ ¥õÚU °ðâð ×ð´ ç·¤âæÙô´ ·¤ô Öè ×ÁÕêÚUè ×ð´ Áñçß·¤ ¹ðÌè ·¤ô ÂêÚUè ÌÚUã âð ¥ÂÙæÙð ·Ô¤ ÂýðçÚUÌ ãôÙæ ÂǸæÐ §â·Ô¤ âæÍ ãè ÚUæ’Ø ×ð´ Áñçß·¤ ¹ðÌè ·Ô¤ çÜ° çÙ»ÚUæÙè ¥õÚU â׋ßØ ·Ô¤ çÜ° Òçâ瀷¤× Áñçß·¤ ç×àæÙÓ ÕÙæØæÐ

ç×àæÙ âð ç×Üè ç·¤âæÙô´ ·¤è ×ÎÎ ç×àæÙ ·Ô¤ ÌãÌ ¥Ü»-¥Ü» ÿæð˜æô´ ×ð´ ç·¤âæÙô´ ·¤è ¥Ü»-¥Ü» â×SØæ¥ô´ ·¤ô Îð¹Ìð ãé° ÙèçÌØæ´ ÕÙæ§ü »§Z ¥õÚU ç·¤âæÙô´ ·¤ô ÂýçàæçÿæÌ ·¤ÚUÙð ·Ô¤ çÜ° ·¤§ü çàæçßÚU Ü»æ° »°Ð çàæçßÚU ×ð´ Áñçß·¤ ©ˆÂæÎô´ ·¤ô Üð·¤ÚU ç·¤âæÙô´ ·¤ô ×æ·¤üðçÅU´» ·¤ô Üð·¤ÚU ÂýçàæçÿæÌ ç·¤Øæ »ØæÐ ç×àæÙ ·Ô¤ ÌãÌ ÕǸð SÌÚU ÂÚU ç·¤âæÙô´ ·¤ô Áñçß·¤ ¹æÎ ©ÂÜŽÏ ·¤ÚUæÙæ âéçÙçà¿Ì ç·¤Øæ »ØæÐ §â·Ô¤ ¥Üæßæ ÕèÁ ©ˆÂæÎÙ ·Ô¤ çÜ° ÙâüçÚUØæ´ Ü»æ§ZÐ ÀôÅUð-ÀôÅUð SÌÚU ÂÚU ÚUæ’Ø ·¤è ·ë¤çá Öêç× ·¤ô ÂêÚUè ÌÚUã âð Áñçß·¤ ¹ðÌè ·¤ÚUÙð ·Ô¤ çÜ° ·¤æ× ç·¤ØæÐ

w®v{ ×ð´ Âê‡æü Áñçß·¤ ÚUæ’Ø ÕÙæ çâ瀷¤× ֻܻ vw âæÜô´ ·¤è ÂßÙ ·é¤×æÚU ¿æ×çÜ´» âÚU·¤æÚU ¥õÚU ç·¤âæÙô´ ·¤è ·¤Ç¸è ×ðãÙÌ ·Ô¤ ÕæÎ ßáü w®v{ ×ð´ çâ瀷¤× ·¤ô Âê‡æü Áñçß·¤ ÚUæ’Ø ƒæôçáÌ ç·¤Øæ »ØæÐ ÚUæ’Ø ·Ô¤ âÖè ç·¤âæÙ v®® ȤèâÎè Áñçß·¤ ©ˆÂæÎô´ ·¤æ ©ˆÂæÎÙ ·¤ÚU ÚUãð ãñ´Ð ÕÌæ Îð´ ç·¤ çâ瀷¤× ×ð´ ·¤ÚUèÕ |z ãÁæÚU ãð€UÅUðØÚU Öêç× ÂÚU ç·¤âæÙ ·¤ÚUèÕ } Üæ¹ ÅUÙ Áñçß·¤ ©ˆÂæÎô´ ·¤æ ©ˆÂæÎÙ ·¤ÚU ÚUãð ãñ´, Áô ÂêÚUð Îðàæ ×ð´ ·é¤Ü Áñçß·¤ ©ˆÂæÎô´ ·¤æ ֻܻ {z ÂýçÌàæÌ ãñÐ çâ瀷¤× ·Ô¤ ç·¤âæÙô´ Ùð Øã âæçÕÌ ç·¤Øæ ç·¤ Áñçß·¤ ¹ðÌè ·¤è ÚUæã ÂÚU ¿ÜÌð ãé° ©ˆÂæÎÙ ×ð´ ÕɸôžæÚUè ·¤è Áæ â·¤Ìè ãñÐ Main Hu Kisan

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·ë¤çá çßçÏ

पौधे कब व कैसे लगाएं

ÂõÏæ Ü»æÙð ·¤è çßçÏ

ÂõÏð Áô Öè ܻ氢 ©UÙ×ð´ çÙ ÙçÜç¹Ì »é‡æ ãUôÙð ¿æçãU°

@ ÂõÏæ »Ç÷UɸðU ×ð´ ©ÌÙè »ãÚUæ§ü ×ð´ Ü»æÙæ ¿æçã°, çÁÌÙè »ãÚUæ§ü Ì·¤ ßã ÙâüÚUè Øæ »×Üð ×ð´ Øæ ÂôÜèÍèÙ ·¤è ÍñÜè ×ð´ ÍæÐ ¥çÏ·¤ »ãÚUæ§ü ×ð´ Ü»æÙð âð ÌÙð ·¤ô ãæçÙ Âãé´¿Ìè ãñ ¥õÚU ·¤× »ãÚUæ§ü ×ð´ Ü»æÙð âð ÁǸð ç×Å÷UÅUè ·Ô¤ ÕæãÚU ÁæÌè ãñ, çÁââð ©Ù·¤ô ÿæçÌ Âãé´¿Ìè ãñÐ @ ÂõÏæ Ü»æÙð ·Ô¤ Âêßü ©â·¤è ¥çÏ·¤æ´àæ ÂçžæØô´ ·¤ô ÌôǸ ÎðÙæ ¿æçã°, Üðç·¤Ù ª¤ÂÚUè Öæ» ·¤è ¿æÚU-Âæ´¿ ÂçžæØæ´ Ü»è ÚUãÙð ÎðÙæ ¿æçã°Ð ÂõÏô´ ×ð´ ¥çÏ·¤ ÂçžæØæ´ ÚUãÙð âð ßæcÂôˆâÁüÙ ¥çÏ·¤ ãôÌæ ãñ ¥ÍæüÌ÷ ÂæÙè ¥çÏ·¤ ©Ç¸Ìæ ãñÐ ÂõÏæ ©ÌÙð ÂçÚU×æ‡æ ×ð´ Öêç× âð ÂæÙè Ùãè´ ¹è´¿ ÂæÌæ, €UØô´ç·¤ ÁǸð ç·ý¤ØæàæèÜ Ùãè´ ãô ÂæÌè ãñÐ ¥ÌÑ ÂõÏð ·Ô¤ ¥‹ÎÚU ÁÜ ·¤è ·¤×è ãô ÁæÌè ãñ ¥õÚU ÂõÏæ ×ÚU Öè â·¤Ìæ ãñÐ @ ÂõÏð ·¤æ ·¤Ü× ç·¤Øæ ãé¥æ SÍæÙ ¥ÍæüÌ÷ ×êÜßë‹Ì ¥õÚU âæ´·é¤ÚU ÇæÜè Øæ ç×ÜÙ çÕ‹Îé Öêç× â𠪤ÂÚU ÚUãÙæ ¿æçã°Ð §â·Ô¤ ç×Å÷UÅUè ×ð´ ÎÕ ÁæÙð âð ßã SÍæÙ âǸÙð Ü» ÁæÌæ ãñ ¥õÚU ÂõÏæ ×ÚU â·¤Ìæ ãñÐ @ ÁôǸ ·¤è çÎàææ Îçÿæ‡æ-Âçà¿× çÎàææ ·¤è ¥ôÚU ÚUãÙæ ¿æçã°Ð °ðâæ ·¤ÚUÙð âð ÌðÁ ãßæ âð ÁôǸ ÅUêÅUÌæ Ùãè´ ãñÐ @ ÂõÏæ Ü»æÙð ·Ô¤ Âà¿æÌ÷ ©â·Ô¤ ¥æâ-Âæâ ·¤è ç×Å÷UÅUè ¥‘Àè ÌÚUã ÎÕæ ÎðÙè ¿æçã°, çÁââð çâ´¿æ§ü ·¤ÚUÙð ×ð´ ÂõÏæ ÅUðɸæ Ù ãô Âæ°Ð @ ÂõÏæ Ü»æÙð ·Ô¤ ÌéÚU‹Ì ÕæÎ ãè çâ´¿æ§ü ·¤ÚUÙè ¿æçã°Ð @ Áãæ´ Ì·¤ â´ Öß ãô ÂõÏð âæØ´·¤æÜ Ü»æØð ÁæÙð ¿æçã°Ð @ ØçÎ ÂõÏð ÎêÚU ·Ô¤ SÍæÙ âð Üæ° »Øð ãñ´, Ìô ©‹ãð´ ÂãÜð »×Üð ×ð´ ÚU¹·¤ÚU °·¤ âŒÌæã ·Ô¤ çÜ° ÀæØæÎæÚU SÍæÙ ×ð´ ÚU¹ ÎðÙæ ¿æçã°Ð §ââð ÂõÏô´ ·Ô¤ ¥æßæ»×Ù ×ð´ ãé§ü ÿæçÌ ÂêÚUè ãô ÁæÌè ãñ´Ð §â·Ô¤ Âà¿æÌ÷ ©‹ãð´ »ÇU÷ɸUô´ ×ð´ Ü»æÙæ ¿æçã°Ð ÌéÚU‹Ì ãè »Ç÷Uɸð ×ð´ Ü»æ ÎðÙð âð ÂõÏô´ ·Ô¤ ×ÚUÙð ·¤æ ÖØ ÚUãÌæ ãñÐ

@ ÂõÏð ·¤è ©×ý ·¤× âð ·¤× °·¤ ßáü ãôÙè ¿æçã°Ð Îô ßáü âð ¥çÏ·¤ ©×ý ·Ô¤ ÂõÏð Öè Ùãè´ Ü»æÙæ ¿æçã°, ©Ù·Ô¤ ×ÚUÙð ·¤æ ¥çÏ·¤ ÖØ ÚUãÌæ ãñÐ @ ÂõÏð ØÍæâ Öß »êÅUè çßçÏ âð Øæ ·¤çÜ·¤æØÙ Øæ ©ÂÚUô‡æ çßçÏ âð ÌñØæÚU ç·¤Øð ãé° ãôÙð ¿æçã°Ð °ðâð ÂõÏð ·¤Ü×è Øæ »ýæ UÅUðÇ ÂõÏð ·¤ãÜæÌð ã´ñÐ °ðâð ÂõÏô´ ×ð´ ¥ÂÙð ÂñÌë·¤ ßëÿæ âð ·¤× âð ·¤× »é‡æô´ ×ð´ çßçÖ‹ÙÌæ ãôÌè ãñÐ ÕèÁ âð ÌñØæÚU ç·¤° »Øð ÂõÏð ÂñÌë·¤ »é‡æô´ ·¤ô çSÍÚU Ùãè´ ÚU¹ ÂæÌðÐ @ ÂõÏð ¥ÂÙð ç·¤S×ô´ ·Ô¤ ¥ÙéâæÚU âãè ãôÙð ¿æçã°Ð ¥ÌÑ ÂõÏð çßàßâÙèØ ÙâüÚUè âð ãè ×´»æ° ÁæÙð ¿æçã°Ð °ðâè ÙâüÚUè âð ÂõÏð Ùãè´ ÜðÙæ ¿æçã° çÁââð ×æÌë ßëÿæ Ù ãôÐ @ ç·¤âè Öè Âý·¤æÚU ·Ô¤ ÚUô» âð â´·ý¤ç×Ì Ùãè´ ãôÙð ¿æçã°Ð @ °·¤ ÌÙð ßæÜð âèÏð, ·¤× ª´¤¿æ§ü ßæÜð, Èñ¤Üð ãé° ©žæ× ÚUãÌð ãñ´Ð @ ÂõÏô´ ·¤æ ç×ÜÙ çÕ‹Îé ¥‘Àè ÌÚUã ÁéǸæ ãôÙæ ¿æçã°Ð @ ·¤çÜ·¤æØÙ Øæ ©ÂÚUô‡æ ç·¤° ãé° ÂõÏð ×ð´ ç×ÜÙ çÕ‹Îé Öêç× ·Ô¤ ·¤× âð ·¤× ÎêÚUè ÂÚU ãô ¥ÍæüÌ÷ ×êÜßë‹Ì ·¤æ Öæ» Øæ ÌÙæ ·¤× âð ·¤× Ü Õæ§ü ·¤æ ãôÙæ ¿æçã°Ð @ ÂõÏæ ¥ôÁSßè ÌðÁè âð ÕɸÌæ ãé¥æ ãôÐ @ ÂõÏæ ÂôÜèÍèÙ Øæ »×Üæ ×ð´ Ü»æ ãé¥æ ãôÐ °ðâð ÂõÏð Ü»æÙð ÂÚU ·¤× ×ÚUÌð ãñ´Ð @ ØçÎ ÂõÏð ÙâüÚUè âð ©¹æÇ𸠻Øð ãô Ìô ©Ù·¤è ÁǸô´ ×ð´ ÂØæüŒÌ ç×Å÷UÅUè ·¤æ çÂ‡Ç ãôÙæ ¿æçã°Ð

Main Hu Kisan

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