माहनामा अबक़री मैगज़ीन के जुलाई 2015 के एहम मज़ामीन हिंदी ज़बान में

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के जल ु ाई के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

माहनामा अबक़री मैगज़ीन

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के जल ु ाई के एहम मज़ामीन

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दफ़्तर माहनामा अबक़री

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मज़िंग चोंगी लाहौर पाककस्ट्तान

एडिटर: शैख़-उल-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मुहम्मद ताररक़

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महमद ू मज्ज़ब ू ी चग़ ु ताई ‫دامت برکاتہم‬

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मरकज़ रूहाननयत व अम्न 78/3 अबक़री स्ट्रीट नज़्द क़ुततबा मस्स्ट्जद

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हहिंदी ज़बान में

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के जल ु ाई के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

हाल ए हदल

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जो मैंने दे खा सुना और सोचा

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अपनी मोत का इन्तख़ाब ख़ुद करें एडिटर के क़लम से

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रब को, पैग़म्बर को, ईमान और क़ुरआन के ना मान्ने वाले इस दन्ु या में मौजूद हैं मोत एक ऐसी हक़ीक़त

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है इस को ना मान्ने वाले आज तक ना सुने ना दे खे। मेरे ममज़ाज में तहक़ीक़ और तफ़क्कुर का शुरू से

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जज़्बा है कोई भी शख़्स इस दन्ु या से रुख़्सत हो जाये मैं हमेशा कोमशश करता हू​ूँ मोत कैसी हुई ककस

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हालत में हुई मरा कैसे? और ककस तरह? हमारे एक दोस्ट्त स्जन को हम ममलक साहब कहते हैं के वामलद

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जो इस वक़्त पपचान्वे साल से ज़्यादा की उम्र के हैं मौसफ़ ू बहुत दरवेश बा कमाल वली हैं। मैंने एक दफ़ा

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अज़त ककया कोई पुराना वाक़्या या मुशाहहदा सुनाइए। फ़मातने लगे हमारे गाूँव से आगे दरू एक गाूँव है वहािं

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एक मशहूर चोर होता था। लोगों की गाये भैंस बेल और चीज़ें चरु ाना उस का फ़न था कई बार पमु लस ने

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पकड़ा, सज़ाएिं भुगतीिं लेककन चोरी से बाज़ नहीिं आता था। एक दफ़ा एक भैंस चोरी कर के आ रहा था

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गममतयों की रातें थीिं, रास्ट्ते में एक ज़हरीले सािंप ने िसा। हमारी बस्ट्ती के क़रीब था, उसे एह्सास हुआ कक

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सािंप का ज़ेहर काम कर गया, बस्ट्ती वालों को ज़ोर ज़ोर से आवाज़ें दे ने लगा रात का वक़्त था, हर तरफ़ सन्नाटा था, कुछ लोग उठे किर और उठे और सब को तआरुफ़ करवा कर ज़ोर ज़ोर से कह रहा था मैं फ़लािं

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बस्ट्ती का मशहूर चोर हू​ूँ। लोग है रान! गाये को उसने एक जगा बाूँध हदया और ख़द ु पाऊूँ पकड़ कर बेठा

और लोगों से कह रहा था कक मुझे ककसी ज़हरीले सािंप ने िसा है बस मेरा वक़्त आ गया है , मैं बच ् नहीिं

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सकता। ये गाये मैं फ़लािं गाूँव के फ़लािं शख़्स की चोरी कर के लाया हू​ूँ। किर अपनी स्ज़न्दगी की चोररयािं

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बताने लगा, फ़लािं चीज़ फ़लािं से चोरी की, और मेरे बेटों को मेरी वसीयत कर जाना कक उन को ये चीज़ें वापस करें किर अपनी गज़ ु श्ता स्ज़न्दगी पर तोबा ननदामत करने लगा और लोगों को गवाह बनाने लगा कक दे खो लोगों मैंने तोबा की है और कल्मा पढ़ा इस दन्ु या से रुख़्सत हो गया। चौधरी जावेद साहब अपना Page 2 of 41


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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के जल ु ाई के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

वाक़्या सुनाने लगे कक उस दौर की बात थी जब मैं रावलपपिंिी के वकतशॉपी मोहल्ले में रहता था किर मैंने वहािं से यहाूँ कोठी बनाई मुझे पैग़ाम ममला कक तेरे दोस्ट्त का आख़री वक़्त है और वो तुझे याद कर रहा है , मैं उस के पास गया लोग इकट्ठे थे मोत व हयात की कश्मकश थी मझ ु े दरू से कहने लगा फ़लािं का बेटा है

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मैं ने कहा हाूँ और कहा मैं तेरा इिंतज़ार कर रहा था और मैं अल्लाह से अस्ट्तग़फ़ार कर रहा हू​ूँ और सब को और मझ ु े मत ु वज्जह कर के कहने लगा कक मेरे कल्मे के गवाह रहना और कल्मा पढ़ा और इस दन्ु या से

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रुख़्सत हो गया। हालािंकक लोगों ने आज तक उसे मस्स्ट्जद जाते नहीिं दे खा था। मिंिी बहाउद्दीन के साथ एक गाूँव है । ममयािंवाल, वहािं के मेरे एक दोस्ट्त राना साहब ने वाक़्या सुनाया एक साहब सारी स्ज़न्दगी ईमान

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आमाल की स्ज़न्दगी गुज़ारते आख़री वक़्त में मस्स्ट्जद में बेठे उठे और घर गए और कहने लगे मेरी

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तबीअत ख़राब हो रही है किर घरवालों को कहा कक मेरा ईमान मुफ़स्ट्सल सुनें, ईमान मुफ़स्ट्सल सुनाया।

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बस ये सुनाया और इस दन्ु या से रुख़्सत हो गए। मेरी वामलदा मोहतरमा‫ رحمت ہللا علیہ‬मेरे दादा मरहूम

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हाजी अल्लाह बख़्श चग़ ु ताई‫ رحمت ہللا علیہ‬के बारे में फ़मातती हैं कक जब आख़री वक़्त आया सुबह फ़ज्र की

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नमाज़ पढ़ी स्ज़क्र आमाल नतलावत करते रहे और किर चारपाई पर बैठ कर इशराक़ पढ़ी और किर वहीिं

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टे क लगा कर दआ ु मािंगते मािंगते आख़ख़र हाथ गगर गए और उन की गदत न भी ढलक गयी, यू​ूँ रूह इस

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दन्ु या से चली गयी। नानी अम्माूँ ‫ رحمت ہللا علیہ‬सो साल से ज़्यादा उम्र में फ़रवरी २००९ में फ़ॉत हुईं। मेरे

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परदादा मुफ़्ती हाजी फ़तह मुहम्मद चग़ ु ताई ‫رحمت ہللا علیہ‬स्जन को लोग आम तौर पर हाजी फ़तह

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मह ू ु म्मद कहते थे। सब ु ह सब लोगों से अस्ल्वदा कर रहे हैं पड़ोमसयों में हहन्द ू भी थे मस ु ल्मान भी, मौसफ़

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१९३३ में फ़ॉत हुए। अल्ग़ज़त हर शख़्स को अस्ल्वदा कर रहे थे और साथ फ़मात रहे थे कक अगर कोई कमी

कोताही हो तो मुआफ़ कर दे ना किर अपनी क़दीमी मस्स्ट्जद में गए मस्स्ट्जद को अस्ल्वदा ककया, लोग पूछ

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रहे थे कक हाजी साहब ख़ैररयत तो है आप सब को अस्ल्वदा कह रहे हैं। तो फ़मातने लगे बस महसूस होता है कक वक़्त आ गया है , रात को तहज्जुद की नमाज़ पढ़ी आमाल अस्ट्तग़फ़ार ककया अपने अिंगूठे कपड़े के

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टुकड़े से ख़द ु बािंधे हाथ पाऊूँ सीधे ककये चादर ओढ़ी सर दाएिं तरफ़ ककया और दन्ु या की स्ज़न्दगी को

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अस्ल्वदा कर के सो गए। मेरे घर के क़रीब एक साहब ने दक ु ान लगाई, बाज़ार के दस ू रे कोने पर एक और साहब ने उसी शोअबे की दक ु ान लगायी। उनको बहुत ग़स्ट् ु सा आया पहले तो उन्हों ने उन के तालों में एल्फ़ी िाल दी, वो दक ु ानदार बाज़ ना आया तो उन की दक ु ान को आग लगा दी, मौसूफ़ के ममज़ाज में Page 3 of 41


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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के जल ु ाई के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

हसद,तिंग नज़री, कूट कूट कर भरी हुई थी हदन गुज़रते गए, हालात ने फ़ैसला ककया स्जन की दक ु ान पर एल्फ़ी िाली थी उन का कारोबार बढ़ा एक से दो , दो से तीन दक ु ानें हो गयीिं, इन का कारोबार आहहस्ट्ता आहहस्ट्ता ख़त्म होना शरू ु हुआ किर एक भाई मर गया उस की बीवी मर गयी घर में परे शानी, मस्ु श्कलात,

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बीमाररयािं, लड़ाई झगड़े किर ख़द ु मर गए और अजीब मौत मरे और मुझे ग़स्ट् ु ल दे ने वाले साहब ने बताया उन का चेहरा बहुत भयानक था, नाक मिंह ु से ख़न ू ख़त्म ही नहीिं हो रहा था। स्ज़न्दगी भर लोगों के साथ

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हसद कीना बुग़्ज़ रखना। रखते रखते आख़ख़र अजीब मौत मर गए। मैं जब सातवीिं जमाअत पढ़ता था तो एक पुराने हे ि मास्ट्टर साहब थे, मेरे वामलद मरहूम‫ رحمت ہللا علیہ‬ने मुझे और मेरे भाई को उन के सुपुदत

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ककया हुआ था मौसूफ़ बहुत नेक तजुबेकार उन की सुपुरहदगी का मक़सद पढ़ाना कम और तरबबयत

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ज़्यादा थी। वहािं मेरे एक क्लास फ़ेलो थे उन के वामलद का नाम मुहम्मद हुसैन शाह साहब था एक दफ़ा

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उन के बेटे ममले, मैंने पूछा वामलद साहब कैसे हैं? फ़मातने लगे वो तो कई साल पहले फ़ॉत हो गए। मैंने

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कहा मोत की कैकफ़य्यत? फ़मातने लगे जुमा के हदन उठे , दाढ़ी के ख़त बनवाए, नाख़न ु काटे और किर

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अपने स्जस्ट्म को साफ़ ककया, ग़स्ट् ु ल ककया, और ग़स्ट् ु ल करने के बाद किर बेठे और थोड़ी ही दे र में अल्लाह

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के पास चले गए बस ये ऐसी मोत हुई मैं इतनी अच्छी मोत पर है रान भी हू​ूँ। मुझे मौलाना कलीम

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मसद्दीक़ी‫ دامت برکاتہم‬ने मौलाना अबू अल्हसन अली नदवी ‫ رحمت ہللا علیہ‬की मोत का वाक़्या सन ु ाया

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रमज़ान-उल-मुबारक का जुमा था हज़रत ने पूछा आख़री जुमा है ? सागथयों ने कहा नहीिं हज़रत फ़मातया

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नहीिं आख़री जम ु ा है, सब ु ह उठे , दाढ़ी के ख़त बनवाये, ख़ब ू अच्छी तरह नहाए, अच्छा मलबास पेहना, ख़श्ु बू

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लगाई, शेरवानी पेहनी, किर जुमा के हदन सूरत कहफ़ पढ़ी और किर सूरह यासीन पढ़ी और किर थोड़ी ही

दे र बाद कल्मा पढ़ते हुए इस दन्ु या से रुख़्सत हो गए। मेरे दोस्ट्त के वामलद ग़ल ु ाम मुहम्मद साहब सुबह

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की नमाज़ पढ़ कर तशरीफ़ लाये हाथ में तस्ट्बीह थी घर के ननज़ाम और कुछ स्ज़न्दगी की ज़रूररयात की बातें करते इसी तस्ट्बीह के साथ लेटे और इस दन्ु या से रुख़्सत हुए। मौसूफ़ की एक बहुत बड़ी ख़ब ू ी हहल्म,

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बदातश्त, मसला रहमी अपना हक़ छोड़ हदया और अपने हक़ का कभी मत ु ाल्बा भी ना ककया। ये वो बन् ु यादें

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थीिं स्जस की वजह से तस्ट्बीह और स्ज़क्र और कोई एक नमाज़ क़ज़ा ककये बग़ैर अल्लाह तआला ने बेह्तरीन मोत अता फ़मातई। लाहौर के एक मस्ु ख़्लस ज़स्ु ल्फ़क़ार साहब की वामलदा नमाज़ पढ़ कर तस्ट्बीह पर सूरह कौसर पढ़ रही थीिं और साथ मेरा दसत लगा हुआ था वो सुन रही थीिं बस उसी दौरान सर झुकाया Page 4 of 41


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और किर गगर गयीिं सूरह कौसर पढ़ते पढ़ते अल्लाह की बारगाह में चली गयीिं। मरहूमा सारी उम्र सब्र हौसले ईमान और ककफ़ायत शुआरी की स्ज़न्दगी गुज़ार कर आख़री वक़्त में अल्लाह का नाम लेते लेते इस दन्ु या से रुख़्सत हो गयीिं। बहुत हौसले वाली थीिं, बहुत सब्र वाली थीिं और बहुत ईमान वाली थीिं अक्सर

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मेरे पास आती रहती थीिं। चौधरी हश्मत अली साहब माल्दार थे, साबबक़ पाककस्ट्तान के वज़ीर आज़म

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चौधरी मह ु म्मद अली के क़रीब तरीन ररश्तेदारों में से थे स्जस वक़्त वो

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माहनामा अबक़री जल ु ाई 2015 शम ु ारा निंबर 109_______________Page No. 3

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फ़ॉत हुए कमरे में से है रत अिंगेज़ ख़श्ु बू ननकली, वो ख़श्ु बू मैंने ख़द ु सूँघ ू ी। मैं ने उन के जनाज़े को कन्धा

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हदया, अनोखी ख़श्ु बू जो कक इस दन्ु या की नहीिं थी। बहुत ज़्यादा महसूस की, मरने के बाद बेशुमार लोगों

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ने उन को इतनी अच्छी हालत में दे खा कक शायद गुमान से बाला तर। उदत ू बाज़ार लाहौर में ककताबों की

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एक दक ु ान मक्तबा क़ुद्दूमसया है । उमर फ़ारूक़ साहब एक जान्ने वाले का वाक़्या सुनाने लगे, उन की

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साबबक़ा स्ज़न्दगी मुिंफ़ररद थी, एक साहब ने उन्हें मस्स्ट्जद नबवी‫ ﷺ‬शरीफ़ में ननहायत अच्छी और

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मत्ु तकक़याना स्ज़न्दगी में दे खा, है रान हुए आप की साबबक़ा स्ज़न्दगी तो कुछ अजीब व ग़रीब थी स्जस को

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लोग अच्छा नहीिं समझते थे बस्ल्क लोग बच ् कर ननकलना ही अच्छा समझते थे ये तब्दीली कैसे हुई? ठिं िी आह भर कर कहने लगे कक मेरे भाई ने सारी स्ज़न्दगी मसास्जद की ख़ख़दमत, मदाररस की ख़ख़दमत,

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दीन की, दीन वालों की, हज्ज, उमरे , नमाज़, तस्ट्बीह, सद्क़ात ख़ैरात वग़ैरा सब ककया। किर वो बीमार हो

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गए और बहुत अरसा बीमारी की हालत में रहे । इतना बीमारी की हालत में रहे कक बीमारी ने उन के हौसले ख़त्म कर हदए। एक दफ़ा सब घरवालों को इकट्ठा ककया कहने लगे: क़ुरआन पाक ले आएिं, क़ुरआन पाक

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को कहने लगे या अल्लाह तू जानता है मैं ने सारी स्ज़न्दगी तेरी और क़ुरआन की ख़ख़दमत की लेककन तू ने

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मझ ु े बीमार ककया मैं तझ ु े नहीिं मानता और तेरे क़ुरआन को नहीिं मानता ये बोल आख़री थे और वो इस दन्ु या से रुख़्सत हो गए। मेरे वामलद साहब के एक लकड़ी के कारीगर थे स्जन को बहुत अमीर लोग लकड़ी के काम के मलए बल ु ाते थे क्योंकक मौसफ़ ू बहुत ढीला काम, ननहायत सस्ट् ु त काम और ननहायत मेहिंगी Page 5 of 41


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फ़ीस। लेककन वामलद साहब उन से काम कराते थे, इब्तदा में १९९१ में जब मैं ने बाक़ाइदा प्रैस्क्टस शुरू की तो लकड़ी का बहुत बड़ा काम तक़रीबन एक साल तक होता रहा और वो मेरा स्क्लननक तय्यार हुआ जो कक वामलद साहब ने अपनी ननगरानी में तय्यार कराया और ये उस्ट्ताद हदन रात इसी पर मेहनत करते रहे

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और वाक़ई शाहकार काम ककया। मौसूफ़ नमाज़ क़ुरआन तस्ट्बीह की तरफ़ ज़्यादा ध्यान नहीिं दे ते थे, मुझे पता चला कक बीमार हैं मैं अयादत करने गया, जाते ही मैं ने तआरुफ़ कराया पेहचान गए और मझ ु े बार

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बार कहने लगे ताररक़ ममयािं! कक हम बस अब मस्स्ट्जद बनाएिंगे और जल्द ही बनाएिंगे और ये लफ़्ज़ बार बार कह रहे थे जैसे कक वो अपने होश व हवास में ना हो, मुझे पता चला कक उन का आख़री वक़्त ननहायत

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लाजवाब, अल्लाह उस के रसूल‫ ﷺ‬की यादें और यू​ूँ अपनी स्ज़न्दगी के हदन पूरे कर के बेह्तरीन ख़ात्मा

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पा कर इस दन्ु या से चले गए। मैं एक गाूँव चक ४७ में आज से कोई २५ साल पहले गया, एक साहब को

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दे खा कक उस के दोनों होंट सफ़ेद हो गए थे, जैसे महसस ू होता था बरस या िुलबेहरी के ननशाूँ हैं, बताने

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वालों ने बताया कक शराब इतनी पीते हैं कक होंट जल गए हैं, शराब की कसरत से आख़ख़र बीमार हो गए,

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मुल्तान ननश्तर अस्ट्पताल में लाया गया िॉक्टरों ने कहा कक इन्हें थोड़ी थोड़ी शराब पीना चाहहए एक दम

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नहीिं छोड़नी चाहहए उन्हों ने ऐसी तौबा की, कई हफ़्ते अस्ट्पताल में रहे , मशफ़ायाब नहीिं हो रहे थे,

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आख़ख़रकार एक हदन कहने लगे मुझे मस्स्ट्जद में ले चलो वज़ू ककया मस्स्ट्जद की मेहराब में जा कर नमाज़

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पढ़ने लग गए और जब सजदे में गए वहीिं रूह परवाज़ कर गयी। मेरे पड़ोस में एक ख़्वाजा साहब रहते थे,

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मौसूफ़ बहुत ग़लत अक़ाइद के मामलक थे, लेककन नामालूम क़ुदरत को क्या अदा पसिंद आई और क़ुदरत

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ने उन को चन ु कराए, और कहने ु ा आख़री वक़्त कहने लगे क़ुरआन पाक ले आएिं क़ुरआन को दे खा, मस्ट्

लगे अल्लाह पाक मैं साबबक़ा अपनी स्ज़न्दगी और अक़ाइद से तौबा करता हू​ूँ जो क़ुरआन की सच्ची

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स्ज़न्दगी है उसी पर आता हू​ूँ और बा क़ाइदा वमसयत की मझ ु े फ़लािं क़ब्रस्ट्तान में स्जस में सच्चे लोग दफ़न

हैं वहाूँ दफ़न करना और यू​ूँ स्ज़न्दगी का आख़ख़र बेह्तरीन और लाजवाब कर के चले गए। कक़लआ िेर

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आवर बहावल्परु के क़रीब है , वहािं के एक सख़ी और बा असर आदमी क़ाज़ी अल्लाह हदत्ता साहब हैं।

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मौसूफ़ सेहरा में मेरे हम्सफ़र होते हैं, क्योंकक बहुत बूढ़े हैं उन के साथ बहुत तजुबातत हैं। अपने स्ज़न्दगी के मुशाहहदात बताने लगे कक एक शख़्स का नाम मुराद हुसैन था, लोग उसे मुराद ू कहते थे दन्ु या की हर इल्लत हर बुरी आदत उस के अिंदर मौजूद थी एक हदन दोस्ट्तों के पास गया और कहने लगा मैं कल मर Page 6 of 41


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जाऊूँगा। उस के दस ू रे हदन रमज़ान का आख़री जुमा था और कहने लगा मेरे कबूतर बेच कर कफ़न दफ़न की तरतीब बना दे ना। ननहायत ग़रीब था और उस के ज़्यादा वाररस भी नहीिं थे। लोग है रान हुए और मज़ाक़ करने लगे और एक बात ख़ास ताकीद की दे खो जब ऐलान जनाज़े का करना तो ये ना कहना कक

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मुराद ू मर गया है क्योंकक कोई मेरे जनाज़े में नहीिं आएगा, मैं क़ाबबल ए नफ़रत शख़्स हू​ूँ, बस ये कह दे ना ककसी परदे सी का जनाज़ा है , हाूँ नमाज़ जम ु ा के बाद मेरा जनाज़ा पढ़ाना ता कक ज़्यादा लोग शाममल हों।

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वाक़ई अगले हदन वो फ़ॉत हो गया, ऐलान हुआ ककसी परदे सी का जनाज़ा है कबूतर बेच कर कफ़न दफ़न की तरतीब बनाई गयी लोगों का हुजूम था, जनाज़े के बाद जब पता चला तो लोग है रान हुए इतनी बुरी

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स्ज़न्दगी और इतनी अच्छी मोत। मेरे अज़ीज़ ममयाूँ अह्सन एक मुस्ख़्लस और नेक जवान हैं, ददत और

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ख़ल ु ूस रखने वाले, बताने लगे मेरी दक ु ान के सामने एक हे रोइनी पाख़ाने गन्दगी में लत पत मोत व

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हयात की कश्मकश में था, इमरजेंसी वालों को और दस ू रे रफ़ाई इदारों को बुलाया कक ककसी तरह इस को

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उठा कर अस्ट्पताल ले जाओ, ककसी ने भी इस की स्ज़िंदा लाश को उठाने से इनकार कर हदया ख़ैर ककसी ना

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ककसी तरह कर के इस को सर गिंगा राम अस्ट्पताल की इमरजेंसी में ले गए, मैं ने ख़द ु अपने कानों से उस

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की ज़बान से कल्मा सुना। वो यू​ूँ स्ज़न्दगी का एक अधूरा बाब छोड़ कर बज़ाहहर स्ज़न्दगी को ख़राब कर

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गया लेककन अब्दी आख़ख़रत की आला स्ज़न्दगी पा कर इस दन्ु या से रुख़्सत हो गया। मैं बे शम ु ार लोगों से

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ममला स्जन्हों ने मय्यत को नहलाया उन से तजुबातत मुशाहहदात पूछे एक दफ़ा हरम काअबा में हर रोज़

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दसत दे ने वाले मोहतरम मक्की साहब ने भी ये बात फ़मातई कक जन्नती की जब इस दन्ु या से रूह ननकलती

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है उस को वो लज़्ज़त नसीब होती है जो हालत अिंज़ाल में होती है । ये बात बड़ी अनोखी थी किर मैं ने ग़स्ट् ु ल

दे ने वालों से पूछा, बे शुमार ने बताया कक मय्यत की रूह जब ननकलती है तो ककसी का पाख़ाना ननकला

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हुआ होता है ककसी का पेशाब और बताया कक वाक़ई कुछ ऐसे होते हैं स्जन के कपड़े मादा तोलीद से आलूदह होते हैं और ये बात वाक़ई मक्की साहब की जो कक काअबा शरीफ़ में बैठ कर रोज़ाना दसत दे ते हैं

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बबल्कुल ठीक है कक अल्लाह पाक उस को इस लज़्ज़त में मब्ु तला कर के मोत की तक्लीफ़ भी नहीिं दे ते।

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१९६५ की जिंग में एक सूबेदार मुझे अपना मुशाहहदा बताने लगे कक हमारे फ़ौजी जवान स्जतने भी शहीद हुए चिंद को ग़स्ट् ु ल दे ने का मझ ु े मौक़ा ममला उन के साथ भी यही कैकफ़य्यत अिंज़ाल की थी। भाई अब्दरु त हमान नूनारी पुराने बूढ़े बुज़ुगत सारी स्ज़न्दगी ईमान आमाल की स्ज़न्दगी गुज़ारी, बेटे को ममलने Page 7 of 41


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आये बेटा दावत की राह में चल रहा था, रमज़ान-उल-मुबारक था, सुबह की नमाज़ के बाद बबस्ट्तर के साथ वाले शख़्स से कहा मेरा नाम फ़लािं है , ये मेरा शनाख़्ती काित और ये मेरा पता और दे ख मेरा वक़्त आ गया है (हालािंकक बबल्कुल सेहत्याब थे) और मेरे कल्मे का गवाह रहना, पहला कल्मा दस ू रा तीसरा ६ कल्मे

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सुनाये ईमान मुफ़स्ट्सल सुनाया और इस दन्ु या से रुख़्सत हो गए। क़ाररईन! ये चिंद वाक़्यात स्जन में मसफ़त और मसफ़त एक चीज़ नज़र आती है वो नज़र आती है कक वो स्जस को अपनी रे हमत से ढाूँक ले क्योंकक

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ख़ात्मा बबल ख़ैर रे हमत से, मोत का कल्मा रे हमत से, और जन्नत रे हमत से ममलेगी। हम ककसी के बारे में क्या कह सकते हैं वो अच्छा है , या बुरा है कुत्ता है ख़ख़न्ज़ीर है या इिंसान हम ककसी के बारे में फ़ैसला

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क्या कर सकते हैं। ये बात अटल हक़ीक़त है कक ईमान आमाल की स्ज़न्दगी में बहुत अच्छी मोत आती है

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और घहटया स्ज़न्दगी पर बहुत बुरी मोत आती है । लेककन अल्लाह के हाूँ हर चीज़ की ताक़त और क़ुदरत है

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मेरा रब स्जस तरह स्जस के मलए फ़ैसले चाहे कर दे उस से कौन पूछ सकता है ? उस से कौन सवाल कर

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जाने कक उस करीम को तू है कक वो पसिंद

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ज़ाहहद ननगाह ए कम से ककसी ररन्द को ना दे ख

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सकता है? मलहाज़ा ककसी को घहटया नज़र से ना दे खें बस िरते रहें और नेकी करते रहें

नोट: क़ाररईन! आप के पास भी अगर ककसी की मोत के वाक़्यात हों तो हमें ज़रूर तहरीर करें मुन्तस्ज़र

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रहें गे।

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माहनामा अबक़री जल ु ाई 2015 शम ु ारा निंबर 109_______________Page No.4

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के जल ु ाई के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

दसस रूहाननयत व अम्न कम्ली वाले ‫ ﷺ‬का ग़ल ु ाम बन कर तो दे ख!

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शैख़-उल-वज़ाइफ़ हज़रत हकीम मुहम्मद ताररक़

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महमूद मज्ज़ूबी चुग़ताई‫دامت برکاتہم‬

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हफ़्तवार दसस से इक़्तबास

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वो नक़्शा आज भी पहाड़ों को याद होगा: कम्ली वाले ‫ ﷺ‬अपनी नहीिं ककसी और की बकररयािं चरा रहे

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थे। जबल सूर का वो नक़्शा आज भी उन पहाड़ों को याद होगा! आज भी आसमान को वो है रत अिंगेज़

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मिंज़र याद होगा। सहदयाूँ गज़ ु रने के बावजूद जबल सूर का पहाड़ आज भी वेसे ही खड़ा हुआ है कक जहाूँ पर

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सवतरर कौनैन ‫ ﷺ‬इस उम्मत को ये पैग़ाम दे कर गए हैं कक पाऊूँ में जत ू ा नहीिं लेककन शान ये है कक आप

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‫ ﷺ‬के इशारे से उहद पहाड़ सोने का बन जाये! मुबारक उिं गमलयों से पानी के चश्मे बह ननकलें ! स्जन के

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एक इशारे पर अल्लाह पाक बारह हज़ार के लश्कर की ख़ोराक ज़ख़ीरा कर दें ! ग़म गुसार नबी ‫ ﷺ‬ने

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अपनी उम्मत के ग़रीब को ये पैग़ाम हदया है कक अगर तेरे पास ग़रु बत, तिंगदस्ट्ती है , तेरे बच्चे ज़्यादा हैं, तेरा घर छोटा है , तेरी नोकरी छोटी है और तेरा ज़ररया आम्दनी नहीिं है तो तुम ने परे शािं नहीिं होना, कोई

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हजत नहीिं, तेरे हबीब ‫ ﷺ‬के पाऊूँ में भी जूता नहीिं था! उन के सर पर भी कपड़ा नहीिं था! लेककन कम्ली वाले ‫ ﷺ‬ने अपने रब को नहीिं छोड़ा था।

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आज तू कम्ली वाले ‫ ﷺ‬का वो ग़ल ु ाम बन जा कक अगर तेरे हाूँ तिंग दस्ट्ती है , फ़क़्र व फ़ाक़ा है , तेरी

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ज़रूरतें पूरी नहीिं होतीिं, कोई हजत की बात नहीिं! बस तू मुहम्मद ‫ ﷺ‬की ग़ल ु ामी को ना छोड़। एक वक़्त आएगा! जब तेरा रब तेरी नस्ट्लों को भी पालेगा! तेरा रब तझ ु े बहुत अता करे गा! यही पैग़ाम हमारे मलए भी

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है कक हर हाल में आक़ा ‫ ﷺ‬की ग़ल ु ामी ही सुरख़ुरूई का बाइस है । शादी है तो उस में ये पैग़ाम है कक जो ख़मु शयाूँ तुझे रब ने दी हैं तू उन ख़मु शयों में आक़ा कम्ली वाले ‫ ﷺ‬को भी याद रख। उन के एह्सानात को Page 9 of 41


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भी याद रख और तझ ु े जो ग़म हदया है तू दे ख कक हमारे आक़ा‫ ﷺ‬ने भी ग़म सहा है । आक़ा ‫ ﷺ‬को बहुत सारे ग़म ममले हैं। इब्राहीम‫ رضی ہللا تعالی عنہ‬बेटा है उस की रे हलत पर आूँखों से ज़ार व क़तार आिंसू रवािं हैं, उस को हाथ में मलया हुआ है , हदल में ग़म व अन्दोह की कैकफ़य्यत तारी है, सवतरर कौनैन ‫ ﷺ‬की

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बेहटयािं, सवतरर कौनैन ‫ﷺ‬के बेटे उन की स्ज़न्दगी में फ़ॉत हुए हैं। आप‫ ﷺ‬को उम्मल ु मोअममनीन हज़रत ख़दीजा ‫ رضی ہللا تعالی عنہا‬का ग़म स्ज़न्दगी में ही ममला है । आख़ख़र वो सारे ग़म जो सवतरर कौनैन

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‫ ﷺ‬को ममले उन ग़मों में आप ‫ ﷺ‬ने अपनी कैकफ़य्यत कैसी रखी? ख़श ु ी में आप‫ ﷺ‬की कैकफ़य्यत कैसी थी? अल्लाह जल्ल शानुहू के साथ तअल्लुक़ कैसा था? बाज़ार में कैसे थे? घर में कैसे थे? स्ज़न्दगी

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है ।

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में कैसे थे? हम वक़्त कैकफ़य्यत कैसी थी? इन सारी कैकफ़य्यात को मद्द नज़र रख कर चलना ही ग़ल ु ामी

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" ग़ल ु ाम मुस्ट्तफ़ा ‫ ﷺ‬बन कर बबक जाऊिं मदीने में "

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इस मलए ग़ल ु ाम रसूल ‫ ﷺ‬बनें , ग़ल ु ाम मुहम्मद ‫ﷺ‬बनें ग़ल ु ाम अहमद ु ाम मुस्ट्तफ़ा ‫ ﷺ‬बनें , ग़ल

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‫ ﷺ‬बनें।

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ज़रूररयात ज़ज़न्दगी: मेरे मोहतरम दोस्ट्तो! कुछ चीज़ें ज़रूरत के साथ लगा कर दी गयी हैं। खाना हमारी

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ज़रूरत है , पीना हमारी ज़रूरत है , शादी हमारी ज़रूरत है , मलबास हमारी ज़रूरत है , सदी से बचना हमारी

ज़रूरत है, गमी से बचना हमारी ज़रूरत है । ये सारी हमारी ज़रूरतें हैं और अल्लाह ने ये सारी ज़रूरतें हमारे

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साथ लगा दी हैं। किर ज़रूरत लगा कर अल्लाह ने हमें इन ज़रूरतों का मोह्ताज और ग़ल ु ाम भी बना

ज़रूरत आमने सामने है ।

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े ी। अब रब और हदया कक खाना नहीिं खाएिं गे तो पेट कैसे भरे गा। पानी नहीिं पपएिंगे तो प्यास कैसे बझ ु ग

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इिंसानी ममज़ाज: इिंसान का अपना एक ममज़ाज है जहाूँ से उस की ज़रूरतें पूरी होती हैं वो कहता है मैं यहाूँ से पल रहा हू​ूँ। बीवी कहती है ममयािं अगर दक ु ान पर नहीिं जायेंगे तो बच्चे कैसे पलेंगे। ममयािं दफ़्तर में नहीिं

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जायेंगे तो बच्चे कैसे पलेंगे। ममयािं अपनी सन ्अत और नतजारत में नहीिं जायेंगे तो बच्चे कैसे पलेंगे और

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किर ममयािं का भी ख़्याल यही होता है कक मुझे और मेरे बीवी बच्चों को, मेरी दक ु ान, दफ़्तर, नतजारत और सन ्अत और तनख़्वाह पाल रही है ।

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पररिंदों जैसा यक़ीन: हदीस के अल्फ़ाज़ हैं सवतरर कौनैन‫ ﷺ‬ने फ़मातया, मफ़हूम है : अगर इिंसान का यक़ीन इन पररिंदों की तरह हो जाये कक पररिंदे सुबह तो ख़ाली हाथ जाते हैं किर शाम को हरे भरे आते हैं,

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अल्लाह ग़ैब से उन को पालते हैं इसी तरह अल्लाह पाक अपने बन्दे को भी दस्ट्त ए ग़ैब से अता फ़मातते हैं। अल्लाह ज़रूरतें पैदा होने ही नहीिं दे ता, ज़रूरतें पैदा होंगी तो इिंसान मोह्ताज बनेगा खाने का मोह्ताज, पीने का मोह्ताज, उठने का मोह्ताज, बैठने का मोह्ताज, गमी का मोह्ताज, सदी का मोह्ताज, प्यास

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का मोह्ताज। एक दस्ट्त ए ग़ैब ये भी है कक अल्लाह बग़ैर तलब अता कर दे ता है , अल्लाह बग़ैर ख़्वाहहश

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के परू ा कर दे ता है । अल्लाह पाक किर ख़्वाहहश को भी पैदा नहीिं होने दे ता, अल्लाह इस के बग़ैर ही

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स्ज़न्दगी का ननज़ाम चला दे ता है । और ऐसा उस वक़्त होता है जब बन्दा अल्लाह का बन जाता है । हर

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पल, हर लम्हा, हर लेह्ज़ा उस की नज़र अल्लाह पर रहती है ।

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अल्लाह,अल्लाह मसखा दें !: एक अल्लाह वाले के पास एक माई आई कहने लगी "हज़रत मुझे अल्लाह

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अल्लाह मसखा दें " अल्लाह वाले ने फ़मातया: "तुझे मसखाना आसान है " उन्हों ने मज़ीद फ़मातया: "बच्चे को

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मक्तब, स्ट्कूल, या कॉलेज में पढ़ने के मलए भेजते हो?" ख़ातून ने अज़त की "जी हज़रत भेजते हैं" तो

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अल्लाह वाले ने फ़मातया: "भेजने के बाद क्या तू उस से ग़ाकफ़ल हो जाती है ?" ख़ातून ने अज़त की "नहीिं" तो

उस अल्लाह वाले ने फ़मातया: "क्या कैकफ़य्यत होती है?" ख़ातून ने अज़त ककया: "हज़रत हर पल मेरा हदल

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उस की कैकफ़य्यतों में अटका रहता है कक अब सो रहा होगा या जाग रहा होगा, कहीिं चोट तो नहीिं लगी,

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कहीिं गगर तो नहीिं पड़ा, कहीिं खाना, प्यास, पेशाब की कैकफ़य्यत होगी तो छोटा बच्चा है , अगर पेशाब

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आया तो कौन अस्ट्तन्जा करायेगा, अगर भक ू लगी तो खाना ख़खलायेगा, अगर प्यास लगी तो कौन प्यास

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बझ ु ाएगा, कौन क्या करे गा हर वक़्त उस में ही हदल अटका रहता है ।" (जारी है) माहनामा अबक़री जल ु ाई 2015 शम ु ारा निंबर 109_____________Page No.5 Page 11 of 41


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दसस से फ़ैज़ पाने वाले

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! इस उम्मीद के साथ आप बख़ैर व आकफ़यत मख़्लूक़ए ख़द ु ा की ख़ख़दमत में सर गरम अमल होंगे, हदल्ली और मुख़मलसाना दआ ु ओिं को समेट रहे होंगे, आप की

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मेहनत, कापवशें आख़ख़रत में अजर की मुस्ट्तहहक़ हैं, दन्ु या में इन का अजर नहीिं हदया जा सकता और अबक़री को स्जतने सलाम ककये जाएूँ कम हैं। उन के सपतरस्ट्त की ख़ख़दमतों को स्जतना सराहा जाये वो

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कम है , अल्लाह तआला आप को दन्ु या व आख़ख़रत में इस की जज़ा ए ख़ैर अता करे और अबक़री के

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चश्मा को सदा हम पर जारी व सारी रखे। बक़ोल मेरी एक अज़ीज़ हम्साई के उन के मआ ु शी हालात बहुत

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ख़राब थे और बच्ची की शादी के मुआम्लात में अस्ट्बाब ना होने के बराबर थे और अबक़री के तवुसत से

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उन की मल ु ाक़ात आप से हुई और आप ने उन को सरू ह कौसर और इक्कीस दसत में शाममल होने को कहा।

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ख़ैर! स्जस तरह कर के उन्हों ने दसत में आना शुरू ककया और पहले चिंद दसत सुने ही थे कक उन का पहला

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मसला उन के शौहर के रोज़गार का था वो उन को ममला, किर कुछ मसाइल भी आये, दसत सुनने के दौरान

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कक दसत में जाने का मसला, मगर उन्हों ने दसत सुना और बाक़ाइदा सुना और दसत की बरकत से उन की

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बेटी की शादी के अस्ट्बाब भी बने और पहले ररक्शा ककराये पर ककसी ने हदया मगर किर बाद मैं उन्हों ने

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ख़द ु ओिं और दसत में ु ही ख़रीद मलया--- हज़रत हकीम साहब! ये सब मसफ़त और मसफ़त आप की बे लूस दआ बरकत से मुस्म्कन हुआ। दस ू रा मुशाहहदा उन्हों ने मुझे ये बताया कक उन की एक अज़ीज़ा की बेटी के हाूँ

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दस साल से औलाद ना थी और उन्हों ने हदल ही हदल में ये मन्नत मान ली कक मामलक अगर तू मेरी बेटी

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को औलाद की नेअमत दे तो मैं हज़रत हकीम साहब के तीन दसत में मशरकत करू​ूँ गी। अभी कुछ हदन ही गज़ ु रे कक उन की बेटी का इिंग्लैंि से फ़ॉन आया कक वो उम्मीद से है । इस मलए दसत में हाज़री से क़ब्ल उन्हों

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ने मुझे अपना ये मुशाहहदा बताया कक अबक़री की ज़ीनत ज़रूर बने। (ककरन रबानी)

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कैं सर और शग ु र के ज़ख़्म के मलए क़ाररईन! ज़ख़्म चिंबल हो या दाद, शग ु र का हो या कैंसर का, चोट का हो या कीड़ों का, ज़जस्म के ककसी

rg

हहस्से में पुराने से पुराना ज़ख़्म जो नासूर, भगिंदर, या कफ़स्चोला की शकल अख़्तयार कर चक ु ा हो, ननहायत आज़मूदह सालों से नहीिं सहदयों से आज़मूदह एक बेह्तरीन मरहम है । आप सोच नहीिं सकते कक

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इस के ककतने कमालात हैं।

क़ाररईन! आप के मलए क़ीमती मोती चन ु कर लाता हू​ूँ और छुपाता नहीिं, आप भी सख़ी बनें और ज़रूर

rg

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मलखें (एडिटर हकीम मुहम्मद ताररक़ महमूद मज्ज़ूबी चग़ ु ताई)

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कैंसर का ज़ख़्म ककतना ददत नाक और शुगर का ज़ख़्म ककतना होल्नाक हो, आख़ख़र उस का इलाज यही

होता है कक उस हहस्ट्से को काट हदया जाये क्योंकक काटे बग़ैर इस का कोई हल और इलाज नहीिं है । पहले

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दौर में सजतरी का काम नाइयों के पास होता था और बड़े बड़े गिंदे ज़ख़्म बबल्कुल तिंदरु ु स्ट्त हो जाते थे।

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हत्ता कक अूँगरे ज़ सजतन जब इलाज से थक जाते थे तो वो ककसी गाूँव या दीहात के नाई के पास उस मरीज़

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को भेज दे ते थे उन्हें इल्म था कक पुराने दौर की बनी हुई मरहमें इस को तिंदरु ु स्ट्त कर सकती हैं। इस के

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इलावा हमारे क़ीमती औज़ार और दवाएिं इस का इलाज नहीिं हैं। ये मरहम दरअसल एक बहुत परु ाने नाई

की है जो ज़ख़्मों और ख़ास तौर पर गिंदे और बदबूदार ज़ख़्मों के मुआल्जे में बहुत बहुत मशहूर था। लोग

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उस के पास बहुत एतमाद से इलाज मुआल्जे के मसस्ल्सले में आते, दरू दरू से चार पाइयों पर उठा कर

हत्ता कक ऐसे ज़ख़्म जो गल सड़ चक ु े होते, बदबूदार हो चक ु े होते और लोग हत्ता कक घर वाले उस के

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क़रीब नहीिं आते थे। उस का इलाज ऐसे अिंदाज़ से करते कक ज़ख़्म जो सालों में ठीक होना होता था, वो

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महीनों में और जो महीनों में ठीक होना होता वो हफ़्तों में और जो हफ़्तों में ठीक होना होता, वो हदनों में ठीक हो जाता है । अपने फ़न में बहुत काममल थे और साहहबे कमाल और बहुत मास्ट्टर थे। ये बात मुझे

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इस मलए याद आई कक पपछले हदनों क़ाररईन की तहरीरों में एक तजब ु ेकार ने इस मरहम का तज़्क्रह् ककया तो मुझे किर वो पुरानी बातें याद आयीिं और वो सुने हुए तजुबातत और मुशाहहदात अज़्बर होना शुरू हो Page 13 of 41


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गए। जी में ख़्याल आया कक क्यू​ूँ ना ये नुस्ट्ख़ा और मरहम के फ़वाइद अपने अबक़री के क़ाररईन के मलए मलखू​ूँ और अबक़री क़ाररईन को इस का तजुबात बताऊूँ। एक साहब मसपवल सजतन के पास गए शुगर की वजह से फ़ैसला ये हुआ था कक उन का पाऊूँ काट हदया जाये, ज़ख़्म बबल्कुल गल चक ु ा था हत्ता कक

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घरवाले भी आहहस्ट्ता आहहस्ट्ता साथ छोड़ गए थे। वो सुनी सुनाई पर उन के पास मरीज़ को चार पाई पर ले आये, मरीज़ के आते ही उन्हों ने जब पट्टी हटाई वो दे ख कर कहने लगे: गोश्त, रगें सब कुछ गल चक ु ी

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हैं हत्ता कक अब तो हड्िी भी आधी गल गयी है लेककन कोई हजत नहीिं, इन शा अल्लाह अल्लाह करम करे गा। वो मरहम लगा कर सुबह व शाम पट्टी बदलते थे और चिंद ही हफ़्तों के बाद ज़ख़्म बेह्तर होना शुरू

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हो गया और मरीज़ स्जस की आधी पपिंिली गल चक ु ी थी और िॉक्टरों ने टािंग काटने का फ़ैसला कर मलया

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था वो मरीज़ सेहत्याब हो गया। क़ाररईन! ज़ख़्म चिंबल हो या दाद, शुगर का हो या कैंसर का, चोट का हो

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या कीड़ों का, स्जस्ट्म के ककसी हहस्ट्से में पुराने से पुराना ज़ख़्म जो नासूर, भगिंदर, या कफ़स्ट्चोला की शक्ल

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अख़्तयार कर चक ु ा हो ननहायत आज़मूदह सालों से नहीिं सहदयों से आज़मूदह, एक बेह्तरीन मरहम है ।

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आप सोच नहीिं सकते कक इस के ककतने कमालात हैं। ये उस दौर की बात है जब अल्लामा इक़्बाल मरहूम

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बररत सग़ीर के चोटी के शाइर और लीिर थे। मसयालकोट से उन के एक ररश्तेदार आये, ग़रीब थे, अल्लामा

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मरहूम ग़रीब परवर और मस्ु ख़्लस थे। उन्हों ने पाऊूँ पर पट्टी बाूँधी हुई थी पता चला कक कहीिं सािंप की रीढ़

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की हड्िी का काूँटा यानन सािंप के गलने के बाद उस की हड्िी का कािंटा पाऊूँ को लग गया उस का ज़ेहर

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पाऊूँ को चढ़ गया, बहुत इलाज ककये लेककन पाऊूँ गलता गया, अब लाहौर के मसपवल सजतन जो कक

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अूँगरे ज़ था का मश्वरा फ़ौरी तौर पर इस को काटने का है । चकूिं क तीन हदन के बाद पाऊूँ कटने की बारी थी अल्लामा इक़्बाल मरहूम ने फ़ौरन अपने ख़ाहदम अली बख़्श को एक जराह के पास भेजा कक उस को ले

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आये। अली बख़्श जराह को लाये, जराह अल्लामा साहब का अदब और एह्तराम करते थे। जराह ने ज़ख़्म दे खते ही कहा काटने की ज़रूरत नहीिं पड़ेगी, ठीक हो जायेगा। जराह ने बड़ी मेहनत से सुबह व शाम पट्टी

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बदली, ज़ख़्म से बहुत गन्दगी ननकली, तीन हदन के बाद जराह मसपवल सजतन के पास मरीज़ को ले कर

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ख़द ु गया, अपना तआरुफ़ ना कराया। कहने लगा: सर पट्टी खोल कर दे ख लें , लगता है कुछ फ़ायदा हो गया है अगर फ़ायदा हुआ है तो इसे ना काटें , वरना काट दें । अूँगरे ज़ सजतन अपनी कुसी से उठा उस के कम्पाउन्िर ने पट्टी हटाई, उस ने जब ज़ख़्म दे खा तो बहुत है रान हुआ फ़ौरन मरीज़ को दे ख कर कहने Page 14 of 41


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लगा तुमने क्या इलाज ककया है ? मरीज़ बोल उठा साथ जो आदमी है इस ने मेरा इलाज ककया है । आख़ख़र जराह को अपना तआरुफ़ कराना पड़ा, अूँगरे ज़ िॉक्टर बहुत है रान हुआ और कहने लगा वो मरहम मुझे भी कुछ ला दो। जराह ने अूँगरे ज़ को जा कर मरहम दी। यूँू कुछ ही हदनों में वो मरीज़ तिंदरु ु स्ट्त हो गया

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और अल्लामा इक़्बाल को बहुत दआ ु एिं दे कर वापस मसयालकोट की राह ली। क़ाररईन! ये मरहम आप भी बना सकते हैं। बस एक छटािंक साबत ु गिंदम ु के दाने लें और एक छटािंक नाररयल या ख़श्ु क खोपा लें और

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एक पाव दे सी घी लें। ख़श्ु क खोपा के हल्के से टुकड़े कर लें , गिंदम ु और खोपा दे सी घी में जलाएिं। जलने के बाद इस सब को रगड़ दें । बस मरहम तय्यार है । यही मरहम ज़ख़्मों पर लगाएिं सुबह व शाम। किर इस का

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कमाल दे खें। क़ाररईन ज़ख़्म ककतना पुराना हो, गन्दा हो, घहटया हो, आप दन्ु या की आख़री से आख़री

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बस कुछ अरसा लगातार यही मरहम इस्ट्तेमाल करें और क़ुदरत का कररश्मा दे खें।

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मरहम लगा कर थक चक ु े हैं। और आस्जज़ आ चक ु े हैं और समझते हैं इस का कहीिं और कोई इलाज नहीिं,

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एक अदरक का छोटा टुकड़ा और गैस ट्रबल से ननजात

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मुझे गैस रबल का सालों पुराना मसला था। नमाज़ों के दरम्यान और वज़ू करते हुए गैस अख़राज के मलए ज़ोर लगाना शुरू कर दे ती थी, कभी ख़ारज करता

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और कभी ज़बरदस्ट्ती ज़ब्त कर जाता लेककन इस से तबीअत में बे चेनी और नमाज़ों का ख़श ु ूअ ख़ज़ ु ूअ ख़त्म हो जाता था। हज़रत हकीम साहब! इस के हल के मलए जहाूँ मैं तस्ट्बीह ख़ाना में आ कर दआ ु एिं

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करता रहा वहािं दवा के तौर पर अल्लाह के फ़ज़ल व करम से दजत ज़ैल नुस्ट्ख़ा से अल्लाह तआला ने मुझे मशफ़ा अता फ़मातई। अब नमाज़ों के औक़ात अल्हम्दमु लल्लाह बबल्कुल महफ़ूज़ हैं। मझ ु े बार बार वज़ू नहीिं

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करना पड़ता और मैं नमाज़ ख़श ु ूअ व ख़ज़ ु ूअ के साथ अदा करता हू​ूँ। ये नुस्ट्ख़ा मैं ने एक हकीम साहब के

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ब्रोशर से मलया था और इस का कुछ हहस्ट्सा "नतब्ब नबवी ‫ ﷺ‬और जदीद साइिंस" ककताब से मलया था। हुवल-शाफ़ी: खाना शरू ु करने से पहले तक़रीबन आधा घिंटा पहले पानी पी लें और खाने के दौरान पानी बबल्कुल ना पपयें और खाना बहुत सख़्ती से और पाबिंदी से भूक रख कर खाया करें और खाने के बाद Page 15 of 41


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अदरक का एक बबल्कुल छोटा सा टुकड़ा तक़रीबन दो या तीन चनों के बराबर इस्ट्तेमाल करें और खाना खाने के कम अज़ कम दो घिंटे बाद तक पानी ना पपयें। मेदा को सुकून से अपना काम करने दें । खाने के फ़ौरन बाद हर गगज़ ना लेट जाएूँ बस्ल्क घर में ही कुछ दे र चहल क़दमी कर के गैस अगर महसस ू हो तो

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ज़रूर ख़ारज करें । अब मैं जब भी कोई सक़ील चीज़ खाऊिं मसलन लस्ट्सी वग़ैरा पपया करू​ूँ तो बाद में अदरक का एक छोटा सा टुकड़ा खा लेता हू​ूँ अल्लाह तआला के फ़ज़ल व करम से मेरा सालों परु ाना मसला

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हल हो गया है । (मुहम्मद वक़ास)

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क़ाररईन की ख़स ु स ू ी और आज़मद ू ह तहरीरें

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माहनामा अबक़री जुलाई 2015 शुमारा निंबर 109______________Page No.38

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(क़ाररईन! आप भी बख़ ु नी करें आप ने कोई रूहानी, ज़जस्मानी नस् ु ख़ा, टोटका आज़माया हो और ु ल ु शक्

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उस के फ़वाइद सामने आये हों या आप ने कोई है रत अिंगेज़ वाक़्या दे खा या सुना हो तो अबक़री के

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मसफ़हात आप के मलए हाज़ज़र हैं, अपने मामल ू ी से तजब ु े को भी बेकार ना समझिये, ये दस ू रे के मलए

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मुज़ककल का हल साबबत हो सकता है और आप के मलए सदक़ा जाररया। चाहे बे रब्त ही मलखें मसफ़हात के

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बैतुल ख़ला की दआ ु का कमाल:

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एक तरफ़ मलखें , नोक पलक हम ख़द ु ही सिंवार लेंगे।)

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मई २०१४ के एक जुमा का वाक़्या है मेरे प्राइवेट स्ट्कूल की अवल जमाअत की बच्ची को स्जन्नात ने तिंग ककया, बन्दा झिंग सदर में था। मैं ने ककसी से कहा कक अगर इस बच्ची के घरवालों को या क़ह्हार वाला

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अमल बताया जाये तो उसे फ़ायदा होगा। मैं ये बात कर के बैतुल ख़ला में रफ़अ हाजत के मलए दाख़ख़ल हुआ और दआ ु पढ़ना भूल गया। जब फ़ाररग़ हो कर ननकलने लगा तो ककसी नादीदा ताक़त ने मुझे पीछे गगरा हदया, मेरी कुहननयािं और पीठ मुतामसर हुई, किर दब ु ारह उठने की कोमशश की मगर मुझे दब ु ारह Page 16 of 41


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पीछे की तरफ़ गगरा हदया गया। अब कुहननयािं ज़ख़्मी हो चक ु ी थीिं और पीठ में सख़्त ददत शुरू हो चक ु ा था। पािंच ममनट के बाद मैं ने तीसरी दफ़ा ननकलने की कोमशश की मगर किर वही हुआ जो पहले होता रहा, चौथी बार थोड़ा सा उठा ही था कक नादीदा ताक़त ने मझ ु े धड़ाम से पीछे को गगरा हदया। बन्दा बे हहस्ट्स हो

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चक ु ा था, घर वालों ने दे खा कक अभी तक बैतुल ख़ला से बाहर नहीिं ननकला, ख़श ु कक़स्ट्मती से बन्दा ने कुन्िी नहीिं लगाई थी। अहल ख़ाना ने मझ ु े बे होश पाया, मझ ु े चार पाई पर बाहर मलटाया, परू े पािंच घिंटे मैं

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बे हहस्ट्स व हरकत बग़ैर कोई पहलू बदले पड़ा रहा। किर होश में आया तो सारा वाक़्या बयािं ककया मगर दो हदन मुतवातर ज़बरदस्ट्त बुख़ार रहा। ये मसफ़त एक ग़लती का असर था कक बन्दा ने नबवी ‫ ﷺ‬दआ ु पढ़े

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बग़ैर बैतल ु ख़ला में क़दम रखा था। मैं तमाम पढ़ने वाले क़ाररईन की ख़ख़दमत में इल्तजा करता हू​ूँ कक

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मेरे साथ हुआ था।

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जब भी लेरीन में जाएूँ मस्ट्नून दआ ु पढ़ कर दाख़ख़ल हों वरना आप के साथ भी वो हशर हो सकता है जो

सदक़ा हदया बच्चा तिंदरु ु स्त: मेरे एक दोस्ट्त मेहेकमा बबस्ल्ि​िंग में सब इिंजीननयर हैं। अल्लाह तआला से

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िरने वाले और ररज़्क़ हलाल खाने वाले हैं। उन का बेटा अचानक बीमार हो गया, िॉक्टर साहब से तश्ख़ीस

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कराई और उन्हों ने काफ़ी ख़तरनाक बीमारी का बताया। उन्हों ने उदय ू ात का बबल बनवाया और घर आ

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कर उतनी ही रक़म फ़ी सबीमलल्लाह ख़चत कर दी और इस्ल्तजा की कक या अल्लाह! सेहत व स्ज़न्दगी तेरे

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हाथ में है अगर मेहेरबानी फ़मात दे तो तेरा करम है , दस ू रे रोज़ से बच्चे ने सिंभलना शुरू कर हदया। तीसरे रोज़ िॉक्टर साहब को चेक कराया, िॉक्टर साहब बच्चे की इतनी जल्दी सेहत्याबी पर है रान थे कक अभी

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और डिप्स लगनी बाक़ी थीिं कक बच्चे को मुकम्मल मशफ़ा नसीब हो चक ु ी थी। (पप्रिंमसपल (र) ग़ल ु ाम क़ाहदर

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हराज, झिंग सदर)

शग ु र से ननजात के आसान नस् ु ख़ा जात:वजह ू ात: मीठी और ननशास्ट्ता ख़ोराक का बकसरत इस्ट्तेमाल

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शुगर का बाइस बनते हैं। नशा आवर उदय ू ात या शराब नोशी की कसरत से शुगर होने का इमकान बढ़ जाता है । ज़ेहनी दबाओ, काम की ज़्यादती या ग़म और परे शानी से भी इिंसान को शुगर का मज़त लगता है ।

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हदमाग़, हराम मग़ज़, स्जगर और आूँतों वग़ैरा पर ज़बत लगने से भी मज़त होता है । कसरत मुबाश्रत से भी इस मज़त के हमला आवर होने का ख़दशा है । इलाज नुस्ट्ख़ा निंबर १: हुवल-शाफ़ी: कलौंजी २० ग्राम, कास्ट्नी Page 17 of 41


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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के जल ु ाई के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

का बीज १५ ग्राम, मेथी के बीज १० ग्राम और हुब ् ररशाद १० ग्राम। तरीक़ा इस्ट्तेमाल: सब का सफ़ूफ़ बना कर आधा चम्मच खाने के बाद सुबह व शाम हर माह दस रोज़ इस्ट्तेमाल करें । नस्ट् ु ख़ा निंबर २: चराइता और कलौंजी का मदर हटिंक्चर हम्वज़न ममला लें। मज़कूरा बाला चार चार क़तरे पानी में ममला कर सब ु ह

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व शाम हर माह दस हदन इस्ट्तेमाल करें । शुगर की अलामात: मरीज़ के गुदों में सोस्ज़श हो जाती है स्जस से गद ु ों में जलन और ददत महसस ू होती है । मरीज़ को प्यास मशद्दत से लगती है और बार बार उस का मिंह ु

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ख़श्ु क हो जाता है । इस मज़त में पेशाब बार बार आता है मरीज़ को भूक ज़्यादा लगती है , खाना सही तौर पर हज़म नहीिं होता। मरीज़ क़ब्ज़ का मशकार हो जाता है कभी बुख़ार भी हो जाता है । मरीज़ हदन ब हदन

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कम्ज़ोर और दब ु ला होने लगता है उस की नब्ज़ सुस्ट्त हो जाती है । मरीज़ को अक्सर सर ददत की मशकायत

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होती है नज़र कम्ज़ोर हो जाती है और वो गचड़गचड़ा हो जाता है । खाने की तदाबीर: रोज़ाना सुबह १५

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बादाम और १५० ग्राम भुने चने खाना तक़्वीयत ् बख़्श है । सब्ज़ तरकाररयाूँ साग, खीरा, टमाटर और बिंद

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गोभी, करे ले फ़ायदा मिंद हैं। बकरे का गोश्त, मुग़ी और मछली खाने में हजत नहीिं है । ऐसे िल जो मीठे हों

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मसलन आलच ू सख़ ु ,त सेब वग़ैरा। ू ा, लोकाट, शहतत

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पथरी की अक़्साम और इलाज:

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कैस्ल्शयम फ़ॉस्ट्फ़ेट, अिंिे की तरह गोल ज़दत रिं ग मल ु ायम पथरी होती है । कैस्ल्शयम अग्ज़ालेट, ये कािंटे दार

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भारी पथरी होती है । यूररक एमसि ये छोटी पथरी होती है । हुवल-शाफ़ी: रे विंद चीनी दो ग्राम, क़ल्मी शूरा दो

ग्राम, नोशादर दो ग्राम, कलौंजी एक ग्राम और जौखार एक ग्राम। तरीक़ा इस्ट्तेमाल: इन सब का सफ़ूफ़

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तय्यार कर के पानी के साथ खाना खाने के बाद दोपेहेर शाम एक चम्मच रोज़ाना इस्ट्तेमाल करें । इन शा अल्लाह तआला मशफ़ा होगी। नोट: जब पथरी ननकल जाये तो दवाई बिंद कर दें । पेशाब रुक जाना: दो ग्राम

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मकई के भुट्टे के बाल ले कर एक पाव पानी में गरम करें जब पानी आधा पाव रह जाये तो उस में पािंच

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क़तरे कलौंजी का तेल िाल कर मरीज़ को पपलाया जाये। (कामरान तूर, तुल्ला गिंग)

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दरूद पाक पढ़ा और फ़स्टस पॉज़ज़शन ममल गयी:मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! ये २००५ की बात है , उस वक़्त मैंने बी ए के फ़ाइनल पचे हदए हुए थे और मझ ु े अपने ररज़ल्ट की बहुत कफ़क्र थी क्योंकक कुछ पचे ठीक ना हुए थे। मैं ने तहज्जुद के वक़्त रोज़ाना ६६६६ मततबा दरूद पाक पढ़ना शुरू Page 18 of 41


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कर हदया। ये वज़ीफ़ा मैं ने बी ए के इस्म्तहान में फ़स्ट्टत डिवीज़न की काम्याबी के मलए पढ़ा था। स्जस वक़्त मैं ये वज़ीफ़ा पढ़ती थी तो मुझे अपने कमरे से अल्लाह हू अल्लाह हू की आवाज़ें आना शुरू हो गयीिं। इस के बाद मैं इस्म्तहान में फ़स्ट्टत डिवीज़न के साथ पास हो गई, इस के कुछ हदनों के बाद मझ ु े एक बज़ ु ग ु त

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हदखाई दे ना शुरू हो गए, हक़ीक़त में जो अब भी मुझे कभी रास्ट्ते में ककसी भी रूप में नज़र आ जाते हैं जैसे ही मैं उन के क़रीब जाती हू​ूँ वो ग़ायब हो जाते हैं। उन का हुल्या कुछ इस तरह है , सफ़ेद कपड़े हैं, सफ़ेद

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दाढ़ी है , किंधे पर रुमाल रखा हुआ है , बहुत चमकता हुआ चेहरा है, ज़ईफ़ हैं, चमकती हुई बस्ल्क बहुत ही ज़्यादा चमक वाली गोल्िन रिं ग की मरदाना घड़ी पहनी हुई है । ये सब इस दरूद पाक का वज़ीफ़ा करने के

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बाद मुझे नज़र आना शुरू हुआ है । मैं ने दजत ज़ैल दरूद शरीफ़ पढ़ा:-

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अल्लाहुम्म सस्ल्ल सलातिं काममलतौं-व्व सस्ल्लम ् सलामन ् ताम्मिं अला सस्य्यहदना मुहम्महदन ् तन्हल्लु

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बबहहल ्-उक़द ु व तन्फ़रजु बबहहल ्-कुबुत व तुक़्ज़ा बबहहल ्-हपवआइजु व तुनालु बबहह-र-रग़ाइबु व हुस्ट्नुल ्ख़वानतमम व यस्ट्तस्ट्क़ल ्-ग़मामु बबवस्ज्हहहल ्-करीमम व अला आमलही व अस्ट्हाबबही फ़ी कुस्ल्ल

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लम्हनतिंव्व-नस्फ़्सन ् बबअदहद-म्मअलूमम-ल्लक या अल्लाहु या अल्लाहु या अल्लाहु आमीन बबरह्मनतक

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या अहतम-र्-राहहमीन।

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माहनामा अबक़री जल ु ाई 2015 शम ु ारा निंबर 109_____________Page No. 39

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ّٰ ُ َ َ ُ ُ ُ ُ ٓ ُ ُ َ َ َُ ُ َ ّٰ َ َّ‫َالل ُھ َمَّ َصلَّ َصلّٰوۃَّ َ​َکملَۃَّ َو َسلمَّ َس َ​َلماَّ َ​َتٓما‬ ُ ‫الر َغ ٓائ‬ َّ‫بَّ َو ُحس ُن‬ َّ‫َعَّ َسید َنَُّمَمدَّتن َحلَّبہَّال ُعقدَّ َوتنف َرجَّبہَّالکر ُبَّ َوتق ّٰضَّبہَّاْلَوائَّ َو َّت َناَُّبہ‬ َ ُ َ َ َ َ َ َ ‫َ َ َ ُ َ َ َ ٓ َ ُ َ َ ُ َ َ ُ ّٰ ن‬ َ​َ ُ ‫اْل َ َواتمَّط َویَس َتس َقَّال َغ َم‬ ّٰ ‫َعَّ ّٰالہَّ َو َا‬ ّٰ َ ‫امَّ َِبجھہَّال َکریمَّ َو‬ َّ‫کَّ َّٰیرح‬ ‫یَّطِبْحت‬ َّ ‫ْصبہَّفَّکَّلم َحۃَّونفسَّبعددَّمعلومَّلکََّیلَاََّیلَاََّیلَاَّ۔َّام‬ َ ‫ی۔‬ َّ َ ‫الرْح‬

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ज़ेहमत रे हमत में तब्दील: ये दरूद गन ू ए मआररफ़त ू ा गिंू रूहानी इसरार का ख़ज़ीना है बस्ल्क इस में हुसल

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का राज़ छुपा है स्जसे आररफ़ों और वमलयों के मसवा कोई ना जान सका। मलहाज़ा अहल ए रूहाननयत में इस दरूद शरीफ़ को बहुत एहममयत हामसल है । इस के इलावा रमज़ान-उल-मुबारक में एअतकाफ़ के

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दौरान भी अगर यही दरूद पाक पढ़ा जाये तो अल्लाह तआला उसे बे शुमार रूहानी इसरारों से नवाज़ेगा। दन ु ीवी फ़ायदा ये है कक इस दरूद पाक को पढ़ने वाला हमेशा रिं ज व ग़म और परे शाननयों से महफ़ूज़ रहता Page 19 of 41


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है । मलहाज़ा जब ककसी पर कोई मुसीबत आये तो फ़ौरन ख़त्म हो जायेगी यानन ज़ेहमत रे हमत में तब्दील हो जायेगी। (स,ल)

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ख़न ू साफ़ चेहरा रोशन: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरे पास कुछ नुस्ट्ख़ा जात हैं जो मैं क़ाररईन की नज़र

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कर रहा हू​ूँ:- कड़वी िक्की: गैस, मोटापा दरू , अख़राज गैस, मेदा की इस्ट्लाह करती है , ख़न ू को साफ़ कर के चेहरे को साफ़ रोशन करती है । हुवल-शाफ़ी: बगत सहूर एक पाव, पनीर िोिी एक पाव, काली जेरी दस

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तोला। तीनों उदय ू ात को कूट छान कर सफ़ूफ़ बना लें। ममक़दार ख़ोराक: आधा चम्मच चाय वाला सुबह व

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शाम हमराह पानी दें । िोड़े, िूँसी, ख़ाररश और तमाम स्जल्दी अमराज़ में भी मुफ़ीद है । गिंहठया

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अक़तु स्न्नसा, ददत कमर हर कक़स्ट्म के ददों की लाजवाब मुफ़ीद व मुजरत ब दवाई: हुवल-शाफ़ी: तुख़्म हरमल

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पािंच तोला, सोरन्जािं शीरीिं पािंच तोला, मालकिंगनी पािंच तोला, कचला मदबर दो तोला, राई पािंच तोला,

पपप्ला मोल पािंच तोला, मोचरस पािंच तोला, रे विंद ख़ताई पािंच तोला, हलीला स्ट्याह पािंच तोला, सुिंढ पािंच

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तोला, कलौंजी पािंच तोला, पोस्ट्त हलीला ज़दत पािंच तोला, चोब चीनी पािंच तोला, धतरू ा स्ट्याह का बीज पािंच

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तोला, ममस्ट्बर एक तोला। तमाम उदय ू ात कूट छान कर फ़ुल साइज़ कैप्सूल बना लें। एक कैप्सूल सुबह व

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शाम बाद अज़ गग़ज़ा हमराह दध ू लें। गिंहठया स्जस में वरम ् हो: हुवल शाफ़ी: पोस्ट्त बेख़ मदार पािंच तोला,

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अज्वाइन दे सी पािंच तोला, कलौंजी पािंच तोला तमाम उदय ू ात कूट छान कर सहदत यों में फ़ुल साइज़ कैप्सूल

इस्ट्तेमाल करें । लाजवाब नुस्ट्ख़ा है ।

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सब ु ह व शाम इस्ट्तेमाल करें । गममतयों में ५००mg का कैप्सल ू भर लें सब ु ह व शाम बाद अज़ गग़ज़ा

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हर कक़स्म की खािंसी का मुजरस ब जोशािंदा: गुल बनफ़्शा तीन माशा, गाओज़बािं दो माशा, सौंफ़ तीन माशा,

तुख़्म ख़त्मी तीन माशा, उनाब पािंच दाने, ममलठी तीन माशा, मुनक़्क़ा सात अदद, लसूड़ी नो अदद,

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परस्ट्याओशािं दो माशा, धो कर एक पाव पानी में ख़ब ू जोश दें , छान कर चीनी िाल कर नीम गरम पी लें।

दन्ु यापरु )

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मुफ़ीद व मुअस्ट्सर मुजरत ब तरीन है । ला तअदाद मततबा का आज़माया हुआ है । (हकीम मुहम्मद सलीम,

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हर मक़सद पूरा, हर तरह की हहफ़ाज़त: क्या आप को पता है ? क़ुरआन पाक में पािंच आयात ऐसी भी हैं कक हर आयत में दस (क़) "क़ाफ़" (’’‫) ‘‘ق‬

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हैं और स्जन की नतलावत करने से इिंसान की हर तरह से हहफ़ाज़त होती है और स्जस मक़सद के मलए पढ़ी जाएूँ वो मक़सद परू ा होता है और वो दस "क़ाफ़" वाली पािंच आयात दजत ज़ैल हैं:-

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(१) अलम ् तर इलल ्-मलइ ममम ् बनी इस्राईल ममम ् बअहद मस ू ा इज़ ् क़ालू मलनबबस्य्यल ्-लहुमब ु ्-अस ् लना ममलकन ्-नुक़ानतल ् फ़ी सबीमलल्लाहह क़ाल हल ् असैतुम ् इन ् कुनतब अलैकुमुल ्-कक़तालु अल्ला

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तुक़ानतलू क़ालू व मा लना अल्ला नुक़ानतल फ़ी सबीमलल्लाहह व क़द् उख़िज्ना ममन ् हदयाररना व

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अब्नाइना फ़लम्मा कुनतब अलैहहमुल ्-कक़तालु तवल्लौ इल्ला क़लीलम ्-ममन्हुम ् वल्लाहु अलीमुम ् बबज़्ज़ामलमीन (अल ् बक़रह २४६)

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َ ُ َ َ َ ُ َ َ ُ َ َ َ َ َ​َ ُ َ َ ٓ ّٰ ّٰ ُ ٓ ‫مَّ َب‬ ‫سءیلَّ ن‬ ‫تَّالَّال َمَلَّ ن‬ َُّ‫بَّ َعلیک ُمَّالق َتا‬ ‫سَّاذَّقالواَّل َنبَّل ُھ ُمَّاب َعثَّل َناَّ َملکَّنقتلَّفَّ َسبیلَّلَاَّقاَُّ َہلَّ َع َسی ُتَّمَّانَّکت‬ ‫نَّا‬ َّ‫ال‬ ‫مَّ َبعدَّ ُمَّو ّٰ ی‬ َ َ ُ َ ُ َ​َ ُ َ ُ ّٰ ُ َ َ ‫ن‬ ُ ‫َتلواَّا َلَّ َقلَّیَلَّم‬ ُ ‫ْنمَّ َو‬ َ َ َُّ‫ا‬ َ ‫الواَّ َو َماَّ َل َناَّ َالَّنُ ّٰقت َلَّفَّ َسبیلَّلَاَّ َو َقدَّ ُاخرج َناَّمَّد ّٰٰی َنَّ َو َاب َن ٓائ َناَّ َفلَ َماَّکُت‬ ‫بَّعلْیمَّالقت‬ ‫الَّتقتلواَّق‬ َّ‫لَاَّ َعلیم‬ ّٰ َّ﴾۶۴۲‫ی﴿البقرہ‬ َّ َ ‫ِبلظلم‬

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(२) लक़द् सममअल्लाहु क़ौल-ल्लज़ीन क़ालू इन्नल्लाह फ़क़ीरुिं व्व-नह्नु अस्ग़्नयाउ सनक्तुबु मा क़ालू व

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َ َ ُ َ ُ ُ َ َ ُٓ َ َ ُ َ​َ ‫َ​َ َ َ ُ َ َ َ َ َ ُٓ َ َ َ ن‬ ُ ُ ُ َُ َ َ ٓ َ َّ‫بَّ َماَّقالواَّ َوقتل ُھ ُمَّال ننب َیا َءَّبغیَّ َحقَّوَّنقوَُّذوقوا‬ ‫لقدََّسعَّلَاَّقوَُّالذیَّقالواَّانَّلَاَّفقیَّوَننَّاغنیا َّء یَّسنکت‬

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क़त्लहुमुल ्-अिंबबया-अ बबग़ैरर हस्क़्क़न ्-व्व नक़ूलु ज़ूक़ू अज़ाबल ्-हरीकक़। (आल इम्रान १८१)

ٓ َ ‫َع َذ‬ ﴾۱۸۱‫ابَّاْلَریقَّ﴿اَُّمعران‬

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(३) अलम ् तर इलल्लज़ीन क़ील लहुम ् कुफ़्फ़ू ऐहदयकुम ् व अक़ीमुस्ट्सलात व आतुज़्ज़कात फ़लम्मा

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कुनतब अलैहहमुल ्-कक़तालु इज़ा फ़रीक़ु-स्म्मन्हुम ् यख़्शौन-न्नास कख़श्यनतल्लाहह औ अशद्द ख़श्यतन ् व क़ालू रब्बना मलम कतब्त अलैनल ्-कक़ताल लौ ला अख़्ख़ततना इला अजमलन ् क़रीबबन ् क़ुल ् मता-उद्दुन्या

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क़लीलुन ् वल ्आख़ख़रतु ख़ैरु-स्ल्लमनन-त्तक़ा व ला तुज़्लमून फ़तीला। (अल ् ननसाअ ७७)

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के जल ु ाई के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

َ َ َ َ َ َ َ َ​َ َ َ ُ َ ُٓ​ُ َ َ ُ ‫َ ّٰ َ َ ّٰ ُ َ ّٰ َ َ َ َ ُ َ َ َ ُ َ ُ َ َ ن‬ َ​َ َ َ َّ‫شو َنَّالناسَّکخش َیۃَّلَاَّاو‬ َّ ‫ْنمََّی‬ ‫یَّقیلَّل ُھمَّکفواَّایدیَکمَّ َوَّاقی ُمواَّالصلوۃَّواَتاَّالزکوۃَّ َّ َّ َّفلماَّکتبَّعلْیمَّالقتاَُّاذاَّفریقَّم‬ ‫الَّتَّالَّالذ‬ َ َ ُ َ َ ُ َ ّٰ َ ‫َ َ ن َ ّٰ َ ُ َ ن‬ َ َ َ​َ َ َ​َ​َ ُ َ​َ َ َ َ َ َ َ ُ َ َ َ ََٓ َ َّ‫ق َّ۟ َولَّتظل ُمو َنَّفتیَل‬ َّ َّ‫تَّ َعلی َناَّالق َتاَُّ َّلولَّاخرت َناَّا ّٰلَّا َجلَّقریبَّ َّقلَّ َم ّٰت ُعَّالدنیاَّقلیلَّ َّوالخرۃَّخیَّلمنَّات‬ ‫اشدَّخشیۃَّ َّ َّوقالواَّربناَّلَّکتب‬ ﴾۷۷‫﴿النساء‬

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(४) वत्लु अलैहहम ् नबअ-ब्नै आदम बबल्हस्क़्क़ (वक़्फ़ लास्ज़म) इज़ ् क़रत बा क़ुबातनन ् फ़तुक़ुस्ब्बल ममन ्

ममनल ्-मत्ु तक़ीन। (अल ् माइदह २७)

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अहहद हहमा व लम ् युतक़ब्बल ् ममनल ्-आख़रर क़ाल लअक़्तुलन्नक क़ाल इन्नमा यतक़ब्बलुल्लाहु

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َ َ َ َ َ ُ َ َ َ َ َ ّٰ َ َ َ ُ َ ُ َ ُ َ​َ َ َ​َ َ ّٰ َ َ ُ َّ‫اَُّا َّنَاَّیَ َت َق َب ُل‬ َ َّ‫لَا‬ َ ‫مَّال ُم َتق‬ ‫ق یَّاذَّقر َِبَّقر َِبنَّف ُتقبلَّمَّا َحدِہَاَّ َولَّیُ َتقبلَّمَّالخرَّقاَُّلقتلنکَّ َّق‬ َّ﴾۶۷‫یَّ﴿المائدہ‬ َّ َ ‫َواتلَّ َعلْیمَّن َباَّاب َنَّاد َمَِّبْل‬

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(५) क़ुल ् म-रत ब्ब-ु स्ट्समावानत वल ्-अस्ज़त क़ुमलल्लाहु क़ुल ् अफ़त्तख़ज़्तम ु -स्म्मन ् दनू नही औमलया-अ ला

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यस्म्लकून मलअन्फ़ुमसहहम ् नफ़् अ-िं व्व ला ज़रत न ् क़ुल ् हल ् यस्ट्तपवल ्-अअमा वल ्-बसीरु अम ् हल ् तस्ट्तपव-

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क़ुमलल्लाहु ख़ामलक़ु कुस्ल्ल शैइिं-व्व हुवल ्-वाहहदल ु ्-क़ह्हारु। (अल ् रअद् १६)

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ज़्ज़ुलुमातु वन्नूरु अम ् जअलू मलल्लाहह शुरका-अ ख़लक़ू कख़स्ल्क़ही फ़तशाबह-ल ्-ख़ल्क़ु अलैहहम ्

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ُ ُ َ​َ َ َ ٓ َ ُ ُ ُ َ ُ َ َ ّٰ َ َ ُ َ ُ َ​َ َ​َ ُ ُ َ َ َ ُ َ َّ‫یَّامَّ َہل‬ ‫لَا َّقلَّافاّتذتمَّمَّدون ٓہَّاول َیا َءَّل َ​َیلکو َنَّلنفسھمَّنفعاَّولَّ َضاَّقلَّ َہلَّیستویَّالْعَّوالبص‬ َّ َّ‫قلَّ َمَّربَّالس ّٰم ّٰوتَّ َوالرضَّقل‬ َ ُ ُ ّٰ َ ُ َ ُ ُ ّٰ ُ ُ َ َ ُ ّٰ ُ ّٰ َ َ َ َ َ َ​َ َُ َ َٓ َ ُ َّ‫ُشَک َءَّخلقواَّکخلقہَّفتش َب َہَّاْلل ُقَّ َعلْیمَّقل‬ َّ‫تَّ َوالنو ُرَّامَّ َج َعلواَِّل‬ ‫تستویَّالظلم‬ ﴾۱۲‫لَاَّخل ُقَّکََّشءَّو ُہ َوَّال ّٰوحدَّالق َّھ ُرَّ﴿الرعد‬

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इल्म की आड़ में जहल बबक रहा है:

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(ग़ल ु ाम यासीन रहमानी, मुज़फ़्फ़रगढ़)

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पाककस्ट्तान जाने की बड़ी कमशश मेरे मलए ये भी होती है कक वहािं से में अपनी मन्न पसिंद ककताबों की

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ख़रीदारी करता हू​ूँ जो अक्सर बबल्वास्ट्ता या बबला वास्ट्ता दीन से मुतअस्ल्लक़ होती हैं। इस बार भी एक लम्बी फ़ेहररस्ट्त ले कर उदत ू बाज़ार कराची जा पोहिं चा स्जन ककताबों को ख़रीदने का मत ु म्मनी था, उन में

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ऐसी तस्ट्नीफ़ात शाममल थीिं जो आसानी से ककसी दक ु ान पर मुयस्ट्सर नहीिं थीिं। एक दक ु ान पर ये तय पाया कक मामलक दक ु ान अपने मुलास्ज़मीिं के ज़ररये इन ककताबों को पूरे उदत ू बाज़ार में तलाश करवाएगा, ककताबें ज़हीम और नाहदर होने के बावजूद भी ननहायत मुनामसब क़ीमत में मुझे हामसल हो गयीिं। इसी Page 22 of 41


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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के जल ु ाई के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

अस्ट्ना में मेले कुचैले कपड़ों में मल्बूस एक शख़्स आया और उस ने ककसी ककताब का दक ु ान मामलक से तक़ाज़ा ककया वो एक बहुत छोटा सा ककताबचा था। उस ग़रीब आदमी ने क़ीमत पूछी तो दक ु ानदार ने आठ सो रूपए कहा!!! मैं चोंका कक मझ ु े तो हज़ारों मसफ़हात ् की नाहदर ककताब भी छे सो रुपए तक में

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हामसल हो रही है तो किर इस चिंद मसफ़हात ् के ककताबचे में ऐसा क्या है जो ये आठ सो रूपए का है ? ग़रीब गाहक ने तक़ाज़ा ककया कक भाई सात सो में ये ककताबचा दे दो मगर मामलक दक ु ान ने झड़क कर कहा कक

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एक पैसा भी कम ना होगा लेना है तो लो वरना ननकलो!!! उस मेले कुचैले मलबास वाले ने आठ सो रूपए जेब से ननकाले और झपट कर वो ककताबचा ले मलया। मैं है रत से ये माजरा दे खता रहा, उस के जाते ही मैं

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ने दक ु ान मामलक से पूछा कक भाई ये कैसी ककताब थी स्जस की इतनी एहममयत है ? दक ु ानदार ने नरम

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लहजे में कहा: सर आप इसे छोड़ दें मैं ने मुसल्सल इसरार ककया तो उस ने मजबूर हो कर बताया कक ये

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हहिंदओ ु िं के सफ़्ली अममलयात की एक तस्ट्नीफ़ थी स्जस के मुिंह मािंगे दाम ममल जाते हैं। उस ने मज़ीद

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बताया कक इस तरह की और भी कई ककताबें हैं और सब से ज़्यादा उदत ू बाज़ार में यही बबकती हैं। मेरी

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मौजद ू गी में ही ककताबें सप्लाई करने वाला एक शख़्स वहािं आया तो मैं ये दे ख कर दिं ग रह गया कक उन

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इस्ट्लामी या इल्मी कुतब के बीच में ककतने ही ऐसे छोटे छोटे अममलयात के ककताबचे रखे हुए थे स्जन्हें

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दक ु ानदार ने फ़ौरी ख़रीद मलया मैं अफ़्सद ु ात हदल से वहािं खड़ा रह गया। आज मेरा ये भरम भी टूट गया था

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कक इन ककताबचों से सजी दक ु ानों की रौनक़ मसफ़त इल्म दोस्ट्त अश्ख़ास से है यहाूँ तो इल्म के ऐन

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दरम्यान में जहल बबक रहा था, यहाूँ तो दीन की सदा लगा कर कुफ़्र का बाज़ार गरम था, मैं ने ककताबों की

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क़ीमत अदा की और बोझल क़दमों से घर की राह ली। (अज़ीमुरतह्मान उस्ट्मानी,कराची)

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माहनामा अबक़री जल ु ाई 2015 शम ु ारा निंबर 109________________Page No. 40

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के जल ु ाई के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

पोशीदह बीमारी से ननजात का है रान कुन वाक़्या हदल में ये यक़ीन पख़् ु ता रखा जो मेरे आक़ा ‫ﷺ‬ने फ़मासया बर हक़ है और बेशक बर हक़ है । इसे वज़ीज़ा हुज़ूर‫ﷺ‬

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अल्हम्दमु लल्लाह! अब मैं बबल्कुल ठीक हू​ूँ लेककन अब मैं दो नज़फ़्फ़ल और "वज़ीफ़ा हुज़रू ‫ "ﷺ‬मैं कहती हू​ूँ पाबिंदी से अदा करती हू​ूँ। (पोशीदह)

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मझ ु े एक ख़ास कक़स्ट्म की बीमारी थी, जब भी गमी ख़त्म होती सदी शुरू होती तो मेरी शमतगाह पर अजीब व ग़रीब कक़स्ट्म की एलजी होती स्जस से अिंदरूनी

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हहस्ट्सा तो मत ु ामसर होता ही मेरा नीचे वाला होंट वो भी शदीद मत ु ामसर होता है । मझ ु े इतनी शदीद कक़स्ट्म

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की ख़ाररश होती है कक बदातश्त से बाहर हो जाता है । हर कक़स्ट्म के इिंजेक्शन लगवाए, क्रीमें इस्ट्तेमाल कीिं

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मगर एलजी थी कक जाने का नाम ही नहीिं ले रही थी। एक रात मुझे शदीद ख़ाररश हो रही थी, ममयािं साहब

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और बच्चे सो चक ु े थे, सख़्त सदी की रात, कोई दवाई असर ना कर रही थी। हत्ता कक मेरी आूँखों से आिंसू जारी हो गए और मैं इसी बे बसी के आलम में अपने अल्लाह से बातें शुरू कर दीिं कक ऐ मेरे अल्लाह! मैं ने

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दवाइयाूँ पीिं, हर तरह के टीके लगवाए मुझे कोई फ़ायदा ना हुआ, अब शमत आती है ककसी के सामने बे पदात

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होने को--- इसी तरह बातें करते करते मैं सो गयी। मैं क्या सोई मेरी कक़स्ट्मत जाग गयी। मैंने दे खा कक

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हुज़रू नबी करीम‫ ﷺ‬एक तख़्त मब ु ारक पर तशरीफ़ रखे हुए हैं। मैं साथ नीचे बेठी हुई हू​ूँ। आप‫ﷺ‬

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अपने अहल बैत‫رضوان ہللا علیہم اجمعین‬के साथ गुफ़्तुगू फ़मात रहे हैं, मैं ककसी को नहीिं दे खती बस नज़रें झुकाये बेठी। इतने में हुज़ूर नबी करीम‫ ﷺ‬इशातद फ़मातते हैं इसे भी मशफ़ा ममल सकती है अगर ये दरूद

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के बाद सूरह फ़ानतहा एक बार और नो बार सूरह इख़्लास पढ़ कर मुझे (‫)ﷺ‬, अज़्वाज मुतह्रात और

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अहल बैत‫رضوان ہللا علیہم اجمعین‬को हदया करे और इसे नो बार हमारी ज़्यारत होगी। ये बात सन ु कर मैं बे अख़्तयार सर उठा कर दे खती हू​ूँ कक आप‫ ﷺ‬ककस को ये बात फ़मात रहे हैं तो मैंने दे खा कक आप‫ ﷺ‬की

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उूँ गली मुबारक का इशारा मेरी तरफ़ था तो मेरी ख़श ु ी की इिंतहा ना रही, मेरे चेहरे पर मुस्ट्कराहट िैल गयी

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तो आप‫ ﷺ‬के चेहरा अन्वर पर एक लट मब ु ारक घम ू रही थी और उस ख़ब ू सरू त और लाजवाब गोंनियाली ज़ुल्फ़ पर मेरी नज़र रुक गयी और मेरी आूँख खल ु गयी तो जो आूँखें रोटी हुई सोई थीिं अब उन में ख़श ु ी के आिंसू थे। मैं ने उसी वक़्त बग़ैर वज़ू ही हुज़ूर नबी करीम‫ ﷺ‬का बताया हुआ वज़ीफ़ा पढ़ा Page 24 of 41


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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के जल ु ाई के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

और किर उठी वज़ू ककया सब से पहले तोह्फ़े के तौर पर आप‫ ﷺ‬और आप ‫ ﷺ‬की अहल बैत ‫ رضوان ہللا علیہم اجمعین‬को दो नस्फ़्फ़ल पेश ककये। किर ज़ुहर तक मैं काफ़ी हद्द तक बेह्तर हो चक ु ी थी, अब ज़ुहर की नमाज़ पढ़ने के दौरान ख़्वाब का नक़्शा मेरी आूँखों में घूम गया तो हदल में जैसे अल्लाह ने

rg

िाल हदया हो कक किटककड़ी और मेथी के बीज अच्छी तरह उबाल कर अस्ट्तिंजा करो, फ़ौरन नमाज़ ख़त्म की ये पानी तय्यार ककया तो मुझे याद आया (किटककड़ी और मेथी दाना हम्वज़न का पानी सहदत यों में

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नीम गरम और गममतयों में बना कर रख लें ठिं िा होने पर इस्ट्तेमाल करें इन शा अल्लाह बहुत जल्द फ़ायदा होगा) ये नुस्ट्ख़ा तो अबक़री में आया था, ख़ैर मैं ने ऐसा ही ककया तो हदल मैं ये यक़ीन पुख़्ता रखा जो मेरे

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आक़ा‫ ﷺ‬ने फ़मातया बर हक़ है और बेशक बर हक़ है । अल्हम्दमु लल्लाह! अब मैं बबल्कुल ठीक हू​ूँ लेककन

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अब मैं दो नस्फ़्फ़ल और "वज़ीफ़ा हुज़ूर‫ "ﷺ‬मैं इसे वज़ीफ़ा हुज़ूर ‫ ﷺ‬कहती हू​ूँ पाबिंदी से अदा करती

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हू​ूँ। मेरी तरफ़ से तमाम क़ाररईन को भी इजाज़त है जैसे मुझे मशफ़ा ममली, अल्लाह मेरे आक़ा‫ ﷺ‬की

बराए अक़सु ज़न्नसा

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हज़रत हकीम साहब मेरा नाम शायअ हरगगज़ ना कीस्जयेगा। (पोशीदह)

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उम्मत की हर बन्दी को मशफ़ा नसीब हो, ख़ास कर पदात करने वाली बीमाररयों से। आमीन!- मोहतरम

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हुवल-शाफ़ी: सब्ज़ इलाइची एक तोला, मस्ट्तगी रूमी दो तोला, सोरिं जान शीरीिं दो तोला, ऐल्वा दो तोला,

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सक़मोननया एक तोला। सब को अलग अलग कूट कर कपड़े में छान लें। चिंद क़तरे पानी ममला कर चने

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बराबर गोमलयािं बना लें। ख़ोराक: तीन हदन दो, दो गोमलयािं तीनों वक़्त, एक गगलास नीम गरम पानी के

साथ खाने के बाद। छे हदन एक, एक गोली तीनों वक़्त पानी के साथ। तीन हदन व्क़्फ़ा के बाद इन शा

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अल्लाह ददत ख़त्म हो जायेगा। अगर इस के बाद ज़रूरत पड़े तो छे हदन एक गोली सुबह और एक गोली शाम पानी के साथ लें। इन शा अल्लाह अक़तु स्न्नसा ख़त्म हो जायेगा। इस के इस्ट्तेमाल से स्ट्याह दस्ट्त

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आएिंगे लेककन दवा का इस्ट्तेमाल बिंद ना करें । परहे ज़: तमाम बादी चीज़ें चावल, दही, आलू, आम, बेसन,

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चने और तमाम दालें , बड़े का गोश्त वग़ैरा। (हयातरु त हीम ख़ान, सािंघड़) माहनामा अबक़री जुलाई 2015 शुमारा निंबर 109______________Page No. 41

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आझख़रत से ग़फ़लत कैसी हमाक़त है दाई इस्लाम हज़रत मौलाना मुहम्मद

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कलीम मसद्दीक़ी ‫( برکاتہم دامت‬फलत)

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(हज़रत मौलाना ‫ دامت برکاتہم‬आलम ए इस्लाम के अज़ीम दाई हैं ज़जन के हाथ पर तक़रीबन ५ लाख से ज़ाइद अफ़राद इस्लाम क़ुबल ू कर चक ु े हैं। उन की नाम्वर शहरा आफ़ाक़ ककताब "नसीम हहदायत के

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िोंके" पढ़ने के क़ाबबल है ।)

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उन के मज्ज़ूबाना हाल की वजह से बादशाह हारून रशीद उन से हदल्ली अक़ीदत मिंदी के बावजूद हदल

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लगी कर लेता था मगर बादशाह के हदल में शाह बेहलूल का बड़ा एह्तराम था। उन्हों ने अपने दरबाररयों

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को हुक्म जारी ककया था कक शाह बेहलूल ककसी भी वक़्त आएिं उन को रोका ना जाये बस्ल्क मेरे पास बुला

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मलया जाये। एक रोज़ हारून रशीद दरबार में बेठा था कक शाह बेहलूल आ गए। बादशाह को हस्ट्बे मामूल

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मज़ाह की सझ ू ी। उस के हाथ में एक ख़ब ू सरू त छड़ी थी, उस ने वो शाह बेहलल ू को दी और कहा कक अगर

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आप को अपने से ज़्यादा कोई बेवक़ूफ़ आदमी ममल जाये तो ये छड़ी आप उस को दे दें । शाह बेहलूल ने वो

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छड़ी बड़े शौक़ से क़ुबल ू की और चल हदए। तीन साल के बाद हारून रशीद बीमार हुआ और बबस्ट्तर मगत

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पर पोहिं च गया, शाह बेहलूल अयादत के मलए तशरीफ़ लाये, ममज़ाज पसी की, हारून रशीद को अिंदाज़ा हो

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गया था कक वक़्त क़रीब है । उस ने कहा कक ममज़ाज क्या पछ ू ते हो, सफ़र की तय्यारी है । शाह बेहलल ू ने सवाल ककया: कहाूँ का सफ़र दरपेश है? हारून रशीद ने जवाब हदया कक आख़ख़रत का, शाह बेहलूल ने

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किर सवाल ककया ककतने रोज़ का सफ़र है ? हारून रशीद ने जवाब हदया: आप भी दीवाने ही रहे , भला आख़ख़रत के सफ़र से भी कोई जा कर वापस आता है । शाह बेहलूल ने किर सवाल ककया ककतना लश्कर,

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सामान और ख़ख़दमत गुज़ार आगे रवाना ककये? बादशाह ने जवाब हदया आप कैसी अह्मक़ाना बात करते

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हैं, वहािं के सफ़र में कौन लश्कर सामान और ख़ख़दमत गज़ ु ार भेज सकता है ? शाह बेहलल ू ने अपनी उब्बा के अिंदर से वो छड़ी ननकाली जो तीन साल क़ब्ल हारून रशीद ने उन्हें दी थी और ये कह कर बादशाह को वापस की कक आप के हुक्म की तामील में तीन साल से मैं ककसी ऐसे शख़्स को तलाश कर रहा था जो Page 26 of 41


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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के जल ु ाई के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

मुझसे ज़्यादा अहमक़ और बेवक़ूफ़ हो मुझे अपने से ज़्यादा आप के इलावा अहमक़ और बेवक़ूफ़ आज तक नहीिं ममला। इस मलए कक आप चिंद हदन के सफ़र पर जाते हैं तो जाने से पहले ककतना सामान सफ़र, लश्कर और ककतने ख़ख़दमत गज़ ु ार आगे रवाना करते हैं और आख़ख़रत का इतना एहम और तवील बस्ल्क

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हमेशा का सफ़र दरपेश था आप ने वहािं के मलए कुछ भी इिंतज़ाम नहीिं ककया। मलहाज़ा मुझ से ज़्यादा अहमक़ और बेवक़ूफ़ आप आज मझ ु े ममले हैं। मैंने ये छड़ी आज तक महफ़ूज़ रखी थी और आप के हुक्म

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की तामील में ये मैं आप को दे ता हू​ूँ। ये कह कर छड़ी बादशाह के हवाले की और चल हदए। हारून रशीद बेहलूल मज्ज़ूब की हकीमाना नसीहत सुन कर बबलक बबलक कर रोने लगा और कहा:

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बेहलूल वाक़ई हम सारी उम्र आप को दीवाना समझते रहे मगर वाक़ई हारून रशीद से ज़्यादा कौन

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अहमक़ होगा जो इतने एहम सफ़र की तय्यारी से ग़ाकफ़ल रहा। हक़ीक़त ये है कक इिंसान की इस से ज़्यादा

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बेवक़ूफ़ी और हमाक़त क्या होगी कक इतने एहम और हक़ीक़ी सफ़र की तय्यारी से ग़ाकफ़ल रहे जब कक

एक लम्हा और एक साूँस के मलए इस का इत्मीनान नहीिं कक ये सफ़र ना जाने ककस लम्हे दरपेश हो जाये,

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कौन बड़े से बड़ा शहिं शाह और हकीम इस बात की ज़मानत ले सकता है कक इिंसान का जो सािंस अिंदर आ

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गया इस के बाहर ननकलने तक मोत इस को मोहलत दे गी और जो साूँस बाहर ननकल गया इस के अिंदर

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आने तक उस की स्ज़न्दगी उस से वफ़ा करे गी। किर इस धोके की स्ज़न्दगी पर भरोसा कर के आख़ख़रत के

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हक़ीक़ी घर को भूल जाना कैसा दीवानापन है । प्यारे नबी करीम ‫ﷺ‬ने कैसी सच्ची और प्यारी बात

फ़मातई: "अक़लमिंद इिंसान वो है जो नफ़्स को क़ाबू में रखे और मरने के बाद की तय्यारी करे ।" अपने हाथों

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ना जाने ककतने इिंसानों को हम दफ़न करते हैं। अपनी इन ही आूँखों के सामने ककतने अज़ीज़ों, ररश्तेदारों,

दोस्ट्तों और रुफ़क़ा को इस दन्ु या से ख़ाली हाथ जाता दे खते हैं मगर किर भी उस हक़ीक़ी घर आख़ख़रत की

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तय्यारी से ग़ाकफ़ल रह कर इस दन्ु या की रिं ग व बू में क़यामत तक इस दन्ु या में रहने की उम्मीदों के साथ

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मस्ट्त रहते हैं और अपनी अक़लमिंदी और दानाई पर फ़ि करते हैं। इमाम हसन बसरी ने कैसी प्यारी बात कही कक अगर कोई आदमी ये नज़र मान ले कक वो दन्ु या के अक़लमिंद तरीन लोगों की दावत करे गा तो

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उसे ज़ाहहद फ़ी-अल-दन्ु या लोगों की दावत कर के ये नज़र पूरी करनी पड़ेगी। इस मलये कक ज़ाहहदीन ही

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दन्ु या के अक़लमिंद तरीन लोग हैं जो आख़ख़रत की कफ़क्र में दन्ु या को नज़र अिंदाज़ करते हैं।

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क्या रमज़ान २०१४ ने हमें बेह्तर बनाया

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हम स्टीकर से आम का ऐब छुपा कर बेचते हैं। क्या बनेगा हमारा---? अबक़री के ही एक शुमारे

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में पढ़ा था कक एक साहब जो कपड़ा बेचते थे वो बादल और अूँधेरी में जब रौशनी कम होती है

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उस रोज़ कपड़ा बेचने नहीिं ननकलते थे कक लोग उस माल को ठीक से दे ख नहीिं सकेंगे।

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(नबील इफ़्तख़ार, रावलपपिंिी)

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अल्हम्दमु लल्लाह! अल्लाह तआला ने स्ज़न्दगी दी और आप लोगों के साथ हम ने भी साल २०१४ का

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रमज़ान गुज़ारा। मस्स्ट्जदों में वही मिंज़र और तरतीब रही जो कक हमेशा से है कक पहले पािंच या छे रोज़े

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फ़ुल रश रहा उस के बाद नमाज़ी तेज़ी से कम होने लगे और आख़री दस हदनों में एक बार मैं ने दे खा कक

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नो अदद नोजवान लड़के अपने एक दोस्ट्त की गाड़ी को जो स्ट्टाटत नहीिं हो रही थी उसे स्ट्टाटत करने के मलए

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जुते हुए थे, कोई साढ़े तीन बजे से वो इसी काम पर लग गए थे हर कोई मैकेननक बन रहा था, हर कोई

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हहस्ट्सा िाल रहा था हत्ता कक मैं असर की नमाज़ जमाअत से पढ़ कर वापस आया तो वापसी पर उन्हें वही​ीँ खड़े हिं सी मज़ाक़ करते और गाड़ी पर झुके दे खा। ककसी के हदल में ज़रा ख़्याल नहीिं आया कक मैं

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रमज़ान के महीने में यहाूँ वक़्त ज़ायअ कर रहा हू​ूँ और असर की जमाअत फ़ॉत हो रही है । तब अल्लाह तआला का वो फ़मातन बड़ा याद आया: बबस्स्ट्म-ल्लाहह-र्-रह्मानन-र्-रहीमम वल ्-अमस्र इन्नल ्-इिंसान लफ़ी

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َ ّٰ َ ख़मु स्रन ् (‫ْحنَّالرحیمَّوالعرصَّانَّالنسانَّلیفَّخرس‬ ‫ )بسمَّلَاَّالر‬असर के वक़्त की क़सम या (गज़ ु रते वक़्त की क़सम)

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तहक़ीक़ इिंसान ख़सारे में है ।

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एक साहब को मैंने बार हा दे खा कक हम मग़ररब की नमाज़ पढ़ कर वापस जा रहे होते तो वो हमें एक कोने में छुप कर मसग्रेट पीते नज़र आते। शायद घरवालों से छुप कर अफ़्तारी के बाद नशा पूरा कर रहे होते थे। एक बार मैं तरावीह पढ़ कर घर जा रहा था कक एक घर के बाहर बेहन भाई खेल रहे थे, छोटे बच्चे ने

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अचानक मासूममयत से पूछा अिंकल आप कहाूँ से आ रहे हैं? मैं ने जवाब हदया मैं तरावीह पढ़ कर आ रहा हू​ूँ। बच्चा अपनी बेहन से कहने लगा "तो किर हमारे अब्बू क्यूँू तरावीह पढ़ने नहीिं जाते"। बेहन बोली वो टी

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वी जो दे खते रहते हैं। एक साहब ने सारा रमज़ान कभी तरावीह नहीिं पढ़ी। एक रोज़ मैं पूछ बेठा कक आप तरावीह के मलए क्यू​ूँ नहीिं आते। उन का जवाब सुनें बोले "मेरे मस्ट्लक की मस्स्ट्जद बहुत दरू है मैं वहािं जा

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नहीिं सकता इस मलए इस मस्स्ट्जद में नहीिं आता"। वाह मज़ा आ गया जवाब सुन कर आप को मज़ा

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आया? रमज़ान के महीने में मैं हर शाम असर की नमाज़ पढ़ कर िल वग़ैरा लेने बाज़ार जाता। ख़स ु ूसिं मैं

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ने आम ख़रीदने होते थे। हर रोज़ मेरी दक ु ानदारों से बहस और तलुख़ ् कलामी होती थी। वजह सुनें हर

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दक ु ानदार का हाल ये था कक उन के दो मुतालबे होते थे जो मैं कभी नहीिं मानता था और नतीजतन बहस

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मब ु ालबा निंबर एक ये होता "क़ीमत हम अपनी मज़ी की लें गे।" मत ु ालबा निंबर दो ु ाहहसा होता उन का मत

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आप िल को हाथ भी ना लगाएिं जो हमारा हदल करे गा हम दें गे, बड़े और अच्छे आम को वो हाथ भी नहीिं

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लगाने दे ते और ख़द ु सोराख़ वाला या छोटे और नरम आम उठा उठा कर िालते। इतने ईमानदार लोग थे

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कक स्जस आम में सोराख़ होता उसे ख़ब ू सूरत छोटा स्ट्टीकर लगा कर छुपाया होता था। क्या हम उन्ही

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बज़ ु रे हैं जो अपने शागगदत को मना कर ु ग ु ों के पेरोकार हैं स्जन में इमाम अबू हनीफ़ा ‫ رحمت ہللا علیہ‬भी गज़

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के गए थे कक इस कपड़े के थान में एक मामूली सोराख़ है इस मलए इसे बेचना नहीिं और ककसी काम से चले गए वापस आये तो शागगदत भूल कर वो थान बेच चक ु ा था। आप ‫ رحمت ہللا علیہ‬को बहुत अफ़्सोस

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हुआ। घोड़े पर गए और कई घिंटे ढूिंि कर उस आदमी को तलाश ककया और उस से मुआफ़ी मािंगी और फ़मातया कक लाएिं वो कपड़ा वापस कर के अपने पैसे वापस ले लें। वो आदमी सख़्त मुतामसर हुआ और

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कहने लगा हुज़रू 'मैं राज़ी मेरा रब राज़ी' मझ ु े कोई एतराज़ नहीिं, आप जाएूँ मगर हज़रत इमाम अबू

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हनीफ़ा ‫ رحمت ہللا علیہ‬ने फ़मातया कक नहीिं मैं ने ऐब वाली चीज़ बेचनी ही नहीिं। बहुत इसरार के बाद कपड़ा वापस ले गए और हम स्ट्टीकर से आम का ऐब छुपा कर बेचते हैं। क्या बनेगा हमारा---? अबक़री के ही

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एक शुमारे में पढ़ा था कक एक साहब जो कपड़ा बेचते थे वो बादल और अूँधेरी में जब रौशनी कम होती है उस रोज़ कपड़ा बेचने नहीिं ननकलते थे कक लोग उस माल को ठीक से दे ख नहीिं सकेंगे।

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२२ रमज़ान-उल-मुबारक की दोपेहेर मुझे लाला मूसा तक जाना पड़ा। वेगन अड्िे पर पोहिं चा तो इिंतहाई सख़्त गमी थी वहािं बग़ैर ए सी वाली वेगन २२० रूपए क्राया ले रही थीिं और ए सी वाली वेगन २८० रूपए

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क्राया मािंग रही थी। मैं और दीगर मुसाकफ़र सहूलत के मलए फ़ौरन ए सी वाली गाड़ी का क्राया दे कर बैठ गए। िाईवर ए सी ऑन नहीिं कर रहा था। सवाररयािं चीख़ें कक ए सी ऑन करो तो पहला बहाना ककया कक यहाूँ धप ू सीधी पड़ रही है , गाड़ी अड्िे से ननकलती है तो ऑन करता हू​ूँ, लोग चप ु हो गए। ज़रा दे र बाद

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गाड़ी चल पड़ी स्जस ने भी क्राया दे ना था वो तो अड्िे पर दे चक ु ा था, गाड़ी अड्िे से ननकल गयी तो उस ने

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ए सी नामी चीज़ को ऑन ककया। दो ममनट तो लोगों ने सब्र ककया किर सब को अिंदाज़ा हो गया कक ए सी

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हब्स और गरम हवा िैंक रहा है । सवाररयािं बोलीिं िाईवर साहब ए सी तो ठिं िा नहीिं कर रहा? िाईवर इिंतहाई बद्द तमीज़ी से बोला इतनी जल्दी गाड़ी ठिं िी नहीिं होती स्जस ने उतरना है वो उतर जाये। कोई पागल था

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कक अकेला चार पािंच मील वापस जाता और ककस ने क्राया वापस करना था। तो जनाब---!!! लाला मूसा

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तक ए सी ने काम ना ककया। ए सी ठीक होता तो काम करता। आधे या पोने घिंटे बाद लोगों ने तिंग आ कर

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ख़खड़ककयािं खोल लीिं। बाहर से आने वाली गरम हवा अिंदर के हब्स से कहीिं बेह्तर थी। क्या वेगन वालों के

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मलए ये रमज़ान नहीिं था, क्या उन्हें रमज़ान में मग़कफ़रत और रे हमत की ज़रूरत नहीिं थी? ज़रूरत तो

होगी मगर शायद रे हमत और मग़कफ़रत से ज़्यादा उन्हें कैश की ज़रूरत थी। क्या रमज़ान ने हमारी

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स्ज़न्दगगयों पर कोई मुसस्ब्बत असर नहीिं िाला? क्या ये रमज़ान भी हमारे मलए आम महीनों जैसा एक

महीना था। क्या आमलमों की तक़रीरों ने, ख़तीबों के ख़त्ु बों ने, मुसस्न्नफ़ों की तहरीरों ने, उल्लमा शोला

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बयान की वल्वला अिंगेज़ तक़रीरों ने हमारे अिंदर ज़रा भी तब्दीली पैदा नहीिं की? क्या अपने प्यारों को

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अपने सामने दफ़न होता दे ख कर, क्या नोजवान लोगों को अचानक मरता दे ख कर हमारा हदल नहीिं पपघलता, क्या तब्लीग़ीयों की तब्लीग़ ने, क्या नअत ख़्वानों की नअत ख़्वानी ने, क्या मीलाद की

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महकफ़लों ने, क्या पीरों की बेअत ने, ककसी चीज़ ने हमारे मआ ूँू ु शरे को तब्दील नहीिं ककया? आख़ख़र क्य? २९ जुलाई को ईद थी २८ जुलाई को रमज़ान शरीफ़ ख़त्म हुआ। चाूँद रात से ले कर यानन २८ जुलाई से ले Page 30 of 41


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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के जल ु ाई के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

कर ३१ जुलाई तक मसफ़त चार हदन के चिंद एक वाक़्यात जो कक यकुम अगस्ट्त के रोज़नामों में शायअ हुए हैं वो आप ज़रूर पढ़ें क्योंकक मसफ़त चाूँद रात और ईद वाले हदन पूरे पाककस्ट्तान में सैंकड़ों क़त्ल, ख़द ु कुमशयािं और िकैनतयािं हुईं--- और अपने ज़ेहन में एक तस्ट्वीर बनाएिं कक रमज़ान ख़त्म होते ही हम ने

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क्या शुरू कर हदया? ये तफ़्सीलात एक बार ज़रूर पढ़ें मसफ़त ये अिंदाज़ा लगाने के मलए कक क्या रमज़ान

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हमारी स्ज़न्दगगयों में ज़रा भी तब्दीली नहीिं ला रहा? आख़ख़र क्यूँ-ू --???

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क़ाररईन लाये अनोखे और आज़मूदह टोटके

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माहनामा अबक़री जल ु ाई 2015 शम ु ारा निंबर 109_______________Page No.44

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(क़ाररईन ने बार बार आज़माया कफर अबक़री के मलए सीने के राज़ खोले और लाखों लोगों की झख़दमत के

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मलए आप की नज़र में )

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परू ा साल पैसों की रे ल पेल:

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं आज क़ाररईन को रमज़ान-उल-मब ु ारक के एक

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ख़ास तरीन अमल की तरफ़ मुतवज्जह कर रही हू​ूँ स्जस के करने से सारा साल बटवा (पसत) या थैली पैसों

से भरी रहे गी और कभी ख़ाली नहीिं होगी लेककन ये अमल साल में मसफ़त एक बार २७ रमज़ान-उल-मब ु ारक

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की रात ककया जाता है । इस अमल से अब तक सैंकड़ों अफ़राद मुस्ट्तफ़ीद हो चक ु े हैं। इस अमल की

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ُ َ इजाज़त आम है । अमल ये है कक जव के सात दाने ले कर हर दाने पर सत्तर मततबा "या रज़्ज़ाक़ु" ‫اق‬ َّ ‫َ​َی َرز‬ पढ़ें और अपने बटवे (पसत) या थैली में ककसी प्लास्स्ट्टक की थैली में रख लें। इन शा अल्लाह आप की थैली

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वग़ैरा सारा साल नोटों से भरी रहे गी। याद रहे कक ये अमल मसफ़त २७ रमज़ान-उल-मुबारक की ही रात ककया जाता है और दाने भी मसफ़त जव के लेने हैं। इन शा अल्लाह रोज़ी कुशादा होगी, ररज़्क़ फ़राख़ होगा Page 31 of 41


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और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की नेअमतें , रहमतें , बरकतें और फ़ज़ल व करम नास्ज़ल होगा। (तय्यबा नज़ाकत, बहावल्पुर)

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मेरी दादी अम्माूँ के आज़मूदह टोटके: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह तआला से दआ ु है कक आप ख़ैररयत से हों, मैं

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गन ु हगार आप को हर पल दआ ु एिं दे ता रहता हू​ूँ और इन शा अल्लाह दे ता रहू​ूँगा। अल्लाह आप को, आप के घरवालों को आप के साथ काम करने वालों को अपने हहफ़्ज़ व अमान में रखे। आमीन! मेरी दादी अम्माूँ

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के पास उन के दो आज़मूदह नुस्ट्ख़े हैं जो मैं क़ाररईन के मलए अरसाल कर रहा हू​ूँ। ये नुस्ट्ख़े मेरी दादी

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अम्माूँ घर में बच्चों को बहुत इस्ट्तेमाल कराती हैं। ये उल्टी बड़ों की हो या छोटों की या बच्चों को खािंसी,

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नज़्ला व ज़ुकाम हो, दस्ट्त हों बद्द हज़मी हो, अल्लाह की रे हमत से मशफ़ा होती है नुस्ट्ख़ा ये है । हुवल-शाफ़ी:

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सूखा पोदीना एक चट ु की, सौंफ़ एक चट ु की, दो अदद छोटी इलाइची को थोड़ा सा िाड़ दें । गममतयों में हस्ट्बे ज़ाइक़ा ममस्री िालें और सहदत यों में शहद िालें , तीन प्याली पानी िाल कर पकाएिं जब एक प्याली रह जाये

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उसे उतार कर नीम गरम पपलाएिं। मेरी दादी इसे सख ू ी गोबर के अिंगारों पर पकाती हैं। दस ू रा नस्ट् ु ख़ा: बअज़

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औक़ात स्जस्ट्म पर एक दाना ननकलता है शायद मसराइकी में इसे खकर बरोड़ी कहते हैं। इस मलए मेरी

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दादी को ककसी ने ये लेप बताया था। हुवल शाफ़ी: लम्बी काबल ु ी वाली ककस्श्मश जो खजरू के बराबर लम्बी

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होती है । तीन या दो अदद, स्जस्ट्म पर दाना ज़्यादा बड़ा हो तो ज़्यादा कर लें। मक्खन चने के बराबर, इन

को अच्छी तरह कूटें , पीसें, थोड़ा पानी भी ममलाते जाएूँ जब अच्छी तरह ममक्स हो जाये तो इस लेप को

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सूती कपड़े के ऊपर िाल कर दाने के ऊपर लगा दें , कुछ दे र बाद गचपक जायेगा अगले हदन इसे उतार दें ।

अगर उतारने में मुस्श्कल हो तो इस के कोनों पर थोड़ा पानी िालें उतर जायेगा। सफ़ाई कर के दस ू रा लगा

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दें । ये दाना मेरी दादी और मामूँू की कमर पर ननकला था। इस से ये दाना जल्दी िट कर ख़त्म हो जाता

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है । स्जन क़ाररईन को इन नस्ट् ु ख़ा जात से फ़ैज़ ममले वो मेरी दादी के मलए ज़रूर दआ ु फ़मातएिं। (मुहम्मद

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मम्ताज़ रशीद, लोरालाई)

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मेरे आज़माये नुस्ख़ा जात: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! कुछ तहरीरें हैं जो मैं क़ाररईन की ख़ख़दमत में नज़र

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कर रहा हू​ूँ। एलजी के मलए नुस्ट्ख़ा: स्जन अफ़राद को सुबह उठ कर बहुत ज़्यादा छीिंकें आती हों वो रोज़ाना सब ु ह को ननहार मिंह ु २१ अदद भरू ी ममचत (सफ़ेद ममचत) जो कक पिंसार से आम ममल जाती हैं साबत ु ही पानी

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से ननगल लें, सात हदन बबला नाग़ा अगर किर भी छीिंकें आती हों तो सात हदन और इस्ट्तेमाल करें , इन शा अल्लाह एलजी ख़त्म हो जायेगी। है ज़ के मलए: स्जन ख़वातीन को है ज़ ददत के साथ आता हो तो वो ख़वातीन रे विंद ख़ताई २५ ग्राम ले कर उस की सात पुडड़यािं बना लें , रोज़ाना एक पुड़ी पानी से इस्ट्तेमाल

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करें , रुका हुआ है ज़ चल पड़ेगा और ददत भी ख़त्म हो जायेगा। नज़्ला, कीरा और जमी हुई बलग़म के मलए:

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अदरक, दार चीनी हम्वज़न बड़ी इलाइची एक अदद का क़ह्वा सुबह व शाम पीएिं, चिंद हदन के इस्ट्तेमाल

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से ये मज़त ख़त्म हो जायेगा। ख़श्ु क खािंसी: स्जन अफ़राद को ख़श्ु क खािंसी हो तो रात सरसों का तेल ऊूँगली पर लगा कर मक़अद में लगाएिं, सरसों का तेल मक़अद के अिंदर लगना चाहहए, इन शा अल्लाह एक ही

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रात में मशफ़ा ममल जायेगी। वरना दस ू री रात किर इसी तरह करें , ये अमल रात को सोते वक़्त करना है ।

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दीमक से ननजात का टोटका: ये टोटका एक फ़नीचर पोमलश वाले ने हदया था। इिंरीन की एक बोतल में

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एक क्वाटत र ममटटी का तेल ममला कर मसररिंज के ज़ररये से दीमक लगे सोराख़ों में िाल दें , दीमक का कीड़ा

कमर में ददस हो या जोड़ में सब ख़त्म:

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वग़ैरा को इस से महफ़ूज़ बना सकते हैं।

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ख़त्म हो जायेगा। इिंरीन हाितवेयर की दक ू सोराख़ों में िालना है फ़नीचर ु ान से ममल जाती है । ये महलल

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बअज़ लोगों के ककसी जोड़ या कमर में कोई मेहनत का काम करने या वज़न उठाते वक़्त शदीद ददत रहता है और आम हालत में बबल्कुल ठीक महसूस करते हैं ऐसे लोगों के मलए एक ननहायत ही मुफ़ीद नुस्ट्ख़ा

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हास्ज़र ख़ख़दमत है । हुवल-शाफ़ी: सफ़ेद मूस्ट्ली दो तोला, सतावर दो तोला, बहोिली चार तोला, माजो पािंच

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दाने तमाम अश्या को अलैहहदह अलैहहदह कूट छान कर बाद में ममक्स कर लें। आधा चम्मच सुबह ताज़ह पानी और रात को एक प्याली नीम गरम दध ू के साथ खा लें। इन शा अल्लाह तआला ददत ख़त्म हो जायेगा। नोट: बहोिली चार तोला इस मलए है कक ये सारी बारीक नहीिं होती, आख़ख़र में सफ़ेद सफ़ेद Page 33 of 41


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लकड़ी के छोटे छोटे टुकड़े बच जाते हैं, उन को िैंक दें , शाममल नुस्ट्ख़ा ना करें । सफ़ेद मूस्ट्ली इिंडिया की लें तो ज़्यादा बेह्तर है । (ताररक़ महमूद, साहे वाल)

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पेशाब की तकालीफ़ और बादी बवासीर सब ख़त्म: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अक्सर हफ़्ता में एक बार बड़ी बहन की ख़ैर व

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आकफ़यत दरयाफ़्त करने चला जाता हू​ूँ, एक दफ़ा उन के हाथ में "अबक़री" ररसाला दे खा, उन्हों ने बताया कक बहुत ही मुफ़ीद मालूमाती, रूहानी और यूनानी नुस्ट्ख़ों पर मुश्तममल ये ररसाला है , मुझे इस का

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तजस्ट्सुस हुआ और पढ़ने के मलए घर ले आया। यक़ीन जाननये कक मुतामलआ करने के बाद इस की इल्मी

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रूहानी अफ़ाहदयत और जड़ी बूहटयों के तरीक़े इलाज का बे हद्द क़ाइल हुआ। इस के बाद से आज तक़रीबन

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साल ख़त्म होने को है मैं मुस्ट्तक़ल इस ररसाला को हर माह बाक़ाइदगी से पढ़ता हू​ूँ और दीनी और दन्ु यावी

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मालूमात में इज़ाफ़ा होता है । मैंने इस में से दे ख कर जो दवाएिं और दआ ु एिं अपने मलए इस्ट्तेमाल की हैं और बफ़ज़ल ख़द ु ा सुकून और राहत ममली है । क़ाररईन! के नुस्ट्ख़ा जात से मैं ने फ़ैज़ पाया और अब अपने

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आज़माये नस्ट् ु ख़े मैं क़ाररईन की नज़र कर रहा हू​ूँ। पेशाब की हर कक़स्ट्म की तकालीफ़ का इलाज: मझ ु े

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पेशाब में जलन की तक्लीफ़ रहती थी, होम्यो िॉक्टर से इलाज कराया तो वो कहने लगे प्रोस्ट्टे ट ग्लैंि बढ़

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रहे हैं। दवाई ले कर खाता रहा मगर मक ु म्मल आराम नहीिं हो सका।

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माहनामा अबक़री जल ु ाई 2015 शम ु ारा निंबर 109__________Page No. 45

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इत्तफ़ाक़ से एक िाइजेस्ट में ये नस् ु ख़ा पढ़ा। हुवल-शाफ़ी: एक अदद प्याज़ ममडियम साइज़ की लें , िेढ़

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गगलास पानी में पकाएिं, जब आधा गगलास पानी रह जाये तो नीम गरम सुबह और शाम इस्ट्तेमाल करें । आज तक़रीबन दस साल हो गए हैं, मुझे दब ु ारह तक्लीफ़ नहीिं हुई और ना ही प्रोस्ट्टे ट ग्लैंि की ऑपरे शन

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की ज़रूरत महसूस हुई। बादी बवासीर से ननजात: मुझे बादी बवासीर की मशकायत हो जाती थी, होम्योपैगथक, ऐलोपैगथक इलाज कराया, कोई अफ़ाक़ा नहीिं हुआ। इत्तफ़ाक़ से एक ररसाला में (करिं जोह) Page 34 of 41


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मसलेटी रिं ग और रीठे की शकल का होता है । उस की गरी सुबह व शाम पानी के साथ इस्ट्तेमाल की। अल्लाह तआला के फ़ज़ल व करम से एक हफ़्ता में आराम आ गया। ये नुस्ट्ख़ा हर ममज़ाज के लोग इस्ट्तेमाल कर सकते हैं और इस के कोई साइि इफ़ेक्ट भी नहीिं। हर कक़स्ट्म की मस्ु श्कल और जाइज़

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हाजात के मलए: मेरे बच्चों का मामूल है कक शाम के छे बजे दफ़्तर से घर आ जाते हैं। मगर एक दफ़ा उन्हें दे र हो गयी, जब तबीअत परे शािं होने लगी तो ये क़ुरआनी आयात ममला कर पढ़ना शरू ु कीिं। एक सौ एक

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मततबा "या हय्यु या क़य्यूमु बबरह्मनतक अस्ट्तग़ीसु, ला इलाह इल्ला अिंत सुब्हानक इन्नी कुन्तु ममनज़्ज़ामलमीन ्"।

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ّٰ َ ُ ُ َُ َ َ َ‫تَّ ُبُسَان‬ َ ‫ومَّ َِبْحَت‬ ُ ‫کَّ َاس َتغی‬ ُ ‫حَّ َ​َی َق ُی‬ َ ‫َّ َلَّا ّٰل َہَّا َلَّ َان‬،‫ث‬ (‫مَّالظلمیَّ۔‬ َّ‫کَّانَّکنت‬ ‫)َی‬

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अवल व आख़ख़र तें तीस मततबा दरूद शरीफ़ पढ़ें । इस वज़ीफ़े के पढ़ने के दौरान ही बच्चों ने दरवाज़े पर

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दस्ट्तक दे दी और मैं ने अल्लाह रब्बुल ् आलमीन का शुक्र अदा ककया। तमाम क़ाररईन के मलए भी ये

रूहानी टोटका तहरीर कर हदया है ता कक मस्ट् ु तफ़ीद हो सकें। नमाज़ की बाक़ाइदगी शतत है । इस के इलावा

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भी दीगर मुस्श्कल और जाइज़ काम की हाजत हो तो अल्लाह तआला के फ़ज़ल से पूरी हो जाती हैं।

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आज़मद ू ह व मज ु रस ब नस् ु ख़ा बराए बवासीर:

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(कलीम अहमद अिंसारी, कराची)

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह तआला आप की उम्र दराज़ फ़मातए, आप का

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साया हमारे सरों पर क़ाइम दाइम रखे, आप की हमारी मुलाक़ात अबक़री ररसाला से ग़ामलबन जन्वरी

२०१३ से हुई, ररसाला बाक़ाइदा हर माह पढ़ते हैं बस्ल्क तक़रीबन सारा ख़ान्दान ररसाला पढ़ता है और

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भरपूर फ़ायदा उठा रहा है । ररसाला अबक़री बहुत अच्छा है , दआ ु है अल्लाह पाक इस को हदन दग्ु नी रात

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चग्ु नी तरक़्क़ी दे आमीन!। क़ाररईन के मलए एक आज़मूदह और मुजरत ब नुस्ट्ख़ा हास्ज़र ख़ख़दमत है जो कक अरसा चार साल से लोगों को फ़ी सबीमलल्लाह इस्ट्तेमाल करवा रहा हू​ूँ। हुवल-शाफ़ी: पान की जड़, कुश्ता

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गोदिं ती हम्वज़न ले कर बड़े साइज़ के कैप्सूल भर लें यानन पीस कर ममक्स कर के एक अदद कैप्सूल रात

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को सोते वक़्त आधा ककलो ठन्िे दध ू से लें, इन शा अल्लाह फ़ायदा होगा। बवासीर ख़न ू ी हो या बादी दोनों से मशफ़ा ममलेगी। फ़ायदा होने पर मेरे मलए दआ ु ज़रूर कीस्जयेगा। (मुहम्मद इशातद, बहावल्पुर)

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मेरे आज़मूदह २ टोटके: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं दो अदद टोटके क़ाररईन के मलए भेज रही हू​ूँ

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उम्मीद है क़ाररईन इस से ख़ब ू ख़ब ू फ़ायदा उठाएिंगे। ककसी भी कक़स्ट्म की खािंसी के मलए: बकरी का दध ू आधा कप, दो जुए लेह्सन के ले कर मल्मल के कपड़े में कूट कर उस का पानी दध ू में िालें। एक हफ़्ता

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दवाई की तरह पाबिंदी से इस्ट्तेमाल करें । इन शा अल्लाह खािंसी ख़त्म हो जायेगी। स्जस्ट्म में ददत हो या

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गदत न में : लोंग का तेल अच्छी तरह मलें और इस पर किर आयोिेक्स लगा कर कपड़े से बाूँध दें , हर तीन

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फ़ाइक़ अहमद)

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घिंटे बाद यही अमल करें , अल्हम्दमु लल्लाह एक हदन में ददत मुकम्मल तौर पर ख़त्म हो जायेगा। (उम्म

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नक्सीर का नस् ु ख़ा ख़ास:

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हुवल-शाफ़ी: कीकर की गोन्द ले कर उसे बारीक पीस लें , शरबत अिंजबार दो खाने वाले चम्मच के साथ

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सुबह और असर के वक़्त चम्मच के आख़ख़र कोने (यानन एक चट ु की) के साथ ख़खलाएिं, शरबत अिंजबार को

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पानी में ममक्स कर के पीएिं। एअसाबी कम्ज़ोरी के मलए: हुवल-शाफ़ी: गल ु नीलोफ़र आधा पाव, गल ु गल ु ाब आधा पाव, बादाम एक ककलो, चार मग़ज़ आधा पाव, बाहदयािं आधा पाव, सौंफ़ आधा पाव, काबुली ममस्री

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एक ककलो, सिंदल दो तोले, सफ़ेद इलाइची दो तोले, तबाशीर एक तोला, काली ममचत एक तोला, अनीसूिं आधा पाव कूट पीस कर दवाएिं बना लें और चािंदी वक़त पूरा पैक दवाई तय्यार होने के बाद िालें। सुबह व

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शाम एक एक खाने वाला चम्मच हमराह दध ू इस्ट्तेमाल करें । (सल्मा उरूज, जेहलम)

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पाऊूँ की बदबू ख़त्म करने का आसान टोटका:

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! आप स्जस तरह दख ु ी इिंसाननयत की ख़ख़दमत कर रहे हैं, ख़द ु ा पाक आप को इस का अजर दें और काम्याबी व कामरानी अता फ़मातएूँ, आमीन! एक टोटका आप Page 36 of 41


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की ख़ख़दमत में हास्ज़र है । पाऊूँ की बदबू ख़त्म करने के मलए: पाऊूँ की बदबू ख़त्म करने के मलए सफ़ेद

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पोदीना सुबह ननहार मुिंह खाने से पाऊूँ की बदबू चिंद हदन में ही ख़त्म हो जायेगी। (द,र-दरह)

ब्लि कैंसर से यक़ीनी मशफ़ायाबी:

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! आप का ररसाला मैं गुज़श्ता चिंद महीनों से पढ़ रहा हू​ूँ बहुत अच्छी मालम ू ात नतब्बी रूहानी ममलती हैं। आप की हहदायत पर अपना एक आज़मद ू ह नस्ट् ु ख़ा भेज

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रहा हू​ूँ। बन्दा ९ माचत १९९७ से ब्लि कैंसर जैसे मूज़ी मज़त में मुब्तला है और उसी वक़्त से ही एक बुज़ुगत के

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फ़मातने पर पाककस्ट्तानी खजूर सुबह सात दाने और शाम सात दाने इस्ट्तेमाल कर रहा हू​ूँ और बफ़ज़ल ख़द ु ा

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नामतल स्ज़न्दगी गुज़ार रहा हू​ूँ। अल्बत्ता जब कभी कुछ अरसे के मलए छोड़ दे ता हू​ूँ तो तक्लीफ़ दब ु ारह शुरू

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हो जाती है । (मुहम्मद अली, इस्ट्लामआबाद)

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दािंतों का मासख़ोरा बबल्कुल ठीक:

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मुझे अरसा क़ब्ल दािंतों का मासख़ोरा लाहक़ था स्जस

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की वजह से मैं बे हद्द परे शािं रहता था, इसी दौरान एक ककताब मेरे ज़ेर मत ु ामलआ आई स्जस में एक मिंजन

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का नुस्ट्ख़ा था। मैंने वो बना कर आज़माया स्जस से मुझे मासख़ोरा के मूज़ी मज़त से ननजात ममल गयी।

नस्ट् ु ख़ा दजत ज़ैल है । हुवल-शाफ़ी: नछलका बादाम को जला कर कोइला महफ़ूज़ कर लें (राख ना बन्ने दें ),

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कोइले को बारीक पीस लें। फ़ल्फ़ल स्ट्याह (काली ममचत) भी बारीक पीस लें , नमक सेंधा या नमक

आयोिीन ले कर पीस लें। सफ़ूफ़ कोइला बादाम से ननस्ट्फ़ सफ़ूफ़ स्ट्याह ममचत और स्ट्याह ममचत के हम्वज़न

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नमक मज़कूरा बाला तीनों सफ़ूफ़ ख़ब ू अच्छी तरह यक्जािं कर लें। मा बअद् इस सफ़ूफ़ को कपड़ छान कर

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के महफ़ूज़ कर लें। सोने से क़ब्ल अच्छी तरह मिंजन करें । यक़ीनन सौद मिंद साबबत होगा (इन शा

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अल्लाह) (मुहम्मद लतीफ़ नामसर)

एक छोटा सा टोटका और लुक्नत ख़त्म:

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरी बहन को लुक्नत का मसला था स्जस की वजह से मेरे वामलद सख़्त परे शािं थे, बहुत इलाज करवाया मगर आराम ना आता था किर मेरे वामलद को ककसी ने ये नस्ट् ु ख़ा बताया कक शहद और अक़र क़रहा हम्वज़न ममला कर बेटी को सब ु ह व शाम एक एक चम्मच

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ख़खलाएिं। इस अमल से मेरी बहन अब बबल्कुल ठीक है । (महमूद, क़ुएटा)

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नमक से कीज़जये जले का इलाज:

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! जले हुए पर नमक मलने से वहािं छाला नहीिं पड़ता। ये

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हमारा ख़ान्दानी आज़मूदह नुस्ट्ख़ा है । स्जस्ट्म का कोई भी हहस्ट्सा जले फ़ौरन उस जगा नमक मल हदया

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जाए तो कभी भी छाला नहीिं पड़ेगा। इस के इलावा ये नुस्ट्ख़ा हम ने बहुत से लोगों को बताया स्जस स्जस ने आमसफ़)

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भी ककया उस ने ही इस का कमाल पाया। क़ाररईन आप भी कीस्जए और दआ ु ओिं में याद रख़खए। (माहनूर

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माहनामा अबक़री जल ु ाई 2015 शम ु ारा निंबर 109__________Page No. 46

(कक़स्त निंबर १५)

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गुम्शुदह चीज़, फ़दस और सरमाया पाने का वज़ीफ़ा

उस ने फ़ौरी मुिे इत्तला दी, हम जब वहािं गए तो हमारी मोटर साइककल वहािं बबल्कुल सही सलामत खड़ी

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थी, हत्ता कक पेट्रोल भी कम नहीिं हुआ था। हमारे इलाक़े में ककसी को भी यक़ीन नहीिं आ रहा था कक गुम्शुदह मोटर साइककल तीन हदन बाद बबल्कुल सही सलामत हालत में ममल गयी है ।

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(एडिटर के क़लम से))

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(क़ाररईन! हर माह हज़रत हकीम साहब‫ دامت برکاتہم‬का रूहानी राज़ों से लब्रेज़ मुिंफ़ररद अिंदाज़ पहढ़ए।

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िायमिंि के गम् ु शद ु ह टॉप्स ममल गए:मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरी बेटी एक किंस्ट्रक्शन कम्पनी में बतौर इिंटीररयर डिज़ाइनर काम करती है उस की शादी को कुछ ही माह हुए थे कक वो टॉप्स (कािंटे) पेहन कर ऑस्फ़्फ़स गयी। ड्यट ू ी के दौरान वो अपने कुछ अफ़्सरों के साथ एक ज़ेर तामीर Page 38 of 41


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माहनामा अबक़री मैगज़ीन के जल ु ाई के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में

घर में गयी जहाूँ उस के टॉप्स गगर गए स्जस का उसे पता नहीिं चला। जब उस ने घर जा कर दे खा तो उस के कान में एक टॉप्स नहीिं था। उस ने शौहर को बताया कक मेरा टॉप्स कहीिं गगर गया है स्जस पर वो कहने लगा कक मैं ने ये िायमिंि के टॉप्स तम् ु हारे मलए बेरून मल् ु क से मिंगवाए थे जो अब यहाूँ से दस ू रे नहीिं

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ममलेंगे। इस पर मेरी बेटी रोने लगी और मुझे फ़ॉन कर के रोते हुए सारा वाक़्या सुनाया तो मेरा हदल भर आया। मैंने अल्लाह से कहा कक या अल्लाह! मेरी बेटी की नई नई शादी हुई है उस का शौहर कुछ भी सोच

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सकता है । इसी दौरान मेरे ज़हन में फ़ौरन ही हज़रत हकीम साहब ‫ دامت برکاتہم‬का बताया हुआ "या रस्ब्ब َ َ ّٰ َ ّٰ َّ‫ ) َ​َی َرب‬का मूसा या रस्ब्ब कलीम बबस्स्ट्म-ल्लाहह-र्-रह्मानन-र्-रहीम (َّ‫ْحنَّالرحیم‬ ‫موسَّ َ​َیَّ َربََّکیمَّبسمَّلَاَّالر‬

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वज़ीफ़ा पढ़ना शरू ु कर हदया और बेटी को भी कहा कक स्जतना भी हो सके सारा हदन वज़ू बे वज़ू खल ु ा पढ़ो

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इन शा अल्लाह टॉप्स ज़रूर ममल जायेंगे। पढ़ते पढ़ते मेरी बेटी ने अपने बॉस से कहा कक आप उस घर में

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जा कर दे खें जहाूँ हम गए थे, कहीिं वहािं ना गगर गया हो? उस ने कहा कक वहािं तो किंस्ट्रक्शन का सामान

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बजरी, रे त, सीमैंट और बहुत चीज़ें पड़ी हुई हैं वहािं से नहीिं ममलेगा लेककन उस ने अपना वज़ीफ़ा जारी और

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यक़ीन से कहा कक नहीिं उधर से ही ममलेगा। अभी इस वज़ीफ़े को पढ़ते हुए २४ घिंटे भी नहीिं गुज़रे थे रात

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को उस के बॉस का फ़ॉन आया कक तुम्हारा टॉप्स उसी घर से गगरा हुआ ममल गया है । वो ये सुन कर बहुत

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ख़श ु हुई पर उसी हदन से उस को इस वज़ीफ़े पर और भी पुख़्ता यक़ीन हो गया है। अब जब भी ककसी की

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कोई चीज़ गम ु होती है तो वो यही वज़ीफ़ा पढ़ने का बताती है स्जस से अल्हम्दमु लल्लाह! उन्हें वो चीज़

बेरोज़गार को बेह्तरीन काम बन गया:

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ममल जाती है । (उम्म बबलाल, लाहौर)

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं कुछ अरसा से बेरोज़गार था, कहीिं भी रोज़ी रोटी का कोई बन्दोबस्ट्त ना हो रहा था, मैं ने अबक़री ररसाले में जब आप के रूहानी कॉलम से लोगों के मश ु ाहहदात

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पढ़े तो बेरोज़गारी से ननजात के मलए मैं ने "या रस्ब्ब मूसा या रस्ब्ब कलीम बबस्स्ट्म-ल्लाहह-र्-रह्मानन-र्َ َ ّٰ َ ّٰ َّ‫ ) َ​َی َرب‬सारा हदन उठते, बैठते, चलते किरते पढ़ना शुरू कर हदया, रहीम (َّ‫ْحنَّالرحیم‬ ‫موسَّ َ​َیَّ َربََّکیمَّبسمَّلَاَّالر‬

ख़श ु हू​ूँ।

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चिंद ही हदनों के बाद अल्लाह ने मझ ु े बेह्तरीन रोज़गार अता फ़मात हदया। अल्हम्दमु लल्लाह! अब मैं बहुत

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क़ीमती गुम्शुदह काग़ज़ात दो घिंटे में ममल गए: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह पाक आप को जज़ा ए ख़ैर अता फ़मातए।

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तक़रीबन २ साल से मैं तस्ट्बीह ख़ाने में दसत में मशरकत के मलए आ रहा हू​ूँ स्जस के मुझे बहुत ज़्यादा फ़वाइद ममल रहे हैं। एक दसत में हज़रत हकीम साहब ‫ دامت برکاتہم‬ने गम् ु शद ु ह चीज़ के ममलने और ला पता

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शख़्स को घर वापस लाने के मलए या रस्ब्ब मूसा या रस्ब्ब कलीम बबस्स्ट्म-ल्लाहह-र्-रह्मानन-र्-रहीम َ

َ ّٰ َ ّٰ َّ‫ ) َ​َی َرب‬का वज़ीफ़ा पढ़ने के मलए इशातद फ़मातया था। एक बार मैं ककसी के (َّ‫الرحیم‬ َّ‫موسَّ َ​َیَّ َربََّکیمَّبسمَّلَاَّالرْحن‬

मलए कहीिं जा रहा था कक रास्ट्ते में मेरे बहुत ही ज़रूरी काग़ज़ात कहीिं गगर गए स्जन का मुझे उस वक़्त

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पता नहीिं चला। जब मैं वापस घर आया और काग़ज़ात दे खे तो वो नहीिं थे स्जस पर मैं बहुत परे शान हुआ।

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उसी वक़्त मेरे ज़ेहन में "या रस्ब्ब मस ू ा या रस्ब्ब कलीम बबस्स्ट्म-ल्लाहह-र्-रह्मानन-र्-रहीम"

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َ َ ّٰ َ ّٰ َّ‫ ) َ​َی َرب‬का वज़ीफ़ा आया तो मैं ने पढ़ना शुरू कर हदया। स्जस के पढ़ने के ‫موسَّ َ​َیَّ َربََّکیمَّبسمَّلَاَّالر‬ (َّ‫ْحنَّالرحیم‬ ३ घिंटे बाद ही एक अजनबी शख़्स ने आ कर मेरे घर की बेल दी और कहा कक ये आप के काग़ज़ात रास्ट्ते

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में गगर गए थे स्जन पर आप का एिेस मलखा हुआ था इसी मलए आप तक पोहिं चाने के मलए आया हू​ूँ। मैं ये

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दे ख कर बहुत है रान हुआ और अल्लाह पाक का लाख लाख शुक्र अदा ककया कक उस ने मसफ़त दो घिंटे में ही

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बहुत से लोगों में तक़सीम कर रहा हू​ूँ।

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चोरी हुई मोटर साइककल तीन हदन में ममल गयी:

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मेरे इतने क़ीमती गम् ु शद ु ह काग़ज़ात वापस लोटा हदए। ये वज़ीफ़ा वाक़ई बहुत ही लाजवाब है स्जसे मैं

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अबक़री ररसाला बहुत शौक़ से पढ़ता हू​ूँ, इस के हर

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हर लफ़्ज़ में मख़्लूक़ ए ख़द ु ा के मलए फ़ैज़ ही फ़ैज़ है । आज मैं ने क़लम मसफ़त आप के रूहानी कॉलम "गुम्शुदह चीज़, फ़दत और समातया पाने का वज़ीफ़ा" के मलए उठाया है । आप के इस कॉलम ने मेरे शागगदत

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को बहुत बड़े नुक़्सान से बचा मलया। अज़त ये है कक मेरा एक शागगदत एक हदन मग़ररब की नमाज़ अदा

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करने मोटर साइककल हौंिा १२५ पर मस्स्ट्जद में गया, मोटर साइककल मस्स्ट्जद के बाहर खड़ी की। जब नमाज़ अदा करने के बाद वापस आया तो वहािं पर मोटर साइककल ना थी, इधर उधर से पूछा ख़ब ू भाग दौड़ की, मगर मोटर साइककल ना ममली। पमु लस को इत्तला की, पमु लस ने मामल ू की कारत वाई की और Page 40 of 41


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वापस चली गयी। उस के अगले हदन मुझे मेरे शागगदत का वामलद ममला तो ननहायत मायूसी के आलम में कहने लगा कक मेरे पास एक ही सवारी थी, दक ु ान वग़ैरा का सामान उसी पर लाता था, वो भी चोरी हो गयी है । मैं ने उन्हें होस्ट्ला हदया और कहा कक मैं ने अबक़री में हज़रत हकीम साहब ‫ دامت برکاتہم‬का एक वज़ीफ़ा

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पढ़ा है , हर माह लोगों के इस वज़ीफ़े के हवाले से मुशाहहदात पढ़ता हू​ूँ आप भी यही वज़ीफ़ा पढ़ें इन शा अल्लाह तआला अल्लाह करम करे गा। उन्हों ने और उन के तमाम घर वालों ने लगातार सारा हदन "या

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َ َ ّٰ َ ّٰ َّ‫) َ​َی َرب‬ रस्ब्ब मूसा या रस्ब्ब कलीम बबस्स्ट्म-ल्लाहह-र्-रह्मानन-र्-रहीम (َّ‫ْحنَّالرحیم‬ ‫موسَّ َ​َیَّ َربََّکیمَّبسمَّلَاَّالر‬ पढ़ना शुरू कर हदया। मसफ़त तीन हदन के बाद मेरे शागगदत ने मुझे फ़ॉन ककया और ननहायत ख़श ु ी के

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आलम में कहने लगा उस्ट्ताद जी! एक ख़श्ु ख़बरी है , वो ये कक स्जस तरह मस्स्ट्जद के बाहर से मोटर

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साइककल चोरी हुआ था, उसी तरह एक दस ू री दरू दराज़ मस्स्ट्जद के बाहर कोई आदमी हमारी मोटर

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साइककल खड़ी कर के चला गया है और एक हदन से मोटर साइककल उसी मस्स्ट्जद के बाहर खड़ा रहा। मेरा

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एक जान्ने वाला वहािं से गुज़रा तो उस ने जब उस मोटर साइककल की निंबर प्लेट दे खी तो उस ने कहा ये

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मोटर साइककल तो (अ) की लगती है । उस ने फ़ौरी मुझे इत्तला दी, हम जब वहािं गए तो हमारी मोटर

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साइककल वहािं बबल्कुल सही सलामत खड़ी थी, हत्ता कक पेरोल भी कम नहीिं हुआ था, हमारे इलाक़े में

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ककसी को भी यक़ीन नहीिं आ रहा था कक गुम्शुदह मोटर साइककल तीन हदन बाद बबल्कुल सही सलामत

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हालत में ममल गयी है । बेशक ये इस वज़ीफ़े की बरकत से हुआ है । अल्हम्दमु लल्लाह!

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(क़ाररईन! मैं आप के सीने की अमानत आप तक पोहिं चा रहा हू​ूँ, आप को इस वज़ीफ़े से जो फ़ायदा पोहिं चे,

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ज़रूर अमानत समि कर मुिे मलखें , इिंतज़ार रहे गा। एडिटर!)

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माहनामा अबक़री जुलाई 2015 शुमारा निंबर 109_____________Page No. 48

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