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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
तालीफ़: शैख़ल्ु वज़ाइफ़ हज़रत हकीम महु म्मद ताररक़ महमदू मज्ज़बू ी चग़ु ताई (تہم )دامت برکا पी-एच-डी (अमरीका)
दफ़्तर माहनामा अब्क़री नज़दीक क़ुततबा मस्जिद मज़ंग चोंगी लाहौर। मकत ज़ रूहास्नयत व अम्न
०४२-३७५५२३८४, ३७५९७६०५, ३७५८६४५३ Email: contact@ubqari.org Website: www.ubqari.org
लाखों लोग अब्क़री की वेबसाइट से घरे लू उल्झनों के स्सस्ल्सले में लाभ उठा रहे हैं। आप भी हर िमु ैरात नमाज़ मग़ररब के बाद दसत दस्ु नया भर में ऑन लाइन सनु सकते हैं।
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
नाम स्कताब: ………. ग़ैर मस्ु जलमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्ज़म्मेदाररयााँ
तालीफ़: …………. शैख़ल्ु वज़ाइफ़ हज़रत हकीम महु म्मद ताररक़ महमदू मज्ज़बू ी चग़ु ताई (मदस्् ज़ल्ल) नास्शर: …………. दफ़्तर माहनामा “अब्क़री” नज़दीक क़ुततबा मस्जिद मज़ंग चोंगी लाहौर। सन अशाअत: …… िनवरी, २०१४ क़ीमत: …………. ४० रुपए
ख़त व स्कताबत का पता: दफ़्तर माहनामा “अब्क़री” मकत ज़ रूहास्नयत व अम्न ७८/३ क़ुततबा चौक नज़्द गोगा नीलाम घर अब्क़री जरीट, मज़गं चोंगी लाहौर।
फ़ोन/फ़े क्स: ०४२-३७५५२३८४, ३७५९७६०५, ३७५८६४५३ Email: contact@ubqari.org
सारे आलम में सक ु ू न, आस्फ़यत, अम्न भाई चारगी फे लाने और मस्ु ककलात, परे शास्नयों से स्निात पाने के स्लए “अब्क़री” वेबसाइट से राब्ता करें । www.ubqari.org
“मकत ज़ रूहास्नयत व अम्न” में होने वाला दसत बराह राजत दस्ु नया के १३२ मल्ु कों में सनु ा िाता है।
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
Contents
हाल ए स्दल .......................................................................................................................................................... 5 ग़ैर मस्ु जलमों की इबादत गाहें, उन के हक़ूक़ और हमारी स्ज़म्मेदाररयााँ .................................................................................................. 6 इजलाम एक परु अम्न और परु सुकून मज़्हब....................................................................................................................... 6 इसं ास्नयत के स्लए अनोखा अम्न, आस्फ़यत और सुकून का पैग़ाम ................................................................................................ 6 वो तीन स्हदं ओ ु ं के नहीं हमारे मरे .................................................................................................................................. 7 इजलामी स्शक्षा और ग़ैर मस्ु जलमों की इबादत गाहों का तहफ़्फ़ुज़ (सुरक्षा).......................................................................................... 7 पैग़म्बर ए इजलाम ﷺ- का ग़ैर मस्ु जलम की तरफ़ से अल्लाह की बारगाह में अस्भयोग (इजतग़ासा)................................................................ 7 सहाबा कराम رضوان ہللاعلیہم اجمعینने स्गरिा घरों की स्हफ़ाज़त की तहरीरी ज़मानत दी ................................................................. 8 फ़तह स्मस्र और ईसाइयों को इबादत की आज़ादी ................................................................................................................. 8 दस्मकक़ की िास्मआ मस्जिद और चचत के नाम से मंसूब िगह .................................................................................................... 8 ग़ैर मस्ु जलमों को मैली आख ं से देखना भी इजलाम में हराम क़रार .................................................................................................. 9 मसु ल्सल तक्लीफ़ें देने वाले ग़ैर मस्ु जलमों के स्लए तोहफ़े .......................................................................................................... 9 ग़ैर मस्ु जलम पड़ोसी का आदर सम्मान ............................................................................................................................. 9 िंग बदर के ग़ैर मस्ु जलम क़ै स्दयों से शफ़क़त व महु ब्बत............................................................................................................ 9 सारी रात तंग करने वाले ग़ैर मस्ु जलम के स्लए आम मआ ु फ़ी ....................................................................................................... 9 इमाम आज़म رحمۃ ہللاعلیہने शराबी ग़ैर मस्ु जलम को ख़दु िेल से ररहा कराया ............................................................................. 10 तजबीह ख़ाना और ग़ैर मस्ु जलमों की नींद का इक्राम (सम्मान) ................................................................................................... 10 ग़ैर मस्ु जलम की नींद में ख़लल (बाधा) डालने पर अल्लाह के हााँ िवाब्दही ..................................................................................... 10 तजबीह ख़ाना का पैग़ाम......................................................................................................................................... 10 सलाहुद्दीन अय्यूबी की ग़ैर मस्ु जलमों से रवादारी (सद्यता) व फ़राख़ स्दली (बड़प्पन) ............................................................................. 10 सुल्तान सलाहुद्दीन और ईसाई महकूम........................................................................................................................... 11 मग़ु ल बादशाहों का ग़ैर मस्ु जलमों से हुजन सलूक (सद्् यवहार) .................................................................................................. 11 मग़ु लों ने हमेशा ग़ैर मस्ु जलमों की इबादत गाहों की स्हफ़ाज़त की ................................................................................................. 11 ग़ैर मस्ु जलम, मस्ु जलम फ़सादात मग़ु स्लया दौर में ना स्लखे, ना पढ़े और ना सुने गए ............................................................................... 12 इनसाइक्लोपीस्डया ऑफ़ स्िटैस्नका की तजदीक़ ................................................................................................................. 12 ग़ैर मस्ु जलमों के साथ हुजन सलक ू की इतं हा ..................................................................................................................... 12 मस्ु जलम हुक्मरान ग़ैर मस्ु जलम इबादत गाहों के तहफ़्फ़ुज़ (सुरक्षा) के ख़ैरख़्वाह (शभु स्चतं क) ..................................................................... 12 क़ौम व स्मल्लत (राज्य) और मज़्हब के बग़ैर इसं ाफ़ की हुक्मरानी .............................................................................................. 12 www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
हुकूमत ए उजमास्नया और ईसाइयों के साथ हुजन सलूक (सद्् यवहार)........................................................................................... 13 ग़ैर मस्ु जलमों के साथ रहम की अनोखी स्मसाल .................................................................................................................. 13 ّ ٰ رضیकी दस वस्सय्यतें ................................................................................................... 13 हज़रत अबू बकर स्सद्दीक़ ہللا عنہ ّ ٰ رضیऔर ईसाइयों के िान व माल, इबादत गाहों की स्हफ़ाज़त ................................................................. 13 हज़रत अबू उबैदह ہللا عنہ ّ ٰ رضیका स्गरिा घरों को अमान (सुरस्क्षत करना) ...................................................................................... 14 हज़रत उमर ہللا عنہ ّ ٰ رضیका ग़ैर मस्ु जलमों से अनोखा हुजन सलूक.......................................................................................... 14 हज़रत उमर ہللا عنہ ّ ٰ رضیको स्बजतर मगत पर ग़ैर मस्ु जलमों का ख़्याल ................................................................................ 14 अमीरुल्मअ ु स्मनीन ہللا عنہ बनू उमय्या की ग़ैर मस्ु जलमों से रवादारी (नरमी-सद्यता) ......................................................................................................... 14 ग़ैर मस्ु जलम ररआया के साथ महु ब्बत व शफ़क़त ................................................................................................................ 15 मसु ल्मान हुक्मरान और एक चचत की स्हफ़ाज़त .................................................................................................................. 15 ग़ैर मस्ु जलमों और उनकी इबादत गाहों के साथ हुजन सलक ू ...................................................................................................... 15
मअ ु तसम स्बल्लाह की रवादारी ................................................................................................................................. 15 ग़ैर मस्ु जलमों के साथ अब्बास्सयों की आम रवादारी ............................................................................................................. 16 ख़लीफ़ा ए वक़्त ने ईसाई हकीम की नमाज़ िनाज़ा में स्हजसा स्लया ............................................................................................. 16 ईसाई इस्तहाजकार का इक्राम (आदर सम्मान) ................................................................................................................... 16
आख़री बात ........................................................................................................................................................ 17 क़ाररई!ं माहनामा अब्क़री एक अम्न और सक ु ू न का पैग़ाम आलम में ले कर स्नकला है और .................................................................... 17
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
हाल ए दिल
इिाहीम लोधी के दौर हुकूमत में तामीरात के दौरान एक मंस्दर को तोड़ने का मसला आ गया, स्हन्दू तोड़ने की इिाज़त नहीं दे रहे थे। मसु ल्मानों के बड़े
मफ़्ु ती साहब से मसला पछू ने के स्लए उन को दरबार में तलब स्कया गया। मफ़्ु ती साहब ने सारी बात सनु ने के बाद ये फ़त्वा स्दया स्क मंस्दर को ख़त्म नहीं
स्कया िा सकता। ये बात बादशाह और ररआया पर बहुत ग्ां (ना गवार) थी। लेस्कन आप अपने फ़ै सले पर डटे रहे तारीख़ गवाह है स्क उस मंस्दर को छोड़ स्दया गया।
इजलाम ना स्सफ़त ख़दु सलामती है बस्ल्क मआ ु श्रे की सलामती के भी उज्िवल उसल ू रखता है। क़ुरआन मक़ ु द्दस की आयत मबु ारक “स्िस ने एक िान को ख़त्म स्कया उस ने सारी इसं ास्नयत को ख़त्म स्कया” दरअसल मआ ु श्रे के हर फ़दत (्यस्ि), मजलक (संजकृ स्त), हर धमत, हर दिात, और सारी क़ोमो ो से एक अंदेखे ररकते का ख़ल ु ासा बयान करती है। इजलाम की तारीख़ गवाह है स्क अगर स्कसी फ़रमान रवा (अस्धपस्त) ने स्कसी इजलामी सल्तनत में
इख़लाक़ महु म्मदी को मक़ ु द्दम (प्रथम) रखा तो उस दौर में ग़ैर मस्ु जलमों और उनकी इबादत गाहों का स्बल्कुल ऐसे तहफ़्फ़ुज़ (सरु क्षा) स्कया गया िैसे ख़दु
मसु ल्मानों का और उनको वेसी ही आज़ादी दी गयी िैसी ख़दु मसु ल्मानों को, हर दौर में ऐसे रोशन वाक़्यात हैं स्िन पर ना स्सफ़त इजलामी तारीख़ को गवत है बस्ल्क ख़दु ग़ैर मस्ु जलम इस्तहाजकारों ने इन को मतु ास्सर कुन सताइशी (प्रभावशाली) अंदाज़ में बयान स्कया है। इन वाक़्यात की रोशन स्मसालें अहलल्ु लाह के हालात हैं: बाबा फ़रीद رحمۃ ہللاعلیہकी स्सख मज़्हब मानने वालों के साथ रवादारी और भाईचारगी ढकी छुपी नहीं, और ख़दु स्सख मज़्हब की मक़ ु द्दस स्कताबों में उन का नाम मज़्हबी पेश्वा के तौर पर शास्मल है। ख़्वािा मईु नद्दु ीन स्चकती ۃ ہللاعلیہके अख़लाक़, आप का दरगुज़र, और
इसं ान दोजती एक सच्ची हक़ीक़त है। हज़रत ख़्वािा अब्दल्ु लाह ۃ ہللاعلیہफ़मातते हैं स्क फूल बनो कांटे ना बनो, दोजत बनो अिनबी ना बनो। ये सब वाक़्यात इजलाम की ग़ैर मस्ु जलमों के साथ रवादारी (सद्यता) का एक छोटा सा अक्स हैं।
अहलल्ु लाह की इसं ान दोजती इस हक़ीक़त का सबतू है स्क इजलाम के सच्चे मानने वाले ना स्सफ़त ख़दु हर मज़्हब के मानने वालों से परु ख़ल ु सू महु ब्बत करते थे बस्ल्क उन की महु ब्बत ग़ैर मस्ु जलमों को भी महु ब्बत की सनु हरी ज़ंिीर में बांध लेती थी।
मौिदू ह दौर में िब परू े आलम (दस्ु नया) मेो बद्द अमनी के हालात, परे शास्नयां और आपस की दरू रयों के दख ु आम हैं वहां आि इस बात की ज़रूरत
और पहले से कहीं ज़्यादा है स्क इजलाम की सच्ची तालीमात ( स्शक्षा) को समझते हुए इसं ास्नयत के ररकते को नए स्सरे से ख़ल ु सू की बन्ु यादों, महु ब्बत की ईटोंं और इख़लाक़ के सीमेंट से तामीर स्कया िाए और दस्ु नया को ये पैग़ाम स्दया िाए स्क इजलाम अम्न, भाई चारगी और महु ब्बत का मज़्हब है मस्श्रक़ हो या मग़ररब (परू ब हो या पस्िम), शमु ाल हो या िनु बू (उत्तर हो या दस्क्षण), ग़रीब हो या माल्दार, अं पढ़ हो या पढ़ा स्लखा, आला उहदेदार हो या ग़रीब मज़दरू सब एक दसू रे के भाई हैं।
ये स्कताब िो मसु ल्मानों और ग़ैर मस्ु जलमों के दरम्यान रवादारी और बाह्मी तअल्लक़ ु (सहसाँभन्द) को सामने लाने की अदना सी कोस्शश है। अगर नफ़रतों के भड़कते हुए अलाव में से एक स्चंगारी भी बुझ गयी तो मैं समझंगू ा स्क मेरी कोस्शश नाकाम नहीं गयी। आइये इस स्मशन मोेो आप भी मेरे साथी बनें और मकत ज़ रूहास्नयत व अम्न के इस पैग़ाम को दस्ु नया भर में आम करें। www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
(स्नवेदक) ख़्वाजतगार इख़लास व अमल
बन्दा, हकीम महु म्मद ताररक़ मज्ज़बू ी चग़ु ताई अफ़ल्लाहु अन्हु मकत ज़ रूहास्नयत व अम्न, मज़ंग चोंगी, लाहौर
ग़ैर मुदललमों की इबाित गाहें, उन के हक़ूक़ और हमारी दिम्मेिाररयााँ इललाम एक पुर अम्न और पुर सक ु ू न मज़्हब
इजलाम सलामती से यास्न ना ये स्कसी को धोका देगा और ना तक्लीफ़ देगा, ना स्कसी से धोका खाए और ना तक्लीफ़ खाएगा। या ये है स्क मसु ल्मान वो है स्िस की ज़ात से हर शख़्स सलामती, अम्न और आस्फ़यत (जवजथता) पर रहता है। इस स्लए इजलाम में सलाम को आम करने का हुक्म और इस के
बेशमु ार फ़ज़ाइल (अस्ं गनत लाभ) आये हैं। ईमान अम्न से है मअ ु स्मन वो शख़्स है स्िस से मख़लक़ ू ए ख़दु ा को अम्न पहु चं े। यास्न सलामती, आस्फ़यत और ख़ैर पहु चं े। इस स्लए पैग़म्बर ए इजलाम ﷺ- की वाल्दा महु तरमा का नाम हज़रत महु तरमा आम्ना था और “आम्ना” अम्न से है और पैग़म्बर ए
इजलाम ﷺ- की दाई का नाम हलीमा था। “हलीमा” भी स्हल्म (धैयत) और अम्न की तरफ़ स्नशांदही करती है। स्वलादत के वक़्त स्िस ख़ातून ने स्ख़दमात अंिाम दीं उन ख़ातून का नाम स्शफ़ा था। “स्शफ़ा” भी रहमत, आस्फ़यत, सक ु ू न और अम्न की तरफ़ मतु वज्िह करता है। िब इन सब सबूतों को देखा िाए तो हमारी नज़र इजलाम को एक परु अम्न और परु सक ु ू न मज़्हब की तरफ़ स्नशादं ही करती है।
इस ु ू न का पैग़ाम ं ादनयत के दलए अनोखा अम्न, आदियत और सक
पैग़म्बर ए इजलाम ﷺ- ने ग़ैर मस्ु जलमों के साथ िो हुजन सलक ू (सद्् यवहार) स्कया वो लोग स्िन्हों ने बरसों सताया परे शान स्कया यहां तक स्क मक्का छोड़ने पर मिबूर कर स्दया िब आप ﷺ- फ़ातेह बन कर मक्का में तश्रीफ़ लाए तो आप ﷺ- के सर मबु ारक पर जयाह पगड़ी और आप ﷺ- का सर
मबु ारक इतना झक ु ा हुआ था स्क ऊंटनी के कोहान तक लगा हुआ था और आप ﷺ- ने कअबा के दरवाज़े पर दोनों हाथ रख कर एक ऐसा ऐलान स्कया िो तारीख़ और इसं ास्नयत के स्लए अनोखा अम्न, आस्फ़यत और सक ु ू न का पैग़ाम है वो ऐलान ये था स्क मैं ने आि सब को मआ ु फ़ स्कया। बच्चों को अम्न स्दया, औरतों को इज़्ज़त दी, बूढ़ों के साथ दरगुज़र स्कया और िंगिू और ज़ास्लमों और ख़नू बहाने वालों को आम मआ ु फ़ी का ऐलान स्कया।
इस अंदाज़ से स्कया स्क उन के अंदर इज़्ज़त और वक़ार का मअयार (मल ू ) पैदा हो। स्सफ़त आप ﷺ- नहीं बस्ल्क पैग़म्बर ए इजलाम ﷺ- के मानने वाले सहाबा और अहल बैत رضوان ہللاعلیہم اجمعین, ताबेईन औस्लया और सास्लहीन رحم ہللاعلیہनोे ग़ैर मस्ु जलमों के साथ वो हुजन सलक ू
स्कया िो रहती इसं ास्नयत तक एक पैग़ाम और स्नशान रह िायेगा। आइये हम अपने इस ्यवहार को देखें स्क हमारे स्दलों में ग़ैर मस्ु जलमों के स्लए नफ़रत है
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
या महु ब्बत, रवादारी है या ज़ल्ु म…..
वो तीन दहंिुओ ं के नहीं हमारे मरे
गिु रात में स्हन्दू मस्ु जलम फ़सादात परु ानी ररवायत है मैं अभी हज्ि के सफ़र में इस्ं डया के अज़ीम जकॉलर हज़रत मौलाना महु म्मद कलीम स्सद्दीक़ी دامت
کاتہم برकी स्ख़दमत में बैठा था। वो फ़रमाने लगे मैं सफ़र से वापस आया तो कुछ ना मानसू (अिनबी) चेहरे भी थे और मानसू (पररस्चत) भी। आपस में गुफ़्तुगू हुई तो पता चला गुिराि के हाल्या फ़सादात के बारे में एक दसू रे से बात कर रहे थे स्क स्हन्दओ ु ं के तीन मरे हमारे दो मरे । मौलाना फ़रमाने लगे मैंने
फ़ौरन टोका हमारे तीन मरे , उन्हों ने कहा नहीं उन के तीन मरे लेस्कन मैं बार बार इस्रार कर रहा था स्क हमारे तीन मरे । आस्ख़र कार मैं ने उन से अज़त स्कया वो स्हन्दओ عएक हैं, हम इसं ानी ु ं के नहीं मरे बस्ल्क हमारे मरे । उन के वास्लद हज़रत आदम علیہال المऔर उनकी अम्मााँ हज़रत ह्वा لیہ اسالم भाई हैं, एक दसू रे से महु ब्बत हमें इजलाम ने दी है। इजलाम रवादारी (सद्यता), बदातकत, स्हल्म (धैय)त और ख़ल ु सू का मज़्हब है।
इललामी दिक्षा और ग़ैर मुदललमों की इबाित गाहों का तहफ़्िुि (सरु क्षा)
इजलामी स्शक्षा अनसु ार ग़ैर मस्ु जलमों की िान और माल की सरु क्षा इसी तरह ज़रूरी है स्िस तरह मसु ल्मानों की, िो ग़ैरमस्ु जलम मुस्जलम मल्ु कों में रहते हैं या उस मल्ु क में ना रहते हों लेस्कन मसु ल्मानों को उन की िान व माल, उन की इज़्ज़त और उन की इबादत गाहों की सरु क्षा ज़रूरी है।
पैग़म्बर ए इललाम ﷺ- का ग़ैर मदु ललम की तरि से अल्लाह की बारगाह में अदियोग (इलतग़ासा)
पैग़म्बर ए इलिाम ﷺ- ने एक उसि ू बयान फ़मााया कक ग़ैर मस्ु लिमों का ख़न ू हमारे ख़न ू की तरह और उनका माि हमारे माि की तरह मह ु तरम है । एक और इर्ााद ज पैग़म्बर ए इलिाम ﷺ-
ने फ़मातया: स्िस शख़्स ने स्कसी ग़ैर मस्ु जलम को सताया, उसकी िान व माल को नक़्ु सान पहु चं ाया तो क़यामत के स्दन उस ग़ैर मस्ु जलम की तरफ़ से मैं अल्लाह की बारगाह में ख़दु इजतग़ासा (अस्भयोग) करूाँगा।
इललाम में मुदललम और ग़ैर मदु ललम के दलए एक ही क़ानून
इजलाम में िो स्दय्यत (ख़नू बहा/हिातना) मसु ल्मानों के स्लए है वही ग़ैर मस्ु जलमों के स्लए है। िैसे स्कसी मसु ल्मान के क़त्ल पर स्क़सास (दडं ) वास्िब है
उसी तरह ग़ैर मस्ु जलम के क़त्ल पर स्क़सास (दडं ) वास्िब है। उसी तरह कारोबारी मनु ाफ़ा, िायदाद की स्हफ़ाज़त में मसु ल्मान और ग़ैर मस्ु जलम में कोई फ़क़त नहीं। िैसे स्कसी मसु ल्मान का माल चोरी करने पर हाथ काटने की सज़ा दी है उसी तरह ग़ैर मस्ु जलम के माल चोरी करने पर हाथ काटने की सज़ा है। इललाम में िीन के मआ ु मले में कोई जब्र नहीं
मज़्हबी हक़ूक़ माल और िायदाद से भी ज़्यादा एहम हैं क्योंस्क इजलाम मज़्हब के मआ ु म्ले में िि और तशद्दुद का क़ाइल नहीं। क़ुरआन में इशातद बारी तआला है दीन के मआ ु म्ले में कोई ज़बदतजती नहीं। (तितमु ा आयत: सरू ह बक़रह २५६)
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
मुदिकीन और मुसल्मानों के दलए मुआदहिा
ये मआ ु स्हदा रवादारी की बेह्तरीन स्मसाल है। ये मआ ु स्हदा आप ﷺ- ने मदीना आने के बाद मसु ल्मानों, यहूस्दयों और मस्ु श्रकीन के दरम्यान कराया स्िस
के तहत हर एक को अपने मज़्हब पर चलने की परू ी परू ी आज़ादी थी। ग़ैर मस्ु जलम अपनी इबादत और उस के तरीक़ों में आज़ाद थे यहां तक स्क पैग़म्बर ए इजलाम ﷺ- ने निरान के ईसाइयों को ख़दु मस्जिद नबवी ﷺ- के एक कोने में अपने तरीक़े पर इबादत की इिाज़त दी थी। पैग़म्बर ए इललाम ﷺ- का ग़ैर मुदललमों की इबाित गाहों का एहतराम
इस से ज़्यादा रवादारी और क्या हो सकती है। इजलाम ने ग़ैर मस्ु जलमों की इबादत गाहों का िो स्लहाज़ और सम्मान स्कया वो भी स्मसाली है शाम और ّ ٰ رحمۃ बैतुल्मक़ ु द्दस का इलाक़ा िब फ़तह हुआ तो वहां बेशमु ार चचत थे स्िन्हें मसु ल्मानों ने िाँू का ताँू बाक़ी रखा। हज़रत उमर स्बन अब्दल ु अज़ीज़ ہللا علیہ
ने अपने गवनतरों को आदेश स्दया था स्क कोई कलीसा या आस्तश कदह (आग्यारी) ना स्गराया िाए, ना उसे आग लगाई िाए। पैग़म्बर ए इजलाम ﷺ- ने मज़्हबी िज़्बात की ररवायत और इबादत गाहों के एहतराम सम्मान को हमेशा महत्वपणू त रखा। निरान के ईसाइयों से िो मआ ु स्हदा फ़मातया उस में एक दफ़ा ये भी थी स्क ना कोई चचत ढाया िाए और ना स्कसी मज़्हबी रहनमु ा को स्नकाला िाए। (बहवाला: अबू दाऊद)
सहाबा कराम جمعین لیہم ا رضوان ہللا عने दगरजा घरों की दहिाित की तहरीरी िमानत िी
ّ ٰ رحمۃने निरान मआ अल्लामा स्शब्ली ہللا علیہ ु स्हदा की ये दफ़आत भी नक़ल की हैं स्क पादररयों, रास्हबों और पिु ाररयों को उन के उहदों से बततरफ़
नहीं स्कया िाएगा और ना सलीबें और मस्ू ततयां तोड़ी िाएंगी। शाम का इलाक़ा फ़तह हुआ तो हज़रत ख़ास्लद स्बन वलीद ۃ ہللاعلیہने हज़रत अबू ّ ٰ رضیहज़रत उमरू स्बन अलआ ّ ٰ رضیसमेत चार हज़रात की गवाही के साथ दजतावेज़ तय्यार फ़रमाई स्िस मोेो नाम उबैदह ہللا عنہ ् स ہللا عنہ ब नाम चौदह स्गरिा घरों का स्ज़क्र फ़मातया और उन की स्हफ़ाज़त की स्लखत ज़मानत दी। (अल्बदाय वल्नहाया स्िल्द ७)
ितह दमस्र और ईसाइयों को इबाित की आिािी
फ़तह स्मस्र के मौक़े पर भी मसु ल्मानों ने स्गरिा घरों की स्हफ़ाज़त का दजतावेज़ी मआ ु स्हदा स्कया और ईसाइयों को अस्ख़्तयार स्दया स्क वो अपनी इबादत गाहों के अंदर स्िस तरह चाहें इबादत करें और िो कहना चाहें कहें……. मसु ल्मानों को हमेशा दसू रों की इबादत गाहों का स्लहाज़ रहा।
िदमश्क़ की जादमआ मदलजि और चचच के नाम से मस ं बू जगह
ّ ٰ رضیने िब दस्मकक़ की िास्मआ मस्जिद मोेो यहु ना के नाम से मंसबू स्गरिा को शास्मल करने की कोस्शश की हज़रत अमीर मआ ु स्वया ہللا عنہ
ّ ٰ رضیने ये इरादा छोड़ स्दया। लेस्कन बाद में ख़लीफ़ा अब्दल्ु मस्लक स्बन मरवान ने ििं स्गरिा घर को और ईसाई इस पर राज़ी ना हुए तो आप ہللا عنہ ّ ٰ رح مۃके अहद में ईसाइयों ने फ़ररयाद की और हज़रत मस्जिद में शास्मल कर स्लया। स्फर आस्दल ख़लीफ़ा हज़रत उमर स्बन अब्दल ु अज़ीज़ ہللا علیہ ّ ٰ رضیके अमल का हवाला स्दया स्क उन्हों ने हमारे रोकने पर यहू ना के स्गरिा को मस्जिद में शास्मल नहीं स्कया था। तो स्फर अमीर मआ ु स्वया ہللا عنہ www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
हज़रत उमर स्बन अब्दल ु अज़ीज़ رحمۃ ہللاعلیہने दस्मकक़ के गवनतर के नाम हुक्म िारी फ़मातया स्क स्गरिा घर का िो स्हजसा मस्जिद में स्मलाया गया है वो ईसाइयों को वापस कर स्दया िाए। आस्ख़र कार मसु ल्मानों ने ईसाइयों की स्मन्नत, ख़श ु ामद की और उन्हें राज़ी स्कया और बहुत ज़्यादा इस का बदल व स्हजसा उन्हें स्दया और इस तरह ये मस्जिद बच सकी। (बहवाला फ़तूहुल्बल्दान)
ग़ैर मुदललमों को मैली आख ं से िेखना िी इललाम में हराम क़रार
बहुत से तारीख़ी हक़्क़ाइक़ से ये पता चलता है स्क मसु ल्मानों ने दसू री क़ोमों के ख़ास्लस मज़्हबी मआ ु म्लात में भी फ़राख़ स्दली (उदारता/बड़प्पन) का मज़ु ास्हरा स्कया। इबादत गाहें स्कसी भी क़ौम की हों बहर हाल उसे ख़दु ा की इबादत से स्नजबत तो ज़रूर है उस में इबादत करने वालों को तक्लीफ़ पहु चं ाना, उन को क़त्ल करना या उन को मैली नज़र से देखना भी इजलाम में हराम है।
मस ु ल्सल तक्लीिें िेने वाले ग़ैर मदु ललमों के दलए तोहिे
इजलाम में ख़नू ी ररकतों यास्न बहन भाइयों, पड़ोस्सयों, हम सफ़रों और ऐसे लोग स्िन्हों ने क़ज़त स्लए हुए हैं, बीमारों कम्ज़ोरों के साथ िो हुजन सलक ू
(सद्् यवहार) के अहकामात (आदेश) िारी फ़रमाए हैं वो स्सफ़त मसु ल्मानों के साथ नहीं और उनका अनपु ालन स्सफ़त मसु ल्मानों और मअ ु स्मनों के स्लए नहीं इस हुजन सलक ू का हुक्म तमाम मुसल्मानों को स्दया गया है पैग़म्बर ए इजलाम ﷺ- ने क़हत के मौक़े पर एक बड़ी रक़म अहल मक्का को अता
ّ ٰ رضی (दान) फ़रमाई थी हालांस्क ये वही लोग थे िो ग़ैर मस्ु जलम थे और स्िन्हों ने मसु ल्सल तक्लीफ़ें दी थीं। उम्मल्मअ ु स्मनीन हज़रत सस्फ़या ہللا عنہا ने अपने यहूदी ररकतेदारों मोेो तीस हज़ार स्दरहम बांटे थे।
ग़ैर मुदललम पड़ोसी का आिर सम्मान
ّ ٰ رضیके बारे में ररवायत है स्क उन्हों ने बकरी ज़बह कराई और पड़ोस्सयों को भेिने का आदेश स्दया, वापसी पर हज़रत अब्दल्ु लाह स्बन उमर ہللا عنہ ّ ٰ رضیने ख़ास तौर पर बकरे का गोकत यहूदी पता स्कया स्क क्या यहूदी पड़ोसी को भी इस में से गोकत भेिा? िवाब स्मला नहीं भेिा तो आप ہللا عنہ पड़ोसी को स्भिवाया।
जंग बिर के ग़ैर मुदललम क़ै दियों से ििक़त व मुहब्बत
पैग़म्बर ए इलिाम ﷺ- ने व क़ैदी ज जग बदर में क़ैद हुए थे उन के साथ मुहब्बत,
दरगुज़र (धैयत), शफ़क़त (स्नम्रता) और अता (दान) का इतना उत्तम स्नयम बनाया यहां तक स्क उनको नए िोड़े पहना कर रुख़्सत फ़मातया।
सारी रात तंग करने वाले ग़ैर मदु ललम के दलए आम मआ ु िी
हज़रत अब्दल्ु लाह स्बन मबु ारक رحمۃ ہللاعلیہका एक पड़ोसी लोहार था िहां उस के और कई वाक़ए स्मलते हैं वहां एक ये वाक़्या भी स्मलता है स्क वो कभी कभार रात भर ढोल बिाता लेस्कन इस अल्लाह के दोजत ने आि तक उसकी स्शकायत नहीं की आस्ख़र उस के ग़ैर मस्ु जलम दोजत िो उस की
महस्फ़ल में शास्मल होते थे उन्हों ने कहा तुम्हारे क़रीब वक़्त के एक बहुत बड़े आस्लम अब्दल्ु लाह स्बन मबु ारक ۃ ہللاعلیہरहते हैं वो रात को इबादत करते होंगे तुम्हें उनका ख़्याल नहीं वो सारे स्मल कर आये तो आस्ख़र कार उन्हों ने उन से मआ ु ज़रत की (क्षमा मांगी) िो उन के अल्फ़ाज़ थे वो www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
यही थे हम आपको अपनी तरफ़ से खल ु ी इिाज़त देते हैं हमें आप से कोई स्शकायत नहीं।
इमाम आिम لیہ ر ہللا عने िराबी ग़ैर मदु ललम को ख़ुि जेल से ररहा कराया
इमाम आज़म अबू हनीफ़ा ۃ ہللاعلیہके पड़ोस में एक शख़्स रहता था वो मोची था, सारा स्दन िो मज़दरू ी करता उस से शराब लाता स्फर दोजतों
को इकट्ठा करता, गाना बिाता, शोर शराबा करता। सालों साल ये स्सस्ल्सला चलता रहा एक रात इमाम आज़म ۃ ہللاعلیہने सनु ा स्क आि रात आवाज़ नहीं आयी। सबु ह पता चला उस शख़्स को पस्ु लस पकड़ कर ले गयी है। आप ने फ़ौरन अपना स्लबास बदला अपनी सवारी में वक़्त के गवनतर के
दरबार में पहु चं े। गवनतर ने आप का आदर सम्मान स्कया और हुक्म फ़मातया स्क आप कै से तश्रीफ़ लाये? आप ने उस पड़ोसी की ररहाई के स्लए दरख़्वाजत की उन्हों ने फ़ौरन क़ुबूल की ख़दु िेल में गए और ररहाई का परवाना साथ स्लया और उस को साथ ले कर आए और आस्ख़र कार वो शख़्स उन के सद्् यवहार से बहुत मतु ास्सर हुआ और उस ने उन सब कामों से तौबा कर ली।
तलबीह ख़ाना और ग़ैर मुदललमों की नींि का इक्राम (सम्मान)
तजबीह ख़ाना लाहौर में हर फ़ज्र की नमाज़ के बाद ऊंची आवाज़ में यास्न स्ज़क्र स्बल्िहर होता है लेस्कन बन्दा का अपने अहबाब को ये ख़ास हुक्म है ये
स्ज़क्र इतनी ऊंची आवाज़ में ना स्कया िाए स्क हमारे स्बल्कुल दीवार के साथ दो बड़े चचत हैं कहीं ग़ैर मस्ु जलमों की नींद ख़राब ना हो िाये। ये अमल स्सफ़त
बन्दा ताररक़ का नहीं बस्ल्क बड़े बड़े महु स्द्दसीन, फ़ुक़हा, उल्लमा, अहलल्ु लाह और अल्लाह के वस्लयों का भी है। उन के घरों के साथ अगर ग़ैर मस्ु जलम रहते थे तो उन्हों ने कभी अपने स्ज़क्र से उन की नींद में ख़लल नहीं डाला।
ग़ैर मुदललम की नींि में ख़लल (बाधा) डालने पर अल्लाह के हााँ जवाब्िही
इजलाम तो स्कसी की ख़ैर ख़्वाही (शभु कामना) को इतना ज़्यादा बदातकत करता है स्क फ़ुक़हा की स्कताबों में ये बात स्लखी हुई है अगर मअ ु स्ज़्ज़न ने फ़ज्र की अज़ान नमाज़ का वक़्त दास्ख़ल होने से पहले दी और उस में स्कसी मसु ल्मान या ग़ैर मस्ु जलम की आंख खल ु गयी तो क़यामत के स्दन उस मअ ु स्ज़्ज़न को स्िन लोगों की नींद में उस की विह से ख़लल पड़ा उन लोगों के सामने अल्लाह के हुज़रू िवाब्दही होगी।
तलबीह ख़ाना का पैग़ाम
तजबीह ख़ाना का पैग़ाम अम्न और सक ु ू न का पैग़ाम है इस स्लए इस का नाम दी सेंटर ऑफ़ पीस एन्ड स्जपररचएु स्लटी मकत ज़ रूहास्नयत व अम्न भी है। हर
माह अब्क़री लगातार स्क़जतवार पैग़म्बर ए इजलाम ﷺ- का ग़ैर मस्ु जलमों से हुजन सलक ू बरसों से चला रहा है। अब्क़री रजट िहां मसु ल्मानों के स्लए सेवा कर रहा है वहां ऑन दी ररकॉडत ये बात मौिदू है स्क ग़ैर मस्ु जलमों के स्लए भी सेवा में लगातार स्हजसा स्मला रहा है। आइये! हम अदम बदातकत
(असस्हष्णतु ा) के स्मज़ाि को छोड़ कर इजलाम के रवादारी, और मज़्हबी बदातकत को सामने रखें। इजलाम ने यहूस्दयों और ईसाइयों के साथ क्या मआ ु स्हदे और मआ ु म्ले स्कये और स्फर उन्हों ने इस का स्सला इजलामी रहमस्दली ग़ैर मस्ु जलमों के हक़ूक़ की स्नगरानी और दरगुज़र से स्दया।
सलाहुद्दीन अय्यबू ी की ग़ैर मदु ललमों से रवािारी (सद्यता) व िराख़ दिली (बड़प्पन)
सल्ु तान सलाहुद्दीन अय्यबू ी िब फ़ातेह बन कर बैतल्ु मक़ ु द्दस में दास्ख़ल हुए तो उन्हों ने अपने रवादारी (सद्यता), बड़प्पन और इसं ानी महु ब्बत का िो सबतू स्दया उस की तारीफ़ योस्पतयं इस्तहाजकारों ने भी की है। एडवडत स्गबन स्लखता है स्क इसं ाफ़ का तक़ाज़ा है स्क तुकत फ़ातेह की रहमस्दली की तारीफ़ की िाए, उस ने मफ़तूह (हारने वालों) को स्कसी मसु ीबत और परे शानी में मब्ु तला होने नहीं स्दया। वो उन से www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
भारी रक़्में वसल ू कर सकता था लेस्कन उस ने तीस हज़ार की रक़म ले कर सत्तर हज़ार क़ै स्दयों को ररहा स्कया। दो तीन हज़ार को तो उस ने रहम खा कर
याँहू ी छोड़ स्दया। इस तरह क़ै स्दयों की तअदाद घट कर चौदह से ग्यारह हज़ार रह गयी थी िब यरूशलम की मस्लका उस के सामने आई तो उस ने ना स्सफ़त इतं हाई मेहरबानी से बातें कीं बस्ल्क अपनी नज़रों को झक ं ों में आंसू आ गए। एडवडत स्गबन अधीक स्लखता है स्क सल्ु तान ु ाया और उस की आख
सलाहुद्दीन अय्यबू ी ने िंग के यतीमों और बेवाओ ं में ख़ैरात (स्भक्षा) बाटं ी। िगं के ज़स्ख़्मयों के स्लए हर तरह की सहूलतें महु य्या कीं। वो क़ुरआन के
दकु मनों के साथ उस तरह की सख़्ती के साथ हक़ पर था मगर उस ने स्िस फ़याज़ाना (आस्थत्य) रहमस्दली का सबूत स्दया वो ना स्सफ़त तारीफ़ व तहसीन
बस्ल्क महु ब्बत स्कये िाने के क़ास्बल है। (तफ़्सील के स्लए एडवडत स्गबन की स्हजरी ऑफ़ दी स्डक्लाइन एंड फ़ॉल ऑफ़ दी रोमन एम्पायर स्िल्द नम्बर ६, स्सफ़हा नम्बर ४९९ से ५००)
सल्ु तान सलाहुद्दीन और ईसाई महकूम
जटैनली लेन पॉल ने अपनी स्कताब “सलाहुद्दीन” में स्लखा है िब यरूशलम मुसल्मानों के हवाले स्कया िा रहा था तो सल्ु तान की फ़ौि, मअ ु ज़ज़ अफ़राद (सम्मास्नत लोग) और अफ़सरों ने गली कूचों में इतं ज़ाम क़ाइम कर रखा था। ये स्सपाही और अफ़सर हर स्क़जम की ज़्यादती को रोकते थे इस का नतीिा था स्क स्कसी ईसाई को कोई तक्लीफ़ ना पहु चं े, शहर से बाहर िाने के तमाम राजतों पर सल्ु तान का पहरा था और एक स्नहायत मअ ु तबर अमीर बाब
दाऊद पर मक़ ु रत र था तास्क शहर से बाहर आने िाने वाले को बग़ैर रोक टोक के आने स्दया िाए। (बहवाला: सलाहुद्दीन अय्यबू ी अज़:् जटैनली लेन पॉल स्सफ़हा नम्बर: २०२)
मुग़ल बाििाहों का ग़ैर मुदललमों से हुलन सलूक (सिव्यवहार)
प्रोफ़े सर राम प्रशाद घोसला अपनी स्कताब मग़ु ल स्कंग स्शप एंड नोस्बस्लटी में स्लखते हैं स्क मग़ु लों के ज़माने में न्याय व इसं ाफ़ का िो एहस्तमाम और उन की िो मज़्हबी रवादारी की पास्लसी थी उस से अवाम हमेशा मत्ु मइन रहीं। इजलामी ररयासत में स्सयासत और मज़्हब का गहरा लगाव रहा लेस्कन मग़ु लों
की मज़्हबी रवादारी की विह से इस लगाव की विह से कोई ख़तरा पैदा नहीं हुआ। स्कसी ज़माने में भी ये कोस्शश नहीं की गयी स्क हुक्मरानों का मज़्हब महकूमों (अवाम) का भी मज़्हब बना स्दया िाए।
यहां तक स्क औरंगज़ेब ने मल ु ाज़मत हास्सल करने के स्लए इजलाम की शतत नहीं रखी। बादशाह मज़्हब इजलाम कोा महु ास्फ़ज़ (रक्षक) ज़रूर समझा िाता लेस्कन उस ने कभी ग़ैर मस्ु जलम ररआया के अक़ाइद (आस्जतकता) पर पाबंदी नहीं डाली चाहे वो ईसाई हों यहूदी हों या स्हन्द।ू (स्सफ़हा नम्बर २९७ एस्डशन १९३४)
मुग़लों ने हमेिा ग़ैर मुदललमों की इबाित गाहों की दहिाित की
प्रमथा सरन ने अपनी स्कताब प्रोस्वस्ं शयल गवनतमेंट्स अडं र दी मग़ु ल्ज़ में स्लखा है स्क मग़ु लों को हुकूमत उरूि के ज़माने में दस्ु नया की शानदार हुकूमतों में
से थी लेस्कन उन्हों ने ग़ैर मस्ु जलमों के साथ इसं ास्नयत की िो आवकयकताएं पेश कीं वो रहती दस्ु नया तक याद स्कये िायेंगे उन्हों ने ग़ैर मस्ु जलमोो के साथ िि नहीं स्कया उन के साथ और उन की इबादत गाहों के साथ हमेशा इसं ाफ़ की मांग रखी।
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
ग़ैर मुदललम, मुदललम िसािात मुग़दलया िौर में ना दलखे, ना पढ़े और ना सनु े गए
सर िॉन ने अपनी स्हजरी ऑफ़ सी पवु ाए वॉर में स्लखा है स्क बग़ावत के नाम से मज्र ु मों के साथ औरतें और बच्चे हलाक स्कये िा रहे थे और उन को
क़जदन फासं ी नहीं दी िाती थी बस्ल्क उन के गााँव में ही आग में डाल स्दये िाते या उन को गोली मार दी िाती। अग्ं ेज़ ये फ़ख़्र करने में नहीं स्हचस्कचाते
स्क उन्हों ने स्कसी को नहीं छोड़ा हलाक करना उनका मकग़ला था, तीन महीने तक लाशों की आठ गास्ड़यां सबु ह से शाम तक उन मदु ों को लाते िो राहों
और बाज़ारों में लटकी स्दखाई देतीं। सर िॉन आगे स्नहायत अफ़्सोस से स्लखता है ये तो उन मतु शद्दुद (स्हसं क) लोगों का रवय्या था िो उन्हों ने १८५७ में स्कया। लेस्कन अगर मैं मग़ु ल हुक्मरानों के उरूि की स्ज़ंदगी देखाँू तो उन्हों ने हमेशा ग़ैर मस्ु जलमों की स्ज़ंदगी के हर गोशे को संवारा, उन्हें इज़्ज़त दी, वक़ार और मक़ ु ाम स्दया इस स्लए ईजट इस्ं डया कम्पनी को उन्हों ने हक़ूक़ भी स्दए िगह भी दी (सरु क्षा) तहफ़्फ़ुज़ भी स्दया और फलने फै लने और फूलने का
भरपरू मौक़ा स्दया यहां तक स्क सर िॉन स्लखता है स्क स्हन्दू और मस्ु जलम फ़सादात मग़ु स्लया दौर में ना कहीं पढ़े गए, ना कहीं सनु े गए। (बहवाला: राइज़ ऑफ़ दी स्क्रस्जचयन पॉवर इन इस्ं डया अज़:् के डी बासू ि: ५, स्सफ़हा नम्बर २८५)
इनसाइक्लोपीदडया ऑि दब्रटै दनका की तलिीक़
इनसाइक्लोपीस्डया ऑफ़ स्िटैस्नका ग्यारहवां एस्डशन स्िल्द नम्बर दस में स्लखा है स्क यरू ोप के तमाम जकॉलर इस बात को मानते हैं स्क मसु ल्मान िहां
िहां भी हुक्मरान रहे उन्हों ने इसं ाफ़, अदल (न्याय) और महु ब्बत के तक़ाज़ों को क़ाइम रखा अपने महकूम (ररआया) चाहे वो उन के मसु ल्मान हों या ग़ैर मस्ु जलम सब को और सब के हक़ूक़ को वही सरु क्षा दो िो इजलाम ने उन्हें कहा।
ग़ैर मुदललमों के साथ हुलन सलक ू की इतं हा
सर स्वस्ल्लन्टेन चेरोल ने अपने हम मज़्हस्बयों और हम वतनों की तरह तुकों की बहुत बड़ी स्हजरी का एक शाहकार िमा स्कया है उस ने लाडत एवसतले के
साथ िो “दी टस्कत श एम्पायर” स्लखी है उस के आख़री बाब में तक ु ों के कारनामों का स्ज़क्र करते हुए स्लखा है स्क तीन सौ बरस तक दस सलातीन और एक वज़ीर आज़म (प्रधानमंत्री) सोकोली ने इस सल्तनत की तौसीअ (राज्य हरण) में स्हजसा स्लया। इस मद्दु त में उस को लगातार काम्यास्बयााँ और
सफलताऐ ं हास्सल हुई।ं इस को चौदह सौ दो में तैमरू और मंगोल िैसे हुक्मरान स्मले िंगें भी हुई ं काम्यास्बयााँ भी हुई ं और नाकास्मयां भी हुई ं लेस्कन उन सब में तक ु त हुक्मरानों ने एक बात िो ख़ास तौर पर की वो ये की स्क ग़ैर मस्ु जलमों के साथ हुजन सलक ू मज़्हबी सद्यता और दरगज़ु र की स्नहायत इतं हा की। आि के सलातीन के स्लए उन के स्लए बहुत बड़ी स्नशास्नयां हैं। ऐ काश कोई उन को पढ़ लेता। (स्सफ़हा नम्बर ४२६, एस्डशन १९२१)
मुदललम हुक्मरान ग़ैर मुदललम इबाित गाहों के तहफ़्िुि (सरु क्षा) के ख़ैरख़्वाह (िुिदचंतक)
लाडत एवसतले ने सल्ु तान अब्दल्ु मिीद िो तक ु त हुक्मरान था और उस की हुक्मरानी सऊदी अरब समेत तमाम ख़लीि पर थी उस का स्ज़क्र करते हुए स्लखता है उस में िबली तौर पे बहुत सी क़ु्वतें और ख़स्ू बयााँ थीं वो दौलत इजलास्मया में तमाम हुक्मरानों में सब से ज़्यादा अज़ीम इसं ान था उन ख़स्ू बयों के साथ
साथ एक ख़बू ी ये भी थी स्क ग़ैर मस्ु जलमों को कुचलने उन के स्लए सख़्त क़ाननू बनाने और उन को कड़ी सज़ाएं देने का स्मज़ाि हस्गतज़ नहीं था बस्ल्क वो उन के हक़ूक़ और उन की इबादत गाहों की सरु क्षा का हमेशा ख़ैरख़्वाह (शभु स्चंतक) रहा। (बहवाला: टस्कत श एम्पायर स्सफ़हा ३१३)
क़ौम व दमल्लत (राज्य) और मज़्हब के बग़ैर इस ं ाि की हुक्मरानी फ़्ांस्ससी लेखक ्लाज़ोन क्नेर के बयान के मतु ास्बक़ महमदू सानी अपने ईसाई संजथा का बड़ा ख़्याल करता वो दौरा करता तो उन से स्मलता, उन के www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
मतु ाल्बे परू े करता, उन की स्शकायतें सनु ता, उन के स्शकवों को दरू करता, उन को मत्ु मइन और ख़श ु करता तमाम ररआया में क़ौम व स्मल्लत (राज्य ) के फ़क़त के बग़ैर इसं ाफ़ की हुक्मरानी होती रही थी। (्लाज़ोन क्नेर उदतू तितमु ा स:४६२ तारीख़ दौलत उजमास्नया, स्िल्द नम्बर २, स्सफ़हा नम्बर ७८)
हुकूमत ए उलमादनया और ईसाइयों के साथ हुलन सलूक (सिव्यवहार)
िॉित स्फ़न्ले अपनी मशहूर स्कताब “तारीख़ ए यनू ान” में स्लखता है स्क हुकूमत उजमास्नया चंद हैस्सयतों की विह से योरप में सब से ज़्यादा मज़बूत
हुकूमत थी िबस्क दसू रे ऐतबार से सब से ज़्यादा सहनशील और रवादार भी थी अगर वो स्कसी के स्िजम को क़ै द करती थी लेस्कन स्दमाग़ को आज़ाद
छोड़ती थी। उस की ईसाई ररआया के नीचे के तबक़े योरप के दसू रे स्हजसों कोे सक्षम तबक़ों के मक़ ु ाबले में ज़ेहनी हैस्सयत से आम तौर पर ज़्यादा तरक़्क़ी याफ़्ता थे। (तारीख़ यनू ान, अज़् िॉित स्फ़न्ले स्िल्द नम्बर ५, स्सफ़हा नम्बर २८८, स्िल्द नम्बर ६, स्सफ़हा नम्बर १८, तारीख़ दौलत उजमास्नया, स्िल्द नम्बर २, स्सफ़हा नम्बर २७, एस्डशन १९२०)
ग़ैर मुदललमों के साथ रहम की अनोखी दमसाल
योरपीअन इस्तहाजकार ने एक अनोखी बात स्लखी है स्क सहराओ ं और रे स्गजतानों में बसने वाले मसु ल्मान परू ी दस्ु नया में फे लते चले गए उन में जयाह फ़ाम (हब्शी) भी थे और सफ़े द फ़ाम (गोरे ) भी लेस्कन उन की सब से बड़ी ख़बू ी ये थी स्क ये रहमस्दली की एक अनोखी स्मसाल छोड़ गए। ये अपने क़ै स्दयों के
साथ उन के बच्चों और यहां तक स्क उनकी बीस्वयों के साथ भी सद्् यवहार रखते ये कभी उन से द्ु यतवहार नहीं करते उन के बच्चों को उच्च स्शक्षा देते, उन के स्लए पाठशाला और स्शक्षा का इतं ज़ाम करते। (बहवाला: स्हजटोररयन स्हजरी ऑफ़ दी वल्डत स्िल्द नम्बर १२ स्सफ़हा नम्बर ४६७, दौलत उजमास्नया स्िल्द नम्बर १, स्सफ़हा नम्बर ४६१)
ٰ رضی ہकी िस वदसय्यतें हिरत अबू बकर दसद्दीक़ ہللا عنہ
ّ ٰ رضیने िब शाम के कायत पर लककर रवाना स्कया तो अमीर ए लककर को मख़ हज़रत अबू बकर स्सद्दीक़ ہللا عنہ ु ास्तब कर के
फ़मातया तुम एक ऐसी क़ौम को पाओगे स्िन्हों ने अपने आप को ख़दु ा की इबादत के स्लए समस्पतत कर स्दया है यास्न ईसाई लोग उन को छोड़ देना मैं तुम
को दस वस्सय्यतें करता हू:ाँ १- स्कसी औरत को क़त्ल ना करना। २- स्कसी बच्चे को क़त्ल ना करना। ३- बूढ़े को क़त्ल ना करना। ४- फल्दार दरख़्त को ना काटना। ५- स्कसी आबाद िगह को वीरान ना करना। ६- बकरी को खाने के स्सवा बेकार ज़बह ना करना। ७- ऊंट खाने के स्सवा बेकार ज़बह ना
करना। ८- नख़स्लजतान ना िलाना। ९- माल ग़नीमत में ग़बन ना करना। १०-बज़ु स्दल ना हो िाना। (तारीख़ अल्ख़ल ु फ़ा स ९६, ख़ल ु फ़ा ए रास्शदीन स नम्बर १६)
ٰ رضی ہऔर ईसाइयों के जान व माल, इबाित गाहों की दहिाित हिरत अबू उबैिह ہللا عنہ
ّ ٰ رضیदस्मकक़ से हमस की तरफ़ बढ़े तो राजते में बअल्बक पड़ा, यहां के रहने वालों ने उनसे अमान की दरख़्वाजत की हज़रत अबू उबैदह ہللا عنہ
उन्हों ने उन की िान व माल और उन के स्गरिे को अमान दे कर उन के स्लए ये तहरीर स्लखी स्बस्जमल्लास्ह-रत ह्मास्न-रत हीम।् ये अमान फ़लां स्बन फ़लां के स्लए और अहल बअल्बक के स्लए उस के रूस्मयों, उस के फ़ारस्सयों, उस के अरबों उन की िानों के स्लए उन के मालों के स्लए उन के स्गरिा घरों के
स्लए उन की महल सराओ ं के स्लए या वो शहर में दास्ख़ल या बाहर के स्लए, उन की चौकी अमान में है। रूस्मयों को इिाज़त है पद्रं ह मील के अदं र अपने www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
मवेशी चराएाँ और स्कसी इबादत गाह में माह रबीउल अ्वल और िमास्द अ्वल गुज़ारने तक ना उतरें इस के बाद िहां तक चाहें उतर िाएं क्योंस्क उनकी िान की सरु क्षा इसी में है तास्क उन्हें कोई तक्लीफ़ ना पहु चं े। इस में िो इजलाम लाएगा उस के वही हक़ूक़ हैं िो हमारे , उस के वही फ़राइज़
(कतत्य) हैं िो हम पर हैं, िो ना लाए उन पर िि नहीं उन के तािरों को उन शहरों में सफ़र करने की इिाज़त है स्िन से हमारी सल ु ह हो चक ु ी है। उन पर
िो अपने मज़्हब पर क़ाइम रहेगा उस पर अल्लाह शास्हद है और उस की शहादत (गवाही) स्कफ़ायत करते हैं। (बलाज़री अरबी स्सफ़हा १३६, उदतू तितमु ा २०७-२०८)
ٰ رضی ہका दगरजा घरों को अमान (सरु दक्षत करना) हिरत उमर ہللا عنہ
ّ ٰ رضیकी मौिदू गी में वहां के लोगों से ये मआ बैतुल्मक़ ु द्दस फ़तह हुआ तो हज़रत उमर ہللا عنہ ु स्हदा (समझौता) हुआ। वो ये स्क वो अमान में हैं िो
ّ ٰ رضیने एस्लया के लोगों को दी ये अमान (सरु क्षा) उन के िगह माल, स्गरिा सलीब, तंदरुु जत बीमार और ख़दु ा के ग़ुलाम अमीरुल्मुअस्मनीन ہللا عنہ उन के तमाम मज़्हब वालों के स्लए है इस तरह उन के स्गरिाओ ं में ना स्नवास स्कया िाए, ना उनको ढाया िाए, ना उन को और उन के रकबे को नक़्ु सान पहु चं ाया िाए ना उन की सलीबों और माल में कमी की िाए मज़्हब के बारे में उन पर िि ना स्कया िाए ना उन में से स्कसी को नक़्ु सान पहु चं ाया िाए। (बहवाला तारीख़ अबू िाफ़र िरीर स्तबरी फ़तह बैतुल्मक़ ु द्दस स्िल्द नम्बर ५ स्सफ़हा नम्बर ४२०, अल्फ़ारूक़ स्िल्द नम्बर २, स१३६ से १३७)
ٰ رضی ہका ग़ैर मुदललमों से अनोखा हुलन सलूक हिरत उमर ہللا عنہ
ّ ٰ رضیकहीं से गुज़र रहे थे स्क एक बढ़ू े अंधे स्भक्षु को भीक मांगते देखा पछू ा तुम स्कस मज़्हब के मानने वाले हो एक दफ़ा हज़रत उमर फ़ारूक़ ہللا عنہ उस नोे िवाब स्दया मैं यहूदी हू,ाँ स्फर पछू ा भीक क्यंू मागं ते हो? बढ़ू ा हो कर महु ताि हो गया हूाँ स्िज़्या की रक़म अदा करनी होती है। ये सनु कर हज़रत ّ ٰ رضیउस को अपने घर ले गए उस का इक्राम स्कया, सम्मान स्कया उस को स्खलाया स्पलाया और घर से ला कर कुछ स्दया। स्फर उमर ہللا عنہ
बैतल्ु माल के ख़ज़ानची को बल ु ा कर हुक्म स्दया इस इस तरह के मिबरू लोगों का ख़्याल रखो। ये बात इसं ाफ़ के स्ख़लाफ़ है स्क ऐसे लोगों से िवानी में तो स्िज़्या वसल ۔ انماالصدقاتالइस ू कर के फ़ायदा उठाया िाए और बूढ़े हों तो उन को बेसहारा छोड़ स्दया िाए। स्फर आयत पढ़ी فقراء والمساکین
में फ़ुक़रा से मरु ाद मसु ल्मान फ़ुक़रा हैं और स्मजकीनों से मरु ाद ग़ैर मस्ु जलम भी शास्मल हैं। इस के बाद यहूस्दयों ईसाइयों और दसू रे ग़ौर मस्ु जलमों के अपास्हि स्मजकीनों पर स्िज़्या मआ ु फ़ कर स्दया। (स्कताबुल्ख़राि, बाब नम्बर १३, और फ़जल नम्बर २)
ٰ رضی ہको दबलतर मगच पर ग़ैर मुदललमों का ख़्याल अमीरुल्मुअदमनीन ہللا عنہ
ّ ٰ رضیको स्बजतर मगत पर भी ग़ैर मस्ु जलमों का ख़्याल रहा उन्हों ने फ़रमान में अपने बाद आने वाले ख़ल हज़रत उमर ہللا عنہ ु फ़ा को ग़ैर मस्ु जलमों के साथ अच्छा सलक ू करने का उपदेश स्दया। (बहवाला स्कताबुल्ख़राि, बाब नम्बर १३ फ़जल नम्बर २)
बनू उमय्या की ग़ैर मुदललमों से रवािारी (नरमी-सद्यता)
बनू उमय्या की सद्यता का बड़ा सबतू ये है स्क उन के फ़तह स्कये हुए इलाक़े ख़ास तौर पर शाम इराक़ में
दफ़्तरी ज़बान अरबी की बिाए रूमी और फ़ारसी ही रहे यहां तक स्क टेक्स के महकमे में अरबों के बिाए दसू री क़ौमों को ही जयाह व सफ़े द का मास्लक बनाया। (स्कताबल्ु मामनू स्सफ़हा नम्बर १६१) www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
ّ ٰ رضیने अपने ज़माने में ग़ैर मस्ु जलमों की बहुत हौसला अफ़ज़ाई की। उन्हों ने एक ईसाई को बनू उमय्या की हुकूमत में हज़रत अमीर मआ ु ्या ہللا عنہ ّ ٰ رضیने हमस में उसको एक सम्मास्नत उहदा स्दया वो तबीब भी दरबार का चीफ़ मक़ ु रत र स्कया, इब्न आसाल एक ईसाई था अमीर मआ ु ्या ہللا عنہ ّ ٰ رضیने स्तब्ब की कुछ स्कताबें यनू ानी ज़बान में तितमु ा कराई ं तास्क यनू ान के ग़ैर मस्ु जलम भी इस स्कताब से था इस स्लए अमीर मुआ्या ہللا عنہ फ़ायदा उठा सकें ।
ग़ैर मदु ललम ररआया के साथ महु ब्बत व ििक़त
मरवान स्बन अल्हकम के दरबान का मशहूर तबीब मासिीस एक यहूदी था उस ने स्बशप ईरान की इन्साइक्लोपीस्डया का अरबी तितमु ा सयु ातनी ज़बान से
स्कया और ख़लीफ़ा मरवान स्बन अल्हकम ने उस को बहुत बड़ा उहदा स्दए रखा और उस के ऊपर अपनी इनायात (दान) की बाररश स्कये रखी और उस के इलावा तमाम ररआया (राज्य) यास्न ग़ैर मस्ु जलम ररआया के साथ अपनी महु ब्बत बाक़ी रखी।
मुसल्मान हुक्मरान और एक चचच की दहिाित
एस बी इजकॉट स्लखता है स्क सक़ल्या में मसु ल्मानों के हज़ारों महल और उनकी ख़बू सरू ती शान मसु ल्मानों के शहरों के स्लए माया नाज़ था लेस्कन स्िस चीज़ की उन्हों ने सरु क्षा की वो एक चचत था। उन्हों ने उसको भी बाक़ी बस्ल्क ख़बू सरू त रखा। (अख़बार अलउ् न्दलसु स्िल्द नम्बर २ स्सफ़हा नम्बर ७५)
ग़ैर मुदललमों और उनकी इबाित गाहों के साथ हुलन सलक ू
अब्दरु त हमान अल्दास्ख़ल के बेटे हकशाम अ्वल ने अपने सीरत व स्करदार में और तज़त हुक्मरानी में हज़रत उमर स्बन अब्दल ् ज़ीज़ ۃ ہللاعلیہकी ु अ याद ताज़ह कर दी िहां उस के और कारनामे हैं वहां इसं ाफ़ में अमीर और ग़रीब का फ़क़त ना करना और लत्ु फ़ व कमत (प्रसन्नता) से पेश आना ररआया को तंग करने वाले हुक्काम को बे रहम हो कर सज़ा देना। ग़ैर मस्ु जलमोो के साथ और उनकी इबादत गाहों के साथ सद्् यवहार रखना इस ख़ानदान के हुक्मरान अब्दरु त हमान सानी की भी यही प्रस्तष्ठा थी और इस ख़ानदान
के और हुक्मरान अब्दरु त हमान सास्लस को भी ये गौरव हास्सल था उस की मृत्यु के बाद उस के काग़ज़ों में एक बही खाता स्नकला स्िस में उस ने स्लखा था मैं स्नहायत अम्न व अमान (शांस्तपवू तक) काम्याबी के साथ पच्चास बरस हुक्मरानी कर के िा रहा हू।ाँ मेरे दकु मन और दोजत मझु से ख़श ु हैं, दस्ु नया भर के
बादशाह मेरी दोजती के तलबगार हैं कोई ऐसी चीज़ ना थी स्िस की ख़्वास्हश इसं ान के स्दल में हुआ करती है वो मझु े ना स्मली हो। मैं ने उन स्दनों को स्गना है स्िन में मैं बेस्फ़क्र रहा और मैं वाक़ई बेस्फ़क्र रहा मझु े हक़ीक़ी ख़श ु ी नसीब हुई। एस बी इजकोट स्लखता है अब्दरु त हमान सास्लस ग़ैर मस्ु जलमों के स्लए
इतना बड़ा स्दल रखता था स्क शायद शेर का स्दल भी छोटा होगा और डोज़ी मशहूर इस्तहाजकार स्लखता होै अब्दरु त हमान सास्लस की फ़ौि दस्ु नया की
बेह्तरीन फ़ौि थी लेस्कन कभी उसकी तलवार ग़ैर मस्ु जलमों के स्लए नहीं उठी और उस ने हमेशा ग़ैर मस्ु जलमों के साथ और उन की इबादत गाहों के साथ बेह्तरीन और उत्तम सलक ू स्कया है। (स्हजरी ऑफ़ सारासीज़ स्सफ़हा नम्बर ११२से ११४)
मुअतसम दबल्लाह की रवािारी
मअमनू के िानं शीन मअ ु तसम स्बल्लाह ने हमेशा ग़ैर मस्ु जलमों के साथ उत्तम ्य्हार रखा उस का मक़ ु ाबला रूस्मयों के साथ था वो हमेशा थ्योनेन्स
बादशाह के स्सपास्हयों का कभी कमज़ोर स्हजसा होता तो उस की ख़बर कर देता चाहे उस को अपना ख़दु नक़्ु सान उठानोा पड़ िाए और उस ने हमेशा
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
रूस्मयों के क़ै स्दयों के साथ उन के बच्चों और उन की औरतों िानवरों, उन के खेतों उन के बाग़ों और उन के स्क़ल्लओ ं और उन के मक़बरों के साथ अच्छा सलक ू स्कया। (तफ़्सील के स्लए देस्खए तारीख़ इब्न असीर स्िल्द नम्बर ६ स्सफ़हा नम्बर ११६)
ग़ैर मदु ललमों के साथ अब्बादसयों की आम रवािारी
मामनू का एक दोजत अब्दल्ु मसीह स्बन इजहाक़ कंदी था वो उसका बेह्तरीन दोजत और ग़ैर मस्ु जलम था, मामनू के मरने के बाद कंदी ने िो मस्सतया स्लखा
वो पढ़ने के क़ास्बल है स्क मामनू वो शख़्स था िो अपने इल्म, मततबे कमाल में फ़ाइज़ तो था ही लेस्कन अपने वक़ार और अपनी अज़्मत में वो ऐसा आगे था स्क उस ने सारी स्ज़न्दगी इजलाम लाने में कभी िि नहीं स्कया मेरे मसीही हक़ूक़ की स्हफ़ाज़त की और मेरे ईसाई अक़ाइद (धमत) पर तनक़ीद तो तनक़ीद कड़वा लफ़्ज़ भी नहीं कहा। (बहवाला अल्मामनू )
ख़लीिा ए वक़्त ने ईसाई हकीम की नमाि जनािा में दहलसा दलया
ख़लीफ़ा मअ ु तसम स्बल्लाह की एक ईसाई हकीम स्सल्मोया से बहुत मानवता थी यहां तक स्क दोजती की हद्द तक उस से तअल्लक़ ु था स्सल्मोया बीमार
हो गया ख़लीफ़ा उस की अयादत को गया और िब तक वो बीमार रहा वहां मसु ल्सल िाता रहा िब उस की मृत्यु हो गयी तो एक स्दन खाना नहीं खाया
हुक्म स्दया स्क उसका िनाज़ा दारुस्ल्ख़लाफ़ा में ला कर रखा िाए और उस के अज़ीज़ अपने मज़्हब के मतु ास्बक़ उस की लाश पर धनू ी दे रहे थे और उन्हों ने दीप िलाये हुए थे ख़लीफ़ा ने कोई नागवारी का इज़्हार नहीं स्कया बस्ल्क ईसाइयों के साथ उस की नमाज़ िनाज़ा के स्लए खड़े हो गए। (स्कताबुल्मामनू स्सफ़हा नम्बर १६२)
ईसाई इदतहालकार का इक्राम (आिर सम्मान)
िॉित स्बन स्ििील एक बहुत बड़ा ईसाई इस्तहाजकार था ख़लीफ़ा मंसरू के ज़माने में ख़लीफ़ा ने उस को बहुत कमाल और वक़ार स्दया था िब िॉित मौत
के रोग में मब्ु तला हुआ और देश वापस िाना चाहा तो मंसरू ने उसको सफ़र ख़चत के स्लए पच्चास हज़ार अशस्फ़त यााँ दीं और उस के साथ स्लख कर स्दया स्क उस को स्कसी तरह की कोई तक्लीफ़ नहीं दी िाएगी उस को हर स्क़जम की सरु क्षा महु य्या की िाएगी। ख़लीफ़ा मंसरू ख़दु बहुत बड़ा आस्लम और तिबु ेकार था वो ग़ैर मस्ु जलमों की इबादत गाहों और उन के मज़्हबी ररवाि को कभी नहीं छे ड़ता था। (बहवाला मज़्मनू तरास्िम अज़् मौलाना स्शब्ली नअ ु मानी मक़ ु ालात स्िल्द शशम “६”)
स्फ़्लप् के स्हल्टी ने स्लखा है स्क मसु ल्मानों के इलाक़ों में स्ितने भी सरदार थे उन सब ने ग़ैर मस्ु जलमों को हमेशा अज़्मत दी, अपनी बस्ख़्शश दी, ग़ैर
मस्ु जलम मिु ररमो ो के साथ भी वही ्यवहार स्कया िो मसु ल्मान मिु ररमों के साथ करते, स्पल्या, वीनस और स्िनेवा के इलाक़ों के ग़ैर मस्ु जलमों को सलीबी िंगों में नक़्ु सान नहीं पहु चं ाया यहां तक स्क फ़्ांस, लॉरे न, इटली और स्सजली में ग़ैर मस्ु जलमों को आस्थतक रूप से और मआ ु शी परे ररत करने में
मसु ल्मानों का बहुत बड़ा स्करदार है और मसु ल्मानों ने ग़ैर मस्ु जलमों के मज़्हबी ररवािों और इबादत गाहों को स्गराया नहीं और ना ही स्मटाने की कोस्शश की। (स्हजरी ऑफ़ अरब्स स्सफ़हा नम्बर ६३६)
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
आख़री बात
क़ाररई!ं माहनामा अब्क़री एक अम्न और सक ु ू न का पैग़ाम आलम में ले कर दनकला है और
आलम ने इस अम्न व सक ु ू न और रूहास्नयत के पैग़ाम को स्िस तरह हाथों हाथ स्लया तारीख़ इस स्क गवाह है। अब्क़री िहां मसु ल्मानों में मक़बूल
(अनमु ोस्दत) है वहां स्हदं ओ ू (अनमु ोस्दत) है स्िस तरह होना चास्हए। अब्क़री रूहास्नयत और अम्न ु ,ं स्सखों, ईसाइयों, यहूस्दयों में भी उसी तरह मक़बल
का एक पैग़ाम इसं ास्नयत (मानवता) के स्लए लाया है ना स्क स्सफ़त मुसल्मानों के स्लए और इसं ास्नयत में ग़ैर मस्ु जलम भी शास्मल हैं। आइये! हम स्मल कर
बग़ैर फ़क़त मज़्हब, क़ौम, ज़बान, इलाक़ा और ग्ोह के इसं ास्नयत की सेवा के स्लए एक दसू रे के हाथ में हाथ थामें, तशद्दुद (स्हसं ोा) का पैग़म ख़त्म कर के अदम तशद्दुद ( अस्हसं ा ) का पैग़ाम आलम को दें, अदम बदातकत ( असहनशीलता ) का पैग़ाम ख़त्म कर के बदातकत (सहनशीलता) का पैग़ाम इसं ास्नयत को बाटं ें।
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