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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
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महबूब-अलआ ् रिफ़ीन, हादी तिीक़त, इल्म व इफ़ाान का समुन्दि,
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समााया ख़ान्दान ए क़ादिी हज्वैिी
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माल्दाि बनाने का आज़मूदह िाज़
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हज़ित ख़्वाजा सय्यद मुहम्मद अब्दुल्लाह हज्वैिी رحمة هللا عليهका
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पैज़ककश
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हकीम मुहम्मद तारिक़ महमूद मज्ज़बू ी चुग़ताई دامت بركاتهم (गोल्ड मेडज़लस्ट)
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अबक़िी पज़ब्लशसा लाहौि
७८/३ अबक़िी स्रीट मज़ंग चोंगी क़ुताबा चौक, जेल िोड, लाहौि पाज़कस्तान
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ज़ज़न्दगी भि औि िमज़ान-उल-् मुबािक में बिकत वाली थैली का ख़ास अमल
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९२-४२-३७५५-२३८४, ९२-४२-३७५८-६४५३, ९२-४२-३७५९-७६०५
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फ़े हरिस्त
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
Contents
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हज़रत सय्यदी मर्ु शिदी ख़्वाजा सय्यद महु म्मद अब्दल्ु लाह हज्वैरी رحمة هللا عليهके मख़्ु तसर हालात
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महबबू -अल्आररफ़ीन, हादी तरीक़त, इल्म व इफ़ािन का समन्ु दर, समािया ख़ान्दान ए क़ादरी हज्वैरी.................................................................... 4 हज़रत ख़्वाजा सय्यद महु म्मद अब्दल्ु लाह हज्वैरी رحمة هللا عليهके मख़्ु तसर हालात ए र्ज़न्दगी ................................................................ 4
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बरकत वाली थैली से तआरुफ़........................................................................................................................................ 5 एक तबाह हाल परे शान शख़्स ........................................................................................................................................ 8
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मेरे आज़मदू ह मशु ार्हदात ............................................................................................................................................. 9 थैली ने हैरान कर र्दया: .......................................................................................................................................... 9
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बे बरकती मझु े बबािद कर गयी: ................................................................................................................................. 10
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ज़रूरी गज़ु ाररशें....!!! ............................................................................................................................................. 11
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बरकत वाली थैली और र्ज़क्र में बरकत: ....................................................................................................................... 12
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आँखों देखी बरकत: ............................................................................................................................................ 12
"ये वाक़्या मैं र्सफ़ि अमल की बरकत के तौर पर अज़ि कर रहा ह।ँ " ................................................................................................. 13 थैली सेर्विंग अकाउिंट बन गयी: ................................................................................................................................. 13
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बरकत वाला अमल ............................................................................................................................................ 13
एक र्नहायत ही एहम बात .......................................................................................................................................... 13 रमज़ान अल्-मबु ारक का मख़्सूस अमल ............................................................................................................................ 14
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सूरह अल्-कौसर ................................................................................................................................................... 14 र्ज़न्दगी भर के र्लए सरू ह कौसर का बा बरकत अमल .............................................................................................................. 15
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दरूद पाक ( ) ﷺ.................................................................................................................................................. 15 और्लया कराम और बरकत वाली थैली ............................................................................................................................ 16
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बज़ु ुगों की बरकत वाली थैर्लयािं .................................................................................................................................... 16 इस्म आज़म और यक़ीन आज़म .................................................................................................................................... 18 बद्द नज़री से बचने का ख़ास अमल ................................................................................................................................. 18 www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
ख़ैर व बरकत और रूहानी फ़ै ज़ के र्लए आज़मदू ह क़ुरआनी वज़ाइफ़् ............................................................................................... 19 अपने रूठे रब को मनाने का अमल ................................................................................................................................. 19
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फ़ायदा मझु पर अमल करने से होगा ................................................................................................................................ 20
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
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महबूब-अलआ ् रिफ़ीन, हादी तिीक़त, इल्म व इफ़ाान का समुन्दि, समााया ख़ान्दान ए क़ादिी हज्वैिी हज़ित ख़्वाजा सय्यद मुहम्मद अब्दुल्लाह हज्वैिी رحمة هللا عليهके मुख़्तसि हालात ए ज़ज़न्दगी
चौदहवीं सदी र्हजरी के एक बड़े बाकमाल बुज़गु ि, आप क़ादरी र्सर्ल्सले से वाबस्ता थे, सय्यद अली र्बन उस्मान हज्वैरी رحمة هللا عليه
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अल्मअरूफ़ दाता गिंज बख़्श की रूहानी और नस्बी औलाद होने का शफ़ि रखते थे। इल्म लदन्ु नी के समन्ु दर में तेरे हुए और उस की गहराइयों को छाने हुए आप की ज़ात मबु ारक शरीअत व तरीक़त का बेह्तरीन नमनू ा थी इल्म हक़्क़ाइक़ और हुब्बे इलाही में अपनी नज़ीर आप थे। अख़्फ़ाए हाल बहुत
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ज़्यादा था। फ़मािया करते थे र्क अपने आप को इतना छुपाओ इतना छुपाओ र्क र्कसी को पता भी ना चल सके र्क तुम कौन हो।
लेर्कन इस अख़्फ़ा के बावजदू लोगों की इस्लाह और तज़््या में हम तन कोशािं रहे। हज़रत सय्यदी ख़्वाजा सय्यद महु म्मद अब्दल्ु लाह हज्वैरी
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رحمة هللا عليهके वार्लद का नाम हज़रत ख़्वाजा र्सराजद्दु ीन हज्वैरी رحمة هللا عليهऔर दादा मक ु रि म का इस्म ग्रामी ख़्वाजा महु म्मद क़ार्सम
हज्वैरी رحمة هللا عليهथा। आप के जद्द अम्जद देहली में महु ल्ला करोड़ािं वाला कूचा काश्ग़री में हज़रत ख़्वाजा बाक़ी र्बल्लाह देहलवी رحمة هللا
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عليهके क़ुबि में आराम फ़माि हैं।
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हज़रत सय्यदी ख़्वाजा رحمة هللا عليهकी शादी जवानी में हुई लेर्कन रफ़ीक़ा हयात बहुत जल्द आप का साथ छोड़ कर आलमे बज़िख़् की तरफ़
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चली गई।िं आप ला वल्द थे पेशा र्ह्मत था जो र्क साठ साल की उम्र में तकि कर र्दया और हम तन याद इलाही और सार्लकीन की तर्बियत में मश्ग़ूल हो गए थे।
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आप का ख़ान्दान इल्म व बुज़गु ी का गेहवारा था इन औसाफ़ की उथाह गेहराई अपने अिंदर समोए हुए था, फ़नाइयत और बुज़गु ी का कमाल रखने के साथ साथ इल्मी पख़्ु तगी का इस बात से अिंदाज़ा लगाया जा सकता है र्क फ़तावा आलम्गीरी जो आलम्गीर बादशाह की ज़ेर र्नगरानी मतिब कराया जा रहा था और उस के र्लए परू े मल्ु क से बा सलार्हयत और चीदह चीदह उलमा को मन्ु तर्ख़ब र्कया गया तो इस हज्वैरी ख़ान्दान के बा कमाल
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उलमाए कराम भी इस में शार्मल थे और इस ख़ान्दान की इल्मी र्ख़दमत इस फ़तावा की तय्यारी में नुमायाँ रहीं। हज़रत सय्यदी ख़्वाजा رحمة هللا عليه, नब्वी ( ) ﷺतालीमात और सन्ु नत नब्वी ﷺके साँचे में ढले हुए थे, इश्क़ए नब्वी ﷺइतिं हा दजे का था
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सब से बड़ी करामत सन्ु नत पर इस्तेक़ामत को क़रार र्दया करते थे यही वजह थी र्क आप को दीदार ए मस्ु तफ़ा ﷺर्नहायत ही कसरत के साथ हुआ करता था। बर्ल्क एक मतिबा तो ख़वास की मजर्लस में फ़मािया र्क र्जस रात काली कमली वाले महबूब दो जहाँ ﷺका दीदार ना हो वो रात
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गुज़ारना मर्ु श्कल हो जाती है। इसिं ानों से ज़्यादा आप से र्जन्नात बैअत थे और अ्सर आप की र्ख़दमत में तर्बियत व तज़््या के र्लए हार्ज़र होते। सय्यदी ख़्वाजा फ़मािया करते र्क कई क़बाइल हैं जो इस फ़क़ीर से तअल्लक़ ु रखते हैं और कभी कभी उन के इबादत में जज़्बा ज़ोक़् के वाक़्यात
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बयान फ़मािते।
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
हज़रत सय्यदी ख़्वाजा رحمة هللا عليهका र्मज़ाज र्नहायत ही सादह, अल्फ़ाज़ बनावट से पाक मगर परु र्ह्मत हुआ करते थे। कश्फ़ और रोशन
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ज़मीरी बहुत ज़्यादा थी, दीनी अवामर पर कोताही ना क़ार्बल ए बदािश्त थी और अ्सर ऐसे मौक़ों पर क़द्रे जलाल में आ जाते।
तक़्सीम र्हन्द के बाद आप अपने मर्ु शिद, उवैस क़रनी सानी رحمة هللا عليهके हु्म पर लाहौर तश्रीफ़ ले आए और लाहौर कश्मीर बाज़ार में हकीम आज़ाद शीराज़ी साहब के यहाँ आप का क़याम हुआ और कई साल यहािं तर्बियत व तज़््या का फ़रीज़ा अिंजाम देते रहे। बुज़गु ी व कमालात की ये
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जार्मअ हस्ती इस ज़ल्ु मत ज़्दह दौर में इश्क़ व मआररफ़त की शमा जलाते जलाते ८४ साल की उम्र में २३ जल ु ाई १९९१ को अपने महबूब ﷺके शहर में अपने ख़ार्लक़ हक़ीक़ी से आलम ए फ़ानी से आलम ए जावदानी में जा र्मले मगर अपने फ़ै ज़ को तालीमात की श्ल में छोड़ गए जो
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बिकत वाली थैली से तआरुफ़
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क़यामत तक आने वाले तार्लबीन और मआररफ़त के मत्तु लार्शयों की रहनमु ाई करती रहेंगी। आप की तुबित मबु ारक जन्नतुल-् बक़ीअ में वार्क़अ है।
क़ाररईन! कुछ र्दन पहले अचानक र्दल में ख़्याल आया र्क रमज़ान अल-् मबु ारक क़रीब है तो ्यँू ना क़ाररईन को अपने हज़रत رحمة هللا عليهका
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एक ऐसा अमल दँू जो रमज़ान में इफ़ िं रादी तौर पर मैं साल्हा साल से बताता चला आ रहा हँ और मेरे हज़रत ख़्वाजा सय्यद महु म्मद अब्दल्ु लाह हज्वैरी رحمة هللا عليهसत्तर साल से अपने बड़ों के और अपने तजबु ाित से इस को बा कमाल सार्बत कर चक ु े हैं। अमल ्या है वाक़ई माल्दार बनने
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का एक अनोखा राज़ है जो हर शख़्स कर सकता है, आज मर्ु ललसी का दौर है, महगिं ाई का दौर है, ग़ुरबत रोज़ बरोज़ बढ़ती चली जा रही है तिंगदस्ती अपने उरूज पे है, हर शख़्स महगिं ाई, क़हत, आफ़ात और बर्लय्यात में मब्ु तला है। ज़माने की परे शार्नयािं बहुत ज़्यादा हैं, ऐसे दौर में लोगों को एक
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ऐसा अमल चार्हए जो अमल वाक़ई बे ख़ता हुआ और र्जस अमल के अिंदर वाक़ई तासीर हो। क़ाररईन! आज मैं वो अमल आप को दे रहा हँ जो यक़ीनन आप और आप की नस्लों के र्लए एक सो फ़ीसद तीर बे ख़ता और आज़मदू ह सार्बत होगा। अमल से वाक़ज़फ़यत: इस अमल की दास्ताँ यँू है। ये १९८४ की वो सहु ानी सबु ह थी जब मैं अपने शैख़ हज़रत ख़्वाजा सय्यद महु म्मद अब्दल्ु लाह
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हज्वैरी मज्ज़बू رحمة هللا عليهसे मिंसु र्लक हुआ। कुछ ही माह के बाद रमज़ान अल-् मबु ारक में मैैै ने बहुत से लोगों को हज़रत से बरकत वाली थैली का अमल समझतैे सनु ा चँर्ू क इब्तदा थी, इल्म नहीं था। इस र्लए हैरान भी हुआ, या ख़दु ा ये अमल ्या है? पता चला र्क हज़रत की
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तरतीब है र्क हर रमज़ान अल-् मबु ारक में ऐसे लोगों को जो मर्ु ललसी, तिंगदस्ती क़ज़ों का र्शकार हों या ऐसे लोग र्जन पर अयाल दारी ज़्यादा हो, घर के अख़्राजात परू े ना होते हों, ररज़्क़ की कमी हो, मसाइल और परे शार्नयों ने तिंग कर रखा हो तो उन लोगों के र्लए ये अमल हज़रत رحمة هللا
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عليهफ़मािते थे और बे शमु ार लोगों को मैं ने अपनी आँखों से हज़रत ही के ज़माने में तिंगदस्ती से तवगिं री, मर्ु ललसी से माल्दारी, ग़रु बत से अमीरी तक
देखा। हज़रत इस थैली के बारे में जो ररवायत फ़माितैे थे वो ये र्क मेरे शैख़ का भी ये मामूल था र्क वो रमज़ान अल-् मबु ारक में लोगों को थैली का
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अमल बताते और लोग दरू दरू से रमज़ान से पहले आ के ये अमल सनु ते सीखते समझते और करते और ये बात मशहर हो गयी थी र्क रमज़ान में हज़रत से जा के लार्ज़म इस थैली वाले अमल के बारे में पछू ना है। www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
थैली या ख़ज़ाना: क़ाररईन! इस थैली वाले अमल के र्लए मैं ने बहुत से लोगों को यहािं तक भी कहते सनु ा र्क थैली नहीं है ये एक ख़ज़ाना है बर्ल्क एक साहब मझु से कहने लगे ऐसा ख़ज़ाना जो कभी ख़त्म नहीं होता और परू े रमज़ान में इस थैली पर हम अमल करते रहते हैं और आइन्दा
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रमज़ान में इस थैली की तज्दीद करने के र्लए उस पर र्िर अमल करते हैं।
☆ हमारे हज़रत رحمة هللا عليهही के दौर का एक वाक़्या है र्क एक शख़्स आया और बहुत तिंगदस्ती और सफ़े द पोशी का र्शकार था। पहले बहुत
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दक ु ानें और माल्दारी थी, ग़ुरबत और तिंगदस्ती ने घेरा तो रे ढ़ी पर तरबूज़ बेचने लगा। हज़रत رحمة هللا عليهने फ़मािया र्क रमज़ान क़रीब है कपड़े की
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का हर फ़दि अपनी थैली बना ले, वरना एक ही थैली पर सारे घर वाले दम करें ।
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थैली र्सल्वा कर ले आओ, मैं उस पर दम भी करूँगा और एक बरकत वाला अमल बताऊिंगा, तुम भी करो और तुम्हारा सारा घर करे । चाहो तो घर
वो दसू रे र्दन थैली बनवा कर ले आया हज़रत ने उसे थैली की तरकीब बताई। ख़श ु हुआ और बहुत हैरान हुआ र्क बहुत आसान अमल है और चला
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गया। ग़ार्लबन सात और आठ माह के बाद र्िर आया हज़रत कहीं तश्रीफ़ ले गए थे। मैं बैठा हुआ था हज़रत का पूछा तो मैं ने अज़ि र्कया देर से
तश्रीफ़ लाएिंगे। बातों ही बातों में मझु से कहने लगे र्क बस मैं तो उन का शर्ु क्रया अदा करने आया था और मैं ये अज़ि करने आया था र्क उन्हों ने
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मझु े मर्ु ललसी और तिंगदस्ती से र्नकाल र्दया वरना र्जस मर्ु ललसी और तिंगदस्ती में मैं चला गया था उस का आख़री हल र्सफ़ि कुफ़्र था या ख़दु कुशी थी। मैं ने पछू ा वो अमल ्या था उन्हों ने सारा अमल बताया और बरकत वाली थैली र्नकाल के र्दखाई। ये सब से पहला वाक़्या था र्क बरकत
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चला गया।
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वाली थैली से मैं सही मतु ाअरुफ़ हुआ। इस के वाद र्िर हज़ारोै वाक़्यात मेरे मश ु ार्हदे में आते चले गए और मख़्लूक़ ए ख़दु ा को नफ़ा पोहचिं ता
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☆ हज़रत ही के दौर का एक और वाक़्या पढ़ें एक ख़ातून अपने शौहर और पािंच जवान बच्चों के साथ तश्रीफ़ लाई।िं कहने लगीं र्क स्कूल की वदी नहीं, र्कताबें नहीं, इन बच्चों के र्लए बअज़ औक़ात एक वक़्त में एक रोटी र्मलती और बअज़ को आधी रोटी र्मलती है। तिंगदस्ती बहुत ज़्यादा है, ग़ुरबत बहुत ज़्यादा है, फ़क़्र व फ़ाक़ा बहुत ज़्यादा है। इस तिंगदस्ती और ग़ुरबत की वजह से अ्सर लड़ाई झगड़ा रहता है, गाली गलोच होती है, मार
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कुटाई होती है। थक गयी ह,ँ आर्जज़ आ गयी हँ आप से दआ ु कराने आई हँ। कुछ पढ़ने का बताएिं। हज़रत ने दआ ु फ़मािई, शलक़त फ़मािई और फ़मािया र्क ये अमल करते रहो, बरकत वाली थैली वाला अमल करते रहो। रमज़ान के क़रीब मझु े बरकत वाली थैली बनवा के ला देना मैं एक अमल
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बताऊिंगा, परू ा रमज़ान सारा घर वो अमल करे , अगर सारा घर नहीं कर सकतैा तो घर के र्जतने ज़्यादा अफ़राद कर सकते हैं वो अमल करें इन् शा अल्लाह तुम्हारे र्दन र्िर जाएिंगे। र्िर मेरी आँखों ने उन लोगों को देखा र्क वाक़ई अल्लाह पाक ने इस अमल की बरकत से उन के र्दन िे रे , उन की
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सबु ह व शाम रोशन हो गई,िं उन के मसाइल हल हो गए, उन की मर्ु श्कलें दरू हो गई िं और वही लोग थे र्िर एक वक़्त ऐसा आया मैं ने देखा र्क गाड़ी पर आते थे कहाँ एक वक़्त ऐसा था र्क उन के पास टाँगे के पैसे नहीं होते थे।
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☆ एक और वाक़्या जो मैं ने अपने हज़रत رحمة هللا عليهके दौर का देखा वो भी र्लखना चाहगँ ा। मैं हज़रत رحمة هللا عليهके साथ एक दफ़ा सफ़र पर था। स्टेशन पर जाना था लाहौर के रै ल्वे स्टेशन के र्लए टाँगे वाले से बात हुई। हज़रत رحمة هللا عليهटाँगे पर तश्रीफ़ रखते हुए, आगे बेठे, www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
मैं पीछे बैठ गया। टाँगे वाले का घोड़ा चलता नहीं था और ट्रेन में ताख़ीर हो रही थी तो मैं ने उस से कहा र्क इस को चलाओ कहने लगा इतना है
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चल सकता है। मैं ने पछू ा बीमार है? कहने लगा नहीं, मैं अपना पेट भरूँ र्क इस का भरूँ, मेरा पेट और मेरे बच्चों का पेट भी ख़ाली होता है तो इस का पेट भी ख़ाली होगा। मझु े उस की बात अनोखी लगी, मैं ने बे साख़्ता ख़ुद ही कह र्दया र्क तुम बरकत वाली थैली ्यँू नहै ै लेते? और वो अमल ्यँू नहीं करते? कहने लगा मैं अन पढ़ आदमी हँ मैं ने कहा: तेरे बीवी बच्चे? कहने लगा हाँ वो पढ़े हुए हैं।
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मैं बात ही कर रहा था र्क हज़रत رحمة هللا عليهने फ़मािया र्क अच्छी बात है इसे बरकत वाली थैली का बताओ और इसे कहो र्क रमज़ान से
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पहले बरकत वालै थैली हमारे पास लाए हम दम कर देंगे और इस को अमल भी बता देंगे। इन् शा अल्लाह अल्लाह पाक बरकतें अता फ़मािएगा।
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मैं ने उसे अमल समझा र्दया और उस से कहा र्क बरकत वाली थैली बना लें और ये अमल शरू ु करें और उसे हज़रत رحمة هللا عليهकी क़्याम
गाह बता दी। तीन चार र्दन के बाद वो हज़रत رحمة هللا عليهके पास आया ढूिंडता ढूिंडता, उस की एहल्या भी साथ थी और एक बच्चा भी साथ
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था और उन्हों ने आ के घर के हालात बताए र्क घर में बअज़ औक़ात आटे की मठु ी नहीं होती। र्बज्ली का मीटर कट चक ु ा है, उस दौर में हर घर के
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अिंदर सईु गैस नहीं थी वेसे भी लाहौर में नई नई गैस आई थी, उस दौर में लाहौर में गैस नहीं थी।
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फ़मािने लगे र्क लकर्ड़याँ भी नहीं होतीं, र्बज्ली का मीटर भी कट चक ु ा है। तिंगदस्ती ने घर में राज रखा हुआ है, कोई जादू बताता है, कोई र्जन्नात
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बताता है, कोई आसेब बताता है, मैं तो थक गया हँ और आर्जज़ आ गया हँ ्या करूँ? दो तीन दफ़ा मैं ने अपना तागिं ा एक बड़े ट्रक से जान बझू के टकराया र्क मैं भी मर जाऊिं घोड़ा भी मर जाए, घोड़ा भी भक ू ा रहता है उस की घास के पैसे नहीं होते लेर्कन मुझे क़ुदरत ने बचा र्लया है अब
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आप बैठें हैं तो आप ने मझु े उम्मीद की र्करन र्दखाई है। ररश्तेदार, ब्रादरी छोड़ गयी है। घर में बीवी भी बअज़ औक़ात कहती है र्क मझु े रोटी ला कर दे वरना मझु े मेरे मेके भेज दे। आर्ख़र जाऊिं तो कहाँ जाऊिं? हज़रत رحمة هللا عليهने उसे तसल्ली दी और कुछ अपनी जेब से अता र्कये, ग़ार्लबन तीन रूपए थे और फ़मािया इत्मीनान रख और इस बरकत वाली थैली में से तू अपनी बरकतें हार्सल कर और उसे बरकत की थैली का सारा अमल
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समझा र्दया। वो चला गया।
यक़ीन जार्नये! बस बात असल में एतमाद और यक़ीन की है। उस ने सरू ह कौसर बाक़ाइदह याद की और कुछ अरसे बाद उस ने भी अमल करना
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शरू ु र्कया। उस के घरवालों ने तो उसी र्दन करना शरू ु कर र्दया। थोड़ा ही अरसा गुज़रा, मैं इस को आठ माह या उस से कुछ ज़्यादा कह।ँ वो शख़्स आया र्क उस के चेहरे पर ख़श्ु हाली के असरात थे। कहने लगा र्क मैं ने दो टाँगे और ले र्लए हैं जो मैं ने और लोगों को दीहाड़ी पर र्दए हैं। घर का
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दरवाज़ा मैं ने लकड़ी का बनवा र्लया है, पहले बाहर का दरवाज़ैा नहीं था। घर में मैं ने बाथ रूम की दीवार प्की कर ली है, पहले र्सफ़ि बोररया था और उस का दरवाज़ा भी लगवा र्लया और भी छोटे मोटे ऐसे काम बताए। कहने लगा र्क सवारी र्मलती है और अजीब बात
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ये है र्क पैसैे में बरकत होती है। पैसे थोड़े हों तो परू े हो जाते हैं, ग़ैब से मझु े अल्लाह पाक रहमत का सामान अता फ़माि रहे हैं और ग़ैब से बरकत का सामान अता फ़माि हैं। www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
एक तबाह हाल पिेशान शख़्स
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क़ाररईन! ये तीन वाक़्यात मैं ने अपने हज़रत رحمة هللا عليهके अज़ि र्कये चँर्ू क वाक़्यात बहुत ज़्यादा हैं कुछ वाक़्यात मैं आप को अज़ि करता हँ ये १९९१ के रमज़ान से चन्द माह पहले की बात है। मझु े साल इस र्लए याद है ्योंर्क ये वाक़्या बहुत ददिनाक है। हज़रत رحمة هللا عليهके पास एक साहब आए। कहने लगे र्क मैं कॉटन फ़ै ्ट्री का मार्लक था, एक फ़ै ्ट्री अपनी थी और तीन फ़ै र््ट्रयाँ कॉटन की लीज़ पर ली हुई थीं। बहुत माल था,
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ग़ुलाम थे, ख़ार्दम थे, ररज़्क़ था, एक कोठी मेरी लाहौर में थी, एक कोठी इस्लाम आबाद में, एक अपाटिमेंट मैं ने मरी में र्लया हुआ था, और ख़दु मैं वेहाड़ी का ररहायशी था। कहने लगे र्क बैंकों से र्नज़ाम चल रहा था। लोग मुझे कहते थे र्क बैंकों से र्नज़ाम ना चला और मैं ने ख़दु भी हज़रत
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अब्दल्ु लाह र्बन मसऊद رضي هللا عنهका क़ौल पढ़ा था र्क "सदू का अिंजाम तिंगदस्ती और मर्ु ललसी होती है" आर्ख़र मेरे साथ वही हुआ हालात
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एक दम बदल गए, लोगों के तेवर और र्मज़ाज बदल गए, र्ज़न्दगी के र्दन रात बदल गए। चीज़ें ख़त्म हो गयीं, अब हर चीज़ ख़त्म हो गयी है, मैं ने
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वेहाड़ी इलाक़ा छोड़ र्दया, क़ज़ि ख़्वाह तिंग करते हैं और लाहौर में तिंगदस्ती में एक छोटैा सा मकान ले कर मैं मज़्दरू ी कर रहा हँ सबु ह एक होटल पे जाता हँ और उस होटल वाले का दधू उबालता हँ उस की कड़ार्हयाँ माझिं ता हैाँ और उस की र्ख़दमत करता ह।ँ उस के सारे बतिन धोता ह,ँ उस के
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होटल का फ़शि और मेज़ें सब साफ़ करता ह।ँ र्िर इसी तरह दोपेहरे को घर वापस आता हँ और जो मज़्दरू ी र्मलती है उस से घर में खाने पीने का
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सामान ला के देता हँ र्िर शाम को असर के बाद एक और जगा र्कसी घर में जाता हँ और उस घर में जा कर र्ख़दमत करता ह,ँ उन की भी सफ़ाइयािं
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और र्ख़दमतें, उन के कपड़े धोता हँ उन के लेट्रीन और ग़ुस्ल ख़ाने साफ़ करता हँ और घर के सारे काम करता ह।ँ र्कसी ने आप का बताया आप
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अल्लाह वाले हैं, दआ ु भी फ़मािते हैं, कुछ पढ़ने को भी देते हैं, इस मुर्ललसी और तिंगदस्ती से थक गया ह,ँ आर्ख़र करूँ तो ्या करूँ?
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मैं ने इस से पहले अपने हज़रत رحمة هللا عليهको बहुत कम लोगों के सामने रोते देखा है। उस की ऐसी ददिनाक कहानी थी र्क हज़रत رحمة هللا عليهख़दु रो पड़े, उन के आिंसू र्नकल गए। हज़रत رحمة هللا عليهने दोनों हाथों से उस के सर पर तसल्ली के हाथ िे रे , तसल्ली दी और फ़मािया
परे शान नहीं होना, मायूस ना होना, इन् शा अल्लाह तेरा काम बनेगा, तेरी मर्ु श्कल टलेगी। तेरे मसाइल हल होंगे और उसे बरकत वाली थैली वाला
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अमल बताया। फ़मािने लगे: कपड़े की बरकत की थैली र्सल्वा के ले आ उस पर दम कर देता हँ और उस पर एक सरू ह कौसर का अमल बताया वो
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पढ़ो, तुम पढ़ो, सारा घर पढ़ैे और रमज़ान अल-् मबु ारक से पहले मेरे पास आना एक अमल बताऊिंगा वो करना। वो चला गया। वो रमज़ान से पहले आया उस ने हज़रत رحمة هللا عليهसे बरकत वाली थैली पर दम करवाया और रमज़ान का ख़सु सू ी अमल पछू ा। आप यक़ीन
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जार्नये क़ाररईन! उस ने अमल र्कया और जी भर के र्कया, र्दल से र्कया, कोई साल डेढ़ साल ही की बात होगी र्क मेरी आँखों ने उस शख़्स को ऐसा माल्दार होते देखा, ऐसा तवाना होते देखा, शायद बहुत ही कम लोगों को ये बरकत र्मली हो। इतना अल्लाह ने उस को ररज़्क़ र्दया और
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अल्लाह ने उस को इतनी शान व शौकत दी, अल्लाह ने उस को इतनी बरकत अता फ़मािई र्क ख़दु मेरी अक़्ल हैरान है, वो ख़दु कहता था र्क मैं सोच भी नहीं सकता था र्क मेरे भी र्दन र्िर सकते हैं और मझु े भी ग़ुरबत व तिंगदस्ती से र्नजात र्मल सकती है और मैं भी कुछ हार्सल कर सकता
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
हँ मैं मायूस हो चक ु ा था, लेर्कन अब मेरी यास आस में बदल गयी है अल्लाह के ख़ज़ानों में वो नेअमतें मौजदू हैं अगर इसिं ान तलाश करे तो र्मल
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सकती हैं। बस हमारी तलाश में कमी है।
अरे अल्लाह वालो! मैं आप को र्कतने वाक़्यात सनु ाऊँ मेरे पास हज़ारों वाक़्यात हैं लेर्कन बरकत वाली थैली आप के पास अगर सदा रहेगी तो सदा बरकत रहेगी, रोज़ाना इस के ऊपर १२९ मतिबा सबु ह व शाम या र्दन में र्सफ़ि एक मतिबा १२९ बार सरू ह कौसर पढ़ते रहेंगे तो बरकत हमेशा रहेगी।
ज़रीया है।
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मेिे आज़मूदह मुशाज़हदात
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थैली ने हैिान कि ज़दया:
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र्जतना ज़्यादा पढ़ेंगे उतनी बरकत होगी र्जतना गुड़ उतना मीठा। लेर्कन रमज़ान अल-् मबु ारक का मख़्ससू अमल पढ़ना बहुत तासीर और बरकत का
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(१) चन्द साल पहले एक साहब को मैं ने ये अमल बताया था अभी कुछ अरसा पहले र्मले तो मझु से कहने लगे र्क रमज़ान अल-् मबु ारक आ रहा है, मैं ने कई थैर्लयािं तय्यार की हुई हैं। आप बराहे करम! इस थैली का अमल मझु े बता दीर्जयेगा। कहने लगे: मेरे साथ अजीब वाक़्या हुआ मेरी बेटी
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जवान थी, उस की शादी करनी थी, मैं ने तीन थैर्लयािं बनवाई,िं एक थैली अपने र्लए और दसू री अपनी एहल्या और तीसरी अपनी बेटी के र्लए। बेटी को कहा बेटी! तुम्हें पैसे देता जाऊँगा इस में रखती जाना और रोज़ाना १२९ मतिबा सबु ह व शाम इस पर सरू ह कौसर पढ़ कर दम करना। बेटी भी करती रही, माँ भी करती रही, मैं भी करता रहा ठीक १७ महीने के बाद मैं ने उस थैली को खोला और उस में से नॉट र्गनना शुरू र्कये।
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मझु े मालूम था मैं छोटे नॉट डालता था बड़े मेरे पास थे नहीं, बअज़ औक़ात मैं डालता ही नहीं था। लेर्कन सरू ह कौसर का अमल ज़रूर करता था। जब मैं ने र्गनना शरू ु र्कये तो मेरी अक़्ल हैरान रह गयी। र्क १७ महीने के अिंदर २ लाख ८५ हज़ार छे सो और ३४ रूपए र्नकले मैं हैरान हुआ वो
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कहाँ से आ गए? इतनी मेरी तनख़्वाह नहीं, घर के अख़्राजात ज़्यादा हैं, ज़्यादा बड़े नॉट डाले नहीं, बस यका यक एक बात ज़ेहन में आई र्क तू अल्लाह की रे हमत को नहीं देखता, अपनी हैर्सयत को देख रहा है र्िर अल्लाह की रहमत कहाँ जाएगी? ये बात करते हुए उस के आसिं ू आ गए
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और वो रो पड़ा।
(२) एक और साहब ने र्लखा र्क मैं ने रमज़ान अल-् मबु ारक में बरकत की थैली वाला अमल र्कया मेरे तो वारे न्यारे हो गए, मेरे घर में बरकत नहीं
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थी अब बरकत हो गयी, मेरी दो दक ु ु ानें थीं एक दक ु ान बन्द हो गयी थी एक मैं माल कम था उसे भी बन्द करने का प्रोग्राम था, दोनों दक ु ानें र्िर शरू हो गई।िं
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
घर की तोड़ िोड़ के काम करवाने थे वो मैं ने करवा र्लए उस पर बहुत ख़चाि हुआ, मेरी एक मोटर साइर्कल ख़राब खड़ी थी, उस पर बहुत ज़्यादा
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काम होना था, उस का बड़ा ख़चाि था वो मैं ने बहुत बेह्तरीन बनवा ली। क़ाररईन! उस की एक र्लस्ट थी जो कहता चला गया। इस रमज़ान अल-् मबु ारक में थैली और अमल की बरकत से ये काम हुआ, ये काम हुआ, ये काम हुआ, और उस के काम होते चले गए, और होते ही चले गए।
बे बिकती मुझे बबााद कि गयी:
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(३) अमरीका से एक साहब मेरे पास आए और कहने लगे लोग तो मझु े डॉलरों के मल्ु क का बादशाह समझते हैं लेर्कन वहाँ के ररज़्क़ की बे बरकती मझु े खा गयी। पार्कस्तान से अपना सब कुछ बेच कर मैं वहािं सेटल हुआ आज मझु े २२ साल हो गए हैं लेर्कन क़ज़े के नीचे दबा हुआ हँ
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बहुत सी र्क़स्तें अदा करनी हैं पार्कस्तान में बहुत से लोगों को मैं ने देना है।
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घर वालों की ज़रूररयात परू ी नहीं कर सकता, तीन तीन र्शलटों में काम करता ह।ँ बीवी काम करती है, बच्चे काम करते हैं तब जा के घर के
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अख़्राजात परू े होते हैं। लेर्कन र्िर वेसे के वेसे, महीने के आख़री र्दन बड़ी मुर्श्कल से गुज़रते हैं। हालात ना साज़्गार हैं।
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अभी मैं ग्यारह साल बाद पार्कस्तान आया ह,ँ र्टकट के पैसे नहीं थे र्दन रात मर्ु श्कलात परे शार्नयों में गुज़र रहे हैं, हर वक़्त मसाइल मर्ु श्कलात, हर वक़्त उल्झनें हैं, डरावने ख़्वाब बअज़ औक़ात मझु े चीख़ने पर मज्बरू कर देते हैं मैं र्ज़न्दगी की इन घर्ड़यों से मायसू हो गया ह।ँ बराहे करम कुछ दआ ु
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फ़मािएँ मैं ने उन्हें बरकत वाली थैली का अमल र्दया और ख़ास रमज़ान अल्-मबु ारक में बरकत की थैली का ख़ास अमल उन को समझा र्दया। मौसफ़ ू चले गए, चले जाने के बाद उन की जो इत्तलाअ र्मली वो इत्तलाअ उन के िूिी ज़ाद नैे दी। वो मेरे पास र्िर लौट के नहीं आये। लेर्कन
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उनके िूिी ज़ाद आए उन्ही के हवाले से और उन्हों ने इत्तलाअ दी र्क अब उन को अल्लाह पाक ने इतना र्दया र्क उन्हों ने अपना एक अच्छा और बेह्तरीन घर र्लया है, परु ाने घर को बेच र्दया है, अच्छी गाड़ी ली है, सारे क़ज़े उतर गए हैं और परु सक ु ू न हैं, मर्ु श्कलात ख़त्म हो गई हैं, परे शार्नयािं ख़त्म हो गयी हैं, और उन का सलाम लाये और कहने लगे र्क मैं आप से राब्ता नहीं कर सका मेरी मज्बूरी भी है और कोताही भी है लेर्कन अब
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तक मैं ने छत्तीस आदर्मयों को ये अमल र्दया और छत्तीस आदर्मयों में से कोई एक शख़्स भी ऐसा नहीं र्क र्जस को फ़ायदा ना र्मला हो। उन में एक ऐसा शख़्स था जो टै्सी चलाता था उस के अिंदर जज़्बा था र्क मैं इस अमल को िै लाऊँ। उस ने कपड़ा ख़रीद कर बरकत वाली थैर्लयािं ख़दु
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बनवा लीं और बनवा कर वो अ्सर लोगों को, सवाररयों को या र्मलने जल ु ने वालों को देता भी था और रोज़ाना का अमल भी बताता था और रमज़ान अल-् मबु ारक का ख़ुससू ी अमल भी बताता था। उस टै्सी ड्राईवर र्जस का नाम अब्दल ु ख़ार्लक़ बताया मीरपरु आज़ाद कश्मीर का था,
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बक़ौल उस के र्क मैं सैंकड़ों लोगों को ये अमल दे चक ु ा हँ उन सैंकड़ों लोगों में से बे शुमार लोगों की तस्दीक़ मझु े र्मली है, र्जन को फ़ायदा पोहचिं ा
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है और उन में से ऐसे लोग भी थे र्क उन को ऐसा फ़ायदा पोहचिं ा र्क उन्हों ने और बेशमु ार लोगों को बताया।
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ज़रूिी गुज़ारिशें....!!!
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रमज़ान अल-् मबु ारक में अल्लाह कै बरकतें बेकरािं होती हैं, रहमतें बेकरािं होरी हैं, जहाँ जन्नत र्मलती है, वहािं ररज़्क़ भी र्मलता है, वहािं वसु अत भी र्मलती है। आए!िं हम इस रमज़ान से ख़सु सू ी फ़ायदा उठाएिं। हाँ! एक बात मैं बताऊँ आप को ज़रूर फ़ायदा होगा। मैं ये नहीं कहता र्क करें गे तो
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फ़ायदा होगा बर्ल्क ज़रूर होगा, इन् शा अल्लाह।
आप उस फ़ायदे को ज़रूर र्लखें, बे रब्त र्लखें, लेर्कन फ़ायदा ज़रूर र्लखें। मैं र्दल के राज़ आप तक पोहचिं ाता हँ और हर बार यही इसरार करता हँ
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र्क आप अपने तजबु ाित अबक़री के दलतर तक ज़रूर पोहचिं ाएिं, ज़रूर र्लखें ता र्क लाखों मख़्लक़ ू को फ़ायदा पोहचिं े।
अल्लाह वालो! इस अमल को देने से पहले इतना ज़रूर अज़ि करूँगा र्जतना अल्लाह की रज़ा को सामने रख कर, र्जतना र्दल की गहराइयों से ये
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अमल करें गे उतना इस का फ़ायदा नसीब होगा और उतना इस का नफ़ा नसीब होगा। मेरे पास इतने वाक़्यात हैं और ऐसे वाक़्यात हैं र्क जो लोग
ख़दु कुर्शयों की तरफ़ माइल हो रहे थे घर छोड़ चक ु े थे, बीवी बच्चे छोड़ चक ु े थे, ग़बु ित, तिंगदस्ती और क़ज़े ने उन्हें कुफ़्र की तरफ़ मज्बरू कर र्दया
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था बर्ल्क मेरी र्ज़न्दगी में एक वाक़्या ऐसा भी आया है र्क एक शख़्स ने अपना मज़्हब तब्दील कर र्लया मैं ने उस की र्मन्नत की और उस को र्बठा कर बहुत देर तग़ीब दी और उसे बरकत वाली थैली का अमल बताया और रमज़ान का ख़ुससू ी अमल बताया और उस को करने को कहा। अल्लाह
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का फ़ज़्ल है वो कहने लगा र्क तीन ईदें मैं ने नहीं पढ़ीं लेर्कन उस रमज़ान की ईद उस ने पढ़ी और र्िर से तज्दीद ईमान र्कया और तज्दीद र्नकाह
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र्कया और मसु ल्मान हुआ और अल्लाह पाक ने उसे माल्दार और ग़नी कर र्दया। एक दसू री बात ज़रूर अज़ि करूँगा र्क अल्लाह पाक आपको
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माल्दार और ग़नी कर दे इस में ग़रीबों को ना भल ू ना अपने सदक़ा ख़ैरात में ज़्यादा से ज़्यादा उन को अता करना, र्जस करीम ने आप को मर्ु ललसी
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और तिंगदस्ती के बाद ये नेअमतें अता की हैै उस करीम की मख़्लक़ ू को ना भर्ू लएगा इस मख़्लक़ ू को बरकत वाली थैली के र्हस्से में ज़रूर शार्मल कीर्जयेगा और एक और ख़ास बात इस अमल को आप िै ला सकते हैं आप को इस की इजाज़त है। हम ने बरकत वाली थैली का इतिं ज़ाम र्कया है।
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लोग दर्ज़ियों के पास जाते थे कोई चालीस,कोई पचास और कोई साठ रूपए मािंगता था हम ने कसीर तअदाद में नेक लोगों के ज़ररए ये बरकत वाली थैली र्सल्वाई है और र्सल्वाने और अख़्राजात को सामने रखते हुए हम ने उस की बीस रूपए में फ़रोख़्त का एलान र्कया है ता र्क मख़्लक़ ू ए ख़दु ा तक ये चीज़ र्जतनी कम से कम क़ीमत में हो, पोहचिं सके और उस को ख़सु सू ी मैं ने दम र्कया है और ये बरकत वाली थैली दम शदु ह अबक़री दलतर
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से मिंगवा सकते हैं। ये बरकत वाली थैली हमारी कमाई और र्तजारत का ज़रीया नहीं है आप ख़दु भी बनवा सकते हैं, ये इस र्लए हम ने दी हैं र्क मख़्लक़ ू ए ख़दु ा नहीं बनवा सकती और बनवाते हैं वो इस तरीक़े से नहीं बनवाते र्जस तरीक़े हम चाहते हैं ता र्क मख़्लक़ ू को नफ़ा पोहचिं े और कम
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क़ीमत में चीज़ उन तक पोहचिं े।
चलते चलते चन्द वाक़्यात मख़्ु तसर कर के सनु ा देता हँ र्क एक ज़माने की बात है र्क हमारे क़रीबी ररश्तेदार र्जन के बारे में ये मशहर था र्क वो
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अपने घर में आने वाले सवाली को ख़ाली नहै ै भेजते थे।
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(४) वार्लदा मोहतरमा ने मझु े कुछ चीज़ दी र्क उन के घर दे आओ जब मैं उन के घर गया तो उन के घर में ग़ुरबत मर्ु ललसी और तिंगदस्ती का राज
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देखा हालात बता रहे थे र्क उन के हालात अब वेसे नहीं थे मैं ने वार्लदा को अज़ि र्कया, वार्लदा हैरान हुई िं र्क र्कसी को बतायैा है नहीं लेर्कन तहक़ीक़ के बाद पता चला र्क उन के हालात बहुत परे शान कुन हो गए हैं वार्लदा ने अह्सन तरीक़े से उन की कुछ इम्दाद की लेर्कन उन्हों ने इम्दाद लेने से इक िं ार कर र्दया। मेरे पास हज़रत رحمة هللا عليهकी बरकत की थैली का अमल था, एक बरकत वाली थैली मैं ने ली और उन्हें समझाया और ख़ास रमज़ान के ख़सु सू ी अमल की ताकीद की। र्िर रमज़ान से दस र्दन पहले उन के पास गया और उन के पास जा के र्िर ताकीद
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की रमज़ान आ रहा है ये अमल ज़रूर करना है, जब मैं ये ताकीद कर रहा था तो उन की बूढ़ी माँ आिंसू पोंचते हुए कह रही है बेटा तू ने हमें रुस्वाई
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सैे बचा र्लया, र्जस र्दन से तू बरकत वाली थैली दे के गया है और हम में से घर का हर फ़दि १२९ दफ़ा सरू ह कौसर मअ तस्म्य अवल व आर्ख़र
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७ मतिबा दरूद शरीफ़ पढ़ के दम करते हैं, बस उस र्दन से हमारे र्दन र्िर गए हैं रहमतें आ गयी हैं, करम और फ़ै ज़ मतु वज्जह हो गया है। हालात ने
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करवट लै हैै और हम ख़श्ु हाल हो गए हैं इन् शा अल्लाह ये रमज़ान का अमल हम ज़रूर करें गे। मैं ने उन से कहा मैं रमज़ान के बाद र्िर
आऊिंगा। ररश्तेदारी थी, रमज़ान अल-् मुबारक के चन्द र्दनों के बाद मैं उन के पास र्िर गया और उन से जा कर पछू ा तो घर का हर फ़दि कहने लगा
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र्क हमें तो रहमत का ख़ज़ाना र्मल गया है।
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कोई कहने लगा हमें बरकत की थैली र्मल गयी है, कोई कहने लगा र्क अल्लाह की ख़ास रहमत मतु वज्जह हुई है, हमारी दआ ु क़ुबूल हुई है र्क
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अल्लाह ने तुम्हें रहबर बना के भेजा, वरना हमारे हालात ऐसे थे र्क हम र्कसी को मिंहु र्दखाने के क़ार्बल नहीं थे, हमारी सब चीज़ैेै र्बक चक ु ी
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थीं हम ने ररश्तेदारों के सामने इस का इज़्हार नहीं र्कया। लेर्कन आने वाले साइल को ख़ाली नहीं भेजा। घर में कुछ हो ना हो लेर्कन उस को कुछ दे
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कर भेजते थे लेर्कन बरकत वाली थैली ने कमाल कर र्दया।
बिकत वाली थैली औि ज़ज़क्र में बिकत:
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(५) एक साहब कहने लगे र्क जो वज़ीफ़ा आप ने र्दया था वो मझु से पढ़ा नहीं जाता था रात को पढ़ते हुए नींद आ जाती थी और तस्बीह हाथ से र्गर जाती थी और सो जाता था। मैं ने बरकत वाली थैली में ५००खजरू की घुटर्लयािं सरू ह कौसर पढ़ कर रख लीं और जब र्ज़क्र करने लगता था तो बरकत वाली थैली में से सरू ह कौसर पढ़ कर र्नकालता और र्ज़क्र कर के थैली में डालता जाता ह।ँ अब इस अमल से इतनी बरकत हो गयी है र्क
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२००० मतिबा वज़ीफ़ा कर लेता ह,ँ इस से क़ब्ल १०० मतिबा भी नहीं पढ़ा जाता था। (जनु ैदरु ि ह्मान)
आँखों देखी बिकत:
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(६) इस थैली में बरकत का आप को ज़ाती वाक़्या सनु ाता ह।ँ मैं अपने पैसे थैली में रखता हँ और सरू ह कौसर वाला अमल करता ह।ँ मैं ने थैली में से ज़रूरत के र्लए २० हज़ार रूपए जो र्कसी की मदद के र्लए थे र्नकाले और थैली वापस अिंसारी साहब को दे दी, जब अिंसारी साहब ने पैसों की
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र्गनती की तो असल रक़म में से ९ हज़ार कम थे, असिं ारी साहब फ़मािने लगे र्क हज़रत आप ने ९ हज़ार र्लए हैं। मैं ने कहा नहीं! २० हज़ार र्लए हैं, लेर्कन थैली कहती है नहीं ९ हज़ार र्लए हैं। www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
"ये वाक़्या मैं ज़सफ़ा अमल की बिकत के तौि पि अज़ा कि िहा ह।ँ "
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थैली सेज़वंग अकाउंट बन गयी:
(७) एक साहब कहने लगे र्क मेरी माहाना बचत ४५०० रूपए थी और मैं परे शान था र्क मेरी बचत रुकी हुई है और सेर्विंग में कमी है, मैं ने १३ जन्वरी को बरकत वाली थैली ख़रीदी और अपने पैसे उस के अिंदर रख कर सरू ह कौसर १२९ मतिबा अवल व आर्ख़र सात, सात मतिबा दरूद शरीफ़
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पढ़ना शरू ु कर दी, इस अमल की बरकत से अब मेरी माहाना (Saving) बचत ७५०० रूपए तक पोहचिं गयी है।
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के रूहानी मुशाज़हदात" र्जल्द अवल का मतु ार्ल्लआ करें ।
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बिकत वाला अमल
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नोट: बरकत वाली थैली और दीगर आमाल के हैरत अिंगेज़ मश ु ार्हदात व तजबु ाित जान्ने के र्लए नई र्कताब "मुज़ककलात से ज़नजात पाने वालों
क़ाररईन! इस अमल को िै लाएिं, मैं ने ये जान बूझ के रमज़ान अल-् मबु ारक से पहले ये मज़्मनू "माहनामा अबक़री" में र्दया है र्सफ़ि इस र्लए र्क
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आप रमज़ान से पहले बरकत वाली थैली की तय्यारी रखें और इस के अमल को अभी से शरू ु कर दें और जो रमज़ान का ख़ास अमल है वो र्सफ़ि
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सकता है। घर में एक थैली रखें उस पर दम करें ।
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रमज़ान में करना है। घर का हर फ़दि पढ़े, र्जतने अफ़राद पढ़ सकते हैं पढ़ें और बरकत वाली थैली पर दम करें । घर का हर फ़दि अपनी थैली रख
सारा साल आप सारे वज़ीफ़े पढ़ें लेर्कन जो रमज़ान का वज़ीफ़ा है जो रमज़ान की इबादत है उस की फ़ज़ीलत नहीं र्मल सकती, ये बहुत बरकत
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वाला अमल है, बहुत रहम वाला अमल है और बहुत फ़ै ज़ान से भरा हुआ अमल है र्जतना ज़्यादा तवज्जह ध्यान से र्गड़र्गड़ा कर करें गे उतना अल्लाह पाक इस अमल की रहमत फ़मािएिंगे। मेरी तरफ़ से तमाम क़ाररईन को इजाज़त है और इस को आगे िै लाने की भी इजाज़त है।
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बरकत वाली थैली र्जस ने अबक़री के दलतर से मिंगवानी हो मिंगवा ले, वरना अपनी बनवा लें। बरकत वाली थैली हमारे हाँ दम की हुई र्मलती है।
एक ज़नहायत ही एहम बात
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एक बार र्िर कह रहा हँ र्क बरकत वाली थैली २० रूपए की बेच कर हम र्तजारत नहीं कर रहे हैं। इस की लागत और कपड़ा देर्खये, हमारा मक़्सदू र्सफ़ि बरकत वाली थैली से मख़्लक़ ू को ख़ैर पोहचिं ाना है, र्दल की र्नय्यतें अल्लाह पाक ही जानता है, उस रब के यहाँ र्सफ़ि र्दलों के सौदे चलते हैं।
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अल्लाह हम को अपने बन्दों के र्लए ख़ैर पोहचिं ाने वाला बनाए बद्द गमु ानी और शक से बचाए। आमीन।
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
िमज़ान अल-् मुबािक का मख़्सूस अमल
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१- सबु ह व शाम १२९ मतिबा सरू ह कौसर मअ तस्म्य अवल व आर्ख़र दरूद शरीफ़ ७ बार।
२- चाँद रात को ३१३ दफ़ा सरू ह कौसर मअ तस्म्य अवल व आर्ख़र दरूद शरीफ़ ७, ७ बार रात के र्कसी भी र्हस्से में।
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३- दसवािं रोज़ा ग्यारहवीं की रात ३१३ दफ़ा सरू ह कौसर मअ तस्म्य अवल व आर्ख़र दरूद शरीफ़ ७,७ बार।
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५- सत्ताईस्वीं शब् ११, ११ बार अवल व आर्ख़र दरूद शरीफ़ और ११०० बार सरू ह कौसर।
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४- बीसवािं रोज़ा इ्कीस रमज़ान की रात भी ३१३ दफ़ा सरू ह कौसर मअ तस्म्य अवल व आर्ख़र दरूद शरीफ़ ७,७ बार।
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६- ईद वाले र्दन ईद की नमाज़ से फ़ाररग़ होने के बाद ३१३ दफ़ा सरू ह कौसर मअ तस्म्य अवल व आर्ख़र दरूद शरीफ़ ७, ७ बार।
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(नोट) अगर ये अमल र्कसी मज्बूरी के पेश नज़र रात में ना हो सकें तो र्दन में भी कर सकते हैं, स्वाइ २७वीं शब् के अमल के र्क वो र्सफ़ि रात ही
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को करना है।
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११०० मतिबा सारे घर के अफ़राद इन्फ़रार्द तौर पर भी पढ़ सकते हैं या चन्द अफ़राद र्मल के पढ़ लें और बरकत वाली थैली पर दम कर दें और दआ ु कर कैे र्िर सो जाएिं।
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☆तस्म्य "र्बर्स्मल्लार्ह-रि ह्मार्न-रि हीर्म" ( ) بسم هللا الرحمن الرحيمको कहते हैं।
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ख़वातीन अय्याम के र्दनों में ये अमल ना करें बर्ल्क बाद में इस की क़ज़ा कर लें। दरूद शरीफ़ जो भी आसानी से याद हो पढ़ सकते हैं।
सूिह अल-् कौसि
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र्बर्स्मल्लार्ह-रि ह्मार्न-रि हीर्म
( ) بسم هللا الرحمن الرحيم इन्ना अअतैनाक-ल-् कौसर० ( ) الكوثر اعطيناك إنا फ़सर्ल्ल र्लरर्ब्बक वन्हर०्
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( ) وانحر لربك فصل
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इन्न शार्नअक हुव-लअ ् ब्तरु०
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
( ) االبتر هو شانءك إن
ज़ज़न्दगी भि के ज़लए सूिह कौसि का बा बिकत अमल
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रोज़्गार की मर्ु श्कलात और घर में ख़ैर व बरकत के र्लए र्नहायत ही परु तासीर अमल र्जस की तारीफ़ अल्फ़ाज़ नहीं मश ु ार्हदा है।
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आर्ख़र ७, ७ बार दरूद शरीफ़ पढ़ कर दम करें ।
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तिीक़ा अमल: कपड़े की एक अदद थैली जो बा आसानी जेब में आ सके उस पर सबु ह व शाम १२९, दफ़ा सरू ह कौसर मअ तस्म्य और अवल व
इस के इलावा र्दन में र्जतनी दफ़ा भी थैली में नोट डालें या र्नकालें एक दफ़ा सरू ह कौसर पढ़ कर दम कर र्लया करें ये आम् मामल ू की र्ज़न्दगी का
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अमल है र्जस से लाखों को फ़ायदा हुआ और हो रहा है। आप ख़दु भी ये र्नहायत ही आसान अमल र्ज़न्दगी में लाएिं और सदक़ा ए जाररया और
"अल्लाहुम्म सर्ल्ल अला महु म्मर्दन् कमा तर्ु हब्बु व तज़ाि लह"
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दरूद पाक ( ) ﷺ
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बरकत को आम करने की र्नय्यत से दोस्तों को मतु ाअरुफ़ कराएिं और ख़दु ा पाक की ग़ैबी मदद का नज़ारा अपनी आँखों से देखें।
( ) له وترضى تحب كما محمد على صل اللهم
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इस दरूद शरीफ़ के बारे में इब्न सबअ ने "र्शफ़ा" में और अबू सईद ने "शफ़ि अल-् मस्ु तफ़ा" ( )ﷺमें ये ररवायत नक़ल की है र्क आँहज़रत ﷺ और हज़रत र्सद्दीक़ अकबर رضي هللا عنهके दरम्यान कोई शख़्स नहीं बैठा करता था। एक र्दन एक शख़्स आया आप ﷺने उसे अपने दरम्यान
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र्बठा र्लया सहाबा कराम رضي هللا عنهم اجمعينको इस बात पर तअज्जबु हुआ जब वो शख़्स बाहर चला गया तो आँहज़रत ﷺने फ़मािया र्क
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ये शख़्स मझु पर ये (मज़्कूरह) दरूद शरीफ़ पढ़ता है। (ज़रीअत-अल्वसल ू इला जनाब अरि सल ू स५०)
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
ख़दु ा के क़ुबि और हुसूल मआररफ़त के र्लए ये दरूद मबु ारक र्नहायत ही मजु रि ब और और्लया कराम का आज़मदू ह है और हज़ारों की तअदाद में उन
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के यौम्य मामूलात में रहा। इस की कसरत करने वाला परे शार्नयों बलाओ िं और आफ़त से महफ़ूज़ रहता है। ☆☆☆
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औज़लया किाम औि बिकत वाली थैली
गुज़श्ता दौर के सहाबा व अह्ल बैत أجمعين رضوان هللا عليهم, और्लया कराम رحمهم هللاकी र्ज़न्दगी में बरकत की वजह जहाँ नेक आमाल थे
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वहािं बरकत वाली थैली भी उन की साथी थी। ख़सु सू ी दम की हुई बरकत वाली थैली मर्ु ललस,् ग़रीब, नादार, तिंगदस्त और क़ज़ों में डूबे हुओ िं के र्लए
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एक अन्मोल तोह्फ़ा और ख़ज़ाना है। आप तमाम रक़म थोड़ी हो या ज़्यादा इसी में रखें और र्नकालते और डालते वक़्त तस्म्य के साथ एक बार सरू ह कौसर पढ़ लें कभी बरकत और रक़म ख़त्म नहीं होगी। "इन् शा अल्लाह"। मदि अपने साथ रख सकते हैं, औरतें अपने पसि में रख सकती हैं, घर में
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भी रख सकते हैं। रोज़ाना १२९ दफ़ा सुबह व शाम सरू ह कौसर मअ तस्म्य पढ़ कर इसी थैली पर दम कर दें, ये अमल र्दन में एक बार भी कर सकते
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हैं लेर्कन अगर दो बार करें तो नफ़ा ज़्यादा होगा। र्जतना गुड़ उतना मीठा। अगर तमाम उम्र का मामल ू बना लें तो र्िर कमाल देखें। वज़ू बे वज़ू हर
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हालत में कर सकते हैं लेर्कन बावज़ू बरकत ज़्यादा होगी। बरकत वाली थैली अगर मेली हो जाए तो आप इस को धो भी सकते हैं।
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नोट: हज़रत हकीम साहब की तरफ़ से इस अमल की तमाम ख़वातीन और मदि हज़रात को मक ु म्मल इजाज़त है और ये भी इजाज़त है र्क आप दसू रे
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लोगों को भी इस अमल की इजाज़त दे सकते हैं।
बुज़ुगों की बिकत वाली थैज़लयां हैं। मसलन
हज़रत मसू ा कार्ज़म र्बन जाफ़र رحمة هللا عليهके बारे में र्कताबों में र्लखा है र्क वो बहुत सख़ी थे, जब भी र्कसी शख़्स के बारे में
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(१)
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अरे अल्लाह वालो! ये बरकत वाली थैली हमारे अकार्बर और अह्ल बैत भी इस्तेमाल करते थे और थैली के इस्तेमाल पर उन कैे सैंकड़ों वाक़्यात
सनु ते र्क वो उन को बुरा भला कहता है तो आप उस को हज़ार दीनार की थैली भेज देते। इस के इलावा दो सो तीन सै और चार सो दीनार पर
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मश्ु तर्मल थैर्लयािं बना कर अह्ल मदीना में तक़्सीम करते थे। आप की थैली के बारे में मशहर था र्क अगर र्कसी को आप की थैली र्मल जाए तो वो
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माल्दार हो जाता है। (सैर एअलाम अल्नबला)
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(२)
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
मशहर महु र्द्दस हज़रत इमाम मकहल رحمة هللا عليهके बारे में र्लखा है र्क एक मतिबा उन को दस हज़ार दीनार की एक थैली हद्या में
(३)
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पेश की गयी तो वो उन्हों ने पचास पचास दीनार में तक़्सीम कर के लोगों में बाँट दी। (तज़्क्रतुल-् हुलफ़ाज़)
ख़ैस्मा र्बन अब्दरु ि हमान رحمة هللا عليهके बारे में र्लखा है र्क अल्लाह पाक ने उन को बहुत ही ज़्यादा माली फ़रावानी से नवाज़ा था। वो
काफ़ी सारी थैर्लयािं ले कर मर्स्जद में बैठ जाते और जब भी र्कसी शख़्स के कपड़ों को िटा हुआ या पैविंद शदु ह देखते तो उस को एक थैली देते
मशहर सफ़ ू ी बुज़गु ि हज़रत ख़्वाजा हसन बसरी رحمة هللا عليهके दौर के एक बुज़गु ि हज़रत हबीब अल्फ़ासी رحمة هللا عليهके बारे में
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(४)
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और फ़मािते र्क ये ले जाओ और इस से अपनी ज़रूरत को परू ा करो। (हल्यतुल-और्लया)
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"हल्यतल ु -और्लया" में एक बड़ा ही अजीब ही वाक़्या र्लखा है आप के पास एक शख़्स आया और कहने लगा र्क मझु े कुछ पैसों की ज़रूरत है आप رحمة هللا عليهने फ़मािया र्क र्कसी से मेरी ज़मानत पर क़ज़ि ले लो उस ने पािंच सो र्दरहम ले र्लए। बाद में वो आदमी र्जस ने आप की
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ज़मानत पर पैसे र्दए थे वो आप से मतु ालबा करने लगा आप मर्स्जद में जा कर दआ ू हो गए वो आदमी भी आप के पीछे , पीछे यहाँ पोहचिं ु में मश्ग़ल
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गया आप ने फ़माियैा के अदिं र कुछ र्मले तो ले लेना वो आदमी मर्स्जद में आया तो देखा र्क मर्स्जद में एक पाचिं सो र्दरहम की थैली पड़ी है और
अब्दल्ु लाह र्बन मबु ारक رحمة هللا عليهकी र्ज़न्दगी का एक ख़ास मामल ू ज़्यारत हरमैन भी था। क़रीब क़रीब हर साल इस सआदत को
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(५)
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ये र्दरहम वज़न और उम्दगी में उन र्दरहम से ज़्यादा थे जो उस ने बतौर क़ज़ि र्दए थे। (हल्यतल ु -और्लया)
हार्सल करने की कोर्शश करते, सफ़र हज्ज के मौक़े पर उन का मामल ू था र्क सफ़र से पहले अपने तमाम रुफ़क़ाए सफ़र से कहते र्क अपनी अपनी
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रक़म सब लोग मेरे हवाले कर दें। जब वो लोग हवाले कर देते तो हर एक की रक़म को अलग अलग एक एक थैली में हर एक का नाम र्लख कर सिंदक़ ू में बन्द कर देते, और परू े सफ़र में जो कुछ ख़चि करना होता वो अपनी जेब से करते, उन को अच्छे से अच्छा खाना र्खलाते, उन की दसू री ज़रूरत परू ी करते। जब फ़रीज़ा हज्ज अदा कर के मदीना मनु व्वरह पोहचिं े तो रुफ़क़ा से कहते र्क अपने अह्ल व अयाल के र्लए जो चीज़ें पसिंद हों
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ख़रीद लें। सफ़र हज्ज ख़त्म कर के जब घर वापस आते तो तमाम रुफ़क़ाए सफ़र की दावत करते। र्िर वो सिंदक़ ू खोलते र्जस में लोगों की रक़में रखी हुई थीं, और र्जस थैली पर र्जस का नाम होता उस के हवाले कर देते। रावी का बयान है र्क र्ज़न्दगी भर उन का यही मामल ू रहा। (सैर अल्सहाबा:
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र्जल्द ८ र्सफ़हा ३२४)
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"अल्लाहुम्म अन्त ख़लक़्तनी, व अन्त तह्दीनी, व अन्त ततु इ् मनु ी, व अन्त तमु ीतनु ी, व अन्त तह्य ु ीय्नी"
( خلقتنى أنت اللهم، تهدينى وأنت، تطعمنى وأنت، تسقينى وانت، تميتنى وأنت، ) تحيينى وأنت
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
हज़रत अब्दल्ु लाह र्बन सलाम رضي هللا عنهफ़मािते हैं र्क हज़रत मसू ा عليه السالمरोज़ाना सात मतिबा इन कर्लमात के साथ दआ ु र्कया करते थे
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और जो चीज़ भी वो अल्लाह पाक से मागिं ते थे अल्लाह तआला उन को अता फ़माि देते थे। (र्तब्रानी, मज्मअ ु अल्ज़वाइद)
इस्म आज़म औि यक़ीन आज़म
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☆ मेरे मर्ु शिद हज़रत ख़्वाजा सय्यद अब्दल्ु लाह हज्वैरी رحمة هللا عليهर्ज़क्र की तासीर के र्लए यक़ीन की क़ुव्वत को र्नहायत ही एहम क़रार र्दया
आज़म शरू ु हो जाएगी।
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करते थे। फ़मािते र्क र्जस को जो र्ज़क्र दे र्दया जाए वो उस के र्लए इस्म आज़म है, अगर इस को यक़ीन आज़म के साथ र्कया जाए तो तासीर
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☆ हज़रत जाफ़र सार्दक़ رحمة هللا عليهऔर हज़रत जनु ैद बग़दादी رحمة هللا عليهफ़मािते हैं र्क हर वो इस्म जो अल्लाह तआला के अस्माअ में
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शख़्स भी अपनी दआ ु में ये कै र्फ़यत पैदा कर लेगा उस की दआ ु क़ुबूल हो जाएगी।
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से हो और बन्दा उस के साथ अपने रब से मस्ु तग़्रक़ है कर ऐसी दआ ु करे र्क उस वक़्त उस के र्दल में ग़ैर अल्लाह का कोई गुज़र ना हो पस जो
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☆ हज़रत अली رضي هللا عنهफ़मािते हैं गनु ाहों का छोड़ देना भी इस्म आज़म की हैर्सयत रखता है। (अल्किंज़ल ु -आज़म)
बद्द नज़िी से बचने का ख़ास अमल
हज़रत मर्ु शिद ख़्वाजा सय्यद महु म्मद अब्दल्ु लाह رحمة هللا عليهबद्द नज़री से बचने के र्लए सार्लकीन पर र्नहायत ही तवज्जह र्दया करते थे और
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राह सलक ू में काम्याबी के र्लए इस को बहुत बड़ी रुकावट क़रार र्दया करते थे, हत्ता र्क बअज़ औक़ात सार्लकीन को क़रीब बुला कर उनकी आँखों में र्नहायत ही ग़ौर से देखते र्क कहीं बद्द नज़री का इतिकाब तो नहीं र्कया। आँखों की पाकीज़गी के र्लए एक मश्क़ करवाते थे। तरीक़ा मश्क़: आप
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फ़मािते र्क एक दीवार को देखो और उस पर नज़र जमा लो र्क ये दीवार नहीं औरत है और ये दआ ु पढ़ते जाओ।
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"अल्लाहुम्म इन्नी अऊज़र्ु बक र्मन् र्फ़त्नर्त-र्न्नसा-इ व र्हबालर्त-श्शैतार्न अल्लाहु ख़ार्लक़ु-न्नरुू " ( ) النور خالق هللا الشيطان حبالة و النساء فتنة من أعوذ بك إني اللهمफ़मािते र्क ये दआ ु मसु ल्सल क़ै द ज़मान और क़ै द मकान के साथ पढ़ते जाओ इन् शा अल्लाह चन्द र्दन में बद्द नज़री का आज़ाि ख़त्म हो जाएगा। या हर फ़ज़ि नमाज़ के बाद सात मतिबा पढ़ने से ये गनु ाह की आदत ख़त्म
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हो जाती है।
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
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ख़ैि व बिकत औि रूहानी फ़ैज़ के ज़लए आज़मूदह क़ुिआनी वज़ाइफ़्
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रािर्ज़क़ीन०" (सरू ह अल्माइदह आयत ११४)
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"अल्लाहुम्म रब्बना अर्न्ज़ल् अलैना माइदतिं-र्म्मन-स्समा-इ तकूनु लना ईदर्ल्ल-अव्वर्लना व आर्ख़ररना व आयतिं-र्म्मन्क वज़िक़्ु ना व अन्त ख़ैरु-
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( ) الرازقين خير وأنت وارزقنا منك وآية واخرنا االولنا عيد لنا تكون السماء من مائدة علينا أنزل ربنا اللهم
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इस दआ ु के पढ़ने वाले को अल्लाह पाक ग़ैबी ररज़्क़ अता फ़मािते हैं, ख़ैर व बरकत अता फ़मािते हैं जहाँ कहीं से ररज़्क़ का कोई वसीला नज़र ना आ रहा हो इसिं ान मायूसी और ना उम्मीदी की उथाह् गेहराई में र्घरे शख़्स पर से परे शानी दरू हो जाती है, उस शख़्स का दस्तरख़्वान र्नहायत ही वसीअ
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हो जाता है, अल्लाह पाक के फ़ज़्ल व करम से नस्लों के र्लए ररज़्क़ और बरकत का सामान हो जाता है। रमज़ान शरीफ़ में अलतारी के वक़्त पढ़ना
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ररज़्क़ के दरवाज़े खल ु वा देता है।
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तिीक़ा अमल: अवल व आर्ख़र ताक़ अदद दरूद शरीफ़ ३, ५, ७ मतिबा पढ़ कर ग्यारह मतिबा ये क़ुरआनी दआ ु पढ़ कर आसमान की तरफ़ मिंहु कर के िँू क मारें और अल्लाह पाक से र्दल ही र्दल में दआ ु मािंग लें। तमाम र्ज़न्दगी भर इस अमल का मामूल रखें र्दन में कई बार भी कर सकते हैं,
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रमज़ान अल्मबु ारक में अलतारी से पहले करें ।
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अपने रूठे िब को मनाने का अमल
"अल्लाहुम्म इन्नी ज़लम्तु नलसी फ़र्फ़फ़ली" ( ) فاغفرلى نفسي ظلمت إني اللهم
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रात के आख़री र्हस्से यार्न सेहरी के वक़्त अगर दो रकअत नमाज़ नर्लफ़ल पढ़ कर उस के बाद अगर २१ या ४० दफ़ा या ३१३ मतिबा ये दआ ु अवल व आर्ख़र सात मतिबा दरूद शरीफ़ पढ़ कर ये तसव्वरु करें र्क मैं दन्ु या का गुनहगार तरीन इसिं ान ह,ँ अब मैं अपने करीम रब के सामने बैठा ह,ँ
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अपने तमाम गुनाहों के साथ और अपने तन व मन से उस से मआ ु फ़ी मािंग रहा हैूैाँ और इस यक़ीन से मािंगें र्क मैंने र्सफ़ि अपने रब ही से माँगना है। और तवज्जह से माँगना है, और आज मैं ने अपने तमाम गुनाहों की बर्ख़्शश करवानी है। www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana
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फ़ायदा मुझ पि अमल किने से होगा
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ग़ैर मस्ु लिमों की इबादत गाहें उन के हक़ूक़ और हमारी स्िम्मेदाररयााँ
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इस र्कताब में र्ज़क्र र्कये गए मबु ारक ग़ैबी वज़ीफ़ा से दन्ु या ने फ़ायदा उठाया और उठा रही है। अगर आप र्कसी भी रूहानी अमल से भरपरू फ़ायदे
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तवज्जह के साथ अमल करें , बेतवज्जही से पढ़ी जाने वाली दआ ु एिं हवा में गुम हो जाती हैं।
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ररज़्क़ हलाल का एह्तमाम करे ै, हराम र्ग़ज़ा अमल के असर को ख़त्म कर देती है।
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हर अमल अल्लाह तआला की रज़ा के र्लए करें , मार्लक राज़ी होगा, तो काम बनेगा।
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फ़राइज़ का एह्तमाम करें , जो लोग नमाज़ और दीगर फ़राइज़ अदा नहीं करते उनके अमल बे असर रहते हैं।
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यक़ीन के साथ अमल करें , शक अमल को ज़ायअ कर देता है।
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हार्सल करना चाहते हैं तो इन दस बातों पर अमल कीर्जये और ख़दु ग़ैबी क़ुदरत के नज़ारे अपनी आँखों से देर्खये। इन् शा अल्लाह।
हराम कामों से बचें, वो काम र्जन्हें शरीअत ने हराम क़रार र्दया है उनका अपनाना रूहार्नयत को नक़्ु सान पोहचिं ाता है, तब अमल कारगर
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नहीं होता।
अल्फ़ाज़ की तसहीह का एह्तमाम करें , अल्फ़ाज़ ग़लत पढ़ने से मानए बदल जाते हैं।
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तहारत का एह्तमाम करें , ख़दु भी पाक साफ़ हो, र्लबास और जगा भी पाक साफ़ रखें।
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आर्जज़ी और आह व ज़ारी के साथ अमल करें ।
झटू , धोका बाज़ी, हसद, ग़ीबत, चग़ु ली ये बातें रूहानी आमाल के फ़ायदे में बहुत बड़ी रुकावट बन जाती हैं।
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