UbqDecember Hindi 2016

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन दिसंबर 2016 के एहम मज़ामीन दहंिी ज़बान में

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन

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दिसंबर 2016 के एहम मज़ामीन

दहंिी ज़बान में दफ़्तर माहनामा अबक़री

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मज़ंग चोंगी लाहौर पाककस्ट्तान

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महमद ू मज्ज़ूबी चग़ ु ताई ‫دامت برکاتہم‬

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एडिटर: शैख़-उल-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मह ु म्मद ताररक़

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मरकज़ रूहाननयत व अम्न 78/3 अबक़री स्ट्रीट नज़्द क़ुततबा मस्स्ट्िद

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फ़ेहररस्त आशिक़ ए रसल ु बू................................................................................... 3 ू ‫ ﷺ‬की क़ब्र से मश्ु क की तेज़ ख़ि

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अस्सी फ़ीसि लोग ख़स ु स ू न नोजवान ये मज़्मन ू पढ़ें .................................................................................... 6 दिसम्बर! ज़ुकाम, खांसी और फ़्लू से बचाव मश्ु श्कल नहीं ............................................................................ 9

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रबीउल अव्वल! छोटा सा अमल और बड़ी बड़ी हाजात परू ी ........................................................................ 13 ज़्यारत नबी करीम ‫ !­ﷺ‬चन्ि वाक़क़आत .................................................................................................... 15 केला िन्ु या भर में सब से ज़्यािा खाया जाने वाला फल ........................................................................... 17

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ततब्बी मश्वरे ................................................................................................................................................ 21 मेरी श्ज़न्िगी कैसे बिली? ........................................................................................................................... 25

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मश्ु श्कल में अल्लाह को पक ु ारने का नक़ि इनआम .................................................................................... 28

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िन्ु या का क़ानन ू ........................................................................................................................................... 31

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बाएं हाथ वालों की परे िानी हमेिा के शलए ख़त्म ...................................................................................... 32

हुस्न ख़ल्क़ ही िीन है ! ................................................................................................................................ 35

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बड़ी बदू ढ़या​ाँ तेल लगा कर बाल मज़बत ू ी से कयूं बांधती थीं? ..................................................................... 36

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िौहर के दिल पर छाए रहने के चन्ि उसल ू ............................................................................................... 40 हरी भरी फ़स्लें, जानवर नज़र बद्द से हमेिा के शलए महफ़ूज़ .................................................................... 44

क़कसान िोस्त अब्क़री का साथ िें ............................................................................................................... 45

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असल इबाित और कमाल ........................................................................................................................... 46

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ज़ाइक़ेिार अनार के िबबत से दिल की शिरयानें खल ु वाएं ............................................................................ 48

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हाटब अटै क! छोटी मकखी के िहि और काली शमचब से ठीक ....................................................................... 49

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आशिक़ ए रसूल ‫ ﷺ‬की क़ब्र से मुश्क की तेज़ ख़ुिबू (ये भूक प्यास से इंतहाई बेताब और ननढाल हो चक ु े थे, लाचार हो कर खल ु े मैदान ही में एक िगह सो गए तो

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ख़्वाब में दे खा कक एक आने वाला (फ़ररश्ता) आया और उन को दध ू से भरा हुआ एक बततन ददया, ये उस दध ू

(अबू लबीब शाज़ली)

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को पी कर ख़ब ू िी भर के सेराब हो गए)

हज़रत उबैिह बबन अल्हाररस ‫ رضي هللا عنه‬की अजब करामत: इश्क़ ए रसल ू ‫ ﷺ‬में बेपनाह िान

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ननसाररयों और कफ़दाकाररयों की बदौलत हज़रत उबैदह ‫ رضي هللا عنه‬को ये शानदार करामत नसीब हुई कक उन की क़ब्र अतहर से इस क़दर मुश्क की तेज़ ख़श ु बू आती कक पूरा मैदान हर वक़्त

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महकता रहता। चन ु ाचे मंक़ौल है कक एक मुद्दत के बाद हुज़ूर अक़्दस ‫­ﷺ‬का सहाबा कराम

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‫ رضوان هللا اجمعین‬के साथ मस्ज़ज़ल सफ़रा में क़्याम हुआ तो सहाबा कराम ‫ رضوان هللا اجمعین‬ने

है रान हो कर बारगाह ररसालत ‫ ­ﷺ‬में अज़त ककया कक या रसल ू ल् ु लाह ‫ !­ﷺ‬इस सेहरा में मश्ु क

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की इस क़दर तेज़ ख़श ु बू कहां से और कयूं आ रही है ? आप ‫ ­ﷺ‬ने इशातद फ़मातया कक इस मैदान

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में अबू मुआव्या (हज़रत उबैदह ‫ )رضي هللا عنه‬की क़ब्र मौिूद होते हुए तुम्हें तअज्िुब कयूं हो रहा है कक यहां मुश्क की ख़श ु बू महक रही है । (ककताब सद्द सहाबा स३१४, मततबा शाह मुराद

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मारहरवी)

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हज़रत सअि बबन अरब बीअ ‫رضي هللا عنه‬: हज़रत सअद बबन अरत बीअ बबन उमरू अंसारी ख़ख़ज़्रिी

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‫ رضي هللا عنه‬बैअतल ु अक़बा ऊला और बैअतल ु अक़बा साननया दोनों बैअतों में शरीक रहे और ये अंसार में से ख़ानदान बनी अल्हाररस के सरदार भी थे। ज़माना िादहललय्यत में िबकक अरब में

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ललखने पढ़ने का बहुत ही कम ररवाि था। उस वक़्त ये कानतब थे। ये हुज़रू अक़्दस ‫ ­ﷺ‬के इंतहाई शैदाई और बे हद्द िान ननसार सहाबी थे। हज़रत सअद बबन अरत बीअ की साहब्ज़ादी का

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ये बयान है कक मैं अमीरुल्मुअलमनीन हज़रत अबूबकर लसद्दीक़ ‫ رضي هللا عنه‬के दरबार में हास्ज़र हुई तो उज़हों ने अपने बदन की चादर मुबारक उतार कर मेरे ललए बबछा दी और मुझे उस पर

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बबठाया। इतने में हज़रत उमर ‫ رضي هللا عنه‬तश्रीफ़ ले आए और पछ ू ा ये लड़की कौन है ? अमीरुल्मुअलमनीन हज़रत अबूबकर लसद्दीक़ ‫ رضي هللا عنه‬ने फ़मातया कक ये उस शख़्स की बेटी है

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स्िस ने हुज़रू अक्रम ‫ ­ﷺ‬के ज़माने ही में िज़नत के अंदर अपना दठकाना बना ललया और मैं और तुम यूं ही रह गए। ये सुन कर हज़रत उमर ‫ رضي هللا عنه‬ने है रत के साथ दरयाफ़्त ककया कक ए ख़लीफ़ा ए रसूल ‫ ­ﷺ‬वो कौन शख़्स हैं? तो आप ‫ رضي هللا عنه‬ने फ़मातया कक “सअद बबन

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अरत बीअ” हज़रत उमर ‫ رضي هللا عنه‬ने इस की तस्ट्दीक़ की िंग बदर में ननहायत शि ु ाअत के

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साथ कुफ़्फ़ार से मअकात आराई की। िंग उहद में बारह काकफ़रों को एक एक नेज़ा मारा और

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स्िस को एक नेज़ा मारा वो मर कर ठं िा हो गया। किर घमसान की िंग में ज़ख़्मी हो कर उसी

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िंग उहद में तीन दहिरी में शहीद हो गए और हज़रत ख़ािात ‫ رضي هللا عنه‬के साथ एक क़ब्र में

िन्ु या में जन्नत की ख़ि ु बू: हज़रत ज़ैद बबन साबबत ‫رضي هللا عنه‬

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दफ़न हुए। (कंज़ुलएअमाल ि१६, स३६)

का बयान है कक िंग उहद के

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ददन हुज़ूर अक़्दस ‫ ­ﷺ‬ने मुझ को हज़रत सअद बबन अरत बीअ ‫ رضي هللا عنه‬की लाश की तलाश

में भेिा और फ़मातया कक अगर वो स्ज़ंदा लमलें तो तुम उन से मेरा सलाम कह दे ना, चन ु ाचे िब

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तलाश करते करते मैं उन के पास पह ु ं चा तो उन को इस हाल में पाया कक अभी कुछ कुछ िान

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बाक़ी थी, मैं ने हुज़ूर अक़्दस ‫ ­ﷺ‬का सलाम पुहंचाया तो उज़हों ने िवाब ददया और कहा कक

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रसूलुल्लाह ‫ ­ﷺ‬से मेरा सलाम कह दे ना और सलाम के बाद ये भी अज़त कर दे ना कक या

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रसूलुल्लाह! ‫ ­ﷺ‬मैं िज़नत की ख़श ु बू मैदान िंग में सूंघ चक ु ा और मेरी क़ौम अंसार से मेरा ये आख़री पैग़ाम कह दे ना कक अगर तुम में एक आदमी भी स्ज़ंदा रहा और कुफ़्फ़ार का हमला रसल ू ल् ु लाह ‫ ­ﷺ‬तक पह ु ं च गया तो अल्लाह तआला के दरबार में तम् ु हारा कोई उज़्र क़ुबल ू नहीं

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हो सकता और तुम्हारा वो अहद टूट िाएगा िो तुम लोगों ने बैअतुल ्अक़बा में ककया था, इतना कहते कहते उन की रूह परवाज़ कर गयी। (हुज्ितुल्लाह ि२, स८७० बहवाला: हाककम व बेहक़ी)

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अल्लाहु अकबर! ग़ौर फ़रमाइए कक सहाबा कराम को हुज़ूर अक्रम ‫ ­ﷺ‬से ककतनी वाललहाना

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मह ु ब्बत और ककस क़दर आलशक़ाना लगाओ था कक िान कनी का आलम है , ज़ख़्मों से ननढाल हैं मगर उस वक़्त में भी हुज़ूर रहमत ए आलम ‫ ­ ﷺ‬का ख़्याल ददल व ददमाग़ के गोशा गोशा में छाया हुआ है । अपने घरवालों के ललए, अपनी बस्चचयों के ललए कोई वलसय्यत नहीं फ़मातते मगर रसल ू ल् ु लाह ‫ ­ ﷺ‬के ललए अपनी सारी क़ौम को ककतना एहम पैग़ाम दे ते हैं। सहाबा कराम

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‫ رضوان هللا اجمعین‬की यही वो नेककया​ाँ हैं िो क़यामत तक ककसी को नसीब नहीं हो सकतीं और

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इसी ललए सहाबा कराम ‫ رضوان هللا اجمعین‬का सारी उम्मत में वही दिात है िो आस्ट्मान पर

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लसतारों की बरात में चांद का दिात है । फ़ररश्ते ने भूक प्यास से तनढाल सहाबी ए रसूल ‫ ﷺ‬- को िध ू पपलाया: हज़रत अबू इमामा बादहली ‫ رضي هللا عنه‬की एक करामत वो ख़द ु बयान करते थे कक रसूलुल्लाह

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‫ ﷺ‬- ने उन को भेिा कक तुम अपनी क़ौम में िा कर इस्ट्लाम की तब्लीग़ करो चन ु ाचे हुकम नबवी ‫ ﷺ‬- की तामील करते हुए ये अपने क़बीले में पुहंचे और इस्ट्लाम का पैग़ाम पुहंचाया मगर उन की क़ौम ने उन के

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साथ बहुत बरु ा सलक ू ककया, खाना ख़खलाना तो बड़ी बात है पानी का एक क़तरा भी नहीं ददया बस्ल्क उन का

मज़ाक़ उड़ाते हुए और बुरा भला कहते हुए उन को बस्ट्ती से बाहर ननकाल ददया, ये भूक प्यास से इंतहाई

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बेताब और ननढाल हो चक ु े थे, लाचार हो कर खल ु े मैदान ही में एक िगह सो गए तो ख़्वाब में दे खा कक एक

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आने वाला (फ़ररश्ता) आया और उन को दध ू से भरा हुआ एक बततन ददया, ये उस दध ू को पी कर ख़ब ू िी भर

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कर सेराब हो गए, ख़द ु ा की शान दे ख़खए कक िब नींद से बेदार हुए तो ना भूक थी ना प्यास। इस के बाद गाओं

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के कुछ ख़ैर पसंद और सुल्झे हुए लोगों ने गाओं वालों को मलामत की कक अपने ही क़बीले का एक मुअस्ज़्ज़ज़ आदमी गाओं में आया और तुम लोगों ने उस के साथ शमतनाक कक़स्ट्म की बद्द सलूकी कर िाली, िो हमारे क़बीले वालों की पेशानी पर हमेशा के ललए कलंक का टीका बन िाएगी। ये सुन कर गाओं वालों को

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ननदामत हुई और वो खाना पानी वग़ैरा ले कर मैदान में उन के पास पुहंचे तो उज़हों ने फ़मातया कक मुझे तुम्हारे खाने पानी की अब कोई ज़रूरत नहीं है मुझ को तो मेरे रब ने ख़खला पपला कर सेराब कर ददया है और

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किर अपने ख़्वाब का कक़स्ट्सा बयान ककया। गाओं वालों ने िब ये दे ख ललया कक वाक़ई ये खा पी कर सेराब हो चक ु े हैं और उन के चेहरे पर भूक व प्यास का कोई असर व ननशान नहीं हालांकक इस सुज़सां िंगल और

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बयाबान में खाना पानी कहीं से लमलने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता तो गाओं वाले आप ‫ رضي هللا عنه‬की इस करामत से बेहद्द मुतालसर हुए यहां तक कक पूरी बस्ट्ती के लोगों ने इस्ट्लाम क़ुबूल कर ललया। (बेहक़ी व कंज़ुलएअमाल ि१६ स२२२, मुस्ट्तद्रक हाककम ि३ स६४२)

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अस्सी फ़ीसि लोग ख़स ु स ू न नोजवान ये मज़्मन ू पढ़ें

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माहनामा अब्क़री दिसम्बर 2016 िुमारा नम्बर 126---------------------------pg 5

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(ख़द ु ा ने हमें एह्सास ददल ददया, सोचने वाला ददमाग़ भी ददया तो भई आप ककस तरह से कह सकते हैं कक

हम ने ख़द ु को अपनी सोचों में क़ैद कर ललया है , आख़ख़र हम इंसान हैं रोबोट नहीं। तो आप को मैं बताती चलाँ ू

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कक सब से पहली कम्ज़ोरी आप के अंदर ये है कक हम अपने आप को बहुत एहलमयत दे ते हैं।)

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(माररया ख़ान)

हं सी के पीछे कोई उिासी ना िे ख ले!: यूं तो हम अपने ददल में तरह तरह के दश्ु मनों की फ़ेहररस्ट्त बनाए

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रखते हैं लेककन कया आप िानते हैं कक आप का सब से बड़ा दश्ु मन कौन है ? याद रख़खये आप का पहला और

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सब से बड़ा दश्ु मन “ख़ौफ़” है और दस ू रा “मायस ू ी”। आप अंदाज़ा भी नहीं कर सकते हैं कक ये दोनों लमल कर

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आप को स्ज़ज़दगी और इस के दस ू रे लतीफ़ पहलुओं से ककतना दरू ले िाते हैं। नफ़्सयाती तौर पर हम सब

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लोग अंदर से ख़ौफ़ज़्दह होते हैं। हम में से हर शख़्स ककसी ना ककसी शै से ख़ौफ़ज़्दह है , बस ज़रा विह ू ात मुख़्तललफ़ हैं। कहीं कोई हमारे माज़ी को ना छे ड़ दे , कोई हमारी उन बातों को ना िान ले िो हम ने सब से पोशीदह रखी हैं। कोई हमारी हं सी के पीछे छुपी उदासी ना दे ख ले। ये और इस तरह की सारी अलामात

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ख़ौफ़ज़्दह शख़्स की हैं तो किर सवाल ये कक ये सब कया है ? माज़ी की बातों को अपने सर पर इतना सवार कर लेना ककसी तौर भी मुनालसब नहीं है । कया आप के पास इतना फ़ाररग़ वक़्त है कक आप एक ना

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ख़श ु गवार वाकक़ए को पकड़ कर रखें और सारी स्ज़ज़दगी उस के पीछे रोते रहें ? नहीं हर्गतज़ नहीं। आप को अपनी मज़फ़ी सोच तब्दील करने की ज़रूरत है । िो कुछ नछन गया सो वो आप के नसीब का नहीं था। आप

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कोलशश भी कर लें तो वो आप के पास कभी नहीं आएगा। िो चला गया सो चला गया, अब िो कुछ है उस के साथ गुज़ारा करने की कोलशश करें , अपने अंदर के ख़ौफ़ को बाहर ननकाल कर उस का सर कुचल दें । याद रखें! ककसी के पास इतना फ़ाररग़ वक़्त है और ना ही ददमाग़ कक वो आप की उन सोचों तक रसाई हालसल

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करने की कोलशश करे स्िन को आप आि तक दस ू रों से छुपाते चले आये हैं। अगर आप अपनी स्ज़ज़दगी के

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ककसी “ख़ास वक़्त” को रोक कर रख लेंगे तो आप कभी भी नामतल और फ़्रेश सोच नहीं रख सकेंगे बस्ल्क

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सारी स्ज़ज़दगी इसी चककर में चकराते रहें गे। सारा चककर हमारे एह्सास का है : मादहरीन के मत ु ाबबक़ ये

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सारा चककर हमारे “एह्सास”का है । याद रखें ! आप के माज़ी का कोई भी ना ख़श ु गवार वाकक़आ उस वक़्त

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तक आप पर क़ाबू नहीं पा सकता िब तक कक आप उसे ला शऊरी तौर पर अपने ऊपर ख़द ु सवार ना कर लें।

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दस ू रे अल्फ़ाज़ में आप ख़द ु ही तो नहीं चाहें गे कक एक आम सा ना ख़श ु गवार वाकक़आ (मुहब्बत में नाकामी,

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लोगों के रवय्यों का दख ु वग़ैरा वग़ैरा) आप की नज़र के सामने एक बड़ा बत्ु त बन कर सामने आ िाए और आप की पूरी स्ज़ज़दगी को अपने लशकंिे में कस ले। अब यहां सवाल ये पैदा हुआ कक एह्सास तो क़ुदरती शै

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है । ख़द ु ा ने हमें एह्सास ददल ददया, सोचने वाला ददमाग़ भी ददया तो भई आप ककस तरह से कह सकते हैं कक

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हम ने ख़द ु को अपनी सोचों में क़ैद कर ललया है , आख़ख़र हम इंसान हैं रोबोट नहीं। कम्ज़ोरी आप के अंिर है : तो आप को मैं बताती चलाँ ू कक सब से पहली कम्ज़ोरी आप के अंदर ये है कक हम अपने आप को बहुत

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एहलमयत दे ते हैं अगर हमारे साथ कोई ना ख़श ु गवार वाकक़आ हो िाए तो हम बार बार अपने आप को ये

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यक़ीन ददलाते हैं कक हमारे साथ बहुत ही बुरा हुआ। दस ू रे अल्फ़ाज़ में इस तरह सोच सोच कर हम उस वाकक़ए की “लशद्दत” को बढ़ाते हैं। इस से बचने का तरीक़ा ये है कक आप उस वाकक़ए के बारे में सोचना फ़ौरन

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बज़द कर दें । हर उस कक़स्ट्म के ललटरे चर से ख़द ु को दरू रखें िो मायूसी का पेश ख़ेमा साबबत हो। मज़फ़ी सोचों को अपने क़रीब भी मत भटकने दें । दस ू री एहम बात ये है कक हम हर वाकक़ए को लसफ़त अपने हवाले से दे खने

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के आदी हैं, ऐसा करना फ़ौरन बज़द कर दें । एक दफ़ा आप अपनी ख़द ु साख़्ता दज़ु या के ख़ोल से बाहर आ कर दे खें, दज़ु या हसीन ददखाई दे गी। ये बात तो क़ुदरती है कक ख़श ु ी और ग़म दोनों इंसान की स्ज़ज़दगी में आते

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रहते हैं। हा​ाँ उन की तरकीबें ज़रूर तब्दील होती रहती हैं। अकसर ये होता है कक िो लम्हा ख़श ु ी का होता है वो हम मंसूबा करते हुए गुज़ार दे ते हैं। ये एक ग़लत रुिहा​ाँ है स्ज़ज़दगी में ख़लु शयां छोटी छोटी और सानहे बड़े बड़े होते हैं लेककन छोटी छोटी ख़लु शयां हमारी स्ज़ज़दगी के बड़े बड़े दख ु ों के असरात को ज़ायअ कर दे ती हैं। हमें

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ख़श ु ी के उन छोटे छोटे लम्हों को मंसूबा बज़दी की नज़र नहीं करना चादहए। ख़ि ु तरसी का शिकार मत हों:

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ख़द ु तरसी का लशकार मत हों, इस तरह आप ना ख़श ु गवार वाकक़आत को सोच सोच कर ख़द ु अपनी “मौत”

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को दावत दे ते हैं। यहां मौत से मेरी मरु ाद िज़्बाती मौत यानन स्ज़ज़दगी से ला तअल्लक़ ु होना, मायस ू हो

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िाना है । मायूसी की एक बड़ी विह आि के ज़माने में मुहब्बत की नाकामी भी है । ८०फ़ीसद ख़स ु ूसन

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नोिवान िो ये मज़्मन ू पढ़ें गे, इस िज़्बे के हाथों कभी ना कभी लशकार ज़रूर हुए होंगे। हम लोगों ने ज़राए से

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मुतालसर हो कर भी ये सोचना शुरू के ददया है कक भाई मुहब्बत तो एक आला मुक़ाम है , इस तक तो ज़रूर

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पह ु ं चना चादहए, के तलाश भी एक एहम तरीन मरहला होता है । नफ़्सयाती तौर पर होता ये है कक ककसी की

कोई बात हम लोगों को वक़्ती तौर पर मुतालसर कर िाती है और हम इस नुकते को पकड़ कर सारी स्ज़ज़दगी

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का रोग बना लेते हैं। अगर ककसी की कोई बात अचछी लग गयी तो हम अपने आप को ये यक़ीन ददलाते हैं

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कक इसी की ही हमें तलाश थी। एक विह इस की ये भी है कक इंसानी कफ़त्रत में बेचन ै ी का अंसर है िो उसे कभी एक मुक़ाम पर दटक कर नहीं बैठने दे ता है और ना मालूम के बारे में हमेशा िानने पर उकसाता है । यही

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विह है कक मह ु ब्बत की शाददयां अकसर नाकाम हो िाती हैं कयंकू क ये मह ु ब्बत नहीं है, ये Forced

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Attraction है िो आप समझते हैं कक दस ू रे को पाने से लमल िाती है । बात किर वहीं िा ननकलती है कक आप ने महबब ू की छोटी सी अदा पर अपनी स्ज़ज़दगी का सारा मंसब ू ा सेट कर ललया। उसी की इस अदा के र्गदत

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दाइरह बना कर सारी स्ज़ज़दगी ख़्याली स्ज़ज़दगी में गुज़ार दी और असल हक़ीक़त को समझने की कभी कोलशश भी नहीं की। दस ू रे अल्फ़ाज़ में आप ने अपने छोटे से एह्सास को इतनी “लशद्दत” दे दी कक वो आप

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पर हावी हो गया। मायस ू ी की इंतहा कुछ लोगों को ख़द ु कशी करने पर भी आमादह करती है । आप ये समझना शुरू कर दें गे कक आप की मौत से सब पर वाज़ेह हो िाएगा कक वो ग़लती पर थे। वक़्त बड़ा बे रहम

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है : लोग आप के बारे में सोचते रहें गे, इस वाकक़ए के मह ु रत कात का िायज़ा लें तो आप अपनी ये आदत ख़द ु ख़त्म कर दें गे कयूंकक ककसी के पास इतना फ़ाररग़ वक़्त नहीं होता कक वो इन चीज़ों के असर को सालों तक क़ुबूल कर ले। वक़्त बड़ा बे रहम है और हर दख ु और ज़ख़्म को मुज़दमल कर दे ने पर क़ाददर भी। स्ज़ज़दगी

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की दौड़ में लोग अपने मा​ाँ बाप और अपने आप को भी भूल िाते हैं तो आप कया चीज़ हैं? मरने वाला अपने

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साथ अपना नाम, शनाख़्त सब कुछ ले कर िाता है और आप ने कोई ख़ास कारनामा तो अंिाम ददया नहीं है

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कक स्िस की बज़ ु याद पर आप को ककसी तमग़ा से नवाज़ा िाएगा। आख़ख़रत में िब दहसाब होगा तब आप

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कहां िाएंगे? ख़ल ु ासा मज़्मून ये है कक ख़द ु पसंदी और ख़ौफ़ व मायूसी का लशकार मत हों, िो हुआ उसे भुला

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कर स्ज़ज़दगी की तरफ़ आएं, यक़ीनन आप तब्दीली मह्सस ू करें गे।

िराब की आित छूट सकती है िे र कैसी? क़ाररईन! आप के पास कोई टोटका या वज़ीफ़ा हो स्िस के पढ़ने या

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करने से शराब की आदत छूट िाए कयूंकक अब्क़री से बहुत ज़्यादा क़ाररईन शराब छोड़ने का इलाि पूछते हैं।

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अगर आप के पास हो तो अब्क़री को ज़रूर भेिें।

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माहनामा अब्क़री दिसम्बर 2016 िुमारा नम्बर 126-----------------------------pg8

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दिसम्बर! ज़क ु ाम, खांसी और फ़्लू से बचाव मश्ु श्कल नहीं (ये एक ना क़ाबबल तरदीद हक़ीक़त है कक फ़्लू ख़द ु बख़द ु ठीक हो िाने वाला मज़त है , ना इस के ललए दवाओं

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की बड़ी लमक़्दार की ज़रूरत है , ना इंिेकशज़स और ग्लक ू ोज़ के इस्ट्तमाल की, सच पनू छए इन से फ़ायदा तो

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन दिसंबर 2016 के एहम मज़ामीन दहंिी ज़बान में

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दरककनार उल्टा नुक़्सान होता है । इस मज़त में मुब्तला अफ़राद की दे ख भाल में दवा से ज़्यादा अक़्ल के इस्ट्तमाल की ज़रूरत है ।)

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(िॉकटर सय्यद अस्ट्लम)

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सदी का मौसम अपने साथ बीमाररयों का हुिूम ले कर आता है , नज़्ला खांसी और उन से पैदा होने वाली पेचीदर्गयां मस्ट्लन ननमोननया वग़ैरा की लशकायत आम हो िाती है , ख़स ु स ू न बढ़ ू े , बचचे और कम्ज़ोर लोग ज़्यादा मुब्तला होते हैं, ठं ि लग िाने की सब से आम विह तो गरम, सदत हो िाना है यानन एक दम गमत

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कमरे से बाहर आ िाना या गमत बबस्ट्तर से उठ कर बग़ैर कुछ ढके हुए ननकल आना नुक़्साज़दह होता है । इस के इलावा कम िगह में ज़्यादा आदलमयों का िमा होना भी लमज़र है । एक तो क़ुबत की विह से एक से दस ू रे

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को िल्दी बीमारी लग िाती है दस ू रे इस क़दर आदलमयों का एक िगह इज्तमाअ हवा को नासाफ़ कर दे ता

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है । िो लोग लसगरे ट नोशी या इसी क़बील की दस ू री आदतों में मुब्तला होते हैं उन के िेिड़े कम्ज़ोर होते हैं,

उन के हलक़ में पहले ही से ख़राश होती है , तो वो आसानी से नज़्ले का लशकार हो िाते हैं। आम श्जस्मानी

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कम्ज़ोरी और अमराज़ समाब: हमारे हा​ाँ बीमाररयों की एक बड़ी विह आम स्िस्ट्मानी कम्ज़ोरी है, स्िस के

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सबब लोगों में बीमारी की मुदाकफ़अत की ताक़त कम है , चकूं क आम र्ग़ज़ाई ज़रूररयात हम पूरी तरह

मक ु म्मल नहीं कर पाते, इस ललए बहुत िल्द साहब फ़राश हो िाते हैं। बअज़ अफ़राद के पास सदी के कपड़े

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भी पूरी तरह नहीं होते, इसी तरह ठं ि में कम कपड़ों में चलना, किरना, काम और मज़दरू ी करना लमज़र साबबत होता है , क़ुव्वत मुदाकफ़अत कम हो िाती है और बीमारी का इम्कान बढ़ िाता है । कम पोशीद्गी के

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मुक़ाबले में दस ू री बड़ी विह ज़रूरत से ज़्यादा ललबास पहनना और पहनाना है इस का असर ज़्यादा उन

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छोटे बचचों पर पड़ता है स्िन की माएं बचचों को सर से पाओं तक दबीज़ कपड़ों से ढके रहती हैं। तो किर ये

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ज़रा से भी कहीं से खल ु िाएं तो उन पर बहुत िल्द ठं ि का असर हो िाता है और किर ये लसस्ल्सला कहीं ख़त्म होने ही में नहीं आता। सदी की बीमाररयों से तहफ़्फ़ुज़ और इलाि के स्ज़मन में सब से एहम तो मन ु ालसब र्ग़ज़ा का इस्ट्तमाल है , र्ग़ज़ा मक ु म्मल हो, यानन उस में गोश्त, अंिा, र्चकनाई, सस्ब्ज़यां बशमल ू Page 10 of 51 www.ubqari.org

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चावल और गंदम ु शालमल होने चादहएं, सदी की बीमाररयों से बचने के ललए वो र्ग़ज़ा ख़ास तौर पर मुफ़ीद होती है स्िस में हयातीन ए और िी मौिूद हों। ये हयातीन दध ू , घी, मकखन में है , लेककन मकखन और

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र्चकनाई में तली हुई चीज़ें नज़्ला, खांसी में नक़् ु सम दे ती हैं कयंकू क उन की तली हुई चबी गमत होने के बाद हलक़ को ख़राश पुहंचाती है । गमत मशरूब िैसे शोरबा, हलक़ की सूिी हुई झस्ल्लयों को गमी पुहंचाता है और

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मफ़ ु ीद है और ग़ाललबन िोशाज़दह भी अपनी इसी ख़ब ू ी की विह से मफ़ ु ीद हो सकता है । इस के इलावा हयातीन सी भी इस्ट्तमाल की िा सकती है या संगतरे , कीनू या मुसम्मी का अक़त स्िस में हयातीन सी मौिूद होती है अगर उस में नीम गमत पानी की आमेस्ज़श कर ली िाए तो हलक़ को मज़ीद तस्ट्कीन लमलेगी। अगर

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हो सके तो ललबास नीचे के दहस्ट्से का भी गमत होना चादहए। इस के इलावा पैरों में गमत िुराबें और बज़द िूते

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ज़रूर होने चादहएं। सीना, गदत न तक ढका होना चादहए, सर खल ु ा हो तो भी मज़ाइक़ा नहीं। नज़्ला ज़ुकाम में

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बे जा िवाओं से परहे ज़: इस बात को ज़ेहन में रखना ज़रूरी है कक बचचों की ज़्यादा पोपि​ि से गरु े ज़ करना

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चादहए। ख़्वाब गाह में ज़्यादा अफ़राद नहीं होने चादहएं और अगर ये मुस्म्कन ना हो तो कम से कम रोशन

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दान खल ु ा रखना चादहए। खल ु े दरवाज़े के सामने िहां से ठं िी हवा के झोंके आ रहे हों हर्गतज़ नहीं सोना

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चादहए। दवा का स्ज़क्र सब से आख़ख़र में इस ललए ककया िा रहा है कक नज़्ले की कोई ख़ास विह तो होती है ,

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इस ललए बे िा दवाओं के इस्ट्तमाल से बचना चादहए और िो बे इंतहा ताक़त बख़्श दवाएं आम तौर पर दस्ट्तयाब हैं, वो बे ज़रूरत इस्ट्तमाल ना की िाएं। ज़ईफ़, कम्ज़ोर अफ़राद और बचचों को मुस्म्कन है , ज़्यादा

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ताक़त बख़्श दवाओं की ज़रूरत पेश आए, वरना आम लोग र्ग़ज़ा, एहत्यात और ज़रूरत पड़ने पर हल्के से

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सर ददत रफ़अ करने वाली मामूली गोललयों से भी ठीक हो िाते हैं। ये एक ना क़ाबबल ए तरदीद हक़ीक़त है कक फ़्लू ख़द ु बख़द ु ठीक हो िाने वाला मज़त है , ना इस के ललए दवाओं की बड़ी लमक़्दार की ज़रूरत है , ना

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इंिेकशज़स और ग्लक ू ोज़ के इस्ट्तमाल की, सच पनू छए इन से फ़ायदा तो दर ककनार उल्टा नक़् ु सान होता है ।

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इस मज़त में मुब्तला अफ़राद की दे ख भाल में दवा से ज़्यादा अक़्ल के इस्ट्तमाल की ज़रूरत है कयूंकक बअज़ मततबा मज़त से ज़्यादा इलाि नक़् ु साज़दह हो सकता है । बीमार को दरअसल स्िस चीज़ की ज़रूरत होती है वो

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मुकम्मल आराम है , एक रोशन हवा दार कमरे में , स्िस में हवा का गुज़र तो ख़ब ू हो लेककन बराह रास्ट्त हवा के थपेड़े नहीं आएं, आराम उस वक़्त तक ज़रूरी है िब तक बीमार अपनी अस्ट्ली हालत पर नहीं आ िाए

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और तबीअत परू ी तरह बहाल ना हो िाए और उस के ललए तक़रीबन दस रोज़ दरकार होते हैं, आराम बबस्ट्तर पर हो और हरकत लसफ़त ज़रूरत के ललए साथ के ग़स्ट् ु ल ख़ाने तक हो, अगर ये एहत्यात नहीं बरती गई तो

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बीमारी तवील हो कर दस ू री पेचीदर्गयां पैदा कर दे गी, मस्ट्लन ननमोननया, यरक़ान, वस ु अत क़ल्ब, अव्वाररज़ ददमाग़ वग़ैरा वग़ैरा। मज़त की लशद्दत और ख़तरा बचचों, बूढ़ों और ददल व सीना के पुराने मरीज़ों में ज़्यादा होता है । मरीज़ों की तनगहिाश्त में मादहराना ततब्बी चाबुक िस्ती: इस ललए इस तरह के मरीज़ों की

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ननगहदाश्त में मादहराना नतब्बी चाबुक दस्ट्ती और ख़स ु ूसी तीमारदारी की बड़ी ज़रूरत है । र्ग़ज़ा हल्की, िल्द

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हज़म और पतली हो तो बेह्तर है , स्िन अश्या का परहेज़ है उन में तली हुई चट पटी खट्टी, तुशत और तेल में

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पकी हुई र्ग़ज़ाएाँ और ख़श्ु क मेवे वग़ैरा शालमल हैं। पानी वाफ़र लमक़्दार में पीना चादहए, तक़रीबन बारह

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ग्लास के क़रीब, स्िस्ट्म की सफ़ाई के ललए स्ट्पंि करना बेह्तर है , दवाएं कम और एहत्यात से इस्ट्तमाल की

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िाएं। इस बात को ख़ब ू ज़ेहन नशीन कर लेना चादहए कक फ़्लू के वायरस पर ककसी भी हयात कश (एज़टी

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बायोदटक) दवा का असर नहीं होता, अगर बबला ज़रूरत ये दवाएं इस्ट्तमाल कराई िाएं तो पेचीदर्गयों के

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इम्कानात बढ़ िाते हैं और किर मरीज़ को ऐसी बीमाररयां लाहक़ हो िाती हैं स्िन पर ककसी दवा का भी असर नहीं होता। ग़ाललबन इन दवाओं को इस्ट्तमाल ना कर के लाखों रुपए बचाए िा सकते हैं। इसी तरह की

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दस ू री दवाओं का भी मज़त की रफ़्तार पर कोई ख़ास असर नहीं होता, लसवाए इस के कक दाकफ़अ ददत की दवाएं

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वक़्ती तस्ट्कीन और आराम पुहंचाती हैं और हरारत को घटा दे ती हैं। वैसे थोड़ा बहुत बुख़ार तो मज़त का मुकाबला करने के ललए ज़रूरी भी है , इस ललए बुख़ार को दाकफ़अ बुख़ार की दवा से कुल्ली तौर पर ज़ाइल

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करना मन ु ालसब नहीं है । इसी तरह खांसी को भी बबला ज़रूरत दबाना ग़ैर मफ़ ु ीद है । स्िन लोगों को फ़्लू होता

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है वो बहुत आसानी से दस ू रों को भी इस में मुब्तला कर सकते हैं। इस ललए फ़्लूज़दह लोगों को चादहए कक वो सेहतमज़द अफ़राद से ख़द ु भी अलैदहदह रहें और अपने इस्ट्तमाल की चीज़ें भी अलैदहदह रखें। नाक व मंह ु

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की रे स्ज़श को काग़ज़ी रूमालों से साफ़ कर के काग़ज़ी थैलों में िमा करते रहें और आख़ख़र में नज़्र आनतश कर दें । कुछ हालात ऐसे होते हैं िो इंफ़्लूवाइज़स के वायरस के ललए ज़मीन हम्वार कर दे ते हैं, मस्ट्लन ठं ि में

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गमत पहनावे के बग़ैर ननकलना, पानी में भीग िाना, शब्नम में सो िाना, हवा के थपेड़ों में आ िाना, कसरत से लसगरे ट नोशी करना, तंग िगह में हुिूम करना, पाओं भीगे रहना। िो चीज़ें फ़्लू से तहफ़्फ़ुज़ के ललए

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मअ ु स्ट्सर हैं वो ये हैं कक अफ़्फ़ूनत से बचना चादहए, ठं िे मौसम में पाओं में िरु ाबें और बज़द ित ू े पहनने चादहएं और स्िस्ट्म के ननचले दहस्ट्से को भी गमत रखना चादहए। इस बीमारी में पवटालमन सी के इस्ट्तमाल में कोई हित नहीं।

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माहनामा अब्क़री दिसम्बर 2016 िुमारा नम्बर 126----------------------------pg 9

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रबीउल अव्वल! छोटा सा अमल और बड़ी बड़ी हाजात परू ी

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(मज़दरिा ज़ेल एअमाल बुज़ुगातन दीन और साललहीन के आज़मूदह और मंक़ौल शुदह हैं स्िन के शायअ

करने का मक़्सद मख़लक़ ू ए ख़द ु ा को तस्ट्बीह और मस ु ल्ले के साथ ग़ैर शरई एअमाल के बिाए नवाकफ़ल व

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तस्ट्बीहात के ज़ररए िोड़ना है )

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रबीउल अव्वल इस्ट्लामी साल का तीसरा महीना है । ये बड़ा फ़ज़ीलत व बरकत वाला महीना है । हुज़ूर सवतर

काइनात ‫ﷺ‬- की पवलादत मुबारका इसी माह में हुई थी। पहली िब: िो कोई इस महीने की पहली

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शब और पहले ददन २ रकअत नस्फ़्फ़ल नमाज़ रात के वक़्त और दो रकअत नस्फ़्फ़ल नमाज़

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ददन के वक़्त इस तरह से अदा करे कक हर रकअत में सूरह फ़ानतहा के बाद ७ मततबा सूरह

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इख़लास पढ़े तो परवरददगार आलम उस शख़्स को ७ सो बरस की इबादत का अिर अता फ़मातएंगे। ज़्यारत रसूलुल्लाह ‫­ﷺ‬: िो कोई रबीउल अव्वल की पहली शब नमाज़ इशा के बाद सोला

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रकअत नस्फ़्फ़ल नमाज़ दो दो रकअत कर के इस तरह से पढ़े कक हर रकअत में सूरह फ़ानतहा के बाद तीन तीन मततबा सूरह इख़लास पढ़े । िब तमाम नवाकफ़ल अदा करे तो ननहायत तवज्िह

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व यकसूई के साथ कक़ब्ला रुख़ बैठे बैठे एक हज़ार मततबा ये दरूद पाक पढ़े : “अल्लाहुम्म सस्ल्ल अला मुहम्मददननज़नबबस्य्यल ्-उस्म्मस्य्य व रह्मतुल्लादह व बरकातुहू”

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ُ ُ ‫َِّ ِّ ا‬ ُ َ َِّ َ ُ ّٰ َ ِّ َ َِّ ُ ِّ ّٰ َ ِّ ِِّ ‫اْل‬ )‫م َو َر اْحَۃ ہّٰللا ِ َو َ َ​َبَکت ٗہ‬ ‫ب‬ ‫الن‬ ‫ن‬ ‫د‬ ‫م‬ ِ ِ ِ ِ ِ ‫(اللہم ص ِل لَع ُم‬

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पढ़ने के बाद बावज़ू हालत में ही पाक साफ़ बबस्ट्तर पर बग़ैर ककसी से कोई कलाम ककये सो की ज़्यारत का शफ़त हालसल होगा। िस ू री ­‫ ﷺ‬िाए इन ् शा अल्लाह तआला हुज़ूर नबी करीम िब: रबीउल अव्वल की दस ू री शब नमाज़ मग़ररब के बाद दो रकअत नस्फ़्फ़ल नमाज़ इस तरह

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से पढ़े कक हर रकअत में सूरह फ़ानतहा के बाद ३,३ बार सूरह इख़लास पढ़े और नमाज़ से

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फ़ाररग़ होने के बाद ११ बार ये दरूद पाक पढ़े :

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“अल्लाहुम्म सस्ल्ल अला मुहम्मददन ् व अला आलल मुहम्मददं-व्व बाररक व सस्ल्लम बबरह्मनतक या अहतम-

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रातदहमीन”

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َِّ َ َ ‫َ ّٰ ِّ ُ َِّ َ ِّ َ ّٰ ُ َ َِّ َ َ ّٰ ّٰ ُ َ َِّ َِّ َ َ َ َ ِّ ا َ ا َ َ َ َ ا‬ َ ‫اْح ا‬ ‫(اللہم ص ِل لَع ُمم ٍد و لَع ا ِل ُمم ٍد و َب ِرک وس ِلم َِبْح ِتک َی ارَح‬ )‫ْی‬ ِ ِ ‫الر‬

किर बारगाह इलाही में अपने मक़्सद व मतलब के हुसूल के ललए दआ ु मांगे िो भी िाइज़ दआ ु मांगे इन ् शा

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अल्लाह तआला क़ुबूल होगी।

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तीसरी िब: इस माह की तीसरी शब को नमाज़ इशा के बाद चार रकअत नस्फ़्फ़ल नमाज़ इस तरह से पढ़नी

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चादहए कक हर रकअत में सूरह फ़ानतहा के बाद एक मततबा आयत अल्कुसी और तीन तीन बार सूरह ताहा व सूरह यासीन पढ़े । सलाम िेरने के बाद इन नवाकफ़ल का सवाब हुज़ूर करीम ‫ﷺ‬- की ख़ख़दमत अक़्दस में

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तह् ु फ़तन व हद्यतन पेश करे । इन ् शा अल्लाह तआला दीनी व दज़ु यावी हािात परू ी होंगी।

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बारह रबीउल अव्वल के नवाक़फ़ल: बअज़ ररवायत के मत ु ाबबक़ इस ददन रसल ू ल् ु लाह ‫ﷺ‬- की पवलादत बा सआदत हुई, इस रोज़ दो रकअत नमाज़ मुस्ट्तहब है कक स्िस की पहली रकअत में सूरह अल्हम्द ु के बाद

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तीन मततबा सूरह काकफ़रून और दस ू री रकअत में सूरह अल्हम्द ु के बाद तीन मततबा सूरह तौहीद पढ़े यही वो ददन है स्िस में बवक़्त दहिरत रसूलुल्लाह ‫ﷺ‬- वाररद मदीना हुए। इस के इलावा बारह रबीउल अव्वल को

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नमाज़ ज़ह ु र के बाद बीस रकअत नस्फ़्फ़ल नमाज़ दो दो रकअत कर के इस तरह से पढ़े कक हर रकअत में सूरह फ़ानतहा के बाद इककीस इककीस मततबा सूरह इख़लास पढ़े । नमाज़ पढ़ने के बाद इस का सवाब हुज़ूर

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‫ﷺ‬- की बारगाह अक़्दस में हददया के तौर पर पेश करे । औललया कराम ‫ رحمة هللا عليه‬ने इन नवाकफ़ल पर मुदाव्मत और हमेशगी रखी है । इन नवाकफ़ल की मुदाव्मत रखने वाले को हुज़ूर नबी करीम ‫ﷺ‬- की ज़्यारत नसीब होती है और परवरददगार आलम िज़नत अस्ल्फ़रदौस में आला मुक़ाम अता फ़मातता है । हुज़ूर

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सवतर काइनात ‫ﷺ‬- की शफ़ाअत नसीब होती है ।

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इककीस रबीउल अव्वल: िो कोई रबीउल अव्वल की इककीस तारीख़ को दो रकअत नस्फ़्फ़ल नमाज़ इस

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तरह से पढ़े कक हर रकअत में सूरह फ़ानतहा के बाद एक बार सूरह मुज़स्म्मल पढ़े और सलाम िेरते ही सज्दा रे ज़ हो िाए और तीन मततबा ये दआ ु ननहायत तवज्िह व ख़ल ु स ू से पढ़े :

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ज़्यारत नबी करीम ‫ﷺ‬-! चन्ि वाक़क़आत

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ُ َ َ ‫َ َ ُ ا ُ َ َ َِّ ا َ ُ ا َ ا ُ ا ُ ا ُ ا‬ “या ग़फ़ूरु तग़फ़्फ़तत बबल्ग़कु फ़्र वल्ग़फ़्र ِ ‫) َیغفور تغفرت َِبلغف ِر و الغفر‬ ु ु फ़ी ग़कु फ़्रक या ग़फ़ूरु” (‫ِف غف ِرک َ​َیغف او ُر‬

सेहत के शलए िआ ु की तालीम: एक बज़ ु ग ु त तीन माह से इस क़दर बीमार थे कक लोग बस उन के

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सांस र्गनते थे इसी हालत में उन को हुज़ूर नबी करीम ‫ ­ﷺ‬की ज़्यारत नसीब हुई। आप ‫­ﷺ‬

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ने इशातद फ़मातया: तम पढ़ो: “अल्लाहुम्म इज़नी अस ्अलक ु ये दआ ु ु ल ्-अफ़्व वल ्आकफ़यत

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‫ا‬ َ َِّ َ َ ‫َ ا‬ َ ّٰ ‫ا‬ ‫َ ّٰ ِّ ُ َِّ ِّ ا َ ا َ ُ َ ا ا‬ ‫ُِّ ا‬ वल्मुआफ़ात-द्दाइमत कफ़द्दुज़या वल ्आख़ख़रत” (‫ک ال َعف َوا َوال َعا ِف َیۃ َوال ُم َعافاۃ الد ِاِئَۃ ِ​ِف الدن َیا َواْلخ َِرۃ۔‬ ‫) اللہم ا ِ​ِ​ِن اسئل‬ ।उज़हों ने ख़्वाब के अंदर ही इस दआ ु को पढ़ा और िब बेदार हुए तो बबल्कुल तंदरु ु स्ट्त थे। (बरकात दरूद

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शरीफ़ के है रत अंगेज़ वाकक़आत स२८०)

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ग़ीबत से चारह ना हो तो ये अमल करो सय्यदी शैख़ अल्म्वादहब शाज़ली का बयान है कक मैं ने हुज़रू नबी करीम ‫ﷺ‬- को ८२५ दहिरी में िालमआ

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अल्ज़हर में दे खा। आप ‫ﷺ‬- ने अपने दस्ट्त मुबारक मेरे क़ल्ब (ददल) पर रखा और फ़मातया: ए मेरे बेटे!

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ग़ीबत हराम है कया तू ने अल्लाह का क़ौल (तिम ुत ा: ना ग़ीबत करें तम् ु हारे बअज़ तम् ु हारे बअज़ की) नहीं सुना। मेरे पास उस वक़्त एक िमाअत बैठी थी उस ने बअज़ लोगों की ग़ीबत की थी इस के बाद आप ‫ﷺ‬ने फ़मातया: अगर तम ु को ग़ीबत से चारह ना हो तो सरू ह इख़लास और मअव्वज़तैन (सरू ह फ़लक़ और नास) पढ़ और उन का सवाब उस शख़्स की नज़र करो स्िस की ग़ीबत हुई कयूंकक ग़ीबत व सवाब मुतवाररस व

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मुतवाकफ़क़ हो िाएगा।

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वबाई अमराज़ से तनजात का हल

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मौलाना शम्सुद्दीन के ज़माने में िब ताऊन की वबा िैली तो आप ने हज़रत मुहम्मद ‫ ­ﷺ‬को

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लसखा दीस्िये स्िस ख़्वाब में दे खा और अज़त ककया या रसल ू ल् ु लाह ‫ ­ﷺ‬मझ ु को कोई ऐसी दआ ु

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की बरकत से ताऊन की वबा से महफ़ूज़ रहूं। आप ‫ ­ﷺ‬ने इशातद फ़मातया: िो कोई ये दरूद मुझ

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पर पढ़े गा ताऊन और दीगर वबाई अमराज़ से महफ़ूज़ रहे गा। “अल्लाहुम्म सस्ल्ल अला

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मुहम्मददन ् व अला आलल मुहम्मददन ् बबअददद कुस्ल्ल दाइं व दवाइं।” ٓ َ ٓ َ ِّ ُ َ َ َ َِّ َ ُ ّٰ ّٰ َ َ َِّ َ ُ ّٰ َ ِّ َ َِّ ُ ِّ ّٰ َ (‫ک دا ٍء َود َوا ٍء‬ ِ ‫)اللہم ص ِل لَع ُمم ٍد ولَع ا ِل ُمم ٍد بعد ِد‬।

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ररज़्क़ हलाल की बरकत

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह और उस के हबीब नबी करीम ‫­ﷺ‬ आप से हमेशा राज़ी रहें । अब्क़री हमारे घर २००७ से आ रहा है और हम हर माह बड़ी लशद्दत से

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इंतज़ार करते हैं। हमारे वाललद मोहतरम को वफ़ात पाए २१ साल हो गए हैं हम दो बहनें और वाललदा सादहबा हैं, हमारे भाई नहीं हैं। हमारे वाललद मोहतरम ने हमेशा हमें हलाल ररज़्क़ से

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ख़खलाया उज़हों ने कभी भी हराम नहीं कमाया हालांकक हमारे वाललद मोहतरम एकाउं ट ऑकफ़सर थे, वाललद मोहतरम के एक दस्ट्तख़त पर पूरे शहर के मुलाज़मीन को तनख़्वाह लमलती थी मगर

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ख़द ु बेहद्द ईमानदार थे। वाललद मोहतरम की तनख़्वाह से िो कटौती होती थी स्िसे िी पी फ़ंि कहते हैं वाललद साहब स्ितनी रक़म तनख़्वाह से कटती थी वही िमा की हुई लेते थे ऊपर की मुनाफ़ा वाली रक़म को वाललद साहब सूद कहते थे, मोहतरम हज़रत साहब! अगर मैं वाललद

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मोहतरम की ईमानदारी की बातें ललखना शुरू करूाँ तो काफ़ी वक़त भर िाएंगे लसफ़त इतनी बात

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ललख रही हूाँ कक िब वाललद साहब वफ़ात पा गए तो ख़्वाब में उन की क़ब्र हम ने रोज़ा रसूल

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‫ ­ﷺ‬के साथ दे खी यानन वाललद मोहतरम की क़ब्र और हुज़रू नबी अक्रम ‫ ­ﷺ‬की क़ब्र मब ु ारक

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एक साथ हैं और सारा इलाक़ा सुख़त गुलाब से भरा हुआ है ये सब करम वाललद साहब का दरूद

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शरीफ़ कसरत से पढ़ने का और अब तक हमारा ररज़्क़ अल्लाह के करम से हलाल है । (एक बेटी,

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िेरा इस्ट्माइल ख़ान)माहनामा अब्क़री दिसम्बर 2016 िुमारा नम्बर 126--------------------------pg 10

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केला िन्ु या भर में सब से ज़्यािा खाया जाने वाला फल

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(केला एअसाबी कम्ज़ोरी का बेह्तरीन इलाि है , केले में नमक कम होने की विह से ब्लि प्रेशर के मरीज़ों के

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ललए लशफ़ा बख़्श दवा और र्ग़ज़ा है । केले में शककर की ज़्यादती के बाइस ये िल्द हज़म हो िाता और इंसानी स्िस्ट्म में आयोिीन की कमी परू ी करने में मआ ु पवन साबबत होता है ।)

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बअज़ मुहक़्क़क़ीन और अत्तबा के मुताबबक़ लसकज़दर आज़म ने अपनी फ़तूहात के दौरान बतौर िल केला दरयाफ़्त ककया और िब ये यक़ीन आ गया कक केला ज़रर रस्ट्सां नहीं बस्ल्क सेहत बख़्श और फ़हतत बख़्श

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िल है तो लसंध से वापसी पर केले के चज़द पौदे और शाख़ें यन ू ान में ले िा कर उस की काश्त करवाई।

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केला ग़रीबों का हल्वा कहलाता है : इस के फ़वाइद चावल और गेहूं में लमलने वाली चीज़ों से बेह्तर होते हैं। अगर इसे दध ू के साथ इस्ट्तमाल ककया िाए तो र्ग़ज़ाइयत के एतबार से मुकम्मल र्ग़ज़ा बन िाती है िो स्िस्ट्म इंसानी की नशो व नम ु ा के ललए हर तौर पर मक ु म्मल कही िा सकती है । केला ख़न ू साफ़ करता है । कम्ज़ोर बचचों का वज़न बढ़ता है , बालाई वाला दध ू बादाम की चज़द गररया​ाँ और छोटी इलायची िाल कर

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लमल्क शेक पीने से स्िस्ट्म मज़बूत होता है ।

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केले की ततब्बी अफ़ादियत: केले में सब से ज़्यादा नुमायां पोटै लशयम है इस ललए ऐसे लोग िो ब्लि प्रेशर का

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लशकार हों, उन के ललए केला एक बेह्तरीन दवा है , एक केले में पवटालमन सी इतनी लमक़्दार का चौथाई

दहस्ट्सा होता है िो एक िेढ़ साल के बचचे को रोज़ाना दरकार होती है । केला ख़न ू की कमी के मरीज़ों के ललए

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उम्दह र्ग़ज़ा है । खांसी के ख़ात्मे के ललए नमक, केला, एक रत्ती शहद के साथ खाना मफ़ ु ीद है । काली खांसी

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के ख़ात्मे के ललए रसदार दरख़्त का चोया दे ते िाएं यहां तक कक १० तोला अक़त िज़्ब हो िाए अज्वाइन के साथ ददन में एक या दो मततबा ख़खलाएं मगर बचचे की उम्र के ललहाज़ से बबल्तरतीब एक बरस के बचचे को

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एक रत्ती दो बरस में दो रत्ती ख़खलाना मुफ़ीद है । केला एअसाबी कम्ज़ोरी का बेह्तरीन इलाि है , केले में नमक कम होने की विह से ब्लि प्रेशर के मरीज़ों के ललए लशफ़ा बख़्श दवा और र्ग़ज़ा है । केले में शककर की

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ज़्यादती के बाइस ये िल्द हज़म हो िाता है और इंसानी स्िस्ट्म में आयोिीन की कमी पूरी करने में भी

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मुआपवन साबबत होता है । मैदे में िलन के ललए केले के तने का पानी सूदमज़द है । सुस्ट्त आंतों का फ़ेअल

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तेज़ करने के ललए ननहार मंह ु पकके केले अचछी तरह चबा कर खाना चादहए, केले के तने में पानी में दवाई असरात होते हैं केले से गुदों को ताक़त लमलती है , गले की ख़राश ख़त्म होती है , बल्ग़म नरम और पतला हो कर ख़ाररि हो िाता है ख़श्ु क खांसी ख़त्म होती है , कचचे केले को ख़श्ु क कर के उस का सफ़ूफ़् खाने से Page 18 of 51 www.ubqari.org

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अल्सर का मज़त दरू होता है अल्सर की विह से ददत क़ोलंि हो तो पकका हुआ केला इकसीर है । केले की िड़ के पानी से पेट के कीड़े हलाक होते हैं। दिल के अमराज़ के शलए: ददल की तकलीफ़ में केलों को छील कर शहद

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में लमला कर अचछी तरह िेंट कर खाने से फ़ायदा होगा। मंह ु के छाले ख़त्म करने के ललए पकका हुआ केला गाये के दध ू के दही के साथ सवेरे सवेरे खाएं, अगर नतली में वमत हो तो १०० ग्राम पकके केले का गूदा २ ग्राम

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क़लमी शरू ह बारीक पीस कर लमला दें और एक ददन में दो मततबा ये ख़रु ाक इस्ट्तमाल करना मफ़ ु ीद है । इसहाल के मरीज़ को कचचे केले का गूदा पानी मे उबाल कर उस में दही और शककर लमला कर खाने से फ़ायदा होगा। पकका केला, इम्ली और नमक का म्रककब पेर्चश के ललए हद्द दिात मुअस्ट्सर और मुफ़ीद दवा

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है । केले में पवटालमन सी की मौिूदगी दांतों की बीमाररयां ख़त्म करने में मुआपवन साबबत होती है , इस

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ललहाज़ से नारं गी के बाद केले का दस ू रा नम्बर है , केले की िड़ मक़वी है , सफ़रा में मुफ़ीद है , केले के पत्ते पर

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शगाफ़ दे ने के बाद िो गोंद रस्ट्ता है उसे चावल के साथ इसहाल में ददया िाता है कचचा केला भन ू कर खाना

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पेट के अमराज़ में मुफ़ीद है , मुसफ़ी ख़न ू है , ज़हरीले अमराज़ ख़न ू और ख़न ू की कमी में मुफ़ीद है ।

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िुगर के मरीज़ केले की तरफ़ मुतवज्जह हों: केले के िूलों को पका कर शुगर के मरीज़ को ख़खलाते हैं, कचचा

केला शग ु र में मफ़ ु ीद है । एक मह ु क़्क़क़ के मत ु ाबबक़ शग ु र के मरीज़ों के ललए शायद ही केले से बेह्तर कोई

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र्ग़ज़ा है । ख़फ़्क़ान की बीमारी में सुबह व शाम एक केला मरीज़ को ख़खलाना चादहए, लमगी के मरीज़ को केले की छाल का रस ददन में तीन मततबा एक एक तोला दे ना चादहए। केले की चाट आम बस्ल्क मक़्बूल आम है ,

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केले का लमल्क शेक हर उम्र के अफ़राद में यकसां मक़्बल ू है , केले खाने से भूक खल ु कर लगती है और

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स्िस्ट्म में तवानाई मह्सूस होती है । केले को ख़श्ु क कर के उस का आटा बना कर बचचों और कम्ज़ोर हाज़मे

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वाले अश्ख़ास और उन लोगों के ललए िो मैदे की ख़राबबयों में मुब्तला हों ये आटा बहुत मुफ़ीद है । बैरूनी

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असरात: केले के तने का रस सूंघने से नकसीर बज़द हो िाती है , अगर ककसी के र्गल्टी ननकल आए तो केले का रस लसरके के साथ र्गल्टी पर लगाने से र्गल्टी बैठ िाती है , ख़ाररश में केले का तना और लसरका लमला

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कर अगर गंिे सर पर लगाएं तो बाल उग आएंगे, मुतअदी ख़ाररश में एक केला, एक चम्मच लसरका और एक चम्मच ललमों का रस लमला कर स्िस्ट्म पर माललश करने से ख़ाररश ख़त्म हो िाती है ।

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मुराक़बे से इलाज

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इस माह का नूरानी मुराक़बा

(मुराक़बे के िब कमालात खल ु ें गे तो है रत का अनोखा िहां और मुस्श्कलात का सो फ़ीसद हल ख़द ु आप को है रत ज़दह कर दे गा। )

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Meditation यानन मुराक़बा िहां अज़ल से रूहाननयत की तरक़्क़ी और मुस्श्कलात के हल का इलाि रहा है

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वहां िदीद साइंस ने इसे अमराज़ का यक़ीनी इलाि भी क़रार ददया है । हज़ारों तिुबातत के बाद अब्क़री के

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क़ाररईन के ललए मुराक़बे से इलाि पेश ख़ख़दमत है । सोते वक़्त अगर बावज़ू और पाक सोएं तो सब से बेह्तर

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वरना ककसी भी हालत में लसफ़त १० लमंट बबस्ट्तर पर बैठ कर बबला तअदाद “या वालसउ या अज़ीज़ु” ( ‫اس ُع‬ ِ ‫َ​َی َو‬

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‫ َ)َی َع ِز ای‬का वदत करें , अव्वल व आख़ख़र ३ बार दरूद शरीफ़ पढ़ें किर लेट िाएं। स्िस मज़त का ख़ात्मा या उल्झन का हल चाहते हों उस को ज़ेहन में रख कर ये तसव्वुर करें कक “आस्ट्मान से सुनहरे रं ग की रोशनी मेरे सर से

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सारे स्िस्ट्म में दाख़ख़ल हो कर इस मज़त को ख़त्म या उल्झन को हल कर रही है और इस वज़ीफ़े की बरकत से मैं सो फ़ीसद इस परे शानी से ननकल गया/गयी हूाँ” यहां तक कक इस तसव्वुर को दह्र ु ाते दह्र ु ाते नींद आ िाए।

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शुरू में तसव्वुर बनाते हुए आपको मुस्श्कल होगी लेककन बाद में आप पर िब इस के कमालात खल ु ें गे तो

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है रत का अनोखा िहान और मुस्श्कलात का सो फ़ीसद हल ख़द ु आप को है रत ज़दह कर दे गा। मुराक़बे के

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बाद अपनी कैकफ़यात फ़वाइद और अनोखे तिुबातत हमें ललखना ना भूलें।

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मुराक़बा से फ़ैज़ पाने वाले

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अब्क़री ररसाला पपछले पांच साल से मुसल्सल पढ़ रही हूाँ। अब्क़री में ददया गया मुराक़बा गुज़श्ता चज़द सालों से मुसल्सल कर रही

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हूाँ। अल्हम्दलु लल्लाह! मरु ाक़बा की विह से मेरे बहुत से मसाइल हल हुए और हो रहे हैं। गज़ ु श्ता ददनों मैं ने मुराक़बे में दे खा है कक दरबार सिा हुआ है तमाम दर व दीवार ऐसे हैं िैसे उन के

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सर पर ताि हो हर तरफ़ सफ़ेद दध ू या रोशनी है , बड़ा ख़ब ू सरू त मंज़र है मझ ु े एक शाही दरबार के अंदर ले िाया िाता है , सब के सरों पर ताि है मह्सूस हो रहा सब हैं किर ताि िैसी कुसी पर शहनशाह दो आलम हुज़ूर नबी करीम ‫ ­ﷺ‬िल्वा अफ़्रोज़ हैं , महकफ़ल लगी हुई है मैं फ़शत पर

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अदब से बैठी हुई हूाँ, शायद मझ ु े लगा कक नबी करीम ‫ ­ﷺ‬हमें मझ ु े कुछ खाने को पकड़ा रहे हैं

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किर एक दम वहीं बैठे मंज़र बदल कर सहाबा कराम ‫ رضوان هللا علیهم اجمعین‬वाली महकफ़ल बन

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िाती है वैसा लमट्टी का फ़शत खल ु ी िगह ज़मीन पर मैं बैठी हूाँ और अल्लाह रब्बल ु इज़्ज़त से

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दआ ु एं मांगे िा रही हूाँ। ना मालूम कब मैं नींद की आग़ोश में चली गयी। माशा अल्लाह अल्लाह

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दिसम्बर 2016 िुमारा नम्बर 126---------------------------pg 12

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ने मरु ाक़बे की बदौलत इतनी बड़ी हस्स्ट्तयों का दीदार करवा ददया। (वाललदा, म)माहनामा अब्क़री

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ततब्बी मश्वरे

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श्जस्मानी बीमाररयों का िाफ़ी इलाज (तवज्िह तलब अमरू के ललए पता ललखा हुआ िवाबी ललफ़ाफ़ा हमराह असातल करें और उस पर मक ु म्मल पता वाज़ेह हो। िवाबी ललफ़ाफ़ा ना िालने की सूरत में िवाब असातल नहीं ककया िाएगा। ललखते हुए इज़ाफ़ी

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गोंद या टे प ना लगाएं स्ट्टे प्लसत पपन इस्ट्तमाल ना करें । राज़दारी का ख़्याल रखा िाएगा। सफ़हे के एक तरफ़ ललखें। नाम और शहर का नाम या मुकम्मल पता और अपना मोबाइल फ़ोन नम्बर ख़त के आख़ख़र में ज़रूर

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तहरीर करें ।

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पेिाब की बीमारी: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अज़त है कक मख़् ु तललफ़ िॉकटरों की राय के मुताबबक़ मुझे प्रोस्ट्टे ट/ पेशाब की बीमारी है । आपरे शन का मश्वरा लमल रहा है । बराह करम आपरे शन से बचने के ललए कोई नुस्ट्ख़ा तज्वीज़ फ़रमाएाँ। (एम बख़्श, पपशावर)

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मश्वरा: एम बख़्श साहब! आप ये नुस्ट्ख़ा एअतमाद से इस्ट्तमाल करें इन ् शा अल्लाह आप को आपरे शन की ज़रूरत ही ना रहे गी। हुवल्िाफ़ी: किटकड़ी ख़ाम यानन िूल ना करें बस्ल्क अस्ट्ली हालत में १० ग्राम, कबाब

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चीनी १०० ग्राम दोनों ननहायत बारीक कर के पीस लें। चौथाई छोटा चम्मच ददन में ४ बार या हस्ट्बे ज़रूरत ६

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बार कचची लस्ट्सी या पानी के हमराह लें। बस एक एहत्यात लास्ज़म और ननहायत तवज्िह तलब है इस वक़्त कबाब चीनी की बिाए एक और दवाई माककतट में इसी नाम से बबक रही है । अस्ट्ली कबाब चीनी की

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ननशानी ये है कक इस के साथ िंिी होगी ये काली लमचत की तरह के बीि होते हैं अगर िंिी ना हो तो हर्गतज़

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हर्गतज़ ना लें।

मेरे तीन मसाइल और उनका हल: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अब्क़री ररसाला

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बहुत शौक़ से पढ़ती हूाँ, अरसा पांच साल से मैं इसे पढ़ रही हूाँ, मुझे हर माह इस ररसाला का बड़ी बे चैनी से

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इंतज़ार रहता है , मेरे तीन मसाइल हैं, आप से दरख़्वास्ट्त है कक इन का बेह्तरीन हल तज्वीज़ करें । १- मैं स्िस्ट्मानी तौर पर बहुत ज़्यादा कम्ज़ोर हूाँ, चेहरा बहुत पतला है , तनक़ीद का सामना रहता है । िल्द मोटा

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होने का आसान नुस्ट्ख़ा बता दें । २- मेरे तीन बचचे हैं, स्िन की उम्रें तक़रीबन १४ से १२ साल तक है , खाया

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पपया लगता नहीं, मुझातए चेहरे और स्िस्ट्म भी काफ़ी पतले हैं, अपनी उम्रों से भी कम लगते हैं, उन का हल

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बताएं कक उन की सेहत क़ाबबल ए रश्क हो िाए। ३- मेरे भाई की ज़बान में लुकनत है स्िस की विह से उज़हें बोलने में दश्ु वारी होती है । बराह मेहरबानी मुझे उन का हल बताएं।

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मश्वरा: मोहतरमा! मोटा होने के ललए आप अपनी र्ग़ज़ा पर थोड़ी तवज्िह दें । इस के इलावा रोज़ाना रात

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को एक सेब लें, उस में बड़ी सई ु स्िस से रज़ाई वग़ैरा सीते हैं नई ले कर सेब से इस में स्ितने ज़्यादा हो सकते हैं सूराख़ कर दें और उस सेब को रात के वक़्त एक पाओ दध ू ककसी बाऊल में िाल कर उस में सेब लभगो दें । सारी रात सेब दध ू में पड़ा रहे सब ु ह उठ कर सेब ख़ाली पेट खा लें और ऊपर से यही दध ू पी लें , चालीस ददन बबला नाग़ा ये अमल करें और किर अपनी क़ाबबल रश्क सेहत मुलादहज़ा फ़रमाएाँ। २- अपने बचचों को भुने

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हुए चने नछल्कों समेत ख़खलाएं। इस के इलावा रोज़ाना रात को दध ू में एक चम्मच शहद लमला कर पपलाएं

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और मौसमी िल ज़रूर ख़खलाया करें । ३- भाई से कहें ये नुस्ट्ख़ा इस्ट्तमाल करें । हुवल्िाफ़ी: हरीड़ का नछल्का,

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स्िसे पोस्ट्त हलीला ज़दत कहते हैं। बहीड़े का नछल्का, आम्ला, लमल्ठी, कुश्ता फ़ौलाद, हर एक ५० ग्राम तमाम को ननहायत बारीक कूट पीस कर ककसी बारीक कपड़े से छानें ये बहुत ज़रूरी है । ककसी छलनी से ना छानें।

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अब ककसी शीशे के मततबान में महफ़ूज़ रखें। चाय की चौथाई चम्मच के बराबर दवाई, दे सी घी की चौथाई

चम्मच और एक छोटा चम्मच ख़ाललस शहद का, तीनों आपस में लमला कर दध ू के हमराह इस्ट्तमाल करें ।

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इस तरह सुबह नाश्ते से क़ब्ल और असर के बाद।

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गुिे ख़राब और काला यरक़ान: पहली मततबा आप का अब्क़री ररसाला पढ़ा, पढ़ कर बहुत ख़श ु ी हुई, आप अल्लाह के नेक बज़दे हैं, ररसाला अब्क़री के ज़ररए अल्हम्दलु लल्लाह लाखों फ़ायदा उठा रहे हैं। मेरी अम्मी के

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गुदों में मसला है , यूररक एलसि भी है , िॉकटसत की उदय ू ात खा कर वक़्ती सुकून आ िाता है मगर किर वही

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कुछ। इस के इलावा मेरे भाई को हे पटाइदटस सी है , बहुत कम्ज़ोर और र्चड़र्चड़ा हो गया है उस का भी इलाि

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तज्वीज़ फ़मात दें । शकु क्रया! (पोशीदह, मीरपरु लसंध)

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मश्वरा: आप अब्क़री दवाख़ाना का “पथरी िाइलालसज़ कोसत” अपनी वाललदा को चज़द हफ़्ते इस्ट्तमाल करवाएं, इन ् शा अल्लाह आप की वाललदा बबल्कुल ठीक हो िाएंगी। भाई के काला यरक़ान के ललए ये नुस्ट्ख़ा

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बहुत ही मि ु रत ब है । हुवल्िाफ़ी: सब्ज़ इलाइची ६ अदद, पोदीने के पत्ते १६, अदरक छोटे छोटे पीस १० ग्राम, सौंफ़ १ छोटा चम्मच। आठ कप पानी में िाल कर इतना उबालें कक ६ कप रह िाए, सुबह, दप ु हर, शाम खाने

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के बाद एक कप पी लें। (६ कप दो ददन के ललए हैं), और िोशांदा का इस्ट्तेमाल २ से ३ माह तक करें , इन ् शा अल्लाह ३ हफ़्ते में ही आप फ़क़त मह्सूस करें गे। ख़ास बात ये कक इस नुस्ट्ख़े के कोई साइि इफ़ेकट नहीं हैं। पोिीिह मसाइल और औलाि: मेरी उम्र ३१ साल है , अरसा तक़रीबन चार साल क़ब्ल मेरी शादी हुई िो कक

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नहीं होनी चादहये थी। अभी तक औलाद की नेअमत से महरूम हूाँ। विह ये है इब्तदाई िवानी यानन बलूग़त

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शुरू होते ही ग़लत काररया​ाँ शुरू कर दीं और ये लसस्ल्सला बारह साल तक चला, स्िस की विह से शदीद गमी,

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कमर में शदीद ददत , ननस्ट्यान, ककसी काम में ददल ना लगना, कम दहम्मती, र्चड़र्चड़ापन और सर चकराता

है , अज़्दवािी मआ ु म्लात में बबल्कुल ज़ीरो, सर में शदीद ख़श्ु की, बाल तेज़ी से र्गर और सफ़ेद हो रहे हैं, ददल

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की धड़कन तेज़, ज़बान का ज़ायक़ा कड़वा और दायमी नज़्ला व ज़ुकाम रहता है । बराह मेहरबानी मेरा कुछ

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इलाि करें । (म, ज़- बहावलपरु )

मश्वरा: मोहतरम! आप अपनी सह् ु बत दरु ु स्ट्त करें , मछली के सर साफ़ कर के टुकड़े टुकड़े कर के और हस्ट्बे

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मामूल हल्का लमचत मसाल्हा िाल कर इस का सूप बना लें यानन शोरबा। एक प्याली सुबह नाश्ते के बाद हल्का नीम गमत चस्ट् ु की चस्ट् ु की पीएं। बहुत अचछा ज़ायक़ा होता है लेककन अगर आप को नापसंद हो तो दवा

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समझ कर ज़रूर पी लें। हर तीन ददन के बाद एक प्याली पीएं चज़द ददन चज़द हफ़्ते चज़द महीने। एअसाबी

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कम्ज़ोरी के ललए लािवाब टोटका है । इस के इलावा आप ज़्यादा से ज़्यादा बबल्कुल पके हुए अमरूद काली

इस्ट्तमाल करें ।

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लमचत लगा कर इस्ट्तमाल करें । बे औलादी के ललए आप अब्क़री दवाख़ाना का “बेऔलादी कोसत” चज़द हफ़्ते

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काि! मेरे सर पर बाल आ जाएं: मोहतरम हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं बहुत परे शान हूाँ, मेरी उम्र २२ साल है , मेरे सर के दरम्यान और आगे बाल बबल्कुल हल्के हल्के से हैं, सब कहते हैं कक सर के बाल

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उतरवा दो, मेरा ददल नहीं करता, मझ ु े बहुत टें शन है, मेरे बाल भी बहुत पतले पतले हैं, सब कहते हैं कक तुम्हारा ख़ानदानी मसला है ये ठीक नहीं होंगे। मेरी सहे ललयां भी कॉलेि में मेरा मज़ाक़ उड़ाती हैं। शादी

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ब्याह पर भी सारे मेरे सर की तरफ़ दे ख कर हं सते हैं। बराह मेहरबानी कोई नस्ट् ु ख़ा बता दें , मेरा सर आगे से बबल्कुल गंिा है , अगर सही ना हुआ तो मुस्ट्तक़बबल में बड़े मसाइल हो सकते हैं। (आ- म) मश्वरा: ताज़ह मौसमी सस्ब्ज़यां, दध ू और िल र्ग़ज़ा में शालमल कीस्िये। सुबह व शाम सात सात लमनट

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तक सर में कंघी कीस्िये ता कक दौरान ख़न ू तेज़ हो और बालों को मुनालसब र्ग़ज़ा लमले। कचची घानी का

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सरसों का तेल सर में लगाएं। एक पाओ ख़श्ु क आम्ला एक ककलो पानी में रात को लभगो दीस्िये। सुबह ख़ब ू

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आग पर पकाएं। आधा पानी रह िाए तो छलनी में छान कर दब ु ारह पकाएं। इस में आधा ककलो सरसों का

तेल िाल कर हल्की आंच पर एक बार किर पकाएं। आधा ककलो चक़ ु ज़दर के क़त्ले काट कर तेल में िाल दें ।

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िब वो िल िाएं तो ठं िा कर के उज़हें ननकाल लें। हफ़्ते में तीन बार इस तेल की माललश करें । सुबह ननहार मंह ु बादाम की सात गररया​ाँ औए स्ट्याह लमचत पांच अदद खाया करें ताकक ददमाग़ की कम्ज़ोरी दरू हो और

bq

बाल बढ़ने लगें ।

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माहनामा अब्क़री दिसम्बर 2016 िुमारा नम्बर 126---------------------------pg 14

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मेरी श्ज़न्िगी कैसे बिली? रहनम ु ाई और पाकीज़गी के अस्बाब

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन दिसंबर 2016 के एहम मज़ामीन दहंिी ज़बान में

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क़ाररईन! हज़रत िी! के दसत, मोबाइल (मेमोरी काित), नेट वग़ैरा पर सुनने से लाखों की स्ज़ज़दर्गया​ाँ बदल रही हैं, अनोखी बात ये है चकूं क दसत के साथ इस्ट्म आज़म पढ़ा िाता है िहां दसत चलता है वहां घरे लू उल्झनें

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है रत अंगेज़ तौर पर ख़त्म हो िाती हैं, आप भी दसत सन ु ें ख़्वाह थोड़ा सन ु ें , रोज़ सन ु ें, आप के घर, गाड़ी में हर

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वक़्त दसत हो।

(कक़स्ट्त नम्बर १३)

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! ये मेरा दस ू रा ख़त है , गुज़श्ता एक ख़त में अपनी बीमारी

bq

का स्ज़क्र ककया था, आप ने दआ ु ओं के साथ बैतुल्ख़ला की दआ ु पढ़ने की दहदायत की थी, अल्हम्दलु लल्लाह आप की दआ ु मुस्ट्तिाब हुई मेरी बीमारी ना होने के बराबर रह गयी है और बेटों को भी बहुत फ़क़त पड़ा है ।

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आि मेरा ख़त ललखने का मक़्सद लसफ़त ये है कक “मेरी स्ज़ज़दगी कैसे बदली?” मैं तस्ट्बीह ख़ाना आने से पहले

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कया था और अब कया हूाँ!

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब! मझ ु े अपनी स्ज़ज़दगी से नफ़रत थी, चाहता था कक िल्दी मौत आ िाए और

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स्ज़ज़दगी के दख ु कशी का मंसूबा ु ों से ननिात लमले और कई दफ़ा िंदा लगा कर दयात में छलांग लगा कर ख़द

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भी बनाया मगर एक अंिानी ताक़त ने रोके रखा। मझ ु े चैन नहीं था बेक़रारी हर वक़्त ददल में कचक ू े लगाती,

ददमाग़ परे शान रहता था। वस्ट्वसे शैतानी आते थे। नऊज़ुबबल्लाह अस्ट्तग़कफ़रुल्लाह मुझे अल्लाह से ना

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उम्मीदी इतनी हो चक ु ी थी, एक दफ़ा एक सोच आई कक दहंदस्ट् ु तान िाऊं और एक मंददर में एक बड़े बुत्त को

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पूिना शुरू कर दं ।ू इस का सबब अल्लाह से नाराज़गी थी। मैं गाने सुनने का हद्द से ज़्यादा शौक़ीन था, मेरे पास एक नहीं पांच पांच टे प ररकॉितर थे किर सी िी प्लेयर आ गए और किर मोबाइल के मेमोरी काित गानों से

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फ़ुल होते। मुझे िांस का बे इंतहा शौक़ था गाने लगा कर ख़द ु ही नाचने लग िाता। किर अचानक मेरे मेमोरी

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कार्डतस और सी िी प्लेयसत ख़राब होने शुरू हो गए इस पर मैं बड़ा है रान था, घर वाले परे शान के मेमोरी कार्डतस पर मेमोरी कार्डतस और सी िी प्लेयर पर सी िी प्लेयर ख़रीद रहा है , लेककन वो िल्द ही ख़राब हो िाते। मैं

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन दिसंबर 2016 के एहम मज़ामीन दहंिी ज़बान में

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सोचता कक ऐसा कयूं हो रहा है । शायद अल्लाह मेरी ननिात के रास्ट्ते खोलने वाला था। किर ना मालूम कयूं मुझे इन चीज़ों से नफ़रत होना शुरू हो गयी। किर एक ददन दक ु ान से मुझे दो अनमोल ख़ज़ाना लमला मैं ने

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ऐसे ही ख़रीद ललया और हर वक़्त पढ़ना शरू ु कर ददया।

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मैं एक छोटी सी दक ु ान चलाता हूाँ, पहले सौदा कम होता था, बरकत बबल्कुल नहीं थी, मगर दो अनमोल ख़ज़ाना िब से शुरू ककया था दक ु ान की सेल ् भी ठीक ठाक बढ़ गयी थी और बरकत भी ख़ब ू थी। दो अनमोल ख़ज़ाना की विह से मझ ु े वज़ाइफ़ करने का शौक़ और बढ़ा और मैं सब ु ह व शाम की मस्ट्नन ू दआ ु एं पढ़ना शुरू हो गया और साथ माहनामा अब्क़री भी ख़रीदना शुरू हो गया स्िस का मुझे अनमोल ख़ज़ाना से ही पता

bq

चला। इसी तरह होते होते मुझे आप लमल गए, ददल को सुकून लमला, बुरी सोचों से बचा, अचछी सोचें आईं,

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बा िमाअत नमाज़ पहले कभी कभी पढ़ता था, बहुत ही कम। अब बाक़ायदा पढ़ता हूाँ। अब मैं अपने अल्लाह

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से बहुत ख़श ु हूाँ और उसे मनाने की भरपूर कोलशश करता हूाँ। अल्लाह से पपछले गुनाहों की मुआफ़ी मांगता हूाँ और आइंदा गन ु ाहों से बचाने की दआ ु करता हूाँ। किर आप के दसत इंटरनेट से ले कर मेमोरी काित में भर कर

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हर वक़्त सुनता रहता हूाँ और मज़ीद रहनुमाई और पाकीज़गी के अस्ट्बाब लमलते हैं और हर शब आप के

ललए, आप की अब्क़री टीम के ललए और सारे अब्क़री पढ़ने वालों की आकफ़यत और भलाई की दआ ु एं मांगता

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हूं। आप की पपछली चौदह नस्ट्लों और आइंदा चौदह नस्ट्लों के ललए भलाई की दआ ु एं करता हूाँ और साथ अपनी पपछली और आने वाली नस्ट्लों की ख़ैर और ईमान व सलामती की दआ ु एं करता हूाँ और ख़श ु हूाँ और

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अब हालत ये है कक सोचता हूाँ कक अगर मेरी पपछली हालत में मौत आ िाती तो कया होता।

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अल्लाह ने करम कर ददया कक मेरी ना सुनी मुझे स्ज़ज़दगी दी और अब मैं तवील उम्र की दआ ु मांगता हूं

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अपने ललए, अपने घरवालों के ललए, आप के ललए और आप के घरवालों के ललए और ये दआ ु मांगता हूं कक ये

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रोशनी आप के घराने में क़यामत तक रोशन हो और िारी हो ताकक ख़ल्क़ ख़द ु ा दख ु ों, ग़मों, परे शाननयों, मिबूररयों से बचे, इस वक़्त दज़ु या में अंधेरा ही अंधेरा है , आसार क़यामत हैं, अपने बेगाने बन गए हैं, नफ़्सा नफ़्सी है , गन ु ाहों को बरु ा नहीं समझा िाता, सच बोल्ना ऐब है , झट ू बोल्ने वाले कक इज़्ज़त है , फ़्रॉि, धोका, Page 27 of 51 www.ubqari.org

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन दिसंबर 2016 के एहम मज़ामीन दहंिी ज़बान में

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चोरी हुनर बन गयी है । सादगी को बेवक़ूफ़ी समझा िाता है । ददखावा, ग़ीबत, चग़ ु ली ज़्यादा होती है , हर कक़स्ट्म की नुमाइश अचछी लगती है , पदात, हया और ग़ैरत कम होती िा रही है । दज़ु या तल्बी बढ़ गयी है , हर

rg

शख़्स कमाने की कफ़क्र में है । दौलत के नशे और ग़रू ु र में लोग खो गए हैं। आख़ख़रत की कफ़क्र नहीं, अल्लाह को भूल गए हैं, दज़ु या की रं गीननयां बढ़ गयी हैं, कफ़त्ने बढ़ते िा रहे हैं। अम्न, मुहब्बत, प्यार नायाब है ,

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सक ु ू न नापीद है, ऐसी हालत में आप की कोलशशें अल्लाह और उस के रसल ू ‫ﷺ‬- और उन का पैग़ाम पह ु ं चाना सहराओं में नई आबकारी है , अल्लाह आप की तौफ़ीक़ात में इज़ाफ़ा करे , उम्र दराज़ करे , इल्म व दहकमत के तमाम दरवाज़े आप पर खोल दे और हमारे और तमाम मुसल्मानों के सीने में आप की दहदायत को क़ुबूल

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करने की तौफ़ीक़ दे । आमीन। (म,न)

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मुश्श्कल में अल्लाह को पुकारने का नक़ि इनआम

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माहनामा अब्क़री दिसम्बर 2016 िम ु ारा नम्बर 126---------------------------pg 15

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वाज़ेह रहे नाम और मुक़ाम की इत्तफ़ाक़न मुमासलत हो सकती है ।

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! इस तहरीर में “दआ ु की ताक़त” पर रोशनी िालने की

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कोलशश कर रही हूाँ। ये उन बहन भाइयों के ललए है िो िुमेरात के रोज़ तस्ट्बीह ख़ाना में दसत ख़त्म होने के साथ ही िाना शुरू कर दे ते हैं मैं ने िाने वाली बहनों को बहुत कहा दआ ु तो मांग लें , िवाब था: नहीं सीदढ़यों

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पर रश हो िाएगा हम ज़रा आराम से ननकल िाएंगी।” इसी तरह मस्स्ट्िद में भी िब इमाम साहब सलाम

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िेरते हैं तो लोग उसी वक़्त उठ कर चले िाते हैं और इज्तमाई दआ ु में शालमल नहीं होते। ये हमारे ईमान का

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दहस्ट्सा हौ कक अल्लाह रब्बल ु इज़्ज़त अपने तमाम बज़दों की ख़्वाह वो नेक हों या गन ु ाहगार आललम हों या

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िादहल सब की दआ ु ओं को सुनता है और उज़हें क़ुबूल करता है , अल्लाह मांगने वालों को महरूम नहीं करता। मेरी स्ज़ज़दगी में कई बार ऐसे मुशादहदात और तिुबातत हुए कक मैं ने नोट ककया कक ककस तरह अल्लाह तआला हमारी दआ ु एं क़ुबूल करने के हालात पैदा कर दे ता है और दे खते दे खते वो दआ ु क़ुबूल हो िाती है ।

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एक ददन मौसम बहुत ख़राब था, मेरे शौहर साहब ने कहा कक गाड़ी आि तुम अपने पास रख लो, मुझे आि ऑकफ़स में ज़्यादा काम है तम ु अपने दहसाब से ऑकफ़स से घर चली िाना, मैं ख़श ु हो गयी कक चलो आि

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अम्मी की तरफ़ चककर लगाउं गी, शौहर साहब अपने दफ़्तर उतर गए मैं अपने दफ़्तर आ गयी। मेरा ध्यान अचानक अपनी बहन की तरफ़ चला गया कक काफ़ी ददन हो गए उस ने कोई फ़ोन नहीं ककया, मैं इस के बारे

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में सोचती रही किर काम में लग गयी, मैं ने सोचा कक फ़ाररग़ हो कर ख़द ु ही बहन को फ़ोन कर लंग ू ी, कुछ दे र बाद उस का फ़ोन आ गया, मैं ने ख़ैररयत दरयाफ़्त की तो बताया कक बेटे को ननमोननया हो गया है , लमयां इस्ट्लाम आबाद गए हैं, मैं अकेली हूाँ, बहुत परे शान हूाँ, बेटे को नतब्बी सहूललयात कैसे मुयस्ट्सर हो कयूंकक

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बाहर बाररश हो रही है , बेटा रो रहा है , बाहर ररकशा कैसे लाने के ललए िाऊं? किर मैं ने उसे कहा कक वो कफ़क्र

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ना करे मैं अभी आ रही हूाँ तुम तय्यार हो िाओ, फ़ोन बज़द हुआ तो मैं ने सोचा वाह मेरे रब तू ककतना

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मेहरबान और शफ़क़त करने वाला है तू कैसे कैसे अस्ट्बाब बनाता है आि सब ु ह तू ने पहले मेरे ददल में ये

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ख़्याल िाला और ज़ेहनी तौर पर तय्यार ककया कक मैं उस की ख़ैररयत के ललए फ़ोन करूाँ। उधर मेरी बहन के

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बक़ौल कक वो दआ ु ा अल्लाह ने सच ु कर रही थी कक अल्लाह तआला उस के काम का सबब बना दे , बबला शब

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फ़मातया: तुम्हारे रब ने हुकम ददया है मुझे पुकारो, मैं तुम्हारी दआ ु ओं को क़ुबूल करने वाला हूाँ।”

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एक ददन मेरे शौहर साहब कहीं िा रहे थे, रश में िंस गए, पेरोल ख़त्म हो गया, उज़हों ने मुझे फ़ोन ककया मैं ऐसे मोड़ पर हूाँ िहां अंधेरा है , दरू दरू तक कोई पैरॉल पम्प नज़र नहीं आ रहा, मैं परे शान हो गयी मैं ने

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हौसला ददया और कहा हज़रत हकीम साहब ‫ دامت بركاتهم‬ने िो सूरह कौसर का वदत ददया है आप भी पढ़ो, मैं

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भी पढ़ती हूाँ, अल्लाह िल्दी मुस्श्कल से ननकाल दे गा, किर हम ने अल्लाह से लम्बी लम्बी दआ ु एं और सूरह

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कौसर पढ़ना शुरू कर दी, शौहर साहब कहते हैं अभी लसफ़त दस लमनट हुए थे कक अचानक एक लड़का मोटर

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साईकल पर आ गया मुझे कहता है कक आप गाड़ी में बैठो मैं मोटर साईकल पर बैठ कर पाओं लगा कर धकका लगाता हूाँ, अगले मोड़ पर पेरोल पम्प है मैं गाड़ी में तो बैठ गया, लेककन ये सोचता रहा ये मोटर साईकल वाला मुझे आता नज़र ना आया और गाड़ी ऐसे चल रही थी िैसे चार आदमी धकका लगा रहे हों,

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पैरॉल पम्प पर पुहंच कर लमयां साहब कहते हैं कक मैं नीचे उतरा कक िवान का शुकक्रया अदा कर सकंू मगर वो इतनी दे र में िा चक ु ा था। ये दआ ु मैं अल्लाह को पुकारने का इनआम था, दआ ु मांगने और सूरह कौसर

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पढ़ने से मसला हल हो गया। एक ददन मैं दसत पर आने लगी तो दे खा मेरे बेटे को १०२ बख़ ु ार था, मैं परे शान हो गयी, उस के पास बैठ गयी, मैं ने उसे समझाया कक इंटरनेट पर दसत सुन कर अपने ललए दआ ु मांगना, मैं

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भी मांगंग ू ी, ख़ैर दसत में आ गयी उस ददन दसत में वज़ू के तीन घोंट पानी का अमल (यानन वज़ू मक ु म्मल करने के बाद तीन घोंट पानी पीना है । एक घोंट पर अल्लाह शाफ़ी, दस ू रे पर अल्लाह काफ़ी, तीसरे पर अल्लाह काफ़ी पढ़ना है ) और अज़ान और अफ़हलसब्तुम का अमल बताया गया, मेरे बेटे ने हर पांच, पांच

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लमनट बाद वज़ू कर के आख़री तीन घोंट पपये, अज़ान वाला अमल ककया, इधर मैं ने दसत में रो रो कर

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अल्लाह से अपने बेटे की सेहत मांगी िब मैं घर गयी तो मेरा बेटा दरवाज़ा खोल रहा था, ये था अल्लाह से

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दआ ु मांगने और ऊपर बताया हुआ अमल और रोने से अल्लाह ने परे शानी दरू की। दआ ु एं आंसओ ु ं में गज़ ू धी

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हुई होनी चादहऐं कयूंकक स्ितनी मेरे मौला की बुलज़द शान है उतनी ही बड़ी बड़ी हमारी कोतादहया​ाँ हैं, गुनाह हैं

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लग़स्ज़शें हैं।

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िन्ु या का क़ानन ू (मौलाना वहीदद्द ु ीन ख़ान)

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गाये दध ू दे ती है , ये हर आदमी िानता है , मगर बहुत कम लोग हैं िो ये सोचते हों कक गाये कैसे दध ू दे ती है ?

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गाये दध ू िैसी चीज़ दे ने के क़ाबबल लसफ़त उस वक़्त बनती है िब कक वो घास को दध ू में कज़वटत (तब्दील) कर सके। गाये िब इस अनोखी सलादहयत का सबूत दे ती है कक वो कम तर चीज़ को आला चीज़ में तब्दील कर सकती है , उसी वक़्त ये मुस्म्कन होता है कक वो ख़द ु ा की दज़ु या में दध ू िैसी क़ीमती चीज़ फ़राहम करने वाली

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बने।

यही हाल दरख़्त का है , दरख़्त से आदमी को दाना, सब्ज़ी और िल लमलता है मगर ऐसा कब होता है । ऐसा

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उस वक़्त होता है िब कक दरख़्त इस सलादहयत का सबूत दे कक उस के अंदर लमट्टी और पानी िाला िाए

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और उस को वो तब्दील कर के दाना और सब्ज़ी और िल की सरू त में ज़ादहर करे दरख़्त के अंदर एक कम्तर

चीज़ दाख़ख़ल होती है और उस को वो अपने अंदरूनी मैकेननज़्म के ज़ररए तब्दील कर दे ता है और उस को

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बरतर चीज़ की सूरत में बाहर लाता है । यही मुआम्ला इंसानी स्ज़ज़दगी का है । स्ज़ज़दगी भी इसी कक़स्ट्म का

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इम्तेहान है । मोिूदह दज़ु या में इंसान के साथ भी यही होता है कक उस को महरूलमयों से साबबक़ा पड़ता है । उस को ना ख़श ु गवार वाकक़आत पेश आते हैं। यहां दब ु ारह इंसान की काम्याबी ये है कक वो अपने ना

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मवाकफ़क़ हालात को मवाकफ़क़ हालात में तब्दील कर सके। वो अपनी नाकालमयों के अंदर से काम्याबी का रास्ट्ता ननकाल ले। यही दज़ु या का क़ानून है । इंसान के ललए भी और ग़ैर इंसान के ललए भी। िो कोई इस ख़ास

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सलादहयत का सबत ू दे । वही इस दज़ु या में काम्याब है और िो इस सलादहयत का सबत ू दे ने में नाकाम रहे

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वो ख़द ु ा की इस दज़ु या में अपने आप को नाकामी से भी नहीं बचा सकता। ख़द ु ा को हम से ये मतलूब है कक

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हमारे अंदर “घास” दाख़ख़ल हो और वो “दध ू ” बन कर बाहर ननकले, लोग हमारे साथ बरु ाई करें तब भी हम उन के साथ भलाई करें । हमारे साथ ना मवाकफ़क़ हालात पेश आएं तब ही हम उन को मवाकफ़क़ हालात में तब्दील कर सकें। Page 31 of 51 www.ubqari.org

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हमेिा हज़रत हकीम साहब ‫ دامت بركاتهم‬की िआ ु ओं में रहने का गुर कॉपी बनाएं या िायरी स्िस में अपने रूहानी, नतब्बी तिब ु ातत, कैकफ़यात अपनी आज़माई हुईं या बड़े बढ़ ू ों के

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सुने हुए तिुबातत ललखें। रोज़ाना ललखें, चाहे एक या दो लसफ़हात ही कयूं ना हों। कॉपी मुकम्मल होने पर

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हज़रत हकीम साहब ‫ دامت بركاتهم‬को र्गफ़्ट करें । िाक के ज़ररए या दफ़्तर माहनामा अब्क़री में ख़द ु आ कर िमा करवाएं और हमेशा हज़रत हकीम साहब की दआ ु ओं में रहने का ज़ररया बन िाएं।

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बाएं हाथ वालों की परे िानी हमेिा के शलए ख़त्म

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माहनामा अब्क़री दिसम्बर 2016 िुमारा नम्बर 126--------------------------pg 16

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(अगचे नतब्बी तौर पर बाएं हाथ से काम करने की तौज़ीह तो मौिूद है ताहम एक समािी हक़ीक़त ये है कक

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सलूक रवा िाता है और इस फ़ेअल को मनहूस समझा िाता है ।)

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(नसरीन मुग़ल, कराची)

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दज़ु या के मुख़्तललफ़ मुआशरों और तहज़ीबों में बाएं हाथ से काम करने वालों से हक़्क़ारत आमेज़ इम्तयाज़ी

बाएं हाथ से काम करने की आदत बचचे की िबलत में उस वक़्त भी मौिद ू होती है िब वो शऊर की मस्ज़ज़ल

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से बरसों दरू होता है । अगचे दाएं हाथ वाले मुआशरे में बाएं हाथ से काम करने वाला एक अछुंबे की सूरत

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अस्ख़्तयार कर िाता है ललहाज़ा वो वाल्दै न स्िन के बचचों में बाएं हाथ के इस्ट्तमाल की आदत के इशारे

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लमलने लगते हैं वो इस लसस्ल्सले में तवील अरसा तक कफ़क्रमंद रहते हैं। उन के पेश नज़र ये तशवीश होती है कक आया कक ये बचचा दाएं हाथ के ज़ररए काम सर अंिाम दे ने वाली दज़ु या में नामतल तौर तरीक़ों से स्ज़ज़दगी

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बसर कर सकेगा या नहीं? वो बचचे की इस “ख़राबी” को दरू करने की भी कोलशश करते हैं ताहम मादहरीन इस तरीक़े की हौसला लशकनी करते हैं। नतब्बी और ददमाग़ी मुआम्लात के मादहरीन का कहना है कक अगर

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बचचा या कोई बड़ा शख़्स बाएं हाथ से भी अचछी तरह काम कर रहा है तो उस की हालत बदल्ने के ललए मुदाख़ख़लत नहीं करना चादहए।

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एक अंदाज़े के मुताबबक़ दज़ु या भर की कुल आबादी के तक़रीबन पंद्रह से बीस फ़ीसद अफ़राद ऐसे हैं िो बाएं

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हाथ से काम करते हैं। दज़ु या में बहुत सी नाम्वर तरीन ऐसी शस्ख़्सयात गज़ ु री हैं िो बाएं हाथ से काम करती थीं। ऐसे लोगों में शहं शाह लसकज़दर आज़म, साबबक़ अमरीकी सदर बबल स्कलंटन, िॉित बुश सीननयर, मललका पवकटोररया, साइंसदान बेज़िलमन फ़्रेंस्कलन, कयब ू ा के सदर फ़ेिल कस्ट्त्रह, दज़ु या भर और

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पाककस्ट्तान के मशहूर कक्रकेटर वसीम अक्रम, सईद अनवर का शुमार बाएं हाथ वालों में ककया िाता है । बबला शुबा हम दाएं हाथ से काम करने वाले मुआशरे में रहते हैं यानन हम िो चीज़ें इस्ट्तमाल करते हैं वो

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अमूमन दाएं हाथ के लोगों के ललए होती हैं। हमारे दरवाज़ों के हैंिल, ताले, पेच कस, कारें हत्ता कक हमारे

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ललबास के बटन भी दाएं हाथ से काम करने वाले लोगों के ललए बने हुए हैं। लमसाल के तौर पर मेज़ के

दरवाज़ों से ले कर कम्प्यूटर माऊस तक तमाम की तमाम चीज़े दाएं हाथ से काम करने वाले लोगों के ललए

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ही बनाई िाती हैं और किर िब मैदान अमल में बाएं हाथ वालों को उन चीज़ों को इस्ट्तमाल करना पड़ता है

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तो किर ज़ादहर है कक उज़हें “परे शानी” तो ज़रूर होती है ।

बाएं हाथ वालों को लाहक़ परे शाननयों के बाविूद मग़ररब में एक नई थ्योरी हाल ही में मंज़र आम पर आई है

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िो तवील तहक़ीक़ और िाइज़ों के बाद मततब की गयी है । ये तहक़ीक़ बाएं हाथ वालों के ललए यक़ीनन

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हौसला अफ़ज़ा होगी। तहक़ीक़ में कहा गया है कक “दाएं हाथ से काम करने वालों की ननस्ट्बत बाएं हाथ वाले ज़्यादा स्ट्माटत ददलकश, ज़हीन, मुआम्ला फ़हम और अपने अंदर क़ायदाना सलादहयतों के हालमल होते हैं।

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अब ये नज़ररया हक़ीक़त पर मुबनी है या दे व्मलाई कक़स्ट्सों की तरह का कोई कक़स्ट्सा। ये बात तो आने वाला

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वक़्त ही साबबत करे गा। आइए! दे खते हैं कक मुआम्ला कया है ? यहां ये सवाल पैदा होता है कक बअज़ लोग दाएं हाथ के बिाए बाएं हाथ से अपने रोज़ मरत ह के तमाम मामल ू ात कयंू कक सर अंिाम दे ते हैं। इस के

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन दिसंबर 2016 के एहम मज़ामीन दहंिी ज़बान में

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अस्ट्बाब कया हैं आया कक ये फ़ेअल इंसानी स्िस्ट्म के ककसी िीन के बाइस रॉनमा होता है या इंसानी स्िस्ट्म के कुछ और अवालमल इस के मुहरत क हैं? इन सवालात के बारे में अभी तक नतब्बी और ददमाग़ी मादहरीन

rg

और साइंसदानों ने मत ु कफ़क़ा तौर पर कोई िवाब पेश नहीं ककया है । मादहरीन ददमाग़ के एक तब्क़े का कहना है कक इस का सबब इंसानी स्िस्ट्म का कोई िीन है स्िस की विह से फ़दत के बचपन में ही उस में ये

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तब्दीली ज़हूर पज़ीर हो िाती है । यानन कक उस िीन के ज़ेर असर वो दाएं या बाएं हाथ के इस्ट्तमाल की आदत पकड़ता है । हक़ीक़त ये है कक इंसानी ददमाग़ का दायां दहस्ट्सा बाएं और बायां दहस्ट्सा दाएं तरफ़ वाले स्िस्ट्म को कंरोल करता है । इसी बुज़याद पर दाएं हाथ वाले कहते हैं कक वो ददमाग़ के दाएं दहस्ट्से के ज़ेर असर

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होते हैं और चकूं क हमारे मुआशरे में “दाएं” को सही लसम्त समझा िाता है ललहाज़ा उन का दावा है कक वो और

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उन के मुआम्लात दरु ु स्ट्त होते हैं। अगचे ये बात तो एक मज़ाक़ मालूम होती है ।

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अगचे नतब्बी तौर पर तो बाएं हाथ से काम करने की तौज़ीह तो मौिूद है ताहम एक समािी हक़ीक़त ये है कक दज़ु या के मख़् ु तललफ़ मुआशरों और तहज़ीबों में बाएं हाथ से काम करने वालों से हक़्क़ारत आमेज़

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इम्तयाज़ी सलूक रवा िाता है और इस फ़अल को मनहूस समझा िाता है । मस्ट्लन लातेनी ज़बान में दाएं हाथ से काम करने वालों को Sinister कहा िाता है स्िस के मायने शैतान, ना मब ु ारक, मनहूस, दग़ाबाज़

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वग़ैरा हैं। फ़्रांस में उज़हें बेहूदह, ना वाकक़फ़, अनाड़ी, भद्दा वग़ैरा भी कहा िाता है ।

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ख़द ु हमारे मुआशरे में बाएं हाथ के इस्ट्तमाल को अचछा नहीं समझा िाता है । बद्द कक़स्ट्मती से ककसी घर में अगर ऐसा बचचा पैदा हो िाए तो बड़े बूढ़े कफ़त्रत की कारगुज़ारी को समझने के बिाए इसे बचचे के ख़द ु

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अस्ख़्तयारी फ़अल पर मह्मूल करते हैं और इसे दरु ु स्ट्त करने के ललए बचचों को सज़ाओं का सामना करना

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हो कर तो बदलने से रहा।

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भी पड़ िाता है लेककन हक़ीक़त तो ये है कक बचचा अपनी ज़ेहनी बनावट को स्िस्ट्मानी सज़ाओं से ख़ौफ़ज़्दह

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माहनामा अबक़री मैगज़ीन दिसंबर 2016 के एहम मज़ामीन दहंिी ज़बान में

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ओमान से तअल्लुक़ रखने वाले एक मादहर नफ़्सयात का कहना है कक “अगचे दाएं हाथ वालों को बाएं हाथ वालों पर फ़ौकक़यत दी िाती है ताहम दे खा िाए तो दोनों में बअज़ चीज़ें मुश्तकात हैं। यानन कक हास्ज़र िवाबी,

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िज़्बाती पन, अपना नक ु ता नज़र रखा, संिीदगी, मआ ु म्ला फ़हमी, शख़्सी आज़ादी, तख़लीक़ी सोच और दज़ु या में आने का एक िैसा तरीक़ा। ललहाज़ा िब ये चीज़ें दाएं और बाएं हाथ वाले दोनों में मुश्तकात हैं तो किर

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ककसी एक को दस ू रे पर फ़ौकक़यत दे ना दरु ु स्ट्त नहीं। इसी तरह हम अज़ ् ख़द ु अपने र्गदत तनाव का माहौल पैदा करते हैं। दाएं हाथ का इस्ट्तमाल अगचे ददमाग़ के ककसी िीन के बाइस वक़ूअ पज़ीर होता है , ललहाज़ा उसे ककसी समािी, मुआशरती और घरे लू मुआम्ले में ख़श ु बख़्त या नहूसत क़रार दे ना दरअसल ख़ल्क़

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इंसानी के काम में कीड़े ननकालना है । उन का कहना है कक “हमें क़ुदरत के कामों के आगे सर झुकाना चादहए

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ना कक उन में नक़्क़ाइस तलाश करने चादहएं” उन के मुताबबक़ बाएं हाथ वालों की तरह दाएं हाथ वाले भी

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इस मआ ु शरे का दहस्ट्सा हैं, ललहाज़ा रोज़ मरत ह इस्ट्तमाल की चीज़ें मस्ट्लन फ़ाऊज़टे न पेन, कम्प्यूटर माउस,

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पत्लून का बेल्ट, दफ़्तरी कामों में इस्ट्तमाल होने वाली मेज़ें और इसी तरह की दीगर अश्या तय्यार करने

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वाली कम्पननयां भी अपनी मस्ट्नआ ू त में थोड़ी तअदाद में ही सही, ऐसी चीज़ें ज़रूर तय्यार करें िो बाएं हाथ

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वालों की स्िस्ट्मानी ख़स ु ूलसयात को पेश नज़र रख कर तय्यार की गई हों। इसी तरह ना लसफ़त हम उन को ये

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एह्सास ददलाने में काम्याब होंगे कक वो भी बाएं हाथ वालों की तरह हमारे मआ ु शरे का दहस्ट्सा हैं बस्ल्क दस ू री

तरफ़ उन के इस्ट्तअदाद कार में भी ख़ानतर ख़्वाह इज़ाफ़ा हो सकेगा।

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हुस्न ख़ल्क़ ही िीन है !

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हुज़रू नबी करीम ‫ﷺ‬- के इशातदात: हुस्ट्न ख़ल्क़ ही दीन है । मस ु ल्मान बद्द ख़ल्क़ और बख़ील नहीं होता।

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िब ककसी क़ौम में कोई आदमी गुनाह का मततकब होता है और लोग उसे रोकने पर क़ाददर नहीं होते तो

इल्म हालसल करो।

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अल्लाह तआला ऐसे लोगों को मरने से पहले ककसी अज़ाब में मब्ु तला फ़मात दे ते हैं। गोद से ले कर गोर तक

(हािी मुहम्मद वाररस, रावलपपंिी) Page 35 of 51 www.ubqari.org

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माहनामा अब्क़री दिसम्बर 2016 िुमारा नम्बर 126--------------------------pg 17

बड़ी बूदढ़या​ाँ तेल लगा कर बाल मज़बूती से कयूं बांधती थीं?

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(िब छोटे होते थे तो दादी अम्मा​ाँ पकड़ कर सर में तेल की माललश करती थीं और किर कस्ट्स के चदु टया बांध

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दे ती थीं, दो ददन चदु टया बंधी रहती, तीसरे ददन चदु टया खल ु वा कर सर धल ु वाती थीं। इस का नतीिा ये ननकला कक आि भी सर के बाल घने, स्ट्याह चमकदार होने के साथ साथ ख़श्ु की व लसकरी से पाक हैं।) मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्सलामु अलैकुम! मैं अपनी अब्क़री की क़ाररईन बहनों के ललए एक अपने

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ख़ानदान का एक आज़मद ू ह टोटका असातल कर रहा हूाँ यक़ीनन इस से वो भरपरू फ़ायदा उठाएंगी। क़ाररईन! ये १९७३ की बात है घर में बड़ी भाभी मरहूमा एक माहनामा ररसाला मंगवाया करती थीं मैं ने नया नया

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मैदरक ककया था, ये ररसाला मैं ही उज़हें ख़रीद कर ला दे ता, मझ ु े भी आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता ख़वातीन का ये

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ररसाला पढ़ने का शौक़ पैदा हो गया। क़ुदरत ख़द ु ा की उन ददनों चढ़ती िवानी थी और मैं सर के बाल र्गरने

के मज़त में मब्ु तला हो चक ु ा था, यानन मेरे सर के बाल बहुत तेज़ी से र्गरना शरू ु हो गए, क़रीब था कक घर के

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सब मदत हज़रात की तरह मैं भी गंिा हो िाता कक उसी ररसाले में मैं ने एक िॉकटर साहब का ककसी को इस

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लसस्ल्सले में एक मश्वरा पढ़ा मैं ने भी अल्लाह अज़्ज़ व िल का नाम ले कर उस पर अमल शुरू कर ददया, किर अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त ने मुझे इस से ननिात अता फ़रमाई। बेशक वही लशफ़ा दे ने वाली ज़ात है । इस पर

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मेरा कोई ख़ास ख़चत भी नहीं आया, इस के बाद मैं ने हज़ारों लोगों को ये नुस्ट्ख़ा बताया और इंतहाई काम्याब पाया। नस्ट् ु ख़ा ये है : अल्लाह करीम का नाम ले कर एक तो नमाज़ लाज़्मी पढ़नी है , दौरान सज्दा लम्बा

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सज्दा करना है , दस ू रा रोज़ाना अपने सर को आम साबुन या िो भी मुयस्ट्सर हो उस से सर धोना है , मैं

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गलमतयों में रोज़ाना और सददत यों में दो तीन ददन बाद सरू ि चढ़े नमाज़ फ़ज्र के बाद अपना सर नीम गमत पानी

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से धो लेता था। सर धोने के बाद उस को तोललये से साफ़ कर लें और एक दो या तीन लमनट के ललए सरसों के तेल से नाख़न ु ों से सर की माललश करता। यानन सर को तेल लगा कर नाख़न ु ों से उस की माललश करता। इस में हथेली बबल्कुल नहीं लगानी बस्ल्क सर के मसाम िो बाल र्गरने से बंद हो िाते हैं और गंिेपन का बाइस Page 36 of 51 www.ubqari.org

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बनते हैं उन मसाम को नाख़न ु ों से खोलना होता है यानन कक सर में एक तरह का हल चलाना होता है इस दौरान अगर बाल लशद्दत से र्गरते मह्सूस हों तो घबराना नहीं, मुसल्सल ये अमल करना है और अगर हो

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सके तो सब ु ह सर के बल कुछ दे र के ललए खड़े भी हो िाया करें , दो से पांच लमनट, आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता वक़्त बढ़ाते िाएं। अब मेरी उम्र ५८ साल है, अल्हम्दलु लल्लाह सर को अभी तक तेल लगाता हूाँ, सर के बाल भी

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काले हैं और आि भी क़ाइम व दायम हैं। लसफ़त दाढ़ी सफ़ेद हुई है लोग पछ ू ते हैं सर के बाल सफ़ेद कयंू नहीं हुए तो मैं उज़हें नमाज़ का कमाल और अल्लाह तआला की दी हुई नेअमत सरसों के तेल का कमाल बताता हूाँ। मैं ने ये अमल कई लोगों को बताया, अल्हम्दलु लल्लाह काम्याब पाया। (एस एम अस्ट्लम, रावलपपंिी)

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बालों की सेहत और मुख़्तशलफ़ अक़्साम के तेल

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िब छोटे होते थे तो दादी अम्मा​ाँ पकड़ कर सर में तेल की माललश करती थीं और किर कस्ट्स के चदु टया बांध

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दे ती थीं, दो ददन चदु टया बंधी रहती, तीसरे ददन चदु टया खल ु वा कर सर धल ु वाती थीं। इस का नतीिा ये

ननकला कक आि भी सर के बाल घने, स्ट्याह चमकदार होने के साथ साथ ख़श्ु की व लसकरी से पाक हैं लेककन

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आि ज़माना बदल गया है और लोगों ने बालों में तेल लगाना ही छोड़ ददया है । नोबत तो यहां तक आन

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पुहंची है कक अब अगर बचचों के सर में तेल लगाएं तो लगाने ही नहीं दे ते। शहरों से शुरू होने ये फ़ैशन अब छोटे छोटे शहरों और क़स्ट्बों को अपनी लपेट में ले चक ु ा है ताहम गाओं, दे हातों में आि भी माएं बस्चचयों को

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बचपन ही से सर में तेल लगा कर चदु टया बांध दे ती हैं। बुज़ुगत ख़वातीन कहती हैं कक तेल लगाने से बालों की नशो व नुमा होती है और बाल तेज़ी से बढ़ने के साथ साथ घने भी होने लगते हैं। ये बात ददल को भी लगती है

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कयूंकक आि भी बुज़ुगों के बाल दे खें तो बड़ी हद्द तक स्ट्याह और घने ही लमलेंगे। आि कल ये अकसर सुनने

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को लमलता है कक “बाल बहुत कम्ज़ोर हो गए हैं, बाल बहुत र्गरते हैं, बाल लम्बे ही नहीं होते, अगर सोचें तो

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इस की विह यही है कक हम अपने बालों की सेहत और उन की ख़रु ाक पर तवज्िह ही नहीं दे ते और िब बचपन से ही उन और तवज्िह ना दी गयी हो तो किर बड़े होने पर बालों को बीमाररयों का लाहक़ हो िाना यक़ीनी बात है । अगर आप की ख़्वादहश है कक आप के सर के बाल घने, स्ट्याह और चमकदार रहने के साथ Page 37 of 51 www.ubqari.org

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साथ ख़श्ु की व लसकरी से भी महफ़ूज़ रहें तो सर में सरसों का तेल लगाना शुरू कर दें इस क़दर कक वो बालों की िड़ों तक पुहंच कर आप के बालों की ठीक नशो व नुमा कर सके। तेल लसफ़त बालों ही के ललए ज़रूरी नहीं।

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आइए! हम आप को तेल की मख़् ु तललफ़ अक़्साम और उन के इस्ट्तमाल के मत ु अस्ल्लक़ मफ़ ु ीद बातें बताएं।

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कलौंजी का तेल: हदीस नबवी ‫ ﷺ‬है कक “कलौंिी में मौत के लसवा हर बीमारी का इलाि है ” नतब्बी नक़् ु ता नज़र से रौग़न कलौंिी, ज़्याबतीस, दम्मा, क़ब्ज़, स्िल्दी अमराज़ के साथ साथ अमराज़ क़ल्ब, ख़श्ु की और ददत दरू करने के इलावा बालों के ललए भी बेहद्द मफ़ ु ीद है । ज़ाती तिब ु ात है , मैं ने छे महीने बालों में कलौंिी का तेल लगाया। इस से मेरे बाल िो पहले क़ुदरती तौर पर गोल्िन ब्राउन थे वो स्ट्याह और पहले से ज़्यादा

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चमकदार हो गए। ज़ैतून का तेल: हदीस नबवी ‫ ﷺ‬है कक “ज़ैतून के तेल को खाओ और उस से स्िस्ट्म की

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माललश करो कयूंकक ये पाक साफ़ और मुबारक है ” ज़ैतून का तेल ख़श्ु क स्िल्द को नमत व मुलायम करता है

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और चेहरे की रं गत ननखारता है । बदन को क़वी करता है , इसी ललए कम्ज़ोर बचचों को ज़ैतून के तेल से

माललश करते हैं। ज़ैतन ू का तेल फ़ाललि गंदठया के इलावा ख़ाररश, चंबल, ख़श्ु की और गंि की सरू त में

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लगाना भी मुफ़ीद है । सरसों का तेल: सरसों का तेल स्िस्ट्म की माललश और बालों में लगाने के इलावा खाना पकाने के ललए भी इस्ट्तमाल ककया िाता है । ये ना लसफ़त स्िस्ट्म में कोलेस्ट्रॉल बढ़ने नहीं दे ता बस्ल्क घी और

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दीगर तेल के बर अकस स्िस्ट्म में चबी और वज़न को भी बढ़ने से रोकता है । इसे अचार की तय्यारी में भी इस्ट्तमाल करते हैं। सरसों के तेल से सर के बालों की रोज़ाना माललश बालों को घना और चमकदार बनाने के

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इलावा सर की स्िल्द को ख़श्ु की व लसक्री से साफ़ करती है नीज़ इस से ददमाग़ को भी तरावट और सुकून

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लमलता है । नाररयल का तेल: नाररयल का तेल बालों में लगाने से ना लसफ़त बाल र्गरना बंद हो िाते हैं बस्ल्क

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ये बालों को नमत व मुलायम चमकदार और लम्बा भी करता है । इस की क़ुदरती ख़श ु गवार ख़श ु बू ताज़्गी का

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एह्सास भी पैदा करती है । वाज़ेह रहे कक नाररयल का तेल भी खाना पकाने में इस्ट्तमाल ककया िाता है । आम्ला, रीठा और शिकाकाई का शमकस तेल: ये तेल सर पर लगाने से बालों की िड़ें मज़बत ू होती हैं और

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रफ़्ता रफ़्ता बाल र्गरना बंद हो िाते हैं। ये तेल, ख़श्ु की व लसक्री के ख़ात्मे के साथ साथ बालों की सफ़ेदी को भी दरू करता है और बाल लम्बे, स्ट्याह चमकदार और नमत व मुलायम भी हो िाते हैं।

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बािाम का तेल: याद्दाश्त तेज़ करने के ललए “रौग़न बादाम शीरीं” का एक टोटका भी है और वो ये है कक रात

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को सोते वक़्त शहादत की उं गली तेल में िुबो कर सर के बीच में लगाएं। इस से याद्दाश्त तेज़ और ददमाग़ी कारकदत गी में इज़ाफ़ा होता है । याद रखें कक एक उं गली से ज़्यादा नहीं लगाना। कड़वे बादाम का तेल चेहरे की रं गत ननखारने, दाग़ धब्बों और छाइया​ाँ दरू करने के ललए चेहरे पर मल्ते हैं। अगर सर में िए ू ाँ हैं तो सर में

होता है ।

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लगाएं िूएाँ ख़त्म हो िाएंगी। खांसी और दम्मे कक हालत में सीने पर माललश करने से मरीज़ को अफ़ाक़ा

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माहनामा अब्क़री दिसम्बर 2016 िुमारा नम्बर 126--------------------------pg 18

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िौहर के दिल पर छाए रहने के चन्ि उसल ू (आप के शौहर अपने स्िन ररश्तों से प्यार करते हैं आप भी उन से प्यार करें , उन का ख़्याल रखें , उन से हसद

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ना करें , अपने शौहर को उन ररश्तों से दरू ले िाने की हर्गतज़ कोलशश ना करें वरना बदले में अल्लाह

(फ़ौस्ज़या मुग़ल, बहावलपुर)

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रब्बुलइज़्ज़त आप को आप के शौहर से दरू कर दे गा। )

मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! आि कल अपने मुआशरे में नज़र दोड़ाऊं तो

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हर घर में घरे लू झगड़ों, लमयां बीवी के दरम्यान ना चाक़ी, सास बहू के झगड़ों ने िेरे िाले हुए हैं स्िज़हें दे ख कर शदीद दख ु होता है । िज़नत िैसे घराने छोटी छोटी बातों पर िहज़नम ु का मंज़र

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पेश कर रहे हैं। इस मौज़अ ू पर मैं आि अब्क़री क़ाररईन के ललए कुछ दहदायात ले कर हास्ज़र

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हुई हूाँ यक़ीनन इस से भरपरू फ़ायदा होगा। ८० और ९० की ददहाई तक पाककस्ट्तान में तलाक़ की

श्रह बहुत कम थी, िैसे िैसे नाम ननहाद मीडिया आज़ाद होता गया वैसे ही हमारी इक़्दार ख़त्म

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होती गईं, तालीम के नाम पर लड़ककयों की उम्रें बढ़ती गईं, किर मअयार मुक़रत र हो गया और िब

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तालीम और मअयार बढ़ गए तो इक़्दार ख़त्म हो गईं, किर कहा कक इतनी ज़्यादा तालीम है अब कुछ अरसा नोकरी कर लें किर िब अपने हाथ में पैसा आया तो अब शादी की कया ज़रूरत?

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और िब शादी की ज़रूरत मह्सूस हुई तो अपने मअयार के मुताबबक़ ररश्ता कैसे लमले? िब ढूंि कर ररश्ता लमला तो लड़का और उस के घरवालों पर ऐतराज़ात शुरू हो िाते और िब लायक़

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फ़ाइक़ बेटी ब्याह कर िाती है तो पता चलता है कक वो शादी दो महीने भी नहीं चली और

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लड़की वापस अपने घर आ िाती है । तलाक़ की श्रह में तेज़ी से इज़ाफ़ा हो रहा है और ये क़ुबत

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क़यामत की ननशाननयों में से एक है । अल्लाह तआला ने अपने बाद अगर सज्दे का हुकम ददया है तो वो शौहर की ज़ात है िो औरत शौहर की ना फ़रमान है इस के एअमाल उस के सर के ऊपर तक भी नहीं िाते यानन क़ुबूल ही नहीं होते। अपने प्यारे वाल्दै न को अपनी ज़रा ज़रा सी Page 40 of 51 www.ubqari.org

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परे शानी से मत परे शान करें , अल्लाह ने आप दोनों को ननकाह िैसे ख़ब ू सूरत बज़धन में बांधा है इस की क़दर करें , क़ुरआन पाक में लमयां बीवी को एक दस ू रे का ललबास क़रार ददया गया है एक

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दस ू रे के फ़राइज़ को समख़झए, हक़ूक़ अदा करने की भरपरू कोलशश करें , इस घर को अपना घर समख़झए और यही तमाम बातें मेरी लड़के वालों से भी हैं वो भी अपनी बीवी का ख़्याल रखें उस

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के मा​ाँ बाप को अपना समख़झए, अल्लाह ने औरत को कम्ज़ोर बनाया है और शौहर को उस का हाककम बनाया है , बीवी उस की ररआया है , ररआया को स्ितना ख़श ु रखा िाएगा ररआया उतनी ही दआ दे गी, बेह्तरीन बरकत वाले पैसे महर के हैं, शौहर को चादहए कक बीवी का हक़ महर फ़ौरन ु

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अदा करें और नेक बीवी को चादहए कक अगर वो पैसे अपने शौहर को कारोबार के ललए दे तो वो

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कारोबार इंतहाई बा बरकत और तरक़्क़ी करे गा लेककन इस के ललए दोनों का मुख़ललस होना

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ज़रूरी है । हो सकता है मेरी ये नसीहत आप को ना गवार कर दे लेककन अगर आप ठं िे ददल से

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ये सब सोचें तो इस में आप का ही भला है । िब आप का घर बसेगा तो सब से ज़्यादा ख़श ु ी

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आप के वाल्दै न को ही होगी और इस के बाद आप की औलाद को होगी और सब से पहले उन

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लोगों से बचने की कोलशश करें कक िो आप के ख़ख़लाफ़ आप के शौहर के कान भती हों और

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शौहर के ख़ख़लाफ़ आप को उकसाती हों सब से पहले उन लोगों को अपनी दोस्ट्ती की ललस्ट्ट से

“डिलीट” कर दें । बबला विह शक को अपने क़रीब मत आने दें , िब शौहर बाहर से आए तो

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फ़ौरन उस को गली सड़ी बातें और िारे ददन के वाकक़आत सुनाना ना शुरू कर दें , बस्ल्क आराम

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से िब उस का मूि अचछा हो तो अपने ददल की बात सुनाएं, उसे लफ़्ज़ों के मीठे िाल में स्ट्मोएाँ और अपने शौहर की बेह्तरीन दोस्ट्त बन िाएं और अपने बेह्तरीन दोस्ट्त की हर ख़ामी के साथ

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उसे क़ुबल ू करें । कुछ औरतों की आदत होती है कक शौहर स्िन से लमलने को मना करें उन के

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घर ज़रूर िाएंगी, चाहे वो चोरी छुपे ही कयूं ना हो, ये भी ख़यानत की एक कक़स्ट्म है इस से बाज़ रहें । कभी कभार ददल चाहे या ना चाहे शौहर की तारीफ़ ज़रूर कर ददया करें । आख़ख़र वो भी

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इंसान है और उस के भी िज़्बात हैं। मुंह िुला कर ना रहें िब वो घर आएं या बाहर िाएं मुस्ट्कराते चेहरे के साथ उन को लमलें , मुस्ट्कराता चेहरा हर ककसी को अचछा लगता है । साफ़

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सथ ु री रहें , शौहर के ललए सिना साँवरना िाइज़ है , ज़रूरी नहीं कक दो घज़टे लगा कर मेक अप करें और अगर शौहर आ कर आप की तारीफ़ ना करें तो आप रो रो कर वो सारा मेक अप

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उिाड़ दें और उस बे चारे को लेने के दे ने पड़ िाएं बस्ल्क साफ़ सुथरे कपड़े पहनें और कंघी कर के हल्की सी ललप स्स्ट्टक और आंखों में कािल ज़रूर लगाएं और हां मेहरबानी से ख़श ु बू लगाना ना भूलें ऐसी ख़श ु बू िो धीमी हो और आप के शौहर के र्गदत एक अहाता कर लें , एक बहुत ही

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काम्याब बस्ल्क दस ू रे लफ़्ज़ों में शौहर की लािली बीवी से िब मैं ने उन की काम्याबी का राज़

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पूछा तो उज़हों ने मुस्ट्करा कर कहा आप अपने शौहर की हर बात पर िी िी और लसफ़त िी

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कहते हैं। एक वक़्त आएगा िब वो आप की ककसी बात पर कभी ना नहीं कह सकेंगे लेककन इस

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से पहले आप को उन की “िी हुज़ूरी” करना पड़ेगी आप के शौहर अपने स्िन ररश्तों से प्यार

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करते हैं आप भी उन से प्यार करें , उन का ख़्याल रखें , उन से हसद ना करें , अपने शौहर को उन

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ररश्तों से दरू ले िाने की हर्गतज़ कोलशश ना करें वरना बदले में अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त आप को

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करें कक ऐ अल्लाह हम दोनों के आप के शौहर से दरू कर दे गा। अल्लाह तआला से हमेशा दआ ु

दरम्यान ऐसी मुहब्बत पैदा फ़मात िैसी हज़रत आदम ‫ علیه السالم‬और बीबी हव्वा ‫ علیه السالم‬के

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दरम्यान थी, ऐसी मुहब्बत दे िैसी हमारे प्यारे नबी करीम हुज़ूर ‫ ﷺ‬और उम्मुल्मुअलमनीन

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हज़रत आइशा लसद्दीक़ा ‫ رضى هللا عنها‬के दरम्यान थी। ख़ातून िज़नत हज़रत बीबी फ़ानतमा अल्ज़हरा ‫ رضى هللا عنها‬िैसी शमत व हया अता फ़मात। पाक दालमनी अता फ़मात, इन ् शा अल्लाह

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आप और आप के शौहर के दरम्यान ज़रूर मह ु ब्बत के िज़्बात पैदा होंगे। अब आते हैं उन

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लड़ककयों की तरफ़ िो बेचारी अपने शौहरों के इंतज़ार में बैठी हुई हैं कुछ शौहर ऐसे हैं िो शादी कर के बाहर चले िाते हैं और किर इंतज़ार की सल ू ी में उन की शरीफ़ बाहया बीपवयां लटकती

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रहती हैं ये अमल उन लोगों के ललए भी है िो मैके में शौहरों से नाराज़ बैठी हुई हैं बात लसफ़त

उन के ललए भी है , बहुत आसान सा अमल है :

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ननय्यत की है ऐसी बीपवयां स्िन के शौहर उन को बाहर के मुमाललक में नहीं बुलाते ये अमल

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रोज़ाना मग़ररब से ले कर इशा तक चराग़ िलाना है उस चराग़ में तेल िाल कर अपने घर के दरवाज़े के दाएं साइि में रखना है और मग़ररब से ले कर इशा तक ये चराग़ िल्ता रहे इशा के बाद बज़द कर दें , अगले ददन किर मग़ररब के वक़्त िलाएं, चालीस ददन तक यही अमल करें और तसव्वुर करें कक आप के शौहर आप को लेने आ गए हैं या आप को अपने पास बुला ललया है ।

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तसव्वुर में बहुत ताक़त होती है, कुछ ग़ैर मरई लहरें होती हैं िो आप के तसव्वुर की ताक़त से

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िुड़ी होती हैं िब आप अपने शौहर का मस्ट्बत रवय्ये का तसव्वुर बनाएंगी तो वो लहरें ख़द ु

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बख़द ु आप के शौहर के ददल पर छा िाएंगी, आप उन के पास नहीं होंगी मगर आप उन के ददल पर हमेशा छाई रहें गी। सारी स्ज़ज़दगी शौहर की मुहब्बत का चराग़ अपने ददल में िलाए रखें।

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इन ् शा अल्लाह नेक काम में अल्लाह के फ़ररश्ते भी आप की मदद करें गे। चालीस ददन के

अमल के बाद अपनी है लसयत के मत ु ाबबक़ कुछ सदक़ा कर दें । इस दौरान रोज़ाना सरू ह यासीन

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पढ़ कर अपने शौहर की रूह को हददया भी करती रहें अगर सूरह यासीन ना पढ़ सकें तो तीन

ददया करें और किर इस का कमाल दे खें।

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माह सूरह इख़लास या किर तीन बार सूरह क़ुरै श पढ़ कर अपने शौहर की रूह को हददया कर

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माहनामा अब्क़री दिसम्बर 2016 िुमारा नम्बर 126---------------------------pg 19

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हरी भरी फ़स्लें , जानवर नज़र बद्द से हमेिा के शलए महफ़ूज़ ककसानों के रोज़ मरत ह मसाइल और अब्क़री के आसान टोटके

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अगर ककसी के पौदों, दरख़्तों और हरी भरी फ़स्ट्लों को

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नज़र बद्द लग िाती हो। दे ख भाल, पानी और खाद मुनालसब होने के बाविूद फ़स्ट्ल नशो व नुमा ना पा रही हो तो समझ लें कक नज़र बद्द लगी है । इस के इलाि के ललए एक बड़ी बाल्टी में पानी भर कर १०१ मततबा “अल्लाहु नूरुस्ट्समावानत वल ्अस्ज़त” (‫ )ہّٰللا ونر السموات واْلرض‬अवल व आख़ख़र ग्यारह ग्यारह मततबा दरूद शरीफ़ के साथ पढ़ कर पानी पर दम करें और ये पानी पौदों में िाल दें । हर तीन रोज़ बाद इस अमल को

जानवर अब खेतों को नुक़्सान ना पुहंचाएाँगे

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दहु राएं। (फ़रहत, लाहौर)

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अब्क़री ररसाला गुज़श्ता पांच साल से मुसल्सल पढ़

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रहा हूाँ। इंतहाई लािवाब ररसाला है । इस के तमाम लसस्ल्सले ही मेरे पसज़दीदह हैं। आप का नया लसस्ल्सला

“ककसान दोस्ट्त अब्क़री” पढ़ कर इंतहाई ख़श ु ी हुई। इस लसस्ल्सले से हमारे ककसान भाइयों को बहुत ज़्यादा

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फ़ायदा होगा। इसी लसस्ल्सले के ललए मेरे पास भी एक रूहानी टोटका है । मेरे पास भी अल्हम्दलु लल्लाह

ज़मीन है और मैं उस पर खेती वाड़ी करता हूाँ, अल्लाह ने चज़द िानवर भी दे रखे हैं। चज़द साल पहले मेरे

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तीन अदद बेल मुझे बहुत ज़्यादा तंग करना शुरू हो गए, खड़ी फ़स्ट्लों को बबातद कर के रख दे ते, इतना तंग

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ककया कक मैं ने उन को क़साई के हाथ बेचने का सोच ललया। इसी दौरान मैं ने अब्क़री में रूहानी कलास के

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बारे में पढ़ा। मैं बताई गई तारीख़ पर लाहौर िा कर तीसरी रूहानी कलास में शालमल हुआ। तीसरी रूहानी कलास में मुझे िहां और कई वज़ाइफ़ और नुस्ट्ख़ा िात सुनने को लमले वहीं हज़रत साहब ‫ دامت بركاتهم‬ने एक

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रूहानी टोटका बताया कक अगर कोई िानवर तंग करे तो (‫ )مص بکم یمع فہو ْلیتلکمون‬ललख कर और िानवर का नाम ललख कर ज़मीन में दबा दें , िानवर खेत को नुक़्सान नहीं पुहंचाएगा। मुझे ऐसे लगा िैसे हज़रत

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हकीम साहब ने ख़ास मेरे ललए ये रूहानी टोटका बताया है । मैं ने िल्दी से साथ बैठे साथी से कहा मुझे ये ललख दें । उज़हों ने मुझे ललख कर दे ददया। उसी रात अपने घर वापस पुहंचा सुबह उठते ही मैं ने अपनी

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मस्स्ट्िद के इमाम साहब से तीन चार मततबा ये अल्फ़ाज़ ललखवाए और अपने खेत के चारों िाननब ज़मीन में नीचे कर के दबा ददए। मैं ये दे ख कर है रान रह गया कक स्िस स्िस िानवर के मैं ने नाम ललखे वो और मेरे

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वो बेल मेरे खेत की तरफ़ दे खते भी नहीं। मज़ीद मेरे बेलों ने अब सकतशी और स्ज़द्द करना बबल्कुल ही छोड़ ददया है । मेरी तमाम ककसान भाइयों से दरख़्वास्ट्त है कक अगर आप के भी िानवर तंग करते हैं तो यही अमल आज़माएाँ इंतहाई आज़मूदह और लािवाब है । (मुहम्मद शब्बीर, ओकड़ह)

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क़कसान िोस्त अब्क़री का साथ िें

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क़ाररईन! आप ने कोई टोटका रूहानी हो या नतब्बी िानवरों, फ़स्ट्लों की बीमारी में आज़माया हो या सुना हो,

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या आप ने घर में पौदे लगाए हैं या घर में पररंदे या कोई पाल्तू िानवर रखा है तो अपने आज़मद ू ह टोटके

ज़रूर भेिें। बीमारी का नाम और दवाई का नाम वाज़ेह ललखें ताकक दस ू रे भी आसानी से पहचान सकें। आप

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के छोटे से एक टोटके से लाखों का भला होगा और आप के ललए क़यामत तक के ललए सदक़ा ए िाररया इस

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अमल में ग़फ़लत ना करें ।

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असल इबाित और कमाल (हकीम ज़्याउरत ह्मान, मुल्तान)

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(कक़स्ट्त नम्बर ७)

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वाललद मोहतरम हकीम फ़ेरोज़ुद्दीन अज्मली मरहूम अकसर व बेश्तर ददन में एक या दो बार मेरे घर के सामने से गुज़रते तो मेरे नाम एक पैग़ाम ज़रूर छोड़ िाते। िो यूं होता कक “ज़्याउरत ह्मान! पैसे और वक़्त सेर व तफ़रीह और तब्लीग़ पर लगाना है या किर िॉकटरों और अस्ट्पतालों पर ख़चत करना है ” गोया बड़े

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हकीम साहब की तरफ़ से मेरे नाम एक याद ददहानी होती थी कक लसफ़त दज़ु या कमाने में ही वक़्त ज़ायअ ना कर दं ू बस्ल्क अपने स्िस्ट्म और रूह का हक़ अदा करना ज़्यादा अफ़्ज़ल और ज़रूरी काम है । अगर मैं स्िस्ट्म

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व रूह का सामना करता रहूंगा तो सेहतमज़द रहूंगा वरना अगर स्िस्ट्म और रूह को नुक़्सान पुहंच गया तो

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किर उन का हाल िैसा हमारे हा​ाँ होता है वो आप को मालम ू ही है कक रूहानी मरीज़ भी रूह की तस्ट्कीन के

ललए दवाओं से सुकून हालसल कर रहा है और वो लोग िो रूहानी कम्ज़ोरी के सबब स्िस्ट्मानी तौर पर बीमार

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हैं वो भी पैसे और दवाओं का खेल खेलने में मसरूफ़ हैं। ये ररवायत तो हमारे हा​ाँ तक़रीबन अब ख़ाल ख़ाल ही

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नज़र आएगी कक बड़ों और अल्लाह वालों के पास बैठ कर रूह की तवानाई के ललए कुछ सीखा िाए उन से तबबतयत ली िाए। हकीम साहब मरहूम फ़मातया करते थे कक “अपनी इंफ़्रादी इबादत के मीनार खड़े कर दे ना

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कोई बड़ी बात नहीं है । बड़ी बात ये है कक ऐसा अमल ककया िाए स्िस से ख़ल्क़ ए ख़ुदा को फ़ायदा पुहंच।े यही अमल असल इबादत और कमाल है ” फ़ायदा अगर लसफ़त अपनी ज़ात तक महदद ू कर ददया िाए तो ये

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उस की ज़ाती नेकी तो होगी इज्तमाई तौर पर कुछ नहीं होगी।

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क़ज़ब ले कर कमाने िब ु ई गया और गम ु राह हो गया मगर--मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं इस वक़्त दब ु ई में काम कर रहा हूाँ, मेरे ददल में कुछ बातें हैं िो मैं अब्क़री क़ाररईन से शेयर करना चाहता हूाँ, बातें ये हैं कक लोग यहां दब ु ई आ कर गुमराह हो िाते

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हैं और अपनी दीन और दज़ु या दोनों ही बबातद कर बैठते हैं, मैं ने ऐसे लोग यहां फ़ाक़े ज़दह और सड़कों पर धकके खाते दे खे हैं, ख़द ु ारा िब बेरून मुल्क िाएं तो लसफ़त अपने मक़्सद पर यानन ररज़्क़ हलाल कमाने पर

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ननगाह रखें ना कक गम ु राह हो िाएं। मैं िब दब ु ई आया तो एक अरसे तक गम ु राह रहा, मेरे फ़ाक़े शरू ु हो गए, किर मेरे माललक ने स्ज़ल्हज्ि की रात को दहदायत नसीब फ़रमाई, अल्लाह से ख़ब ू रो रो कर मुआफ़ी मांगी,

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नमाज़ का पाबज़द बनाया। अब आलम ये है कक ददन का काफ़ी दहस्ट्सा माललक की याद और तौबा में गज़ ु रता है । दब ु ई आने से पहले मेडिकल होता है , मैं ने प्राइवेट मेडिकल करवाया तो मेरी छाती पर ननशान नज़र आए, िॉकटर ने बताया कक ये टी बी के ननशान हैं, मैं बहुत परे शान हुआ, फ़ज्र की नमाज़ से पहले रोज़ाना

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सूरह यासीन पढ़ कर अल्लाह के हुज़ूर दआ ु करता, अल्लाह ने दआ ु क़ुबूल फ़रमाई, िब उस ददन मेडिकल

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अचानक मोिन लग जाएं तो परे िान ना हों!

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हुआ तो मेरी ररपोटत स्कलयर आ गयी और मुझे वीज़ा लमल गया। (शहज़ाद शौकत)

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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अकसर कुछ उल्टा सीधा खाने से या ज़्यादा खाने की

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विह से पेट ख़राब हो िाता है और दस्ट्त लग िाते हैं, लूज़ मोशन का मसला हो िाता है और बार बार वाश

रूम िाना पड़ िाता है और कभी उस वक़्त घर में कोई दवाई भी नहीं होती तो इस का एक आसान सा हल है

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कक रस यानन “पापे” ले कर खा लें , दध ू या चाय के साथ नहीं बबल्कुल सादह अकेले ख़श्ु क खा लें , इसी से मोशन ठीक हो िाते हैं अगर इस के बाद भी ज़रूरत मह्सूस हो तो दब ु ारह यही टोटका आज़माएाँ। अकसर

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दब ु ारह खाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। आराम आने पर हज़रत हकीम साहब ‫ دامت بركاتهم‬, इदारा अब्क़री और

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मुझे अपनी दआ ु ओं में ज़रूर याद रखें। (हुमैरा, लाहौर)

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माहनामा अब्क़री दिसम्बर 2016 िुमारा नम्बर 126---------------------------pg 22

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ज़ाइक़ेिार अनार के िबबत से दिल की शिरयानें खल ु वाएं (वाललदा की तबीअत साँभली तो फ़क़ीर को स्िस िगह बबठाया था िा कर दे खा तो फ़क़ीर वहां से ग़ायब था,

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लसंध का छोटा सा गाओं था सारी िगह तलाश ककया मगर वो कहीं ना लमला। अल्लाह की भेिी हुई ग़ैबी

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मदद थी। हाटत के मरीज़ चाहे ददल के वाल्व बज़द हों ये नुस्ट्ख़ा ज़रूर इस्ट्तमाल करें ।) अनार चकूं क मौसमी है इस ललए हम ने एक मुट्ठी ख़श्ु क अनार दाना तीन ग्लास पानी में दस लमनट तक उबाल कर ददल की बीमाररयों में मुब्तला मरीज़ को नीम गमत और ननहार मुंह इस्ट्तमाल कराना शुरू ककया, ददल की ददत नाक कैकफ़यत में है रान कुन और तेज़ रफ़्तार नतीिा बरआमद होता दे ख कर मज़ीद ऐसे मरीज़ों

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पर आज़माया िो एंिाइना, ददल की लशरयानों की तंगी में मुब्तला होने की विह से चज़द क़दम चल्ने किरने

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में भी ददत और दश्ु वारी मह्सस ू कर रहे थे, नतीिा किर है रत अंगेज़ बरआमद हुआ मरीज़ों ने ग़ैर मामल ू ी

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आराम मह्सूस ककया। बेरून मुल्क एक और मरीज़ पर ककये िाने वाले तिुबे का अंदाज़ा उस की

एंस्ियोग्राफ़ी ररपोटत से हुआ, मरीज़ की लशरयानों की तंगी और बंददश का सबब बनने वाला Plaque दस

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महीने तक रोज़ाना चौथाई ग्लास अनार का िूस पीने से पूरी तरह तहलील हो गया और यूं ददल की लशरयानें

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पूरी तरह खल ु कर साफ़ हो गईं।

वाज़ेह रहे इस आसान इलाि में ना ददत कश दवा इस्ट्तमाल हुई ना ही ख़न ू पतला करने वाली दवा एंिाइना के

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मरीज़ एक हफ़्ते तक ये नुस्ट्ख़ा इस्ट्तमाल करने के बाद बयान करते हैं कक अब हम को कोई तकलीफ़ मह्सूस नहीं हो रही है इस नुस्ट्ख़े का एक और तरीक़ा इस्ट्तमाल ये भी है कक एक मुट्ठी अनार दाना िेढ़ ग्लास पानी में

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रात को लभगो दें और सब ु ह ननहार मंह ु ननचोड़ कर छान कर पी लें या अनार के मौसम में रोज़ाना आधा

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ग्लास ताज़ह िूस इस्ट्तमाल करें या एक या दो दाना पूरा अनार ननहार मुंह खा लें और एक घज़टे तक पानी के

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इलावा कुछ भी खाने पीने से परहे ज़ करें । ताज़ह अनार, अनार दाने या अनार के िस ू के इस आसान इलाि ने ददल के मरीज़ों को है रत में िाल ददया है । बेशुमार मरीज़ों को अमराज़ क़ल्ब में मुब्तला दे ख कर इस नुस्ट्ख़े को अब्क़री के ज़ररए आम करने का फ़ैसला ककया। (मुहम्मद अज़हर अज़ीम शम्सी, कराची) Page 48 of 51 www.ubqari.org

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हाटब अटै क! छोटी मकखी के िहि और काली शमचब से ठीक मेरे भाई की गाड़ी ख़राब हो गयी, उसे ठीक कराने के इरादे से गाड़ी ले कर वकतशॉप चले गए, मेरे भाई ददल के

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मरीज़ थे, वकतशॉप में काफ़ी गमी थी, वहां ज़्यादा ही तबीअत ख़राब हो गयी, वकतशॉप में एक ड्राइवर भी था स्िस का तअल्लुक़ लसंध से था, वो भी गाड़ी ठीक कराने आया हुआ था, िब भाई की तबीअत ख़राब दे खी तो

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उस ने ददल के मज़त का एक नुस्ट्ख़ा बताया। उस ड्राइवर ने अपना वाकक़आ बताते हुए कहा कक उस की वाललदा की तबीअत ख़राब हो गयी, वो ददल की मरीज़ा थीं, कैकफ़यत ऐसी कक हाथ पाओं नीले हो गए, सांस रुक गयी, घर के अफ़राद मायूस हो गए, कुछ ही दे र गुज़री कक दरवाज़े पर ककसी ने सदा दी अल्लाह के नाम पर कुछ दे

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दो, दरवाज़े पर यही ड्राइवर गया, ड्राइवर ने दे खा तो एक फ़क़ीर था, उस ने फ़क़ीर से कहा कक मेरी वाललदा की

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तबीअत बहुत ज़्यादा ख़राब है तुम बैठो हम अपनी वाललदा को िॉकटर के पास ले कर िा रहे हैं मैं ककसी से

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कह दे ता हूाँ कक वो तम् ु हें कुछ ना कुछ दे िाता है । फ़क़ीर ने पछ ू ा: वाललदा को कया हुआ है उन की तबीअत कयाँू

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ख़राब है । ड्राइवर ने फ़क़ीर को वाललदा की कैकफ़यत बताई। फ़क़ीर ने कहा वाललदा को कहीं ले िाने की

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ज़रूरत नहीं, कया घर में छोटी मकखी का शहद मौिूद है ? ड्राइवर ने िवाब ददया हा​ाँ मौिूद है । फ़क़ीर ने कहा

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छोटी मकखी का शहद एक चम्मच ले कर उस में पांच अदद काली लमचें िाल दें और मरीज़ा को पपला दें । इस

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के फ़ौरन बाद एक और शहद का चम्मच पपला दें उस में काली लमचें नहीं िालनी। आप की वाललदा ठीक हो

िाएंगी। िैसे फ़क़ीर ने बताया ड्राइवर ने उसी तरह अपनी वाललदा को ये नुस्ट्ख़ा इस्ट्तमाल करवाया तो

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वाललदा फ़ौरन ही उठ कर बैठ गईं और बबल्कुल ठीक हो गईं। लसफ़त दो मततबा ये नुस्ट्ख़ा इस्ट्तमाल ककया किर

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वाललदा को दब ु ारह इस नस्ट् ु ख़े की ज़रूरत ना पड़ी। वाललदा की तबीअत साँभली तो फ़क़ीर को स्िस िगह बबठाया था िा कर दे खा तो फ़क़ीर वहां से ग़ायब था, लसंध का छोटा सा गाओं था सारी िगह तलाश ककया

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मगर वो कहीं ना लमला। अल्लाह की भेिी हुई ग़ैबी मदद थी। हाटत के मरीज़ चाहे ददल के वाल्व बज़द हों ये

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नुस्ट्ख़ा ज़रूर इस्ट्तमाल करें । िाँ दू ह मुझे नुस्ट्ख़ा लमला तो अब्क़री के ललए ललखने बैठ गयी। क़ाररईन अब्क़री इस्ट्तमाल कीस्ियेगा और दआ ु ओं में याद रख़खयेगा।

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मैिे और अल्सर का इलाज: मेरी बेहद्द क़रीबी अज़ीज़ा हैं, िो तवील अरसे से मैदे के अमराज़ में मुब्तला थीं, मैदे का अल्सर, गैस, तब्ख़ीर, खट्टी िकारें और ना िाने ककतनी बीमाररयां थीं िो मैदे के मुतअस्ल्लक़ थीं।

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इस दफ़ा मेरे पास आईं तो कहने लगीं: मेरा परहे ज़ी खाना मत पकाना मैं बबल्कुल ठीक हूाँ, मैं चोंक उठी! आप ने कया इलाि ककया है ? फ़रमाने लगीं: मेरे लमयां हबतल दवाओं वालों के पास गए वो लसफ़त मैदे का इलाि

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करते थे, उज़हों ने कहा दो अश्या लें नछल्का इस्ट्लपगोल और एक चट ु की हल्दी, मगर फ़ायदा तब होगा िब ये दोनों अश्या ख़ाललस होंगी। नछल्का ककसी पंसार से लें , हल्दी की गांठें ले कर उस का पाउिर तय्यार करें । तरीक़ा इस्तमाल: एक ग्लास पानी लीस्िये, एक चम्मच खाने वाला इस्ट्पगोल और एक चट ु की हल्दी उस में

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िालें और फ़ौरन पी लें। इस्ट्पगोल के नछल्के को पानी में िूलने मत दीस्िए िल्दी से पी लें। कम अज़ कम

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मेरी तालीफ़ात और उन की वज़ाहत

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तीन माह इस्ट्तमाल करें और कमाल ख़द ु दे खें। (ज़ककया इक़्तदार, बहावलनगर)

अब तक आने वाली मेरी स्ितनी भी तालीफ़ात हैं उन के हवाला िात हक़ीक़त, सबब तालीफ़ ये

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सब क़ाररईन तक पह ु ं चाने की एक कोलशश है मैं हर ककताब का हवाला दं ग ू ा कक ककताब ककन

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हवाला िात से लमल कर एक ककताब बनी है । अगर मेरी ककसी ककताब में ग़लती हो, इत्तलाअ दें , शक्र ु गज़ ु ार रहूंगा। ककताब नम्बर ३४: ख़वातीन की इस्ट्लामी स्ज़ज़दगी के साइंसी हक़्क़ाइक़:

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आलम में मदों से ज़्यादा ख़वातीन हैं ये वो मज़लूम तब्क़ा है िो मा​ाँ, बीवी, बेटी और बहन की शकल में हर वक़्त मदत की ख़ख़दमत गुज़ारी में लगा रहता है । सवाल ये है कक स्िस तरह मदत

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अपनी क़ब्र और आख़ख़रत संवारने और बनाने के ललए कोिां व साई हैं कया उज़हों ने औरतों की

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भी कफ़क्र की। ख़वातीन कयूं नहीं चाहतीं कक उज़हें िज़नत में आला मुक़ाम हालसल हो कया

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िज़नत लसफ़त मदों के ललए है , नहीं हर्गतज़ नहीं! ये ककताब ख़ाललस ख़वातीन के ललए है

इस

ककताब की तय्यारी में स्िन कुतब व रसाइल से मदद ली गयी उन के नाम दित ज़ेल हैं:क़ुरआन मिीद। अहादीस कुतब। मवाइज़ शैख़ इंिीननयर नक़्शबज़दी। अस्ट्वा रसल ू अक्रम ‫­ﷺ‬। Page 50 of 51 www.ubqari.org

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मामल ू ात नबवी ‫­ﷺ‬। पाककस्ट्तान टाइम्स। हफ़्त रोज़ह तामीर। इस्ट्लाम और अस्र रवां। स्ज़ंदा रहना सीख़खए। इस्ट्लामी तज़त मुआश्रत और मादहरीन। रहबर स्ज़ज़दगी। सफ़र इब्न बतूता।

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तसव्वरु ात इस्ट्लाम। मीसाक़। इस्ट्लाम और मस्ट् ु तरशक़ीन। अरे बबयन मेडिसन। फ़ाररन दहस्ट्री ऑफ़ मेडिकल। रोज़नामा प्रताब भारत। चाइल्ि केअर फ़ॉर यूननवसतल। दी लाइफ़ एंि टीर्चंग ऑफ़

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मुहम्मद ‫­ﷺ‬। उदत ू िाइिेस्ट्ट। प्योर दहस्ट्री ऑफ़ दी पामेला चचतल। टाइम्स ऑफ़ इंडिया। रीिसत िाइिेस्ट्ट। ख़ातून इस्ट्लाम। नोट: अगर कोई हवाला ग़लती से रह िाए तो ज़रूर इत्तलाअ दें , मैं हर पल इस्ट्लाह का मुहताि हूाँ। (एडिटर)

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माहनामा अब्क़री दिसम्बर 2016 िुमारा नम्बर 126--------------------------pg 23

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