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माहनामा अबक़री मैगज़ीन जन्वरी 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन
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जन्वरी 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
मज़ंग चोंगी लाहौर पाककस्ट्तान
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मरकज़ रूहाननयत व अम्न 78/3 अबक़री स्ट्रीट नज़्द क़ुततबा मस्स्ट्िद
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दफ़्तर माहनामा अबक़री
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महमूद मज्ज़ूबी चग़ ु ताई دامت برکاتہم
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एडिटर: शैख़-उल-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मुहम्मद ताररक़
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन जन्वरी 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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फ़ेहररस्त एडिटर के क़लम से........................................................................................................................................ 3
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हाल ए हदल ................................................................................................................................................... 3 जो मैंने दे खा सन ु ा और सोचा........................................................................................................................ 3
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दसस रूहाननयत व अम्न.................................................................................................................................. 6 शैख़-उल-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मह ु म्मद ताररक़ महमद ू मज्ज़ूबी चुग़ताई دامت برکاتہم................................ 6 अमराज़ मैदा, मोटापा और बेरोज़गारी से ननजात .............................................................................................. 10 बेरोज़्गार को रोज़्गार और करायेदार को माललक मकान बनाने का अमल ................................................. 14
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मश्ु ककल घड़ी और परे शानी के वक़्त पढ़ने का आज़मद ू ह वज़ीफ़ा ............................................................... 19
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दािंत, िाढ़ का शदीद तरीन ददस पािंच लमनट में ख़त्म .................................................................................. 30
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तस्बीह ख़ाना में मख़ ु ललसीन की आमद ...................................................................................................... 34
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सहदस यों में पाऊँ की सज ू न दरू करने का नस् ु ख़ा ........................................................................................... 35 रबीउल ्-आख़ख़र में ख़ात्मा बबल्ख़ैर के आमाल लीश्जये ................................................................................. 39
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दावत ख़ैर की बरकात .................................................................................................................................. 41 दाई इस्लाम हज़रत मौलाना मह ु म्मद कलीम लसद्दीक़ी ( دامت برکاتہمफलत) ............................................... 41
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मोटापा और मैदे के परु ाने मरीज़ मत ु वज्जह हों! ........................................................................................ 43 अबक़री रूहानी इज्तमाअ के हसीन मनाज़र ............................................................................................... 47
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गम् ु शद ु ह चीज़, फ़दस और समासया पाने का वज़ीफ़ा ....................................................................................... 50
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एडिटर के क़लम से
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हाल ए हदल
जो मैंने दे खा सुना और सोचा
औलाद को जाहहल और मिंगता छोड़ कर ना जाइए!
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रोज़ की मुलाक़ातें , ख़तूत, मेरे सामने कैसे दख ु ी दख ु ी, उल्झे रवय्ये, लेह्िे और चेहरे दे खने को ममलते हैं,
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ख़ास तौर पर वो लोग स्िन में ऐसे लोग भी हैं िो िवानी की दे हलीज़ पार कर चक ु े हैं या अभी िवान हैं िब
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उन के हालात सन ु ता हूूँ तो ददल कुढ़ता है और एह्सास होता है कक िब ममयां बीवी दोनों कमाने पर लग िाएं
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और नस्ट्लों के मलए वक़्त ना हो तो उस वक़्त नस्ट्लों का क्या बनता है ? या किर बीवी घरदारी में ममयां का
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साथ दे और ममयां अपनी मसरूफ़ स्ज़न्दगी चाहे वो स्ट्यासी हो, मज़्हबी हो, समािी हो, या कारोबारी हो स्िस
नोइय्यत की भी हो अपने घर और नस्ट्लों के मलए वक़्त ना दे सके उस वक़्त नस्ट्लों का क्या बनेगा और वो
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ककन लेह्िों और रवय्यों के साथ स्ज़न्दगी के ददन रात तय करते हैं? इस का कुछ अक्स एक ख़त की शकल
में , मैं आपकी ख़ख़दमत में पेश करता हूूँ। याद रखें ! इब्तदा के पांच साल ननहायत एहम होते हैं, बच्चे की
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मेमोरी में िो चीज़ िालनी है िाल दें । किर उसकी तामीर और तरक़्क़ी हमेशा सदा बहार रहे गी मुझे एक
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थानेदार ने काम की बात कही। कहने लगा: सुप्रीम कोटत तक फ़ैस्ट्ले थाने की ऍफ़ आई आर पर ही होते हैं, ऍफ़
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आई आर ठीक कटी तो फ़ैस्ट्ले भी ठीक, ऍफ़ आई आर ग़लत कटी तो फ़ैस्ट्ले भी ग़लत, असल बुन्याद ऍफ़ आई आर होती है । ऐसे ऐसे िवान नीम पागल, नफ़्स्ट्याती मरीज़ और टें शन के मारे हुए ममलते हैं कक िो
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मख़्लूक़ से बे राज़, नऊज़ु बबल्लाह ख़ामलक़ से बेज़ार, मुआश्रे में रहते हुए भी अपने अंदर मुआश्रह् के मलए नफ़रत भरे िज़्बात हत्ता कक माूँ बाप, बहन भाइयों के मलए भी मन्फ़ी िज़्बात रखते हैं। मालम ू हुआ शरू ु से
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औलाद की तामीर व तबबतयत और तरक़्क़ी के मलए वक़्त नहीं ननकाला गया। आप पूरी कोमशश पूरी मेहनत कर लें बाक़ी उन की कक़स्ट्मत और मुक़द्दर, िो वक़्त औलाद के मलए होता है वो मोबाइल, इंटरनेट, ख़बरें और
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चैनल के मलए वक़्फ़ होता है और औलाद को मोबाइल, इंटरनेट और काटूतनों के हवाले कर ददया िाता है , इस के बाद क्या होता है , एक िवान के िज़्बात आप ख़द ु मुलादहज़ा करें । "१- मैं बच्पन ही से मन्हूस और बे
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बरकत था। २- मैं ने ग़ैर कफ़तरी स्ज़न्दगी गज़ ु ारी। ३- मैं ने बच्पन से ख़श ु ी को तरसाया और ख़श ु ी ने मझ ु े तरसाया। ४- मुझ से कोई आमाल और नेकी नहीं हो पा रही थी। ५- मुझे ख़द ु ख़बर नहीं कक मेरा ममज़ाि और मेरी तबीअत क्या है । ६- सारे लोग यानन ख़ान्दान, वाल्दै न, ररश्तेदार, दोस्ट्त अह्बाब सब से तअल्लक़ ु ख़त्म
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हो चक ु ा है और मैं सब से अलग रहता हूूँ। ७- मैं पहले ही ददन से ख़त्म क्यूूँ ना हो गया और मुझे ख़द ु ख़बर
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नहीं कक मैं स्ज़ंदा क्यूूँ हूूँ? ८- हर इंसान मुझ से नफ़रत करता है या हक़्क़ारत रखता है और कभी ददल में
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सोचता हूूँ कक शायद मैं उन को हक़्क़ारत और नफ़रत की नज़र से दे खता हूूँ। ९- क्या ये मेरे मसाइल पैदाइशी
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हैं या मुझ पर िाद ू है, मौरूसी हैं या नज़र बद्द है । १०- बेटा भी मेरी तरह बच्पन से मेरे नक़्श क़दम पर चल रहा है , ग़स्ट् ु से से आग बगोला हो िाता है , आम बच्चों की तरह घुल्ता ममलता नहीं है । ११- मैं भी हर वक़्त
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संिीदा ममज़ाि, खोया खोया, बुझा बुझा और हर ककसी के बारे में बद्द गुमानी और हर ककसी के मलए मन्फ़ी
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सोच रखता हूूँ। १२- बाएं टांग में अकड़न और ख़खचाव, आूँखों की हरकत, बोल चाल ग़ैर कफ़तरी है । १३-
मुआमश बद्द हाली और तंगदस्ट्ती का मशकार हूूँ। १४- स्िस्ट्मानी, एअसाबी, ज़ेहनी और ख़ास कम्ज़ोरी का
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मशकार हूूँ। १५- मेरे बेटे को आधी आधी रात तक नींद नहीं आती। १६- मझ ु े वाल्दै न से सख़्त तरीन नफ़रत
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है । १७- ददन में हज़ार बार िीता हूूँ, हज़ार बार मरता हूूँ। १८- स्ज़न्दगी हम से तेरे नाज़ उठाये ना गए, सांस लेने की फ़क़त रस्ट्म अदा करनी है । १९- स्ज़न्दगी िब्र मुसल्सल की तरह काटी है , िाने ककस िुमत पाई है
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सज़ा याद नहीं। २०- बच्पन से अंिाने ख़ौफ़ में मुब्तला हूूँ, रोज़्गार के मसस्ल्सले में बाहर गया लेककन किर
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वापस आ गया। २१- कई िगा मुलाज़्मत की हर िगा नाकामी, परे शानी। २२- मौत मेरे मलए पसंदीदह है मगर बच्चों की तरफ़ दे खता हूूँ तो ख़ौफ़ बढ़ िाता है । २३- मेरे बच्चों के दादा, दादी, नाना, नानी, मामूँू चच्चा
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कोई भी नहीं है (यानन हैं भी तो मेरे काम के नहीं), पल में तोला, पल में माशा, मैं गगरगगट हूूँ। २४- एक मादहर नफ़्स्ट्यात ने बताया कक तुम्हारे ददमाग़ में केममकल की कमी है , इस मलए आठ घंटे से कम ना सोना। २५-
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नमाज़ तहज्िुद और फ़ज्र बे हद्द पसंद है मगर मज्बूर हूूँ। २६- नमाज़, स्ज़क्र, अज़्कार और वज़ाइफ़् में बड़ा मज़ा आता है पर कर नहीं सकता। २७- ख़ोराक िुज़्व बदन नहीं बनती, हाथ पाऊं कांपते हैं। २८- मेरा ज़हन
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मेरे कंरोल में नहीं लगता है , वो ररमोट कंरोल ककसी और के हाथ में है । मायस ू ी, सस्ट् ु ती, परे शानी, ग़स्ट् ु सा, गचड़गचड़ापन, ददल ज़ोर ज़ोर से धड़कना। ३०- मौसम बदलने से मेरी हालत बद्द तर हो िाती है । ददसम्बर, िन्वरी, िल ु ाई अगस्ट्त मेरे मलए शदीद तरीन और बद्द तरीन मौसम हैं। इन महीनों में मेरी हालत ग़ैर हो
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िाती है । ३१- िब भी वाल्दै न, बहन भाइयों की अज़ीयतें और बद्द ज़ुबानी याद आती है तो ददल चाहता है कक
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उन का ख़न ू पी िाऊं क्योंकक मुझे दन्ु या में सब से ज़्यादा नफ़रत अपने वाल्दै न और बहन भाइयों से है । इस
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नफ़रत ने मुझे इंतहा पसंद बना ददया है । ३२- मुझे पैदाइशी या कुछ ना मालूम नफ़्स्ट्याती और ज़ेहनी
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बीमाररयां हैं लोग मुझे पागल नहीं समझ्ते मगर मैं ख़द ु अपने आप को पागल समझता हूूँ। ३३- तक़रीबन पंद्रह साल से मैं ने आईने में अपना चेहरा नहीं दे खा। मैं ख़द ु को बहुत बद्द सूरत समझता हूूँ। ३४- कोई भी
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काम बस थोड़े ददन करता हूूँ किर छूट िाता है और मुसल्सल बे चैन रहता हूूँ। ३५- मुझे वो ददन याद है िब
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वामलदा छोड़ कर अपनी िॉब पर और वामलद छोड़ कर अपनी िॉब पर चले िाते थे, मैं छोटा था, मैं उन के
पाऊूँ का पाइंचा पकड़ लेता था कक मुझे भी साथ ले िाएं किर नोकरानी के हवाले कर के मुझे वो चले िाते थे
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किर नोकरानी के साथ तो रहता था पर सारा ददन अपनी वामलदा और वामलद के इंतज़ार में रहता। वो आते
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तो उन के मुंह से एक बोल सुनता कक हम थके हुए हैं और वो हमें ककसी तरह समेट कर सुलाने की कोमशश करते किर मैं बज़ादहर तो सो िाता लेककन मेरा ददमाग़ िागता रहता, मुझे वाल्दै न के तन्हाई के लम्हात
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अभी तक याद हैं और वो मेरे ददल पर नक़्श हो गए हैं क्योंकक वो समझ्ते थे कक शायद बच्चे सो गए हैं और
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उन्ही लम्हात ने मुझे गुनाहों पर मज्बूर ककया। मैं वाल्दै न को कभी मुआफ़ नहीं करूूँगा िो वक़्त मुझे दे ने का था वो वक़्त उन्हों ने कमाई पर लगा ददया अब वो कहते हैं कक हमारी ख़ख़दमत कर, हम से प्यार कर, हम
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ररटाइित हो गए हैं मेरा ददल नहीं करता कक मैं अपने वाल्दै न को दे खूं हालाूँकक मुझे इल्म है कक वाल्दै न को दे खना बहुत बड़ी नेकी है , उन की ख़ख़दमत करना बहुत बड़े अज्र का काम है पर मैं अपनी तबीअत से बे बस
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हूूँ। मुझे बच्पन के लम्हात याद आते हैं उन लम्हात को कैसे खरु च दूँ ,ू उस िुदाई को स्िस वक़्त मुझे माूँ की आग़ोश चादहए थी, मुझे माूँ का प्यार चादहए था उस िुदाई को मैं कैसे बदातश्त कर के भूल िाऊं।" क़ाररईन!
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ये उल्झा हुआ ख़त, बे रब्त िम् ु ले, बे तरतीब कैकफ़यतें मैं ने शायअ कर ददया। क़ाररईन! मझ ु े आप का साथ चादहए मैं इस ख़त का क्या िवाब दूँ ?ू मेरा िवाब मसफ़त यही है कक ऐ चालीस साल के वीरान बाप स्िस की यादें मैं ने अपने अबक़री में छापी हैं मझ ु े तझ ु से गगला नहीं तेरे वाल्दै न से गगला है कक तेरे वाल्दै न ने तेरा
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साथ ना ददया, माूँ भी कमाने में लग गयी और बाप भी कमाने में लग गया और माूँ बाप दोनों मसरूफ़ हो गए
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और लावाररस औलाद बग़ैर ककसी तबबतयत के िवान होती चली गयी। अक्सर ऐसा भी है बाप िॉब करता है
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या कारोबार अपने दोस्ट्तों, ख़बरों, चैनल, मोबाइल और नेट में इतने मसरूफ़ कक औलाद की सुन्नी और
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अपनी सुनानी और उन के इख़्लाक़ व ककरदार और तन्हाइयों पर नज़र रखने की फ़ुसतत ही नहीं। क़ाररईन!
हम अभी से इस का कफ़क्र करें बहुत वक़्त गुज़र गया और वक़्त ज़ायअ हो गया। अब मज़ीद वक़्त ज़ायअ ना
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करें ।
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माहनामा अबक़री जन्वरी 2016 शुमारा निंबर 115_________________pg 3
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दसस रूहाननयत व अम्न
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शैख़-उल-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मह ु म्मद ताररक़ महमूद मज्ज़ब ू ी चग़ ु ताई دامت برکاتہم
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ख़ुश क़क़स्मत हो जो तस्बीह ख़ाना में हो: (हफ़्तवार दसत से इक़्तबास)
(हज़रत िी के हर दसत में गूंगे हज़रात साथ लाएं। दसत का इशारों में तिुम त ा होगा।) Page 6 of 53 www.ubqari.org
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मौलाना ज़हूर अह्मद बघ्वी साहब رحمة هللا عليهबड़े अल्लाह वाले गुज़रे हैं उन के एक ख़ाददम मुनीर अह्मद बहुत मज़ादहया थे, एक ददन मुनीर अह्मद अपने पीर से कहने लगे आप के इतने अमीर अमीर
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मुरीद हैं ककसी को कह कर मुझे हज्ि तो करवा दें । मौलाना ज़हूर अह्मद बघ्वी رحمة هللا عليهने फ़मातया कक अगर तू आइन्दा से मज़ाक़ करना छोड़ दे तो मैं बात करता हूूँ। हत्ता कक ये बात स्ट्टाम्प पेपर पर ने एक मरु ीद को हज्ि का कह ददया, उन्हों ने सआदत सम्झी कक
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मलखी गयी। अब हज़रत رحمة هللا عليه
हमारे मुमशतद का हुक्म है इस मलए उन्हों ने हज्ि का इंतज़ाम ककया। उस वक़्त हज्ि के मलए मक्का बहरी िहाज़ से िाना होता था। हज़रत के साथ दो तीन ख़द्द ु ाम और भी थे, मन ु ीर अह्मद भी हज़रत के साथ थे,
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अब हज्ि के मलए गए हज्ि ककया, हलक़ कराया, हलक़ सर मुंिवाने को कहते हैं इस के बाद अहराम
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खोल अहराम खोल कर किर तवाफ़ ज़्यारत करने गए, रमी की।
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हुण रब नाल गल्लािं करण दे : वापसी में (उस वक़्त रांसपोटत ना होने की विह से गधों और ख़च्चरों पर
सफ़र करते थे) िब मुनीर अह्मद गधे पर सवार हुआ तो कहने लगा "मुड़ ज़हूर अह्मदा! हुण रब नाल
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गल्लां करण दे " मौलाना ज़हूर अह्मद رحمة هللا عليهकहने लगे: "तू किर मज़ाक़ कर रहा है ?" मुनीर
अह्मद कहने लगा: नां! नां! किर अल्लाह से कहने लगा या अल्लाह! सािे झंग दा इक ररवाि ऐ िेढ़ा
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स्िन्हा वड्िा ख़बीस होंदा ए" स्ितना बड़ा मुिररम होता है , स्ितना बड़ा चोर होता है , उतना उस का मुंह काला कर के गधे पर बबठा दे ते हैं सर मोंि दे ते हैं। "अल्लाह पाक सर दे वाल वी गए ते खोते उत्ते वी बह
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गया, ते मुड़ हुण बस्ख़्शश ना हुई ते गल ना बनी।" मौलाना ज़हूर अह्मद رحمة هللا عليهकहने लगे "तू मुड़
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बक्वासां शरू ु कर ददनतयाूँ ने" मन ु ीर अह्मद कहने लगा नां! नां! ज़हूर अह्मदा "हुण रब नाल गल्लां करण
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दे " बस अब ये बातें हो रही थीं, एक सादहबे कमाल दरवेश, वक़्त के अब्दाल वहां से गुज़र रहे थे क्योंकक
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स्ितनी भी बा कमाल हस्स्ट्तयां होती हैं हज्ि पर मक्का में ज़रूर होती हैं। वो वहां से गुज़रने लगे तो कहने लगे "भई क्या कर रहे हो? इस को बातें करने से ना रोको। मैं दे ख रहा हूूँ कक स्िस कैकफ़यत के साथ ये रब से बातें कर रहा है और रब की रहमतें इस पर उतर रही हैं। िब उन्हों ने ये बात कही तो मौलाना ज़हूर
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अह्मद رحمة هللا عليهफ़मातने लगे: "बस हुण गल्लां कर बस छोड़ तू िान तेरा रब िाने" स्िस को रब से बातें करने का सलीक़ा आ गया वो पा गया उस का काम बन गया।
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ख़श ु क़क़स्मत लोग: अल्लाह से बातें करना स्िस को आ गया बस उस का काम बन गया स्िस को अल्लाह
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से बातें करना नहीं आतीं, समझ लें अल्लाह उस की सुन्ना नहीं चाहता, इस मलए उसे इस की तौफ़ीक़ नहीं ममली, तौफ़ीक़ के बग़ैर कैसे हो सकता है ? अता के बग़ैर कैसे हो सकता है ? ख़श ु कक़स्ट्मत हो! िो रब ने तम् ु हें तस्ट्बीह पकड़वा दी है । ख़श ु कक़स्ट्मत हो! िो रब ने तम् ु हें मस ु ल्ला पर बबठा ददया है । ख़श ु कक़स्ट्मत हो! िो रब ने तुम्हें तस्ट्बीह ख़ाना में बुला मलया है । ख़श ु कक़स्ट्मत हो! रब ने तुम्हें दरूद पाक पढ़वा ददया। ये
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हदल के आईने में है तस्वीरे यार!: इसी साल हज्ि पर सय्यदन ु ा अमीर हम्ज़ा
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राज़ व न्याज़ हर ककसी को मय ु स्ट्सर नहीं। अरे ! काअबा के क़रीब बैठे हुओं को मय ु स्ट्सर नहीं। رضی ہللا تعالی عنہ
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के घर िहाूँ अब मस्स्ट्िद बना दी गयी है िा कर ग़ामलबन मग़ररब की नमाज़ पढ़ी। नमाज़ में मेरे साथ
एक साहब बैठे थे िो मझ ु े कोई बात सन ु ाना चाह रहे थे। मग़ररब से काफ़ी दे र पहले के बैठे हुए होंगे। मैं
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िब उन के पास बैठा तो उन की कैकफ़यत पर मैं ने तवज्िह िाली तो मुझे महसस ू हुआ कक ये इस वक़्त
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दन्ु या में नहीं है ये अल्लाह की ज़ात के साथ राब्ते में हैं। ददल के आईने में है तस्ट्वीरे यार
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िब ज़रा गदत न झुकाई दे ख ली
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यार की तस्ट्वीर में ऐसे मुस्ट्तग़्रक़ कक अगर उस के टुकड़े भी कर दो तो भी पता नहीं चलेगा। इख़्लासे
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क़ल्बी, वक़ूफ़ए क़ल्बी अल्लाह की ज़ात के साथ किर उसी वक़्त मुझे ये शेअर याद आया।
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दन्ु या के मश्ग़ल ु ों में हम बा ख़द ु ा रहे
सब के साथ रह कर भी सब से िद ु ा रहे
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हमें इल्म नहीं है कक ये अल्लाह का बन्दा दन्ु या के कामों में मश्ग़ल ू किरता है । उस का रब की ज़ात के साथ ककतना तअल्लुक़ है । हम ज़ादहर के दीवाने हैं, हम ज़ादहरी पैमाने ले कर बन्दों को तोल्ते हैं। ज़ादहरी
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पैमानों के साथ इंसानों की परख करते हैं।
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इस का निंबर बोलता है!: एक साहब से मैं ने कहा: "ममलक मैं ने तुम्हें फ़ॉन ककया तुम तो फ़ॉन उठाते ही नहीं। साथ एक और साहब खड़े थे वो कहने लगे असल में इस को आप के नंबर का पता नहीं था। मैं ने कहा क्या िब ये फ़ॉन करता है तो तम ु उठा लेते हो? उस ने कहा कक इस का तो नंबर बोलता है । यक़ीन िाननये ये लफ़्ज़ मेरे अंदर उतर गए कक "इस का नंबर बोलता है " क्योंकक उस से मुहब्बत थी, उस से
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शनासाई थी, उस से तअल्लक़ ु ज़्यादा था, उस का नंबर Known था, अगचे कॉलें ज़्यादा आईं लेककन उस
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का नंबर वाक़कफ़यत रखता है । उस का नंबर शनासाई रखता है । आप की फ़यासद तेज़ रफ़्तार लसस्टम से
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पोहिं चा दी जाती है : हम अक्सर कॉलें भेिते ही नहीं कभी कभी कोई कॉल कर दी। फ़ररश्ते भी बेचारे उन के भी डिस्िटल लम्बे चोड़े एक्सचें ि हैं। खरबों अरबों के फ़ररश्ते भूल तो नहीं सकते। वेसे मैं अपनी तरफ़ से
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कह रहा हूूँ कक फ़ररश्ते भी कहते होंगे कक पता नहीं कहाूँ से कोई कॉल आई है । कफ़ल्हाल रस्िस्ट्टर में िाल
दो। Pending में िाल दो। अब वो Pending नहीं सन ु रहे । कॉल आ गयी, यूँू चन्द लम्हों में उन्हों ने ममस
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कॉल दी। ममस कॉल फ़ौरन कॉल बेक हुई और कैसे हुई? (िारी है )
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दसस से फ़ैज़ पाने वाले:
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मुताश्ल्लआ करें "
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"अनोखे रूहानी वज़ाइफ़् और राज़ ववलायत पाने के ललए "ख़त्ु बात अबक़री" मुकम्मल सेट का
मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्सलामु अलैकुम! अबक़री से मेरा तअल्लुक़ पपछले तीन साल से है । मुझे मेरी हम्साई एक दफ़ा दसत में ले कर आई और किर मैं ने हर माह अबक़री ले कर पढ़ना शुरू कर ददया Page 9 of 53 www.ubqari.org
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और इस तरह अबक़री से मेरा तअल्लुक़ मज़्बूत से मज़्बूत होता गया। मैं आप का दसत रूहाननयत व अम्न हर िुमेरात ज़रूर सुनती हूूँ। कभी तस्ट्बीह ख़ाना हास्ज़र ना हो सकूँू तो इंटरनेट पर लाइव ज़रूर
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सुनती हूूँ। दसत सुनने की बदौलत हमारे घर के हालात बहुत बदल रहे हैं, घर में सुकून आता िा रहा है , बबला विह के लड़ाई झगड़े ख़त्म हो रहे हैं, मुआशी बेह्तरी आ रही है । अभी िो हाल ही में मुझे दसत का
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फ़ायदा हुआ वो ये कक मेरे चेहरे पर शदीद तरीन एलिी हो गयी, मेरा चेहरा सख़ ु त हो गया, मैं बहुत ज़्यादा परे शान हुई। मैं ने रात सोने से पहले आप का दसत सुना स्िस में आप सूरह फ़ानतहा के फ़ज़ाइल बता रहे थे और साथ आप ने सरू ह फ़ानतहा का वज़ीफ़ा बताया। मैं ने रात सोने से पहले यही वज़ीफ़ा ख़ल ु स ू ददल से
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ककया और चेहरे की एलिी ख़त्म होने की दआ ु की और सो गयी। मैं ने ख़्वाब में दे खा कक एक बुज़ुगत मुझ
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से कह रहे हैं कक तुम्हारे चेहरे को क्या हो गया है । किर उन्हों ने सफ़ेद रं ग की कोई चीज़ मेरे चेहरे पर लगा
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दी, िब मैं सुबह नमाज़ फ़ज्र की अदायगी के मलए उठी तो अल्लाह के हुक्म से मेरा चेहरा साफ़ शफ़ाफ़
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था, माशा अल्लाह बबल्कुल साफ़ हो गया। मैं बहुत ख़श ु हुई। दसत की मदद से अल्लाह तआला ने मेरे ऊपर बहुत करम ककया। िो वज़ीफ़ा मैं ने पढ़ा वो ये है : अवल व आख़ख़र तीन मततबा दरूद शरीफ़ के साथ एक
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मततबा सूरह फ़ानतहा और तीन मततबा सूरह इख़्लास पढ़नी है । (आममना लतीफ़, लाहौर)
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माहनामा अबक़री जन्वरी 2016 शुमारा निंबर 115_______________pg 4
अमराज़ मैदा, मोटापा और बेरोज़गारी से ननजात
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आज की दन्ु या का सब से बड़ा चैलेंज ज़रीया मआ ु श!
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क़ाररईन अबक़री अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं काफ़ी अरसे से अबक़री का क़ारी हूूँ और हज़रत हकीम साहब دامت برکاتہمको मुबारकबाद पेश करता हूूँ स्िन की कापवशों से हज़ारों, लाखों लोग मुस्ट्तफ़ीद हो रहे हैं और
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अपनी आख़ख़रत संवार रहे हैं। अल्लाह पाक उन के इल्म, अमल और उम्र में बहुत बरकत अता फ़मातए और इसी तरह दख ु ी इंसाननयत की ख़ख़दमत और फ़ैज़ दस ू रों तक पोहं चाने की तौफ़ीक़ अता फ़मातए।
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आमीन! आज की दन्ु या का सब से बड़ा चैलेंज ज़रीया मुआश!: नफ़्सा नफ़्सी का दौर है , तेज़ी से बढ़ती हुई मेहंगाई, कक़ल्लत मुआश और ज़रूररयात स्ज़न्दगी ने इंसान को इस क़दर परे शान व मसरूफ़ कर ददया है
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कक वो अदम तहफ़्फ़ुज़ का मशकार है । घरे लू मसाइल में उल्झा हुआ है । सब्र व शक्र ु का दामन हाथ से छूटता िा रहा है और ददल का सुकून मुयस्ट्सर नहीं। इन तमाम उल्झनों से ननकलने का वादहद रास्ट्ता मसफ़त और मसफ़त अल्लाह की ज़ात है और इन तमाम मसाइल को हल करने के मलए क़ुरआन हकीम
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फ़ुरक़ान हमीद िैसी अज़ीम नेअमत अता की गयी। ये वो अज़ीम ककताब है िो इंसानों के मलए सर चश्मा
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दहदायत है , रहमत सरमाया ए हयात, रहबर ए स्ज़न्दगी और फ़लाह व बहबूद के मलए ख़द ु ा का अज़ीम
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तरीन तोह्फ़ा है । ये वो मुक़द्दस ककताब है िो इंसान से हम कलाम होती है इसी मलए इस को क़ुरआन कहा
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गया है । इशातद ए ख़द ु ावन्दी है "मैं मुज़्तरब की दआ ु क़ुबूल करता हूूँ िब वो मायूस हो िाता है " तो दआ ु ही
उसे मायूसी से ननकाल कर एक नए अज़्म, हौसले, उम्मीद और सुकून से हम ककनार करती है । दआ ु रब्त
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ख़ामलक़ व मख़्लूक़ का बेह्तरीन ज़रीया है । अल्लाह पाक हम सब को क़ुरआन समझने की तौफ़ीक़ अता
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फ़मातए। (आमीन) और समझने के बाद उस पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फ़मातए। इसी मज़्मन ू के तवुसत से क़ुरआन मिीद से चन ु े गए तोह्फ़े क़ाररईन अबक़री की नज़र करना चाहता हूूँ िो दित ज़ेल हैं:-
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िो शख़्स कम रोज़ी, कम अस्ट्बाब और कम वसाइल रखता हो और ररज़्क़ में बेह्तरी और इज़ाफ़ा चाहता
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हो तो दित ज़ेल आयत को रोज़ाना फ़ज्र की नमाज़ के बाद ग्यारह मततबा पढ़ मलया करे और दआ ु मांग मलया करे इन ् शा अल्लाह िल्द ही मुआशी हालत बेह्तर हो िाएगी। "अल्लाहु यब्सुतु-ररत ज़्क़ मलमं-
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य्यशाउ ममन ् इबादददह व यस्क़्दरु लहू इन्नल्लाह बबकुस्ल्ल शैइन ् अलीमुन ्" (अल ्-अंकबूत ६४)
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للَا ب ُ ل ہ ہ ْ ُ ہ ٗ لہ ہ ُ ہ ْ ِّ الر ْز ہق ل ہِّم ْن ی لہ ہش ٓا ُء للَا یہ ْب ُس ُط ل ْ کہ ﴾۲۶َش ٍء ہع ِّل ْی ٌم ﴿العنکبوت ِّ ِّ ِم ع ہِّبا ِّد ٖہ و یق ِّدر لہ اِّن ِّ
(वक़ार अह्मद, कोट अद्दू)
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दस्ते ग़ैब का एक क़ुरआनी मज ु रस ब अमल मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मझ ु े ककयातना की दक ु ान बनाए हुए दस साल हो गए,
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छोटी सी दक ु ान थी, कारोबार ज़्यादा ना था, कभी ख़रीदार नहीं अगर गाहक आएं तो सामान नहीं। बस बच्चों की गोली टॉफ़ी तक काम महदद ू हो कर रह गया था। मेरा एक अज़ीज़ मल् ु क से बाहर था, मझ ु े
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ममला, मेरा काम दे खा, कहने लगा काम बेह्तर करने के मलए मैं तुम्हें पैसे दं ग ू ा, काम बेह्तर कर लेना िब होंगे वापस कर दे ना, मैं मांगूंगा नहीं। उस ने कह तो ददया लेककन पैसे नहीं ददए। मैं ने दित ज़ेल सूरह फ़ानतहा का अमल शुरू कर ददया। पहले महीने कुछ ना हुआ, दस ू रे माह अमल शुरू ककया तो वो अज़ीज़
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आया और मुझे एक लाख रूपए ददए और कहा कक अपना कारोबार ठीक कर लो। दक ु ान सामान से भर
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गयी और कारोबार भी बहुत बेह्तर हो गया और घर में ख़श्ु हाली भी आ गयी। कुछ अरसा बाद उस का
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उधार भी वापस कर ददया। अब मेरी ख़्वादहश थी कक सुज़ूकी पपक अप ख़रीद लूँ ।ू मज़ीद अमल िारी रखा
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गाड़ी पोने पांच लाख की थी कुछ अरसे बाद मेरे पास पांच लाख िमा हो गए, अल्लाह ने गाड़ी भी दे दी।
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उमराह की शदीद ख़्वादहश थी अमल मज़ीद िारी रखा अल्लाह ने उमराह भी करवा ददया।
अल्हम्दमु लल्लाह! अमल दित है : िम ु ेरात की रात सोते वक़्त ७० बार सरू ह फ़ानतहा "बबस्स्ट्मल्लादह-र्ِّ لہ ْ ٰ لہ (الر ِّح ْیم ) ِّب ْس ِّم للَا الرْح ِّنके साथ पढ़ें , अवल व आख़ख़र सात बार दरूद शरीफ़ इब्राहीमी
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रह्मानन-र्-रहीमम"
पढ़ें अपने मक़्सद का ख़ब ू तसव्वुर रखें। दस ू रे ददन उसी वक़्त ६० बार पढ़ें । बस रोज़ाना ऐसे ही दस मततबा
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कम करते िाएं आख़ख़रकार बध ु को दस मततबा पढ़ें । हर बार अपने मक़्सद का तसव्वरु तवज्िह, ध्यान
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और गयत व ज़ारी करें । िुमेरात को किर नया हफ़्ता और साबबक़ा तरतीब के साथ सत्तर मततबा ये अमल
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करें और रोज़ाना इसी तरह दस मततबा कम करते िाएं। ये अमल सात, चोदाह या इक्कीस हफ़्ते करें ।
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स्ज़न्दगी का मामूल बना लें तो भी इिाज़त है ।
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सामान, घर, प्लाट फ़ौरी फ़रोख़्त! ख़ास अमल
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह पाक आप को अपनी दहफ़ाज़त में रखे। मैं
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आप को अपना एक मुशादहदा मलख रहा हूूँ िो आप अबक़री में छाप दें । एक मततबा मैं ने नेट पर पढ़ा था कक सामान वग़ैरा की फ़रोख़्त के मलए सूरह यूसुफ़ की आयत नंबर ८० पढ़ें तो इन ् शा अल्लाह वो चीज़ फ़रोख़्त हो िाएगी। मेरे दो अदद प्लाट पपछले कई सालों से बाविद ू कोमशश के नहीं बबक रहे थे, मैं ने
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दित बाला आयत सारा ददन ख़ब ू पढ़ना शुरू कर दी। चन्द ददनों के बाद है रान कुन तौर पर मेरे दोनों प्लाट फ़रोख़्त हो गए। यही अमल उन दक ु ान्दार हज़रात के मलए भी है स्िन का सामान नहीं बबक रहा, दक ु ान
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पर बैठ कर ये आयत मुसल्सल बार बार पढ़ें इन ् शा अल्लाह है रान कुन तौर पर बबक्री में ख़ब ू इज़ाफ़ा
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होगा। (मुहम्मद इशातद आराईं, सक्खर)
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मेरी काम्याबी का राज़ लसफ़स अबक़री
मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! ख़ुदा करे कक आप ख़ैररयत से हों। आप के ररसाला
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अबक़री में शायअ शद ु ह वज़ीफ़ा "मेरी काम्याबी का राज़ मसफ़त अबक़री" अगस्ट्त २०१३ स नंबर १० पर छपा था। मेरी बेटी ने वो पढ़ा और एंरी टे स्ट्ट दे ने के मलए चली गयी। वो बताती है कक अगरचे वो बॉल
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पॉइंट खोल कर उस की ननब पर और क़लम की नोक पर दम कर के ले गयी थी और टे स्ट्ट में कई मुस्श्कल
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सवालों पर वो गड़बड़ा भी गयी थी मगर अल्लाह की रहमत से ये हुआ कक िो सवाल उस की समझ से
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बाहर थे उस ने अल्लाह के आसरे पर और अपनी समझ के मुताबबक़ चांस ले मलया और वो बबल्कुल ठीक
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ननकले। मेरी बच्चों से गुज़ाररश है कक वो पढ़ाई के साथ साथ अल्लाह को याद रखें और नमाज़ बाक़ाइदगी से पढ़ें ता कक दीन और दन्ु या दोनों संवरते रहें , ख़द ु ा को याद रखोगे तो ख़द ु ा तुम को याद रखे।
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खािंसी का आसान व मज ु रस ब नस् ु ख़ा
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरे पास खांसी का एक लािवाब नुस्ट्ख़ा है िो मैं
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क़ाररईन अबक़री की नज़र करता हूूँ। हुवल ्-शाफ़ी: एक ककलो शहद लें। दस रूपए की अमल्तास िली। अमल्तास की िली को तवे पर रख कर राख करें और पीस कर एक ककलो शहद में ममला लें। रात सोने से
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(ह, म,क़)
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माहनामा अबक़री जन्वरी 2016 शुमारा निंबर 115_________________pg 5
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पहले एक चम्मच खा लें। लािवाब आज़मद ू ह और आसान नस्ट् ु ख़ा है । आज़्माएं और दआ ु ओं में याद रखें।
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इस के साथ अगर आप ककसी नोकरी के मलए इंटरव्यू दे ने िाएं तो दित ज़ेल अमल कर के िाएं इन ् शा
अल्लाह आप पास भी हो िाएंगे और मन् ु तख़ख़ब भी। अमल दित ज़ेल है :- सरू ह क़लम एक मततबा स्ट्याही
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की दवात पर पढ़ें और वही स्ट्याही अपने पेन में भर लें किर एक दफ़ा दब ु ारह पढ़ कर क़लम की नोक पर
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िूँू क मार दें । इस के बाद दो रकअत नस्फ़्फ़ल पढ़ें और किर सूरह फ़तह पढ़ कर अपने ऊपर दम कर लें
लाहौर कैंट)
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और स्िस मक़्सद के मलए भी टे स्ट्ट दें गे इन ् शा अल्लाह काम्याबी आप के क़दम चम ू ेगी। (दहना नाज़,
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बेरोज़्गार को रोज़्गार और करायेदार को माललक मकान बनाने का अमल
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह आप को अहल व अयाल के साथ दन्ु या व आख़ख़रत में ऊंचा मुक़ाम अता फ़मातए। आमीन! मोअद्बाना गुज़ाररश है कक बन्दा को आप ने सूरह अलम
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नश्रह् का वज़ीफ़ा ददया था और पांच लाख की तअदाद पूरा करना था। अल्हम्दमु लल्लाह! अभी तक चार लाख साठ हज़ार तक पोहं च गया है , तक़रीबन दस माह हो चक ु े हैं। इस वज़ीफ़ा की िो बरकात मुझे ममली
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हैं कक इस दौरान एक बेटे और दो बेदटयों की शाददयां हो गयी हैं, अल्हम्दमु लल्लाह! अल्लाह पाक ने अहसान कर के इस वज़ीफ़े की बरकत से आसानी फ़मात दी है और बड़ी ख़श ु अस्ट्लूबी से ये शाददयां अंिाम
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को पोहं ची हैं। हज़रत हकीम साहब! मैं क्राये के मकान में रहता था और कई महीनों का ककराया मेरे स्ज़म्मा बाक़ी रहता था चूँ कू क मामलक मकान क़रीबी ररश्तेदार था इस विह से कुछ ना कहता। मेरे वामलद साहब मोहतरम ने मझ ु े घर के मलए ज़मीन दी थी स्िस का बनाना, मेरे बस से बाहर था और मैं उस
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ज़मीन को बेचना चाहता था ता कक मैं दस ू रे लोगों के क़ज़े अदा कर सकूँू लेककन रे ट बहुत कम था और
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प्रॉपटी वाले तीस लाख से भी कम बताते लेककन इस वज़ीफ़े की बरकत से अल्लाह रब्बुल ्-इज़्ज़त ने करम
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फ़मातया कक मेरी वो ज़मीन ७३ लाख में बबक गयी।
दस ू रा अहसान अल्लाह ने ये फ़मातया कक एक तय्यार घर, साफ़ सुथरा, ख़ब ू सूरत और वसीअ और हर तरह
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से आरास्ट्ता घर ४९ लाख में ममला अल्हम्दमु लल्लाह! िब और लोगों को इस सारे मुआमले का पता चला
तो है रान हुए कक ये कैसे हो गया? मैं ने बताया कक बस अल्लाह ने अहसान फ़मातया और करम फ़मातया कक
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मुझ नाचीज़ को ऐसे शान्दार और वसीअ घर का मामलक बना ददया वो लोग िो आि तक मुझे दीवाना और पागल समझते थे आि वो लोग ख़द ु मझ ु े कहते हैं कक हम तो तझ ु े दीवाना समझते थे लेककन वाक़ई
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दे ने वाली मसफ़त अल्लाह रब्बुल ्-इज़्ज़त की ज़ात है वो स्िसे चाहे और िैसे चाहे नवाज़ दे । बहुत से लोग
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अब मेरे पास आते हैं कक तम ु िो वज़ीफ़ा पढ़ते हो वो वज़ीफ़ा हमें बता दो िो क़रीबी ररश्तेदार हैं और स्िन
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को पता है कक सूरह अलम नश्रह् पढ़ता है उन्हों ने अज़ ख़द ु ये सूरह पढ़नी शुरू कर दी है । अल्लाह तआला
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आप के फ़्यूज़ व बरकात से हम को और सारी उम्मत मुस्स्ट्लमा को बस्ल्क सारी इंसाननयत को मुस्ट्तफ़ीज़ फ़मात दे । आमीन (मुहम्मद ज़ादहर शाह, सवात)
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नोकरी की बश्न्दश ख़त्म करने का अमल
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं ने एक िगा नोकरी के मलए अप्लाई ककया,
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फ़ाइनल इंटरव्यू के मलए मुझे मुल्तान बुल्वाया गया, इंटरव्यू से तीन ददन पहले मेरे ऊपर ककसी हामसद ने स्ट्याह अमल (िाद)ू ककया। स्िस की विह से मझ ु े महसस ू हुआ कक मेरी पीठ पर कोई चीज़ चीर चीर करती चढ़ती आ रही है और मेरे ऊपर यानन सर पर कोई चीज़ आ कर बैठ गयी है और मेरे सीने से धव ु ां
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की तरह कुछ ननकल रहा और मेरे मुंह से भी धव ु ां ननकल रहा। मेरे तमाम स्िस्ट्म पर इतना बोझ आ गया कक मेरी टांगें वज़न की विह से चल ना सकतीं और मेरी शकल काले रं ग की हो गयी। मैं ने फ़ौरन
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"अमलफ़् -लाम ्-म्मीम ् अमलफ़् -लाम ्-मीम ्-सुआद्। अमलफ़् -लाम ्-रा। अमलफ़् -लाम ्-म्मीम ्-रा। काफ़् -हा-या-
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ऐन ्-सआ ु द्। ता-हा। ता-सीन ्-मीम ्। ता-सीन ्। या-सीन ्। सआ ु द्। ता-मीम ्। ऐन ्-सीन ्-क़ाफ़् । क़ाफ़् । नन ू ्।"
ٓ ٰط۔ ٓع ٓس ٓق۔ ٓق ٓ ٰ ال ال ٓ ٓم ٓص۔ ال ٓ ٰر۔ ال ٓ لٓم ٰر۔ کٓ ٰھ ٰی ٓع ٓص ٰ۔ط ٰہ۔ ٰط ٓس ٓم۔ ٰط ٓس۔ ٰی ٓس۔ ٓص۔ ٓ) ٓ ل ( ۔ن
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ये मक ु म्मल हरूफ़ पढ़ने शरू ु कर ददए स्िस से मझ ु े बहुत सक ु ू न ममला। इस से अगले ददन इंटरव्यू था।
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इंटरव्यू के मलए रवाना हुआ, िब इंटरव्यू दे ने बेठा तो मुझे ककसी सवाल की समझ ना आ रही थी, मुझे
कोई चीज़ ज़बरदस्ट्ती वहां से बाहर खेंच रही थी, मेरा सर िकड़ा हुआ था, मैं वहां बैठा मअव्वज़तेन (सूरह
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फ़लक़, सूरह नास) पढ़ता रहा, स्िस से मुझे कुछ सुकून हुआ और मैं ने आराम से इंटरव्यू ददया। वापसी पर भी और रात को मअव्वज़तेन पढ़ता रहा और सीने पर दम करता रहा। अचानक मेरे सीने से कोई चीज़
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भाप की तरह ननकली और ननकलते हुए कड़क की आवाज़ आई। मैं ने दस ू रे ददन मअव्वज़तेन पढ़ कर
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अपनी पपंिमलयों के ऊपर दम ककया तो मेरी दोनों पपंिमलयों से भी भाप की तरह की चीज़ ने कड़ाक ककया
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और मेरी दोनों पपंिमलयों को छोड़ ददया। तीसरे ददन मैं ने सारा ददन दरूद शरीफ़ पढ़ा और अस्ट्तग़फ़ार पढ़ता रहा। शाम को घर िाते ऐसा ही हुआ मेरे सर से भूरे रं ग की कोई चीज़ ननकल कर उड़ गयी। इस
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दौरान मैं अल्लाह से अपनी काम्याबी की रो रो कर दआ ु मांगता रहा। चन्द ददनों बाद मुझे मुतअल्लक़ा मेहक्मा से कॉल आ गयी कक आप को िॉब के मलए मुन्तख़ख़ब कर मलया गया है । अल्हम्दमु लल्लाह!
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(मुहम्मद अज्मल, रािनपुर)
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बद्दसरू ती को ख़ूबसरू ती में बदलने का आज़मद ू ह रूहानी इलाज
मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं पहली मततबा मलख रहा हूूँ क्योंकक आप ही फ़मातते हैं कक कोई अमल छोटे से छोटा ही क्यूूँ ना हो ज़रूर मलखें , इसी मलए मलख रहा हूूँ। मेरा एक दोस्ट्त है , उस का
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चेहरा बहुत ज़्यादा ख़राब था, इतने दाने थे कक मैं बता नहीं सकता। उस के वामलद साहब ने कहा कक दे खो तुम्हारे दोस्ट्त ने चेहरे पर मेहंगी से मेहंगी क्रीमें लगा लगा कर अपने चेहरे का क्या हाल कर मलया है । मैं
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बहुत परे शान हूूँ, मेरा दोस्ट्त कहने लगा यार मैं ने कोई क्रीम, कोई लोशन नहीं छोड़ा मगर ये दाने मेरी
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िान नहीं छोड़ रहे । पहले वक़्ती फ़ायदा होता है मगर बाद में चेहरा और ज़्यादा ख़राब हो िाता है । मैं ने उसे कहा कक तुम हर नमाज़ के बाद एक तस्ट्बीह "या ख़ामलक़ु या मुसस्व्वरु या िमीलु" ُ
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( ) ہَی ہخال ُِّق ہَی ُم ہص لِّو ُر ہَی ہَج ِّْیلकी पढ़ा करो, आप यक़ीन नहीं करें गे मैं उस को ये अमल बता कर भूल गया तक़रीबन
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दो माह के बाद मस्स्ट्िद में मुझे ममला, िब मैं ने उस का चेहरा दे खा तो बबल्कुल साफ़ शफ़ाफ़, कोई दाग़ धब्बा ना ही दाना था। िब मैं ने इस कररश्मे की विह पूछी तो कहने लगा तुम ने िो वज़ीफ़ा बताया है
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वही पढ़ता हूूँ अल्लाह ने करम कर ददया है । (मह ु म्मद अज़्हर महमद ू , बहावल्नगर)
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बेरोज़गार के ललए काम्याब व आज़मद ू ह अमल
मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! आप को माहनामा अबक़री शायअ करने पर अल्लाह
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तआला िज़ाए ख़ैर अता करे , आप की ख़ख़दमत में एक अन्मोल मोती पेश कर रही हूूँ, इस को मैं ने बार बार आज़्माया है , अल्लाह ने मेरी हर हाित पूरी की है । चार रकअत नश्फ़्फ़ल नमाज़ हाजत: पहली
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रकअत में अल्हम्द ु शरीफ़ के बाद सूरह इख़्लास ग्यारह मततबा पढ़ें । दस ू री रकअत में अल्हम्द ु शरीफ़ के बाद सूरह इख़्लास इक्कीस बार पढ़ें । तीसरी रकअत में अल्हम्द ु शरीफ़ के बाद सूरह इख़्लास इकत्तीस
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बार। चौथी रकअत में अल्हम्द ु शरीफ़ के बाद सूरह इख़्लास इक्तालीस बार। नमाज़ के बाद यानन सलाम िेरने के बाद सूरह इख़्लास ५१ बार, दरूद शरीफ़ ५१ बार, किर सज्दे में िा कर सो बार या अल्लाह या
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अल्लाह कहे । किर सज्दे से सर उठा कर अल्लाह से अपनी हाित तलब करे लेककन िाइज़ मरु ाद हो, ककसी का हक़ छीनने या किर ककसी को नुक़्सान पोहं चाने का मक़्सद ना हो। (बबन्ते सैफ़, मुल्तान)
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मसला कारोबारी हो या घरे लू सब हल
मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह तआला का लाख लाख शुक्र है कक स्िस में
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मुझे ये तौफ़ीक़ बख़्शी, अबक़री में क़ाररईन के आज़मूदह अमल पढ़ कर मेरे ददल में बहुत शौक़ पैदा हुआ
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कक मेरे पास भी एक
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माहनामा अबक़री जन्वरी 2016 शम ु ारा निंबर 115__________________pg 6
अमल है िो मैं अबक़री क़ाररईन को नज़र करना चाहता हूूँ। मैं मसतम्बर २०१३ से अबक़री का क़ारी हूूँ।
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इस से पहले मेरे अब्बू को उन के एक दोस्ट्त ने ददया था। किर िब मैं ने इसे पढ़ा तो मुझे बहुत अच्छा
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लगा। अब मैं इसे हर माह बाक़ाइदगी से ख़रीदता हूूँ। मैं ने भी इस अमल को आज़्माया है और लोगों को
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भी बताया है उन्हों ने भी आज़्माया है । अगर ककसी बन्दे का ककसी कक़स्ट्म का मसला हो, घरे लू मसला हो,
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परे शानी हो, मुस्श्कल हो वग़ैरा वग़ैरा तो ये नस्फ़्फ़ल पढ़ लें और अल्लाह तआला से पूरे तवज्िह ध्यान से गगड़गगड़ा कर दआ ु मांगें इन ् शा अल्लाह वो हाित ज़रूर पूरी होगी। अमल ये है :- १२ रकअत नस्फ़्फ़ल की ननय्यत बांधें हर दो रकअत के बाद तश्हद ु पढ़ें िब बारह रकअत पूरी हो िाएं तो बारहवीं रकअत के
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ُ ُٗ आख़री तश्हद ु पर िब बैठें तो "अब्दहु ू व रसूलुहू" ( ) ہع ْبدہ ہو ہر ُس ْول ٗہतक पढ़ कर किर तरतीब से ये पढ़ें :- सात
दफ़ा सूरह फ़ानतहा, सात दफ़ा आयत-अल ्-कुसी, दस दफ़ा चौथा कल्मा, दस दफ़ा दरूद शरीफ़। किर
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सलाम िेर कर दआ ु मांगें। अमल इख़्लास और तवज्िह से पढ़ना है । मैं ने इस अमल को उस वक़्त आज़्माया िब मैं सेकंि इयर में था, आप यक़ीन िाननये हमारी पेपरों की तय्यारी बबल्कुल नहीं थी मैं ने
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सारे पेपसत अपनी तरफ़ से मलखे, मसफ़त शीटें फ़ुल भरी थीं। अब ये पता नहीं कक अंदर क्या मलखा है । किर मैं ने ये अमल कर के अल्लाह तआला से दआ ु की। अल्लाह के फ़ज़्ल व करम से मेरी सेकन्ि पोस्ज़शन आई स्िस की मुझे उम्मीद भी नहीं थी। इस अमल को ककसी भी हाित के मलए आज़्मा सकते हैं अगर
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मेरे ककसी भाई का कारोबार नहीं है या कारोबार है मगर चलता नहीं, कोई बेरोज़्गार है तो वो ये अमल
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ज़रूर आज़्माए इन ् शा अल्लाह नामुराद ना रहे गा।
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एक आज़मूदह नुस्ख़ा ब्लि प्रेशर के मरीज़ों के ललए: ये भी बहुत से लोगों ने आज़्माया हुआ है । इस से
ब्लि प्रेशर नामतल रहता है । (ख़श्ु क धन्या और सौंफ़) बराबर ममक़्दार में ले कर उन की िक्की बना लें।
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तरीक़ा इस्तेमाल: एक चम्मच सुबह ननहार मुंह पानी के साथ खा लें। किर बाद में नाश्ता करें किर शाम के खाने से आधा घन्टा पहले एक चम्मच लें। ये ब्लि प्रेशर के मरीज़ों के मलए ननहायत मि ु रत ब और
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आज़मूदह है ।
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मुश्ककल घड़ी और परे शानी के वक़्त पढ़ने का आज़मूदह वज़ीफ़ा मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरे पास एक आज़मद ू ह वज़ीफ़ा है , िब भी कोई
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मुस्श्कल घड़ी या परे शानी मुआशी आए या घरे लू तो इस वज़ीफ़े से अपनी मुस्श्कल व परे शाननयां हल
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करवा लेता हूूँ। क़ाररईन अबक़री के मलए हद्या नज़र कर रहा हूूँ। वज़ीफ़ा दित ज़ेल है : क़ुरआन मिीद के
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हर पारे में सज्दा वाली आयत पर सज्दा करना ज़रूरी है , िब कोई मुस्श्कल आए, क़ुरआन मिीद के पहले से ले कर आख़ख़र तक। आयत सज्दा (सज्दे में पढ़ कर दआ ु करें ) हर सज्दा वाली आयत को सज्दे में ही
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पढ़ना और किर दआ ु करना है । अल्लाह तआला को सज्दा बहुत पसंद है , हर मुस्श्कल हल हो िाती है । अगर आयत ज़बानी याद नहीं तो दे ख कर पढ़ कर सज्दे में दआ ु करें । आसानी के मलए सज्दे वाली आयात
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स्िस सूरह में है उन का नाम और आयात नंबर मलख ददया है :
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१- पारह नंबर ९ सूरह अल ्-एअराफ़ आयत नंबर २०५ से २०६ २- पारह नंबर १३ सरू ह अल ्-रअद आयत नंबर १४ से १५ ३- पारह नंबर १४ सरू ह नहल आयत नंबर ४९ से ५०
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४- पारह नंबर १५ सरू ह बनी इस्राईल आयत नंबर १०८ से १०९
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५- पारह नंबर १६ सरू ह मयतम आयत नंबर ५७ से ५८
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६- पारह नंबर १७ सूरह हज्ि ् आयत नंबर १७ से १८
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७- पारह नंबर १९ सूरह फ़ुरक़ान आयत नंबर ५९ से ६०
९- पारह नंबर २१ सूरह अल ्-सज्दा आयत नंबर १४ से १५
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८- पारह नंबर १९ सूरह नम्मल आयत नंबर २५ से २६
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१०- पारह नंबर २३ सूरह सुआद् ( ) صआयत नंबर २३ से २४
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११- पारह नंबर २४ सूरह हामीम सज्दा आयत नंबर ३७ से ३८
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१२- पारह नंबर २७ सूरह निम आयत नंबर ६१ से ६२
१३- पारह नंबर ३० सूरह इंशक़ाक़ आयत नंबर २० से २१ १४- पारह नंबर ३० सूरह अल ्-अलक़ आयत नंबर १८ से १९ Page 20 of 53 www.ubqari.org
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इस के इलावा मुस्श्कल और परे शानी के वक़्त नमाज़ फ़ज्र में सुन्नतों के बाद अल्हम्द ु शरीफ़ इक्तालीस बार इस तरह पढ़ें कक "बबस्स्ट्मल्लादह-र्-रह्मानन-र्-रहीमम-ल्हम्द ु मलल्लादह रस्ब्ब-ल ्आलमीन" ْ ہ
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"अल्हम्द"ु
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ِّ لہ ْ ٰ لہ (الرح ِّْی ِّم اْل ہ ْم ُد ِّلِل ِّ ہر ِّلب ال ہعال ِّم ْی ) ِّب ْس ِّم للَا الرْح ِّنके साथ सारी सर ू ह पढ़ना यानन "रहीमम" ( )الرحيمके "म" ( )مको
( )اْلمدके "ल" ( )لके साथ ममला कर हर दफ़ा पढ़ना है । िब आयत "इय्याक नअबुद ु व ہ ہ
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ک ن ْع ُبد ہو ا لَِّی ہ )ا لَِّی ہपढ़े तो इस को तीन दफ़ा पढ़ कर मकम्मल कर के दआ मांगे कम ُ ْ ک ن ْست ِّع इय्याक नस्ट्तईन"ु (ی ु ु
अज़ कम सात ददन लगातार पढ़े , इन ् शा अल्लाह मस्ु श्कल हल होगी। ग़म और परे शानी दरू होगी। (अ, श)
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काम्याब कारोबार के साथ तालीम भी शान्दार! अमल हाश्ज़र है
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! आप का बहुत बहुत शुकक्रया कसीर शुकक्रया कक आप
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ने माहनामा अबक़री के ज़ररए मुझ िैसे ना लायक़ों और दन्ु यावी, रूहानी भटके हुओं और बे होसला लोगों
को एतमाद व होसला दे कर अल्लाह की राह पर लगाने और अल्लाह से लेने का िज़्बा और यक़ीन पैदा
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करने का बीड़ा उठाया और अबक़री के ज़ररए आप की सख़ावत, आप की अताएं हम िैसे आसी व नाक़स
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लोगों के मलए भी नेअमतें हामसल करने का वसीला बन गईं आप का शकु क्रया! आप ने अपने दरूस में ऐसी उम्दगी, इंकसारी, सख़ावत से लतीफ़ पेराए में मज़्मून ददल में उतर िाने वाले अल्फ़ाज़ व एतमाद से
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नवाज़ा। आप ने ररज़्क़ में बरकत का अमल माूँगा, वो मैं क़ाररईन की नज़र करता हूूँ। कॉलेि में हमारा एक दोस्ट्त कम पढ़ता, अपनी दक ु ान पर भी कोई ख़ास तवज्िह ना दे ता मगर वो पढ़ाई में ख़ब ू नंबर लेता
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और कारोबार में ख़ब ू चमक धमक थी। उस से इस बाबत मालूम ककया तो उस ने क़ुरआन मिीद की सूरह
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अल ्-ज़ख़्रफ़ की आयत नंबर ७९ बताई कक इस आयत से मेरी काम्याबबयां हैं। मेरा एक कज़न एक
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तक्लीफ़ में आ गया, मेरा एक बुज़ुगत से तअल्लुक़ था, मैं उन के पास गया तो उन्हों ने भी मुझे यही आयत दी, बहुत फ़ायदा हुआ। मैं ने अज़त की एक और बन्दा ए ख़द ु ा ज़रूरत मन्द है क्या उस को ये आयत बता दूँ ू तो उन्हों ने मुझे ग़ौर से दे खा बस्ल्क घूरा मैं सम्झा कोई ग़लती हो गयी है । कहा दे दो मगर उसे कहना Page 21 of 53 www.ubqari.org
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ककसी और को ना बताए और तुम भी एहत्यात रखो। अब मैं इस चीज़ को क्या नाम दूँ ू हम दस ू रों को फ़ायदा दे कर ख़श ु ा के काम बना कर िो ख़श ु ी ममलती है वो ु ी हामसल क्यूूँ नहीं करते हालाूँकक मख़्लूक़ ख़द
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ककसी और काम में नहीं है ।
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सय्यदना करीम ﷺकी करामत: बन्दा नाचीज़ को कायनात के भेद िान्ने, आल्मात की मालम ू ात, अल्लाह पाक के इसरार िान्ने, रूहाननयत से अिाइबात की बाबत अल्लाह के बगतज़ीदा बन्दों को दे खने और इसरार िान्ने की बहुत रग़बत और शौक़ रहा।
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शग ु र के ललए दावा का नस् ु ख़ा मब ु ारक
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तआला आप को इस से ज़्यादा इनायत फ़मातए। आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अबक़री पढ़ कर बहुत ज़्यादा ख़श ु ी होती है । अल्लाह
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब! मैं अबक़री क़ाररईन के मलए अपने सीने का एक राज़ खोल रहा हूूँ। ये
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नुस्ट्ख़ा आप ककसी को भी दावे के साथ दे सकते हैं। इन ् शा अल्लाह ये नुस्ट्ख़ा आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता शुगर को
िड़ से ख़त्म कर दे गा। हुवल ्-शाफ़ी: एक अदद बड़ी इलाइची लें , उस में से सात अदद दाने ले कर सुबह
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ननहार मुंह इस्ट्तेमाल करें , ये नुस्ट्ख़ा कम अज़ कम तीन महीने इस्ट्तेमाल करें इन ् शा अल्लाह शुगर िड़ से
ख़त्म कर दे गा। इस नुस्ट्ख़े को मामूली ना समख़झयेगा ये बहुत काम की चीज़ है । (क़ामसम अह्मद
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मसद्दीक़ी, कराची)
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माहनामा अबक़री जन्वरी 2016 शम ु ारा निंबर 115__________________pg 7
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कभी पपशावर की भट्टी, कभी कराची की गोठ, कभी चक्वाल, कभी है दरआबाद मगर नतश्नगी और शौक़ ने
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िो कुछ चाहा वो कुछ पाना मुस्श्कल रहा। एक मततबा सरगोधा के क़रीब एक बन्दा ए ख़द ु ा ने तस्ट्बीह " सय्यदना करीम ् " ﷺअता फ़मातई, इिाज़त भी दी। एक रात पढ़ते पढ़ते सरगोधा के मकतज़ी क़बब्रस्ट्तान
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िो रास्ट्ते में ननकलता था वहां दाख़ख़ल हुआ कुछ दे र पढ़ते अचानक क़बब्रस्ट्तान बबअक़ नूर बन गया बअज़ क़ब्रें बग़ैर ककसी कनेक्शन के बहुत मुनव्वर थीं। बअज़ क़ब्रों में लोग बैठे क़ुरआन मिीद पढ़ रहे थे और
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बाहर क़ब्रों से िो लोग चल किर रहे थे आ िा रहे थे वो सफ़ेद रं ग के कुतात और पािामा में ज़्यादा तर थे और उन्हों ने सब्ज़ रं ग गग़लाफ़ क़ुरआन मिीद भी उठाए हुए थे। ददल में ख़्याल हुआ कक बाहर दे खूूँ तो
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सामने ईसाइयों की बस्ट्ती है और पपछली तरफ़ क़बब्रस्ट्तान से मल् ु हक़ आबादी है । मेरे दे खने में कोई दीवार हाइल ना थी बअज़ घरों में बच्चे खेल रहे थे, औरतें बबस्ट्तर बबछा रही थीं ग़ज़त िो कुछ हो रहा सब नज़र आ रहा। कुछ दे र ये मंज़र रहा किर वापस मैं अपनी दन्ु या में आ गया। ये सब "सय्यदना करीम ् "ﷺपढ़ने
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का फ़ैज़ था। ये मुझ पर अल्लाह का ख़ास करम हुआ और मैं उस का हर दम लाख लाख शुक्र अदा करता
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हूूँ कक उस ने मुझे इस्रार व रमूज़ से मुस्ट्तफ़ैज़ ककया। (क़,च)
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मेरे तजब ु ासत क़ाररईन अबक़री के ललए
मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! आप ने एक मततबा वाह कैंट में दसत ददया था आप का
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अंदाज़े बयान ही था स्िस ने मझ ु े भी क़लम उठाने पर मज्बरू कर ददया, वेसे अबक़री तक़रीबन मैं ने
पपछले साल से शुरू ककया है लेककन िब पहली मततबा पढ़ा था तब ही उस की गवेदह हो गयी थी। मेरे
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अपने कुछ तिब ु ातत हैं िो मैं क़ाररईन अबक़री के फ़ायदे के मलए मलख रही हूूँ।:- ज़बान में तासीर: मेरी
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ज़बान में गुफ़्तग ु ू के दौरान तासीर नहीं थी, लाख मेरी बात में सच्चाई होती लेककन दस ू रे बन्दे पर मेरी बातें असर नहीं करती थीं। मैं ने कहीं पढ़ा था ककसी से ममलने से पहले तीन बार सूरह फ़ानतहा और तीन
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बार सूरह इख़्लास पढ़े तो दस ू रे बन्दे के ददल में आप की एक एक बात असर करती है , अब मेरा ये मामूल
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है कक िब मैं ककसी से बात करूूँ तो पहले सूरह फ़ानतहा तीन बार और सूरह इख़्लास तीन बार पढ़ती हूूँ।
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इस के इलावा नो बार "या अहद"ु ( ) ہَی ہ ِّْح ْی ُدभी पढ़ती हूूँ। अस्तग़फ़ार के फ़ायदे : मेरी शादी को तक़रीबन सात साल हो गए हैं, शादी के दो साल तक मेरी औलाद नहीं थी तो उस वक़्त मैं घर में अकेली होती थी तो मज्बूरन मैं ने कहीं िॉब करना शुरू कर दी, सुबह िाते वक़्त गाड़ी में मुझे तक़रीबन आधा घंटा लगता Page 23 of 53 www.ubqari.org
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था, बाक़ी पूरे ददन में मेरे पास इतना वक़्त नहीं होता था, उस आधे घंटे में मैं सात सो बार अस्ट्तग़फ़ार पढ़ती थी िो अस्ट्तग़फ़ार मैं पढ़ती वो दित ज़ेल है । मैं ने मुसल्सल तीन महीने पढ़ा और अल्लाह तआला
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ने मुझ पर चोथे महीने फ़ज़्ल कर ददया और आि तक किर मैं ने कहीं पर िॉब भी नहीं की क्योंकक ख़द ु
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मुझे भी िॉब करना अच्छा नहीं लगता था। अस्ट्तग़फ़ार ये है :
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) ا ْستغ ِّف ُر ہ ْ ِّ للَا ہر لب "अस्ट्तस्फ़फ़रुल्लाह रब्बी ममन ् कुस्ल्ल िंबबं-व्व अतूबु इलैदह" (ک ذن ٍب لوا ُْت ُب اِّل ْی ِّہ ِّ ِم ِّ
( ) ہَی ہ ِّْح ْی ُد१७
इस के इलावा िब भी मैं ककसी को गगफ़्ट दूँ ू छोटे से छोटा ही सही उस पर मैं "या हमीद"ु
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बार पढ़ती हूूँ चाहे खाने की चीज़ हो तो उस की बहुत तारीफ़ होती है िो औरत सूरह तहरीम पढ़ती है तो शौहर हर तरह से उस औरत को सख ु ी रखने की कोमशश करता है , ये मेरा अपना तिब ु ात है िो लोग सरू ह
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मुनाकफ़क़ून ् पढ़ते हैं अवल तो कोई उस के पीछे बोल नहीं सकेगा स्ट्वाइ मुनाकफ़क़ के। दस ू रे ये कक मेरे
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ख़ख़लाफ़ कोई बात करे तो मझ ु े साफ़ पता चलता है और बाद में साफ़ ज़ादहर होता है कक मेरे ख़ख़लाफ़ ऐसे
हुआ है मेरे शौहर मुझे "चेहरा शनास" कहते हैं कक तुम तो लोगों के ददल और चेहरे को दे ख कर पहचान
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लेती हो। (मशफ़ा गोहर, वाह कैंट)
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रोज़्गार, अमराज़ मैदा और मोटापा
मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! उम्मीद है आप और तमाम अबक़री के स्ट्टाफ़ ख़ैररयत
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से होंगे। आप का हुक्म हुआ कक िन्वरी २०१६ का शम ु ारा ख़ास नंबर होगा और "बेरोज़्गारी, अमराज़ मैदा,
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मोटापा" पर तहरीरें भेिें। इस बन्दा नाचीज़ की एक छोटी सी कापवश हास्ज़र ख़ख़दमत है । क़ुबूल फ़मातएूँ।
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अल्लाह अबक़री को ददन दग ु नी रात चस्ु ग्न तरक़्क़ी अता फ़मातए और उस से वाबबस्ट्ता अफ़राद को अज्र
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अज़ीम और िज़ाए ख़ैर अता फ़मातए आमीन! रोज़्गार के ललए मेरा आज़मूदह अमल: आि कल बेरोज़्गारी ُ لہ
आम मसला है तो रोज़्गार और हुसूल ररज़्क़ के मलए अस्ट्माए हुस्ट्ना में से "या रज़्ज़ाक़ु" ( ) ہَی ہرزاقबड़ा मअ ु स्ट्सर है , इन ् शा अल्लाह अल ्अज़ीज़ इस इस्ट्म इलाही की बरकत से आप के रोज़्गार और हुसल ू ररज़्क़
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का मसला यक़ीनन हल हो िाएगा। पूरे ख़श ु ूअ व ख़ज़ ु ूअ, यक़ीन, मुकम्मल आदाब और पूरी तरकीब के साथ अगर अमल करें गे तो अल्लाह रहमान रहीम के इस्ट्म मुबारक का असर यक़ीनी है । बुज़ुगातन दीन ने
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इसे हुसूले ररज़्क़ के मलए बड़ा ही ज़ोद असर और अिीब अमल क़रार ददया है लाखों नहीं बस्ल्क करोड़ों हाित मन्द अल्लाह तआला के इस्ट्म मुबारक से फ़ैज़ हामसल कर चक ु े हैं मलहाज़ा आप भी इस नूरानी
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नाम से फ़ायदा हामसल कर सकते हैं। बन्दा को अपने रब िलील पर परू ा भरोसा है कक इस वज़ीफ़े को पढ़ने वाले की िाइज़ हाित ज़रूर पूरी होती है । मैं ने ये वज़ीफ़ा २००४ में ककया और वज़ीफ़ा मुकम्मल होते ही बहुत बेह्तरीन मल ु ाज़्मत ममल गयी। पहले ग्यारह मततबा दरूद इब्राहीमी पढ़ें किर बबस्स्ट्मल्लाह ُ لہ
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पढ़ कर इस्ट्म इलाही "या रज़्ज़ाक़ु ( ) ہَی ہرزاق११०० मततबा पढ़ें किर अपने रोज़्गार के मलए दआ ु अल्लाह
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रब्बुल ्-इज़्ज़त की बारगाह में ननहायत आज्ज़ी से दआ ु मांगें आख़ख़र में दब ु ारह ग्यारह मततबा दरूद
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इब्राहीमी पढ़ें । वज़ीफ़ा सुबह फ़ज्र और शाम इशा के बाद चालीस ददन पढ़ें , अक्सर इस से पहले ही अल्लाह
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पाक रोज़्गार अता फ़मात दे ता है मगर किर भी चालीस ददन तक पढ़ें वक़्त और िगा की पाबन्दी करें
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नमाज़ की पाबन्दी करें और गन ु ाहों से परहे ज़ बहुत ज़रूरी है । अमराज़ मैदा से ननजात: ये नस्ट् ु ख़ा मैं ने
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ख़द ु अपनी ज़ात पर
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नोजवानों को लगे इकक़ के रोग का इलाज
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ककसी को "इश्क़" का रोग लग िाए और स्ज़न्दगी को ये मज़त दीमक की तरह चाट रहा हो और सुकून ग़ारत हो चक ु ा हो तो ये एक बुज़ुगत का ददया हुआ है । बार बार ख़्याल आता हो ककसी (मदत , औरत) का और
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हटाने से भी ना हटता हो। ककसी और चीज़ में ददल ना लगता हो, पढ़ाई वग़ैरा में तो ये अमल करें । इस की
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इिाज़त बुज़ुगत ने हर मदत और औरत को दे दी है । आि के ख़राब माहोल में इस की बहुत ज़रूरत है ।
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अमल ये है । हर ददन सो बार दित ज़ेल अल्फ़ाज़ पढ़ें ।
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ला मत्लूबी इल्लल्लाह
ला मह्बूबी इल्लल्लाह
ला इलाह इल्लल्लाह
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"ला मग़ब त ू ी इल्लल्लाह
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(َل ہم ْرغ ْو ِّ ِْب اَِّل للَا َل ہم ْطل ْو ِِّب اَِّل للَا ہ ٰ لہ ہ ہ ْ ُ ْ لہ ْ )َل َمبو ِب اَِّل للَا َل اِّل ہہ اَِّل للَا ِّ
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यानन तस्ट्बीह के एक दाने पर ये चारों कल्मात पढ़ कर किर दस ू रे दाने पर ये चारों अल्फ़ाज़ पढ़ कर इसी
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तरह तस्ट्बीह मक ु म्मल करें । उन बज़ ु ग ु त ने इस अमल के तासरु ात के बारे में फ़मातया कक "हम ने इस अमल
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से सैंकड़ों नहीं हज़ारों (नोिवान) बच्चों, बस्च्चयों को इस अमल के सदक़े गुनाह कबीरा से बच कर
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स्ज़न्दगी गज़ ु ारते दे खा है िो बस्च्चयां कहती थीं कक हम मर िाएंगी फ़लां (मदत ) के बग़ैर या िो नोिवान
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कहते थे कक हम मर िाएंगे फ़लां (लड़की) के बग़ैर, चन्द ददन उन्हों ने ये अमल ककया ना कोई मरा,
अल्लाह ने दीन और ईमान और अमल की दहफ़ाज़त भी फ़मातई। अगर ख़द ु ा नख़्वास्ट्ता ददल में कोई ऐसी
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कैकफ़यत आ िाए तो ददल साफ़ करने के मलए ये अमल हाटत क्लीनर की तरह है । अमरीका की एक
यूननवमसतटी के बच्चों ने इस अमल का नाम हाटत क्लीनर रखा हुआ है । (अब्दल् ु लाह वल्द अब्दल् ु लाह,
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चकवाल)
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आज़्माया। इंतहाई आज़मूदह और मुिरत ब है ककसी भी इदारे की दवा ले लें। दवा का नाम "पेपर ममन्ट" है खाने के बाद दो बड़े चम्मच पी कर ऊपर से तीन, चार घूूँट पानी पी लें। सीने की िलन, बद्द हज़्मी, खट्टी
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िकारों में बहुत मुफ़ीद है । मतली, क़ै और पेट ददत को दरू करता है । गैस, भूक की कमी और मैदे के काम को दरु ु स्ट्त करता है । मोटापे से यक़ीनी ननजात: एक गगलास ताज़ह पानी में एक अदद लीमों ननचोड़ लें
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किर उस में कलौंिी पाउिर, काली ममचत पाउिर आधा आधा चाय का चम्मच, शहद एक बड़ा चम्मच िाल कर अच्छी तरह ममक्स करें । रोज़ाना ननहार मुंह नाश्ते से आधा घंटा पहले इस्ट्तेमाल करें । एक हफ़्ता के इस्ट्तेमाल से आप के वज़न में एक से िेढ़ ककलो कमी आएगी और एक माह के मस ु ल्सल इस्ट्तेमाल से
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आप के वज़न में ७ ककलो तक कमी आ िाएगी इस डरंक के इस्ट्तेमाल से आप अंदरूनी बीमाररयों से भी
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दरू रहें गे। इस नुस्ट्ख़े के इस्ट्तेमाल के दौरान मीठी चीज़ों और कोल्ि डरंक्स से मुकम्मल परहे ज़ करें ।
मेरे ३० साला तजुबासत व मुशाहहदात
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ज़रूर दआ ु फ़मातएं। (सय्यद अब्दल ु क़दीर्, रावलपपंिी)
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मंदिात बाला से फ़ायदा होने पर हज़रत हकीम साहब دامت برکاتہمऔर मेरे मरहूम वाल्दै न करीमैन के मलए
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मेरी स्ज़न्दगी मुशादहदात व तिुबातत से भरी हुई है गो कक मैं अच्छे आमाल वाला नहीं हूूँ लेककन किर भी उस ज़ात पाक पर भरोसा है कक िब भी स्ज़न्दगी में ककसी काम का इरादा ककया तो अल्लाह के फ़ज़्ल व
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करम से आमाल की बरकत, क़ुरआन मिीद के पढ़ने से मसला हल हो गया। मैं अक्सर बुज़ुगों से
अल्लाह ने मुझे कभी रुस्ट्वा नहीं ककया।
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रहनम ु ाई लेता रहता हूूँ उनके बताए हुए आमाल को अपनाने की कोमशश करता रहा हूूँ। यही विह है कक
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सलात-अल ्-तस्बीह के कमालात: आि से तक़रीबन ३५ साल पहले की बात है िब १९७९ मकीं मावन्द
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(कोदहलो एिेंसी) में बहै मसयत उस्ट्ताद तईनात हुआ, दरू दराज़ का इलाक़ा था। आने िाने की सहूलत नाम की कोई चीज़ नहीं थी, सफ़र रकों पर वो भी िब माल बदातर रक मावन्द के मलए कोदहलो एिेंसी से िाता
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था। काफ़ी ददन इंतज़ार के बाद एक ददन गवनतमेंट हाई स्ट्कूल मावन्द के हे ि मास्ट्टर ममले और कहने लगे कल माल बदातर रक मावन्द िाएगा उस पर िाना होगा। बहर हाल िैसे तेसे हम मावन्द पोहं च गए।
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मावन्द में खाने के मलए कोई चीज़ ना ममलती थी और ना रांसपोटत की सहूलत थी। ददल बहुत उदास था उन ददनों मैं ने बाक़ाइदगी से सलात अल ्-तस्ट्बीह मग़ररब की नमाज़ के बाद पढ़ना शुरू कर दी।
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रूहाननयत में मग़ररब के वक़्त में ख़ास तासीर होती है मलहाज़ा मेरा रोज़ाना का मामल ू बन गया। िब सददत यों की छुदट्टयां हुईं (बलोगचस्ट्तान में ३ माह की छुदट्टयां होती हैं) भाई के पास मुल्तान आ गया। भाई ऍफ़ िी पस्ब्लक स्ट्कूल मल् ु तान छावनी में टीचर थे। उन से स्ज़क्र ककया कक दरू दराज़ का इलाक़ा रांसपोटत
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नहीं बअज़ औक़ात खाने के मलए भी कुछ नहीं ममलता। उन ददनों मैं ने राइंग टीचर का कोसत ककया हुआ
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था। भाई ने अपने शागगदत से स्ज़क्र ककया स्िन के वामलद साहब िी एच क्यू रावलपपंिी में चीफ़
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अिममंस्ट्रे टर ऑकफ़सर (CAO) थे। िब मेरी छुदट्टयां ख़त्म हो गईं तो वापस अपनी ड्यूटी पर मावन्द
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(कोदहलो एिेंसी) वापस आ गया। हस्ट्बे मामूल रोज़ाना मग़ररब की नमाज़ के बाद सलात अल ्-तस्ट्बीह
पढ़ता रहा और अल्लाह से दआ ु करता रहा। अल्लाह की क़ुदरत अचानक भाई का मुल्तान से वायरलेस के
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ज़ररए मेसेि (इत्तला) आया कक आप की बहै मसयत राइंग टीचर ऍफ़ िी बॉयज़ हाई स्ट्कूल नंबर २ आितर
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हो गए हैं फ़ौरन पोहं चें। हालाूँकक मैं ने इंटरव्यू ददया और ना ही कोई दरख़्वास्ट्त दे कर आया था बस्ल्क मसफ़त ज़बानी कहा था। फ़ौरन मुल्तान पोहं च कर ड्यूटी पर हास्ज़र हो गया और अल्लाह का शुक्र अदा
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ककया। अल्लाह ने सलात अल ्-तस्ट्बीह के पढ़ने से मेरे मलए मल ु ाज़्मत का बन्दोबस्ट्त फ़मातया। श्जन्नात से
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दोस्ती: ये १९८५ का वाक़्या है िब मैं मुलाज़्मत के मसस्ल्सले में फ़ैसल आबाद था मकान में अकेला रहता था, मुहल्ले वाले मुझे अक्सर कहते थे कक यहाूँ स्िन्नात हैं आप कैसे यहाूँ रह रहे हैं? मैं ने कभी तवज्िह
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ना दी। उन ददनों मुहम्मद यूनुस नामी लड़का िो मेरे घर के काम काि हांिी रोटी का बन्दोबस्ट्त करता था
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(मैं आप से स्ज़क्र करता चलूँ ू िब से होश संभाला है अल्लाह रब्बुल ्-इज़्ज़त की तौफ़ीक़ से नमाज़ की बाक़ाइदगी करता हूूँ बस्ल्क तामलब इल्मी के दौर में हज़ारों के तअदाद में दरूद शरीफ़ पढ़ता, आमाल से
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मुहब्बत थी शौक़ था और िज़्बा भी था) एक ददन मैं मकान में बैठा था और यूनुस हांिी रोटी पका रहा था तो मैं ने यूनुस को आवाज़ दी कक रोटी लगा दो दफ़्तर िाना है लेककन कोई िवाब ना आया। थोड़ी दे र के
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बाद िब मैं उठ कर गया तो दस्ट्तरख़्वान लगा हुआ था, ताज़ह रोटी और सालन मौिूद था, खाना खाने के बाद किर आवाज़ दी यूनुस ना आया, िा कर ककचन में दे खा तो यूनुस मौिूद नहीं था। शाम को िब यूनुस
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आया तो मैं ने पछ ू ा कक तम ु सब ु ह ककधर चले गए थे? यन ू स ु कहने लगा साहब िी रोटी नहीं थी तो तंदरू से रोटी लेने गया था, दे र हो गयी िब वापस आया तो घर को ताला लगा हुआ था। मैं फ़ौरन समझ गया कक कोई मसला है । मेरी रोज़ाना क़ुरआन मिीद पढ़ने की आदत थी, क़ुरआन पढ़ने के दौरान एक आहट
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सुनी, फ़ौरन ख़्याल आया और मैं ने ददल में कहा कक आप को मैं ने दे ख मलया। िब ख़द ु ही वो मुख़ानतब
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हो कर बोली िनाब! मुझे इस घर में रहते हुए २० साल हो गए हैं, आि तक कोई शख़्स इस मकान में
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बसेरा नहीं कर सका, आप पहले शख़्स हैं कक इस मकान में गुज़ारा कर रहे हैं (यहाूँ ये भी बताता चलूँ ू कक
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मैं ने अममलयात में क़दम तामलब इल्मी के दौर में रखा उस वक़्त मैं दीनी ककताबें अपने उस्ट्ताद मोहतरम मुफ़्ती अब्दल ु क़ाददर साहब से पढ़ा करता था, वो आममल फ़ास्ज़ल थे, उन्हों ने मुझे स्िन्नात से दोस्ट्ती का ُ
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अमल कराया था। (उस के अल्फ़ाज़ "हुब ् हुब ् या बुद्दूहु" ( ) ُح ْب ُح ْب ہَی ُب لد ْوحकराया था) इस अमल की बरकत से
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स्िन्नात से दोस्ट्ती हो गयी। स्ितना अरसा मैं फ़ैसल आबाद रहा अक्सर मल ु ाक़ात होती रहती थी वो मेरी मुआपवन व मददगार भी रहती किर १९८८ में मेरा तबादला इस्ट्लाम आबाद हो गया। मुलाज़्मत के ललए
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सूरह अल ्-ज़्ज़ुहा का मुजरस ब अमल: मेरे बेटे को मुलाज़्मत नहीं ममल रही थी और वो मुसल्सल सूरह व-
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ज़्ज़ुहा का अमल िारी रखे हुए था, सूरह व-ज़्ज़ुहा का कररश्मा दे ख़खये बेटे ने एक िगा टे स्ट्ट ददया नाकाम हो गया किर भी उन्हों ने इंटरव्यू के मलए बुला मलया और ख़द ु ही पूछने लगे इस्ट्लाम आबाद से कौन
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इंटरव्यू दे ने आया है । बेटे ने बताया मैं इस्ट्लाम आबाद से आया हूूँ, कुछ ददनों के बाद एक दोस्ट्त को फ़ॉन
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ककया कक मेरे बेटे ने टे स्ट्ट और इंटरव्यू ददया, ज़रा पता तो कर दें क्या बना? उन्हों ने मुझे ख़श्ु ख़बरी सन ु ाई कक आप के बेटे के ही आितर होंगे। कुछ ददन के बाद इदारे के एिममन ऑकफ़सर ने फ़ॉन पर बताया
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कक आप टे स्ट्ट में तो नाकाम हो चक ु े हैं लेककन किर भी हम ने आप के आितर िारी कर ददए हैं। आप यक़ीन
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िाननये इस अमल की बरकत से अल्लाह ने मुलाज़्मत से नवाज़ा।
दािंत, िाढ़ का शदीद तरीन ददस पािंच लमनट में ख़त्म मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! आप के दो अबक़री ररसाले पढ़े , िो मुझे बहुत पसंद
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आये हैं। एक नुस्ट्ख़ा मैं अपना आज़मूदह अबक़री के क़ाररईन के मलए भेि रहा हूूँ ता कक मख़्लूक़ ए ख़द ु ा
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को फ़ौरी फ़ायदा हामसल हो। नुस्ट्ख़ा िाद ू असर है , तिुबात ख़द ु साबबत करे गा। हुवल ्-शाफ़ी: काफ़ूर और
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क्लोररल हाइरेट हम्वज़न शीशी में िाल कर धप ू में रखें। चन्द घंटों के बाद काफ़ूर तेल होगा। महफ़ूज़
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रखें। फ़ायदे : दांत, दाढ़ की खोड़ में रुई तर कर के रखें। पांच ममनट बाद ददत इन ् शा अल्लाह दरू । दांत या
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दाढ़ ननकलवाई हो और ख़न ू बन्द ना हो रहा हो और ददत शदीद हो रहा हो तो रुई तर कर के ज़ख़्म पर रखें। फ़ौरन ख़न ू बन्द और ददत दरू । खाना खाते हुए बअज़ औक़ात ज़बान कट िाती है और ख़न ू बन्द नहीं होता
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तो ऊूँगली इस तेल से तर कर के ज़ख़्म पर मलें , ख़न ू फ़ौरन बन्द, हर कक़स्ट्म के ज़ख़्म के िारी ख़न ू को ये तेल फ़ौरन बन्द कर दे ता है । सर ददत हो तो माथे पर ऊूँगली से मामलश करें । नेज़ गंदठया व िोड़ों में ददत
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बविह वरम हो तो इस की मामलश करें । वरम ् भी उतारता है और ददत भी दरू करता है । (नूर मुहम्मद
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हक़्क़ानी, मेल्सी)
माहनामा अबक़री जन्वरी 2016 शुमारा निंबर 115__________________pg9
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यक़ासन और िेंगी का काम्याब दम: दो साल पहले की बात है मैं सफ़र पर था। तीन ददन के बाद वापस रात को घर पोहं चा तो घर वाली परे शान थी विह पूछी तो बताया कक दोनों बेटों को सख़्त बुख़ार है और मुंह से
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ख़न ू आ रहा है । उस्ल्टयाूँ और बुख़ार ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेता। मैं ने उन्हें होसला ददया और ख़द ु दो रकअत सलात अल ्-हािात पढ़ कर सो गया। सुबह दफ़्तर िाते हुए रास्ट्ते में सदक़ा भी दे ददया, शाम
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को बच्चों को िॉक्टर के पास ले गया। िॉक्टर साहब ने इब्तदाई ररपोटत में बताया कक मझ ु े शक है कक इन्हें यक़ातन और िेंगी का बुख़ार है आप CMH से टे स्ट्ट करवा लें किर ककसी अच्छे िॉक्टर को CMH से चेक करवा लें। िब ररपोटें एक स्ट्पेशमलस्ट्ट को चेक कराईं तो उन्हों ने बताया कक आप के दोनों बच्चों को
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यक़ातन और िेंगी का बुख़ार है । मैं ने सुबह इश्राक़ के मलए कच्चे बततन में सरसों का तेल और उतना ही
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पानी िाला और खेत से घास ले कर दोनों बेटों को साथ बेठा कर सूरह क़ुरै श बबस्स्ट्मल्लाह के साथ तीन
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बार पढ़ कर दम कर ददया। कुछ ददन अमल ककया और किर धागे पर दम कर के दोनों के गले में िाल
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ददया। िॉक्टर की दहदायत के मुताबबक़ छे ददन के बाद दब ु ारह टे स्ट्ट कराया तो अल्लाह के फ़ज़्ल व करम से ररपोटत दरु ु स्ट्त आई। यक़ातन और िेंगी का नाम व ननशाूँ ना था, िॉक्टर ररपोटत दे ख कर है रान रह गया
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और पूछे बग़ैर ना रह सका। तो मैं ने उसे बताया कक मैं ने ये अमल ककया है स्िस की बरकत से अल्लाह ने
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मेरे बेटों को मज़ ू ी मज़त से ननिात दी है । तस्ख़ीर के ललए लाजवाब अमल: मोहतरम हज़रत हकीम साहब! मेरी आप से दो तीन दफ़ा मुलाक़ात हो चक ु ी थी। आख़री बार भूरबन मरी में मुलाक़ात हुई िहाूँ मैं ने बैअत
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भी की लेककन घर वाले अक्सर मझ ु े कहते थे कक हज़रत हकीम मह ु म्मद ताररक़ मज्ज़ब ू ी चग़ ु ताई साहब
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دامت برکاتہمसे वक़्त लें , हम ने उन से ममलना है । क़ाररईन! ये तो आप िानते हैं कक हकीम साहब का फ़ॉन
पर हर माह टाइम खल ु ता है स्िस पर मुलाक़ात के मलए वक़्त ममलता है । इस दौरान मैं रोज़ाना नमाज़
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फ़ज्र के बाद १२ बार सूरह अल ्-क़ाररअह पढ़ता हूूँ और ददल में अहल ख़ाना के हमराह मुलाक़ात का सोचता
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रहता। अल्लाह की क़ुदरत दे ख़खये मैं ददसम्बर २०१३ को एक शादी की तक़रीब में बलोगचस्ट्तान गया तो वहां मुझे ददन के तक़रीबन २ बिे हकीम साहब का फ़ॉन आया कक आप का ख़त मेरे सामने है । पहले मैं
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बात ना समझ सका और कहा कक अभी मैं बहुत दरू बलोगचस्ट्तान के पहाड़ों में हूूँ िब इस्ट्लाम आबाद आऊंगा किर बात कर लेना लेककन िब उन्हों ने ये कहा कक मैं मुहम्मद ताररक़ बोल रहा हूूँ तो ख़श ु ी से
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मेरा ददल िूला ना समाया। ददल ही ददल में ख़श ु हो रहा था कक वाक़ई मैं ख़श ु कक़स्ट्मत इंसान हूूँ स्िस को हज़रत हकीम साहब ने ख़द ु फ़ॉन कर ददया। मैं ने घरवालों को बताया कक मुझ को हज़रत हकीम साहब ने
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ख़द ु फ़ॉन ककया है तो सब घरवाले बहुत ख़श ु हुए। चन्द ददन बाद फ़ॉन पर वक़्त मलया और मझ ु े ३ अप्रैल का वक़्त ममला। उसी वक़्त हम ने वापस इस्ट्लाम आबाद आने का प्रोग्राम बना मलया। इस तरह हम दो ददन पहले इस्ट्लाम आबाद पोहं च गए और िम ु ेरात बतारीख़ ३ अप्रैल २०१४ सब ु ह इस्ट्लाम आबाद से
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लाहौर की तरफ़ रवाना हो गए। रै कफ़क की रुकावट की विह से ४ बिे के क़रीब तस्ट्बीह ख़ाना पोहं च गए।
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िल्दी से मैं ने नंबर लेने वाले से राब्ता ककया उस को सारा मुद्दआ बताया तो उन्हों ने मुझे नंबर दे ददया
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कक मुलाक़ात की तरतीब ये है कक हकीम साहब के पास मसफ़त दो अफ़राद एक वक़्त में मुलाक़ात कर
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सकते हैं िबकक हम तमाम अहल ख़ाना छे अफ़राद थे। िब हज़रत हकीम साहब के पास तश्रीफ़ फ़मात हुए
तो वो है रान हो गए तो मैं ने अपना तआरुफ़ कराया तो बड़ी शफ़क़त और मुहब्बत से फ़मातने लगे: ठीक है ।
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब मेरे हम ज़बान भी हैं, सब घर वालों से मुलाक़ात के बाद हकीम साहब ने
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फ़मातया आप सब बाहर चले िाएं और मझ ु े अपने पास ही बैठ िाने को कहा। किर मैं उन को अबक़री २००६ से ले कर आि तक के स्ितने आमाल मुख़्तमलफ़ अशाअतों में शाममल थे एक ककताबी शक्ल में
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पेश ककये स्िस पर वो बहुत ख़श ु हुए और फ़मातया कक आप ३ ददन यहाूँ मेरे पास ठहरें । मैं ने तस्ट्बीह ख़ाना
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में बात की तो एक ज़रूरत मन्द कहने लगा कक आप बहुत ख़श ु कक़स्ट्मत हैं हमें तो साल्हा साल दो पल के मलए वक़्त नहीं ममलता। ये तस्ट्ख़ीर अमल की बरकात थीं स्िस ने इतनी बड़ी हस्ट्ती को भी अल्लाह के
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करम से माइल कर ददया। आख़ख़र में अबक़री क़ाररईन अबक़री से इल्तमास है कक आप भी इस मुिरत ब
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अमल को ज़रूर आज़्माएूँ और मुझे अपनी दआ ु ओं में ज़रूर याद रखें। ररज़्क़ बाररश की तरह बरसे: ररज़्क़ की फ़राख़ी और तंगी अल्लाह रब्बुल ्-इज़्ज़त ने अपने क़ब्ज़ा ए क़ुदरत में रखी है , ररज़्क़ के दरवाज़े
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अल्लाह िल्ल शानुहू के अशत के साथ लगे हुए हैं स्िस के मलए फ़रावानी कर दे और स्िस के मलए चाहे तंग कर दे । ररज़्क़ का तअल्लुक़ अपनी कोमशशों से है ना अपनी कापवशों से है । वो तो कोई ननज़ाम कायनात है
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िहाूँ से ररज़्क़ आता है । िब बन्दा नेकी करता है िब बन्दा नेक आमाल करता है किर अल्लाह िल्ल शानुहू ग़ायब से उस की ज़रूररयात पूरी कर दे ते हैं। बन्दा नाचीज़ ने "ररज़्क़ बाररश की तरह बरसे" का
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अमल अप्रैल २०१४ में मस ु ल्सल ४१ ददन यक्सई ू तवज्िह और यक़ीन के साथ ककया चूँ कू क मैं ख़द ु सरू ह मुज़स्म्मल का आममल हूूँ मुझे २००५ में एक आममल ने ये अमल अपनी ननगरानी में कराया है कक सूरह मज़ ु स्म्मल के अमल से स्िन्नात काली चादर ओढ़ कर ताबेदारी करते हैं लेककन आि तक मैं ने उन से
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कोई मदद नहीं ली बस्ल्क हमेशा आमाल की बरकत से इस्ट्तेफ़ादाह हामसल ककया है । तक़रीबन दो माह
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पहले अल्लाह तआला ने अपने ख़ज़ाने से मेरी मदद फ़मातई और मुझे एक बहुत बड़े इनाम से नवाज़ा स्िस
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से मेरे सारे क़ज़त भी मुआफ़ हो गए बस्ल्क मैं ने एक बेटे की शादी भी इस ख़ज़ाने से कर दी, साथ गाड़ी भी
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ख़रीद ली। अल्लाह तआला ने इस अमल की बरकत से सारी परे शाननयां दरू फ़मात दीं। दित बाला वाक़्यात
बताने का मक़्सद ये है कक ररज़्क़ का ननज़ाम कहीं और है । अब दे खना ये है कक हम अपने दहस्ट्से का ररज़्क़
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हामसल करने के मलए नेक आमाल अख़्त्यार करते हैं या बुरे आमाल, नेक आमाल अख़्त्यार करें गे तो
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अल्लाह ख़श ु होगा। यक़ीन के साथ, यक़ीन की ताक़त के साथ और काममल यक़ीन के साथ पढ़ें । स्ितना यक़ीन मज़्बूत होगा उतना फ़ायदा होगा, स्ितना यक़ीन कम्ज़ोर होगा उतनी दे र होगी। छे सूरतों का
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रूहानी पैकेज: मझ ु े स्िस्ट्म में ददत की हर वक़्त मशकायत रहती थी हर वक़्त हवाई ददत , कभी बाज़ू में , कभी
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टांगों में और कभी पूरे स्िस्ट्म में इस मलए नमाज़ के मलए काफ़ी परे शान रहता। ददत की विह से यक्सूई नहीं थी िब से छे सूरतों का रूहानी पैकेि माहनामा अबक़री नवम्बर २००८ में शायअ हुआ है रोज़ाना
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िज्र की दो सुन्नतों में बाक़ाइदगी से पढ़ता हूूँ। अल्लाह तआला ने पूरे स्िस्ट्म के ददत को रफ़अ कर ददया
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बस्ल्क मुझे आि तक स्िस्ट्म के दहस्ट्से तो क्या दांत में ददत नहीं हुआ।
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तस्बीह ख़ाना में मख़ ु ललसीन की आमद ९ नवम्बर बरोज़ सोम्वार पीर तरीक़त हज़रत मुफ़्ती हबीबुरतहमान दरख़्वास्ट्ती मुहतमम िाममआ
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अब्दल् ु लाह बबन मसऊद, ख़ानपरु स्ज़ल्ला रहीम यार ख़ान, अपने फ़ज़तन्द अिम ुत न्द मौलाना मफ़् ु ती असअद दरख़्वास्ट्ती और ख़ुद्दाम के हमराह तस्ट्बीह ख़ाना तशरीफ़ लाए। ननहायत ख़ल ु ूस के साथ हज़रत
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हकीम साहब دامت برکاتہمको ख़ख़लाफ़त व इिाज़त से नवाज़ा, तहरीरन मलख कर ददया और ख़स ु स ू ी दआ ु फ़मातई।
८ नवम्बर बरोज़ इत्वार को हज़रत मौलाना अश्रफ़ अली साहब मदस्ज़ल्ल फ़ज़तन्द अिम ुत न्द हज़रत शैख़-
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अल ्-हदीस मौलाना अलाउद्दीन साहब क़ुदस ु मसरह अल ्-अज़ीज़ मरहूम िाममआ नुअमाननया िेरा
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इस्ट्माईल ख़ान अपने साथी ममयां मुहम्मद फ़रीद अह्मद के हमराह बाद नमाज़ मग़ररब तस्ट्बीह ख़ाना
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तश्रीफ़ लाए और दआ ु फ़मातई और तक़ाज़ा रखा कक आप मेरे वामलद के वादहद ख़लीफ़ा हैं वामलद मरहूम ने
बाक़ाइदह तहरीरन मलख कर ददया था मलहाज़ा िाममआ के िल्से के मलए दसत का वक़्त दें । (मोहतरम का
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हुक्म है अल्लाह करे कभी वक़्त की तरतीब बन िाए। इन ् शा अल्लाह)
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माहनामा अबक़री जन्वरी 2016 शुमारा निंबर 115_________________pg 10
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छे साल से इस अमल को कर रहा हूूँ। ये अमल पुरानी बीमाररयों और पेचीदाह ला इलाि बीमाररयों के
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मलए तयातक़ और तीर बहदफ़ है । मैं अल्लाह तआला से हर वक़्त दआ ु करता रहता हूूँ कक ऐ अल्लाह
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माहनामा अबक़री को रातों रात काम्याबी व कामरानी मज़ीद नसीब फ़मात। ऐ अल्लाह मदीर् आला शैख़ अल ्-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मुहम्मद ताररक़ महमूद मज्ज़ूबी चग़ ु ताई دامت بركاتهمऔर माहनामा अबक़री
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के तमाम स्ट्टाफ़ को लम्बी उम्रें अता फ़मात ता कक माहनामा अबक़री मज़ीद बेह्तर बना सकें और उस में
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन जन्वरी 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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कापवशों का इज़ाफ़ा कर सकें और आप हमेशा हमारे िैसे परे शान हाल लोगों के मलए राह गचराग़ बने रहें । आमीन सुम्म आमीन! (अब्दल् ु लतीफ़ दामानी,इस्ट्लाम आबाद)
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सहदस यों में पाऊँ की सज ू न दरू करने का नस् ु ख़ा
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं िन्वरी २०१३ से बाक़ाइदगी के साथ माहनामा अबक़री का मत ु ास्ल्लआ कर रहा हूूँ, बबला शब ु ा इस िैसा ररसाला दन्ु या में नहीं होगा। आि के मस्ु श्कल, पुर कफ़त्न दौर में इंसाननयत स्िस क़दर परे शाननयों में मुब्तला है ऐसे में ख़ख़दमत ख़ल्क़ और दख ु ी लोगों की परे शाननयों का मदावा करने का एक बेह्तरीन ज़रीया अबक़री है , अल्लाह तआला आप को, अल्लामा
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लाहूती पुर इसरारी साहब को और आप की पूरी टीम को सेहत तंदरु ु स्ट्ती और मज़ीद काम्याबबयां अता
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फ़मातए। मेरे एक दोस्ट्त अटक मसटी में रहते हैं, वो एक ददन अपना दख ु बयान कर रहे थे कक सददत यों में
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पाऊूँ की उूँ गमलयाूँ सूि िाती हैं, उन का रं ग सुख़त हो िाता है , िूते बहुत तंग लगते हैं, दोपेहेर और रात के
वक़्त बबस्ट्तर में िब पाऊूँ गरम हो िाते हैं तो ना क़ाबबल ए बदातश्त हद्द तक ख़ाररश होती है , इस तक्लीफ़
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के मलए बहुत ही आज़मद ू ह और मफ़् ु त इलाि पेश ए ख़ख़दमत है । सददत यों में िब भी ये तक्लीफ़ हो तो रात को सोते वक़्त एक परात या बड़ी कड़ाही में तक़रीबन िेढ़ दो ककलो गरम पानी ले कर एक बड़ा चम्मच
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नमक ममला कर पाऊूँ उस में रख लें। पानी हस्ट्बे बदातश्त गरम हो पहले तो ज़रा पाऊूँ को बदातश्त ना होगा लेककन किर भी आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता पाऊूँ की उं गमलयां और मुतासरह दहस्ट्सा ज़रूर पानी में िुबो कर
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चारपाई या कुसी पर बैठ िाएं अगर पानी ठं िा होने लगे तो थोड़ा सा दब ु ारह गरम कर लें िो कक पाऊूँ को
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बदातश्त हो सके ये अमल कम अज़ कम पंद्रह ममनट तक करें । किर पानी से ननकाल कर पाऊूँ को अच्छी
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तरह ख़श्ु क कर के सूिन ज़्दह दहस्ट्से पर हल्का हल्का सरसों का तेल लगा कर कपड़े में लपेट लें या गरम
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िरु ाब पहन लें और सो िाएं इन ् शा अल्लाह तीन चार ददन के अमल से सि ू न और ख़ाररश ख़त्म हो िाएगी मौसम समात के दो या तीन माह ये तक्लीफ़ ज़्यादा होती, िब ज़्यादा होने लगे तो किर दो तीन ददन के मलए कर लें। नॉट: पाऊूँ को ित ू े उतारने के बाद फ़ौरन ठं िी ज़मीन पर ना रखें और सब ु ह को
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बबस्ट्तर से उठते वक़्त भी थोड़ी दे र के मलए िुराब पहन लें क्योंकक ऐसा गरम सदत होने से होता है ।
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(मुहम्मद आज़म, रावलपपंिी)
कारोबारी हज़रात के ललए ख़ास अमल माल कभी चोरी ना होगा
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िब भी आप दक ु ान, गोदाम या घर से बाहर िाएं तो अपने पैसों, माल वग़ैरा पर ये अमल करें । अवल व ُ
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आख़ख़र एक एक बार दरूद शरीफ़ और दस बार "या िलीलु" ( ) ہَیج ِّل ْیلपढ़ कर िूँू क दें । चोर कभी भी आप
मोटापा, मैदे की गैस, तेज़ाबबयत और क़ब्ज़ के ललए इक्सीर
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दें । माल इन ् शा अल्लाह चोरी से महफ़ूज़ रहे गा। हमारा आज़्माया हुआ है । (प-ह)
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की चीज़ें नहीं चरु ा सकेगा। घर में भी अगर ककसी माल के माल चोरी होने का शुबा है तो उस पर भी िूँू क
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मोहतरम िनाब हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! एक नस्ट् ु ख़ा आप की और क़ाररईन अबक़री की नज़र कर रहा हूूँ, ये नुस्ट्ख़ा मैदे की गैस, तेज़ाबबयत और क़ब्ज़ के मलए इक्सीर है । नुस्ट्ख़ा ये है । हुवल ्-
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शाफ़ी: साबुत सूखा धन्या, सफ़ेद ज़ीरा साबुत, सौंफ़ साबुत, तीनों चीज़ें हम्वज़न बराबर ममक्स कर लें।
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लमक़्दार ख़ोराक: एक चम्मच चाय वाली मुंह में िाल कर चबाएं और साथ एक अदद छोटी सब्ज़ इलाइची
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शाममल कर लें। पांच ममनट तक ख़ब ू चबाएं। चबाने से मुंह में िो पानी आएगा उस को ननगलते िाएं। इस
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के बाद इस चबाए हुए को थोड़े पानी के साथ ननगल लें। इस नस्ट् ु ख़ा को आप ने अपने रोज़ाना के मामल ू ात में शाममल कर लें। इन ् शा अल्लाह तआला आप की तबीअत हल्की िुल्की और हशाश ् बशाश ् हो िाएगी।
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बहुत से लोगों को ये नुस्ट्ख़ा ददया स्िस ककसी ने भी इस को इस्ट्तेमाल ककया सो फ़ीसद पाया। आप भी इस
नोकरी चाहहए या हलाल दौलत---ये पढ़ें !
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को इस्ट्तेमाल करें । (ममज़ात रज़ा करीम)
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! आप की दआ ु ओं से मैं अबक़री 2009 से पढ़ रहा हूूँ, अल्लाह तआला आलम ए ग़ैब में आप के पीर व ममु शतद हज़रत ख़्वािा सय्यद मह ु म्मद अब्दल् ु लाह हज्वैरी मज्ज़ूब رحمة هللا عليهके सदक़े से दिातत को ऐसा बुलंद करे िब अल्लाह तआला आप के पीर व
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ममु शतद सय्यद मह ु म्मद अब्दल् ु लाह हज्वैरी رحمة هللا عليهको पछ ू े मह ु म्मद अब्दल् ु लाह! दन्ु या में मेरे मलए क्या तोह्फ़ा लाए हैं तो हज़रत ख़्वािा सय्यद मुहम्मद अब्दल् ु लाह हज्वैरी رحمة هللا عليهआप को यानन
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हज़रत हकीम मह ु म्मद ताररक़ महमद ू मज्ज़ब ू ी चग़ ु ताई को पेश कर दें । या अल्लाह! मैं ने हज़रत हकीम
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मुहम्मद ताररक़ महमूद मज्ज़ूबी चग़ ु ताई को दन्ु या में बतौर तोह्फ़ा आप के मलए लाया हूूँ। मैं ने अपनी
तबबतयत ना होने की विह से आप के हक़ में मंदिात बाला अल्फ़ाज़ पेश ककये हुज़ूर पाक ﷺके सदक़े ये
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अल्फ़ाज़ अल्लाह की बारगाह में मक़्बूल हों। एडिशन ख़ास के मलए हुज़ूर नबी करीम ﷺकी उम्मत के
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मलए एक लफ़्ज़ िो कक इस्ट्म आज़म से कम नहीं है मलख रहा हूूँ इस को मैं ने अपनी िवानी में ख़ब ू ہ
ُ ) ہَی ہو لھइस्ट्म आज़म से कम नहीं, हर काम में काम्याबी होती है स्ट्वाइ आज़्माया है । इस्ट्म "या वह्हाबु" (اب
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स्िन्नात और िाद ू के इलावा हर काम में इस्ट्म आज़म है , तरीक़ा नॉट फ़मात लें। सब से पहले अपनी ताक़त के मुताबबक़ सदक़ा करें किर इस के बाद ग़स्ट् ु ल और पाक साफ़ कपड़े पहनें और वज़ू करें िब
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सदक़ा करें तो ददल में काम की ननय्यत करें । इस के बाद सुबह दस बिे से ग्यारह बिे तक अवल व
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आख़ख़र पच्चीस दफ़ा दरूद शरीफ़ पढ़ें , ये एक घंटा बहुत एहम है । १०० मततबा इस्ट्म "या वह्हाबु"
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ُ ) ہَی ہو لہھपढ़ें । सो की तअदाद को बहत ही अहत्यात के साथ पढ़ना है , ना ज़्यादा हो ना ही कम हो, ( اب ु
छोटा सा वज़ीफ़ा, चालीस हदन और लमला अपना घर
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! आप का बहुत ज़्यादा शुक्र गज़ ु ार हूूँ कक इस दौर में भी लोग अबक़री की विह से अल्लाह से दरू नहीं हैं। हमारा अपना घर नहीं था, हम अपनी बािी के घर में
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रहते थे। अपने घर के हुसूल के मलए मैं ने एक िगा पढ़ा था कक इशा की नमाज़ के बाद आयत अल ्-कुसी इक्तालीस मततबा पढ़ कर अल्लाह से दआ ु करें और ये अमल चालीस ददन करना है । नाग़ा के ददन बाद में
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परू े कर लें। अभी ये वज़ीफ़ा कर ही रही थी कक अल्लाह ने हमें अपना घर दे ददया। ररकते में बिंहदश फ़ौरी ख़त्म: मेरी छोटी बहन पर ररश्ते की बंददश थी, लाख कोमशशों के बाविद ू भी ररश्ता नहीं हो रहा था किर हमारी मस्स्ट्िद के क़ारी साहब ने एक अमल बताया कक सूरह बक़रह रोज़ाना एक
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मततबा चार लोगों ने ममल कर पढ़नी है और ये अमल मस ु ल्सल छे ददन करना है ।सरू ह पढ़ कर पानी पर
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दम कर के दम वाला पानी बच्ची को पपलाना है । इस अमल से मेरी बहन का बहुत अच्छी िगा ररश्ता हो
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गया और अब वो अल्हम्दमु लल्लाह बहुत ख़श ु है । वज़ीफ़ा नंबर २: सूरह अह्ज़ाब तीन िुमेरात, सात लोग एक ननमशस्ट्त में बैठ कर तीन तीन दफ़ा पढ़ें । इन ् शा अल्लाह बड़ी िल्दी ररश्ता हो िाएगा। मेरी भतीिी
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का ररश्ता नहीं हो रहा था ककसी ने बताया हम ने ककया और ररश्ता हो गया। (रोममया-न)
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माहनामा अबक़री जन्वरी 2016 शुमारा निंबर 115________________pg 11
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कम या ज़्यादा की सूरत में ये इस्ट्म काम नहीं करे गा मेरी तरफ़ से सब को इिाज़त है । आप को घरे लू
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परे शानी है , आप को नोकरी चादहए, आप को दौलत हलाल चादहए, आप ने बज़ ु ग ु ातन दीन से मल ु ाक़ात करना है यहां तक कक हज़रत ख़ख़ज़्र عليه السالمके इलावा आप के भाई हज़रत इल्यास عليه السالمमुराक़बा
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की हालत में ज़ादहरी तौर पर आप से मल ु ाक़ात करें गे। इन ् शा अल्लाह तआला स्िस बज़ ु ग ु त से मल ु ाक़ात करना चाहते हैं इसी तरीक़े से मुलाक़ात हो िाएगी। ज़ादहरी तौर पर आप से सलाम दआ ु भी होगी। यहाूँ
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तक अगर बाररश के मलए दआ ु करें तो वो भी इन ् शा अल्लाह उस ददन हो िाएगी। इज्तमाई काम हो िो कक शरीअत में िाइज़ हो, इन ् शा अल्लाह उसी ददन से बरकात शुरू हो िाएंगी। ला इलाि बीमारी का उसी
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ददन से फ़ायदा शुरू हो िाएगा िो भी इंफ़रादी काम हो या इज्तमाई सदक़ा और टाइम की और तअदाद
अस्ट्लम, कराची)
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की पाबन्दी करनी है इस के बाद मंदिात बाला तरीक़ा से अपनी हािात के मलए दआ ु करें । (मुहम्मद
माहनामा अबक़री जन्वरी 2016 शम ु ारा निंबर 115_________________pg 12
रबीउल ्-आख़ख़र में ख़ात्मा बबल्ख़ैर के आमाल लीश्जये
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(िवाहर ए ग़ैबी में है कक इस महीने की पहली, पंद्रहवीं, उनत्तीसवीं तारीख़ों में चार रकअत नस्फ़्फ़ल पढ़े ।
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हर रकअत में सूरह अल ्-फ़ानतहा के बाद सूरह इख़्लास ् पांच बार पढ़े । उस के मलए हज़ार नेककयाूँ मलखी
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िाती हैं और हज़ार बुराइयां ममटाई िाती हैं।)
ये इस्ट्लामी साल का चौथा महीना है इसे रबीउल ्-आख़ख़र भी कहा िाता है । इस का नाम रखते वक़्त रबीअ
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अवल की मुनामसबत से इस का नाम रबीउल ्-सानी मशहूर हो गया।।
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का मौसम था यानन रबीअ का अख़ीर था इस मलए इस का नाम रबीउल ्-आख़ख़र रखा गया मगर रबीउल ्-
इस माह के नवाकफ़ल हस्ट्बे ज़ेल हैं िो अक्सर सूफ़्या पढ़ते रहे हैं।
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शब ् अवल के नवाक़फ़ल: आबबदों का कहना है कक िब रबीउल ्-सानी का चाूँद नज़र आ िाए तो उस की
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शब ् अवल में बाद नमाज़ मग़ररब आठ रकअत नस्फ़्फ़ल दो दो रकअत की ननय्यत से पढ़े और पहली
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रकअत में सूरह फ़ानतहा के बाद सूरह अल ्-कौसर तीन बार और दस ू री में सूरह अल ्-काकफ़रून तीन बार
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किर तीसरी चौथी, पांचवीं, छटी, सातवीं, आठवीं रकअत में सरू ह अल ्-फ़ानतहा के बाद सरू ह इख़्लास तीन तीन बार हर रकअत में पढ़े । इन ् शा अल्लाह तआला इस नमाज़ के पढ़ने वाले को बे शुमार सवाब ममलेगा और बे शुमार नमाज़ों का अज्र अता होगा। चार रकअत नश्फ़्फ़ल: िवाहर ए ग़ैबी में है कक इस महीने की
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पहली, पंद्रहवीं, उनत्तीसवीं तारीख़ों में चार रकअत नस्फ़्फ़ल पढ़े । हर रकअत में सूरह अल ्-फ़ानतहा के बाद सूरह इख़्लास पांच बार पढ़े । उस के मलए हज़ार नेककयां मलखी िाती हैं और हज़ार बुराइयां ममटाई
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िाती हैं। इन ् शा अल्लाह परवददत गार आलम रोज़ ए महशर मग़कफ़रत फ़मातएूँगे। अिंजाम बख़ैर का वज़ीफ़ा: िो शख़्स पूरा माह बाद नमाज़ इशा ये वज़ीफ़ा रोज़ाना ११११ मततबा पढ़े गा वो मौत के वक़्त कल्मा पढ़ता
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हुआ इस दन्ु या से रुख़्सत होगा। बअज़ बज़ ु ग ु ों का कहना है कक इस वज़ीफ़े में ख़ात्मा बबल्ख़ैर की बे हद्द तासीर है । इस वज़ीफ़े से ख़ात्मा बबल्ख़ैर होता है । "फ़ानतर-स्ट्समावानत वल ्-अस्ज़त अन्त वमलय्यी कफ़द्दुन्या वल ्-आख़ख़रनत तवफ़्फ़नी मस्ु स्ट्लमं-व्व अस्ल्हक़्नी बबस्ट्सामलहीन (सरू ह यस ू फ़ ु : १०१) ٰ
ْ ْہ ہ
ہ لہ
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ہ ہ ل ل ُتف ِّ ْ ُ ْ ً ل ِن ِب ل الدن ہیا ہواَلخ ہِّر ِّۃ ہ )فاط ہِّر ل لص ِّلح ْ ہ ( 101:ِّی (سورہ ویسف ات ہواَل ْر ِّض انت و ِّ ٖل ِِّف ِّ الس ٰم ہو ِّ ْ ِّ ِن مسلِّما واْلِّق
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तजुम स ा: ऐ आस्ट्मानों और ज़मीनों के पैदा करने वाले दन्ु या और आख़ख़रत में तू ही मेरा रफ़ीक़ है , तू मुझ
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को अपनी फ़माांबदातरी में दन्ु या से उठा ले और मुझ को अपने नेक बन्दों में दाख़ख़ल कर ले। बा बरकत
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दआ ु : माह रबीउल ्-सानी भी ननहायत अफ़्ज़ल महीना है और इस माह में भी ज़्यादा से ज़्यादा दरूद पाक
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पढ़ना चादहए। इब्न अब्बास رضی هللا عنہसे मवी है कक एक बार इस्राफ़ील علیہ السالمहज़रत नबी करीम
ﷺके पास उतर कर आए और कहा "सब्ु हानल्लादह वल्हम्दमु लल्लादह व ला इलाह इल्लल्लाहु वल्लाहु
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अक्बरु व ला हौल व ला क़ुव्वत इल्ला बबल्लादहल ्-अमलस्य्य-ल ्-अज़ीम अदद मा अमलमल्लाहु व ममस्ट्ल ْ ہ ْ ہ ْ ُ ٰ ل ہ ہ ٓ ٰ ہ لہ ُ ہ ُ ہ ْ ہ ُ ہ ہ اعل ہم للَاُ ہوم ِّْث ہل ہم ہ ہہ ہ ہ َل ہح ْو ہل ہو ہَل ُق لہو ہۃ ا لہَِّل ِبلِل ِّ ْال ہع ل ْ ہ मा अमलमल्लाहु" ( ُاع ِّل ہم للَا ) واْلمد ِّلِل وَل اِّلہ اَِّل للَا وللَا اکَب وपदढ़ए िो ِّ ل الع ِّظ ْی ہم عدد ہم ِّ ِِّّ
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कोई इसको एक बार पढ़े गा ख़द ु ा उस को उन लोगों के ज़म्रे में मलखेगा िो ख़द ु ा की बकसरत याद करने
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वाले हैं और वो रात व ददन ख़द ु ा की याद में लगे रहने वालों से भी अफ़्ज़ल हो िाएगा और ये कमलमात
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उस के मलए िन्नत में दाख़्ला का ज़रीया बन िाएंगे और स्िस तरह दरख़्त के पत्ते झड़ते हैं उसी तरह उस के गुनाह झड़ िाएंगे और ख़द ु ा की उस पर नज़र रहे गी और उस को दोज़ख़ का अज़ाब ना दे गा और
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हदीस में आया है िो कोई "सब्ु हानल्लादह वल्हम्दमु लल्लादह व ला इलाह इल्लल्लाहु वल्लाहु अक्बरु व ला हौल व ला क़ुव्वत इल्ला बबल्लादह-ल ्-अमलस्य्य-ल ्-अज़ीम अदद मा फ़ी इस्ल्मल्लादह व दवामम
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ہ ہ ہ ٰ ْ ُ ) पढ़े गा ُ بُس ہن للَا ِّ ہواْل ہ ْمد ِّ للِل ِّ ہوَل ا ِّٰل ہہ اَِّل للَاُ ہوللَاُ اک ہ َب ہوَل ہح ْول ہوَل ق لہوۃ اَِّل ِِّبلِل ِّال ہع ِّ ل मुस्ल्कल्लादह" (ِّ ام ُمل ِّک للَا ِّ ل ال ہع ِّظ ْیم عدد ہم ِّ اِف عِّل ِّم للَا ِّ ہود ہو ِّ
दन्ु या और अह्ल दन्ु या चाहे ख़त्म हो िाएं लेककन इस के पढ़ने वाले का सवाब ना ख़त्म होगा।
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डिप्रेशन, थकावट, उक्ताहट चन्द सेकिंड्ज़ में ख़त्म
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरे पास एक रूहानी अमल है िो मैं क़ाररईन अबक़री की नज़र करता हूूँ:- डिप्रेशन, थकावट, उक्ताहट, सारा ददन काम कर के िब इंसान थक िाता है तो इन सब तकालीफ़ से ननिात के मलए ये अमल है कक मसफ़त २१ दफ़ा "अऊज़ु बबल्लादह ममन-श्शैतानन-र्-रिीम ् ْ
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ِّ لہ ْ ٰ لہ لہ ) ا ُع ْوذ ِِّبلِل ِّ ِّ ہपढ़ कर अपने सीने पर िूँू क मारें । आप الرح ِّْی ِّم َل ہح ْول ہوَل ق لہوۃ اَِّل ِِّبلِل ِّال ہع ِّ ل (ل ال ہع ِّظ ْی ِّم الر ِّج ْیم بِّ ْس ِّم للَا الرْح ِّن ِم الش ْی ٰط ِّن ِّ
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रज़ा करीम)
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को कुछ ही दे र में सक ु ू न महसस ू होगा। ये अमल भी बहुत मि ु रत ब है और बारहा का आज़मद ू ह है । (ममज़ात
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दावत ख़ैर की बरकात
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माहनामा अबक़री जन्वरी 2016 शुमारा निंबर115__________________pg 40
दाई इस्लाम हज़रत मौलाना मह ु म्मद कलीम लसद्दीक़ी دامت برکاتہم
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(फलत)
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(हज़रत मौलाना دامت برکاتہمआलम ए इस्ट्लाम के अज़ीम दाई हैं स्िन के हाथ पर तक़रीबन ५ लाख से
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झोंके" पढ़ने के क़ाबबल है ।)
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ज़ाइद अफ़राद इस्ट्लाम क़ुबूल कर चक ु े हैं। उन की नाम्वर शहरा आफ़ाक़ ककताब "नसीम दहदायत के
उन्हों ने फ़ॉन ममला कर मेरी तरफ़ बढ़ाया कक बरीरह आप से बात करने के मलए रो रही है कई रोज़ से मुझे परे शान कर रखा है कक आप हज़रत से फ़ॉन पर बात नहीं कराते, ज़रा इस बच्ची से बात कर लीस्िये। मैं
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ने बात की, उस बच्ची से स्िस की अभी उम्र चार साल भी नहीं होगी। बड़ी मासूम आवाज़ में सलाम कर के ख़ैररयत मालूम की और बोली हज़रत हमारे मलए दो दआ ु एं कर दीस्िये मैं ने कहा हाूँ बताओ: मैं अपनी
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बेटी के मलए कौन सी दआ ु करूूँ? वो बोली एक तो ये दआ ु कर दीस्िये कक ईद िल्दी आ िाए क्योंकक आप हमारे घर ईद के रोज़ ही आते हैं मेरा ददल आप से ममलने को बहुत चाह रहा है , ईद िल्दी आ िाएगी तो
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आप िल्दी आ िाएंगे। दस ू री दआ ु ये कर दीस्िये कक अल्लाह तआला मझ ु े दीन की सच्ची दाई बना दे और मेरे भाई ताि को और हमारी सब बहनों को भी दीन का दाई बना दे , इस हक़ीर की तबीअत भी कुछ सस्ट् ु त चल रही थी और कुछ बे नज़्म मसरूकफ़यात में हद्द दिात थकान हो रही थी, उस नन्ही बच्ची की
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ऐसी बामक़्सद और नन्ही नन्ही बातों ने ददल व ददमाग़ को तर व ताज़ह कर ददया वो बच्ची हमारे रफ़ीक़
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अज़ीज़ सय्यद महमूदल् ु हसन ् की छोटी बच्ची है स्िन का बानी नदवा हज़रत मौलाना सय्यद मुहम्मद
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ॉँ री ( رحمة هللا عليهस्िन का असल वतन खतौली से मुतसल मुदहयुद्दीन पुर है ) के ख़ांवादह से अली मॉगे
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तअल्लुक़ है , ये बस्ट्ती दीन और अह्ल दीन ख़स ु ूसन इल्म से ऐसी दरू हो गयी है कक चन्द अश्ख़ास को
छोड़ कर ये अंदाज़ा करना मुस्श्कल है कक इस बस्ट्ती को ऐसी ऐसी अहल हस्स्ट्तयों के वतन होने का शफ़त
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हामसल है । ये हक़ीर आि तक अपने रब करीम का शुक्र अदा कर रहा है कक दावत को हमारा फ़ज़त मंसबब
bq
बना कर अल्लाह तआला ने हर बबगाड़ के मलए शाह कलीद हमें अता कर दी है इस फ़ज़त मंसबब से ग़फ़्लत के िुमत का बा तकल्लुफ़ एतराफ़ और इस का ये तस्ट्नाअ शोर अल्लाह तआला ने अपने फ़ज़्ल से हम ना
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अहलों से करवा ददया है , इस के सदक़े में बे शऊर बच्चे और कम मसन बस्च्चयां दावत के िज़्बे की तलब
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से सरशार नज़र आती हैं और दावत और इस के मुक़ाम मक़्बूमलयत और महबूबबयत है कक इस शोर के सदक़े में मासूम बस्च्चयां ईद िल्दी आने की दआ ु एं कराती हैं कक दावत की आवाज़ लगाने वाले से ईद के
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ददन उन को ममलना नसीब हो िाए। उम्मत की चोदह सो साला तारीख़ गवाह है कक स्िस दौर और स्िस
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अहद और स्िस इलाक़े मर ककसी शख़्स ने इंसाननयत की ख़ैर ख़्वाही और उस को बानतल के अंधेरों से ननकाल कर और दीन हक़ की रौशनी में लाने की आवाज़ लगाई उस दौर में और उस अहद में उस मक़ाम
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन जन्वरी 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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पर उन शस्ख़्सयात को इज़्ज़त व महबूबबयत की दौलत से माला माल ककया गया, इज़्ज़त व सर बुलंदी और वक़ार ने उन के क़दम चम ू े, मायूसी, ना मुरादी आस व मुराद में बदली व महकूमीयत व मग़लूबबयत
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के ग़ार से ननकल कर हाकममयत और ग़ल्बा की सर बुलंदी पर चढ़ना नसीब हुआ और स्िस दौर और स्िस मुक़ाम पर ममल्लत के अफ़राद ने अपने फ़ज़त मंसबब से मुस्ज्रमाना ग़फ़्लत का इततकाब ककया दीन
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हक़ की अशाअत और उस का हक़ ररसालत अदा करने के बिाए ककतमाने हक़ के मततकब हुए, स्ज़ल्लत व ख़्वारी उन का मुक़द्दर बनी और दन्ु या के सामने उन को ज़लील व ख़्वार् हो कर रहना पड़ा, इमाम मामलक का मशहूर इशातद है कक इस उम्मत के बाद वाले उसी राह पर चल कर फ़लाह याब हो सकते हैं स्िस राह
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पर चल कर अगलों ने फ़लाह व काम्याबी हामसल की।
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वो फ़लाह व काम्याबी की राह अपने नबी ﷺकी इत्तबा में ()قلھذہ سبیل ادعو ال للَا یلع بصریۃ اان وِم اتبعِن। आप कह
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दीस्िये ये मेरा रास्ट्ता है, मैं अल्लाह की तरफ़ बुलाता हूूँ, बसीरत के साथ मैं भी और मेरे मुत्तबईन भी
अपनी असल राह, अपना तरीक़, अपनी शनाख़्त और पेहचान बनाना है । काश उम्मत इस गरु को अपना
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कर अपनी ज़बूं हाली और स्ज़ल्लत का इलाि, पत्तों को धोने के बिाए दरख़्त की िड़ों को सींचने से करे ।
माहनामा अबक़री जन्वरी 2016 शुमारा निंबर 115__________________pg 45
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मोटापा और मैदे के पुराने मरीज़ मुतवज्जह हों!
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(उम्र कोई ज़्यादा नहीं थी लेककन सत्तर साल के नज़र आते थे बक़ौल कक हर वक़्त मन्फ़ी सोचें ख़द ु कुशी
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के ख़यालात ज़ेहनी एअसाबी ख़खचाव तनाओ स्िस ने मुझे मरीज़ बना ददया, स्िस्ट्म पर हल्की हल्की
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वरम और सब ु ह सो कर उठते थे तो चेहरा और आूँखें सूझी हुई होती थीं मंह ु से बद्बू आती) क़ाररईन! आप के ललए क़ीमती मोती चन ु कर लाता हूँ और छुपाता नहीिं, आप भी सख़ी बनें और ज़रूर ललखें (एडिटर हकीम मुहम्मद ताररक़ महमूद मज्ज़ूबी चग़ ु ताई) Page 43 of 53 www.ubqari.org
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एक साहब मेरे पास इलाि की ग़ज़त से बहुत दरू से आए, एक लुक़्मा खा लें तो तबीअत हमेशा बोझल बोझल, चाय का घूूँट पी लें तो िलन, दध ू पीएं तो मैदा िूल िाए। एअसाब थके हुए, ममज़ाि में ग़स्ट् ु सा
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और गचड़गचड़ापन, तबीअत में हर वक़्त उक्ताहट, बे ज़ारी, घबराहट बे चेनी, पेट िूल चक ु ा, चन्द क़दम चलें सांस िूल िाता था, िोड़ों और घुटनों के मलए रं ग बरं गी ना मालूम ककतनी गोमलयां खाते थे, एअसाब
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कमर हर वक़्त दब्वाते रहते, अज़्दवािी स्ज़न्दगी बहुत कम्ज़ोर से कम्ज़ोर तर और तबीअत में हर वक़्त गुरातनी और बेचन ै ी, ज़ेहनी तनाओ एअसाबी ख़खचाव स्िस को वो हर वक़्त टें शन और डिप्रेशन कहते रहते थे। कई िॉक्टरों से और मादहर ए नफ़्स्ट्यात से इलाि भी करा चक ु े लेककम तबीअत में अभी तक वही
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बेचन ै ी और वही बेज़ारी। मसरूफ़ तास्िर थे, अन्दरून बेरून मुल्क कारोबारी सफ़र करते रहते थे, उन के
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पास एक छोटा बैग था िो रं ग बरं गी गोमलयों, कैप्सूल, दवाओं और इंसोलीन के इंिेक्शन से अक्सर भरा
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रहता था। उम्र कोई ज़्यादा नहीं थी लेककन सत्तर साल के नज़र आते थे बक़ौल उन के कक हर वक़्त मन्फ़ी
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सोचें , ख़द ु कुशी के ख़यालात, ज़ेहनी एअसाबी ख़खचाव, तनाओ स्िस ने मुझे मरीज़ बना ददया स्िस्ट्म पर
हल्की हल्की वरम ् और सुबह सो कर उठते थे तो चेहरा और आूँखें सूझी हुई होती थीं। मुंह से बद्बू आती
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हालाूँकक बक़ौल उन के दो वक़्त तो हर हाल में ब्रश करता हूूँ, थोड़ी सी बात सुन लें ददल धड़कता था, हर
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वक़्त अंिाना ख़ौफ़, अंिानी कफ़क्र और अंिानी सोचें उन को परे शान ककये रखती थीं। ये कुछ मख़् ु तमसर सी कैकफ़यात मैं ने उन की बताईं हालाूँकक वो तो ख़द ु बीमाररयों का मज्मूआ थे और बीमाररयां शायद उन
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को नहीं छोड़तीं थीं और ये िो कुछ मैं ने मलखा है इस सारी कैकफ़यत में उन के आंसू भी शाममल थे स्िस
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को मेरे दटश्यू िो मैं उन्हें बार बार दे रहा था उन का साथी बने हुए थे। मैं ने उन्हें तीन परहे ज़ बताए तीन गग़ज़ाएूँ बताईं और तीन महीने बताए। पहला परहे ज़: बेकरी और बेकरी से ममलने वाली तमाम चीज़ें।
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दस ू रा परहे ज़: सफ़ेद आटे की बनी हुई तमाम चीज़ें और तीसरा परहे ज़: हर कक़स्ट्म का गोश्त और िो तीन
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चीज़ें इस्ट्तेमाल करने के मलए दीं मोटे आटे की रोटी अमरूद के साथ खाएं यानन अमरूद बतौर सालन िी चाहे हल्की नमक ममचत, सुख़त या काली ममचत उस पर नछड़क सकते हैं। चाहें तो मसफ़त अमरूद खाएं चाहे एक
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वक़्त में एक ककलो, दो ककलो इस से भी ज़्यादा िी भर कर खाएं। खाएं तो ऐसा अमरूद खाएं िो गलने के क़रीब हो यानन ननहायत नरम से नरम तर हो सख़्त और कच्चा हगगतज़ ना हो। अमरूद खाएं और िट कर
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खाएं, तो पहली चीज़ अमरूद। दस ू री चीज़: छान बूरे वाली रोटी और तीसरी चीज़: दो चम्मच शहद। ताज़ह पानी में घोल कर ददन में तीन बार पीएं। क़ाररईन! ये तीन चीज़ें मैं ने उन्हें बताईं और ताकीद की
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कक तीन माह ज़्यादा नहीं तो दो माह तो िट कर ज़रूर करें किर मझ ु े ममलें। कुछ अरसा के बाद मेरे पास आए मौसूफ़ बहुत ख़श ु थे और उन की आधे से ज़्यादा गोमलयां और दवाएं ख़त्म हो चक ु ी थीं। कहने लगे मैं ने बहुत इलाि कराया मझ ु े याद है मैं एक दफ़ा न्यज़ ू ीलें ि गया, वहां एक बहुत बड़ा कफ़स्ज़शन था स्िस
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की भारी फ़ीस मैं ने अदा की, उसे अपना चेक अप कराया वो कहने लगे आप सब कुछ छोड़ दें और मसफ़त
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िल खाएं और उन्हों ने मुझे िलों की बाक़ाइदा मलस्ट्ट दी और इस की ताकीद की। उन्हों ने मुझे अच्छा
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ख़ासा वक़्त ददया मैं हूूँ हाूँ करता रहा, बहर हाल आ कर वो सब काग़ज़ िाड़ ददए और अपना वक़्त ज़ायअ
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होने पर ग़स्ट् ु सा आया। मुझे अब िा कर एह्सास हुआ कक वो न्यूज़ीलें ि के िॉक्टर सेहतमंद बात केह चक ु े थे और मैं ग़लत था, वो दरु ु स्ट्त भी थे और उन का मश्वरा तंदरु ु स्ट्त भी था। मुझे उस मलस्ट्ट में आि तक
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अमरूद याद है और छान बूरे की रोटी भी याद है िो उन्हों ने कही कक अगर आप का ज़्यादा भी ददल चाहे
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तो ये थोड़ी सी खा सकते हैं, वरना ज़्यादा आप िल खाएं। पहले पेहल मैं ने िब अमरूद के साथ रोटी खाई तो सब मुझ से मज़ाक़ करने लगे और मैं ख़द ु भी इसे मज़ाक़ समझ रहा था पर आप का मुझे ककसी ने
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बताया था और मैं ने आप की बात इस दफ़ा मानने का परू ा फ़ैस्ट्ला कर मलया था और आप की बात मान
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कर मुझे एह्सास हुआ कक मैं ककन रं ग बरं गी गग़ज़ाओं और फ़ाइव स्ट्टार रे स्ट्तौरें ट भटका रहा। दरअसल मेरे साथ ज़्यादती हॉस्स्ट्टल से शुरू हुई िब मैं ने हॉस्स्ट्टल के लज़ीज़ मसाल्हा दार खानों से ददल बेहलाया
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और मुझे हॉस्स्ट्टल में ममलता ही वही था बाहर िाता तो भी वही खाने और उन्ही ज़ाइक़ों से भरे ओराटे
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खाने बस उन खानों का ऐसा चस्ट्का पड़ा कक इन खानों ने मुझे और ककसी चीज़ का ना छोड़ा। हत्ता कक मैं इन ज़ाइक़ों की विह से अपनी स्ज़न्दगी का हक़ीक़ी मज़ा छोड़ बैठा। अब मुझे पता चला कक स्ज़न्दगी की
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हक़ीक़ी लज़्ज़त होती ही क्या है । ऐ काश! मैं आप के पास पहले आ िाता, िलों से और अमरूद से दोस्ट्ती लगा लेता। क़ाररईन! ये एक वाक़्या है स्िस ने आप के अंदर वाक़ई ख़द ु एह्सास पैदा ककया होगा मेरे पास
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ये एक वाक़्या नहीं है बीमसयों वाक़्यात हैं एक शख़्स बवासीर की पुरानी मज़त में मुब्तला था मैं ने बस मसफ़त एक बात कही या अपनी मानें या मेरी मानें , अगर मेरी माननी है तो मसफ़त और मसफ़त यही तीन गग़ज़ाएूँ,
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तीन परहे ज़ और तीन महीने। क़ाररईन! उस मरीज़ ने तो मसफ़त एक महीना ये ककया और एक महीने में आधी बस्ल्क आधी से ज़्यादा दवाएं भी ख़त्म सत्तर फ़ीसद से ज़्यादा सेहत्याब और कहने लगा कक मुझे स्ज़न्दगी का चैन, सख ु , सक ु ू न और राहत अभी नसीब हुई है । एक अनोखी बात कहूूँ क्या आप को यक़ीन
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आएगा? आप ककसी भी बीमारी में मुब्तला हैं, वो मज़त आप को िॉक्टर ने बताई है या आप ख़द ु उस का
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एह्सास रखते हैं वो ला इलाि है और आप बबल्कुल मायूस हो चक ु े हैं मसफ़त यही तीन इलाि और तीन
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परहे ज़ सख़्ती से और तीन महीने करें । उक्ताना नहीं, घबराना नहीं और थोड़ी सी महनत से िी चरु ाना
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नहीं। बस मेरी मान कर दे खें, मरीज़ ककसी कक़स्ट्म का हो और मज़त ककसी कक़स्ट्म की हो बस ये तीन आप
के साथी हैं और इन तीनों को अपना साथी बनाएं। एक सवाल पैदा होता है कक स्िन ददनों में अमरूद नहीं
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ममलता उन ददनों में हम क्या करें ? टुकड़े टुकड़े कर के किि में बफ़त बना लें या इस को शेक कर के चीनी
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िाल कर इस को पकाएं गाढ़ी खीर की तरह बन िाए इस को किि में महफ़ूज़ रखें और भी कोई तरीक़ा आप कर लें बहर हाल अमरूद से दोस्ट्ती, अन छने आटे से दोस्ट्ती, शहद से दोस्ट्ती। आएं! इन से दोस्ट्ती
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लगा कर दे खें।
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माहनामा अबक़री जन्वरी 2016 शुमारा निंबर 115__________________pg 46
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अबक़री रूहानी इज्तमाअ के हसीन मनाज़र इज्तमाअ में मशकतत के मलए आए ख़श ु नसीबों को तस्ट्बीह ख़ाना में ननहायत ख़ब ू सूरत ख़्वाब आए स्िस
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का इज़्हार उन्हों ने दौराने इज्तमाअ लोगों से ककया। बहुत से ऐसे ख़श ु नसीब भी थे स्िन की मन की
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मुरादें मसफ़त दौराने इज्तमाअ ही पूरी हुईं। अल्हम्दमु लल्लाह!
मौलाना मुहम्मद वलीद अल ्-रशीदी, उस्ताद जालमआ मदननया क़दीम लाहौर (जािंनशीन हज़रत हकीम साहब ) دامت برکاتہم
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आि के इस पुर कफ़त्न दौर में हर एक परे शान है और सुकून की तलाश में सरगदाां है कोई ऐसा नहीं िो मुत्मइन ् हो। अमीर हो या ग़रीब मदत हो या औरत हर कोई परे शान है ककसी को मुस्फ़्लमस तंग ककये हुए तो
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कोई िाद ू स्िन्नात का मारा हुआ है कोई बे औलादी का रोग पाले हुए है तो कोई औलाद होते हुए उन की
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इस्ट्लाह की कफ़क्र में है ककसी को स्िस्ट्मानी बीमाररयों ने घेरा हुआ है तो कोई रूहानी बीमाररयों से परे शान
है इन ही परे शान हाल लोगों के मलए कुछ ददत ददल रखने वाले लोग अपनी कोमशश और स्िद्द व िहद
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करते रहते हैं ता कक अवामल ु ् नास की परे शाननयों में ननिात हो सके और उन की मस्ु श्कलें हल हो सकें इन
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ही कोमशशों का एक मसस्ल्सला लाहौर में मुनअकक़द हुआ। अबक़री का रूहानी इज्तमाअ नवम्बर २०१५
बरोज़ िम ु ा, हफ़्ता, इत्वार मोअरख़ा २०, २१, २२ को मन ु अकक़द हुआ। एडिटर अबक़री शैख़ अल ्-वज़ाइफ़्
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हज़रत हकीम मुहम्मद ताररक़ महमूद चग़ ु ताई دامت برکاتہمअपनी दवाओं और दसत से फ़ैज़ पोहं चा रहे हैं लेककन इस दफ़ा ये नई कापवश इंतहाई सोदमन्द साबबत हुई। मौसम समात के बाविूद लोगों ने इस रूह
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परवर इज्तमाअ में मशरकत की। तवक़्क़ुअ से ज़्यादा लोगों की आमद हुई। यहाूँ तक कक मज़ीद ख़ैमे
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लगाए गए। पाककस्ट्तान के दरू दराज़ इलाक़ों से लोग तश्रीफ़ लाए। कोई अपनी बकरी बेच कर हास्ज़र हुआ
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तो ककसी ने अपना ज़ेवर बेचा तो कोई ककसी से उधार ले कर पोहं चा तो कुछ हज़रात पैसे िमा करते हुए आए तो वहीॉँ अमीर अपनी शाहाना आसाइश ् को बालाए ताक़ रख कर शरीक हुए। ना उन को उन के ममज़ाि का खाना ममला ना आराम ममला। मगर िाते हुए सब ख़श ु थे। एक ख़ातन ू के बैग में मौिद ू एक Page 47 of 53 www.ubqari.org
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मलपस्स्ट्टक की क़ीमत एक लाख थी वो भी आम लोगों के साथ शरीक हुई। इसी लाखों करोड़ों की गाडड़यों और कोदठयों वाले भी शरीक हुए, अपनी ग़रज़ िो ले कर आया था वो दआ ु एं दे ता हुआ गया। तआम व
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क़्याम का मअक़ूल इंतज़ाम था। हज़रत हकीम साहब ने अपने क़ीमती औक़ात में से वक़्त ननकाल कर ननहायत मुहब्बत से इस इज्तमाअ का एह्तमाम ककया। उन के क़ीमती दरूस ने िहाूँ आने वालों को
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फ़ायदा पोहं चाया वहां िहाूँ िहाूँ सन ु ने वाले थे उन को भी फ़ायदा पोहं चा और फ़ैज़्याब हुए। इज्तमाअ में मशकतत के मलए आए ख़श ु नसीबों को तस्ट्बीह ख़ाना में ननहायत ख़ब ू सूरत ख़्वाब आए स्िस में उन्हें बुज़ुगों की ज़्यारतें हुईं स्िस का इज़्हार उन्हों ने दौराने इज्तमाअ लोगों से ककया। बहुत से ऐसे ख़श ु नसीब भी थे
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स्िन की मन की मुरादें मसफ़त दौराने इज्तमाअ ही पूरी हुईं। अल्हम्दमु लल्लाह! अब हम इस इज्तमाअ में
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हज़रत हकीम साहब دامت برکاتہمकी छे ननशस्ट्तों का मुख़्तसर तआरुफ़ बयान करते हैं। अल्हम्दमु लल्लाह!
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इज्तमाअ का आग़ाज़ १९ नवम्बर को मग़ररब की नमाज़ के बाद हज़रत हकीम साहब دامت برکاتہمके
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पुसोज़ दसत से हुआ। इज्तमाअ में मदत , ख़वातीन और बच्चों की कसीर तअदाद ने मशकतत की। मदों के
मलए साढ़े चार कनाल के वसीअ व अज़त तस्ट्बीह ख़ाना में ररहाइश व तआम का बेह्तरीन इंतज़ाम ककया
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गया था। चोबीस घंटे बबज्ली व पानी का इंतज़ाम था। ख़वातीन के मलए अलैदहदह बापदत ह दो बबस्ल्िंगों का
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इंतज़ाम ककया गया था। दौरान इज्तमाअ बेह्तरीन ररहाइश और खाने का इंतज़ाम था। २४ घंटे बबज्ली व पानी की सहूलत मौिूद थी। इज्तमाअ के पहले ददन सुबह फ़ज्र की नमाज़ के बाद हज़रत हकीम साहब ने
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अपनी पहली ननमशस्ट्त में दसत रूहाननयत व अम्न ददया। दसत के बाद स्ज़क्र, मरु ाक़बा और आंसओ ु ं से
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लब्रेज़ दआ ु हुई। दोपेहेर एक बिे िुमतुल ्-मुबारक का ख़त्ु बा शुरू हुआ िो मौलाना वलीद साहब ख़लीफ़ा हज़रत हकीम साहब دامت برکاتہمने ददया। रात इशा के बाद एक और ननमशस्ट्त हुई ये हज़रत हकीम
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साहब دامت برکاتہمकी दस ू री ननमशस्ट्त थी स्िस में आप دامت برکاتہمका दसत, स्ज़क्र, मुराक़बा और पुसोज़
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दआ ु हुई। दआ ु के बाद शुरका को सोने की इिाज़त दी गयी। सुबह फ़ज्र के बाद हज़रत हकीम साहब دامت برکاتہمकी तीसरी ननमशस्ट्त हुई स्िस में दसत, स्ज़क्र, मुराक़बा और दआ ु हुई और मेहमानों की लज़ीज़
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खाने, हल्वा और चाय से तवाज़ुअ की गयी। नमाज़ ज़ुहर के बाद हज़रत हकीम साहब دامت برکاتہمकी चौथी ननमशस्ट्त हुई स्िस में दसत के बाद हज़रत हकीम साहब دامت برکاتہمमेहमानों में घुल ममल गए और
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मेहमानों से बारी बारी उन के नतब्बी व रूहानी मुशादहदात सुने। मेहमानों ने बुख़ुल शुकनन का मुज़ादहरा करते हुए अपने ददलों के राज़ आज़मूदह नुस्ट्ख़ा िात व रूहानी भेद इस महकफ़ल में सब को बताए। स्िस
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से लोगों को भरपरू फ़ायदा हुआ। इस के बाद नमाज़ इशा के बाद २२ नवम्बर २०१५ बरोज़ इत्वार को नमाज़ फ़ज्र के बाद हज़रत हकीम साहब دامت برکاتہمकी छटी और आख़री ननमशस्ट्त हुई स्िस में हज़रत हकीम साहब
دامت برکاتہمने पस ु ोज़ दसत, स्ज़क्र, मरु ाक़बा और दआ ु के बाद बरकत वाला दम ककया।
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बरोज़ इत्वार आख़री दआ ु में मशकतत के मलए लाहौर और गगदत व न्वाह से भी कसीर तअदाद में शहररयों ने
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मशकतत की और तस्ट्बीह ख़ाना, दारुल ् तौबा और तस्ट्बीह ख़ाना की गमलयों में नतल धरने की भी िगा ना
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बची। मज़ीद हज़रत हकीम साहब ने बे औलादों के मलए ख़स ु ूसी इस्ट्म आज़म का दम ककया स्िस का
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एलान पहले ही ककया िा चुका था। इस दम के मलए बहुत से लोग घरों से इक्तालीस लॉन्ग और एक सेब
हमराह लाए। बे औलादों के मलए हज़रत हकीम साहब ने एक दवा भी दी िो कक ननहायत ही अरज़ाूँ क़ीमत
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एक सो रूपए में दस्ट्त्याब थी। लोगों ने इन तीन ददनों में अल्लाह से ख़ब ू माूँगा और ख़ब ू पाया। आख़री
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ददन दआ ु के बाद मेहमानों के मलए नाश्ते का वसीअ इंतज़ाम था और उस ददन लंगर की ख़ास बात ये थी कक हज़रत हकीम।साहब دامت برکاتہمने अपने हाथों से तमाम मेहमानों को लंगर तक़्सीम ककया स्िस से
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मेहमानों की ख़श ु ी का कोई दठकाना ना था। हर ककसी के चेहरे पर ख़श ु ी थी हर कोई मसरूर था। इस
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इज्तमाअ की एक और ख़ास बात ये भी थी कक इस में ख़वातीन का अलैदहदह बाक़ाइदह् इंतज़ाम था। मदों के साथ साथ औरतों की तबबतयत का एह्तमाम भी हो तो घरवालों को दोहरा फ़ायदा होता है । औरतें और
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बच्चे कसीर तअदाद में शरीक हुए, िहाूँ औरतों का इंतज़ाम था वहां बे पनाह रश होने के बाविूद औरतों
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ने ननहायत नज़्म व ज़ब्त और बदातश्त का मुज़ादहरा ककया। लाखों के बेड्ज़ पर सोने वाली बहनों ने सददत यों की रातों में फ़शत पर पुर सुकून नींद सोती रहीं। बअज़ बहनों ने दौराने इज्तमाअ ख़त मलख कर दफ़्तर
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माहनामा अबक़री में िमा करवाए स्िस में मलखा था कक उन की साल्हा साल की बीमाररयां है रत अंगेज़ तौर पर ख़त्म हो रही हैं और ददल को अिब सुकून ममल रहा है । उन्हें दौराने दआ ु ख़ब ू रोना आ रहा है । िो
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लोग इस रूहानी इज्तमाअ में शरीक हुए हज़रत हकीम साहब دامت برکاتہمकी सेहत व तंदरु ु स्ट्ती और सलामती की दआ ु है कक ु एं करता हुआ रुख़सत हुआ और िो लोग इस इज्तमाअ में शरीक ना हो सके दआ
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वो इस इज्तमाअ में अगली दफ़ा ज़रूर शरीक हों ता कक इस फ़ैज़ के समन् ु दर से फ़ैज़्याब हो सकें। इज्तमाअ गुज़रने के बाद: इज्तमाअ गुज़रने के बाद हज़रत हकीम साहब دامت برکاتہمने वो मुदहब्बीन और साथी स्िन्हों ने ददन रात एक कर के इज्तमाअ के इन्तेज़ामात को संभाला और तमाम ख़ख़दमात सर
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अंिाम दीं। हज़रत हकीम साहब دامت برکاتہمने उन तमाम हज़रात को बुलाया, उन हज़रात का ननहायत
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इकराम ककया, शुकक्रया और ढे रों दआ ु ओं के साथ ननहायत ख़ब ू सूरत िाए नमाज़ और तस्ट्बीह का हद्या
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ददया। स्िसे पा कर हर "ख़ख़दमत" वाला ननहायत मसरूर और ख़श ु था और अपनी कक़स्ट्मत पर नाज़ कर
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रहा था।
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माहनामा अबक़री जन्वरी 2016 शुमारा निंबर 115_________________pg 47
गुम्शुदह चीज़, फ़दस और समासया पाने का वज़ीफ़ा
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(उस के ररश्तेदार सब है रान कक ये काया कैसे पल्टी, इस लड़की ने ऐसा क्या िाद ू ककया कक उस काली िादग ू रनी से अपने शौहर और बच्चों को बचवा मलया। वो सब मेरी दोस्ट्त से आ आ कर पूछते हैं कक तुम
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ने ऐसा क्या पढ़ा कक इतने मुस्श्कलात के भंवर से बड़े आराम से ननकल आई।)
(एडिटर के क़लम से) (क़क़स्त निंबर २०)
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क़ाररईन! हर माह हज़रत हकीम साहब دامت برکاتہمका रूहानी राज़ों से लब्रेज़ मुिंफ़ररद अिंदाज़ पहढ़ए।
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क़ाररईन! आप के मलखे ख़तूत से बबला मुबाल्ग़ा लाखों क़ाररईन का भला हो रहा है । िैसे िैसे इस वज़ीफ़े के मुशादहदात आप मलख रहे हैं वेसे वेसे मज़ीद मुशादहदात आ रहे हैं। यक़ीनन अगर कोई आप का
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मुशादहदा दे ख कर ख़द ु ा की हम्द व सना करता है और उस का काम बन िाता है तो उस के ददल से
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ननकली दआ ु ओं में आप भी बराबर के दहस्ट्सा दार हैं। आइये! मज़ीद मुशादहदात पदढ़ए: बे राह रवी का लशकार शौहर पलट आया
मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! आि में अपनी एक दोस्ट्त का मुशादहदा मलख रही हूूँ,
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उस के साथ मसला ये था कक उस का शौहर बहुत ज़ामलम था, हर वक़्त मार कुटाई करता रहता, उस का ज़ेवर बेच कर खा गया, उस के िहे ज़ में साथ आये िान्वर भी बेच कर खा गया। उस के शौहर को एक
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औरत ने काले िाद ू के ज़ररए अपने िाल में िंसा मलया था और उन के आपस में नािाइज़ तअल्लक़ ु ात
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थे। मेरी दोस्ट्त बहुत ज़्यादा परे शान थी। हर वक़्त के लड़ाई झगड़ों से तंग आ कर मेरी दोस्ट्त के सुसर िो
कक ररश्ते में उस के ताया लगते थे ख़द ु अपनी भतीिी को ले कर अपने भाई के घर आए और कहा कक मेरा
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बेटा बे ग़ैरत हो गया है मैं इसे उस के ज़ुल्म व मसतम का ननशाना बनता नहीं दे ख सकता आप इसे
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कफ़ल्हाल अपने घर में ही रखें।
ख़ैर! मेरी दोस्ट्त चन्द ददनों बाद मेरे पास आई और अपनी सारी दास्ट्तान ए ग़म मुझे सुनाई। मैं ने उसे
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तसल्ली दी और हर वक़्त पढ़ने के मलए "या रस्ब्ब मस ू ा या रस्ब्ब कलीम ् बबस्स्ट्मल्लादह-र्-रह्मानन-र्ہ
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ہ ِّ لہ ْ ٰ لہ ٰ ) ہَی ہر لہبका वज़ीफ़ा पढ़ने को ददया और अबक़री के कछ साबबक़ा रहीमम" (الرح ِّْی ِّم موٰس ہَی ہر لب َک ِّْیم ِّب ْس ِّم للَا الرْح ِّن ु
शुमारों में इस के अमल के वाक़्यात भी पढ़ाए स्िस से उस को उम्मीद की ककरन नज़र आई और उस ने
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वादा ककया कक मैं अब हर वक़्त उठते बैठते, पाक नापाक यही वज़ीफ़ा पढ़ूंगी। इस वज़ीफ़े के पढ़ने के
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तक़रीबन िेढ़ माह बाद उस के शौहर से काला िाद ू ख़त्म हो गया, वो ख़द ु आ कर मुआफ़ी मांग कर ले गया, आगे ईद अल ्-ज़ह ु ा थी, उस के शौहर ने िान्वर बेचे िो कक तक़रीबन आठ लाख के बबक गए, स्िस
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पर वो ख़द ु बहुत ज़्यादा है रान हुआ और इस बचत में से मेरी दोस्ट्त को उस के बेचे हुए िान्वर ला कर ददए और ज़ेवर बनवा कर ददया। मेरी दोस्ट्त ने कुछ अरसा पढ़ने के बाद ये अमल छोड़ ददया। इस अमल का
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छोड़ना था कक चन्द ददनों बाद दब ु ारह उस के शौहर का रवय्या बदला और वही मार धाड़, गालम गलोच शुरू हो गयी। िब पता करवाया तो मालूम हुआ कक उसी िादग ू रनी ने एक दरख़्त पर अमल कर के बांध
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ददया है िब भी हवा चली है और वो कपड़ा दहलता है तो उन की आपस में लड़ाई शरू ु हो िाती है । एक मततबा तो मेरी दोस्ट्त के शौहर ने उस को इतना मारा कक वो लहू लुहान हो गयी। उस के सुसर ने इलाि मआ ु ल्िा के बाद दब ु ारह अपने भाई के घर छोड़ गए। अब की बार मेरे पास आई और अपनी दास्ट्तान
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सुनाई तो मैं ने कहा मैं ने िो तुम्हें कहा था कक ये वज़ीफ़ा कभी छोड़ना नहीं पढ़ती रहना तुम को ये
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वज़ीफ़ा छोड़ना नहीं चादहए था क्योंकक तुम्हारा मुक़ाब्ला एक िादग ू रनी से है । इस के बाद मेरी दोस्ट्त ने
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दित बाला वज़ीफ़ा और ज़्यादा तवज्िह, ध्यान और यक़ीन से पढ़ना शुरू कर ददया। पांच छे माह
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मुसल्सल पढ़ती रही। अब तो ये हाल हो गया कक उठती, बैठती, चलती, किरती हर वक़्त पढ़ती रहती। उस की ज़बान पर हर वक़्त "या रस्ब्ब मूसा या रस्ब्ब कलीम ् बबस्स्ट्मल्लादह-र्-रह्मानन-र्-रहीमम" ہ
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ہ ِّ لہ ْ ٰ لہ ٰ ) ہَی ہر لہبरहता। उसे मख़्तमलफ़ अच्छे और बरे ख़्वाब आना शरू हो गए। अब (الرح ِّْی ِّم موٰس ہَی ہر لب َک ِّْیم بِّ ْس ِّم للَا الرْح ِّن ु ु ु
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उस का शौहर बहुत ज़्यादा बदल गया है, अपने बच्चों के मलए और सब से ज़्यादा अपनी बीवी के मलए तड़पता है , वरना पहले तो उसे कह गया था कक तुम्हें तलाक़ दे कर उस (िादग ू रनी) को साथ ले कर बेरून
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मुल्क चला िाऊंगा। हर ररश्तेदार को फ़ॉन कर के बताता कक अब की बार मैं ने इसे छोड़ दे ना है । वो
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बेचारी बहुत ज़्यादा परे शान होती, रो रो कर अपना बुरा हाल कर लेती, खाना, पीना छोड़ दे ती। मेरे पास िब भी आती मैं यही कहती कक बस पढ़ती रहो, पढ़ती रहो, पढ़ना हगगतज़ ना छोड़ना चाहे िैसे भी हालात
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आ िाएं। किर एक ददन वो आया और उस को मना कर ले गया और कहा कक तम ु िैसे चाहोगी वेसे
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होगा।। मेरी दोस्ट्त ने अपने शौहर से कहा कक तुम पांच वक़्त के नमाज़ी बन िाओ, घर से दरू ना रहो, मझ ु े और बच्चों को वक़्त दो। अल्हम्दमु लल्लाह! अब उस का शौहर राह रास्ट्त पर आ गया है । उस ने मझ ु े
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बताया कक अब भी वो िादग ू रनी उसे कॉल करती रहती है मगर वो उठाता नहीं। मैं ने अपनी दोस्ट्त को कहा कक तुम ये स्ज़क्र हगगतज़ ना छोड़ना इन ् शा अल्लाह वो तुम्हारा कुछ नहीं बबगाड़ सकेगी। अल्लाह की
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मदद तुम्हारे साथ है , तुम परे शान ना हो, ख़श ु रहो और पवदत िारी व सारी रखो, अल्लाह की रहमत से तुम्हारा शौहर तुम्हारे साथ है अब वो उस का काला िाद ू इन ् शा अल्लाह कभी असर नहीं करे गा। उस के
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ररश्तेदार सब है रान कक ये काया कैसे पल्टी, इस लड़की ने ऐसा क्या िाद ू ककया कक उस काली िादग ू रनी से अपने शौहर और बच्चों को बचवा मलया। वो सब मेरी दोस्ट्त से आ आ कर पूछते हैं कक तुम ने ऐसा क्या पढ़ा कक इतने मस्ु श्कलात के भंवर से बड़े आराम से ननकल आई, नक़् ु सान से, बे इज़्ज़ती से और तलाक़ से
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बच गयी। तुम्हारा शौहर िो कक तुम्हें दे खना पसंद नहीं करता था अब तुम्हारे बग़ैर एक पल नहीं रहता,
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काम पर िाने के बाद शाम होने से पहले घर आ िाता है घर आते ही सलाम के बाद सब से पहले तुम्हें
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आवाज़ दे कर बुलाता है । सब दोस्ट्त अह्बाब को भूल गया है । आख़ख़र तुम ने क्या िाद ू ककया है ? मेरी
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दोस्ट्त तमाम पूछने वामलयों, बहन बहनोई सब को यही वज़ीफ़ा बताती है और साथ अबक़री का ररसाला
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थमा दे ती है । अब तो उस का शौहर भी सारा ददन यही वज़ीफ़ा पढ़ता है । (फ़-ह-त)
(क़ाररईन! मैं आप के सीने की अमानत आप तक पोहिं चा रहा हूँ, आप को इस वज़ीफ़े से जो फ़ायदा पोहिं चे,
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ज़रूर अमानत समझ कर मुझे ललखें , इिंतज़ार रहे गा। एडिटर!)
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