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माहनामा अबक़री मैगज़ीन
के जून 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन
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के जून 2016 के एहम मज़ामीन
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हहिंदी ज़बान में दफ़्तर माहनामा अबक़री
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मज़िंग चोंगी लाहौर पाककस्ट्तान
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महमद ू मज्ज़ब ू ी चग़ ु ताई دامت برکاتہم
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एडिटर: शैख़-उल-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मह ु म्मद ताररक़
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मरकज़ रूहाननयत व अम्न 78/3 अबक़री स्ट्रीट नज़्द क़ुततबा मस्स्ट्जद
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फ़ेहररस्ट्त सहाबा
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व अह्ल बैत
ؓ की ख़श ु ी ककस में है ?................................ Error! Bookmark not defined.
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करामत ए शेर ए ख़ुदा !رضي هللا عنهअसा का इशारा और शदीद सेलाब ख़त्म ........ Error! Bookmark not defined.
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बच्चे को घर में पड़ी उदय ू ात से बचाने के गरु .............................................. Error! Bookmark not defined. ज़ेहनी दबाओ से याद्दाश्त में इज़ाफ़ा! ना क़ाबबल तरदीद ररसचत .................... Error! Bookmark not defined. ज़ेहनी दबाओ से ननजात पाने के आसान गरु ................................................ Error! Bookmark not defined. गमी का तोड़ घरे लू आज़मद ू ह ठिं िे टोटकों से कीस्जये .................................... Error! Bookmark not defined.
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क़ाररईन के नतब्बी और रूहानी सवाल, ससफ़त क़ाररईन के जवाब.................... Error! Bookmark not defined.
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क़ाररईन के सवाल क़ाररईन के जवाब ............................................................. Error! Bookmark not defined.
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मेरी स्ज़न्दगी कैसे बदली? .............................................................................. Error! Bookmark not defined.
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आइये! शादी के चन्द सामान इब्रत वाकक़आत पढ़ें ! ....................................... Error! Bookmark not defined. नज़र बद्द से ननजात का एक अमल आप की ख़ख़दमत में ............................. Error! Bookmark not defined.
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नाख़न ु से बीमारी की सो फ़ीसद दरु ु स्ट्त तश्ख़ीस! है ना हदल्चस्ट्प! ................ Error! Bookmark not defined.
१५ हदन में २० साल परु ानी टी बी ख़त्म ....................................................... Error! Bookmark not defined.
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नफ़्स्ट्याती घरे लू उल्झनें और आज़मद ू ह यक़ीनी इलाज .................................. Error! Bookmark not defined.
जून का रमज़ान! सत्तू से सारा हदन ठिं िक का एह्सास ................................ Error! Bookmark not defined.
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बढ़ती उम्र और बढ़ ु ापा ससफ़त चहल क़दमी से भगाइए .................................... Error! Bookmark not defined.
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पहढ़ए कल्मे का ननसाब! नेअमतें , बरकतें, रहमतें पाइए बे हहसाब ................ Error! Bookmark not defined.
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सात चीज़ों के आने से पहले नेक एअमाल में जल्दी करो
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हज़रत अबू हुरैरह عنه هللا رضيररवायत करते हैं कक रसूलल्लाह ﷺने इशातद फ़मातया: सात चीज़ों के
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आने से पहले नेक एअमाल में जल्दी करो। क्या तुम्हें ऐसी तिंगदस्ट्ती का इिंतज़ार है जो सब कुछ भुला दे , या ऐसी माल्दारी का जो सकतश बना दे या ऐसी बीमारी का जो नाकारह कर दे या ऐसे बुढ़ापे का जो अक़्ल खो दे या ऐसी मौत का जो अचानक आ जाए (कक बअज़ वक़्त तौबा करने का मौक़ा भी नहीिं समलता) या
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दज्जाल का जो आने वाली छुपी हुई बुराइयों में बद्द तरीन बुराई है , या क़यामत का? क़यामत तो बड़ी सख़्त और कड़वी चीज़ है । (नतसमतज़ी) मस ु ल्मान के मस ु ल्मान पर छे हुक़ूक़: हज़रत अली رضي هللا عنه
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ररवायत करते हैं कक रसूलल्लाह ﷺने इशातद फ़मातया: एक मुसल्मान के दस ू रे मुसल्मान पर छे हुक़ूक़ हैं:
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जब मुलाक़ात हो तो उस को सलाम करे , जब दावत दे तो उस की दावत क़ुबूल करे , जब उसे छ िंक आये
(और अल्हम्दसु लल्लाह कहे ) तो उस के जवाब में यहतमकल्लाह कहे , जब बीमार हो तो उस की अयादत
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करे , जब इन्तक़ाल कर जाए तो उस के जनाज़े के साथ जाए और उस के सलए वही पसिंद करे जो अपने
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सलए पसिंद करता है । (इब्न माजा) एडिटर के क़लम से
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हाल ए हदल
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मज़्लूम आवाज़ें, सुलगते घर, उजड़ी स्ज़न्दगी
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(कक़स्ट्त नम्बर २)
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क़ाररईन! मेरा ग़म तवील, मेरा कक़स्ट्सा ना क़ाबबल ए बयान लेककन क्या करूूँ अब मेरा हदल मुझे मज़ीद इजाज़त नहीिं दे रहा कक इस तवील ग़म को हदल ही हदल में छुपा कर रखूँू मैं कुछ माह आप से लूँ ग ू ा,
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मोबाइल, इिंटरनेट और खल ु े आम मेल मलाप का बहुत ज़्यादा दख़ल है । इस ग़म में आप भी मेरे शरीक बनें। मेरा साथ दीस्जयेगा मेरे साथ रहहएगा और इस का हल ज़रूर बताइयेगा। ख़त नम्बर ४: मोहतरम
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हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरी पहली शादी ग्यारह साल पहले हुई थी, वो एक अय्याश शख़्स था उस से मैं ने ख़ल ु ा ले सलया। मेरा एक दस साल का बेटा है । मेरी दस ू री शादी मेरे चच्चा के बेटे के
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साथ हुई लेककन उन्हों ने बच्चे की वजह से दो साल पहले तलाक़ दे दी। अब मैं तीसरी शादी करना चाहती हूूँ मगर िर रही हूूँ कक वो भी काम्याब होगी या नहीिं। मैं अपने तीन शादी शुदह भाइयों में रह रही हूूँ और उन के मआ ु शी हालात भी ठ क नहीिं। वाल्दै न भी अल्लाह को प्यारे हो गए हैं। मेरी भी कोई आम्दनी नहीिं
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है । कुछ समझ नहीिं आता कक क्या करूूँ? बड़ी परे शानी है । ख़त नम्बर ५: २४ साल की उम्र में ६० साल के
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अमराज़: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरी कुछ स्जस्ट्मानी कैकफ़यात: चेहरे का रिं ग
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फीका, चेहरे पर पीप वाले और सूखे दाने, चेहरे पर ननशान और गढ़े , दािंत कम्ज़ोर, कन्धों में हर वक़्त
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तनाव और शदीद ददत , कमर का ननचला हहस्ट्सा हर वक़्त ददत करता है । ख़ास तौर पर कोहलों वाली जगा
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जब ज़्यादा चलूँ ू तो ददत करता है । बैठते हुए टािंगों का ऊपर वाला हहस्ट्सा दख ु ता है । ननज़ाम हज़म सस्ट् ु त है ।
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मोटापा, सलकोररया, मालीख़ोसलया की सशकायत, टािंगों और घुटनों में ददत । सर में बाल कम हैं और ना
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ज़्यादा बढ़ते हैं। नाक, कान, गला ख़राब, शस्ख़्सयत में तोड़ फोड़। मिंह ु में बहुत थक ू आती है । ज़बान का
आख़री हहस्ट्सा दख ु ता है । हलक़ से आवाज़ ननकालते हुए मसला होता है । मूि में ग़ैर मुतवक़्क़ुअ बदलाव,
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ग़स्ट् ु सा, डिप्रेशन, चचड़चचड़ाहट, ला तअल्लक़ ु ी, अकेले बैठ कर अपने आप से बातें करना। स्ज़न्दगी का कोई
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मक़्सद नहीिं। हर वक़्त पछतावों में नघरे रहना। वाल्दै न और छोटे भाइयों से बद्द हदल रहना, ग़स्ट् ु से से बात करना, ज़्यादा बात ना करना, दरू दरू रहना। वाल्दै न की चप ु क़सलश की वजह से कुछ हाससल करने का
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शौक़ नहीिं। दन्ु या से ला तअल्लुक़ी अख़्त्यार करना, घर से दरू ननकल जाने को हदल करना, चेहरा अक्सर
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बबगड़ा हुआ रहता है , बद्द शकल, एअसाबी कम्ज़ोरी। नमाज़ ना पढ़ना, कभी ज़्यादा मौसीक़ी सुन्ना, कभी बबल्कुल भी ना सन् ु ना। मेरा हदमाग़ मेरे क़ाबू में नहीिं रहता। हर वक़्त कोई ना कोई सोच रहती है । बे
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यक़ीनी की कैकफ़यत, यक़ीन की कमी, एतमाद नहीिं कर पाती, अच्छा सोचती हूूँ लेककन अमल नहीिं होता। बुरे असरात, अजीब ख़्वाब आते हैं। बराह मेहरबानी मेरे सलए दआ ु करें । ख़त नम्बर६: बे राह रवी का
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सशकार शौहर: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! पपछले रमज़ान की बात है कक मेरे शौहर पहले रोज़े से ले कर बीस रोज़े तक रोज़ाना पािंच छे दोस्ट्त शाम अफ़्तारी के बाद घर ले आते, सारी
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रात ताश खेलते हैं, म्यस्ू ज़क सन ु ते हैं, शीशा पीते और गप्पें मारते रहते और सेहरी के वक़्त खाना खा कर अपने अपने घरों को चले जाते जब मैं ने उसे ख़द ु ा का ख़ौफ़ हदलाया तो ऊिंचा ऊिंचा बोलना शुरू हो गए कक तम् ु हें इस से क्या मसला है , मैं सेहरी अफ़्तारी का इिंतज़ाम ख़द ु दोस्ट्तों के सलए करता हूूँ। जब मैंने अपनी
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सास से बात की कक ख़द ु ारा इस को मना करें रमज़ान का कुछ तो एह्तराम करें । माूँ ने उस से बात की तो
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उस ने मेरे ऊपर चढ़ाई कर दी और मेरे सलए इिंतहाई ग़लीज़ ज़बान इस्ट्तेमाल की और कफर मेरे ऊपर खड़े
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हो कर दोनों हाथों से सर को पीटने लगा और इिंतहाई ग़लीज़ गासलयािं मुझे ननकालता रहा और रोना शुरू
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हो गया। इस से पहले भी कई मततबा ऐसा कर चक ु ा है । उस की जो हरकात मुझे पसिंद नहीिं होतीिं मना
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करती हूूँ तो ऐसा ड्रामा शरू ु हो जाता है । ऐसा लगता है कक कोई स्जन्न या शैतान उस पर ग़ासलब आ जाता
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है और मुझे पूरे मुहल्ले के सामने इिंतहाई बे इज़्ज़त करता है । मैं ने तो अपनी सास से यहाूँ तक केह हदया
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है कक इस की दस ू री शादी करवा दें मगर इस की हरकतें दे ख कर कोई मानता ही नहीिं। ख़चे शाहाना हैं, नई गाड़ी बेच कर पैसे कारोबार में लगाए और िुबो हदए, उसी हदन अपनी दस ू री गाड़ी भी बेच दी और ककसी से
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पछ ू ा तक नहीिं। मझ ु े कहता है कक अपनी प्रॉपटी बेचो और मझ ु े कारोबार के सलए दो, पहले भी दो दफ़ा
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कारोबार ककया स्जतना पैसा कमाया अय्याशी में ज़ायअ ककया, दोस्ट्तों को ख़खलाया और फ़ाररग़ हो गया। बाहर औरतों के साथ उस के ना जाइज़ तअल्लुक़ात हैं। बराह मेहरबानी उस के सलए दआ ु करें । ख़त नम्बर
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७: इिंटरनेट की तबाही: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह की आप पर हज़ारों
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करोड़ों रहमतें और बरकतें नास्ज़ल हों। मैं अपने बेटे की तरफ़ से बहुत परे शान हूूँ। पढ़ाई में हदल नहीिं लगाता। हर वक़्त मोबाइल पर एस एम एस और कॉल्स में मसरूफ़ रहता है , पहले नमाज़ पढ़ता था मगर
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जब से थ्री जी मोबाइल सलया है अब नमाज़ क़ुरआन की तरफ़ भी तवज्जह नहीिं दे ता। छे सात लड़ककयािं हैं स्जन के साथ उस के "चक्कर" हैं। ये उन को और वो इस को गिंदे गिंदे एस एम ् एस और तस्ट्वीरें भेजती हैं।
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फ़ेस बुक पर ग़लत कक़स्ट्म की तस्ट्वीरें लगाता है जो मैं ने अक्सर जब ये सो रहा होता है दे खी हैं। उस ने मेरी पूरे ख़ान्दान में नाक कटवा दी है । ख़द ु ा के लीए मेरे बेटे को राह रास्ट्त पर लाने के सलए दआ ु करें ।
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क़ाररईन! ग़म्ज़्दह तहरीरें , आप की ख़ख़दमत में पेश कर दी हैं, इस का अज़ाला क्या है और तदबीर क्या है ? मैं आप के जवाब का मुन्तस्ज़र रहूिंगा। (जारी है )
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माहनामा अबक़री जून 2016 शुमारा नम्बर 120________________pg 3
दसत रूहाननयत व अम्न
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सारी कायनात का एक अज़ीम राज़
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शैख़-उल-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मह ु म्मद ताररक़ महमद ू मज्ज़ब ू ी चग़ ु ताईدامت برکاتہم
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हर बला से अम्न: दोस्ट्तो! मैं आप को सरू ह फ़ानतहा के फ़वाइद बता रहा था, एक ररवायत में है कक जो
शख़्स सोने के इरादे से लेटे और सूरह इख़्लास पढ़ कर अपने ऊपर दम कर ले तो वो मौत के इलावा हर
का इशातद है कक जो कोई सरू ह फ़ानतहा और सरू ह इख़्लास पढ़े गा वो हर बला से
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हम ने कहा हुज़रू ﷺ
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बला से अम्न पाएगा। एक साहब मझ ु से कहने लगे: हम जिंगल में सफ़र कर रहे थे हमें वहािं रात हो गयी,
अम्न पाएगा, ये सोच कर हम ने अमल ककया और लेट गए। सुबह उठे दे खा तो हमारे इदत चगदत मुख़्तसलफ़
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कक़स्ट्म के छोटे बड़े साूँपों की लकीरें समट्टी पर लगी हुई थीिं लेककन हमारे क़रीब कोई नहीिं आया। अल्लाह
की एक सुन्नत पर अमल करो और इस ननय्यत के साथ अमल करो कक ऐ
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यक़ीन के साथ हुज़ूर ﷺ
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वालो! अमल करो तो यक़ीन से करो और अमल का नफ़ा आूँखों से दे ख लो। सो शुहदा के बक़दर अज्र:
अल्लाह तू और तेरा हबीब सवतरर कौनैन ﷺमझ ु से राज़ी हो जाएिं। एक हदीस का मफ़हूम है कक आप ﷺ
ने इशातद फ़मातया कक: "उस दौर में जब सन् ु नतें समट जाएिंगी तब मेरी एक सन् ु नत पर अमल करने Page 6 of 51
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से सो शुहदा के बक़द्र अज्र समलेगा।" और बअज़ ककताबों में सलखा है कक सहाबा कराम رضوان هللا عليهم أجمعينके बक़द्र अज्र समलेगा। सलहाज़ा स्जस को यक़ीन होगा वो इस अमल को टूट कर करे गा, िूब कर
हुज़ूर ﷺ
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करे गा कफर इस की पूरी तासीर, पूरा फ़ायदा पाएगा। अशत के ख़ज़ानों वाली नेअमत: एक ररवायत में है कक ने इशातद फ़मातया कक: "अशत के ख़ज़ानों में से मुझे चार चीज़ें समली हैं उस ख़ज़ाने में से ककसी
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को कोई चीज़ नहीिं समली, मालूम हुआ ना पहले समली थी ना समल सकती है । हुज़ूर ﷺकी ख़त्म नुबुव्वत के सदक़े हम को जो कुछ समला हुज़ूर ﷺ
के वसीले से समला। जो हुज़ूर अक़्दस ﷺ
को
समल चक ु ा इस से पहले ककसी को ना समला ना इस के बाद ककसी को समलेगा। वो चार चीज़ें क्या हैं? पहली
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चीज़ सूरह फ़ानतहा है । दस ू री चीज़ आयत अल्कुसी है । तीसरी चीज़ सूरह बक़रह की आख़री आयात
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"सलल्लाहह मा कफ़स्ट्समावानत" ( )هلل ما في السماواتसे ले कर आख़ख़र तक है और चौथी चीज़ सरू ह कौसर है ।
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ये चार चीज़ें अल्लाह पाक जल्ल शानुहू ने अपने हबीब ﷺको अपने अशत के ख़ज़ानों में से ख़ास अता
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फ़मातईं। जो ख़ास चीज़ें होंगी उन के कमालात, उन के फ़वाइद और उन की तासीर भी ख़ास होंगी और उन
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से जो फ़वाइद समलेंगे वो भी ख़ास होंगे। उन फ़वाइद से ख़ास काम बनेंगे, उन फ़वाइद से मुस्श्कलात हल होंगी और काम्याबी भी समलेगी। हज़रत हसन बसरी رحمة هللا عليهका क़ौल: एक ररवायत में है स्जसे
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हज़रत ख़्वाजा हसन बसरी رحمة هللا عليهने नक़ल ककया है कक स्जस ने सरू ह फ़ानतहा को पढ़ा उस ने गोया
तौरात, इिंजील, ज़बूर और क़ुरआन को पढ़ा। एक और ररवायत में है कक स्जस ने एक दफ़ा सूरह फ़ानतहा
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को पढ़ा उस ने दो नतहाई क़ुरआन मजीद पढ़ा। इब्लीस की आह व ज़ारी: एक ररवायत में हुज़रू ﷺने
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फ़मातया: कक "इब्लीस को अपने ऊपर आह व ज़ारी, नोहा और सर पर ख़ाक िालने की चार मततबा नोबत
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आई।" जैसे कहते हैं कक: बन्दा परे शान हो गया उस ने अपने बाल नोच सलए, सख़्त टक्करें मारीिं स्जस से उस की हड्डियािं चटख़ गईं। बस ऐसी सूरत इब्लीस के साथ चार मततबा हुईं ये कौन कह रहे हैं सच्चों के
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सच्चे सारी कायनात के सच्चे हुज़ूर सवतरर कौनैन ﷺफ़मात रहे हैं। ग़ौर फ़मातएूँ कक चार मततबा नोबत आई जब इब्लीस पर लअनत हुई। एक तो उस को अपने ऊपर रोने की, नोहा करने की नोबत आई। दस ू री
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मततबा जब हुज़ूर ﷺको ज़मीन पर उतारा गया। तीसरी मततबा जब हुज़ूर ﷺको नुबुव्वत समली और चौथी मततबा जब सूरह फ़ानतहा को नास्ज़ल ककया गया। शैतान को पता है कक सूरह फ़ानतहा में क्या
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है । हर नमाज़ का हहस्ट्सा: अल्लाह वालो! सरू ह फ़ानतहा हर नमाज़ का हहस्ट्सा है । आप चाहे नस्फ़्फ़ल पढ़ें , सुन्नत मौकदह पढ़ें या ग़ैर मौकदह, वास्जब नमाज़ पढ़ें या फ़ज़त नमाज़ कोई भी नमाज़ हो कोई भी
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रकअत हो उस में सरू ह फ़ानतहा को पढ़ना लास्ज़म है । असास अल्क़ुरआन: एक ररवायत में आता है कक: एक शख़्स सवतरर कौनैन ﷺके पास आया और ददत गुदतह की सशकायत की। आप ﷺ
ने उस
शख़्स से कहा कक: "असास अल्क़ुरआन पढ़ कर ददत वाली जगा पर दम कर लो।" सहाबा कराम رضوان هللا
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عليهم أجمعينने दरयाफ़्त ककया कक: "असास अल्क़ुरआन क्या है ?" आप ﷺ
ने फ़मातया: असास
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अल्क़ुरआन सूरह फ़ानतहा है ।" सूरह फ़ानतहा इस्ट्म आज़म: मशाइख़ ् के एअमाल मुजरत बा में सलखा है कक
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सूरह फ़ानतहा इस्ट्म आज़म है । "अल्लाहु अक्बर!" हम सारे जहािं में कफर कर इस्ट्म आज़म को तलाश करते
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हैं लेककन इस्ट्म आज़म सरू ह फ़ानतहा में है । एक अल्लाह वाले कहने लगे: "मैं बहुत अरसा सरू ह फ़ानतहा
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पढ़ता रहा लेककन इस की जो तासीर मुझे मत्लूब थी वो ना समली। मैं एक बुज़ुगत के पास गया उन से पूछा कक: मझ ु े सरू ह फ़ानतहा की तासीर कैसे मय ु स्ट्सर होगी जो इसे मेरे सलए इस्ट्म आज़म बना दे ? अल्लाह
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वाले ने कहा: अगर तू चाहता है कक सूरह फ़ानतहा तेरे सलए इस्ट्म आज़म बन जाए तो पहले चालीस हदन मेरे दसत में शासमल हो।" औसलया की नसीहत: असल में जो अमल बग़ैर मुशक़्क़त के हो या वो अमल
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स्जस को बग़ैर मुशक़्क़त के हाससल ककया हो वो अमल शक में या बेक़द्री में मुब्तला कर दे ता है योरप में
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एक ककताब लाखों पौंि में फ़रोख़्त हुई ककसी ने कहा कक: "मुसस्न्नफ़ ने ससफ़त एक ककताब सलखी है और
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उस के अिंदर सारी कायनात का एक अज़ीम राज़ है ।" उस ककताब की बोली लगी। उस को सलखने वाला बहुत बड़ा राइटर था। ककताब सील बन्द थी उस के अिंदर एक क़ीमती राज़ है । उस की बोली लगी और कई
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लाख पौंि में फ़रोख़्त हुई। स्जस शख़्स ने उस ककताब को ख़रीदा उस ने ककताब को घर ले जा कर हाूँपते कािंपते हाथों से उस की सीलें खोलीिं। एक सील खोली कफर दस ू री सील खोली तेह दर तेह सीलें खोलने के
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बाद बड़ी एहत्यात से ककताब को बाहर ननकाला ओर धड़कते हदल के साथ ककताब को खोला। पहला ससफ़हा साफ़, दस ू रा ससफ़हा साफ़, तीसरा ससफ़हा भी साफ़ कई सो ससफ़हात की ककताब थी सारे ससफ़हे
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साफ़ थे लेककन आख़री ससफ़हे पर एक बात सलखी थी। जो शख़्स अपने सर को ठिं िा रखेगा और पाऊूँ को गरम रखेगा वो इिंसान दन्ु या में काम्याब तरीन इिंसान होगा। ये एक बहुत बड़ा राज़ है कक सर को ठिं िा
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रखना और पाऊूँ को गरम रखना इस बात पर अमल करने वाला काम्याब तरीन इिंसान है । (जारी है ) दसत से फ़ैज़ पाने वाले
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं गवनतमेंट कॉलेज में इिंस्ग्लश का लेक्चरर हूूँ। पपछले रमज़ान अल्मुबारक में मेरे एक दोस्ट्त ने मुझे अबक़री वेब साईट का बताया तो मैं ने पूरा रमज़ान आप के
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दसत सुने और अब तक सुन रहा हूूँ। गुनाहों से नफ़रत और रूहानी सुकून नसीब हो रहा है । अल्लाह वाले को
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दे ख कर अल्लाह याद आता है और अल्लाह वाले के अल्फ़ाज़ से जो सुरूर समलता है उस का इज़्हार
मुस्श्कल है । जब से आप के दसत सुन्ने शुरू ककये हैं मेरे परे शानी ख़त्म होती जा रही है । घर में अजब कक़स्ट्म
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की परे शाननयािं और उल्झनें थीिं अल्हम्दसु लल्लाह! दरूस की बरकत से घर का माहोल परु सक ु ू न हो गया।
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रमज़ान अल्मुबारक का अब पता चला कक कैसे गुज़ारते हैं। पपछला पूरा रमज़ान आप के दसत सुने हर नमाज़ में रोना आ जाता था। इस बार मझ ु े रमज़ान अल्मब ु ारक का सशद्दत से इिंतज़ार है इन ् शा अल्लाह
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इस रमज़ान अल्मुबारक में हर रोज़ आप के दसत से मुस्ट्तफ़ेज़ हूूँगा। (कासशफ़, लाला मूसा)
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन
के जून 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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रोज़े की हालत में सख़ावत करने का नक़द इनआम (बहुत ही सख़ी और फ़याज़ आदमी थे, ककसी साइल को भी अपने दरवाज़े से नामुराद नहीिं लौटाते थे। एक
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हदन उन के पास ससफ़त तीन ही अश्रकफ़यािं थीिं और ये उस हदन रोज़ा से थे। इत्तफ़ाक़ से उस हदन तीन
(अबू लबीब शाज़्ली)
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साइल दरवाज़े पर आए और आप ने तीनों को एक एक अश्रफ़ी दे दी कफर सो रहे ।)
जन्नत में जाने वाला पहला माल्दार: हज़ूर नबी करीम ﷺने इशातद फ़मातया: मेरी उम्मत के माल्दारों में
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सब से पहले अब्दरु त हमान बबन ऑफ़ जन्नत में दाख़ख़ल होंगे। (किंज़ुल ्-एअमाल ज१२ स२९३)
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माूँ के पेट ही से सईद: हज़रत इब्राहीम बबन अब्दरु त हमान رضي هللا عنهका बयान है कक हज़रत अब्दरु त हमान
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बबन ऑफ़ رضي هللا عنهएक मततबा बे होश हो गए और कुछ दे र बाद वो होश में आए तो फ़मातया कक अभी
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अभी मेरे पास दो बहुत ही ख़ौफ़नाक फ़ररश्ते आए और मुझसे कहा कक तुम उस ख़द ु ा के दरबार में चलो
जो अज़ीज़ व अमीन है । इतने में एक दस ू रा फ़ररश्ता आ गया और उस ने कहा कक इन को छोड़ दो ये तो
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जब अपनी माूँ के सशकम में थे उसी वक़्त से सआदत आगे बढ़ कर इन से वाबस्ट्ता हो चक ु ी थी। (किंज़ुल ्-
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एअमाल ज१५ स२०३)
बद्द नसीब बूढ़ा: हज़रत जाबबर رضي هللا عنهसे ररवायत है कक कूफ़ा के कुछ लोग हज़रत सअद बबन अबी
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वक़ास رضي هللا عنهकी सशकायत ले कर अमीरुल मुअसमनीन हज़रत फ़ारूक़ आज़म رضي هللا عنهके दरबार
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ख़ख़लाफ़त मदीना मुनव्वरा में पोहिं च।े हज़रत अमीरुल मुअसमनीन ने उन सशकायात की तहक़ीक़ात के
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सलए चन्द मअ ु त्मद सहाबबयों को हज़रत सअद बबन अबी वक़ास رضي هللا عنهके साथ कूफ़ा भेजा और ये हुक्म फ़मातया कक कूफ़ा शहर की हर मस्स्ट्जद के नमास्ज़यों से नमाज़ के बाद ये पूछा जाए कक हज़रत
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सअद बबन अबी वक़ास رضي هللا عنهकैसे आदमी हैं? चन ु ाचे तहक़ीक़ात करने वालों को उस जमाअत ने स्जन स्जन मस्स्ट्जदों में नमास्ज़यों को क़सम दे कर हज़रत सअद बबन अबी वक़ास رضي هللا عنهके बारे में
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दरयाफ़्त ककया तो तमाम मस्स्ट्जदों के नमास्ज़यों ने उन के बारे में कल्मा ख़ैर कहा और मदह व सना की, मगर एक मस्स्ट्जद में फ़क़त एक आदमी स्जस का नाम "अबू सअदह" था। उस ने हज़रत सअद बबन अबी
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वक़ास رضي هللا عنهकी तीन सशकायात पेश कीिं और कहा। "ये माल ग़नीमत बराबरी के साथ तक़्सीम नहीिं करते और ख़द ु लश्करों के साथ स्जहाद में नहीिं जाते और मुक़द्दमात के फ़ैस्ट्लों में अदल नहीिं करते। ये सुन
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कर हज़रत सअद बबन अबी वक़ास رضي هللا عنهने फ़ौरन ही ये दआ ु मािंगी। ऐ अल्लाह! अगर ये शख़्स झूटा है तो इस की उम्र लम्बी कर दे और इस की मुह्ताजी को दराज़ कर दे और इस को कफ़त्नों में मुब्तला कर दे । अब्दल ु मसलक बबन उमेर ताबई का बयान है कक इस दआ ु का मैं ने ये असर दे खा कक "अबू सअदह"
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इस क़दर बूढ़ा हो चक ु ा था कक बुढ़ापे की वजह से उस की दोनों भिंवें, उस की दोनों आूँखों पर लटक पड़ी थीिं
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और वो दर बदर भीक मािंग मािंग कर इिंतेहाई फ़क़ीरी और मुह्ताजी की स्ज़न्दगी बसर करता था और उस
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बुढ़ापे में भी वो राह चलती हुई जवान लड़ककयों को छे ड़ता था और उन के बदन में चट ु ककयाूँ भरता रहता
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था जब कोई उस से उस का हाल पूछता था तो वो कहा करता था कक मैं क्या बताऊूँ? मैं एक बुड्ढा हूूँ जो
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कफ़त्नों में मब्ु तला हूूँ क्योंकक मझ ु को हज़रत सअद बबन अबी वक़ास رضي هللا عنهकी बद्द दआ ु लग गयी
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है । (हुज्जतुल्लाह अलल ्-आलमीन, बहवाला: बुख़ारी व मुस्स्ट्लम, बेहक़ी)
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बे समसाल मछली: हज़रत अबू उबैदह बबन अल्जरातह رضي هللا عنهतीन सो मुजाहहदीन इस्ट्लाम के लश्कर पर ससपह सालार बन कर "सैफ़ अल्बहर" में स्जहाद के सलए तश्रीफ़ ले गए। वहािं फ़ौज का राशन ख़त्म हो
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गया यहािं तक कक ये चोबीस चोबीस घिंटे में एक एक खजूर बतौर राशन के मुजाहहदीन को दे ने लगे कफर
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वो खजूरें भी ख़त्म हो गईं। अब भूका रहने के ससवा कोई चारहकार नहीिं था। इस मौक़े पर आप की ये
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करामत ज़ाहहर हुई कक अचानक समुन्दर की तूफ़ानी मोजों ने साहहल पर एक बहुत बड़ी मछली को फेंक
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हदया और उस मछली को तीन सो मुजाहहदीन की फ़ौज अठारह हदनों तक सशकम सेर हो कर खाती रही और उस की चबी को अपने स्जस्ट्मों पर मल्ती रही यहािं तक कक सब लोग तिंदरु ु स्ट्त और ख़ब ू फ़बात हो गए। कफर चलते वक़्त उस मछली का कुछ हहस्ट्सा काट कर अपने साथ ले कर
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मदीना मुनव्वरह वापस आए और हुज़ूर नबी करीम ﷺकी ख़ख़दमत अक़्दस में भी उस मछली का एक टुकड़ा पेश ककया स्जस को आप ﷺने तनावल फ़मातया और इशातद फ़मातया कक इस मछली
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को अल्लाह तआला ने तम् ु हारा ररज़्क़ बना कर भेज हदया। ये मछली ककतनी बड़ी थी लोगों को इस का अिंदाज़ा बताने के सलए अमीर लश्कर अबू उबैदह बबन अल्जरातह رضي هللا عنهने हुक्म हदया कक उस मछली
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की दो पस्स्ट्लयों को ज़मीन में गाढ़ दें चन ु ाचे दोनों पस्स्ट्लयािं ज़मीन में गाढ़ दी गईं तो इतनी बड़ी मेहराब बन गयी कक उस के नीचे से कचादह बिंधा हुआ ऊूँट गुज़र गया। (बुख़ारी शरीफ़ ज२, स६२६) इम्दाद ग़ैबी की अश्राकफ़याूँ: हज़रत अबू इमाम बाहहली رضي هللا عنهकी बािंदी का बयान है कक ये बहुत ही
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सख़ी और फ़याज़ आदमी थे, ककसी साइल को भी अपने दरवाज़े से ना मुराद नहीिं लौटाते थे। एक हदन उस
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के पास ससफ़त तीन ही अश्राकफ़याूँ थीिं और ये उस हदन रोज़ा से थे। इत्तफ़ाक़ से उस हदन तीन साइल
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दरवाज़ा पर आए और आप ने तीनों को एक एक अशफ़ी दे दी कफर सो रहे । बािंदी कहती हैं कक मैं ने नमाज़ के बाद उन्हें बेदार ककया और वो वज़ू कर के मस्स्ट्जद में चले गए। मझ ु े उन के हाल पर बड़ा तरस आया
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कक घर मैं ना एक पैसा है ना अनाज का एक दाना, भला ये रोज़ा ककस चीज़ से अफ़्तार करें गे? मैं ने एक शख़्स से क़ज़त ले कर रात का खाना तय्यार ककया और चचराग़ जलाया। कफर मैं जब उन के बबस्ट्तर को
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दरु ु स्ट्त करने के सलए गयी तो क्या दे खती हूूँ तीन सो अशकफ़त याूँ बबस्ट्तर पर पड़ी हुई हैं। मैं ने उन को चगन कर रख हदया। वो नमाज़ इशा के बाद जब घर में आए और चचराग़ जल्ता हुआ और बबछा हुआ
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दस्ट्तरख़्वान दे खा तो मुस्ट्कराए और फ़मातया कक आज तो माशाअल्लाह मेरे घर में अल्लाह की तरफ़ से
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ख़ैर ही ख़ैर है । कफर मैं ने उन्हें खाना ख़खलाया और अज़त ककया कक अल्लाह तआला आप पर रहम फ़मातए,
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आप इन अशकफ़त यों को यूँह ू ी लापरवाही के साथ बबस्ट्तर पर छोड़ कर चले गए और मजझ ू से कह कर भी
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नहीिं गए कक मैं उन को उठा लेती आप ने है रान हो कर पूछा कक कैसी अश्राकफ़याूँ? मैं तो घर में एक पैसा भी छोड़ कर नहीिं गया था। ये सन ु कर मैं ने उन का बबस्ट्तर उठा कर जब उन्हें हदखाया कक ये दे ख सलजोए अश्राकफ़याूँ पड़ी हुई हैं तो वो बहुत ख़श ु हुए लेककन उन्हें भी इस पर बड़ा तअज्जुब हुआ। कफर सोच कर
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कहने लगे कक ये अल्लाह तआला की तरफ़ से मेरी इम्दाद ग़ैबी है । मैं इस के बारे में इस के ससवा और क्या कह सकता हूूँ। (हल्यतुल ्-औसलया ज१० स१२९, शवाहहद अल्नुबुव्वह स२१८)
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सफ़ेद बाल काले, आज़मूदह टोटका! आप भी आज़माइए
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं आप का दसत रूहाननयत व अम्न हर जुमेरात तस्ट्बीह ख़ाना में आ कर सन ु ती हूूँ। एक मततबा दसत के बाद एक लड़की ने मेरे सफ़ेद बाल दे ख कर अपना आज़्माया हुआ टोटका बताया कक जब मैं क़ुरआन मजीद हहफ़्ज़ कर रही थी तो मेरे बाल सफ़ेद हो गए तो
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मैं ने तीन अदद आम्ले का मरु ब्बा एक चगलास नीम गमत दध ू के साथ सब ु ह व शाम खाया। मैं ने ये टोटका पािंच से छे माह इस्ट्तेमाल ककया तो मेरे बाल दब ु ारह से स्ट्याह हो गए और अब तक एक बाल भी सफ़ेद नहीिं
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माहनामा अबक़री जून 2016 शुमारा नम्बर 120_________________pg 5
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है । अब भी कभी कभार खा लेती हूूँ। ये टोटका हाफ़्ज़े के सलए भी लाजवाब है । (राबबआ क़मर, लाहौर)
गसमतयों की छुहटयाूँ! शग़ ु ल मेला या तबबतयत का मअ ु स्ट्सर ननज़ाम
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(वेसे भी छुहटयों का पहला दौर रमज़ान का होगा और रमज़ान में अपनी वासलदा की घर में अफ़्तारी और
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सेहरी के औक़ात में हाथ बटाएिं और वो आप को ख़ब ू दआ ु ओिं से नवाज़ें। रमज़ान अल्मब ु ारक में एअमाल
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(आससया फ़हद, लाहौर)
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का ख़ब ू एह्तमाम करें । ज़्यादा से ज़्यादा क़ुरआन पाक की नतलावत करें ।)
सारा साल बच्चों ने ख़ब ू पढ़ा, पास हुए और नई क्लास्ट्सों में गए। पढ़ाई की इब्तदा हुई, अब सालाना
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छुहट्टयािं हुईं तो ज़रा तफ़्रीह भी हो जाए। वाल्दै न यक़ीनन उन के सलए कुछ मसरूकफ़यात चाहते हैं। ता कक वो घर पर रह कर ससफ़त ऊधम ना मचाएिं या कम्प्यट ू र और मोबाइल की नतलस्ट्माती दन्ु या के असीर हो
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कर ही ना रह जाएिं बस्ल्क प्रैस्क्टकल बनें और कुछ सीखें इस के सलए हम कुछ तजावीज़ लाए हैं यक़ीनन माएिं उन पर अमल करें गी। आप से गुज़ाररश है कक इन छुहट्टयों का एक मुसरफ़् फ़लाही इदारों के दौरे
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करना, ग़रु बा व मसाकीन की इम्दाद करना या ऐसे स्ट्कूलों में जा कर अपने बच्चों की ख़ख़दमात पेश करना भी उन की तबबतयत का ज़ासमन हो सकता है , मसरूकफ़यत का ये प्लेट फ़ॉमत उन में इख़्लाक़ी इक़्दार
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पैदा करे गा। बच्चों से ये कहना है कक हर काम करने का एक उसल ू होता है । मसलन आप सब ु ह सवेरे उठ कर वाश रूम से फ़ाररग़ हो कर दािंत साफ़ करते हैं, बावज़ू हो कर नमाज़ पढ़ते हैं कफर नाश्ता कर के स्ट्कूल की तय्यारी शरू ु करते हैं। ऐसा तो नहीिं होता कक बबस्ट्तर से उठते ही यनू नफ़ॉमत पहना और जा कर वैन में
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सवार हो गए। अब भी जैसा कक गसमतयों की छुहट्टयािं हो चक ु ी हैं तो अपनी रूटीन थोड़ी सी बदसलये मगर
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आदत ना बबगाडड़ये। ये दो तीन माह भी ननहायत क़ीमती हैं। इस अरसे में आप अपने ररज़ल्ट को बेह्तर
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बनाने के सलए तालीमी कमी को पूरा कर सकते हैं। अपना ये क़ीमती वक़्त मोबाइल या कम्प्यूटर गेम्स,
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गली में किकेट या दीगर ग़ैर ज़रूरी मशाग़ल में हचगतज़ ना गुज़ाररये। बेशक सारा हदन कोई नहीिं पढ़
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सकता। आप को तफ़्रीह भी करनी है मगर मोबाइल या कम्प्यट ू र पर खेलना ही तफ़्रीह नहीिं ये ग़ैर ज़रूरी
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मश्ग़ला है । कम्प्यूटर और मोबाइल का कसरत से इस्ट्तेमाल सेहत के सलए नुक़्सान्दह है । आप की आूँखें,
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कान और हदमाग़ तीनों एअज़ा पर इज़ाफ़ी बोझ पड़ता है थकावट बढ़ती है । दध ू से अक्सररयत को वेसे ही चचड़ है लेककन कोल्ि डड्रिंक्स और चचप्स या कफर जिंक फ़ूि खाना भी तो छुहटयों का बेह्तरीन मुसरफ़् नहीिं।
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खाने वो खाएिं जो गरम मौसम में ज़ोद् हज़म हों और हल्की चग़ज़ा कहलाते हों। खेल भी ऐसे खेलें स्जस में
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स्जस्ट्मानी वस्ज़तश हो, जैसे किकेट, हॉकी, फ़ुट बॉल, टे ननस, वोल्ली बॉल और बास्ट्केट बॉल वग़ैरा। टी वी
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हचगतज़ ना दे खते रहें कहीिं आप सुस्ट्त और काहहल ना हो जाएिं। छुहट्टयों का होम वकत ककसी की रहनुमाई में
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कर लें और ख़द ु अपना टाइम टे बल बनाएिं। कम्प्यूटर से मालूमात हाससल करें जो आप के ननसाबी मसाइल का हल पेश करती हो ना कक बेकार में दोस्ट्तों से फ़ेस बुक पर चैहटिंग करते रहें । ऐसा हचगतज़ ना हो कक खाने के सलए अम्मी आवाज़ें दे रही हैं और आप कम्प्यूटर की एल सी िी के सामने से हटना ही नहीिं
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चाहते। बढ़ती हुई उम्र की बस्च्चयों के सलए ये सुनहरी मौक़ा है कक घर चगरहस्ट्ती के मुआम्लात में हाथ बटाते बटाते कुछ ना कुछ नया काम सीख लें स्जस से वाल्दै न ख़श ु हों। वेसे भी छुहट्टयों का पहला दौर
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रमज़ान का होगा और रमज़ान में अपनी वासलदा की घर में अफ़्तारी और सेहरी के औक़ात में हाथ बटाऐिं और वो आप को ख़ब ू दआ ु ओिं से नवाज़ें। रमज़ान अल्मुबारक में एअमाल का ख़ब ू एह्तमाम करें । ज़्यादा
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से ज़्यादा क़ुरआन पाक की नतलावत करें । दरसी कुतब के साथ साथ इस्ट्लामी कुतब का मत ु ास्ल्लआ करें । छुहट्टयों में बच्चों की तबबतयत
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नबी करीम ﷺने फ़मातया: "मसरूकफ़यत से पहले फ़ुसतत को ग़नीमत जानो।" (अलमुस्ट्तद्रक अल्हाककम ७८४६)सलहाज़ा नबी करीम ﷺके इस इशातद के मुताबबक़ फ़ुसतत को ग़नीमत जानते हुए
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फ़ुसतत के इन लम्हात को बेह्तरीन अिंदाज़ में सफ़त करना चाहहए। बबल्ख़स ु ूस इिंफ़रादी इस्ट्लाह, घर के
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माहोल की बेह्तरी, बच्चों की तबबतयत और ककरदार साज़ी के सलए बाक़ाइदह मिंसूबा बना कर एक मरबूत प्रोग्राम तरतीब दे ना चाहहए। हमारा हाल ये है कक हम फ़ुसतत के लम्हात की सही माइनों में क़दर नहीिं
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करते। मल् ु क के बअज़ हहस्ट्सों में हर साल गसमतयों की और बअज़ इलाक़ों में सहदत यों की तवील छुहट्टयािं
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आती हैं। उन की आमद जहािं तासलब इल्मों, असात्ज़ह और तालीमी इदारों के कारकुनान ् के सलए बाइस
मस ु रत त होती है, वहािं घर की ख़वातीन की स्ज़म्मा दाररयों में भी इज़ाफ़ा हो जाता है और वो इस क़ीमती
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वक़्त को कमाहहक़ा इस्ट्तेमाल नहीिं कर सकतीिं और ना उन हदनों ही से फ़ैज़्याब हो पाती हैं। छोटे बच्चों की
पेश ख़ख़दमत हैं:
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माएूँ और ख़स ु ूसन लड़कों के वाल्दै न ज़ेहनी दबाओ का सशकार रहते हैं। इस ज़मन में चन्द अमली नुकात
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पहला मरहला शब ् व रोज़ के सलए ननज़ाम वक़्त का तअय्युन है । नबी करीम ﷺके फ़मातन के पेश नज़र
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कक सुबह के वक़्त में बरकत है , अपने हदन का आग़ाज़ नमाज़ फ़ज्र से कीस्जये। नमाज़ फ़ज्र के बाद ही से हदन भर की सरगसमतयों का आग़ाज़ कीस्जये ये बेह्तरीन और बा बरकत वक़्त सोने की नज़र ना करें ।
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बच्चों की उम्र, तालीम, मसरूकफ़यात को मद्द नज़र रख कर बच्चों से मुशावतत कर के सोने के औक़ात का तअय्युन कर सलया जाए और उस पे कार बन्द भी रहा जाए। ररश्तेदार बहनों भाइयों के सामने इस बात
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का इज़्हार ना करें कक लम्बी छुहट्टयािं हो गयी हैं, अब तो हर वक़्त बच्चे सर पर सवार रहें गे, अगर अपने बच्चों का इस्ट्तक़्बाल इन जुम्लों से करें गी तो आप के और बच्चों के दरम्यान पहले हदन ही दरू ी पैदा हो
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जाएगी और वो वक़्त जो आप के हुस्ट्न इस्ट्तक़्बाल से बच्चों के हदलों में बहार ला सकता था ज़ायअ हो जाएगा।
बच्चों के साथ समल कर हर हफ़्ते का प्रोग्राम तरतीब दीस्जये। उन के ज़ेहन और हदल्चस्स्ट्पयों के मुताबबक़
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स्ज़म्मा दाररयािं बाूँट दीस्जये। फ़ॉन पे घन्टों गुफ़्तुगू में मसरूफ़ रहना वक़्त का ज़्याअ और बच्चों की हक़
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तल्फ़ी है । जब आप की सब से क़ीमती मताअ और ख़ज़ाने आप के सामने मौजूद हैं, स्जन की हहफ़ाज़त व
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ननगेहबानी पर आप के मुस्ट्तस्क़्बल यानन उख़पवत स्ज़न्दगी की काम्याबी का दारोमदार है तो इस ख़ज़ाने
को ज़ायअ क्यूूँ करें ? फ़ज्र की नमाज़ के सलए उठने पर इनआम हदया जा सकता है । एक भाई या बहन की
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फ़ज्र के वक़्त उठाने की स्ज़म्मा दारी लगाइये और कफर उस को तब्दील करते रहहये ता कक सब को स्ज़म्मा दारी का एह्सास हो और एक दस ू रे के दरम्यान मरु व्वत और नेकी में तआवन ु का जज़्बा पैदा हो। एक
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दस ू रे का हहफ़्ज़ क़ुरआन सुन लें, चाहे दो आयात ही क्यूूँ ना हों। इज्तमाई मुताल्लए की एक ननसशस्ट्त भी
हो सकती है स्जस में चन्द आयात की मख़् ु तससर तफ़्सीर, एक हदीस का मत ु ास्ल्लआ या इस्ट्लामी
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सलटरे चर से कुछ इन्तख़ाब ककया जा सकता है । अमली रहनुमाई के तौर पर रोज़ मरह की दआ ु एिं, नमाज़
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और इस का तजम ुत ा, नमाज़ जनाज़ह, मुख़्तससर सूरतें वग़ैरा थोड़ी थोड़ी कर के याद कराई जाएिं। अपने
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काम के ससस्ल्सले में एक दस ू रे से मश्वरा तलब करें और तआवुन की पेश्कश करें । छुहट्टयों के काम के
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सलए एक वक़्त मुक़रत र करें और उन्हें अपनी ननगरानी में करवाएिं। घर में गम्ले या क्यारी में पौदे लगाएिं और बच्चों को उन की ननगेहदाश्त के गुर ससखाएिं। बच्चों के दोस्ट्तों को घर पर बुलाएिं और उन को ख़ब ू इज़्ज़त से नवाज़ें इस से बच्चों और उन के दोस्ट्तों का आप पर एतमाद बढ़े गा जो मुस्ट्तस्क़्बल में आप के
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बहुत काम आएगा। दो ढाई माह बच्चे आप के सलए अज़ाबे जान नहीिं बस्ल्क बच्चों की तबबतयत के पेश नज़र उन्हें तवज्जह दे ना, वक़्त लगाना उन का बुन्यादी हक़ और तबबतयत का ना गुज़ीर तक़ाज़ा है । ये
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आप का इख़्लाक़ी फ़रीज़ा ही नहीिं बस्ल्क आप इस के सलए ख़द ु ा के हाूँ जवाब्दह हैं। नबी करीम ﷺके फ़मातन के मुताबबक़ आप अपनी औलाद को अच्छ तालीम व तबबतयत की सूरत में बेह्तरीन तोह्फ़ा दे
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सकते हैं।
माहनामा अबक़री जन ू 2016 शम ु ारा नम्बर 120_________________pg 6
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रोज़े से टें शन यूूँ ख़त्म
(अपनी ख़्वाहहश हो या दस ु ावन्दी रोज़ा नहीिं छोड़ सकता, इस तरह उस की ू रों की, इिंसान बबला इज़्न ख़द
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(आज़म गीलानी)
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ससफ़त ख़्वाहहषात (चग़ज़ा और सनफ़ी ख़्वाहहश) पर पाबन्दी लगाई गयी है )
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अताअतें हर तरफ़ से ससमट कर एक मकतज़ी इक़्तदार की तरफ़ कफर जाती है । रोज़े में अगचे बज़ाहहर
माह रमज़ान की पहली तारीख़ से जो डिससस्प्लन का अमल शुरू होता है और एक महीना तक मुसल्सल
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इस की तिार जारी रहती है गोया परू े तीस हदन इिंसान एक शदीद तरीन डिससस्प्लन के तहत रहता है ।
एह्सास बन्दगी: इस ननज़ाम तबबतयत पर ग़ौर करने से जो बात पहली नज़र में वाज़ेह हो जाती है , वो ये है
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कक इस्ट्लाम इस तरीक़े से इिंसान के शऊर में अल्लाह की हाकमीयत के इक़रार व एतराफ़ को मुस्ट्तहककम
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करना चाहता है और इस शऊर को इतना मुस्ट्तहककम बना दे ता है कक एहकाम इलाही के रूबरू इिंसान
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अपनी आज़ादी और ख़द ु मुख़्तारी से दस्ट्त बदातर हो जाए। ख़द ु ा का वजूद महज़ एक बा बाद अल्तबीई
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अक़ीदह ना रहे बस्ल्क अमली स्ज़न्दगी में महसस ू और कारफ़मात हो जाए। कुफ़्र इस के ससवा कुछ नहीिं कक इिंसान ख़द ु ा के मुक़ाबले में अपने आप को ख़द ु मुख़्तार महसूस करे और उस के मुक़ाबले में इस्ट्लाम ये है कक इिंसान हर आन अपने आप को ख़द ु ा का बन्दा और महकूम महसस ू करे । नमाज़ का मक़्सद इस शऊर
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बन्दगी की याद हदहानन है, इसी तरह रमज़ान के रोज़े साल में एक मततबा इस शऊर को ज़ेहन पर क़ाइम रखते हैं ता कक सारे साल इिंसान के ज़ेहन पर इस के असरात क़ाइम रहें । अताअत अम्र: एह्सास बन्दगी
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के साथ साथ जो चीज़ लाज़्मी पैदा होगी वो ये है कक इिंसान अपने आप को स्जस ख़द ु ा का बन्दा समझ रहा है , उस की अताअत करे । इन दोनों पर कफ़तरी तौर पर ऐसा रब्त है कक एक दस ू रे से जुदा नहीिं हो सके।
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आप स्जस की ख़द ु ावन्दी का एतराफ़ करें गे लाज़्मन अताअत भी उसी की करें गे और एह्सास बन्दगी स्जस दजात शदीद होगा अताअत अम्र भी उतनी ही सशद्दत से होगी। चन ु ाचे रोज़े का मक़्सद एह्सास बन्दगी की याद हदहानन के साथ साथ अम्र की तबबतयत दे ना भी है । अपनी ख़्वाहहश हो या दस ू रों की, इिंसान बबला
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इज़्न ख़द ु ावन्दी रोज़ा नहीिं छोड़ सकता, इस तरह उस की अताअतें हर तरफ़ से ससमट कर एक मकतज़ी
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इक़्तदार की तरफ़ कफर जाती है । रोज़े में अगचे बज़ाहहर ससफ़त ख़्वाहहषात (चग़ज़ा और सनफ़ी ख़्वाहहश)
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पर पाबन्दी लगाई गयी है ) लेककन इस की असल रूह ये है कक इिंसान पर बन्दगी का एह्सास पूरी तरह
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रहे । इस के बग़ैर अगर इिंसान महज़ भूका प्यासा रह ले तो ये रोज़ा लाश की तरह बे रूह होगा। नबी अिम
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ﷺने फ़मातया है : "स्जस ने झट ू बोलना और झट ू पर अमल करना ना छोड़ा तो ख़द ु ा की कोई हाजत नहीिं कक
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वो शख़्स अपना खाना पीना छोड़ दे "।इसी तरह एक हदीस में आया है कक: "ककतने ही रोज़ादार हैं कक रोज़े
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से भक ू और प्यास के ससवा कुछ हाससल नहीिं होता।" इन दोनों अहादीस में इसी बात की तरफ़ इशारा है कक रोज़े का मक़्सद भूका प्यासा रहना नहीिं बस्ल्क तक़्वा और तहारत है ।
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तामीर सीरत: रोज़े का तीसरा मक़्सद इिंसान की सीरत की तामीर है , इस सीरत की बुन्याद तक़्वा पर है ,
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तक़्वा से मुराद कोई ख़ास शक्ल व सूरत अख़्त्यार करना नहीिं है बस्ल्क क़ुरआन को बड़े वसीअ मज़्मून में
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इस्ट्तेमाल करना है वो पूरी इिंसानी स्ज़न्दगी के ऐसे रवय्ये को तक़्वा के नाम से ताबीर करता है स्जस की
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बुन्याद एह्सास बन्दगी और स्ज़म्मेदारी पर हो (इस के मुख़ासलफ़ रवय्ये का नाम क़ुरआन की रू से फ़ुजूर है ) दन्ु या के फ़साद का सबब फ़ुजूर है और दीगर इबादात की तरह रोज़े का मक़्सद भी ये है कक इिंसान में फ़ुजूर के रुज्हानात ख़त्म ककये जाएिं और तक़्वा को नशो व नुमा हदया जाए। अब दे ख़खये कक रोज़ा ककस
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तरीक़े से इस काम के सर अिंजाम दे ने में मदद दे ता है। एक शख़्स से कहा जाता है कक ख़द ु ा ने तुम पर पाबन्दी लगाई है कक सुबह से शाम तक कुछ ना खाओ, ना ससफ़त जल्वत में बस्ल्क ख़ख़ल्वत में भी अक्ल व
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शरब से परहे ज़ करो, अब ऐसी सूरत में अगर कोई शख़्स रोज़े की तमाम शराइत पूरी करता है तो ग़ौर कीस्जये कक उस के नफ़्स में ककस कक़स्ट्म की कैकफ़यात उभरती हैं। अवल (१): तो ये कक उसे ख़द ु ा के
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आसलमल् ू का पाबन्द ु ग़ैब होने का परू ा यक़ीन है और यही यक़ीन है जो उसे तन्हाई में भी रोज़े के हदद रखता है । दोम (२): उस को आख़ख़रत और हहसाब व ककताब पर पूरा ईमान है , इस सलए कक इस के बग़ैर कोई शख़्स १२ या १४ घिंटे भक ू ा नहीिं रह सकता। सोम (३): उस के अिंदर अपने फ़ज़त का एह्सास है , बग़ैर
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इस के कक कोई शख़्स उस पर खाने पीने की पाबन्दी लगाए उस ने ख़द ु से अपने ऊपर ये पाबन्दी आइद
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कर ली। चहारम (४): माहदयात और रूहाननयत के इन्तख़ाब में इस ने रूहाननयत को मुन्तख़ख़ब कर सलया
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और दन्ु या और आख़ख़रत के दरम्यान तरजीह का सवाल जब इस के सामने आया तो इस ने आख़ख़रत को
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तरजीह दी। इस के अिंदर इतनी ताक़त थी कक इख़्लाक़ी फ़ायदे की ख़ानतर मादी नक़् ु सान बदातश्त कर
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सलया। पिंजम ् (५): वो अपने आप को इस मआ ु म्ले में आज़ाद नहीिं समझता कक सहूलत दे ख कर मन ु ाससब
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मौसम में रोज़े रख ले बस्ल्क जो भी वक़्त मुक़रत र ककया गया है उस ने उस की पाबन्दी की है । शशम (६):
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उस में सब्र व इस्ट्तेक़ामत,तहम्मल ु , यक्सई ू और दन ु ेवी तहरीसात के मक़ ु ाबले की ताक़त कम अज़ कम इतनी है कक रज़ा ए इलाही के बुलिंद ननस्ट्बुल ् ऐन की ख़ानतर वो एक ऐसा काम करता है स्जस का नतीजा
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मरने के बाद दस ू री स्ज़न्दगी पर मल् ु तवी कर हदया गया है । ये कैकफ़यात जो रोज़ा रखने के साथ इिंसान की
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इिंसान की कफ़त्रत साननया बन जाती हैं।
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स्ज़न्दगी में उभरती हैं, रोज़ों में अमलन ् एक ताक़त बन जाती हैं और हर साल एक माह रोज़ा रखने पर
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ज़ब्त नफ़्स: इस तबबतयत के ज़ाब्ते में कस्ट्ने के सलए दो ख़्वाहहशों को ख़ास तौर पर मुन्तख़ख़ब ककया गया है । यानन भूक और स्जन्सी ख़्वाहहश और उन के साथ तीसरी ख़्वाहहश आराम करने की ख़्वाहहश भी ज़द में आ जाती है , इस सलए कक तरावीह पढ़ने और सेहरी के सलए उठने से उस पर भी काफ़ी ज़बत पड़ती है ।
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बक़ाए नफ़्स के सलए चग़ज़ा और आराम और बक़ाए नस्ट्ल के सलए तो अल्द व तनासल है वानी स्ज़न्दगी के मुतालबात में असल व बुन्याद का हुक्म रखते हैं इिंसान के है वानी स्जस्ट्म के एहम तरीन मुतालबात यही
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हैं और चूँ कू क वो ज़रा ऊिंचे कक़स्ट्म का है वान है सलहाज़ा वो ससफ़त चग़ज़ा ही नहीिं मािंगता बस्ल्क ऊिंची कक़स्ट्म की ननत ् नई चग़ज़ाएूँ तलाश करता है । यही हाल दीगर ख़्वाहहषात ् का है कक उन में भी इिंसान का मुताल्बा
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महज़ स्जस्ट्मानी तस्ट्कीन नहीिं रह जाता, हज़ारों नज़ाकतें और बारीककयािं ननकल आती हैं, अब अगर इिंसान का मुत्मह नज़ररया बन जाए कक ककस तरह इन ख़्वाहहशात की तस्ट्कीन करता रहे तो ये ख़्वाहहषात ् नफ़्स इिंसानी पर सवार हो जाती हैं। इस के बर ख़ख़लाफ़ अगर इिंसान इरादे की बागें मज़्बत ू ी से
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थामे रहे तो इन ख़्वाहहषात ् को अपने पीछे और मज़ी के मुताबबक़ चला सकता है । रोज़े के मक़ासद में से
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एक एहम मक़्सद इिंसान को उस के है वानी स्जस्ट्म पर इक़्तदार बख़्शना है । मज़्कूरह बाला तीन
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ख़्वाहहषात ् जो इिंसान की तमाम है वानी ख़्वाहहषात ् में सब से ज़्यादा एहम हैं रोज़ा इन तीनों को चगरफ़्त में
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लेता है और उन के मुिंह में मज़्बूत लगाम दे कर रस्ट्सी हमारे हाथ में दे दे ता है । तीस हदन की मुसल्सल
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मश्क़ का मक़्सद ये है कक बजाए इस के कक हमारा नफ़्स हम पर ग़ल्बा हाससल कर ले हम अपने ख़ाहदम
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पर पूरा इक़्तदार हाससल कर लें, स्जस ख़्वाहहश को चाहें रोक दें और अपनी स्जस क़ुव्वत से स्जस तरह
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चाहें काम ले सकें इस सलए कक वो शख़्स स्जसे अपनी ख़्वाहहषात ् का मक़ ु ाब्ला करने की कभी आदत ना रही हो और जो नफ़्स के हर मुतालबे पर बे चूिं व चरा सर झुका दे ने का ख़ोगर रहा हो और स्जस के सलए
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है वानी जब्लत का दाइया एक फ़मातन वास्जब अल ्इज़ ्आन का हुक्म रखता हो, दन्ु या में कोई बड़ा काम
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नहीिं कर सकता।
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जन ू की तड़पाती गमी में सक ु ू न पाने के चन्द उसूल (हो सके तो अफ़्तारी में मुख़्तसलफ़ फलों की िीम चाट जो कक घर पर बनाई गयी हो का एह्तमाम ज़रूर
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करें । लह्मयात यानन गोश्त और अिंिे वग़ैरा का इस्ट्तेमाल इस मौसम में कम से कम करें । खाने पीने की चीज़ों को मख़खयों से बचाएिं, चग़लाज़त को फ़ौरन धो िासलये और बाज़ार से खाने पीने की अश्या ना खाना
(समस्ट्बाह रमीज़, लाहौर)
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जैसी एहत्याती तदाबीर भी ज़रूर अख़्त्यार करनी चाहहयें।)
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जून! तेज़ धप ू और तप्ती हवाओिं का महीना होता है । घर के अिंदर और साए वाली जगा पर स्ज़न्दगी तो अच्छ लगती है लेककन बाहर मुिंह ननकालें तो, क़यामत की गमी, और दोज़ख़ के हालात, जैसे अल्फ़ाज़
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मुिंह से ननकलते हैं। इस के बावजूद घर से बाहर ननकलना और काम काज पर जाना या ज़रूरी काम करना
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मज्बरू ी भी होता है । अब तो रमज़ान अल्मब ु ारक भी जन ू में आया है इस सलए इस शदीद मौसम में रहन
सहन के बुन्यादी उसूल हर एक को मालूम होने चाहहयें। हमारे स्जस्ट्म का अिंदरूनी ननज़ाम क़ुदरत ने ऐसा
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बनाया है कक ये एक मख़्सस ू दजात हरारत पर काम करता है । ये मस्ट् ु तक़ल दजात हरारत इब्तदाए हयात की
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नुमाइिंदगी करने वाले पौदों और जान्वरों में इस आला दजे का नहीिं पाया जाता स्जस क़दर ये इततक़ा याफ़्ता जान्वरों और इिंसानों में समलता है ।
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गमी के मौसम में सेहतमिंद रहने के बुन्यादी उसूल
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तेज़ धप ू से बचें : गसमतयों के मौसम में बग़ैर ककसी एहत्याती तदाबीर के बाहर ननकलना इिंतहाई ख़तरनाक
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हो सकता है ख़ास कर जब आप रोज़े की हालत में हों। तेज़ धप ू में हवा भी काफ़ी गरम हो कर लू की शकल
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अख़्त्यार कर लेती है । इस के इलावा धप ू का अपना दजात हरारत भी काफ़ी ज़्यादा होता है और उस की ज़द् में आने वाली तमाम अश्या हत्ता कक ज़मीन भी तप जाती है । ऐसे में निंगे सर और खल ु ा बदन ले कर बाहर ननकलने से स्जस्ट्म की अिंदरूनी गमी बाहर ननकल नहीिं पाती उल्टा बाहर की गमी स्जस्ट्म के अिंदर
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दाख़ख़ल होना शुरू हो जाती है । हदमाग़ को गमी लगने से उस में मौजूद मख़्सूस ननज़ाम जो आम तौर पर स्जस्ट्म का दजात हरारत बढ़ने नहीिं दे ता नाकारह हो जाता है यूूँ स्जस्ट्म का दजात हरारत माहोल के मुताबबक़
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बढ़ना शुरू हो जाता है । इस सलए शदीद गमी में सर पर टोपी या कपड़ा ले कर बाहर ननकलना, हत्ता उल ्इम्कान धप ू से हट कर चलना और अगर रमज़ान ना हो तो पानी पीते रहना वग़ैरा जैसी एहत्याती
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तदाबीर अख़्त्यार करना। एयर किंडिशन्ि इस्ट्तेमाल करने वालों को शदीद गमी से एक दम ठिं िक में और तेज़ एयर किंडिशन्ि जगा से एक दम गमी में जाने से परहे ज़ करना चाहहए। पानी और मश्रब ू ात ज़्यादा इस्ट्तेमाल करें : गमी में हमारे स्जस्ट्म का दजात हरारत क़ाबू में रखने के सलए
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हमारी स्जल्द मुस्ट्तक़ल तौर पर गीली रहती है । ये पसीने की वजह से होता है स्जस के साथ स्जस्ट्म की
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गमी भी ख़ाजत होती रहती है । यूूँ हमारे स्जस्ट्म का दजात हरारत तो एक जगा क़ाइम रहता है लेककन स्जस्ट्म
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में पानी और नस्म्कयात की कमी वाकक़अ होती रहती है । इस कमी को पूरा करने के सलए हमें प्यास लगती है और हम कभी कम और कभी ज़्यादा पानी पी लेते हैं लेककन नस्म्कयात को अमूमन भूल जाते हैं। इस
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मौसम में अगर रमज़ान ना हो तो हदन के औक़ात में हमें ज़्यादा से ज़्यादा पानी पीना चाहहए और अगर
रमज़ान हो तो अफ़्तारी के बाद मस्ट् ु तक़ल थोड़े थोड़े वक़्फ़े के बाद थोड़ा थोड़ा पानी पीते रहें जब तक आप
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सोने के सलए बबस्ट्तर पर नहीिं चले जाते। इस दौरान ऐसे मश्रब ू ात इस्ट्तेमाल करें स्जन में नमक और कुछ
चीनी (मसलन ् लस्ट्सी, ससकिंजबीिं, शबतत वग़ैरा) शासमल हों वो भी ज़रूर इस्ट्तेमाल करने चाहहयें। नमक
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इस्ट्तेमाल करने से ज़ायअ शुदह नमक स्जस्ट्म में वापस आता रहता है और कम्ज़ोरी का एह्सास नहीिं
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होता स्जस की सशकायत इस बात का एह्तमाम ना करने वालों में ज़्यादा दे खने में आती है । चीनी इस
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सलए ज़रूरी है कक इस की मौजूदगी में नस्म्कयात को स्जस्ट्म में अच्छ तरह जज़्ब होने का मौक़ा समल
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जाता है लेककन कफ़शार ख़न ू और ज़्याबतीस के मरीज़ों को इस ससस्ल्सले में पहले अपने मुआसलज ् से मश्वरा कर लेना चाहहए ता कक उन की तक्लीफ़ के दजात के हहसाब से चीनी और नस्म्कयात के इस्ट्तेमाल का फ़ैस्ट्ला ककया जाए।
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फल और सस्ब्ज़याूँ ज़्यादा खाएिं: फल और सस्ब्ज़याूँ वेसे तो हर मौसम में ही ज़्यादा से ज़्यादा इस्ट्तेमाल करनी चाहहयें लेककन गसमतयों में तो इस अम्र का एह्तमाम बहुत ज़रूरी है । हमारा स्जस्ट्म अस्ट्सी फ़ीसद से
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ज़्यादा पानी पर मुश्तसमल है और क़ुदरती तौर पर पानी जाने वाली चग़ज़ाओिं में ये दोनों चीज़ें अमूमन उतना ही पानी अपने अिंदर रखती हैं। इस तरह पानी बहुत ज़्यादा ना पीने की सूरत में भी पानी की
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तक़रीबन मत्लब ू ा समक़्दार हमारे स्जस्ट्म के अिंदर चली जाती है । इस मौसम में अपने अिंदर पानी की ख़ासी समक़्दार रखने वाली सस्ब्ज़याूँ मसलन ् कद्दू, हटिंि,े खीरा, ककड़ी, हल्वा कद्दू और फलों में तबज़ ूत , ख़रबूज़ह, गमात, आलू बख़ ु ारा, आड़ू और अिंगरू वग़ैरा मौजद ू होते हैं उन का इस्ट्तेमाल ज़्यादा ज़्यादा करना चाहहए।
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अफ़्तारी के वक़्त इन चीज़ों का ख़स ु ूसी तौर पर एह्तमाम करें । हो सके तो अफ़्तारी में मुख़्तसलफ़ फलों की
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िीम चाट जो कक घर पर बनाई गयी हो का एह्त्माम ज़रूर करें । लह्मयात यानन गोश्त और अिंिे वग़ैरा का
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इस्ट्तेमाल इस मौसम में कम से कम करें । खाने पीने की चीज़ों को मख़खयों से बचाएिं, चग़लाज़त को फ़ौरन
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धो िासलये और बाज़ार से खाने पीने की अश्या ना खाना जैसी एहत्याती तदाबीर भी ज़रूर अख़्त्यार करनी
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चाहहयें। एक आम ख़याल ये है कक यक़ातन गमी की बीमारी है क्योंकक इस में स्जगर की गमी हो जाती है ये
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दोनों मफ़रूज़े ग़लत हैं। यक़ातन आम तौर पर जरासीम (वायरस) से होता है और इस में स्जगर में गमी
भी उतनी ही दे खने में आती है स्जतनी कक गसमतयों में ।
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नहीिं बस्ल्क वायरस की वजह से सोस्ज़श (इन्फ़ेक्शम) हो जाती है । यही वजह है कक ये बीमारी सहदत यों में
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रमज़ान अल्मुबारक में हाथ पाऊूँ में जलन का इलाज
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! रमज़ान अल्मुबारक की मुबारक साअतें आ रही हैं।
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चूँ कू क ये मौसम में शदीद गमी में आ रहा है इस सलए सारा हदन भूक प्यास की वजह से जहाूँ इिंसान ननढाल
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हो जाता है वहीीँ हाथ और पाऊूँ में शदीद जलन की सशकायात भी आम हो जाती हैं। हाथ पाऊूँ की जलन से ननजात का एक टोटका मेरे पास आज़मूदह है जो मैं क़ाररईन की नज़र कर रहा हूूँ। हुवल्शाफ़ी: आम्ला ख़श्ु क बग़ैर बीज १२५ ग्राम, अज्वाइन ् दे सी ५० ग्राम, नोशादर ५० ग्राम, कलौंजी पचास ग्राम, तख़् ु म Page 23 of 51 www.ubqari.org
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कास्ट्नी ५० ग्राम, ख़श्ु क अदरक ५० ग्राम। तमाम अज्ज़ा अच्छ तरह साफ़ कर के ननहायत बारीक पीस लें और बाहम समक्स कर के ककसी बोतल में महफ़ूज़ कर लें। बोतल का ढक्कन सख़्ती से बन्द हो ता कक दवा
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नमी से महफ़ूज़ रहे । अफ़्तारी के एक घिंटे बाद आधा चम्मच चाय वाला थोड़े से पानी के साथ इस्ट्तेमाल करें । ये टोटका रमज़ान अल्मुबारक में ख़न ू की कमी, हाथ पाऊूँ की जलन, स्जगर की कम्ज़ोरी दरू करने
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में अपनी समसाल आप है । नोट: हाम्ला और दध ू पपलाने वाली ख़वातीन नस्ट् ु ख़ा अज्वाइन ् के बग़ैर इस्ट्तेमाल करें । नुस्ट्ख़ा बे ओलादी: हुवल्शाफ़ी: तबाशीर, लोध पठानी, छुहारा, छोटी इलाइची, अिंजबार। सब दवाओिं को बारीक पीस लें और दस हहस्ट्से बना लें यानन दस पडु ड़यािं बना लें। रोज़ाना थोड़ी सी अिंजबार
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रात को पानी में सभगो दें और सुबह ननहार मुिंह पुडड़या खा लें। नज़्ला ज़ुकाम का नुस्ट्ख़ा: दे सी मुग़ी का
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क़ीमा एक पाव, दे सी घी एक पाव, चीनी एक पाव, दे सी चनों का आटा िाल कर अच्छ तरह भूनें और
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चीनी िाल कर ख़ब ू भूनें। हल्वा की तरह बन जाएगी। सुबह व शाम एक एक चम्मच नीम गरम दध ू के
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साथ इस्ट्तेमाल करें । नोट: ये नुस्ट्ख़ा ससफ़त सहदत यों में इस्ट्तेमाल करें । (रस्ज़या सुल्ताना, कोट राधा ककशन)
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माहनामा अबक़री जून 2016 शुमारा नम्बर 120________________pg 9
रमज़ान के स्ट्याम व क़्याम की फ़ज़ीलत
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(आप ﷺका इशातद चगरामी है कक "जो शख़्स ईमान और हुसूल सवाब की ननय्यत से रमज़ान के रोज़े रखेगा अल्लाह तआला उस के तमाम साबबक़ा गुनाह मुआफ़ फ़मात दे गा और जो ईमान और हुसूल सवाब
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(बन्दा ख़द ु ा, वाह कैंट)
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दे गा।)
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की ननय्यत से रमज़ान में क़्याम करे गा अल्लाह तआला उस के भी तमाम साबबक़ा गुनाह मुआफ़ फ़मात
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मेरी इस तहरीर का मक़्सद रमज़ान के स्ट्याम व क़्याम और इस महीने में एअमाल सासलहा में सब्क़त की फ़ज़ीलत से है इस के साथ साथ कुछ ज़रूरी एह्काम व मसाइल भी बयान ककये जाएिंगे स्जन से बअज़ इशातद फ़मातते हैं "तम् ु हारे पास रमज़ान का महीना आया जो बरकत
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लोग ना वाकक़फ़ होते हैं। नबी ﷺ
का महीना है । इस महीने में अल्लाह तआला तुम्हें अपनी रे हमत से ढािंप लेता है । वो अपनी रे हमत नास्ज़ल
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फ़मातता है गुनाहों को समटा दे ता है और दआ ु को शफ़त क़ुबूसलयत से नवाज़्ता है । अल्लाह तआला दे खना चाहता है कक तुम में नेकी का ककस क़दर जज़्बा और शौक़ है वो तुम्हारी वजह से फ़ररश्तों के सामने फ़ख़्र करता है । सलहाज़ा तुम भी अपनी तरफ़ से अल्लाह तआला को दे खा दो कक तुम नेकी के अलम्बदातर हो
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और याद रखो वो शख़्स इिंतहाई बद्द बख़्त है जो इस माह में भी अल्लाह की रहमत से महरूम रहा।"
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आप ﷺका ये भी इशातद चगरामी है कक "जो शख़्स ईमान और हुसूल सवाब की ननय्यत से रमज़ान के
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रोज़े रखेगा तो अल्लाह तआला उस के साबबक़ा गन ु ाह मआ ु फ़ फ़मात दे गा और जो ईमान और हुसल ू सवाब
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की ननय्यत से रमज़ान में क़्याम करे गा तो अल्लाह तआला उस के भी तमाम साबबक़ा गुनाह मुआफ़ फ़मात
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दे गा और जो लैलतुल्क़दर का क़्याम ईमान और हुसूल सवाब की ननय्यत से करे गा तो अल्लाह तआला
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उस के भी तमाम गुनाह मुआफ़ फ़मात दे गा।" हदीस से ये भी साबबत है कक रसूल अिम ﷺसहाबा कराम
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رضوان هللا عليهم أجمعينको रमज़ान की आमद की ख़श्ु ख़बरी सुनाया करते थे और फ़मातया करते थे कक एक
ऐसा मब ु ारक महीना है स्जस में रे हमत और जन्नत के दरवाज़े खोल हदए जाते हैं और जहन्नम ु के दरवाज़े
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बन्द कर हदए जाते हैं और उन में से ककसी भी दरवाज़े को खल ु ा नहीिं रहने हदया जाता। शैतानों को पाबन्द
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ज़िंजीर व सलासल कर हदया जाता है और एक मनाहद ऐलान करता है कक ऐ नेकी के तासलब! आगे बढ़
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और ऐ बुराई के तासलब अब तू रुक जा। अल्लाह तआला जहन्नुम से लोगों को ररहाई अता फ़मातता है और ये ससस्ल्सला हर रात जारी रहता है । नबी अिम ﷺमज़ीद फ़मातते हैं कक अल्लाह पाक इशातद फ़मातता है
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"इब्न आदम का हर अमल उस के सलए है ससवाए रोज़े के और रोज़ा मेरे सलए ही है और मैं ही इस की जज़ा दिं ग ू ा इस ने अपने स्जन्सी जज़्बा और खाने पीने को मेरी वजह से तकत ककया। रोज़ादार के सलए दो ख़सु शयाूँ
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हैं एक ख़श ु ी अफ़्तारी के वक़्त और दस ू री अपने रब के दीदार के वक़्त। रोज़ेदार के मुिंह की ख़श्ु बू अल्लाह तआला को कस्ट्तूरी की महक से भी ज़्यादा पाकीज़ह है। रोज़े की फ़ज़ीलत के बारे में बहुत सी अहादीस हैं
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सलहाज़ा हर मोसमन को चाहहए कक वो इस फ़ुसतत को ग़नीमत जाने कक अल्लाह तआला ने उसे स्ज़न्दगी में एक बार कफर रमज़ान से मुस्ट्तफ़ीद होने का मौक़ा हदया है । सलहाज़ा उसे चाहहए कक नेककयों में सर गरम
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हो जाए, बरु ाइयों से इज्तनाब करे और तमाम दीनी फ़राइज़ ख़स ु स ू िं नमाज़ पिंजगाना के अदा करने में ख़ब ू मेहनत और कोसशश से काम ले। नमाज़ तो इस्ट्लाम की इमारत का सुतून और सब से बड़ा फ़ज़त है सलहाज़ा हर मस ु ल्मान मदत और औरत पर वास्जब है कक वो नमाज़ की हहफ़ाज़त करे और नमाज़ को अपने वक़्त
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पर सुकून व इत्मीनान से अदा करे क्योंकक नेककयों में सब से ज़्यादा पसिंद ये नेकी है कक नमाज़ को अपने
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वक़्त पर अदा ककया जाए। मदों के सलए एहम बात ये है कक वो मस्स्ट्जद में बा जमाअत नमाज़ अदा करें
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जैसा कक इशातद बारी तआला है । "और नमाज़ क़ाइम करो और ज़कात हदया करो और झुकने वालों के साथ
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झुका करो।" (अल्बक़रह) कफर फ़मातया: "तहक़ीक़ वो ईमान वाले काम्याब हो गए जो नमाज़ में इज्ज़ व
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न्याज़ करते हैं और जो नमाज़ों की पाबन्दी करते हैं। यही लोग मीरास हाससल करने वाले हैं। बअज़ जो
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बबहहश्त की मीरास हाससल करें गे और उस में हमेशा हमेशा रहें गे। (सूरह अल्मुअसमनून) नबी करीम ﷺ
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ने फ़मातया है कक हमारे और उन के माबेन जो अहद है वो नमाज़ है जो इसे तकत कर दे वो काकफ़र है । जैसा कक इशातद बारी तआला है "और उन को हुक्म तो यही हुआ था कक इख़्लास अमल के साथ अल्लाह
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की इबादत करें और नमाज़ पढ़ें , ज़कात दें और यही सच्चा दीन है ।" (सूरह अल्बस्य्यनह) "और नमाज़ की
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पाबन्दी करो और ज़कात अदा करो और हमेशा के फ़मातन पर चलते रहो ता कक तुम पर रे हमत की जाए" (सूरह अल ्-नूर) अल्लाह की ककताब से और रसूल अिम ﷺकी सुन्नत से ये साबबत है कक जो शख़्स
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अपने माल की ज़कात अदा ना करे उसे क़यामत के हदन अज़ाब हदया जाएगा। मस ु ल्मान पर ये वास्जब है
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कक वो अपने अय्याम व क़्याम को उन अक़्वाल से बचाए स्जन्हें अल्लाह तआला ने उस के सलए हराम क़रार दे रखा है । क्योंकक रोज़ा से असल मक़्सद ू अल्लाह तआला की अताअत व बन्दगी, उस की हुरमात
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की ताज़ीम और नफ़्स के ख़ख़लाफ़ स्जहाद कर के उसे अपनी ख़्वाहहश की राह से हटा कर अपने आक़ा व मौला की अताअत व बन्दगी की राह पर लगाना और उस के हराम करदह अमूर से बचा कर सब्र का आदी इशातद फ़मातते हैं "रोज़ा एक ढाल है सलहाज़ा जब तम ु
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बनाना है । हदीस शरीफ़ में अल्लाह के रसल ू ﷺ
में से ककसी ने रोज़ा रखा हो तो वो बेहूदह गुफ़्तग ु ू ना करे । अगर उसे कोई गाली गलोच दे या लड़ाई झगड़े
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पर उतर आये तो उस से कह दे कक मैं रोज़ादार हूूँ" जो शख़्स झूटी बात या झूट के मुताबबक़ अमल को तकत ना करे तो अल्लाह तआला को इस बात की क़तअन कोई ज़रूरत नहीिं कक वो अपने खाने पीने को तकत कर दे । हर मुसल्मान के सलए ये ज़रूरी है कक वो रोज़े ईमान और हुसूल सवाब की ननय्यत से रखे। ख़स ु ूसिं
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ररयाकारी से बचे। हद्द से ज़्यादा अपनी नज़रों और ज़बान की हहफ़ाज़त करे , बद्द नज़री और बद्द कलामी
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इस्ट्लाम में बहुत बड़ा जुमत है और ये जुमत उस वक़्त बहुत बढ़ जाता है जब मुसल्मान रोज़े से हो।" कलाम
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ससफ़त उतना करें स्जस की ससफ़त ज़रूरत हो वनात ख़ामोश रहें । इसी सलए अक़लमन्दों ने कहा है कक "बोलना
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अगर चािंदी है तो ख़ामोश रहना सोना है ।" इस सलए हम हत्ता उल्वुसअ कोसशश ना ससफ़त रमज़ान में करें
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बस्ल्क पूरे साल हमारी यही कोसशश हो कक हम अपनी ज़बान का कम से कम इस्ट्तेमाल करें । ज़बान का
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ग़लत इस्ट्तेमाल ना ससफ़त गन ु ाह है बस्ल्क कई लोगों की हदल सशकनी का बाइस भी यही ज़बान बनती है ।
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वेसे भी दन्ु या में ७५% ख़राबबयािं ज़बान के ग़लत इस्ट्तेमाल की वजह से होती हैं। ससफ़त लोगों को दीन की
बातों की तग़ीब दे ने के सलए हम ज़्यादा से ज़्यादा बातें कर सकते हैं जो गुनाह नहीिं है वो बातें अल्लाह
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पाक को बहुत पसिंद हैं। इस के इलावा हम दीनी ज़बान का ज़्यादा से ज़्यादा इस्ट्तेमाल अल्लाह पाक का
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स्ज़ि करते हुए भी कर सकते हैं। इस सलए सारा हदन चलते हुए वज़ू बे वज़ू स्ज़ि हर वक़्त करते रहैं। पहला स्ज़ि अस्ट्तग़फ़ार के बारे में है कक हम अल्लाह पाक से हर वक़्त अपने गुनाहों की मुआफ़ी मािंगते
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रहें । यानन हर वक़्त "अस्ट्तस्फ़फ़रुल्लाह रब्बी समन ् कुस्ल्ल ज़िंबबिं-व्व अतूबु इलैहह" ( استغفر هللا ريب نم لك ذنب و
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) اوتب اليهइस कल्मे की बरकत की वजह से अल्लाह पाक हमारे गन ु ाह मआ ु फ़ कर दें गे। दस ू रा स्ज़ि जो हर वक़्त सारा साल हमारी ज़बान पर हो और कभी इस स्ज़ि से ग़फ़लत ना करें वो ये है कक सारा वक़्त
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कोई सा भी दरूद शरीफ़ पढ़ते रहें क्योंकक अपने नबी ﷺपर ज़्यादा से ज़्यादा दरूद शरीफ़ पढ़ने से अल्लाह के नबी ﷺराज़ी होते हैं और अल्लाह पाक भी ख़श ु होता है और यही अमल इन ् शा अल्लाह
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हमें जन्नत में ले जाने का बाइस बनेगा।
माहनामा अबक़री जून 2016 शुमारा नम्बर 120________________pg 10 क़ाररईन के नतब्बी और रूहानी सवाल, ससफ़त क़ाररईन के जवाब
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हन्यात का मसला: क़ाररईन! दो साल से मुझे हन्यात के मुक़ाम पर तक्लीफ़ है , मोहतरम स्जस की वजह से
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काफ़ी परे शान हूूँ और ककसी को बता भी नहीिं सकता हूूँ, इस के इलावा िॉक्टरों ने कहा है कक छोटा सा
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ऑपरे शन होगा तक्लीफ़ की वजह से मैं ऑपरे शन करवाना नहीिं चाहता। िॉक्टरों ने सलख कर हदया है कक
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अिंिों का बैलेंस नहीिं है । यक़ीनन क़ाररईन आप मेरी बीमारी को समझ गए होंगे। मेरे सलए कोई अच्छा सा
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नुस्ट्ख़ा तज्वीज़ करें । (ज, हररपुर)
जवाब: मोहतरम भाई! मेरे कज़न को यही मसला आज से तीन साल पहले था। हम ने दफ़्तर माहनामा
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अबक़री ख़त सलख कर अपने मसले का हल पूछा तो हमें जवाब में "जोहर सशफ़ा मदीना और ठिं िी मुराद" का इस्ट्तेमाल बताया गया। हम ने दफ़्तर माहनामा अबक़री से जोहर सशफ़ा मदीना और ठिं िी मुराद मिंगवा
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कर एक साल तक ये उदय ू ात इस्ट्तेमाल करवाईं। अल्हम्दसु लल्लाह! चन्द माह के बाद ही उसे फ़क़त पड़ना
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महसस ू हो गया और अब वो बबल्कुल तिंदरु ु स्ट्त है । (आसशक़ हुसैन, ससयाल्कोट)
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दब्ु ला स्जस्ट्म मझ ु ातया चेहरा और शादी: क़ाररईन! मेरी उम्र २० साल है और मेरे घरवाले मझ ु से शादी का
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कह रहे हैं जो कक इन ् शा अल्लाह एक साल में हो जाएगी। मेरे अिंदर शादी की सलाहहयत तो मौजूद है मगर मैं शादी से घबराता हूूँ, बे ख़्वाबी और क़तरों की सशकायत है । बहुत कम्ज़ोरी है , मेरा स्जस्ट्म दब्ु ला पत्ला है और उम्र के हहसाब से मुिंह भी छोटा है और गाल अिंदर को धिंसे हुए हैं और चेहरा मुझातया हुआ है , Page 28 of 51 www.ubqari.org
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चेहरे पर झाइयािं और आूँखों के नीचे स्ट्याह हल्क़े हैं और रिं गत भी काली है । क़ाररईन! मेहरबानी कर के
कुदरती हुस्ट्न समल जाए। (स,अ, शेख़प ू रू ह)
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मुझे कोई सस्ट्ती उदय ू ात या कोई अमल बताएिं स्जस से मेरी अज़्दवाजी स्ज़न्दगी बेह्तरीन और मुझे
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जवाब: भाई आप ज़ोद हज़म चग़ज़ाएूँ खाएिं। यख़नी, शोबात, दध ू , सागद ू ाना, मक्खन, जव का पानी, कद्दू, हटिंि,े पालक, तूरी वग़ैरा खाएिं फलों में अनार, अिंगूर, सेब, अमरूद, आम और ख़रबूज़ह इस्ट्तेमाल करें । नाश्ते में हरीरा मक़पव हदमाग़ इस्ट्तेमाल करें । हरीरा मक़पव हदमाग़: मग़ज़ बादाम सात अदद, मग़ज़ कद्दू तीन ग्राम, मग़ज़ तुख़्म ख़्यारीन तीन ग्राम, छोटी इलाइची तीन अदद, ख़श्ख़ाश तीन अदद, काली समचत
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सात अदद। तरीक़ा: मिंदजात बाला दवाइयाूँ पीस कर एक पाव दध ू में समला कर हस्ट्बे ज़ायक़ा चीनी शासमल
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कर के इस्ट्तेमाल करें । इन ् शा अल्लाह बहुत जल्द फ़ायदा होगा।
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मोटापा: क़ाररईन! मेरी उम्र अठारह साल है और मेरा मसला ये है कक मेरी हहप्स कूल्हों पर काफ़ी मोटापा
है और मेरे कूल्हे मोटापे की वजह से बाहर की जाननब काफ़ी ज़्यादा बढ़े हुए हैं जब मैं चलता हूूँ तो पीछे से
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काफ़ी बरु ा लगता हूूँ आप मेहरबानी कर के मेरे इस मसले का कोई हल बता दीस्जये। (एम ् य,ू साहे वाल)
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जवाब: रोज़ाना कम अज़ कम दो घिंटे कोई भाग दौड़ वाली गेम शरू ु करें । चग़ज़ा के बाद जवाररश कमोनी एक चाय की चम्मच खाएिं, इन ् शा अल्लाह फ़ायदा होगा। (शहरयार जन्जूआ, कराची)
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इिंतेहाई दजे का परे शान: मोहतरम क़ाररईन! मेरी बच्ची स्जस की उम्र एक माह है , पैदाइशी तौर पर उस के
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हदमाग़ हदमाग़ का पानी/ हदमाग़ का कुछ बाहर को ननकला हुआ है । न्यूरो सजतन ऑपरे शन का मश्वरा दे ते
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बताएिं। (ज़ुस्ल्फ़क़ार, मािंसेहरह)
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हैं लेककन ठ क होने की कोई गारें टी नहीिं। मैं इिंतेहाई दजे का परे शान हूूँ। मुझे कोई नुस्ट्ख़ा या वज़ीफ़ा
जवाब: आप रोज़ाना सुबह इश्राक़ के नस्फ़्फ़ल पढ़ कर बग़ैर बात ककये सात मततबा सूरह रहमान नतलावत कर के पानी पर दम करें । वो दम वाला पानी थोड़े थोड़े वक़्फ़े के बाद उस के सर पर मलें और दो चार क़तरे Page 29 of 51 www.ubqari.org
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उस के मुिंह में भी िाल हदया करें । माूँ भी वही पानी पपए। इन ् शा अल्लाह तआला अल्लाह करीम करम फ़मातएूँगे। (उम्मे अब्दरु त हमान, कोइटा)
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थैलीसीसमया: मोहतरम क़ाररईन! बन्दे की दो बेहटयािं थैलीसीसमया की सशकार हैं एक की उम्र पािंच साल
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और दस ू री की उम्र तीन साल है । उन दोनों को वक़्फ़े वक़्फ़े से ख़न ू हदया जाता है । अज़ राहे करम उन के सलए रूहानी इलाज और अगर मुस्म्कन हो तो नतब्बी इलाज बताइये। (यार मुहम्मद, कोहाट) ٓ م जवाब: यार मुहम्मद साहब! आप और आप के तमाम घरवाले हर वक़्त खल ु ा "हा-मीम ला यून्सरून" ( ٰح
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ا ُ )َلیُ ْن ا َص ْو ان पढ़ें । ये वज़ीफ़ा स्जतना ज़्यादा पढ़ें गे उतना ज़्यादा अल्लाह का करम होगा। इस के इलावा दफ़्तर माहनामा अबक़री से हे पटाइटस ननजात ससरप, ठिं िी मुराद और जोहर सशफ़ा मदीना मिंगवा कर
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सलखी गयी तरकीब के मुताबबक़ इस्ट्तेमाल करवाएिं। (अब्दरु त शीद, लाहौर)
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बराह मेहरबानी लाज़्मी बताइये। मैं बहुत परे शान हूूँ। (तफ़्सीर, कोहाट)
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खटमल से ननजात: क़ाररईन! अगर ककसी क़ारी के पास चार पाई से खटमल ख़त्म करने का नस्ट् ु ख़ा हो तो
जवाब: भाई! आप हदन में एक मततबा चार पाई को धप ू में रख कर अज्वाइन ् की धन ू ी दें । अगर धन ू ी में
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थोड़ा सा नीला थोथा िाल दें तो खटमल के सलए ये धव ु ािं ज़ेहर क़ानतल साबबत होगा। परहे ज़: नीले थोथे वाली धन ू ी ककसी खल ु ी जगा पर दें और उस धए ुिं से ख़द ु भी बचें और दस ू रों को भी बचाएिं। (आसलया
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फ़राज़, रावलपपिंिी)
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चेहरे पर दाने: मोहतरम क़ाररईन! मेरे चेहरे पर छोटे छोटे सुख़त दाने ननकलते हैं जो कक मुझे बबल्कुल भी
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अच्छे नहीिं लगते, इन से तक्लीफ़ भी बहुत ज़्यादा होती है । (अस्ट्मा अश्रफ़)
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जवाब: बहन! इन दानों का हल ये है कक आप के सलए होम्योपेचथक की एक दवा WS23 नम्बर की इस दवा के पिंद्रह क़तरे सुबह, दोपहर, शाम लें दो या तीन शीशी इस्ट्तेमाल करें इन ् शा अल्लाह आप का मसला
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हल हो जाएगा। परहे ज़ ये है कक आप गरम, तली हुई चीज़ें समोसे पकोड़े ऐसी चीज़ें ना लें जो फ़साद ख़न ू है । (फ़ारूक़, रहीम यार ख़ान)
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दामाद के रवय्ये से परे शान: क़ाररईन मैं एक सख़्त आज़्माइश ् में मुब्तला हूूँ, ऐसे मौक़े पर मुझे अबक़री
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के बहन भाई याद आ रहे हैं। क़ाररईन! मेरा दामाद दस ू री शादी कर रहा है स्जस की वजह से मैं, मेरी बेटी और सब घरवाले बहुत दख ु ी हैं। मैं बड़ी समन्नत कर के आप से इल्तजा करती हूूँ कक मेरी बेटी के हक़ में दआ ु करें और हमें पढ़ने के सलए कोई वज़ीफ़ा इनायत फ़मातएूँ। मेरी बेटी की आज़्माइश ् इम्तेहान ख़त्म हो
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जाए। (दख ु ी माूँ)
जवाब: आप, आप की बेटी और आप के तमाम घर वाले सारा हदन बा वज़ू ज़्यादा से ज़्यादा सूरह क़ुरै श
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पढ़ें और अल्लाह के हुज़ूर चगड़चगड़ा कर सुआ मािंगें। इन ् शा अल्लाह अल्लाह करीम करम करे गा और
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आप की परे शानी टल जाएगी। (माररया, मुल्तान)
पररिंदों के मसाइल: मोहतरम क़ाररईन अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरा मसला ये है कक मैं ने घर पर पररिंदों की
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फ़ासमिंग की हुई है स्जन में कॉकटे ल, कफ़शर, िफ़, जावा, कफ़िं च शासमल हैं लेककन वो अिंिे बच्चे नहीिं कर रहे
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स्जस की वजह से मैं बहुत परे शान हूूँ तो मेरी रहनम ु ाई फ़मातएूँ। जैसा कक पररिंदों को मौसम के असरात,
बीमारी और अिंिे बच्चों के सलए कौन सी उदय ू ात वग़ैरा दे नी चाहहयें बराह मेहरबानी गमी और सदी के
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हवाले से बताएिं। (मह ु म्मद ख़ासलद)
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जवाब: ख़ासलद भाई! आप पररिंदों को जो पानी िालते हैं उस में चन्द क़तरे ज़ैतून के तेल के िाल दीस्जयेगा
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इन ् शा अल्लाह सदी हो या गमी उन को कभी कोई बीमारी ना होगी। इस के इलावा गसमतयों में दही का
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पानी (दही फ़रोश से बा आसानी समल जाता है) पररिंदों को पपलाया करें । इन ् शा अल्लाह कभी पररिंदे बीमार ना होंगे। (अश्रफ़ पाशा, लाहौर)
क़ाररईन के सवाल क़ाररईन के जवाब: Page 31 of 51 www.ubqari.org
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"क़ाररईन के सवाल व जवाब" का ससस्ल्सला बहुत पसिंद ककया गया ख़त ु ूत का ढे र लग गया, मश्वरे से तय हुआ पपछला ररकॉित पहले क़ाररईन तक पोहिं चाया जाए जब तक ये ख़त्म नहीिं होता उस वक़्त तक
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साबबक़ा तरतीब कफ़ल्हाल कुछ अरसा के सलए मअ ु ख़्ख़र कर दी जाए।
माहनामा अबक़री जन ू 2016 शम ु ारा नम्बर 120________________pg 13
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नतब्बी मश्वरे
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स्जस्ट्मानी बीमाररयों का शाफ़ी इलाज:
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(तवज्जह तलब अमूर के सलए पता सलखा हुआ जवाबी सलफ़ाफ़ा हमराह अरसाल करें और उस पर
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मुकम्मल पता वाज़ेह हो। जवाबी सलफ़ाफ़ा ना िालने की सूरत में जवाब अरसाल नहीिं ककया जाएगा।
सलखते हुए इज़ाफ़ी गोंद या टे प ना लगाएिं स्ट्टे पलरज़ पपन इस्ट्तेमाल ना करें । राज़दारी का ख़्याल रखा
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जाएगा। सफ़हे के एक तरफ़ सलखें। नाम और शहर का नाम या मक ु म्मल पता और अपना मोबाइल फ़ॉन
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निंबर ख़त के आख़ख़र में ज़रूर तहरीर करें ।)
तेज़ बुख़ार से बहरापन: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरी उम्र २२ साल है , छे साल
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की उम्र में बरसात के मौसम में तेज़ बख़ ु ार की वजह से मझ ु े बहरापन का मज़त लाहक़ हो गया, ज़रा भी
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आवाज़ नहीिं आती, बहुत से इलाज टोटके ककये हैं कोई फ़क़त नहीिं पड़ता। िॉक्टसत कहते हैं कक ऑपरे शन
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होगा, मेरे पास इतने वसाइल नहीिं हैं आप कोई आसान सा तीर बहदफ़ नुस्ट्ख़ा इनायत फ़मातएूँ। (फ़रहाद अली, कोट अब्दल ु मासलक)
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मश्वरा: दरअसल आप के मज़त की असल वजह हदमाग़ी कम्ज़ोरी और टें शन की ज़्यादती है । इस की वजह से हदमाग़ कम्ज़ोर हो गया है और कम्ज़ोर हदमाग़ की वजह से ये तमाम मसला है। सलहाज़ा आप ख़मीरह
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अब्रेशम हकीम अशतद वाला लें और एक चम्मच चाय वाला हदन में तीन बार इस्ट्तेमाल करें । याद रहे ख़मीरह ककसी अच्छे द्यान्तदार तबीब का बना हुआ हो और उस के साथ साथ अत्रीफ़ल इस्ट्तहू ख़द ू ोस ्
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एक चम्मच चाय वाला और कलौंजी पाउिर एक चौथाई चम्मच इस्ट्तेमाल करें । चग़ज़ा में खटी चीज़ें, अचार वग़ैरा से परहे ज़ करें । कान में िालने के सलए दफ़्तर माहनामा अबक़री से "कान सशफ़ा" मिंगवा कर चन्द इस्ट्तेमाल करें ।
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गले की बीमारी: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मुझे अरसा दो साल से गले की
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बीमारी हाइपो थाइरोइि लाहक़ है । िॉक्टरों के मश्वरे पर थायरोस्क्सन की गोसलयािं मुक़रत रह समक़्दार में
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मुतवातर खा रहा हूूँ। अगर ना खाऊिं तो तबीअत ख़राब रहती है मगर खाऊिं तो मुज़्र असरात की वजह से
बेचन ै ी, सख़्त घबराहट, हदल की धड़कन तेज़ वग़ैरा हो जाती है । िॉक्टरों के मुताबबक़ दवा सारी उम्र खानी
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होगी वरना एक हफ़्ता के अिंदर हड्डियािं टूटना (तोड़ फोड़) और ना क़ाबबल बदातश्त ददत भी होगा। डिप्रेशन और आज़ात क़ल्ब की उदय ू ात मरीज़ के तौर पर भी खाता हूूँ (पािंच साल से) एिंस्जयोग्राफ़ी के बाद बाईपास
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सजतरी की तज्वीज़ िॉक्टरों ने दी है तीन रगें सत्तर फ़ीसद बन्द हैं। एलोपैथी इलाज से तिंग आ चक ु ा हूूँ मेरे
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सलए कोई हबतल इलाज तज्वीज़ करें । (जहािंगीर आलम, पपशावर)
मश्वरा: आप दफ़्तर माहनामा अबक़री की दवा "सत्तर सशफ़ाएिं" चन्द िबबयािं मस्ट् ु तक़ल समज़ाजी से
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इस्ट्तेमाल करें । तली हुई, खट्टी अश्या से मुकम्मल परहे ज़ करें ।
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क़तरों का मसला: अज़त ये है कक मुझे अरसा दराज़ से पेशाब के बाद क़तरों का मसला है स्जस की वजह से
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मेरी नमाज़ में भी पाबन्दी नहीिं हो रही। अगर नमाज़ अदा करूूँ तो तरह तरह के ख़यालात आते हैं स्जस की वजह से बहुत परे शान हूूँ। (एन ए, बहावल्नगर)
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मश्वरा: चार मग़ज़ एक चाय की चम्मच सुबह पानी से फािंकें। शाम को शबतत बनफ़्शा दो औिंस पानी में हल कर के पीएिं समचत मसाल्हा से परहे ज़ करें । सागूदाना, दल्या, सूजी का हल्वा, गाजर का हल्वा, कद्दू,
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लोकी, हटन्िे, सशल्जम, गाजर बग़ैर समचत मसाल्हा के पका कर रोटी या ख़खचड़ी से खाएिं। इन ् शा अल्लाह
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अफ़ाक़ा होगा। तीन हफ़्ते के बाद दब ु ारह हाल सलखें।
पट्ठों की कम्ज़ोरी: गुज़ाररश है कक मैं अबक़री ररसाला हर माह पढ़ता हूूँ, मेरी उम्र ६५ साल है और मैं एक प्राइवेट फ़मत में ड्राईवर हूूँ। जनाब मेरा मसला ये है कक मझ ु े पट्ठों की बहुत ज़्यादा कम्ज़ोरी है , हराम मग़ज़ से ले कर कमर तक ददत रहता है । मैदा भी ददत करता है , कमर में बहुत ज़्यादा ददत रहता है । कन्धों के पट्ठे
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भी ज़्यादा ददत करते हैं। मेरे सलए कोई इलाज बताएिं। (जलील अह्मद, अटक)
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मश्वरा: आप को चाहहए कक मग़ज़ पुिंबा दाना (बनवला) से फ़ायदा उठाएिं, ननहायत अच्छ दवा है । ९ ग्राम
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बनवला के बीज ज़रा कूट कर रात खोलते गरम पानी में सभगोने के बाद हहला कर रख दें । सुबह ननथार कर ऊपर का पानी ले लें। इस में एक चम्मच शहद समला कर नोश जान कर लीस्जये, इस से ददत कमर
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रफ़अ हो जाएगा। अगर चाहें और फ़ायदा ना हो रहा हो तो शाम को माअल ्-ज़हब फ़ौलाद स्ट्याल एक चाय
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के चम्मच के बराबर चगलास नीम गरम पानी में समला कर हफ़्ता दो हफ़्ता पी लें। आराम आ जाएगा। घुटने की तक्लीफ़: मुझे िेढ़ साल पहले बाएिं घुटने में मामूली ददत हुआ, जो आहहस्ट्ता आहहस्ट्ता बढ़ता चला
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गया। इस के सलए हकीमों और िॉक्टरों से कई बार इलाज कराया लेककन कोई आराम नहीिं आया। अब
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बैठने और खड़े होते हुए या लेटे हुए ददत नहीिं होता मगर जब चलूँ ू तो घुटने के अिंदर से आवाज़ आती है और ददत की वजह से चला नहीिं जाता। िॉक्टसत के मुताबबक़ घुटने के अिंदर से लेस दार रतूबत ख़श्ु क हो गयी है ।
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स्जस से हड्डियािं रगड़ खाती हैं। (उमर हयात, गुजरात)
मश्वरा: शहद और नतलों के ताज़ह ननकले हुए तेल में ज़रा सा चन ू ा समला कर चोट की जगा लेप कर के ५ से ७ समनट धप ू में लगाएिं। रोज़ाना इस तरह करें , इन ् शा अल्लाह पािंच सात रोज़ में तक्लीफ़ जाती रहे गी।
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन
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दवा के तौर पर दफ़्तर माहनामा अबक़री से "कमर जोड़ों का ददत कोसत" चन्द माह मुस्ट्तक़ल समज़ाजी से इस्ट्तेमाल करें ।
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क़द्द छोटा है : मैं एम ् एस सी का तासलब इल्म हूूँ और मेरा मसला ये है कक मेरा क़द्द छोटा है मुझे क़द्द बड़ा
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करने के सलए कोई नस्ट् ु ख़ा बताएिं। अल्लाह आप को सेहत के साथ दीन व दन्ु या और आख़ख़रत की काम्याबबयािं अता फ़मातए। (फ़ैसल शहज़ाद, एबट आबाद)
मश्वरा: राउट मछली शुमाली इलाक़ाजात में आम समलती है अगर वो ना भी समले तो आम मछली के
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कािंटे ले कर उस को किंघी बट ू ी (पिंसाररयों के हाूँ समल जाती है ) हम्वज़न ले कर उस में रख कर समला लें
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और सुबह शाम २ ता ४ रत्ती इस्ट्तेमाल करें । अल्लाह के फ़ज़्ल से एक महीना में एक इिंच क़द्द बढ़ जाएगा।
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लुक्नत से परे शान: मैं बहुत अरसे से लुक्नत का इलाज ढूिंि रहा हूूँ, मेरी उम्र ३२ साल है और मैं एक
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कम्पनी में मुलास्ज़म हूूँ। मैं ने ऑपरे शन भी करवाया मगर फ़क़त नहीिं पड़ा। मुझे इस हवाले से कोई
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आज़मद ू ह नस्ट् ु ख़ा बताएिं। (मह ु ससन अली, साहदक़ आबाद)
मश्वरा: आप के सलए ये नस्ट् ु ख़ा ननहायत मफ़ ु ीद है , ख़मीरह अब्रेशम हकीम अशतद वाला १/२ चम्मच हदन
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में ३ बार खाने से क़ब्ल जवाररश शाही एक चम्मच सुबह व शाम पानी के हमराह खाने से क़ब्ल ये नुस्ट्ख़ा
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४० हदन इस्ट्तेमाल कर के कफर सलखें।
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सास ने बताया शग ु र किंरोल करने का लाजवाब नस्ट् ु ख़ा मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मेरे पास शग ु र किंरोल करने का एक लाजवाब नस्ट् ु ख़ा
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है जो कक मेरी सास ने बताया था, उन्हों ने अपनी बेटी को इस्ट्तेमाल करवाया था स्जस के दो बच्चे थे और
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वो लोग और औलाद के ख़्वाहहष्मन्द थे लेककन शुगर की वजह से बार बार मेरी नन्द का हमल ज़ायअ हो जाता था। कफर उन्हों ने ये दवाई इस्ट्तेमाल की और पूरे नो महीने शुगर किंरोल रहा और अब भी वो
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इस्ट्तेमाल करती है अल्लाह तआला ने उन्हें सेहतमन्द बेटी से नवाज़ा। हुवल ्-शाफ़ी: एक पाव चने भुने हुए नछल्कों समेत, एक पाव बादाम की गररयािं, एक पाव कड़वे जव या अफ़्ग़ानी जव, ये आम पिंसारी की
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दक ु ान से समल जाते हैं। इन सब को पीस कर हम्वज़न समक्स करें और सुबह और शाम एक चाय का
(फ़ानतमा, रावलपपिंिी)
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चम्मच पानी के साथ खाएिं। शुगर और उस से होने वाली कम्ज़ोरी ख़त्म हो जाएगी। इन ् शा अल्लाह।
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माहनामा अबक़री जन ू 2016 शम ु ारा नम्बर 120________________pg 14
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कॉल गलत के फिंदे से कैसे ननकली? (कक़स्ट्त नम्बर ९)
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मेरी स्ज़न्दगी कैसे बदली?
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(क़ाररईन! हज़रत जी! के दसत, मोबाइल (मेमोरी काित), नेट वग़ैरा पर सुनने से लाखों की स्ज़िंदचगयाूँ बदल रही हैं, अनोखी बात ये है चूँकू क दसत के साथ इस्ट्म आज़म पढ़ा जाता है जहाूँ दसत चलता है वहािं घरे लू
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उल्झनें है रत अिंगेज़ तौर पर ख़त्म हो जाती हैं, आप भी दसत सुनें ख़्वाह थोड़ा सुनें, रोज़ सुनें, आप के घर,
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गाड़ी में हर वक़्त दसत हो)
क़ाररईन! २०१३ जन्वरी से मुझ बद्द ककदातर,् गुनहगार का तअल्लुक़ तस्ट्बीह ख़ाना से जुड़ा था। अल्लाह
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पाक इसे मेरी स्ज़न्दगी तक जोड़े रखे। इस ननस्ट्बत से पहले मेरी स्ज़न्दगी का मिंज़र ऐसा भयानक था
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स्जसे मैं अब याद करते भी िती हूूँ। मैं एक ऐसे ख़ान्दान से तअल्लुक़ रखती हूूँ जहाूँ पैसे की रे ल पेल थी
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लेककन वो हलाल नहीिं होता था। मेरे दादा जान मरहूम और वासलद साहब पटवारी थे। जब मझ ु े एम ् ए करने के सलए रावलपपिंिी भेजा गया तो पहली दफ़ा मैं घर से दरू हुई थी स्जस तरह के माहोल में थी वो
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बहुत ग़लत था। ये २००७ की बात है मेरे साथ हॉस्ट्टल में चन्द लड़ककयािं थीिं उन में से कुछ "कॉल गलत" थीिं। मेरी बद्द कक़स्ट्मती के उन में से एक लड़की मेरी रूम मेट भी थी। मुझे पहले कभी इल्म नहीिं था कक ये कॉल
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गलत क्या होती हैं, वो मुझे अपने दोस्ट्तों से समलवाने धोके से ले गयी। जब मुझे भी इसी लाइन में ले जाने की कोसशश की गयी तो उस की अस्स्ट्लयत मेरे सामने खल ु ी। उस लड़की का बाप उस दलाल के पास उस
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के पैसे लेने आता था। मेरी आूँखों पर ना मालम ू क्या पट्टी बिंधी या कोई बड़ा समझाने वाला ना था ना मालूम मुझे क्या हुआ कक मैं इस लाइन में पड़ गयी और एक पुसलस वाले ने उसी लड़की के कहने पर मेरे साथ ज़बरदस्ट्ती की। लेककन मैं ने इस रास्ट्ते को क़ुबल ू ना ककया। जब मैं ने इस धोके के बाद उस के साथ
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तअल्लुक़ ख़त्म ककया तो रात ऐसा हुआ कक उस हॉस्ट्टल में जो प्राइवेट था वहािं पर एक मैं थी, एक काम
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करने वाली थी और एक वो मेरी रूम मेट कॉल गलत जो कक रात को बहुत दे र से आई थी। मुझे उस से
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अजब ख़ौफ़ आ रहा था मैं ने मासी के कमरे जा कर रात गुज़ारी, उस रात उस हॉस्ट्टल में वो कुछ हुआ कक
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सलखना तो दरू की बात मैं सोच भी नहीिं सकती। जब सुबह हुई तो मैं ने सब कुछ छोड़ कर घर जाने का
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फ़ैस्ट्ला कर सलया और उसी हदन उसी वक़्त सामान पैक ककया, बस ली और घर आ गयी। पढ़ाई करती या
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ख़द ु को बचाती? आज तक इस कहानी का ककसी को इल्म नहीिं। घरवाले ररज़ल्ट की तकरार करते हैं और
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मैं उन्हें क्या बताऊूँ कक जहाूँ भेजा था वहािं इज़्ज़त बबकती थी। मेरी अपनी ककसी लड़के से ऐसी दोस्ट्ती या
तअल्लुक़ नहीिं था जो हदद ू से बाहर होता। जब सब कुछ ख़त्म कर के घर आई तो पता चला कक घर
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ककतनी बड़ी नेअमत है ये उस हदन एह्सास हुआ था कक अकेली लड़की को लोग कैसे सशकार कर लेते हैं ये
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मैं बाहर रह कर जान गयी थी। मेरी तमाम वाल्दै न से अबक़री की वसातत से गुज़ाररश है कक अपनी बेहटयों को कभी भी अकेले ककसी दस ू रे शहर हचगतज़ ना भेजें। ना मालूम उसे वहािं कैसा माहोल समले? कफर
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हमारे घर अबक़री आना शुरू हुआ, शुरू में ऐसे ही मुतास्ल्लआ करती और छोड़ दे ती। कफर २०१३ में आप
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के दसत इिंटरनेट से िाउनलोि कर के सुन्ना शुरू ककये और मेरी स्ज़िंदगी बदलना शुरू हो गयी। मुझे अपना वजद ू इिंतेहाई ग़लीज़ लगने लगा, ये तज़्लील मझ ु े बहुत सबक़ दे ती है । आज तक दे रही है । दसत सन् ु ने के
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बाद मैं ने अबाया का एह्तमाम करना शुरू कर हदया, ख़द ु का एह्सास ए तहफ़्फ़ुज़ कासमल करने को मैं ने पदे का एह्तमाम ककया। जब से तस्ट्बीह ख़ाना से ननस्ट्बत जुड़ी तब से स्ज़न्दगी यूूँ बदली है हर वक़्त
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अल्लाह की मुहब्बत और उस के लाखों एह्सानों की शुि गुज़ार रहती हूूँ। दसत सुन्ने की वजह से अल्लाह ने मुझे गन्दगी से ननकाल कर अल्लाह और उस के हबीब सवतरर कौनैन ﷺकी मुहब्बत का रास्ट्ता
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हदखाया, माूँगना ससखाया, तौबा ससखाई, अब अल्हम्दसु लल्लाह बाहर ननकल कर अपनी नज़रों की हहफ़ाज़त भी याद रहती है कक हज़रत हकीम साहब ने दसत में ऐसा फ़मातया था। हत्ताउल ्-वुस ्अ कोसशश करती हूूँ कक अल्लाह की मह ु ब्बत वाला रास्ट्ता चन ु िं।ू मसु शतद की मह ु ब्बत मेरी स्ज़न्दगी की कड़वाहट को
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ख़त्म कर रही है और करे गी भी इन ् शा अल्लाह। हज़रत हकीम साहब के दसत में बताए हुए तरीक़ों पर
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चलने की वजह से मुख़ासलफ़त करने वाले बहुत दश्ु मनी ले रहे हैं। गासलयािं भी सुनती हूूँ लेककन मैं दन्ु या में
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नाक रखने की ख़ानतर नहीिं जीना चाहती। वो स्ज़न्दगी नहीिं थी शसमिंदगी थी। जब दन्ु या के साथ समलना
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चाहती थी तो दन्ु या आगे भागती थी। आज अगर मैं सादगी में जी कर आख़ख़रत के सफ़र को बेह्तर
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बनाना चाहती हूूँ तो दन्ु या की बातें , तिंज़, ताने ही नहीिं सगे भी पराए हो गए। मॉिनतइज़्म के नाम पर मझ ु े
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ररश्ते दे खने वालों के सामने और ररश्ते कराने वाले मदों के सामने जाने पर मज्बूर ककया जाता है । माल
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दे ख कर ररश्ता कराने के वादे , दावे ये सब हुज़रू नबी करीम ﷺकी सन् ु नत ही नहीिं है तो मैं कैसे दन्ु या की दौलत, बे पदत गी का हहस्ट्सा बन कर ख़श ु रह सकती हूूँ। जैसे हज़रत हकीम साहब दसत में फ़मातते हैं उसी
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तरह ननकाह कर के वैसी ही स्ज़न्दगी जीना चाहती हूूँ और इस सब के ख़ख़लाफ़ मेरे अपने हैं और मैं अकेली
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लड़की हूूँ। जैसे जीना है इन गुनाहों से बच कर? एक बात तो तय है मेरा यक़ीन है इस बात पर कक मेरे घर में आने वाला पैसा साफ़ नहीिं होता। इस के नतीजे में ना नमाज़ की कफ़ि, सारा हदन नाच गाना आम, सगे
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ररश्तेदार एक दस ू रे के साथ मुख़सलस नहीिं हैं। बहनों की तस्ट्वीरें उन की सहे सलयों के वाट्सएप पर लगी हुई
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हैं। पदे का कोई इिंतज़ाम नहीिं है । मेरी स्ज़न्दगी पर हूँ सते हैं कक ज़ेहनी मरीज़ा बन गयी है ? इस को क्या हो गया है ? अब सनु नए जब मेरी स्ज़न्दगी बदली तो मझ ु पर क्या क्या ज़ल् ु म के पहाड़ तोड़े जा रहे हैं:- मेरा
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अरमान ससफ़त यही है कक अगर सादगी से ये लोग ककसी नेक से मेरा ननकाह कर दे ते पैसा, दौलत, जायदाद ना दे खते तो मैं अपनी स्ज़द्द छोड़ दे ती, पैसे की ख़ानतर ये आने वाले को ना धत्ु कारते तो मैं इन
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की सब मानती। मुझे मेरी तज़त से दीन ए मुहम्मदी ﷺके पैग़ाम पर शौहर की अताअत और तस्ट्बीह ख़ाना के पैग़ाम को फैलाने दे ते तो मैं कभी भी अपने ककसी से ना उलझती। ७ बहन भाई और वाल्दै न सब
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की मज ु से बात तक नहीिं करते। अगस्ट्त के महीने में फ़ाक़ों से मर रही हूूँ। परू े महीने में ु ररम हूूँ मैं! मझ ससफ़त छे दफ़ा खाना हदया गया, रात को मेरे कमरे की लाइट काट दी जाती है शदीद गमी और हब्स में सोती थी। वासलदा साहहबा के ताअने और इल्ज़ाम सन ु कर कोई नहीिं कह सकेगा कक ये एक माूँ के इल्ज़ाम
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बेटी के सलए हैं। क़ुसूर ससफ़त ये है कक मैं ने उन से सशकायत की कक आप के तरीक़े सुन्नत ए नब्वी ﷺके
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ख़ख़लाफ़ हैं। वो अपनी बात मनवाना चाहते हैं कक मैं सब कुछ छोड़ कर दब ु ारह गुनाहों वाली स्ज़न्दगी पर
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आ जाऊिं मगर कैसे मान लूँ ू उन की बात! मैं ये ननस्ट्बत, क़ौल, एह्काम अब नहीिं छोड़ना चाहती। सब कुछ
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छ न लें, छूट जाए सब कुछ, मैं इस ननस्ट्बत पर क़ुबातन तो हो जाउिं गी लेककन इन्हराफ़ कभी नहीिं कर
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मेरी स्ज़न्दगी कैसे बदली
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सकती मैं हराम मौत नहीिं मरना चाहती?
क़ाररईन! अगर आप के इदत चगदत मआ ु श्रे में कोई ऐसा ही भटका हुआ ख़द ु ा का बन्दा या बन्दी सीधे रास्ट्ते
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पर आई है तो आप ज़रूर ज़रूर उस के राह रास्ट्त पर आने का मुकम्मल वाक़्या सलख कर एडिटर अबक़री को भेजें। आप की सलखी हुई तहरीर मक ु म्मल नाम पता और जगा तब्दील कर के सलखी जाएगी। अबक़री
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ररसाला हर मक्तबा कफ़ि के हाूँ पढ़ा जाता है क्या मालूम आप की सलखी हुई तहरीर से कोई अूँधेरी ग़लीज़
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जाररया बन जाए।
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गसलयों को छोड़ कर नूरानी एअमाल पर आ जाए और ये आप और आप की नस्ट्लों के सलए सदक़ा ए
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आप भी दन्ु या के काम्याब तरीन इिंसान बन सकते हैं!
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(इिंसान की काम्याबी दन्ु या व आख़ख़रत में ससफ़त उसी को समली स्जन्हों ने वक़्त की एहसमयत को जाना। बेक़द्री करने वाला कुछ ना पा सका। पस ् इिंसान पर लास्ज़म है कक वो वक़्त का क़दर शनास बने और
(नज्मा आसमर, गोजराूँवाला)
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अपनी स्ज़िंदगी के तमाम मआ ु म्लात को वक़्त के मत ु ाबबक़ अिंजाम दे ।)
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मोहतरम क़ाररईन! आज कल के मशीनी दौर में हर इिंसान मुस्श्कलात और मसाइल का सशकार है इन
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मसाइल में है हर बन्दा हर मसले में वक़्त की कमी का सशक्वा करता है लेककन वक़्त की क़दर शायद ही
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कोई करता होगा तक़्दीर् का धनी और मुक़द्दर का शेहन्शाह वो ही बना स्जस ने वक़्त की एहसमयत और
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क़दर व मिंस्ज़लत को समझा। इिंसान की काम्याबी दन्ु या व आख़ख़रत में ससफ़त उसी को समली स्जन्हों ने
वक़्त की एहसमयत को जाना। बेक़द्री करने वाला कुछ ना पा सका। पस ् इिंसान पर लास्ज़म है कक वो वक़्त
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का क़दर शनास बने और अपनी स्ज़न्दगी के तमाम मआ ु म्लात को वक़्त के मत ु ाबबक़ अिंजाम दे । तभी वो
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इिंसान वक़्त का ससकिंदर केहलाएगा। हर गुज़रने वाला लम्हा हमारी स्ज़न्दगी का एक ऐसा लम्हा है जो दब ु ारह कभी वापस नहीिं आएगा। अगर आप ने उस को ढिं ग से इस्ट्तेमाल ना ककया तो ये आप को छोड़ कर
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आगे ननकल जाएगा कफर कोसशश के बावजूद हाथ नहीिं आएगा। आख़ख़रत की स्ज़न्दगी लाफ़ानी है ये स्ज़न्दगी आख़ख़रत के बैंक का चेक है स्जसे फाड़ कर ज़ायअ कर दें या कैश करा लें , आख़ख़रत का पेपर
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हमारे हाथ में है और हमें वक़्त भी हदया गया है कक ये स्ज़न्दगी है इस में अपना पेपर हल कर लो। पेपर
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हल का सारा तरीक़ा भी अस्ट्वा हसनह के ज़ररए क़ुरआन और अहादीस के ज़ररए बता हदया गया है ।
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दन्ु यावी पेपर हल करते वक़्त हम बार बार टाइम की कफ़ि करते हैं कक कहीिं वक़्त ख़त्म ना हो जाए और पेपर अधरू ा ना रह जाए। आख़ख़रत के पेपर की हमें कोई पवात नहीिं। वक़्त गुज़रता जा रहा है , खाते पीते
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सोते दन्ु या की ऐश व इश्रत नमूद व नुमाइश में पड़े हुए बे पवात हैं और अपने मक़्सद स्ज़न्दगी को भूले बैठे हैं। अगर कुछ हहसाब लगाया जाए तो साल की मुद्दत बहुत तवील है । साल में क़ुदरत का ननज़ाम अपने
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सारे मराहहल पूरे करता है कायनात की हर शे, चाूँद, सूरज ससतारे , सय्यारे , मौसम वक़्त के सहारे अपने अमूर अिंजाम दे ते हैं, मौसम वक़्त का ख़्याल करते हुए बदलते सूरज चाूँद मुक़रत रह वक़्त पर आते जाते
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हदन रात का आना जाना हमें ये आगाही दे रहा है कक इिंसान भी रोज़ाना इसी तरह दन्ु या में आ रहे और जा रहे हैं। एक साल स्जस को हम कहते हैं बहुत जल्द गुज़र गया है इस में ३६५ हदन होते हैं, हर हदन में ३६०० लम्हात बीत जाते हैं, और २४ घिंटों में रोज़ाना ८६ हज़ार ४ सो लम्हात गज़ ु र जाते हैं, स्जस के मत ु अस्ल्लक़
bq
आख़ख़रत में सवाल होगा, पूरी उम्र में बहुत तवील लम्हात, खाने,सोने, तफ़्रीहात, सेर सपाटों, फ़ज़ूल
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रसूमात, बे मक़्सद गुफ़्तग ु ,ू टी वी, टे ली फ़ॉन का फ़ज़ूल इस्ट्तेमाल क़ीमती वक़्त को खोता जा रहा है , जो
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कक हमारी स्ज़न्दगी का बहुत बड़ा ख़स्ट्सारह है स्जस की तलाफ़ी मुस्म्कन नहीिं। नमाज़, क़ुरआन, आमाल
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सासलह इबादात, इख़्लाक़यात, मुआम्लात की बेहतरी की सोच, ख़द ु को सिंवारने, नस्ट्ल को सिंवारने,
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उम्मत को सिंवारने की सोच हमें मस्ु श्कल नज़र आती है हम ने अल्लाह के सामने हास्ज़र होना है हहसाब
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दे ना है , काम्याबी या नाकामी का नामा ए आमाल समलना है उस हस्ट्ती के सलए स्ज़न्दगी का कौन सा
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हहस्ट्सा वक़्फ़ कर रहे हैं। क़ीमती स्ज़न्दगी का ककतना वक़्त अल्लाह को दे रहे हैं हर मस ु ल्मान पर जो फ़ज़त
है आराम सुकून से उस की अदाएगी में ससफ़त इतना वक़्त लगता है । फ़ज्र १० समनट, ज़ुहर २० समनट,
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असर २० समनट, मग़ररब १५ समनट और इशा २० समनट कुल वक़्त एक घिंटा २० समनट। अगर नतलावत
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क़ुरआन पाक और तस्ट्बीहात कर ली जाएिं तो २४ घिंटों में दो तीन घिंटे भी हम अल्लाह को नहीिं दे ते अगर हम ने वक़्त का हहसाब ना लगाया वक़्त की क़दर एहसमयत को ना जाना और बे मक़्सद बग़ैर एअमाल के
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स्ज़न्दगी गुज़ार कर रुख़्सत हो गए तो ऐसे ख़स्ट्सारह की नतलाफ़ी मुस्म्कन नहीिं। हमें अपनी बुराइयों और
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नेककयों की सलस्ट्ट तय्यार करनी होगी रोज़ाना सलस्ट्ट में से बुराइयों को छोड़ना होगा, नेककयों का पलड़ा भारी करना होगा, मस ु ल्सल मेहनत इस्ट्तक़ामत से बरु ाइयािं आहहस्ट्ता आहहस्ट्ता छूट जाएिंगी, हर पल नेकी
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करने का ख़याल हमारे क़दम काम्याबी की तरफ़ बढ़ाने में मदद दे गा इस तरह हम अपने स्ज़न्दगी के वक़्त को क़ीमती बना सकते हैं। दन्ु यापव नतजारत में नफ़ा के तरीक़े सोचे जाते हैं ता कक तरक़्क़ी हो मगर
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आख़ख़रत स्जस में नफ़ा की अशद्द ज़रूरत होगी एक एक नेकी की एहसमयत होगी बग़ैर स्ज़ि के गुज़रे एक एक लम्हे पर अफ़्सोस होगा उस वक़्त का ही एह्सास होगा, क्यूूँ क़दर ना की? मगर ससवाए अफ़्सोस के
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कुछ ना हो सकेगा हमारा ज़ेहन और सोच हर वक़्त इस तरफ़ होनी चाहहए कक स्ज़न्दगी ककधर जा रही जन्नत की तरफ़ या जहन्नुम की तरफ़। दफ़अ ग़फ़्लत का अमल: दफ़अ ग़फ़्लत के सलए अस्ट्तग़फ़ार का ज़्यादा करना बेहद्द ज़ोद असर और मज ु रत ब है , रोज़ाना आदमी को अपने ऊपर अस्ट्तग़फ़ार लास्ज़म कर
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लेना चाहहए, इस पर मदावमत से अजीब काम्याबी के असरात ज़ाहहर होते हैं।
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लच्चक भी ज़रूरी है
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(जो शख़्स यक्तरफ़ा तौर पर ससफ़त अपनी ख़्वाहहशों के पीछे दौड़े उस के सलए मोजूदह दन्ु या में नाकामी
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और बबातदी के ससवा कोई और चीज़ मुक़द्दर नहीिं।)
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(मौलाना वहीदद्द ु ीन ख़ान)
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दक ु ान्दार के यहािं एक आदमी आया। उस को कपड़ा ख़रीदना था। कपड़ा उस ने पसिंद कर सलया मगर दाम के सलए तक़्रीबन आधा घिंटा तक तकरार होती रही। दक ु ान्दार कम करने पर राज़ी होता था ना ख़रीदार
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बढ़ाने पर आख़ख़र दक ु ान्दार ने उस क़ीमत में कपड़ा दे हदया स्जस पर गाहक इस्रार कर रहा था। एक बुज़ुगत
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उस वक़्त दक ु ान में बैठे हुए थे, जब गाहक चला गया तो उन्हों ने कहा: जब तुम्हें गाहक की लगाई हुई
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क़ीमत पर कपड़ा दे ना था तो पहले ही दे हदया होता। आख़ख़र इतनी दे र तक उस का और अपना वक़्त क्यूूँ
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ज़ायअ ककया। हज़रत आप समझे नहीिं, दक ु ान्दार ने कहा: मैं उस को पका रहा था, अगर मैं उस की लगाई हुई क़ीमत पर फ़ौरन सौदा दे दे ता तो वो शुबा में पड़ जाता और ख़रीदे बग़ैर वापस चला जाता। इस के इलावा मैं ये अिंदाज़ा कर रहा था कक वो कहाूँ तक जा सकता है । मैं ने जब दे खा कक वो इस से आगे बढ़ने
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वाला नहीिं है तो मैं ने उस को कपड़ा दे हदया। जब दो फ़रीक़ों के दरम्यान मुक़ाब्ला हो तो लाज़्मन ऐसा होता है कक हर फ़रीक़ अपनी अपनी मज़ी के मुताबबक़ मुआम्ला तय कराना चाहता है । ऐसे मौक़े पर बबला
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शुबा अक़ल्मन्दी का तक़ाज़ा है कक अपनी मािंग पर इसरार ककया जाए मगर उसी के साथ अक़ल्मन्दी ही का दस ू रा लाज़्मी तक़ाज़ा ये भी है कक आदमी अपनी हदद ू को जाने और इस के सलए तय्यार रहे कक
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बबल ्आख़ख़र कहाूँ पोहिं च कर उस को राज़ी हो जाना है । इस उसल ू को एक लफ़्ज़ में तवाफ़ुक़ (एिजस्ट्टमें ट) कह सकते हैं। ये तवाफ़ुक़ स्ज़न्दगी का एक राज़ है । ये मौजूदह दन्ु या में काम्याबी के सलए भी है क़ौमी मआ ु म्लात के सलए भी। इस उसल ू का ख़ल ु ासा ये है कक आदमी अपने आप को जान्ने के साथ दस ू रों को
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भी जाने, मौजूदह दन्ु या में वही शख़्स काम्याब रहता है जो दो तरफ़ा तक़ाज़ों की ररआयत कर सके। जो
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शख़्स यक्तरफ़ा तौर पर ससफ़त अपनी ख़्वाहहशों के पीछे दौड़े उस के सलए मौजूदह दन्ु या में नाकामी और
राउट मछली को जान्ने वाले मत ु वज्जह हों!
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बबातदी के ससवा कोई और चीज़ मुक़द्दर नहीिं।
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मोहतरम क़ाररईन! इदारा अबक़री को राउट मछली के कािंटे चाहहयें स्जन अह्बाब के पास हों वो फ़ौरी तौर
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पर दफ़्तर माहनामा अबक़री सभज्वाऐिं। ये कािंटे अक्सर खाने वाले या शुमाली इलाक़ा जात के होटलों से
समल जाते हैं। मख़ ु सलसीन ज़रूर तवज्जह करें । इत्तलाअ के सलए इस निंबर पर ससफ़त मेसेज करें । ०३४३-
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८७१०००९ (0343-8710009)। नॉट: अगर ककसी के पास इस के फ़ायदे हों तो ज़रूर सलखें , इदारा आप का
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मश्कूर होगा।
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माहनामा अबक़री जून 2016 शुमारा नम्बर 120________________pg 16
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गमी की सशद्दत और एक घोंट से ख़ात्मा
(ये दोनों बीज हदन में तीन बार समला कर चम्मच से बार बार हहलाते हुए घोंट घोंट आहहस्ट्ता आहहस्ट्ता और तसल्ली से पीने के सलए हदए, तीन हफ़्तों के बाद मरीज़ का सत्तर फ़ीसद से ज़्यादा हुल्या बेह्तर हो
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गया, स्जस्ट्म बेह्तर हो गया, आूँख नब्ज़, चेहरा और चाल ढाल में है रत अिंगेज़ फ़क़त हो गया। स्जसे दे ख कर ख़द ु मुझे भी है रत हुई।)
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(क़ाररईन! आप के सलए क़ीमती मोती चन ु कर लाता हूूँ और छुपाता नहीिं, आप भी सख़ी बनें और ज़रूर
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सलखें। (एडिटर हकीम मह ु म्मद ताररक़ महमद ू मज्ज़ब ू ी चग़ ु ताई)
गमी और सदी, इिंसान ककतना कम्ज़ोर है कभी बदातश्त नहीिं होती, गमी आती है तो सदी की तलाश, ठिं िक का सामान, एयर किंडिशन्ि, कूलर, कोल्ि डड्रिंक्स, ना मालूम क्या? और कफर अगर सदी आ जाए तो कफर
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जैककट, कोट और हीटर। बातों ही बातों में एक बात याद आई, हमारे एक दोस्ट्त थे उन के दादा अपनी बीवी से बहुत मुहब्बत करते थे, गसमतयों में ठन्िे से ठन्िे मश्रब ू , क़ुदरती फूलों को ननचोड़ कर बेह्तरीन
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और लाजवाब शबतत, ख़मीरे , हदल की फ़रहत के सलए मुफ़रत हात ख़द ु बनाते, मेहनत करते बीवी की बहुत
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सेवा और मुहब्बत की इिंतहा, (मेरे ख़याल में ऐसा होना चाहहए कभी हदल और नज़रें नहीिं भटकेंगी) कफर
बीवी को सदी लग जाती, कफर उस के सलए सोहन हल्वे की कड़ाहहयाूँ, मग़ज़्यात, पपस्ट्ते बादाम काजू, गमात
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गरम चीज़ें, कफर बेगम को गमी लग जाती। कफर उस के सलए ठिं िी चीज़ें, मह ु ब्बत की ये आूँख समचोली
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मरते दम तक चलती रही और दो हदल ठन्िे बस्ल्क सच्चे प्यार की सच्ची शम्मा जलाए ज़माने को एक पैग़ाम दे ते चले गए कक ये भी कोई शादी है , लड़ते झगड़ते स्ज़न्दगी गज़ ु र गयी। क़ाररईन! आज जो टोटका
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सलख रहा हूूँ ये बज़ाहहर अदना और सस्ट्ता सा टोटका है लेककन एक नहीिं दो नहीिं सैंकड़ों हज़ारों तजुबातत ख़द ु मेरे पास और सहद्दयों से चला आ रहा टोटका ना मालम ू ककतने तजब ु ातत होंगे। यक़ीन जाननये! ये
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टोटका नहीिं एक आज़मूदह तजुबात शुदह है रत अिंगेज़ तोह्फ़ा है । ये ककन बीमाररयों में मुफ़ीद है पहले उन
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के नाम पढ़ लीस्जये:- पुरानी पेचचश, आूँतों का अल्सर और ज़ख़्म, वो लोग जो बाहर के खाने और फ़ास्ट्ट
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फ़ूड्स खा खा कर अपना स्जगर, मैदा, आिंतें और मसाना ख़त्म कर चक ु े हैं ला इलाज हे पटाइहटस, पुरानी बवासीर स्जस में क़ब्ज़ और ख़न ू आता हो। ख़याल आने पर क़तरे या पेशाब के बाद क़तरे । ख़वातीन की परु ानी सलकोररया और मदों का स्जयािं, खाने के बाद जलन, तेज़ाबबयत, गैस, तबख़ीर, खटे खटे िकार Page 44 of 51 www.ubqari.org
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आना, सीने की जलन, पुरानी क़ब्ज़ और टाइफ़ॉइि या उस के बाद के बुरे असरात। गमी कैसी ही हो और ककतनी भी सशद्दत की हो या आप ने रोज़ा रखा है और सख़्त गमी का रोज़ा है और आप चाहते हैं गमी का
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रोज़ा हो गमी का काम हो यानन कोई कारोबार हो और गरम इलाक़ा हो, तो कफर परे शानी कैसी? बस यही चीज़ आप के पास मौजूद है आप ऐसा करें जल्दी जल्दी पचास ग्राम तुख़्म रे हान ले लें यानन न्याज़्बू के
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स्ट्याह बीज और तख़् ु म मलिंगा भी कहते हैं भी पचास ग्राम। दोनों को साफ़ कर के ु म बालिंगो स्जसे तख़् ककसी मततबान में महफ़ूज़ रख लें बस दवाई तय्यार! अब बताऐिं कोई तक्लीफ़, कोई मेहनत कोई समातया ख़चत हुआ, बबल्कुल नहीिं हचगतज़ नहीिं! अच्छा अब आप ऐसा करें इसे दध ू में या दध ू की पतली लस्ट्सी में या
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शहद के पानी में एक बड़ा चम्मच या दो बड़े चम्मच घोल कर पी लें हदन में एक बार या चन्द बार सेहरी
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और अफ़्तारी के वक़्त। आप सोच नहीिं सकते कक आप अपने अिंदर ककतना है रत अिंगेज़ टॉननक उिं िेल चक ु े
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हैं और ककतनी एनजी ताक़त, क़ुव्वत, फ़रहत और तेज़ाबबयत को ख़त्म करने की एक सलाहहयत आप
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अपने अिंदर हाससल कर चक ु े हैं।
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अगर मौसम सदत है तो ये सहदत यों में भी नीम गरम दध ू में घोल कर हदन में सुबह व शाम या चन्द बार
इस्ट्तेमाल कर सकते हैं। मैं ने जब भी कोई चीज़ अबक़री के सलए सलखी है , इस का एक नहीिं दो नहीिं
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बेशुमार तजुबातत मुझे समले हैं और इन तजुबातत के बाद मैं ने अपने क़ाररईन को ककतने बेशुमार क़ीमती तोह्फ़े हदए हैं। आप भी ये तहाइफ़् अगर मज़ीद पाना चाहते हैं तो अबक़री के सफ़हात का मत ु ास्ल्लआ
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ज़रूर रखा करें । एक साहब मेरे पास अपना एक जवान बेटा तक़रीबन बाईस साल का हाथ पकड़ कर ले
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आये ननहायत कम्ज़ोर, आूँखें अिंदर को धिंसी हुईं, तबीअत में ननढाली, चेहरे पर पीलाहट, हाथों की रगें
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बाहर ननकली हुईं। एक चलता कफरता ढािंचा और स्ज़िंदा लाश! मैं ने उन से पूछा कक बेटा क्या करता है ?
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कहने लगे हॉस्ट्टल में रहता है और पढ़ रहा है । फ़ौरन समझ गया कक हॉस्ट्टल के चट पटे खाने और बाहर की होटे सलिंग और फ़ास्ट्ट फ़ूड्स ् बस! जवान की जवानी ख़त्म हो गयी और मज़ीद रही सही इिंटरनेट का मन्फ़ी इस्ट्तेमाल और मोबाइल के मेसेज ने जलती पर तेल का काम ककया। मैं ने ससफ़त यही टोटका उन्हें
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हदया, उस वक़्त मौसम सदी का था, जाड़े अपनी इन्तहा पर थे, गरम दध ू में ये दोनों बीज हदन में तीन बार समला कर चम्मच से बार बार हहलाते हुए घोंट घोंट आहहस्ट्ता आहहस्ट्ता और तसल्ली से पीने के सलए
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हदए, तीन हफ़्तों के बाद मरीज़ का सत्तर फ़ीसद से ज़्यादा हुल्या बेह्तर हो गया, स्जस्ट्म बेह्तर हो गया, आूँख नब्ज़, चेहरा और चाल ढाल में है रत अिंगेज़ फ़क़त आ गया। स्जसे दे ख कर ख़द ु मुझे भी है रत हुई।
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क़ाररईन! हम क्यूँू ना अपनी स्ज़न्दगी को कफ़तरी टोटकों की तरफ़ ले आएिं और क्यूँू ना अपनी स्ज़न्दगी को सस्ट्ती सस्ट्ती लेककन अनोखी उदय ू ात की तरफ़ या कफ़तरी बीजों की तरफ़ माइल हों। ये दवाएिं भी हैं और चग़ज़ाएूँ भी और सशफ़ाएिं भी।
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यक़ीन जाननये! अगर आप ये दवा यानन ये दोनों बीज अपनी नस्ट्लों को इस्ट्तेमाल करवाना शुरू कर दें उन
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में नज़र की कम्ज़ोरी, हदमाग़ की कम्ज़ोरी, याद्दाश्त की कमी, ग्रोथ की कमी, उन का पढ़ना सलखना
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बेह्तर होगा और ये तमाम कसमयािं दरू हो जाएिंगी। सेहतमन्द नस्ट्लें , सेहतमन्द हदमाग़, सेहतमन्द आूँखें और सेहत मन्द मैदा व स्जगर, सेहतमन्द आिंतों और सेहतमन्द गुदों का चलता कफरता एक स्जस्ट्म
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यक़ीनन सेहतमन्द मुआश्रे की दलील है । ये दोनों बीज मदों को सेहमन्द, औरतों को तिंदरु ु स्ट्त, मदों और
औरतों के रोग ऐसे ख़त्म करे कक इिंसान की तबीअत बार बार इन दोनों बीजों को इस्ट्तेमाल करने में माइल
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हो। हाूँ! इन को सभगो कर हचगतज़ ना रख़खयेगा वरना जम जाएिंगे कफर भी आप इस्ट्तेमाल कर सकते हैं लेककन चम्मच से अगर उसी वक़्त शहद के पानी, पतले दध ू में या दध ू ठिं िा हो या गरम इस्ट्तेमाल करें तो
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फ़ायदा भी ज़्यादा और खाने में भी तक्लीफ़ नहीिं। आज क़ाररईन! आप को मैं ने एक कफ़तरी टोटका हदया,
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ये दोनों काले बीज काली बीमाररयािं, काले रोग और काली शकल से ननकाल कर आप को हुस्ट्न व जमाल
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दे , सेहत व तिंदरु ु स्ट्ती दे , ख़ब ू सूरत चेहरा ख़ब ू सूरत स्ज़न्दगी और तिंदरु ु स्ट्त और राहत अफ़्ज़ा एक अनोखा
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जहान ज़रूर दें गी। आइये! रमज़ान के मुक़द्दस अय्याम में हर वक़्त ठिं िक के हदल्फ़रे ब एह्सास के सलए इस्ट्तेमाल करें दे र कैसी?
बे नरू आूँखें अब होंगी नरू से भरपरू Page 46 of 51 www.ubqari.org
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं दो अन्मोल ख़ज़ाना नम्बर दो सारा हदन खल ु ा पढ़ता हूूँ मेरे अिंदर बहुत सी रूहानी तब्दीसलयािं आई हैं। मेरे पास एक अमल है जो मैं क़ाररईन की नज़र कर
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रहा हूूँ। मेरे एक दोस्ट्त जो कक आई टी इिंजीननयर है उस की आूँखों की रौशनी अचानक ब्रेन ट्यूमर की वजह से चली गयी, िॉक्टसत ने भी मायूसी का इज़्हार ककया। मैं ने अमल बताया। अल्लाह के हुक्म से उस
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ا ْم की आूँखों की रौशनी वापस आ गयी। अमल ये है :- "बबस्स्ट्मल्लाहह-रत ह्मानन-रत हीसम नरु ू नरु ू " ( ِب ْس ِم هللاِ الرْح ِن ُ ُ ا )الر ِح ْي ِم ُْن ُر ُْن ُر९ जगा चीनी की प्लेट पर इस तरह सलखें कक वाव और मीम के सर खल ु े रहें । आब ज़म्ज़म ُ ا या आब बारािं या ताज़ह पानी से धो कर २५६ बार इस पर "या नूरु" ()َی ُْن ُر पढ़ कर दम करें । अवल व
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आख़ख़र तीन बार ये दरूद शरीफ़ पढ़ें । "अल्लाहुम्म या नूरु-न्नूरु सस्ल्ल अला नूररक-ल्मुनीरर व आसलही व ا م ُ ا ا ُْ ُ ُْ ُ ا ا م ُْ ا ْ ُ ْ م (ْی اوا ِلهٖ او اَب ِر ْک او اس ِل ْم۔ ِ )اللھم َیُنر النور ص ِل لَع ُن ِرک الم ِنकफर पानी आूँखों पर लगाएिं और
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रमज़ान में अबक़री ने सौंपा बच्चों को अनोखा समशन
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माहनामा अबक़री जन ू 2016 शम ु ारा नम्बर 120________________pg 24
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बाक़ी पी लें। ग्यारह हदन, इक्कीस हदन, या इक्तालीस हदन करें । (मह ु म्मद इफ़ातन, लय्या)
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बाररक् व सस्ल्लम ्।"
(बच्चों का ससफ़्हा)
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(प्यारे बच्चों अपने अब्बू के साथ समल कर तहक़ीक़ करें और ऐसे अफ़राद को तलाश करें । ज़रूरी नहीिं जो
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भीक मािंगे ससफ़त वही मस्ट् ु तहहक़ हो बस्ल्क मस्ट् ु तहहक़ वो हैं जो भीक नहीिं मािंगते। आएिं! इस रमज़ान ये
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समशन बना लें कक इस रमज़ान ग़रीबों व मुहताजों की ख़ब ू मदद कर के भरपूर सवाब कमाएिंगे।)
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जैसे जैसे रमज़ान गुज़र रहा था और ईद का हदन क़रीब आ रहा था रमज़ान समयाूँ की उल्झन बढ़ती जा रही थी। साल के बारह महीनों में एक रमज़ान ही के महीने में तो उसे कुछ सक ु ू न मय ु स्ट्सर आता था। अब वो भी ख़त्म होने को था। कुछ साल पहले तक उस के हालात इतने दग ु र् गूिं ना थे। वो मेहनत मज़्दरू ी कर Page 47 of 51 www.ubqari.org
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के हदन में इतने रूपए कमा लेता था कक ककसी ना ककसी तरह घर का ख़चत पूरा हो जाता था लेककन गुज़श्ता कुछ सालों से ख़चे कुछ ऐसे बढ़े कक हालात ने तो जीना ही मुस्श्कल कर हदया था। अब इस क़लील
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आम्दनी में पूरे घर का ख़चत चलाना बहुत मुस्श्कल हो रहा था। अल्लाह के ससवा ककसी के आगे हाथ फेलाना उस को गवारा ना था। रोज़्गार के मवाकक़अ भी कुछ बेह्तर ना थे और ऊपर से मेहिंगाई के तूफ़ान
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ने तो सब कुछ तबाह कर के रख हदया था।
इन हालात में एक मज़्दरू की गज़ ु र औक़ात बहुत मस्ु श्कल हो गयी थी। घर में एक बढ़ ू ी माूँ, बीवी और तीन बच्चे थे, छे अफ़राद के अख़्राजात ककसी पहाड़ से कम ना थे। बड़ों को तो सम्झाया जा सकता था लेककन
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बच्चे मान्ने में कहाूँ आते थे। उन को तो बस एक ही धुन थी कक ईद आ रही है अब नए कपड़े बनेंगे घर में
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ससवय्यािं तय्यार होंगी। औरों की तरह हमें भी ईदी समलेगी। रमज़ान शुरू हुआ तो थोड़ा सुकून समला था।
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चलो अब एक वक़्त ही के खाने का बिंदोबस्ट्त करना पड़ेगा। बीमार माूँ ने भी रोज़े रखने शुरू कर हदए कक
इस बहाने बेटे को कुछ सुकून समलेगा। बीवी ने उन बच्चों को स्जन पर अभी रोज़े फ़ज़त भी ना हुए थे सवाब
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का लालच दे कर रोज़े रखने के सलए राज़ी कर सलया था। अब ससफ़त एक वक़्त के खाने का इम्कान बाक़ी
वग़ैरा भेज दे ते स्जस से कुछ गुज़र औक़ात हो जाती थी।
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था। इस के इलावा बस्ट्ती के खाते पीते लोग भी कभी कभी अफ़्तारी के नाम पर कुछ पक्वान और फल
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रमज़ान समयािं सोच रहे थे, ईद आने को है लेककन ये महीना तो जैसे पर लगा कर उड़ता जा रहा था बस अब आख़री चार हदन बाक़ी रह गए थे। ईद आने को है । अब क्या होगा? बच्चों के कपड़े कहाूँ से बनेंगे?
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घर में ससवय्यािं वग़ैरा का तो कोई इिंतज़ाम ही नहीिं है और आगे कफर से दो वक़्त की रोटी का एह्तमाम
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करना पड़ेगा। काश कक सारी उम्र रमज़ान का ही महीना होता।
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प्यारे बच्चो! ये एक कहानी नहीिं ऐसे कई घराने हमारे मुआश्रे में हैं जहािं दो वक़्त की रोटी उन्हें खाने को नहीिं समलती। आप के घर में भी रमज़ान का ख़ब ू इस्ट्तक़्बाल हो रहा होगा। अफ़्तारी व सेहरी की ननत नई
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डिशें तय्यार करने की तय्याररयािं हो रही होंगी। घर में वसीअ राशन आ चक ु ा होगा। आप की ख़श ु ी का हठकाना नहीिं होगा कक रमज़ान के बाद ईद है स्जस की तय्यारी भी अभी से शुरू हो चक ु ी होगी। मगर! इन
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सब के बावजूद इस रमज़ान में "रमज़ान समयािं" जैसे सफ़ेद पॉश अफ़राद की मदद ज़रूर करें ता कक वो भी अपने बच्चों के सलए ससवय्यािं और नए कपड़ों का बिंदोबस्ट्त कर सकें। प्यारे बच्चो अपने अब्बू के साथ
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समल कर तहक़ीक़ करें और ऐसे अफ़राद को तलाश करें । ज़रूरी नहीिं जो भीक मािंगे ससफ़त वही मस्ट् ु तहहक़ हो बस्ल्क मुस्ट्तहहक़ वो हैं जो भीक नहीिं मािंगते। आएिं! इस रमज़ान ये समशन बना लें कक इस रमज़ान ग़रीबों व मुहताजों की ख़ब ू मदद कर के भरपूर सवाब कमाएिंगे और रमज़ान समयािं की परे शानी दरू करें गे।
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(इन्तख़ाब: सािंवल चग़ ु ताई, रान्झू चग़ ु ताई, अम्माूँ ज़ेबू चग़ ु ताई, भूरल चग़ ु ताई, अह्मदपुर शक़तया)
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लाल्ची दबातन और बादशाह की हिं सी
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इब्न अल्मग़ाज़ल नामी एक अरब बहुत मज़ाक़ी था लोगों को बहुत हिं साता था। कहते हैं कक कोई भी इब्न अल्मग़ाज़ल की गुफ़्तग ु ू सुनता था तो वो अपनी हिं सी को रोक नहीिं सकता था। उस ज़माना में शाम के
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बादशाह अल्मुअतज़द की हुकूमत थी बादशाह के एक दबातन ने इब्न अल्मग़ाज़ल को कहा कक मैं कोसशश
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कर के तझ ु े बादशाह सलामत के पास ले जाता हूूँ उन को जा कर ये टोटके और लतीफ़े सन ु ा कर ख़श ु करो
लेककन एक शतत पर अिंदर भेजूिंगा वो ये कक जो आप को इनआम समलेगा उस का आधा मुझे दोगे। इब्न
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अल्मग़ाज़ल ने जब दबातन की ज़ब ु ान से इनआम की बात सन ु ी तो कहा कक मैं ख़द ु समस्ट्कीन हूूँ मैं तझ ु े
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इनआम का छटा हहस्ट्सा दिं ग ू ा लेककन दबातन ने ये बात ना मानी। कफर उस ने उस को चोथे हहस्ट्से दे ने का वादा ककया लेककन दबातन ने ये भी ना माना बबल ्आख़ख़र इब्न अल्मग़ाज़ल आधे दे ने पर राज़ी हुए। दबातन
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बादशाह के पास गए और उस को इब्न अल्मग़ाज़ल की मज़ेदार बातों के बारे बताया और इजाज़त ले कर
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इब्न अल्मग़ाज़ल को बादशाह के दरबार में पोहिं चाया। बादशाह के एक हाथ में ककताब थी जो पढ़ रहा था ककताब को बन्द कर के एक तरफ़ रख कर घरू कर दे खा और पछ ू ा कक इब्न अल्मग़ाज़ल तू है ? उस ने कहा
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जी! मैं हूूँ। बादशाह ने कहा तू लतीफ़े और टोटके सुना कर लोगों को हिं साता है । कहा जी! सर में हिं साता हूूँ और कफर वो मुझे इनआम दे ते हैं और बच्चों का गुज़र कर लेता हूूँ बादशाह ने कहा कक अगर मैं तेरे लतीफ़े
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सुन कर हिं स पड़ा तो तुझे पािंच सो हदरहम इनआम दिं ग ू ा। लेककन अगर ना हिं सा तो कफर? इब्न अल्मग़ाज़ल ने कहा कक कफर जो सज़ा आप तज्वीज़ फ़मातएिंगे वो क़ुबूल होगी। लेककन अभी से तय कर
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लेते हैं कक अगर मैं आप को हिं सा ना सका तो मेरी पीठ से कपड़ा उतार कर दस कोड़े मार दे ना। बादशाह को ये बात पसिंद आ गयी और कहा कक ये ठ क है । अब इब्न अल्मग़ाज़ल अजीब लतीफ़े और टोटके सन ु ाना शरू ु हुआ बहुत सारे सन ु ाये हत्ता कक उस के सर में ददत शरू ु हो गया और उसे पसीना आ गया वहािं
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मौजूद लोग हिं स हिं स कर थक गए लेककन बादशाह को मजाल है कक हिं सना तो क्या मुस्ट्कराहट भी आई
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हो। बबल ्आख़ख़र इब्न अल्मग़ाज़ल ने कहा बादशाह सलामत! मेरा जो हाल था वो पेश कर हदया अब मेरे
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पास कोई लतीफ़ा वग़ैरा नहीिं है । मैं ने आज तक आप जैसा आदमी नहीिं दे खा और आज मैं ने सशकस्ट्त
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तस्ट्लीम कर ली है । बादशाह ने कहा और भी सुनाना है तो सुना ले। इब्न अल्मग़ाज़ल ने कहा मैं और तो
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कुछ नहीिं कह सकता अल्बत्ता मेरा एक मत ु ाल्बा है वो अज़त करता हूूँ। बादशाह ने कहा क्या? इब्न
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अल्मग़ाज़ल ने कहा कक आप ने वादा ककया था कक ना हिं सने पर दस कोड़े सज़ा के तौर पर लगाए हदए
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जाएिंगे अब मेरा मत ु ाल्बा ये है कक इस सज़ा को दग ु ना करें । ये सन ु कर बादशाह की ज़ोर से हिं सी ननकली ही थी कक उस ने अपनी हिं सी को रोक सलया। बबल ्आख़ख़र इब्न अल्मग़ाज़ल का मुताल्बा माना गया। जब
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उस को निंगी पीठ कर के कोड़े मारने शरू ु ककये गए तो बादशाह ने ससफ़ाररश की कक इस को आहहस्ट्ता कोड़े
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मारना। जब दस कोड़े पूरे हो गए तो उस ने बड़ी चीख़ कर कहा अब ज़्यादा कोड़े मुझे ना मारो क्योंकक एक आदमी को इस सज़ा का आधा दे ना है स्जस ने मुझ से पहले ही वादा सलया था वो दबातन है जो दवातज़े के
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बाहर खड़ा है । उस ने वादा सलया था कक मुझे इस दरबार में छोड़ा है ये सुन कर बादशाह बहुत हिं सा जब
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उस ने हिं सना बन्द कर हदया तो दबातन को अिंदर बुलाया गया तो उस वक़्त इब्न अल्मग़ाज़ल ने उस को कहा कक अब अपने पीठ से कपड़े को हटा और तझ ु े भी मेरे इनआम का आधा समलेगा। तेरी ककतनी मैंने
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन
के जून 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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समन्नतें की थीिं कक इनआम का छटा हहस्ट्सा ले लेना या चौथा हहस्ट्सा ले लेना लेककन तू ने मेरी एक भी ना सुनी अब इनआम का आधा ले ले। ये अल्फ़ाज़ सुन कर बादशाह को और ज़्यादा हिं सी आई कफर बादशाह
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ने इब्न अल्मग़ाज़ल को पािंच सो हदरहम इनआम के तौर पर हदए स्जस से आधा इब्न अल्मग़ाज़ल ने वादे
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के मुताबबक़ दबातन को हदए। (नफ़्हतुल ्-अरब) (सलीमुल्लाह सूमरो-किंियारो)
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माहनामा अबक़री जून 2016 शुमरा नम्बर 120________________pg 27
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