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माहनामा अबक़री मैगज़ीन मार्च 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन
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मार्च 2016 के एहम मज़ामीन
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हहिंदी ज़बान में
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दफ़्तर माहनामा अबक़री
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मरकज़ रूहाननयत व अम्न 78/3 अबक़री स्ट्रीट नज़्द क़ुततबा मस्स्ट्िद
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मज़ंग चोंगी लाहौर पाककस्ट्तान
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महमूद मज्ज़ूबी चग़ ु ताई دامت برکاتہم
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contact@ubqari.org
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एडिटर: शैख़-उल-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मुहम्मद ताररक़
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन मार्च 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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फ़ेहररस्त अल्लाह के नाम पर बीवी को धोका दे ने वाले शौहर के ललए वईद .............................................................. 3 एडिटर के क़लम से........................................................................................................................................ 4 हाल ए हदल ................................................................................................................................................... 4
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जो मैं ने दे खा सन ु ा और सोर्ा...................................................................................................................... 4 शैख़-उल-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मह ु म्मद ताररक़ महमद ू मज्ज़ूबी र्ुग़ताई دامت برکاتہم.................................. 6 कटा हुआ हाथ जोड़ हदया और ननशान भी ना रहा ....................... 10
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करामत ए अली! ٰرضی ہللا تعالیٰ عنہ
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बच्र्ों की तर्बचयत का "बेड़ह ग़क़च" कैसे होता है ? ....................................................................................... 13 मेरी ज़ज़न्दगी कैसे बदली? ........................................................................................................................... 17
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ज़जस्मानी व रूहानी हुस्न के लाजवाब आसान टोटके ................................................................................. 21 मेरी ज़ज़न्दगी के तस्दीक़ शद ु ह सीने के राज़ .............................................................................................. 25
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तीन बीमाररयािं अभी ख़त्म, जल्दी पढ़ें ! ....................................................................................................... 29
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आलमलीन को सताने वाला ज़जन्न तस्बीह ख़ाना के आगे बेबस ................................................................. 33 "शक्रु िया" को लसफ़च एक लफ़्ज़ ना समझिये! ............................................................................................... 36
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ग़ग़ज़ाइयत बख़्श और मज़ेदार कुछ सज़ज़ज़यााँ! ............................................................................................. 41
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अल्लाह के नाम पर बीवी को धोका दे ने वाले शौहर के ललए वईद दआ ु की क़ुबूललयत का इिंतज़ार: हज़रत अब्दल् ु लाह رضی ہللا تعالی عنہसे ररवायत है फ़मातते हैं कक रसूलल्लाह ﷺने इशातद फ़मातया: "अल्लाह तआला से उस का फ़ज़्ल मााँगा करो क्योंकक वो पसंद करता है कक उस से मााँगा िाए और अफ़्ज़ल इबादत दआ ु की क़ुबूललयत का इंतज़ार करना है । (िालमअ नतलमतज़ी رضی ہللا تعالی عنہसे ररवायत है ,
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शरीफ़: अब्वाब अल्दअवात) हल्के फुल्के लोग: हज़रत अबू हुरैरह
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फ़मातते हैं कक रसल ू करीम ﷺने इशातद फ़मातया: "हल्के फुल्के लोग आगे ननकल गए" सहाबा
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رضی ہللا تعالی عنہने अज़त ककया: "या रसूलल्लाह! ﷺवो लोग कौन हैं? आप ﷺने इशातद फ़मातया: "िो स्ज़क्र इलाही में िूबे हुए हैं, स्ज़क्र उन पर से गन ु ाहों के बोझ उतार दे ता है । ललहाज़ा वो क़यामत के ददन
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हल्के फुल्के हो कर हास्ज़र होंगे।" (िालमअ नतलमतज़ी शरीफ़) तसबीहात उाँ गललयों पर पढ़ना: हज़रत
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यसीरह رضی ہللا عنہاिो मुहास्िरात में से थीं फ़मातती हैं कक रसूल करीम ﷺने हम से फ़मातया: "तुम लोग
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तस्ट्बीह, तह्लील और तक़्दीस (यानन सुब्हानल ्-मललककल ्-कुद्दूस) पढ़ती रहा करो और उाँ गललयों के पूरों
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पर गगना करो, इस ललए कक क़यामत के ददन इन (उाँ गललयों) से सवाल होगा और वो बोलेंगी। कफर ग़ाकफ़ल ना होना क्योंकक इस से तम ु अस्ट्बाब रहमत भल ू िाओगी। (िालमअ नतलमतज़ी शरीफ़) महर मक़ ु रच र तो
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क्रकया मगर दे ने का इरादा ना हो: हज़रत सुहैब رضی ہللا تعالی عنہसे ररवायत है कक नबी करीम ﷺने
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इशातद फ़मातया: िो शख़्स ककसी औरत का महर मुक़रत र करे और अल्लाह िानता है कक उस का वो क़ज़त वापस करने का इरादा नहीं है लसफ़त अल्लाह के नाम से धोका दे कर ना हक़ ककसी का माल अपने ऊपर
हलाल करता है तो वो अल्लाह तआला से क़यामत के ददन इस हाल में मुलाक़ात करे गा कक उस का शुमार
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चोरों में होगा। (मस्ट्नद् अहमद बबन हं बल)
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एडिटर के क़लम से हाल ए हदल
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जो मैं ने दे खा सन ु ा और सोर्ा
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क़तअ रहमी से सब कुछ उिड़ गया
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क़ाररईन! हदीस का मफ़हूम है लसला रहमी से उम्र बढ़ती है , ररज़्क़ बढ़ता है , दआ ु एं क़ुबूल होती हैं, और
बेशम ु ार फ़ज़ाइल हैं लसला रहमी में । लसला रहमी क्या है ? ररश्तेदारों को उन की कोतादहयों कलमयों और
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ऐबों के बाविूद मुआफ़ करते रहना। हर ररश्तेदार से लड़ाई झगड़ा मोल ना लेना बस्ल्क वो बुरा करते िाएं
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तो बार बार अच्छा करते िाना। अगर कफर वो बार बार बुरा करें तू बार बार अच्छा कर और उन को
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मुआफ़ करता िा इसी का नाम लसला रहमी है । वो अच्छा करे तू अच्छा कर, कफर वफ़ा तो ना हुई, बस्ल्क
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वो बुरा करें तो तुम अच्छा करो, इसी को लसला रहमी कहते हैं। फ़मातया: िो तुझ पर ज़ुल्म करे उसे मुआफ़ कर िो तेरा हक़ छीने तू उसे अता कर, िो तझ ु े महरूम करे तू उस को दे ता चला िा, मैं ने एक नहीं कई
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घराने ऐसे दे खे कक बहू आई और उस ने आते ही सब को िुदा कर ददया या सास ने ककसी को ककसी के मुंह
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ददखाने के क़ाबबल ना रखा, सब से लड़ाई, सब का झगड़ा और सब के ऐबों को ले कर बैठ िाना। क़ाररईन!
सच पूछें स्ितना भी हमारे लमज़ाि में मुआफ़ी बढ़ती िाएगी दरगुज़र बढ़ता िाएगा उतना अल्लाह की बारगाह में हमारा तअल्लुक़ बेह्तर से बेह्तर होता चला िाएगा और िहााँ आख़ख़रत बेह्तर होगी वहां
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दन्ु या में अनोखी बरकात और अनोखे कमालात लमलना शुरू हो िाते हैं। मैं आि एक घर का कक़स्ट्सा सच्ची कहानी के तौर पर ललख रहा हूाँ हाँ सता बस्ट्ता घर, सास फ़ॉत हो गयी, ससुर फ़ॉत हो गया, दो भाई घर में रहते हैं, एक बहू ने आते ही घर में क़ैन्ची चलाई और दस ू री बहू मेरे कहने पर सब्र होस्ट्ला करती चली गयी, साबबर बहू को रब ने बेटों और ररज़्क़ वाली दौलत से नवाज़ा और मुसल्सल रब नवाज़ रहा है
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और स्िस ने हसद, कीना, बुग़्ज़, लड़ाई झगड़ा को हर वक़्त मोल ललया उस का ररज़्क़ भी गया, बेटे भी ना लमले, स्ज़न्दगी का सुकून भी गया, है रत अंगेज़ अनोखी बीमाररयां उस की हड्िी हड्िी और रे शा रे शा में रच बस गयी हैं। ये उस के हाथ का ललखा एक ख़त आप मल ु ादहज़ा फ़मातएाँ कक क़तअ रहमी इंसान का ररज़्क़, सेहत और सुकून छीन लेती है । आइये! आि के बाद हम फ़ैस्ट्ला करें कक ररश्तेदारों की ज़्यादनतयों
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के बाविद ू भी हम उन के साथ अच्छा मआ ु म्ला करते चले िाएं अल्लाह की बारगाह में ज़रूर इन्साफ़
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और अल्लाह इंसान को ज़रूर अता फ़मातता है । "मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! आप
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मुझ से बहुत सख़्त नाराज़ हैं, मैं ने दो हफ़्ते पहले आप के पास आना था मगर मेरे माली हालात इस क़दर ख़राब थे कक मेरे पास पेरोल के पैसे नहीं थे, दस ददन तीन सो रूपए में गुज़ारे , मैं ने माचत के आख़री हफ़्ते
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और अप्रैल में भी दस ददन एक वक़्त का खाना खाया और शौहर ने भी लसफ़त एक वक़्त का खाना खाया।
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बच्चों को सात ददन मैं ने सादह चावल ख़खलाए। अल्लाह से बहुत मााँगा, बड़ी तस्ट्बीह पढ़ी, अस्ट्तग़फ़ार भी
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ककया लेककन दस ददन कुछ ना हुआ। मेरा बहुत मज़ाक़ भी उड़ाया गया, मैं ने ककसी को नहीं बताया मगर
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स्िन्हों ने दे खा। ककसी से सवाल नहीं ककया और ना ही ख़द ु अपनी ज़बान से हालात बताए। शौहर ने मझ ु से कहा मैं कहीं से उधार चीज़ें ले आता हूाँ, मैं ने उसे मना कर ददया कक ककसी से सवाल नहीं करना, आप
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की बे इज़्ज़ती होगी, बहुत सब्र से काम ललया। ये मस्ु श्कल वक़्त अपने असरात छोड़ गया, मेरे अंदर की
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सारी बनतयााँ बुझ गयी हैं कक मैं तो ककसी भी क़ाबबल नहीं, मैं ये दस ददन क़ब्र तक ना भूलूंगी। िब मेरे
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पास पैसे आए कफर मेरे बच्चों का हर लुक़्मे और हर चीज़ पर शुक्र ही शुक्र था। मैं उसी ददन से कोलशश कर रही हूाँ कक मेरी आप से मुलाक़ात हो िाए। ललखते हुए मेरी आाँखों में आंसू हैं, मैं ने कैसे हालात दे खे, मैं अब
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हर वक़्त अपने आप को कोस्ट्ती रहती हूाँ। हर सांस में अस्ट्तग़फ़ार और शुक्र है । ये दस ददन की यादें मेरी क़ब्र तक का साथ हैं, कभी भी ऊंची उड़ान आ गयी तो ये दस ददन फ़ौरन वापसी का ज़रीआ हैं। आप मुलशतद हैं, लसफ़त आप को बता रही हूाँ और ककसी से स्ज़क्र नहीं ककया। तस्ट्बीह ख़ाना में आने से पहले मुझे तो पता ही नहीं था कक मलु शतद क्या होते हैं? मैं तो लसफ़त तस्ट्बीह ख़ाना दे खने आई थी "ये क्या अिीब व
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ग़रीब चीज़ है " हर वक़्त एक ही िर सा लगा रहता है आप नाराज़ ना हो िाएं। (हालााँकक असल रब है स्िस की नाराज़्गी का एह्सास नहीं: एडिटर) मेरा तो सब कुछ उिड़ चक ु ा है ।"
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माहनामा अबक़री मार्च 2016 शुमारा निंबर 117________________pg 3
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दसच रूहाननयत व अम्न
शैख़-उल-वज़ाइफ़् हज़रत हकीम मुहम्मद ताररक़ महमूद मज्ज़ूबी
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तेरे दर का जो फ़क़ीर, वही दो जहााँ का अमीर
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र्ुग़ताईدامت برکاتہم
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बरकत की राहें : हलाल के अंदर बरकत है । हराम के अंदर कसरत है , कभी बरकत नहीं है । अपनी नस्ट्लों
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को बरकत दो! कभी घाटे का सौदा ना कर बैठना! अपनी नस्ट्लों को बरकत दो और सारा ददन बरकत
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समेटो और बरकत के ज़ररए अख़््यार करो। कोलशश करें कक हम बरकत की राहें अख़््यार करें ! बरकत के रास्ट्ते अख़््यार करें , अल्लाह िल्ल शानुहू कोलशश करने वाले को ज़रूर अता फ़मातते हैं। अगर मुिादहदा
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आता है क़ुबातनी आती है तो सहाबा कराम رضوان ہللا اجمعینने भी क़ुबातननयााँ दी हैं, उन्हों ने बड़े मुिादहदे
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ककये। मेरा करीम िब बरकतों के दरवाज़े खोलता है तो कफर अल्लाह पाक ने उन के घरों को माला माल कर ददया, कफर ज़कात की आवाज़ें दे ने वाला हर कोई होता था, ज़कात लेने वाला कोई नहीं होता था। सारे
ज़कात दे ने वाले होते थे।
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साहहब ए तहक़ीक़ आललम दीन से ज़कात के बारे में जानें : ज़कात तो उस पर होती है िो सादहब ननसाब बन िाए। एक साहब िो पूछ रहे थे "मेरी ये चीज़ें हैं, क्या मैं सादहब ननसाब हूाँ? मैं ने कहा: ककसी आललम से पूछो और आललम भी ऐसा हो िो सादहब ए तहक़ीक़ भी हो। ककन ककन चीज़ों पर मुझे ज़कात दे नी चादहए? कहााँ ज़कात दे नी चादहए? ये सब ककसी सादहब ए तहक़ीक़ आललम से पूछें। घाटे का सौदा ना कर
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन मार्च 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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बैठना: अल्लाह वालो! अल्लाह पाक ने हमें स्ज़न्दगी का मौक़ा ददया है । ये चन्द लम्हे , चन्द घडड़यााँ दी हैं। अपनी मन की दन्ु या में ख़ाललक़ ए हक़ीक़ी को बसा लो। काकफ़र की स्ज़न्दगी मन की दन्ु या में गुज़र गयी, मस ु ल्मान की स्ज़न्दगी भी मन की दन्ु या में गज़ ु र गयी ये तो घाटे का सौदा है । घाटे का सौदा ना कर बैठना। ख़्याल करना! िो कपड़ा बबछा दे उस को ज़कात दे ना शुरू कर दी ऐसा ना करें , उल्लमा से पूछ
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ललया करो। मझ ु े एक बन्दा कहने लगा कक "ज़कात भी परू ी दे ता हूाँ मगर कफर भी नक़् ु सान होता है "। मैं ने
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उस से कहा तू ज़कात ग़लत िगा पर दे ता होगा। इस तरह तो दर हक़ीक़त तू दे ता ही नहीं है । उल्लमा से
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पूछो कक ज़कात कहााँ लगती है ? कफ़त्राना कहााँ लगता है ? सदक़ा कहााँ लगता है ? अबक़री ट्रस्ट का ननज़ाम अल्लाह तआला र्ला रहा है: मैं ने आि तक आप से अबक़री रस्ट्ट के ललए ना ज़कात का सवाल ककया
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और ना सद्क़ात का सवाल ककया, मैं तो आप से ये कहता हूाँ कक उल्लमा से पूछो कक ज़कात सद्क़ात कहााँ
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अदा करें । अल्लाह ने मझ ु े सवाल से बचाया हुआ है । अबक़री रस्ट्ट का ननज़ाम अल्लाह पाक ही चला रहा
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है । अल्लाह वालो! अपनी ज़स्िंदगी में हलाल को अख़््यार करो और हलाल की तहक़ीक़ करो। अल्लाह
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वालो! अल्लाह से मााँगना सीखें। मांगते मांगते ही बन्दा मंगता बनता है , कफर लभकारी बन िाता है ।
िहााँ का अमीर है "
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ककतना ख़श ु कक़स्ट्मत है िो कमली वाले ﷺके दर का लभकारी हो। "तेरे दर का िो भी फ़क़ीर है , वही दो
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मािंगते मािंगते, मािंगने का सलीक़ा आ जाएगा!: कॉलेि के ददन, सुबह सुबह कॉलेि िाना होता था। मुझे
बस में सीट ना लमली। आगे टापे पर िगा लमल गयी। सख़्त सदी थी और बहुत से स्ट्टूिेंट ऐसे थे िो छतों पर बैठे हुए थे। मैं ने तो सूरह अल्क़ुरै श पढ़ी थी तो अल्लाह ने करम कर ददया था। वो बस बड़ी तेज़
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रफ़्तारी से िा रही थी। हमारी सड़कों पर रै कफ़क् ऐसे ही बे हं गम सी होती है । मेरी नज़र सई ु पर थी, िो बड़ी तेज़ी से हरकत कर रही थी। मैं ने ड्राईवर से पूछा "ऐसे तेज़ रफ़्तारी से चलाना कहााँ से सीखा? मुझे कहने लगा "चलाते चलाते तरीक़ा आ गया है"। अल्लाह वालो! हमें भी अल्लाह से मांगते मांगते, मांगने का सलीक़ा आ िाएगा। तू मािंग तो सही, करीम तो माइल ब अता है : मैं एक दफ़ा नअत सुन रहा था मेरे
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ज़ेहन में फ़ौरन आया कक "तू तंगी दामां में ना िा, मांग कुछ और मांग" हाए! आि वो माइल ब अता हैं। मैं सोचने लगा वाक़ई मैं तंगी दामां पर तो नहीं मांगता हूाँ, वो करीम तो माइल ब अता हैं तो मांगने की मश्क़ करें , मांगना सीखें , आि का सबक़ ककतना ददल्चस्ट्प है । और ये मााँगना ना मस्ु म्कन भी नहीं।
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ये मााँगना मज़ु ककल और ना मज़ु म्कन नहीिं: मेरे दोस्ट्तो! इस के ललए कोई इहराम बााँधने की ज़रूरत नहीं। इस के ललए कॉलेि में दाख़्ला लेने की ज़रूरत नहीं। इस के ललए क़ुरआन का हाकफ़ज़, क़ारी या आललम
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होना ज़रूरी नहीं। इस के ललए पी एच िी डिग्री, एम ् एस सी लेनी ज़रूरी नहीं। इस के ललए आम सा आदमी
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बस्ल्क क्या बताऊाँ कक अगर कोई काकफ़र भी अल्लाह से बातें शुरू कर दे । तो उस को भी अता कर दे ।
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हदीस का मफ़हूम है कक मज़्लूम अगरचे काकफ़र क्यूाँ ना हो अल्लाह उस की मदद को ज़रूर पोहं चता है ।
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पूरे आलम की ख़ैर ख़्वाही का जज़्बा हदल में हो: हमारे ददल में ये िज़्बा हो कक अल्लाह दन्ु या के स्ितने
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भी ग़ैर लमस्स्ट्लम हैं, स्ितने भी काकफ़र हैं उनको अपनी ज़ात से बातें करने वाला बना दे । उनको अपनी
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ज़ात से लमलने वाला बना दे । उन के मन के अंदर भी अपनी ज़ात की मुहब्बत अता कर दे । अपने हबीब का इश्क़ अता कर दे । ऐ अल्लाह कोई काकफ़र ऐसा ना मरे , िो मेरे आक़ा तेरे हबीब
सवतरर कौनैन ﷺ
की ग़ल ु ामी के बग़ैर हो, अल्लाह उस को ग़ल ु ामी अता कर दे । हमारे मन में तो
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सवतरर कौनैन ﷺ
मुल्क के सदर और वज़ीर आज़म के बारे में भी यही िज़्बा हो, उन के ललए नफ़रत ना हो अल्लाह वालो!
कौनैन ﷺ
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फ़ौि के बारे में पुललस के बारे में यही िज़्बा हो। अरे दहन्द ू से नफ़रत क्यूाँ है ? वो भी तो मेरे आक़ा सवतरर का उम्मती है , ईसाई भी उम्मती है , यहूदी भी उम्मती है और आग की परस्स्ट्तश करने का उम्मती है । (अल्लाह अपने फ़ज़्ल से उन को दहदायत नसीब कर दे ) हमारे
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वाला भी मेरे आक़ा ﷺ
मन में ककसी के बारे में नफ़रत ना हो। ककसी हुक्मरान को गाली ना दें । उन के ललए दआ ु करें । ददल से दआ ु करें । दआ ु और ददल से ख़ैर ख़्वाही का सच्चा िज़्बा हो। ऐ अल्लाह उस शख़्स के ललए स्िस को तू ने सदर, वज़ीर आज़म, वज़ीर या वज़ीर आला बना ददया, फ़लां अफ़्सर या िायरे क्टर बना ददया, दन्ु या में
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उस की आाँख के इशारे पर गाडड़यां भाग रही हैं, ऐ अल्लाह! उस का इक़्तदार तो मुख़्तलसर है । ऐ अल्लाह! उस को सच्चा और पक्का इक़्तदार दे दे । ऐ अल्लाह! उस को ऐसा इक़्तदार दे कक ये दन्ु या का अमीर और आख़ख़रत का ग़रीब ना हो। हमारे ददल में तो हर एक के ललए सच्ची ख़ैर ख़्वाही का िज़्बा हो। (िारी है )
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दसच से फ़ैज़ पाने वाले मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह तआला आप के मज़ीद दिातत बल ु न्द फ़मातए
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और आप को, आप की नस्ट्लों को ख़श ु आबाद रखे। आमीन! मैं अरसा तीन साल से मुसल्सल तस्ट्बीह
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ख़ाना आ कर हर िुमेरात को दसत में शरीक होती हूाँ और घर में इंटरनेट से आप का दसत सुनती हूाँ। बहुत
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रूहानी सुकून लमलता है । घर में दसत लगाने की बरकत से मेरे बेटे में बहुत तब्दीललयां आई हैं, अब वो
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नमाज़ भी पढ़ना शुरू हो गया है , घर में पहले लड़ाई झगड़े और अिीब कक़स्ट्म का माहोल था मगर अब
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िैसे घर में अम्न आ गया है । शौहर के कारोबार में भी बरकत पैदा हो रही है । अब मुआलश तौर पर हम
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पहले से बहुत बेह्तर और ख़श्ु हाल हैं। (ल-ब, लाहौर)
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मत ु ास्ल्लआ करें )
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(अनोखे रूहानी वज़ाइफ़ और राज़ ववलायत पाने के ललए "ख़त्ु बात अबक़री" मुकम्मल सेट का
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माहनामा अबक़री मार्च 2016 शम ु ारा निंबर 117________________pg 4
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करामत ए अली! ٰرضی ہللا تعالیٰ عنہ
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कटा हुआ हाथ जोड़ हदया और ननशान भी
ना रहा (अमीरुल मअ ु लमनीन हज़रत उमर رضي ہللا عنهने िलाल में आ कर ज़मीन पर एक दरु ात मारा और बल ु न्द आवाज़ से फ़मातया: "ऐ ज़मीन! साककन हो िा, क्या मैं ने तेरे ऊपर अदल नहीं ककया है ?" आप का फ़मातन िलालत शान सन ु ते ही ज़मीन साककन हो गयी)
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(अबू लबीब शाज़्ली)
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लशकम मादर में क्या है?: हज़रत उवात बबन ज़ब ु ैर رضی ہللا عنهماरावी हैं कक अमीरुल मअ ु लमनीन हज़रत
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अबू बकर लसद्दीक़ رضی ہللا عنهने अपने मज़त वफ़ात में अपनी साहब्ज़ादी उम्मुल-मुअलमनीन हज़रत
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आइशा लसद्दीक़ा رضی ہللا عنهماको वलसय्यत फ़मातते हुए इशातद फ़मातया कक मेरी प्यारी बेटी! आि तक मेरे
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पास िो मेरा माल था वो आि वाररसों का माल हो चक ु ा है और मेरी औलाद में तुम्हारे दोनों भाई
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अब्दरु त हमान व मह ु म्मद और तम् ु हारी दोनों बहनें हैं ललहाज़ा तम ु लोग मेरे माल को क़ुरआन मिीद के
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हुक्म के मुताबबक़ तक़्सीम कर के अपना अपना दहस्ट्सा ले लेना। ये सुन कर हज़रत आइशा رضي ہللا عنها
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ने अज़त ककया कक अब्बा िान! मेरी तो एक ही बहन "बी बी अस्ट्मा" हैं, ये मेरी दस ू री बहन कौन है ? आप ने फ़मातया कक मेरी बीवी "बबन्त ख़ािात" िो हाम्ला है , उस के लशकम में लड़की है , वो तुम्हारी बहन है चन ु ाचे
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ऐसा ही हुआ कक लड़की पैदा हुई स्िस का नाम "उम्म कल्सूम" रखा गया। (तारीख़ अल्ख़ल ु फ़ा स५७) इस
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हदीस के बारे में हज़रत अल्लामा तािद्द ु ीन सब्की الرحمة عليهने तहरीर फ़मातया कक इस हदीस से अमीरुल
मुअलमनीन हज़रत अबू बकर رضي ہللا عنهकी दो करामतें साबबत होती हैं। अवल ये कक क़ब्ल वफ़ात ये
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इल्म हो गया था कक मैं इसी मज़त में दन्ु या से रे हलत करूाँगा इस ललए बवक़्त वलसय्यत आप رضي ہللا عنه ने फ़मातया: "कक मेरा माल आि मेरे वाररसों का माल हो चक ु ा है " दस ू रा ये कक हाम्ला के लशकम में लड़का है या लड़की और ज़ादहर है कक इन दोनों बातों का वक़्त से पहले कर दे ना बबला शब ु ा व बबल्यक़ीन पैग़म्बर के िांनशीं हज़रत अमीरुल मुअलमनीन अबू बकर लसद्दीक़ رضي ہللا عنهकी दो अज़ीम अल्शान करामतें हैं (अज़ालत अल्ख़ल ु फ़ा मक़्सद २ स २१ व हुज्ितुल्लाह ि २ स ८६०) मार से ज़ल्ज़ला ख़त्म: इमाम Page 10 of 47 www.ubqari.org
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन मार्च 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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अल्हरमैन ने अपनी ककताब "अल्शालमल" में तहरीर फ़मातया है कक एक मततबा मदीना मुनव्वरह में ज़ल्ज़ला आ गया और ज़मीन ज़ोरों के साथ कांपने और दहलने लगी। अमीरुल मुअलमनीन हज़रत उमर رضي ہللا عنهने िलाल में ज़मीन पर एक दरु ात मारा और बल ु न्द आवाज़ से फ़मातया: "ऐ ज़मीन! साककन हो
िा, क्या मैं ने तेरे ऊपर अदल नहीं ककया है ?" आप का फ़मातन िलालत शान सुनते ही ज़मीन साककन हो
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गयी और ज़ल्ज़ला ख़्म हो गया। (हुज्ितल् ु लाह ि २ स ८६१ व अज़ालत अल्ख़ल ु फ़ा मक़्सद २ स १७२)
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गस् ु ताख़ी की सज़ा: हज़रत अबू क़लाबा رضي ہللا عنهका बयां है कक मैं मल् ु क शाम की सज़तमीन में था तो मैं
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ने एक शख़्स को बारहा ये सदा लगाते हुए सुना कक "हाए अफ़्सोस! मेरे ललए िहन्नुम है" मैं उठ कर उस
के पास गया तो ये दे ख कर है रान रह गया कक उस शख़्स के दोनों हाथ और पाऊाँ कटे हुए हैं और वो दोनों
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आाँखों से अाँधा है और अपने चेहरे के बल ज़मीन पर ऊंधा पड़ा हुआ बार बार लगातार यही कह रहा है कक
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"हाए अफ़्सोस! मेरे ललए िहन्नुम है " ये मंज़र दे ख कर मुझ से रहा ना गया और मैं ने उस से पूछा कक ऐ
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शख़्स! तेरा क्या हाल है ? और क्याँू और ककस बबना पर तझ ु े अपने िहन्नमी होने का यक़ीन है ? ये सन ु
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कर उस ने ये कहा ऐ शख़्स! मेरा हाल ना पूछ, मैं उन बद्द नसीब लोगों मैं से हूाँ िो अमीरुल-मुअलमनीन
हज़रत उस्ट्मान ग़नी رضي ہللا عنهको क़्ल करने के ललए उन के मकान में घस ु पड़े थे। मैं िब तल्वार ले
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कर उन के क़रीब पोहं चा तो उन की बीवी सादहबा ने मुझे िांट कर शोर मचाना शुरू कर ददया तो मैं ने उन
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की बीवी सादहबा को एक थप्पड़ मार ददया। ये दे ख कर अमीरुल-मुअलमनीन हज़रत उस्ट्मान ग़नी رضي ہللا
عنهने ये दआ ु मांगी कक "अल्लाह तआला तेरे दोनों हाथों और दोनों पाऊाँ को काट िाले और तेरी दोनों
आाँखों को अंधी कर दे और तुझ को िहन्नुम में झोंक दे " ऐ शख़्स! मैं अमीरुल मुअलमनीन के पुर िलाल
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चहरे को दे ख कर और उन की इस क़ादहराना दआ ु को सुन कर कााँप उठा और मेरे बदन का एक एक रोंगटा खड़ा हो गया और मैं ख़ौफ़ व दे ह्शत से कांपते हुए वहां से भाग ननकला। अमीरुल मुअलमनीन की चार दआ ु ओं में से तीन दआ ु ओं की ज़द में तो आ चक ु ा हूाँ। तम ु दे ख रहे हो कक मेरे दोनों हाथ और दोनों पाऊाँ कट चक ु े और दोनों आाँखें अंधी हो चक ु ीं। अब लसफ़त चौथी दआ ु यानन मेरा िहन्नुम में दाख़ख़ल होना बाक़ी
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रह गया है और मुझे यक़ीन है कक ये मुआम्ला भी यक़ीनन ् हो कर रहे गा। चन ु ाचे अब मैं इसी का इंतज़ार कर रहा हूाँ और अपने िुमत को बार बार याद कर के नाददम व शमतसार हो रहा हूाँ और अपने िहन्नमी होने का इक़रार करता हूाँ। (अल्लाह तआला हर मस ु ल्मान को अल्लाह वालों की बे अदबी व गस्ट् ु ताख़ी की लअनत से महफ़ूज़ रखे और अपने महबूबों की तअज़ीम व तौक़ीर और उनका अदब व एह्तराम की
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तौफ़ीक़ बख़्शे। आमीन!)
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कटा हुआ हाथ जोड़ हदया: ररवायत में है कक एक हब्शी ग़ल ु ाम िो अमीरुल मअ ु लमनीन शेर ए ख़द ु ा हज़रत
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अली رضي ہللا عنهका इंतेहाई मुदहब था। शामत आमाल से उस ने एक मततबा चोरी कर ली। लोगों ने उसे
पकड़ कर दरबार ख़ख़लाफ़त में पेश कर ददया और ग़ल ु ाम ने अपने िुमत का इक़रार भी कर ललया। अमीरुल
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मुअलमनीन हज़रत अली رضي ہللا عنهने उस का हाथ काट ददया िब वो अपने घर को रवाना हुआ तो रास्ट्ते
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में हज़रत सल्मान फ़ारसी رضي ہللا عنهऔर इब्न अल्कराअ से उस की मुलाक़ात हो गयी। इब्न अल्कराअ
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ने पछ ू ा कक तम् ु हारा हाथ ककस ने काटा? तो ग़ल ु ाम ने कहा अमीरुल मअ ु लमनीन व यअसब ू अल्मस्ु स्ट्लमीन व ज़ौि ए बतूल رضی ہللا عنہمने। इब्न अल्कराअ ने कहा कक हज़रत अली رضي
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दामाद ए रसूल ﷺ
ہللا عنهने तुम्हारा हाथ काट िाला, कफर भी तुम इस क़दर एअज़ाज़ व इक्राम और मदह व सना के साथ उन
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का नाम लेते हो? ग़ल ु ाम ने कहा कक क्या हुआ? उन्हों ने हक़ पर मेरा हाथ काटा और मझ ु े अज़ाब
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िहन्नुम से बचा ललया। हज़रत सल्मान फ़ारसी رضی ہللا عنہने दोनों की गुफ़्तुगू सुनी और अमीरुल
मअ ु लमनीन हज़रत अली رضي ہللا عنهसे इस का तज़्करह ककया तो अमीरुल मअ ु लमनीन ने उस ग़ल ु ाम को
बुल्वा कर उस का कटा हुआ हाथ उस की कलाई पर रख कर रुमाल से छुपा ददया कफर कुछ पढ़ना शुरू कर
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ददया। इतने में एक ग़ैबी आवाज़ आई कक रुमाल हटाओ िब लोगों ने रुमाल हटाया तो ग़ल ु ाम का कटा हुआ हाथ इस तरह कलाई से िुड़ गया था कक कहीं कटने का ननशााँ भी नहीं था। (तफ़्सीर कबीर स्िल्द ५ स ४७९)
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बच्र्े को पपलाएिं, हदमाग़ी कम्ज़ोरी हमेशा के ललए भगाएिं मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! दित ज़ेल टोटके हमारे आज़मद ू ह हैं, क़ाररईन अबक़री के ललए दित हैं:-
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हुवल ्-शाफ़ी: अवल व आख़ख़र ग्यारह ग्यारह मततबा बावज़ू दरूद शरीफ़ पढ़ें , इस के बाद एक पाव रोग़न बादाम पर इक्तालीस बार सरू ह अलम ् नश्रह् पढ़ कर दम कर लें , दरूद शरीफ़ आख़ख़र में भी ग्यारह दफ़ा
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पढ़ कर रोग़न बादाम को सोते वक़्त एक चम्चा एक कप गमत दध ू में िाल कर बच्चे को वपलाएं। ददमाग़
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की कम्ज़ोरी दरू होगी। बाल िड़ना बन्द: हुवल ्-शाफ़ी: सरसों या खोपरे के तेल पर बावज़ू इक्तालीस
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मततबा सूरह व-ल्लैल पूरी सूरह पढ़ कर दम कर लें इस तेल को रोज़ाना सोते वक़्त रात में सर पर माललश
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करें , इन ् शा अल्लाह बाल झड़ना बन्द हो िाएंगे। क़ाररईन! इन नुस्ट्ख़ा िात से हम भी मुस्ट्तफ़ीद हो रहे हैं
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आप भी हों! (फ़रवा, उवात, सास्िद, तल्ला गंग)
माहनामा अबक़री मार्च 2016 शम ु ारा निंबर 117_________________pg 5
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बच्र्ों की तर्बचयत का "बेड़ह ग़क़च" कैसे होता है ?
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(कुछ बच्चे वाल्दै न की तरफ़ से ज़बदत स्ट्ती करने पर होम वकत करने तो बैठ िाते हैं, मगर बार बार उठ कर
इधर उधर घूमने कफरने लगते हैं। इस का इलाि पढ़ाई के दौरान आराम के वक़्फ़े हैं। पढ़ाई ललखाई बस्ल्क
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ककसी भी ज़ेहनी काम के दौरान आराम के वक़्फ़े लाज़्मी हैं।) बच्र्ों में ख़द ु एतमादी की कमी की वजह
वाल्दै न िब अपने बच्चों से शफ़्क़त का मुआम्ला करते हैं तो बच्चों की इस से बढ़ कर कोलशश होती है कक वो भी अपने वाल्दै न को ख़श ु रखें और ककसी मआ ु म्ले में लशकायत का मौक़ा ना दें ऐसे बच्चों में
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फ़माांबदातरी और ख़द ु एतमादी कूट कूट कर भरी होती है इस के बर अक्स वो वाल्दै न िो अपने बच्चों से सख़्ती का मुआम्ला करते हैं तो ऐसी सूरत हाल में बच्चे बाग़ी हो िाते हैं और ख़ब ू बद्द तमीज़ी करते हैं, बच्चों पर सख़्ती लसफ़त उन की इस्ट्लाह के ललए करनी चादहए। बे िा रोक टॉक बच्चों को स्ज़द्दी और हट धमत बना दे ती है । यही पौदे िब तनावर दरख़्त बन िाते हैं तो उन को सीधा करना ना मुस्म्कन हो िाता
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है । वाल्दै न इस बात पर तवज्िह दें । अक्सर ये होता है कक बाप मामल ू ी बात पर बच्चों के सामने शोर
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शराबा करना शुरू कर दे ता है या बच्चों की ग़लती पर बिाए नमी और इस्ट्लाह से काम लेने के उन्हें सब
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के सामने ख़ब ू बे इज़्ज़त ककया िाता है, इस तरह बच्चे एह्सास कम्तरी का लशकार हो िाते हैं और ये एह्सास महरूमी बच्चों में ख़द ु एतमादी के परख़च्चै उड़ा दे ता है । बहुत दफ़ा ऐसा होता है कक बच्चे स्ट्कूलों
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में लसफ़त िर की विह से सबक़ भूल िाते हैं तो इस में उन मासूम बच्चे बस्च्चयों का कोई क़ुसूर नहीं होता
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क्योंकक सबक़ सन ु ाते वक़्त उन का मासम ू ज़ेहन लसफ़त इस बात में अटका होता है कक स्िसे वाल्दै न
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मामूली ग़लती पर सख़्ती का मुज़ादहरा करते हैं तो क्या मालूम ये असा्ज़ह भी ऐसे ही करें । एक ख़ौफ़
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होता है िो उन के ददलों में भरा होता है , बहुत से ऐसे बच्चे ग़ैर मामल ू ी सलादहयतों के माललक होते हैं लेककन ख़द ु एतमादी ना होने की विह से उन की सलादहयतों को यूाँ ज़ंग लग िाता है , ऐसे बच्चे बस्च्चयां
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िब एह्सास महरूमी के साए तले पलते बढ़ते हैं तो ये एह्सास उन की स्ज़न्दगी का एक दहस्ट्सा बन िाता
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है । वो कभी खल ु कर बात नहीं कर सकते। दौर ए हास्ज़र में बच्चों में ख़द ु एतमादी ना होने की एक बड़ी
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विह ये है "वाल्दै न के आपस में लमज़ाि ना लमलना है " वाल्दै न िब बच्चों के सामने झगड़ते हैं तो बच्चों के बच्पन से ही ददलों में ख़ौफ़ भर िाता है वो घबरा िाते हैं, स्ट्कूलों में बहुत से ऐसे बच्चे शालमल हैं स्िन
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से असा्ज़ह की लसफ़त यही लशकायत होती है , बच्चे बद्द तमीज़ हैं, ना फ़मातन हैं इस की बड़ी विह यही है िब टीचसत बच्चों को उल्टे सीधे और बरु े कामों से मना करते हैं तो बच्चे सोच में पड़ िाते हैं कक िब वाल्दै न हमें ग़लत कामों से नहीं रोकते िब वो हमारे ख़ैर ख़्वाह नहीं तो कोई दस ू रा कैसे हमारा ख़ैर ख़्वाह हो सकता है ? ये बात सोचे समझे बग़ैर कक वाल्दै न और उस्ट्ताद में क्या फ़क़त है ? वाल्दै न हमें आस्ट्मान से
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ज़मीन पर लाते हैं लेककन उस्ट्ताद ज़मीन से आस्ट्मान की बुलंददयों तक पोहं चाता है मगर िब उन पर हक़ीक़त ज़ादहर होती है । वो ग़लती तस्ट्लीम करते हुए ददल से मुआफ़ी मांग लेते हैं पर हक़ीक़त में एक ऐसा एह्सास ननदामत पैदा हो िाता है िो उन के ददलों से कभी नहीं िाता और वो ख़द ु को नज़रें लमलाने के क़ाबबल नहीं समझ्ते। मैं तमाम वाल्दै न से दरख़्वास्ट्त करती हूाँ अपने मासूम बच्चों ख़ास तौर पर
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बेदटयों को कभी ना ध्ु कारें , कभी उन्हें तन्हा ना छोड़ें, ये तो अल्लाह की रे हमत होती है , उन से नफ़रत ना
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करें । वो बहुत मासूम होती हैं, बड़ी मज़्लूम होती हैं। आप वाल्दै न अलैदहद्गी िैसा बड़ा फ़ैस्ट्ला करते वक़्त
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बच्चों के मुस्ट्तक़बबल के बारे में ज़रूर सोचा करें क्योंकक आप का एक ग़लत/सही फ़ैस्ट्ला बच्चे के
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(ज़ैतून शहनाज़, गचस्श्तयां)
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मुस्ट्तक़बबल को बबगाड़/ बना सकता है ।
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बच्र्ों के ललए "घर का काम" और आप वाल्दै न के ललए तोशा ख़ास
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एक मग़ररबी मादहर तालीम के मत ु ाबबक़ घर का काम दे ने का मक़्सद बच्चे में ये एह्सास पैदा करना है कक तालीम का अमल महज़ स्ट्कूल तक महदद ू नहीं बस्ल्क घर के अंदर भी तालीम हालसल करना है । दस ू रे
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माइनों में ये लसरे से वाल्दै न का ददत सर है ही नहीं, उन का काम लसफ़त ननगरानी है और असल काम बच्चे
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को तन्हा मुकम्मल करने ददया िाए। कुछ बच्चे वाल्दै न की तरफ़ से ज़बदत स्ट्ती करने पर होम वकत करने
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तो बैठ िाते हैं, मगर बार बार उठ कर इधर उधर घूमने कफरने लगते हैं। इस का इलाि पढ़ाई के दौरान आराम के वक़्फ़े हैं। पढ़ाई ललखाई बस्ल्क ककसी भी ज़ेहनी काम के दौरान आराम के वक़्फ़े लाज़्मी हैं,
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क्योंकक एक काम पर मुसल्सल तवज्िह दे ने के बाद ददमाग़ को आराम की ज़रूरत होती है । पढ़ाई ललखाई के तीस लमनट बाद पांच लमनट आराम या कुछ खा पी लेने से है रान कुन फ़ायदा होता है । दस ू री तरफ़ ये भी एक हक़ीक़त है कक िब यही वक़्फ़ा लम्बा हो िाए या बार बार ककया िाने लगे तो बच्चे की तवज्िह पढ़ाई पर से हट कर मक ु म्मल तौर पर तफ़रीहात की िाननब माइल हो िाती है । कुछ बच्चे घर के काम से
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िान छुड़ाने के ललए झूट भी बोल दे ते हैं और िब उन के वाल्दै न उन से इस बारे में दरयाफ़्त करें तो बड़ी सफ़ाई से िवाब लमलता है "आि घर का काम नहीं लमला" इस ललए वाल्दै न को बतौर ख़ास बच्चों की होम वकत िायरी दे खनी चादहए ता कक इस बात का अंदाज़ा ककया िा सके कक उन के बच्चे को ककतना काम लमला है । अक्सर औक़ात बच्चे लसफ़त इस ललए घर का काम नहीं करते कक उन्हें स्ट्कूल में पढ़ाया
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िाने वाला सबक़ समझ में नहीं आया होता। हालांकक घर के काम की तक्मील ही एक ऐसा ज़रीया है स्िस
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से असा्ज़ह और वाल्दै न बच्चे के ननसाब पर दस्ट्तरस का अंदाज़ा कर सकते हैं। वाल्दै न के ललए भी ये
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लाज़्मी है कक वो बच्चे के ललए घर के काम की एह्मयत समझें। िो बच्चा स्ट्कूल से घर आता है तो उस पर इस लसस्ल्सले में दो स्ज़म्मे दाररयां होती हैं: अवल तो ये कक उसे होम वकत करना है और दस ू रा ये काम
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उसे अपने उस्ट्ताद की मदद के बग़ैर करना है । इस अमल में बच्चा 'ख़द ु तंज़ीमी' सीखता है ।
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र्न्द कारगर तरकीबें: अगर आप वाल्दै न की है लसयत से ये महसूस करें कक घर का काम करने के
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लसस्ल्सले में बच्चे को आप की ज़रूरत है और बच्चा तवज्िह के साथ घर का काम नहीं कर रहा तो दित
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ज़ेल तदबीरें अख़््यार कीस्िये। घर का काम करने के ललए बच्चे को काफ़ी वक़्त दे ना चादहए अगर आप
ये महसस ू करें कक उसे अभी बहुत से काम करने हैं तो उस को उन कामों की कफ़क्र से आज़ाद कर के लसफ़त
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घर के काम पर तवज्िह मरकूज़ करने को कदहये। बच्चे को उसकी मन पसंद िगा पर बबठा कर ललखाई
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पढ़ाई कराने से भी बच्चा घर के काम में ददल्चस्ट्पी लेता है । कुछ बच्चे कुसी मेज़ पर पढ़ना पसंद करते हैं और कुछ बच्चों को ज़मीन पर बबछे क़ालीन पर बैठ कर घर के काम करना अच्छा लगता है । साथ ही इस
बात का भी ख़्याल रखना चादहए कक पढ़ाई ललखाई की िगा घर के ककसी ऐसे गोशे में हो िहााँ दीगर
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अफ़राद ख़ाना की आवाज़ ना पोहं च सके और टे ल्ली ववज़न भी ना हो। वाल्दै न को बच्चों के साथ बैठ कर ही अपनी पढ़ाई ललखाई का काम भी कर लेना चादहए, दफ़्तर का काम है , घर का बिट तरतीब दे ना है या कोई ककताब ज़ेर मत ु ास्ल्लआ है । ये सब काम ऐसे हैं िो बच्चे के साथ बैठ कर ननम्टाए िा सकते हैं। याँू
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बच्चों में भी शौक़ और यक्सूई पैदा होती है । याद रख़खये! आप का बच्चा वही काम शौक़ से करे गा िो वो आप को भी करते हुए दे खेगा। (आललया बेगम, लाहौर)
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माहनामा अबक़री मार्च 2016 शुमारा निंबर 117________________pg 6
मेरी ज़ज़न्दगी कैसे बदली?
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(क़ाररईन! हज़रत िी! के दसत, मोबाइल (मेमोरी काित), नेट वग़ैरा पर सुनने से लाखों की स्ज़ंदगगयााँ बदल
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रही हैं, अनोखी बात ये है चाँ कू क दसत के साथ इस्ट्म आज़म पढ़ा िाता है िहााँ दसत चलता है वहां घरे लू
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(कक़स्ट्त नंबर ६)
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गाड़ी में हर वक़्त दसत हो)
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उल्झनें है रत अंगेज़ तौर पर ख़्म हो िाती हैं, आप भी दसत सुनें ख़्वाह थोड़ा सुनें, रोज़ सुनें, आप के घर,
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! सब से पहले आप के ललए , आप के ख़ान्दान के ललए,
क़यामत तक आने वाली नस्ट्लों के ललए, आप के इस सफ़र और काम के ललए िो अल्लाह के ललए कर रहे
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हैं और आप के ज़ररए अल्लाह की तरफ़ िाने वालों के ललए बहुत से भी ज़्यादा सारी दआ ु एं। अल्लाह आप
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को क़यामत तक आबाद रखे और आप की नस्ट्लों के ललए ख़ैर व आकफ़यत अता फ़मातए। मोहतरम हज़रत हकीम साहब! हवा की एक २१ साला बेटी हूाँ, िो अपने नफ़्स के िाल में फाँसी हुई और इस िाल से
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ननकलने का तरीक़ा तो हुज़ूर नबी करीम ﷺ ने बताया लेककन इस का इस्ट्तेमाल करना आप के दसत से मुझे लमला और अल्लाह की रहमत से आप की ज़ात उम्मीद बन कर लमली। मझ ु े हसरत ही रही कक अपना हाल ककसी को सुनाऊाँ। मैं सात साल की थी कक बीमार हुई और काफ़ी इलाि के बाद अल्लाह ने सेहत दी। मगर इस के साथ स्िस्ट्म में एक और तक्लीफ़ शरू ु हो गयी मेरी दाईं टांग में एक गगल्टी सी बन गयी स्िस में वक़्तन ् फ़वक़्तन ् शदीद ददत होता लेककन ख़झिक की विह से ककसी को बता नहीं सकी। अपनी
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सगी बहन को भी नहीं। इसी तरह वक़्त गुज़रता रहा और मुझे है ज़ आना शुरू हो गए लेककन नामतल नहीं थे। मैं ने कभी कभार अपनी बड़ी बहन को ये तक्लीफ़ बताई लेककन उन्हों ने तवज्िह ना दी। मैं शुरू से ही बहुत स्स्ट्लम स्ट्माटत और ख़ब ू सरू त थी। ना मालम ू क्याँू मेरे ददमाग़ में ये बात बैठ गयी कक मेरी ककसी के ललए कोई एह्मयत नहीं और िब मेरी तक्लीफ़ में घरवालों ने मदद ना की तो आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता मेरी
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नफ़्स्ट्यात मत ु ालसर होने लगी और मैं घंटों अकेली बैठ कर अपने आप से बातें करती और नफ़्स्ट्यानत
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मरीज़ बनने लगी। मैं अल्लाह और उस के हबीब ﷺ को बबल्कुल नहीं िानती थी, कभी कभार नमाज़ पढ़
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लेती। अक्सर मेरे अब्बू मुझे कहते कक शीशे के सामने खड़ी हो कर ककस से बातें करती हो, तब मुझे अपनी इस आदत से भी ख़ौफ़ आने लगा और घुटन और बढ़ने लगी। उम्र ऐसी थी िो तवज्िह मांगती थी
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कफर िब स्ट्कूल से ननकल कर कॉलेि में गई और बाहर का माहोल दे खा तो घर वालों की बे तवज्िगग की
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विह से क़दम भटक गए और मैं ग़लत राहों की मस ु ाकफ़र बन गयी। इन्ही ग़लत राहों पर चलने की विह
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से मैं एक बार बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गयी। एक मततबा रात को अपनी परे शानी को ले कर छत पर
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बेचन ै ी से टहल रही थी कक बाररश शरू ु हो गयी और मैं बाररश में भीग रही थी और साथ मझ ु े रोना आ गया
कक अचानक बाररश में भीगते हुए ददल से आवाज़ आई कक सज्दे में चली िा, मैं सज्दे में गई और ना
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मालम ू रोई, उधर बाररश तेज़ से तेज़ हो रही थी और इधर मैं भी ख़ब ू रो रही थी ू मझ ु े क्या हुआ और मैं ख़ब
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और अल्लाह से मुआफ़ी मांग रही थी, बाररश के पानी और आंसुओं के साथ ही मेरी परे शानी भी कहीं बह
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गयी और िब मैं उठी तो बबल्कुल मु्मइन थी। चन्द ददन बाद अल्लाह ने मेरी मुसीबत भी टाल दी। इसी
तरह कॉलेि का दौर भी ख़्म हुआ। कफर एक ककताब लमली उस में कल्मा तय्यबा का ववदत शुरू ककया,
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कुछ ददन ही पढ़ा कक घरवालों ने इस पर एतराज़ ककया कक हर वक़्त तस्ट्बीह पर क्या पढ़ती हो, मैं िो पढ़ती थी ललख लेती थी। उन्हों ने िांटा कक ऐसे बबला विह वज़ीफ़े नहीं पढ़ते, मैं कफर भटकी और स्ज़क्र छोड़ ददया और कफर तन्हाई के गुनाहों की तरफ़ रागग़ब हो गयी क्योंकक ये गुनाह छुप कर करती थी उस पर िांट नहीं पड़ती थी। गन ु ाहों का रास्ट्ता कफर भल ू ा और मज़ीद भटकी, एक स्ट्कूल में िॉब की और वक़्त
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घर से बाहर गुज़रा, मैं समझी कक अब पुरसुकून हो िाऊंगी लेककन इस बात का बबल्कुल भी इदराक नहीं था कक गुनाह में सुकून नहीं असल सुकून तो अल्लाह के स्ज़क्र में है । टांग की तक्लीफ़ बदस्ट्तूर क़ाइम थी और गगल्टी का साइज़ भी बड़ा हो रहा था। शदीद ददत एक दम उठता, कुछ ददन होता कफर रुक िाता, २००८ में मुझे गवनतमेंट िॉब लमली और मैं अपने आबाई घर वापस आ गयी। पांच माह बाद मेरी मंगनी हो
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गयी, मझ ु े बस इ्तलाअ दी गयी कक तम् ु हारी बात पक्की हो गयी है दो माह बाद तम् ु हारी शादी है । २००९
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में मेरी शादी हो गयी, अपनी नई स्ज़न्दगी का आग़ाज़ मु्मइन हो कर ककया कक अब तक्लीफ़ें ख़्म हो
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िाएंगी मगर नहीं! शादी की पहली रात ही शौहर ने कहा कक मैं शादी के क़ाबबल ही नहीं, तुम िाना चाहती हो तो चली िाओ। मगर मैं ने घर वालों की ख़श ु ी ख़ानतर ये ज़ुल्म भी बदातश्त ककया, िब तीन माह बाद
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मेरी टांग में कफर ददत शुरू हुआ तो मैं ने अपने शौहर को बताया कक मुझे इस तरह काफ़ी अरसा से तक्लीफ़
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है तो शौहर को बहाना लमल गया उस ने लसफ़त गगल्टी की विह से मझ ु े घर भेि ददया कक इस के मााँ बाप
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के घर की बीमारी है वही ठीक करवाएं िब टे स्ट्ट हुए तो िॉक्टर ने कहा कक तश्वीश की बात नहीं लसफ़त छोटे
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से ऑपरे शन से ये ठीक हो िाएगा मेरे शौहर ने मज़ीद इल्ज़ामात लगा कर मझ ु े तलाक़ दे दी। इसी दौरान मैं ने फ़ेस बुक इस्ट्तेमाल करना शुरू कर दी, कफर एक लड़के के एस एम ् एस आने शुरू हो गए लेककन मैं
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अब इस गन ु ाह में नहीं िाना चाहती थी, वो भी शायद मेरी तक़्दीर् का दहस्ट्सा बनना चाहता था, बाज़ ना
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आया, मैं ने भी उस से बात शुरू कर दी, मुझे वेसे भी तवज्िह चादहए थी, मैं भी उस की तरफ़ माइल हो
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गयी, मैं ने उस से कहा कक हमारी शादी नहीं हो सकती मगर वो ना माना और कहा कक मैं सब को मना
लाँ ग ू ा। िब उस के और मेरे घर वाले ना माने तो उस ने कहा कक हम कोटत मैररि कर लेते हैं। मैं घर वालों
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के रवय्ये से तंग तो थी लेककन इस बात से उन्हें तक्लीफ़ नहीं दे ना चाहती थी। एक रात अपनी दादी के घर थी, रात एक बिे के बाद मेरी आाँख खल ु ी, टाइम दे खने के ललए मोबइल उठाया, साथ ही फ़ेस बक ु चेक की, अबक़री के नाम से एक वज़ीफ़ा था, अच्छा लगा, नीचे वेब साईट थी, मैं ने ऐसे ही ओपन कर ली, िब खल ु ी तो मेरी आाँखें खल ु ी की खल ु ी रह गईं। ये रास्ट्ता तो मेरी मंस्ज़ल का था। ये वो दन्ु या थी स्िस की मझ ु े
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तलाश थी, मैगज़ीन पढ़ा, वज़ाइफ़् शुरू ककये, स्िस में एक पसंद की शादी का भी था लेककन साथ ही ललखा था कक वज़ाइफ़् के ललए पांच वक़्त की नमाज़ अदा करें और गुनाहों से बचें । मैं ने काफ़ी कुछ मोबाइल में िाउन लोि ककया और वापस आ गयी। नव्वे ददन का वज़ीफ़ा था, िो शरू ु ककया, साथ ही नमाज़ पढ़ती और हर वक़्त आप के दसत सुनती। वज़ीफ़े से पसंद की शादी तो ना हुई मगर पसंद का रास्ट्ता
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लमल गया, ये रास्ट्ता मेरी मंस्ज़ल की तरफ़ िाता था। उसी लड़के से फ़ॉन पर बात करती वो कोटत मैररि
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पर बस्ज़द्द था। वाल्दै न से बात की तो सख़्त नाराज़ हुए और कहा कक दन्ु या इधर से उधर हो िाए शादी
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नहीं होने दें गे और मैं ख़ामोश हो गयी। मेरा ददल एक मततबा कफर टूटा तो अल्लाह ने मुझे अपनी तरफ़ बुला ललया और ददल से आवाज़ आई कक अब रास्ट्ता हज़रत हकीम साहब के दसत से हो कर अल्लाह तक
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िाएगा। नेट पर आप से बैअत हुई, अब यक़ीन था कक मंस्ज़ल लमल िाएगी, आप की तरफ़ से बैअत काित
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लमला और मझ ु े ददल से ख़श ु ी हुई। आप के दसत हर वक़्त सन ु ती हूाँ। मेरी स्ज़न्दगी अब बदल चक ु ी है ,
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तमाम मायुलसयां, उदालसयााँ, तन्हाईयााँ ख़्म हो चक ु ी हैं। हर वक़्त आमाल करती रहती हूाँ। स्ज़न्दगी में
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एक सक ु ी हूाँ, फ़ेस बक ु एड्रेस तब्दील कर ु ू न आ गया है । बरु े रास्ट्ते छूट चक ु े हैं। मोबाइल लसम्स बदल चक ललया है । हर वक़्त मस्ट्नून आमाल करने की कोलशश करती हूाँ। अल्हम्दलु लल्लाह! बापदातह हो चक ु ी हूाँ। अब
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ड्यट ू ी भी करती हूाँ, घर के काम काि भी करती हूाँ। अब मैं ने अपनी शादी का मसला अल्लाह पर छोड़
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ददया है । बस मेरे ललए एक दआ ु कर दीस्ियेगा कक अल्लाह मुझे कभी अपने से दरू ना करे और गुनाहों
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वाली स्ज़न्दगी मुझे कभी दब ु ारह ना लमले। आमीन। (अल्लाह की मंगती)
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मेरी ज़ज़न्दगी कैसे बदली
क़ाररईन! अगर आप के इदत गगदत मुआश्रे में कोई ऐसा ही भटका हुआ ख़द ु ा का बन्दा या बन्दी सीधे रास्ट्ते पर आई है तो आप ज़रूर ज़रूर उस के राह रास्ट्त पर आने का मक ु म्मल वाक़्या ललख कर एडिटर अबक़री को भेिें। आप की ललखी हुई तहरीर मुकम्मल नाम पता और िगा तब्दील कर के ललखी िाएगी। अबक़री ररसाला हर मक्तबा कफ़क्र के हााँ पढ़ा िाता है क्या मालम ू आप की ललखी हुई तहरीर से कोई अाँधेरी ग़लीज़ Page 20 of 47 www.ubqari.org
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गललयों को छोड़ कर नूरानी आमाल पर आ िाए और ये आप और आप की नस्ट्लों के ललए सदक़ा ए िाररया बन िाए। माहनामा अबक़री मार्च 2016 शुमारा निंबर 117_______________pg 15
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ज़जस्मानी व रूहानी हुस्न के लाजवाब आसान टोटके (हर चेहरे पर मेरे अल्लाह का नूर होता है और ये बात है कक इंसान अपने आमाल से उन में इज़ाफ़ा करता
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(फ़ौस्ज़या मग़ ु ल, बहावल्परु )
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कक उस का चेहरा हर गन ू गी और हर गम ु ान ए गन ु ाह से भी पाक होता है ।) ु ाह, हर आलद
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है या उस नूर को ख़्म करता है । एक छोटा पैदा होने वाला बच्चा हमें लसफ़त इस विह से प्यारा लगता है
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! आि मैं स्िस मोज़अ ू पर बात कर रही हूाँ वो कोई एक
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चीज़ नहीं है बस्ल्क हर चीज़ अपनी अपनी िगा पर पूरी कायनात है , अपना मुक़ाम और अपना ही काम है
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और कोई चीज़ उन की िगा नहीं ले सके हैं वो है हमारे स्िस्ट्म के इंतेहाई एहम दहस्ट्से यानन आाँख, कान,
नाक और दांत िो सब को लमला कर हमारा प्यारा और ख़ब ू सूरत सा चेहरा बनता है , हर चेहरा मेरे प्यारे
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अल्लाह रब्बुल ्-इज़्ज़त की तख़्लीक़ को बयां करता है । हर चेहरे पर मेरे अल्लाह का नूर होता है , ये और
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बात है कक इंसान अपने आमाल से उन में इज़ाफ़ा करता है या उस नूर को ख़्म करता है । एक छोटा पैदा होने वाला बच्चा हमें लसफ़त इस विह से प्यारा लगता है कक उस का चेहरा हर गुनाह, हर आलूदगी और हर गम ु ान ए गन ु ाह से भी पाक होता है । यही मासलू मयत भरी आाँखें िब बाललग़ होने के बाद अल्लाह की
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नाफ़मातनी में लग िाती हैं और अल्लाह की मुक़रत र की हुई हदद ू को तोड़ दे ती हैं तो हमें इन आाँखों से वेहशत होती है । अपनी आाँखों में होश नज़र आती है, शराबी की आाँखें लाल और ख़म ु ार आलद ू ह हो कर बताती हैं कक हम अल्लाह की बताई हुई हदद ू पार कर चक ु े हैं। इसी तरह अल्लाह की मुहब्बत और स्ज़क्र में सशातर आाँखें भी ख़म ु ार आलूदह होती हैं लेककन ये वो आाँख होती है स्िस का पदातह (पलकें) अल्लाह के
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हुक्म से गगरता और उठता है िो आाँख अल्लाह के ख़ौफ़ से रोए गी उस को िहन्नुम की आग नहीं छुएगी स्िस्ट्म के ककसी दहस्ट्से पर पदातह नहीं लेककन आाँख का पदातह दे कर अल्लाह ने हमारी आाँखों को आलूदह होने से बचाया है आाँख से ककसी ग़ौर मेहरम को दे खा और ददल दे ददया, आाँख से कफ़ल्म दे खी, आाँख से वो वो दे खा स्िस ने स्िस्ट्म के बाक़ी एअज़ा को भी मुतालसर कर ददया और यूाँ पूरा स्िस्ट्म गुनाहों में मुब्तला
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हो गया, गोया पदातह के िाने से आख़ख़रत भी गयी। अपनी प्यारी आाँखों की दहफ़ाज़त करें , उनको रूहानी व
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स्िस्ट्मानी गंदगी से बचाएं, अपनी नज़रों को ना मेहरम की नज़रों से बचाएं, आप यक़ीन करें अल्लाह आप
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को अपनी इबादत और स्ज़क्र का मज़ा और लज़्ज़त दे गा। अगर नहीं कर पाते, माहोल ऐसा है तो कोलशश करें , अल्लाह से मदद मांगें, इन ् शा अल्लाह तआला, अल्लाह करीम ज़रूर मदद फ़मातएाँगे। हर आाँख की
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दहफ़ाज़त के ललए नो फ़ररश्ते मुक़रत र हैं, वो फ़ररश्ते आप की आाँख की दहफ़ाज़त करते हैं, बदले में वो चाहते
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होंगे कक आप अपनी आाँखों में हया और शमत का पदातह गगरा कर रखें। अपनी प्यारी आाँखों को सन् ु नत के
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मुताबबक़ संवार के रखें, रात को सोते वक़्त सुन्नत के मुताबबक़ सुमात लगा कर सोएं, शहद में कास्ट्टर
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आयल लमला कर रोज़ाना रात को सोते वक़्त अपनी पलकों पर लगाएं, इन ् शा अल्लाह वो लम्बी और घनी होंगी। रात को सोने से पहले नमक लमले पानी से आाँखें धोने से आाँखें चमक्दार होती हैं। गुलाब के
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अक़त में रुई के दो फाए ले कर लभगो कर ठं िा कर लें और आराम से बबस्ट्तर पर लेट कर आाँखों के ऊपर रख
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लें और पन्रह लमनट के बाद उतार लें, आाँखें फ़्रेश हो िाएंगी। आलू या खीरे के गोल क़्ले ठन्िे कर के
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आाँखों पर रखने से आाँखों की सूिन कम होगी, टी बैग्स को इस्ट्तेमाल करने के बाद ठं िा कर लें और आाँखों
सूिन ख़्म होगी।
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के ऊपर रख लें और बीस लमनट तक रखें और ज़बान से कोई सा भी दरूद शरीफ़ पढ़ते रहें , हल्क़े और
कान: स्िस को लोग लसफ़त सुनने के ललए और औरतें तरह तरह के झुम्के और टॉप्स पहनने का ज़रीया समझते हैं। अपने असल मक़्सद को भल ू े हुए हैं। इंसानी स्िस्ट्म में सब से ख़तरनाक ददत कान होता है और अगर कान की बीमारी का इलाि ना हो तो बीमारी ददमाग़ का कैंसर तक बन िाती है । इसी तरह रूहानी
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कैंसर भी होता है कुछ लोगों को दे ख कर लगता है कक उन के कान लसफ़त और लसफ़त गाने सुनने के ललए हैं और कुछ लोगों के कान लसफ़त दस ू रों की बुराइयां सुनने में मज़ा लेते हैं और अल्लाह के बनाए कुछ नेक लोगों के नेक कान लसफ़त नतलावत और प्यारे रसल की प्यारी बातें सन ू ﷺ ु ने के ललए होते हैं। उन के कान अल्लाह के स्ज़क्र और नतलावत और अज़ान की आवाज़ सुन कर सरशार हो िाते हैं। कान को फ़ाल्तू उज़्व
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समझ कर बहुत कम तहक़ीक़ की गयी है । अल्ब्त फ़्रांस के साइंस दानों ने कान के हर दहस्ट्से पर तहक़ीक़
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की है और बताया है कक अगर कान के ऊपर वाले दहस्ट्से को कुछ दे र नरम हाथों से मसाि करें तो ये हमारी
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भूक को कंरोल करते हैं और िो लोग मोटापा कम करना चाहते हैं। वो लोग अगर ददन में चन्द बार ऐसा करें तो उन की भूक कम हो के उन का मोटापा उतार सकती है । कानों को दोनों हाथों से पकड़ कर सच्चे
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ददल से अल्लाह के हुज़ूर तौबा भी हो सकती है । हमारे कानों का सीधा तअल्लुक़ ददमाग़ से है , ददल बाद में
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सोचता है और ज़बान उस के बाद िवाब दे ती है । ज़बान से गाली दो कान सन ु कर फ़ौरन ददमाग़ को
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लसग्नल दे ते हैं और रद्द अमल ज़ादहर होता है अपने कानों में सूरह रहमान लगा कर सुनाओ तो वो बीमार
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रूह और बीमार स्िस्ट्म को फ़ौरन एनिी दे ते हैं। गोया ये कान हमारी पॉवर एनिी मशीन हैं। यही कान िब गुनाह और अल्लाह की हदद ू को पार कर के शैतानी गग़ज़ा यानन मौसीक़ी को सुनते हैं तो क़यामत के
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ददन उन में गरम सीसा िाला िाएगा। कान की दहफ़ाज़त करें उन्हें शैतान के हवाले ना करें , कान के ज़ररए
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शैतान को अपना वार करने का मौक़ा ना दें , आाँखों के साथ अपने कानों की भी दहफ़ाज़त करें , अल्लाह
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आप के पूरे स्िस्ट्म की दहफ़ाज़त करे गा। नाक: नाक इंसानी स्ज़न्दगी का एहम तरीन उज़्व है , इस के ज़ररए सांस आती है और स्ज़न्दगी की रमक़ बाक़ी रहती है अगर सांस ना आये तो स्ज़न्दगी ख़्म! ये
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हमारी हवास ख़म्सा का एहम तरीन रुक्न है , ये ख़श्ु बू को महसूस कर के ददमाग़ को एह्सास ददलाता है और परू े स्िस्ट्म को फ़रहत का एह्सास होता है , ताज़्गी का एह्सास होता है और िब यही बद्बू और गन्दगी को महसूस करता है तो हम कहते हैं कक हमें उल्टी आ गयी, ददल ख़राब हो गया, गोया नाक से हमारे एह्सासात का बहुत तअल्लक़ ु है , नाक की बीमारी िहााँ ख़श्ु बू और बद्बू का एह्सास नहीं होने दे ती
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बस्ल्क अगर ये बढ़ िाए तो इस का असर आाँख और कान तक भी िाता है । नज़्ला नाक में होता है और ददत बअज़ औक़ात आाँख और कान में भी होता है गोया ये सब आपस में बहन भाई हैं, नाक ऊंची करने के ललए लोग बअज़ औक़ात अल्लाह की मक़ ु रत र की हुई हदद ू से भी बाहर ननकल िाते हैं और िब यही नाक कट िाए तो लशकायत और लशक्वे करते नज़र आते हैं। हुस्ट्न व ख़ब ू सूरती को बढ़ाने के ललए सब से पहले
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िो सितरी ईिाद हुई वो नाक की ही थी। मोटे नाक को प्ला और लम्बा करने के ललए लोग पैदा होते ही
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बच्चे की नाक दबाने लग िाते हैं। एक बच्चा स्िस की आाँखों से मुसल्सल पानी आता था आाँखें ही चेक
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करवाता रहा बाद में पता चला कक बच्पन में उस की मााँ ने उस के मोटे नाक को प्ला करने के ललए इतना दबाया कक उस के नाक के ऊपर के दहस्ट्से की नसें दब गईं स्िस से पानी नीचे की बिाए आाँखों के
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रस्ट्ते ख़ाित होने लगा। नाक में अगर ज़्यादा नज़्ला, ज़ुकाम रहे तो ददमाग़ी कम्ज़ोरी हो िाती है लेककन
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क़ुबातन िाइए मेरे मदीने वाले ताज्दार अंब्या हुज़रू सवतरर कौनैन ﷺ के स्िन्हों ने वज़ू के नाम पर हमारी
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नाक की सफ़ाई पांच वक़्त करवा दी, नाक के अंदर पानी िालने से नाक के मेल, लमट्टी और हर कक़स्ट्म के
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िरासीम ननकल गए और हम सांस फ़्रेश तरीक़े से लेने लगे। रात को सोते वक़्त शैतान, हमारी नाक के बांस में रात गुज़ारता है और िब हम फ़ज्र के ललए उठते हैं और वज़ू के ललए नाक साफ़ करते हैं तो वो
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गन्दगी और नहूसत और बीमारी िो वो हमारी नाक में छोड़ िाता है वज़ू के ज़ररए साफ़ हो िाते हैं। प्यारे
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अल्लाह को हमारे एक एक दहस्ट्से से प्यार है और नाक भी हमारे ख़ब ू सूरत चेहरा का दहस्ट्सा है सुन्नत के
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मुताबबक़ इस की दहफ़ाज़त करें । वज़ू के ज़ररए इस की दहफ़ाज़त करें और शैतान का घर ना बनने दें । दािंत: हमारे प्यारे चेहरे का एहम तरीन दहस्ट्सा दांत हैं, ख़ब ू सूरत,सफ़ेद और चमकते दांत हमारी मुस्ट्कराहट और
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हं सी को और मज़ीद हसीन बनाते हैं। ख़ब ू और साफ़ सुथरा इंसान अपने दांतों के साथ ही साफ़ सुथरा लगता है अगर सब साफ़ है और दांत मेले हैं, गंदे हैं तो इंसान की सब शस्ख़्सयत ख़्म हो िाती है । इंसान खल ु कर मुस्ट्करा भी नहीं सकता है और अगर मुंह में दांत ना हों तो बुढ़ापे की शक्ल ददखाई दे ती है । दांतों की एहलमयत का अंदाज़ा हमें हुज़रू नबी करीम ﷺ की मख़् ु तललफ़ हदीसों से लमलता है स्िस में हमें
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लमस्ट्वाक की एहलमयत बताई गयी है और लमस्ट्वाक का काम दांत साफ़ करना ही नहीं बस्ल्क ये हमारी रूहानी और स्िस्ट्मानी बीमाररयां दरू करने का ज़रीया है गोया दांतों को साफ़ करना इतना ज़रूरी है कक इस से रूह भी पाकीज़ह हो िाती है । लमस्ट्वाक करने से कल्मा नसीब होता है । हलक़ की सफ़ाई होती है । नज़र तेज़ होती है । सुन्नत है , बरकत है और सेहत है । आख़री वक़्त में हमारे प्यारे नबी करीम ﷺ ने लमस्ट्वाक ही
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स्िस्ट्म को िन्नत के क़ाबबल बनाइये।
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माहनामा अबक़री मार्च 2016 शुमारा निंबर 117________________pg 18
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की थी। अपने आप से प्यार करें अपने स्िस्ट्म के एअज़ा को अल्लाह की ना फ़मातनी में मत लगाएं, अपने
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मेरी ज़ज़न्दगी के तस्दीक़ शुदह सीने के राज़
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(टाइफ़ोइि बख़ ु ार का एक नस्ट् ु ख़ा िो सीने में एक राज़ की तरह था, अबक़री के क़ाररईन के हवाले कर रहा
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हूाँ, दे सी अज्वाइन ले लें, रात भर एक गगलास पानी में रख छोड़ें, सुबह इस में से अज्वाइन का नछल्का
(िॉक्टर ज़फ़र हमीद मललक, अटक लसटी)
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अलैदहदह कर लें और मग़ज़ अलैदहदह कर लें , नछल्का और रात का पानी फैंक दें )
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क़ाररईन अबक़री के ललए हमेशा मेरी कोलशश रही है कक ऐसे राज़ों से पदात उठाऊाँ या वो बताऊाँ िो मैं ख़द ु िानता हूाँ, मेरे तिुबे से गुज़रे हों या ककसी तस्ट्दीक़ शुदह ज़ररए से हालसल हों। सब से पहले मैं अपने
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रूहानी उस्ट्ताद एडिटर अबक़री हज़रत हकीम साहब دامت برکاتہمका तहे ददल से शुक्र गुज़ार हूाँ स्िन की रहनम ु ाई और होस्ट्ला अफ़्ज़ाई से नए मोज़आ ू त पर ललखने और तहक़ीक़ करने का शौक़ पैदा हुआ है , क़ाररईन की नज़र कुछ िवाहरात। आि का पहला नुस्ट्ख़ा उन बहनों के ललए िो िॉक्टर या लेिी िॉक्टर को बताते हुए शमातती हैं और ये ना बताने की विह से रोज़ बरोज़ कम्ज़ोर् होती िाती हैं वो बीमारी है ललकोररया, और ये एक ऐसी बीमारी है कक िैसे लकड़ी के दरवाज़े को दीमक लग िाए, आदहस्ट्ता
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आदहस्ट्ता, रोज़ बरोज़ कम्ज़ोर्, कमर ददत , तबीअत बोझल, ना ख़्म होने वाली स्िस्ट्मानी कम्ज़ोरी। हुवल ्-शाफ़ी: असगंध पचास ग्राम, मुस्ट्ली सफ़ेद पचास ग्राम, सुंढ दस ग्राम, लमस्री दस ग्राम सब को अच्छी तरह ग्राइंि कर लें और ददन में दो बार सब ु ह व शाम दध ू के साथ लेककन कम अज़ कम दो हफ़्ता तक लाज़्मी इस्ट्तेमाल करें । इस के साथ पाक सुपारी भी इस्ट्तेमाल कर लें। तो इन ् शा अल्लाह लशफ़ायाबी
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आप का मक़ ु द्दर है । अक्सर लोग लशकायत करते नज़र आते हैं कक मंह ु फूल गया, मंह ु में छाले ननकल
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आए, खाना खाते हुए मुंह में ददत होता है एक ननहायत ही मुिरत ब नुस्ट्ख़ा पेश ख़ख़दमत है । हुवल ्-शाफ़ी: एक
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अदद टमाटर लें, उस के चार बराबर दहस्ट्से कर लें , रात सोने से पहले एक दहस्ट्से को मुंह में रख कर चबाना है , ऐसे चबाना है िैसे गाये भैंस कुछ खाते हुए िुगाली करती है , ऐसे टमाटर को मुंह में रख कर
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िुगाली करनी है, कुछ दे र के ललए इस का ज़ायक़ा िब कड़वा लगने लगे और मुंह में काफ़ी पानी िमा हो
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िाए तो इस को गगरा कर यानन थक ू कर दस ू रा टमाटर का दहस्ट्सा मंह ु में िाल लें कफर कुछ दे र उस की
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िुगाली करें िब कड़वा हो िाए तो फैंक दें और कफर इसी तरह बाक़ी दो दहस्ट्से भी चबाएं। एक दो ददन तक
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करें मैं यक़ीन से कह सकता हूाँ इन ् शा अल्लाह लसफ़त दो ददन में ररज़ल्ट लें। ये एक राज़ था िो आि
अबक़री पढ़ने वालों के नाम कर ददया। मेरे वो नोिवान बच्चे और भाई िो एहतलाम से तंग हों ख़्वाह वो
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ख़्वाब के साथ हो या बग़ैर ख़्वाब के ककसी भी तरीक़ा इलाि से आराम ना आ रहा हो ककसी भी
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होम्योपेगथक स्ट्टोर से "थोिा क्य"ू ले लें, पांच क़तरे आधी प्याली पानी में ददन में तीन बार इन ् शा
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अल्लाह मेडिसन ख़्म होने से पहले आराम आ िाएगा।
अक्सर लोगों को ये लशकायत आम होती है कक शदीद गमी हो या शदीद सदी पाऊाँ िलते रहते हैं, ककसी
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भी दवा से सुकून नहीं लमलता, एक ऐसा नुस्ट्ख़ा क़ाररईन के हवाले कर रहा हूाँ िो बज़ादहर कुछ नहीं लेककन इस के इस्ट्तेमाल के बाद आप ये कहने पर मज्बूर हो िाएंगे कक अल्लाह पाक ने कोई भी चीज़ दहक्मत के बग़ैर पैदा नहीं की, िलन का मरीज़ रात को आराम से सो नहीं सकता, वो मज्बरू होता है कक पाऊाँ या हाथ सदी के मौसम में भी बबस्ट्तर से बाहर ननकाल कर सोए। हुवल ्-शाफ़ी: भैंस के गोबर की
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माहनामा अबक़री मैगज़ीन मार्च 2016 के एहम मज़ामीन हहिंदी ज़बान में
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ख़श्ु क शुदह थावपयां या (पागथयां) ले कर उन को िला कर राख बना लें एक बड़े बततन में पांच ककलो पानी िाल कर उस में दो सो ग्राम राख अच्छी तरह लमला लें। रात को सोने से एक घंटा पहले आधे घन्टे के ललए पाऊाँ उस पानी में रख दें । इस तरह लसफ़त दस ददन तक लगातार करें । इन ् शा अल्लाह पाऊाँ के तल्वों की िलन ख़्म हो िाएगी। मेरा आज़मूदह नुस्ट्ख़ा है , उन मरीज़ों के ललए ख़ास तौर पर स्िन को ककसी भी
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तरीक़ा इलाि से आराम ना आता हो। दांत में ददत की लशद्दत का अंदाज़ा लसफ़त उसी को हो सकता है िो
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कभी उस से गुज़रा हो, इंतहाई शदीद ददत होता है , उस में गुज़रने वाला शख़्स फ़ौरी ररलीफ़ चाहता है ,
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अक्सर िेंदटस्ट्ट हज़रात के पास आप ने दे खा होगा कक आप शदीद दांत ददत में मुब्तला हो कर िॉक्टर के पास गए उन्हों ने आप के दांतों पर रुई रखी और रुई रखते ही ददत ग़ायब, अक्सर ख़्याल ककया िाता है कक
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कोई सुन्न करने वाली दवा होगी, आि अबक़री पढ़ने वालों को ये राज़ प्रैस्क्टस भी बता रहा हूाँ। हुवल ्-
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शाफ़ी: होम्योपेगथक मदर दटंक्चर प्लांटी गो और मदर दटंक्टर ककयातज़ोदटम बराबर लमक़्दार में लमला लें।
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ददत वाले दांत पर रुई की मदद से लगा लें, लसफ़त दो घड़ी रुई दांत पर रहने दें , कफर मुंह खोल दें तमाम
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गन्दा (बादी) पानी बाहर ननकल िाएगा। कफ़क्स तीन लमनट में इन ् शा अल्लाह आप को आराम आ िाएगा। बनाएं, इस्ट्तेमाल करें और दआ ु ओं में याद रखें।
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वो बच्चे िो इंतहाई स्ज़द्दी हों और गचड़गचड़े पन का लशकार हों, मुख़्तललफ़ चीज़ों की ख़्वादहश करें और िब
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ना दी िाएं तो ख़फ़ा हो िाएं लेककन लमज़ािी तौर पर शरीफ़ अल्नफ़्स ् और नरम तबअ, ऐसे बच्चे िो गोद में हों अगर उन को होम्योपेगथक मेडिसन "कैमोलमला" ३० ददन में तीन बार इस्ट्तेमाल करवाई िाए तो चन्द ददनों में ही ख़ानतर ख़्वाह फ़क़त महसूस करें गे। टाइफ़ॉइि बुख़ार का एक नुस्ट्ख़ा िो सीने में एक
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राज़ की तरह था, अबक़री के क़ाररईन के हवाले कर रहा हूाँ, दे सी अज्वाइन ले लें , रात भर एक गगलास पानी में रख छोड़ें, सुबह इस में से अज्वाइन ् का नछल्का अलैदहदह कर लें और मग़ज़ अलैदहदह कर लें , नछल्का और रात का पानी फैंक दें , एक परु ाने लमट्टी के घड़े का टुकड़ा ले कर उस को आग पर अच्छी तरह गमत कर लें , इतना गरम कक उस में से धवां उठने लगे, इस टुकड़े को आग से उठा कर एक गगलास ठं िे
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पानी में िाल दें । इस पानी के साथ ददन में दो बार थोड़ी लमक़्दार मग़ज़ अज्वाइन ् की लें , इन ् शा अल्लाह सारी उम्र टाइफ़ॉइि बुख़ार दब ु ारह नहीं होगा। मोहतरम क़ाररईन! अबक़री की बदौलत अब मैं अल्लाह तआला के सामने सरु ख़रू ु हो सकता हूाँ कक आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता अपने सीने के राज़ों से पदात उठा रहा हूाँ, आइन्दा भी यही कोलशश िारी रहे गी लेककन इन सब राज़ों पर से पदात उठाने पर स्िस हस्ट्ती ने मज्बूर
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ककया वो िनाब मोहतरम हज़रत हकीम साहब دامت برکاتہمहैं, स्िन्हों ने एक ऐसी बन् ु याद रखी स्िस पर ये
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पोदा एक दरख़्त का रूप धार रहा है और इन ् शा अल्लाह आने वाले ददनों में मुकम्मल तना आवर दरख़्त
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बन िाएगा, अबक़री में ददलों के राज़ों से पदात उठाया िाता है, इस ललए तो ये ररसाला एक कम अरसे में शुहरत की इंतहाई बुलंददयों पर पोहं च गया, हर ककसी को अबक़री का आने का इंतज़ार रहता है , हमारे
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पास तो ये िब अबक़री पोहं चता है तो मुकम्मल तय्यार कॉपी लेककन इस के पीछे एक माह की अंथक
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मेहनत, तहरीरों की लसलेक्शन, मेरे नॉललि के मत ु ाबबक़ हज़रत हकीम साहब इंतहाई मसरूफ़ होने के
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बाविूद शायअ होने वाली एक एक तहरीर को ना लसफ़त पढ़ते हैं बस्ल्क परखते भी हैं कक ये तहरीर ककतनी
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मस ु ह्रक नज़र आता है , कॉम्पोस्ज़ंग करवाना, प्रफ़ ू ु द्दक़ा है और कफर एक परू ा इदारा अबक़री के ललए मत
रीडिंग चेक करना, है डिंग्स चेक करना, तरतीब और तज़ ्ईन का प्रोसेस, लेककन इस तमाम के पीछे अपनी
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टीम की होस्ट्ला अफ़्ज़ाई करना, उस कप्तान की दहम्मत को दाद दें िो एक माह बाद हमारे ललए ननत ् नए
इस्ट्लाह भी होती है ।
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मोज़ूअ के साथ "माहनामा अबक़री" ले कर आते हैं स्िस में हमारी स्िस्ट्मानी इस्ट्लाह के साथ साथ रूहानी
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माहनामा अबक़री मार्च 2016 शुमारा निंबर 117_________________pg 23
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तीन बीमाररयािं अभी ख़त्म, जल्दी पढ़ें ! (एक बात मैं ललख रहा हूाँ इस को पढ़ कर सात दफ़ा गगन कर इस को सोचें कक आख़ख़र "बीमार होने के बाद सादह गग़ज़ाएाँ हम क्यूाँ खाते हैं?" ललहाज़ा मेरी दरख़्वास्ट्त है अमल भी करें और बेचैनी से ग़ौर भी करें इन
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अज्नास को वपसवा कर उन का आटा बनवाएं आटा बहुत बारीक ना हो।) (क़ाररईन! आप के ललए क़ीमती मोती र्न ु कर लाता हूाँ और छुपाता नहीिं, आप भी सख़ी बनें और ज़रूर
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ललखें (एडिटर हकीम मुहम्मद ताररक़ महमूद मज्ज़ूबी र्ग़ ु ताई)
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मोटापा, िोड़ों का ददत , हाज़म की ख़राबी, गैस, तबख़ीर, तेज़ाबबयत, कोलेस्ट्रोल, क्रेदटनं और हाई ब्लि
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प्रेशर क्याँू हुआ? गग़ज़ाएाँ बदलीं, दवाएं बदलीं, वो कैसे? पहले सादह गग़ज़ाएाँ होती थीं और अगर बीमार हुए
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तो सादह िड़ी बूदटयां और मुख़्तसर से टोटके इस्ट्तेमाल ककये। फ़ास्ट्ट फ़ूड्स, बेकरी, झाग दार मश्रब ू ात
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यानन सॉफ़्ट डड्रंक, भन ु ी नतली, मसाल्हा दार और बार बी क्यू इन चीज़ों ने हमारी स्ज़न्दगी को मोटापे,
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एअसाब और पट्ठों का ख़खचाव, स्िस्ट्मानी कम्ज़ोरी, ज़ेहनी तनाव, िोड़ों का ददत , कोलेस्ट्रोल, क़ब्ज़, पेट का
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बढ़ना, मैदे की गैस तबख़ीर में मुब्तला कर ददया। इन्ही गग़ज़ाओं ने घरे लू स्ज़न्दगी को इंतहाई मुतालसर
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ककया वो कैसे? बस लसफ़त इशारा करते हुए मैं अपने क़लम को िारी रखग ूं ा कक इन मस्ट्नूई गग़ज़ाओं ने मदत
से उस की सलादहयतें छीन ली हैं। यूाँ झगड़े और नोबत या तलाक़ों तक या कफर रोज़ रोज़ की नोक झोंक,
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नफ़रत और मुस्ट्तक़ल लमज़ािी से लड़ाई झगड़ा, मुक़ाबले की इंतहा कफर ददल की नफ़रतें सो रास्ट्ते
बनाती हैं। एक रास्ट्ता कक मुझ पर िाद ू हो गया, दस ू रा रास्ट्ता में नफ़्स्ट्यानत मरीज़ बन गया और तीसरा
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रास्ट्ता कक सारे मेरे दश्ु मन हैं। मैं िाद ू को मानता हूाँ, मैं स्िन्नात को मानता हूाँ लेककन क्या घरे लू नफ़रतें िो नफ़स्ट्यानत तौर पर ददल में घर कर चक ु ी होती हैं वो भी िाद ू ही होती हैं, हगगतज़ नहीं! ललहाज़ा गग़ज़ाओं का असर स्ज़न्दगगयों पर पड़ता है , अदम बदातश्त का मआ ु श्रे में बढ़ िाना ग़स्ट् ु सा, टें शन, सड़कों का ब्लाक करना, क़्ल, ख़न ू रे ज़ी स्िस मुआश्रे में ज़्यादा हो वो मुआश्रा क़ानून, लसक्यूररटी ज़रूर बनाए लेककन इस से कहीं ज़्यादा अपनी गग़ज़ाओं और दस्ट्तरख़्वानों पर नज़र रखे। बक़ौल एक योवपत मादहर के स्िस ने सारी Page 29 of 47 www.ubqari.org
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स्ज़न्दगी गग़ज़ाओं पर ररसचत की है कक अगर अपनी स्ज़न्दगी को एअतदाल पर लाना है , अपने मुआश्रे को अदल व इंसाफ़, पुर अम्न बनाना है और अगर आप चाहते हैं कक आप के िवान लसफ़त अपनी बीवी को िीवन साथी बनाएं, सोचें , ददमाग़ और ददल पाकीज़ह हो, परु अम्न स्ज़न्दगी, बेह्तर चलन तो उस के ललए ववटालमन्स खाने, टॉननक लेने, बहुत बड़ी िॉगगंग और वाककंग करने से कहीं ज़्यादा अपने दस्ट्तरख़्वााँ पर
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नज़र िालें। आइये! वो नब्वी ﷺसादह गग़ज़ाएाँ स्िन को खा कर आलम फ़तह हुआ, ख़ैबर फ़तह हुआ,
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स्िन को खा कर मुसल्मान पूरी दन्ु या के हुक्मरान बने और पूरी दन्ु या का मुआश्रा उन के सामने ज़ेर हुआ
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उस मुआश्रे की गग़ज़ाओं को ज़रा ठं िे ददल से नोट करें , वो बािरह था, वो िव थे, वो सादह गग़ज़ाएाँ थीं। एक बात मैं ललख रहा हूाँ इस को पढ़ कर सात दफ़ा गगन कर इस को सोचें कक आख़ख़र "बीमार होने के बाद
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सादह गग़ज़ाएाँ हम क्यूाँ खाते हैं?" ललहाज़ा मेरी दरख़्वास्ट्त है अमल भी करें और बेचैनी से ग़ौर भी करें इन
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अज्नास को वपसवा कर उन का आटा बनवाएं,आटा बहुत बारीक ना हो इस की खीर बना कर खाएं, इस
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का दल्या बना कर इस की रोटी बना कर ह्ता कक इसी को हल्के घी में हल्का भून कर और गोश्त के
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शोरबे में पका कर खाएं और सप ू के तौर पर पीएं। गोश्त की लमक़्दार कम हो। आप हल्के मसाल्हे िाल
सकते हैं कफर दे खें कक आप का स्िस्ट्म कफ़टनेस की तरफ़ पहला क़दम बढ़ाता है , आप का ददमाग़ याद्दाश्त
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की तरफ़ तेज़ी से सफ़र करता है , आप की नज़र रौशनी का सफ़र अंधेरों से ननकल कर करे गी। आप की
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तबीअत का बोझ हर वक़्त की मायूसी और हर वक़्त की ज़ेहनी उल्झन आप को इ्मीनान की तरफ़ ले
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कर िाएगी। आप के िोड़ कफ़ट होंगे, आप की िवानी सदा बहार होगी। आप का मैदा आि से िेढ़ हज़ार
साल पुराने ताक़्वर् लोगों िैसा होगा। कोलेस्ट्रोल का तो पता ही ना पूछें, क्रेदटनं तो वेसे ही गुम हो
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िाएगा। गन्दी िकारें , पेट का फूलना रास्ट्ता भूल िाएंगी। मोटापा स्िस ने आप को सताया हुआ है बाय बाय! िी हााँ! इस को ख़ैर आबाद कहें स्ज़न्दगी परु ल्ु फ़, सााँसें ख़श्ु बद ू ार, आहटें परु अज़्म, हर उठने वाला क़दम आप की स्ज़न्दगी को सदा बहार कर दे गा। आइये! इस आटे के साथ दोस्ट्ती लगाएं। ये छे अज्नास आप को तीन बीमाररयों से नहीं सो बीमाररयों से दरू कर के आप की स्ज़न्दगी को बहुत अच्छी और
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पुरसुकून बना दे गा। क्या ख़्याल है? आप को अभी िल्दी से वो अज्नास ना बताएं। क़लम उठाएं और ललखें , दे ख़खये! साफ़ साफ़ ललख़खयेगा, कहीं िल्दी ना कीस्िये, ललखना क्या है और ललख क्या बैठें और कफर एडिटर को लशकायत करें कक फ़ायदा नहीं हुआ और हााँ िल्दी ना कीस्ियेगा कुछ अरसा इस्ट्तेमाल भी ज़रूर कीस्ियेगा। कफर आप लशक्वे लशकायत के ख़त ललखें हमें फ़ायदा थोड़ा हुआ और अचानक एक बात
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मझ ु े और याद भी आई कक बच्चों को भी ख़खलाना, लेककन एक बात मझ ु े उल्झा रही है आप ने तो उन्हें
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चॉकलेट, बबस्स्ट्कट, बेकरी, और बगतर का आदी बनाया हुआ है वो कैसे खाएंगे? मुंह बसूरेंगे ऊं ऊं करें गे
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और असल में वो दस ू रे लफ़्ज़ों में अपनी वाललदा की लशकायत कर रहे हैं, अम्मी! आप ने हमें कफ़तरत का आदद नहीं बनाया, अगर वो मुंह ना बसूरें ऊं ऊं ना करें , ना ना करें तो समझ लें , मााँ ने उन्हें कफ़तरत से
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अच्छा ललखयेगा:-
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लशनासाई दी है । तो कफर ललख्वाऊं क्या? अगर मैं इंकार कर दाँ ू तो। लेककन नहीं मुझे आप से मुहब्बत है
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काग़ज़ उठा ललया, क़लम खोल ललया, दे खें इस में स्ट्याही है भी सही, हााँ हााँ ठीक है ! स्ट्याही है, काग़ज़ साफ़
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है इस पर और कुछ नहीं ललखा हुआ, ठीक है अब ललखें : बािरह एक ककलो, िव एक ककलो, काला चना दे सी कच्चा एक ककलो, दाल मंग ू साबत ु नछल्के वाली (सब्ज़ नछल्कों वाली या स्ट्याह नछल्कों वाली) एक
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ककलो, लोबबया साबुत एक ककलो, गंदम ु पांच ककलो। बस यही सस्ट्ती चीज़ें हैं। अब बताएं आप ऐसे परे शां
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हो रहे थे कक ना मालूम एडिटर हमें ककतनी महं गग चीज़ें बताएगा। बस अभी िाएाँ और ये चीज़ें लें कंकर प्थर साफ़ करें ननगरानी में वपसवाएं और बस---!!! िेढ़ हज़ार साल पुरानी स्ज़न्दगी का लु्फ़ उठाएं।
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आया ना मज़ा--!!! कफ़तरत का।
मुसाक्रफ़रान आझख़रत
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हज़रत हाकीम साहब دامت برکاتہمके वाललद मोहतरम رحمت ہللا علیہके दे रीना तअल्लुक़ दार और पड़ोसी सईद अहमद उफ़त काला धोबी २० िन्वरी बरोज़ बुध ननहायत अलालत के बाद फ़ॉत हो गए हैं। हज़रत हकीम साहब دامت برکاتہمउन का बहुत इक्राम करते थे, वाललद मोहतरम رحمت ہللا علیہके तअल्लक़ ु दार की ननस्ट्बत होने के नाते क़ाररईन ईसाल सवाब और तमाम मरहूमीं के ललए बस्ख़्शश की दआ ु करें । ★
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तस्ट्बीह ख़ाना के मख़ ु ललस और मोहतरम बाबा मह ु म्मद शरीफ़ भट्टी स्िन्हों ने स्ज़न्दगी के आख़री
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अय्याम तस्ट्बीह ख़ाना की ख़ख़दमत के ललए वक़्फ़ ककये वफ़ात पा गए, मौसूफ़ सारा ददन दफ़्तर अबक़री
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के सामने बैठे अपने िज़्बा ख़ल ु ूस और ननगरानी का हक़ अदा करते रहे आख़री अय्याम में उन के बेटे तौक़ीर है दर भट्टी एिवोकेट ने उन की भरपूर ख़ख़दमत की। अल्लाह तआला मरहूम को अपनी ख़ास िवार
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रहमत में िगा अता फ़मातए। आमीन। ★ तस्ट्बीह ख़ाना के ख़ख़दमत गुज़ार और बाबा मुहम्मद शरीफ़ भट्टी
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मरहूम के बेटे तौक़ीर है दर भट्टी एिवोकेट का फूल िैसा चन्द माह का बेटा अल्लाह तआला के पास
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अमानत बन कर चला गया। अल्लाह तआला उन्हें दन्ु या व आख़ख़रत में इस का बेह्तर बदल अता
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फ़मातए। ★ हािी मह ु ारते हुए अपने रब ु म्मद सईद (गि ु रात) नेकी, शराफ़त, ईमान्दारी की स्ज़न्दगी गज़ से िा लमले। मौसूफ़ तस्ट्बीह ख़ाना के दसत और आमाल को करने और फैलाने वाले थे। ★ मस्स्ट्िद धयान
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शाह ललट्टन रोि लाहौर (नवाब सआदत यार ख़ान (नवाब साददक़) यातसत बहावलपरु के अज़ीम नवाब के
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मज़ारात के साथ) के मुतवली और मुहतमम क़ारी सनाउल्लाह िवां सालगी में अचानक फ़ॉत हो गए।
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अल्लाह तआला उन के दिातत बुलन्द करे । ★ तस्ट्बीह ख़ाना के ख़ख़दमत गुज़ार मुहम्मद आलसफ़ के
वाललद नेकी, ख़ल ु ूस, द्यान्दारी की स्ज़न्दगी सफ़ेद पोशी के बाविूद ननहायत शान व शौकत से गुज़ार
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कर राही मुल्क अदम हुए। उन का बेटा मुहम्मद आलसफ़ दरूद महल के मुख़ललस ख़ख़दमत गारों में शुमार होता है । क़ाररईन से ईसाल सवाब की गज़ ु ाररश है ।
माहनामा अबक़री मार्च 2016 शम ु रा निंबर 117________________pg 24
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आलमलीन को सताने वाला ज़जन्न तस्बीह ख़ाना के आगे बेबस (मैंने सुबह ककसी को नहीं बताया कक गुज़श्ता रात क्या हुआ था, इस वाक़ए के बाद मुझे तीन चार ददन मस ु ल्सल बख़ ु ार रहा। कफर चन्द ददन के बाद बग़ैर ककसी बीमारी के मेरा भाई इन्तेक़ाल कर गया। मेरा भाई अब्बू के हमराह सोया हुआ था कक सुबह के वक़्त उस ने एक हल्की सी चीख़ मारी और शाम को फ़ॉत
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हो गया)
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह तआला आप पर करोड़ों नेअमतें इनायत
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फ़मातए। आप को स्ज़न्दगी ख़ख़ज़्र अता फ़मातए। हम आप के अबक़री ररसाला के गज़ ु श्ता दो साल से क़ारी हैं। ये वाकक़आ तक़्रीबं तीस साल पहले का है । हम शादी से क़ब्ल अपने मााँ बाप के घर तमाम बहन भाई
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इकठे रहते थे कक एक मततबा सददत यों को मैं सो रही थी कक मैं ने दे खा कक दीवार की तरफ़ से एक चड़ ै ु ल
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ननकल कर बाहर आई स्िस के नाख़न ु और दांत ख़ौफ़नाक् कक़स्ट्म के बड़े बड़े थे मगर मैं ख़ौफ़ज़्दह नहीं
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हुई। वो मेरे लसरहाने आ कर खड़ी हो गयी। उस वक़्त मेरा छोटा भाई बउम्र तक़्रीबं चार या पांच साल, मेरे
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साथ सोया हुआ था। मेरा भाई बहुत ही ख़ब ै मुझ से बोली कक मुझे ये अपना भाई दे दो, ू सूरत था, वो चड़ ु ल ये तुम्हारा भाई बहुत ख़ब ू सूरत है , मैं ने उस को कहा कक मैं अपना भाई तुझे हगगतज़ नहीं दं ग ू ी उस ने कहा
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कक मैं ने तुम से तुम्हारा भाई ले लेना है और मेरे बाल पकड़ ललए। इस दौरान मेरे मुंह से बे साख़्ता ननकला
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या अल्लाह मदद और वो बे साख़्ता भाग ननकली और िाते िाते ये कह गयी कक मैं ने तेरा भाई तुम से ले लेना है । मैंने सब ु ह ककसी को नहीं बताया कक गज़ ु श्ता रात क्या हुआ था, इस वाक़ए के बाद मझ ु े तीन चार
ददन मुसल्सल बुख़ार रहा। कफर चन्द ददन के बाद बग़ैर ककसी बीमारी के मेरा भाई इन्तेक़ाल कर गया।
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मेरा भाई अब्बू के हमराह सोया हुआ था कक सब ु ह के वक़्त उस ने एक हल्की सी चीख़ मारी और शाम को फ़ॉत हो गया। मुझे उस भाई की वफ़ात का इतना सदमा हुआ कक काश मैं अपने अम्मी अब्बू को चड़ ै ु ल वाला वाकक़आ बता दे ती तो शायद मेरा भाई बच िाता। ये बबल्कुल सच्चा वाकक़आ है । बाद अज़ााँ ककसी
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अल्लाह वाले ने बताया कक ये चड़ ै तुम्हारे अब्बू के ऊपर थी इस की विह से उस ने उस के बेटे को क़्ल ु ल कर ददया। (म-अ, िहाननयां मंिी) ज़ाललम ज़जन्न "बजरिं ग बली" से लमली ननजात
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं आि अपनी स्ज़न्दगी की सब से बड़ी परे शानी अबक़री क़ाररईन से शेयर कर रही हूाँ। ये मसला मेरे साथ बहुत परु ाना है । कोई है िो मेरे साथ हर रात ग़ैर
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इख़्लाक़ी हरकतें करता है । बहुत अल्लाह वालों के पास गए, उन्हों ने मुझे पहनने को तावीज़ात ददए मगर
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कोई अफ़ाक़ा ना हुआ। साल्हा साल से इलाि िारी है मगर उस को कोई फ़क़त नहीं। बहुत से आलमल
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इलाि करते रहते हैं मगर एक वक़्त आता है कक वो थक हार िाते हैं कक वो बहुत ताक़्वर है । अब तो मेरी
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आाँखों में शदीद तक्लीफ़, सर में तक्लीफ़, िोड़ों में , सीने में तक्लीफ़ और ददल तो िैसे िूब ही गया है ।
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हमारी गली में एक मौलाना साहब हैं उन से दम शुरू करवाया कुछ ददन दम करवाने में गुज़रे तो एक ददन
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दम के दौरान मेरे सर और कन्धों से कॉमन पन गगरने लगीं िो कक दरम्यान में से मुड़ी हुई थी तो उन्हों ने
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बताया कक ककसी ने पत ु ला बनवाया है और िाद ू मेरे ख़न ू में शालमल है, उस मअ ु क्कल की सरू त में भी तो
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तबीअत तब तक ठीक रहती है िब तक दम करवाती िाऊं और स्िस ददन दम ना करवाया िाए कफर वही
हालत हो िाती है तो उन्हों ने उस मअ ु क्कल को मख़ ु ानतब करते हुए कहा कक वो ख़द ु आया है या उसे
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ककसी ने भेिा है तो उस ने कहा कक ककसी ने भेिा है , एक ख़ातून है स्िस ने उस पर मुसल्लत ककया है ।
मौलाना साहब ने कहा कक तुम चले िाओ, कहने लगा नहीं िाऊाँगा, अगर मैं गया तो वो मुझे मार दे गी।
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उस ने मुझे इस लड़की पर मुसल्लत ककया है कक मैं इसे िान से मार दाँ ,ू ये मेरी ड्यूटी उस ने लगायी है । उस स्िन्न ने अपना नाम "बिरं ग बली" बताया है , वो बार बार मुझे मारने को पड़ रहा था तो उन्हों ने कहा इसे स्क्लयर करो तो उस ने मेरे सर पर हाथ रख कर दबाया तो मेरे सर से उस ददन की तरह बहुत सारी मुड़ी हुई कूपन पनें ननकलीं तो उन्हों ने कहा कक तुम चले िाओ तो वो कहने लगा कक एक शतत पर िाऊाँगा कक हर चााँद चढ़ी तारीख़ों को से के इक्तीस कंु िे ले कर उन्हें स्िस्ट्म के साथ मस कर के बारह दरी में दबा Page 34 of 47 www.ubqari.org
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कर आए और ये अमल इक्कीस बार करे तो मैं िाऊंगा। कफर हम आप के पास अपने मसाइल ले कर आए م
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) اَیُم ِْی مवाला वज़ीफ़ा ददया िो हम पढ़ रहे हैं। शुरू में िब आप आप ने हमें "या मुमीतु या क़ाबबज़ु" (ت اَیقا ِبض
का वज़ीफ़ा पढ़ना शरू ु ककया तो आाँखों में ददत , सर में ददत , िोड़ों में ददत और कभी तो ऐसा वक़्त भी आया कक मुझे लगा कक ये मेरा आख़री वक़्त है । मगर आदहस्ट्ता आदहस्ट्ता अब बेह्तरी आ रही है । वो स्िन्न अब
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ग़लीज़ स्िन्न से छुटकारा लमल रहा है । (पोशीदह)
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कभी कभी आता है और ननहायत बेबसी से कहता है कक तू ये ना पढ़ा कर। अल्हम्दलु लल्लाह! मुझे अब उस
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जहन्नम ु की वस ु अत
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(म-अ, लाहौर)
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पोहं चा है ये उस प्थर के गगरने की आवाज़ है ।)
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(आि से स्तर साल पहले एक प्थर िहन्नम ु के अंदर ककया गया था। आि वो प्थर उस की तह में
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एक ररवायत में हज़रत अबू हुरैरह رضی ہللا عنہफ़मातते हैं कक एक मततबा हम लोग हुज़ूर अक़्दस ﷺकी ख़ख़दमत में बैठे हुए थे कक इतने में आप ﷺ
ने सहाबा इक्राम رضوان ہللا عليہم اجمعينसे पूछा कक तुम िानते हो कक ये ककस चीज़ की आवाज़ है ।
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ﷺ
ने ककसी चीज़ की गगरने की आवाज़ सुनी आप
ही बेह्तर िानते हैं। कफर आप ﷺ
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हम ने अज़त ककया कक अल्लाह और उस के रसूल ﷺ
ने
इशातद फ़मातया कक आि से स्तर साल पहले एक प्थर िहन्नम ु के अंदर फैंका गया था। आि वो प्थर
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उस की तह में पोहं चा है ये उस प्थर के गगरने की आवाज़ है । पहले लोग इस को बहुत मुबाल्ग़ा समझते थे कक वो प्थर स्तर साल सफ़र करने के बाद तह में पोहं चा। लेककन अब साइंस ने तरक़्क़ी कर ली है । इस ललए साइंस का कहना है कक बहुत से लसतारे ऐसे हैं कक िब से वो पैदा हुए हैं उन की रौशनी ज़मीन की तरफ़ सफ़र कर रही है लेककन आि तक वो रौशनी ज़मीन तक नहीं पोहं ची िब अल्लाह तआला की मख़्लूक़ात इस क़दर वसीअ हैं तो कफर इस में क्या बईद है कक एक प्थर िहन्नुम के अंदर स्तर साल Page 35 of 47 www.ubqari.org
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सफ़र करने के बाद उस की तह में पोहं चा हो। बहर हाल इस हदीस से िहन्नुम की वुसअत बतलाना मक़्सूद है । अल्लाह तआला हम सब को िहन्नुम से महफ़ूज़ रखे। आमीन। (बहवाला ककताब: रूहानी पाकीज़गी)
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च्यिंट ू ी का तवक्कल: हज़रत इमाम नफ़्सी رحمت ہللا عليہने बयान ककया है कक हज़रत सल ु ैमान عليہ السالمने च्यंट ू ी से कहा कक साल भर में तेरी ककतनी रोज़ी होती है । उस ने कहा एक दाना,उन्हों ने उस
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को शीशी में बन्द कर ददया और एक दाना िाल ददया, िब साल ख़्म हुआ तो उसे दे खा कक उस ने आधा
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दाना खाया था उस से इस का सबब पूछा तो उस ने बयान ककया, पहले मेरा अल्लाह पर भरोसा था और
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आइन्दा साल के ललए रहने ददया। (तरीक़ा हज्ि, स२९८)
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नज़्ले के ललए आसान घरे लू टोटका
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अब मुझे ख़ौफ़ इस का हुआ कक कहीं आप भूल ना िाएं इस ललए मैं ने आधा दाना खाया और आधा
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं नज़्ला ज़ुकाम की सूरत में अज्वाइन की पोटली बना कर गरम पानी में िाल कर ननकाल कर माथे पर और परू े चेहरे पर उस की टकोर करती हूाँ, इस से
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बहुत िल्द फ़ायदा होता है । ये टोटका हमारे घर में काफ़ी अरसे से इस्ट्तेमाल हो रहा है । (शमीम अख़्तर)
माहनामा अबक़री मार्च 2016 शुमारा निंबर 117_________________pg 28
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"शुक्रिया" को लसफ़च एक लफ़्ज़ ना समझिये! (मातहत तो शायद हर बात पर अफ़्सर को शकु क्रया कह दे लेककन अफ़्सर ककसी मल ु ास्ज़म का शकु क्रया अदा करना अपनी तौहीन समझता है । इसी तरह िब हम कोई चीज़ ख़रीदें तो ला शऊरी तौर पर गोया दक ु ान्दार पर एह्सान करते हैं और शकु क्रया अदा करना ग़ैर ज़रूरी बस्ल्क ग़लत समझते हैं।)
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(वक़ास मैराि) हमें ये एतराफ़ करने में दहचककचाहट नहीं होनी चादहए कक तहज़ीबी व इख़्लाक़ी तौर पर इंसान तरक़्क़ी की बिाए तनज़्ज़ली का लशकार हो रहा है । साइंस ने बहुत तरक़्क़ी कर ली, साइंसी ईिादात का सेलाब आ
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गया, िदीद तज़त स्ज़न्दगी के लवाज़्मात बेश्तर घरों में आ गए, लेककन ज़बान व बयान, शाइस्ट्तगी और सुल्झे हुए अंदाज़ व अ्वार िो हमारी क़दीम मुआश्रत का लाज़्मी िुज़्व थे, नापीद हो गए हैं। मुसल्मानों
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की बेश्तर अच्छी आदात ग़ैर मस्ु स्ट्लमों ने अपना लीं, उन्ही में से एक अच्छी आदत "शकु क्रया" कहने की भी
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है । आप इस ख़्याल से मु्तकफ़क़ होंगे कक हमारे हााँ ये आदत बहुत कम है क्योंकक हम अपने बच्चों को शुकक्रया कहना कम ही लसखाते हैं। इस के बरअक्स आप ने मग़ररबी अक़्वाम को छोटी छोटी बातों पर
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शुकक्रया कहते सुना होगा। हमारे हााँ ऊंचे तब्क़े के अफ़राद तो क्या मुतवसत तब्क़े के लोग भी दहफ़्ज़
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मरानतब ज़ेहन में रख कर शुकक्रया कहते हैं, मसलन मातहत तो शायद हर बात पर अफ़्सर को शुकक्रया
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कह दे लेककन अफ़्सर ककसी मल ु ास्ज़म का शकु क्रया अदा करना अपनी तौहीन समझता है । इसी तरह िब
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हम कोई चीज़ ख़रीदें तो ला शऊरी तौर पर गोया दक ु ान्दार पर एह्सान करते हैं और शुकक्रया अदा करना
ग़ैर ज़रूरी बस्ल्क ग़लत समझते हैं। होटल में बेरे और रै ल्वे स्ट्टे शन पर क़ुली का शकु क्रया अदा करना बअज़
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लोगों के ख़्याल में शायद बाइस तौहीन हो मगर मुआम्ला इस के बरअक्स है । बहुत से लोग स्िन्हें हम
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ददल में छोटा समझते हैं। हमारे शुकक्रये के ज़्यादा मुस्ट्तदहक़ होते हैं और उन के ललए इस लफ़्ज़ की
एस्ह्मयत भी ज़्यादा है । शायद आप तसव्वुर भी नहीं कर सकते कक शुकक्रये का एक लफ़्ज़ उन के ददलों में ख़श ु ी के कैसे फूल ख़खला दे ता है ? दक ु ानों के सेल्समैन, सब्ज़ी फ़रोश और दीगर फेरी वाले, पेरोल पम्प के
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मुलाज़्मीन ऐसे ककसी इंसान को शुकक्रया कह दे ने से आप की इज़्ज़त हगगतज़ नहीं घटे गी। बस्ल्क यक़ीन कीस्िये उस में इज़ाफ़ा ही होगा। अगर आप शुकक्रया कहने की आदत िाल लें तो िल्द महसूस करें गे कक ख़द ु आप को भी ये लफ़्ज़ ज़्यादा सन ु ने को लमल रहा है । ख़श ु ख़ल्क़ी भी छूत की बीमारी की तरह एक दस ू रे को लगती है । आप दस ू रों के साथ ख़श ु इख़्लाक़ी का मुज़ादहरा करें तो ख़द ु उन में भी यही मुसस्ब्बत
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आदात पैदा हो िाती हैं स्िस की आि के दौर में अशद् ज़रूरत है । ख़ास तौर पर हम गुफ़्तग ु ू में शाइस्ट्तगी खोते िा रहे हैं। नई नस्ट्ल का अंदाज़ गुफ़्तग ु ू तो तश्वीश्नाक हद्द तक इख़्लाक़ी सतह से गगरता महसूस होता है । अगर आप को ककसी ऐसी िगा खड़े होने या ककसी ऐसी बस में सवार होने का इ्तफ़ाक़ हो स्िस में चार पांच नोिवान सवार हों तो शायद आप के ददल दख ु और तासुफ़ से भर िाएगा। आप सोचें गे कक
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क्या यही वो नस्ट्ल है, स्िसे हम मस्ट् ु तक़बबल के मेअमार कहते हैं? स्िन्हें दन्ु या भर की आसाइशें मह ु य्या
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करने की कोलशश में अपनी अपनी बसात के मुताबबक़ बेश्तर वाल्दै न हल्कान हो रहे हैं? अच्छी आदात
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अपनाना ज़्यादा मुस्श्कल नहीं, याद ददहानन के ललए हम कुछ बातों का तज़्करह करते चलें , मुनालसब मवाकक़अ पर पड़ोलसयों के हााँ खाने पीने की अश्या या तोह्फ़े लभिवाते रदहये। रास्ट्ते में लमलने वालों को
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सलाम में पहल कीस्िये, इदत गगदत के लोगों की ख़श ु ी ग़मी में लशरकत कीस्िये, अपनी है लसय्यत की परवाह
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ककये बग़ैर ककसी का कोई छोटा मोटा काम कर दीस्िये। ककसी के ललए दरवाज़ा खोल कर रुक िाइए। ये
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छोटी छोटी बातें धीरे धीरे हमारे माहोल को ख़ब ू सूरत और ख़श्ु गवार बना दें गी। ये बातें अपना कर आप ना
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लसफ़त दस ु ी का बाइस बनेंगे बस्ल्क आप बेह्तर अंदाज़ में स्ज़न्दगी का सामना कर सकेंगे। ू रों के ललए ख़श चलें ज़्यादा नहीं तो उन आदात में से ककसी एक आदत को अपना लीस्िये। शुकक्रया कहने की आदत ही
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िाल लें और अपने बच्चों में भी ये आदत पख़् ु ता कीस्िये और अगर ककसी का शकु क्रया अदा करने ना िा
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सकते हों तो फ़ॉन या मेल के ज़ररए ही शुकक्रया कह दें । यक़ीन िाननये! ये एक लफ़्ज़ ना लसफ़त आप बस्ल्क
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दस ू रों की स्ज़न्दगी में भी एहम ककरदार अदा कर सकता है । (बशुकक्रया! पयाम आगही)
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अबक़री की बदौलत हर हदन अच्छा
(अबक़री की बदौलत हमारा हर ददन बहुत अच्छा गुज़रता है , आमाल, तस्ट्बीहात और क़ुरआन पाक की नतलावत पहले से ज़्यादा नसीब होती है ।)
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! अल्लाह तआला आप को और आप के अह्ल ख़ाना को सदा ख़श्ु हाल, आबाद, कालमल आकफ़यतों, ख़ैरों, बरकतों के साथ सलामत रखे। आप के माहनामा अबक़री से हम सब फ़ैज़्याब हो रहे हैं और अल्लाह आप को, आप के ख़ल ु स ू की बेह्तरीन िज़ा अता फ़मातएाँ।
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आमीन सुम्म आमीन। अबक़री की बदौलत हमारा हर ददन बहुत अच्छा गुज़रता है , आमाल, तस्ट्बीहात और क़ुरआन पाक की
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नतलावत पहले से ज़्यादा नसीब होती है । घर में बहुत बरकात आ रही हैं। अबक़री से एक अमल م
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اح ْس مب انا م ( ہللا او ِن ْع ام ال اوک ِْیل
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"हस्ट्बुनल्लाहु व ननअमल ्-वकीलु या वाररसु या नसीरु या अज़ीज़ु"
م ا ْی اَی اعز ْ م صْم ی ِ ) اَی اوا ِرث اَینऔर इस की बरकात भी नुमायां होना शुरू हो गईं हैं। मेरी छोटी बहन का एक अच्छे ِ
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मुअस्ज़्ज़ज़ घराने से ररश्ता आया है, बात भी पक्की हो गयी है । पांच, छे महीनों तक शादी हो िाने का
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इम्कान है और इन ् शा अल्लाह सुन्नत के मुताबबक़ करनी है । मेरी अक्सर िब तबीअत ख़राब होती है तो
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अबक़री पढ़ा, हर परे शानी दरू
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मैं स्तर लशफ़ाएं इस्ट्तेमाल करती हूाँ तो तबीअत में सुकून महसूस होता है । (श,म-लाहौर)
हर हाजत पूरी: मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अबक़री ररसाला वपछले चन्द सालों
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से मस ु ल्सल पढ़ रहा हूाँ। ये वादहद मैगज़ीन है स्िस से आप के हर तरह के मसाइल हल होते हैं। मझ ु े भी मेरे मसले का हल इस ररसाला से लमलता है । चन्द साल पहले आप برکاتہم دامتके एक रूहानी आदटत कल में एक दआ ु "अल्लाहुम्म-स्ग़्फ़ली वललवाललदय्य व ललल्मुअलमनीन वल्मअ ु लमनानत वल्मस्ु स्ट्लमीन वल्मुस्स्ट्लमानत वल ्अह्या-इ वल ्अम्वानत"
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ات اوال مم ْس ِل ِم ْ ا الل مھم اغ ِف ْر ِ ِْل اول اِوالِدی اولِل ممو ِم ِن ْ ا (ات ِ ْی اوال مم ْسلِ ام ِ ْی اوال مموم اِن
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ْ ا ْ ا ات۔ ِ ) اواْل ْح ایا ِئ اواْل ْم اوका अमल बताया था कक इस दआ ु को हर वक़्त खल ु ा पढ़ें । मैं इस दआ ु को लातअदाद
पढ़ता हूाँ। ददन में तक़रीबन तीन हज़ार से पैंतीस सो तक पढ़ लेता हूाँ, हर नमाज़ के बाद भी पढ़ता हूाँ। इस वज़ीफ़े से अल्लाह तआला का बहुत फ़ज़्ल व करम हुआ है, मैं ने बहुत कुछ पाया है । ददल में िो भी बात आई हो, मुझे याद नहीं अल्लाह तआला ने वो पूरी ना की हो। इस अमल के बाद दस ू रे ककसी अमल की
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बरकत दे । आमीन। (फ़-द)
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ज़रूरत नहीं रहती बहुत मुख़्तसर और िालमअ दआ ु है । अल्लाह तआला आप دامت برکاتہمकी उम्र में
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शग ु र और हाई ज़लि प्रेशर रहे हर दम किंट्रोल
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अबक़री ररसाला बहुत शौक़ से पढ़ती हूाँ। इस में
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मौिूद नतब्बी व रूहानी टोटके बहुत कमाल के होते हैं। मेरे पास भी एक नतब्बी टोटका है िो मैं क़ाररईन
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अबक़री की नज़र कर रही हूाँ:
हुवल ्-शाफ़ी: शुगर/हाई ब्लि प्रेशर का आसान इलाि, सुबह ननहार मुंह एक गगलास पानी में एक टे बल
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नामतल हो िाएगा। (आललया असद)
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स्ट्पून ख़ाललस अस्ट्ली अक़त गुलाब लमला कर पी लें। कुछ हफ़्तों के इस्ट्तेमाल से शुगर, हाई ब्लि प्रेशर
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माहनामा अबक़री मार्च 2016 शुमारा निंबर 117__________________pg32
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ग़ग़ज़ाइयत बख़्श और मज़ेदार कुछ सज़ज़ज़यााँ! (ज़मीन के अंदर उगने वाली सस्ब्ज़यों को ख़रीदने के ललए बड़ी दक ु ानों और सुपर स्ट्टोसत के बिाए अपने इलाक़े में लगाए िाने वाले बचत बाज़ारों और ठे लों का रुख़ करें क्योंकक ऐसी िगहों पर मौसम की ये
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सस्ब्ज़यााँ ननस्ट्बतं ताज़ह लमल िाती हैं।) (हुमैरा कामरान, रावलवपंिी)
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बदलते हुए तज़त स्ज़न्दगी के बाइस हमारी खाने पीने की आदात भी ख़ासी हद्द तक तब्दील हो चक ु ी हैं
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ललहाज़ा अब ख़वातीन सतह ज़मीन के नीचे िड़ों की शक्ल में पैदा होने वाली सस्ब्ज़यााँ पकाने पर ज़्यादा
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तवज्िह नहीं दे तीं लेककन अगर आप एक मततबा उन फ़ायदों का िायज़ा ले लें िो लमट्टी के अंदर उगने
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वाली सस्ब्ज़यों में पोशीदह हैं तो यक़ीनन इन सस्ब्ज़यों को फ़ौरन अपने मेन्यू में शालमल कर लें गी।
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ग़ग़ज़ाई फ़ायदे : हम में से अक्सर ख़वातीन इन सस्ब्ज़यों को सस्ट्ता होने के बाइस मामल ू ी समझ कर नज़र
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अंदाज़ कर दे ती हैं और उन के मुक़ाबले में पालक और ब्रोक्कोली िैसी सस्ब्ज़यों को ज़्यादा एहलमयत दी
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िाती है । िबकक िदीद तहक़ीक़ के ज़ररए ये बात ज़ादहर हुई है कक िड़ों की शक्ल में उगने वाली सस्ब्ज़यााँ
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दर हक़ीक़त एंटी ऑक्सीिेंट्स, हयातीन और मादननयात से माला माल होती हैं ललहाज़ा अगर आप अपना
हफ़्ता वार मेन्यू बनाते हुए आलूओं को मामूली या ग़ैर सेहत बख़्श मेन्यू समझते हुए नज़र अंदाज़ कर
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दे ती हैं तो ये िान कर आप को है रानी होगी कक १८० ग्राम पैक ककये गए आलू स्िन्हें िैकेट पोटै टो कहा िाता है ववटालमन सी की हमारी रोज़ मरह ज़रूरत का ३१ फ़ीसद दहस्ट्सा फ़राहम कर सकते हैं। इसी तरह
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एक पकी हुई गािर खाने से तक़रीबन पांच ग्राम फ़ाइबर हमारे मैदे में मंत ु क़ल होता है िो बहुत से हाई फ़ाइबर की एक सववांग के बराबर होता है । सस्ब्ज़यों के तौर पर खाई िाने वाली बहुत सी िड़ें ऐसी हैं कक स्िन्हें बबला ख़झिक गग़ज़ाइयत का पॉवर हाउस कहा िा सकता है । ललहाज़ा कोलशश करें कक इन सस्ट्ती और बआसानी लमलने वाली सस्ब्ज़यों को अपनी ख़ौराक में ज़रूर शालमल रखें।
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कैसे पकाएिं: ज़्यादा तर घरों में बच्चे तो क्या बड़े भी लशल्िम और मूली िैसी सस्ब्ज़यााँ खाना पसंद नहीं करते। लेककन अगर लशल्िम और मूली को भुस्िया बनाने के बिाए उन्हें पकाने के नए नए तरीक़े आज़्माएं तो सब उन्हें खाना पसंद करें गे। मस्ट्लन लशल्िम अमम ू न सददत यों के मौसम में आते हैं ललहाज़ा उन का क्रीमी सूप तय्यार करें और लशल्िम के प्तों की प्यूरी बना कर उस से सूप को गाननतश करें । ये
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सप ू ववटालमन के इलावा कैस्ल्शयम, फ़ॉलेट और पोटै लशयम से भरपरू होगा। इस के इलावा झट पट पास्ट्ता
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डिश बनाने के ललए लशल्िम को लेह्सन, लशल्िम के प्तों और मछली या गचकन के छोटे छोटे टुकड़ों के
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साथ हल्का सा फ़्राई करें और पास्ट्ता में शालमल कर दें । मूली को सलाद के तौर पर खाएं या ररवायती भुस्िया के बिाए गोश्त के साथ पकाएं, साथ में मेथी भी िालें , हरे धननये से गाननतश ककया गया ये भुना
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हुआ सालन ज़ायक़े दार होने के साथ साथ गग़ज़ाइयत बख़्श भी है । इस के इलावा चक़ ु न्दर, शकर क़न्दी,
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गािर, अवी, अदरक हल्दी से भी मज़ेदार गग़ज़ाइयत से भरपरू डिशें तय्यार की िाती हैं। कैसे ख़रीदें :
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ज़मीन के अंदर उगने वाली सस्ब्ज़यों को ख़रीदने के ललए बड़ी दक ु ानों और सुपर स्ट्टोसत के बिाए अपने
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इलाक़े में लगाए िाने वाले बचत बाज़ारों और ठे लों का रुख़ करें क्योंकक ऐसी िगहों पर मौसम की ये सस्ब्ज़यााँ ननस्ट्बतं ताज़ह लमल िाती हैं या अगर आप के इलाक़े के नज़्दीक अगर कहीं खेत हैं तो वहां
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क़रीबी दक ु ु ानों पर आप को बबल्कुल ताज़ह सस्ब्ज़यााँ लमल िाएंगी। इस के इलावा अगर आप चाहें तो ख़द
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भी सस्ब्ज़यााँ उगा सकती हैं क्योंकक ये सस्ब्ज़यााँ सब से कम दे ख भाल की मुतक़ाज़ी होती हैं। जड़ों की
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तरफ़ लौटने की ४ वजूहात: िड़ों पर मुश्तलमल सस्ब्ज़यााँ कोलेस्ट्रोल की लमक़्दार को कम करती हैं। इस मक़्सद के ललए शकर क़न्दी, अवी और िामुनी शकर क़न्दी बेह्तरीन हैं। २-ज़मीन के अंदर उगने वाली
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सस्ब्ज़यााँ मुख़्तललफ़ बीमाररयों से भी बचाती हैं। मसलन शकर क़न्दी गािर केरोदटनाइड्ज़ से भरपूर होती हैं स्िन के बारे में बतातननया से तअल्लक़ ु रखने वाले रे सचतरज़ का ख़्याल है कक ये ददल की बीमाररयों और कैंसर से हमारा बचाओ करती हैं। ३- ये सस्ब्ज़यााँ स्िस्ट्म में आयरन के िज़्ब होने में मदद दे ती हैं। उन में से बेश्तर सस्ब्ज़यााँ िैसे कक गािर, मल ू ी, लशल्िम ्, चक़ ु न्दर, शकर क़न्दी वग़ैरा ववटालमन सी के हुसल ू का
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बेह्तरीन ज़रीया हैं िो आयरन को आप का िुज़्व बदन बनाने में मददगार होता है। ४- इस के इलावा एक बड़ा फ़ायदा ये भी है कक िड़ों पर मुश्तलमल सस्ब्ज़यााँ सेहत बख़्श तो हैं ही लेककन ये आप को िवान भी रखती हैं क्योंकक लशल्िम, चक़ ु न्दर, शकर क़न्दी और गािर एंटी ऑक्सीिेंट् होने के इलावा क़ुव्वत
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मुदाकफ़अत बढ़ाने और स्िल्द को आलूदगी के असरात से बचाए रखने में एहम ककरदार अदा करती हैं। रूहानी कैक्रफ़यत
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(पोशीदह)
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व शाम)
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(एक तस्ट्बीह तीसरे कल्मे की, एक तस्ट्बीह दरूद शरीफ़ और एक तस्ट्बीह अस्ट्तग़फ़ार की पढ़ता हूाँ। सुबह
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मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं अबक़री का तक़रीबन चार साल पुराना क़ारी हूाँ।
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इस ररसाले ने मझ ु े आमाल पर लगा ददया है । मेरे मामल ू ात दित ज़ेल हैं:-
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१-सब ु ह नमाज़ फ़ज्र की अदाएगी के बाद सरू ह यासीन पढ़ता हूाँ और साथ क़ुरआन का कुछ दहस्ट्सा िो
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पहले से मुक़रत र है वो पूरा करता हूाँ। ददन में ककसी भी वक़्त सूरह वाकक़आ, सूरह तबारक ल्लज़ी और सूरह मज़ ु स्म्मल पढ़ता हूाँ। २- आप की तरफ़ से लमला हुआ वज़ीफ़ा, तीन मततबा दरूद शरीफ़, एक मततबा सरू ह
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फ़ानतहा, तीन मततबा सूरह इख़्लास और आख़ख़र में तीन मततबा दरूद शरीफ़। यानन ये तमाम चीज़ें इक्तालीस मततबा पढ़ता हूाँ। ३- १२९ मततबा सुबह व शाम सूरह कौसर अवल व आख़ख़र दरूद शरीफ़ के साथ
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पढ़ता हूाँ। ४- एक तस्ट्बीह सूरह इख़्लास ्, एक तस्ट्बीह दो अन्मोल ख़ज़ाना का दस ू रा दहस्ट्सा पढ़ता हूाँ। पहला दहस्ट्सा सुबह नतलावत के बाद पढ़ता हूाँ। ५- एक तस्ट्बीह सूरह इनआम की आयत नंबर ४५ पढ़ता हूाँ और एक तस्ट्बीह सूरह तौबा की आख़री आयत की पढ़ता हूाँ। ६- सुबह व शाम ग्यारह सो मततबा "या اا
) اَیقھ مका ववदत अवल व आख़ख़र दरूद शरीफ़ के साथ पढ़ता हाँ । ७-एक हज़ार मततबा रोज़ाना "ला क़ह्हारु" (ار ू
इलाह इल्लल्लाहु"
( )ْلالہ اْل ہللاकी तस्ट्बीह पढ़ता हूाँ। ८- एक तस्ट्बीह तीसरे कल्मे की, एक तस्ट्बीह Page 43 of 47
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दरूद शरीफ़ और एक तस्ट्बीह अस्ट्तग़फ़ार की पढ़ता हूाँ। सुबह व शाम। ९- एक तस्ट्बीह सुबह व शाम, ا م ا
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) اصّل مकी पढ़ता हाँ । इस के इलावा स्ितना वक़्त लमलता है यही "सल्लल्लाहु अला मुहम्मददन ्" (ہللا الَع ُمامد ू
दरूद शरीफ़ पढ़ता हूाँ।
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ललकोररया के ललए इिंतहाई मुजरच ब नुस्ख़ा मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! कच्ची गरी खोपरा, लसंघाड़े का आटा हम्वज़न, कमर
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कस आधा दहस्ट्सा। कच्ची गरी को ग्राइंि कर लें , कमर कस को भी बारीक पीस लें और लसंघाड़े का आटा
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भी लमला लें और ख़ब ू के साथ ू लमला लें। ख़ौराक: सुबह ननहार मुंह एक चाय का चम्मच पानी या दध
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इस्ट्तेमाल करें । बहुत मि ु रत ब और आज़मद ू ह है । मोहतरम हकीम साहब! िब से तस्ट्बीह ख़ाना से मंस ु ललक
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हुआ हूाँ स्ज़क्र में कैकफ़यात लमलना शुरू हो गयी हैं, ख़ास तौर पर अस्ट्तग़फ़ार करते हुए ररम ख़झम िारी
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रहती है । तीसरा कल्मा पढ़ते हुए अल्लाह की मह ु ब्बत ग़ाललब होना शरू ु हो गयी है । परु ाने से परु ाने गन ु ाह
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याद आते हैं और तौबा की तौफ़ीक़ लमलती है । (नाचीज़ मक़्बूल अहमद)
माहनामा अबक़री मार्च 2016 शुमारा निंबर 117______________pg 34
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जादग ू र ने पाऊाँ पकड़ कर मुआफ़ी मािंगी
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(आप अपने घर का ही दहसार कर के क्यूाँ लेटती हैं और अपने आस पास के सब पड़ोलसयों का दहसार कर के लेटा करें और इस के बाद मैं िाग िाती हूाँ। बाद में मैं ने पूरे इलाक़े का दहसार शुरू कर ददया। अब भी
(पोशीदह)
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स्िन्नात तंग करते हैं मगर पहले से बहुत कम।)
मोहतरम हज़रत हकीम साहब अस्ट्सलामु अलैकुम! मैं माहनामा अबक़री से वपछले तीन साल से वाबस्ट्ता हूाँ और मैं आप को अबक़री िैसा माहनामा ननकालने पर और उस की शान्दार काम्याबी पर मुबारकबाद
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दे ती हूाँ। लाखों लोग मुस्ट्तफ़ीद हो रहे हैं और आप को दआ ु एं दे रहे हैं। अल्लाह आप को िज़ाए ख़ैर अता करे । अल्लाह पाक आप को सेहत व तंदरु ु स्ट्ती अता फ़मातए और आप को नज़र बद्द से बचाए। मैं अल्लामा اا
) اَیقھ مिैसा वज़ीफ़ा लाहूती परु इसरारी साहब की भी ननहायत मश्कूर हूाँ कक उन्हों ने हमें "या क़ह्हारु" (ار
बताया। मुझे या क़ह्हारु का वज़ीफ़ा शुरू ककये हुए तक़रीबन दो साल हो चक ु े हैं और इस वज़ीफ़े से मुझे
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बहुत फ़ायदा हुआ। िाद,ू स्िन्नात के असरात ख़्म हुए। एक ददन मैं ने ख़्वाब दे खा कक स्िस औरत ने
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मुझ पर काला िाद ू ककया हुआ था, उस ने कहा कक मेरी हड्डियां टूट रही हैं और मेरी आाँखों की बीनाई
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ख़्म हो गयी है और मुझे मुआफ़ कर दो, मुझ से बहुत बड़ी ग़लती हो गयी है पास ही खड़ी उस की बेटी ने कहा कक मैं हक़ीक़त में आ कर आप के पाऊाँ पकड़ कर मआ ु फ़ी मांगंग ू ी और कफर तीन चार ददन के बाद मैं
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ने ख़्वाब दे खा कक मैं, मेरी अम्मी और भाबी हम तीनों बाहर चल् ू हे के पास खड़ी होती हैं और मेरे स्िस्ट्म से
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अचानक एक सांप गगरता है और हम िर कर पीछे भाग िाते हैं और वो कफर मेरे नज़्दीक आ िाता है और
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कफर बोलने लगता है और कहता है कक मैं सांप नहीं हूाँ, मैं एक स्िन्न हूाँ, मुझे ककसी आदमी ने आप के
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साथ लगाया हुआ था और कफर भाग कर दरू चला िाता है और पीछे मुड़ कर दो दफ़ा मुझे दे खता है और ै हूाँ और मैं आप कफर ग़ायब हो िाता है और इस के बाद एक औरत आती है और मुझे कहती है कक मैं चड़ ु ल
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के साथ हूाँ और वो इतनी ख़ौफ़नाक शक्ल की होती है कक मैं उसे दे ख कर िर िाती हूाँ और कफर िाग िाती
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हूाँ और इस के पंरह बीस ददन के बाद कफर ख़्वाब दे खती हूाँ कक स्िस औरत ने मुझ पर िाद ू ककया हुआ था उस की बेदटयां मुझे कहती हैं कक हमें बहुत तक्लीफ़ हो रही है । आप वज़ीफ़ा ना पढ़ें , हमें मुआफ़ कर दें ।
हम ने आप पर बहुत सख़्त िाद ू ककया हुआ था और हम हक़ीक़त में आप से मआ ु फ़ी मांगंग ू ी और हमें
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मुआफ़ कर दें और हमारी नानी को भी सख़्त तक्लीफ़ है और कुछ ददनों के बाद कफर ख़्वाब दे खती हूाँ कक स्िन्नात मझ ु े ख़्वाब में कहते हैं कक आप वज़ीफ़ा पढ़ना छोड़ दें । अगर आप नहीं छोड़ती तो हम आप को मार दें गे और वज़ीफ़े की विह से हमारा स्िस्ट्म िल रहा है और मैं उन से कहती हूाँ कक मैं "या क़ह्हारु" का वज़ीफ़ा नहीं छोड़ती, मुझे कहते हैं कक हम आप को बबल्कुल ख़्म कर दें गे और इस के बाद ग़ायब हो िाते
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हैं। तक़रीबन पंरह, सोला रमज़ान को मैं इशा की नमाज़ पढ़ कर लेटी हुई थी और अभी िाग रही थी कक हक़ीक़त में तीन स्िन्नात आ गए और एक मेरे पेट पर बैठ गया और एक मेरे बाज़ू पर बैठ गया मुझे शदीद तक्लीफ़ शरू ु हो गयी, एक स्िन्न मझ ु े कहने लगा कक आप "या क़ह्हारु" पढ़ना छोड़ दो अगर नहीं छोड़ती तो हम आप को बबल्कुल ही मार दें गे और मैं बहुत ज़्यादा िरी और मैं ने ज़ोर से चीख़ मारी, वो बार
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बार मेरे पेट से नीचे उतरते और कफर पेट पर चढ़ िाते और मझ ु े सख़्त तक्लीफ़ होती और मेरा परू ा स्िस्ट्म
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िल्ता और बहुत वज़्नी हो िाता और मुझे बार बार यही कहते अगर आप ने वज़ीफ़ा नहीं छोड़ा तो हम
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आप को बबल्कुल ख़्म करने वाले हैं और मैं ने उन से चीख़ते हुए कहा कक मैं वज़ीफ़ा नहीं छोड़ती और आप बेशक मुझे बबल्कुल ही ख़्म कर दें और इस के बाद मैं ने बआवाज़ बुलंद में या क़ह्हारु पढ़ना शुरू
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कर ददया और उस के थोड़ी दे र बाद मुझे तक्लीफ़ दे ते रहे और इस के बाद चीख़ते हुए ग़ायब हो गए और
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एक ददन कफर मैंने ख़्वाब में दे खा कक स्िस औरत ने मझ ु पर िाद ू ककया हुआ था वो औरत और उस की
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बहन हमारे मकान के पीछे से कहीं िा रही होती हैं और मैं उन के पास से गुज़रती हूाँ तो वो मुझे पकड़ लेती
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हैं और हाथ पकड़ कर कहती हैं कक आप वज़ीफ़ा पढ़ती हैं और मैं कहती हूाँ कक मैं वज़ीफ़ा पढ़ती हूाँ और
मुझे कहती हैं कक आप वज़ीफ़ा पढ़ना छोड़ दें कक हमें और हमारी बेदटयों को सख़्त तक्लीफ़ हो रही है , हम
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आप के पाऊाँ पकड़ती हैं हमें मआ ु फ़ कर दें । मैं उन से कहती हूाँ कक मैं वज़ीफ़ा नहीं छोड़ती और आप ने
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मुझे इतनी तक्लीफ़ें क्यूाँ दी हुई थीं और उस के बाद िाग िाती हूाँ और कुछ ददनों के बाद कफर ख़्वाब
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दे खती हूाँ कक स्िन्नात मुझे ख़्वाब में कहते हैं कक आप या क़ह्हारु का वज़ीफ़ा क्यूाँ नहीं छोड़ती, हमें सख़्त
तक्लीफ़ हो रही है और हम आप को मार दें गे और मैं उन से कहती हूाँ कक मैं ये वज़ीफ़ा नहीं छोड़ती आप
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बेशक मार दें और इस के बाद मैं या क़ह्हारु का वज़ीफ़ा पढ़ना शुरू कर दे ती हूाँ और वो स्िन्नात चीख़ते हुए ग़ायब हो िाते हैं। याद रहे मझ ु े आप की तरफ़ से या क़ह्हारु पढ़ने की ख़स ु स ू ी इिाज़त भी हालसल है । इस के बाद एक ददन मुझे ख़्वाब में एक बुज़ुगत कहते हैं कक आप अपने घर का ही दहसार कर के क्यूाँ लेटती
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हैं और अपने आस पास के सब पड़ोलसयों का दहसार कर के लेटा करें और इस के बाद मैं िाग िाती हूाँ। बाद में मैं ने पूरे इलाक़े का दहसार शुरू कर ददया। अब भी स्िन्नात तंग करते हैं मगर पहले से बहुत कम। मैं या क़ह्हारु का वज़ीफ़ा रोज़ाना चार पांच हज़ार मततबा कर लेती हूाँ और इस वज़ीफ़े से मुझे बेशुमार
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फ़ायदे हालसल होते हैं और इस वज़ीफ़े के शरू ु करने से पहले मझ ु े बहुत तक्लीफ़ होती थी। मेरे परू े स्िस्ट्म में िलन, ददत और कमर का ददत बहुत होता था और ये दो तीन ददन के बाद सर का ददत होता था और
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इतना शदीद ददत होता था कक मैं उठ नहीं सकती थी और आाँख में शदीद ददत होता था और मैदे में बहुत
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ज़्यादा िलन और ददत होता था और हाथों में बहुत ज़्यादा िलन होती थी और इस वज़ीफ़े को शुरू करने के
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बाद मेरी ये तक्लीफ़ें ख़्म हो गयी हैं। मोहतरम हज़रत हकीम साहब मेरा नाम शायअ मत कीस्ियेगा।
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