Qadri Hajveri Spirtual Lineage - Hindi

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कलिमतन ् तय्यिबतन ् कशजरततन ् तय्यिबततन ्

कलिमतन् तलयिबतन् कशजरलतन् तलयिबलतन् अस्िुहा सालबतुन् व फ़र्उ हा लफ़स्समाइ०

शजरह तयिबा क़ादरी हज्वैरी

(राह सलक ू में काम्याबी, मर्ु शिद से फ़ै ज़ हार्सल करने के तरीक़े , क़ादरी र्सर्ससले का नरू और गनु ाहों की

मालमू ात )

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र्ज़न्दगी से बचने का आसान हल, मरु ाक़बे का तरीक़ा, और र्सर्ससला क़ादररया के अस्बाक़ के र्लए इब्तदाई

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कलिमतन ् तय्यिबतन ् कशजरततन ् तय्यिबततन ्

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Contents

हाल ए र्दल .......................................................................................................................................................... 4 असलाह से मल ु ाक़ात का आसान रास्ता .............................................................................................................................. 4 बार्तनी बेमाररया​ाँ दरू करने की एहर्मयत ............................................................................................................................... 5 तसव्वफ़ु क्या नहीं है .................................................................................................................................................. 5 इस्लाह बार्तन के इसं ानी र्ज़न्दगी पर असरात ......................................................................................................................... 6 ज़रूरत मर्ु शिद ......................................................................................................................................................... 8 दसू री र्मसाल ......................................................................................................................................................... 9 मोजूदह दौर में बैअत की ज़रूरत ...................................................................................................................................... 9 दसू री र्मसाल ..................................................................................................................................................... 9 तीसरी र्मसाल .................................................................................................................................................. 10 इन्तख़ाब ए शैख़ ................................................................................................................................................ 10

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बैअत इस्लाह की एहर्मयत ..................................................................................................................................... 11 मशाइख़ उज़्ज़ाम की बैअत इस्लाह ............................................................................................................................. 11

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बैअत इस्लाह क़ुरआन की नज़र में .............................................................................................................................. 12 बैअत इस्लाह पर अहादीस मबु ारका ............................................................................................................................ 12 आदाब बैअत................................................................................................................................................... 13

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बैअत का मक़्सद ............................................................................................................................................... 16 बैअत का फ़ायदा ............................................................................................................................................... 17

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सुह्बत शैख़ का तरीक़ा ......................................................................................................................................... 17 आदाब ए शैख़ ................................................................................................................................................. 17

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जसदी तरक़्क़ी और काम्याबी के राज़ ............................................................................................................................... 21 आपस में पीर भाइयों के आदाब .................................................................................................................................... 22

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रोज़ाना के मामल ू ात............................................................................................................................................. 24 मनार्ज़ल सलूक (लताइफ़) ..................................................................................................................................... 26

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मक़ ु ामात लताइफ़ क़ार्िया ...................................................................................................................................... 26 मरु ाक़बा ........................................................................................................................................................ 27 र्ज़क्र असलाह की एहर्मयत और ज़रूरत........................................................................................................................ 28 अहादीस में फ़ज़ीलत ........................................................................................................................................... 28

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र्ज़क्र र्बसजहर .................................................................................................................................................. 29 र्ज़क्र र्बसजहर की शराइत ...................................................................................................................................... 29 र्ज़क्र र्बसजहर और इज्तमाई र्ज़क्र के दलाइल .................................................................................................................. 29 र्सर्ससला क़ादररया के कमालात................................................................................................................................ 30 राह मजु ार्हदा ................................................................................................................................................... 31 आदाब ए ख़ानक़ाह हज्वैरी (तस्बीह ख़ाना)..................................................................................................................... 31 चन्द इस्तलाहात तसव्वफ़ ु ........................................................................................................................................... 33 तसव्वफ़ु के चार मशहूर र्सर्ससले ............................................................................................................................... 35

र्सर्ससला क़ादरी हज्वैरी के २८ अस्बाक़ ........................................................................................................................... 36 अस्माउल्अज़्कार............................................................................................................................................... 36 १२ अस्माउल्अफ़्कार .......................................................................................................................................... 37

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र्सर्ससला क़ादरी हज्वैरी ............................................................................................................................................ 38

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हाि ए लदि

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कलिमतन ् तय्यिबतन ् कशजरततन ् तय्यिबततन ्

हमारी र्ज़न्दगी की एहम तरीन चीज़ हमारा सांस है। ये र्ज़न्दगी इसी सांस की मरहून ए र्मन्नत है। हम पचास साल की र्ज़न्दगी की मंसबू ा बन्दी करते हैं लेर्कन हमें आने वाले पल की ख़बर नहीं, इस र्लए हमें चार्हए र्क हम इस मादी दन्ु या में ऐसे काम ज़रूर कर लें र्जस से हमारी रूहार्नयत में

इज़ाफ़ा हो। रूहार्नयत का लफ़्ज़ रूह से है और तसव्वफ़ ु का असल मक़्सद ही रूह की र्जस्म के साथ हम आहगं ी और तज़्क्या नफ़्स होता है र्जस

की इतं हा को हदीस पाक में इन असफ़ाज़ के साथ बयान फ़मािया गया है "र्क असलाह की इबादत को इस तरह करो गोया उस को देख रहे हो।" ये

र्ज़न्दगी र्कताबों में पढ़ी ज़रूर थी लेर्कन हक़ीक़त और कै र्फ़यात का अिाक मर्ु शिद उलआ ् फ़ाक़ क़ुतब ज़मां हज़रत ख़्वाजा सय्यद महु म्मद अब्दसु लाह हज्वैरी ‫ رحمة هللاعليه‬की जर्ू तयों में बैठने से ही नसीब हुआ। मेरी ख़्वार्हश और ताकीदी अज़ि है र्क र्सर्ससला क़ादररया का तार्लब इस र्कताबचे को कम अज़् कम दस मतिबा ज़रूर पढ़े, इन् शा असलाह हर दफ़ा मआररफ़त का एक नया बाब खल ु ता चला जाएगा। (हकीम महु म्मद ताररक़ महमदू मज्ज़बू ी चग़ु ताई अफ़ीयसु लाह अन्हु)

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अल्िाह से मुिाक़ात का आसान रास्ता

कौन कहता है र्क ख़दु ा नज़र नहीं आता

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एक वही तो नज़र आता है जब कोई नज़र नहीं आता

तज़्क्या क़सब, र्दल की पाकीज़गी को कहा जाता है यार्न र्दल व र्दमाग़ को बे हयाई और दनु ेवी आलाइशों से पाक कर के इस में आर्ख़रत और

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असलाह की महु ब्बत पैदा की जाए, आम तौर पर इसं ान का रुजहा​ाँ उन चीज़ों की तरफ़ होता है, जो शरीअत के र्ख़लाफ़ हैं और र्जन में नफ़्स को

मज़ा आता है, इन रुजहानात के रुख़ को तब्दील कर के नफ़्स को र्हदायत और ख़ैर पर लगाने की मेहनत का नाम तसव्वफ़ ु व सलक ू है। यार्न एक

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ऐसी कै र्फ़यत का हार्सल हो जाना जो इसं ान को हर जगह अपने ख़ार्लक़ की मौजदू गी का एह्सास र्दलाती है र्िर ये कै र्फ़यत इसं ान के गुनाह करने

कहते हैं।

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में रुकावट और नेकी के काम में उस की मअ ु य्यन व मददगार हो जाए। इसी को मतिबा एह्सान व सलक ू , तज़्क्या नफ़्स, तरीक़त और इख़्लास भी

इस मक़ाम के बाद इसं ान रहता तो दन्ु या में ही है, खाता कमाता भी है, और दीगर ज़रूररयात र्ज़न्दगी को भी परू ा करता है लेर्कन वो इस का र्मस्दाक़

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होता है र्क,

दन्ु या के मश्ग़ुलों में हम बाख़दु ा रहे सब् के साथ रहते हुए सब् से जदु ा रहे

ख़ुिासा ए तसव्वुफ़.......ख़ौफ़ ए ख़दु ा....... इत्तबा ए मस्ु तफ़ा ‫ﷺ‬......... नफ़्स की ना जाइज़ ख़्वार्हशात की मुख़ार्लफ़त......... www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana

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तीन मुजालहदे......... नफ़्स के साथ........ शैतान के साथ........ माहौल के साथ........ ☆☆☆

बालतनी बेमाररिा​ाँ दूर करने की एहलमित

र्दल की बार्तनी बीमाररयां दरू करना र्नहायत ही ज़रूरी हैं और इन अमराज़ के दरू करने का नाम ही तसव्वफ़ ु है। इस की कुछ तफ़्सील मशाइख़ की र्कताबों से दजि की जाती है ता र्क एहर्मयत का अंदाज़ा हो सके ।

【१】हज़रत अली र्बन उस्मान हज्वैरी ‫( رحمة هللاعليه‬४६५ह्) फ़मािते हैं र्क अपने इख़्लाक़ और मआ ु म्लात को साफ़ रखना, हर जगह पाकीज़गी व सच्चाई को लार्ज़म रखना ही तसव्वफ़ ु है।

(१) क़ाज़ी सनाउसलाह पानी पत्ती ‫ رحمة هللاعليه‬सरू ह तौबा की आयत की तफ़्सीर में फ़मािते हैं र्क सर्ू फ़या कराम र्जस इसम को सलक ू व

तसव्वफ़ ु यार्न इस्लाह बार्तन कहते हैं उस का हार्सल करना नमाज़ रोज़े की तरह फ़ज़ि है क्यंर्ू क इस का नतीजा (बुरे अख़लाक़ से) सफ़ाई क़सब है।

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(तफ़्सीर मज़हरी)

【२】इमाम ग़ज़ाली ‫ رحمة هللاعليه‬फ़मािते हैं र्क (जैसे बाक़ी उलमू फ़ज़ि हैं) उसी तरह इसम सलक ू (इसम बार्तन) भी फ़ज़ि है जो र्दल के

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हालात हैं जैसे तवक्कल, ख़र्शय्यत (ख़ौफ़ और हया करना), रज़ा र्बसक़ज़ा यार्न असलाह के फ़ै सले पर राज़ी रहना वग़ैरा। (तालीमसु मतु असमीन)

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【३】इमाम मार्लक ‫ رحمة هللا عليه‬ने फ़मािया र्क र्जस ने र्फ़क़्क़ा के बग़ैर तसव्वफ़ ु हार्सल र्कया वो ज़दं ीक़ हुआ। और र्जस ने तसव्वफ़ ु सीखे बग़ैर र्फ़क़्क़ा हार्सल र्कया वो फ़ार्सक़ हुआ। और र्जस ने दोनों को जमा र्कया वो महु क़्क़ हुआ। (असलमआत श्रह मष्काह)

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【४】उसलमा शामी ने अह्वाल क़सब (र्दल के हालात) की तफ़्सील बयान फ़माि कर ये नतीजा र्नकाला है मसु समानों को लार्ज़म है र्क रज़ाइल

शामी)

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यार्न बुरे अख़लाक़ को दरू करने के र्लए इतना इसम हार्सल करें र्जतना अपने नफ़्स को इस का मुहताज समझें इन का अज़ाला फ़ज़ि ऐन है। (फ़तावा

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【५】हकीमल ु उ् म्मत ‫ رحمة هللا عليه‬ने भी इस्लाह बार्तन को फ़ज़ि क़रार र्दया है। (असतकशफ़ अं मेह्मातुसतसव्वफ़ ु )

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तसव्वुफ़ क्िा नहीं है 【१】 मै व मस्ती, रक़्स व सरू ु र, र्मज़ाज की बेख़दु ी और ग़ैर महु ज़्ज़बाना हरकात का नाम तसव्वफ़ ु नहीं बर्सक सरासर इत्तबा ए सन्ु नत ‫ﷺ‬- का नाम है। और ना ही क़ब्रों पर ग़ैर इस्लामी हरकात का नाम है। www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana

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【२】तसव्वफ़ ु के र्लए ना कश्फ़् व करामात ज़रूरी हैं ना ही परु इस्रार रूहानी मल ु ाक़ात और ना आलम ए लाहूत की सेर होना शति है और ना ही सच्चे ख़्वाब या ख़्वाबों में बुज़गु ों से मुलाक़ात होने का वादा है।

【३】 कारोबार में तरक़्क़ी र्दलाने का नाम तसव्वफ़ ु नहीं। ना मक़ ु द्दमात जीतने का नाम है और ना ही ये बात लाज़्मी है र्क पीर की एक तवज्जह से बग़ैर मजु ार्हदा और बग़ैर इत्तबा सन्ु नत के तमाम मक़ामात तय हो जाएंगे।

【४】दम दरूद, तावीज़ गन्डों और झाड़ िंू क का नाम तसव्वफ़ ु नहीं। आज हमारे मआ ु श्रे में ये सारी चीज़ें तसव्वफ़ ु का र्हस्सा समझी जाने लगी हैं और हम इन ही बातों की तक्मील के र्लए और्लया व बुज़गु ों के पास जाने लगे हैं। ये शैतान का बड़ा धोका है, इस से बचने की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है। बज़ु गु ों के पास इख़्लास से अपनी इस्लाह और तर्बियत की र्नय्यत से आना चार्हए।

इस्िाह बालतन के इस ं ानी लिन्दगी पर असरात

【१】सब् से बड़ा फ़ायदा ये है र्क अगर कोई शख़्स तसव्वफ़ ु पर आर्मल हो तो वो तमाम रज़ाइल अख़लाक़ यार्न तमाम बुरी आदात से पाक हो

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जाता है क्यंर्ू क तसव्वफ़ ु यार्न इश्क़ तमाम इसं ानी बुराइयों को दरू करने की मेहनत का नाम है। तसव्वफ़ ु मज़्हब की रूह है यार्न र्ज़ंदा ख़दु ा के साथ र्ज़दं ा राब्ता पैदा करने या उसे बार्तन की गहराइयों में मश ु ार्हदा करने का नाम है।

【२】 और्लया की र्ख़दमत में रहने से र्मज़ाज में तवाज़अ ु पैदा होता है क्यंर्ू क वो ख़दु सरापा आज्ज़ी होते हैं। मुख़्तसर ् तौर पर एक बुज़गु ि की

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आज्ज़ी और मख़लक़ ू की ख़ैर ख़्वाही का वार्क़आ र्लखा जाता है।

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हज़रत हाजी इम्दादसु लाह महु ार्जर मक्की ‫ رحمة هللاعليه‬के पास कुछ लोग आए कहने लगे: हज़रत! एक साहब का कहना है र्क मैं हाजी साहब

का दामाद हूाँ इस र्नस्बत की वजह से लोग उन की इज़्ज़त करते हैं और तहाइफ़ देते हैं बर्सक वो साहब तो लोगों से अपनी दीगर ज़रूररयात भी परू ी

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कर रहे हैं। हज़रत ने ख़ामोशी से बात सनु ने के बाद फ़मािया र्क भाई मेरी तो कोई बेटी ही नहीं है। तो वो साहब मेरे दामाद कै से हो गए? अगर कोई शख़्स मेरी ज़ात से दन्ु या का नफ़ा ले रहा है तो कोई बात नहीं मेरी ज़ात से र्कसी को तो नफ़ा हो रहा है। देखें! हमारे बड़ों का र्कतनी अज़्मत और

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ररआयत का र्मज़ाज था ऐसे शख़्स से भी दरगुज़र र्कया जो उन के नाम पर दुन्या कमा रहा है।

【३】तसव्वफ़ ु का दसू रा फ़ायदा ये है र्क इसं ान कार्फ़र और मअ ु र्मन, र्हन्दू व मर्ु स्लम, काले और गोरे ग़ज़ि हर र्कसी से महु ब्बत करने लग जाता

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है। क्यंर्ू क उस की र्नगाह में र्सफ़ि अपने ऐब होते हैं। वो बुराई से तो नफ़रत करता है मगर बुराई करने वाले से नफ़रत नहीं करता। ना थी जब अपने गुनाहों पर नज़र देखते थे ज़माने के ऐब व हुनर जब पड़ी अपने गुनाहों पर नज़र

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तो जहां में कोई बुरा ना रहा

【4】सफ़ ू ी के र्दल व र्दमाग़ से तअस्सबु , तंग नज़री, नफ़रत, हक़्क़ारत, इम्​्याज़ रंग व नस्ल, इख़्तलाफ़ उम्मत, र्फ़रक़ा बन्दी, ग्रोह बन्दी, बे जा

पास्दारी या बार्तल पसंदी के जज़्बात र्बसकुल र्मट चक ु े होते हैं, इस र्लए वो र्कसी को तक्लीफ़ नहीं पहु चं ा सकता, इसं ान तो इसं ान वो तो जानवरों पर भी रहम् करता है।

【५】आज हमारी र्ज़न्दगी बहुत मसरूफ़ है। हमें अपनी रूह की ताज़ग़ी के र्लए वक़्त नहीं र्मलता। तसव्वफ़ ु रूह की ताज़ग़ी के साथ आप की

दन्ु यावी और कारोबारी र्ज़न्दगी में मक ु म्मल रहनमु ाई करता है। तसव्वफ़ ु हमें ये र्सखाता है र्क अपना हर र्दन दसू रे र्दन से मख़्ु तर्लफ़ ख़श ु गवार और काम्याब गज़ु ारें । सर्ू फ़या की र्ज़न्दगी और हकायात में इसं ार्नयत के र्लए बे र्मसाल पैग़ामात होते हैं जो हमारी रूहानी, इख़्लाक़ी र्ज़न्दगी को र्नखार कर मआररफ़त के आला मरार्तब तक पहु चं ा देते हैं।

लेर्कन ये बात र्नहायत ही एहम है र्क ये तमाम तब्दीली मुर्शिद कार्मल की सह्ु बत के बग़ैर नामर्ु म्कन है क्यंर्ू क हर फ़न सार्हब ए फ़न की सह्ु बत में

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रह कर ही हार्सल र्कया जाता है।

】‫【كونوا معالصادقين‬

नहीं र्मलता ये गोहर बादशाहों के ख़ज़ीनों में

मुलशउद की एहलमित और िरूरत

मौजूदह मुआश्रे में बैअत की िरूरत इतं ख़ाब ए शैख़

बैअत इस्िाह का क़ुरआन व अहादीस से सबूत

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तमन्ना ददि र्दल की है तो कर र्ख़दमत फ़क़ीरों की

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मुलशउद की एहलमित और िरूरत सह्ु बत शैख़ का सबूत क़ुरआन से

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【१】‫بع سبيل من اناب الى‬ ‫وات‬ (सरू ह लक़्ु मान: १५)

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असलाह पाक फ़मािते हैं:

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"जो बन्दे मेरी तरफ़ रुजअ ू हैं उन की इत्तबा करो"

तफ़्सीर म्वार्हबुरिह्मान में र्लखा है इस आयत में सब् से पहले अंब्या ‫عليه اسالم‬मरु ाद हैं और दसू रे नम्बर पर सार्लहीन उम्मत मरु ाद हैं। (स८् ३) 【२】‫ب هبالغدوة والعشىيريدون وج هه‬ ‫فسك مع الذينيدعون رم‬ ‫واصبرن‬ (सरू ह कहफ़: २८)

"और अपने आप को उन लोगों के साथ मक़ ु ीद रखा कीर्जये जो सबु ह व शाम अपने रब की इबादत महज़ उस की रज़ा हार्सल करने के र्लए करते हैं।"

【३】 ‫يا أي ها الذين آمنواالت هللا و كونوا معالصادقين‬

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(सरू ह तौबा: ११९)

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"ऐ ईमान वालो! तक़्वा अर्ख़्तयार करो और सच्चों के साथ रहो"

िरूरत मुलशउद

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हयात इसं ानी की ये एक र्ज़दं ा हक़ीक़त है र्क इसं ान र्जस इसम से या फ़न में ना आश्ना हो तो उस को जानने के र्लए वो र्कसी मार्हर फ़न उस्ताद की तरफ़ रुजअ ू करता है, ता र्क मार्हर की रहनमु ाई और दस्तगीरी से अपने मक़्सद में काम्याबी और कमाल हार्सल कर सके । जब दन्ु यावी अमरू में बग़ैर

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रहनमु ा के काम्याबी मर्ु म्कन नहीं तो दीनी और रूहानी अमरू में बग़ैर रहनुमा और उस्ताद के र्कस तरह काम्याबी हार्सल हो सकती है? जहां हर हर

"‫فبعزتك الغوينهم اجمعين‬ "

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क़दम पर नफ़्स और शैतान घात लगा कर बैठे हों और वो इब्लीस र्जस ने ये क़सम खाई हो।

"र्क (ऐ असलाह) तेरी इज़्ज़त की क़सम मैं ज़रूर उन सब् को गुम्राह करूंगा।"

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इसी र्लए और्लया कराम ‫ رحم هم هللا‬र्कसी ना र्कसी बुज़गु ि की सह्ु बत को हज़ि जान समझते थे हज़रत ख़्वाजा अज़ीज़ान अली रामेतनी

‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हैं र्क यार नेक की सह्ु बत कार नेक से बेह्तर है क्यंर्ू क कार नेक में ररया आ सकती है लेर्कन यार नेक तुम को र्सरात मस्ु तक़ीम पर लगाने की कोर्शश करे गा।

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दूसरी लमसाि

र्जस तरह र्तब्ब की र्कताबों में हर र्क़स्म के नस्ु ख़ा जात, दवा का वज़न और तरीक़ इलाज मौजदू हैं तो र्िर र्कसी मार्हर तबीब और डॉक्टर के

पास जाने की क्या ज़रूरत है? क्या हमारे ज़हनों में ये सवाल उभरता है? ज़ार्हर है ऐसा नहीं आर्ख़र इस की क्या वजह है? वजह र्सफ़ि् यही है र्क जान अज़ीज़ है और एह्यात तक़ाज़ा ये है र्क र्तब्ब की र्कताबों और अपने इसम पर भरोसा ना र्कया जाए, बर्सक अच्छी तरह छान बीन कर के र्कसी मार्हर को तलाश र्कया जाए। इसी तरह अगर ईमान अज़ीज़ हो और असलाह तआला से तअसलक़ ु पैदा करना मक़्सदू ् हो तो ज़रूरी है र्क

आदमी र्कसी मआ ु र्लज रूहानी को तलाश करे क्यंर्ू क रूहानी तबीब के बग़ैर रूहानी सेहत, तज़्क्या बार्तन और तअसलक़ ु मअ असलाह पैदा होना महु ाल है।

हज़रत शाह वर्लयसु लाह देहसवी ‫ رحمة هللاعليه‬फ़मािते हैं र्क नापाक ज़मीन के पाक होने की दो सरू तें हैं। एक तो ये र्क इतनी बाररश बरसे र्क गन्दगी को बहा कर ले जाए। दसू री ये र्क इतना सरू ज चम्के र्क वो नजासत को जला कर राख दे। इसी तरह क़सब की ज़मीन के र्लए दो

चीज़ें हैं एक र्ज़क्र इलाही र्जस की र्मसाल बाररश की सी है। और दसू री शैख़ कार्मल की सह्ु बत की र्मसाल वो सरू ज की सी है र्ज़क्र से भी र्दल

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साफ़ होता है और शैख़ कार्मल की सुह्बत और तवज्जहु ात से भी।

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मोजूदह दौर में बैअत की िरूरत

क़यामत की अक्सर र्नशार्नयां परू ी हो चक ु ी हैं हर आने वाली सबु ह रोज़ र्नत्त नए र्फ़्ने ला रही है क़यामत उस वक़्त तक क़ाइम नहीं हो सकती जब तक

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रूए ज़मीन पर एक भी असलाह वाला मौजदू है इस र्लए अगर आज हम भी अपने ईमान को बचाना चाहते हैं तो र्कसी असलाह वाले के साथ जड़ु जाएं अगचे हमारी अपनी कोई हैर्सयत नहीं लेर्कन उन असलाह वालों के साथ जड़ु जाने की वजह से हम बे क़ीमत भी क़ीमती हो जाएगं े। इस र्नस्बत को मैं

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चन्द र्मसालों के ज़ररए समझाता हू।ाँ

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र्जस तरह दो ईटें​ं हैं दोनों एक ही भट्टे में तय्यार होती हैं एक को मर्स्जद के फ़शि में लगा र्दया गया। और दसू री को बैतसु ख़ला में लगा र्दया गया। मर्स्जद

वाली ईटं का मतिबा इतना बढ़ा र्क वहां हर शख़्स पेशानी रखना सआदत समझता है और र्जस ईटं के र्नस्बत बैतसु ख़ला के साथ हुई उस में कोई नंगे पैर जाना गवारा नहीं करता। अरे असलाह वालो ये है र्नस्बत की बरकत र्क अच्छी र्नस्बत ने इज़्ज़त बख़्शी और बरु ी र्नस्बत र्ज़सलत और रुस्वाई का

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वगरना ये र्नस्बत और तअसलक़ ु तो कहीं सबब बनी। हमें भी चार्हए र्क हम अपनी र्नस्बत को र्कसी असलाह वाले के साथ जोड़ लें।

दूसरी लमसाि

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हमारी आम र्ज़न्दगी में एक गत्ते को कोई एहर्मयत हार्सल नहीं लेर्कन जब यही गत्ता क़ुरआन मक़ ु द्दस की र्जसद बन जाता है तो इस गत्ते पर बज़ार्हर कोई र्लखा हुआ ना भी हो इस के बावजदू भी उसलमा ने र्लखा है र्क इस गत्ते को भी बेवज़ू छूना जाइज़ नहीं क्यंर्ू क अब इस गत्ते की र्नस्बत अज़्मत वाली र्कताब के साथ हो गयी। अब इस र्नस्बत ने इस बे हैर्सयत गत्ते को भी मोहतरम बना र्दया। सब्ु हानसलाह।

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इज़्ज़त नसीब होती है।

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इसी तरह जो गुनाहगार से गुनाहगार शख़्स भी र्कसी असलाह वाले से जड़ु जाता है उस की एहर्मयत और हैर्सयत भी मोहतरम हो जाती है और उसे

अमल की अपनी असास क्या है, बजज़ु र्नदामत के पास क्या है रहे सलामत तुम्हारी र्नस्बत, मेरा तो बस आसरा यही है।

तीसरी लमसाि

एक ट्रेन कई डब्बों पर मश्ु तर्मल होती है अगर उस के साथ एक और कमज़ोर सा बे हैर्सयत डब्बा जोड़ र्दया जाए तो र्जस मर्न्ज़ल पर बक़्या ट्रैन पहु चं ेगी वहां वो उन के साथ लगा हुआ बे हैर्सयत डब्बा भी पहु चं जाएगा। इसी तरह हम र्बसकुल बे हैर्सयत हैं ना ख़दु चसने की हम में ताक़त है और ना ही र्हम्मत। अगर हम भी अपने आप को र्कसी मज़बूत इजं न (असलाह वाले) या र्कसी डब्बे (र्कसी असलाह वाले के ग़ुलाम) के साथ जोड़ लेंगे तो असलाह के फ़ज़्ल व करम से हम भी अपनी मर्न्ज़ल पर पहु चं जाएगं े।

इन्तख़ाब ए शैख़

जब ये बात वाज़ेह हो गयी र्क तज़्क्या नफ़्स यार्न इस्लाहे बार्तन जो र्क मक़ार्सद ररसालत में से है, उस के र्लए र्कसी रहबर व रहनमु ा की ज़रूरत है,

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र्जसे मर्ु शिद, उस्ताद या शैख़ र्कसी भी नाम से पक ु ार सकते हैं। र्जस तरह इसं ान अपने दन्ु या के दीगर एहम मआ ु म्लात में ग़ौर व र्फ़क्र और छान बीन के

बाद फ़ै सला करता है, उस से भी कहीं ज़्यादा शैख़ के इन्तख़ाब के वक़्त फ़ै सला करें क्यर्ंू क ये आप की दन्ु या व आर्ख़रत दोनों का मआ ु म्ला है र्नहायत ही

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इ्मीनान के बाद हाथ में हाथ दें क्यंर्ू क शैख़ के हाथ पर बैअत करने की र्मसाल ऐसी है जैसे मदु ाि बदस्त र्ज़ंदा। यार्न मदु ाि र्जस तरह बेबसी के आलम में सरापा दसू रों का महु ताज होता है उसी तरह सच्चा तार्लब भी अपने शैख़ के हुक्म की तअमील का पाबन्द रहता है। तार्लबीन की सहूलत के र्लए चन्द

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शराइत र्लखी जाती हैं जो शैख़ कार्मल में होना र्नहायत ही ज़रूरी हैं।

(१) ऐसे शख़्स को मर्ु शिद बनाया जाए जो रमज़ू आश्ना और मर्न्ज़ल मआररफ़त का हार्मल हो और फ़न रहबरी में मार्हर भी हो।

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(२) जो पाबन्दी शरीअत, तक़्वा व तहारत और हुस्न मआ ु म्लात से आरास्ता हो क्यंर्ू क जो शख़्स ख़दु बा अमल ना हो या वो नाबीना हो वो दसू रों की भी

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रहनमु ाई नहीं कर सकता चनु ाचे हक़ तआला फ़मािते हैं (‫تبع هو اه و كان امرهفرطا‬ ‫غفلناقلبه عن ذكرنا وا‬ ‫)التطع من ا‬

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(सरू ह कहफ़ २८)

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उस शख़्स की पैरवी मत करो र्जस के र्दल को हम ने अपनी याद से भल ु ा र्दया और उस ने अपनी ख़्वार्हश की पैरवी की। “और उसका काम हद्द से बढ़ा हुआ है”

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(३) बैअत होते वक़्त एह्यात इस र्लए भी ज़रूरी है र्क राह सलक ू में रहज़न बहुत ज़्यादा और रहबर बहुत ही कम हैं कहीं ये ना हो र्क आदमी सराब को

दररया समझ कर प्यास बुझाने की लाहार्सल कोर्शश में ख़दु को हलाक कर दे, या बबूल को बाग़ ए इरम जान कर अपने आप को लहू लहु ान कर दे। और आर्ख़रत में र्सवाए ख़सारे और नक़्ु सान के कुछ भी हाथ ना आए।

हज़रत इब्न अरबी ‫ رحمة هللاعليه‬ने शैख़ कार्मल की तीन र्सफ़ात (ख़र्ू बया​ाँ) र्ज़क्र की हैं। दीन अब्ं या ‫عليهلسالم‬का हो। तदबीर अत्तबा की सी हो।

और र्सयासत बादशाहों की सी हो।

हज़रत हाजी इम्दादसु लाह महु ार्जर मक्की ‫ رحمة هللاعليه‬फ़मािते हैं र्दल की सफ़ाई तो कुफ़्फ़ार और ग़ैर मर्ु स्लम को भी हार्सल हो जाती है। र्दल की र्मसाल आईने की तरह है। आईना गदि आलदू है तो पेशाब से भी साफ़ हो जाता है और अक़ि गुलाब से भी लेर्कन फ़क़ि नजासत और तहारत का है।

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वलीयसु लाह को पहचानने के र्लए इत्तबा ए सन्ु नत कसौटी है। (रजमू अलमज़्ु नीन)

बैअत इस्िाह की एहलमित

जब ये बात जान ली गयी र्क शैख़ कार्मल की सह्ु बत और उन की मजर्लस में हाज़री र्नहायत ही ज़रूरी है वगरना इस के बग़ैर दन्ु या की भल ू भल ु य्यों

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और शैतान की चालबार्ज़यों में मल ु र्व्वस होना बहुत मर्ु म्कन ही नहीं बर्सक लाज़मी है। तो इस से बैअत की एहर्मयत भी वाज़ेह हो जाती है। बैअत का

अमल कोई रस्मी चीज़ नहीं बर्सक ये आप ‫ﷺ‬- सहाबा कराम ‫ رضوان هللاعليهم اجمعين‬और तमाम और्लया उज़्ज़ाम‫ رحم هم هللا‬की सन्ु नत है।

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र्जस का सबूत क़ुरआन मक़ ु द्दस, अहादीस मबु ारका और लाखों और्लया कराम के हालात में र्मलता है।

मशाइख़ र्ज़्िाम की बैअत इस्िाह

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बैअत की आम तौर पर तीन र्क़स्में हैं। (१) बैअत इस्लाम (२) बैअत र्जहाद (३) बैअत तौबा।

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सर्ू फ़या कराम का जो मामल ू है वो बैअत तौबा है। र्जसे बैअत इस्लाह और बैअत तसव्वफ़ ु भी कहते हैं। ये बैअत इस र्लए है र्क र्जन चीज़ों से शरीअत ने मना र्कया है उन से बचा जाए और जो कुछ शरीअत ने जाइज़ र्कया है उस को र्ज़न्दगी में ले आने के र्लए अहद और वादा र्कया जाए।

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हमारे अकार्बर में बड़ी बड़ी हर्स्तयां और्लया की र्ख़दमत में जाती भी थीं और बैअत भी होती थीं। मस्लन (१) सय्यद अहमद शहीद ‫رحمة هللاعليه‬ की बैअत व र्ख़लाफ़त शाह अब्दल ु अपने वार्लद मक ु रि म इमाम अर्सहन्द ु अज़ीज़ महु र्द्दस देहसवी ‫ رح مة هللاعليه‬से थी और आप की बैअत तसव्वफ़ हज़रत मौलाना शाह वलीयसु लाह महु र्द्दस देहसवी ‫ رحمة هللاعليه‬जो बरि सग़ीर में अशाअत हदीस का सबब बने और शाह साहब की बैअत इस्लाह

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अपने वार्लद मोहतरम शाह अब्दरु ि हीम ‫ رحمة هللاعليه‬से थी जो चारों र्सर्ससलों में मजाज़ थे और उन की बैअत इस्लाह हज़रत ख़्वाजा सय्यद अब्दसु लाह वास्ती ‫ رحمة هللاعليه‬से और सय्यद आदम र्बनोरी ‫( رحمة هللاعليه‬ख़लीफ़ा मजाज़ मजु र्द्दद असफ़ सानी ‫ ) رحمة هللاعليه‬से बैअत व र्ख़लाफ़त हार्सल थी। (अलइ् तं बाह फ़ी सलार्सल ऑर्लयाउसलाह) www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana

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(२) इमाम राज़ी ‫ رحمة هللاعليه‬की बैअत तौबा हज़रत शैख़ नजमद्दु ीन कुबरा ‫ رحمة هللاعليه‬के साथ थी। (३) शैख़ अब्दसु हक़ देहसवी ‫ رحمة هللاعليه‬हज़रत ख़्वाजा बाक़ी र्बसलाह ‫ رحمة هللاعليه‬से बैअत थे।

(४) इसी तरह मौलाना जामी जैसी शहरा आफ़ाक़ शर्ख़्सयत र्जन की र्कताब आज हर आर्लम के र्लए पढ़ना लार्ज़म है आप की बैअत इस्लाह ख़्वाजा उबैदसु लाह अहरार ‫ رحمة هللاعليه‬के साथ थी।

(५) उसलमा ए अहसहदीस की मारूफ़ और बन्ु यादी बज़ु गु ि शर्ख़्सयत हज़रत मौलाना अब्दसु लाह ग़ज़नवी ‫ رحمة هللاعليه‬की बैअत इस्लाह शैख़

हबीबसु लाह क़नधारी ‫ رحمة هللاعليه‬से थी और उन का र्सर्ससला बैअत नक़्शबंर्दया के मारूफ़ बज़ु गु ि सय्यद अहमद शहीद ‫ رحمة هللاعليه‬से था। और इसी तरह शैख़सु कुल हज़रत मौलाना नज़ीर हुसैन देहसवी ‫ رحمة هللاعليه‬भी लोगों को बैअत फ़मािते थे। (दर्बस्तान हदीस, मौलाना इस्हाक़ भट्टी)

हज़रत सय्यद महु म्मद शरीफ़ घड़यासवी, मौलाना अबू बकर ग़ज़नवी, मौलाना दावदू ग़ज़नवी और लख्वी ख़ानदान‫ رحم هم هللا‬के अस्लाफ़ बैअत फ़मािते थे।

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क़ुरआन मक़ ु द्दस और अहादीस मबु ारका से ख़वातीन का बैअत इस्लाह करना हुज़रू ‫ﷺ‬- से सार्बत है। इस र्लए इस्लाह बार्तन की ग़ज़ि से शरई हददू को मद्द नज़र रखते हुए मत्तबअ कार्मल शैख़ से ख़वातीन बैअत कर सकती हैं और करनी भी चार्हए।

बैअत इस्िाह क़ुरआन की निर में

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‫تلن اوال د هن وال ياتين‬ ‫يبايعنك على ا اليشركن باهللشيا اليسرقن اليزنين اليق‬ ‫( يا أي هاالنبي اذا جاءكالمومنت‬

) ‫فور رحيم‬ ‫فرل هن هللا ان هللا غ‬ ‫عروف فبايع هنواستغ‬ ‫فترينهبينايدي هن وارجل هن اليعصينكفى م‬ ‫ببهتاني‬

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(सरू ह मम्ु तर्हना १२)

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“ऐ नबी ‫ ﷺ‬जब आएं आप के पास मसु समान औरतें बैअत करने के र्लए इस बात पर र्क शरीक ना ठहराएगं ी असलाह का र्कसी को, चोरी ना करें गी और बद्द कारी ना करें और अपनी औलाद को ना मार डालें, और तूफ़ान ना लाएं बांध कर अपने हाथों और पाओ ं में और आप की नाफ़रमानी ना करें

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र्कसी भले काम में तो आप उन को बैअत कर लें और मआ ु फ़ी मांगें उन के वास्ते असलाह से बेशक असलाह बख़्शने वाला मेहरबान है।

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(२) ( ‫يبايعون هللايد هللافوقايديهم‬ ‫يبايعونك انما‬ ‫) ان الذين‬ “ऐ महबूब ‫ ﷺ‬बेशक जो लोग आप की बैअत करते हैं, दर हक़ीक़त वो असलाह की बैअत करते हैं। असलाह का हाथ उन के हाथों पर है।”

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बैअत इस्िाह पर अहादीस मुबारका हुज़रू ‫ ﷺ‬ने सहाबा ‫ رضوان هللاعليهم اجمعين‬की एक जमाअत जो आप ‫ ﷺ‬के र्गदि जमा थी उन से फ़मािया र्क “तुम लोग मझु से इस बात पर बैअत कर लो र्क तुम शरीक ना करोगे और चोरी ना करोगे और र्ज़ना ना करोगे। (बुख़ारी व मर्ु स्लम, मर्ु ख़्लसन)

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ऑफ़ र्बन मार्लक अश्जई ‫ رضي هللا عنه‬से ररवायत है र्क हम हुज़रू ‫ ﷺ‬की र्ख़दमत में चन्द अफ़राद हार्ज़र थे आप ‫ ﷺ‬ने फ़मािया र्क तमु मझु से

बैअत नहीं करते हो? हम ने हाथ िे ला र्दए और अज़ि र्कया या रसल ू सु लाह ‫ !ﷺ‬हम र्कस अम्र पर आप की बैअत करें ? आप ने फ़मािया र्क असलाह तआला की इबादत करो उस के साथ र्कसी को शरीक ना बनाओ, (पाचं वक़्त की नमाज़ें पढ़ो और अहकाम सनु ो और मानो। (मर्ु स्लम, अबू दावदू , र्नसाई, मलख़सं)

इन आयात और अहादीस मबु ारका के इलावा और भी बहुत से आयात और अहादीस में सहाबा कराम ‫ رضوان هللاعليهم اجمعين‬का बैअत

इस्लाह करना और हुज़रू ‫ ﷺ‬का बैअत लेना र्बसकुल वाज़ेह है। सोचने की बात ये है र्क सहाबा जैसे पाक नफ़ूस तो अपनी इस्लाह और तर्बियत के र्लए हुज़रू ‫ ﷺ‬से बैअत और आज हमें इस की कोई ज़रूरत ना हो तो इस में र्कसी का क्या नक़्ु सान है अपनी ही कम नसीबी कर्हये या और कुछ---!

आदाब बैअत

ख़मषू ऐ र्दल भरी महर्फ़ल में र्चसलाना नहीं अच्छा अदब पहला क़रीना है महु ब्बत के क़रीनों में

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हज़रत अबू हफ़्स नीशापरु ी ‫ رحمة هللاعليه‬फ़मािते हैं तसव्वफ़ ु सरासर अदब है, हर वक़्त हर मक़ ु ाम और हर हाल का अदब, र्जस ने इन आदाब की

ररआयत की वो बाकमाल और्लया के मक़ ु ाम को पहु चं गया और र्जस ने आदाब को ज़ायअ र्कया वो महरूम रहा चाहे वो ख़दु को कार्मल समझ रहा

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हो।

बैअत का मतलब ये है र्क अपनी ख़्वार्हश को शैख़ के तार्बअ कर दे। राह सलक ू में कामयाबी उसी को र्मलती है और तरक़्क़ी वही करता है जो अपनी

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अना और राय को ख़्म कर दे और उन्ही बातों पर अमल करे जो उस का शैख़ उस को तालीम करे और ज़ार्हर है र्क मत्तबअ शरीअत शैख़ शरीअत के र्ख़लाफ़ कोई हुक्म नहीं दे सकता।

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आदाब शैख़ का ख़ल ु ासा चार बातों में है: (१) एअतक़ाद (र्वश्वास)। (२) इक़ ं याद (अनपु ालन)। (३) इत्तलाअ (सचू ना)। (४) और इत्तबाअ (समर्थित)।

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(१) एअतक़ाद (र्वश्वास): अपने शैख़ से एअतक़ाद और महु ब्बत के बारे में मेरे मर्ु शिद हज़रत ख़्वाजा सय्यद महु म्मद अब्दसु लाह हज्वैरी ‫رحمة هللا‬

‫عليه‬फ़मािते र्क “मर्ु शिद से महु ब्बत ना करो बर्सक इश्क़ करो और इश्क़ भी वार्लहाना और सच्चा, जो चीज़ भी मर्ु शिद की महु ब्बत और अक़ीदत के

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दरम्यान हाइल हो तो उस को ज़बह कर दो। हज़रत शैख़ अब्दसु क़ार्दर जीलानी ‫ رحمة هللاعليه‬फ़मािते हैं: ( ‫فى شيخهالكما ال‬ ‫منلميعتقد‬ ‫يفلحعلىيدهابدا‬ ) यार्न जो शख़्स अपने शैख़ के कमाल का एअतक़ाद ना रखेगा वो कभी कामयाब ना हो सके गा।)

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अपने मर्ु शिद से महु ब्बत और अक़ीदत में र्जतनी पख़्ु तगी ज़्यादा होगी मरु ीद शैख़ के फ़ै ज़ से उतना ही ज़्यादा मस्ु तफ़ीद होगा। इस र्लए अपने मसलेह और रहनमु ा से अक़ीदत और हुस्न ज़न के बग़ैर उस की बात मानना मर्ु श्कल ही नहीं बर्सक नामर्ु म्कन है। मर्ु शिद से क़सबी तअसलक़ ु के बग़ैर ना मआररफ़त हार्सल हो सकती है और ना ही सलक ू की तकमील।

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हज़रत र्शब्ली ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हैं र्क ( ‫القلب ماسوى محبوب‬ ‫ )سميتالمحب الن هاتمحو من‬यार्न महु ब्बत को महु ब्बत इस र्लए कहते हैं र्क वो र्दल से महबूब के र्सवा सब कुछ र्मटा देती है। मर्ु शिद की महु ब्बत इस दजे की हो।

आह वो क्या र्दन थे जब र्दल महु ब्बत से सरशार था मैकदे में र्जस्म के , जो सांस था मैख़्वार था

ख़ार पर भी आख ं उठती तो र्मल जाता था िूल महर्फ़ल हस्ती का जो भी मंज़र था गुसज़ार था

हज़रत हाजी इम्दादसु लाह महु ार्जर मक्की ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हे​े र्क बैअत की बरकत से बहुत से तार्लबीन ख़दु ा अपने हुस्न ज़न की वजह से ऐसे मक़ ु ाम पर पहु चं गए जहां पर उन के मर्ु शिद भी नहीं पहु चं े थे।

हज़रत मजु र्द्दद असफ़ सानी ‫ رحمة هللا عليه‬की सलक ू में ख़दु परवाज़ र्नहायत ऊंची थी उन्हों ने अपने मर्ु शिद को एक मक़ ु ाम पर रुका हुआ देखा र्क

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शैख़ की तरक़्क़ी नहीं हो रही तो शैख़ से ये सारा वार्क़आ अज़ि कर र्दया। शैख़ ने अपने सार्दक़ मरु ीद से तवज्जह करने का कहा। आप ‫رحمة هللا عليه‬ ने अपने शैख़ को तवज्जह दी र्जस की वजह से शैख़ रुके हुए मक़ ु ाम से र्नकल गए। हज़रत मजु र्द्दद साहब ‫ رحمة هللا عليه‬पाचं , छे र्दन तक तवज्जह

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देते रहे लेर्कन इस के बावजदू अपने शैख़ से महु ब्बत व अक़ीदत अदब व एहतराम में कोई फ़क़ि ना पड़ा। जो वाक़ई हक़ीक़त में मख़ ु र्लस होते हैं ख़दु आला मक़ ु ाम तक पहु चं जाएं मगर मशाइख़ की क़दर व मर्न्ज़लत में कमी नहीं आने देते।

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शरू ु में बैअत होते वक़्त तो इसं ान को अपने शैख़ से अक़ीदत होती है, लेर्कन आर्हस्ता आर्हस्ता उस में कमी वार्क़अ होना शरू ु हो जाती है, और ये कमी व दरू ी, शक व शबु हात पैदा करने का सबब बनती है। शैख़ चाहे र्कतना ही बड़ा क्यंू ना हो मासमू नहीं होता र्लहाज़ा उन से कुछ ऐसी बातें हो

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सकती हैं जो मरु ीद की समझ में ना आएं तो ऐसी बातों को बजाए अपने ज़ेहन में सोचने और पकाने के मर्ु शिद से मनु ार्सब मौक़े पर अज़ि कर दे।

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शैख़ की मजर्लस आदाब के साथ अर्ख़्तयार करने से और असलाह पाक से मस्ु तक़ल दआ ु करने से इन् शा असलाह रब का करम हो जाता है और उस के साथ हर वक़्त ये भी तसव्वरु में रखा करे र्क असलाह पाक के तअसलक़ ु से बढ़ कर मेरे र्लए कोई और चीज़ नहीं और इतनी बड़ी दौलत मझु े मेरे मर्ु शिद

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के ज़ररए से र्मलनी है इस पर असलाह का शक्र ु अदा करता रहे अपने शैख़ के र्लए दआ ु भी करता रहे। इक़ ं िाद (अनुपािन): इक़ ं याद का मतलब ये है र्क मर्ु शिद पर कार्मल भरोसा करना। एक शख़्स हवाई जहाज़ पर सफ़र करना चाहता है तो र्टकट खरीद कर पायलट पर मक ु म्मल एअतमाद कर के जहाज़ में बैठ जाता है तो पायलट सवारी को मर्न्ज़ल पर पहु चं ा देता है। मरु ीद इसी तरह शैख़ पर एअतमाद

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करते हुए बार्तनी सफ़र के र्लए अपने आप को शैख़ के हवाले करता है शैख़ अपने मरु ीद को राह पर चलाते हुए असलाह तआला से वार्सल कर देता है। मेरे मर्ु शिद हज़रत ख़्वाजा सय्यद महु म्मद अब्दसु लाह हज्वैरी ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािया करते थे र्क मर्ु शिद पर इतना यक़ीन होना चार्हए र्जतना अपने वासदैन पर होता है र्क कभी उन से उन के र्नकाह नामे की तहक़ीक़ नहीं की बस ये मालमू हो गया र्क ये मेरा बाप और ये मेरी मा​ाँ है कभी उन से तफ़्तीश www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana

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नहीं की। फ़ौरन मान र्लया र्क हा​ाँ सही है इस से भी ज़्यादा अपने मर्ु शदि पर यक़ीन होना चार्हए क्यंर्ू क वो आर्ख़रत और रब से र्मलाने का ज़ररया है। और फ़मािया र्क अपने मर्ु शिद के बारे में ये यक़ीन हो र्क जो फ़ायदा अपने मर्ु शिद से पहु चं सकता है र्कसी और बुज़गु ि से नहीं पहु चं सकता। सलक ू के रास्ते में बग़ैर तकमील के र्कसी और बुज़गु ि की तरफ़ तवज्जह करना शैतान का बड़ा वस्वसा और नरू ानी व रूहानी जाल है। लेर्कन इस के साथ साथ ये भी याद रखें र्क र्कसी भी वली की शान में गुस्ताख़ी व बे अदबी भी जाइज़ नहीं।

इत्तिाअ (सच ू ना): र्जस तरह र्जस्मानी र्नज़ाम को दरु​ु स्त रखने के र्लए ज़रूरी है र्क अपने मआ ु र्लज को अपने अह्वाल से बा ख़बर रखा जाए इस से भी ज़्यादा ज़रूरी है र्क अपने रूहानी र्नज़ाम और रूह के र्नज़ाम की इस्लाह के र्लए अपने रूहानी मआ ु र्लज यार्न मर्ु शिद को इत्तलाअ देता रहे। जो

सार्लक अपने अह्वाल की मस्ु तक़ल इत्तलाअ देते हैं वो बहुत जसद अपनी मर्न्ज़ल तक रसाई हार्सल कर लेते हैं। अपने शैख़ को अच्छे या बुरे दोनों र्क़स्म के हालात की ख़बर देते रहना चार्हए र्बसख़सु सू बुरे और कमज़ोर हालात तो ज़रूर ही र्लखें, र्सफ़ि इस गुमान और वहम में नहीं रहना चार्हए र्क मेरे

मर्ु शिद को मेरे हालात की ख़बर तो हो ही जाएगी मझु े इत्तलाअ व अह्वाल देने की क्या ज़रूरत है ऐसा शख़्स आर्हस्ता, आर्हस्ता शैतान के मक्कर व फ़रे ब में मब्ु तला हो जाता है। शैतान बअज़ औक़ात ऐसे सार्लक को नरू ानी सरू त में बड़े सनु हरे ख़्वाब र्दखाता है। और कहता है र्क तू तो ख़दु बाकमाल होता जा रहा है और तेरी कै र्फ़यात बढ़ती जा रही हैं याद रखें ये सब शैतान तजबु ेकार के धोके हैं।

हज़रत ख़्वाजा अलाउद्दीन ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हैं र्क मरु ीद के र्लए पीर की सह्ु बत सन्ु नत मअ ु कदह है। अगर ये रोज़ ना हो सके तो हर माह में दो

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तीन दफ़ा ही सही और अगर ये भी ना हो सके तो ख़त व र्कताबत का र्सर्ससला जारी रखे ता र्क र्बसकुल ग़ैर हार्ज़रों में शमु ार ना हो जाए।

हज़रत शाह ग़ुलाम अली ‫ رحمة هللا عليه‬अपने वक़्त के बाकमाल बुज़गु ों में से थे एक मतिबा आप ने कोई मश्ु तबा चीज़ खा ली तो आप की तमाम

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रूहानी कै र्फ़यात ख़्म हो गई।ं वो अपने शैख़ र्मज़ाि मज़हर जान जानां ‫ رحمة هللا عليه‬के पास आए और अपनी हक़ीक़त हाल बयान की। शैख़ ने कई र्दन तवज्जह दी उस के बाद आप की कै र्फ़यात बहाल हुई।ं देखें! इतने बड़े बाकमाल बुज़गु ि होने के बावजदू भी हज़रत शाह ग़ुलाम अली ‫رحمة هللا‬

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‫عليه‬अपने शैख़ को इत्तलाअ देने और उन की र्ख़दमत में हाज़री के महु ताज हैं। तवज्जहु ात के हुसल ू के र्लए ये बात र्नहायत ही ज़रूरी हे र्क मरु ीद

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सच्ची तलब ले कर आए।

इत्तबा (समलथउत): राह सलक ू में इत्तबा का मतलब ये है र्क सार्लक अपनी राय को र्बसकुल ही फ़ना कर दे, र्जस तरह हम जब र्कसी र्जस्मानी

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मआ ु र्लज के पास जाते हैं तो तबीब हमारी मज़ी के मतु ार्बक़ नहीं बर्सक हमारे मज़ि के मतु ार्बक़ इलाज तज्वीज़ करते है, वो चाहे आपरे शन ही क्यंू ना कह दे हम भारी भरकम फ़ीस देने के बाद भी डॉक्टर की इस राय पर अपने र्जस्म को कटवाने पर राज़ी हो जाते हैं, क्यर्ंू क हम जानते हैं र्क ये इस फ़न का

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मार्हर और हमारा महु र्सन है। लेर्कन अपनी रूह का इलाज कराने के र्लए र्जस मआ ु र्लज के पास आ कर हम अपना इलाज कराते हैं उन की तालीमात में सो तरह के लॉर्जक (दलीलें) सोचते हैं।

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बैअत की असल रूह यही इत्तबाअ है और शैख़ से भरपरू फ़ायदा हार्सल करने का तरीक़ा ये है र्क उन के अदना से इशारे की भी तकमील की जाए, उन के वइज़ व तक़रीर के हर लफ़्ज़ पर ये सोचा जाए र्क ये सब मेरे र्लए हैं। ये ना सोचा जाए र्क नफ़ा हुआ या नहीं? इन् शा असलाह काम असलाह के फ़ज़्ल से ज़रूर बनेगा।

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कलिमतन ् तय्यिबतन ् कशजरततन ् तय्यिबततन ्

बहुत से लोग ये समझते हैं र्क बस बैअत कर ली यही काफ़ी है और इसी पर हमारी र्नजात हो जाएगी, आज के इस गए गज़ु रे दौर में जब र्क दीन पर

चसना ऐसा है जैसा हाथ में अगं ारह लेना, इस में शक नहीं र्क असलाह वालों से बैअत और र्नस्बत बहुत ऊंची चीज़ है। लेर्कन ये भी एक धोका है र्क बैअत को काफ़ी समझ र्लया जाए और अपनी र्ज़न्दगी बदसने का कोई इरादा ना हो।

अपने वक़्त के नाम्वर उसलमा ए कराम ‫ رحم هم هللا‬ने अपने दौर के मशाइख़ के हाथ पर ररवाजी बैअत नहीं की बर्सक इसम और अमल में जोड़ पैदा करने के र्लए उन की तालीमात पर सर तस्लीम ख़म र्कया।

बद्द परहेज़ी या अमली कोताही पर अगर शैख़ कोई तंबीह करे तो उस पर बुरा ना माने बर्सक इस को अपने र्लए रहमत समझे और ये सोचे र्क ये तो मझु पर एहसान हुआ र्क मझु े टोक र्दया गया अगर मझु े ने रोका जाता तो ना जाने मेरा र्कतना बड़ा ना क़ार्बल तलाफ़ी नक़्ु सान हो जाता।

मरु ीदेन की दो र्क़स्में होती हैं एक वो जो हुक्म पर अमल करने वाले होते हैं और दसू रे वो जो मन्शा ए शैख़ पर अमल करने वाले होते हैं। यही वो लोग होते हैं जो बा मरु ाद होते हैं।

अगर शैख़ की तालीम पर अमल और उन के कहने पर इ्मीनान ना हो तो सारी उम्र भी चक्की पीसेगा तो नफ़ा नहीं होगा।

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बैअत का मक़्सद

बैअत का मतलब अपने शैख़ से वादा होता है और ये अज़्म होता है र्क आज के बाद मैं उस र्ज़न्दगी से तौबा करता हूाँ र्जस र्ज़न्दगी में अपने पैदा करने

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वाले करीम रब से दरू रहे और भल ू ा रहा और उस की ना फ़मिर्नयों के बावजदू वो

महु ब्बत करने वाला दाता मझु े छूट देता रहा। और मैं अपने शफ़ीक़ व महु र्सन नबी ‫ ﷺ‬के एहसानात को फ़रामोश र्कये उन की पाकीज़ह सन्ु नतों से दरू रहा

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आज मैं उस र्ज़न्दगी से तौबा करता हू।ाँ

मेरे शैख़ हज़रत ख़्वाजा सय्यद महु म्मद अब्दसु लाह क़ादरी हज्वैरी ‫ رحمة هللا عليه‬के बैअत फ़रमाने का तरीक़ा ये था र्क जो भी सार्लक आता अगर

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मज्मआ ज़्यादा होता तो आप चादर या कपड़े वग़ैरा को िै ला लेते और फ़मािते र्क इस को पकड़ लो और र्दल ही र्दल में ये कर्लमात दह्रु ाते जाओ:

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(तजिमु ा: )

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अश्हदु असला इलाह इसलसलाहु व अश्हदु अन्न महु म्मदन् अब्दहु ू व रसल ू हु ू

) ‫عبده ورسوله‬ ‫( اشهد ا الاله اال هللا واش هد ان محمدا‬

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या असलाह! मैं ने तौबा की र्शकि से, र्बद्दअत से, सग़ीरह कबीरह गुनाहों से और तेरी हर ना फ़रमानी से और अहद र्लया मैं ने आज के बाद मैं तेरे हर हुक्म और तेरे नबी ‫ﷺ‬- के तरीक़ों के मतु ार्बक़ र्ज़न्दगी गुज़ारूाँगा। और बैअत ली मैं ने (ख़्वाजा सय्यद) महु म्मद अब्दुसलाह ‫ رحمة هللا عليه‬के र्सर्ससले में या असलाह! मेरी बैअत क़ुबूल फ़रमा। www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana

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र्िर बैअत की एहर्मयत बयान फ़मािते और एअमाल की तसक़ीन और गुनाहों से बचने की ताकीद फ़मािने के बाद सार्बत क़दमी के र्लए दआ ु फ़रमा देते।

और फ़मािते अगर ख़दु ा नख़्वास्ता कभी अपना ये र्कया हुआ वादा यार्न बैअत टूट जाए यार्न गुनाह हो जाए तो सच्चा मरु ीद और सार्लक वो होता है जो दबु ारह तौबा कर ले और अपने र्कये पर सच्चे र्दल से नार्दम हो जाए, और अपने रूठे दोस्त यार्न रब को मना ले।

बैअत का फ़ािदा

मशाइख़ ने फ़मािया है र्क जो आदमी बैअत के कर्लमात सच्चे र्दल से पढ़ लेता है अगचे वो सो साल का कार्फ़र ही क्यंू ना हो असलाह तआला उस के गनु ाहों को मआ ु फ़ कर देते हैं।

और दस ू र फ़ िद अल्ि ह क फ़ज़्ि व करम स ि होग कक मौत क वक़्त जब दन्ु ि क तअल्िुक़ कमज़ोर हो ज त ह आख़िरत क ह ि त स मन खि ु न िगें ग उस घबर हट क आिम में ि तनस्बत क म आ ज एग अगर्चे ि शख़्स गन ु हग र ही किू न हो और इन ् श अल्ि ह मौत ईम न और इस्ि म पर आत ह।

सह्ु बत शैख़ का तरीक़ा

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जब ये बात समझ आ गयी र्क मआररफ़त के रास्ते में शैतान के ख़तरात और चाल बार्ज़यों व मक्काररयों से बचने के र्लए र्कसी मार्हर इसम व फ़न तजबु ेकार रहबर की ज़रूरत है तो उन की र्ख़दमत में हाज़री लाज़्मी ठहरी इसी सह्ु बत शैख़ को राब्ता भी कहते हैं। मेरे हज़रत ख़्वाजा सय्यद महु म्मद

अब्दसु लाह हज्वैरी ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते थे र्जस तरह बुरी नज़र का लग जाना हक़ और सच है और ये नज़र इसं ान की र्ज़न्दगी अजीरन कर के रख

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देती है उसी तरह र्कसी असलाह वाले की अच्छी नज़र भी लग जाती है। यार्न शैख़ की तवज्जह और इख़्लास की बरकत से र्दल ग़फ़लत से पाक हो जाता है र्जस की र्बना पर सार्लक को अपने र्दल में मश ु ार्हदा इलाही के अनवार महससू होना शरू ु हो जाते हैं।

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मजु र्द्दद असफ़ सानी ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हैं र्क ररयाज़त और कोर्शश एक आने के बराबर है और सह्ु बत शैख़ सोला आनों के बराबर है।

हज़रत ममशाद देंवरी ‫ رحمة هللا عليه‬मतु वफ़ी (१९७ह) फ़मािते हैं र्क जब मैं र्कसी असलाह वाले की र्ख़दमत में हार्ज़र हुआ तो इस तरह गया र्क

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अपने क़सब को तमाम र्नस्बतों और उलमू व मआररफ़ से ख़ाली कर र्लया और इस का मंतु र्ज़र रहा र्क उन की ज़्यारत और कलाम से मझु पर क्या

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बरकात वाररद होती हैं।

शैख़ से फ़ै ज़ हार्सल करने का तरीक़ा ये है र्क मर्ु शिद की मौजदू गी में उन के सामने र्नहायत ही अदब से फ़ै ज़ का हरीस बन कर बैठे और शैख़ के क़सब से

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अपने क़सब में फ़ै ज़ आने का तसव्वरु करे । मर्ु शिद की मौजदू गी में हम तन उन की तरफ़ मतु वज्जह रहे हत्ता र्क नवार्फ़ल र्ज़क्र व अज़्कार वग़ैरा बग़ैर शैख़ की इजाज़त के ना पढ़े।

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आदाब ए शैख़

अदब तसव्वफ़ ु का रुक्न आज़म है।

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☆ हज़रत अली दक़्क़ाक़ ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हैं र्क “अलअ ् ब्दु यर्सलु र्बताअर्तह् इलसजन्नर्त व र्बअदर्बह् इला रब्बह्” ( ‫العبديصل‬ ‫)بطاعتهالىالجنة وبادبه الى ربه‬

यार्न (इबादत की बदौलत इसं ान जन्नत में पहु चं जाता है और अदब से रब तक पहु चं जाता है)

● हज़रत अली सक़फ़ी ‫ رحمة هللا عليه‬का इशािद है र्क जो कोई बुज़गु ों के साथ इज़्ज़त व हुमित और अदब से सह्ु बत ना रखे बज़ु गु ों का फ़ै ज़ और उनकी नज़र की बरकत उस पर हराम हो जाते हैं और उन का कोई असर उस पर ज़ार्हर नहीं होता।

● हज़रत मजु र्द्दद असफ़ सानी ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हैं र्क राह सलक ू में शैख़ की सह्ु बत के आदाब व शराइत का पेश ए नज़र रखना र्नहायत ही ज़रूरी है और इसी से मआररफ़त के रास्ते खसु ते हैं आदाब के बग़ैर कोई नतीजा हार्सल ना होगा और र्नरी मजर्लस में हार्ज़र होने से कोई फ़ायदा नहीं होगा।

● हज़रत जनु ैद बग़दादी ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हैं र्क जो शख़्स भी बग़ैर र्कसी मक़ ु द्दा के इस राह में क़दम रखेगा वो ख़दु ही गुमराह होगा और दसू रों को भी गुमराह करे गा। जो शख़्स मशाइख़ का अदब व एहतराम छोड़ देगा असलाह तआला उसे अपने बन्दों की नज़रों में ना पसन्दीदह बना देगा।

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जो शख़्स बग़ैर शैख़ व मर्ु शिद के तरीक़त का दावा करे उस का शैख़ इब्लीस होगा, अगर उस के हाथ से अजीब व ग़रीब वार्क़आत ज़ार्हर हों तो वो इस्तदराज होंगे।

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(१) शैख़ की सह्ु बत में र्नहायत ही अदब व आजज़ी से बैठे और उन के कलाम को र्नहायत ही ग़ौर से सनु ता रहे इजाज़त के बग़ैर कलाम ना करे

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बवक़्त ज़रूरत मख़्ु तसर कलाम करे , गुफ़्तुगू आर्हस्तगी और नमी से करे नीज़ अपनी आवाज़ मर्ु शिद की आवाज़ से बुलंद ना करे ।

(२) शैख़ की मजर्लस में हाज़री उस वक़्त दे जब शैख़ ने वक़्त र्दया हो, चाहे अममू ी हो या ख़सु ूसी। बाक़ी औक़ात में जब र्क मल ु ाक़ात से शैख़ को

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अदना सी गरानी का भी अदं ेशा हो तो उस वक़्त हार्ज़र ना हो।

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(३) मर्ु शिद की मजर्लस में अपने आप को र्कसी तरह ममु ताज़ ना करे और अपने को र्नहायत ही हक़ीर, न्याज़्मन्द और तलब से भरा ख़्याल करे। (४) मर्ु शिद की मौजदू गी में कोई ऐसी बात ना करे र्जस से हार्ज़रीन पर इसमी बड़ापन ज़ार्हर हो और ना र्कसी दन्ु यावी हशमत का मज़ु ार्हरा करे ।

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(५) मर्ु शिद की र्नशस्तगाह की तरफ़ ना बैठे और ना ही उस की तरफ़ पाओ ं करे और ना ही साथ चसते हुए शैख़ से आगे चले।

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(६) र्बला इजाज़त और र्बला ज़रूरत ना शैख़ के सामने खाना खाए और ना ही शैख़ के बतिन इस्तमाल करे। (७) शैख़ के साये पर क़दम ना रखे और हत्ताउलइम्कान ऐसी जगह खड़ा ना हो जहां उस का साया मर्ु शिद के साये पर पड़े। शैख़ जब खड़े हों तो ख़दु भी खड़ा हो जाए।

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(८) शैख़ से मबु ार्हसे और झगड़े वग़ैरा की सरू त ना बनाए। शैख़ के कलाम को रद्द ना करे । (९) शैख़ के रूबरू बेहूदह बातें ना करे और ना ही र्कसी के अयबू बयान करे । (१०) मर्ु शिद के क़राबत दारों और अज़ीज़ों से तअसलक़ ु और महु ब्बत रखे।

(११) ख़्वाब में जो कुछ देखे वो मर्ु शिद की र्ख़दमत में र्लख कर अज़ि कर दे, ना ही कुछ कमी करे और ना ही ज़्यादती।

(१२) मरु ीद को चार्हए र्क हरजाई ना बने यार्न फ़ै ज़ हार्सल करने के र्लए अपने मर्ु शिद के इलावा र्कसी दसू री तरफ़ तवज्जह ना करे ।

(१३) मर्ु शिद का हर तरह मतीअ और फ़रमा​ाँबरदार रहे, क्यंर्ू क पीर की अक़ीदत और महु ब्बत के बग़ैर फ़ै ज़ का दर नहीं खसु ता। और महु ब्बत का तक़ाज़ा अताअत व र्ख़दमत है।

(१४) हस्बे इस्तताअत जान व माल से शैख़ की र्ख़दमत करे तो शैख़ पर एहसान ना जताए बर्सक शैख़ का एहसान समझे र्क उन्हों ने र्ख़दमत को क़ुबूल

हो।

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कर र्लया। शैख़ से र्कसी र्क़स्म की तमअ और लालच ना रखे र्जतनी भी र्ख़दमत करे ख़ल ु सू और र्लसलार्हयत से करे तार्क कमाल ईमान से बेहरामन्द

(१५) मर्ु शिद की मौजदू गी में हम तन उन की तरफ़ मतु वज्जह रहे यहां तक र्क फ़ज़ि व सन्ु नत के र्सवा नर्फ़्फ़ल नमाज़ या कोई और वज़ीफ़ा भी उन की

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इजाज़त के बग़ैर ना करे क्यंर्ू क नवार्फ़ल और अज़्कार तो इसं ान बाद में भी कर सकता है उस वक़्त तो र्सफ़ि शैख़ की सह्ु बत से फ़ायदा उठाना चार्हए।

र्जस तरह तरक़्क़ी र्ज़क्र से होती है उसी तरह मर्ु शिद की तवज्जहु ात से भी होती है बर्सक जो रास्ता र्ज़क्र से सालों में तय होता है वो रास्ता तवज्जहु ात की

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बदौलत लम्हों में तय हो जाता है।

(१६) शैख़ के रूबरू और पस पश्ु त यक्सां रहे। यार्न अपना ज़ार्हर व बार्तन एक तरह पर रखे र्दल और ज़बान के दरम्यान र्कसी र्क़स्म का फ़क़ि ना आने

(१७) मर्ु शिद के तमाम अक़्वाल और अफ़आल को सच जाने, कोई ऐतराज़ ना करे और ना ही र्दल में शक लाए। अगर कोई बात समझ में ना आये तो

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दे।

हज़रत र्ख़ज़्र ‫عليهلسالم‬और मसू ा ‫عليه اسالم‬के र्क़स्से को याद करे ।

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(१८) शैख़ की सख़्ती और डांट से र्दल तंग ना हो और बद्द गुमानी को क़रीब में ना आने दे क्यंर्ू क शैख़ की सख़्ती तार्लब के र्लए सेक़ल यार्न सफ़ाई का काम देती है। शैख़ अबअ ू सहसन शाज़ली ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हैं र्क मर्ु शिद अगर र्कसी ज़ार्हरी वजह के बग़ैर अपने मरु ीद पर सख़्ती करे तो

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मरु ीद को चार्हए र्क सब्र करे , अगर र्नय्यत में पख़्ु तगी और र्मज़ाज में आजज़ी होगी तो ये मरु ीद काम्याब हो जाएगा। (१९) अगर मर्ु शिद के बारे में र्दल में कोई वस्वसा गुज़रे तो फ़ौरन मनु ार्सब तरीक़े से अज़ि कर दे अगर वो शबु ा हल ना हो तो अपनी फ़हम का क़सरू समझे। अगर मर्ु शिद कोई जवाब ना दे तो जान ले र्क मैं जवाब के क़ार्बल ना था। और ने ही मर्ु शिद के बग़ैर कमाल हार्सल करने की कोर्शश करे । www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana

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(२०) अपने र्सर्ससले के तमाम मशाइख़ को हुज़रू ‫ﷺ‬- के वसीले से ईसाल सवाब करता रहे।

(२१) जो कुछ फ़ै ज़ बातनी पहु चं े उसे अपने मर्ु शिद का तफ़ ु ै ल समझे अगचे ख़्वाब या मरु ाक़बा में देखे र्क र्कसी दसू रे से फ़ै ज़ र्मल रहा है तो भी ये ख़्याल करे र्क नहीं ये मेरे ही मर्ु शिद का फ़ै ज़ है।

(२२) मर्ु शिद का कलाम दसू रों से इस क़दर बयान करे र्जस क़दर लोग समझ सकें र्जस बात के बारे में ये गुमान हो र्क आम लोगों की समझ से बाला है तो उसे हर्गिज़ बयान ना करे क्यंर्ू क बअज़ बातें र्सफ़ि ख़्वास के र्लए होती हैं।

(२३) अगर कोई मतिबा या मंसब इनायत हो तो असलाह तआला की रज़ा के र्लए क़ुबूल कर ले, र्दल में कोई दनु ेवी ख़्याल ना लाए।

(२४) अपने शैख़ की इजाज़त के बग़ैर र्कसी दसू रे शैख़ की तरफ़ बग़ज़ि बैअत रुजअ ू ना करे ता र्क सआदत मंदी की दौलत से माला माल हो। (२५) जब मर्ु शिद इस दार फ़ाने से कूच कर जाए तो उस के र्लए दआ ु ए मग़र्फ़रत करता रहे और ईसाल सवाब करता रहे।

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(२६) मरु ीद को चार्हए अपने शैख़ के ज़ार्हर पर नज़र ना करे बर्सक उस की बातनी नेअमत पर नज़र रखे जो उस मर्ु शिद के र्दल में है।

(२७) मरु ीद को चार्हए र्क अपने ज़ार्हरी अह्वाल को अपने शैख़ के हाल पर क़यास ना करे बर्सक ये यक़ीन र्क असलाह तआला के नज़दीक शैख़ का

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एक र्दन मरु ीद के हज़ार र्दनों से बेह्तर है।

(२८) हज़रत सय्यद अली र्बन वफ़ा ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते थे र्क शैख़ मरु ीद के र्लए आईने की मानंद होता है। एक मतिबा र्कसी मरु ीद ने हज़रत बा

यज़ीद बस्तामी ‫ رحمة هللا عليه‬से अज़ि र्कया ऐ मेरे सरदार! आज रात मैंने आप के चेहरे को र्ख़नज़ीर की सरू त में देखा आप ने फ़मािया र्क बेटे मैं तेरा

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आईना हूाँ तू अपने नफ़्स को बुराइयों की र्सफ़त से पाक कर ले र्िर मेरी तरफ़ देख तुझे अपना अस्ली चेहरा नज़र आ जाएगा।

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(२९) शैख़ सय्यद अली र्बन वफ़ा -‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हैं र्क मरु ीद अपने शैख़ की नमी से धोका ना खाए बर्सक डरता रहे और शैख़ की सख़्ती

पर रंजीदह होने के बजाए ख़श ु हो र्क मेरी इस्लाह हो रही है। मरु ीद को चार्हए र्क शैख़ की नाराज़गी से उसका र्दल तंग ना हो अगर शैख़ ध्ु कार दे तो भी

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तंग र्दल ना हो। ये बात जान ले र्क बुज़गु ािन दीन र्कसी मसु समान को एक सांस लेने के बराबर भी ना पसंद नहीं करते जो कुछ करते हैं मरु ीदेन की तालीम की ग़ज़ि से करते हैं।

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(३०) मरु ीद को ये बात भी ज़ेब नहीं देती र्क अपने शैख़ के मक़ ु ाम को जानने की र्फ़क्र में लगे बस अपने काम से काम रखे क्यंर्ू क मक़्सद िल खाने से है दरख़्त र्गनने से नहीं।

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(३१) मरु ीद को चार्हए र्क मर्ु शिद उस पर नाराज़ हो तो उसे राज़ी करने की कोर्शश करे अगचे उसे अपनी ग़लती का एह्सास ना हो। मरु ीद को चार्हए र्क शैख़ की नींद को अपनी इबादत से अफ़्ज़ल समझे। मरु ीद को ये भी चार्हए र्क शैख़ की एहर्लया को अपनी मा​ाँ का दजाि दे।

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(३२) मरु ीद को ये भी चार्हए र्क हर वक़्त शैख़ के चेहरे को र्टकर्टकी बाधं के ना देखे। जहां तक हो सके नज़रें झक ु ाए रखे असबत्ता कभी कभी चेहरे को देखने की लज़्ज़त लेता है।

(३३) शैख़ के इतं क़ाल के बाद बेह्तर तो ये है र्क अपने ही र्सर्ससले के र्कसी बुज़गु ि से तअसलक़ ु क़ाइम कर ले वगरना र्कसी दसू रे शैख़ से तअसलक़ ु क़ाइम करे ।

(३४) हुक़ूक़ शैख़ का आसान ख़ल ु ासा र्क शैख़ की र्दल आज़ारी ना क़ौल व फ़अल से हो और ना ही हरकात व सकनात से। हर लैहज़ा नया तरू नई बक़ि तजसली

असलाह करे मरहला ए शौक़ ना हो तय ☆☆☆

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जल्दी तरक़्क़ी और काम्िाबी के राि

(१) अक़ीदे की दरु​ु स्तगी और ररज़्क़ हलाल को सलक ू की तरक़्क़ी में र्नहायत ही एहम मक़ ु ाम हार्सल है, जब ये दरु​ु स्त होंगे तो सार्लक पररंदे की तरह उड़ता हुआ जसद अज़ जसद मक़ ु ामात को तय करता हुआ असलाह तआला के ख़ास तअसलक़ ु को हार्सल कर लेगा।

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(२) राब्ता ए शैख़ सार्लक की तरक़्क़ी में भी एक बहुत एहम र्करदार अदा करता है सफ़ ू या कराम फ़मािते हैं र्क तसव्वफ़ु र्पचान्वे फ़ीसद राब्ता ए शैख़ है

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और पांच फ़ीसद अज़्कार व अश्ग़ाल और मरु ाक़बात और मजु र्हदात।

(३) मरु ीद को चार्हए र्क बैअत से उस का मक़्सद र्सफ़ि और र्सफ़ि क़ुबि ख़दु ावन्दी और अताअत नबवी ‫ ﷺ‬हो। कशफ़ व करामात, नरू ानी अनवारात, और दन्ु या के माल व दौलत का हुसल ‫يا‬ ू कुछ भी उसका मक़्सद ना हो। हज़रत जनु ैद बग़दादी ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हैं ( ‫نفس كن طالبا‬

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‫تقامة التكن طالباللكرامة‬ ‫ ) الس‬यार्न ऐ नफ़्स! इस्तक़ामत अलअसशरीअत (दीन पर सार्बत क़दमी) का तार्लब रह करामत का नहीं इस र्लए

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र्क तेरा रब तुझ से इस्तक़ामत चाहता है करामत नहीं।

(४) हज़रत मजु र्द्दद असफ़ सानी ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हैं र्क मरु ीद को चार्हए र्क ज़ार्हरी या बार्तनी जो भी दौलत उस को कहीं से र्मल जाए तो

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उस को अपने पीर के तफ़ ु ै ल से जाने।

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(५) हज़रत शैख़ अब्दसु क़ार्दर जीलानी ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हैं तसव्वफ़ ु की बुन्याद आठ चीज़ों पर है। (१) सख़ावत इब्राहीम ‫عليه اسالم‬ (२) रज़ा ए इस्माईल ‫عليهلسالم‬ www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana

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(३) सब्र अय्यबू ‫عليه اسالم‬

(४) मनाजात ज़कररया ‫عليهلسالم‬ (५) ग़ुरबत यह्या ‫عليهلسالم‬

(६) ख़रक़ा पोषी मसू ा ‫عليه اسالم‬

(७) सय्याहत व तजरुिद ईसा ‫عليهال الم‬ (८) फ़क़्र महु म्मद ‫ﷺ‬-

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आपस में पीर भाइिों के आदाब

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इन आदाब के र्ज़क्र करने का ये मतलब नहीं र्क र्सफ़ि अपने पीर भाइयों ही के साथ इन आदाब से पेश आया जाए बर्सक हर मसु समान क़ार्बल ए एहतराम है, एक शैख़ से बैअत होने के बाद र्सर्ससले के पीर भाइयों से वास्ता ज़्यादा पड़ता है इस र्लए उनकी तश्ख़ीस कर दी गयी।

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शैतान आम तौर पर सार्लकीन से ज़ार्हरी और वाज़ेह गुनाह नहीं कराता बर्सक साथ रहने वाले पीर भाइयों के र्दलों में बहुत सी ऐसी बातें डाल देता है र्जन के बुरा होने की तरफ़ बहुत कम र्नगाह जाती है मख़्ु तसरन बुज़गु ों की चन्द बातों का ख़ल ु ासा पेश र्कया जाता है।

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(१) अपने पीर भाई पर र्कसी अमल से ये ज़ार्हर ना करे र्क मैं शैख़ का मश ु ीर और हमराज़ हूाँ और ना ही ये जतलाए र्क मर्ु शिद मझु पर र्नहायत ही मेहरबान हैं ये तमाम बातें नफ़्स को मोटा करती हैं। और अनानीयत की दलील हैं।

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(२) हज़रत शैख़ अली र्मज़िई ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते थे र्क र्जस ने पीर भाइयों के ऐबों को ना छुपाया दर हक़ीक़त उस ने अपनी लग़र्ज़शों के पदे

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खोल र्दये।

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(३) आपस के तमाम हक़ूक़ का ख़ल ु ासा ये है र्क जो कुछ अपने र्लए पसंद कर वही अपने भाइयों के र्लए पसंद करे। (४) अगर कोई मरु ीद सारी रात जाग कर भी इबादत करे तो भी अपने आप को र्कसी पीर भाई से अफ़्ज़ल ना समझे।

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(५) सार्लक को चार्हए र्क अपने पीर भाइयों को तरजीह दे और उन की तकालीफ़ पर सब्र करे । (६) सार्लक को चार्हए अपने पीर भाइयों को महु ब्बत और उसफ़त से आदाब र्सखाये अपने आप को सब से ज़्यादा महु ताज समझते हुए।

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कलिमतन ् तय्यिबतन ् कशजरततन ् तय्यिबततन ्

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(७) हज़रत हसन ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हैं र्क भाई के आदाब में से है र्क अपने भाइयों की र्ख़दमत करे र्िर उन के पास मआ ु ज़रत पेश करे र्क उन का जो हक़ था वो अदा नहीं हुआ।

(८) अगर शैख़ र्कसी मरु ीद को मजर्लस से र्नकाल दे या उस से नाराज़गी का इज़्हार करे तो पीर भाइयों को चार्हए र्क ना ही उसकी ग़ीबत करें और ना ही उसका मज़ाक़ उड़ाएं, हो सकता है र्क ये ग़ीबत करने वाले उस र्नकाले हुए शख़्स से ज़्यादा असलाह की र्नगाह में बद्द हाल हों।

(९) सार्लक को चार्हए र्क अगर कोई पीर भाई उस शख़्स से इबादत, अताअत और शैख़ की क़ुबित में आगे बढ़ जाए तो र्बसकुल भी उस से हसद ना

करे र्क इस से उस का तो कोई नक़्ु सान नहीं होगा बर्सक ये शख़्स असलाह पाक की र्नगाह में र्गर जाएगा। जब कोई मरु ीद अपने पीर भाई से हसद करता है तो उस के पाओ ं र्िसलना शरू ु हो जाते हैं और ये मरु ीद अपने मक़ ु ाम से भी र्गरना शरू ु हो जाता है।

(१०) शैख़ अब्दरु ि ह्माम जेली ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हैं र्क जो शख़्स अपने नफ़्स को अपने पीर भाइयों की महु ब्बत से रूगरदानी करने वाला पाए वो समझ ले र्क अब उस शख़्स को रब्बुलइ् ज़्ज़त की बारगाह से ध्ु कारा जा रहा है।

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(११) हज़रत यसू फ़ ु अजमी ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हैं र्क जो मरु ीद र्बला उज़्र र्कसी महर्फ़ल से पीछे रह जाए तो उसे चार्हए र्क पीर भाइयों के सामने अपने आप को मलामत करे और अपने नफ़्स को ज़लील करे । सार्लक को चार्हए र्क वो अपने र्सर्ससले के कम्ज़ोरों, ज़ईफ़ों, माज़रू ों और बूढ़ों की र्ख़दमत करे । हज़रत सय्यद अली ख़्वास ‫رحمة هللا عليه‬

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फ़मािते हैं र्क जो शख़्स अपने ऊपर रहमत ए इलाही का नज़ु ल ू चाहे वो कम्ज़ोरों की मदद करे और समझे ये मेरे र्लए सआदत है।

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(१२) अगर सार्लक अपने र्कसी पीर भाई से र्कसी बात पर नाराज़ हो जाए तो तीन र्दन से ज़्यादा नाराज़ ना रहे एक ने गुफ़्तुगू करने की ग़ज़ि से सलाम में पहल कर ली तो बहुत अच्छा, अब अगर वो जवाब दे तो ठीक अगर जवाब ना दे तो आप पर इसज़ाम नहीं, नाराज़गी और ना बोलने का गुनाह दसू रे पर

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होगा।

(१३) जो आपस में बंदों के हक़ूक़ हैं उन्हें मक ु म्मल अदा करने की कोर्शश करे या र्मन्नत व समाजत से सार्हब हक़ से मआ ु फ़ कराना बहुत ज़रूरी है।

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वगरना आर्ख़रत में र्हसाब करना पड़ेगा।

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(१४) तमाम मसु समानों और र्बसख़सु सू कम्ज़ोर इस्तअदाद पीर भाइयों के र्लए उन की अदम मौजदू गी में ख़बू रो रो कर दआ ु एं करें । (१५) सार्लक को चार्हए र्क अपने आप को र्कसी दसू रे शैख़ की जमाअत से अफ़्ज़ल ना समझे क्यंर्ू क वो भी तरीक़त में उस के भाई हैं।

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(१६) हज़रत सल ु ैमान दरु ानी ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हैं वो लोग बहुत तरक़्क़ी पाने वाले हैं र्जन को पीर भाइयों के बैतुसख़ला भी साफ़ करने पड़ें तो एअज़ाज़ समझें।

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रोिाना के मामूिात

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कलिमतन ् तय्यिबतन ् कशजरततन ् तय्यिबततन ्

अगर दजि ज़ेल मामल ू ात की रोज़ाना पाबन्दी की जाए तो इन् शा असलाह थोड़े ही अरसे में हमारी र्ज़न्दगी में हैरत अगं ेज़ तब्दीली महससू होना शरू ु हो जाए, गुनाहों से नफ़रत और ख़दु ा की मआररफ़त हार्सल हो, र्सर्ससले की बरकात हार्सल हों और एअमाल ज़ार्हर व बार्तन में मतिबा एहसान की कै र्फ़यत का पैदा होना शरू ु हो जाए।

(१) फ़राइज़ का एहतमाम करें , जो लोग नमाज़ और दीगर फ़राइज़ अदा नहीं करते उन के एअमाल बे असर रहते हैं। नमाज़ बा जमाअत की पाबन्दी करें। (२) लोगों से लेन देन, ख़रीद व फ़रोख़्त, मा​ाँ बाप और बीवी बच्चों के हक़ूक़ का ख़सु र्ू सयत से एहतमाम करें , र्जन लोगों के मआ ु म्लात साफ़ नहीं होते उन को मर्न्ज़ल तक रसाई तो क्या अपनी नजात भी मर्ु श्कल हो जाएगी।

(३) ररज़्क़ हलाल का एहतमाम करें , हराम र्ग़ज़ा एअमाल के अनवारात व बरकात को बे असर कर देती है।

(४) शैख़ ने जो एअमाल र्जस सार्लक के र्लए तज्वीज़ र्कये हैं यक़ीन के साथ उन पर अमल करें , शक अमल की तासीर को ज़ायअ कर देता है। मेरे

मर्ु शिद ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािया करते थे र्क र्जस तार्लब को र्ज़क्र या जो अमल दे र्दया जाए वही उस के र्लए इस्म आज़म है अगर यक़ीन आज़म हो

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जाए तो तासीर आज़म शरू ु हो जाती है।

(५) एअमाल में र्जतनी तवज्जह पैदा कर सकें अपने तौर पर कोर्शश ज़रूर करें और हर अमल से पहले थोड़ी देर के र्लए सोच र्लया करें “या असलाह!

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मेरा मक़्सदू बस तू ही है मझु े ऐसी इबादत की तौफ़ीक़ दे जो तेरी बारगाह में मक़बूल हो जाए” और एक दफ़ा ये दआ ु र्नहायत ही र्दल की गहराई से पढ़ लें

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असलाहुम्म-जअ ् सनी उर्हब्बक ु र्बक़सबी कुसही व उज़ीक र्बजह्दी कुर्सलही।

) ‫ى كله‬ ‫ى كله و ارضيكبجهد‬ ‫بقلب‬ ‫علنى احبك‬ ‫(اللهم اج‬

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(ऐ असलाह मझु े ऐसा बना दे र्क अपने सारे र्दल के साथ तझु से महु ब्बत करूाँ और अपनी सारी कोर्शश तझु े राज़ी करने में लगा दं)ू

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(६) र्ज़क्र व नमाज़ में असफ़ाज़ की तस्हीह का एहतमाम करें , असफ़ाज़ ग़लत पढ़ने से माइने बदल जाते हैं। और नमाज़ पढ़ते हुए चन्द लम्हों के र्लए ये सोच र्लया करें र्क आज मैं ने वो नमाज़ पढ़नी है जो असलाह की बारगाह में क़ुबूल होनी है।

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(७) हराम कामों से बचें, वो काम र्जन्हें शरीअत ने हराम क़रार र्दया है उन का इरतकाब रूहार्नयत यार्न असलाह के तअसलक़ ु को बहुत नक़्ु सान पहु चं ाता है। उस वक़्त कोई भी अमल कारगर नहीं होता मस्लन बद्द नज़री, झटू , धोके बाज़ी, हसद, ग़ीबत, चग़ु ली, ये बातें सार्लकीन की तरक़्क़ी में बहुत

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बड़ी रुकावट बन जाती हैं। इस की र्मसाल छलनी की तरह है र्जस से पानी भरने की नाकाम कोर्शश की जाए र्क एक तरफ़ तो सलक ू की मेहनत की जाए और दसू री तरफ़ इन गुनाहों का इरतकाब हो तो उस से कुछ हार्सल नहीं होता।

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कलिमतन ् तय्यिबतन ् कशजरततन ् तय्यिबततन ्

(८) सबु ह व शाम की मस्ननू दआ ु ामात उस पाकीज़ह र्ज़न्दगी ही से तय होते हैं। इस का ु एं और मस्ननू एअमाल र्क पाबन्दी करें र्क र्वलायत के सारे मक़ आसान हल ये है र्क रोज़ाना एक हालत की सन्ु नत को सीखना शरू ु कर दें मस्लन आज ग़ुस्ल की सन्ु नतें सीख लें तो कल बैतुसख़ला की सन्ु नतें सीखना शरू ु कर देना इस तरह आर्हस्ता आर्हस्ता आप की

र्ज़न्दगी में थोड़े ही अरसे में बहुत सी मबु ारक सन्ु नतें जमे हो जाएंगी। मस्ननू र्ज़न्दगी और मस्ननू दआ ु ओ ं की र्कताबें आम तौर पर र्मल जाती हैं शैख़ के मश्वरे से उन को अपने मतु ालए में ज़रूर रखा करें ।

(९) क़ुरआन पाक की देख कर थोड़ी या ज़्यादा र्तलावत करें अगर सहूलत से हो सके तो रोज़ाना एक पारह और हार्फ़ज़ क़ुरआन तीन पारे र्तलावत करे।

(१०) इन तीन तस्बीहात को पाबन्दी के साथ सबु ह व शाम अपने मामूलात में रखें अहादीस में भी इन की बड़ी फ़ज़ीलत आई है। मेरे मर्ु शिद ‫رحمة هللا‬ ‫عليه‬फ़मािया करते थे मेरे र्सर्ससले में जो भी शख़्स फ़ज्र की नमाज़ और इन तीन तस्बीहात की पाबन्दी करेगा उस को उस वक़्त तक मौत नहे े आएगी जब तक वो अपना र्ठकाना जन्नत में ना देख ले।

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अस्तग़फ़ार: गुज़श्ता तमाम गुनाहों पर सख़्त र्नदामत हो और आइदं ा ना करने का सच्चा अज़्म हो। अस्तर्फ़फ़रुसलाह रब्बी र्मन् कुर्सल ज़ंर्बं-व्व अतूबु इलैर्ह

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) ‫غفرهللا ربى من كل ذنب ةاتوباليه‬ ‫( است‬

सबु ह व शाम (एक सौ मतिबा)१००

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दरूद शरीफ़: हज़रू ‫ ﷺ‬के एहसानात का तसव्वरु करते हुए र्क आप ‫ ﷺ‬के हम गुनाहगारों पर र्कतने एहसानात हैं। आप ‫ ﷺ‬ने हम गुनाहगारों के र्लए

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र्कतनी दआ ु एं फ़रमाई हैं इन तमाम बातों को सामने रखते हुए र्नहायत महु ब्बत तवज्जह और ध्यान के साथ पढ़े।

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असलाहुम्म सर्सल अला महु म्मर्दन् कमा तुर्हब्बु व तज़ाि लहू

) ‫لل همصلعلى محمد كماتحب وترضىله‬ ‫( ا‬

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१०० (एक सौ मतिबा) सबु ह व शाम।

तीसरा कसमा: असलाह तआला की अज़्मत और बड़ाई के सख़्त तसव्वरु के साथ तीसरा कसमा पढ़ें।

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सब्ु हानसलार्ह वसहम्दु र्लसलार्ह व ला इलाह इसलसलाहु वसलाहु अक्बरु व ला हौल व ला क़ुव्वत इसला र्बसलार्हल-् अर्लर्य्यल्अज़ीम् ) ‫و هللا اكبر وال حول ال قوه اال باهللالعليالعظيم‬

‫و الاله إ‬

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‫(سبحان هللا والحمد‬

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सबु ह व शाम (एक सौ मतिबा) १००।

दो र्कताबों को अपने मतु ालए में ज़रूर रखें (१) आदाब मआररफ़त (२) मन्ु तख़ब अहादीस।

मरु ाक़बा और र्ज़क्र अस्बात का जो तरीक़ा शैख़ ने तज्वीज़ र्कया उस के मतु ार्बक़ पाबन्दी से अमल करें । और आर्हस्ता आर्हस्ता मश्वरे से वक़्त बढ़ाते जाएं। इब्तदाई तौर मर्ु शिद की इजाज़त से इन चार तस्बीहात की पाबन्दी की जाए। ला इलाह इसलसलाहु ( ‫ ) الاله اال هللا‬एक तस्बीह। इसलसलाह ( ‫ ) ال هللا‬एक तस्बीह। असलाह ( ‫ ) هللا‬एक तस्बीह।

असलाह हू ( ‫ ) هللا هو‬एक तस्बीह।

राब्ता ए शैख़: असल नफ़ा और फ़ायदा शैख़ के साथ राब्ते से होता है। चाहे ये राब्ता ख़त व र्कताबत के ज़ररए हो या फ़ोन के ज़ररए हो बहुत ही ज़रूरी

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है, गाहे बगाहे शैख़ की र्ख़दमत में हाज़री देते रहा कीर्जये।

मनालि​ि सिक ू (िताइफ़)

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इसं ान के र्जस्म में कुछ मक़ ु ामात ऐसे हैं जो असलाह तआला की महु ब्बत का मकि ज़ और अनवारात इलार्हया का महवर हैं इन ही मक़ ु ामात को लताइफ़ कहते हैं। सफ़ ू या कराम ‫ رحم هم هللا‬इन मक़ ु ामात में असलाह तआला का र्ज़क्र कराते हैं। र्ज़क्र असलाह की बरकत से इन मक़ ु ामात से गुनाहों की

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कसाफ़त दरू हो जाती है और असलाह तआला की महु ब्बत से ये मक़ ु ामात लतीफ़ हो जाते हैं। लताइफ़ के अनवार की बरकत से इसं ान गुनाह से बचता रहता है और इन लताइफ़ की लताफ़त असलाह तआला की तरफ़ खेंचती रहती है।

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हमारे तमाम मशाइख़ से लताफ़त में र्ज़क्र का सबूत बहुत ज़्यादा मंक़ौल है हज़रत मजु र्द्दद असफ़ सानी ‫ رحمة هللا عليه‬ने अपने मक्तूबात में और शाह वली ‫ رحمة هللا عليه‬ने “तफ़हीमात इलार्हया” में और हकीमल ु उम्मत ‫ رحمة هللا عليه‬ने “असक़ताइफ़ र्मनसलताइफ़” में इस की तफ़्सील जमा

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फ़रमा दी है।

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मुक़ामात िताइफ़ क़ालि​िा

ितीफ़ा क़ल्ब: बाएं पस्तान से दो दो उंगल नीचे

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ितीफ़ा रूह: दाएं पस्तान से दो उंगल नीचे ितीफ़ा लसरउ: क़सब और रूह के दरम्यान (३३)

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ितीफ़ा नफ़्स: नाफ़ से चार उंगल नीचे ितीफ़ा ख़फ़ी: पेशानी के दरम्यान

ितीफ़ा अख़्फ़ा: उम्मर्ु सदमाग़ यार्न तालू पर।

मरु ाक़बा

उसटी ही चाल चसते हैं दीवान्गान ए इश्क़ आख ं ों को बंद करते हैं दीदार के र्लए

मेरे हज़रत ख़्वाजा सय्यद महु म्मद अब्दसु लाह हज्वैरी ‫ رحمة هللا عليه‬को चारों सलार्सल में इजाज़त थी हज़रत शैख़ राह सलक ू में काम्याबी के र्लए मरु ाक़बा को र्नहायत ही एहम क़रार र्दया करते थे। हज़रत ‫ رحمة هللا عليه‬के मरु ाक़बे का ये आलम था र्क अक्सर औक़ात इशा की नमाज़ के बाद

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मरु ाक़बे में बैठते और परू ी रात उसी में बीत जाती तहज्जदु के र्लए उठते और फ़मािते र्क रात अपने महबूब से मल ु ाक़ात में बीत गयी पता ही ना चला।

हज़रत ख़्वाजा अबूअसहसन ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हैं र्क मरु ाक़बे का तरीक़ा और कमाल सीखना है तो र्बसली से सीखो जो अपने र्शकार की ख़ार्तर

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घंटों साकत बैठी रहती है।

तरीक़ा मरु ाक़बा: मरु ाक़बे का तरीक़ा ये है र्क सबु ह और शाम अपना वक़्त मक़ ु रि र करने की कोर्शश करे और जब तक ये ना हो सके तो अपने फ़ुसित के

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औक़ात में पाबन्दी वक़्त के साथ रोज़ाना र्नहायत ही यक्सईू के साथ र्क़ब्ला रुख़ र्जस तरह सहूलत हो, अगर अत्तर्हय्यात की सरू त में बैठे तो ज़्यादा बेह्तर है आख ं ों को बंद कर ले, ज़बान को तालू से लगाए ता र्क वो हरकत ना करे और र्दल को तमाम परे शान ख़यालात से ख़ाली करे और अपने

र्दमाग़ की परू ी तवज्जह र्दल की तरफ़ और र्दल की तवज्जह असलाह पाक की तरफ़ कर ले र्क वो एक ज़ात है जो तमाम उयबू से पाक है और कार्मल

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र्सफ़ात वाली है उस की तरफ़ से फ़ै ज़ का नरू सनु हरे रंग की शक्ल में मेरे र्दल में आ रहा है और मेरे र्दल की ज़सु मत, कदरू त औए स्याही इस नरू की

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बरकत से धल ु रही है और मेरा र्दल कह रहा है “असलाह, असलाह।” इस ख़्याल में इतना गमु हो जाने की कोर्शश करें र्क अपना भी होश ना रहे,

(३४)

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रोज़ाना कम अज़ कम दस र्मनट से मरु ाक़बा शरू ु करें ,

शरू ु शरू ु में मब्ु तदी को ख़यालात वग़ैरा तंग करते हैं लेर्कन आर्हस्ता आर्हस्ता मश्क़ करने से रहमत इलाही मतु वज्जह हो जाती है और वो लज़्ज़त हार्सल होती है र्जस का दन्ु या में कोई सानी नहीं।

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लिक्र अल्िाह की एहलमित और िरूरत

आज की परे शान दन्ु या का हर इसं ान सक ु ू न और आर्फ़यत की र्ज़न्दगी गज़ु ारना चाहता है और इसी सक ु ू न के र्लए आज की जदीद दन्ु या हमें रोज़ र्नत् नई सहूर्लयात से रूश्नास करा रही है। जब र्क इसं ान को पैदा करने वाले का ऐलान ये है

) ‫القلوب‬ ‫( ا كر هللاتطمئن‬

“जान लो! र्दलों का सक ु ू न असलाह की याद में है)

(१) इसं ार्नयत का उसल ू ये है र्क जब वो र्कसी दश्ु मन पर क़ाबू पा लेता है तो सब से पहले वो हथ्यार छीन लेता है जो महु लक हों जब शैतान र्कसी इसं ान पर क़ाबू पा लेता है तो उस शख़्स को याद इलाही से ग़ार्फ़ल कर देता है। (२) क़ुरआन मजीद ने अक़्लमंद लोगों की ये र्नशानी बताई है

) ‫( الذين يذكرون هللا قياما وقعودا و على جنوبهم‬

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(यार्न वो लोग असलाह तआला को याद करते हैं खड़े बैठे और लेटे हुए)

(३) शरीअत ने हर अमल की हद्द मतु अय्यन कर दी है लेर्कन याद इलाही की कोई हद्द नहीं। फ़मािया गया

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)‫(ياي ها الذين آمنوا اذكروهللا ذكرا كثيرا‬

(ऐ ईमान वालो! असलाह तआला का र्ज़क्र कसरत से करो)

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(४) जो इसं ान असलाह तआला को मआ ु ज़रत के साथ याद करता है असलाह तआला उस इसं ान को मग़र्फ़रत के साथ याद करता है। फ़मािया गया

) ‫( فاذكرونى اذكركم‬

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(तुम मझु े याद करो मैं तुम्हें याद करूाँगा)

(३५)

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अहादीस में फ़िीित

(१) जो शख़्स चाहे र्क जन्नत के बाग़ों में र्िरे उसे चार्हए र्क कसरत से असलाह का र्ज़क्र करे। (मसु र्न्नफ़ इब्न अबी शेबा)

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(२) जन्नती को र्कसी भी चीज़ का अफ़्सोस नहीं होगा र्सवाए उन लम्हात के जो असलाह के र्ज़क्र के बग़ैर गुज़र गए हों (मज्मअ असज़वाइद)

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कलिमतन ् तय्यिबतन ् कशजरततन ् तय्यिबततन ्

(३) ग़ार्फ़लीन में असलाह का र्ज़क्र करने वाला सख ू े हुए दरख़्त में सब्ज़ टहनी की तरह है और अधं ेरे घर में रोशन र्चराग़ की तरह है। ग़ार्फ़लीन में

असलाह का र्ज़क्र करने वाले को उस की र्ज़न्दगी में ही असलाह जन्नत में उसका र्ठकाना र्दखा देंगे और जो शख़्स ग़ार्फ़लीन में असलाह का र्ज़क्र करते है असलाह तआला उस को तमाम इसं ानों और जानवरों की तअदाद के मतु ार्बक़ बर्ख़्शश फ़माि देते हैं। (जमअ असफ़वाइद)

(४) र्जस घर में असलाह का र्ज़क्र होता हो और र्जस घर में असलाह का र्ज़क्र नहीं होता उन की र्मसाल र्ज़ंदा और मदु ाि की सी है। (जमअ असफ़वाइद) (५) ज़मीन के र्जस र्हस्से पर असलाह का र्ज़क्र र्कया जाता है वो र्हस्सा ज़मीन के बाक़ी र्हस्सों पर फ़ख़्र करता है। (मज्मअ असज़वाइद, तसख़ीस अहादीस)

मसु ला अली क़ारी ‫ رحمة هللا عليه‬फ़मािते हैं र्क तहलील, तस्बीह और तक्बीर में मनु हर्सर नहीं बर्सक र्कसी भी अमल के ज़ररए असलाह तआला की अताअत करने वाला ज़ार्कर है। (र्मरक़ात श्रह मशकात)

लिक्र लबल्जहर

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हमारे क़ादरी र्सर्ससले में चंर्ू क र्ज़क्र जहरी है इस र्लए मख़्ु तसर अंदाज़ में कुछ फ़वाइद, शराइत व दलाइल र्लखे जाते हैं।

र्ज़क्र र्बसजहर का फ़ायदा सनु ने वालों पर भी होता है र्ज़क्र करने वाला बेदार र्दल रहता है नींद दरू होती है और चस्ु ती बरक़रार रहती है।

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(उम्दतुर्सफ़क़्क़ह)

(३६)

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र्ज़क्र र्बसजहर करने से ग़फ़लत और बे रग़बती बहुत जसद दरू हो जाती है और ज़ौक़ व शौक़ की तलवार से क़सावत क़सबी ख़्म कर के र्जला बख़्शने में काम्याब हो जाता है।

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लिक्र लबल्जहर की शराइत

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(१) र्कसी नमाज़ी, मरीज़ और आराम करने वाले के आराम में ख़लल ना हो।

(२) र्ज़क्र चीख़ने र्चसलाने की तरह ना र्कया जाए। और ना ही ररयाकारी के जज़्बे के तहत र्कया जाए। बस ख़ल ु ासा इस का ये है र्क र्कसी की तक्लीफ़

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और परे शानी का सबब ना हो। बक़्या तफ़्सील बड़ी र्कताबों में दजि है।

लिक्र लबल्जहर और इज्तमाई लिक्र के दिाइि

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र्ज़क्र र्बसजहर के जवाज़ पर “सबाहत अर्सफ़क्र” मे​े मौलाना अब्दसु हई लखनवी ‫ رحمة هللا عليه‬ने अड़तालीस अहादीस मबु ारका नक़ल फ़रमाई हैं। उन में से चन्द पेश र्ख़दमत हैं।

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कलिमतन ् तय्यिबतन ् कशजरततन ् तय्यिबततन ्

(१) एक हदीस क़ुदसी में असलाह पाक इशािद फ़मािते हैं मैं अपने बन्दे के गमु ान के मतु ार्बक़ उस के साथ फ़ै सला करता हू।ाँ जब वो मझु े याद करता है तो मैं उस के साथ होता हूाँ पस अगर वो मझु े अपने जी में याद करता है तो मैं भी उसे अपने जी में याद करता है।

और अगर वो मझु े जमाअत में याद करता है तो मैं भी उसे उस जमाअत से बेह्तर जमाअत में याद करता हू।ाँ (बख़ ु ारी व मर्ु स्लम)

विाहत: इस हदीस क़ुदसी में असलाह तआला ने र्ज़क्र र्बसजहर, र्ज़क्र ख़फ़ी, र्ज़क्र इज्तमाई व इफ़ ं रादी र्ज़क्र की अपने हा​ाँ क़दर व मर्न्ज़लत को बयान फ़मािया है।

मसु ला अली क़ारी ‫ رحمة هللا عليه‬अपनी र्कताब में र्कसी बुज़गु ि के हवाले से फ़मािते हैं ये हदीस पाक बुलन्द आवाज़ से र्ज़क्र के जवाज़ बर्सक इस्तहबाब पर दलालत करती है। (र्मरक़ात श्रह र्मश्कात)

(२) हज़रत इमाम अब्दल ु वह्हाब शेअरानी ‫ رحمة هللا عليه‬र्लखते हैं र्क हज़रत उमर ‫هللا عنه‬

‫ ر‬के ज़माने में लोग ग़रूब शम्स (सरू ज ढलने)

के वक़्त र्ज़क्र र्बसजहर करते थे। और जब कभी र्ज़क्र र्बर्ससरि करते तो हज़रत उमर ‫ رضي هللا عنه‬आ जाते और फ़मािते र्क र्ज़क्र र्बसजहर करो

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र्क सरू ज ग़रूब होने वाला है। (कशफ़ुसग़म्मा)

(३) एक मतिबा रात के वक़्त हुज़रू ‫ﷺ‬- के साथ सहाबा कराम ‫ رضوان هللاعليهم اجمعين‬तश्रीफ़ ले जा रहे थे र्क एक शख़्स को मर्स्जद में बुलंद

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आवाज़ से र्ज़क्र करते हुए सनु ा एक सहाबी ‫هللا عنه‬

‫ ر‬ने हुज़रू ‫ﷺ‬- से अज़ि र्कया ये तो कोई ररयाकार मालमू होता है। इस पर आप ‫ﷺ‬- ने

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फ़मािया ये ररयाकार नहीं बर्सक असलाह तआला की महु ब्बत में फ़ना है। (सबाहत अर्सफ़क्र स५६ बहवाला बेहक़ी, मलख़सन) ☆☆☆

लसलल्सिा क़ादररिा के कमािात

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● र्सर्ससला क़ादररया के मशाइख़ से र्ज़क्र की कसरत की वजह से कशफ़ व करामात का बहुत ज़्यादा सदु रू हो जाता है अगचे वो इस को मक़्सदू नहीं

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समझते।

● ये र्सर्ससला सफ़ा वसमआन यार्न र्बजली की तरह चमकने वाली साफ़ शहद की नहर है।

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● शैख़ अमानसु लाह ‫ رحمة هللا عليه‬ने हज़रत शाह वर्लयसु लाह ‫ رحمة هللا عليه‬के वार्लद शाह अब्दरु ि हीम ‫ رحمة هللا عليه‬से चारों सलार्सल के हवाले से एक सवाल र्कया तो आप ने फ़मािया र्क हर र्सर्ससले की अलग र्नस्बत और जदु ा आसार हैं आप अक्सर फ़मािया करते र्क हम ने जो

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र्नस्बत हज़रत शैख़ अब्दसु क़ार्दर ‫ رحمة هللا عليه‬के र्सर्ससले यार्न क़ादरी से हार्सल की वो ज़्यादा साफ़ और ज़्यादा बारीक है। इस के बाद आप ने दीगर सलार्सल के कमालात बयान फ़रमाए।

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राह मुजालहदा

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कलिमतन ् तय्यिबतन ् कशजरततन ् तय्यिबततन ्

हज़रत उमर फ़ारूक़ ‫هللا عنه‬

‫ ر‬फ़मािते हैं र्क कम खाना सेहत है, कम बोसना र्हक्मत है, कम सोना इबादत है। हज़रत ख़्वाजा र्नज़ामद्दु ीन और्लया

‫ رحمة هللا عليه‬सार्लक की काम्याबी के र्लए चार गुर फ़मािते हैं। (१) कम बोसना: यार्न ज़रूरत के बक़दर बात चीत करना।

(२) कम खाना: यार्न इस क़दर खाया जाए र्क भक ू का एह्सास बाक़ी रहे।

(३) लोगों से कम र्मलना: क्यंर्ू क लोगों से ज़्यादा र्मलने में र्दल की जमइय्यत को बरक़रार नहीं रखा जा सकता। (४) कम सोना: यार्न ज़रूरत से ज़्यादा ना सोया जाए।

हज़रत र्नज़ामद्दु ीन और्लया ‫ رحمة هللا عليه‬इन चारों चीज़ों को जसद काम्याबी में र्नहायत ही एहम क़रार देते थे। ख़ामोशी का क़लम। भक ू की तलवार। तन्हाई का नेज़ा। नींद का छोड़ना।

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आदाब ए ख़ानक़ाह हज्वैरी (तस्बीह ख़ाना)

तस्बीह ख़ाना (ख़ानक़ाह) से असल मक़्सदू वसल ू इलसलाह, तज़्क्या नफ़्स, बार्तनी तरक़्क़ीयात , असलाह तआला के अहकामात पर आसानी के साथ

अमल करना और रसल ू सु लाह ‫ ﷺ‬के तरीक़ों पर शौक़, जज़्बा व महु ब्बत से चसने की मश्क़ करना है र्जस तरह हर राह के राही और हर सफ़र के मसु ार्फ़र

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के र्लए कुछ उसल ू और क़वाइद होते हैं र्जन की ररआयत और पाबन्दी करने से मर्न्ज़ल तक रसाई र्नहायत आसान हो जाती है असलाह तआला की

तलब रखने वाले सार्लकीन और तस्बीह ख़ाना क़ादरी हज्वैरी में क़्याम के र्लए आने वाले तार्लबीन के र्लए चन्द आदाब र्लखे गए उन पर अमल हर

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तार्लब ए इस्लाह मक़ ु ीम के र्लए लार्ज़म है।

(१) तस्बीह ख़ाना आने का मक़्सद अपनी इस्लाह हो, इस मक़्सद को सामने रख कर चलें ता र्क आप को सौ फ़ीसद नफ़ा हो, क्यर्ंू क आप अपनी

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मसरूर्फ़यत में से क़ीमती वक़्त र्नकाल कर आए हैं।

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(२) बाहर से आने वाले हज़रात ख़ानक़ाह में चपु के र्मस्दाक़ रहें, यार्न दन्ु यावी गुफ़्तुगू र्बसकुल ना करें , र्नहायत मजबूरी के तहत चन्द बोल बोलें बाक़ी सारा वक़्त इबादत और र्ज़क्र असलाह और जो र्ख़दमत लगाई जाए उस में गज़ु ारें ।

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(३) र्कसी दफ़्तरी, अदालती या कारोबारी यार्न ख़रीदारी के र्सर्ससले में आने वाले हज़रात ख़ानक़ाह को र्सराए ना बनाएं बर्सक ख़ानक़ाह में आने का मक़्सद र्सफ़ि असलाह की रज़ा और अपनी इस्लाह हो।

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(४) र्कचन के अदं र र्ज़म्मेदार अहबाब के इलावा दसू रों का दाख़ला मना है। र्कचन के हवाले से कोई चीज़ चार्हए तो र्ज़म्मेदार अहबाब से राब्ता करें ।

अपनी चीज़ों की र्हफ़ाज़त ख़दु करें और हर चीज़ सलीक़े से रखें।

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कलिमतन ् तय्यिबतन ् कशजरततन ् तय्यिबततन ्

(५) र्कसी की मामल ू ी सी चीज़ भी बग़ैर इजाज़त के इस्तमाल ना करें । (जतू ा, टोपी, कपड़े, तोर्लया वग़ैरा वग़ैरा) ख़ानक़ाह में जो चीज़ इस्तमाल के र्लए दी गयी हैं वही इस्तमाल करें ।

(६) ख़ानक़ाह में र्ख़दमत के र्सर्ससले में आने वाले हज़रात दफ़्तर अब्क़री में बग़ैर ज़रूरत के खड़े ना हों बर्सक तवज्जह और ध्यान से र्ख़दमत में ही रहें।

(७) र्क्लर्नक पर आने वाले रूहानी व र्जस्मानी मरीज़ों को र्ज़म्मेदार अहबाब के इलावा कोई तरतीब या औक़ात मल ु ाक़त ना समझाए। (८) इशा की नमाज़ के बाद ख़ानक़ाह में सोने की तरतीब है र्लहाज़ा उसी तरतीब से सो जाएं, इशा के बाद बाहर जाना मना है।

(९) ख़ानक़ाह में आने वाले हज़रात टोर्लयां बने कर ना बैठें। र्सयासी और ग़ौर इख़लाक़ी गफ़्ु तगु ,ू ऊंची आवाज़ में बातें करना हत्ता र्क हकीम साहब की इजाज़त के बग़ैर दसि भी ना दें और ख़ानक़ाह में बग़ैर इजाज़त र्कसी र्क़स्म का र्लटरे चर तक़सीम करना मना है।

(१०) ख़ानक़ाह में लंगर के औक़ात में जब दस्तरख़्वान लगे उसी वक़्त लंगर तनावल फ़रमा लें इस के इलावा ख़ार्दमीन को ज़हमत ना दें, जो हज़रात घर

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में चाय पीते हों यार्न आदत हो वो पहले बता दें, जो चाय के आदी ना हों वो हर्गिज़ चाय ना पीएं ना तक़ाज़ा करें ।

(११) ख़ानक़ाह में दवाई मांगने से गुरेज़ करें , (हा​ाँ अशद्द ज़रूरत के इलावा) मफ़्ु त र्कताबें और मफ़्ु त दवाई से परहेज़ करें ।

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(१२) ख़ानक़ाह में र्िज, असमारी से कोई चीज़ बग़ैर इजाज़त ना र्नकालें हत्ता र्क दम वाला पानी बग़ैर इजाज़त पीना या लेना मना है।

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(१३) ख़ानक़ाह में हर जगह पर कपड़े ना लटकाएं, हर जगह जतू े ना रखें और अपने सामान को महददू रखें। (१४) गली, छत पर र्बसकुल खड़े ना हों।

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(१५) र्नहायत ज़रूरत के दजे में लाइट और पंखा इस्तमाल करें , ज़रूरत ख़्म हो तो लाइट और पंखा ख़दु र्ज़म्मेदारी से बंद कर दें।

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(१६) साबनु , पानी और दीगर इस्तमाल की चीज़ों को र्नहायत एह्यात और हस्बे ज़रूरत इस्तमाल करें ता र्क ज़ायअ ना हो।

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(१७) रात को उठने वाले हज़रात दसू रों की नींद का ख़ास ख़्याल रखें कहीं दसू रों की नींद में ख़लल ना हो। (१८) फ़ज्र से पहले और इशा के बाद लाइट जलाना, ऊंची आवाज़ में र्ज़क्र करना या र्तलावत करना हो तो र्ज़म्मेदार अहबाब से इस की तरतीब मालमू

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कर लें। और एक र्बस्तर में दो अफ़राद इकट्ठे ना सोएं। (१९) ख़ानक़ाह में अपने हमराह क़्याम के र्लए बच्चे और ख़वातीन ना लाएं।

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कलिमतन ् तय्यिबतन ् कशजरततन ् तय्यिबततन ्

(२०) ख़ानक़ाह में र्कसी भी र्क़स्म का कारोबार लेन देन, एक दसू रे से बदनी र्ख़दमत, एक दसू रे से ररश्ते जोड़ना, एक दसू रे का मोबाइल इस्तेमाल करना सख़्त मना है।

☆☆☆

चन्द इस्तिाहात तसव्वुफ़

राह सलक ू के चन्द मख़्ु तसर इस्तलाहात र्लखी जाती हैं जो आम तौर पर तसव्वफ़ ु की बड़ी र्कताबों में दजि होती हैं तार्क इब्तदाई तार्लब इसमों को परे शानी ना हो। तफ़्सील बड़ी र्कताबों में मौजदू है जो अपने शैख़ की इजाज़त से मतु ार्लआ फ़रमाएाँ और र्बला इजाज़त र्बसकुल भी ना देख।ें ग़ुस्ि: तीन तरह के होते हैं र्जस्म का पानी से, नफ़्स का तौबा से और क़सब का तौहीद ख़ार्लस से। (कशफ़ुसमह्जबू ) सालिक: उस को कहते हैं जो राह मआररफ़त में चले।

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मब्ु तदी: उस को कहते हैं र्जस ने अभी राह मआररफ़त में इब्तदाई क़दम रखा हो।

मुन्तही: उस को कहते हैं जो राह मआररफ़त के इब्तदाई मरार्हल से र्नकल चक ु ा हो।

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क़ब्ि: यार्न वो हालत र्जस में फ़ै ज़ होता तो है लेर्कन मह्ससू या मालमू नहीं होता। ये फ़ै ज़ का बन्द होना बे अदबी की वजह से होता है।

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बसत: यार्न वो हालत र्जस में इनायात व फ़ै ज़ जारी हो जाते हैं और बाक़ायदा मह्ससू होते हैं। सकर: यार्न वो हालत र्जस में बातनी हालत का इर्म्तयाज़ उठ जाए।

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सह्व: यार्न वो हालत र्जस में बार्तन की सलार्हयत वापस आ जाए।

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तवज्जह िा लनस्बत: यार्न शैख़ का अपने इरादा या अपने ऊपर नार्ज़ल होने वाले अनवारात को सार्लक पर डालना इस को र्नस्बत व तसरुिफ़ भी कहते हैं इस की चार र्क़स्में हैं।

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(१) तवज्जह इनअकासी जैसे इत्तर की ख़श ु बू

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(२) तवज्जह इलक़ाई जैसे आग से आग जलाना (३) तवज्जह इस्लाही जैसे दयाि का रुख़ अपनी तरफ़ मोड़ना (४) र्नस्बत इत्तहादी यार्न दसू रे को अपना र्मस्ल बना र्दया जाए। www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari youtube.com/Ubqaritasbeehkhana

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पास अन्फ़ास: इस का मतलब ये है र्क सार्लक अपनी हर सासं पर आगाह रहे र्क कोई सासं भी याद इलाही के बग़ैर ना र्नकले।

र्रूज व नुिूि: ररयाज़त व मेहनत और फ़ज़्ल इलाही से मंसब व मरार्तब पर पहु चं ना उरूज है और इस मक़ ु ाम पर ना रुकना बर्सक वापस आ जाना नज़ु ल ू है।

इल्म तीन हैं: शरीअत, तरीक़त, हक़ीक़त

शरीअत: इसम के मतु ार्बक़ अमल करने का नाम शरीअत है। शरीअत सर झक ु ा देने का नाम है। और तरीक़त लगा देने का नाम है। शरीअत बमंज़ला दधू के है।

तरीक़त: अमल में इख़लास पैदा करना ता र्क उस की क़ीमत बढ़े इस का नाम तरीक़त है। तरीक़त बमंज़ला दही के है। हक़ीक़त: हर मक़ ु ाम के मश ु ार्हदे का नाम हक़ीक़त है। हक़ीक़त बमंज़ला मक्खन के है।

वक़ूफ़ क़ल्बी: इस से मरु ाद ये है र्क सार्लक हर वक़्त हर लम्हा अपने क़सब की तरफ़ मतु वज्जह रहे और क़सब ख़दु ा की तरफ़ मतु वज्जह रहे।

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आिम नासतू : जो बन्दा ज़ार्हरी व र्जस्मानी इबादत में ऐसा मश्ग़ूल हो जाए र्क र्कसी वक़्त भी ग़फ़लत ना रहे यार्न अहकाम शरईय्या की ज़ार्हरी पाबन्दी उस की तबीअत बन जाए ये मतिबा नासतू है। “ला इलाह इसलसलाह” ( ‫ ) الاله اال هللا‬र्ज़क्र नासतू ी है।

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आिम मिकूत: जो बन्दा इख़लास व इबादत में मलाइका जैसा हो जाए और ये मक़ ु ाम असलाह से ख़ौफ़ करने वालों का है। “इसलसलाह” ( ‫ال هللا‬

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) र्ज़क्र मलकूती है।

आिम जबरूत: शरीअत की पाबन्दी से आलम पर तसरुिफ़ जारी होने को कहते हैं और ये मक़ ु ाम क़ुतब आलम का है। “असलाह” ( ‫ ) هللا‬र्ज़क्र

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जबरूती है।

●●●

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लाहूती है।

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आिम िाहूत: सार्लक के अंदर ऐसा नरू पैदा हो जाए र्क र्कसी और की गंजु ाइश ना रहे ये र्वलायत का सब से बड़ा मतिबा है। “हू” (‫ ) هو‬र्ज़क्र

पैदाइश मौत की जार्नब पहला क़दम है और मौत दायमी र्ज़न्दगी की जार्नब पहला क़दम है।

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क़नाअत ना कर आलम रंग व बू पर चमन और भी आर्शया​ाँ और भी हैं

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(४३)

तू शाहीन है परवाज़ है काम तेरा र्क तेरे आगे आस्मां और भी हैं अगर कोई शएु ब आये मयु स्सर सबानी से कलीमी दो क़दम है

तसव्वुफ़ के चार मशहूर लसलल्सिे (१) लसलल्सिा क़ादररिा

हज़रत पीरान ए पीर ख़्वाजा सय्यद अब्दसक़ार्दर जीलानी ‫ رحمة هللا عليه‬की तरफ़ मंसबू है। इस र्सर्ससले में २८ अस्बाक़ हैं। और ये र्सर्ससला ‫ ر‬दोनों हज़रात के ज़ररए से आप ‫ ﷺ‬से र्मसता है।

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हज़रत अबू बकर र्सद्दीक़ ‫ رضي هللا عنه‬और हज़रत अली ‫هللا عنه‬ (२) लसलल्सिा नक़्शबलन्दिा

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हज़रत ख़्वाजा बहाउद्दीन नक़्शबन्दी ‫ رحمة هللا عليه‬की तरफ़ मंसबू है। इस र्सर्ससले में ३६ अस्बाक़ हैं और ये र्सर्ससला हज़रत अबू बकर र्सद्दीक़ ‫ ر‬के ज़ररए से आप ‫ ﷺ‬से र्मसता है।

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‫هللا عنه‬

(३) लसलल्सिा सहरवलदउिा

‫هللا عنه‬

‫ ر‬के ज़ररए से आप ‫ﷺ‬- से र्मसता है।

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ये र्सर्ससला हज़रत ख़्वाजा शहु ाबुद्दीन सहरवदी ‫ رحمة هللا عليه‬की तरफ़ मंसबू है। इस र्सर्ससले में ७ अस्बाक़ हैं। और ये र्सर्ससला हज़रत अली

(४) लसलल्सिा लचलततिा

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ये र्सर्ससला हज़रत ख़्वाजा सय्यद मईु नद्दु ीन अज्मेरी र्चश्ती ‫ رحمة هللا عليه‬की तरफ़ मंसबू है और इस र्सर्ससले में ३१ अस्बाक़ हैं और ये र्सर्ससला

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हज़रत अली ‫هللا عنه‬

‫ ر‬के ज़ररए से आप ‫ ﷺ‬से र्मसता है।

(५) लसलल्सिा शािलि​िा (४४)

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ये र्सर्ससला हज़रत शैख़ अबू असहसन शाज़ली ‫ رحمة هللا عليه‬से मसं बू है। बरि सग़ीर में कम अरब की दन्ु या में ये र्सर्ससला ज़्यादा मरु व्वज है। इन सलार्सल के इलावा और भी बहुत से र्सर्ससले थे जो अब र्नहायत ही कम्याब हैं मस्लन शताररया और जनु ैर्दया वग़ैरा। एहम बात----!

र्जस तरह बैतुसलाह में दार्ख़ले के र्लए बहुत से दरवाज़े हैं लेर्कन सब से मक़्सद र्सफ़ि और र्सफ़ि ये है र्क बैतसु लाह में हाज़री और बैतुसलाह का तवाफ़

और बैतुसलाह के अनवारात र्बसकुल इसी तरह इन तमाम सलार्सल का मक़्सद भी हुसल ू ए मआररफ़त और मतिबा एहसान की तकमील है। अगचे रास्ते जदु ा हैं लेर्कन मर्न्ज़ल सब की एक है।

र्जस तरह प्राइमरी के तार्लब इसम को आला दरजात की र्कताबें समझ नहीं आतीं र्बसकुल उसी तरह अस्बाक़ का हुसल ू भी हर मब्ु तदी के बस की बात नहीं र्लहाज़ा उन को ख़दु समझने की कोर्शश र्बसकुल ना करें । अगर शैख़ मनु ार्सब समझेंगे तो ख़दु ही शरू ु करवा देंगे। यहां र्ज़क्र करने से मक़्सदू ये है

☆☆☆

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र्क बा र्हम्मत लोगों की रहनमु ाई हो सके ।

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लसलल्सिा क़ादरी हज्वैरी के २८ अस्बाक़

(२) लतीफ़ा नफ़्सी

(३) लतीफ़ा रूही

(४) लतीफ़ा र्सरी

(६) लतीफ़ा अख़फ़ा

(७) र्ज़क्र अरि ह

(८) पास अन्फ़ास

(१०) ससु तानल ् ज़्कार ु अ

(११) नफ़ी अस्बात हब्स दम

(१२) मरु ाक़बा इस्म ज़ात नरू ानी

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(१) लतीफ़ा क़सबी (५) लतीफ़ा ख़फ़ी

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अस्मार्िअ ् ज़्कार

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(९) सबअ र्सफ़ात

(४५)

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१२ अस्मार्िअ ् फ़्कार

(१३) (अर्सफ़क्र अव्वल (र्फ़क्र १)) असहजर वसमदर व तजसली अफ़आली व फ़ना अफ़आली व तौहीद अफ़आली (१४) (अर्सफ़क्र सानी (२)) सबअ र्सफ़ात

(१५) (अर्सफ़क्र सार्लसु (३)) र्फ़क्र मअइय्यत (१६) (अर्सफ़क्र अरािर्बउ(४)) अहर्दयत

(१७) (अर्सफ़क्र ख़ार्मसु (५)) हम ओस्त

(१८) (अर्सफ़क्र सार्दस(ु ६)) अस्माउसहुस्ना

(१९) (अर्सफ़क्र सार्बउ(७)) अस्मा ए मबु ारका मशाइख़ उज़्ज़ाम

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(२०) (अर्सफ़क्र सार्मन(ु ८)) मुहब्बत चार यार

(२१) (अर्सफ़क्र तार्सउ(९)) र्फ़क्र आल रसल ू

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(२२) अर्सफ़क्र आर्शर(१०)) महु ब्बत उलल ् ज़्म र्मन रुिस्ल ु अ

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(२३) (अर्सफ़क्र असहादी अशर(११) र्फ़क्र आलम अम्र, आलम ख़सक़, (इसला लहुसख़सक़ु वलअ ् म्र) (२४) (अर्सफ़क्र सानी अशर(१२)) र्फ़क्र सतू समिदी (जरस) की आवाज़

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(२५) (अर्सफ़क्र सार्लसु अशर(१३)) अनार्सर अरबअ सऊद का र्फ़क्र

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(२६) (अर्सफ़क्र रार्बउ अशर(१४)) हबूत

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(२७) (अर्सफ़क्र ख़ार्मसु अशर(१५)) फ़ना ए मरकब

(२८) (अर्सफ़क्र अस्सार्दसु अशर(१६) फ़नाउसफ़ना, फ़नाउसबसीत, जमाअसजमा (२८)

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(४८)

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‫كلمة طيبةكشجرة طيبة‬

कलिमतन् तलयिबतन् कशजरलतन् तलयिबलतन् ‫فرع هافىالسماء‬ ‫صلها ثابت و‬ ‫ا‬

अस्िुहा सालबतुन् व फ़र्उ हा लफ़स्समाइ०

शजरह तयिबा क़ादरी हज्वैरी

हिरत शाह ग़ुिाम अिी ‫ رحمة هللاعليه‬फ़माउते हैं अकालबरीन लसलल्सिा के वास्ते से अल्िाह पाक से दुआ करने से िालहरी व बालतनी

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तरक़्क़ी रॉनमा और ताईद इिाही शालमि हो जाती है।

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हिरत शाह ग़ुिाम अिी देहल्वी ‫( رحمة هللا عليه‬मक्तूब नम्बर १३५)

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लसलल्सिा क़ादरी हज्वैरी

१- इलाही बहुमित अफ़्ज़ल अलअ ् ब्ं या ख़ातमसु नर्बय्यीन हज़रत महु म्मद ‫ ﷺ‬८ या १२ रबीउलअ ् व्वल ११ह

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२- इलाही बहुमित ख़लीफ़ा रसल ू सु लाह हज़रत अबू बकर अर्ससद्दीक़ ‫رضي هللا عنه‬

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मनु व्वरह

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३- इलाही बहुमित सार्हब ए रसल ू सु लाह हज़रत ससमान फ़ारसी ‫هللا عنه‬

२१ जमार्दलउ् ख़रा १३ह

‫ر‬

१० रजब ३३ह

४- इलाही बहुमित हज़रत क़ार्सम र्बन महु म्मद र्बन अबू बकर ‫رحمة هللاعليه‬

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५- इलाही बहुमित हज़रत जाफ़र सार्दक़ ‫رحمة هللاعليه‬ ६- इलाही बहुमित हज़रत ख़्वाजा बायज़ीद बस्तामी ‫رحمة هللاعليه‬ ७- इलाही बहुमित हज़रत अबू असहसन ख़रक़ानी ‫رحمة هللاعليه‬

६३२ मदीना मनु व्वरह

१०८ह

१५ रजब १४८ह

६३४ मदीना

६५४ मदाइन, इराक़ ७२६ र्मशाल, सऊदी अरब

७६५, जन्नतुसबक़ीअ, मदीना मनु व्वरह

१४ शेअबान २६१ह १० महु रि म ४२५ह

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८७५ दर्मश्क़, शाम १०३३ ख़रक़ान, ईरान Page 38 of 41


कलिमतन ् तय्यिबतन ् कशजरततन ् तय्यिबततन ्

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८- इलाही बहुमित हज़रत अबू असक़ार्सम गगु ािनी ‫رحمة هللاعليه‬

४५०ह

१०५८ गगु ािन

९- इलाही बहुमित शैख़ मख़्दमू सय्यद अली र्बन उस्मान असजसलाबी असहज्वैरी ‫رحمة هللاعليه‬ पार्कस्तान

४६५ह

१०- इलाही बहुमित हज़रत ख़्वाजा अबू अली फ़ामिदी ‫رحمة هللاعليه‬

४ रबीउलअ ् व्वल ४७७ह

११- इलाही बहुमित हज़रत अबू याक़ूब यसू फ़ ु हम्दानी ‫رحمة هللاعليه‬

२७ रजब ५३५ह

१२- इलाही बहुमित पीरान ए पीर शैख़ अब्दसु क़ार्दर जीलानी ‫رحمة هللاعليه‬ इराक़

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१४- इलाही बहुमित हज़रत महु म्मद आररफ़ रे व्गरी ‫رحمة هللاعليه‬

१५- इलाही बहुमित हज़रत महमदू असख़ैर फ़ग़न्वी ‫رحمة هللاعليه‬

पहली शवाल ६१६

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१७- इलाही बहुमित हज़रत महु म्मद बाबा समासी ‫رحمة هللاعليه‬

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बख़ ु ारा

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१२१९ रे व्गर, बुख़ारा

१३१७ फ़ग़ना

१३१६ ख़्वाज़िम,

१० जमार्दलउख़रा ७५५ह

१९- इलाही बहुमित हज़रत सय्यद बहाउद्दीन महु म्मद नक़्शबन्द बुख़ारी ‫رحمة هللاعليه‬

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११७९ ग़ज्वान,

२८ ज़सु क़अदह ७१५ह

१८- इलाही बहुमित हज़रत सय्यद शम्सद्दु ीन अमीर कलाल ‫رحمة هللاعليه‬ ईरान

११७९ बग़दाद,

१७ रबीउलअव्वल ७१७ह

१६- इलाही बहुमित हज़रत अज़ीज़ान अली रामेतनी ‫رحمة هللاعليه‬ तुकिमार्नस्तान

११४१ मरू, तुकिमार्नस्तान

१२ रबीउलअव्वल ५७५ह

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(अम्कना बुख़ारा)

१०८४ तसू , ईरान

रबीउलआ ् र्ख़र ५६१ह

१३- इलाही बहुमित हज़रत ख़्वाजा अब्दसु ख़ार्लक़ ग़ज्वानी ‫رحمة هللاعليه‬ बुख़ारा

१०७२ लाहौर,

१३५४ समास,

११ जमार्दलउख़रा ७७२ह

१३७० सोख़ारा,

३रबीउलअव्वल ७९१ह

१३८९

बुख़ारा, उज़्बर्कस्तान

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२०- इलाही बहुमित हज़रत अलाउद्दीन महु म्मद र्बन अत्तार ‫رحمة هللاعليه‬

२० रजब ८०२ह

१४०० चग़ार्नया​ाँ,

तुकिमार्नस्तान

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२१- इलाही बहुमित हज़रत याक़ूब चख़ी ‫رحمة هللاعليه‬

५सफ़र ८५१ह

२२- इलाही बहुमित हज़रत उबैदसु लाह अहरार ‫رحمة هللاعليه‬ २३- इलाही बहुमित हज़रत महु म्मद ज़ार्हद ‫رحمة هللاعليه‬

८९५ह

१४८९ समरक़न्द, उज़्बर्कस्तान

यक्कम (१) रबीउलअव्वल ९३६ह

२४- इलाही बहुमित हज़रत दरवैश महु म्मद ‫ رحمة هللاعليه‬१९ महु रि म ९७०ह २५- इलाही बहुमित हज़रत महु म्मद अम्कनी ‫رحمة هللاعليه‬

१४४७ दो शबंु ा, तार्जर्कस्तान

१५२९ वख़श, तुकिमार्नस्तान

१५६२ इस्क़रार, सब्ज़

२२ शेअबान १००८ह

१६०० अम्कना, बुख़ारा

(४८)

२६- इलाही बहुमित हज़रत महु म्मद बाक़ी असलाह देहसवी ‫رحمة هللا عليه‬

२५ जमार्दलउख़रा १०१२ह

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२७- इलाही बहुमित हज़रत मजु र्द्दद असफ़ सानी शैख़ अहमद सरर्हदं ी ‫رحمة هللاعليه‬

२८ सफ़र १०३४ह

९ रबीउलअव्वल १०७९ह

२९- इलाही बहुमित हज़रत सैफ़ुद्दीन ‫ رحمة هللاعليه‬१०९६ह

१६८४, सरर्हदं

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२८- इलाही बहुमित हज़रत ख़्वाजा महु म्मद मासमू ‫رحمة هللاعليه‬

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३०- इलाही बहुमित हज़रत महु म्मद महु र्सन ‫رحمة هللاعليه‬

११४७ह

३१- इलाही बहुमित हज़रत सय्यद नरू महु म्मद बदायनू ी ‫رحمة هللاعليه‬

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३२- इलाही बहुमित हज़रत र्मज़ाि मज़हर जान जानां ‫رحمة هللاعليه‬

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३३- इलाही बहुमित हज़रत शाह अब्दसु लाह शाह ग़ुलाम अली ‫رحمة هللاعليه‬

१६२४, सरर्हदं

१६६८, सरर्हदं

१७३४, देहली

११ ज़सु क़अद ११३५ह

१७२३

९ महु रि म ११९५ह

१७८० देहली

२२सफ़र १२४०ह

१२४२ह

१८२३, देहली

१८२७, देहली

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३४- इलाही बहुमित हज़रत असलामा ख़ार्लद कुदी शामी ‫رحمة هللاعليه‬

१६०३, देहली

३५- इलाही बहुमित हज़रत याक़ूब बग़दादी ‫رحمة هللاعليه‬

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३६- इलाही बहुमित हज़रत ख़्वाजा महु म्मद इराक़ी ‫رحمة هللاعليه‬ ३७- इलाही बहुमित हज़रत ख़्वाजा इिीस ‫رحمة هللاعليه‬

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३८- इलाही बहुमित हज़रत ख़्वाजा अवैस क़रनी सानी ‫رحمة هللاعليه‬

३९- इलाही बहुमित हज़रत ख़्वाजा सय्यद महु म्मद अब्दसु लाह मज्ज़बू हज्वैरी ‫رحمة هللاعليه‬

१९९१, जन्नतसु बक़ीअ, मदीना मनु व्वरह

४०- इलाही बहुमित हज़रत मर्ु शिदना हकीम महु म्मद ताररक़ महमदू मज्ज़बू ी चग़ु ताई ‫دامتبركاتهم‬ ☆☆☆☆ (४९)

हफ़्तावार और माहाना मामूिात तस्बीह ख़ाना हर जुमेरात दसउ व लिक्र ख़ास

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हर नो चंदी जमु ेरात को लिक्र नफ़ी अस्बात, मरु ाक़बा और ख़त्म आित करीमा।

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हर अंग्रेिी महीने के आख़री इतवार को हल्क़ा कशफ़ुल्मह्जूब और तफ़्सीिी मुराक़बा (तस्बीह ख़ाना क़ादरी हज्वैरी, दरूद महल)

०४२-३७५५२३८४, ३७५९७६०५, ३७५८६४५३ दसउ दुन्िा भर में बराह रास्त सनु ने के लिए

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पता ख़त व लकताबत: दफ़्तर माहनामा अब्क़री मकि ज़ रूहार्नयत व अम्न ७८/३, अब्क़री स्ट्रीट नज़्द क़ु्बाि मर्स्जद मज़ु ंग चोंगी, लाहौर

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