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फ़ैज़ ए मुर्शिद: क़ुतुब-उल ्-अक़्ताब हज़रत
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(र्सल्ल्सला कररश्मात ८)
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सूरह यासीन के कररश्मात
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ख़्वाजा सय्यद मुहम्मद अब्दल् ु लाह हज्वैरी رحمة هللا عليه
हज़रत हकीम मुहम्मद ताररक़ महमूद मज्ज़ूबी चुग़ताई دامت بركاتہم पी एच डी (अमरीका)
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सूरह यासीन का नुज़ूल मक़ामे नुज़ूल, मक्का ☆ शम ु ार सूरह, ३६ ☆ तअदाद आयात, ८३
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सूरह यासीन पढ़ने पर नेककयााँ
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☆ तअदाद रुकूअ, ५
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☆ तअदाद अल्फ़ाज़, ३०००
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☆ कललमात, ७२९
सरू ह यासीन के कुल हरुफ़ ३००० हैं। क़ुरआन व हदीस के क़ानन ू के मत ु ाबबक़ हर हफ़फ़ पर दस नेककयों का
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महीना भर की कुल नेककयााँ ३०×३०,०००=९००,०००
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वादा है। ललहाज़ा एक दफ़ा रोज़ाना पढ़ने पर नेककयााँ १०×३०००=३०,०००
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साल भर में कुल नेककयााँ १२×९००,०००=१०८००,०००
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हाल ए दिल आप के ग़मों में बराबर का शरीक: क़ाररईन! इन लसफ़हात में आप की तवज्जह उन मसाइल, परे शाननयों और मुश्ककलात की तरफ़ कर रहा हूाँ। जो मेरे ख़्याल में हर घर का हहस्सा हैं। शब ् व रोज़ लोगों की मल ु ाक़ातें , ढे रों ख़तत ू , टे ली फ़ॉन और लोगों के मसाइल, ये तमाम बातें रोज़ बरोज़ मेरे तजुबे व मुशाहहदे और एह्सास को बढ़ाती जाती हैं। ये मुशाहहदा
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तजुबाफ़, एह्सास और ददफ़ उस वक़्त कुछ ज़्यादा महसूस होता है जब कोई ददफ़ भरी कहानी पढ़ के या सुन के
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यक़ीनन हदल भर आता है। आप यक़ीन करें में इस ग़म को अपना ग़म समझता हूाँ। और शैख़ अबू अल्हसन
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ख़रक़ानी رحمةاهللعليةका ये क़ोल फ़ौरन मेरे सामने आ जाता है कक आप ने फ़माफ़या "वो हदल अल्लाह तआला
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की मुहब्बत से ख़ाली है जो मख़्लूक़ ए ख़ुदा के साथ शफ़्क़त व रहमत का बताफ़व नहीीं करता और जो शख़्स
ककसी को ख़ुश करने के ललए एक साींस भी ले तो उस की ये इबादत बरसों के नश्फ़्फ़ली नमाज़ों से बेह्तर है।
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इस के बाद परे शान हाल का सोज़ मेरे हदल का साज़ बन जाता है और मेरे अींदर एक हूक उठती है कक कोई
ऐसी पुर तासीर दआ ु या कलाम हो जो मैं क़ाररईन को बताऊाँ श्जसे पढ़ कर उन का ददफ़, दख ु हमेशा के ललए
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दरू हो जाए। मेरा क़लम हमेशा लोगों के दख ु ों ददों का मरहम बन कर चला है। मैं ने जब भी ललखा है। इन शा
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अल्लाह ख़ैर, ख़ैररयत ही ललखा है। तो आज भी इन लसफ़हात में आप हज़रात के ललए सूरह यासीन के ऐसे
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ख़्वास्तगार इख़्लास व अमल
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लाखों घर वीरान से आबाद हो गए।
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ख़ास आमाल जो कक यक़ीनन सीने का राज़ हैं। आप तक वो अमानत लोटा रहा हूाँ। ऐसे आमाल श्जस से
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ہ बन्दा हकीम मह ु म्मद ताररक़ महमद ू मज्ज़ब ू ी चग़ ु ताई دامبراك م
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सरू ह यासीन के फ़ज़ाइल अहािीस की रौशनी में: 【१】एक ररवायत में आया है कक हक़ तआला शानुहू ने सूरह ताहा और सूरह यासीन को आसमान व ज़मीन के पैदा करने से हज़ार बरस पहले पढ़ा। जब फ़ररकतों ने सुना तो कहने लगे कक ख़ुकहाली है उस उम्मत के ललए श्जन पर ये क़ुरआन उतारा जाएगा और ख़ुकहाली है उन हदलों के ललए जो इस को उठाएींगे यानन याद करें गे और ख़ुकहाली है उन ज़बानों के ललए जो इस की नतलावत करें गी।
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(मुबारक मज्मूआ वज़ाइफ़ स ९३)
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【२】हज़रत सय्यदन ریضاہللاعتیلٰ ہसे ररवायत है कक रसूल अकरम ﷺने फ़माफ़या जो एक मतफ़बा ु ा अनस نع
(नतलमफ़ज़ी ज ४ स ४०६)
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सरू ह यासीन पढ़े गा उस के ललए दस मतफ़बा क़ुरआन पढ़ने का सवाब ललखा जाएगा।
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【३】हज़रत सय्यदन ु ा हस्सान बबन अत्या ریضاہللاعتیلٰنعہसे ररवायत है कक हुज़ूर नबी करीम ﷺ
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फ़माफ़या: तौरात में सूरह यासीन का नाम "मुइम्मतुन ्" (ٌ ) ُم ِعمۃहै, क्योंकक ये अपनी नतलावत करने वाले को
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दन्ु या और आख़ख़रत की हर भलाई अता करती है, और दन्ु या व आख़ख़रत की बलाएाँ उस से दरू करती है और
दन्ु या व आख़ख़रत की होल्नाककयों से ननजात बख़्कती है और इस का नाम "मद ु ाकफ़अतल ु ्-क़ाश्ज़यह्" َّ ْ ُ
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َّ َّ ُ (اض ْیۃ ِ )مدافِعۃٌالقभी है क्योंकक ये अपनी नतलावत करने वाले से हर बुराई को दरू कर दे ती है और उस की हर
हाजत पूरी करती है। श्जस शख़्स ने इस की नतलावत की उस के ललए बीस हज्ज के बराबर सवाब है और
श्जस ने इस को ललखा किर इसे पपया तो उस के पेट में हज़ार दवाएीं, हज़ार नूर, हज़ार यक़ीन, हज़ार बरकतें
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और हज़ार रहमतें दाख़ख़ल होंगी और उस से हर धोका और हर बीमारी दरू हो जाएगी।
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ُ ْ ُ َّ (तफ़्सीर मज़हरी, الد ُرٌال َّم ْنث ْورज ७ स ३७)
【४】हज़रत सय्यदन ु ा इब्न अब्बास ریضاہللاعتیلٰنعہसे ररवायत है कक नबी अकरम ﷺने फ़माफ़या: मेरी ख़्वाहहश है कक सूरह यासीन मेरे हर उम्मती के हदल में हो। (अल्दुरुल ्-मींसूर)
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【५】हज़रत सय्यदन ریضاہللاعتیلٰ ہसे ररवायत है कक हुज़रू अकरम ﷺने फ़माफ़या जो शख़्स हर ु ा अनस نع रात सूरह यासीन की नतलावत करता रहा किर मर गया तो वो शहीद मरे गा। (अल्दुरुल ्-मींसूर) 【६】हज़रत सय्यदन ु ा मअकक़ल बबन यसार ریضاہللاعتیلٰنعہसे ररवायत है कक हुज़ूर अक्रम ﷺने फ़माफ़या: सरू ह यासीन क़ुरआन का हदल है जो शख़्स इस सरू ह मब ु ारका की अल्लाह और आख़ख़रत के ललए नतलावत करे गा उस के पहले के गुनाह बख़्श हदए जाएींगे तो तुम इस की नतलावत अपने मरने वालों के पास करो।
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ُ ْ ُ َّ (मुस्तद्रक हाककम, इब्न हब्बान, मस्नद् अहमद, अबू दाऊद, ननसाई) ٌالد ُرٌال َّم ْنث ْور
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【७】हज़रत सय्यदन ु ा इब्न अब्बास ریضاہللاعتیلٰنعہफ़माफ़ते हैं जो शख़्स बवक़्त सुबह सूरह यासीन की
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नतलावत करे उस हदन की आसानी उसे शाम तक अता की गयी और श्जस शख़्स ने रात की इब्तदा में इस ُ ْ ُ َّ की नतलावत की उसे सुबह तक इस रात की आसानी दी गयी। () الد ُرٌال َّم ْنث ْور
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【८】हज़रत सय्यदन ु ा अबू क़लाब ریضاہللاعتیلٰنعہसे ररवायत है वो फ़माफ़ते हैं श्जस ने सूरह यासीन की
नतलावत की उस की मग़कफ़रत हो जाएगी और श्जस ने खाने के वक़्त उस के कम होने की हालत में नतलावत
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की तो वो उसे ककफ़ायत करे गा और श्जस ने ककसी मरने वाले के पास इस सूरत की नतलावत की अल्लाह अज़्ज़ व जल ् (उस पर) मोत के वक़्त नरमी फ़माफ़एगा और श्जस ने ककसी औरत के पास उस के बच्चे की
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पवलादत की तींगी पर सूरह यासीन की नतलावत की तो बच्चे की पवलादत में आसानी होगी और श्जस ने इस
सूरह की नतलावत की गोया कक उस ने ग्यारह मतफ़बा क़ुरआन पाक की नतलावत की और हर चीज़ के ललए
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हदल है और क़ुरआन का हदल सरू ह यासीन है।
【९】हज़रत सय्यदन ु ा अबू ददाफ़अ ریضاہللاعتیلٰنعसे ररवायत है कक हुज़रू अक्रम ﷺने फ़माफ़या: श्जस मरने
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वाले के पास सूरह यासीन की नतलावत की जाती है अल्लाह तबारक व तआला उस पर (उस की रूह क़ब्ज़ ُ ْ ُ َّ करने में) नरमी फ़माफ़ता है। ()الد ُرٌال َّم ْنث ْور
【१०】हज़रत सय्यदना आइशा लसदीक़ा ریضاہللاعتیلٰنعसे ररवायत है कक हुज़ूर नबी अक्रम ﷺ
ने फ़माफ़या:
क़ुरआन हकीम में एक सूरत है श्जसे अल्लाह तआला के हााँ अज़ीम कहा जाता है इस के पढ़ने वाले को www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari
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अल्लाह तआला के हााँ शरीफ़ कहा जाता है इस को पढ़ने वाला क़यामत के रोज़ रबीआ और लमज़र क़बाइल से ज़ाइद अफ़राद की लशफ़ाअत करे गा वो सूरह यासीन है। ُ ْ ُ َّ ()الد ُرٌال َّم ْنث ْور 【११】हज़रत सय्यदन ु ा सफ़्वान बबन अमरू ریضاہللاعتیلٰنعफ़माफ़ते हैं: मशाइख़ ् कराम
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ریضاہللاعتیلٰنعफ़माफ़ते हैं कक आप क़रीबुल मगफ़ शख़्स के पास सूरह यासीन की नतलावत करें गे तो उस से मोत ُ ْ ُ َّ की सख़्ती को हल्का ककया जाएगा। ()الد ُرٌال َّم ْنث ْور 【१२】हज़रत सय्यदन ु ा अबू बकर लसदीक़ ریضاہللاعتیلٰنعसे ररवायत है कक हुज़ूर नबी करीम ﷺने फ़माफ़या
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श्जस ने हर जुमे को अपने वाललदै न, दोनों या एक की क़ब्र की ज़्यारत की और उन के पास सूरह यासीन की
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नतलावत की तो अल्लाह तआला हर हफ़फ़ के बदले उस की बश्ख़्शश व मग़कफ़रत फ़माफ़ दे ता है। (तफ़्सीर ُ ْ ُ َّ मज़हरी, )الد ُرٌال َّم ْنث ْور
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【१३】अता बबन अबी रब्बाह ریضاہللاعتیلٰنعकहते हैं कक मुझे हुज़ूर अक्रम ﷺका ये इशाफ़द पोहींचा है, कक जो
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शख़्स सूरह यासीन को शरू ु हदन में पढ़े उस की तमाम हदन की हवाइज पूरी हो जाएींगी। (दारमी)
जन्नततयों को हुज़ूर ﷺका सूरह ताहा व यासीन सुनाना:
हज़रत अनस ریضاہللاعتیلٰنعसे ररवायत है कक हुज़ूर नबी अक्रम ﷺने फ़माफ़या हक़ जल्ल जलालहू बवक़्त
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दीदार मदों को एक एक कर के सलाम करे गा और इसी तरह औरतों को सलाम करे गा और इशाफ़द फ़माफ़एगा
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मेरे दोस्तों और औललया को मरहबा हो किर उन की मेहमान नवाज़ी फ़माफ़एगा, किर इशाफ़द होगा ऐ फ़ररकतो! इन को तरबनाक यानन फ़रहत बख़्श बना दो। फ़ररकते जन्नत की नग़मा सराओीं यानन हूरऐन को लाएींगे और लोग तरब में आ आ कर ख़ूब वज्द करें गे जब उन्हें अफ़ाक़ा होगा तो फ़ररकते अज़फ़ करें गे ऐ हमारे रब! हम चाहते हैं कक आप इन्हें अपना कलाम सन ु वाएीं। ख़द ु ा तआला का इशाफ़द होगा ऐ दाऊद! इन्हें ज़रा मेरा कलाम तो सुना दीश्जये। वो लमींबर पर चढ़ कर ज़बूर पढ़ें गे लोग तरब में आ कर वज्द करने लगें गे, जब उन्हें अफ़ाक़ा होगा तो इशाफ़द ख़ुदावन्दी होगा कक ऐ मेरे बन्दो! तुम ने इस से ज़्यादा पाकीज़ह आवाज़ भी कभी www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari
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सुनी है...? वो अज़फ़ करें गे नहीीं... ऐ हमारे रब! ख़ुदा तआला का इशाफ़द होगा अपनी इज़्ज़त व जलाल की क़सम! मैं अब तुम्हें इस से ज़्यादा पाकीज़ह तर आवाज़ सुनाऊींगा। ऐ मुहम्मद ﷺउहठए और लमींबर पर चढ़ जाइए और सरू ह ताहा व यासीन पहढ़ए पस हज़रत मह ु म्मद ﷺकी आवाज़, आवाज़ ए दाऊद पर ख़ब ू ी में सत्तर हहस्सा बढ़ी हुई होगी और लोग तरब में आ आ कर ख़ूब वज्द करें गे।
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हाई ब्लड प्रेशर में मुअस्सर इलाज:
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सूरह यासीन की बरकत के हैरत अगं ेज़ वाक़्यात्
मोहतरम भाई अब्दल् ु वहीद साहब इस सच्चे वाक़ए के रावी हैं। एक हदन सूरह यासीन पर बात हो रही थी।
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उन्हों ने बताया कक १९७२ में उन्हें एक ख़ान साहब लमले। उन की कफ़शार ख़ून
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(ब्लड प्रेशर) बहुत बुलींद रहता था हर तरह के इलाज ककये। डॉक्टर से ले कर तबीब के टोटके तक सब
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आज़्माए कोई दवा कारगर ना हुई। किर अरसा दराज़ बाद उन से मल ु ाक़ात हुई तो वो बबल्कुल ठीक ठाक थे।
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मैंने वजह पछ ू ी तो कहने लगे: एक शादी की तक़रीब में शरीक हुआ। उस हदन मेरी तबीअत ख़राब थी। महसूस हो रहा था कक बुलींद कफ़शार ख़ून क़ाबू में नहीीं। मैं तक़रीब छोड़ कर खड़ा हो गया। मेज़बान ने रोका और कहने लगे: खाना खल ु ज़रत कर के जाने की वजह बताई। वहीीँ एक ु गया है , खा कर जाइए। मैं ने मआ
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बुज़ुगफ़ बेठे थे उन्हों ने कहा: मैं तुम्हें एक आसान इलाज बताता हूाँ, जो बुलींद कफ़शार ख़ून को सही कर दे गा।
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नमाज़ फ़ज्र पढ़ कर एक प्याले में पानी भररये। एक बार दरूद इब्राहीमी पहढ़ए किर एक बार सूरह यासीन,
इस के बाद एक बार दरूद इब्राहीमी पढ़ कर
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पानी पर दम कीश्जये और पी लीश्जये। इक्तालीस रोज़ मुसल्सल ये अमल कीश्जये। इन शा अल्लाह तआला बुलींद कफ़शार ख़ून मामल ू की सतह पर आ जाएगा। ये अमल कम कफ़शार ख़ून (लौ ब्लड प्रेशर) में भी मफ़ ु ीद है, आज़्मा कर दे ख़खये। मैं ने ये अमल शरू ु कर हदया। इस के बाद कभी ये लशकायत नहीीं हुई। बबल्कुल ठीक हूाँ कोई परहे ज़ भी नहीीं करता हूाँ। इस के बाद मैंने कई हज़ार लोगों को ये अमल बताया और वो भी ठीक हो गए।
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फ़स्ल पर ततलावत के असरात (एक साइंसी तजब ु ाि):
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डॉक्टर अम्जद मुहलसन अल्मदनी ने बग़दाद यूननवलसफ़टी से एक हदल्चस्प मोज़ूअ पर पी एच डी की है। उन
के तहक़ीक़ी मुक़ाले का मोज़ूअ था गींदम ु के पौदों में अदराक हयात। उन्हों ने इस पर बाक़ाइदा तहक़ीक़ की।
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पाींच मुख़्तललफ़ ककयाररयों में गींदम ु के बीज बोए और यकसाीं दे ख भाल करते रहे । एक ककयारी पर ताललबा
की ये श्ज़म्मा दारी लगाई कक वो बैठ कर सूरह यासीन पढ़ा करे । वो ख़ुद भी क़ुरआन करीम की कुछ आयात
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पढ़ कर पानी पर दम करते और ककयारी में डाल दे ते। पााँचों ककयाररयों में पौदे ननकले और किर ख़ोशे लगे।
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जब दाने गगने गए तो श्जस ककयारी पर सरू ह यासीन का पवदफ़ ककया गया था वहाीं सब से ज़्यादा ननकले। ये
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लसफ़फ़ सूरह यासीन का एअजाज़ था और क़ुरआन पाक की आयात का असर कक पौदों की नशो व नुमा बहुत
बाग़बानी की शौक़ीन ख़ातन ू का तजब ु ाि:
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बेह्तर हो गयी। याँू ननबातात में अदराक हयात का पहलू साबबत हो गया।
एक साहब ने ललखा कक मेरी एक जान्ने वाली ख़ातन ू लींदन में मक़ ु ीम हैं। उन्हें बाग़बानी का बहुत शौक़ है।
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उन का एक क़ीमती पोदा मुरझाने लगा ककसी तरह ठीक नहीीं हुआ। वो भी सुबह के वक़्त गमले के क़रीब बैठ
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कर नतलावत करने लगीीं। एक ही हफ़्ते में मुरझाया हुआ पोदा हरा हो गया और उस की नशो व नुमा बेह्तर हो गयी। अब उन्हों ने मामल ू बना ललया है कक पौदों के पास बैठ कर रोज़ाना सूरह यासीन की नतलावत
करती हूाँ।
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ला इलाज मरीज़ा का इलाज: एक ख़ातन ू ला इलाज मज़फ़ में गगरफ़्तार थीीं। उन का मामल ू था कक जब भी क़ुरआन पाक पढ़ती थीीं, सरू ह यासीन ज़रूर एक बार पढ़ लेतीीं। उन से ककसी ने पूछा कक आप सूरह यासीन क्यूाँ पढ़ती हैं? उन्हों ने बताया "मैंने अपनी वाललदा को हमेशा क़ुरआन पढ़ने के बाद यासीन पढ़ते दे खा है। वही आदत मझ ु े लमल गयी" रफ़्ता रफ़्ता वो इस सूरह की नतलावत कसरत से करने लगीीं। तजम ुफ़ ा भी पढ़ लेतीीं। आख़ख़र अल्लाह ने उन के
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हाल पर रहम फ़माफ़या और उन्हें सेहत कालमला हालसल हो गयी।
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क़ब्र में से सही सालम वापस आ जाना:
कलामुल्लाह शरीफ़ की तफ़्सीर के मशहूर मुफ़श्स्सर अल्लामा इमाम नालसरुदीन رحمةاهللعليةपर एक मतफ़बा
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सक्ता की हालत तारी हुई श्जस में इींसान की कैकफ़य्यत लमस्ल मद ु ाफ़ की हो जाती है लोगों ने उन को ये समझ
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कर कक उन का इन्तक़ाल हो गया है क़ब्र में दफ़न कर हदया। दफ़न करने के बाद हज़रत अल्लामा رحمةاهللعلية
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की हालत ख़त्म हुई तो क़ब्र में दे खते हैं मगर कुछ नज़र नहीीं आता क़ब्र के अींदर अपनी बेचैनी की हालत में
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सूरह यासीन पढ़नी शरू ु कर दी इतने में एक कफ़न चोर ने उन का कफ़न चुराने के ललए उन की क़ब्र के सब
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तख़्ते हटा हदए हज़रत इमाम साहब जब अपनी क़ब्र से सीधे खड़े हुए तो कफ़न चोर ख़ौफ़ की वजह से फ़ौरन
मर गया। अल्लाह तआला ने इमाम साहब को इस मुश्ककल से ननजात अता फ़माफ़ई, मुसल्मानों को चाहहए
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कक इस वाक़्या से इब्रत व सबक़ हालसल करें । (फ़ज़ाइल हहफ़ाज़ुल ् क़ुरआन)
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यासीन शरीफ़ का अपने पढ़ने वाले के बद्द ख़्वाह की आँख तनकाल लेना: हज़रत इमाम शाफ़ई رحمةاهللعليةने अपनी बअज़ तालीफ़ात में एक वलीयुल्लाह (जो कक ज़ुबैदा शहर के रहने
वाले हैं) से नक़ल फ़माफ़या है कक उन्हों ने कहा है कक मैं जनाज़ा के साथ मग़ररब की नमाज़ के बाद गया दफ़न के बाद जब लोग चले आये और अाँधेरा हो गया तो मैं वहीीँ रुक गया मैं ने वहाीं दे खा कक एक शख़्स कुत्ते की सूरत में क़ब्र में गया और ज़बान ननकालते हुए थका हुआ ननकला और सीधी आाँख से काना था मैं ने उस से
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हाल मालूम ककया उस ने कहा कक मैं इस मय्यत से बुराई करने गया था मगर सूरह यासीन ने रोक हदया और मेरी आाँख ननकाल ली और मुझ से ककसी ने उसी वक़्त कहा कक ये शख़्स मुल्क भी पढ़ता होता तो वो सूरत तेरी दस ू री आाँख भी ननकाल लेती। (रोज़ुल ् ररयाहीन) सरू ह यासीन की बरकत से शरीर ल्जन्ननी से हहफ़ाज़त: हज़रत सय्यदन ु ा अहमद बबन उबैदल् ु लाह ریضاہللاعتیلٰنعہफ़माफ़ते हैं कक मेरे वाललद साहब एक मतफ़बा ऐसे रास्ते
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से गुज़रे जहााँ श्जन्न भूत का बसेरा था हालाींकक वो दस ू रों को इस रास्ते से गुज़रने से रोका करते थे वाललद
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मोहतरम का बयान है कक मैं वहाीं से गुज़र रहा था कक अचानक मुझे एक औरत हदखाई दी जो पीले रीं ग के
कपड़े पहने एक तख़्त पर बेठी थी। उस के इदफ़ गगदफ़ गचराग़ जल रहे थे। उस औरत ने मुझे आवाज़ दी। मैं ने
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फ़ौरन यासीन शरीफ़ पढ़ना शरू ु की तमाम गचराग़ बुझ गए। ु कर दी। जैसे ही मैं ने सूरह यासीन पढ़ना शरू
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ककया?" इस तरह मैं उस से महफ़ूज़ रहा। (ककताबुल अज़्मत स ४२०)
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शैतान का अँधा हो जाना:
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वो औरत ननहायत ही परे शानी के आलम में मझ ु से कहने लगी: "ऐ अल्लाह के बन्दे ! ये तम ु ने मेरे साथ क्या
हज़रत सय्यदन ु ा सअल्बा बबन सुहैल ریضاہللاعتیلٰنعہफ़माफ़ते हैं: "एक मतफ़बा मैं ने सेहरी में पीने के ललए कुछ
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पानी रखा मगर जब सेहरी के वक़्त पानी लेने के ललए गया तो वहाीं कुछ ना था। दस ू रे हदन मैंने दब ु ारह पानी
रखा और उस पर सूरह यासीन शरीफ़ पढ़ी। जब सेहरी का वक़्त हुआ तो मैं ने दे खा कक पानी इसी तरह रखा
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दन्याज ४, स५३२)
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हुआ है जब कक शैतान अाँधा हो कर घर के इदफ़ गगदफ़ चक्कर लगा रहा है।" (मकाइदल ् शैतानुल ् इब्न अबी अल ्-
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"सलामन ु ् क़ौल-ल्म्म-र्-रल्ब्ब-र्-रहीम"
ْ ِ ) َّسلٰمٌق ْوًلइस्म आज़म है : (ٌِمٌربٌرح ِْیم
एक बुज़ुगफ़ फ़माफ़ते हैं कक बअज़ उल्लमा ने इस आयत को इस्म आज़म के तौर पर नक़ल ककया है। राक़मुलहरुफ़ का तजुबाफ़ है कक इस को श्जस भी मुसीबत में पढ़ा है या ककसी को ललख कर हदया है या ककसी पर दम ककया है तो उस से बहुत फ़ायदा ज़ाहहर हुआ है। मेरे उस्ताद हज़रत मौलाना मुहम्मद अब्दल् ु लाह बेहल्वी www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari
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اهللعلية رحمةइस आयत को अपने तावीज़ात और झाड़ िाँू क में इस्तेमाल करते थे अल्लाह तआला आप की क़ब्र
को और ज़्यादा मुनव्वर फ़माफ़ए। (आमीन) अल्लामा जलालुदीन सुयूती رحمةاهللعليةने अपनी ककताब "अरफ़ह्मत कफ़ल ् नतब वश्ल्हक्मत" में ललखा है कक सरू ह यासीन के दरम्यान में एक आयत है श्जस के पाींच कललमात हैं..... अगर कोई शख़्स उस को तलाश कर ले तो उस का हाकफ़ज़ा भी तेज़ हो जाएगा और इसरार ख़फ़् ु या पर भी मुतल्लअ होगा इस आयत के इस्तेमाल
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का तरीक़ा ये ललखा है कक इस को बावज़ू हो कर ककसी पाक बतफ़न पर ललख कर रोज़ाना पाींच हदन तक पानी َّ ا
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ْ ِ ) َّسلٰمٌق ْوًلलमली। वल्लाह आअलम (ٌِمٌربٌرح ِْیم
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में घोल कर पी ललया जाए। बन्दा ने वो आयत तलाश की तो वो "सलामुन ् क़ौल-श्म्म-र्-रश्ब्ब-र्-रहीम"
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सूरह यासीन के ज़ररए एक ना अहल शागिदि से फ़ैज़ सलब करने का वाक़्या:
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एक बे अदब और गस् ु ताख़ शख़्स ने मशहूर शैख़ से कक़रआत ् सबआ की तालीम हालसल की जब
वो फ़ाररग़ हो कर अपने वतन लोटा तो ककसी ने उस से कहा: क्या ही ख़ूब होता अगर लसफ़फ़ एक ऐब तुम्हारे अींदर ना होता वो ये कक तुम्हारा शैख़ तो फ़लाीं और ऐसा है। उस बे अदब ने जवाब हदया ये कोई हजफ़ की बात
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नहीीं क्योंकक मैं ने शहद चाट ललया है और बतफ़न छोड़ हदया है। उस की ये बात उस्ताद को पोहींची तो उस ने अपने शागगदफ़ और साथी क़ुराअ को जमा ककया और कहा इस ननय्यत से सूरह यासीन पढ़ो कक हमारा शहद
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हमारी तरफ़ लोट आये चुनाचे जब उन लोगों ने सूरह यासीन मुकम्मल पढ़ ली तो उस बे अदब शागगदफ़ के सीने से कक़रआत का फ़ैज़ सलब हो गया श्जस पर वो उस्ताद की तरफ़ रुजूअ हुआ। बबदआत से तोबा ताइब ्
हुआ, ग़फ़्लत की नीींद से बेदार हुआ और किर अल्लाह तआला ने उस पर अपनी रहमत का फ़ैज़ बसाफ़या।
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कुँवें के पानी का ऊपर आ जाना: एक वाक़्या क़ारी उबैदल् ु लाह उफ़फ़ लाला का तज़्करह ग़ोस्या में मोलवी हाकफ़ज़ क़ारी गुल हसन رحمةاهللعليةख़लीफ़ा सानी मौलाना सय्यद ग़ोस अली शाह क़लन्दर पानी पत्ती ने अपने शैख़ मौसफ़ ू رحمةاهللعلية के हवाले से ललखा है श्जस को उन्हीीं के अल्फ़ाज़ में नक़ल ककया जाता है। एक रोज़ इशाफ़द हुआ (यानन सय्यद ग़ौस अली शाह साहब رحمةاهللعليةने फ़माफ़या) कक भोपाल में क़ारी उबैदल् ु लाह उफ़फ़ क़ारी लाला साहब से
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मुलाक़ात हुई। हम ने उन को क़ुरआन शरीफ़ सुनाना शरू ु ककया। वो कहने लगे: आप के ललए सीधा सादह
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पढ़ लेना काफ़ी है। उन के इशाफ़द से हमारा ख़्याल भी पलट गया। एक हदन क़ारी साहब से हम ने पूछा कक
आप को अपने से बेह्तर भी कोई क़ारी लमला? फ़माफ़ने लगे कक हााँ एक मतफ़बा मैं दकन को जा रहा था राह में
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एक गााँव में ठहरा और हस्बे आदत पूछा कक यहााँ कोई क़ारी भी है? लोगों ने कहा कक क़ारी तो हम जानते नहीीं मगर एक अींधे हाकफ़ज़ मश्स्जद में लड़के पढ़ाया करते हैं जब उन के पास गया तो दे खा कक लड़के बाहर बेठे हैं
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और हाकफ़ज़ जी हुजरे में हैं एक एक लड़का जाता है और सबक़ पढ़ कर चला आता है जो लड़का अींदर जाने
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वाला था उस की मआररफ़त मैं ने अपनी इत्तला कराई तो हाकफ़ज़ जी ने अींदर बल ु ा ललया। लमज़ाज पछ ू ा। मैं
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ने कलाम मजीद सुन्ने का इकत्याक ज़ाहहर ककया। फ़माफ़या पहले आप पढ़ें । ख़ैर मैं ने एक रुकूअ पढ़ा तो हाकफ़ज़ नाबीना के कान खड़े हो गए और कहा कक क्या तुम क़ारी लाला हो। मैं ने कहा हााँ! आप ने क्यूाँकर
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पहचाना? उन्हों ने कहा कक आज सारे हहींदस् ु तान में इस शद्द् व मद के साथ पढ़ने वाला लसवाए क़ारी लाला के
और कोई नहीीं है इस के बाद हाकफ़ज़ जी ने पढ़ना शरू ) ا ُ وपढ़ी थी कक एक बतफ़न जो ु ककया। लसफ़फ़ "अऊज़"ु ( َُعْذ उन के पास रखा था उस का सरपोष हहला और रुकूअ शुरू करते ही वो सरपोष गज़ भर ऊींचा ठहरा रहा। जब
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हाकफ़ज़ जी पढ़ चुके तो वो अपनी जगा पर आ गया मुझे बहुत हैरत हुई उन्हों ने ख़ामोशी का सबब पूछा मैं ने
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ये माजरा बयान ककया। फ़माफ़या: तम् ु हें क़ाल में यद् तोला है मझ ु े हाल में..... और मैं तमाम कलाम मजीद का
आलमल हूाँ अभी तुम को और भी तमाशा हदखाऊींगा ग़ज़फ़ ज़ुहर के वक़्त मुझे जींगल में ले गए वहाीं एक कुाँवा था कहा आओ.... वज़ू कर के नमाज़ पढ़ लें , मैं ने कहा बहुत अच्छा, मैं रहट खें चता हूाँ आप वज़ू करें । कहा इस की ज़रूरत नहीीं तुम सूरह यासीन कुाँवें के ककनारे पर खड़े हो कर पढ़ो मैं ने पढ़ना शरू ु की और पानी ने जोश मारा आख़ख़र पढ़ते पढ़ते पानी ककनारे पर आ गया हम ने वज़ू कर के नमाज़ पढ़ी किर सैर करते हुए दस ू रे कुाँवें पर पोहींचे। www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari
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इब्राहीम बबन अधम का ख़ास अमल: सहल तस् ु री رحمةاهللعليةफ़माफ़ते हैं कक एक शख़्स ने इब्राहीम बबन अधम رحمةاهللعليةके पास आ कर कहा कक आप सूरह यासीन के बारे में क्या फ़माफ़ते हैं? फ़माफ़या: इस में एक इस्म है श्जस को वो मालूम हो जाए और वो उस इस्म से जो दआ ु माींगे तो वो दआ ु क़ुबल ू हो जाती है। दाई ख़्वाह नेक हो या बद, बशतेकक उस इस्म को उन कललमात के साथ ज़म करे जो उस इस्म के साथ ख़ुसूलसयत रखते हैं उस शख़्स ने अज़फ़ की ख़ुदा आप का
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भला करे आप ये फ़माफ़एाँ कक मैं सारी सूरत से दआ ु माींग ललया करूाँ फ़माफ़या नहीीं ख़ास उसी एक इस्म को उन
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अल्फ़ाज़ के साथ लमला कर दआ ु माींगें जो उसी इस्म के ललए ख़ास हैं क्योंकक ख़ुदा तआला ने श्जस तरह
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बीमारी पैदा कर के उस की दवा भी पैदा की इसी तरह उस ने अपने हर एक इस्म के ललए एक ख़ास शै पैदा
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की है श्जस से दआ ु माींगी जाए तो क़ुबल ू हो जाती है। रसल ू ल्लाह ﷺने फ़माफ़या है कक हर एक शै का हदल होता है और क़ुरआन का हदल सूरह यासीन शरीफ़ है पस यही शराफ़त और उन इस्मों की अज़्मत ही इस
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सरू त के ललए काफ़ी है। क्योंकक अल्लाह तआला ने इस सरू त को क़ुरआन शरीफ़ का हदल क़रार हदया है और बदन हैवानात में ज़्यादा शरीफ़ उज़्व यही हदल ही होता है और ये इस सूरत की शराफ़त इस इस्म की
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शराफ़त की वजह से है जो इस सरू त में है।
जान्ना चाहहए कक सूरत यासीन में अल्लाह तआला के इस्मों में से एक इस्म हकीम है श्जस के हफ़ों के राज़
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पर अगर ककसी को इत्तला हो जाए और वो पाक साफ़ और मुतवज्जह बकक़ब्ला इस को ललखे और धो कर इस इस्म के श्जतने एअदाद हैं उतने हदनों में पीता रहे ख़ुदा उसको हहक्मत की बातें करने का मल्का इनायत
फ़माफ़एगा और मख़्लूक़ात के राज़ उस पर खोल दे गा और वो इस्म इस सूरत के दरम्यान में वाकक़अ है श्जस
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के पाींच कल्मे और सोला हरुफ़ हैं श्जन में चार हफ़फ़ मींक़ूत हैं। दो हफ़ों के नीचे नुक़्ते और दो के ऊपर और इस
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में आलम रबीई और आलम नतबई और आलम तरकीबी का राज़ है और इस ललए कक चार को चार से ज़बफ़ दे ने
से सोला हो जाते हैं और इस अमल के कुल हरुफ़ १६ ही हैं इसी राज़ पर आसमान और ज़मीन और अशफ़ व कुसी क़ाइम हैं और इसी के सबब रूह-उल ्- क़ुदस ु ने
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एहतराक़ात फ़ल्क्या और क़वाए नूरननया में क़ुदरत पाई है और उसी के सबब रूह क़ाललब हैवानी में क़रार पकड़ती है और इसी के सबब इस सूरत को दस ू री सूरतों पर फ़ज़ीलत और शराफ़त लमली है और ये बात "तासीन ्" ( ٌ ) ٰ ٌطسऔर ता-सीन ्-मीम ( ) ٰ ٌطسمमें नहीीं है क्योंकक "ता" ( )طका मानई "सीन ्" ( ) سके मानए से मुतसल है और "यासीन" ( ) ٰیسینमें "य" ( )يका मानए "सीन ्" ( )سके मानए से मुतसल नहीीं है क्योंकक ये बानतन के मानए में है।
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इस सूरह के साथ दआ ु मांिने का तरीक़ा:
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जो शख़्स इस इस्म की बरकत हालसल करने का इरादा करे तो हहलाल के बढ़ने के हदनों यानन चााँद की पहली
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तारीख़ों में तीन हदन अख़्त्यार करे । जुमा, हफ़्ता, इत्वार इन तीनों हदनों में ग़स् ु ल कर के ख़ूब पाक साफ़
सथ ु रे कपड़े पहन कर कपड़ों को ख़कु बू लगाए और रोज़े रखे और ख़ैरात करे और ऊींची नीची कोई बात चीत ना
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करे और इस अस्ना में हींसी और हदल लगी सुस्ती ग़फ़्लत फ़ख़्र व तकब्बुर को अपने नज़्दीक ना आने दे
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क्योंकक ये बड़ी अज़्मत वाला इस्म है इस की ताज़ीम वही करता है श्जस को उस के राज़ पर वाश्क़्फ़यत है
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और वो इस्म हयात है जो आफ़्ताब में ललखा हुआ है। इसी इस्म को इस्राफ़ील ् السالم علیہसूर में िूींकेंगे और
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इन तीन हदनों में हर वक़्त बावज़ू रहे और इन हदनों में हर कक़स्म की हैवानी अकया से परहे ज़ रखे जब इत्वार
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का हदन आए तो सुबह की नमाज़ के बाद तुलूअ आफ़्ताब के वक़्त आफ़्ताब की तरफ़ मुतवज्जह हो कर बैठ
जाए और इस्म से तीन बार दआ ु माींग कर अपनी हाजत की दआ ु करे और जब आफ़्ताब ख़ख़त अस्तवा पर आ जाए तो उस वक़्त २ बार दआ ु माींगे और जब आफ़्ताब ग़रू ु ब होने लगे तो उस वक़्त एक बार दआ ु माींगे।
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किर अगर इस इस्म की पत्थर को भी क़सम दे गा तो वो ज़रूर िट जाएगा और इस इस्म को अगर इत्वार या जम ु ेरात के हदन लमगी वाले या क़ज़फ़दार या परे शान हाल शख़्स के वास्ते ललखे या ककसी और ऐसे काम में उस
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को इस्तेमाल करे श्जस में अल्लाह तआला की ख़ुकनोदी हो तो फ़ायदा होगा।
फ़ायदा: बुज़ुगों ने फ़माफ़या कक ये सारे कमालात सूरह यासीन की एक आयत "सलामुन ् क़ौल-श्म्म-र्-रश्ब्ब-र्रहीम" ( )سلمٌقوًلٌِمٌربٌالرحیمमें है। ☆☆☆☆☆
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सरू ह यासीन के फ़वाइि बज़ ु ुगाान् िीन के मश ु ादहिात की रौशनी में: (१)
हज़रत मुक़री رحمةاهللعليةकहते हैं कक जब बादशाह या दकु मन का ख़ौफ़ हो और उस के ललए सूरह यासीन
पढ़े तो वो ख़ौफ़ जाता रहता है। श्जस ने सूरह यासीन और सूरह वस्साफ़्फ़ात जुमे के हदन पढ़ी और किर अल्लाह से दआ ु की उस की दआ ु पूरी होती है। (२)
यह्या बबन कसीर رحمةاهللعليةने फ़माफ़या जो शख़्स सुबह को सूरह यासीन पढ़ ले वो शाम तक ख़ुशी और
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आराम से रहे गा और अगर शाम को पढ़ ले तो वो सुबह तक ख़ुशी में रहे गा और फ़माफ़या कक मुझे ये बात ऐसे
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अज़ीम मफ़ ु स्सर अल्लामा अबू अल्बरकात अब्दल् ु लाह बबन अहमद इब्न महमद ू अल्नस्फ़ी ने अपनी
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(३)
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शख़्स ने बताई है श्जस ने इस का तजुबाफ़ ककया है। (इब्न अल्फ़रीस, तफ़्सीर मज़्हरी)
मकहूर "तफ़्सीर मदारक अल्तींज़ील" में नक़ल ककया है कक जो शख़्स सूरह यासीन पढ़े गा अगर भूका होगा तो उस को आसद ू ह ककया जाए। प्यासा पढ़े तो सेराब ककया जाए। नींगा पढ़े तो ललबास लमले। अगर ख़ौफ़ व
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हरास ् में होगा तो उसे अम्न व सुकून दे हदया जाएगा, अगर वह्शत ज़्दह होगा तो उसकी वह्शत दरू कर दी
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जाएगी, अगर वो मुहताज होगा तो ख़ुदा उस की अहत्याज दरू कर दे गा। अगर क़ैद में होगा तो अल्लाह पाक
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उस को ररहाई अता कर दे गा, अगर रास्ता भटका हुआ पढ़े गा तो ख़ुदावन्द तआला उस की रहबरी फ़माफ़ते हुए
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मींश्ज़ल पर पोहींचा दे गा। अगर मक़्रूज़ पढ़े गा तो अल्लाह उस का क़ज़फ़ अपने ख़ज़ानों से अदा कर दे गा परवहदफ़ गार आलम उस से हर मुसीबत टाल दे गा और उस की हर हाजत को पूरा फ़माफ़एगा। (तफ़्सीर मदारक अल्तींज़ील)
दीगर बुज़ुगाफ़न दीन के मुशाहहदात में है कक सूरह यासीन अगर ग़ैर शादी शद ु ह पढ़े तो उस की जल्द
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शादी हो जाएगी।
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(४)
☆ बीमार पढ़े तो जल्द तींदरु ु स्ती पाए। ☆ क़ैदी पढ़े तो ग़ैब से ररहाई के अस्बाब बन जाएीं। ☆ ग़म में मब्ु तला शख़्स पढ़े तो जल्द उन से छुटकारा पाए। ☆ ककसी चीज़ की गुम्शद् ु गी में पढ़े तो वो चीज़ जल्द लमल जाए या उसका बेह्तर नेअमुल ् बदल लमल जाए।
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(५)
एक बुज़ुगफ़ फ़माफ़ते हैं: श्जस ने सूरह यासीन पढ़ी और किर अल्लाह तआला से दआ ु की तो वो दआ ु
ज़रूर पूरी होती है जो शख़्स ख़ुलस ू ननय्यत के साथ पाबन्दी से सूरह यासीन पढ़ता है वो ज़रूर जन्नत में जाएगा और उस की दीन व दन्ु या की तमाम मुश्ककलें आसान हो जाएींगी। (६)
हज़रत सय्यदन ु ा अबू जाफ़र मह ु म्मद बबन अली رحمةاهللعليةफ़माफ़ते हैं: जो शख़्स अपने हदल में सख़्ती
पाए तो वो एक प्याले में ज़ाफ़रान से "यासीन वल्क़ुरआनन-ल ्-हकीम" ललखे किर उसे पी ले (इन शा अल्लाह
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तआला उस का हदल नरम होगा।)
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हमारे एक वाकक़फ़ कार क़ारी अन्वर कमाल ने सूरह यासीन के बारे में बताया "जब भी मुझे कोई
मुश्ककल पेश आए, मैं अहल ख़ाना के साथ लमल कर अवल आख़ख़र तीन मतफ़बा दरूद शरीफ़ और ८१ बार
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सूरह यासीन पढ़ कर दआ ु करता हूाँ। तीन हदन पढ़ने से मुश्ककल हल हो जाती है।" सूरह यासीन को हर
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मुश्ककल और परे शानी का हल बताते हैं।
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उजड़े घरों को आबाि करने का ख़ास अमल
मुर्शिद हज्वैरी से हार्सल हुई ख़ास अमानत:
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ये अमानत दर असल मुझे मेरे मुरब्बी और शैख़ हज़रत ख़्वाजा सय्यद मुहम्मद अब्दल् ु लाह अबक़री के तरीक़ों पर
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मज्ज़ब ू رحمةاهللعليةश्जन की सारी श्ज़न्दगी अल्लाह तआला के हुक्म और सवफ़रर कौनैन ﷺ
गुज़री इस अमल की बदौलत उन्हों ने उजड़ते घरों को हाँसता बस्ता दे खा। वीरान दक ु ानों को आबाद दे खा। बबाफ़द ख़ान्दानों को ख़कु हाल दे खा। मायस ू लोगों को परु आस दे खा। हत्ता कक जो लोग अपने मसाइल, मुश्ककलात, परे शाननयों की वजह से ख़ुदकुशी पर तुल आए थे बाद में वही लोग एक हींसती मुस्कुराती आबाद और शाद, शान्दार और जान्दार, शादाब, तर व ताज़ह श्ज़न्दगी गज़ ु ार रहे हैं।
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८० साला आज़मूदह अमल: मैं ने इस मज़्मन ू को नो हहस्सों में तक़्सीम ककया है। क़ाररईन! आप ख़द ु सोचें सरू ह यासीन क़ुरआन का हदल है और क़ुरआन मजीद ककतनी पुर अज़्मत ककताब है। मेरी कोलशश होगी कक अब तक के भी मश ु ाहहदात (मेरे और मेरे हज़रत शैख़ رحمةاهللعليةके और दीगर लोगों के) वो आप तक अमानत समझ कर पोहींचाऊीं मुझे सो फ़ीसद उम्मीद है कक आप इस से इस्तेफ़ादह करें गे। और आप के मसाइल इन शा अल्लाह
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तवज्जह और यकसूई से इस अमल को ककया वो अल्लाह के फ़ज़्ल व अह्सान से काम्याब हुआ।
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आज़्माए सच्चे मुशादहिात
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हल होंगे। एक ऐसा अमल जो गुज़कता ८० सालों से आज़्माया जा रहा हो और श्जस ने भी यक़ीन, एतमाद
इस तमाम मज़्मून में मेरी गुफ़्तुगू का मह्वर् तीन मकफ़ज़ी चीज़ें होंगी। १- मेरे और मेरे हज़रत رحمةاهللعليةके
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वसीअ मश ु ाहहदात, ु ाहहदात व तजब ु ाफ़त २- श्जन लोगों को मैं ने बताया और उन्हों ने ककया उन के मश
दे ती हैं।
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एक ख़ातून का ख़त लमला, ललखा था कक बच्पन में मेरे वाललद साहब फ़ॉत हो गए थे। मेरे चचा ने मुझे
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उजड़े घर का आबाद हो जाना:
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तजुबाफ़त। ३- वो ख़ुतूत जो मुझे मोसूल हुए। श्जन में ददफ़ भरी और सोज़ भरी दास्तानें आाँखों को ग़म्नाक कर
पाला उन के फ़ॉत होने की दास्तााँ भी अजीब है कक ख़ान्दानी दकु मनी की वजह से उन दोनों को क़त्ल कर हदया गया था। मगर
क़ुदरत इलाही उन के इरादों से अल्लाह तआला ने मुझे बचा के हदखाया मेरे चचा ने अपनी दो बेहटयों के साथ तीसरी बेटी मझ ु े बना ललया। वो मझ ु से बहुत मह ु ब्बत करते थे मेरी हर ज़रूरत का ख़्याल रखते थे, श्ज़न्दगी के हदन रात गुज़रते गए मैं ने बी ए कर ललया। मेरी दो कश्ज़न मुझसे बड़ी थीीं मेरे चचा ने उन की www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari
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शादी कर दी उस के बाद उन्हें मेरी कफ़क्र लाहक़ हुई चाँकू क मेरे नाम मेरे वाललद की वजह से अच्छी ख़ासी जाएदाद थी इस ललए बहुत ररकते आना शरू ु हुए। मेरे चचा ने अपने बेटे से शादी इस वजह से ना की कक लोग ये ना समझें कक दौलत और जाएदाद के लालच की वजह से कक जाएदाद मेरे घर से ना जाए। इस ललए अपने बेटे की शादी कर दी। हमारे दरू परे के ररकतेदार थे उन का बेटा "स" जो कक आला नींबरों में इींजीननयररींग से फ़ाररग़ हुआ था मेरी शादी उस से कर दी गयी। श्ज़न्दगी का तो ये हहस्सा बहुत अच्छा रहा। मेरे चचा ने मझ ु े
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बहुत जहे ज़ हदया। मेरा ख़ावन्द मुझ से मुहब्बत ख़ुलूस से पेश आया। हदन रात गुज़रते गए कुछ अरसे बाद मेरी सास,सुसर और ख़ावन्द का रवय्या तब्दील हो गया। मैं बहुत हैरान थी आख़ख़र ये क्या हुआ मेरी
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ख़ख़दमत में कमी नहीीं, अताअत में सुस्ती नहीीं, फ़माांबदाफ़री में गुस्ताख़ी नहीीं, लेककन बात ये खुली उन का
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मुताललबा ये था कक मेरी तमाम जाएदाद उन के बेटे यानन अपने ख़ावन्द के नाम कराऊाँ मेरे चचा भी दे ने को तय्यार थे और उस की तमाम आम्दनी दे भी रहे थे। लेककन वो तमाम जाएदाद ख़ुद सींभालना चाहते थे मेरे
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पेश नज़र शमफ़ व हया, हहजाब था कक मैं चचा से कैसे कहूाँ। बात बढ़ते बढ़ते आख़ख़र कार अब तलाक़ तक
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पोहींच गयी उन्हों ने मझ ु े चचा के घर भेज हदया है आख़ख़र कार मैंने चचा से भी कहा उन्हों ने जाएदाद ललख
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कर दे भी दी लेककन उन्हों ने मुझे, मेरे दो मासूम बच्चों को बहुत श्ज़ल्लत व रुस्वाई से घर से ननकाल हदया
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है। मोहतरम क़ाररईन! उस ख़ातन ू का जब ये ददफ़ भरा ख़त मेरे पास पोहींचा तो मैं ने सरू ह यासीन का ख़ास
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अमल पढ़ने को हदया क्योंकक घरदार बा हया बा पदाफ़ और दख ु ी ख़ातून थी जो ककसी पेशावर आलमल पीर के पास जा नहीीं सकती थी। उस ने मेरे इस अमल को बहुत तवज्जह और ग़ौर से पढ़ा मैं ने उस बहन को ललखा
कक इस अमल को नव्वे हदन पढ़ें ख़वातीन के जो वक़्फ़े के हदन होते हैं वो बाद में पूरे करे कुछ अरसे के बाद
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मुझे उस ख़ातून का ख़त लमला। उस ने ललखा कक इस ख़त को ललखते हुए रो रही हूाँ। वो ख़ावन्द कक श्जस के वकील ने मुझे तलाक़ के काग़ज़ात ललख हदए थे मेरे ख़ावन्द के लसफ़फ़ दस्तख़त होना बाक़ी थे, वो मेरे ललए
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किर वही ख़ावन्द बन गया जो शादी के अव्वलीन हदनों में था। उस ख़ातून ने ललखा मैं हैरान हूाँ ससुर श्जस ने
मेरे मरहूम बाप को और मझ ु े गाललयाीं दे कर घर से धक्के दे कर ननकाल हदया था वो मेरे ललए मह ु ब्बत व ख़ुलूस का सहारा बन गया। क़ाररईन! यक़ीन जाननये ये अमल उजड़े घरों को बसाने और बहती आाँखों को चप ु कराने के ललए अक्सीर मरहम से बढ़ कर है।
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बद्द चलन शौहर का राह रास्त पर आ जाना: इसी तरह का एक और वाक़्या है मेरे पास इलाज की ग़रज़ से इस्लाम आबाद के श्क्लननक में एक ख़ातन ू आई। उस की दोनों कलाइयाीं सोने से भरी हुई थीीं लेककन उस का चेहरा आींसुओीं से भरा हुआ था। वो रो रो कर अपनी दास्तान बयान कर रही थी कक उस का ख़ावन्द बहुत बड़ा सनअत कार है उस के ख़ावन्द ने मुलाश्ज़मत के ललए आई हुई एक लड़की से दोस्ती लगा कर उसे अपने पास रख ललया है।
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बक़ोल ् उस ख़ातून के, मेरी मालम ू ात के मुताबबक़ ननकाह भी नहीीं ककया। वो लड़की मेरे आाँगन में साींप की
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तरह मुझे डस रही है। क़ाररईन! यक़ीन जाननये वो ख़ातून इस्लाम आबाद के एक बहुत अमीर सेक्टर की
ररहाइशी थी उस का अींग अींग रो रो कर पुकार पुकार कर फ़याफ़द कर रहा था। मैं ने उस ख़ातून को तसल्ली दी
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और अज़फ़ ककया कक वो तमाम और अमल वज़ीफ़े छोड़ कर सूरह यासीन का ख़ास अमल पढ़े तवज्जह ध्यान एतमाद और यक्सूई ज़रूरी है वरना फ़ायदा ना होगा उस ख़ातून ने मुझ से वादा ककया और चली गयी चाँकू क
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इस्लाम आबाद हर माह जाना होता था, आइन्दा माह किर लमली कहने लगीीं फ़क़फ़ नहीीं पड़ा और ये भी कहने
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लगी कक मझ ू नहीीं हूाँ। मैं ने उसे मस् ु तक़ल पढ़ने की ताकीद की दस ू रे माह किर ु े आप पर एतमाद है , मायस
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ख़ातून तश्रीफ़ लाईं और मस्रूर थीीं कहने लगीीं, मुझे खोई हुई इज़्ज़त लमल गयी है और क़ाररईन! ये लफ़्ज़ उस नेक सालेह ख़ातन ू ने इस अींदाज़ से कहा मैं उसे बयान नहीीं कर सकता। कहने लगीीं ना मालम ू क्या हुआ।
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जैसे कोई ख़्वाब से जागता है मेरे लमयाीं की आाँखें खुल गयी हैं अब वो किर वही हैं जो पहले थे।
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मेरे ख़ावन्द ने उस नाजाइज़ तअल्लुक़ वाली लड़की से हर कक़स्म का ररकता छोड़ हदया है। पहले तो मैं
महीनों बीमार रहती थी। अींदर अींदर ही कुढ़ती रहती। मेरे लमयाीं मेरा हाल तक ना पूछते। एक दफ़ा ऐसा भी हुआ था कक मैं सीहढ़यों से गगर गयी थी और मुझे हत्ता कक ख़ासी चोटें आईं लेककन मेरे लमयाीं के कान पर जूीं तक ना रें गी और मैं अींदर ही अींदर रोती रही, उन्हें मेरे तन से नफ़रत थी। हत्ता कक मेरे बच्चों तक से नफ़रत थी। अब वो तमाम नफ़रतें मुहब्बतों में बदल गयी हैं वाक़ई ये अमल एक अल्लाह तआला का मुअज्ज़ा और
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ख़ास अता है। मज़ीद उस ख़ातून ने कहा कक अब इस बाबरकत और बा सआदत अमल को कभी नहीीं छोड़ पाऊाँगी।
तीन बेहियों की परे शान कुन ् कहानी:
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कुएटा से उम्र रसीदह बुज़ुगफ़ और साथ उन की उम्र रसीदह बेटी तश्रीफ़ लाईं। बुज़ुगफ़ की सफ़ेद दाढ़ी और बा शरअ शकल, चेहरे पर नूरानीयत, गुफ़्तुगू का सलीक़ा दे ख कर मैं मुतालसर हुए बग़ैर ना रह सका। उन का
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अल्म्य ये था कक उन की तीन बेहटयाीं थीीं और तीनों उन्हों ने सोच समझ कर अच्छे घरों में ब्याहीीं लेककन
लसतम ज़रीफ़ी तीनों दामाद कुछ इस अींदाज़ से पेश आए कक ये शख़्स ख़ून के आींसू रो कर रह गया। तीनों
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दामादों ने बेहटयों को बहुत तींग ककया ना उन की कोई दवा, ना ललबास और ना बच्चों की तालीम पर
तवज्जह ना खाने पीने का सलीक़ा और ना घर पर तवज्जह। उन तीनों बेहटयों में से एक जो सब से ज़्यादा
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सताई हुई साथ खड़ी थी। वो बज़ ु ग ु फ़ कहने लगे कक अब तक ९२ हज़ार मअ ु ज़्ज़ज़ ् आलमलों पर ख़चफ़ कर चक ु ा
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हूाँ। बहुत तावीज़ ललए अमल व टोने ककये लेककन ककसी से कुछ फ़ायदा नहीीं हुआ मुआम्ला रोज़ बरोज़
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उलझ्ता गया। हत्ता कक मेरी इस बेटी के ख़ावन्द ने इस बेटी को कह हदया कक वो या तो ख़ुद अपने वाललद के
घर चली जाए वरना धक्के दे कर ननकाल दीं ग ू ा। वो बुज़ुगफ़ रो रो कर दास्तान बयान कर रहे थे। मज़ीद कहने
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लगे ये बेटी इन दो कपड़ों के साथ अकेली तन तन्हा मेरे घर आ गयी। मेरी एक ररकतेदार ख़ातून के भाई ने आप का पता हदया है बहुत मुश्ककल से यहााँ पोहींचा हूाँ ट्रे न के लम्बे सफ़र ने मेरे बाल बाल को थका हदया है मैं
ने उन्हें तसल्ली दी और उन्हें दरख़्वास्त की कक वो ये सूरह यासीन का ख़ास अमल अपनी तमाम बेहटयों को
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पढ़ने के ललए दें तीनों बेहटयाीं ये अमल तवज्जह ध्यान से ४० हदन या ज़्यादा से ज़्यादा ९० हदन ज़रूर पढ़ें
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और अगर घर में और अफ़राद लमल कर पढ़ें यानन हर शख़्स ये अमल करे तो ज़्यादा फ़ायदा होगा। वो बुज़ुगफ़ तश्रीफ़ ले गए कोई साल भर के बाद उन का ख़त लमला कक मेरी दो बेहटयों ने ये अमल पढ़ा था एक ने नहीीं पढ़ा। श्जन दो बेहटयों ने अमल पढ़ा था। उन के साथ मआ ु म्ला ठीक हो गया है हत्ता कक पहले मेरी बेहटयों के बच्चे मााँ से गुस्ताख़ी करते थे तो बाप उन्हें रोकता टोकता नहीीं था बश्ल्क बहुत मुस्कुराता रहता था। लेककन
अब बच्चे थोड़ी सी भी गुस्ताख़ी करते हैं तो बाप उन्हें ताँब्य करता है और डाींटता है और मााँ का अदब लसखाता
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है, मुझे अफ़्सोस है कक मेरी तीसरी बेटी भी ये अमल पढ़ लेती तो उस का मुआम्ला भी अच्छा हो जाता। लेककन क्या करूाँ वो मग़ररबी लमज़ाज की हदल्दादह है।
बीवी की लापरवाही का दरू हो जाना:
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एक साहब मेरे पास आए और बहुत ददफ़ से बयान करने लगे मेरी शादी को १७ साल हो गए हैं लेककन मेरी बीवी ने मेरे घर को आज तक अपना घर नहीीं सम्झा मुझे याद नहीीं कक कोई हदन चैन से गुज़रा हो। वो या तो
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हदन का कुछ हहस्सा टी वी के सामने गुज़ारती है या अड़ोस पड़ोस में या ककसी फ़ींक्शन या शादी में जाने की
तय्यारी में या किर अपने मेके। घर का कोना कोना गन्दा हुआ पड़ा है कपड़े जगा जगा बबखरे हुए। बच्चों के
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स्कूल बैग, जत ू े बबखरे हुए। बच्चों के स्कूल की वदी मेली रहती है। मझ ु से कोई हदल्चस्पी नहीीं हर सीधी बात का उल्टा मत्लब ननकालती है, अब तो मैं भी इस्लाह कर के थक गया हूाँ। कई दफ़ा सोचा कक तलाक़ दे दाँ ू
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मगर छे बच्चे दे ख कर रुक जाता हूाँ बहुत कोलशश की सम्झाने की, बड़ों को बीच में डाला लोगों से केहल्वाया
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मगर वो ख़ातून मानने का नाम नहीीं लेती हत्ता कक अब तो मुझे बअज़ औक़ात उस के ककदाफ़र में से इख़्लाक़ी
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हालत में शक होने लगा है। वो साहब मुझ से कहने लगे मैं एक मामूली सी मुलाश्ज़मत करता हूाँ श्जस से
बच्चों के तालीमी अख़्राजात बमुश्ककल पूरे होते हैं। एक तरफ़ मुझ पर बच्चों का ख़चाफ़ और एक तरफ़ अकेली
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उसे छोड़ दाँ ,ू नई शादी कर लाँ ,ू क्या करूाँ? क्योंकक मैं ने बहुत तावीज़ ललए हैं मेरी पत्थर हदल बीवी पर कोई
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मेरी बीवी का ख़चाफ़, थक गया हूाँ, मैं चोरी करूाँ, डाके डालाँ ू आख़ख़र कहााँ से लाऊाँ मुझे मकवरा दें ।
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असर नहीीं होता। मैं ने उस शख़्स को तसल्ली दी और अज़फ़ ककया कक इन शा अल्लाह आप का घर हमेशा आबाद रहे गा और बीवी की अल्लाह तआला इस्लाह कर दे गा। आप इस अमल को बाक़ाइदगी से पढ़ें हााँ पढ़ते हुए अगर दे र हो तो मायूस ना हों मुझे इस बात का एह्सास है कक हर परे शान शख़्स चाहता है कक मेरी
मुश्ककल जल्द आसान हो जाए लेककन हर चीज़ के ललए वक़्त लगता है। और कुछ दरकार होता है ललहाज़ा आप मुस्तक़ल लमज़ाजी से इस अमल को पढ़ें । मेरे समझाने पर वो शख़्स चले गए तक़रीबन १ माह के बाद तश्रीफ़ लाए कहने लगे: मैं ने अपनी बीवी के अींदर अच्छी ख़ासी तब्दीली महसस ू की है उस के रवय्ये में, www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari
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लमज़ाज में और अींदाज़ में लचक पैदा हुई है। इस से पहले जो मैं मायूस हो चुका था। अब मेरी मायूसी आस में बदल गयी है मैं मुस्तक़ल मेहनत से और ध्यान से ये अमल कर रहा हूाँ। और मैं ने अपनी बीवी में इींक़लाबी तब्दीललयाीं महसस ू की हैं। अब उस ने घर सींभालना शरू ु कर हदया है और मेरे ऊपर तवज्जह दे ना घर की
बे तवज्जह शौहर का बीवी से मुहब्बत करना:
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ज़रूररयात पर तवज्जह दे ना शरू ु कर दी है।
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एक ख़ातून कहने लगीीं मेरे ख़ावन्द आमी ऑकफ़सर थे। ररटाइडफ़ हुए तो एक प्राइवेट स्कूल खोल ललया और कुछ अरसे के बाद इींकशाफ़् हुआ कक मेरे ख़ावन्द ने एक ख़ातून टीचर की तरफ़ अपनी इनायात की बाररश
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शरू ु कर दी है , लसश्ल्सला परु ाना हो गया ललहाज़ा उन के आपस में अच्छे ख़ासे रवाबबत हैं। इस की अमली शकल यूाँ भी महसूस हुई कक मेरे ख़ावन्द ने घर से तवज्जह आहहस्ता आहहस्ता कम करना शरू ु कर दी है
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बहुत परे शान हुई हत्ता कक ये लसश्ल्सला चलते चलते पोने तीन साल हो गए हैं। बावजद ू सम्झाने के अगर
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कोई बात ज़्यादा की जाए तो मेरे ख़ावन्द लड़ने मारने पर उतर आते हैं रोज़ रोज़ की तू तू मैं मैं, झगड़े और
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शोर शराबे से मैं थक गयी हूाँ। आख़ख़र इस का कोई हल बताएीं क्या ऐसा मुश्म्कन है कक मेरा ख़ावन्द उम्र रसीदह है श्ज़न्दगी के इस अींदाज़ को छोड़ दे क्योंकक मैं मायूस हो गयी हूाँ वो ख़ातून ये दास्तान सुनाते हुए
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मुसल्सल रो रही थी और चाँकू क उम्र रसीदह थी तो उस के सफ़ेद बाल मुझे परे शाीं ककये जा रहे थे मैं ने उस
ख़ातून को यही अमल यानन सूरह यासीन का ख़ास अमल बताया और ताकीद से सम्झाया कक आप इस अमल को ननहायत बाक़ाइदगी से और तवज्जह से पढ़ें , ख़ातून के इस अमल पढ़ने से अल्लाह तआला ने
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ननहायत करम नवाज़ी फ़माफ़ई और कुछ अरसा बाद अपने उस ख़ावन्द को ले कर आई वो ख़ावन्द अब इतना
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क़रीब आ चुका था कक मुझे कहने लगा कक आप कोई अच्छी सी दवाई मेरी बीवी के ललए बताएीं क्योंकक ये बहुत कम्ज़ोर हो गयी है। क़ाररईन! ककतनी बेशम ु ार दास्तानें हैं इस का अहाता नहीीं कर सका, मझ ु े यक़ीन है कक आप इन चींद वाक़्यात, मुशाहहदात, तजुबाफ़त से अींदाज़ा कर लें गे कक इस वज़ीफ़े की ककतनी बरकात हैं।
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वज़ीफ़े का तरीक़ा: अवल पाक साफ़ होना ज़रूरी है अमल के शरू ु करने से पहले कम अज़ कम कुछ रक़म ख़ैरात कर दें किर रोज़ाना ककसी वक़्त यानन कोई ऐसा वक़्त हो श्जस में यक्सूई से ये अमल कर सकें कोई बल ु ाए नहीीं और ना ही ककसी से कोई बात करें ता कक यक्सई ू बरक़रार रहे सरू ह यासीन पढ़ें पढ़ने से पहले कम अज़ कम ग्यारह बार दरूद शरीफ़ इब्राहीमी पढ़ें किर सूरह यासीन पढ़ें जब मुबीन ( ) مبینपर पोहींचे तो हर मब ु ीन पर सरू ह वज़्ज़ह ु ा २१ बार पढ़ें और पढ़ते हुए अपने मक़्सद का तसव्वरु रखें इस तरह हर मब ु ीन पर
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पढ़ें कुल सात मुबीन हैं। जब सूरह ख़त्म हो तो तसव्वुर ही तसव्वुर में श्जस से कशीदगी हो उस के हदल पर िाँू क दें और किर चीनी पर भी िाँू क दें ये चीनी उस को ख़खलाएीं और रोज़ाना उसी चीनी पर ये अमल पढ़ते रहें
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और उस को इस्तेमाल करते रहें यानन दध ू या ककसी चीज़ में घोल कर पपलाते रहें अगर चीनी नहीीं पपला
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सकते तो लसफ़फ़ तसव्वुर ही में िाँू क मार दें और ये अमल उस मतलूब की रूह को बख़्श दें । इस तरह रोज़ाना
एक बार सूरह यासीन हर मुबीन के अमल के साथ पढ़ें अगर वक़्त मुयस्सर हो तो सुबह व शाम भी ये अमल
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पढ़ सकते हैं। वरना हदन में एक बार तो ज़रूर पढ़ें ।
क़ाररईन! अमल की क़ुबूललयत के ललए ररज़्क़ हलाल, लसद्कक़ मक़ाल और तक़्वा की ज़रूर कोलशश करें । इस
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तो गुनाह और शदीद नुक़्सान के ख़ुद ही श्ज़म्मेदार होंगे।
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अमल की तमाम क़ाररईन को जाइज़ मक़्सद के ललए इजाज़त है अगर ककसी नाजाइज़ काम के ललए ककया
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सरू ह यासीन के िीगर ख़ास अमदलयात (इन तमाम वज़ाइफ़् की इजाज़त आम है)
बुज़ुिि ल्जन्न से र्मला ख़ास अमल: एक बुज़ुगफ़ बफ़ाफ़नी इलाक़े के एक ग़ार में साल्हा साल इबादत में मकग़ल ू रहे , एक बूढ़े श्जन्न को उन बुज़ुगफ़ के बारे में इल्म हुआ तो उस श्जन्न ने उन बुज़ुगफ़ की ख़ख़दमत में आ
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कर रहना शरू ु कर हदया, उन बज़ ु ग ु फ़ को दस्त ए ग़ैब हालसल था श्जस की वजह से ये बज़ ु ग ु फ़ ऐसे िल और मेवा
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जात उस ग़ार में नोश फ़माफ़ते श्जन का दन्ु या में ककसी जगा नाम व ननशान भी नहीीं होता था। बूढ़े श्जन्न ने
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जब ये मींज़र दे खा तो उन बज़ ु ग ु फ़ से पछ ू ा: हज़रत मैं कई हदन से आप की ख़ख़दमत में रह रहा हूाँ मैं ने आप के
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पास वो नेअमतें खाईं हैं श्जन का दन्ु या में कहीीं नाम व ननशान भी नहीीं है, तो वो बुज़ुगफ़ फ़माफ़ने लगे कक आज मैं इस राज़ से पदाफ़ उठाता हूाँ।
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हर ज़रूरत को पूरी कर दे ता है।
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दरअसल बात ये है कक मैं रोज़ाना इक्यासी (८१) मतफ़बा सूरह यासीन पढ़ता हूाँ इस की वजह से अल्लाह मेरी
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फ़ायदा: हर कक़स्म की दन्ु यावी व उख़पवफ़ हाजात के ललए और अपनी दआ ु ओीं को सो फ़ीसद क़ुबूल कराने
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के ललए रोज़ाना इक्यासी मतफ़बा ४० रोज़ सूरह यासीन पढ़ना ननहायत ही मुजरफ़ब है। गचल्ला पूरा हो जाने के बाद अगर आप तीन मतफ़बा या कम अज़ कम एक मतफ़बा भी अपनी श्ज़न्दगी का मामल ू रखें तो ख़ैर व बरकत हमेशा आप की दोस्त रहे गी।
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क़ज़ाए हाजात: हर कक़स्म की दन्ु यावी व उख़पवफ़ हाजात के ललए रोज़ाना ८१ मतफ़बा सूरह यासीन का तीन
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रोज़ मत ु वातर पढ़ना ननहायत मज ु रफ़ब है।
बांझपन दरू करने और ववलादत में आसानी का अमल: बाींझपन दरू करने और पवलादत में आसानी, दध ू में ज़्यादती, मफ़्रूर को बुलाने, हाफ़्ज़े की कमी और क़ैद से ननजात के ललए सूरह यासीन का ८१ मतफ़बा वाला अमल ननहायत ही मुजरफ़ब है।
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बारान ए रहमत के र्लए: ख़ुकक साली से ननजात और बारान ए रहमत तलब करने के ललए बा वज़ू सात रोज़ सूरह यासीन इक्यासी बार पढ़ें इन शा अल्लाह बारान ए रहमत ख़ूब बरसेगी और फ़स्ल और खेती ख़ूब सेराब होगी। लशफ़ा ए अमराज़ के ललए: ऐसे अमराज़ से जो लाइलाज और मज़ ू ी हों और ककसी भी तरह हल ना होते हों, मरीज़ इलाज करवा करवा कर थक गए हों उन थके हुए मरीज़ों के ललए ये अमल ननहायत ही मुजरफ़ब है।
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श्जस ने भी ककया इन शा अल्लाह वो मायस ू नहीीं हुआ। अमल दजफ़ ज़ेल है :
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सूरह यासीन एक बार पढ़ें और जब आयत "सलामुन ् क़ौल-श्म्म-रफ़श्ब्ब-र्-रहीलमन ्" ( )سلم قوالً من رب رحیمपर पोहींचें तो इस आयत को एक हज़ार चार सो उनहत्तर १४६९ बार पढ़ कर सूरत पूरी करें और अल्लाह से
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अपनी बीमारी को ज़ेहन में रख कर ख़ूब हदल की कैकफ़य्यात के साथ दआ ु माींगें, ७ रोज़ इस अमल को जारी
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रखें । इन शा अल्लाह आप की दआ ु ज़रूर क़ुबूल होगी और अल्लाह आप को लशफ़ायाब करे गा।
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डडलीवरी ननज़ाम में आसानी और औलाद नरीना का अमल: हमल के तीसरे महीने में जब दस हदन बाक़ी रह
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जाएीं तो (बेटे के ख़्वाहहष्मन्द) दो रकअत नमाज़ तोबा पढ़ कर सात मतफ़बा सूरह यासीन और पवलादत में
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सहूलत के ललए तीन मतफ़बा "सरू ह यासीन" अवल व आख़ख़र तीन मतफ़बा दरूद शरीफ़ पढ़ने के बाद उतनी ही
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दे र दआ ु माींगें श्जतनी दे र इस अमल यानन सूरह यासीन पढ़ने में लगी है। और चालीस हदन मुस्तक़ल ये अमल जारी रखें । और अगर चार महीने का हमल गज़ ु र जाने के बाद तीन मतफ़बा सरू ह यासीन वाले अमल
को पाींच ननय्यतों के साथ जारी रखा जाए तो अल्लाह के फ़ज़्ल व करम से आप को ये पाींच इनामात हालसल
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होंगे: (१) पहली ननय्यत ये की जाए कक या अल्लाह! बच्चे की पवलादत को आसान फ़माफ़ दे तो अल्लाह के फ़ज़्ल से बच्चा की बग़ैर ऑपरे शन के बहुत आकफ़यत के साथ पवलादत हो। (२) दस ू री ननय्यत ये की जाए या
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अल्लाह! इस बच्चे को बद बख़्ती से बचा तो अल्लाह के करम और इनायत से बच्चा ननहायत ही सईद व कामरान होगा। (३) तीसरी ननय्यत ये की जाए या अल्लाह! इस बच्चे को फ़क़्र और तींगदस्ती से बचा तो
अल्लाह की रहमत से ये बच्चा सारी श्ज़न्दगी ग़नी और सख़ी रहे गा। (४) चौथी ननय्यत ये की जाए या अल्लाह! इस बच्चे को वाललदै न का फ़माांबदाफ़र बना तो महज़ अल्लाह की अता से ये बच्चा अपने वाललदै न की आाँखों की ठीं डक और राहत का सबब बनेगा। (५) पाींचवीीं और सब से www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari
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एहम ये ननय्यत की जाए या अल्लाह! इसका ख़ात्मा ईमान पर फ़माफ़ तो अल्लाह की शान ए करीमी की बदौलत ये बच्चा इस दन्ु या से हालत ए ईमान में ही रुख़्सत होगा। गोया इस अमल की बरकत से दन्ु या और आख़ख़रत की नेअमतें वाललदै न अपने बच्चे के हक़ में क़ुबूल करवा लेते हैं। ककसी भी नामश्ु म्कन को मश्ु म्कन करने और तींगी में राहत के ललए ये अमल इींतहाई ज़ोद् असर है। (इन शा अल्लाह अल ्अज़ीज़)
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नोि: जो मदफ़ व ख़वातीन दे ख कर क़ुरआन पाक ना पढ़ सकते हों तो वो सात सो मतफ़बा लसफ़फ़ लफ़्ज़ "यासीन"
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हालसल होंगी।
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( )یسینऔर अवल व आख़ख़र सात दफ़ा दरूद शरीफ़ पढ़ लें तो इन ् शा अल्लाह उन को भी यही बरकात
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माली रुकावि दरू करने के र्लए: ऐसे अफ़राद जो दर दर की ठोकरें खा कर तींग आ गए हों लेककन नोकरी ना
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लमलती हो, घर में शदीद तींगदस्ती हो, क़ज़फ़ वाले तींग करते हों, इींसान श्ज़न्दगी से मायूस हो गया हो, हर
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वक़्त खाने के लाले पड़े हों, ऐसे मायूस और लाचार तींगदस्त अफ़राद के ललए बहुत ही लाजवाब अमल है।
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इन शा अल्लाह ये अमल अपने पढ़ने वालों को मायूस नहीीं करता और ग़ैब से मदद लमलती है। ऐसी ऐसी
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जगा से ररज़्क़ के मवाकक़अ लमलते हैं कक इींसान ख़ुद हैरान हो जाता है अमल दजफ़ ज़ेल है:
सूरह यासीन में हर "मुबीन" पर तीन बार "सूरह मुज़श्म्मल शरीफ़" ग्यारह, इक्कीस या इक्तालीस हदन पढ़ें ।
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हर बींहदश खुल जाएगी और रुकावट दरू हो जाएगी।
मल्ु श्कलात व बर्लय्यात दरू करने के र्लए: मश्ु ककलात व तकालीफ़ आफ़ात व बललय्यात से ननजात और
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एहम मक़ालसद में काम्याबी के ललए सूरह यासीन बावज़ू इस तरह पढ़ें कक हर मुबीन पर "या अल्लाहु या ُ
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ُ ) ََّیاग्यारह दफ़ा पढ़ें और जब कल्मा "कन ्" (ن रह्मानु या रहीम"ु (ٌہّٰلل ٌََّی َّر ْ ْٰح ُن ٌََّی ِرح ِْی ُم ٌ ْ " ) کइज़ा अराद शैअन ् अींु ُ َّ ُ
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य्यक़ूल लहू कुन ् फ़यकूनु" (’ ) اِذاٌا َّر َّادٌش ْی ائاٌا ْنٌیق ْولٌلہ‘ٌک ْنٌف َّیک ْو ُ ٌنपढ़ें तो "या अल्लाहु या ग़ननयु या मुश्ननयु या ُ َّ
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ُ ِ ِنٌَی ٌُمغ ُ ِ ) َیہّٰللاٌَُیغग्यारह मतफ़बा पढ़ कर ख़त्म कर दें इन शा अल्लाह तमाम तकालीफ़ का फ़त्ताहु" ( اح ٌ ِنٌَیفت
अज़ाला हो जाएगा।
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मोततया का ख़ात्मा: बावज़ू एक बार सूरह यासीन पढ़ कर सुरमा पर दम कर के आाँखों में रोज़ाना बबला नाग़ा लगाया करें इन शा अल्लाह मोनतया दरू हो जाएगा। क़ज़ि की अदाएिी: सूरह यासीन रोज़ाना बावज़ू बाद नमाज़ इशा सात बार पढ़ें ये अमल क़ज़फ़ की अदाएगी के ललए अक्सीर है। इन शा अल्लाह जल्द ही क़ज़फ़ से ननजात हालसल होगी। तनस्यान का ख़ात्मा: अक़फ़ गल ु ाब में ज़ाफ़रान हल कर के इस से सरू ह यासीन बावज़ू हो कर ककसी काग़ज़ पर
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ललखें और अक़फ़ गुलाब में हल कर के इक्तालीस हदन पीएीं। इन शा अल्लाह भूल चूक और ननस्यान के मज़फ़ से
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ननजात लमल जाएगी। नोट: ज़ाफ़रान मय ु स्सर ना हो तो ज़दाफ़ का रीं ग का भी इस्तेमाल ककया जा सकता है।
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दध ू में इज़ाफ़ा: श्जस औरत का दध ू ख़त्म हो जाए और बच्चा भूका रहता हो तो सूरह यासीन बावज़ू ककसी
चीनी की प्लेट पर या काग़ज़ पर ज़ाफ़रान या ज़दे के रीं ग से ललखें और पानी में घोल कर औरत को पपलाएीं
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इन शा अल्लाह औरत का दध ू ज़्यादा और बच्चा सेर होगा।
नज़र बद से हहफ़ाज़त: सूरह यासीन ललख कर पास रखने से नज़र बद बीमाररयों और हर कक़स्म के डर व
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ख़ौफ़ से हहफ़ाज़त रहती है।
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आपस के लड़ाई झिड़ों से तनजात: ख़ान्दान में दकु मनी, आपस में ककसी बात पर ना चाक़ी हो जाए और
नाराज़गी हो तो बादाम की चन्द गररयाीं लीश्जए। अवल आख़ख़र तीन बार दरूद इब्राहीमी पहढ़ए और सूरह
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जाएगी।
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यासीन सात बार पढ़ कर बादामों पर दम कीश्जए। इस के बाद फ़रीक़ैन को ख़खला दें , आपस में सल ु ह हो
हर क़क़स्म की आफ़ात का ख़ात्मा: पहली रात का चााँद दे ख कर अवल व आख़ख़र दरूद पाक और एक बार पूरी
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यासीन पहढ़ए। किर अल्लाह तआला से उस की रहमत के तुफ़ैल आफ़ात से बचाओ के ललए गगड़गगड़ा कर दआ ु कीश्जए अल्लाह तआला रहम फ़माफ़एगा।
बवासीर का ख़ात्मा: बरस हा बरस के ख़ात्मा बवासीर के ललए छल्ला मुस्तअमल है। चाींदी का छल्ला ले कर प्याले में थोड़ा सा पानी लीश्जए। इस पर सात बार सूरह यासीन पढ़ कर दम कीश्जए और अवल आख़ख़र ३ बार दरूद शरीफ़ पहढ़ए। किर छल्ला आग पर गरम कर के उस पानी में बझ ु ा दें । छल्ला किर सीधे हाथ में www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari
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पहन लीश्जए। मज़फ़ की लशदत में कमी आ जाएगी। अगर यही सूरत पढ़ कर दआ ु की जाए तो लशफ़ा लमलती है। हर मज़फ़ के ललए इस का पढ़ना बाइस लशफ़ा है। रोज़ाना मामूल बना लीश्जए अल्लाह लशफ़ा दे गा। रोज़िार की परे शानी के र्लए ख़ास उल ् ख़ास अमल: अगर कोई शख़्स कारोबार की तरफ़ से सख़्त परे शान व मह् ु ताज हो और कोई सरू त रोज़गार की उस को हालसल ना हो तो उस को चाहहए कक सरू त यासीन का ये अमल करे इन शा अल्लाह तआला ज़रूर मदद लमलेगी और ये सूरत यासीन का अमल बे चैनी के वक़्त
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अख़्त्यार करना बहुत मुजरफ़ब है। बुज़ुगों के मुजरफ़बात में से अजीब मुजरफ़ब अमल है। वो ये है कक पहले ग्यारह
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मतफ़बा दरूद शरीफ़ किर सात मतफ़बा "सुब्हानल्लाह्"
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ُْ َّ َّبُس ( انٌہّٰللا ٌ) और सात मतफ़बा "अस्तश्नफ़रुल्लाह्" ( ) ا ْستغ ِف ُرٌہّٰللاकिर "अऊज़ु बबल्लाहह लमन-कशैतानन-रफ़जीलम َّ
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َّ َّ َّ ٰ ْ ٌالر َّ ٌِ )اعُ ْوذٌِبہّٰللपढ़ कर सूरत यासीन को शरू ِ ِِمٌالش ْی ٰط ِنٌالر ِج ْی ِمٌ ِب ْس ِمٌہّٰللا ٌ ِ ْح ِنٌالرح ِْی बबश्स्मल्लाहह-र्-रह्मानन-र्-रहीलम (م ु ِ
करें । जब पहली "मब ु ीन" ( ) مبنيपर पोहींचे तो लफ़्ज़ "मब ु ीन" को सात मतफ़बा पढ़े "मब ु ीन, मब ु ीन, मब ु ीन,
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मुबीन, मुबीन, मुबीन, मुबीन" किर "बबश्स्मल्लाह" पढ़ कर शरू ु सूरत से पढ़े जब सूरत यासीन में दस ू री
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"मुबीन" पर आए तो किर "मुबीन" को सात मतफ़बा कहे "मुबीन, मुबीन, मुबीन, मुबीन, मुबीन, मुबीन,
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मब ु ीन" किर "बबश्स्मल्लाह" पढ़ कर शरू ु सरू त से पढ़े जब तीसरी "मब ु ीन" आए। हर लफ़्ज़ "मब ु ीन" को सात मतफ़बा पहले की तरह से कहे "बबश्स्मल्लाह" पढ़ कर शरू ु सूरत से पढ़े । किर जब चौथी "मुबीन" आए तो सात
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मतफ़बा मब ु ीन कह कर "बबश्स्मल्लाह" पढ़ कर शरू ु से सरू त पढ़े । पहले ही की तरह से इसी तरह परू ी सरू त में
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"सब्ु हानल्लाह"
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सात मतफ़बा "मुबीन" आएींगी इसी तरह मुकम्मल सूरत पढ़े किर सूरत ख़त्म कर के सात मतफ़बा
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ُْ َّ َّبُس ٌ ) सात मतफ़बा "अस्तश्नफ़रुल्लाह" ( ) ا ْستغ ِف ُرٌہّٰللاऔर ग्यारह मतफ़बा दरूद शरीफ़ पढ़ कर अपनी ( انٌہّٰللا
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तमाम हाजतों के ललए दआ ु करे और जो भी चीज़ चाहता है। और इस अमल को चालीस हदन करे नाग़ा ककसी
हदन भी ना करे । इन शा अल्लाह तआला कहीीं ना कहीीं तरक़्क़ी रोज़गार की सूरत होगी। (मुजरफ़बात याक़ूबी) बल्चचयों की शादी में रुकावि का यक़ीनी हल: नोजवान बश्च्चयों की एक वाललदा ने बताया "मेरी बश्च्चयों की शादी में रुकावट थी। ररकते आते और किर ख़त्म हो जाते। एक वाकक़फ़ कार ने बताया कक सरू ह यासीन की आयत नींबर ३६ के मआने समझ कर आयत का पवदफ़ कीश्जए, शादी में रुकावट दरू हो जाएगी। मैं ने ऐसा www.ubqari.org facebook.com/ubqari twitter.com/ubqari
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ही ककया। सूरह यासीन की आयत नींबर ३६ की नतलावत बार बार करने लगी। आख़ख़र में पूरी सूरह पढ़ कर दआ ु कर लेती। अल्लाह तआला ने किर बश्च्चयों के नसीब खोल हदए और उन की शाहदयाीं बहुत अच्छी जगा हो गईं। "सब्ु हानल्लज़ी ख़लक़-ल ्अज़्वाज कुल्लहा लमम्मा तींबु बत-ु ल ्अज़ुफ़ व लमन ् अन्फ़ुलसहहम ् व लमम्मा ला यअलमून" َّ
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ُْٰ ) ُ بُس َّنٌالذ ْی ٌَّخل َّقٌاًلز َّواجٌک َّھا ٌِمَّات ْنب ْ ِ تٌاًل ْرض ٌَّو (ِمٌانف ِس ِھ ْم ٌَّو ِمَّاًٌلٌیَّ ْعل ُم ْو َّ ٌن ِ ِ
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सूरह यासीन से कश्फ़ुल्सुदरू : हाकफ़ज़ जावेद इक़्बाल यूननवलसफ़टी लॉ कॉलेज में मोहतरम जश्स्टस लमयाीं
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नज़ीर अख़्तर के शागगदफ़ थे। वो रोज़ाना ७० बार सूरह यासीन पढ़ते थे। आख़ख़रकार एक हदन ऐसा आया कक श्जस पर नज़र डालते, उस के क़ल्ब की कैकफ़य्यत मालम ू कर लेते। ये सूरह यासीन का एअजाज़ था। ये
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है।
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सच्चा वाक़्या इस मुबारक सूरह के हवाले से मोहतरम लमयाीं नज़ीर अख़्तर जश्स्टस साहब ने बयान ककया
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मरहूमीन की ख़्वाब में ज़्यारत के र्लए: जो शख़्स तीन हदन एक ही ननशस्त में इस सरू ह मब ु ारका को
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रोज़ाना सात मतफ़बा पढ़ कर अपने मरहूम वाललदै न को बख़्शे तो रात को उन की ख़्वाब में ज़्यारत करे गा।
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अफ़्सर से काम कराने के र्लए: अगर कोई अफ़्सर या हाककम सख़्त लमज़ाज रखता हो और लोग उस की
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सख़्त लमज़ाजी से परे शान हों या ककसी फ़दफ़ को उस के लमज़ाज की सख़्ती से ग़लत फ़ैस्ले का अींदेशा हो तो इशा की नमाज़ के बाद बावज़ू हालत में पच्चीस मतफ़बा सूरह यासीन की नतलावत करें । अवल व आख़ख़र ग्यारह ग्यारह मतफ़बा दरूद शरीफ़ पढ़ें और अपने ऊपर दम कर लें और एक गगलास पानी पर दम कर के इस
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को उसी वक़्त पी लें और कुछ पानी उठा कर रख दें जब हाककम के पास जाएीं तो वो पानी अपने चेहरे पर मल
मज्बूर होगा।
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लें इन शा अल्लाह हाककम दे खते ही मेहरबान हो जाएगा और इन शा अल्लाह सही व जाइज़ फ़ैस्ला करने पर
ईमान पर ख़ात्मा के र्लए: हर इींसान को एक ना एक हदन मौत आनी है मगर सकाफ़र दो आलम ﷺका इशाफ़द ग्रामी है कक बुरी मौत से पनाह माींगनी चाहहए बुरी मौत से महफ़ूज़ रहने के ललए रोज़ाना एक मतफ़बा सरू ह यासीन की नतलावत करे और बाद नमाज़ मग़ररब दो नश्फ़्फ़ल इस तरह अदा करें कक हर रकअत में
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सूरह फ़ानतहा के बाद सूरह यासीन की तीन आयात पढ़ ललया करें "यासीन वल्क़ुआफ़नन-ल ्-हकीम ् इन्नक ललमन-ल ्-मुसल फ़ ीन ् अला लसरानत-म्मुस्तक़ीम ्" ( ) ٰیسنٌوالقرانٌاحلکیمٌانکٌلمنٌالمرسلنيٌیلعٌرصاطٌمستقیمइन शा अल्लाह इस अमल की बरकत से पानी में डूबने, आग में जलने, हादसे या ककसी और कक़स्म की नागगहानन और बरु ी मौत से हहफ़ाज़त लमलेगी। िुम्शद ु ह शख़्स के र्लए: भागे हुए शख़्स को वापस बुलाने के ललए ये अमल करें कक सूरह यासीन ककसी अाँधेरे
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कमरे में जहााँ बराए नाम रौशनी हो। बैठ कर सात मतफ़बा पढ़ें और ककसी बतफ़न में पानी ले कर रख लें अवल व
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आख़ख़र ग्यारह मतफ़बा दरूद शरीफ़ पढ़ें । जब सूरह यासीन मुकम्मल कर लें तो पानी पर दम कर दें इसी तरह सातवीीं मतफ़बा पानी पर दम करें , दरूद शरीफ़ पहली बार शरू ु में और सातवीीं बार आख़ख़र में पढ़ें किर इस
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पानी को मकान में चारों तरफ़ नछड़क दें पहले मगश्रक़ की तरफ़ किर मग़ररब की तरफ़ इस के बाद शम ु ाल व जन ु ब ू की तरफ़ ये अमल लगातार तीन हदन तक करना है और पानी नछड़कने के बाद दो रकअत नश्फ़्फ़ल
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पढ़ कर दआ ु करनी है कक फ़लाीं बबन फ़लाीं घर वापस आ जाए, इन शा अल्लाह भागा हुआ वापस आ जाएगा।
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आदत बद छुड़ाने के ललए: अगर कोई शख़्स बुरे फ़अल में मुब्तला हो तो उस के ललए ये अमल करें ककसी
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पुरानी क़ब्र की थोड़ी सी लमट्टी उठा कर लाएीं और उस पर बारह मतफ़बा बावज़ू हो कर सूरह यासीन पढ़ कर दम
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कर दें और ककसी िल्दार दरख़्त की जड़ में दफ़न कर दें और एक काग़ज़ पर ललख कर फ़लाीं इब्न फ़लाीं बुराइयों से बाज़ आ जाए उस को भी इस लमट्टी के साथ दफ़न करें इन शा अल्लाह चन्द हदनों के बाद वो
सुधार की तरफ़ चल पड़ेगा।
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सख़्त घरे लू मुश्ककल से ननकलने के ललए: अगर कोई शख़्स या कोई घराना अचानक ककसी मुश्ककल या
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मुसीबत का लशकार हो जाए तो घर के चन्द अफ़राद एक मजललस में बैठें और एक ही मजललस में इक्यासी मतफ़बा सरू ह यासीन की नतलावत करें अवल व आख़ख़र वो शख़्स जो दआ ु कराएगा ग्यारह मतफ़बा दरूद शरीफ़ पढ़े इस के बाद इज्तमाई दआ ु करें और मुश्ककल से ननजात हालसल करने के ललए रब के आगे दामन िैलाएीं इन शा अल्लाह दआ ु क़ुबल ू होगी और मश्ु ककल से ननजात लमल जाएगी। सात हदन ये अमल जारी रखें ।
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"सन्ु नत" हर परेशानी से दनकलने का आसान रास्ता मस्नून श्ज़न्दगी सो फ़ीसद हर परे शानी से ननकलने का रास्ता है (१) सुन्नत पर पाबन्दी से अमल करने वाला सो शहीदों का सवाब पाएगा। (मोता इमाम माललक)
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(२) श्जस ने सुन्नत को थाम ललया वो ज़रूर जन्नत में जाएगा। (कन्ज़ुल-आमाल)
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(३) सन् ु नत की हहफ़ाज़त करने वाले को चार इनामात लमलते हैं (१) नेक लोगों के हदलों में उस की मह ु ब्बत
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डाल दी जाती है (२) गुनाहगारों के हदलों में हैबत डाल दी जाती है (३) ररज़्क़ वसीअ कर हदया जाता है (४) दीन
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में पख़् ु तगग हालसल होती है। (लशरअत-अल-इस्लाम)
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जो रह गया वो ग़क़फ़ हो गया। (शम ु ाइल)
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(४) सुन्नत की पैरवी हज़रत नूह ہیلعاالسلمकी ककती की तरह हैं जो उस में सवार हुआ उस ने ननजात पाई और
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और परे शानी को टलवाने का ननहायत ही आसान ज़रीया है।
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आज के बाद इस पाकीज़ह श्ज़न्दगी को ख़ूब सीखने का एह्त्माम कीश्जए ये श्ज़न्दगी हम पर आई हर बला
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