karm ka rahasya

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कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी

कम का गढ़ ू रह य साद पिु तका वामी शंकरान द

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कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी

वामी शंकरान द – एक प रचय

बाबाजी (परम पू य वामी शंकरान द जी) "वरले संत थे। "पतामह सदन, 'च मय (मशन, मंधना, कानपूर को बाबाजी ने अपना तपोभू(म बनाया था। बाबाजी का शर-र आज हमारे साथ नह-ं है 0क तु आज भी उनके 2या3यान उस थान पर गूंजते है । 28 अ6टूबर सन ् 1986 म< परम पू य गु=दे व वामी 'च मयान द जी ने उ ह< सं यास द->ा द- ओर कुछ (श>ा भी द-। " तुBहारा सBब ध Cंग ृ ेर- मठ से है । तुBहारा (भ>ा मFं है "(भ>ां दे Gह" । पाँच घरJ से माँगने का "वधान है । आजकल एक ह- घर से (भ>ा (मल सकती है , 0क तु इसका ताLपय यह- है 0क कह-ं 0कसी व तु या 2यMN म< आसMN न हो। 0कसी अ य >ेF म< भी तुम " नारायण ह र'' कहकर (भ>ा माँग सकते हो।'' उ हJने परम पू य गु=दे व के कई QंथJ का Gहंद- अनुवाद 0कया । वेदांत के कई Qंथो पर 2या3या भी कR । उन कई Qंथो म< सबसे मख उनकR पंचदशी Q थ पर Gहंद- म< ु "व तत ृ 2या3या है । उ हJने रामच रतमानस बालकाTड कR भी 2या3या कR है िजसके Vारा उ हJने वेदांत के (सWांतJ का दश न करा कर एक अXत दल ु भ अनुभव कराया है । CीमYगवZीता पर उ हJने 250 घंटे का "व तत वचन 0कया है । पंचदशी और ृ रामच रतमानस बालकाTड पर 'च मय (मशन Vारा पु तक का(शत कR गयी है 0क तु CीमYगवZीता पर ऍम पी ]ी उपल^ध है । आज उनकR कई पु तक और ऍम पी ]ी वचन वेबसाइट पर Xनशु_क उपल^ध है । साधक इनका लाभ उठा सकते है । कृपया वचन / पु तक डाउनलोड हे तु यहाँ जाये www.vedantijeevan.com/downloads.html । पु तक< पढ़ना है तो यहाँ जाये

http://issuu.com/vedantijeevan ।

साद पुि तका एक "वषय पर छोट- सी पुि तका होती है जो 'च मय (मशन के bान यbJ म< Xनशु_क "वत रत होती है । वैसे तो “कम कम का गूढ़ रह य रह य” य छोट- सी साद पुि तका है 0क तु वामी जी ने इसम< कम "वषय के ऊपर सारे Qंथो से मोती चन ु कर अपने अनुभव के सत ू म< "परोया है ।

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कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी

कम का गूढ़ रह य

सुख सभी मनुdय चाहते हe, सुर>ा और वतंFता भी चाहते हe। यह हम सब कR वाभा"वक व"ृ g है । हम यह सब 6यJ चाहते है ? ऐसा i करना Xनरथ क है । यGद हम सभी सख ु ी, सरु j>त और वतंF नह- है तौ हमे Xनlय ह- यह (सGV ाm करनी चाGहए। उसी म< हमारे जीवन कR कृताथ ता और ध यता है । इस(लए संसार म< सभी लोग उसको खोजने और पाने मे लग< हe। माता-"पता अपने पुFJ को अoछे से अoछे "वpालयJ म< अ'धक से अ'धक (श>ा Gदलाते हe और धन-सBप"g तथा प रवार को सख ु दायी मानकर उसके संQह का माग Gदखाते हe।बालक कुछ बडे होते ह- समझने लगत< है 0क हम< अ'धक धन अिज त करने के (लए "वr"वpालय कR उoच (श>ा ाm कर कोई 2यवसाय करना चाGहए। कोई डा6टर बनता है , कोई वकRल, कोई इ जीXनयर और कोई ऐसा ह- अ य 2यवसाय चन ु ता है । 2यवसाXयक (श>ा दे ने के (लए अनेक "वpालय हe। उनकR (श>ा पूर- कर वे अपने 2यवसाय म< लगते हe और अ'धक से अ'धक घन अिज त करने कR होड़ म< पड़ जाते हe। उसी समय उनका "ववाह होता है और प रवार बन चलता है । बालकt कR यह (श>ा भौXतक या लौ0कक (श>ा है और धनौपाज न कर अपनी शार- रक आवuयकताओं और सु"वधाओं का जुटाना भी लौ0कक काय है । इस कार के जीवन म< 2यMN कR v"w अपने शार- रक सुख तक ह- सी(मत रहती है । शर-र भी पाँचभौXतक रचना है । इस(लए उसका समQ जीवन भौXतक समझा जाता है । संसार म< अ'धकांश लोग ऐसा ह- जीवन जीते हe। ले0कन हम "वचार कर< और xयान से दे ख< तो इस कार के जीवन को भी दो भागJ म< या दो कार के भेदJ म< बाँट सकते हe। एक को XनयंyFत भौXतक जीवन और दस ू रे को अXनयंyFत भौXतक जीवन कह सकते हe। अXनयंyFत रहने वाले 2यMN 0कसी कार का Xनयम न वीकार करते हe और न पालन करते हe। उनके (लए सरकार- कानून, समािजक मा यताय< या ाकृXतक "वधान कोई अथ नह-ं रखते। उनकR v"w म< वे कायरJ और दब J के (लए हe। वे अपने अहं और ु ल

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कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी अपने वाथ को सवzप र रखते हe। अपने अहं के स तोष के (लए और अपने सवाथ कR पXू त के (लए वे सब कुछ कर सकते हe। उनकR v"w इतनी संकु'चत होती है 0क वे अपने कम{ का प रणाम नह-ं समझ सकते। ारBभ म< ऐसे लोग भौXतक सBप नता बड़ी शी|ता से ाm करते Gदखाई दे ते हe, 6यJ0क वे }wाचार और दरु ाचार का माग अपनाते हe। छल-कपट या घोखाधड़ी से बहुत सBप"g एकF कR जा सकती है । yबना प रCम ाm इस कार कR सBप"g का योग दरु ाचार म< होना वाभा"वक है । वे वयं मघपान और 2य(भचार म< वत ृ होते हe और उनका प रवार भी ऐसी ह- काल- करतूत< करने लगता है । वे समझते हe 0क आज का जमाना ऐसा ह- है और यह- जीवन का सह- रा ता है । गीता के सोलहव< अxयाय म< ऐसे मनुdयJ का वभाव आसुर- कहा गया है , और उनकR वेoछाचार- जीवन शैल- का वण न "व तार से हुआ है । भगवान ् कहत< है 0क ये लोग अपने (म~या bान के कारण "वपर-त आचरण कर अपना ह- "वनाश करते हe। वे ई वर का अि तLव और शुभाशुभ कम{ के फल भोग कR अXनवाय ता नह-ं समझते। दBभ, मान और मद से युN वे लोग अपनी कलु"षत कामनाय< पू ्ण करने के (लए }w आचरण म< वत धनाGद पदाथ{ का संQह करते हe और अपने को ृ होते हe। वे अ याय पूवक धनवान ् तथा ऐ वय वान समझ कर घमTड Gदखाते हe। अपने कम{ के फल व प ऐसे लोग भय, 'च ता आGद मान(सक "वकारJ से Q त रहते हe और दःु ख पाते हe। उनकR यह मान(सक दशा ह- उनके (लए नरक बन जाती है । वे अपने आप को िजतना सुखी बनाने का यास करते है , उतने ह- दःु खी होते जाते हe। भगवान ् कहते हe 0क इसका एक माF कारण यह- है 0क वे शा J म< बताये हुए जीवन के सुरj>त राजमाग से भटक गये हe और दरु ाचरण के झांड़ो-झंखांड़ो म< फंस गये हe। वत त ते कामकारतः। यः शा "व'धमLु स ृ य व न स (स"Wमवा नोXत न सुखं न परां गXतम ्।। अथा त ् जो पुरष शा "व'ध को Lयाग कर अपनी इoछा से मनमाना आचरण करता है वह न (स"W को ाm होता है , न सुख पाता है और न उसे परम गXत (मलती है । जीवन जीने का शा सBमत माग Lयाग दे ने से मनुdय का अधःपतन होता है । इसमे कोई संशय नह-ं है ।रावण आGद असुरJ का जीवन इसी को मा णत करता है । ऐसे

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कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी लोगJ ने तपशचया के Vारा असीम शMNयाँ ाm कR, पर तु उनका द= ु योग कर वे "वनाश को ाm हुए।उ हJने अपनी भयंकर शMNयt से "वr भर को Gहला Gदया। उनके ़ ़ सामने बडे बडे महारथी धूल चाट गये।0क तु अ त मे उनका ऐसा "वनाश हुआ 0क उनका नाम लेने वाला भी कोई नह-ं बचा। वेoछाचार- 2यMNयJ के (लए आ यािLमक "वकास का माग ब द है । अ याLमपथ कR मु3य तीन मंिजल< है - सव थम, (स"W अथा त रजोगुण और तमोगुण से छुटकारा पाकर सLवगुण ाm करना और उसके फल व=प अपने मन को शा त तथा स तु(लत बना लेना। ऐसी अव था म< मनुdय अपने मन म< सख ु का अनुभव करता है । इस(लए दस ू र- मंिजल मान(सक सुख है । मन से शांत और सख ु ी रहने वाला पु=ष ह- परमाथ साधना के Vारा परम गXत ाm करने का अ'धकार- होता है । परम गXत अंXतम मंिजल है । वहाँ पहुँचकर साधक पण ा ाm कर लेता है । उसे XनLय शाि त और शाrत सख ू त ु ाm हो जाता है । उससे तXृ m, संतोष और कृLकृLयता का अनुभव होता है । अ यथा ‘न स (स"Wमवा नोXत न सुखं न परां गXतम ्’ –वह न (स"W को ाm होता है , न सुखपाता है और न उसे परम गXत (मलती है । ये तीनJ लाभ मनुdय ाm कर सकता है , 0क तु आसरु - वभाव का भौXतकवादमनुdय इसे जानता भी नह-ं, उ ह< ाm करने कR बात तो बहुत दरू कR है । इस(लए मनुdय को यGद थोड़ी सी समझ हो तो वह काम, ोध और लोभ के वश म< होकर पतनकार- }w कृLय न करे । उसे सह- सBमXत दे ते हुए भगवान ् कहते हe 0क वह अपने क_याण के (लए शा t का Cवण और अ ययन करे , और याय, नीXत तथा धम के माग पर चले। त माoछा ं माणं ते काया काय काय 2यवि थतौ। यवि थतौ। bाLवा शा "वधानोNं कम कतु (महाह (स।।

अथा त ् तुBहारे (लए कg 2य और अकg 2य कR 2यव था म< शा ह- माण है । शा का "वधान जानकर तB ु ह< अपने कम करने चाGहए। हमारे मु3य शा वेद, पुराण और इXतहास

हe। वेदJ को दो भाग म< "वभािजत

0कया गया है ,- कम -मीमांसा और bान-मीमांसा। कम -मीमांसा म< मनुdय के (लए कम

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कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी "वधान का Xन=पण 0कया गया है और bान-मीमांसा म< आLमा-अनाLमा का "ववेक कर bान का माग श त हुआ है । CीमYागवत आGद परु ाण< म< और रामायण तथा महाभारत इXतहास QंथJ म< भी कम -मीमांसा औऱ bान-मीमांसा का "व तार हुआ है । अ याLम पथ म< "वw होने के (लए इनम< से 0कसी Qंथ का आ य लेकर अपने कg 2य और अकg 2य को समझना आवuयक है । जैसे 0कसी याFा पर Xनकलने के पहले हम अपने ग त2य और वहाँ तक पहुँचने के (लए माग का शोध करते हe, उसी कार आLमदे व कR तीथ याFा ारBभ करने के पूव हम< इन शा J का सावधानी से अ ययन करना चाGहए। ल य, माग बीच म< आने वाले "वxन और "वxन के Xनवारण के उपायJ का जानना 0कसी भी याFा के (लए आवuयक और लाभदायक होता है । शा t कR रचना उन ऋ"षयJ ने कR है जो वयं अ याLम माग पर चले हe और ल य पर पहुँच कर पूण त का अनुभव 0कया है । उसी माग पर उनके बाद अब तक कR अनेक पीGढयाँ चलती आई है । जो लोग भी इस माग पर आये है , उ ह< Xनराशा नह-ं हुई। ़ इस(लए हम< भी इन शा J पर भरोसा रखकर इनके बताये माग पर Xनभ य चल सकते हe। भगवान ् शंकराचाय भी साधना पंचकम कR थम पंMN म< कहते हe – ‘वेदो XनLयमधीयतां तदGु दतं कम वनु ीयताम ् ‘ अथा त ् XनLय वेदJ का अ ययन कर< और उसमे बताये कम{ का अनु ान कर< , तदनुकूल आचरण कर< । शा तो केवल अ याLम-"वpा के मान'चF हe। उ ह< केवल दे ख लेने या पढ़ लेने से हम अपने ल य पर नह-ं पहुच सकते। हम< अपने मन म< vढ़ संक_प लेकर उस माग पर चलना होगा, हम< अपना अंतर-बा जीवन उसी कार ढालना होगा और XनLय Xत के >ण->ण 2यवहार म< तVत ् वत ना होगा। अनेक लोग शा पढ़ते, सन ु ते और जानते भी हe, 0क तु ऐसे पु=ष बहुत कम होते हe िजनम< उस कार का जीवन जीने का साहस, ढ़ संक_प और ल य कR ओर Xनरं तर आगे बढ़ते रहने का धैय बना रहता है । वेoछाचार छोडकर मनुdय एक वार शा ोN कम -"वधान वीकार कर लेता है , तो वह धम के माग पर आ जाता है । शा -सBमत आचरण ह- घम है। इसके "वपर-त वेoछाचार अधम है । इस(लए जो मनुdय शा म< वताये गये कम "वधान को जानता है , वह धम को भी जानता है । हमारे शा ो म< धम श^द का खूब योग हुआ है । यGद "व"वध संगJ म< आये इस श^द के अथ पर यान द< तो दे ख<गे इसका अथ वहुत 2यापक है । अ य भाषाओ म< इसके समतु_य श^द (मलना दल ु भ धम अंQेजी का ‘ रल-जन’ माF नह-ं है ।इस श^द कR उLपXत सं कृत कR ‘ध’ृ धातु से

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0क है । हुई


कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी है िजसका अथ है – ‘ घारण करना’ । अतः धम श^द का अथ हुआ ‘ िजसके Vारा कोई व तु पण प म< घारण कR हुई रहती है ।‘ “धारणात ् धम (मLयाहुः धम ण "वधत ू = ृ ाः जाः”धारण करने के कारण धम कहलाता है , और धम ने ह- जा को घारण कर रखा है । धम 0कसी व तु का गुण या ल>ण भी हो सकता है । 0कसी व तु का वह- धम है िजसके कारण उस व तु का व तुLव (सW होता है । उदाहराणाथ अि न का धम उdणता है और सय ू का धम काश

है । उdणता के yबना अि न का अि नLव और काश के yबना

सूय का सूयL व ह- (सW नह-ं होता। धम कR इस प रभाषा के अनुसार यGद हम मनुdय का धम जानना चाह< तो हम< मनुdय का वह गुण खोजना होगा जो पशुओं आGद म< अ यF न होकर मनुdय म< ह- हो। मनुdय का यह गुण “ सLय का अ वेषण करने वाल- बु"W” है । यGद मनुdय म< ऐसी बु"W नह-ं है तो वह धम "वह-न है । अब हमारे पास ‘धम ’ श^द कR कम से कम दो प रभाषय< हो गई- एक तो शा "वGहत आचरण अपनाना और दस ू रे "ववेक ब"ु W का "वकास कर सLय का अनवेdण करना। Gह द ू धम इन दोनJ अथ{ को अपने म< समाGहत 0कये है । पहले हम< शा ानुमोGदत कत 2य करने चाGहए और उसके फल व=प "ववेक बु"W उतप न होने पर सLय कR खोज करनी चाGहए। इतना कर लेने पर हम अपने धम कR र>ा कर लेग< ओर उसके बदले मे धम हमार- र>ा करे गा। हमारे उपर भय 'च ता आGद का आ मण न होने पाये गा। इस(लए धम कR तुलना ‘वम ‘ अथा त ढाल से कR जाती है । धम जीवन संQाम म< ढाल कR भाXतं हमार- र>ा करता है । अपने समझने के (लए धम को दो भागJ म< बॉटं सकते है -सामा य धम और वधम । वधम ह- "वशेष धम है । महाराज मनु ने अपने धम Qंथ मनु मXृ त म< धम का ऐसा ह- "वभाजन 0कआ है । गीता, रामायण आGद QंथJ म< भी उसे वीकार 0कया गया है । >मा दमो दया दानम,्​्, अलोभरLयाग एव च। आज वं चानसय च,, तीथा नुसरणं तथा।। ू ा च सLयं स तोषमाि त6यं, CWा चेि यXनQहः। यXनQहः। दे वता यच ता यच नं पज ा, मणानां "वशेषतः।। ू ा, अGहंसा सा " यवाGदLयं अपैशु यमक_क यमक_कता। ता। सामा(सक(ममं धम चातव ये वी मनुः।। ु T

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कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी >मा, दम अथा त इि य XनQह, दया, दान, अलोभ, Lयाग आज वद अथा त मन वाणी आGद कR सरलता, अनसय ू ा, तीथा नुसरण अथा त गु= एवं शा का अनुगमन या तीथ सेवन, सLय, संतोष, आि तकता, CWा, िजतेि यLव, दे वताओं का अच न, "वशेष =प से ा मणJ कR पूजा, अGहंसा, मधुर भाषण, अ"पशुनता तथा पाप रGहत होना – वायBभुव मनु ने चारJ वण{ के (लए ये समा य धम कहे हe। इन

अनेक

सामा य

धमz

म<

पाँच

म3 ु य

धम

हe-

अGहंसा

सLयम तेयं

मचया प रQहः-अGहंसा, सLय, चोर- न करना, मचय और अप रQह। योग शा म< इ ह-ं को यम कहते हe। अGहंसा सब से बड़ा धम है । इस(लए सब से पहले ाणी को कभी 0कसी कार का 6लेश न दे ना अGहंसा है । सLय वचन, सLयाचरण और सLय पर ह- आ'Cत रहना सLय धम है । मानस के अनुसार-“धम न दस ू र सLय समाना “। सLय म< ह- सBपूण धम Xत" त है । “ सLये सव Xत तम ् । “ इस(लए सLय पर अMडग रहने वाला पु=ष धम कR र>ा सब कार से कर लेता है । अGहंसा, अ तेय आGद अ य धम सLय के ह- दस ू रे =प है । अ तेय का अथ है चोर- न करना। चोर- से या बल पूबक दस ू रे का धन या सBपXत हरण न करना अ तेय है ।पाँच इि यौ के पाँच "वषय है ।उन "वषयJ के भोग म< संयम रखना मचय है । अपनी आवuयकता से अ'धक अ न-व आGद का संQह करना प रQह है । ऐसा करना अधम है । इस(लए अपने जीवन-धारण माF के (लए व तुओं का संQह कर< । यह अप रQह नामक धम है । इ न धम{ का पालन करने से 2यMN और समाज दोनJ का Gहत है और 2यMN का समाज के साथ तालमेल भी रहता है । सभी सामा य धम{ का पालन करने वाला 2यMN शर-र से Xनरोग और व थ रहता है तथा अपने मन को भी शा त और स तु(लत रख कर सख ु ी रह सकता है । उसकR ब"ु W इतनी "वक(सत हो सकती है 0क यह अपने वधम को पहचान कर और उसका आचरण कर आ यािLमक "वकास कR उoचतर सीGढ़यJ पर जा सकता है । वधम हर 2यMN का अपना धम है । उसे "वशेष धम भी कहा गया है । इसका Xनधा रण 2यMN के वण और आCम के आधार पर होता है । वण का म3 ु य आधार जीव कR अिज त कR हुई अपनी वासनाय< है । वासनाऔ के अनुसार ह- "व"वध कार के शर-र जीव को ाm होते हe।इस(लए शर-र के आधार पर भी वण Xनधा रत 0कया जाता है ।

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कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी

“वण “ का अथ है रं ग। योगशा म< तीन कार कR सLव, रज और तमोमयी वा नाओं के तीन रं ग माने गये हe।सLय का रं ग वेत, रजस ् का रN और तमस का कृdण है । सम त स"ृ w इन तीन गुणJ के (मCण से बनी है । उनके (मCण से चार रं ग या चार वण बन गए। मनुdय कR वासनाय< भी yFगण ु ाLमक है , 0क तु सब कR वासनाओं म< गुणJ के (मCण का अनुपात एक समान नह-ं है । 0कसी म< सLवगुण कR, 0कसी म< रजोगुण कR और 0कसी म< तमोगुण कR धानता दे खी जाती है । अ य दो गुण अ_प या यून होते हe। िजस 2यMN कR वासनाय< सLवगुण धान हो, रजोगुण अ_प हो और तमोगुण उससे भी यन ू हो, वह ा ण वण है । यGद 0कसी 2यMN म< रजोगुण कR धानता है , सLवगुण भी थोड़ा है , 0क तु तमोगुण यून माFा म< है , तो वह >yFय वण का है । रजोगुण कR ह- धानता रहने पर उसके साथ तमोगुण कR अ_पता तथा सLवगुण कR यूनता हुई, तो ऐसी बासना वाला मनुdय वैuय कहलाता है । चौथा "वक_प यह है 0क तमोगुण कR धानता के साथ रजोगुण कR अ_पता और स वगुण कR यूनता हो सकती है । ऐसी वासना वाला मनुdय शू है । इन चार वण{ के "वभाजन कR िजBमेदार- गीता म< भगवान ् अपने ऊपर लेते हe। वे कहते हe ।-“ चातुवT य मया सw ृ ं गुणकम "वभागशः” अथा त ् गुण और कम के "वभाग से चार वण{ का "वभाजन मेरे Vारा 0कया गया है । -“ गुणकम "वभागशः”

पद पर "वशेष

यान दे ना चाGहए। इसका ताLपय यह है 0क भगवान ् ने वयं ा ण आGद वण नहबनाये है , वरन ् ा णयJ के सLवाGद गुणJ कR धानता दे ख कर , उसके आधार पर "वभाजन कर Gदया। उ हJने यह काय मनुdय के क_याण के (लए 0कया।उसका उ ेuय "व(भ न कार के 2यMNयJ के कम का Xनधा रण करना था। "व(भ न वभाव, ='च और सामाथ के 2यMNयJ के (लए उ ह-ं के अनु=प कम करना चाGहए। उसे वे कुशलतापूवक कर सक<गे। गुणJ के आधार पर वण "वभाजन और वण के आघार पर कम "वभाजन साव भौ(मक एंव साव का(लक है । आज से दो हजार वष पूव यूनान म< लेटो ने भी समाज का ऐसा ह- "वभाजन 0कया था। उसने इन चारJ वणz के नाम Philospher, Warrior, Merchant , Slave रखे थे। आज भी सभी दे शJ म< इन चार वण{ का "वभाजन (मलता है । इस समय उ ह< रचनाLमक 'च तक, राजनीXतb, 2यापार- और C(मक कहते हe। समाज के स तुलन के (लए इन चारJ कार के मनुdयJ कR आवuयकता है । व थ सामािजक जीवन के (लए इन चारJ वण{ अथवा जाXतयJ कR आपस मे Xतयोगी या "वरोधी बन कर नह-ं, वरन ् पर पर सहयोगी बनकर रहना चाGहए। यह- उनका धम है ।एक वण दस ू रे का Page 9 of 20


कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी परू क होने के कारण आपस म< Vे षज य Xतयो'गता का कोई i ह- नह-ं होता है । 0फर भी समाज म< यह बात पw दे खी जा सकती है 0क वेतन-भोगी C(मक अपने XनयोNा 2यापार- से भयभीत होता है , 2यापार- वग राजनीXतbJ से आशं0कत रहता है और राजनीXतb भी साहसी तथा वतंF "वचार करने वाले 'च तकJ से भयकिBपत होता हe। मनुdय का वण "वभाजन और उनके कत 2य कम का "वभाजन कारा तर से वत मान मनोवैbाXनक भी वीकार करते हe।वे बालकJ कR मान(सक पर->ा लेकर उनकR ='च या Aptitude

का पता लगाते हe। यह मानो उनका वण है ।उसके आधार पर वे

बालक कR अगल- (श>ा और 2यवसाय का Xनधा रण करते हe। वह- उनका कत 2य माना जाता है । ाचीन काल म< लेटो का और वत मान काल म< मनोवैbाXनकJ का यह वग "वभाजन Xनता त भौXतक v"w से 0कया गया है । उसका उ ेuय समाज म< स तुलन ओर भौXतक सम"ृ W ह- लाना है । भारतीय वण "वभाजन से यह उ ेuय तो पूरा होता ह- है , 0क तु इसका एक महान उ ेuय आधािLमक भी है । जो 2यMN िजस वण का है , वह अपने Xनधा रत कg 2य का पालन करे तो उसका आचरण धा(म क हो जाता है । तमोगुणी मनुdय अपना कg 2य करने से तमोगुण से मुN होकर रजोगुणी ओर सLवगुण हो सकता है । रजोगुणी मनुdय भी अपने कत 2य का पालन कर रजस ् से छुटकारा पाकर सLवगुण धान बन जाता है । स वगुणी मनुdय अपना Xनयत कम करता हुआ तीनJ गण ु J से पार आLमा और परमाLमा को ाm कर सकता है । यह मनुdय का आ यािLमक "वकास है । भगवान ् Cीकृdण अजुन को इस(लए युW म< वg ृ करते हe। याय और धम कR र>ा के (लए युW करना अजन ु का कg 2य है । वह अपनी वासनाओं से >yFय है । अपनी रजोगुणी वासनाऔं का >य करने के (लए अपने सामने आये हुये यW ु कR कुशलता और वीरता से लडना चाGहए। ऐसा करने से उसका रजस घटे गा और सLवगुण कR व"ृ W होगी। ण के सLवगुणी वभाव के yबना वह अ तमुख ी होकर आLम-'च तन या ा म'च तन नह-ं कर सकता। इस कार हम दे खते हe 0क वधम का पालन करने से लौ0कक और पारमा'थ क दोनJ लाभ हe। धम पालन का जो "वधान >yFय के (लए है , वह- अ य वण{ के (लए भी है । वे सभी अपना कg 2य कम करते हुए तीन कार के लौ0कक लाभ ाm कर सकते हe, थम भौXतक सुख, दस ू रे कRXत और तीसरे वग । गीता के दस ू रे अ याय म< भगवान ् अजन ु के सामने वधम पालन के यह- तीन फल तुत करते हe- “ यvoछया चोपप नं वग Vारमपावत ृ म ्”- अथा त तुBहारे (लए यह युW 6या है , व तुतः वग का Vार ह- खुल गया है । यGद तुम युW नह-ं करते, भाग खड़े होते हो तो तुBहार- अपकRXत होगी। Page 10 of 20


कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी

अकRXत चा"प भत ाXन, कथXयdयि त तेऽ्ऽ् 2यया 2ययाम याम ्। ू ाXन, संभा"वत य र णादXत रoयते।।2 ा"वत य चाकRXत मरणादXत रoयते ।2.34।। 34।। अथा त सब लोग बहुत काल तक रहने वाल- तुBहार- अपकRXत को भी कहते रह< गे। सBमाXनत पु=ष के (लए ऐसी अपकRXत मरण से भी अ'धक दख ु दाई होती है । हतो वा ा य(स ा य(स सवग , िजLवा वा भो यसे भो यसे मह-म ्। कौ ते तेय, युWाय त माद"ु g कौ ाय कृ तXनlयः।।2 तXनlयः।।2.37।। 37।। मानस मे गो वामी जी भी कहते हe, - “ धम XनXत उपदे (सय ताह--कRरXत भXू त सग ु Xत " य जाह-।“अथा त ् िजसे कRXत , भौXतक सुख और सुगXत अथा त ् वग " य हो उसे वधम पालन कR (श>ा दे नी चाGहए। न। अनु'चत उ'चत "वचार तिज जे पालGहं "पतु बैन। ते भाजन सुख, सय ु स के बसGहं अमर पXत ऐन।। "पता कR आbा=प धम का पालन करने से भी भौXतक सुख, यश और वग ाm होता है । वधम पालन का दस ू रा फल वैरा य है - “ धम ते "वरXत जोग ते bाना” और इसी कार-

थमGहं "व चरन अXत ीXत, Xनज Xनज धम Xनरत CXु त र-ती।। तेह- कर फल पXु न "वषय "वरागा, तब मम धम उपज "व वासा।। "वषय-"वराग स वगुण का ल>ण है । इससे bात होता है 0क वधम पालन करने से सभी मनुdयJ म< स व गुण ढ़ता है । उसके फल व=प वे वैरा य और "ववेक पाकर bान और भMN कR परमाथ साधना म< सफल हो सकते हe। यहॉ यह भी बता दे ना आवuयक है 0क चारJ वण{ के कत 2य कम 6या हe ? गीता के 18व< अ याय म< भगवान ् ने उनका उ_लेख 0कया है । वे कहते हe ा ण>yFय "वशां शू ाणां च पर तप। कमा ण "वभNाXन ैः।। "वभNाXन वभाव भवैगुण

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कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी अथा त हे पर तप, ा मणJ, >yFयJ, वैuयJ और शू J के कम वभाव से उLप न गुणJ के अनुसार "वभN 0कए गए हe। शम, दम, तप, शौच, >ाि त,आज व, bान, "वbान और आि त6य ा मण का वाभा"वक धम है । इसका अ(भ ाय है 0क ा मण का कg 2य इन गुणJ को वंय म< "वक(सत कर उनम< ढ Xन ा ाm करना है । अ यF कहा गया है 0क ा मण के छः कम हeयजनं याजनं दानं, ा मण ा मण य य XतQहम।्।् अ यापनं चा ययनं, ष¡ कमा ण GVजोgमाः।। अथा त हे GVजोgम! ये ा मण के छः कम हe। 0क तु >yFय और वैuय का धम यb करना, दान दे ना और अ ययन करना है । दानम ययनं दानम ययनं यbो, यbो, धम ः >yFयवैuययोः।। दTडो, "षवै वैuय य श यते।। दTडो, युWं >yFय य, >yFय य, कृ"ष दान, अ ययन और यb ये तीन >yFय और वैuय का सामा य धम हe, तथा दTड-"वधान और युW >yFय का श त कम है । वैuय का श त कम कृ"ष आGद है । शुCष ाधनम ्। ू ैव GVजातीनां, शू ाणां धम साधनम का=कम तथाजीवः, तथाजीवः, पाकयbोऽ पाकयbोऽ"प धम धम तः।। GVजातीओं कR सेवा करना शू J के (लए एकमाF धम का साधन है । धमा नुसार पाक यb तथा (श_प"वpा उनकR आजी"वका है । वण{ के नाम से भी उनके कत 2य कम सू'चत होते हe। ा ण वह- कम करे िजससे म कR ाXm हो। >yFय समाज कR र>ा करे । वैuय "वr का भरण पोषण करे और शू तीनJ के कायz म< Cम सा य कम करता हुआ सहायता करे । वण 2यव था ि थर हो जाने पर चय , गह ृ थ, वान थ तथा सं यास आCमJ कR थापना हुई ओर उनके भी धम Xनधा रत 0कए गये। चय आCम "वpा अ ययन का काल है । चार- का यह- मु3य धम है । इसके (लए वह अपनी सम त इि यJ पर संयम रख< और (श>ा दान करने वाले गु= कR सेवा करे । चार- को चय ¢त का पालन करना चाGहए।

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कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी (श>ा परू - करने के वाद वह "व'धवत-"ववाह कर गह ृ थ आCम म< वेष करे । वहाँ वह अपने Xनयत कमा नुसार 2यवसाय चयन करे और उसे ई वराप ण भाव से समाज सेवा के (लये करे । उसके बदले उसे जो कुछ धन ाm हो उससे अपने प रवार का भरण पोषण करे । समाज को हाXन पहुँचाने या ठगने का काम न करे । सभी पुFJ को जी"वका के (लये भौXतक (श>ा दे और उनके 2यMNLव का "वकास करने के (लए अ याLम "वpा भी पढ़ावे। (श>ा पूर- होने पर उनका "ववाह कर 2यवसाय म< लगा दे । पौF का ज म होते हवह अपने गह ृ थ आCम का Lयाग कर दे । अब वह तत ृ ीय आCम वान थ म< वेश करे और उसी के धम{ का पालन करे । वह एका त वास करे , चय ¢त का पालन करे , वा याय और जप तप करते हुए समय का सदप समझे और ु योग करे । गु= के मुख से शा J का Cवण कर उ ह< भल- भॉXत उनम< बताई हुई "व'ध से अपनी आ त रक शMNयJ को जाQत करे । स वगुण का "वकास कर अपने को तेज वी और उLसाह- रखे। धन-सBमप"g का संQह न करे । समाज म< धम का चार करे और अपनी आजी"वका के (लए समाज से कम से कम Qहण करे । भोजन ओर व सािLवक और सरल रह< । वान थ-आCम का "व'धवत पालन होने पर वह साधक को वैरा य और आLमbान से "वभू"षत कर सं यास पद पर आ=ढ़ कर दे ता है । सं यास आCम जीवन कR पूणा व था है । इस समय वह Xनर तर आLमbान म< ि थत रहे और जगत ् के नानाLव को व न के समा य मायामय समझे। शर-र याFा ार^ध के अनुसार चलने दे । बहुत Gदन तक जीने या शी| जीवन समाm होने कR कामना न करे । अब उसका शेष जीवन अ याLमbान के अ'धकार- 2यMNयJ को अपने अनुभव से माग -दश न करने का (लए हो। इस कार सामा य और "वशेष धम{ का पालन करने से मनुdय "वकृXतयJ से बच जाता है । नारकRय दःु ख नह-ं भोगने पड़ते। उसका अ यािLमक "वकास ारBभ हो जाता है । वह मशः शर-र के ऊपर इि यJ का, इि यJ पर मन का, मन पर ब"ु W का और बु"W पर आLमा का XनयंFण था"पत कर अपने 2यMNLव को समि वत और सुvढ़ बना लेते है । वह अपने 2यवहा रक >ेF म< अ य लोगJ कR अपे>ा अ'धक कुशलता से काय करता है । उसके कमz का फल 2यMN और सम"w दोनJ के (लए क_याणकार- होता है । भौXतक सम"ृ W तो इस शर-र के साथ पीछे छूट जाती है , 0क तु अ यािLमक सम"ृ W शर-र छोड़ने के बाद भी जीव के साथ आगे जाती है , और उसे उoच लोकJ कR ाXm कराती है । व तुतः कम (सWा त पुनज£वन से जुड़ा हुआ है । इस जीवन म< 0कये

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कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी गए कम{ का फल यGद यह-ं न भोग पाये तो उनके भोग के (लए अगला जीवन ाm होना आवuयक है । यह आवuयक नह-ं 0क अगल- बार मनुdय शर-र ह- (मले। अनैXतक और अधा(म क कम करने वाले अपने "वकृत सं कार लेकर पशु-पj>यJ कR अधम योनी म< जा सकते है , और अ यािLमक सम"ृ W से युN पु=ष वग आGद उoच लोकJ मे जा सकते है । यGद इस कार Xनर तर "वकास होता रहा, तो आगे 0कसी ज म म< मनुdय शर-र ाm होने पर उoच साधना के बल पर वह मुN भी हो सकता है । पन ु ज म कR सBभावना पर शंका नह- करनी चाGहए। इसे (सW करने के (लए शा , युMN और अनुभव तीनJ माण उपल^ध हe। इन माणJ को दे ख< तो पुनज म होना (सW हो जाता है । वेद-उपXनd¤ से लेकर गीता-रामायण तक हमारे िजतने शा हe, वे सब पन ु ज म का (सWा त XतपाGदत करते हe। भारत के िजतने भी आि तक-नाि तक दश न हe, वे भले ह- अ य बातJ म< मतभेद रखे 0क तु इस बात म< वे सब एकमत है 0क जीव अपना कम फल भोगने के (लए एक शर-र छोड कर दस ू रे शर-र म< वेश करता है । इसे पन ु ज म कहते हe। यp"प जैन और बौW सB दाय वेद-बा है 0क तु वे भी इस (सWा त को वीकार करते हe। अपने Xनकटतम Q थ CीमYगवदगीता को दे ख< तो भगवान ् दस ू रे अ याय के ारBभ से पुनज म का XतपाGदन करने लगते हe और Q थ के अ त तक उसे बार-बार पw करते जाते है । वे कहते हeदे Gहनो¥ि म यथा हनो¥ि म यथा दे हे कौमारं यौवनं जरा।। तथा दे हा तर ाXmः धीर त धीर तF र तF न म Xत।।2.13।। 13।। ु Xत।।2

अथा त जैसे इस दे ह म< दे ह- जीवाLमा कR कुमार युवा और वW ृ ाव था होती है , वैसे ह- उसको अ य शर-र कR ाXm होती है । धीर पु=ष इससे मोGहत नह-ं होते। जीव एक शर-र को छोडकर दस ू रा शर-र वैसे ह- धारण कर लेता है , जैसे कोई ़ ़ मनुdय पुराने कपडे उतार कर नये कपडे पहन लेता है । यह उदाहरण दे ते हुए भगवान ् कहते हeवासां(स जीणा Xन यथा "वहाय नवाXन ग¦ नरोऽपरा ण। ृ ाXत नरोऽ तथा शर-रा ण "वहायजीणा Xन

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कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी अ याXन संयXत नवाXन दे ह-।। अथा त जैसे मनुdय जीण व J को Lयागकर दस ू रे नये व J को धारण करता है , वैसे ह- दे ह- जीवाLमा पुराने शर-रJ को Lयागकर दस ू रे नये शर-रJ को ाm होता है । भगवान ् के इस कथन को समझने के (लए पहले हम< यह "वचार करना चाGहए 0क जीव 6या है ? ायः 2यवहार म< लोग ाण, जीव या आLमा म< कोई भेद नह-ं करते। इन श^दJ को पया यवाची के =प म< योग करते है । 0क तु "वVानJ का मत ् ऐसा नह-ं है । हम अपने आप को जो दे खते हe, यह थूल शर-र है । थूल पंच महाभूतJ से बने होने के कारण यह भी थूल है । मLृ यु होने पर यह शर-र "वघGटत होकर पंच महाभत ू J म< (मल जाता है । मत ृ शर-र को सावधानी से दे ख< तो उसम< िजन तLवJ का अभाव Gदखाई दे ता है और मरने के पहले जो शर-र म< "वpमान थे, उ ह-ं का संघात जीव है । जीव थूल शर-र को छोड़ दे ता है , तो वह मत ृ कहलाता है । मत ृ शर-र म< कम ि यां का और ाणJ का काय नह-ं Gदखाई दे ता। bानेि याँ और मन-ब"ु W भी वहॉ ं उपल^ध नह-ं होते। इन सब को (मलाकर स ू म शर-र कहते है । इसम< सFह त व है - 5 कम ि याँ, 5 ाण, 5 bानेि याँ और मन, बु"W। इस थूलशर-र को धारण करने वाल- चेतना जीव है । हर जीव का अपना वभाव (भ न दे खने म< आता है । हमारे शा J म< उसे कारण शर-र कहते हe। थूल शर-र छोड़ते समय जीव अपना यह वभाव या कारण शर-र भी अपने साथ ले जाता है । इस(लए हम कह सकते हe 0क जीव वह चेतना है िजसके साथ कारण और स ू म शर-रJ कR उपा'ध रहती है । ऐसा जीव एक थूल शर-र छोड़कर दस ू रे थूल शर-र म< जाता है । यह- Gह द-ू दश न का (सW पन ु ज म (सWा त है । गु=दे व का कहना है 0क इस ़ (सWा त के सब से बडे "वरोधी "वVानJ ने अपने धम Q थJ का ठ¨क से अ ययन नह-ं 0कया हे । वयं ईसा मसीह ने इसे अ Lय> =प से वीकार 0कया है । वे अपने (शdयJ से कहते हe 0क जॉन ह- ए(लजा था। ओ रजेन नामक "वWान ईसाई पादर- न< पw =प से कहा है , ‘‘ Lयेक मनुdय को अपने पूव ज म के पुTयJ के फल व=प यह शर-र ाm हुआ है । ‘‘ कोई भी ऐसा महान "वचारक नह-ं है , िजसने पन ु ज म के इस (सWा त को Lय> या अ Lय> =प से वीकार नह-ं 0कया है । गौतम बुW सदै व अपने पूव ज मJ का उ_लेख 0कया करते थे। विज ल और ओ"वड दोनJ ने इस (सWा त को वतः मा णत वीकार

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कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी 0कया है । जोसेफस ने कहा है 0क उसके समय यहूGदयJ म< पन ु ज म के (सWा त पर पया m "वrास है । सालोमन ने ‘बक ु आफ "वज़डम ‘ म< कहा है , - ‘एक व थ शर-र म< व थ अंगJ के साथ ज म लेना, पूव जीवन म< 0कए पुTय कम{ का फल है ।‘ गु=दे व पुनः कहते हe 0क इ लाम के पैगBबर मोहBमद के इस कथन को कौन नह-ं जानता, िजसम< उ हJने कहा 0क ‘मe पLथर से मर कर पौधा बना, पौधे से मर कर पशु बना, पशु से मरकर मनुdय बना, 0फर मरने से मe 6यJ ड=ँ ? मरने से मझ ु म< कमी कब आई ? मनुdय से मर कर मe दे वदत ू बनूँगा। ‘ इसके बाद के काल म< जम नी के "वWान दाश Xनक गोथे, 0फ3टे , पे सर और मै6समल ू र जैसे दाश XनकJ ने इसे "ववादरGहत (सWा त माना है । पिlम के (सW क"वयJ को भी क_पना के वoछाकाश म< "वचरण करते हुए अ तः ेरणा से इसी (सWा त का अनुभव हुआ, िजसम< ाउXनंग, रोसेट-, टे Xनसन, वड वथ आGद मुख नाम है । "पछल- शता^द- म< सन ् 1881 म< अमे रका के मनोवैbाXनकJ ने एक सं था Society of Psychical Research कR थापना कR। उसके सद य सLय के अ वेषी वैbाXनक और "वWान

ह- होते रहे हe। उनके अ ययन का मु3य "वषय पुनज म का (सWा त ह-

है । संसार म< पूव ज म कR मXृ त ऱखने वाले अनेक बालक सभी दे शJ म< होते रहते हe। यह सं था ऐसे बालकJ का "व'धवत पर->ण करती है । कुछ 2यMNयJ को सBमोहन के Vारा बेहोश कर उनके 'चत म< Xछपी पूव ज म कR मXृ तयJ को उभाड़ा गया तो उससे भी पन ु ज म कR सBभावना (सW हुई। इस कार कR अग णत घटनाओं का उ_लेख अमे रका कR सं था से का(शत मोटे -मोटे अनेक Q थJ म< हुआ है । इससे (सW हो गया है 0क पन ु ज म का (सWा त त व'च तकJ कR कोई कोर- क_पना नह- है । मनोवैbाXनकJ ने (शशुओं के वभाव कR "व(भ नता का कारण खोजा तो वह वंशपरBपरा और पया वरण से पूरा नह-ं बैठा। उ ह< उसका तीसरा कारण पन ु ज म भी वीकार करना पड़ा। भारतीय-दश न के अनुसार जीवJ के वभाव कR (भ नता का कारण मु3य =प से कम ज य सं कार ह- है । जीवन के अ त समय म< िजन सं कारJ कR बलता होती है , उसी के अनुसार अगला शर-र, वंश-परBपरा और पया वरण ाm होता है । यGद हम तक को वीकार करते है तो दे ह से (भ न जीव और उसके अपने अिज त सं कारJ को वीकार करना पड़ता है । मोझाट नामक 4 वष के बालक ने अपने वाpवंद ृ कR रचना कR और पाँचव< वष म< लोगJ के सामने काय म तुत 0कया। सात

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कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी वष कR अव था म< उसने संगीत नाटक कR रचना कR। भारत म< शंकराचाय , bाने वर आGद का जीवन दे ख< तो bात होता है 0क बा_याव था म< उ ह< िजतना उoच bान ाm था वह अ य बालकJ म< नह-ं Gदखाई दे ता। पन ु ज म के (सWा त को वीकार न कर< तो ़ इन आlय जनक घटनाऔं को अवैbाXनक =प से एक संयोग माF मानना पडेगा। पन ु ः तक संगत "वचार कर< तो हम< मXृ त का Xनयम दे खना चाGहए। अनुभवकता और मरणकता एक ह- 2यMN होता है , तभी वह अपने अनुभव मरण कर सकता है। मe आप के अनुभवJ का मरण नह-ं कर सकता और न आप मेरे अनुभवJ का, पर तु हम दोनJ अपने-अपने पूव अनुभवJ का मरण कर सकते हe। वW ृ ाव था म< हम अपने बा_यकाल और यौवनकाल के अनुभवJ का मरण कर सकते हe। मXृ त के Xनयम से यह (सW होता है 0क 2यMN म< कुछ ऐसा है जो शर-र कR तीनJ अव थाओं म< अप रवत नशील है और "व(भ न अव थाओं के अनुभवJ का मरण रखता है । इसी Xनयम से यGद बालक अपनी मXृ त के बल पर वत मान शर-र के उतप न होने से पहले कR घटनाओं को, व तुओं और 2यMNयJ को मरण करता है उ ह< पाकर पहचान भी लेता है , तो Xनlय ह- उसे यह शर-र ाm होने के पहले मरण आने वाले थान और 2यMNयJ के बीच होना चाGहए। पूव नw शर-र और वत मान ाm शर-रJ म< कोई एक उभयXन त व अवuय होना चाGहए। उसे हम जीव कहते है । यह सLय है 0क हर बालक को अपने पन ु ज म का मरण नह-ं होता। इसका कारण काल का 2यवधान और "व मरण हो सकता है । पूव ज म का "व मरण हो जाना, एक कार से क_याणकार- है । अ यथा जीव अपने पूव ज म का मरण कर 2यथ सुखीदख ु ी होता रहता। यGद 0कसी धनी घर का पु=ष अगले ज म म< द र - प रवार पाता और वह अपने पूव ज म का धन मरण करता तो Xनlय ह- दख ु ी होता और उसे पन ु ः ाm करने कR युMN भी सोचता। इस सम या से बचने के (लए पव ू ज म का "व मरण हो जाना अoछा है । 0फर भी एक ज म के कम -सं कार दस ू रे ज म म< जीव के साथ जाते हe। इसका उ_लेख करते हुए भगवान ् गीता म< कहते है । यं ये वा"प मर भावं LयजLय ते कलेवरम ्। तं तमेपैXत Xत कौ तेय सदा तYावभा"वतः।। तYावभा"वतः।।8 "वतः।।8.6।।

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कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी अथा त हे कौ तेय, यह जीव अ तकाल म< िजस 0कसी भाव को मरण करता हुआ शर-र का Lयागता है वह सदै व उस भाव का 'च तन के फल व=प उसी भाव को ह- ाm होता है । कोई जीव 0कसी दे ह "वशेष के साथ तब तक तादाLमय 0कये रहता है , जब तक उसे अपने इिoछत अनुभवJ को ाm करने म< वह उपयोगी होता है और उसकR आवuयकता अनुभव म< आती है । एक बार यह योजन (सW हो जाने पर वह उस शर-र को Lयाग दे ता है । तLपlात उस दे ह के Xत न कोई कत 2य रहता है , न सBब ध और न कोई अ(भमान। दे ह से "वलय होते समय जीव के मन म< उस "वषय के "वचार आय<गे िजसके (लए वह बल इoछा रखता है । यह इoछा 0कसी पूव ज म से अतm ृ आ रह- हो सकती है । मरण के पूव कR अि तम इoछा जीव कR भावी गXत Xनिlत करती है । जो जीव अपने जीवन काल म< केवल अहं कार और वाथ का जीवन जीता रहा हो और दे ह के साथ तादाLमय करके XनBन तर कR कामनाओं को ह- पूण करने म< 2य त रहा हो, वह कुिLसत वासनाऔं से युN होने के कारण अगला शर-र ऐसा धारण करे गा िजसम< उसकR पािrक व"ृ gयां अ'धक से अ'धक सं तुw हो सक<। इसके "वपर-त, कोई साधक अपने "ववेक से "वषय सख ु J कR 2यथ ता समझ कर संयम का जीवन जीता है तो दे ह Lयाग के पlात ् वह Xनlत ह- "वकास कR उoचतर ि थXत को ाm होता है ।इसी युMNयुN और ब"ु W गBय (सWा त के अनुसार हमारे शा यह घोषणा करते हe 0क मरणास न पु=ष कR अि तम इoछा उसके भावी शर-र तथा वातावरण को Xनिlत करती है । आधXु नक मनोवैbाXनक भी यह वीकार करते हe 0क जैसा तुम सोचोगे वैसे हबनोगो। इस जीवन म< जैसे बनोगे वैसे ह- "वचार मरते समय मन म< आय<गे और 0फर अगला जीवन भी वैसा ह- ाm होगा। इस (सWा त को समझने वाला 2यMN कभी अनीXत और अधम के माग पर नह-ं जा सकता। दरु ाचार और }wाचार म< वह- वत ृ होगा, िजसकR बु"W कम -(सWा त और पन ु ज म (सWा त समझने म< असमथ है । इस(लए हम दे खते हe 0क बु"W म< पुनज म कR मा यता ओर 2यवहार म< धमा चरण एक साथ चलता है तथा ये एक दस ू रे कR प रपुw भी करते है । धम मय जीवन जीने से बु"W Xनम ल होती है और पन ु ज म आGद के आ यािLमक (सWा त समझ आते हe और जो पु=ष इन (सWा तJ को िजतने पw =प म< समझता है , वह धम , Xनdकाम कम आGद के उ नत माग पर उतनी ह- vढ़ता से चलता है । धम के माग पर चलने वाले मनुdय केवल धम के बल पर ह- मुN नह-ं हो सकते। धम उ ह< वग तक ले जा सकता है ।गीता के नव< अ याय म< भगवान ् यह पw Page 18 of 20


कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी कर दे ते हe 0क वेदोN सकाम कम अथा त ् धम मय आचरण करने वाले मनुdय अपने पT ु यJ के बल पर इ लोक को ाm कर वहाँ Gद2य भोग भोगते हe। वे उस "वशाल वग लोक को भोगकर पुTय >ीण होने पर मLृ यु लोक का ाm करते हe। वे आवागमन से नह-ं छूटते। 0फर भी धमा चरण का मह व कम नह-ं है । अधम£ मनुdयJ कR अधोगXत ओर नारकRय पीडाओं से तुलना कर< तो धमा Lमा प= ु ष बहुत Cे हe।उसे ऐसे घ ृ णत दःु ख नहभोगने पड़ते। वह इस जीवन म< भौXतक सुख और यश पाता है तथा मरने के बाद वग का सुख भोगता है । इसके अXत रN, मुMN का माग भी धमा चरण कR ह- Gदशा म< है । वग आGद के सुख कR कामना Lयाग कर धम का पालन करने वाला मनुdय वग से भी आगे Xनकल जाता है । इस(लए धम कR मGहमा समझ कर मनुdय को उसका आCय नह-ं Lयागना चाGहए। गीता म< भगवान ् ने धम से "वमुख पु=षJ को धम के राजमाग पर आने के (लए बार-बार उLसाGहत 0कया है अ"प चेLसुदरु ाचारो भजते मामन यभाक् । म त2यः त2यः समय 2यव(सतो Gह सः।।9 साधुरेव स म सः।।9.30।। 30।। अथा त ् यGद कोई अXतशय दरु ाचार- भी अन य भाव से मेरा भN होकर मुझे भजता है , वह साधु ह- मानने यो य है , 6यो0क वह यथाथ Xनlय वाला है । j> ं भवXत धमा Lमा श वoछाि तं XनगoछXत। कौ तेय XतजानीGह न मे भNः णuयXत।।9 णuयXत।।9.31।। 31।। अथा त हे कौ तेय, वह शी| ह- धमा Lमा बन जाता है और शा वत शाि त को ाm होता है । तुमे Xनlयपूबक सLय जानो 0क मेरा भN कभी नw नह-ं होता। मां Gह पाथ 2यपा'CLय येऽ"प युः पापयोनय। 9.32।। ि यो वैuया तथा शू ाः तेऽ"प याि त परां गXतम ्।। 32।। ्।।9 अथा त हे पाथ , ी, वैuय और शू ये जो कोई पाप योXन वाले हो, वे भी मुझ पर आ'Cत होकर परम गXत को ाm होते है ।

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कम का गूढ़ रह य वामी शंकरान द जी इससे bात होता है 0क मनुdय को अपनी प रि थXतयJ के कारण या अपनी दब ता और अयो यता के कारण Xनराश नह-ं होना चाह-ए। साधारणतः लोगJ के मन म< ु ल ऐसी धारणा बन गई है 0क दw ु पापी या अपराधी मनुdय का कभी सध ु ार नह-ं हो सकता है । 0क तु ऐसे पु=ष कR Xन दा करना या उसे हतोLसाGहत करना शा "व=W है । कोई पु=ष पापी या पुTयाLमा नह-ं होता । यGद 0कसी म< पाप करने कR व"ृ g है , तो वह पापी कहलाता है , 0क तु पाप- व"ृ g Lयाग कर धम के माग पर चलने का Xनlय कर लेने पर वह पापी नह-ं रह जाता। धम के चार करने वाले पु=षJ को भी ऐसी ह- आशावाद- v"w रखनी चाGहए, तभी वे अपना काय उLसाह के साथ कर सक<गे और अपने यास म< सफल भी हJगे। केवल जीवन कR अशुWता और ह-न कमz के कारण पा"पयJ को धम के >ेF म< वेश करने से नह-ं रोका जा सकता। यGद वे अपना Xनशचय बदल दे ते हe औऱ नीXत तथा याय का 2यवहार करने लगते है तो वे साधु मानने यो य हो जाते हe। धम के माग पर ़ अQसर मनुdय पुनः आगे बढे गा और Xनdकाम कम तथा उपासना करते हुए अ त म< आLमbान कR परम शांXत भी ाm कर लेगा। हमारे पुराण साGहLय म< ऐसे अनेक उदाहरण हe जो इस सLय को (सW करत< है । र«ाकर नाम के एक लट ु े रे ने अपना Xनlय बदला तो वह वा_मी0क ऋ"ष बन गया। उनकR रची हुई सं कृत भाषा कR रामायण ् हम सब पढ़ते है । शबर जाXत कR एक सFी, वन म< रहने वाल-, असं कृत और अ(शj>त होकर भी रघुनाथ जी कR कृपा पाF हो सकती है , तो 0फर Xनराशा के (लए थान कहॉ ं रह जाता है । कोई भी मनुdय अधम का जीवन Lयाग कर धम -परायण हो सकता है। दे श, काल, प रि थXत कोई भी बाधा उसके सामने नह-ं आ सकती। केवल उसके Xनlय को बदलने कR आवuयकता है ।

‘ अ'धका'धक लोगJ को

अ'धका'धक समय के (लये अ'धका'धक सख ु पहु ँचाना हमारा येय है । ’ -----------------------------------

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