Muskan Se Moksh- Acharya Shri Chandanji

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िवशेषांक, 2017, मासिक

वर्ष 5, अंक 11, 50

िवशेषांक, 2017। फेम इंिडया ` परिचय

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सोच बदलें, समाज बदलेगा

मुस्का न से मोक्ष आचार्य श्री चंदना जी



फेम इंिडया www.fameindia.co

वर्ष 5, अंक 11, िवशेषांक 2017 पैट्रन प्रेसिडेंट चीफ एडीटर एडीटर मैनेजिंग एडीटर एसोसिएट एडीटर नैशनल ब्यूरो हेड रेजिडेंट एडीटर आर्ट डायरेक्टर

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ब्यूरो चीफ राजस्थान मुंबई उत्तराखंड उत्तर प्रदेश

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वेब टीम - प्रियंका श्रीवास्तव रचना झा फोटो रिसर्चर

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रीजनल सेल्स हेड मार्केटिंग मैनेजर सर्कुलेशन मैनेजर

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मुद्रक, प्रकाशक, संपादक राजश्री द्वारा ज्योति प्रिंटर्स, ई - 93, सेक्टर-6, नोएडा, गौतमबुद्ध नगर से मुद्रित एवं ए-533, जीडी कॉलोनी, मयूर विहार फेज-3, दिल्ली-110096 से प्रकाशित संपादकीय एवं मार्केटिंग ऑफिस फेम इंडिया पब्लिकेशन प्रा.लि. 762,ब्लाक-एफ 8, सेक्टर-50, नोएडा 201304 (उ.प्र.) फोन नं.- +91-7004450124 ,+91-9717727501 ई मेल: @fameindia.co D. L. No. F-3/Press 2012 RNI No. DELHIN/2012/48773

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मातृ शक्ति की सम्पूर्ण हस्ताक्षर - आचार्य श्री चंदना जी महाराज

दुनिया भर में मातृ-शक्तियों ने धार्मिक चेतना, सामाजिक सुधार और बड़े बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा कर समाज के कई मिथकों को समय-समय पर तोड़ा साथ ही सेवा, सद्भावना, साधना व प्रेम की पूर्णता का अहसास और विश्वास भी जन-जन तक पहुंचाया है। आधुनिक जगत में मातृ-शक्ति की चर्चा आचार्य श्री चंदना जी के बिना अधूरी है, जिन्होंने 2600 वर्ष पुराने जैन धर्म में क्रांतिकारी बदलाव की नींव रखी और सेवा के, प्रेम के और साधना के नए आयाम स्थापित किये। वीरायतन के निर्माण से लेकर अब तक के उनके समाज व दुनिया भर के कल्याण उन्नति के लिए किये जा रहे उत्कृष्ट कार्यों ने उन्हें इस युग की परम आदरणीय विभूतियों में शामिल कर दिया है, नारी शक्ति – मातृ-शक्ति के सर्वोपरि उदाहरणों में शामिल मदर मरियम, फ्लोरेंस नाइटेंगल, सरोजनी नायडू, एनी बेसंट, मदर तेरेसा, कस्तूरबा गाँधी, सावित्री बाई फुले, महारानी लक्ष्मी बाई आदि प्रमुख युग प्रवर्तक जैसे सेवा, प्रेम, स्नेह के साथ क्रांतिकारी बदलावों के गुण इनमें एक साथ देखे जा सकते हैं। इन्होंने परम्पराओं और मान्यताओं से ऊपर उठकर भगवान महावीर के सच्चे सिद्धांतों एवं दर्शन को अथक प्रयासों से समाज में स्थापित किया और वे शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनुकरणीय कार्य कर रही हैं। इन्होंने सिद्ध कर दिया जन सेवा ही परमात्मा की सेवा है। जैन आचार्य श्री चंदना जी प्रेरणा है नये निर्माण की, उदाहरण है एक प्रबल इच्छा-शक्ति और आत्मबल के संजोग की। इन्होंने धर्म को भय नहीं आनंद का माध्यम बना दिया, स्व कल्याण को जगत कल्याण के भाव में परिवर्तित किया और साथ ही सेवा के ही साधना होने का नया मार्ग स्थापित किया। अहंता ममता भावः, त्यक्तुं यदि न शक्यते। अहंता ममता भाव, सर्वत्रैव विधियताम।। इनका मानना है स्वयं का विस्तार धर्म है, बड़ा सोचो बड़ा बनो। जोड़ो सब को अपने से और जुड़ो सबसे। इन्होंने कर्म को ही देव माना और समाज में यह भावना भरी कि जीवन में सत्य चाहिये, अटल सत्य का पक्ष चाहिये, फिर दुनिया में क्या भय है? मानव पर क्या अखिल विश्व पर विजय अंत में निश्चित है। तीर्थंकर महावीर के दर्शन और सेवा के सन्देश को प्रत्यक्ष जी रही आचार्य श्री चंदना जी के महान व्यक्तित्व और मातृ शक्ति की जीवित उदाहरण को समाज के लिए प्रेरणादायक मानते हुए फेम इंडिया ने एक विशेषांक निकालने का निरय्ण लिया और अब दुनिया भर की आम जन मानस के सामने जाति धर्म की खींचतान और संघर्ष से ऊपर प्रेम-सेवा को धर्म मानने और उसे उसी तरह जीने वाली एक महान आचार्य की जीवन गाथा प्रेरणा के तौर पर है। उदाहरण हमारा - जीवन आपका, क्योंकि हमारा मानना है – “सोच बदलने से ही बदलता है समाज”

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50 आचार्य श्री चंदना जी महाराज 7

सेवा ही है वास्तविक धर्म

54 आस्था

मधुबनी में स्थापित है एकादश रुद्र महादेव का दुर्लभ मंदिर

58 कैसे संभव / अपना अपना चांद

आचार्यश्री चंदना जी द्वारा रचित पुस्तक 'मेरे देवदूत' से उद्धृत 50


तन ाय वीर

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जैन धर्म के 2600 वर्षों के इतिहास में आचार्य श्री चंदना जी पहली जैन महिला आचार्य हैं। साथ ही आधुनिक जैन धर्म में वे पहली ऐसी संत है जिन्होंने जैन परम्परा को नया मार्ग दिखाया। वह मार्ग है सेवा का। आमतौर पर जैन आचार्य, संत और साध्वी मोक्ष को आत्म-कल्याण का मार्ग मानते थे, लेकिन इन्होंने परम्पराओं में क्रांतिकारी बदलाव की शुरुआत की और बताया कि धर्म केवल मोक्ष प्राप्ति के लिये ही नहीं है, बल्कि जीवन की चुनौतियों के निवारण के लिये भी है। इन्होंने संन्यास को व्यक्तिगत मुक्ति से ऊपर समाज विकास के प्रयासों में बदल दिया। इन्होंने सेवा का व्यवहारिक मार्ग अपनाया और लोगों में सन्देश दिया कि सेवा भी मुक्ति का अहम मार्ग है। इनका मुख्य सूत्र है – “मुस्कान से मोक्ष”। आचार्य श्री चंदना जी अशिक्षा, अज्ञानता और चारों ओर फैली विषमताओं से निवारण के लिये सक्रिय रूप से कार्य कर रही हैं।


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महाराष्ट्र के संपन्न कटारिया परिवार में 26 जनवरी 1937 को एक अद्भुत कन्या का जन्म हुआ, जिन्हें नाम दिया गया शकुन्तला। विलक्षण शकुन्तला बचपन से ही अपने पिता जी के साथ स्वामी प्रज्ञानंद जी के दर्शन के लिये जाया करती थी। उसके मन में शुरू से ही उत्कंठा रहती थी कि क्या जिस तरह संतों को भगवान मिलते हैं, उसे भी मिल जायेंगे।

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वे सदैव ही लोगों की मदद और सहयोग का प्रयास करती रहती थीं। उनकी दया, करुणा और आस-पास हो रही घटनाओं के प्रति सजगता, संवेदनशीलता बड़ी असाधारण थी, दूसरों के लिये पूर्ण उत्साह से सहयोग, गरीबों की मदद, वृद्ध की सेवा करना उनके स्वभाव में शामिल था। पशु-पक्षियों के प्रति उनका स्नेह भी परिवार में कुतूहल का विषय रहता था। कई बार जो घटित होने वाला होता था, बालिका शकुन्तला पहले ही परिवार के लोगों को बता देती थी। लोगों को धीरे-धीरे समझ आने लगा कि उनके परिवार में किसी पुण्य आत्मा ने जन्म लिया है। बालिका शकुन्तला ने जब साध्वी बनने की इच्छा जतायी तो उनकी इस असाधारणता को देखते हुए परिवार ने तय किया कि इन्हें दीक्षा दिलवा दी जाये।


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दीक्षा एक संकल्प है मानव जीवन कर सदुपयोग धरती को सुंदर बनाने का, लोगों की भलाई कल्याण का और आत्म मुक्ति का वचन होता है, इस से संसार से सम्बन्ध टूटता नहीं बल्कि परमात्मा से जुड़ आत्मसाधना द्वारा जीवन पूर्णतः मानव उत्थान, समाज कल्याण, सेवा, दया और सद् मार्ग के कर्मों का पर्याय बन जाता है। इनकी असाधारण और विलक्षणता को देखते हुए उनके धन्य माता पिता ने अपनी लाडली संतान को समाज कल्याण व उत्थान के पथ पर आगे बढ़ने के लिये दीक्षा दिलवाने का निर्णय लिया और इस तरह छोटी सी शकुन्तला साध्वी चंदना जी बन गयी। श्री चंदना जी सहज भाव से खुद को साधना पथ पर अर्पित किया और ज्ञान, ध्यान, अध्ययन और मौन इस साधना के मूल कर्म बन गये, व्यक्तिगत अपेक्षा मानो कहीं थी ही नहीं जीवन में।

इन्होंने 12 वर्षों में प्रयाग से साहित्य रत्न, धार्मिक परीक्षा की आचार्य, वाराणसी हिन्दू विश्वविद्यालय से व्याकरण के साथ शास्त्री की उपाधियां प्राप्त कीं। ये बारह वर्ष यूं तो मौन थे परन्तु शिक्षा ने विचारों, प्रश्नों के सैलाब को गति दी। ये विचार-प्रश्न थे शास्त्र, मान्यता, परम्परा और आज के व्यवहार से संबंधित, जो विभिन्न धारणाओं में बंटते जा रहे हैं। मार्ग क्या हो? एक मार्ग जो सिर्फ परलोक, मोक्ष और आत्म-कल्याण की बात सिखाता है, दूसरा पर कल्याण की बात क्यों नहीं सोचता? एक प्रश्न जो इनके मन से पूछता था कि पीड़ित मानवता की सेवा परम धर्म क्यों नहीं? संत स्व कल्याण के साथ पर कल्याण को भी उतना ही महत्व क्यों नहीं देते? अज्ञानता, अशिक्षा, बेरोजगारी, भुखमरी जैसी समस्याओं का धर्म और धार्मिकों का कोई संबंध नहीं? विचारों के मंथन से क्रांति आती है और एक नये विचार का सृजन होता है। इनके मन के प्रश्नों में शामिल था कि जब तीर्थंकर महावीर ने जन कल्याण को मुक्ति, मोक्ष का सबसे बड़ा मार्ग बताया है तो संन्यास में रह रहे संत व्यक्तिगत मुक्ति के लिये ही क्यों प्रयत्नशील हैं? सांप्रदायिकता, जातीयता मुक्ति का आधार कैसे बनता जा रहा है? लोगों को बस रचनात्मक उपदेश देना ही संत का कार्य क्यों है? संत अपने सुझाये मार्ग को स्वयं क्यों नहीं अपनाते हैं?


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इन प्रश्नों से इस अवधि में श्री चंदना जी विचार में रहने लगीं। एक क्रांति का उदय हो रहा था। बड़े बदलावों के संकेत मिल रहे थे, द्वंद्व मचा था विचारों में, एक सकारात्मक द्वंद्व, सामाजिक चेतना का द्वंद्व, लोक कल्याण का द्वंद्व... लेकिन कई बंधन भी थे परम्पराओं के, संकुचित मानसिकता के... समाधान के तीव्र प्रयास में थीं श्री चंदना जी। उन्हें पल-पल बस एक ही भाव आ रहे थे – मानव जीवन के विकास के लिये तीर्थंकर महावीर ने रचनात्मक कार्य किये, एक जातक के दुःख दूर करने के लिये प्रभु ने जब अपने वस्त्र उतार कर दे दिये तो साफ है कि पीड़ित मानवता के काम में आना धार्मिक व्यक्ति का पहला लक्ष्य है।

सेवा भी परम धर्म का उद्देश्य है। अब तीर्थंकर महावीर का आदर्श उनके समक्ष था, उन्होंने मान्यताओं परम्पराओं से ऊपर उठ कर तीर्थंकर के सेवा के संकल्प को ही अपने जीवन का उद्देश्य निर्धारित कर लिया। विचारो को शांति मिली और एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार इनके जीवन में होने लगा। आंतरिक संकल्प को विश्व कल्याण में लगाना ध्येय बन चुका था।


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परन्तु बाहर कई चुनौतियां थीं, क्योंकि संघ परम्पराओं में छोटा सा भी संशोधन या परिवर्तन स्वीकार नहीं करता था। लेकिन प्रेम, करुणा, स्नेह व सेवा की उंचाई को कोई परम्परा बांध सकती है भला? इन्होंने सक्रिय सेवा का निर्णय लेते हुए रिमांड होम जाना शुरू किया। चुनौतियां सामने आने लगीं। संतों ने, दूसरे लोगों ने समझाना शुरू किया कि जैन साधु सिर्फ सेवा का उपदेश दे सकते है, स्वयं सेवा नहीं कर सकते।

ये संतों की परम्परा है। हजारों वर्षों की इसी परम्परा का हमें पालन करना है। संघ किसी परिवर्तन की स्वीकृति नहीं दे सकता। परन्तु आचार्य श्री का मानना था कि परम्परा धर्म नहीं हो सकती। धर्म तो जीवन के प्रश्नों के समाधान के लिये है, स्व और पर दुःख मुक्ति के लिये है। इन्होंने सेवा, करुणा के पथ पर चलने का दृढ़ संकल्प ले लिया था। विरोध तो स्वाभाविक था, परम्पराओं को ही धर्म मानने वालों का, पर इन्होंने अकेले इस पथ चलने का बीड़ा उठा लिया।

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इस वैचारिक संघर्ष के समय इनके पूज्य गुरु राष्ट्र संत उपाध्याय श्री अमर मुनि जी महाराज ने ही केवल इनके विचारों को सही और सामयिक माना। उन्होंने इनकी भावना समग्रता से स्वीकारा और लाख विरोधों के बाद भी इनके मार्ग को पूर्ण समर्थन दिया। इनके साहस की प्रशंसा की और आने वाली बड़ी चुनौतियों से अवगत करवाते हुए दृढ़ता से चलने के लिये प्रेरित भी किया।

उपाध्याय श्री अमर मुनि जी ने इन्हें मार्गदर्शन दिया कि ये सेवा भाव तीर्थंकर की प्रेरणा से शुरू हुई है तो इसकी शुरुआत महावीर की पावन भूमि राजगीर से ही करें जहां आज सेवा की बहुत जरूरत है। उन्होंने यह भी विश्वास दिलाया कि सेवा, शिक्षा साधना के उद्देश्य के साथ इस पथ पर चुनौतियां भरपूर हैं, परन्तु प्रभु कृपा से मार्ग बनते चले जायेंगे। गुरुदेव का यह संबल एक पूंजी बना साध्वी श्री चंदना जी महाराज की आंतरिक ऊर्जा शक्ति के लिये।


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मार्ग प्रशस्त हो गया वीर अर्थात तीर्थंकर महावीर की पावन भूमि पर आयतन अर्थात आश्रय के कार्य का और निर्माण हुआ वीरायतन का। मानो प्रकृति ने इस महान विभूति को महावीर की भूमि पर पुनः प्रेम, अहिंसा, शिक्षा, साधना को पुनर्जीवित करने के लिये ही चुना हो। बड़ी मुश्किल डगर थी, नयी दिशा नये लोग, पर भरोसा और संकल्प की मुख्य शक्ति थी इनके साथ।

उन दिनों जैन परम्परा में पैदल चलना होता था, और इतनी लम्बी यात्रा की शुरुआत इन्होंने उपाध्याय श्री अमर मुनि जी और अपने साध्वी संघ के साथ शुरू की। मार्ग में कई तरह की कठिनाइयां आयीं पर मानो देवदूत हर पथ पर पहले ही खड़े हों। चोर-डाकू, नदी-तूफान सब मानो शांति से इस पवित्र आत्मा के प्रेमपूर्ण सेवा कार्य को सहयोग देने को तत्पर हो उठे। कई घटनाएं हुईं जिन्होंने नयीनयी सीखें दीं, कई पुरानी परम्पराओं को बदलने को प्रेरित किया।

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मार्ग के अनुभव व तीर्थंकर महावीर की प्रेरणा ने साध्वी श्री चंदना जी महाराज को प्रेम व करुणा के पथ पर बहुत आगे कर दिया जिसके कारण क्षमा और आशीर्वाद इनके परम स्वभाव बन चुके थे। प्रेम की पुण्य शक्ति ने इन्हें बियाबान जंगल में भी निडरता से खड़े रहने की ताकत दी, वहीं नये परिवेश में लोगों को अपना बनाने का हौसला दिया, जन समस्या इन्हें अपनी लगने लगी और लोक कल्याण धर्म बन गया, हर बदलाव की शुरुआत समस्याओं से ही होती है पर जब विश्व कल्याण व विकास की भावना कार्य कर रही हो तो देव शक्ति के सामने ये कैसे टिक सकती है।

इन्होंने नक्सल व अपराध से पीड़ित इस क्षेत्र में प्रेम, स्नेह और सेवा का ऐसा अलख जगाया कि पूरा क्षेत्र सहयोग को सामने आ गया। आचार्य श्री का मानना था कि अशिक्षा हर समस्या की जड़ है, इसलिये इन्होंने सेवा के साथ शिक्षा की शुरुआत भी राजगीर में की। पानी की समस्या से ले कर स्वास्थ्य समस्या तक के लिये सेवा, साधना और शिक्षा में तल्लीन वीरायतन लोगों की आशा का केंद्र बनने लगा।


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इनके अदम्य उत्साह और दृढ़ संकल्प के कारण समय के साथ वीरायतन की नींव स्थायी और बेहद सशक्त हो गयी, प्रत्येक दिन एक नया संकल्प, नया निर्माण, नयी योजना और नयी सोच के साथ वीरायतन समाज सेवा के क्षेत्र में अनेक बड़े कार्य करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था के तौर पर प्रतिष्ठित हो गयी। इस तरह इन्होंने जैन धर्म के इतिहास में नये इतिहास की शुरुआत की और जैन दीक्षित वर्ग को सक्रिय सामाजिक कार्य करने की एक नयी दिशा दी।

इन्होंने ये सन्देश पूरे विश्व को दिया कि जीवन एकांगी नहीं है, अकेला नहीं है और धर्म जीवन को पूरी तरह स्वीकार करना है। लोगों को शारीरिक, मानसिक सभी तरह के दुःखों से बाहर आने में सहयोग करना, उनके लिये कार्य करना भी धर्म है। सीधे शब्दों में कहा जाये तो धर्म आनंद है। इन्होंने सेवा को ही साधना में परिवर्तित कर दिया और एक नये अध्याय की शुरुआत की।

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और इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना हुई जब पुरुष प्रधान समाज में पहली बार एक साध्वी को आचार्य पद से सुशोभित किया गया, आचार्य वही जो समाज को नयी दिशा दें, नये आयामों को स्थापित करें और चंदना जी में ये सारे गुण तो सहज ही विद्यमान थे। पूज्य गुरु उपाध्याय श्री अमर मुनि जी महाराज ने 26 जनवरी 1987 को संघ की उपस्थिति में श्री चंदना जी को उत्कर्ष आचार्य पद से सुशोभित किया व पूरे समाज व संघ ने इनकी कर्मठता और करुणापूर्ण व्यक्तित्व के लिये इस सम्मान को स्वीकार करने का इनसे नम्र निवेदन किया। इनके सेवा भाव व प्रेम करुणापूर्ण कार्यों ने मातृ शक्ति को इतना बड़ा गौरव दिलवाया। वीरायतन के सक्रिय विचारों ने विश्व भर में एक नव युग का निर्माण कर दिया, युवा वॉलंटियर्स के तौर पर जुड़ने को, सेवा करने को सामने आने लगे। चाहे शिक्षा हो या स्वास्थ्य, शिक्षित युवा इनसे प्रेरणा पा कर अपना कुछ समय सेवा के कार्य में लगाना अपना धर्म मानने लगे हैं। ये एक नयी शुरुआत है, विकास है, बदलाव है।

अमेरिका, इंगलैंड, अफ्रीका, सिंगापुर, मलेशिया, दुबई इत्यादि विश्व भर के देशों से इनके विचारों से प्रभावित लोगों के निमंत्रण आने लगे। इन्होंने अनेक राष्ट्रों में धर्म यात्रा शुरू की और वहां जाकर विशेष कर नयी पीढ़ी को धर्म के वैज्ञानिक रूप से अवगत कराया और नयी पीढ़ी के धार्मिक संस्कार और अध्यात्मिक शिक्षण के लिये कई देशों में ‘श्री चंदना विद्यापीठ’ की स्थापना की। 2001 में कच्छ व भुज की भयंकर भूकंप त्रासदी ने इन्हें व्यथित कर दिया और इस विषम परिस्थिति में साध्वी संघ व वीरायतन के स्वयंसेवकों के साथ इन्होंने बड़े पैमाने पर पुनर्वास कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए जाति-धर्म और वर्ग से ऊपर इंसानियत की बड़ी परिभाषा स्थापित की। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार तीनों ही क्षेत्रों में कार्य शुरू करवाया। लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिये प्रशिक्षण केंद्रों की शुरुआत करवायी और बच्चों की शिक्षा के लिये स्कूल-कॉलेजों का निर्माण करवाया, जिसमें अब तक हजारों की संख्या में भिन्न-भिन्न जातियों, धर्मों से जुड़े लोग शिक्षा व प्रशिक्षण पा अपने जीवन को उन्नत बना रहे हैं। गुजरात सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री व वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इनके कार्य की भूरी-भूरी प्रशंसा की थी।


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इनके समाज सेवा व विकास कार्यों को दुनिया भर की संस्थाओं ने समय-समय पर सम्मानित करने का कार्य किया है – जिनमें 1987 में संगली जनसेवा अवॉर्ड व संत बाल जी अवॉर्ड, 1995 में महावीर फाउंडेशन अवॉर्ड प्रमुख थे। सन 2000 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने इन्हें मिलेनियम वर्ल्ड पीस सम्मिट में जैन समाज के प्रतिनिधि के तौर पर सम्मानित किया। सन 2002 में भारत सरकार के द्वारा देवी अहिल्या नेशनल अवॉर्ड दिया गया।

सन् 2004 में वूमैन ऑफ़ द इयर अवॉर्ड और पूज्य संत श्री जयंती मुनि जी महाराज द्वारा 2012 में विश्व विभूति अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। 2013 में सी-वोटर सर्वे में नारी शक्ति सम्मान व 2016 में एशिया पोस्ट सर्वे में प्रभावशाली व्यक्तित्व की सूची में शामिल किया। वैसे तो इनके अवॉर्डों, सम्मानों की सूची बहुत लंबी है, पर आचार्य श्री चंदना जी महाराज के कार्य उससे भी बहुत परे हैं।


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बिहार इनके लिये पावन भूमि है, इनके सेवा व विकास के कार्यक्रम को वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूर्ण सहयोग करते हैं, साथ ही विश्व भर के दिग्गज धर्मगुरु ने इनके कार्यों को बेहद प्रेरक बताया है। केन्या से लेकर इज्रायल तक के राज्याध्यक्षों ने इन्हें अपने क्षेत्र में सेवा कार्य करने के लिये आमंत्रित किया है और उन सेवा कार्यों में इन्हें हर संभव मदद भी कर रहे हैं।

इनका साध्वी संघ उच्च शिक्षित है जो अपने जीवन को सेवा कार्य में पूर्णतः समर्पित कर चुके हैं। युवा स्वयं-सेवकों की एक बड़ी टीम सेवा की सभी भूमिका को निभाने को उत्सुक है। इस संत ने एक पूर्ण विकसित समाज की परिकल्पना को बनाया और सकारात्मक प्रयासों से उस परिकल्पना को पूरा करने में दिन रात लगी हैं। समाज का सभी वर्ग तन-मन-धन से इनके पीछे खड़ा है। एक शिक्षित समाज के निर्माण के लिये क्योंकि इनका मानना है – जहां जिनालय वहां विद्यालय।

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वीरायतन, एक ऐसा नाम जिसने महज 40-42 वर्षों के छोटे से अंतराल में ऐसा मुकाम हासिल किया है जो बड़े-बड़े संस्थानों के लिये लगभग असंभव है। वीरायतन कहानी है एक ऐसी वीरांगना की जिसने बिना हथियारों के ही ऐसी लड़ाइयां जीत लीं जो सदियों से नहीं जीती जा सकी थीं। ये कहानी है एक ऐसी साध्वी की जिसने इतिहास बदल कर रख दिया। साध्वी चंदना जी ने जब राजगीर में कदम रखा तो वहां अशिक्षा, सामाजिक विषमता और निर्धनता का साम्राज्य था। वे वहां आयीं तो उन्हें स्थानीय लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने अपने तेज से सभी को प्रभावित कर दिया। कुछ शिष्यों ने राजगीर में वैभवगिरी पर्वत के ठीक नीचे जमीन की व्यवस्था की और इसके साथ ही उन्होंने वीरायतन नामक संस्थान की नींव रख दी। प्रारंभ में संस्थान को स्थानीय लोगों के क्रोध और लुटेरों का भी शिकार बनना पड़ा, लेकिन बाद में सभी उनके सेवा व करुणा भाव के आगे नतमस्तक हो गये।


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'वीरायतन' का अर्थ है महा’वीर’ भगवान की पवित्र भूमि और उनके आदर्शों को कार्य-रूप देने वाला स्थान या ‘आयतन’। इस स्थान की परिकल्पना उपाध्याय श्री अमरमुनि जी ने की है और यह आचार्यश्री चंदना जी की कर्म-स्थली है। जैन समाज के 2600 वर्षों के इतिहास में श्री चंदना जी ऐसी पहली महिला हैं, जिन्हें 'आचार्य' की उपाधि प्राप्त हुई है। आज यह साधनास्थली उनकी सद् प्रेरणा से कर्म, ज्ञान तथा प्रेम की जीवंत तस्वीर प्रस्तुत कर रही है।

'स्व-कल्याण' में ही 'पर-कल्याण' निहित है, ऐसी मानव जीवन को आदर्श बनाने की प्रेरणा देती यह कर्म-भूमि राजगृह के स्वर्णिम ऐतिहासिक अतीत को जीवंत करता पुण्य-क्षेत्र भी है और मानव जाति के उज्ज्वल भविष्य का प्रेरणा-केंद्र भी! वीरायतन के परिसर में जब श्री चंदना श्री जी की मधुर वाणी प्रवचनों के माध्यम से प्रस्फुटित होती है तो ऐसा लगता है मानो वहां स्वयं भगवान महावीर प्रेम और करुणा का संदेश दे रहे हों। वीरायतन जैन धर्म के मर्म को समझने के साथ ही मानवसेवा को किन ऊंचाइयों तक ले जाया जा सकता है, यह देखने व समझने का आध्यात्मिक स्थान भी है।


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चालीस एकड़ क्षेत्र में संस्थापित जिस हरे-भरे और भव्य वीरायतन को आज हम देखते हैं, वहां आज से लगभग 40 वर्ष पूर्व पानी की एक बूंद भी नहीं थी। सूखी झाड़ियों तथा चट्टानी पत्थरों के अलावा वहां ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे थोड़ी भी तृप्ति का एहसास किया जा सके। इसी वीरान स्थल पर श्री चंदना श्री जी ने जिस साहस का परिचय दिया वह अद्भुत है। वे तेजोमय संकल्प से युक्त होकर इस स्थल पर आयीं, इसका अवलोकन किया और फिर दृढ़ संकल्प तथा आत्मविश्वास से परिपूर्ण होकर चट्टानों में फूल खिलाने का प्रयत्न शुरू कर दिया।

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उनके दृढ़ संकल्प में एक बहुत बड़ी शक्ति समाहित थी, तभी तो वे इस वीरान धरती पर लोक-कल्याण व धर्म-कर्म की गंगा प्रवाहित करने में सफल हुईं। आज इस स्थल पर प्रेम व सद्भाव की धारा बह रही है और निरंतर उसका विस्तार भी हो रहा है। देश भर में अपने सेवा-कर्म के लिए सुविख्यात एवं विदेशों तक प्रतिष्ठित वीरायतन में चलने वाले 'नेत्र ज्योति सेवा मंदिरम्‌' अस्पताल में मरीजों के लिये 100 से अधिक शय्याएं उपलब्ध रहती हैं। प्रति-माह आंख के 1600 ऑपरेशन होते हैं तथा दस हजार नेत्र-पीड़ित रोगमुक्त होते हैं। आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित इस अस्पताल में जरूरतमंद मरीजों को ऑपरेशन के साथ ही दवाइयां, चश्मा, भोजन, निवास आदि की सुविधाएं निशुल्क उपलब्ध करायी जाती हैं।


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मंदिर की तरह पवित्र इस सेवा मंदिरम्‌में श्री चंदनाश्री जी के पावन मार्गदर्शन में मरीजों को प्रतिदिन प्रार्थना और प्रवचन के माध्यम से दुर्व्यसन मुक्ति, जातीय सद्भावना, ग्राम सुधार, वृक्षारोपण एवं मांसाहार त्याग की प्रेरणा देने हेतु सुंदर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस आत्मीय तथा सुखद वातावरण में रहने के बाद वहां के मरीज यही कहते हैं कि 'हमें नेत्र ज्योति सेवा मंदिरम्‌में शरीर की ही नहीं, मन की आंखें भी प्राप्त होती हैं।'

वीरायतन का सेवा क्षेत्र धीमे-धीमे विस्तार की ओर ही अग्रसर होता जा रहा है। आचार्य श्री चंदनाश्री जी के साथ एक और अद्वितीय राष्ट्र गौरव भी जुड़ा हुआ है। उन्होंने उत्तराध्यन-सूत्र का हिन्दी अनुवाद भी किया है। वे कहती हैं, 'लक्ष्य सही हो और गति चाहे धीमी हो, धीरे-धीरे ही चलते चलें, एक-एक कदम भी क्यों न चलें, चलें तो सही। हो सकता है कि कुछ क्षण विश्राम के लिए पड़ाव भी हो, किंतु लक्ष्य उस धीमी गति के द्वारा भी पाया जा सकता है।


िवशेषांक, 2017। फेम इंिडया

लक्ष्य की दिशा में यात्रा न होकर, विपरीत दिशा की ओर हो, तो कितनी भी तेज यात्रा हो, वह यात्रा जीवन को भटकाएगी, उलझाएगी, गलत रास्ते की तरफ ले जाएगी, लक्ष्य तक नहीं पहुंचा पाएगी।' श्री चंदनाश्री जी का कर्मक्षेत्र वीरायतन वह स्थान है जहां किसी भी मनुष्य का न कोई धर्म, जाति, संप्रदाय और न ही कोई प्रांत होता है।

वहां मनुष्य केवल मनुष्य होता है और इसी भाव से वहां उसकी सेवा-सुश्रुषा की जाती है। भगवान महावीर की साधना और देशना भूमि, गौतम जैसे महान गणधरों की निर्वाण भूमि वीरायतन के आंगन में, मानव सेवा से जुड़े पवित्र-पावन उद्देश्य पर स्वयं के संपूर्ण-समर्पण का अद्भुत समन्वय है।

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िवशेषांक, 2017। फेम इंिडया

वीरायतन राजगीर आचार्य श्री जी ने आधुनिकतम उपकरणों से युक्त नेत्रालय नेत्र ज्योति सेवा मंदिरम (एनजेएसएम) के निर्माण को पूरा करवाया है. ये 175 बिस्तरों वाला अस्पताल है जो 52 हजार वर्गफुट में फैला हुआ है और ओपीडी तथा चिकित्सा सेवा के अतिरिक्त यहां सर्जरी की सुविधा भी उपलब्ध है। नेत्र चिकित्सा के अलावे एनएसजेएम को उत्तम दंत चिकित्सा, लोक स्वास्थ्य शिक्षा और कई दूसरी समाजसेवी गतिविधियों के लिये भी जाना जाता है। 1984 में हुए निर्माण के समय से ही इस अस्पताल ने इलाके के लाखों लोगों के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला है। यह अस्पताल डॉ. साध्वी श्री चेतना जी और उनकी कार्यकुशल तथा समर्पित टीम के कारण लोगों के बीच खासा लोकप्रिय है और इसीलिये इसे स्वयंसेवकों तथा दानकर्ताओं का भी अनवरत समर्थन मिलता रहा है।

आचार्य श्री जी ने राजगीर में ब्राह्मी कला मंदिरम (बीकेएम) की भी परिकल्पना तथा स्थापना की थी जो कि एक उम्दा कला गैलरी के रूप में स्थापित है। इस कला मंदिर की मुख्य विशेषताओं में यहां की अद्भुत कलात्मक पैनल, मिनिएचर पेंटिंग्स और रोजमर्रा की चीजों से बनी कलात्मक चीजें शामिल हैं। राजगीर का अतिथि गृह भी अपने-आप में एक उदाहरण है। वैभवगिरि पर्वत की तराई में बसा यह अतिथि गृह लगातार बढ़ रहे तीर्थयात्रियों के लिये उच्च स्तरीय भोजन और आवास की व्यवस्था में जुटा है। वीरायतन की अवधारणा के मूल में गुरुदेव श्री अमर मुनि जी की प्रेरणा छिपी है। उन्होंने राजगीर में कई वर्षों तक साधना की थी। उनकी स्मृति में बने स्मारक सप्तपर्णि आकर श्रद्धालु प्रार्थना व साधना में लीन होकर अलौकिक शांति का अनुभव करते हैं।


िवशेषांक, 2017। फेम इंिडया

वीरायतन पावापुरी

राजगीर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर पावापुरी वह पवित्र स्थल है जहां तीर्थंकर महावीर को मोक्ष प्राप्त हुआ था। राजगीर की तरह ही यहां भी बड़ी संख्या में तीर्थयात्री आते रहते हैं। यहां का जल मंदिर और समोशरण मंदिर काफी प्रसिद्ध है। कई भक्तों ने पावापुरी में अन्य मंदिरों और स्मारकों का निर्माण करवाया है जिससे इस पावन स्थल की सुंदरता में चार चांद लग गये, किन्तु स्थानीय लोगों को इसका कोई लाभ नहीं मिला।

उनका जीवन अशिक्षा निर्धनता के अंधेरे में ही व्यतीत हो रहा था। यह महसूस कर आचार्यश्री ने पावापुरी में एक आधुनिक व स्तरीय स्कूल का निर्माण करवाया जो तीर्थंकर महावीर विद्या मंदिर या टीएमवीएम के नाम से पूरे पूर्वी भारत में मशहूर है। यहां प्राइमरी और सेकेंडरी स्तर के शिक्षण की व्यवस्था है। वीरायतन ने उच्च और रोजगारपरक शिक्षा पर भी ध्यान दिया है और सन् 2007 में वीरायतन बीएड कॉलेज की स्थापना की गयी। पावापुरी में वीरायतन के पास अत्याधुनिक क्लासरुम, लाइब्रेरी, प्रयोगशाला और कैंटीन आदि की सुविधा है।

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िवशेषांक, 2017। फेम इंिडया

वीरायतन लछुआर जैन संप्रदाय के एक बड़े वर्ग में जमुई के लछुआर ग्राम को भगवान महावीर की जन्मभूमि माना जाता है। कभी यहां निर्धन, किन्तु शांत और पवित्र स्वभाव के ग्रामवासी रहते थे, लेकिन अब इस इलाके पर नक्सली उग्रवाद की छाया है।

जब आचार्यश्री जी ने देखा कि यहां की आर्थिक प्रगति के मूल में अशिक्षा एक प्रमुख बाधा है तो उन्होंने यहां के आदिवासियों के लिये तीर्थंकर महावीर विद्या मंदिर की स्थापना करने का निर्णय लिया। कठिन कार्य था, लेकिन जैना-यूएसए के सहयोग से यह मिशन 2001 ई. में यथार्थ रूप में आया। टीएमवीएम लछुआर हर वर्ष करीब 1 हजार बच्चों को शिक्षा दे रहा है और उनके परिवार वालों तथा परिजनों को भी परोक्ष रूप से लाभ पहुंचा रहा है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के कोर्स के अतिरिक्त टीएमवीएम लछुआर में मानवीय मूल्यों की भी शिक्षा दी जाती है। स्कूल लाइब्रेरी, कंप्युटर लैब, मेडिकल रुम तथा बस जैसी सभी आधुनिक सुविधाओं से लैस है।


िवशेषांक, 2017। फेम इंिडया

वीरायतन जखानिया

26 जनवरी 2001 में गुजरात के कच्छ में भयंकर भूकंप आया। हजारों लोग मारे गये और सैकड़ों घर बर्बाद हो गये। स्थानीय लोगों की मदद के लिये फौरन कई शिक्षण संस्थान व वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर खोले गये ताकि बेसहारा हुए लोग अपने पैरों पर खड़े हो सकें। जब लोगों के पुनर्वास की समस्या बढ़ने लगी तो वीरायतन ने कच्छ में हर स्तर के शिक्षण संस्थान स्थापित किये। मुख्य तौर पर कच्छ में वीरायतन ने पांच स्थानों पर शिक्षण संस्थानों की स्थापना की है। ये हैं - जखानिया, हरिपार, रुद्राणी, पुंडाई और असंबिया।

जखानिया प्राइमरी व सेकेंडरी स्कूल इस इलाके में वीरायतन ने पहली बार कोई विद्यालय स्थापित किया। जखानिया की लड़कियों के लिये तो उच्च शिक्षा पाने का पहला अवसर भी वीरायतन ने ही दिया। वीरायतन जखानिया में 500 से भी अधिक बच्चों के लिये स्वच्छ भोजनालय की भी व्यवस्था है। वीरायतन इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी वीरायतन ने दवाओं क्षेत्र में फार्मेसी की शिक्षा देने के लिये वीआईपी यानी वीरायतन इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी की शुरुआत की। अपने देश में दवाओं का कारोबार करीब साढ़े चार अरब रुपये का है जो हर वर्ष लगभग 8-9 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। कच्छ इलाके में करीब तीन सौ कंपनियां हैं जिनमें तकरीबन 3000 करोड़ रुपसे का निवेश हुआ है। फार्मा के अलावे वीरायतन ने कुछ दूसरे रोजगार परक कोर्स भी शुरु किये हैं जिनमें शिक्षा प्राप्त कर नौजवानों को कच्छ इलाके में तेजी से बढ़ रही कंपनियों में नौकरी मिल सके। कंपनियों में बिजनेस मैनेजमेंट और कंप्यूटर ऐप्लिकेशन में ग्रैजुएशन स्तर यानी बीबीए तथा बीसीए की डिग्री हासिल करने वालों की भारी मांग है। ऐसा देखा गया है कि तीन साल के इन ग्रैजुएट कोर्सों को पूरा करने वाले अधिकतर छात्रों को फौरन रोजगार मिल जाता है।

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वीरायतन हरिपार

वैसे तो भारत में युवाओं की बड़ी संख्या मौजूद है और इस लिहाज से इसे दुनिया में पहले नंबर पर माना जाता है, लेकिन विडंबना यह है कि इसका एक बड़ा हिस्सा बेरोजगारी की चपेट में है। युवाओं की इस बेरोजगारी में अशिक्षा या कमजोर शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान है। आंकड़ों के मुताबिक केवल 14 प्रतिशत छात्र ही उच्च शिक्षा की पढ़ाई के लिये दाखिला हासिल कर पाते हैं। वीरायतन ने इस दिशा में छिपी संभावनाओं को तलाशा और दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में भी शिक्षण संस्थानों की स्थापना की।

वीरायतन इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट एंड रिसर्च, हरिपार को इसकी दूरदर्शी सोच और पारदर्शी प्रबंधन के लिये जाना जाता है। अनुभवी और स्थायी लीडरशिप, उत्साही और उच्च शिक्षा प्राप्त फैकल्टी, मनमोहक इंफ्रस्ट्रक्चर व शिक्षा का उच्च स्तर इस इंस्टीट्यूट को एक अलग ही पहचान प्रदान करता है। इंस्टीट्यूट अपने छात्रों को न सिर्फ शिक्षा प्रदान करता है बल्कि पाठ्येत्तर गतिविधियों, तकनीकी, खेल व वाद-विदाद आदि के जरिये उनके व्यक्तित्व को निखरने का एक विस्तृत प्लेटफॉर्म भी प्रदान करता है। करीब 5 लाख वर्गफीट में फैले इस विशाल कैंपस में होस्टल, स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स और सभी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। यह इंस्टीट्यूट आईटी, इलेक्ट्रॉनिक व कम्युनिकेशन, सिविल, मेकैनिकल, केमिकल, कंप्यूटर व इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में मास्टर्स डिप्लोमा प्रोग्राम मुहैया करवाता है। यहां के छात्र कम मूल्य पर उच्च स्तरीय शिक्षा पाते हैं वह भी काफी अच्छे व अनुभवी शिक्षकों से। जरूरतमंद और मेधावी छात्रों के लिये स्कॉलरशिप भी उपलब्ध है। जैसा कि वीरायतन के हरेक संस्थान में होता है, यहां भी छात्रों की पूरी पर्सनैलिटी निखारी जाती है जिसमें इफेक्टिव कम्युनिकेशन और जीवन में पॉजिटिव सोच रखने की सीख दी जाती है।


िवशेषांक, 2017। फेम इंिडया

वीरायतन रुद्राणी “कच्छ में रुद्राणी का वीरायतन सेंटर मेरे लिये सबसे प्रिय संस्थानों में से एक है। मुझे यहां बहुत आनंद आता है। लोगों का भोलापन, खूबसूरत बच्चे और सुंदर हरियाली ऐसी लगती है जैसे रेगिस्तान के बीच एक मरुभूमि हो। यह एक बहुत खास जगह है और मैं उम्मीद करती हूं कि मैं एक दिन यहां अपना पूरा समय व्यतीत कर पाउंगी।” – आचार्यश्री चंदना जी

वीरायतन विद्यापीठ रुद्राणी एक अनोखा इंस्टीट्यूट है जहां उन छात्रों के सपनों को उड़ान मिलती है जिनके लिये शिक्षा किसी सपने की तरह था। यह एक प्राइमरी शिक्षण संस्थान है जिसमें 2001 के उन भूकंप-पीड़ितों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है जो बॉर्डर इलाके से आये हैं। इनमें से अधिकतर बच्चे वैसे हैं जिनके परिवार में से कभी किसी ने स्कूली शिक्षा हासिल नहीं की है। इनके परिवारों में अपने बच्चों को लेकर काफी उत्साह है। बच्चों की सामाजिक-आर्थिक और भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए वीरायतन में इन्हें मुफ्त युनिफॉर्म, किताबें, स्टेशनरी और पौष्टिक नाश्ता और मिड-डे मील भी दिया जाता है। इस इंस्टीट्यूट की खास बात यह है कि यहां नामांकन कराने वाली लड़कियों की संख्या निरंतर बढ़ रही है। यह साध्वी जी का स्थानीय लोगों से लगातार संपर्क बनाये रखने और उन्हें नारी-शिक्षा का महत्व समझाने का असर ही है कि लोग अपनी बेटियों को स्कूल भेज रहे हैं।

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वीरायतन पालीताणा

गुजरात में पालीताणा शत्रुंजय पर्वत की तलहटी में स्थित जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ है क्योंकि यह स्थान प्रथम तीर्थंकर का समवशरण स्थल है , आचार्य श्री चंदना जी के आशीष, मार्गदर्शन व कुशल संचालन में यहाँ बृहद शिक्षण संस्था- वीरायतान प्रज्ञातीर्थ तक्षशिला का विस्तार बहुत सफलतापूर्वक किया जा रहा है, यहॉ विश्व का पहला ऐसा ज्ञान विश्वविद्यालय बनाने की प्रक्रिया चल रही है जहाँ समाज को शिक्षित और सही मार्गदर्शन करने के लिए साध्वी संघ को उत्कृष्ठ ज्ञान ,भाषा व् साधना से जुडी उच्च शिक्षा प्रदान की जायेगी ।समाज निर्माण में यह ऐतिहासिक, एवं इतने बड़े स्तर पर पहला प्रयास हो रहा है ।


िवशेषांक, 2017। फेम इंिडया

वीरायतान पालीताणा की भव्यता अद्भुत है और आध्यात्मिक, दाशनिक एवं व्यावहारिक ज्ञान के विस्तार में यह सबसे महत्वपूर्ण संस्थान बनने को प्रस्तुत है।यह केंद्र विश्व के आध्यात्मिक मानचित्र पर प्रमुखता से उभर रहा है, वीरायतन के तीन प्रमुख ध्येय - शिक्षा, सेवा और साधना एक ही छत के नीचे उपलब्ध रहेंगे। वीरायतान पालीताणा परिकल्पित है एक ऐसी संस्था बनाने को जहाँ दुनिया के किसी भी कोने के लोग आ कर न सिर्फ शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे बल्कि शांति से ध्यान, विश्राम और साधना भी कर सकेंगे तथा इच्छानुसार स्वयंसेवक के तौर पर सेवा कार्यों में भी शामिल हो सकेंगे । यह अपनी तरह का एक अनूठा केंद्र बन रहा है जो लोगों को धर्म और जीवन के प्रति पवित्र सोच बनाने में मदद करेगा । विशाल शिक्षण संस्थान के अलावा टीचर्स ट्रेनिंग सेंटर, वोकेशनल व टेक्निकल ट्रेनिंग सेंटर्स, मॉडल स्कूल व बाल संस्कार केंद्र भी बन रहे है साथ ही आध्यात्मिक केंद्र, उपाश्रय, मंदिर, लाइब्रेरी, ध्यान व योग केंद्र, आरोग्य सेंटर, अतिथि गृह और भोजनालय का भी निर्माण किया जाएगा। सुंदर पर्वत की आभा में बसे इस केंद्र की छटा भी बेहद मनोहारी है। वीरायतान तक्षशिला का यह शिक्षण केंद्र आधुनिक व प्राचीन शिक्षण का एक अद्भुद संगम प्रस्तुत करेगा।

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वीरायतन व्योम - आगरा यहां का पर्युषण पूरी तरह से ऐतिहासिक रहा है। अधिकतर लोगों को पता है कि आचार्यश्री चंदना के आगरा पर्युषण कार्यक्रम के दौरान उनसे प्रेरित होकर अशोक सुराना जी ने एक मूल्यवान हेरिटेज प्रॉपर्टी वीरायतन को दान में दे दी जो आगरा के दिल में बसे ताजमहल के निकट है।

इसे लेकर आगरा के जैन समाज में उत्साह की लहर है। यह संयोग ही है कि 1970 में वीरायतन के विचार की उत्पत्ति आगरा में ही हुई थी औऱ 2020 तक इसी नगरी में वीरायतन की एक ऐतिहासिक शाखा स्थापित हो जायेगी। आचार्यश्री जी ने आगरा के लोगों में सकारात्मकता का ऐसा संचार किया है कि लोग उनकी शिक्षा और वीरायतन की विचारधारा की पूजा करने लगे हैं। वीरायतन व्योम, आगरा के सदस्य हर साल 2-3 वर्कशॉप करने और वीरायतन के विचारों को प्रसारित करने के भी पक्षधर हैं।


िवशेषांक, 2017। फेम इंिडया

वीरायतन ओसियाजी

राजस्थान में जोधपुर के पास ओसियाजी एक छोटा सा कस्बा है। थार मरुस्थल के बीचोंबीच बसे इस स्थान पर ऐतिहासिक महत्व के कई मंदिर हैं जिनके कारण ओसियाजी को 'राजस्थान का खजुराहो' भी कहा जाता है। यहां आठवीं सदी में बने ब्राह्मी और जैन मंदिर पाये जाते हैं जिन्हें स्थानीय शासकों ने बनवाया था। जुलाई 2016 में वीरायतन स्कूल की शुरुआत हुई जहां कुछ कमरे और बच्चों के लिये खेल के मैदान भी उपलब्ध हैं यह नया केंद्र है और यहां स्थानीय लोगों की जागरुकता बढ़ रही है। शुरुआत प्राइमरी शिक्षा से की जा रही है जिसका शीघ्र ही विस्तार किया जायेगा।

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वीरायतन संचोर भगवान महावीर के समय यह स्थान एक गांव था जहां उन्होंने अपना कुछ समय व्यतीत किया था। जैन धर्मावलंबियों के लिये सांचोर एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है और ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि यहां 130 जैन मंदिर अवस्थित थे। इनमें से अब नौ ही शेष बचे हैं। प्राचीन काल में यह क़स्बा 'सत्यपुर' के नाम से विख्यात था। इसका जैन ग्रंथ 'विविधतीर्थ कल्प' में जैनतीर्थ के रूप में वर्णन है। वीरायतन ने यहां अपनी शाखा का विस्तार किया है जिसमें यहां के गरीब बच्चों को शिक्षा देने की योजना है।

ओसियान से लगभग 300 किलोमीटर पर स्थित जालौर के निकट सांचोर एक ऐतिहासिक महत्त्व की जगह है जहां हड़प्पा काल की सभ्यता विकसित हुई थी। ऐसा माना जाता है कि यहां लगभग 6000 साल पहले इंसानों के कदम पड़े थे और एक सभ्यता विकसित हुई।


िवशेषांक, 2017। फेम इंिडया

वीरायतन खंडोबा, पुणे, महाराष्ट्र पुणे का यह केंद्र शीघ्र ही विश्व के आध्यात्मिक मानचित्र पर प्रमुखता से उभरने वाला है। वीरायतन के तीन प्रमुख ध्येय - शिक्षा, सेवा और साधना एक ही छत के नीचे उपलब्ध रहेंगे। वीआईएसईसी एक ऐसा स्थान बनने के लिये परिकल्पित है जहां कोई भी व्यक्ति न सिर्फ शिक्षा ग्रहण कर सकेगा बल्कि शांति से विश्राम और साधना भी कर सकेगा तथा अगर उसकी इच्छा हो तो स्वयंसेवक के तौर पर सेवा कार्यों में भी शामिल हो सकेगा। यह अपनी तरह का एक अनूठा केंद्र बन रहा है जो लोगों को धर्म और जीवन के प्रति पवित्र सोच बनाने में मदद करेगा।

इसे एक विशाल शिक्षण संस्थान के अलावा टीचर्स ट्रेनिंग सेंटर, वोकेशनल व टेक्निकल ट्रेनिंग सेंटर्स, एक मॉडल स्कूल व बाल संस्कार केंद्र बनाने की तैयारी है। इसके अलावे यहां आध्यात्मिक केंद्र, उपाश्रय, मंदिर, लाइब्रेरी, ध्यान व योग केंद्र, नैचुरोपैथी सेंटर, एक अतिथि गृह और गौतमलब्धि भोजनालय बनाने की भी योजना है। एक सुंदर पर्वत पर बसे इस केंद्र की छटा भी बेहद मनोहारी है। वीएसआईएसईसी का यह शिक्षण केंद्र आधुनिक व प्राचीन शिक्षण का एक संगम प्रस्तुत करेगा।

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वीरायतन इंटरनेशनल

वीरायतन ने एक ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार किया है जिसके जरिये दुनिया के हर कोने में बसे लाखों लोग विश्व और समाज को काफी कुछ दे सकते हैं। आचार्यश्री चंदना जी ने खुद पूरे विश्व की यात्रा कर प्यार, उम्मीद और दया के संदेश को फैलाया और सात समंदर पार के लाखों लोगों के हृदय में स्थान प्राप्त किया।

वीरायतन यूएसए आज वीरायतन अपने तीनों स्तंभों- मानवता की सेवा, शिक्षा और साधना के लिये पूरी दुनिया में एक आंदोलन बन गया है। वीरायतन इंटरनैशनल की कुछ प्रमुख शाखाएं अमेरिका, ब्रिटेन औऱ केन्या आदि देशों में धर्म पताका लहरा रही हैं। वीरायतन इंटरनैशनल यूएसए आचार्यश्री चंदना जी की प्रेरणा और ह्युस्विल मैरीलैंड के डॉक्टर नयन शाह के समर्पित प्रयासों से एक स्वयंसेवी संगठन के तौर पर 1996 में स्थापित हुआ था। आचार्यश्री के दूरदर्शी नेतृत्व और साध्वी जी के समर्पन तथा सैकड़ों स्वयंसेवकों व संरक्षकों के समर्थन से वीरायतन इंटरनैसनल यूएसए दुनिया भर में लाखों जरूरतमंदों की मदद में जुटा है। वीरायतन इंटरनैशनल अमेरिका की विश्व प्रसिद्ध संस्था समूह जैना (फेडरेशन ऑफ जैन एसोशिएसंस इन नॉर्थ अमेरिका) के साथ कंधे से कंधा मिला कर मानवता की सेवा में जुटा है।


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वीरायतन यूके

1995 में वीरायतन यूके की स्थापना हुई और तब से यह ब्रिटेन, युरॉप और दुनिया के कई हिस्सों में सेवा कार्यों में संलिप्त है। इस संस्था ने न सिर्फ वीरायतन के सिद्धांतों को स्थानीय लोगों में प्रचारित किया है बल्कि देश-विदेश में वीरायतन की किसी भी शाखा के कार्यों को भी मदद दी है।

भारत में चल रहे मानवीय कार्यों और दूसरे परोपकार के कार्यों को वीरायतन यूके अभी तक दस लाख अमेरिकी डॉलर से भी अधिक की मदद कर चुका है। 1996 में स्थापित हुआ श्री चंदना विद्यापीठ (एससीवीपी) इंग्लैंड के सबसे पुराने जैन स्कूलों में से है। आचार्यश्री की प्रेरणा से साध्वी शिल्पाई जी द्वारा स्थापित एससीवीपी ने पश्चिम में जैन शिक्षण को क्रांतिकारी रूप दिया है। यह स्कूल एक धर्म निरपेक्ष संस्था के तौर पर सभी धर्मों और वर्गों के बीच प्रेम और सौहार्द फैलाने का काम करती है। इसमें तीर्थंकर महावीर के दर्शन के प्रति लोगों में प्रेम जगाने की सीख भी दी जाती है। वीरायतन यूके ने रुद्राणी के स्कूल और नेपाल के भूकंप पीड़ितों की मदद के लिये भी काफी फंड इकट्ठा कर पीडितों की मदद की है।

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वीरायतन नेपाल अप्रैल 2015 में नेपाल के विध्वंसकारी भूकंप ने इस छोटे से पर्वतीय देश को भारी नुकसान पहुंचाया। 8000 से भी अधिक लोग काल का ग्रास बन गये और 20 हजार से भी अधिक लोग बेघर व बेरोजगार हो गये। पीड़ितों की मदद के लिये पहुंची साध्वियों ने वहां सहायता और मानवता की ऐसी ज्योति जगायी जिसने वीरायतन नेपाल नाम के एक संस्थान को ही स्थापित कर दिया।

हालांकि नेपाल में परिस्थितियां बेहद प्रतिकूल थीं, लेकिन साहस और सेवा की प्रतिमूर्ति बनी साध्वियों ने हार नहीं मानी और हजारों लोगों के लिये राहत शिविर लगाये गये। बेरोजगार हुए लोगों को रोजगार और स्वरोजगार सिखाने के लिये वोकेशनल ट्रेनिंग कैंप खोले गये। कच्छ की तर्ज पर नेपाल में भी वीरायतन स्कूल की शाखा खोलने का भी फैसला लिया गया जिसमें सैकड़ों अनाथ व बेसहारा हुए बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। नेपाल में वीरायतन की योजना एक बड़े स्कूल, पुनर्वास केंद्र और अस्पताल बनाने की भी है।


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वीरायतन केन्या

नैरोबी में श्री चंदना विद्यापीठ (एससीवीपी) की स्थापना 1997 में की गयी जिसमें नैतिकता व सदाचार की शिक्षा दी जाती है। नैरोबी के यंग जैन्स और स्थानीय समर्थकों के सहयोग से केन्या और निकटवर्ती अफ्रीकी देशों में मानवता और दया का संदेश फैलाने के लिये निर्मित इस संस्थान में 300 से भी अधिक छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इस स्कूल में 40 से भी अधिक स्वयंसेवी शिक्षक हैं और यह केंद्र साध्वी शिल्पाजी तथा अन्य साध्वियों के निरंतर संपर्क में है। आचार्यजी के जन्मदिन पर सन् 2015 में सेरेब्रल पल्सी केंद्र की शुरुआत की गयी।

वीरायतन दुबई

सन् 2003 में श्रीचंदना विद्यापीठ दुबई की स्थापना की गयी जो जैन-विचारों पर आधारित शिक्षा प्रदान करता है। यहां आत्मचिंतन, आध्यात्मिक विकास और भारतीय संस्कृति व विरासत की शिक्षा दी जाती है। यहां सभी धर्मों व संप्रदायों के लोगों को शिक्षा दी जाती है तथा उनमें देश, राष्ट्रीयता और जाति या रंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता। अन्य केंद्रों की तरह वीरायतन दुबई भी सही मायनों में एक अंतर्राष्ट्रीय केंद्र है। यहां वीरायतन की साध्वियों का प्रवचन तथा धर्म आधारित वर्कशॉप भी आयोजित किये जाते हैं।

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ऊर्ध्वगामी ऊर्जा, युगानुरूप चिन्तन तथा समय प्रवाह के दशकों को भेदकर आगे देखने की विलक्षण द्रष्टि जिन व्यक्तित्व में है, वह व्यक्तित्व है – आचार्य श्री चन्दना जी। बचपन से ही दृश्य जगत के पार अदृश्य के प्रति उनका उत्कंठित ह्रदय ने ही उन्हें तीर्थंकर महावीर के पथ पर समारूढ किया और वे साध्वी चन्दना बनकर अध्ययन के हर क्षेत्र – आगम, दर्शन, न्याय, व्याकरण आदि को केवल छुआ ही नहीं किन्तु पूरी निष्ठा और लगन से पारंगत हुए। तब उनकी प्रखर प्रज्ञा ने जाना कि रूढियों और मान्यताओं की धूल के नीचे तीर्थंकर महावीर की करुणा दब गई है। उस करुणाभाव को प्रकट करने का उन्होंने पूरा-पूरा प्रयास किया। उन्होंने स्वयं की प्रज्ञा से साधना पथ का चुनाव किया। अहिंसा केवल नकारात्मक नहीं, विधायक अहिंसा ही करुणा है, जो सेवा भाव से फलित होती है। उन्होंने दृढतापूर्वक कहा – अगर साधु अपनी वाणी से सेवा का उपदेश दे सकते हैं तो अपने कर्म से सेवा क्यों नहीं कर सकते ? और इस चिन्तन के प्रकाश में उन्होंने परिवर्तन को गति दी। उनका सारा साध्वी संघ अपनी-अपनी योग्यता और क्षमता के साथ सत्कर्मों में सहयोगी बनकर मानव जाति के कल्याण के लिए प्रयत्नशील हैं।


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उपाध्याय साध्वी श्री यशाजी

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आचार्य श्री चंदना जी महाराज के नेतृत्व में वीरायतन के विशाल कार्य क्षेत्र में पूर्ण समर्पण के साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती उपाध्याय साध्वी श्री यशा जी का आत्मज्ञान जितना विशाल है उतना ही गहरा है। वे धारा प्रवाह कई भाषाओं में प्रवचन एवं लेखन की विशिष्ट क्षमता से संपन्न है। गुरु के प्रति इनका समर्पण अद्भुत है जो गुरु के संकेत मात्र से सार्थक करने की तत्परता देख सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है। गुरु आज्ञा परम धर्म – ऐसे समर्पण ही सहज भाव से सेवा कार्य को सार्थक कर सकते है।


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साध्वी श्री साधना जी जीवन में विश्व कल्याण की भावना से भरी और गुरु के आदेश को परम सन्देश मानने वाली 64 वर्षीय साध्वी श्री साधना जी स्थविरा साध्वी है। वीरायतन के श्री ब्राह्मी कला मंदिरम् में इनका महत्वपूर्ण योगदान है। ये वीरायतन की मासिक पत्रिका अमर भारती की संपादक भी हैं। भारतीय धर्म–दर्शन व चिंतन पर ज्ञान इनकी प्रमुख विशेषता है और इन्हें वीरायतन संस्था में महत्वपूर्ण स्तंभ के तौर पर माना जाता है।

डॉ. साध्वी श्री चेतनाजी

अंतर्राष्ट्रीय संस्था वीरायतन की प्रमुख आचार्य श्री चन्दना श्री जी की प्रथम शिष्या हैं डॉ साध्वी श्री चेतना जी। सन 1974 में वैभवगिरि की तलहटी स्थित वीरायतन में पहली बार नेत्र चिकित्सा का आयोजन हुआ था और डॉ साध्वी श्री चेतना जी तभी से इसी सेवा कार्य में आचार्य श्री जी की आज्ञा से समर्पित हो गयीं और पिछले 42 वर्षों से ‘नेत्र ज्योति सेवा मंदिरम्’ (आई हॉस्पिटल) में अपनी शक्ति, सामर्थ्य, योग्यता के साथ सेवा में निरन्तर-निरन्तर अविरत तल्लीन हैं। इनकी अपने आचार्य व संस्था के प्रति समर्पण विलक्षण है।


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साध्वी श्री विभा जी

वीरायतन की सेवा कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली साध्वी श्री विभा जी ने राजगीर में दीक्षा प्राप्त की, इन्हें गुजराती लेखन की शैली में महारत हासिल है,इनका अपने गुरु के प्रति समर्पण अतुलनीय माना जाता है वही सेवा के किसी में कार्य में ये सदैव पूरी तन्मयता से अपने सभी दायित्वों के प्रति बेहद सजग रहती हैं। संघ की ये एक मुख्य स्तंभ हैं जो कहीं भी, किसी भी सेवा के अवसर पर बड़ी जिम्मेदारी निभाने को तत्पर रहती हैं और अंतर्राष्ट्रीय संस्था वीरायतन में अहम् कार्य कर रही हैं।

साध्वी श्री शुभम जी

अंतर्राष्ट्रीय संस्था वीरायतन में युवाचार्य पद से सम्मानित साध्वी श्री शुभम जी संस्था की मुख्य स्तंभ में एक है। ज्ञान व दर्शन में इनकी स्वाभाविक जिज्ञासा ने इन्हें दर्शन ग्रंथों के अध्ययन को प्रेरित किया और इन्होंने जैन, बौद्ध, वैदिक तीनों प्राचीन परम्परा के धर्म, दर्शन ग्रन्थों का व्यापक अध्ययन किया, इनकी प्रवचन शैली देश दुनिया में अत्यंत लोकप्रिय है और दुनिया भर के युवा इनको सुनना चाहते हैं, पिछले 26 वर्षों से दुनिया भर में ये धर्मजागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। आचार्य श्री चंदना जी के आदेशानुसार इन्होंने विश्व भर में बहुत सी सेमिनार को मजबूती से संबोधित कर वीरायतन के सेवा भाव से दुनिया को परिचित करवाया है।


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साध्वी श्री श्रुतिजी

वीरायतन के साध्वी संघ में वैसे तो कई रत्न हैं पर इनमें से अपने आचार्य के प्रति कर्तव्यनिष्ठा में मुख्य स्थान रखती हैं साध्वी श्री श्रुति जी। संघ के प्रमुख सेवा कार्य शिक्षा में अपने योगदान के लिए ये पहचानी जाती हैं। एक कर्तव्यनिष्ठ, मौन सेवाव्रती साध्वी हैं श्री श्रुति जी। बच्चों को पढ़ाना उनका प्रिय विषय है। अंतर्राष्ट्रीय वीरायतन संस्था के मजबूत स्तंभ में शामिल श्री श्रुति जी अपने गुरु के प्रति अत्यंत अनुराग रखती हैं।

साध्वी श्री शिलापी जी

अंतर्राष्ट्रीय वीरायतन संस्था के विस्तार में अहम भूमिका निभा रही साध्वी श्री शिलापी जी भी उच्च शिक्षित है,पोस्ट ग्रेज्युएट की शिक्षा प्राप्त श्री शिलापी जी आचार्य श्री जी द्वारा दीक्षित हुयी और पूर्ण श्रद्धा से सेवा कार्य में जुटी है। इन्हें वीरायतन के मुख्य स्तंभ में माना जाता है, दुनिया भर में वीरायतन के शिक्षा सेवा कार्य के विस्तार में इनका दायित्व बेहद अहम है, वीरायतन विद्यापीठ - कच्छ गुजरात, अंतर्राष्ट्रीय वीरायतन नेपाल जैसे कई अन्य महत्वपूर्ण संस्थानों के निर्माण, संचालन और विस्तार में इनका महत्वपूर्ण योगदान है, विश्व भर में धर्म जागरण एवं “ श्री चंदना विद्यापीठ केन्या और यूके के निर्माण जैसे अति महत्वपूर्ण कार्य में इनकी बड़ी भूमिका है।


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साध्वी श्री सुमेधा जी

आचार्य श्री चंदना जी महाराज व अंतर्राष्ट्रीय संस्था वीरायतन के कच्छ स्थित संस्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही साध्वी श्री सुमेधा जी ने 1999 में दीक्षित प्राप्त की और तब से लगातार वे अपने गुरु के आदेश से कही भी किसी भी जिम्मेदारी को मजबूती से निभाना ही अपना परम धर्म मानती है, वीरायतन कच्छ ने शिक्षा व लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के क्षेत्र में बहुत बड़े-बड़े कार्य किये हैं और आज भी सतत वहां व्यक्तित्व निर्माण के लिए बहुत से कार्य किये जा रहे है। समर्पित साध्वी जी आचार्य श्री की प्रेरणा से सतत प्रयत्नशील है।

साध्वी डॉ सम्प्रज्ञा जी

अंतराष्ट्रीय संस्था वीरायतन की शुरुआत 45 वर्ष पूर्व राजगीर के वैभारगिरि पर्वत की तलहटी में हुई थी। आज दुनिया भर में सेवा, शिक्षा व चिकित्सा के कार्यो में इस संस्था की महत्वपूर्ण पहचान है जो आचार्य श्री चन्दनाश्री जी के प्रज्ञा और पुरुषार्थ से संभव हुआ, वीरायतन बिहार के इस मूल संस्था को सँभालने की मुख्य जिम्मेवारी आचार्य श्री जी ने समर्पित व उच्च शिक्षित साध्वी डॉ सम्प्रज्ञा जी को दिया है। ये असीम श्रद्धा व विश्वास के साथ इस संस्था के सेवा व शिक्षा, चिकित्सा सहित विस्तार के कार्य को बखूबी निभा रही है.


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साध्वी श्री रोहिणी जी

अंतर्राष्ट्रीय संस्था वीरायतन में मधुर भजनों से शांति का अहम् स्थान है। ये आचार्य श्री चंदना जी के प्रेरणा पूर्ण पदों को भजन पद में स्वर देने में मुख्य भूमिका निभाती है। साध्वी रोहिणी जी सेवा कार्य के साथ ही भाव विह्वल भजनों के द्वारा अपने पूज्य गुरु आचार्य श्री के सन्देश को दुनिया भर में पहुंचने में मुख्य भूमिका निभा रही है, भक्तिरस में रोहिणी जी का अहम् स्थान है और दीक्षा के साथ ही आचार्य के आशीष से इन्होंने गुरु वचन को सरलता से भक्ति रस में डुबोने की उत्तम कला सीख ली है।

साध्वी श्री संघमित्रा जी

वीरायतन ग्लोबल व वीरायतन पालीताणा गुजरात के निर्माण, संचालन व विस्तार में आचार्य श्री चंदना जी के आशीष व मार्गदर्शन में अत्यंत व्यवस्थित संचालन कर रही साध्वी संघमित्रा जी विलक्षण प्रतिभा से परिपूर्ण है, आचार्य श्री के अध्यात्म – जनकल्याण के गीतों को जब इनकी सम्मोहन पूर्ण मधुर वाणी का साथ मिलता है तो दुनिया भर के अध्यात्म व जन कल्याण की भावना से जुड़े युवाओंश्रद्धालुओं भक्ति रस में तल्लीन हो जाते है जो उन्हें बेहतर करने को प्रेरित भी करती है। इन्होंने परम पूज्य अमर मुनि जी महाराज व आचार्य श्री चंदना जी महाराज के निर्देश में संस्कृत व प्राकृत का गहराई से अध्ययन किया। वीरायतन से बचपन से जुड़ाव था और इन्होंने यूएस से आकर दीक्षा ग्रहण की।


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साध्वी श्री मनस्वी जी

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राजकोट के अत्यंत धार्मिक परिवार से आने वाली साध्वी श्री मनस्वी जी वीरायतन से कई वर्षों से जुड़ी हैं। इन्होंने सन् 2013 में दीक्षा ग्रहण की और वीरायतन के कई महत्वपूर्ण कार्यों में प्रमुख योगदान कर रही हैं। कई भाषाओं की जानकार मनस्वी जी की मुख्य विशेषता सेवा मानी जाती है। नेपाल में आये भयंकर विनाशकारी भूकंप के बाद से ही ये वहां के असहाय हुए लोगों की सेवा में जुटी हैं तथा वीरायतन, नेपाल द्वारा चलाये जा रहे वोकेशनल ट्रेनिंग कैंप और स्कूल का कुशल संचालन कर रही हैं।


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सेवा ही है वास्तविक धर्म - आचार्य श्री चंदना जी महाराज वीरायतन ने क्यों बिहार को अपन कार्यक्षेत्र चुना ? बिहार तीर्थकर भगवान महावीर की जन्म भूमि, उपदेश भूमि और निर्वाण की पवित्र भूमि होने के साथ भगवान बुद्ध की कर्मभूमि भी है। वहां प्रभु के संदेश का प्रचार प्रसार हो सके, इसलिये राजगृह को वीरायतन का कार्यक्षेत्र बनाया। वहां के लोग पूर्वाग्राही थे उस वक्त विश्वास के साथ अनेक व्यवधानों के बीच लोक कल्याण का कार्य प्रारंभ किया। यहां धर्मनिरपेक्ष के स्थान पर लोक कल्याण के कार्य को क्यों स्वीकारा ? मुझे भगवान महावीर की करुणा स्पर्शी है धऱ्म और सेवा भिन्न नहीं है धर्म धरती के प्रश्नों के निराकरण के लिये है। ध्यान योग साधना के निष्क्रिय कर्मकांड समाज को ज्यादा निष्क्रिय बनाता है। मृत्यु के बाद मोक्ष, स्वर्ग या आत्म

कल्याण की चिन्ता करने की अपेक्षा लोक कल्याणा का मार्ग उत्तम है। आप श्रमण संघ से अलग क्यों हुए ? मुझे साधु जीवन में परंपरा से ज्यादा भगवान महावीर का जीवन आदर्श रूप लगा, अत: लोक कल्याण के कार्य करने के लिए मैंने वर्ष 1969 में श्रमण संघ को त्याग दिया। उस त्याग पत्र को मैं समर्पण पत्र मानती हूं। आपके साध्वी जीवन का सबसे सुखद प्रसंग कौन सा है ? हर क्षण को मैंने सुखद और आनंदपूर्ण माना है। एक बार बिहार की नौ साल की बच्ची जो मजदूरी के रूप में महीने के सौ रुपए कमाती थी, उसे मैंने वीरायतन स्कूल में पढ़ने के लिये आने का आग्रह किया। मैंने उससे एक रुपया मांगा तो उसने मुझे अपनी पूरी पगार देने की तैयारी दिखायी।

मेरा मानना साधुओं की तर अधिकार मिल बंद करके आ करें, उससे तो आंखें खुली रख समक्ष दुखी लोग करें। साधु अगर तो साधु को भी


है कि साध्वियों को भी तरह पट्टे पर बैठने का लना चाहिये। संत आंखें आत्म कल्याण की प्रवृत्ति ये ज्यादा उचित है कि वे खकर अपनी नजरों के गों के कल्याण की प्रवृत्ति र गृहस्थ से सेवा लेता हो ी गृहस्थ की सेवा करनी चाहिये।

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अशिक्षित, गरीब और धर्मज्ञान ना होने के बावजूद उस बालिका के हृदय की विशालता का वह दृश्य जीवन भर याद रहेगा। मुझे लगाता है कि मेरे अन्तर्मन में ऐसा अहोभाव कब प्रकट होगा जब मैं भी अपना सर्वस्व किसी को दे पाऊंगी। सबसे दुखद प्रसंग कौन सा है? कड़वी चीज खाने पर उसका कड़वा पन अनुभव में नहीं आता, अतः बाधाओं को माईल स्टोन मान कर आगे बढ़ती रहती हूं। आधुनिक उपकरणों के प्रयोग को कितना उपयुक्त मानते हैं? उसमें गलत क्या है? आधुनिक उपकरणों का उपयोग

सुविधा के लिए नहीं लेकिन समाज कल्याण की प्रवृत्ति को सक्रिय बनाने के लिये करते हैं। संत कैसे होने चाहिये ? जो समय को पहचान सकें। विज्ञान से विपरीत बातों की चर्चा बच्चों के सामने ना करें। ऐसे जैन संतों की समाज को जरूरत है। ये संत उच्च शिक्षित, ज्ञानी धर्मशास्त्र एवं विज्ञान के अभ्यासी होने चाहिये। जैन संतों में आप किस प्रकार का परिवर्तन चाहते हैं? और क्यों ? मेरा मानना है कि साध्वियों को भी साधुओं की तरह पट्टे पर बैठने का अधिकार मिलना चाहिये। संत आंखें बंद करके आत्म कल्याण की प्रवृत्ति करें, उससे तो ये ज्यादा


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उचित है कि वे आंखें खुली रखकर अपनी नजरों के समक्ष दुखी लोगों के कल्याण की प्रवृत्ति करें। साधु अगर गृहस्थ से सेवा लेता हो तो साधु को भी गृहस्थ की सेवा करनी चाहिये। श्वेतांबर जैन समाज की प्रथम साध्वी आचार्य के रूप में आपका अनुभव कैसा है ? आचार्य बनने पर मुझे बहुत गौरव है। ऐसा नहीं है कि आचार्य बनने से काम में प्रगति आयी, परन्तु संघ के आचार में कैसा परिवर्तन हो सकता है, आचार्य पद प्राप्त होने से मुझे इसका अधिकार मिला है जिससे खूब फायदा हुआ है। नये संघ की स्थापना करके उसमें सर्वाधिक, अल्प या निश्चित समय की, दीक्षा देने का प्रयोग हमें करना है। इसमें कोई व्यक्ति निश्चित समय के लिए स्वेच्छा से दीक्षा लेकर साधु जीवन जी सकेगा। इस प्रकार उच्च, शिक्षित, जागृत और प्रतिष्ठित व्यक्ति समाज के लिए महत्वपूर्ण कार्य कर सकेंगे। बाल साधु को अगर संसार में वापस लौटना हो तो सम्मान पूर्वक जाने का अधिकार भी मिलना चाहिये। आपकी क्रांतिकारी विचारधारा समाज में स्वीकृत क्यों नहीं हुई? समाज में सामान्य परिवर्तन आसान नहीं है, और जब हमने लोक कल्याण के कार्यों की शुरुआत की उस समय ये कॉन्सेप्ट, ये विचारधारा ही नहीं थी कि जैन साधु सेवा करें। .हां के जैन संत हमारे साथ नहीं हैं, परन्तु देश-विदेश में काफी जैन संत हमारे साथ जुड़े हुए हैं सब मेरे विचार का अनुसरण करें या वीरायतन के साथ जुड़ें ऐसी अपेक्षा भी नहीं की है, तब भी वीरायतन ने क्रांतिकारी कदमों से परिवर्तन त्यागकर जैन समाज को नयी दृष्टि देने का प्रयास किया है।

क्या आपको लगता है कि वीरायतन की प्रवृत्ति किसी साधु ने की होती तो उसे व्यापक स्वीकृति मिली होती ? नहीं, मुझे नहीं लगता। साध्वी के अलावा आप संसारी होते तो क्या वीरायतन की प्रवृत्ति आप और अच्छी तरह से कर पाये होते ? नहीं मैं ऐसा नहीं मानती। हां, अगर संसारी उद्योगपति होती तो मैं अधिक आर्थिक स्वतंत्रता से काम कर पाती। सरकार समाज और संस्था का सहयोग कैसे मिला ? सरकार का संवैधानिक सहयोग मिला है। देशविदेश के नामी-अनामी जैनों ने काफी आर्थिक सहयोग दिया है। मुंबई के कच्छी जैन सेवंती भाई ने सबसे अधिक करीब 35 करोड़ रुपये का दान दिया। सेवा, शिक्षा, साधना की प्रवृत्तियों को

चलाने, खर्च की व्यवस्था के लिये कुछ योजनाएं भी हम अमल में लाये हैं। आपको वीरायतन की प्रवृत्ति सन्यासी जीवन में कभी कोई किसी प्रकार की कमी महसूस हुई है। उसे कैसे दूर कर सकते हैं ? नहीं ऐसी कमी अभाव या अधूरापन कभी नहीं लगा, पर अब मुझे लगता है कि हमारे साथ मैनपॉवर अर्थात समर्पित एवं सक्रिय स्वयं सेवक हो तो वीरायतन प्रवृत्ति और अच्छी तरह कर सकेंगे। उसका व्यास भी बढ़ा पायेंगे। उत्साही समर्पित स्वयं सेवकों के लिये प्रयत्न प्रारंभ हुआ है। हर एक प्रयत्न का प्रतिफल अवश्य मिलता है ऐसा विश्वास मैं रखती हूं। वीरायतन में मुट्ठी भर साध्वियां ही क्यों हैं? दस साल पहले वीरायतन में केवल दस साध्वियां थीं, और आज उनकी संख्या तेरह की है।


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देश के हिन्दू तीर्थ स्थलों में बिहार के मधुबनी जिला मुख्यालय के निकट मंगरौनी गांव स्थित एकादश रुद्र महादेव का अलग ही महत्व है. ये महत्व इसलिये भी बढ़ जाता है कि यह अपने आप में दुनिया में अनोखी जगह है, जहां एक साथ शिव के विभिन्न रूपों 11 शिवलिंगों का दर्शन व पूजन का अवसर मिलता है. यहां शिव 11 रूपों महादेव, शिव, रुद्र, शंकर, नील लोहित, ईशान, विजय, भीम देवदेवा, भदोद्भव एवं कपालिश्च के दर्शन का सौभाग्य शिव भक्तों को विशेष तौर पर मिलता है. इसके अलावा इस एकादश रुद्र मंदिर परिसर में विष्णु के विभिन्न अवतारों, श्री विद्या यंत्र, विष्णुपद गया क्षेत्र, महाकाल, महाकाली, गणेश सरस्वती आदि साथ ही आम एवं महुआ का आलिंगन-बद्ध वृक्ष, भगवान शिव, पार्वती, महा-लक्ष्मी, महासरस्वती यंत्र, विष्णु-पादुका आदि के भी दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है. इस परिसर स्थित पीपल वृक्ष का भी तांत्रिक महत्तम अलग ही है. कहते हैं कि इसके स्पर्श मात्र से भूत प्रेत के प्रभाव से लोगों को मुक्ति मिल जाती है. वहीं श्री विद्या यंत्र के दर्शन व पूजन से लक्ष्मी एवं सरस्वती दोनों की कृपा बनी रहती है. सोमवार के दिन यहां भंडारे का आयोजन किया जाता है, इस दिन यहां रुद्राभिषेक एवं षोडषोपचार पूजन करते हैं तो उनकी इच्छित मनोकामनाएं निश्चित रूप से पूरी होती हैं. पंडित जी बताते हैं कि यहां एक ही शक्ति-वेदी पर स्थापित शिव के सभी एकादश रुद्र लिंग रूपों में 10 मई से 21 मई 2000 ई. के बीच विभिन्न तरह की आकृतियां उभर आयीं. 1 महादेव - विगत 30 जुलाई 2001 को अर्द्धृनारीश्वर का रूप प्रकट हुआ है. कामाख्या माई का ये भव्य रूप है. पांचवें सोमवारी के दिन गणेश जी गर्भ में प्रकट हुए. शिवलिंग पर ये रूप स्पष्ट नजर आती है. 2 शिव - प्रभु श्री राम ने कहा था कि मैं ही शिव हूं. इस लिंग में सिंहासन का चित्र उभरा है, जो प्रभु श्री राम का सिंहासन दर्शाता है.

मधुबनी में स्थापित है एकादश रुद्र महादेव का दुर्लभ मंदिर 3 रुद्र - भय को हराने वाले इस लिंग में बजरंगबली पहाड़ लेकर उड़ रहे है बड़ा ही अद्भुत चित्र प्रकट हुआ है. 4 शंकर - गीता के दसवें अध्याय में श्री कृष्ण ने कहा है कि मैं ही शंकर हूं. इस लिंग में श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र, बांसुरी और बाजूबंध स्पष्ट दृष्टिकोण होता है. 5 नील लोहित- जब महादेव ने विषपान किया था, तब उनका नाम नील लोहित पड़ गया था. इस लिंग में सांप एवं ऊँ का अक्षर प्रकट हुआ है. 6 ईशान - हिमालय पर निवास करने वाले महादेव जिसे केदारनाथ कहते हैं विगत नौ जुलाई 2001 सावन के पहले सोमवार को राजराजेश्वरी का रूप प्रकट हुआ. 7 विजय - इस शिवलिंग में छवि बन रही है जिस कारण आकृति अस्पष्ट है. 8 भीम - महादेव का एक रूप भी है. इस शिवलिंग में गदा की छवि उभर कर सामने आयी है. गदा का

कांची पीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती, बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष आचार्य किशोर कुणाल व अधीक्षण पुरातत्व-विद डॉ. फणीकांत मिश्र आदि आये तो यहां शिव के एकादश रुद्र का अलौकिक रूप देख भाव विह्वल हो गये. उन्होंने कहा कि ये अपने आप में धार्मिक दृष्टिकोण से अद्वितीय पूजन व तीर्थ स्थल है. डंडा अभी धीरे-धीरे प्रकट हो रहा है. 9 देवादेव - ये लिंग सूर्य का रूप है. इस शिवलिंग में गदा के नीचे दो भागों से सूर्य की किरणें फूटकर शीर्ष में मिल रही है. 10 भवोद्भव - इस लिंग में उमा शंकर की आकृति प्रकट हुई है. दोनों आकृतियां धीरे-धीरे बढ़ रही है. 11 कपालिश्च- महादेव का एक रूप बजरंगबली है. बजरंगबली ब्रह्मचारी थे, इसलिये संभवतः इस लिंग में कोई चित्र नहीं उभर रहा है. किसी दिन ये शिवलिंग अपने आप पूरा लाल हो जायेगा. बाबा जी का कहना है कि सभी शिव भक्तों को मात्र एक बार आकर इन शिवलिंगों उभरी हुई आकृतियों को देखे तो पता लगेगा कि ऐसे शिवलिंग विश्व में कहीं भी नहीं हैं


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गौरतलब है कि प्रसिद्ध तांत्रिक पंडित मुनीश्वर झा ने 1953 ई. में यहां शिव मंदिर की स्थापना की थी. इस मंदिर में स्थापित सभी शिवलिंग काले ग्रेनाइट पत्थर के बने हुए हैं जिनका प्रत्येक सोमवार शाम को दूध, दही, घी, मधु, पंचामृत, चंदन आदि से स्नान होता है. श्रृंगार के लिये विशेष तौर पर कोलकाता से कमल के फूल मंगाये जाते हैं. प्रधान पुजारी कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने पितरों का पिंडदान करने नहीं गया नहीं जा पाते उनके लिये यहां गया क्षेत्र बना है जहां पिण्डदान कर मुक्ति पायी जाती है.

विघ्न हरण के लिये गणेश का दर्शन

एकादश रुद्र मंदिर स्थान में बायीं तरफ दुर्गा माता की सवारी सिंह एवं दूसरी तरफ भोले बाबा की सवारी पूजा के अवसर पर इनका विशेष पूजन पंडित आत्मा बसहा को स्थापित किया गया है. इनके दर्शन के बाद राम व उनकी धर्मपत्नी श्रीमती भुवनेश्वरी देवी द्वारा विघ्न हर्ता श्री गणेश का दर्शन शिव भक्तों को होता है. षोडषोपचार पूजन किया जाता है. एकादश रुद्र मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार एवं निकास द्वार के मध्य गणेश की प्रतिमा स्थापित की गयी है. शिव भक्त श्री गणेश की पूजा अर्चना कर उनसे विघ्न हरने की कामना करते है. मिथिलांचल में वर-वधू का दांपत्य जीवन दीर्घायु होने की कामना के लिये आम-महुआ का विवाह कराने की परंपरा अति प्राचीन काल से चली आ रही है. एकादश रुद्र मंदिर परिसर में आम- महुआ वृक्ष का एकादश रुद्र मंदिर आने वाले शिव भक्तों को इसी आलिंगन बद्ध स्वरूप देख जहां लोग अचंभित हो जाते परिसर में एक साथ विष्णु के कई अवतारों का दर्शन हैं, वहीं दंपति इस वृक्ष की पूजा- अर्चना कर अपने करने का सौभाग्य भी प्राप्त होता है. बेशकीमती व दांपत्य जीवन के सुखमय होने की कामना करते हैं. दुर्लभ काले ग्रेनाइट व सफेद संगमरमर से बने विष्णु वधुएं हमेशा सुहागन रहने व पति के दीर्घायु होने तथा के विभिन्न रूपों की आकर्षक प्रतिमाएं देख श्रद्धालु जन्म-जन्म तक साथ निभाने हेतु इस वृक्ष की पूजा भक्त दंग रह जाते हैं तथा असीम श्रद्धा व आस्था करने के लिये दूर-दूर से आती हैं. आम- महुआ पेड़ पूर्वक पूजा- अर्चना करते हैं. राधा कृष्ण, बाला जी, का ये आलिंगन-बद्ध स्वरूप दुर्लभ माना जाता है. एक नर-नारायण, सीता-राम, लक्ष्मी नारायण, विष्णु, नहीं बल्कि तीन- तीन जगह ये दोनों वृक्ष आलिंगनवामन अवतार कमल नयन, सूर,्य महावीर, बुद्ध, लड्डु बद्ध हैं. गोपाल समेत विभिन्न स्वरूपों के सैकड़ों मूर्तियां छोटे व बड़े आकार के एक साथ यहां स्थापित है. एकादश रुद्र का दर्शन करने आने वाले श्रद्धालु एकादश रुद्र स्थान को विशेष पूजन स्थल का दर्जा भक्तों को महाकाल व महाकाली का भी दर्शन व हासिल है तो उसकी वजह ये भी है कि वहां कई पूजन का सौभाग्य प्राप्त होता है. महाकाल ने जो देवताओं का दर्शन एक साथ हो जाते हैं. शिव के रूप धारण किया है एकादश रुद्र मंदिर परिसर में वही विभिन्न रूपों का दर्शन तो होता ही है साथ ही हिन्दू रूप स्थापित किया गया है. महाकाल व महाकाली धर्म के अन्य अनेकों देवी देवताओं का भी दर्शन होता की प्रतिमाएं भी काले ग्रेनाइट पत्थर की बनी हुई है. यही कारण है कि यहां आने वाले लोग कहते हैं कि हैं. ये प्रतिमाएं अद्भुत व अलौकिक हैं. कहते हैं कि एकादश रुद्र में अलग ही आकर्षण है जो शिव भक्तों इनके दर्शन मात्र से सभी पाप नष्ट हो जाते है. काली समेत अन्य श्रद्धालु भक्तों को खींचता है.

आम-महुआ वृक्ष का आलिंगन-बद्ध स्वरूप

देव सभा : एक साथ विष्णु के सभी अवतारों का दर्शन

देवताओं की नगरी

क्या खरीदें

एकादश रुद्र का दर्शन करने के लिये यदि आप अन्य प्रांतों व देशों से आते हैं तो यहां विश्व प्रसिद्ध मिथिला पेंटिंग की खरीदारी मधुबनी एवं आसपास के गांवों से कर सकते हैं. सिक्कीमौनी व जूट से बनी विभिन्न कलात्मक चीजों की भी खरीदारी कर सकते है.

कहां ठहरें

यदि आप दूर-दराज से यहां आते हैं और रात में ठहरना चाहते हैं तो एकादश रुद्र मंदिर से 2.5 किमी दूर स्थित जिला मुख्यालय मधुबनी कें होटलो में ठहर सकते है.

कब आयें

वैसे तो आप यहां दर्शन व पूजन को कभी भी आ सकते हैं लेकिन रुद्राभिषेक व षोडषोपचार पूजन को आना चाहते हैं तो सोमवार के दिन आना विशेष शुभ है. यदि सावन माह की सोमवारी हो तो अद्वितीय अवसर माना जाता है.

कैसे आयें

मधुबनी जिला मुख्यालय से एकादश रूद्र महादेव स्थान तक जाने के लिये रिक्शा, टेम्पू, वाहन, आदि की सुविधा है, जबकि मधुबनी आने के लिये बस एवं रेलवे की सुविधा उपलब्ध है.


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कैसे संभव / अपना अपना चांद बचपन से ही मेरा मन जिज्ञासाओं से भरा रहता था और उन जिज्ञासाओं के समाधान के लिये निरंतर प्रयत्नशील भी रहती थी। मैंने स्कूल जाना बस प्रारंभ ही किया था और पड़ोस के एक गांव में हमारे स्कूल की खेल प्रतियोगिता थी। हम सब प्रतियोगिता के लिये उस गांव में गये। कार्यक्रम के बाद वहां से लौटते हुए रात हो गयी थी। चांद निकल चुका था और चांद की रौशनी हम सब को प्रकाशित कर रही थी। मैं अपने सातियों के साथ आगे-आगे चल रही थी और कुछ बच्चे पीछे चल रहे थे। मैं चांद को देखते हुए आगे बढ़ रही थी, तभी मैंने देखा कि चांद तो मेरे साथ चल रहा है। फिर क्या पीछे के बच्चे अंधेरे में होंगे? मुझे उनकी चिंता हुई और मैंने तुरत अपने सातियों से कहा कि हमें रुक जाना चाहिये। हम रुक गये और देखा कि चांद भी रुक गया है। जब पीछे के साथी पास आये तो मैंने कहा - ‘आप लोग अंधेरे में कैसे चल रहे थे? चांद तो हमारे साथ चल रहा था।’ उन बच्चों ने बड़ी मासूमियत से कहा - ‘नहीं, चांद तो हमारे साथ चल रहा था।’ मैंने कहा- ‘ऐसे कैसे हो सकता है? चांद तो एक ही है। हम दौड़ रहे थे तो वो दौड़ रहा था और आप धीरे चलने वालों के साथ धीरे चल रहा था। यह तो संभव नहीं है!’ मन में प्रश्न उथल-पुथल मचा रहे थे पर उस समय कोई समाधान नहीं

मिला। प्रश्न के साथ ही मैं अपने मित्रों के साथ घर लौट आयी, परन्तु समाधान तो खोजना ही था। इसलिये कुछ मित्रों को विपरीत दिशाओं में भेजकर जानना चाहा कि चांद किसके साथ है। सबने बताया - ‘चांद तो हमारे साथ ही चल रहा था।’ मैं सोचती रही कि यह कैसे संभव है? एक ही चांद विपरीत दिशाओं में एक ही साथ कैसे चल सकता है? स्कूल में, घर में सबसे जानना चाहा लेकिन कहीं से भी समाधान नहीं मिल सका। आज जब सोचती हूं कि क्या मैं ऐसे किसी के प्रश्न का उत्तर दे पाऊंगी? अत्यंत रहस्यपूर्ण इस विश्व के सत्य को जानना और दूसरों की जानकारी को सम्मानपूर्वक स्वीकृति प्रदान करना कितना मुश्किल कार्य है और यही कारण बना है असहिष्णुता, सामाजिक द्वेष, संघर्ष और युद्ध का। पूज्य गुरुदेव ने कहा था - ‘एक चांद, एक सूरज - वह जैसे विवाद पैदा नहीं करता, उसी प्रकार एक ही जाति हो, एक ही राष्ट्र हो, एक ही धर्म हो तो संघर्ष कैसा?’ (आचार्यश्री चंदना जी द्वारा रचित पुस्तक 'मेरे देवदूत' से उद्धृत)


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अंको की संख्या 12 24 36

कवर मूल्य 600 1200 1800

सब्सक्रिप्शन मूल्य 500 1000 1500

बचत 100 200 300

का डी डी


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आचार्य श्री चंदना जी के लिए देश दुनिया के श्रेष्ठ व्यक्तित्व के विचार

श्री चंद्रशेखर, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मुझे इस तपोभूमि की यात्रा का अवसर मिला और मैं इस आश्रम की साध्वियों की करुणा, सरलता, स्पष्ट-वादिता, प्रेम और भलाई से काफी प्रभावित हूं। ये संस्थान वास्तव में जरूरतमंदों की सही तरीके से मदद करने में सफल रहा है जो साध्वियों के कठिन तप और परिश्रम का परिणाम है। ये एक काफी सराहनीय प्रयास है। यह आश्रम आचार्य श्री जी की कड़ी मेहनत और भक्ति से उपजा निर्माण है। आपका प्रयास सफल हो इसके लिये मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं।

डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी, ब्रिटेन में भारत के पूर्व उच्चायुक्त वीरायतन का पच्चीसवां साल इस बात का संकेत देता है कि यह आंदोलन आने वाले वर्षों में रफ्तार पकड़ेगा। वीरायतन की रजत जयंती तक का सफर कठिन किन्तु प्रेरक रहा है और आगे की यात्रा सफल रहेगी। जैन धर्म के विस्तार को एक दिशा की आवश्यकता थी जो उसे मिल गयी है। अभय फिरोदिया, चेयरमैन, फोर्ड मोटर्स वीरायतन कोई स्कूल या अस्पताल नहीं, बल्कि सत्य और पूर्णता का एक मार्ग है। एक विचार है जो एक पारदर्शी दिशा प्रदान करता है नयी पीढ़ी और नये विश्व के लिये। वीरायतन एक गंभीर विचार है एक शक्ति और एक कार्य-प्रणाली है। इसे करने से ही कार्यान्वित किया जा सकता है।

प्रो. एसएनपी सिन्हा, पूर्व वाइस चांसलर, पटना विश्वविद्यालय वीरायतन आध्यात्मिक अभ्यास का एक ऐसा स्थान है जो प्रेम, सद्भावना और अहिंसा की खुशबू से परिपूर्ण है। यह कहना मुश्किल है कि कौन सी अलौकिक शक्ति ने पूज्य गुरुदेव श्री अमर मुनि जी महाराज को यहां (राजगीर) आने और वैभवगिरि के नीचे वीरायतन की स्थापना करने को प्रेरित किया। यह वो धरती है जो सेवा के माध्यम से मोक्ष के लिये प्रेरित करती है। आज यह भूमि आचार्य चंदना जी के प्रेम और प्रेरणा की कहानी कह रही है। वीरायतन कोई संस्थान नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी सिस्टम है जो आध्यात्मिक और सामाजिक चेतना का मार्ग दिखाता है। सुंदर सिंह भंडारी, पूर्व राज्यपाल, बिहार वीरायतन ने पिछले 25 वर्षों में जो काम किया वह इसके प्रयासों का चरमोत्कर्ष रहा है। भगवान महावीर के विचारों को कैसे प्रतिपादित किया जाये, वीरायतन इसका जीता-जागता उदाहरण है। आत्मा को उत्कर्ष तक ले जाने के लिये वीरायतन प्रेरणा देती है। चंदना जी ने इसे रेगिस्तान में नखलिस्तान की तरह तैयार किया है।

ए आर किदवई, पूर्व राज्यपाल, बिहार, पश्चिम बंगाल औऱ हरियाणा अहिंसा की शिक्षा आज के समाज की परम आवश्यकता है। मैं आचार्य श्री चंदना जी को इस बात के लिये सम्मानित करता हूं कि वे पूज्य गुरुदेव अमर मुनि जी की प्रेरणा से भगवान महावीर के सिद्धांतों पर बेहद उत्साह और अनुराग से चल रही हैं। चाहे मैं बिहार में रहूं या बंगाल में या फिर दुनिया के किसी भी हिस्से में, वीरायतन सदैव मेरे जीवन का अंग रहेगा। वीरायतन कोई एक जगह नहीं, बल्कि विचारों की एक ज्योति है जिसका मैं सदैव प्रशंसक रहा हूं।

सुशील कुमार मोदी, पूर्व उप मुख्यमंत्री, बिहार मैं वीरायतन में पिछले 30 वर्षों से आ रहा हूं और जैसे ही मैं इसके द्वार से भीतर प्रवेश करता हूं मुझे आश्चर्यजनक शांति मिलती रही हैI यह धरती पर स्वर्ग की तरह है। आचार्य श्री चंदना जी इसके लिये धन्यवाद की पात्र हैं। उनकी अद्वितीय रचनात्मकता ने इस स्थान को एक संस्मरण बना दिया है।


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