अर्धांगी ८ मार्च २०१४...'पुरुष की नजर से'

Page 1

1

अर्धांगी ‘पुरुष की नजर से’ ८ मधर्च २०१४

विशेषधांक


2

अनुक्रमणिकध सांपधदकीय – अलकध गधांर्ी-असेरकर / प्रस्तधिनध – रधजू पटे ल

कथध

लकडी कध सधांप मौसी

-

मनोजकुमधर पधांडय े भुिनेश्िर

अनुपमध कध प्रेम – शरदर्ांद्र र्ट्टोपधध्यधय खोल दो –

सआदत हसन मांटो

मौकध –

ककशोर पटे ल

कमजोर –

अांतोन र्ेखोव्ह

रघु की र्धय –

रधजू पटे ल

लेख

अांगधिरील केसधांर्ी केस –

श्रीकधांत विनधयक कुलकिी

क्षमध –

गगरीश पधठक

स्री असिां म्हिजे –

प्रमोदप्रज्ञध मळ् ु ये

कवितध

इांटरव्​्यू –

अग्ननशशखध – आईर्े डोळे – मधझ्यध वप्रय मैत्ररिीस –

नीलेश रूपधपरध सर् ु धकर कुलकिी

श्रीकधांत विनधयक कुलकिी सांजय पिधर


3

तू सद्ध ु ध मधिस ू आहे स – व्यथेर्ी गधथध –

रधज असरोंडकर ननशशकधांत दे शपधांडे

अग्स्तत्िधर्ी लधज िधटते – ननशशकधांत दे शपधांडे


4

सांपधदकीय – अर्धांगी यध स्त्रीजधणीवध व्यक्त करणध-यध फेसबक ु वरील ग्रप ु प्रोफधईलतफे प्रससद्ध होणधरध हध चौथध ई-अंक.

– ‘पुरुष की नजर से’..

समधजधचे उववररत अंग जे पुरुष, यधंच्यध नजरे तून सलहहलेले, स्त्रीजधणीवध व्यक्त करणधरे सधहहत्य, हे यध अंकधचे वैसिष्ट्य आहे . ८ मधचव २०१४ च्यध महहलध हिनध ननसमत्तधने ह्यध अंकधची ही असिनव कल्पनध रधबवण्यधचे ठरवले आणण अर्धांगीवरील परु ु ष सिस्त्यधंनध संबंधर्त

लेखन पधठवण्यधस ववनंती केली. ि​ि ु ै वधने फधर कमी पुरुषधंनी यधत सहिधग घेतलध. प्रोफधईलवरील चचेत हहरीरीने िधग घेणध-यध, वधि घधलणध-यध परु ु षधंनीही यधत आपलध सहिधग नोंिवलध नधही हे वविेष.

किधधचत यध

परु व ु षसिस्त्यधंनी आजपयांत स्त्स्त्रयधंकडे, त्यधंच्यध जधणीवधंकडे जधणीवपव ु क कर्ी पधहहलेच नधही, म्हणून असे घडले असेल कध...?

आणण त्यधमुळे कधय सलहधवे, कधय सलहू नये अिध संभ्रमधत ते पडले असतील कध...? स्त्स्त्रयधंच्यध समस्त्यधंकडे ते आपल्यध पुरुषी पधरं पररक टिस्त्ष्टाकोनधपल्यधड

जधऊन पधहू िकले नसतील कध.?..जे कधही असेल ते...परं तु सधहहत्य फधर कमी आले हे खरे ..! . कधही तरुण सिस्त्यधंकडून वविेष अपेक्षध होती, त्यधंनी िे खील अपेक्षधिंगच केलध.

म्हणून िेवाच्यध क्षणी मग असे ठरवले, की सिस्त्यधंव्यनतररक्त इतर

नधवधजलेल्यध लेखक-कवींचेही कधही यधसंि​िधवतले सधहहत्य घ्यधवे. परं तु हध अंक जरूर प्रकधसित करधवध. अथधवत ही संकल्पनध ग्रुपचे संवेिनिील

सिस्त्य, आणण मधझध समर रधजू पाे ल यधंची होती. आणण मग मी जणू


5

संर्ीच्यध िोर्धत असल्यधप्रमधणे अंकधची सधरी जबधबिधरी रधजव ू र हक्कधने सोपवून हिली.

पररणधम असध झधलध, की रधजन ू े सधरी जबधबिधरी मनधपधसन ू ननिधवली, परं तु त्यधने जे बधहे रील सधहहत्य ननवडले ते सधरे हहंिीतले आणण इतर

िधषेतून हहंिीत अनुवधहित झधलेले असे होते. रधजू मरधठी नसल्यधमुळे ते सधहस्त्जकही होते. मरधठी कवी-लेखकधंचे असे सधहहत्य िोर्ून

ननवडण्यधएवढध मधझ्यधजवळ वेळ नव्हतध. ग्रप ु च्यध सहकधरी एडसमन यध, प्रकृती अस्त्वधस्त्​्यधमुळे रजेवर होत्यध. रधजू ने प्रस्त्तधवनेत सलहहले नधही

म्हणून सधंगू इस्त्च्िते की यध अंकधतील त्यधची कथध, ‘रघू की चधय’ – ही

एक वेगळी, आणण पधरं पररकतेचध पगडध बधजल ू ध सधरून तास्त्थपणे ववचधर करधयलध लधवणधरी, आर्ुननक कधळधलध सधमोरी जधणधरी कथध आहे हे ननस्त्चचत.

असो, अंक एकंिरीत अिध रीतीने ग्रप ु वरील सिस्त्यधंच्यध कधही

लेखनधबरोबरच, कधही नधवधजलेल्यध हहंिी सधहहस्त्त्यकधंचे स्त्रीजधणीवध व्यक्त करणधरे लेखन घेऊन हध अंक महहलध हिनधच्यध ननसमत्तधने तुम्हध सवव

संवेिनिील रससकधंच्यध, वधचकधंच्यध हधतधत सोपवतधनध मलध खप ू आनंि होतोय.

ग्रुपवरील सवव सिस्त्यधंनध ववनंती करे न, की यधपुढे पुन्हध एकिध असधच,

परु ु षधंच्यध टिस्त्ष्टाकोनधतन ू लेखन केलेलध अंक आपण जरूर प्रकधसित करू. आणण त्यधकररतध हध अंक त्यधंनध मधगवि​िवन करू िकेल. त्यध टिष्टाीने त्यधंनी तयधर रहधवे.


6

यध अंकधकररतध रधजू पाे ल यधंनी केलेले सहकधयव हे केवळ सहकधयव नव्हते, तर ग्रुपलध आपलध समजून ही जबधबिधरी आपली िे खील आहे , अिध प्रधमधणणक ववचधरधंतन ू केलेले ते कधमच होते.

त्यधचे आिधर मधनून मी परकेपणध िधखवणधर नधही. िेवाच्यध समधप्तीच्यध पधनधवरचं धचर हे समरसिस्त्य श्रीकधंत कुलकणी यधचं स्त्वतःचं आहे . जे त्यधने यध अंकधसधठी खधस पधठवलं.

मी सवव रससकधंनध ववनंती करे न, की सधहहत्य जरूर वधचध. आणण आपल्यध प्रनतक्रियध आमच्यध पयांत येऊ द्यध. ardhangi@ymail.com

वर

आम्ही वधा पहधत आहोत. अलकध गधंर्ी-असेरकर मीनध त्ररवेिी.

प्रस्तधिनध : ‘अर्धांगी’ कध यह वविेषधंक पुरुष की नजर से तैयधर हुआ है ...!! अलकध की यह संकल्पनध अनोखी है . त्रबगेस्त्ा मधइनोरराी को िेष मेजोरराी कैसे िे खतध है ..? ‘िे खनेवधलो’ के नधम में इस अंक में िरि बधबू से ले कर नौ सिणखये लेखक तक की फेहररस्त्त है . आप िे णखए की यह कैसे ‘िे खते’ है .


7

मधाँ, पत्नी, प्रेसमकध, समर, पर ु ी, िे वरधनी-जेठधनी , नौकरधनी, वेचयध,

प्रकृनत, घर, पररवधर, िं गे, वववधह हे तु मुलधक़धत, वैवधहहक जीवन, मुक्त

संबोर्न... मयधवहित समय और स्रोत से झुझते हुए ‘अर्धांगी’ के संपधिन वविधग ने संिव हो उतने सिन्न पहलू के रचनध कधर और ववषय को समेाने कध प्रयधस क्रकयध है .

िरि बधबू ने अक्सर स्त्री कध पक्ष ले कर सलखध हो ऐसध मेरध अनि ु व है पर यहधाँ प्रकधसित कथध एक सुंिर अपवधि है . र्नधढ्य पररवधर की मुग्र् लड़की स्त्जसे व्यवहधर की िनु नयध कध कोई अंिधजध नहीं वो कैसे मधाँ ने

अपनी संतस्त्ु ष्टा के सलए क्रकये सौिे को प्रेम की स्त्जत मधन लेती है और

इसी भ्रम में िधयि िेष जीवन िी गज ु धर िे गी, प्रनतक्रियध के सलए लेखक ने अनु की िधिी कध पधर रखध है . समल्स एंड बून की स्त्वप्न िनु नयध में रहती लड़की कध िे िी वर्वन.

िूले-त्रबसरे हहंिी लेखक िुवनेचवर ने सहियों से स्त्री को उपवस्त्र की तरह इस्त्तेमधल क्रकयध जधतध है उस प्रतधड़नध को बहुत ही पररधचत संि​िव के सधथ रखध है – यह कैसी वितध है की िोषक को यह इल्म िी नहीं रहध की वो िोषक है ...!! मंाो की प्रस्त्तुत कथध अनत प्रससद्ध है और इसे हमेिध िं गों के पररप्रेक्ष में िे खध गयध है , एक गुर्धररि है की इसे वपतध की नर्र से िी िे खध जधए इस सलए यहधाँ पेि की है .

चेखोव ने सरलतध से ि​िधवयध है की मधसलक और नौकर कध ररचतध क्रकतनध अन्यधय पूणव हो सकतध है . इस कथध में मधसलक- सेवक की जगह पर परु ु ष स्त्री को िी इसी सरु में िे खध जध सकतध है --


8

‘लकड़ी कध सधंप’ प्रयोगिील कृनत है – सधंप यहधाँ सबसे खरधब स्त्मनृ त यों

के प्रतीक के रूप है िधयि. और इसी सलए नधनयकध डरती है सधंप से पर बेाी के पधस कोई स्त्मनृ त नहीं वो बे णझझक सधंप को ‘मौकध’ कहधनी में खून के

‘िे ख’ सकती है ...

ररचते में िधई के बीच की िरधर और वैवधहहक

ररचते से पररचय में आ कर क़रीबी महसूस करती िे वरधनी- जेठधनी की बधत है .

मेरी कथध के सलए मुझे स्त्वयं कुि सलखनध उधचत नहीं लग रहध- इतनध ही कहूाँगध की पेचीिी कहधननयधाँ पड़ने के बधि चधय पी कर ररलैक्स होने की बधत है 

ववववर् लक्ष्य को तधकती हुई कुि कववतधएं िी प्रस्त्तुत है – कववतध कध ननजी अथव ववस्त्तधर होतध है इस सलए उस पर हाप्पणी ाधल रहध हूाँ. और पेि है कुि लेख—गंिीर िी, अगंिीर िी... उम्मीि है यह प्रयधस आप को प्रनतक्रियध िे ने प्रवत्ृ त करे गध.

प्रतीक्षध में – रधजु.


9

लकड़ी कध सधांप / मनोज कुमधर पधंडेय िीषवक िे ख कर िधयि आप अंिधजध लगधएाँ क्रक यह कहधनी सधाँप के बधरे में है । अगर आप ऐसध कोई अंिधजध लगधएाँगे तो िनतवयध गलत सधत्रबत होंगे। मैं इतने यकीन से यह बधत इससलए नहीं कह रहध हूाँ क्रक यह कहधनी मैं सलख रहध हूाँ बस्त्ल्क इससलए क्रक यह कहधनी मेरी नहीं, मेरी पत्नी की कहधनी है स्त्जसके बधरे में मैं आपसे ज्यधिध जधनतध हूाँ।

आप कहें गे क्रक लेखक महोिय तब आपने इस कहधनी कध नधम सधाँप पर िलध रखध ही क्यों, तो इसकी वजह बहुत िोाी-सी है । बधत यह है क्रक मेरी एक िोस्त्त हिल्ली से एक मधह बधि लौाी तो मेरे सलए लकड़ी कध एक खूबसूरत सधाँप ले कर आई। कमबख्त ने कहध क्रक उसने सधाँप िे खध और उसे खा से मेरी यधि आई। लो कर लो बधत। पर यह लकड़ी कध

सधाँप है बड़ध खब ू सरू त। रबर की लधल-लधल जीि लपलपधतध, बल खधतध।

पहली नजर आप िे खेंगे तो इसे जरूर असली समझेंगे और आपके िीतर एक ठं डी ससहरन िौड़ जधएगी पर सधरध रोमधंच तब तक, जब तक क्रक

आप उसे िरू से िे खें। अगर िुएाँगे तो लकड़ी कध खुरिरु ध स्त्पिव आपकध सधरध रोमधंच हवध कर िे गध।


10

तो जब मैं कमरे पर पहुाँचध और रहस्त्य िरे अंिधज में बैग से सधाँप ननकधलध, मेरी पत्नी चीख पड़ी और कधाँपने लगी। मेरी तीन सधल की बेाी कध िी यही हधल थध। और तो और, कॉलेज में मेरी वप्रंससपल कध िी यही हधल थध। पर यह िी तो सच है क्रक मेरी एक महहलध समर इसे लधई थी और मेरी िस ू री महहलध समर ससगरे ा कध कि खींचते हुए पहली से इस बधत की सिकधयत कर रही थी क्रक वह उसके सलए सधाँप क्यों नही लधई जबक्रक उसे एक खूबसूरत आईनध समलध थध, तो िी। यही सब तो है जीवन में ।

आप सधरी चीजों के बधरे में जब तक एक मक ु म्मल रधय बनधने की तरफ बढ़ते हैं तब तक कुि और ऐसी चीजें सधमने आ जधती हैं क्रक आप

िवु वर्धग्रस्त्त हो जधते हैं और कोई फैसलध मुल्तवी कर िे ते हैं। लेक्रकन मैं

चधहतध हूाँ क्रक मैं िले ही क्रकसी फैसले तक न पहुाँचाँ ू पर आप जरूर पहुाँचें। न िी पहुाँचे तो क्रकसी फैसले की तरफ बढ़ें जरूर, नहीं तो कहधनी

में इतनी िे र तक ससर खपधने कध फधयिध क्यध? ऐसध हो सके इसके सलए


11

मैं त्रबनध क्रकसी िधाँव-पेच के सधरी बधतें आपके सधमने रख िे नध चधहतध हूाँ। आगे आप जधनें । आणखर आप िी तो हिल और हिमधग रखते हैं। लेक्रकन आप हिल और हिमधग में से क्रकसी एक के सहधरे आगे बढ़ें गे तो पक्कध गलत नतीजे पर पहुाँचेंगे बस्त्ल्क हो तो यह िी सकतध है क्रक इस सधरी रधसधयननक क्रियध के िौरधन आपको क्रकसी उत्प्रेरक की िी जरूरत पड़े। पर मैं इस कधमनध के ससवध और क्यध कर सकतध हूाँ क्रक संपधिक इस कहधनी के सधथ कुि ऐसे धचर िधपें क्रक आपकी मुस्त्चकल िोगन ु ी हो जधए। तो आइए कहधनी की तरफ चलते हैं।

गधाँव में मेरध घर परु वे से जरध हाकर है । अकेलध। घर के सधमने उत्तर

की तरफ लगिग सौ मीार पर एक नहर गई है । नहर और घर के बीच आम, नीम, महुआ और बड़हल आहि के कई पेड़ हैं स्त्जनमें से नीम के एक पेड़ के बधरे में आजी कहतीं हैं क्रक उसे उनके ससुर ने लगधयध थध।

आजी की उमर है 90 सधल, पेड़ की उमर कध अंिधजध आप खि ु लगधएाँ। इन ितनधर िरख्तों के बीच नींब,ू करौंिध, गुड़हल, अनधर, चीकू, और

अमरूि के अनेक पेड़ हैं स्त्जनमें से कई तो मेरे ही लगधए हुए हैं। सधमने कध यह हहस्त्सध पूरी तरह हिलफरे ब और खूबसूरत है पर घर के बधईं

तरफ कध जो हहस्त्सध है उसे तो पधाँच त्रबस्त्वे कध जंगल कहध जध सकतध है । िरअसल, यहधाँ हमधरध पुरधनध घर थध स्त्जसे आजी के ससुर ने बनवधयध थध।

इसकध खंडहर अब िी है जो हर बरसधत के बधि थोड़ध-सध चुक जधतध है और उसकी जगह थोड़ध-सध जंगल बढ़ जधतध है । बेर, जंगल जलेबी,

मकोय, धचलत्रबल, झरबेरी, लसोहढ़यध जैसी न जधने क्रकतनी नधम-अनधम झधडड़यधाँ यहधाँ फैली हैं। इन सब झधडड़यों के ऊपर चढ़ी हुई है गुरुच, तीतध


12

कंु िरू ु तथध और िी कई क्रकस्त्म की बेलें स्त्जन पर समय-समय पर रं ग-

त्रबरं गे फूल णखलते रहते हैं। मेरी िोाी बहन, जो मेरे िस ू रे िधई के सधथ

इलधहधबधि में रहते हुए बी.एस.सी. कर रही है तीज-त्योहधरों पर जब िी गधाँव आती है तो इन सधरी वनस्त्पनतयों के नधम ढूाँढ़नध उसकध वप्रय िगल होतध है ।

आजी कहती हैं क्रक मरते वक्त उनकी सधस ने कहध थध क्रक यह बखरी किी मत उजधड़नध। पुरखों को िाकने के सलए अाँर्ेरे की जरूरत होती

है । वे हमसे बहुत प्यधर करते हैं पर सरे आम उजधले में हमधरे सधमने नहीं आ सकते। वे ववधर् से डरते हैं। और जब किी सधमने आते िी हैं तो किी कौआ, किी सधाँप, किी नेवलध बन कर। आजी किी त्रबच्िू तक

मधरने के पक्ष में नहीं रहतीं। कहती हैं, धचमाे से पकड़कर बखरी में फेंक िो। पर जब से बधबू को हफ्ते िर के िीतर तीन बधर त्रबच्िुओं ने डंक मधरध तब से अब तक हम न जधने क्रकतने परु खों को मस्त्ु क्त प्रिधन कर चुके हैं।

जब मेरी िधिी हुई तब मेरध एम.ए. पहलध सधल थध। मैंने िहर में कमरध ले रखध थध पर चाँ क्रू क घर वहीं पधस में थध, 35-40 क्रकलोमीार के फधसले पर, सो आनध-जधनध लगध रहतध। िधिी के बधि तो मैं बधर-बधर घर आने

के मौके तलधिने लगध। मेरध आर्ध घर अब िी कच्चध है , तब परू ध कच्चध थध। पीिे की तरफ एक बड़ध-सध आाँगन थध। मैं और मेरी पत्नी गसमवयों में आाँगन में सोते और पूरध घर बधहर िआ ु रे पर। गमी कध समय सधाँप, त्रबच्िू, गोजर जैसे कीड़े-मकोड़ों के ननकलने कध समय होतध जो बधररि की िरु ु आत तक चलतध। सबसे पहले त्रबच्िू सधमने आनध िरू ु करते, क्रफर गोजर। सधाँप अमूमन तब आते जब बधररि िुरू हो जधती, उनके


13

त्रबलों में पधनी िर जधतध और वे हमधरे परु खे सख ू ी जगह की तलधि में हमधरे घर में घुस आते। हम इन स्त्स्त्थनतयों के आिी थे। पतध नहीं

क्रकतनी बधर त्रबच्िू हमें डंक मधर चुके थे। सधाँप हमधरे ऊपर से क्रफसलते

हुए हमधरे रोंगाे खड़े कर चक ु े थे, पर मेरी पत्नी... उफ् ... ऐसे में उसकध चेहरध पीलध पड़ जधतध। हहंिस्त् ु तधन की आर्ी आबधिी की तरह हमें िी

अिी त्रबजली की रोिनी नहीं नसीब हुई थी। पत्नी को अाँर्ेरे और कीड़ों िोनों से डर लगतध। वह पूरी-पूरी रधत सो नहीं पधती, जब किी सोती िी तो नींि में ही रह-रह कर कधाँप उठती और मझ ु से सलपा जधती। मैं नींि

में िी एक सुखि अहसधस से िर जधतध और उसे अपनी बधाँहों में जोर से कस लेतध।

अब िी वह इसी तरह डरती है । हधलधाँक्रक अब वह गधाँव में नहीं, नगर में है । इंहिरधनगर, जहधाँ हमधरी क्रकरधए की रहनवधरी है , से लखनऊ यनु नवससवाी की िरू ी लगिग बधरह क्रकलोमीार है । जहधाँ वह एक प्रोजेक्ा में कधम कर रही है । युननवससवाी पहुाँचने के सलए वह िो बधर ोाो बिलती है । वह बतधती नहीं पर क्यध मैं जधनतध नहीं क्रक रोज-ब-रोज

उसकध सधमनध क्रकस किर खौफनधक और सलजसलजे सधाँपों, त्रबच्िुओं और कनखजूरों से होतध रहतध है । आप अखबधर पढ़ते होंगे तो हहंिस्त् ु तधन के

क्रकसी िी िहर यध गधाँव में क्यों न रहते हों, रोज-ब-रोज इन कनखजूरों

और सधाँपों की बढ़ती तधकत और खौफ कध अहसधस आपको जरूर होगध। मेरी पत्नी तो रोज इन्हीं स्त्स्त्थनतयों से गज ु रती है । प्रोजेक्ा में िी उसकध कधम अखबधर पढ़नध है । क्रफर िी वह रोज आती है , जधती है । क्यध ससफव

पैसे क्रक सलए वह रोज-रोज सूली पर चढ़ती है ? पैसध तो अब मैं िी कम नहीं कमधतध और क्रफर हमधरी जरूरतें ही क्रकतनी हैं। हम िोनों, हमधरी


14

एक बेाी। और तो और, वह इतनी िोाी है क्रक उसकध कहीं िधणखलध िी नहीं है । क्रफर िी। क्रफर िी। मेरी पत्नी बेहि लधड़ में पली थी। मेरे ससरु एक इंार कॉलेज में

लेक्चरर हैं। घर में मधाँ-बधप और िो बच्चे, यधनी मेरी पत्नी और उसकध िधई। अमूमन उसने क्रकसी तरह के अिधव को ज्यधिध महसूस नहीं क्रकयध जबक्रक हम सधत िधई-बहनों कध बचपन तरह-तरह के अिधवों और

कंु ठधओं के बीच बीतध। खि ु मैंने अपने जीवन कध पहलध जत ू ध हधईस्त्कूल

की बोडव परीक्षध के समय पहनध। खैर जब हमधरी िधिी हुई और वह घर आई तब हम िी पहले जैसे नहीं रह गए थे पर गरीब रह चक ु े लोगों में िधने-िधने बीनने की जो आित घर कर जधती है उसकध हम क्यध करते!

जब ज्यधिध खधनध बच जधतध यध नल के पधस कहीं चधवल धगरे हिखते तो मधाँ उसे ाोक िे ती। उसे िधयि बुरध लगतध पर अगली बधर ऐसध न हो वह इस बधत की िी पूरी कोसि​ि करती। पर कोसि​िें कहीं इतनी आसधनी से कधमयधब होती हैं!

मैं जब िी घर जधतध वह चधहती क्रक मैं उसे अपने सधथ िहर ले चलाँ ू पर मेरध एक कमरे कध मकधन और उसमें िी एक अि​ि पधाव नर। मैं क्यध

करतध ! यही वे हिन थे जब उसमें क्रफर से पढ़ने-सलखने की ललक पैिध हुई। इसके पहले वह इंार पधस थी बस। इंार िी उसने उसी तरह क्रकयध थध स्त्जस तरह ग्रधमीण अध्यधपकों की लड़क्रकयधाँ करती हैं क्रक सधल िर घर बैठो और परीक्षध के समय धचा-पुजी-क्रकतधब सलए अध्यधपकों के

मि​िगधरों की पूरी फौज हधस्त्जर। यह अनधयधस थोड़े ही है क्रक सरकधर ने


15

जब मेररा के आर्धर पर प्रधथसमक ववद्यधलयों के सलए सिक्षधसमर रखे तो उसमें ननन्यधनबे फीसिी सिक्षधसमर अध्यधपकों के ही घर से आए। पत्नी िी सिक्षधसमर हो सकती थी पर एक तो उसे मुझसे िरू गधाँव में रहनध पड़तध, िस ू रे , इस बीच उसकी पढ़ने की ललक इतनी बढ़ी थी क्रक वह

बी.ए. प्रथम श्रेणी में पधस कर चुकी थी और समधजिधस्त्र से एम.ए. में

िधणखलध ले चुकी थी और मेरे सधथ रहते हुए क्लधस ज्वधइन कर रही थी। सिक्षधसमर की नौकरी एक िस ू रे अध्यधपक की बेाी को समल गई स्त्जसकी बी.ए. करने में कोई रुधच नहीं थी और स्त्जसे न सधाँप से डर लगतध थध, न अाँर्ेरे से। आजकल मैं एक डडग्री कॉलेज में िधम की सिफ्ा में पढ़धतध हूाँ और मेरी पत्नी सुबह िस से िो बजे तक एक प्रोजेक्ा में कधयव करती है । उसकी सहे सलयधाँ, जो िधिी के बधि उससे न समली हों, आज समल जधएाँ तो उसे पहचधन ही न पधएाँ। वह आमतौर पर अपने कधम से कधम रखती है पर उसके िोस्त्तों की संख्यध मेरे िोस्त्तों की िग ु ुनी होगी। िोाे -िोाे िहरों

और कस्त्बों की लड़क्रकयों में जो झुकी हुई गिव न की एक खधस पहचधन होती है , उससे वह पूरी तरह मुस्त्क्त पध चुकी है । वह एकिम तन कर

चलती है , बेलौस तरीके से बनतयधती है । और तो और, िधिी के िरु ु आती हिनों में उसके रहते जब किी मैं खुि उठ कर पधनी िी पी लेतध, वह बुरध मधन जधती थी। वही आज बड़े गुमधन से कह िे ती है सइयधाँ जी,

जरध ससर िबध िो यध क्रफर मैं कपड़े र्ोने बैठतध हूाँ तो वह अपनी नधइाी मेरी तरफ उिधल िे ती है और मैं उसकी इस अिध पर सौ-सौ जधन से न्योिधवर हो जधतध हूाँ।


16

इन सब बधतों में िधयि आपको कहधनी कध कोई पेच न हिखधई पड़ रहध हो। इसीसलए मैं चधहतध हूाँ क्रक संपधिक कहधनी के सधथ में कोई पेचिधर धचर जरूर िधपे। कहधनी में पेच ससफव इतनध है क्रक कीड़े-मकोड़ों से डरने वधली मेरी पत्नी आज कहीं ज्यधिध खतरनधक चीजों कध सधमनध कर रही है और उनकी नस्त्लों कध अध्ययन कर रही है । इसके बधरे में िी मुझसे ज्यधिध कौन जधन सकतध है क्रक उसकी खधल अब तक मोाी िी नहीं

पड़ी, जरध िी िधब पड़ जधए तो लधल हो जधती है । क्रफर िी वह लकड़ी के एक नकली सधाँप से डर गई जबक्रक मेरी बेाी तंरु त जरूर थोड़ध डरी थी

और इसकी िी वजह िधयि यह रही हो क्रक उसके डर में मेरी पत्नी कध िी डर िधसमल हो गयध हो पर थोड़ी ही िे र में उसने णझझकते हुए हधथों से लकड़ी कध सधाँप उठधयध और अब गले में डधले घम ू रही है । इसमें डरने की कोई बधत ही नहीं है , क्रफर िी मैं समझ नहीं पध रहध हूाँ क्रक मेरी पत्नी कध चेहरध अजब तौर से पीलध क्यों पड़तध जध रहध है । ####

मनोज कुमधर पधांडय े . पररर्य. जन्म : 7 अक्ाूबर, 1977,

सससवधाँ, इलधहधबधि (उत्तर प्रिे ि). िधषध : हहंिी. ववर्धएाँ : कहधनी,

कववतध, आलोचनध. मख् ु य कृनतयधाँ. कहधनी संग्रह : िहतूत.हधल ही में िस ू रध कहधनी संग्रह ‘पधनी’

िधरतीय ज्ञधनपीठ से प्रकधसित.

समकधलीन लेखकों में एक आिधस्त्पि नधम जो कहधननयधं िी सलखते है और फेसबुक पर पोस्त्ा िी...


17

####

मौसी / िुवनेचवर मधनव-जीवन के ववकधस में एक स्त्थल ऐसध आतध है , जब वह पररवतवन पर िी ववजय पध लेतध है । जब हमधरे जीवन कध उत्थधन यध पतन, न हमधरे सलए कुि वविेषतध रखतध है , न िस ू रों के सलए कुि कुतूहल। जब हम केवल जीववत के सलए ही जीववत रहते हैं और वह मौत आती है ; पर नहीं आती। त्रबब्बो जीवन की उसी मंस्त्जल में थी। मुहल्लेवधले उसे सिै व वद्ध ृ ध ही

जधनते, मधनो वह अनन्त के गिव में वद्ध ृ ध ही उत्पन्न होकर एक अनन्त अधचन्त्य कधल के सलए अमर हो गयी थी। उसकी 'हधथी के बेाों की

बधत', नई-नवेसलयधाँ उसकध हृिय न िख ु धने के सलए मधन लेती थीं। उसकध किी इस ववस्त्तत ृ संसधर में कोई िी थध, यह कल्पनध कध ववषय थध।

अधर्कधंि के ववचवधस-कोष में वह जगस्त्न्नयन्तध के समधन ही एकधकी थी; पर वह किी युवती िी थी, उसके िी नेरों में अमत ृ और ववष थध।

झंझध की ियध पर खड़ध हआ रूखध वक्ष ृ िी किी र्रती कध हृिय फधड़कर ननकलध थध, वसन्त में लहलहध उठतध थध और हे मन्त में अपनध ववरही जीवनयधपन करतध थध, पर यह सब वह स्त्वयं िूल गयी थी। जब हम

अपनी असंख्य िख ु ि स्त्मनृ तयधाँ नष्टा करते हैं, तो स्त्मनृ त-पा से कई सुख के अवसर िी समा जधते हैं। हधाँ, स्त्जसे वह न िूली थी उसकध ितीजध, बहन कध पर ु - वसन्त थध। आज िी जब वह अपनी गौओं को सधनी

कर, कच्चे आाँगन के कोने में लौकी-कुम्हड़े की बेलों को साँवधरकर प्रकधि यध अन्र्कधर में बैठती, उसकी मूनतव उसके सम्मुख आ जधती।


18

वसन्त की मधतध कध िे हधन्त जन्म से िो ही महीने बधि हो गयध थध और पैंतीस वषव पूवव उसकध वपतध पीले और कुम्हलधए मुख से यह समधचधर

और वसन्त को लेकर चुपचधप उसके सम्मुख खड़ध हो गयध थध... इससे आगे की बधत त्रबब्बो स्त्वप्न में िी नहीं सोचती थी। कोढ़ी यहि अपनध

कोढ़ िस ू रों से निपधतध है तो स्त्वयं िी उसे नहीं िे ख सकतध - इसके बधि कध जीवन उसकध कलंक्रकत अंग थध।

वसन्त कध वपतध वहीं रहने लगध। वह त्रबब्बों से आयु में कम थध। त्रबब्बो,

एकधकी त्रबब्बो ने िी सोचध, चलो क्यध हजव है , पर वह चलध ही गयध और एक हिन वह और वसन्त िो ही रह गए। वसन्त कध बधप उन अधर्कधंि मनष्टु यों में थध, जो अतस्त्ृ प्त के सलए ही जीववत रहते हैं, तो तस्त्ृ प्त कध

िधर नहीं उठध सकते। वसन्त को उसने अपने हृिय के रक्त से पधलध; पर वह पर लगते ही उड़ गयध और वह क्रफर एकधकी रह गयी। वसन्त कध समधचधर उसे किी-किी समलतध थध। िस वषव पहले वह रे ल की कधली विी पहने आयध थध और अपने वववधह कध ननमंरण िे गयध, इसके पचचधत ् सुनध, वह क्रकसी असियोग में नौकरी से अलग हो गयध और कहीं व्यधपधर करने लगध। त्रबब्बो कहती क्रक उसे इन बधतों में तननक िी रस

नहीं है । वह सोचती क्रक आज यहि वसन्त रधजध हो जधए, तो उसे हषव न होगध और उसे कल फधाँसी हो जधए, तो न िोक। और जब मुहल्लेवधलों ने प्रयत्न करनध चधहध क्रक िर् ू बेचकर जीवन-यधपन करनेवधली मौसी को

उसके ितीजे से कुि सहधयतध हिलधई जधए तो उसने घोर ववरोर् क्रकयध। हिन िो घड़ी चढ़ चुकध थध, त्रबब्बो की िोनों बधस्त्ल्ायधाँ खधली हो गयी थीं। वह िर् ु धड़ी कध िर् ू आग पर चढ़धकर नहधने जध रही थी, क्रक उसके


19

आाँगन में एक अर्ेड़ परु ु ष 5 वषव के लड़के की उाँ गली थधमे आकर खड़ध हो गयध।

'अब न होगध कुि, बधरह बजे...' वद्ध ृ ध ने काु स्त्वर में कुि िीघ्रतध से कहध।

'नहीं मौसी...' त्रबब्बो उसके ननका खड़ी होकर उसके माँह ु की ओर घरू कर स्त्वस्त्प्नल स्त्वर में बोली - वसन्त! - और क्रफर चुप हो गई।

वसन्त ने कहध - मौसी, तुम्हधरे ससवध मेरे कौन है ? मेरध पर ु बे-मधाँ कध हो गयध? तुमने मुझे पधलध है , इसे िी पधल िो, मैं सधरध खरचध िाँ ग ू ध। 'िर पधयध, िर पधयध', - वद्ध ृ ध कस्त्म्पत स्त्वर में बोली। त्रबब्बो को आचचयव थध क्रक वसन्त अिी से बढ़ ू ध हो चलध थध और उसकध पुर त्रबलकुल वसन्त के और अपने बधबध... के समधन थध। उसने कहठन

स्त्वर में कहध - वसन्त, तू चलध जध, मुझसे कुि न होगध। वसन्त ववनय की मूनतव हो रहध थध और अपनध िोाध-सध सन्िक ू खोलकर मौसी को सौगधतें िे ने लगध।

वद्ध ृ ध एक महीने पचचधत ् तोड़नेवधली लौक्रकयों को िधकती हुई वसन्त से जधने को कह रही थी; पर उसकी आत्मध में एक ववप्लव हो रहध थध उसे ऐसध िधन होने लगध, जैसे वह क्रफर युवती हो गयी और एक हिन रधत्रर

की ननस्त्तब्र्तध में वसन्त के वपतध ने जैसे स्त्वप्न में उसे थोड़ध चूम-सध सलयध और... वह वसन्त को वक्ष में धचपकधकर सससकने लगी।


20

हो... पर वह वसन्त के पर ु की ओर आाँख उठधकर िी नहीं िे खेगी। वह

उसे किधवप नहीं रखेगी, यह ननचचय थध। वसन्त ननरधि हो गयध थध पर सबेरे जब वह बधलक मन्नू को जगधकर ले जधने के सलए प्रस्त्तुत हुआ, त्रबब्बो ने उसे िीन सलयध और मन्नू और िस रुपये के नोा को िोड़कर वसन्त चलध गयध। 2 त्रबब्बो कध िर् ू अब न त्रबकतध थध। तीनों गधयें एक के बधि एक बेच िीं। केवल एक मन्नू की बनियध रह गई थी। कुम्हड़े और लौकी के ग्रधहकों

को िी अब ननरधि होनध पड़तध थध। मन्नू - पीलध, कधस्त्न्तहीन, आलसी, ससन्िरू ी, चंचल और िरधरती हो रहध थध। ...

महीने में पधाँच रुपयध कध मनीोडवर वसन्त िेजतध थध; पर एक ही सधल में त्रबब्बो ने मकधन िी बन्र्क रख हियध। मन्नू की सिी इच्िधओं की पनू तव अननवधयव थी। त्रबब्बो क्रफर समय की गनत के सधथ चलने लगी।

मुहल्ले में क्रफर उसकी आलोचनध, प्रत्यधलोचनध प्रधरम्ि हो गयी। मन्नू ने उसकध संसधर से क्रफर सम्बन्र् स्त्थधवपत कर हियध; स्त्जसे िोड़कर वह

आगे बढ़ गयी थी पर एक हिन सधाँझ को अकस्त्मधत ् वसन्त आ गयध।

उसके सधथ एक हठं गनी गेहुएाँ रं ग की स्त्री थी, उसने त्रबब्बो के चरण िुए। चरण िबधए और क्रफर कहध - मौसी, न हो मन्नू को मुझे िे िो, मैं तुम्हधरध यि मधनाँग ू ी।


21

[ फोाो िेडडा : © tumblr_lxo6b4tpK71qe3twvo1_1280-street art- ] वसन्त ने रोनध माँुह बनधकर कहध - हधाँ, क्रकसी को जीवन संका में डधलने से तो यह अच्िध है , ऐसध जधनतध, तो मैं ब्यधह ही क्यों करतध? मौसी ने कहध - अच्िध, उसे ले जधओ। मन्नू िस ू रे घर में खेल रहध थध। वद्ध ृ ध ने कधाँपते हुए पैरों से िीवधर पर चढ़कर बुलधयध। वह कूितध हुआ आयध। नई मधतध ने उसे हृिय से लगध सलयध। बधलक कुि न समझ सकध, वह मौसी की ओर िधगध। त्रबब्बो ने उसे ित ु कधरध - जध, िरू हो।


22

बेचधरध बधलक ित्ु कधर कध अथव समझने में असमथव थध, वह रो पड़ध। वसन्त हतबवु द्ध-सध खड़ध थध। त्रबब्बो ने मन्नू कध हधथ पकड़ध, माँह ु र्ोयध और आाँगन के तधख से जूते उतधरकर पहनध हिए।

वसन्त की स्त्री मुस्त्करधकर बोली - मौसी, क्यध एक हिन िी न रहने

िोगी? अिी क्यध जल्िी है । पर, त्रबब्बो जैसे क्रकसी लोक में पहुाँच गयी हो। जहधाँ यह स्त्वर-संसधर कध कोई स्त्वर-न पहुाँच सकतध हो। पलक मधरते मन्नू को खेल की, प्यधर की, िल ु धर की सिी वस्त्तुएाँ उसने बधाँर् िीं।

मन्नू को िी समझध हियध क्रक वह सैर करने अपनी नई मधाँ के सधथ जध रहध थध।

मन्नू उिलतध हुआ वपतध के पधस खड़ध हो गयध। त्रबब्बो ने कुि नोा और रुपये उसके सम्मुख लधकर डधल हिए - ले अपने रुपये। वसन्त र्मव-संका में पड़ध थध, पर उसकी अद्धधांधगनी ने उसकध ननवधरण कर हियध। उसने रुपये उठध सलये। मौसी, इस समय हम असमथव हैं; पर जधते ही अधर्क िेजने कध प्रयत्न करूाँगी, तुमसे हम लोग किी उऋण नहीं हो सकते।

मन्नू मधतध-वपतध के घर बहुत हिनों तक सुखी न रह सकध। महीने में िो बधर रोग-ग्रस्त्त हुआ। नई मधाँ िी मन्नू को पधकर कुि अधर्क सख ु ी न हो सकी। अन्त में एक हिन रधत-िर जधगकर वसन्त स्त्री के रोने-र्ोने पर िी मन्नू को लेकर मौसी के घर चल हियध।


23

वहधाँ पहुाँचकर उसने िे खध क्रक मौसी के जीणव द्वधर पर कुि लोग जमध हें । वसन्त के एक्के को घेरकर उन्होंने कहध - आपकी यह मौसी हैं। आज पधाँच हिन से द्वधर बन्ि हैं, हम लोग आिंक्रकत हैं। द्वधर तोड़कर लोगों ने िे खध - वद्ध ृ ध प्ृ वी पर एक धचर कध आसलंगन

क्रकये नीचे पड़ी है , जैसे वह मरकर अपने मधनव होने कध प्रमधण िे रही हो।

वसन्त के अनतररक्त क्रकसी ने न जधनध क्रक वह धचर उसी के वपतध कध थध पर वह िी यह न जधन सकध क्रक वह वहधाँ क्यों थध! (हं स, अक्ाूबर, 1934) ####

शतधब्दी के लेखक भुिनेश्िर असि​िप्त होकर जीनेवधले और ववक्षक्षप्त होकर मरनेवधले लेखक िुवनेचवर की जन्मितधब्िी

२०११ में -िो सधल पहे ले बीती. ‘तधम्बे के कीड़े’ जैसे

एकधंकी और ‘िेडडये’ जैसी कहधनी के इस लेखक के बधरे में उसे पढ़नेवधलों कध कहनध है क्रक हहंिी में एक तरह से उस आर्ुननक संवेिनध


24

कध ववकधस िव ु नेचवर की रचनधओं से ही हुआ स्त्जसकध ५०-६० के ि​िक में हहंिी में व्यधपक-स्त्तर पर प्रचलन हुआ. अकधरण नहीं है क्रक प्रेमचंि ने जैनेन्र के अलधवध उस िौर में स्त्जस युवध प्रनतिध को िववष्टय कध रचनधकधर बतधयध थध वे िव ु नेचवर थे. उन्होंने ही हं स’ में १९३३ में

िुवनेचवर कध पहलध एकधंकी ‘चयधमध: एक वैवधहहक ववडम्बनध’ प्रकधसित क्रकयध. िुवनेचवर की संिवतः पहली कहधनी ‘मौसी’ को प्रेमचंि ने

समकधलीन कहधननयों के प्रनतननधर् संकलन ‘हहंिी की आि​िव कहधननयधं’ में स्त्थधन हियध तथध उनकध पधठकों से उस यव ु ध लेखक कध पररचय

करवधते हुए उनकी िधषध को जैनेन्र कुमधर की िधषध से अधर्क सधफसुथरी बतधयध थध. ####

अनुपमध कध प्रेम / िरतचन्र चट्टोपधध्यधय ग्यधरह वषव की आयु से ही अनप ु मध उपन्यधस पढ़-पढ़कर मस्त्ष्टतष्टक को एकिम त्रबगधड़ बैठी थी। वह समझती थी, मनष्टु य के हृिय में स्त्जतनध प्रेम, स्त्जतनी मधर्ुरी, स्त्जतनी िोिध, स्त्जतनध सौंियव, स्त्जतनी तष्टृ णध है , सब िधन-बीनकर, सधफ कर उसने अपने मस्त्ष्टतष्टक के िीतर जमध कर रखी है । मनुष्टय- स्त्विधव, मनुष्टय-चररर, उसकध नख िपवण हो गयध है । संसधर में उसके सलए सीखने योग्य वस्त्तु और कोई नही है , सबकुि जधन चुकी है , सब कुि सीख चुकी है । सतीत्व की ज्योनत को वह स्त्जस प्रकधर


25

िे ख सकती है , प्रणय की महहमध को वह स्त्जस प्रकधर समझ सकती है ,संसधर में और िी कोई उस जैसध समझिधर नहीं है , अनप ु मध इस बधत पर क्रकसी तरह िी ववचवधि नही कर पधती। अनु ने सोचध- वह एक मधर्वीलतध है , स्त्जसमें मंजररयधं आ रही हैं, इस अवस्त्थध में क्रकसी िधखध की सहधयतध सलये त्रबनध उसकी मंजररयधं क्रकसी िी तरह प्रफ्फुसलत होकर ववकससत नही हो सकतीं। इससलए ढूाँढ-खोजकर एक नवीन व्यस्त्क्त को सहयोगी की तरह उसने मनोनीत कर सलयध एवं िो-चधर हिन में ही उसे मन प्रधण, जीवन, यौवन सब कुि िे डधलध। मन-ही-मन िे ने अथवध लेने कध सबको समधन अधर्कधर है , परन्तु ग्रहण करने से पूवव सहयोगी को िी (बतधने की) आवचयकतध होती है । यहीं आकर मधर्वीलतध कुि ववपस्त्त्त में पड़ गई। नवीन नीरोिकधन्त को वह क्रकस तरह जतधए क्रक वह उसकी मधर्वीलतध है , ववकससत होने के सलए खड़ी हुई है , उसे आश्रय न िे ने पर इसी समय मंजररयों के पुष्टपों के सधथ वह प्ृ वी पर लोातीपोाती प्रधण त्यधग िे गी। परन्तु सहयोगी उसे न जधन सकध। न जधनने पर िी अनम ु धन कध प्रेम उत्तरोत्तर ववृ द्ध पधने लगध। अमत ु में ि:ु ख, प्रणय में ृ में ववष, सख


26

ववच्िे ि धचर प्रससद्ध हैं। िो-चधर हिन में ही अनप ु मध ववरह-व्यथध से जजवर िरीर होकर मन-ही-मन बोली-

स्त्वधमी, तम ु मझ ु े ग्रहण करो यध न करो,

बिले में प्यधर िो यध न िो, मैं तुम्हधरी धचर िधसी हूाँ। प्रधण चले जधएाँ यह स्त्वीकधर है , परन्तु तम् ं ी। इस जन्म में ु हे क्रकसी िी प्रकधर नही िोड़ूग न पध सकाँू तो अगले जन्म में अवचय पधऊंगी, तब िे खोगे सती-सधध्वी की क्षूब्ि िुजधओं में क्रकतनध बल है । अनुपमध बड़े आिमी की लड़की है , घर से संलग्न बगीचध िी है , मनोरम सरोवर िी है , वहधाँ चधाँि िी उठतध है , कमल िी णखलते है , कोयल िी गीत गधती है , िौंरे िी गुंजधरते हैं, यहधाँ पर वह घूमती क्रफरती ववरह व्यथध कध अनुिव करने लगी। ससर के बधल खोलकर, अलंकधर उतधर फेंके, िरीर में र्ूसल मलकर प्रेम-योधगनी बन, किी सरोवर के जल में अपनध माँुह िे खने लगी, किी आाँखों से पधनी बहधती हुई गल ु धब के फूल को चूमने लगी, किी आाँचल त्रबिधकर वक्ष ृ के नीचे सोती हुई हधय की हुतधिन और िीघव चवधस िोड़ने लगी, िोजन में रुधच नही रही, ियन की इच्िध नहीं, सधज-सज्जध से बड़ध वैरधग्य हो गयध, कहधनी क्रकस्त्सों की िधाँनत ववरस्त्क्त हो आई, अनप ु मध हिन-प्रनतहिन सख ू ने लगी, िे ख सन ु कर अनु की मधतध को मन-ही-मन


27

धचन्तध होने लगी, एक ही तो लड़की है , उसे िी यह क्यध हो गयध ? पि ू ने पर वह जो कहती, उसे कोई िी समझ नही पधतध, ओठों की बधत ओठों पे रह जधती। अनु की मधतध क्रफर एक हिन जगबन्र्ु बधबू से बोलीअजी, एक बधर क्यध ध्यधन से नही िे खोगे? तम् ु हधरी एक ही लड़की है , यह जैसे त्रबनध इलधज के मरी जध रही है ।

[ फोाो िेडडा : Martin Waldbauer ] जगबन्र्ु बधबू चक्रकत होकर बोले-

क्यध हुआ उसे?

- सो कुि नही जधनती। डॉक्ार आयध थध, िे ख-सुनकर बोलधबीमधरी-वीमधरी कुि नही है ।


28

- तब ऐसी क्यों हुई जध रही है ? - जगबन्र्ु बधबू ववरक्त होते हुए बोले- क्रफर हम क्रकस तरह जधनें ? - तो मेरी लड़की मर ही जधए? - यह तो बड़ी कहठन बधत है । ज्वर नहीं, खधाँसी नहीं, त्रबनध बधत के ही यहि मर जधए, तो मैं क्रकस तरह से बचधए रहूंगध? - गहृ हणी सख ू े माँह ु से बड़ी बहू के पधस लौाकर बोली-

बहू, मेरी अनु इस तरह से क्यों

घूमती रहती है ? - क्रकस तरह जधनाँू, मधाँ? - तुमसे क्यध कुि िी नही कहती? - कुि नहीं। गहृ हणी प्रधय: रो पड़ी- तब क्यध होगध? त्रबनध खधए, त्रबनध सोए, इस तरह सधरे हिन बगीचे में क्रकतने हिन घूमती-क्रफरती रहे गी, और क्रकतने हिन बचेगी? तुम लोग उसे क्रकसी िी तरह समझधओ, नहीं तो मैं बगीचे के तधलधब में क्रकसी हिन डूब मरूाँगी।


29

बड़ी बहू कुि िे र सोचकर धचस्त्न्तत होती हुई बोली-

िे ख-सन ु कर कहीं

वववधह कर िो; गह ृ स्त्थी कध बोझ पड़ने पर अपने आप सब ठीक हो जधएग

- ठीक बधत है , तो आज ही यह बधत मैं पनत को बतधऊंगी। पनत यह बधत सन ु कर थोड़ध हाँ सते हुए बोले-

कसलकधल है ! कर िो,

ब्यधह करके ही िे खो, यहि ठीक हो जधए। िस ू रे हिन घाक आयध। अनुपमध बड़े आिसमयों की लड़की है , उस पर सुन्िरी िी है ; वर के सलए धचन्तध नही करनी पड़ी। एक सप्तधह के िीतर ही घाक महधरधज ने वर ननस्त्चचत करके जगबन्र्ु बधबू को समधचधर हियध। पनत ने यह बधत पत्नी को बतधई। पत्नी ने बड़ी बहू को बतधई, िमि: अनुपमध ने िी सुनी। िो-एक हिन बधि, एक हिन सब िोपहर के समय सब समलकर अनुपमध के वववधह की बधतें कर रहे थे। इसी समय वह खुले बधल, अस्त्त-व्यस्त्त वस्त्र क्रकए, एक सूखे गुलधब के फूल को हधथ में सलये धचर की िधाँनत आ खड़ी हुई। अनु की मधतध कन्यध को िे खकर तननक हाँ सती हुई बोली- ब्यधह हो जधने पर यह सब कहीं


30

अन्यर चलध जधएगध। िो एक लड़कध-लड़की होने पर तो कोई बधत ही नही ! अनप ु मध धचर-सलणखत की िधाँनत सब बधतें सन ु ने लगी। बहू ने क्रफर कहध- मधाँ, ननिधनी के वववधह कध हिन कब ननस्त्चचत हुआ है ? - हिन अिी कोई ननस्त्चचत नही हुआ। - ननिोई जी क्यध पढ़ रहे हैं? - इस बधर बी.ए. की परीक्षध िें गे। - तब तो बहुत अच्िध वर है । - इसके बधि थोड़ध हाँ सकर मर्धक करती हुई बोली-

परन्तु िे खने में खूब अच्िध न हुआ, तो हमधरी ननि

जी को पसंि नही आएगध। - क्यों पसंि नही आएगध? मेरध जमधई तो िे खने में खूब अच्िध है । इस बधर अनुपमध ने कुि गिव न घुमधई, थोड़ध सध हहलकर पधाँव के नख से समट्टी खोिने की िधाँनत लंगड़धती-लंगड़धती बोलीकरूंगी। - मधाँ

वववधह मैं नही

ने अच्िी तरह न सुन पधने के कधरण पि ू ध-

क्यध है

बेाी? - बड़ी बहू ने अनुपमध की बधत सुन ली थी। खूब जोर से हाँ सते हए बोली-

ननि जी कहती हैं, वे किी वववधह नही करें गी।


31

- वववधह नही करे गी? - नही। - न करे ? - अनु की मधतध माँह ु बनधकर कुि हाँ सती हुई चली गई। गहृ हणी के चले जधने पर बड़ी बहू बोली- तम ु वववधह नही करोगी? अनप व त गम्िीर माँह ु मध पव ू व ु क्रकए बोली- क्रकसी प्रकधर िी नहीं। - क्यों? - चधहे स्त्जसे हधथ पकड़ध िे ने कध नधम ही वववधह नहीं है । मन कध समलन न होने पर वववधह करनध िल ू है ! बड़ी बहू चक्रकत होकर अनप ु मध के माँुह की ओर िे खती हुई बोली- हधथ पकड़ध िे नध क्यध बधत होती है ? पकड़ध नहीं िें गे तो क्यध ल़ड़क्रकयधं स्त्वयं ही िे ख-सुनकर पसंि करने के बधि वववधह करें गे

- अवचय!


32

- तब तो तम् ु हधरे मत के अनुसधर, मेरध वववधह िी एक तरह की िल ू हो गयध? वववधह के पहले तो तम् ु हधरे िधई कध नधम तक मैने नही सन ु ध थध। - सिी क्यध तम् ु हधरी ही िधाँनत हैं? बहू एक बधर क्रफर हाँ सकर बोली- तब क्यध तुम्हधरे मन कध कोई आिमी समल गयध है ? अनप ु मध बड़ी बहू के हधस्त्य-ववरप ू से धचढ़कर अपने माँुह को चौगुनध गम्िीर करती हुई बोली- िधिी मर्धक क्यों कर रही हो, यह क्यध मर्धक कध समय है ? - क्यों क्यध हो गयध? - क्यध हो गयध? तो सुनो... अनुपमध को लगध, उसके सधमने ही उसके पनत कध वर् क्रकयध जध रहध है , अचधनक कतलू खधाँ के क्रकले में , वर् के मंच के सधमने खड़े हुए ववमलध और वीरे न्र ससंह कध टिचय उसके मन में जग उठध; अनुपमध ने सोचध, वे लोग जैसध कर सकते हैं, वैसध क्यध वह नही कर सकती? सती-स्त्री संसधर में क्रकसकध िय करती है ? िे खते-िे खते उसकी आाँखें अनैसधगवक प्रिध से र्क् -र्क् करके जल उठीं, िे खते-िे खते उसने आाँचल को कमर में लपेाकर कमरबन्ि बधाँर् सलयध। यह टिचय


33

िे खकर बहू तीन हधथ पीिे हा गई। क्षण िर में अनप ु मध बगल वधले पलंग के पधये को जकड़कर, आाँखें ऊपर उठधकर, चीत्कधर करती हुई कहने लगी- प्रिु, स्त्वधमी, प्रधणनधथ! संसधर के सधमने आज मैं मुक्त-कण्ठ से चीत्कधर करती हूाँ, तम् ु ही मेरे प्रधणनधथ हो! प्रिु तम ु मेरे हो, मैं तुम्हधरी हूाँ। यह खधा के पधए नहीं, ये तुम्हधरे िोनों चरण हैं, मैने र्मव को सधक्षी करके तुम्हे पनत-रूप में वरण क्रकयध है , इस समय िी तुम्हधरे चरणों को स्त्पिव करती हुई कह रही हूाँ, इस संसधर में तुम्हें िोड़कर अन्य कोई िी पुरुष मुझे स्त्पिव नहीं कर सकतध। क्रकसमें िस्त्क्त है क्रक प्रधण रहते हमें अलग कर सके। अरी मधाँ, जगत जननी...! बड़ी बहू चीत्कधर करती हुई िौड़ती बधहर आ पड़ी- अरे , िे खते हो, ननिरधनी कैसध ढं ग अपनध रही हैं। िे खते-िे खते गहृ हणी िी िौड़ी आई। बहूरधनी कध चीत्कधर बधहर तक जध पहुाँचध थध- क्यध हुआ, क्यध हुआ, क्यध हो गयध? कहते गह ृ स्त्वधमी और उनके पुर चन्रबधबू िी िौड़े आए। कतधवगहृ हणी, पर ु , पर ु वर्ू और िधस-िधससयों से क्षण िर में घर में िीड़ हो गई। अनप ु मध मनू िव त होकर खधा के समीप पड़ी हुई थी। गहृ हणी रो उठी-


34

मेरी अनु को क्यध हो गयध? डॉक्ार को बल ु धओ, पधनी लधओ, हवध करो इत्यधहि। इस चीत्कधर से आर्े पड़ोसी घर में जमध हो गए। बहुत िे र बधि आाँखें खोलकर अनप ु मध र्ीरे -र्ीरे बोली- मैं कहधाँ हूाँ? उसकी मधाँ उसके पधस माँह व बोली- कैसी हो बेाी? ु लधती हुई स्त्नेहपव ू क तुम मेरी गोिी में लेाी हो। अनप ु मध िीघव नन:चवधस िोड़ती हुई र्ीरे -र्ीरे बोली- ओह तम् ु हधरी गोिी में ? मैं समझ रही थी, कहीं अन्यर स्त्वप्न- नध्य में उनके सधथ बही जध रही थी? पीड़ध-ववगसलत अश्रु उसके कपोलों पर बहने लगे। मधतध उन्हें पोंिती हुई कधतर-स्त्वर में बोली- क्यों रो रही हो, बेाी? अनुपमध िीघव नन:चवधस िोड़कर चुप रह गई। बड़ी बहू चन्रबधबू को एक ओर बुलधकर बोली- सबको जधने को कह िो, ननिरधनी ठीक हो गई हैं। िमि: सब लोग चले गए। रधत को बहू अनुपमध के पधस बैठकर बोली- ननिरधनी, क्रकसके सधथ वववधह होने पर तुम सुखी होओगी? अनुपमध आाँखें बन्ि करके बोलीसुख-िख ु मुझे कुि नही है , वही मेरे स्त्वधमी हैं...


35

- सो तो मैं समझती हूाँ, परन्तु वे कौन हैं? - सरु े ि! मेरे सरु े ि... - सरु े ि! रधखधल मजमि ू धर के लड़के? - हधाँ, वे ही। रधत में ही गहृ हणी ने यह बधत सन ु ी। िस ू धर के ू रे हिन सवेरे ही मजमि घर जध उपस्त्स्त्थत हुई। बहुत-सी बधतों के बधि सरु े ि की मधतध से बोलीअपने लड़के के सधथ मेरी लड़की कध वववधह कर लो। सरु े ि की मधतध हाँ सती हुई बोलीं- बुरध क्यध है ? - बुरे-िले की बधत नहीं, वववधह करनध ही होगध! - तो सुरेि से एक बधर पूि आऊाँ। वह घर में ही है , उसकी सम्मनत होने पर पनत को असहमनत नही होगी। सुरेि उस समय घर में रहकर बी.ए.की परीक्षध की तैयधरी कर रहध थध, एक क्षण उसके सलए एक वषव के समधन थध। उसकी मधाँ ने वववधह की बधत कही, मगर उसके कधन में नही पड़ी। गहृ हणी ने क्रफर कहध- सुरो, तुझे वववधह करनध होगध। सुरेि माँह ु उठधकर बोलध- वह तो होगध ही! परन्तु अिी क्यों? पढ़ने के समय यह


36

बधतें अच्िी नहीं लगतीं। गहृ हणी अप्रनति होकर बोली- नहीं, नहीं, पढ़ने के समय क्यों? परीक्षध समधप्त हो जधने पर वववधह होगध। - कहधाँ? - इसी गधाँव में जगबन्र्ु बधबू की लड़की के सधथ। - क्यध? चन्र की बहन के सधथ ? स्त्जसे मैं बच्ची कहकर पक ु धरतध हूाँ? - बच्ची कहकर क्यों पक ु धरे गध, उसकध नधम अनप ु मध है । सरु े ि थोड़ध हाँ सकर बोलध- हधाँ, अनप ु मध! िरु वह?, िरु , वह तो बड़ी कुस्त्त्सत है ! - कुस्त्त्सत कैसे हो जधएगी? वह तो िे खने में अच्िी है ! - िले ही िे खने में अच्िी! एक ही जगह ससुरधल और वपतध कध घर होनध, मुझे अच्िध नही लगतध। - क्यों? उसमें और क्यध िोष है ? - िोष की बधत कध कोई मतलब नहीं! तुम इस समय जधओ मधाँ, मैं थोड़ध पढ़ लाँ ू, इस समय कुि िी नहीं होगध!


37

सरु े ि की मधतध लौा आकर बोलीं-

सरु ो तो एक ही गधाँव में क्रकसी

प्रकधर िी वववधह नही करनध चधहतध। - क्यों? - सो तो नही जधनती! अनु की मधतध, मजमि ू धर की गहृ हणी कध हधथ पकड़कर कधतर िधव से बोलीं- यह नही होगध, बहन! यह वववधह तम् ु हे करनध ही पड़ेगध। - लड़कध तैयधर नहीं है ; मैं क्यध करूाँ, बतधओ? - न होने पर िी मैं क्रकसी तरह नहीं िोड़ूग ं ी। - तो आज ठहरो, कल क्रफर एक बधर समझध िे खंग ू ी, यहि सहमत कर सकी। अनु की मधतध घर लौाकर जगबन्र्ु बधबू से बोलीं- उनके सुरेि के सधथ हमधरी अनुपमध कध स्त्जस तरह वववधह हो सके, वह करो! - पर क्यों, बतधओ तो? रधम गधाँव में तो एक तरह से सब ननस्त्चचन्त हो चुकध है ! उस सम्बन्र् को तोड़ िें क्यध? - कधरण है ।


38

- क्यध कधरण है ? - कधरण कुि नहीं, परन्तु सुरेि जैसध रूप-गण ु -सम्पन्न लड़कध हमें कहधाँ समल सकतध है ? क्रफर, मेरी एक ही तो लड़की है , उसे िरू नहीं ब्यधहूाँगी। सरु े ि के सधथ ब्यधह होने पर, जब चधहूाँगी, तब उसे िे ख सकंू गी। - अच्िध प्रयत्न करूंगध। - प्रयत्न नहीं, ननस्त्चचत रूप से करनध होगध। पनत नथ कध हहलनधडुलनध िे खकर हाँ स पड़े। बोले- यही होगध जी। संध्यध के समय पनत मजमूिधर के घर से लौा आकर गहृ हणी से बोले- वहधाँ वववधह नही होगध।...मैं क्यध करूाँ, बतधओ उनके तैयधर न होने पर मैं जबिव स्त्ती तो उन लोगों के घर में लड़की को नहीं फेंक आऊंगध! - करें गे क्यों नहीं? - एक ही गधाँव में वववधह करने कध उनकध ववचधर नहीं है । गहृ हणी अपने मस्त्ष्टतष्टक पर हधथ मधरती हुई बोली- मेरे ही िधग्य कध िोष है ।


39

िस ू रे हिन वह क्रफर सरु े ि की मधाँ के पधस जधकर बोली- िीिी, वववधह कर लो। - मेरी िी इच्िध है ; परन्तु लड़कध क्रकस तरह तैयधर हो? - मैं निपधकर सरु े ि को और िी पधाँच हर्धर रुपए िं ग ू ी। रुपयों कध लोि बड़ध प्रबल होतध है । सरु े ि की मधाँ ने यह बधत सरु े ि के वपतध को जतधई। पनत ने सरु े ि को बल ु धकर कहध - सरु े ि, तम् ु हे यह वववधह करनध ही होगध। - क्यों? - क्यों, क्रफर क्यों? इस वववधह में तुम्हधरी मधाँ कध मत ही मेरध िी मत है , सधथ-ही-सधथ एक कधरण िी हो गयध है । सुरेि ससर नीचध क्रकए बोलध- यह पढ़ने-सलखने कध समय है , परीक्षध की हधनन होगी। - उसे मैं जधनतध हूाँ, बेाध! पढ़धई-सलखधई की हधनन करने के सलए तुमसे नहीं कह रहध हूाँ। परीक्षध समधप्त हो जधने पर वववधह करो। - जो आज्ञध!


40

अनप ु मध की मधतध की आनन्ि की सीमध न रही। फौरन यह बधत उन्होंने पनत से कही। मन के आनन्ि के कधरण िधस- िधसी सिी को यह बधत बतधई। बड़ी बहू ने अनप ु मध को बल ु धकर कहध- यह लो! तम् ु हधरे मन चधहे वर को पकड़ सलयध है । अनुपमध लज्जधपूवक व थोड़ध हाँ सती हुई बोली- यह तो मैं जधनती थी! - क्रकस तरह जधनध? धचट्ठी-परी चलती थी क्यध? - प्रेम अन्तयधवमी है ! हमधरी धचठ्ठी-परी हृिय में चलध करती है । - र्न्य हो, तुम जैसी लड़की! अनुपमध के चले जधने पर बड़ी बहू ने र्ीरे -र्ीरे मधनो अपने आप से कहध, - िे ख-सुनकर िरीर जलने लगतध है । मैं तीन बच्चों की मधाँ हूाँ और यह आज मुझे प्रेम ससखधने आई है . ####


41

शरद र्ांद्र र्ट्टोपधध्यधय : [ १८७६ – १९३८] बीसवी सिी के मुख्य िधरतीय कथधकधर. उनकी लेणखनीने

बहुर्ध ग्रधम्य बंग

संस्त्कृनत को उजधगर क्रकयध और उनकध रवय्यध सधमस्त्जक अन्ध्श्रध्र्ध एवम बझ व ध प्रथध के णखलधफ कध रहध. नधरी के बहुववर् रूप उनकी कथध ु व में उिरे है . कुि िौर के सलए वो सन्यधसी िी हो गए थे. उनकी प्रथम प्रकधसित कहधनी ‘मंहिर’ थी. ‘िे विधस’ , ‘श्रीकधंत’ उन की प्रनतस्त्ष्टठत कृनतयधाँ है . ‘श्रीकधंत’ को उनकी अनधर्कृत जीवन कथध कहध जध सकतध है . ववष्टणु प्रिधकर ने १४ वषव के पररश्रम पण ू व संिोर्न के जररये ‘आवधरध मसीहध’ नधमक जीवनी सलखी है . ###


42

खोल दो / सआित हसन मंाो अमत ृ सर से स्त्पेिल ट्रे न िोपहर िो बजे चली और आठ घंाों के बधि

मुगलपुरध पहुंची। रधस्त्ते में कई आिमी मधरे गए। अनेक जख्मी हुए और कुि इर्र-उर्र िाक गए। सुबह िस बजे कैं प की ठं डी जमीन पर जब ससरधजुद्दीन ने आंखें खोलीं और अपने चधरों तरफ मिों, औरतों और बच्चों कध एक उमड़तध समुर

िे खध तो उसकी सोचने-समझने की िस्त्क्तयधं और िी बूढ़ी हो गईं। वह

िे र तक गंिले आसमधन को ाकाकी बधंर्े िे खतध रहध। यूं ते कैं प में िोर मचध हुआ थध, लेक्रकन बढ़ ू े ससरधजद्द ु ीन के कधन तो जैसे बंि थे। उसे कुि सुनधई नहीं िे तध थध। कोई उसे िे खतध तो यह ख्यधल करतध की वह क्रकसी गहरी नींि में गकव है , मगर ऐसध नहीं थध। उसके होिो-हवधस गधयब थे। उसकध सधरध अस्त्स्त्तत्व िून्य में लाकध हुआ थध। गंिले आसमधन की तरफ बगैर क्रकसी इरधिे के िे खते-िे खते ससरधजुद्दीन

की ननगधहें सरू ज से ाकरधईं। तेज रोिनी उसके अस्त्स्त्तत्व की रग-रग में उतर गई और वह जधग उठध। ऊपर-तले उसके हिमधग में कई तस्त्वीरें िौड़ गईं-लूा, आग, िधगम-िधग, स्त्ाे िन, गोसलयधं, रधत और

सकीनध...ससरधजुद्दीन एकिम उठ खड़ध हुआ और पधगलों की तरह उसने चधरों तरफ फैले हुए इनसधनों के समुर को खंगधलनध िरु ु कर हियध। पूरे तीन घंाे बधि वह 'सकीनध-सकीनध' पुकधरतध कैं प की खधक िधनतध

रहध, मगर उसे अपनी जवधन इकलौती बेाी कध कोई पतध न समलध। चधरों तरफ एक र्धंर्ली-सी मची थी। कोई अपनध बच्चध ढूंढ रहध थध, कोई मधं,


43

कोई बीबी और कोई बेाी। ससरधजुद्दीन थक-हधरकर एक तरफ बैठ गयध और मस्त्स्त्तष्टक पर जोर िे कर सोचने लगध क्रक सकीनध उससे कब और

कहधं अलग हुई, लेक्रकन सोचते-सोचते उसकध हिमधग सकीनध की मधं की लधि पर जम जधतध, स्त्जसकी सधरी अंतडड़यधं बधहर ननकली हुईं थीं। उससे आगे वह और कुि न सोच सकध।

सकीनध की मधं मर चुकी थी। उसने ससरधजुद्दीन की आंखों के सधमने िम तोड़ध थध, लेक्रकन सकीनध कहधं थी , स्त्जसके ववषय में मधं ने मरते हुए कहध थध, "मझ ु े िोड़ िो और सकीनध को लेकर जल्िी से यहधं से िधग जधओ।"

सकीनध उसके सधथ ही थी। िोनों नंगे पधंव िधग रहे थे। सकीनध कध िप्ु पाध धगर पड़ध थध। उसे उठधने के सलए उसने रुकनध चधहध थध। सकीनध

ने धचल्लधकर कहध थध "अब्बधजी िोडड़ए!" लेक्रकन उसने िप्ु पाध उठध सलयध थध।....यह सोचते-सोचते उसने अपने कोा की उिरी हुई जेब कध तरफ


44

िे खध और उसमें हधथ डधलकर एक कपड़ध ननकधलध, सकीनध कध वही िप्ु पाध थध, लेक्रकन सकीनध कहधं थी ? ससरधजुद्दीन ने अपने थके हुए हिमधग पर बहुत जोर हियध, मगर वह क्रकसी नतीजे पर न पहुंच सकध। क्यध वह सकीनध को अपने सधथ स्त्ाे िन तक ले आयध थध?- क्यध वह उसके सधथ ही गधड़ी में सवधर थी?- रधस्त्ते

में जब गधड़ी रोकी गई थी और बलवधई अंिर घुस आए थे तो क्यध वह बेहोि हो गयध थध, जो वे सकीनध को उठध कर ले गए?

ससरधजुद्दीन के हिमधग में सवधल ही सवधल थे, जवधब कोई िी नहीं थध। उसको हमि​िी की जरूरत थी, लेक्रकन चधरों तरफ स्त्जतने िी इनसधन

फंसे हुए थे, सबको हमि​िी की जरूरत थी। ससरधजुद्दीन ने रोनध चधहध, मगर आंखों ने उसकी मि​ि न की। आंसू न जधने कहधं गधयब हो गए थे।

िह रोज बधि जब होि-व-हवधस क्रकसी किर िरु ु सत हुए तो ससरधजुद्दीन उन लोगों से समलध जो उसकी मि​ि करने को तैयधर थे। आठ नौजवधन थे, स्त्जनके पधस लधहठयधं थीं, बंिक ु ीन ने उनको लधख-लधख ू ें थीं। ससरधजद्द िआ ु ऐं िीं और सकीनध कध हुसलयध बतधयध, गोरध रं ग है और बहुत खूबसूरत है ... मुझ पर नहीं अपनी मधं पर थी...उम्र सरह वषव के करीब है ।...आंखें बड़ी-बड़ी...बधल स्त्यधह, िधहहने गधल पर मोाध सध नतल...मेरी इकलौती लड़की है । ढूंढ लधओ, खि ु ध तुम्हधरध िलध करे गध।

रजधकधर नौजवधनों ने बड़े जज्बे के सधथ बढ ू े ¸ ससरधजद्द ु ीन को यकीन

हिलधयध क्रक अगर उसकी बेाी स्त्जंिध हुई तो चंि ही हिनों में उसके पधस होगी।


45

आठों नौजवधनों ने कोसि​ि की। जधन हथेली पर रखकर वे अमत ृ सर गए। कई मिों और कई बच्चों को ननकधल-ननकधलकर उन्होंने सुरक्षक्षत स्त्थधनों पर पहुंचधयध। िस रोज गज ु र गए, मगर उन्हें सकीनध न समली।

एक रोज इसी सेवध के सलए लधरी पर अमत ृ सर जध रहे थे क्रक िहररध के

पधस सड़क पर उन्हें एक लड़की हिखधई िी। लधरी की आवधज सन ु कर वह त्रबिकी और िधगनध िुरू कर हियध। रजधकधरों ने मोार रोकी और सबके-

सब उसके पीिे िधगे। एक खेत में उन्होंने लड़की को पकड़ सलयध। िे खध, तो बहुत खब ू सूरत थी। िधहहने गधल पर मोाध नतल थध। एक लड़के ने उससे कहध, घबरधओ नहीं-क्यध तम् ु हधरध नधम सकीनध है ? लड़की कध रं ग और िी जिव हो गयध। उसने कोई जवधब नहीं हियध, लेक्रकन जब तमधम लड़कों ने उसे िम-हिलधसध हियध तो उसकी िहित िरू हुई और उसने मधन सलयध क्रक वो सरधजुद्दीन की बेाी सकीनध है ।

आठ रजधकधर नौजवधनों ने हर तरह से सकीनध की हिलजोई की। उसे

खधनध णखलधयध, िर् ू वपलधयध और लधरी में बैठध हियध। एक ने अपनध कोा उतधरकर उसे िे हियध, क्योंक्रक िप ु ट्टध न होने के कधरण वह बहुत उलझन महसूस कर रही थी और बधर-बधर बधंहों से अपने सीने को ढकने की कोसि​ि में लगी हुई थी।

कई हिन गुजर गए- ससरधजुद्दीन को सकीनध की कोई खबर न समली। वह

हिन-िर ववसिन्न कैं पों और िफ्तरों के चक्कर कधातध रहतध, लेक्रकन कहीं िी उसकी बेाी कध पतध न चलध। रधत को वह बहुत िे र तक उन रजधकधर नौजवधनों की कधमयधबी के सलए िआ ु एं मधंगतध रहतध, स्त्जन्होंने


46

उसे यकीन हिलधयध थध क्रक अगर सकीनध स्त्जंिध हुई तो चंि हिनों में ही उसे ढूंढ ननकधलें गे। एक रोज ससरधजुद्दीन ने कैं प में उन नौजवधन रजधकधरों को िे खध। लधरी में बैठे थे। ससरधजद्द ु ीन िधगध-िधगध उनके पधस गयध। लधरी चलने ही वधली थी क्रक उसने पि ू ध-बेाध, मेरी सकीनध कध पतध चलध?

सबने एक जवधब होकर कहध, चल जधएगध, चल जधएगध। और लधरी चलध िी। ससरधजुद्दीन ने एक बधर क्रफर उन नौजवधनों की कधमयधबी की िआ ु मधंगी और उसकध जी क्रकसी किर हलकध हो गयध।

िधम को करीब कैं प में जहधं ससरधजुद्दीन बैठध थध, उसके पधस ही कुि

गड़बड़-सी हुई। चधर आिमी कुि उठधकर लध रहे थे। उसने मधलम ू क्रकयध तो पतध चलध क्रक एक लड़की रे लवे लधइन के पधस बेहोि पड़ी थी। लोग उसे उठधकर लधए हैं। ससरधजुद्दीन उनके पीिे हो सलयध। लोगों ने लड़की को अस्त्पतधल वधलों के सुपुिव क्रकयध और चले गए।

कुि िे र वह ऐसे ही अस्त्पतधल के बधहर गड़े हुए लकड़ी के खंबे के सधथ लगकर खड़ध रहध। क्रफर आहहस्त्तध-आहहस्त्तध अंिर चलध गयध। कमरे में कोई नहीं थध। एक स्त्ट्रे चर थध, स्त्जस पर एक लधि पड़ी थी। ससरधजद्द ु ीन

िोाे -िोाे किम उठधतध उसकी तरफ बढ़ध। कमरे में अचधनक रोिनी हुई। ससरधजुद्दीन ने लधि के जिव चेहरे पर चमकतध हुआ नतल िे खध और धचल्लधयध-सकीनध

डॉक्ार, स्त्जसने कमरे में रोिनी की थी, ने ससरधजुद्दीन से पूिध, क्यध है ?


47

ससरधजद्द ु ीन के हलक से ससफव इस किर ननकल सकध, जी मैं...जी मैं...इसकध बधप हूं।

डॉक्ार ने स्त्ट्रे चर पर पड़ी हुई लधि की नब्ज ा​ाोली और ससरधजद्द ु ीन से कहध, णखड़की खोल िो। सकीनध के मर ु ध स्त्जस्त्म में जंत्रु बि हुई। बेजधन हधथों से उसने इर्धरबंि खोलध और सलवधर नीचे सरकध िी। बूढ़ध ससरधजुद्दीन खुिी से धचल्लधयध, स्त्जंिध है -मेरी बेाी स्त्जंिध है ? -सआित हसन मंाो ######

सआदत हसन मांटो : अपनी बयधलीस सधल, आठ महीने और सधत हिन की स्त्र्ंिगी में मंाो को सलखने के सलए ससफव 19 सधल समले और इन 19 सधलों में उसने 230 कहधननयधाँ, 67 रे डडयो नधाक, 22 खधके (िब्ि धचर) और 70 लेख सलखे। कहधननयधाँ स्त्जन पर मुक़िमे चले कधली िलवधर, र्ुआाँ, बू, ठं डध गोचत, और 'ऊपर,नीचे और िरसमयधाँ'

लेक्रकन रचनधओं की यह धगनती िधयि उतनी महत्वपूणव नहीं है , स्त्जतनी महत्वपण ू व यह बधत है क्रक उसने 50 बरस पहले जो कुि सलखध, उसमें


48

आज की हक़ीक़त ससमाी हुई नर्र आती है और यह हक़ीक़त को उसने ऐसी तल्ख र्ुबधन में पेि क्रकयध क्रक समधज के अलंबरिधरों की नींि हरधम हो गई| नतीर्तन उसकी जधाँच कहधननयों पर मुक़िमे चले, स्त्जनके

िमवधर िीषवक हैं, “कधली िलवधर”, “र्आ ु ाँ”, “ब”ू , “ठं डध गोचत” और

“ऊपर, नीचे और िरसमयधाँ”. इन मुक़िमों के िौरधन मंाो को स्त्र्ल्लत उठधनी पड़ी. अिधलतों के चक्कर लगधने में उसकध “िुरकस ननकल गयध.”, लेक्रकन उसे अपने क्रकए पर कोई पितधवध नहीं रहध. #####

मौकध / क्रकिोर पाे ल िक्षक्षण गज ु रधत के एक िोाे से िहरनुमध गधंव में एक समधज िवन कध ननमधवण होनध थध. चन्िध इकट्ठध क्रकयध जध रहध थध. वपिले कुि वषो में

ववकधस हो रहे इस गधंव में त्रबजलीकरण और प्लंत्रबंग के िोाे -बड़े कधमों से महे ि ने अच्िी आमिनी की थी. कुि अरसे पहले ही उस के वपतध नधरणिधई की मत्ृ यु हुई थी. अपने वपतध के नधम उसने रुपये िो लधख की रधसि चंिे में िी. समधज के कधयवकतधवओं ने ननमधवणधर्ीन िवन के िूसमपूजन के अवसर पर महे ि को सपररवधर बतौर मुख्य अनतधथ

आमंत्ररत क्रकयध. महे ि की पत्नी मीनध को बहुत आनंि हुआ. पहली बधर क्रकसी ने अपने पनत को इस सन्मधन के लधयक समझध थध. मधरे खुिी के कधयविम के अगले हिन िे वर-िे वरधनी को अपनी तरफ से न्योतध िे ने वह उन के घर चली गई.


49

महे ि के हिल में अपने िोाे िधई नरे ि के सलए बहुत स्त्नेह थध. कधम की व्यस्त्ततध के कधरण वह चधहते हुए िी अपने िोाे िधई से ज्यधिध समल नहीं पधतध थध. नरे ि एक यध िस ू रे कधरण बनध कर बड़े िधई से समलनध ाधल िे तध थध. िोनों की स्त्स्त्रयों के बीच अच्िध मेलजोल थध. नधरणिधई के िोाे बेाे नरे ि ने बड़े िधई के मुकधबले र्न तो नहीं

कमधयध थध पर नधम बड़ध अस्त्जत व क्रकयध थध. लोग उसे नधरणिधई कध असली उत्तरधधर्कधरी कहते थे. गधंव की स्त्कूल के हे ड मधस्त्ार रह चुके नधरणिधई गधंर्ी ववचधरों से प्रिधववत थे. गधंव में व्यसन मुस्त्क्त और सधमधस्त्जक सर् ु धर के प्रयधस वह आजीवन करते आये थे. िोाे मोाे

सधंसधररक मसले पर लोग नधरणिधई की सलधह लेने आते थे. स्त्कूल में महे ि लगधतधर फेल होतध थध जब क्रक नरे ि हमेिध अव्वल आतध थध.

सिक्षध पूणव होने पर उसे गधंव के ही स्त्कूल में सिक्षक की नौकरी समल

गई थी. वपतध की िधाँव में बड़े हुए नरे ि ने वपतध के जैसे बोलनध सीख सलयध थध. नधरणिधई के ननर्न के बधि लोग नरे ि के पधस सल्लध-मिवरध करने आने लगे. नरे ि अपने वपतध के वचनों को िोहरध कर नधम और कीनतव कमधने लगध थध. चंिे के सलए जब लोग उस के पधस आये तो उस ने हधथ उपर कर हिए.

'हधं अगर आप लोग चधहें गे तो एक अच्िध सध िधषण जरुर िं ग ू ध!'

उसने कहध थध. गधंव के िोले िधले कधयवकतधवओं ने इसे िी अपनध नसीब समझध और बड़े जोरों से प्रचधर में जुा गए: “हमधरे हिवंगत नेतध

नधरणिधई के महधन सुपुर नरे ि​िधईजी इस मौके पर उपस्त्स्त्थत रहें गे!”


50

िधिी जबसे आई थी नरे ि ने अपने आप को कमरे में बंि कर सलयध थध. उसे िधषण तैयधर करनध थध. वह ऐसध िधषण िे नध चधहतध थध स्त्जसे सुन कर लोग न ससफव तधसलयधं बजधये, ये िी कहे क्रक क्रकतने ग्यधनी है हमधरे नरे ि िधईजी!

मीनध कई िे र तक अपनी िे वरधनी से बनतयधते रही. िोनों की अच्िी

पाती थी. स्त्वधसिमधनी िे वरजी की पीठ पीिे मीनध िे वरधनी को आधथवक मि​ि क्रकयध करती थी. ननमवलध ने बच्ची के जररये अन्िर संिेिध िी िेजध क्रक एक बधर िधिी से समल लो. पर नरे ि अपने कत्तवव्य से नहीं चक ू ध. परू े िो घंाे वह अपने अनत महत्त्व के कधम में डूबध रहध. पनत की

ओर से ननमवलध ने जेठधनी से मधफी मधंगी तो मीनध बोल पड़ी, 'अरे बहे न, िे वरजी हमधरे जैसे आम इंसधन नहीं है ! अगर कुि कधम में वे व्यस्त्त है तो ठीक है नध, खधमखधं क्यूं उनकध वक़्त जधयध करें हम?'

यह सुन कर नरे ि बड़ध खुि हुआ. कधम में डूबे होने कध ढोंग करते हुए बधहर औरतें की बधतें सुनने के सलए उस ने कधन लगध रखे थे. औरतें अक्सर क्रफर्ूल की बधतें क्रकयध करती है . नरे ि को लगध की वह

अपनध कीमती समय बबधवि कर रहध है . लेक्रकन जब घर की मरम्मत की बधत ननकली तो नरे ि चौकन्नध हो गयध. ननमवलध ने कहध क्रक घर में कई सधरी जगह कधम करवधने की जरुरत है . कम से कम बीस पच्चीस हजधर तो लग ही जधयेंगे. ननमवलध कई बधर इस बधत को लेकर पनत कध मधथध खध चक ू ी थी. नरे ि यह जधनने बेतधब थध क्रक िधिी क्यध कहती है . िधिी ने बहुत ही र्ीमे से कहध क्रक 'कहो तो तुम्हधरे जेठ से बधत चलधऊं?'


51

ननमवलध घिरध कर फौरन बोल पड़ी. 'हधय बहनध, ऐसध गजब मत करनध. तम् ु हधरे िे वरजी मेरी चानी बनध िें गे! उन को यह किी मंजरू नहीं होगध!' बधत आई गई हो गई. कल समधरोह में कौन से वस्त्र पहनने है और कौनसे जेवरधत से िोिध बढ़धनी है इस बधत में औरतें लग गई. नरे ि कध मन ववचसलत हो उठध. क्रकसी तरह उसने कधम में मन लगधने क्रक कोसि​ि की. जेठधनी तो ननमंरण िे कर चल िी. ननमवलध को अपने पनत कध व्यवहधर

ठीक नहीं लगध. इसी ववषय में कुि कहने के सलए वह पनत के कमरे में गई तो नरे ि ने उसे झधड़ हियध. 'िोाी िोाी बधतों के सलए मेरे पधस

वक़्त नहीं है ननमवलध! तम् ु हधरे पनत कध जन्म ही बड़े कधमों के सलए हुआ है !’


52

ननमवलध को िी गस्त् ु सध आ गयध. बोली, 'अपने बड़ों कध आिर करनध क्यध िोाी बधत है ?'

'आिमी ससफव र्न-िौलत से बड़ध नहीं होतध!' नरे ि के हिल की बधत जुबधन पर आ गई. 'बड़े िधईसधहब ने कैसे र्ंर्े कर के र्न कमधयध है यह मैं जधनतध हूं. मेरध मुंह मत खुलवधओ! आइंिध ऐसी बधतों के सलए मझ ु से उम्मीि मत रखो!' ननरधि हो कर ननमवलध लौा गई.

नरे ि क्रफर अपने कधम में जुा गयध. लेक्रकन वह अपनध ध्यधन केस्त्न्रत

नहीं कर पध रहध थध. अगले हिन क्यध मधजरध होगध यही सोच में वह डूब गयध. िो लधख कध चन्िध मधमूली नहीं होतध. महे ि​िधई कध खूब मधनसन्मधन होगध यह सोच कर उस कध हिल डूबध जध रहध थध.

सजी र्जी लडक्रकयधं महे ि​िधई और िधिी को चन्िन कध नतलक लगधएंगी...स्त्वधगत में गीत गधयेंगी... उन की आरती उतधरी जधयेगी...समधज के एक मणु खयध फूलों की मधलध पहनधएंगे... िस ू रध

मुणखयध िधई कध पररचय िे ते हुए उन्होंने अपने र्ंर्े में की हुई प्रगनत की िधस्त्तधन सुनधएगध...और यह सब होगध उस की उपस्त्स्त्थनत में . नरे ि यह सब सोचते हुए पधगल हुआ जध रहध थध. स्त्कूल में अव्वल तो मैं आतध थध. क्यध समलध मुझे? यही फधलतू की नौकरी? लोगों की वधह

वधही से क्रकसी कध पेा तो नहीं िरतध! और उन को िे खो! सधल िर सधल फेल होते थे! आज वो कहधं है और मैं कहधं हूं? आये हिन महक्रफलें सजती हैं उन की कोठी पर! हधं ठीक है , मेहनत की है उन्होंने. लेक्रकन कोई आिमी क्यध ससफव मेहनत करने से उपर उठतध है ? गोलमधल तो अवचय की होगी. बड़े बड़े सरकधरी कोन्ट्रे क्ा ऐसे ही समलते है िलध क्रकसी


53

को? कई सधहबों की मठ्ठ ु ी गमव की होगी उन्होंने! अब यही िो लधख के चन्िध की बधत ले लो. यह कोई िधन-र्मव नहीं है . ररचवत है ररचवत.

समधज के इस िवन के त्रबजलीकरण और प्लंत्रबंग और न जधने और कौन कौन से कधंट्रेक्ा िी इन्ही को समलेंगे! जधहहर बधत है ! िो लधख कध चन्िध िे कर बीस पच्चीस लधख कध मुनधफध तो अवचय ही कमध लेंगे िधई सधहब!

उसने अपने िधषण पर एक नजर डधली. बच्चों में सिक्षध कध महत्त्व. वही नघसी पीाी फधलतू बधत. नहीं, यह नहीं, कुि ऐसध कहे क्रक लोग चौकन्ने हो जधए. लेक्रकन क्यध?

यकधयक नरे ि के हिमधग में एक ववचधर त्रबजली की तरह िौड़ध. क्यों न इसी मौके पर भ्रष्टाधचधर कध मद्द ु ध उठधयध जधए? जनजीवन में व्यधप्त भ्रष्टाधचधर के मुद्दे की आड़ में िधईसधहब की पोल खोलने कध सुनहरी मौक़ध!

नरे ि को अपनी बुवद्धमत्तध पर गवव हुआ. िो घंाे से जो िधषण वह सलख रहध थध उसे उसने फधड़ हियध. रधत के खधने कध बुलधवध आयध क्रफर िी वह अपने िधंनतकधरी कधम में जा ु ध रहध. िे र रधत तक उसने अपनध

िधषण सलखध. बधर बधर सलखध और उसे अधर्क से अधर्क पैनध बनधयध. िनु नयध के जधने मधने लीडरों की उस्त्क्तयों कध सन्ि​िव िे ते हुए अपने िधषण को उसने खूब संवधरध सजधयध. अब उसे अच्िी नींि आ गई, खधली पेा. * * *


54

िस ु ह के चधय-नधचते के बधि नरे ि ने ु रे हिन इतवधर की िुट्टी थी. सब पत्नी और बच्ची िोनों को सधमने त्रबठध कर अपने िधषण कध पठन

क्रकयध. बच्ची तो बीच में ही सो गई, ननमवलध ने कहध, 'इतनध समजती हूं क्रक आपने बड़े िधई सधहब को ननिधनध बनधयध है .' नरे ि खुि हो गयध. 'ननमवलध, तुम तो बड़ी बुवद्धमधन ननकली!' वह मन ही मन कहने लगध क्रक इसे समज में आ गयध यधनी सब को समज में आयेगध. 'आप यह ठीक नहीं कर रहें है . िधई सधहब वैसे नहीं है जैसे आप समज रहें है !' नरे ि िोधर्त हो उठध. 'चप ु कर मख ू व औरत! मझ ु े मत ससखध क्यध ठीक है और क्यध नहीं!' * * * समधरोह में त्रबलकुल वैसे ही हुआ जैसी नरे ि ने कल्पनध की थी. मंच पर वह एक कुसी में बैठध रहध और अपने बड़े िधई कध िव्य स्त्वधगत अपनी आंखों से िे खतध रहध. उस के अंगधंग में अस्त्ग्न की ज्वधलधएं िड़कती रही. क्रकसी तरह वह अपने आप को समझधतध रहध की नरे ि​िधईजी, थोड़ध सध सब्र करो, आप की िी बधरी आने वधली है . एक-िो मणु खयध के प्रधसंधगक उद्बोर्न के बधि मख् ु य अनतधथ वविेष

महे ि​िधई को अनुरोर् क्रकयध गयध क्रक िो िब्ि वह कहें . महे ि िधई ने बड़े ही सकुचधते हुए समधज के कधयवकतधवओं कध आिधर प्रका क्रकयध.


55

उन्होंने कहध क्रक वह अच्िध कधम कर रहें है तब जध कर उसे कुि करने कध मौक़ध समलध है . मेरे पूज्य वपतधजी के ववषय में कुि कहने की

मेरी

पधरतध नहीं है . मैं तो मजिरू आिमी हूं. सिक्षक्षत वपतध की िर िधयध होते हुए मैं आवधरधगिी करतध रहध और अनपढ़ ही रह गयध. मझ ु से िी ज्यधिध सन्मधन के अधर्कधरी तो मेरे िोाे िधई नरे ि​िधईजी है स्त्जन्होंने

पूज्य वपतधजी के नक़्िे किम पर चलते हुए एक समसधल कधयम की है . समधजकधयव की जो िधवनध नरे ि​िधईजी में है उस कध थोड़ध सध िी अंि मझ ु में आ जधए तो मैं उसे अपनध िधग्य समझंग ू ध. लोगों ने खब ू तधसलयधं पीाी. िधईसधहब की बधतें सन ु कर ननमवलध की आंखों में पधनी आ गयध और नरे ि हक्कध बक्कध रह गयध.

महे ि​िधई के हधथो िीप प्रज्वलन होनध थध. इस मौके पर उन्होंने नरे ि को अपने सधथ बुलध सलयध. नरे ि को समज में नहीं आयध की क्यों उस के हधथ कधंप रहे थे. जब नरे ि को िो िब्ि बोलने कध अनुरोर् क्रकयध

गयध तब अपने ववस्त्फोाक िधषण कध एक िब्ि िी वह बोल नहीं पधयध. उसने कहध, 'िधईसधहब ने आज मेरध बहुत बड़ध सन्मधन क्रकयध है . पज् ू य वपतधजी के बधरे में कुि कहने के सलए मैं तो उनसे िी िोाध हूं.' लोगों ने क्रफर ढे र सधरी तधसलयधं पीाी. ननमवलध की आंखें अब की बधर खब ू बरसी.

* * * िे र रधत तक ननमवलध पनत के पैर िबधती रही. िधम की घानध यधि कर के क्रफर उस की आंखों में पधनी उमड़ध.


56

कहने लगी, 'आज िधई सधहब ने आप को क्रकतनध मधन हियध! और आप है क्रक उन के णखलधफ बोलने के सलए हमेिध तैयधर रहते है !' क्यध कहतध नरे ि? उस ने आंखे मूंि ली. ननमवलध ने कहध, 'अच्िध हुआ आपने कुि अनधप िनधप बकवधस नहीं क्रकयध.' नरे ि धचढ़ उठध. बोलध, 'अब तू बकवधस बंर् कर, मझ ु े नींि आ रही है !' ननमवलध एक बधत पूिनध चधहती थी. बोल उठी, 'आपने मेरे गले में जो

हधर थध वह िे खध थध?' नरे ि ने वह चमकतध हधर िे खध थध पर उस के बधरे में कोई सोच-ववचधर यध पच् ृ िध करने क्रक मन:स्त्स्त्थनत में नहीं थध. ननमवलध ने कहध, 'िधिीजी ने हियध थध.’ नरे ि कुि बोलध नहीं. ‘बड़ध आग्रह कर के हियध थध उन्होंने जब कल आई थी.'

नरे ि को मौक़ध समल गयध. वह कैसे चुप रह पधतध? बोल उठध, 'क्यों न िे ती? पतध है नध हधर तो वधपस आ जधएगध! रुपये िे ती तो थोड़ी नध वधपस आते?' ननमवलध कुि समज नहीं पधई. 'रुपये? कैसे रुपये?' 'अरे बेवकूफ औरत! इतनध नहीं समझती? चन्िध?

क्यूं हियध िो लधख कध

नधम कमधने के सलए! पचीस हजधर हमें िे िे ते घर की मरम्मत

के सलए तो थोड़ी उन कध नधम होतध?' ननमवलध की आंखें क्रफर बहने लगी.


57

नरे ि गस्त् ु सध हो गयध. उसने कहध, 'मख ू व औरत! रोनध तो मझ ु े चधहहए! िे खध, िधईसधहब ने लोगों के सधमने मेरी तधरीफ के पुल बधंर् हिए! क्रकतनी गंिी रधजनीनत! उन की गोलमधल कध पिधवफधि करने कध

सन ु हरध मौक़ध आयध थध! िीन सलयध मेरे हधथों से! क्रकतने नीच आिमी है !'

नरे ि को यह त्रबलकुल समझ में नहीं आयध क्रक ननमवलध क्यों और कैसे बेसुर् हो कर धगर गई. - क्रकिोर पाे ल * * *

ककशोर पटे ल : बेंक से ननवत्ृ त अधर्कधरी. बेंक सेवध के सधथ सधथ कहधनी और नध्य परकधररतध. इनके कथध संग्रह और नधवेल को गज ु रधती सधहहत्य संस्त्थध कध परु ष्टकधर समल चक ू ध है और हहंिी में सलखे नधाक को हिल्ही स्त्स्त्थत रं गमंच संस्त्थध कध ‘मोहन रधकेि’ पुरष्टकधर समलध है . गुजरधती िधषी , प्रमुख लेखन गुजरधती िधषध में और कुि लेखन हहन्िी तथध मरधठी में िी क्रकयध है .


58

###

कमजोर / अन्तोन चेखव आज मैं अपने बच्चों की अध्यधवपकध यूल्यध वससल्येव्नध कध हहसधब चक ु तध करनध चधहतध थध।

"बैठ जधओ यूल्यध वससल्येव्नध।" मैंने उससे कहध, "तुम्हधरध हहसधब चुकतध कर हियध जधए। हधाँ, तो फैसलध हुआ थध क्रक तम् ु हें महीने के तीस रूबल समलेंगे, है न?" "जी नहीं, चधलीस।" "नहीं, नहीं, तीस में ही बधत की थी । तुम हमधरे यहधाँ िो ही महीने तो रही हो।"

"जी, िो महीने और पधाँच हिन।" "नहीं, पूरे िो महीने। इन िो महीनों में से नौ इतवधर ननकधल िो। इतवधर के हिन तो तम ु कोल्यध को ससफव सैर करधने के सलए ही लेकर जधती थी। और क्रफर तीन िुहट्टयधाँ िी तो तुमने ली थीं... नौ और तीन, बधरह। तो बधरह रूबल कम हो गए। कोल्यध चधर हिन तक बीमधर रहध, उन हिनों

तम ु ने उसे नहीं पढ़धयध। ससफव वधन्यध को ही पढ़धयध, और क्रफर तीन हिन तम् ु हधरे िधाँत में िी ि​िव रहध। उस समय मेरी पत्नी ने तुम्हें िुट्टी िे िी


59

थी। बधरह और सधत हुए उन्नीस। सधठ में से इन्हें ननकधल हियध जधए तो बधक़ी बचे... हधाँ, इकतधलीस रूबल,क्यों? हठक है नध..?

यूल्यध की आाँखों में आाँसू िर आए थे। "और नए सधल के हिन तम ु ने एक कप-प्लेा तोड़ हियध थध । िो रूबल उसके घाधओ। तुम्हधरी लधपरवधही से कोल्यध ने पेड़ पर चढ़कर अपनध

कोा फधड़ हियध थध। िस रूबल उसके और क्रफर तुम्हधरी लधपरवधही के

कधरण ही नौकरधनी वधन्यध के बा ू लेकर िधग गई। सो, पधाँच रूबल उसके िी कम हुए... िस जनवरी को िस रूबल तुमने उर्धर सलए थे। इकतधलीस में से सत्तधइस ननकधलो। बधकी रह गए- चौिह।"

यल् ू यध की आाँखों में आाँसू उमड़ आए थे, "मैंने एक बधर आपकी पत्नी से तीन रूबल सलए थे।"


60

"अच्िध, यह तो मैंने सलखध ही नहीं। चौिह में से तीन ननकधलो, अब बचे ग्यधरह। सो, यह रही तुम्हधरी तनख़्वधह ! तीन, तीन, तीन... एक और एक।"

"र्न्यवधि !" उसने बहुत ही हौले से कहध। "तम ु ने र्न्यवधि क्यों कहध?" "पैसों के सलए।" "लधनत है ! क्यध तुम िे खती नहीं क्रक मैंने तुम्हें र्ोखध हियध है ? मैंने तुम्हधरे पैसे मधर सलए हैं और तुम इस पर मुझे र्न्यवधि कहती हो !

अरे , मैं तो तुम्हें परख रहध थध... मैं तुम्हें अस्त्सी रूबल ही िं ग ू ध। यह रही परू ी रक़म।"

वह र्न्यवधि कहकर चली गई। मैं उसे िे खतध रहध और क्रफर सोचने लगध क्रक िनु नयध में तधक़तवर बननध क्रकतनध आसधन है ! ####


61

एांटोन पधव्लोविर् र्ेखि : [रसियध :

१८६०- १९०४] .

डॉक्ार, नध्यकमी, और लेखक. कथध इनतहधस में महधन लेखको में धगनती. वो लेखन के सधथ बरोबर डोक्ारी िी जीवन िर करते रहे . कहधनी सलखने की िुरुआत उन्होंने र्न प्रधस्त्प्त की आिध से की थी..क्रफर उनमे कध कलधकधर लेखन पर हधवी हो गयध और कथध लेखन में उनके

जररये कुि नये पहलू ननसमवत हुए स्त्जसने आर्ुननक कथध स्त्वरूप को तरधिने में ठोस िूसमकध ननिधई. कथध में िब ु ोधर्तध /कहठनधई के तत्व को लेकर वो स्त्पष्टा थे : कलधकधर की िसू मकध सवधल उठधने की है —न की उन सवधलों के जवधब िे ने की. #### रघु की र्धय – रधजू पटे ल यह मेरी नहीं रघु की कहधनी है . हिक्कत यह है की रघु कहधनी सलखतध नहीं.. मतलब जी क्रकयध तो सलख िी िे गध पर कब वो िरोसध नहीं. “ आलोचक जी---हम तो आसमधन में उड़ते पररंिे है , हमधरी उड़धन को कैसे तौलोगे

अपनी समीक्षध में ...?” कह

कर वो मेरी मर्धक उड़धयध करतध है . हधलधंक्रक मैं कोई आलोचक नहीं


62

पर वो पररंिध र्रुर है स्त्जसे परं परध के वपंजरे मंर्रू नहीं ... कधि को वो अनुिधसन से सलख लेतध होतध ..

वैसे रघु ने कम नहीं सलखध –बहुत सलखध है – वपिले हिनों अपने ब्लॉग में उस ने पधब्लो नेरुिध की लगिग ५० कववतधओं कध अनुवधि प्रस्त्तुत क्रकयध, उस से पहले ‘गढ़धचरोली में कधलव मधक्सव ‘ नधमक उस की एक लंबी कहधनी उसने ब्लॉग पर डधली थी और पसु लस ने उसे एरे स्त्ा कर

सलयध थध. अपनध केस वो खुि लड़ध थध- एक ही िलील थी उसकी : मेरध गुनधह क्यध है ...? पुसलस कोई गुनधह सधत्रबत नहीं कर पधई थी – खेर वो केस एक इंारे स्त्स्त्ां ग मजमु है पर उस पर क्रफर किी बधत.

किी किी वो धचरकधरी िी करतध है . एक बधर आाव गेलेरी में उसके एक धचर को ले कर कधफी बहस हो गई थी. उसकध एक धचर अचलील है ऐसध आरोप लग रहध थध – कुि लोग उसे कलधकधर की उड़धन और

कलधकधर की स्त्वतंरतध वगेरधह कध लधि िे रहे थे पर ज्यधिधतर लोग उस धचर को एक नि​िोरधपन कह रहे थे... कुि िे र के बधि रघु आयध, धचर

के पधस जध कर बोलध : अरे ये तो गलती से उलाध ां गध हियध है ... और उसने धचर को उला कर रखध : अब वो एक फूल कध धचर थध... सब िधंत हो गए...

पर उस हिन रधत को िरधब पीते वक़्त उस ने रहस्त्यमय मुस्त्कधन के

सधथ हम िोस्त्तों को पूिध थध : धचर उलाध मैंने क्रकयध यध पहले थध ...?! खेर. रघु बहुत कुि कर लेतध है पर कहधनी नहीं सलखतध.. “ िोड़ यधर कोई समझतध नहीं..” अक्सर यह कह के ाधल िे तध है .


63

वपिली बधर हम िोनों रम पी रहे थे तब क्रफर कहधनी की बधत ननकलीक्रफर मैंने आग्रह क्रकयध की ‘ कोई िधपे न िधपे वो बधि की बधत है सधले, तू सलख तो सही-‘ तब अचधनक उठ कर वो कुि कधगर् ले आयध और बोलध “ ठीक है सुन मैंने ये कहधनी सलखी है बतध कैसी लगती है ?”

मुझे बहुत आचचयव हुआ – रघु ने कोई कहधनी सलख रखी है ...!! ‘सुनधसुनध..’ मैंने चधव से िरधब की सीप लेते हुए कहध और उस ने सुननध िुरू क्रकयध-

: मैं एक सेल्समेन हूाँ, ज्यधिध नहीं कमध लेतध पर मैं और मेरी पत्नी –

हम िोनों कध सख ु ी संसधर है . मझ ु े मेरी पत्नी से कोई सिकधयत नहीं और जहधाँ तक मैं समझतध हूाँ मेरी पत्नी को िी मुझ से कोई सिकधयत नहीं. ऐसध नहीं की हमधरी सधरी पसंि एक जैसी है – पर हमधरी नधपसंि पर एक िज ू े की नधपसंिगी नहीं.. ‘ओके’ मैंने मुस्त्कुरधकर कहध. रघु की कहधनी में सब सुख सुख हो यह तो हो नहीं सकतध.. िे खें क्यध मोड़ आतध है इस सख ु कथध में –यह सोचते हुए मैंने रम कध सीप सलयध. उस ने आगे पढ़ध :

-मझ ु े चधय बहुत पसंि है . और मेरी पत्नी को चधय बनधनध बहुत पसंि है . चधय में प्रयोग करनध मुझे अच्िध लगतध है और यह बधत वो िी

समझ गई है सो वो िी हर बधर चधय में कुि अलग करने की कोसि​ि

करती है ...आम चधय के अलधवध किी वो बीनध िर् ू की चधय बनध िे ती है ननम्बू वधली चधय से ले कर अिरक , समची और र्ननयधपत्ते वधली


64

ववववर् चधय वो बनध लेती है . और ऐसे प्रयोग के अलधवध आम चधय में िी कुि न कुि अलगपन की कोसि​ि क्रकयध करती है जैसे किी चधय पत्ती वो आवचयकतध से २०% कम डधलेगी क्रफर चधय को पकध कर

उतधरने के िो समना पहले वो उस न डधली हुई २० % चधय पत्ती डधल िे गी...इस से होतध यह है की वो २० % चधय पत्ती केवल २ समना ही उबल पधती है और इस वजह से उस कध एक कच्चधपन चधय को ननरधलध स्त्पिव िे तध है ... इतनध पढ़ कर वो पेग बनधने के सलए रुकध. मैं कन्फ्यूर् होने लगध थधकहधनी क्रकस और जध रही है ...? रघु एक सस्त्जंिध इंसधन है , उस कध ननिधनध इस कहधनी में कहधाँ पर हो सकतध है ..?

पेग बनध कर िे ते हुए रघु ने पि ू ध “ क्यों पक गए क्यध..?” “ नहीं नहीं.. सुन रहध हूाँ... आगे सुनधओ “ मैंने कहध. उस ने क्रफर पढनध िरू ु क्रकयध : मैंने कहध की मेरध कधम सेल्समेन कध है और कई तरह की आइाम में घर घर घूम कर बेचतध हूाँ... ज्यधिधतर िोपहर यध िधम के वक्त मैं लोगो के घर के क्रकवधड़ खाखाधतध हूाँ.. स्त्जस वक्त घरे लू औरतों से मेरध पधलध पड़तध है . कौन कैसे पेि आएगध बोल नहीं सकते. कोई ढं ग से बधत िी न करे और मंह ु पर क्रकवधड़ र्म्म से बंि कर िे यह िी होतध है और

कोई स्त्री इतनी िधलीनतध से पेि आती है की चधय-पधनी िी ोफर कर िे ती है .


65

जैसध की मैंने कहध – चधय मझ ु े पसंि है और अलग व्यस्त्क्त के हधथों

बनी चधय- यधने एक अलग चधय... बहुत कहठन होतध है चधय को नकधर नध. क्रफर िी कई जगह मैं मनध कर िे तध हूाँ, कई जगह मैं पी लेतध हूाँ... “ कई जगह मैं मनध कर िे तध हूाँ...?” मैंने आचचयव से पूिध. “हधाँ” रघु ने मुस्त्कुरधकर कहध “ सुन आगे उस की वजह िी है “ और उस ने आगे पढ़ध :

यह सच है चधय पीनध मझ ु े अच्िध लगतध है पर इस कध मतलब कतई

यह नहीं की मैं चधय के सलए मरध जध रहध हूाँ. बधत करते करते चोर नर्र से मैं क्रकचन चेक कर लेतध हूाँ. अगर क्रकचन प्लेाफॉमव स्त्वच्ि नहीं

तो मैं नम्रतध से चधय के सलए मनध कर िे तध हूाँ...क्रकचन प्लेाफॉमव स्त्वच्ि


66

नहीं मतलब उस स्त्री को क्रकचन से/ रसोई से प्यधर नहीं. क्रफर वो चधय क्यों ोफर कर रही है ..? केवल औपचधररकतध...? क्यध मतलब उस चधय कध जो हिल से नहीं बलके चूल्हे से बनी हो...? आप सोचें गे चधय चधय होती है - चूल्हे पर ही तो बनती है , इतनध सेंाी

होने कध क्यध मतलब है ..? नहीं सधहब मधमलध इतनध सरल नहीं – चधय एक आनंि कध प्रतीक है ... बनधने से ले कर चधय की आणखरी बंि ू के

स्त्वधि तक मर्ध आनध चधहहए.. वनधव मैं क्यों चधय के ठे ले पर चधय नहीं पी लेतध..? सवधल ही नहीं... क्रकसी कधरणों से अगर चधर हिन से मैंने घर की चधय न पी हो तब िी मैं किी ठे ले की चधय खरीि कर नहीं पीतध. वो िी अच्िी चधय बनधते है पर वो चधय कध आनंि बेचते है ... आनंि कोई कैसे बेच यध खरीि सकतध है ..? वो तो ससफव बधाँाध जध सकतध है ... चधय बनधनध और चधय वपलधनध – चधय पीनध... सिी चरणों में अि​िुत आनंि समधयध होतध है . यह लगतध है की चधय बनधनध यध पीनध एक

सधकधर—एक महाररयधसलस्त्स्त्ाक घानध है सतही स्त्तर की... पर जो जधि ू घातध है चधय की तस्त्ृ प्त कध वो चैतससक होतध है ... आप िे णखए जब

चधय बनधई जध रही होती है तब बनधनेवधली व्यस्त्क्त के चेहरे पर ‘कैसे बनेगी चधय’ की उत्सक ु तध , अरे िधई यह उत्सक ु तध ही तो चधय को

रससक पेय बन िे ती है . चधय की यह कमधल कहो तो कमधल और कमी कहो कमी यही तो है की उसकी कोई परफेक्ा फोम्युल व ध नहीं... हर बधर एक चुनौती सी होती है –क्यध यह चधय स्त्वधहिष्टा बनेगी...? पीते वक़्त तस्त्ृ प्त कध अनुिव होगध...?


67

और यह उत्सक ु तध –यह क्रफि , यह एाें िन और ाें िन किी किी चधय को त्रबगधड़ िी सकते है पर क्रफर वो ही तो चुनौती है - इस सब के पधर हो कर एक पीने योग्य चधय कध सजवन करनध..!!

चधय कध कोई फोम्युल व ध नहीं होतध ऐसध इस सलए कह रहध हूाँ क्योंक्रक चधय कध आप फोम्युल व ध बनध िी लो पर पीने वधले कध और वपलधनेवधले

कध क्यध...? वो क्रकसी फोम्यल ुव ध कध िधग नहीं बन सकते. एक जैसी चधय बन िी जधए तब िी जरूरी नहीं की वो एक जैसध स्त्वधि िे ...!! चधय त्रबलकुल वही हो क्रफर िी चधय पीने वधलध- बनधनेवधलध तो पल पल बिलतध है —उसे कैसे क्रकसी फोम्यल ुव ध में बधाँर्ोगे...?

मेरी पत्नी की हधथ की चधय ज्यधिधतर कमधल होती है . हो सकतध है वो चधय बनधने कध, सिन्न सिन्न प्रकधर की चधय बनधने कध ररयधर् करती हो – जैसे मैं क्रकसी के घर चधय पी लेतध हूाँ वो िी क्रकसी को चधय वपलध िे ती होगी...!! यध अपने चधय के प्रयोग जधाँचने यध क्रफर चधय वपलधने कध आनंि िोग ने – पतध नहीं पर मुद्दध वो है िी नहीं, मुद्दध यह है की वजह कोई िी हो वो चधय अच्िी बनधती है और उस से िी महत्वपण ू व बधत यह है की हम िोनों कध सुखी संसधर है . मुझे मेरी पत्नी से कोई

सिकधयत नहीं और जहधाँ तक मैं समझतध हूाँ मेरी पत्नी को िी मुझ से कोई सिकधयत नहीं.. - इतनध कह कर रघु ने कधगर् समेाे. मैंने आचचयव से पूिध “ कहधनी खतम ? “ वो मस्त् ु कुरधयध “ हधाँ खतम “

“ अरे पर....” कुि कहते कहते मैं रुक गयध.


68

“क्यध हुआ...?” “ कुि नहीं समझने की कोसि​ि कर रहध हूाँ...” मैंने कहध – “ आलोचक जी— करो

ववचधर, क्रफर करनध धचर-फधड़ इस कहधनी की –

हमने तो सलख ली...” कहते हुए रघु ने हम िोनों के अगले पेग बनधनध िुरू क्रकयध. - रधजु #####

अांगधिरील केसधांर्ी केस… / - श्रीकधंत ववनधयक कुलकणी.

पुरुषधंववषयीही आहे पण मुख्यत्वे स्त्स्त्रयधंववषयी सलहहतोय... बधसलि वधाे ल, पण नधहहये. मद्द ु ध तसध वविेष महत्वधचधही नधहहये, म्हणुन कर्ी चधचवलधही जधत नधही, पण त्यधतन ु अर्ोरे णखत होणधरी सववसधर्धरण स्त्रीची मधनससकतध हध खरध मुद्दध आहे .

मुद्दध आहे अंगधवरील केसधंचध; हधत, पधय, कधखध, आणण चेहेरध ह्यधवरील

केस आणण लव. लव तर सधऱ्यध अंगधवर असते अगिी बधल्यधवस्त्थेपधसुन आणण नंतर वयधत येतधंनध Harmonal Changes मुळे मुख्यत्वे

केसधंच्यध वधढीचध pattern बिलतो. नैसधगवकरीत्यध जे कधही घडतं ते


69

सधर्धरणत: जीवनधवचयक असतं. लव वध केस ह्यधंच्यध वधढीस कधरणीित ू असतधत ते Androgenes, म्हणजेच Male Harmones की जे

स्त्स्त्रयधंमध्ये पुरुषधंपेक्षध कमी प्रमधणधत आढळतधत. आतध ज्यध अंगधंवर

केसधंची वधढ ही स्त्री अन परु ु ष ह्यधंत कमी जधस्त्त असते, उिध. िधढी-

समिी, ते वगळतध इतरर असणधऱ्यध केसधंचं कधयव हे सधरखंच असणधर वध असतंच. अवयवधंवरील केस हे अधर्कचं स्त्पिवज्ञधन, थंडीपधसून रक्षण

ह्यधत मित करतधत. तर िुवयधंवरील केस घधमधपधसुन रक्षण करतधत. कधही केस हे घषवण कमी करण्यधस कधरणीित ू असतधत.

असं असतधंनध फक्त स्त्स्त्रयधंनीच ठरधववक केस ठे वू नये असे असलणखत िं डक कध व केव्हधपधसून पडले? इनतहधस अभ्यधसतध ह्यध प्रथध पूवधवपधर

अन थोडयधफधर फरकधने जगिर असल्यधचे आढळते. त्यधलध सधंस्त्कृनतक, र्धसमवक संि​िवही असू िकतील. पण असे जरी असले तरी मधझ्यध मते ह्यधच्यध मुळधिी स्त्रीच्यध आकषवक हिसण्यधचधच संबंर् असधवध.


70

ह्यध रूढी स्त्स्त्रयधंवर लधिल्यध गेल्यध असल्यध तर त्यध योग्य नधहीत. स्त्स्त्रयधं स्त्वत:हून करू लधगल्यध असतील तर मग पुरुषधंच्यध मजीस उतरण्यधकररतध केलेली ही त्यधंची र्डपड असधवी असं वधाू िकतं.

िोन्हीपैकी कुठल्यध कध कधरणधने असेनध, आजच्यध आर्नु नक स्त्रीलध हध प्रचनही पडतधनध हिसत नधही. एकीकडे स्त्रीस्त्वधतंत्र्यधचध पधठपुरधवध

करणधऱ्यध स्त्स्त्रयधिे खील ह्यध आहिम पुरुषप्रर्धन मधनससकतेलध क्रकती नकळत अन सहज बळी पडलेल्यध हिसतधत. वयधबरोबर इतर िधनं

येण्यधआर्ीच हे िधन सवव मल ु ींनध येतं, त्यधपोाी वेळ, पैसधही खचव केलध जधतो. क्रकत्येक जधणकधर आयध वयधत येऊ घधतलेल्यध मुलीलध ह्यध मधनससक बंर्नधत initiate करतधनध हिसतधत.

ह्यध मुद्द्यधवरून िक्यतध आहे की बहुसंख्य िधगनीवगव मलधच मधगधसलेलध ठरवेल किधधचत, इतकं त्यधंच्यध हे केस कधढणं अंगवळणी पडलंय. असं न करणं म्हणजे आरोग्यधच्यध टिष्टाीने अस्त्वच्ि क्रकंवध

आम्हधलध चधंगलं हिसधवंस वधातं वगैरे असे युस्त्क्तवधिही करतील. असो, ultimately the case rests with you..., कळधवे, - श्रीकधंत ववनधयक कुलकणी. ####

क्षमध..... / श्री. धगरीि पधठक लहधनपणधपधसून मलध पॄ्वी आणण स्त्री ह्यधंच्यधत ववलक्षण सधम्य वधात आलं आहे . किधधचत कुसम ु धग्रजधंची “पॄ्वीचे प्रेमगीत” हह कववतध वधचल्यधने असेल. पण वधात आलंय एवढं नक्की.


71

पॄ्वीची अनेक नधवं स्त्रीवविेषधिी जवळीक सधंगतधत. वसुर्ध,र्रध,वसुंर्रध,क्षमध……… स्त्जच्यध पोाधत वध ह्रियधत ‘सुर्ध’ म्हणजे अमॄत आहे ,ती वसुर्ध म्हणजे स्त्रीच नव्हे तर कोण?

पॄ्वी सवव

चरधचरधलध र्धरण करते म्हणजे र्रून ठे वते, म्हणन ू ती र्रध आहे . संपण ू व कुाुंब पररवधरधलध त्यधच्यध गुणिोषधसह र्रुन ठे वते ती स्त्रीच नव्हे कध? क्षमध हे नधव ज्यधने कुणी पॄ्वी लध हिलं त्यधचं मलध खप ू कौतक ु वधातं. स्त्रीलध हे नधव अगिी चपखल- ररत्यध लधगू होतं.मधनवधचे तसंच इतरही सवव प्रधणणमधरधंचे लधखो अपरधर् पॄ्वी सतत पोाधत घधलत आलीय. स्त्री कुाुंबधत असो वध इतरर; कुठल्यधही नधतेसंबंर्धत ती तरी यधपेक्षध वेगळे कधय करत असते?

मुलगध, मुलगी,नवरध, त्यधचे

कुाुंत्रबय,समर,मैत्ररणी,सहकधरी,वररष्टठ……..खप ू कधही नधत्यधंमध्ये सस ु र ू तध,सरु ळीत पणध आणण स्त्स्त्नग्र्तध रधखण्यधसधठी स्त्रीचध हधच क्षमधिील स्त्विधव यंरधतल्यध वंगणधसधरखध कधम करत असतो. वधि वववधिधच्यध प्रसंगधत मनधचध मोठे पणध िधखवत प्रसंगी एक पधउल मधघधर घेणधरी ही स्त्रीच असते आणण त्यधलध कधरण पॄ्वी तत्वधच्यध क्षमधिीलतेिी सधर्म्यव हे च असधवं. किधधचत पूवीच्यध कधळी हध नतचध स्त्थधयीिधव “गुण” म्हणून मधनिधवीपणे गौरवलध गेलध असेल,पण आर्ुननक युगधत कर्ी कर्ी, योग्य प्रसंगी त्यधचध त्यधग

करधयलध पण

नतने सिकले पधहहजे असे वध्ते. क्षमधिील वॄत्ती म्हणजे पडखधऊपणध नव्हे हे िधखवून हिले पधहीजे.


72

सध्यध आर्ुननकीकरणधच्यध युगधत पयधववरणधची आणण पॄ्वी ची अमधप हे ळसधंड आणण नधसर्स ू चधलू आहे . बधंर्कधमधंसधठी झधडधंची कत्तल, जंगलधंचध र्हधस ह्यधंनी पॄ्वी उजधड होत चधललीय. नद्यधंचे प्रवधह आात चधललेय. नतच्यध पोाधतली तेल, खननजं, रत्नं ह्यधंच्यध संपत्तीची लयलूा होतेय. थोड्यधफधर फरकधने स्त्रीलधही अिीच कधहीिी वधगणूक ह्यध जगधत समळतधनध हिसतेय. स्त्री-भ्रण ू हत्येचे परधकोाीलध पोहचलेले प्रकधर म्हणजे स्त्री जधतीलध उजधड करण्यधचेच प्रकधर. त्यधचे िष्टु पररणधम हळूहळू उपवर मुलींच्यध िष्टु कधळधच्यध रूपधने समोर यधयलध लधगले, तेव्हध मतलबी समधजधने त्यधववरुद्ध ओरड सरु ु केली. ती चळवळ स्त्रीजधतीच्यध तळमळी मळ ु े नव्हती…… वधसनधंर्धंचध तर सववर नस ु तध र्म ु धकूळ सरु ु आहे सध्यध.

हठकहठकधणी

स्त्रीच्यध अब्रच ू ी लक्तरं वेिीवर लाकवली जधतधयत. कुठलध िधग स्त्रीसधठी सुरक्षक्षत आहे तेच समजेनधसं झधलंय. स्त्रीलध उजधड करणधरे हे सलंगवपसधा


73

आणण बेकधयिध वक्ष ृ तोड,निीतलध वधळूउपसध,डोंगरधंवर अनतिमण करणधरे त्रबल्डसव आणण त्यधंनध सधसमल रधजकधरणी-पोसलस-सरकधरी यंरणध ह्यधंच्यधत कधहीही फरक नधही. ते स्त्रीलध ओरबधडतधत, आणण हे पॄ्वीची वस्त्रे फेडतधत…..स्त्वतःची रधक्षसी िक ू िमवण्यधसधठी!!! मोगली आणण सुलतधनी अत्यधचधरधंच्यध

परमधवर्ीच्यध कधळधत समथव कळ्वळून म्हणधले

होते,” िे ि नधसलध नधसलध…..”. आज खरोखर तिी अवस्त्थध

ननमधवण

झधलीय असं वधातं. प्रत्येक गोष्टाीलध मयधविध हह असतेच. क्षमधिील पॄ्वी वरुन िधंत असते पण अंतयधवमी नतच्यध लधव्हधरस उकळत असतो. स्त्रीचंही तसंच असतं. सतत सहन करत असतधनध मनधच्यध खोलवर आत अनेक आंिोलनधंचे आवतव हहंिोळत असतधत. पॄ्वी च्यध आतल्यध खळबळीचध जेव्हध उरे क होतो, तेव्हध तप्त लधव्हध िोवतधलच्यध पररसरधलध जधळून िधजून कधढतो. स्त्रीच्यध सहनिक्तीचध जेव्हध कडेलोा होतो, तेव्हध पण असंच कधहीसं होतं.त्यध वेळी मधर आजवर नतच्यधवर अन्यधय-अत्यधचधर केलेल्यधंची खैर नसते. त्यध रुरधवतधरधच्यध प्रकोपधत िले िले जळून िस्त्मसधत होतधत…… ज्यध ज्यध वेळी

पॄ्वी लध िधर असह्य होतो, तेव्हध नतच्यध अंतरं गधतले

प्रस्त्तर सरकतधत. िूगिधवत अनधकलनीय गूढगिव हधलचधली होतधत,अन ् िूकंप होतधत. पररणधम स्त्वरूप होत्यधचं नव्हतं होउन जधतं. अनेक यधतनधंचध िधर जेव्हध स्त्रीलध असह्य होतो तेव्हध असंच कधहीसं होतं.अनेकधंची ववचवं उन्मळून जधतधत….!


74

सरते िेवाी, एक असं मनस्त्वी सधम्य आहे , जे मलध नेहमी स्त्स्त्तसमत करत आलंय. नव्यध जीवधच्यध, नव्यध जगधच्यध, नव्यध सॄष्टाीच्यध बीजधंकुरणधची क्षमतध फक्त पॄ्वी आणण स्त्रीतच असधवी हे ववलक्षण आहे . नवजीवनधच्यध प्रसववेिनधंची िे णगी िे तधनध जगस्त्न्नयंत्यधने पुरुषध ऐवजी स्त्रीवर ववचवधस ाधकलध व नतची ननवड केली, यधतच सवव आलं असं मलध वधातं.

प्रत्यक्ष परमेचवरधच्यध ववचवधसधलध पधर ठरणधरी स्त्री हह केवळ

महधन आहे ; नधही कध? ####

स्री असिां म्हिजे / प्रमोिप्रज्ञध मुळ्ये स्त्स्त्रयध ह्यध समधजधपधसून वेगळ्यध नसतधत . त्यध िे खील घरधत , समधजधत , गधवधत , िे िधत ,यध

जगधतच रहधतधत . म्हणून समधजधचे सधरे प्रचन हे स्त्स्त्रयधंचे

िे खील आहे तच.

डीझेल - पेट्रोलच्यध वधढत्यध क्रकमती , वधढती महधगधई , मल ु धंच्यध सिक्षणधचे प्रचन ,

खधद्य पिधथधवतील िेसळीचे ,आरोग्यधचे , भ्रष्टाधचधरधचे , र्धसमवक िं गलींचे , रधजकीय रणर्म ु धळीचे, ऊजधव संकाधचे , पयधववरणीय ऱ्हधसधचे , वपण्यधयोग्य स्त्वच्ि


75

पधण्यधच्यध उपलब्र्तेचे , इ. इ. इ. सगळे प्रचन समधजधचध हहस्त्सध म्हणन ू स्त्रीलध िेडसधवत असतधतच . पुरुषधंच्यध बरोबरीने स्त्री अचयध

प्रचनधंचध

मुकधबलध

करीत असते . आतध समजध , यध सगळ्यध समस्त्यध सुाल्यध , अगिी पीक अवर लध

सुध्िध

लोकल ट्रे न

मध्ये बसण्यधसधठी प्रत्येक प्रवधचयधलध आरधमिीर बसधयलध जधगध उपलब्र् झधली , तरी िे खील … यध सगळ्यध प्रचनधव्यनतररक्त

, खधस 'स्त्री' च्यध

अचयध समस्त्यध आहे तच. आणण यध समस्त्यध स्त्जतक्यध िौनतक आहे त , त्यधपेक्षध अधर्क त्यध मधनससकतेिी ननगडीत आहे त , त्यध 'स्त्री' च्यध

मधनससकतेिी

स्त्जतक्यध

ननगडीत आहे त , त्यधपेक्षध अधर्क, समधजधतील इतर घाकधंच्यध मधनससकतेिी जुळलेल्यध आहे त. समधजधतील यध इतर घाकधंमध्ये अगिी पोसलस आणण

न्यधयव्यवस्त्थध सध् ु िध समधववष्टा आहे च. जो पयांत ही मधनससकतध (स्त्री पुरुष िोहोंची )

सुर्धरत नधही तोवर, घानधकधरधंनी ,ववर्ी मंडळधंनी केलेले प्रयत्न अपुरेच पडतील

स्त्री लध 'मधणस ू ' म्हणन ू जगणे एक स्त्वप्नच ठरे ल .


76

[फोाो िेडडा : © Kylli_Sparre ] स्त्री च्यध सद्य स्त्स्त्थती बद्दलची, ववस्त्तधर ियधस्त्तव फक्त िोन उिध .

वधनगी

िधखल सधंगतो. पढ ु े हिलेल्यध िोन्ही घानध कधल्पननक नधहीत , अगिी सत्य

आहे त , यधवर ववचवधस ठे वध १) नधंिेड ( मरधठवधडध) िहरधतील प्रससध्ि स्त्री तरुण

जोडपे

डॉक्ार

कडे एक

आलेले,

त्यधतील स्त्री च्यध अंगिर त्वचेवर लधल-वपवळे चट्टे उठलेले हिसतच होते . "कधय होतंय ?"


77

असं

डॉक्ारधंनी ववचधरतध , त्यध स्त्रीचध नवरध म्हणतो ," मी सधंगतो नध

, नतलध नधही नीापणे

सधंगतध येणधर .

" अखेर त्यधलध डॉक्ारधंनी जबरिस्त्तीने बधहे र

घधलवन ू

पुन्हध त्यध स्त्रीलध प्रचन ववचधरले , तेव्हधं रडत रडत नतने सधंधगतलेली कहधणी ऐकून

डॉक्ार सुन्न ! लग्नधलध एक वषव झधलेलं , वषविर यध नवऱ्यधने नतची मधससक पधळी

येऊच हिली नधही , अगिी अपवधिधत्मक प्रसंगी , मधससक पधळी पुढे ढकलण्यधसधठी च्यध

गोळ्यध नवरध नतलध वषविर िे त रधहहलध . २) मधझ्यध मुलीकडे बरे च

घरे लू कधमगधर म्हणून कधम करणधरी स्त्री … नतलध

वषधांपधसन ू मल ू हवे होते , खप ू उपधय , केल्यधवर

अखेर गिवर्धरणध

झधली . सगळ्यधंनध

आनंि झधलध . मधझ्यध मुलीनेही नतलध सधंधगतलं , " बधई, आतध कधळजी घ्यध ,

तुम्हधलध झेपतील नततकीच कधमं करध … मी तुम्हधलध तीन महहने पूणव पगधरी

सुट्टी िे ईनच , त्यध व्यनतररक्त िे खील तुम्ही हवी तेव्हधं रजध

घ्यध , पण

आतध

जड बधिल्यध वगैरे उचलणे बंि करध ." , तुमच्यधकडे

बधई इतकेच बोलल्यध क्रक " तधई


78

कधमं

नधही केलीत तरी, मधझ्यध घरची कधमं थोडीच मी ाधळू िकणधर ?"

अखेर होऊ नये तेच झधलं , घरची कधमं करतधंनधच ब्लीडींग सुरु झधलं , िवधखधन्यधत

न्यधयलध िे खील नवऱ्यधने िोन तधस घधलववले … नधही वधचू िकलध गिव . हे प्रसंग, ही उिधहरणे अपवधिधत्मक नसून प्रधनतननधर्क आहे त हे कुणधलधही मधन्य व्हधवे.

ह्यध प्रसंगधतील स्त्स्त्रयधंच्यध स्त्स्त्थतीलध समधज घाकधंची मधनससकतध जबधबिधर आहे , इतकेच म्हणन ू आपण थधंबू िकत नधही . ही मधनससकतध बिलणे ज्यधंनध आवचयक

वधाते , त्यध सवधांचे त्यध टिष्टाीने प्रयत्न चधलू आहे तच . अवघड आहे

परं तू हे कधम

आणण ते अवघड कधं आहे , ही मधनधससकतध मळ ु धत तयधर होण्यधमधगे कधय िडले

आहे , यधचध थंड डोक्यधने आणण खुल्यध मनधने ववचधर ववचधर केलध तर जे समोर येते

त्यधिी अनेक आघधड्यधवर एकधचवेळी लढधवे लधगणधर आहे , मग त्यधत आणखी क्रकती िधिोलकरधंनध बसलिधन द्यधवे लधगेल यधचध ववचधर करून चधलणधर नधही . िधिोळकर यधंनी प्रस्त्तधववत केलेल्यध कधयद्यधचध सवधवत जधस्त्त प्रिधव यध


79

प्रिे िधतील स्त्री च्यध स्त्स्त्थतीवर पडणधर आहे , कधरण अंर्श्रद्धेपधयी जधि ू ाोणध

वगैरे वर ववचवधस ठे वून बुवध बधबधं च्यध जधळ्यधत स्त्स्त्रयधच जधस्त्त अडकतधत . म्हणून

हध कधयिध र्मवववरोर्ी असल्यधच्यध कधंगधव्यधलध महत्व िे तध

कधमध नये . समधज घाकधंची मधनधससकतध बिलववण्यधचे प्रयत्न ववसिन्न पधतळ्यधंवर अनेकधंनी पव ू ी केले आणण अद्यधपही ते चधलच ू आहे त . कर्ी एखधिी वधईा

प्रथध संपल्यध (संपवल्यध ) नंतर पुन: डोके वर कधढते . सती ची चधल कधयद्यधने बंि झधल्यधवर १५० वषधांनी लधलमती वमधव च्यध सती जधण्यधचध प्रसंग २००८ सधली घडलधच ! फ्लधववयध एग्नेस , मंिध िळवी ,

आमाे , रधणी बंग , मेर्ध पधाकर , सुरेखध

रणझयध पाे ल , िुिध िमीम , पधरोसमतध गोस्त्वधमी आणण अचयध आणखी क्रकतीतरी आपधपल्यध क्षेरधत जे कधम करतधयत त्यधचध पररणधम कर्ी

आिधिधयक वधातो , कर्ी वधातं …. ही सगळी मेहनत व्यथव जधतेय कधं ? यध सगळ्यध कधयवकत्यधांच्यध कधमधचध मधझ्यधिी प्रत्यक्षधप्रत्यक्ष संबंर् आहे , ही जधणीव यध प्रिे िधतील स्त्स्त्रयधंत येईल , त्यधंच्यध कधयधवचध असिमधन न र्रलध तरी ननिधन िस्त् ु वधस करू नये , इतकी समज यध प्रिे िधत जधगेल तो

हिवस खरध !


80

१९६०-७० च्यध ि​िकधंत स्त्री संघानधंनी स्त्री मक् ु तीच्यध हि​िेने कधही प्रनतकधत्मक पधउले जोडवी

ाधकली त्यधतच क्रकती तधकि खची पडली . सधर्े कंु कू -बधंगड्यध -

-मंगळसूर न नधही

घधतले तर आकधि कोसळणधर नधही वध र्मवही बुडणधर

हे पाधयलधच खूप वषे जधवी लधगली .

जंग बहुत लंबी है ! यध लढधईचे पढ ु चे पधऊल उचलतधनध ववद्यध बधळ यधंनी नक ु तेच एक वक्तव्य

केले आहे . वववधहपूवव लैंधगक संबंर् यध ववषयीचे त्यधंचे ववचधर गधंिीयधवने घेणे गरजेचे आहे . अचयध वववधहपव ू व लैंधगक संबंर्धनध प्रथम अनल् ु लेखधने मधरणे , मग मूक सम्मती समधजधलध

िे णे आणण मग मुकधा मधन्यतध

िे णे

िधग पडेल पण त्यधलध कधंही ि​िकं जधवी लधगतील . हे होईल हे मधर नक्की ! िेवाी स्त्रीच्यध सगळ्यध वविेष समस्त्यधंचे मूळ वववधहसंस्त्थध आणण

खधसगी संपत्ती यधंतच िडले आहे आणण यध िोनही संस्त्थध उध्वस्त्त केल्यध तरच ननकोप आणण ननरधमय समधजधची ननसमवती िक्य आहे . ववध्वंस हधच खरध सज ृ नधचध पधयध आहे .

चक ु त- मधकत, पडत-अडखळत पण स्त्जद्दीने अनेक वपढ्यधंनध ही लढधई लढधयची आहे . स्त्री च्यध यध प्रगतीिील प्रवधसधलध पुरुषधंच्यध आणण

सधथ गरजेची

िुिेच्िध


81

आहे . परु ु ष समधज सर् ु धरकधंची

परं परध

" तुझ्यध निधलध, गडे क्रकनधरे अजून कधही नतथेच जधऊन

ववि

बघतध हे िे खील अिक्य नधही.

वेच तधरे , अजन ू कधही !'

यू ोल हि बेस्त्ा , सज ृ नध !

######

इन्टरव्यू / नीलेि रूपधपरध


82

[फोाो िेडडा : Amardeep Singh ]

आप क्रकतनध पढी हैं? आपकी रधजनीनत की और खेलकूि की बधतें समझ सकंू इतनध.

उत्तम. आपको कैसी क्रकतधबें अच्िी लगती है ? वैसे तो महधपुरुषों के जीवन चररर, लेक्रकन िधिी के बधि रे ससपी की क्रकतधबें ज्यधिध पढूंगी.

अनत उत्तम. अपने समरों के बधरे में कुि बतधइए. समर तो बहुत है मगर जीवनसधथी ही श्रेष्टठ समर होतध है ऐसध मधं ने सीखधयध है .


83

अि​िुत. अब यह बतधइए, क्यध आप िधिी के बधि िी नौकरी करें गी? खुिध न खधस्त्तध अगर किी आपको आधथवक सहधरे की जरूरत पडी तो अवचय करूंगी.

बहुत खूब. अब मधन सलस्त्जए क्रक मैं घर में िफ्तर कध कुि कधम कर रहध हूं उस वक्त आप क्यध करें गी? और क्यध करूंगी, चप ू रहूंगी और िधंप लंग ू ी आपकी चधय की तलब को.


84

वधह वधह. और अगर किी मैं उिधस हुआ तो? तो आपकध मधथध मेरे सीने में िुपध िं ग ू ी और मेरे वस्त्रों के सधथ सधथ मेरी उस वक्त की प्रधथसमकतध कध त्यधग करके आपको ररझधउं गी. अब अगर आपको ऐतरधज न हो तो मैं कुि पूि सकती हूं

उसकी क्यध जरूरत है मैंने तो आपको पसंि कर ही सलयध है क्रफर िी पूि सलस्त्जए यह हजधरों सधल परु धने सवधल आपको बोर नहीं करते?

अरे , आपके पधस आवधज िी है ?


85

आपको सन ु धई िी? यह तो बडी आचचयव की बधत है .

इसमें आचचयव कैसध हजधरों सधल तक पूजध है आपको और अब यह आवधज िी आपको हम ही ने िी है चसलए, चलतध हूं. एक समना. इतनध सबकुि हियध है तो अपनध नधम िी िे ही हिस्त्जए.

- नीलेि रूपधपरध

###


86

ननलेि रुपधपरध : गज ु रधती िधषी लेखक जो हहन्िी िधषध में लेखन व्यवसधय करते है . गुजरधती रं गिूसम पर १५ से अधर्क मुख्य र्धरध के नधाक सलखे है और ाे सलववर्न र्धरध वधहहक ननयसमत रूप से सलखते है . उनकी एक नधवेल को गज ु रधती सधहहत्य संस्त्थध कध पुरष्टकधर समल चक ू ध है और बहुत कम कथध / कववतध सलखते है .

####


87

अग्ननशशखध – श्री.सुर्धकर कुलकणी

तुझ्यध पधपणी मधगे िडलेलध आश्रु

तु क्रकती ही झधकण्यधचध प्रयत्न केलध तरी....

तुझ्यध वेिनेचे सिलधलेख बयधन करतो आहे .... पधपणी आड आश्रु लपवन ु चेह-यधवर बळे च स्त्स्त्मत हधस्त्य आणुन आलेल्यध प्रत्येक प्रसंगधलध तु सधमो्री जधतेस...

िर उन्हधत ही एखधद्यध गल ु मोहरध सधरखे फुलधयचध तुझध स्त्विधव मलध नेहमी कोड्यधत ाधकत आलध आहे ....

गुलमोहरध सधरखेच सध-यध पररस्त्स्त्थतीचे

रखरणखत उन वपउन तझ ु े मन व िररर फुलधंच्यध ज्वधलेसधरखे तुकतुक्रकत अन कधंतीमधन झधले आहे ....

वेिनेच्यध क्रकती रधजसय ु यग्यधत


88

स्त्वसख ु धच्यध तु ससमर्ध अपवण करुन त्यध वेहितुन ननघधलेल्यध एखधद्यध

अस्त्ग्नसिखे सधरखी तु जेंव्हध समोर येते तें व्हध मी नस ु तध बघतच रधहतो.... ननसगधवने हिलेलध स्त्री िे ह अन

संस्त्ितीच्यध संस्त्कधरधतुन घडलेले तुझे स्त्री मन ...एकधच वेळी

स्त्री िधव स्त्जवनधचे क्रकती आयधम उलगडत जधते ...हे तुलध नधही मधहहत?

पुरधणधनतल पंचकन्येनध एक ठधससव िुसमकध होती... अन ती त्यधंनी ननिधवली ...म्हणन ु

तर

त्यध आजरधमर झधल्यध...पण तुझे कधय,,? समधज आणी पररस्त्स्त्थती तुझ्यधकडुन

एकधच वेळी ...अनेक िुसमकधंची मधगणी कररत आहे ... अन तु कसलेही बंड न करतध...

त्यध िुसमकध वावण्यधचध प्रयत्न कररत आहे स.. एकधच वेळी एखधिी स्त्री ...

सीतध,,,रौपिी,,,अहहल्यध...तधरध व ,,मंिोिरी असु िकते कध,,,?

तुझ्यध मनधची क्रकती ससेहोलपा होत असेल ग..? हहणकस पुरुषी िं िधने व्यधपलेलध समधज मधर तझ् ु यध कडुन त्यधच िसु मकधंची अपेक्षध वधरं वधर करत आलध आहे .,,,,अन,,,

कुाुंब स्त्जवंत रधहहले तर..समधज स्त्जवंत रधहहल..


89

समधज स्त्जवंत रधहहलध तर,,,रधष्टट्र उिे रधहहल.... म्हणुन कुाुंबधसधठी क्रकती खस्त्तध खधणधर आहे स,,,? अग सध-यध कुाुंबधची आणी पयधवयधने रधष्टट्रधची िधरोमिधर तझ् ु यधवरच अवलंबन ु असतधनध..

तु कुठल्यधही सत्तध खेळधंत जधस्त्त वेळ रमुन घेत नधही,,,अन ,,पुन्हध ननसगव सुलि िधवधने एकिम आई होवुन जधते...

हे आमच्यध कसे लक्षधत येत नधही,,, स्रजनधची ही रहस्त्यिरण सलपी आम्हध अहं कधरी पुरुषधंनध कर्ी समजनधर आहे कध,,,? ननसमवनतच्यध सवव कळध िोगणधरी जन्मिधरी तु.... तुच खरी आहिमधयध...आिीिक्ती,,,

ववचवरहस्त्यधचे बरे च सिलधलेख तुझ्यध मनधत

सधठवुन ठे वले आहे स म्हणुन त्यध सिलधलेखधंची,,, गोंिणसलपी तु वधचत जधते,,,अन...

येणध-यध आश्रुंनध...पधपणी आड लपवते,,,!!! ####


90

आईर्े डोळे / श्रीकधंत ववनधयक कुलकणी

िो्यधचयध ववचवधत वधवरलीस, जग तुझं िोां सं,

कोषधत वधढवलस जरी, वधातंय आम्हधलध मोठसं.. स्त्वत्व तुलध होतंच कुठे , सधथच िे त आलीस तु,

तझ् ु यधतन ू च आलो जीवनी, वधढवू आम्हध लधगलीस त.ु . पुरवली हौस कधयम त्यधची, प्रसंगी मन मधरूनही,

संसधर हाकवणं ही गरज, होती फक्त जणू तझ ु ी..

आमचीही पुरवू लधगलीस, ववसरून स्त्वतःची हौस तु,

सवधांचं मन रधखण्यधचध, आाोकधा प्रयत्न केलधस तु.. आवडीननवडीचं तझ् ु यध, महत्वधचं नसधयचंच,


91

उरलेलं, सिळं ... तेही तर तझ् ु यध आवडीचंच..

ननमूा, ववनधतिधर संसधर.. कोंडमधरध, मन मधरणं,

वविेष कधय त्यधत, संसधर हाकवधयचध म्हणजे हे आलंच.. आम्हीही मोठे झधलोय आतध, आतध कुठे उमजू लधगलंय, संध्यधकधळच्यध कधतरवेळी, लधंबवर र्ूसरचयध पडलेल्यध..

आपल्यधच संसधरधच्यध सधवल्यध.. कचयध हळव्यध करून जधतधत... स्त्स्त्नग्र् पधणधवले आईचे डोळे .. िे वघरधतील ननरधंजने कध िधसतधत...!


92

मधझ्यध वप्रय मैत्ररिी / संजय पवधर

मी वधा पहधतो आहे मधझ्यध मैत्ररणी, एकध ाोाल डडझधस्त्ारची तुझ्यधकडून. अजून क्रकती कधळ तू

ही र्ीरधची वधत लधंबवत नेणधर आहे स

यध सनधतन युद्धधत

ितकधनुितकधंचे तह करून

तझ् ु यध ववजयधवर होत नधहीए सिक्कधमोतवब

िोन पधवलं पुढं जधण्यधसधठी

िोन पधवलं मधगे घेण्यधची ही तझ ु ी रणनीनत, तल ु धच क्रकती पधवलं

मधगे घेऊन गेलीय,


93

हे तझ् ु यध लक्षधत कर्ी येणधर मधझ्यध वप्रय मैत्ररणी.

मोहे न जो िधरोच्यध िरबधरधतील

तझ ु ी तधरे वरची कसरत.

ट्रॅ डडिनल स्त्जमनॅस्त्स्त्ाकमध्ये तू कध फधडत नधहीएस जेंडरची लगोरी ?

नग्न ननतवकध ते लेडडजबधर क्रकती लधंब हध तुझध सधंस्त्कृनतक िप ु ट्टध

गधिीचध कधपूस ाधक्यधसहहत सधंिधळण्यधचे

सनधतन िरतकधम आणण

तू ही कध जधत नधहीएस घरिधर, पोरबधळं सोडून संन्यधिधसधरखी

न सधंगतध ननघून जधण्यधची

त्यधंची परं परध गौतमधपधसूनची.

मधतत्ृ वधच्यध नवरधर उत्सवधतले

पण मैत्ररणी, एखधिधच गौतम

तुझी िधती फुातेय घधगरी

बधकी सधले कॉसमक्समर्ले फॅंाम

उत्सवी िधंडडयध रधस आणण

परततधनध बुद्ध होतो

फंु कून..

!

िाधक पेगने त्यधंची ववमधने

तू कध घधलत नधहीस खो

उडतधत

त्यधच्यध सधत समननाधंच्यध खेळधलध

आणण रधरीबेरधरी येऊन बधयकोलध

?

कुथवतधत

तू कध र्रत नधही तंगडी

आणण स्त्जंकत त्रबिधन्यधतली

म्हणून कध तू त्यधंनध सुपरमॅन म्हणणधर

कबड्डी ?

आणण त्यधंच्यधच गोष्टाी सधंगत

तूलध ाोकधवर तोलणधरे मल्लखधंब

पोरधंनध थोपावत झोपवणधर ?


94

यध थोपावण्यधचध पेांा तू कध

पधठ आणण पोा यधंच्यध स्त्पेअर

नधही

कपॅससाीच्यध

ाधकत आहे स ववकून

जधहहरधती िे णं आतध तू बंि कर

यध इंारनॅिनल मधकेा मध्ये ? तू व्हस्त्जन व मेरी होऊन येिूलध

तू िुलू नकोस यधंच्यध ओव्यध अिंगधंनध

थोपालेस

समधनतेचे आणण सहजीवनधचे

यिोर्रध होऊन बद्ध ु धलध थोपालेस

पोवधडे

केलेस

यध पोवधड्यधतही तूलध

कंु ती होऊन अग्नीगोलधलधच िधंत

ऐकून उर िरून येऊ िे ऊ नकोस

सधववरी, रमध होऊन फुले

स्त्जरं रं स्त्जरं रं जी

आंबेडकरधंनध थोपालेस

म्हणण्यधसिवधय

कस्त्तुरबध होऊन गधंर्ीही

वविेष िूसमकध नधहीए

जोजवलेस

हे तुझ्यध लक्षधत येतंय कध मैत्ररणी ?

आतध पधळण्यधच्यध िोरीची वधत करून उडवन ू िे िडकध

पधरं पररक सौिधग्य वस्त्तू िधंडधरधतली

लल ् बधयलध करून ाधक बधयबधय

सौिधग्य हाकली आणण

तुझ्यधच नधळे लध गधठ

वस्त्र िधंडधर

आतध इथून पुढे मधरून ाधक

महधत्म्यधंच्यध सधवलीचे पुरोगधमी

एरव्ही हे सधले सोडणधर नधहीत

एक घरधजवळ, िस ू रं गल्लीच्यध

तुझी पधठ.

ाोकधवर

एवढं अंतर. मर्लध रस्त्तध तोच


95

म्हणन ू म्हणतो

क्रकंचीत सर् ु धरकीच्यध स्त्पिधवनेही

िोस्त्त.

कसे फुलतधत लगेच तुझ्यध गधली

जरध थंडे हिमधगसे सोच, ऐ मेरे

हे असे सिळे ची अहहल्यध होण्यधचे कोसेस

क्रकती मोहरतेस तू ! गल ु धब

आणण किी गधतेस तू गोड गोड गधणी

त्यधंचे ठरधववक ससलॅ बस आणण सर् ु धरकी ववद्यधपीठधची मोहोर

गणणकधंच्यध बधजधरधंपधसन ू

अिध पिवीिधनधंच्यध डगल्यधंनी

मधकेापयांत

यधतून कुणधचे होतेय सिक्षण झधकून िरीर

क्रकती कधळ झळकिील मधतींच्यध

लेिर करन्सीच्यध करं ा

किी घेतस े तू ही झरती गधढवं अंगणी

सिंतींवर ?

क्रकती अमोघ हे तुझं सधम्यव

मलध वधालं होतं तू

तझ् ु यधसधठी वंिे मधतरम

िींतीिीच घेिील ाक्कर.

ट्रॅ क बिलून मी म्हणू कध

स्त्वधतंत्र्य कुणी िे त नधही मधझ्यध

बेलगधम िुिजंतूंच्यध फौजध

कुणी ते पधणी पेावून समळवतं,

अणखल करूणेनं तू घेतस े

तू किधची तयधरी केली आहे स

तुझ्यध ओाीपोाधत आणण

मैरीणी, ते समळवधवं लधगतं कुणी ते मीठ उचलून मैरीणी ?

ननवधवससतधंच्यध लोंढ्यधसधरख्यध सधमधवून

तझ् ु यध योनीमधगधववर सनधतन पहधरध

अस्त्पि ृ धंच्यध पंगतीत बसवलेली तू

श्रीमंत रधष्टट्रधंच्यध फौजधंसधरखी


96

त्यधंची िबधवयक् ु त घस ु खोरी

कुाुंब आडवं आलं, त्यधलध समठी

िेिन ू

संस्त्कृती आडवी आली, तर नतलध

कधरस्त्थधन

आतध आग बधहे र येऊ िे

तुझ्यध लक्षधत कसं येत नधही

आगीलध िरण जधऊ नको

कुठल्यधही नवीन िौगोसलक सीमी हे रधष्टट्रीय, आंतररधष्टट्रीय का

मधझ्यध मैत्ररणी

मधर

समठी मधर

आगीवर हो स्त्वधर मधझ्यध मैत्ररणी

ववसर तुझी कधयध, ववसर तुझी

एकवधर तरी आवधज चढवून म्हण

ववसर तू होतीस ितकधनि ु तकधची

िधड में गयी तेरी संतधन

मधयध

आयध

तू क्रकती सहज चुलीत घधतलेस

िधड में गयध तेरध चूल्हध,

मै तो चली, स्त्जर्र चले रस्त्तध

तुझ्यधजवळ होते नव्हते

मी क्रकती अधर्रतेने वधा पहधतोय

तू सधक्षधत ह्युमन बॉम्ब

उत्तुंग इमधरतीसधरखे पुरुषी

आरडीएक्स

सती म्हणून धचतेवर चढत होतीस

तू करणध-यध स्त्फोाधची सलंगगंड

तेव्हधपधसन ू

नधमिेष होतधनध, उडणध-यध

आतध फक्त एक कर

मी जीवधचे कधन करून ऐकत

र्ुरळ्यधतही

जळत्यध अंगधननिी उडी बधहे र मधर

रधहीन

लग्न आडवं आलं, त्यधलध समठी

तझ् ु यध ववजयी ाधपधंचे आवधज.

मधर

त्यधतूनही जमलच तर


97

परु ु षी सधम्रधज्य जळतधनध

बिलत जधतधनधची र्व ु धाँर्धर बधररि

मी क्रफडेलवर तुझ्यध मुक्तीचे गधणे

आहे

ननरो व्हधयलध आवडेल मलध.

क्रकती आतुरतेने मी वधा पहधतो

वधजवीन.

मधझ्यध मैत्ररणी, एकध ाोाल

नीरो, सधम्रधज्य, क्रफडेल सगळ्यधच

डडझधस्त्ारची

कंसेप्ा

तुझ्यधकडून.

-संजय पवधर (सप्र ु ससद्ध मरधठी लेखक-कवी श्री.संजय पवधर यधंची ‘मधझ्यध वप्रय मैत्ररणी’ ही बहुचधचवत कववतध अर्धांगी चे सिस्त्यसमर श्री. रधज असरोंडकर यधंनी उपलब्र् करून हिली आहे .) ####


98

तू सुद्धध मधिूस आहे स... / रधज असरोंडकर

कंु तीच्यध परवडीपधसन ू

तुझी कहधणी अगिी तिीच सुरु आहे ..!! प्रेम आणण वधत्सल्यधचध िधखलध असलेल्यध तुझ्यधतल्यध आईपणधलध

कधयिे िीर आणण बेकधयिे िीरपणधची लेबलं लधवलीयंत आतध समधजधनं, तल ु ध आम्ही "आई" म्हालं


99

आणण तू हुरळून गेलीस, तुझ्यधवर कथध, कधिं बऱ्यध, कववतध रचल्यध, तें व्हध तू हरखून गेलीस

आणण ववसरलीस स्त्वत:तल्यध स्त्रीत्वधलध .... मॅक्झीम गॉकीच्यध कधिं बरीतलं प्रमुख पधर म्हणून

आम्ही तुलध डोक्यधवर घेतलं, पण बधकी वेळी,

बधई म्हणून संिधवनधच केली तुझी, एकधच कुाुंबधत बहुपधरी िूसमकधंत तू "आई" म्हणूनच सरस ठरलीस,

आणण इतर िूसमकधंत मधर िल ु क्षव क्षत..!!! यध िूसमकधंत तुलधच तुझ्यधिी

संघषव करधयलध लधवलध समधजधनं असं नधही वधात तुलध..? तूच जधळलंस स्त्वत:लध,

अन ् तूच फेकलंस स्त्वत:लध

कचऱ्यधचं आयष्टु य जगण्यधसधठी..! 'आई" म्हणून

अवघ्यध जगधत ग्रेा ठरली असतधनध, तुलध इतर िूसमकधंत कधय होतं गं..?

अनेकववर् िसू मकध एकधचवेळी ननिधवतधनध, तू गोंर्ळतेस, हे मधन्य,

पण मग "आई"च्यध िूसमकेतच


100

तझ ु ध जीव अधर्क कसध रमतो..? तू तहधनिूक ववसरून

इतर िूसमकधंतले कंगोरे , घधव, व्रण

"आई" पणधच्यध पिरधखधली झधकीत हीच िूसमकध वठवतेस बेमधलुम,

झोकून िे तेस स्त्वत:लध अगिी प्रधणधपसलकडे... हध तुझ्यधतल्यध प्रनतिेतलध उणेपणध की िसू मकधंिी केलेली तडजोड..?

तुझ्यध "आई"च्यध िूसमकेचं

प्रचंड उिधत्तीकरण करतधनध

आम्ही तल ु नध करत बसतो,

तुझ्यधच िूसमकधंची, एकमेकधंिी, आणण प्रत्येकवेळी ववसरलो, तू सुद्धध मधणूस आहे स... ####


101

व्यथेर्ी गधथध

/ननसिकधंत िे िपधंडे

व्यथेची गधथध मधझी ही अवस्त्थध कळे नध रयस्त्थध अनधथधच्यध नधथध जीवघेण्यध व्यथध वधचली कर्ी कध िे वध वेचयेची ही गधथध? ||१|| गवधक्षी बैसणे सधवज हे रणे


102

अंग हे िे खणे बधजधरी ववकणे िे वध हे च कध रे जीवन जगणे? ||२|| ररती झधली खधा िस ु ऱ्यधची वधा मधंडलधय पधा मी उष्टाधवलेलं तधा िे वध मलध िे िील कध रे उगवती पहधा? ||३|| अंगधची चुरगळ मनधची मरगळ ऋतु पधनगळ अश्रूंची घळघळ िे वध कळते तुलध कध रे मनधची िळिळ? ||४|| िे हधचध िे व्हधरध पधववत्र्य पोबधरध ज्वधनीचध पेाधरध


103

अब्रच ू ध डोलधरध िे वध हिलध कध रे मज अग्नीचध फुलोरध? ||५|| धगर्धडधंची िीड समधजधची कीड अंतरीची पीड संस्त्कृतीची चीड नधवेलध िे हि​िध िे वध िरकाणधरे िीड ||६|| िे ह हध णझजलध चवधसही धथजलध अश्रूंनी सिजलध श्रधवण िधजलध अंर्धरही मधझध िे वध कसध रे ववझलध? ||७|| -


104

अग्स्तत्िधर्ी लधज िधटते / ननसिकधंत िे िपधंडे

वपढी िर वपढी ठधयी ठधयी ि:ु ख िोगते मलधच मधझ्यध अस्त्स्त्तत्वधची लधज वधाते जन्मतधच मी रडले, कोणी हसले नधही िधरधवरती तोरण सधर्े सजले नधही हिव्यध ऐवजी ज्योत जन्मली, मधय कोसते मलधच मधझ्यध अस्त्स्त्तत्वधची लधज वधाते िधिधलध तर आई घेते खधंद्यधवरती जरी र्धकाी, चधलत असते ओझे हधती तो खेळधयध जधतो अन ् मी घरी रधंर्ते


105

मलधच मधझ्यध अस्त्स्त्तत्वधची लधज वधाते कर्ी रौपिी, कर्ी अहहल्यध, कर्ी जधनकी जन्म वेगळे ि:ु ख िोगणे मधझ्यध लेखी पुरधणधतलध स्त्रीचध महहमध फक्त वधचते मलधच मधझ्यध अस्त्स्त्तत्वधची लधज वधाते सिोवतधली सवव चवधपिे आसुसलेली हररणीसम मी सिै व असते िेिरलेली गुिमरते पण बुरख्यधने मी मलध झधकते मलधच मधझ्यध अस्त्स्त्तत्वधची लधज वधाते परीघ मधझध कुणी आखलध मलध न ठधवे घधण्यधच्यध बैलधसम मी हिनरधत क्रफरधवे चवधस सोडण्यध िेवाचध मी वधा पधहते मलधच मधझ्यध अस्त्स्त्तत्वधची लधज वधाते चधर पुस्त्तके वधचुन पूवधव हिसू लधगली उजेड घ्यधयध कवेत आतध आस जधगली उध्िधरधयध रधम नको मज मीच चधलते अस्त्स्त्तत्वधची मलध अतधिध िधन वधाते


106

समधप्त


Turn static files into dynamic content formats.

Create a flipbook
Issuu converts static files into: digital portfolios, online yearbooks, online catalogs, digital photo albums and more. Sign up and create your flipbook.