वही धमक फिर

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वही धमक िफिर अफिलातून ( हम यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे मे गांधीजी के दृष्टिकोष्टिकोण पर एक दस्तावेजी लेख छाप रहे है । नरे न्द मोदी के नेतत्ृ व मे केद मे भारतीय जनता पाटिी की सरकार कायम होने के साथ ऐतितहािसक घटिनाओं के िववरणो मे छे ड़-छाड़ की आशंका बढ़ गई है । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

को ऐतसे – ऐतसे ओछे झठ ू फिैलाने मे महारत है िक नाथरू ाम गोडसे की गोली लगने पर गांधीजी

के मंह ु से ‘हे राम’ नहीं ‘हाय राम’ उच्चरिरत हुआ था ; गांधीजी की हत्या नहीं हुई थी उनका वध हुआ था ( वध तो दष्ु टि और पापी लोगो का होता है – हत्या तो िकसी अच्छे और धमार्मात्मा की होती है । )

यह दस्तावेजी लेख राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे मे गांधीजी के दृष्टिकोष्टिकोण को एकदम खोल

कर रखता है । राजनाथ िसंह जी ने अपने भाषण मे तीन सरासर झूठ बोले – १. हम गांधीजी को राष्ट्रिपता मानते है , २. उन्हे पूज्य मानते है ,३. गांधीजी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की

सराहना की। सामियक वातार्मा के तीसरे अंक ( १६ िसतम्बर ,१९७७) मे इस बात की चरचरार्मा की गई थी । इस बातचरीत मे जेपी ने कहा था, ‘अगर राष्त्रीय स्वयंसेवक संघ अपने को भंग नहीं करता

और जनता पाटिी द्वारा गिठत यव ु ा या सांस्कुितक संगठनो मे शािमल नहीं होता तो उसे कम से कम सभी समद ु ाय के लोगो , मस ु लमानो और ईसाइयो को अपने मे शािमल करना चरािहए।‘ लगभग चरालीस वषर्मा बाद भी वही सोचर जारी है । भाजपा के सत्तारूढ़ होने से संघ का प्रभाव

बढ़ना लािकोजमी है ; हमे पहले से अिधक झठ ू और उसके कारनामो के प्रित सचरेत होना और उनका िवरोध करना होगा।

गृहमंती राजनाथ िसह ने राजयसभा मे कहा, “मत भूिलए िक महातमा गांधी, िजनको हम आज भी अपना पूजय मानते है, िजनहे हम राषिपता मानते है, उनहोने भी आरएसएस के कै प मे जाकर ‘संघ’ की सराहना की थी।“ 1974 मे ‘संघ’ वालो ने जयपकाशजी को बताया था िक गांधीजी अब उनके ‘पात: समरणीयो’ मे एक है। संघ के काशी पांत की शाखा पुिसतका (कमांक-2, िसतंबर-अकू बर, 2003) मे अनय बातो के अलावा गांधीजी के बारे मे पृष 9 पर िलखा गया है: ‘‘देश िवभाजन न रोक पाने और उसके पिरणामसवरप लाखो िहदुओ की पंजाब और बंगाल मे नृशंस हतया और करोड़ो की संखया मे अपने पूवज र ो की भूिम से पलायन, साथ ही पािकसतान को मुआवजे के रप मे करोड़ो रपए िदलाने के कारण िहदू समाज मे इनकी (महातमा गांधी की) पितषा िगरी।’’ यह

बात तो हम सब जानते है िक संघ के कायरकमो के दौरान िबकने वाले सािहतय मे ‘गांधी वध कयो?’ नामक िकताब भी होती है। राषीय सवयंसेवक संघ, िहदू राषवाद, सांपदाियकता और समाचार-पतो दारा दंगो की िरपोिटग के बारे मे जब गांधीजी का धयान खीचा जाता रहा तब उनहोने इन िवषयो पर साफगोई से अपनी राय रखी। संघ के एक कै प मे गांधीजी के जाने का िववरण उनके सिचव पयारे लाल ने अपनी पुसतक ‘पूणारहित’ मे िदया है।


आज गज ु रात के कई गाँवो मे ‘िहन्द ू राष्ट्र नू माणसा

गाम’ जैसी तिकोख्तयाँ लगायी गयी है ।

मध्यप्रदे श के बस अड्डो पर ‘ िहन्द ू राज्य ‘ मे आपका स्वागत है !’ जैसे पोस्टिर एक अिभयान के तहत लगाये जा रहे है । ऐतसा एक दौर १९४२ मे गांधी जी के समक भी आया था ; िदल्ली प्रदे श कांग्रेस किमटिी के अध्यक आसफ़ अली ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गितिविधयो की

बाबत प्राप्त एक िशकायत गांधी जी को भेजी और िलखा िक िशकायतकतार्मा को नजदीकी तौर से जानते है , जो एक सच्चरे और िनष्पक राष्ट्रीय कायर्माकतार्मा है । ि​िस पत्र का उल्लेख करते हुए (८९ अगस्त,१९४२ को गांधीजी िगरफ्तार कर िलए गये सो गाम्धीजी की िटिप्पणी जल ु ाई के अंत या अगस्त के प्रारं िभक िदनो मे िलखी गई होगी) ९ अगस्त , १९४२ के हरिरिजन ( पष्ृ टि : २६१ ) मे गांधी जी ने िलखा :

‘‘िशकायती पत उदूर मे है। उसका सार यह है िक आसफ अली साहब ने अपने पत मे िजस संसथा का िजक िकया है (राषीय सवयंसेवक संघ) उसके तीन हजार सदसय रोजाना लाठी के साथ कवायद करते है, कवायद के बाद नारा लगाते है- िहदुसतान िहदुओ का है और िकसी का नही। इसके बाद संिकप भाषण होते है, िजनमे वका कहते है- ‘पहले अंगरे जो को िनकाल बाहर करो उसके बाद हम मुसलमानो को अपने अधीन कर लेगे , अगर वे हमारी नही सुनेगे तो हम उनहे मार डालेगे।’ बात िजस ढंग से कही गई है, उसे वैसे ही समझ कर यह कहा जा सकता है िक यह नारा गलत है और भाषण की मुखय िवषय-वसतु तो और भी बुरी है। ‘‘नारा गलत और बेमानी है, कयोिक िहदुसतान उन सब लोगो का है , जो यहां पैदा हए और पले है और जो दूसरे मुलक का आसरा नही ताक सकते। इसिलए यह(देश) िजतना िहदुओ का है उतना ही पारिसयो, यहिदयो, िहदुसतानी ईसाइयो, मुसलमानो और दूसरे गैर-िहदुओ का भी है। आजाद िहदुसतान मे राज िहदुओ का नही, बिलक िहदुसतािनयो का होगा और वह िकसी धािमक पंथ या संपदाय के बहमत पर नही, िबना िकसी धािमक भेदभाव के िनवारिचत समूची जनता के पितिनिधयो पर आधािरत होगा। ‘‘धमर एक िनजी िवषय है, िजसका राजनीित मे कोई सथान नही होना चािहए, िवदेशी हकू मत की वजह से देश मे जो असवाभािवक पिरिसथित पैदा हो गई है, उसी की बदौलत हमारे यहां धमर के अनुसार इतने असवाभािवक िवभाग हो गए है। जब देश से िवदेशी हकू मत उठ जाएगी, तो हम इन झूठे नारो और आदशो से िचपके रहने की अपनी इस बेवकू फी पर खुद हंसेगे। अगर अंगरे जो की जगह देश मे िहदुओ की या दूसरे िकसी संपदाय की हकू मत ही कायम होने वाली हो तो अंगरे जो को िनकाल बाहर करने की पुकार मे कोई बल नही रह जाता। वह सवराजय नही होगा।’’ गांधीजी िवभाजन के बाद हए वापक सांपदाियक दंगो के िखलाफ ‘करे गे या मरे गे’ की भावना से िदलली मे डेरा डाले हए थे। 21 िसतंबर ’47 को पाथरना-पवचन मे ‘िहदू राषवािदयो’ के संदभर मे उनहोने िटपपणी की: ‘‘एक अखबार ने बड़ी गंभीरता से यह सुझाव रखा है िक अगर मौजूदा सरकार मे शिक नही है , यानी अगर जनता सरकार को उिचत काम न करने दे, तो वह सरकार उन लोगो के िलए अपनी जगह खाली कर दे, जो सारे मुसलमानो को मार डालने या उनहे देश िनकाला देने का पागलपन भरा काम कर सके । यह ऐसी सलाह है िक िजस पर चल कर देश खुदकु शी कर सकता है और िहदू धमर जड़ से बरबाद हो सकता है। मुझे लगता है , ऐसे अखबार तो आजाद िहदुसतान मे रहने लायक ही नही है। पेस की आजादी का यह मतलब नही िक वह जनता के मन मे जहरीले िवचार पैदा करे । जो लोग ऐसी नीित पर चलना चाहते है , वे अपनी सरकार से इसतीफा देने के िलए भले कहे, मगर जो दुिनया शांित के िलए अभी तक िहदुसतान की तरफ ताकती रही है, वह आगे से ऐसा करना बंद कर देगी। हर हालत मे जब तक मेरी सांस चलती है, मै ऐसे िनरे पागलपन के िखलाफ अपनी सलाह देना जारी रखूंगा।’’


सांप्रदाियिक दं गो के बारिे मे अखबारिो के आचरिण के बारिे मे ८ अक्टिूबर , ‘४७ को गांधी जी ने िफिर

यह िटिप्पणी कीः

‘ अखबारो का जनता पर जबरदस्त असर होता है । संपादको का फिजर्मा है िक वे अपने अखबारो मे गलत खबरे न दे या ऐतसी खबरे न छापे , िकोजससे जनता मे उत्तेजना फिैले । एक अखबार मे मैने पढ़ा िक रे वाड़ी मे मेवो ने िहंदओ ु े बेचरैन कर िदया ।मगर दस ु ं पर हमला कर िदया । इस खबर ने मझ ू रे िदन अखबारो मे यह पढ़ कर मुझे खुशी हुई िक वह खबर गलत थी । ऐतसे कई उदाहरण िदए जा सकते है ।संपादको और उप संपादको को को खबरे छापने और उन्हे खास रूप दे ने मे बहुत ज्यादा सावधानी लेने की जरूरत है ।

आजादी की हालत मे सरकारो के िलए यह करीब – करीब असंभव है िक वे अखबारो पर काबू रखे । जनता का फिजर्मा है िक वह अखबारो पर कड़ी नजर रखे और उन्हे ठीक रास्ते पर चरलाये ।पढ़ी – िलखी जनता को

चरािहए िक वह भड़काने वाले या गंदे अखबारो की मदद करने से इनकार कर दे । ( िदल्ली-डायिरिी , प ृष्ठ : ७७)

१९९१-'९२ वषर्मा मे काशी िवश्विवद्यालय मे प्रशासन की अनुमित से पिरसर मे िवश्व िहंद ू पिरषद के

नेताओं के भाषण , िविडयो प्रदशर्मान , राम िशला पूजन , अस ्िथ पूजन कराने तथा शाखाये लगाने के

अलावा मुिकोस्लम छात्रो की पीटिने , अरबी िवभाग मे तोड़फिोड़ , मिकोु स्लम िशकक , कमर्माचरािरयो को धमकाने की घटिनाएं हुई थीं । इस िवश्विवद्यालय से जुड़े सर सन् ु दरलाल िचरिकत्सालय मे मुिकोस्लम मरीजो के पिरचरारको को पीटिा गया । यह अलीगढ़ िवश्विवद्यालय की बाबत छपी गलत खबर के बहाने हुआ ।

महाराज सयाजीराव िवश्विवद्यालय वडोदरा के प्रिसद िचरत्रकार तथा दृष्टश्यकला संकाय के प्रोफिेसर गल ु ाम शेख को िवश्विवद्यालय से िनकाले जाने की छात्रसंघ द्वारा मांग की गई क्योिक उन्होने सांप्रदाियक सौहादर्मा के िलए चरलाये जा रहे ‘ वडोदरा शािकोन्त अिभयान ‘ मे िहस्सेदारी की थी । इस सन्दभर्मा मे प्रायः

पचरास वषर्मा पहले २१ जनवरी , १९४२ को काशी िवश्विवद्यालय के रजत जन्ती समारोह मे गांधीजी के प्रवचरन के कुछ उदरण दे ना जरूरी लगता है । गांधीजी ने इस प्रवचरन के दौरान कहा , ” एक बात और ।

पिकोश्चरम के हर एक िवश्विवद्यालय की अपनी एक-न-एक िवशेषता होती है । कै िज ब्रिज और ऑक्स्फिोडर्मा को ही लीिकोजए , इन िवश्विवद्यालयो को इस बात का नाज है िक उनके हर एक िवद्याथी पर उनकी िवशेषता की छाप इस तरह लगी रहती है िक वे फिौरन पहचराने जा सकते है ।हमारे दे श के िवश्विवद्यालयो की अपनी

ऐतसी कोई िवशेषता होती ही नहीं । वे तो पिकोश्चरमी िवश्विवद्यालयो की एक िनस्तेज और िनष्प्राण नकल भर है , अगर हम उनको पिकोश्चरमी सभ्यता का िसफिर्मा सोख्ता या स्याही-सोख कहे , तो शायद वािकोजब होगा । आपके इस िवश्विवद्यालय के बारे मे अक्सर यह कहा जाता है िक यहां िशल्प – िशका और यंत्र – िशका का यानी इंिकोजिनिरंग और टिे क्नोलॉजी का दे शभर मे सबसे ज्यादा िवकास हुआ है ।और इनका िशका से

अच्छा सम्बन्ध है । लेिकन इसे मै यहां की िवशेषता मानने को तैयार नही। तो िफिर इसकी िवशेषता क्या हो ? मै इसकी एक िमसाल आपके सामने रखना चराहता हूं । यहां जो इतने िहंद ू िवद्याथी है , उनमे से


िकतनो ने मस ु लमान िवद्यािथर्मायो को अपनाया है ? अलीगढ़ के िकतने छात्रो को आप अपनी ओर खींचर

सके है ? दरअसल आपके िदल मे तो यह भावना पैदा होनी चरािहये िक आप तमाम मस ु लमान िवद्यािथर्मायो को यहां बल ु ाएंगे और उन्हे अपनाएंगे ।

‘…िकोजस तरह गंगा जी मे अनेक निदयां आ कर िमलती है , उसी तरह इस दे सी संस्कृित गंगा मे भी

अनेक संस्कृित-रूपी सहायक निदयां िमली है , यिद इन सबका कोई सन्दे श या पैगाम हमारे िलए हो

सकता है तो यही िक हम सारी दिु नया को अपनाएं और िकसी को अपना दश्ु मन न समझे । मै ईश्वर से प्राथर्माना करता हूं िक वह िहंद ू िवश्विवद्यालय को यह सब करने की शिकोक्त दे । यही इसकी िवशेषता हो सकती है – िसफिर्मा अंग्रेजी सीखने से यह काम नहीं होगा ।’(बनारिस िहरंद ू िविश्वि​िविद्यिालयि रिजत जयिंती समारिोहर , पष्ृ ठ :४१-४७)

पयारे लाल ने ‘पूणारहित’ मे िसतंबर, 1947 मे संघ के अिधनायक गोलवलकर से गांधीजी की मुलाकात, िवभाजन के बाद हए दंगो व गांधी-हतया का िवसतार से वणरन िकया है। पयारे लालजी की मृतयु 1982 मे हई। तब

तक संघ ने उनके इस िववरण का खंडन नही िकया था और अभी भी नहीं िकया है । प्यारे लालजी का िववरण नीचरे िदया जा रहा है ः “गोलवलकर से गांधीजी के वातारलाप के बीच मे गांधी मंडली के एक सदसय बोल उठे - ‘संघ के लोगो ने िनरािशत िशिवर मे बिढ़या काम िकया है। उनहोने अनुशासन, साहस और पिरशमशीलता का पिरचय िदया है।’ गांधीजी ने उतर िदया- ‘पर यह न भूिलए िक िहटलर के नािजयो और मुसोिलनी के फािससटो ने भी यही िकया था।’ उनहोने राषीय सवयंसेवक संघ को ‘तानाशाही दृिषकोण रखने वाली सांपदाियक संसथा’ बताया।‘ (पूणारहित, चतुथर खंड, पृष: 17) हम यहां गांधी वांग्मय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और गांधी जी के संबंध के बारे मे और कुछ

उदरण भी दे रहे है। इनका मकसद रा.स्व. संघ द्वारा फिैलाए जा रहे झठ ू का खंडन करना है । अपने एक सममेलन) मे गांधीजी का सवागत करते हए राषीय सवयंसेवक संघ के नेता गोलवलकर ने उनहे ‘िहदू धमर दारा उतपन िकया हआ एक महान पुरष’ बताया। उतर मे गांधीजी बोले- ‘‘मुझे िहदू होने का गवर अवशय है। पर मेरा िहदू धमर न तो असिहषणु है और न बिहषकारवादी। िहदू धमर की िविशषता जैसा मैने समझा है , यह है िक उसने सब धमो की उतम बातो को आतमसात कर िलया है। यिद िहदू यह मानते हो िक भारत मे अिहदुओ के िलए समान और सममानपूणर सथान नही है और मुसलमान भारत मे रहना चाहे तो उनहे घिटया दरजे से संतोष करना होगा- तो इसका पिरणाम यह होगा िक िहदू धमर शीहीन हो जाएगा... मै आपको चेतावनी देता हं िक अगर आपके िखलाफ लगाया जाने वाला यह आरोप सही हो िक मुसलमानो को मारने मे आपके संगठन का हाथ है तो उसका पिरणाम बुरा होगा।’’ “इसके बाद जो पशोतर हए उनमे गांधीजी से पूछा गया- ‘कया िहदू धमर आततािययो को मारने की अनुमित नही देता? यिद नही देता, तो गीता के दूसरे अधयाय मे शीकृ षण ने कौरवो का नाश करने का जो उपदेश िदया है, उसके िलए आपका कया सपषीकरण है?’


गांधीजी ने कहा- ‘‘पहले पश का उतर ‘हां’ और ‘नही’ दोनो है। मारने का पश खड़ा होने से पहले हम इस बात का अचूक िनणरय करने की शिक अपने मे पैदा करे िक आततायी कौन है? दूसरे शबदो मे, हमे ऐसा अिधकार तभी िमल सकता है जब हम पूरी तरह िनदोष बन जाएं। एक पापी दूसरे पापी का नयाय करने या फांसी लगाने के अिधकार का दावा कै से कर सकता है? रही बात दूसरे पश की। यह मान भी िलया जाए िक पापी को दंड देने का अिधकार गीता ने सवीकार िकया है, तो भी कानून दारा उिचत रप मे सथािपत सरकार ही उसका उपयोग भलीभांित कर सकती है। अगर आप नयायाधीश और जललाद दोनो एक साथ बन जाएं , तो सरदार और पंिडत नेहर दोनो लाचार हो जाएंगे- उनहे आपकी सेवा करने का अवसर दीिजए, कानून को अपने हाथो मे लेकर उनके पयतो को िवफल मत कीिजए।’’ तीस नवंबर ’47 के पाथरना पवचन मे गांधीजी ने कहा: ‘‘िहदू महासभा और राषीय सवयंसेवक संघ का िवचार है िक िहदुतव की रका का एकमात तरीका उनका ही है। िहदू धमर को बचाने का यह तरीका नही है िक बुराई का बदला बुराई से िलया जाए। िहदू महासभा और संघ दोनो िहदू संसथाएं है। उनमे पढ़े -िलखे लोग भी है। मै उनहे अदब से कहंगा िक िकसी को सता कर धमर नही बचाया जा सकता।’’ अिखल भारतीय कांगेस सिमित को अपने अंितम संबोधन (18 नवंबर ’47) मे गांधीजी ने कहा, ‘‘मुझे पता चला है िक कु छ कांगेसी भी यह मानते है िक मुसलमान यहां न रहे। वे मानते है िक ऐसा होने पर ही िहदू धमर की उनित होगी। परं तु वे नही जानते िक इससे िहदू धमर का लगातार नाश हो रहा है। इन लोगो दारा यह रवैया न छोड़ना खतरनाक होगा... मुझे सपष यह िदखाई दे रहा है िक अगर हम इस पागलपन का इलाज नही करे गे , तो जो आजादी हमने हािसल की है उसे हम खो बैठेगे।... मै जानता हं िक कु छ लोग कह रहे है िक कांगेस ने अपनी आतमा को मुसलमानो के चरणो मे रख िदया है। गांधी, वह जैसा चाहे बकता रहे ! वह तो गया बीता हो गया है। जवाहरलाल भी कोई अचछा नही है। ‘‘रही बात सरदार पटेल की, सो उसमे कु छ है। वह कु छ अंश मे सचा िहदू है। परं तु आिखर तो वह भी कांगेसी ही है! ऐसी बातो से हमारा कोई फायदा नही होगा, िहसक गुंडािगरी से न तो िहदू धमर की रका होगी, न िसख धमर की। गुर गंथ साहब मे ऐसी िशका नही दी गई है। ईसाई धमर भी ये बाते नही िसखाता। इसलाम की रका तलवार से नही हई है। राषीय सवयंसेवक संघ के बारे मे मै बहत-सी बाते सुनता रहता हं। मैने यह सुना है िक इस सारी शरारत की जड़ मे संघ है। िहदू धमर की रका ऐसे हतयाकांडो से नही हो सकती। आपको अपनी सवतंतता की रका करनी होगी। वह रका आप तभी कर सकते है जब आप दयावान और वीर बने और सदा जागरक रहेगे , अनयथा एक िदन ऐसा आएगा जब आपको इस मूखरता का पछतावा होगा, िजसके कारण यह सुंदर और बहमूलय फल आपके हाथ से िनकल जाएगा। मै आशा करता हं िक वैसा िदन कभी नही आएगा। हमे यह कभी नही भूलना चािहए िक लोकमत की शिक तलवारो से अिधक होती है।’’ ‘.. कनॉटि प्लेस के पास एक मिकोस्जद मे हनुमान जी िज बराजते है , मेरे िलए वह मात्र एक पत्थर का टिुकड़ा

है िकोजसकी आकृित हनुमान जी की तरह है और उस पर िसन्दरू लगा िदया गया है । वे पूजा के लायक नहीं । पूजा के िलए उनकी प्राण प्रितष्ठा होनी चरािहए , उन्हे हक से बैठना चरािहए । ऐतसे जहां तहां मूितर्मा रखना धमर्मा का अपमान करना है ।उससे मिू तर्मा भी िज बगड़ती है और मिकोस्जद भी । मिकोस्जदो की रका के िलए पुिलस का पहरा क्यो होना चरािहये ? सरकार को पुिलस का पहरा क्यो रखना पड़े ? हम उन्हे कह दे िक हम अपनी

मूितर्मायां खुद उठा लेगे , मिकोस्जदो की मरम्मत कर दे गे । हम िहन्द ू मूितर्मापूजक हो कर , अपनी मूितर्मायो का अपमान करते है और अपना धमर्मा िज बगाड़ते है ।


…’ एक मुसलमान मेरे पास परे शान हो कर आया । वह एक आधा जला कुरान शरीफि अदब से कपड़े मे

लपेटि कर लाया । खोल कर मझ ंु से वह कुछ ु े िदखाया और चरला गया । उसकी आंखो मे पानी था , पर मह

बोला नहीं । िकोजसने कुरान शरीफि का अपमान करने की कोिशश की , उसने अपने धमर्मा का अपमान िकया । उसके सामने मस ु लमान कहीं मारपीटि करके कहीं कुरान शरीफि रखना चराहे , तो वे कुरान-शरीफि का अपमान करे गे । ‘

‘ इसिलए िहंद ू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और दस ु े सन ु ना चराहते है और िसखो ू रे जो भी मझ

को बहुत अदब से कहना चराहूंगा िक िसख अगर गुर नानक के िदन से सचरमुचर साफि हो गये , तो िहन्द ू

अपने आप साफि हो जायेगे । हम िज बगड़ते ही न जाये , िहंद ू धमर्मा को धल ू मे न िमलाये । अपने धमर्मा को और दे श को हम आज मिटियामेटि कर रहे है । ईश्वर हमे इससे बचरा ले ‘। ( प्राथनर्थना प्रविचन ,खंड २ , प ृ. १४४ – १५० तथना संपूणर्थ गांधी विांग्मयि , खंड : ९० )

संयुक्त राष्ट्रसंघ के समक नवम्बर १९४७ मे जब िहंदस् ु तानी प्रितिनिधमण्डल की नेता श्रीमती

िवजयलक्ष्मी पिकोण्डत की आवाज मे आवाज िमलाकर जब पािकस्तानी प्रितिनिधमण्डल के नेता िवदे श

मन्त्री जफ़रल्ला खां और अमरीका मे पािकस्तान के राजदत ू एम. ए. एचर. इस्फिानी ने भी दिण कण अफ़्रीका मे भारतीयो पर अत्याचरार का िवरोध िकया , तब गांधीजी अत्यन्र्त प्रसन्न हुए और १६ नवंबर ‘४७ को प्राथर्माना मे उन्होने यह कहा , ‘ िहंदस् ु लमान िवदे शो मे रहने वाले ु तान(अिवभािकोजत) के िहंद ू और मस

िहंदस् ू गलत है ।इससे ु तािनयो के सवाल पर दो राय के नहीं है , इससे सािज बत होता है िक दो राष्ट्रो का उसल आप लोगो को मेरे कहने से जो सबक सीखना चरािहए , वह यह है िक दिु नया मे प्रेम सबसे ऊंचरी चरीज है ।

अगर िहंदस् ु लमान एक आवाज से बोल सकते है , तो यहां भी वे जरूर ऐतसा कर ु तान के बाहर िहंद ू और मस सकते है , शतर्मा यह है िक उनके िदलो मे प्रेम हो … अगर आज हम ऐतसा कर सके और बाहर की तरह

िहंदस् ु तान मे भी एक आवाज से बोल सके , तो हम आज की मुसीबतो से पार हो जायेगे ! ( संपूणर्थ गांधी विांग्मयि , खण्ड : ९० )

इन सब बातो को याद करना उस भयंकर तासदायी और शमरनाक दौर को याद करना नही है, बिलक िजस दौर की धमक सुनाई दे रही है उसे समझना है। गांधीजी उस वक भले एक विक हो, आज तो उनकी बाते कालपुरष के उदार-सी लगती और हमारे िववेक को कोचती है। उस आवाज को तब न सुन कर हमने उसका गला घोट िदया था। अब आज? आज तो आवाज भी अपनी है और गला भी! इस बार हमे पहले से भी बड़ी कीमत अदा करनी होगी। -

अफ़लातून


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