गध ाँ ी और आम्बेडकर शत्रु नहीं, प्रेमी देव नूर मह देव [आम्बेडकर और ग ाँधी को लेकर बहस जब-तब उठ खड़ी होती है | ह ल में आम्बेडकर की पुस्तक ‘ज तत प्रथ क उन्मूलन’ के नए तसरे से प्रक शन और उसमें अरुं धती र य की लुंबी भूतमक के क रण बहस ने फिर जोर पकड़ है | यह हम र दुभ ाग्य है फक जो बहस होती है उसमें दोनों के बीच पुर ने मतभेदों को तूल दे कर आक्र मकत पैद की ज ती है, जो दोष रोषण के तसव य कु छ भी नहीं करती | यह ाँ कन्नड़ के प्रतसद्ध लेखक देव नूर मह देव क लेख छ प ज रह है | लेख ग ाँधी और आम्बेडकर के मतभेदों को नजरअुंद ज न करते हुए दोनों के बीच ऐक्य के सूत्र तल शत है और समस्य को एक नई दृति से देखने और हल करने की म ुंग करत है सुं०] ‘ग्र म स्वर ज : ग ाँधी और आम्बेडकर : सुलह-व त ा’ पर आयोतजत एक बहस में भ ग लेने को जब मुझे आमुंतत्रत फकय गय तो मैंने आयोजकों से कु छ मज फकय लहजे में पूछ ‘क्य आप लोग एक झगड़े को प्रेम और मनुह र में पररणत कर देन च हते हैं |’ दोनों के बीच झगड़ अभी भी चल रह है | यह कोई म मूली भी नहीं ; बड़े जोर क झगड़ है | इसक मतलब यह है फक दोनों ग ाँधी और आम्बेडकर-जीतवत है बतकक पहले से भी ज्य द जीतवत हैं | मैं इसे एक अच्छे सुंकेत के रूप में देखत हाँ | एक ऐसे समय में जब वैश्वीकरण के जय घोष में ब ज र उन्मत्त हो कर न च रह है और हर आदमी यह म नत हुआ ज न पड़त है फक ब ज र तनज म बन चुक है, तजसके आगे फकसी की नहीं चलेगी | अब जब स रे मतव द और आुंदोलन लुप्त होते ज रहे हैं तो ग ाँधी और आम्बेडकर क जीतवत रहन मुझे डू बते को ततनके के सह रे जैस म लूम पड़त है | दोनों के झगड़े पर तवच र करने के पहले मैं दोनों के बीच जब-तब प्रकट होने व ले आदर, भरोसे और सर हन के दो प्रसुंगों (उद हरणों) क तजक्र करन च हत हाँ | झगड़े को मैं भूल नहीं रह हाँ, उसकी ब त तनश्चय ही करूुंग | ‘दस स्पोक आम्बेडकर (ऐस कह आम्बेडकर ने)’ खुंड एक : सुंप दक भगव न द स में एक जगह पून समझौते के ब द आम्बेडकर क एक कथन उद्घृत फकय गय है ; आम्बेडकर कहते हैं “ग ाँधी से तमलने के ब द मैंने महसूस फकय फक हम रे बीच बहुत ज्य द सम नत है तो मुझे बड़ अचरज हुआ | मैं कबूल करत हाँ फक मुझे अचरज नहीं, बहुत ज्य द अचरज हुआ |” आम्बेडकर के इस कथन को हम कै से समझें ? इसकी क्य व्य ख्य करें | इसी तरह 1946 में ग ाँधी ने गोर (प्रतसद्ध न तस्तक ग ुंधीव दी गोप र जु र मचुंद्र र व गोर ) के द म द को कह : ‘तुम्हें आम्बेडकर जैस बनन च तहए ; तुम्हें अस्पृश्यत और ज तत व्यवस्थ (क स्ट) के उन्मूलन के तलए क म करन च तहए | अस्पृश्यत हर ह लत में जो भी कीमत चुक नी पड़े, सम प्त होनी च तहए |’ ग ाँधी के इस कथन की हम क्य व्य ख्य करें | डी.आर. न गर ज (फदवुंगत डी.आर. न गर ज एक अत्युंत प्रखर दतलत चचतक थे, तजनकी अकप यु में मृत्यु हो गई) ने अपनी पुस्तक ‘सुंस्क्रुतत कथन’ में यह बत य है 1
फक हर आदमी जब ग ाँधी को मह त्म कहत थ तो मह त्म क कहन थ , सच्च मह त्म (तो) आम्बेडकर है | यह क्य है ? क्य यह झगड़े सतहत दो मह त्म ओं के बीच होने व ल महज आद नप्रद न है ? इस तरह की ब तों के ब वजूद आतखर झगड़ क्यों थ ! ग ाँधी जन्मन रूफिव दी और परुंपर व दी थे | अपनी जीवन य त्र में चलन सीखते हुए, तगरते-पड़ते हुए वे आगे बिते गए | वे हमेश अपनी य त्र में रूफिव फदयों और परुं पर व फदयों को अपने स थ ले ज ते हुए बगल से उन पर नजर ड लते रहते थे फक वे (रूफिव दी, परुंपर व दी) उनसे कदम तमल कर चल प रहे हैं फक नहीं | इततह सक र चुंद्रशेखर क कहन है फक “यफद ग ाँधी र जनीततक सफक्रयत से स म तजक क या कल प की ओर उन्मुख हुए तो आम्बेडकर स म तजक क या कल प से र जनीततक सफक्रयत की ओर | दोनों में एक ऊपर से नीचे तो दूसर नीचे से ऊपर चल | तो क्य इस तभन्नत की वजह से दोनों के बीच सुंघषा गहर य ? यही नहीं दोनों एक ही समय में सफक्रय (समक लीन) भी थे ; हर रोज जो घटत थ उसकी प्रततफक्रय दोनों पर होती थी और दोनों को सोचन पड़त थ | इसके स थ गोलमेज सम्मेलन की ब त भी जुड़ी हुई है | गोलमेज सम्मेलन में ग ाँधी के क्षुद्र व्यवह र ने आम्बेडकर को बहुत आहत फकय थ | आम्बेडकर की प्रततफक्रय को इन सब ब तों के सुंदभा में समझन च तहए | इसक अथा यह है फक अवसर के सुंदभा में व्यक्त प्रततफक्रय ओं को सीतमत कर आम्बेडकर की प्रततफक्रय ओं को समग्र रूप से देखन च तहए | अगर हम अवसर के सुंदभा व ली प्रततफक्रय ओं को प्रध नत देंगे तो उन्हें एक कटघरे में कै द कर रूि (कठोर, कट्टर) बन ड लेंगे | यही ब त ग ाँधी के ब रे में ल गू होती है | ग ाँधी और आम्बेडकर को एक समग्र दृति से देखन आवश्यक है | भ रतीय ग ाँव के ब रे में ग ाँधी और आम्बेडकर की ध रण ओं में बड़ अुंतर थ और यह अुंतर भी उनके बीच तवव द (झगड़े) क एक बड़ क रण थ | दोनों के ब रे में तवच र करते वक्त इस अुंतर के महत्व को समझन च तहए | ग ाँधी ग ाँव को एक स्व वलुंबी स्वगा बन ने क सपन देखते थे जबफक आम्बेडकर ग ाँव को स क्ष त नरक म नते थे | ग ाँधी ग ाँव के स्व वलुंबी होने में भ रत की मुतक्त देखते थे तो आम्बेडकर को लगत थ फक ग ाँव से तनज त प कर ही भ रत मुक्त हो सकत है | एक के तलए ग ाँव एक रूम नी सपन थ तो दूसरे तलए एक क्रूर यथ था | उस समय आम्बेडकर क यथ था ही सच थ | ग ुंवों में तनचली ज ततयों के लोगों की ह लत ऐसी थी फक वे स ाँस तक नहीं ले सकते थे | यह कोई अचरज की ब त नहीं फक ग ाँव आम्बेडकर को एक दु:स्वप्न जैस ज न पड़त थ | लेफकन अब क्य तस्थतत है | अगर आज आप फकसी ग ाँव को देखें तो यह प एुंगे फक ग्र म पुंच यत व्यवस्थ के अमल में आने के ब द सब ज ततयों में र जनीततक दलों से जुड़े समूह है | यह सही है फक यह एक स म न्य नहीं अस म न्य और अस्थ यी तस्थतत है, जो र जनीततक प र्टटयों के बीच प्रततद्वतन्द्वत के क रण उत्पन्न हुई है | लेफकन ज तत-व्यवस्थ से असम्पृक्त गत्य त्मक (ऊजातस्वत , ड यनेतमज्म) को भी ध्य न से देखन च तहए | अतधक र प्र प्त पदों के आरक्षण के क रण मेरे ग ाँव में एक दतलत मतहल पुंच यत की प्रध न (अध्यक्ष) बनी है | मेरे बचपन में एक दतलत क ग्र म पुंच यत के दफ्तर में प्रवेश सुंभव नहीं थ ; यह ककपन भी नहीं की ज सकती थी फक कोई दतलत पुंच यत के दफ्तर में प्रवेश कर सकत है | जब गत्य त्मक उजातस्वत हम री आखों के स मने 2
प्रत्यक्ष है तो क्य हमें उससे आाँखें िे र लेन च तहए ? क्य हमें उसे पैनी नजर से देखन नहीं च तहए ? इस स रे उलझ व के बीच यफद हम ग ाँधी के एक समक लीन व्यतक्त के रूप में 1920 के आसप स के उनके तवच रों को देखें तो हम प एुंगे फक उनक मत थ : 1. तहन्दू धमा वणा व्यवस्थ पर रटक हुआ है ; उसक आध र वणा व्यवस्थ है 2. वणा व्यवस्थ में स्वर ज के बीज तनतहत हैं 3. वणा व्यवस्थ स म तजक तनयुंत्रण क दूसर न म है ; वणा व्यवस्थ स म तजक तनयुंत्रण के तलए है 4. र ष्ट्रीय एकत के तलए अुंतज ातीय ख न-प न और अुंतज ातीय तवव हों की आवश्यकत नहीं है 5. वणा व्यवस्थ सम ज की स्व भ तवक सोप नवत् (ह यर रकी) व्यवस्थ है 6. मैं (ग ाँधी) वणा व्यवस्थ को नि और सम प्त करने की फकसी भी कोतशश क तवरोधी हाँ | अगर हम 1920 के आसप स ग ाँधी के समस मतयक होते तो हम इन तवच रों क उतने ही जोर से तवरोध करते तजतने जोर से आम्बेडकर ने फकय थ | लेफकन कट्टर रूफिव दी ग ाँधी क रूप बदल ; वह पहले जैस नहीं रह | 1928 में एक वणा की उपज ततयों के बीच तवव ह को उसने प्रोत्स तहत फकय , इसके ब द एक के ब द एक कदम आगे उठ ते हुए 1946 तक पहुाँचते-पहुाँचते उसने यह तनयम बन ड ल फक वह तसिा उन्हीं तवव हों में श तमल होग , जो सवणों और हररजनों के बीच होंगे य नी सवणा -हररजनों के अुंतज ातीय तवव हों को छोड़ कर फकसी तवव ह में श तमल नहीं होग | इसके ब द सेव ग्र म में उसने उन तवव हों के अनुष्ठ न तक को अनुमतत देने से इनक र फकय , तजनमें वर-वधू में से कोई हररजन न हो | ‘अगर हम अस्पृश्यत को सम प्त करन च हते हैं तो वणा व्यवस्थ को सम प्त करन होग ’ -- ग ाँधी के इस अुंततम तस्थतत तक पहुाँचने, इस ध रण के अुंततम रूप ग्रहण करने के पीछे मुझे लगत है फक आम्बेडकर की तूतलक के स्पशा की बहुत बड़ी भूतमक थी | 1946 में ग ाँधी तजस मुक म पर पहुाँचे अगर उस पर 1920 में ही पहुाँच ज ते तो क्य होत ? भ रत की ज ततय ाँ और धमा ग ाँधी को जीतवत तनगल ज ते | ग ाँधी ही नहीं रहत | और भ रत के वणा और ज तत व ले सम ज क ब ल भी ब ाँक न होत और वह (ज तत और वणा व ल सम ज) अछू तों को, जो थोड़ सर उठ ने की कोतशश कर रहे थे, बतल क बकर बन न अपन धमा म नत | हमें इस तस्थतत को भी समझन च तहए | इतन सब कु छ कहने के ब द भी मुझे ग ाँधी की एक ब त समझ में नहीं आती और वह ब त यह है फक ग ाँधी ने अपने एक जीवन-क ल में खुद को इतन ज्य द रूप ुंतररत फकय फिर भी वह कै से वशुंगत पेशों के औतचत्य और उनकी दक्षत के ब रे में अपने मत पर रटके रहे, उसे क्यों नहीं रूप ुंतररत कर प ए ? यद्यतप हम यह ज नते हैं फक ग ाँधी क यह मत सब पेशों द्व र जीवन-तनव ाह करने ल यक कम से कम आय अर्जजत करने के तवच र पर आध ररत थ , फिर भी वशुंगत पेशों के ब रे में ग ाँधी के मत को स्वीक र करन करठन है क्योंफक वशुंगत पेशों में यफद ज्य द दक्षत प्र प्त 3
होती भी है तो उसकी पररणतत दक्षत के य ुंतत्रक (मेक तनकल) हो ज ने में ही होती है | इसके तवपरीत जब वशुंगत पेशे में पररवतान होत है तो पेशे में सृजन त्मकत आती है और नई सुंभ वन एुं ज्य द प्रकट होती हैं | ग ाँधी को, जो हमेश अपने मत को बदलने के तलए तैय र रहते थे, हमें अपनी ब त मनव ने के तलए उनके स थ एक छोट झगड़ मोल लेन पड़ेग | 1946 में ग ाँधी ने कह थ फक वे एक वगा तवहीन, ज तत तवहीन सम ज सम ज की स्थ पन करने की कोतशश कर रहे हैं और एक ऐसे भ रत की आक ुंक्ष करते हैं, तजसमें तसिा एक ज तत होगी और ब्र म्हण स्व भ तवक रूप से हररजनों से तवव ह करेंगे | इसके स थ ग ाँधी यह भी कहते हैं फक तवषमत (असम नत ) से चहस और अचहस से समत पैद होती है | इस प्रक र वे अचहस और समत को एक तसक्के के दो पहलू बत ते हैं | अचहस और समत की प रस्पररकत व ल ग ाँधी क यह कथन म क्सा के र ज्य के मुरझ कर न रह ज ने व ले कथन तजतन ही स रगर्जभत है ; अपने स्वप्न के अुंततम चरण के रूप में म क्सा ने र ज्य के मुरझ कर तवलीन हो ज ने की ककपन की थी | ग ाँधी और आम्बेडकर अुंत में तजस मुक म पर पहुाँचे थे, उसको अगर हम अपनी ककपन के सह रे दृश्यम न करें तो हम इस सव ल से मुख ततब हुए तबन नहीं रह सकते फक अगर ग ाँधी और आम्बेडकर जीतवत होते तो अब कह ाँ होते ? वे कै से होते ? क्य वे फकसी वृद्ध श्रम के एक कोने में पड़े हुए तसिा एक दूसरे की तशक यत सुनते हुए, अपने स मने जो सब घट रह है उसे असह य अवस्थ में देखते हुए, अपने सर पर ह थ धर कर आक श की ओर त क रहे होंगे ? य वे बच्चे डी.आर. न गर ज की तचि ने व ली ब तें सुन रहे होंगे -- बच्च न गर ज तसिा तचि ने के तलए उनके प स अक्सर ज त रहत है | दोनों को तचि ने के तलए कहत है ‘अगर कोई व्यतक्त ग ाँव के सुंदभा में खुद को आम्बेडकरव दी कहे और ग ाँव के ब हर अपने को ग ाँधीव दी जैस अनुभव करे तो उसकी अनुभूतत ज यज है |’ क्य वे (ग ाँधी और आम्बेडकर) इस कथन में तछपे ज दुई खज ने को खोज प एुंग,े तजसके ब रे में वे खुद कु छ भी नहीं ज नते थे और तचकल कर हरेक को कहेंगे फक खज ने पर बैठी परी की प यल की रनझुन को सुनो | और लोगों के उनकी तचकल हट न सुनने के क रण क्य वे यह नहीं सोचेंगे फक वे मृतकों के बीच रह रहे हैं और इस तस्थतत में अपने को एकदम हत श अनुभव कर क्य वे अपनी मृत्यु की क मन नहीं करेंगे ? इस तरह क दृश्य हम रे स मने उपतस्थत नहीं होन च तहए | लेफकन इसके न होने के तलए यह आवश्यक होग : हम दोनों के सम स मतयक बन ज एुं तो झगड़े से बच नहीं ज सकत | कभीकभी फकसी क्षण दोनों एक दूसरे के नजदीक भी आ सकते हैं, लेफकन झगड़े को एक समग्र व सम्यक दृति से देखें तो झगड़ प्रेम और मनुह र की क्रीड़ जैस भी लग सकत है | दोनों में कौन स्त्री है और कौन पुरष, यह मैं प्रत्येक व्यतक्त की ककपन पर छोड़ देन च हत हाँ क्योंफक एक ब र जब मैंने कह थ फक आम्बेडकर एक ऐस बेट है जो भेदभ व के चलते क्रोध में घर त्य ग देत है तो लोगों ने मेरी ब त को ज्यों क त्यों समझ कर असल अथा क अनथा कर ड ल थ जब फक मेर आशय सही व ररस के बतहष्कृ त होने से थ | इसतलए प्रत्येक व्यतक्त की ककपन पर छोड़न मुझे बेहतर लगत है, लेफकन हमें कब्रें खोद कर, दोनों की हतिय ाँ तगनकर, मृत हतियों की पूज कर, तका कर त र्ककक 4
तवतुंड खड़ कर और कमाक ुंडी शुतचत और अशौच के तनयम प लन कर ग ाँधी और आम्बेडकर को मरने देन नहीं च तहए | अब यफद हम दोनों को एक स थ ल सकें तो हम यह देखेंगे फक उस समय जब उनके बीच झगड़ हुआ थ तो क ल ख तलस क ल होत थ और सिे द ख तलस सिे द | अब क ले रुंग में ही हज र रुंगते हैं | इसी तरह सिे द में भी हज र छ य एुं हैं | रुं ग की असुंख्य रुंगतो की तरह शोषण भी तरह-तरह के रूपों में अब अत्यतधक बि गय है | अब लोगों को शोषण की शक्ल में नहीं लूट ज त | नक ब पहन कर शोषण अपने को रक्षक के रूप में पेश करत है | नक बपोश के रूप में वह बच्चों के तलए मनोरुं जक कह तनयों को मस ल बन फदय गय है | कह वत है ‘पौध को पेड़ क रूप ग्रहण करने के पहले झुक य ज त है’ ; हम री इस पृथ्वी पर शोषण को एक मूकय के रूप में स्वीक र करव ने के तलए रोज नए-नए ज ल तबछ ए ज रहे हैं | मेरे तमत्र र जेंद्र द नी अपने एक लेख ‘ह थी द ुंत की मीन र, ब ज र और र जनीतत’ में बत ते हैं फक बच्चों के कॉतमकों (तचत्र-कथ ओं) में उपतनवेशव द क तछप इततह स ज तहर होत है | हम इस ब त को नजर अुंद ज करते हैं फक (तचत्र कथ में) आफदम तनव तसयों पर हुक्म चल ने व ल िैं टम (तचत्र कथ क एक प त्र) गोरे आदमी क आफद रूप है, तजसने अफ्रीक को अपन उपतनवेश बन य और ट रजन ? वह क्य करत है ? प्रकृ तत और पशुओं के ऊपर स्वछुंद रूप से श सन करत है, प्रकृ तत पर आक्रमण करत है और उसे उपभोग क स धन बन त है | ट रजन गोरे आदमी क प्रतीक है | यह लेख इस प्रक र की व्य ख्य के चलते हमें अस ध रण अुंतदृता ि प्रद न करत है | इसी तरह अुंगरेज चचतक जेरेमी सीब्रुक क कहन है फक जब यह तवच र फक ‘दुतनय के मजदूर एकजुट होकर दुतनय को गुल मी से मुतक्त फदल सकते हैं, दुबाल होने लगत है तो यह तमथक पनपन शुरू कर देत है फक ‘हमें जो भी च तहए, वह तसिा पूुंजीव द के र स्ते से ही प य ज सकत है |’ आज जीवन पैसों को मूलमुंत्र म न कर चल रह है | समत और न्य य की आक ुंक्ष दुबाल और असह य हो चली है | मजे की ब त यह है फक अब मूख और रोजग र के ब रे में पूुंजीव द सबसे ज्य द मुखर है | वह ऐसी नौटुंकी कर रह है फक म नो गरीबों की स री समस्य ओं क हल तसिा उसी के प स है | अपने इस द वे पर हमें यकीन करव ने के तलए पूुंजीव द पूरे दम-खम से कोतशश कर रह है | ऐसी तस्थतत में मुतक्त कै से सुंभव है ? और कौन मुतक्तद त होग ? खल न यक ने न यक को तगर कर रौंद ड ल है और खुद न यक की भूतमक अद कर रह है | यह जम न सूचन युग क है | अब मनुष्य पहले से ज्य द सचेत हो रह है | पहले भी तवषमत और भेदभ व थे लेफकन उनके प्रतत एक प्रक र की तवच रहीन मौन उद सीनत थी | आज भेदभ व और तवषमत भीषण ज न पड़ते है और हम री पृथ्वी स री सुख-श ुंतत गाँव कर भीतर ही भीतर सुलग रही है | इन सबके ब वजूद तवतभन्न सुंगठन और र जनीततक दल, तजन्हें समत और न्य य के सपने को स क र करने की चेि करनी च तहए थी, तमल नहीं रहे हैं ; उनमें एकत क यम नहीं हो रही है | 5
अपने-अपने मतव दों (ऑतडयोलॉजी) के मुत तबक उन्होंने अपने अलग-अलग शत्रु तचतन्हत कर तलए हैं और अपनी अलग-अलग तखचड़ी पक रहे हैं | यह कमाक ुंडी शुतचत क प लन करने जैसी ब त है | समय के स थ कट्टरत और अलग व बिते ज ते हैं तजसके चलते वे अपने तचतन्हत शत्रुओं को भूल ज ते हैं और अपने आसप स के सुंगठन और दलों को शत्रु म नने लगते हैं | तो ऐसे में शोतषत लोग कै से एकत के सूत्र में बुंधेंगे ? आज तस्थतत यह है फक एक तरि रूफिव दी अतीत के रोम नी (रोम ुंरटक) सपने फदख रहे हैं तो दूसरी तरि प्रगततशील भतवष्य के रोम नी सपने | अतीत और भतवष्य के बीच वताम न तपस गय है ; दुघाटन ग्रस्त हो गय है | इन सबके स थ प्र इवेट पूुंजी के बल पर चलने व ले गैर सरक री सुंगठन (एनजीओ) है, जो अपने को जन शतक्तयों से भी ज्य द जनत क पक्षधर घोतषत कर जन आुंदोलनों के र स्ते में रक वट ड ल रहे हैं | यही नहीं दतलत, न री, पय ावरण, फकस न सुंगठनों ने अपनी अतस्मत की र जनीतत को पील प ाँव की तरह इतन िू ल ज ने फदय है फक वे समत और न्य य के आदशों को भूल कर रेंग रहे हैं | मैं यह सब इस इर दे से कह रह हाँ फक मैं यह च हत हाँ फक अतस्मत की र जनीतत िू स के देर में आग लग ज ने की तरह जल कर र ख हो ज ने के बज ए रोशनी फदख ने व ले एक तचर ग की तरह जले | शोषण-दोहन क अब तक जो इततह स रह है, उसमें प्रकृ तत के बचे रहने की सुंभ वन थी, लेफकन वैश्वीकरण और तनजीकरण (प्र इवेट इजेशन) अपने लोभ-ल लच के क रण प्रकृ तत क तजस तरह तवन श कर रहे हैं उसमें तो लगत है फक कल आएग ही नहीं (प्रकृ तत क तवन श भतवष्य नहीं रहने देग ) | तवन श के इस युग में क्य तसिा एक ग ाँधी पय ाप्त होग ? य तसिा एक आम्बेडकर ? श यद नहीं | लोतहय ? श यद नहीं | हमें उस मनीषी म क्सा को भी ल ने की जरूरत पड़ेगी | लेफकन यह भी पय ाप्त नहीं होग | जो यह द व कर रहे हैं फक वे तजसे च हते हैं, वह पय ाप्त होग , वे अपने स मने रखी ल श के आगे छ ती पीट रहे हैं | हमें अपनी कें चुल उत र िें कनी होगी और एक नए जन्म की खोज करनी होगी | हमें बुद्ध और वचनक रों (अक्क मह देवी, तसद्धेश्वर, व सवन्न आफद वचनक र) के स्पशा की भी आवश्यकत होगी |
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