गाँधी और आम्बेडकर

Page 1

गध ाँ ी और आम्बेडकर शत्रु नहीं, प्रेमी देव नूर मह देव [आम्बेडकर और ग ाँधी को लेकर बहस जब-तब उठ खड़ी होती है | ह ल में आम्बेडकर की पुस्तक ‘ज तत प्रथ क उन्मूलन’ के नए तसरे से प्रक शन और उसमें अरुं धती र य की लुंबी भूतमक के क रण बहस ने फिर जोर पकड़ है | यह हम र दुभ ाग्य है फक जो बहस होती है उसमें दोनों के बीच पुर ने मतभेदों को तूल दे कर आक्र मकत पैद की ज ती है, जो दोष रोषण के तसव य कु छ भी नहीं करती | यह ाँ कन्नड़ के प्रतसद्ध लेखक देव नूर मह देव क लेख छ प ज रह है | लेख ग ाँधी और आम्बेडकर के मतभेदों को नजरअुंद ज न करते हुए दोनों के बीच ऐक्य के सूत्र तल शत है और समस्य को एक नई दृति से देखने और हल करने की म ुंग करत है सुं०] ‘ग्र म स्वर ज : ग ाँधी और आम्बेडकर : सुलह-व त ा’ पर आयोतजत एक बहस में भ ग लेने को जब मुझे आमुंतत्रत फकय गय तो मैंने आयोजकों से कु छ मज फकय लहजे में पूछ ‘क्य आप लोग एक झगड़े को प्रेम और मनुह र में पररणत कर देन च हते हैं |’ दोनों के बीच झगड़ अभी भी चल रह है | यह कोई म मूली भी नहीं ; बड़े जोर क झगड़ है | इसक मतलब यह है फक दोनों ग ाँधी और आम्बेडकर-जीतवत है बतकक पहले से भी ज्य द जीतवत हैं | मैं इसे एक अच्छे सुंकेत के रूप में देखत हाँ | एक ऐसे समय में जब वैश्वीकरण के जय घोष में ब ज र उन्मत्त हो कर न च रह है और हर आदमी यह म नत हुआ ज न पड़त है फक ब ज र तनज म बन चुक है, तजसके आगे फकसी की नहीं चलेगी | अब जब स रे मतव द और आुंदोलन लुप्त होते ज रहे हैं तो ग ाँधी और आम्बेडकर क जीतवत रहन मुझे डू बते को ततनके के सह रे जैस म लूम पड़त है | दोनों के झगड़े पर तवच र करने के पहले मैं दोनों के बीच जब-तब प्रकट होने व ले आदर, भरोसे और सर हन के दो प्रसुंगों (उद हरणों) क तजक्र करन च हत हाँ | झगड़े को मैं भूल नहीं रह हाँ, उसकी ब त तनश्चय ही करूुंग | ‘दस स्पोक आम्बेडकर (ऐस कह आम्बेडकर ने)’ खुंड एक : सुंप दक भगव न द स में एक जगह पून समझौते के ब द आम्बेडकर क एक कथन उद्घृत फकय गय है ; आम्बेडकर कहते हैं “ग ाँधी से तमलने के ब द मैंने महसूस फकय फक हम रे बीच बहुत ज्य द सम नत है तो मुझे बड़ अचरज हुआ | मैं कबूल करत हाँ फक मुझे अचरज नहीं, बहुत ज्य द अचरज हुआ |” आम्बेडकर के इस कथन को हम कै से समझें ? इसकी क्य व्य ख्य करें | इसी तरह 1946 में ग ाँधी ने गोर (प्रतसद्ध न तस्तक ग ुंधीव दी गोप र जु र मचुंद्र र व गोर ) के द म द को कह : ‘तुम्हें आम्बेडकर जैस बनन च तहए ; तुम्हें अस्पृश्यत और ज तत व्यवस्थ (क स्ट) के उन्मूलन के तलए क म करन च तहए | अस्पृश्यत हर ह लत में जो भी कीमत चुक नी पड़े, सम प्त होनी च तहए |’ ग ाँधी के इस कथन की हम क्य व्य ख्य करें | डी.आर. न गर ज (फदवुंगत डी.आर. न गर ज एक अत्युंत प्रखर दतलत चचतक थे, तजनकी अकप यु में मृत्यु हो गई) ने अपनी पुस्तक ‘सुंस्क्रुतत कथन’ में यह बत य है 1


Turn static files into dynamic content formats.

Create a flipbook
Issuu converts static files into: digital portfolios, online yearbooks, online catalogs, digital photo albums and more. Sign up and create your flipbook.