घुसर पुसर | June 2014 | अक्रम एक्सप्रेस"बालमित्रों,
“आज वह टीचर से तुम्हारे बारे में ऐसा कह रहा था कि यह गेम इसे किस ने दिया? लगता है इसने ज़रूर किसी से छीना है।” अंदर ही अंदर फ्रेन्ड्स के बीच हम ऐसी कितनी ही बातें करते रहते हैं? और वह
तुम्हें पता है इसे क्या कहते हैं? ऐसा करना कितना योग्य है? इसका फल क्या है?
परम पूज्य दादाश्री ने इस बारे में सुंदर बातें समझाई हैं। आओ, हम भी इन्हें समझकर अपने जीवन में बदलाव लाएँ।
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