गुरु-शिष्य | July 2013 | अक्रम एक्सप्रेस"बालमित्रो,
अपनी संस्कृति में लोग एक दूसरे से अनेक भावनात्मक संबंधों से जुड़े हुए हैं, उनमें से एक गुरु और शिष्य का भी हैं। शिष्य का गुरु से संबंध मतलब निःस्वार्थ प्रेमसंबंध, अभेदता का संबंध, आधीनता और समपर्ण का संबंध।
ऐसे पवित्र संबंध में न तो कहीं दाग दिखाई देना चाहिए और न ही पड़ना चाहिए। उसके सामने चेतावनी देते हुए परम पूज्य दादाश्री कहते हैं कि, गुरु में लक्ष्मी और विषय-विकार संबंधित किंचित्मात्र ाी अशुद्धता नहीं होनी चाहिए। यदि ऐसा दिखाई दे तो वहाँ से खिसक जाना।
ऐसे पवित्र संबंध के कई आदर्श उदाहरण इस अंक में दिए गए हैं। गुरु की ज़रूरत क्यों है, सच्चा शिष्य कैसा होना चाहिए, गुरु शिष्य की गढ़ाई किस तरह करता है, शिष्य को गुरु के प्रति कैसा ााव रखना चाहिए आदि की सुंदर समझ छोटी-छोटी कहानियों में बुनी गई है।
तो आओ, इस सुंदर अंक का मज़ा लें और सच्चे शिष्य बनने की प्रेरणा लें
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