वासषिकी
भारतीय सिनेमा के िौ िाल भारत में पहली फिल्म का प्रदशशन 7 जुलाई, 1896 को मुंबई के वाटसंस होटल में फ्रांसीसी कैमरामैन ने फकया था।
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षष 2012 में भरतीय रजतपट ने अपने सुनहरे सफर के सौ साल पूरे ककए। 19वीं सदी के अंकतम दशकों में जब भारत ने गुलामी की बेकड़यां तोड़ने के कलए अपने आंदोलनों की धार तेज कर दी थी, तभी कला की इस कवधा ने देश में धीरे-धीरे िवेश ककया था। ककसी नवजात कशशु की तरह ही तब कसनेमा ने बोलना नहीं सीखा था। मूक कििपट से बॉलीवुड कहलाने और हालीवुड में भी अपनी पहिान बनाने तक भारतीय कसनेमा ने न केवल लंबा सफर तय ककया बककक इस सफर की राहों पर अपनी छाप भी छोड़ी। भारत में पहली कफकम का िदशषन 7 जुलाई, 1896 को मुंबई के वाटसंस होटल में फ्रांसीसी कैमरामैन मॉकरस सेकटटर ने आयोकजत ककया था। इस िदकशषत सामग्री को 'एंट्री ऑफ कसनेमटै ोग्राफ' नाम कदया गया और इसे 'माववेल ऑफ द नाइनटींथ सेंिुरी' व 'वंडसष ऑफ द वकडड' नाम से ििाकरत ककया गया। इसे देखने का िवेश शुकक 1 रुपया था।
स्वदेश में निनमित पहली फीचर नफल्म 21 अिैल, 1913 को पहली फीिर कफकम 'राजा हकरकिंद्र' का िदशषन िुकनंदा दशषकों के सामने ओलंकपया कथयेटर में ककया गया था। इस मूक कफकम के कनमाषता दादा साहेब फाकके थे। बाद में इसे व्यावसाकयक िदशषन के कलए 3 मई, 1913 को कोरोनेशन कसनेमेटोग्राफ कथयेटर में जारी ककया गया 44
जहां यह 23 कदन िली। यह धाकमषक कफकम 'राजा हकरकिन्द्र' के पौराकिक आख्यान पर आधाकरत थी। कुछ कफकम इकतहासकार 1912 में बनाई 'पुण्डकलक' कफकम को पहली फीिर कफकम मानते हैं कजसमें कनमाषताओं ने किकटश कसनेमैटोग्राफर की सेवाएं ली थीं। पर 'राजा हकरकिन्द्र' पूरी तरह से टवदेश कनकमषत फीिर कफकम मानी जाती है। इसकी टमृकत में हर साल 3 मई को 'राटट्रीय कफकम पुरटकार' आयोकजत ककए जाते हैं। राटट्रीय कफकम पुरटकारों के साथ ही दादा साहेब फाकके के सम्मान में हर साल लंबे समय तक कफकम क्षेि में उकलेखनीय योगदान करने वाली हटती को 'दादा साहब फाकके लाइफटाइम एिीवमेंट पुरटकार' कदया जाता है। वषष 1966 से इस पुरटकार की शुरुआत की गई थी। 1917 में दादा साहब फाकके (धुंडीराज गोकवंद फाकके) द्वारा कनकमषत 'लंका दहन' भारत में पहली बॉसस ऑकफस कहट कफकम थी।
पहला नििेमाघर 1907 में जेएफ मदान (जमशेदजी फ्रामजी मदान) ने कोलकाता में 'एककफंटटन कपसिर पैलेस' कसनेमाघर की शुरुआत की थी। अब इसे 'िैपकलन' कहा जाता है। उन्होंने 1902 में कोलकाता में तंबओं ु में कफकमों के कनयकमत िदशषन िालू ककए थे।
पहली बोलती नफल्म 'आलम आरा' पहली बोलती कफकम थी। बंबई के मैजेकटटक कसनेमा में इसे 14 मािष, 1931 को िदकशषत ककया गया था। इम्पीकरयल मूवीटोन के बैनर तले बनी इस कफकम का कनमाषि और कनदवेशन आदवेकशर माखन ईरानी ने ककया था। इसकी कहानी जोसफ डेकवड द्वारा इसी नाम से कलखे गए एक पारसी नाटक पर आधाकरत थी। इसके िमुख पािों में पृथ्वीराज कपूर, एलबी िसाद, डब्कयूएम खान, माटटर कवट्ठल और जुबैदा शाकमल थे। इसमें सात गीत थे। इसे पूरा करने में दो माह का समय लगा। रेलवे लाइन के पास इसकी शूकटंग ककए जाने के