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तनवा्चतसि तिब्बिी संसद 2020
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“मार्च 1959 में मेरे तिब्बत छोड़ने से पहले भी मैं इस निष्कर्ष पर पहुचँ ा था कि आधुनिक दुनिया की बदलती हुई परिस्थितियों में तिब्बत में शासन की प्रणाली का आधुनिकीकरण करना और इस तरह का सुधार करना होगा ताकि जनता के चुने हुये प्रतिनिधियों की राज्य की सामाजिक एवं आर्थिक नीतियों को तैयार करने और मार्गदर्शित करने में ज्यादा प्रभावी भूमिका हो सके । मेरा यह भी दृढ़ विश्वास था कि ऐसा सिर्फ़ सामाजिक एवं आर्थिक न्याय के आधार पर संस्थाओं के लोकतन्त्रीकरण से ही किया जा सकता है।” परमपावन चौदहवें दलाई लामा वर्ष 1963 में प्रारूपित, तिब्बत के संविधान की प्रस्तावना में
निर्वासित तिब्बती संसद
यह निर्वासित तिब्बती संसद के न्द्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) की सर्वोच्च विधायी निकाय है। यह तिब्बती लोकतान्त्रिक शासन के तीन स्तम्भों – न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका (कशाग) में से एक है।
संघठन
निर्वासित तिब्बती संसद एक-सदनीय है और इसके प्रमुख अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष हैं। इस लोकतान्त्रिक रूप से चुने हुये निकाय का सृजन उन प्रमुख बदलावों में से एक है जो परम पावन दलाई लामा ने परम्परागत मूल्यों और आधुनिक मानक के एक विशिष्ट मेल पर आधारित एक लोकतान्त्रिक प्रणाली की शुरुआत के लिये अपने लगातार प्रयासों के तहत किया था। 16वीं निर्वासित तिब्बती संसद के 45 सदस्य हैं, इसमें तिब्बत के तीनों परम्परागत प्रान्तों, उचङ, धोतो और धोमे, में से दस-दस प्रतिनिधि, तिब्बती बौद्ध धर्म के चार शाखाओं तथा बौद्ध धर्म से पहले के बॉन धर्म से दो तथा उत्तर अमेरिका एवं यूरोप के तिब्बती समुदाय से दो-दो प्रतिनिधि और एशिया (भारत, नेपाल और भूटान को छोड़कर) एवं ऑस्ट्रेलिया से एक प्रतिनिधि शामिल है।
मतदान अधिकार
हर पाँच साल पर चुनाव होते हैं। कोई भी तिब्बती जो 18 साल का या उससे ज्यादा उम्र का है मतदान कर सकता है और 25 वर्ष से ऊपर की उम्र का कोई भी तिब्बती संसद का चुनाव लड़ सकता है, चाहे वह किसी भी धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान का क्यों न हो।
संसदीय सत्र
संसद के सत्र साल में दो बार छह माह के अन्तराल पर आयोजित किये जाते हैं। - बजट सत्र: मार्च - आम सत्र: सितम्बर जब संसद का सत्र नहीं चल रहा होता है, तब 11 सदस्यों की एक स्थायी समिति होती है जिसमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सभी प्रान्तों के दो-दो प्रतिनिधि और हर धार्मिक परम्पराओं का एक-एक प्रतिनिधि होता है। सदस्यों को तीन खण्डों में विभाजित किया जाता है: राजनीतिक, प्रशासनिक और ग्युनड् लरे (वित्त)। बाकी सांसदों के विपरीत स्थायी समति पूरी तरह से कार्यालय में बैठती है और संसद से सम्बन्धित रोज़मर्रा के काम निपटाती है, जैसे-तिब्बत के भीतर के राजनीतिक हालात का विश्लेषण, विभिन्न विभागों के सालाना रिपोर्ट, लेखा की समीक्षा और अन्तरिम बजट की मंज़ूरी आदि।
16वीं टीपीआइई1 का प्रथम सत्र
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि :
लम्बें समय तक चलने वाली तिब्बती राजव्यवस्था का लोकतन्त्रीकरण परम पावन चौदहवें दलाई लामा की चिरकालीन प्रेरणा का नतीजा है। वास्तव में उन्होंने तिब्बत में ही सुधारों की शुरुआत कर दी थी, लेकिन चीन द्वारा 1949-50 में हमले के बाद इसमें व्यवधान आ गया। चीनी आक्रमण से पहले तिब्बतियों को लोकतान्त्रिक प्रशासन का बहुत कम या बिल्कु ल अनुभव नहीं था, क्योंकि सभी महत्वपूर्ण निर्णय छोगदु ़ (नेशनल एसेंबली), कालोन के समूह (कै बिनेट मन्त्रियों), तीन महान मठों के मठाध्यक्ष और सामाजिक प्रतिनिधियों के द्वारा लिये जाते थे। प्रत्यक्ष निर्वाचन नहीं होता था। परम पावन दलाई लामा के 1959 में भारत में शरण लेने के बाद उन्होंने बोधगया में फरवरी 1960 में औपचारिक रूप से लोकतान्त्रिक राजव्यवस्था की शुरुआत की एक रूपरेखा खींची। उन्होंने निर्वासित तिब्बतियों को सलाह दी कि वह एक चुने हुये निकाय का गठन करें जिसमें तीन परम्परागत तिब्बती प्रान्तों के तीन निर्वासित प्रतिनिधि और चार तिब्बती बौद्ध शाखाओं में से प्रत्येक का एक प्रतिनिधि हो। इसके मुताबिक चुनाव कराये गये और ‘डेपुटीज’ कहलाने वाले 13 प्रतिनिधियों का चुनाव हुआ और उन्हें ‘तिब्बत जन प्रतिनिधि आयोग’ (सीटीपीडी) के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने 02 सितम्बर, 1960 को शपथ ग्रहण किया। इस ऐतिहासिक तिथि को बाद में ‘तिब्बती लोकतान्त्रिक दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा।
तिब्बती लोकतान्त्रिक राजव्यवस्था का विकास
• प्रथम सीटीपीडी (1960-1964) : प्रारम्भ में प्रतिनिधियों को सीटीए के विभिन्न विभाग निर्धारित किये गये और वे महीने में दो बार बैठक करते थे। 10 मार्च, 1963 को परम पावन ने-चार साल के व्यापक परामर्श के बाद-10 अध्यायों और 77 अनुच्छेदों वाले संविधान की घोषणा की। • द्वितीय सीटीपीडी (1964-1966) : प्रतिनिधियों की संख्या 13 से बढ़ाकर 17 कर दी गई, क्योंकि तीनों प्रान्तों में से प्रत्येक के लिये एक महिला प्रतिनिधि के लिये एक अतिरिक्त सीट आरक्षित कर दी गई। नए संविधान के मुताबिक परम पावन ने एक प्रख्यात सदस्य को नामाङ्कित करना शुरु किया। वर्ष 1965 में, जैसा कि परम पावन की सलाह थी, हर कार्यालय में भिक्षुओं और गृहस्थी अधिकारियों की नियुक्ति, वंशानुगत उपाधियाँ और विशिष्ट अधिकार की परम्परागत प्रथा बन्द कर दी गई। 03 मई, 1966 को धर्मशाला में एक अलग सचिवालय की स्थापना की गई। • तीसरी सीटीपीडी (1966-1969) : प्रशासन की जाँच के द्वारा सीटीए का कामकाज देखना शुरु किया और जन शिकायतों के समाधान में किसी तरह की चूक के लिये कशाग को ज़िम्मेदार ठहराया गया। इस तरह से इसने लोगों और प्रशासन के बीच एक सेतु की तरह काम करना शुरु किया। यह विधायी निकाय के कामकाज में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। • चैथी सीटीपीडी (1969-1972) : परम पावन ने आयोग के किसी सदस्य को नामाङ्कित करने के अपने अधिकार को छोड़ दिया, इस तरह से सदस्यों की संख्या घटकर 16 हो गई। • पाँचवीं सीटीपीडी (1972-1976) : सीटीपीडी ने समूचे बजट को मंजूर और अनुमोदित करना शुरु किया। • छठी सीटीपीडी (1976-1979) : परम्परागत बॉन धर्म का प्रतिनिधित्व करने वाला एक नया प्रतिनिधि जोड़ा गया, इस तरह सदस्यों की संख्या फिर से 17 हो गई। तिब्बती जन 2
प्रतिनिधि आयोग (सीटीपीडी) का नाम बदलकर तिब्बती जन प्रतिनिधि सभा (एटीपीडी) कर दिया गया। • सातवीं एटीपीडी (1979-1982) : वर्ष 1974 से ही तिब्बती युवा कांग्रेस आंदोलन कर माँग कर रही थी कि प्रतिनिधियों का चुनाव परम्परागत प्रान्तों के लोगों से बने संयुक्त मतदाता समूह द्वारा किया जाये। वर्ष 1981 में उच्च स्तरीय स्थायी समिति ने इस याचिका को स्वीकार कर लिया, लेकिन धोतो की जनता इससे असहमत थी, इसलिये समिति ने अपने निर्णय को संशोधित किया कि एक प्राथमिक चुनाव होगा जिससे परम पावन सदस्यों का चुनाव करेंगे। • आठवीं एटीपीडी (1982-1987) : जैसा कि तय हुआ था, परम पावन ने प्राथमिक चुनाव से सभी प्रतिनिधियों की नियुक्ति की। यह तब तक के लिये एक अन्तरिम व्यवस्था थी, जब तक 7वें एटीपीडी के सामने उठे मसलों का कोई साझा समाधान न निकल जाये। परम पावन ने प्रतिनिधियों की संख्या में और कमी करते हुये तीनों प्रान्तों में से प्रत्येक से दो सदस्य, धार्मिक परम्पराओं से पाँच प्रतिनिधि और परम पावन द्वारा नामाङ्कित किसी एक प्रख्यात तिब्बती को नियुक्त करते हुये कु ल संख्या 12 कर दी। सदस्यों का कार्यकाल तीन साल से बढ़ाकर पाँच साल कर दिया गया। • नौवीं एटीपीडी (1987-1988) : पिछले एटीपीडी की तरह ही 9वीं एटीपीडी के सभी सदस्यों का नामाङ्कन भी परम पावन ने किया। हालाँकि 10वीं एटीपीडी के सदस्यों का चुनाव किया गया। • दसवीं एटीपीडी (1988-1990) : लोकतान्त्रिक सुधारों के परम पावन के लगातार सुझावों को देखते हुये कशाग ने 29-30 अगस्त, 1989 को एक दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें एटीपीडी, सीटीए, तमाम एनजीओ और तिब्बत से हाल में आये तिब्बतियों सहित 230 लोग शामिल हुये। चर्चा और फीडबैक के लिये तिब्बत के बाहर और भीतर से आये प्रतिनिधियों, दोनों के बीच पाँच बिन्दुओं वाला एक प्रपत्र वितरित किया गया।
सवाल इस प्रकार थे:
1. क्या मौजूदा सरकार की व्यवस्था में कोई प्रधानमन्त्री होना चाहिये? 2. मन्त्रियों का चुनाव करना चाहिये या उन्हें उसी तरह से नियुक्त करना चाहिये जैसा कि पहले परम पावन करते थे? 3. क्या सरकार के गठन के लिये कोई राजनीतिक दल प्रणाली शुरु करनी चाहिये? 4. क्या एटीपीडी सदस्यों की संख्या और उनकी ज़िम्मेदारी में कोई बदलाव करना चाहिये? 5. अन्य क्या लोकतान्त्रिक बदलाव किये जा सकते हैं? 11 मई, 1990 को एक विशेष जन कांग्रेस का आयोजन किया गया, जिसमें एटीपीडी के सदस्यों, सीटीए अधिकारी, पूर्व कालोन, एनजीओ और संस्थाओं के प्रतिनिधियों, धार्मिक सम्प्रदायों के प्रतिनिधियों और तिब्बत से हाल में आये तिब्बतियों सहित कु ल 369 लोग शामिल हुये। इसमें तिब्बती जनता से मिले ज़बर्दस्त सुझावों और फीडबैक पर चर्चा हुई। यह तय हुआ कि एटीपीडी के सदस्यों की नियुक्ति अब परम पावन के द्वारा नहीं की जायेगी, लेकिन उनके पास मन्त्रियों की नियुक्ति का अधिकार बना रहा। उसी दिन मौजूदा कशाग और एटीपीडी को भंग घोषित कर दिया गया। परम पावन ने कांग्रेस को निर्देश दिया कि एक अन्तरिम कशाग का चुनाव करें, जो नए चार्टर की घोषणा होने तक कार्य करे। एटीपीडी को तब तक के लिये भंग कर दिया गया, जब तक नए चार्टर को स्वीकार नहीं कर लिया जाता। 3
अन्तराल अवधि: (12 मई, 1990-28 मई, 1991)
परम पावन दलाई लामा ने निर्वासित तिब्बतियों के लिये एक लोकतान्त्रिक चार्टर का प्रारूप तैयार करने और साथ ही साथ भविष्य के तिब्बत के लिये मौजूद संविधान की समीक्षा के लिये एक संवैधानिक समीक्षा समिति नियुक्त की। चार्टर प्रारूपण समिति ने नई तिब्बती एवं गैर तिब्बती विशेषज्ञों और विद्वानों से परामर्श लिया और ऐसा दस्तावेज़ लेकर आई, जो उक्त निर्देशों को प्रदर्शित करता हो। प्रारूप चार्टर 1963 से संविधान, वर्ष 1987 के पाँच सूत्रीय शान्ति योजना, वर्ष 1988 में 10वें एटीपीडी को उनके सम्बोधन, वर्ष 1989 की 16वीं आमसभा और 11 मई, 1990 के विशेष जन कांग्रेस सम्बोधन पर आधारित था। इस बीच परम पावन ने यह भी सुझाव दिया कि एटीपीडी के सदस्यों की संख्या में विस्तार किया जाये, कालोन का चुनाव हो, महिलाओं को ज्यादा प्रतिनिधित्व दिया जाये और प्रतिनिधियों के दो सदनों के गठन पर विचार किया जाये। • 11वीं एटीपीडी (1991-1996) : एसेंबली ने 14 जून, 1991 को निर्वासित तिब्बतियों का चार्टर स्वीकार किया। एसेंबली को दो-तिहाई बहुमत के द्वारा कशाग, सर्वोच्च न्याय आयुक्तों और तीन स्वतन्त्र निकायों-ऑडिट, लोक सेवा आयोग और चुनाव आयोग के प्रमुख पर अभियोग चलाने का अधिकार दिया गया, यहाँ तक कि विशेष परिस्थितियों में खुद परम पावन पर अभियोग चलाने का अधिकार दिया गया, लेकिन इसके लिये तीन-चैथाई बहुमत की शर्त रखी गई। • 12वीं एटीपीडी (1996-2001) : परम पावन की सलाह पर एसेंबली ने चार्टर में संशोधन किया ताकि निर्वासित तिब्बतियों द्वारा कालोन ट्रिपा (सर्वोच्च कार्यकारी प्राधिकारी) का चुनाव किया जा सके और कालोन ट्रिपा अपने मन्त्रिमण्डलीय सहयोगियों के चुनाव के लिये नामाङ्कन कर सकें । यह तिब्बती राजव्यवस्था में लोकतान्त्रिक सुधार की दिशा में एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। • 13वीं एटीपीडी (2001-2006) : तिब्बतियों को पहली बार सीधे निर्वासित कालोन ट्रिपा मिले। • 14वीं टीपीआइई (2006-2011) : परम पावन ने सदस्यों के नामाङ्कन का दस्तूर बन्द कर दिया, जिसके बाद टीपीआइई के सदस्यों की संख्या घटकर 43 रह गई थी। एसेंबली ने औपचारिक रूप से अपना नाम बदलकर ‘तिब्बती जन प्रतिनिधि सभा’ (एटीपीडी) की जगह निर्वासित तिब्बती संसद (टीपीआइई) रख लिया और चेयरमैन पद का नाम स्पीकर तथा वाइस चेयरमैन का नाम डिप्टी स्पीकर कर दिया गया। इसके बाद संसद ने ‘निर्वासित तिब्बती सरकार’ को बदलकर ‘के न्द्रीय तिब्बती प्रशासन’ करने को मंज़ूरी दी और आधिकारिक प्रतीक चिह्न के नारे ‘गादेन फोड् रांग चोगले नामग्याल’ की जगह ‘देनपा ञिद नामपार ग्यालग्युर चिग’ (सत्यमेव जयते अर्थात् सत्य की ही विजय होती है) कर दिया गया। परम पावन ने अपना समूचा राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकार त्याग कर चुने हुये तिब्बती नेतृत्व को सौंप दिया और उसके मुताबिक चार्टर में संशोधन किया गया। • 15वीं टीपीआइई (2011-2016) : सदस्यों की संख्या को बढ़ाकर उत्तर अमेरिका में रहने वाले तिब्बतियों के लिये एक अतिरिक्त सीट के साथ 44 कर दिया गया। संसद ने चार्टर में संशोधन करते हुये 20 सितम्बर, 2012 को कालोन ट्रिपा के आधिकारिक पद नाम को बदलकर सिक्योङ (राजनीतिक प्रमुख) कर दिया। एशिया और ऑस्ट्रेलिया (भारत, नेपाल तथा भूटान के अलावा) के तिब्बतियों के लिये एक नई सीट आवंटित की गई। • 16वीं टीपीआइई (2016) : मौजूदा संसद में 45 सदस्य हैं। 4
निर्वासित तिब्बती संसद का कार्य
• सिक्योङ द्वारा नामाङ्कित कालोन को मंजूरी देना और ज़रूरत पड़ने पर सिक्योङ या किसी कालोन (मन्त्री) के खिलाफ अभियोग चलाना। • कशाग और उसके प्रशासन के निर्णय की संसद द्वारा अपनाई गई नीतियों और कार्यक्रमों के सम्बन्ध में जाँच करना। • सर्वोच्च न्याय आयुक्तों और तीन स्वायत्त निकायों के प्रमुखों के खिलाफ अभियोग चलाना। • क़ानून, नियम एवं विनियम बनाना और नीतिगत मसलों पर निर्णय लेना (अब तक टीपीआइई ने 27 क़ानून, नियम और विनियम लागू किये हैं और निर्वासित तिब्बती चार्टर में 34 संशोधन किये हैं)। • के न्द्रीय तिब्बती प्रशासन के खर्चों सहित सभी वित्तीय मामलों पर नियन्त्रण और निगरानी। • दुनिया भर की सरकारों, संसदों, स्वयंसेवी संस्थाओं और एनजीओ से सम्पर्क बनाना ताकि तिब्बत आन्दोलन के लिये समर्थन हासिल किया जा सके । • सभी प्रमुख तिब्बती बस्तियों में स्थानीय तिब्बती एसेंबली के कामकाज को सुचारु और मजबूत करना। • तिब्बती स्वतन्त्रता आन्दोलन और उसकी उप समितियों के कार्य का निरीक्षण करना। • राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय महत्व तथा स्थानीय एवं व्यक्तिगत महत्व के विषयों पर बहस करना। • समय समय पर तिब्बती बस्तियों का दौरा करना और प्रशासन का मूल्याङ्कन करना तथा आम जनता की शिकायतों का समाधान करना। • तिब्बत के भीतर और बाहर रहने वाले तिब्बतियों से सम्पर्क बनाये रखते हुये उनकी आकांक्षाओं और समस्याओं पर नज़र रखना। • पार्टी विहीन लोकतान्त्रिक व्यवस्था में विपक्षी दल और सत्ता पक्ष दोनों की भूमिका निभाना।
निर्वासित तिब्बती संसद का दैनिक कामकाज - -
प्रश्नकाल ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के लिये आमन्त्रण 5
- कालोन और सदस्यों के बयान - विधान पारित करना - अनुदान-सहायता पर मतदान, वित्तीय नियन्त्रण - विभिन्न तरह के बजट की प्रक्रिया और - प्रस्तावों या बयानों पर बहस संसद के कामकाज को तैयार करने और उसे सुचारु रूप से चलाने के उद्देश्य से सदस्यों को उनकी विशेषज्ञता के हिसाब से विभिन्न समितियों में विभाजित किया गया है ताकि वे संसद की तरफ से ब्यौरेवार कार्य अपने हाथ में ले सकें ।
संसदीय समितियाँ
- स्थायी समिति - कारोबार परामर्श समिति - शिक्षा समिति - स्वास्थ्य समिति - मानवाधिकार एवं पर्यावरण समिति - लोकलेखा समिति - धार्मिक एवं सांस्कृ तिक गतिविधियों पर समिति - समाज कल्याण एवं बस्तियों पर समिति - विधेयकों की चयन समिति - बजट अनुमान समिति और - अन्य विशेष मसलों पर चुनिंदा समिति
तिब्बत पर सांसदों के वैश्विक सम्मेलन (डब्ल्यूपीसीटी)
टीपीआइई तिब्बत मसले पर समन्वित सहयोग हासिल करने के लिये लोकतान्त्रिक देशों के सांसदों के साथ सक्रियता से सम्पर्क बनाये हुये हैं। इस सम्बन्ध में कई बड़े आयोजनों में से एक था, तिब्बत पर सांसदों के वैश्विक सम्मेलन (डब्ल्यूपीसीटी) की श्रृंखला का आयोजित करना। • पहला डब्ल्यूपीसीटी 18 से 20 मार्च, 1994 को नई दिल्ली में आयोजत किया गया। • दूसरे डब्ल्यूपीसीटी का आयोजन 26 से 28 मार्च, 1995 को लिथुआनिया के विलनियस में हुआ। • तीसरे डब्ल्यूपीसीटी का आयोजन 23-24 अप्रैल, 1997 को वाशिंगटन डीसी, अमेरिका में हुआ। • चौथे डब्ल्यूपीसीटी का आयोजन 18-19 नवम्बर, 2005 को एडिनबर्ग, स्कॉटलैंड में हुआ। • पाँचवें डब्ल्यूपीसीटी का आयोजन 18-19 नवम्बर, 2009 को इटली के शहर रोम में हुआ। • छठे डब्ल्यूपीसीटी का आयोजन 27-29 अप्रैल, 2012 को के नाडा के शहर ओटावा में हुआ। • और सातवें डब्ल्यूपीसीटी का आयोजन 07-10 मई, 2019 को लत्विय के शहर रिगा में हुआ। इस सातवें सभा का मुख्य उद्देश्य तिब्बत पर अन्तर्राष्ट्रीय सांसदों का समर्थन पाने और तिब्बत-चीन के बीच शान्तिवार्ता द्वारा तिब्बत मसले पर न्याय हो इसकी उपाय निकालना है, इस प्रकार सातवीं सभा रिगा में सभी को अह्वान तथा योजना को अमल में लेने आदि कु छ प्रस्तावों को रखा गया। 6
संसदीय सचिवालय
संसदीय सचिवालय के प्रमुख एक महासचिव होते हैं, जो खुद स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के मागर्दर्शन से अपने कार्य करते हैं। सचिवालय की ज़िम्मेदारी संसदीय प्रक्रिया और दस्तूर तैयार करने, संसद की औपचारिक कार्यवाही की रिकॉर्डिंग, प्रतिलिपि तैयार करने और प्रिंट एवं वेब मीडिया में उसके वितरण की व्यवस्था करने की होती है। इसके पास एक पुस्तकालय भी है जो कि अनुसन्धान और सन्दर्भ के लिये इस्तेमाल होता है। सचिवालय के तीन खण्ड हैं: प्रशासनिक, सम्पादकीय-अनुवाद एवं प्रकाशन और वेबसाइट एवं मीडिया। व्यक्तिगत सचिव के अनुभाग आदि है।
टीपीआइई अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के साथ संसदीय सचिवालय के कर्मचारीगण।
सम्पर्क :
महासचिव, निर्वासित तिब्बती संसद/सीटीए गङचेन किशोङ, धर्मशाला- 176215, जिला काँगड़ा, हिमाचल प्रदेश, भारत दूरभाष : +91-1892222481 फै क्स : +91-18922224593 ई मेल
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