VIVEKANAND KENDR KI STHAPANA KA EITIHASIK PUNARAVALOKAN

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Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies, Online ISSN 2278 8808, SJIF 2021 = 7.380, www.srjis.com PEER REVIEWED & REFEREED JOURNAL, JULY AUGUST, 2022, VOL 10/72 Copyright © 2022, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies वििेकानन्दकेन्द्रकीस्थापनाकाऐविहाविकपुनरािलोकन अतुलकुमार1 &भरतकुमारपंडा2 , Ph. D. 1पीएच.डी.शोधार्थी 2सहायकप्राध्यापक ,शशक्षाशिभाग ,महात्मागाधीअतरराष्ट् र ीय ,शहांदीशिश्वशिद्यालय,िधाा, महाराष्ट् र 442001 Paper Received On: 25 AUGUST 2022 Peer Reviewed On: 31 AUGUST 2022 Published On: 01 SEPTEMBER 2022 स्वामीवििेकानन्दनेअपनेजीिनके अत्यंतअल्पसमयमेंहीसारेविश्वकोजोराहविखाईसंभितः कोईअन्यकईसौिर्षोंतकजीवितरहकरभीनकरपाता।उनकेकममयोगकासंिेशकममकोईश्वरकेरूपमें िेखनेकीप्रेरणािेताहै।उनकाकहनाथावकआधुवनककालमेंभारतकाजोपतनहुआहैिहधममकीअज्ञानता के कारणहुआहै।इसवलएजीिनमेंधममकीअज्ञानताकोिूरकरनामनुष्यकापरमलक्ष्यहोनाचावहए।इस अज्ञानताकोिूरकरनेकेवलएहमेंसहीमागमिशमकवशक्षाकीआिश्यकताहै।जोप्रत्येकभ्ांवतयोंकोिूरकर यथाथमकाज्ञानकराये।इसीकारणसेउन्ोंनेवशक्षाकीराष्ट् र केन्द्रीयताके आह्वाहनके साथराष्ट्केयुिािगम उविष्ठतजाग्रतप्राप्यिराविबोधतकेसाथराष्ट् र ीयचररत्रकेवनमामणकेवलयेप्रेररतवकया।स्वामीजीकेइनविचारों सेप्रेररतहोकरएकनाथजीनेसिमप्रथमवििेकानन्दवशलास्मारक , कन्याकुमारीकोप्रवतवष्ठतकराया।उसके पश्चात्स्वामीजीके विचारोंकोमूतमरूपिेनेके वलएवििेकानन्दकेंद्रकीस्थापनाकी।ितममानसमयमें वििेकानन्दकेंद्रभारतके 24 राज्ोंऔर2 केन्द्रशावसतप्रिेशोंमेंविवभिकायमक्रमोंजैसेवशक्षा , स्वास्थ्य , ग्रामीण एिंजनजातीयकल्याणकेकायमक्रमप्रकाशन , सामावजकएिंसांस्कृवतकविकाससम्बन्धीकायोंकेद्वाराविकास के वनतनएप्रवतमानस्थावपतकररहाहैतथास्वामीवििेकानन्दजीके कल्पनाओंकोमूतमरूपिेरहाहै।इस लेखके माध्यमसेशोधाथीनेवििेकानन्दकेंद्रकीस्थापनाकाइवतहास , उद्देश्यएिंपररयोजनाओंकोसभीके सम्मुखप्रस्तुतकरनेकाप्रयासवकयाहै। मुख्यशब्द:एकनार्थरानडेजी,शििेकानन्दशशलास्मारक,शििेकानन्दकेंद्र। Scholarly Research Journal's is licensed Based on a work at www.srjis.com प्रस्तािना: हमारा िेश सामावजक जीिन के सभी क्षेत्रों में अग्रणी रहा है, वकंतु कई आक्रमणों एिं वििेशी साम्राज् से संघर्षम ने हमारी वशक्षा पद्धवत एिं मानवसकता को प्रभावित कर विया है। उसके बाि अंग्रेजों ने हमारी वशक्षा को प्रभावित कर हमें मानवसक रूप से पंगु बनाकर हमारे ऊपर लगभग 200 Abstract
अतुलकुमार& डॉभरतकुमारपांडा (Pg. 17448 17455) 17449 Copyright © 2022, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies िर्षोंतकशासनकरने काप्रयत्नकरते रहे। “तथावपउसीसमयकीअंग्रेजीवशक्षाप्रणालीितममानसमय मेंहमारीमागमिशमकबनीहुईहैजबवकउससमयकीअंग्रेजीवशक्षाकाउद्देश्यविविशराज्कोभारत मेंस्थायीएिंशक्तिशालीबनाना , पाश्चात्यसंस्कृवतसावहत्यकाप्रचारप्रसारकरना , बाबूिगमकावनमामण करनाएिंवनस्यन्दनवसद्धांतद्वाराकुछभारतीयलोगोंकोअंग्रेजीपढाकरउन्ेंअंग्रेजीकेप्रवतवनष्ठािान बनानातथाशेर्षकोइससेिंवचतरखनाथा।” (विश्र, 2011)।वजसकापररणामयहहुआकीस्वतंत्रताके बाि भी भारतीय वशक्षा का भारतीयकरण नहीं हो पाया। स्वामी वििेकानन्द ने अपनी पुस्तक ‘आिर एजुकेशन’ वलखा है वक, “वशक्षाकीसंपूणमप्रणालीभारतीयसंस्कृवतऔरपरंपरासेपूणमतयाविलगहै। जबवकिहिेशजीिंतनहींकहाजासकताहैवजसिेशकेबच्चेअपनीसंस्कृवतकीजानकारीनरखते होएिंउसपरगिमनकरतेहो।जबहमेंअपनीसंस्कृवतकाज्ञानहीनहींहैतोहमगिमवकसपर करेंगे।” (विश्र, 2011)। वजसके संिभम में स्वामी जी यह चाहते थे वक “यविहमारेिेशकीसभीधावममक भािनाओंकोजनवहतके कायोंमेंपररिवतमतकरवियाजाएतथािेशकेसम्पूणमधावममकआिेशको राष्ट् रीयपुनवनममामणमेंबिलवियाजाए , तोयहवकतनीविशालशक्तिहोगी ! यहएकबहुतबडीयोजनाहै , बहुतबडीपररकल्पनाहै” (विडे एिं परांजपे, 2015)। स्वामी जी के इन्ींविचारोंसे अवभप्रेररत होकर एकनाथरानडे जीने 7 जनिरीसन् 1972 मेंवििेकानन्दकेंद्र, कन्याकुमारीकीस्थापनाकी।यहसंस्थान मुख्यतः भारत के पूिी राज् अरुणाचल प्रिेश, असम, नागालैंड, अंडमान वनकोबार द्वीप समूह आवि जगहोंपर आिासीय ि सामान्य विद्यालय स्थावपत कर स्वामी वििेकानन्द जी के कल्पनाओं को साकार कर रहा है। यह संस्थान केिल वशक्षा के वलए ही कायम नहीं करता बक्ति िेश के आवथमक और सामावजक क्तस्थवत में प्रगवत लाने के उद्देश्य से पोर्षक बालिावडया, युिा प्रेरणा वशविर, ग्रामीण पुस्तकालय, वचवकत्सा सेिा, सांस्कृवतक िगम, वनयवमत योग प्रवशक्षण वशविर और आध्याक्तिक साधना वशविर का भी आयोजन करता है। वजससे िेश का सिोतोन्मुखी विकास हो। भारत सरकार की ओर से वििेकानन्द केन्द्र को वशक्षा एिं ग्रामीण विकास में उत्कृष्ट् योगिान के वलये 16 जनिरी 2019 को िर्षम 2015 का गांधी शांवत पुरस्कार विया गया। केन्द्र को पुरस्कार रावश के रूप में 1 करोड रूपये वमला, वजसे केन्द्र ने पुलिामा हमले में शहीि हुये जिानों के पररिारों को िान में िेने की घोर्षणा की (स्रोि :khabar.ndtv.com)। वििेकानन्द केंद्र की स्थापना: कन्याकुमारी में बना वििेकानन्द वशला स्मारक भारतीय स्थापत्य कला कीसुंिरता, पवित्रताके साथ साथपूरे राष्ट्कीमहत्वाकांक्षाओंएिं एकताकाअवद्वतीयप्रतीकहै क्ोंवक पूरे राष्ट् ने इसके वनमामण की इच्छा व्यि की तथा उसके वलए काम करके अपना योगिान विया। यह एक ऐसा स्मारक है, वजसकी मूल कल्पना राष्ट्ीय स्वयंसेिक संघ के स्वयंसेिकों ने की थी, वजसे रामकृष्णवमशनकाआशीिामिवमला।सभीआध्याक्तिक, सांस्कृवतकऔरराष्ट्ीय संस्थाओंने इसे अपना
अतुलकुमार& डॉभरतकुमारपांडा (Pg. 17448 17455) 17450 Copyright © 2022, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies पूरा समथमन विया था। सभी राज् सरकारों तथा केंद्र सरकार ने आवथमक सहायता िी थी वजस तरह कन्याकुमारी, तीन समुद्रों के वमलन का स्थान है, उसी तरह से यह स्मारक भी एक केंद्र वबंिु है। वििेकानन्द वशला स्मारक का वनमामण कायम जैसे जैसे आगे बढ रहा था िैसे िैसे एकनाथ जी के मन एिं मक्तस्तष्क में यह विचार चल रहा था वक की क्ा केिल स्वामी जी की मूवतम की स्थापना के वलये उनका जन्म हुआ है तथा क्ा यह केिल मूवतम स्थापना से ही स्वामी जी के विचारोंसे समस्त विश्व को पररवचत कराया जा सकता है? नहीं वबिुल नहीं हमें स्वामीजी के विचारों को साकार करने के वलये जीिन्त व्यक्तियों के समूह की जो त्याग, तपस्या के वलये तैयार हो तथा उनके अन्दर राष्ट् के वलये कुछ कर गुजरने कीचाहतहोऔरवजनके अन्दरराष्ट्से प्रेमहो, वकआिश्यकताहोगीतबएकनाथजीके मनमें वशला स्मारक के वनमामण के समय से ही वििेकानन्द केंद्र की स्थापना का विचार आ गया था। “वकस प्रकारइसप्रकल्पकेबारेमेंविचारविमशमप्रारंभहुआऔरवकसप्रकारप्रथमचरणमेंहीवद्वतीयचरण के बीजबोविएगएथेजबहमस्मारकयोजनाप्रथमचरणकोकायामक्तितकररहेथेतबवििेकानन्द केंद्रकीस्थापनाकेविचारनेजडपकडलीथी” (व्याि,2012)। वििेकानन्द विला स्मारक: स्वामी वििेकानन्द जी का जन्म 12 जनिरी सन् 1863 को हुआ था। सन् 1962 मेंस्वामीवििेकानन्दजीके जन्मके 100 िर्षम पूराहोने के उपलक्ष्यमेंरामकृष्णवमशनद्वारास्वामी जी के एक सौिें जन्मवििस से एक सौ एकिें जन्म वििस तक की समूची अिवध को अक्तखल भारतीय स्तर पर शताब्दी िर्षम के रूप में मनाने की योजना बनायी। अतः स्वामी जी के विए गए जीिनोपयोगी उपिेशों और उनकी जीिनी के बारे में अनेक जगहों पर अनेक कायमक्रम आयोवजत वकए गए, जब संपूणम भारतिर्षम में स्वामी वििेकानन्द जी का जन्म शताब्दी िर्षम मनाया जा रहा था उसी समय कन्याकुमारी के वनिावसयोंने सोचा वक जो श्रीपाि् वशला है जहां पर िेिी पािमती ने भगिान वशि को िर रूप में प्राप्त करने के वलए िावहने पांि पर खडी होकर ध्यान और तपस्या की थी। इसी वशला पर बैठकर स्वामी वििेकानन्द जी ने 25, 26 और 27 विसंबर 1892 तीन विन ि तीन रात ध्यान वकया था, वचंतन मनन वकया था और उन्ें भविष्य के वलए मागमिशमन वमला तथा यहींपर स्वामी जी को उनके गुरु श्रीरामकृष्णपरमहंसने िशमनविया।इसवलएसभीव्यक्तियोंकीयहीइच्छाथीवकिहां परएकस्मारक बनना चावहए। िे परस्पर वमले और उन्ोंने अपना विचार प्रकि वकया वक “हमइसस्मारककोबनाए औरपैिलचलनेिालेव्यक्तियोंके वलएएकपुल भीबनाए तावकलोगवशलातक जा सके” (व्याि,2012)। उसी समयान्तर पर रामकृष्ण वमशन के प्रमुख स्वामी सत्त्वानंि एक जनसभा आयोवजत कर रहे थे। उस समय उनके भी मन में कन्याकुमारी के लोगोंकी तरह िहां पर स्मारक बनाने की बात मन में आयी थी। इस प्रकार एक ही समय में एक समान विचार मद्रास और कन्याकुमारी के लोगों के मन में प्रविष्ट् हुयी। तिुपरांत कन्याकुमारी सवमवत और मद्रास के लोग संगवठत हुए और योजना बनाना
अतुलकुमार& डॉभरतकुमारपांडा (Pg. 17448 17455) 17451 Copyright © 2022, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies प्रारंभवकया।योजनाकीजानकारीिहां के अन्यसमुिायके लोगोंकोहुयी।वजसके उपरान्तसवमवतके सिस्योंऔरउनसे झगडे कीनौबतआगयी।तबसवमवतके सिस्योंने सोचावकसमस्यातोकोईअलग ही मोड ले रहा है और उन्ें इस कायम हेतु अक्तखलभारतीय सवमवतका वनमामण करना चावहए। इस विशा में प्रयत्न होने लगा वकिह सवमवत अक्तखलभारतीयसवमवतमें पररिवतमत होनी चावहए।उसके बाि केरल के श्री मिाथ पद्मनाभन् जीको अध्यक्ष चुना गयाऔरिेश के कई महत्वपूणम व्यक्तियोंसे संपकम स्थावपत वकया, और निम्बर 1962 को सवमवत का वनमामण हुआ। वजसकासन् 1963 में पंजीकरण हुआ। इसके बाि सरकार की आज्ञा से 17 जनिरी 1963 को वशला पर एक वशलालेख प्रवतस्थावपत वकया गया। वजसके बाििहां बडासमारोह, शोभायात्राऔरजनसभाआयोवजतकीगई। उसी सभामें कुछ लोगोंने कहा वक इस प्रकार का वशलालेख पयामप्त नहींहोगा िहां तो मूवतम की स्थापना होनी चावहए। वशलालेख स्थावपतहोने के कुछसमयपश्चात् द्वेर्षकीभािनासे कुछस्थानीयसमूहके व्यक्तियोंने यहवनश्चयवकया वकउसवशलालेखकोभीहिानाचावहए। “एकविनजबसुबहसमुद्रमेंतूफानथाऔरनौकायेंपानीपर नहींचलसकतीथी , तबउन्ोंनेवशलालेखकोतोडडालाऔरसमुद्रमेंफेंकवियावजसकाअभीतक पतानहींलगसकाहै।उसके कारणबडाकोलाहलहुआ , आंिोलनहुआ , जुलूसवनकालेगएऔर अपनेसेबडेअवधकाररयोंकोभीतारभेजेगये” (व्याि,2012)। एकनाथ रानडे जी उस समयराष्ट्ीयस्वयंसेिक संघ के सरकायमिाहकथे। उि घिनाक्रम तक िे सवमवत से नहीं जुडे थे। िे अपनी पुस्तक ‘कथा वििेकानन्द वशला स्मारक की’ में वलखते हैं वक, “राष्ट् र ीयस्वयंसेिकसंघकासरकायमिाहकहोनेके नातेिेशके चारोंओरयात्रावकयाकरताथा।उस समयमैंकन्याकुमारीभीआयाथाबसयहांतकहीमेरासंबंधथापरंतुउससमयमेराकोईसीधासंबंध सवमवतसेनहींथा” (व्याि,2012)। एकनाथ जी ने वििेकानन्द केंद्र का काम, पहले चरण अथामत् वििेकानन्द वशला स्मारक का कामपूराहोजाने के बािहाथमें वलयाहो, ऐसीबातनहींथी।जैसे जैसे ग्रेनाइिसे बने स्मारककाकाम प्रगवत कर रहा था, केंद्र की कल्पना लोगोंके हृिय में आकार लेती जा रही थी। एकनाथ जी के विचार स्वामी जी के विचारोंके अनुरूप ही थे उनका मानना था वक “आिश्यकताहैकेिलउनउपेवक्षतऔर परतंत्रलोगोंके प्रवतनैसवगमकजन्मजातआस्थाऔरआिीयतारखनेिालेसमवपमतकायमकतामओंकीि उनकेसुवनयोवजतसंगवठतप्रयत्नोंकी।वििेकानन्दस्मारकउसमहानउद्योगपिमकासूत्रपातमात्रहै। लेवकनइसस्मारकके वनमामणके अलािा , जोवनःसंिेहिहांस्वामीजीके िेिीरूपांतरणकापवित्र प्रतीकहोगा , समुवचतहोगावकहमारेिेशके उसिवक्षणीछोरसेऊपरकीओरराष्ट् र वनमामणकेवलए मूलभूतगवतविवधयााँतीव्रगवतसेचलाईजाएं, वजनकीअवभकल्पनाउसमहानिेशभििेििूतनेिेश केखोएहुएव्यक्तित्वकीपुनप्रामक्तप्तकेउद्देश्यसेतथािेशिावसयोंकीउिवतकेवलएकीथीऔरवजसके
अतुलकुमार& डॉभरतकुमारपांडा (Pg. 17448 17455) 17452 Copyright © 2022, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies वलएउसीक्षणसेउन्ोंनेअपनाजीिनभीसमवपमतवकयाथा।इसेप्राप्तकरनेकेवलएएकतरफध्येय प्रेररतसमवपमतव्यक्तियोंकोप्रवशवक्षतकरना , उन्ेंकायमकतामके रूपमेंढालनाििूसरीओरऐसे कायमकतामओंकेिलोंकोबडीसंख्यामेंकायमक्षेत्रमेंतैनातकरकेिेशिावसयोंकोवशक्षण , प्रकाशनऔर सेिाके माध्यमसेउनकेमहानध्येयऔरविरासतकेबारेमेंजागृतकरना , यहहमारीदृवष्ट्मेंमूलभूत कायमहै , वजनकेवलएस्वामीजीजीवितरहेऔरवतरोवहतभीहुए” (विड़े एिं परांजपे, 2015)। स्वामी वििेकानन्द के विचारों से अवभभूत एकनाथ जी का कहना था वक “वशलास्मारकतभीउपयोगीवसद्ध होगाजबस्वामीवििेकानन्दकेविचारलोगोंकेमनमेंतथाकमममेंरहेंगे।सहीअथोमेंवचरंतनस्मारक कास्थानतोजनसाधारणकाहृियहीहोताहैऔरयहतभीसंभिहोगा , जबएकिैसाहीविचारलेकर , एकजीिंतस्मारक , यानीएकसेिाभािीसंगठनकीस्थापनाहो” (विड़े एिं परांजपे, 2015)। इन उद्देश्यों को मूतम रूप िेने के वलए एकनाथ जी घूमने वफरने लगे और गैर सन्यासी सेिा संगठन और समवपमत कायमकतामओं के अक्तखल भारतीय प्रवशक्षण केंद्र की स्थापना के कायों का सूक्ष्मता से वनयोजन करने मेंजुिगए। “नौिर्षोंकेआधारभूतकायमकेबाि , 7 जनिरी1972 कोवििेकानन्दकेंद्रकीविवधित्स्थापना कीगई।उसविनस्वामीवििेकानन्दकी108 िींजयंतीथी।उसपवित्रविनपूिमवछवतजपरअपनी लावलमावबखेरतेहुएजैसेहीसूयोियहुआ , ओमअंवकतभगिाध्वजवििेकानन्दवशलास्मारककेप्रसि िातािरणके बीचआकाशमेंलहरानेलगाऔरइसीके साथस्थापनाहुईवििेकानन्दकेंद्रएक आध्याक्तिकसेिासंगठनकी।एकनाथजीकेमाध्यमसेस्वामीवििेकानन्दकािहभव्यस्वप्नसाकारहो रहाथा।राष्ट् र सेिामेंलीनएकगैरसन्यासीसंगठनकाजन्महुआथा” (विड़े एिंपरांजपे, 2015)। वििेकानन्द केंद्र के उद्देश्य : एकनाथ रानडे जी वनवध संकलन के िौरान ही महत्वपूणम व्यक्तियों से संपकम बनाकर सवमवत गठन के कायों तथा उद्देश्योंपर भी विचार मंथन कर रहे थे “स्मारकवनवममतीके कुछसमयबािहीस्मारकयोजनाके वद्वतीयचरणअथामत्गैरसन्यासी , वकंतुअध्यािप्रेररत , सेिा संगठनकीस्थापनाकाकायमवकयागया।‘वििेकानन्दकेंद्र ’ नामकायहसंगठनएकआंिोलनहैजो स्वामीवििेकानन्दके जीिनऔरव्यक्तित्वसेऊजामपाकरगवतमानहुआहै।इसआंिोलनकाउद्देश्य केंद्रकेमहासवचिश्रीएकनाथरानडेद्वारािेशकेविवभिशहरोंमेंजनसभाकोसंबोवधतकरतेहुएविये गयेव्याख्यानमेंसेस्पष्ट्वकएजासकतेहैं” (विड़े एिंपरांजपे, 2015)।जोवकवनम्नहै 1. हिारीराष्ट्ीयप्रकृवि: िुक्तिकीकािना: इस िेश को धमम और अध्याि की भूवम कहाजाता है। स्वामी वििेकानन्द कहा करते थे वक, “हमारेिेशकीआिाधममहै।इसिेशके लोगोंनेमुक्तिकोही सिोच्चपुरुर्षाथममानाहै।यहांतकवक , राज्शास्त्रसरीखेलौवककविर्षयोंसेसंबंवधतपरंपरागतग्रंथभी
अतुलकुमार& डॉभरतकुमारपांडा (Pg. 17448 17455) 17453 Copyright © 2022, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies अपनेप्राक्कथनमेंहीघोर्षणाकरिेतेहैंवकउनशास्त्रोंकाअंवतमलक्ष्यप्रत्येकमनुष्यकोउसी आध्याक्तिकलक्ष्यअथामत्मोक्षकीओरबढनेमेंसहायतािेनाहै” (विडे, 2012)। 2. राष्ट् को एकिा के िूत्र िें वपरोना: एकनाथ रानडे जी कहते थे वक, “वकसीविवशष्ट्नगरमेंयवि कोईस्वयंकोवसक्ख , आयमसमाजी , जैनयाबौद्धनामसेसंबोवधतकरताहैतोकोईबातनहीं , परन्तुिह सबिैविकहैं।सम्पूणमआप्तिचनिेिोंसेप्रिावहतहोताहै।उन्ोंनेवनिेशवियावकव्यक्तिगतझंडेकोई भीहोहमेंसभीलोगोंकोएकताकेसूत्रमेंबांधनाहोगातथाउन्ेंएकसूत्रमेंवपरोनाहोगा” (व्याि, 2012)। 3. िितिानपरस्परविरोधीक्तस्थविकोविटाना: “आजहमारेिेशमेंितममानसमयमेंलाखोंलोगोंके द्वारामंविरोंमेंिशमन , तीथमयात्रा , कीतमन , भजन , यज्ञ , अनुष्ठान , धावममकएिंआध्याक्तिकप्रिचनोंको सुननेतथािेशमेंबडीसंख्यामेंधममगुरुओंके उपिेशएिंसाधुसंतोंके अक्तस्तत्वकोयवििेखाजाए औरइसेहीधावममकअवभव्यक्तिकालक्षणमानाजाए , तबसंभित : हमारािेशअतीतके वकसीभी कालखंडकीअपेक्षाआजअवधकधावममककहलानेकाअवधकारीहैवकंतुिुभामग्यसेइसऊपरी इश्वरोन्मुखताकासामावजकजीिनपरअपेवक्षतस्वाभाविकपररणामकहींभीदृवष्ट्गोचरनहींहोरहाहै। उपलब्धप्रमाणोंके आधारपरहमकहसकतेहैंवकअतीतके कालमेंयहसभीलक्षणहमारेिेशमें पयामप्तमात्रामेंविद्यमानथे , वकंतुअबयहतेजीसेहमारेअंिरसेवतरोवहतहोतेजारहेहैं” (व्याि, 2012)।अतःकेंद्रके कायोंद्वाराहमेंइसपरस्परविरोधीक्तस्थवतकोवमिानाहोगासमाप्तकरनाहोगा। 4. िूल रोग: धित या आध्याक्तिकिा की विकृि धारणा: रानडे जी कहते थे वक “हमारेिेशकी आध्याक्तिकशक्तियांवबखरीपडीहै , इसकेवलएहमेंपैनेदृवष्ट्कोणकोअपनानाहोगावजससेहमइसे िेखसकें क्ोंवकगतकईशताक्तब्दयोंसेधममकीविकृतधारणाकाप्रचलनहीहमारीसमस्तव्यावधयों कामूलकारणरहाहैऔरहमआजभीउससेवचपकेहुएहैंवजसकेकारणआजसिमतोमुखीपतनका दृश्यउत्पिहुआहै” (विड़े, 2015)। 5. िुद्धधितिािके लक्षणकोजागृिकरना: “धावममकजागृवतकाअथमहै , अंतरािाएिंसम्पूणमविश्व मेंईश्वरकािशमनकरना।इससेमनुष्यआंतररकविव्यत्वके प्रवतजागरूकहोनेलगताहैऔर आध्याक्तिकविकासकेवलएकायमकरनेकीप्रेरणाउसमेंजगनेलगतीहै।फलस्वरूपिहसमस्तमानि जावतकेप्रवतबंधुत्वकीभािनासेओतप्रोतहोउठताहैऔरमानिकल्याणतथाप्रगवतकेवलएकायम करनेकीलगन , उसमेंउत्पिहोजातीहै।अतःहमेंकेंद्रकेद्वारालोगोंमेंशुद्धधममभािकेलक्षणको जागृतकरनाहोगातथाउससेराष्ट् र कापुनवनममामणकरनाहोगा” (विड़े एिंपरांजपे, 2015)। 6. स्वािीजीकाआह्वाहन: उिप्रिु कीपूजाकरोजोहिारे चारोंओरदेखरहे हैं: मानि सेिा ही ईश्वर पूजा है। ईश्वर की पूजा करने का िास्तविक अथम यह है वक “वजसकोआपचारोंओरिेखतेहैं
अतुलकुमार& डॉभरतकुमारपांडा (Pg. 17448 17455) 17454 Copyright © 2022, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies उनकीसेिाएिंभलाईकाकायमकरना।ईश्वरकहींस्वगममेंबैठाहुआनहींहैबक्तििहहमारेचारोंओर जगतमेंअवभव्याप्तहै।हमेंप्रत्येकव्यक्तिमेंईश्वरकोिेखनेमेंसक्षमहोनाचावहए।इसवलएयवि आपकालक्ष्यईश्वरकीपूजाहैतोआपकोउसकेसंसारकीपूजाकरनीहोगी(व्याि, 2012)।तभी हम अन्यसबिेिताओंकीउपासनाके अवधकारीभीबनसकेंगे।हमें अपने केंद्रके कायमकतामओंके माध्यम से लोगोंके अंिरइसअनुभूवतकोजगानाहोगा, लानाहोगा। वनष्कर्त: एकनाथजी जब कलकिा के रामकृष्ण वमशन में रहकर स्वामी जी के ग्रंथों का अध्ययन कर रहे थे तभी से उनके मन में स्वामी जी के विचारों को साथमक रूप िेने के वलए वकसी न वकसी रूप में कायम करने की योजना उनके मक्तस्तष्क में चल रही थी। ईश्वर एिं स्वामी जी के आशीिामि से उन्ें वििेकानंि वशला स्मारक, कन्याकुमारी से जुडने का अिसर प्राप्त हुआ जहां सिमप्रथम उन्ोंने वशला स्मारक के वनमामण के साथ साथ वििेकानंि केंद्र की भी स्थापना की। वजसमें उनका मुख्य ध्येय ही था वक लोगोंके अंिर धमम का जो अज्ञान है उसे समाप्त वकया जाए। जैसा वक स्वामी जी के विचारोंमें सिा हीपररलवक्षतहोतारहाथा।स्वामीजीने यहभीपायावकलोगोंमें धमम के प्रवतअज्ञानतािवपछडेपनका सिमप्रमुख कारण वशक्षा है। इसवलये स्वामी वििेकानंि जी ने एक ऐसे राष्ट् की कल्पना की जहां सभी मनुष्य वशवक्षत, सभ्य एिं सुसंस्कृत हों इसके साथ साथ समाज में वकसी भी प्रकार काभेिभाि न हो। ऐसे समाज की संकल्पना केिल वशक्षा द्वारा ही पूरी हो सकती है जहां सभी प्रकार की वशक्षा और अभ्यास का उद्देश्य मनुष्य वनमामण हो। इसे प्राप्त करने के वलए मनुष्य को मनुष्य के साथ जोडना होगा, वमलानाहोगा।इसके वलएस्वयं भारतकीजनताकोआगे आनाहोगा।आगे आने कायहिावयत्वस्वामी जी ने वशवक्षत जन समुिाय को सौंपा। एकनाथ जी ने इस विशा में भी कायम करने के वलए तथा िेश से अज्ञानताकोवमिाने के वलएउन्ोंने वििेकानंिकेंद्रविद्यालयोंकीश्रृंखलाशुरूकीआजवििेकानंिकें द्र भारतके उिरपूिीक्षेत्रोंमें विद्यालयकासफलसंचालनकररहाहै औरविश्वविख्यातहोरहाहै। “भारतकोजगि्गुरुबनानेकेवलएतपश्चयामकीपरंपराकोअपनाकर , वििेकानन्दकेंद्रमेंआने िालेयुिाकायमकतामस्वामीवििेकानन्दकासंिेशजनजनतकपहुंचानेकेवलएकविबद्धरहेंगे।वसंहके पौरुर्षसेयुि , परमािाके प्रवतअिूिवनष्ठासेसंपिऔरपावित्र्यकीभािनासेउविप्तसहस्त्रोंनर नारी , िररद्रोंएिंउपेवक्षतोंके प्रवतहाविमकसहानुभूवतलेकरिेशकेएककोनेसेिूसरेकोनेतकभ्मण करतेहुएमुक्तिका , सामावजकपुनरुत्थानका , सहयोगऔरसमताकासंिेशिेंगे”(विड़े एिं परांजपे, 2015)।एकनाथजीके माध्यमसे स्वामीवििेकानन्दकािहभव्यस्वप्नसाकारहोरहाहै।

https://www.jagranjosh.com/current affairs/govt announces winners of gandhi peace prize for 2015 2018 in hindi 1547703105 2

https://khabar.ndtv.com/news/india/vivekananda center gave one crore rupees of gandhi shanti puraskar to families of pulwama martyrs 1999604

अतुलकुमार& डॉभरतकुमारपांडा (Pg. 17448 17455) 17455 Copyright © 2022, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies िन्दितग्रन्थिूची शभड़े , एन , आर औरपराांजपे , एस . (2015). एकनार्थजी : शििेकानन्दकेंद्रशहन्दीप्रकाशनशिभाग , योगक्षेमगीता भिन , जोधपुर , राजस्र्थान व्यास , एम पी . (2012). कर्थाशििेकानन्दशशलास्मारककी : शििेकानन्दकेंद्रशहन्दीप्रकाशनशिभाग , योगक्षेम गीताभिन , जोधपुर , राजस्र्थान लाल , आरबी . (2011). शशक्षाकेदाशाशनकएिांसमाजशास्त्रीयशसद्ाांत: रस्तोगीपब्लिकेशांस , मेरठ , शदल्ली अहूजा , आर . (2016). सामाशजकसमस्याएां, राितपब्लिकेशनस: सत्यमअपार्ामेंर््स , सेक्टर3 जिाहरनगर , जयपुर शमश्र , डॉएसएस . (2011). स्वामीशििेकानन्द : शशक्षादशान: शारदापुस्तकभिनपब्लिशसाएण्डशडस्ट्रीब्यूर्सा यूशनिशसार्ीरोड , प्रयागराज

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