VAISHNAV NATYA PARAMPARA KI PRUSHTHABHUMI ME ANKIYA NAT

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Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies, Online ISSN 2278 8808, SJIF 2021 = 7.380, www.srjis.com PEER REVIEWED & REFEREED JOURNAL, MAY JUNE, 2022, VOL 10/71 Copyright © 2022, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies वैष्णवनाट्यपरम्पराकीपृष्ठभूमििेंअंमकयानाट सुप्रीतमिश्र शोधार्थी ,प्रदशशनकारीकलाविभाग ,महात्मागााँधीअन्तराशष्ट्ीयवहिंदीविश्वविद्यालय,िधाश ,महाराष्ट्र Email:mishrasupreet@gmail.com Paper Received On: 22 JUNE 2022 Peer Reviewed On: 27 JUNE 2022 Published On: 28 JUNE 2022 Scholarly Research Journal's is licensed Based on a work at www.srjis.com 14िीिंशताब्दी के उत्तराधश में असम में श्रीमिंत शिंकरदेि द्वारा शुरू वकये गए िैष्णि आिंदोलन ने सामाविक सािंस्कृवतक पुनिाशगरण के युग की शुरुआत की| भारतीय इवतहास में भक्त्तत्त काल का महत्वपूणश स्र्थान रहा है। भक्त्तत्त काल को स्वणश युग माना िाता है। दविण भारत में शुरू हुआ भक्त्तत्त आिंदोलन, उत्तर भारत में व्यापक रूप से फैल गया। रामानिंद, कबीर, तुलसी, सूर,िल्लभाचायाश, गुरूनानक देि , सिंत नामदेि, चैतन्य महाप्रभु आवद हजारोिंसिंतोिंने भक्त्तत्त का प्रचार वकया | सिंत कबीर औररामानिंद से प्रभावितहोकरश्रीमिंतशिंकरदेिने िैष्णिपिंतकोपूिोत्तरभारतमें पुक्त्ितिपल्लवित वकयाऔरउसे आगे बढाने काकामउनके वशष्यमाधिदेिएििं अन्यसिंतिैसे अनन्तकन्दली,दामोदर देि,नारायणदास ठाकुर, आताराम सरस्वती,रत्नाकर कन्दली, श्रीधर कन्दली, भट्टदेि, चन्दसाई, मर्थुरादासबुढाआवदने वकया।श्रीमिंतशिंकरदेिने असममें नवसफं िैष्णिधमश काप्रचारवकयाबक्त्ि असमके विभन्निन िावतयोिंकोएकसूत्रमें बािंधकरउसे पुनिीवितवकया। शिंकरदेि (1449 1568) का िन्म नगााँि विले के बटद्रिा(बारदोिााँ) गााँि में हुआ र्था। वपता का नाम कुसुिंबरभूञााँ औरमााँ कानामसत्यसिंध्यार्था।िन्मके तुरिंतबादमााँ कास्वगशिासहोगया।दूधपीतेबच्चे की देखभालउसकीदादीखेरसुतीने कीर्थी। ‘बमाने बटद्रिाऔ कमाने कुसुिंबरगृहे मातृ नामेसत्यसिंध्या उदरतिक्त्न्मला आमारश्रीमन्तशिंकरदेिहररऐ।’

सुप्रीतवमश्र (Pg. 17322 17330) 17323 Copyright © 2022, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies कुसुिंबर भूञााँ को कई साल तक सिंतान नहीिंहुई र्थी । भगिान शिंकर की आराधना से सुिंदर बालक का िन्महुआइसीवलएउसकानामशिंकरदेिपडा।अपने उम्रके बच्चोिंकीतरहशिंकरदेिभीनटखटर्थे । परिंतु दादीके समझाने परउन्ोिंने अध्ययनमें अपनामनलगाया।अपने वपताकीअकालमृत्यु परउसे अवत कम उम्र में पीढी से चली आ रही वशरोमवण भूञााँ का पद सिंभालना पडा। वकन्तु पत्नी की अकाल मृत्यु के बाद अपनी बेटी की शादी करके दामाद को शरोमवण पद को स िंपकर तीर्थश यात्रा पर वनकल पडे। बारह िर्श तक तीर्थश यात्रा सत्सिंग में रहें। भागित आधाररत भक्त्तत्त शुरू की और नाम कीतशन को अवधकमहत्ववदया।विष्णुकोअपनाआराध्यदेिबनावलया।औरयहीिंसेशिंकरदेिके माध्यमसेअसम में िैष्णिधमशकापदापशणहुआ।बसिण्णाकीतरहशिंकरदेिभीएकेश्वरिादपरविश्वासरखनेिालेर्थे। उनकाभक्त्तत्तमतभी ‘एकशरणीयाभागितीनामधमश’ कहलाया।विष्णु के परमभतत्तश्रीशिंकरदेिने असमराज्यमेंनि िैष्णिधमशकाप्रितशनवकया।वकसीभीसमािमेंनिीनभक्त्तत्तमागशकाप्रचारकरना इतनासहिनहीिंर्था।कामरूपकीतात्कावलकरािनीवतकअक्त्स्र्थरपररक्त्स्र्थवतयोिंने शैनऔरशाक्तएििं तािंवत्रकपूिाउपासनाओिंनेशिंकरदेिके द्वाराप्रवतपावदतनि िैष्णिधमशके प्रचार प्रसारमेंबाधाएाँ उत्पन्न की।उन्ें अनेकतरहकाकष्ट्उठानापडा।अतःउन्ें अपनीमातृ भूवमकोछोडकरउवडसातकतीर्थश यात्रामेंिानापडा।अिंतमेंकोचरािके आश्रयमेंउनके द्वाराप्रवतपावदतिैष्णिभक्त्तत्तकोमान्यतावमली। विविध िावतयोिं में बटा हुआ असवमया समाि के एक सूत्र में बााँधने का श्रय शिंकरदेि को वमलता है। असमकीिनताकोिोसरलभक्त्तत्तमागश शिंकरदेिने वदखायाउससे िहााँ कीिनतामें एकता, सिंप्रीवत औरसमन्वयकीभािनाउत्पन्नहुई।शिंकरदेिने भक्त्तत्तमागशके प्रचारके वलएलोकभार्ामेंहीसावहत्य कासृिनवकया। 1. काव्य हररश्चिंद्रउपाख्यान, रूक्त्िणीहरणकाव्य, बवलछलन, अमृतमिंर्थन, अिावमलउपाख्यान 2. भक्त्तितत्वप्रधान भक्त्तत्तप्रदीप, भक्त्तत्तरत्नाकर, वनवमनिवसद्धसिंिाद, अनावदपतन 3. अंमकयानाटक पत्नीप्रसाद, कावलयादमन, केलगोपाल, रूक्त्िणीहरण, पाररिातहरण, रामवििय 4. गीत बरगीत,भवटमा,टोटय,चपय 5. अनुवाद भागित, उत्तरकािंडरामायण

सुप्रीतवमश्र (Pg. 17322 17330) 17324 Copyright © 2022, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies 6. नाि कीततन कीतशन, गुणमाला ऊपरकी सभीकृवतयोिंकी रचनाओिंके द्वाराशिंकरदेि ने िैष्णिभक्त्तत्तकाप्रचारवकया।उन्ोिंने सरल सहिब्रिािलीभार्ाकाप्रयोगवकयािोअसवमयाकीबोलचालभार्ाऔरब्रिभार्ाकामेलर्था। शिंकरदेिके समयकालमें िैसे देखािाये तोवनगुशणभक्त्तत्तधाराकाहीमहत्वर्था। शिंकरदेिभीकबीर से काफीप्रभावितर्थे।परिंतु उनकामाननार्थावकवनगुशणब्रह्माकीउपलक्त्िसबके वलएआसाननहीिंहै। इसीवलएशिंकरदेिअपनेअनुयायीयोिंकोपहलेसगुणमागशमेंचलकरबादमेंवनगुशणब्रह्माकोप्राप्तकरने के वलए कहते र्थे। उनका मानना र्था वक भक्त्तत्त मागश इतना सरल मागश है वक उस पर चलकर साधारण मानिभीमुक्त्तत्तप्राप्तकरसकताहै। ‘ज्ञानकमशभकवतकवहलोिंकररभेद। भकवतपरमपिंर्थवदलोिंपररच्छेद।।’ भागित,एकादएस्किंध,1/2/11 सगुणसाकारदेिकीनन्दनकृष्णउनके आराध्यर्थे।िे सिंपूणश रूपसे भगिानकृष्णकीशरणमें आगए र्थे।उनकीभक्त्तत्तमेंभीहमकृष्णके प्रवतिात्सल्यएििं सिंख्यभािदेखसकते हैं । ‘सिशधमाशनपररत्यज्यमामेकशरणमब्रि’ गीता,18/66 शिंकरदेिने ‘कीतशनघोर्ा’ मेंब्रह्माके वनगुशणरूपकीउपासनापरबलअिश्यवदया,वकन्तुउनकामानना है वकधमश कीस्र्थापनाके वलएहीकृष्णकाअितारहुआर्था। ‘खक्त्िबाकलावगपृथ्वीरमहाभार। दैिकीरगभश आवसभैलाअितार।।’ शिंकरदेिकीतशनघोर्ाद्वारा प्रिवतशत ‘एकशरण नामधमश’ में िावत के नाम पर भेदभाि नहीिंवकया र्था।शिंकरदेि के मागशदशशननेपूिेत्तरके विवभन्निावतयोिंकोगठनकर ‘भकवतया’ (भक्त्तत्तमूलक) समािकावनमाशणवकया र्था। ‘वकरातकछाररखावचगारोवमरर यिनकिंकगोिाल। असममुलकधोिाये तुरक कुिाचम्लेचचािंडाल।।

सुप्रीतवमश्र (Pg. 17322 17330) 17325 Copyright © 2022, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies आनो,पापोनरकृष्णसेिकर सिंगतपवित्रहय भकवतलवभयासिंसारतरीा बैकुण्ठे सुखे चलाय।। शिंकरदेिभागित ने छुआछूत ,िणश भेद, बहुदेििाद और मूवतशपूिा का खिंडन वकया र्था। उनका मानना र्था वक बैकुण्ठकाद्वारहरमनुष्यके वलएखुलाहै।उनके द्वाराप्रवतपावदतएकेश्वरिादकामूलमिंत्रर्था ‘एकदेि,एकसेि,एकवबने नाइकेि। नावहभकवततिावत,नावहआचार विचार।।’ शिंकरदेि ने सदा कीवतश और धन को नश्वर माना है। िे अपने बरगीतोिं में सिंपवत्त, धन और िीिन की नश्वरताके बारे मेंकहाहै वक अवर्थरधनिनिीिनयिन अवर्थरएहुसिंसार। पुत्रपररिारसबवहअसार करबोकाहेररसार।। बसिण्णाके शरणमिंडपकीतरहशिंकरदेिने सत्रऔरनामघरकीस्र्थापनाकी।यहािं मिंवदरऔरमूवतश के बिायकीतशनऔरभागितग्रिंर्थकोरखनेकीव्यिस्र्थाहोतीर्थी।भगिानके गुणनामोिंकीप्रधानताके कारण कीतशन के वलए ‘नाम’ शब्द का भी प्रचलन हो िाने के कारण कीतशन घर का पयाशयिाची शब्द ‘नामघर’ बन गया। नामघर में कीतशन के अवतररक्त भगिान की लीला का अवभनय,भागित आवद ग्रिंर्थोिं का पाठ,अध्ययन अध्यापन, सामाविक सािंगठवनक विचार विमशश तर्था पिश उत्सि आवद होते र्थे।इस तरहकीतशनघरमेंहीदेिालय, वशिालय, पुस्तकालय, रिंगमिंचऔरसमािके वलएसािंगठवनककायश एििं घरमेंहीदेिालयकाकामभीचलतार्था।सत्रके गुरूहीइनसभीकामोिंकाकायशमुक्त्खयाबनकरकरते र्थे। इस तरह सत्र और नामघरोिंमें न वसफश ज्ञान,योग और भक्त्तत्त का प्रचार होता र्था बक्त्ि सामाविक विकासभीहोतार्था। शिंकरदेिकीविशेर्तायहहै वकिोबातिहकहनाचाहते र्थे उसे कलाके माध्यममें कहते र्थे।उन्ोने सावहत्य,सिंगीत,नाटक,नृत्य,िाद्ययिंत्रवचत्र कलाआवदके द्वाराभक्त्तत्तकाप्रचारवकया।इसीलएिहभक्त्तत्त कालके अन्यगुरूओिंसे हटकरअपनीपहचानबनालीर्थी।उनकीप्रवतभाकास्मरणकरते हुएउनके परमवशष्यमाधिदेिने कहाहै वक

सुप्रीतवमश्र (Pg. 17322 17330) 17326 Copyright © 2022, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies ियगुरूशिंकरसिश गुणाकर िाकेररनावहके उपाम। हमकहसकते है वकशिंकरदेिने पूिोत्तरभारतकोअपने भक्त्तत्तरससे सीिंचकरपािनबनावदया।िे नवसफं कृष्णके परमभतत्तर्थे बक्त्िएकअच्छे समािसुधारक, सिंगीतकार, नाटककार,गीतकार,कलाकार और वचत्रकार भी है। प्रो. िासुदेि शरण अगरिाल िी ने ही कहा है वक “शिंकरदेि िह चमकता सूरि है विसके विचारोिंमें असम हजारोिंपिंखुवडयोिंकी कमल की तरहक्त्खलउठा ” शिंकरदेि मानितािादी विचारधारा के प्रतीक और सावहत्य में पारिंगत सार्थ ही श्रव्य और दृश्य कला के विद्वानर्थे| िैष्णििादके प्रचारके वलएशिंकरदेि कीअनूठीऔरशक्त्क्तशालीरचनाओिंमें से एकअसम का अिंवकया नाट है िो वक एक पारिंपररक अवभनय नाटक है और इस नाटक के मिंचन को अिंवकया भाओना के रूप में िाना िाता है। शिंकरदेि (1449 1568 ई.) मध्यकालीन असम के सािंस्कृवतक पुनिाशगरण के अग्रदूत र्थे, विन्ोिंने िैष्णििाद की शुरुआत की। िह न केिल एक धावमशक विचारधारा के प्रचारक र्थे अवपतु उनका मध्यकालीन असम के सामाविक धावमशक और सािंस्कृवतक िीिन में भी अत्यवधकयोगदानरहार्था| अिंवकयानाटपरम्परागतअसमीएकािंकीनाटकहै ,िोश्रीमिंतशिंकरदेिकीरचनात्मकप्रवतभाकाप्रतीक है| अनेकविश्लेर्णोिंके उपरान्तये ज्ञातहोताहै वकये नाटकपूिश आधुवनककालके असमीकठपुतली नृत्य ि ओझा पाली के सिंयुक्त प्रारूप से वनवमशत है और शिंकरदेि द्वारा असममें प्रस्तुत सिंस्कृत नाटकोिं मेंअपनाईिानेिालीतकनीकऔरप्रवियाओिंके फलस्वरूपप्राप्तिैष्णिनाट्यपरम्पराकीएकविशेर् परम्पराहै, विसे अिंवकयानाटकहािाताहै| यद्यवप शिंकरदेि( 1449ई. 1568ई.) और माधिदेि (1489ई. 1596ई.)द्वारा रवचत नाटक लोक द्वारा स्वीकायशता प्राप्तकर चुके हैं,परन्तु अनेकविद्वानोिंके मतानुसार अिंवकया नाट शब्द शिंकरदेि के िीिन कालमेंमिूदनहीिंर्था| अिंवकया नाट विशेर् कला रूप के सार्थ एकप्रकार का धावमशक नाटक है िो की असमके िैष्णि काल में वलखा गया है | असमी नाट्योिंका इवतहास ि मिंचन 16िीिंशताब्दी के मध्य में श्रीमिंत शिंकरदेि द्वारा वलखा गया | श्रीमिंत शिंकरदेि ने उस समयािवध में वनम्नवलक्त्खत नाटक वलखे : वचहना यात्रा, कावलया दमन, पत्नी प्रसाद, केवलगोपाल, रुक्त्िणी हरण, पाररिात हरण और राम वबिय। शिंकरदेि के बाद, उनके वशष्य माधिदेि ने इस िेत्र में अत्यवधक योगदान वदया | इसका प्रभाि असम के सामाविक सािंस्कृवतकिीिनपरबहुतअवधकपडा।

सुप्रीतवमश्र (Pg. 17322 17330) 17327 Copyright © 2022, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies ऐसा कहा िाता है वक शिंकरदेि ने स्वयिं उन नाटकोिं का नाम अिंवकया नाट नहीिं रखा र्था। उनके अनुयावययोिंने इस शब्द का इस्तेमाल असम की नई नाटकीय परिंपरा को इिंवगत करने के वलए वकया। अिंवकयानाटके प्रदशशनकोअिंवकयाभाओनाभीकहािाताहै।भाओनाकाअर्थशहैभािोिंके द्वाराअवभनय अर्थाशत नाट्य को भािावभनय के माध्यम से प्रदवशशत करना | शिंकरदेि द्वारा रवचत अिंवकया नाट मूलतः भागितपुराणऔररामायणके विर्योिंके आसपासहीकेक्त्ितरहे।वचहनायात्राशिंकरदेिद्वारा पहला भाओना प्रदशशन र्था | शिंकरदेि ने 1468 ईमें प्रर्थम बार इस नाटक का प्रदशशन वकया| वचहना यात्रा ने भारतके सािंस्कृवतकइवतहासमेंएकनएयुगकीशुरुआतकी | मध्यकालीनभारतमेंइससेपहलेवकसी िेत्रीयभारतीयभार्ामेंनाटकपरिंपराकाकोईप्रमाणनहीिंवमलताहै |चरतपुर्थी (िैष्णिसिंतोिंकीिीिनी) के अनुसार, “यहअिंवकयाभाओनासातवदनोिंिसातरातोिंतकचलाऔरशिंकरदेिके प्रदशशननेदशशकोिं कोबेहदप्रसन्नवकया” | असम में शिंकरदेि और माधिदेि द्वारा अिंवकया नाट की शुरुआत की गई, अवधकािंश लोग वनरिर र्थे। वनरिरता के कारण िे ग्रिंर्थोिं को पढने में असमर्थश र्थे, इस प्रकार के नाट्योिं के प्रदशशनोिं के माध्यम से िनसाधारण तक विशेर् मसलोिंको पहुाँचाया िा सकता र्था | अिंवकया भाओना के माध्यम से लोगोिंको बहुत आनिंद वमला और िे उनसे बहुत प्रभावित हुए। चररत पुर्थी में, चररतकर ने विवभन्न यात्रा भाओना काउल्लेखवकयाहै | चररतपुर्थीके अनुसारमाधिदेिने गुरुकीतशन (आध्याक्त्त्मकगुरुकीपूिाके वलए विशेर्कायशिम) के अिसर पर “वदनभाओना”(वदनमें वकयागयाभाओना) और “रवतभाओना” (रात के समय में वकया गया भाओना) का आयोिन वकया । अहोम युग में, अिंवकया भाओना को असवमया समािमें अपारलोकवप्रयताप्राप्तहुई।िैसावकअसवमयानाट्यसावहत्यकारविवलिंगोनीकी पुस्तकमें िवणशत है वकअहोमयुगमें अिंवकया भाओना काफी लोकवप्रय हुआ और अक्सर आयोवित वकयािाता र्था।अहोमोके शासनकालके दरानकछारऔरमवणपुरके रािासम्राटस्वगोदेिरािेश्वरवसिंहनेअहोम साम्राज्यकादरावकयार्था औरउससमय उनके सम्मानमेंरािणिधभाओनाका महलमेंआयोिन वकयागयार्था।इसनाटकमें डेकाबरुआ (अहोमसाम्राज्यके मिंवत्रयोिंमें से एक) ने उस्ताद के रूपमें अवभनयवकया।करीबसात स दशशकिहािं िमाहुए।रािागरीनार्थवसिंह (1780 1795 ई.) के कालमें पद्मािती हरण भाओना का मिंचन उनके महल में वकया गया र्था। उसके आयोिक उन्ी के मिंत्री ना गोहेनके पुत्रर्थे।बडेघरसत्र (धावमशकसिंस्र्था) के महिंतनेरािाकमलेश्वरवसिंहके सन्मुख रुक्त्िणीहरण भाओनाकाप्रदशशनवकयार्था , िोचारवदनतकचलार्था|

सुप्रीतवमश्र (Pg. 17322 17330) 17328 Copyright © 2022, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies असमकीवैष्णवसत्रपरंपराने अंककयाभाओना के प्रसारमेंमहत्वपूर्ण भूकमकाकनभाईहै । असकमयावैष्णवपरंपरामेंसत्रकाअर्णकपछलेकुछवर्षोंमेंएकमठयाकनवासस्र्ानके रूपमेंकवककसत हुआहैजहााँवैष्णवभगवानकोसभीभक्तप्रेकमयोंके द्वाराप्रार्णनाअकपणतकीजातीहै तर्ावहीसभीएक सार् कनवासकरते है औरधाकमणकऔरसांस्कृकतकगकतकवकधयोंमेंभागलेते हैं | महेश्वर कनयोगने अपनी पुस्तक ‘शंकरदेव द ग्रेट इंटीग्रेटर’ में वकर्णत ककया है “सत्राओंके सार् सार् गांवोंमें भी नाम-घर (बडा प्रार्णना कक्ष) भाओना को प्रस्तुत करने के कलए बनाया जाता र्ा | वहां ऐसा सभागारबनायाजातार्ाजहां बांसऔरईखसे बने प्रार्णनाकक्षकीदीवारें होतीर्ींकजन्हें आवश्यकता अनुसार बदला जा सकता र्ा | कजन दीवारों को हटाया या कवस्ताररत नहींककया जा सकता र्ा उनके स्र्ान पर राभा गृह का कनमाणर् खुले मैदान में ककया जाता र्ा जो आयताकार होता र्ा कजसकी छत को आवश्यकता के अनुसार उठाया जा सकता र्ा | माधवदेव का ऐसा राभा गृह सुंदररकिया के पास एक खेतमेंबनायागयार्ाजहााँ गोवधणन यात्राकामंचनककयाजानार्ा |”1 शंकरदेवकीपरंपराकापालनकरते हुएबादमें प्रत्येकसत्राकधकारी (सत्रके प्रमुख) के कलएएकनाट कलखनाअकनवायण होगयाकजसके फलस्वरूपअंककयाभाओनाओंकाप्रदशणनअकधकककयाजाने लगा। प्रोसेकनयमकर्एटरके आनेसेपहलेअंककयानाट एकमात्रमनोरंजनकासाधनर्ाऔरसंगीत , नृत्यका अभ्यासकरनेकाएकमात्रमाध्यमर्ा|आधुकनकनाटकऔरप्रोसेकनयममंचकीशुरुआतके बादअंककया भाओना के प्रदशणनकीदरकमहोनेलगी , लेककनकफरभीअसमके ग्रामीर्समाजपरअंककयाभाओना काबहुतबडाप्रभावरहा।दूसरीओरअंककयाभाओनाके सार्सार्असकमयाभाओना (जहां भाओना कीकलकपअसकमयाभार्षामें कलखीजातीहै) काभीप्रदशणनहोतारहा |असमके नागांवकजले के भाओना और जमुगुरीहाट के बरेछहररया भाओना (सोकनतपुर, असम) ऐसे भाओना के उदाहरर् हैं। इस महान परंपरा का अभ्यास और संरक्षर् करने के कलए बहुत से राज्य स्तरीय नाट भाओना समारोहोंका भी आयोजनककयाजाताहै| श्रीमंतशंकरदेवद्वारारचित 6 नाटकहैं 1.काकलयादमन, 2.पत्नी प्रसाद , 3.केकलगोपाल, 4.रुक्मिर्ीहरर् , 1 Neog, Maheswar. Sankardeva The Great Integrator. Omsons Publication, 2011.

सुप्रीतवमश्र (Pg. 17322 17330) 17329 Copyright © 2022, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies 5.पाररजातहरर्और 6.रामकबजय | माधवदेवके द्वारारचित 6 नाटकहैं 1.चोरधरा, 2.पंपरागुचुआ, 3.भोजनकबहार , 4.अजुणनभंजन , 5.भूकमलेतोवाऔर 6.नृकसंहयात्रा| माधवदेवके इन 6 नाटकोंको “झूमरा” भीकहाजाताहै | सारांश वैष्णव परंपरा का सूत्रपात कब हुआ ककस कारर् से हुआ इस पर भले ही कवद्वानोंमें मतैक्यता न हो पर इस पर सभी एक मत हैं कक नाट्य और संगीत के बगैर वैष्णव सम्प्रदायों की कल्पना भी नहींकी जा सकती| लोक में ऐसी एक सामान्य धारर्ा है कक मनुष्य जब से है तभी से नाट्य और संगीत है| कुछ कवचारकोंकातोऐसाभीमाननाहैककमनुष्यमेंजन्मजातकनकहतगीत संगीतएवंनाट्यके तत्त्ोंके कारर् हीकवकभन्नभार्षाओंकाजन्महुआ| वैष्णवसम्प्रदायोंके कलात्मकपक्षऔरउसके प्रदशणनकीकवकवधताओं परध्यानआकृष्टकरने पर ऐसासहजहीअनुमानलगायाजासकताहै कककवकभन्नकलाओंऔरउसकी शैलीयोंके मूलतत्त्ोंकाइकतहासइसमेंसंरकक्षतहै| भारतीयपरम्पराकी गायनशैलीके बदलतेस्वरूपों कीखोज बीनके आधारभीयहााँ अर्ाणतवैष्णवसम्प्रदायमें यत्र तत्रकदखाईपडते हैं | कुछकवचारकोंका ऐसा मानना है कक प्रबंधों के तीन भेदोंमें ‘रूपक’ तत्त् कजसमें नाट्य तत्त् का होना अपररहायण र्ा, का कवकास कालांतर में ध्रुवपद गायन शैली से कवमुख होकर ‘कवष्णुपद’ कहलायाऔर सम्पूर्ण वैष्णव संगीत इसी गायन पद्धकत से पररचाकलत हुआ| कवशुद्ध शास्त्रीय गायक ध्रुवपद गायन में इस भेद को न मानकर अपने चार अर्वा छ: खण्ों की गायकी को ध्रुवपद गान ही कहते रहे पर वैष्णव सम्प्रदाय के कवकभन्न आचायण अपने अपने इष्ट ‘कृष्ण’ अर्वा ‘कवष्णु’ भगवान की पूजा अचणना में कजस नाट्य कवधान एवं सांगीकतककवधानकाप्रयोगगानके माध्यमसेकरतेहैं, वहउसे ‘कवष्णुपद’ अर्वा ‘हवेली संगीत’ के नाम से संबोकधत करते हैं| अंकीया नाट और कीतणकनया के सन्दभण में र्ोडे बदले रूप में इसी कवष्णुपद को सम्पूर्णतयानाट्याकभमुखप्रयोगकरअसममेंश्रीशंकरदेवनेतर्ाकमकर्लाके ‘हरीकसंहदेव’ ने कीतणकनया नाट्यजैसीपरम्पराओंकाअद्भुतसंयोजनककया , ऐसाजानपडताहै | ‘रागदारी’ संगीतजोककआज

सुप्रीतवमश्र (Pg. 17322 17330) 17330 Copyright © 2022, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies कजसभीरूपमें उपलब्धहै वहपूवणवतीकालमें इसरूपमें नर्ा| रागगायनके पूवण औरप्रबंधगायनसे भी पहले ‘जाकत गान’ अपने ऐश्वयणवान शैली से युक्त रहकर शास्त्रीय संगीत का आधार रहा| आज जाकत गायनकोहमपूर्णतयाबदलेहुएरूपमेंरागदारीसंगीतके माध्यमसे जानसमझरहे हैं| यहकवकचत्रतथ्य है ककवैष्णवनाट्यपरंपरामेंकजनपदोंऔरसंगीतकाउपयोगककयागयाअर्वाककयाजारहाहै उसके रूप कवधानकोलेकरभारतीयसंगीतकीपरंपरामें ‘राग ध्यान’ औरपुनःउसरागके देवताओंकावर्णन भी बहुतायत में प्रयोग ककया गया है| भारतीय शास्त्रीय संगीत की परम्परा में आचायण शारंगदेव कृत “संगीतरत्नाकर” (13वींशताब्दी) मेंसवणप्रर्मरागके देवताकाउल्लेखप्राप्तहोताहै| वैष्णवसम्प्रदायमें प्रयुक्तकवकभन्नसांगीकतककिया कलापोंमें नाट्यके तत्त्ोंके सार्कजनरागोंकाप्रयोगककयागयाउसके देवता ग्रंर्ोंमें कवष्णु अर्वा कृष्ण आधाररत ही न होकर कवकभन्न देवताओं से सम्बद्ध हैं| अंककया नाट के स ंदयणशास्त्रीय कववेचन में यह तथ्य सामने कनकल कर आया कक भारतीय राग ध्यान परम्परा में कजन दो देवताओंकशवतर्ाकवष्णुके बहुकवधरूपोंकासाधनापरकसंस्कारसाधकों, गायकोंअर्वावादकोंद्वारा प्रचारमेंलायागया , उसमेंवैष्णवचेतनाकोतर्ाउसके कवकवधभावपरकरूपोंकोअंककयानाटनेअपने प्रयोगमेंसक्मिकलतककया | रसोंकीभक्मक्तपूरकअवधारर्ाके बीचवैष्णवसम्प्रदाओंनेउसमेंभीअंककया नाट, कीतणकनया आकद को जानने समझने वाले ने रसोंकी दाशणकनक अवधारर्ा के इतर भक्मक्त मूलक , भाव प्रमुख रसोंका आवाहन अपनी अपनी नाट्यपरम्परा में ककया | वहां रद्ररूपजीवन का अकभशाप नहींहै , अकपतु ईश्वर प्रदत वह वरदान है कजसमें ध्यानस्त होकर स्वयं उनके प्रभु अर्ाणत कवष्णु दुष्टोंका उद्धारकरते हैं | इससे इसबातकाअनुमानलगायाजासकताहै ककवैष्णवसमाजमें कवशुद्धताककणक दाशणकनकवादके कवपरीत ‘भक्मक्त तत्त्’ कोहीप्रधानमानकरकला, साकहत्यएवंदशणनआकदके ‘भक्मक्त मूल’ कोहीकेंद्रमेंरखकरकवकभन्नउपादानोंकाउपयोगकबनाककसीगुरेजके ककयागया| References भारतीयभक्त्क्तआन्दोलनऔरपूिोत्तरभारतकेभक्त्क्तआन्दोलनमेंशिंकरदेिऔरमाधिदेिकायोगदान ,सिंपादक प्रोवदलीपकुमारमेवध ,शब्दभारती(वहन्दीसिंसादनकेि),गुिहाटी ,असम2015 Goswami, Kesavananda Dev. Post Sankardeva Vainava faith and Culture of Assam. Sri Satguru Publication, 1988. Bhatracharya, Harichnadra. Asamiya Natya Sahityar Jilingoni, lawyer ‟s book stall, 2013 Neog, Maheswar. Sankardeva The Great Integrator. Omsons Publication, 2011.

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