PRATHAMIK STAR KE VIDHYARTHIYON, ABHIBHAVAKON ENV SHIKSHKON ME PRATI JAGRUKTA KE PRATI JAGRUKTA KA A

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Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies, Online ISSN 2278-8808, SJIF 2021 = 7.380, www.srjis.com PEER REVIEWED & REFEREED JOURNAL, MAY-JUNE, 2021, VOL- 8/65 प्राथमिक स्तर के मिद्यामथिय ,ों अमि​िािक ों एिों मिक्षक ों िें पयाि​िरण के प्रमि जागरूकिा का अध्ययन गणेि िुक्ल

शोध छात्र,शै क्षिक अध्ययन क्षिभाग , क्षशिा क्षिद्यापीठ , महात्मा गा​ाँ धी केन्द्रीय क्षिश्वक्षिद्यालय पूिी चंपारण -845401 ई मे ल: ganeshkpuc91@gmail.com

Paper Received On: 21 JUNE 2021 Peer Reviewed On: 30 JUNE 2021 Published On: 1 JULY 2021

िर्त मान समय मे पयात िरण सबसे बडी गं भीर समस्या है । अब िह समय आ गया है जब हमें सािधानी से अपने प्राकृक्षर्क सं साधनों का प्रयोग करना चाक्षहए। पयात िरण जैि प्रौद्योक्षगकी ने क्षपछले र्ीन चार दशकों के दौरान र्ीब्र क्षिकास क्षकया है । आज के समय में मनुष्य के अंदर आधु क्षनकीकरण एिं क्षिकास की लालसा की िजह से पयात िरण पर बहुर् बुरा प्रभाि पडा है । प्रदू षण से लेकर ओजोन िरण र्क हो या क्षिर भू क्षमगर् जल सं दूषण से लेकर ग्लोबल िाक्षमिंग हो, सभी मनुष्य के द्वारा क्षकया जा रहा है । चारो ओर से पयात िरण सम्बन्धी समस्याएं उत्पन्न क्षदखाई दे रही है अर्ः इन सभी समस्याओं का समाधान अक्षर् आिश्यक है । आज की महान आिश्यकर्ा िे लोग है जो बु द्धिमान और अपने आस-पास के िार्ािरण के क्षलए सजग है र्था उसके क्षलए सामाक्षजक ,आक्षथतक ,राजनैक्षर्क ,कदम उठाने के क्षलए र्ै यार है । पृथ्वी पर जीिन यापन कर रहे क्षसित मानि जाक्षर् के क्षलए नही अक्षपर्ु सम्पूणत जीि के जरूरर् एिं इच्छाओ के पूक्षर्त के क्षलए सं र्ुक्षलर् िार्ािरण क्षनर्ां र् आिश्यक है ।

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सिस्या की उत्पमि – िर्तमान सदी में औद्योक्षगक मानि ने अपने अंधाधुंध क्षिकास के पीछे पयात िरण में होने िाली िक्षर् को आसानी से भुला क्षदया है इसका प्रमाण हमें आज पयात िरण के क्षदन-प्रक्षर्क्षदन क्षगरर्े स्तर से क्षमल रहा है | |पयात िरण असंर्ुलन से सारी धरर्ी त्रस्त्र हो रही है िायुमंडल दू क्षषर् हो रहा है |ओजोन की रिा पट्टी कमजोर होने से र्ापमान क्षनरं र्र बढ़र्ा जा रहा है , मौसम का क्रम क्षबगडर्ा जा रहा है | भू क्षम की उितरा शद्धि र्ेजी से िीण होर्ी जा रही है |भू -िरण कटाि अकाल बाढ़ की क्षिभीक्षषका र्ेजी से बढ़ रही है | बंजर िे त्र का रे क्षगस्तान बढ़र्े जा रहे हैं , क्षजससे भक्षिष्य की सुरिा र्था सुख शां क्षर् पर प्रश्नक्षचन्ह लगने लगा है | अर्ः आज आिश्यकर्ा इस बार् की है क्षक मानि को असंर्ुक्षलर् पयात िरण से उत्पन्न होने िाली समस्याओं से अिगर् कराया जाए | परं परागर् और रूक्षढ़िादी समाज अपने नागररकों को संस्कृक्षर् के हस्तान्तरण के साथ साथ पुरार्न अंधक्षिश्वास और मान्यर्ाओं को भी हस्तां र्ररर् करर्ा है | क्षजससे क्षशिा की गत्यात्मकर्ा मं द हो जार्ी है र्था सामाक्षजक पररिर्तनों को सही क्षदशा नहीं क्षमल पार्ी है , यह पुरार्न अंधक्षिश्वास प्रायः अर्ाक्षकतक और अप्रमाक्षणक होर्े हैं | इनके अमू र्त स्वरूप के कारण इनकी सत्यर्ा की परख भी आसानी से नहीं होर्ी है , क्षजससे निीन दृक्षिकोणों को उक्षचर् सम्मान और Copyright © 2021, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies


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