Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies, Online ISSN 2278-8808, SJIF 2021 = 7.380, www.srjis.com PEER REVIEWED & REFEREED JOURNAL, SEPT-OCT, 2021, VOL- 9/67
मर्यादय पु रुषोत्तम श्री रयम के अनन्य सखय: वयनररयज सुग्रीव सुमन लतय ससिंह, Ph. D.
असिस्टे न्ट प्रोफेिर, बी0एड0 सिभाग, खु नखु न जी गर्ल्स पी0जी0 कॉलेज, लखनऊ Email: singhlatasuman@gmail.com
Paper Received On: 21 OCT 2021 Peer Reviewed On: 31 OCT 2021 Published On: 1 NOV 2021
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आसि कसि िाल्मीसक रसित ‘रामायण’ श्री रामिररत पर आधाररत सिश्व का प्रथम महाकाव्य है । त्रै लोक्य पीड़क रािण के िंरक्षण में पल्लसित फसलत राक्षिी िृसियों का िमूल नाशकर मानिीय मू ल्ों की स्थापना, लोकरञ्जक श्री राम व्रत धारण कर िुके राघिेन्द्र, िानुज लक्ष्मण िसहत श्रीराम का िमु द्र िे ितुसिस क सघरी लं कानगरी पर आक्रमण का तात्कासलक कारण रािण द्वारा महािे िी िीता का हरण था। सबना िानरराज िुग्रीि की िहायता के न तो िीता-अनु िंधान िम्भि था, न ही िमु द्र पर िेतु बााँ ध िानरों की सिशाल िसहत रािण की पूरी तरह िुरसक्षत लं कापुरी पर आक्रमण ही। मानिीय मू ल्ों के िंरक्षक तथा िम्वाहक श्री राम ने रािणोन्मू लन में िानरराज के िहयोग के प्रसत कृतज्ञता का ज्ञापन बार-बार सकया है सिस्तार भय िे समत्रता की पृष्ठभू सम का उल्ले ख करना आिश्यक नहीं प्रतीत हो रहा है । इि आलेख का िणसन सिषय िानरे न्द्र िुग्रीि की लं का के महािमर में प्रिसशस त शौयसगाथा और रण िातुर्य्स का रे खां कन मात्र है । सिशु द्ध ऐसतहासिक दृसि िे सििार करने पर यह भलीभााँ सत सिसित होता है सक उि िमय भारतीय प्रायद्वीप में तीन राजशक्तियााँ सिशे ष महत्त्वपूणस थीं- उिारिती भू भाग में इक्ष्वाकुिंशीय आयसशक्ति का पुरोधा जहााँ अयोध्या का राजिंश था, िहीं िुिूर िसक्षण में िमु द्र में क्तस्थत लं का को केन्द्र बना रािण के िंरक्षण और ने तृत्व में राक्षिी शक्ति त्रे ल्ोक्यपीड़क की सिश्वसिश्रु त कुख्यासत का ध्वजबाहक बनी थी। िोनों के मध्यिती घोर िनाच्छासित भू -भाग में गीध, नाग और िानर िंज्ञक मानििमू हों का शािन था, सजनमें बासलन् के ने तृत्व में रािण का मानमिस न कर िानरीशक्ति अपनी श्रे ष्ठता और िैन्यशक्ति का प्रमाण िे िुकी थी। सकन्तु िनप्रान्तर एिं पिसत श्रे सणयों के मध्य भािासित िानरशक्ति सिस्तारिाि िे ििसथा िू र अपने स्थानीय िंिाधनों पर आसश्रत रहकर फलफूल रही थी। अयोध्या जै िी भव्यपुरी के यशस्वी राजकुमार लक्ष्मण तक िानरों की प्रमु ख राजधानी सकक्तिन्धापुरी की िास्तु कला और िैभि को िे खकर आश्चयसिसकत रह गये थे । तारा की सिलक्षण तासकसक प्रसतभा िे असभभू त रामानुज को िुग्रीि के िच्चे पश्चातपूणस मनोभािों ने पूणसतया शां तसिि बना सिया था। िुग्रीि की उपेक्षा के
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