दुधवा लाइव (व य जीवन एवं कृ ष पर आधा रत अं तरा
य मा सक प का का)
वष: 6, अंक -2, फरवर , 2016
दुधवा लाइव
पयावरण एवं कृ ष पर आधा रत मा सक प का " कसी रा
क महानता और नै तक
ग त को इस बात
से मापा जाता है क वह अपने यहां जानवर से कस तरह का सलू क करता है" - मोहनदास करमच द गाँधी
Dudhwa Live ISSN 2395-5791 (Online)
International Journal of Environment & AgricultureVol.6, no.2, Feb 2016
Dudhwa Live Magazine Editor-in-Chief Krishna Kumar Mishra Website- www.dudhwalive.com Email- editor.dudhwalive@gmail.com
Dudhwa Live
International Journal of Environment & AgricultureVol.6, no.2, Feb 2016
कवर फोटो - शादाब & अवनीश
एडीटो रअल बोड - दु ध वा लाइव ई- प का
एडीटर - इन - चीफ * कृ ण कु मार म
( जन ल ट एवं व य जीव वशे ष )
दु ध वा लाइव अ तरा त वीर व ् प
हम editor.dudhwalive@gmail.com अथवा
dudhwalive@live.com पर
कृ ण कुमार म
मोबाइल - +91-9451925997
सं थापक/संपादक- दुधवा लाइव
सलाहकार *
77, कैनाल रोड, शव कालोनी, लखीमपु र खीर , उ र दे श-262701
भारत
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काशक
ल गल एडवाइज़र * सोमे श अि नहो ी ( एडवोके ट सु ीम कोट ऑफ़ इं डया) नई द ल मोबाइल -+91-9560486600 संपादक मंडल
े षत कर .
प ाचार
लखीमपु र खीर
सु शां त झा ( जन ल ट एवं ले ख क )
य ह द / अं े जी प का म अपने ले ख ,
दुधवा लाइव क यु नट आगनाइजेशन लखीमपु र खीर , उ र
नोट - प का म सं पादक व
दे श, भारत गणरा य
का शत आले ख व शोध प
के वचार से
काशक का सहमत होना आव यक नह ं है .
कमलजीत (कृ ष वशेष य, रोहतक-ह रयाणा)* Disclaimer-
मोबाइल +91-9992220655 आशीष सागर (समाजसेवी, आर ट आई ए ट व ट, बांदा-बु ंदेलखंड)*
दु ध वा लाइव प का के कानू नी नयम व शत जानने के लए www.dudhwalive.com पर जाएँ .
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* सभी पद अवै त नक है
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International Journal of Environment & AgricultureVol.6, no.2, Feb 2016
तु त
I.
कसी को सचमु च बाहर नकालना हो, तो उसका घर
तोड़
दे ना चा हए- “दो गौरै या” -भी म साहनी II.
.. य क यहाँ एक च ड़या ने ज म लया था, भगवान ने
नह -ं “गौरै या” -रवीं III. IV.
का लया
गौरै या क घर वापसी- एक संक प -कृ ण कुमार म Bittu Sahgal Raises Conservation Concerns With U.P. Chief Minister. -Bittu Sahgal
V.
एच.इ.सी. यानी वकास का मकबरा- बरखा लकड़ा
VI.
वसंतो सव :
VII.
ऋ ष पव- एक खू बसू रत मौसम का आगाज़ -सु धाकर अद ब
VIII.
ी
ेम का पव -डा. सौरभ मालवीय
ी र वशंकर जी आगामी माच म यमु ना क ज़मीन को
र दने आ रहे ह -अ ण तवार IX.
ढाई सौ वष से भी अ धक
ाचीन जलाशय के सू खने से
नगरवासी चं तत -अ ण संह X.
Dudhwa National Park – Best Place to Spot Big 4 -Faiz Alam
XI.
वतमान वकास क संरचना म गाँधीवाद वैकि पक वकास क आव यकता एवं उपयो गता -भारती दे वी
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International Journal of Environment & AgricultureVol.6, no.2, Feb 2016 वगत 6 वष से दुधवा लाइव ने सफ वचार का ह
वाह नह
कया बि क
दुधवा लाइव बैनर तले कई आ दोलन का ज म हु आ जो हमारे पयावरण, जंगल, और पुराताि वक
थल से स बं धत ह, इनमे गौरै या सरं ण के लए कए गए
आ दोलन ने अ तरा
य
या त ह नह ं अिजत क बि क लोग को
े रत कया
अपनी छत और दरवाज पर इस न हे प रंदे के लए दाना-पानी रखने के लए, नतीजतन लखीमपुर खीर स हत उ र भारत के तराई जनपद म गौरै या बचाओं जना भयान ने अपने सफलतम 6 वष पुरे कर लए. पयावरण जाग कता के लए दुधवा लाइव को दु नया के बड़े
ाडका टस म से एक डायचे वेले जमनी ने सन
2013 म पु कृ त कया और सन 2014 म उ र कया गया, हम इस
दे श सरकार
ो साहन और दु नया तथा दे श
वारा स मा नत
दे श के लोग क अपे ाओं
पर खरे उतरने क को शश म ह क हमेशा जन सहभा गता से हम बु नयाद मसल पर अ छे काय कर सक.
स पादक य
माच के अंक म हम गौरै या क बात करगे, आगामी 20 माच को दुधवा लाइव
दुधवा लाइव के इस अंक म हमने हमेशा क तरह पयावरण व ् व यजीव से
सामु दा यक संगठन
स बं धत मु द पर आधा रत लेख व ् च अंतरा
को
तु त कया है, दुधवा लाइव
य प का ने हमेशा उन मसल को आप सभी तक पहु ंचाने क को शश
क है जो मानव स यता म कभी सं कृ त, पर परा के तौर पर हमारे बीच िज दा थे, ले कन आधु नकता और अ नयोिजत
वकास म या तो हम उन
ाकृ तक
वचार को भू ल चुके ह या फर याद नह करना चाहते.
यादातर लोग सफ अपने अ धकार क बात करते ह, और यक न मा नए जहां मानव अ धकार क बात करता ह तो उसके इस अ धकार के पीछे संसाधन पर ह िज दा है इस नभरता
आप सभी क भागीदार
ाथनीय है, ता क हमारे घर क यह च ड़या फर से
लौट सके. दुधवा लाइव क तरफ से गौरै या के घर द का समाज के
व भ न वग , और
कू ल म
वत रत
नमाण कराया गया है, िजसे कया जाएगा, साथ ह उन
लकड़ी के घोसल को कैसे लगाना है और गौरै या के भोजन व ् सुर ा के
जल जंगल जमीन क लड़ाई दु नया म बहु त लोग लड़ रहे ह पर असल मायने म
वनाश का एक अ याय और जु ड़ जाता है,
येक वष क तरह गौरै या दवस का आयोजन करे गा, िजसम
कृ त के
य क असल म तो हम
ह पर, और हम ह
य सभी
ाकृ तक
ा णय क
इंतजाम करने ह, इसक पूर जानकार उपल ध कराने के भरसक
या
या
यास कए
जायगे. हम आप को आमं त करते है अपनी गौरै या के लए,
य क यह सफ च ड़या
नह ं है बि क हमार पर पराओं का एक संवेदनशील ह सा है.
ाकृ तक संसाधन पर है, और जब हम अपने हक क आवाज बुलंद
करते ह तो जा हर है क हम
कृ त के शर र क एक और बोट नोचकर खा
जाना चाहते ह, पर वचा रएगा क अपनी ज रत से
यादा का हक़ ले लेने पर
कृ ण कु मार म
हम धरती के न जाने कतने जीव जंतु ओं को उनके हक़ से वं चत कर दे ते ह, हमने हमेशा खेत ख लहान, मा यम से,
ामीण पर परा क
बात क
है इस प का के
सकुड़ती न दय , सूखते तालाब और कटते बाग़ बगीच के साथ
जमींदोज होती हमार जैव व वधता, िजसके साथ साथ स यता और उसका जीवन,
कृ त के वा त वक
भा वत हो रह है मानव
व प को हम िजस तरह से
बेडौल कर रहे ह वह कु पता कह ं न कह ं अन गनत लाइलाज बीमा रय के तौर पर मानव समाज म प रल
त हो रह ह, क तु हम अपनी क थत वकास क
दौड़ क र तार कतई धीमी नह ं करना चाहते. गौरतलब बात तो यह है क उनसे
ा त होने वाल
ड
श ा के नाम पर पर बड़े बड़े व व व यालय और
यां तो हम सभी
ा त करते जा रहे ह, और भू लते जा
रहे है अपनी बु नयाद ताल म, जो सखाती है लेना और स मि ट म सभी जीव के
कृ त के साथ रहना, ज रत भर
त आदर रखना, इससे भी एक बड़ी बात है
िजस पर कभी कभी सोचता हू ँ क स दय के अनुभव से सीखता आया इंसान इस कृ त म खु द को ढालता हु आ, उन हजार वष के अनुभव को हम दर कनार कर रह है िजन अनुभव को हमारे पूवज ने पीढ दर पीढ साझा कया, जो अनुभव वचार म त द ल हु ए क
कस तरह सहज व ् सरल ढं ग से वसु ध ं रा पर हम रह
क वह हमेशा श य यामला बनी रहे और बना रहे सु खमय हमारा मानव समाज भी. उपरो त सब बात पर वमश और उससे नकले वचार को हम यथाथ म लाने क को शश म ह, वैचा रक संवेदनाओं के बजाए प रण त अंक
म
हमने
यमु ना
क
दुदशा,
बसंत
के
यादा ज र है, इस
आगमन,
सू खते
तालाब
औ योगीकरण और उसके प रणाम, दुधवा के जंगल के बाघ , महा मा गांधी के वचार से लेकर हमारे घर क न ह गौरै या क बात क है.
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International Journal of Environment & AgricultureVol.6, no.2, Feb 2016 "छोड़ो जी, चू ह को तो नकाल नह ं पाए, अब च ड़य को नकालगे!" माँ ने यं य से
(I)
कसी को सचमु च बाहर नकालना हो , तो उसका घर
कहा।
तोड़ दे ना चा हए
माँ कोई बात यं य म कह, तो पताजी उबल पड़ते ह वह समझते ह क माँ उनका मजाक
दो गौरै या
‘श-----शू’ कहा, बाँह झुला , फर खड़े-खड़े कूदने लगे, कभी बाह झु लाते, कभी ‘श---शू’
उड़ा रह ह। वह फौरन उठ खड़े हु ए और पंखे के नीचे जाकर जोर से ताल बजाई और मु ँह से करते। गौरै य ने घ सले म से सर नकालकर नीचे क ओर झाँककर दे खा और दोन एक साथ
‘चीं-चीं करने लगीं। और माँ खल खलाकर हँसने लगीं। पताजी को गु सा आ गया, इसम हँ सने क
या बात है?
माँ को ऐसे मौक पर हमेशा मजाक सू झता है। हँ सकर बोल , च ड़याँ एक दूसर से पूछ रह ह क यह आदमी कौन है और नाच य रहा है? तब पताजी को और भी यादा गु सा आ गया और वह पहले से भी यादा ऊँचा कू दने लगे। गौरै याँ घ सले म से नकलकर दूसरे पंखे के डैने पर जा बैठ ं। उ ह पताजी का नाचना जैसे बहु त पसंद आ रहा था। माँ फर हँ सने लगीं, "ये नकलगी नह ,ं जी। अब इ ह ने अंडे दे दए ह गे।" " नकलगी कैसे नह ?ं " पताजी बोले और बाहर से लाठ उठा लाए। इसी बीच गौरै याँ फर
भी म साहनी
घ सले म जा बैठ थीं। उ ह ने लाठ ऊँची उठाकर पंखे के गोले को ठकोरा। ‘चीं-चीं’ करती
घर म हम तीन ह यि त रहते ह-माँ, पताजी और म। पर पताजी कहते ह क यह घर
गौरै याँ उड़कर पद के डंडे पर जा बैठ ं।
सराय बना हु आ है। हम तो जैसे यहाँ मेहमान ह, घर के मा लक तो कोई दूसरे ह ह।
"इतनी तकल फ़ करने क
आँगन म आम का पेड़ है। तरह-तरह के प ी उस पर डेरा डाले रहते ह। जो भी प ी
कहा।
पहा ड़य -घा टय पर से उड़ता हु आ द ल पहु ँचता है, पताजी कहते ह वह सीधा हमारे घर पहु ँ च जाता है, जैसे हमारे घर का पता लखवाकर लाया हो। यहाँ कभी तोते पहु ँच जाते ह, तो कभी कौवे और कभी तरह-तरह क गौरै याँ। वह शोर मचता है क कान के पद फट जाएँ, पर लोग कहते ह क प ी गा रहे ह! घर के अंदर भी यह हाल है। बी सय तो चू हे बसते ह। रात-भर एक कमरे से दूसरे कमरे म भागते फरते ह। वह धमा-चौकड़ी मचती है क हम लोग ठ क तरह से सो भी नह ं पाते। बतन गरते ह, ड बे खुलते ह, याले टू टते ह। एक चूहा अँ◌ंगीठ के पीछे बैठना पसंद करता है, शायद बूढ़ा है उसे सद बहु त लगती है। एक दूसरा है िजसे बाथ म क टं क पर चढ़कर बैठना पसंद है। उसे शायद गम बहु त लगती है। ब ल हमारे घर म रहती तो नह ं मगर घर उसे भी पसंद है और वह कभी-कभी झाँक जाती है। मन आया तो अंदर आकर दूध पी गई, न मन आया तो बाहर से ह ‘ फर आऊँगी’ कहकर चल जाती है। शाम पड़ते ह दोतीन चमगादड़ कमर के आर-पार पर फैलाए कसरत करने लगते ह। घर म कबूतर भी ह। दन-भर ‘गुटर-गूँ, गुटर-गूँ’ का संगीत सु नाई दे ता रहता है। इतने पर ह बस नह ,ं घर म छपक लयाँ भी ह और बर भी ह और चीं टय क तो जैसे फ़ौज ह छावनी डाले हु ए है।
अब एक दन दो गौरै या सीधी अंदर घुस आ और बना पूछे उड़-उड़कर मकान दे खने लगीं। पताजी कहने लगे क मकान का नर
ण कर रह ह क उनके रहने यो य है या
नह ं। कभी वे कसी रोशनदान पर जा बैठतीं, तो कभी खड़क पर। फर जैसे आ थीं वैसे ह उड़ भी ग । पर दो दन बाद हमने या दे खा क बैठक क छत म लगे पंखे के गोले म उ ह ने अपना बछावन बछा लया है, और सामान भी ले आ ह और मजे से दोन बैठ गाना गा रह ह। जा हर है, उ ह घर पसंद आ गया था।
या ज रत थी। पंखा चला दे ते तो ये उड़ जातीं।" माँ ने हँसकर
पताजी लाठ उठाए पद के डंडे क ओर लपके। एक गौरै या उड़कर कचन के दरवाज़े पर जा बैठ । दूसर सी ढ़य वाले दरवाज़े पर। माँ फर हँस द । "तु म तो बड़े समझदार हो जी, सभी दरवाज़े खुले ह और तु म गौरै य को बाहर नकाल रहे हो। एक दरवाज़ा खुला छोड़ो, बाक दरवाज़े बंद कर दो। तभी ये नकलगी।" अब पताजी ने मु झे झड़ककर कहा, "तू खड़ा या दे ख रहा है? जा, दोन दरवाज़े बंद कर दे !" मने भागकर दोन दरवाज़े बंद कर दए केवल कचन वाला दरवाज़ा खुला रहा। पताजी ने फर लाठ उठाई और गौरै य पर हमला बोल दया। एक बार तो झूलती लाठ माँ के सर पर लगते-लगते बची। चीं-चीं करती च ड़याँ कभी एक जगह तो कभी दूसर जगह जा बैठतीं। आ खर दोन कचन क ओर खुलने वाले दरवाज़े म से बाहर नकल ग । माँ ता लयाँ बजाने लगीं। पताजी ने लाठ द वार के साथ टकाकर रख द और छाती फैलाए कु स पर आ बैठे। "आज दरवाज़े बंद रखो" उ ह ने हु म दया। ""एक दन अंदर नह ं घुस पाएँगी, तो घर छोड़ दगी।" तभी पंखे के ऊपर से चीं-चीं क आवाज सु नाई पड़ी। और माँ खल खलाकर हँ स द ं। मने सर उठाकर ऊपर क ओर दे खा, दोन गौरै या फर से अपने घ सले म मौजू द थीं। "दरवाज़े के नीचे से आ गई ह," माँ बोल ।ं मने दरवाज़े के नीचे दे खा। सचमुच दरवाज़ के नीचे थोड़ी-थोड़ी जगह खाल थी।
माँ और पताजी दोन सोफे पर बैठे उनक ओर दे खे जा रहे थे। थोड़ी दे र बाद माँ सर हलाकर बोल ,ं "अब तो ये नह ं उड़गी। पहले इ ह उड़ा दे त,े तो उड़ जातीं। अब तो इ ह ने यहाँ घ सला बना लया है।" इस पर पताजी को गु सा आ गया। वह उठ खड़े हु ए और बोले, "दे खता हू ँ ये कैसे यहाँ रहती ह! गौरै याँ मेरे आगे या चीज ह! म अभी नकाल बाहर करता हू ँ।"
पताजी को फर गु सा आ गया। माँ मदद तो करती नह ं थीं, बैठ हँ से जा रह थीं। अब तो पताजी गौरै य पर पल पड़े। उ ह ने दरवाज़ के नीचे कपड़े ठू ँ स दए ता क कह ं कोई छे द बचा नह ं रह जाए। और फर लाठ झुलाते हु ए उन पर टू ट पड़े। च ड़याँ चीं-चीं करती फर बाहर नकल ग । पर थोड़ी ह दे र बाद वे फर कमरे म मौजू द थीं। अबक बार वे रोशनदान म से आ गई थीं िजसका एक शीशा टू टा हु आ था।
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"दे खो-जी, च ड़य को मत नकालो" माँ ने अबक बार गंभीरता से कहा, "अब तो इ ह ने अंडे भी दे दए ह गे। अब ये यहाँ से नह ं जाएँगी।" या मतलब? म काल न बरबाद करवा लूँ? पताजी बोले और कुस पर चढ़कर रोशनदान म कपड़ा ठू ँ स दया और फर लाठ झु लाकर एक बार फर च ड़य को खदे ड़ दया। दोन पछले आँगन क द वार पर जा बैठ ।ं
दए। न ह ं च ड़याँ अभी भी हाँफ-हाँफकर च लाए जा रह थीं और अपने माँ-बाप को बुला रह थीं। उनके माँ-बाप झट-से उड़कर अंदर आ गए और चीं-चीं करते उनसे जा मले और उनक न ह ं-न ह ं च च म चु गा डालने लगे। माँ- पताजी और म उनक ओर दे खते रह गए। कमरे म फर से शोर होने लगा था, पर अबक बार पताजी उनक ओर दे ख-दे खकर केवल मु सकराते रहे ।
इतने म रात पड़ गई। हम खाना खाकर ऊपर जाकर सो गए। जाने से पहले मने आँगन म झाँककर दे खा, च ड़याँ वहाँ पर नह ं थीं। मने समझ लया क उ ह अ ल आ गई होगी। अपनी हार मानकर कसी दूसर जगह चल गई ह गी।
भी म साहनी
दूसरे दन इतवार था। जब हम लोग नीचे उतरकर आए तो वे फर से मौजू द थीं और मजे
दुधवा लाइव डे क
से बैठ म हार गा रह थीं। पताजी ने फर लाठ उठा ल । उस दन उ ह गौरै य को बाहर नकालने म बहु त दे र नह ं लगी। अब तो रोज़ यह कु छ होने लगा। दन म तो वे बाहर नकाल द जातीं पर रात के व त जब हम सो रहे होते, तो न जाने कस रा ते से वे अंदर घुस आतीं। पताजी परे शान हो उठे । आ खर कोई कहाँ तक लाठ झु ला सकता है? पताजी बार-बार कह, "म हार मानने वाला आदमी नह ं हू ँ।" पर आ खर वह भी तंग आ गए थे। आ खर जब उनक सहनशीलता चुक गई तो वह कहने लगे क वह गौरै य का घ सला नोचकर नकाल दगे। और वह पफ़ौरन ह बाहर से एक टू ल उठा लाए। घ सला तोड़ना क ठन काम नह ं था। उ ह ने पंखे के नीचे फश पर टू ल रखा और लाठ लेकर टू ल पर चढ़ गए। " कसी को सचमुच बाहर नकालना हो, तो उसका घर तोड़ दे ना चा हए," उ ह ने गु से से कहा। घ सले म से अनेक तनके बाहर क ओर लटक रहे थे, गौरै य ने सजावट के लए मानो झालर टाँग रखी हो। पताजी ने लाठ का सरा सूखी घास के तनको पर जमाया और दा ओर को खींचा। दो तनके घ सले म से अलग हो गए और फरफराते हु ए नीचे उतरने लगे। "चलो, दो तनके तो नकल गए," माँ हँसकर बोल ,ं "अब बाक दो हजार भी नकल जाएँगे!" तभी मने बाहर आँगन क ओर दे खा और मु झे दोन गौरै याँ नजर आ । दोन चु पचाप द वार पर बैठ थीं। इस बीच दोन कु छ-कु छ दुबला गई थीं, कु छ-कु छ काल पड़ गई थीं। अब वे चहक भी नह ं रह थीं। अब पताजी लाठ का सरा घास के तनक के ऊपर रखकर वह ं रखे-रखे घुमाने लगे। इससे घ सले के लंब-े लंबे तनके लाठ के सरे के साथ लपटने लगे। वे लपटते गए, लपटते गए, और घ सला लाठ के इद- गद खंचता चला आने लगा। फर वह खींचखींचकर लाठ के सरे के इद- गद लपेटा जाने लगा। सू खी घास और ई के फाहे, और धागे और थग लयाँ लाठ के सरे पर लपटने लगीं। तभी सहसा जोर क आवाज आई, "चीं-चीं, चीं-चीं!!!" पताजी के हाथ ठठक गए। यह या? या गौरै याँ लौट आ ह? मने झट से बाहर क ओर दे खा। नह ,ं दोन गौरै याँ बाहर द वार पर गुमसुम बैठ थीं। "चीं-चीं, चीं-चीं!" फर आवाज आई। मने ऊपर दे खा। पंखे के गोले के ऊपर से न ह -ं न ह ं गौरै याँ सर नकाले नीचे क ओर दे ख रह थीं और चीं-चीं कए जा रह थीं। अभी भी पताजी के हाथ म लाठ थी और उस पर लपटा घ सले का बहु त-सा ह सा था। न ह -ं न ह ं दो गौरै याँ! वे अभी भी झाँके जा रह थीं और चीं-चीं करके मानो अपना प रचय दे रह थीं, हम आ गई ह। हमारे माँ-बाप कहाँ ह? म अवाक् उनक ओर दे खता रहा। फर मने दे खा, पताजी टू ल पर से नीचे उतर आए ह। और घ सले के तनक म से लाठ नकालकर उ ह ने लाठ को एक ओर रख दया है और चु पचाप कु स पर आकर बैठ गए ह। इस बीच माँ कु स पर से उठ ं और सभी दरवाजे खोल
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International Journal of Environment & AgricultureVol.6, no.2, Feb 2016 सकती है। मगर इसक
(II)
क वह अभी इस
सं मण से मु त है।
.. य क यहाँ एक च ड़या ने ज म लया था, भगवान ने नह ं- रवीं
आवाज सु न कर आभास होता है
थोड़ी दे र तक गौरै या क आवाज सु नाई नह ं द । अचानक मेर नजर खपरैल पर
का लया
गयी तो मने दे खा, गौरै या खपरै ल के नीचे ब ल पर बैठ है। न जाने कब से वह एक न हा-सा घ सला बनाने म
य त थी। इस व त भी उसक च च म सू खी
घास का एक तनका था। घास नह ं, यह राम शला है। यह घ सला नह ,ं राममि दर के नमाण म संल न है, सयाराममय सब जग जानी। अचानक मि जद से अजान के यान भंग हु आ। म भी जू नन ू म
या
वर उठे तो मेरा
या सोचता चला जा रहा था। मु झे याद
आया, इस इमारत के ठ क पीछे मि जद है और सामने पीपल के पेड़ के नीचे हनुमानजी का मि दर। इस समय जहाँ म बैठा था, वहाँ से सामने दे खने पर मि दर का कलश और पीछे दे खने पर मि जद का गु बद दखाई दे ता है। अगर म पूरब क तरफ मु ँह करके बैठ जाऊँ तो कह सकता हू,ँ बाय मि दर है और दाय मि जद। बीच म मेरा घर है। गौरै या ने भी बहु त समझदार का प रचय दे ते हु ए ठ क मि दर और मि जद के बीच अपने नीड़ के लए
रोक सकता था इसे मि दर के कसी झरोखे अथवा मि जद के कसी वातायन म
Photo courtesy: http://www.pacificnorthwestbirds.com/
अपने लए छह इंच जगह का जु गाड़ करने से। मगर नह ,ं गौरै या धम के पचड़े म
गौरै या रवीं
नह ं पड़ना चाहती। म दे र तक उसे नीड़- नमाण के काय म संल न दे खता रहा। वह तनके खोज कर लौटती, कु छ दे र सु ताती, दो एक बार अपनी कोयल जैसी
का लया
जेठ क उजल दुपहर थी। प ा तक नह ं हल रहा था। लू के थपेड़,े घने पेड़ के बावजू द, बदन पर आग क लपट क तरह लपलपा रहे थे। इस खौफनाक मौसम म बस एक ह राहत थी, गौरै या क मधुर आवाज। दोपहर के इस घनघोर स नाटे म उसक आवाज पेड़-पौध के ऊपर ततल क तरह थरक रह थी। इस आवाज के स मोहन म ह म बाहर ब गया म नकल आया था और पेड़ के नीचे पड़ी ख टया पर पसर गया था। गौरै या चु प हो जाती तो लगता, पूर कायनात धू-धू जल रह है, अभी सब कु छ जल कर राख हो जायेगा। गौरै या बोलती तो लगता, अभी
लय बहु त दूर है। पृ वी पर जीवन के च न बाक ह।
लगातार एक िज ासा हो रह थी क ा णय क तरह थोड़ी दे र सु ता
य नह ं लेती? म उसक आवाज को ल पब ध
भी करना चाहता था, मगर वणमाला म उपयु त वण नह ं मल रहे थे। काफ दे र तक इस उधेड़बुन म लगा रहा, जब कोई नतीजा नह ं नकला तो मने यह को शश महादे व' कह रह है, गाय ी मं
वीकार कर लया क गौरै या 'हर हर
का पाठ कर रह है ! वेद क
कसी ऋचा को याद
कर रह है। नह ,ं यह सरासर बकवास है! यह तु हारे भीतर का ह दू बोल रहा है। दरअसल गौरै या कह रह
है - अ लाह-ओ-अकबर, नारा-ए-तकबीर...। अ लाह
अ लाह क रट लगाए हु ए है गौरै या। नह ,ं च ड़या कह रह है - वाह गु जी का खालसा, वाह गु जी क फतेह। खा ल तान क माँग कर रह ह यह गौरै या। ये सब गुमराह करने वाल बात ह। वा तव म वह अपने
कसी शाख पर बैठ है और
उसे पुकार रह है। मालूम नह ं , कु छ खाया है क नह ।ं कह ं भू खी तो नह ं है यह गौरै या? कह ं आर ण के
न पर अनशन पर तो नह ं बैठ गयी? जानना ज र है
क कह ं आ मह या का न चय तो नह ं कर बैठ ? उड़ते उड़ते कह ं से घ लू घारा का नाम तो नह ं सु न आई? जब इनसान के दल म तरह तरह क खु राफात ज म ले रह ह तो ये पेड़ पौधे, जीव-ज तु उससे कैसे नरपे भी तो उसी वातावरण के अंग ह, जहाँ लू से भी तेज सा
दा यकता, दुकान -मकान क छत पर छोट छोट पताकाओं के
रह है सा सा
रह सकते ह। ये चल चला रह
ट गारा क तलाश म फर गायब हो जाती।
य बना रह है वह अपने लए एक सु ंदर नीड़? अभी तक कहाँ रह रह थी? अपनी सु हाग क सेज तैयार कर रह है अथवा
सू त गृह का नमाण, अनेक
न मन म उठ रहे थे। अगले दन सु बह दे खा, उसका घ सला बन कर तैयार था। अब वह बाकायदा इस घर क सद या हो गयी थी। अब उसका पता भी वह था, जो मेरा पता था। वह बेखटके अपने
म े ी से प ाचार कर सकती थी। अपना राशनकाड बनवा सकती थी।
अपना वोट बनवा सकती थी अथवा पहचान प । कुछ ह तलब कर लया, आज बाहर
दन म मेर उससे
है
प म फहरा
दा यकता, इि तहार क श ल म द वार पर च पां कर द गयी है
दा यकता। इस जहर ले माहौल म यह न ह ं सी गौरै या कैसे बेदाग रह
य नह ं आये। मेरे सामने बैठ कर सगरे ट
य
नह ं फूँ के। 'अ छा बाबा आता हू ँ, तु म राग शु
करो। म आता हू ँ।' मने कहा।
दरअसल उससे दो ती होने के बाद मेरा समय अ छा बीत रहा था। अपनी एक स ताह क
म ता म ह उसने मुझे राग-भैरवी से ले कर राग जै जैव ती तक
सु ना डाले। मने महसू स कया, इसक आवारागद कु छ कम हो गयी है। हमेशा अपने नीड़ म नजर आती। एक दन सु बह तो म खु शी से पागल हो गया, जब मने दे खा, उसके अगल-बगल दो न ह ं गौरै या और बैठ थीं। घर म उ सव हो गया। नये सद य का गमजोशी से
म े ी को पुकार रह है। थक गयी है , उसे बूटे-बूटे और प े
प े पर खोज कर। अब नराश हो कर इसी पेड़ क
सु र ल कू क से स नाटा तोड़ कर
अ छ खासी दो ती हो गयी। एक दन तो रोशनदान पर आ बैठ और मु झे जवाब
या कह रह है यह गौरै या? पृ वी के अ य
छोड़ द और एक सीधा-सादा सरल करण
थान चुना था। वरना कौन
वागत हु आ। घर जैसे सोहर गाने लगा : भए
गट कृ पाला द न
दयाला कौश या हतकार ... बारो घी के दये... सतगु नानक परग टया... गौरै या के ब चे पूरे प रवार के सद य के संर ण म पलने लगे। उनक छोट से छोट हरकत पर चचा होती। एक दन पता चला, गौरै या सु बह से गायब है और ब चे अकेले पड़े ह। दोपहर को बाहर गया तो दे खा, गौरै या अभी तक नह ं लौट थी। दोन ब चे टु कु र-टु कु र मेर ओर नहार रहे थे, जैसे माँ क
शकायत कर रहे ह ।
म उनक मदद करना चाहता था, मगर समझ नह ं पा रहा था, इस व त इ ह कस चीज क ज रत है। शाम हो गयी, गौरै या नह ं लौट । म चि तत हो उठा, या होगा इन ब च का? कौन कराएगा इ ह भोजन? ये तो अभी उड़ान भी नह ं भर सकते। यह गनीमत थी क गौरै या ने काफ ऊँचे
थान पर अपना नीड़
बनाया था, वरना ब ल अब तक इ ह डकार चुक होती। मने कई बार ब ल
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को इन ब च क ओर हसरत भर
नगाह से ताकते दे खा था। ब ल थोड़ी दे र
अनुभव बयान कर रह थी। अब वह भला घ सले म
य बैठती, थोड़ी ह दे र म
उछल कूद भी मचाती थी, मगर ये ब चे उसक पहु ँच के बाहर थे, थक हार कर
वह वहाँ से फर गायब हो गयी। अब माँ बेट दोन गायब थी। मने बहु त दे र तक
वह लौट जाती।
उनक
ती ा क मगर दोन का कु छ अता पता नह ं था।
'आवारा गौरै या को नह ं आना था, नह ं आई। मने रात को भी कई बार टॉच जला कर दे खा, दोन ब चे चु पचाप अकेले बैठे थे। शायद सोच रहे थे, कहाँ रह गयी उनक माँ, कह ं रा ता तो नह ं भटक गयी? वे कब तक भू खे यासे पड़े रहगे?
नकल गयी।' मने घ सले म बैठ गौरै या क
तरफ दे खते हु ए कहा,
'तु हार माँ और बहन दोन आवारा नकल गयीं। कसी का डर नह ं रहा उ ह। दोन आवारागद पर नकल हु ई ह। अब लौट के आएँ तो बात मत करना उनसे। कु ट कर लेना। उ ह दे खते ह मु ँह फेर लेना।'
कल तक िजस गौरै या पर मु झे लाड़ आ रहा था, आज म उससे बेहद नाराज था। मने उसक छ व एक ममतामयी माँ के था क वह अपने न ह मु न के इस समय म इतने
प म दे खी थी। मेर क पना म भी नह ं
त इस कदर नदयता और
ू रता दखाएगी।
ोध म था क वह सामने पड़ जाती तो एक-दो झापड़ रसीद
कर दे ता। ढाढ़स बँधाने के लए मने ब च को पुकारा। अँधेरे म पुचकार सु न कर
दे र रात तक दोन गायब रह ं। म कुछ ऐसे परे शान हो रहा था जैसे प नी और बेट घर से गायब ह । गौरै या क आवारागद का तो मुझे एक रोज पहले ह आभास हो चु का था, उस न ह ं गौरै या के यवहार से म बहु त
ु ध था, िजसे पैदा
हु ए अभी जु मा-जु मा चार दन भी न हु ए थे।
ब च ने पंख फड़फड़ाए। मने घ सले म लाई चने के कुछ दाने फक दए और आ कर ख न मन से लेट गया। 'अब सो जाओ चु पचाप। एक च ड़या के पीछे पागल हो रहे हो।' प नी ने कहा, 'हो सकता है, वह बीच म कसी समय ब च को खला पला गयी हो।'
मने मन ह मन कहा। बाहर जा कर फस डी गौरै या क भी खबर नह ं ल । गौरै या के पूरे खानदान से मेर अनबन हो गयी थी।
'नह ं, वह आई ह नह ं। ब चे भूख से नढाल पड़े ह।' मने प नी को बताया, 'घ सले म लाई-चने डाल आया हू ँ। शायद चु ग ल।'
सु बह तक फस डी गौरै या के भी पंख नकल आये थे। वह अपने अकेलेपन से एकदम अन भ
'जाओ, बोतल से दूध भी पला आओ।' प नी ने यं य से कहा और करवट बदल ल। 'सब औरत
'इसी को कहते ह, पर नकलना। नये-नये पर नकले ह न, इसी का गुमान है।'
थी, बि क लग रहा था अपने अकेलेपन से
स न है। वह बार-
बार घ सले से उतरती और रबर के चौड़े प े पर बैठने क को शश करती, मगर य ह प े पर बैठती, प ा झु क जाता और वह फसल जाती। हर बार वह गरते-
वाथ होती ह, गौरै या क तरह।' मने जलभु न कर जवाब दया और
आँख मू ँद ल ।ं सु बह जब नींद खुल तो म आँख मलते हु ए घ सले क तरफ लपका। यह दे ख कर संतोष हु आ क गौरै या दोन ब च के बीच एक गव ल और समझदार माँ क तरह बैठ थी और बार -बार से दोन ब च क च च म अपनी च च से कुछ खला रह थी। म भी कु स डाल कर बैठ गया और दे र तक माँ ब च का लाड़यार दे खता रहा। ब च के
त आ व त हो कर म भी अपने काम म य त हो
गया। दोपहर होते होते गौरै या ने चहचहाना शु
कर दया और उसने पूर ब गया
जैसे सर पर उठा ल । मगर मु झे मालू म नह ं था, दोपहर बाद मुझे एक और आघार मलने वाला है।
गरते रह जाती। कु छ दे र घ सले म व ाम करती और दुबारा इसी खेल म लग जाती। 'मू खा, प े पर नह ,ं डाल पर बैठो।' मने उससे कहा। उसने मेरा परामश नह ं माना और फसलने का अपना खेल जार रखा। दोपहर तक वह गमल के बीच फुदकने लगी। 'लगता है इसके भी पर नकल आये ह।' मने कहा। वह िजस
कार नि चंततापूवक नीचे गमल के बीच चहलकदमी कर रह थी,
मु झे लगा, इसे ब ल का शकार बनते दे र न लगेगी। म दे र तक उसक रखवाल करता रहा। न उसे अपनी च ता थी, न माँ-बहन को उसक
च ता। इन च ड़य
को मु त का चौक दार जो मल गया था। म बुदबुदाया। जब तक वह घ सले म
शाम को जब बाहर नकला तो पाया, घ सले से न केवल गौरै या गायब थी, बि क
नह ं लौट गयी, म ब गया म बैठा रहा। मन ह मन मने तय कर लया था, इन
एक ब चा भी लापता था। सहमी हु ई छोट गौरै या अकेल बैठ थी। मु झे आशंका
च ड़य पर और समय न ट नह ं क ँ गा। नादानी और बेवफाई इनक रग रग म
हु ई, कोई चील तो झप टा मार कर ब चे को उठा कर नह ं ले गयी? मगर यह
भर है। पहले ये अपनी आवाज से रझाती ह, हरकत से स मो हत करती ह,
संभव नह ं लग रहा था। घ सले के ऊपर खपरैल का र ा कवच था। चील क
उसके बाद पर नकलते ह बेवफाई पर आमादा हो जाती है। मने तय कया आज
नजर ह नह ं पड़ सकती इस नीड़ पर। फर कहाँ गयीं दोन गौरै या? मु झे
दोपहर को बाहर नह ं जाऊँगा।
यादा
दे र परे शान नह ं रहना पड़ा। छोट गौरै या रबर लांट के नीचे बैठ थी। म उसक ओर बढ़ा तो वह उड़ कर मु ँडरे पर जा बैठ । वहाँ से उड़ान भर कर अनार के पेड़ पर उतर आई। वह रह-रह कर छोट -छोट उड़ाने भर रह थी। साफ लग रहा था, वह उड़ने का आनंद ले रह है, अपनी
मता से खु द ह रोमां चत हो रह है।
येक उड़ान म वह छोटा-सा सफर तय करती। फर वह च ड़य के झु ड म शा मल हो गयी। उनके बीच वह राजकु मार लग रह थी। च ड़या चु ग रह थीं और उनके बीच वह गदन उठाए बड़ी शान से बैठ थी, जैसे उसका संर ण
येक च ड़या को
ा त हो।
'तु म भी कु छ चु ग लो। तु ह
शाम को ह बेमामूल जब म नकला तो दे खा, घ सला खाल पड़ा था। उसम चरई का पूत भी नह ं था। मने तमाम पेड़-पौध पर नजर दौड़ाई, प ा, बूटा बूटा छान मारा, गौरै या प रवार का नाम नशान नह ं था। मु झे य क म मान सक
अपनी बहन को भी खलाओ।'
प से अपने को तैयार कर चु का था क यह अि तम गौरै या
भी मु झे धता बता कर गायब होने वाल है। मने राहत क साँस ल और फूल पर मँडराती
तत लय का नृ य दे खने लगा। बीच-बीच म म गमल के बीच भी
नगाह दौड़ा लेता क कह ं कोई गौरै या मुझसे लु का छपी न खेल रह हो। थोड़ी दे र बाद मेर
या चु गना नह ं आता?' मने कहा, 'खु द खाओ और
यादा आघात नह ं लगा,
ि ट मि दर के कलश पर पड़ी तो म दे खता रह गया। गौरै या का पूरा
प रवार वहाँ बैठा था - न वं व! नि च त!
स न। थोड़ी थोड़ी दे र म उनक
च च-से-च च मलती और अलग हो जाती। उनक आजाद से मु झे ई या हो रह थी। तीन अ यंत मौज म ती म वहाँ बैठ
पक नक मनाती रह ं।
गयी। अब दोन गौरै या सट कर बैठ थीं और एक दूसरे क ओर टकटक लगा
प नी पास से गुजर तो मने उसे रोक
लया, 'वह दे खो, छोटा प रवार सु खी
कर दे ख रह थीं। बड़ी गौरै या जैसे कसी मूक भाषा म अपनी
प रवार। तीन आजाद पंछ क तरह इ मीनान से मि दर के कलश पर बैठ ह।'
गौरै या ने मेर बात क ओर
यान नह ं दया और जा कर घ सले म
था पत हो
थम उड़ान का
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' कतना अ छा लग रहा है, तीन को एक साथ दे ख कर।' 'जानती हो, मि दर के कलश पर
य बैठ ह?'
' य बैठ ह?' ' य क इ ह ने एक ह दू के घर ज म लया है। कु छ सं कार ज मजात होते ह। यह अकारण नह ं है क व ाम के लए इ ह ने मि दर को चु ना है।' ' फतू र भर लया है तु हारे दमाग म।' प नी बफर गयी, 'अभी थोड़ी दे र पहले मने दे खा था, तीन मि जद के गु बद पर बैठ थीं। अजान के
वर उठे तो
मि दर पर जा बैठ ।ं लाउड- पीकर का कमाल है यह।' म न
र हो गया। मि दर म आरती शु
हु ई तो तीन अलग अलग दशा म उड़
गयीं। थोड़ी दे र बाद तीन ब गया म उतर आ । उस दन से आज दन तक उ ह ने घ सले क तरफ मुड़ कर भी न दे खा था। बहरहाल, गौरै या मु झे भूल नह ं। दन म एक-दो बार ब गया म दखाई दे जातीं, कभी एक और कभी तीन । म अ सर सोचता हू ँ,
या ज मभू म का आकषण
खींच लाता है इ ह यहाँ? ज मभू म नाम से ह मु झे दहशत होने लगी। मगर मु झे व वास है, यहाँ फसाद क कोई आशंका नह ं ह,
य क यहाँ एक च ड़या ने
ज म लया था, भगवान ने नह ं। दुधवा लाइव डे क
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International Journal of Environment & AgricultureVol.6, no.2, Feb 2016 तमाम क ड़ और उनके लावा भी अपना जीवन च
(III)
सफलता से चला सक,
य क यह च ड़या अपने न हे चूज को कठोर अनाज नह
गौरै या क घर वापसी- एक संक प
जा हर है हम अपने घर के पास दे शी
on Saturday, February 20, 2016
फल फूल सक जो इन प रंद का भोजन है । कु ल
खला सकती।
जा तय के पौधे, बेले लगाएं और
यादातर कु कर बटे शी फै मल क बेल िजन पर तमाम क ड़ क जैव व व धता जहाँ एक अखं डत भोजन च इस वष भी सभी सहचर
मलाकर एक समृ ध
अनवरत चलता रहे ।
वगत वष क तरह हम गौरै या सरं ण के
अ भयान चला रहे ह, ये
यास होगा क हम
जा तय के
जा तयां भी
लए जाग कता
कृ त और इसम बसने वाल
त संवेदनशील व ् स ह णु बने। ता क धरती पर
वाकई वसु धैव कु टु बकम ् क प रक पना को
था पत कया जा सके।
गौरै या जो हमारे घर क मेहमान हु आ करती थी बेट क तरह, उसे फर से बु ला ले, ता क वो मठास भर चहक, वो उसका फड़फड़ा कर उड़ना, और ब च के लए उनक उड़ने वाल सहे ल
फर से ज़ा हर हो सके ये सब हमारे बीच।
गौरै या सफ एक च ड़या नह है, वो हमार मानव स यता का एक अंग है , और
कृ त म हमारे गाँव व ् शहर म
व
य वातावरण क सू चक भी है ।
चलो उसे फर से उसी आदर से बु लाते ह अपने घर म ता क
कृ त क यह
खू बसू रत कृ त हमारे साथ साथ रह सके। सन 2010 म हमने शु वात क थी लखीमपु र खीर जनपद से, तराई का यह हरा भरा भू भाग जहाँ नद , जंगल, मैदान, गाँव और शहर सभी कु छ सरोबार है कृ त क सु ंदरता से, फर भी कु छ घट रहा है, स पू णता म तमाम दाग लग दुधवा
लाइव
का
गौरै या
बचाओं
जनअ भयान
िजसम
आपक
भागीदार मह वपू ण ह।
छ ीसगढ़ से मेरे एक प र चत का फोन आया क एक अखबार म रवीश कु मार ने आपके दुधवा लाइव पर गौरै या से स बं धत लेख पर संपादक य है इस न ह
या मेरे जनपद खीर से तमाम फोन आने लगे क च ड़या क घर वापसी के लए। मेरे प
व ् व यजीवन के
त
या तैयार
य पर कए गए शोध
ेम पर लोग क यह अपे ा एक उ साह भर गयी
नतीजतन मने नणय लया क प ी सरं ण क मु हम हम अपने जनपद से शु
करगे, और ऐसा ह हु आ लोग का साथ मलता गया और इस कारवाँ ने
खीर से नकल कर आसपास के जनपद से गु जरता हु आ पू रे भारत क फेर लगा ल । वारा
आयोिजत क गयी गोि ठय , सेमीनार और गाँव म गौरै या सरं ण के लए का शत व ्
सा रत कया गया, आ खरकार लोग अपने घर
क छत पर पानी दाना रखने लगे और गौरै या लोग के घर और दल म फर से वापसी करने लगी। बस यह सफलता थी हम सब क िज ह ने इस न ह
न ट हु ए, जा तयां
भा वत हु ई, न दयां सकु ड़ गयी और मैदान ख़ म हो गए, ट का बोलबाला हो गया,
नतीजतन इस बदले हु ए प रवेश म न जाने कतने साथी जो मानव स यता म उसके साथ रहते आये वो या तो न ट हो गए या पलायन कर गए और जो बचे वह मानव के इस क थत वकास क ब लबेद पर दम तोड़ रहे ह। कहते ह बदलती चीज को एकाएक नह रोका जा सकता क तु इस बदलाव क र तार म भी हम उ ह भी अपने साथ लेकर ज़ र चलने क को शश कर सकते ह जो स दय से हमारे साथ ह और मानव स यता उनसे लाभ लेती आई ह आज वो
ासं गक नह रहे तो हम उ ह उनके हाल पर छोड़ चु के है,
यक नन यह अ याचार है और मानवीय मू य के वपर त भी। घोड़ा हाथी कु ा कबू तर गौरै या गाय न जाने कतने जीव ह िज ह स दय पहले जंगल से नकलते व त इंसान अपने साथ लेकर चला, गाँव तक, क़ बे तक, शहर तक,
अखबार, प काओं, आल इि डया रे डयो और टे ल वजन म दुधवा लाइव जनस पक को
कृ त का दोहन अनवरत जार है, नतीजतन तमाम जंगल
बाग़ बगीचे उजड़ गए, गाँव शहर हर जगह कं
होल का तीसरा दन था साल 2010 का, म जयपु र से लौट रहा था, तभी
लखा है , फर
रहे है, जा हर है
च ड़या को सरं
त करने के संक प म हमारा साथ दया। प का रता
जगत के लोग, वयंसेवी सं थाएं और िजन सभी सा थय का सहयोग मला उन सभी को साधु वाद।
आया है , यह कहना कतना मुना सब होगा क इंसान इसक चु काएगा पर यह
बनाये गए, गौरै या के लए कौन सी माकू ल प रि थ तय
को बनाया जाए ता क वह फर हमार घर आँगन म लौट सके इसके उपाय
कतनी क मत
नि चत है क मानव इसक क मत चू का रहा है और
भ व य म चु काएगा भी, कृ त से दूर होने के मान सक अवसाद और गंभीर बीमा रय के तौर पर, छ न भ न होती जैव व व धता एक गहरा लाल
भाव
छोड़ रह है मानवता पर, फर भी हम
कृ त
कृ त का ह सा होकर खु द को
से अला हदा कर रहे है । च ड़या जंगल लगाती ह, बीज के
सन 2010 को हम सबने गौरै या वष घो षत कया। और जनपद म गौरै या ाम व ् गौरै या म
पर तकनीक दौर म अ नयोिजत वकास क पगडंडी पर इ ह वह पीछे छोड़
अपनी पाचन
क णन
वारा, कसी फल को खाकर जब
या के पू ण होने के बाद बीट म वे बीज इधर उधर छोड़ती ह
तो वे बीज अंकु रत होते है और फर वृ
बनते ह, पीपल बरगद इसके बेहतर
उदाहरण ह।
जनमानस म बतलाए गए और अंतत: गौरै या लौट आई...
इन वगत 6 वष म लोग का
यान इस च ड़या क तरफ खींचने म हम
सफल हु ए। ग मय क शु वात है और इस न ह
च ड़या का घर दे बनाने का
व त आ रहा है, बस इसे हम इसका घर बनाने क थोड़ी जगह दे दे , सु र ा द, और यह अपने चू ज को पाल सके इस लए वह
वषह न ह रयाल दे जहाँ
ये गौरै या हमारे घरो से दूर हु ई तो इसने यह बताने क को शश ज र क होगी क अब यह जगह रहने लायक नह , ले कन हमने उसक आवाज नह सू नी, उसने कहा होगा क
अब इस घर या गाँव या शहर म जहर ले
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रासाय नक त व क तादाद बढ़ चु क , कसर जैसी बीमार पैदा करने वाले त व लेड आस नक जैसे त व बढ़ गए ह, इसने कहा होगा क यहाँ पानी अशु ध हो गया है डटजट, रासाय नक उवरक, डीडीट , और जहर ले क टनाशक से, इसने ये भी बताया होगा क हमारे म
क ट भी न ट हो गए है हमार फसल से
रसायन के इ तेमाल से, और एक बड़ी कायदे क बात कह होगी इसने क तु म इंसान सामु दा यक
नेह खो चु के हो, तु मने घर के बीच मौजू द बड़े से
आँगन के कई टु कड़े कर दए द वार उठाकर, तु मने चौकठे भी बाँट ल , और अब तु म छोट छोट कोठ रय म रहने लगे जहाँ रोशनी भी ठ क से नह आती, तंग ग लय और बड़े से दालान के बजाए सड़क पर आ गए, इसने ज र ये बात भरे मन से कह ह गी क जब तु म इंसान ने दहल ज को बाँट डाला, दालान , आँगन के टु कड़े कर दए तो फर कैसे रखोगे हमारे जैसे मेहमान को िजसम खु ले आसमान म उड़ने क क शश है, संकरे आ शयाने और संकरे दल म मेहमान नह बसा करते---इस न ह
च ड़या क इस यथा को हम भांप लेते तो यह ज र हमारे घर म
आज भी आती। अभी भी व त ह
कृ त के इस हरकारे का स दे श अगर हम
सु न समझ ले तो मानव स यता क तमाम दु वा रयां ख़ म हो जाए। कृ त हमेशा हम स दे श दे ती है पर हम अपनी बेजा
वाइश क चीख
च लहाट म उसे नजरअंदाज कर दे ते ह। बस इसी को शश म हम ह क हम इस न ह
च ड़या को दुबारा अपने घर
म बु लाए। और इसके लए हम उसे वो माहौल दे ना होगा जो हमारे लए भी उतना ह मु फ द है िजतना उस प रंदे के लए।
कृ ण कु मार म , सं थापक स पादक- दुधवा लाइव सामु दा यक संगठन व ् प का। www.dudhwalive.com
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(IV) Bittu Sahgal Raises Conservation Concerns With U.P. Chief Minister on Tuesday, February 16, 2016
On February 11, 2016, Sanctuary’s Editor Bittu Sahgal wrote to Uttar Pradesh Chief Minister Shri. Akhilesh Yadav requesting him to look into a number of issues that plague Uttar Pradesh’ only Tiger Reserve – Dudhwa.
escape into the forest, the cub has vanished since. Similarly, the tigress and the remaining two cubs have disappeared. By all accounts the forest staff is highly demotivated by the actions of the DM, but still continue their search for the missing tigers. Kindly ask the Chief Wildlife Warden and the NTCA to investigate the matter and if found true, disciplinary action needs to be taken immediately. Unregulated and Rowdy Tourism in the Reserve A member of the Sanctuary Asia team visited the Dudhwa Tiger Reserve in the first week of January this year. Her first-hand report on the tourism at the reserve was extremely disconcerting. With no limit to the number of vehicle entries into the park, she found absolute chaos inside the park. The government licensed guides were unable to keep a check on tourist behaviour, which included urinating, littering, and screaming loudly inside the reserve. Encroachments into the Sathiana Range This range includes sprawling grasslands that provide breeding grounds for the critically endangered Bengal Florican. Unfortunately, my team member witnessed for herself the extreme encroachments into the range. Just metres from the RFO's checkpost, she saw villagers lopping wood. This scene repeated itself four times in a span of three hours. The encroachers seemed to have little fear of being caught or reprimanded. This easy entrance into a Protected Area raises immense concerns about the safety of wildlife in the park. Problems in the Katarniaghat Wildlife Sanctuary
Shri Akhilesh Yadav Hon'ble Chief Minister 5, Kalidas Marg, Lucknow, Uttar Pradesh Dear Sir, My late friend Billy Arjan Singh, the driving force behind the notification of your state's celebrated Dudhwa Tiger Reserve, loved Uttar Pradesh's forests dearly. It was through him that I too came to appreciate the wonderful wilderness of U.P. It is thus with great sorrow that I write to you on a number of concerns. Your initiatives towards wildlife conservation are well known and appreciated and I trust that you will look into and settle these matters urgently to the benefit of wild nature. District Magistrate, Lakhimpur Kheri Several reliable sources have written to me with concern that the DM of Lakhimpur Kheri has been entering into the Kishanpur Wildlife Sanctuary of the Dudhwa Tiger Reserve after hours, and often with guests. The Bel Danda area in particular was of major concern as it was the territory of a tigress with four young cubs. As reported by the forest staff, their attempts to control the situation were dismissed, and the night visits stretched to the extent that the disturbed tigress was seen moving her cubs into the sugarcane fields that lie adjacent to the reserve. This placed the entire family at great risk. Tigresses are heavily invested in the success of their cubs and will do everything in their power to bring them up safely to adulthood. Unfortunately, displaced from their 'nursery' into a human-dominated landscape, this tiger family has met a horrific end. One cub was found dead on January 4, 2016. Another cub was found stranded on the terrace of a house in Tanda village surrounded by stray dogs. Though the forest staff managed to chase the dogs away and allow the young tiger to
The beautiful Katarniaghat Wildlife Sanctuary seems to be suffering from mismanagement. A large tourist complex has been built on the banks of the Girwa river in the likes of a cantonment area. The staff that operate the tourist activity from here, in this case boat rides, are inefficient and rude. Plastic bottles were observed in the sandbanks of the river near basking gharials, the boats were dilapidated and leaking diesel, and there was no communication on the biodiversity of the area from any of the staff. In addition, a captive population of gharial hatchlings is kept in this tourist complex. However, there is no caretaker present to inform the tourists about the programme, and ensure that tourists do not harass the hatchlings. Similar to the Sathiana range, blatant encroachments were noticed in the sanctuary. Uttar Pradesh hosts some of the most spectacular tracts of the terai landscape, and is blessed with an abundance of wildlife. Your initiatives, such as the recently concluded Bird Fair and the notification of the Pilibhit Tiger Reserve are proof of your deep interest and concern for the natural heritage of the state. With the correct guidance and expert management, I have no doubt that U.P. can become a model state for wildlife conservation and ecotourism practices. However, if these issues are not addressed urgently, I fear that the future of U.P's wilds will come undone. May I request an audience with you to discuss conservation management in the state? My team and I are at your disposal to ensure that U.P emerges as a leader in the conservation realm. It will be my honour and privilege to bring a group of experts together to secure the state's natural heritage.
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Yours sincerely, Bittu Sahgal Editor, Sanctuary Asia
Corresponding person: Cara Tejpal, Assistant Editor- Sanctuary Asia, email: cara@sanctuaryasia.com
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International Journal of Environment & AgricultureVol.6, no.2, Feb 2016 एफ एफ पी बंद हो चु का है.। बाक अ ध हत भू म म रै यत अपनी ख ्◌े◌ाती बार
(V)
और पार पा रक बसाहट के साथ कायम रह गए. सरकार ने इस अ त र त भू म क सुध नह ं ल और एच. ई सी.
एच.इ.सी. यानी वकास का मकबरा
बंधन मनमानी कर भू म क
ब
कर
अंधाधु ध ं कमाई करता रहा. इसके वरोध म व था पत लोग आंदोलन करते रहे . ले कन कोई सु नवाई नह ं हु ई. 2010 म सरकार ने एच. ई. सी. को अ त र त भू म बेचने पर रोक लगा द . एच. ई सी. ने कानून का उ लंघन कर सी. आई एस एफ को 58 एकड़,
केट
टे डयम को 158 एकड़ और हाई कोट को 158 एकड़ भू म बेच द और मनमाना दर से पैसा वसूला. ले कन अ त र त भू म को बचाकर रखने के एवज म व था पत को कुछ भी नह ं दया गया.। यह सब ऐसे ह चलता रहा
य क
1894 के भू म अ ध हण कानून के तहत व था पत म खासकर आ दवा सय ने भू म वापसी का कोई केस छोटानागपुर का तकार अ ध नयम के तहत नह ं दायर कया. इसी का लाभ उठाकर
भू म क बंदरबं◌ाट होती रह . जू न 12, 2015 को
आपाधापी म झाड़खंड सरकार ने वधान सभा का शला यास उस धरती म कया जो कानूनी तौर पर सरकार क है ह नह ं . लगभग 55 साल तक अ ध हण के बाद दखल क जा नह ं होने के बावूजद बना नए सरे से अ ध हण कर सरकार
-बरखा लकड़ा
आ थक वकास के लए औ यो गक वकास का होना। ये कु छ हद तक स य ह, धानमं ी
वकास से ह
ी जवाहर लाल नेह
आ थक
एंिज नय रंग कारपोरे शन, क सके।
वकास सं भव ह। भारत के
िज ह भारत के आधु नक
कहा जाता ह। उ ह ने रा य के क थी। ता क
वकास के
थम
वकास का जनक
पैदा हो गया है. आम तौर पर नई सरकार कसी मेगा
ोजे ट का शला यास
थापना झारखंड जैसे◌े पछड़े इलाके रा◌ॅची िजले म
आ दवा सय मू लवा सय को वकास क मु यधारा म लाया जा
फर रा य क जनता. या फर उन व था पत का िज ह ने रा
के वकास के
नाम पर अपनी जमीन खु ले दल से दे द . इतना बड़ा दल और मन क आज क तार ख म उस दे ने वाल स यता का कोई मु काबला नह ं है. जहां केवल जमीन लेने वाल क केवल फौज खड़ी हो. स दय पुराना अपनी पार प रक, ऐ तहा सक जमींन जो कभी हमारे पुरखे अपनी मेहनत से जंगल-झाड़, पहाड़- पवत को काटकर घर-आंगन, खेत- ख लयान एंव पूजा-
थल बनाया। आज इसी जमीन का
सौदाकरण हो रहा है। जमीन के असल मा लक को दूध म म खी क तरह नकाल कर फका जा रहा ह। इतना ह नह ं एचइसी का 30 सरना
चार
सा रत करती है . ले कन वधान
सार के रात रात ह
नमाण काय
दया गया. पूरे रा ते को बैर के टंग कर दया गया और 16 मिज पु लसक मय को
ारंभ कर
े ट के साथ 200
यूट पर तैनात कर दया गया ता क प रंदा भी पर ना मार
सके।लं कन व था पत ने तीखा
तरोध कया.
इतनी कु बानी के बाद भी मूलवा सय और आ दवा सय के बड़े मन क बात क जा रह
है.
कसका मन और
मू लवा सय क अि नपर
दल बड़ा है. या 1960 म आ दवासय
ा हो गई और रा
एंव
के वकास के नाम पर आ दवा सय
और मूलवा सय ने अपनी जमीन को कु बान कर सुअरबाड़े जैसे घर म रहने को ववश हो गए। इस बात से इ कार नह ं
कया जा सकता ह, क आ दवासी
ाकृ तक क तरह हमेशा दे ते ह आये ह। बदले म उ ह च डयाघर ़ के जानवर क तरह जीवन जीने को मजबूर कर दया गया ह। अब सवाल यहा◌ॅ ये है क या आ दवासी इस दे श के नाग रक नह ं या
या इ ह स मानपूवक जीवन जीने
का अ धकार नह ।ं
वारा अ ध ह त जमींन म
थल ख म हो रहा ह। पर सरकार को उन
आ दवा सय क आ था क परवाह नह ं ह।
सभा के मामले म बना
चा रत
लए 1960 म एचइसी- हैवी
अब सवाल ये उठता है क वकास कसका. औ यो गक घरान का या
आ दवा सय
क मयादा को खतरा
करती है तो अखबार म पूरा व ापन
कसी भी दे श रा य का वकास के लए आ थक वकास का होना ज र ह, और क औ यो गक
ने िजस तरह से जोर जबरद ती कया है उससे लोकतं
या आ दवा सय को आ था के साथ
जीवन जीने का अ धकार नह ं ह। इसी जगह मि दर होता तो आ था का खयाल रखकर मि दर के लए जमींन छोड़ द जाती। झारखंड के बहु त से जगह पर मि दर के लए म जगह छोड़ द गई ह। इतना ह नह ं अगर रा त म मि दर हो तो रा त को मोड़ दया जाता ह। पर मि दर को नह ं तोड़ा जाता ह।
वकास के नाम पर हमेशा आ दवा सय क ब ल चढ़ायी गई ह। आजाद के बाद से पूरे दे श म वकास व रा व था पत तथा
हत के नाम पर लगभग 3 करोड़ से
भा वत हु ए ह। िजनम 40
व कमजोर वग के लोग ह। या न 60
तशत आ दवासी, 20
तशत लोग को रा
जमींन क कु बानी दे नी पड़ी। कुल व था पत म से मा कसी तरह पुनवास हो सका ह। तथा शेष 75
25
यादा लोग तशत द लत
हत के नाम पर तशत लोग का
तशत व था पत लोग कहा◌ॅ गये
इसक जानकार सरकार तक को मालू म नह ं ह। अजाद के 66 बषा◌ो के बाद भी एचइसी का
थापना का मकसद
या था , और एचइसी का वकास कसके लए?
अगर हम थोड़े एचइसी के इ तहास म जाए तो एचइसी
थापना का मकसद
गर बी एंव बेरोजगार उ मूलन था। एचइसी के लए जमीन भू ्र-अजन अ ध नयम 1894 के तहत
लया गया था। िजसका अ ध हण 1955 से लेकर 1960 तक
चला। िजसके तहत आ दवासी मूलवा सय ने अपनी खेतीवाल 9,200 एकड़ हर भर जमीन एचइसी को सम पत कर दया। 1996 म बहार सरकार ‘डीड आ◌ॅफ कानवे स ’ के तहत एचइसी एचइसी को कर अ ध हण
दया।
वारा अिजत जमींन का म लकाना हक पूण
एचइसी ने ज रत से तीन गुणा
कया और केवल लगभग
प से
यादा जमीन का
3 हजार एकड़ म ह तीन
लांट लगाए
गए.। एच. एम.ट . पी., एच. एम बी. पी. और एफ एफ पी. इसम एक एक लांट
पुनवास नी त नह ं बन पायी ह। जब क वह सरकार बशेष आ थक
े
के नाम
पर कानून बनाने म सफल हु ए ह। िजसे लाख लोग व थापन के कगार पर ह। वकास के नाम पर लाख लोग बेघर हो रहे, उनका अभी तक कोई वकास नह ं हो पाया ह। पर औ यो गक घरान के लोग का वकास ज र हु आ ह। उदाहरण के तौर पर
फो स क धनवान सूची 2015 के अनुसार, धना य मुकेश अंबानी
फर इस साल भारतीय म से सबसे अमीर
यि त हु ए ह, जो 21 अरब डालर के
नेटवथ के साथ अपनी शीष ि थ त लगातार आठव साल बरकरार रखी ह। इसके बाद द गज कारोबार म दल प सांधवी 20 लाख डा◌ॅलर के नेटवथ के साथ 44व, पायदान वैि वक साथ वैि वक
तर से
रह। इसके बाद अजीम
म े जी 19.1 अरब डा◌ॅलर के
तर से 18व पायदान पर रह। ये तो थे पू◌ॅजीप तय का पायदान।
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इन पायदान
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म कह ं भी
व था पत
का पायदान नह ं ह। जब क जमींन
अ ध हण वकास के नाम पर लेते रहा गया ह। िजसम एचइसी मु य शा मल ह। एचइसी
प से
थापना से आ दवा सय का वकास नह ं बि क वनाश हु आ
ह। एचइसी म बड़े पैयमाने पे बाहर लोग क बहाल हु ई िजसम आ दवा सय का नाममा
का ह बहाल हु आ। 22 हजार कमचा रय क बहाल क गई थी । सफ
दो तीन साल ह एचइसी मु नाफे म रह बाक साल सफ घाटे म ह चलते रह । 22 हजार कमचार वाला सं थान
आज 2 हजार क मय पर
समट गया है.
एचइसी अपना कज माफ करवाने के लए सरकार को जमींन र यूम कर दे रह ह। िजसम सरकार हाई कोट एंव वधानसभा का नमाण कर रह ं ह। इ तहास म पहल बार सरकार 144 धारा लागू कर हाईकोट का शला यास कया। ले कन पूव से ह संग ठत आ दवा सय मूलवा सय क भीड़ ने सरकार के मंसब ू े म पानी फेर दया. मु यमं ी को तीखे
तरोध का सामना करना पड़ा। यह कहना गलत नह ं
होगा क आ दवासी मू लवा सय का इ तहास बहु त ह गौरवपूण एवं संघषशील रहा ह। हमारे आ दवासी आजाद से पहले अपने दे श के दु मन से लड़ाईयां लड़ी. और आजाद के बाद अपने ह दे श के
वाथ , दमनकार नी त बनाने वाले
शासन के
खलाफ लड़ाई लड़ रहे ह। आजाद होते हु ए भी गुलाम क िज दगी जीने को मजबूर है। भू म अ ध हण कानून का दं ष से कोई भू- वामी नह ं बच पाऐगा। अगर सरकार क मंशा इन आ दवा सय मूलवा सय के बार
फर
नयी
ां तकार वचारधारा
आने
त नह ं बदल तो, एक
म
दे र
नह ं
लगेगी.
बरखालकड़ा
An
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sent
by
Roma
romasnb@gmail.com
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International Journal of Environment & AgricultureVol.6, no.2, Feb 2016 एता भः प रह नु र टा भमा सर व त।।
( VI) वसंतो सव : ेम का पव डा. सौरभ मालवीय
ाचीन काल से ह भारतीय सं कृ त म ऋतुओं का वशेष मह व रहा है. इन
ऋतु ओं ने व भ न
कार से हमारे जीवन को
भा वत कया है. ये हमारे जन-
जीवन से गहरे से जु ड़ी हु ई ह. इनका अपना धा मक और पौरा णक मह व है. वसंत
ऋतु का भी अपना ह मह व है. भारत क सं कृ त
ेममय रह है. इसका
सबसे बड़ा उदाहरण वसंत पंचमी का पावन पव है. वसंत पंचमी को वसंतो सव और मदनो सव भी कहा जाता है. कामदे व के
ाचीन काल म ि
प म पूजा करती थीं,
सव थम मानव
दय म
य क इसी
यां इस दन अपने प त क
दन कामदे व और र त ने
ेम और आकषण का संचार कया था. यह
आकषण दोन के अटू ट संबध ं का आधार बना, संतानो प वसंत पंचमी का पव माघ मास म शु ल प
ेम और
का मा यम बना.
क पंचमी के दन मनाया जाता है,
इस लए इसे वसंत पंचमी कहा जाता है. इस दन व या क दे वी सर वती क
पूजा-अचना क जाती है. भारत स हत कई दे श म यह पव हष लास के साथ
मनाया जाता है. इस दन घर म पीले चावल बनाए जाते ह, पीले फूल से दे वी सर वती क पूजा क जाती है . म हलाएं पीले कपड़े पहनती ह. ब चे पील पतंगे उड़ाते ह. व या के
ारंभ के लए ये दन शु भ माना जाता है. कलाकार के लए
इस दन का वशेष म व है.
ाचीन भारत म पूरे वष को िजन छह ऋतु ओं म वभािजत कया जाता था, उनम
वसंत जनमानस क कं ु भ रा श म
य ऋतु थी. इसे मधुमास भी कहा जाता है . इस दौरान सू य
वेश कर लेता है . इस ऋतु म खेत म फ़सल पकने लगती ह, वृ
पर नये प े आ जाते ह. आम पर क शाख़ पर बौर आ जाता है. उपवन म रं ग-
बरं गे पु प खलने लगते ह. चहु ंओर बहार ह बहार होती है. रं ग- बरं गी तत लयां
वातावरण को और अ धक सु ंदर बना दे ती ह. वसंत का धा मक मह व भी है.
अथात ् दे वी! िजस उसी
वागत करने के लए माघ मास
म वसंत पंचमी को ऋ ष पंचमी से
तथा अनेक का य थ ं म भी अलग-
अलग ढं ग से इसका च ण मलता है . मा यता है क सृि ट के भगवान व णु क आ ा से
ारं भक काल म
मा ने जीव क रचना क , परं तु इससे वे संतु ट
नह ं थे. भगवान व णु ने अपने कमंडल से जल छड़का, िजससे एक चतु भु जी सु ंदर
ी
कट हु ई, िजसके एक हाथ म वीणा तथा दूसरा हाथ वर मु ा म था.
अ य दोन हाथ म पु तक एवं माला थी.
मा ने दे वी से वीणा बजाने का
अनुरोध कया. जैसे ह दे वी ने वीणा का मधुरनाद कया, वैसे ह संसार के सम त जीव-ज तु ओं को वाणी
ा त हो गई. जलधारा म कोलाहल या त हो गया. पवन
चलने से सरसराहट होने लगी. तब
मा ने उस दे वी को वाणी क दे वी सर वती
के नाम से पुकारा. सर वती को बागी वर , भगवती, शारदा, वीणावादनी और वा दे वी स हत अनेक नाम से पूजा जाता है . वे व या और बु ध ह. संगीत क उ प
उनके ज मो सव के
दान करती
करने के कारण वे संगीत क दे वी कहला . वसंत पंचमी को
प म भी मनाते ह. ऋ वेद म भगवती सर वती का वणन
करते हु ए उ लेख गया है-
अथात ये परम चेतना ह. सर वती के
प म ये हमार
बु ध,
व प का वैभव अ भु त है.
मा यता है क वसंत पंचमी के दन दे वी सर वती पूजा करने और वाणी मधुर होती है , मरण शि त ती है तथा व या म कुशलता "यथा वु दे व भगवान
ा त होती है.
होती है, ा णय को सौभा य
मा लोक पतामहः।
वां प र य य नो त ठं न, तथा भव वर दा।।
वेद शा
ा तथा
का ह. हमम जो आचार और मेधा है, उसका आधार भगवती
सर वती ह ह. इनक समृ ध और
ा ण सवा ण नृ य गीता दकं चरे त ्।
वा दतं यत ् वया दे व तथा मे स तु स धयः।। ल मीवदवरा रि टग र तु ि टः
भाम तः।
तथा नृ य गीता द जो भी व याएं ह,
वे सभी आपके अ ध ठान म ह रहती ह, वे सभी मु झे
ा त ह . हे भगवती
सर वती दे वी! आप अपनी- ल मी, मेधा, वरा रि ट, गौर , तु ि ट, इन आठ मू तय के
वारा मेर र ा कर.
पुराण के अनुसार भगवान
ीकृ ण ने सर वती से
भा तथा म त-
स न होकर उ ह वरदान
दया था क वसंत पंचमी के दन तु हार भी आराधना क जाएगी. इस तरह
भारत के कई ह स म वसंत पंचमी के दन व या क दे वी सर वती क भी पूजा होने लगी.
ेता युग म िजस दन
वह वसंत पंचमी का ह
दन था.
गुजरात के डां ग िजले म िजस यह ं आकर बैठे थे. इस
ीराम शबर मां के आ म म पहु ंचे थे,
ीराम ने भीलनी शबर मां के झू ठे बेर खाए थे.
थान पर शबर मां के आ म था, वहां आज भी
धालु आते ह.
वसंत पंचमी के दन मथु रा म दुवासा ऋ ष के मं दर पर मेला लगता है. सभी मं दर
म उ सव एवं भगवान के
बहार जी मं दर म बसंती क
ा त होता
वशेष शृंगार होते ह. वृंदावन के
ीबांके
खुलता है . शाह जी के मं दर का बसंती कमरा
स ध है. मं दर म वसंती भोग रखे जाते ह और वसंत के राग गाये जाते ह
वसंम पंचमी से ह होल गाना शु है.
इस दन ह रयाणा के कु
वशेष पूजा-अचना होती है. य क यहां
े
हो जाता है.
स रता के तट पर इस के तट पर व वा म
े
ज का यह पर परागत उ सव
िजले के पौरा णक नगर पहोवा म सर वती क
पहोवा को सर वती का नगर भी कहा जाता है,
ाचीन समय से ह सर वती स रता म अनेक
ाचीन तीथ
वा हत होती रह है . सर वती थल ह. यहां सर वती स रता
जी ने गाय ी छं द क रचना क थी. पहोवा का सबसे
मु य तीथ सर वती घाट है, जहां सर वती नद बहती है. यहां दे वी सर वती का अत
ाचीन मं दर है. इन
ाचीन मं दर म दे शभर के
वसंत पंचमी का सा हि यक मह व भी है. इस वभू त महाक व सू यकांत
दन
धालु आते ह. यहां
ह द सा ह य क अमर
पाठ ' नराला' का ज म दवस भी है. 28 फरवर , 1899
को िजस दन नराला जी का ज म हु आ, उस दन वसंत पंचमी ह थी. वंसत क वय क अ त
त रखने से
ीराम
थान पर शबर माता का मं दर भी है, जहां दूर-दूर से
भ य शोभाया ा नकलती है.
णो दे वी सर वती वाजे भविजनीवती धीनाम ण यवतु।
मनोवृ य क संर
कार आप भी हम वर द िजए क हमारा भी कभी अपने प रवार के लोग से
वयोग न हो. हे दे वी! वेदा द स पूण शा
के पांचवे दन महो सव का आयोजन कया जाता था. इस उ सव म भगवान उ ले खत कया गया है, तो पुराण -शा
मा आपका कभी प र याग नह ं करते,
एक शला है. लोग इस शला क पूजा-अचना करते ह. बताया जाता है क
वसंत ऋतु का
व णु और कामदे व क पूजा होती थी. शा
कार लोक पतामह
य ऋतु रह है. कालजयी रचनाकार रवीं नाथ टै गोर ने वसंत
ऋतु के मह व को दशाते हु ए लखा है-
आओ आओ कहे वसंत धरती पर, लाओ कु छ गान
ेमतान
लाओ नवयौवन क उमंग नव ाण, उ फु ल नई कामनाएं घरती पर हंद
सा ह य म छायावाद
युग के महान
मनोहार वणन करते हु ए कहते ह-
तंभ सु म ानंदन पंत वसंत का
चंचल पग द प शखा के धर
गृह मग वन म आया वसंत। सु लगा फागुन का सू नापन स दय शखाओं म अनंत।
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सौरभ क शीतल
वाला से
फैला उर-उर म मधुर दाह आया वसंत भर पृ वी पर व गक सु ंदरता का
वाह।
वसंत पंचमी हमारे जीवन म नव ऊजा का संचार करती है . ये नरं तर आगे बढ़ने क
ेरणा दे ती है. िजस तरह वृ
पुराने प
को याग कर नये प े धारण करते
ह, ठ क उसी तरह हम भी अपने अतीत के दुख को याग कर आने वाले भ व य के
व न संजोने चा हए.
लेखक का प रचय
उ र दे श के दे व रया जनपद के पटनेजी गाँव म ज मे डा.सौरभ मालवीय बचपन से ह सामािजक प रवतन और रा - नमाण क ती संगठन से जु ड़े हुए है. जगतगु
आकां ा के चलते सामािजक
शंकराचाय एवं डा. हे डगेवार क सां कृ तक
चेतना और आचाय चाण य क राजनी तक
ि ट से
भा वत डा. मालवीय का
सु प ट वैचा रक धरातल है. ‘सां कृ तक रा वाद और मी डया’ वषय पर आपने शोध कया है. आप का दे श भर क
व भ न प -प काओं एवं अंतजाल पर
समसाम यक मु द पर नरंतर लेखन जार है. उ कृ ट काया के लए उ ह अनेक पुर कार से स मा नत भी स मान, व णु सि म लत
ह.
कया जा चु का है, िजनम मोतीबीए नया मी डया
भाकर प का रता स मान और सं त-
माखनलाल
व व व यालय, भोपाल म सहायक
ह. मोबाइल-09907890614
चतु वद
व ता डाट काम स मान आ द
रा
य
प का रता
एवं संचार
ा यापक, जनसंचार वभाग के पद पर कायरत
ई-मेल- malviya.sourabh@gmail.com drsourabhmalviya@gmail.com वेबसाइट-www.sourabhmalviya.com
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ऋ ष पव- एक खू बसू रत मौसम का आगाज़
(VII) वर दे , वीणा वा द न ! -सु धाकर अद ब कृ त जब शीतकाल के अवसान के प चात ् नवल
व प धारण करती है, तब
मनु य धरती पर व या और संगीत क अ ध ठा ी दे वी मां सर वती का आ वान एवं पूजन करते ह, जो उनम नव रस एवं नव
फू त का संचार करती है.
यह वह आनंदमय समय होता है, जब खेत म पील -पील सरस गेहू ं और जौ के पौध म बा लयां
कट होने लगती ह, आ
खल उठती है,
मंज रयां आम के पेड़
पर वक सत होने लगती ह, पु प पर रं ग- बरं गी तत लयां मंडराने लगती ह,
मर
गु ज ं ार करने लगते ह, ऐसे म आता है 'वसंत पंचमी' का पावन पव. इसे ऋ ष पव भी कहते ह.
माता सर वती िज ह मां वाणी, मां शारदा, वा दे वी, हंसवा हनी, वीणापा ण,
वागी वर , भारती और भगवती इ या द अनेक नाम से भी जाना जाता है, उनका माघ माह के शु ल प
म पंचमी के दन
ायः सभी आ थावान क व, लेखक,
गायक, वादक, संगीत , नतक, कलाकार और ना य वधा इ या द से जु ड़े हु ए लोग पूजन एवं वंदन करते ह. वसंत पंचमी के दन पर लगाकर और उनका
धालु जन
ातः उठकर बेसन और तेल का उबटन शर र
नान करते ह. इसके बाद पीले व
धारण कर मां शारदा क पूजा
यान करते ह. केशरयु त मीठे चावल का भोग लगाकर, साद
हण
करते ह. सर वती मां के पूजन का वा त वक अथ तभी है , जब हम अपने मन से
ई या- वेष, छल-कपट, ऊंच-नीच और भेदभाव जैसे तु छ वकार को वसिजत कर शु ध एवं सकारा मक सोच को अपनाएं, तभी मां वीणापा ण क अबाध अहैतक ु कृ पा हम पर संभव होती है.
व तु तः सर वती का
यान जड़ता को समा त कर मानव मन म चेतना का संचार
करता है. सर वती का यह
ानदा यनी मां का
अनेक दे श म व भ न नाम से जाती ह. उदाहरण के
लए हमार
व प भारत म ह नह ,ं व व के
च लत है और वे
धापूवक वहां भी पूजी
'सर वती' बमा म 'थु यथद ', थाईलड म
'सु रसवद ', जापान म 'बजाइतेन' और चीन म ' बयानचाइ यान' कहा जाता है. भारतीय वां मय म सर वती के िजस
व प क प रक पना हु ई है, उसम दे वी का
एक मु कान यु त मु ख, चार हाथ और दो चरण ह. वे एक हाथ म माला, दूसरे
हाथ म वेद ह, शेष दो हाथ से वे वीणावादन कर रह ह. हंस उनका वाहन है. दे वी के मु खार वंद पर ि मत मु कान से आतं रक उ हास
मां सर वती क कृ पा होने पर महामू ख भी महा ानी बन सकते ह. िजस डाल पर
भाव संचार एवं कला मकता क
यह एक बहु ु त
संप न होता है और ववेक ह सतबु ध कारक त व होता है. अतः माता सर वती
बैठे, उसी को काटने वाले जड़ बु ध का लदास कैसे एक दन महाक व बन गए,
वेद पु तक से
कृ पा के बना सा ह य और संगीत क साधना अधूर है.
को नमन करने से च
टा त है. सर वती क आराधना से ह यह संभव हु आ. उनक
ाचीन ऋ ष-मु नय ने
ान, संगीत और कला क दे वी सर वती क
श द म क है, उनसे उनक प व
छ व इस
" वेत कमल के पु प पर आसीन, शु शु वसना, भारती क
कार
कट होती है-
तु त िजन
हंसवा हनी, तु षार धवल काि त से संयु त,
फ टक माला धा रणी, वीणा मं डत करा,
ु त ह ता" ऐसी भगवती
स नता क कामना क जाती है. यह जन-आ था है क मां सर वती
क कृ पा मनु य म व या, कला, क धवल अंग
यो
ान तथा
तभा का
काश दे ती है. यश उ ह ं
ना है. वे स व पा, ु त पा, आनंद पा ह. व व म
क वह करक ह. वे व तुतः अना द शि त भगवान संगीत क सृजनक
मा क सृि ट म
सहयो गनी ह.
आधु नक ह द सा ह य जगत म महा ाण नराला
ी स दय
म साि वक भाव और कला मकता क सहज अनुभू त
ाचीन शरदापीठ का मं दर पाक अ धकृ त क मीर म नीलम िज़ले म है,
जो अब एक खंडहर के का एकमा
फ टक क माला से अ या म और
ान का बोध होता है . उनका वाहन हंस है जो नीर- ीर ववेक
होती है. वैसे तो
तीक है.
कट होता है. उनक वीणा
प म वहां भ नाव था म ि थत है. भारत म मां शारदा
मं दर एवं स धपीठ म य
दे श के सतना िज़ले म
अपनी संपण ू भ यता के साथ ि थत है , जहां पहु ंचने के
कू ट पवत पर
लए लाख दशनाथ
लगभग एक हज़ार सी ढ़यां चढ़कर दशनाथ जाते ह. अब तो वहां जाने के लए रोप-वे क भी आधु नक सु वधा हो गई है.
वर और
वारा र चत 'सर वती वंदना'
सवा धक लोक य है और अ सर सार वत समारोह के
ारंभ म गाई जाती है-
"वर दे , वीणा वा द न वर दे ।
य
वतं -रव अमृत -मं
नव
भारत म भर दे । काट अंध-उर के बंधन- तर बहा जन न
यो तमय नझर,
कलु ष-भेद-तम हर
काश भर
संपक सु धाकर अद ब
जगमग जग कर दे ।
चं
नव ग त, नव लय, ताल-छं द नव
से टर – 9, इं दरानगर
नवल कंठ, नव जलद-मं
लखनऊ – 226016
रव,
नव नभ के नव वहग-वृंद को नव पर, नव
सदन, 15 – वैशाल ए
लेव
newsdesk.starnewsagency@gmail.com
वर दे ।"
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(VIII) ी
ी र वशं कर जी आगामी माच म यमु ना क ज़मीन को र दने आ रहे ह।
खाल को बेकार न समझ
ी द वान संह, द ल का पानी और ह रयाल बचाने को लेकर कर ब एक दशक
या
से ज दोजहद कर रहे ह। उनक मांग है क मु ंडका और आसपास क आठ लाख
बदा त नह ं खाल म खलल
क आबाद को सांस लेने के लए कोई खुल जगह चा हए क नह ं ? कहते ह क यहां खेलने व खु ले म सांस लेने के लए ले-दे कर यह तो एक जगह है। सरकार
खाल ज़मीन: अनु चत नज़ रया
को चा हए क वह इसे एक जैव व वधता पाक और खेल के व वध मैदान के प म वक सत करे , न क औ यो गक
संभवतः द ल क पूववत और वतमान सरकार यह सोचती ह क नमाण ह
खाल पङ जगह का एकमेव उपयोग है। यमु ना क ज़मीन पर खेल गांव नमाण के
वरोध म हु ए ’यमु ना स या ह’ को याद क िजए। इस बाबत ् त काल न
लोकसभा य मु यमं ी
ी सोमनाथ चटज के एक प
ीमती शीला द
त ने
के जवाब म द ल क त काल न
लखा था - ’’हाउ कैन वी ले ट सच एन
वे युबल लड, अनयू ड’’ अथात ’इतनी बहु मू य भू म को हम बना उपयोग कए कैसे छोङ सकते ह।’ द ल ने एक ओर शीला द
त जी को यमु ना सफाई
अ भयान चलाते दे खा और दूसर ओर यमु ना क ज़मीन को लेकर यह नज रया! कभी इसी नज रए के चलते भाजपा के के
य शासन ने यमु ना क ज़मीन पर
अ रधाम मं दर बनने दया और कालांतर म खेलगांव, मे ो डपो, मा◌ॅल और मकान बने। िजस यमु ना तट के मोटे को पानी पलाने क
पंजनुमा रे तीले ए यूफर म आधी द ल
मता लायक पानी संजोकर रखने क
सरकार, मु ंडका क इस जमीन पर औ यो गक थानीय कायकता,
प म। गौरतलब है क द ल े
बनाने के फेर म ह और
ी द वान संह के नेत ृ व म ’मं◌ुडका कराङ ह रत अ भयान’
बनाकर इसका वरोध कर रहे ह। नयोजन क िजए, नजीर ब नये उ त नजीर से
प ट है क आबोहवा को लेकर सरकार को अपने नज रये मं◌े
सम ता लानी होगी। समझना होगा
क
द ल
द ल वा सय क सेहत क क मत पर नह ं।
को उ योग भी चा हए, कं तु
समझना होगा क सफ हवा ह नह ं होती, आबोहवा! आबोहवा को दु
त रखने के
त रखना होगा। हमारे नगर
नयोजक को सोचना होगा खाल पङ जमीन बेकार नह ं होती। बेहतर आबोहवा
सु नि चत करने म खाल और खु ल ज़मीन का भी कुछ योगदान होता है। अतः
यमु ना क जीवन कला भूला, आट आफ़ ल वंग
व थ आबोहवा चा हए, तो नगर नयोजन करते व त कु ल
ऐसे ह एक नज रये क नज़ीर बनने वाला है, आट आ◌ॅफ साल गरह। एक व त था, जब यमु ना ने◌े आ याि मक गु
ी
भीतर एक भ य आयोजन करते दे खा; आज व त है क वह
ी
को यमु ना
के
लए हवा के साथ, आब यानी पानी को भी दु
मता है, उसे हमार
सरकार ने कभी इस नज रये से जैसे दे खा ह नह ।ं
े
ल वंग क 35वीं ी र वशंकर जी
व छता जागृ त के नाम पर द ल के ऐ तहा सक पुराने कले के
आगामी माच म यमु ना क ज़मीन को र दने आ रहे ह।
ी र वशंकर जी
े , कचरा न पादन
े
व अ य खु ले
प का करना ह होगा। कुल नगर य व
े
े ,
हे तु एक सु नि चत अनुपात तो
े फल म नमाण
े
क अ धकतम सीमा
कार भी सु नि चत करना ह चा हए। इससे छे ङछाङ क अनुम त कसी को
नह ं होनी चा हए। हम यह भी समझना होगा क नराई-गुङाई-जु ताई होते रहने से जमीन का मु ंह खुल जाता है। जलसंचयन
मता बरकरार रहती है। अतः जहां
पाक क ज रत हो, वहां पाक बनाय, कं तु पूव इकरारनामे के मु ता बक यमु ना क
यमु ना िजये अ भयान के हवाले से मल खबर के अनुसार, आट आ◌ॅफ ल वंग क 35 वीं साल गरह मनाने के लए, मयूर वहार फेज-एक ( द ल ) के सामने यमु ना क ज़मीन को चु ना गया है। आट आ◌ॅफ ल वंग,
जल
े फल म ह रत
ी
ी र वशंकर जी का
शेष बची ज़मीन पर बागवानी
म
त सहज खेती के
लए होने द; पूणतया
अनुकू ल जै वक खेती। रासाय नक खेती क कोई अनुम त यहां न हो। सम से ह बचेगी आबोहवा क शु धता और नवास क सम ता।
सोच
ह एक उप म है। उसक साल गरह का आयोजन साधारण नह ं होता। यह लाख लोग और गा ङय का जमावङा होता है। उसके
लए एक बङे तामझाम और
ढांचागत यव था क ज रत होती है। यमु ना िजये अ भयान ने वक प के सफदरजंग हवाई अ डे का रा
प म
थान भी सु झाया है और यह भी याद दलाया है क
य ह रत पंचाट के आदे शानुसार अब द ल म यमु ना के बाढ़
े
म कोई
नमाण नह ं कया जा सकता। गौर क िजए क पंचाट क पहल पर बनी
धान
स म त, जहां एक ओर यमु ना को उसक ज़मीन वापस लौटाने क योजना पर काम कर रह है।
प ट है क यमु ना क ज़मीन पर ऐसा कोई भी आयोजन,
पंचाट क मज और यमु ना क शु चता के खलाफ होगा। शंका है क आयोजन के
बहाने यमु ना जी के सीने पर कह ं ’आट आ◌ॅफ ल वंग धाम’ नाम क इमारत न खङ हो जाये। यह लेख लखे जाने तक अनुरोध, अनु रत है। उ मीद है क
अ ण तवार
जीवन जीने क कला म खलल डालने से बचेगा; साथ ह वह भी यह भी नह ं
9868793799
लोग को जीवन जीने क कला सखाने वाला ’आट आ◌ॅफ ल वंग’, यमु ना के चाहे गा क उनके आयोजन म आकर कोई यमु ना
म े ी खलल डाले।
146, सु ंदर लाक, शकरपुर , द ल -92 amethiarun@gmail.com
मु ंडका: खाल म बदा त नह ं खलल खाल ज़मीन को लेकर ऐसे ह नज रये का अगला शकार बनने जा रह क ज़मीन है: मु ंडका म मौजू द 147 एकङ म फैला मैदान। जु झा
द ल
कायकता
ी
द वान संह कहते ह क मु लाकात के बावजू द वह इस बाबत ् द ल के मु यमं ी का नज रया नह ं बदल पाये। वह मु यमं ी पाये, क वायु
ी अर वंद केजर वाल को नह ं समझा
दूषण म उ योग का योगदान, वाहन से कम नह ं है।
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(IX) ढाई सौ वष से भी अ धक
ाचीन जलाशय के सू खने से
नगरवासी चं तत
उबारने के लए महाराजा सभा संह ने राहत काय शु शु
कराया। अकाल के समय
कराये गये इस राहत काय से ह प ना शहर के नकट मदार टु ं गा पहाड़ी क
तलहट म वशाल धरमसागर तालाब का नमाण हु आ।
तालाब के म य बना है शव मि दर
धरमसागर तालाब का नमाण महाराजा सभा संह
वारा सन ् 1745 से 1752 के
बीच कराया गया था। बताया जाता है क धरमसागर तालाब का नमाण िजस थान पर कराया गया, वहां पर पहले से ह एक
धरमकु ड के नाम से जाना जाता था। इस कुछ के
ाकृ तक जल त
ोत था। िजसे
गाढ़ धा मक आ थाओं
के चलते महाराजा सभा संह ने कु ड के ऊपर भ य शव मं दर का नमाण कराया। तदुपरांत मि दर के चार तरफ तालाब क खु दाइई का काय शु
हु आ।
धरमसागर तालाब का जबसे नमाण हु आ है तब से यह कभी जल वह न नह ं हु आ। पहल बार ऐंसा हो रहा है क जब यह कगार पर आ पहु ँचा है।
ाचीन जलाशय जल वह न होहने क
अवसर का कया जाय सदुपयोग
ाचीन जलाशय का सू खना प ना शहर के लए च ता क बात है ले कन इस
अवसर का सदुपयोग कर भ व य क
च ता व जल संकट से नपटने क माकूल
यव था के लए कया जाना चा हए। 75 एकड़ रकवा वाले धरमसागर तालाब के
गहर करण का काय यथाशी
प ना शहर के जीवन का आधार है 75 एकड़ का यह वशाल तालाब प ना। र नगभा धरती प ना के जीवन का आधार रहा ढाई सौ वष से भी अ धक ाचीन धरमसागर तालाब तेजी के साथ सूख रहा है। हमेशा कंचन जल से लवरे ज
रहने वाले 75 एकड़ म फैले इस तालाब का 80 फ सद से भी अ धक सू खकर मैदान म त द ल हो गया है। तालाब के भराव के लोग न य-
या से
नवृ
होने के
े
ह सा
का उपायोग आस-पास
लए कर रहे ह, फल व प धरमसागर
को
ारंभ हो, इस दशा म जन त न धय व
भावी पहल करनी चा हए। तालाब का गहर करण होने से इसक जलधारण
मता म वृ घ होगी िजसका उपयोग भ व य म प ना शहर के लए पेयजल क
आपू त म कया जा सकेगा। चू ं क तालाब का 80 फ सद इस लए गहर करण का काय हर हाल म इसी माह
जू न माह के पूव ह तालाब का गहर करण हो सके।
तालाब अब नरक सागर म त द ल होता जा रहा है। तालाब के घाट मं हर तरफ
टू टे घाट व मि दर का हो जीण धार
िज मेदार नाग रक को वच लत और चं तत कर रहा है।
गंदगी से पट चु के ह। इन घाट क साफ-सफाई
गंदगी का अ बार लगा है, जलाशय क दुदशा का यह नजारा प ना शहर के हर
उ लेखनीय है क हर -भर पहा ड़य के बीच त काल न बु दे ला राजाओं
वारा जब
प ना शहर को बसाया गया था, उसी समय इस खू बसू रत झीलनुमा जलाशय का नमाण कराया गया था। बा रश के पानी का संचय कर उसके वतरण क जो यव था प ना रयासत के राजाओं ने ढाई सौ वष पूव क थी वह आज भी एक
मशाल है। ऊँची-ऊँची पहा ड़य से घरा यह छोटा सा शहर पानी के मामले म
स दय
से आ म नभर रहा है। बु दे ला राजाओं ने प ना शहर के आस-पास
तालाब क पूर
ख ृं ला का नमाण कराया था। शहर के आस -पास मौजू द इन डेढ़
दजन से भी अ धक तालाब म धरमसागर तालाब सभी का सरमौर है, यह तालाब प ना शहर के लोग क धड़कन है। यह इ ह ं तालाब का ह क र मा है क
पवत क गोद म बसे इस शहर के अ धकांश कु य गम के मौसम म भी पानी से लबालव भरे रहते ह। ले कन अपने नमाण के बाद बीते लगभग 270 साल म
धरमसागर तालाब पहल बार सू खा है। सूख चुके तालाब के घाट सू ने पड़े ह और गंदगी से पट रहे ह। इस जीवनदायी तालाब का पूर तरह से सूखना, प ना शहर म भीषण जल संकट आने का संकेत है।
दा तान है। महाराजा छ साल के पु पेयजल संकट बरकरार रहा। ले कन
दयशाह के शासनकाल तक प ना म
दयशाह के बड़े पु
महाराजा सभा संह ने
जब सन 1739 म प ना रयासत क बागडोर संभाल , तब उ ह ने रयासत क जनता को जल संकट से नजात दलाने के लए सोच- वचार करन शु महाराजा सभा संह के प ना नरे श बनने के 5 साल बाद ह अकाल पड़ गया। इन हालात म अकाल के
कया।
रयासत म भीषण
ह सा सू ख चुका है
ारंभ हो जाना चा हए। ता क
तालाब के घाट से पानी कई फट दूर तक सूख चु का है। िजसके कारण घाट गर करण के साथ
ारंभ कराया जाना चा हए।
व जीण घार का काय भी
वशालकाय तालाब के म य म
ि थत शव मि दर क भी मर मत व जीण घार का काय कराया जाना ज र है। यह
ाचीन मि दर धरमसागर तालाब क शोभ है तथा जन आ था का के
भी है। जीण-शीण हालत म पहु ँच चु के शव मि दर का जीण घार हो जाने से ाचीन मि दर का जहां संर ण होगा वह ं धरमसागर तालाब क सु दरता और
बढ़ जाएगी।
दलगत राजनी त से ऊपर उठकर ह प ना शहर क
यासः बु दे ला
ाचीन धरोहर जीवनदा यनी धरमसागर तालाब के संर ण,
गहर करण व जीण घार के काय हेतु दलगत राजनी त से ऊपर उठकर सामू हक यास होना चा हए। यह बात नगर पा लका प रषद प ना के पूव अ य
बृजे
संह बु दे ला ने धरमसागर तालाब क दुदशा पर च ता जा हर करते हु ए कह ।
उ ह ने कहा क यह दुभा यजनक बात है क तालाब जल वह न होने क कगार
पर है ले कन इस दुभा य को सौभा य म भी बदला जा सकता है। इसके लए जन त न धय व कहा क य द शी
प ना शहर क पहचान बन चुके धरमसागर तालाब के नमाण क भी बड़ी रोचक
शासन
शासन को
काय
प ना-म य भारत
ी बु दे ला ने
ारंभ नह ं कराया गया तो हम जनसहयोग से घाट क
सफाई व जीण घार का काय अ ण संह
ढ़ इ छा शि त दखानी होगी।
ारंभ करगे।
दे श
aruninfo.singh08@gmail.com
भाव से रयासत क जनता को
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(X) Dudhwa National Park – Best Place to Spot Big 4 Attracting Features: Dudhwa National Park attracts most of the visitors with the 2 crore wide area in Kishanpur Wildlife Sanctuary. Like other parks such as Jim Corbett National Park, Bandhavgarh National Park and Kaziranga National Park, all the features in this Dudhwa National Park are widely maintained by the government with the appropriate facilities. The ideal habitat in the Dudhwa National Park is quite useful for the wild creatures and it is convenient with the nature's serenity. Booking for the accommodation and Jeep safari booking is enabled in the online so that it will be convenient to get the fantastic view of all the wildlife in the beautiful forest. Dudhwa tiger reserve India is fully maintained with many differ attractive features.
Dudhwa Tiger Reserve or Dudhwa National Park is one of the great paradises located in the border of Nepal. The Dudhwa National Park is in the Lakhimpur & Kheri district, Uttar Pradesh and it lies adjacent to Indo-
Faiz Alam faizlimra@gmail.com http://dudhwa.co.in/
Nepal border that will bring together many different incredible sanctuaries. Some of the sanctuaries are Kishanpur Wildlife Sanctuaries and Katerniaghat Wildlife Sanctuaries. These represent the wide area of natural greenery forests that is inhabited by a variety of animals in Terai region. Mohana River flows near to the northern boundary of the park so that it will be quite efficient for getting the suitable water supply and makes the place suitable for wildlife living. Southern boundary has the beautiful river Suheli making the forest to have the most wonderful view. Kishanpur Sanctuary is also located near to the Lakhimpur Kheri as well as Shahajahanpur districts, Uttar Pradesh. Dudhwa National Park is spread in the 811 sq km that holds the way for nature lover for marshes, dense forests and grasslands. There are many different Tigers species and Swamp Deer available in this most beautiful region enabling the tourist across the world to visit this most beautiful place.
Dudhwa Big 4 & Wildlife:
Dudhwa National Park is the home for many wildlife species such as Elephant, Tiger, Leopard and Rhinoceros these comes under the Big 4 of wildlife. Swamp Deer, Sambar Deer, Spotted Deer, Blue bull, Sloth bear, Hog deer and many more are the wildlife animal species of Dudhwa National Park. Apart from other wildlife sanctuaries, the Dudhwa National Park offers the most wonderful way of animal living and it will be convenient for increasing the better educational research in the best manner. Some of the other animals that are located in this beautiful region are Langur, Otter, Monitor lizard, Python, Mugger, Sloth bear, Gharial and many more.
Dudhwa National Park has more than 450 birds so it will be more entertainment while visiting these most beautiful forests. Most famous birds here are Hornbill, Pea fowl, Red Jungle Fowl, Serpent eagle, Fishing eagle, Indian Pitta, Shama, Bengal Florican, Fishing eagle, Bengal Florican, Osprey, Woodpeckers, Orioles and many more. A wide variety of migratory birds from all over the world visits this most beautiful spot. The park is considered as the paradise for most of the wild animals and birds making their home convenient. Dudhwa National Park is also the best place for doing a wide research about the wildlife.
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(XI)
Research Paper
Dudhwa Live
Available at online at http://www.dudhwalive.com
ISSN 2395-5791 (Online)
*http://www.dudhwalive.com/2016/02/relevance-of-mahatma mahatma-gandhis-philosophy.html International Journal of Environment & Agriculture Vol.6, no.2, Feb 2016
Article Info Article History: Received 5th February, 2016 Received in revised form 6th February, 2016 Accepted 7th February, 2016 Published online 7th February, 2016
Key Words: Mahatma Gandhi, Development, Wardha, Industrialization, Environment,
Research Article
वतमान वकास क संरचना म गाँधीवाद वैकि पक वकास क आव यकता एवं उपयो गता भारती दे वी वकास एवं शां त अ ययन वभाग, सं कृ त व यापीठ, महा मा गाँधी अंतररा आज स पूणमानव स यता एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहाँ पर वनाश का संकट सर पर मंडरा रहा है। व व के हर ह से म अलग-अलग तरह क
ाकृ तक आपदाएं दे खने को
मल रह ह। लाख लोग इन आपदाओं का शकार हो रहे ह। इन सब का कारण हमारे
आधु नक अ नयं त वकास को बताया जा रहा है। इस तरह से हमने अपने अि त व को समा त करने के सामान आधु नक वकास के नाम पर एक त कर लये ह।
कं ग के श द म बताते ह, क यह ऐसा युग है जहाँ क मसाइ स को उ चत दशा है
परं तु लोग को नह ं । जब तक क इस युग के मनु य को उ चत दशा ा त नह ं होगी दशा म नह ं ले जाया जा सकता है। गांधी का वकास का
स धांत इस संदभ म आ थक आव कयता और इसक चाह म अ तर को प ट करता 1 है । वतमान प रि थ त का य द सू मता से आंकलन कया जाए तो पता चलता है क आज मानवजा त के सामने वकास क अं तम पायदान आ चुक
है जो क
वकास को
वपर त दशा म चलने को नद शत कर रह है। वकास के दु प रणाम को दे खते हु ए
यह महसूस कया जा रहा है, क इसे कस दशा म मोड़ा जाए िजसे जानने का अथक यास न केवल वै ा नक तर पर कया जा रहा है बि क सामािजक तर पर भी लोग
ने सोचना ारंभ कर दया है। उ नीसवी सद के अंत म जब उपभोगवाद स यता अपने उ कष पर थी, उसी समय रि कन, थोरो, टाल टाय , आ द पि चम के वचारक ने कई मूलभूत
न खड़े कए और भ व य के बारे म चंता य त क थी। इस संदभ म
चंता जताते हु ए गैर पि चमी वचारक
1
म गांधी का मह वपूण
थान आता है,
JanardanPandey (ed.),Gandhi and 21st Century, Concept Publishing Company, New Delhi, 1998, p. 274.
व व व यालय यालय, वधा (महारा
}
िज ह ने 1909 म इसी वषय को ह द वराज म अ धक तीखे ले कन व वासपूण 2 म आगे बढ़ाया । वकास के िजन भयानक खतर के
वर
त आगाह बीसवी सद के ारं भ म कया गया था,
सद के अंत तक आते-आते हम आधु नक स यता पर मंडराते खतर से ब ह ने लगे।
आधु नक औधौगीकरण ने संपण ू व व के सामने जो वकास का ढाँचा तैयार कया और
जैसा क जनादन पांडे अपनी पु तक ‘Gandhi and 21st Century’ म मा टन लू थर
तब तक वकास को सह
य हंद
िजसम गर बी एवं अभाव को समा त करने का लुभावना सपना था वह केवल सपना ह रह गया। इसी तरह सामािजक
े म बराबर और यि त
वतं य का तथा राजनै तक
े म जनतं का। इन दशाओ म वकास के नाम पर कु छ हु आ भी, पर अब यह प ट
हो गया है क कु ल मलकर यह सब एक छलावा था । असल मकसद तो अपने मु नाफे के खा तर दु नया के संसाधन पर वशेष वग के वारा क जा जमाने का तथा लोग 3 शोषण के जाल म फंसाये रखने का था । सभी
े
को
म वकास चाहे वह आ थक हो, सामािजक हो, या फर राजनी तक हो इन
सभी म िजस बराबर क बात क गयी थी आज उससे उ ट ह प रि थ तयाँ न मत हो रह ह। जीडीपी म लगातार हो रह वृ ध कसी भी प म गर बी का तर कम करने म कतई कामयाब नह ं दखाई दे रह है बि क गर बी अपने चरम पर है। वकास के सारे
उपाय गर बी को कम करने क बजाय गर बी को कैसे ढका जाए के लए नरं तर यासरत ह। अभाव, मंहगाई, बेरोजगार क सम या ने तीसरे व व के दे श म भयानक धारण कर लया है। व व म वकास के नाम पर दश
प
तशत लोग लगभग संपण ू संसार
के संसाधन पर क जा कर चु के ह। लगातार दोहन से ख नज क समि त का संकट पास 2
स धराज ड ढ़ा,वैकि पक समाज रचना, सव सेवा संघ
वह
काशन, वाराणसी, 2000, पृ. 3.
3
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आता जा रहा है। उपभोग क
वृ
को इस ऊँचाई तक बढ़ा दया गया है क वह
वला सता के चरम पर पहु ँच गयी है, िजसके प रणाम
व प लोबल वा मग और
भयानक पयावरण दूषण के ख़तरे हम प ट प से दे ख रहे ह ।
वै क ि पक वकास क आव यकता -
इलेि
क टे ल ाफ चलना , पूरे महादे श को खेती के लायक बनाना, न दय से संचाई
के लए नहर, भू म से हठात पूर आबाद का उभार आना, कसी पूववत स दय
क
क पना म भी सामािजक म क ऐसी उ पादकता नह ं रह होगी ।
मा स ने भी एक अलग प म कृ त के दोहन और औधोगीकरण क बात क । इससे
पू ज ं ी का संचय होना अव यंभावी था । ले कन इस बात को नजर अंदाज कया क सं चत
ऐसे वकास क आव यकता इस लए महसू स क गयी यो क गांधी जी इस बात से पूर
तरह से सहमत थे क हमार अ धक आबाद गाँव म रहती है इस लए ऐसे वक प क
म सदा कसी उ पाद का
प होता है और यह उ पाद
कृ त से
ा त क चे माल,
ख नज आ द के पांतरण से एवं ऊजा दान करने वाले कोयला, तेल आ द को जला कर ा त होता है । दरअसल अ याधु नक उ योग म मानव
म जो क ऊजा का ह एक
खोज हो क िजसम वे अपने समाज के साथ अ धक सामंज य से जीवन बता सके। 4 तभी हम यह कह सकते ह क हम एक बड़े समानतामूलक समाज का नेत ृ व कर रहे ह
प र कृ त और सं चत प है अपना मह व खोता गया है और मशीन एवं रोबोट धीरे -धीरे
हो या सा यवाद , दोन ह इस उपभो तावाद वकास के कुच
धरती के संसाधन क चे उ धृत पदाथ ह , ख नज ह , या ऊजा दे ने वाला कोयला, 7 पे ो लयम या ाकृ तक गैस इसके अ त दोहन से कुछ दन बाद संकट पैदा होगा ।
समाज के वकास के लए अभी तक जो भी ा प अपनाए गए चाहे वह पूज ं ीवाद
ा प
के शकार होकर एक ह
दशा क तरफ बढ़े । दोन म ह बाजार का भाव अ धक रहा । समाज म िजस समानता
को
था पत करने क बात क जाती थी वह कोई भी वकास का
सफल नह ं हो सका। पू ज ं ीवाद
ा प पूरा करने म
ा प जो क नजी वा म व के आधार पर उधोग का
वकास करके लाभ को समाज के अं तम आदमी तक पहु ँचाने का दावा कर रहा था वह सफ वग असमानता एवं उपभो
ावाद सं कृ त को बढ़ाता रहा इसने संपण ू व व को
बाजार म प रव तत कर दया तथा सभी को खर ददार बना दया ।
इनका काम संभालने लगे ह । इस ि ट से दे खने पर यह तु रंत जा हर होता है क चू क
इनके दोहन से इनके ख़ म होने का संकट पैदा हु आ है| आज संपण ू व व पयावरण दूषण के व व यापी संकट से भी जू झ रहा है िजसने मानव स यता के अि त व पर ह
संकट खड़ा कर दया है ।
यू तो ऊजा संकट और दूषण के भाव इ. एफ. शूमाकर के ‘ माल इस बयूट फुल’,‘ लब आफ रॉम’ के अ ययन ‘द ल म स आफ
ोथ’ के काशन के बाद से ह पछल
मा स ने उ पादन के साधन और इनसे जुड़े उ पादन संबध ं ो को वकास क दशा का
शता द के उ ाध से चचा होने लगी थी । ले कन इस पर दु नया के रा
मान लया क एक तर पर तकनीक और उससे जुड़े उ पादन संबध ं म वरोध पैदा होता
इसके बाद 1944 म
नयामक बता कर एक तरह से तकनीक नयातवाद को ज म दया। उ ह ने यह भी
है, इससे
ां तकार बदलाव क शु आत होती है। पूवकाल म या न पू ज ं ीवाद यव था
के पहले जैसा भी हु आ हो ले कन पू ज ं ीवाद
यव था म उ पादन क तकनीक के
उ पादन संबध ं या न पू ज ं ीप त और मजदूर के संबध ं म वरोध पैदा होता है और इससे ां तकार बदलाव क शु आत होती है ।
पू ज ं ीवाद यव था म उ पादन क तकनीक और उ पादन संबध ं के म य या न पू ज ं ीप त और मजदूर
के संबध ं उनके बीच तनाव पर हावी होते दखते ह ।
त पधा पर
आधा रत पू ज ं ीवाद मजदूर समेत हर नाग रक को ए केलेटेर क एक सीढ़ पर खड़ा कर 5 दे ता है, इस आ वि त के साथ क वह ऊपर उठता जाएगा । ठ क वपर त वक प के प म जहाँ-जहाँ सा यवाद यव था आयी चाहे वह स हो, चीन हो या फर वयतनाम
हो वे सब रा य स ा के नयं ण म ह भ न रह और कलेवर उनका भी पूर तरह से
पू ज ं ीवाद था । इसने भी समाज म समानता था पत करने म नकामयाबी हा सल क । आज चीन पूर तरह से पू ज ं ीवाद यव था को अपना चु का है । आज भी हम वकास के िजस
त दन दे ख रहे ह। वतमान
औद यो गक समाज के नयामक त व 18 वीं 19 वीं सद से परवान चढ़ औद यो गक ां त और इसके वे आदशवाद ह जो इस ग त को औ च य दान करते है। जैसा क
समाज शा म
ी मै स बेबर का मानना था, ईसाई धम के ोटे टट धारा क इस थापना
वशेष भू मका थी जो क
यावसा यक सफलता को ई वर य अनुकंपा मानती थी,
और इसे मानव समाज का सव च और सवजनीय आदश बना डाला। इस मा यता के सावभौम होने से आ थक ग त व धय का
े एवं वैि वक अखाड़ा बन गया है, जहाँ
सभी खलाड़ी मार पछाड़ म लगे रहते ह, िजसम 6 अ धक ब ल ठ बना जाता है । एक तरफ पूज ं ीवाद
त पध क मौत से ऊजा हण कर
तरफ भु खमर , बेरोजगार , आ मह या, अवसाद, आ द को भी बढ़ाती है।
मक के
शोषण और इससे उपजे बाजार के संकट एवं े ड माक साइ कल या न उ पादन क क समझ मा स क अथशा
व वसनीय लगती है। ले कन अनवरत औधो गक
तकनीक म दखाई दे ती है उसके
म दूसरे वचार से अ धक
वकास क जो संभावना पूज ं ीवाद
त मा स म एक स मोहन था। जो क ‘क यु न ट
मैनीफे टो’म जा हर होता है, जहाँ
पू ज ं ीवाद क उपलि धय को इन श द म
ग रमामं डत कया गया है। कृ त क शि तओं को मनु य के मातहत करना , मशीन व रसायन शा
को उ योग और कृ ष म लगाना , भाप से समु
जहाज , रे ल और
Gandhi’s India; Unity in Diversity, National Book Trust of India,
4
New Delhi, First published in 1968, reprinted 2008, p. 73. 5
सि चदानंद स हा, वकास का वैकि पक माडल, पृ 1-2, महा मा गांधी अनतरा
व व व यालय, वधा म 29 दसमबर,2013, के उ घाटन भाषण से लया गया। 6
वह पृ 3।
औ
य गक दे श
योटो
हु ई ।
ोटोकाल नाम से एक समझौता हु आ और तय हु आ क
ीन हाउस गैस का उ सजन 2012 तक 1990 के
तर से 5.2
तशत घटा दगे । इस पर 1995 म मा यता क मु हर लगी , ले कन दु नया के बड़े
औ यो गक दे श और
त यि त सबसे अ धक उ सजन करने वाले अमे रका ने इस पर
अपनी वीकृ त नह ं द । काबनडाई आ साइड का उ सजन 1990 म 22.7 अरब टन था । योटो ोटोकाल म इसे घटाकर 21.5 अरब करने का ल य था। ले कन 2010 म
यह बढ़कर 33 अरब टन हो गया। या न घटाने क बजाए डेढ़ गुना बढ़ गया । दरअसल
औद यो गक ग त के उ माद म दूषण फैलाने वाल गैस के उ सजन को कम करने के ल य को सदै व नजर अंदाज कया गया । आज वकास के
तमान से उपजे भयंकर प रणाम से ऐसे वैकि पक वकास के मॉडल
क अ य धक आव यकता है, जो असमनता को पाटते हु ए पयावरण क र ा म भी योगदान दे सके । गांधी जी तो पहले ह कह चुके थे क यह एक पागल दौड़ है जो हम
सफ़ वनाश क गत म ले जाएगी । उ ह ने धरती क संसाधन क सी मतता एवं
सबक पूर कर सकती है पर लालसा एक क भी नह ं ।
वै क ि पक वकास क उपयो गता वक प क खोज तो दु नया म बहु त ह पहले से हो रह है । परंतु आज सवा धक
आव यकता उन योग को जमीन पर उतारने क है तभी हम स यता को संकट से बचा सकते ह। गांधी के पहले भी लोगो ने वक प पर चचा ारंभ क थी परं तु गांधी इस मायने
म सवा धक उपयु त सा बत हु ए । उ ह ने 1904 से अपने जीवन काल म लगातार वक प का सफल
योग 1947 तक कया । संपण ू दे श के लोगो म इस वैकि पक
वकास से एक ऊजा का संचार हु आ और लोगो म आ म वसवास क भावना भी दे खने को मल वे हमेशा अ हंसक अथ यव था क बात करते ह। तथा वकास श द के थान पर
यव था अ य धक उ पादन कर बाजार को पाट डालती है, दूसर
फ त और संकु चन के च
पहल 1922 के ाजील के ‘ रयो डी जेने रओ’म ह वाले शखर स मेलन म शु
य
मयादा क तरफ ह हमारा यान आकृ ट करते हु ए कहा था क यह आव यकता तो
तमान के साथ जा रहे ह वह हम कस कदर न ट होने
क कगार पर ले जा रहा है उसके उदाहरण हम दन
वारा सा
य ह द
वराज को लाने का समथन करते थे। जो क
वावलंबी जीवन पर आधा रत समानता
मूलक समाज क थापना करता है । उ ह ने वक प के सफल योग म नयी ताल म, 8 खाद , ामउधोग , पर आधा रत ाम वराज क संक पना को साकार करके दखाया। आधु नक भारत और आधु नक वकास के मोह म नेह
ने गांधी के वक प को छोड़
दया था तथा वकास के मशीनी औद यो गक ा प को अपनाया िजससे क समाज म
गैर बराबर का संकट अ धक गहरा हो गया ।
परं तु इन सबके बाद भी कु छ गांधी वाद उनके ह वकास के मॉडल पर चलते रहे और
आज भी वे योग सम त व व को वकास के वैकि पक मॉडल का सफल योग करके अपनाने को ो सा हत कर रहे है िजससे
रे णा लेकर वकास करने से संपण ू व वक
स यता न ट होने से बच सके । िजनम ल मी आ म कौसनी जो क नयी ताल म के मा यम से वकास के वक प का संपण ू ढांचा हमारे सामने
तु त करता है ,यहाँ क
वह पृ 3 ।
7
8
M.K. Gandhi, Constructive Programme; its meaning and place, Navjivan Publishing House, First published in 1941, reprint 2007, p. 9.
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Dudhwa Live
International Journal of Environment & AgricultureVol.6, no.2, Feb 2016
श ा म गांधी के’ Three-H’ head,heart,hand को वा तव म प रप व करने का
उ दे य है| ये श ा ऐसी है जो क संपण ू यि त व का वकास कर सके ।
पयावरण संर ण भी उससे ह
नकाल कर आता है । गुजरात व यापीठ का
श पी काय म भी गाँव को उनके संसाधन से ह यव था पर आधा रत
ाम
म आधा रत अ हंसक अथ
वरा य का काय कर रहा है ।
मगन सं हालय एवं उसका एक वक प का स पूण ढांचा
ाम
क प
ामोपयोगी व ान क
वतमान वकास के
तुत करता है , अ ना हजारे का रालेगड़ स ध, मोहन
ह रा भाई ह रालाल का मेढ़ालेखा एवं हबरे बाजार इसके कुछ मह वपूण उदाहरण
ह, जो क संपण ू स यता को समानता पर आधा रत पयावरण क र ा करते हु ए अ हंसक समाज रचना क आव यकता है।
ओर अ सर करने का
यास कर रहे ह। आज
समाज को जाग क करते हु ए इ ह अपनाने के लए
------------------------,पू ज ं ी का अं तम अ याय, वाणी
काशन, नई द ल , 2008,
Gandhi’s India; Unity in Diversity, National Book Trust of India, New Delhi, First published in 1968, reprinted 2008. M.K. Gandhi, Constructive Programme; its meaning and place, Navjivan Publishing House, First published in 1941, reprint 2007 .
Pandey, Janardan (ed.),Gandhi and 21st Century, Concept Publishing Company, New Delhi, 1998.
े रत करने क
न कष यहाँ पर
वकास के अं तम पग पर आकर कस तरह से हमारा पूरा का पूरा
वकास का उप म वनाश के पग पर चलने लगता है को जानने का
*****
यास कया
गया है, और ऐसे भारत के लए को शश है क िजसम गर ब से गर ब लोग भी वकास का ह सा बन सके और यह महसू स करे क यह उनका उ दे य
इसके नमाण म उनका भी
म मह व पूण भू मका अदा करता है ।
है और
गांधी के ह श द म ह कह तो ऐसे भारत क को सस है िजसम क ऊँचे और नीचे वग का भेद नह ं होगा और िजसम व वध सं दाय से पूरा मेल जोल होगा। ऐसे भारत म अ पृ यता एवं शराब व दूसर नशील चीज का कोई होगा। ि
थान नह ं
य को भी समान अ धकार होगा और वे भी वकास का ह सा ह गी ।
सार दु नया के साथ हमारा र ता शां त का होगा और वकास के फल व प होने वाले
वनाश म सबके साथ
मलकर उपाय
नकालने क को शश सतत बनी
रहे गी। शोषण क राजनी त से इस समाज और दे श को बाहर नकालना है।
ऐसे
भारत क क पना करना ह मेरा उ दे य है िजसम क सभी का स मान हो और सबको काम का समान अवसर हो ।
सं द भ
ं थ सू ची ;
गांधी, महा मा, ह द
वराज, नवजीवन
काशन, अहमदाबाद, 2010 ।
-----------------,मेरे सपन का भारत, नवजीवन ------------------,आ मकथा, नवजीवन ड ढ़ा,
2000।
काशन, अहमदाबाद, 2005 ।
काशन मं दर, अहमदाबाद, 2011 ।
स धराज,वैकि पक समाज रचना, सव सेवा संघ
पटनायक, कशन, वक पह न नह ं है दु नया , राजकमल 2000 ।
न द कशोर, आचाय,स या ह क सं कृ त, बा दे वी ------------------------,अ हंशा व वकोश,
काशन, नयी द ल ,
काशन, बीकानेर, 2008।
ाकृ त भारती अकादमी, जयपुर , 2010 ।
स हा, सि चदानंद,वतमान वकास क सीमाय , वक प
2000 ।
काशन, वाराणसी,
काशन, मुज फरपुर ,
-----------------------,उपभो तावाद सं कृ त का जाल, रोशनाई 2012 ।
काशन, कचरपदा,
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