Dudhwa live, Vol 6, no 3, march 2016

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दुधवा लाइव (व व य जीवन ए एवं कृ ष पर आधा रत अं तरा

य मा सक

प का)

वष: 6, अंक -3, माच, 2016

दुधवा लाइव Dudhwa Live ISSN 2395-5791 (Online)

International Journal of Environment & Agriculture Vol.6, no.3, March 2016

Dudhwa Live Magazine Editor-in in-Chief Krishna Kumar Mishra Website-- www.dudhwalive.com emaileditor.dudhwalive@gmail.com


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दुधवा लाइव प का का गौरै या वशेषांक * सभी पद अवै त नक है

कवर फोटो - अजीत कु मार शाह

दु ध वा लाइव अ तरा त वीर व ् प

य ह द / अं े जी प का म अपने ले ख ,

हम editor.dudhwalive@gmail.com अथवा

dudhwalive@live.com पर

े षत कर .

प ाचार कृ ण कुमार म 77, कैनाल रोड, शव कालोनी, लखीमपु र खीर , उ र

दे श-262701

भारत एडीटो रअल बोड - दु ध वा लाइव ई- प का काशक एडीटर - इन - चीफ * कृ ण कु मार म

( जन ल ट एवं व य जीव वशे ष )

दुधवा लाइव क यु नट आगनाइजेशन लखीमपु र खीर , उ र

दे श, भारत गणरा य

लखीमपु र खीर मोबाइल - +91-9451925997 सलाहकार *

नोट - प का म

का शत आले ख व ् शोध प

के वचार से

स पादक क सहम त अ नवाय नह ं है

सु शां त झा ( जन ल ट एवं ले ख क ) नई द ल मोबाइल -+91-9350712414 ल गल एडवाइज़र * सोमे श अि नहो ी ( एडवोके ट सु ीम कोट ऑफ़ इं डया) नई द ल मोबाइल -+91-9560486600 संपादक मंडल कमलजीत (कृ ष वशेष य, रोहतक-ह रयाणा)* मोबाइल +91-9992220655 आशीष सागर (समाजसेवी, आर ट आई ए ट व ट, बांदा-बु ंदेलखंड)* मोबाइल- +91-9621287464 Page 2


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तु त:

स पादक य- कृ ण कु मार म

हमार

च ड़या

गौरै या और बचपन- डॉ श श

भा बाजपेई

गौरै या- डॉ न पमा अशोक बु ंदेलखंड म गौरे या ननक और गौरौवा यारे लाल का याह हु आ- आशीष सागर

मा करो गौरै या...- डॉ श श

भा बाजपेई

बु ंदेलखंड म आशीष सागर रचाएं गे गौरै या का

याह...-

आशीष सागर थमल पावर संकटः

लां स क वजह से भारत म गंभीर जल

ीनपीस- अ वनाश कु मार

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स पादक क कलम से... कु छ बेतरतीब शेर जो उस च ड़या से बाव ता ह, इन अला हदा शेर जो न म न बन सके,

व व गौरै या

दवस २०१६ के उपल य म उस

च ड़या को

सम पत ह िजसक चहक मन को मोह लेती है हमेशा, च लए हम सब अपने घर के आसपास ह रयाल और इस च ड़या के लए भोजन और पानी के यव था के

य न शु

सु दर आवाज हमार

कर ता क ज द ह रं ग बरं गी च ड़याँ और उनक आँख

और कान

को

कृ त का

हानी एहसास

कराएं...कृ ण

चलो चले उस च ड़या को हं साया जाए...

गौरै या तु झे जब दे खता हू ँ अपने आँगन म तो उसके घर म तेरा वो नशेमन याद आता है .

*

उसने दखाया था तेरा वो घोसला जो उसके उस मकान म था तू मेरे घर को मु त कल नशेमन बना ले तो मु झको तस ल हो.

*

गौरै या तु म रे त म घर दे य बनाती ह जो बखरते है ह क बयार से. चलो आओ माट के घर अब भी तु हारा इंतज़ार करते है .

*

उस च ड़या क चहचहाहट सु ने हु ए मु दत गु ज़र गई. दूर से आती हु ई उसक सस कयाँ मु झे अब सोने नह ं दे ती.

*

चलो चले उस च ड़या को हं साया जाए सू ने से चमन को गु ल तान बनाया जाए.

कृ ण कु मार म

"कृ ण"

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हमार

च ड़या

घर क गौरै या ...................

(आकां ा स सेना, ले खका उ र

रखती है, ह द भाषा के

दे श के ए तहा सक शहर औरै या से ता लु क

सार और मानव अ भ यि तय को अपने लॉग "समाज

और हम "के मा यम से

सा रत और जा हर करती है.)

कसे दे खती हो तु म गौरै या कौन तु ह बुलायेगा गंगा को भागीरथ लाये तु ह कौन ले आयेगा आज दु नया ऑनलाइन है कसके पास आज टाइम है चाँद मंगल पर पानी ढू ढ़ते ़ घर क गौरै या गायब है |

कसे ढू ढ़ती ़ हो तु म गौरै या कौन दाना तु ह चु गायेगा हाथी को ले आये थे भीम तु ह कौन ले आयेगा दु नया आज तु मसे वो

वाथ है या पायेगा

पर ह पूवज को ढू ढ़ते ़ घर क गौरै या गायब है |

कसे सोचती हो तु म गौरै या कौन तु ह पुकारे गा कामधेनु को ले आये थे मु न आज तु ह कौन ले आयेगा दु नया आज

पंची है पर

कु छ ब चे माँ धरती के चं तत है महामशीन से कण ढू ढ़ते ़ घर क गौरै या भी लायक है |

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गौरै या और बचपन- डॉ श श

एक दन क बात है अ मा ने शाम को रोज क ह तरह उसी दन भी लालटे ने

भा बाजपेई

जलाकर रख द थी और रात के खाने क तैयार करने लगी थी। म मँझले बाबा के पास लेट शेख च ल क कहानी सु न रह थी और अ मा रसोई म खाना बना रह थी। दाद आँगन म चारपाई पर से ह कुछ-कु छ हदायत भी दे ती जा रह

थी। थोड़ी दे र बाद च डया ़ अचानक वैसी ह अजीब आवाज म बोलने लगी थी। जैसी

य ता से सहायता के लये बुला रह हो। अ मा तुर त चैके से कमरे म

गई और टाच लेकर डंडे से बल- बल

करके खड़भड़ाया उ हे लगा था क कमरे

म ब ल आ गयी होगी पर ब ल नह ं नकल

च डया ़ अब भी अलगनी पर

बैठ लगातार बोल रह थी। अ मा ने उसे समझाया जाओ घोसल म बैठो कु छ

नह है, बेमतलब घबड़वा दया। पर च डया ़ घोसले म नह गयी। थोड़ी दे र चु प हु ई, फर बोलने लगी अ मा फर पलट । वो जान गई च डया ़ च डया ़ ऐसे ह

नह बोल रह कोई बात ज र है। इस बार अ मा ने टाच लगाकर कमरे ◌े म चार ओर गौर से दे खा

ब ल कह ं नह थी, अचानक जब छत क ओर टाच क

रोशनी डाल तो सर से पाँव तक सहर उठ । घोसले से थोड़ी दूर पर घ नी पर साँप था उसक पूँछ नीचे लटक रह थी। अ मा ज द आ◌ॅगन क ओर भागकर आई बाबा से बताया क ध नी पर साँप है। बाबा तुर त उठे और बाहर तरवाहे पर से दउवा को बुला लाये उनके साथ दो और आदमी थे जो नुक ले ब लम लये

थे। साँप मेरे लये नया जीव था। इस लये भय का कोई मतलब ह न था। म भी बचपन क याद म गौरै या

ाणसखी को तरह रची-बची है। वैसे तो गौरै या गाँव-

बीता। शारदा नद के कनारे

कृ त क सु र य गोद म बसा मेरा यारा गाँव और

शहर घर-वन सब जगह है पर गाँव घर क तो महारानी है। मेरा बचपन गाँव म उसम लकड़ी क ध नी, ब ल , थम रया पर टके छानी छ पर वाला माट का घर अभी भी अपनी पूर स धी गंध के साथ मेरे मानस म बसा है।

अ मा ने गौरै या से मेर पहचान उस समय से ह करा द थी जब म बोलना

बैठना चलना भी नह जानती थी। बड़े से आ◌ॅगन म गौरै या के झु ंड के झु ंड आते उ हे ललचाई नगाह से पकड़ने क ललक म घुटनो चलना और दौड़ना सीखकर म दो ढाई साल क हो गयी थी। वैसे तो सभी क माँ माँ मेर गु

भी थी, और दु नया भर क सबसे बड़ी

थम गु

ाता भी

होती है पर मेर

यो क प

य के

बारे म बचपन म उ होन जो बाते बताई आज पढ़- लखकर वह बात बड़े-बड़े शा

के

फुत से दौड़कर सबसे आगे साँप दे खने पहु ◌ॅच गई, अ मा ने बजल क सी फुत

से मु झे झपटकर पीछे, खींचा और गोद म उठाकर आ◌ॅगन म चारपाई पर लगभग घसक सा दया साथ ह चेतावनी द अगर यहाँ से हल तो................।

उधर दउवा ने अ मा क बताई दशा म दे खा तो सा◌ॅप लटक रहा था। च डया ़

अलगनी से उड़कर अब ताखे म बैठ गयी थी। पर अब वे चु प थी। दउवा के साथ आये दो

यि तय म से एक ने मसहर पर चढ़कर एक ह झटके म ब लभ से

छे दकर सा◌ॅप को लटकाकर आ◌ॅगन म आये तो टाच क रोशनी म मैने पहल बार साँप दे खा।

अब च डया ़ शा त हो गयी थी और घोसले म चल गयी थी। अ मा बहु त घबड़ा गई थी। उ होन मु झे लेकर उस कमरे म लेटने से मना कर

दया था। उस दन दाद क चारपाई के पास ह चारपाई डालकर म छर दानी

माण के सा य के साथ जान रह हू ँ। प ी व ान तो उनका इतना

लगाकर वे मुझे लेकर सोई थी। अगले दन भी वे उस कमरे म मुझे सुलाने म डर

आ◌ॅगन म लगे बालू के ढे र पर फुरफुराकर नहाती गौरै या को दे ख वे खु शी से

जाना नह चाहती थी, अ मा ने भी ह मत बा◌ॅध ल हम उसी कमरे म रहे तीन

जबद त क

या कहू ँ? गौरै या के बारे म ढे र सी बाते बताई उ होन। एक दन

बोल - ष ्अबक पानी खू ब बरसीष ्। बडे होकर पढ़ा- क लोक व वास है क गौरै या का धूल

नान नकट म वषा होने का तथा जल

नान कम वषा या वषा न होने

का संकेत माना जाता है। घाघ भंडर क कहावत अ मा क जु बान पर रहती-

माण म

दन बाद च डया ़ के ब च क आवाज सु नाई द

नझु न

सी झनक-मेरा मन बि लय उछल रहा था पर ध नी पर झा◌ॅक पाना मेरे लये

संभव नह था पर म बहु त खुश थी पूरे आ◌ॅगन म दौड़ दौड़कर सबको बता आयी थी। मेर गौरै या ने ब चे दये है। उ साह म म अपनी हर चीज उनसे बा◌ॅटने को

न ह न ह च च वाला खुला मु ँह दख जाता म नहाल हो जाती। कुछ दन म

चीट ं ले झंडा चढ़ै, तो बरखा भरपूर।

च डया ़ के ब चे थोडा थोड़ा उड़ने लगे थे अ मा के मना करने पर भी म चु पके

हमार कोठर म ध नी और छ पर के बीच के

थान को नरापद जान गौरै या के

जोड़े ने घोसले बनाना शु कर दया था। तनके नीचे मसहर पर गरते कभी कभी मेरे ऊपर भी तब मु झे बहु त गु सा आता, अ मा से कहती क घोसला हटवा द।

यार से समझाती-गौरै या भाग वाल के घर घोसला बनाती है। घर-प रवार

सु खी रहता है। वे यह भी कहती थी-गौरै या (िजसे वे अवधी म गरगरै या कहती

से छू लेती, मखमल जैसी यार गुनगुनी न ह गौरै या को छूकर मु झे बहु त अ छा लगता और एक दन ब चे उड़े तो लौटकर नह आये शायद अब वे कह ं दूर मु त गगन म गुनगुनाते उड़ रहे ह गे। म उदास हो गयी थी पर मा◌ॅ ने बताया गौरै या

कर घर यह ं है, वो ज र आयगे। मै रोज ढे र गौरै या उ़डती दे खती और सोचती कहाँ ह गे मेर गौरै या के ब चे?

थी) जा त क बा◌ॅधन चरै या होती है। पाक-साफ जगह ह घोसला बनाती है। अ तु मेर

यार

चर मेर आँख के सामने रहे इस लये घोसला और तनको से

मैन समझौता कर लया था। मसहर

कनारे द वार क ओर खसका द गयी थी।

चर फुरसे तनके लेकर आती जाती म मं

रहती अ मा क चाँद थी। चर

नझु न न ह घुघ ओं

तैयार थी। ब च क च च म दाना डालते समय कभी कभी ब च का सर व

कलसा पानी गरम है, च डया ़ नहावै धू र।

वे बड़े

रह थी पर च डया ़ म त थी। च डया ़ के ब च क उ सुकता म म कह ं और

मु ध सी उनक ग त व धय दे खती

दखा दखाकर वे बड़े आराम से मुझे मनचाह

चीजे खला पला लेती थी। इसी बीच गौरै या ने अ डे दे दये थे और बड़े जतन से उनका पोषण कर रह थी। अ मा रोज बताती दे खना कु छ ह

भगवानद न आय क या

डा0 श श

भा बाजपेई

नाको र महा व यालय लखीमपुर खीर

मो0न0 9454237080 drshashiprabha639@gmail.com

दन म न हे

न ह ब चे चहकगे, तु म उनसे दो ती कर लेना बहु त मजा आयेगा म उ सु कता से ब च के ज म क

ती ाकर रह थी। अ मा बड़े यार से गौरै या के साथ संवाद

कर लेती थी। गौरै या भी जैसे उ हे अपना अ भभावक मानती थी और जरा सी भी परे शानी हो जैसे अगर कमरे मे ब ल आ जाय तो अजीब सी आवाज म उ हे बुलाती। अ मा भी घर के कसी भी कोने म होती ले कन च डयो ़ क आवाज पर दौड़कर आती। एक मोटा डंडा हर समय हमार मसहर के पास रखा रहता था।

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गौरै या- डॉ न पमा अशोक

लौटो घर

घर सदै व का तु हारा है: कल भी, आज भीऔर आज के बाद भी ................! -डा◌ॅ0 न पमा अशोक,

ाचाया

भगवानद न आयक या

ना0महा0,

लखीमपुर-खीर , उ0 0 20 माच, 2013

bakpgcollege@gmail.com

20 माच, गौरै या दवसपर

गौरै या

गौरै या

तु म मेर अ त चेतना का सह अि त व हो

अपने बड़े-बड़े घर बनाने क धु न म तु म बेघर हो गई हो मेर गौरै या ओ मेर भूल / बसर दु नया नह ं जान सक

तु म मेरे होने का अथ हो ! खोया हु आ अथ हो !!

गौरै या तु म मेरा व मृत लोक राग हो नागर सं कृ त के

आ मघाती मकड़जाल म

जहाँ घर के रोशनदान म एसी लग गये ह

कु

मु य

वार पर

से सावधान रहने क लग गई ह प टकाएँ

तु हारे बेधड़क घर आने क सौ-सौ बाधाएँ क तु मानु य-मन म बसी हो तुम

अप रचय क प रचय भर

ी त-सी !

जानती हू ँ दबे पाँव पर आओगी तु म

द वार म जब कोई खड़क खुलेगी............ दाना पानी होगा मु डरे ़ पर

और ऊब होगी जब शखर पर चांहना होगी खु ले आकाश क

गौरै या तु म मेर अगोचर लोक चेतना का सोया आ दम राग हो

मेर गु त गोदावर हो

खोई हु ई मेर पहचान हो और हो अनंत या ा का पहला पड़ाव !

बुलाती हू ँ तु ह म

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बु ंदेलखंड म गौरे या ननक और गौरौवा

यारे लाल का

याह

हु आ

गौरतलब है आज से

कृ त क

ामीण लोगो को ' गौरे या घर' / भी वत रत कये गए है ! वष

सु दरता क

सहभागी रह

ची- ची जब घर,मु ंडेर,छ पर या

बखर ,खेत - ख लहान और पेड़ म बसर करती थी तब यह कसने सोचा था क एक दन इसी के लए ' व व गौरे या दवस' मनाया जायेगा ? वकास के अंधे

' हमारा

यास - गौरे या

कैनवास ने धरती को बदरं ग कर दया है ! ततल ,जु गनू,बु दे ल सोन चरै या और

वास ' !

अ य अब दवस के लए ह जाने जायगे ! इस अ भु त याह का मकसद यह था क जैसे हमने बचपन म गु डा- गु डया के याह, माँ और नाना- नानी क कहानी

आओ करे सब एक जतन - ची- ची फुदके घर-आंगन !

के साथ र त को िजया,उसके ताने- बाने को समझा वैसे ह इस ननक ( गौरे या च ड़या ) के संवेदना जनक पहलु को भी समझे !

च ड़या- च आ को नाम दया ' ननक संग यारे लाल। "बु ंदेलखंड म गौरै या गौरौआ के

ने वगत वष से शु

याह क जो परं परा आशीष सागर

क उसके लए उ ह बधाई और इस पर परा

को हम आगे ले जाए जनमानस म ता क पशु प

से

संवेदना मक तौर पर जु ड़ सके हमारा मानव समाज जो क थत वकास म अपना

ाकृ तक वजू द खोता जा रहा है, पर पराएँ हम

जोड़ती है बु नयाद मसल से और

इसको बचाए इस लए नह

क यह अब वलु त होकर 'लाल सू ची ' म जा चु क है

बि क इस लए भी क अगर यह कु दरत के प रंदे, प ी नह बचे तो हमारे वकास

के उजाले म ह सबक ह या करने का दाग लग चूका होगा ! .... या धरती म सफ मानव ( जो अब आदमी से ब दतर है ) वह मा

रहने का हकदार है !

...खेतो म दन -रात पड़ते कै मकल खाद ने इस मासूम च ड़या क सांसे कम करने का काम कया !

ो सा हत करती ह सृजन और

सरं ण को..... कृ ण " (संपादक क कलम से )

(6 माच ,बाँदा / बु ंदेलखंड-) बु ंदेलखंड के बाँदा िजले क नरै नी तहसील के

ाम पंचायत खलार - मोहनपु र म गौरै या का

से यशवंत पटे ल ( अ यापक) और

क या प संग

याह हु आ ! वर

धान सु मनलता पटे ल,

से राम साद और अनीता ने च ड़या- च आ को ' ननक

यारे लाल 'नाम दया ! गत वष व व गौरया दवस बीस माच

को इसी

ाम म गौरे या

याह का उ सव हु आ था ले कन अबक

बरस यहाँ बीस माच को गौरया चौपाल लगाई जाएगी ! लोक र म के बीच यह अनोखा ववाह एक बार फर वैसे ह उतसाह से बाँदा भागीय वन अ धकार

मोद गु ता, वनरजर जे के जयसवाल, उप

िजला अ धकार मह

संह, एसो नरै नी, वन दरोगा आफ़ताब खान,

सीबी संह काययोजना

भार , अ नदाता क आखत से शैले

ीवा तव नवीन, सामािजक कायकता दनेशपाल संह राघवे

मोहन म

स हत तमाम गाँव वालो क सा ी बेला म आयोिजत कया गया है !

आपके मोबाइल टावर, बजल के तार और अ य से नकल रे डयेशन करण आज इसक का तल बन गई है ! आपने अपना वकास कया ले कन और का जमीदोज कर दया ! कंकर ट सोपान पर खड़ी आपक

वास

वक सत मयादाएं आज

दे शभि त और दे श ोह का वलाप कर रह है ले कन यह प ी तो आपसे कोई जा त,मजहब, इ या नह करते न तब आपने इनको आज दवस म दया !

...एक प ी के

य समेट

वास को छ नते हाइवे पेड़ क कटान से गवाह है ! उपि थत

अ धकार य ने गाँव के ब चो,म हला- पु ष को अपने संबोधन से गौरे या को सु र

त-सु दर घर दे ने क बात कह और संक प लया क अपने घर के एक

कोने म इसको भी माकू ल जगह दगे ! ... म कृ त आपका,सबका कु छ ध यवाद करे

अगर ऐसा होता है तो शायद ये

यो क खाल आदमी के रहने से दु नया

म र त,जंग,नफरत और उजाड़ ह बचेगा सु दरता नह ! ची- ची का फुदकना मानव के लए हमेशा हतकार ह रहे गा ! गौरे या के के ब चे अपने अंदाज म थरके और ने इस च ड़या के लए बंदास गाये !

याह म घोड़े भी नाचे,गाँव

याह म गाये जाने वाल लोकगीत म हला

- आशीष सागर, वास ashish.sagar@bundelkhand.in

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International Journal of Environment & Agriculture Vol.6, no.3, March 2016 जो जु गाड़ बनाया था उसे उसने अ वीकार सा कर दया था और पानी हमेशा मेर

मा करो गौरै या...

बा ट से ह पीती थी। हु आ य

क मने सोचा क वह ं पानी भी रख दूँ सो मने

जु गाड़ बनाकर एक छछला सा लाि टक का ड बा खाल कर उसे रोशनदान म डोर से बाँधकर इस तरह लटकाया था क वह रोशनदान से ब कु ल सटा रहे और

म डोर ढ ल कर उसे नीचे उतार रोज ताजा पानी भर सकूँ । पर ये सारा सरकस बनाकर पहले ह

दन मेर आशा नराशा म बदल गयी। गौरै या दं प त आए। एक

गौरै या उस ड बे पर बैठ पर तु रंत ह उड़कर रोशनदान पर बैठ गयी। शायद

उ टा बैठने से उसक पू छ ं पानी से भीग गयी थी। बैठने के लए वे ड बे का

योग कर लेती थी, पानी के बारे म पता नह ।ं सु बह मेरे उठने से पहले ह वे फुर

हो गयी। फर कई बार तनके लेकर आ -ग । कतनी

य त थीं दोन ! मनु य

कतना एहसान जताता है अपनी संतान पर- ‘‘ तनका- तनका जोड़कर बनाया है

घर, तु म

या जान मेहनत

या होती है’’......... आ द-आ द’ पर ये पंछ .......

तनका- तनका जोड़कर कैसे बनता है घर........ यह जानते ह। अपनी स तान

पर कोई एहसान नह ं ......... बस उ साह ह उ साह !!! ध य हो गौरै या! तुम मेर गु

हो।

कु छ दन बाद मने दे खा अब एक च डया ़ घ सले म ह रहती और एक बाहर

जाती, शायद अंड क सु र ा क चल गयी। चार-पाँच

ि ट से। इसी बीच होल आ गयी और म हरदोई

दन बाद वापस आई.... तो कमरा खोलते ह न ह-न ह

घुघ ँ ओं क झनक जैसी मधुर

जैसे कोई बहु त बड़ी खु शखबर

व न मेरे कान म पड़ी। मेरा रोम-रोम खल गया मल गयी हो, मेर थकान मट गई। सामान कमरे

म रखा और तुर त काम म जु ट गयी। पहला काम था- गैस चू हे वाल मेज का

थान प रवतन। स जी छ कने से उठने वाल कड़वी भभक वाल भाप उड़कर

न ह-न ह गौरै य को क ट पहु ँचा सकती थी। मने दूसर ओर मेज लगा ल और सोच लया क तेज छ क वाल कोई चीज नह ं बनानी है कुछ दन। शाम हो चुक

थी- एकदम सु ना घुघ ँ ओं जैसी मधुर झनक तेज हो गयी। पलक झपकते ह

Image Courtesy: Sue Van Coppenhagen

सं मरण

च डया ़ द प त बार -बार से मु ँह म कोमल चु गा दबाए घ सले म आ गए थे।

गौरै या और म -- (3)

....डा0 श श

चार न ह ं च चे एक साथ खुल थीं गौरै या ने सबको जैसे गोद म समेट लया था

भा बाजपेयी

यार से, वे सब धीरे -धीरे चु प हो गए थे। यार से थपक कर सु ला दया था गौरै या

बात उस समय क है जब घर के नाम पर मेरे पास सफ एक कमरा था और व याथ

और

श क दोन ह भू मकाओं का एक साथ

नवाह करते हु ए म

अकेल ह रह रह थी। महा व यालय म अ यापन काय से बचा हु आ अ धकांश समय म पी0एच0डी0 उपा ध हे तु शोध

बंध लेखन म सम पत करती थी। इन

दोन के बीच आव यक दनचया भी स प न होती थी। अपने लए महर और महरािजन म क

वयं ह थी। उस समय कमरे म ह मेरा चैका, अ ययनक , व ाम

सब था। बीच-बीच म शोध काय के सल सले म लखनऊ जाना पड़ता था

तथा छु टय म हरदोई- जहाँ मेरा पूरा प रवार था। मेर माँ कभी-कभी परे शान

होने लगती थी यह सोचकर क म अकेले कैसे रह पाती हू ँ और सारा काय करके कैसे पढ़ पाती हू ँ? थकती तो नह ं? ऊबती तो नह ?ं पर सच बात तो यह थी, म

कभी अकेल थी ह नह ।ं कभी अकेल रह ह नह ,ं अपने कमरे म। मेर बचपन क साथी गौरै या यहाँ भी मेरे साथ थी। जैसे ह मने रहने के लए कमरे का दरवाजा खोला- वह फुर से उड़ी और रोशनदान से बाहर चल गयी थी, फर थोड़ी

ह दे र म फर आई और कमरे का एक च कर लगा छत म लगे छ ले म बैठ

गयी। ऐसा कई बार हु आ। मने छत के पंखे का ड बा ऐसे ह सील बंद रहने दया और कोने क आलमार म सबसे ऊपर के खाने म रख दया। कमरे म

गौरै या क उपि थ त म छत का पंखा चलाना मेरे लए संभव न था। उ र क

ओर गल थी छ जे पर जाने के लए छोट फट कया थी और पूर द वार म बड़ी

खड़क थी। आलमार नुमा मेज जो मेरा पूरा रसोईघर थी, मने इसी खड़क से

सटाकर लगा द और गैस वगैरह सब यवि थत कर द । गौरै या अब मेर पाटनर थी, खड़क , रोशनदान, दरवाजा- कह ं से भी बेरोकटोक कमरे मं◌े आ जाती। पूरब

क ओर द वार म आलमा रयाँ बनी थीं उनम अपना सामान और कताब रखकर

मने ढकने के लए परदे डाल दए थे। परदे वाल रा◌ॅड पर बैठना गौरै या को बहु त अ छा लगता। वह कभी ब ब पर जा बैठती, कभी खाने वाल मेज पर, कभी भगवान जी वाले टाँड़, पर कभी कताब पर, बेधड़क-बे झझक मेर थाल से चावल

खा लेती और मेरे कान के पास से फुर से उड़ती तो पंखो क हवा से जैसे मन पुलक उठता। मु झे कभी भी अकेलेपन का एहसास नह ं हु आ।

एक दन जब कालेज से लौट तो दे खा चैके वाल मेज पर गैस चू हे पर कुछ

तनके पड़े थे। मु झे समझते दे र नह ं लगी रोशनदान अब आबाद होने वाला है।

गौरै या नीड़ नमाण

ारंभ कर चु क है। रोशनदान पर मने पहले से ह कु छ दाने

बखेर रखे थे उसके खाने के लए- पता नह ं उसने खाए क नह ं। पर पानी का

ने अपने ब च को। म मु धभाव से रोज उनका

यार से चु गा लाना, और च च

म खलाना दे खती रहती। मने एक और काम कया था पर पूर तरह सफल नह ं

हु ई। मने सोचा यह कोमल-कोमल क ट खलाती है, ऐसा ह कोमल आहार दे दूँ तो शायद इ ह इतनी भागदौड़ न करनी पड़े। मने दूध म चू रा भगोकर कभी गले-गले चावल बनाकर रोशनदान पर रख रोशनदान क ओर दे खती रह

पदाथ को च डया ़ द प त ने

दए और

फर उ सु कता से टकटक लगाए

क च डया ़ उसे खलाती है या नह ं। मेरे रखे हु ए वयं कई बार खाया पर मने अनुभव कया क

अपने ब च को वह अपने पु षाथ का वह आहार

खलाते जो

वयं च च म

दबाकर लाते थे- कमरे क मकड़ी क ड़े तक पर जैसे मेर ओर दे खकर कृ त

भाव

से कहते- ध यवाद! आपने मेरे वषय म सोचा पर म अपने ब च का पालन करने म स म हू ँ।

च ता मत करो।’- और मु कराकर फुर हो जाती।

खु दार थी वह! गौरै या! तुम मेर नवरा

ार भ होने वाले थे-

ेरणा हो।

तपदा पर कलश

कतनी

थापन व पूजन हे तु मु झे हरदोई

जाना पड़ा। दो दन बाद लौट तो कमरे म स नाटा लगा। मेज पर

टू ल लगाकर

रोशनदान म झांका तो ब चे नह ं दखाई दए। मेरा मन बुझ सा गया- दो दन म

ह उड़ भी गए सब? नह ं इनती ज द उड़कर नह ं जा सकते। फर कहाँ गए? मु झे च ता होने लगी। पीछे घूमी तो अचानक मेर

नगाह ब तर पर गयी। अनायास

ह म मु करा उठ - एक न हा गौरै या तह क हु ई रजाई पर बैठा था और टु टु र-

टु कु र मुझे ह दे ख रहा था। ऊपर ह दूसरा आलमार म कताब पर बैठा था। थोड़ी दे र म तीसरा भी नज़र आ गया- वह भगवान जी वाले टाँड़ पर बैठा था और चैथा...? होगा यह ं कह ं पास ह म सँभलकर बढ़ रह थी, कताब क दूसर

आलमार म वह भी नज़र आ गया। मन कर रहा था उठाकर चू म लू,ं ढे र सा यार

क ं पर मन मसोसकर रह गयी..... सु ना था क ब चे को छू लेने पर च डया ़ उसे

वीकारती नह ,ं छोड़ दे ती है। म सोचकर ह डर गयी मन मारकर रह गयी-

मने दे ख लया था गौरै या आकर रोशनदान पर बैठ चु क थी और कसी पु लस वाले क तरह मु झे ह दे ख रह थी। चाय बनाने के लए गैस क ओर

ख कया

तो दे खा टाँड़ पर बैठा ब चा फड़फड़ाया और न ह ं डगमग उड़ान भर मेज पर ह आकर बैठ गया। अब म

या करती? मेरे ब तर, मेज, आलमार - सब पर गौरै या

के ब च का क जा था। अब गौरै या कमरे क माल कन थी- और म करायेदार। मने एक लास पानी पया और धीरे से जमीन पर ह चटाई बछाई और हाथ का

त कया बनाकर लेट गई। थक तो थी ह कु छ ह दे र म नींद आ गई। जब आँख

खु ल तो साँझ हो चल थी। नगाह दौड़ाई तो च डया ़ के ब चे उन जगह पर नह ं

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थे जहाँ पहले बैठे थे। अब कहाँ गए ह गे भला? सोचते-सोचते उठ । आ ह ते से

तक घ सला नह ं बनाया था। शायद काल

आज कुछ भी लखने-पढ़ने का मन नह ं हो रहा था। कु छ गम सी महसूस हो

कु छ दन बाद मुझे एक दन बा ट म कु छ तनके गरे

ब तर उठाया, बछाया।

रह थी।

काल

च डया ़ का?

च डया ़ ह इसका कारण थी।

या कर

न करता झु ंझलाया मन- पर तु कोई उ र नह ं था मेरे पास।

मले। सर उठाकर

यान आया खड़क तो खोल ह नह ं थी। म उठ और खड़क खोल -

ऊपर दे खा तो आलमार म पंखे वाले ड बे के ऊपर अपना घ सला बनाती गौरै या

गयीं- दे खा खड़क पर एक ब चा बैठा था जो म दे ख नह ं पाई थी, वह दब गया

घ सला बना रह थी- गौरै या। मु झे खुशी हु ई। समय बीतता गया। घ सला बन

पास माँस वाला भाग बहु त लाल हो गया था- छल सा गया था। कातर भाव से

उचककर दे ख लया था। अब म सजग रहने लगी थी। काल

अचानक ची ई ई ई आवाज आई। मेरा कलेजा मु ँह को आने लगा... धड़कने बढ़ था- उसे चोट लग गयी थी मने उसे

प टे से पकड़कर उठाया- दे खा तो पंजे के

म उसे धीरे-धीरे सहलाती जा रह थी- रोती जा रह थी.... कु छ सोचकर अचानक उठ और उसके चोट वाले सटाकर

थान पर बोरोल न लगा द और अपने कपोल से

मा माँगते हु ए उसे सहलाती रह । च डया ़ के आने का व त हो चला

था, मने उसे ब तर पर बैठा दया। हाथ जोड़कर पूरे मन से ई वर से एक ह

ाथना कर रह थी गौरै या के ब चे को कु छ होना नह ं चा हए भगवान! उसे ठ क

कर दो। उससे भी मह वपूण यह क च डया ़ उसे

वीकार कर ले। बो झल मन से

बना घंट बजाए आरती क । मेर आँख म बार-बार आँसू आ जाते थे अपनी

दखाई दे गयी। शायद काल

च डया ़ से सावधान रहते हु ए इस बार आलमार म

गया, गौरै ये ने फर से 4 अ डे दए थे। उसक अनुपि थ त म मने उ सु कतावश च डया ़ अब भी

आती थी और च ता क बात यह थी क वह घ सले पर झप टा मारने जैसी हरकत करती थी। मु झे पता नह ं

य बहु त डर लगने लगा था उन अंड क

सु र ा को लेकर। का◌ॅलेज म भी कभी कभी एकदम मन उचट जाता था। व र ठ व ताएं कभी कभी चु टक भी लेती थीं- तु हारे कौन से ब चे रो रहे होते ह जो

तु ह घर जाने क इतनी ज द रहती है अकेले जी नह ं ऊबता तु हारा? कह ं

आती-जाती भी नह ं क जी बहल जाय। म उ ह समझा दे ती थी क शोध काय म

य त हू ँ । सच होते हु ए यह पूरा सच नह ं था सच तो यह था क म गौरै या और

असहाय ि थ त पर, अपराध बोध मु झे कचोट रहा था। तभी म चक .... घायल

उसके ब च के मोहपाश म जकड़ी हु ई थी। क ा ख म होते ह खूट ँ ा तु ड़ाकर

जैसे धड़कन भर गयी थी, मेर आँखे झर-झर झर रह ं थी....... कातर

पर ह जाता। काफ समय से म घर भी नह ं गयी थी।

ब चे ने पंख फड़फड़ाए। कुछ लु ढ़कता सा उड़ा ब तर पर ह ...... मेरे रोम-रोम म से गुहार कर रह थी

ि ट ई वर

भो! आप सवसमथ ह। गौरै या के ब चे को शि त दो! र ा

भागती गैया क तरह, तेज चाल से घर पहु ँच जाती और सबसे पहला

यान घ सले

एक दन जब का◌ॅलेज से लौट तो दरवाजा खोलते ह गौरै या का कुछ बदला-

करो उसक ।........... अचानक चीं चीं चीं चीं कई आवाज सु नाई दे ने लगीं.. मने

बदला

धड़कने और बढ़ ं इतनी क म उनक आवाज साफ सु न सकती थी। तभी घायल

चाहा तो अवाक् रह गयी- बा ट म कु छ तनके व टू टा हु आ एक अ डा पड़ा था,

दे खा च डया ़ रोशनदान पर आ चु क थी- कमरे का जायजा ले रह थी। मेर ब चा

फर फड़फड़ाया

ल ं....... अब

च डया ़ दौड़कर उसके पास आ गयी। मने आँखे मींच

या होगा? वीकारे गी या नह ।ं बोरोल न क महक से तो जान ह

जायेगी....... कु छ गड़बड़ है। और भी न जाने

या- या सोच डाला

ण भर म

ह । फर चीं चीं क आवाज कान म पड़ी व फुर से उड़ने क भी.... आँख खोल

तो ब चा वहाँ नह ं था। अपने डैनो का सहारा दे च डया ़ ने उसे टाँड़ पर बठा

दया था। म खुशी के मारे फूट-फूटकर रो पड़ी थी उस समय- ध यवाद! गौरै या

तु मने मु झे अपराध बोध से उबार लया, ब चे को था- व वास जीत गया था।

वीकार लया। मथक टू ट गया

म उठ , मु ँह धोया, चाय बनाई और चाय का कप लेकर छत पर टहलकर अपने

को सामा य करने क को शश क , ठं डी-ठं डी हवा चल रह थी। म कमरे म आ गयी और दरवाजा बंदकर ब तर पर सीधी लेट गई। वह ब चा अभी भी टाँड़ पर बैठा था। छत पर नगाह टकाए पता नह ं

या- या सोच रह थी म क अचानक

वर सु नाई दया वह परदे वाल राड पर बैठ जैसे मु झसे कुछ कह रह

थी। मने पस रखा और कपड़े बदलकर मु ँह धोने के लए बा ट से पानी लेना शायद काल उस बदले ह

च डया ़ ने घ सले पर हमला कया था। अब समझ म आया च डया ़

वर म यह बता रह थी। च डया ़ अब भी राड पर बैठ थी मने

ि ट

ि ट म उसे ढांढस बँधाया। बो झल मन से धीरे -धीरे अपने काम नबटाते हु ए

भी म उपाय ढू ं ढ रह थी उस काल

च डया ़ को भगाने का पर कुछ सूझा नह ।ं

गौरै या दं प त भी सजग थे। जैसे ह काल

च डया ़ कमरे म घुसती गौरै या भी पीछे

तु रंत ह आ जाती और शोर मचाती थी। कभी काल कभी म भगा दे ती। इसी

व के बीच कुछ

च डया ़

दन बाद

वयं भाग जाती

फर मेरे कान म

घुघ ँ ओं के छनकने जैसी मधु र चीं चीं क आवाज गूँजी। ‘दशरथ पु काना’- जैसा ह आनंद हु आ मुझे। वह

यार

ज म सु न

दनचया, न ह ं गौरै या का

वर-

अ भभावक गौरै य क त परता- श ु च डया ़ के आ मण का डर और बचने क च ता म एक गौरै या हर समय कमरे म रहती।

एक दन क बात है, 3-6 मी टंग क

यूट के बाद जब का◌ॅलेज से लौट तो

लोहे के छ ल म बैठे तीन ब च पर बार -बार से नज़र पड़ी........ मन एकदम

शाम हो चल थी। मने कपड़े बदले, हाथ पैर धोए, आरती क , चाय बनाई और कप

एक बार मन म आया चोट वाले ब चे को उठाकर दे खू ं पर ह मत नह ं पड़ी।

शोध

ह का हो गया। परदे क राड पर कोने म गौरै या बैठ थी, दूसर रोशनदान पर। पता नह ं इसी उधेड़बुन म कब सो गई। सु बह 7 से 10 क मी टंग म

यूट थी।

इसी तरह दो तीन दन बीत गए। ब चे कु छ-कु छ दूर तक उड़ने लगे थे, च डया ़

उ ह

मशः नए-नए ल य दे ती थी और वे उड़कर पूरा करते थे। य द कभी

लड़खड़ाते या गरने लगते तो गौरै या पंख का सहारा दे स हाल लेती थी और एक

दन........ ब चे कमरे म वापस नह ं आए......... वे उड़ना सीख चु के थे, खु ले

आसमान म......... नकल पड़े थे जीवन क या ा म दूर कह ं अपना आ शयाना बनाने क तलाश म नए नीड़ के तनक को चु नने के लए।

कमरे के रोशनदान म घोसला अभी भी था- पर उजड़ा हु आ। अब उसम सफ तनके थे। मेज पर

टू ल लगाकर मने रोशनदान साफ कया। मेज अपनी जगह

पर रखी। सब कु छ पहले जैसा हो गया था। पर अभी भी ब च क मधु र चीं चीं कभी कभी

मृ त म गूज ँ उठती थी। हाँ ... गौरै या अब भी मेरे कमरे म आती

रहती थी। उसने कोई संबध ं नह ं तोड़ा था।

त मैटर नट

होम था। वह रोशनदान म घ सला बनाती अ डे

दे ती-सेती, ब च को पालती-पोसती- उड़ा ले जाती। मेरा कमरा गौरै या और उसके

ब च क चहक से गु ज ं ायमान था। पास-पड़ोस के ब चे बड़ी िज ासा व उ लास के साथ मेरे कमरे म गौरै या के ब चे दे खने आते रहते। इसी बीच गौरै या जैसी ह एक और च डया ़ जो आकार म उससे कुछ बड़ी थी- आना शु

बंध के ल पब ध अ याय का

म भी ठ क करती जा रह थी। दो दन

का अवकाश था और रात म ह 3 बजे नैनीताल ए स स े से मुझे लखनऊ जाना था। म अपने काम म मशगूल थी। जब काम समटा तो अजीब

यान गया गौरै या बड़े

वर म बोल रह थी लगातारः- शायद काफ दे र से मु झे सु नाई

य नह ं

दया? म ज द से उठ दे खा- परदे वाल राड पर बड़ी बेचन ै ी से लगातार गौरै या च लाती हु ई सी चल रह थी। मेर भी बेचैनी बढ़ । दौड़कर आलमार क ओर

बढ़ तो दे खा एक ब चा नीचे गरा पड़ा था। अभी तो पंख भी नह ं थे बस पंख जैसे र ए थे। गनीमत यह थी वह जमीन पर नह ं गरा था। िजस दन बा ट म

अ डा मला था उसी दन से मने उस पर ढ कन लगाकर एक च दर उस पर रख द थी क अगर गरे भी तो चोट न लगे। ब चा जी वत था मने उसे से पकड़ा और घ सले म रख

माल

दया। वह कई बार चीं चीं बोला मेरे हटते ह

च डया ़ दौड़कर उसके पास पहु ँच गयी। वह

मलन िजसके आगे

वग का सु ख

भी तु छ है। थोड़ी दे र म शाि त छा गयी। शायद अपने ब च को कलेजे से

लगाकर गौरै या सो गयी थी। म भी अपना सामान बैग म रखकर सो गयी अब

धीरे -धीरे उस कमरे म गौरै ये के साथ रहते हु ए तीन वष बीत चु के थे। मेरा कमरा

गौरै या का सुर

लेकर सीधे पढ़ाई वाल मेज के पास पहु ँच गयी। चाय पीती जा रह थी और अपने

कर चु क थी।

य द गौरै ये क उपि थ त म वह आ जाती तो गौरै या असहज हो उठती और

अजीब सी आवाज म उसे डांटते हु ए भगा आती थी। इस साल गौरै या ने अभी

तक रा तीसरे

के 10 बज चुके थे।

दन सीधे का◌ॅलेज ह पहु ँ ची 11-2 तथा 3-6 दोन मी टंग म

यूट थी।

शाम को घर पहु ँ ची। कमरे म कोई हलचल नह ं थी। कमरे म कु छ बदबू सी आई,

सोचा कह ं चू हा मरा है शायद। खड़क दरवाजे खोल दए क गमस नकल जाय। हाथ-पैर धोकर अगरब ी जला द । इस समय चूहा ढू ं ढने क

ह मत नह ं बची

थी। सु बह फर 7-10 यूट थी ज द सो गयी। अगले दन जब आई तो कमरे म

स नाटा कुछ अ वाभा वक लगा। खैर म चू हा ढू ं ढने म लग गई। सार चीज हटाहटाकर दे खा कु छ नह ं

मला

कताब भी हटाकर दे ख

लया। अब कोने वाल

आलमार क ओर बढ़ तो बदबू और बढ़ गयी। अचानक मेरे हाथ पैर म बजल

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सी फुत आ गयी- कह ं ब च को तो कु छ नह ं हु आ? मेरा कलेजा धक् धक् कर रहा था। दे खा घ सले म ब चे नह ं थे। ज द से ड बा हटाया- तो लगा गर ह पड़ू ँगी। बदबू यह ं से आ रह थी। तीन ब चे ड बे के पीछे गरकर सड़ गए थे। म थोड़ी दे र

त ध बैठ रह ... मेर आँखे झर रह ं थी। गौरैया रोशनदान पर बैठ

थी खामोश। सब कु छ न ट हो चु का था उसका- कु छ नह ं कर पायी म। म आलमार से मृत ब च को उठा रह थी गौरै या राड पर आकर बैठ गयी थी, पर ब कु ल खामोश..... न कोई

शकायत.... न उलाहना..... न अपे ा-

ब कु ल

न वकार सी बैठ थी वह। मुझे अपराधबोध कचोट रहा था य द म न जाती शायद

कु छ मदद कर पाती समय से। ऐसा तो नह ं म सफ एक ब चे का गरना जान पाई थी? उसी दन दोन तो नह ं गर गए थे पीछे ? नह ं नह ं, ऐसा नह ं हो सकता

च डया ़ अव य बताती वह चु प हो गयी थी तभी म सोयी थी। ज र यह घटना

मेर अनुपि थ त म घट थी। शायद काल

च डया ़ ने झप टा मारा होगा, बचने के

लए ब चे पीछे सरके ह गे या झ के से ह

गर गए ह गे। कु छ भी हो.... अब

ब चे इस दु नया म नह ं थे। रोते-रोते ह म गौरै या से हाथ जोड़कर माफ माँग रह थी-

मा करो गौरै या! म तु हारे व वास क र ा नह ं कर सक ।

----

डा0 श श

भा बाजपेयी

एसो0 ो0 ह द - वभाग

भ0द 0आ0क0 ना0म0, लखीमपुर-खीर

उ0 0 (भारत) 262701

Email-drshashiprabha639@gmial.com

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बु ंदेलखंड म आशीष सागर रचाएंगे गौरै या का याह...

लगायगे !.. ....बचपन म खेले गए गु डा- गु डया क तज पर आइये इस याह के सा ी बने !

आशीष सागर बांदा-बु द ं े लखंड मु ख - वासनामा सोसाइट ashish.sagar@bundelkhand.in

वासनामा सोसाइट क पहल पर पछले वष भी बांदा म रचाया गया था गौरै या का याह

या क यादान नह ं करने आएंगे आप..

आगामी बीस माच को ' व व गौरै या दवस ' है ! अबक बार उ र

दे श के

मु यमं ी अ खलेश यादव भी इस दवस म सहभागी होने जा रहे है,बीस माच को जने वर म

पाक म इस दन एक बड़ा काय म होने जा रहा है !

गौरतलब है क व व क 14000 प ी ब ती का प ी या घरे लू जन म

जा तय म से कुछ ऐसी भी ह िज हे

कहकर पुकारा जाता था। ले कन समय बीतता

गया और व मृत होते बचपन के भू ले बसरे पल के साथ-साथ वकास क धु ध म

बचपन क कर बी म गौरै या रे ड सू च म जा चु क है ! अब लगभग

से ह नह ं हमारे घर के आंगन, छत क मु डेर, प के मकान म

कृ त

यूब लाइट पर

छुपते- छुपाते घ सला बनाने क आदत और ची - ची का फुदकना दखलाई नह दे ता है !

गौरै या को पेसर फा स (छोटे व म यम आकार के प ी) वग म रखा गया है ! इसे अं ेजी व लै टन भाषा म हाउस

पैरो कहा जाता है. वह गौरै या को त मल म

अंगाड़ी कु वी और मलयालम म आ ड़कलाई कु वी िजसका शाि दक अथ है घर बाजार का प ी व रसोई घर क

च ड़या।यह च ड़या छः इंच से 15 सेमी0 तक

ल बी होती है !

बु द ं े लखंड के बाँदा िजले म गौरै या को लेकर संजीदा रहे नदे शक आशीष सागर द है ! लए

वास सं था ने

वास सोसाइट के

त वष 2010 से इस पर जाग कता काम करते आ रहे

कृ त स यक और मानव

पछल बार क गौरै या का

ेमी इस च ड़या को सहेजने के

याह कया था ! बचपन म जीते गु डा -

गु डया के याह और मा मक उ सव के बीच इस बार भी आशीष सागर वन वभाग , थानीय

साशन क उपि थ त म 'गौरै या का याह ' करने क तैयार म जु टे है

! आने वाले 6 माच को बाँदा के नरै नी तहसील के गाँव मोहनपुर - खलार म यह उ सव

ामीण परं परा और र म के म य आयोिजत कया जायेगा !

काय म म वन रजर जेके जयसवाल, भागीय वन अ धकार

मोद गु ता,वन

संर क केएल मीणा भी इसके वशेष मेहमान ह गे ! मंडल आयु त एम वकटे वर लू के पहु ँचने क स भावना है !

साथ ह बीस माच को हम ' गौरै या चौपाल '

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थमल पावर लां स क वजह से भारत म गंभीर जल संकटः जल

ीनपीस

ता वत 170 गगावाट कोयला लां स से बढ़ सकती है कसान

क जल सम या

ीनपीस इंटरनेशनल रपोट क समी ा करने वाल सं था टकाऊ ऊजा परामश

क सं था इको फस के वशेष े

डॉ जो रस कू रनीफ ने कहा, “इस रपोट म उन

को चि हत कया गया है जहां कोयले के उपयोग क वजह से पानी क

कमी का सामना करना पड़ सकता है। साथ ह इसम यह भी बताया गया है क कैसे ऊजा और पानी का मु दा जु ड़ा हु आ है। खासकर, कोयले क आपू त और

नई द ल । 22 माच 2016। य द सैकड़ कोयला पावर लां स क योजना को हर

उपयोग के लहाज से”।

झंडी मल जाती है तो भारत म पहले से ह घटते जल संसाधन पर गंभीर संकट

उ प न हो जाएगा। इस योजना क वजह से सू खे क ि थ त पैदा हो सकती है

और वदभ, मराठवाड़ा तथा उ र कनाटक म पहले से ह पानी को लेकर कृ ष और उ योग के बीच चल रहे संघष बढ़ने क आंशका है। दे श म अभी 10 रा य ने सू खा घो षत कर रखा है और महारा

व कनाटक म पानी क कमी क वजह

से कुछ पावर लां स को बंद भी कर दया गया है।

कोयला से बजल पैदा करने म पानी क सबसे अहम भू मका है। अंतरा

ऊजा एजसी के अनुसार अगले 20 साल म कोयला उजा के लये इ तेमाल क

जाने वाल जल क मा ा का 50 हजार

नये कोयला

त काल उ च जल

लां स क

इड डपे नंग द

वारा जार

लोबल वाटर

रपोट

‘द

ेट वाटर

ता वत नये कोयला लां स का एक चौथाई ह सा उन

तर पर

ल ट म 237 गगावाट के साथ सबसे उपर है जब क दूसरे नंबर पर भारत है

गंभीर जल

लां स गंभीर जल

लां स रे ड- ल ट

ता वत है। कुल

म है और 122 गगावाट

मलाकर लगभग 40

म लगाए जाने क

ता वत नये कोयला

ीनपीस

थ गत करने क मांग

लां स को उपल ध पानी का

मांग करती है िजसम पानी क ज रत नह ं है।

था पत करने

क योजना है जहां पहले से ह पानी का संकट है।(रे ड- ल ट ए रया) चीन इस जहां 52 गगावाट थमल पावर

क पना करना भी अ व वसनीय है।

व लेषण करने तथा कोयला से इतर सोलर और वायु ऊजा क तरफ बढ़ने क

व ै ः हाउ द कोल इंड

ाइ सस’ से पता चलता है क वैि वक

तशत अकेले खपत करे गा। इस हसाब से,

म कोयला व तार क योजना को

करती है। साथ ह , सभी ीनपीस इंटरनेशनल

तशत कोयला

योजना है। य द सभी

ता वत

ीनपीस कपेनर जय कृ णा कहते ह, “कोयला लां स से धीरे -धीरे वापसी करके ह

भारत भार मा ा म पानी को बचा सकता है। अगर कोयला संयं

बनाने क

म लयन एम 3 पानी

योजना को ख म कर

त साल हम बचा सकते ह”।

ता वत 52 गीगावॉट

दया जाता है तो इससे 1.1

कोयला लां स का नमाण हो जाता है तो भारत के कोयला उ योग म पानी क खपत वतमान से दोगुनी, लगभग 15.33 दस लाख एम 3 चीन स हत दूसरे सभी दे श से सबसे अ धक होगा।

तवष हो जायेगी, जो पे रस जलवायु समझौता 2015 के बाद, जब सभी दे श जलवायु प रवतन को नयं त करने और सौ

तय करना होगा यह पहल

रपोट है िजसम पहल बार वैि वक

गया है क िजसम

येक संयं

का अ

तर पर अ ययन करके बताया

तशत अ य ऊजा का तरफ बढ़ रहे ह, भारत को यह

क वह कोयला आधा रत

बजल

को बढ़ावा दे गा या

दे शवा सय और कसान क जल संकट को दूर करने का

यास करे गा।

फर

यन करके कोयला उ योग के वतमान

और भ व य म पानी क मांग को शा मल कया गया है। इसके अलावा उसम उन दे श तथा

को भी चि हत कया गया है जो जल संकट से सबसे अ धक

भा वत होगा। भारत म कनाटक, गुजरात, राज थान, पंजाब, ह रयाणा, उ र

और म य

दे श के बड़े ह से म पानी क माँग उपल ध पानी से 100

दे श

तशत

अ धक हो गयी है। इसका मतलब यह हु आ क भू जल लगातार ख म हो रहा है या अंतर-बे सन

थाना तरण का सहारा लया जा रहा है।

इसके अलावा, लगभग सभी

मु ख रा य का बड़ा भूभाग जल संकट से जू झ रहा

है। इनम महारा , त मलनाडू , बहार और पि चम बंगाल जैसे रा य भी शा मल ह। यह

पावर लां स

गंभीर

प से सूखे क चपेट म ह

फर भी इन इलाक म थमल

ता वत कये गए ह िजसम भार मा ा म पानी क ज रत होगी,

जब क पहले से चालू पावर

[1]‘The Great Water Grab: How the coal industry is deepening the global water crisis’ is available here: http://www.greenpeace.org/international/Global/international/p

ublications/climate/2016/The-Great-Water-Grab.pdf

Avinash Kumar avinash.kumar@greenpeace.org Celluar: 8882153664

लां स जल संकट का सामना कर रहे ह। महारा

का परल पावर लांट को जुलाई 2015 से बंद कर दया गया है और कनाटक म रायचुर पावर

लांट को भी हाल ह म पानी क वजह से बंद कया गया है।

एनट पीसी सोलापुर बजल संयं सामना कर रहा है।

पानी क आपू त के मु द के कारण दे र का

ीनपीस के सी नयर कपेनर हर लैमी ने कहा, “मानवता के लए अपने खतरे के

संदभ म, कोयला एक वनाशकार है क को हा सल कर चु का है। जलते कोयले, न केवल जलवायु और हमारे ब च के

वा

य के लये खतरा है। बि क यह हमारे

उस पानी पर भी खतरा है जो हमारे जीवन को बचाये रखने के लये ज र है”।

व व

तर पर, 8359 मौजू दा कोयला व युत संयं

पहले से ह पया त पानी क

खपत कर रहे ह िजससे 1.2 अरब लोग क बु नयाद ज रत को पूरा करने के लए पानी क कमी हो रह है।

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