Bhonrya Mo (Collection of stories) - Kamlanath भौंर्या मो (कहानी संग्रह) - कमलानाथ

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कहानी सॊग्रह – बौंमा​ा भो कभरानाथ आॊचलरक ऩरयवेश भें सॊवेदना औय मथाथा के फीच झर ू ती कहाननमाॊ 'बौंमा​ा भो' शीषाक से कथाकाय औय व्मॊग्मकाय कभरानाथ का मह नमा कहानी सॊग्रह 2015 के अॊत भें ऑनराइन गाथा - द अनगिंड्ॊग अे र, रखनऊ से ऩेऩयफैक औय ई-फक ु के रूऩ भें प्रकालशत हुआ है । इस सॊग्रह भें कुर 15 कहाननमाॊ हैं, िंजनभें 6 रघु कथागॊ औय गक रॊफी कहानी ‘बौंमा​ा भो” शालभर है । कृत्रिभता से ऩये मे कहाननमाॊ शब्दों के अथाहीन जॊजार भें रऩेअ कय न तो भदायी के खेर की तयह कोई शािंब्दक चभत्काय ऩैदा कयने का दावा कयती हैं औय न सभीऺकों की ‘अॊतर्दािंटअ’ को सहराने उबायने के लरग तथाकथथत ‘नई’ कहानी के ‘ओऩन-गॊ्​् े ’ ववषमों औय प्रसॊगों की ऊरजरूर फुनावअ का सहाया रेकय कोई अरग तकनीक मा भुहावया गढ़ने का प्रमास। रगता है , मे कुछ लसद्ध कयने के लरग नहीॊ, फिंकक ‘कहानी’ की शैरी भें ही ऩाठक की सॊवेदना छूकय उसके भन के अनछुग कोने तराशने का प्रमत्न कयती हैं। सॊग्रह की कहानी ‘बौंमा​ा भो’ सफसे प्रलसद्ध कहानी है जो कुछ ऩत्रिकाओॊ भें औय अडमि बी छऩ औय चथचात हो चुकी है । सॊस्भयणात्भक शैरी भें लरखी मह कहानी इस तयह फहती है जैसे ककसी गाॉव भें आसऩास हो यही योज़भया​ा की घअनागॊ साभने से ननकर यही हों। गक फार-ऩाि के रूऩ भें रेखक ने अऩने नज़रयग से साठऩैंसठ वषा के ऩहरे के कार खॊ् भें अऩने इदा थगदा ऩािों को गढ़ कय सयर औय योचक बाषा भें उस सभम के ग्राभीण सभाज का थचि उबाया है । कहानी की शुरुआत ‘बौंमा​ा भो’ से सम्फॊथधत गक दघ ा ना से होती है । ऩयू ी कहानी भें मह अऻात ऩाि ु अ ‘बौंमा​ा भो’ गक नतरस्भी, अर्दश्म, अजीफोगयीफ, खौफ़नाक ‘गॊटअअी’ की तयह कहानी के अॊत तक फना यहता है । इसका यहस्म कहानी की अॊनतभ ऩॊिंततमों भें ही खुरता है । शुरुआत औय अॊत के फीच हैं फहुत सी छोअी भोअी घअनागॉ, गाॉव की आभ िंज़ॊदगी भें होते घअना क्रभ, अऩनी अऩनी खूत्रफमाॊ औय ववथचिता सभेअे कई ऩाि, वगैयह। ग्राभीण सिंृ टअ की हरचर, ककयदायों के फीच औय उनकी रुथचमों से जुड़े उनके भनोयॊ जक कामाकराऩ कहानी को ऩािों औय घअना-क्रभों भें जोड़े यखते हैं। जमऩुय के नज़दीक ही ककसी गाॉव ‘भहाऩुया’ के तत्कारीन आॊचलरक ऩरयवेश ऩय अधारयत इस कहानी का हय ककयदाय अऩनी ववशेषता लरग होता है औय उसी खालसमत के साथ साभने आता है । कहानी का ऩाि ककशनू गक फारनामक औय सूिधाय की तयह गाॉव भें चरती यहने वारी हरचर औय कही-अनकही, ऩोशीदा मा ज़ाटहय ‘कहाननमों’ के जागरूक दशाक मा कबी उनभें भौजद ू खुद गक नुभाइडदे की तयह टदखाई दे ता है , चॉूकक वह गाॉव भें ही यहता है औय वहाॉ हुई हय घअना का साऺी यहा है । गक गाॉव की फामोग्रापी के ‘जोनय’ भें लरखी मह कहानी इतनी स्वाबाववक शैरी भें लरखी हुई है कक हय चरयि सचभुच जीवडत रगता है औय ऩाठक से साऺात्काय कयता सा नज़य आता है । कहानी के शीषाक “बौंमा​ा भो” का यहस्म अॊत भें फड़े नाअकीम अॊदाज़ भें खर ु ता है । इस रॊफी कहानी को जानेभाने रेखक औय सॊऩादक असद ज़ैदी ने


अऩनी ऩत्रिका “जरसा” के सॊकरन 3-2012 भें बी छाऩा है औय इसे “टहॊदी की आॊचलरक-कथा भें गक अद्बत ु औय अथधकृत स्वय” के रूऩ भें भाना है । ‘यावी के उस ऩाय’ कहानी टहभाचर की प्राकृनतक ऩटृ ठबूलभ भें उबयती है , जहाॉ त्रफजरी ऩैदा कयने के गक प्रोजेतअ के लसरलसरे भें रेखक का दौया होता है । उसकी भर ु ाकात गक हादसे के दौयान कहानी की नानमका से होती है जो फकरयमाॊ चयाने वारी गक बोरीबारी, ऩय त्रफॊदास, 18-19 वषा की अकहड़ रड़की है । उसकी अगरे सार सगाई होने वारी है औय वह अऩने बावी साथी के खमारों के झूरों भें झूरती हुई रेखक से रू-फ-रू होती है औय टहभाचर की रोक सॊस्कृनत से जुड़ी फातें फताती है । ्ेढ़ वषा फाद जफ रेखक जफ दफ ु ाया दौये ऩय जाता है तफ उत्सुकतावश उसी रड़की के फाये भें जानना चाहता है । उससे बें अ होती बी है औय रड़की कपय से टहभाचर की रोक-कथाओॊ के ऩािों के फाये भें फातें कयती है । मह रड़की जो फेहद जीवॊत थी, इस फाय फेहद फुझी हुई औय उदास नज़य आती है । वह फताती है कक उसकी सगाई ही नहीॊ हुई। वह अऩने भॊगेतय को दे ने के लरग रेखक को गक छकरा दे ती है औय ‘यावी के उस ऩाय’ रौअ जाती है । फाद भें ऩता चरता है कक उसकी औय उसके भॊगेतय की तो गक हादसे भें वऩछरे सार ही नदी भें ्ूफने से भौत हो चुकी थी! मह योभाॊचक कहानी बी फहुत ववश्वसनीम तयीके से उबय कय आई है औय अॊत भें ऩाठक को चौंका कय ऩया-वास्तववक सॊसाय भें ऩहुॊचा दे ती है । कहानी ‘ऩास तक फ़ासरे’ ऩहरे ‘ऩरयकथा’ ऩत्रिका भें छऩ चुकी है औय ऐसे ग्राभीण ऩरयवेश का थचिण कयती है िंजसकी नानमका लरछभा गक नमी नवेरी शादीशुदा 17-18 वषा की नव-मुवती है । वह अऩने ऩनत से फेहद प्रेभ कयती है औय अऩने ससुयार भें इस नई िंज़म्भेदायी से अऩनी जगह फनाने के लरग उत्सुक है । उसी गाॉव से हय योज़ अऩने ऊॉअों को रेकय गक नौजवान फाॊका यै फायी गुज़यता है औय ऩेड़ के नीचे सुस्ताते हुग अरगोजे ऩय भधयु धन ु ें फजाता है । लरछभा को वह अच्छा रगता है । उसे रगता है जैसे वह उससे सहज रूऩ से भन की फातें कय सकती है । गाॉव की साभािंजक व्मवस्था यै फायी को खुद कुगॊ से ऩानी ऩीने की इजाज़त नहीॊ दे ती, इसीलरग कबी कबी जफ लरछभा वहाॉ ऩानी बयने के लरग आई होती है , वह यै फायी को ऩानी वऩराती है । लरछभा अऩनी गह ु ाअना भें उसका ऩनत भय ृ स्थी भें जैसे ही ठहयाव ऩय ऩहुॉचने को होती है कक अचानक गक दघ जाता है । नवमुवती लरछभा का अॊतद्ावॊद्व महीॊ से शुरू होता है औय वह साभािंजक ऩरयवेश औय जानतगत भाडमताओॊ का ववश्रेषण कयने भें औय अऩने बावी जीवन के लरग दस ू यी त्रफयादयी के यै फायी को रेकय ककसी बी फ़ैसरे के औथचत्म के फीच ऊहाऩोह भें यहती है । तमा उसे अऩने लरग नग जीवन की शुरुआत कयने का ह़ है ? मा उसे अऩने सभाज की रूटढ़गत व्मवस्था के आगे आत्भसभऩाण कय दे ना चाटहग? कहानी ऩैयों भें ज़ॊजीय रऩेअते हुग इडहीॊ भूकमों औय वववशताओॊ ऩय सोचने को वववश कयती है । जैसा आॊचलरक वातावयण औय आभदयफ़त गावों भें दे खने को लभरता है , उसका स्वाबाववक ववस्ताय कहानी भें फखूफी हुआ है । ऩािों के फीच वाता​ाराऩ भें स्थानीम याजस्थानी बाषा के शब्दों का प्रमोग कहानी की प्रभाणणकता फढ़ाते हैं । सॊग्रह की कुछ दस ू यी कहाननमों का िंज़क्र बी प्रासॊथगक होगा। ‘भहानामक’ कहानी सभम औय ऩरयिंस्थनतमों के अॊतयजार भें पॊसे गक ऐसे मुवक की कहानी है , जो अऩने हारातों को तफ बी हभेशा ‘ऩॉिंज़टअव’ अॊदाज़ भें रेता है । वह हय फाय अऩने आऩको ककसी मुवती मा भटहरा के साथ शायीरयक सॊफॊधों के ऩाश भें जकड़ा हुआ ऩाता है , ऩय अऩने आऩ औय ऩरयिंस्थनतमों ऩय उसका अऩना भनोवैऻाननक ववश्रेषण उसे ककसी बी सीभा भें फाॊध नहीॊ ऩाता। वह उन भटहराओॊ की शायीरयक आवश्मकताओॊ को सभझते हुग िंस्थनत को ‘यै शनराइज़’ कय रेता है । अॊत भें अऩनी उसी ‘ऩॉिंज़टअववअी’ की यौ भें वह अऩने लरग गक नग ‘वोकेशन’ का


ववचाय बी कयता है , जो बायतीम साभािंजक व्मवस्था के लरग ननताॊत नमा औय चौंकाने वारा है – ‘गकर भटहराओॊ के लरग गस्कॉअा सववास’। अडम कहाननमों भें भोअे रूऩ से ‘ननमनत’, ‘फाऩ’, ‘घय-फेघय’ औय ‘अरववदा जैयी’ भालभाक कहाननमाॊ हैं, जो स्नेह, अऩनत्व भें गॊथ ु ी मा उनसे आहत होने का खफ ू सूयत फमान हैं; छोअी कहाननमाॊ ‘कब्र’, ‘बगवत्प्रािंतत’, ‘सत्मननटठ भॊिी’, औय ‘कणाधाय’ व्मॊग्मात्भक कहाननमाॊ हैं; औय ‘रच्छो बुआ’ औय ‘कॊदीर का ऩेड़’ बावनात्भक कथागॊ हैं, जो वववशता औय भभत्व के जार से फुनी हुई हैं। कभरानाथ के ऩव ू ा प्रकालशत व्मॊग्म सॊग्रह की शब्दावरी से इस सॊग्रह की कहाननमों की उनकी शैरी काफ़ी कुछ अरग है , हाराॉकक उनकी ववलशटअ साटहिंत्मक अलबरुथच की झरक इस सॊग्रह भें बी टदखाई दे ती है । इस सॊग्रह की ववशेषता है कक हये क कहानी गक अरग कोण, भनोबाव, र्दिंटअ, सम्वेदना मा घअना के अऩने सॊसाय का ननभा​ाण कयती है औय ऩाठक को नमा सोच-सडदबा दे ती है । उम्भीद है कक मे कहाननमाॊ बी ऩाठक को वैसे ही फाॉध ऩागॊगी जैसी इॊअयनेअ ऩय की-व्ा ‘कभरानाथ’ से ‘गूगर सचा’ से खोजी जा सकने वारी उनकी अडम यचनागॊ, जो कई ई-ऩत्रिकाओॊ औय सॊकरनों भें अरग अरग जगह बी ऩढ़ी जा सकती हैं। ‘भौंयया मो’ (कहयनी संग्रह) ऱेखक: कमऱयनयथ ISBN : 978-93-85818-09-7 प्रकयशक: ऑनऱयइन गयथय – द एंडऱैस टे ऱ, ऱखनऊ पष्ृ ठ: 236, मूल्य : रु. 200 (पेपर बैक), रु.99 (ई-बुक)

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