5 ■स रामधारी ↓सह िदनकर किवताएं | ramdhari singh dinkar poems collectionsvs.com/रामधारी-↓सह-िदनकर-किवता/
रामधारी िसंह िदनकर किवताएं : अगर आप रामधारी िसंह िदनकर किवताएं ramdhari singh dinkar poems) ढूढ ँ रहे ह। तो हमारे पास है 5 िस रामधारी िसंह िदनकर किवताएं । ये सभी किवताएं सं ग सिहत ह। ये िविभ न भाव आधिरत किवताएं ह।
रामधारी ↓सह िदनकर
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राम धारी िसंह िदनकर एक आधु िनक किव ह। िज ह ने वीर रस की धानता दी। इ ह ने अने क दे शभि त किवताओं से वतं ता आं दोलन म बलता दी। इसिलए इ ह रा ट किव की उपािध दी गई। इनका ज म 23 िसतं बर 1908 म िबहार के िसमिरया नामक गाँ व म हुआ। इनका दे हांत 24 अ ै ल 1974 को चे नई म हुआ। 1. रामधारी ↓सह िदनकर किवताएं – कृ ण क चेतावनी
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संग – तु त किवता ‘कृ ण की चे तावनी’ िह दी सािह य के िदनकर िस आधु िनक किव ‘रामधारी िसं ह िदनकर’ ारा रिचत है । का यांश – 1 वषो तक वन म घूम-घूम, बाधा-िव नों को चूम-चूम, सह धूप-घाम, पानी-प थर, पांडव आये कुछ और िनखर। सौभा य न सब िदन सोता है , दे ख, आगे या होता है । 3/22
का यांश – 2 मै ी की राह बताने को, सबको सु माग पर लाने को, दु योधन को समझाने को, भीषण िव वंस बचाने को, भगवान् हि तनापु र आये , पांडव का संदेशा लाये । का यांश -3 दो याय अगर तो आधा दो, पर, इसम भी यिद बाधा हो, तो दे दो केवल पाँच गाम, र खो अपनी धरती तमाम। हम वहीं खु शी से खायगे, पिरजन पर अिस न उठायगे ! का यांश – 4 दु योधन वह भी दे ना सका, आिशष समाज की ले न सका, उलटे , हिर को बाँधने चला, जो था असा य, साधने चला। जब नाश मनुज पर छाता है, पहले िववेक मर जाता है। का यांश – 5
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हिर ने भीषण हुंकार िकया, अपना व प-िव तार िकया, डगमग-डगमग िद गज डोले , भगवान् कुिपत होकर बोले ‘जंजीर बढ़ा कर साध मु झे, हाँ, हाँ दु योधन! बाँध मु झे। का यांश – 6 यह दे ख, गगन मु झम लय है, यह देख, पवन मुझम लय है , मु झम िवलीन झंकार सकल, मु झम लय है संसार सकल। अमर व फू लता है मु झम, संहार झूलता है मुझम। का यांश – 7 उदयाचल मे रा दी त भाल, भूमंडल व
थल िवशाल,
भुज पिरिध-ब ध को घे रे ह, मै नाक-मे पग मे रे ह। िदपते जो गह न
िनकर,
सब ह मेरे मुख के अ दर। का यांश – 8
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दृग हों तो दृ य अका ड देख, मुझम सारा ब ा ड दे ख, चर-अचर जीव, जग,
र-अ र,
न वर मनु य सुरजाित अमर। शत कोिट सूय, शत कोिट च द, शत कोिट सिरत, सर, िस धु म द का यांश – 9 शत कोिट िव णु , ब ा, महे श, श त कोिट िव णु जलपित, धने श, शत कोिट द, शत कोिट काल, शत कोिट द डधर लोकपाल। ज जीर बढ़ाकर साध इ ह, हाँ-हाँ दु योधन! बाँध इ ह का यांश – 10 भूलोक, अतल, पाताल दे ख, गत और अनागत काल दे ख, यह दे ख जगत का आिद-सृ जन, यह दे ख, महाभारत का रण, मृ तकों से पटी हुई भू है , पहचान, इसम कहाँ तू है । का यांश – 11
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अ बर म कु तल-जाल दे ख, पद के नीचे पाताल दे ख, ् ी म तीनों काल दे ख, मु टठ मे रा व प िवकराल देख। सब ज म मु झी से पाते ह, िफर लौट मुझी म आते ह। का यांश – 12 िज ा से कढ़ती वाल सघन, साँसों म पाता ज म पवन, पड़ जाती मेरी दिृ ट िजधर, हँसने लगती है सृि ट उधर! म जभी मूदता ँ हूँ लोचन, छा जाता चारों ओर मरण। का यांश – 13 ‘बाँधने मु झे तो आया है , जंजीर बड़ी या लाया है ? यिद मु झे बाँधना चाहे मन, पहले तो बाँध अन त गगन। सूने को साध न सकता है, वह मुझे बाँध कब सकता है ? का यांश – 14
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िहत-वचन नहीं तूने माना, मै ी का मू य न पहचाना, तो ले , म भी अब जाता हू,ँ अि तम संक प सु नाता हू। ँ याचना नहीं, अब रण होगा, जीवन-जय या िक मरण होगा। का यांश – 15 ‘टकरायगे न
-िनकर,
बरसे गी भू पर वि
खर,
फण शे षनाग का डोले गा, िवकराल काल मुहँ खोले गा। दु योधन! रण ऐसा होगा। िफर कभी नहीं जै सा होगा। का यांश – 16 ‘भाई पर भाई टू टगे, िवष-बाण बूद ँ -से छूटगे , वायस- ृ गाल सु ख लूटगे , सौभा य मनु ज के फू टगे। आिखर तू भूशायी होगा, िहंसा का पर, दायी होगा।’ का यांश – 17
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थी सभा स न, सब लोग डरे , चु प थे या थे बे होश पड़े । केवल दो नर ना अघाते थे , धृतरा ट-िवदु र सु ख पाते थे । कर जोड़ खड़े मु िदत, िनभय, दोनों पु कारते थे ‘जय-जय’! 2. रामधारी ↓सह िदनकर किवताएं – प रचय
संग – रिचत है ।
तु त किवता ‘पिरचय’ िह दी सािह य के िदनकर िस आधु िनक किव ‘रामधारी िसं ह िदनकर’ ारा
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का यांश – 1 सिलल कण ह,ूँ या पारावार हूँ म वयं छाया, वयं आधार हूँ म बँधा ह,ूँ वपन हू,ँ लघु वृ त हूँ म नहीं तो योम का िव तार हूँ म का यांश – 2 समाना चाहता है , जो बीन उर म िवकल उस शु य की झनंकार हूँ म भटकता खोजता हू,ँ योित तम म सुना है योित का आगार हूँ म का यांश – 3 िजसे िनिश खोजती तारे जलाकर उसीका कर रहा अिभसार हूँ म जनम कर मर चु का सौ बार ले िकन अगम का पा सका या पार हूँ म का यांश – 4 कली की पंखुडीं पर ओस-कण म रं गीले वपन का संसार हूँ म मुझे या आज ही या कल झ ँ म सु मन हू,ँ एक लघु उपहार हूँ म का यांश – 5 मधु र जीवन हुआ कुछ ाण! जब से लगा ढोने यथा का भार हूँ म ं दन अनमोल धन किव का, इसी से िपरोता आँसुओं का हार हूँ म 10/22
का यांश – 6 मु झे या गव हो अपनी िवभा का िचता का धूिलकण हू,ँ
ार हूँ म
पता मेरा तुझे िमट्टी कहेगी समा िज म चु का सौ बार हूँ म का यांश – 7 न दखे िव व, पर मु झको घृ णा से मनु ज हू,ँ सृ ि ट का ृ ंगार हूँ म पु जािरन, धु िल से मु झको उठा ले तु हारे दे वता का हार हूँ म का यांश – 8 सुनुँ या िसंधु, म गजन तु हारा वयं युग-धम की हुक ँ ार हूँ म किठन िनघोष हूँ भीषण अशिन का लय-गांडीव की टं कार हूँ म का यांश – 9 दबी सी आग हूँ भीषण ु धा का दिलत का मौन हाहाकार हूँ म सजग संसार, तू िनज को स हाले लय का ु ध पारावार हूँ म का यांश – 10 बंधा तु फान हू,ँ चलना मना है बँधी उ ाम िनझर-धार हूँ म कहूँ या कौन हू,ँ या आग मे री बँधी है ले खनी, लाचार हूँ म।। 11/22
3. रामधारी ↓सह िदनकर किवताएं – िद ी
संग – रिचत है ।
तु त किवता ‘िद ली‘ िह दी सािह य के िदनकर िस आधु िनक किव ‘रामधारी िसंह िदनकर ‘ ारा
का यांश – 1 यह कैसी चांदनी अम के मिलन तिम
गगन म
कू क रही यों िनयित यंग से इस गोधूिल-लगन म का यांश – 2 मरघट म तू साज रही िद ली कैसे
ृ ंगार?
यह बहार का वांग अरी इस उजड़े चमन म 12/22
का यांश – 3 इस उजाड़ िनजन खंडहर म िछ न-िभ न उजड़े इस घर मे का यांश – 4 तुझे
प सजाने की सूझी
इस स यानाश हर म का यांश – 5 डाल-डाल पर छे ड़ रही कोयल मिसया-तराना, और तु झे सूझा इस दम ही उ सव हाय, मनाना का यांश – 6 हम धोते ह घाव इधर सतलज के शीतल जल से, उधर तुझे भाता है इनपर नमक हाय, िछड़काना का यांश – 7 महल कहां बस, हम सहारा केवल फ़ू स-फ़ास, तॄणदल का का यांश – 8 अ न नहीं, अवल ब ाण का गम, आँस ू या गंगाजल का 4. रामधारी ↓सह िदनकर किवताएं – शि
और मा
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संग – तु त किवता ‘शि त और िदनकर‘ ारा रिचत है ।
मा‘ िह दी सािह य के िदनकर िस आधु िनक किव ‘रामधारी िसं ह
का यांश – 1 मा, दया, तप, याग, मनोबल सबका िलया सहारा पर नर याघ सुयोधन तुमसे कहो, कहाँ, कब हारा? का यांश – 2
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माशील हो िरपु-सम तुम हय ु े िवनत िजतना ही दु ट कौरवों ने तु मको कायर समझा उतना ही। का यांश – 3 अ याचार सहन करने का कुफल यही होता है पौ ष का आतंक मनुज कोमल होकर खोता है। का यांश – 4 मा शोभती उस भु जंग को िजसके पास गरल हो उसको या जो दंतहीन िवषरिहत, िवनीत, सरल हो। का यांश – 5 तीन िदवस तक पंथ मांगते रघु पित िस धु िकनारे , बै ठे पढ़ते रहे छ द अनु नय के यारे - यारे । का यांश – 6 उ र म जब एक नाद भी उठा नहीं सागर से उठी अधीर धधक पौ ष की आग राम के शर से । का यांश – 7 15/22
िस धु दे ह धर ािह- ािह करता आ िगरा शरण म चरण पूज दासता गहण की बँधा मूढ़ ब धन म का यांश – 8 सच पूछो, तो शर म ही बसती है दीि त िवनय की सि ध-वचन संपू य उसी का िजसम शि त िवजय की। का यांश – 9 सहनशीलता,
मा, दया को
तभी पूजता जग है बल का दप चमकता उसके पीछे जब जगमग है। 5. रामधारी ↓सह िदनकर किवताएं – मेरे नगपत! मेरे िवशाल!
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संग – तु त किवता ‘मे रे नगपित! मे रे िवशाल!’ िह दी सािह य के िदनकर िस आधु िनक किव ‘रामधारी िसं ह िदनकर‘ ारा रिचत है । का यांश – 1 मे रे नगपित! मे रे िवशाल! साकार, िद य, गौरव िवराट् , पौ ष के पु जीभूत वाल! मे री जननी के िहम-िकरीट! मे रे भारत के िद य भाल! मेरे नगपित! मेरे िवशाल! 17/22
का यांश – 2 युग-युग अजेय, िनब ध, मु त, यु ग-यु ग गवो नत, िनत महान, िन सीम योम म तान रहा युग से िकस मिहमा का िवतान? कैसी अखंड यह िचर-समािध? यितवर! कैसा यह अमर यान? तू महाशू य म खोज रहा िकस जिटल सम या का िनदान? उलझन का कैसा िवषम जाल? मे रे नगपित! मे रे िवशाल! का यांश – 3
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ओ, मौन, तप या-लीन यती! पल भर को तो कर दृगु मे ष! रे वालाओं से द ध, िवकल है तड़प रहा पद पर वदेश। सुखिसंधु, पंचनद, ब पु , गंगा, यमु ना की अिमय-धार िजस पु यभूिम की ओर बही तेरी िवगिलत क णा उदार, िजसके ारों पर खड़ा
ा त
सीमापित! तू ने की पु कार, ‘पद-दिलत इसे करना पीछे पहले ले मे रा िसर उतार।’ उस पु यभूिम पर आज तपी! रे, आन पड़ा संकट कराल, याकुल ते रे सु त तड़प रहे डस रहे चतुिदक िविवध याल। मे रे नगपित! मे रे िवशाल! का यांश – 4
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िकतनी मिणयाँ लु ट ग ? िमटा िकतना मेरा वैभव अशेष! तू यान-म न ही रहा, इधर वीरान हआ यारा वदेश। ु वैशाली के भ नावशे ष से पूछ िल छवी-शान कहाँ? ओ री उदास ग डकी! बता िव ापित किव के गान कहाँ? तू त ण देश से पूछ अरे, गूज ँ ा कैसा यह वंस-राग? अ बु िध-अ त तल-बीच िछपी यह सु लग रही है कौन आग? ाची के ांगण-बीच दे ख, जल रहा वण-युग-अि न वाल, तू िसंहनाद कर जाग तपी! मे रे नगपितमे रे िवशाल! का यांश – 5
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रे , रोक यु िधि ठर को न यहाँ, जाने दे उनको वग धीर, पर, िफरा हम गा डीव-गदा, लौटा दे अजु न-भीम वीर। कह दे शंकर से , आज कर वे लय-नृ य िफर एक बार। सारे भारत म गूज ँ उठे , ‘हर-हर-बम’ का िफर महो चार। ले अंगडाई िहल उठे धरा कर िनज िवराट वर म िननाद तू शैलीराट हुक ँ ार भरे फट जाए कुहा, भागे माद तू मौन याग, कर िसंहनाद रे तपी आज तप का न काल नवयु ग-शंख विन जगा रही तू जाग, जाग, मेरे िवशाल Thank you so much ❤️ sir / ma’am I hope you enjoy it. For more you may visit our other blogs we have lots of shayari, poems, Jokes, thoughts and quotes
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