मचान पत्रिका: अंक ११ / सितम्बर २०२२

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मचान अक ११ सतबर २०२२

सपादकय ����य पाठको�� जब मने पहली बार '����य' कहकर आपका अ��भनंदन ��कया था और मचान क अक को, मेरी रातो�� क�� नी��द को आपक हाथो�� मे�� थमा ��दया था तब आपक�� सं��या पचास से भी कम रही होगी। आज जब मै�� आपको '����य' कहती ��ँ तो आप पाँच सौ से भी अ��धक है�� और सभी उतने ही अजीज। इस दौरान जीवन मे�� ब��त से बदलाव आए और हर बदलाव ने मेर लेखन को बदला। मचान क�� बदौलत मै��ने सीखा क�� मै�� गु��से मे�� ब��त कछ ��लखती ��ँ पर छपने लायक कछ नही��, खुशी मे�� मै�� छोटा ��लखती ��ँ पर बोलती ब��त ��ँ, और ��ःख— ��दल को ��नचोड़ देन वाले ��ख मे�� मै�� ��लखना ब��त चाहती ��ँ पर न तो ��याही क साथ श��द ��नकलते है�� और न ही आसुओ�� क साथ ग़म। मै�� ��लखती �� तो ��सफ ��यार मे�� ��दल को चकनाचूर कर देने वाले ��यार मे��, उ��मीद क�� आग को भड़काने वाले जुनून मे��, रोम-रोम मे�� बसने वाले असीम ��ेम मे�� मेरे श��द भी बसते है��। इधर मै�� कहती ��ँ मेरा ��ेम असीम है ��यो����क वो श��द सीमाओ�� को नही�� जानता और उधर आप पूछते है�� ��क कहां है इस असीम ��ेम का सबूत? कहां है तु��हारा लेख? ��या तु��हारा ��यार कम है और ��ख ��यादा? और एक मंद फसफसाहट— कोमल, शीतल पूरवाई मे�� ��हलते प��ो�� जैसी फसफसाहट आपको बताती ह ��क आजकल उलफ़त का ��म बस मचान क पाठको, बाक�� तीनो सपादको और उसक अ��त��थ लखको पर ही उमड़ रहा ह... बस एक और अक मरी कलम स उतर सपादक��य म ही सत�� हो जाइए ��यो��क भीतर क प��नो म मझस भी कही ��यादा ����तभाशाली लोगो का ��म उमड़ रहा ह। हर अक को बटोरते व��त मेरे ��दलो ��दमाग से एक ��बजली सी दौड़ती है, हर एक लेख, आलोचना, कहानी, क��वता मुझे नतम��तक होने को मजबूर कर देती है, मेरी आ��मा को पुल��कत कर देती है, मझे झँझोड देता है और जब मचान क इनबाॅ��स नामक बाग से बटोरे ����तभासंप��न कलाकारो�� क बीजो�� से

उपज य फ़ल म आप तक प��चाती �� तो यही भावनाए ��फर ��फर मझ ��म और उ��लास स भर दती ह और और और मरा ��दल पकारता ह। सपादन म भी एक उ��माद ह, कौन जानता था भला य बात? खर, ��म म पड़ी म ��फर श��द सीमा भलन वाली �� तो ज��दी स आपको ��मलवाती �� इस अक क अजीज रचनाकारो स ��म��बाह जी, स����च जी, ��न��ध जी, योगश जी, ��शवागी जी, ��शवम जी, आका��ा पा��डय जी, रमन जी, ��रणा जी ��ज��होन अपन ��दल को काट एक ��ह��सा हमार हवाल ��कया और अब यही खज़ाना हम थोड़ा सजा कर आप तक प��चा रह ह। आका��ा जी और अज जी तो अपन ही ह, एक बार ��फर अपनो स ही जड़ रह ह। ��व��तका, ����याशी और मध��रमा न हमशा क�� तरह ही कछ मीठा, कछ ख��ा पकाया ह, एकदम मज़दार। मध��रमा क कला ��नदशन और सौ��या जी क आवरण छाया��च�� क बगर य अक भी ��ा��ट ही रह जाता, आभार, हमशा। स��नेह, सादर, अब ये अंक आपका। आपक�� ����य उलफ़त ❤

बबल बारश दश नकाला पतक समीा मनगा यज़ को फन मल दली का दल यथाथ और कपना 07 07 08 09 11 13 16 17 सची

सची अपमाजन मसोपोटामया क औरत मन जी का कमबक बाढ़ का पानी फ समीा धम क दग बोल कलका, बारश और खजा खाला क छटक बहन 20 22 24 29 31 34 35 36

बबल सच शमा ��म��ी क टीलो पर चढ़त व��त कई बार तीख बबल क काट चभ ह च��पलो क आर पार परो क तल स बात करन प��च ह। "मआ यह कौन आया! ��बन बलाय मर घर क ��नचल दरवाज़ स घसन वाला बड़ा ज़ा��लम, चभीला ��नकाल फका उस हाय, दद! काट न काट ��लया!" आज सालो बाद सीन म दद उभरा। मन भीतर झाका तो ��कतन काट बठ थ अदर! इतन ��क अब म खद एक बबलू का पेड़ ��ँ। 6

बारश आकाा मर कदीम ज़��मो को बतरतीबी स करद दती ह आब ए त��ख़ क�� तौहीन करती, बा��रश यहा रोज़ होती ह। तमन बाद बा��रश ��कया था आन का वायदा ��कती ही नही य मह��म, बा��रश यहा रोज़ होती ह। टट घर क�� छ��पर स ह री��ता घटो पानी बा��टी भर सक उतनी ही, बा��रश यहा रोज़ होती ह। कही ��र लगता ह ��कसी का साथी होगा छटा शायद उस बवडर क�� ही, बा��रश यहा रोज़ होती ह। दशको ��कया था फहार का इतजार तमन सर पकड़ बठो हो अब क��, बा��रश यहा रोज़ होती ह। पहली बार दखा था बा��रश म त��ह जब स दखा ह त��ह, बा��रश यहा रोज़ होती ह। 7

दशनकाला नध जगाथ िवदी सजाओ म सबस भीषण सजा म समझती रही म��य दड या कारावास को ल��कन दश ��नकाला होती ह सबस कठोर सजा यह मन त��हार ��दय स ��नकलत ��ए जाना। 'जाना' ��ह��दी क�� सबस खौफ़नाक ����या ह कहत ह कदारनाथ ��सह, ��कत '��नकाला जाना' उसस भी अ��धक भयानक ����या ह यह मन त��हार ��दय म ध��क खात ��ए जाना। ����यक जान म शा��मल नही होता '��नकाला जाना' कछ लोग जम रहत ह जान क बाद भी ��कत '��नकाल जान' म 'जान' क इतर शा��मल रहता ह और भी ��कतना कछ यह मन त��हार ��दय स ��नकलन क बाद जाना। चावल पछोरत ��ए कहती ह मा क��ड़ पड़ सकत ह ����नया क�� हर चीज़ म तब एक हाथ स दबात ��ए नाक ��सर हाथ क�� तजनी और अगठ स बनाकर '��चमटी' उठा फकत ह ऐसी चीज़ो को बाहर ��म म भी कस पड़ जात ह क��ड़ यह मन तमस ��म करत ��ए जाना। 8

पकसमीा अज बाला लाखो�� युवाओ�� क�� भां��त नौकरी क�� ज��ोजहद कर रहा उप��यास का नायक अंतक लेनदेन वाली सरकारी नौकरी ना ��मलने पर सभी को��शशो�� और बातो�� को अनदेखा कर खुद को खोजने ��नकल पड़ता है और फस जाता है सुनहरे क��रयर का झांसा देकर लाखो�� ��पए हड़प जाने वाले मी��डया ��कल क मकड़जाल मे��। सीखन का जुनून कछ पाने क�� भख, सपनो�� क�� मरी��चका मे�� भटकते युवा वग�� को प��र����थ��तयां अनुकल होने तक 'तेल देखो तेल क�� धार देखो' तज�� पर धैय�� बनाए रखने क�� राह ��दखाता यह उप��यास पूरी तरह से ��यं��या��मक है। मी��डया ��श��ा और क��रयर क�� उठापटक मे�� सामने आने वाली तमाम गुटबाजी चमचा��गरी, चुगलखोरी और गु��घंटालो�� क बीच बेबाक अंतक गलत का ��वरोध करता है, उपे��ा सहता है। ल��य का पीछा करने मे�� मशगूल अंतक मी��डया सं��थानो�� क भीतर चलते षडयं��ो��, कारगुजा��रयो�� और अनै��तक ����त��पधा�� क�� ठेठ खड़ी भाषा मे�� ब��खया उधेड़ता भी चलता है। नायक ह��रयाणा प��रवेश है इसी��लए ह��रयाणवी हा��य अपने अंदाज मे�� ��वत ही छलक जाता जाता है खंड 'कयामत' मे�� पु��लस और फौजी सै��यूट वाला ����य तो पाठक को पेट पकड़ने पर मजबूर कर देता है। ��ब��दास और बेबाक हा��य ��यं��य ह��रयाणवी प��रवेश क�� पहचान है। लेखक ने इसे नायक अतक ��ारा बखूबी इ��तेमाल ��कया है। मी��डया सं��थानो�� क ��लपे पुते चेहरो�� से परत दर परत मुखौटे उखाड़ता यह उप��यास; चकाचौ��ध क पीछे छपे सच को 9 सनील कमार क उपयास "बावळी बच" क समीा

10 सामन लाता ह ��क ��कस तरह छटभय चनलो क प��कार ��सर चनलो क�� खबर चोरी करत ह उनक ��टाफ म सध मारत ह। अतक जस कछ प��कार खलआम इन ��ग��ो स ��भड़ जात ह और इस पश क�� न��तकता को बनाए रखत ह। उप��यास का नायक तमाम यवाओ क ��लए आशा क�� ��करण ह। जो सदश द रहा ह ��क ��गरन स मत डरो ��यो��क ��गर तो भी अनभव तो अव��य ��मलगा, बस खड़ होन क�� ��ह��मत बनाए रखना। ��दल और ��दमाग क�� लड़ाई म हमशा ��दल क�� सनो। ��दल क�� सनन वाल मनमौजी को लोग 'बावली बच' कहत ह। ल��कन यह पागलपन आपको जीन का ज��बा दता ह। खद क�� राह और म��जल तलाशन का मौका दता ह। हर व��तु, ��य���� मे�� कछ कमजो��रयां भी होती है�� ��यो����क 'इस हमाम मे�� सब नंगे है��' जा��हर है उप��यास मे�� भी रही होगी। इस मे�� कछ ��याकर��णक अशु����यां है जो सरलता स सुधारी जा सकती है��। लेखक ने ��ारंभ मे�� ही अनेक पा��ो�� को एक����त कर ��दया है ��जससे सब गडमड हो जाता है। पाठक को सामजं��य ��बठाने मे�� थोड़ा समय लगता है। सभी पा��ो�� का प��रचय लंबा चौड़ा देने क�� आव��यकता नही�� थी, ��वशेषकर गौण पा��ो�� क��। गुलनाज का कहानी मे�� एकाएक ��वेश कर जाना थोड़ा अखरता ह। लेखक ��ारा बीच मे�� ही यह बताना ��क गुलनाज क पु�� अरशद ��सैन से उनक चाचा ने ��द��ली मे�� प��रचय अज बाला पतक समीा करवाते ��ए ��ेरणा लेने को कहा था। य��द यह पाठको�� को पहले से पता होता तो उप��यास एकाएक पकड़ से बाहर नही�� होता। कहानी क साथ पाठक का तादा����य ��यादा गहरा होता। बहरहाल तमाम क��मयो�� और खू��बयो�� क साथ उभरते सा��ह��यकार का खूबसूरत और उ��े��य परक उप��यास कहा जा सकता है। लेखक सुनील कमार क श��दो�� से परी तरह सहमत ��ं ��क 'यह आपक�� ��ज��दगी है। यह आपक�� कहानी है, तो इसक फसले भी आपक और रा��ते भी आपक।' इसी क साथ लेखक को उनक उ����वल भ��व��य क�� शुभकामनाएं।

मनगा नध जगाथ िवदी एक एक हाथ ल��ब मनग क कई फल लटक रह ह काली मटमली पीली चोच वाली कई फलच����कया उसक फल चनती ह नाखन स भी कम आकार क�� कई इ����लया उसक�� पीठ पर झलती ह उसका एक ��ह��सा सड़क क�� ओर झका ह और ��सरा ��ब��कल सीध तीसरी म��जल तक ऊचा उठा ह कछ लोग कहत ह ��क उसक�� इस अ����या��शत ऊचाई का कारण म �� म तीसरी म��जल म रहती ��! मनगा तीसरी म��जल क ��खड़क�� तक आता ह और हवा क�� आड़ लकर दरीच पीटता ह उसक�� इस बहयायी स परशान लोग जब उस घरत ह तो वह अपना झका ��आ भाग और अ��धक ��वन��ता स झका दता ह मानो अपन ��म क�� मौन गहार लगा रहा हो 11

"अब एही काट दा ब��त ब��ढ़ गा हय" कहत ��ए लोग ��नकलत ह तो कछ दर वह ��आसा सा खड़ा रहता ह ��फर बपरवाही स ��खड़क�� पर आकर म��करान लगता ह। जब म ��खड़क�� खोलती �� तो उसक�� ठडी हवा मर बदन म भर जाती ह उसक फलो क�� भीनी खशब मर ����पट स ��चपट जाती ह उसक�� पीली प����या उड़ उड़ कर मर भर बालो म फसती ह यह दख सारी फलच����कया ��खल��खला कर हस पड़ती ह, वह मनग क�� ब��मीज़ सह��लया ह मनगा उ��ह उड़ान क�� को��शश करता ह पर वह नही उड़ती ब����क एक साथ कोई ��म गीत गान लगती ह उसक पील प�� शम स लाल हो रह ह उसक�� हरी धड़कन आकाश म गजती ह बादल उसक�� चटक�� लत ह तो हवा उसक बालो को छड़ कर भागती ह फलच����कया ��फर ��खल��खलाती ह और वह झप कर ��सर झका लता ह म इतन नाजक ��मी स जीवन म पहली बार ��मल रही ��! 12 नध जगाथ िवदी मनगा

यजकोफनमल तका नोट: ले��खका यानी ��क मै�� ��फगर ��कटर युज़ु�� ह��यू क�� ब��त बड़ी फन ��ं। युज़ु�� ��फगर ��क��ट��ग क सव��का��लक सव����े�� ��खलाड़ी माने जाते है��। ��पछले दो ओलं��पक खेलो�� मे�� ��वण�� पद हा��सल कर उ��हो��ने पूरी ����नया मे�� अपने फस बना ��लए है��। अगर आप भी मेरी तरह फन-ग��ल��ग नामक इस बीमारी से ����त है�� (भले आप ��कसी क भी फन हो—सलमान भाई से लेकर क पॉप तक) तो एक सह-फन होने क नाते आप मेरी मनोभवना को अ��छे से समझ सकते ह। ��कसी का फन बनना आसान काम नही��। ब��त मेहनत लगती है। पर जो लोग फन सुनते ही नाक ��सकोड़ लेते है�� और फट से अट-शंट राय बना लेते है��, उ��हे�� ��या पता इस सुख क बारे मे�� और ये लेख उनक ��लए है भी नही��। ख़ैर, आपक�� ले��खका ने वादा ��कया था क�� वे युज़ु�� को ��व��टर ओलं��पक मे�� देखने बी��ज��ग ज़��र जाएंगी। ये वादा उ��हो��ने 2018 क ��व��टर ओलं��पक क बाद ��कया था। उ��हे�� डर था ��क शायद ये आ��खरी मौका हो जब वो युज़ु�� को ओलं��पक खेलो�� मे�� देख सक। और उनका ये डर ज��द ही सच सा��बत हो गया। 19 जुलाई को 27 साल क युज़ु�� ने ����त��पधा����मक ��क��ट��ग को हमेशा क ��लए अल��वदा कह ��दया। ओलं��पक मे�� युज़ु�� ��वॉड ए��सेल करने मे�� ��वफल रहे और उ��हे�� चौथे ��थान से संतु�� होना पड़ा। 13

तो कल होना ही था। कभी जब तु��हारे ��व��कपी��डया पेज पर नज़र जाती है तो 'क��रयर एंड' ��लखा देखकर अजीब लगता है। मी��डया ने ��जस कदर तुमपे दबाव बनाया था उसमे�� भी तुमने इतना अ��छा ��दश��न ��कया इसक ��लए तु��हे�� अपने आप पे फ�� होना चा��हए। जहां एक तरफ तु��हे�� न देख पाने का ��ख है वही�� ��सरी तरफ इस बात क�� त��सली है क�� तुमने इस खेल से हमेशा क ��लए मुंह नही�� मोड़ा है। तु��हे�� अ��य ����त��पधा��ओ�� मे�� खेलता देखने क�� आस मै��ने अभी नही�� छोड़ी है। बातो�� बातो मे�� तु��हे�� यू��ूब चैनल खोलने पर बधाई देना तो मै�� भूल ही गई थी। पर ��या अ��छा नही�� होता जो तुम उसमे�� सबटाइट��स उफ़ उपशीष��क भी लगा देते। मेरी टटी फटी जापानी काफ�� नही�� पड़ती तु��हे�� समझने क ��लए। ये कमब��त भाषा हमारे बीच भी दरार डालने का काम कर रही है। असल ��ज़��दगी मे�� तुमसे मुलाकात हो न हो पर तुमसे ��मलने म सपनो�� क�� ����नया मे�� ज़��र हा��ज़र र��ंगी। और उसक ��लए मुझे नी��द क�� आगोश मे�� जाना ही पड़ेगा। जाना ज़��री है। बाक�� बाते�� अगले मेल मे�� ��तु��हारी,वे��तका 15 खद को ��म म रखना ही था। त��ह दखन क�� ��वा��हश हमशा क ��लए एक सपन म कद हो गई ह। बी��जग म जो ��आ उस याद करक सोचती �� ��क अ��छा ही ��आ जो म ना प��च पाई। जो ��आ उस दखकर मन और टट जाता। मन आजतक त��हारा ���� ��कट का वी��डयो नही दखा। और न दखगी। ��ह��मत नही त��ह टटा ��आ दखन क��। त��हार हारन क�� खबर सनक पलभर क ��लए नथन क ����त मरी नापसदगी बढ़ गई थी। पर य सोचकर क�� तम मरी जगह होत तो य न करत, मन ��ष को वही दबा ��दया। मरी ��ज़दगी पर त��हारा ��भाव कछ इस क़दर ह। तमन मरी ��ज़दगी म खद को ऐस घोल ��लया ह ��क अब त��हारी प��र����थ��तयो का असर मझप पड़न लगा ह। एक समय था जब ����कट ����मयो का अपन पसदीदा ��खलाड़ी क ��लए ऐसा ��यार उमड़त दख अजीब लगता था। सोचती थी ऐसा पागलपन कस सवार हो जाता ह आज खद क साथ य होता ��आ दख समझ आ रहा ह। य ��या बना ��दया तमन मझ यज़��। य कसा जा�� कर ��दया ह तमन? त��हार इस खल को हमशा क ��लए अल��वदा कह दन क ��याल मा�� स मन कचोटन लगता ह। पर य आज नही तका यज को फन मल

दलीकादल रणा सहा महीनो तक जलाती ह, महीनो तक जमाती ह नफ़रत करती ह शायद, पर ��दखाती नही ह ��यार करती भी होगी तो जताती नही ह। माॉल हो या महिफ़ल, य दोनो क�� जान होती ह स��दयो का बढ़ापा ह, और पल पल जवान होती ह ��कतना कछ दबाए बठी ह, सोचो तो अजबा ह, पता नही ��द��ली शहर ह, या टॉ����सक महबबा ह। 16

यथाथऔरकपना शवागी वह जो मर मकान क मलब पर बठा ह वह यथाथ ह और क��पना? क��पना बगीच म ह पो��त क बीज क साथ जो मझ अपन र�� म ��मला था तब जब मकान क�� पहली ��गरती दीवार मर गाल को छील गई 17 म उस उठाकर दद स कराहती ��ई बाहर बगीच म गई और उस ज़मीन म बो आई मकान य ही ��गरता रहा मर अग य ही ��छलत रह और म र�� स पो��त क बीज चनकर कराहती ��ई उ��ह अपन बग़ीच म बोती रही फोटोाफर: शवागी

एक ��दन इस ��नरतर र��च�� स ��नर��त हो म��यश��या पर लट जान प मझस ��मलन एक क��व आया क��व न मझस बहत र�� को जो अब सख कर महक रहा था बरसात क�� उपमा दी हमार सड़त ��ए अगो को खाद क�� और खाली पड़ बगीच को प��वी क�� 18 अब म��य प��चात म क��व �� अब मरी वषो परानी कराह क��वता ह अब मरी म��य कवल सदर नही सदरतम ह मरी ��चता पर आग नही लहकती उसस सदी क�� धप ��नकलती ह उसम चा��, चचल ��करण अठखलीया करती ह शवागी यथाथ और कपना फोटोाफर: शवागी

अब म उन सभी क��वताओ क�� म��य ना��यका �� जो मर र�� और ��वस भर जीवन तक कभी नही आई अब यथाथ क��पना का कारोबारी ह और म लौटना चाहती �� वापस उस टटत ��ए मकान क पास और दोबारा सीचना चाहती �� उस पो��त क बीज को ल�� स नही, पानी स ता��क मरी क��पना साथक हो सक और म अपन दद स कराहन को एक बार कवल कराहना कह सक क��वता म नही सरल सीध वा��यो म 19 शवागी यथाथ और कपना

अपमाजन नध जगाथ िवदी मर सीन म बठ चार कौव खा रह ह मरा ��दय म उ��ह भगान क ��लए ध�� ध�� नही करती ब����क लती �� बार बार त��हारा नाम! यह जतान क ��लए ��क त��हारी ��म��तयो क रहत नही गल सकता मरा ��दय नही बन सकता माटी नही उगा सकता '��सरा' सदन म मन��य होकर भी अपना "परोपकाराय इदम शरीरम" का कत��य भल चक�� �� ल��कन वह कौव होकर भी अपन अपमाजन का दा��य��व नही भल ह! 20

ह ��दय��वर! ��कट हो हाड़ स, मास स, ��दय क�� सखी वा��हकाओ स, जस ��कट ��ए थ कभी न��सह अपन ��नरीह ��मी क�� पकार प! और रोक लो मरा यह अपमाजन। बता दो उन कत��य परायण कौवो को ��क नही अपघ��टत ��कए जात ��मी ��दय तब तक, जब तक बची रहती ह ��म��तया ��वछोह क बाद भी म��य क बाद भी! 21 नध जगाथ िवदी अपमाजन

मसोपोटामयाकऔरत शवम चौब व चनार स आयी थी और वापस वही जा रही थी इसी बीच व मझ ��मली पहल उ��होन व�� पछा जो वाकई खराब था ��फर प��रचय जो अधरा रहा बात ���� तो एक न बताया 'मनगढ़ गइल रहली, दवाई लव' उनक क�� क ��लए ��जतनी दवाए थी, उसस कही ��यादा दवाओ क ��लए क��। व ��बना मदो क समह म थी ल��कन ��बना मा��लक क भड़ नही थी व। उनका रग इतना गाढ़ा था ��क अधरा उनक�� झ��रयो म पठा था आख इतनी ��य��त ��क उ��ह कछ दखन क�� फसत नही थी उनक हाथ प��थर ��जतन कठोर थ और चमड़ी ��म��ी ��जतनी खर��री। व मसोपोटा��मया क�� औरत थी जो भलकर हमारी स��यता म आ ग�� थी और न�� होन क�� ������या म शा��मल थी। 22

व इतनी ��नभीक थी ��क ��बना ��टकट सकड ��लास म चढ़ आयी और अपनी उ�� स ��यादा जगह घर कर ब��तयान लगी उनक�� बात स��दयो क�� रात ��जतनी ल��बी थी और उनक कपड़ो न स��दयो क�� धल फाक�� थी उ��ह बस इतना पता था ��क पहाड़ श�� होत ही उ��ह उतर जाना ह और तीन बज क गाढ़ अधर म गाव क�� तरफ सरक जाना ह। पहाड़ उनक ��लए उसी तरह थ जस अनजान रा��तो पर छोट ब��चो क ��लए ��पता। ��पता क मरत ही व घर स ��नकलना बद कर दगी ल��कन व ��नभीक थी। व अभी भी अपनी परपराओ म जीती थी व घर बनाती थी, च��हा चौका करती थी, ��नभीक तो थी ल��कन ��क��त स डरती थी खतो म फसलो को लो��रया सना कर जवान करती थी हवाओ स मानता मानती और न��दयो का ध��यवाद करती थी व ब��च पदा करती और उ��ह इसान बनाय रखन को हमारी स��यता स टकराती रहती। व यगो यगो स जी��वत थी परत अब जब हमारी परपराओ न उ��ह ठकरा ��दया ह, व बीमार पड़ गयी ह। और अब जब व मरगी तब उनक�� राख हवाओ म ��मलकर ससार क�� तमाम न��दयो म घल जायगी और म ��कसी पल स गज़रत ��ए याद क��गा ��क व मसोपोटा��मया क�� औरत थी जो हमारी स��यता म भटक आयी थी ��जनका रग रात ��जतना गाढ़ा था और जो वाकई ��नभीक थी। 23 शवम चौब मसोपोटामया क औरत

जीजा जी क धोख न मन को एक बात तो समझा दी थी क�� चाह कछ भी हो जाय, जीजा जी क�� सोच म वो सध लगाय या न लगा पाए, शाम का कड़ा तो उ��ह ही ��नकालना पड़गा। अथात जीजा जी ��कतना ही धोखा द उनक घर म रहना ह तो उनस बर तो नही पाल सकत। ल��कन ऐसी कहानी ��लखी जा सकती ह क�� जीजा जी खद स ही सबक सीख जाए और बोल मन य आर अ ��ट राइटर और ��फर मर ��स ��कय ��ए बशट क�� ����ज़ क�� तारीफ कर और ��फर बस बस मन गट अ ����प। जीजा क�� नज़रो म परासाइट स वरी ��ाइट क�� ��री तय करना ��ट वाल ऑफ़ चाइना पर ��ा��फटी करन जसा अ����बशस ��ोज��ट था। ल��कन मन जी, ��ज��होन जब च��पट चाचा क मह बोल भतीज ����स क�� भस (ता��या) जो क��चड़ म ठोढ़ी तक धस गयी थी का साथ नही छोड़ा, तो अपना साथ कस छोड़ सकत ह। आ��खर फ��मली क�� बात भी तो ह। जब मनजीकाकमबक आकाा 24 भाग 2 अ��मा न दीदी क साथ भजा था य कह क ��क जीजा का साया बन क रहना तब ��कसको पता था जीजा जी इतना फ़ा��ट चलत ह। ल��कन तब भी म��न न च तक नही क�� ब����क छ छ करक अपनी ��पीड बढ़ा ली। शादी म भी जीजा गाडी स आय थ, चलत ��ए तो ��कसी न उनको दखा ही नही, घोड़ी पर स भी चचल भया और शकनी मामा उठा क मडप प ल आय थ। वो तो जब जीजा जी क साथ काज को घमान ल क जाना ��आ तब मालम पड़ा काज को भी जीजा को कचअप करना पड़ता था।ल��कन कछ भी कह लो दीदी जब कहती ह 'जमरा नाच ��दखायगा' जीजा कभी, ना नही कहत। वस जीजा को डास का काफ�� शौक ह। अभी कल दीदी को कजरार क ��ट��स ��सखा रह थ, ��फर मझ दखत ��ए दखा तो नौकरी और घर दोनो स ��नकालन क�� धमक�� द दी। ��कसी भी बात प ग��सा हो जात ह। थोड़ा जीजा जी आ��ट��ट वाली इस��यरटी स ����त ह, इसप

भी मन जी एक पीस ��लखन क�� सोच रह ह। ल��कन अब य बचपन क�� अठख��लया ब��त ��ई, मन जी तीस क�� दहलीज़ भी लाघन को ह, जीजा क मन म इस साल इ��ज़त तो उगानी ही पड़गी, नही तो ट लट हो जायगा। आज तक जब भी मन क मन म कोई ��चता क पॉपकॉन फट ह, मन न एक ही श��स क दरबार म गहार लगायी ह: दद अगली सबह: मन: दीदी, बात इ��ज़त प आ गयी ह। ऐसी कहानी ��लखनी ह जो, सन क जीजा कसी पर स उछल पड़। दीदी: मन, थोडा ��ध ��गर गया था, गस साफ़ कर दो ��फर बताती ��। मन: जीजा जी क गसलखान स आन क पहल बता दो उनको सर��ाइज दना ह। दीदी: मन याद ह च��पट चाचा ��या कहत थ, मा��टर ��जस पाठ को खड़ हो क पढ़ाता ह, प��र����छा म सबस ��यादा अक का ����न उसी पाठ स आता ह। मन जी न दीदी क पारा��ज ��कय ��ए च��पट चाचा क कोट क�� गाठ बाध ली और जीजा को आज द��तर म ओ��सव करन का ��नणय ��लया। इतज़ार करन लगा क�� कब जीजा कसी का मोह ��यागग। 25 जीजाजीकादतर म��हार ��स��हा (पो��ल��टकल बीट प��कार ल��कन क��वता का इ��ह ब��त शौक ह): सर ��न क�� पटरी पर स उतरन वाल ��रपोट क ��लए हडलाइन सोच ��लए ह: पटरी और रल म ��ई र����यन ��लट, जस राज न हो ��समरन स कहा: पलट पलट पलट सपादक: म��हार बाब, आपका अभी तक ��कतना बाई लाइन छपा ह अखबार म? म��हार ��स��हा: ए��को गो नही सर, इस पर भी हम उ��साह वधन हत एक �� ठो श��द ��परोय ह थोड़ा तव��ज़ो सपादक: म��हार बाब, य थोड़ा थोड़ा हथोड़ा बनक आपक�� भ��व��य को ��व��त करगा। क��वता क रस म त��य का कड़वापन घो��लए और पी ली��जय। जाइय पता लगाइए क�� सरपटधाम क�� पटरी ��वरोध म उतारी गयी ह या मर��मत चल रही थी इसी��लए हादसा ��आ ह। और हा अपनी सीट म��न क बगल स हटाइय और भान ग��ता क साथ जमाइय। इतन म रोजा इटन अदर आती ह और कहती ह "सर रलव ��वभाग स ��म��जी क पीए आय ह।" पीए साहब क अदर आत ही उनक ��वागत म आकाा मन जी का कमबक

जीजा जी खड़ हो जात ह। जीजा जी को ऑ��फस म खड़ा होता दख मन जी क�� उ��सकता सातव आसमान को छ जाती ह। ��स��हा जी क ऑ��फस स ��नकलत ही: मन : ��स��हा जी,��स��हा जी, इधर आइय। कौन ह जो अदर गए ह अभी? ��स��हा जी: मन जी आप हम स ��र ही र��हय, आपक�� सग��त म रहग तो ��व��वध ख़बरो स अ��य ख़बरो म प��चा ��दए जायग। मन: अपन टलट पर भरोसा र��खय ��स��हा जी, बताइय। ��स��हा जी: अर वो रलव हादसा ��आ था न ��जसक ऊपर हम एक ठो का��तलाना हडलाइन भी ��लख थ मन: बस बस ��स��हा जी, स नो मोर मन जी न तरत अपना ब��ता उठाया और घटना ��थल क�� ओर ��नकल पड़। परा ��दन बौखन क बाद कछ ख़ास पता नही लगा पाए मन जी। बस यही क�� 3 पट��रया उलटी, मॉलगाडी म माल था नही ख़ास, ��न क ऊपर तार पर दो ठो गर��या और एगो नीलकठ बठा था ए��सस��ा ए��सस��ा। ल��कन य सब तो म��हार बाब क दो तीन ��व��जट और एक गगल सच करक कोई भी पता लगा लगा। तभी अचानक मन को ��दखा एक बजग पटरी क ��कनार नचर का फोन कॉल अटड कर रह ह। मन जी न एक स��य नाग��रक क�� तरह रोड साइड टॉयलट ए��टक��स का मान रखत 26 ��ए इतज़ार ��कया और उनक उठत ही टपक पड़। मन: बाबा आज लट हो गया? आप दोपहर म इधर? अ��छा य बताइय यहा कोई शकाजनक बात दख ��या रात को कल? बाबा: अर ��या बताय बटा, एक दम जहा मरा ��पॉट था न ए��ज��ट वही घटना घट गयी, सबह इतना प��कार लोग जट गया था क�� ��शर नाराज़ हो गया, पर त��हार ए��टक��स दख क लग रहा ह त��ह पता होगा क�� ��शर ��कतना ��पॉट स��स��टव मामला ह। बाक�� रही बात इनफामशन क�� तो थोड़ा इ��व����टगशन करो इतना आसानी स पता चल जायगा ��या सब, शलाक नही दख हो का? मन: बाबा बात तो सही ह ल��कन हम प��कार ह, ��डट����टव नही ह, हमार और शलाक क प ��कल म उतना ही गप ह ��जतना बीमा और ��बटकॉइन म ह। बाबा: वस मझ लोगो क�� मदद करन का फ��सनशन नही ह ल��कन त��हार मनस स म इ����स ��। आ��सो अगर मन इ��फो दी तो फोटो छापोग? मन: बाबा म इ��फो ��नकालन क ��लए आपको झठा ��ॉ��मस कर सकता �� ल��कन जीजा जी नही मानग। (य कह क बाबा क कध पर मन जी न हाथ रखा) (बाबा न उसक हाथ पर अपना हाथ रखा) बाबा: मर साथ भी मरा साला रहता ह भाई म आकाा मन जी का कमबक

समझ सकता ��, इ��स हल। एक तरफ बीवी क�� ��झग ��झग ��सरी तरफ माल गाडी क�� डीग ��डग। एक काम था जो म शा����त स कर पाता था ल��कन जब स ��व��छता कपन चली ह डर डर क पटरी पर बठना होता ह, ��न का नही झा�� क�� फटकन का आतक ह। आदमी क सयम क�� भी एक सीमा होती ह। का बताए, कल रात को बीवी ��फर साल क�� साइड ल गयी। कहता ��लटो ��लनट ह तो ह। अर मन कहा त��हारी बो��रग म पानी नही आएगा ��या, अगर ��लटो को सोलर ��स��टम म डीमोट कर ��दया तो? शतानी जोड़ा मझप चढ़ बठा और इधर सरपटधाम झगझगती ��ई लगा मर सीन पर ही आ रही हो। घर क�� छत पर स परचम का स��रया उठाया और बाहर ��नकल गया। इरादा तो मरा पोल वा��ट करक उस पार जान का था। म पार हो भी गया, स��रया पटरी पर रह गया, ल��कन। मन जी क�� आख चमक��। बाबा जी स पर ��डट��स ��लए, ल��कन जात जात एक सवाल पछन क�� इ��छा आट म खमीर क�� तरह उठन लगी। मन जी: बाबा आप कदकन स पहल ��न क जान का इतज़ार भी तो कर सकत थ। ल��कन पछत ही मन को लगा वो इमपोलाइट हो रह ह। आ��टर आल, ��दस मन ज��ट ओप��ड अप ट ��हम। बाबा को घर ��ाप ��कया और बगल वाली पो��लस चौक�� को फ़ोन लगा कर बाबा का ए��स और ����लया मसज कर ��दया। 27 ��फर फट स सलभ शौचालय म गए और परी ��रपोट तयार कर ली। कहानी ��लख क ऑ��फस प��च और जीजा का दरवाज़ा खटखटाया। जीजा/सपादक: मन कहा मर गए थ तम, त��हारी दीदी ककर क�� सीटी छपा क बठी ��ई ह, जब तक तम वापस नही जाओग च��हा नही जलगा। मन: जीजा जी हम सी��ट ��मशन पर चल गए थ। इस बार ऐसा टॉ��पक उठाय ह आप अपनी नज़रो म हमको उठा लग। जीजा जी: आई आर सी टी सी का मसज आया था मर पास। ��न ए��सीडट कवर करन क�� ब����मता तम म कहा स आ गयी? चलो ��टोरी ��दखाओ। जीजा जी क�� भौव ��टोरी को ��कन कर रही थी और मन जी कॉ����फडस क�� नदी म बक ����लप मार रह थ। तभी च��वात तौकताई को भी चौकाती ��ई ��पीड स जीजा जी क�� सडल और मन बाब क�� ��टोरी उड़त ��ए म��हार बाब क�� ड��क क पास आक ��गरी। म��हार ��स��हा न सडल क नीच स मड़ोड़ा ��आ पपर का टकड़ा उठा कर पढ़ा। ��छता ��मशन स पटरी क आस पास होन वाल शौच काय��म म अवरोध। ��शर ��ॉ��स आइड��टफाई ��कय जान का अनरोध। आकाा मन जी का कमबक

��स��हा जी मन ही मन राइ��मग क�� तारीफ ��कय ��बना रह नही पाए। अगल ��दन ��ट पज पर खबर छपी क�� ��कसी एनो��नमस ��टप स पटरी पर स��रया डालन वाल बाबा का पता लगा। साथ म बाबा क�� लोट वाली फोटो भी छपी थी 'ऑल इज़ वल' कारावास क बाहर। बाबा न भी ��या ��दमाग लगाया। ��न क�� सीटी और घर म बीवी क�� जली कटी दोनो स छटकारा। लोगो का मानना ह क�� असली कहानी मन जी न इसी��लए छपाई क�� जीजा जी कही बाबा स इ����परशन न ल ल। जीजा जी दौड़त अ��छा ह ल��कन उनक�� ����प एक दम क��ची ह। ��यादा ������ट होत ह जीजा तो कमर म लॉक हो क लॉ��कग और पो����पग कर लत ह, बस यही सही ह। य सोच कर मन जी म��काय और जीजा क ��लए कल क�� बशट ��स करन म लग गए। 28 आकाा मन जी का कमबक

दा��ख़ल होता ह वो गाव क एक छोर स धीर धीर, पहल मन म, ��फर घर म और दखत ही दखत ठकन लगता ह पानी उस परान स��क तक, ��जसम बद ह। परखो क�� बनाई क��ड��लया, ता��प�� दादी क�� ��व��टो��रया और हमारा बचपन। ताख प रखा र��डयो हम दश क अलग अलग ��ह��सो म बाढ़ स होन वाली घटनाओ क�� जानकारी घटो स ��दए जा रहा ह। कही भ ��खलन तो कही शहरी बाढ़ तो कही बादलो का फटना। मक़सद साफ ह बाढ़����त ���� को आपदा����त म ह बदलना। बाढकापानी रमन बटोिहया 29

मन अब भी कही बड़री प टगा ��आ ह। सरकारी आ��वाशन क�� उ��मीद प परा गाव जमा ��आ ह। महकम स य ख़बर आ रही ह ��क, बचावदल का एक टकड़ा, गाव क�� ओर चल ��दया ह। हर साल आता ह बाढ़ का य पानी, साथ ल आता ह, तमाम घो��षत सरकारी योजनाए जो मआवज क�� श��ल म हम मह ��चढ़ाती ��ई एक गाव स ��सर गाव ��नकल जाती ह। अ��सी बरस क बधई काका को, य सब, अब भी कौतहल ही लग रहा ह। दश अगर चाद और मगल प प��च चका ह। तो आ��खर ��यो य गाव पानी म डब रहा ह। 30 रमन बटोिहया बाढ का पानी

अना��मका ह��सर ��ारा ��नद��शत ��फ��म "घोड़ को जलबी ��खलान ल जा ��रया ��" (2018) का टाइटल शायद आपको अचरज म डाल द। कहानी कछ य ह, ��क अना��मका जी क�� मौसी कई बरस पहल परानी ��द��ली म तागा रोकन क�� को��शश म थी, और तागवाल न उ��ह यह कहकर टाल ��दया ��क "बीबी, घोड़ को जलबी ��खलान ल जा ��रया ��!"। जस आज क ज़मान म ऑटो ��र��शावाल महफ़र कर "नही जाएग" कह दत ह और आपक�� दर��वा��त ख़ा��रज कर दत ह, इस महावर को उसी का एक ��प मान ली��जय, फक बस इतना ह ��क आज कल बात सीध सीध कही जाती ह, और उस तहजीब वाल समय क�� परानी ��द��ली म ऐसी छोटी सी बात को भी ��यग और चातय क�� चाशनी म डबो, जलबी सा गोल घमा कर कहा जाता था। कछ इसी तरह, यह ��फ��म भी जो कहना चाहती ह, वह सीध सीध नही कहती, उसम म��जकल ��रअ��ल��म का तड़का मार कर कहती ह। ��हदी ��फ��म जगत म र��खक कथा या ली��नयर नर��टव का इतना दबदबा ह ��क जब भी "घोड़ को जलबी " जसी घमावदार ��फ��म स हमारा सामना होता ह तो हमारी फमसमीा याशी सह 31 'घोड को जलबी खलान ल जा रया ' पहली ����त����या होती ह उसपर "��व��च��" का ठ��पा लगा दना। ल��कन ��या ऐसा करना सही ह? एक श��आती टाइटल ������न यह घो��षत करता ह ��क ��फ��म परानी ��द��ली क तमाम महनतकश लोगो क सपनो को जमा करक बनाई गई ह। आप और हम जानत ह ��क सपनो क�� ����नया का ��फ��मो क�� ����नया स गहरा स��ब��ध ह, हमार सपन भी ��कसी ��ाचीन ��फ��म क�� ही तरह नीद क�� ��स��वर ������न पर उमड़ पड़त ह। ��फ��म इ����श��न����टक ह, अथात l ��बना कछ कह ही ��करदारो क अदर छप भावो को तह तक ल आती ह। एक ����य सामान खीचत मज़��र क�� पसीन स तर पीठ पर फोकस करता ह शायद ऐसा ही कोई मज़��र असल ��ज़��दगी म हमार पास स गज़रा हो और हमन ��यान भी न ��दया हो, ल��कन ��फ��म कमरा जब उस पीठ पर ��खची भरी खाल और उसक तल पनपत ��म पर हमारा ��यान क����त करता ह, तो उस नज़रअदाज़ करना नामम��कन हो जाता ह। कछ ��र चलक मज़��र अपनी ठला गाड़ी पर झपक��

लन बठता ह, और बो��रयो पर घास उगन लगती ह, जो अगल ����य म एक खत बन जाती ह। ��फ��म डा��यम��ी और क��पना क बीच क�� रखा को धधला दती ह। ��फ��म क�� कहानी चार म��य पा��ो क इद ��गद घमती ह पत�� जबकतरा (र��वदर सा��), छद��मी हलवाई (रघभीर यादव), मज��र कायकता लाल ��बहारी, और `ह��रटज वॉक` का चालक आकाश जन "जननी"। महनतकश इसान ��कसी एक पश म ब�� नही होता इस ��यान म रखत ��ए यह पा�� भी अपन भस बदलत रहत ह। पत�� जो सबह पा��कटमारी करता ह, रात को बड बाजवाल क�� य��नफॉम पहन ����पट बजान को तयार हो जाता ह। छद��मी समोसा कचौड़ी छोड़ जा�� टोटका तावीज़ बचन लग जाता ह। लाल ��बहारी ��ा����त लान क सपन दखता ह। आकाश जन इन सब स ज़रा अलग तबक क सद��य मालम पड़त ह सफ़द कत पजाम म लबरज़, ज़बान स शहद सी उ�� टपकती ��ई। व ��वद��शयो और पयटको को परानी ��द��ली म ऐ��तहा��सक जगहो क�� "वॉक" करात ह, ल��कन जब पत�� जसा परानी ��द��ली का कोई असल वासी उनस बात करन क�� को��शश करता ह, तो व झप स जात ह। ��फ��म कई परतो म पनपती ह। श��द और छ��वयो का घोल मल ��नरतर चलता रहता ह। गौतम नायर ��ारा ��कया गया ��फ��म का साउड ��डज़ाइन भी कई ��वा��द�� परतो म हमार कानो तक प��चता ह: लोक सगीत स इल����ो पॉप 32 और भीड़ क शोर शराब स लकर तबला ��बाब, शादी का बड बाजा, और भी ब��त कछ ��फ��म को सवारता ह। भाषाओ क�� भी परत ह उ��च वग क�� अ��जी तो ह ही, उसक साथ ही म��थली, भोजपरी, नपाली, उ�� इ��या��द भी चादी क वरक़ स ��फ��म म मौजद ह। एक पतली परत ऐनीमशन क�� भी ह ��फ��म क�� वा��त��वकता क ऊपर, और सपनो क�� ����नया का ��च��ण करन क ��लए इसका ख़ासा इ��तमाल ��कया गया ह। "घोड़ को जलबी " म कहा सपन ख़तम होत ह, और कहा वा��त��वक जीवन श��, इसका पता लगाना ज़रा म����कल ह अपनी ��बछड़ी ��ई ����मका को याद करता रघवीर सहाय का पा�� जब दीवार पर स सरकता घमता जाता ह, तो ऐसा ��तीत होता ह जस वह दीवार पर ही लटा ��आ हो, अब ��फ��म और ��फ��शन म यथाथ और फतासी क बीच अतर कर पाना ��कतना ज��री ह, यह ��नणय आपका ठहरा। ��फ��म ग़रमामली तो ह, ल��कन अपन चय��नत ��सग क�� ओर ईमानदार भी। इस दखकर पाश क�� कछ प����या जीवत सी हो जाती ह, मानो जस य आपस कहना चाहती हो "अभी ब��त बात करन को ह अभी म धरती पर छाई ��कसी दहाड़ीदार क काल ��याह होठो सी रात क�� ही बात क��गा"। ऐसा ��सनमा भ��व��य का होता ह या भतकाल का, यह कौन बताएगा? इस ��फ��म को दखकर जो लोग च��कत ��ए, उनम स याशी सह फम समीा

कई ऐस नौजवान थ ��ज��ह 90s क ��रअ��ल��म स चर ��फ��मो क�� लत ह। ल��कन जब इस दश म ��ज़��दगी खद समझ स बाहर होती जा रही ह, खासकर उनक ��लए जो इस दश को अपनी पीठ पर ढोत ह, तो ��सनमा भी ऐसा ��यो नही हो सकता? 33 याशी सह फम समीा टल: 'घोड को जलबी खलान ल जा रया '

��स��री सरज छत पर बठा ��खसकता जा रहा ह इस कोन स उस कोन म बादलो क�� छत स टपक रहा ह सय रस कछ बद ��गरी न��दयो म मछ��लयो क�� पीठ पर कछ बद लन आई ह मज़हबी ��थलो स ओस क�� बद कछ दबद ��ग��र इसानो क बीच और छ ��लए उनक म����त��क स ��नलत पसीन जब बारी आई र��ग��तान क�� तब खद उतर आया सय र��ग��तान क�� भटकती आ��मा को बतान क�� तम अब नही रहोग अकल त��हारी तरह भटगी और भी आ��माए म दख रहा �� आर��भ धरती क पतन का मन मछ��लयो क�� पीठ पर द��ख ह न��दयो क�� ��सकड़ती ��ई जीवन रखा मन ओस क�� बदो स पछा तो जाना मज़हबी ज़मीन बन चक�� ह कोख राज��न��तक ष��डय����ो क मन भागती ��ई हवाओ क आखो म दखा ह एक अघो��षत महामारी क�� त��वीर म परा ��दन घमता रहा इसानो क बीच इसानी जगलो म जहा धल फाक रही थी सवदनाओ क पथ ��च��ह जो धरती स हो चक�� ह ��वल��त य जो खद को ��ा��तकारी कहत ��ए मज़हबी नारो क साथ तलवारो क�� धार आज़मा रह ह पड़ो��सयो क दरवाज़ पर , उनक�� दह स गध आती ह उस आग क�� जो दो प��ो क�� लड़ाई म तट��थता स ��नभा रहा होगा अपना धम वो नही पछगी कौन ��कस जाती स ह ��कसका ��या मज़हब ह जो लोग बच ��ए ह मानवता क अ��तम पौध बचा लन क ��यास म उ��ह सीचत ��ए एक ��दन कोई बड़ा पड ��गरगा उस पौध पर और परी धरती बन जाएगी बजर त��हार शारीर क�� तरह तब तम नही रहोग अकल त��हारी तरह भटकगी और भी आ��माए ! धमकदग योगश महत 34

जो कहत ह, बतात ह, पकारत ह ��फर भी सनाई नही दत, त उनक ��लए बोलl जो हफ़ ऐ हक़ क�� जग क इलज़ाम म ��सतमगरा ऐ आलम क�� ज़जीरो म जकड़ ह, जो दहशतो क�� ��सयाह रात म भी इ��क़ क परचम क�� रौशनी ��लए ह, इसा��नयत क�� वक़ालत करत करत ��जनक ल��ज़ अब हारन लग ह, उ��ह ल��ज़ो का सहारा द, और उनक ��लए बोलl जो ब����क म भर बा��द क�� गध को गलाब क�� महक स ��मटान चल ह, नफरत क�� दीवार ढहान म ��जनक हाथ कमज़ोर होन लग ह, और मदद क�� ��सफा��रश बहरो क�� ब��ती म कही खोन लगी ह, ��जनक�� न��मो और अश'आर क ल��ज़ हलक पढ़न लग ह, उ��ह ल��ज़ द, ��जनक�� कलमो म मा अशर��त त��दीली क�� ��सयाही सखन लगी ह, त उनक ��लए बोलl सर बाजार म झठ को बढ़ाना करन वाली हर आवाज़ को त आवाज़ द, और इन◌साफ क�� उठती पकार क ��लए बोल l बोल मबाह खान 35

36 कलकाबारशऔरखजा खालाकछटकबहन मधरमा माईती (तहारी तो फर भी खाला ही लगी) उमस वाली गमी को धकलता मॉनसन जब आ कर ��दल और ��दमाग को तरोताज़ा कर दता ह तब गमा गरम पकौड़ इसका मज़ा दो गना कर दत ह। इस बा��रश क मौसम म आपको हम जस कलक�� वाल दाल बड़ा (ডােলর বড়া/दालर बौड़ा) खात नज़र आएग। य बड़ आपको शहर क भीगत चौक बाज़ारो म लकड़ी क ठलो पर अममन कोयल क च��ह म गमा गरम तलत ��ए नज़र आएग तो आप सोचग ��क भला इसम ��या खास बात ह दाल बड़ तो दश भर म खात ह? तो जान ली��जए जनाब, हम कलक�� वाल इसका ल��फ़ चटपटी आमादा चटनी क साथ उठात ह। आमादा श��द का ��व��छद करन पर आपको ��मलगा आम और आदा। आम, यानी फलो का राजा और आदा, यानी अदरक। आमादा शकल सरत स अदरक जसा ��दखता ह ल��कन ��वाद म यह अदरक और क��च आम का अनठा ��म��ण होता ह। अ��जी म इस mango ginger भी कहत ह। अब नाम ऐसा हो तो काम भी अनोखा ही होगा।अर, हम ��सफ ��चढ़ा नही रह ह ब����क ��क��त क�� इस अनोखी दन क�� चटनी क�� ��व��ध आपस बाटन आय ह और साथ म लाए ह ��वा��द�� दाल बड़ भी। नोट: आमादा ��मलना थोड़ा म����कल ह। अपन शहर क ��कसी भी बगाली प��रवार स दो��ती क��रए, उनक जान पहचान क स��लायर स मलाक़ात क����जय और आमादा का ल��फ़ उठाइए। या ��फर य��द कभी कलक�� आना हो तो यहा मडी म ��मल रह आमादा को घर ल जा कर ��म��ी म बो दी��जयगा। साल भर क�� स��लाई आपको ��मल जाएगा। ��खजा का खास नोट: हमारी मध��रमा ही हमारी ��ग डीलर मतलब आमादा स��लायर ह, जीवन स��प��न ह, और ��या चा��हए। हा, यहा ��लखी ��व��ध एकदम ऑथ��टक ह पर हमशा क�� तरह, ��योग पर खली छट ह, आ��खर रसोई तो आपक�� ही ह ना।

चना और मटर दाल को ३ घट पानी म ��भगोए। छान कर दोनो दाल को अब अ��छ स ��सलब�� पर या ��म��सर म कर दरदरा ��पस ल। (��म��सर का इ��तमाल आपका काम आसान कर दगा, ल��कन ��सलब��ा म ��वाद बहतर उभर कर आएगा।) अदरक और ��मच को पीस कर ��पस ��ई दालो क साथ ��मला ल। इस ��म��ण म ताज़ा ��पसा ��आ जीरा और लाल ��मच पाउडर डाल द। ह��दी, नमक, ��हग भी डाल द। थोड़ी चीनी भी डाल द, इसस बड़ का रग स��दर ��नकल क आएगा और पकवान ��यादा दर तक ख��ता रहगा। एक कढ़ाई म तल अ��छ स गरम कर ली��जए ल��कन बड़ तलन स ठीक पहल आच म��यम कर दी��जएगा। और छोट छोट, गोल गोल बड़ो को सनहरा होन तक त��लए। दाल बडा / दालर बौडा सामी १०० ��ाम मटर दाल १०० ��ाम चना दाल १ इच अदरक का टकड़ा १ बड़ी हरी ��मच १/२ छोटी च��मच जीरा पाउडर १/२ छोटी च��मच लाल ��मच पाउडर १/४ च��मच चीनी १/४ छोटी च��मच ह��दी १ चटक�� ��हग नमक ��वादानसार तल तलन क ��लए वध 1 2 3 4 5 37 मधरमा माईती खजा खाला

आमादा, लहसन, ध��नया और हरी ��मच को छोट टकड़ो म काट ल। ��सलब�� या ��म��सर म बारीक पीस ल। जी और जीभ चाह तो लहसन क�� एक दो क��लया और डाली जा सकती ह। ��वादानसार ��नब का रस और नमक डाल। इस अब आप ऐस ही खा सकत ह। अगर इ��छा हो (या सरसो क तल का ��वाद अ��छा लगता हो) तो 1 छोटा च��मच तल का डाला जा सकता ह। दाल बड़ को इसम डबोकर खात र��हए। बाक�� अपनी ��खजा तो रोटी वगरह सबक साथ खाती ह, बस आमादा ��मला चा��हए। आमादा चाटनी सामी 50 ��ाम आमादा लहसन क�� 5 क��लया 2 छोटी हरी ��मच 1 ��नब का रस 50 ��ाम ��भगोए काल चन 20 ��ाम हरा ध��नया नमक ��वादानसार 1 बड़ा च��मच सरसो का तल [इ��छानसार] वध 1 2 3 4 5 38 मधरमा माईती खजा खाला

आभार सची सपादन उलफ़त राणा वतका याशी सह कला नदशन मधरमा माईती आवरण सौया जयती रचनाए आमत ह। यहा लक कजए: Submission Guidelines आगामी अक हम आपको मौका द रह ह हमस जड़न का, मन पसद कसी भी वषय पर लखन का फतासी, राजनीत, म, इतहास, लग, कला, सगीत, खाना और जो भी जी चाह। लखन/कला क शली कोई भी हो सकती ह, जरत ह तो बस भरसक रचनामकता क।

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