मचान अक ११ सत बर २०२२

सपादक य ����य पाठको�� जब मने पहली बार '����य' कहकर आपका अ��भनंदन ��कया था और मचान क अक को, मेरी रातो�� क�� नी��द को आपक हाथो�� मे�� थमा ��दया था तब आपक�� सं��या पचास से भी कम रही होगी। आज जब मै�� आपको '����य' कहती ��ँ तो आप पाँच सौ से भी अ��धक है�� और सभी उतने ही अजीज। इस दौरान जीवन मे�� ब��त से बदलाव आए और हर बदलाव ने मेर लेखन को बदला। मचान क�� बदौलत मै��ने सीखा क�� मै�� गु��से मे�� ब��त कछ ��लखती ��ँ पर छपने लायक कछ नही��, खुशी मे�� मै�� छोटा ��लखती ��ँ पर बोलती ब��त ��ँ, और ��ःख— ��दल को ��नचोड़ देन वाले ��ख मे�� मै�� ��लखना ब��त चाहती ��ँ पर न तो ��याही क साथ श��द ��नकलते है�� और न ही आसुओ�� क साथ ग़म। मै�� ��लखती �� तो ��सफ ��यार मे�� ��दल को चकनाचूर कर देने वाले ��यार मे��, उ��मीद क�� आग को भड़काने वाले जुनून मे��, रोम-रोम मे�� बसने वाले असीम ��ेम मे�� मेरे श��द भी बसते है��। इधर मै�� कहती ��ँ मेरा ��ेम असीम है ��यो����क वो श��द सीमाओ�� को नही�� जानता और उधर आप पूछते है�� ��क कहां है इस असीम ��ेम का सबूत? कहां है तु��हारा लेख? ��या तु��हारा ��यार कम है और ��ख ��यादा? और एक मंद फसफसाहट— कोमल, शीतल पूरवाई मे�� ��हलते प��ो�� जैसी फसफसाहट आपको बताती ह ��क आजकल उलफ़त का ��म बस मचान क पाठको, बाक�� तीनो सपादको और उसक अ��त��थ लखको पर ही उमड़ रहा ह... बस एक और अक मरी कलम स उतर सपादक��य म ही सत�� हो जाइए ��यो��क भीतर क प��नो म मझस भी कही ��यादा ����तभाशाली लोगो का ��म उमड़ रहा ह। हर अक को बटोरते व��त मेरे ��दलो ��दमाग से एक ��बजली सी दौड़ती है, हर एक लेख, आलोचना, कहानी, क��वता मुझे नतम��तक होने को मजबूर कर देती है, मेरी आ��मा को पुल��कत कर देती है, मझे झँझोड देता है और जब मचान क इनबाॅ��स नामक बाग से बटोरे ����तभासंप��न कलाकारो�� क बीजो�� से

उपज य फ़ल म आप तक प��चाती �� तो यही भावनाए ��फर ��फर मझ ��म और उ��लास स भर दती ह और और और मरा ��दल पकारता ह। सपादन म भी एक उ��माद ह, कौन जानता था भला य बात? खर, ��म म पड़ी म ��फर श��द सीमा भलन वाली �� तो ज��दी स आपको ��मलवाती �� इस अक क अजीज रचनाकारो स ��म��बाह जी, स����च जी, ��न��ध जी, योगश जी, ��शवागी जी, ��शवम जी, आका��ा पा��डय जी, रमन जी, ��रणा जी ��ज��होन अपन ��दल को काट एक ��ह��सा हमार हवाल ��कया और अब यही खज़ाना हम थोड़ा सजा कर आप तक प��चा रह ह। आका��ा जी और अज जी तो अपन ही ह, एक बार ��फर अपनो स ही जड़ रह ह। ��व��तका, ����याशी और मध��रमा न हमशा क�� तरह ही कछ मीठा, कछ ख��ा पकाया ह, एकदम मज़दार। मध��रमा क कला ��नदशन और सौ��या जी क आवरण छाया��च�� क बगर य अक भी ��ा��ट ही रह जाता, आभार, हमशा। स��नेह, सादर, अब ये अंक आपका। आपक�� ����य उलफ़त ❤

बबल बा रश दश नकाला प तक समी ा मनगा यज़ को फन मल द ली का दल यथाथ और क पना 07 07 08 09 11 13 16 17 सची

सची अपमाजन मसोपोटा मया क औरत मन जी का कमबक बाढ़ का पानी फ समी ा धम क दग बोल कलक ा, बा रश और खजा खाला क छटक ब हन 20 22 24 29 31 34 35 36

बबल स च शमा ��म��ी क टीलो पर चढ़त व��त कई बार तीख बबल क काट चभ ह च��पलो क आर पार परो क तल स बात करन प��च ह। "मआ यह कौन आया! ��बन बलाय मर घर क ��नचल दरवाज़ स घसन वाला बड़ा ज़ा��लम, चभीला ��नकाल फका उस हाय, दद! काट न काट ��लया!" आज सालो बाद सीन म दद उभरा। मन भीतर झाका तो ��कतन काट बठ थ अदर! इतन ��क अब म खद एक बबलू का पेड़ ��ँ। 6

बा रश आका ा मर कदीम ज़��मो को बतरतीबी स करद दती ह आब ए त��ख़ क�� तौहीन करती, बा��रश यहा रोज़ होती ह। तमन बाद बा��रश ��कया था आन का वायदा ��कती ही नही य मह��म, बा��रश यहा रोज़ होती ह। टट घर क�� छ��पर स ह री��ता घटो पानी बा��टी भर सक उतनी ही, बा��रश यहा रोज़ होती ह। कही ��र लगता ह ��कसी का साथी होगा छटा शायद उस बवडर क�� ही, बा��रश यहा रोज़ होती ह। दशको ��कया था फहार का इतजार तमन सर पकड़ बठो हो अब क��, बा��रश यहा रोज़ होती ह। पहली बार दखा था बा��रश म त��ह जब स दखा ह त��ह, बा��रश यहा रोज़ होती ह। 7

दश नकाला न ध जग ाथ ि वदी सजाओ म सबस भीषण सजा म समझती रही म��य दड या कारावास को ल��कन दश ��नकाला होती ह सबस कठोर सजा यह मन त��हार ��दय स ��नकलत ��ए जाना। 'जाना' ��ह��दी क�� सबस खौफ़नाक ����या ह कहत ह कदारनाथ ��सह, ��कत '��नकाला जाना' उसस भी अ��धक भयानक ����या ह यह मन त��हार ��दय म ध��क खात ��ए जाना। ����यक जान म शा��मल नही होता '��नकाला जाना' कछ लोग जम रहत ह जान क बाद भी ��कत '��नकाल जान' म 'जान' क इतर शा��मल रहता ह और भी ��कतना कछ यह मन त��हार ��दय स ��नकलन क बाद जाना। चावल पछोरत ��ए कहती ह मा क��ड़ पड़ सकत ह ����नया क�� हर चीज़ म तब एक हाथ स दबात ��ए नाक ��सर हाथ क�� तजनी और अगठ स बनाकर '��चमटी' उठा फकत ह ऐसी चीज़ो को बाहर ��म म भी कस पड़ जात ह क��ड़ यह मन तमस ��म करत ��ए जाना। 8

प कसमी ा अज बाला लाखो�� युवाओ�� क�� भां��त नौकरी क�� ज��ोजहद कर रहा उप��यास का नायक अंतक लेनदेन वाली सरकारी नौकरी ना ��मलने पर सभी को��शशो�� और बातो�� को अनदेखा कर खुद को खोजने ��नकल पड़ता है और फस जाता है सुनहरे क��रयर का झांसा देकर लाखो�� ��पए हड़प जाने वाले मी��डया ��कल क मकड़जाल मे��। सीखन का जुनून कछ पाने क�� भख, सपनो�� क�� मरी��चका मे�� भटकते युवा वग�� को प��र����थ��तयां अनुकल होने तक 'तेल देखो तेल क�� धार देखो' तज�� पर धैय�� बनाए रखने क�� राह ��दखाता यह उप��यास पूरी तरह से ��यं��या��मक है। मी��डया ��श��ा और क��रयर क�� उठापटक मे�� सामने आने वाली तमाम गुटबाजी चमचा��गरी, चुगलखोरी और गु��घंटालो�� क बीच बेबाक अंतक गलत का ��वरोध करता है, उपे��ा सहता है। ल��य का पीछा करने मे�� मशगूल अंतक मी��डया सं��थानो�� क भीतर चलते षडयं��ो��, कारगुजा��रयो�� और अनै��तक ����त��पधा�� क�� ठेठ खड़ी भाषा मे�� ब��खया उधेड़ता भी चलता है। नायक ह��रयाणा प��रवेश है इसी��लए ह��रयाणवी हा��य अपने अंदाज मे�� ��वत ही छलक जाता जाता है खंड 'कयामत' मे�� पु��लस और फौजी सै��यूट वाला ����य तो पाठक को पेट पकड़ने पर मजबूर कर देता है। ��ब��दास और बेबाक हा��य ��यं��य ह��रयाणवी प��रवेश क�� पहचान है। लेखक ने इसे नायक अतक ��ारा बखूबी इ��तेमाल ��कया है। मी��डया सं��थानो�� क ��लपे पुते चेहरो�� से परत दर परत मुखौटे उखाड़ता यह उप��यास; चकाचौ��ध क पीछे छपे सच को 9 सनील कमार क उप यास "बावळी बच" क समी ा

10 सामन लाता ह ��क ��कस तरह छटभय चनलो क प��कार ��सर चनलो क�� खबर चोरी करत ह उनक ��टाफ म सध मारत ह। अतक जस कछ प��कार खलआम इन ��ग��ो स ��भड़ जात ह और इस पश क�� न��तकता को बनाए रखत ह। उप��यास का नायक तमाम यवाओ क ��लए आशा क�� ��करण ह। जो सदश द रहा ह ��क ��गरन स मत डरो ��यो��क ��गर तो भी अनभव तो अव��य ��मलगा, बस खड़ होन क�� ��ह��मत बनाए रखना। ��दल और ��दमाग क�� लड़ाई म हमशा ��दल क�� सनो। ��दल क�� सनन वाल मनमौजी को लोग 'बावली बच' कहत ह। ल��कन यह पागलपन आपको जीन का ज��बा दता ह। खद क�� राह और म��जल तलाशन का मौका दता ह। हर व��तु, ��य���� मे�� कछ कमजो��रयां भी होती है�� ��यो����क 'इस हमाम मे�� सब नंगे है��' जा��हर है उप��यास मे�� भी रही होगी। इस मे�� कछ ��याकर��णक अशु����यां है जो सरलता स सुधारी जा सकती है��। लेखक ने ��ारंभ मे�� ही अनेक पा��ो�� को एक����त कर ��दया है ��जससे सब गडमड हो जाता है। पाठक को सामजं��य ��बठाने मे�� थोड़ा समय लगता है। सभी पा��ो�� का प��रचय लंबा चौड़ा देने क�� आव��यकता नही�� थी, ��वशेषकर गौण पा��ो�� क��। गुलनाज का कहानी मे�� एकाएक ��वेश कर जाना थोड़ा अखरता ह। लेखक ��ारा बीच मे�� ही यह बताना ��क गुलनाज क पु�� अरशद ��सैन से उनक चाचा ने ��द��ली मे�� प��रचय अज बाला प तक समी ा करवाते ��ए ��ेरणा लेने को कहा था। य��द यह पाठको�� को पहले से पता होता तो उप��यास एकाएक पकड़ से बाहर नही�� होता। कहानी क साथ पाठक का तादा����य ��यादा गहरा होता। बहरहाल तमाम क��मयो�� और खू��बयो�� क साथ उभरते सा��ह��यकार का खूबसूरत और उ��े��य परक उप��यास कहा जा सकता है। लेखक सुनील कमार क श��दो�� से परी तरह सहमत ��ं ��क 'यह आपक�� ��ज��दगी है। यह आपक�� कहानी है, तो इसक फसले भी आपक और रा��ते भी आपक।' इसी क साथ लेखक को उनक उ����वल भ��व��य क�� शुभकामनाएं।


मनगा न ध जग ाथ ि वदी एक एक हाथ ल��ब मनग क कई फल लटक रह ह काली मटमली पीली चोच वाली कई फलच����कया उसक फल चनती ह नाखन स भी कम आकार क�� कई इ����लया उसक�� पीठ पर झलती ह उसका एक ��ह��सा सड़क क�� ओर झका ह और ��सरा ��ब��कल सीध तीसरी म��जल तक ऊचा उठा ह कछ लोग कहत ह ��क उसक�� इस अ����या��शत ऊचाई का कारण म �� म तीसरी म��जल म रहती ��! मनगा तीसरी म��जल क ��खड़क�� तक आता ह और हवा क�� आड़ लकर दरीच पीटता ह उसक�� इस बहयायी स परशान लोग जब उस घरत ह तो वह अपना झका ��आ भाग और अ��धक ��वन��ता स झका दता ह मानो अपन ��म क�� मौन गहार लगा रहा हो 11

"अब एही काट दा ब��त ब��ढ़ गा हय" कहत ��ए लोग ��नकलत ह तो कछ दर वह ��आसा सा खड़ा रहता ह ��फर बपरवाही स ��खड़क�� पर आकर म��करान लगता ह। जब म ��खड़क�� खोलती �� तो उसक�� ठडी हवा मर बदन म भर जाती ह उसक फलो क�� भीनी खशब मर ����पट स ��चपट जाती ह उसक�� पीली प����या उड़ उड़ कर मर भर बालो म फसती ह यह दख सारी फलच����कया ��खल��खला कर हस पड़ती ह, वह मनग क�� ब��मीज़ सह��लया ह मनगा उ��ह उड़ान क�� को��शश करता ह पर वह नही उड़ती ब����क एक साथ कोई ��म गीत गान लगती ह उसक पील प�� शम स लाल हो रह ह उसक�� हरी धड़कन आकाश म गजती ह बादल उसक�� चटक�� लत ह तो हवा उसक बालो को छड़ कर भागती ह फलच����कया ��फर ��खल��खलाती ह और वह झप कर ��सर झका लता ह म इतन नाजक ��मी स जीवन म पहली बार ��मल रही ��! 12 न ध जग ाथ ि वदी मनगा

यज कोफनमल तका नोट: ले��खका यानी ��क मै�� ��फगर ��कटर युज़ु�� ह��यू क�� ब��त बड़ी फन ��ं। युज़ु�� ��फगर ��क��ट��ग क सव��का��लक सव����े�� ��खलाड़ी माने जाते है��। ��पछले दो ओलं��पक खेलो�� मे�� ��वण�� पद हा��सल कर उ��हो��ने पूरी ����नया मे�� अपने फस बना ��लए है��। अगर आप भी मेरी तरह फन-ग��ल��ग नामक इस बीमारी से ����त है�� (भले आप ��कसी क भी फन हो—सलमान भाई से लेकर क पॉप तक) तो एक सह-फन होने क नाते आप मेरी मनोभवना को अ��छे से समझ सकते ह। ��कसी का फन बनना आसान काम नही��। ब��त मेहनत लगती है। पर जो लोग फन सुनते ही नाक ��सकोड़ लेते है�� और फट से अट-शंट राय बना लेते है��, उ��हे�� ��या पता इस सुख क बारे मे�� और ये लेख उनक ��लए है भी नही��। ख़ैर, आपक�� ले��खका ने वादा ��कया था क�� वे युज़ु�� को ��व��टर ओलं��पक मे�� देखने बी��ज��ग ज़��र जाएंगी। ये वादा उ��हो��ने 2018 क ��व��टर ओलं��पक क बाद ��कया था। उ��हे�� डर था ��क शायद ये आ��खरी मौका हो जब वो युज़ु�� को ओलं��पक खेलो�� मे�� देख सक। और उनका ये डर ज��द ही सच सा��बत हो गया। 19 जुलाई को 27 साल क युज़ु�� ने ����त��पधा����मक ��क��ट��ग को हमेशा क ��लए अल��वदा कह ��दया। ओलं��पक मे�� युज़ु�� ��वॉड ए��सेल करने मे�� ��वफल रहे और उ��हे�� चौथे ��थान से संतु�� होना पड़ा। 13


तो कल होना ही था। कभी जब तु��हारे ��व��कपी��डया पेज पर नज़र जाती है तो 'क��रयर एंड' ��लखा देखकर अजीब लगता है। मी��डया ने ��जस कदर तुमपे दबाव बनाया था उसमे�� भी तुमने इतना अ��छा ��दश��न ��कया इसक ��लए तु��हे�� अपने आप पे फ�� होना चा��हए। जहां एक तरफ तु��हे�� न देख पाने का ��ख है वही�� ��सरी तरफ इस बात क�� त��सली है क�� तुमने इस खेल से हमेशा क ��लए मुंह नही�� मोड़ा है। तु��हे�� अ��य ����त��पधा��ओ�� मे�� खेलता देखने क�� आस मै��ने अभी नही�� छोड़ी है। बातो�� बातो मे�� तु��हे�� यू��ूब चैनल खोलने पर बधाई देना तो मै�� भूल ही गई थी। पर ��या अ��छा नही�� होता जो तुम उसमे�� सबटाइट��स उफ़ उपशीष��क भी लगा देते। मेरी टटी फटी जापानी काफ�� नही�� पड़ती तु��हे�� समझने क ��लए। ये कमब��त भाषा हमारे बीच भी दरार डालने का काम कर रही है। असल ��ज़��दगी मे�� तुमसे मुलाकात हो न हो पर तुमसे ��मलने म सपनो�� क�� ����नया मे�� ज़��र हा��ज़र र��ंगी। और उसक ��लए मुझे नी��द क�� आगोश मे�� जाना ही पड़ेगा। जाना ज़��री है। बाक�� बाते�� अगले मेल मे�� ��तु��हारी,वे��तका 15 खद को ��म म रखना ही था। त��ह दखन क�� ��वा��हश हमशा क ��लए एक सपन म कद हो गई ह। बी��जग म जो ��आ उस याद करक सोचती �� ��क अ��छा ही ��आ जो म ना प��च पाई। जो ��आ उस दखकर मन और टट जाता। मन आजतक त��हारा ���� ��कट का वी��डयो नही दखा। और न दखगी। ��ह��मत नही त��ह टटा ��आ दखन क��। त��हार हारन क�� खबर सनक पलभर क ��लए नथन क ����त मरी नापसदगी बढ़ गई थी। पर य सोचकर क�� तम मरी जगह होत तो य न करत, मन ��ष को वही दबा ��दया। मरी ��ज़दगी पर त��हारा ��भाव कछ इस क़दर ह। तमन मरी ��ज़दगी म खद को ऐस घोल ��लया ह ��क अब त��हारी प��र����थ��तयो का असर मझप पड़न लगा ह। एक समय था जब ����कट ����मयो का अपन पसदीदा ��खलाड़ी क ��लए ऐसा ��यार उमड़त दख अजीब लगता था। सोचती थी ऐसा पागलपन कस सवार हो जाता ह आज खद क साथ य होता ��आ दख समझ आ रहा ह। य ��या बना ��दया तमन मझ यज़��। य कसा जा�� कर ��दया ह तमन? त��हार इस खल को हमशा क ��लए अल��वदा कह दन क ��याल मा�� स मन कचोटन लगता ह। पर य आज नही तका यज को फन मल
